आई मेकअप हटाने के आसान टिप्स

यह कहना गलत नहीं होगा कि पूरा दिन अपनी आंखों को खूबसूरत दिखाने और अपने चेहरे पर चार चांद लगाने के इरादे से लड़कियां हर सुबह खूब मेहनत कर काजल, मस्कारा, लाइनर आदि प्रोडक्ट यूज कर उन्हें खूबसूरत बनाती हैं.

लेकिन जब उन्हें यह मेकअप उतारना होता है, तो यह बहुत मुश्किल काम होता है. आईए हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे टिप्स, जिनकी मदद से आप आसानी से उतार सकती हैं अपना आई मेकअप.

मेकअप रिमूवर प्रोडक्ट का प्रयोग

आंखों का मेकअप किसी कपड़े से रगड़कर या सिर्फ पानी से धोकर न उतारें. उसके लिए अच्छे मेकअप रिमूवर प्रोडक्ट का प्रयोग करें. अगर वह नहीं है तो घर पर ही रखे सामान का सही इस्‍तेमाल करें और अपनी आंखों की खूबसूरती को दें लम्बी उम्र. आखों का मेकअप उतारने के लिए वही प्रोडक्ट प्रयोग में लाने चाहिए जो आपकी आंखों के लिए सेफ हों.

तेल

तेल एक प्राकृतिक मेकअप रिमूवर का काम करता है. मिनरल तेल एक बेहतर विकल्‍प है, जिस मेकअप उतारने के काम में लाया जा सकता है. यह सुरक्षित होते हुए तकरीबन हर प्रकार की स्किन के लिए काम में लाया जा सकता है. इसी के साथ ही बेबी ऑयल भी एक बेहतरीन विकल्प है जो कुछ सुगंधों के साथ मिनरल तेल होता है. तेल से आंखों का मेकअप उतारने का उपाय महज उन हालातों में इस्तेमाल करें जब आप कॉन्टेक्ट लेन्स का प्रयोग न करती हों.

बेबी वाइप्‍स

यदि आप बेबी शैम्पू का इस्तेमाल करने में खुद को सहज नही कर पा रही हैं, तो आप बेबी वाइप्स का प्रयोग भी कर सकती हैं. फिर भी आपका मन इन चीजों से अपनी आंखे साफ करने का नहीं है, तो आप पैट्रोलियम जैली का प्रयोग कर सकती हैं. यह सिर्फ आंखों का ही नहीं बल्कि सारे चेहरे का मेकअप सरलता से हटा देगा. चाहे तो बिना सुगन्ध वाला कोई भी अच्छा लोशन इस्‍तेमाल कर सकतीं हैं यह बेहत सहजता से सारा मेकअप उतारने के काम आता है.

बेबी शैम्पू

टीयर फ्री बेबी शैम्पू का इस्‍तेमाल आंखों का लाइनर, शेडो, मस्कारा हटाने का एक बेहतर विकल्प है. अगर आप रोज आंखों का मेकओवर करती हैं, तो आपके लिए आई मेकअप रिमूवर एक महगा साधन होगा ऐसे में यह एक दर्द रहित व जेब के मुताबिक होगा वह भी बिना किसी जलन के. बेबी शैम्पू से मेकअप हटाते समय ठंडे पानी की जगह गुनगुने पानी का इस्‍तेमाल करें.

घरेलू उपाय

आप उन तेलों को भी प्रयोग कर सकतीं हैं जो आपकी रसोई में भरे रहते हैं. जिनमें सबसे बेहतर होता है आंवले का तेल. इसके अलावा बादाम का तेल भी अच्छा साबित हो सकता है. इस तेल से किसी भी तरह के साइड इफेक्ट करने के चान्स कम होंगे. तेल से मेकअप हटाने के लिए रूई के फोहे पर कुछ बूंदें तेल की लें इसके बाद हल्के हल्के मसाज करते हुए मेकअप हटाएं.

काला धंधा बनती शिक्षा

शिक्षा महंगी होती जा रही है और उस में भरपूर बेईमानी भी घुस रही है. पहले शिक्षा देने वाले अपने धंधों में चाहे बेईमानियां करते हों वे स्कूल, कालेजों को दान भी देते थे और उन के प्रबंध में समय भी. अब उलटा हो गया है और शिक्षा चाहे सरकारी हो या प्राइवेट दोनों में धांधली ही धांधली है.

मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला इसी का नतीजा है. दिल्ली के समीप गुड़गांव में अंसल विश्वविद्यालय में आजकल हंगामा मचा हुआ है. अंसल विश्वविद्यालय अंसल बिल्डरों द्वारा चलाया जा रहा है और उन्होंने शिक्षा में भी छात्रों को अट्रैक्ट करने के लिए वे ही गुर अपनाए थे जो वे अपने फ्लैटों और प्लाटों को बेचने में अपनाते हैं : सब्जबाग दिखा कर पैसा वसूल करो.

छात्रों को कहा गया था कि उन्हें स्विमिंग पूल, जिम और स्पोर्ट्स सैंटर दिया जाएगा और उस के लिए मोटा पैसा ले लिया गया. पर छात्रों के हितों को तो आजकल के शिक्षा प्रबंधक ध्येय समझते ही नहीं हैं. उन्होंने छात्रों के फ्लैटों को खरीदारों के बराबर मान कर वादों को टरकाना शुरू कर दिया और नतीजा यह हुआ है कि अंसल विश्वविद्यालय के छात्र हड़ताल व धरने पर बैठे हैं.

यह कई निजी विश्वविद्यालयों में हो रहा है, क्योंकि वहां प्रबंधक शिक्षा के माध्यम से अगली पीढ़ी को तैयार करने नहीं आ रहे, अपने लिए पैसा बनाने के लिए शिक्षा का इस्तेमाल कर रहे हैं.

शिक्षा आज देश का एक बड़ा काला धंधा बन गया है. आज के मातापिता जानते हैं कि शिक्षा ही बच्चों का भविष्य बना सकती है और इसलिए बच्चों की पढ़ाई पर पेट काट कर खर्च कर रहे हैं, पर शिक्षा देने वाले इसे मातापिता की मजबूरी मान कर उन्हें लूटने में लग गए हैं. सरकारी शिक्षा में कौपीइंग, एबसैंटिज्म और ट्यूशन की भरमार है तो निजी में फीस के नाम पर डोनेशन और चार्जेज का बोलबाला है.

प्रबंधक चाहे सरकारी शिक्षा के हों या निजी शिक्षा के, नई पीढ़ी के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भूल चुके हैं और उसे कमाई और सिर्फ कमाई का धंधा मान कर चलते हैं. अफसोस यह है कि मातापिता अपने को इतना लाचार व असहाय समझते हैं कि हर पग पर कंप्रोमाइज करने को तैयार हैं. वे किसी भी गलत काम पर हल्ला नहीं मचाते.

गनीमत है कि देश की आबादी इतनी ज्यादा है कि कामचलाऊ संख्या में प्रतिभाशाली छात्र निकल ही आ रहे हैं. तभी तो 95 और 98त्न वालों को भी दाखिला नहीं मिल रहा है, पर यह भी संभव है कि जो 95 व 98त्न वाले बेईमान शिक्षा के प्रौडक्ट हों और डिग्री की प्रतिष्ठा को भी नष्ट कर रहे हों, पर इतना जरूर है कि हमारे युवाओं ने इन विषम स्थितियों में भी कुछ लाभ तो कमा लिया कि अमेरिका की सिलीकौन वैली भारतीयों  से भरी पड़ी है और अमेरिका में डौनल्ड ट्रंप के निशाने पर मुसलिम आतंकवादी कम और भारतीय मेधावी छात्र ज्यादा हैं. अगर हमारे शिक्षा प्रबंधक जरा से देशभक्त हो जाएं तो वे अगली पीढ़ी ऐसी तैयार कर सकते हैं कि भारत ही भारत दिखे.          

चिनगारी फोगट बहनें

हरियाणा की कुश्ती पदक विजेता गीता फोगट, जिस पर आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ बनी थी, को 2010 के कौमनवैल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीतने पर वह वाहवाही नहीं मिली थी, जो फिल्म ने दिलाई है. अब गीता और बबीता फोगट घरघर का नाम बन गई हैं और लड़कियों की नई आशा बन गई हैं. हिंदी फिल्में इस प्रकार का सामाजिक बदलाव कम करा पाती हैं, पर इस बार ऐसा हो गया है.

हरियाणा में एक पिता ने अपनी 2 बेटियों को कुश्ती में महारत दिलाने का संकल्प लिया था, यही अपनेआप में बड़ी बात है. इस देश में जहां औरतों को सदियों से बोझ समझा जाता रहा है, वहां एक पिता का बेटियों को कुश्ती में अपनी मरजी से डालना आश्चर्य ही है.

अब फिल्म ‘दंगल’ के बाद इन लड़कियों को नई पहचान मिलने लगी है और वे रोल मौडल बन रही हैं. महिला कुश्ती में वैसे तो लड़कियां ही होंगी, पर हरियाणा के पिछड़े गांवों में से इस तरह लड़कियों का बाहर निकलना एक सामाजिक बदलाव की निशानी है.

यह बदलाव असल में बहुत गहरे जाना जरूरी है. औरतों और लड़कियों को सामाजिक व धार्मिक रीतिरिवाजों से इस तरह बांध दिया जाता है कि वे खूंटे से बंधी गाय की तरह हो जाती हैं, जिन का काम केवल दूध देना भर रह जाता है. लड़कियों का व्यक्तित्व तो खो ही जाता है, देश को उत्पादन की एक भरपूर सक्षम इकाई से भी हाथ खो देना पड़ता है.

यह नहीं भूलना चाहिए कि कमजोर इनसान चाहे मर्द हो या औरत, पूरे समाज पर बोझ होता है. किसी समाज की अमीरी उस की उत्पादकता पर निर्भर होती है और यदि लड़कियों को घर में बंद कर के पूजापाठ, सिर्फ चूल्हेचौके और बच्चे पैदा करने पर लगा दिया जाए, तो परिवार ही नहीं पूरा देश पीछे रह जाता है. धर्म ने साजिश कर के सदियों से औरतों को कमजोर रखा, ताकि वे मर्दों की सेवा करते रहें और कोई मांग न करें. ऐसा समाज गुलामी को तख्त पर बैठा देता है और उसे अपनी खुद की गुलामी का एहसास भी नहीं रहता.

फोगट बहनें महिला कुश्ती में नाम कमा कर एक दकियानूसी समाज में चिनगारी का काम कर रही हैं. अगर वे दूसरे पाखंडों का भी इसी तरह विरोध करें, तो ही उन का काम सफल होगा. फिल्म ‘दंगल’ में उन का ट्रेनिंग के दौरान लड़कों को भी पछाड़ना असल चैलेंज है और यह हर स्तर पर होना जरूरी है.

‘बवासीर’ ऐसे पाएं निजात

गुदा के अंदर वौल्व की तरह गद्देनुमा कुशन होते हैं, जो मल को बाहर निकालने या रोकने में सहायक होते हैं. जब इन कुशनों में खराबी आ जाती है, तो इन में खून का प्रवाह बढ़ जाता है और ये मोटे व कमजोर हो जाते हैं. फलस्वरूप, शौच के दौरान खून निकलता है या मलद्वार से ये कुशन फूल कर बाहर निकल आते हैं. इस व्याधि को ही बवासीर कहा जाता है.

ऐसा माना जाता है कि कब्ज यानी सूखा मल आने के फलस्वरूप मलद्वार पर अधिक जोर पड़ता है तथा पाइल्स फूल कर बाहर आ जाते हैं. बवासीर की संभावना के कई कारण हो सकते हैं.

क्या हैं कारण..

  • शौच के समय अधिक जोर लगाना
  • कम रेशेयुक्त भोज्य पदार्थ का सेवन करना
  • बहुत अधिक समय तक बैठे या खड़े रहना
  • बहुत अधिक समय तक शौच में बैठे रहना
  • मोटापा
  • पुरानी खांसी
  • अधिक समय तक पतले दस्त लगना
  • लिवर की खराबी
  • दस्तावर पदार्थों या एनिमा का अत्यधिक प्रयोग करना
  • कम पानी पीना
  • गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि.

आनुवंशिक : एक ही परिवार के सदस्यों को आनुवंशिक गुणों के कारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आना.

बाह्य संरचना :  पाइल्स साधारणतया जानवरों में नहीं पाए जाते, चूंकि मनुष्य पैर के बल पर सीधा खड़ा रहता है, सो, गुरुत्वाकर्षण बल के कारण शरीर के निचले भाग में कमजोर नसों में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाता है, जिस से नसें फूल जाती हैं और पाइल्स का कारण बनती हैं.

शारीरिक संरचना : गुदा में पाई जाने वाली नसों को मजबूत मांसपेशियों का सहारा नहीं मिलने के कारण ये नसें फूल जाती हैं और कब्ज के कारण जोर लगता है तो फटने के कारण खून निकलना शुरू हो जाता है.

इसके लक्षणों को पहचानें

शौच के दौरान बिना दर्द के खून आना, मस्सों का फूलना व शौच के दौरान बाहर आना. मल के साथ चिकने पदार्थ का रिसाव होना व बाहर खुजली होना, खून की लगातार कमी के कारण एनीमिया होना तथा कमजोरी आना व चक्कर आना और भूख नहीं लगना इस के प्रमुख लक्षण हैं.

उपाय भी हैं…

यदि हम खानपान में सावधानी बरतें तो बवासीर होने से बचने की संभावना होती है. कब्ज न होने दें, भोजन में अधिक रेशेयुक्त पदार्थों का प्रयोग करें, दोपहर के खाने में कच्ची सब्जियों का सलाद लें, अंकुरित मूंगमोठ का प्रयोग करें, गेहूं का हलका मोटा पिसा व बिना छना आटा खाएं, खाना चबाचबा कर खाएं, रात को गाय के दूध में 8-10 मुनक्का डाल कर उबाल कर खाएं. चाय व कौफी कम पीएं, वजन ज्यादा हो तो कम करें, प्रतिदिन व्यायाम करें और सकारात्मक सोच रखें.

इन बातों का भी रखें ध्यान…

जब भी शौच की जरूरत महसूस हो, तो उसे रोका न जाए. शौच के समय जरूरत से ज्यादा जोर न लगाएं. लंबे समय तक जुलाब न लें. बहुत अधिक समय तक एक ही जगह पर न बैठें. शौच जाने के बाद मलद्वार को पानी से अच्छी तरह साफ करें.

एमआईपीएच विधि से इलाज

एमआईपीएच यानी मिनिमली इनवेजिव प्रौसीजर फौर हेमरोहिड्स. इस विधि में एक विशेष उपकरण, जिसे स्टेपलर कहते हैं, काम में लिया जाता है, जो कि सिर्फ एक ही बार काम में आता है. यह विधि गे्रड-1, ग्रेड-2 तथा ग्रेड-3, जोकि दूसरी विधि के फेल हो जाने पर काम में ली जाती है. इस विधि में पाइल्स को काट कर उस के ऊपर मलद्वार में 2-3 इंच की खाल कट जाती है, जिस से पाइल्स अपने सामान्य स्थान पर आ जाते हैं.

इस विधि को करने में मात्र 20 मिनट लगते हैं, न के बराबर खून निकलता है, तथा दर्द भी कम ही होता है व मरीज को 24 घंटों से पहले छुट्टी दे दी जाती है. व्यक्ति 24-48 घंटों में काम पर जाने लायक हो जाता है. इस विधि द्वारा उपचार करने के बाद फिर से पाइल्स होने की संभावना 2 से 10 प्रतिशत ही रहती है, निर्भर करता है कि सर्जन कितना अनुभवी है.

(लेखक पाइल्स व गुदा रोग विशेषज्ञ हैं.)

‘गे’ विलन के अवतार में दिखेंगे गोविंदा

अपनी कॉमेडी और डांसिंग स्‍टाइल से बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले सुपरस्‍टार गोविंदा एक बार फिर बड़े पर्दे पर वापसी कर रहे हैं. बता दें कि अपनी अगली फिल्म में भी वह बाकी फिल्मों की तरह कुछ अलग करते हुए नजर आने वाले हैं.

सूत्रों की मानें तो अपने आने वाली फिल्म में गोविंदा डबल रोल के किरदार में नजर आने वाले हैं. लेकिन फिल्म की खास बात यह है कि फिल्म का खलनायक एक ‘गे’ होगा.

इससे पहले भी गोविंदा ने ‘बड़े मियां छोटे मियां’ और ‘हद कर दी आपने’ जैसी कई फिल्मों में डबल रोल निभाए हैं.

अपनी इस फिल्म में गोविंदा गे विलन का किरदार निभाएंगे. आपको बता दें कि गोविंदा पहली बार ऐसा कोई रोल कर रहे है. गोविंदा की इस फिल्म में उनके साथ नीतू और ऋषि कपूर भी दिखाई देंगे. इस फिल्म को सत्येंद्र राज निर्देशित कर रहे हैं.

फिल्म को सरवन शर्मा और जयंत घोष बना रहे हैं. हालांकि फिल्म की शूटिंग पहले ही शुरू की जा चुकी है. कहा जा रहा है कि फिल्म को 2017 में ही रिलीज कर दिया जाएगा.

बता दें कि गोविंदा ने इससे पहले अपनी एक फिल्म ‘आंटी नम्बर वन’ में एक महिला का किरदार निभाया था. जिसे उनके फैंस ने काफी पंसद किया था.

इस हीरोइन को लॉन्च करने में दिवालिया हो गए जैकी

एक समय पर जैकी श्रॉफ का स्टारडम ऐसा था कि उन्हें अपनी फिल्मों में साइन करने के लिए निर्माता-निर्देशक उनके आगे पीछे घुमते थे. हर निर्देशक इस होड़ में रहता कि जैकी सबसे पहले उनकी ही फिल्म में काम करें.

लेकिन कहते हैं ना कि कब किसकी किस्मत पलट जाए और उसके बुरे दिन शुरु हो जाए कोई नहीं जानता. कुछ ऐसा ही हुआ जैकी श्रॉफ के साथ. जैकी की जिंदगी में एक वक्त ऐसा आया जब एक फिल्म के चक्कर में उन्हें अपना घर तक गिरवी रखना पड़ा और कोई मदद के लिए आगे नहीं आया.

ये फिल्म थी ‘बूम’. जैकी श्रॉफ ने इस फिल्म को प्रोड्यूस किया था और इसके जरिए उन्होंने कटरीना कैफ को बॉलीवुड में लॉन्च किया. कटरीना के अलावा फिल्म में अमिताभ बच्चन, गुलशन ग्रोवर, पद्मा लक्ष्मी जैसे सितारे थें.

जैकी को लगा कि ये फिल्म चल जाएगी, लेकिन फिल्म में कटरीना कैफ और गुलशन ग्रोवर के अलावा बाकी कलाकारों ने भी इस कदर बोल्ड और इंटीमेट सीन दिए कि फिल्म को बी-ग्रेड का दर्जा मिल गया.

जैकी फिल्म को मिले इस दर्जे से पहले ही परेशान थे कि इसी बीच ड्रिस्ट्रीब्यूटर्स ने भी हाथ पीछे खींच लिए. फिल्म रिलीज से पहले ही लीक हो गई जिसकी वजह से कोई भी जैकी श्रॉफ को पैसे देने के लिए तैयार नहीं हुआ.

इसके बाद तो जैकी के पैरों तले जमीन ही खिसक गई. उन्हें कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या करें. जब कहीं से कोई राह नजर नहीं आईं तो मजबूरन जैकी श्रॉफ को अपना घर गिरवी रखना पड़ा. उन्होंने सोचा कि फिल्म से जो मुनाफा होगा उससे वो अपना घर छुड़वा लेंगे. लेकिन हुआ उल्टा.

फिल्म रिलीज हुई और बुरी तरह फ्लॉप हो गई. इसके बाद तो जैसे जैकी श्रॉफ के बुरे दिन ही शुरू हो गए. एक तरफ उनका घर पहले से ही गिरवी रखा हुआ था तो वहीं दूसरी ओर कटरीना कैफ से भी उनके रिश्ते बिगड़ गए.

वहीं जिन लोगों ने फिल्म में पैसे लगाए थे उनके पैसे वापस करने के लिए जैकी श्रॉफ और उनकी पत्नी को अपनी बहुमूल्य चीजें तक बेचनी पड़ीं. जैकी श्रॉफ की हालत दिवालिया हो चुकी थी क्योंकि फिल्म में उतनी कमाई भी नहीं की थी जितनी रकम उन्हें चुकानी पड़ी.

शादी के बाद इन अभिनेत्रियों ने छोड़ दिया बॉलीवुड

मनोज बाजपेयी 23 अप्रैल को 48 साल के हो गए हैं. ‘द्रोहकाल'(1994) से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाले मनोज लंबे टाइम से इंडस्ट्री में एक्टिव हैं. लेकिन उनकी पत्नी शबाना रजा उर्फ नेहा अब बॉलीवुड से दूरी बना चुकी हैं. बॉबी देओल की फिल्म ‘करीब'(1998) से डेब्यू करने वाली नेहा अब इंडस्ट्री से दूर हैं. नेहा ने साल 2006 में मनोज बाजपेयी से शादी की थी. नेहा और मनोज की एक बेटी अवा नाइलाह(Awa Nailah) है.

नेहा ऐसा करने वाली पहली एक्ट्रेस नहीं हैं. नेहा से पहले भी बॉलीवुड की कई पॉपुलर एक्ट्रेसेस शादी के बाद पूरी तरह फिल्मों को अलविदा कह चुकी हैं. कुछ ऐसी ही 8 अभिनेत्रियां जिन्होंने अपनी शादी के बाद इंडस्ट्री को अलविदा ही कह दिया.

इन फिल्मों में काम कर चुकीं हैं नेहा

नेहा ने साल 1998 में बॉबी देओल की फिल्म ‘करीब’ से बॉलीवुड डेब्यू किया था. इसके बाद नेहा अब तक ‘होगी प्यार की जीत'(1999), ‘फिजा'(2000), ‘एहसास- दि फीलिंग'(2001), ‘राहुल'(2001), ‘मुस्कान'(2004), ‘करम'(2005), ‘कोई मेरे दिल में है'(2005) और ‘एसिड फैक्ट्री’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकी हैं. नेहा को लेकर खबरें हैं कि वो संजय दत्त की बायोपिक में नजर आ सकती हैं. हालांकि इसे लेकर अभी कोई ऑफिशियल अनाउंसमेंट नहीं हुई है.

असिन

आमिर खान की फिल्म ‘गजनी'(2008) से फेम बटोरने वालीं 31 वर्षीय असिन अब फिल्मों से दूर हैं. असिन ने साल 2016 में बिजनेसमैन राहुल शर्मा से शादी करने के बाद एक्टिंग छोड़ने का फैसला लिया. उन्होंने अपने सोशल हैंडल पर एक पोस्ट कर इसकी अनाउंसमेंट की थी. असिन बॉलीवुड में ‘गजनी’ के अलावा ‘लंदन ड्रीम्स’ (2009), ‘रेडी’ (2011), ‘हाउसफुल-2’ (2012), ‘बोल बच्चन’ (2012), ‘खिलाड़ी-786’ (2012), ‘ऑल इज वेल'(2015) जैसी फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं.

संगीता बिजलानी

90 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने वाली संगीता बिजलानी ने 20 साल की उम्र में 1980 में मिस इंडिया का खिताब जीता था. 1988 में फिल्म ‘कातिल’ से बॉलीवुड डेब्यू करने वाली संगीता ने ‘हथियार’ (1989), ‘त्रिदेव’ (1989), ‘जुर्म’ (1990), ‘इज्जत’ (1991) और ‘युगांधर’ (1993) जैसी कई फिल्मों में काम किया. साल 1996 में इंडियन क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन से शादी के बाद उन्होंने फिल्मों को पूरी तरह अलविदा कह दिया. हालांकि, साल 2010 में दोनों का तलाक हो गया. लेकिन वो अभी भी फिल्मों से दूर हैं.

ट्विंकल खन्ना

1995 में आई फिल्म ‘बरसात’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाली ट्विंकल ने ‘जान’ (1996), ‘जब प्यार किसी से होता है’ (1998), ‘मेला’ (2000), ‘जोरू का गुलाम’ (2000) और ‘जोड़ी नंबर 1’ (2001) जैसी कई फिल्में की. साल 2001 में रिलीज हुई ‘लव के लिए कुछ भी करेगा’ उनकी आखिरी फिल्म थी. अक्षय कुमार से शादी(2001) के बाद उन्होंने एक्टिंग छोड़ दी. फिलहाल वो बेटे आरव और बेटी नितारा की परवरिश में बिजी हैं. ट्विंकल इंटीरियर डेकोरेटर हैं और एक अच्छी लेखिका भी.

अमृता अरोड़ा

साल 2002 में फिल्म ‘कितने दूर कितने पास’ से करियर शुरू करने वाली अमृता ने ‘गर्लफ्रेंड’ (2004), ‘फाइट क्लब’ (2006) और ‘कमबख्त इश्क’ (2009) जैसी कई फिल्मों में काम किया. लेकिन साल 2009 में शकील लडक से शादी के बाद उन्होंने फिल्मों को पूरी तरह अलविदा कह दिया. फिल्मों से दूर अमृता अपने दो बच्चों अजान और रयान की परवरिश में बिजी हैं. उन्हें अक्सर फिल्मी पार्टियों में देखा जाता है.

गायत्री जोशी

कई टीवी कमर्शियल्स के बाद गायत्री शाहरुख खान के साथ ‘स्वदेस'(2004) में दिखीं. फिल्म से उन्हें शोहरत भी मिली, लेकिन ये उनकी पहली और आखिरी फिल्म रही. इसके बाद उन्होंने बिजनेसमैन विकास ओबेरॉय से शादी कर ली और एक्टिंग करियर छोड़ दिया. गायत्री के दो बच्चे हैं.

नम्रता शिरोड़कर

एक्स मिस इंडिया नम्रता ने ‘वास्तव’ (1999), ‘पुकार’ (2000) और ‘ब्राइड एंड प्रिज्युडिस’ (2004) जैसी कई फिल्मों में काम किया. तेलुगु फिल्मों के सुपरस्टार महेश बाबू से शादी कर ली. शादी के बाद उन्होंने एक्टिंग छोड़ दी. फिलहाल वो अपने दोनों बच्चों गौतम और सितारा की परवरिश पर ध्यान दे रही हैं.

मीनाक्षी शेषाद्री

मीनाक्षी ने करियर की पीक पर पहुंचकर बैंकर हरीश मैसूर से शादी की और अमेरिका जाकर बस गईं. जैकी श्रॉफ, ऋषि कपूर और सनी देओल जैसे टॉप स्टार्स के साथ काम करने वाली मीनाक्षी ने ‘मेरी जंग’(1985), ‘घर हो तो ऐसा’ (1990), ‘घायल’(1990), ‘दामिनी’ (1993) और ‘घातक’(1996) जैसी कई हिट फिल्में दीं है. फिलहाल वो अपनी बेटी केंद्रा और बेटे जोश की परवरिश में बिजी हैं और टेक्सास में डांस क्लास भी चलाती हैं. समय-समय पर अपनी पूरी टीम के साथ इवेंट्स का हिस्सा बनती हैं.

किमी काटकर

‘जुम्मा चुम्मा'(1991) गाने से पॉपुलर हुई किमी काटकर की इमेज बोल्ड एक्ट्रेस की रही. 1985 में बनी ‘टार्जन’ किमी की पहली फिल्म थी. इसके पहले वे फिल्म ‘पत्थर दिल’ (1985) में सपोर्टिंग एक्ट्रेस के रूप में दिखी थी। उन्होंने ‘मर्द की जुबान’ (1987), ‘दरिया दिल’ (1988), ‘वर्दी’ (1989) और ‘गैर कानूनी’ (1989) जैसी कई फिल्मों में काम किया. सेलेब्रिटी फोटोग्राफर शांतनु शौरी से शादी करने के बाद उन्होंने फिल्म लाइन छोड़ दी. उनका एक बेटा सिद्धार्थ है. किमी अभी ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं.

ऐप का मेरे करियर से संबंध नहीं : नेहा शर्मा

बिहार के भागलपुर के एक राजनीतिज्ञ परिवार से संबंध रखने वाली अदाकारा नेहा शर्मा ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत दक्षिण भारत की तेलगू फिल्मों से की थी. दो सफल फिल्में करने के बाद उन्होंने इमरान हाशमी के साथ हिंदी फिल्म ‘‘क्रूक’’ से बॉलीवुड में कदम रखा. तब से सात वर्षों में अंदर वह बमुश्किल सात हिंदी फिल्मों में नजर आयीं. जबकि उन्हें हर बड़े बैनर व बड़े कलाकारों के साथ अभिनय करने का अवसर मिला.

इन दिनों वह अनिल कपूर व अर्जुन कपूर के साथ फिल्म ‘‘मुबारका’’ भी कर रही हैं. इसी बीच अब वह अपना ‘‘ऐप’’ भी लेकर आ गयी हैं. प्रस्तुत है नेहा शर्मा से हुई बातचीत के अंश

आपको अपना ऐप निकालने की जरूरत क्यों महसूस हुई?

मुझे जरूरत महसूस नहीं हुई, लेकिन ऐप बनाने वाली कंपनी ‘इस्कापेक्स’ ने मुझसे संपर्क किया. उन्होंने मुझे ऐप के बारे में विस्तृत जानकारी दी. तो मुझे एहसास हुआ कि ऐप होना कितना जरूरी है. क्योंकि इसमें बहुत कुछ है. मेरे फैन्स मेरे संपर्क में आने के लिए, मेरे बारे में जानकारी हासिल करने के लिए अलग अलग सोशल मीडिया यानी कि इंस्टाग्राम, फेसबुक, ट्विटर वगैरह पर जाते हैं. इससे उनका काफी समय बर्बाद होता है. पर अब उन्हें मेरे बारे में किसी भी जानकारी को हासिल करने के लिए अलग अलग सोशल मीडिया पर जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी. उन्हें सारी जानकारी मेरे ऐप से मिल जाएगी. इससे उनके समय में बचत होगी. उन्हें मेरे फोटो से लेकर हर तरह की जानकारी मेरे ऐप पर मिल जाएगी. यह एक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय है. इसके अलावा हम ऐप के माध्यम से बहुत कुछ कर सकते हैं. जबकि सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफार्म पर यह सुविधाएं नहीं हैं.

आप किन सुविधाओं की बात कर रही हैं, जो कि दूसरे सोशल मीडिया पर नहीं हैं?

हम अपने ऐप पर रोचक वीडियो डाल सकते हैं. रोचक गेम डाल सकते हैं. हम अपने फैन के साथ कांटेंस्ट यानी कि प्रतियोगिताएं आयोजित कर सकते हैं. हम इस आधार पर उन्हें नंबर वन फैन या सुपर फैन बना सकते हैं. हम मजाकिया अंदाज में अपने फैन से ढेर सारी बातचीत कर सकते हैं. उनके संपर्क में रह सकते हैं. जब आप मेरे ऐप पर जाएंगे, तो आपको समझ में आएगा कि इसमें कितनी नयी नयी चीजें हैं. जो कि किसी दूसरे सोशल मीडिया पर नहीं मिलेंगी.

आप अपने संबंध में किस तरह की जानकारियां अपने ऐप में डालने वाली हैं?

मेरी कोशिश रहेगी कि मैं अपने ऐप में ज्यादा से ज्यादा चीजें डालूं. अपने संबंध में ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की कोशिश करूंगी. मैं अपने फैन को अपनी पसंद नापसंद के बारे में बताउंगी. देखिए, अब तक हम अकेले अपने बारे में सब कुछ नहीं फिल्मा पा रहे थे और ना ही हर चीज हम सोशल मीडिया पर पोस्ट कर पा रहे थे. लेकिन अब हमारे साथ एक पूरी टीम होगी, जो कि मेरे साथ काम करेगी. मुझसे संबंधित ज्यादा से ज्यादा कंटेंट तैयार करेगी और उसे ऐप में डालती रहेगी. इस ऐप में यह भी होगा कि मेरा पूरा दिन किस तरह से गुजरता है. हमारी टीम उसका वीडियो बनाकर ऐप में डालेगी.

आपके इस ऐप से आपके करियर को कितना फायदा होगा?

इस संबंध में मैं कुछ नहीं कह सकती. क्योंकि ऐप तो मेरे और मेरे फैन्स के बीच संपर्क का सेतु है. ऐप का मेरे फिल्मों के चयन से कोई संबंध नहीं है. जबकि मेरा करियर मेरी फिल्मों के चयन पर निर्भर करता है. ऐप एक ऐसा माध्यम है, जहां हम अपने फैन से वन टू वन बात कर सकते हैं. उनकी बातों को सुनकर हम उनको जवाब भी दे सकते हैं. हम अपने फैन की राय जानकर अपने आप में सुधार या बदलाव ला सकते हैं. कहने का अर्थ यह है कि ऐप मेरे फैन्स के लिए है, जिससे वह मुझसे आसानी से सपंर्क कर सकें. ऐप का करियर से कोई संबंध नहीं है. करियर तो फिल्मों से जुड़ा मसला है, जो कि मेरी जिंदगी का एक अलग अध्याय है. इसलिए ऐप से मेरे करियर को कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

सोशल मीडिया पर इस कदर व्यस्त रहती हैं, उससे आपके करियर को फायदा होता है?

मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. मैंने इस संबंध में रिसर्च नहीं किया है कि सोशल मीडिया से करियर को फायदा होता है या नहीं होता है. मैं बड़ी ईमानदारी से कह रही हूं कि मुझे नहीं पता कि सोशल मीडिया से करियर को क्या फायदा होता है. आज की तारीख में मैं आपके इस सवाल का जवाब नहीं दे पाउंगी. हां, मैं इतना जानती हूं कि यदि मुझे अपने फैन्स से बातचीत करनी है, तो वह फिल्मों के माध्यम से संभव नहीं है. सोशल मीडिया या ऐप ने यह सुविधा हमें दे दी है.

पर करियर में जहां पहुंचना है, उसके लिए..?

बात को बीच में ही काटकर नेहा शर्मा ने कहा, देखिए ऐप या सोशल मीडिया किसी को किसी मुकाम पर पहुंचाने का काम नहीं करती है. पर सोशल मीडिया पर हम फैन्स से बात करते हैं. मुझे अपनी हर फिल्म, हर गाने, फिल्म के हर ट्रेलर व हर विज्ञापन फिल्म को लेकर अपने फैन्स से उनकी बेबाक राय मिलती है. मैं यह सारी चीजें, अपनी फिल्मों की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर डालती रहती हूं. आज की तारीख में मेरे सारे फैन्स इस तरह के सोशल मीडिया प्लेटफार्म को लेकर बहुत सजग हैं. वह मुझे तुरंत अपनी राय देते हैं. यह बहुत अच्छी बात है.

आपके अपने मोबाइल पर किसके ऐप हैं?

ईमानदारी की बात यही है कि जब तक इस्कापेक्स कंपनी मेरे पास आयी नहीं थी, तब तक मुझे ऐप के बारे में कुछ पता नही था. इसलिए मेरे मोबाइल पर कोई ऐप नहीं है.

इस कंपनी ने किन लोगों के ऐप लॉन्च किए हैं?

‘इस्कापेक्स’ ने पूरे विश्व में तमाम लोगों के ऐप लॉन्च किए हैं. भारत में भी तमाम कलाकारों के ऐप ला चुका है. सनी लियोनी, नरगिस फाकरी, सलमान खान, अक्षय कुमार, सोनम कपूर सहित बहुत सारे लोगों के ऐप ही कंपनी लेकर आयी है. मुझे पता नहीं था और जब पता चला, तो मैंने इससे जुड़ने के लिए हामी भरी.

आप आपने ऐप की तुलना बाजार में उपलब्ध दूसरे कलाकारों के ऐप से कैसे करेंगीं?

हर कलाकार की अपनी अलग शख्सियत व व्यक्तित्व होता है.हर कलाकार अपनी रूचि के अनुरूप या अपने फैंस का ख्याल रखते हुए ऐप में कंटेंट डालता है. मेरा ऐप एकदम मेरे जैसा ही है. मैं जो कुछ देखना चाहती हूं या अपने फैंस तक जो बात पहुंचाना चाहती हूं, वह दूसरे कलाकारों के मुकाबले बहुत अलग है. 

अपनी नई फिल्म ‘‘मुबारका’’ को लेकर क्या कहेंगी?

‘‘मुबारका’’ अनीस बजमी की अपनी क्लासिकल स्टाइल की कॉमेडी फिल्म है. जिसमें कई बड़े बड़े व ग्लैमरस कलाकार हैं. इसमें मेरा किरदार स्पेशल अपियरेंस वाला है.

कहानी : प्रेम गली अति संकरी

कबीर कहते हैं, ‘कबीरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं, सीस उतारे हाथि धरे, सो पैसे घर माहिं.’ उन सस्ते दिनों में भी आशिक और महबूबा के लिए प्रेम करना खांडे की धार पर चलने के समान था. आम लोग बेशक आशिकों को बेकार आदमी समझते होंगे, जो रातदिन महबूबा की याद में टाइम खोटा करते हैं. आशिकों को मालूम नहीं कि प्रेम करते ही सारा जमाना उन के खिलाफ हो जाता है.

गालिब कहते हैं, ‘इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के.’ जिगर मुरादाबादी ने कहा है, ‘इश्क जब तक न कर चुके रुसवा, आदमी काम का नहीं होता.’ अब कौन सही है और कौन गलत, जवानी की दहलीज पर पांव रखने वाले नवयुवक क्या समझें? ये सब उन पुराने जमाने के शायरों की मिलीजुली साजिश का नतीजा था कि लोग प्रेम से दूर भागने लगे थे. मीरा बोली, ‘जो मैं जानती प्रीत करे दुख होय, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोई.’ फिर वही जमाना पलट आया है, जब बच्चों को इस नामुराद इश्क के कीड़े से दूर रहने की सलाह दी जाती है. तभी तो आज फिल्मों में गाने भी इस तरह के आ रहे हैं जैसे, ‘प्यार तू ने क्या किया’, ‘इस दिल ने किया है निकम्मा’, ‘कमबख्त इश्क है जो’.

एक कवि कहता है, ‘प्रेम गली अति संकरी, इस में दो न समाए.’ दो का अर्थ है 2 रकीब, जो एक ही महबूबा को एक ही समय में एकसाथ लाइन मारते हैं. कवि कहता है कि प्रेम नगर की गली बहुत तंग है. इसे एक समय में एक ही व्यक्ति पार कर सकता है. आशिक और महबूबा का गली में साथसाथ खड़े होना संभव नहीं बल्कि खतरे से खाली नहीं है, वर्जित भी है क्योंकि पड़ोसियों की सोच बहुत तंग है. लड़की के भाई जोरावर हैं और बाप पहलवान है.

इतनी सारी पाबंदियों के चलते दैहिक स्तर पर प्रेम का प्रदर्शन सूनी छत पर तो हो सकता है, गली में नहीं. तभी कवि जोर देता है कि प्रेम गली अति संकरी, इस में दो न समाए. लोगों का मानना है कि गलियां तो आनेजाने के लिए होती हैं. सभी लोग गलियों में ही प्रेम का इजहार करने लग जाएंगे तो आवकजावक यानी यातायात संबंधी बाधाएं उत्पन्न हो जाएंगी.

प्यार पाना या गवांना इतना उल्लासपूर्ण या त्रासद नहीं जितना प्रेम की राह में किसी अन्य का आ जाना, किसी का आना मजा किरकिरा तो करता ही है, उस के साथ प्यार किसी प्रतियोगिता से कम नहीं रह जाता और इस प्रतियोगिता में सारी बाजी पलटती हुई नजर आती है. सारी उर्दू शायरी रकीब के आसपास घूमती है. नायिका को हर समय यही डर सताता रहता है कि उस ने जो प्रेम का मायाजाल रचा है उस में कोई तीसरा आ कर टांग न अड़ाए.

असली जिंदगी में भी एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं. प्रेम में त्रिकोण का साहित्यिक व फिल्मी महत्त्व भी है. होता यों है कि नायकनायिका प्रेम की पींगे भर रहे होते हैं तभी जानेअनजाने कोई तीसरा आदमी कबाब में हड्डी की तरह पता नहीं कैसे और कहां से टपक पड़ता है. वैसे तो उस के होने से ही कथा में तनाव गहराता है मगर उस का होना जनता को गवारा नहीं लगता. प्रेमी को प्रेमिका से सहज भाव से प्रेम हो जाए, शादी हो जाए और फिर बच्चे हो जाएं तो सारा किस्सा ही अनरोमांटिक हो जाता है. कथा को आगे बढ़ाने के लिए कोई न कोई अवरोधक तो चाहिए ही न. बहुत कम कहानियां ऐसी होती हैं जिन में नायक व नायिका खुद एक दूसरे से उलझ जाते हैं. बात उन के अलगाव पर जा कर खत्म होती है मगर 90 फीसदी कहानियों में बाहरी दखल जरूरी है. इसी हस्तक्षेप के कारण कथा को गति मिलती है व कुछ रोचकता पैदा होती है.

प्रेम में रुकावट के लिए या तो किसी दूसरे आदमी या विलेन या क्रूर समाज की मौजूदगी होनी बहुत जरूरी है. प्रेम में जितनी बाधाएं होंगी, तड़प उतनी ही गहरी होगी और प्रेम की अनुभूति उतनी ही तीव्र होगी.

प्रेम कथा का प्लाट गहराएगा. लैलामजनूं, हीररांझा, शीरीफरहाद या रोमियोजूलियट जैसी विश्व की महान कथाओं में समाज पूरी शिद्दत के साथ प्रेमियों की राह में दीवार बन कर खड़ा हो गया था. कहीं पारिवारिक रंजिश के चलते तो कहीं विलेन की चालों के कारण 2 लोग आपस में नहीं मिल पाए तो एक बड़ी प्रेम कहानी ने जन्म लिया, जो सदियों तक लोगों को रुलाती रहती है.

कुछ कहानियों में किसी तीसरे की मौजूदगी इस कदर अनिवार्य व स्वीकार्य होती है कि प्रेमी या प्रेमिका उस की खातिर खुद को मिटाने का फैसला कर बैठता है. प्यार में यह अनचाही व बेमतलब की कुरबानी हमारी फिल्मों में सफलतापूर्वक फिट होती है मगर असल जिंदगी में ऐसे त्यागी लोग ढूंढ़े नहीं मिलेंगे.

आदमी की प्रकृति है जलन करना. इस जलन से मुक्ति पाने की कोशिश वैसे ही है जैसे अपनी परछाईं से मुक्त होना. इस जलन का एक दूसरा रूप है जब हम रिश्तों के क्षेत्र में संयुक्त स्वामित्व चाहते हैं यानी जिस से हम प्यार करते हैं उसे कोई दूसरा चाहने लगे तो हमारी ईर्ष्या चरम पर होती है. साहिर लुधियानवी ने इस जलन को क्या खूब बयान किया है, ‘तुम अगर मुझ को न चाहो, तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी…’ इस मुश्किल को आसान बनाने के लिए हमारे फिल्मी निर्देशकों ने कहानी में एक नए तरह के मोड़ को लाने की कोशिश की. नायक या नायिका को किसी दूसरे आदमी के प्रेम की छाया से मुक्त करने के लिए सहानुभूति के कारक की मदद ली गई. नया या पुराना आशिक किसी हालत का शिकार दिखाया जाने लगा. कैंसर या लापता होना या उस की अचानक मौत दिखा कर नायिका के मन में चल रहे द्वंद्व का हल निकाला गया.

– जसविंदर शर्मा

यह कैसी राजभक्ति?

खुद को धर्म, जाति विशेष या संस्कृति का अघोषित ठेकेदार समझने वाले स्थानीय संगठनों द्वारा कानून अपने हाथ में लेने का कुछ समय से देश में चलन सा हो गया है. करणी सेना की करतूत कुछ इसी तरह की है.

राजपूत करणी सेना ने जयपुर में फिल्माई जा रही फिल्म ‘पद्मावती’ के सैट पर ऊधम मचाया और फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली से मारपीट की जबकि संजय लीला भंसाली के प्रोडक्शन हाउस ने करणी सेना को पत्र लिख कर स्पष्ट भी किया कि फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच सपने में रोमांस किए जाने जैसा कोईर् सीन नहीं है.

इस बारे में उन्होंने सितंबर 2016 में राजपूत सभा को एक पत्र लिखा था. पत्र में उन्होंने कहा था कि फिल्म ऐतिहासिक तौर पर पूरी तरह सटीक होगी. बावजूद इस के 27 जनवरी को जयपुर में फिल्म के सैट पर करणी सेना द्वारा हंगामा और मारपीट की गई, जिसे कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता. बाद में 29 जनवरी को लिखे गए पत्र में संजयलीला भंसाली ने यह रिक्वैस्ट की कि वे अपने शूट को आगे बढ़ाने जा रहे हैं और उन के प्रोडक्शन के खिलाफ कोई कदम न उठाया जाए. गौर करने की बात यह थी कि हमले से पहले कथित करणी सेना के सदस्यों ने तो फिल्म का कोई टीजर, ट्रेलर या लीक्ड सीन भी नहीं देखा था. फिर भी फिल्म के सैट पर तोड़फोड़ की गई, शूटिंग का सामान तोड़ा गया और संजय लीला भंसाली को चांटे मारे गए. करणी सेना के लोगों का कहना था कि फिल्म में रानी पद्मावती से जुड़े इतिहास से छेड़छाड़ की गई है.

बौलीवुड के कई जानेमाने और फिल्म निर्माताओं, अभिनेताओं ने भंसाली पर हुए हमले की निंदा की. शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा, ‘‘ये मूर्ख तत्त्व किसी भी हिंदू विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करते. दुनिया का कोईर् भी धर्म किसी को हिंसा करने या कानून को अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं देता. मुझे नहीं पता कि वे किस की राजभक्ति करते हैं और किस चीज का विरोध कर रहे हैं. क्या उन्होंने भंसाली की फिल्म पद्मावती देखी है? क्या उन्हें पता है उस में क्या है? वे उस चीज का विरोध कैसे कर सकते हैं, जो हुआ ही नहीं है?’’

निर्देशक अनुराग कश्यप ने भी संजय लीला भंसाली के साथ जयपुर में हुई घटना का कड़ा विरोध किया. सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वालों पर अनुराग कश्यप ने फेसबुक पोस्ट करते हुए लिखा, ‘‘आप की यह भीड़ मुझे डरा नहीं सकती. मैं ने हमेशा सवाल करना सीखा है और मैं अपने सवाल करने के अधिकार का हमेशा इस्तेमाल करूंगा. मैं कई मुद्दों पर तब से आवाज उठा रहा हूं जब ये बिना चेहरे और आवाज के लोग सोशल मीडिया पर एक भीड़ बन कर नहीं होते थे. मुझे फर्क नहीं पड़ता आप क्या कहते या करते हैं. आप मुझ पर मौखिक या शारीरिक हमले कर सकते हैं. मैं हमेशा गलत विरोध में आवाज उठाऊंगा.

‘‘मैं ने हमेशा से सरकार चलाने वालों से सवाल किया है. जब मैं छात्र था, तब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे. तब मुझे सिखाया गया था कि प्रधानमंत्री देश का प्रमुख होता है, जिस से आप सवाल पूछ, जवाब मांग सकते हैं और बहस कर सकते हैं. उस से डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसे आप ने चुना है और वह आप के भले के लिए काम करता है.’’

अनुराग कश्यप के बाद सैंसर बोर्ड यानी सीबीएफसी के अध्यक्ष पहलाज निहलानी की प्रतिक्रिया भी बहुत कुछ कहती है. पहलाज निहलानी ने कहा, ‘‘फिल्मकार संजय लीला भंसाली ने अपनी फिल्मों के जरिए भारतीय पर्यटन को काफी बढ़ावा दिया है.’’ उन पर जयपुर में हुए हमले की निंदा करते हुए निहलानी ने कहा, ‘‘यह घटना राजस्थान पर्यटन के लिए झटका है.’’ उन्होंने इस हिंसा को शर्मनाक घटना बताते हुए

कहा, ‘‘संजय लीला भंसाली ने सिनेमा को दुनिया के हर कोने में पहुंचाया है. वे दुनियाभर में जीनियस के रूप में जाने जाते हैं और उन्होंने भारत के पर्यटन के लिए बहुत कुछ किया भी है.’’

भंसाली की अन्य फिल्मों ‘खामोशी : द म्यूजिकल’ और ‘गुजारिश’ की शूटिंग्स गोवा में की गई थी और उन फिल्मों ने गोवा के तटीय सौंदर्य का प्रचार किया था. ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘गोलियों की रासलीला-रामलीला’ से गुजरात की संस्कृति का प्रचार हुआ था तो ‘बाजीराव मस्तानी’ ने दुनियाभर में मराठा योद्धाओं की कहानी का प्रचारप्रसार किया. और अब ‘पद्मावती’ राजस्थान की समृद्ध संस्कृति और विरासत का एक नया अध्याय खोलने जा रही थी. लेकिन अब सवाल यह है कि क्या ये गुंडे तत्त्व भंसाली को राजस्थान में शूटिंग करने देंगे? क्या वे कभी वहां वापस जाएंगे? यह घटना राजस्थान पर्यटन के लिए बड़े घाटे का सबब बन सकती है.

राज्य सरकार की जिम्मेदारी

भंसाली को जयपुर में शूटिंग करने की अनुमति देने के बाद उन की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी, जो उस ने अच्छी तरह नहीं निभाई. जबकि मौरीशस और दक्षिण अफ्रीका में भारतीय फिल्मों को शूटिंग के लिए हर तरह की सुरक्षा व मदद उपलब्ध होती हैं. भारत में सहायता की बात तो दूर, शूट करने वाली टीम के सदस्यों और उपकरणों की सुरक्षा तक खतरे में होती है.

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक संजय लीला भंसाली पर फिल्म में राजपूत महारानी पद्मावती के प्रेम में पड़े दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी से संबंधित इतिहास से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया है.

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ के कारण इस किरदार के होने और न होने पर खूब बहस हो रही है. जहां कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पद्मावती एक साहित्यिक किरदार है वहीं कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि साहित्य इतिहास से बिलकुल अलहदा नहीं होता. कहते हैं कि 1540 ईसवी में शेरशाह का जमाना था और उसी वक्त मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्मावत की रचना की थी. तब शेरशाह उत्तर भारत में अफगानों का एक बड़ा साम्राज्य स्थापित कर रहे थे.

बाबर के बाद हुमायूं को खदेड़ते हुए ईरान की सीमा तक पहुंच कर शेरशाह ने अपने साम्राज्य की स्थापना की थी. जायसी चिश्ती सूफी थे. चिश्तियों ने हिंदुस्तान के लोगों को जोड़ने का काम किया था. उन्होंने ऐसी जबान में बोलना और लिखना

शुरू किया था, जिसे आम लोग समझ सकते थे. जायसी ने पद्मावत ठेठ अवधि भाषा में लिखी थी. अवधि भाषा को उस जमाने के हिंदूमुसलमान दोनों समझते थे. कहते हैं कि पद्मावत में राजा रतनसेन और पद्मावती का जो प्रेमप्रसंग है, उसे जायसी ने सूफियों के तरीके से लिखा था.

प्रकृति के लिए सबकुछ निछावर कर देना सूफियों की आदत में शुमार रहा है. पद्मावत में इसी कोशिश की झलक मिलती है. जबकि अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ईसवी में चित्तौड़ को जीता था और जायसी ने पद्मावत में खिलजी को खलनायक की तरह दिखाया. जायसी ने इस में अलाउद्दीन खिलजी के साम्राज्य को दुनिया के रूप में दिखाया. वहीं रतनसेन और पद्मावती के बीच जो प्रेम है वह प्रकृति के लिए समर्पित है. दोनों एकदूसरे में मिल कर खत्म हो जाते हैं.

पद्मावत सूफियों के लिए प्रेमाख्यान है. इन्हीं प्रेमाख्यानों में एक ‘चंदायन’ है जिसे मुल्ला दाऊद ने लिखा था. इस के बाद ‘मधुमालती’ और ‘मृगावती’ जैसे आख्यान भी लिखे गए. इन सभी में पद्मावत की हैसियत सब से ज्यादा है. इस कहानी का जिक्र वाचिक परंपरा में रहा होगा.

भारतीय परंपराओं में जो कहानियां अस्तित्व में थीं, उन्हें सूफियों ने अपने अंदाज में और अपनी जरूरत के हिसाब से लिखा है. यह सही है कि पद्मावती किसी एक मुकम्मल ऐतिहासिक किरदार के रूप में नहीं है. हमें ऐसा कहीं नहीं मिलेगा कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया और तब पद्मावती बचने की कोशिश कर रही थी.

पद्मावती की कहानी जायसी से शुरू जरूर होती है लेकिन इस के बाद रुकती नहीं है. पद्मावती का जिक्र 15वीं से ले कर 16वीं, 18वीं शताब्दी तक में भी मिलता है. अलाउद्दीन और पद्मावती को ले कर लोगों की अलगअलग व्याख्या रही है और इस तरह यह कहानी हमारे इतिहास का हिस्सा बन जाती है. फलस्वरूप, पद्मावती के फिल्मांकन के विरोध को जायज नहीं ठहराया जा सकता.

ऐसे धार्मिक कट्टर संगठनों की मनमरजी के आगे प्रशासन, पुलिस क्यों घुटने टेक देती है, यह समझ से परे है. अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा बन कर मंडरा रहे करणी सेना जैसे असामाजिक तत्त्वों पर लगाम कसनी जरूरी है.

– आशा त्रिपाठी

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