ममता पर कुरबान कैरियर

किसी छायादार पेड़ की तरह मां की ममता बच्चे को शीतल छाया देने के साथसाथ उसे जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की ताकत भी देती है. बच्चे की पहली शिक्षक और पहली दोस्त मां ही होती है. मां के हाथ के खाने की बात ही कुछ और होती है. मां से भावनात्मक लगाव बच्चे को नया सीखने व व्यक्तित्व निखारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. सफल व्यक्ति से उस की सफलता का राज पूछिए, कहेंगे, मां की सीख और उन की परवरिश के नतीजे में वे सफल हो सके.वहीं बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए ममता के साथ पैसों की भी जरूरत होती है. ऐसे में जब बात कैरियर की हो तो मां के लिए क्या ज्यादा महत्त्वपूर्ण होना चाहिए? आज की कामकाजी, कैरियर ओरिएंटेड महिला को अपने कैरियर और बच्चे के शुरुआती दौर की देखभाल में किसे प्राथमिकता देनी चाहिए? आइए, इस पर चर्चा करते हैं.

बदलते समय के साथ समाज की मान्यताएं भी बदल रही हैं. लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, उच्च पदों पर आसीन हैं. विवाह की जो उम्र कुछ समय पहले 22 से 26 वर्ष मानी जाती थी वह कैरियर में सफलता की चाह में बदल कर 30 से 33 वर्ष पहुंच गई है. समाजशास्त्री इस बदलाव की वजह महिला का अपनी व्यावसायिक व पारिवारिक जिंदगी में बैलेंस न बना पाने की अक्षमता को मान रहे हैं. साथ ही, वे सचेत भी कर रहे हैं कि कैरियर जहां भी विवाह व परिवार पर हावी हुआ वहां समाज के लिए खतरा होगा. इस से बच्चों की प्रजनन दर में गिरावट आएगी, दो पीढि़यों के बीच अंतर बढ़ेगा, जो पूरी सामाजिक संरचना के लिए अहितकर होगा.

जिम्मेदारी मां की

समाज का चलन व परिवेश भले ही बदल जाए लेकिन कैरियर की खातिर पारिवारिक जिम्मेदारियों से भागना, रिश्तों की अनदेखी करना समाज के लिए स्वास्थ्यकर नहीं होगा. जिम्मेदारी का अर्थ केवल विवाह कर के परिवार का भरणपोषण करना ही नहीं, एक पत्नी व मां की यह जिम्मेदारी भी है कि वह प्रेम व विश्वास के साथ परिवार को खुशियां दे.

8-10 घंटे की नौकरी के बाद घरपरिवार व बच्चों में बैलेंस बनाने की जद्दोजहद से अच्छा है कि कैरियर से कुछ समय के लिए बे्रक ले लिया जाए. जो मजा परिवार व बच्चों के साथ वक्त गुजारने में है वह किसी अन्य चीज में नहीं. भले ही आप कितने ही उच्च पद पर हों लेकिन अगर बच्चों की अनदेखी हो रही है, उन्हें मेड, क्रैच के सहारे छोड़ना पड़ रहा है तो वह सफलता अधूरी व खाली है. कुछ महिलाएं जो कैरियर में सफलता की चाह में परिवार को कैरियर में बैरियर मान कर उस की अनदेखी करती हैं, वे बाद में पछताती हैं कि उन्होंने समय रहते मातृत्व सुख प्राप्त क्यों नहीं किया.

मातृत्व सुख सब से बड़ा सुख

मातृत्व सुख किसी भी महिला के लिए सब से बड़ा सुख होता है, फिर चाहे वह फिल्म जगत की प्रसिद्ध अभिनेत्री हो या आम कामकाजी महिला. मां बनने की खुशी और अपने बच्चों को दिन ब दिन बढ़ते देखने की खुशी किसी भी मां को सब से ज्यादा संतुष्टि प्रदान करती है. लेकिन इस के लिए कैरियर की कुरबानी देनी होगी, उस से कुछ समय के लिए ब्रेक लेना होगा. जैसा ग्लैमर जगत की चकाचौंध से लैस बौलीवुड की सैक्सी व सफल अभिनेत्रियों ने किया. क्योंकि इन अभिनेत्रियों को ग्लैमर जगत की चमक से ज्यादा प्यारी है मां बनने की खुशी. और इस खुशी के आगे वे स्टारडम को कोई वैल्यू नहीं देतीं और घर व व्यावसायिकता में से घर, परिवार व बच्चों को चुनती हैं.

बौलीवुड मौम्स

हमारे सामने अनेक ऐसे उदाहरण हैं जहां बौलीवुड की ग्लैमरस हीरोइनों ने कैरियर की अपेक्षा मां की गरिमा और ममता को अधिक महत्त्व दिया. ‘मदर इंडिया’ की नरगिस दत्त से ले कर, जया बच्चन, शर्मिला टैगोर सभी ने निजी जिंदगी में मां का रोल बखूबी निभाया. घरपरिवार के लिए कैरियर को साइडलाइन करने वाली आधुनिक बालाओं की बात की जाए तो धकधक गर्ल माधुरी दीक्षित ने भी फिल्मों को अलविदा कह कर यूएस के डाक्टर श्रीराम नेने से शादी रचा ली और 2 बेटों को जन्म दिया व उन की परवरिश को प्राथमिकता दी. बौलीवुड मदर्स में रवीना टंडन ने भी कैरियर व ग्लैमर के बजाय अपनी फैमिली को ज्यादा महत्त्व दिया. इसी तरह करिश्मा कपूर, महिमा चौधरी, जूही चावला, शिल्पा शेट्टी सब ने मां बनने की खुशी को, संतान के सुख को बड़ा माना. ऐश्वर्या राय ने भी ग्लैमर को अनदेखा कर के कैरियर से ब्रेक लिया और पारिवारिक जिम्मेदारी को महत्त्व दिया.

इन सभी बौलीवुड बालाओं ने अपने बच्चों व परिवार को समय देने के बाद, उस समय को पूरी तरह एंजौय किया और फिर स्क्रीन पर शानदार वापसी भी की. ‘कभी खुशी कभी गम’ की सफलता के बाद काजोल ने 5 साल का बे्रक लिया और ‘माई नेम इज खान’ से शानदार वापसी की. शिल्पा शेट्टी को अपनी सैक्सी फिगर के कारण यम्मी मम्मी के खिताब से नवाजा गया है क्योंकि अपने बेटे विवान के जन्म के बाद उन्होंने अपनी फिटनैस से सब का दिल जीत लिया और दर्शकों के दिलों पर राज कर रही हैं. दुनिया की सब से खूबसूरत महिलाओं में से एक सुष्मिता सेन 2 बच्चों की सिंगल पेरैंट हैं और उन की खुशहाल जिंदगी हर किसी के लिए उदाहरण है. सुष्मिता मानती हैं कि बच्चे के लिए बिना शर्त का प्यार माने रखता है. इस से मतलब नहीं कि वह आप के पेट से निकला है या दिल से.

अमेरिका की फर्स्ट लेडी मिशेल ओबामा भी पेरैंटिंग और ममता की मिसाल हैं. अपनी दोनों बेटियों, मालिया व साशा को वे अपनी पहली प्राथमिकता मानती हैं और अपनी पब्लिक व पर्सनल जिम्मेदारियों के बीच उन्होंने बखूबी बैलेंस बनाया हुआ है. मिशेल का मानना है कि जब बच्चे खुश रहते हैं तो मुश्किल घडि़यों में भी उन्हें चैन की नींद आती है. उपरोक्त सभी उदाहरण एक मिसाल हैं कि मां के सान ध्य में बच्चा जो भावनात्मक सुरक्षा पाता है वह उसे और कोई नहीं दे सकता. चढ़ते ग्लैमरस कैरियर को अलविदा कर के बच्चों को समय दे कर अभिनेत्रियां साबित कर रही हैं कि मां बनना वाकई एक बड़ी जिम्मेदारी है जिस में हर महिला को कैरियर व घर के बीच सही बैलेंस बना कर चलना चाहिए.

प्यारभरी देखभाल

चिकित्सकों ने यह बात साबित की है कि बच्चे को जन्म से प्यारभरी देखभाल की जरूरत होती है. इस में उसे प्यार से सहलाना व मां व बच्चे के बीच शारीरिक संपर्क होना भी जरूरी है क्योंकि 1 से डेढ़ साल के दौरान बच्चे को अपनी देखभाल करने वाले से सब से अधिक लगाव होता है जो बच्चे को मां से होना चाहिए. क्योंकि जब बच्चे को मां से प्यार मिलता है तो वह प्यार का जवाब प्यार से देता है. बच्चा मां के साए में स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है. वहीं मां से दूरी उसे बीमार, असुरक्षित व एकाकीपन का शिकार बना देती है. जीवन के शुरुआती दौर में जब बच्चे को मां की सख्त जरूरत होती है तब आप उसे क्रैच में छोड़ कर अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकतीं, जिम्मेदारी से नहीं भाग सकतीं.

एक महिला को जो संतोष बच्चे की परवरिश में मिलता है, उसे दिनोंदिन बढ़ते देखने में मिलता है वह किसी दूसरी चीज में नहीं मिल सकता. यह एक अनूठा रोमांचक अनुभव होता है जिस के लिए कुछ त्याग तो करने ही पड़ते हैं. 35 वर्षीय रुचिका कहती हैं, ‘‘30 वर्ष में मेरी शादी हुई. तब मैं एक मीडिया कंपनी में कार्यरत थी. मेरा कैरियर विकास की ओर अग्रसर था लेकिन मैं ने कैरियर को प्राथमिकता न दे कर अपने परिवार को बढ़ाने की ओर ध्यान दिया और 1 वर्ष बाद अपने बेटे को जन्म दिया. उस की परवरिश पर पूरा ध्यान दिया. आज मेरा बेटा 5 साल का है. मुझे अपने कैरियर से बे्रक लेने का कोई दुख नहीं है. मैं खुश हूं कि मैं ने अपने बेटे के साथ जरूरी समय व्यतीत किया और अब 5 साल बाद मैं दोबारा अपने कैरियर की शुरुआत कर रही हूं. जो मजा बच्चों व परिवार के साथ आया वह मेरी जमापूंजी है.’’ शैमरौक गु्रप औफ प्री स्कूल की डायरैक्टर मीनल अरोड़ा मानती हैं कि स्वयं और बच्चे में से बच्चे को चुनें. अगर आज आप अपने बच्चे को समय नहीं देंगी तो आगे चल कर वह आप को समय व महत्त्व नहीं देगा और आप के व आप के बच्चे के बीच बौंडिंग नहीं होगी. बच्चों के लिए त्याग करें, परिवार को भी समय दें. यह एक मां का सब से बड़ा गुण है.

गूंज उठेगी किलकारी आईवीएफ से

आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से हर साल हजारों बच्चे जन्म लेते हैं. जो महिलाएं बांझपन जैसी समस्या से जूझ रही हैं उन के लिए आईवीएफ प्रक्रिया की यह जानकारी काफी फायदेमंद हो सकती है:

पहला चरण: मासिकधर्म के दूसरे दिन आप के ब्लड टैस्ट एवं अल्ट्रासाउंड के माध्यम से आप के अंडाशय की जांच होती है. फिर यह अल्ट्रासाउंड सुनिश्चित करता है कि आप को कितनी मात्रा में स्टिम्युलेशन दवा दी जानी चाहिए. मासिकधर्म के दौरान डाक्टर जांच के तहत हो रही प्रक्रिया पर निगरानी करते हैं. फिर जांच के बाद आप के फौलिकल्स यानी रोम को मौनिटर करते हैं. जैसे ही आप का रोम एक निश्चित आकार में पहुंच जाता है तो फिर आप उसे रोज मौनिटर कर सकते हैं. मौनिटरिंग के बाद आप को दूसरी दवा दी जाती है, जो ट्रिगर शौट के रूप में जानी जाती है.

दूसरा चरण: अंडों की पुन:प्राप्ति के बाद डाक्टर आप के गर्भाशय के स्तर के विकास के लिए प्रोजेस्टेरौन को बढ़ाने के लिए बाहरी प्रोजेस्टेरौन दवा देते हैं.

तीसरा चरण: जब अंडे पुन: बनने की प्रक्रिया में हों तब पुरुष साथी को मास्टरबेशन के माध्यम से शुक्राणु प्रदान करने के लिए कहा जाता है. डाक्टर क्लीनिक में भी निषेचन के लिए शुक्राणु तैयार करते हैं.

चौथा चरण: शुक्राणु एवं अंडे की पुन:प्राप्ति की प्रक्रिया के बाद डाक्टर शुक्राणु एवं अंडे का गठबंधन करते हैं. इस के बाद वे निषेचित अंडे को कुछ समय के लिए इनक्यूबेटर में रख देते हैं. इस अवधि के दौरान एक भ्रूण विशेषज्ञ के द्वारा भ्रूण के विकास की नियमित चैकिंग की जाती है. अगर सब कुछ सही दिशा में चल रहा हो तो स्वस्थ विकास के लिए 3 से 5 दिनों के बाद भ्रूण तैयार हो जाता है.

5वां चरण: भ्रूण के आरोपण के लिए यह एक सरल एवं दर्दरहित प्रक्रिया है. आरोपण के लिए भ्रूण को तरल पदार्थ के रूप में एक कैथेटर में रखा जाता है. इस प्रक्रिया में अच्छी खबर के लिए आप को 2 सप्ताह इंतजार करना पड़ता है, जिस में प्रैगनैंसी टैस्ट होता है. इस के बाद डाक्टर कुछ निश्चित भोजन से संबंधित एहतियात बरतने को कहते हैं. उन्हीं चीजों को खाने की सलाह देते हैं जो आप के आरोपण की प्रक्रिया में सहायक साबित हों.

इस प्रक्रिया में आप को प्रैगनैंसी का सही परिणाम जानने के लिए ब्लड टैस्ट होने तक का इंतजार अवश्य करना चाहिए, बजाय इस के कि प्रैगनैंसी किट से रिजल्ट पता किया जाए, क्योंकि कई बार प्रैगनैंसी किट से गलत रिजल्ट भी आता है.                                

संस्कृति की आड़ में तानाशाही

लड़कियों को परेशान करने और छेड़ने वालों की पकड़धकड़ करने के लिए उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने हर थाने में रोमियो स्क्वैड बनाया है, जो किसी भी गुट को पकड़ सकता है. इन को स्थानीय भारतीय जनता पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं का समर्थन भी है और ये पुलिस स्क्वैड के साथ डंडे लिए घूमते रहते हैं.

लड़कियों को इस से चाहे कुछ दिन राहत की सांस मिल जाए पर अपराधों पर नियंत्रण करने के नाम पर अपनी पार्टी के लोगों को ठेके दे देना लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है.

इन स्क्वैडों ने हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों की तरह तुरंत न्याय करने और सजा देने का तरीका अपनाया है. कहीं 4 लड़के या जोड़े हाथ में हाथ डाले चलते नजर आए नहीं कि ये उन पर लाठियों से पिल पड़ते हैं. पुलिस वाले महज तमाशाई बने रहते हैं पर भगवा दुपट्टे वाले बिना वकील, बिना दलील के कानून और अदालतों के बिना न्याय प्रसाद के रूप में बांट कर वही आतंक का राज स्थापित करने में लग गए हैं, जो सदियों तक इस देश में राजघरानों या जमींदारों का होता था.

परिवारों को पहलेपहल चाहे राहत महसूस हो पर जल्द ही पता चलेगा कि भाईबहनों का भी घर से इकट्ठे निकलना खतरे से खाली नहीं रहेगा. कहने को अकेली युवतियां सुरक्षित होंगी पर रातबेरात यदि वे काम से लौट रही हों और ये रोमियो स्क्वैड उन पर वेश्यावृत्ति का आरोप लगा कर पिटाई कर दें, तो तब कोई सुनने वाला भी नहीं रहेगा.

पहले जो छेड़खानी होती थी उस में पुलिस बल उदासीन रहता था, पर अब पुलिस सक्रिय रहेगी पर सभ्यता और कानून की बातें करने वालों के मुंह बंद करने के लिए और स्क्वैडों व उन के सहायकों को संरक्षण देने के लिए. राजनीतिक दलों को छोडि़ए, वे तो फिर राख से उभर आएंगे पर जानबूझ कर या गलतफहमी के शिकार हुए परिवारों पर जो जख्म लगेंगे वे किसी मरहम से ठीक न होंगे.

कानून व व्यवस्था बनाए रखना जरूरी है पर बेगुनाहों को रोकनाटोकना और संस्कारों व संस्कृति की आड़ में तानाशाही को थोपना देश को महंगा पड़ेगा. हर घरपरिवार सड़कछाप छेड़ने वालों से परेशान है पर इसे रोकने के लिए प्राकृतिक प्रेम भावना को ही समाप्त कर देना घातक है, समाज के लिए भी और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित शासनपद्धति पर भी.

झूठी खबरें पाखंड का हिस्सा

आजकल दुनिया भर में खबरों पर एक घमासान सा शुरू हो गया है. महल्ले और पड़ोस की सी झूठी बातें अब गूगल, फेसबुक, व्हाट्सऐप, सोशल टैक्सटिंग के जरीए घंटे भर में पूरी दुनिया में फैल सकती हैं और महल्ले की अफवाह की तरह पता ही नहीं चलता कि भ्रामक या दहलाने वाले समाचार को सही माना या नहीं, क्योंकि यह कौन से पेड़ पर उगा पता ही नहीं होता.

सदियों से इस प्रकार का झूठ लोगों ने धर्मग्रंथों से गले से उतारा है और इस के सहारे अपनों को भी मारा और दूसरों को भी. बीच की सदियों में मुद्रित सुलभ सामग्री ने महल्ले की चटपटी बातों को फीका कर दिया था पर अब तो इन का अंधड़ आ गया है जो घंटे, 2 घंटे नहीं चलता, रातदिन चलता रहता है.

जिस तरह धर्मग्रंथों के झूठों ने लोगों की सदियों से जेबें ढीली कराई हैं उसी तरह आज झूठे समाचार, फेक न्यूज, से लोगों को बुरी तरह बरगलाया जा रहा है. चुनावों से पहले तो पार्टियां अब छद्म नामों से प्रचारकों की फौज को मैदान ए जंग में भेज देती हैं कि विरोधी के खिलाफ जी भर कर बोलो. चुन्नी चाची की ‘मैं ने तो सुना है भई तो कह दिया, क्या सच है क्या झूठ पता नहीं,’ की तर्ज पर अब कुछ भी कहीं भी कहा जा सकता है.

महिलाएं फेक न्यूज की ज्यादा शिकार हैं. हालांकि राजनीतिबाज ज्यादा रोते नजर आते हैं. महिलाओं को व्हाट्सऐप पर कोई फौर्मूला पढ़ने को दिया नहीं कि वे उसे अपनाने को दौड़ती हैं और दूसरों पर थोपने लगती हैं. खटाक से वह अपने सारे गु्रपों को फौरवर्ड कर दिया जाता है, अपनी मुहर के साथ मानो उन्होंने पुष्टि कर ली.

पढ़ीलिखी महिलाओं से भी इस तरह के फेक न्यूज पर बहस करो तो वे कन्नी काट जाती हैं कि उन्होंने तो बस फौरवर्ड किया था. इन दिनों भ्रामक जानकारी बुरी तरह फैलाई जा रही है. 100-200 मित्रों को ऊटपटांग संदेश भेजे जा रहे हैं, उपदेश दिए जा रहे हैं. धर्मांध इन में ज्यादा होते हैं. अत: कभी व्हाट्सऐप, फेसबुक पर शिवजी को प्रणाम किया जाता है, तो कभी साई बाबा के चमत्कार पर चरण छू लिए जाते हैं.

धर्म के पाखंड का हिस्सा बन गए व्हाट्सऐप और फेसबुक सब से ज्यादा अज्ञान और अतर्क के भंडार बन गए हैं. अमेरिका व यूरोप फेक न्यूज के पीछे पड़े हैं पर वहां भी उन्हें नेताओं की छवि के खराब होने की ज्यादा चिंता है, पीपिंग टौम्स को कंट्रोल करने की कम. व्हाट्सऐप और फेसबुक अब टैक्स्ट के साथ शौर्ट मूवीज भी दिखाने लगे हैं और भ्रामक घटनाओं को काटछांट कर परोसा जा रहा है और भुक्खड़ पंडों की तरह सत्य की लाश पर मृत्यु भोजों में उन्हें खूब खाया जा रहा है.

यह गलत प्रचार का ही नतीजा है कि दुनिया के कितने ही देशों में कट्टरपंथियों की सरकारें बन गई हैं और 100 साल के लोकतंत्र के बाद तानाशाहीतंत्र लौटने लगा है.

महिलाओं को तानाशाही में ज्यादा जुल्म सहने पड़ते हैं और इस की तसवीरें सीरिया, लीबिया, इराक के भागे रिफ्यूजी कैंपों में दिख जाएंगी. यह आप के पड़ोस में नहीं होगा इस की गारंटी नहीं है.

26 साल बाद इस फिल्म में साथ नजर आएंगे अमिताभ-ऋषि

अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की जोड़ी 26 साल बाद एक बार फिर बड़े पर्दे पर दिखाई देगी. फिल्म गुजराती राइटर-डायरेक्टर सौम्या जोशी के नाटक ‘102 नॉट आउट’ पर बन रही है. फिल्म में अमिताभ 102 साल के व्यक्ति के किरदार में हैं और ऋषि उनके 75 साल के बेटे बने हैं.

फिल्म की शूटिंग मुंबई में शुरू हो गई है. फिल्म को उमेश शुक्ला डायरेक्ट कर रहे हैं. उमेश ने बताया, ‘अमित जी और ऋषि जी 26 साल बाद साथ आ रहे हैं. दोनों पहली बार गुजराती किरदार में नजर आएंगे. मैं खुद गुजराती हूं इसलिए दोनों के लुक को लेकर मेरे दिमाग में कुछ चीजें थीं.’

उन्होंने बताया कि वे इस महीने के अंत तक फिल्म की शूटिंग मुंबई में होगी और फिर ब्रेक के बाद एक बार फिल्म की शूटिंग जुलाई में शुरू की जाएगी. उम्मीद की जा रही है कि फिल्म की शूटिंग जुलाई के अंत में पूरी कर ली जाएगी. यह फिल्म एक बाप-बेटी के बीच की लव स्टोरी है.

निर्देशक ने कहा, ‘मैं ऑरिजनल प्ले को प्रड्यूस किया है और इसकी यूनीक कहानी और ह्यूमर की वजह से मुझे लगता था कि इसपर फिल्म बन सकती है. सौम्या ने काफी शानदार ढंग से इस फिल्म की कहानी लिखी है.’ उन्होंने बताया कि ऐक्टर्स ने जान-बूझकर ऑरिजनल प्ले नहीं देखा है.

ये दोनों फिल्म में कुछ गुजराती लाइनें भी बोलते दिखेंगे. उमेश ने बताया, ‘वे लैंग्वेज के मामले में पहले से ही काफी अच्छे हैं और उन्हें गाइड करने के लिए सेट पर उन्हें लैंग्वेज सिखाने वाले टीचर भी होंगे. हम सब काफी मस्ती करने वाले हैं.’

उन्होंने यह भी कहा कि वह उनकी फिल्मों को देख-देख कर ही बड़े हुए हैं. उन्होंने बताया, ‘दोनों काम को लेकर समर्पित ऐक्टर हैं और काम करने का उनका अपना एक अलग अंदाज़ है. हमने पिछले महीने 3-4 दिनों के लिए एक वर्कशॉप रखा था और उसमें हमने काफी मजा किया.’

आपको बता दें कि साल 2015 में उमेश ने एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘ऑल इज वेल’ का निर्देशन किया, जिसमें ऋषि कपूर, सुप्रिया पाठक, अभिषेक बच्चन और असिन लीड किरदार में थे.

‘द कपिल शर्मा शो’ में होने वाली है इस कानपुरिया की एंट्री

कलर्स चैनल के मशहूर शो ‘द कपिल शर्मा शो’ के तीन अहम सदस्यों के कॉमेडी शो छोड़कर चले जाने के बाद से लगातार गिरती टीआरपी से शो के निर्माता काफी परेशान हैं.

कपिल-सुनील विवाद के बाद सबसे पहले शो में डॉ. मशहूर गुलाटी का किरदार निभाने वाले सुनील ग्रोवर और फिर बाद में चंदू चायवाले का किरदार निभाने वाले प्रभाकर और नानी के रुप में दिखाई देने वाले अली असगर शो छोड़कर जा चुके हैं.

उसके बाद से कॉमेडियन डॉ. संकेत भोसले और राजू श्रीवास्तव समेत कई नए कलाकारों को द कपिल शर्मा शो के परिवार में शामिल किया गया है ताकि खाली हुई जगह को भरा जा सके.

अब खबर है कि ‘कुमकुम भाग्य’ में प्रज्ञा की मां सरला का किरदार निभाने वाली सुप्रिया शुक्ला जल्द कपिल के शो में नजर आएंगी. इसके पहले सुप्रिया ‘साहब बीवी और बॉस’ में भी फनी किरदार में नजर आ चुकी हैं. सुप्रिया एक बेहतरीन अदाकारा हैं और दर्शक उन्हें द कपिल शर्मा शो में भी जरूर पसंद करेंगे.

एक अखबार से बातचीत में सुप्रिया ने कहा, ‘मैं इस शो के लिए थोड़ी नर्वस थी. हालांकि कपिल की टीम बहुत सपोर्टिव है. मैं अपनी भाषा में कानपुर का फ्लेवर लाऊंगी. मैंने शो के राइटर्स के साथ अपनी भाषा पर काफी मेहनत की है.’

रिपोर्ट्स के मुताबिक सुप्रिया शुक्ला शो में उत्तर प्रदेश के कानपुर की उस महिला का किरदार निभाते हुए नजर आएंगी जो मुंबई में शिफ्ट हो जाती है.

‘द कपिल शर्मा शो’ कभी टीआरपी चार्ट में सबसे ऊपर हुआ करता था लेकिन कपिल-सुनील विवाद के बाद से शो की टीआरपी लगातार गिरती जा रही है. कपिल और उनकी टीम शो का पुराना मुकाम वापस लाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. पिछले दो हफ्तों से उनकी टीआरपी रैंकिंग में कुछ सुधार भी देखा जा सकता है.

बता दें कि दो महीने पहले ऑस्ट्रेलिया से लाइव शो करने के बाद प्लेन में कॉमेडियन सुनील ग्रोवर और कपिल शर्मा के बीच झगड़ा हो गया था. इस झगड़े के बाद से ही सुनील ग्रोवर ने द कपिल शर्मा शो छोड़ दिया. इस समय सुनील ग्रोवर लाइव इवेंट्स के जरिए लोगों को एंटरटेन कर रहे हैं.

बिग बी को रिप्लेस करेंगी ऐश्वर्या!

‘देवियों और सज्जनों’ सुनते ही सबसे पहले एक नाम जहन में आता है वो है सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का. साल 2000 में शुरू हुए शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ को अमिताभ होस्ट करते हैं. लेकिन इस बार इस शो को नया होस्ट मिलने वाला है.

लेटेस्ट खबरों की मानें तो अमिताभ बच्चन की बहू ऐश्वर्या राय बच्चन या माधुरी दीक्षित इस बार ‘केबीसी’ की होस्ट बन सकती हैं.

‘केबीसी’ का अंतिम सीजन 2014 में आया था और अब शो के मेकर्स फिर से नया सीजन लाना चाहते हैं, जो प्राइम टाइम पर प्रसारित होगा. इस बार मेकर्स फीमेल होस्ट चाहते हैं और इसीलिए ऐश्वर्या और माधुरी के नाम पर विचार किया जा रहा है.

लेकिन किसी के साथ कोई करार हुआ है या नहीं इस पर सोनी, केबीसी और बच्चन परिवार, किसी की भी तरफ से कोई सूचना नहीं दी गई है.

वैसे आपको बता दें कि ऐसा नहीं है कि केबीसी के सभी सीजन अमिताभ बच्चन ने ही होस्ट किए हैं. साल 2007 के सीजन 3 को शाहरुख खान ने होस्ट किया था, पर शाहरुख को लोगों ने कुछ खास पसंद नहीं किया.

केबीसी के निर्माता मशहूर क्विज कंडक्टर और टीवी प्रोड्यूसर सिद्धार्थ बासु हैं जो अमेरिकी क्विज शो ‘हू वॉन्टस टू बी ए मिलयेनेयर’ का भारतीय संस्करण लेकर आए.

माधुरी ने पहले ‘कहीं ना कहीं कोई है’ शो होस्ट भी किया है. उन्होंने ‘झलक दिखला जा’ के चार सीजन और ‘सो यू थिंक यू कैन डांस इंडिया शो’ को जज भी किया है. लेकिन ऐश्वर्या के पास टीवी का कोई एक्सपीरियंस नहीं है. अगर ऐश्वर्या को केबीसी होस्ट करने तका मौका मिलता है तो ये टीवी पर उनका डेब्यू होगा.

खाने की हैं शौकीन तो करें इन शहरों की सैर

भारत विविधताओं का देश है और हर राज्य का अपना अलग जायका है. ऐसे में अगर आप भी खाने की शौकीन हैं तो आप इन शहरों की यात्रा कर सकती हैं. हम आपको बता रहे हैं उन शहरों के बारे में जिनकी फेमस डिश आपके मुंह में पानी ले आएगी.

दिल्ली

दिलवालों की दिल्ली भी खाने-पीने के मामले में दुनियाभर में मशहूर है. पुरानी दिल्ली का चांदनी चौक का इलाका तो खाने के शौकीनों का हब कहा जा सकता है. पराठे वाली गली के पराठे, दिल्ली के छोले भटूरे, छोले कुल्चे, राजमा चावल भी काफी फेमस हैं.

लखनऊ

नवाबों का शहर लखनऊ अपने अवधी खाने के लिए मशहूर है. यहां आपको लाजवाब बिरयानी, कबाब, गोलगप्पा और बेहद टेस्टी पराठा खाने को मिल जाएगा. मीठे के शौकीन हैं तो इस शहर में सर्दियों के मौसम में ओस से एक खास मिठाई तैयार की जाती है जिसे मल्लईओ या मक्खन मलाई कहते हैं. लखनऊ जाएं तो इसका लुत्फ उठाना न भूलें.

कोलकाता

यह शहर फुचका यानी गोलगप्पा और चिकन रोल्स के लिए फेमस है. कोलकाता जैसे रोल्स आपको भारत के दूसरे किसी शहर में नहीं मिलेंगे. इसके अलावा कोलकाता अपनी मिठाई रसगुल्ला और संदेश के लिए भी देश ही नहीं दुनियाभर में मशहूर है.

मुंबई

खाने की बात हो रही है और मुंबई का नंबर न आए यह कैसे हो सकता है. मराठा क्विजीन और पारसी क्विजीन के लिए फेमस है मुंबई. इसके साथ ही यहां बेहतरीन वड़ा पाव, नल्ली निहारी, बोटी कबाब और पानी पुरी मिलती है.

हैदराबाद

यह शहर सिर्फ चारमीनार के लिए ही फेमस नहीं है बल्कि यहां आपको भारत का बेहतरीन मुगलाई, टरकिश और ऐरबिक खाना मिलेगा. हैदराबाद वैसे भी अपनी बिरयानी के लिए दुनियाभर में मशहूर है. कच्चे गोश्त की बिरयानी, हैदराबादी बिरयानी, कराची बिस्किट. ये सब आपके मुंह में पानी ले आएंगे.

केवल डर से डरने की जरूरत है

क्या कभी आप ने बच्चों, किशोरों, वयस्कों और बुजुर्गों तक के गले में ताबीज, काले धागे और विभिन्न देवीदेवताओं की तसवीर वाले लौकेट पहने जाने के पीछे के मनोविज्ञान और धार्मिक पाखंडों के बारे में संजीदगी से सोचा है? साथ ही क्या कभी इस प्रकार की मानवीय फितरत को पढ़ने की कोशिश की है?

इस में कोई शक नहीं कि किसी धर्म विशेष और व्यक्तिगत आस्था को दर्शाने वाले ये प्रतीक चिह्न व्यक्ति के जीवन और उस की सोच के ढंग का आईना होते हैं, जिन में उस व्यक्ति का मन और मस्तिष्क साफसाफ परिलक्षित होता है, लेकिन इस से परे इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि सनातन से मानव जीवन को प्रभावित करते ये सभी धार्मिक पाखंड हमारे दिल में गहरे बैठे उस डर का परिणाम होते हैं जो वास्तविक जीवन में कोई वजूद नहीं रखते और जिन की प्रामाणिकता का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता.

धरती पर सभ्यता के आगाज से ही मानव कई प्रकार के भय से ग्रसित होता आ रहा है. ये मानवीय भय कई प्रकार के होते हैं, जैसे इंसान अंधेरे से डरता है, परीक्षा के परिणाम से उसे भय लगता है, रोग से भय, मृत्यु से भय, ऊंचाई से गिरने का भय, पराए तो पराए अपनों से भय, भूख और गरीबी से भय और न जाने किसकिस तरह के भय से इंसान ग्रसित नहीं होते हैं. कभीकभी तो इंसान को रोशनी से भी डर लगता है. सभी तरह के भय से बचने या मन को झूठी दिलासा देने के लिए धार्मिक पाखंड या अंधविश्वास एक छद्म रक्षाकवच का कार्य करता है और व्यक्ति खुद को आने वाले संकटों से महफूज महसूस करता है.

महान विचारक कार्ल मार्क्स ने कहा था कि धर्म जनता की अफीम होती है. सच पूछें तो यदि धर्म अफीम है तो धर्म से जुड़े विभिन्न पाखंड और दकियानूसी मान्यताएं एक नशे के रूप में काम करती हैं, जिस की रौ में इंसान जीवन की हर घटना को तर्क और विवेक की कसौटी पर नहीं तोल पाता और इस भंवर में अनियंत्रित रूप से फंसता जाता है.

अहम प्रश्न यह है कि आखिर धार्मिक पाखंडों और व्यक्तिगत आस्था के कवच के रूप में टोटकों और अंधविश्वासों के मकड़जाल से मुक्ति का रास्ता क्या है?

एक बात तो स्पष्ट है कि हमारी मानसिकता में गहराई तक जड़ें जमाए हुए इन अटूट अंधविश्वासों को एक झटके में नहीं तोड़ा जा सकता, लेकिन इन पर अनवरत प्रहार कर के इन की पकड़ को कमजोर करने में मदद मिल सकती है.

यह सत्य है कि पाखंडों और अन्य अंधविश्वासों की शुरुआत मन में बसे भय और अनिष्ट की आशंका के कारण होती है. लिहाजा, यह स्वाभाविक है कि हमें अपने दिल में बसे भय पर नियंत्रण की जरूरत है.

मन को करें नियंत्रित

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भय ही वह ताकत है, जिस से हमें डर लगता है. डर की शुरुआत मन से होती है और सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के मन में उथलपुथल कम होती है और भटकाव भी कम होता है.

संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति अस्थिर चित्त और कमजोर मनोदशा वाला होता है. वह अनहोनी की आशंका से हकलान हो जाता है और खुद को सुरक्षित महसूस करने के लिए घबराहट में किसी भी प्रकार के पाखंड और जादूटोने का शिकार हो जाता है.

पाखंड का यह रास्ता जीवन की क्षणिक पलायन की स्थिति है जिस से हमें बच कर रहने की जरूरत है.

मन की कमजोरी एक घातक स्थिति है और इस पर नियंत्रण रखना जरूरी है. इस के लिए हमें अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है, तभी हम अच्छा सोच कर आगे बढ़ पाएंगे.

नदी पर बने पुल के नीचे बहते पानी को क्या आप ने कभी गौर से देखा है? इस में निडर जीवन और मजबूत मन के अमूल्य दर्शन छिपे होते हैं. यह बहता पानी कभी भी लौट कर वापस अपनी जगह पर नहीं आता. यह हर समय नया होता है और हर समय अबाध गति से बहता रहता है, जिस से सीख लेने की जरूरत है.

इसी प्रकार जीवन में जो गुजर चुका है उस पर चिंता करने की जरूरत नहीं है. हमें पुल के नीचे बहने वाले पानी की तरह हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए. पुरानी घटनाओं के कटु अनुभवों से मन काफी मजबूत हो जाता है, फालतू बातों से मन विचलित नहीं होता.

प्रत्येक समस्या का समाधान है

यह माना जाता है कि जीवन में समस्याएं 2 तरह की होती हैं. एक प्रकार ऐसा होता है जिस का कोई समाधान नहीं होता. इसलिए ऐसी समस्याओं के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं होती.

दूसरी समस्याएं प्रकृति की होती हैं जिन का कोई न कोई समाधान जरूर होता है. लिहाजा, ऐसी समस्याओं के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. इन समस्याओं से घिरने की दशा में इंसान को चिंतित और भयभीत होने की कतई आवश्यकता नहीं है.

जीवन को इस प्रकार जीने के सलीके को यदि अपना लिया जाए तो मानव किसी भी प्रकार के भय से ग्रस्त नहीं होता और न ही वह किसी भय के निवारण और समस्या के समाधान के लिए किसी पाखंड और टोटके के झूठे सहारे की तलाश करता है.

सब के अंदर छिपा है एक मोगली

भय के बारे में एक छोटी और रोचक कहानी है. एक गांव के लोग जंगल से भटक कर आए एक शेर के आतंक से काफी परेशान थे. बड़ेबड़े सूरमा भी उस शेर के पास जाने से डरते थे.

गांव का एक छोटा सा बालक संयोग से एक दिन उस शेर के पास जा कर बड़े इतमीनान से बैठा हुआ था. ग्रामीणों ने जब इस हैरतअंगेज घटना को देखा तो वे दहशत में आ गए. आननफानन में ग्रामीणों को उस बच्चे को शेर के पास से दूर हटाने में सफलता मिल गई.

जब वह बच्चा उस शेर के पास से लौट कर आया तो ग्रामीणों ने उसे बहुत डांटा, ‘‘बेवकूफ हो तुम… अकल घास चरने गई है तुम्हारी? शेर से डर नहीं लगता है तुम्हें? वह तुम्हें कच्चा खा जाता…’’

‘‘यह डर क्या होता है? मेरी मां ने तो इस बारे में आज तक मुझे कुछ नहीं बताया. फिर मैं यह कैसे जान पाऊंगा कि डर क्या होता है?’’ बच्चे ने बिना भय जवाब दिया.

सच में डर मन की अवस्था होता है. यह हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि और सामाजिक संस्कारों से भी प्रभावित होता है. यदि हम अपने बच्चों को डराना बंद कर दें, उन्हें संकटों से लड़ना और जूझना सिखाएं, विकट परिस्थितियों में भी अपना धैर्य टूटने न देने की कला में प्रशिक्षित करें और मोगली जैसा साहसी और निडर बनाएं, तो कोई शक नहीं कि आने वाले दशकों में लगभग 8 बिलियन की आबादी की यह धरती कई प्रकार के धार्मिक पाखंडों और अंधविश्वासों के अंधेरे से स्वत: मुक्त हो जाएगी.

श्रीप्रकाश शर्मा 

टोटकों से नहीं मेहनत से बढ़ें

आज के दौर में ज्यादातर लोग खुद को मौडर्न और आजाद खयालों का बताते हैं, लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो परीक्षा के लिए कठिन मेहनत करने के बाद भी अच्छे अंक पाने के लिए टोटकों और ऐसे अंधविश्वासों पर भरोसा कर आगे बढ़ते हैं. आइए जानें कि टोटके कैसे होते हैं और किस तरह उन से हमारा भला नहीं बल्कि बुरा होता है :

कुछ विशेष टोटके हैं, परीक्षा से पहले घर से कुछ मीठा खा कर जाना, पैंसिल बौक्स में तुलसी का पत्ता रखना, लकी स्टोन या फिर गुडलक कड़ा पहनना, शुभ व्यक्ति को देख कर घर से निकलना, घर से ऐग्जामिनेशन हौल में पहुंचने तक किसी से भी बात न करना, किताब में मोर पंख रखना आदि.

ये भी हैं अजीब बेतुके गुडलक चार्म

गुडलक पैन : कुछ छात्रों को लगता है कि उन का वह पुराना पैन जिस से लिखने पर पिछली क्लास में अच्छे अंक आए थे, यदि वे उसे ले कर जाएंगे तो अच्छे अंक आएंगे, क्योंकि वह उन का गुडलक पैन है, लेकिन होता कुछ और ही है. अब समय काफी बदल गया है और कई अच्छी क्वालिटी के स्मूथ और जल्दी लिखने वाले पैन आ गए हैं, लेकिन उन के बीच इस पुराने पैन से लिखने की वजह से पेपर छूट भी सकता है इसलिए ऐसी किसी बेतुकी बात पर विश्वास करने के बजाय एक अच्छा, नया और स्मूथ पैन लें ताकि परीक्षा हौल में पैन की समस्या से जूझने के बजाय आप का ध्यान अपने प्रश्नपत्र  में दिए गए प्रश्नों का जवाब लिखने में हो.

मैना देखना गुडलक : कई लोगों का मानना है कि ऐग्जाम से पहले एकसाथ 2 मैना का दिखना शुभ होता है, इस से पेपर अच्छा जाता है. इसी वजह से छात्र पेपर से पहले पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय अपना समय मैना ढूंढ़ने में बरबाद करते हैं और पेपर खराब हो जाने पर उस की वजह समय बरबाद करना नहीं बल्कि मैना का न मिलना बताते हैं. अब उन्हें कौन समझाए कि पेपर और मैना का आपस में कोई संबंध नहीं बल्कि परीक्षा और मेहनत का संबंध है.

केले की जड़ : कई अंधविश्वासी लोगों का मत है कि केले की जड़ को ऐग्जामिनेशन हौल में ले जाने से ऐग्जाम में अंक अच्छे आते हैं. केले की जड़ को पैन में घिसने से भी अच्छे अंक मिलते हैं.  जबकि सच तो यह है कि कई बार जड़ को पैन में घिसने के चक्कर में ऐग्जामिनेशन हौल में टीचर की नजर में आ जाता है और उन्हें लगता है कि दाल में कुछ काला है और टीचर द्वारा जांचपड़ताल में उस का समय बरबाद होता है, साथ ही उसे शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती है.

लकी कलर के कपड़े पहनना : कुछ छात्रों का विश्वास होता है कि अगर वे रैड कलर के कपड़े पहन कर पेपर देने जाएंगे तो उन्हें अच्छे मार्क्स मिलेंगे, इस वजह से वे भरी गरमी में भी लाल रंग के कपड़े पहन कर जाते हैं, जबकि इस से अच्छे अंकों का कोई लेनादेना है, यह सोचना बेवकूफी है.

गुडलक रूमाल :  हर पेपर में एक ही रंग का रूमाल रखना लकी माना जाता है और यदि किसी कारणवश रूमाल खो जाए तो पेपर खराब होने का सारा दोष रूमाल खोने को दिया जाता है, जबकि उस बात का इस से कुछ लेनादेना नहीं है.

दही खाना : ऐग्जाम देने निकलने से पहले दही खाना शुभ माना जाता है, लेकिन कई बार यदि छात्र का गला खराब हो उसे सर्दी आदि लगी हो और वह दही खा ले तो उस की यह तकलीफ और बढ़ जाती है, जिस से पेपर पर असर पड़ता है.

सफलता मेहनत करने से मिलेगी टोटकों से नहीं

परीक्षा में अंक पढ़ाई करने से मिलेंगे : कुछ छात्रों को गलतफहमी रहती है कि परीक्षा में उतने अंक पढ़ाई कर के जवाब लिखने से नहीं मिलेंगे जितने कि टोटके करने से मिल जाएंगे. अगर ऐसे लोग फेल हो जाते हैं तो उन्हें लगता है कि उन के टोटकों में कुछ कमी थी इसलिए इस बार किसी अच्छे जानकार से पूछ कर कुछ करना पड़ेगा और अगर पास हो गए तो सारा क्रैडिट पढ़ाई के बजाय टोनेटोटकों को देते हैं.

लेकिन सच तो यह है कि कितनी भी पूजा कर लो, कितना भी शुभ और अशुभ का राग अलाप लो, यदि पढ़ाई नहीं की है तो कोई ताकत नहीं है जो परीक्षा में अच्छे अंक दिलवा दे, इसलिए इन बेकार की बातों को छोड़ कर अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाएंगे तो किसी टोटके की जरूरत ही नहीं पड़ेगी वैसे ही अच्छे अंक आ जाएंगे.

सारे चैप्टर याद करोगे तो नंबर अवश्य मिलेंगे :  छात्र इस बात को नहीं समझ पाते कि अगर उन्होंने पाठ याद नहीं किया और प्रश्नपत्र में आने वाला कोई सवाल नहीं पढ़ा है तो अंक कैसे मिलेंगे? अगर सिलेबस को अच्छी तरह पढ़ा है तो परीक्षा में प्रश्नों के जवाब भी आ जाएंगे, लेकिन अगर पढ़ा ही नहीं तो उस में कोई भी कुछ नहीं कर सकता.

क्लास में पढ़ाई पर ध्यान दें : कक्षा में टीचर द्वारा जो पढ़ाया जाता है अगर उस पर ध्यान दिया जाए तो पूरा सिलेबस जल्दी समझने और कवर करने में समय नहीं लगता. क्लास में टीचर द्वारा पढ़ाने के साथसाथ यदि खुद भी पढ़ा जाए तो पिछड़ने से बच सकते हैं, क्योंकि टीचर पूरे साल का सिलेबस, ऐग्जाम के हिसाब से ही पूरा करवाता है. अगर क्लास में टीचर के साथसाथ पढ़ा जाए तो आप अपनी प्रौब्लम टीचर से पूछ कर सौल्व कर सकते हैं और ऐग्जाम टाइम में बस आप को रिवीजन ही करना पड़ेगा, क्योंकि पढ़ तो आप पहले ही चुके होंगे.

नोट्स बनाएं : हर सब्जैक्ट के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं के नोट्स बनाएं. ऐग्जाम के समय पूरे सिलेबस को बारबार रिवाइज करना कठिन होता है, इसलिए जब भी किसी पाठ को पढ़ें तो जरूरी चीजों के नोट्स बना लें ताकि बारबार पूरे पाठ को दोहराने की आवश्यकता न पड़े. वे नोट्स आप को ऐग्जाम के समय काफी काम आते हैं. जब समय कम होता है और रिवाइज बहुत सारा करना होता है, नोट्स आप के बेहतर रिजल्ट में मददगार साबित होते हैं.

पढ़ाई कल पर न टालें : कहते हैं न कल करे सो आज कर आज करे सो अब, पल में प्रलय आएगी फिर करेगा कब. यह बात पढ़ाई पर तो बिलकुल सही लागू होती है. आप किसी भी काम को टाल लें, लेकिन पढ़ाई को नहीं टाल सकते. अगर नियमित पढ़ाई करेंगे तो किसी फालतू टोटके की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और सफलता भी मिलेगी.

कठिन विषय पर अतिरिक्त ध्यान दें : जिस सब्जैक्ट में आप को जरा भी डाउट हो उस में टीचर से मदद ली जा सकती है. ऐक्स्ट्रा क्लास लेने के बारे में भी बात की जा सकती है या फिर कोई प्राइवेट ट्यूशन ले कर प्रौब्लम सौल्व की जा सकती है. यदि आप उस विषय की पढ़ाई अच्छी तरह करेंगे तो ऐग्जाम आतेआते उस में माहिर हो जाएंगे.  

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