Fictional Story: बीज- कैसी थी सीमा की जिंदगी

Fictional Story: ‘‘ज्यादा बकबक मत कर और चुपचाप नाश्ता करने बाहर आ जा,’’ सीमा ने अपनी आवाज और ऊंची कर के उसे डांटा, ‘‘मेरे आराम और सुखचैन की भी कभी फिक्र कर लिया करो तुम लोग. अभी नहाने से पहले मुझे कपड़े धोने की मशीन लगानी है. ओ नेहा की बच्ची, अब तो बाहर आ जा. आज घर की साफसफाई तुझे ही करनी है. 6 दिन औफिस की ड्यूटी निभाओ

और इतवार को घर में नौकरानी की तरह से काम करो. आप इन दोनों आलसियों को डांटते क्यों नहीं हो?’’

यह आखिरी वाक्य सीमा ने अपने पति मनोज को संबोधित कर के कहा जिन्होंने नाश्ता कर के अखबार के पन्ने पलटने शुरू ही किए थे. उन्होंने अखबार मोड़ कर मेज पर रखा और उठते हुए धीमे स्वर में बोले, ‘‘तुम नाश्ता मेज पर रख दो. जिसे जब खाना होगा खा लेगा.’’

‘‘इन दोनों को तुम ने ही बिगाड़ा हुआ है. मैं चिल्लाचिल्ला कर पागल हो जाऊं पर तुम्हारे कान पर जूं तक नहीं रेंगती है. आज तक तुम ने इन को सम?ाया कि मां की बात एक बार में मान…’’

‘‘इतना परेशान मत होओ. मशीन मैं लगा रहा हूं. तुम कोई और काम निबटा लो,’’ मनोज बालकनी की तरफ चल पड़े जहां वाशिंग मशीन रखी हुई थी.

सीमा ने कुछ पलों तक  उन की पीठ को गुस्से से घूरा और फिर से चिल्ला पड़ी, ‘‘मशीन मैं ही लगा लूंगी. तुम मंडी से हफ्तेभर की सब्जीफल ले आओ. मेरे बस का नहीं है वहां की भीड़ और गंदगी में धक्के खाना.’’

‘‘जो लाना है उस की लिस्ट बना दो. औनलाइन और्डर कर देता हूं,’’ कह वे बैडरूम की तरफ चल पड़े.

‘‘नेहा, जरा पैन और कागज दे जा. समीर, तू 2 मिनट में बाहर आ जा, नहीं तो मैं तेरे ऊपर पानी डालने आ रही हूं,’’ एक बार फिर से ऊंचा बोल कर सीमा थकीहारी सी सोफे पर बैठ अपने सिर का दर्द दूर करने को हाथों से कनपटियां मसलने लगी.

कुछ मिनट बाद नेहा ने उन के सामने पेपर व पैन रखा और फिर चिड़ी सी बोली, ‘‘आप ने आज नाश्ता जल्दी क्यों बनाया है? इतवार के दिन कौन घड़ी के हिसाब से चलता है?’’

‘‘जिस के सिर पर काम करने की जिम्मेदारी हो वह जरूर समय का ध्यान रखता है, राजकुमारीजी,’’ सिर को दबाना भूल सीमा फौरन अपनी बेटी के साथ उल?ाने को तैयार हो गई.

‘‘पूरे सप्ताह में सिर्फ एक रविवार का दिन मिलता है हम सब को इकट्ठे बैठ कर

हंसनेखाने का और आप उस दिन भी अपने हिसाब से चलती हो. शोर मचामचा कर घर की सुखशांति भंग करने से नहीं चूकती हो.’’

‘‘मुझे लैक्चर देने के बजाय घर की साफसफाई में जुट जा.’’

‘‘साफसफाई मैं परीक्षाओं के बाद करूंगी,’’ नेहा पैर पटकती अपने कमरे की तरफ लौट गई.

‘‘तू ने घर के कामों से बचने के लिए पढ़ाई का अच्छा बहाना पकड़ रखा है,’’ सीमा शोर मचाती रही तो कुछ देर बाद समीर भी आंखें मलता अपने कमरे से बाहर आ गया.

जब समीर ने अपने पिता को मोबाइल पर उल?ाते देखा तो उस ने फौरन खुद मोबाइल ले कर औनलाइन ग्रौसरी और्डर कर दी.

मनोज ने उसे रोकना चाहा तो उस ने जवाब दिया, ‘‘ठंड बहुत हो रही है और आप ऐसे मौसम में जल्दी बीमार पड़ जाते हो. मैं मोटरसाइकिल से मंडी चला जाता हूं.’’

बहुत देर बाद नेहा और समीर दोनों ने अपने कमरे में नाश्ता किया. आखिरी में जब सीमा नाश्ता करने बैठी तो उसे ठंडे परांठे खाने में मजा नहीं आया और चाय भी गरम नहीं रही थी.

‘‘नेहा, 1 कप चाय तो बना दे,’’ सीमा ने आवाज ऊंची कर के अपनी इच्छा बताई.

‘‘मैं पढ़ रही,’’ नेहा ने अपने कमरे में बैठेबैठे टका सा जवाब

दे दिया.

‘‘तू मेरे काम से बहुत बचती है,’’ सीमा को तेज गुस्सा आ गया.

‘‘तू पढ़ती रह. तेरी मां को चाय मैं पिला रहा हूं,’’ मनोज ने नेहा को बाहर आने से मना किया और खुद रसोई की तरफ चल पड़े.

‘‘ये दोनों आप के बिगाड़े

हुए हैं. मजाल है जो मेरी तरफ से बोलते हुए आप ने कभी इन्हें कुछ कहा हो.’’

‘‘तुम जरा प्यार से बोला करो. फिर देखना ये कैसे भागभाग कर तुम्हारे काम करने लगेंगे.’’

‘‘मैं इन की सेवा करतेकरते मर

भी जाऊं तो भी मु?ो वह दिन देखने को

नहीं मिलेगा जब मेरी औलाद भागभाग कर मेरा काम करेगी.’’

सीमा को अपने मन की शिकायतें कहने का और मौका नहीं मिला क्योंकि तभी उस की पड़ोसिन सहेली निशा की बेटी प्रिया उन के घर आ गई.

‘‘आंटी, हमारी मिक्सी खराब हो गई है

और मैं घर में सब को डोसा बना कर खिलाना चाहती हूं. आप की मिक्सी में ये दाल और

चावल पीसने आई हूं,’’ प्रिया ने अपने आने का कारण बताया.

‘‘हांहां, जरूर पीस ले पर डोसा हम सब को भी खिलाना पड़ेगा,’’ सीमा ने मजाक किया.

‘‘श्योर आंटी. आप सब भी डोसा खाने घर आ जाओ.’’

‘‘थैंक यू बेटी, पर मु?ो इतवार के दिन तो मरने की भी फुरसत नहीं होती है.’’

‘‘नेहा और समीर कहां हैं?’’

‘‘नेहा पढ़ रही है और समीर लाट साहब सो रहे हैं. इन दोनों का मु?ो रत्तीभर सहयोग नहीं मिलता है. पता नहीं मेरी जिंदगी में वह दिन कब आएगा जब मेरी बेटी मु?ो अपने हाथ से बना गरमगरम डोसा खिलाएगी.’’

‘‘डोसे बनाना मुश्किल काम नहीं है, आंटी.’’

‘‘उस के लिए तो मुश्किल ही है जो अगर ब्रैड भी सेंके, तो जला दे,’’ सीमा ऊंची आवाज में बोल रही थी ताकि अपने कमरे में बैठी नेहा भी उस की बातें सुन ले.

सीमा ने रसोई में घुसते ही मनोज से नेहा की शिकायत करी, ‘‘यह प्रिया आज अपने मातापिता को डोसे बना कर खिला रही है.

तुम्हारी बात तो दोनों बच्चे सुनते हैं. अपनी लाडली बेटी को सम?ाओ कि वह घरगृहस्थी के कुछ काम तो सीख ले, नहीं तो ससुराल में जा कर बहुत दुख पाएगी.’’

‘‘धीरेधीरे नेहा को भी सब आ जाएगा,’’ मनोज ने प्रिया के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और सीमा को ज्यादा नाराजगी जाहिर करने का मौका न देने के लिए रसोई से बाहर आ गए.

प्रिया के जाते ही समीर और नेहा अपनेअपने कमरे से बाहर आए और सीमा से

?ागड़ने लगे.

‘‘क्या जरूरत थी आप को उस के सामने मेरी इतनी सारी बुराइयां करने की,’’ नेहा बहुत खफा नजर आ रही थी.

‘‘मैं ने उसे असलियत ही बताई है. तुझे

बुरा लगा है और तू चाहती है कि मैं आएगए के सामने तेरी तारीफ करूं, तो अपनेआप को बदल न,’’ सीमा अपनी बेटी के बोलने के ढंग से चिड़ गई थी.

‘‘नेहा, तू इन से मत उल?ा क्योंकि ये तेरीमेरी भावनाओं को समझने की कभी कोशिश ही नहीं करती हैं. कभीकभी तो मुझे लगता है कि ये हम दोनों से मन ही मन नफरत करती हैं,’’ समीर गुस्से में अपनी बात कह कर वापस अपने कमरे में घुस गया.

समीर के इस आरोप को सुन सीमा बहुत जोर से भड़क उठी, ‘‘मैं तुम से नफरत करती तो बसों में धक्के खा कर रोज नौकरी करने न जाती. ये जो तुम दोनों बढि़या कपड़े पहनते हो, अच्छा खाते हो और अच्छे स्कूल में पढ़ते हो, इसीलिए संभव है क्योंकि तुम्हारी मां डबल मेहनत कर रही है. मेरे ऊपर काम का इतना बोझ है कि अब कमर का दर्द मेरा पीछा नहीं छोड़ता है. शर्म नहीं आई तुझो यह कहते हुए कि मैं तुम दोनों से नफरत करती हूं?’’

‘‘सारा दिन बोलबोल कर तुम्हारी जीभ क्यों नहीं दुखती है?’’ नेहा ने व्यंग्य किया और फिर सीमा के तीखे शब्दों की बौछार से बचने के लिए अपने कमरे में घुस गई.

‘‘यह दिनबदिन कितनी ज्यादा बदतमीज होती जा रही है. आप इसे डांटते क्यों नहीं हो?’’ सीमा मनोज पर गुस्सा हो उठी.

‘‘कमर का दर्द कम करने वाली गोली

ला कर दूं?’’ मनोज ने विषय बदलने की

कोशिश करी.

‘‘गोली मारो दर्द की गोली को. यों ही भागतेदौड़ते एक दिन मेरे प्राण निकल जाएंगे पर धन्यवाद शब्द मु?ो कभी सुनने को नहीं मिलेगा.’’

‘‘आप अपना गुणगान करने से रुको तो ही कोई दूसरा आप को धन्यवाद दे पाएगा न,’’ समीर अपने कमरे में से ही चिल्ला कर बोला.

‘‘पापा आप का हर काम में बराबर हाथ बंटाते हैं. क्या आप ने कभी उन्हें धन्यवाद दिया है?’’ नेहा ने अपने कमरे में से चुभते लहजे

में पूछा.

‘‘कितनी बेइज्जती होने लगी है मेरी इस

घर में. कैसे आदमी हो आप… इन दोनों के

2-2 तमाचे लगा कर आप इन्हें मेरी इज्जत करना नहीं सिखा सकते हो?’’ सीमा मनोज से उलझने को तैयार हो गई तो वे उस के पास से उठ कर अपने कमरे में चले गए.

इस के बाद सीमा घर में सारा दिन मुंह सुजाए घूमती रही. नेहा और समीर भी उस के सामने पड़ने से बचते रहे. मनोज ने खामोश रह कर उस के हर काम में हाथ बंटाया, पर सीमा का मूड नहीं सुधरा.

शाम को दोनों बच्चे बाजार घूमने जाना चाहते थे.

सीमा ने तबीयत ठीक न होने का बहना बना कर साथ चलने से इनकार कर दिया.

वह चाहती थी कि दोनों बच्चे उसे मनाएं, अपने खराब व्यवहार के लिए माफी मांगें, पर नेहा और समीर ने ऐसा करने के बजाय बाजार जाने का कार्यक्रम ही कैंसिल कर दिया तो सीमा का मुंह और ज्यादा सूज गया.

सीमा ने रात का खाना बनाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं ली तो समीर बाजार से छोलेभठूरे ले आया. सीमा को भूख लगी थी, पर उस ने नाराजगी दिखाने के लिए एक टुकड़ा तक नहीं खाया. उन तीनों ने चुपचुप खाना खाया और फिर सीमा को टीवी के सामने बैठा छोड़ छत पर घूमने चले गए.

रात को अपने मनपसंद सीरियल देखने के बाद सीमा शयनकक्ष के पास पहुंची तो अंदर से आ रही उन तीनों की आवाजें सुन दरवाजे के पास ठिठक कर रुक गई.

‘‘पापा, मुझे मैथ की ट्यूशन लेनी पड़ेगी,’’ नेहा की आवाज में चिंता के भाव ?ालक रहे थे.

‘‘कितना खर्चा आएगा?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘2000 हर महीने देने पड़ेंगे.’’

‘‘अगर जरूरी है तो ट्यूशन ले लो.’’

‘‘जब मां को पता लगेगा तो वे ताने मारमार कर मेरा जीना मुश्किल कर देंगी.’’

‘‘तुम उन की बातों का बुरा न माना करो.’’

इस के बाद समीर ने अपनी समस्या बताई, ‘‘पापा, कुछ दूर भागने पर मेरी सांस फूल जाती है सारा दिन थकाथका सा भी रहता हूं.’’

‘‘कल शाम को डाक्टर उमेश से तुम्हारा चैकअप करा लेते हैं. तुम सुबह पार्क में घूमने जाना भी शुरू कर दो. बाहर का खाना खाने से भी बचो,’’ मनोज ने सलाह दी.

‘‘आप कितनी शांति से हमारी बात सुनते हो. आप की जगह मम्मी होतीं तो भैया को अब तक न जाने कितनी डांट पड़ चुकी होती,’’ नेहा की आवाज में अपने पिता के लिए बहुत प्यार ?ालक रहा था.

उन के बीच चल रही सुखदुख की चर्चा और आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि सीमा कमरे में घुस आईर् थी. जब उस ने देखा कि समीर अपने पिता के पैर दबा रहा है और नेहा उन के सिर की मालिश कर रही है, तो वह ताना मारने से नहीं चूंकी, ‘‘पिता की कैसी बढि़या सेवा चल रही है. अरे, कभी अपनी मां को भी खुश कर दिया करो. मैं मानती हूं कि मु?ो में सिर्फ बुराइयां ही बुराइयां हैं, पर बच्चों से सेवा कराने का सुख पाने को मेरा भी मन करता है.’’

‘‘मेरा कल ऐग्जाम है. समीर कर देगा आप की सेवा,’’ नेहा फौरन पलंग से उतर कर खड़ी

हो गई.

‘‘मुझे तो बहुत जोर से नींद आ रही है,’’ समीर भी अपने कमरे में जाने को तैयार हो गया.

‘‘तुम दोनों ही एहसानफरामोश हो,’’ अपने दोनों बच्चों को कमरे से बाहर जाने को तत्पर देख सीमा गुस्से से फट पड़ी.

‘‘मां, आप का सारा दिन तो गुस्सा करतेकरते बीत गया है. अब सोने के टाइम तो प्लीज शांत हो जाओ,’’ समीर अचानक भावुक

हो उठा.

‘‘अपनी नहीं तो पापा की सेहत का खयाल करो, मां. आप घर में 24 घंटे जो टैंशन का माहौल बनाए रखती हो, उस कारण ही पापा का ब्लड प्रैशर हाई रहने लगा है,’’ चिढ़ी नजर आ रही नेहा अपनी मां का कड़वा जवाब सुनने को रुकी नहीं और कमरे से बाहर निकल गई.

‘‘यह लड़की आप की बिगाड़ी हुई है. इसे आप ने जोर से डांटा क्यों नहीं?’’ सीमा की आंखों में एकाएक आंसू भर आए.

‘‘तुम्हारा सिरदर्द कैसा है,’’ मनोज ने अपनी आदत के अनुरूप ?ागड़े की बात को बदलने की कोशिश करी.

‘‘सिर फटा जा रहा है दर्द के मारे.’’

‘‘लाओ, मैं आप का सिर दबा दूं,’’ समीर सिर दबाने को उन की तरफ खिसक गया.

‘‘मुझे नहीं चाहिए किसी की दया,’’ सीमा ने बहुत जोर से अपने बेटे का हाथ ?ाटक कर दूर कर दिया.

मां के खराब व्यवहार से समीर को पहले तेज ?ाटका लगा और वह एक शब्द भी बोले बगैर रोनी सूरत लिए कमरे से बाहर चला गया.

‘‘मैं नेहा की कुछ डाइग्राम बना कर सोऊंगा,’’ मनोज भी बच्चों को शांत करने के इरादे से उठ खड़े हुए.

‘‘ये बच्चे मेरी जो बातबात में बेइज्जती करते हैं, उस का कारण सिर्फ तुम हो,’’ सीमा खीज कर मनोज पर चिल्ला उठी.

‘‘आप बिलकुल गलत कह रही हो,’’ समीर जाते-जाते ठिठक कर रुका और मां को सुनाने लगा, ‘‘असली कारण है आप को पापा से ज्यादा पगार मिलने का घमंड है और आप घर में सब को दबा कर रखना चाहती हो. आप ही कहां हमें प्यार और इज्जत देती हो. जिंदगी में इंसान जैसा बोलता है वैसा ही…’’

‘‘समीर, एक शब्द भी आगे मत बोलना,’’ मनोज ने उसे शांत लहजे में हिदायत दी तो वह फौरन चुप हो गया.

‘‘अपनी मम्मी से सोरी बोलो.’’

‘‘सौरी, मम्मी,’’ समीर ने अपने पापा का कहा टाला नहीं और सीमा से माफी मांग कर कमरे से बाहर चला गया.

‘‘हमारे बच्चे बहुत अच्छे हैं, सीमा. उन की बातों का बुरा न माना करो,’’ मनोज ने सीमा को सम?ाने की कोशिश करी, पर उस की आंखों में गुस्से के भाव पढ़ कर वे आगे कुछ नहीं बोले और नेहा की फाइल पूरी करने चले गए.

कमरे में अकेली बची सीमा अचानक रोने लगी. वह इस वक्त अपने-आप को

बहुत गहरी उदासी और अकेलेपन का शिकार बना हुआ पा रही थी.

‘मैं ने इन सब के लिए इतना किया और बदले में मु?ो इस घर में किसी से न इज्जत मिली है न प्यार, न धन्यवाद के 2 मीठे बोल,’ यह विचार बारबार उस के मन में उठ कर उसे लगातार रुलाए जा रहा था.

कुछ देर बाद सीमा ने उठ कर सिरदर्द की गोली खाई और करवटें बदलती नींद आने का इंतजार करने लगी. कुछ देर बाद दर्द कम होने के साथ उस के आंसू सूखने लगे और मन में अपने पति व बच्चों के लिए शिकायत और गुस्से के भाव पलपल बढ़ने लगे. अपने दुख के बीज वह खुद ही बोती है, यह सबक सीखने से वह आज भी वंचित रह गई.

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लघु स्टोरी: देर से जगे- आखिर बुआ जी से क्या गलती हो गई?

लघु स्टोरी: ताला खोलते ही खिड़कियों के परदे सरकाते हुए मेरी नजर आयरन बोर्ड पर पड़ गई. ‘ओह, आज क्या हो जाता अगर आयरन आटोमैटिक न होती या फिर स्टैंड पर खड़ी कर के न रखी होती. इतने सारे प्रैस के कपड़े पास ही कुरसी पर रखे हुए थे. अगर यह आग खिड़की के परदों में लगती, फिर इसी तरह और कपड़ों में, सारा कमरा धूधू कर के… पीछे वाले कमरे में रामदुलारी सो रही थी. जब तक वह शोर मचाती, लोग आते, तब तक न जाने क्या हो जाता. लाचार व बेसहारा दुलारी कुछ कर भी नहीं पाती. उस का बेटा श्यामू तो रात को ही वापस आता. तब तक न जाने क्याक्या हो जाता…’ मैं बड़बड़ा रही थी.

‘‘क्या हुआ, मां?’’  रीतू, मीनू ने घबरा कर पूछा.

‘‘क्या बात है, बूआजी?’’  दीपाली ने कहा.

‘‘सब ठीकठाक तो है न. चलो, खैर मनाओ कुछ हुआ नहीं,’’ साहिल ने कहा.

‘‘सौरी बूआजी, मैं ने अपना सूट प्रैस किया था. मैं ही जल्दी में स्विच औफ करना भूल गई थी,’’ दीपाली अपनी गलती पर पछता रही थी.

‘‘चलो, कोई बात नहीं,’’ कह कर मैं मन ही मन कुछ सोचने लगी.

‘‘1 कप चाय मिलेगी गरीब को,’’ साहिल ने चाय मांगने का रटारटाया नुसखा आजमाया.

चाय बनाने मैं रसोई में आ गई. नीली लपटों से चाय के पानी में उबाल के साथसाथ मेरे विचारों में भी उबाल आ रहे थे. मैं यादों के गलियारे में पहुंच गई. जब दीपाली मुश्किल से 8-9 महीने की होगी. उसे गोद में ले कर कुछ न कुछ खेल उस के साथ मैं खेलती थी. रजाईगद्दे के बक्से के ऊपर एक छोटा बक्सा रखा रहता था, जहां प्रैस रखी रहती थी. दीपाली जब कभी रोती या किसी चीज को पाने का हठ करती तो मैं उसे बक्से पर खड़ा कर के आयरन का स्विच औनऔफ कराती. इस औनऔफ के खेल को देख कर भाभी ने दबी जबान से कहा भी था, ‘‘अगर भूल से कभी स्विच औन रह गया तो?’’

‘‘हुंह ऐसे कैसे भूल हो जाएगी?’’ मैं ने टका सा जवाब दे कर भाभी को चुप करा दिया था.

मगर एक दिन वही हुआ, जिस का डर भाभी को हमेशा रहता था. जिस बक्से पर प्रैस औन रखी थी, उस बक्से की चादर और बिछा हुआ कंबल झुलस कर काले हो गए थे. बक्से में रखे हम दोनों बहनों के सूट प्रैस की गरमी से धीरेधीरे सुलगते रहे और जब उन्हें परदे की रौड से निकाला गया, वे जले कागज की तरह बिखर गए थे. जो कपड़े जलने से बच भी गए थे, वे भी पहनने के काबिल नहीं रहे थे. तह की तह काली हो रही थी. कोई भी सूट पूरा इस हालत में नहीं था कि पहना जा सके.

घर की माली हालत भी उन दिनों अच्छी नहीं चल रही थी. कुछ महीने पहले दीदी की शादी हुई थी. दीपाली का जन्म भी सीजेरियन से हुआ था. 1-1 कर के खर्चे बढ़ रहे थे. ऐसे में इतना बड़ा नुकसान. अंदर ही अंदर मुझे कुछ कचोट रहा था.

अगले दिन हम लोगों के कई सूट बाजार से आए थे. कितनी मुश्किल हुई होगी भैयाभाभी को, क्या हम लोग इस बात से अनभिज्ञ थे? पिताजी के गुजरने के बाद सारी जिम्मेदारी भैया पर ही आ गई थी. भैया अंदर ही अंदर मन मसोस कर रह गए थे. शायद भाभी ने ही उन्हें कुछ भी कहने से मना कर दिया हो. कुछ ही दिनों में बात आईगई हो गई. हां, भाभी आयरन का प्लग निकाल कर रखने लगी थीं. ‘‘तुम चाय बना रही हो या काढ़ा?’’ साहिल ने हंस कर गुहार लगाई. ‘‘ओह,’’ कहते हुए मैं ने देखा, चाय का पानी सूख कर जरा सा रह गया था.

जल्दीजल्दी दोबारा चाय बना कर टे्र लेकर मैं अंदर आई और बच्चों को आवाज दी. ‘‘आज मेरी गलती से बहुत बड़ा नुकसान हो सकता था,’’ दीपाली बारबार अपनी बात दोहरा कर दुखी हो रही थी. डाकपत्थर और राजाजी नैशनल पार्क घूम कर वापस आते समय चहक रही थी. लेकिन अब कितनी उदास है, पछता रही है. ‘‘अच्छा बताओ, दीपाली, तुम्हें देहरादून कैसा लगा?’’ साहिल ने माहौल बदलने की कोशिश की. ‘‘सौरी फूफाजी, आप ने मुझे इतना घुमाया और मैं ने…’’ ‘‘अब कोई बात नहीं होगी इस बारे में,’’ साहिल ने दीपाली की बात काटते हुए कहा. लेकिन आज से 22 वर्ष पहले दीपाली को गोद में ले कर आयरन का स्विच औन छोड़ कर जो गलती मैं ने की थी, उस के लिए मैं ने अफसोस करना तो दूर, एक बार भी भैयाभाभी से माफी तक नहीं मांगी थी.

आज मेरे घर होने वाले नुकसान की कल्पना मात्र से दीपाली इतनी उद्विग्न हो रही है. तब इतने नुकसान के बाद भी हम लोगों के चेहरों पर कोई शिकन तक नहीं आई थी.सच, कितने नाशुके्र थे हम लोग. सोचसोच कर आज मुझे अपराधबोध हो रहा था. इतने बरस बाद भाभी से माफी मांगने के लिए मैं ने रिसीवर उठा कर फोन नंबर मिलाना शुरू कर दिया.

लघु स्टोरी

Hindi Short Story: आदमी का स्वार्थ- पेड़ के पास क्यों आता था बच्चा

Hindi Short Story: उस बालक को मानो सेब के उस पेड़ से स्नेह हो गया था और वह पेड़ भी बालक के साथ खेलना पसंद करता था. समय बीता और समय के साथसाथ नन्हा सा बालक कुछ बड़ा हो गया. अब वह रोजाना पेड़ के साथ खेलना छोड़ चुका था. काफी दिनों बाद वह लड़का पेड़ के पास आया तो बेहद दुखी था.

‘‘आओ, मेरे साथ खेलो,’’ पेड़ ने लड़के से कहा.

‘‘मैं अब नन्हा बच्चा नहीं रह गया और अब पेड़ पर नहीं खेलता,’’ लड़के ने जवाब दिया, ‘‘मुझे खिलौने चाहिए. इस के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं. मैं पैसे कहां से लाऊं?’’

‘‘अच्छा तो तुम इसलिए दुखी हो?’’ पेड़ ने कहा.

‘‘मेरे पास पैसे तो नहीं हैं, पर तुम मेरे सारे सेब तोड़ लो और बेच दो. तुम्हें पैसे मिल जाएंगे.’’

यह सुन कर लड़का बड़ा खुश हुआ. उस ने पेड़ के सारे सेब तोड़ लिए और चलता बना. इस के बाद वह लड़का फिर पेड़ के आसपास दिखाई नहीं दिया. पेड़ दुखी रहने लगा.

अचानक एक दिन लड़का फिर पेड़ के पास दिखाई दिया. वह अब जवान हो रहा था. पेड़ बड़ा खुश हुआ और बोला, ‘‘आओ, मेरे साथ खेलो.’’

‘‘मेरे पास खेलने के लिए समय नहीं है. मुझे अपने परिवार की चिंता सता रही है. मुझे अपने परिवार के लिए सिर छिपाने की जगह चाहिए. मुझे एक घर चाहिए. क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो?’’ युवक ने पेड़ से कहा.

‘‘माफ करना, मेरे बच्चे, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कोई घर तो नहीं है, हां, अगर तुम चाहो तो मेरी शाखाओं को काट कर अपना घर बना सकते हो.’’

युवक ने पेड़ की सभी शाखाओं को काट डाला और खुशीखुशी चलता बना. उस को प्रसन्न जाता देख कर पेड़ प्रफुल्लित हो उठा. इस तरह नन्हे बच्चे से जवान हुआ दोस्त फिर काफी समय के लिए गायब हो गया और पेड़ फिर अकेला हो गया, उस की हंसीखुशी उस से छिन गई.

काफी समय बाद अचानक एक दिन गरमी के दिनों में वही युवक  से अधेड़ हुआ व्यक्ति पेड़ के पास आया तो पेड़ खुशी से फूला नहीं समाया, मानो उस की जिंदगी वापस आ गई हो. पेड़ ने उस से कहा, ‘‘आओ, मेरे साथ खेलो.’’

‘‘मैं बहुत दुखी हूं,’’ उस ने कहा, ‘‘अब मैं बूढ़ा होता जा रहा हूं. मैं एक जहाज पर लंबे सफर पर निकलना चाहता हूं ताकि आराम कर सकूं. क्या तुम मुझे एक जहाज दे सकते हो?’’

‘‘मेरे तने को काट कर जहाज बना लो. तुम इस जहाज से खूब लंबा सफर करना और बस, अब खुश हो जाओ,’’ बालक से अधेड़ बने व्यक्ति ने पेड़ के तने से एक जहाज बनाया और सफर पर निकल गया और फिर गायब हो गया.

काफी समय के बाद वह पेड़ के पास फिर पहुंचा.

‘‘माफ करना मेरे बच्चे, अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं बचा है. अब तो सेब भी नहीं रहे,’’ पेड़ ने बालक से कहा.

‘‘मेरे दांत ही नहीं हैं कि मैं सेब चबाऊं,’’ उस ने उत्तर दिया.

‘‘अब वह तना भी नहीं बचा जिस पर चढ़ कर तुम खेलते थे.’’

‘‘अब मेरी उम्र मुझे पेड़ पर चढ़ने की इजाजत नहीं देती,’’ रुंधे गले से उस ने कहा.

‘‘मैं सही मानों में तुम्हें कुछ दे नहीं सकता. अब मेरे पास केवल मेरी बूढ़ी मृतप्राय जड़ें ही बची हैं,’’ पेड़ ने आंखों में आंसू ला कर कहा.

‘‘अब मैं ज्यादा कुछ नहीं चाहता. चाहता हूं तो बस एक आराम करने की जगह. मैं इस उम्र में अब बहुत थका सा महसूस कर रहा हूं,’’ उस ने कहा.

‘‘वाह, ऐसी बात है. पेड़ की पुरानी जड़ें टेक लगा कर आराम करने के लिए सब से बढि़या हैं. आओ मेरे साथ बैठो और आराम करो,’’ पेड़ ने खुशीखुशी उस को आराम करने की दावत दी.

वह टेक लगा कर बैठ गया.

ये सेब के पेड़ हमारे अभिभावकों की तरह हैं. जब हम बच्चे होते हैं तो पापामम्मी के साथ खेलना पसंद करते हैं. जब हम पलबढ़ कर बड़े होते हैं तो अपने मातापिता को छोड़ कर चले जाते हैं और उन के पास गाहेबगाहे अपनी जरूरत से ही जाते हैं, जब कोई ऐसी जरूरत आन पड़ती है जिसे खुद पूरा करने में असमर्थ होते हैं. इस के बावजूद हमारे अभिभावक ऐसे मौकों पर हमारी सब जरूरतें पूरी कर हमें खुश देखना चाहते हैं.

आदमी कितना कू्रर है कि उस सेब के पेड़ का फल तो फल उस की शाखाएं और तने तक काट डालता है, वह भी अपने स्वार्थ की खातिर. इतना कू्रर कि पेड़ काटते समय उसे जरा भी उस पेड़ पर दया नहीं आई, जिस के साथ बचपन से खेला, उस के फल खाए और उस के साए में मीठी नींद का मजा लिया.

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Romantic Story in Hindi: मखमली पैबंद- एक अधूरी प्रेम कहानी

Romantic Story in Hindi: मेरी उंगलियां गिटार के तारों पर लगातार थिरक रही थीं और कंठ किसी मशहूर इंगलिश सिंगर के गानों की लय में डूबता चला जाता था. मेरे सामने एक छोटी सी बच्ची जिस की उम्र लगभग 5 वर्ष रही होगी उस इंगलिश गाने की धुन पर थिरक रही थी. उस के गोलमटोल चेहरे पर घुंघराले बालों का एक गुच्छा बारबार लटक आता था जिसे वह बड़ी ही बेपरवाही से पीछे की ओर झटक देती और बीचबीच में कभी अपनी मम्मी तो कभी पापा की उंगलियों को थाम अपने साथ डांस करने के लिए सामने की मेज से खींच लाती.

बच्ची के मातापिता की आंखों में अपनी बच्ची के इंगलिश गानों के प्रति प्रेम व लगाव से उत्पन्न गर्व उन की आंखों से साफ झलक रहा था. इन इंगलिश गानों का अर्थ वह बच्ची कितना समझ पा रही थी, यह तो नहीं पता, परंतु हां फाइवस्टार होटल के उस डाइनिंगहौल में उपस्थित सभी मेहमानों के लिए वह बच्ची आकर्षण का केंद्र अवश्य बनी हुई थी.

मैं इस समय नील आइलैंड के एक फाइवस्टार होटल के डाइनिंगहौल में गिटार थामे होटल के मेहमानों के लिए उन की फरमाइशी गीतों को गा रहा था. यह डाइनिंगहौल होटल के बीच में केंद्रित था और इस से करीब 20 गज की दूरी पर कौटेज हाउस बने हुए थे, जिन की संख्या लगभग 25 से 30 होगी. लोगों के लिए गाना गा कर उन का दिल बहलाना मेरा शौक नहीं, बल्कि मेरा पेशा  था. हां, संगीत का यह शौक कालेज के दिनों में मेरे लिए महज टाइम पास हुआ करता था.

संगीत के इसी शौक ने तो नायरा को मेरे करीब ला दिया था. वह मुझ से अकसर गानों की फरमाइश करती रहती थी और मैं तब दिल खोल कर बस उस के लिए ही गाता था. कालेज की कैंटीन में जब उस दिन भी मैं कालेज में होने वाले वार्षिक समारोह के लिए अपने दोस्तों के साथ किसी गाने की प्रैक्टिस कर रहा था. तभी तालियों की आवाज ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा. नायरा से कालेज की कैंटीन में मेरी वह पहली मुलाकात थी. कालेज की पढ़ाई खत्म करने के बाद जहां मुझे  किसी कंपनी में फाइनैंस ऐग्जिक्यूटिव की जौब मिली, वहीं नायरा किसी मल्टीनैशनल कंपनी में एचआर मैनेजर के पद पर तैनात हुई. हम दोनों एक ही शहर मुंबई में ही 2 अलगअलग कंपनियों में कार्यरत थे. हम ने किराए का फ्लैट ले लिया था जिस में हम साथ रहते थे. हम लिव इन में 4 सालों से थे.

एक दिन अचानक मेरा तबादला कोलकाता हो गया. कोलकाता आने पर भी हमारा साथ पूर्ववत बना रहा. वीकैंड में कभी वह कोलकाता आ जाती तो कभी मैं मुंबई पहुंच जाता और साथ में अच्छा समय व्यतीत करने के बाद वापस अपनेअपने कार्यस्थल लौट जाते. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि मेरी जौब चली गई और धीरेधीरे नायरा का साथ भी. जौब जाने के बाद से ही वह मुझ से कटीकटी सी रहने लगी थी. हमारे बीच की दूरियां लगातार बढ़ती जा रही थीं. हालांकि मेरी पूरी कोशिश रही कि हमारे बीच की दूरियां मिट जाएं.

खैर, आज मैं इस छोटे से आइलैंड के बड़े से होटल में गिटार बजा रहा हूं और मेरा शौक ही अब मेरा पेशा बन गया है.

‘‘ऐक्स्क्यूज मी’’ मैं ने पानी पी कर गिलास साइड की टेबल पर रखा ही था कि तभी एक महिला की आवाज सुनाई दी जिस ने मुसकराते हुए ‘कैन यू सिंग दिस सौंग’ बोल कर कागज का एक टुकड़ा जिस पर किसी हिंदी गाने की कुछ पंक्तियां लिखी हुई थीं. मेरी और बढ़ाते हुए कहा. उस की उम्र करीब 28 वर्ष की रही होगी.

उस ने अपने सवाल फिर से दोहराया, ‘‘क्या आप यह हिंदी गाना गा सकते हैं? यह उन की फरमाइश है,’’ यह कहते हुए उस महिला ने अपनी उंगली से एक ओर इशारा किया.

मेरी आंखों ने उस की उंगली का अनुकरण किया. मेरी नजर मेरे से कुछ दूरी पर मेरी दाईं तरफ की मेज पर बैठी उस महिला से जा टकराई. उस की आंखों में गजब का आकर्षण था. वह बड़े प्यार से मेरी ओर देखते हुए मुसकराई तो मैं ने हामी में सिर हिला दिया और फिर मेरी उंगलियों ने गिटार के तारों पर थिरकना शुरू कर दिया.

मैं ने उस महिला की फरमाइश के गीत को अभी खत्म ही किया था कि उस ने एक और हिंदी गाने की फरमाइश कर दी. इस बार वह महिला स्वयं मेरे सामने खड़ी थी. इस से पहले उस महिला की सहेली थी. गाने के बोल थे, ‘‘नीलेनीले अंबर पे…’’

धीरेधीरे रात बीतती जा रही थी और होटल का डाइनिंगहौल भी एकएक कर खाली होने लगा था, लेकिन वह महिला अब भी वहीं बैठी हुई थी.  मंत्रमुग्ध सी मेरी ओर देखे जा रही थी. उस का इस प्रकार मुझे एकटक देखना मेरे अंदर झिझक  पैदा कर रहा था. मैं ने अपने गिटार पैक किए और चलने की तैयारी की. उस महिला की बाकी सहेलियां भी जा चुकी थीं और शायद अब वह भी डाइनिंगहौल से बाहर निकलने ही वाली थी कि अचानक मौसम बेहद खराब हो चला. बाहर तेज गरज के साथ बारिश शुरू हो गई थी. आइलैंड पर अचानक साइक्लोन का आना और मौसम का इस तरह खराब होना सामान्य बात थी.

मुझे इस बात का पूर्व अंदेशा था फिर भी अपने किराए के कमरे से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर यहां आना मेरी मजबूरी थी. यह आइलैंड न तो  बहुत बड़ा है और न ही यहां की आबादी ही इतनी ज्यादा है. यहां की जितनी आबादी है उतनी तो मेरे शहर कोलकाता में किसी शादी में बरात में ही लोग आते होंगे. खैर, अमूमन यहां हरकोई एकदूसरे को पहचानता था. वैसे मेरी जानपहचान यहां के लोगों से उतनी अधिक अभी नहीं हुई थी क्योंकि यहां रहते हुए मुझे बामुश्किल 1 महीना हुआ होगा और दूसरा मैं अपनी शर्मीले  स्वभाव के कारण लोगों से कम ही घुलतामिलता हूं.

‘‘कृपया आप इस छाते के अंदर आ जाइए बाहर बारिश बहुत तेज है,’’ मैं जैसे ही डाइनिंगहौल से कांच के बने उस दरवाजे से बाहर निकला कि वह महिला उस बड़े से छाते का एक हिस्सा मेरी ओर करते हुए मु?ा से छाते के अंदर आने का आग्रह करने लगी.

‘‘जी धन्यवाद, मेरे पास खुद का रेनकोट है, आप बेकार में परेशान न हों,’’ मैं ने अपने बैग को टटोला, लेकिन यह क्या रेनकोट आज मैं घर पर ही भूल आया था. मुझे अपनी लापरवाही पर गुस्सा आया.

‘‘कोई बात नहीं आप इस छाते के अंदर आ सकते हैं. वैसे भी यह काफी बड़ा है. आप इतनी रात गए इस तूफान में वापस कैसे जाएंगे?’’ उस ने मेरे प्रति चिंता जाहिर करते हुए पूछा, ‘‘मेरे विचार से, आप जब तक मौसम ठीक नहीं हो जाता कुछ घंटे मेरे साथ मेरे कौटेज हाउस में रुक सकते हैं तूफान थमने के बाद वापस जा सकते हैं. वैसे आप के पास घर जाने का क्या कोई साधन है?’’

मैं ने खामोशी से इनकार में सिर हिलाया. संजोग से मेरी बाइक को भी आज ही खराब होना था.

‘‘इस वक्त आप को कोई औटोरिकशा भी शायद ही मिले,’’ उस की बातों में सचाई थी.  सच में ऐसे मौसम में बाहर किसी भी तरह की सवारी का मिल पाना मुश्किल था. चारों ओर  सन्नाटा पसरा था. मैं ने नोटिस किया डाइनिंगहौल खाली हो चुका था. मैं ने कलाई घड़ी पर नजर दौड़ाई. रात के 11:30 बज रहे थे. अब मैं बिना कोई सवाल किए उस के साथसाथ चल पड़ा. हम दोनों डाइनिंगहौल वाले एरिया से निकल कर थोड़ी दूर आ चुके थे.

 

सामने गार्डन में लगा पाम ट्री बड़ी तेजी के साथ हिल रहा था. हवा का तेज झोका मानो जैसे उस की मजबूती को बारंबार चुनौती दे रहा था. तेज तूफानी हवा जब उस के ऊपर से हो कर गुजरती तो वह एक ओर झक जाता और फिर वापस उसी मजबूती के साथ तन कर खड़ा हो जाता. मालूम नहीं, वह इस तूफान का मुकाबला कब तक कर पाएगा? तेज हवा का एक गीला झोंका हमारे ऊपर से हो कर निकला और छाते  को अपने साथ उड़ा ले गया.

‘‘मौसम तो बहुत ही ज्यादा खराब हो चला है,’’ कह वह महिला मेरे करीब आ गई थी.

मैं ने गौर से देखा बारिश की तेज बौछार के कारण वह महिला बिलकुल भीग चुकी थी. बिजली की तेज कौंध से उस का चेहरा चमक उठता था और उस के होंठ शायद सर्द हवाओं के कारण कांप रहे थे. मैं ने एक सभ्य और शालीन पुरुष की भूमिका अदा करते हुए अपना कोट उतार कर उस के कंधों पर टिका दिए जोकि लगभग गीले हो चुके थे.

मेरे द्वारा ऐसा करने पर वह महिला खिलखिला कर हंस पड़ी और मेरा कोट वापस मुझे पकड़ाते हुए बोली, ‘‘इस की कोई जरूरत नहीं.’’

इतने सन्नाटे में और ऐसी स्थिति में उस का इतने जोर से हंसना मुझे बिलकुल पसंद नहीं आया. हालांकि तभी मुझे अपनी इस बेवकूफी

पर गुस्सा भी आया. मैं ने गंभीर होते हुए पूछा, ‘‘आप का कौटेज हाउस कौन सा है?’’ क्योंकि होटल के डाइनिंग एरिया से 20 गज की दूरी पर करीब 25 से 30 की संख्या में कौटेज हाउस बने हुए हैं, जिन में से हरेक कौटेज एकदूसरे से लगभग 50 कदम की दूरी पर स्थित है.

होटल समुद्र किनारे था. अत: लहरों का शोर उस सन्नाटे में सिहरन पैदा कर रहा था. स्ट्रीट लाइट के धुंधले से प्रकाश में हम दोनों एकदूसरे को सहारा देते हुए तेज कदमों के साथ चल रहे थे. थोड़ी ही देर में हम कौटेज के बाहर थे. उस ने दरवाजे का लौक खोला और कमरे के अंदर जाते हुए मुझे भी हाथ के संकेत से अंदर आने के लिए कहा. मैं संकोचवश दरवाजे पर ही खड़ा रहा.

‘‘आप अंदर आ जाइए,’’ उस ने जब फिर से मुझे अंदर आने के लिए कहा तो मैं थोड़ा सोचते हुए कमरे के अंदर आ गया.

‘‘आप की सहेलियां क्या आप के साथ नहीं ठहरी हैं?’’ मैं ने देखा कि इतने बड़े कौटेज हाउस में वह महिला अकेली ठहरी हुई थी.

‘‘हम सभी अलगअलग ठहरे हुए हैं. मैं यहां अकेली ही ठहरी हूं. हम सभी पोर्ट ब्लेयर से साथ आई थीं. हमारा किट्टी ग्रुप है, हर एज की महिलाएं हैं. कुछ तो अपने बच्चों को भी साथ लाई हैं, लेकिन मुझे जरा शांत और अकेले रहना पसंद है इसलिए मैं ने यहां कौटेज हाउस लिया है. आप चिंता न करें आप के यहां रुकने से मुझे कोई परेशानी नहीं है,’’ कहते हुए वह महिला बाथरूम में चली गई और मैं वहां लगे सोफे पर पसर गया, जोकि उस के बैडरूम के साथ ही लगा था. थोड़ी देर में जब वह चेंज कर के लौटी तब भी मैं उस सोफे पर था, न जानें किस गहरी सोच में डूबा हुआ. ‘‘आप ने अभी तक चेंज नहीं किया? आप के कपड़े तो बिलकुल गीले हो चुके हैं.’’ ‘‘नहीं, मैं अपने साथ…’’ मैं कहने ही वाला था कि मेरे पास ऐक्स्ट्रा कपड़े नहीं हैं.   उस ने अपना ट्रैक सूट मुझे थमाते हुए कहा, ‘‘आप इसे तब तक पहन सकते हैं जब तक आप के कपड़े सूख नहीं जाते.’’ मैं मना नहीं कर सका क्योंकि मेरे पास इस के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था. थोड़ी देर बाद मैं लेडीज ट्रैक सूट में था जोकि मेरी माप का बिलकुल नहीं था.

मैं ने अपनी पतलून और शर्ट वहीं चेयर पर पंखे के नीचे फैला दी.

‘‘आप के पति क्या काम करते हैं?’’ मैं ने उस के गले में लटकते मंगलसूत्र की ओर देखते हुए पूछा. हालांकि मुझे यह खुद भी पता नहीं था कि क्या मैं सच में इस सवाल का उत्तर जानना चाहता था, लेकिन शायद माहौल को सहज बनाने के लिए, बातचीत की पहल के लिए मैं ने यह सवाल किया.

इस का जवाब उस ने बड़े ही शांत भाव से दिया, ‘‘बिजनैस?’’ उत्तर काफी संक्षिप्त था. इस के बाद कुछ पल के लिए कमरे में खामोशी छाई रही.

मैं उस के बैड से कुछ ही दूरी पर लगे एक बड़े से सोफे पर पैर पसारे हुए सिर को सोफे की दूसरे छोर पर कुशन के सहारे टिकाए लेटा था, जहां से मैं उस के चेहरे की भावभंगिमाओं को अच्छी तरह से पढ़ पा रहा था. उस के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी नजर आ रही थी. न जाने क्यों मुझे उस की हंसी में एक खोखलापन नजर आ रहा था. उस की खुशी बनावटी प्रतीत हो रही थी. वह जब भी जोर से हंसती तो ऐसा महसूस होता कि जैसे वह अपने अंदर के किसी खालीपन को ढकने की कोशिश कर रही है, कोई दर्द जो उस ने अपने अंदर समेटा हुआ है. मालूम नहीं कैसे?

उस कमरे में उस के साथ कुछ घंटे व्यतीत करने के बाद ही मुझे उस की वास्तविक आंतरिक स्थिति का एहसास होने लगा था. उस की आंखों में छिपे दर्द को मैं महसूस करने लगा था. मैं अभी तक उस के नाम से वाकिफ नहीं था और न ही वह मेरे विषय में ज्यादा कुछ जानती थी, फिर भी हम दोनों कमरे में साथ थे.

‘‘आप किसी बात से परेशान हैं क्या…’’  मैं ने कमरे में छाई चुप्पी को तोड़ना चाहा.

‘‘मेरा नाम राधिका है,’’ उस ने मेरे अधूरे वाक्य को पूरा करते हुए अपना परिचय दिया.

‘‘और आप समीर? मैं ने आप के आईडैंटटी कार्ड मैं आप का नाम देखा था,’’ और फिर से वह किसी गहरी सोच में डूब गई.

‘‘वैसे मुझे पूछने का हक तो नहीं, लेकिन माफ कीजिएगा मैं फिर भी पूछ रहा हूं. कुदरत ने तो आप के झाले में रुपएपैसे, सारे ऐशोआराम दिए हैं, फिर भी पिछले कुछ घंटों से मैं ने एक बात नोटिस की है कि आप के चेहरे की खुशी बनावटी है. आप की हंसी मालूम नहीं क्यों मुझे लगती है?’’

‘‘खुशी, ऐशोआराम, रुपएपैसे,’’ उस ने मेरे द्वारा कहे गए इन सारे शब्दों को दोहराते हुए एक गहरी सांस ली, ‘‘मैं तुम से एक सवाल पूछना चाहती हूं, धनदौलत, रुपएपैसे का तुम्हारी जिंदगी में क्या अहमियत है? चलो तुम्हें ये सब मैं दे दूं तो भी क्या तुम इन से सुखशांति खरीद लोगे?’’

‘‘बिलकुल, धनदौलत से सबकुछ हासिल किया जा सकता है. मेरी समझ से जिंदगी में अगर एक इंसान के पास धनदौलत है तो उस के पास सबकुछ है. नायरा ने इन्हीं वजहों से तो मुझे छोड़ा था, जब मेरी नौकरी चली गई थी, मैं आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. नायरा और हमारे बीच आई दूरियों की वजह तो यही रुपएपैसे थे.’’

‘‘मेरा मतलब प्रेम से था, सच्चे प्रेम से, क्या तुम रुपएपैसे की बदौलत सच्चे प्रेम को खरीद  सकते हो या ठीक इस के विपरीत कहूं तो यदि मैं तुम्हें रुपएपैसे, धनदौलत दे दूं, तो क्या बदले में तुम मुझे सच्चा प्रेम दे सकते हो? क्या दे सकोगे  मुझे सच्चा प्रेम? मेरे पास धन, दौलत, रुपएपैसे सबकुछ है परंतु नहीं है तो सच्चा प्रेम जो मेरी जिंदगी के खालीपन को भर सके.’’

‘‘क्यों? क्या आप के पति आप से प्रेम नहीं करते?’’ मैं ने अचानक सवाल पूछा.

‘‘उन का बहुत बड़ा कारोबार है, बहुत सारी संपत्ति है और नहीं है तो एक औलाद जो उन के बाद उन की संपत्ति का मालिक बन सके औलाद की चाहत में उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे दिया. पैसों के बल पर मुझे से 50 वर्ष की आयु में शादी कर ली, जबकि मेरी उम्र उस वक्त 22 साल थी. मेरे पिता जोकि उन के यहां एक साधारण सी नौकरी करते थे ने मेरी मां के इलाज के लिए काफी पैसे उधार ले लिए थे,’’ बोलतेबोलते वह अचानक चुप हो गई.

कुछ देर की खामोशी के बाद उस ने आगे बताना जारी रखा, ‘‘मेरी शादी के कुछ ही महीने बाद मेरी मां की मृत्यु हो गई और उन की मृत्यु के कुछ महीने बाद ही अपने पिता भी चल बसे. मेरे पास सबकुछ है और जो नहीं है वह है प्रेम, सच्चा प्रेम जिस के अभाव में जीवन निरर्थक लगता है. अपने पति के लिए मैं सिर्फ एक साधन हूं. एक ऐसा साधन जो उन के लिए संतान की प्राप्ति करा सकता है, उन की अपार संपत्ति का वारिस दिला सकता है. हमारी शादी के 5 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन संतान की प्राप्ति नहीं हुई. वे इस सब का जिम्मेदार मुझे ठहराते हैं, जबकि कमी उन के अंदर है. मैं आज अच्छीखासी संपत्ति की मालकिन हूं. फिर भी जिंदगी में एक खालीपन है, खोखलापन है.’’

वह बिलकुल मेरे नजदीक बैठी थी. मैं सोफे पर शांत बैठा हुआ उस की बातों को सुन रहा था. न जाने कब मेरा हाथ उस के हाथों में आ गया. मेरे हाथ पर पानी की बूंद सा कुछ टपका तो मैं ने देखा उस की आंखों में आंसू भरे थे.

मैं ने सोफे पर बैठेबैठे पीछे खिड़की पर से परदे को थोड़ा सरका कर कांच से बाहर झंकते हुए मौसम का मुआयना किया. बाहर अभी भी तेज हवा के साथ जोरदार बारिश हो रही थी.

‘‘मौसम अभी भी काफी खराब है,’’ मैं ने टौपिक चेंज करने की कोशिश की.

‘‘क्या तुम मेरे लिए कुछ गा सकते हो?’’

‘‘अभी इस वक्त?’’ मैं ने घड़ी देखी रात के 2 बज रहे थे.

‘‘क्या तुम मुझे कुछ पल की खुशी दे सकते हो? ऐसी खुशी जिसे मैं ताउम्र संजो कर रख सकूं? कुछ ऐसे लमहे जिन की मखमली यादों से मैं अपनी जिंदगी की इस रिक्तता को भर सकूं? मैं तुम्हें मुंहमांगे पैसे दे कर इन लमहों को तुम से खरीदना चाहती हूं.’’

अचानक उस ने अपना सिर मेरे सीने पर टिका दिया. मैं उस की तेज धड़कन को साफसाफ सुन पा रहा था, उस की गरम सांसों को महसूस कर रहा था. उस ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए.

बाहर बिजली की कड़कड़ाहट के साथ एक तेज आवाज हुई. शायद पाम का वह वृक्ष जो अभी तक अपनी जड़ों पर मजबूती के साथ खड़ा था, उसे इस तूफान ने उखाड़ गिराया था. मैं ने जीवन में पहली बार नायरा से बेवफाई की. हम सारी रात एकदूसरे के आगोश में थे.

सुबह जब आंख खुली तो बारिश थम चुकी थी. मैं ने कांच की खिड़की से परदे को सरका कर बाहर देखा. बारिश थम चुकी थी. हवा के हलकेहलके झांके बाहर खूबसूरत फूलपत्तियों को सहला रहे थे. हवा के इस प्रेमस्पर्श से लौन में लगे पेड़ों की पत्तियां थिरकथिरक कर जैसे खुशी का इजहार कर रही थीं.

सामने दीवार पर लटकी उस मोटी तार पर बारिश के पानी की एक अकेली बूंद अपने अकेलेपन की बेचैनी को एक ओर झटकते हुए नीचे टपकने को आतुर था. सामने किसी वृक्ष के डाल पर एक छोटी सी चिडि़या कहीं से उड़ती आई और फुदकफुदक कर अपने गीले पंखों को फड़फड़ाते हुए सुखाने की चेष्टा करने लगी मानो जैसे खुले आसमान में वापस उड़ने की तैयारी कर रही हो.

‘‘आप चाय लेंगे या कौफी?’’

‘‘नहीं, मैं अब जाना चाहूंगा,’’ यह कहता  हुआ मैं उठ खड़ा हुआ और बाहर निकलने की तैयारी करने लगा तो उस ने मेरे हाथों में एक विजिटिंग कार्ड पकड़ा दिया और कहा, ‘‘यदि आप कोलकाता आएं तो इस पते पर अवश्य संपर्क करें.’’

मैं ने आश्चर्य से उस की ओर देखा.

‘‘मैं इस कंपनी की मालकिन हूं. दरअसल,  यह कंपनी मेरे ही नाम है. आप को आप की पसंद की पोस्ट मिल जाएगी और तनख्वाह आप जितना कहें क्योंकि मेरे पति के बहुत सारे बिजनैस हैं. अलगअलग शहरों में कई कंपनियां हैं, तो उन में से यह एक कंपनी मेरे नाम है. शादी के इतने सालों में मैं ने यही एक समझदारी का काम किया है कि मैं ने खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया वरना यह जालिम दुनिया,’’ और वह कुछ कहतेकहते अचानक चुप हो गई, फिर आगे बोली, ‘‘इस जिंदगी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. वैसे आप चाहें तो पोर्ट ब्लेयर में भी आप को काम मिल सकता है क्योंकि मैं पोर्ट ब्लेयर में भी एक बिजनैस जल्द ही शुरू करने वाली हूं. आप के लिए यहां भी मौका है.’’

मैं कुछ दिनों बाद कोलकाता वापस आ गया. वादे के मुताबिक मुझे नौकरी भी मिल गई और ऊंची तनख्वाह भी. धीरेधीरे वक्त अपनी गति से बीतता चला गया.

‘‘हैलो, मैं कोलकाता वापस आ रही हूं,’’ एक दिन अचानक नायरा ने मुझे फोन कर के अपने आने की सूचना दी और उस के अगली सुबह वह मेरे घर आ गई. मैं ने कोलकाता के पौश एरिया में एक बड़ा सा फ्लैट खरीद लिया था. एक नई गाड़ी भी खरीद ली थी. ऐशोआराम की सारी सुखसुविधा अब हमारे पास थी. अब नायरा मुझ से शादी करना चाहती थी. नायरा के  मांबाप भी जोकि पहले हमारी शादी के पक्ष में नहीं थे क्योंकि वह अपनी बेटी की शादी किसी बेरोजगार से नहीं करा सकते थे और नायरा अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ मुझ से शादी नहीं कर सकती थी. परंतु अब नायरा और उस के मांबाप जल्द से जल्द शादी के पक्ष में थे.

वैसे मुझे भी शादी से कोई ऐतराज नहीं था. जल्द ही शादी की तारीख भी तय हो गई और हमारी ऐंगजेमैंट भी हो गई. जिंदगी वापस पटरी पर दौड़ने लगी थी. ऐंगजेमैंट के बाद नायरा वापस मुंबई आ गई थी क्योंकि शादी में अभी कुछ दिन बाकी थे. मैं वीकैंड पर नायरा से मिलने मुंबई गया हुआ था. मैं और नायरा साथ में एक अच्छा टाइम स्पैंड कर रहे थे ताकि मैं किसी औफिस कौल में बिजी न हो जाऊं, नायरा ने मेरे फोन को साइलैंट मोड पर कर के फोन अपने पास ही रख लिया था.

मैं इस बात से बेखबर था कि उस दिन राधिका के 10 फोन आए थे. फोन नहीं उठा पाने के कारण राधिका ने वाट्सऐप मैसेज सैंड कर दिया, ‘‘मुबारक हो मैं ने बेटे को जन्म दिया है. मुझे इतनी बड़ी खुशी मिली है कि संभाले नहीं संभल रही है. इस खुशी का सारा श्रेय आप को जाता है. मेरे दामन को खुशियों से भरने के लिए आप का बहुतबहुत शुक्रिया. मुझे भनक तक नहीं लगी और यह मैसेज नायरा ने पढ़ लिया. उस दिन मेरे और नायरा के बीच काफी बहस हुई. बात वापस संबंधविच्छेद तक आ गई, लेकिन मैंने हार नहीं मानी.

मैं ने नायरा को समझना जारी रखा. मैं ने उसे बड़े शांतभाव और प्रेमपूर्वक समझाया, ‘‘नायरा, मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति जो प्रेम है वह सिर्फ तुम्हें ही समर्पित है. मैं तुम्हें दिल की गहराइयों से प्यार करता हूं. तुम्हारे प्रति मेरा यह प्रेम कभी खत्म नहीं हुआ. हां, मैं ने उन में से कुछ लमहे किसी को सौंप कर तुम्हारे लिए जीवनभर की खुशियां ही तो खरीदी हैं. तुम्हारा जीवनभर का साथ ही तो चाहा है. अब तुम ही बताओ जब मेरे पास नौकरी नहीं थी, पैसे नहीं थे, सुखसुविधा नहीं थी तब तुम ने ही मेरा साथ छोड़ा था.’’

नायरा चुप थी क्योंकि उस के पास मेरे सवालों के जवाब नहीं थे.

मैं ने राधिका की सारी सचाई, सारी बातें नायरा के समक्ष रख दीं. सारी बातें जानने के बाद नायरा ने मुझे माफ कर दिया. अब मैं और नायरा शादी के बंधन में बंध कर एक खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं. बच्चे की पहली सालगिरह पर राधिका ने हमें भी आमंत्रित किया है और उन के पति कन्हैया भी इस सचाई से अब तक वाकिफ हो चुके हैं फिर भी वे अपनी खुशी का इजहार कर रहे हैं. हालांकि वे अपनी आंतरिक पीड़ा को लोगों के समक्ष प्रकट करने से  कतराते नजर आ रहे हैं. अपने चेहरे पर खुशी ओढ़े हुए वे मेहमानों की आवभगत में लगे हुए हैं. यह सचाई हालांकि कन्हैया के पुरुषरूपी अहंकार पर प्रहार तो अवश्य कर रही है, लेकिन दुनिया के समक्ष इन बातों से ऊपर उन के लिए एक पुत्र का पिता कहलाने का गौरव और उस की महत्ता अधिक हो गई थी.

नायरा और मैं बच्चे को प्यार और दुलार कर गिफ्ट पकड़ा कर केक, मिठाई और स्वादिष्ठ व्यंजनों की दावत उड़ा कर अपने घर लौट रहे थे. इस मौके पर राधिका बेहद खुश दिख रह थी. उस ने नायरा से खूब सारी बातें कीं और हमें गेट तक छोड़ने कन्हैया भी राधिका के साथ आए.

Romantic Story in Hindi

घातक है पौकेटिंग रिलेशनशिप

Pocketing relationship: आजकल रिश्तों के भी कई नाम होने लगे हैं. किसी से मिलने से ले कर उस के छोड़ने तक के लिए किसी न किसी शब्द का आविष्कार कर दिया गया है जैसे सिचुएशनशिप, बैंचिंग, ब्रैडक्रंबिंग, कफिंग और पौकेटिंग.

ऐसे कई शब्द आ गए हैं जो रिलेशनशिप की अलगअलग स्थिति को बताते हैं. इन्हीं में से एक शब्द है- पौकेटिंग. आजकल रिलेशनशिप में  पौकेटिंग शब्द काफी सुनाई देने लगा है. तो पहले हम यह जान लें कि पौकेटिंग शब्द का अर्थ होता क्या है?

रिश्ते में पौकेटिंग का अर्थ

दरअसल, पौकेटिंग रिलेशनशिप में लोग अपने पार्टनर या साथी की मौजूदगी को दुनिया से छिपाते हैं यानी 2 लोग रिश्ते में होते हैं लेकिन वे अपने इस रिश्ते को दोस्तों, परिवार वालों और यहां तक कि सोशल मीडिया से भी छिपा कर रखते हैं.

लड़का या लड़की दोनों में कोई भी अपने पार्टनर के साथ ऐसा कर सकता है. पौकेटिंग रिलेशनशिप में आप का पार्टनर अकेले में तो प्रेमी या प्रेमिका की तरह पेश आता लेकिन दूसरे लोगों के सामने आते ही ऐसा बरताव करता है जैसे उसे आप के होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता.

पौकेटिंग के कारण

रिश्ते में अनिश्चितता: कुछ लोग अपने रिश्ते को ले कर निश्चित नहीं होते और इसलिए वे इसे दूसरों से छिपाते हैं. वे शायद यह देखना चाहते हैं कि यह रिश्ता लंबे समय तक चलेगा या नहीं.

सामाजिक दबाव: परिवार या दोस्तों की अपेक्षाओं के कारण भी पौकेटिंग हो सकती है. उदाहरण के लिए यदि साथी का परिवार या मित्र किसी खास जाति, धर्म या सामाजिक वर्ग के व्यक्ति से रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा तो व्यक्ति अपने रिश्ते को छिपाने का प्रयास कर सकता है.

संगठनात्मक कारण: कुछ लोग अपने पेशेवर या सामाजिक छवि को ले कर चिंतित होते हैं और अपने निजी जीवन को पेशेवर जीवन से अलग रखना चाहते हैं, जिस से वे रिश्ते को छिपाते हैं.

पौकेटिंग का प्रभाव

रिश्ते में पौकेटिंग का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. यह व्यवहार उस व्यक्ति को भावनात्मक रूप से कमजोर और अस्वीकार्य महसूस करा सकता है जिसे छिपाया जा रहा है. लंबे समय तक इस प्रकार का व्यवहार रिश्ते में विश्वास की कमी और भावनात्मक दूरी पैदा

कर सकता है. व्यक्ति यह महसूस कर सकता है कि उस का साथी उसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर रहा है, जिस से तनाव और असुरक्षा का जन्म होता है.

पौकेटिंग के उपचार के तरीके

संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करें: रिश्ते में संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करने से आप के साथी को अपने जीवन में खुल कर बात करने और आप को शामिल करने में अधिक सहजता महसूस करने में मदद मिल सकती है.

विश्वास का निर्माण करें: पौकेटिंग के उपचार में विश्वास का निर्माण आवश्यक है. विश्वास विकसित होने में समय लगता है लेकिन लगातार प्रयास और पारदर्शिता भागीदारों के बीच बंधन को मजबूत कर सकती है.

अंतर्निहित मुद्दे को संबोधित करें: पौकेटिंग में योगदान देने वाले किसी भी अंतर्निहित मुद्दे की पहचान करें और उस का समाधान करें. इन में प्रतिबद्धता का डर, अतीत का आघात या सांस्कृतिक मतभेद शामिल हो सकते हैं.

इन मुद्दों को सम झना और इन का समाधान करना दोनों भागीदारों को आगे बढ़ने में मदद कर सकता है. धीरेधीरे अपने जीवन में अपने साथी को शामिल करने से डर कम करने और सहजता बनाने में मदद मिल सकती है.

सकारात्मक व्यवहार को सुदृढ़ करें: अपने जीवन में आप को शामिल करने के लिए अपने साथी के प्रयासों को स्वीकार कर के और उन की सराहना कर के सकारात्मक व्यवहार को सुदृढ़ करें. सकारात्मक सुदृढ़ीकरण आगे खुलेपन और एकीकरण को प्रोत्साहित कर सकता है.

व्यक्तिगत मूल्यों पर चिंतन करें: दोनों भागीदारों को अपने व्यक्तिगत मूल्यों और रिश्ते में आपसी सम्मान और समावेश के महत्त्व पर चिंतन करना चाहिए. मूल्यों को समझना रिश्ते के लिए एक मजबूत नींव बनाने में मदद कर सकता है.

रिश्ते की देखभाल का अभ्यास करें: पौकेटिंग से निबटने के दौरान दोनों पक्षों के लिए स्व देखभाल का अभ्यास करना आवश्यक है. अपनी भावनात्मक और मानसिक सेहत का ख्याल रखने से आप को चुनौतियों से निबटने और स्वस्थ दृष्टिकोण बनाए रखने में मदद मिल सकती है.

पौकेटिंग रिलेशनशिप के फायदे

यह एक ऐसा रिश्ता होता है, जिस के फायदे कम नुकसान ज्यादा होते हैं. इस रिलेशनशिप में सिर्फ एक ही फायदा है, वह यह कि यह आप के सीक्रेट्स को सब के सामने आने से बचाता है. आप चोरीछिपे एकदूसरे को डेट कर सकते हैं और दुनिया को इस की भनक तक नहीं लगने देते.

अगर आप चाहते हैं कि आप के रिश्ते के बारे में किसी को पता न चले या आप अपने पार्टनर को ले कर बहुत पजैसिव है तो आप पौकेटिंग रिलेशनशिप कर सकते हैं.

पौकेटिंग रिलेशनशिप के नुकसान

पौकेटिंग रिलेशनशिप किसी भी तरह अच्छी नहीं मानी जाती. इस तरह की रिलेशनशिप में असुरक्षा की भावना आ सकती है. ऐसी रिलेशनशिप में पार्टनर अच्छे ही होते हैं लेकिन जिंदगी अकेले होने जैसा जीते हैं. इस में भविष्य को ले कर कोई योजना नहीं होती और इस रिश्ते की नींव बहुत कमजोर होती है. यह रिश्ता कितनी दूर जाएगा, इस का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है क्योंकि बिना भरोसे के रिश्ते का भविष्य कम ही होता है. इस में धोखा मिलने के उम्मीद कम होती है.

यदि आप का साथी आप के साथ पौकेटिंग रिश्ता रख रहा है तो आप उसे सम झाएं कि

आप पौकेटिंग रिश्ते में नहीं रह सकते हैं क्योंकि कोई भी रिश्ता बिना भरोसे और विश्वास के बिना आगे और लंबा नहीं चल सकता.

Pocketing relationship

Body Building: मेकअप और मसल की बनें क्वीन

Body Building: रोहित पायल के साथ फर्स्ट डेट पर गया था. डेट के शुरुआती पलों में ही वह इस कशमकश में पड़ गया कि डेट को जारी रखे या उठ कर चला जाए. उस की कशमकश की वजह थी पायल का चेहरा. एक तरफ तो रोहित पायल की फिट बौडी से अट्रैक्ट हो रहा था वहीं दूसरी ओर वह पायल के चेहरे पर नजर टिका नहीं पा रहा था. इसलिए नहीं कि पायल डस्की थी बल्कि इसलिए कि पायल का चेहरा उस के गले से कुछ अलग ही बयां कर रहा था. मतलब पायल के चेहरे की स्किन टोन उस के गले की स्किन टोन से अलग थी. यह आधाअधूरा मेकअप रोहित को बिलकुल नहीं भा रहा था. यों अधूरा मेकअप उसे एक बेढंगेपन का उदाहरण दिख रहा था.

डार्क, सांवली या डस्की स्किन वालों को हमेशा से अपने को ले कर एक संकोच रहा है. और वह संकोच है दूसरे से निम्न दिखने का. डस्की लड़कियां अपने रंग और बौडी को ले कर अकसर उल झन में पड़ी रहती हैं.

दरअसल, डस्की स्किन लड़कियों के सामने जो बहुत बड़ी समस्या होती है वह है एक तो मेकअप और दूसरा बौडी फिजिक.

मेकअप का डर: डस्की लड़कियां अपने रंग को ले कर इतनी उदासीन होती हैं कि मेकअप से दूर भागती हैं. डस्की होना उन्हें एक सैल्फ डाउट में डाले रहता है. उन्हें लगता है मेकअप उन के चेहरे पर खराब दिखेगा या मेकअप डार्क लड़कियों के लिए है ही नहीं. पहले जहां लोगों को डस्की होने पर छोटा या कम आंका जाता था आज उसी डस्की रंग का जोरशोर से प्रचार हो रहा है.

पहले जहां हर प्रचार में गोरी लड़कियां का बोलबाला था और उन्हीं के लिए मेकअप और ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाए जाते थे, वहीं आज दुनिया के सारे मेकअप और ब्यूटी ब्रैंड्स अब डस्की स्किन टोन के लिए भी कई सारे प्रोडक्ट्स बना रही हैं, साथ ही अपने प्रमोशनल शोज और विज्ञापनों में डस्की स्किन की मौडल्स को दिखा भी रही हैं. तो अब डस्की टोन चाहे गाढ़ी हो या फीकी, उसे निखारें. आज अपनी सांवली स्किन को निखारने के बहुत से रास्ते हैं और उन्हीं में एक है आप का मेकअप.

फिर भी बहुत सी सांवली या डस्की लड़कियां अपनी डस्की स्किन टोन की वजह से मेकअप करने में संकोच करती है या फिर करती भी हैं तो उसे प्रौपर लुक नहीं देतीं. सिर्फ चेहरे का मेकअप कर छोड़ देती हैं जो अधूरा मेकअप ही कहलाता है. उन्हें लगता है लोग तो सिर्फ चेहरे पर ही ध्यान देते हैं, जबकि ऐसा नहीं है. आप को हमेशा ही चाहे आप की स्किन टोन डार्क हो या फेयर अपना मेकअप कंप्लीट करना चाहिए.

अधूरा किया मेकअप एक तो आप के चेहरे से बाकी बौडी पार्ट की स्किन टोन से बेमेल रहेगा, ऊपर से देखने में भी अटपटा लगेगा. ऐसे में आप लोगों की अटैंशन तो पा लोगी लेकिन किसी सराहना के तौर पर नहीं बल्कि एक हासपरिहास के रूप में. इसलिए मेकअप करने से और उसे एक कंप्लीट लुक देने से पीछे न हटें. मेकअप तो बनाया ही आप की सुंदरता को और निखारने के लिए है. तो फिर खुद को और निखारने और आकर्षित रूप देने के लिए संकोच क्यों?

मार्केट में आज लगभग हर ब्रैंड चाहे वह छोटा हो या बड़ा, डस्की स्किन टोन के लिए हजारों प्रोडक्ट्स ले आए हैं जो हर डस्की टोन को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं. डस्की स्किन के लिए वार्म टोन में कई सारे प्रोडक्ट्स मौजूद हैं. न्यूड शेड और ब्राउनिंश शेड में कई कलर्स आप को फाउंडेशन से ले कर कंसीलर, फेस पाउडर, ब्लश, लिपस्टिक हर प्रोडक्ट आसानी से मिल जाता है.

मेकअप प्रोडक्ट्स लेते समय हमेशा ध्यान रखें कि आप सही टोन और शेड ले रही हों. जैसे डार्क या सांवली स्किन टोन वालों को हमेशा वार्म टोन के शेड और न्यूट्रल टोन के कुछ शेड लेने चाहिए. अगर वे पिंक टोन के प्रोडक्ट्स यूज करेंगी तो उन की स्किन पर एक सफेद परत का मेकअप दिखेगा. इसलिए मेकअप प्रोडक्ट्स अपनी स्किन टोन को ध्यान में रख कर लें.

दूसरी समस्या बौडी फिजिक

बहुत सी डस्की लड़कियां अपनी स्किन टोन को ले कर ही इनती  िझ झक में रहती हैं कि उन पर कौन सा रंग अच्छा लगेगा. कौन सा नहीं, कैसा दिखेगा, कैसा नहीं, कहीं कोई उलाहना न दे दे ऐसी बहुत बातों से उन्हें जू झना पड़ता है. मगर यह हर सांवली लड़की के लिए आम समस्या सी बन गई है. अधिक चिंता का विषय तो तब होता है जब यह रंग उन्हें अपने मन के किसी कैरियर का चुनाव करने से रोक रहा हो जैसेकि ऐक्टिंग और मौडलिंग. ऐक्टिंग, मौडलिंग में तो आज बहुत सी महिलाएं सांवले रंग के साथ ऊंचाइयां छू रही हैं. लेकिन बौडीबिल्डिंग. जी हां बौडीबिल्डिंग जहां लोगों का ध्यान आप की बौडी पर ही होता है.

एक तो बौडीबिल्डिंग को वैसे ही कैरियर के लिहाज से लड़कियों के लिए ठीक नहीं मानते. दूसरा अगर रंग सांवला हो तो जगहंसाई की और चिंता खाती है. बहुत सी डस्की लड़कियों का बौडीबिल्डिंग करने का मन होता है. लेकिन लोग क्या कहेंगे, के डर से कोशिश नहीं करतीं. उन्हें लगता है पहले तो उन का पक्का रंग और फिर उन की मस्कुलर बौडी उन्हें बौडी शेमिंग और जगहंसाई का पात्र न बना दे कि देखो एक तो लड़की और अब ऊपर से अपना काला जिस्म भी दुनिया को दिखा रही है, ऐसे भीमकाय शरीर से क्या ही जीत लेगी या अब तो यह और भी कुरूप दिखती है.

इन्हीं तानों के चलते वह इच्छा होते हुए भी अपनी बौडी पर वर्क नहीं करती, जबकि लड़कियों के लिए तो बौडीबिल्डिंग बहुत ही अच्छा चुनाव है. लेकिन कैसे? तो सब से पहले तो बौडीबिल्डिंग आप की बोंस और मसल को मजबूत तो करता ही है. साथ ही आप को एक फिट बौडी भी देता है. फैट जिस से आज लगभग हर महिला परेशान हो रही है वह आप की लाइफ से दूर हो जाएगा. जहां आज हर तीसरी लड़की वेट इशूज, पीसीओडी, हारमोनल प्रौब्लम्स से तकलीफ में है, बौडीबिल्डिंग आप को इन परेशानियों से बचा सकती है. आप की बौडी फिट ऐंड हैल्दी रहेगी. ये तो शारीरिक हैल्थ की बातें और फायदे हैं. मगर मानसिक या मैंटल हैल्थ का क्या?

बौडीबिल्डिंग सिर्फ एक फिट और मस्कुलर बौडी ही नहीं देती बल्कि माइंड भी फिट ऐंड फाइन करने में मदद करती है. बौडीबिल्डिंग एक चैलेंजिंग स्पोर्ट्स है. तो इस की तैयारी और सफलता आप को बहुत ही मैंटली स्ट्रौंग और कौन्फिडैंट बनाएगी, साथ ही आप में सैल्फ ऐस्टीम को भी बूस्ट करेगी. इस से आप लोगों के तानेबाने को नजरअंदाज करने और अपने गोल्स को पाने के लिए और मजबूत होती जाएंगी. आप की मस्कुलर बौडी आप में एक अलग कौन्फिडैंस पैदा करेगी जो आप के खुद के मन में स्वयं के लिए पैदा हुई हीन भावना को खत्म करेगा. आप का स्ट्रैस, ऐंग्जाइटी और डिप्रैशन दूर होगा. आप की सैल्फ इमेज भी डैवलप होगी और आप ऐंपावरड होंगी.

डस्की स्किन के साथ बौडीबिल्डिंग का ऐडवांटेज भी है जहां इन स्पोर्ट्स में फेयर स्किन वालों को अपनी बौडी मसल, शेप और कंट्रास्ट को दिखाने के लिए क्रीम और बौडी पौलिशिंग से बौडी टैन करनी पड़ती है क्योंकि मस्कुलर बौडी डार्क स्किन टोन पर और अच्छे से निखर कर दिखती है. तो आप को तो आप की डस्की स्किन से एक अच्छा ऐडवांटेज मिल रहा है, जिस से आप लोगों का ध्यान आकर्षित करने में दूसरों से आगे रहेंगी. आज बौडीबिल्डिंग में ऐसी बहुत सी सफल महिलाएं हैं जो डार्क स्किन की हैं. इसलिए डार्क स्किन लड़कियों को बौडीबिल्डिंग से कतराना नहीं चाहिए.

मीडिया, फैशन, स्पोर्ट्स ऐसी इंडस्ट्रीज हैं, जहां सारी जनता की नजरें सिर्फ आप की बौडी और ऐक्टिविटी पर रहती हैं. वहां आज ऐसी बहुत सी कामयाब महिलाएं है जिन का रंग डार्क या कहें सांवला है. जिन्होंने लोगों की सोच, लोगों की बातों की परवाह न करते हुए अपने दिल की सुनी और केवल अपने लक्ष्य के बारे में सोचते हुए आगे बढ़ती रहीं.

डस्की होना कोई अवगुण या अयोग्य होने की बात नहीं. डस्की या सांवला रंग अगर इतना ही निम्न होता है तो उस की खूबसूरती को बयां करने लिए न तो हजारों गाने बनते और न गाए जाते. इसलिए मेकअप और बौडी वर्कसे न भागें.

आप को मेकअप करना है या नहीं. यह आप का निजी फैसला है लेकिन इच्छा होते हुए आप किसी डर से या हिचक के मेकअप न करें यह ठीक नहीं. किसी भी काम को पहली बार करने से पहले थोड़ी हिचक तो होती ही है, मगर हमेशा के लिए उस हिचक को अपना लेना खुद को कम करने जैसा ही है. ठीक वैसे ही बौडीबिल्डिंग या बौडी वर्क आप की अपनी चौइस है. लेकिन बौडी को फिट रखना आप की जिम्मेदारी. आप चाहे फेयर हों या डस्की, वर्किंग हो या गृहिणी. आप को अपनी बौडी फिजिक पर ध्यान देना चाहिए. अपने किसी संकोच के कारण अपनी भावनाओं या इच्छाओं को नकारना ठीक नहीं.

Body Building

Motivation: खुद को बचाएं गौसिप गैंग से

Motivation: कुछ दिन पहले की बात है. दिल्ली मैट्रो में एक जोड़ा चढ़ा. लड़का और लड़की दोनों की उम्र 24-25 साल के आसपास रही होगी. दोनों ही कमाऊ लग रहे थे. लड़की खूबसूरत थी. लड़का भी हैंडसम था. दोनों ने कपड़े भी अच्छे ब्रैंडेड पहने हुए थे. पर थोड़ी देर के बाद उन दोनों में ऐसा कुछ हुआ कि बाकी सवारियों के कान उन की बातों पर लग गए.

लड़की ने लड़के से पूछा, ‘‘क्या आप शुक्रवार की शाम को अपने दोस्तों के साथ बैठे थे?’’

लड़का बोला, ‘‘हां, बैठा था. तो क्या हुआ?’’

‘‘तुम सब ने ड्रिंक भी की थी न?’’ लड़की ने जैसे उस लड़के की पोल खोलते हुए कहा.

‘‘हां, की थी. तुम मुद्दे की बात करो न कि क्या पूछना चाहती हो,’’ लड़के की आवाज में थोड़ी कड़वाहट आ गई थी.

‘‘वहां तुम सब ने बकवास भी की थी…’’ लड़की ने तेज आवाज में कहा.

‘‘जब लड़के पीने बैठते हैं तो बकवास ही करते हैं. पर तुम मेरी जासूसी क्यों कर रही हो?’’ लड़का अब और तेज आवाज में बोला.

लड़की कुछ बोलती उस से पहले ही लड़के ने उस का हाथ  झटक कर कहा, ‘‘तुम्हें यह सब किस ने बताया?’’

लड़की ने जबान नहीं खोली, जबकि लड़का उस पर हावी हो गया. वह गुस्से में तमतमाते हुए बोला, ‘‘कौन है, नाम बता? मु झे गुस्सा मत दिला. जब इतना कुछ जानती है तो नाम भी बता दे. अब डर क्यों रही है?’’

लड़की ने पहले तो अपना हाथ छुड़ाया और फिर बड़बड़ाते हुए एक खाली सीट पर जा कर धम्म से बैठ गई.

सवाल अहम है उन दोनों की यह आपसी लड़़ाई सब ने सुनी और फिर अनसुना कर दिया. पर यहां एक सवाल जरूर मन में उठा कि लोग अपनी पर्सनल बातों में इतने ज्यादा क्यों खो जाते हैं जो अनजान लोगों के सामने अपनी भड़ास निकाल देते हैं और ऐसा जताते हैं कि कोई सुने तो सुने उन की बला से?

मजे की बात तो यह है कि यह वही पीढ़ी है जो अपने घर में मां, बूआ, मौसी, चाचा, चाची जैसी अपने से बड़ी पीढ़ी को इस बात पर कोसती है कि वे लोग पीठ पीछे एकदूसरे की बुराई क्यों करते हैं या पड़ोस में क्या चल रहा है, इस पर मजे ले कर बातें क्यों करते हैं?

मैट्रो या बस आदि में यह आम हो गया है कि लोग आमनेसामने या फिर फोन पर चुगलखोरी करते दिखाई देते हैं. सास अपनी बहू की पोल खोलती दिख जाती है तो बहू अपनी ननद के किस्से अपनी मां को सुनाती नजर आती है.

मर्द और लड़के भी इस सब में पीछे नहीं हैं. कोई औफिस में बौस की बखिया उधेड़ रहा होता है तो कोई अपनी प्रेमिका को ब्लौक करने के किस्से सुना रहा होता है.

ऐसा होता क्यों है

क्यों हम अनजान लोगों के सामने अपने घरकुनबे का पुराण बांचने लग जाते हैं? इस की सब से बड़ी वजह यह है कि हमें यह सीख देने वाला शायद कोई बचा ही नहीं है कि सार्वजनिक जगहों पर हमें कैसे बरताव करना है और जब से सोशल मीडिया में ‘रीलरील’ खेलने का दौर चला है, तब से ऐसा लगने लगा कि हरकोई ‘गौसिप गैंग’ का हिस्सा बन गया है.

यहां सीख देने वाला कौन है? दरअसल, कुदरत ने हमें सुनने और बोलने की सैंस (इंद्रियां) तो दे दी है, पर कब और कितना बोलना है और कितना सुनना है, यह जो व्यावहारिक बुद्धि, जिसे इंगलिश में ‘कौमन सैंस’ कहते हैं, को इस्तेमाल करना हम भूलते जा रहे हैं.

पहले टीचर, परिवार और पासपड़ोस के बड़ेबूढ़े नई पीढ़ी को बता दिया करते थे कि इस ‘कौमन सैंस’ का कैसे इस्तेमाल करना है पर अब तो स्कूलों में ऐसी बातें सिखाना गुजरे जमाने की बात हो गई है. अपनों की सुनता ही कौन है.

कभीकभार इस के नतीजे बहुत बुरे भी होते हैं जो सार्वजनिक जगहों पर अमूमन दिखाई दे जाते हैं. जैसे क्रिकेट एक खेल है जो मनोरंजन के लिए खेला जाता है पर नासम झी की वजह से इस खेल के खूनी लड़ाई में बदलने में देर नहीं लगती है.

18 फरवरी, 2025 को आकाश नाम का एक लड़का शाम को अपने दोस्तों के साथ फरीदाबाद के अगवानपुर चौक के पास बने दुर्गा बिल्डर के खाली प्लाट में क्रिकेट खेल रहा था. खेल के दौरान गेंद वहां मौजूद एक लड़के को लग गई, जिस से  झगड़ा हो गया.

आसपास के लोगों ने उस समय मामला शांत करा दिया, लेकिन करीब 15 मिनट बाद वही लड़का 5-6 साथियों के साथ लाठीडंडे और हौकी ले कर लौटा और आकाश पर हमला कर दिया. उन लोगों ने आकाश को इतना पीटा कि 1 महीना अस्पताल में रहने के बाद उस की मौत हो गई.

इस वारदात में एक की जान चली गई और बाकी कोर्टकचहरी के चक्कर में फंसेंगे. पर ऐसी वारदात से एक सीख लेनी चाहिए कि कोई भी विवाद छोटी सी बात से शुरू होता है और हमारा अहं उसे इतना ज्यादा तूल दे देता है कि खेल का मनोरंजन मौत के मातम में बदल जाता है.

ऐसा ही कुछ घरेलू समस्याओं को सार्वजनिक जगह पर जाहिर करने से होता है. बहुत बार मैट्रो या बस वगैरह में 2 जानपहचान वालों की चुगलखोरी के हाथापाई में बदलते देर नहीं लगाती है.

राजदार न बनाएं

एक बार एक जोड़ा इस बात पर बहस करने लगा कि लड़की का पहना हुआ टौप कितने का होगा. लड़की ने ज्यादा कीमत बताई तो लड़के ने कहा कि सस्ता माल है. इसी बात पर उन दोनों ने अपने रिश्ते को सब के सामने उघाड़ना शुरू कर दिया. आखिर में लड़की ने लड़के को चांटा जड़ दिया और मैट्रो से उतर गई.

दिक्कत यह है कि हम आपसी गपशप और चुगलखोरी के साथ निजी बातों को सार्वजनिक करने के फर्क को सम झ गए हैं. पहले गांवदेहात में लोग गपशप ज्यादा किया करते थे. उसी में बीच में चुगलखोरी और निजी बातों का तड़का लगा दिया जाता था और बात आईगई हो जाती थी.

मगर अब चूंकि बातें करने की जगह और समय की कमी से हम मोबाइल फोन पर या कहीं भी आमनेसामने निजी बातों का पिटारा खोल कर बैठ जाते हैं. वहीं सारी गड़बड़ होती है. भीड़ में लोग आप की बातों अनुसना करते हुए भी बड़े ध्यान से सुनते हैं और अनचाहे में ऐसी बातों के राजदार बन जाते हैं जो बेहद निजी होती हैं.

Motivation

Weight Loss: बढ़ता वजन ऐसे करें कम

Weight Loss: अकसर हम लोगों से सुनते रहते हैं कि क्या करूं वजन कम ही नहीं हो रहा सबकुछ जैसे ऐक्सरसाइज और कम खाना यानी डाइटिंग तो कर रहा/रही हूं. मगर इस बात पर ध्यान नहीं देते कि हम क्या, कितना, कैसे और कब खा रहे हैं क्योंकि आप के वजन पर इन सब का असर पड़ता है.

जैसे आप ने एक ही रोटी खाई लेकिन आप ने यह एक रोटी कैसे खाई बटर या बिना बटर के यह माने रखता है. दूसरी ओर एक बड़ा प्लेन परांठा जो 30 ग्राम आटे से बना होता है उस में 121 कैलोरी मौजूद होती है और भरे हुए आलू के परांठे में 210 कैलोरी होती है. यदि आप डाइटिंग पर हैं तब इस बात पर गौर करना जरूरी हो जाता है कि आप ने रोटी या परांठा कैसे खाया यानी साथ में और क्या था जैसे क्या उबली सब्जी खाई या तरी वाली मसालेदार या पनीर क्योंकि इन सभी में कैलोरी की मात्रा अलगअलग होती है. तब फिर बढ़ते वजन पर यह कैलोरी कहीं न कहीं असर या प्रभाव डालती ही है. फिर इस परिस्थिति में इस बात से जागरूक रहना जरूरी हो जाता है कि आप अपना भोजन या डाइट प्लान किस तरह करें ताकि कैलोरी का इनटेक कम से कम रहे, साथ ही जितनी कैलोरी आप ले उतनी बर्न भी करें.

कई बार ऐसा होता है हम डाइटिंग पर होते हैं. इस के लिए प्लान करते हैं कि घर का बना साधा खाना ही खाएंगे, मीठा और जंक फूड नहीं लेंगे लेकिन जैसे ही मौका मिलता है या अच्छा खाना सामने आता है हमारा डाइटिंग का प्लान एक तरफ रह जाता है और हम ढेर सारा कैलोरी से भरपूर खाना यह सोचते हुए खा लेते हैं कि आज ही तो खाना है. एक दिन खाने से क्या होगा कल नहीं खाएंगे और फिर यह कहते हैं कि इतना सब करने के बाद भी मेरा वजन कम नहीं हो रहा और फिर बढ़ते वजन को ले कर परेशान बने रहते हैं.

लेकिन अगर हम चाहें तो अपनी खानेपीने की आदतों में बदलाव से बढ़ते वजन को कम कर सकते हैं. इस के लिए आप ये तरीके अपना सकते हैं:

अपने डाइटिंग प्लान पर रहें अडिग

यदि आप ने अपने बढ़ते वजन को कम करने के लिए कुछ डाइट प्लान किया है तो उस पर अडिग रहें. अच्छा खाना देख कर मन को विचलित न होने दें क्योंकिप्रकृति ने हमें यह क्षमता दी है कि हम बिना कुछ खाएं भी 6-7 दिनों तक स्वस्थ बने रह सकते हैं. इस के लिए हमारा शरीर शरीर में स्टोर फैट या वसा का उपयोग करता है, जिस के कारण तेजी से वजन कम होता है. लेकिन वजन कम करने के लिए जरूरी नहीं कि आप भूखे रहें बल्कि अपनी डाइट में कम कैलोरी वाला खाना शामिल कर, शक्कर और जंक फूड से दूरी और नियमित ऐक्सरसाइज की मदद से आप अपने बढ़ते वजन को कंट्रोल कर सकते हैं और अपनी फिटनैस को बनाए रख सकते हैं.

कितनी कैलोरी जरूरी

आप को कितनी कैलोरी की आवश्यकता है यह इस बात पर निर्भर है कि आप की दिनचर्या, फिजिकल ऐक्टिविटी कैसी है और उम्र क्या है? आप पुरुष हैं या महिला क्योंकि पुरुषों को महिलाओं के मुकाबले ज्यादा कैलोरी की आवश्यकता होती है. यदि आप की फिजिकल ऐक्टिविटी कम है तो कम कैलोरी युक्त खाना खाएं, यदि हमें शरीर के वजन को बढ़ने से रोकना है तो याद रहे कि हम जितनी कैलोरी लें उतनी बर्न भी करें. अपने बढ़ते वजन को कंट्रोल करने के लिए यह जरूरी कदम है.

आदत 1: बहुत जल्दीजल्दी खाना 

आप की बहुत जल्दीजल्दी खाना खाने की आदत आप के बढ़ते वजन के लिए जिम्मेदार हो सकती है क्योंकि आप के पेट को आपके मस्तिष्क को यह संकेत देने में लगभग 20 मिनट लगते हैं कि आप का पेट भर गया है, इसलिए इस से पहले कि आप को पता चले कि आप का पेट भर गया है आप बहुत अधिक कैलोरी या खाना खा लेंगे. इस के लिए खाना आरामआराम से और चबाचबा कर खाए और बीच में थोड़ा ब्रेक ले लें ताकि आप के पेट को मस्तिष्क यह संकेत दे सके कि पेट भर गया है. अब आप खाना बंद कर दें.

आदत 2: पर्याप्त पानी न पीना

वजन कम करने के लिए पानी का ज्यादा से ज्यादा सेवन करना होता है क्योंकि पानी शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर करने में मदद करता है और मैटाबोलिज्म को बढ़ता है. फैट बर्न करने के लिए पानी जरूरी होता है क्योंकि पानी के बिना शरीर स्टोर्ड या जमा फैट या कार्बोहाइड्रेट को ठीक से चयापचय नहीं कर सकता है, साथ ही पानी पीने से शरीर हाइड्रेटेड भी रहता है. इस से वेट लौस होने में मदद मिलती है और कैलोरी भी तेजी से बर्न होती है.

वजन कम करने के लिए हमेशा खाना खाने से आधा घंटा पहले 1 या 2 गिलास पानी पीएं ताकि आप को खाने से पहले पेट भरे होने का एहसास हो तभी आप खाना कम खाएंगे और ओवर ईटिंग करने से बच जाएंगे.

डिटौक्स वाटर भी वजन कम करने में अहम भूमिका निभा सकता है. डिटौक्स वाटर के लिए आप फल या सब्जियों का उपयोग कर सकते हैं. इस पानी को आप सुबहसुबह खाली पेट पीएं. इस से शरीर को पोषक तत्त्व भी मिलेंगे और शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकल जाएंगे. यही नहीं, डिटौक्स वाटर पीने से शरीर में कैलोरी इनटेक कम हो जाता है, जिस से वजन को संतुलित रखने में मदद मिलती है.

इस के लिए भरपूर पानी पीएं और पैक बंद जूस की जगह नारियल पानी, नीबू पानी आदि का सेवन करें.

आदत 3: हाई ऐनर्जी/कैलोरी वाले ड्रिंक्स और प्रोटीन से रहें दूर

अधिकतर लोग ऐक्सरसाइज करने के बाद ऐनर्जी ड्रिंक और प्रोटीन शेक (कुछ प्रौटीन शेक में शक्कर की भरपूर मात्रा होती है जो वजन को बढ़ा सकती है) का सेवन करते हैं लेकिन ध्यान रहे ये आप को ऐनर्जी तो देते हैं लेकिन इन में कैलोरी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है जो आप के मोटापे को कम करने के बजाय और बढ़ा सकते हैं.

इस के लिए हाई कैलोरी वाले ड्रिंक्स सीमित करें क्योंकि इन में अकसर छिपी हुई शुगर होती है जो वजन बढ़ाने का काम करती है. इन्हें लेने के बजाय पानी,ताजे फलों ओर सब्जियों का जूस, ग्रीन टी और घर पर बनी ग्रीन स्मूदी का विकल्प चुनें.

आदत 4: शादी समारोह या पार्टियों में ज्यादा खाने की आदत

पार्टियों या शादी समारोहों के दौरान जब भोजन और नाश्ते की प्लेट होती है तो हम अपने दोस्तों के बीच बातोंबातों में बिना सोचेसम झे ज्यादा खाना खा लेते हैं या अधिक कैलोरी खा सकते हैं.

ज्यादा खाने से बचने के लिए सोचसम झ कर खाएं और अपनी भूख के संकेतों पर ध्यान दें. अपने लिए प्लेट लगाते समय उस में अधिक कैलोरी का खाना न लें.

आदत 5: टीवी देखते और मोबाइल चलाते खाना खाना

जब आप टीवी देख रहे हों, अपने फोन पर स्क्रौल कर रहे हों या काम करते हुए खाना खा रहे हों तब ऐसा हो सकता है कि आप का इस बात पर ध्यान ही न जाए कि आप का पेट भरा गया है क्योंकि इस दौरान आप ने कितना खा लिया ध्यान ही नहीं देते और ज्यादा खाना खा लेते हैं.

इस के लिए आप क्या और कितना खा रहे हैं केवल उस पर ध्यान देना आप के वजन पर एक बड़ा बदलाव ला सकता है. इस के लिए भोजन करते समय स्क्रीन से दूरी बनाएं. अपना ध्यान भटकाने से बचें ताकि आप भोजन के दौरान केवल ध्यान आप क्या और कितना खा रहे हैं पर लगाए यानी माइंडफुल ईटिंग करें.

आदत 6: नियमित शारीरिक व्यायाम न करना

नियमित व्यायाम हमारे बढ़ते वजन को कम करने का एक कारगर तरीका है. बढ़ते वजन को नियंत्रण में रखने के लिए हमे प्रतिदिन सुबह आधा या 1 घंटा शारीरिक व्यायाम/ऐक्सरसाइज की आवश्यकता होती है. इस के लिए आप अपने लिए वह ऐक्सरसाइज या व्यायाम चुनें जिसे करने में आप को मजा आए, आप अपने नियमित व्यायाम में जैसे तेज चलना, दौड़ लगाना, साइक्लिंग करना आदि कर सकते हैं. यदि आप को यह करना बोरिंग लगता है तो आप जुंबा या ऐरोबिक्स या फिर डांस को भी शामिल कर सकती हैं. यदि घर पर व्यायाम करना संभव नहीं हो पा रहा है तो आप जिम या फिर योग क्लास या किसी अन्य फिटनैस क्लास का हिस्सा भी बन सकती हैं.

नियमित रूप से व्यायाम करने से मैटाबोलिज्म बढ़ता है एवं हमारी कैलोरी तेजी से बर्न होती है जिस से वजन नियंत्रण में रहता है.

आदत 7: पर्याप्त प्रोटीन या फाइबर नहीं खाना

फाइबर और प्रोटीन जैसे मैक्रोन्यूट्रिएंट्स लंबे समय तक आप के पेट को भरा हुआ रखते हैं या इस का एहसास कराते हैं, इसलिए यदि आप इन्हें पर्याप्त मात्रा में नहीं खाते हैं, तो आप को अधिक और बारबार भूख लग सकती है क्योंकि प्रोटीन और फाइबर दोनों को पचने में अधिक समय लगता है. इन में मौजूद ऊर्जा धीरेधीरे अवशोषित होती है, जिस का अर्थ है कि खाने के बाद आप लंबे समय तक ऊर्जावान बने रहेंगे और भूख भी नहीं लगेगी.

इस के लिए अपने भोजन में फाइबर और प्रोटीन की मात्रा बढ़ाएं जैसे बींस और फलियां  दाल, ब्रोकली, सेब और साबूत अनाज और हर भोजन के साथ प्रोटीन का एक हिस्सा खाने की कोशिश करें, जिस में अंडे, नट्स, दूध और दही शामिल करें.

आदत 8: भोजन की प्लानिंग न होना

आज आप क्या खाने वाले हैं और कब आप के ऐसा करने से आप अपने बढ़ते वजन को बेहतर कंट्रोल कर सकती है नहीं तो ऐसा हो सकता है कि आप बहुत देर तक कुछ भी न खाएं  और कभी भी खाएं, ज्यादा खा लें, एकसाथ बहुत ज्यादा खा लें. इस के लिए यदि आप एक प्लानिंग से भोजन करेंगे तो आप वजन को कंट्रोल रखने में काफी हद तक सफल हो सकते हैं.

यदि आप वजन को कंट्रोल में रखना चाहते हैं तो भोजन का यानी नाश्ता, लंच और डिनर का एक शैड्यूल बनाएं यानी दिन का एक निश्चित समय तय करें और उस का पालन करें, साथ ही आप क्या खाएंगे, कब खाएंगे और कितना खाएंगे, इस की प्लानिंग भी आवश्यक है ताकि संतुलित मात्रा में भोजन का सेवन कर सकें और ओवरईटिंग से बच सकें.

आदत 9: देर रात को खाना खाने की आदत

दिनभर की भागदौड़ के बाद रात के समय हम ज्यादा और हाई कैलोरी वाला भोजन करते हैं. तब यह वजन बढ़ने के लिए जिम्मेदार होता है क्योंकि रात के समय मैटाबोलिज्म दर धीमी होने लगती है, जिस के कारण फैट बर्न कम होता है इसलिए रात के समय कम कैलोरी वाला भोजन लेना आप के बढ़ते वजन को कंट्रोल करने में मदद करता है.

Weight Loss

Fictional Story: यह है यंगिस्तान

Fictional Story: ‘‘ब्रो,  आज शाम को मैं नेल स्पा जा रही हूं, नेल ऐक्सटैंशन कराने. तू चलेगी क्या?’’

‘‘आज शाम?’’

‘‘हां.’’

‘‘सौरी डूडेट, मैं आज सोशल जा रही हूं.’’

‘‘अकेले?’’

‘‘पागल है क्या?

मैं अकेले क्यों जाऊंगी?’’

‘‘फिर और कौन जा रहा है?’’

‘‘याद है, वह डेटिंग ऐप वाला हीरो?’’

‘‘कौन रोमिल?’’

‘‘हां, आज मैं उस से पहली बार मिलूंगी.’’

‘‘वाओ ब्रो, आखिर वह मिलने आ ही रहा है.’’

‘‘यार, मैं बहुत नर्वस हूं.‘‘

‘‘डौंट वरी, यू आर ए डूडेट. तू यह भी हैंडल कर लेगी.’’

यह वार्त्तालाप हो रहा था आजकल की इक्कीस वर्षीय कालेज स्टूडैंट्स में. जो ‘सोशल रेस्त्ररां’ जा रही थीं. उस का नाम था बेला और उस की सहेली, जो नेल स्पा जा रही थी, उस का नाम था मानसी. बेला देखने में एकदम साधारण रूपरंग एवं हृष्टपुष्ट व्यक्तित्व की स्वामिनी थी. बड़ीबड़ी आंखें, मोटी सी नाक व मोटे होंठ. आजकल की दुबलीपतली लड़कियों में से वह नहीं थी. उसे अच्छा खाना पसंद था. उस के दोस्त तो बहुत थे पर उस का दुख  यही था कि उस का कोई बौयफ्रैंड नहीं था. इसलिए अब वह डेटिंग एप के थू्र अपना बौयफ्रैंड ढूंढ़ने में लगी हुई थी.

कदकाठी में उस के बिलकुल विपरीत उस की सहेली मानसी थी. मानसी बहुत ही दुबलीपतली छोटी सी लड़की थी. उस के फीचर्स तो ठीकठाक से थे यानी होंठ काफी पतले थे, आंखें बड़ी तो नहीं पर बादाम के आकार की थीं, नाक थोड़ी छोटी सी थी और रंग गेहुआं था. भीड़ में आसानी से खो जाने वाला उस का व्यक्तित्व था. उस का दुख कुछ अलग था. उस की बहन नीमा, गोरीचिट्टी,

सुंदर तो थी ही, साथ ही बहुत प्रभावशाली इन्फ्लुएंसर भी बन चुकी थी. उस के फौलोअर्स मिलियंस में थे.

मानसी को भी नीमा की तरह आकर्षक दिखने और नए तरह के कपड़े पहनने का शौक था. उस का बौयफ्रैंड औलरैडी था और इस समय  अमेरिका में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था. मानसी उस के साथ घर बसाने के सपने देख रही थी. उस का ख्वाब अमेरिका में ही सैटल होने का था. उसे इसी बात की तसल्ली थी कि नीमा का अभी तक कोई बौयफ्रैंड नहीं है और वह इस चीज में उस से आगे थी वरना बहन का इनफ्लुएंसर होना उसे एक हीनभावना से हमेशा ग्रस्त रखता था.

मानसी की मां आरती उसे बहुत सम झाती थीं पर मानसी जिद्द पर अड़ी थी कि उसे भी अपनी बहन की तरह इन्फ्लुएंसर बनना था. उसे पता था कि शक्लसूरत से वह साधारण थी, इसलिए हर रोज नया हेयरस्टाइल या मेकअप ट्राई करना उस का शौक था.

एक दिन मानसी अपने पापा रमेश से बोली, ‘‘पापा, मु झे अपनी अच्छी फोटोस चाहिए, मु झे आई फोन का लेटैस्ट मौडल दिला दो,’’ रमेश ने लाडली बेटी की यह जिद्द भी पूरी कर दी. अब मानसी अपनी पिक्चर शूट करना सीख रही थी. उस पर जल्द से जल्द इन्फ्लुएंसर बनने की धुन जो सवार थी.

इस बार जब गरमियों की छुट्टियां हुईं तो मानसी का बौयफ्रैंड रोहित इंडिया आया और उस ने उसे प्रपोज कर दिया. मानसी की खुशी का पारावार न था. हालांकि वह अभी सिर्फ 21 साल की थी और ग्रैजुएशन कंप्लीट की थी. मगर रोहित ने कहा कि अगले साल वे लोग शादी कर लेंगे. उस के बाद मानसी उस के साथ अमेरिका जा कर पढ़ाई कर सकती है. रोहित के परिवार वाले बिजनैस करते थे और काफी अमीर थे. उन का लाड़ला कुछ भी करता, उसे फैमिली बिजनैस ही संभालना था. वे रोहित की शादी 1-2 साल में करने ही वाले थे. मानसी को वे सब रोहित की पसंद के रूप में जानते थे. मानसी ने अब तक अपने घर में रोहित के बारे में किसी को नहीं बताया था; हां उस की बहन नीमा को जरूर पता था. लड़कियों के मम्मीपापा इस से बिलकुल अनजान थे.

अब मानसी ने अपने मातापिता को यह बात बताई. मानसी के पापा रमेश बहुत समझदार व्यक्ति थे. उन्होंने उसे बहुत सम झाया कि अभी उस की पढ़नेलिखने की उम्र है, शादी करने की नहीं. मगर मानसी पर तो जैसे अपनी बहन को नीचा दिखाने का भूत सवार था. उस ने जिद्द की कि वह रोहित के साथ शादी कर के अमेरिका जाएगी. हार कर आरती और रमेश ने

हां कर दी. उन्होंने एक बार रोहित से मिलना जरूरी सम झा. रोहित की पर्सनैलिटी से वे लोग भी इंप्रैस हो गए. रोहित के परिवार वालों ने आरती और रमेश से भी मुलाकात की और मामला लगभग तय हो गया. मानसी ने अमेरिका जाने की तैयारी शुरू कर दी. उस ने आईईएलटीएस क्लासेज जौइन कीं और मनचित्त से पढ़ाई करने लगी.

इधर बेला रोमिल से मिलने लगी थी. एक दिन वह मानसी को भी अपने साथ ले गई. उन लोगों ने अपने काफी सारे फोटो खींचे. रोमिल ने भी मानसी के साथ कुछ फोटो लिए और अपने इंस्टाग्राम पेज पर मानसी को टैग कर शेयर किए. मानसी के बौयफ्रैंड रोहित ने जब वे फोटो देखे तो वह जलभुन गया. उसे लगा मानसी लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप का फायदा उठा कर उस के साथ चीटिंग कर रही थी. उधर मानसी रोहित के साथ घर बसाने के सपने देख रही थी और साथ ही अपने ऐग्जाम की तैयारी भी कर रही थी.

इधर ऐग्जाम के एक दिन पहले रोहित ने मानसी को कौल किया. ‘‘बेब, यह सब क्या है? यह कौन तुम्हारे साथ इंस्टा पर फोटो डाल रहा

है? तुम इसे कब मिलीं? तुम्हारा चक्कर कब से चल रहा है? अब मेरी कोई वैल्यू नहीं है न क्योंकि मैं इंडिया में नहीं हूं?’’ और भी उसे बहुत खरीखोटी सुनाई.

इन बातों को सुन कर मानसी रुआंसी हो आई. उस ने कुछ भी न बोल कर रोहित का फोन काट दिया और एक लंबा व्हाट्सऐप मैसेज सब बातें क्लीयर करते हुए छोड़ दिया. अगले दिन उस ने किसी तरह जा कर अपना ऐग्जाम तो दिया पर वह काफी डिस्टर्ब हो गई थी.

1 हफ्ते बाद रोहित ने फिर से फोन कर के रोमिल के बारे में पूछताछ शुरू की. मानसी ने उसे सम झाने की कोशिश भी की और बताया कि रोमिल बेला का दोस्त था. फिर भी शक का कीड़ा तो रोहित के मन में पल ही रहा था. उस ने फिर से कौल पर मानसी को ‘यू बिच, टू टाइमिंग कर रही है,’ कह दिया.

मानसी ने भी गुस्से में कहा, ‘‘मु झे इस तरह की टौक्सिक रिलेशनशिप में नहीं रहना जहां पर ट्रस्ट बिलकुल भी नहीं है. तुम अभी से इतना शक कर रहे हो तो आगे पता नहीं कितनी बंदिशें लगाओगे. आई नीड माई स्पेस.’’

दोनों का फोन पर ही ब्रेकअप हो गया. रमेश और आरती ने जब इस बारे में सुना तो बेटी का दिल टूटने से उन्हें दुख तो हुआ पर वे एक तरह से काफी राहत महसूस कर रहे थे. उन्होंने मानसी को कोई प्रोफैशनल कोर्स करने की सलाह दी. मानसी अभी पढ़ाई के मूड में नहीं थी तो उस ने टीचर की जौब कर ली. काम पर जाने से, व बच्चों के साथ खेलने से मानसी का दुख कम होने लगा था. फोटो शूट फिर से चालू हो गया था.

उधर बेला और रोमिल का प्यार परवान चढ़ रहा था. उन्होंने अपना स्टेटस इंस्टाग्राम पर डिक्लेयर कर दिया था और एक जौइंट अकाउंट खोल लिया था. उस पर वे तरहतरह की रील और फोटो पोस्ट करते थे. मानसी को उन्हें देख कर अपनी रिलेशनशिप याद आ जाती थी. फिर एक दिन उस के स्कूल में एक यंग, गुड लुकिंग, मेल टीचर रंजन ने जौइन किया.

मानसी और रंजन जल्द ही, एक एज ग्रुप होने से काफी अच्छे दोस्त बन गए. दोनों के व्यूज भी बहुत मिलते थे. रंजन चाहता था कि वह मानसी के साथ एक सीरियस रिलेशनशिप बनाए, मगर मानसी ने उसे मना कर दिया. रंजन कोशिश करता रहा.

वह बारबार मानसी से कहता, ‘‘जरूरी तो नहीं कि जो पहले हुआ वह फिर से हो? मु झे तुम्हारे साथ रहकर खुशी मिलती है और मु झे लगता है कि तुम भी मु झे और मेरे साथ को पसंद करती हो. फिर क्या प्रौब्लम है?’’

मानसी यह सुन कर चुप हो जाती. ज्यादा दिन तक वह रंजन से खुद को दूर करने की

नहीं सोच पाती थी क्योंकि इस उम्र में लड़कों

के प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक है. फिर

एक दिन उस ने रंजन से कहा, ‘‘देखो रंजन,

हम लोग ट्राई करेंगे मगर यहां कोई कमिटमेंट

नहीं होगा. अगर सबकुछ ठीक रहा तो कमिटमैंट की सोचेंगे.’’

रंजन को भला क्या ऐतराज हो सकता था. उस ने फौरन हां कर दी. अब रंजन और मानसी औफिशियली गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड हो गए थे. उन्होंने भी अपना इंस्टाग्राम पर एक अकाउंट खोल लिया था और उस पर अपने स्टेटस और फोटो डालने लगे थे.

इस बार मानसी थोड़ा सा सतर्क थी और उस ने मम्मीपापा को इस बारे में कुछ भी नहीं बताया था. उस का इंस्टा अकाउंट भी प्राइवेट था. हां, नीमा को उस ने बताना जरूरी सम झा ताकि वह अपनी बहन को थोड़ा सा दुखी कर सके. नीमा पर इस का असर नहीं होता था क्योंकि एक तो उस की फैन फौलोइंग बहुत थी, दूसरे वह अपनी लाइफ में व्यस्त और मस्त रहती थी. थी तो वह छोटी पर मानसी से ज्यादा सम झदार थी, इसलिए मानसी को उस के ब्रेकअप के बाद काफी खुश रखने की कोशिश भी करती थी. मानसी पर हालांकि इस प्यार का कोई खास असर नहीं होता था.

जब रंजन और मानसी की रिलेशन को 2 महीने हो गए तो रंजन की उम्मीदें बढ़ गईं. उस ने एक दिन कहा, ‘‘मानसी, आई वांट टु स्पैंड क्वालिटी टाइम विद यू.’’

‘‘रंजन हम लोग मिलते तो हैं रोज, फिर यह क्वालिटी टाइम की बात क्यों?’’

‘‘मानसी, अब तक हम लोग पब्लिक प्लेसेज में मिलते रहे हैं. अब मैं चाहता हूं कि सिर्फ तुम और मैं हों और हम दिनरात बस एकदूसरे के साथ रहें. अगले हफ्ते लौंग

वीकैंड आ रहा है. मैं 1-2 दिन की छुट्टी और ले लूंगा. तुम भी छुट्टी के लिए अप्लाई कर दो. हम दोनों एक अच्छा सा रिजोर्ट बुक कर के वहां चलेंगे.’’

मानसी ने पूछा, ‘‘और मैं अपने मम्मीपापा से क्या कहूंगी?’’

रंजन बोला, ‘‘अरे, तुम एडल्ट हो, कोई भी बहाना बना देना.’’

मानसी इस उल झन को ले कर अपनी हमदर्द बेला के पास गई. बेला बोली, ‘‘इस में क्या मुश्किल है? अपने  मम्मीपापा को बोल दे कि तू 4-5 दिन के लिए मेरे घर जा रही है और स्कूल भी मेरे घर से ही वापस जाएगी.’’

मानसी बोली, ‘‘और अगर उन्होंने कारण पूछा तो?’’ बेला बोली.

‘‘यार तू बड़ी डरपोक है. कह देना कि मैं अपने बर्थडे की पार्टी लौंग वीकैंड पर कर रही हूं और मैं चाहती हूं कि तू मेरे साथ आ कर रहे.’’

मानसी को यह बहाना जंच गया. बस फिर क्या था, रंजन ने फटाफट रिजोर्ट बुक किया और अगले हफ्ते मानसी और रंजन ने 5 दिन एकदूसरे के साथ गुजारे. मानसी जब घर लौटी तो उस का चेहरा खुशी से चमक रहा था.

1 हफ्ते बाद बेला मुंह लटकाए उससे मिलने आई और बोली, ‘‘डूड, मेरा रोमिल के साथ ब्रेकअप हो गया है. वह मेरे वेट को ले कर बहुत कमैंट कर रहा था और चाहता था कि मैं जिम जौइन करूं. मैं ने जौइन किया भी था पर मु झे कोई फर्क नहीं पड़ा. रोमिल चाहता था कि मैं भी तेरी तरह स्लिम ऐंड ट्रिम हो जाऊं.’’

बेला ने दोस्त को दिलासा दिया और उस के साथ फिर से समय बिताने लगी. कभी इस रेस्त्ररां में तो कभी स्पा में. एक दिन बेला ने मानसी से कहा, ‘‘ब्रो तू भी ‘मंबल’ जौइन कर ले न.’’

मानसी बोली, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘अरे यही तो वह ऐप है जिस से मैं रोमिल से मिली थी.’’

‘‘तु झे भी कोई न कोई ज़रूर मिल जाएगा.’’

मानसी ने बात को अनसुना कर दिया.

एक दिन मानसी दिन के टाइम अकेली ही मौल चली गई. वहां एक चौकलेट शौप में उसे एक बड़ा शरीफ दिखने वाला लड़का दिखा. उसे लगा कि वह लड़का भी उसे नजरों से परख रहा है. लड़का बोला, ‘‘ऐक्सक्यूज मी, आप को शायद कहीं देखा है.’’

लाइन पुरानी थी पर मानसी को हंसी आ गई. जब दोनों शौप से निकले तो दोनों ने एकदूसरे का नंबर ले लिया. लड़के का नाम भुवन था. मानसी ने उस के साथ चैटिंग शुरू कर दी. भुवन म्यूजिक में अपना कैरियर बना रहा था.

1 महीने बाद भुवन ने मानसी से कहा, ‘‘क्या हम दोनों फ्रैंड्स कहीं मिल सकते हैं? मैं तुम्हें अपनी कंपोजिशन सुनाऊंगा.’’

मानसी बोली, ‘‘वह तो तुम मु झे कौल कर के भी सुना सकते हो.’’

‘‘नहीं मानसी, मैं तुम्हें मिल कर सुनाना चाहता हूं. मुझे लगता है कि तुम मेरे अंदर के कलाकार को सम झोगी.’’

मानसी बड़े दुविधा में थी. अभी तक जिस के साथ सिर्फ एक ऐक्सीडैंटल मुलाकात हुई थी या जिस से कौल पर बात की थी, वह मिलने की बात कर रहा है.

वह एक बार फिर बेला के पास गई, ‘‘यार मुझे समझ नहीं आ रहा कि मु झे भुवन से मिलना चाहिए कि नहीं.’’

‘‘क्यों क्या प्रौब्लम है?’’

‘‘वही यार. यह भी सीरियस न निकला तो?’’

‘‘तब की तब देखेंगे. रिलैक्स. थोड़ा टैंशन कम लिया कर. और हां, यह नाइट क्रीम ट्राई कर, इस में नियासिनामाइड है.’’

बेला फिर बोली, ‘‘एक सीक्रेट बताऊं?’’

‘‘बोल न.’’

‘‘मेरा भी ‘मंबल’ पर एक नया फ्रैंड है. वह मु झे मेरे फोटो के बदले गिफ्ट्स भेजता है.’’

मानसी चौंकी, ‘‘कौन से फोटो बेब?’’

‘‘कुछ बोल्ड फोटो हैं यार मेरे.’’

‘‘तू पागल हो गई है क्या?’’

‘‘नहीं रे, पर मु झे सम झ आ गया है कि इन बौयज से कोई ऐक्सपैक्टेशन रखना बेकार है. मैं तो ऐसे ही खुश हूं.

मानसी बोली, ‘‘आई एम शौक्ड ऐंड डिस्गस्टेड विद यू.’’

‘‘चिल मार. जा उस म्यूजिक वाले को मिल ले.’’

मानसी वहां से चली आई. अगले हफ्ते वह भुवन को मिली. भुवन तो अपने ऊपर ही लट्टू था. सिर्फ अपने गाने के बारे में ही उस से पूछता रहा. अपने फ्यूचर के बारे में उस से बात करता रहा. उस के साथ आगे की ऐजुकेशन के बारे में डिस्कशन करता रहा. उसे मानसी काफी नीरस जान पड़ी. वह खुद थोड़ा इंटलैक्चुअल टाइप का लड़का था.

मानसी को भुवन काफी सैलफिश लगा क्योंकि उस ने मानसी को कोई कंप्लीमैंट नहीं दिया. न ही उस ने मानसी से फिल्मों या ऐक्टर्स की कोई बात की. अब दोनों की चैट्स काफी कम हो गई थीं. एक दिन मानसी ने बोर हो कर भुवन को फोन से ही ब्लौक कर दिया.

आज फिर बेला और मानसी ड्रिंक्स के लिए अपने फैवरिट बार में मिल रहे थे.

बेला ने आते ही पूछा, ‘‘अरे तेरा म्यूजिक वाला कैसा है?’’

मानसी ने कहा, ‘‘यह तो उसे ही पता होगा.’’

बेला ने भौंहें चढ़ा लीं.

फिर मानसी बोली, ‘‘तू सुना, गिफ्ट वाला कैसा है?’’

‘‘मैं ने उस से एक लैपटौप क्या मांग लिया, बस्टर्ड गायब ही हो गया,’’ इतना कहने के बाद बेला फोन खोल कर कुछ करने लगी.

‘‘क्या कर रही है अब फोन पर?’’

बेला हंसी, ‘‘तेरा ‘मंबल’ पर अकाउंट खोल रही हूं और क्या?’’ और फिर दोनों सहेलियां मिल कर खिलखिलाने लगीं.

Fictional Story

Hindi Drama Story: मोलभाव

Hindi Drama Story: ‘सही भाव लगाओ दूसरी जगह भिंडी 40 रुपए किलोग्राम मिल रही है और तुम 100 रुपए किलोग्राम दे रहे हो,’’ अबीर के कानों में गाड़ी पार्क करते समय मां के ये अल्फाज पड़े जो बाहर सब्जी वाले से उल झ रही थीं.

‘‘अरे मांजी कौन देता है 40 रुपए में 1 किलोग्राम भिंडी आजकल? 80 रुपए किलोग्राम की तो खरीद है. अब 20 रुपए भी न कमाऊं तो बच्चे कैसे पालूं?’’ सब्जी वाले ने भुनभुनाते हुए कहा.

‘‘ख़ूब जानती हूं तुम्हें. ये इमोशनल बातें कर के तुम हमें चूना लगाते हो. बाजार से दोगुने से भी ज्यादा दाम में हमें चीजें देते हो.’’

‘‘अरे मांजी कारबंगले वाली हैं, फिर हम ठेले वालों का हक क्यों मारती हैं?’’

‘‘कारबंगले वाले हैं तो क्या सबकुछ लुटा दें? हुंह, ऊंट की गरदन लंबी है तो क्या उसे काट दिया जाए?’’

यह नोक झोंक और सौदेबाजी और लंबी चलती अगर अबीर आ कर मां का हाथ पकड़ कर अंदर न ले जाता.

जातेजाते अबीर 5 सौ का नोट ठेले वाले की तरफ फेंक कर सब्जी उठा कर मां का हाथ पकड़ेपकड़े अंदर आ कर एकदम से फट पड़ा, ‘‘क्या है मां तुम से सौ बार कहा कि इन रेहड़ी वालों और फेरी वालों के मुंह न लगा करो. जो भी मंगवाना हो दीपाली से कह दिया करो. वह औनलाइन और्डर कर दिया करेगी. मोलभाव करने की कोई जरूरत नहीं.’’

‘‘अच्छा औनलाइन ले लूं. न जाने कितने दिन का पड़ा कोल्ड स्टोरेज का माल सिर मढ़ दें और औनलाइन पेमैंट से मु झे पता ही न चले कि हमें कितने का चूना लगा,’’ मां हाथ नचा कर बोलीं.

‘‘रहने दे अबीर, मत मना कर वही तो तेरी मां के ऐंटरटेनमैंट का साधन है. इतने बरसों से इस की यही आदत है,’’ अबीर के पिता अपनी हंसी दबाते हुए बोले.

‘‘अरे इसी आदत ने तुम्हारी गृहस्थी को संभाल लिया वरना 3 लड़कियों और 1 लड़के समेत तुम्हारे मातापिता और 3 बहनों के परिवार का क्या होता कौन जानता,’’ मां जलभुन कर बोलीं.

‘‘वह सब ठीक है मां,’’ अबीर ने कहा, ‘‘मगर उस वक्त हालात दूसरे थे. पापाजी की एक पोस्ट औफिस की नौकरी से पूरा घर चलता था. महीने में एक बार तनख्वाह आती और पूरा महीना खींचना पड़ता था, पर अब हालात वे नहीं हैं. अब आप रौयल इन्फो के मालिक अबीर की मां हो. अब मैं अच्छा कमाता हूं. अब उतनी कंजूसी की जरूरत नहीं है मां. ये लोग जितना मांगें दे दिया करो न. हर महीने मैं आप को 2 लाख से भी ज्यादा रुपए इसीलिए देता हूं कि आप चिकचिक न करो.’’

‘‘तो बेटा यह जिम्मेदारी तू अब दीपाली को देदे, मैं भी चैन से बैठूं. मोलभाव इसलिए करती हूं कि आज अगर हालात ठीक हैं तो लंबे समय तक ठीक रहें. आज इनकम है तो क्या हुआ मु झ से यह बेकार की लूट नहीं देखी जाती. अगले महीने से तू दीपाली को पैसे दे देना, वही घर की बहू है वही चलाए घर. मेरा क्या है? मेरी आंखें किसी दिन बंद हो गईं तो?’’ मां ने धीमे लहजे में कहा.

‘‘नहीं मम्मी मु झ से नहीं होगा यह. यह जिम्मेदारी आप अपने हाथ में ही रखें वरना मैं एक स्टोरी राइटर की जगह सिर्फ होम मेकर बन कर रह जाऊंगी,’’ दीपाली ने अपना बचाव करते हुए कहा जो लेखिका होने के कारण इतना तो सम झती थी कि बड़ों का मैनेजमैंट दरअसल कितना बड़ा होता है.

‘‘अच्छा बाबा ठीक है अब चाय पिला दे. फालतू की बहस ने सिर में दर्द

कर दिया है और चाय लाते हुए पानी और सिरदर्द की टैबलेट भी लेते आना. इन की कमाई बचाने को बहस करो फिर इन से बहस करो और नतीजा ख़ुद के सिर में दर्द, हुंह,’’ कहते हुए मां अतीत के अलबम में  झांकने लगीं जब वे इसी शहर की पोस्ट औफिस कालोनी में 2 कमरों के क्वार्टर में रहती थीं. अबीर 3 बहनों के बाद हुआ था. घर में सब से छोटा और सब का लाड़ला. उस समय सरकारी नौकरी में भी इतनी आय नहीं थी. नतीजा यह कि अबीर के पिताजी पोस्ट औफिस से आने के बाद कुछ बच्चों को ट़्यूशन पढ़ाते थे और सारी फीस अबीर की मां के हाथों में रख देते और कहते तुम इसी से घर चलाऊं.

मां ने भी कभी उफ नहीं की न ही ज्यादा की मांग रखी. जो मिला उस में घर चला लिया. समय पंख लगा कर उड़ता रहा. तीनों बहनों की पढ़ाई, शादीब्याह पिताजी ने अपनी सरकारी सेवा में रहते हुए ही कर दिए, इस बीच अबीर ने भी पढ़ाई पूरी कर के मल्टी नैशनल कंपनी में जौब करनी शुरू कर दी, जब पिताजी रिटायर हुए तो ग्रैच्युटी के कुछ पैसों से एक छोटा सा मकान खरीदा और बाकी पैसे अबीर के हाथों में रख कर बोले, ‘‘यह मेरी उम्रभर की कमाई है. इसे तुम रखो, जो भी करना है करो. हम बुढ्डेबुढि़या के लिए मेरी पैंशन काफी है.’’

अबीर भी गुडबौय निकला. उस ने बड़ी सम झदारी से अपनी एक आईटी फर्म खड़ी की, कई नौकर उस के पास काम करने लगे. कुछ ही अरसे में उस की कंपनी ने बहुत तरक्की की.

अब अबीर की लाइफस्टाइल बदल गया. महंगे गैजेट्स, शानदार कार, ब्रैंडेड कपड़े, शहर के पौश इलाके में कोठी के अलावा शहर के बाहर फार्महाउस सब फाइनैंस के बलबूते हासिल कर लिया था. हालांकि मां ने कई बार कहा कि अबीर जितना पैसा हाथ में हो उतने की ही चीज ले मगर अबीर इस से उलट था. वह कहता था इस इंतजार में 10 साल निकल जाएंगे. किश्तों में थोड़ा ब्याज ही तो लगता है जब उतना कमा रहे हैं तो किस्त नाम की चिडि़या पालने में क्या हरज है?

अबीर नए दौर का लड़का था. उसे सबकुछ चाहिए था. फिर चाहे वह महंगे क्लब की मैंबरशिप हो या हाई प्रोफाइल लाइफस्टाइल अपने वुजूद को हाईलाइट करने की भूख जैसाकि आजकल के लोगों में होती है, उस में भी थी. इस के अलावा भी बड़े लोगों से दोस्ती निभाने में भी, उन्हें महंगे तोहफे देने में भी अबीर पीछे नहीं था.

मां भी जानती थीं कि अबीर अब दूध पीता बच्चा नहीं रहा. वह सम झदार है अपना भलाबुरा सम झता है इसलिए उन्होंने उसे टोकना भी बंद कर दिया. अबीर उन्हें बाकायदा हर महीने 2 लाख से ज्यादा रुपए सिर्फ घर खर्च के लिए देता था जोकि बहुत ज्यादा थे. शायद इस के पीछे अबीर की यह सोच भी थी कि मांपापा जो शौक अपनी जिंदगी में पूरे नहीं कर पाए उन्हें अब कर लें. वह पूरे परिवार को वीकैंड पर बाहर डिनर भी कराता. साल में 2 बार विदेश के दौरे भी होते, जहां पूरा परिवार साथ जाता.

बस अबीर को उल झन होती थी तो मां के मोलभाव से. वे जहां जातीं वहीं शुरू हो जातीं. जब वे पुष्कर गईं, तब भी वहां के पंडों और अजमेर की दरगाह के खादिमों तक से उन्होंने मोलभाव किया, जबकि अबीर को वह सख्त नापसंद था. मगर बचपन के पौधे में संस्कार की ऐसी खाद पड़ी थी कि वह मां से ज्यादा कुछ कह नहीं पाता था.

अबीर की बीवी दीपाली तटस्थ थी, उसे सासबहू में सामंजस्य बैठाना आता था. अबीर की मां भी 3 बेटियों की मां थीं. उन्होंने दीपाली को बेटी की तरह ही रखा. फालतू की टोकाटाकी से वे बचती थीं और इसीलिए उन के घर में कलह नहीं होती थी. इस बीच अबीर के आंगन में माहिर और सहर नाम के 2 फूल खिले, जिस से परिवार पूरा भी हो गया और दादादादी को व्यस्त रखने के लिए 2 बच्चे भी थे मगर मां की मोलभाव की आदत वैसी की वैसी बल्कि अब तो बच्चों का सामान लेने में भी वे अपनी इस कला का प्रदर्शन बख़ूबी करने लगीं. अबीर  झल्ला कर रह जाता मगर कुछ न कर पाता था.

‘‘इतना उल झे हुए क्यों हो?’’ दीपाली ने अबीर से पूछा.

‘‘कुछ नहीं सब तुम्हारे सामने है,’’ अबीर ने जवाब दिया.

‘‘देखो अबीर हम उम्र के इस पड़ाव में अब मां और पापाजी की आदत को तो बिलकुल नहीं बदल सकते.’’

‘‘हां यही तो मजबूरी है,’’ अबीर ने लंबी सांस छोड़ते हुए जवाब दिया.

‘‘हां अबीर हम नहीं बदल सकते क्योंकि उम्र का एक लंबा हिस्सा उन्होंने इसी तरह निकाला है या यों कहें कि आज तुम जिस स्टेटस को जी रहे हो उस की जड़ में शायद मां और पापा की यही बातें हैं,’’ दीपाली ने कहा.

‘‘अरे यार अब तुम भी उन की साइड लोगी?’’

‘‘नहीं अबीर, बात साइड लेने की नहीं है. मां जो करती हैं उस से उन्हें संतुष्टि मिलती है कि अपनी इस स्किल से वे घर के लिए कुछ बचाती हैं तो हम उन के सुकून को क्यों ख़राब करें?’’

‘‘हां उन का सुकून खराब न हो मगर 10-20 रुपए के लिए उन्हें  िझक िझक करता देख कर मेरा दिमाग भले ही खराब हो,’’ अबीर ने तुनक कर जवाब दिया.

‘‘टेक इट ईजी अबीर. अच्छा बताओ तुम्हारे सिडनी वाले क्लाइंट का क्या रहा?’’ दीपाली ने बात का रुख बदलते हुए पूछा.

‘‘वह सैटल हो गया आधी पेमैंट भी कर दी उस ने. बाकी बाद में करेगा. तुम बताओ तुम्हारी वह लैंप पोस्ट वाली कहानी कहीं छपी?’’ अबीर ने पूछा.

‘‘तुम्हें पता नहीं. बताया तो था कि ‘सरिता’ पत्रिका में छपी है. उस की पेमैंट भी आने वाली है और इस कहानी का तो प्ले भी किया जाएगा. आज ही दिल्ली के एक नाटक गु्रप ने मु झे फोन किया था,’’ दीपाली ने जवाब दिया.

‘दैट्स गुड यार अगर इस कहानी को थिएटर वालों ने प्ले किया तो उम्मीद करता हूं कोई डाइरैक्टर इस पर फिल्म भी बनाए,’’ अबीर ने चहकते हुए कहा.

‘‘उम्मीद तो कम है फिर भी देखते हैं क्या होता है?’’ दीपाली ने कहा.

सुबह जब अबीर औफिस के लिए निकला तो पापाजी ने टोका, ‘‘अबीर तुम बिना मास्क के जा रहे हो. पता है न कि चाइना से आए वायरस के कुछ रोगी अपने शहर में भी मिले हैं? मास्क लगा लो बेटा और यह सैनिटाइजर की शीशी जेब में रखो और ध्यान रहे  कि कितना भी जरूरी मामला क्यों न हो किसी से हाथ मत मिलाना.’’

‘‘जी पापा,’’ कह कर अबीर निकल गया और दादा पोतेपोती के साथ खेलने में मगन हो गए.

रात में खाना खाते वक्त मां ने भुरते की प्लेट उठाते हुए अबीर से पूछा, ‘‘क्या यह सच

है कि पूरा शहर कोरोना के कारण कुछ दिनों के लिए बंद हो जाएगा?’’

‘‘हां मां 2 या 3 हफ्तों के लिए लौकडाउन लगाया जाएगा.’’

‘‘उफ फिर क्या होगा?’’ मां ने चितिंत स्वर में पूछा.

‘‘फिर होगा यह कि कोई ठेले वाला सब्जी या दूसरी चीजें, बेचने नहीं आएगा और तुम्हारा मनपसंद काम यानी मोलभाव बंद हो जाएगा,’’ पिताजी ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम्हें तो हर बात में मेरा मोलभाव करना अखरता है. हुंह,’’ मां ने तुनक कर कहा.

अगले दिन से लौकडाउन लगा जो हफ्तों के आगे महीनों का हो गया.

‘‘अरे यार थोड़े दिन रुको लौकडाउन में सब बंद है किसी क्लाइंट से कोई पेमैंट नहीं आ रही तो तुम्हें कहां से दूं?’’ अबीर किसी से फोन पर बात कर रहा था.

किचन में खाना बनाती दीपाली से मां ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, अबीर इतना चिड़चिड़ा क्यों हो रहा है.?’’

‘‘मां मु झे भी ज्यादा नहीं बताते मगर उन्हें फाइनैंशियल क्राइस का सामना करना पड़ रहा है. इसी वजह से हमेशा खिंचेखिंचे रहते हैं. बच्चों पर भी गुस्सा करते हैं,’’ दीपाली ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा तभी मैं कहूं कि इसे क्या हो गया है. अब सम झ में आई असली वजह,’’ मां ने कहा.

लौकडाउन खुल तो गया मगर बाजार में वह पहले जैसी तेजी न रही. अभी भी एक अनजान डर सब के सिर पर सवार था. सब को कुछ न कुछ होने का धक्का लगा था. रहीसही कसर टीवी और अखबारों ने पूरी कर दी. शाम को अबीर को अपनी कार की जगह टैक्सी से लौटते देख कर मां का माथा ठनका. उस वक्त तो वे कुछ नहीं बोलीं, मगर खाना खाते वक्त पूछ ही बैठीं, ‘‘अबीर तेरी कार कहां गई? आज तू औफिस से भी कैब में आया था.?’’

‘‘हां मां हो सकता है कल औटो से जाना पड़े या फिर बाइक से,’’ अबीर गहरी सांस ले कर गुमसुम सा बोला, ‘‘यह भी हो सकता है कि हमें यह कोठी छोड़ कर पुराने वाले छोटे घर में शिफ्ट होना पड़े, 3-3 किस्ते घर की पैंडिंग चल रही हैं, कार भी आज किस्तें न चुका पाने के कारण बैंक से आए सीजर ने सीज कर ली.

‘‘आप तो जानती ही हैं कि घर फाइनैंस पर लिया था और कार भी. अभी मार्केट डाउन है तो हो सकता है कि हमें कुछ और भी बुरा देखना पड़े.’’

मां ने कुछ नहीं कहा. बस चुपचाप खाना खाती रहीं और शायद खाना भी इसी वजह से खाती रहीं कि अबीर का सामना कर सकें.

रात को अबीर अपने कमरे में बैठा मोबाइल पर कुछ देख रहा था कि मां ने खंखारा.

अबीर ने चौंक कर गरदन उठाई और पूछा, ‘‘क्या हुआ मां और आप यह बैग ले कर क्यों आई हो? हम अभी घर नहीं छोड़ रहे हैं. मैं कोशिश कर रहा हूं कहीं से कुछ बंदोबस्त करने का. देखिए शायद कोई रास्ता निकाल ही आए.’’

‘‘पागल नहीं तो है,’’ कह कर मां ने उस के सिर पर चपत लगाई, ‘‘मैं कहीं जाने के लिए यह बैग नहीं लाई हूं यह देख,’’ इतना कह कर मां ने बैग उलट दिया.

बिस्तर पर लगते नोटों का ढेर देख कर अबीर हैरान रह गया, ‘‘पर… पर

आप ये कहां से लाई हो?’’ अबीर ने हैरत से हकलाते हुए पूछा.

‘‘मैं कहीं से नहीं लाई. ये तेरे ही पैसे हैं तू हर महीना घर को राजसी ठाठबाट से चलाने के लिए जो बड़ी रकम देता था, मैं उसी में से बचत कर के और हर जगह मोलभाव कर पैसा बचाती रही. इस के अलावा तेरे पापाजी भी हर महीने अपनी आधी पैंशन मु झे देते थे, यह सब उसी का नतीजा है?’’

‘‘अरे वाह मां इतने पैसों में तो पूरे साल की किस्ते दी जा सकती हैं. घर की भी और कार की भी,’’ अबीर खुशी से चहकते हुए बोला.

‘‘हां बेटा इसीलिए तो कहती हूं मोलभाव करने में कोई हरज नहीं बल्कि इस से बचत ही होती है जो बुरे दिनों में काम आती है,’’ मां ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘मां अब तो मु झे सच में लगने लगा है…’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि मोलभाव जिंदाबाद.’’

लेखक- सरताज अली रिजवी

Hindi Drama Story

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