झगड़ा: क्यों भागा था लाखा

लेखक- युधिष्ठिर लाल कक्कड़

रात गहराने लगी थी और श्याम अभीअभी खेतों से लौटा ही था कि पंचायत के कारिंदे ने आ कर आवाज लगाई, ‘‘श्याम, अभी पंचायत बैठ रही?है. तुझे जितेंद्रजी ने बुलाया है.’’

अचानक क्या हो गया? पंचायत क्यों बैठ रही है? इस बारे में कारिंदे को कुछ पता नहीं था. श्याम ने जल्दीजल्दी बैलों को चारापानी दिया, हाथमुंह धोए, बदन पर चादर लपेटी और जूतियां पहन कर चल दिया.

इस बात को 2-3 घंटे बीत गए थे. अपने पापा को बारबार याद करते हुए सुशी सो गई थी. खाट पर सुशी की बगल में बैठी भारती बेताबी से श्याम के आने का इंतजार कर रही थी.

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो भारती ने सांकल खोल दी. थके कदमों से श्याम घर में दाखिल हुआ.

भारती ने दरवाजे की सांकल चढ़ाई और एक ही सांस में श्याम से कई सवाल कर डाले, ‘‘क्या हुआ? क्यों बैठी थी पंचायत? क्यों बुलाया था तुम्हें?’’

‘‘मुझे जिस बात का डर था, वही हुआ,’’ श्याम ने खाट पर बैठते हुए कहा.

‘‘किस बात का डर…?’’ भारती ने परेशान लहजे में पूछा.

श्याम ने बुझी हुई नजरों से भारती की ओर देखा और बोला, ‘‘पेमा झगड़ा लेने आ गया है. मंगलगढ़ के खतरनाक गुंडे लाखा के गैंग के साथ वह बौर्डर पर डेरा डाले हुए है. उस ने 50,000 रुपए के झगड़े का पैगाम भेजा है.’’

‘‘लगता है, वह मुझे यहां भी चैन से नहीं रहने देगा… अगर मैं डूब मरती तो अच्छा होता,’’ बोलते हुए भारती रोंआसी हो उठी. उस ने खाट पर सोई सुशी को गले लगा लिया.

श्याम ने भारती के माथे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘नहीं भारती, ऐसी बातें क्यों करती हो… मैं हूं न तुम्हारे साथ.’’

‘‘फिर हमारे गांव की पंचायत ने क्या फैसला किया? क्या कहा जितेंद्रजी ने?’’ भारती ने पूछा.

‘‘सच का साथ कौन देता है आजकल… हमारी पंचायत भी उन्हीं के साथ है. जितेंद्रजी कहते हैं कि पेमा का झगड़ा लेने का हक तो बनता है…

‘‘उन्होंने मुझ से कहा कि या तो तू झगड़े की रकम चुका दे या फिर भारती को पेमा को सौंप दे, लेकिन…’’ इतना कहतेकहते श्याम रुक गया.

‘‘मैं तैयार हूं श्याम… मेरी वजह से तुम क्यों मुसीबत में फंसो…’’ भारती ने कहा.‘‘नहीं भारती… तुम्हें छोड़ने की बात तो मैं सोच भी नहीं सकता… रुपयों के लिए अपने प्यार की बलि कभी नहीं दूंगा मैं…’’‘‘तो फिर क्या करोगे? 50,000 रुपए कहां से लाओगे?’’ भारती ने पूछा.

‘‘मैं अपना खेत बेच दूंगा,’’ श्याम ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘खेत बेच दोगे तो खाओगे क्या… खेत ही तो हमारी रोजीरोटी है… वह भी छिन गई तो फिर हम क्या करेंगे?’’ भारती ने तड़प कर कहा.

यह सुन कर श्याम मुसकराया और प्यार से भारती की आंखों में देख कर बोला, ‘‘तुम मेरे साथ हो भारती तो मैं कुछ भी कर सकता हूं. मैं मेहनतमजदूरी करूंगा, लेकिन तुम्हें भूखा नहीं मरने दूंगा… आओ खाना खाएं, मुझे जोरों की भूख लगी है.’’

भारती उठी और खाना परोसने लगी. दोनों ने मिल कर खाना खाया, फिर चुपचाप बिस्तर बिछा कर लेट गए.

दिनभर के थकेहारे श्याम को थोड़ी ही देर में नींद आ गई, लेकिन भारती को नींद नहीं आई. वह बिस्तर पर बेचैन पड़ी रही. लेटेलेटे वह खयालों में खो गई.

तकरीबन 5 साल पहले भारती इस गांव से विदा हुई थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी. उन्होंने उसे लाड़प्यार से पालपोस कर बड़ा किया था. उस की शादी मंगलगढ़ के पेमा के साथ धूमधाम से की गई थी.

भारती के मातापिता ने उस के लिए अच्छा घरपरिवार देखा था ताकि वह सुखी रहे. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही उस की सारी खुशियां ढेर हो गई थीं, क्योंकि पेमा का चालचलन ठीक नहीं था. वह शराबी और जुआरी था. शराब और जुए को ले कर आएदिन दोनों में झगड़ा होने लगा था.

पेमा रात को दारू पी कर घर लौटता और भारती को मारतापीटता व गालियां बकता था. एक साल बाद जब सुशी पैदा हुई तो भारती ने सोचा

कि पेमा अब सुधर जाएगा. लेकिन न तो पेमा ने दारू पीना छोड़ा और न ही जुआ खेलना.

पेमा अपने पुरखों की जमीनजायदाद को दांव पर लगाने लगा. जब कभी भारती इस बात की खिलाफत करती तो वह उसे मारने दौड़ता.

इसी तरह 3 साल बीत गए. इस बीच भारती ने बहुत दुख झेले. पति के साथ कुदरत की मार ने भी उसे तोड़ दिया. इधर भारती के मांबाप गुजर गए और उधर पेमा ने उस की जिंदगी बरबाद कर दी. घर में खाने के लाले पड़ने लगे.

सुशी को बगल में दबाए भारती खेतों में मजदूरी करने लगी, लेकिन मौका पा कर वह उस की मेहनत की कमाई भी छीन ले जाता. वह आंसू बहाती रह जाती.

एक रात नशे की हालत में पेमा अपने साथ 4 आवारा गुंडों को ले कर घर आया और भारती को उन के साथ रात बिताने के लिए कहने लगा. यह सुन कर उस का पारा चढ़ गया. नफरत और गुस्से में वह फुफकार उठी और उस ने पेमा के मुंह पर थूक दिया.

पेमा गुस्से से आगबबूला हो उठा. लातें मारमार कर उस ने भारती को दरवाजे के बाहर फेंक दिया.

रोती हुई बच्ची को भारती ने कलेजे से लगाया और चल पड़ी. रात का समय था. चारों ओर अंधेरा था. न मांबाप, न कोई भाईबहन. वह जाती भी तो कहां जाती. अचानक उसे श्याम की याद आ गई.

बचपन से ही श्याम उसे चाहता था, लेकिन कभी जाहिर नहीं होने दिया था. वह बड़ी हो गई, उस की शादी हो गई, लेकिन उस ने मुंह नहीं खोला था.

श्याम का प्यार इतना सच्चा था कि वह किसी दूसरी औरत को अपने दिल में जगह नहीं दे सकता था. बरसों बाद भी जब वह बुरी हालत में सुशी को ले कर उस के दरवाजे पर पहुंची तो उस ने हंस कर उस के साथ पेमा की बेटी को भी अपना लिया था.

दूसरी तरफ पेमा ऐसा दरिंदा था, जिस ने उसे आधी रात में ही घर से बाहर निकाल दिया था. औरत को वह पैरों की जूती समझता था. आज वह उस की कीमत वसूलना चाहता है.

कितनी हैरत की बात है कि जुल्म करने वाले के साथ पूरी दुनिया है और एक मजबूर औरत को पनाह देने वाले के साथ कोई नहीं है. बीते दिनों के खयालों से भारती की आंखें भर आईं.

यादों में डूबी भारती ने करवट बदली और गहरी नींद में सोए हुए श्याम के नजदीक सरक गई. अपना सिर उस ने श्याम की बांह पर रख दिया और आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी.

दूसरे दिन सुबह होते ही फिर पंचायत बैठ गई. चौपाल पर पूरा गांव जमा हो गया. सामने ऊंचे आसन पर गांव के मुखिया जितेंद्रजी बैठे थे. उन के इर्दगिर्द दूसरे पंच भी अपना आसन जमाए बैठे थे. मुखिया के सामने श्याम सिर झुकाए खड़ा था.

पंचायत की कार्यवाही शुरू

करते हुए मुखिया जितेंद्रजी ने कहा, ‘‘बोल श्याम, अपनी सफाई में तू क्या कहना चाहता है?’’

‘‘मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है मुखियाजी… मैं ने ठुकराई हुई एक मजबूर औरत को पनाह दी है.’’

यह सुन कर एक पंच खड़ा हुआ और चिल्ला कर बोला, ‘‘तू ने पेमा की औरत को अपने घर में रख लिया है श्याम… तुझे झगड़ा देना ही पड़ेगा.’’

‘‘हां श्याम, यह हमारा रिवाज है… हमारे समाज का नियम भी है… मैं समाज के नियमों को नहीं तोड़ सकता,’’ जितेंद्रजी की ऊंची आवाज गूंजी तो सभा में सन्नाटा छा गया.

अचानक भारती भरी चौपाल में आई और बोली, ‘‘बड़े फख्र की बात है मुखियाजी कि आप समाज का नियम नहीं तोड़ सकते, लेकिन एक सीधेसादे व सच्चे इनसान को तोड़ सकते हैं…

‘‘आप सब लोग उसी की तरफदारी कर रहे हैं जो मुझे बाजार में बेच देना चाहता है… जिस ने मुझे और अपनी मासूम बच्ची को आधी रात को घर से धक्के दे कर भगा दिया था… और वह दरिंदा आज मेरी कीमत वसूल करने आ खड़ा हुआ है.

‘‘ले लीजिए हमारा खेत… छीन लीजिए हमारा सबकुछ… भर दीजिए उस भेडि़ए की झोली…’’ इतना कहतेकहते भारती जमीन पर बेसुध हो कर लुढ़क गई.

सभा में खामोशी छा गई. सभी की नजरें झुक गईं. अचानक जितेंद्रजी अपने आसन से उठ खड़े हुए और आगे बढ़े. भारती के नजदीक आ कर वह ठहर गए. उन्होंने भारती को उठा कर अपने गले लगा लिया.

दूसरे ही पल उन की आवाज गूंज उठी, ‘‘सब लोग अपनेअपने हथियार ले कर आ जाओ. आज हमारी बेटी पर मुसीबत आई है. लाखा को खबर कर दो कि वह तैयार हो जाए… हम आ रहे हैं.’’

जितेंद्रजी का आदेश पा कर नौजवान दौड़ पड़े. देखते ही देखते चौपाल पर हथियारों से लैस सैकड़ों लोग जमा हो गए. किसी के हाथ में बंदूक थी तो किसी के हाथ में बल्लम. कुछ के हाथों में तलवारें भी थीं.

जितेंद्रजी ने बंदूक उठाई और हवा में एक फायर कर दिया. बंदूक के धमाके से आसमान गूंज उठा. दूसरे ही पल जितेंद्रजी के साथ सभी लोग लाखा के डेरे की ओर बढ़ गए.

शराब के नशे में धुत्त लाखा व उस के साथियों को जब यह खबर मिली कि दलबल के साथ जितेंद्रजी लड़ने आ रहे हैं तो सब का नशा काफूर हो गया. सैकड़ों लोगों को अपनी ओर आते देख वे कांप गए. तलवारों की चमक व गोलियों की गूंज सुन कर उन के दिल दहल उठे.

यह नजारा देख पेमा के तो होश ही उड़ गए. लाखा के एक इशारे पर उस के सभी साथियों ने अपनेअपने हथियार उठाए और भाग खड़े हुए.

फटाफट बनाए जाने वाले ये तीन Smoothie , टेस्ट भी सेहत भी

Smoothie Recipe : स्मूदी फलों से तैयार होता है. इसी वजह से यह एंटी औक्सीडेंट्स से भरपूर होता है. इसमें काफी मात्रा में फाइबर पाया जाता है. फलों की वजह से ही यह विटामिन से भरपूर होता है. स्मूदी बनाने के लिए दूध या दही का इस्तेमाल किया जाता है जो प्रोटीन का बेस्ट सोर्स है. बहुत सारे लोग स्मूदी में नट्स, सीड्स भी डालते हैं, इसमें मौजूद ओमेगा फैटी एसिड्स हार्ट हेल्थ के लिए अच्छा माना गया है. इतना ही नहीं ब्रेकफास्ट में स्मूदी लेने से वजन कंट्रोल में रहता है. बौडी को हाइड्रेट रखता है. कुल मिला कर कहा जाए, तो स्मूदी एक हेल्दी ड्रिंक है जो अपने स्वाद की वजह से बेहद पसंद किया जाता है.

मिक्सड बेरी स्मूदी

सामग्री
एक कप फ्रोजन ब्लूबेरी
एक गिलास दूध
शूगर टेस्ट के अनुसार

विधि

  • फ्रोजन बेरी को ब्लेंडर में डालें.
  • इसमें फ्रेश मिल्क और शुगर मिला लें.
  • तीनों को ब्लेंडर में चला लें. जब सारी सामग्री अच्छी तरह मिल जाए, तो इसे शीशे के गिलास में परोसें.

फायदें

ब्लूबेरी में एंथोसायनिन नामक एंटऔक्सीडेंट पाया जाता है. यह फ्री रेडिकल्स से लड़ने में मदद करता है. इस वजह से स्किन लंबे समय तक यंग दिखती है. दिल की बीमारियों को दूर रखने का काम करता है.
इसका फाइबर डाइजेशन को सही रखने के साथ ही कौन्सटिपेशन को काबू में रखता है.

टिप्स

ब्रेकफास्ट में इस स्मूदी को लेना चाहते हैं, तो इसमें ओट्स मिला लें. ब्लू बेरी के साथ क्रेन बेरी और स्ट्राबेरी भी मिला कर इसके टैस्ट को और भी अच्छा बना सकते हैं.

Mango Smoothie in a Glass Jar with Fresh Mango on a Dark Surface

मैंगो बनाना स्मूदी

सामग्री
एक केला (छिलका उतारकर टुकड़े किए हुए)
एक आम अच्छी तरह पका हुआ (छिलका उतारकर टुकड़े किए हुए)
एक गिलास दूध
या एक बड़ा कटोरा ताजी दही
शुगर टेस्ट के अनुसार

विधि

  • आम और केला को ब्लेंडर में डाल दें.
  • इसमें एक गिलास दूध डाल दें.
  • दूध को डाइजेस्ट करने में दिक्कत होती हो या दूध घर में मौजूद नहीं हो, तो दही लें. दही ताजी होनी चाहिए. दही के साथ यह स्मूदी और भी अच्छी बनती है.
  • इसमें शुगर मिला कर ब्लेंडर को चला लें.
  • अच्छी तरह मिक्स होने के बाद इसे गिलास में परोसें.

फायदें

  • आम में विटामिन सी, विटामिन ए और फोलेट मौजूद होता है, इस वजह से यह इम्युन सिस्टम के लिए अच्छा माना गया है.
  • आम में मौजूद एंटी औक्सीडेंट बढ़ती उम्र के असर को कम करने का काम भी करता है.
  • आम में नैचुरल शुगर पाए जाने की वजह से एनर्जी लेवल बरकरार रहता है.
  • केला को पोटैशियम का सोर्स माना गया है. यह ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखने का काम करता है.
  • एक्सरसाइज करने वालों के लिए केला एनर्जी का सबसे अच्छा स्रोत है इसलिए यह स्मूदी जिम जाने वालों के लिए बेस्ट कहा जा सकता है.

टिप्स

  • परोसते समय इसमें बादाम की कतरनें डाल सकते हैं.
  • इसमें चिया सीड्स या फ्लैक्स सीड्स मिला कर इसे और भी हैल्दी बना सकते हैं. इन सीड्स को मिलाने के बाद तुरंत नहीं पिएं, इसे थोड़ी देर के लिए फ्रिज में रखें, इससे सीड्स अच्छी तरह से फूल जाएंगे.

Ai generated image of banana

बनाना बेरी स्मूदी

सामग्री
1 बड़ा केला
1 कप स्ट्रौबेरी और ब्लूबेरी
1 कप दही या दूध
शुगर (स्वादानुसार)

विधि

  • ब्लेंडर में केला, बेरीज, दही/दूध और शुगर डाल दें.
  • सभी को चिकना होने तक ब्लेंड करें.
  • आपकी स्मूदी तैयार है, गिलास में निकालें और पिएं.

टिप्स
आप चाहें, तो इसमें चिया सीड्स भी मिला सकते हैं लेकिन चिया सीड्स मिलाने के बाद इसे तुरंत न पिएं, इसे फूलने दें. शुगर लेने से बचना चाहती हैं, तो इसमें शहद मिलाएं.

गृहशोभा कुकिंग क्वीन इवेंट, बेंगलुरु

गृहशोभा महिला पाठक व्यक्तित्व विकास, एवर फौर प्रौस्पेरिटी का विशेष विकास, कुकिंग क्वीन कार्यक्रम हाल ही में दिल्ली प्रैस की प्रकाशन टीम, गृहशोभा द्वारा भव्य तरीके से आयोजित किया गया. प्रमुख प्रायोजक स्पाइस पार्टनर एल.जी. इंगु, पर्यटन पार्टनर उत्तराखंड पर्यटन विभाग रहे.

इस कार्यक्रम का पूरा फोकस पौष्टिक खाना पकाने और खाने पर था. पिछले महीने 22 सितंबर को यह कार्यक्रम इस्कौन, राजाजीनगर, बैंगलुरु के पास नंबर 19 पर आयोजित किया गया था. आरजी इसका आयोजन रॉयल होटल में किया गया था. इस कार्यक्रम के लिए शहर की सैकड़ों महिलाएं अपनी सेहत, पौष्टिक भोजन, कुकिंग प्रतियोगिता, सैलिब्रिटी शेफ द्वारा कुकिंग डेमो, ढेर सारे मनोरंजन आदि के लिए बड़े उत्साह के साथ यहां एकत्र हुईं.

शेफ सविता कृष्णमूर्ति, जो धारावाहिक ‘अमृतवॢषनी से टेलीविजन पर यशोदम्मा की भूमिका निभाकर कर्नाटक में एक लोकप्रिय वैम्प बन गईं, ‘माने कोटक और कई अन्य कुकिंग शो में मुख्य शेफ के रूप में चमकीं. बाद में उन्होंने 45 से अधिक धारावाहिकों के जरीए अपार लोकप्रियता हासिल की. सुब्बुलक्ष्मी संसार, शनि, पारू, महल, राघवेंद्र की महिमा, दीपक और अपनी हवा, अपनी… आदि प्रमुख हैं. वर्तमान में उदय टीवी धारावाहिक ‘राधिका में अभिनय कर रही हैं. 3 जैसे सितारामा कल्याण, ङ्क्षप्रस, गॉडफादर, मायाबाजार आदि तैयारी की विधि को सलीके से समझाते हुए उन्होंने बताया कि कैसे यह कामकाजी महिलाओं के लिए जल्दी तैयार होने में मददगार है, कैसे यह बच्चों और बड़ों के टिफिन बॉक्स के लिए सहायक है. दर्शक उनके इस स्वादिष्ठ व्यंजन की तैयारी पर उत्साहपूर्वक प्रतिक्रिया दे रहे थे. बीच में क्या कम या ज्यादा है लेकिन उसे कैसे ठीक किया जाए, इस डिश को बेहतरीन तरीके से कैसे पेश किया जा सकता है, इसकी पूरी जानकारी दी.

बाद में, जब बड़ी संख्या में दर्शक उनके द्वारा तैयार की गई ‘पाव भाजी का स्वाद लेने आए, तो न केवल उन सभी ने दिल से इसे साझा किया, बल्कि खाना पकाने के बारे में उनका ज्ञान भी साझा किया.

कुकिंग क्चीन सुपर जोड़ी प्रतियोगिता

अगले कार्यक्रम के रूप में शेफ सविता ने बैठक में एकत्रित महिलाओं में से लकी ड्रा के माध्यम से 5 भाग्यशाली जोड़ों का चयन किया. उन सभी को 5 पंक्ति की टेबल, इंडक्शन स्टोव, नाश्ता बनाने के लिए आवश्यक सभी सामग्री, उसे उपयोग करने के लिए आवश्यक सभी उपकरण उपलब्ध कराए गए. प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जो आधे घंटे में खाना पकाते हैं, अधिकतम सामग्री का साफ-सुथरा उपयोग करते हैं, काउंटर को बहुत साफ रखते हैं, समान रूप से स्वादिष्ठ पकाते हैं और उत्तम प्रस्तुति देते हैं.

जिसने भी इसे पूरी तरह से, सफाई से और स्वादिष्ठ तरीके से तैयार किया, शेफ ने इसका स्वाद चखा और हर तरह से उत्तम रैसिपी के लिए पुरस्कार की घोषणा की.

इस संबंध में प्रथम पुरस्कार त्रिवेणी और वरुणा द्वारा तैयार ‘वेज खरभात को, द्वितीय पुरस्कार नागाश्री और तनुजा द्वारा तैयार ‘रागी डोसा वेज करी रैसिपी को, तृतीय पुरस्कार अनुराधा और कलावती, सौम्या द्वारा तैयार ‘हैदराबादी पकोड़ा रैसिपी को दिया गया. और जोड़ी द्वारा तैयार ‘चपाती वेज कुर्मा रेसिपी ‘उप्पिट्टिन कडुबू के लिए रश्मी और भव्या और चूड़ामणि को सांत्वना पुरस्कार दिया गया.

पोषण विशेषज्ञ सत्र

इसके बाद आयुर्वेदिक सलाहकार डॉ. प्रज्वला राज ने महिलाओं के बड़े समूह को, जो हमारे भोजन में पोषण के बारे में, स्वस्थ सात्विक भोजन के सेवन के बारे में एक क्रांतिकारी व्याख्या दी थी, वे प्रतिधि आयुर्वेद मेडिकल सेंटर के संस्थापक हैं. 18 वर्षों के अनुभव के साथ इस क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं और आयुर्वेदिक हर्बल अनुसंधान में अग्रणी हैं. उन्होंने प्रामाणिक आयुर्वेदिक उपचार प्रदान करने के लिए बैंगलुरु में एक अस्पताल शुरू किया. इसके अलावा, वह प्रतिधि फाउंडेशन नाम का एक एनजीओ भी चलाते हैं.

40 महिलाओं को अपने दैनिक भोजन में पोषक तत्वों को कैसे मिलायें और पूरे दिन उनका सेवन कैसे करें, अपने स्वास्थ्य को कैसे बनाए रखें, आयरन की दवा के बारे में सरल शब्दों में पूरी जानकारी दी. उन्होंने हमें बताया कि उम्र के हिसाब से हमारे भोजन में स्थूल/सूक्ष्म पोषक तत्व, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज, फाइबर आदि कितने होने चाहिए.

उन्होंने सुझाव दिया कि प्रत्येक भोजन की कैलोरी गिनती की जांच करनी चाहिए और उसका सेवन करना चाहिए. उन्होंने दूध, फल, ताजी हरी सब्जियां, मछली, अंडे, सफेद मांस (मछली जरूर खाएं, लाल मांस नहीं) आदि के पोषण मूल्य के बारे में बताया. मधुमेह, हाई बीपी, गठिया के मरीजों को खान-पान, जई, जौ आदि के बारे में विस्तार से बताया गया. फिर उन्होंने दर्शकों के सैकड़ों प्रश्नों के उचित उत्तर दिए और पौष्टिक भोजन के बारे में उनके सभी संदेहों को दूर किया.

गेङ्क्षमग सत्र

पूरे कार्यक्रम का वर्णन करते हुए एंकर समीरा खान ने कार्यक्रम में आईं महिलाओं का भरपूर मनोरंजन किया. विभिन्न गीतों और नृत्यों में भाग लेने वाली महिलाओं ने उत्साह के साथ खूब ठहाके लगाए और नृत्य किया. जैसे-जैसे प्रत्येक सत्र आगे बढ़ा, दर्शकों से उससे और मनोरंजन से संबंधित प्रश्नोत्तरी की एक श्रृंख्ला पूछी गई. उचित और त्वरित उत्तर देने वाली महिलाओं को गृहशोभा द्वारा मौके पर ही रोमांचक पुरस्कार वितरित किए गए.

सभी कार्यक्रम सम्पन्न करने के बाद कार्यक्रम में आईं महिलाओं ने बेहतरीन पौष्टिक भोजन किया, सभी को उपहारों से भरा एक गुडी बैग मिला और खुशी-खुशी विदा हुईं. कुल मिलाकर गृहशोभा कुकिंग क्वीन कार्यक्रम में आईं सभी महिलाओं ने इसका खूब लुत्फ उठाया. इवेंट काफी सफल रहा था.

YRKKH : अभिरा के इमशोन्स के साथ खेलेगी रूही, अपना बच्चा देने का करेगी ऐलान

टीवी का पौपुलर सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है (Yeh Rishat Kya kehlata Hai) में इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो का ट्रैक अभिरा, अरमान और रूही के इर्दगिर्द दिखाया जा रहा है. सीरियल की कहानी में लीप आने के बाद अरमान और अभिरा की जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी है.

औफिस में बखेड़ा खड़ा करेगा अरमान

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों दिखाया जा रहा है कि अरमान का गुस्सा सातवें आसमान पर है. वह अपने औफिस के लोगों पर बुरी तरह भड़क जाता है. अभिरा के कारण औफिस में अरमान नया ड्रामा खड़ा कर देता है. अरमान से बात करने की कोशिश करती है. अभिरा की वजह से अरमान औफिस में भी बखेड़ा खड़ा कर देता है. दूसरी तरफ अभिरा मनीष से अपने दिल की बात बताती है.

अरमान की मां का बर्थडे किया जाएगा सेलिब्रेट

मनीष उसे समझाता है और कहता है कि अभिरा को अपनी जिंदगी पर फोकस करना चाहिए. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये भी दिखाया जाएगा कि अभिरा परिवार को दिखाएगी कि रूही इस पार्टी की हर तैयारी कर रही है.

रूही का होगा ऐक्सीडेंट

तो दूसरी तरफ रात होते ही अरमान अपनी मां के पास पहुंच जाएगा. वह अपनी मां को जन्मदिन की बधाई देगा. लेकिन वह अभिरा को पार्टी में शामिल होने से मना करेगा. अगले दिन पूरा पोद्दार परिवार विद्दा का बर्थडे सेलिब्रेट करेगा. इसी बीच अभिरा और अरमान में जमकर लड़ाई होगी. ऐसे में अरमार घर से बाहर चला जाएगा और अभिरा उसका पीछा करेगी. दूसरी तरफ रूही का ऐक्सीडेंट हो जाएगा.

अभिरा की भवनाओं के साथ खेलेगी रूही

हौस्पीटल में चेकअप करवाने के बाद सबको पता चलेगा कि रूही मां बनने वाली है. ऐसे में वह अपना बच्चा अभिरा को देने का ऐलान करेगी. वह अपने प्रेग्नेंसी के जरिए अभिरा की भवनाओं के साथ खेलेगी. अभिरा से यह वादा कर के वह अबौर्शन करवा देगी. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि  मनिष को लगा कि अभिरा कभी मां नहीं बन सकती, इसलिए विद्दा उसे नहीं अपना रही है. परिवार के लोगों ने भी इस बात से सहमती जताया. शो में लीप आने के बाद अरमान पूरी तरह बदल गया है. अरमान अपने परिवार के लोगों से भी मुंह मोड़ लिया है.

नए मोड़ पर: कुमुदिनी के मन में शंका के बीज

कुमुदिनी चौकाबरतन निबटा कर बरामदे में खड़ी आंचल से हाथ पोंछ ही रही थी कि अपने बड़े भाई कपूरचंद को आंगन में प्रवेश करते देख वहीं ठगी सी खड़ी रह गई. अर्चना स्कूल गई हुई थी और अतुल प्रैस नौकरी पर गया हुआ था.

कपूरचंद ने बरामदे में पड़ी खाट पर बैठते हुए कहा, ‘‘अतुल के लिए लड़की देख आया हूं. लाखों में एक है. सीधासच्चा परिवार है. पिता अध्यापक हैं. इटावा के रहने वाले हैं. वहीं उन का अपना मकान है. दहेज तो ज्यादा नहीं मिलेगा, पर लड़की, बस यों समझ लो चांद का टुकड़ा है. शक्लसूरत में ही नहीं, पढ़ाई में भी फर्स्ट क्लास है. अंगरेजी में एमए पास है. तू बहुत दिनों से कह रही थी न कि अतुल की शादी करा दो. बस, अब चारपाई पर बैठीबैठी हुक्म चलाया करना.’’

कुमुदिनी ने एक दीर्घ निश्वास छोड़ा. 6 साल हो गए उसे विधवा हुए. 45 साल की उम्र में ही वह 60 साल की बुढि़या दिखाई पड़ने लगी. कौन जानता था कि कमलकांत अकस्मात यों चल बसेंगे. वे एक प्रैस में प्रूफरीडर थे.

10 हजार रुपए पगार मिलती थी. मकान अपना होने के कारण घर का खर्च किसी तरह चल जाता था. अतुल पढ़ाई में शुरू से ही होशियार न था. 12वीं क्लास में 2 बार फेल हो चुका था. पिता की मृत्यु के समय वह 18 वर्ष का था. प्रैस के प्रबंधकों ने दया कर के अतुल को 8 हजार रुपए वेतन पर क्लर्क की नौकरी दे दी.

पिछले 3 सालों से कुमुदिनी चाह रही थी कि कहीं अतुल का रिश्ता तय हो जाए. घर का कामकाज उस से ढंग से संभलता नहीं था. कहीं बातचीत चलती भी तो रिश्तेदार अड़ंगा डाल देते या पासपड़ोसी रहीसही कसर पूरी कर देते. कमलकांत की मृत्यु के बाद रिश्तेदारों का आनाजाना बहुत कम हो गया था.

कुमुदिनी के बड़े भाई कपूरचंद साल में एकाध बार आ कर उस का कुशलक्षेम पूछ जाते. पिछली बार जब वे आए तो कुमुदिनी ने रोंआसे गले से कहा था, ‘अतुल की शादी में इतनी देर हो रही है तो अर्चना को तो शायद कुंआरी ही बिठाए रखना पड़ेगा.’

कपूरचंद ने तभी से गांठ बांध ली थी. जहां भी जाते, ध्यान रखते. इटावा में मास्टर रामप्रकाश ने जब दहेज के अभाव में अपनी कन्या के लिए वर न मिल पाने की बात कही तो कपूरचंद ने अतुल की बात छेड़ दी. छेड़ क्या दी, अपनी ओर से वे लगभग तय ही कर आए थे. कुमुदिनी बोली, ‘‘भाई, दहेज की तो कोई बात नहीं. अतुल के पिता तो दहेज के सदा खिलाफ थे, पर अपना अतुल तो कुल मैट्रिक पास है.’’

कपूरचंद ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया था, पर अब अपनी बात रखते हुए बोले, ‘‘पढ़ाई का क्या है? नौकरी आजकल किसे मिलती है? अच्छेअच्छे डबल एमए जूते चटकाते फिरते हैं, फिर शक्लसूरत में हमारा अतुल कौन सा बेपढ़ा लगता है?’’

रविवार को कुमुदिनी कपूरचंद के साथ अतुल और अर्चना को ले कर लड़की देखने इटावा पहुंची. लड़की वास्तव में हीरा थी. कुमुदिनी की तो उस पर नजर ही नहीं ठहरती थी. बड़ीबड़ी आंखें, लंबे बाल, गोरा रंग, छरहरा शरीर, सरल स्वभाव और मृदुभाषी.

जलपान और इधरउधर की बातों के बाद लड़की वाले अतुल के परिवार वालों को आपस में सलाहमशवरे का मौका देने के लिए एकएक कर के खिसक गए. अतुल घर से सोच कर चला था कि लड़की में कोई न कोई कमी निकाल कर मना कर दूंगा. एमए पास लड़की से विवाह करने में वह हिचकिचा रहा था, पर निवेदिता को देख कर तो उसे स्वयं से ईर्ष्या होने लगी.

अर्चना का मन कर रहा था कि चट मंगनी पट ब्याह करा के भाभी को अभी अपने साथ आगरा लेती चले. कुमुदिनी को भी कहीं कोई कसर दिखाई नहीं दी, पर वह सोच रही थी कि यह लड़की घर के कामकाज में उस का हाथ क्या बंटा पाएगी?

कपूरचंद ने जब प्रश्नवाचक दृष्टि से कुमुदिनी की ओर देखा तो वह सहज होती हुई बोली, ‘‘भाई, इन लोगों से भी तो पूछ लो कि उन्हें लड़का भी पसंद है या नहीं. अतुल की पढ़ाई के बारे में भी बता दो. बाद में कोई यह न कहे कि हमें धोखे में रखा.’’

कपूरचंद उठ कर भीतर गए. वहां लड़के के संबंध में ही बात हो रही थी. लड़का सब को पसंद था. निवेदिता की भी मौन स्वीकृति थी. कपूरचंद ने जब अतुल की पढ़ाई का उल्लेख किया तो रामप्रकाश के मुख से एकदम निकला, ‘‘ऐसा लगता तो नहीं है.’’ फिर अपना निर्णय देते हुए बोले, ‘‘मेरे कितने ही एमए पास विद्यार्थी कईकई साल से बेकार हैं. चपरासी तक की नौकरी के लिए अप्लाई कर चुके हैं पर अधिक पढ़ेलिखे होने के कारण वहां से भी कोई इंटरव्यू के लिए नहीं बुलाता.’’

निवेदिता की मां को भी कोई आपत्ति नहीं थी. हां, निवेदिता के मुख पर पलभर को शिकन अवश्य आई, पर फिर तत्काल ही वह बोल उठी, ‘‘जैसा तुम ठीक समझो, मां.’’ शायद उसे अपने परिवार की सीमाएं ज्ञात थीं और वह हल होती हुई समस्या को फिर से मुश्किल पहेली नहीं बनाना चाहती थी.

कपूरचंद के साथ रामप्रकाश भी बाहर आ गए. समधिन से बोले, ‘‘आप ने क्या फैसला किया?’’

कुमुदिनी बोली, ‘‘लड़की तो आप की हीरा है पर उस के योग्य राजमुकुट तो हमारे पास है नहीं.’’

रामप्रकाश गदगद होते हुए बोले, ‘‘गुदड़ी में ही लाल सुरक्षित रहता है.’’

कुमुदिनी ने बाजार से मिठाई और नारियल मंगा कर निवेदिता की गोद भर दी. अपनी उंगली में से एक नई अंगूठी निकाल कर निवेदिता की उंगली में पहना दी. रिश्ता पक्का हो गया.

3 महीने के बाद उन का विवाह हो गया. मास्टरजी ने बरातियों की खातिरदारी बहुत अच्छी की थी. निवेदिता को भी उन्होंने गृहस्थी की सभी आवश्यक वस्तुएं दी थीं.

शादी के बाद निवेदिता एक सप्ताह ससुराल में रही. बड़े आनंद में समय बीता. सब ने उसे हाथोंहाथ लिया. जो देखता, प्रभावित हो जाता. अपनी इतनी प्रशंसा निवेदिता ने पूरे जीवन में नहीं सुनी थी पर एक ही बात उसे अखरी थी- अतुल का उस के सम्मुख निरीह बने रहना, हर बात में संकोच करना और सकुचाना. अधिकारपूर्वक वह कुछ कहता ही नहीं था. समर्पण की बेला में उस ने ही जैसे स्वयं को लुटा दिया था. अतुल तो हर बात में आज्ञा की प्रतीक्षा करता रहता था.

पत्नी से कम पढ़ा होने से अतुल में इन दिनों एक हीनभावना घर कर गई थी. हर बात में उसे लगता कि कहीं यह उस का गंवारपन न समझा जाए. वह बहुत कम बोलता और खोयाखोया रहता. 1 महीने बाद जब निवेदिता दोबारा ससुराल आई तो विवाह की धूमधाम समाप्त हो चुकी थी.

इस बीच तमाशा देखने के शौकीन कुमुदिनी और अतुल के कानों में सैकड़ों तरह की बातें फूंक चुके थे. कुमुदिनी से किसी ने कहा, ‘‘बहू की सुंदरता को चाटोगी क्या? पढ़ीलिखी तो है पर फली भी नहीं फोड़ने की.’’ कोई बोला, ‘‘कल ही पति को ले कर अलग हो जाएगी. वह क्या तेरी चाकरी करेगी?’’

किसी ने कहा, ‘‘पढ़ीलिखी लड़कियां घर के काम से मतलब नहीं रखतीं. इन से तो बस फैशन और सिनेमा की बातें करा लो. तुम मांबेटी खटा करना.’’

किसी ने टिप्पणी की, ‘‘तुम तो बस रूप पर रीझ गईं. नकदी के नाम क्या मिला? ठेंगा. कल को तुम्हें भी तो अर्चना के हाथ पीले करने हैं.’’

किसी ने कहा, ‘‘अतुल को समझा देना. तनख्वाह तुम्हारे ही हाथ पर ला कर रखे.’’

किसी ने सलाह दी, ‘‘बहू को शुरू से ही रोब में रखना. हमारीतुम्हारी जैसी बहुएं अब नहीं आती हैं, खेलीखाई होती हैं.’’

गरज यह कि जितने मुंह उतनी ही बातें, पड़ोसिनों और सहेलियों ने न जाने कहांकहां के झूठेसच्चे किस्से सुना कर कुमुदिनी को जैसे महाभारत के लिए तैयार कर दिया. वह भी सोचने लगी, ‘इतनी पढ़ीलिखी लड़की नहीं लेनी चाहिए थी.’ उधर अतुल कुछ तो स्वयं हीनभावना से ग्रस्त था, कुछ साथियों ने फिकरे कसकस कर परेशान कर दिया. कोई कहता, ‘‘मियां, तुम्हें तो हिज्जे करकर के बोलना पड़ता होगा.’’

कोई कहता, ‘‘भाई, सूरत ही सूरत है या सीरत भी है?’’

कोई कहता, ‘‘अजी, शर्महया तो सब कालेज की पढ़ाई में विदा हो जाती है. वह तो अतुल को भी चौराहे पर बेच आएगी.’’

दूसरा कंधे पर हाथ रख कर धीरे से कान में फुसफुसाया, ‘‘यार, हाथ भी रखने देती है कि नहीं.’’ निवेदिता जब दोबारा ससुराल आई तो मांबेटे किसी अप्रत्याशित घटना की कल्पना कर रहे थे. रहरह कर दोनों का कलेजा धड़क जाता था और वे अपने निर्णय पर सकपका जाते थे.

वास्तव में हुआ भी अप्रत्याशित ही. हाथों की मेहंदी छूटी नहीं थी कि निवेदिता कमर कस कर घर के कामों में जुट गई. झाड़ू लगाना और बरतन मांजने जैसे काम उस ने अपने मायके में कभी नहीं किए थे पर यहां वह बिना संकोच के सभी काम करती थी.

महल्ले वालों ने पैंतरा बदला. अब उन्होंने कहना शुरू किया, ‘‘गौने वाली बहू से ही चौकाबरतन, झाड़ूबुहारू शुरू करा दी है. 4 दिन तो बेचारी को चैन से बैठने दिया होता.’’

सास ने काम का बंटवारा कर लेने पर जोर दिया, पर निवेदिता नहीं मानी. उसे घर की आर्थिक परिस्थिति का भी पूरा ध्यान था, इसीलिए जब कुमुदिनी एक दिन घर का काम करने के लिए किसी नौकरानी को पकड़ लाई तो निवेदिता इस शर्त पर उसे रखने को तैयार हुई कि अर्चना की ट्यूशन की छुट्टी कर दी जाए. वह उसे स्वयं पढ़ाएगी.

अर्चना हाईस्कूल की परीक्षा दे रही थी. छमाही परीक्षा में वह अंगरेजी और संस्कृत में फेल थी. सो, अतुल ने उसे घर में पढ़ाने के लिए एक सस्ता सा मास्टर रख दिया था. मास्टर केवल बीए पास था और पढ़ाते समय उस की कई गलतियां खुद निवेदिता ने महसूस की थीं. 800 रुपए का ट्यूशन छुड़ा कर नौकरानी को 500 रुपए देना महंगा सौदा भी नहीं था.

निवेदिता के पढ़ाने का तरीका इतना अच्छा था कि अर्चना भी खुश थी. एक महीने में ही अर्चना की गिनती क्लास की अच्छी लड़कियों में होने लगी. जब सहेलियों ने उस की सफलता का रहस्य पूछा तो उस ने भाभी की भूरिभूरि प्रशंसा की.

थोड़े ही दिनों में महल्ले की कई लड़कियों ने निवेदिता से ट्यूशन पढ़ना शुरू कर दिया. कुमुदिनी को पहले तो कुछ संकोच हुआ पर बढ़ती हुई महंगाई में घर आती लक्ष्मी लौटाने को मन नहीं हुआ. सोचा बहू का हाथखर्च ही निकल आएगा. अतुल की बंधीबंधाई तनख्वाह में कहां तक काम चलता?

गरमी की छुट्टियों में ट्यूशन बंद हो गए. इन दिनों अतुल अपनी छुट्टी के बाद प्रैस में 2 घंटे हिंदी के प्रूफ देखा करता था. एक रात निवेदिता ने उस से कहा कि वह प्रूफ घर ले आया करे और सुबह जाते समय ले जाया करे. कोई जरूरी काम हो तो रात को घूमते हुए जा कर वहां दे आए. अतुल पहले तो केवल हिंदी के ही प्रूफ देखता था, अब वह निवेदिता के कारण अंगरेजी के प्रूफ भी लाने लगा.

निवेदिता की प्रूफरीडिंग इतनी अच्छी थी कि कुछ ही दिनों स्थिति यहां तक आ पहुंची कि प्रैस का चपरासी दिन या रात, किसी भी समय प्रूफ देने आ जाता था. अब पर्याप्त आय होने लगी.

अर्चना हाई स्कूल में प्रथम श्रेणी में पास हुई तो सारे स्कूल में धूम मच गई. स्कूल में जब यह रहस्य प्रकट हुआ कि इस का सारा श्रेय उस की भाभी को है तो प्रधानाध्यिपिका ने अगले ही दिन निवेदिता को बुलावा भेजा. एक अध्यापिका का स्थान रिक्त था. प्रधानाध्यिपिका ने निवेदिता को सलाह दी कि वह उस पद के लिए प्रार्थनापत्र भेज दे. 15 दिनों के बाद उस पद पर निवेदिता की नियुक्ति हो गई. निवेदिता जब नियुक्तिपत्र ले कर घर पहुंची तो उस की आंखों में प्रसन्नता के आंसू छलक आए.

निवेदिता अब दिन में स्कूल की नौकरी करती और रात को प्रूफ पढ़ती. घर की आर्थिक दशा सुधर रही थी, पर अतुल स्वयं को अब भी बौना महसूस करता था. प्यार के नाम पर निवेदिता उस की श्रद्धा ही प्राप्त कर रही थी. एक रात जब अतुल हिंदी के प्रूफ पढ़ रहा था तो निवेदिता ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘सुनो.’’ अतुल का हृदय धकधक करने लगा.

‘‘अब आप यह प्रूफ संशोधन छोड़ दें. पैसे की तंगी तो अब है नहीं.’’

अतुल ने सोचा, ‘गए काम से.’ उस के हृदय में उथलपुथल मच गई. संयत हो कर बोला, ‘‘पर अब तो आदत बन गई है. बिना पढ़े रात को नींद नहीं आती.’’

निवेदिता ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘वही तो कह रही हूं. अर्चना की इंटर की पढ़ाई के लिए सारी किताबें खरीदी जा चुकी हैं, आप प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में इंटर का फौर्म भर दें.’’

अतुल का चेहरा अनायास लाल हो गया. उस ने असमर्थता जताते हुए कहा, ‘‘इतने साल पढ़ाई छोड़े हो गए हैं. अब पढ़ने में कहां मन लगेगा?’’  निवेदिता ने उस के निकट खिसक कर कहा, ‘‘पढ़ते तो आप अब भी हैं. 2 घंटे प्रूफ की जगह पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढ़ लेने से बेड़ा पार हो जाएगा. कठिन कुछ नहीं है.’’

अतुल 3-4 दिनों तक परेशान रहा. फिर उस ने फौर्म भर ही दिया. पहले तो पढ़ने में मन नहीं लगा, पर निवेदिता प्रत्येक विषय को इतना सरल बना देती कि अतुल का खोया आत्मविश्वास लौटने लगा था. साथी ताना देते. कोईकोई उस से कहता कि वह तो पूरी तरह जोरू का गुलाम हो गया है. यही दिन तो मौजमस्ती के हैं पर अतुल सुनीअनसुनी कर देता.

इंटर द्वितीय श्रेणी में पास कर लेने के बाद तो उस ने स्वयं ही कालेज की संध्या कक्षाओं में बीए में प्रवेश ले लिया. बीए में उस की प्रथम श्रेणी केवल 5 नंबरों से रह गई.

कुमुदिनी की समझ में नहीं आता था कि बहू ने सारे घर पर जाने क्या जादू कर दिया है. अतुल के पिता हार गए पर यह पढ़ने में सदा फिसड्डी रहा. अब इस की अक्ल वाली दाढ़ निकली है.

बीए के बाद अतुल ने एमए (हिंदी) में प्रवेश लिया. इस प्रकार अब तक पढ़ाई में निवेदिता से जो सहायता मिल जाती थी, उस से वह वंचित हो गया. पर अब तक उस में पर्याप्त आत्मविश्वास जाग चुका था. वह पढ़ने की तकनीक जान गया था. निवेदिता भी यही चाहती थी कि वह हिंदी में एमए करे अन्यथा उस की हीनता की भावना दूर नहीं होगी. अपने बूते पर एमए करने पर उस का स्वयं में विश्वास बढ़ेगा. वह स्वयं को कम महसूस नहीं करेगा.

वही हुआ. समाचारपत्र में अपना एमए का परिणाम देख कर अतुल भागाभागा घर आया तो मां आराम कर रही थी. अर्चना किसी सहेली के घर गई हुई थी. छुट्टी का दिन था, निवेदिता घर की सफाई कर रही थी. अतुल ने समाचारपत्र उस की ओर फेंकते हुए कहा, ‘‘प्रथम श्रेणी, द्वितीय स्थान.’’

और इस से पहले कि निवेदिता समाचारपत्र उठा कर परीक्षाफल देखती, अतुल ने आगे बढ़ कर उसे दोनों हाथों में उठा लिया और खुशी से कमरे में नाचने लगा.

उस की हीनता की गं्रथि चरमरा कर टूट चुकी थी. आज वह स्वयं को किसी से कम महसूस नहीं कर रहा था. विश्वविद्यालय में उस ने दूसरा स्थान प्राप्त किया है, यह गर्व उस के चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था.

निवेदिता का चेहरा पहले प्रसन्नता से खिला, फिर लज्जा से लाल हो गया. आज पहली बार, बिना मांगे, उसे पति का संपूर्ण प्यार प्राप्त हुआ था. इस अधिकार की वह कितने दिनों से कामना कर रही थी, विवाह के दिन से ही. अपनी इस उपलब्धि पर उस की आंखों में खुशी का सागर उमड़ पड़ा.

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कितने अजनबी: टूटते परिवार की कहानी

हम 4 एक ही छत के नीचे रहने वाले लोग एकदूसरे से इतने अजनबी कि अपनेअपने खोल में सिमटे हुए हैं.

मैं रश्मि हूं. इस घर की सब से बड़ी बेटी. मैं ने अपने जीवन के 35 वसंत देख डाले हैं. मेरे जीवन में सब कुछ सामान्य गति से ही चलता रहता यदि आज उन्होंने जीवन के इस ठहरे पानी में कंकड़ न डाला होता.

मैं सोचती हूं, क्या मिलता है लोगों को इस तरह दूसरे को परेशान करने में. मैं ने तो आज तक कभी यह जानने की जरूरत नहीं समझी कि पड़ोसी क्या कर रहे हैं. पड़ोसी तो दूर अपनी सगी भाभी क्या कर रही हैं, यह तक जानने की कोशिश नहीं की लेकिन आज मेरे मिनटमिनट का हिसाब रखा जा रहा है. मेरा कुसूर क्या है? केवल यही न कि मैं अविवाहिता हूं. क्या यह इतना बड़ा गुनाह है कि मेरे बारे में बातचीत करते हुए सब निर्मम हो जाते हैं.

अभी कल की ही बात है. मकान मालकिन की बहू, जिसे मैं सगी भाभी जैसा सम्मान देती हूं, मेरी नईनवेली भाभी से कह रही थी, ‘‘देखो जलज, जरा अपनी बड़ी ननद से सावधान रहना. जब तुम और प्रतुल कमरे में होते हो तो उस के कान उधर ही लगे रहते हैं. मुझे तो लगता है कि वह ताकझांक भी करती होगी. अरी बहन, बड़ी उम्र तक शादी नहीं होगी तो क्या होगा, मन तो करता ही होगा…’’  कह कर वह जोर से हंस दी.

मैं नहीं सुन पाई कि मेरी इकलौती भाभी, जिस ने अभी मुझे जानासमझा ही कितना है, ने क्या कहा. पर मेरे लिए तो यह डूब मरने की बात है. मैं क्या इतनी फूहड़ हूं कि अपने भाई और भाभी के कमरे में झांकती फिरूंगी, उन की बातें सुनूंगी. मुझे मर जाना चाहिए. धरती पर बोझ बन कर रहने से क्या फायदा?

मैं अवनि हूं. इस घर की सब से छोटी बेटी. मैं बिना बात सब से उलझती रहती हूं. कुछ भी सोचेसमझे बिना जो मुंह में आता है बोल देती हूं और फिर बाद में पछताती भी हूं.

मेरी हर बात से यही जाहिर होता है कि मैं इस व्यवस्था का विरोध कर रही हूं जबकि खुद ही इस व्यवस्था का एक हिस्सा हूं.

मैं 32 साल की हो चुकी हूं. मेरे साथ की लड़कियां 1-2 बच्चों की मां  बन चुकी हैं. मैं उन से मिलतीजुलती हूं पर अब उन के साथ मुझे बातों में वह मजा नहीं आता जो उन की शादी से पहले आता था.

अब उन के पास सासपुराण, पति का यशगान और बच्चों की किचकिच के अलावा कोई दूसरा विषय होता ही नहीं है. मैं चिढ़ जाती हूं. क्या तुम लोग  इतना पढ़लिख कर इसी दिमागी स्तर की रह गई हो. वे सब हंसती हुई कहती हैं, ‘‘बन्नो, जब इन चक्करों में पड़ोगी तो जानोगी कि कितनी पूर्णता लगती है इस में.’’

‘क्या सच?’ मैं सोचती हूं एक स्कूल की मास्टरी करते हुए मुझे अपना जेबखर्च मिल जाता है. खूब सजधज कर जाती हूं. अच्छी किस्म की लिपस्टिक लगाती हूं. बढि़या सिल्क की साडि़यां पहनती हूं. पैरों में ऊंची हील की सैंडिल होती हैं जिन की खटखट की आवाज पर कितनी जोड़ी आंखें देखने लगती हैं. पर मैं किसी को कंधे पर हाथ नहीं रखने देती.

क्या मुझ में पूर्णता नहीं है? मैं एक परफैक्ट महिला हूं और मैं ऐसा प्रदर्शित भी करती हूं, लेकिन जब कोई हंसताखिलखिलाता जोड़ा 2 छोटेछोटे भागते पैरों के पीछे पार्क में दौड़ता दिख जाता है तो दिल में टीस सी उठती है. काश, मैं भी…

मैं जलज हूं. इस घर के इकलौते बेटे की पत्नी. अभी मेरी शादी को मात्र 6 महीने हुए हैं. मेरे पति प्रतुल बहुत अच्छे स्वभाव के हैं. एकांत में मेरे साथ ठीक से रहते हैं. हंसतेमुसकराते हैं, प्यार भी जताते हैं और मेरी हर छोटीबड़ी इच्छा का ध्यान रखते हैं लेकिन अपनी दोनों बहनों के सामने उन की चुप्पी लग जाती है.

सारे दिन मुझे बड़ी दीदी रश्मि की सूक्ष्मदर्शी आंखों के सामने घूमना पड़ता है. मेरा ओढ़नापहनना सबकुछ उन की इच्छा के अनुसार होता है. अभी मेरी शादी को 6 महीने ही हुए हैं पर वह मुझे छांटछांट कर हलके रंग वाले कपड़े ही पहनाती हैं. जरा सी बड़ी बिंदी लगा लो तो कहेंगी, ‘‘क्या गंवारों की तरह बड़ी बिंदी और भरभर हाथ चूडि़यां पहनती हो. जरा सोबर बनो सोबर. अवनि को देखो, कितनी स्मार्ट लगती है.’’

मैं कहना चाहती हूं कि दीदी, अवनि दीदी अविवाहित हैं और मैं सुहागिन, लेकिन कह नहीं सकती क्योंकि शादी से पहले प्रतुल ने मुझ से यह वादा ले लिया था कि दोनों बड़ी बहनों को कभी कोई जवाब न देना.

मैं अपने मन की बात किस से कहूं. घुटती रहती हूं. कल रश्मि दीदी कह रही थीं, ‘‘भाभी, भतीजा होगा तो मुझे क्या खिलाओगी.’’

मैं ने भी हंसते हुए कहा था, ‘‘दीदी, आप जो खाएंगी वही खिलाऊंगी.’’

चेहरे पर थोड़ी मुसकराहट और ढेर सारी कड़वाहट भर कर अवनि दीदी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘भाभी, हमें थोड़ा सल्फास खिला देना.’’

मैं अवाक् रह गई. क्या मैं इन्हें सल्फास खिलाने आई हूं.

अगर भाभी के बारे में सोच ऐसी ही थी तो फिर अपने भाई की शादी क्यों की?

मैं 3 भाइयों की इकलौती बहन हूं. मातापिता मेरे भी नहीं हैं इसलिए इन बहनों का दर्द समझती हूं. ऐसा बहुतकुछ मेरे जीवन में भी गुजरा है. जब मैं इंटर पास कर बी.ए. में आई तो महल्लापड़ोस वाली औरतें मेरी भाभियों को सलाह देने लगीं, ‘‘अरे, बोझ उतारो अपने सिर से. बहुत दिन रख लिया. अगर कुछ ऊंचनीच हो गई तो रोती फिरोगी. भाई लाड़ करते हैं इसलिए नकचढ़ी हो गई है.’’

सच में मैं नकचढ़ी थी लेकिन बड़ी भाभी मेरी मां बन गई थीं. उन्होंने कहा था, ‘‘आप लोग अपनाअपना बोझ संभालो. मेरे घर की चिंता मत करो. जब तक पढ़लिख कर जलज किसी काबिल नहीं हो जाती और कोई सुपात्र नहीं मिल जाता, हम शादी नहीं करेंगे.’’

और सचमुच भाभी ने मुझे एम.ए., बी.एड. करवाया और अच्छे रिश्ते की खोज में लग गईं. यद्यपि प्रतुल और मुझ में 10 साल का अंतर है लेकिन इस रिश्ते की अच्छाई भाभी ने यह समझी कि अपनी जलज, बिन मांबाप की है. भाईभाभियों के बीच रह कर पलीबढ़ी है. बिना मांबाप की बच्चियों का दर्द खूब समझेगी और प्रतुल को सहयोग करेगी.

मैं नहीं जानती थी कि मुझे ऐसा माहौल मिलेगा. इतनी कुंठा से ग्रस्त ननदें होंगी. अरे, अगर शादी नहीं हुई या नहीं हो रही है तो क्या करने को कुछ नहीं है. बहुतकुछ है.

एक बार मैं ने यही बात अवनि दीदी से धीरे से कही थी तो किचन के दरवाजे पर हाथ अड़ा कर लगभग मेरा रास्ता रोकते हुए वह बड़ी क्रूरता से कह गई थीं, ‘आज आप की शादी हो गई है इसलिए कह रही हैं. अगर न होती और भाईभाभी के साथ जीवन भर रहना पड़ता तो पता चलता.’ बताइए, मैं 6 महीने पुरानी विवाहिता आज विवाहित होने का ताना सुन रही हूं.

मैं प्रतुल हूं. इस घर का इकलौता बेटा और बुजुर्ग भी. मेरी उम्र 40 वर्ष है. मेरे पिता की मृत्यु को अभी 5 वर्ष हुए हैं. इन 5 सालों में मैं बहुत परिपक्व हो गया हूं. जब मेरे पिता ने अंतिम सांस ली उस समय मेरी दोनों बहनें क्रमश: 30 और 27 वर्ष की थीं. मेरी उम्र 35 वर्ष की थी. उन्होंने हम में से किसी के बारे में कुछ नहीं सोचा. पिताजी की अच्छीखासी नौकरी थी, परंतु जितना कमाया उतना गंवाया. केवल बढि़या खाया और पहना. घर में क्या है यह नहीं जाना. अम्मां उन से 5 वर्ष पहले मरी थीं. यानी 10 साल पहले भी हम भाईबहन इतने छोटे नहीं थे कि अपनाअपना घर नहीं बसा सकते थे. मेरे दोस्तों के बच्चे लंबाई में उन के बराबर हो रहे हैं और यहां अभी बाप बनने का नंबर भी नहीं आया.

नौकरी पाने के लिए भी मैं ने खूब एडि़यां घिसीं. 8 सालों तक दैनिक वेतनभोगी के रूप में रहा. दोस्त और दुश्मन की पहचान उसी दौर में हुई थी. आज भी उस दौर के बारे में सोचता हूं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

अम्मां सोतेउठते एक ही मंत्र फूंका करती थीं कि बेटा, इन बहनों की नइया तुझे ही पार लगानी है. लेकिन कैसे? वह भी नहीं जानती थीं.

मैं ने जब से होश संभाला, अम्मां और पिताजी को झगड़ते ही पाया. हर बहस का अंत अम्मां की भूख हड़ताल और पिताजी की दहाड़ पर समाप्त होता था. रोतीकलपती अम्मां थकहार कर खाने बैठ जातीं क्योंकि पिताजी पलट कर उन्हें पूछते ही नहीं थे. अम्मां को कोई गंभीर बीमारी न थी. एक दिन के बुखार में ही वह चल बसीं.

रिटायरमेंट के बाद पिताजी को गांव के पुश्तैनी मकान की याद आई. सबकुछ छोड़छाड़ कर वह गांव में जा बैठे तो झक मार कर हम सब को भी जाना पड़ा. पिछले 15 सालों में गांव और

शहर के बीच तालमेल बैठातेबैठाते मैं न गांव का गबरू जवान रहा न शहर का

छैलछबीला.

बहनों को पढ़ाया, खुद भी पढ़ा और नौकरी की तलाश में खूब भटका. उधर गांव में पिताजी की झकझक अब रश्मि और अवनि को झेलनी पड़ती थी. वे ऊटपटांग जवाब देतीं तो पिताजी उन्हें मारने के लिए डंडा उठा लेते. अजीब मनोस्थिति होती जब मैं छुट्टी में घर जाता था. घर जाना जरूरी भी था क्योंकि घर तो छोड़ नहीं सकता था.

पिताजी के बाद मैं दोनों बहनों को शहर ले आया. गांव का मकान, जिस का हिस्सा मात्र 2 कमरों का था, मैं अपने चचेरे भाई को सौंप आया. उस का परिवार बढ़ रहा था और वहां भी हमारे घर की तरह ‘तानाशाह’ थे.

शहर आ कर अवनि को मैं ने टाइप स्कूल में दाखिला दिलवा दिया लेकिन उस का मन उस में नहीं लगा. वह गांव के स्कूल में पढ़ाती थी इसलिए यहां भी वह पढ़ाना ही चाहती थी. मेरे साथ काम करने वाले पाठकजी की बेटी अपना स्कूल चलाती है, वहीं अवनि पढ़ाने लगी है. जितना उसे मिलता है, पिताजी की तरह अपने ऊपर खर्च करती है. बातबात में ताने देती है. बोलती है तो जहर उगलती है लेकिन मैं क्या करूं? पिताजी के बाद जो खजाना मुझे मिला वह केवल उन की 1 महीने की पेंशन थी. जिस शहर में रहने का ताना ये दोनों मुझ को देती थीं वही शहर हमारी सारी कमाई निगल रहा है.

40 बरस की आयु में आखिर परिस्थितियों से ऊब कर मैं ने शादी कर ली. जलज अच्छी लड़की है. शांत स्वभाव और धैर्य वाली. उस की बड़ीबड़ी आंखों में दुख के बादल कुछ क्षण मंडराते तो जरूर हैं लेकिन फिर छंट भी बहुत जल्दी जाते हैं. जलज ने आज तक मेरी बहनों के बारे में मुझ से किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं की. क्या करूं, मेरे प्रारब्ध से जुड़ कर उसे भी सबकुछ सहन करना पड़ रहा है.

माना कि बहनें छोटी हैं लेकिन कहने वाले कब चूकते हैं, ‘‘खुद की शादी कर ली और बहनों को भूल गया. बहनें भी तड़ से कहती हैं, ‘‘तुम अपनी जिंदगी देखो, हम को कब तक संभालोगे या तुम्हारे पास इतना पैसा कहां है कि हमें बैठा कर खिला सको.’’

पिताजी ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई. खुद खायापिया और मौज उड़ाई. इस में मेरा कुसूर क्या है? मैं कब कहता हूं कि बहनों का ब्याह नहीं करूंगा. अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ता पर मैं सब से कहता हूं, समय तो आने दो, धैर्य तो रखो.

एक तो कहीं बात नहीं बनती और कहीं थोड़ीबहुत गुंजाइश होती भी है तो ये दोनों मना करने लगती हैं. यह लड़का अच्छा नहीं है. गांव में शादी नहीं करेंगे. वास्तव में दोनों में निरंकुशता आ गई है. मुझे कुछ समझती ही नहीं. हैसियत मेरी बुजुर्ग वाली है लेकिन ये दोनों मुझे बच्चा समझ कर डपटती रहती हैं. मेरे साथ जलज भी डांट खाती है.

अम्मां पिताजी के उलझाव ने इन दोनों के स्वभाव में अजीब सा कसैलापन ला दिया है. पापा से उलझ कर अम्मां मुंह फुला कर लेट जातीं और यह तक न देखतीं कि रश्मि और अवनि क्या कर रही हैं, कैसे बोल रही हैं.

मैं अपनी दोनों बहनों और पत्नी के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश में अपने ही खोल में सिमटता जा रहा हूं. न जाने कब समाप्त होगा हमारा अजनबीपन.

नवरात्रि के में लड़कियों का उठाया जाता है फायदा, धड़ल्ले से बिकती हैं गर्भनिरोधक गोलियां और कंडोम

वैसे तो हर त्यौहार का अपना अलग मजा होता है. लेकिन नवरात्रि के मौके पर 9 दिन अलग ही जलसा रहता है. खासतौर पर लड़कियों और लड़कों के लिये एक खास मौका होता है, जिसमें वह सज सवरकर पसंदीदा लोगों के साथ रास गरबा खेलने जाते हैं. पहले नवरात्रि पर ढोल ताशा के साथ गरबे का आयोजन होता था जिसमें सांस्कृतिक तरीके से रीति रिवाज को ध्यान में रखकर गरबे का त्यौहार मनाया जाता था.

लेकिन धीरेधीरे नवरात्रि उत्सव में बहुत सारे बदलाव आए ढोल ताशा की जगह डीजे ने ले ली, इतना ही नहीं डी जे के अलावा गरबा क्वीन के नाम से जानी जाने वाली फाल्गुनी पाठक अपनी पूरी टोली के साथ मिलकर गरबे के गाने और फिल्मी गाने गा कर और हजारों लोगों को एक साथ नचाकर नवरात्रि उत्सव में लाखों करोड़ों कमाती है, ऐसी ही कई और गायिकाएं जो स्पेशली नवरात्रि के लिए अपना बैंड लेकर सार्वजनिक स्थलों पर हजारों की भीड़ के बीच मधुर संगीत के साथ नवरात्रि की नौ रातों को मजेदार बना देती हैं.

इस दौरान गरबे में नाचने वाले लड़के लड़कियां पसीने पसीने हो जाते हैं लेकिन नाचना नहीं रोकते. इन नौ दिनों में गरबा करने वाले लड़के लड़कियों में गजब की एनर्जी दिखाई देती है. खासतौर पर मुंबई शहर और गुजरात शहर में धूमधाम से नवरात्रि मनाया जाता है. इस दौरान लड़के लड़कियां चाहें कितने ही व्यस्त हो , गरबा स्थल पर अपने ग्रुप के साथ गरबा खेलने पहुंच ही जाते हैं. इस दौरान खासतौर पर लड़कियां जरूर से ज्यादा सजती संवरती है. महंगी चनिया चोली उससे मैच करती हुई ज्वेलरी और भर भर के मेकअप करके सारी लड़कियां गरबा खेलने पहुंचती है.

नवरात्रि का एक पहलू और है वह यह कि इस मौके का फायदा उठाकर कई बदमाश किस्म के लड़के खूबसूरत और भोली लड़कियों का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. कई बार तो लड़की को अकेला पाकर उन्हें बहला फुसलाकर उनका अपहरण तक कर भी कर लेते है. इसलिए बहुत जरूरी है की नवरात्रि के मौके पर अपने लोगों के बीच ही रहे किसी पर भी भरोसा करके उसके साथ सुनसान जगह पर ना जाएं .

क्योंकि फिल्में समाज का आईना है , इसलिए फिल्मों में वही दिखाया जाता है जो असल जिंदगी में किसी के साथ बिता होता है. जैसे कि आलिया भट्ट अभिनीत गंगूबाई काठियावाड़ी में ऐसा ही कुछ दिखाया गया था जिसके तहत आलिया भट्ट अर्थात गंगूबाई नवरात्रि में गरबा खेल रही होती है तभी उसको एक लड़का मिलता है. और फिल्म में हीरोइन बनने का लालच देकर गुजरात के गांव से भगाकर मुंबई ले आता है. और मुंबई लाकर वेश्याओं के इलाके कमाठीपुरा में चंद पैसों के लिए बेच देता है. गंगूबाई काठियावाड़ी की कहानी ऐसी लड़कियों के लिए सबक है जो लालच में आकर गलत कदम उठा लेती है.

गरबा नाइट्स में दिखना चाहती हैं सबसे अट्रैक्टिव, तो ये ज्वैलरी हैं आपके लिए एकदम परफैक्ट

महिलाओं के लिए हर त्योहार स्पैशल न हो ऐसा तो हो नहीं सकता क्योंकि छोटीछोटी चीजों में भी खुशियां ढूंढ़ना महिलाओं की आदत में शुमार होता है. अधिकतर हर महिला को सजनेसंवरने का शौक होता है जिस कारण वे ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ना चाहतीं और इसी उत्साह और उमंग का कारण ही है कि भारत को परंपराओं का देश कहा जाता है.

3 अक्तूबर से नवरात्री के साथसाथ डांडिया नाइट्स का भी आगमन होने वाला है जिस कारण महिलाएं तैयारी में जुट गई हैं. कौन से कपड़े पहनने हैं, किस तरह का मेकअप करना है, कौन सी ज्वैलरी पहननी है वगैरह सभी तैयारियां नवरात्रि से पहले ही हो जाती हैं.

तो चलिए, जानते हैं कि अपने लुक को अट्रैक्टिव बनाने के लिए कौन सी ज्वैलरी कैरी करें :

कोड़ी शैल ज्वैलरी

अगर आप खुद को एक नया और फैशनेबल लुक देना चाहती हैं तो कोड़ी शैल आभूषण आप के लिए बेस्ट हैं. ये डांडिया ड्रैस को एक अलग ही अंदाज देंगे. कोड़ी शैल में आप को हार से ले कर पायल तक सभी तरह की ज्वैलरी मिल जाएगी. साथ ही यदि आप अपने ड्रैस में भी कोड़ी डिजाइन लगवाना चाहें तो भी खूब जंचता है.

मैटेलिक ज्वैलरी

मैटेलिक ज्वैलरी हरेक ड्रैसेज के साथ बहुत ही फबती है. मैटेलिक ज्वैलरी अधिकतर लाइटवेट होती है जिसे कैरी करना बहुत आरामदायक होता है.

कुंदन व मोती वर्क ज्वैलरी

यह ज्वैलरी महारानी जैसा शाही लुक देती है. इस तरह की ज्वैलरी आप किसी भी ड्रैस के साथ कैरी कर सकती हैं. अगर लहंगा पहन रही हैं तो हैवी नैकलेस या चौकर बहुत ही अच्छा लगेगा. इंडोवैस्टर्न जैसी ड्रैस के साथ आप लाइट डिजाइन वाली ज्वैलरी पहन सकती हैं या सिर्फ लंबे झुमके भी आप की ज्वैलरी लुक के लिए काफी हैं.

मिरर वर्क ज्वैलरी

यह ज्वैलरी आधीकतर मल्टीकलर में आती है जोकि हर तरह की ड्रैस के साथ बहुत ही यूनिक लगती है. साथ ही आप को ट्रैडिशनल व मौडर्न लुक देने का काम करती है.

गोल्ड प्लौटेड ज्वैलरी

यह ज्वैलरी सदाबहार ज्वैलरी है. अधिकतर के पास इस तरह की ज्वैलरी उपलब्ध रहती है. इस में स्टोनवर्क, मीना वर्क के साथ तैयार की हुई ज्वैलरी पहन सकती हैं जो आप को ट्रैडिशनल लुक देने का काम करेगी.

औक्सीडाइज्ड ज्वैलरी

औक्सीडाइज्ड ज्वैलरी सैट की खासियत यह होती है कि ये बहुत कम दाम में भी उपलब्ध हैं. ऐसे में हरकोई इसे खरीद सकता है. ये आप को स्टाइलिश के साथ ही कूल लुक भी देंगी.

हमेशा रहना चाहते हैं खुश, तो आज से ही अपनाएं ये हैप्पीनेस टिप्स

आजकल के तनाव भरे जीवन में खुश रहना एक बड़ा काम हो गया है. खुश रहना जैसे हम भूलते जा रहे हैं जबकि खुशी हमारे दिमाग की ही एक अवस्था होती है. अगर हम दिमाग को खुश रहने के लिए ट्रेन करते हैं तो हम किसी भी स्थिति में खुश रह सकते हैं. हर इंसान खुश रहना चाहता है पर रह नहीं पाता. कई बार इंसान को पता नहीं होता है कि वह खुश रहने के लिए क्या करे और अगर उसे पता भी है तो भी वह वे काम कर नहीं पाता जिन से खुशी मिलती है. ऐसी कई छोटीछोटी चीजें हमारी आंखों के सामने और मन में होती हैं जो खुशियां देती हैं पर हम उन पर ध्यान नहीं  देते. आइए जानते हैं खुश कैसे रहें:

खुश रहने की राह में सब से पहली रुकावट बन जाती है कोई शारीरिक परेशानी या बीमारी. खुश रहने के लिए तन और मन का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है. कोई न कोई परेशानी आजकल सब को है ही, कोई बिरला ही होगा जो पूरी तरह से स्वस्थ होगा पर किसी तरह की अस्वस्थता आप के मन पर असर न करे, इस का ध्यान आप को रखना होगा. बीमारी होगी तो इलाज भी चल ही रहा होगा, हर समय दुखी रहने से भी आप ठीक नहीं हो जाएंगे तो अच्छा यही है कि अपने विचार इस तरह से सकारात्मक रखें कि अस्वस्थ होते हुए भी आप जिंदादिली से काम लें, मन शांत रहे तो खुशी खुद आप की चेतना में स्थायी घर बना सकती है. तन और मन को स्वस्थ रखने के लिए दोनों की देखभाल करनी होती है. स्वस्थ तन के लिए रोग योग, व्यायाम या जिम में वर्कआउट का समय निकालें और मन की शांति के लिए थोड़ा मैडिटेशन करें. अच्छी बातें सोचें, कुछ देर प्रकृति के साथ बिताएं.

प्रकृति ने मनुष्य के मन को कई तरह की भावनाएं दी हैं. आप के पास कितना भी पैसा हो, आप कितने भी अमीर हों पर अगर आप का अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ व्यवहार बहुत खराब है तो आप का अमीर होना.

आप की खुशियों का कारण नहीं बन सकता. हमारी भावनाएं हमारे आसपास रहने वालों से जुड़ी होती हैं. हमारी खुशियां हमारे परिवार, दोस्त, समाज के लोगों से जुड़ी होती हैं, हम इन सब से कट कर, लड़ाई?ागड़े कर के खुश नहीं रह सकते. सब को प्यार दें, सम्मान दें. हां, कोई आप के साथ गलत व्यवहार कर रहा हो तो उस से दूर रहने में खुशी मिलेगी. अच्छे और सकारात्मक रिश्ते बनाएं. मन खुश रहेगा.

जीवन का एक अच्छा उद्देश्य होना चाहिए. जीवन का कुछ भाग सोने में चला जाता है, कुछ काम करने में. जीवन का कुछ समय अपने शौक पूरे करने के लिए भी रखें. अपना काम ऐसा न रखें जो आप को स्ट्रैस दे रहा हो, जिसे कर के खुशी मिलती हो, वह काम करें. काम अपनी पसंद का चुना है तो बहुत ही अच्छी बात है. पर अपने शौक भी पूरे करते रहें.

कोल्हू के बैल न बनें. बहुत ज्यादा काम में न उलझे रहें. इस से आप की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है. किसी दार्शनिक ने कहा है कि अगर हम दिनभर में थोड़ा समय अपने लिए नहीं बचा पाते तो हम गुलाम हैं इसलिए काम के गुलाम न बनें, अपनी पसंद के काम करने के लिए थोड़ा सा समय अपने लिए जरूर निकालें. तनमन को आराम देते रहें. ठीक से सोएं. नींद, आराम और काम तीनों में संतुलन बनाना सीख लें.

जब भी समय मिले, पुराने दोस्तों से मिलने जाएं, उन से फोन पर बातें कर लें, थोड़ा गौसिप करना भी आप का मूड ठीक कर देगा. कुछ उन की सुनें, कुछ अपनी सुनाएं. दोस्तों से हंसीमजाक करना, खिलखिलाना किसी औषधि से कम नहीं होता. दोस्त आप को जज भी नहीं करते, उन से आप अपने मन की हर बात खुल कर कर सकते हैं. दोस्तों से मिलते रहें.

अपनी तुलना किसी से न करें, सोशल मीडिया पर होने वाली पोस्ट्स से तो बिलकुल भी नहीं. किसी की हमेशा खुशियों भरी पोस्ट्स देख कर अपनी तुलना न करें. कोई अपने ट्रिप की, अपनी खुशियों भरे पलों की पोस्ट्स शेयर कर रहा है तो उस की लाइफ से अपनी लाइफ की तुलना न करें. दूसरों की खुशियां देख देख कर कुड़ें नहीं, संतोष रखें, खुश रहें.

घर के सदस्य अगर अपनेअपने कामों में व्यस्त हैं तो इस बात की शिकायत न करें, अपना समय भी किसी रचनात्मक कार्य में लगाएं. फोन पर मीम्स और रील्स देखने में अपना समय खराब न करें, अच्छी किताबें पढ़ें बागबानी करें, नईनई हैल्दी रैसिपीज ट्राई करें. आप में जो भी हुनर है, उसे निखारते रहें, दूसरों की मदद करें.

अकसर हम दूसरों से बहुत ज्यादा उम्मीद रखने लगते हैं और जब वे हमारी उन उम्मीदों के विपरीत व्यवहार करते हैं तो हमें दुख पहुंचता है. अपनी अपेक्षाओं को कम रखें. अच्छा सोचें. बातबात पर गुस्सा करने की आदत पर कंट्रोल करें.

अगर आप के दिमाग में कभीकभी नैगेटिव विचार भी आ जाते हैं तो आप ज्यादा उदास तब होते हैं जब उन्हें सुनने वाला कोई नहीं होता है इसलिए आप को हमेशा एक डायरी में अपने नैगेटिव विचार लिख लेने चाहिए. इस से आप के दिल से वह बो?ा हलका हो जाएगा और आप खुश रह पाएंगे.

अतीत में हुई बुरी घटनाओं के बारे में न सोचते रहें. जो बीत चुका है उसे वर्तमान समय की खुशियों पर हावी न होने दें. बुरे अतीत से दूरी रखें.

प्यार करें. सच्चे दिल से किसी को प्यार दें, आप को भी उतना ही प्यार मिलेगा. खुश रहने के लिए प्यार करने से बढ़ कर कोई बात नहीं हो सकती. हंसें, मुसकराएं. रोने की बात हो तो रो भी लें पर फिर खुश रहने की कोशिश करें. यह जीवन अनमोल है, इसे हंसीखुशी बिताना है, यह ठान लें. परेशानियों में रोते रहने से भी कुछ नहीं होगा तो इस से अच्छा खुश ही रहने की कोशिश करें. इस से जीवन आसान हो जाता है. आशावादी बनें, नैगेटिव चीजों में भी पौजिटिव ढूंढ़ लाने की कला सीखना.

मेरे जोड़ों में झनझनाहट, दर्द और जकड़न की समस्या है, मुझे कोई उपाय बताएं

सवाल

मैं 32 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. कुछ समय से मेरे जोड़ों में झनझनाहट, दर्द और जकड़न की समस्या हो रही है. इस के कारण मेरा उठनाबैठना मुश्किल हो गया है. कृपया कोई सुझाव दें?
जवाब

ये सभी लक्षण औस्टियोआर्थ्राइटिस की ओर इशारा करते हैं. यह एक प्रकार की गठिया की समस्या है, जो एक या ज्यादा जोड़ों के कार्टिलेज के खराब होने के कारण होती है. कार्टिलेज प्रोटीन जैसा एक तत्त्व है जो जोड़ों के बीच कुशन का काम करता है. सब से पहले आप हड्डियों के किसी अच्छे डाक्टर से परामर्श लें. डाक्टर बीमारी की पहचान और चरण के अनुसार उचित इलाज की सलाह देगा.

शुरुआती चरणों (0-2 चरण) में किसी खास इलाज की आवश्यकता नहीं पड़ती है. इस दौरान समस्या को केवल ऐक्सरसाइज और फिजिकल थेरैपी से ठीक किया जा सकता है. इस प्रकार की थेरैपी में किसी प्रकार के मैडिकेशन की आवश्यकता नहीं होती है. समस्या बढ़ने पर मैडिकेशन या सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है इसलिए लापरवाही न बरतें.

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मेरी उम्र 28 साल है. कुछ दिनों पहले बच्चे के साथ खेलते वक्त मैं घुटनों के बल गिर पड़ा. मोच के कारण घुटने में लगातार दर्द और सूजन बनी हुई है. यहां तक कि स्प्रे से भी कोई लाभ नहीं मिल रहा. कृपया कोई समाधान बताएं?

जवाब

आप की मोच गंभीर है जिस के कारण आप को दर्द और सूजन से राहत नहीं मिल रही है. 2-3 दिन आप घरेलू उपायों की मदद से मोच ठीक करने की कोशिश करें. इस के लिए दिन में 3-4 बार 15-20 मिनट तक घुटने की बर्फ से सिकाई करें. इस से दर्द और सूजन में आराम मिलता है. बर्फ को किसी कपड़े में बांध कर ही सिकाई करें. इस के अलावा आप के लिए आराम करना बेहद जरूरी है. हर उस काम से बचें जिस में घुटना मुड़ता हो. 15-20 मिनट के लिए घुटने पर हलदी का लेप लगाने से भी लाभ मिलेगा. ऐसा करने के बाद भी लाभ न मिले तो तुरंत हड्डियों के किसी अच्छे डाक्टर से संपर्क करें.

-डा. अखिलेश यादववरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन,

जौइंट रिप्लेसमैंट, सैंटर फौर नी ऐंड हिप केयर, गाजियाबाद. 

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