Anorexia: वजन घटाने का जूनून, कहीं एनोरेक्सिया तो नहीं है?

Anorexia: अगर आपके घर में भी कोई ऐसा है जिसे लगातार पतला होने का जूनून सवार हो गया है और लाख समझने पर भी वह नहीं समझ रहा, तो भी उसे उसके हाल पर ना छोड़े  क्यूंकि हो सकता है वह जिद्दी ना हो बल्कि एनोरेक्सिया नामक बीमारी से पीड़ित हो इसलिए ऐसे समय में उसे आपकी मदद की जरूरत है. इसलिए उसका इलाज कराएं और पेशेंस बनाएं रखें और उसके साथ खड़े रहें.

क्या है एनोरेक्सिया?

एनोरेक्सिया अपने वजन को लेकर ओवर कॉन्शस होने को कहते हैं. इसके चलते व्यक्ति अपनी बॉडी इमेज को लेकर बहुत ज्यादा लेकर परेशान रहते हैं. यह एक गंभीर मनोवैज्ञानिक स्थिति है. एनोरेक्सिया से पीड़ित लोग खुद को भूखा रखते हैं और वजन बढ़ने या मोटे होने के डर (फोबिया) से पीड़ित होते हैं. ये लोग अपने वजन और शरीर के आकार को नियंत्रित करने के लिए अत्यधिक प्रयास करते हैं, मन होने और भूख लगने पर भी ये कुछ नहीं खाते.

इससे इन्हें कमजोरी और कई समस्याएं होने लगती हैं लेकिन फिर भी वजन बढ़ने का डर इन पर इस तरह हावी होता है कि ये उससे बाहर आ ही नहीं पाते. यह पागलपन इस हद तक बढ़ जाता है कि कई लोग खाने के बाद उल्टी करके, मूत्रवर्धक या एनीमा के माध्यम से भी कैलोरी को नियंत्रित करते हुए भी देखे गए हैं. कई रोगी अत्यधिक व्यायाम भी करने लग जाते हैं जिससे वजन न बढ़े.

जैसे के अभी हाल ही में केरल के कन्नूर की 18 वर्षीय लड़की श्री नंदा की 12 दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद मौत हो गए क्यूंकि वह खाना छोड़कर सिर्फ गर्म पानी पी रही थी और कई घंटे कसरत कर रही थी, और भोजन से परहेज कर रही थी. उसका वजन मात्र 24 किलो रह गया. डॉक्टर्स को शक है कि श्री नंदा एनोरेक्सिया नाम की बीमारी से पीड़ित थी इसमें व्यक्ति खुद को मोटा समझता है भले ही वह बेहद कम वजन का हो.

कैसे बढ़ता ही जाता है ये जूनून-

एनोरोक्सिया कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक मैंटल प्रॉब्लम है. लड़कों के मुकाबले लड़कियों में यह डिसऑर्डर ज़्यादा होता है. 13 से 30 साल की महिलाओं में इसके चांसेस ज़्यादा होते हैं. यह समस्या पुरुषों को भी हो सकती है, लेकिन इससे लगभग 95 प्रतिशत महिलाएं प्रभावित रहती हैं.

कुछ लोग हर चीज में एक्सट्रीम कर देते हैं. जो लोग जिम में जाते हैं. वो वहां पर वेट बहुत ज्यादा उठाना शुरू कर देते हैं. अपनी कपैसिटी से ज्यादा लड़के भी वेट उठाना शुरू कर देते हैं जो घातक है. किसी ने कहा मैं मैराथन में 20 किलोमीटर जाऊँगा लेकिन 10 किलोमीटर बाद उसकी हिम्मत टूट रही है. लेकिन फिर भी वो चलता चला जायेगा जब तक वो गिर कर ,मर नहीं जायेगा. उस समय आप पागल हो चुके होते हो. उस समय तक आपकी एनालसिस की पावर ख़तम हो चुकी होती है.

किसी को पहाड़ पर चढ़ने का फितूर हो जाता है. चढ़ने में चोट लग जाये या हड्डी टूट जाए तो 2-3 महीना आराम से बैठेंगे और फिर चल पड़ेंगे. इन लोगों को आप ठीक नहीं कर सकते. कम या ना खाने के चलते बॉडी में कई जरूरी न्यूट्रिशन की कमी होती जाती है जिससे एक के बाद एक कई तरह के हेल्थ इश्यू होने लगते हैं. महिलाओं के लिए ये स्थिति ज्यादा गंभीर हो सकती है.

कैसे बिहेव करते हैं एनोरेक्सिया से पीड़ित लोग-

ऐसे लोग कितने भी पतले क्यूँ ना हो जाएँ वे हमेशा यही देखते हैं कि हम तो बहुत मोटे हैं. वे खाना खाते तो नहीं हैं लेकिन हर वक्त उसके बारे में सोचते हैं. साथ ही वहां से धयान हटाने की असफल कोशिश में लगे रहते हैं. ऐसे लोग बाकी लोगों के जितना ही खाने का दावा करते हैं लेकिन खाते नहीं है उतना.

एनोरेक्सिया से पीड़ित कुछ लोगों में ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर यानी ओसीडी की समस्या भी देखी गई है, जो भूखे होने के बावजूद भोजन न करने पर बाध्य कर सकती है.

कुछ लोगों में एनोरेक्सिया के साथ स्ट्रेस-एंग्जाइटी की समस्या भी हो सकती है.

बहुत ज्यादा जिम और एक्सरसाइज करते हैं.

एक दिन में जाने कितनी बार अपना वेट चेक करते हैं.

लोगों की नज़रों से बचकर अपने खाने को फेंक देते हैं.

भोजन से छुटकारा पाने के लिए हर्बल उत्पादों या एनीमा का उपयोग करना.

अपने आसपास के लोगों से दूरी बना लेते हैं.

भूख लगने पर भी खाना ना खाना.

नींद ना आना.

बेचैनी

हाथ पैरों में सूजन

पीरियड्स नियमित ना होना.

चिड़चिड़ापन

हर वक्त उदास रहना.

थकन और कमजोरी

स्किन डल होने लगती है,

बाल झड़ने लगते हैं,

डाइजेशन बिगड़ जाता है

अगर किसी को एनोरोक्सिया है तो घरवाले या केयरटेकर उसे कैसे हैंडल करें-

अगर घर में कोई खाना पीना छोड़ दें तो पहले तो लोग उसे समझते हैं लेकिन बात ना मैंने पर उसे उसके हाल पर छोड़ देते हैं. यानी कि कुछ टाइम बाद घर वाले थक कर उस पर छोड़ देते हैं की अब तू जा, जो तेरा मन हो कर, हम तो थक गए, अब तुझे मरना है तो मर, मैं अपनी जिंदगी जीऊं या तेरी सम्भालों. कोई किसी के लिए ये कितने दिन तक करेगा. लेकिन हमारा फर्ज है कि हम कहे की नहीं हमे इसे ठीक करना ही है. कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें सँभालने में 6 -8 महीने तक लग जाते हैं.

आपको पेशेंस रखनी पड़ेगी. एक तो केयर टेकर को ऐसा करने पर मन की शांति मिलेगी कि मैं अपने के लिए कुछ कर पाया. दूसरा इसका फायदा यह होगा कि जब आपको केयर की जरुरत होगी तो आपको भी उस बन्दे से केयर मिलेगी. चाहे वे आपके बच्चे हो, पार्टनर हो, पड़ौसी हो या फिर दोस्त हो. अगर आज आप दूसरों का भला करोगे तो लोगों को भी महसूस होगा कि ये आदमी अच्छा है इस पर भरोसा किया जा सकता है. इसके लिए हमे भी कुछ करना चाहिए.

उसे कहना शुरू करो कि तुमने अब वजन काफी कम कर लिया है और ना करो. घर में जानबूजकर खाने में घी दाल दिया, मीठा बनाना शुरू कर दिया, उसे बोलै सब साथ बैठकर खाएंगे भले ही तुम ना खाना पर उसे साथ जरूर बैठाये. वो कितने दिन इग्नोर करेगा एक दिन खा ही लेगा.

रेस्टोरेंट में उसे जबरदस्ती ले जाएँ. उसे बोले अच्छा सबके साथ चलों, तो भले ही कुछ मत खाना, हम लोगों से बाते ही कर लेना. उसे खींच के ले जाना शुरू करों. इससे एक उम्मीद बांध जाती है कि वो खाने लगेगा.

आप उसे बार बार डॉक्टर के पास ले जाओ. चाहे जबरदस्ती ले जाना पड़े.

उस पर  प्रेशर बनाओं उसे सोशल इवेंट में ले जाओं. अपने मिलने जुलने वालों से मिलवाओं उसे सोशल बनाओं, उसके दोस्तों से मिलवाएं. उसे जिंदगी की तरफ वापस लौटने में मदद करें.  मूवी लेकर जाओ, घूमने के लिए कहीं बहार हिल स्टेशन पर ले जाएँ.

इलाज कैसे करवाएं-

यदि डॉक्टर को लगता है कि आपको एनोरेक्सिया की समस्या है तो इसके उपचार के लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और आहार विशेषज्ञ दोनों से इलाज की आवश्यकता हो सकती है. कुछ प्रकार के थेरपी, वजन को सामान्य करने वाली दवाओं की मदद से इसका इलाज होता है. हालांकि इसके लिए सबसे जरूरी है कि आप या घरवाले इन लक्षणों को नोटिस करें और समय पर इलाज कराएं.

मरीज से पहले तो ज्यादातर लोग या घरवाले यह समझ ही नहीं पाते हैं कि भोजन छोड़ना या वजन के प्रति इतना जुनूनी होना कोई मैंटल प्रॉब्लम हो सकती है. जिसमें इलाज की आवश्यकता होती है. जितना जल्दी हो सके आप यह बात समझ लें. आप समझेंगे तभी मरीज को यह बात समझा पाएंगे.

अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे या परिवार के किसी अन्य सदस्य में एनोरेक्सिया के लक्षण दिख रहे हैं, जैसे कि आत्मविश्वास में कमी, खाने की अवास्तविक आदतें, हमेशा परफेक्ट दिखने की चाहत और अपने रूप-रंग से असंतुष्ट होना, तो उनसे बात करें. उन्हें सही खाने के महत्व को समझने में मदद करें. चाहे महिला हो पुरुष उन्हें यह बताना जरुरी होता है कि हमारे शरीर के लिए खाने की कितनी अहमियत है.

मरीज को यह बात समझाएं कि मोटापा, वजन तब बढ़ता है जब हम ठूंस-ठूंस कर और हर वक्त खाते रहते हैं. सही मात्रा में और सही समय पर खाने वालों के साथ ही ये सारी दिक्कतें आती हैं. जंक फूड, फ्राइड फूड ऐसी चीज़ों से दूर रहें. फ्रूट और वेजिटेबल्स किसी भी तरह से हानिकारक नहीं.

इसके इलाज में मेडिकल ट्रीटमेंट के बाद न्यूट्रिशनल बैलेंस को मॉनिटर किया जाता है  और फिर मरीज की लाइफस्टाइल पर भी नजर जाती है , ताकि वह धीरे-धीरे हेल्दी वेट गेन कर सके.

एनोरेक्सिया नर्वोसा के ट्रीटमेंट के दौरान, मरीज को काउंसलिंग करते हैं. इसके बाद, उसे थेरेपी और मेडिसिन भी दी जाती है. Anorexia

Anxiety Solution: जौब जाने से मैं मैंटल स्ट्रैस में हूं, क्या करूं?

Anxiety Solution:  सवाल-

मैं 30 साल की हूं. 1 साल से लीविंग रिलेशनशिप में थी. कुछ वक्त पहले मुझे पता चला कि वह लड़का किसी और से शादी कर रहा है. यह जानने के बाद मैं मैंटली ब्रेकडाउन हो गई हूं. मेरी जौब भी चली गई है. मैं मैंटल स्ट्रैस में हूं. कृपया बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

ब्रेकअप इमोशनली या मैंटली डिस्टर्ब कर देता है. हमें अकसर ऐसे खयाल आते हैं जैसे सब खत्म हो गया हो. मगर आप यह जानें कि यह बस बिगनिंग है, थोड़ी सी गाइडैंस से आप अपनेआप को संभाल सकती हैं. अपने पास्ट के बारे में सोच कर दुखी न हों. अपने फ्यूचर पर फोकस करें. उस की औनलाइन या औफलाइन ऐक्टिविटीज का ट्रैक नहीं रखें. इस से आप को ही तकलीफ होगी या आप आगे बढ़ पाएंगी. अपनी फीलिंग्स शेयर करें. सब से जरूरी यह है कि आप अपनेआप को थोड़ा वक्त दें.

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खराब लाइफस्टाइल और खराब खानपान का नतीजा है लोगों में बढ़ते डिप्रेशन का कारण. डिप्रेशन से बचने के लिए लोग तरह तरह की दवाइयों का सेवन करते हैं. पर इस खबर में हम आपको डिप्रेशन से बचने के लिए एक बेहद आसान तरीका बताने वाले हैं. अगर आप रोज 15 मिनट रोज जौगिंक करती हैं या कोई व्यायाम करती हैं तो डिप्रेशन का खतरा काफी कम हो सकता है.

हाल ही में हुई एक स्टडी की माने तो अगर हम हर रोज सिर्फ 15 मिनट जौगिंक करते हैं तो डिप्रेशन की खतरा काफी कम हो सकता है. अगर आप जौगिंग नहीं करना चाहती तो इसकी जगह पर आप कोई भी शारीरिक व्यायाम कर सकती हैं.

बहुत से एक्सपर्ट्स का मानना है कि जो लोग डिप्रेशन के शिकार हैं अगर वो रोज सुबह जैगिंग करते हैं तो उनके लिए ये बेहद कारगर होगा. ऐसा करने से हार्ड 50 प्रतिशत और तेजी से पंप करने लगता है. आपको बता दें कि इस स्टडी में 6 लाख से अधिक लोग शामिल थे. इन लोगों में से कुछ को एक्सेलेरोमीटर पहनाए गए थे, वहीं कुछ ने अपने फिजिकल वर्क की सेल्फ रिपोर्टिंग  की थी. इस एक्सपेरिमेंट से ये समझ में आया कि जिन लोगों ने एक्सेलेरोमीटर पहने थे और एक्सरसाइज भी की थी, उनमे डिप्रेशन का खतरा कम था उन लोगों के तुलना में जिन्होंने एक्सेलेरोमीटर नहीं पहने थे. स्टडी से ये भी साफ हो गया है कि आपके डीनए (DNA)का डिप्रेशन से कोई लेना देना नहीं है. Anxiety Solution

Monsoon special: दलिया से बनाइए ये हैल्दी रेसिपीज

Monsoon special: दलिया जिसे अंग्रेजी में ब्रोकन व्हीट कहा जाता है मूलतः गेहूं से बनाया जाता है. गेहूं को आटे जैसा महीन करने के स्थान पर दरदरा पीसकर जब छान दिया जाता है तो उसे दलिया कहा जाता है. आजकल बाजार में न केवल गेहूं बल्कि कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा और मक्का जैसे मोटे अनाजों का दलिया भी उपलब्ध है. महीन पीसे गये आटे की अपेक्षा दलिया अधिक स्वास्थ्यवर्धक और पौष्टिक होता है क्योंकि महीन या बारीक खाद्य पदार्थों को ग्रहण करके पचाने के लिए हमारे पाचनतंत्र को बहुत परिश्रम करना पड़ता है जब कि मोटे खाद्य पदार्थ बड़ी ही आसानी से पच जाते हैं.

सभी अनाजों के दलिए में फायबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो हमारी सेहत और पाचनतन्त्र के लिए अत्यंत लाभकारी होता है इसलिए सेहतमंद रहने के लिए दलिए को किसी न किसी रूप में अपनीं डाइट में अवश्य शामिल करना चाहिए. आज हम आपको दलिए से बननी वाली कुछ रेसिपीज बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप घर पर उपलब्ध सामग्री से ही बड़ी आसानी से बना सकतीं हैं तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है.

1.दलिए की डोडा बर्फी

  • कितने लोगों के लिए   –  6
  • बनने में लगने वाला समय –  30 मिनट
  • मील टाइप  –  वेज

सामग्री

  1. 1/2 कप गेहूं का दलिया  
  2. 1 लीटर फुल क्रीम दूध   
  3. 4 टीस्पून घी 
  4. 100 ग्राम शकर                   
  5. 1 कटोरी बारीक कटे मेवा                 
  6. 1/4  टीस्पून इलायची पाउडर                 
  7.  1/4 टीस्पून   कॉफ़ी पाउडर                   
  8. 1 टेबलस्पून नारियल बुरादा                 
  9.  1 टीस्पून पिस्ता कतरन           

विधि-

दलिए को किसी भारी तले की कड़ाही में धीमी आंच पर भूरा होने तक भूनकर एक प्लेट में निकाल लें. अब उसी कड़ाही में दूध डालकर दलिया डाल दें. दूध और दलिया जब उबलकर आधे रह जायें तो कॉफ़ी और कोको पाउडर डालकर धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए पकाएं. 20-25 मिनट बाद जब मिश्रण गाढ़ा होकर पैन के किनारे छोड़ने लगे तो 2 टेबलस्पून घी डालकर अच्छी तरह भूनें. अंत में 1 टीस्पून घी और कटी मेवा को भी डालें और जब मिश्रण पैन के बीच में इकट्ठा सा होने लगे तो गैस बंद कर दें और चिकनाई लगी ट्रे में जमायें. पिस्ता कतरन से सजाकर मनचाहे आकार में पीस काटकर सर्व करें.

2. दलिया का बेक्ड उपमा

कितने लोगों के लिए –   6

बनने में लगने वाला समय  –   20 मिनट

मील टाइप  –      वेज

सामग्री

  1.     1 कटोरी गेहूं का दलिया                  
  2. 2 कटोरी पानी                               
  3.     1 बारीक कटा प्याज                
  4.    1 बारीक कटी गाजर                   
  5. 1 टेबलस्पून मटर के दाने     
  6. 1 टेबलस्पून मूंगफली दाना                         
  7. 1/4 टीस्पून राई के दाने                         
  8. नमक  स्वादानुसार   
  9. 1/4 टी स्पून हल्दी                               
  10.  4 बारीक कटी हरी मिर्च                 
  11. 1 टीस्पून आम के अचार का मसाला             
  12.    2 चीज क्यूब्स                       
  13. 1/4 टीस्पून  चिली फ्लेक्स                         
  14. 8 पत्तियां करी पत्ता                             
  15. 1 टेबलस्पून घी                                 
  16.  1 टेबलस्पून कटा हरा धनिया

विधि-

दलिए को बिना घी के भून लें. अब इसमें पानी और नमक डालकर ढककर धीमी आंच 30 मिनट अथवा दलिए के गलने तक पकाएं. ध्यान रहे कि दलिया हमें खिला खिला ही बनाना है इसलिए बहुत अधिक पानी न डालें. अब एक पैन में तेल गरम करके प्याज को सुनहरा होने तक भूनें. हल्दी जीरा और हरी मिर्च डालकर टमाटर तथा अन्य सब्जियां डाल दें. इन्हें ढककर गलने तक पकाएं. अब इसमें उबला दलिया, मूंगफली दाना, अचार का मसाला व अन्य सभी  मसाले डालकर भली भांति चलायें. अब इस तैयार उपमा को किसी माइक्रोवेब की ट्रे में डालकर चीज ग्रेट करें और ऊपर से हरा धनिया और चिली फ्लेक्स डालकर 5 मिनट माइक्रोवेब करके सर्व करें.

3. पेरी पेरी दलिया कॉर्न इडली

सामग्री-

  1.    1 कप गेहूं का दलिया                     
  2.     1/2 कप रवा                         
  3. 2 कप दही                               
  4. नमक स्वादानुसार                                
  5.    1 टीस्पून अदरक, हरी मिर्च पेस्ट             
  6.  1/2 कप कॉर्न के दाने                        
  7. 1/2 टीस्पून चाट मसाला                          
  8.  1 टीस्पून घी                                 
  9. 1 कप पानी         

बघार के लिए

  1.   1 टीस्पून तेल               
  2. 1/4 टीस्पून राई के दाने                           
  3. 1/2 टीस्पून कुटी लाल मिर्च                         
  4.   10 करी पत्ता                             
  5.  1 लच्छी बारीक कटी हरी धनिया     

विधि-

दलिए को धीमी आंच पर घी में हल्का भूरा होने तक भून लें. ठंडा होने पर दही, पानी, और सूजी के साथ मिलाकर 1 घंटे के लिए ढककर रख दें ताकि सूजी और दलिया फूल जाये. 1 घंटे बाद इसमें कॉर्न के दाने, नमक, चाट मसाला और ईनो फ्रूट साल्ट मिलाएं. तैयार मिश्रण को इडली के सांचे में डालकर भाप में लगभग 10 मिनट तक पकाएं. मनचाहे टुकड़ों में काटकर सर्विंग डिश में डालें. गर्म तेल में बघार की समस्त सामग्री डालें और तैयार इडली के उपर डालकर सर्व करें. Monsoon special

Maniesh Paul: गजनी लुक ने मचाई हलचल, एक्टर को देख फैंस हुए शौक्ड

Maniesh Paul: फनी स्टाइल से सबको हंसाने वाले चार्मिंग टीवी होस्ट, मॉडल, सिंगर और एक्टर मनीष पॉल अपने अलग अंदाज के लिए जाने जाते हैं. लेकिन इस बार उन्होंने ऐसा लुक शेयर किया है.जो बिल्कुल अलग और चौंकाने वाला है. नए लुक में वो डेंजरस नजर आ रहे है.

हाल में ही मनीष ने अपनी डेंजरस लुक वाली कुछ फोटोज को इंस्टाग्राम शेयर किया है. जिसकी सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हैं.पहली बार उनके डिफरेंट स्टाइल की फोटोज देख कर फैंस सरप्राइज्ड हो गए हैं.

डेंजरस और डिफरेंट स्टाइल-

नए लुक वाली फोटोज में मनीष पॉल का साईको स्टाइल देख फैंस सरप्राइज्ड तो हैं ही साथ ही एक्साइटेड भी हैं. लेटेस्ट फोटोज में मनीष बाल्ड हेड, डार्क शेड्स, हाथों में टैंटू, सन ग्लास लगा कर डेंजरस स्माइल के साथ इंटेंस एक्सप्रेशन वाला

पोज देते नजर आ रहे हैं. उन्होंने कैजुअल कपड़े पहने हुए हैं. वो काफी डैशिंग और एक्सपेरिमेंटल नजर आ रहे हैं. मनीष के इस लुक को देख हर किसी को आमिर खान के लुक ‘गजनी’ की याद आ रही हैं.

इंस्टाग्राम पोस्ट-

अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में मनीष ने लिखा,”किसी ने मुझे किया कॉन, बालों को किया गॉन, क्या होगा मेरा कर्मा, डिसाइड करेगा धर्मा.”

इस लाइन से यह क्लियर हो गया कि मनीष का ये लुक उनके अपकमिंग प्रोजेक्ट का हिस्सा है और इसका ताल्लुक करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शन से है. हालांकि अभी इस प्रोजेक्ट को लेकर किसी भी तरह का ऐलान नहीं किया गया है. मनीष पॉल उन कलाकारों में हैं. जो हर बार कुछ नया और अनोखा करने की हिम्मत दिखाते हैं. उनका ये नया अवतार यही इशारा कर रहा है कि अगली बार वो किसी ऐसे किरदार में नज़र आ सकते हैं, जो अब तक उन्होंने कभी नहीं निभाया.

सलेब्स कमैंट्स-

मनीष की पोस्ट पर करण जौहर ने तुरंत रिप्लाई किया,“जो आने वाला है, उसके लिए एक्साइटेड हूं मनीष… लुक तो कमाल का है.”

वहीं एक्टर वरुण धवन ने कमेंट किया,“एक्साइटेड हूं इसके लिए, मैं नहीं बताऊंगा.”

इन कमेंट्स से फैंस अंदाजा लगा रहे हैं की मनीष किसी नए प्रोजेक्ट के लिए रेडी हो रहे है. जिसमें वो एक डार्क या विलेन जैसा किरदार निभाने जा रहे हैं.

फैंस कमैंट्स-

मनीष का नया लुक देखने के बाद फैंस ने कमेंट्स की बाढ़ ला दी. किसी ने लिखा, “गजनी 2 कर रहे हो क्या?” तो एक दूसरे यूजर ने सवाल किया, “ये फिल्म है या कोई वेब सीरीज?”

तो वहीं कई फैंस तो मनीष को पहचान ही नहीं पाए. एक यूजर ने कमेंट किया, “पहचाना ही नहीं, ये मनीष है क्या?” मनीष के इस एक्सपेरिमेंटल लुक ने सभी का ध्यान खींचा हैं. क्या उनका ये लुक किसी फिल्म का हिस्सा है, कोई वेब सीरीज़ है, या कुछ और? फिलहाल तो मनीष ने सस्पेंस बनाए रखा है और फैंस बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.

फिल्मी सफर-

हाल ही में उन्होंने वेब सीरीज़ ‘रफूचक्कर’ में पांच अलग-अलग किरदार निभा कर अपना एक्टिंग स्किल दिखाया था. इसके अलावा फिल्म ‘जुगजुग जियो’ में भी उनकी शानदार कॉमिक टाइमिंग और इमोशनल परफॉर्मेंस थी. अब मनीष ने हाल ही में धर्मा प्रोडक्शन की ‘सनी सांकरी की तुलसी कुमारी’ की शूटिंग पूरी की है और जल्द ही वो डेविड धवन की अगली कॉमेडी फिल्म में वरुण धवन के साथ नज़र आएंगे. Maniesh Paul

Adventure Safety Tips: ट्रिप पर जा रहे हैं, तो इन बातों का खास रखें ध्यान

Adventure Safety Tips: 23 वर्षीय निशा को हमेशा एडवेंचर वाले हाइकिंग पसंद है, वह हर साल कहीं न कहीं काम से ब्रेक लेकर एडवेंचर के लिए निकल पड़ती है, इससे जो खुशियां उन्हे मिलती है, वह उनके लिए खास होती है. उन्होंने कई हाइकिंग वाली कॉम्पनियों के साथ खुद को रजिस्टर करवा लिया है, इससे उन्हे हर बार एक नया एडवेंचर वाले स्थान में जाने का मौका मिल जाता है. वह इससे काफी खुश है और हर साल उनकी ट्रैवल लिस्ट में एक नया एडवेंचर जुड़ जाता है. इसके लिए वह ऑफिस के साथ – साथ नियमित वर्कआउट और फिजिकल एक्सर्साइज़ भी करती है, ताकि वह हमेशा एनरजेटिक और फिट रहें, किसी भी परिस्थिति में खुद को संभाल सकें.

असल में एडवेंचर का नाम सुनते ही यूथ के दिलों में रोमांच की लहर दौड़ जाती है. यह नॉर्मल टूर से बिल्कुल अलग होता है. नार्मल ट्रैवल ट्रिप में आप आराम से घूमते-फिरते हैं, खाते-पीते हैं और हर पल को भरपूर एंजॉय करते हैं. लेकिन एडवेंचर ट्रिप में आप आसपास के नए-नए एक्सपीरियंस लेते हैं, इसमें अगर एडवेंचर स्पोर्ट्स की बात हो, तो यूथ हमेशा आगे रहते है.

पैराग्लाइडिंग, काया किंग, रिवर राफ्टिंग, बंजी जंपिंग, या माउंटेन क्लाइम्बिंग आदि जैसी किसी भी रोमांचकारी गतिविधियों में युवाओं की भागीदारी पहले से काफी बढ़ी है. युवा रोमांच और नए अनुभवों की तलाश में साहसिक पर्यटन की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिससे यह क्षेत्र तेजी से लोकप्रिय होने लगा है. साहसिक पर्यटन युवाओं को रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव से दूर ले जाता है और उन्हें तरोताजा होने का मौका देता है.

एडवेंचर में जोखिम 

जहां एडवेंचर है, वहाँ जोखिम भी है, ऐसे में इन चीजों में वे इतना मशगूल हो जाते है कि वे कई बार गंभीर चोट या जान जोखिम में डाल देते है. एक छोटी सी लापरवाही उनके लिए बड़ी रिस्क बन जाती है, जिसका खामियाजा उन्हे बाद में भुगतना पड़ता है.

क्या कहते हैं आँकड़े

हर साल पूरे विश्व में एडवेंचर करते हुए हादसों की संख्या बढ़ी है. इसका मुख्य कारण सुरक्षा नियमों की अनदेखी और तैयारी में कमी का होना है. विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और कांगड़ा जिलों में दो दिनों के भीतर अलग-अलग पैराग्लाइडिंग दुर्घटनाओं में दो पर्यटकों की मौत हो गई, उत्तरी गोवा के केरी में पैराग्लाइडिंग करते समय एक अन्य पर्यटक और पैराग्लाइडिंग ऑपरेटर की दुर्घटना में मौत हो गई, बाद में यह भी पता चला है कि गोवा में ऑपरेटर के पास ऐसी गतिविधियाँ करने के लिए वैध लाइसेंस या परमिट भी नहीं था.

इसके अलावा माउंट एवरेस्ट की क्लाइम्बिंग करते हुए कई लोग हर बार मारे जाते है या अपना कोई अंग खो देते है. वर्ष 2019 में ही 11 लोगों की मौत माउंट एवरेस्ट चढ़ते हुए हो गई थी, इन मौतों का मुख्य कारण हिमस्खलन, गिरने, ठंड लगना, ऊंचाई की बीमारी और अन्य चढ़ाई से संबंधित घटनाएं हैं. लगभग 200 शव अभी भी पहाड़ पर मौजूद हैं, जिन्हे निकाला नहीं जा सका है.

आज की इन ईजी गोइंग जेनरेशन के लिए बहुत जरूरी है कि वे एडवेंचर करें, पर संभलकर करें, ताकि किसी प्रकार की हादसे का सामना न करना पड़े और  एडवेंचर उनके लिए नाइटमेयर न बनें. एडवेंचर का सही आनंद लेने के लिए कुछ सुझाव निम्न है,

प्रोफेशनल गाइड की संरक्षण में करें एडवेंचर

एडवेंचर वाले किसी भी स्पोर्ट्स को करने से पहले गाइड का सहारा लें, ताकि किसी प्रकार की जोखिम न हो, बिना लाइसेंस वाले ऑपरेटर से बचना हमेशा जरूरी है. अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार, भारत में केवल 5% इंस्ट्रक्टर ही प्रशिक्षित हैं. यह स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब पीक सीजन में बिना अनुभव वाले लोग फ्रीलांसर के रूप में एडवेंचर स्पोर्ट्स चलाने लगते है.

पहने सही सुरक्षा गियर

किसी भी एडवेंचर वाले स्थान पर जाने के लिए वहाँ की सुरक्षा उपकरणों को अवश्य पहने, मसलन हेलमेट, लाइफ जैकेट, हार्नेस आदि. रोमांच के चक्कर में लोग इसे पहनना कई बार भूल जाते है. उन्हे लगता है कि उन्हे तैरना आता है, जबकि पानी से संबंधित किसी भी एडवेंचर को करने के लिए सुरक्षा उपकरणों को पहनना बहुत जरूरी है. अचानक किसी हादसे में व्यक्ति अपनी स्विफ्टनेस को खो सकता है.

शारीरिक और मानसिक फिटनेस जरूरी

किसी भी एडवेंचर को करते समय शरीर और दिमाग का सही संतुलन होना जरूरी होता है, यदि आप किसी बीमारी के शिकार है और आपकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, तो ऐसी गतिविधियों से खुद को दूर रखें. सही नीद, हाइड्रैशन और फिटनेस की तैयारी पहले से करें.

मौसम की लें जानकारी

किसी भी आउटडोर एडवेंचर से पहले मौसम की सटीक जानकारी ले लें, खराब मौसम जैसे तेज बारिश, तूफान, लैंडस्लाईड, अधिक ठंड में एडवेंचर वाले किसी भी स्पोर्ट्स या चढ़ाई जोखिमपूर्ण हो सकता है. मौसम विभाग की पूर्व चेतावनी और स्थानीय प्रसाशन की गाइडलाइंस को अनदेखा न करें.

इमरजेन्सी प्लान और कान्टैक्ट साथ रखें

किसी भी अप्रत्याशित परिस्थिति के लिए पहले से तैयार रहें, एक इमर्जेंसी किट, फुल बैटरी के साथ मोबाईल फोन, जरूरी कान्टैक्ट नंबर हमेशा साथ रखें. साथ ही अपने परिवार और दोस्तों को आपके लोकेशन और गतिविधि की जानकारी देते रहें.

इस प्रकार एडवेंचर टूर का आनंद तभी लिया जा सकता है, जब आप अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता दें, जरूरत से अधिक एडवेंचर करने न जाए. रोमांच की तलाश में लापरवाही कई बार खतरनाक साबित हो सकती है. इसलिए हमेशा सतर्क रहें. सवाल पूछें और संतुष्ट होने के बाद ही किसी एडवेंचर एक्टिविटी में भाग लें. याद रखें, आपकी सुरक्षा आपकी अपनी जिम्मेदारी है, इसे नजरंदाज कभी न करें. Adventure Safety Tips

Hindi Drama Story: पकौड़े

Hindi Drama Story: सूर्योदय से पहले उठ जाने की मेरी आदत नौकरी से अवकाश प्राप्त   करने के बाद भी नहीं बदली थी. लालिमा के बीच धीरेधीरे निकलता सूर्य का सुर्ख गोला मुझे बहुत भाता था. पक्षियों का कलरव और हवा की सरसराहट में जैसे रात का रहस्यमय मौन घुलने लगता. तन को छूती ठंडी हवा मेरे मनप्राण को शांति और सुकून से भर देती.

हर दिन की तरह मैं लौन में बैठी इस अद्भुत अनुभूति में खोई आम के उस पौधे को निहार रही थी जिस का बिरवा आदित्य ने लगाया था. उसे भी मेरी तरह भिन्नभिन्न प्रकार के पौधे लगाने का शौक है. जब आदित्य को 1 वर्ष के लिए आफिस की तरफ से न्यूयार्क जाना पड़ा तो जाने से पहले वह मुझे हिदायतें देता रहा, ‘मां, 1 साल के लिए अब मेरे इन सारे पौधों की देखभाल की जिम्मेदारी आप पर है. खयाल रखिएगा, एक भी पौधा मुरझाने न पाए.’

सिर्फ 6 महीने अमेरिका में व्यतीत करने के बाद उस ने वहीं रहने का मन बना लिया. पौधे तो पौधे उसे तो अपनी मां तक की चिंता न हुई कि उस के बिना कैसे उस के दिन गुजरेंगे. अब यह सब सोचने की उसे फुरसत ही कहां थी. वह तो सात समंदर पार बैठा अपने भौतिक सुख तलाश रहा था. बस, दिल को इसी बात से सुकून मिलता कि बेटा जहां भी है सुखी है, खुश है, अपने सपनों को पूरा कर रहा है.

मेरे पति समीर भी अपने व्यापार के काम में व्यस्त हो कर अपना ज्यादातर समय शहर से बाहर ही बिताते जिस से मेरा अकेलापन दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा था.

तभी ऊपर के कमरे से आती तेज आवाज के कारण मेरी तंद्रा भंग हो गई. लगा था तन्वी आज किसी बात को ले कर एक बार फिर अपनी मम्मी नेहा से उलझ गई. तन्वी का इस तरह अपनी मां से उलझना मुझे अचंभित कर जाता है. न जाने इस नई पीढ़ी को क्या होता जा रहा है. न बड़ों के मानसम्मान का खयाल रहता है न बात करने की तमीज.

नेहाजी मेरे मकान के ऊपर वाले हिस्से में बतौर किराएदार रहती थीं. इस से पहले मैं ने कभी अपना मकान किराए पर नहीं दिया था, लेकिन पति और बेटे दोनों के अपनीअपनी दुनिया में व्यस्त हो जाने के कारण मैं काफी अकेली पड़ गई थी. जीवन में फैले इस एकाकीपन को दूर करने के लिए मैं ने घर के ऊपर का हिस्सा किराए पर दे दिया.

नेहा और उन की बेटी तन्वी ये 2 ही लोग रहने आए. नेहा किसी मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च अधिकारी थीं और तन्वी बी.ए. द्वितीय वर्र्ष की छात्रा. मेरी सोच के विपरीत नेहा इतनी नापतौल कर बातें करतीं कि चाह कर भी मैं उन के साथ बातों का सिलसिला बढ़ा नहीं पाती. न जाने क्यों दोनों मांबेटी गाहेबगाहे उलझती रहतीं, जो कभीकभी तो गहन युद्ध का रूप ले लेता.

तभी उन की बेटी तन्वी कंधे पर बैग टांगे दनदनाती हुई सीढि़यां उतरी और गेट खोल कर सड़क की तरफ बढ़ गई. पीछेपीछे उस की मां उसे रोकने की कोशिश करती गेट तक आ गईं. पर तब तक वह आटोरिकशा में बैठ वहां से जा चुकी थी.

नेहा का सामना करने से बचने के लिए मैं क्यारियों में लगे फूलों को संवारने में व्यस्त हो गई, जैसे वहां जो घटित हो रहा था, उस से मैं पूरी तरह अनजान थी. लाख कोशिशों के बावजूद हम दोनों की नजरें टकरा ही गईं. नेहा एक खिसियाई सी हंसी के साथ जाने क्या सोच कर मेरे बगल में पड़ी कुरसी पर आ बैठीं. धीरे से मुझे लक्ष्य कर के बोलीं, ‘‘क्या बताऊं, आजकल के बच्चे छोटीछोटी बातों में भी आवेश में आ जाते हैं. इन लोगों के बड़ों से बात करने के तौरतरीके इतने बदल गए हैं कि इन के द्वारा दिया गया सम्मान भी, सम्मान कम अपमान ज्यादा लगता है. हमारे समय भी जेनेरेशन गैप था, मतभेद थे पर ऐसी उच्छृंखलता नहीं थी.’’

मैं भी उन के साथ हां में हां मिलाती हंसने की नाकाम कोशिशें करती रही. हंसी के बीच भी नेहा की भर आई आंखें और चेहरे पर फैली विषाद की रेखाएं, स्पष्ट बता रही थीं कि बात को हंसी में उड़ा देने की उन की चेष्टा निरर्थक थी. लड़की के अभद्र आचरण की अवहेलना से मां को गहरा सदमा लगा था.

तभी सुमन 2 कप कौफी रख गई. हम दोनों चुपचाप बैठे कौफी पीते रहे. कभीकभी निस्तब्ध चुप्पी भी वह सारी अनकही कह जाती है, जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल होता है. हम दोनों के बीच भी कुछ वैसी ही मौन संवेदनाओं का आदानप्रदान हो रहा था.

उस दिन के बाद नेहाजी आतेजाते कुछ देर के लिए मेरे पास बैठ जाती थीं. धीरेधीरे वे अपनी निजी बातें भी मुझ से शेयर करने लगीं. टुकड़ोंटुकड़ों में उन्हीं से पता चला कि उन का अपने पति रंधीर के साथ तलाक तो नहीं हुआ है, लेकिन वह इसी शहर में अलग रहता है. 8 वर्ष की तन्वी को छोड़ कर जाने के बाद से न कभी उस से मिलने आया और न ही उस ने उस की कोई जिम्मेदारी उठाई.

तन्वी की बढ़ती उद्दंडता और स्वच्छंदता नेहाजी के लिए चिंता, तनाव और भय का कारण बन गई थी. दिनोदिन तन्वी के दोस्तों में बढ़ते लड़कों की संख्या और सिनेमा तथा पार्टियों का बढ़ता शौक देख नेहा का सर्वांग सिहर उठता लेकिन वे तन्वी के सामने असहाय थीं. अपनी ढेरों कोशिशों के बावजूद तन्वी पर नियंत्रण रखना उन के लिए संभव नहीं था.

मैं भी उन की कोई मदद नहीं कर पा रही थी. उस उद्दंड, घमंडी और निरंकुश लड़की के चढ़े तेवर देख कर ही मेरा मन कुंठित हो उठता. एक दिन सुबह से ही बिजली गायब थी. दोपहर तक टंकी का पानी समाप्त हो गया. मैं यों ही बैठी एक पत्रिका के पन्ने पलट रही थी कि तभी दस्तक की आवाज सुन दरवाजा खोलते ही मैं अचंभित रह गई, सामने पानी का जग लिए तन्वी खड़ी थी.

‘‘क्या थोड़ा सा पानी…’’

मैं बीच में ही उस की बात काटते हुए बोली, ‘‘क्यों नहीं, मैं हमेशा कुछ पानी टब में जमा कर के रखती हूं.’’  मैं जब पानी ले कर लौटी तो अचानक ही मेरा ध्यान उस की अंगारों सी दहकती आंखों और क्लांत शरीर की तरफ गया. पानी लेते समय जैसे ही उस का हाथ मेरे हाथों से सटा, उस के हाथों की तपन से मुझे आभास हो गया कि इसे तेज बुखार है.

अनायास ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘अरे, तुम्हें तो तेज बुखार है,’’ और खुदबखुद मेरा हाथ उस के सिर पर चला गया. अचानक ही जैसे उसे बिजली का झटका लगा. वह तेजी से दरवाजे की तरफ पलटते हुए बोली, ‘‘आप चिंता न करें, मैं अपना खयाल खुद रख सकती हूं. मुझे इस की आदत है.’’

जैसे तेजी से धूमकेतु सी प्रकट हुई थी वैसे ही तेजी से वह गायब हो गई.

तेज बुखार में तन्वी का अकेले रहना ठीक नहीं था, पर जिस तरह वह उद्दंड लड़की अपने तेवर दिखा गई, मेरा मन नहीं कर रहा था कि उस के पास जाऊं. थोड़ी देर के अंतर्द्वंद्व के बाद मैं 1 कप तुलसी की चाय बना कर उस के पास जा पहुंची. दरवाजा खुला था. सामने ही पलंग पर वह मुंह तक चादर खींचे लेटी अपने कांपते शरीर का संतुलन बनाने की कोशिश कर रही थी. उस के पास ही पड़े एक दूसरे कंबल से मैं ने उस का शरीर अच्छी तरह ढक, उस से गरम चाय पी लेने का अनुरोध किया तो उस ने चुपचाप चाय पी ली.

इस बीच बिजली भी आ गई थी. मैं फ्रिज से ठंडा पानी ला कर उस के सिर पर पट्टियां रखने लगी. थोड़ी ही देर में उस का बुखार उतरने लगा और वह पहले से काफी स्वस्थ नजर आने लगी. नेहाजी को सूचित करना जरूरी था, इसलिए मैं ने सामने पड़ा फोन उठा कर उन का नंबर जानना चाहा तो एकाएक उठ कर उस ने मेरे हाथों से फोन झपट लिया.

‘‘नहीं, मिसेज मीनू…आप ऐसा नहीं कर सकतीं.’’

मैं हतप्रभ खड़ी रह गई.

‘‘क्यों…वे तुम्हारी मां…’’

वह बीच में ही मेरी बात काटती हुई बोली, ‘‘मानती हूं, आज आप ने मेरे लिए बहुत कुछ किया फिर भी आप से अनुरोध है कि आप हमारे निजी मामलों में दखलंदाजी न करें.’’

तन्वी की रूखी और कठोर वाणी से मैं तिलमिला उठी, थोड़ी देर को रुकी, फिर अपने कमरे में वापस लौट गई. फ्रिज से सूप निकाल कर गरम कर बे्रड के साथ खाने बैठी तो मुझे तन्वी का मुरझाया चेहरा याद आ गया. सोचा, पता नहीं उस ने कुछ खाया भी है या नहीं. सूप लिए हुए एक बार फिर मैं उस के पास जा पहुंची.

‘‘तुम्हें शायद मेरा यहां आना पसंद न हो, फिर भी मैं थोड़ा सा गरम सूप लाई हूं, पी लो.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं…’’ तन्वी धीरे से बोली और सूप पीने लगी. सूप समाप्त करने के बाद, उस के चेहरे पर बच्चों जैसी एक तृप्ति भरी मासूम मुसकान दौड़ गई.

‘‘थैंक्स… मिसेज मीनू, सूप बहुत ही अच्छा बना था.’’

अब मुझ से रहा नहीं गया सो बोली, ‘‘कम से कम मेरी उम्र का लिहाज कर. तुम मुझे आंटी तो कह ही सकती हो.’’

उस की शांत और मासूम आंखों में फिर से वही विद्रोही झलक कौंध उठी.

‘‘मैं किसी रिश्ते में विश्वास नहीं करती इसलिए किसी को भी अपने साथ रिश्तों में जोड़ने की कोशिश नहीं करती.’’

उस की कुटिल हंसी ने उस की सारी मासूमियत को पल में धोपोंछ कर बहा दिया.

मैं भी उस का सामना करने के लिए पहले से ही तैयार थी.

‘‘हर बात को भौतिकता से जोड़ने वाले नई पीढ़ी के तुम लोग क्या जानो कि आदमी के लिए जिंदगी में रिश्तों की क्या अहमियत होती है. अरे, रिश्ता तो कच्चे धागे से बंधा प्यार का वह बंधन है जिस के लिए लोग कभीकभी अपने सारे सुख ही नहीं, अपनी जिंदगी तक कुरबान कर देते हैं.’’

तभी नेहाजी आ गईं और मैं उन्हें संक्षेप में तन्वी के बीमार होने की बात बता कर लौट आई. इस घटना के करीब 2 दिन बाद मैं बैठी सूखे कपड़ों की तह लगा रही थी कि अचानक तन्वी मेरे सामने आ खड़ी हुई. वह सारे संकोच त्याग सहज ही मुसकराते हुए मेरे बगल में आ बैठी. उस लड़की की सारी उद्दंडता जाने कहां गुम हो गई थी. उस का सहज व्यवहार मुझे भी सहज बना गया.

‘‘कहो तन्वी, आज तुम्हें मेरी याद कैसे आ गई?’’

वह थोड़ी देर चुपचाप बैठी रही जैसे अपने अंदर बोलने का साहस जुटा रही हो, फिर बोली, ‘‘आंटी, मैं अपनी उस दिन की उद्दंडता के लिए आप से माफी मांगने आई हूं. आप ने ठीक ही कहा था कि मुझे किसी भी रिश्ते की अहमियत नहीं मालूम. जिंदगी में किसी ने पहली बार निस्वार्थ भाव से मेरी देखभाल की, मेरा खयाल रखा पर मैं ने उस प्यार और ममता के बंधन को भी स्वयं ही नकार दिया. सचमुच, आंटी मैं बहुत बुरी हूं.’’

‘‘तन्वी बेटा, तुम ने तो मेरी बातों को दिल से ही लगा लिया. तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे जैसे मासूम बच्चों की बातों का बुरा नहीं मानती.’’

‘‘सच, आंटी, मैं आप को खोना नहीं चाहती,’’ और खुशी से किलकते हुए उस ने अपनी दोनों बांहें मेरे गले में डाल दीं. आज पहली बार तन्वी मुझे बेहद निरीह लगी.

‘‘एक बात बता, तू ने अपने पास इतने सारे विषबाण कहां से जमा कर रखे हैं. जब चाहा, जिस पर जी चाहा, तड़ से चला दिया.’’

वह खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर कुछ गंभीर होती हुई बोली, ‘‘हां, आंटी, आज मैं भी आप से वे सारी कहीअनकही बातें कहना चाहती हूं जिन्हें आज तक मैं किसी के सामने नहीं कह पाई.

‘‘शायद आप को पता नहीं, मेरे मम्मीपापा ने अपने सारे रिश्तेनाते तोड़ प्रेमविवाह किया था. पहले दोनों एक ही आफिस में काम करते थे. पापा की अपेक्षा मम्मी शुरू से ही ज्यादा जहीन, मेहनती और योग्य थीं. इसलिए उन की शीघ्रता से पदोन्नति होती गई. वहीं पापा की पदोन्नति काफी धीमी गति से होती रही थी. पदों के बीच बढ़ती दूरियों ने दोनों को पतिपत्नी से प्रतिस्पर्द्धी बना दिया. धीरेधीरे मम्मीपापा के बीच तनाव बढ़ता गया. उसी तनाव भरे माहौल में मेरा जन्म हुआ.

‘‘मेरा जन्म भी दोनों की महत्त्वा- कांक्षाओं पर अंकुश नहीं लगा सका. वे पहले की तरह अपनीअपनी नौकरियों में व्यस्त रहते. मेरा पालनपोषण आयाओं के सहारे हो रहा था. जब मैं बीमार पड़ती तो मम्मी व पापा में इस बात पर जंग छिड़ जाती कि छुट्टियां कौन लेगा. दोनों में से किसी के पास मेरे लिए टाइम नहीं था. बीमार अवस्था में भी मुझे आया या फिर डाक्टरों के क्लीनिक में नर्सों के सहारे रहना पड़ता.

‘‘मम्मी के अतिव्यस्त रहने के कारण उन के द्वारा रखी गई आया मुझे तरहतरह से प्रताडि़त करती. ख्याति, यश और वैभव की कामना ने मम्मी को अंधा और बहरा बना रखा था. अपनी बेटी की अंतर्वेदना उन्हें सुनाई नहीं देती थी. मैं आयाओं के व्यवहार से क्रोध, विवशता और झुंझलाहट से पागल सी हो जाती. धीरेधीरे जीवन को अपनाने और संसार में घुलमिल जाने की चेष्टा घटती चली गई और मैं अपनेआप में सिमट कर रह गई, जिस ने मुझे असामाजिक बना दिया.

‘‘मेरी स्थिति से बेखबर मेरे मातापिता लड़तेझगड़ते एक दिन अलग हो गए. बिना किसी दर्द के पापा मुझे छोड़ कर चले गए. मम्मी की मजबूरी थी, उन्हें मुझे झेलना ही था. मैं एक आश्रिता थी, आश्रयदाता पापा हैं कि मम्मी, मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता था. निरर्थक, उद्देश्यहीन मेहनत ने मुझे पढ़ाई में भी सफल नहीं होने दिया. यही मेरे भटकाव की पहली सीढ़ी थी.’’

तन्वी थोड़ी देर को रुकी. वह उठी और बड़े अधिकार से फ्रिज को खोला. उस में से बोतल निकाल कर पानी पिया, फिर बोतल को एक तरफ रखते हुए मेरे पास आ कर बैठ गई और बोलने लगी :

‘‘धीरेधीरे मम्मी और पापा के प्रति मेरे मन में एक गहरी असंतुष्टि  हलचल मचाए रहती और एक अघोषित युद्ध का गंभीर घोष मेरे अंदर गूंजता रहता. मैं मम्मीपापा की सुखशांति को, मानसम्मान को यहां तक कि अपनेआप को भी तहसनहस करने के लिए बेचैन रहती. हर वह काम लगन से करती जो मम्मीपापा को दुखी करता… मेरी उद्दंडता और आवारागर्दी की कहानी पापा तक पहुंच कर उन्हें दुखी कर रही है, यह जान कर मुझे असीम सुख मिलता. आज भी मेरी वही मानसिकता है, दूसरे को चोट पहुंचाना. शायद इसी कारण मैं ऐसी हूं.

‘‘मेरे बीमार पड़ने पर जिस प्यार और अपनेपन से आप ने मेरी देखभाल की वह मेरे दिल को छू गया. मुझे लगा आप ही वह पात्र हैं जिस के सामने मैं अपने दिल की व्यथा उड़ेल सकती हूं. अब सबकुछ जानने के बाद आप से मिली सलाह ही मेरी पथप्रदर्शक होगी. इसलिए प्लीज, आंटी, मेरी मदद कीजिए. मैं बहुत कन्फ्यूज्ड हूं.’’

तन्वी सबकुछ उगल चुपचाप बैठ गई. उस के गालों पर ढुलक आए आंसुओं को अपने आंचल से पोंछ कर मैं बोली थी, ‘‘कितनी मूर्ख हो तुम. बिना गहराई से परिस्थितियों का अवलोकन किए, तुम ने अपनी मां को ही अपना दुश्मन मान लिया और उन के दुखदर्द और शोक का कारण बनी रहीं. अपनी मम्मी की तरफ से सोचो कि वे अपनी मरजी से शादी कर, अपने सारे रिश्तों को खो चुकी थीं. वे मजबूर थीं. आवश्यकताओं की लंबी फेहरिस्त, दिल्ली जैसे महानगर के बढ़ते खर्चे, तुम्हारी देखभाल, सभी के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसों की जरूरत थी और इस के लिए वे जीतोड़ कोशिशें कर रही थीं.

‘‘वहीं नौकरी में तुम्हारी मां का दिनोदिन बढ़ता कद तुम्हारे पापा के पुरुषार्थ के अहं को आहत कर रहा था. एक दिन वे अपने अहं की तुष्टि के लिए सारी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ कर परिवार से ही पलायन कर गए. रह गईं अकेली तुम्हारी मां, जिन्हें तुम्हारे साथसाथ नौकरी की भी जिम्मेदारी संभालनी थी. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी… पर तकदीर की विडंबना देखो कि जिस बेटी के लिए वे इतना संघर्ष कर रही थीं, वही उन की व्यथा को समझने में सर्वदा असमर्थ रही और उन्हें चोट पहुंचा कर अपनी नादानियों से सबकुछ नष्ट करने पर उतारू हो गई.’’

तन्वी चुपचाप बड़े ही ध्यान से मेरी बातें सुन रही थी.

‘‘कभी तुम ने सोचा है कि जिंदगी बिगाड़ना बहुत आसान है पर जो एक बार बिगड़ गया, उसे संभालने में कभीकभी बरसों और कभीकभी तो पूरी जिंदगी निकल जाती है. खुद को चोट दे कर अपनों को दुख पहुंचाना कहां की बुद्धिमानी है. मेरी नानी अथर्ववेद का एक वाक्य मुझे हमेशा सुनाया करती थीं :

‘‘प्राच्यो अगाम नृत्ये हंसाय.’’

(अर्थात यह जीवन हंसतेखेलते हुए जीने के लिए है. चिंता, भय, शोक, क्रोध, निराशा, ईर्ष्या और तृष्णा में बिलखते रहना मूर्खता है.)

‘‘तुम्हारे जीवन में जो घटा वह तुम्हारे बस में नहीं था. वह वक्त का कहर था, मगर अब जो घट रहा है यह सब तुम्हारी विपरीत सोच का परिणाम है, जो तुम्हारी मां की खुशियों को ही नहीं तुम्हें भी बरबाद कर रहा है. जब कोई खुशियों का इंतजार करतेकरते अचानक दुखों को न्योता देने लगे तो समझो वह परिवार के विनाश को बुलावा दे रहा है. तुम विनाश का कारण क्यों बनना चाहती हो? क्या मिलेगा दुख बांट कर? एक बार सुख बांट कर देखो, तुम्हारे सारे दर्द मिट जाएंगे.

‘‘अपने सारे आक्रोश त्याग कर, बीते समय को भुला कर, अपनी खुशियों के लिए सोचो, उन्हें पाने की कोशिश करो तो तुम्हारे सारे मनस्ताप खुदबखुद धुल जाएंगे. वक्त का कर्म तुम्हारे साथ होगा, अगर तुम ने अब भी देर कर दी और वक्त को मुट्ठी में नहीं लिया तो धीरेधीरे समय तुम्हें तोड़ देगा. बस, मुझे इतना ही कहना है. अब फैसला तुम्हारे हाथों में है.’’

वह धीरे से उठी और मेरी गोद में सिर रख कर फर्श पर बैठ गई. प्यार से उस के बालों में उंगलियां फिराते ही वह निशब्द रोने लगी. मैं ने भी उसे रोका नहीं, जी भर रो लेने दिया. थोड़ी देर बाद शांत हो कर बोली, ‘‘आंटी, आज आप ने मेरी जिंदगी की उलझनों को कितनी आसानी और सरलता से सुलझाया, मेरे अंदर भरे गलतफहमियों के जहर को दूर कर दिया. अपनी गलतियों के एहसास ने तो मेरी सोच ही बदल दी. अब तक तो मैं सभी के दुख का कारण बनी रही, लेकिन अब सुख का कारण बनने की कोशिश करूंगी.’’

दूसरे दिन मैं बरामदे में बैठी सुन रही थी. वह बालकनी में खड़ी वहीं से अपने दोस्तों को लौट जाने के लिए कह रही थी.

‘‘नहींनहीं…तुम लोगों के साथ मुझे कहीं नहीं जाना. मुझे पढ़ना है.’’

उस के दोस्तों ने साथ चलने के लिए काफी मिन्नतें कीं, पर वह नहीं मानी. एक दिन मैं नेहाजी के साथ लौन में बैठी बातें कर ही रही थी कि तभी तन्वी हाथ में ट्रे ले कर पहुंच गई. 2 कप चाय के साथ पकौड़ों की प्लेट भी थी.

‘‘आंटी, आज मैं ने पकौड़े किताब पढ़ कर बनाए हैं. जरा चख कर तो देखिए.’’

अनाड़ी हाथों के अनगढ़ पकौड़ों में मुझे वह स्वाद आया जो आज से पहले कभी नहीं आया था. बेटी के बदले रूप को देख, नेहा की आंखों में मेरे लिए कृतज्ञता के आंसू झिलमिला रहे थे. Hindi Drama Story

Family Drama Story: दिल का बोझ

Family Drama Story: ‘‘इतना लापरवाह कोई कैसे हो सकता है? मैं बता रहा हूं, यह ऐसे ही गैरजिम्मेदार रहा न तो फिर जीवन के हर मोड़ पर हमेशा गिरता रहेगा और संभालने के लिए हम वहां नहीं होंगे,’’ आशीष अपने 15 साल के बेटे वैभव पर चिल्ला रहा था.

2 दिन बाद वैभव की 10वीं कक्षा की परीक्षा शुरू होने वाली थी और उस ने प्रवेशपत्र खो दिया था. वैभव रोआंसा सा चुपचाप खड़ा था. वह बारबार याद कर रहा था कि उस ने तो प्रवेशपत्र लैमिनेट करवाया था फिर रमन और आकाश के साथ औटो में बैठ कर सीधे घर आ गया था. अनजाने में ही सही, गलती तो हुई थी. पूरा दिन अपनी फाइल ढूंढ़ता रहा, लेकिन कहीं पता न चला.

तभी उसे याद आया कि उस के हाथ में बैग और फाइल थी, जिस कारण गलती से फाइल शायद औटो में ही छूट गई होगी. काश, उस ने फाइल अपने बैग में रखी होती तो पापा से इतनी जलीकटी नहीं सुननी पड़ती. उस ने डर के मारे यह बात पापा को नहीं बताई.

आशीष ने फैसला किया कि वह वैभव के स्कूल जा कर इस बारे में प्रिंसिपल से बात करेगा. शायद कोई समाधान निकल आए और वैभव को परीक्षा में बैठने की अनुमति मिल जाए. लता ने भी सहमति जताई. दोनों स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगे तभी दरवाजे की घंटी बजी. लता ने दरवाजा खोला तो सामने बहुत ही अजनबी महिला खड़ी थी.

‘‘जी… कहिए?’’ लता ने पूछा.

‘‘क्या यह आशीषजी का घर है?’’ महिला ने पूछा.

‘‘जी… हां,’’ लता ने उत्तर दिया.

‘‘आप… मैं ने पहचाना नहीं,’’ लता ने सकपकाते हुए कहा.

‘‘जी मेरा नाम रत्ना है और मैं…’’

तभी आशीष हड़बड़ी में वैभव के साथ बाहर जाने के लिए निकलने लगा. उस की नजर रत्ना पर पड़ी और जातेजाते अचानक रुक गया और वापस रत्ना के पास आ कर बोला, ‘‘अरे, रत्न तुम? यहां? कितने सालों बाद तुम्हें…’’ आशीष कहतेकहते रुक गया.

‘‘शुक्र है, तुम ने मुझे पहचान लिया. मुझे तो लगा कि तुम मुझे भूल ही गए होंगे.’’

रत्ना आशीष को कुछ देर देखते रह गई. बीता हुआ कल आंखों के सामने जैसे फिल्म की तरह ताजा हो आया…

‘‘इन से मिलो, ये लता हैं मेरी पत्नी और लता ये रत्ना हैं. मैं ने तुम्हें बताया था न, ये

हमारी पड़ोसी हुआ करती थीं. ये वही हैं,’’ आशीष, रत्ना का ध्यान स्वयं से हटाने के

लिए लता और रत्ना का एकदूसरे से परिचय करवाने लगा.

‘‘अच्छा… तो यही रत्नाजी हैं. आप सच में बहुत खूबसूरत हैं,’’ लता ने कहा.

‘‘धन्यवाद, आप भी तो खूबसूरत हैं,’’ रत्ना ने कहा.

लता मुसकरा भर दी.

‘‘बैठिए न,’’ लता ने कहा.

आशीष की नजर घड़ी पर पड़ी, ‘‘अरे

10 बज गए,’’ वह हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ.

‘‘अच्छा रत्ना, तुम लता के साथ गपशप करो. मैं, वैभव के स्कूल से 1 घंटे में आता हूं,’’ कह कर आशीष और वैभव जाने लगे.

‘‘तुम्हें स्कूल जाने की जरूरत नहीं, जो

चीज तुम ढूंढ़ रहे हो, वह मेरे पास है,’’ रत्ना

ने कहा.

सब एकटक रत्ना को देखने लगे. तभी रत्ना ने अपने हैंडबैग से फाइल निकाल कर आशीष के हाथ में रख दी.

‘‘अरे इस फाइल को ही हम ढूंढ़ रहे थे पर यह, तुम्हारे पास कैसे आई?’’ आशीष ने सवाल किया.

वैभव ने झट से पापा के हाथों से फाइल ले ली और फाइल खोल कर अपने सर्टिफिकेट देखने लगा. प्रवेशपत्र देखते ही वह सुकून और आत्मविश्वास से भर गया.

‘‘दरअसल, मैं परसों हौस्पिटल जा रही

थी जैसे ही औटो में बैठी मु?ो यह फाइल दिखी. मैं ने औटो वाले से इस फाइल के बारे में पूछा तो उसने कहा कि ये फाइल उस की नहीं है. उस ने कहा कि अभी कुछ बच्चे पिछले सिगनल पर छोड़ गए हैं शायद उन में से किसी की होगी. मैं ने उस से कहा भी कि चलो जा कर देखते हैं. इस पर औटो वाले ने कहा कि अब तक तो बच्चे

चले गए होंगे. कहां ढूंढ़ेंगे उन्हें? फिर मैं ने यह फाइल रख ली ताकि मैं उस बच्चे को यह फाइल लौटा सकूं.

लेकिन उस समय मैं बहुत जल्दी में थी इसलिए लौटा नहीं पाई. आज मेरी नजर इस फाइल पर पड़ी- खोल कर देखा तो परीक्षा का प्रवेशपत्र और पहचानपत्र था. मैं समझ गई कि ये बच्चे के लिए कितने जरूरी हैं और कल मेरी वापसी की फ्लाइट है तो सोचा, आज ही फाइल लौटा दू,’’ रत्ना ने कहा.

‘‘आप ने मेरे बेटे का यह साल खराब

होने से बचा लिया. आप का जितना भी शुक्रिया करूं, कम होगा,’’ आभार व्यक्त करते हुए लता

ने कहा.

‘‘लता सही कह रही है. तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद,’’ आशीष ने कहा.

‘‘तुम तो मुझे जितना धन्यवाद दो उतना कम है. मैं ने तुम्हारे कपड़े, नोटबुक और जाने क्याक्या…’’ कहतेकहते रत्ना रुक गई.

आशीष झेंप गया और माहौल को सामान्य करते हुए उस ने कहा, ‘‘अरे तुम ने यह तो बताया ही नहीं कि तुम दिल्ली में कैसे?’’

‘‘बड़े पापा के लड़के… वसंत भइया 3 साल से दिल्ली में ही पोस्टेड हैं. यही रोहिणी में रहते हैं,’’ रत्ना ने कहा.

‘‘अच्छा तो तुम उन से मिलने आई थी,’’ आशीष ने कहा.

‘‘नहीं दरअसल पिताजी बीमार थे और उन का यहां इलाज चल रहा था. मैं उन से मिलने

आई थी.’’

‘‘अच्छा… अब उन की तबीयत कैसी है?’’

‘‘अब वे नहीं रहे,’’ रत्ना ने कहा.

‘‘ओह, बहुत अफसोस हुआ जानकर,’’ आशीष ने अफसोस जताते हुए कहा.

तभी लता चायनाश्ता ले आई.

‘‘आप कहां रहती हैं? पति क्या करते हैं? आप के कितने बच्चे हैं?’’ लता ने सवालों की झड़ी लगा दी.

‘‘मैं ने शादी नहीं की,’’ रत्ना ने आशीष की तरफ देखते हुए कहा.

आशीष, उस की बात सुन कर स्तब्ध रह गया.

‘‘ परीक्षा के लिए ‘औल द बैस्ट,’ बेटा. चलो, मैं अब निकलती हूं. मु?ो पैकिंग भी करनी है. आप सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा,’’ कह कर रत्ना ने विदा ली.

‘‘आशीष आत्मग्लानि से भर गया और लता को एक कप चाय बनाने को कह कर वहीं सोफे पर बैठ पुरानी यादों में खो गया…

रत्ना और आशीष एक ही कालेज में पढ़ते थे. रत्ना के पिता विश्वनाथजी सिविल इंजीनियर थे. दूसरे शहर से तबादला होने के बाद कानपुर आए और अशीष के पड़ोसी बन गए. आशीष के पिता महेंद्रजी बिजली विभाग में कार्यरत थे. शहर में नए होने के कारण आशीष के परिवार ने विश्वनाथजी को यहां बसने में बहुत मदद की. कुछ ही दिनों में दोनों परिवार एकदूसरे से घुलमिल गए.

आशीष के कहने पर ही रत्ना का एडमिशन उसी के कालेज में करवा दिया गया. धीरेधीरे दोनों परिवारों में गहरी दोस्ती हो गई. दोनों परिवार दुखसुख में एकदूसरे का साथ देने लगे. रत्ना और आशीष के लिए दोनों घर अपने ही थे. धीरेधीरे आशीष और रत्ना के बीच प्यार का अंकुर फूटने लगा और फिर प्यार परवान चढ़ने लगा. समय बीतने लगा आशीष इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने दूसरे शहर चला गया. रत्ना इंटरमीडिएट पास करने के बाद बी. कौम. की पढ़ाई करने लगी. रत्ना आशीष के मातापिता का खूब खयाल रखती थी. आशीष की मां तो रत्ना को मन ही मन अपनी बहू मान चुकी थी. बस रत्ना के मातापिता की रजामंदी बाकी थी.

दशहरे की छुट्टियों में आशीष घर आया था. शांतिजी चाहती थीं इस बार शादी

की बात पक्की कर लें. बातों ही बातों में एक दिन आशीष की मां शांति ने माया से कह दिया, ‘‘माया, अगर तुम्हारी जानकारी में कोई अच्छी लड़की हो तो मेरे आशीष के लिए बताना.

1-2 सालों में मैं अपने घर बहू लाना चाहती हूं.’’

‘‘दीदी मेरी नज़र में एक लड़की तो है अगर आप चाहें तो,’’ कहतेकहते माया ने कमरे में पढ़ रही रत्ना को ला कर शांति के सामने खड़ा कर दिया. शांति खुशी से फूली न समाई और रत्ना को गले से लगा लिया. दोनों की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले.

‘‘दीदी, मैं आप के मन की बात जानती थी क्योंकि मैं भी यही चाहती थी पर आप से बात करने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी. रत्ना अगर आप की बहू बन जाए तो मुझ से अधिक खुश कौन होगा.’’

दोनों की बातें सुन कर रत्ना खुशी से फूले नहीं समा रही थी.

अब वह आशीष का इंतजार करने लगी कि कब वह बाजार से घर वापस आए और वह उसे यह खुशखबरी दे.

इसी खुशी में माया ने रात के खाने पर आशीष के परिवार को बुला लिया. अभी आशीष के पिता और रत्ना के पिता को इस बात की जानकारी न थी तो माया ने सोचा इसी बहाने

दोनों परिवार मिलबैठ कर इस विषय पर बात

कर लेंगे.

आशीष के पिता जब औफिस से आए तो शांति ने अपने मन की बात कही जिसे सुन कर महेंद्रजी भी खुश हो गए, ‘‘शांति, मुझे रत्ना बेटी पहले से ही पसंद थी लेकिन… खैर, चलो विश्वनाथ के घर चलते हैं.’’

समय पर आशीष का परिवार रत्ना के घर पहुंच गया और फिर महेंद्र ने बात छेड़ी जिसे सुन कर विश्वनाथ के चेहरे का र%A

Social Story: शुभअशुभ कुछ नहीं होता

Social Story: सावित्री देवी के घरआंगन में शहनाई की मधुर ध्वनि गूंज रही थी. सारे घर में उल्लास का वातावरण था. नईनवेली दुलहन शुचि व दूल्हा अभय ऐसे लग रहे थे जैसे वे एकदूसरे के लिए ही बने हों.

अभय का साथ पा कर शुचि प्रसन्न थी. परंतु दिन बीतने के साथ शुचि को यह एहसास होने लगा था कि एक असमानता उस के व अभय के बीच है. शुचि जहां एक प्रगतिशील परिवार की मेधावी लड़की थी, वहीं अभय का परंपरागत रूढिवादी परिवार था. यहां तक कि इंजीनियर होते हुए भी अभय के व्यक्तित्व में परिवार में व्याप्त अंधविश्वास की   झलक शुचि को स्पष्ट दिखाई देने लगी थी.

शुचि को याद है कि शादी के बाद पहली बार जब वह अभय के साथ बाहर घूमने जा रही थी तो बड़ी जेठानी ने उसे टोक दिया था, ‘‘शुचि, नई दुलहन तब तक घर से बाहर नहीं निकलती जब तक पंडितजी शुभ मुहूर्त नहीं बताते. यह इस घर की परंपरा है.’’ और फिर एक सरसरी निगाह शुचि व अभय पर डाल कर वे चली गई थीं.

शुचि तब और दुखी हो गई, जब अभय ने भी उन की बात मान कर घूमने जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया.

हर रोज इसी तरह की कोई न कोई घटना होती. शुचि का मन विद्रोह करने को आतुर हो उठता, परंतु नई बहू की लज्जा उसे रोक देती. हर कार्य के लिए सावित्री देवी को पंडित से सलाह लेना जरूरी था. घर का हर सदस्य पंडित की बताई बातों को ही मानता था. इस के लिए पता

नहीं कितने रुपए पंडितों के घर पहुंच जाते.

दिन बीतने लगे. अभय को शुचि सम  झाती पर बचपन के संस्कार और जो अंधविश्वास उस में भर दिए गए थे उन से वह मुक्त नहीं हो पा रहा था. तभी एक दिन जब घर के सदस्यों को शुचि के पांव भारी होने की खबर मिली  तो सारे घर में खुशी की लहर दौड़ गई. जल्दी से शुचि की सास सावित्री देवी मंदिर में प्रसाद चढ़ा आईं. उधर खबर मिलते ही पंडित रामधन शास्त्री अपने पोथेपत्रियों को ले कर आ धमके.

भरपेट जलपान करने के बाद अपनी भारीभरकम तोंद पर हाथ फेरते हुए पंडित सावित्री देवी से बोले, ‘‘देखो पुत्री, अब तुम्हें बहू का खास ध्यान रखना होगा. पूरे

9 महीने बहू को मुहूर्त देख कर ही घर से बाहर निकलने देना होगा. और हां, कोई ऊंचीनीच न हो, इस के लिए भी उपाय करने होंगे.’’

‘‘क्या उपाय हैं पंडितजी? मैं आने वाले बच्चे की भलाई के लिए सब करूंगी,’’ सावित्री देवी पंडित रामधन शास्त्री के चरणों में   झुक कर बोलीं.

मुसकराते रामधन शात्री मन ही मन प्रसन्न थे कि चलो अब साल भर तक तो मुफ्त का चढ़ावा मिलेगा. फिर बोले, ‘‘देखो पुत्री, अभीअभी बहू के पांव भारी हुए हैं, इसलिए अभी तुम्हें हवन कराना होगा ताकि शुरू का महीना ठीक से बीते.’’

‘‘कितना खर्च आएगा पंडितजी?’’ सावित्री देवी ने पूछा.

‘‘यही कोई 5 हजार रुपए. हवन की सामग्री मंगानी होगी और मेरे साथ हवन संपन्न

कराने 4 ब्राह्मण और आएंगे,’’ पंडित बोले.

सावित्री देवी पैसे ले आईं,

‘‘लीजिए पंडितजी, अब सब जिम्मेदारी आप की है और हां, हवन शीघ्र करवाइए.’’

‘‘चिंता न करो पुत्री सब भला होगा,’’ अपनी पोथी उठा कर शास्त्रीजी उठ खड़े हुए.

शुचि यह सब देख कर

दुखी हो उठी. हिम्मत कर के सावित्री देवी के पास जा कर बोली, ‘‘मांजी, विज्ञान के इस

युग में पंडितों की बात का विश्वास नहीं करना चाहिए.

ये हवनपूजन सब अंधविश्वास

है मांजी.’’

‘‘देखो बहू, माना तुम नए जमाने की हो पर हम ने भी दुनिया देखी है. ये केश धूप में सफेद नहीं हुए हैं हमारे. और हां, आइंदा हमारे काम में दखल नहीं देना,’’ सावित्री देवी बोलीं.

शुचि चुप हो गई. वह सम  झ गई कि मांजी उस की बात नहीं सम  झेंगी. मांजी क्या, इस परिवार का कोई भी सदस्य नहीं सम  झेगा.

कुछ दिन बीतने के बाद पंडित रामधन शास्त्री अपने

साथी पंडितों के साथ हवन

कराने आ पहुंचे. सावित्री देवी ने उन्हें आदरपूर्वक बैठा कर उन के चरण स्पर्श किए. फिर परिवार के सभी सदस्यों ने भी उन के चरण स्पर्श किए.

‘‘पंडितजी, हवन करने से सब बाधाएं दूर हो जाएंगी न?’’ सावित्री देवी बोलीं.

‘‘हां पुत्री, सब कुशल होगा,’’ पंडितजी बोले.

शुचि को भी अभय के साथ हवन में बैठना पड़ा. मन ही मन इन ढोंगी पंडितों को देख कर शुचि दुखी थी पर परिवार के सभी सदस्यों के मन पर छाए अंधविश्वास ने जो चक्रव्यूह शुचि के इर्दगिर्द रचा था, उसे वह तोड़ नहीं पा रही थी.

हवन की समाप्ति के बाद पंडितजी और उन के साथियों ने जलपान किया और दानदक्षिणा ले कर विदा ली.

रात में शुचि ने अभय को सम  झाने की कोशिश की, ‘‘अभय, देखो यह अंधविश्वास है. हवनपूजन में इतना समय और पैसा खर्च करना गलत है. आजकल डाक्टर ही यह बता सकते हैं कि बच्चा स्वस्थ होगा या नहीं. पंडित तो सिर्फ ग्रहों के   झूठे हेरफेर में फंसा कर अपनी रोजीरोटी चलाते हैं.’’

‘‘देखो शुचि, मां और परिवार के बाकी सदस्य तुम्हारे भले के लिए ही सोच रहे हैं. हमारे घर में हमेशा ही पंडितों

से पूछ कर सारे शुभ कार्य होते हैं, इसलिए तुम चुप रहो यही अच्छा होगा,’’ अभय गुस्से से बोला.

दिन बीतने लगे. शुचि स्वयं को

असहाय महसूस करने लगी. पर वह डा. सीमा के पास जब भी चैकअप के लिए जाती उसे यह सुन कर तसल्ली मिलती कि सब

ठीक है.

2 महीने बाद एक दिन दोपहर को दरवाजे की घंटी

बजने पर सावित्री देवी ने दरवाजा खोला तो सामने एक पंडितजी खड़े थे. रामनामी धोती, माथे

पर बड़ा सा टीका लगाए जनेऊ पहने पंडितजी के हाथों में पोथीपत्रियां थीं. अंदर आने

को आतुर पंडितीजी से

सावित्री देवी बोलीं, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं पंडितजी?’’

पंडितजी इधरउधर नजरें घुमाते हुए बोले, ‘‘घोर संकट. पुत्री, घोर संकट. मैं इस घर के सामने से गुजर रहा था तभी मु  झे महसूस हुआ कि इस घर में एक नया मेहमान आने वाला है और उस पर ग्रहों का भारी संकट है. उन का उपाय जरूरी है पुत्री.’’

‘‘पर पंडितजी…’’ सावित्री देवी की बात बीच में ही काट कर पंडितजी बोल पड़े, ‘‘कुछ न कहो पुत्री, तुम ने पंडित दीनानाथ शर्मा का नाम नहीं सुना? मैं वही हूं. मेरी बात कभी न टालना वरना अनर्थ हो जाएगा.’’

घबरा कर सावित्री देवी बोलीं, ‘‘जैसा आप कहेंगे वैसा ही होगा पंडितजी.’’

यह सब देख कर शुचि तिलमिला उठी. अब फिर वही सब होगा. राह चलता कोई भी घर आ कर पूजापाठ के बहाने पैसे ऐंठ ले, यह कैसी विडंबना है. वह कुछ कहने ही वाली थी कि तुरंत सावित्री देवी ने उसे घूर कर देखा, ‘‘शुचि, जाओ स्वामीजी के लिए जलपान ले कर आओ.’’

शुचि मन ही मन दुखी थी. चुपचाप वह अंदर चली गई. उसे सम  झ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

उधर पंडितजी पंचांग निकाल कर ग्रहों की गणना कर रहे थे.

‘‘तुम्हारी बहू का चौथा महीना चल रहा है न पुत्री? क्या राशि है बहू की?’’ उन्होंने पूछा,

‘‘जी तुला राशि है बहू की,’’ सावित्री देवी ने कहा.

‘‘बहुत भारी ग्रह है पुत्री. बच्चे

व मां की रक्षा के लिए उपाय आवश्यक है.’’

‘‘कुछ दानदक्षिणा दो, उपाय हम स्वयं कर देंगे,’’ मन ही मन मुसकराते हुए पंडितजी सावित्री देवी से बोले. जलपान कर के पूरे 1,100 रुपए दक्षिणा ले कर पंडितजी विदा हुए.

तभी अभय भी घर आ गया. पूरी बात जानने के बाद वह बहुत प्रसन्न हुआ, ‘‘चलो मां, राह चलते ही सही, उन्होंने इस घर का भला तो सोचा.’’

शुचि जानती थी कि इन को सम  झाना बेकार है.

इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे. किसी

को भी यह पता नहीं था कि वह राह चलता पंडित, जो उन का भला करने की कह गया था पंडित रामधन शास्त्री का ही भेजा गया था. उसे पहले से शुचि और सावित्री देवी परिवार के बारे में जानकारी थी. सब खुश थे कि अब उन का कुछ नहीं बिगड़ सकता.

एक दिन शुचि रसोई में थी. तभी पंडित रामधन शास्त्री की आवाज सुनी तो सम  झ गई कि एक बार फिर वही सब दोहराया जाएगा.

शुचि का 9वां महीना चल रहा था. उस की सास ने ही पंडितजी को बुलवाया था. अपनी सास व पंडितजी की बात सुन कर शुचि सन्न रह गई. इतना अधिक अंधविश्वास इतनी रूढिवादिता. शुचि की सास उस की जन्मपत्री पंडितजी को दिखा कर यह पूछ रही थीं कि वह कौन सा शुभ मुहूर्त है, जिस में बच्चे का जन्म होने पर वह तेजस्वी, प्रतिभावान व

दीर्घायु होगा?

पंडितजी पत्री देख कर गणना कर रहे थे. उधर शुचि सकते में थी. वह सोच रही थी कि यह कैसा अंधविश्वास है, यह कैसा इंसाफ है कि प्रकृति के बनाए नियमों में भी इंसान ने अपना दखल देना शुरू कर दिया है?

एक बच्चे का जन्म, जो पूर्णतया प्रकृति के हाथ में है उस पर भी ग्रहनक्षत्रों का तानाबाना बुन दिया गया है और पढ़ेलिखे व्यक्ति दिग्भ्रमित होने लगे हैं.

परंतु यह सब सुन कर उस ने निश्चय कर लिया था कि उसे ही इस अंधविश्वास का अंत करना है. इस सोच के साथ ही शुचि अपनी योजना को मूर्तरूप देने के लिए तत्पर हो उठी. वह इस योजना में डा. सीमा को भी शामिल करना चाहती थी, क्योंकि उन के सहयोग के बिना यह असंभव था.

2 दिन बाद ही शुचि को डा. सीमा के यहां चैकअप के लिए जाना पड़ा. चैकअप के बाद उस ने डा. सीमा को शुभ मुहूर्त में बच्चे के जन्म करवाने की अपनी सास की इच्छा के विषय में बताया और साथ ही यह भी कहा कि वह ऐसा नहीं चाहती है, इसलिए उन्हें उस की योजना में उस का साथ देना होगा.

डा. सीमा शुचि की बात सुन कर बोलीं, ‘‘शुचि, आजकल समाज के हर वर्ग में शुभ मुहूर्त देख कर औपरेशन द्वारा बच्चे का जन्म करवाना प्रचलन में है. यह काम जो पूर्णतया प्रकृति के वश में था, उस पर भी  अब पंडितों ने ग्रहनक्षत्रों का लेबल लगा दिया है.’’

कुछ विशेष परिस्थितियों में तो औपरेशन कर के बच्चे का जन्म कराया जाता है, परंतु अब पंडितों के साथसाथ कुछ नर्सिंगहोम्स में भी डाक्टर पैसों के लिए लोगों द्वारा बताए गए समय पर ही बच्चों का जन्म कराने लगे हैं. पर तुम चिंता न करो, क्योंकि किसी न किसी को तो पहल करनी ही होगी. मैं तुम्हारे साथ हूं.

डा. सीमा के कैबिन से बाहर निकल कर शुचि ने महसूस किया कि अब वह निश्चिंत

थी कि उस का बच्चा अंधविश्वास की बलि

नहीं चढ़ेगा.

बड़ी जेठानी नेहा पूछती रहीं कि शुचि तुम्हें अंदर बहुत देर लग गई, परंतु शुचि ने उन की बात टाल दी.

उधर 9वां महीना पूरा होने के पश्चात शुचि

की सास पंडितजी द्वारा बताए मुहूर्त पर शुचि को ले कर नर्सिंगहोम पहुंचीं. डा. सीमा ने उन्हें शुचि का चैकअप कर के बताया, ‘‘इसे ऐडमिट करना होगा, क्योंकि रक्तचाप बहुत बढ़ा हुआ है.’’

‘‘पर डा. साहब, कल ही तो वह शुभ मुहूर्त है, जिस में बच्चे का जन्म होना चाहिए. मैं आप को मुंहमांगी कीमत देने को तैयार हूं ताकि शुभ मुहूर्त पर ही बच्चे का जन्म हो,’’ सावित्री देवी बोलीं.

‘‘हद करती हैं आप मांजी. बढ़े हुए रक्तचाप में मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती. पहले शुचि की शारीरिक स्थिति ठीक होने दीजिए. और हां, यह कीमत अपने पास ही रखिए, क्योंकि मु  झे शुचि व उस के बच्चे की जान ज्यादा प्यारी है,’’ डा. सीमा क्रोध से बोलीं.

सावित्री देवी गुमसुम सी एक तरफ बैठ गईं. परिवार के सभी सदस्य एकएक कर के नर्सिंगहोम पहुंच चुके थे. शायद सभी शुभ मुहूर्त पर होने वाले बच्चे को देखना चाहते थे पर शुचि की हालत की बात जान कर सभी चुप हो गए.

उधर शुचि मन ही मन प्रसन्न थी, क्योंकि वह डा. सीमा के साथ अपने मकसद में कामयाब हो रही थी.

उधर सावित्री देवी फिर से पंडित रामधन शास्त्री के पास पहुंचीं और उन्हें बहू की हालत बताई. पंडितजी तो लालची थे ही. अत: उन्होंने तुरंत उन्हें 1 हफ्ते बाद का मुहूर्त बता दिया और आसानी से 501 रुपए दक्षिणा में प्राप्त कर लिए. अब सावित्री देवी खुश थीं. वे 1 हफ्ते के लिए चिंतामुक्त जो हो गई थीं.

उधर 2 दिन बाद शुचि ने एक स्वस्थ व सुंदर बालक को जन्म दिया. जहां अपने पोते को देख सावित्री देवी व परिवार के सभी सदस्य प्रसन्न थे, वहीं उस के शुभ मुहूर्त में न होने को ले कर उस के भविष्य को ले कर शंकित भी थे. तभी डा. सीमा ने वहां प्रवेश किया.

‘‘डाक्टर साहिबा, पंडितजी ने तो 1 हफ्ते बाद का मुहूर्त निकाला था पर बच्चे का जन्म तो आज ही हो गया. आप देख लीजिए यह स्वस्थ तो है या नहीं? मैं अभी पंडितजी को बुलवाती हूं,’’ घबराए स्वर में सावित्री देवी बोलीं.

‘‘मांजी, कैसी बात कर रही हैं आप. इस का जन्म तो प्रकृति के विधान के अनुसार ही हुआ है. इसीलिए तो यह पूर्णतया स्वस्थ है. और हां, आज मैं आप को एक राज की बात बताना चाहती हूं. वास्तव में यह मेरी और शुचि की योजना थी. शुचि बिलकुल स्वस्थ थी, पर हम आप के पंडित द्वारा बताए मुहूर्त पर इसलिए बच्चे का जन्म नहीं कराना चाहते थे, क्योंकि हम आप के दिल व दिमाग पर छाए अंधविश्वास को हटाना चाहते थे.

‘‘आज शुचि ने एक स्वस्थ एवं सुंदर  बालक को प्रकृति द्वारा निश्चित समय पर जन्म दिया है और इस से यह बात साबित हो गई है कि शुभअशुभ कुछ नहीं होता. ये सब अंधविश्वास हैं, जो पंडितों  द्वारा फैलाए गए हैं. शुचि ने ही इस अंधविश्वास को दूर करने की पहल की है, इसलिए यह बधाई की पात्र है.’’

डा. सीमा की बात सुन कर सभी सन्न थे मानो उन्होंने सब की आंखों से परदा हटा दिया हो.

सभी आने वाले कल की कल्पना कर के मुसकरा उठे. Social Story

Online Hindi Story: बहू ने निभाया बेटे का फर्ज

Online Hindi Story: बहू शब्द सुनते ही मन में सब से पहला विचार यही आता है कि बहू तो सदा पराई होती है. लेकिन मेरी शोभा भाभी से मिल कर हर व्यक्ति यही कहने लगता है कि बहू हो तो ऐसी. शोभा भाभी ने न केवल बहू का, बल्कि बेटे का भी फर्ज निभाया. 15 साल पहले जब उन्होंने दीपक भैया के साथ फेरे ले कर यह वादा किया था कि वे उन के परिवार का ध्यान रखेंगी व उन के सुखदुख में उन का साथ देंगी, तब से वह वचन उन्होंने सदैव निभाया.

जब बाबूजी दीपक भैया के लिए शोभा भाभी को पसंद कर के आए थे तब बूआजी ने कहा था, ‘‘बड़े शहर की लड़की है भैयाजी, बातें भी बड़ीबड़ी करेगी. हमारे छोटे शहर में रह नहीं पाएगी.’’

तब बाबूजी ने मुसकरा कर कहा था, ‘‘दीदी, मुझे लड़की की सादगी भा गई. देखना, वह हमारे परिवार में खुशीखुशी अपनी जगह बना लेगी.’’

बाबूजी की यह बात सच साबित हुई और शोभा भाभी कब हमारे परिवार का हिस्सा बन गईं, पता ही नहीं चला. भाभी हमारे परिवार की जान थीं. उन के बिना त्योहार, विवाह आदि फीके लगते थे. भैया सदैव काम में व्यस्त रहते थे, इसलिए घर के काम के साथसाथ घर के बाहर के काम जैसे बिजली का बिल जमा करना, बाबूजी की दवा आदि लाना सब भाभी ही किया करती थीं.

मां के देहांत के बाद उन्होंने मुझे कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी. इसी बीच राहुल के जन्म ने घर में खुशियों का माहौल बना दिया. सारा दिन बाबूजी उसी के साथ खेलते रहते. मेरे दोनों बच्चे अपनी मामी के इस नन्हे तोहफे से बेहद खुश थे. वे स्कूल से आते ही राहुल से मिलने की जिद करते थे. मैं जब

भी अपने पति दिनेश के साथ अपने मायके जाती तो भाभी न दिन देखतीं न रात, बस

सेवा में लग जातीं. इतना लाड़ तो मां भी नहीं करती थीं.

एक दिन बाबूजी का फोन आया और उन्होंने कहा, ‘‘शालिनी, दिनेश को ले कर फौरन चली आ बेटी, शोभा को तेरी जरूरत है.’’

मैं ने तुरंत दिनेश को दुकान से बुलवाया और हम दोनों घर के लिए निकल पड़े. मैं सारा रास्ता परेशान थी कि आखिर बाबूजी ने इस समय हमें क्यों बुलाया और भाभी को मेरी जरूरत है, ऐसा क्यों कहा? मन में सवाल ले कर जैसे ही घर पहुंची तो देखा कि बाहर टैक्सी खड़ी थी और दरवाजे पर 2 बड़े सूटकेस रखे थे. कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है. अंदर जाते ही देखा कि बाबूजी परेशान बैठे थे और भाभी चुपचाप मूर्ति बन कर खड़ी थीं.

भैया गुस्से में आए और बोले, ‘‘उफ, तो अब अपनी

वकालत करने के लिए शोभा ने आप लोगों को बुला लिया.’’

भैया के ये बोल दिल में तीर की तरह लगे. तभी दिनेश बोले, ‘‘क्या हुआ भैया आप सब इतने परेशान क्यों हैं?’’

इतना सुनते ही भाभी फूटफूट कर रोने लगीं.

भैया ने गुस्से में कहा, ‘‘कुछ नहीं दिनेश, मैं ने अपने जीवन में एक महत्त्वपूर्ण फैसला लिया है जिस से बाबूजी सहमत नहीं हैं. मैं विदेश जाना चाहता हूं, वहां बहुत अच्छी नौकरी मिल रही है, रहने को मकान व गाड़ी भी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है भैया,’’ दिनेश ने कहा.

दिनेश कुछ और कह पाते, तभी भैया बोले, ‘‘मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई दिनेश, मैं अब अपना जीवन अपनी पसंद से जीना चाहता हूं, अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ.’’

यह सुनते ही मैं और दिनेश हैरानी से भैया को देखने लगे. भैया ऐसा सोच भी कैसे सकते थे. भैया अपने दफ्तर में काम करने वाली नीला के साथ घर बसाना चाहते थे.

‘‘शोभा मेरी पसंद कभी थी ही नहीं. बाबूजी के डर के कारण मुझे यह विवाह करना पड़ा. परंतु कब तक मैं इन की खुशी के लिए अपनी इच्छाएं दबाता रहूंगा?’’

मैं बाबूजी के पैरों पर गिर कर रोती हुई बोली, ‘‘बाबूजी, आप भैया से कुछ कहते क्यों नहीं? इन से कहिए ऐसा न करें, रोकिए इन्हें बाबूजी, रोक लीजिए.’’

चारों ओर सन्नाटा छा गया, काफी सोच कर बाबूजी ने भैया से कहा, ‘‘दीपक, यह अच्छी बात है कि तुम जीवन में सफलता प्राप्त कर रहे हो पर अपनी सफलता में तुम शोभा को शामिल नहीं कर रहे हो, यह गलत है. मत भूलो कि तुम आज जहां हो वहां पहुंचने में शोभा ने तुम्हारा भरपूर साथ दिया. उस के प्यार और विश्वास का यह इनाम मत दो उसे, वह मर जाएगी,’’ कहते हुए बाबूजी की आंखों में आंसू आ गए.

भैया का जवाब तब भी वही था और वे हम सब को छोड़ कर अपनी अलग

दुनिया बसाने चले गए.

बाबूजी सदा यही कहते थे कि वक्त और दुनिया किसी के लिए नहीं रुकती, इस बात का आभास भैया के जाने के बाद हुआ. सगेसंबंधी कुछ दिन तक घर आते रहे दुख व्यक्त करने, फिर उन्होंने भी आना बंद कर दिया.

जैसेजैसे बात फैलती गई वैसेवैसे लोगों का व्यवहार हमारे प्रति बदलता गया. फिर एक दिन बूआजी आईं और जैसे ही भाभी उन के पांव छूने लगीं वैसे ही उन्होंने चिल्ला कर कहा, ‘‘हट बेशर्म, अब आशीर्वाद ले कर क्या करेगी? हमारा बेटा तो तेरी वजह से हमें छोड़ कर चला गया. बूढ़े बाप का सहारा छीन कर चैन नहीं मिला तुझे अब क्या जान लेगी हमारी? मैं तो कहती हूं भैया इसे इस के मायके भिजवा दो, दीपक वापस चला आएगा.’’

बाबूजी तुरंत बोले, ‘‘बस दीदी, बहुत हुआ. अब मैं एक भी शब्द नहीं सुनूंगा. शोभा इस घर की बहू नहीं, बेटी है. दीपक हमें इस की वजह से नहीं अपने स्वार्थ के लिए छोड़ कर गया है. मैं इसे कहीं नहीं भेजूंगा, यह मेरी बेटी है और मेरे पास ही रहेगी.’’

बूआजी ने फिर कहा, ‘‘कहना बहुत आसान है भैयाजी, पर जवान बहू और छोटे से पोते को कब तक अपने पास रखोगे? आप तो कुछ कमाते भी नहीं, फिर इन्हें कैसे पालोगे? मेरी सलाह मानो इन दोनों को वापस भिजवा दो. क्या पता शोभा में ऐसा क्या दोष है, जो दीपक इसे अपने साथ रखना ही नहीं चाहता.’’

यह सुनते ही बाबूजी को गुस्सा आ गया और उन्होंने बूआजी को अपने घर से चले जाने को कहा. बूआजी तो चली गईं पर उन की

कही बात बाबूजी को चैन से बैठने नहीं दे रही थी. उन्होंने भाभी को अपने पास बैठाया और कहा, ‘‘बस शोभा, अब रो कर अपने आने

वाले जीवन को नहीं जी सकतीं. तुझे बहादुर बनना पड़ेगा बेटा. अपने लिए, अपने बच्चे

के लिए तुझे इस समाज से लड़ना पड़ेगा.

तेरी कोई गलती नहीं है. दीपक के हिस्से

तेरी जैसी सुशील लड़की का प्यार नहीं है.

तू चिंता न कर बेटा, मैं हूं न तेरे साथ और हमेशा रहूंगा.’’

वक्त के साथ भाभी ने अपनेआप को संभाल लिया. उन्होंने कालेज में नौकरी कर ली और शाम को घर पर भी बच्चों को पढ़ाने लगीं. समाज की उंगलियां भाभी पर उठती रहीं, पर उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा. राहुल को स्कूल में डालते वक्त थोड़ी परेशानी हुई पर भाभी ने सब कुछ संभालते हुए सारे घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली.

भाभी ने यह साबित कर दिया कि अगर औरत ठान ले तो वह अकेले पूरे समाज से लड़ सकती है. इस बीच भैया की कोई खबर नहीं आई. उन्होंने कभी अपने परिवार की खोजखबर नहीं ली. सालों बीत गए भाभी अकेली परिवार चलाती रहीं, पर भैया की ओर से कोई मदद नहीं आई.

एक दिन भाभी का कालेज से फोन आया, ‘‘दीदी, घर पर ही हो न शाम को?

आप से कुछ बातें करनी हैं.’’

‘‘हांहां भाभी, मैं घर पर ही हूं आप

आ जाओ.’’

शाम 6 बजे भाभी मेरे घर पहुंचीं. थोड़ी परेशान लग रही थीं. चाय पीने के बाद मैं ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है भाभी कुछ परेशान लग रही हो? घर पर सब ठीक है?’’

थोड़ा हिचकते हुए भाभी बोलीं, ‘‘दीदी, आप के भैया का खत आया है.’’

मैं अपने कानों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी. बोली, ‘‘इतने सालों बाद याद आई उन को अपने परिवार की या फिर नई बीवी ने बाहर निकाल दिया उन को?’’

‘‘ऐसा न कहो दीदी, आखिर वे आप के भाई हैं.’’

भाभी की बात सुन कर एहसास हुआ कि आज भी भाभी के दिल के किसी कोने में भैया हैं. मैं ने आगे बढ़ कर पूछा, ‘‘भाभी, क्या लिखा है भैया ने?’’

भाभी थोड़ा सोच कर बोलीं, ‘‘दीदी, वे चाहते हैं कि बाबूजी मकान बेच कर उन के साथ चल कर विदेश में रहें.’’

‘‘क्या कहा? बाबूजी मकान बेच दें? भाभी, बाबूजी ऐसा कभी नहीं करेंगे और अगर वे ऐसा करना भी चाहेंगे तो मैं उन्हें कभी ऐसा करने नहीं दूंगी. भाभी, आप जवाब दे दीजिए कि ऐसा कभी नहीं होगा. वह मकान बाबूजी के लिए सब कुछ है, मैं उसे कभी बिकने नहीं दूंगी. वह मकान आप का और राहुल का सहारा है. भैया को एहसास है कि अगर वह मकान नहीं होगा तो आप लोग कहां जाएंगे? आप के बारे में तो नहीं पर राहुल के बारे में तो सोचते. आखिर वह उन का बेटा है.’’

मेरी बातें सुन कर भाभी चुप हो गईं और गंभीरता से कुछ सोचने लगीं. उन्होंने यह बात अभी बाबूजी से छिपा रखी थी. हमें समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें, तभी दिनेश आ गए और हमें परेशान देख कर सारी बात पूछी. बात सुन कर दिनेश ने भाभी से कहा, ‘‘भाभी, आप को यह बात बाबूजी को बता देनी चाहिए. दीपक भैया के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे.’’

यह सुनते ही भाभी डर गईं. फिर हम तीनों तुरंत घर के लिए निकल पड़े. घर जा कर

भाभी ने सारी बात विस्तार से बाबूजी को बता दी. बाबूजी कुछ विचार करने लगे. उन के चेहरे से लग रहा था कि भैया ऐसा करेंगे उन्हें इस बात की उम्मीद थी. उन्होंने दिनेश से पूछा, ‘‘दिनेश, तुम बताओ कि हमें क्या करना चाहिए?’’

दिनेश ने कहा, ‘‘दीपक आप के बेटे हैं तो जाहिर सी बात है कि इस मकान पर उन का अधिकार बनता है. पर यदि आप अपने रहते यह मकान भाभी या राहुल के नाम कर देते हैं तो फिर भैया चाह कर भी कुछ नहीं कर सकेंगे.’’

दिनेश की यह बात सुन कर बाबूजी ने तुरंत फैसला ले लिया कि वे अपना मकान भाभी के नाम कर देंगे. मैं ने बाबूजी के इस फैसले को मंजूरी दे दी और उन्हें विश्वास दिलाया कि वे सही कर रहे हैं.

ठीक 10 दिन बाद भैया घर आ पहुंचे और आ कर अपना हक मांगने लगे. भाभी पर इलजाम लगाने लगे कि उन्होंने बाबूजी के बुढ़ापे का फायदा उठाया है और धोखे से मकान अपने नाम करवा लिया है.

भैया की कड़वी बातें सुन कर बाबूजी को गुस्सा आ गया. वे भैया को थप्पड़ मारते हुए बोले, ‘‘नालायक कोई तो अच्छा काम किया होता. शोभा को छोड़ कर तू ने पहली गलती की और अब इतनी घटिया बात कहते हुए तुझे जरा सी भी लज्जा नहीं आई. उस ने मेरा फायदा नहीं उठाया, बल्कि मुझे सहारा दिया. चाहती तो वह भी मुझे छोड़ कर जा सकती

थी, अपनी अलग दुनिया बसा सकती थी पर उस ने वे जिम्मेदारियां निभाईं जो तेरी थीं.

तुझे अपना बेटा कहते हुए मुझे अफसोस

होता है.’’

भाभी तभी बीच में बोलीं, ‘‘दीपक, आप बाबूजी को और दुख मत दीजिए, हम सब की भलाई इसी में है कि आप यहां से चले जाएं.’’

भाभी का आत्मविश्वास देख कर भैया दंग रह गए और चुपचाप लौट गए.

भाभी घर की बहू से अब हमारे घर का बेटा बन गई थीं. Online Hindi Story

Best Family Story: एक्स मंगेतर बनी मजिस्ट्रेट

Best Family Story: जून का अंतिम सप्ताह और आकाश में कहीं बादल नहीं. अभय को आज हर हाल में रामपुर पहुंचना है वरना ऐसी गरमी में वह क्यों यात्रा करता? वह तो स्टेशन पहुंचने से ले कर रिजर्वेशन चार्ट में अपना नाम ढूंढ़ने तक में ही पसीनापसीना हो गया. पर अपने फर्स्ट क्लास एसी डब्बे में पहुंचते ही उस ने राहत की सांस ली. सामने की सीट पर एक सुंदर महिला बैठी थी. यात्रा में ऐसे सहयात्री का सान्निध्य अच्छा लगता है.

‘‘सामान सीट के नीचे लगा दो,’’ अभय ने पानी की बोतल को खिड़की के पास की खूंटी से टांगते हुए कुली से कहा.

अभय ने महिला को कनखियों से देखा. वह एक बार उन लोगों को उचटती नजर से देख कुछ पढ़ने में व्यस्त हो गई है. इस बीच कुली ने सामान सीट के नीचे रख दिया. जेब से पर्स निकाल कर कुली को मुंहमांगी मजदूरी के साथसाथ अभय ने 10 रुपए बख्शिश भी दी. कुली के डब्बे से उतरते ही गाड़ी ने रेंगना शुरू कर दिया. गाड़ी स्टेशन, शहर पीछे छोड़ती जा रही थी. अब बेफिक्र हो कर अभय ने पूरे डब्बे में नजर दौड़ाई. पूरे डब्बे में सिर्फ वे दोनों ही थे. ऐसा सुखद संयोग पा कर अभय खुश हो उठा. थोड़ी देर बाद अपने जूते उतार कर, बाल संवार कर वह बर्थ पर इस प्रकार टेक लगा कर बैठा कि उस महिला को भलीभांति निहार सके. महिला वास्तव में सुंदर थी. वह लगभग 34-35 वर्ष की तो रही होगी पर देखने से काफी कम आयु की लग रही थी.

अभय उस महिला से संवाद स्थापित करने हेतु व्यग्र हो उठा. पर महिला अपने आसपास के वातावरण से बेखबर पढ़ने में व्यस्त थी. उस की बर्थ पर एक ओर कई समाचारपत्र और पत्रिकाएं रखी हुई थीं और वह एक पुस्तक खोले उस से अपनी नोटबुक में कुछ नोट करती जा रही थी. अभय के बैग में भी 2-3 पत्रिकाएं रखी थीं. पर उन्हें निकालने के बजाय महिला से संवाद करने के उद्देश्य से उस ने शालीनता से पूछा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी मैडम, क्या मैं यह मैगजीन देख सकता हूं?’’ महिला ने एक बार सपाट नजर से उसे देखा. 36-37 वर्ष का स्वस्थ, ऊंचे कद का व्यक्ति, गेहुआं रंग और उन्नत मस्तक. कुल मिला कर आकारप्रकार से संभ्रांत और सुशिक्षित दिखाई देता व्यक्ति. महिला ने बिना कुछ कहे मैगजीन उस की ओर बढ़ा दी. तभी अचानक उसे लगा कि इस व्यक्ति को उस ने कहीं देखा है? पर कब और कहां?

दिमाग पर जोर देने पर भी उसे कुछ याद नहीं आया. थक कर उस ने यह विचार मन से झटक दिया और पुन: अपने काम में मशगूल हो गई. गाड़ी लखनऊ स्टेशन पर रुक रही थी. महिला को अपना सामान समेटते देख कर अभय इस आशंका से भयभीत हो उठा कि कहीं यह सुखद सान्निध्य यहीं तक का तो नहीं? अभी तो कोई बात भी नहीं हो पाई है. तभी महिला ने दूसरी नोटबुक और किताब निकाल ली और पुन: कुछ लिखने में व्यस्त हो गई. अभय ने यह देख राहत की सांस ली.

अचानक डब्बे का दरवाजा खुला. टीटी ने अंदर झांका और फिर सौरी कह कर दरवाजा बंद कर दिया. दरवाजा फिर खुला और सफेद वरदी में एक व्यक्ति, जो उस महिला का अरदली था और द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर रहा था, ने आ कर उस महिला से सम्मान से पूछा, ‘‘मेम साहब, चाय, कौफी या फिर ठंडा लाऊं?’’

‘‘हां, स्ट्रौंग कौफी ले आओ,’’ महिला ने बिना नजरें उठाए कहा.

जब अरदली जाने लगा तो अभय ने उसे आवाज दे कर बुलाया, ‘‘सुनो, 1 कप कौफी मेरे लिए भी ले आना.’’

अरदली ने ठिठक कर महिला की ओर देखा और उस की मौन स्वीकृति पा कर चला गया. महिला अब अभय के बारे में सोचने लगी कि पुरुष मानसिकता की कितनी स्पष्ट छाप है इस की हर गतिविधि में. थोड़ी ही देर में अरदली 2 कप कौफी दे कर लौट गया. अभय ने कौफी का सिप लेते ही कहा, ‘‘कौफी अच्छी बनी है.’’

मगर महिला बिना कुछ बोले कौफी पीती रही. अभय समझ नहीं पा रहा था कि अब वह महिला से कैसे संवाद स्थापित करे. वह कुछ बोलने ही जा रहा था कि तभी बैरा अंदर आ गया. उस ने पूछा, ‘‘साहब, लंच कहां सर्व किया जाए?’’

‘‘लखनऊ में तो दूसरा बैरा आया था, अब तुम कहां से आ गए?’’ अभय ने पूछा.

‘‘नहीं तो साहब… लखनऊ में भी मैं ही इस डब्बे के साथ था.’’

दोनों के वार्त्तालाप के मध्य हस्तक्षेप कर महिला ने कहा, ‘‘वह बैरा नहीं, मेरा अरदली था.’’ यह सुन कर अभय लज्जित हो उठा. उस ने बैरे को फौरन लंच के लिए और्डर दे कर विदा कर दिया. महिला ने पहले ही अपने लिए कुछ भी लाने को मना कर दिया था. वह मन ही मन सोच रहा था कि उच्चपदासीन होने के बावजूद उस के जीवन में अब तक ऐसी कोई महिला नहीं आई, जिस से संवाद स्थापित करने की ऐसी प्रबल इच्छा होती. कार और सुंदर बंगला मिलने के प्रलोभन में ऐसी पत्नी मिली, जिस से उस का मानसिक स्तर पर कभी अनुकूलन न हो सका. ‘काश, ऐसी महिला आज से कुछ वर्ष पहले मेरे जीवन में आई होती.’

अभय ने पुन: वार्त्ता का सूत्र जोड़ने का प्रयास किया, ‘‘मैडम, आप ने लंच और्डर नहीं किया. क्या आप हरदोई या शाहजहांपुर तक ही जा रही हैं?’’

महिला ने उसे ध्यान से देखा. उसे खीज हुई कि यह व्यक्ति उस की रुखाई के बावजूद निरंतर उस से बात करने का प्रयास किए जा रहा है. ‘इसे पहले कहीं देखा है’ एक बार फिर इस प्रश्न के कुतूहल ने सिर उठाया, पर व्यर्थ. उसे कुछ याद नहीं आ रहा था. फिर अपने दिमाग पर अनावश्यक जोर देने के बजाय उस ने संक्षिप्त उत्तर दिया, ‘‘नहीं, मैं बरेली तक जा रही हूं.’’

‘‘क्या वहां आप का मायका है?’’

‘‘नहीं, मेरा मायका तो फैजाबाद में है. दरअसल, मैं बरेली में एडीशनल मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात हूं.’’

यह सुनते ही अभय के मन में एक हूक सी उठी. फिर उस ने लुभावने अंदाज में कहा, ‘‘आप जैसी शख्सीयत से मिलने पर बहुत खुशी हो रही है.’’

फिर अभय सहसा अपने बारे में बताने के लिए बेचैन हो उठा. बोला, ‘‘मैडम, मैं भी जनपद फैजाबाद का रहने वाला हूं. इस समय मैं हरिद्वार में पीडब्लूडी में अधीक्षण अभियंता के पद पर हूं. अभय प्रताप सिंह नाम है मेरा. मेरे पिता ठाकुर विक्रम प्रताप सिंह भी अपने क्षेत्र के नामी ठेकेदार हैं.

‘‘मेरा विवाह सुलतानपुर के एक संभ्रांत ठाकुर घराने में हुआ है. मेरे ससुर भी हाइडिल विभाग में उच्चाधिकारी हैं,’’ अभय नौनस्टौप बोले जा रहा था.

पर ठाकुर विक्रम प्रताप सिंह का नाम सुनते ही महिला को कुछ और सुनाई देना बंद हो गया. एक झटके से विस्मृति के सारे द्वार खुल गए. उसे अपने जीवन की घनघोर पीड़ा का वह अध्याय याद हो आया, जिसे वह अब तक भूल न सकी थी. फिर एक गहरी सांस छोड़ कर महिला ने सोचा कि कुदरत जो करती है, अच्छा ही करती है.

एक दिन इसी अभय से उस की सगाई हुई थी. वह तो मन ही मन उसे अपना पति मान चुकी थी, पर धनसंपदा के प्रलोभन में अभय के पिता ने यह सगाई तोड़ दी थी. बड़ा अपमान हुआ था उस के सीधेसादे बाबूजी का. मगर उसी अपमान के तीखे दंश उसे निरंतर आगे बढ़ने को प्रेरित करते रहे. अपने बाबूजी के खोए सम्मान को वापस पाने हेतु उस ने कड़ी मेहनत की. आज उस के पास सब कुछ है फिर भी उस में एक अजब सा वैराग्य आ गया है, जो शायद इसी व्यक्ति के प्रति कभी रहे उस के गहन अनुराग को ठुकराए जाने का परिणाम है. पर आज अभय की आंखों में अपने प्रति सम्मान और प्रशंसा देख कर उस की सारी गांठें जैसे अपनेआप खुलती चली गईं. गाड़ी बरेली स्टेशन पर रुकी. अरदली ने महिला का सामान उठाया. महिला डब्बे से बाहर जाने के लिए बढ़ी, फिर अनायास अभय की ओर मुड़ी और बोली, ‘‘पहचानते हैं मुझे? मैं उन्हीं ठाकुर विजय सिंह की बेटी निकिता हूं, जिस से कभी आप की सगाई हुई थी,’’ और फिर अभय को अवाक छोड़ डब्बे से उतर गई. बाहर उस के पति और बच्चे उसे रिसीव करने आए थे. Best Family Story

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