बस एक चम्मच जीरा घटाएगा वजन

जीरा, एक ऐसा मसाला है जो खाने में बेहतरीन स्वाद और खुशबू देता है. लेकिन क्या आप ये बात जानते हैं कि इसकी उपयोगिता केवल खाने तक ही सीमित नहीं है. इसके कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ भी हैं. जीरे का इस्तेमाल कई रोगों में दवा के रूप में भी किया जाता है.

जीरे में मैंगनीज, लौह तत्व, मैग्नीशियम, कैल्शियम, जिंक और फॉस्फोरस भरपूर मात्रा में होता है. इसका सर्वाधिक उपयोग मेक्सीको, इंडिया और नार्थ अमेरिका में किया जाता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये तेजी से वजन कम करता है.

यहां जानिये, कैसे जीरे के सेवन से कम होता है वजन :

वजन कम करने के लिए भी जीरा बहुत उपयोगी होता है और जीरा पाउडर, के सेवन से शरीर मे वसा का अवशोषण भी कम होता है जिससे स्वाभाविक रूप से वजन कम करनें में मदद मिलती है.

एक बड़ा चम्‍मच जीरा, एक गिलास पानी मे भिगो कर रात भर के लिए रख दें. सुबह इसे उबाल लें और गर्म-गर्म चाय की तरह पिये और बाकी बचा हुआ जीरा भी चबा लें. इसके रोजाना सेवन से शरीर के किसी भी कोने से अनावश्यक चर्बी शरीर से बाहर निकल जाता है. इस बात का विशेष ध्यान रखे की इस चूर्ण को लेने के बाद 1 घंटे तक कुछ भी न खायें.

इसके अलावा भुनी हुई हींग, काला नमक और जीरा समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, इसे 1-3 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार दही के साथ लेने से भी मोटापा कम होता है. इसके सेवन से न केवल शरीर से अनावश्यक चर्बी दूर हो जाती है बल्कि शरीर में रक्त का परिसंचरण भी तेजी से होता है और कोलेस्‍ट्रॉल भी घटता है.

इन बातों का भी रखें ध्यान…

इसे खाने के बाद रात्रि में कोई दूसरी खाद्य-सामग्री नहीं खाएं. यदि कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है, तम्बाकू-गुटखा खाता या मांसाहार करता है तो उसे ये सभी चीजें छोड़ने पर ही इस दवा फायदा पहुचाएंगी. शाम का भोजन करने के कम-से-कम दो घंटे बाद दवाई लेनी है.

जीरा आपके पाचन तंत्र को बेहतर बनाकर शरीर को ऊर्जावान रखता है. साथ ही यह हमारे इम्यून सिस्टम को भी बढ़ता है. इससे ऊर्जा का स्‍तर भी बढ़ता है और मेटाबॉलिज्म का स्‍तर भी तेज होता है. आपके पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के साथ-साथ फैट बर्न की गति को भी बढ़ाता है. पेट से सबंधित सभी तरह की समस्याओं में जीरे का सेवन लाभकारी होता है. मोटापा कम करने के अलावा भी जीरा कई तरह की बीमारियों में लाभदायक है.

दून की रानी गुच्चुपानी

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून पर्यटन, शिक्षा, स्थापत्य, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए खासा जानी जाती है जो दिल्ली से 230 किलोमीटर दूर स्थित है. यहां की सुंदरता का तो वैसे ही जवाब नहीं लेकिन इस की सुंदरता में चारचांद लगाते हैं लीची, आम वगैरा के पेड़, जिन्हें देख पर्यटक न सिर्फ देखते ही रह जाते हैं बल्कि इन फलों को चखे बिना आगे बढ़ना पसंद भी नहीं करते.

इतना ही नहीं, यहां का पलटन बाजार लोगों की पसंद को हमेशा से ध्यान में रखने के कारण बरबस ही अपनी ओर खींचता है. सिर्फ बाजार ही नहीं बल्कि आधुनिक मौल्स भी शहर को मौडर्न लुक देते हुए प्रतीत होते हैं. इसी शहर में अपार प्राकृतिक सौंदर्य समेटे बसा है गुच्चुपानी.

अगर हम यह कहें कि आप देहरादून घूमने गए और गुच्चुपानी के दीदार नहीं किए तो क्या देखा, कहना गलत नहीं होगा क्योंकि यहां का नजारा मन को रोमांचित जो कर देता है.

गुच्चुपानी गुफा जैसी है. ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के बीच में बहती जलधारा के बीच से जाना काफी रोमांचक लगने के साथसाथ मन में रोमांस भी पैदा करता है. इस में से जाते हुए गुफानुमा एहसास होता है. बहते पानी के दोनों ओर पहाडि़यां हैं जिन्हें पानी में चलते हुए या दूर से देख कर आप को ऐसा एहसास होगा जैसे दोनों पहाडि़यां जुड़ी हुई हैं लेकिन असल में ऐसा नहीं है.

ये पहाडि़यां आपस में मिलती नहीं हैं, लेकिन ऐसा पास जाने पर ही पता चलता है. पर्यटक जब उन दोनों पहाडि़यों के बीच में से निकल कर दूसरी ओर जाते हैं तो उन के मन में खुशी की जो लहर दौड़ती है, शायद उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल होगा.

सुहाना मौसम

कहने भर के लिए यह सिर्फ एक गुफा है लेकिन नजारा दिल को छू जाने वाला. इस 600 मीटर लंबी गुफा में जैसेजैसे आप आगे बढ़ेंगे, आप को 10 मीटर ऊंचाई से गिरते हुए छोटेछोटे झरने दिखेंगे. जिन का ऊपर से गिरना पानी में अठखेलियां करने को आमंत्रित करता है.

सब से खास बात यह है कि इस गुफा में कदम रखते ही आप को बिलकुल भी गंदगी नहीं दिखेगी. पानी इतना साफ, कि देख कर उस में नहाने को मन करे. पानी से गुजरते हुए आप को कंकड़पत्थर भी मिलेंगे, जिन्हें आप यादगार के तौर पर अपने साथ संजो कर भी ला सकते हैं, लेकिन कंकड़ कहीं पैरों में चुभ न जाएं, इसलिए थोड़ी सावधानी बरत कर ही चलना चाहिए.

‘बस डरें नहीं, लेकिन संभल कर चलें, आगे अभी तो और हैं खूबसूरत नजारे’, यह उस गुफा से निकलने वाला व्यक्ति अपने पीछे आने वाले साथियों से कहता चलता है जिन के चेहरे पर डर साफ झलक रहा होता है.

रोमांच का लुत्फ

अकसर यहां आने वाले पर्यटक गुफा में पानी के स्पर्श को महसूस करने के लिए कैपरी या शौर्ट्स वगैरा पहन कर आते हैं या फिर घुटनों तक अपने कपड़ों को ऊपर उठा कर ठंडेठंडे पानी में भीगने का लुत्फ उठाते हैं और अपने मुंह से ‘नैचुरल ब्यूटी टच द हार्ट’ कहते हुए आगे बढ़ते चलते हैं.

सब से अच्छा यह है कि जो पर्यटक यहां पहली बार आते हैं और इस तरह के कपड़े पहन कर नहीं आते जिस से पानी के अंदर जाया जा सके, जैसे साड़ी वगैरा तो वे वहां दुकानों से किराए पर कुछ घंटों के लिए कपड़े ले लेते हैं और फिर खुद को डुबो लेते हैं इस रोमांचक माहौल में.

रौबर्स केव

आप को जान कर हैरानी होगी कि इस गुफा को अंगरेजों के समय से रौबर्स केव कहा जाता है. इस का कारण यह है कि उस समय डकैत डाका डालने के बाद छिपने के लिए इस जगह का इस्तेमाल करते थे जो वर्तमान में गुच्चुपानी के नाम से जानी जाती है और उत्तराखंड सरकार के संरक्षण में इस की देखरेख होती है. यहां प्रवेश शुल्क के रूप में सरकार द्वारा 25 रुपए प्रति व्यक्ति शुल्क निर्धारित किया गया है. और हां, अगर आप ने यहां गंदगी फैलाई तो 200 रुपए जुर्माना देने के लिए तैयार रहें.

यहां आ कर अकसर टूरिस्ट खानपान की दुकानों पर मोमोज, मैगी, ठंडीठंडी हवा में चाय की चुस्कियां लेना नहीं भूलते. वैसे, यहां खानापीना वही है जो आमतौर पर सभी पहाड़ी स्थानों पर होता है. और अगर आप चाहते हैं कि इतनी दूर आए हैं तो थोड़ी शौपिंग करते चलें तो इस के लिए यहां कोई व्यवस्था नहीं है बल्कि इस के लिए आप को दून मार्केट ही जाना पड़ेगा. इस के लिए आप को टैक्सी, बस वगैरा लेनी पड़ेगी.

आप को यहां पहुंचने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी क्योंकि यह स्थान देहरादून बसस्टैंड से 8 किलोमीटर दूर ही स्थित है. आप बस, ट्रेन, फ्लाइट वगैरा किसी भी माध्यम से देहरादून पहुंच सकते हैं. रेलवेस्टेशन देहरादून और एयरपोर्ट जौली ग्रांट है. देहरादून से गुच्चुपानी पहुंचने के लिए आप को टैक्सी, बस वगैरा बहुत आसानी से मिल जाएंगी. भले ही यह छोटा सा पिकनिक स्पौट हो लेकिन यहां की सुंदरता दिल में संजो कर रखने वाली है.

क्या आप भी हैं वाइटहेड्स से परेशान!

कई बार अचानक से चेहरे पर सफेद रंग के दाने दिखने लगते हैं और चेहरा खुरदुरा और भद्दा नजर आने लगता है. इन दानों को ऑयल बम्प या वाइटहेड्स कहते हैं. जब चेहरे के रोमछिद्र किसी कारणवश बंद हो जाते हैं, तो चेहरे से निकलने वाले अतिरिक्त तेल के बाहर न निकल पाने की वजह से नाक और उसके आस-पास दाने निकल आते हैं.

कई बार ये दाने गालों और सीने पर भी हो जाते हैं. इन तैलीय दानों की वजह से चेहरे की रौनक खत्म हो जाती है. कुछ घरेलू नुस्खे वाइटहेड्स से निपटने में आपकी मदद कर सकते हैं.

चंदन और गुलाब जल

चंदन पाउडर और गुलाब जल न सिर्फ त्वचा को ठंडक देते हैं, बल्कि उसे अच्छी तरह से साफ भी करते हैं. चंदन पाउडर में गुलाब जल मिलाकर पेस्ट बना लें और उसे चेहरे पर लगाएं. सूख जाने के बाद ठंडे पानी से धो लें. यह पेस्ट त्वचा से अतिरिक्त तेल को सोखकर वाइटहेड्स की समस्या को जड़ से खत्म करता है.

एलोवेरा जेल

एलोवेरा जेल को व्हाइटहेड्स पर लगाकर हल्के हाथों से मालिश करें. रात भर के लिए छोड़ दें और सुबह ठंडे पानी से चेहरा धो लें. एक माह तक नियमित इस्तेमाल से वाइटहेड्स की समस्या खत्म हो जाएगी.

अरंडी का तेल

अरंडी के तेल (कैस्टर ऑयल) में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं. अरंडी के तेल में मौजूद एंटी बैक्टीरियल तत्व त्वचा से अतिरिक्त तेल को सोखकर तैलीय गांठों को बनने से रोकते हैं. कैस्टर ऑयल को गुनगुना करके उससे चेहरे की मालिश करें. थोड़ी देर बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. अगर कैस्टर ऑयल ज्यादा चिपचिपा लगता है तो आप इसमें थोड़ा-सा ऑलिव ऑयल भी मिला सकती हैं.

शहद

थोड़ा-सा शहद लेकर उसे वाइटहेड्स के ऊपर हल्के हाथों से मालिश करते हुए लगाएं. एक घंटे बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. नियमित तौर पर शहद का इस्तेमाल करने से बंद रोमछिद्र खुल जाएंगे और आपकी त्वचा पर अचानक से हो जाने वाली तैलीय गांठें या दाने खत्म हो जाएंगे.

आलू

अगर आप अपनी त्वचा की रंगत निखारना चाहती हैं और वाइटहेड्स से छुटकारा पाना चाहती हैं तो नियमित रूप से चेहरे पर आलू का इस्तेमाल करें. आलू को कद्दूकस कर लें और इससे धीरे-धीरे त्वचा की मालिश करें. कुछ देर बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. कच्चे आलू का पेस्ट बनाकर उसके रस को भी आप चेहरे पर लगा सकती हैं. सूख जाने के बाद चेहरा ठंडे पानी से धो लें.

मेथी की पत्तियां

मेथी की पत्तियों को धोकर अच्छी तरह से मैश करें और इसके रस को निचोड़ लें. अब इस रस को रुई से चेहरे पर लगाएं. आधे घंटे बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. मेथी की पत्तियों को दूसरी तरह से भी इस्तेमाल किया जा सकता है. दही और मेथी की पत्तियों को ग्राइंडर में डालकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को चेहरे के प्रभावित हिस्से में लगाएं और सूखने के लिए छोड़ दें. जब पेस्ट सूख जाए तो चेहरे को ठंडे पानी से धो लें.

टी ट्री ऑयल

वाइटहेड्स के उपचार के लिए टी ट्री तेल का इस्तेमाल करें. इसके इस्तेमाल से न केवल वाइटहेड्स की समस्या से निजात मिलती है, बल्कि मृत त्वचा से भी छुटकारा मिलता है. इससे रोमछिद्र भी खुल जाते हैं. थोड़ा-सा टी ट्री ऑयल लें और इसमें रुई डुबोकर वाइटहेड्स पर लगाएं. 15 से 20 मिनट बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. आप इस तेल को अपनी मॉइस्चराइजिंग क्रीम में भी मिला सकती हैं. यह त्वचा को नमी और पोषण भी देता है.

अपने होठों से झुर्रियों को हटाइये

देखा गया है कि ज्यादातर महिलाएं मुंह व होठों के आसापास की त्वचा पर लकीरों की समस्या से परेशान रहती हैं. वैसे तो झुर्रियां या लकीरों का दिखना बढ़ती उम्र की निशानी मानी जाती है, लेकिन कई बार बुरी आदतें व दोषपूर्ण जीवनशैली भी इन समस्याओं को बढ़ा देती हैं.

क्या आपको भी कभी ऐसी समस्या का सामना करना पड़ा है. होठों पर झुर्रियां व लाइनों के कई कारण हो सकते हैं. हालांकि इस समस्या से उबरना मुश्किल नहीं है, लेकिन इन कारणों के उपायों के बारे में जानने से पहले एक नजर उन कारणों पर डाल भी डाल लेते हैं…

धूम्रपान

धूम्रपान की आदत ना सिर्फ फेफड़ों के लिए हानिकारक होती है बल्कि यह आपके होठों की त्वचा को भी नुकसान पहुंचाती है. धूम्रपान से कोलेजन व इलेस्टिन ( वे तत्व जो त्वचा को सहारा व संरचना प्रदान करते हैं) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. इसलिए धूम्रपान की आदत को जल्द से जल्द छोड़ने की कोशिश करें.

च्युइंग गम

सुनने में च्युइंग गम खाने की आदत भले ही बुरी ना लगती हो लेकिन ज्यादातर लोग स्मोकिंग के बाद च्युइंग गम खाते हैं जो होठों पर झुर्रियों का कारण बन सकती है. च्युइंग गम खाने से होठों के आसपास की त्वचा या जॉ लाइन क्षतिग्रस्त होने लगती हैं.     

स्ट्रॉ का प्रयोग

जब आप कोई भी ड्रिंक स्ट्रॉ से पीते हैं तो आपके होठों का आकार सिगरेट पीने के समान हो जाता है. स्ट्रॉ का प्रयोग करने वाले लोगों में भी ये समस्या हो सकती है.

होठों पर झुर्रियों व लाइन्स का उपचार

होठों पर झुर्रियों की समस्या से बचने के लिए खास देखभाल की जरूरत होती है. जानिए होठों की झुर्रियों से बचने के आसान उपायों के बारे में –

1. प्रतिदिन 5 से 6 गिलास पानी पिएं. पानी न सिर्फ शरीर में पानी की पूर्ति करता है बल्कि होंठों की नमी भी बनाए रखता है.

2. मौसम में आ रहे बदलाव का सबसे ज्यादा असर होंठों पर पड़ता है, इसलिए अच्छे क्वालिटी का लिप बाम दो से तीन बार लगाएं.

3. यदि होठ स्मोकिंग से काले पड़ चुके हैं तो नींबू लगाइये क्योंकि यह प्राकृतिक ब्लीच होता है. जो कि त्वचा का रंग साफ करेगा.

4. अगर आपको दांतों से होंठ काटने या चबाने की आदत है तो इस आदत को तुरंत बदलें.

5. जब आप लिपस्टिक लगाती हैं तब जिस तरह से अपने होठो को बाहर की ओर निकालती हैं, बिल्कुसल वैसा ही रोज करें. ऐसा दिन में 20 बार करें जिससे आपके होठ भरे-भरे लगें.

6. देशी गुलाब की भीगी हुई पत्तियों को होठों पर कुछ देर तक नियमित मलें. इससे आपके होठ नेचुरल गुलाबी हो जाएंगे.

7. रात को सोने से पहले होंठों पर क्रीम, मलाई, मक्खन या देशी घी हल्के हाथों से कुछ देर मलें. होंठों की त्वचा इससे एक जैसी होकर मुलायम बनी रहेगी.

करिश्मा कपूर और संजय कपूर की जिंदगी की नई शुरुआत

लंबे समय से करिश्मा कपूर और उनके पूर्व पति संजय कपूर अपनी अपनी जिंदगी को नए सिरे से अपने अंदाज में संवारने के लिए संघर्ष कर रहे थे. अंततः दोनों की जिंदगी की नई शुरूआत की खबरें एक ही दिन आ गयीं.

जी हां! करिश्मा कपूर से तलाक होने के बाद से प्रिया सचदेव के संग लंबे समय से डेटिंग करते आ रहे संजय कपूर ने कल प्रिया सचेदव के संग विवाह रचा लिया. यानी कि अब संजय कपूर अपनी जिंदगी में प्रिया सचदेव के साथ आगे बढ़ गए हैं.

तो वहीं करिश्मा कपूर को भी अपनी जिंदगी की नई शुरूआत करने के लिए राह मिल गयी है. संजय कपूर से अलगाव के बाद करिश्मा कूपर भी संदीप तोशनीवाल के संग अपने प्यार की पेंगे बढ़ा रही थी. संदीप तोशनीवाल ने तो करिश्मा कपूर को रहने के लिए मुंबई में आलीशान फ्लैट तक खरीदकर दे दिया था. इसके बावजूद करिश्मा कपूर और संदीप तोशनीवाल की शादी के रास्ते अवरूद्ध थे, क्योंकि तोशनीवाल की पत्नी डॉ. आश्रिता उन्हें तलाक देने को तैयार नहीं थी. लेकिन जिस दिन करिश्मा कपूर के पूर्व पति संजय कपूर ने प्रिया सचदेव के संग विवाह रचाया, उसी दिन करिश्मा कपूर की जिंदगी में भी खुशखबरी आ गयी. उसी दिन करिश्मा कपूर को खबर मिली कि उनके प्रेमी संदीप तोशनीवाल की पत्नी डॉ. आश्रिता ने अंततः संदीप तोशनीवाल को तलाक देने के लिए तैयार हो गयी हैं.

एक वेब साइट के अनुसार डां. आश्रिता को उनके कुछ दोस्तों ने ही सलाह दी कि संदीप तोशनीवाल के साथ झगड़ने में कोई फायदा नहीं है. सूत्रों की माने तो संदीप तोशनीवाल ने डॉ. आश्रिता को दो करोड़ रूपए तथा दोनों बेटियों को तीन-तीन करोड़ रूपए देने के लिए हामी भरी है. बेटियां अपनी मां डॉ. आश्रिता के साथ ही रहेंगी. इसके अलावा दिल्ली के जिस मकान में अभी डॉ. आश्रिता रह रही हैं, वह मकान भी अब डॉ. आश्रिता का हो जाएगा. इस मकान पर संदीप तोशनीवाल का कोई हक नहीं होगा.

इस किरदार के लिए आधे गंजे होंगे राजकुमार राव

नेशनल अवॉर्ड विनर एक्टर राजकुमार राव फिल्ममेकर हंसल मेहता की अगली वेब सीरीज में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रोल में नजर आने वाले हैं. इस रोल में अपने लुक के लिए राजकुमार राव खास तैयारी कर रहे हैं. जी हां इसके लिए वह अपने बालों की भी कुरबानी देने वाले हैं.

सुभाष चंद्र बोस के लिए रोल के लिए राजकुमार आधे गंजे होने वाले हैं. राज कुमार राव ने बताया कि वह इस फिल्म के लिए 10 मई से शूटिंग शुरू करेंगे. फिलहाल इस फिल्म का नाम तय नहीं हुआ है.

राजकुमार ने कहा, “मैं सुभाष चंद्र बोस की भूमिका के लिए आधा गंजा होने की योजना बना रहा हूं.” राजकुमार, सुभाष चंद्र की भूमिका निभाने के लिए उत्साहित हैं.

राजकुमार ने एकता कपूर के आगामी डिजिटल एप एएलटी बालाजी के लॉन्च के अवसर पर कहा, “हम कोलकाता में शूटिंग करेंगे. हम यूरोप और कई अन्य स्थानों पर भी जाएंगे. अभिनेता के रूप में अपने व्यक्तित्व के साथ प्रयोग करना मेरा काम है.”

उन्होंने कहा, “जब हम 10 मई से सीरीज की शूटिंग शुरू करेंगे, लोग मुझे आधा गंजा देखेंगे. मैं विग पहनने में यकीन नहीं करता, इसलिए आधा गंजा होने की योजना बना रहा हूं और सुभाष चंद्र बोस जैसे दिखने की कोशिश करूंगा.”

क्या सफेद बाल छिपाती हैं आप भी

सफेद बालों को छिपाने के लिए लोग डाई या कलर का इस्तेमाल करते हैं लेकिन लोग इसके सही तरीके से अनजान होते हैं. इस वजह से उन्हें बालों से जुड़ी कई तरह की दिक्कतों का सामना पड़ता है.

अगर आप भी बालों को कलर करते हैं या करने की सोच रहे हैं तो ये टिप्स आपके लिए मददगार हो सकते हैं…

1. आजकल बाजार में कैमिकल वाले रंग और डाई मिलने लगे हैं. इससे बचने के लिए हर्बल रंग का इस्तेमाल करें. हर्बल रंग से आपके बालों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता बल्कि इससे आपके बालों में प्राकृतिक चमक आती है.

2. अगर आप सफेद बालों को छिपाने के लिए डाई कर रहे हैं तो अपने बालों के रंग का या उससे मिलता जुलता ही कलर इस्तेमाल करें. इसके अलावा अगर फैशन के चलते कलर कर रहे हैं तो ऐसे रंग का इस्तेमाल करें, जो आपके चेहरे पर भद्दा ना लगे.

3. बालों में कलर या डाई लगाने से पहले पैकेट पर लिखे इसके नियम जरूर पढ़ लें. खासतौर से अगर आप पहली बार कलर कर रहे हैं तो आपको ये जानना बहुत जरूरी है कि कलर को बालों में कितनी देर और कितनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए.

4. बालों में कलर लगाने के एक दिन पहले तेल मालिश जरूर करें. इससे आपके बाल सिल्की और शाइनी हो जाएंगे.

5. अगर दो मुंहे बाल हैं तो पहले उन्हें ट्रिम करवा लें. बालों में कलर करने के बाद ये रूखे और बेजान नजर आते हैं.

6. बालों को कलर करने के बाद उन्हें धोने के लिए सिर्फ पानी का ही इस्तेमाल करें. आप अगले दिन बालों को शैम्पू से धो सकते हैं.

हैप्पी बर्थडे मंदिरा बेदी

मॉडल, एक्ट्रेस, फैशन डिजाइनर और क्रिकेट वर्ल्ड की ग्लैमरस होस्ट मंदिरा बेदी आज अपना 44वां जन्मदिन मना रही हैं. मंदिरा का जन्म 15 अप्रैल 1972 में कोलकाता में हुआ. उन्होंने मुंबई से अपनी पढ़ाई पूरी की. इसके बाद मंदिरा ने सोफिया पॉलीटेक्निक से मीडिया में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. टीवी एक्ट्रेस से लेकर क्रिकेट की पिच तक का सफर तय करने वाली मंदिरा बेदी आज महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी हैं. क्रिकेट की नॉलेज ना होते हुए भी जिस तरह उन्होंने क्रिकेट जगत में अपनी धाक जमाई, वो वाकई काबिलेतारीफ है.

मंदिरा बेदी ने 1994 में दूरदर्शन के टीवी सीरियल ‘शांति’ से छोटे पर्दे पर दस्तक दी. औरत की आवाज उठाने वाले इस सीरियल में मंदिरा शांति के लीड कैरेक्टर में नजर आईं. सीरियल ‘शांति’ से उन्हें इतनी शोहरत मिली कि 1995 में फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में खास रोल मिला. मंदिरा ने फिल्मों की बजाय टीवी शो और सीरियल में ही दिलचस्पी दिखाई. बाद में उन्होंने मशहूर टीवी सीरियल ‘क्यूंकि सास भी कभी बहू थी’ में काम किया.

मंदिरा बेदी ने 1999 में राज कौशल से शादी की. आज वो एक बेटे की मां हैं. मंदिरा बेदी ने बाद में कुछ अलग करने का सोचा और 2003 और 2007 क्रिकेट वर्ल्ड कप की होस्टिंग की. यहां उन्होंने क्रिकेट में ग्लैमर का तड़का लगाया. क्रिकेट विश्व कप ने मंदिरा बेदी को विश्व पटल पर शोहरत दी. बाद में मंदिरा ने आईपीएल, टी-20 और चैंपियंस ट्राफी में भी जलवा बिखेरा. इस बीच वो कुछ क्रिकेट शो भी होस्ट करती रहीं.

मशहूर फैशन मैगजीन ‘वोग’ के लिए मंदिरा ने एक टॉपलेस फोटोशूट करवाया, जिसकी वजह से वो खूब चर्चा में आ गईं. मंदिरा इससे पहले भी अपने कई हॉट फोटोशूट के लिए सुर्खियों में रह चुकी थीं. मंदिरा खुद भी फैशन डिजाइनर हैं. इसमें भी उन्होंने बहुत सी साड़ियां डिजाइन की. वो अपना फैशन स्टोर भी चलाती हैं. इसके साथ ही वो सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं.

मंदिरा के बचपन की बात करें तो वो बेहद शरारती थीं. पढ़ाई से ज्यादा खेलकूद में उनका ध्यान था. बावजूद इसके मैथ्स के अलावा सभी सब्जेक्ट में अच्छे नंबर आते थे. आज मंदिरा क्रिकेट जगत में भले ही रम गईं हों, लेकिन टीवी से उनका प्यार कम नहीं हुआ है. वो रियलिटी शो और छोटे रोल करती ही रहती हैं. इस बीच वह थिएटर भी करती हैं.

क्यों ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं जुबिन नौटियाल

‘‘तेरे लिए’’,‘‘बावरा मन’’, ‘‘काबिल हूं मैं’’ और ‘‘हम्मा हम्मा’’ जैसे लोकप्रिय गीतों को अपनी मधुर आवाज में स्वरबद्ध कर यादगार बना देने वाले गायक जुबिन नौटियाल इन दिनों स्तब्ध हैं और खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. इसकी वजह हालिया रिलीज हुआ फिल्म ‘‘हाफ गर्ल फ्रेंड’’ का गाना ‘‘बारिश.’’ है, जो कि फिल्म में श्रृद्धा कपूर और अर्जुन कपूर पर फिल्माया गया है. वास्तव में इस रोमांटिक गाने को जुबिन नौटियाल ने एक साल पहले अपनी आवाज में रिकार्ड किया था. इस गाने को रिकार्ड करने के बाद मीडिया से बात करते हुए जुबिन नौटियाल ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए कहा था कि वह मोहित सूरी की फिल्म ‘‘हाफ गर्ल फ्रेंड’’ के लिए रोमांटिक गीत ‘‘बारिश’’ को रिकार्ड करके बहुत खुश हैं. उनके लिए यह बड़ी उपलब्धि थी. लेकिन अब जबकि यह गाना बाजार में आया है, तो पता चला कि इसमें जुबिन नौटियाल की बजाय गायक अंश किंग की आवाज है. इससे स्तब्ध जुबिन नौटियाल खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.

हैरान कर देने वाली बात यह है कि फिल्म ‘‘हाफ गर्ल फ्रेंड’’ के निर्देशक मोहित सूरी और संगीतकार तनिष्क बागची ने इस गाने को बहुत पहले ही गायक अंश किंग की आवाज में रिकार्ड कर लिया था. मगर इस बात को गोपनीय बनाकर रखा गया. सूत्रों का दावा है कि मोहित सूरी ने गाने के बाजार में आने के कुछ घंटे पहले जुबिन नौटियाल को बुलाकर समझाते हुए सूचना दे दी थी कि यह गाना उनकी आवाज में नहीं है.

अब संगीतकार तनिष्क बागची भी दावा कर रहे हैं कि उन्होंने इस गाने को कई गायकों से गवाया था. पर फिल्म के किरदार में फिट बैठने वाली आवाज उन्हे गायक अंश किंग में मिली. इसलिए अंश किंग द्वारा स्वरबद्ध गाना फिल्म में रखा गया. मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब जुबिन नौटियाल की आवाज में गाना रिकार्ड किया गया था, तब उन्हें क्यों नहीं बताया गया था कि यह गाना उनकी आवाज में रहेगा या नहीं, यह बात तय नहीं है.

बहरहाल, जुबिन नौटियाल कह रहे हैं कि वह इस बदलाव से चकित हैं. जबकि मोहित सूरी कुछ भी कहने को तैयार नहीं है.

युवाओं के सपने चूर करती अमेरिकी वीजा नीति

अमेरिका की प्रस्तावित नई वीजा नीति से दुनियाभर में खलबली मची हुई है. इस से अमेरिका में रह रहे एच1बी वीजा धारकों की नौकरी पर संकट तो है ही, वहां जाने का सपना देखने वाले युवा और उन के मांबाप भी खासे निराश हैं. एच1बी नीति का विश्वभर में विरोध हो रहा है. अमेरिकी कंपनियां और उन के प्रमुख, जो ज्यादातर गैरअमेरिकी हैं, विरोध कर रहे हैं. खासतौर से सिलीकौन वैली में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं.

सिलीकौन वैली की 130 कंपनियां ट्रंप के फैसले का खुल कर विरोध कर रही हैं. ये कंपनियां दुनियाभर से जुड़ी हुई हैं. वहां काम करने वाले लाखों लोग अलगअलग देशों के नागरिक हैं. उन में खुद के भविष्य को ले कर कई तरह की शंकाएं हैं. हालांकि यह साफ है कि अगर सभी आप्रवासियों पर सख्ती की जाती है तो सिलीकौन वैली ही नहीं, पूरे अमेरिका का कारोबारी संतुलन बिगड़ जाएगा.

इस से उन कंपनियों में दिक्कत होगी जो भारतीय आईटी पेशेवरों को आउटसोर्सिंग करती हैं. कई विदेशी कंपनियां भारतीय कंपनियों से अपने यहां काम का अनुबंध करती हैं. इस के तहत कई भारतीय कंपनियां हर साल हजारों लोगों को अमेरिका में काम करने के लिए भेजती हैं.

आप्रवासन नीति पर विवाद के बीच अमेरिका की 97 कंपनियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ मुकदमा ठोक दिया है. इन में एपल, गूगल, माइक्रोसौफ्ट भी शामिल हैं. इन में से अधिकतर कंपनियां आप्रवासियों ने खड़ी की हैं. उन्होंने अदालत में दावा किया कि राष्ट्रपति का आदेश संविधान के खिलाफ है. आंकड़ों का हवाला दे कर कहा गया है कि अगर इन कंपनियों को मुश्किल होती है तो अमेरिकी इकौनोमी को 23 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है.

कई देश ट्रंप प्रशासन के आगे वीजा नीति न बदलने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं. भारत भी अमेरिका में रह रहे अपने व्यापारियों के माध्यम से दबाव बना रहा है कि जैसेतैसे मामला वापस ले लिया जाए या उदारता बरती जाए. भारत के पक्ष में लौबिंग करने वाले एक समूह नैसकौम के नेतृत्व में भारतीय कंपनियों के बड़े अधिकारी इस मसले को ट्रंप प्रशासन के सामने उठाना चाह रहे हैं.

नई वीजा नीति से भारत सब से अधिक चिंतित है. 150 अरब डौलर का घरेलू आईटी उद्योग संकटों से घिर रहा है. भारत के लाखों लोग अमेरिका में काम कर रहे हैं. तय है वहां काम  कर रहे भारतीय पेशेवरों पर खासा प्रभाव पड़ेगा. इस से टाटा कंसल्टैंसी लिमिटेड यानी टीसीएल, विप्रो, इन्फोसिस जैसी भारतीय आईटी कंपनियां भी प्रभावित होंगी. आईटी विशेषज्ञ यह मान कर चल रहे हैं कि यह नीति अमल में आती है तो यह बड़ी मुसीबत के समान होगी. अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका दुनिया को श्रेष्ठ आविष्कारक देने वाला देश नहीं रह जाएगा.

यह सच है कि दुनियाभर की प्रतिभाएं अमेरिका जाना चाहती हैं. वर्ष 2011 में आप्रवासन सुधार समूह ‘पार्टनरशिप फौर अ न्यू अमेरिकन इकोनौमी’ ने पाया कि फौर्च्यून 500 की सूची में शामिल कंपनियों में 40 प्रतिशत की स्थापना आप्रवासियों ने की. अमेरिका में 87 निजी अमेरिकन स्टार्टअप ऐसे हैं जिन की कीमत 68 अरब डौलर या इस से अधिक है. कहा जाता है कि यहां आधे से अधिक स्टार्टअप ऐसे हैं जिन की स्थापना करने वाले एक या उस से अधिक लोग प्रवासी थे, उन के 71 प्रतिशत एक्जीक्यूटिव पद पर नियुक्त थे.

गूगल, माइक्रोसोफ्ट जैसी कंपनियों के प्रमुख भारतीय हैं जो अपनी योग्यता व कुशलता से न सिर्फ इन कंपनियों को चला रहे हैं, इन के जरिए तकनीक की दुनिया में एक नए युग की शुरुआत भी कर चुके हैं.

इन कंपनियों ने हजारों जौब उत्पन्न किए हैं और पिछले दशक में इन्होंने न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मंदी से निकाला बल्कि अरबों डौलर कमाई कर के उसे मजबूत भी बनाया. ये वही कंपनियां हैं जिन के संस्थापक दुनिया के अलगअलग देशों के नागरिक हैं.

क्या है एच1बी वीजा

एच1बी वीजा अमेरिकी कंपनियों को अपने यहां विदेशी कुशल और योग्य पेशेवरों को नियुक्त करने की इजाजत देता है. अगर वहां समुचित जौब हो और स्थानीय प्रतिभाएं पर्याप्त न हों तो नियोक्ता विदेशी कामगारों को नियुक्ति दे सकते हैं.

1990 में तत्कालीन राष्ट्रपति जौर्ज डब्लू बुश ने विदेशी पेशेवरों के लिए इस विशेष वीजा की व्यवस्था की थी. आमतौर पर किसी खास कार्य में कुशल लोगों के लिए यह 3 साल के लिए दिया जाता है. एच1बी वीजा केवल आईटी, तकनीकी पेशेवरों के लिए नहीं है, बल्कि किसी भी तरह के कुशल पेशेवर के लिए होता है. 2015 में एच1बी वीजा सोशल साइंस, आर्ट्स, कानून, चिकित्सा समेत 18 पेशों के लिए दिया गया. अमेरिकी सरकार हर साल इस के तहत 85 हजार वीजा जारी करती आई है. कहा जा रहा है कि फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप भी अमेरिका में मौडल के रूप में स्लोवेनिया से एच1बी वीजा के तहत आई थीं.

प्रस्तावित आव्रजन नीति

ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी युवाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश जारी किया और सिलीकौन वैली के डैमोके्रट जोए लोफग्रेन द्वारा संसद में हाई स्किल्ड इंटिग्रिटी ऐंड फेरयनैस ऐक्ट-2017 पेश किया गया. इस के तहत इन वीजाधारकों का वेतन लगभग दोगुना करने का प्रस्ताव है. अभी एच1बी वीजा पर बुलाए जाने वाले कर्मचारियों को कंपनियां कम से कम 60 हजार डौलर का भुगतान करती हैं. विधेयक के ज्यों का त्यों पारित होने के बाद यह वेतन बढ़ कर 1 लाख 30 हजार डौलर हो जाएगा. विधेयक में कहा गया है, ‘‘अब समय आ गया है कि हमारी आव्रजन प्रणाली अमेरिकी कर्मचारियों के हित में काम करना शुरू कर दे.’’

दरअसल, अब अमेरिका में यह भावना फैलने लगी थी कि विदेशी छात्र स्थानीय आबादी का रोजगार खा रहे हैं. ट्रंप इसी सोच का फायदा उठा कर सत्ता में पहुंच गए. उन्होंने चुनावी सभाओं में अमेरिकी युवाओं से विदेशियों की जगह उन के रोजगार को प्राथमिकता देने का वादा किया था.

वास्तव में भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में जौब भी दे रही हैं और वहां की अर्थव्यवस्था में योगदान भी कर रही हैं. भारतीय आईटी कंपनियों से अमेरिका में 4 लाख डायरैक्ट तथा इनडायरैक्ट जौब मिल रहे हैं. वहीं, अमेरिकी इकोनौमी में 5 बिलियन डौलर बतौर टैक्स चुकाया जा रहा है. भारत से हर साल एच1बी वीजा तथा एल-1 वीजा फीस के रूप में अमेरिका को 1 बिलियन डौलर की आमदनी हो रही है.

अमेरिका पिछले साल जनवरी 2016 में एच1बी और एल-1 वीजा फीस बढ़ा चुका है. एच1बी वीजा की फीस 2 हजार डौलर से 6 हजार डौलर और एल-1 वीजा की फीस 4,500 डौलर कर दी गई थी.

हाल के वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने यह नियम बना लिया कि विदेशों से प्रतिवर्ष केवल एक लाख छात्र ही ब्रिटेन आ सकते हैं. उस ने वीजा की शर्तें बहुत कठोर कर दीं. लगभग इसी समय अमेरिका ने उदारवादी शर्तों पर स्कौलरशिप दे कर भारतीय छात्रों को आकर्षित किया. वहां पार्टटाइम काम कर के शिक्षा का खर्च जुटाना भी आसान था. अनेक भारतीय छात्र,  जिन्होंने अमेरिका में शिक्षा प्राप्त की थी, वहीं बस गए. अमेरिकी संपन्न जनता को भी सस्ती दरों पर प्रशिक्षित भारतीय छात्र मिल जाते थे जो अच्छी अंगरेजी बोल लेते थे और कठिन परिश्रम से नहीं चूकते थे.

एच1बी वीजा नीति को ले कर भारतीय आईटी कंपनियों में नाराजगी है. उन का तर्क है कि आउटसोर्सिंग सिर्फ उन के या भारत के लिए फायदेमंद नहीं है बल्कि यह उन कंपनियों व देशों के लिए भी लाभदायक है जो आउटसोर्सिंग कर रहे हैं.

नए कानून से भारतीय युवा उम्मीदों को गहरा आघात लगेगा. सालों से जो भारतीय मांबाप अपने बच्चों को अमेरिका भेजने का सपना देख रहे हैं, उन पर तुषारापात हो गया है. इस का असर दिखने भी लगा है. आईटी कंपनियां कैंपस में नौकरियां

देने नहीं जा रही हैं. भारत के प्रमुख इंजीनियरिंग और बिजनैस स्कूलों के कैंपस प्लेसमैंट पर अमेरिका के कड़े वीजा नियमों का असर देखा जा रहा है. जनवरी से देश के प्रमुख आईआईएम और आईआईटी शिक्षण संस्थानों समेत प्रमुख कालेजों में प्लेसमैंट प्रक्रिया शुरू हुई पर उस में वीजा नीति का असर देखा जा रहा है.

प्रतिभा पलायन क्यों?

सवाल यह है कि भारतीय विदेश में नौकरी करने को अधिक लालायित क्यों है? असल में इस के पीछे सामाजिक और राजनीतिक कारण प्रमुख हैं. लाखों युवा और उन के मांबाप अमेरिका में जौब का सपना देखते हैं. बच्चा 8वीं क्लास में होता है तभी से वह और उस के परिवार वाले तैयारी में जुट जाते हैं. 

इंजीनियरिंग, मैनेजमैंट व अन्य डिगरियों पर लाखों रुपए खर्र्च कर मांबाप बच्चों के बेहतर भविष्य का तानाबाना बुनने में कसर नहीं छोड़ते. आईआईटी, मैनेजमैंट में पढ़ाने वाले शिक्षक भी बच्चों के दिमाग में विदेश का ख्वाब जगाते रहते हैं. इन विषयों का सिलेबस ही विदेशी नौकरी के लायक होता है.

वहीं, मांबाप के लिए विदेश में रह कर नौकरी करने का एक अलग ही स्टेटस है. इस से परिवार की सामाजिक हैसियत ऊंची मानी जाती है. विदेश में नौकरी कर रहे युवक के विवाह के लिए ऊंची बोली लगती है. परिवार, नातेरिश्तेदारी में गर्व के साथ कहा जाता है कि हमारे बेटेभतीजे विदेश में रहते हैं. इस से सामान्य परिवार से हट कर एक खास रुतबा कायम हो जाता है.

60 के दशक में पहले अमीर परिवारों के भारतीय छात्र अधिकतर ब्रिटेन जाते थे. वहां के विश्वविद्यालय बहुत प्रतिष्ठित थे. कुछ विश्वविद्यालयों में यह प्रावधान था कि छात्र कैंपस से बाहर जा कर पार्टटाइम नौकरी कर सकते थे जिस से पढ़ाई का खर्च निकल सके पर धीरेधीरे ब्रिटिश सरकार ने पार्टटाइम काम कर के पढ़ाई की इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना शुरू कर दिया. फिर ब्रिटेन में यह धारणा बनने लगी कि ये लोग स्थानीय लोगों का रोजगार छीन रहे हैं. लेकिन भारतीय आईटी इंडस्ट्री का मानना है कि अमेरिका में आईटी टैलेंट की बेहद कमी है. भारतीयों को इस का खूब फायदा मिला.

बदहाल सरकारी नीतियां

विदेशों में पलायन की एक प्रमुख वजह भारत की सरकारी नीतियां हैं. भारतीय प्रतिभाओं का  पलायन सरकारी निकम्मेपन, लालफीताशाही, भ्रष्टाचार की वजह से हुआ. सरकार उन्हें पर्याप्त साधनसुविधाएं, वेतन नहीं दे सकी. सरकार ब्रेनड्रेन रोकना ही नहीं चाहती. इस के लिए कानून बनाया जा सकता है पर हमारे नेताओं को डर है कि इस से जो रिश्वत मिलती है वह बंद हो जाएगी.

अमेरिका जैसे देश में युवाओं को अच्छा वेतन, सुविधाएं मिल रही हैं. वे वापस लौटना नहीं चाहते. कई युवा तो परिवार के साथ वहीं रह रहे हैं और ग्रीनकार्ड के लिए प्रयासरत हैं. कई स्थायी तौर पर बस चुके हैं.

सब से बड़ी बात है वहां धार्मिक बंदिशें नहीं हैं. भारतीय दकियानूसी सोच के चंगुल से दूर वहां खुलापन, उदारता और स्वतंत्रता का वातावरण है.

दरअसल, किसी भी देश के नागरिक को दुनिया में कहीं भी पढ़नेलिखने, रोजगार पाने का हक होना चाहिए. प्रकृति ने इस के लिए कहीं, कोई बाड़ नहीं खड़ी की. आनेजाने के नियमकायदे तो देशों ने बनाए हैं पर यह हर व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार है. बंदिशें लोकतांत्रिक अधिकारों के खिलाफ हैं. इस से अमेरिका ही नहीं, दूसरे देशों की आर्थिक दशा पर भी असर पड़ेगा. तकनीक, तरक्की अवरुद्ध होगी.

इस तरह की रोकटोक से कोई नया आविष्कार न होने पाएगा. दुनिया अपने में सिकुड़ जाएगी. कोलंबस, वास्कोडिगामा अगर सीमाएं लांघ कर बाहर न निकलते तो क्या दुनिया एकदूसरे से जुड़ पाती. शिक्षा, ज्ञान, तकनीक, जानकारी, नए अनुसंधान फैलाने से ही मानव का विकास होगा, नहीं तो दुनिया कुएं का मेढक बन कर रह जाएगी. विकास से वंचित करना विश्व के साथ क्या अन्याय नहीं होगा.

अलग धार्मिक पहचान के मारे आप्रवासी

अमेरिका के कैंसास शहर में 22 फरवरी को 2 भारतीय इंजीनियरों को गोली मार दी गई. इस में हैदराबाद के श्रीनिवास कुचीवोतला की मौत हो गई और वारंगल के आलोक मदसाणी घायल हैं. गोली एक पूर्व अमेरिकी नौसैनिक ने मारी और वह गोलियां चलाते हुए कह रहा था कि आतंकियो, मेरे देश से निकल जाओ. इसे नस्ली हमला माना जा रहा है. नशे में धुत हमलावर एडम पुरिंटन की दोनों भारतीय इंजीनियरों से नस्लीय मुद्दे पर बहस हुई थी.

इसी बीच, 27 फरवरी को खबर आई कि व्हाइट हाउस में हिजाब पहन कर नौकरी करने वाली रूमाना अहमद ने नौकरी छोड़ दी. 2011 से व्हाइट हाउस में काम करने वाली रूमाना राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की सदस्य थीं. वैस्ट विंग में हिजाब पहनने वाली वे एकमात्र महिला थीं.

खबर में यह तो साफ नहीं है कि रूमाना अहमद ने नौकरी क्यों छोड़ी लेकिन उन की बातों से स्पष्ट है कि अलग धार्मिक पहचान की वजह से उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा. वे बुर्का पहनना नहीं छोड़ना चाहती थीं. तभी उन्होंने कहा कि बराक ओबामा के समय में उन्हें कोई परेशानी नहीं थी.

भारतीय संगठन ने अमेरिका में रह रहे भारतीयों के लिए जो एडवाइजरी जारी की है उस में अपनी स्थानीय भाषा न बोलने की सलाह तो दी गई है पर यह नहीं कहा गया कि वे अपनी धार्मिक पहचान छोड़ कर ‘जैसा देश, वैसा भेष’ के हिसाब से रहें.

आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद नस्लीय हिंसा 115 प्रतिशत बढ़ी है. ट्रंप की जीत के 10 दिनों के भीतर ही हेट क्राइम के 867 मामले दर्ज हो चुके थे. वहां आएदिन मुसलमानों, अश्वेतों, भारतीय हिंदुओं व सिखों के साथ धार्मिक, नस्लीय भेदभाव व हिंसा होनी तो आम बात है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद नस्ली घटनाओं में तेजी आई है. 11 फरवरी को सौफ्टवेयर इंजीनियर वम्शी रेड्डी की कैलिफोर्निया में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. जनवरी में गुजरात के हर्षद पटेल की वर्जीनिया में गोली मार कर जान ले ली गई थी.

सब से ज्यादा हमले मुसलमानों पर हो रहे हैं. काउंसिल औफ अमेरिकन इसलामिक रिलेशंस के अनुसार, पिछले साल करीब 400 हेट क्राइम दर्ज हुए थे जबकि ट्रंप के सत्ता में आने के बाद 2 महीने में ही 175 मामले सामने आ चुके हैं.

ये घटनाएं तो हाल की हैं. असल में अमेरिका की बुनियाद ही धर्म आधारित है. ब्रिटिश उपनिवेश में रहते हुए वहां ब्रिटेन ने क्रिश्चियनिटी को प्रश्रय दिया पर ईसाइयों में यहां शुरू से ही प्रोटेस्टेंटों और कैथोलिकों के बीच भेदभाव, हिंसा चली. धार्मिक आधार पर कालोनियां बनीं. बाद में हिटलर के यूरोप से यहूदी शरणार्थियों के साथ भेदभाव चला.

1918 में यहूदी विरोधी भावना का ज्वार उमड़ा और फैडरल सरकार ने यूरोप से माइग्रेंट्स पर अंकुश लगाना शुरू किया. अमेरिका में उपनिवेश काल से ही यहूदियों के साथ भेदभाव बढ़ता गया. 1950 तक यहूदियों को कंट्री क्लबों, कालेजों, डाक्टरी पेशे पर प्रतिबंध और कई राज्यों में तो राजनीतिक दलों के दफ्तरों में प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई थी. 1920 में इमिग्रेशन कोटे तय होने लगे. अमेरिका में यहूदी हेट क्राइम में दूसरे स्थान पर होते थे. अब हालात बदल रहे हैं. माइग्रेंट धर्मों की तादाद दिनोंदिन बढ़ रही थी.

अमेरिका में 1600 से अधिक हेट क्राइम ग्रुप हैं. सब से बड़ा गु्रप राजधानी वाशिंगटन में है जिस का नाम फैडरेशन औफ अमेरिकन इमिग्रेशन रिफौर्म है. यह संगठन आप्रवासियों के खिलाफ अभियान चलाता है. इस की गतिविधियां बेहद खतरनाक बताई जाती हैं. सोशल मीडिया पर भी इस का हेट अभियान जारी रहता है. यह मुसलमानों, हिंदू, सिख अल्पसंख्यक आप्रवासियों और समलैंगिकों के खिलाफ भड़काऊ सामग्री डालता रहता है.

आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका 15,000 से अधिक धर्मों की धर्मशाला है और करीब 36,000 धार्मिक केंद्रों का डेरा है.

अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 के बाद मुसलमानों के प्रति 1,600 प्रतिशत हेट क्राइम बढ़ गया. नई मसजिदों के खिलाफ आंदोलन के बावजूद 2000 में यहां 1,209 मसजिदें थीं जो 2010 में बढ़ कर 2,106 हो गईं. इन मसजिदों में ईद व अन्य मौकों पर करीब 20 लाख, 60 हजार मुसलमान नियमित तौर पर जाते हैं. अमेरिका में 70 लाख से अधिक मुसलिम हैं.

अमेरिकी चरित्र के बारे में 2 बातें प्रसिद्ध हैं. एक, वह ‘कंट्री औफ माइग्रैंट्स’ और दूसरा, ‘कंट्री औफ अनमैच्ड रिलीजियंस डायवर्सिटी’ कहलाता है. इन दोनों विशेषताओं के कारण वहां एक धार्मिक युद्ध जारी रहता है. इस के बीच कुछ बुद्धिजीवी हैं जो धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को प्रश्रय देने की मुहिम छेड़े रहते हैं.

पिछले 3-4 दशकों में भारत से अमेरिका में हिंदू, सिख और मुसलिम लोगों की बढ़ोतरी हुई. अन्य देशों से भी मुसलमान अधिक गए. ये लोग अपनेअपने धर्म की पोटली साथ ले गए. वहां मंदिर, गुरुद्वारे, मसजिदें, चर्च बना लिए. वहां रह रहे करीब 5 लाख सिखों के यहां बड़े शहरों में कईकई गुरुद्वारे हैं. ये गुरुद्वारे भी ऊंचीनीची जाति में बंटे हुए हैं उसी तरह जिस तरह वहां ईसाइयों में गोरेकाले, प्रोटेस्टेंटकैथोलिकों के अलगअलग चर्च बने हुए हैं.

हिंदुओं के 450 से अधिक बड़े मंदिर बने हुए हैं. बड़ेबड़े आश्रम और मठ भी हैं. इन में स्वामी प्रभुपाद द्वारा स्थापित इंटरनैशनल सोसायटी फौर कृष्णा कांशसनैस, चिन्मय आश्रम, वेदांत सोसायटी, तीर्थपीठम, स्वामी नारायण टैंपल, नीम करोली बाबा, इस्कान, शिव मुरुगन टैंपल, जगद्गुरु कृपालु महाराज, राधामाधव धाम, पराशक्ति टैंपल, सोमेश्वर टैंपल जैसे भव्य स्थल हैं. इन मंदिरों में विष्णु, गणेश, शिव, हनुमान, देवीमां और तरहतरह के दूसरे देवीदेवताओं की दुकानें हैं. सवाल है कि आखिर किसी को धार्मिक पहचान की जरूरत क्या है? सांस्कृतिक पहचान के नाम पर धर्म की नफरत को बढ़ावा दिया जाता है.    

असल में नस्ली भेदभाव, हिंसा का कारण है. विदेश में जा कर लोग अपनी अलग धार्मिक पहचान रखना चाहते हैं. पूजापाठ, पहनावा, रहनसहन धार्मिक होता है. हिंदू पंडे अगर तिलक, चोटी, धोती रखेंगे तो दूसरे धर्म वालों की हंसी के साथ नफरत का शिकार होंगे ही. सिख पगड़ी, दाढ़ी और मुसलमान टोपी, दाढ़ी रखेंगे तो टीकाटिप्पणी झेलनी पड़ेगी ही. पलट कर जवाब देंगे तो मारपीट होगी. फिर शिकायत करते हैं कि उन के साथ नस्ली भेदभाव होता है, हिंसा होती है.

इस भेदभाव की वजह अमेरिका में बड़ी तादाद में फैले हुए धर्मस्थल हैं. हजारों मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे, चर्च बने हुए हैं. भारतीय लोग वहां इन धर्मस्थलों को बनाने में तन, मन और धन से भरपूर सहयोग देते हैं. चीनियों, जापानियों, दक्षिण कोरियाई लोगों के साथ न के बराबर भेदभाव व हिंसा होती है क्योंकि वे किसी धर्म के पिछलग्गू नहीं हैं. वे विदेशों में रह कर उन्हीं लोगों के साथ हिलमिल कर मनोरंजन का आनंद लेते हैं. उन की अपनी चीनी संस्कृति भी है पर उस में धर्म नहीं है. उन की संस्कृति में मनोरंजन है जिस में दूसरे देशों के लोग भी हंसीखुशी आनंद उठाते हैं.

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