मेरे पापा बेहद खुले विचारों के हैं : मनीषा कीर

भोपाल के नजदीक छोटे से कसबे गोरेगांव की रहने वाली 17 वर्षीय मनीषा कीर को बीते 4 वर्षों में शौट गन ट्रैक शूटिंग में 17 गोल्ड मैडल मिल चुके हैं, जिन में से 2 अंतर्राष्ट्रीय टूरनामैंट में प्राप्त हुए. उड़ती चिडि़या पर निशाना लगाना मनीषा के लिए बाएं हाथ का खेल है. हालांकि मनीषा ने भोपाल की नैशनल राइफल अकादमी से ट्रेनिंग ली है, मगर निशानेबाजी का पहला पाठ उन्होंने अपने पिता, जो पेशे से मछुआरे हैं, से पहले ही सीख लिया था. मछलियों पर निशाना लगा कर जाल बिछाने की कला ने ही मनीषा को अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्र रहना सिखाया. अपनी सफलताओं की सब से अहम कड़ी अपने पिता को मानने वाली मनीषा से बातचीत के कुछ महत्त्वपूर्ण अंश इस प्रकार हैं:

आप की सफलता में आप के पिता का कितना सहयोग रहा?

मेरे पापा ही मेरी प्रेरणा के स्रोत हैं. किसी वस्तु पर निशाना लगाने के लिए जो एकाग्रता चाहिए होती है, वह मैं ने उन्हीं से सीखी है. मैं बचपन में पापा के साथ भोपाल के बड़े तालाब में मछलियां पकड़ने जाती थी. तब मैं देखती थी कि पापा कैसे मछलियों पर सारा ध्यान केंद्रित कर जाल बिछाते थे. शौट गन ट्रैक शूटिंग में भी निशाना साधने से पहले लक्ष्य पर फोकस करना पड़ता है तब जा कर निशाना सही लगता है.

क्या आज भी आप अपने पिता के साथ मछलियां पकड़ने जाती हैं?

ट्रेनिंग और टूरनामैंट्स की वजह से अब मैं घर पर ज्यादा वक्त नहीं बिता पाती हूं. लेकिन जब भी घर जाती हूं पापा के साथ मछलियां पकड़ने बड़े तालाब पर जरूर जाती हूं.

पिता की दी किस सलाह को आप हमेशा याद रखती हैं?

जब मेरा अकादमी में ऐडमिशन हो गया और मुझे होस्टल में रहने जाना पड़ा तब गांव के कई लोगों ने पापा से कहा कि इतनी छोटी उम्र में बेटी को बाहर भेज दिया. कोई ऊंचनीच हो गई तो? तब मुझे भी उन लोगों की बातों से डर लगने लगा. लेकिन पापा ने कहा कि वे नहीं चाहते कि उन की तरह मेरी जिंदगी भी मछलियों के लिए जाल बिछाते हुए बीत जाए. पापा ने बोला कि जब आगे बढ़ते हैं, तो कठिनाइयां सामने आती ही हैं. मगर उन से लड़ कर जब हम और आगे जाते हैं तब हमें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता. मैं उन की इस बात को हर टूरनामैंट से पहले याद करती हूं और अपनी बैस्ट परफौर्मैंस देती हूं.

पिता की कौन सी बात सब से अधिक प्रभावित करती है?

छोटे से गांव से होने के बावजूद पापा बहुत खुले विचारों के हैं. उन्होंने मुझे और मेरी बहन सुनीता को हमेशा अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रोत्साहित किया. मेरी ही तरह मेरी बहन भी नैशनल लैवल की खिलाड़ी है. पापा ने हमेशा खेल के साथ हमें पढ़ाई में भी आगे रहने के लिए प्रोत्साहित किया. पापा समय के साथ चलने वालों में से हैं और उन की यह बात मुझे बहुत प्रभावित करती है.

आप ने अपने पिता को सब से बड़ी खुशी क्या दी है?

मेरे पिता निशानेबाजी में माहिर थे. उन्हें गुलेल से बहुत अच्छा निशाना लगाना आता है. मगर कभी किसी ने उन्हें प्रोत्साहित नहीं किया और मछलियां पकड़ने के पुश्तैनी काम को जारी रखने की मजबूरी ने उन के इस हुनर को दबा दिया. मगर मुझे जब भी किसी टूरनामैंट में जीत हासिल होती है तो सब से अधिक खुशी उन्हीं को होती है. वे मुझ से कहते हैं कि जो वे न कर सके वह उन की बेटी ने कर दिखाया. यह बात उन्हें सब से ज्यादा सुकून देती है.

मेरे पिता ने मेरा हौसला बढ़ाया : हर्शिनी कान्हेकर

भारत की पहली फायर वूमन हर्शिनी कान्हेकर ने यह सिद्ध कर दिया है कि जैंडर के आधार पर कोई काम निर्धारित नहीं होता, क्योंकि आज महिलाएं हर क्षेत्र में ऊंचाइयां छू रही हैं. हां, 10-15 साल पहले बात अलग थी, जब महिलाओं को आगे बढ़ने से रोका जाता था. हर्शिनी के इस सफल अभियान में उन  के पिता ने बहुत सहयोग दिया. हर्शिनी के 69 वर्षीय पिता बापुराव गोपाल राव कान्हेकर महाराष्ट्र के सिंचाई विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर हैं. उन्हें पढ़ाई के बारे में बहुत जानकारी थी. उन्होंने अपनी पत्नी को भी शादी के बाद पढ़ने के लिए प्रेरित किया. वे हमेशा किसी न किसी कोर्स के बारे में हर्शिनी को बताते रहते थे, उस सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के लिए प्रोत्साहित करते थे ताकि हर्शिनी की स्पीड लिखने में बढ़े. उन्होंने हमेशा बच्चों को ग्राउंडेड रखा. वे कहते हैं, ‘‘मुझे पता था कि हर्शिनी इस फील्ड में अच्छा करेगी. उस का पैशन मुझे दिख गया था. मैं सुबह उठ कर उसे प्रैक्टिस के लिए रोज तैयार करता था ताकि उसे मेरे पैशन का भी पता लगे.’’

अपने पिता के सपने को साकार करते हुए आज हर्शिनी ओएनजीसी की फायर सर्विसेज की डिप्टी मैनेजर हैं. आइए जानते हैं उन की सफलता का राज:

यहां तक आने की शुरुआत कैसे हुई?

मेरे पिता हमेशा शिक्षा को ले कर बहुत जागरूक थे. किसी नए कालेज में जाने से पहले वे वहां की सारी सिचुएशन से हमें अवगत कराते थे. फायर कालेज में एडमिशन के दौरान वे मुझे वहां ले गए, तो पता चला कि वहां आज तक किसी लड़की ने दाखिला नहीं लिया है. सब चौंक गए कि लड़की यहां कैसे आई. उन्होंने यहां तक कहा कि मैडम आप आर्मी या नेवी में कोशिश करें, यह तो लड़कों का कालेज है. यहां आप टिक नहीं पाएंगी. ये बातें मुझे पिंच कर गईं. मगर मेरे पिता ने मेरा हौसला बढ़ाया और मैं ने तभी ठान लिया कि मैं यहीं पढ़ूंगी. मेरी फ्रैंड ने भी मेरे साथ फार्म भरा. यूपीएससी की इस परीक्षा में केवल 30 सीटें पूरे भारत में थीं. मैं ने प्रवेश परीक्षा दी और पास हो गई. मेरे लिए यह बड़ी बात थी.

पुरुषों के क्षेत्र में पढ़ने और काम करने में कितनी चुनौती थी?

परीक्षा पास करने के बाद भी लोगों ने तरहतरह की राय दीं. यह कोर्स क्या है यह समझने में मेरे मातापिता ने भी समय लिया. फिर मैं ने इस क्षेत्र के एक व्यक्ति से परामर्श लिया, तो पता चला कि कोर्स बहुत अच्छा है. फिर मेरे पिता ने भी मेरा पूरा साथ दिया और मैं ने ऐडमिशन ले लिया. जब मैं ने खाकी वरदी पहनी, तो मेरी मनोकामना तो पूरी हुई, पर दायित्व भी आ गया. जो लोग पहले हंस रहे थे वे अब चुप थे. मुझे प्रूव करना था. मैं वे सभी काम किया करती थी, जो लड़के करते थे. मैं ने अपनेआप को पूरी तरह से अनुशासन में ढाल लिया था ताकि कोई मेरे ऊपर उंगली न उठाए. कमजोरी मैं ने कभी कोई नहीं दिखाई, क्योंकि इस का असर बाकी लड़कियों पर पड़ता, क्योंकि मैं उन का प्रतिनिधित्व कर रही थी.

पिता की कौन सी बात को अपने जीवन में उतारती हैं?

लोग मुझे कहते हैं कि मैं बहुत साहसी हूं पर मेरे मातापिता मुझ से भी अधिक साहसी हैं. तभी तो उन्होंने मुझे लड़कों के कालेज में भेजने की हिम्मत दिखाई. जब मैं कोलकाता में 3 महीने जैंट्स होस्टल में अकेली रही. पिता मुझे अलग भी रख सकते थे, पर उन्होंने वहीं रह कर मुझे पढ़ने का निर्देश दिया. मुझे लगता है मेरे पिता ने समाज की उस सोच को बदलने में बड़ा कदम उठाया, जो लड़कालड़की में भेद करती है.

पापा बाहर से सख्त और अंदर से नर्म हैं : गीता फोगट

हर लड़की की तरह चूड़ियां झुमके पहनने और बिंदी लगाने का शौक राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान गीता फोगट को भी है. मगर यह शौक पूरा करने के लिए उन्हें बचपन से काफी संघर्ष करना पड़ा.

इस संघर्ष की शुरुआत तब हुई जब बचपन में ही उन के पिता महावीर फोगट ने उन्हें अखाड़े में पहलवानी के लिए उतार दिया. मगर आज उसी संघर्ष का नतीजा है कि गीता पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन कर रही हैं, जिस का पूरा श्रेय गीता अपने पिता को देती हैं. बात-चीत के दौरान उन्होंने अपने पिता से जुड़ी कई बातें बताईं:

क्या बचपन से ही आप को अपने पिता से इतना जुड़ाव था?

माता-पिता से तो हर बच्चे को जुड़ाव होता है. हम बहनें भी मम्मी-पापा दोनों से ही भावनात्मक रूप से काफी जुड़ी थीं. मगर जब पापा ने मुझे और बबीता पर पहलवानी सीखने का दबाव बनाया, तो वे हमें दुश्मन जैसे लगने लगे. पहलवानी की वजह से हमारा रहनसहन आम लड़कियों से अलग हो गया था. हमारी सारी सहेलियां हम से दूर रहने लगी थीं. सुबह-शाम अखाड़ा और पापा यही हमारी जिंदगी थी. पापा हमें टीवी तक नहीं देखने देते थे. हमें उन की आहट से भी डर लगता था. ऐसा लगने लगा था कि हमारा बचपन पहलवानी करने में खो सा गया है. मगर तब यह नहीं पता था कि उन की बदौलत हमें एक दिन इतनी शोहरत मिलेगी.

आप को अपने पिता की कौन सी बात सब से अधिक अच्छी लगती है?

हरियाणा में महिलाओं को घूंघट से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं होती. अपनी मां को भी हम ने हमेशा घूंघट में ही देखा. ऐसे माहौल में भी पापा ने हमारी परवरिश इस तरह की कि हमें कभी लगा ही नहीं कि हम लड़कियां हैं और हमें ऐसे नहीं रहना चाहिए. गांव में सभी ने पापा का विरोध किया. यह तक कह दिया कि पहलवानी से लड़कियों का शरीर बिगड़ रहा है. कौन करेगा इन से शादी? मगर पापा के कदम कभी पीछे नहीं हटे. पापा की तरह मैं भी कभी किसी भी परिस्थिति में घबराती नहीं हूं. पापा ने यह साबित कर दिया कि अलग सोच को नई दिशा देने से ही समाज में बदलाव संभव है.

पहलवानी के अलावा आप ने अपने पिता से और क्या सीखा?

मेरे पापा बहुत सख्त थे और बहुत ज्यादा अनुशासनप्रिय भी. पापा हमें प्रैक्टिस के लिए सुबह 3:30 बजे उठा देते थे और खुद भी हमारे साथ होते थे. खानापीना सब हमें समय से लेना होता था. एक खिलाड़ी के लिए यह सब बहुत जरूरी है. यदि खिलाड़ी में अनुशासन न हो, तो वह कभी सफल नहीं हो सकता. 

आप के पिता अन्य पिताओं से कैसे अलग हैं?

पापा बाकी पिताओं से बहुत अलग हैं. अपनी बेटियों को अखाड़े में उतारने के लिए दम चाहिए, जो हर पिता में नहीं होता. जब हम ने पहलवानी शुरू की तब हमारे गांव और आसपास के गांवों में भी कोई महिला पहलवान नहीं थी. पापा प्रैक्टिस के लिए हमें बेझिझक लड़कों के साथ अखाड़े में उतार देते थे और हम भी लड़कों से जीत कर पापा को खुश कर देती थीं. 

क्या अब भी वे उतने ही सख्त हैं जितने पहले थे?

नहीं. शुरुआती दिनों में जब हम पहलवानी नहीं करना चाहती थीं बस तभी तक पापा हमें सख्त लगते थे, मगर जब हमें समझ में आया कि वे हमारा ही भविष्य बना रहे हैं तब एहसास हुआ कि पापा बाहर से सख्त और अंदर से नर्म हैं.

चुनौतियां मुझे कुछ नया करने को प्रेरित करती हैं : रश्मि शर्मा

मध्यवर्गीय परिवार में जन्मीं रश्मि शर्मा ने कभी नहीं सोचा था कि वे आगे चल कर राइटर से क्रिएटिव डायरैक्टर और फिर प्रोड्यूसर बनेंगी. लेकिन मेहनत, लगन और कुछ कर दिखाने की जिद ने उन्हें आम से खास बना दिया. 2008 में रश्मि ने पहली बार धारावाहिक ‘राजा की आएगी बरात’ के लिए काम किया. उस के बाद ‘रहना है तेरी पलकों की छांव में’, ‘मिसेज कौशिक की 5 बहुएं’, ‘देश की बेटी नंदनी’ के साथ मानो उन की सफलता का सिलसिला शुरू हो गया. धारावाहिक ‘साथिया साथ निभाना’ और ‘ससुराल सिमर का’ ने अब तक 1000 से भी अधिक ऐपिसोड पूरे कर लिए हैं, तो उन के दूसरे सीरियल्स जैसे ‘शक्ति’, ‘स्वरागिनी’, ‘सरोजिनी’ आदि हमेशा टीआरपी की रेस में आगे रहे. बता दें कि इन में से कुछ धारावाहिक उन्होंने खुद लिखे हैं. आइए, रश्मि के व्यक्तित्व को और करीब से जानें:

आप के मन में प्रोड्यूसर बनने का खयाल कब आया?

मैं ने इंडस्ट्री में शुरुआत बतौर क्रिएटिव डायरैक्टर की. प्रोड्यूसर बनने से पहले मैं कई धारावाहिकों की क्रिएटिव हैड रह चुकी हूं. उन धारावाहिकों की कहानी को सोचना, स्टोरी लाइन बनाना, उसे दर्शकों के सामने परोसना यह सब मेरा काम होता था. कई धारावाहिकों में काम करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि जो चीजें आज मैं दूसरों के लिए कर रही हूं, उन्हें मैं अपने लिए भी तो कर सकती हूं. दरअसल, आप जब किसी दूसरे इनसान के प्रोडक्ट को प्रेजैंट करते हैं, तो आप पर बहुत सारी पाबंदियां लगाई जाती हैं. दूसरों के लिए धारावाहिक करते समय कई बार मुझे ऐसा लगता था कि अगर यह शो मेरा होता तो मैं इसे अलग दिशा में ले जाती. इन्हीं सोचों के साथ और खुद को पहले एक अच्छा क्रिएटिव हैड साबित करने के बाद मैं ने प्रोड्यूसर बनने की सोची.

मेल डौमिनेटिंग ग्लैमर इंडस्ट्री में अपने लिए स्थान बनाना कितना मुश्किल रहा?

मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं और यह कहूंगी भी कि ग्लैमर इंडस्ट्री में मेल डौमिनेशन बहुत ज्यादा स्ट्रौंग है. यहां एक फीमेल होने के नाते अपनी बात रखना और मनवाना बहुत मुश्किल है. लेकिन एक औरत होते हुए भी मैं ने अपनेआप को दोनों इंडस्ट्री (फिल्म और टीवी) में बेहतरीन तरीके से पेश किया. मैं अपनी बातें मनवाने में सफल भी रही हूं. हां, लेकिन मैं यह बात भी कहना चाहती हूं कि जब मैं क्रिएटिव हैड थी, तब मुझे यह डौमिनेशन सहना पड़ा था, लेकिन मेरा इस बात में गहरा यकीन है कि अगर आप को अपना काम आता है, आप अपने काम के प्रति ईमानदार हैं, तो आप को कोई डौमिनेट नहीं कर सकता. मेरे अंदर शुरू से सीखने की कला रही है. मैं ने बहुत निचले दर्जे से काम करना शुरू किया था, इसलिए मैं अपना काम अच्छी तरह जानती हूं और सही फैसला लेने में सक्षम हूं.

आप के व्यक्तित्व को निखारने में आप के पिता की क्या भूमिका रही है?

मेरे पिता प्रिंसिपल थे और मां हाउसवाइफ. मेरे पिताजी का जहांजहां तबादला होता था, हम उन के साथ चले जाते थे. मेरी पढ़ाई भी उन्हीं की निगरानी में हुई है. आज मेरी लाइफ में जो अनुशासन है, काम के प्रति जो डैडिकेशन है और काम को ले कर मैं जितनी फोक्सड हूं, सब उन्हीं की बदौलत है. चूंकि मेरे पिता ऐजुकेशन बैकग्राउंड से रहे हैं, इसलिए वे ओपन माइंडेड भी थे. वे अकसर कहते थे कि जहां मन चाहे उस दिशा में कैरियर बनाओ, लेकिन पढ़ाई पर खास ध्यान दो. उन का मानना था कि लड़का हो या लड़की उस का पढ़ालिखा होना बहुत जरूरी है.

आज किस तरह की चुनौतियां आप के सामने हैं?

हमेशा कुछ नया करना इस फील्ड की सब से बड़ी चुनौती है, जो कभी खत्म होने वाली नहीं है. यहां सब से बड़ी चुनौती है नया कौन्सैप्ट सोचना. कुछ ऐसा जो किसी और के दिमाग में न हो. बिलकुल अलग. मेरे लिए अपनेआप में यह एक चुनौती है कि मैं वह न सोचूं जो लोग सोच रहे हैं. मेरी सोच उन से अलग हो. इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है. काफी नए लोग नए टेलैंट के साथ आ रहे हैं. ऐसे में अपनेआप को सब से अलग रखना और अपनी बात को सही तरीके से दर्शकों तक पहुंचाना अपनेआप में एक चुनौती है. लेकिन यह एक ऐसी चुनौती है, जो मुझे कुछ नया करने के लिए प्रेरित करती है.

कैंसर मेरी जिंदगी का सिर्फ एक पन्ना है : आनंदा शंकर जयंत

यदि आप कैंसर को एक चुनौती के रूप में लेती हैं और यह तय करती हैं कि आप को इस से लड़ना ही है, छुटकारा पाना ही है तो यह मुश्किल नहीं है. इस का ताजा उदाहरण हैं आनंदा शंकर जयंत, जिन्होंने अपनी कीमो थेरैपी के दौरान भी डांस प्रैक्टिस को जारी रखा और अपने पैशन से कैंसर पर जीत हासिल की. पेश हैं, आनंदा से हुई मुलाकात के कुछ अहम अंश:

कैंसर का पता चलने पर आप की क्या प्रतिक्रिया रही?

मैं काफी उदास हो गई. घर आ कर रोई भी, पर इसलिए नहीं कि मुझे ब्रैस्ट कैंसर है, बल्कि इसलिए कि इस की वजह से मेरे डांस में गैप आ जाएगा, मैं डांस नहीं कर पाऊंगी. दरअसल, जब आप कला के क्षेत्र से ब्रेक लेते हैं तो आप खत्म से हो जाते हैं, पर मैं कला को नहीं छोड़ना चाहती थी. अत: मैं इस सोच के साथ आगे बढ़ी कि कुछ भी हो जाए, लेकिन मुझे इस कठिनाई से बाहर निकलना ही है.

उस वक्त कई तरह की बातें दिमाग में आ रही थीं. अचानक मेरे दिमाग में एक खयाल आया और मैं ने अपने पति जयंत से पूछा कि क्या यह अंत है मेरे जीवन का, नहींनहीं मेरे डांस का? तो उन्होंने प्यार से कहा कि तुम बस ट्रीटमैंट लो. सब ठीक हो जाएगा. उन का पौजिटिव व्यवहार देख कर मैं ने निर्णय लिया कि मैं कैंसर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दूंगी. अत: मैं ने अपनेआप से तेज आवाज में 3 बातें कहीं-

पहली यह कि कैंसर मेरी जिंदगी का सिर्फ एक पन्ना है, मैं इसे पूरी किताब नहीं बनने दूंगी, दूसरी यह कि मैं इसे अपनी जिंदगी से बाहर कर दूंगी न कि अपनी जिंदगी में शामिल होने दूंगी और तीसरी यह कि मैं कभी यह सवाल नहीं करूं गी कि मैं ही क्यों?

वह दिन है और आज का दिन मैं ने इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया, बल्कि इस पर जीत हासिल कर के आगे बढ़ी.

इस स्थिति में डांस पर कैसे फोकस किया?

इस कठिन स्थिति से बाहर निकलने का श्रेय मैं अपने पति और डांस को ही देती हूं. डांस ने न सिर्फ मुझे परेशान होने से बचाया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि कैंसर मेरे जीवन को घेरे न रखे. 7 जुलाई, 2008 को मेरी सर्जरी हुई थी. सर्जरी के 3 दिन बाद मैं घर आई. 2-3 दिन आराम जरूर किया, लेकिन खुद को कभी बीमार के रूप में नहीं रखा. उस दौरान भी मैं बच्चों को रिहर्सल करवाती थी, अपने लैपटौप पर काम करती थी.

इस दौरान पति का कैसा सहयोग रहा?

मेरे पति जयंत बहुत ही रोमांटिक इनसान हैं. वे मेरे सब से अच्छे दोस्त हैं. उस वक्त उन के प्यार व सपोर्ट से ही मैं कैंसर की गिरफ्त से बाहर निकल पाई. कीमो थेरैपी के बाद जब मैं सोई रहती थी तब वे ही मुझे कहते थे कि उठो, बहुत हुआ सोना. अब प्रैक्टिस करो. उस दौरान उन की सब से अच्छी बात यह थी कि वे मुझे कुछ भी करने से नहीं रोकते थे, बल्कि कहते थे तुम्हारी बौडी है, तुम अपनी बौडी को अच्छी तरह से जानती हो, इसलिए तुम्हारा जो करने का दिल करता है करो.

एक डांसर के लिए उस के बाल और खूबसूरती बहुत माने रखती है. ऐसे में बाल झड़ने पर आप क्या फील कर रही थीं?

अधिकांश महिलाओं को लगता है कि बालों के बिना कैसे रहेंगी, कैसी दिखेंगी, लोग क्या कहेंगे. लेकिन मैं ने अपने बालों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि मेरे डाक्टर ने मुझे बताया था कि कीमो थेरैपी के दौरान बाल झड़ते हैं, लेकिन कीमो साइकिल खत्म होते ही आ भी जाते हैं. मेरे साथ हुआ भी ऐसा ही. 8वीं कीमो के बाद 2-3 महीने के अंदर मेरे बाल आ गए. हां, उस दौरान मैं विग लगाने लगी थी.

हैल्थ को ले कर महिलाओं से क्या कहना चाहेंगी?

महिलाएं परिवार के सदस्यों को देखने के बाद ही अपने बारे में सोचती हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें तो कोई प्रौब्लम नहीं है, फिर क्यों डाक्टर के पास जाएं. जब होगी तब देखी जाएगी. इसी वजह से कई मामलों में ट्रीटमैंट संभव नहीं हो पाता. इसलिए जरूरी है कि 40 साल की उम्र के बाद हर महिला को साल में एक बार मैडिकल चैकअप जरूर करवाना चाहिए. यह एक नौर्मल टैस्ट है, जो आप की हैल्थ के लिए जरूरी है. अगर टैस्ट में कैंसर का पता भी चलता है, तो घबराने की जरूरत नहीं है और न ही इसे अपनी जिंदगी का अंत समझना चाहिए, बल्कि इस सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए कि अच्छा हुआ पहले पता चल गया.

परिवार के साथ बहुत धक्के खाए हैं : गीता टंडन

मन में अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कठिन से कठिन हालात भी आगे बढ़ने की राह में रोड़ा नहीं बनते. ऐसी ही जीवन की कठिन राह पर अपने आत्मविश्वास के बलबूते सफलता की नई इबारत लिखने वाली बॉलीवुड की स्टंट वूमन गीता टंडन हैं.  बॉलीवुड में कई अभिनेत्रियों के लिए स्टंट कर चुकीं गीता की बीती जिंदगी भी उन के प्रोफैशन के जैसी ही कठिन और जोखिम भरी रही है.

महज 15 साल की उम्र में शादी हो जाने और उस के बाद पति व सास की प्रताड़ना से निकल कर 2 बच्चों को पालने तथा स्टंट जैसे जोखिम भरे प्रोफैशन के साथ सम्मान की जिंदगी जीने वाली गीता रीबोक ‘फिट टू फाइट’ अवार्ड से सम्मानित हैं. एक मुलाकात के दौरान उन से हुई बातचीत के कुछ चुनिंदा अंश पेश हैं:

स्टंट वूमन बनने का सफर कैसा रहा?

जैसे हर एक काली रात के बाद सुबह होती है, मेरा जीवन भी कुछ उसी तरह का रहा. जब 15 साल की थी, तो पिता ने मेरी शादी यह सोच कर कर दी कि मैं शादी के बाद खुश रहूंगी, क्योंकि शादी के पहले मैं ने अपने परिवार के साथ बहुत धक्के खाए थे. लेकिन शादी के बाद भी वे सभी अरमान हवा हो गए, जो मैं ने संजोए थे. पति शराबी था. रोज पीटता था. सास भी प्रताडि़त करती थी. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी जब मेरी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया, तब मैं ने फैसला किया कि मैं ऐसे ही अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी बरबाद नहीं होने दूंगी. अत: पति का घर छोड़ दिया. समाज ने बहुत कुछ कहा. पति का घर छोड़ने के बाद कई रातें सड़कों पर गुजारीं. लोगों के घरों में काम किया, क्योंकि मुझे पैसों की जरूरत थी.

3 साल ऐसे ही संघर्ष करते निकल गए.  इस के बाद एक भांगड़ा पार्टी में शामिल हो गई. शादीविवाह पर डांस करने लगी. जब पैसे आए तब जिंदगी में कुछ सुधार आया, लेकिन मुझे और पैसों की जरूरत थी. तभी किसी ने फिल्मों में स्टंट के बारे में बताया कि इस में पैसे अच्छे मिलते हैं. तब मैं यह काम करने लगी.

अतीत कैसा रहा?

पिछला समय कठिनाइयों में गुजरा है. तभी आने वाला समय अच्छा बन पाया है. मैं अपने बुरे अतीत को हमेशा अपने लिए पौजिटिव मानती हूं, क्योंकि अगर जरूरतें न होतीं तो मैं कभी इस प्रोफैशन को न चुन पाती. मैं मानती हूं कि मेरी पैसे की जरूरत ही इस काम के लिए मेरा जनून बन गई.

इतना जोखिम भरा काम ही क्यों चुना?

मैं ऐसा बिलकुल नहीं बोलूंगी कि मेरा बचपन से ही स्टंट करने का सपना रहा है. सच बताऊं तो जब मैं जीवन की उस राह पर खड़ी थी जब मुझे पैसों की बहुत जरूरत थी तब जो काम मिला मैं करती गई. मेरा मानना है कि काम कोई छोटाबड़ा नहीं होता. अगर मुझे सड़क पर झाड़ू लगाने का काम भी मिलता तो मैं हां कर देती, क्योंकि उस में पैसे तो मिलते. ऐसे ही जब स्टंट करने का काम मेरे पास आया तो मैं ने हां कह दी. मेरे पास इस काम की कोई ट्रेनिंग नहीं थी, लेकिन वक्त हर काम करवा देता है.

असली पहचान कब मिली?

पहले मुझे सिर्फ इंडस्ट्री के लोग ही जानते थे कि मैं एक स्टंट वूमन हूं और 2 बच्चों की सिंगल मदर हूं. लेकिन जब मेरी डौक्यूमैंटरी आई तब लोगों के सामने मेरी कहानी आई. इस के बाद तो मेरी जिंदगी ही बदल गई. मुझे कई अवार्ड मिले. इंटरव्यू के लिए लोगों के फोन आने लगे. पहले मैं अपनी कहानी सब के सामने लाने के पक्ष में नहीं थी, लेकिन जब लोगों ने कहा कि मेरी कहानी से और लोग भी प्रेरित होंगे तब मैं ने डौक्यूमैंटरी के लिए हां कही.

सपने देखती हैं?

मेरा मानना है कि अगर सपने ही न होंगे, तो उन्हें सच करने की प्रेरणा कहां से मिलेगी. मेरा  अक्षय कुमार के साथ काम करने का बचपन से सपना था. फिल्म ‘दे दनादन’ में उन्हें करीब से देखने का मौका तो मिल गया. लेकिन साथ काम कभी नहीं कर पाऊंगी, क्योंकि मैं तो एक स्टंट वूमन हूं कोई ऐक्ट्रैस नहीं.

अपने बच्चों के लिए क्या सपने हैं आप के?

मैं ने हमेशा उन्हें एक बात सिखाई है कि जिंदगी में जैसा खुद को बनाओगे वैसे ही तुम्हें लोग मिलेंगे. खूब पढ़ो और वह सब करो, जो मैं न कर पाई. उन दोनों में मैं अपना बचपन और जवानी जीते देखना चाहती हूं. बेटा फिल्म इंडस्ट्री में आना चाहता है पर क्या काम करेगा, यह अभी तय नहीं है. 

इन सितारों ने की भागम-भाग शादी

प्यार करना आसान है, लेकिन उसे निभाना उतना ही मुश्किल‌‌‌‌‌, और सबसे ज्याद मुश्किल तब हो जाता है, जब आप किसी के साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहते हो. और आपके घर के लोग इसके खिलाफ रहते हैं.
‌‌‌‌प्यार कोई जाति, धर्म देखकर नहीं होता है, बस हो जाता है, और इतना हो जाता है कि लोग साथ मरने जीने की कसमें खा लेते है, वहीं उनके इसी प्यार के आड़े जब जाति के बंधन के लिए घर वाले और ये समाज आता है, तो बिना लोगों की परवाह ये अपना सही गलत चुन लेते है और वो अपने प्यार के लिए सारी दुनिया से लड़ने को तैयार हो जाते हैं.‌‌‌‌‌‌ ये सामाजिक परेशानियां केवल हम आम लोगों के साथ नहीं होती है, बल्कि इस समस्या से हमारे बॉलीवुड सितारे भी अछूते नहीं रहे हैं. कुछ फिल्मी सितारे जिन्होंने अपने प्यार के लिए घर से भागकर शादी की.

सोहेल और सीमा सचदेव

एक्टर-प्रोड्यूसर सोहेल खान की कहानी भी उनकी फिल्मों की तरह ही है ‌दरअसल सोहेल को एक हिंदू लड़की सीमा सचदेव से प्यार हो गया, लेकिन सोहेल को ड़र था कि कहीं परिवार के दबाव में आकर उनका प्यार उनसे जुदा न हो जाएं,‌‌‌‌‌‌ इसलिए सोहेल ने सीमा से भागकर शादी कर ली.‌‌‌ सोहेल खान की शादी की दिलचस्प बात ये है कि सोहेल ने उसी दिन शादी की थी जिस दिन उनके भाई सलमान खान की फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ पर्दे पर आई थी.‌‌‌‌‌‌

आमिर खान और रीना दत्ता

आमिर जिस तरह अपनी फिल्मों में अभिनेत्री के साथ भागकर शादी करते है. उन्होंने ऐसा अपनी असल जिन्दगी में भी किया. आमिर को रीना से प्यार हो गया, लेकिन अलग मजहब होने के कारण दोनों के घरवाले राजी नहीं थे.‌‌‌‌‌ और फिर उन्होंने इस रिश्ते को निभाने के लिए घर से भागकर शादी कर ली. हालांकी यह रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चला और आमिर ने किरण राव से दूसरी शादी कर ली थी.

शशि कपूर और जेनिफर

शशि कपूर ने भले ही फिल्मों में खूब नाम कमाया हो, लेकिन उनका पहला प्यार थिएटर था.‌‌‌‌‌‌ शशि अक्सर अपना वक्त थिएटर में बिताया करते थे और वहीं उन्हें अपना जीवनसाथी भी मिल गया.‌‌‌‌‌‌ कोलकाता के एक थिएटर में शशि कपूर को एक विदेशी कलाकार से प्यार हो गया.‌‌‌‌‌‌ दोनों अक्सर साथ काम करते थे.‌‌‌‌‌‌ शशि कपूर भारतीय थे इसलिए जेनफिर के पिता ने यह रिश्ता नामंजूर कर दिया.‌‌‌‌‌‌ लेकिन जमाने की परवाह ना करते हुए शशि कपूर ने जेनिफर से हिंदू रीति रिवाज के अनुसार शादी कर ली.‌‌‌‌‌

गीता बाली और शम्मी

सूत्रों के मुताबिक इन दोनों के ‘रंगीला रतन’ फिल्म के दौरान नैन मिले थे. उस समय कपूर खानदान में एक अघोषित-सा नियम था कि फिल्म एक्ट्रेस से कोई शादी नहीं करेगा. इसलिए शम्मी और गीता बाली थोड़ा डरे हुए थे. उम्र में भी गीता, शम्मी से बड़ी थी और उस जमाने में इसे बेमेल जोड़ी माना जाता था. प्यार किया तो डरना क्या तर्ज पर शम्मी-गीता ने पहली मुलाकात के लगभग चार महीने बाद मुंबई के एक मंदिर में शादी कर ली और उसके बाद ही अपने परिवार को बताया.

आशा भोसले और गनपत राव भोसले

सुरों की देवी आशा भोसले ने 16 वर्ष की उम्र में अपने 31 वर्षीय प्रेमी ‘गणपत राव भोसले’ के साथ घर से भागकर पारिवारिक इच्छा के खिलाफ विवाह किया, लेकिन ये जोड़ी 1960 में टूट गई. इनके तीन बच्चे हैं. 1980 में आशा जी ने ‘राहुल देव वर्मन’ से विवाह किया.

म्यूचुअल फंड से करें टैक्स प्लान

इनकम टैक्स का नाम सुनते ही ज्यादातर लोग नए नए तरीके सोचने लगते हैं कि टैक्स कैसे बचाएं, क्या करें कि टैक्स का भुगतान कम करना पड़े. कुछ लोगों का तो आधे से ज्यादा समय टैक्स बचाने की युक्ति खोजने में ही बीत जाता है.

क्या आप भी उन लोगों में शामिल हैं? अगर हां, तो म्यूचुअल फंड में पैसे निवेश करने के बारे में आप का क्या विचार है? अब आप सोच रहे होंगे कि आप को तो म्यूचुअल फंड के बारे में कुछ भी नहीं पता, इस से आप कैसे टैक्स बचा सकते हैं?

एक प्रभावी योजना

दरअसल, म्यूचुअल फंड में ई.एल.एस.एस. एक ऐसी प्रभावी योजना है, जिस में निवेश करने पर आप को अच्छा रिटर्न तो मिल ही सकता है, आप इस से टैक्स में भी छूट पा सकते हैं. ई.एल.एस.एस. एक डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड है, जिस में राशि को अलग अलग उद्योगों और कंपनियों के शयरों में निवेश किया जाता है, जिस से कि फंड में विविधता बनी रहे.

इसमें इनकम टैक्स ऐक्ट 1961 की धारा 80सी के अनुसार एक वित्तीय वर्ष में अपनी सकल कुल आय से अपने ई.एल.एस.एस. निवेश के 1.50 लाख रुपए तक कटौती के रूप में क्लेम किया जा सकता है. टैक्स में छूट के लिए जितनी भी निवेश की अन्य योजनाएं उपलब्ध हैं जैसेकि बैंक डिपौजिट, पीपीएफ, पोस्ट औफिस सेविंग अकाउंट. इन में ई.एल.एस.एस. में सब से कम समय के लिए निवेश किया जाता है.

इस में खरीदी गई यूनिट को तब तक सौंपा, हस्तांतरित गिरवी व स्विच नहीं किया जा सकता जब तक कि संबंधित यूनिट के आवंटन की तिथि से 3 वर्ष पूरे न हो जाएं.

अच्छे रिटर्न का प्रभावी माध्यम

आप सोच रहे होंगे कि किस फंड में निवेश करें? आज मार्केट में कई सारे म्यूचुअल फंड उपलबध हैं, जो टैक्स में छूट की सुविधा देते हैं. इन में कुछ म्यूचुअल फंड टैक्स सेविंग का एक बेहतर विकल्प हैं. म्यूचुअल फंड से प्राप्त राशि टैक्स फ्री होती है यानी जब अवधि पूरी होने पर आप को कुल राशि प्राप्त होती है तो आप को उस पर टैक्स नहीं देना पड़ता. इस में निवेशक को फार्म भर डौक्यूमैंट के साथ चैक को दाता म्यूचुअल फंड के औफिस या फिर रजिस्ट्रार के औफिस में जमा करना पड़ता है.

न्यूनतम निवेश से शुरुआत

यह जरूरी नहीं है कि आप बड़ी रकम निवेश कर के ही कर में छूट पा सकते हैं. इस में आप अपनी सुविधानुसार कितनी भी राशि निवेश कर सकते हैं. निवेश की न्यूनतम राशि 500 रुपए है और अधिकतम राशि निवेश करने की कोईर् सीमा नहीं है. आप कितनी भी राशि निवेश कर सकते हैं.

इस में निवेशक एस.आई.पी. यानी सिस्टेमैटिक इनवैस्टमैंट प्लान द्वारा भी निवेश कर सकते हैं और एकसाथ भी कर सकते हैं. एस.आई.पी. में थोड़थोड़ी राशि किश्तों में जमा की जाती है और एकसाथ कुल राशि का भुगतान एक बार में ही करना पड़ता है.

यह उन लोगों के लिए भी उपयोगी है जिन्होंने अपनी नईनई नौकरी शुरू की है. इस से उन में सेविंग की आदत बनी रहती है. कई लोग ऐसा सोचते हैं कि यह 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए उपयोगी नहीं है. लेकिन ऐसा नहीं है.

यदि कोई व्यक्ति 60 वर्ष से अधिक उम्र का है और उस की आय या पैंशन आदि सब मिला कर कर योग्य है, तो उन के लिए भी यह उपयोगी है. इस में जोखिम है, लेकिन रिटर्न अच्छा मिल सकता है.

मार्केट ऐक्सपर्ट की मानें तो टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड पीपीएफ की तुलना में एक अच्छा विकल्प है.

म्यूचुअल फंड में निवेश करें तो ध्यान रखें कि ई.एल.एस.एस. अन्य म्यूचुअल फंडों की तरह बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए इन में निवेश करते समय सावधानी जरूरी है. निवेश से पहले कंपनी के औफर डौक्यूमैंट को पढ़ना और म्यूचुअल फंड के पुराने ट्रैक रिकौर्ड को देखना जरूरी है.

किसी भी म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले थोड़ा होमवर्कजरूर करें. ऐसा न करें कि आप को किसी ने कहा और आप ने उस की बातों पर यकीन कर लिया. आप खुद भी जांचपड़ताल कर लें.

महिलाओं में दिल की बीमारी

दिल की बीमारी का जोखिम महिलाओं पुरुषों में बराबर ही रहता है. हालांकि पुरुषों और महिलाओं में कार्डियोलौजी अलग अलग तरह से काम करता है. पुरुषों और महिलाओं में कार्डियोवैस्क्युलर बीमारियों के साझे जोखिम कारकों (डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, खून में कोलैस्ट्रोल का बढ़ा स्तर और धूम्रपान) के अलावा और भी ऐसे कारक हैं, जो महिलाओं में कार्डियोवैस्क्युलर बीमारी का जोखिम बढ़ा देते हैं.

रजोनिवृत्ति और ऐस्ट्रोजन की हानि

महिलाओं के शरीर में बनने वाला हारमोन ऐस्ट्रोजन हृदय की बीमारियों से प्राकृतिक सुरक्षा मुहैया कराता है. उम्र बढ़ने के साथसाथ प्राकृतिक ऐस्ट्रोजन की कमी से उन में रजोनिवृत्ति के बाद दिल की बीमारी का जोखिम बढ़ सकता है. अगर रजोनिवृत्ति का कारण गर्भाशय या अंडाशय निकालने की सर्जरी की गई हो तो जोखिम और भी बढ़ जाता है.

गर्भनिरोधक गोलियां

खाने वाली कुछ गोलियां दिल की बीमारी का जोखिम पैदा कर सकती हैं खासकर उन महिलाओं में जो धूम्रपान भी करती हैं या जिन्हें उच्च रक्तचाप रहता है. तनाव, मोटापा और अवसाद अच्छेखासे जोखिम कारणों में हैं, जो तुलनात्मक रूप से महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करते हैं.

डायबिटीज की शिकार महिलाओं की कार्डियोवैस्क्युलर बीमारी से मौत का जोखिम डायबिटीज वाले पुरुषों की तुलना में ज्यादा होता है. गर्भावस्था के दौरान अस्थायी डायबिटीज भी महिलाओं में जोखिम बढ़ा देती है.

दिल की कई तरह की बीमारियां महिलाओं में पुरुषों की तुलना में ज्यादा आम हैं. जैसे स्ट्रोक, हाइपरटैंशन, ऐंडोथेलियल डिसफंक्शन और कंजैस्टिव हार्ट फेल्यर.

आज हैल्थकेयर समाज में सब से चर्चित विषय है. अत: महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें और समय पर रोगनिदान हेतु उपचार का चुनाव करें.

-डा. नीति चड्ढा

मैट्रो हौस्पिटल, फरीदाबाद

जायकेदार व्यंजन : सनफ्लौवर सीड्स स्टफ्ड कबाब

सामग्री

1 कप राजमा रात भर पानी में भिगोए

1 हरीमिर्च

1 इंच टुकड़ा अदरक

1 मीडियम आकार का उबला आलू

1/4 कप ब्रैडक्रंब्स

1 बड़ी इलायची

2 छोटी इलायची

4 लौंग

1/2 इंच टुकड़ा दालचीनी

1 छोटा चम्मच जीरा

6-7 धागे केसर

नमक स्वादानुसार

स्टफिंग की सामग्री

3 बड़े चम्मच सनफ्लौवर सीड्स

10-12 काजू

1 छोटा चम्मच खसखस

2 बड़े चम्मच खोया, केवड़ा ऐसेंस और कबाब, सेंकने के लिए थोड़ा सा रिफाइंड औयल

सजावट के लिए प्याज गोल कटा

नमक स्वादानुसार

विधि

राजमा में 2 कप पानी डाल कर प्रैशर कुकर में अच्छी तरह गलने तक पकाएं. पानी सूख जाना चाहिए. खड़े मसालों को हलका सा रोस्ट कर के पीस लें. राजमा में उबला आलू, अदरक व हरीमिर्च डाल कर मिक्सी में पेस्ट बना लें. इस पेस्ट में पिसा खड़ा मसाला व ब्रैडक्रंब्स मिलाएं.

अब भरावन की सामग्री के लिए सनफ्लौवर सीड्स, खसखस और काजू को अलग अलग रोस्ट करें. 1 बड़ा चम्मच सनफ्लौवर सीड्स अलग निकालें और बाकी सीड्स खसखस और काजू को मिला कर पाउडर बना लें. खोए को भी हलका सा सेंक लें. इस में सीड्स पाउडर व भुने सीड्स, नमक और 2 बूंद केवड़ा ऐसेंस मिलाएं.

राजमा मिक्सचर से नीबू के बराबर मिश्रण लें. उस में बीच में थोड़ा सा भरावन भरें और बंद कर के चपटा कर दें. इसी तरह सभी कबाब बनाएं और नौनस्टिक तवे पर थोड़ा थोड़ा तेल डाल कर शैलो फ्राई करें. प्याज के छल्लों के साथ सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: नीरा कुमार

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