न्यूयार्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल में ‘तू है मेरा संडे’ ने मचायी धूम

मुंबई में जुहू चैपाटी पर फुटबॉल खेलने पर लगे प्रतिबंध की पृष्ठभूमि पर निर्माता वरूण शाह और लेखक निर्देशक मिलिंद धाई माड़े ने एक फिल्म ‘तू है मेरा संडे’ का निर्माण किया है.

शहाना गोस्वामी, रसिका दुग्गल और वरूण सोबती के अभिनय से सजी इस फिल्म का हाल ही में ‘‘न्यूयार्क इंडियन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’ में प्रदर्शन हुआ, जहां लोगों ने खड़े होकर ताली बजाकर फिल्म की जबरदस्त प्रशंसा की.

शहरी मध्यमवर्गीय समाज की अनोखी पृष्ठभूमि वाली यह फिल्म मानवीय रिश्तों की जांच पड़ताल करते हुए रिश्तों की नाजुक भेद भी खोलती है. यह कहानी है मुंबई के पांच दोस्तों की जो कि रोजमर्रा की जिंदगी के पागलपन से दूर भागने की कोशिश करते हैं. ये दोस्त खुशी और प्यार पाने की जद्दो जहद में गुपचुप तरीके से जुटे रहते हैं. दीवर में फिल्मायी गयी इस फिल्म में दीवर की स्थानीय फुटबाल टीम भी नजर आती है.

न्यूर्यार्क से लौटकर रसिका दुग्गल ने बताया, ‘‘न्यूयार्क के इस फिल्म समारोह में स्थानीय व अप्रवासी भारतीयों के साथ अपनी फिल्म को देखने के आनंद को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. फिल्म की शुरुआत के साथ ही दर्शक फिल्म के रंग में रंग गए थे. कुछ दृश्यों में दर्शकों की खुलकर हंसने की आवाजें आती रही. लोगों ने फिल्म की मूल भावना को समझा.’’

क्या आप भी अकेले करती हैं सफर!

अगर आप अकेले किसी सफर पर जा रही हैं, तो कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखें. क्योंकि आपकी सजगता आपको किसी भी समस्या से बचा सकती है. जानें, कौन-सी हैं ये जरूरी बातें.

– अगर आप बस में सफर कर रही हैं और पास में बैठे शख्स से खुद को असहज महसूस कर रही हैं, तो अपनी सीट बदल लें. ट्रेन में सफर करते समय भी इस बात का ध्यान रखें कि आस-पास कोई फैमिली हो.

– अगर आप ऑटो में सफर कर रही हैं, तो अपना जीपीएस और मैप जरूर चालू रखें. इससे आपको पता चलते रहेगा कि आप सही रास्ते पर जा रही हैं या नहीं.

– ट्रेन में सफर करते वक्त सोते समय अपनी सीट के आस-पास सामान रख दें, जिससे कोई आपके पास आकर बैठ न सके.

– सफर के दौरान अजनबियों से ज्यादा बातें ना करें और ना ही उनकी दी हुई कोई चीज खाएं.

– फ्लाइट में अपना हर सामान अपनी सीट के ऊपर बने कबर्ड में ही रखें. जरूरी लगे तो सीट के सामने बनी फसिलटी ट्रे पर भी रख सकती हैं. इधर उधर रखने से वह दूसरों के सामान के साथ मिक्स हो सकता है.

– बैग जितना हल्का होगा, उतनी कम्फर्टेबल सिचुएशन में आप रहेंगी. फिर आपको किसी की मदद लेने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी.

– सफर के दौरान अपने फोन को हमेशा चार्ज रखें. अपने पर्स में पेपर स्प्रे रखें, इससे आप किसी भी अचानक हमले से अपना बचाव कर सकती हैं.

फेस पैक से पाएं दमकती त्वचा

खूबसूरत त्वचा तो हर किसी को चाहिए होती है. लेकिन व्यस्त जिंदगी में इतना वक्त किसके पास है. आपकी इस समस्या को समझते हुए आज हम आपको बता रहे हैं 3 ऐसे फेसपैक जो चुटकियों में तैयार हो जाते हैं. ये स्वस्थ और दमकती त्वचा पाने की आपकी इच्छा को पूरा करने में सहायक हैं. जानिए, इन्हें तैयार करने की विधि और लगाने का तरीका.

दूध-चोकर फेस पैक

तीन-चार टेबलस्पून कच्चे दूध में थोड़ा सा चोकर मिलाकर पेस्ट बना लें. इसमें थोड़ा सी हल्दी या चंदन का पाउडर भी मिला लें. इस पेस्ट को 20 मिनट के लिए चेहरे पर लगा रहने दें. बाद में पानी से साफ कर लें. इससे त्वचा में निखार आता है.

शहद फेस पैक

शहद सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. सबसे खास बात यह है कि यह त्वचा के लिए भी बहुत लाभदायक है. एक टेबलस्पून शहद में आधा नींबू का रस मिला लें. फिर इसमें थोड़ा सा चोकरयुक्त आटा मिलाकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को चेहरे पर लगाकर पंद्रह से बीस मिनट के लिए छोड़ दें. इसे सादे पानी से साफ करने के बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें.

केला फेस पैक

केले के गूदे में कुछ बूंदे जैतून के तेल की मिलाकर इसे चेहरे और गर्दन पर 15 से 20 मिनट के लिए लगाएं. ऐसा करने से त्वचा में झुर्रियां कम होती हैं. अगर हाथों में यह समस्या हो तो केले का गूदा व नारियल का तेल मिलाकर हाथ धोने की तरह थोड़ी देर तक मलें. हाथों पर झुर्रियां नहीं पड़ेंगी.

कुछ कुछ होता है

अगर फिल्मी दुनिया की नजर से देखें तो कुछकुछ होने का संबंध केवल दिल की दुनिया से है. दिल जरा सा पिघला नहीं कि कुछकुछ होना शुरू. लेकिन असल में यह सिलसिला यहीं तक सीमित नहीं रहता. किसी की तरक्की या किसी के घर में आई कोई नई चीज भी किसी के लिए कुछकुछ होने का कारण बन सकती है.

3 घर छोड़ कर हमारे बिजनैसमैन पड़ोसी बाबूलाल ने नई कार खरीदी है, बिलकुल नए मौडल की, एकदम चमाचम. पूरे महल्ले के लोगों पर उस का रोब है, दबदबा है. औरतों के सीने पर तो जैसे छुरियां चल रही हैं. 4 घर छोड़ कर हमारे खुशमिजाज पड़ोसी छेदीलाल इस घटना के बाद सब से अधिक दुखी दिखाई दे रहे हैं. एक दिन तो वह फट पड़े, ‘‘प्रकृति बहुत कठोर है. शक्ल नहीं देखती, जिस को देना चाहती है उसे ही छप्पर फाड़ कर देती है. हमारे जैसे क्लासवन अफसर कई साल से एक ही कार घसीटते आ रहे हैं. वह सड़े, बेढंगे थोबड़े वाला बाबूलाल …तुम नहीं समझोगे डियर, जब मैं उसे हर साल नई चमाचम कार में देखता हूं तो मेरे दिल में कुछकुछ क्या बहुतकुछ होता है.’’

हर तरफ अब यही आलम है. जिस किसी की दुखती रग पर हाथ रखो, उसे ही कुछकुछ होता है या होने लगता है. सारी दुनिया जानती है कि दिल तो पैदाइशी तौर पर पागल है और सनातन काल से आवारा और सौदाई भी है. ऐसा कई कवियों व कहानीकारों ने कहा है. मगर कुछकुछ होने का यह नया फंडा आजकल बहुत चलन में है. यह अलग बात है कि सबकुछ होने के बावजूद हम जीवनभर गरीबी का रोना जरूर रोते रहते हैं. आखिरकार एक दिन हम ने छेदीलाल से यह पूछने की हिम्मत कर ही डाली कि अब वही हमें बताएं कि सबकुछ होने का मामला तो समझ में आता है मगर भला यह कुछकुछ होना क्या बला है?

हमारे इस नामाकूल प्रश्न पर वे भावुक हो कर बोले, ‘‘वैसे तो कुछकुछ होने का सीधा संबंध शरीर के दिल नामक हिस्से से है जो लगभग सभी मामलों में छाती के बाईं ओर होता है. जब किसी इंसान का दिल कोई दूसरा चंटचालाक व्यक्ति चुरा ले या वह अपने दिल का सौदा सोनेचांदी के बदले किसी दूसरे दिल के साथ कर अपने दिल से हाथ धो बैठे या फिर रातदिन, सोतेजागते व उठतेबैठते उसे एक पल में कुछ और दूसरे पल में कुछ और होने लगे तो इसे फिल्मी भाषा में कहते हैं कि उसे कुछकुछ होने लगा है.’’ किताबी जबान में इसे कुछ यों कहा जाता है कि जब ऐसे बेवकूफ आदमी को कुछ होने या न होने की खबर न मिले और उन के पास इस जानलेवा मर्ज की कोई कारगर दवा न हो तो समझो कि ऐसा आदमी दीनदुनिया और दिलोजान से गया. एक दिल ने उसे न जाने कहांकहां से निकम्मा बना दिया. कवि कहता है, ‘इन दिनों कुछ अजब हाल है मेरा, देखता कुछ हूं, ध्यान में कुछ है…’

सिर्फ छोटे बच्चों व बूढ़ों को कुछकुछ नहीं होता. बूढ़ों को तो जो कुछ होना था सबकुछ हो लिया. कैमिस्ट की जबान में कहें तो ऐसी दवा की ऐक्सपायरी डेट निकल चुकी है, अब यह दवा बेअसर हो चुकी है. विवाहित आदमी जब 30वां साल पार करता है और उस के टपोरी बालों की खिचड़ी पूरी तरह पक जाती है, तोंद बाहर निकल आती है और मुंह पिलपिला हो जाता है, तो उस में कुछकुछ होने के लक्षण साफ नजर आने लगते हैं. वह हर वक्त किसी परी चेहरे को पाने की उम्मीद में रहता है तथा हर आतीजाती को आंखें फाड़ कर निहारता है. वह दाढ़ी के 2 कोट बनाता है और चिकना चेहरा बना कर औफिस की लेडीज को दाना डाल कर बैठ जाता है. कालेज के छात्रछात्राओं में कुछकुछ होने की संभावनाएं बहुत प्रबल होती हैं. उन को जब कुछकुछ होने लगता है तो परीक्षाओं में उन के नंबर कम आने लगते हैं और सांसों के उफान में तेजी आ जाती है. वे डिओडरेंट का इस्तेमाल ज्यादा करने लगते हैं और उदास चेहरे से भी खुश दिखने का दिखावा करने लगते हैं.

लड़कियां जब कुछकुछ होने की स्टेज पर कदम रखती हैं तो उन की आंखें अपनेआप ही कजरारी हो जाती हैं. उन के गाल गुलाबी, नयन शराबी, लट बिजली, होंठ दहकते अंगारे और चाल घायल हिरनी सरीखी हो जाती है. वे क्लास में कम और ब्यूटी पार्लर में ज्यादा नजर आती हैं. कपड़ों के मामले में अकसर उन की अपनी दादीमां, कालेज प्रशासन और दरजी से जंग छिड़ी रहती है क्योंकि उन की चोली आज की डेट में सिलवाने पर कल फिर तंग हो जाती है.

इन नौजवान हस्तियों का बेकाबू दिल उन के हाथों से फिसलफिसल जाता है और ये जल्दबाज लोग अपने विशुद्ध 22 कैरेट के दिल का कुछकुछ वाला नाजुक हिस्सा नादानी में खराब कर बैठते हैं.  

जसविंदर शर्मा        

बच्चों के अनुसार अपना शैड्यूल बनाती हूं : रश्मि आनंद

10 सालों तक घरेलू हिंसा सहने के बाद बच्चों के सुखद भविष्य की खातिर रश्मि आनंद ने 35 साल की उम्र में अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करने का फैसला किया. फिर 9 साल की बेटी व 5 साल के बेटे को ले कर उस घर से निकल गईं जिस में उन्हें निरंतर टौर्चर किया जाता था.

रश्मि आज काउंसलर और लेखिका के रूप में स्थापित हैं. वोडाफोन फाउंडेशन की वूमन औफ प्योर वंडर बुक में भी इन का नाम शामिल किया गया है. वे घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं का दर्द बांटते हुए उन्हें सही राह दिखाने का काम करती हैं. रश्मि को कई अवार्ड्स मिल चुके हैं और तलाक के बाद वे कई किताबें भी लिख चुकी हैं.

तलाक के बाद दोबारा जिंदगी शुरू करने का अपना अनुभव बताएं?

जब मैं ने पति से अलग रहने का फैसला लिया था उस वक्त ऐसी कोई चुनौती नहीं होगी, जो मेरी जिंदगी में नहीं थी. मेरे पास पैसों की कमी थी. मैं जौब नहीं करती थी. पिता और भाई ने मुझ से मुंह मोड़ लिया था. बेटा खामोश रहता था. बेटी भी डिप्रैशन में रहती थी. ऐसे में मुझे हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था.

उस नर्क से निकलने के बाद मैं ने तय किया कि मैं सिर्फ और सिर्फ  वर्तमान के बारे में सोचूंगी. मैं रात में लिखने का काम करती थी और दिन में बच्चे को इलाज के लिए ले जाती थी. क्राइम फौर वूमन सैल की सहायता से पति के खिलाफ केस दायर किया गया. दिल्ली पुलिस ने मेरी बहुत मदद की. मुझे 2002 में तलाक मिल गया और फिर बच्चों की कस्टडी भी मिली. पर एलुमनी नहीं मिली. किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं थी. उस वक्त घरेलू हिंसा कानून भी नहीं था. ऐसे में अपनी व बच्चों की बेहतर जिंदगी के लिए मुझे खूब संघर्ष करना पड़ा.

आप की तनावपूर्ण वैवाहिक जिंदगी का जो बुरा असर बच्चों के मन पर पड़ा था, उसे दूर करने के लिए क्या किया?

मैं ने अपने बच्चों को हंसना सिखाया. हमारे (मैं और मेरे दोनों बच्चे) अंदर इतना भय था कि हमें हर चीज से डर लगने लगा था. हम ने इतनी ज्यादा शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना सही थी कि उन परिस्थितियों में या तो मैं टूट कर बिखर जाती या फिर खुद को मजबूत बनाती. मैं ने मजबूत बनने का रास्ता चुना. सब से बड़ी शक्ति हंसने की होती है. इसलिए मैं ने वही अपने बच्चों को सिखाया. जिन चीजों से हमें डर लगता था, उन पर हम ने जोक्स बना लिए. टूटना मुझे गवारा नहीं था. मैं अपने बच्चों को हारते या बिखरते हुए नहीं देखना चाहती थी. उन की आंखों में भय और होंठों पर खामोशी देख कर मैं डर गई थी. इसलिए मैं ने यह रास्ता चुना और पति से अलग हो गई. नए घर में हम तीनों दोस्तों की तरह रहते. मैं ने उन पर कभी हुक्म नहीं चलाया. उन्हें हर तरह की छूट दी.

बच्चों को संभालते हुए लिखने का समय कैसे निकाल पाती हैं?

मुझे 2 मिनट का भी वक्त मिलता है, तो मैं लिखने बैठ जाती हूं. थकी होती हूं तो भी लिख कर ही मेरी थकान मिटती है. मेरे मन की शांति और खुशी का जरीया लेखन ही है.

एक काउंसलर के तौर पर आप मदर्स/पीडि़त महिलाओं को क्या सलाह देती हैं?

मैं महिलाओं को यही समझाती हूं कि प्रताड़ना सहते हुए ससुराल में ही रहना जरूरी नहीं. अकसर बच्चों के भविष्य की खातिर महिलाएं सब सहती रहती हैं. मगर सच यह है कि यदि बच्चों का वजूद बनाना है, तो ऐसे दमघोटू वातावरण से निकलना जरूरी है.

आप के पास काउंसलिंग के लिए जो महिलाएं आती हैं वे ज्यादातर किस बात को ले कर परेशान रहती हैं?

मैं ने क्राइम फौर वूमन सैल में 5 सालों तक काउंसलिंग की. फिर अपनी ट्रस्ट शुरू की. मेरे पास घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं ही आती हैं. मैं ने यही देखा है कि स्त्री गरीब हो या अमीर, शिक्षित हो या अशिक्षित, हर तरह की महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं.           

बैस्ट मौम जैसा टैग है ही नहीं : मोनिका ओसवाल

2 बेटियों की मां 44 वर्षीय मोनिका ओसवाल ने 2004 में कार्यकारी निदेशक के रूप में मोंटे कार्लो कंपनी का कार्यभार संभाला. यह उन की रचनात्मकता और हट कर सोचने की क्षमता ही थी जिस की बदौलत मोंटे कार्लो एक सफल फैशन ब्रैंड बन कर उभरा. व्यवसायी होने के साथसाथ मोनिका कवि और कलाकार भी हैं. जल्द ही मोनिका की कविताओं का संग्रह आने की उम्मीद है.

मोनिका अपने काम में इसलिए सफल हैं क्योंकि इन्होंने कपड़ों की क्वालिटी और ग्राहकों की संतुष्टि को अपनी कंपनी का मोटो बनाया है.

आइए जानते हैं कि वे कैसे कंपनी के साथ अपनी बेटियों के सुखद भविष्य की भी योजनाएं बनाती हैं:

फैशन इंडस्ट्री में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

फैशन आत्म अभिव्यक्ति से संबंधित है. वस्त्रों का रंग और स्टाइल आकर्षक हो तो उन्हें पहनने वाले का व्यक्तित्व भी निखर उठता है. खुद की अभिव्यक्ति को पूर्ण करने की इच्छा ने ही मुझे इस इंडस्ट्री में प्रवेश करने को प्रेरित किया.

आप की नजर में बैस्ट मौम बनने के लिए क्या जरूरी है और पति की तरफ से कितनी सपोर्ट मिलती है?

बैस्ट मौम जैसा कोई टैग वास्तव में है ही नहीं. एक मां हमेशा अपनी मां, परिस्थितियों व अनुभवों से सीखती रहती है. अगर आप का बच्चा आप से एक मां के रूप में, एक बहन के रूप में, एक भाई या फिर एक अभिभावक के रूप में बात करने की इच्छा रखता है, तब आप को यह पता होना चाहिए कि उस से कैसे बात करनी है, उसे कैसे समझाना है. हां, जहां तक पति के सहयोग का सवाल है, तो उन का सहयोग मुझे हमेशा मिला है.

अपने बच्चों के लिए आप एक सख्त मदर हैं या कूल?

मैं समय के अनुरूप सख्त भी होती हूं और जब जरूरत नहीं पड़ती तो शांत रहती हूं और बच्चों को प्यार से समझाती हूं. मेरा मानना है कि बच्चे जैसेजैसे बड़े होते हैं, उन्हें चीजों को खुद समझने और जानने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए. लेकिन इस दौरान मातापिता भी जरूरत पड़ने पर बच्चों को समयसमय पर सहीगलत के बीच फर्क करना समझाते रहें.

महिला होने के नाते क्या किन्हीं समस्याओं का सामना करना पड़ा?

मुझे कभी किसी तरह की बंदिश का सामना नहीं करना पड़ा. मूल रूप से यह इच्छा की लड़ाई है. अगर आप जीवन में कुछ पाना चाहते हैं, तो उस का सही तरीका आप को पता होना चाहिए. तभी आप उसे पाने में सफल हो पाएंगे. एक महिला के रूप में मेरे लिए ऐसी कोई अड़चन कभी नहीं रही.

घरपरिवार और बच्चों के साथ काम कैसे मैनेज करती हैं?

जब आप अपने काम से प्यार करते हैं और अपने परिवार के प्रति भी समर्पित रहते हैं तब अपनेआप संतुलन बन जाता है. अपनी प्राथमिकताओं को आगे रखें और योजना बना कर काम करने की कोशिश करें. सारे काम आसानी से हो जाएंगे. मैं अपने काम से प्यार करती हूं, इसलिए मुझे हमेशा समर्थन मिलता है. मैं कभी कमजोर नहीं पड़ती.

इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभाते हुए भी अपने अंदर के कलाकार व लेखक को कैसे जिंदा रखा?

महत्त्वपूर्ण यह है कि आप क्या, क्यों और कैसे करना चाहते हैं? मुझे शब्दों से खेलना अच्छा लगता है. जो मेरे पास है, जिस पर मुझे विश्वास है, जो मैं महसूस करती हूं और आसपास जो भी देखती हूं उसे कलम के जरीए पन्नों पर उतार देती हूं. जब तक मैं इसे पूरा नहीं करती शब्द मुझे झकझोरते रहते हैं. यही वजह है कि मेरे अंदर का कलाकार और लेखक कभी मरता नहीं.  

जिंदगी के रिंग में डटे रहना सीखा : कविता चहल

भारत के पुरुष प्रधान समाज में आज भी महिलाओं को चारदीवारी में कैद कर चूल्हेचौके तक सिमटाए रखने की दकियानूसी सोच हावी है, मगर जब वक्त पड़ता है, तो बेटियां भी किसी भी क्षेत्र में बेटों के मुकाबले पीछे नहीं रहती हैं. बहुत सी बेटियों ने तो उन क्षेत्रों में भी विश्व स्तर पर वाहवाही बटोरी है, जिन्हें मर्दों के दबदबे वाला क्षेत्र माना जाता है.

मुक्केबाजी के बारे में कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है. लेकिन मर्दों के  दबदबे वाले इस खेल में भारत की बहुत महिलाओं ने इंटरनैशनल लैवल पर नाम कमाया है. उन्हीं में से एक हैं कविता चहल. 5 फुट, 9 इंच लंबी हरियाणा पुलिस में काम कर रही इस खूबसूरत महिला मुक्केबाज ने 2013 में ‘अर्जुन अवार्ड’ हासिल कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया था. आइए, इन के बारे में इन्हीं से विस्तार से जानते हैं:

रिंग में उतरने की कैसे सोची?

मेरे पिता भूप सिंह सेना में मुक्केबाज थे. एक दिन वे प्रैक्टिस के लिए जा रहे थे कि उन का ऐक्सीडैंट हो गया. उन्हें गंभीर चोटें आईं. वे कई दिनों तक कोमा में रहे.

वे धीरेधीरे ठीक हुए. एक दिन घर पर आराम करते हुए उन्होंने टैलीविजन पर देखा कि लड़कियां भी मुक्केबाजी कर रही हैं. अत: वे मुझे भिवानी में मुक्केबाजी के ‘द्रोणाचार्य अवार्ड’ से सम्मानित कोच जगदीश सिंह के पास ले गए. तब मेरी उम्र 18 साल थी और उस समय स्कूल में कबड्डी खेलती थी.

इस के बाद मैं 1 महीने तक गांव से ही भिवानी प्रैक्टिस के लिए जाती रही. फिर भिवानी में रहने लगी. 2007 में मैं ने मुक्केबाजी के नैशनल कंपीटिशन में गोल्ड मैडल जीता, जिस से पिता का हौसला और ज्यादा बढ़ गया.

शुरूशुरू में गांव के कुछ लोगों ने कहा कि मैं इस खेल में जा कर बिगड़ जाऊंगी. लेकिन जब मुझे मैडल मिलने लगे, तो किसी ने कुछ नहीं कहा, बल्कि तारीफ ही की. शुरू में मैं 64 किलोग्राम भारवर्ग में खेलती थी.

फिर 81 किलोग्राम भारवर्ग में कैसे खेलने लगीं?

एक दिन मेरे कोच ने राय दी चूंकि तुम्हारा कद लंबा है, इसलिए अपना भारवर्ग बढ़ाओ. तब मैं अपना भारवर्ग बढ़ा कर 81 किलोग्राम भारवर्ग में खेलने लगी और अब इस भारवर्ग में वर्ल्ड में मेरी 11वीं रैंकिंग है.

शादी के बाद आप की जिंदगी में क्या खास बदलाव आया?

मेरी शादी  7 मार्च, 2011 को हुई थी. अरेंज्ड मैरिज थी, लेकिन मेरे पति सुधीर के घर वाले और मेरे परिवार वाले एकदूसरे को पहले से जानते थे. मेरी शादी बिना दहेज के हुई थी. ससुराल वालों ने 1 रुपए का रिश्ता लिया था. नए परिवार में जाने के बाद जिम्मेदारियां बढ़ीं. जब तक शादी नहीं होती तब तक  लड़कियां आसानी से खेलों से जुड़ी रहती हैं. लेकिन शादी और बच्चे पैदा होने के बाद उन का खेलों से रिश्ता धीरेधीरे टूटने लगता है. पर मेरे सासससुर व पति ने मुझे बहुत सपोर्ट किया. शादी के बाद मैं नैशनल चैंपियनशिप में लगातार 4 बार गोल्ड मैडलिस्ट बनी. मुझे ‘अर्जुन अवार्ड’ पाने का गौरव हासिल हुआ.

8 दिसंबर, 2015 को मैं विराज की मां बनी. हर मांबेटे की तरह उस की और मेरी बौंडिंग शानदार है. वह मेरे बहुत करीब है. प्रैगनैंसी की वजह से मुझे करीब 2 साल तक मुक्केबाजी से दूर रहना पड़ा. विराज के पैदा होने के बाद दोबारा रिंग में उतरना और एक के बाद एक चैंपियनशिप खेलना व खुद को फिट रखना आसान नहीं है. अपने करीब डेढ़ साल के बेटे को परिवार के पास छोड़ कर मैं दोबारा तैयारी कर रही हूं. इस सब में सुधीर ने मेरी बड़ी मदद की है. मुझे जिंदगी के रिंग में डटे रहना सिखाया.

यही वजह है कि केवल 1 महीने की प्रैक्टिस के बाद मैं ने 2 हरियाणा स्टेट चैंपियनशिप खेलीं और दोनों में गोल्ड जीता. इस के बाद पटना, बिहार में औल इंडिया पुलिस खेलों में भी गोल्ड मैडल जीता.

– सुनील शर्मा

इस हीरोइन ने अपने पिता के साथ किया था सेक्स

कहते हैं कि फिल्मी पर्दे के कलाकार जो भूमिकाएं निभाते हैं वो वास्तविक जीवन या समस्याओं से हमें अवगत कराने का एक जरिया होता है. हम सभी में से कोई ना कोई इन कलाकारों को अपना रोल मॉडल भी मान लेता है और फिर उनकी जीवनशैली की ही तरफ अपनी क्रियाविधि करता है. लेकिन अगर आपको इन कलाकारों की सच्चाई पता चले तो कैसा लगेगा. जी हां, अक्सर विवादित बयानों के चलते सुर्खियां में रहने वाली हॉलीवुड एक्ट्रेस कारा डेलेविंगने फिर एक बार चर्चाओं में हैं.

कारा ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान खुलासा किया कि वो 16 साल की उम्र में डिप्रेशन में चली गई थीं और इसके बाद 18 की उम्र में उन्होंने अपनी वर्जिनिटी खो दी थी. वो भी अपने पिता के साथ.

कारा डेलेविंगने ने बताया कि जिस हफ्ते मैंने अपनी वर्जिनिटी खोई मैं अजीब हालत में चली गई थी, मैंने अपने पिता के साथ झगड़ा किया, मैं रोई, खूब हंसी. वो मेरे लिए एक बेहतीन पल था मैं दोबारा चीजों को महसूस करने लगी थी. इसके बाद फिर मैं डिप्रेशन में गई थी, लेकिन तब परेशानियों को समझकर उन्हें निपटाना सीख रही थी.

इससे पहले भी कारा ने दिए हैं कई विवादित बयान

कारा डेलेविंगने ने इससे पहले एक मैगजीन के साथ अपने माइल हाई क्लब सीक्रेट्स को शेयर किया था. कारा ने कहा था कि मैंने प्लेन की चेयर पर सेक्स किया था और ऐसा करते हुए एक पैसेंजर ने देख लिया था. कारा ने इसके बाद क्रू मेम्बर की एक सदस्य को बुला कर कहा था कि ये पैसेंजर उन्हें घूर रहा है, उसे ऐसा करने से मना करने को कहिए. कारा ने कहा था कि प्लेन पर ऐसा करने के लिए यह उनका पहला एक्सपीरियंस नहीं था. इससे पहले भी वो प्लेन पर ऐसा कई बार कर चुकी हैं. लेकिन हर बार पकड़ी गईं.

जिंदगी के हर मोड़ पर परेशानियां झेली हैं : काम्या पंजाबी

‘बिग बौस सीजन 7’ में आने के बाद काम्या अपने फैंस के और भी करीब आ गईं. इन दिनों धारावाहिक ‘शक्ति अस्तित्व के एहसास की’ में प्रीतों का किरदार निभा रहीं काम्या ‘कौमेडी सर्कस’, ‘कौमेडी नाइट्स बचाओ’ जैसे कौमेडी शोज में स्टैंडअप कौमेडी भी कर चुकी हैं, तो ‘बौक्स क्रिकेट लीग’ और ‘बौक्स क्रिकेट लीग 2’ का हिस्सा बन कर क्रिकेट के प्रति अपनी दीवानगी भी बयां कर चुकी हैं. आइए, काम्या के निजी जीवन को टटोलते हैं:

आप ने अपनी लाइफ में कई अप्स ऐंड डाउन देखे हैं. उन से कैसे निबटती हैं?

मैं बेबाक हूं, बिंदास हूं, किसी से नहीं डरती. शायद इसीलिए परेशानियों से निबट लेती हूं. दूसरा सच यह भी है कि मैं ने ये चीजें अपनी मां से सीखी हैं. जब हम छोटे थे तब हमारे घर में भी बहुत परेशानियां थीं, लेकिन मेरी मां बहुत अच्छे तरीके से उन से निबटती थीं. वे हार नहीं मानती थीं, कभी डरती नहीं थीं. उन्होंने कभी गिवअप नहीं किया. मैं ने भी कभी गिवअप नहीं किया और न ही कभी करूंगी. मेरी मां आज भी मेरे जीवन में पिलर की तरह हैं. मैं चाहती हूं कि मैं भी उन की तरह अच्छी मां बनूं.

अपनी बेटी की परवरिश के वक्त किन बातों को ध्यान में रखती हैं?

जब एक मां अपने बच्चे की परवरिश करती है, तो सिर्फ उस की खुशी का ध्यान रखती है, उस की सिक्योरिटी और कंफर्ट का खयाल रखती है. वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देना चाहती है और दुनिया की बुराई से हमेशा दूर रखना चाहती है. मैं भी यही चाहती हूं. मुझे खुशी है कि मैं अपनी बेटी की अच्छी दोस्त हूं. वह मुझ से अपनी सारी बातें शेयर करती है, लेकिन मैं उस की अच्छी दोस्त नहीं बन पाई हूं और आने वाले 10 साल बनना भी नहीं चाहती. हां, जब वह बड़ी हो जाएगी तो जरूर बनना चाहूंगी. मैं अभी दोस्त बन कर उसे यह नहीं पता चलने देना चाहती कि उस की मां किन हालात से गुजरी है और आज यहां कैसे खड़ी है. मेरी बेटी मेरी पूंजी है. वह मेरी ताकत भी है और कमजोरी भी.

घर के साथ काम को कैसे मैनेज करती हैं?

अगर हम इस बात को बहुत बड़ा समझें कि मैं घर भी संभाल रही हूं बाहर काम भी कर रही हूं, मैं सुपर वूमन हूं तो बेशक आप को यह काम बहुत बड़ा लगेगा, लेकिन असल में दोनों काम एकसाथ करना मुश्किल नहीं है. बस टाइम मैनेजमैंट आना चाहिए.

बतौर सिंगल मदर बेटी की परवरिश कितनी चैलेंजिंग लगती है?

मैं अपनी बेटी को अच्छी परवरिश दे रही हूं, अच्छे स्कूल में पढ़ा रही हूं. वह सब कर रही हूं, जो पेरैंट्स अपने बच्चे के लिए करते हैं. मैं बतौर सिंगल मदर कभी कमजोर नहीं पड़ती सिवा उस समय जब मेरी बेटी मासूम से सवाल करती है जैसे मेरे फ्रैंड के पापा उन के साथ रहते हैं, तो मेरे क्यों नहीं? उस के ऐसे सवाल मेरे लिए चैलेंजिंग होते हैं. वह इसलिए क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलती और उसे सच अभी नहीं बताना चाहती.  

अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ में ज्यादा अहमियत किसे देती हैं?

प्रोफैशनल लाइफ को, क्योंकि मेरा काम मेरा जनून है, मेरी खुशी है. मैं ने जिंदगी के हर मोड़ पर परेशानियां झेली हैं, लेकिन मैं ने काम करना कभी नहीं छोड़ा.

एक पुरुष के लिए दूसरी शादी करना आसान है, लेकिन महिला के लिए क्यों नहीं?

एक औरत पुरुष को दिलोजान से अपनाती है. वह यह कैलकुलेट नहीं करती कि इस की बीवी है या इस का बच्चा है, लेकिन एक पुरुष तलाकशुदा महिला को अपनाते वक्त यह सब कुछ सोचता है. वह ऐसी औरत चाहता है जिस के साथ किसी दूसरे पुरुष का नाम न जुड़ा हो, फिर भले उस की वह तीसरी शादी हो या उस का नाम 10 औरतों के संग जुड़ा हो. इस की वजह यह है कि औरत मन से प्यार करती है और पुरुष दिलोदिमाग से. 

अगर आपके घर में हैं प्लास्टिक की खाली बोतलें, तो आप बन सकते हैं करोडपति

यदि आपके घर में भी प्लास्टिक की खाली बोतलें हैं तो हम आपके लिए एक खुशखबरी लायें हैं बस आप इन्हें फेंकिए मत, क्योंकि आप इन्हें बेचकर करोड़पति बन सकते हैं.

आज के समय में लगभग सभी घरों में प्लास्टिक की बोतलों में दैनिक उपयोग की वस्तुए आती है. सामान्यतः देखा जाता है कि लोग घर से इन प्लास्टिक की बोतलों को बाहर फेंक देते हैं. माना जाता है कि ये बोतलें किसी काम की नहीं रहती.   लेकिन हम आपको एक बार फिर से बता दें कि ये बोतलें आपके बेहद काम की हो सकती हैं. बस आपको थोडा सा सकारात्मक सोचना है और धैर्य से काम लेना हैं.  क्यूंकि अब प्लास्टिक की खाली बोतलें सिर्फ कचरा नहीं रह गई हैं. ये खाली बोतलें अब आपके लिए बेहद काम की हो गई हैं.

आपको निश्चित ही ये जानकर हैरानी होगी कि इसकी कीमत अब रूपए में नहीं बल्कि डॉलर में होगी. बताया जा रहा है कि इसका इस्तेमाल अब पहनने के कपड़े बनाने के लिए किया जाएगा. इसके अलावा जूते और आपके जरूरत का सामान भी तैयार होने जा रहा है.

कपड़े और जूते बनाने वाली कंपनी एडीडास बड़ा काम करने जा रही है. एडीडास ने परले नाम की कंपनी के साथ समझौता किया है. परले एक ऐसा संगठन हो जो महासागरों को दूषित होने से बचाने के लिए काम करता है. अब आपको बताते हैं कि एडीडास आपके घर में खाली पड़ी प्लास्टिक की बोतलों के साथ क्या करने जा रहा है और किस तरह से आप ये बोतलें बेच सकते हैं.

एडीडास ने अपने पापुलर जूतों के तीन नए और शानदार मॉडल लॉन्च करने  की योजना बने है. अल्ट्रा बूस्ट, अल्ट्रा बूस्ट अनकेगड और अल्ट्रा बूस्ट एक्स तैयार किए जा रहे हैं. इन जूतों का करीब 95 फीसदी हिस्सा समुद्री प्लास्टिक के मलबे से तैयार होगा. एडीडास का कहना है कि हर जूता तैयार करने के लिए करीब 11 प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल होगा. बताया जा रहा है कि इस साल के आखिर में ऐसे 10 लाख प्रोडक्ट तैयार करेगा.

एडीडास ने यह भी कहा कि वो ऐसे प्लास्टिक से स्पोर्ट्स वेयर भी तैयार करेगा. आप भी एडीडास की वेबसाइट पर जाकर अपने घर में पड़ी प्लास्टिक की बोतलें सेल कर सकते हैं. उसने टीम जर्सी के मेजर लीग सॉकर के लिए भी स्पोर्ट्स वेयर बनाने का ऐलान किया है. कुल मिलाकर कहें तो आप भी अपने घर में खाली पड़ी प्लास्टिक की बोतलों को बेचकर करोड़पति बन सकते हैं. ये पर्यावरण को बचाने के लिए भी अच्छी पहल है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें