Hindi Kahani : मन का घोड़ा

Hindi Kahani : ‘‘अंकुरकी शादी के बाद कौन सा कमरा उन्हें दिया जाए, सभी कमरे मेहमानों से भरे हैं. बस एक कमरा ऊपर वाला खाली है,’’ अपने बड़े बेटे अरुण से चाय पीते हुए सविता बोलीं.

‘‘अरे मां, इस में इतना क्या सोचना? हमारे वाला कमरा न्यूलीवैड के लिए अच्छा रहेगा. हम ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो जाएंगे,’’ अरुण तुरंत बोला.

यह सुन पास बैठी माला मन ही मन बुदबुदा उठी कि आज तक जो कमरा हमारा था, वह अब श्वेता और अंकुर का हो जाएगा. हद हो गई, अरुण ने मेरी इच्छा जानने की भी जरूरत नहीं समझा और कह दिया कि न्यूलीवैड के लिए यह अच्छा रहेगा. तो क्या 15 दिन पूर्व की हमारी शादी अब पुरानी हो गई?

तभी ताईजी ने अपनी सलाह देते हुए कहा, ‘‘अरुण, तुम अपना कमरा क्यों छोड़ते हो? ऊपर वाला कमरा अच्छाभला है. उसे लड़कियां सजासंवार देंगी. और हां, अपनी दुलहन से भी तो पूछ लो. क्या वह अपना सुहागकक्ष छोड़ने को तैयार है?’’ और फिर हलके से मुसकरा दीं.

पर अरुण ने तो त्याग की मूर्ति बन झट से कह डाला, ‘‘अरे, इस में पूछने वाली क्या बात है? ये नए दूल्हादुलहन होंगे और हम 15 दिन पुराने हो गए हैं.’’

ये शब्द माला को उदास कर गए पर गहमागहमी में किसी का उस की ओर ध्यान न गया. ससुराल की रीति अनुसार घर की बड़ी महिलाएं और नई बहू माला बरात में नहीं गए थे. अत: बरात की वापसी पर दुलहन को देखने की बेसब्री हो रही थी. गहनों से लदी छमछम करती श्वेता ने अंकुर के संग जैसे ही घर में प्रवेश किया वैसे ही कई स्वर उभर उठे, वाह, कितनी सुंदर जोड़ी है.

‘‘कैसी दूध सी उजली बहू है, अंकुर की यही तो इच्छा थी कि लड़की चांद सी उजली हो,’’ बूआ सास दूल्हादुलहन पर रुपए वारते हुए बोलीं.

माला चुपचाप एक तरफ खड़ी देखसुन रही थी. तभी सविताजी ने माला को नेग वाली थाली लाने को कहा और इसी बीच कंगन खुलाई की रस्म की तैयारी होने लगी. महिलाओं की हंसीठिठोली और ठहाके गूंज रहे थे पर माला अपनी कंगन खुलाई की यादों में खो गई…

फूल और पानी भरी परात से जब माला ने 3 बार अंगूठी ढूंढ़ निकाली तब सभी ने एलान कर डाला, ‘‘भई, अब तो माला ही राज करेगी और अरुण इस का दीवाना बना घूमेगा.’’

पर माला तो अरुण का चेहरा देखने को भी तरसती रही. भाई की शादी की व्यस्तता व मेहमानों, दोस्तों की गहमागहमी में माला का ध्यान ही नहीं आया. माला के कुंआरे सपने साकार होने को तड़पते और मन में उदासी भर देते, फिर भी माला सब के सामने मुसकराती बैठी रहती.

शाम 4 बजे रीता ने आवाज लगाई, ‘‘जिसे भी चाय पीनी हो वह जल्दी से यहां आ जाए. मैं दोबारा चाय नहीं बनाऊंगी.’’

‘‘ला, मुझे 1 कप चाय पकड़ा दे. फिर बाहर काम से जाना है,’’ अरुण ने भीतर आते हुए कहा.

‘‘ठहरो भाई, पहले एक बात बताओ. वह आप के हस्तविज्ञान व दावे का क्या रहा जब आप ने कहा था कि मेरी दुलहन एकदम गोरीचिट्टी होगी. यह बात तो अंकुर भाई पर फिट हो गई,’’ कह रीता जोरजोर से हंसने लगी.

‘‘अच्छा, एक बात बता, मन का लड्डू खाने में कोई बंदिश है क्या?’’ अरुण ने हंसते हुए कहा.

तभी ताई सास ने अपनी बेटी रीता को डपट दिया, ‘‘यह क्या बेहूदगी है? नईनवेली बहुएं हैं, सोचसम?ा कर बोलना चाहिए… और अरुण तेरी भी मति मारी गई है क्या, जो बेकार की बातों में समय बरबाद कर रहा है?’’

शादी के बाद अंकुर और श्वेता हनीमून पर ऊटी चले गए ताकि अधिकतम समय एकदूसरे के साथ व्यतीत कर सकें, क्योंकि 20 दिनों के बाद ही अंकुर को लंदन लौटना था. श्वेता तो पासपोर्ट और वीजा लगने के बाद ही जा पाएगी. हनीमून पर जाने का प्रबंध अरुण ने ही किया था. ये सब बातें माला को पिछले दिन रीता ने बताई थीं. घर के सभी लोग अरुण की प्रशंसा के पुल बांध रहे थे पर माला के मन में कांटा सा गड़ गया. मन में अरुण के प्रति क्रोध की ज्वाला उठने लगी.

‘हमारा हनीमून कहां गया? अपने लिए इन्होंने क्यों कुछ नहीं सोचा? क्यों? रोऊं, लडं़ू… क्या करूं?’ ये सवाल, जिन्हें संकोचवश अरुण से स्पष्ट नहीं कर पा रही थी, उस के मन को लहूलुहान कर रहे थे.

समय का पहिया अंकुर को लंदन ले गया. ऐसे में श्वेता अकेलापन अनुभव न करे, इसलिए घर का हर सदस्य उस का ध्यान रखने लगा था. भानजी गीता तो उसे हर समय घेरे रहती. माला तो जैसे कहीं पीछे ही छूटती जा रही थी. तभी तो माला शाम के धुंधलके में अकेली छत पर खड़ी स्वयं से बतिया रही थी कि मानती हूं कि श्वेता को अंकुर की याद सताती होगी. पर सारा परिवार उसी से चिपका रहे, यह तो कोई बात न हुई. मैं भी तो 2 माह से यहीं रह रही हूं और अरुण भी तो दिल्ली से सप्ताह के अंत में 1 दिन के लिए आते हैं. मु?ा से हमदर्दी क्यों नहीं?

तभी किसी के आने की आहट से उस की विचारधारा भंग हो गई.

‘‘माला, तुम यहां अकेली क्यों खड़ी हो? चलो, नीचे मां तुम्हें बुला रही हैं. और हां कल सुबह की ट्रेन से दिल्ली निकल जाऊंगा. तुम श्वेता का ध्यान रखना कि वह उदास न हो. वैसे तो सभी ध्यान रखते हैं पर तुम्हारा ध्यान रखना और अच्छा रहेगा…’’

अरुण आगे कुछ और कहता उस से पहले ही माला गुस्से से चिल्ला पड़ी, ‘‘उफ, सब के लिए आप के मन में कोमल भावनाएं हैं पर मेरे लिए नहीं. क्या मैं इतनी बड़ी हो गई हूं कि

मैं सब का ध्यान रखूं और खुद को भूल जाऊं? मेरी इच्छाएं, मेरी कल्पनाएं, मेरा हनीमून उस का क्या?’’

अरुण हैरान सा माला को देखता रह गया, ‘‘आज तुम्हें यह क्या हो गया है माला? तुम श्वेता से अपनी तुलना कर रही हो क्या? उस के नाम से तुम इतना अपसैट क्यों हो गईं?’’

‘‘नहीं, मैं किसी से तुलना क्यों करूंगी? मु?ो अपना स्थान चाहिए आप के दिल में… परसों कौशल्या बाई बता रही थी कि अरुण भैया तो ब्याह के लिए तैयार ही नहीं थे. वह तो मांजी

3 सालों से पीछे लगी थीं तब उन्होंने हामी भरी थी. तो क्या आप के साथ शादी की जबरदस्ती हुई है? और उस दिन रीता ने जो हस्तविज्ञान वाली बात कही थी, इस से लगता है कि आप की चाहत शायद कोई और थी पर…’’ माला ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘उफ, तुम औरतों का दिमागी घोड़ा बिना लगाम के दौड़ता है. तुम इन छोटीछोटी व्यर्थ की बातों का बतंगड़ बनाना छोड़ो और मन शांत करो. अब नीचे चलो. सब खाने पर इंतजार कर रहे हैं.’’

वह दिन भी आ गया जब माला अरुण के साथ दिल्ली आ गई. यहां अपना घर सजातेसंवारते उस के सपने भी संवर रहे थे. अरुण के औफिस से लौटने से पहले वह स्वयं को आकर्षक बनाने के साथ ही कुछ न कुछ नया पकवान, चाय आदि बनाती. फिर दोनों की गप्पों व कुछ टीवी सीरियल देखतेदेखते रात गहरा जाती तो दोनों एकदूसरे के आगोश में समा जाते.

हां, एक बार छुट्टी के दिन माला ने दिल्ली दर्शन की इच्छा भी व्यक्त की थी तो, ‘‘ये रोमानी घडि़यां साथ बिताने के लिए हैं, हमारा हनीमून पीरियड है यह. फिर दिल्ली तो घूमना होता ही रहेगा जानेमन,’’ अरुण का यह जवाब गुदगुदा गया था.

शनिवार की छुट्टी में अरुण अलसाया सा लेटा था कि तभी मोबाइल बज उठा. अरुण फोन उठा कर बोला, ‘‘हैलो… अच्छा ठीक है, मैं कल स्टेशन पहुंच जाऊंगा. ओ.के. बाय.’’

‘‘किस का फोन था?’’ चाय की ट्रे ले कर आती माला ने पूछा.

‘‘श्वेता का. वह कल आ रही है. उसे मैं रिसीव करने जाऊंगा,’’ कह अरुण ने चाय का कप उठा लिया.

श्वेता के आने की खबर से माला का उदास चेहरा अरुण से छिपा न रह सका, ‘‘क्या हुआ? अचानक तुम गुमसुम सी क्यों हो गईं?’’ अरुण ने उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘अभी दिन ही कितने हुए हैं हमें साथ समय बिताते कि…’’

‘‘अरे यार, उस के आने से रौनक हो जाएगी, कितना हंसतीबोलती है. तुम्हारा भी पूरा दिन मन लगा रहेगा. सारा दिन अकेले बोर होती हो,’’ माला की बात बीच में ही काटते हुए अरुण ने कहा.

माला चुपचाप चाय की ट्रे उठा कर रसोई की ओर बढ़ गई.

‘फिर वही श्वेता. क्या वह अपने मायके या ससुराल में नहीं रह सकती थी कुछ महीने? फिर चली आ रही है दालभात में मूसलचंद. ‘खैर, मुसकराहट तो ओढ़नी ही होगी वरना अरुण न जाने क्या सोचने लगें.’ मन ही मन सोच माला नाश्ते की तैयारी करने लगी.

छुट्टी के दिन अरुण श्वेता और माला को एक मौल में ले गया. वहां की चहलपहल और भीड़ का कोई छोर ही न था. श्वेता की खुशी देखते ही बन रही थी, ‘‘भाभी, आप तो बस जब मन आए यहीं चली आया करो. यहां शौपिंग का मजा ही कुछ और है,’’ माला की ओर देख उस ने कहा.

‘‘मुझे तो अरुण, पहले कभी यहां लाए ही नहीं. यह सब तो तुम्हारे कारण हो रहा है,’’ माला उदासी भरे स्वर से बोली.

‘‘अच्छा,’’ श्वेता का स्वर उत्साहित हो उठा.

वहीं मौल में खाना खाते हुए श्वेता की आंखें चमक रही थीं. बोली, ‘‘वाह, खाना कितना स्वादिष्ठ है.’’

इस पर अरुण ने हंस कर कहा, ‘‘मु?ो मालूम था कि श्वेता तुम ऐंजौय करोगी. तभी तो यहां लंच लेने की सोची.’’

‘‘और मैं?’’ माला ने अरुण से पूछ ही लिया.

‘‘अरे, तुम तो मेरी अर्द्धांगिनी हो, जो मुझे पसंद वही तुम्हें भी पसंद आता है, अब तक मैं यह तो जान ही गया हूं. इसलिए तुम्हें भी यहां आना तो अच्छा ही लगा होगा.’’

बुधवार की सुबह अखबार थामे श्वेता बोली, ‘‘बिग बाजार में 50% की बचत पर सेल लगी है. भैया, मुझे क्व5,000 दे देंगे? क्व2000 तो हैं मेरे पास. मैं और भाभी ड्रैसेज लाएंगी. ठीक है न भाभी? लंदन में यही ड्रैसेज काम आ जाएंगी.’’

‘‘हांहां, क्रैडिट कार्ड ले लेगी माला… दोनों शौपिंग कर लेना.’’

माला अरुण को मुंह बाए खड़ी देखती रह गई कि क्या ये वही अरुण हैं, जिन्होंने कहा था कि पहले शादी में मिली ड्रैसेज को यूज करो, फिर नई खरीदना. तो क्या श्वेता को ड्रैसेज का ढेर नहीं मिला है शादी में? ये छोटीबड़ी बातें माला का मन कड़वाहट से भरती जा रही थीं.

उस दिन तो माला का मन जोर से चिल्लाना चाहा था जब श्वेता बिस्तर में सुबह 9 बजे तक चैन की नींद ले रही थी और वह रसोई में लगी हुई थी. तभी अरुण ने श्वेता को चाय दे कर जगाने को कह दिया. वह जानती थी कि अरुण को देर तक बिस्तर में पड़े रहना पसंद नहीं. फिर श्वेता से कुछ भी क्यों नहीं कहा जाता? मन में उठता विचारों का ज्वार, सुहागरात की ओर बहा ले गया कि मु?ो तो प्रथम मिलन की रात्रि में प्यार के पलों से पहले संस्कार, परिवार के नियमों आदि का पाठ पढ़ाया था अरुण ने… फिर तभी चाय उफनने की आवाज उसे वर्तमान में ले आई.

मैं आज और अभी अरुण से पूछ कर ही रहूंगी, सोच माला बाथरूम में शेव करते अरुण के पास जा खड़ी हुई.

‘‘क्या बात है? कोई काम है क्या?’’ शेविंग रोक अरुण ने पूछा.

‘‘क्या मैं जबरदस्ती आप के गले मढ़ी गई हूं? क्या मुझ में कोई अच्छाई नहीं है?’’

अरुण हाथ में शेविंगब्रश लिए हैरान सा खड़ा रहा.

पर माला बोलती रही, ‘‘हर समय बस श्वेताश्वेता. मु?ा से तो परंपरा निभाने की बात करते रहे और इस का बिंदासपन अच्छा लगता है. आखिर क्यों?’’ माला का चेहरा लाल होने के साथसाथ आंसुओं से भी भीग चला था.

‘‘तुम्हारा तो दिमाग खराब हो गया है. तुम्हारे मन में इतनी जलन, ईर्ष्या कहां से आ गई? श्वेता के नाम से चिढ़ क्यों हो रही है? देवरानी तो छोटी बहन जैसी होती है और तुम तो न जाने…’’

‘‘बस फिर शुरू हो गया मेरे लिए आप का प्रवचन. उस की हर बात गुणों से भरी होती है और मेरी बुराई से,’’ कह पांव पटकती माला अपने कमरे में चली गई.

अरुण बिना नाश्ता किए व लंच टिफिन लिए औफिस चला गया.

उस दिन माला को माइग्रेन का अटैक पड़ गया. सिरदर्द धीरेधीरे बढ़ता उस की सहनशक्ति से बाहर हो गया. उलटियों के साथसाथ चक्कर भी आ रहा था. श्वेता ने मैडिकल किट छान मारी पर दर्द की कोई गोली नहीं मिली. उस ने अरुण को फोन किया तो सैक्रेटरी ने बताया कि वे मीटिंग में व्यस्त हैं.

इधर माला अपना सिर पकड़ रोए जा रही थी. तभी श्वेता 10 मिनट के अंदर औटो द्वारा मैडिकल स्टोर से दर्द की दवा ले आई और कुछ मानमनुहार तथा कुछ जबरदस्ती से माला को दवा खिलाई. माथे पर बाम मल कर धीरेधीरे सिरमाथे को तब तक दबाती रही जब तक माला को नींद नहीं आ गई.

करीब 2 घंटे बाद माला की आंखें खुलीं. तबीयत में काफी सुधार था. सिर हलका लग रहा था. उस ने उठ कर इधरउधर नजर दौड़ाई तो

देखा श्वेता 2 कप चाय व स्नैक्स ले कर आ रही है.

‘‘अरे भाभी, आप उठो नहीं… यह लो चाय और कुछ खा लो. शाम के खाने की चिंता मत करना, मैं बना लूंगी. हां, आप जैसा तो नहीं बना पाऊंगी पर ठीकठाक बना लूंगी,’’ कह उस ने चाय का प्याला माला को थमा दिया.

माला श्वेता के इस व्यवहार को देख उसे ठगी सी देखती रह गई.

‘‘क्या हुआ भाभी?’’

‘‘मुझे माफ कर दो श्वेता, मैं ने तो न मालूम क्याक्या सोच लिया था… तुम्हें प्रतिद्वंद्वी के रूप में देख रही थी. और…’’

‘‘नहींनहीं भाभी, और कुछ मत कहिए आप, अब मैं आप से कुछ भी नहीं छिपाऊंगी. सच में ही मु?ो अपने रंगरूप पर अभिमान रहा है. मु?ा में उतना धैर्य नहीं जितना आप में है. इसीलिए मैं आप को चिढ़ाने के लिए अपने में व्यस्त रही… आप की कोई मदद नहीं करती थी. भाभी, आप मुझे माफ कर दीजिए. आज से हम रिश्ते में भले ही देवरानीजेठानी हैं पर रहेंगी छोटीबड़ी बहनों की तरह,’’ और फिर दोनों एकदूसरे के गले से लग गईं.

‘‘सच श्वेता. मैं आज से अपने मन को गलत दिशा की तरफ भटकने से रोकूंगी और तुम्हारे भैया से माफी भी मांगूंगी.’’

अब श्वेता व माला एकदूसरे को देख कर मुसकरा रही थीं.

Hindi Moral Tales : बाटी चोखा – क्या हुआ था छबीली के साथ

Hindi Moral Tales :  ‘‘बिहार से हम मजदूरों को मुंबई तुम ले कर आए थे… अब हम अपनी समस्या तुम से न कहें तो भला किस से कहने जाएं?’’ छबीली ने कल्लू ठेकेदार से मदद मांगते हुए कहा.

कल्लू ठेकेदार ने बुरा सा मुंह बनाया और बोला, ‘‘माना कि मैं तुम सब को बिहार से यहां मजदूरी करने के लिए लाया था, पर अब अगर तुम्हारा पति मजदूरी करते समय अपना पैर तुड़ा बैठा तो इस में मेरा तो कोई कुसूर नहीं है.

‘‘हां… 2-4 सौ रुपए की जरूरत हो, तो मैं अभी दे देता हूं.’’

छबीली ने कल्लू के आगे हाथ जोड़ लिए और बोली, ‘‘2-4 सौ से तो कुछ न होगा… बल्कि हमें तो अपनी जीविका चलाने और धंधा जमाने के लिए कम से कम 20 हजार रुपए की जरूरत होगी.’’

‘‘20 हजार… रुपए… मान ले कि मैं ने तुझे 20 हजार रुपए दे भी दिए, तो तू वापस कहां से करेगी… ऐसा क्या है तेरे पास?’’ कल्लू ने छबीली के सीने को घूरते हुए कहा, जिस पर छबीली ने उस की एकएक पाई धीरेधीरे लौटा देने का वादा किया, पर कल्लू की नजर तो छबीली की कसी हुई जवानी पर थी, इसलिए वह उसे परेशान कर रहा था.

‘‘इस दुनिया में, इस हाथ दे… उस हाथ ले का नियम चलता है छबीली,’’ कल्लू ने अपनी आंखों को सिकोड़ते  हुए कहा.

छबीली अब तक कल्लू की नीयत को अच्छी तरह भांपने लगी थी, फिर भी वह चुपचाप खड़ी रही.

‘‘देख छबीली, मैं तुझे 20 हजार रुपए दे तो दूंगा, पर उस के बदले तुझे अपनी जवानी को मेरे नाम करना होगा. जब तक तू पूरा पैसा मुझे लौटा नहीं देगी, तब तक तेरी हर रात पर मेरा हक होगा,’’ कल्लू ठेकेदार छबीली की हर रात का सौदा करना चाह रहा था.

छबीली को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, पर वह पैर के अंगूठे से जमीन की मिट्टी को कुरेदने लगी थी.

वैसे भी छबीली का मर्द जोखू लंगड़ा हो चुका था और मजदूरी के लायक नहीं था. मुंबई जैसे शहर में उन्हें पेट भरने के लिए कुछ धंधा जमाना था, जिस के लिए एकमुश्त रकम चाहिए थी, जो सिर्फ कल्लू ठेकेदार ही दे सकता था.

छबीली ने अपने बिहार के गांव में सुन रखा था कि बड़ीबड़ी हीरोइनें भी फिल्मों में काम पाने के लिए लोगों के साथ सोने में नहीं हिचकती हैं और वह तो एक मामूली मजदूर की बीवी है… मजबूरी इनसान से क्याक्या नहीं कराती… और फिर अपनी इज्जत के सौदे वाली बात वह अपने मरद को थोड़े ही बताएगी.

काफी देर तक सोचविचार के बाद छबीली ने 20 हजार रुपए के बदले अपनी हर रात कल्लू ठेकेदार के नाम करने का फैसला कर लिया.

बिहार से लाए गए सारे मजदूर अपने परिवार के साथ एक बिल्डिंग में काम करते थे और उसी बिल्डिंग के एक कोने में इन सभी मजदूरों ने अपने रहने की जगह बना रखी थीं.

छबीली उसी बिल्डिंग के तीसरे फ्लोर पर बने एक कमरे में चली गई

रात में अपने मरद को खिलापिला कर सुलाने के बाद छबीली उसी बिल्डिंग के तीसरे फ्लोर पर बने एक कमरे में चली गई, जहां ठेकेदार रहता था. रातभर कल्लू ठेकेदार ने छबीली के शरीर को ऐसे नोचा, जैसे कोई भूखा भेडि़या मांस के टुकड़े को नोचता है.

सुबह छबीली का पोरपोर दुख रहा था, पर उस के हाथ में 20 हजार रुपए आ चुके थे, जिन से वह अपने लंगड़े आदमी के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ कर सकेगी.

अपने पति को बिना कुछ बताए ही छबीली ने उन पैसों से एक छोटा सा ठेला खरीद तो लिया, पर अब वह यह सोचने लगी कि इस पर धंधा क्या किया जाए?

यह मुंबई का ऐसा एरिया था, जहां पर तमाम कंपनियों के औफिस थे. लिहाजा, खानेपीने का सामान अच्छा बिक सकता था. यहां तो पावभाजी और वडा पाव जैसी चीजें ही लोग खाते थे और छबीली तो ठेठ बिहार से आई थी. उसे तो इन चीजों को बनाना ही नहीं आता था. अपने मरद जोखू से उस ने ये बातें कीं, तो उस ने समाधान बताया कि जब वह मजदूरी करने जाता था, तो उस के गमछे मे बंधे हुए बाटीचोखे को देख कर मुंबई के लोकल लोगों के मुंह में भी पानी आ जाता था.

मुंबई में भी लोग बाटीचोखा के दीवाने हैं, इसलिए हमें भी वही काम करना होगा.

अपने मरद की यह बात छबीली को जम गई थी. उस ने ठेले पर ही एक बड़ा सा तसला रख लिया, जिस में वह आटे की लोई को आग में पका सकती थी. कुछ लकडि़यां और उपले और एक तरफ चोखे के लिए जरूरी सब्जियां जैसे आलू, प्याज, टमाटर वगैरह रख लीं.

छबीली ने हरे पत्ते के बने हुए दोने भी पास ही रख लिए थे और अब उस का ठेला तैयार हो चुका था अपने पहले दिन की बिक्री के लिए.

ठेले को एक ओर लगा कर छबीली गरमागरम बाटी बनाने लगी.

छबीली को झिझक लग रही थी, आतेजाते लोग उसे घूर रहे थे.

‘‘तुम यूपी, बिहार वाले मजदूर… हमारे यहां पर आ कर गंदगी बढ़ाते हो,’’ एक गुंडे सा दिखने वाला मोटा आदमी अपने 1-2 गुरगों के साथ छबीली की तरफ देखते हुए कह रहा था.

‘‘भैया… हम गरीब मजदूर लोग हैं… पेट भरने के लिए कुछ काम तो करना ही है… तभी तो यह ठेला…’’ छबीली हाथ जोड़ कर कह रही थी.

‘‘ऐ… ऐ… यह भैयावैया से काम नहीं चलने वाला… अपन इस इलाके का भाई है… बोले तो अन्ना… मतलब डौन… और तेरे को ठेला लगाना है, तो इस जगह का भाड़ा देना होगा.’’

उस का लंगड़ा मरद जोखू भी निराश हो रहा था

‘‘पर, अभी तक तो बोहनी भी नहीं…’’ छबीली ने कहा, तो उस गुंडे ने शाम तक आने की बात कही और अपने आदमियों के साथ वहां से चला गया.

छबीली ने राहत की सांस ली, पर अभी तक ग्राहक उस के ठेले के पास नहीं आ रहे थे. उस का लंगड़ा मरद जोखू भी निराश हो रहा था.

‘‘लग रहा है कि हमारी लागत भी बेकार जाएगी और हम एक दिन ऐसे ही बिना रोजीरोटी के मर जाएंगे,’’ जोखू ने कहा, तो छबीली ने उसे उम्मीद बंधाई कि अभी नयानया मामला है, थोड़ा समय तो लगेगा ही.

छबीली ने ध्यान दिया कि लोगों की भीड़ तो खाने के लिए आ रही है, पर ज्यादातर लोग सड़क के दूसरी ओर लगे हुए एक फास्ट फूड के एक बढि़या से खोखे पर जा रहे हैं, जहां पर बुरी सी शक्ल का 40-45 साल का आदमी बैठा था, जिस ने अपने सिर के बालों को रंगवा रखा था और उस के बाल किसी कालेभूरे पक्षी के बालों की तरह लग  रहे थे.

उस खोखे पर चाऊमीन, बर्गर, मोमोज वगैरह बिकते थे, जिन्हें नेपाली सी लगने वाली एक लड़की बनाती थी और लोग बहुत चाव से ये सारी चीजें न केवल खाते थे, बल्कि उन्हें पैक करवा कर भी ले जाते थे.

छबीली के काम में इस भीड़ को अपने ठेले की तरफ खींचना पहली चुनौती थी. उसे याद आया कि गांव के मेले में कैसे एक चीनी की मीठीमीठी चिडि़या बनाने वाला गाना गागा कर लोगों को रिझाता था और लोग भी उस की चिडि़या से ज्यादा उस के गाने को सुनने के लिए उस के पास खिंचे चले आते थे.

छबीली मन ही मन कुछ गुनगुनाने लगी थी, पर तेज आवाज में गाने में उसे हिचक सी लग रही थी. उस ने उड़ती हुई एक नजर अपने लाचार पति पर डाली और अचानक ही उसे हिम्मत आ गई और उस के गले से आवाज फूट पड़ी…

‘‘छैल छबीली आई है…

बाटीचोखा लाई है…

जो न इस को खाएगा…

जीवनभर पछताएगा.’’

लोगों के ध्यान को तो छबीली ने खींच लिया था, पर कुछ लोग ठिठक भी गए थे, लेकिन उस का ठेला अब भी कस्टमरों से खाली था.

छबीली अब तक लोगों की नजरों को पढ़ चुकी थी. वह समझ गई थी कि फास्ट फूड वाले खोखे पर बहुत सारे लोग तो अपनी आंखें सेंकने जाते हैं और उस लड़की से हंसीठिठोली का भी मजा लेते हैं. बस, फिर क्या था. छबीली ने तुरंत ही अपनी चोली के ऊपर का एक बटन खोल दिया, जिस से उस के सीने की गोलाइयां दिखने लगी थीं और जिस्मदिखाऊ अंदाज के साथ जब इस बार छबीली ने अपना गाना गाया, तो लोग उस के पास आने लगे.

कुछ बाटीचोखा का स्वाद लेने, तो कुछ उस के नंगे सीने को निहारने. वहीं पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो ये दोनों काम साथ में कर रहे थे.

वजह चाहे जो भी थी, शाम तक छबीली के ठेले पर बना हुआ सारा माल खप चुका था और अच्छीखासी दुकानदारी भी हो चुकी थी. छबीली की आंखें खुशी से नम हो गई थीं.

शाम ढली तो अन्ना के आदमी छबीली से उस जगह का हफ्ता मांगने आ गए. छबीली ने सौ का नोट बढ़ाया, तो उन्होंने 2 सौ रुपए मांगे. इस के बाद छबीली ने एक 50 का नोट और दे दिया.

अन्ना के आदमी संतुष्ट होते दिखे और अगले हफ्ते फिर से आने की बात कह कर चले गए.

छबीली एक काम से फुरसत पाती, तो दूसरा काम सामने आ खड़ा होता. दिनभर की थकी हुई छबीली वापस आई, तो अपने और जोखू के लिए खाना बनाया. अभी तो उसे ठेकेदार की हवस भी तो बुझाने जाना था, जहां पर न जाने पर वह छबीली के साथ क्याक्या करेगा? पर छबीली करती भी क्या… फिलहाल तो उस के सामने कोई चारा भी नहीं था.

छबीली ग्राहकों को अपनी ओर खींचने का मंत्र जान चुकी थी. यहां कंपनी में काम करने वाले और सड़कों पर आतेजाते लोग जबान के स्वाद के साथसाथ बदन भी देखना चाह रहे थे और साथ ही कुछ भद्दे मजाक भी करना और सुनना पसंद करते थे.

मसलन, छबीली, तेरा मरद तो लंगड़ा है… यह तो कुछ कर नहीं पाता होगा… फिर तू अपना काम कैसे चलाती है?

ऐसी बातें सुन कर जोखू का मन करता कि उसे मौत क्यों नहीं आती, पर वह जानता था कि इस दुनिया में एक विधवा का जीना कितना मुश्किल होता है, इसलिए वह छबीली के लिए जिंदा रहना चाह रहा था.

छबीली उन लोगों की बातें और हाथ के गंदे इशारे समझ कर मन ही मन उन्हें गरियाती, पर सामने बस मुसकरा कर यही कहती, ‘‘हाय दइया… मत पूछो… बस चला लेती हूं काम किसी तरह… कभी बाटी आग के नीचे तो कभी बाटी आग के ऊपर,’’ और फिर भद्दी सी हंसी का एक फव्वारा छूट पड़ता.

धीरेधीरे छबीली की इन्हीं रसीली बातों के चलते ही उस का ठेला इस इलाके में नंबर वन हो गया था. छबीली को सिर उठाने की फुरसत ही नहीं मिलती, दिनभर काम करती, पर रात को उस ठेकेदार का बिस्तर गरम करने के लिए जाने में मन टीसता था.

दूसरी तरफ उस फास्ट फूड वाली दुकान पर इक्कादुक्का लोग ही नजर आते थे और हालात ये होने लगे थे कि फास्ट फूड वाले को अपनी दुकान बंद करने की नौबत लग रही थी.

फास्ट फूड दुकान चलाने वाले आदमी का नाम चीका था. वह एक शातिर आदमी था. उसे यह बात समझने में देर नहीं लगी कि छबीली के जिस्म और उस की बाटीचोखा के तिलिस्म को तोड़ना आसान नहीं है, इसलिए उस ने छबीली से मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया. इस के पीछे उस की मंशा छबीली के ठेले को यहां से हटा देने की थी, जिस से उस की दुकान पहले की तरह ही चलने लगती.

चीका अपना काम छोड़ कर छबीली के ठेले पर रोज जाता और उस की बाटीचोखा खा कर खूब तारीफ करता और कभीकभी तो कुछ छोटेमोटे तोहफे भी छबीली के लिए ले जाता. चीका छबीली को प्यार के झांसे में ले रहा था. साथ ही, चीका ने जोखू से भी जानपहचान बढ़ाई. वह जोखू को भी शराब पिला कर उसे पटाने की कोशिश कर रहा था.

छबीली भी उस की इन मेहरबानियों को खूब समझ रही थी, पर उसे भी चीका से अपना काम निकलवाना था, इसलिए वह भी चीका को रिझा रही थी.

‘‘मैं तुम से प्यार करने लगा हूं,’’ चीका ने छबीली की कमर पर कुहनी का दाब बढ़ाते हुए कहा.

‘‘पर, मैं कैसे मानूं…?’’ छबीली काम करतेकरते इठला कर बोली.

‘‘आजमा ले कभी,’’ चीका ने कहा, तो छबीली ने उसे रात में 10 बजे बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर वाले कमरे में आने को कहा.

छबीली के इस बुलावे को चीका उस का प्रेम समर्पण समझ रहा था और मन ही मन में जल्दी से रात आने का और छबीली के साथ मजे करने का ख्वाब देखने लगा.

रात में जोखू के सोने के बाद छबीली ठेकेदार के कमरे पर पहुंच गई. ठेकेदार शराब के नशे में धुत्त था. उस ने जैसे ही छबीली को दबोचने की कोशिश की, छबीली वैसे ही दूर भागती हुई बोली, ‘‘क्या रोजरोज एक ही स्टाइल… कभी कुछ नया तो करो.’’

छबीली की इस बात पर ठेकेदार मुसकराते हुए बोला कि वह आखिर उस से क्या चाहती है?

इस पर छबीली ने उसे बताया कि जैसा फिल्मों में दिखाते हैं न कि हीरोइन आगेआगे भागती है और एक गंदा आदमी उस का पीछा करता और उस के कपड़े फाड़ देता है और उस की इज्जत लूट लेता है, वैसा ही कुछ करो न.

‘‘बलात्कार वाला सीन चाह रही है…’’ ठेकेदार ने खुश होते हुए कहा और फिर नशे में झूमते हुए छबीली का पीछा करने लगा, छबीली भी भागने लगी

और जोरजोर से ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाने लगी.

तभी छबीली की चोली ठेकेदार के हाथों में फंस गई और झर्र की आवाज के साथ फट गई. ठीक उसी समय वहां पर चीका आ गया था. उस ने छबीली की आवाज सुनी, तो कमरे में झांका. अंदर का सीन देख कर उसे काटो तो खून नहीं. दोनों हाथों से अपने उभारों को छिपाए हुए छबीली पूरे कमरे में दौड़ रही थी और ठेकेदार उस की इज्जत लूटने की कोशिश कर रहा था.

यह देख कर चीका को गुस्सा आ गया. वह अंदर कूद पड़ा और छबीली के प्रेम की खातिर ठेकेदार को मारने लगा.

चीका ने उस पर लातघूंसों और डंडों की बरसात कर दी और मारता ही रहा. छबीली कोने में खड़ीखड़ी मजे ले  रही थी.

चीका ने ठेकेदार को इतना मारा कि  उस की दोनों टांगें तोड़ दीं.

ठेकेदार ने छबीली के आगे हाथ जोड़ लिए. चीका की ओर रुकने का इशारा करते हुए छबीली ने ठेकेदार  से कहा, ‘‘क्यों और पैसे नहीं  चाहिए तुझे?’’

‘‘न… नहीं… मुझे कुछ नहीं चाहिए… मैं कल  ही यहां से चला जाऊंगा… बस मेरी जान बख्श दो.’’

छबीली ने चीका को बताया कि कैसे वह ठेकेदार लोगों की मदद के नाम पर उन की मजबूरी का फायदा उठाता था और लड़कियों और औरतों की इज्जत लूटता था.

छबीली की ये बातें सुन कर चीका को फिर से गुस्सा आया और उस ने पास में पड़ा हुआ एक ईंट का टुकड़ा उठाया और ठेकेदार के मर्दाना हिस्से पर दे मारा. ठेकेदार मारे दर्द के दोहरा हो गया था.

‘‘मत घबरा छबीली, आज के बाद यह किसी औरत के जिस्म को हाथ लगाने लायक ही नहीं रहेगा,’’ चीका  ने कहा.

छबीली किसी शातिर की तरह मुसकरा उठी थी. आज ठेकेदार से उस का इंतकाम पूरा हो गया था.

इस घटना के कुछ दिन बाद चीका ने छबीली से कहा, ‘‘लगता है, मुझे ही यह दुकान छोड़ कर अपना धंधा कहीं और जमाने के लिए यहां से जाना पड़ेगा, क्योंकि तू तो अपने ग्राहक छोड़ कर जाएगी नहीं.’’

‘‘तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है… तुम चाहो तो हम दोनों साथ में काम शुरू कर सकते हैं,’’ छबीली ने कहा. जोखू भी वहीं खड़ा था.

‘‘पर, कैसे…?’’ चीका ने पूछा.

‘‘देख… अब से हम दोनों फास्ट फूड और बिहार की मशहूर बाटीचोखा एकसाथ बेचेंगे… जिस को जो खाना है खाए… जो मुनाफा होगा, वह आधाआधा,’’ छबीली ने चहकते हुए कहा.

चीका की दुकान का बोर्ड अब छबीली के ठेले पर लगा हुआ था, जिस पर लिखा था…

‘फास्ट फूड सैंटर…

बिहार की मशहूर बाटीचोखा

एक बार खाएंगे… बारबार आएंगे.’

वहां आने वालों को छबीली का गाना भी मुफ्त में सुनने को मिलता था…

‘‘छैल छबीली आई है,

बाटीचोखा लाई है,

जो न इस को खाएगा,

जीवनभर पछताएगा.’’

Hindi Kahaniyan : धन्यवाद- सासूमां की तारीफ क्यों करने लगी रवि की पत्नी

Hindi Kahaniyan : सपनाने जब घर के अंदर कदम रखा तब शाम के 6 बज चुके थे. अपनी सास की भृकुटियां तनी देख कर वह भी उन से उलझने को मन ही मन फौरन तैयार हो गई.

‘‘तुम्हारा स्कूल को 2 बजे बंद हो जाता है. देर कैसे हो गई बहू?’’ उस की सास शीला ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछ ही लिया.

‘‘मम्मी, मैं भाभी का हाल पूछने चली गई थी,’’ सपना ने भी रूखे से लहजे में जवाब दिया.

‘‘तुम मायके गई थी?’’

‘‘भाभी से मिलने और कहां जाऊंगी?’’

‘‘तुम्हें फोन कर के हमें बताना चाहिए था या नहीं?’’

‘‘भूल गई, मम्मी.’’

‘‘ये कोई भूलने वाली बात है? लापरवाही तुम्हारी और चिंता करें हम, यह तो ठीक बात नहीं है, बहू.’’

‘‘चिंता तो आप मेरी नहीं करती हैं, पर

मुझ से झगड़ने का कारण आज आप को जरूर मिल गया,’’ सपना ने अचानक ऊंची आवाज

कर ली, ‘‘यहां थकाहारा इंसान घर लौटे तो

पानी के गिलास के बजाय झिड़कियां और ताने दिनरात मिलते हैं. आप मेरे पीछे न पड़ी रहा

करो, मम्मी.’’

‘‘तुम घर के कायदेकानूनों को मान कर चलो, तो मुझे कुछ कहना ही न पड़े,’’ शीला ने भी अपनी आवाज में गुस्से के भाव और बढ़ा लिए. आप घर के कायदेकानूनों के नाम पर मुझे यूं ही तंग करती रहीं, तो यहां से अलग होने के अलावा हमारे सामने और कोई रास्ता नहीं बचेगा, मम्मी,’’ अपनी सास को यह धमकी दे कर सपना पैर पटकती अपने शयनकक्ष की तरफ चली गई.

‘‘अपनी इकलौती संतान को घर से अलग करने का सद्मा और दुख हमारा मन झेल नहीं पाएगा. इस बात का तुम गलत फायदा उठाती हो, बहू…’’ शीला देर तक ड्राइंगरूम में बोलती रही, पर सपना ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करी.

वे बोलबोल कर थक जातीं, इस से पहले ही उन की छोटी बहन मीना उन से मिलने आ पहुंची. शीला के अंदर फौरन नई ऊर्जा का संचार हुआ और वह अपनी बहू की बददिमागी और बदमिजाजी केउदाहरण उन्हें जोश के साथ सुनाने लगीं.

दोनों बहनों के बीच चल रहे वार्त्तालाप के हिस्से सपना के कानों तक भी पहुंच रहे थे. अपने शयनकक्ष से बाहर आ कर उस ने पहले 4 कप चाय बनाई. अपने ससुरजी को चाय उन के कमरे   में देने के बाद वे 3 कप ट्रे में सजा कर ड्राइंगरूम में आ गई.

मीना मौसी के पैर छूने के बाद वह जब उन्हें चाय का कप पकड़ा रही थी तब पैर कालीन में उलझ जाने के कारण वह झटका खा गई और थोड़ी सी चाय छलक कर मौसी के हाथ व साड़ी पर गिर गई.

‘‘हाय रे,’’ मौसी कराह उठीं.

अपनी बहन की दर्दभरी आवाज सुन कर शीला का पारा फिर से चढ़ गया,

‘‘बहू, क्या तुम कोई काम समझदारी और ढंग से नहीं कर सकती है? इतनी बड़ी हो कर तुम्हें यों बातबात पर डांट खाना अच्छा लगता है?’’ शीला ने मौका न चूकते हुए फिर से सपना को कड़वे, तीखे शब्द सुनाने शुरू कर दिए.

‘‘मम्मी, जरा सी चाय ही तो गिरी है और आप ने मुझे छोटी बच्ची की तरह डांटना शुरू कर  दिया. यह बात मुझे जरा भी पसंद नहीं है. चाय की सफाई में 1 मिनट भी नहीं लगेगा, पर मेरा दिमाग कई घंटों को खराब हो जाएगा,’’ सपना ने बराबर का तीखापन अपनी आवाज में पैदा किया.

‘‘तुम बहस करने में ऐक्सपर्ट और ढंग से काम करने में एकदम फिसड्डी हो.’’

‘‘और आप मुझे हर आएगए के सामने अपमानित करने का कोई मौका नहीं चूकतीं.’’

‘‘कितनी तेज जबान है तुम्हारी.’’

‘‘आप मुझे नाजायज दबाए जाएं और मैं चूं भी न करूं, यह कभी नहीं होगा, मम्मी,’’ कह सपना ने अपना कप उठाया और पैर पटकती अपने कमरें में घुस गई.

अपनी बहन की साड़ी की सफाई भी शीला को ही करनी पड़ी. सपना की बुराइयां करतेकरते 1 घंटा कब बीत गया, दोनों बहनों को पता ही नहीं चला.

मीना मौसी के जाने के 15 मिनट बाद शीला का बेटा रवि घर आया. तब उस के पिता भी ड्राइंगरूम में टीवी देख रहे थे.

शीला ने रवि के सोफे पर बैठते ही सपना की शिकायतें करनी शुरू कर दीं. उन की आवाज सपना तक पहुंची तो वह रसोई से निकल कर ड्राइंगरूम में आ धमकी.

अपनी सास को ज्यादा बुराई करने का मौका दिए बिना वह गुस्सैल स्वर में बीच में बोल पड़ी, ‘‘मम्मी, आप मुझ से इतनी ही दुखी हैं तो हमें घर से निकल जाने को क्यों नहीं कह देतीं?’’

‘‘यह बात बारबार उठाने के बजाय तुम खुद को सुधार क्यों नहीं लेती हो बहू?’’ शीला ने चिड़ कर उलटा सवाल पूछा.

‘‘आप के अलावा इस घर के बाकी के दोनों आदमी मुझे पसंद करते हैं… मम्मी न पापा को मुझ से कोई शिकायत है, न रवि को.’’

‘‘इन दोनों ने ही तुम्हें सिर पर चढ़ा रखा

है, लेकिन तुम्हारा असली रूप सिर्फ मैं ही पहचानती हूं.’’

‘‘जब दिल न मिलते हों, तो आंखें सामने वाले में सिर्फ कमियां और बुराइयां ही देख पाती हैं, मम्मी.’’

रवि ने उठते हुए उन दोनों से क्रोधित स्वर में कहा, ‘‘रातदिन जो तुम दोनों झिकझिक करती रहती हैं, उस ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है. सपना, तुम जाओ यहां से.’’

रवि अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर उसे वहां से न ले गया होता, तो सासबहू की झड़प न जाने कितनी देर और चलती.

‘‘अब यह सारी रात मेरे बेटे के कान मेरे खिलाफ भरेगी. पता नहीं मुझे मेरे किन बुरे कर्मों की सजा ऐसी बदजबान और फूहड़ बहू पा कर मिल रही है,’’ अपने पति की सहानुभूति पाने के लिए शीला अपनी आंखों में आंसू भर लाई.

रात का खाना सासससुर और बहूबेटे ने अलगअलग खाया. दोनों औरतें एकदूसरे को गलत ठहराने का प्रयास अपनेअपने पतियों के सामने देर रात तक करती रहीं.

अगले दिन सुबह सासबहू के बीच तकरार फिर से शुरू हो गई. शीला ने ड्राइंगरूम की

सफाई करते हुए सपना के औफिस की कोई फाइल मेज पर से हटा कर अखबारों के बीच अनजाने में रख दी.

फाइल ढूंढ़ने में सपना को 15 मिनट लगे. वह पूरा समय अपनी सास को सुनाती रही, ‘‘आप पर भी रातदिन सफाई का भूत सवार रहता है. मेरी कोई चीज मत छेड़ा करो, ये बात मैं ने लाख बार तो आप को समझाई होगी, पर…’’

सपना बोलती रही और शीला उसे नाराजगी भरे अंदाज में घूरती जा रही थीं. अब फाइल मिल गई, तो सपना औफिस समय से पहुंचने के लिए हड़बड़ी मचाने लगी.

उस के पास अब अपना लंच बौक्स तैयार करने का समय नहीं था.

तब शीला ने उसे सुनाना शुरू कर दिया, ‘‘देर तक सोओगी, तो कभी तुम्हारा कोई काम समय पर नहीं होगा. हर दूसरे दिन मुझे रसोई में घुस कर अकेले सब का लंच तैयार करना पड़ता है. अपनी जिम्मेदारियां कब ढंग से निभाना सीखोगी तुम बहू?’’

‘‘अगले जन्म में,’’ ऐसा चिड़ा सा जवाब दे सपना बिना लंच बौक्स लिए औफिस के लिए निकल पड़ी.

वह औफिस डेढ़ घंटा देर से पहुंची. फौरन ही उस के बैड मास्टर अनिल साहब का बुलावा आ गया.

‘‘साहब गुस्से में हैं. जरा संभल कर पेश आना,’’ चपरासी रामप्रसाद की यह चेतावनी सुन कर सपना की हालत खस्ता हो गईर्.

अनिल साहब ने 2 मिनट तक उस की तरफ देखा ही नहीं और एक

फाइल का अध्ययन करते रहे. सपना के दिल की धड़कनें टैंशन के मारे लगातार तेज होती चली गईं.

‘‘तुम्हारा आए दिन औफिस लेट आना नहीं चलेगा, सपना,’’ अनिल साहब ने नाराजगी भरे अंदाज में कहा. तो मैं उन्हें देखने चली गई थी, ‘‘सपना ने पिछली रात घर देर से पहुंचने का कारण यहां भी दोहरा दिया.

‘‘मुझे वजह मत बताइए प्लीज. आप को अपनी भाभी को देखने जाना जरूरी था, तो दोपहर बाद जातीं. स्कूल के नियमों का पालन न करना गलत बात है, सपना.’’

‘‘सौरी, सर.’’

‘‘आप हर बार ‘सौरी’ कह कर नहीं छूट सकती हैं.’’ अनिल साहब भड़क उठे, ‘‘पिछले मंडे आप गायब ही हो गई थीं और फोन भी नहीं किया आप ने स्कूल में. देर से आना तो रोज की बात है आप के लिए. ऐसे काम नहीं चलेगा.’’

‘‘मैं आगे से सही समय पर आऊंगी सर.’’

‘‘आप को नौकरी करनी है तो टाइम से आइए, नहीं तो छोड़ दीजिए नौकरी. आप की लापरवाही से हम सब को परेशानी होती है.’’

‘‘आई एम सौरी, सर.’’

‘‘और जो स्टूडैंट रिपोर्ट आप को कल तक तैयार करनी थी वह कहां है?’’

‘‘उसे मैं आज जरूर बना दूंगी, सर.’’

‘‘सपना, क्या तुम कोई काम वक्त पर और सही ढंग से कर के नहीं दे सकती हो.’’

‘‘सर, काम का बोझ कभीकभी ज्यादा होता है, तो कुछ काम पैंडिग छोड़ना पड़ता है. मैं सारा काम कंप्लीट कर लूंगी आज सर.’’

‘‘क्या स्पोर्ट्स इंसैंटिव की फाइल मिल

गई है?’’

‘‘ अभी तक नहीं. वह मुझ तक आई होती, तो मेरी अलमारी में ही होती सर.’’

‘‘वह फाइल आप की पक्की सहेली रितु की क्लास की टेबल पर रखी मिली है, सपना. इस में कोई शक नहीं कि तुम ने ही उसे वहां छोड़ा और न जाने डांटे किसकिस को खानी पड़ी तुम्हारी इस लापरवाही के कारण.’’

‘‘आई एम सौरी…’’

‘‘मुझे तुम्हारी सौरी नहीं, अच्छा काम चाहिए, सपना. मैं तुम्हें इस रितु के साथ स्कूल टाइम में बेकार की गपशप करते अब बिलकुल न देखूं.’’

‘‘ओके सर.’’

‘‘आप को इस स्कूल से हर महीने अच्छी पगार मिलती है, इसलिए यह जरूरी है कि आप यहां दिल लगा कर मेहनत करें.’’

‘‘मैं करूंगी सर.’’

‘‘अच्छी नौकरी प्राइवेट स्कूलों में आसानी से नहीं मिलती है.’’

‘‘जी.’’

‘‘मेरा इशारा समझ रही हैं न, आप?’’

‘‘आगे मैं आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी, सर.’’

‘‘गुड, ये फाइले ले जाइए,’’ अनिल साहब ने अपनी मेज पर रखी फाइलों के छोटे से ढेर की तरफ इशारा किया.

हड़बड़ाई सपना ने उस को उठाया तो एक फाइल फिसल गई.

फाइल मेज पर रखे पानी के गिलास से टकराई और पानी मेज पर फैलने लगा.

‘‘आई एम सो सौरी सर… सो सौरी,’’ सपना ने गट्ठर मेज पर रखा और अपने रूमाल से ही पानी पोंछने के काम में बड़ी तत्परता से लग गई.

वह फाइलों का गट्ठर ठीक से नहीं रख पाई थी. उस का संतुलन बिगड़ा और सारी फाइलें गिर कर फर्श पर फैल गईं.

सपना को मारे घबराहट के ठंडा पसीना आ गया, ‘‘आई एम बेरी सौरी, सर…’’ इसी वाक्य को रोआंसी आवाज में बारबार दोहराती. वह मेज को ठीकठाक करने के काम में 2 मिनट तक जुटी रही.

‘‘यू मस्ट इंप्रूव सपना. मैं तुम्हारे काम और व्यवहार से बहुत नाखुश हूं,’’ अनिल साहब ने यह चेतावनी दे कर उसे बाहर भेज दिया.

आधा दिन सपना का मूड उदास रहा. स्कूल इंटरवल के बाद मन हलका करने को उसे अनिल साहब पर गुस्सा आने लगा. रितु के पास जाने की उस की हिम्मत नहीं हुई, सो वह उन्हें बड़बड़ाते हुए अपनी सीट पर बैठी खरीखोटी सुनाती रही.

स्कूल खत्म होने पर रवि उसे लेने आया. उसे पूरे 1 घंटे तक इंतजार करना पड़ा क्योंकि सपना को अपना काम निबटाने के लिए इतनी देर तक सीट पर बैठना पड़ा.

वह बड़ी खुंदक से भरी स्कूल से बाहर आई. गेट के पास रवि कार में बैठा उस का इंतजार कर रहा था.

सपना कार के पास पहुंची तो एक मरियल सा कुत्ता उसे दरवाजे के पास बैठा नजर आया. अचानक उस ने अपने ऊपर से नियंत्रण खोया और एक जोरदार किक उस कुत्ते को जमा दी.

कुत्ता कूंकूं करता उठा, तो उस की आवाज से उत्तेजित हो एक ताकतवर कुत्ता, जो अपने मालिक के साथ शाम की सैर पर निकला था, उस कुत्ते की तरफ लड़ने को झपटा.

उस कुत्ते के तेवर देख कर सपना की जान सूख गई. उस ने बिजली की फूरती से कार का दरवाजा खोला और तुरंत कार में बैठ गई.

उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ती देख रवि ने हंस कर कहा, ‘‘वो चेन से बंधा था, डियर. तुम्हें काट नहीं सकता था वह इसलिए, बेकार डरो मत.’’

‘‘मुझे कुत्तों से बड़ा डर लगता है,’’ सपना ने मुसकराने का असफल सा प्रयास किया.

‘‘उस मरियल कुत्ते को फिर तुम ने जोरदार किक कैसे मार दी?’’

सपना ने फौरन कोई जवाब नहीं दिया. कुछ देर वह सोच में डूबी रही और फिर अचानक मंदमंद अंदाज में मुसकराने लगी.

यह पावर गेम है. घर में सास अपनी पावर दिखाना चाहती है तो बहू अपनी घर में

सास की जरा सी आलोचना सुनने पर उस ताकतवर कुत्ते की तरह गुर्राने वाले दफ्तर में बौस की झिड़की पर मरियल कुत्ते की तरह कूंकूं करने लगती है. अगर बौस से छुटकारा पाने के लिए नौकरी नहीं छोड़ी जा सकती तो सास की फटकार सुनने पर अलग होने की खोखली धमकी क्यों दी जाए. सपना को पावर गेम का एहसास हो गया था. उसे लगा उस के मन पर से टनों बोझ उतर गया है.

‘‘क्यों मुसकरा रही हो?’’ रवि ने फौरन उत्सुकता दर्शाई.

‘‘तुम नहीं समझोंगे. कार बाजार में से ले कर चलना,’’ सपना की मुसकान रहस्यमयी सी हो गई.

‘‘कुछ खरीदना है?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या?’’

‘‘एक फूलों का गुलदस्ता और गरमगरम जलेबियां.’’

‘‘गुलदस्ता किस के लिए लेना है?’’

‘‘मम्मी के लिए और जलेबियां भी. वही तो सब से ज्यादा शौक से खाती हैं.’’

‘‘तुम मम्मी को गुलदस्ता भेंट करोगी?’’ रवि हैरान हो उठा, ‘‘उन से तो तुम्हारी बिलकुल नहीं पटती है.’’

‘‘वैसी नोकझोंक तो हम सासबहू दोनों का  मनोरंजन होती है जनाब.’’

उन्होंने मुझे बराबर की लड़नेझगड़ने की छूट दे रखी है, मैं आज इसीलिए उन्हें धन्यवाद दूंगी फूलों का गुलदस्ता भेंट कर के और गरमगरम जलेबियां खिला कर, सपना की आवाज एकाएक बेहद कोमल और भावुक हो उठी.

रवि जबरदस्त उलझन का शिकार बना नजर आ रहा था. उसे सासबहू के बीच हुई रात व सुबह की तकरार का दृश्य पूरी तरह से याद था. कुछ ही घंटों में सपना के अंदर इतना बदलाव क्यों और कैसे आ गया है यह बात उसे कतई समझ में नहीं आ रही थी.

‘‘हम सासबहू के बीच जो गेम चलता है उसे समझने की कोशिश आप नहीं करें तो बेहतर है, जनाब,’’ सपना ने प्यार से रवि के गाल पर चिकोटी काटी और फिर प्रसन्न हो कर देर तक जोर से हंसती रही.

Thug Life : 70 साल के कमल हासन ने 28 साल छोटी तृषा कृष्णन के साथ किया इंटिमेट सीन

Thug Life : हाल ही में कमल हासन अभिनीत और मणि रत्नम निर्देशित फिल्म ठग लाइफ का ट्रेलर लौन्च संपन्न हुआ. फिल्म का ट्रेलर काफी छोटा था जिसमें फिल्म की कहानी को छुपाने की पूरी कोशिश की गई. लेकिन इस फिल्म के ट्रेलर को देखने के बाद कमल हसन ट्रोलर्स के निशाने पर आ गए. क्योंकि ठग लाइफ के इस छोटे से ट्रेलर में 70 वर्षीय कमल हासन अपने से 28 साल छोटी 42 वर्षीय त्रिशा कृष्णन के साथ इंटिमेट सीन और किसिंग सीन करते नजर आए.

इसके बाद कई लोगों ने कमेंट करना शुरू कर दिया कि कमल हासन अपनी बेटी की उम्र के हीरोइन के साथ इंटिमेट सीन करते अच्छे नहीं लग रहे. हालांकि ठग लाइफ के ट्रेलर ने तृषा कृष्णन के साथ रोमांस की वजह से दर्शकों का ध्यान और आलोचना दोनों अपनी तरफ खींच लिया. 28 वर्षीय त्रिशा कृष्णन के अनुसार उनको इस आलोचना से फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनको पहले से पता था ऐसी प्रतिक्रिया मिलने वाली है. ठग लाइफ हिंदी और तमिल भाषा में बन रही है जो एक एक्शन गैंगस्टर पर आधारित ड्रामा फिल्म है.

इस फिल्म का संगीत ए आर रहमान ने दिया है  और सिनेमाटोग्राफी रवि के चंद्रन की है. कमल हासन और मणि रत्नम इससे पहले फिल्म नायकन में एक साथ आए थे. नायकन के बाद कमल हासन की मणि रत्नम के साथ ठग लाइफ दूसरी फिल्म है. इस फिल्म में कमल हासन किसिंग और इंटिमेट सीन के अलावा जबरदस्त एक्शन करते भी नजर आए हैं. ठग लाइफ से पहले कमल हासन की बिग बजट फिल्म इंडियन 2 रिलीज हुई थी जो बौक्स औफिस पर कमाल नहीं दिखा पाई. अब कमल हासन की ठग लाइफ फिल्म 5 जून 2025 को आईमैक्स और EPIQ में दुनिया भर में रिलीज होगी.

Mobile Lovers : क्यों खतरे में है युवा पीढ़ी

Mobile Lovers : आज का युवा वर्ग इंटरनैट और मोबाइल प्रेम के चलते दिमागी तौर पर इतना ज्यादा कुंद होता जा रहा है कि उसे पता ही नहीं चल रहा कि उस का पूरा शरीर स्थिर होता जा रहा है और सिर्फ उंगलियां ही काम कर रही हैं यानि चल रही हैं, वह भी सिर्फ मोबाइल पर क्योंकि मोबाइल चलाने के लिए उंगलियों का इस्तेमाल करना ही जरूरी होता है. फिर भले ही पूरा शरीर एक जगह स्थिर ही क्यों न पड़ा रहे.

यों देखा जाए तो गलती आज के युवा वर्ग की भी उतनी नहीं है क्योंकि आज के युवा वर्ग को बचपन से ही हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया गया है. बचपन में मां कुछ समय के लिए ही सही अपनी जान बचाने के लिए 2-3 साल के बच्चे के हाथ में मोबाइल पकड़ा देती है, ताकि वह बच्चा कार्टून देख कर या वीडियोगेम खेल कर कुछ समय के लिए ही सही शांत रहे, ताकि उस की मां अपना घर का कुछ काम कर पाएं या शांति से कुछ समय के लिए खुद भी मोबाइल पर रील्स या कुछ और मनोरंजन वाली चीजें देख पाएं.

उस के बाद वही बच्चा जब स्कूल जाता है तो स्कूल टीचर अपनी जान छुड़ाने के लिए बच्चों का सारा होमवर्क और स्कूल संबंधित बाकी सारे कार्य मोबाइल के व्हाट्सऐप के जरीए पेरैंट्स को दे देती हैं ताकि टीचर को खुद 1-1 बच्चे के मांबाप को बुला कर या बच्चे को खुद से होमवर्क समझाना न पड़े.

स्कूल भी कम जिम्मेदार नहीं

आजकल नामीगिरामी स्कूल ने बच्चों के लिए मोबाइल अनिवार्य कर दिया है ताकि मोबाइल का सहारा ले कर स्कूल वाले अपना काम आसानी से कर पाएं. एक समय था जब स्कूल में मोबाइल लाने की बिलकुल भी अनुमति नहीं थी लेकिन अब बड़ेबड़े स्कूलों में मोबाइल लाना अनिवार्य हो गया है क्योंकि स्कूल के टीचर मेहनत नहीं करना चाहते बल्कि मोबाइल के जरीए अपना काम आसानी से करना चाहते हैं.

कई नामीगिरामी स्कूलों में तो आर्टिफिशियल इंटेलिजैंस का इस्तेमाल विषय के तौर पर किया जा रहा है, जो कोई भी उम्र का बच्चा, बूढ़ा, जवान बिना किसी कानूनी रोकटोक के इस टेक्नोलौजी को इस्तेमाल कर सकता है। स्कूल वालों ने इस टेक्नोलौजी का फायदा उठाने के चक्कर में स्कूलों में एआई (AI) को विषय बना कर शामिल कर दिया लेकिन उन को नहीं पता आज के समय में एआई का इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों वाले मामलों के लिए ज्यादा किया जा रहा है. आजकल आएदिन सनसनीखेज घटनाएं सामने आ रही हैं जिस में एआई का इस्तेमाल कर के कम उम्र लड़कियों को, व्यवसाय से जुड़े लोगों को और व्यक्तिगत तौर पर एआई का सहारा ले कर अपराध को अंजाम दिया जा रहा है.

मोबाइल जरूरी या किताबें

क्या स्कूल के टीचर्स और मांबाप इस बात से आगाह हैं कि बच्चे एआई का गलत इस्तेमाल भी कर सकते हैं या मोबाइल पर कोई ऐसी चीजें भी देख सकते हैं जो बच्चों के दिमाग के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है?

दरअसल, स्कूल में हर तरह के बच्चे होते हैं। कई शैतान बच्चे होते हैं तो कुछ ज्यादा ही तेज दिमाग वाले भी होते हैं तो कई बहुत भोलेभाले भी, जिन को एआई का इस्तेमाल कर के आराम से परेशान किया जा सकता है। कई ऐसे शैतान बच्चे भी स्कूलों में होते हैं जो बिना सोचेसमझे अंजाम की परवाह किए बिना एआई का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं, जो सिर्फ उन बच्चों के लिए ही नहीं दूसरे बच्चों के लिए भी हानिकारक साबित हो सकता है.

मोबाइल का गुलाम

बचपन से जवानी तक आतेआते युवा वर्ग कब इंटरनैट मोबाइल का गुलाम बन जाता है यह खुद उस को ही पता नहीं चलता. हालात तो यहां तक है कि अगर 1 घंटे के लिए या आधे घंटे के लिए इंटरनैट और मोबाइल बंद हो जाएं तो सब ऐसे घबरा जाते हैं, बेचैन हो जाते हैं जैसे मोबाइल के बिना अब वे सांस ही नहीं ले पाएंगे क्योंकि अब इंसान दिमाग से ज्यादा, शारीरिक मेहनत से ज्यादा मोबाइल पर निर्भर हो गया है।

इसलिए अगर कुछ समय के लिए भी मोबाइल बंद हो जाए तो इंसान अपनेआप को अपाहिज महसूस करने लगता है.

पहले हमें कुछ फोन नंबर याद रहते थे जो हमारे घर के और औफिस के खास नंबर होते थे, क्योंकि यह नंबर हम हमेशा डायल करते रहते थे, इसलिए यह सारे नंबर हमारे दिमाग में फिट हो जाते थे। आज मोबाइल युग में जबकि हर नंबर नाम के साथ सेव होता है इसलिए हमें कोई भी नंबर याद नहीं रहता. आज कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने घर के खास सदस्यों के नंबर याद हैं? क्योंकि सारे नंबर मोबाइल में फीड रहते हैं इसलिए कोई भी नंबर याद रखने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

ऐसी ही कई सारी चीजे हैं जो पहले हमारे दिमाग में बसी होती थीं और हम कभी भी नहीं भूलते थे.

कहने का मतलब यह है कि जैसेजैसे टेक्नोलौजी बढ़ रही है, चीजें आसान हो रही हैं, वैसेवैसे हम मशीन के गुलाम बनते जा रहे हैं. हमारे दिमाग को धीरेधीरे जंग लग रहा है. खासतौर पर युवा वर्ग जो पहले शारीरिक कसरत करता था फुटबौल, कबड्डी क्रिकेट जैसे आउटडोर गेम खेलने के लिए शारीरिक मेहनत करता था, शतरंज के खेल के जरीए दिमाग को तेज करता था, अब वही युवा वर्ग पर्सनल और प्रोफैशनल कामों के लिए सिर्फ और सिर्फ मोबाइल पर ही निर्भर रहता है। अगर गेम भी खेलते हैं तो वह भी मोबाइल पर ही खेलते हैं.

अश्लीलता

इस के अलावा मोबाइल में कई सारी ऐसी नैतिकअनैतिक, सैक्सी नग्नता भरी चीजें लड़केलड़कियों के मोबाइल में रहती हैं कि भूलेभटके अगर किसी लड़के या लड़की से उन का मोबाइल खोलने के लिए पासवर्ड मांग ले तो उन की सांस ही रुक जाती है.

देश में वैसे ही बेरोजगारी और बेकारी का माहौल चल रहा है। करोना के चलते कई सारे नवयुवक पढ़ाई में भी पीछे हो गए हैं, जिन के पास नौकरी है वह भी खतरे में ही है। ऐसे में, देश का युवा वर्ग जो भारत का भविष्य है वह आधे से ज्यादा समय मोबाइल में मनोरंजनपूर्ण सामग्री देखने में बिता देता है। जब से व्हाट्सऐप और फेसबुक की शुरुआत हुई है, तभी से हमारे देश की नई पीढ़ी इसी में अपना टाइम बरबाद करने में जुटी है. अब तो ऐसे कई ऐप्स आ गए हैं.

लड़कियां कम से कम खूबसूरत दिखने के लिए, पैसे कमाने के लिए जतन करती हैं। भले ही वे फिर इंस्टाग्राम के लिए रील्स बनाएं या अपनी कोई और खूबी को इंटरनैट के जरीए लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करें, लड़कियां पैसा कमाने के लिए कम से कम इतना मेहनत तो करती हैं और मोबाइल भी कम समय तक ही इस्तेमाल करती हैं.

लङकों से आगे लङकियां

संघर्ष से गुजरती इन लड़कियों में अपनेआप को साबित करने की और पैसा कमा कर अच्छी जिंदगी जीने की ललक होती है. तभी ग्लैमर वर्ल्ड हो, या मिलिट्री और एअरफोर्स हो, कई जगहों पर युवतियां लङकों से आगे चल रही हैं, क्योंकि जहां कई सारे लड़के मनोरंजन के लिए मोबाइल में घुसे रहते हैं, वहीं लड़कियां मेहनत और संघर्ष से हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं.

सच बात तो यह है कि कोई भी टेक्नोलौजी जो देश के विकास के लिए बनाई गई है, वह बुरी नहीं होती बशर्ते आप उस का इस्तेमाल सही तरीके से और सही कामों में करें.

एक तरफ चीन जहां हमारे देश में कोविड जैसी खतरनाक बीमारी फैला कर तरक्की कर रहा है, वहीं हमारे देश के नवयुवक हिंदूमुसलमान जैसी नकारात्मक बातों को सोशल मीडिया पर प्रचार कर के देश को और खुद को कई सालों पीछे ले जा रहा है. नकारात्मक विचारों का हिस्सा बन कर अपनेआप को भी बरबादी की ओर भी ले जा रहा है.

कहने का मतलब यही है आप मशीन और टेक्नोलौजी का फायदा उठाते हुए उस को अपना गुलाम बनाएं। अपने फायदे के लिए उस का इस्तेमाल करें, न कि खुद मोबाइल और टेक्नोलौजी नामक मशीन का गुलाम बन जाएं और ऐसी टेक्नोलौजी पर निर्भर हो कर खुद ही जिंदा लाश बन कर रह जाए.

अभी भी वक्त है, मोबाइल और इंटरनैट की दुनिया से बाहर निकलें और अपना भविष्य संवारने के लिए आगे बढ़ें.

Melasma Treatment : चुरा न ले जिंदगी के रंग

Melasma Treatment : प्रियंका जब प्रैगनैंट हुई तो बेहद खुश थी. यह उस की जिंदगी के सब से खूबसूरत लमहे थे. मगर जैसेजैसे प्रैगनैंसी का सफर आगे बढ़ रहा था वैसेवैसे प्रियंका के चेहरे पर मेलास्मा के धब्बे इधरउधर नजर आने लगे थे. उस ने तो सुना और पढ़ा था कि मां बनने के समय औरत की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं मगर वह तो कुछ और ही अनुभव कर रही.

डाक्टर ने प्रियंका से कहा, ‘‘ये प्रैगनैंसी मास्क हैं जो बच्चा होने के बाद चले जाएंगे.’’

नियत समय पर प्रियंका ने एक खूबसूरत परी को जन्म दिया मगर मेलास्मा के धब्बे ज्यों के त्यों बने रहे. हरकोई प्रियंका के गोरे रंग पर पड़े मेलास्मा के धब्बो के बारे में पूछता. इस कारण प्रियंका का आत्मविश्वास इतना कम हो गया कि वह घर से बाहर निकलने से भी कतराने लगी. मेलास्मा के धब्बे उस के लिए इतने अधिक कड़वे अनुभव हैं कि वह दोबारा मां नहीं बनना चाहती.

अंशु भी इसी दौर से गुजर रही थी मगर उस का कारण प्रैगनैंसी नहीं, पेरीमेनोपौज था. अंशु ने आलू का जूस लगाना शुरू कर दिया था मगर कोई असर नहीं दिखाई दे रहा था. मेलास्मा को ले कर अंशु इतनी अधिक परेशान हो गई कि लेजर भी करवा लिया मगर चंद माह के बाद फिर धब्बे लौट आए.

लोग मजाक में अंशु से कह भी देते, ‘‘अंशु, ये तो ऐजिंग के साइन हैं. कहां तक इलाज करवाओगी?’’

चमकतादमकता चेहरा एक ऐसी मृगमरीचका है जिस के पीछे रातदिन लड़कियां भागती रहती हैं. ऐक्ने के लिए तो फिर भी आजकल काफी असरकारक इलाज है मगर मेलास्मा के साथ युद्ध करने के लिए आप को दवा, एक अच्छे डाक्टरी परामर्श के साथसाथ ढेर सारा धीरज और सैल्फ लव चाहिए.

मेलास्मा के निदान को जानने से पहले यह जानना भी जरूरी है कि मेलास्मा जीवन के कौनकौन से पड़ाव पर हो सकता है?

शौधों से पता चला है कि मेलास्मा त्वचा का एक ऐसा विकार है जिस की अवधि थोड़ी लंबी चलती है. कुछकुछ केसेज में अगर ठीक से रखरखाव न किया जाए तो यह साथी उम्रभर आप का साथ निभाता है.

मेलास्मा 90त्न महिलाओं और 10त्न पुरुषों में देखने को मिलता है. महिलाओ में ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोन के कारण मेलास्मा अधिक पाया जाता है.

महिलाओं में थायराइड ग्रंथि के विकार भी अधिक पाए जाते हैं. जो महिलाएं लंबे समय तक थायराइड से पीडि़त रहती हैं उन में भी मेलास्मा होने का चांस अधिक रहता है.

अगर आप के परिवार में आप की नानी, दादी, मां, बूआ, मौसी को मेलास्मा था तो आप की जिंदगी में यह आसानी से प्रवेश कर सकता है. जी हां यह वंशानुगत भी हो सकता है. बढ़ती उम्र में  मेनोपौज के दौरान कोलोजन के लौस के कारण महिलाओं की त्वचा पतली हो जाती है जिस कारण सूर्य की पैराबैगनी किरणें त्वचा को आसानी से हानि पहुंचा सकती हैं और इसी कारण  मेलास्मा महिलाओं के चेहरे को बेरौनक कर देता है. मेलास्मा से जीतने के लिए एक ही चाबी सब से अधिक जरूरी है. वह है सनस्क्रीन लगाएं लगातार, बारबार.

इस के अलावा मेलास्मा के लिए सब से अधिक जरूरी है आप जो भी रूटीन फौलो कर रहे हैं उस में निरंतरता बना कर रखें. मेलास्मा का ट्रीटमैंट है मगर कोई शौर्टकट नही है. अगर आप इस दुश्मन को अपने जीवन से सदा के लिए भगाना चाहती हैं तो इन चंद बातों का ध्यान अवश्य रखें. यकीन मानिए अगर आप निरंतरता बनाए रखेंगी तो 5-6 माह के भीतर ये धब्बे हलके भी हो जाएंगे और नए धब्बे भी चेहरे पर नहीं आएंगे:

घरेलू नुसखों से न होगा फायदा: आलू का जूस, ऐलोवेरा जैल, बेसन, चावल के आटे का पैक और भी न जाने कैसेकैसे पैक आप को सजैस्ट किए जाएंगे. इन्हें लगाने से आप की त्वचा को कोई नुकसान नहीं होगा मगर आप के जिद्दी दुश्मन मेलास्मा पर कोई असर भी नहीं होगा.

सनस्क्रीन है मेलास्मा के लिए संजीवनी बूटी: सनस्क्रीन मेलास्मा के लिए एक संजीवनी बूटी का काम करता हैं. मगर अधिकतर महिलाएं सनस्क्त्रीन को अपने रूटीन में कोई जगह नहीं देती हैं. वे फाउंडेशन, कंसीलर और भी न जाने कौनकौन से प्रोडक्ट अपने चेहरे पर लगा लेती हैं मगर सनस्क्रीन को कोई अहमियत नहीं देती हैं. याद रखिए आप कोई भी पौकेट फ्रैंडली सनस्क्रीन यूज कर सकती हैं. अगर टिंटेड सनस्क्रीन यूज करेंगी तो आप को डबल फायदा होगा. आप को फाउंडेशन लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और मेलास्मा के धब्बों को भी कवरेज मिल जाएगी. सनस्क्रीन बस दिन में एक बार नहीं हर 4 घंटे बाद लगाना आवश्यक है. अगर आप को मेलास्मा के बढ़ते कदमों को रोकना है तो सनस्क्रीन को अपने जीवन का अनिवार्य अंग बना लें.

एजियलिक ऐसिड और आर्बुटिन हैं बेहद जरूरी: एजियालिक ऐसिड और अल्फा अरबुटिन युक्त किसी भी क्रीम को आप दिन में पूरे चेहरे पर डौटडौट कर के लगा सकती हैं. ये दोनों ही माइल्ड स्किन लाइटनिंग एजेंट हैं. इस के निरंतर उपयोग से आप के मेलास्मा के धब्बे अवश्य हलके हो जाएंगे. मगर किसी भी मैडिकेटेड क्रीम का उपयोग करने से पहले आप बांहों पर पैच टैस्ट अवश्य कर लें.

नियासिनमाइड से दोस्ती भी जरूरी: किसी भी स्किन लाइटनिंग क्रीम के बाद नियासिनमाइड सीरम की 4 बूंदें आप के मेलास्मा पर डबल असरदार होंगी.

रैटिनौल है एक अचूक बाण: रात के समय रैटिनौल युक्त क्रीम अगर आप लगाती हैं तो यह मेलास्मा के साथसाथ आप की फाइनलाइंस पर भी असर करेगी. अगर आप पहली बार रैटिनौल को अपनी स्किन केयर में यूज कर रही हैं तो किसी भी ब्रैंड के माइल्ड रैटिनौल से शुरुआत करें. रोज इस्तेमाल न कर के पहले हफ्ते में 2 बार फिर 3 बार और फिर हर रोज कर सकती हैं. अगर स्किन में कोई रिएक्शन न हो तो आप इसे हर रात ताउम्र इस्तेमाल कर सकती हैं. यह एक सस्ती क्रीम है जो मेलास्मा, ऐक्ने मार्क्स, फाइनलाइंस और पिगमैंटेशन सब पर असरकारक है. याद रहे रैटिनौल बेस्ड क्रीम का इस्तेमाल दिन में भूल कर भी न करें.

लेयरिंग करें ध्यान से: स्किन केयर में लेयरिंग को ठीक से करना बेहद जरूरी है. अगर आप कोई सीरम यूज करती हैं तो सब से पहले उसे साफ चेहरे पर लगाएं. किसी भी सीरम की बस 4 बूंदें काफी हैं. सीरम को रगड़ कर नहीं थपथपा कर लगाएं. सीरम के बाद ट्रीटमैंट क्रीम वह भी डौटडौट कर के पूरे चेहरे पर लगाना अवश्य है, केवल मेलास्मा पर नहीं. इस के बाद मौइस्चर और सब से आखिर में 3 उंगलियां भर कर सनस्क्रीन, अगर टिंटेड होगा तो आप को प्रोटैक्शन के साथसाथ कलर भी देगा.

मौइस्चर के हैं अनेक फायदे: मेलास्मा के उपचार के लिए जो भी ट्रीटमैंट क्रीम है वह आप के चेहरे को थोड़ा ड्राई कर देती है. इसलिए फेस मौइस्चर लगाना बेहद जरूरी है. इस से आप के चेहरे पर नमी बनी रहेगी.

औरेंज और रैड कंसीलर से भरें जिंदगी में रंग: जब तक हमारा ट्रीटमैंट चल रहा हैं क्यों न औरेंज और रैड कंसीलर की मदद से हम मेलास्मा को गायब कर दें? किस रंग का कंसीलर चलेगा यह मेलास्मा के रंग और आप की त्वचा के रंग पर निर्भर करेगा. याद रखिए कंसीलर को थोपिए मत, थोड़ा साथ ही बहुत है. मगर आप को जो भी मेकअप करना है वह सारी ट्रीटमैंट क्रीम के बाद करना है और सनस्क्रीन को आप को अवश्य लगाना है.

सतत प्रयास ही हैं मेलास्मा की चाबी:

अपनेआप को प्यार करना न छोडि़ए. मेलास्मा हो या कोई और विकार आप की खूबसूरती बस त्वचा तक ही सीमित नहीं है. खुद की संभाल ठीक से करिए चाहे आप किसी भी आयुवर्ग की हों. मेलास्मा बुढ़ापे की निशानी नहीं, हमारी लापरवाही की निशानी है.

मेलास्मा से हार न मानें

मेलास्मा त्वचा का एक विकार है जिसे आप निरंतर प्रयास के बाद ही कंट्रोल कर सकती हैं. लेजर ट्रीटमैंट से कुछ दिनों के लिए ये गायब हो जाता है मगर लेजर के बाद एक तो हमारी स्किन पतली और सैंसिटिव हो जाती है जिस से सूर्य की किरणों का हमारी त्वचा पर पहले से भी अधिक प्रभाव पड़ता है दूसरा बहुत बार औरतें सनस्क्रीन लगाने में लापरवाही बरतती हैं जिस के कारण लेजर के बाद भी मेलास्मा वापस आ जाता है.

बताई गई ये सभी मैडिकेटेड क्रीम्स हालांकि काफी असरदायक हैं मगर अगर आप की त्वचा संवेदनशील है या आप ने कभी इन उत्पादों का प्रयोग नहीं किया है तो डर्मैटोलौजिस्ट की सलाह एक बार अवश्य ले लें और हां सारे इनग्रीडिऐंट्स को एकसाथ रूटीन में न लाएं अगर अब तक आप ने कुछ नहीं किया है तो पहले दिन का रूटीन धीरेधीरे फौलो करें और फिर रात के रूटीन को फौलो करें. सनस्क्रीन को अगर इस्तेमाल कर रही हैं तो बहुत अच्छा है और अगर नहीं तो फटाफट कोई भी अपनी पसंद का सनस्क्रीन खरीद लीजिए.

RJs to Influencers: रेडियो से रील तक, आरजे कैसे बन रहे हैं डिजिटल स्टार

RJs to Influencers: रेडियो की वेव्स से ले कर सोशल मीडिया की दुनिया तक में भारत के कई जानेमाने आरजे एंट्री ले चुके हैं. रेडियो की दुनिया में अपना करिश्मा दिखाने के बाद अब ये इन्फ्लुएंसर्स डिजिटल प्लेटफौर्म पर भी अपना जलवा बिखेर रहे हैं. इन आरजे ने वाकई अपनी खूबियों का भरपूर लाभ उठाया है, जैसे कि अच्छी भाषाशैली, बेहतरीन प्रेजेंटेशन स्किल्स. सोशल मीडिया पर इन के बड़े पैमाने पर फैनफौलोइंग इस का सुबूत हैं. इन में से कुछ के फौलोअर्स तो फिल्मी सितारों से भी ज्यादा हैं. कौन हैं ये रेडियो जौकी से बने इन्फ्लुएंसर्स, आइए जानते हैं:

आरजे करिश्मा- आरजे करिश्मा कौमेडी कंटैंट के लिए जानी जाती हैं. वे अपने वीडियोज में कई किरदार एकसाथ निभाती हैं. उन के हर वीडियो पर भारीभरकम व्यूज आते हैं.

आरजे अभिनव- अभिनव चंद, जिन्हें फैंस आरजे अभिनव के नाम से जानते हैं, ने इंस्टाग्राम पर कंटैंट क्रिएशन के पौपुलर होने से बहुत पहले ही कौमेडी वीडियो बनाना शुरू कर दिया था.  वह कांस फिल्म फैस्टिवल में रेड कार्पेट पर चलने वाले भारत के पहले कौमेडी कंटेंट क्रिएटर हैं.

आरजे शोनाली- आरजे शोनाली अपने रिलेटेबल कंटैंट और पोएट्री के लिए सोशल मीडिया पर मिलेनियल और जेनजी जेनरेशन के बीच काफी पौपुलर हैं. हालांकि, वे अब भी रेडियो जौकी की जौब कर रही हैं.

आरजे महवश- आरजे महवश सोशल मीडिया पर प्रैंक वीडियो के लिए जानी जाती हैं. महवश ने रेडियो मिर्ची 98.3 एफएम से अपने कैरियर की शुरुआत की थी. वे अब फिल्म प्रोड्यूसर भी बन चुकी हैं.

आरजे प्रिंसी पारेख- प्रिंसी की जबरदस्त शायरी लोगों को काफी रिलेटेबल लगी, जिस की बदौलत आज वे इन्फ्लुएंसर्स की टौप लिस्ट में शामिल हो चुकी हैं.

आरजे किसना- ‘कड़क लौंडे किसना’ के नाम से फेमस आरजे किसना ने 12-13 साल रेडियो जौकी के तौर पर काम किया, फिर वे इंस्टाग्राम पर इंफ्लुएंसर बने और अब उन्होंने ऐक्टिंग में भी डैब्यू कर लिया है.

आरजे आशीष शर्मा- आशीष ने रेडियो पर ‘कड़क लौंडे’ और ‘किश्त आशीष की’ नाम से कई सफल शो किए. अब वे डिजिटल दुनिया में रिलेटेबेल कंटैंट बनाने लगे हैं, जहां उन की अच्छीखासी फैनफौलोइंग है.

Foods Of Rajsthan : गट्टे की सब्जी से लेकर कढ़ी तक, राजस्थानी जायके की है जबरदस्त स्वाद

Foods Of Rajsthan : राजस्थान की मिट्टी सरसों, बाजरा, गेहूं, तिलहन आदि की जननी है और भारतवर्ष में कई उपजें ऐसी हैं जो सर्वाधिक राजस्थान में ही उगाई जाती हैं. इन सब चीजों से राजस्थान में तरहतरह के व्यंजन बनाए जाते हैं.

देशविदेशी सैलानियों का विशेष आकर्षण केवल यहां के पर्यटन स्थल ही नहीं हैं यहां का खाना भी इस की संस्कृति का विशेष भाग है जिस के लगाव से पर्यटक यहां के लजीज खाने का लुत्फ उठाते हैं.

वैसे तो बहुत सारे खाने प्रसिद्ध हैं पर कुछ खाने विशेष रूप से यहां की पैदाइश हैं. मुख्य राजस्थानी खानों में भुजिया, सांगरी, दालबांटी चूरमा, दाल की पूरी, मालपुआ, घेवर, हलदी की सब्जी, बीकानेर का रसगुल्ला, पटोर की सब्जी, बाजरे की रोटी, पंचकूट की सब्जी, गट्टे की सब्जी आदि आते हैं. मावे की कचौरी और मिर्ची बहुत ही प्रसिद्ध है.

कुछ खाने ऐसे हैं जो अलग प्रकार से बनाए जाते हैं. कैर सांगरी की सब्जी स्वाद में अलग, बनाने में अनोखी. राजस्थानी जायके के साथ मौसम के अनुकूल कैर सांगरी की सब्जी बहुत ही अच्छी होती है. इस सब्जी की सब से बड़ी विशेषता यह है कि यह 3-4 दिन तक खराब नहीं होती है. राजस्थानी संस्कृति के विशेष त्योहार शीतला अष्टमी पर इसे मुख्य तौर पर बनाया जाता है.

जबरदस्त स्वाद

गट्टे की सब्जी बेसन से बनती है जो हर घर में मिल ही जाता है. बड़ी मोटी सेव, टमाटर की सब्जी, मिर्ची के टिपोरे, राजस्थान की कड़ी, हलदी की सब्जी, चक्की की सब्जी, गुलाबजामुन की सब्जी ऐसी सब्जियां हैं जिन के लिए हरी सब्जियों की नहीं अपितु बनी हुई सामग्री से सब्जी बनानी होती है.

मीठे में राजस्थानी बालूशाही, घेवर, मावे की कचौरी, ब्यावर की तिलपट्टी, मलाई घेवर, बीकानेर रसगुल्ला,चमचम, अलवर का मावा बहुत अधिक प्रसिद्ध हैं.

इन सब का स्वाद तो ऐसा है कि मुंह में जाते ही घुल जाए. वही यहां का चूरमा दाल बाटी बहुत प्रसिद्ध है और राजस्थानी थाली का सर्वाधिक मुख्य भाग है. यहां के गेहूं के आटे का चूरमा, बाजरे का चूरमा साथ में दालबांटी की खुशबू यहां की संस्कृति को बेहद सुगंधित बनाती है और उस में लगने वाला देशी घी का छौंक, बाटी का घी वाह क्या बात है, बन गया बेहतरीन खाना. यही तो है राजस्थानी खाना और उस की संस्कृति.

पुष्कर के मालपुए, नसीराबाद का कचौरा और अजमेर की कड़ीकचौर, किसकिस सब अनोखे हैं. यहां के घेवर खासकर मलाई घेवर के आगे विदेशी केक भी कुछ नहीं.

गुड़ और बाजरे की रोटी सर्दियों के मुख्य आहारों में से एक हैं, सर्दियों में यहां बाजरे की खिचड़ी और मकई का दलिया भी बनाया जाता है.

राजस्थान के कुछ शहर वहां के कुछ स्थानीय व्यंजनों के लिए जाने और पहचाने जाते हैं.

गुलाबी नगरी के जायके

गुलाबी नगरी यानी जयपुर का दालबांटी चूरमा बहुत ही प्रसिद्ध है. यह व्यंजन जयपुर में आप को हर जगह मिलेगा लेकिन विरासत रेस्तरां आदि की बात ही अलग है. जहां तक घेवर की बात है तो यह भी पूरे राजस्थान में मिल जाता है लेकिन सब से ज्यादा जायकेदार लक्ष्मी मिष्टान्न भंडार यानी एलएमबी जोकि जयपुर में जौहरी बाजार में स्थित है वहां मिलता है.

घेवर कई प्रकार के होते हैं जैसेकि सादा घेवर, मावे वाला घेवर, मलाई वाला घेवर, जयपुर का रावत मिष्ठान्न भंडार अपनी मिठाई के लिए प्रसिद्ध है. यहां अलगअलग प्रकार की मिठाइयों का लुत्फ लिया जा सकता है. विशेष तौर पर यहां की प्याज की कचौरी की तो बात ही अलग है.

जयपुर की तरह जोधपुर भी अपने व्यंजनों के लिए अच्छाखासा प्रसिद्ध है. सब से पहले यहां की मखनिया लस्सी की बात करते हैं जो छाछ का एक मलाईदार मिश्रण है जिस में मेवा, केसर, गुलाबजल आदि सामग्री मिलाई जाती है. इस के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है श्री मिश्रीलाल होटल, क्लौक टावर के पास सिर्फ, जोधपुर. मिर्चीबड़ा भी जोधपुर का बेहद प्रसिद्ध व्यंजन है जोकि गरम चाय के साथ अच्छा नाश्ता है.

यह अकसर टमाटर सौस और हरी चटनी के साथ परोसा जाता है. इस के लिए रौयल समोसा नामक जगह प्रसिद्ध है. जोधपुर की गुलाबजामुन की सब्जी, मावे की कचौरी, कैर सांगरी की सब्जी, हलदी और चक्की की सब्जी आदि प्रसिद्ध हैं.

मिठाइयों में तो गुलाब हलवा बहुत ही जानीपहचानी डिश है. यह शुद्ध देशी घी एवं पिश्ते से बना एक पोषक युक्त हलवा है. इस के लिए गुलाब हलवा वाला, थ्री बी रोड, सरदारपुरा प्रसिद्ध है.

मशहूर है बीकानेर

बीकानेर भी अपनी व्यंजनों की खासीयत के लिए प्रसिद्ध शहर है. यहां का मीठा और स्पंजी रसगुल्ला एक अलग पहचान रखता है. यहां अलगअलग प्रकार के रसगुल्ले मिलते हैं. यह व्यंजन आप को 56 भोग नामक स्थान पर जायकेदार मिलेगा. बीकानेर भुजिया भी जानापहचाना व्यंजन है. पूरे देश में यह अपनी अलग पहचान रखती है. यों तो शहर में आप जहां भी जाएंगे यह मिल जाएगी लेकिन छोटीमोटी जोशी मिठाई की दुकान पर जा कर इस का स्वाद चख तो देखिए आप को मजा आ जाएगा.

अलवर का मिल्क केक, गट्टे की सब्जी, अलअजीज रेस्तरां, शालीमार गेट के पास,भगवानपुरा, अलवर से ले सकते हैं, वहीं मिल्क केक के लिए ठाकुर दास एंड संस की दुकान बहुत लोकप्रिय है. विविध भोजन का आनंद लेने हेतु मोती डूंगरी बस टर्मिनल के पास काफी अच्छे भोजनालय हैं जहां आप भोजन का मजा ले सकते हैं.

लाजवाब शाकाहारी भोजन

जैसलमेर में भी कि देशविदेश के पर्यटक बहुतायत में आते हैं. तो यदि आप राजस्थानी थाली की तलाश में हैं तो प्लेस व्यू रेस्तरां में जाएं. यहां की मखनिया लस्सी के लिए कंचन श्री प्रसिद्ध है. यहां के घोटुआं लड्डू मशहूर हैं. मिठाइयां विशेष रूप से घोटुआं लड्डू के लिए धनराज रावल भाटिया की मिठाई की दुकान प्रसिद्ध है.

चित्तौड़गढ़ अपने किलों, पर्यटन स्थलों के लिए बहुत प्रसिद्ध है. ऐतिहासिक तौर पर समृद्ध शहर है. यहां का स्थानीय खाना चखने का मजा आप अपने पर्यटन के दौरान ले सकते हैं. यहां का अरावली हिल रिजोर्ट शाकाहारी भोजन करने वालों की पसंदीदा जगह है. पारंपरिक भोजन अलग ही नवीनता लिए हुए है आप यहां पर नवीन और पारंपरिक भोजनों का अलग ही तालमेल देख सकते हैं.

यह रिजोर्ट उदयपुरकोटा राजमार्ग, सर्किल, किले के पीछे सेमलपुरा, चित्तौड़गढ़ पर स्थित है. राजसी रिजोर्ट अपनी पाक कला के लिए जाना जाता है. यह प्रामाणिक राजस्थानी व्यंजन बनाने के लिए मशहूर है. यहां का घेवर जरूर चखना चाहिए.

बेहतरीन अनुभव

राजस्थान का माउंट आबू एक अच्छा हिल स्टेशन है. यहां पर एक डिश कीचुचु विशेष रूप से प्रसिद्ध है जो चावल के आटे से बना नाश्ता है. माउंटआबू के गट्टे की खिचड़ी प्रसिद्ध है. जोधपुर भोजनालय टैक्सी स्टैंड पर माउंटआबू में यह आप को आसानी से मिल सकती है. राजस्थानी बाजरे की रोटी के लिए बिना यहां का स्वाद अधूरा है और अंबिका रेस्तरां, नक्की  झील लहसुन की चटनी और गुड़ के साथ इस प्रोटीन युक्त आहार का स्वाद लेने के लिए प्रसिद्ध है.

आबू चाट जंक्शन पर सब्जी मंडी, माउंटआबू पर आटे दूध और खीर से बनी मिठाई मालपुआ को चखा जा सकता है. इस के अलावा सांगरी की सब्जी अर्बुदा रेस्तरां माउंटआबू में खा सकते हैं, यह सब्जी रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाने वाली बेहतरीन सब्जियों में से एक है. तो राजस्थान आ कर यहां का खाना खा कर आप को यकीनन नैसर्गिक आनंद का अनुभव होगा.

-रितुप्रिया शर्मा

Open Pores के कारण मेकअप खराब लगता है, मैं क्या करूं?

Open Pores :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक

सवाल-

मेरे चेहरे पर छोटेछोटे ओपन पोर्स हैं जिन की वजह से मेकअप करना बहुत खराब लगता है. मेकअप उन के अंदर चला जाता है जो बहुत खराब दिखाई देता है. कोई उपाय बताएं?

जवाब-

ओपन पोर्स को कम करने के लिए हफ्ते में एक बार इस पैक को लगाएं. इस से आप को फायदा होगा- आप 2 बड़े चम्मच कुनकुना पानी ले. उस में एक डिस्प्रिन की गोली डाल दें और 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा मिला लें. इस पैक को फेस पर लगा कर 1/2 घंटा लगाएं रखें और फिर धो लें.

ऐसा हफ्ते में 2 बार करने से 2-3 महीनों में आप को रिजल्ट नजर आने लग जाएगा. हर रात को विटामिन ई के कैप्सूल को फोड़ कर उस से हलकी मसाज करें. इस से भी फायदा होगा. अगर इस से फायदा न हो तो किसी अच्छे क्लीनिक में जा कर लेजर यंग स्किन मास्क की फिटिंग ले ले. इलास्टिन मास्क भी पोर्स को कम करने में फायदा देता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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