मनमोहक दक्षिण कोरिया

मैंने मुंबई से दक्षिण कोरिया के लिए प्रस्थान किया और इंचिओन एयरपोर्ट पर पहुंच गई. एयरपोर्ट के बाहर सेना के सैकड़ों फौजियों को देख कर स्तब्ध रह गई. मैं ने सोचा, यहां युद्ध तो नहीं छिड़ने वाला. किंतु शीघ्र ही मुझे पता चला कि इधर अमेरिका के फौजी तैनात रहते हैं क्योंकि यह देश अमेरिका द्वारा सुरक्षित आरक्षित है.

सेना का हर सैनिक बंदूक लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे दुकान में गुड्डे सजा कर रख दिए गए हों. एयरपोर्ट से बस ले कर मैं गंतव्य स्थल डेजोन के लिए चल पड़ी. यहां बहुत ही आकर्षक बसें हैं जो हीटिंग, एयरकंडीशनर की सुविधाओं से लैस हैं. सीटें बहुत ही गद्दीदार और पूरी तरह खुलने वाली आरामदायक हैं. सब देख मन गदगद हो गया और इंचिओन से डेजोन का 3 घंटे का सफर इतना सुविधाजनक था कि मालूम ही नहीं पड़ा.

साफ और काफी चौड़ी सड़कें दिखीं. खास बात यह कि हाईवे पर जो लेन बसों के लिए बनी है और जो लेन कारों के लिए बनी है, उन पर सिर्फ उसी तरह के वाहन चल रहे थे, फिर चाहे कोई लेन खाली ही क्यों न हो. यहां प्रदूषण नाममात्र को भी नहीं दिखाई दिया.

गंतव्य पर पहुंची तो मालूम पड़ा 2 दिनों बाद यहां की एक मैगजीन वाले साक्षात्कार लेने के लिए आने वाले हैं. वे लोग आए और उन्होंने भारतीय संस्कृति के बारे में पूछा कि भारत के लोग कैसे कपड़े पहनते हैं, और क्या खाना बनाते हैं? मैं ने उन्हें साड़ी पहन कर व सलवार सूट आदि दिखाए, चपाती बना कर दिखाई. जैसे ही चपाती फूली, वे आश्चर्यचकित रह गए. थाली में कैसे परोसा जाता है और अतिथिसत्कार कैसे किया जाता है आदि के बारे में अनेक बातें बताईं.

भारत की विविध भाषाओं के बारे में बताया तो उन्हें बड़ा अचरज हुआ. साथ ही, मैं ने बताया कि भारत में इतनी भाषाओं के बावजूद आपस में, व्यवहार में हिंदी या अंगरेजी से काम चलता है.

कोरिया में तो ज्यादातर एक ही भाषा कोरियन बोली जाती है, इसलिए वे समझ नहीं पा रहे थे. मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेज में भी कोरियाई भाषा ही शिक्षा का माध्यम है. लेकिन मिडिल स्कूल से अंगरेजी साथ में पढ़ना अनिवार्य होता है. पर उन का उच्चारण थोड़ा अमेरिकन होता है.

कोरिया में पढ़ेलिखे लोग अंगरेजी समझ जाते हैं किंतु जनसामान्य कोरियन भाषा ही समझ पाते हैं. इस बात का मुझे तब अनुभव हुआ जब एक बार हम लोग यहां के डाउनटाउन में गए और उधर मुझे शौच जाना था. कई लोगों से पूछा कि इधर आसपास रैस्टरूम कहां है, टौयलेट कहां है, बाथरूम कहां है? पर कोई नहीं बता पा रहा था. उन्हें इशारे से, चित्र बना कर भी बताने की कोशिश की किंतु निराशा ही हाथ लगी.

लेकिन अचानक हम लोगों को टौयलेट दिख गया तो राहत मिली. उसी क्षण सोचा कि आज ही घर पहुंच कर सब से पहले इस का कोरियन शब्द इंटरनैट पर ढूंढेंगे, साथ ही दैनिक प्रयोग के कुछ कुछ अन्य शब्द भी. दूसरे ही दिन कुछ आवश्यक शब्द याद कर लिए और फिर उन लोगों से बात करने में सहूलियत हो गई.

डेजोन में, भारतीय लोगों का मिलनसार समुदाय है. वे लोग एकत्रित हो कर भारतीय त्योहारों को बड़े उल्लास से मनाते हैं, खासकर 15 अगस्त पर ध्वजारोहण करना, होली दीवाली मनाना व आसपास के स्थानों पर पिकनिक पर जाना. एक बार हम सब लोग जिरिसिंग गए, जहां बरसात के दिनों में बड़ा ही आकर्षक दृश्य देखने को मिला.

पहाड़ों से झरने गिर रहे थे और ऐसा लगता था बादल जैसे पहाड़ पर ही रखे हैं. चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी. एक तरफ ऊंचे पहाड़ तो दूसरी तरफ गहरी खाड़ी और रास्ता बेहद घुमावदार. रास्ते में अनेक कोरियन मंदिर, मठ और महल देखने को मिले. हम लोग मठ के मोंक से भी मिले, उन की दिनचर्या के बारे में पूछा, वे लोग लकड़ी के तख्ते या लकड़ी के फ्लोर पर कपड़ा बिछा कर सोते हैं.

उन्होंने बताया कि मोंक मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह के हो सकते हैं. इस बात का कोई प्रतिबंध नहीं है कि सिर्फ शाकाहारी ही खाएं. रास्ते में कई गांव दिखे. गांव और शहरों की स्वच्छता व चौड़ी सड़कों के होने में फर्क नहीं दिखता.

यहां ज्यादातर लोग तो बौद्ध धर्म को मानते हैं, ईसाई धर्म का प्रचार भी बहुतायत से फैला हुआ है. पर आधे से अधिक लोग ऐसे हैं जो किसी भी धर्र्म को नहीं मानते.

कोरिया में एक और अजीब बात देखने को मिली. यहां सैमसियोंग डोंग और कई जगहों पर तो हर बिल्डिंग के नीचे रैस्टोरैंट्स हैं जिन्हें ज्यादातर महिलाएं ही चलाती हैं. कोरियाई लोगों का मुख्य भोजन मांसाहार ही है. ताजी मछली को उबलते पानी में काट कर डालते या भूनते हैं और उन्हें सौस के साथ खाते हैं.

बीफ, पिग, मछली व अन्य किसी भी जानवर का मांस खाते हैं, जैसे औक्टोपस. कुछ छोटे जानवर तो वे जिंदा खाते हैं. इधर चावल कुछ अलग तरह का मिलता है, बनने के बाद चिपका हुआ सा होता है. पर उस से ये लोग अनेक स्वादिष्ठ पकवान बना कर खाते हैं.

कोरिया में, विदेश से आए शाकाहारी लोगों के लिए भोजन करना थोड़ा मुश्किल तो होता है, पर जिम्बाप, गिम्बाप (चावल सूप और नूडल्स का मिश्रण) और सलाद में तरहतरह के पत्ते खाने के लिए मिल जाते हैं.

आजकल तो जगह जगह इंडियन रैस्टोरैंट भी खुल गए हैं पर वे काफी महंगे हैं. कोरियन ट्रेडिशनल रैस्टोरैंट में तो जमीन पर गद्दी डाल कर बैठते हैं और छोटे स्टूल, मेज पर भोजन रख कर खाते हैं. यहां के लोग अनेक प्रकार के पत्ते खाते हैं और विशेष कर कद्दू का सूप पीते हैं.

कोरियंस अपने स्वास्थ्य का बहुत ही ध्यान रखते हैं. वे बहुत व्यायाम करते हैं और बिना तला, बिना मसाले का भोजन करते हैं. इन लोगों की पोशाक अलग तरह की होती है जिसे ‘हंबोक’ कहते हैं.

‘ब्रेनपूल’ में चयनित लोगों का, यहां की सरकार की तरफ से, प्रतिवर्ष टूर होता है. जिस में इन चयनित लोगों को कोरिया के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में, जो उन की संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं, ले जाया जाता है. हम लोग भी इस टूर में गए थे.

अति खास मठों को, गांवों को दिखाया गया. उन की संस्कृति के अनुसार भोजन कराया गया. इन के लकड़ी के मठों की छतों का आकार आगे की तरफ झुकावदार होता है. उस पर सुंदर कारीगरी व खुदाई कर के विविध रंग भरे होते हैं. कुछ मठ तो बहुत ही ऊंचे पहाड़ों पर होते हैं, हम उधर भी गए.

‘उल्सान’ और ‘पोहांग’ में शिपिंग कंपनी और कार कंपनी हैं. ये लोग शिप व कार कैसे बनाते हैं, दिखाया. ये लोग ‘हुंडई’ तथा ‘किया’ कार, मोटर्स बनाते हैं. काफी मात्रा में मोटर्स, कारों व शिपों का निर्यात भी करते हैं.

उन लोगों ने, सम्मान में एक छोटी सी टौय मौडल कार भेंट भी की, जो हम लोगों को आज भी उन सुखद क्षणों की याद दिलाती है. हम लोग समूह में थे, सब ने मिल कर उन पलों का भरपूर आनंद उठाया.

आसपास के गांवों में छोटे छोटे टीले भी देखे, जिन का प्रारंभ में तो मतलब समझ में नहीं आया, बाद में पता चला कि मरने के बाद ये शरीर को जमीन के अंदर गाड़ देते हैं, और फिर ऊपर टीला सा बना देते हैं. जो जितना धनवान होता है उस का टीला उतना ऊंचा होता है. शाही लोगों के गहनेकपड़े आदि भी उसी में सुरक्षित रख देते हैं. गाड़ते समय मुर्दे का पैर जापान की तरफ कर के रखा जाता है. ये लोग जापानियों से बहुत डरते हैं क्योंकि उन्होंने कई बार कोरिया पर राज किया.

आज यह देश ओलिंपिक खेलों की प्रतिस्पर्धाओं में श्रेष्ठ स्थान रखता है. बचपन से ही बच्चों को तरह तरह की ट्रेनिंग्स दी जाती हैं. यहां की फुटबौल टीम विश्वविख्यात है. तैराकी और निशानेबाजी में कोरियंस सराहनीय स्थान प्राप्त करते हैं. व्यापारिक दृष्टि से भी ये किसी से पीछे नहीं हैं. दक्षिण कोरिया के लोगों ने अपने अथक परिश्रम से विश्व में अपनी साख बना ली है.

9 राज्यों और 5 प्रमुख शहरों वाला यह देश विकास की चरम सीमा पर है. सियोल, डेजोन, इंचिओन, बूसान कहीं भी जाइए, एक से बढ़ कर एक सुंदर शहर बसे हुए हैं.

जब हम लोग बूसान गए तो वहां समुद्र पर 4-5 मील लंबा पुल, रंगबिरंगी लाइट से जगमगाते हुए देखा. खास बात यह थी कि इस में एक लेयर में बसें, दूसरे पर कारें और तीसरे पर ट्रेन की आवाजाही चल रही थी.

सियोल में तो अनेक गगनचुंबी इमारतें, रंगबिरंगी लाइट से प्रकाशित अनेक महल जैसे स्थान देखे.

सियोल में कई कंपनियों के कार्यालय हैं, विधानसभा भी यहीं है. यह दक्षिण कोरिया की राजधानी है. सियोल के इतेवान में भारतीय लोगों की जरूरत का सामान भी मिल जाता है. इधर कई भारतीय रैस्टोरैंट भी हैं.

इंचिओन में तो अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट भी बना हुआ है. यह 3 तरफ से घिरा हुआ टापू है. ऐसा लगता है जैसे प्लेन समुद्र में उतर रहा हो. एयरपोर्ट से बाहर आतेजाते समय तो समुद्र पर बने एक बहुत ही लंबे पुल से हो कर जाना पड़ता है.

डेजोन के तो कहने ही क्या, यहां अनेक अनुसंधान करने वाली संस्थाएं हैं, जैसे कोरिया एटौमिक एनर्जी अनुसंधान आदि. अनेक शैक्षणिक संस्थान हैं, जैसे चुनगधाम यूनिवर्सिटी. सैमसंग और एलजी जैसी प्रसिद्ध कई कंपनियों के कार्यालय हैं. बच्चों के लिए यहां साइंस सैंटर, एक्सपो पार्क और वर्ल्ड कप स्टेडियम ‘ओ वर्ल्ड’ भी है.

हम लोगों को एक और बहुत अच्छा अनुभव मिला, जब हम लोग जेजू आइलैंड गए. उधर पनडुब्बी में जाने का सुनहरा अवसर मिला. जेजू आइलैंड जाने के लिए मात्र हवाईमार्ग ही है. यह चारों तरफ समुद्र से घिरा हुआ है. यहां का मौसम सदा ही बहुत अच्छा, घूमनेफिरने लायक होता है. संतरे बहुतायत से पैदा होते हैं. एकदो भारतीय खाने के रैस्टोरैंट भी हैं.

जिंजू शहर जाने का अवसर भी अविस्मरणीय है. यहां एक नदी है, उस के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि एक जापानी सेना औफिसर ने किसी कोरियन लड़की को बंदी बना रखा था. जब वह उस लड़की के साथ इस नदी में नाव पर घूमने आया तो उस लड़की ने जैसे ही गहरा पानी देखा, मौका पा कर उस मेजर को बोट से धक्का दे कर नीचे गिरा दिया और वह बच गई.

कोरिया का इतिहास बहुत रोचक है. यहां भी बौद्धिज्म भारत से ही आया है. कोरिया पर जापानी पाइरेट्स ने करीब 529 बार समुद्रमार्ग से आक्रमण किया. अमेरिकी सुरक्षा में आने के बाद से कोरियन लोगों ने अपनी अथक मेहनत से देश को बहुत ही सुंदर बना लिया है.

यहां जनता के लिए सामान्य यातायात की बसें भी बड़ी आरामदायक हैं. बस का चालक, बस में प्रवेश करते समय आप का अभिवादन करेगा. सब से बड़ी बात तो यह है कि हर बसस्टौप पर डिस्प्ले बोर्ड लगा हुआ है जिस में सदैव ही दिखता रहता है कि अभी बस कौन से स्टौप पर पहुंची है और आप के स्टौप तक कितने देर में पहुंचेगी.

अपाहिज लोगों के लिए बसचालक एक बोर्ड खोल कर नीचा कर देता है, फिर उन की व्हीलचेयर वह स्वयं उतर कर एक सीट से लौक कर देता है. पैसे की अदायगी के लिए बसचालक की साइड में एक बौक्स लगा होता है. उसी में सब लोग पैसे डाल देते हैं और कार्ड डिस्प्ले का बोर्ड लगा होता है. जिसे कार्ड से पैसा देना होता है वह उस बोर्ड पर कार्ड रख देता है और उस के अकाउंट से पैसा कट जाता है. बसकंडक्टर की जरूरत ही नहीं होती, सब लोग ईमानदारी से पैसे देते हैं. अदायगी में कुछ गड़बड़ या प्रौब्लम हो तो चालक को तुरंत मालूम हो जाता है.

दक्षिण कोरिया के लोग मजबूत बिल्डिंग्स और पुल आदि बनाने में महारत रखते हैं. भव्य इमारतें और लंबे, मजबूत पुल कुछ ही महीनों में बना देते हैं. फ्लोर के नीचे ऐसे पाइप बिछाते हैं जिन में गरम पानी प्रवाहित कर घर को ठंड के दिनों में गरम कर सकें. इस माध्यम से वे घर के तापमान पर नियंत्रण रखते हैं. फ्लोर के नीचे से घर गरम करना, यह इन का एक अनोखा और अच्छा तरीका है.

यहां जगह जगह पदयात्रियों के चलने के लिए कोर्क या रबर के फुटपाथ बने हुए हैं ताकि वे सुविधापूर्वक उन पर चल सकें.

कोरियन लोग अपने देश में आए विदेशियों की विशेषतौर से काफी मदद, अपनी समझ के अनुसार करते हैं. मिस्टर लिम नेरे ने भी हम लोगों की हमेशा ही बहुत मदद की. ऐसे कई लोग अकसर इधर मिल जाते हैं.

यहां एक किस्सा आप को बताना चाहूंगी, एक भारतीय था. उसे कहीं जाना था पर उसे मालूम नहीं पड़ रहा था कैसे जाएं. उस के पास खड़े हुए व्यक्ति ने टूटीफूटी भाषा में पूछा, किधर जाना है? फिर वह व्यक्ति बोला, अगर कल सुबह 9 बजे आप इधर खड़े हुए मिले, तो मैं आप को कार से पहुंचा दूंगा. भारतीय व्यक्ति ने सोचा, चलो, आजमा कर देखते हैं कितना सच बोल रहा है. दूसरे दिन 9 बजे वह नियत स्थान पर खड़ा हो गया और ठीक उसी समय वह कोरियन व्यक्ति कार से आया और उसे उस के गंतव्य स्थल तक छोड़ कर आया.

दक्षिण कोरिया की कुछ बातें और परंपराएं भारत से मिलतीजुलती हैं. भारत में 15 अगस्त के दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है. वैसे ही इधर भी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं. इन लोगों को भी 15 अगस्त के दिन ही पूर्ण स्वतंत्रता मिली थी.

नवंबर माह से तो दक्षिण कोरिया में सड़कों पर बर्फ की चादर सी तन जाती है. पेड़ों पर सिर्फ लकडि़यां रह जाती हैं, उन पर हर डाल पर बर्फ छाई हुई दिखाई देती है. सड़क, फुटपाथ सब के सब बर्फ से आच्छादित होते हैं. बच्चे बर्फ से इग्लू, गुड्डेगुडि़या और स्नोमैन बनाते हैं, बर्फ पर खेलते हैं, स्कैटिंग करते हैं. नदियां बर्फ की चादर जैसी सड़क हो जाती हैं. तापमान 20 से 25 डिगरी तक चला जाता है. इस से भी सब लोग खूब एंजौय करते हैं. इस प्रकार की ठंड नवंबर से अप्रैल तक रहती है.

स्प्रिंग यानी वसंत का मौसम मार्च के अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाता है. चैरी ब्लौसम आदि के सुंदर सुंदर, रंगबिरंगे फूल शहर की सुंदरता बढ़ाने लगते हैं. जब पेड़ ठूंठ से होते हैं तब शहर की सारी ऐक्टिविटीज साफ साफ दिखती हैं पर जब हरे हरे पत्ते छा जाते हैं, दूर का दृश्य नहीं दिखता. तब ऐसा लगता है पेड़ कह रहा हो कि अब सब मेरी हरियाली ही देखो. कहां औटम यानी पतझड़ के दौरान पेड़ों पर एक भी पत्ता नहीं, सब के सब ठूंठ और कहां हरियाली का यह आलम.

सुंदरतम दृश्यों को अपने में समेटे यह देश अति सुंदर है. अगर भाषा की समस्या न हो तो यह देश और ज्यादा तरक्की कर सकता है. उत्तरी कोरिया उग्रवादी है, किंतु दक्षिण कोरिया एकदम शांतिप्रिय है. यह पूर्वजों की धरोहर को अच्छी तरह से संभाले हुए है. यहां के पर्यटन स्थल साफ और सुरक्षित है. यहां के निवासियों को मानवतापूर्ण व्यवहार करना अच्छी तरह से आता है. ऐसे देश को मेरा सलाम.

जब घर पर आएं मेहमान तो कैसे करें मेहमाननवाजी

वैलकम रूम के इंटीरियर में कुछ बातों का ध्यान रखकर डिफरेंट एण्ड स्टाइलिश लुक दिया जा सकता है. गेस्ट रूम को बेस्ट रूम बनाने के लिए मेहमानों के आने से पहले उनकी खातिरदारी की तैयारी शुरू कर दीजिए और अपनी इस मुलाकात को यादगार बनाने की हर मुमकिन कोशिश कीजिए.

गेस्ट रूम के रंग

गेस्ट रूम में हमेशा हल्के रंगों का प्रयोग करें, जैसे ऑफ व्हाइट, क्रीम, लाइट ब्ल्यू आदि. हल्के रंग आंखों को सुकून पहुंचाने वाले होते है. इसके साथ ही कमरे को आकर्षक लुक देने के लिए कमरे की चादरें और पर्दों के रंग मिलते-जुलते ही सिलेक्ट करें.

गेस्ट रूम को स्टोर रूम न बनाए

कुछ लोग गेस्ट रूम को स्टोरेज रूम में भी बदल देते हैं. इसलिए गेस्ट रूम में घर की कोई भी पुरानी चीज या फिर बेकार पडे सामान को ना रखें. इससे घर के इस हिस्से में ठहरने वाले मेहमान को परेशानी हो सकती है.

अलमेरा

गेस्ट रूम में कपडों और दूसरे सामान को रखने के लिए एक अलमारी जरूर रखें. इससे आपके मेहमानों का सामान भी कमरे में बिखरा नहीं रहेगा.

फर्नीचर

कमरे में फर्नीचर बहुत ज्यादा नहीं होना चाहिए. इससे गेस्ट को चलने फिरने में आसानी होगी.

कूडे दान

कमरे में कचरा रखने के लिए छोटा-सा कूडे दान जरूर रखें. इससे कचरा कमरे में नहीं फैलेगा और आपका गेस्ट रूम भी साफ रहेगा.

पुस्तक व पत्रिकाएं

आप चाहें तो गेस्ट रूम में साइड टेबल पर कुछ पुस्तक व पत्रिकाएं भी रख सकते हैं. इससे अच्छा इम्प्रेशन पड़ता है और आपके मेहमानों का मनोरंजन भी हो जाएगा.

फिल्म रिव्यू : मातृ-द मदर

मां आखिर मां ही होती है, उसकी जगह शायद कोई नहीं ले सकता. और अगर उसे अपनी बेटी को एक हादसे की वजह से खोना पड़े, तो शायद वह किसी भी हद तक जा सकती है. ऐसी ही संवेदनशील विषय पर आधारित फिल्म मातृ-द मदर एक ‘रेप रिवेंज थ्रिलर’ फिल्म है. जिसे रेप की राजधानी दिल्ली से प्रेरित होकर बनाया गया है. इसके निर्देशक अश्तर सईद है.

फिल्म में मुख्य भूमिका अभिनेत्री रवीना टंडन ने निभाया है. पूरी फिल्म में रवीना शुरू से लेकर अंत तक छाई रहीं. उनके साथ एक हादसा हो जाने के बाद किस तरह वह अपने आप को सम्हालती है और कैसे पति का सहयोग न होने के बावजूद बदला लेती है, उसे बहुत ही बारीकी से दर्शाया है. यह फिल्म पुरुष मानसिकता की ओर भी इशारा करती है, जो हर समस्या का जिम्मेदार महिला को ही मानता है. पूरी फिल्म में रवीना के इस मानसिक आघात को जिसमें गुस्सा, दुःख, दर्द, आंसू आदि सभी भाव को बहुत ही सरीके से दिखया गया है.

रवीना की अब तक की सभी फिल्मों में शायद ये एक अलग और खास फिल्म है. जिसे सजीव करने के लिए उन्होंने खूब मेहनत की है. फिल्म के सभी पात्र किसी न किसी रूप में कहानी को सपोर्ट करते हुए दिखे. खासकर उनकी सहेली की भूमिका निभा रही दिव्या जगदाले ने खूब अभिनय किया है.

कहानी

दिल्ली में रहने वाली विद्या चौहान (रवीना टंडन) एक स्कूल टीचर है, जिसकी एक टीनएजर बेटी टिया (अलीशा खान) है. स्कूल में वार्षिक उत्सव होता है, जिसका उद्घाटन मुख्य मंत्री गोवर्धन मलिक (शैलेन्द्र गोयल) करता है और टिया को बेहतरीन प्रदर्शन के लिए अवॉर्ड देता है. जहां उसका बेटा अपनी दोस्तों के साथ दर्शकों के बीच में होता है. स्कूल के वार्षिक उत्सव खत्म होने के बाद आनंदित टिया और उसकी  मां गाड़ी से घर लौट रहे होते हैं, वे सड़क जाम में फंस कर रास्ता बदल लेते हैं. ऐसे में मुख्य मंत्री का बेटा अपूर्वा मलिक (मधुर मित्तल) अपने दोस्तों के साथ उनका पीछा करता है.

गलत, अनजान रास्ता और इन लड़कों को देखकर विद्या घबरा जाती है और एक दुर्घटना की शिकार हो जाती है. ऐसे में वे लड़के उन्हें उठाकर ले जाते हैं और गैंग रेप होता है. जिसमें टिया का मर्डर भी हो जाता है. सभी लड़के उन्हें लेकर मरा हुआ समझ कर सुनसान जगह पर फेंक देते हैं, लेकिन विद्या बच जाती है. उसका पति रवि चौहान (रुशद राणा) उसे ही दोषी मान उसे छोड़ देता है.

विद्या अपनी सहेली का सहारा लेती है. उसकी सहेली और विद्या कानून का सहारा लेकर अपराधी को सजा देने की कोशिश करते है, पर मुख्या मंत्री का बेटा होने की वजह से वह भी पीछे हट जाता है. ऐसे में विद्या खुद बदला ऐसे लेती है कि पुलिस जानकर भी उसे पकड़ नहीं पाती. इस तरह कहानी काफी उतार चढ़ाव के बाद अंजाम तक पहुंचती है.

शुरुआत में फिल्म की रफ्तार कुछ धीमी थी, बाद में अच्छी लगी. विलेन के किरदार में अपूर्वा मलिक ने अच्छा अभिनय किया है. फिल्मो में गाने कुछ खास नहीं हैं, क्योंकि उसकी कोई जरुरत भी नहीं थी. निर्देशक फिल्म की स्क्रिप्ट को थोड़ी और ‘क्रिस्पी’ बनाते तो शायद ये और अच्छी फिल्म बन सकती थी. बहरहाल रवीना को इस ‘स्ट्रॉन्ग’ भूमिका में देखा जा सकता है. इसे ‘थ्री स्टार’ दिया जा सकता है.

फिल्मों में ये सीन करने से डरते हैं आमिर

बॉलीवुड में ऐसे कई सितारे हैं जो फिल्मों में अपनी शर्त पर ही काम करते हैं और उसके आगे वो किसी की नहीं सुनते. किसी सितारे का नो किस क्लॉज होता है तो किसी का कुछ. कई बार इन सितारों के आगे निर्माता-निर्देशक को झुकना पड़ता है और उनकी शर्तों को मानना भी पड़ता है.

इन्हीं सितारों में से एक सितारा आमिर खान भी हैं. आमिर दो दशक से भी ज्यादा लंबे समय से फिल्म इंडस्ट्री में हैं. बॉलीवुड में 100, 200 और 300 करोड़ क्लब की शुरूआत करने का श्रेय आमिर को ही जाता है. लेकिन एक चीज है जिससे आमिर को बहुत डर लगता है और झिझक होती है. वह कभी इस चीज को अपने फिल्म में नहीं करना चाहते हैं.

आमिर ने आज तक अपनी हर फिल्म में इस चीज से परहेज किया है. और जब भी वो कोई फिल्म साइन करते हैं तो इस बात का जरूर ख्याल रखते हैं कि अपनी शर्त फिल्म निर्देशक और निर्माता को पहले ही बता देते हैं.

दरअसल आमिर अपनी किसी भी फिल्म में लो एंगिल शॉट नहीं रखते और इस बारे में वो फिल्ममेकर को पहले ही बता देते हैं.

यहां तक कि उन्होंने निर्देशकों को खास हिदायत दे रखी है कि उन्हें कभी भी लो एंगिल में ना शूट किया जाए. हम आपको बता दें की लो एंगिल शॉट वो शॉट है जिसमें कैमरे के एक खास एंगिल के जरिए कलाकार को लंबा या ज्यादा प्रभावशाली दिखाया जाता है.

आमिर को लो एंगिल शॉट बिल्कुल भी पसंद नहीं है. अगर गौर किया जाए तो उनके अब तक के करियर में किसी भी फिल्म में आमिर का लो एंगिल शॉट देखने को नहीं मिलता.

ताज्जुब की बात है कि जिस एक्टर को फिल्म के लिए बोल्ड सीन से लेकर किस सीन करने में कोई एतराज नहीं उसे लो एंगिल शॉट से इस कदर झिझक होती है.

आपके लिए हैं ये बिजनेस आइडिया

आपके अगल-बगल ऐसी तमाम महिलाएं होती हैं जो अपने जीवन में एक तरफ जहां घर संभालती हैं तो दूसरी ओर अपना बिजनेस या ऑफिस का काम करती हैं. क्या आप भी अपना खुद का छोटा सा बिजनेस शुरु करना चाहती हैं, पर अन्य महिलाओं की तरह आपको भी ये समझ नहीं आता कि आप इसकी शुरुआत कैसे करेंगी.

यहां हम आपको बताएंगे कि महिलाएं अपने लिए छोटा बिजनेस कैसे शुरु कर सकती हैं? आप एक अच्छा आंत्रपेन्योर बन कर आसानी से घर से काम कर सकती हैं. इसकी शुरूआत बड़े कारोबार से नहीं बल्कि छोटे काम से भी की जा सकती है. नीचे हम आपको ऐसे ही कुछ विकल्पों के बारे में बता रहे हैं.

बुटीक

आमतौर पर भारतीय घरों में लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई का हुनर सिखाया जाता है. हालांकि शहर में बुटीकों की कमी नहीं है. लेकिन दूसरों से अलग दिखने के लिए आप आपकी बुटीक की ओर रुख कर सकती हैं.

ब्यूटी पार्लर

इस काम को शुरू करने के लिए इसे अच्छे से सीखना बहुत ज़रूरी है. यदि पैसों कि कमी के कारण आप पार्लर नहीं खोल सकती तो आप होम सर्विस दे सकती हैं. शादी के सीजन में पार्लर का काम करने वालों की अच्छी कमाई हो जाती है.

फिटनेस सेंटर, जैसे जिम या योग

यह काम बिना निवेश के नहीं खोला जा सकता. इस व्यस्त जीवन में फिट रहने के लिए जिम जाना, योग करना या कसरत करना बहुत अहम हो गया है. यदि आप स्वयं योग या एरोबिक्स ट्रेनर हैं तब क्लास संभालना आपके लिए आसान होगा. ड़ायट की जानकारी सही सलाह देने में काम आएगी.

कंसल्टेंसी

आपका तजुर्बा और आपके कॉन्टेक्टस आपको इस फील्ड में खड़ा कर सकते हैं. आज का सर्विस सेक्टर पहले से बहुत बदल गया है. हर सेक्टर की अपनी जरूरते और काम करने का ठंग है. यदि आप सही पद पर सही व्यक्ति का चुनाव करने में सक्षम है. तब आप इस कैरियर विकल्प के साथ आगे बढ़ सकती हैं.

ऑनलाइन व्यापार

इस विकल्प ने खरीद-बेच के कई द्वार खोल दिए हैं. यदि आप छोटा-मोटा व्यापार करती हैं तो ऑनलाइन उसे बड़ा बना सकता है. ऑनलाइन पर आप हस्तशिल्प वस्तुओं भी बेच सकते हैं. यदि आप फ्रीलान्सिंग के बारे में सोच रही हैं, तब लेखन, ग्राफिक डिजाइनिंग, लेखांकन, वर्चूअल असिस्टन्ट व अनुवादक का अनुभव आपके काम आ सकता है. इसके लिए आपको सही फ्रीलान्सिंग वेबसाइट या एजेंसी से संपर्क करना होगा.

रेस्टोरेंट

क्या मेहमाननवाजी के दौरान आपके खाने की तारीफ होती है? क्या लोग आपके खाने की रेसपी मांगते हैं? अगर आपके हाथों में ये जादू है तो आप एक रेस्तोरां या कैफे की मालकिन बन सकती हैं. अथवा बेकरी के उत्पादों को ऑर्डर पर बनाकर बेच सकती हैं.

क्रेच

बच्चों को स्त्रियों से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता. यदि आपको बच्चों के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता है. उनकी मासूम और प्यारी बातें आपके मन को खुश करती हैं. ऐसे में क्रेच घर की जिम्मेदारियों के साथ अन्य ज़रूरतों को पूरा करने का अच्छा तरीका है.

गिफ्ट शॉप

यह व्यापार बिना किसी अनुभव के शुरू किया जा सकता है. इस व्यापार की नीव हैं, आपकी दुकान की वस्तुएं. अपनी दुकान को अनोखी और सुंदर वस्तुओं से सजाएं ताकि इनकी खोज ग्राहकों को आपकी दुकान तक ले आए.

इंटीरियर डेकोरेशन शॉप

आज एक्सटीरियर से ज्यादा खर्चा घर के इंटीरियर पर किया जाता है. जिसकी वजह से मकान की लागत बढ़ जाती है. लैप से लेकर शो पीस तक की चीजें आपके घर के आकार को बदलने की क्षमता रखती हैं. इंटीरियर डिजाइनिंग की समझ और रियल एस्टेट कॉन्टेंक्टस आपके व्यापार को फायदेमंद बना सकते हैं.

पेट शॉप

पालतू जानवर को घर के सदस्य की तरह रखा जाता है. उसे एक नाम दिया जाता है. उसे साफ सुथरा रखने के अलावा उसकी जरूर से जुडी हर चीज़ को अहमियत दी जाती है. फिर चाहे ये चीज़ें उसका खाना हो या गले में बंधा पट्टा.

हॉलीवुड की पहली भारतीय अभिनेत्री ‘मर्ले ओबरॉन’

हाल ही में हुए “89वे एकेडमी अवार्डस : ऑस्कर 2017” में एक भारतीय कलाकार के रूप में ‘बेस्ट एक्टर इन सपोर्टिंग रोल’ के लिए नॉमिनेट होकर देव पटेल ने कारनामा कर दिखाया है. इससे पहले भी साल 1982 में अभिनेता बेन किंगस्ले जो कि असल में भारतीय मूल के कलाकार हैं, उन्होंने ऑस्कर जीतकर, भारतीयों का गौरव बढ़ाया था, पर बेन को लेकर ऑस्कर की बात यहीं खत्म नहीं हुई, साल 1991, 2000 और 2003 में वे ऑस्कर में नॉमिनेट हुए.

आप में से बहुत कम लोगों को ये बात मालूम होगी कि 30 के दशक में ऑस्कर में नॉमिनेट होने वाली भारतीय मूल की एक और अदाकारा थीं ‘मर्ले ओबरॉन’. साल 1911 में मुंबई में जन्मी मर्ले, अपने जन्म के 17 सालों के बाद साल 1928 में इंग्लैंड चली गईं. वहां उन्हें फिल्‍ममेकर अलेक्‍जेंडर कोर्डा की फ़िल्म ‘द प्राइवेट लाइफ ऑफ हेनरी 8’ में मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला. बाद में कोर्डा और उन्होंने शादी भी कर ली.

मर्ले का वास्‍तविक नाम एस्‍टले थॉम्‍पसन था, जिसे फिल्म निर्देशक अलेक्‍जेंडर ने फिल्‍म में उन्हें शामिल करते समय बदल दिया था. और बस देखते ही देखते सिनेमा जगत में एस्‍टले, मर्ले के नाम से मशहूर हो गईं. उस समय की बातों पर ध्यान दें तो, मर्ले हॉलीवुड फिल्‍म में काम करने से पहले भी कोलकाता में किसी ड्रामेटिक सोसायटी में काम कर चुकी थीं.

अगर आप इतिहास उठाकर देखेगे तो, उन दिनों पश्‍चिम में रंगभेद का मुद्दा इतना ज्‍यादा प्रभावशाली था कि किसी भी दूसरे रंग के लोगों को फिल्मों में आने नहीं दिया जाता था और मर्ले को हॉलीवुड में बने रहने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़ा था. उस समय रंगभेद के चलते फिल्मों में मिक्स्ड रेस की किसी महिला का होना स्वीकार्य नहीं था. उस समय फैले नस्लवाद से ये तो स्पष्ट था कि मर्ले की एंग्लो-इंडियन पृष्ठभूमि, उनके एक स्टार बनने की राह में एक बहुत बड़ी बाधा थी. इसलिए सारी परिस्थितियों को सामने रखकर उन्होंने ‘तस्मानिया’ को अपने नए जन्मस्थान के रूप में चुन लिया था क्योंकि वो अमेरीका और यूरोप से बहुत दूर भी था और उस समय आमतौर पर वहां के लोगों को ब्रिटिश ही माना जाता था. बाद में उन्होंने कहानी में ये भी सम्मिलित किया कि उनके पिता के साथ हुए एक दुर्घटना के बाद वे तस्मानिया से बोम्बे चली आईं थीं और इसलिए वे भारत में रह रही थीं. कई बार मर्ले बिना मेकअप के कैमरे के सामने आने से साफ इन्कार कर दिया करती थीं. ब्रिटिश इंडियन होने के कारण वे अंग्रेजों जितनी गोरी नहीं दिखती थीं और इसलिए अपने करियर को लेकर वे कोई खतरा नहीं उठाना चाहती थीं.

वैसे तो उनकी पहली फिल्म ‘द प्राइवेट लाइफ ऑफ हेनरी 8’ में भी उन्होंने बहुत प्रंशसा पायी थी, लेकिन इस फिल्म के बाद भी मर्ले ने कई बेहतरीन हॉलीवुड फिल्‍मों में काम किया. जिनमें से साल 1939 में रिलीज हुई फिल्म ‘वथरिंग हाइट्स’ और 1945 में आई ‘ए सांग टू रिमेंबर’ शामिल हैं, पर मर्ले ओबरॉन को साल 1935 में आई उनकी फिल्‍म ‘द डार्क एंगल’ के लिए ऑस्कर में सर्वश्रेष्‍ठ सहायक अभिनेत्री के तौर पर नामांकित किया गया था. हालांकि वे ये पुरस्‍कार जीत नहीं पायी थीं, पर बतौर पहली भारतीय अभिनेत्री, ऑस्कर में अपना स्थान बना पाने का खिताब उन्होंने अपने नाम कर लिया था.

नस्लीय रेखाओं को धुंधला कर देने के लिए ओबरॉन एकमात्र ही ऐसी अभिनेत्री थी जो उस युग में काम कर रही थी. हॉलीवुड के इतिहास में अभिनेत्री ओबरॉन शायद बदले हुए वंश का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है. मर्ले ओबरॉन 1973 में रिलीज हुई फिल्म ‘इंटरवल’ में आखिरी बार नजर आई थीं. साल 1979 में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई थी.

पांच फिल्मों का मुरब्बा है फिल्म ‘राब्ता’

सैफ अली खान के साथ मिलकर ‘इलूमिनाटी’ प्रोडक्शन कंपनी के तहत ‘कॉकटेल’, ‘लव आज कल’, ‘गो गोवा गॉन’ सहित कई फिल्मों का निर्माण करने के बाद जब दिनेश वीजन ने सैफ अली खान का साथ छोड़कर खुद स्वतंत्र रूप से फिल्म निर्माण व निर्देशन के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया था, तब उम्मीद जगी थी कि वह कुछ बेहतर काम करेंगे.

लेकिन अफसोस की सैफ अली खान से अलग होते की दिनेश वीजन ने अपनी होम प्रोडक्शन कंपनी ‘मैडॉक फिल्मस’ के तहत जिस फिल्म ‘राब्ता’ का निर्माण व निर्देशन किया है, वह तो सारे चोरों को शर्मसार करने वाली है. दिनेश वीजन ने फिल्म ‘राब्ता’ का निर्माण टीसीरीज के भूषण कुमार के साथ मिलकर किया है जिसमें सुषांत सिंह राजपूत और कृति सैनन की मुख्य भूमिका है.

जब से फिल्म ‘राब्ता’ का ट्रेलर बाजार में आया है, तब से बॉलीवुड में चर्चाएं हैं कि दिनेश वीजन ने एक दो नहीं बल्कि पांच फिल्मों की कहानियों व दृश्यों को मिलाकर एक नई फिल्म ‘‘राब्ता’’ बना दी है.

फिल्म ‘‘राब्ता’’ के ट्रेलर को देखकर फिल्म की कहानी जो समझ में आती है, उसके अनुसार आधुनिक रोमांटिक कहानी के साथ बीते दौर के राजपरिवार की कहानी भी है. यह कहानी समझ में आते ही हर आम इंसान को अक्टूबर में प्रदर्शित फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ की याद आ रही है. फर्क सिर्फ इतना है कि राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में भव्यता थी, जबकि ‘‘राब्ता’’ में भव्यता नहीं है.

तो वहीं कुछ लोगों का दावा है कि ‘‘राब्ता’’ का निर्माण तो दक्षिण भारत की बहुचर्चित फिल्म ‘‘मगधीरा’’ की कहानी चुराकर की गयी है. एस एस राजामौली निर्देशित फिल्म ‘मगधीरा’ की कहानी चार सौ वर्ष पुरानी है. इसमें राजकुमारी की सुरक्षा की जिम्मेदारी नायक लेता है. बीच में विलेन आता है. प्यार व राजपाट दिन जाता है. सदियों बाद दोनों फिर मिलते हैं. दक्षिण में यह फिल्म तेलगू, तमिल व मलयालम में बन चुकी है.

इसके हिंदी रीमेक अधिकार साजिद नाडियावाला के पास है. मगर पिछले पांच वर्ष में कई कलाकार व कई निर्देशक आए व गए, पर फिल्म नहीं बन सकी. परिणामतः ‘राब्ता’ का ट्रेलर देखकर साजिद नाडियावाला भी अंचेभे में हैं.

कुछ लोग फिल्म ‘राब्ता’ का ट्रेलर देखकर इसे सतीश कौशिक और निर्देशक संजय कपूर के साथ अभिनय से सजी फिल्म ‘प्रेम’ की याद आ रही है. इस फिल्म में दो जन्मों की प्रेम कहानी थी. जबकि कुछ लोग इसे नब्बे के दशक की फिल्म ‘‘जानी दुश्मन’’ से चुराई गयी कहानी बता रहे हैं.

तो वहीं फिलम ‘राब्ता’ 8 के झरने के दृश्यों की तुलना एस एस राजामौली की फिल्म ‘‘बाहबुली’’ के झरनों के दृश्यों के साथ कर रहे हैं. यानी कि दिनेश वीजन इतने महान निर्देशक हैं कि उन्हें एक नहीं बल्कि पांच पांच फिल्मों की कहानी व उन फिल्मों के दृश्य तक अपनी नई फिल्म ‘‘राब्ता’’ के निर्माण के लिए चुराने पड़े.

अब बॉलीवुड के बिचौलिए दावा कर रहे हैं कि यदि दिनेश वीजन ने चोरी करने के साथ अपना दिमाग सही ढंग से नहीं लगाया होगा, तो यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पानी नहीं मांगेगी. खैर फिल्म के प्रदर्शन का तो इंतजार करना ही पड़ेगा.

पूजा बत्रा की पहली हॉलीवुड फिल्म के निर्माता मूलतः भारतीय

लंबे समय से खबर गर्म है कि मध्यप्रदेश के महू की रहने वाली अभिनेत्री पूजा बत्रा ने लॉस एंजिल्स में ‘‘कास्टिंग एंड फिल्म स्टूडियो’’ के मालिक सनी वछेर की हॉलीवुड फिल्म ‘‘वन अंडर सन’’ में एस्ट्रोनेट कैथरीन वोस का मुख्य किरदार निभाया है. पर अब पता चला है कि पूजा बत्रा की इस हॉलीवुड फिल्म के निर्माता अमरीकन नहीं बल्कि एक भारतीय और वह भी इंदौर निवासी सनी वछेर हैं, जो कि लंबे समय से लांस एंजिल्स में बसे हुए हैं. यह राज उस वक्त उजागर हुआ, जब पूजा बत्रा के साथ सनी वछेर भी इंदौर यानी कि भारत पहुंचे. वास्तव में पूजा बत्रा ने सनी को बताया कि वह अपने माता-पिता से मिलने के लिए भारत जा रही हैं, तो सनी को अपनी मातृभूमि की याद आ गयी और वह भी पूजा बत्रा के साथ भारत आ गए. सनी का दावा है कि वह अपने बचपन की यादों को ताजा करने के लिए इंदौर आए हैं.

इंदौर में जन्मे और इंदौर के स्कूल में पढ़े लिखे सनी वछेर के पिता को जब अमरीका के कैलीफोर्निया शहर में नौकरी मिली, तो सनी वछेर भी अपने पिता के साथ अमरीका पहुंच गए. वहां पर उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की. फिर लघु व विज्ञापन फिल्में बनाना शुरू किया. अब सनी वछेर ने पहली बड़ी हॉलीवुड फीचर फिल्म ‘‘वन अंडर सन’’ का निर्माण किया है, जिसके निर्देशक द्वय विंसेंट टान और रियाना हार्टनी हैं. रंगभेद के खिलाफ बात करने वाली इस फिल्म में मुख्य भूमिका पूजा बत्रा ने निभायी है.

सूत्रों के अनुसार सनी वछेर के भारत आने के पीछे असली मकसद अपनी फिल्म के भारत में प्रदर्शन की संभावनाओं को तलाशना है. इसके अलावा अब वह भारत आकर फिल्म निर्माण करने की संभावना भी तलाश रहे हैं. यह एक अलग बात है कि इस बात को पूजा बत्रा या सनी वछेर अभी स्वीकार नहीं कर रहे हैं. पर सनी वछेर का मानना है कि वह बॉलीवुड फिल्म बनाने के बारे में सोच सकते हैं.

गर्भावस्था में फायदा करता है जीरे का पानी

जीरा कई बीमारियों का अंत करता है. जीरा खाने के स्वाद को तो बढ़़ाता ही है साथ ही यह गर्भवती महिलाओं के लिए भी यह बहुत फायदेमंद और स्वास्थवर्धक होता है. जीरे में एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन ‘सी’ और ‘ए’ की मात्रा भी अधिक होती है जो गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत ही लाभकारी होती हैं. हम आपको बता रहे हैं प्रेगनेंसी में जीरे वाले पानी को पीने के फायदे.

यहां सबसे पहले आपको ये जानना होगा कि जीरे वाले पानी को बनाने का सही तरीका क्या होता है, जिससे ये गर्वावस्था के दौरान आपको लाभ पहुंचा सके.

एक चम्मच जीरे को एक लीटर पानी में उबाल लें और जब ये ठंडा हो जाए तो इसे छानकर किसी बोतल या जार में भर कर फिर इसका इस्तेमाल करें.

आइये हम आपको बताते हैं गर्भावस्था में जीरे का पानी, पीने के क्या क्या फायदे हैं…

एनीमिया की समस्या से बचाता है

गर्भ के दौरान महिलाओं को अक्सर खून की कमी हो जाती है और उनका हीमोग्लोबिन भी कम हो जाता है. ऐसे में जीरे वाला पानी पीना उनके लिए फायदेमंद होता है. क्योंकि जीरे में उचित मात्रा में आयरन होता है.

मां और बच्चे, दोनो की सेहत का रखे ख्याल

जीरे का पानी पीने से गर्भवती मां और उनके बच्चे की सेहत के लिए अच्छा होता है. दोनो को स्वाद के साथ, ताकत भी दोता है. पानी की आवश्यकता को नियमित रूप से पूरा करते रहता है.

गैस खत्म करता है

जीरे का पानी पीने से गर्भवती महिलाओं के पेट में बनने वाली गैस और एसिडिटी खत्म हो जाती है. इससे उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता.

ब्लड प्रेशर का स्तर

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है. ऐसे में यदि आप जीरे का पानी का सेवन करती हैं तो आपका ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है और नियंत्रित भी रहता है.

शरीर की उर्जा के लिए

गर्भ के दौरान महिलाओं में उर्जा की कमी हो जाती है और कई बार जिसकी वजह से उनके सामान्य वजन का बढ़ना शुरु हो जाता है, तो कभी कभी किन्हीं महिलाओं को वजन अपने आप कम होने लगता है. जीरे वाला पानी पीने से शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है और शरीर में उर्जा आती है.

खजुराहो पुकारे चले आओ

केवल एक किलोमीटर के दायरे में फैले खजुराहो के कसबे में खुद को ले कर कभी यह गलतफहमी हो जाना स्वाभाविक बात है कि हम विदेश के किसी देसी महल्ले में हैं. वजह, खजुराहो में देसी कम, विदेशी पर्यटक ज्यादा नजर आते हैं. मुंबई और दिल्ली के बाद सब से ज्यादा पर्यटक आगरा, बनारस और जयपुर से हो कर खजुराहो आते हैं. इसलिए भारत घूमने आए पर्यटकों की प्राथमिकता खजुराहो होती है तो बात कतई हैरत की नहीं है क्योंकि मैथुनरत मूर्तियां वह भी तरह तरह की मुद्राओं में, यहां के मंदिरों की दीवारों में उकेरी गई हैं जो जिज्ञासा के साथ साथ उत्तेजना भी पैदा करती हैं.

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के जिले छतरपुर का कसबा खजुराहो वाकई अद्भुत है. पिछड़ेपन का दर्द बयां करती खजुराहो की सुबह विदेशी सैलानियों के दर्शन से शुरू होती है. दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जहां से यहां पर्यटक न आते हो. जान कर हैरानी होती है कि कई पर्यटक तो यहां नियमित अंतराल से आते हैं और सालों साल यहीं रहना पसंद करते हैं.

अपनी हैसियत और बजट के मुताबिक, पर्यटकों को यहां 300 से ले कर 30,000 रुपए तक का कमरा होटलों में मिल जाता है. जाहिर है जो लंबे वक्त रुकते हैं, वे सस्ते होटल में ठहरते हैं, वह भी मासिक किराया दे कर.

इन विदेशी पर्यटकों के यहां रुकने का कोई तयशुदा मकसद नहीं होता है. चूंकि खजुराहो रहने और खानेपीने के मामले में सस्ता पड़ता है, इसलिए विदेशी पर्यटक यहां लंबे समय तक डेरा डाले रहते हैं. कई विदेशियों ने यहां के लोगों से शादियां तक की हैं जिन की आए दिन चर्चा होती रहती है. खजुराहो के मंदिर घूमने के बाद विदेशी जब नजदीक के गांव घूमते हैं तो उन्हें असली भारत के दर्शन होते हैं जहां अभाव, भूख और जीवनयापन का निचला स्तर है.

इसी अभाव ने पैदा कर दिए हैं थोक में गाइड, जो अपने आप को बड़े गर्व से लपका कहते हैं. ये लपके एयरपोर्ट से बसस्टैंड और रेलवे स्टेशन पर मंडराते दिख जाते हैं. 14-16 से ले कर 20-30 साल तक की उम्र के लपकों की चपलता और व्यावहारिकता देख आप दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो सकते हैं. टूरिस्ट के उतरते ही ये उस की राष्ट्रीयता सैकंडों में भांप जाते हैं और उसे ऐसे घेरते हैं कि पर्यटक इन का मुहताज हो कर रह जाता है.

इन अप्रशिक्षित गाइडों से कम से कम विदेशी तो कोई भेदभाव और ज्यादा मोलभाव नहीं करते, जो देखते ही देखते उन के दोस्त और लोकल गार्जियन बन जाते हैं. ये लपके तमाम विदेशी भाषाएं फर्राटे से बोलते हैं, फिर भले ही वे 8वीं पास भी न हों. सैकड़ों लपके विदेशी युवक या युवतियों से शादी कर विदेश में बस चुके हैं और हजारों ने खासा पैसा बना लिया है. लपके विदेशियों की हर स्तर पर जरूरत पूरी करते हैं और उन्हें अपनी बदहाली दिखा कर खासा पैसा भी ऐंठ लेते हैं.

ऐसी कई दिलचस्प हकीकतों से परे खजुराहो का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है जो यहां बने कई मंदिरों की दीवारों पर मैथुनरत मूर्तियों से सहज समझ आता है. इन मंदिरों की भीतरी और बाहरी दीवारों पर वात्स्यायन का कामसूत्र कुछ इस तरह चित्रित है कि यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि सहवास की ये अकल्पनीय मुद्राएं कामोत्तेजना भड़का रही हैं या फिर उसे शांत कर रही हैं.

सहवास के चौरासी आसनों के दृश्य दीवारों पर दिखते हैं. इस के अलावा शृंगाररत नायिकाओं के सौंदर्य का वर्णनचित्रण तो अच्छेअच्छे लोग नहीं कर पाते क्योंकि वे इन्हें देखते भर हैं, समझने की कोशिश नहीं करते. वैसे भी सैक्स में जो समझने लायक जिज्ञासाएं होती हैं वे इन्हें देखनेभर से दूर हो जाती हैं.

यह बात जरूर हर किसी के मन में आती है कि ऐसा आखिर क्यों किया गया होगा? भारत धर्मप्रधान देश है जिस की संस्कृति में सैक्स और धार्मिक आस्थाएं ऐसी समानांतर रेखाएं हैं जो कहीं जा कर नहीं मिलतीं, लेकिन खजुराहो में मिलती हैं तो इस की कोई वजह भी होनी चाहिए.

9वीं से ले कर 11वीं सदी तक चंदेल शासकों द्वारा बनवाए गए ये मंदिर दरअसल एक खास मकसद से बनवाए गए थे. एक किस्सा यह प्रचलित है कि एक वक्त में बौद्ध और जैन धर्मों के बढ़ते प्रभाव के चलते यहां के युवा ब्रह्मचारी और संन्यासी बनने लगे थे, जिन का ध्यान और मन दुनियादारी में लगाने के लिए चंदेल शासकों ने इस तरह की मैथुनरत मूर्तियां बनवाईं.

एक किस्सा यह भी प्रचलित है कि चंदेल वंश का संस्थापक चंद्रवर्धन अवैध संतान था जिस से उसे काफी आलोचना व उपेक्षा मिलती रहती थी. सैक्स कोई गलत काम नहीं है, यह सलाह उसे अपनी मां से मिली थी. लिहाजा, इस का महत्त्व बताने के लिए उस ने ये मूर्तियां बनवाईं. यह सिलसिला चंदेल वंश के अस्तित्व तक कायम रहा और एक जिद या जनून में उन्होंने हजारों कारीगर बाहर से बुलवाए और विभिन्न शैलियों में मंदिर बनवाए. वास्तु और स्थापत्य के लिहाज से पुरातत्ववेत्ता आज भी इन की मिसाल देते हैं.

विदेशी पर्यटक जितनी दिलचस्पी इन वर्जनारहित चित्रों में लेते हैं, देशी पर्यटक उतना ही इन से हिचकते हैं. वे मंदिर के भीतर जा कर पूजापाठ तो करते हैं पर दीवारों को घंटों निहारते नहीं, बल्कि चोर निगाहों से देखते हैं मानो वहां सांप बिच्छू लटक रहे हों.

खजुराहो में देशी पर्यटकों के कम जाने की एक वजह यह भी है कि ये चित्र परिवार के साथ नहीं देखे जा सकते, हालांकि अब बड़ी तादाद में नवविवाहित यहां आने लगे हैं.

खजुराहो की रंगीन शाम

ऐसा भी नहीं है कि खजुराहो में सिवा मंदिरों और मूर्तियों के वक्त गुजारने को कुछ और न हो. सूरज ढलने के बाद मंदिर बंद हो जाते हैं तो पर्यटकों की चहलपहल सड़कों पर नजर आती है. यहां हर

तरह का अंतर्राष्ट्रीय खाना होटलों में मिलता है. यहां स्थित शिल्पग्राम में कोई न कोई सांस्कृतिक आयोजन होता रहता है और लाइट एवं साउंड शो होते हैं.

खजुराहो में वक्त गुजारने का अपना एक अलग मजा है. घूमने के लिए यहां साइकिल और मोटरसाइकिल किराए पर मिलती हैं. रात में सड़कों पर बैडमिंटन खेलते पर्यटकों को देख लगता है कि कैसे बुंदेलखंडी अनौपचारिकता और सहजता पर्यटकों को अपने रंग में रंग लेती है. उन्मुक्त घूमते विदेशी पर्यटकों, खासतौर से युवतियों को देख स्थानीय लोगों को हो न हो, पर दूसरे पर्यटकों को जरूर हैरत होती है.

गरमी के दिनों में यहां पारा 48.2 डिग्री तक पहुंच जाता है तो जाड़ों में 4 डिग्री तक उतर भी जाता है. लेकिन मौसम का एहसास यहां नहीं होता. वजह, जाहिर है ये मूर्तियां हैं, जो दुनियाभर के लोगों को खजुराहो खींच लाती हैं.

खजुराहो के मंदिरों में उत्कीर्ण कामकलायुक्त मूर्तियां पर्यटकों में अजीब सा कुतूहल पैदा करती हैं.

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