Hindi Kahaniyan : महबूबा के प्यार ने बना दिया बेईमान

Hindi Kahaniyan : अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है. जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

Best Hindi Story : ऐसा तो होना ही था

Best Hindi Story :  नमिता की बातें सुन कर ऋचा पलंग पर कटी पतंग की तरह गिर पड़ी. दिल इतनी जोरों से धड़क रहा था मानो निकल कर बाहर ही आ जाएगा. आखिर उस के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि उस के हर अच्छे काम में बुराई निकाली जाती है. नमिता के कहे शब्द उस के दिलोदिमाग पर प्रहार करते से लग रहे थे :

‘दीदी मंगलसूत्र और हार के एक सेट के साथ विवाह के स्वागत समारोह का खर्च भी उठा रही हैं तो क्या हुआ, दिव्या उन की भी तो बहन है. फिर जीजाजी के पास दो नंबर का पैसा है, उसे  जैसे भी चाहें खर्च करें. हमारी 2 बेटियां हैं, हमें उन के बारे में भी तो सोचना है. सब जमा पूंजी बहन के विवाह में ही खर्च कर दीजिएगा या उन के लिए भी कुछ बचा कर रखिएगा.’

भाई के साथ हो रही नमिता भाभी की बात सुन कर ऋचा अवाक््रह गई थी तथा बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली आई.

नमिता भाभी तो दूसरे घर से आई हैं लेकिन सुरेंद्र तो अपना सगा भाई है. उस को तो प्रतिवाद करना चाहिए था. वह तो अपने जीजा के बारे में जानता है. यह ठीक है कि उस के पति अमरकांत एक ऐसे विभाग में अधीक्षण अभियंता हैं जिस में नियुक्ति पाना, खोया हुआ खजाना पाने जैसा है. लेकिन सब को एक ही रंग में रंग लेना क्या उचित है? क्या आज वास्तव में सच्चे और ईमानदार लोग रह ही नहीं गए हैं?

बाहर वाले इस तरह के आरोप लगाएं तो बात समझ में भी आती है. क्योंकि उन्हें तो खुद को अच्छा साबित करने के लिए दूसरों पर कीचड़ उछालनी ही है पर जब अपने ही अपनों को न समझ पाएं तो बात बरदाश्त से बाहर हो जाती है.

एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है. आज उसे वह कहावत अक्षरश: सत्य प्रतीत हो रही थी. वरना अमर का नाम, उन्हें जानने वाले लोग आज भी श्रद्धा से लेते हैं. स्थानांतरण के साथ ही कभी- कभी उन की शोहरत उन के वहां पहुंचने से पहले ही पहुंच जाया करती है.

ऐसा नहीं है कि अपनी ईमानदारी की वजह से अमर को कोई तकलीफ नहीं उठानी पड़ी. बारबार स्थानांतरण, अपने ही सहयोगियों द्वारा असहयोग सबकुछ तो उन्होंने झेला है. कभीकभी तो उन के सीनियर भी उन से कह देते थे, ‘भाई, तुम्हारे साथ तो काम करना भी कठिन है. स्वयं को कुछ तो हालात के साथ बदलना सीखो.’ पर अमर न जाने किस मिट्टी के बने थे कि उन्होेंने बड़ी से बड़ी परेशानियां सहीं पर हालात से समझौता नहीं किया और न ही सचाई व ईमानदारी के रास्ते से विचलित हुए.

मर्मांतक पीड़ा सहने के बाद अगर कोई समय की धारा के साथ चलने को मजबूर हो जाए तो उस में उस का नहीं बल्कि परिस्थितियों का दोष होता है. परिस्थितियों को चेतावनी दे कर समय की धारा के विपरीत चलने वाले पुरुष बिरले ही होते हैं. अमर को उस ने हालात से जूझते देखा था. यही कारण था कि अमर जैसे निष्ठावान व्यक्ति के लिए नमिता के वचन ऋचा को असहनीय पीड़ा पहुंचा गए थे तथा उस से भी ज्यादा दुख भाई की मौन सहमति पा कर हुआ था.

एक समय था जब अमर की ईमानदारी पर वह खुद भी चिढ़ जाती थी. खासकर तब जब घर में सरकारी गाड़ी खाली खड़ी हो और उसे रिकशे से या पैदल, बाजार जाना पड़ता था. उस के विरोध करने पर या अपनी दूसरों से तुलना करने पर अमर का एक ही कहना होता, ‘ऋचा, यह मत भूलो कि असली शांति मन की होती है. पैसा तो हाथ का मैल है, जितना भी हो उतना ही कम है. फिर व्यर्थ की आपाधापी क्यों? वैसे भी सरकार से वेतन के रूप में हमें इतना तो मिल ही जाता है कि रोजमर्रा की जरूरत की पूर्ति करने के बाद भी थोड़ा बचा सकें…और इसी बचत से हम किसी जरूरतमंद की सहायता कर सकें तो मन को दुख नहीं प्रसन्नता ही होनी चाहिए. इनसान को दो वक्त की रोटी के अलावा और क्या चाहिए?’

अमर की बातें ऋचा को सदा ही आदर्शवाद से प्रेरित लगती रही थीं. भला अपनी खूनपसीने की कमाई को दूसरों पर लुटाने की क्या जरूरत है. खासकर तब जब वह सहयोगियों की पत्नियों को गहने और कीमती कपड़ों से लदेफदे देखती और किटी पार्टियों में काजूबादाम के साथ शीतल पेय परोसते समय उस की ओर लक्ष्य कर व्यंग्यात्मक मुसकान फेंकतीं. बाद में ऋचा को लगने लगा था कि ऐसी स्त्रियां गलत और सही में भेद नहीं कर पाती हैं. शायद वे यह भी नहीं समझ पातीं कि उन का यह दिखावा उस काली कमाई से है जिसे देखना भी भले लोग पाप समझते हैं.

ऋचा के संस्कारी मन ने सदा अमर की इस ईमानदारी की दाद दी है. अचानक उसे वह घटना याद आ गई जब अमर के विभाग के ही एक अधिकारी के घर छापा पड़ा और तब लाखों रुपए कैश और ज्वैलरी मिलने पर उन की जो फजीहत हुई उसे देखने के बाद तो उसे भी लगने लगा कि ऐसी आपाधापी किस काम की जिस से कि बाद में किसी को मुंह दिखाने के काबिल ही न रहें.

आश्चर्य तो उसे तब हुआ जब उस अधिकारी के बहुत करीबी दोस्त, जो वफादारी का दम भरते थे, उस घटना के बाद उस से कन्नी काटने लगे. शायद उन्हें लगने लगा था कि कहीं उस के साथ वह भी लपेटे में न आ जाएं. उस समय उस की पत्नी को अकेले ही उन की जमानत के लिए भागदौड़ करते देख यही लगा था कि बुरे काम का नतीजा भी अंतत: बुरा ही होता है.

आज नमिता की बातें ऋचा को बेहद व्यथित कर गईं. आज उसे दुख इस बात का था कि बाहर वाले तो बाहर वाले उस के अपने घर वाले ही अमर की ईमानदारी पर शक कर रहे हैं, जिन की जबतब वह सहायता करते रहे हैं. दूसरों से इनसान लड़ भी ले पर जब अपने ही कीचड़ उछालने लगें तो इनसान जाए भी तो कहां जाए. वह तो अच्छा हुआ कि अमर उस के साथ नहीं आए वरना उन के कानों में नमिता के शब्द पड़ते तो.

ऋचा को नींद नहीं आ रही थी. अनायास ही अतीत उस के सामने चलचित्र की भांति गुजरने लगा…

पिताजी एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे. अपनी पढ़ाने की कला के कारण वह स्कूल के सभी विद्यार्थियों में लोकप्रिय थे. वह शिक्षा को समाज उत्थान का जरिया मानते थे. यही कारण था कि उन्होंने कभी ट्यूशन नहीं ली पर अपने छात्रों की समस्याओं के लिए उन का द्वार हमेशा खुला रहता था.

अमर भी उन के ही स्कूल में पढ़ते थे. पढ़ने में तेज तथा धीरगंभीर और अन्य छात्रों से अलग पढ़ाई में ही लगे रहते थे. पिताजी का स्नेह पा कर वह कभीकभी अपनी समस्याओं के लिए हमारे के घर आया करते थे. न जाने क्यों अमर का धीरगंभीर स्वभाव मां को बेहद भाता था. कभीकभी वह हम भाईबहनों को उन का उदाहरण भी देती थीं.

एक बार पिताजी घर पर नहीं थे. मां ने उन के परिवार के बारे में पूछ लिया. मां की सहानुभूति पा कर उन के मन का लावा फूटफूट कर बह निकला. पता चला कि उन की मां सौतेली हैं तथा पिताजी अपने व्यवसाय में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि बच्चों की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते. सौतेली मां से उन के 2 भाई थे. उन की मां को शायद यह डर था कि उन के कारण उस के पुत्रों को पिता की संपत्ति से पूरा हिस्सा नहीं मिल पाएगा.

अमर की आपबीती सुन कर मां द्रवित हो उठी थीं. उस के बाद वह अकसर ही घर आने लगे. अमर के बालमन पर मां की कही बातें इतनी बुरी तरह से बैठ गई थीं कि वह अनजाने ही अपना बचपना खो बैठे तथा उन्होंने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित कर लिया, जिस से कुछ बन कर अपने व्यर्थ हो आए जीवन को नया मकसद दे सकें. पिताजी के रूप में अमर को न केवल गुरु वरन अभिभावक एवं संरक्षक भी मिल गया था. अत: जबतब अपनी समस्याओं को ले कर अमर पिताजी के पास आने लगे थे और पिताजी के द्वारा मार्गदर्शन पा कर उन का खोया आत्मविश्वास लौटने लगा था.

अमर के बारबार घर आने से हम दोनों में मित्रता हो गई. समय पंख लगा कर उड़ता रहा और समय के साथ ही हमारी मित्रता प्रगाढ़ता में बदलती चली गई. अमर का परिश्रम रंग लाया. प्रथम प्रयास में ही उन का रुड़की इंजीनियरिंग कालिज में चयन हो गया और वह वहां चले गए.

अमर के जाने के बाद मुझे महसूस हुआ कि मेरे मन में उन्होंने ऐसी जगह बना ली है जहां से उन्हें निकाल पाना असंभव है. पिताजी को भी मेरी मनोस्थिति का आभास हो चला था किंतु वह अमर पर दबाव डाल कर कोई फैसला नहीं करवाना चाहते थे और यही मत मेरा भी था.

रुड़की पहुंच कर अमर ने एक छोटा सा पत्र पिताजी को लिखा था जिस में अपनी पढ़ाई के जिक्र के साथ घर भर की कुशलक्षेम पूछी थी. पर पत्र में कहीं भी मेरा कोई जिक्र नहीं था. इस के बाद भी जो पत्र आते मैं ध्यान से पढ़ती पर हर बार मुझे निराशा ही मिलती. मैं ने अमर का यह रुख देख कर अपना ध्यान पढ़ाई में लगा लिया तथा अमर को भूलने का प्रयत्न करने लगी.

दिन बीतने के साथ यादें भी धुंधली पड़ने लगी थीं. मैं ने भी धुंध हटाने का प्रयत्न न कर पढ़ाई में दिल लगा लिया. हायर सेकंडरी करने के बाद मैं इंटीरियर डेकोरेशन का कोर्स करने लगी थी. एक दिन मैं कालिज से लौटी तो एक लिफाफा छोटी बहन दिव्या ने मुझे दिया.

पत्र पर जानीपहचानी लिखावट देख कर मैं चौंक उठी. धड़कते दिल से लिफाफा खोला. लिखा था, ‘ऋचा इतने सालों बाद मेरा पत्र पा कर आश्चर्य कर रही होगी पर फिर भी आशा करता हूं कि मेरी बेरुखी को तुम अन्यथा नहीं लोगी. यद्यपि हम ने कभी अपने प्रेम का इजहार नहीं किया पर हमारे दिलों में एकदूसरे की चाहत की जो लौ जली थी, उस से मैं अनजान नहीं था. मुझे अपने प्यार पर विश्वास था. बस, समय का इंतजार कर रहा था. आज वह समय आ गया है.

‘तुम सोच रही होगी कि अगर मैं वास्तव में तुम से प्यार करता था तो इतने सालों तक तुम्हें पत्र क्यों नहीं लिखा? तुम्हारा सोचना सच है पर उन दिनों मैं इन सब बातों से हट कर अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाना चाहता था. मैं तुम्हारे योग्य बन कर ही तुम्हारे साथ आगे बढ़ना चाहता था. अब मेरी पढ़ाई समाप्त हो गई है तथा मुझे अच्छी नौकरी भी मिल गई है. आज ही ज्वाइन करने जा रहा हूं अगर तुम कहो तो अगले सप्ताह आ कर गुरुजी से तुम्हारा हाथ मांग लूं. लेकिन विवाह मैं एक साल बाद ही करूंगा. क्योंकि तुम तो जानती ही हो कि मेरे पास कुछ भी नहीं है तथा पिताजी से कुछ भी मांगना या लेना मेरे सिद्धांतों के खिलाफ है.

‘मैं चाहता हूं कि जब तुम घर में कदम रखो तो घर में कुछ तो हो, घरगृहस्थी का थोड़ाबहुत जरूरी सामान जुटाने के बाद ही तुम्हें ले कर आना चाहूंगा. अत: मुझे आशा है कि मेरी भावनाओं का सम्मान करते हुए जहां इतना इंतजार किया है वहीं कुछ दिन और करोगी पर यह कदम मैं तुम्हारी स्वीकृति के बाद ही उठाऊंगा. एक पत्र इसी बारे में गुरुजी को लिख रहा हूं. अगर इस रिश्ते के लिए तुम तैयार हो तो दूसरा पत्र गुरुजी को दे देना. जब वे चाहेंगे मैं आ जाऊंगा.’

पत्र पढ़ने के साथ ही मेरे मन के तार झंकृत हो उठे थे. इंतजार की एकएक घड़ी काटनी कठिन हो रही थी. पिताजी को पत्र दिया तो वह भी खुशी से उछल पडे़. घर में सभी खुश थे. इतने योग्य दामाद की तो शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

आखिर वह दिन भी आ गया जब सीधेसादे समारोह में मात्र 2 जोड़ी कपड़ों में मैं विदा हो गई. मां को मुझे सिर्फ 2 जोड़ी कपड़ों में विदा करना अच्छा नहीं लगा था लेकिन अमर की जिद के आगे सब विवश थे. हां, पिताजी जरूर अपने दामाद के मनोभावों को जान कर गर्वोन्मुक्त हो उठे थे.

विवाह के कुछ साल बाद ही पिताजी का निधन हो गया. सुरेंद्र उस समय मेडिकल के प्रथम वर्ष में था. दिव्या छोटी थी. मां पर तो जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा था. पेंशन में देरी के साथ पीएफ का पैसा भी नहीं मिल पाया था. घर खर्च के साथ ही सुरेंद्र की पढ़ाई का खर्च चलाना मां के लिए कठिन काम था. तब अमर ने ही मां की सहायता की थी.

अमर से सहायता लेने पर मां झिझकतीं तो अमर कहते, ‘मांजी, क्या मैं आप का बेटा नहीं हूं, जब सुरेंद्र आप के लिए करेगा तो क्या आप को बुरा लगेगा?’

यद्यपि मां ने पिताजी का पैसा मिलने पर जबतब मांगी रकम को लौटाया भी था, पर अमर को उन का ऐसे लौटाना अच्छा नहीं लगा था. उन का कहना था कि ऐसी सहायता से क्या लाभ जिस का हम प्रतिदान चाहें. अत: जबजब भी ऐसा हुआ मैं मां के द्वारा लौटाई राशि को बैंक में दिव्या के नाम से जमा करती गई. यह सुझाव भी अमर का ही था.

दिव्या उस के विवाह के समय केवल 7 वर्ष की थी. अमर ने उसे गोद में खिलाया था. वह उसे अपनी बेटी मानते थे. इसीलिए दिव्या के प्रति अपने कर्तव्यों की पूर्ति करना चाहते थे और साथ ही मां का भार कम करने में अपना योगदान दे कर उन की मदद के साथ गुरुजी के प्रति अपनी श्रद्धा को बनाए रखना चाहते थे. वैसे भी हमारे 2 पुत्र ही हैं. पुत्री की चाह दिल में ही रह गई थी. शायद ऐसा कर के अमर दिव्या के विवाह में बेटी न होने के अपने अरमान को पूरा करना चाहते थे.

मां की लौटाई रकम से मैं ने दिव्या के लिए मंगलसूत्र के साथ हार का एक सेट भी खरीदा था मगर स्वागत समारोह का खर्चा अमर दिव्या को अपनी बेटी मानने के कारण कर रहे हैं. पर यह बात मैं किसकिस को समझाऊं.

आज सुरेंद्र के मौन और नमिता की बातों ने ऋचा को मर्माहत पीड़ा पहुंचाई थी. कितना बड़ा आरोप लगाया है उस ने अमर की ईमानदारी पर. सुनियोजित बचत के कारण जिस धन से आज वह बहन के विवाह में सहायता कर पा रही है उसे दो नंबर का धन कह दिया. वैसे भी 20 साल की नौकरी में क्या इतना भी नहीं बचा सकते कि कुछ गहनों के साथ एक स्वागत समारोह का खर्चा उठा सकें. इस से दो नंबर के पैसे की बात कहां से आ गई. क्या इनसानी रिश्तों का, भावनाओं का कोई महत्त्व नहीं रह गया है.

निज स्वार्थ में लोग इतने अंधे क्यों होते जा रहे हैं कि खुद को सही साबित करने के प्रयास में दूसरों को कठघरे में खड़ा करने में भी उन्हें हिचक नहीं होती. उस का मन किया कि जा कर नमिता की बात का प्रतिवाद करे. लेकिन नमिता के मन में जो संदेह का कीड़ा कुलबुला रहा है, वह क्या उस के प्रतिरोध करने भर से दूर हो पाएगा. नहींनहीं, वह अपनी तरफ से कोई सफाई पेश नहीं करेगी. यदि इनसान सही है और निस्वार्थ भाव से कर्म में लगा है तो देरसबेर सचाई दुनिया के सामने आ ही जाएगी.

अचानक ऋचा ने एक निर्णय लिया कि दिव्या के विवाह के बाद वह इस घर से नाता तोड़ लेगी. जहां उसे तथा उस के पति को मानसम्मान नहीं मिलता वहां आने से क्या लाभ. उस ने बड़ी बहन का कर्तव्य निभा दिया है. भाई पहले ही स्थापित हो चुका है तथा 2 दिन बाद छोटी बहन भी नए जीवन में प्रवेश कर जाएगी. अब उस की या उस की सहायता की किसी को क्या जरूरत? लेकिन क्या जब तक मां है, भाई है, उस का इस घर से रिश्ता टूट सकता है…अंतर्मन ने उसे झकझोरा.

आखिर वह दिन भी आ गया जब दिव्या को दूसरी दुनिया में कदम रखना था. वह भी ऐसे व्यक्ति के साथ जिस को वह पहले से जानती तक नहीं है. जयमाला के बाद दिव्या और दीपेश समस्त स्नेहीजनों से शुभकामनाएं स्वीकार कर रहे थे. समस्त परिवार उन दोनों के साथ सामूहिक फोटोग्राफ के लिए मंच पर जमा हुआ था तभी दीपेश के पिताजी ने एक सज्जन को दीपेश के चाचा के रूप में अमर से परिचय करवाया तो वह एकाएक चौंक कर कह उठे, ‘‘अमर साहब, आप की ईमानदारी के चर्चे तो पूरे विभाग में मशहूर हैं. आज आप से मिलने का भी अवसर प्राप्त हो गया. मुझे खुशी है कि ऐसे परिवार की बेटी हमारे परिवार की शोभा बनने जा रही है.’’

दीपेश के चाचा, जो अमर के विभाग में ही उच्चपदाधिकारी थे, ने यह बात इतनी गर्मजोशी के साथ कही कि अनायास ही मंच पर मौजूद सभी की नजर अमर की ओर उठ गई.

एकाएक ऋचा के चेहरे पर चमक आ गई. उस ने मुड़ कर नमिता की ओर देखा तो उसे सुरेंद्र की ओर देखते हुए पाया. उस की निगाहों में क्षमा का भाव था या कुछ और वह समझ नहीं पाई लेकिन उन सज्जन के इतना कहने भर से ही उस के दिलोदिमाग पर से पिछले कुछ दिनों से रखा बोझ हट गया. सुखद आश्चर्य तो उसे इस बात का था कि एक अजनबी ने पल भर में ही उस के दिल के उस दंश को कम किया जिसे उस के अपनों ने दिया था.

आखिर सचाई सामने आ ही गई. ऐसा तो एक दिन होना ही था पर इतनी जल्दी और ऐसे होगा ऋचा ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था. वास्तव में जीवन के नैतिक मूल्यों में कभी बदलाव नहीं होता. वह हर काल, परिस्थिति और समाज में हमेशा एक से ही रहे हैं और रहेंगे, यह बात अलग है कि मानव निज स्वार्थ के लिए मूल्यों को तोड़तामरोड़ता रहता है. प्रसन्नता तो उसे इस बात की थी कि आज भी हमारे समाज में ईमानदारी जिंदा है.

Divorce के बाद बच्चों पर किस का अधिकार ?

Divorce : सुप्रीम कोर्ट ने एक विवाद में कहा है कि एक 8 साला बेटी की कस्टडी माह में 15 दिन के लिए पिता को देने का आदेश गलत है अगर पिता बेटी को घर का नहीं बाहर रेस्तरांओं का ही खाना खिलाता है. सुप्रीम कोर्ट ने निचली कोर्ट के 15 दिनों के आदेश को टाल कर पिता के साथ बेटी का रहना माह में 2 बार 2-2 दिन के लिए कर दिया.

वैसे तो यह विवाद समझ से परे है कि पतिपत्नी अपनी लड़ाई बच्चों पर थोप रहे हैं और पिता जो सिंगापुर में काम करता है, इस लड़ाई के चलते 15 दिन तिरुवनंतपुरम में किराए के एक मकान में बेटी के साथ रहने आता था. पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट से शिकायत की थी कि 15 दिन जब पिता बेटी को अपने साथ रखता है तो आसपास के रेस्तरांओं से खाना मंगाता है.

होना तो यह चाहिए था कि पिता अगर बच्चों की मां से समझौता नहीं कर पा रहा तो उन्हें मां के पास ही छोड़ा जाए जब तक मां खुद दूसरे कारणों से बच्चों को पिता के पास छोड़ना न चाहे. इस तरह के विवाद कोर्टों में जाने ही नहीं चाहिए. अगर मां बच्चों पर अधिकार जमाए, पिता को उन से न मिलने दे तो पिताओं को चुपचाप मां से न निभा पाने की कीमत मान कर सहज स्वीकार कर लेना चाहिए. हां, अगर दोनों बच्चों की सहमति से तैयार हों. इस तरह बच्चों का साथ शेयर करेंगे तो यह उन की मरजी है.

दुनियाभर की अदालतें इस तरह के मामलों से भरी हैं जिन में मां और पिता बच्चों की कस्टडी के लिए मोटा पैसा अदालतों में वकीलों पर ही खर्च करते हैं. यह पैसा जो दोनों खर्च कर रहे हैं असल में बच्चों के भविष्य की पूंजी है जिसे मातापिता बेवकूफी में बच्चों की कस्टडी के लिए बरबाद कर रहे हैं.

यह मानने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए कि बच्चे तो मां के पास रहेंगे और उन का खर्च उन का पिता ही उठाएगा. यह विवाह करने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है क्योंकि बच्चे दोनों के हैं, गर्भ में और ब्रैस्ट फीडिंग मां ने ही कराई. पिता ने स्पर्श दिया.

हाई कोर्ट ने इस मामले में 3 साल के बेटे की कस्टडी भी पिता को दे दी थी. ऐसा लगता है कि हाई कोर्ट विवाह को टूटने से बचाने के लिए बच्चों का इस्तेमाल कर रहा था और उस ने अनजस्टीफाइड जजमैंट दिया ताकि मांबाप मान जाएं कि सिंगापुर में रहने वाला पिता कैसे लगातार 15-15 दिन भारत में रह सकता है. जो भी हो, फैसला गलत था और लगता है कि सुप्रीम कोर्ट भी इस तरह के पेरैंट्स की जिदों के आगे बेबस सा रहता है.

बच्चों की खातिर पेरैंट्स अपने विवाद भुला दें, यह जरूरी नहीं पर अगर विवाद है तो सैक्रीफाइस तो पिता को ही करना होगा. मां का सैक्रीफाइस होगा बच्चों को अकेले पालना और बच्चों के कारण किसी अन्य पुरुष से संबंध न बना पाना. इस मामले में मां अपने पेरैंट्स के पास रहने चली गई है. यह भी एक सैक्रीफाइस है जो औरत कर रही है. पिता का सैक्रीफाइस पैसे का है तो कम ही है.

Exam Preparation : एग्जाम में मैं सबकुछ भूल जाती हूं, क्या करूं?

Exam Preparation  :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक

सवाल-

मैं 16 वर्षीय 10वीं क्लास की छात्रा हूं. पिता की छोटीमोटी खेती है. वे चाहते हैं कि मैं पढ़लिख कर अफसर बनूं. मगर लाख कोशिशों के बावजूद इम्तिहान में मेरे नंबर अच्छे नहीं आते. इम्तिहान आतेआते मैं  सारा पढ़ा भूल जाती हूं. मुझे लगता है कि पढ़ना मेरे बस की बात नहीं, पर मन पिता के अरमान पूरे करना चाहता है. क्या आप कुछ ऐसे  उपाय बता सकते हैं, जिन पर गौर फरमाने पर मैं पिता के अरमान पूरे कर सकूं?

जवाब-

आप अनावश्यक मन छोटा न करें, क्योंकि ऐसा आप के साथ ही नहीं, बहुतों के साथ होता है. शायद आप ने अलबर्ट आइंस्टाइन का यह कथन नहीं पढ़ा होगा जिस में उन्होंने कहा है कि जीनियस होने में 99% लगन व मेहनत और मात्र 1% अंत:प्रेरणा का पुट होता है. सचमुच बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें 1 बार पाठ पढ़ने से वह याद हो जाता है. आवश्यकता होती है मन लगा कर पढ़ने, पाठ को ठीक से समझने और याद रखने के लिए उसे बारबार दोहराने की. आप परेशान न हों. पढ़ने के ढंग में सुधार लाएं. अब जो भी पढ़ें उसे पहले ठीक से समझें, रट्टा न लगाएं. फिर उस के मुख्यमुख्य बिंदुओं को दिन में 1 बार अवश्य दोहरा लें. फिर इसी पाठ को 1 हफ्ते बाद 1 बार और देखपढ़ लें. इस से यह आप की स्मृति में लंबे समय तक रहेगा.

पढ़े हुए पाठ के मुख्यमुख्य बिंदुओं को कापी में लिखने अथवा नोट्स बनाने से भी पाठ याद रखने में आसानी होगी. पढ़ते समय मुख्य बिंदुओं को पैंसिल से रेखांकित (अंडरलाइन) कर लेना भी सहायक साबित होता है.

इस सब के अलावा मन ही मन यह संकल्प लें कि पिता के सपने को हर हाल में पूरा करना है. हिम्मत हारना कायरों का काम है. बुद्धि लगभग सभी में समान होती है. यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह उस का कैसे इस्तेमाल करे.

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ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसआर्डर) एक मानसिक विकार और दीर्घकालिक स्थिति है जो लाखों बच्चों को प्रभावित करती है और अक्सर यह स्थिति व्यक्ति के वयस्क होने तक बनी रह सकती है. एडीएचडी के साथ जुड़ी प्रमुख समस्याओं मे ध्यानाभाव (ध्यान की कमी), आवेगी व्यवहार, असावधानी और अतिसक्रियता शामिल हैं. अक्सर इससे पीड़ित बच्चे हीन भावना, अपने बिगड़े संबंधों और विद्यालय में खराब प्रदर्शन जैसी समस्याओं से जूझते रहते हैं. माना जाता है कि ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार अनुवांशिक रूप से व्यक्ति मे आता है. जिस घर-परिवार में तनाव का माहौल रहता है और जहां पढ़ाई पर अधिक जोर देने की प्रवृत्ति रहती है वहां यह समस्या अधिक होती है. रिसर्च के अनुसार, भारत में लगभग 1.6% से 12.2% तक बच्चों में एडीएचडी की समस्या पाई जाती है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Workation है जेन जी का नया वर्क कल्चर, जानें इसके बारे में सबकुछ

Workation : वर्केशन आजकल के युवाओं का नया वर्क कल्चर है जिस में वे घर से दूर रिमोट एरियाज में रह कर काम करना पसंद करते हैं. इंग्लिश वर्ड वर्क + वेकेशन से मिल कर बना यह शब्द उन युवाओं का सब से फेवरिट शब्द है जिस में वे एक जगह रुक कर काम करने के स्थान पर अलगअलग जगहों पर जा कर काम करते हैं.

कोरोना के बाद से ही कुछ कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रौम होम दे दिया है, जिस के कारण एक ही कमरे और एक ही स्थान पर निरंतर काम करने के कारण धीरेधीरे काम और जगह दोनों से ही बोरियत होना प्रारंभ हो जाती है और इस का असर सीधे उन के काम पर भी पड़ने लगता है. इस बोरियत से बचने के लिए युवा अपना लैपटौप और औफिस का अन्य जरूरी सामान ले कर दूरस्थ स्थानों पर चले जाते हैं और वहां रह कर जहां दिन में वे अपना कार्य करते हैं और शेष समय में वे आसपास के स्थानों पर घूमते हैं और इस तरह वे एकसाथ कई काम कर लेते हैं.

ताकि काम की प्रोडक्टिविटी बनी रहे

कई कंपनियां भी अपने कर्मचारियों को औफिस और घर से दूर रह कर कार्य करने को परमिट करती हैं ताकि काम में प्रोडक्टिविटी बनी रहे.

युवाओं में इस के लोकप्रिय होने का एक अन्य कारण यह भी है कि वर्केशन के दौरान घूमने के लिए उन्हें अतिरिक्त अवकाश की आवश्यकता नहीं होती.

वर्केशन के लाभ

एक मल्टीनैशनल कंपनी में घर से ही काम कर रही अनामिका कहती है,”पिछले 1 साल से उसी कमरे, लैपटौप और घर वालों के चेहरे देख कर मुझे बोरियत होने लगी थी तभी मेरी एक सहेली के साथ मैं ने हिमाचल प्रदेश के बिर नामक स्थान पर रह कर 1 माह तक काम किया. नो डाउट, इस दौरान मेरे काम की क्वालिटी और प्रोडक्टिविटी में बहुत सुधार आया था क्योंकि वहा का माहौल अलग था और मैं अपने काम पर पहले से अधिक फोकस कर पा रही थी.

अश्विन हर दूसरे माह 15 दिन के लिए अपनी वर्किंग वाइफ के साथ अपने घर से दूर किसी दूसरी जगह जा कर काम करता है. दोनों कामकाजी हैं और एकसाथ किसी भी होटल में जा कर काम करते हैं। वह कहता है कि पहले जहां हम दोनों एक ही फ्लैट के अलगअलग कमरे में बैठ कर काम करते थे, शाम तक एकदूसरे पर झींकना शुरू कर देते थे। पर अब हर दूसरे महीने नई जगह जाने का इंतजार रहता है और काम खत्म कर के उस जगह को घूमने का. इस तरह हम दोनों ही बहुत अच्छी तरह वर्क लाइफ बैलेंस कर पा रहे हैं.

वर्केशन के लिए युवा बहुत अधिक भीड़भाड़ वाले स्थानों की अपेक्षा शांति वाले स्थानों पर जाना अधिक पसंद करते हैं. इसलिए यहां पर उन के लिए घूमना भी काफी सस्ता होता है.

भोपाल में रहने वाली आकांक्षा ने 15 दिन तक मांडू के एक होमस्टे में रुक कर काम किया। वह कहती है,”यहां रहना काफी सस्ता तो पड़ा ही, साथ ही घूमने के लिए अलग से छुट्टियां भी नहीं लेनी पड़ीं, दूसरे 15 दिन रुकने से मैं यहां की सारी जगहों को अच्छी तरह से ऐक्सप्लोर भी कर पाई. नए लोगों और नई जगहों को देखने से मेरी सोच और काम को भी काफी प्रभावित किया.

वर्केशन के अपने अनुभव को साझा करते हुए पुलकित कहता है,“लंबे समय से घर में मम्मीपापा बीमार थे और मैं काम कर रहा था. कंपनी बारबार वार्निंग दे रही थी. अपनी पत्नी के कहने पर मैं ने कुछ दिनों के लिए घर से दूर जा कर रिमोट एरिया में एक होमस्टे से काम किया. इस दौरान निस्संदेह मैं अपने काम पर अच्छे से फोकस कर पाया.”

रखें इन बातों का भी ध्यान

अपनी कार्य क्षमता को बढ़ाने का बहुत अच्छा माध्यम है वर्केशन क्योंकि जब आप औफिस जाते हैं तो एक ही दिन में भांतिभांति के लोगों से मिलते हैं, गप्पें लगाते हैं जिस के कारण आप पर काम हावी नहीं होने पाता। वहीं घर से काम करते समय आप रोजरोज उसी स्थान और लोगों से बोर होना प्रारंभ हो जाते हैं. वर्केशन का प्लान करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है :

● जिस भी जगह पर आप जा रहे हैं उस का प्लान पहले से बनाएं ताकि अपने रहने की बुकिंग समय रहते कर सकें.

● चूंकि आजकल लगभग काम इंटरनैट से होते हैं इसलिए स्थान चुनने से पहले वहां नैट की उपलब्धता सुनिश्चित कर लें.

● जिस स्थान पर आप जा रहे हैं उस की समस्त जानकारी अपने किसी दोस्त या परिवार वालों को दे कर जाएं ताकि किसी भी मुसीबत के समय संपर्क किया जा सके.

● अकसर युवा अविवाहित बेटियों को इस तरह से भेजने के लिए माता हपिता तैयार नहीं होते। ऐसे में विद्रोह करने की जगह उन्हें प्यार से वर्केशन के बारे में डिटेल जानकारी दें। साथ ही प्रारंभ में कम दिनों का प्लान बनाएं ताकि मातापिता को आप आगे के लिए तैयार कर सकें.

● बजट फ्रैंडली स्थान का चयन करना आवश्यक है ताकि आप कम खर्चे में अपना काम कर सकें.

Teenage Love : कम उम्र में प्रेम, किस हद तक जाएं

Teenage Love : फिल्म ‘एकदूजे के लिए’ का एक मशहूर गीत है,’सोलह बरस की बाली उमर को सलाम, ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम…’ मगर अब यहां सवाल यह उठता है कि बाली उम्र को ही सलाम क्यों किया जा रहा है? उम्र तो 10 या 12 साल की भी हो सकती थी? तो इस का जवाब बायलौजी की किताबों में मिलता है.

पेरैंटिंग टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 13 से 18 साल की उम्र बदलाव और विकास की दृष्टि से सब से अहम होती है. यही वह उम्र है, जिस में टीनएजर्स बचपन की डगर छोड़ जवानी की दहलीज पर कदम रखते हैं. उन के शरीर में हारमोंस का उतारचढ़ाव होता है. इस दौरान उन का शरीर और मन तेजी से बदल रहा होता है. पहली बार उन के मन में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण देखने को मिलता है. यही वह उम्र होती है, जिस में टीनऐजर्स प्यार में पड़ते हैं.

टीनऐजर्स के रिश्ते की वजह इमोशन नहीं बायलौजी होती है

पेरैंटिंग टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 14-15 साल के टीनऐजर्स के प्यार की गिरफ्त में आने की असल वजह इमोशनल नहीं बल्कि बायलौजिकल होती है. इस उम्र में वे प्यार और इमोशन को ठीक से समझ भी नहीं पाते. वे सिर्फ नए अनुभवों से गुजरना चाहते हैं, जो उन्हें आनंद भी देता है.

बौलीवुड भी फिल्मों के माध्यम से टीनऐजर्स के इन रिश्ते को बयां करता रहता है

साल 2002 में एक फिल्म आई थी ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’. इस फिल्म में 14-15 साल का एक लड़का अपने से बड़ी उम्र की औरत के प्रति आकर्षित हो जाता है और सामने वाले फ्लैट में उसे दूरबीन के माध्यम से हर पल देखता रहता है. वह उस महिला को अपने प्रेमी के साथ प्रेम करते हुए देखता है और गुस्स्से में आ जाता है. साथ ही महिला को भी बताता भी है कि वह उस से प्यार करता है.

तब महिला उसे समझती है यह प्यार नहीं आकर्षण है. अपोजिट सैक्स के प्रति सिर्फ 2 मिनट प्लेजर होता है. वह महिला अपने हाथों से उस का मास्टरबेशन कर उसे भ्रम से निकाल कर वास्तविकता से रूबरू कराने की कोशिश करती है. लेकिन वह लड़का नहीं समझता क्योंकि इतनी कम उम्र में उस का दिमाग परिपक्व नहीं होता. बहुत बातें उस की समझ से परे होती हैं.

महिला द्वारा ऐसा करने पर वह बुरी तरह से हर्ट होता है और अपने हाथ की नस काट लेता है.

ऐसी न जाने कितनी ही फिल्में बौलीवुड में आती हैं जहां टीनऐजर्स को अपना आकर्षण प्यार लगता है और उस के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं क्योंकि वे खुद को और अपनी फीलिंग्स को समझ ही नहीं पाते हैं.

पेरैंट्स का टीनऐजर्स के प्यार पर बंदिशें लगाना ठीक नहीं

● टीनऐजर्स की दोस्ती और प्यार पर नजर रखें. उन्हें सामान्य बातचीत के दौरान कैरियर पर फोकस करने को कहें

● अगर टीनऐजर्स बेटी या बेटे की दोस्ती के बारे में पता चले तो उन पर गुस्सा कर के रोकने के बजाए उन के प्यार के लिए हैल्दी बाउंड्री सैट करें.

● टीनऐजर्स से सैक्स और रिलेशनशिप के बारे में खुल कर बात करते रहें. उन्हें कम उम्र में सैक्स से होने वाली सामान्य बातों की जानकारी दें.

● टीनऐजर्स के दोस्त बन कर रहें ताकि वे अपनी हर बात आप से खुद शेयर करें और सलाह भी मांगें.

टीनऐजर्स का प्यार करना अनैतिक नहीं है पर इन बातों का भी ध्यान रखें

प्रैगनैंसी होने का खतरा बना रहता है : अगर आप यह सोच रही हैं कि संबध बनाने से पहले आप ने प्रोटैक्शन का यूज किया था इसलिए प्रैगनैंसी का तो सवाल ही नहीं उठता, तो आप को बता दें कि यह उतना भी सेफ नहीं है जितना आप सोच रही हैं.

कई बार ऐक्सीडैंट भी हो जाते हैं. आमतौर पर लड़कियों को 12 साल की उम्र में मासिकधर्म शुरू हो जाता है. एक बार मासिकधर्म शुरू होने के बाद कोई भी लड़की शारीरिक संबंध बनाने के बाद गर्भधारण कर सकती है. लड़कियों को पीरियड्स शुरू होने के बाद कभी भी शारीरिक संबंध बनाने पर प्रैगनैंसी का खतरा हो सकता है. अगर प्रैगनैंट हो गए तो घर पर बताने में भी डर और अगर छिपछिपा कर अबोर्शन करवाने की सोचती हैं तो इस में जान तक का खतरा होता है. इसलिए किसी से रिलेशन बनाने से पहले 100 बार सोचें.

गर्भाशय कैंसर का खतरा

कम उम्र में शारीरिक संबंध बनाने वाली महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

एक रिसर्च के अनुसार, कम उम्र में ही शारीरिक संबंध बनाने के बाद महिलाओं के शरीर में यौन संचारित विषाणुओं की संख्या बढ़ सकती है जिस से सर्वाइकल कैंसर होने का खतरा मंडराता रहता है.

इन्फैक्शंस का खतरा

इस उम्र में सही जानकारी न होने के कारण यौन संबंध बनाते समय लड़कियां स्वच्छता नहीं बरत पाती हैं, जिस के कारण उन्हें यौन सं‍चारित संक्रमण/रोग (STD), हर्पिस (herpes), एचआईवी एड्स सहित अन्य यौन संचारित बीमारियां होने की संभावना सब से अधिक होती हैं.

दरअसल, यौन संबंध बनाने वाले टीनऐजर्स में सैक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फैक्शंस (एसटीआई) होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है. एसटीआई में सिफलिस, क्लैमाइडिया, एचआईवी या अन्य संक्रमण वाली बीमारियां शामिल हैं.

एक शोध में पाया गया है कि दुनियाभर में चिकित्सीय एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं की चपेट में आने की वजहों में यौन संबंधों से होने वाला संक्रमण सब से प्रमुख वजह है.

शोधकर्ताओं ने कहा है कि यह शोध दिखाता है कि कम उम्र में यौन संबंधों से एसटीआई से दोचार होने का जोखिम बढ़ता है.

सियोल के योनसेई विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस शोध के लिए कोरिया के युवाओं का एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण डाटा आजमाया. कोरियन सैंटर्स फौर डिसीज कंट्रोल ऐंड प्रीवेंशन द्वारा सालाना युवाओं का सर्वेक्षण कराया जाता है.

इस विश्लेषण में यौन संबंध स्थापित कर चुके 22,381 नाबालिगों के जवाबों को शामिल किया गया था. इन में से करीब 7.4% किशोरों एवं 7.5% किशोरियों ने एसटीआई से दोचार होने की बात कही.

शोधकर्ताओं ने पाया कि लड़के व लड़कियों दोनों में पहले यौन संबंध के वक्त उम्र कम होने की वजह से सैक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फैक्शंस बढ़ गए.

वैबसाइट ‘यूथ हैल्थ मैग डौट कौम’ की रिपोर्ट के अनुसार, 12वीं कक्षा में पहली बार यौन संबंध बनाने वाले किशोरों की तुलना में 7वीं कक्षा में पहली बार यौन संबंध बनाने वाले किशोरकिशोरियां एसटीआई से 3 गुना ज्यादा प्रभावित हुए.

इस तरह शोधकर्ताओं का कहना है कि कम उम्र में यौन संबंध बनाने से एसटीआई की चपेट में आने का जोखिम बढ़ जाता है.

कम उम्र में सैक्स करने से ब्रेन विकसित नहीं हो पता

अगर आप कम उम्र में शारीरिक संबंध बनाते हैं तो इस से आप के दिमाग पर निगेटिव असर पड़ता है और एक तरह से दिमाग विकसित होना बंद हो जाता है. इस उम्र में शारीरिक संबंध बनाने से दिमाग पर नकारात्मक असर पड़ता है जिस के कारण शरीर एवं मस्तिष्क दोनों का विकास रुक जाता है.

कम उम्र में यौन संबंध स्‍थापित करने से मस्तिष्क एवं छोटेछोटे प्रजनन ऊतकों में भी इंटरकोर्स करने के बाद बड़ा परिवर्तन होता है जिस के कारण मस्तिष्क एवं बौडी का विकास प्रभावित होता है. यही कारण है कि कम उम्र में सैक्स करना नुकसानदायक होता है.

डिप्रैशन होने का खतरा भी बना रहता है

इस उम्र के आकर्षण को लड़कियां प्यार समझ बैठती हैं लेकिन एक बार शारीरिक संबंध बनाने के बाद मन भर जाता है और अन्य किसी भी वजह से रिश्ता टूट जाता है तो लड़कियां भावुक हो कर डिप्रैस्ड हो जाती हैं.

एचआईवी एड्स का खतरा

2011 में अमेरिका में जितने भी एचआईवी के केस आए उन में 21% मरीजों की उम्र 13 से 24 साल के बीच थी. यह खतरनाक संकेत है.

आई पिल के साइडइफैक्ट भी बहुत हैं

आई पिल टैबलेट में लेवोनोर्गेस्ट्रेल नामक एक सक्रिय घटक होता है, जो एलएच और एफएसएच हारमोन के उत्पादन को रोकता है. ये हारमोन ओव्यूलेशन को नियंत्रित करते हैं. आई पिल ओव्यूलेशन में देरी या शुक्राणु अंडे के निषेचन को बाधित करने का काम करती है.

लेकिन इस के कई तरह के साइडइफैक्ट्स भी हैं. जैसे मतली, थकान, सिरदर्द, पेट की ऐंठन, मासिकधर्म में अनियमितताएं (विलंबित या शुरुआती मासिकधर्म) लेवोनोर्गेस्ट्रेल, जो महिलाओं में ऐलर्जी पैदा कर सकता है, इस गोली का सक्रिय घटक हैं.

पीरियड्स में यह गड़बड़ी पैदा कर सकता है. यह पीरियड्स में अधिक ब्लीडिंग का कारण बन सकता है. इस से शारीरिक दर्द हो सकता है, जैसे थकान, चक्कर आना वगैरह. इस से स्किन ऐलर्जी भी हो सकती है.

यह अन्य दवाओं के साथ भी खराब प्रतिक्रिया कर सकता है. गोली में पाए जाने वाले हारमोन की भारी मात्रा के कारण इन में से अधिकांश दुष्प्रभाव होते हैं.

आई पिल और कंडोम की कोई गारंटी नहीं

कंडोम प्रैगनैंसी रोकने की 100% गारंटी नहीं देता. शायद आप ने ध्यान न दिया हो लेकिन कंडोम के पैकेट पर भी इस बारे में जिक्र किया गया होता है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, कंडोम लगाने से ले कर आखिर तक उस के इस्तेमाल में होने वाली चूक स्पर्म को रोक नहीं पाती, जो प्रैगनैंसी की वजह बनती है. साथ ही यह भी जरूरी नहीं है कि इस से प्रैगनैंसी रुक ही जाएगी. कई मामलों में आई पिल खाने के बाद भी गर्भ ठहर सकता है. अगर ऐसा हो गया तो आप क्या करेंगी, यह सोच लें.

सैक्स करने के लिए ओयो (OYO) में जाना भी खतरनाक हो सकता है

ओयो में जाना भी सुरक्षित नहीं होता है. वहां ये लोग ऐसे कम उम्र के लड़केलड़कियों को फंसाने के लिए छिपे हुए कैमरे लगाए रखते हैं जिस में सब कुछ रिकौर्ड होता है. ये लोग फिर आप को ब्लैकमेल करते हैं या फिर सोशल मीडिया पर आप के न्यूड वीडियो और फोटो वायरल कर देते हैं. दोनों ही सिचुएशन में आप खतरे में पड़ सकते हैं.

लड़का आप को ले कर अपने दोस्तों में रौब न मारे ऐसा हो नहीं सकता

कई बार लड़के शेखी बघारने के लिए लड़की के साथ अपने ऐसे वीडियो बनाते हैं और फोटो लेते हैं ताकि अपने दोस्तों में रौब झाड़ सकें. ऐसा होता है तो बदनामी लड़की की होती है. इस के आलावा जहां आप जा रहे हो वहां सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं. आप इकठे कहीं हाथ पकड़ कर जा रहे हों तो कहीं न कही रिकौर्ड हो रहा है. इसलिए आप बच नहीं सकते. इसलिए जो भी करें सोचसमझ कर ही.

Avantika Dasani: एक्टिंग में अपनी पहचान बनाने की कोशिश

Avantika Dasani: अभिनेत्री अवंतिका दसानी बौलीवुड हीरोइन भाग्यश्री और बिजनैसमैन हिमालय दसानी की बेटी हैं. अपनी मां के प्रभाव के बारे में वे बताती हैं कि मां लंबे समय से इंडस्ट्री से दूर हैं, इसलिए उन की परवरिश फिल्मी नहीं रही. लाइम लाइट से दूर एक बहुत ही सामान्य बचपन था उन का. लेकिन फिर भी एक अभिनेत्री की बेटी होने के नाते कुछ लाभ तो मिलते हैं, जैसे मीडिया अटैंशन और प्री बज. लेकिन अभिनय इंडस्ट्री में काम पाने के लिए अपनी प्रतिभा और मेहनत से ही आगे बढ़ना होता है.

अवंतिका ने अपने कैरियर की शुरुआत में ही समझ लिया था कि उन्हें संघर्ष करना पड़ेगा और अपनी योग्यता साबित करनी होगी, ताकि दर्शक और निर्देशक उन्हें एक अलग नजरिए से देखें.

अवंतिका 24 जनवरी, 1995 को मुंबई, महाराष्ट्र में पैदा हुईं. उन की परवरिश एक समृद्ध और सांस्कृतिक परिवेश में हुई, जहां आर्ट और बिजनैस दोनों की बौंडिंग थी.

अवंतिका के नाना विजय सिंहराव माधवराज परवर्धन, सांगली के महाराजा के वंशज हैं, जिस से उन का पारिवारिक इतिहास राजसी और सांस्कृतिक धरोहर से समृद्ध है. इन के बड़े भाई भिमान्यु दसानी भी बौलीवुड में डैब्यू कर चुके हैं.

अवंतिका ने मुंबई से अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद लंदन के कैस बिजनैस स्कूल से बिजनैस और मार्केटिंग की डिग्री हासिल की.

एकैडेमिक अचीवमैंट के साथसाथ उन्हें डांस और फैशन में इंट्रस्ट है जो उन की पर्सनैलिटी को वर्साटाइल बनाते हैं.

कौर्पोरेट क्षेत्र में कुछ समय तक काम करने के बाद अवंतिका ने महसूस किया कि उन की असली रुचि ऐक्टिंग में है. उन्होंने ऐक्टिंग में कैरियर बनाने का निर्णय लिया और इस के लिए कई ऐक्टिंग वर्कशौप और ट्रेनिंग प्रोग्राम्स में भाग लिया. उन्होंने अतुल मोंगिया, हेमंत खेर जैसे ट्रेनर से ट्रेनिंग ली और केरल स्थित आदि शक्ति थिएटर में संपन्न वर्कशौप में हिस्सा भी लिया. इस के अलावा उन्होंने डांस, वौयस ट्रेनिंग, बौक्सिंग और मार्शल आर्ट्स में भी प्रशिक्षण प्राप्त किया.

अवंतिका दसानी ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत टीवी सीरीज ‘मिथ्या’ से की, जिस में उन्होंने रिया राजगुरु का किरदार निभाया. इस सीरीज में उन के सहकलाकारों में हुमा कुरैशी और परमब्रत चटर्जी शामिल थे. ‘मिथ्या’ एक साइकोलौजिकल थ्रिलर है, जो एक शिक्षक और छात्रा के बीच जटिल संबंधों पर आधारित है. इस सीरीज में अवंतिका के प्रदर्शन को समीक्षकों और दर्शकों द्वारा सराहा गया.

इस के बाद अवंतिका न तेलुगू फिल्म ‘नेनू स्टूडैंट सर’ में श्रुति वायुदेवन का किरदार निभाया. यह फिल्म एक युवा छात्र की कहानी है, जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करता है. फिल्म में अवंतिका के अभिनय को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली.

अवंतिका की आगामी फिल्म ‘यू शेप की गली’ है. इस में वे मुख्य भूमिका मे नजर आएंगी. यह फिल्म एक रोमांटिक, म्यूजिकल और सोशल ड्रामा है, इस फिल्म में उन के सहकलाकार विवान शाह, जावेद जाफरी, इश्तियाक खान, नमिता लाल, और सुशांत सिंह हैं. इस फिल्म की शूटिंग लखनऊ में हुई है जिसे अविनाश दास ने निर्देशित किया है.      अवंतिका दसानी ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत से ही विविध भूमिकाओं में अपने अभिनय कौशल का प्रदर्शन किया है. वे अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाते हुए फिल्म उद्योग में अपनी एक अलग पहचान बनाने की दिशा में अग्रसर हैं.

ग्लोबल इंडिया अवार्ड्स 2024 में अवंतिका दसानी ने अपनी उपस्थिति से सब का ध्यान आकर्षित किया. इस कार्यक्रम में उन्होंने अपने फैशन सैंस और आत्मविश्वास से सभी को प्रभावित किया.

अवंतिका सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं और अपने प्रशंसकों के साथ अपनी जीवनशैली, फैशन और काम से जुड़ी झलकियां शेयर करती रहती हैं. उन की ग्लैमरस और स्टाइलिश फोटोज अकसर इंटरनैट पर वायरल होती हैं जिस से उन की पौपुलैरिटी बढ़ी है. इंस्टाग्राम पर उन के 1.15 लाख फौलोअर्स हैं.

इस सब के लिए अवंतिका अपने परिवार के समर्थन के बारे में बताती हैं कि उन की मां भाग्यश्री और भाई अभिमन्यु ने उन्हें हमेशा एनकरेज किया है. उन की मां ने उन्हें सेट पर अच्छी तैयारी के साथ जाने और अपने काम का आनंद लेने की सलाह दी. अवंतिका बताती हैं कि मां ने उन्हें इमोशंस को आंखों से व्यक्त करने की महत्ता समझाई है क्योंकि यदि इमोशंस आंखों से न दिखें तो अभिनय का कोई फायदा नहीं.

फ्यूचर में अवंतिका का लक्ष्य है कि वे अपने एक्टिंग स्किल को और निखारें और विभिन्न प्रकार के किरदारों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करें. वे अपने परिवार की विरासत का सम्मान करते हुए फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती हैं.

Bigg Boss 19 में इस बार बड़ा बदलाव, यू ट्यूबर और इंफ्लुएंसर नहीं होंगे शो का हिस्सा

Bigg Boss 19 : पिछले कुछ समय से कलर्स के चर्चित शो बिग बौस को लेकर कई सारी खबरें चर्चा में थी, जैसे बिग बौस 19 का प्रसारण इस बार नहीं होगा. क्योंकि चैनल और प्रोडक्शन के बीच मतभेदों के चलते बिग बौस का अगला सीजन नहीं आएगा. लेकिन अब इन खबरों पर पूरी तरह रोक लग गई है , क्योंकि अब प्रोडक्शन और चैनल के बीच का मतभेद खत्म हो गया है. बिग बौस 19 का नया शो पूरी तरह से आने के लिए तैयार है लेकिन इस बार बिग बौस में कई सारे बदलाव होने वाले हैं जैसे की बिग बौस की समय अवधि इस बार साढ़े पांच महीना होगी, साथ ही इसके बदले में ओटीटी पर प्रस्तुत होने वाला बिग बौस नहीं प्रसारित होगा.

पूरा का पूरा ध्यान इस बार टीवी पर प्रसारित बिग बौस पर ही केंद्रित होगा. शो की होस्टिंग सलमान खान ही करेंगे , लेकिन इस बार शो में कोई भी यू ट्यूबर और इंफ्लेंसर बतौर प्रतियोगी हिस्सा नहीं ले पाएगा, शायद इसके पीछे की खास वजह यह है कि सोशल मीडिया से जुड़े यू ट्यूबर या इंफ्लुएंसर की पहले से ही अपनी औडियंस और फैन फौलोइंग होती है , जिसकी वजह से यह लोग बिना खेले ही विजेता घोषित हो जाते हैं. जिसकी वजह से टीवी और फिल्म से आए लोगों को हार का सामना करना पड़ता है.

इसी बात को मद्दे नजर रखते हुए खबरों के अनुसार बिग बौस 19 में सिर्फ फिल्म और टीवी के कलाकार ही शामिल होंगे. खबरों के मुताबिक बिग बौस 19 की शुरुआत 30 जुलाई 2025 से होगी समाप्ति 2026 जनवरी तक होगी.

प्राप्त सूत्रों के अनुसार कलर्स चैनल इस बार बिग बौस 19 में फिल्म इंडस्ट्री के पौपुलर चेहरों को लाने वाला है. बिग बौस 18 की असफलता के बाद इस बार कलर्स चैनल वाले और बिग बौस टीम अपने नए शो को लेकर बहुत सतर्क है. ऐसे में लग तो यही रहा है, इस बार बिग बौस 19 खास और धमाकेदार होगा.

Alia Bhatt Career: डिसअपियरंस की कगार पर आलिया भट्ट

Alia Bhatt Career: बौलीवुड अभिनेत्री आलिया भट्ट एक नैपोकिड हैं और यह कहने में कोई दोराय नहीं कि कैरियर की शुरुआत से ही उन्हें टौप प्रोडक्शन हाउस और प्रोड्यूसर ने काम दिया है. लेकिन उन्होंने अपने काम से लोगों को ज्यादा दिन तक गौसिप करने का मौका नहीं दिया. 2012 में अपनी पहली फिल्म से ले कर आज तक उन्होंने साबित किया कि अच्छे टैलेंट को कोई नहीं रोक सकता. आलिया का एक दशक लंबा ऐक्टिंग कैरियर उन की कड़ी मेहनत और वर्सटैलिटी को दिखाता है.

देश की टौप ऐक्ट्रैसेज में से एक आलिया भट्ट अब तक कई माइलस्टोन अचीव कर चुकी हैं. हालांकि इस बात में कोई दोराय नहीं कि ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ की नईनवेली ऐक्ट्रैस से ले कर ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की दमदार अदाकारा तक उन्होंने इंडियन सिनेमा में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. लेकिन ऐक्टिंग उन की दुनिया का सिर्फ एक पहलू है. आज वे एक ग्लोबल आइकन, फैशन आइडल, एंटरप्रिन्योर, एक पत्नी और एक मां भी बन चुकी हैं.

शादी और बच्चे से पहले या बाद में आलिया के पास काम की कमी नहीं रही. लेकिन अपने पोस्टमार्टम पीरियड के बाद जब उन्होंने अपनी पहली फिल्म की तो वह बौक्सऔफिस पर औंधेमुंह गिर गई. सवाल तो बनता है कि क्या आलिया दर्शकों की नजरों से गायब होती जा रही हैं? उन के शुरुआती जीवन से ले कर अब तक के उन के सफर पर यहां एक नजर डालते हैं.

बौलीवुड में डैब्यू

15 मार्च, 1993 को मशहूर भट्ट परिवार में जन्मी आलिया का कैरियर सिल्वर स्क्रीन पर होना तय सा था. उन के पिता महेश भट्ट मशहूर फिल्म निर्माता हैं और उन की मां सोनी राजदान एक ऐक्ट्रैस. परिवार की बात की जाए तो बहन पूजा भट्ट भी अपने समय में कमाल की ऐक्ट्रैस रहीं और खूबसूरती तो खानदानी थी ही.

आलिया ने 2012 में करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ से बौलीवुड में डैब्यू किया था. इस फिल्म ने उन्हें एक स्टाइलिश, ग्लैमरस अभिनेत्री के रूप में पेश किया और वे अपने क्यूट लुक और वर्सटैलिटी के चलते जल्द ही पूरे देश की चहेती बन गईं. वे फिल्म में अपनी पसंदीदा ऐक्ट्रैस करीना कपूर की तरह नक़ल करती दिखीं.

यह फिल्म बौक्सऔफिस पर अच्छा परफौर्म कर रही थी, लेकिन क्रिटिक्स को शक था कि क्या वे मेनस्ट्रीम रोल्स में आगे बढ़ पाएंगी. उन्हें नहीं पता था कि आलिया उन्हें गलत साबित करने वाली हैं और 2014 में आलिया ने इम्तियाज अली के डायरैक्शन में ‘हाइवे’ फिल्म की. फिल्म भले ज्यादा न चली हो मगर आलिया ने अपनी ऐक्टिंग की रेंज इस फिल्म से दिखा दी और क्रिटिक के मुंह पर ताले जड़ दिए.

आलिया भट्ट की हिट्स

इस के बाद आलिया भट्ट ने न सिर्फ कमर्शियली कई हिट फिल्में दीं, साथ ही, साबित किया कि वे अपने प्रोफैशन में किसी से कम नहीं. जैसे, साल 2016 में ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म आई, आलिया के हिस्से में ज्यादा बड़ा रोल नहीं था इस फिल्म में मगर वे एक देहाती लड़की की भूमिका में ऐसी जमीं कि सब ने उन की तारीफों के पुल बांधे.

‘उड़ता पंजाब’ में आलिया भट्ट का एक अलग ही रूप देखने को मिला. उन के गंभीर अभिनय ने उन्हें बेस्ट ऐक्ट्रैस का फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया जिस से साबित हो गया कि वे एक ग्लैमरस स्टार से कहीं बढ़ कर हैं. इस के बाद 2018 में ‘राजी’ उन के हिस्से आई. यह फिल्म काफी सफल रही. 37 करोड़ रुपए की लागत में बनी इस फिल्म ने 195 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई की थी.

ऐसे ही 2019 में आई ‘गली बौय’ में उन के डायलौग्स और उन की एनर्जी ने उन की अचीवमैंट्स में एक और अचीवमैंट जोड़ दी. इस में वे सपोर्टिंग रोल में थीं, फिर भी सब से ज्यादा पौपुलैरिटी उन्होंने ही बंटोरी. ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ आलिया के कैरियर की सब से बेहतरीन फिल्मों में से एक मानी जाती है. इस में उन्हें बिलकुल नए अवतार में दिखाया गया. उन की दमदार परफौर्मेंस से देश ही नहीं, विदेशों से भी उन्हें व्यापक प्रशंसा और कई पुरस्कार मिले.

 क्या गिर सकता है आलिया का ग्राफ?

आलिया ने कई हिट फिल्में दीं. हाल में ‘रोक्की और रानी की प्रेम कहानी’ में आलिया नजर आईं जिस में वे शानदार लगीं. मगर उन की कुछ फिल्में बुरी तरह पिटी भी हैं. इन में करन जौहर की प्रोड्यूस फिल्म ‘कलंक’ का नाम सब से पहले आता है. उस के बाद उन्होंने ‘सड़क 2’ में देखा गया और वह भी फ्लौप रही. यही नहीं, आलिया हौलीवुड फिल्म में भी डैब्यू कर चुकी हैं. लेकिन वहां उन की दाल नहीं गल पाई.

इस के बाद आलिया ने अपनी प्रैग्नैंसी के बाद ‘जिगरा’ फिल्म में काम किया और वह आलिया भट्ट की सब से बड़ी फ्लौप फिल्म बन गई. बौक्सऔफिस पर इस की हालत खस्ता नजर आई. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या आलिया की ऐक्टिंग में दम ख़त्म हो चुका है या वे भी शादी व बच्चे के बाद से घरगृहथी को प्रायरिटी दे रही हैं, इसलिए ऐक्टिंग से दूर हो चुकी हैं.

आलिया भट्ट ने रणबीर कपूर से अप्रैल 2022 में शादी की थी और उसी साल नवंबर में उन की बेटी राहा का जन्म हुआ था. आलिया ने शादी के कुछ समय बाद ही जून 2022 में अपनी प्रैग्नैंसी की घोषणा की थी और अब वो अपनी बेटी के साथ मदरहुड को एंजौय कर रही हैं.

आलिया एक नैपोकिड हैं, वहीं उन्होंने अपनी कई फिल्मों से यह साबित किया है कि ऐक्टिंग में उन्हें महारत हासिल है. उन्होंने वेश्या, जासूस और टीनएजर जैसे रोल्स से अपनी वर्सटैलिटी को प्रूव किया है. सो, बौलीवुड में उन के लिए काम की कमी नहीं.

मगर हकीकत यह भी है कि अकसर किसी ऐक्ट्रैस के शादी और बच्चा कर लेने के बाद उसे प्रोड्यूसर्स से पहले जैसा अटैंशन व काम नहीं मिल पाता. बौलीवुड में ऐक्ट्रैसेज के बारे में माना जाता है कि उन का ऐक्टिंग कैरियर बहुत कम समय तक चलता है. शादी करने या बच्चे पैदा करने का मतलब मानो ऐक्टिंग कैरियर पर फुलस्टौप लगाना हो. इस का उदाहरण हैं, ट्विंकल खन्ना, नीतू कपूर, अनुष्का शर्मा, आसीन, भाग्यश्री आदि. इन में से कई ऐक्ट्रैस अपनी मरजी से भी कैरियर को विराम दे चुकी हैं. लेकिन बड़ा कारण दर्शकों की नजर में शादीशुदा ऐक्ट्रैस का अपीलिंग न लगना है.

लेकिन आलिया के साथ ऐसा नहीं हुआ. शादी और बच्चे के बाद उन्होंने कुछ फिल्में कीं जिन में से एक ही फिल्म फ्लौप रही. आलिया की अपकमिंग फिल्मों में ‘अल्फा’, ‘लव एंड वार’ और ‘ब्रह्मास्त्र-2’ शामिल हैं. ये सभी बड़े बजट की फ़िल्में हैं. आलिया भट्ट के पास काम की कमी नहीं है. लेकिन देखना होगा कि क्या वे मां बनने के बाद भी पहले की तरह सुपरहिट फिल्में दे पाएंगी? क्या लोग उन्हें और उन के काम को देखना पसंद करेंगे?

Social Story : काश – क्या सिया अपनी मरजी से जिंदगी जी पाई?

Social Story :  रैस्टोरैंट में बैठी हुई सिया मानव का इंतजार कर रही थी. मानव को सिया से आज 27 साल बाद मिलना है. मानव का इंतजार करतेकरते सिया अपने अतीत में डूब गई…

27 साल पहले की हर घटना उस की आंखों के सामने घूमने लगी. उस का मानव से मिलना, मानव का भी उस के प्रति आकर्षित हो जाना. दोनों अलगअलग शहर से थे और उस जमाने में एसटीडी फोन भी काफी महंगे हुआ करते थे. मानव उस वक्त पढ़ाई कर रहा था और सिया एक प्राइवेट फर्म में जौब कर रही थी. इस अंतर को सिया समझती थी.

मानव का हाथ तंग ही रहता था. इसलिए वह कभी भी मानव पर मिलने आने या फोन करने का दबाव नहीं बनाती थी. बस कभीकभी फोन कर लेती थी सिया. उस की स्त्रीसुलभ लज्जा उसे ज्यादा खुलने से रोक देती थी और मानव को उस के हालात रोक देते थे. किंतु कुछ था जो उन के रिश्ते की डोर को बहुत मजबूती से बंधे हुए था.

मानव और सिया की मुलाकात सिया की एक सहेली के घर हुई थी और दोनों एकदूसरे पर मन ही मन मर मिटे थे. किंतु प्रत्यक्ष में मानव ने सिया से कोई वादा नही किया था, किंतु एक अनकहा अनुबंध था दोनों के बीच. समय अपनी गति से बढ़ रहा था. मानव का चयन प्रशासनिक सेवा में हुआ था. अब शायद दोनों को भविष्य की दिशा तय करनी थी कि आगे का सफर साथसाथ होगा या अलगअलग राहों पर चलना होगा.

पारिवारिक हालात के चलते दोनों एकदूसरे के न हो सके और वक्त ऐसा बदला कि दोनों एकदूसरे के लिए अजनबी हो गए. लेकिन हालात को भी शायद कुछ और ही मंजूर था. एक दिन अचानक सिया को मानव एक मौल में मिल गया. दोनों एकदूसरे को देखते ही पहचान गए. सिया कतरा कर निकलना चाह रही थी किंतु मानव ने उसे आवाज दे कर रोक लिया. अब तो उसे रुकना ही पड़ा. फिर एक मुलाकात का वादा दिन, तारीख के साथ मानव ने तय कर के ही उसे जाने दिया. कुछ था कि सिया भी मना नहीं कर सकी और तय समय पर पूर्वनिर्धारित रैस्टोरैंट में मानव के आने का इंतजार कर रही थी.

तभी सिया को मानव आता दिखाई दिया. वह तेज नजरों से सिया को ही ढूंढ़ रहा था.

मानव एक अधिकारी बन चुका था रुतबा और रोब उस की शख्सियत में चार चांद लगा रहा था. वहीं सिया उसे देख कर सोच रही थी कि कभी यह मानव कितना सीधासादा था, जिस के साथ उस ने अपने आगे के जीवन का सपना देखा था. इतने में मानव की नजरों ने उसे देख लिया और सीधा उस के पास आ गया. दोनों की आंखें मिलीं फिर दोनों ही एकदूसरे से आंख चुराने लगे.

ऐसा लगता था शायद आंखें वह सब एकदूसरे को बता देंगी जो वे एकदूसरे से छिपा रहे हैं. फिर भी कुछ बात तो करनी ही थी. सिया सोच रही थी जिंदगी भी अजीब इम्तिहान लेती है जिस से हर रोज वह इतना कुछ कहना चाहती थी आज वह सामने बैठा है तो शब्द खो चुके हैं, जबान तालू से चिपक गई है, गला सूख रहा है.

खैर, मानव ने कोल्ड ड्रिंक और्डर किया और सिया से पूछा कि कैसी हो सिया? शादी कब की? किस से की? अपने बारे मे भी बताया उस ने कि उस की पत्नी विश्वविद्यालय में प्रवक्ता है, एक बेटा है जो एमबीए कर रहा है. कुल मिला कर सब अच्छा है.

सिया ने भी बताया अपने बारे में कि एक बेटी है जो बीएड कर रही है और बेटा अभी 12वीं कक्षा में है. सब अच्छा है. दोनों की जिंदगी भी ठीक चल रही थी. किंतु एक टीस तो थी ही दोनों के मन में. मानव कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रहा था. उसे शायद अपने फैसले पर अफसोस हो रहा था. काश, उस ने कुछ और प्रयत्न किया होता तो सिया आज उस की होती. मानव को शायद सिया उस वक्त मामूली लड़की लगी थी और सिया तो बस मानव को चोर नजरों से बस देखे जा रही थी.

सिया के मध्यवर्गीय परिवार वाले अंधविश्वासी पंडों के सिखाए संस्कारों ने कभी उसे जो दिल चाहे वह करने की इजाजत नहीं दी. हमेशा उसे मन को मारना ही सिखाया गया था और मन को मारने में वह बहुत महारथ हासिल कर चुकी थी. सो वह मानव को जी भर कर देखने की इच्छा को भी मारने में कोई संकोच नहीं कर रही थी.

कुछ देर बैठने के बाद दोनों ने एकदूसरे से विदा ली. किंतु मानव का मन शायद सिया के पास ही छूट गया था. आज उसी मामूली लड़की की ?ाकी हुई नजरें मानव के मन से उतर ही नहीं रही थीं. वह सिया से मिलने के साथ ही उस पुराने मानव से भी मिल रहा था जो इस चमकदमक की दुनिया की चकाचौंध में मानव की अंदर ही कहीं गुम हो गया था. कभीकभी सिया को फोन करता तो सहज ही प्रश्न होता कि क्या कर रही हो और सिया कहती खाना बना रही हूं या सब्जी काट रही हूं या कोई और घरेलू काम बताती तो मानव को भी उस की मां याद आ जाती जो ऐसे ही घर के काम करते हुए उस के बाबूजी का फोन उठाती थीं. मानव को शायद सिया से दोबारा इश्क हो रहा था क्योंकि मानव के घर में सबकुछ था बस नहीं था तो एक घरेलू माहौल.

जहां पत्नी आई लव यू नहीं बोलती बस चुपचाप पति की पसंद का खाना बना कर मुसकरा देती है और पति को पूर्ण समर्पण का सुख मिल जाता है. पति भी पत्नी के लिए कोई गिफ्ट ला कर अपनी भावना का इजहार हो गया ऐसा सम?ा लेता. इंसान जिस परिवेश में पलाबढ़ा होता है वह उस में ही सुकून महसूस करता है. शायद मानव के साथ भी यही हो रहा था. शुरू में तो मानव अपनी शादी के बाद समझ ही नहीं सका कि वह अंदर से अधूरा क्यों है? आज सिया से मिल तो उसे लगा कि शायद सिया ही उस की जिंदगी का खालीपन भर सकती है और सिया अपने मध्यवर्गीय विश्वासी परिवार में मिले संस्कारों के साथ बड़ी तेजी से अपने जज्बातों को मन में ही मार रही थी.

एक दिन मानव ने सिया से कह ही दिया कि सिया क्या हम अपनी अधूरी चाहत को पूरा कर सकते हैं? शायद इसीलिए हालात ने हमें मिलाया है? सिया इस पर चुप रह गई.

सिया को मानव का बारबार फोन करना, उस का जरूरत से ज्यादा खयाल रखना, 27 सालों में मानव ने उसे कितना खोजा, मानव उस के लिए कितना भटका ये सब मानव ने बताया तो सिया भी मानव की तरफ चुंबक की तरह खिंच गई. आखिर उस के अंधविश्वासी संस्कारों पर प्यार भारी पड़ गया.

वैसे सिया भी कहां भूल सकी थी मानव को. बस मन को मार लिया था और सम?ाता ही जिंदगी का नाम है, ऐसा सोच कर जिंदगी में आगे बढ़ गई थी.

मगर मानव का बारबार उस के साथ की कामना करना, उसे उस का मन खुदबखुद मानव की तरफ धकेल रहा था.

एक दिन मानव ने कहा सिया क्या तुम एक दिन के लिए मुझे वह जिंदगी दे सकती हो जैसी हम हमसफर बन कर हमेशा गुजारना चाहते थे.

सिया कुछ बोल ही नहीं पा रही थी. उसे सम?ा ही नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे. उस ने कुछ नहीं कहा बस एक गहरी सांस ले कर रह गई.

मानव सिया के मन की उल?ान सम?ा रहा था. उस ने कहा कि सिया तुम एक दिन मुझे अपने हाथों से बना कर खाना खिला देना. मेरी शर्ट के बटन बंद कर देना. मुझे अपने हाथ की बनी चाय पिला देना. उसे एक बार गले से लगा कर उस के बालों में हाथ फिरा देना. अगर इतना तुम कर दो सिया तो मैं अपनी बाकी की जिंदगी इसी याद के सहारे काट दूंगा. वैसे सिया अगर तुम न भी कहोगी तो भी मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मेरे लिए तुम्हारे चंद शब्द ही काफी हैं. मुझ जैसे व्यक्ति के लिए शायद यही कुदरत को मंजूर है.

मानव के दोबारा पूछने पर सिया ने कहा कि मानव मैं एक बार तुम्हें खो चुकी हूं. अब जो दोबारा मिले हो तो शायद हालात से भी हम दोनों का खालीपन देखा नहीं गया शायद इसीलिए उन्होंने हमें मिलाया है. घर, समाज, मांबाप, परिवार के लिए बहुत जी लिया हम ने अब अपनी बची हुई जिंदगी के कुछ पल हमें अपने मुताबिक जी लेनी चाहिए.

आज पहली बार सिया ने अपने मन को मारा नही बल्कि दुलारा. आज उस ने मन की सुनी. अपराधबोध एक बार को सिया को भी अपराधबोध हुआ किंतु फिर उस ने सोचा कि वह ऐसा कुछ नहीं कर रही है जो गलत हो. मानव ने अगर 27 साल तक उसे याद रखा है और वह भी कहां भूली थी मानव को तो इस का मतलब यह मन का रिश्ता है. वही उस का मन मीत है और अपने मन की भी सुननी चाहिए.

और जो सिया ने मन की सुनी तो फिर उस का मुरझाया मन हरा हो गया. तनमन के सुकून ने सिया की सुंदरता में चार चांद लगा दिए. वह नई ऊर्जा से अपने घरपरिवार और अपने और मानव के संबंधों को भी संभाल रही थी. सिया और मानव को इस बात की खुशी थी कि पहली बार जो सफर में वे बिछड़ गए थे और हमसफर न बन सके आज दोबारा जिंदगी ने उन्हें एक मौका दिया है चंद कदमों का हमकदम बनने का.

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