..तो यह देख थियेटर में ही रोने लगे रणवीर सिंह

हाल ही में एक्टर रणवीर सिंह के साथ कुछ ऐसा हुआ कि वो खुद पर काबू नहीं रख पाए और रो पड़े. दरअसल मौका था एक्टर राजकुमार राव की इस हफ्ते रिलीज होने वाली फिल्म ‘ट्रैप्ड’ की स्क्रीनिंग का. प्रोड्यूसर विक्रमादित्य मोटवानी ने अपने फेवरेट स्टार रणवीर के लिए स्पेशल स्क्रीनिंग रखी.

रणवीर ने यह फिल्म देखी और देखते ही वो इमोशनल हो गए. राजकुमार राव की एक्टिंग से रणवीर इतने भावविभोर हो गए कि थियेटर के अंदर ही काफी देर तक बैठे रहे और रोने लगे. फिल्म के प्रोडक्शन हाउस फैंटम ने फेसबुक पर रणवीर का वीडियो शेयर किया है जिसमें रणवीर राजुकमार राव की तारीफ कर रहे हैं और रो रहे हैं.

कार लोन लेते वक्त इन बातों का रखें ध्यान

अपना घर और अपनी गाड़ी हर किसी का सपना होता है. जब कोई इंसान पैसे कमाने लगता है तब उसे अपने घर के ख्वाब आने लगते हैं. अगर आप भी नई कार खरीदने के बारे में सोच रहे हैं तो आपके पास भी कई ऑप्शन होंगे. अगर आपकी आए उतनी नहीं है, और आप कार लोन के लिए एप्लाई करने के बारे में सोच रहे हैं, तो आपके लिए कुछ बातों का जानना बहुत जरूरी है.

कार लोन के लिए एप्लाई करने से पहले-

लोन अमाउंट

कार खरीदने वाले अधिकतर लोगों यह कंफ्यूजन रहता है कि उन्हें कितनी रकम लोन के तौर पर बैंक से लेनी चाहिए. बैंक कार लोन देने से पहले आवेदनकर्ता के आय का विश्लेषण करते हैं. अगर आपकी कार लोन की ईएमआई आपके मासिक आय का 20 फीसदी के आसपास है तो ऐसे में बैंक आपको लोन दे देते हैं. अगर किसी की मासिक सैलेरी 50,000 रुपए है तो कार लोन की ईएमआई 10,000 रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए.

सिर्फ इंट्रेस्ट ही काफी नहीं

अगर आप सिर्फ बैंक के ब्याज दरों को देखकर कार लोन लेते हैं तो यह गलत है. मान लें कि आप चार लाख रुपए का कार लोन लेना चाहते हैं. कोई बैंक कार की कीमत का 80 फीसदी लोन पांच साल के लिए 10.5 फीसदी की ब्याज दर पर देता है. वहीं,  दूसरा बैंक 10.25 फीसदी की ब्याज दर पर लोन देता है. इन दोनों ब्याज दरों में सिर्फ 48 रुपए का ही फर्क है. थोड़े से कम ब्याज के चक्कर में एकदम से लोन लेने का फैसला न करें. ब्याज दरों के अलावा दूसरी बातों का भी ध्यान रखें और फिर लोन लेने का फैसला लें.

प्रोसेसिंग चार्ज

बैंक के नियमों के अनुसार कार लोन प्रोसेसिंग फीस तय रहती है. आमतौर पर 2.5 लाख तक के लोन पर बैंक 2500 रुपए तक प्रोसेसिंग चार्ज लेते हैं और इसके साथ ही डाक्‍यूमेंटेशन के 350 रुपए देने पड़ते हैं. वहीं, 4 से 5 लाख के लोन पर बैंक 4000 रुपए प्रोसेसिंग फीस और डाक्‍यूमेंटेशन के लिए 350 रुपए ही लेते हैं. लोन लेने से पहले बैंकों के ब्याज दर और प्रोसेसिंग फीस को भी कंपेयर करना जरूरी है.

प्रीपेमेंट चार्ज का रखें ध्यान

सस्ती ब्याज दरें देखकर लोन के लिए एप्लाई न करें. कार लोन चुकाने के लिए आपको 5-7 साल का वक्त मिलता है. अगर आपकी सैलेरी बढ़ती है और आप लोन को जल्द से जल्द चुकाना चाहते हैं, तो कई बैंकों की पॉलिसी के अनुसार आपसे प्रीपेमेंट चार्ज भी वसूला जाता है. कुछ बैंक प्रीपेमेंट पैनल्‍टी चार्ज नहीं लेते. अगर आपको लगता है कि आपकी आय बढ़ने वाली है तो प्रीपेमेंट वाले बैंकों से कर्ज न लें. बैंक की शर्तों को ध्यान से पढ़े.

अपना क्रेडिट स्कोर पता करें

कार लोन के लिए एप्लाई करने से पहले अपने क्रेडिट स्कोर के बारे में पता करना जरूरी है. बैंक आपको क्रेडिट स्कोर के हिसाब से ही लोन देगा. लो क्रेडिट स्कोर पर आपका लोन ऐप्लीकेशन रिजेक्ट हो सकता है और हाई क्रेडिट स्कोर पर आपको तुरंत लोन मिल सकता है.

आय के हिसाब से हो व्यय

जितनी आपकी आय है उसी हिसाब से व्यय भी करें. पहले यह तय करें कि क्या आप ईएमआई पेमेंट करने के काबिल हैं या नहीं. अगर आप एक बार भी ईएमआई चुकाने में चुकते हैं तो इसका प्रभाव आपके सिबिल स्कोर पर ही पड़ता है. आपकी अभी की मासिक आय के हिसाब से ही लोन रिपेमेंट की अवधि चुनें. भविष्य में सैलेरी बढ़ने की आशा में कोई भी कदम न उठायें.

यूपी बिहार लूटने के बाद शिल्पा कर रही हैं नागिन डांस

बॉलीवुड की दिलकश अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरों और वीडियो के जरिए खबरों में बनी रहती हैं. फैंस उनकी हर अपडेट को फॉलो करना चाहते हैं. शिल्पा भी सोशल मीडिया के जरिए अपनी गतिविधियों से फैंस को अवगत कराती रहती हैं.

राज कुंद्रा भी अपनी पत्नि शिल्पा की तस्वीरें और वीडियो खूब शेयर करते हैं. होली के दिन राज कुंद्रा ने शिल्पा का एक वीडियो शेयर किया है जो अब वायरल हो रहा है.

शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा ने अपने दोस्तों और परिवार के साथ खंडाला में होली मनाई. शिल्पा को होली के दौरान काफी मस्ती करते हुए में देखा गया. उनके पति राज कुंद्रा ने अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में शिल्पा ने दो घूंट भांग पी ली जिसके बाद उन्होंने जमकर नागिन डांस किया. भांग के नशे में शिल्पा एकदम मस्ती में डांस कर रही हैं.

शिल्पा का यह फनी वीडियो को शेयर करते हुए राज कुंद्रा ने लिखा, ‘दो घूंट भांग पीने का असर.’ वहीं शिल्पा ने भी अपने इंस्टाग्राम पर होली की कुछ तस्वीरें शेयर की हैं. शिल्पा ने अपनी और राज कुंद्रा की एक तस्वीर शेयर करते हुए एक रोमांटिक कैप्शन लिखा कि ‘तुमने मेरी जिंदगी में रंग भरे हैं.’

यहां देखें शिल्पा का नागिन डांस वीडियो…

 

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क्या है ये ‘तम्मा तम्मा लोगे’

क्या आपने कभी ‘तम्मा तम्मा लोगे’ गाने के इन शब्दों का अर्थ ढूँढ़ने की कोशिश की है. हाल ही में अभिनेत्री आलिया भट्ट और वरुन धवन अभिनीत फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ रिलीज हुई है. इस फिल्म के एक गाने ने सभी के दिलों पर धूम मचा रखी है. आप में से भी बहुत से लोगों ने यकीनन इस गाने के शब्दों ‘तम्मा-तम्मा’ का अर्थ जानना चाहा होगा. आपकी इस मुश्किल को हम थोड़ा आसान कर सकते हैं. हम आपको बता देना चाहते हैं कि इस शब्द ‘तम्मा तम्मा लोगे’ का वास्तव में कुछ भी मतलब नहीं है. कम से कम हिंदी या किसी भी अन्य भारतीय भाषा में शब्द तम्मा वास्तव में अर्थहीन है.

आपको हम कहानी की थोड़ी गहराई में ले चलते हैं. ये बात तो आप जानते हैं कि तम्मा-तम्मा लोगे, साल 1990 दिसम्बर में आई फिल्म ‘थानेदार’ का भी एक गीत है. उस समय भी ये गाना बहुत लोकप्रिय हुआ था बावजूद इसके कि हिन्दी में ‘तम्मा’ वाकई कोई शब्द है ही नहीं.

अब आपको बताते हैं कि मूल गीत ‘तम्मा तम्मा’ दरअसल एक विदेशी गीतकार और गायक ‘मोरे केंटे’ का गीत ‘तमा’ है. कहने का मतलब ये हुआ कि ‘तम्मा-तम्मा’ ये गाना साल 1988 में ही आ चुका था. आप शायद जानते होंगे कि बॉलीवुड का एक और गीत ‘जुम्मा चुम्मा’ भी बिल्कुल ऐसा ही लगता है. तो कहानी यही है कि दोनों ही गीत ‘मोरे केंटे’ के लोकप्रिय गीत ‘तमा’ द्वारा ‘प्रेरित’ हैं. उस समय अर्थात 80 और 90 के दशक में अफ्रीका के लोगों द्वारा ये गाना बहुत पसंद किया गया था.

इसके अलावा हम आपको बताना चाहते हैं कि फरवरी 1990 में आई सुपरस्टार अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘अग्नीपथ’ के एक द्रश्य में बैकग्राउण्ड म्यूजिक की तरह पेश किया गया गाना ‘येके-येके’ भी, इससे 3 साल पहले 1987 में अफ्रीका के गीतकार मोरे द्वारा ही गाया गया था.

अफ्रीका के देश ‘गिनी’ के मशहूर गीतकार ‘मोरे केंटे’ के गीत ‘tama tama gnogonte, tama tama gnogonte tama’ के इस पंक्ति को हिंदी भाषा में सरल कर, गाने के तम्मा-तम्मा हिस्से को छोड़ ‘लोगे’ बना दिया गया जो समझने में कम से कम ‘तम्मा-तम्मा’ से आसान है. ‘तम्मा-तम्मा’ अर्थ तो कुछ भी नहीं है, इसलिए शब्दों की चिन्ता किए बिना, अर्थ केवल इन शब्दों में नृत्य करने या नाचने में ही है.

वोडका से निखारें अपना रूप

वोडका हमारे सौन्दर्य के लिए अच्छा होता है. इससे बाल और त्वचा की खूबसूरती बढ़ती है. हम आपको कुछ टिप्स बता रहे हैं जिससे आप अपना सौन्दर्य और रूप निखार सकती है.

झुर्रियां

इससे ढीली त्वचा में कसाव आता है वोडका में स्टार्च होता है जो लटकती हुई त्वचा को टाइट बनाने में मदद करता है. इसके नियमित प्रयोग से बारीक धारियां गायब हो जाती हैं.

स्किन टोन

कॉटन बॉल में इसे भिगोकर चेहरे परे मलने से ओपन पोर्स बंद हो जाते हैं. इससे स्किन टाइट हो जाती है और चेहरा स्मूथ दिखने लगता है.

एक्ने

अपने एंटीबैक्टीरियल गुणों के कारण मुंहासों पर वोडका लगाने से मुंहासे जल्दी सूख जाते हैं. बालों और त्वचा पर लगाने से इससे बालों और त्वचा की गंदगी साफ हो जाती है.

ग्लो

इससे चेहरे पर गजब का ग्लो आता है और निस्तेज त्वचा भी खिल उठती है.

बाल

शैंपू में अगर थोड़ा सा वोडका मिलाकर लगाया जाए तो इससे बाल मुलायम और सुंदर हो जाते हैं. बालों का रूखापन ठीक हो जाता है. वोडका में एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो फंगस और बैक्टीरिया का खात्मा करता है. यही बैक्टीरिया सिर में रूसी का कारण बनते हैं. इससे बालों में रूसी की समस्या से भी निजात मिलेगी.

खुले में शौच का शिकार कौन

डकैत समस्या के चलते कभी दुनियाभर में कुख्यात रहे ग्वालियर व चंबल संभागों के इलाकों की हालत यह हो गई है कि यहां के लोग अब लाइसैंसी हथियारों का इस्तेमाल डकैती डालने या खुद के बचाव के लिए नहीं, बल्कि इत्मीनान से खुले में शौच करने के लिए करने लगे हैं. इन इलाकों के कई गांवों के लोग सुबह जंगल में जाते वक्त एक हाथ में लोटा या पानी की बोतल और दूसरे हाथ में हथियार ले कर शौच के लिए जाते हैं.

इन्हें खतरा दुश्मनों या फिर जंगली जानवरों से नहीं, बल्कि उन सरकारी मुलाजिमों से है जिन्होंने खुले में शौच रोकने का बीड़ा उठाया हुआ है, जिस से कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2 साल पहले शुरू की गई स्वच्छ भारत मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया जा सके.

ग्वालियर जिला पंचायत के सीईओ नीरज कुमार को अपर जिला दंडाधिकारी शिवराज शर्मा से झक मार कर यह सिफारिश करनी पड़ी थी कि आधा दर्जन गांवों के तकरीबन 55 बंदूकधारियों के लाइसैंस रद्द किए जाएं क्योंकि ये बंदूक के दम पर खुले में शौच जाते हैं और अगर सरकारी मुलाजिम इन्हें रोकते हैं तो ये गोली चला देने की धौंस देते हैं. मजबूरन सरकारी अमले को उलटे पांव वापस लौटना पड़ता है. ये लोग बदस्तूर खुले में शौच करते रहते हैं.

10 जनवरी को ऐसी ही शिकायत एक ग्राम रोजगार सहायक घनश्याम सिंह दांगी ने उकीता गांव के निवासी अजय पाठक के खिलाफ दर्ज कराई थी. इस बारे में जनपद पंचायत मुरार के सीईओ राजीव मिश्रा की मानें तो गांव में स्वच्छ भारत मुहिम के तहत सुबहसुबह निगरानी करने के लिए टीम गठित की गई थी. उकीता गांव में अजय खुले में शौच कर रहा था. जब उसे खुले में शौच न करने की समझाइश दी गई तो उस ने जान से मारने की धमकी दे दी.

कार्यवाही या ज्यादती

खुले में शौच से लोगों को रोकने के लिए सरकारी मुलाजिम किस कदर मनमानी करने पर उतारू हो गए हैं, यह अब आएदिन उजागर होने लगा है. मध्य प्रदेश के ही उज्जैन से एक वीडियो बीते दिनों वायरल हुआ था जिस में सरकारी मुलाजिम खुले में शौच करते एक बेबस, बूढ़े आदमी से उठकबैठक लगवा रहे हैं और उसे अपना मैला हाथ से उठा कर फेंकने को मजबूर भी कर रहे हैं.

वायरल हुए इस वीडियो पर खूब बवाल मचा था पर इस बिगड़ैल सरकारी मुलाजिम का कुछ नहीं बिगड़ा था. इस से यह जरूर साबित हुआ था कि स्वच्छ भारत अभियान अब एक ऐसे खतरनाक मोड़ पर जा पहुंचा है जिस के शिकार वे गरीब दलित ज्यादा हो रहे हैं, जिन के यहां शौचालय इसलिए नहीं हैं कि उन का अपना कोई घर ही नहीं है.

जिन गरीबों के पास अपने घर हैं भी, तो उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि वे जैसे भी हो, पहले घर में शौचालय बनवाएं जिस के पीछे छिपी मंशा यह है कि जिस से गांवदेहातों के रसूखदार लोगों को बदबू व बीमारियों का सामना न करना पड़े.

ग्वालियर और उज्जैन के मामलों में फर्क इतनाभर है कि ग्वालियर के लोग हथियारों के दम पर ही सही, सरकारी मुलाजिमों से जूझ पा रहे हैं लेकिन उज्जैन और देश के दूसरे देहाती व शहरी इलाकों के लोग न तो दबंग हैं और न ही उन के पास शौच करने जाने के लिए हथियार हैं. इसलिए वे खामोशी से ऊंचे वर्गों व सरकारी मुलाजिमों की गुंडागर्दी बरदाश्त करने को मजबूर हैं. उज्जैन का वायरल वीडियो इस की एक उजागर मिसाल थी, जिस में एक गरीब, कमजोर, बूढ़े के साथ जानवरों से भी ज्यादा बदतर बरताव किया गया.

जाहिर है जान पर नहीं बन आती तो ग्वालियर व चंबल संभागों के इलाकों में भी उज्जैन सरीखा शर्मनाक वाकेआ दोहराया जाता. हथियारों से निबटते बीते साल अगस्त में ग्वालियर प्रशासन ने यह फरमान जारी किया था कि जो लोग खुले में शौच करते पाए जाएंगे उन के हथियारों के लाइसैंस रद्द कर दिए जाएंगे. इस पर भी बात न बनी तो प्रशासन ने जुर्माने का रास्ता अख्तियार कर लिया.

इस साल जनवरी के दूसरे हफ्ते में ग्वालियर की घाटीगांव जिला पंचायत के 2 गांवों सुलेहला और आंतरी के 21 लोगों पर प्रशासन ने 7 लाख 95 हजार रुपए की भारीभरकम राशि का जुर्माना ठोका था, तो भी खूब बवाल मचा था कि यह तो सरासर ज्यादती है. इतनी भारी रकम गरीब लोग कहां से लाएंगे जो पिछड़े और दलित हैं. यह तो इन पर जुल्म ही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने सरकारी अफसरों व मुलाजिमों के हाथ में एक कानूनी डंडा थमा दिया है जिस के आगे दूसरे हथियार ज्यादा दिनों तक टिक पाएंगे, ऐसा लगता नहीं क्योंकि खुले में शौच पर जुर्माने की रकम अब मजिस्ट्रेटों के जरिए वसूली जाएगी. अगर जुर्माने की राशि नकद नहीं भरी गई तो शौच करने वालों की जमीनजायदाद कुर्क करने का हक भी सरकार को है. जिस के पास जमीनजायदाद नहीं होगी, उसे जेल में ठूंस दिया जाएगा.

बात अकेले ग्वालियर, चंबल या उज्जैन संभागों की नहीं है, बल्कि देशभर में सरकारी मुलाजिम शौच की आड़ में गरीब, दलित और पिछड़ों पर तरहतरह के जुल्म ढा रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि जिन राज्यों में भाजपा का राज है वहां ऐसा ज्यादा हो रहा है. कुछ पीडि़तों को 1975 वाली इमरजैंसी याद आ रही है जब गरीब नौजवानों को पकड़पकड़ कर उन की नसबंदी कर दी गई थी. इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी में फर्क नहीं रह गया जिन के मुंह से निकली ख्वाहिश ही कानून बन जाती है.

होना तो यह चाहिए था कि प्रशासन हर जगह लोगों में पल्स पोलियो मुहिम की तरह जागरूकता पैदा कर खुले में शौच के नुकसान गिनाते लोगों को उन की सेहत के बाबत आगाह करता, उन्हें शौचालय में शौच करने के फायदे गिनाता. पर, हो उलटा रहा है. सरकारी तंत्र 1975 की तरह बेलगाम हो कर कार्यवाही कर रहा है जिस की बड़ी गाज गांवदेहातों के गरीबों, दलितों और पिछड़ों पर गिर रही है.

खुलेतौर पर खुले में शौच और जाति का कोई सीधा ताल्लुक नहीं है पर यह हर कोई जानता है कि अधिकांश दलित गरीब हैं, उन के पास रहने को पक्के तो दूर, कच्चे घर भी नहीं हैं. इसलिए वे खुले में शौच करने को मजबूर होते हैं. ऐसे में इसे जुर्म मानना, उन के साथ नाइंसाफी नहीं तो क्या है?

शौचालय बनवाने के नाम पर हर जगह हेरफेर और घोटाले सामने आने लगे हैं तो लगता है कि भ्रष्टाचार और मनमानी का लाइसैंस सरकारी मुलाजिमों के साथ उन दबंगों को भी मिल गया है जिन का समाज पर खासा दबदबा है. ये दोनों मिल कर शौच के नाम पर कार्यवाही नहीं, बल्कि गुंडागर्दी कर रहे हैं. दिक्कत यह है कि कोई इन के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहा. लोगों का पहला अहम काम जुर्माने और सजा से खुद को बचाना है. हालात नोटबंदी जैसे शौच के मामले में भी हो चले हैं कि अगर नए नोट चाहिए तो बदलने के लिए बैंक की लाइनों में खामोशी से खड़े रहो वरना मेहनत से कमाए नोट रद्दी हो जाएंगे. जो भी किया जा रहा है वह तुम्हारे उस भले के लिए है जिसे तुम नहीं जानतेसमझते. यज्ञ, हवन, उपवास, दान, दक्षिणा क्यों कराए जाते हैं? ताकि तुम्हारा यह जन्म व अगला जन्म सुधरे. कैसे सुधारोगे, यह हम कुछ विशेष लोग जानते हैं, आम दलित, गरीब को जानने की जरूरत नहीं. वह पिछले जन्मों के पाप का दंड भोगता रहे.

नोटबंदी और खुले में शौच का दिलचस्प कनैक्शन यह है कि अब बैंकों की तरह सार्वजनिक और सुलभ शौचालयों में भीड़ उमड़ने लगी है. कार्यवाही के डर से खुले में शौच करने वाले एक बार पेट हलका करने के लिए 5 रुपए खर्च कर रहे हैं जिस से उन का रोजाना का एक खर्च बढ़ गया है. अगर एक परिवार में 4 सदस्य हैं तो वह  20 रुपए की मार भुगत रहा है जबकि उस की कमाई ज्यों की त्यों है. बल्कि, अब तो नोटबंदी के बाद कमाई और कम हो गई है.

भोपाल के कारोबारी इलाके एमपी नगर में आधा दर्जन सुलभ कौंपलैक्स हैं. इस इलाके में झुग्गीझोंपडि़यों की भी भरमार है. कुछ दिनों पहले तक झुग्गी के लोग 2-4 किलोमीटर दूर जा कर रेल पटरियों के किनारे या सुनसान में मुफ्त में पेट हलका कर आते थे पर अब सरकारी टीमें कभी सीटियां, तो कभी कनस्तर बजा कर उन्हें ढूंढ़ने लगी हैं. ये लोग अब सुलभ और सार्वजनिक शौचालयों की लाइनों में खड़े नजर आने लगे हैं. अगर सहूलियत से और समय पर शौच करना है तो सुलभ कौंपलैक्स में 5 रुपए इन्हें देने पड़ते हैं. मुफ्त वाले शौचालयों में हफ्तों सफाई नहीं होती, गंदगी और बदबू की वजह से इन के आसपास मवेशी भी नहीं फटकते. पर, वे गरीब जरूर कभीकभार हिम्मत कर इन में चले जाते हैं जिन की जेब में 5 रुपए भी नहीं होते.

एमपी नगर इलाके में ही सरगम टाकीज के पास एक झुग्गीझोंपड़ी बस्ती के बाशिंदे गजानंद, जो महाराष्ट्र से मजदूरी करने यहां आए, का कहना है कि उस के परिवार में 6 लोग हैं जो शौच के लिए अब हबीबगंज रेलवे स्टेशन के सुलभ कौंप्लैक्स में जाते हैं जिस से 30 रुपए रोज अलग से खर्च होते हैं. अगर शाम को भी जाना पड़े तो यह खर्च दोगुना हो जाता है. गजानंद बताता है, हम जैसे गरीबों पर यह दोहरी मार है. सरकार हल्ला तो बहुत मचा रही है पर मुफ्त वाले शौचालय बहुत कम हैं.

यहां है गड़बड़झाला

खुले में शौच करने वाले आज स्थानीय निकायों की आमदनी का एक बड़ा जरिया बन गए हैं. पंचायतों से ले कर नगरनिगमों तक ने फरमान जारी कर दिए हैं कि जो भी खुले में शौच करता पाया जाएगा, उस से जुर्माना वसूला जाएगा. यह जुर्माना राशि 50 रुपए से ले कर 5 हजार रुपए तक है. मध्य प्रदेश के तमाम नगरनिगम, नगरपालिकाएं, नगरपंचायतें और ग्रामपंचायतें रोज खुले में शौच करने वालों से जुर्माना वसूलते अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं.

स्थानीय निकायों को ऐसे नियम, कायदे व कानून बनाने के हक होने चाहिए कि नहीं, यह अलग और बड़ी बहस का मुद्दा है पर प्रधानमंत्री को खुश करने की होड़ में यह कोई नहीं सोच रहा कि जिस की जेब में जुर्माना देने लायक राशि होती, वह भला खुले में शौच करने जाता ही क्यों. यह मान भी लिया जाए कि कोई 8-10 फीसदी लोगों की खुले में शौच करने की ही आदत पड़ गई है जबकि उन के घर पर शौचालय हैं तो इस की सजा बाकी 90 फीसदी लोगों को क्यों दी जा रही है?

परेशानियां तरहतरह की

जो लोग जुर्माना नहीं भर पा रहे हैं, उन के खिलाफ तरहतरह की दिलचस्प लेकिन चिंताजनक कार्यवाहियां की जा रही हैं. इन्हें देख लगता है कि देश में लोकतंत्र और उसे ले कर जागरूकता नाम की चीज कहीं है ही नहीं. इन वाकेओं को देख ऐसा लगता है कि खुले में शौच करने वालों को जागरूक नहीं, बल्कि जलील किया जा रहा है.

कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश के ही सागर जिले में बसस्टैंड पर सुबहसुबह एक ड्राइवर और बसकंडक्टर को नगरनिगम के मुलाजिमों अशोक पांडेय व वसीम खान ने मुरगा बनाया. बसकंडक्टर और ड्राइवर का गुनाह इतना भर था कि वे खुले में शौच करते पकड़े गए थे.

इतना ही नहीं, सागर के ही लेहदरा नाके के इलाके में तो बेलगाम हो चले मुलाजिमों ने खुले में शौच करने वालों को पकड़ कर उन्हें राक्षस का मुखौटा पहना कर उन के साथ मोबाइल फोन से सैल्फी ली. महाराष्ट्र के बुलढाना जिले में प्रशासन ने फरमान जारी किया था कि जो भी खुले में शौच करने वालों के साथ सैल्फी खींच कर लाएगा, उसे इनाम में नकद 5 सौ रुपए दिए जाएंगे. इस का नतीजा यह हुआ कि लोग सुबहसुबह अपना मोबाइल फोन हाथ में ले कर झाडि़यों में झांकते फिरे ताकि कोई शौच करता मिल जाए तो उस के साथ सैल्फी ले कर 5 सौ रुपए कमाए जा सकें.

मनमानी और ज्यादती का आलम यह है कि रतलाम के मैदानों में नगरपरिषद हैलोजन लैंप और बल्ब लगा कर रोशनी के इंतजाम कर रही है जिस से खुले में शौच करने वालों पर नकेल डाली जा सके. हैलोजन बल्ब को लगाने का पैसा है पर गांवों, गंदी बस्तियों में सीवर लगाने का पैसा नहीं है ताकि घरों में ढंग के शौचालय बन सकें.

इस से भी एक कदम आगे चलते सागर नगरनिगम के कमिश्नर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को हुक्म दिया हुआ है कि खुले में शौच को रोकने के लिए वे कलशयात्राएं निकालें, शाम को भजन गाएं और जगहजगह तुलसी के पौधे लगाएं. तुलसी को हिंदू पवित्र पौधा मानते हैं, इसलिए उस के आसपास शौच करने में हिचकिचाएंगे, ऐसा इन साहब का सोचना था.

जाति और धर्म से गहरा नाता

कोई अगर यह सोचे कि भला खुले में शौच से जाति और धर्म से क्या वास्ता, तो यह खयाल नादानी और गलतफहमी ही है. हकीकत यह है कि खुले में शौच का उम्मीद से ज्यादा और गहरा ताल्लुक जाति व धर्म से है जो अधिकांश लोगों की समझ में नहीं आ रहा. 2014 के लोकसभा चुनावप्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने साफ कहा था कि देवालयों यानी मंदिरों से ज्यादा जरूरी शौचालय हैं.

तब गरीब लोग यह समझ कर खुश हुए थे कि मोदी सरकार जगहजगह पक्के शौचालय बनवाएगी और उन्हें जिल्लत व जलालत से छुटकारा मिल जाएगा.

केंद्र सरकार ने जैसे ही यह फरमान जारी किया कि खुले में शौच करने वालों पर 5 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जाए तो सब से पहले जैन समुदाय के लोग चौकन्ना हुए. क्योंकि जैन मुनि हिंसा के अपने उसूल का पालन करते खुले में ही शौच करते हैं. जगहजगह से मांग उठी कि जैन मुनियों को खुले में शौच की छूट दी जाए.

ये लाइनें लिखे जाने तक केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने खुलेतौर पर इस बात की  घोषणा नहीं की थी पर चर्चा है कि केंद्र सरकार ने जैन मुनियों को खुले में शौच करने की छूट देने का मन बना लिया है. दरअसल, भाजपा जैन वोटरों को नाराज नहीं करना चाहती. अगर सरकार इस तरह की किसी छूट का ऐलान करेगी तो तय है देशभर में बवाल मच जाएगा क्योंकि फिर गरीब, दलित भी अपने लिए इस तरह की छूट की मांग करते आसमान सिर पर उठा लेंगे.

बात अकेले जैन मुनियों की नहीं है, बल्कि लाखों की तादाद में नदियों के किनारे रह रहे हिंदू साधुसंतों की भी है जिन का कोई घर नहीं होता. ये साधु मंदिरों में रहते हैं और धड़ल्ले से खुले में शौच करते हैं.

अभी तक एक भी मामला ऐसा सामने नहीं आया है जिस में निगरानी टीमों या सरकारी मुलाजिमों ने किसी साधु, संत या मुनि पर खुले में शौच करने के जुर्म के एवज में जुर्माना लगाया हो या समझाइश दी हो.

असल मार इन पर

आजादी के समय देश की 70 फीसदी आबादी खुले में शौच के लिए जाती थी. इस में से अधिकतर लोग दलित, पिछड़े और आदिवासी होते थे. हालात अब और बदतर हैं. अब खुले में शौच जाने वाले 90 फीसदी लोग इन्हीं जातियों के हैं. इन्हें आज कानून के नाम पर तंग किया व हटाया जा रहा है.

दलित, आदिवासी तबके के लोगों को मुद्दत तक शौचालयों से दूर रखा गया क्योंकि खुले में शौच जाना इन की एक अहम पहचान होती थी. ठीक वैसे ही, जैसे गले में लटकता जनेऊ ब्राह्मण की पहचान होती थी, जो आज भी है.

यह कड़वा सच आजादी के बाद आज तक कायम है कि अभी भी 85 फीसदी दलित गरीब ही हैं जो झुग्गीझोंपड़ी बना कर रहते हैं. पढ़ेलिखे होने के बावजूद ये शौचालय की अहमियत नहीं समझते थे. अब आरक्षण के जरिए जो लोग सरकारी नौकरी पा गए हैं, वे घरों में शौचालय बनवा रहे हैं. इस सच का एक दूसरा पहलू यह है कि वे घर बनाने लगे हैं.

अब न केवल सियासी बल्कि सामाजिक तौर पर यह हो रहा है कि पैसे वाले दलितों को सवर्णों के बराबर माना जाने लगा है. वे पूजापाठ कर सकते हैं और दानदक्षिणा भी पंडों को दे सकते हैं. जाहिर है सवर्ण जैसे हो गए इन्हीं दलितों के यहां शौचालय हैं. इन की तादाद तकरीबन 10 फीसदी है. इन्हें देखदेख कर ही ऊंची जाति वाले चिल्लाचिल्ला कर यह जताने की कोशिश करते हैं कि देखो, जातिवाद और छुआछूत खत्म हो गई क्योंकि दलित अब खुलेआम मंदिर में जा रहा है. पूजापाठ भी कर रहा है और तो और, उस के यहां शौचालय भी है जो पहले नहीं हुआ करता था.

दरअसल, हकीकत सामने आ न जाए, इस का नया टोटका खुले में शौच का मुद्दा है. बढ़ते शहरीकरण के चलते अब जंगल और जमीन कम हो चले हैं जिस सेपक्के मकानों में रहने वाले ऊंची जाति वालों को खुले में शौच जाने वालों से परेशानी होने लगी थी. गांवों में भी जमीनें कम हो चली हैं. गरीब, मजदूर और किसान अपनी जमीनें बेच कर शहरों

की तरफ भाग रहे हैं. गांवों में पहले सार्वजनिक जमीन बहुत होती थी जो अब न के बराबर हो गई है. कुछ सरकार या ग्राम सभाओं ने बेच खाई तो कुछ पर कब्जा हो गया. आम गरीब, जिन में दलित ज्यादा हैं, के लिए शौचालय न गांव में था और न ही शहर में है. कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक बिछी रेल की पटरियां इस की गवाह हैं जहां रोज करोड़ों लोग हाथ में पानी की बोतल ले कर उकड़ूं बैठे देखे जा सकते हैं. चूंकि रेल की जमीन सरकारी है, कोई स्थानीय दबंग रेलवे की जमीन पर शौच करते किसी को धमका नहीं सकता.

जिन के पास 5 रुपए शौच के लिए सुलभ कौंप्लैक्स में जाने के नहीं हैं उन की जेब से खुले में शौच के जुर्माने के नाम पर 5 सौ या 5 हजार रुपए निकालना लोकतंत्र तो दूर, इंसानियत की बात भी नहीं कही जा सकती.

धर्म और जाति के नाम पर अत्याचार खत्म हो गए हैं, यह नारा पीटने वालों को एक दफा खुले में शौच के लिए जाने वालों की हालत देख लेनी चाहिए कि वे जस के तस हैं. बस, अत्याचार करने का तरीका बदल गया है. दलित की जगह गरीब शब्द इस्तेमाल किया जाने लगा है जिस से जाति छिपी रहे. भोपाल नगरनिगम के एक मुलाजिम का नाम न छापने की गुजारिश पर कहना है कि यह सच है कि लोग खुले में शौच करते पकड़े जा रहे हैं, इन में 70 फीसदी दलित,

20 फीसदी पिछड़े और 10 फीसदी सवर्ण, मुसलमान व दूसरी जाति के लोग हैं.

दरअसल, सारा खेल वे दबंग लोग खेल रहे हैं जिन के हाथ में समाज और राजनीति की डोर है. उन्होंने अब खुले में शौच को अत्याचार करने का हथियार बना डाला है. मंशा पहले की तरह समाज और राजनीति पर खुद का दबदबा बनाए रखने की है. और अगर कोई भेदभाव नहीं हो रहा, तो यह बताने को कोई तैयार नहीं

कि साधुसंतों और मुनियों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की जाती. साफ है कि सिर्फ इसलिए कि वे धर्म के ठेकेदार हैं. उन्हें कोई रोकेगा तो तथाकथित पाप का भागीदार हो जाएगा.

गरीबी का सच और शौच

लोगों को साफसफाई की अहमियत कानून के डंडे से सिखाया जाना न तो मुमकिन है और न ही तुक की बात है. इस की जिम्मेदार एक हद तक सरकार की नीतियां भी हैं. ग्वालियर व चंबल संभागों के लोगों के पास हथियार हैं पर शौचालय नहीं, इस का राज क्या है? कुछ लोग घर में शौचालय बनाने की माली हैसियत रखते हैं पर नहीं बनवा रहे, तो इस की वजह क्या है?

राज और वजह यह है कि अधिकतर दलित आदिवासी और अति पिछड़े बीपीएल कार्ड वाले हैं. स्वच्छ भारत मुहिम ने इन के गरीब होने के माने और पैमाने बदल दिए हैं. बीपीएल सूची में शामिल लोगों को काफी सरकारी सहूलियतें और रियायती दामों पर राशन वगैरा खरीदने की छूट मिली हुई है.

सरकार गरीब उसे ही मानती है जिस के बीपीएल ग्रेडिंग सिस्टम में 14 या उस से कम नंबर हों. जिस के घर में शौचालय होता है उसे सर्वे में 4 अंक दे दिए जाते हैं. जिन के 10 या 12 अंक हैं, उन में से अधिकतर लोग शौचालय इसलिए नहीं बनवा रहे कि अगर ये 4 अंक भी जुड़ गए तो वे 14 अंक पार कर जाएंगे और गरीब नहीं माने जाएंगे यानी उन से सारी सहूलियतें छिन जाएंगी.

ऐसे में सरकारी इमदाद से ही सही, शौचालय बनवा कर गरीब लोग अगर अपनी गरीबी नहीं छोड़ना चाह रहे हों तो इस में उन की गलती क्या, गलती तो सरकारी योजनाओं की खामियों और पैमाने की है.

अभी, खुले में शौच के लिए जाने वालों को जीरो अंक दिया जाता है. जो लोग सामूहिक शौचालय में जाते हैं उन्हें एक या दो अंक पानी मुहैया होने न होने की बिना पर दिए जाते हैं. अब सरकार जबरदस्ती गरीबों को उन के छोटेतंग घरों में शौचालय, जिस की लागत 4-6 हजार रुपए आती है, बनवाने के साथ उन्हें 4 अंक दे कर उन की गरीबी का तमगा छीनना चाह रही है. ऐसा होने से उन से सस्ता राशन, प्रधानमंत्री आवास योजना वगैरा जैसी दर्जनों सहूलियतें छिन जाएंगी. ऐसे में उन का घबराना स्वाभाविक है.

जीवन का मध्यांतर ठहराव से नहीं बदलाव से होगा

औरत की 40-50 साल की आयु यानी जीवन के सफर का अजीब दौर. एक लंबी थकानभरी जिंदगी के बाद विश्राम या फिर एक नई शुरुआत? वह भी उस मोड़ पर, जब औरत कई शारीरिक व मानसिक बदलावों का सामना कर रही हो.

अकसर महिलाएं जीवन के मध्यांतर को ही आखिरी पड़ाव मान कर निष्क्रिय हो जाती हैं. बच्चों की पढ़ाई, शादी व अन्य जिम्मेदारियों से फारिग होतेहोते 40-50 साल की उम्र की दहलीज पार हो जाती है, इस का यह मतलब नहीं कि जिंदगी के सारे माने खत्म हो गए.

दरअसल, उम्र का यह मध्यांतर एक नई शुरुआत ले कर आता है. यह जीवन के शुरुआती पहरों में अधूरे बचे कामों, ख्वाहिशों व सपनों को पूरा करने का मौका देता है. अगर अब भी उन सपनों को नई उड़ान न दी तो फिर जिंदगी के आखिरी पल अफसोस व उदासी में ही गुजरेंगे. जीवन में रंग, कला, रचनात्मकता व रुचियों के इतने आयाम हैं कि जिन से हमारी जिंदगी के उदास कैनवास में रंगों की बौछार हो सकती है.

अगर शरीर साथ नहीं देता और बदलते हार्मोन रास्ते की रुकावट बनते हैं तो भी न हार मानें. इस का भी समाधान है.

जिस वेग से हार्मोंस एक उम्र में शरीर में प्रवेश करते हैं, उसी वेग से बढ़ती उम्र के साथसाथ कम भी होते जाते हैं और जाते हैं तो लगता है, जैसे शरीर की पूरी ऊर्जा व उत्साह निचोड़ कर जा रहे हैं. पर यह तभी होता है, जब हम उन्हें ऐसा करने देते हैं.

क्या हम किसी के वश में आ कर जीवन से हार मान लेंगे? कतई नहीं. मिडलाइफ क्राइसिस यानी मध्यांतर संकट के इस दुश्मन से निबटें.

मुश्किलें तन की

यह मेनोपौज की अवस्था है. स्त्री के स्त्रीत्व के लिए एक विशेष हार्मोन, ऐस्ट्रोजन, जो अब तक प्रचुर मात्रा में था, कम होने लगता है. मासिकधर्म अनियमित होते हुए बंद होने के कगार पर पहुंच जाता है.

हार्मोन की कमी का असर पूरे शरीर पर दिखना शुरू हो जाता है. कहां इस का क्या असर होता है, एक निगाह इस पर भी डालें. ऐस्ट्रोजन की कमी से हार्ट अटैक की आशंका बढ़ जाती है. ऐसी अवस्था में अमूमन कमरदर्द बना रहता है.

सब से बड़ा खतरा फ्रैक्चर का होता है. जरा सी चोट से हड्डी चटक जाती है और जुड़ने की प्रक्रिया भी लंबी व मुश्किल हो जाती है. त्वचा सिकुड़ कर अपनी चमक खोने लगती है. इसी दौरान झुर्रियां पड़ने लगती हैं. नजर कमजोर होने लगती है क्योंकि मोतियाबिंद अब रफ्तार से आंखों में उतरना शुरू हो जाता है.

धीरेधीरे मस्तिष्क को मिलने वाली औक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है, जिस के कारण भूलने की प्रक्रिया तेज होने लगती है. समझनेबूझने की क्षमता भी कम होने लगती है. पेट का घेरा बढ़ने लगता है. रात में अनिद्रा की स्थिति आम हो जाती है.

मन की उलझन

सब से ज्यादा समस्या तब आती है जब परिवार वाले आप की मनोस्थिति से अनजान रहते हैं. आप का चिड़चिड़ापन, थकावट, मूड के उखड़े रहने की वजह कोई समझ नहीं पाता है. शिथिल, बोझिल काया और उस पर थका मन, आग में घी का काम करता है.

मन और विचलित हो जाता है. किसी के पास आप के लिए समय नहीं है. लंबा जीवन जिन घरवालों के लिए आप ने होम कर दिया, क्या उन्हें आप की परवा नहीं है? समस्या बढ़ती जाती है, गुत्थी है कि सुलझने का नाम नहीं लेती. पर हिम्मत हमें खुद ही जुटानी होगी और अपने शरीर व मन को बांधना होगा. यह अवस्था सब स्त्रियों के जीवन में आती है.

यह ध्यान रखें कि परिवार में सब को आप की जरूरत है. परवा है. बस, यह बताने के लिए शायद उन के पास वक्त की कमी हो. इस स्थिति को स्वीकार करें. बच्चों को उन की जिंदगी जीने दें. अपने फैमिली डाक्टर से कहें कि वे आप के जीवन में आ रहे बदलावों और उन के असर के बारे में घरवालों को बताएं, ताकि वे आप की मनोस्थिति को समझ सकें  और बेहतर ढंग से पेश आएं.

खानपान पर ध्यान

सब से पहले खानपान पर ध्यान दें. आप जानती हैं कि आप को अब चरबी परेशान करने वाली है, तो अपने आहार में वसा की मात्रा बिलकुल हटा दें. मीठे पर नियंत्रण रखें. प्रोटीन का सेवन अधिक मात्रा में करें. फलों में अनार के दाने रोज लें. मीठे फल जैसे केला, सेब लें, तो अच्छा है. पपीता सेहत के लिए फायदेमंद होता है, उसे नियमित लें. 2 गिलास गुनगुना पानी सुबहशाम लेने से चरबी घटती है और पेट साफ रहता है.

नियमित व्यायाम : तंदुरुस्त रहने के लिए यह बहुत अहम भूमिका अदा करता है. रोज सुबह नियमित रूप से व्यायाम करें. इस उम्र में सुबह सैर से बढि़या कोईर् व्यायाम नहीं है. सैर से पूरे दिन के लिए शरीर मे ऊर्जा भरती है, नई ताजगी मिलती है और दिन की शुरुआत यदि अच्छी हो तो दिन पूरा अच्छा बीतता है. हमउम्र साथियों से कुछ पल हंसबोल कर मन हलका हो जाता है.

सलाह डाक्टर की : इस पड़ाव पर नियमित मैडिकल चैकअप जरूरी है. रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग आदि पर नजर रखें. जिस पल आप को डाक्टरी सलाह, दवाई वगैरा की जरूरत पड़े, तो देर न करें.

डाक्टर कहें तो हार्मोनल थेरैपी लेने में भी कोई हर्ज नहीं है. कैल्शियम आप की हड्डियों के लिए बहुत जरूरी है. 40 की उम्र से ही हड्डियों के प्रति सजग हो जाएं और दूध, दही का भरपूर सेवन करें.

समय का सही इस्तेमाल

इतने सालों की व्यस्तता के बाद अब आप के पास खाली समय है. अब आप वह सब कर सकती हैं, जो करना चाहती थीं. निरर्थक, दिशाहीन जीवन को सार्थक दिशा देने के कई तरीके हो सकते हैं. आप किताबें पढ़ सकती हैं, आसपास के जरूरतमंद बच्चों को पढ़ा सकती हैं, दृष्टिहीन बच्चों के स्कूल में जा कर

उन्हें कहानियां पढ़ कर सुना सकती हैं, अनाथाश्रम जा कर बच्चों की देखभाल

में मदद कर सकती हैं, कालोनी की साफसफाई, बगीचों का रखरखाव, वृक्षारोपण आदि कर समाज में योगदान दे सकती हैं. संगीत सीखना सिखाना बहुत सुकून देता है.

आप चाहें तो उदास, निरीह, एकाकी जीवन अपना सकती हैं या फिर एक नए सार्थक व उद्देश्यभरे जीवन की नींव रख सकती हैं. इस दोराहे पर आ कर फैसला आप का है.               

(स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. विमला जैन, डा अर्चना गुप्ता और डा. अनुपमा जोरवाल से हुई बातचीत पर आधारित)

धार्मिक विरोध झेलते खिलाड़ी

भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी ने अपनी मौडल पत्नी के साथ फोटो क्या शेयर की कि वे अचानक कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए. धर्म के नाम पर उन को ले कर शर्मनाक टिप्पणियां होने लगीं, दूसरे क्रिकेटर मोहम्मद कैफ अपने कसरत करने के तरीके को ले कर धर्मगुरुओं का शिकार हो गए. खिलाडि़यों की व्यक्तिगत जिंदगी में, दकियानूसी सोच के शिकार कट्टरपंथी, जबतब अपनी टांग अड़ाते रहते हैं. कई खिलाड़ी उन के फतवों का शिकार हुए. कुछ कट्टरपंथी इस अंदाज में हस्तक्षेप करते हैं. जैसे उन्होंने ही खिलाडि़यों को जिंदगी जीने, खानेपीने, पहननेओढ़ने और संस्कृति का सलीका सिखाने का ठेका ले लिया हो. दरअसल, ऐसे ठेकेदार धर्म की आड़ में अपनी पहचान को कायम रखने और जम्हूरियत को भड़काने के लिए ही ऐसे कृत्य करते हैं.

इस आजादनुमा हकीकत से भला कोईर् कैसे अंजान हो सकता है कि लोग अपनी पसंद का खानपान कर सकते हैं, पहनावा अपना सकते हैं और अपने अंदाज में जिंदगी बसर कर सकते हैं. आधुनिक युग में सभी करते भी ऐसा ही हैं. अपनी प्रतिभा से लाखों लोगों को फैन बनाने वाले भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी भी इस से जुदा नहीं थे. शोहरत की बुलंदियों व अपने परिवार से वे खुश थे. सोशल साइट पर उन्होंने अपने साथ पत्नी व मासूम बेटी की कुछ तसवीरें पोस्ट कर के खुशियों का इजहार किया. लेकिन उन्हें झटका तब लगा जब उन की ये खुशियां कट्टरपंथियों को खटक गईं. धर्म के नाम पर उन्होंने तीखे बयानों के चुभते तीर चला दिए.

दकियानूसी सोच

मोहम्मद शमी ने 25 दिसंबर, 2016 को जो फोटो पोस्ट किए थे उन में मौडल रह चुकी उन की पत्नी हसीन जहां ने लाल रंग का आकर्षक स्लीवलैस गाउन पहना हुआ था. भला किसी के पहनावे से किसी का क्या लेना, लेकिन दकियानूसी सोच के शिकार कट्टरपंथियों ने तमाम टिप्पणियां कर डालीं. किसी ने धर्म का वास्ता दिया, किसी ने शर्म करने, धर्म की इज्जत करने, तो किसी ने पर्दानशीं होने की नसीहत दे डाली.

तुर्रा यह था कि तसवीरें धर्म के खिलाफ थीं. शमी को अपनी पत्नी को परदे में रखना चाहिए था. इस विवाद में धर्म के नाम पर कुछ भी बोलने की छूट की मानसिकता के शिकार लोगों को मुंह की खानी पड़ी, क्योंकि शमी ने जवाब दिया कि वे अपनी जिंदगी में क्या करते हैं, यह वे जानते हैं. बुराई करने वालों को अपने अंदर देखना चाहिए. कई खिलाडि़यों के साथसाथ बौलीवुड गीतकार जावेद अख्तर और अभिनेता फरहान अख्तर भी शमी के पक्ष में खड़े हो गए.

जावेद अख्तर ने साफ भी किया, ‘‘जो पोशाक मिसेज शमी ने पहनी है वह बेहद सलीके की और खूबसूरत है. अगर किसी को दिक्कत है तो यह उस की सोच का छोटापन है.’’

उत्तर प्रदेश के अमरोहा में रहने वाले शमी के पिता तौसीफ अहमद ने कहा कि दुनिया कहां से कहां पहुंच गई लेकिन ऐसे कट्टर लोग दूसरों के मामले में दखलंदाजी करने से आगे नहीं बढ़ पाए. ऐसे लोगों को अपना मन साफ रखना चाहिए. शमी को आज दर्द है कि कट्टरपंथियों ने उन्हें निशाना बनाया.

बेतुके तर्क

शमी कोई पहले या आखिरी खिलाड़ी नहीं थे जो कट्टरपंथियों के निशाने पर आए थे. क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को शमी का समर्थन करना भारी पड़ गया. जब धर्म के ठेकेदार शमी को ले कर पाठ पढ़ा रहे थे, तो कैफ ने इसे शर्मनाक बताते हुए कह दिया था कि ‘देश में अन्य बड़े मुद्दे भी हैं. उम्मीद करता हूं ऐसे लोगों को समझ आएगी.’ कैफ के शब्दों में यों तो कुछ गलत नहीं था, बल्कि नसीहत थी उन लोगों के लिए जो धर्म के नाम पर लोगों की सोच को गुलाम बना कर उन्हें अपने तरीके से चलाए रखना चाहते हैं, लेकिन उन की बात शायद धार्मिक ठेकेदारों को कांटे की तरह चुभ कर राह में रोड़े जैसी लगी थी.

ज्यादा वक्त नहीं बीता और चंद दिनों बाद ही 2 जनवरी को उन्हें ले कर भी मुसलिम समाज की रहनुमाई का दंभ भरने वाले धर्मगुरु मैदान में उतर आए. उन्होंने एक बयान जारी कर दिया. वैसे, कैफ का गुनाह इतना था कि उन्होंने अपनी कसरत करते हुए कुछ फोटो सोशल साइट्स पर डाल दीं. जिसे सूर्य नमस्कार की संज्ञा दी गई.

इसलामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद ने बयान में कहा, ‘‘इसलाम इस की इजाजत नहीं देता. यह तरीका नाजायज है. कैफ ने गलत किया और उन्हें तोबा करनी चाहिए. एक धर्मगुरु का तर्क हास्यास्पद था जिस में उन्होंने कहा, ‘जो फोटो में दिख रहा है वह कैफ ने कसरत समझ कर किया है, तो भी यह धर्म में नकारा जाएगा.’ तंदुरुस्त रहने की और भी कसरतें हैं.’’

वैसे इन सब बातों से न मोहम्मद कैफ का खेल बिगड़ा, न सेहत. कैफ के चाहने वालों ने भी उलेमा के खिलाफ जम कर हल्ला बोला. अब ऐसे लोगों को कौन समझाए कि जब खिलाड़ी कसरत ही नहीं करेगा, तो वह अच्छा प्रदर्शन कैसे करेगा.

कट्टरपंथी जबतब टांग अड़ाते रहते हैं. एक मामले में तो उन्होंने ऐसा किया कि महिला खिलाडि़यों को निराशा का सामना करना पड़ा.

दरअसल, 1 साल पहले पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के चांचल इलाके में स्थित एक स्थानीय क्लब के 50वें स्थापना दिवस के मौके पर लड़कियों की कोलकाता एकादश व उत्तर बंगाल एकादश नामक 2 टीमों के बीच आयोजक रजा आमिर आदि द्वारा एक फुटबौल मैच का आयोजन किया जाना था. इस मैच में कई राष्ट्रीय महिला खिलाड़ी भी शामिल होनी थीं. इस का पता स्थानीय कट्टरपंथियों को लगा, तो उन्होंने यह कहते हुए तुगलकी फतवा जारी कर दिया कि इस दौरान महिला छोटे कपड़े पहनती हैं. चुस्त व छोटे कपड़े पहन कर खेलना व देखना दोनों ही शरीयत कानून के खिलाफ हैं. इसलाम इस बात की इजाजत नहीं देता कि महिलाएं छोटे कपड़े पहन कर मैदान में मैच खेलें. लिहाजा, मैच पर प्रतिबंध लगाया जाए.

खामोशी क्यों

स्थानीय प्रशासन ने कट्टरपंथी ताकतों के आगे घुटने टेक दिए और अशांति की आशंका में मैच पर पाबंदी लगा दी. एक खिलाड़ी नौसबा आलम ने हैरानी से सवाल खड़ा किया कि उसे विश्वास नहीं हो रहा कि क्या यही 21वीं सदी का भारत है. नौसबा का सवाल जायज था, लेकिन देश की कड़वी सचाई यह भी है कि कट्टरपंथियों से कोईर् उलझना नहीं चाहता. लोग भी खोमाश रहना बेहतर समझते हैं, क्योंकि धर्म के नाम पर बहुतकुछ हो जाता है और धर्म के ठेकेदार अपनी दुकानें आबाद रखने के लिए उकसाने को तैयार रहते हैं. और धर्मगुरुओं की भी कमी नहीं जो उन के इशारों पर बिना सोचेसमझे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं.

वर्ष 2005 में भारतीय महिला टैनिस स्टार सानिया मिर्जा को ले कर भी कुछ कट्टरपंथियों ने उन के खिलाफ फतवा जारी कर दिया था कि वे स्कर्ट मतलब छोटे कपड़े पहन कर मैच न खेलें. इस पर सानिया ने करारा पलटवार कर के ऐसे धार्मिक गुरुओं की बोलती बंद कर दी कि वे लोग स्कर्ट नहीं, उन का खेल देखें. सानिया ने धर्मगुरुओं को किनारे किया और अपने खेल पर ध्यान दिया. यह तय करना मुश्किल हो गया कि क्या फतवा धर्म के नाम पर प्रतिभाशाली खिलाड़ी को दबाने, पीछे घसीटने की कोशिश थी या कुछ और?

बेवजह के फतवे

बुलंदियां हासिल करने वाली सानिया इस तरह की ताकतों के कब्जे में नहीं आईं. इस बात को धर्म के ठेकेदार शायद भूले नहीं और उन्होंने सानिया को निकाह के समय फिर घेरे में लेने की कोशिश की. दरअसल, पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक निकाह के लिए आए थे और बतौर मेहमान उन्हें सानिया के परिवार द्वारा ठहराया गया था. इस पर फतवा जारी कर के कहा गया कि दोनों खिलाड़ी निकाह से पहले नजदीक रह कर अपनी गतिविधियों के जरिए धर्म को बदनाम कर रहे हैं जोकि हराम है.

इतना ही नहीं, उन्होंने लोगों से होने वाली शादी से भी दूर रहने को कहा. लोगों ने इस फतवे को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया.

ऐसे मामलों पर सामाजिक कार्यकर्ता ताहिरा हसन कहती हैं कि देश कानून से चल रहा है. कुछ लोग मुसलमानों के ठेकेदार बने रहना चाहते हैं, इसलिए वे ऐसी बातें करते हैं. मुसलिम समाज में तमाम कुरीतियां हैं और लोग बदतर जिंदगी बसर करते हैं, उन पर कट्टरपंथी कभी आवाज नहीं उठाते, जबकि खुद मलाई खाते हैं. इसलाम की परिभाषा को अपने हिसाब से गढ़ लेना कहां की अक्लमंदी है.

वहीं, डा. फरीदा खान कहती हैं कि ऐसे लोग परिवार, समाज और देश की तरक्की की बात करें, तो अच्छा है. समाज आज काफी आगे बढ़ चुका है और अब, उन की बंदिशों को झेलना हर किसी की मजबूरी नहीं है. सब को पूरी आजादी से अपनी जिंदगी जीने का हक है

संबंध कुबूले, तो मौडल को मिला फतवा

बौलीवुड नगरी मुंबई में रहने वाली मौडल अर्शी खान सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद अफरीदी से अपने संबंधों को उजागर कर के पाकिस्तान के मौलवी के निशाने पर आ गईं. मौलवी ने अर्शी के खिलाफ शर्मनाक फतवा जारी कर दिया. हालांकि अर्शी ने इस फतवे को ठेंगा दिखा दिया.

दरअसल नवंबर 2015 में अर्शी खान तब चर्चा में आ गईं जब उन्होंने ट्वीट कर के लिखा कि उन्होंने अफरीदी के साथ सैक्स संबंध स्थापित किया है. यह ट्वीट वायरल हो गया. इस के बाद सरहद पार के एक मदरसा चलाने वाले धार्मिक ठेकेदार का फतवा आ गया. फतवा भी ऐसा जो सुर्खियों में आ गया. उस ने कहा कि अर्शी ने धर्म का अपमान किया है, इसलिए उन्हें सबक सिखाना चाहिए. इस मौडल को भीड़ के सामने न्यूड फोटोशूट की सजा दी जानी चाहिए. अर्शी के ट्वीट में कितना सच था, यह तो वही जानें, लेकिन फतवा देने वाले को जरूर सोचना चाहिए था कि मामला निजी स्वतंत्रता से जुड़ा था.

इमरान हाशमी : सिर मुड़ाते ही ओले पड़े

बॉलीवुड में सफलता की राह इतनी आसान नहीं होती है, जितनी लोग समझते हैं. कई असफल फिल्मों के निर्देशक, टोनी डिसूजा के संग जब इमरान हाशमी ने क्रिकेटर मो.अजहरुद्दीन की बायोपिक फिल्म ‘‘अजहर’’ की, तो वह टोनी डिसूजा से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होने ‘अजहर’ के प्रदर्शन से पहले ही ऐलान कर दिया कि वह अब बतौर निर्माता अपनी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी ‘‘इमरान हाशमी फिल्म्स’’ की शुरूआत कर रहे हैं. उस वक्त इमरान हाशमी ने कहा था कि उनकी कंपनी के तहत बनने वाली पहली फिल्म में वह अभिनय भी करेंगे, जबकि निर्देशक होंगे टोनी डिसूजा. उसके बाद हवा में उड़ते हुए टोनी डिसूजा ने भी बड़ी-बड़ी डींगे हांकी थी. टोनी डिसूजा ने दावा किया था कि फिल्म की पटकथा तैयार है, पर वह इसके कथानक को लेकर कुछ भी नहीं बताएंगे. उस वक्त इमरान हाशमी और टोनी डिसूजा ने दावा किया था कि वह जून 2016 में फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे.

मगर 13 मई 2016 को फिल्म ‘‘अजहर’’ प्रदर्शित होते ही स्थितियां बदल गयीं, क्योंकि ‘अजहर’ की बाक्स ऑफिस पर उसकी बड़ी दुर्गति हो गयी. जिसके चलते इमरान हाशमी की टोनी डिसूजा के निर्देशन वाली यह फिल्म अब तक शुरू नहीं हो पायी. मजेदार बात यह है कि इमरान हाशमी या टोनी डिसूजा भी इस फिल्म को लेकर चर्चा नहीं करना चाहते. बॉलीवुड के बिचौलिए मानते हैं कि ‘अजहर’ के असफल होने के बाद सभी का टोनी डिसूजा पर से विश्वास उठ गया. बॉलीवुड के सूत्र मानते हैं कि अब यह फिल्म कभी नही बनेगी. ध्यान देने वाली बात यह है कि ‘अजहर’ के असफल होने के बाद से इमरान हाशमी के करियर पर भी ग्रहण लग गया है. उन्हें कोई नई फिल्म नहीं मिली. जबकि अजय देवगन के साथ वह एक फिल्म ‘‘बादशाहों’’ कर रहे हैं. इसकी भी शूटिंग खत्म होने का नाम नहीं ले रही है.

मध्य प्रदेश : प्रेम, प्रकृति, परंपरा का अद्वितीय संगम

भारत की हृदयस्थली कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में शेरों की दहाड़ से ले कर पत्थरों में उकेरी गई प्रेम की मूर्तियों का सौंदर्य वहां जाने वाले के मन में ऐसी यादें छोड़ जाता है कि दोबारा जाने के लिए उस का मन ललचाता रहता है.

बांधवगढ़ नैशनल पार्क में टाइगर देखने से ले कर ओरछा के महलों व खजुराहो के मंदिरों की मूर्तियों में आप वास्तविक भारत को खोज सकते  हैं. इस राज्य का इतिहास, भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विरासत और यहां के लोग इसे भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में से एक बनाते हैं.

यहां आने वाले सैलानियों के लिए प्रदेश का टूरिज्म विभाग विशेष तौर पर मुस्तैद रहता है ताकि पर्यटकों को किसी तरह की असुविधा न हो. इस बार मध्य प्रदेश को नैशनल टूरिज्म अवार्ड से सम्मानित किया गया है. मध्य प्रदेश के पर्यटन राज्यमंत्री सुरेंद्र पटवा को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने सर्वोत्तम पर्यटन प्रदेश का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया.  

दर्शनीय स्थल

मांडू

खंडहरों के पत्थर यहां के इतिहास की कहानी बयां करते हैं. यहां के हरियाली से भरे बाग, प्राचीन दरवाजे, घुमावदार रास्ते बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं.

रानी रूपमती का महल एक पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है जो स्थापत्य का एक बेहतरीन नमूना है. यहां से नीचे स्थित बाजबहादुर के महल का दृश्य बड़ा ही विहंगम दिखता है, जोकि अफगानी वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. मांडू विंध्य की पहाडि़यों पर 2 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिंडोला महल, शाही हमाम और नक्काशीदार गुंबद वास्तुकला के उत्कृष्टतम रूप हैं.

नीलकंठ महल की दीवारों पर अकबरकालीन कला की नक्काशी भी काबिलेतारीफ है. अन्य स्थलों में हाथी महल, दरियाखान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मलिक मुगीथ की मसजिद और जाली महल भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

धार से 33 और इंदौर से 99 किलोमीटर दूर स्थित मांडवगढ़ (मांडू) पहुंचने के लिए इंदौर व रतलाम नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं. बसों से भी मांडू जाया जा सकता है. नजदीकी एअरपोर्ट (99 किलोमीटर) इंदौर है.

ओरछा

16वीं व 17वीं शताब्दी में बुंदेला राजाओं द्वारा बनवाई गई ओरछा नगरी के महल और इमारतें आज भी अपनी गरिमा बनाए हुए हैं. स्थापत्य का मुख्य विकास राजा बीर सिंहजी देव के काल में हुआ. उन्होंने मुगल बादशाह जहांगीर की स्तुति में जहांगीर महल बनवाया जो खूबसूरत छतरियों से घिरा है. महीन पत्थरों की जालियों का काम इस महल को एक अलग पहचान देता है.

इस के अतिरिक्त राय प्रवीन महल देखने योग्य है. ईंटों से बनी यह दोमंजिली इमारत है. इस महल की भीतरी दीवारों पर चित्रकला की बुंदेली शैली के चित्र मिलते हैं. राजमहल और लक्ष्मीनारायण मंदिर व चतुर्भुज मंदिर की सज्जा भी बड़ी कलात्मक है. फूल बाग, शहीद स्मारक, सावन भादों स्तंभ, बेतवा के किनारे बनी हुई 14 भव्य छतरियां भी देखने योग्य स्थल हैं.

यह ग्वालियर से 119 किलोमीटर और खजुराहो से 170 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां छोटा रेलवे स्टेशन है.

सांची

भारत में बौद्धकला की विशिष्टता व भव्यता सदियों से दुनिया को सम्मोहित करती आई है. सांची के स्तूप विश्व विरासत में शुमार हैं. स्तूप, प्रतिमाएं, मंदिर, स्तंभ, स्मारक, मठ, गुफाएं, शिलाएं व प्राचीन दौर की उन्नत प्रस्तर कला की अन्य विरासतें अपने में समाए हुए सांची को वर्ष 1989 में यूनैस्को की विश्व विरासत सूची में शमिल किया गया है. बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र होने के कारण यहां देशी व विदेशी पर्यटक प्रतिदिन हजारों की संख्या में पहुंचते हैं.

सांची में सुपरफास्ट रेलें नहीं रुकतीं, इसलिए भोपाल आ कर यहां आना उपयुक्त रहता है. सांची देश के लगभग सभी नगरों से सड़क व रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है.

खजुराहो

खजुराहो के मंदिर पूरे विश्व में आकर्षण का केंद्र हैं. पर्यटक यहां स्थापित भारतीय कला के अद्भुत संगम को देख कर दांतों तले उंगली दबाने से अपने को नहीं रोक पाते. मंदिरों की दीवारों पर उकेरी गई  विभिन्न मुद्राओं की प्रतिमाएं भारतीय कला का अद्वितीय नमूना प्रदर्शित करती हैं. यहां काममुद्रा में मग्न मूर्तियों के सौंदर्य को देख कर  खजुराहो को प्यार का प्रतीक पर्यटन स्थल कहना भी अनुचित नहीं होगा. काममुद्रा के साक्षी इन मंदिरों में प्रतिवर्ष असंख्य जोड़े अपनी हनीमून यात्रा पर यहां आते हैं.

किसी समय इस क्षेत्र में खजूर के पेड़ों की भरमार थी. इसलिए इस स्थान का नाम खजुराहो हुआ. मध्यकाल में ये मंदिर भारतीय वास्तुकला के प्रमुख केंद्र माने जाते थे. वास्तव में यहां 85 मंदिरों का निर्माण किया गया था, किंतु वर्तमान में 22 ही शेष रह गए हैं.

मंदिरों को 3 भागों में बनाया गया है. यहां का सब से विशाल मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर है. उसी के पास ग्रेनाइट पत्थरों से बना हुआ चौंसठ योगनी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, घंटाई मंदिर, आदिनाथ और दूल्हादेव मंदिर प्रमुख हैं. मंदिरों की प्रतिमाएं मानव जीवन से जुड़े सभी भावों आनंद, उमंग, वासना, दुख, नृत्य, संगीत और उन की मुद्राओं को दर्शाती हैं. ये शिल्पकला का जीवंत उदाहरण हैं.

शिल्पियों ने कठोर पत्थरों में भी ऐसी मांसलता और सौंदर्य उभारा है कि देखने वालों की नजरें उन प्रतिमाओं पर टिक जाती हैं. ये कला, सौंदर्य और वासना के सुंदर व कोमल पक्ष को दर्शाती हैं. खजुराहो तो अद्वितीय है ही, इस के आसपास भी अनेक दर्शनीय स्थान हैं जो आप की यात्रा को पूर्णता प्रदान करते हैं. इन में राजगढ़ पैलेस, गंगऊ डैम, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान एवं हीरे की खदानें आदि हैं.

खजुराहो के लिए दिल्ली व वाराणसी से नियमित फ्लाइट उपलब्ध हैं व खजुराहो रेलवे स्टेशन सभी प्रमुख रेल मार्गों से जुड़ा है.

पचमढ़ी

प्राकृतिक सौंदर्य के कारण सतपुड़ा की रानी के नाम से पहचाने जाने वाले पर्यटन स्थल पचमढ़ी की खोज 1857 में की गई थी. यकीन मानिए, आप मध्य प्रदेश के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल पचमढ़ी जाएंगे तो प्रकृति का भरपूर आनंद उठाने के साथसाथ तरोताजा भी हो जाएंगे.  सतपुड़ा के घने जंगलों का सौंदर्य यहां चारों ओर बिखरा हुआ है. यहां का वाटर फौल, जिसे जमुना प्रपात कहते हैं, पचमढ़ी को जलापूर्ति करता है.

सुरक्षित पिकनिक स्पौट के रूप में विकसित अप्सरा विहार का जलप्रपात देखते ही बनता है. प्रियदर्शनी, अप्सरा विहार, रजत प्रपात, राजगिरि, डचेस फौल, जटाशंकर, हांडी खोह, धूपगढ़ की चोटी और पांडव गुफाएं यहां के प्रमुख स्थल हैं. यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन पिपरिया है. यहां भोपाल और पिपरिया से सड़क मार्ग द्वारा भी जाया जा सकता है. निकटतम हवाई अड्डा भोपाल 210 किलोमीटर की दूरी पर है.

बांधवगढ़

राजशाहों का पसंदीदा शिकारगाह रहा है बांधवगढ़. प्रमुख आकर्षण जंगली जीवन, बांधवगढ़ नैशनल पार्क में शेर से ले कर चीतल, नीलगाय, चिंकारा, बारहसिंगा, भौंकने वाले हिरण, सांभर, जंगली बिल्ली, भैंसे से ले कर 22 प्रजातियों के स्तनपायी जीव और 250 प्रजातियों के पक्षियों के रैन बसेरे हैं.

448 स्क्वायर किलोमीटर में फैला बांधवगढ़ भारत के नैशनल पार्कों में अपना प्रमुख स्थान रखता है. यहां पहाड़ों पर 2 हजार साल पुराना बना किला भी देखने लायक है. बांधवगढ़ प्रदेश के रीवा जिले में स्थित है. यहां आवागमन के सभी साधन देश भर से उपलब्ध हैं.

नजदीकी हवाई अड्डा जबलपुर में है. यह रेल मार्ग से भी जबलपुर, कटनी, सतना से जुड़ा हुआ है.

कान्हा किसली

940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विकसित कान्हा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यान है. इसे देखने के लिए किराए पर जीप मिल जाती है. कान्हा में वन्यप्राणियों की 22 प्रजातियों के अलावा 200 पक्षियों की प्रजातियां हैं. यहां बामनी दादर एक सनसैट पौइंट है. यहां से सांभर, हिरण, लोमड़ी और चिंकारा जैसे वन्यप्राणियों को आसानी से देखा जा सकता है.  जबलपुर, बिलासपुर और बालाघाट से सड़क मार्ग से कान्हा पहुंचा जा सकता है. नजदीकी विमानतल जबलपुर में है.

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