Furniture Care: मौनसून में भी फर्नीचर दिखेगा नया जैसा, करें स्मार्ट केयर

Furniture Care: बारिश के मौसम के दौरान लकड़ियों के फर्नीचर की देखभाल बेहद जरूरी है. विशेषज्ञों का कहना है कि फर्नीचर के कोने, उसके निचले और पिछले भागों को महीने में कम से कम एक बार जरूर साफ करना चाहिए. मौनसून के मौसम में फर्नीचर की खास देखभाल जरूरी होती है. इन सुझावों की मदद से आप अपने फर्नीचर को बिल्कुल नए जैसा रख सकती हैं.

1. दरवाजे खिड़कियों से रखें दूर

अपने लकड़ी के फर्नीचर को दरवाजों, खिड़कियों से दूर रखें, ताकि ये बारिश के पानी या लीकेज के संपर्क में नहीं आ सकें.

2. पौलिशिंग है जरूरी

फर्नीचर की पालिश भी उसे मजबूत, चमकदार और टिकाऊ बनाती है, इसलिए हमेशा लैकर (रोगन) या वार्निश का एक कोट दो सालों में जरूर लगाएं, जिससे पोर या छोटे सुराख भर जाएं और ये ज्यादा दिन टिक पाए. छोटे फर्नीचर के लिए लैकर स्प्रे आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है, जो नजदीकी हार्डवेयर स्टोर में उपलब्ध होता है.

3. नमी का रखें खास ख्याल

फर्नीचर के लेग को फर्श की नमी के संपर्क में आने से रोकने के लिए लेग के नीचे वाशर लगाएं. घर को साफ रखें, जिससे घर में नमी का सही स्तर सुनिश्चित होगा, जो लकड़ी के फर्नीचर के अनुकूल है. एयर कंडीशनर भी मददगार साबित हो सकते हैं, क्योंकि ये घर में हवा को ताजा रख कर और घर को ठंडा रखकर नमी के स्तर में वृद्धि को रोकते हैं.

4. गीले कपड़ों का इस्तेमाल ना करें

लकड़ी के फर्नीचर को साफ करने के लिए गीले कपड़े का इस्तेमाल नहीं करें, बल्कि साफ, सूखे कपड़े का इस्तेमाल करें. मौनसून के दौरान लकड़ी का फर्नीचर नमी के चलते फूल जाता है, इससे ड्रौर खोलने और बंद करने में दिक्कत होती है. फर्नीचर पर आयलिंग या वैक्सिंग कर इसे रोका जा सकता है. बढ़िया फिनिश के लिए स्प्रे-औन-वैक्स आजमाएं.

5. मेकओवर करने से बचें

मानसून के दौरान घर की मरम्मत या सौंदर्यीकरण के काम को शुरू करने से बचें. इस समय नमी का स्तर ज्यादा होता है. ऐसे में पेंटिंग या पौलिशिंग बढ़िया परिणाम नहीं देंगे और इससे आपका लकड़ी का फर्नीचर खराब हो सकता है.

6. नेप्थलीन बाल का करें इस्तेमाल

कपूर या नेप्थलीन बाल नमी को अच्छे से अवशोषित कर लेते हैं. ये कपड़ों के साथ ही वार्डरोब को दीमक और अन्य कीड़े लगने से बचाते हैं. इस काम के लिए नीम की पत्तियों और लौंग का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. Furniture Care

Personal Hygiene: नजरअंदाज करने की भूल न करें, जानिए नुकसान

Personal Hygiene : पर्सनल हाइजीन का खयाल रखना बहुत जरूरी है ताकि हम स्वस्थ रह सकें. हाइजीन का ध्यान न रखना कई समस्याओं का कारण बन सकता है. हर जगह बैक्टीरिया और अन्य कीटाणु होते हैं, जो इन्फेक्शंस और कई रोगों का मुख्य कारण हैं. पर्सनल हाइजीन का ध्यान न रख कर हम इन बैक्टीरिया और कीटाणुओं के संपर्क में आ सकते हैं और बीमार पड़ सकते हैं. इसलिए हाइजीन रखने को अपनी आदत बना लें. आइए जानें कैसे :

रात को ब्रश कर के सोना

हम में से अधिकतर लोग रात में ब्रश कर के सोने में आलस्य करते हैं. रात में डिनर के बाद दांतों में खाना फंसा हुआ रह जाता है जिस से दांत में कीड़े लग सकते हैं. इसलिए सोने से पहले अपने दांत जरूर साफ करें.

बालों का भी खयाल रखें

हफ्ते में 2 बार बालों को धोने से आप यह न समझें कि आप बालों की हाइजीन का पूरा खयाल रख रहे हैं. यह सही है, लेकिन अगर बालों में रूसी है या जुएं हैं, तो इसे भी इग्नोर न करें. इस से सिर्फ बाल ही खराब नहीं होते बल्कि त्वचा में मुंहासे आदि की समस्याएं भी हो जाती हैं. इसलिए रूसी या जुएं हैं, तो सिर को अच्छी तरह क्लीन कर लें.

फिजिकल हाइजीन

सब से पहले आप को अपने शरीर को साफ करना चाहिए क्योंकि सारी समस्याएं आप के शरीर से ही शुरू होती हैं. इसे दूर करने के लिए रोजाना नहाएं. शरीर की गंदगी को साफ करने के लिए नहाना बहुत जरूरी है क्योंकि हमारी स्किन में चाहे कोई भी मौसम हो पसीना आता है. गरमियों में थोड़ा ज्यादा पसीना आता है. इसे दूर करने के लिए नहाना बहुत जरूरी है. इस से हमारी स्किन से डेड सेल्स भी दूर होते हैं.

मेकअप क्लीन कर के सोएं

पर्सनल हाइजीन मैंटेन करने के लिए रात को सोने से पहले मेकअप उतार कर सोना चाहिए. कई मेकअप में कैमिकल मिला होता है जिस से स्किन खराब हो जाती है. स्किन पर पपड़ी जम जाती है और दाने निकल आते हैं.

बौडी की बैड स्मैल को दूर करें

अगर आप के शरीर से अधिक दुर्गंध आती है. खासतौर पर अंडरआर्म्स में, तो अच्छे डिओड्रैंट का इस्तेमाल करें. इस के साथ ही अंडरआर्म्स हेयर को वैक्स या ट्रिम कराएं.

मैंस्ट्रुअल हाइजीन

बाथरूम इस्तेमाल करने के बाद प्राइवेट पार्ट्स को अच्छी तरह साफ जरूर करें. इस के साथ ही मैंस्ट्रुअल हाइजीन को भी कभी हलके में नहीं लेना चाहिए. वेजाइना के आसपास हार्श साबुन का इस्तेमाल न करें. कौटन पेंटीज का इस्तेमाल करें ताकि यह अधिक नमी न ऐब्जौर्ब करे. पैड, मैंस्ट्रुअल कप या टैंपोन, जिन का भी आप इस्तेमाल करते हैं, इन का इस्तेमाल करते हुए भी साफसफाई का ध्यान रखें.

धुले हुए साफ कपड़े पहनें

कपड़ों में बहुत से कीटाणु होते हैं और अगर इन्हें रोजाना न धोया जाए, तो समस्या का कारण बन सकते हैं, इसलिए कपड़े रोजाना बदलें.

बाथ लूफा के हाइजीन का भी खयाल रखें

क्या आप जानती हैं कि आप के लूफा में यीस्ट, बैक्टीरिया और मोल्ड्स आदि होते हैं, इसलिए अपने लूफा को भी 2-3 महीने में बदल लेना चाहिए. इस के अलावा लूफा को धो कर अच्छी तरह धूप में सुखाना चाहिए. आप हफ्ते में 1 बार उसे गरम पानी में धो कर सुखा लें और फिर इस्तेमाल करें. अगर आप लूफा न बदलने की गलती करती हैं, जो उस के कीटाणुओं से आप को स्किन इन्फैक्शन हो सकता है. वैसे ही अगर आप चेहरे को साफ करने के लिए वौश क्लौथ का इस्तेमाल करती हैं, तो उसे भी रोजाना बदलना चाहिए.

वर्कआउट के बाद जरूर नहाएं 

अगर आप को भी लगता है कि दिन में एक बार ही नहाना काफी होता है तो आप गलत नहीं हैं. लेकिन अगर आप शाम को जिम जाते हैं या कोई एरोबिक्स क्लास में जाते हैं, तो आ कर दोबारा नहाना बहुत जरूरी है. वर्कआउट के बाद शरीर से पसीना निकलता है, जिस से गंदगी चिपकी रहती है. अगर आप वर्कआउट के बाद नहाएंगी नहीं, तो पसीना सूख जाने पर सारी गंदगी शरीर पर ही रह जाएगी. इस से फंगल इन्फैक्शन सहित अन्य बीमारियां हो सकती हैं. आप जब भी वर्कआउट करें, उस के बाद नहाएं जरूर और तमाम बीमारियों को खुद से दूर रखें और स्वस्थ रहें.

टौयलेट में फोन ले कर जाना आप की आदत तो नहीं

अगर आप को भी अपने फोन के बिना एक पल चैन नहीं आता, तो यह आप की हैल्थ के लिए खतरे की घंटी है. आप टौयलेट जा कर सिर्फ हाथ धो सकते हैं फोन नहीं. इसलिए फोन के साथ बहुत से जर्म्स आप के फोन के जरीर शरीर में आ जाते हैं और बीमारियां फैलते हैं इसलिए फोन को टौयलेट में कभी यूज न करें.

वेजाइनल हाइजीन

वेजाइना को साफ रखने के लिए रोजाना शावर लें. साबुन को अच्छे से साफ करें. सुनिश्चित करें कि इंटिमेट कपड़े ज्यादा टाइट न हों. कौटन मैटीरियल को प्राथमिकता दें. मोशन के बाद अपने प्राइवेट पार्ट्स को अच्छे से साफ करें. इस से कीटाणु वेजाइना में नहीं जाएंगे.

नाखूनों की सफाई

हाथों की और पैरों की उंगलियों के नाखूनों को ट्रिम करते रहें और इन्हें अच्छी शेप में रखें. इस से आप को नाखूनों में होने वाले किसी भी इन्फैक्शन से बचने में मदद मिलेगी. साथ ही नाखनों को साबुन और हलके ब्रश से डेली साफ करें.

साफ अंडरगारमैंट्स पहनें

साफ और सूखे अंडरगारमैंट्स पहनना बहुत जरूरी है. गंदे या गीले अंडरगारमैंट्स पहनने से इन्फैक्शन का खतरा होता है. रोजाना अंडरगारमेंट्स बदलें और धो कर अच्छी तरह सुखाएं.

Film Maa: अंधविश्वास का ढकोसला, दर्शकों ने सिरे से नकारा

Film Maa: काला जादू और तंत्रमंत्र पर आधारित अजय देवगन की पिछली फिल्म ‘शैतान’ के बाद अजय अपने प्रोडक्शन तले एक बार फिर अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली फिल्म ‘मां’ ले कर प्रस्तुत हुए हैं, जिन्हें दर्शकों ने पूरी तरह नकार दिया. इस की खास वजह यह है कि आज के दर्शक कहानी के नाम पर अंधविश्वास पर आधारित बेकार की कहानी जिस में डर के बजाय ऐसी बातों का प्रचार हो जिस पर कोई विश्वास नहीं करता, को बिलकुल भी पसंद नहीं करते.

काजोल अभिनीत ‘मां’ फिल्म की चर्चा काफी समय से हो रही थी कि यह एक भूतिया फिल्म है, जिस में पौराणिक विषय का भी समावेश है. लिहाजा, कई लोगों ने सोचा था कि काजोल की यह फिल्म डराने वाली होगी जिस में पौराणिक विषय को भी घुसेड़ा गया होगा, लेकिन इस के विपरीत ‘मां’ फिल्म में न तो कुछ हौरर या डराने वाला था और न ही कहानी का कोई सिरपैर.

आदम जमाने की कहानी

फिल्म की कहानी एक मांबेटी की कहानी है, जो अपनी बेटी को बचाने के लिए हर मुसीबत से टकरा जाती है। कहानी की शुरुआत बाबा आदम के जमाने की तरह पुरानी कहानी से शुरू होती है. फिल्म ‘मां’ की कहानी भी 4 दशक पहले से शुरू होती है, जो बंगाल के एक काल्पनिक गांव चंद्रपुर से शुरू होती है, जहां पर लड़कियों की उस वक्त बलि दे दी जाती थी.

जब उन की पहली माहवारी होती है, काजोल यहां पर उस बेटी की मां बनी है जिस से उस की बुआ की बली के तार जुड़े हैं. काजोल किसी कारणवश चंद्रपुर जाने के लिए अपनी बेटी के साथ कार से निकलती है, तो रास्ते में उन की बेटी को पहले माहवारी की वजह से पेट में दर्द शुरू हो जाता है, जिस वजह से काजोल एक भूतिया होटल में पहुंच जाती है जबकि उन को पता है कि यह होटल भूतिया है इसलिए वह अपनी बेटी से उन से बिना पूछे कहीं भी बाहर निकलने के लिए मना करती हैं, लेकिन जैसा कि भूतिया फिल्मों में होता है, जो चीज के लिए मना किया जाता है भूतिया फिल्मों के कलाकार वही चीज बारबार करते हैं और मर भी जाते हैं.

न कहानी अच्छी न ऐक्टिंग

ऐसा ही कुछ इस फिल्म में भी दिखाया गया है। काजोल के मना करने के बावजूद भी बेटी होटल में तफरी करने निकल जाती है और बलि देने वाले राक्षस नुमा इंसान के कब्जे में आ जाती है। उस के बाद काजोल पौराणिक कथाओं का सहारा ले कर देवी शक्तियों के जरीए अपनी बेटी को बचाने का काम करती हैं और इस के साथ कई रहस्य के परदे भी खोल देती हैं.

विशाल फूरियां के निर्देशन में बनी इस फिल्म को देख कर दर्शकों ने सिर पीट लिया, क्योंकि उन की फिल्म की कहानी चूल्हे में चढ़ी दाल जैसी थी जो धीरेधीरे पक रही थी। ओटीटी के जमाने में 2 घंटे से ज्यादा समय के लिए बनी थकी हुई कहानी पर आधारित यह फिल्म डराने के बजाय बोरियत फैला रही थी.

ऐक्टिंग या टाइमपास

काजोल के अभिनय की अगर बात करें तो वह मां के रोल में फिट नहीं बैठती क्योंकि उन का खुद का चेहरा नटखट बच्चों जैसा है, इसलिए स्पैशली मांबेटी के सीन के दौरान उन के ऐक्सप्रेशन जबरदस्ती वाले लग रहे थे। इस फिल्म में काजोल को देख कर ऐसा लगता है कि वह अपनी कजिन रानी मुखर्जी के साथ कंपीटिशन की वजह से इक्कादुक्का फिल्मों में रानी मुखर्जी की तरह ही टाइमपास के लिए अभिनय कर रही हैं, ताकि इंडस्ट्री में अपनी पहचान बरकरार रख पाएं, वरना उन के अभिनय को देख कर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा कि वह अपने इस फिल्म में निभाए किरदार को ले कर वे जरा भी उत्साहित हैं.

इस फिल्म के जरीए हौरर फिल्म का प्रोपेगेंडा कर के दर्शकों को थिएटर तक खींचने की कोशिश की गई है. लेकिन फिल्म के किसी भी पहलू में दमखम न होने की वजह से और अंधविश्वास का ढकोसला दर्शकों को परोसने की वजह से फिल्म दर्शकों और आलोचकों द्वारा ज्यादा पसंद नहीं की जा रही है और बौक्स औफिस पर फ्लौप है. Film Maa

Ayushmann Khurana: औस्कर एकेडमी का इनविटेशन, क्या है यह उपलब्धि

Ayushmann Khurana: बौलीवुड स्टार आयुष्मान खुराना, जिन्होंने भारत में अपने विघटनकारी, प्रगतिशील सिनेमा के ब्रैंड के माध्यम से अपनी एक अलग पहचान बनाई है, को इस वर्ष औस्कर देने वाली संस्था द एकेडमी औफ मोशन पिक्चर आर्ट्स ऐंड साइंसेज में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है.

“हम इन प्रतिष्ठित कलाकारों, प्रौद्योगिकीविदों और पेशेवरों को अकादमी में शामिल करने के लिए रोमांचित हैं,” अकादमी के सीईओ बिल क्रेमर और अध्यक्ष जैनेट यांग ने कहा, “फिल्म निर्माण और व्यापक फिल्म उद्योग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के माध्यम से इन असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्तियों ने हमारे वैश्विक फिल्म निर्माण समुदाय में अमिट योगदान दिया है.”

नामचीन हस्तियों में शामिल

मोशन पिक्चर्स और सिनेमा में अपने योगदान के लिए दुनियाभर के प्रतिष्ठित कलाकारों को आमंत्रित किया गया है. आयुष्मान उन पावर हाउस ऐक्टर्स और कलाकारों की सूची में शामिल हो गए हैं जिन में गिलियन ऐंडरसन, एरियाना ग्रांडे, कमल हासन, मिके मैडिसन, जेरेमी स्ट्रौंग, कीरन कल्किन जैसे नाम शामिल हैं.

आयुष्मान को हमेशा उन के पथप्रदर्शक सिनेमा के लिए वैश्विक स्तर पर सराहा गया है।=. एक ऐसा माध्यम जिस का उन्होंने चुपचाप राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए उपयोग किया है.

10 प्रभावशाली लोगों में शुमार

उन्हें टाइम मैग्जीन द्वारा 2 बार सम्मानित किया जा चुका है– टाइम 100 इंपैक्ट 2023 के लिए और प्रतिष्ठित टाइम 100 सूची में, जिस में उन्हें दुनिया के 100 सब से प्रभावशाली लोगों में शामिल किया गया था.

आयुष्मान यूनिसेफ इंडिया ऐंबेसडर भी हैं, जो बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए लगातार काम कर रहे हैं.

आयुष्मान की पसंदीदा मैग्जीन में सालों से प्रकाशित मैग्जीन *गृहशोभा* भी शामिल है, जिस का नाम उन की कई फिल्मों में लिया गया है. Ayushmann Khurana

Social Story: एक सच यह भी- किस वजह से सुमि डिप्रैशन में चली गई?

Social Story: आदतन सुबह की चाय पीते हुए मैं ने फेसबुक के अपडेट्स देखने के लिए फोन औन किया तो सब से पहले सुमि की पोस्ट दिखी. उस ने सिर्फ इतना लिखा था कि आज मेरा जन्मदिन है. मुझे बड़ा अजीब लगा कि यह बात ऐसे लिख कर खुद कौन बताता है पर मन में कई सवाल उठे जैसे क्या यह किसी की लाइफ में बढ़ता अकेलापन नहीं है कि वह अब आभासी दुनिया के लोगों से अपना हर सुखदुख बांटने के लिए विवश है? इंसान के आसपास उस के मन की बातें सुनने वाले लोग कम होते जा रहे हैं. जो भी हैं आसपास, वे सब अपनेअपने फोन में दूर की दुनिया के लोगों से जुड़े रहने में खुशी तलाश रहे हैं, अपने सामने बैठे व्यक्ति को इग्नोर कर, उस की बातों को अनसुना कर.

सुमि से मिले मुझे भी एक अरसा हो चुका था. कोरोना के समय ने लोगों को जो एकदूसरे  से दूर किया, लोगों को अकेले रहने की आदत ही हो गई है. इस समय लोगों ने अपना खाली समय सोशल मीडिया पर बिताया, पर अब लाइफ नौर्मल होने पर भी हम वहीं सोशल मीडिया पर ही अटके रह गए. सुमि से मिलना आसान नहीं लगता. वह मुंबई के एक कोने में रहती है, मैं दूसरे कोने में. पर आज मैं ने उसे सरप्राइज देने का मन बना लिया था. मैं ने उसे तुरंत फोन मिलाया, बर्थडे सौंग गाते हुए विश किया. वह

हंस पड़ी.

मैं ने कहा, ‘‘अगर आज फैमिली के साथ बिजी है तो कोई बात नहीं पर अगर फ्री है तो चल बीच में किसी अच्छी जगह लंच करते हैं.’’

सुमि ने कहा, ‘‘फैमिली के साथ तो डिनर होगा, दिन में फ्री ही हूं, पलैडियम मिलते हैं.’’

पलैडियम मौल उस के और मेरे घर के

रास्ते में पड़ता है. हम पहले भी वहीं मिलते रहे हैं. दोनों को आनाजाना फिर लंबा नहीं पड़ता. आज मु?ो बारबार सुमि का ध्यान आ रहा था. ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब वह 3-4 पोस्ट्स न डालती हो. कभी कुछ खाया तो खाने की पोस्ट, कभी अपनी, कभी कोई और. मैं जितने लोगों को जानती हूं, सुमि सब से ज्यादा सोशल मीडिया पर ऐक्टिव है. एक बेटा मलय है जो जौब करता है, उस के पति संजय से कई बार मिल चुकी हूं. जब भी मिले, सज्जन, सभ्य लगे.

‘पंजाब ग्रिल’ के बाहर खड़ी एक मौडर्न सी स्टाइलिश वन पीस ड्रैस पहने सुमि बहुत सुंदर तरीके से तैयार थी. मैं ने उसे गले लगाते हुए विश करते हुए उस का गिफ्ट उसे दिया और कहा भी, ‘‘बहुत अच्छी लग रही हो. लग रहा है आज तुम्हारा जन्मदिन है.’’

वह खुश दिखी. हम एक कोने में बैठ गए, और्डर देते रहे, खातेपीते रहे. मैं ने फिर उस से वह सवाल पूछ ही लिया जो आजकल मुझे परेशान करता है, ‘‘सुमि, सोशल मीडिया पर तुम कैसे अचानक बहुत ज्यादा ऐक्टिव हो गई हो पर अच्छा हुआ, आज तुम ने फेसबुक पर अपना बर्थडे लिख कर बता दिया वरना मैं सचमुच भूल गई थी. तुम वैसे भी सबकुछ तो वहां बता ही देती है.’’

‘‘हां, दीया जानती हूं, ऐसे अब कौन याद रखता है. इसीलिए तो लिखा और देखो न, फायदा भी हुआ. आज कितने टाइम बाद हम 2 फ्रैंड्स बैठ कर ऐसे बातें कर रही हैं. तुम्हें याद नहीं था तो अगर मैं पोस्ट न करती तो क्या मैं आज इस खास दिन दोस्त से मिल पाती.’’

सुमि की बात में दम था. वह मेरी 10 साल पुरानी दोस्त है. हम पहले एक ही

सोसाइटी में सालों साथ रहे हैं फिर वह कहीं और शिफ्ट हो गई तो मिलनाजुलना कम होता गया और अब तो फोन भी कभीकभी ही होते. मैं चुप रही.

वह एक ठंडी सांस ले कर बोली, ‘‘यार, लाइफ जैसी हो गई है वैसी तो नहीं सोची थी.’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘तुम्हें नहीं लगता कि सब पता नहीं क्यों अपने में सिमटते जा रहे. कोई किसी से मिलता नहीं, बातें नहीं करता, बातें सुनता भी नहीं.’’

‘‘हां, सुमि, आजकल सब बहुत बिजी हैं.’’

‘‘पर किस चीज में? कमाखा तो पहले भी रहे थे. अब कहां इतने बिजी हो गए?’’ कहतेकहते उस की आवाज भर्रा गई.

इस पर मुझे चौंकना ही था. अत: मैं ने पूछा, ‘‘सुमि, क्या हुआ है? सब ठीक तो है?’’

‘‘दीया, मेरा डिप्रैशन, ऐंग्जौइटी का ट्रीटमैंट चल रहा है.’’

‘‘क्या?’’ खाना बीच में रोक कर मैं उस का चेहरा देखने लगी कि यह इतनी हंसमुख है. इसे डिप्रैशन कैसे हो सकता है. मुझे बहुत दुख हुआ. पूछा, ‘‘सुमि, क्या हुआ है?’’

‘‘पता नहीं दीया, अचानक तबीयत खराब रहने लगी, पता नहीं क्यों बहुत अकेलापन लगने लगा. संजय और मलय अपनी दुनिया में मस्त. जब छोटे शहर से मुंबई आई थी, आंखों में एक अलग ही सपने थे. अब तो सब बुझ गए. कभी सोचती हूं कि अगर वर्किंग होती तो क्या मेरी लाइफ में कुछ तो लोग होते, एक सोशल सर्किल होता, कुछ तो होता.’’

‘‘नहीं, सुमि ऐसा नहीं है. तब और बातों का स्ट्रैस होता. तब और जिम्मेदारियां होती.’’

‘‘पर तब यह अकेलापन तो नहीं होता न?’’

‘‘इतने लोग अकेलेपन के शिकार हैं, सब के सब घर ही नहीं बैठे हैं, वर्किंग भी हैं. यह तुम्हारी परेशानी एक तुम्हारी ही नहीं है.’’

‘‘थक कर सोशल मीडिया पर कभी कोई पोस्ट तो कभी कोई पोस्ट डालती रहती हूं. लोग वहां तुरंत जुड़ जाते हैं. थोड़ा हंसीमजाक चलता है तो अच्छा लगता है. कम से कम एक स्माइल तो आती है फनी पोस्ट्स पर वरना तो कभीकभी लगता है कि मुसकराए हुए भी कितना टाइम बीत गया. तू बता, विराज और वंशा कैसे हैं?’’

‘‘विराज का तो वही औफिस, टूर का रूटीन. वंशा आजकल हफ्ते में 3 दिन वर्क फ्रौम होम करती है, पूरा दिन अपने रूम में. उसे भी काम का बहुत स्ट्रैस रहता है. कभीकभी तो सिर्फ वाशरूम और कुछ खाने के लिए अपने रूम से निकलती है. वीकैंड आराम करती है या अपने दोस्तों के साथ थोड़ा बाहर जाती है.’’

‘‘तुम बोर नहीं होती? खाली समय क्या करती हो?’’

‘‘बस तुम्हारी तरह ही ऐसे ही बोर होने

लगी थी तो खुद भी कुछ क्लासेज जौइन कर

ली हैं और घर पर छोटे बच्चों की डांस क्लासेज भी लेने लगी हूं. क्या करें यार कहीं तो दिल लगाना है न.’’

‘‘अरे वाह, कत्थक सिखा रही है? तू तो ऐक्सपर्ट है न डांस में? पर खुद कौनसी क्लास जा रही है?’’

‘‘गिटार बजाना सीख रही हूं. बहुत दिनों से मन था कि गिटार सीखूं. वहां एक अच्छा ग्रुप भी बन गया है. अब यह जमाना हमारी मां, नानी का तो है नहीं कि हमेशा पासपड़ोस में कोई गपशप वाला हाजिर ही हो. अब तो अकेलेपन से निबटने के लिए रास्ते ढूंढ़ने हैं. कई बार सोचती हूं कि मां को तो आज भी सोशल मीडिया की जरूरत नहीं है. कई बार उन्हें कहती हूं कि आओ मां, आप को फोन पर ही सिखा देती हूं तो कहती हैं कि मत सिखाओ, नहीं तो जब आओगी, मैं भी इस में सिर दिए बैठी मिलूंगी. तुम्हारी बातें जो अभी बैठ कर सुनती हूं, फिर किसे सुनाओगी?’’

सुमि यह बात सुन कर बहुत प्यारी हंसी हंसी. मैं ने फिर कहा, ‘‘वैसे यार, एक बात तो है कि जब भी तुम कोई पोस्ट डालती हो, बड़े कमैंट्स आ जाते हैं. मैं सब पढ़ती हूं और हंसती भी हूं. उस दिन तो तुम्हारी रैड ड्रैस पर किसी ने कविता ही लिख दी थी.’’

‘‘हां, नई ड्रैस थी, पहन कर जब संजय को दिखाने गई तो फोन में ही मुंह दिए बैठे रहे. मैं ने कहा कि कैसी है ड्रैसेज तो बोले कि पहले भी तो देखा है, अच्छी ही है.’’

हम दोनों इस बात पर खुल कर हंसीं. फिर उस ने कहा, ‘‘अब हंस रही हूं इस बात पर, उस दिन तो गुस्सा आया था, फिर पोस्ट डाली तो लोगों के हंसीमजाक पर सचमुच हंसने लगी थी. भले ही फेसबुक को हम फेकबुक कह लें, कुछ पलों का अकेलापन तो दूर हो ही जाता है.’’

‘‘रिश्तेदारों से मिलनाजुलना होता रहता है?’’

‘‘नहीं यार, कभी किसी को मुंबई घूमने आना होता है और ठिकाना चाहिए होता है तो घर आ जाता है. हम से मिलने, हमारे साथ रहने के लिए थोड़े ही कोई आता है. जो हम से अच्छी स्थिति में हैं, वे आ कर अपने घमंड में डूबे रहते हैं, जो हम से कम हैं वे ईर्ष्या में जलते रहते हैं. मातापिता, सासससुर से ही मायके ससुराल होते हैं. वे सब तो अब रहे नहीं. सब रिश्तेदारी बस खत्म ही समझ. पिछले महीने एक रिश्तेदार घर आए थे. हमारा घर सी फेसिंग है ही. तुम्हें तो पता ही है, बस सारा दिन मुझ से अपने फोटोज खिंचवाते रहे और पोस्ट करते रहे. बैठ कर बात करने की फुरसत ही नहीं थी उन्हें. बस फोन में लगे रहे.’’

‘‘पर ऐसे बीमार हो कर नहीं चलेगा, सुमि. डिप्रैशन की नौबत आनी नहीं चाहिए. मुझे बहुत दुख हुआ है. कभीकभी के लिए सोशल मीडिया पर टाइम पास करने में कोई बुराई नहीं, पर कुछ और भी करनेसीखने में मन लगा लो तो लाइफ से शिकायतें भी कम हो जाएंगी और जीना थोड़ा आसान हो जाएगा. देख सुमि, अब टाइम ही ऐसा है कि किसी की किसी को जरूरत नहीं. हर इंसान अपने में व्यस्त है, अकेलापन बढ़ता जा रहा है, पर जीवन बीमारियों की भेंट थोड़े ही चढ़ा देना है. थोड़ा हैल्थ पर ध्यान दो और किसी काम में खुद को व्यस्त कर के देखना. अच्छा लगेगा. जमाना और लोग अब बदलने वाले नहीं. यह सब अब ऐसा ही रहेगा.’’

सुमि ने मेरे हाथ पर हाथ रख दिया, थोड़ा भावुक हुई, कहा, ‘‘ऐसे ही जल्दीजल्दी मिलते रहा करें?’’

‘‘क्यों नहीं, जब तेरा मन हो, बताना, मिलेंगे. मैं तो हमेशा ही दोस्तों के साथ बैठ कर बातें करने के लिए तैयार रहती हूं.’’

हम खाना खा चुके थे. मैं बिल देने लगी तो उस ने नहीं देने दिया, कहा, ‘‘यह मेरे जन्मदिन की पार्टी है.’’

हम ने फिर गले मिल कर अपनेअपने रास्ते की कैब पकड़ ली. हम दोनों आज करीब

4 घंटे साथ थीं और मैं इस बात पर हैरान थी कि एक बार व्हाट्सऐप के अपने फैमिली गु्रप पर ‘रीच्ड’ का मैसेज डाल कर हम दोनों ने ही एक बार भी अपने फोन की तरफ आज देखा भी

नहीं था.

मैं ने सुमि को छेड़ने के लिए एक मैसेज किया, ‘‘सुमि, हम फोटो लेना भूल गए, कोई फोटो नहीं लिया.’’

रोने वाली इमोजी के साथ उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं सचमुच अपनी लाइफ में कुछ पल ऐसे चाहती हूं कि कुछ देर फोन और सोशल मीडिया भूली रहूं, पर ऐसे पल मिलते ही नहीं.’’

मैं ने उसे बस एक किस की इमोजी भेज. फिर कुछ देर बाद उस का मैसेज आया, ‘‘सिंगिंग क्लास जौइन करूंगी, सोच लिया है, गूगल कर रही हूं, अब कुछ गाया जाए.’’

मुझे खुशी हुई. मैं ने हार्ट की इमोजी भेज दी. Social Story

Hindi Family Story: वर्किंग हसबैंड- दीपा ने सहारा क्यों चुना?

Hindi Family Story: दीपा अपने औफिस की सीढि़यां चढ़ते हुए सोच रही थी, एक दिन मैं भी इस औफिस की बौस बनूंगी. तभी मोबाइल पर आशीष का फोन आ गया, ‘‘तुम कानन की नोटबुक कहां रख कर गई हो?’’

दीपा झंझला कर बोली, ‘‘यार ढूंढ़ लो,

अब औफिस से भी मैं घर के काम मौनिटर करूं?’’ आशीष ने झेंपी हुई हंसी के साथ मोबाइल काट दिया.

दीपा 26 वर्ष की बेहद महत्त्वाकांक्षी और आकर्षक नवयुवती थी. उस की उड़ान बेहद ऊंची थी, पर उस की शादी एक ऐसे इंसान से हो गई थी जो बेहद कमजोर था. मगर इस से दीपा की उड़ान पर कोई फर्क नहीं पड़ा था.

दूसरी बेटी के जन्म के बाद बढ़ते हुए खर्च को मद्दे नजर दीपा ने बड़ी बड़ी कंपनियों में अप्लाई करना शुरू कर दिया था और जल्द ही उसे कामयाबी भी मिल गई थी. आज उसी बड़ी कंपनी में दीपा का पहला दिन था.

दीपा ने अपने वर्क स्टेशन पर बैग रखा और इधरउधर जायजा लिया. उस ने देखा 2 बेहद ही मामूली शक्लसूरत की लड़कियां और 3 उजड़ से युवक उस की टीम में थे. दीपा को लगा इन देहातियों और मामूली शक्लसूरतों के बीच उस का काम आसान हो गया है.

अगले दिन पूरी टीम की टीम मैनेजर के साथ मीटिंग थी. दीपा ने घर आ कर शाम की चाय पी और फिर कमरा बंद कर के प्रेजैंटेशन में लग गई थी. दीपा को अच्छे से मालूम था कि कौन सा दांव कब खेलना है.

शाम के 7 बजे जब आशीष आया तो दोनों बच्चियों को नानी के साथ देख कर

बोला, ‘‘अरे, मम्मी कहां है तुम्हारी?’’

दीपा की मम्मी बोली, ‘‘अरे, मेरी लड़की तो दिनरात इस घर के लिए मेहनत कर रही है.

जो काम तुम्हें करने चाहिए थे, मेरे बेटी कर

रही है.’’

आशीष चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाया. वह जिंदगी को ऐसे ही जीने का आदि था.

आशीष को मेहनत करने से, रिस्क लेने से डर लगता था, एक ही लीक पर चलने का नाम

ही आशीष के लिए जिंदगी है. मगर दीपा की सोच बहुत अलग थी. बहरहाल, आशीष ने कभी दीपा को किसी भी फैसले पर सवाल नहीं किया. वह अलग बात है कि आशीष के इस रवैए के कारण दीपा और आशीष के बीच दूरी बढ़ती जा रही थी.

अगले दिन दफ्तर में हरकोई दीपा को ही देख रहा था. काले रंग के ट्यूब टौप और लाल रंग की मिनी स्कर्ट में वह कहर बरपा रही थी. प्रेजैंटेशन के बाद टीम का प्रोजैक्ट मैनेजर अजय दीपा का मुरीद हो गया.

अजय ने दीपा के अंदर वही कामयाबी की भूख महसूस करी जो उस के अंदर थी. उसे समझ आ गया कि दीपा के साथ वह इस कंपनी को ऊंचाइयों पर ले जा सकता है.

अगले दिन अजय ने दीपा को अपने कैबिन में बुलाया और उस से बातचीत करी. दीपा के परिवार के बारे में जान कर अजय का दिल बुझ सा गया.

अजय ने गला खंखारते हुए कहा, ‘‘दीपा, तुम्हें मैं अपने प्रोजैक्ट में टीम लीड बनाने की सोच रहा था, मगर शायद छोटे बच्चों के साथ तुम्हें दिक्कत होगी.’’

दीपा पलकें झपकाते हुए बोली, ‘‘सर, मेरी प्रोफैशनल और पर्सनल लाइफ अलग हैं. आप एक बार मौका दीजिए. मैं आप को निराश नहीं करूंगी.’’

दीपा की मेहनत, लगन, कामयाबी की भूख और उस का आकर्षक व्यक्तित्व सभी कुछ उस की फेवर में था. धीरेधीरे दीपा अजय के लिए जरूरी हो गई.

1 ही साल के भीतर दीपा की सैलरी दोगुनी हो गई. उस ने एक अच्छी सोसायटी में फ्लैट बुक करा लिया और एक सैकंड हैंड छोटी कार भी अपने आनेजाने के लिए खरीद ली.

दीपा सुबह 10 बजे से रात के

10 बजे तक औफिस में बिताती थी. अजय औफिस में दीपा की छोटीछोटी जरूरतों का बहुत ध्यान रखता था. उसे दीपा के साथ समय गुजारना बेहद पसंद था. वहीं दीपा को भी औफिस में घर जैसा लगने लगा था.

दीपा जब तक घर आती तब तक आशीष बच्चों को खाना खिला कर सुला देता था और खुद भी

आधी नींद में ही रहता था. दीपा का कितना मन करता था कि वह आशीष को दफ्तर की बातें बताए, मगर आशीष सुनीअनसुनी कर देता था.आशीष की दुनिया ही अलग थी. वह

उन मर्दों में से नहीं था जो बीवी की तरक्की से जलता बल्कि आशीष ने पूरी जिम्मेदारी दीपा

के कंधों पर डाल कर बैक सीट ले ली थी.

दफ्तर के बाद आशीष कुछ समय बच्चों के साथ बीतता और बाकी पंडेपुजारियों और भजन मंडली के साथ.

परिवार और रिश्तेदारों में दीपा और

आशीष एक ऐसे जोड़े के रूप में मशहूर थे जो औरों से जुदा थे. पूरी रिश्तेदारी में इस बात का डंका बजता था कि आशीष ने अपनी पत्नी दीपा के कैरियर के कारण खुद अपना कैरियर बलिदान कर दिया है. मगर असलियत क्या है यह बस दीपा ही जानती थी.

ऐसे में धीरेधीरे ही सही दीपा का झुकाव अजय की तरफ बढ़ता जा रहा था. जहां पूजापाठ, व्रत, कीर्तनों और पत्नी की बेरुखी के कारण आशीष पतिपत्नी के रिश्ते से विमुख होता जा रहा था वहीं दीपा अब अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए भी अजय के ऊपर आश्रित थी.

अजय दीपा के लिए वर्किंग हसबैंड बन गया था. उस के सपनों का साथी. वे सपने जिन का साथी उस का अपना हसबैंड कभी नहीं बन पाया था. समाज में आशीष दीपा के पति के

रूप में जाना जाता था. रात के जिस भी पहर दीपा घर आती थी आशीष उस का खाना लगा कर देता, दीपा को बच्चों की प्रोग्रैस रिपोर्ट बताता और फिर रात के पूजापाठ में लग जाता. बस दीपा और आशीष का रिश्ता इन्हीं बैसाखियों पर घिसट रहा था.

आशीष एक छोटी सी कंपनी में छोटी सी नौकरी में था. आगे बढ़ने की, तरक्की करने की आशीष को कोई चाह नहीं थी. ऐसा भी कह सकते हैं वह अपनी कमजोरी को पूजापाठ के पाखंड के परदे के पीछे ढक लेता था.

जब भी दीपा आशीष को नौकरी बदलने को कहती वह बात को अपने ग्रहों की बुरी

दशा पर डाल देता था. उस का यह ढुलमुल रवैया दीपा को अजय के और करीब कर देता था.

दीपा जहां दफ्तर में अजय के साथ

जितनी पावरफुल महसूस करती थी वहीं घर आ कर वह आशीष के साथ बेहद लाचार महसूस करती थी.

दीपा की बड़ी बेटी आरना अब  4 साल की हो रही थी. मगर अब तक भी आराना ठीक से न तो चल पा रही थी और न ही बोल पा रही. दीपा जब भी आशीष से इस बारे में बात करती उस का एक ही जवाब होता, ‘‘मैं पंडितजी से बात कर रहा हूं. तुम क्व5 हजार दे दो. मैं आरना के पाठ करवा दूंगा.’’ दीपा अब तक 3 बार पाठ के लिए पैसे खर्च कर चुकी थी.

एक बार ऐसे ही जब दीपा ने औफिस में अजय से इस बात का जिक्र किया तो उस ने दीपा से रुखाई से कहा, ‘‘पढ़लिख कर क्यों जाहिलों जैसी बात कर रही हो.’’

‘‘आज शाम बेटी को आशीर्वाद हौस्पिटल ले कर आ जाना, मैं डाक्टर को दिखा दूंगा.’’

शाम को दीपा व आशीष नियत समय पर आरना को लेकर पहुंच गए. अजय ने पहले से ही डाक्टर से अपौइंटमैंट ले रखा था. डाक्टर से बातचीत में भी अजय ही आगे रहा. दीपा को ऐसा लग रहा था मानो आरना अजय की बेटी हो.

आशीष की पैनी नजरें यह भांप गई थीं कि अजय दीपा का बौस भी से कुछ ज्यादा ही है, मगर उसे लगा जब फ्री में बिना कुछ करे काम हो रहा है तो क्या फर्क पड़ता हैं.

कार में बैठते ही आशीष बड़ी बेशर्मी से बोला, ‘‘दीपा देखा पाठ का कमाल, अजयजी जैसा फरिश्ता भेज दिया भगवान ने हमारी आरना के लिए.’’

अजय मन ही मन सोच रहा था कि दीपा का पति तो उस की सोच से भी अधिक घटिया है.

अगले दिन औफिस में दीपा अजय से डाक्टर की फीस के बारे में पूछ रही थी.

अजय दीपा का हाथ हाथों में लेते हुए बोला, ‘‘आरना मेरी बेटी ही है, मैं यह अपनी खुशी के लिए कर रहा हूं. आरना को पूजा की नहीं डाक्टर की जरूरत हैं. डाक्टर और फिजियोथेरैपी की मदद से देखना आरना जल्द ही ठीक हो जाएगी.’’

आरना की कंडीशन के कारण अब अजय का दीपा के घर में आनाजाना बढ़ गया था. अजय अब अकसर डिनर दीपा के यहां ही करता.

रिश्तेदारों में जब इस बात को ले कर कानाफूसी होने लगी तो आशीष बोला, ‘‘मैं  20वीं शताब्दी का पति नहीं हूं, जब साथ काम करते हैं तो साथ उठनाबैठना भी होगा.’’

आशीष ने अपनी आंखों पर दौलत की पट्टी बांध ली थी. वह मन ही मन जानता था कि अजय और दीपा का रिश्ता दोस्ती से कहीं बढ़ कर है मगर अजय के जीवन में रहने से आशीष के परिवार की जिंदगी में जो सहूलितें बढ़ गई थीं वे आशीष की आंखों से छिपी नहीं थीं.

मगर जब अजय की पत्नी संस्कृति को

दीपा के बारे में पता चला तो अजय ने बड़ी सफाई से दीपा और अपने रिश्ते को प्रोफैशनल करार कर दिया.

उस दिन के बाद से अजय ने दीपा के घर आनाजाना कम कर दिया. दीपा को मालूम था ये सब अजय अपने परिवार के कारण कर रहा है. इसलिए दीपा भी अजय से उखड़ीउखड़ी रहने लगी.

अजय एक दिन दीपा से बोला, ‘‘तुम आजकल आरना को डाक्टर के पास ले कर क्यों नहीं जा रही हो? डाक्टर का फोन आया था.’’

दीपा बोली, ‘‘कब जाऊं मैं, रात के 8 बजे तो यहीं से वापस जाती हूं.’’

अजय बोला, ‘‘तुम्हारे और मेरे बीच क्या बौस इंप्लोई वाला रिश्ता है?’’

दीपा रूखी आवाज में बोली, ‘‘हमारे बीच  प्रोफैशनल रिश्ता ही तो है तो फिर मैं कैसे आप से कुछ उम्मीद रख सकती हूं?’’

अजय हंसते हुए बोला, ‘‘अरे मैं आरना को अपनी बेटी ही मानता हूं, तुम एक बार कहो तो सही मैं खुद उसे डाक्टर के पास ले कर जाऊंगा. मुझे मालूम है तुम मु?ा से नाराज हो. मगर दीपा मैं ने तुम से कभी कोई वादा नहीं किया था. मैं संस्कृति को चाह कर भी नहीं छोड़ सकता हूं. उस ने मेरा साथ तब दिया था जब मेरी जिंदगी मैं कोई नहीं था. उस के परिवार ने मुझे हर तरह से सपोर्ट किया है. प्यार जैसा कुछ नहीं है मगर फिर भी मैं उसे छोड़ नहीं सकता हूं. तुम क्या आशीष से अलग हो सकती हो?’’

दीपा थके स्वर में बोली, ‘‘मैं यह दोहरी जिंदगी जीते हुए थक गई हूं. मैं आशीष से अलग होने को तैयार हूं तुम बताओ, तुम तैयार हो हमारे रिश्ते को कानूनी रूप से अपनाने को?’’

अजय ने डूबते स्वर में कहा, ‘‘मैं तुम्हारा वर्किंग हसबैंड तो हो सकता हूं दीपा मगर लीगल हसबैंड नहीं.’’

दीपा ने कुछ नहीं कहा मगर पूरा दिन वह इसी उधेड़बुन में रही कि क्या ऐसी जिंदगी जीना जायज है जैसी वह जी रही है?

पूरे 1 माह तक दीपा ने अजय से दूरी बना कर रखी. अपनी शारीरिक इच्छाओं को उस ने काम की बलि चढ़ा दिया. मगर अजय ने दीपा के इस फैसले का सम्मान किया था. उस ने कभी इस बाबत दीपा से कोई सवाल नहीं किया. दीपा ने इस दौरान आशीष से दूरियां खत्म करने का भी भरसक प्रयास किया. मगर आशीष पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

पहले जो काम दीपा अजय की मदद से कर लेती थी अब उसे अकेले करने पड़ रहे थे. मगर एक रात अचानक दीपा की छोटी बेटी के पेट में बहुत तेज दर्द हुआ. दीपा अकेले ही उसे हौस्पिटल ले कर भागी क्योंकि आशीष अपनी भक्त मंडली के साथ किसी दूरदराज इलाके में गया हुआ था.

हौस्पिटल में जा कर दीपा 1 घंटे तक इधर से उधर डाक्टर के चक्कर लगाती रही मगर जब कोई और राह नहीं सु?ाई दी तो उस ने झिझकते हुए रात के 1 बजे अजय को फोन किया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि अजय इतनी रात गए कौल उठाएगा भी या नहीं.

मगर अजय ने न केवल कौल उठाई वह 20 मिनट में दीपा के साथ था. अजय ने डाक्टर से बातचीत करी तो पता लगा कि बच्ची की इमरजैंसी में सर्जरी करनी पड़ेगी क्योंकि उसे इंटेस्टाइनल ओब्सट्रक्शन हो गया है. 1 लाख रुपेय का खर्च था. अजय ने बिना दीपा से पूछे सर्जरी के लिए हां कर दी.

दीपा बस चुपचाप सब सुन रही थी. उस ने अजय से बस इतना कहा, ‘‘मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं.’’

बेटी की सर्जरी हो गई थी. अजय ने आशीष को भी फोन किया था मगर उस ने खीसें निपोरते हुए कहा, ‘‘मैं अपनी बेटी के लिए यहां से प्रार्थना कर रहा हूं, भगवान सब भला करेंगे.’’

जब दीपा की बेटी वापस घर आ गई तो अजय ने दीपा के लिए 1 माह तक वर्क फ्रौम होम की इजाजत भी दे दी.

दीपा को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करती अगर अजय उस की जिंदगी में नहीं होता. दीपा को समझ आ गया था कि उस की जिंदगी में लीगल हसबैंड से अधिक वर्किंग हसबैंड की जरूरत है. दीपा ने सहीगलत की परिभाषा को गृहस्थी के हवनकुंड में स्वाहा कर दिया.

दीपा ने समझता कर लिया कि अपने बच्चों और अपने भविष्य के लिए अजय जैसे वर्किंग हसबैंड का साथ बहुत जरूरी है. अत: धीरेधीरे फिर से अजय और दीपा के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

मगर इस बार अजय ने भी दीपा के घर की देहरी नहीं लाघी. और न ही दीपा ने अजय से कोई उम्मीद बांधी. दोनों ने ही शायद अपने इस वर्किंग रिश्ते को स्वीकार कर लिया. 1 माह बाद जब दीपा औफिस पहुंची तो अजय मुसकराते हुए बोला, ‘‘बहुत दिनों बाद  में जिंदगी वापस आई है.’’

दीपा ने अजय को कौफी का मग पकड़ते हुए कहा, ‘‘चलो अब काम पर जुटते हैं वर्किंग हसबैंड.’’

‘‘मुझे तुम्हारे साथ मिल कर इस कंपनी को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है.’’ Hindi Family Story

 

Love Story : पहली बारिश की बूंद

Love Story : जिया की बायोप्सी की रिपोर्ट उस के हाथों में थी. जिस बात का डाक्टर को शक था जिया को वही हुआ था कैंसर और वह भी थर्ड स्टेज. उस के पास इस खूबसूरत दुनिया के अनगिनत रंग देखने के लिए बस कुछ महीने ही थे. वाजिब है कि वह और उस का प्रेमी राज, जिन की कुछ महीने बाद मंगनी तय होनी थी, यह खबर सुन कर टूट कर बिखर चुके होंगे.

इस विचलित करने वाली खबर के साथ मौनसून की दस्तक भी धरती के कई हिस्सों पर पड़ चुकी थी, मगर ये गरजते बादल आसमान में बस कुछ दिनों से थोड़ी देर ठहर कर कहीं और चले जाते थे.जब इंसान किसी पीड़ा से गुजरता होता है तो खासतौर से प्रकृति के होते बदलाव को अपने जीवन से जोड़ कर सोचने लगता है.

आज उन्हें भी इन मनमौजी बादलों को देखते हुए जीवन की कई सचाइयां भलीभांति महसूस होने लगीं, ‘‘यह जिंदगी भी इन बादलों की तरह अपनी मरजी की मालिक है. ये कब बरसेंगे? कब थमेंगे? इस का कोई हिसाबकिताब नहीं जीवनमरण की तरह अनिश्चित और न ही उन के हाथों में होता है.’’वे चुपचाप गुमसुम अपने टू व्हीलर पर सवार यही सोचते मायूस वापस लौट रहे थे कि उन के शरीर से पानी की बूंदें छूने लगीं.‘‘गाड़ी रोको,’’ जिया ने राज के कंधे पर अपने हाथों से थाप देते हुए कहा.

राज को कुछ समझ न आया. शायद उस से कुछ गिर गया हो या हौस्पिटल में कुछ छूट गया होगा. अत: पूछा, ‘‘क्या हुआ कुछ भूल गई क्या?’’‘‘हां.’’‘‘क्या?’’‘‘जीना भूल गई हूं… अब जीना चाहती हूं.’’‘‘जी तो रही हो?’’‘‘ऐसे नहीं, अपने मन की आवाज सुनना चाहती हूं. राज मैं अभी इस बारिश में भीगना चाहती हूं.’’‘‘मेरी बात सुनो हमें यहां से फटाफट निकल लेना चाहिए… तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. तुम ने दवा भी लेनी शुरू करनी है.’’‘‘भाड़ में जाए यह रिपोर्ट.

इतने दिनों से हौस्पिटल के चक्कर लगा और डाक्टरों की बातें सुन एक बात तो मेरे दिमाग में साफ हो गई कि मेरी बीमारी का इलाज उन के हाथ में नहीं, बल्कि मेरे पास है, जो यह कि जितने भी पल शेष बचे हैं उन्हें खुशी से जीना है राज.’’‘‘फिर क्या चाहती हो?’’‘‘आज जब पता चला कि मैं कुछ दिनों की मेहमान हूं तो पता नहीं क्यों अब यह जिंदगी बहुत अच्छी लगने लगी है, जातेजाते जीने का बहुत मन कर रहा है… इसलिए अपना हर पल ऐसे बिताना चाहती हूं जैसे यह मेरा आखिरी पल हो.

मैं अपने मन को बिलकुल उदास नहीं रखना चाहती… वह सबकुछ करना चाहती हूं जो यह दिल चाहता है.’’ राज ने उस की बात सुन कर गाड़ी रोक दी. जिया खुद को आहिस्ताआहिस्ता संभालती गाड़ी से उतर बरसते पानी में अपने पैरों से हौलेहौले छपछप कर खिलखिला, अठखेलियां करती मगन होने लगी. उस की मासूमियत पर राज तो कब से फिदा था.

आज इतनी बड़ी खबर सुन कर भी उस की इतनी शरारत देख कर उस के लिए प्यार इस बारिश की तरह झमझम कर बरस रहा था. वह अपने आंसू पोंछते हुए उसे आवाज देते कहने लगा, ‘‘तुम बीमार पड़ जाओगी.’’‘‘अब और कितना बीमार होना बचा है? मैं ने तय कर लिया है.

मेरे पास जितने भी दिन हैं हम ऐसे रहेंगे जैसे यह बात हमें पता ही नहीं, सब पहले जैसा है, प्रौमिस?’’ जिया के चेहरे की मुसकराहट के साथ उस बिखरते अक्स को बारिश अपनी बूंदों से पोंछते हुए राज की नजरों से बचाने उस का मानो साथ दे रही थी.‘‘प्रौमिस, वैसे क्या रखा है ऐसे भीगने में? पूरे कपड़े खराब.’’‘‘जो छोटीछोटी चीज खुशी दे जाए उस के लिए क्या इतना सोचना. तुम्हारी ब्रैंडेड ली की टीशर्ट रंग उतर कर लो थोड़ी न हो जाएगी.’’‘‘मोबाइल का क्या?’’‘‘कैरी बैग में अच्छे से पैक कर सकते हैं.’’‘‘तुम नहाओ मैं अपना सिर इस छत से बचाते ठीक हूं.’’‘‘श्रीमान यह इंद्र देव का प्रेम बरस रहा है कोई ऐसिड नहीं जो जल या पिघल जाओगे.’’‘‘मुझे सर्दी हो जाएगी.’’‘‘तो डाक्टर कब काम आएंगे?’’‘‘आ जाओ वापस.

बहुत हो गया, घर में शावर में नहा लेना.’’‘‘क्या बात करते हो सच में तुम भी… इस प्रकृति के प्यार की तुम बाथरूम के शावर से कैसे बराबरी कर सकते हो? इस पाप की गरुढ़ पुराण में अलग से सजा लिखी है और वैसे अकसर लोगों को शावर में रोते सुना है खिलखिलाते कभी नहीं.’’‘‘तुम्हारे पास हर बात का जवाब है जिया… तुम ही भीगो मैं नहीं आने वाला.’’‘‘बोले रे पपीहरा… पपीहरा…’’‘‘वैसे जिया गाना तो बाथरूम में भी गाया जा सकता है.’’‘‘बाथरूम में बेसुरे गाने सुनने से तो अच्छेखासे को रोना आ जाए, तुम ही गाओ तुम्हें सूट करता है.’’‘‘तुम्हारा यह नहाना कब खत्म होगा?’’‘‘जब तक बारिश थम न जाए और आज तुम नहीं आए तो हमारा प्यार कैंसल.’’‘‘यह क्या ब्लैकमेल कर रही हो?’’‘‘अरे जो इंसान मेरी खुशियों में शामिल नहीं हो सकता उस को अपना जीवनसाथी क्यों चुनने का रिस्क लूं?’’ कह कर अचानक जिया चुप हो गई.

राज को ऐसे भीगना बिलकुल पसंद नहीं था और ऐसे बीच सड़क किनारे तो हरगिज नहीं. शायद आज ऐसा कुछ पता न होता तो जिया के इतने बुलाने के बाद भी न जाता, मगर कुछ माह बाद जब वह उस का साथ छोड़ जा चुकी होगी, फिर चाह कर भी वह कुछ नहीं कर पाएगा.

यह सोच कर वह बोला, ‘‘तुम यही चाहती हो न कि मैं तुम्हारे साथ आऊं, तुम्हारा हाथ थामे तुम्हें अपनी भीगी बांहों में समेट लूं?’’‘‘हां और एक वादा भी चाहती हूं कि तुम मेरे जाने के बाद अपने जीवनसाथी के साथ हर बरसात ऐसे ही भीगोगे.’’‘‘मैं ने कभी तुम्हारे बिना अपने भविष्य की कल्पना नहीं की… मुझे माफ करना मैं ऐसा कोई वादा तुम से नहीं कर पाऊंगा जिया.’’‘‘हम जैसा सोचते होते और लाइफ में वैसा ही होता तो क्या बात थी. राज मुझे से तो देर हो गई, मैं चाहती हूं आज से तुम्हें मेरे साथ अपने जीवन का हर पल जीना शुरू कर देना चाहिए, करो वादा.’’‘‘पक्का वादा,’’ भावुक राज जिया को भरे मन से गले लगा सिसकने लगा.जिया उसे ऐसे नहीं देखना चाहती थी, उस ने झट उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो आओ फिर.’’‘‘तुम ने कहा न अपने मन की करो. तो आओ पहले तुम्हें अंगूठी तो पहना दूं,’’ और राज सालों पहले बड़े प्यार से जिया के लिए खरीदी वह अंगूठी जिसे वह रोज अपनी जेब में सहेज कर उस परफैक्ट मोमैंट के इंतजार में रखा रहता था उसे पहनाने लगा.

‘‘एकदम अनूठा सरप्राइज… अब मैं भी तुम्हें अंगूठी पहना देती हूं,’’ और जिया पास गिरे ताजे फूल के डंठल को मोड़ राज को पहना देती है.‘‘इस से पहले कि बारिश बंद हो जाए, यह रही मेरी ऐंट्री अच्छे गाने के साथ, ‘हम्म्म… एक लड़की भीगीभागी सी…’’’‘‘क्या बात है वाह.’’‘‘दमदम डिगाडिगा मौसम भीगाभीगा…’’‘‘सुनिए भीतर आ जाइए, देखिए बारिश हो रही है आप भीग जाएंगे.’’खिड़की खोल कर खड़े राज को आई मौनसून की पहली बारिश की बूंदों की बौछार अपने चेहरे पर पड़ते ही उसे यकायक जिया के साथ बिताए उन खूबसूरत पलों के बीच कहीं गुम कर गई थी कि उस की पत्नी सुमन ने प्रेमपूर्वक आवाज लगाई.

राज की जिंदगी जिया के जाने के बाद बेजान होने लगी थी. मगर जिया की कही बातें, उसे दिए वादे उसे उन दुखों से उबारने में सहायक साबित हुए.‘‘आता हूं सुमन, क्या तुम्हें बारिश में भीगना पसंद नहीं?’’जिया के साथसाथ राज भी हर छोटीछोटी चीजों पर बड़ीबड़ी खुशियां ढूंढ़ने लगा था. उस के अंतिम समय तक साथ रहते देखते राज को यह बात समझते देर नहीं लगी कि इंसान की तबीयत का इलाज केवल दवा नहीं, थोड़ा सोचने का नजरिया बदल कर देखने और जीने से है, जिस से हर पीडि़त उस बीमारी से डरने के बजाय विजय प्राप्त करने का मनोबल हासिल कर सकता है.

जिया हिम्मत से लड़ती रही और मात्र 3 महीने में इतना भरपूर जी गई कि जातेजाते अपने साथ संतुष्टि की मुसकराहट ले कर और औरों के चेहरों पर दे कर विदा हुई.‘‘बहुत पसंद है मगर ऐसे अकेले नहीं.’’‘‘बात तुम ने सही कही, किसी का साथ हो तो मजा दोगुना हो जाता है.’’‘‘तो फिर चलें?’’‘‘चलो.’’ उस मौनसून इन भीगे लमहों को जीना तुम ने सिखाया था. मुसकराने और खिलखिलाहट के बीच फर्क समझया था.अब हम साथ बारिश की पहली बूंदों में भीगें यह कुदरत को मंजूर नहीं फिर भी भीगते रहेंगे हम साथ अपनीअपनी जिंदगी में. मैं कहीं और तुम कहीं.

ऐसे देखा जाए तो एक न एक दिन हम सब 1-1 कर यह खूबसूरत दुनिया छोड़ कर जाने वाले हैं. यह सामान्य सी बात तो हमारे पैदा होने के साथ ही तय हो जाती है. तो फिर इंसान इसे तब क्यों जीना शुरू करना चाहता है जब उस के जाने का समय निकट आने वाला होता है?अभी स्कूल में अच्छे से पढ़ाई कर लेते हैं. एक बार कालेज पहुंच गए फिर मस्ती ही मस्ती.

अब कालेज में गंभीर नहीं तो जौब नहीं मिलेगी, एक बार जौब मिल गई फिर मजे ही मजे.अब जौब मिल गई तो फैमिली के लिए पैसे जोड़ लेते हैं, फिर एकसाथ सब ऐंजौय करेंगे.फिर बच्चों की पढ़ाई, इलाज, शादी… एक बार रिटायर्ड हो कर सारी जिम्मेदारियों से फ्री हो जाऊं फिर टाइम ही टाइम है.

जब तक रिटायर हुए तब तक कई बीमारियों ने घेर लिया, पत्नी ने बिस्तर पकड़ लिया. डाक्टर ने आराम करने को कह दिया. फिर कुछ समय बाद जाने का नंबर भी आ गया. इंतजार न करें किसी परफैक्ट टाइम का, बनाएं हर टाइम परफैक्ट भरपूर जीने का.

Family Drama Story: मौसमी बुखार

Family Drama Story: ‘‘उठो भई, अलार्म बज गया है,’’ कह कर पत्नी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना राकेश ने फिर करवट बदल ली.

चिडि़यों की चहचहाहट और कमरे में आती तेज रोशनी से राकेश चौंक कर जाग पड़ा, ‘‘यह क्या तुम अभी तक सो रही हो? मधु…मधु सुना नहीं था क्या? मैं ने तुम्हें जगाया भी था. देखो, क्या वक्त हो गया है? बाप रे, 8…’’

जल्दी से राकेश बिस्तर से उठा तो माधवी के हाथ से अचानक उस का हाथ छू गया, वह चौंक पड़ा. माधवी का हाथ तप रहा था. माधवी बेखबर सो रही थी. राकेश ने एक चिंता भरी नजर उस पर डाली और सोचने लगा, ‘यदि मौसमी बुखार ही हो तो अच्छा है, 2-3 दिन में लोटपोट कर मधु खड़ी हो जाएगी. अगर कोई और बीमारी हुई तो जाने कितने दिन की परेशानी हो जाए,’ सोचतेसोचते राकेश बच्चों को जगाने पहुंचा.

चाय बना कर माधवी को जगाते हुए राकेश बोला, ‘‘उठो, मधु, चाय पी लो.’’

माधवी ने आंखें खोलीं, ‘‘क्या समय हो गया? अरे, 9. आप ने मुझे जगाया नहीं. आज बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे?’’

राकेश मुसकरा कर बोला, ‘‘बच्चे तो स्कूल गए, तुम क्या सोचती हो, मैं कुछ कर ही नहीं सकता. मैं ने उन्हें स्कूल भेज दिया है.’’

‘‘टिफिन?’’

‘‘चिंता न करो. टिफिन दे कर ही भेजा है.’’

माधवी को खुशी भी हुई और अचंभा भी कि राकेश इतने लायक कब से बन गए? वह सोई रह गई और इतने काम हो गए.

राकेश पुन: बोला, ‘‘मधु और बिस्कुट लो, तुम्हें बुखार लगता है. यह रहा थर्मामीटर. बुखार नाप लेना. अब दफ्तर जा रहा हूं.’’

‘‘नाश्ता?’’

‘‘कर लिया है.’’

‘‘टिफिन?’’

‘‘जरूरत नहीं, वहीं दफ्तर में खा लूंगा. यह दवाइयों का डब्बा है, जरूरत के मुताबिक गोली ले लेना,’’ एक सांस में कहता हुआ राकेश कमरे से बाहर हो गया.

पर दूसरे ही पल फिर अंदर आ कर बोला, ‘‘अरे, दूध तो गैस पर ही चढ़ा रह गया,’’ शीघ्र ही राकेश थर्मस में दूध भर कर माधवी के पास रखते हुए बोला, ‘‘थोड़ी देर बाद पी ले.’’

राकेश के जाते ही माधवी सोचने लगी, ‘इतनी चिंता, इतनी सेवा,’ फिर भी खुश होने के बजाय उस का मन भारी होता जा रहा था, ‘इतना भी नहीं हुआ कि माथे पर हाथ रख कर देख लेते. खुद बुखार नाप लेते तो लाट- साहबी पर धब्बा लग जाता? कितने मजे से सब संभाल लिया. वही पागल है जो सोचती रहती है कि उस के बिना सब को तकलीफ होगी. दिन भर जुटी रहती है सब के आराम के लिए. देखो, सब हो गया न? उस के न उठने पर भी सब काम हो गया? वह सवेरे 6 से 9 बजे तक चकरघिन्नी बन कर नाचती रहती है और सब उसे नचाते रहते हैं. आज तो सब को सबकुछ मिल गया न? लगता है सब जानबूझ कर उसे परेशान करते हैं.’

सोचतेसोचते माधवी का सिर दुखने लगा. चाय के साथ एक गोली सटक कर वह फिर लेट गई. झपकी आई ही थी कि बिन्नो की आवाज से नींद खुल गई, ‘‘बहूजी, आज दरवाजा कैसे खुला पड़ा है? अरे, लेटी हो. तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

माधवी की आंखें छलछला आईं, ‘‘बिन्नो, जरा देखना, स्नानघर में कपड़े पड़े होंगे. धो देना. गीले कपड़े मेरी छाती पर बोझ बढ़ाते हैं. सब यह जानते हैं पर कपड़े ऐसे ही फेंक गए होंगे.’’

बिन्नो ने स्नानघर से ही आवाज लगाई, ‘‘बहूजी, स्नानघर एकदम साफ है. यहां तो एक भी कपड़ा नहीं.’’

‘क्या एक भी कपड़ा नहीं?’ विस्मय से माधवी ने सोचा. उस की मनोस्थिति ऐसी हो रही थी कि राकेश और बच्चों के हर कार्य से उसे अपनेआप पर अत्याचार होता ही महसूस हो रहा था.

बिन्नो ने काम खत्म कर के उस का सिर और हाथपैर दबा दिए. माधवी कृतज्ञता से भर गई, ‘घर वालों से तो महरी ही अच्छी है. बेचारी कितनी सेवा करती है, अब की दीवाली पर इसे एक अच्छी सी साड़ी दूंगी.’

कुछ तो हाथपैर दबाए जाने से और कुछ दवा के असर से दर्द कम हो गया था. इसलिए माधवी दोपहर तक सोती ही रही.

अचानक ही आंखें खुलीं तो प्रिय सखी सुधा को देख माधवी आश्चर्यमिश्रित खुशी से भर गई, ‘‘तू आज अचानक कैसे?’’

सुधा ने हंस कर कहा, ‘‘मन ने कहा और मैं आ गई,’’ सुधा सुरीले स्वर में गुनगुनाने लगी, ‘‘दिल को दिल से राह होती है. तू बीमार पड़ी है, अकेली है, कितने सही समय पर मैं आई हूं.’’

माधवी कुछ बोले बिना एकटक सुधा को देखती रही. फिर उस की आंखें छलछला आईं. सुधा ने अचरज से पूछा, ‘‘अरे, क्या हुआ?’’

भीगे हुए करुण स्वर में अपने दिन भर के विचारबिंदु एकएक कर सुधा के सामने परोस दिए माधवी ने. स्वार्थी राकेश और बच्चों के किस्से, उस की सेवाटहल में की गई कोताही, जानबूझ कर उस से फायदा उठाने के लिए की गई लापरवाहियों के किस्से, उदाहरण सब सुनाते हुए अंत में न चाहते हुए भी माधवी के मुंह से वह निकल गया जो उसे सवेरे से परेशान किए था, ‘‘देखो न, मेरे बिना भी तो सब का काम होता है. मेरी इन लोगों को जरूरत ही क्या है? सवेरे 6 से 9 बजे तक चकरघिन्नी की तरह नाचती हूं. मुझ से तो राकेश ज्यादा कार्यकुशल है, सुबह फटाफट बच्चों को स्कूल भेज दिया.’’

सुधा मुंह दबा कर मुसकान रोक रही थी. उस पर नजर पड़ते ही  माधवी भभक उठी, ‘‘तुम हंस रही हो? हंसो, मैं ने बेवकूफी में जो इतने साल गंवाएं हैं, उन के लिए तुम्हारा हंसना ही ठीक है.’’

सुधा ठहाका लगा कर हंस पड़ी, ‘‘सच मधु, तुम बहुत भोली हो,’’ फिर गंभीर होते हुए समझाने लगी, ‘‘क्या मैं अपनेआप आ गई हूं? राकेश भैया ने ही मुझे फोन किया था कि आप की मित्र बहुत बीमार है, कृपया दोपहर में उन्हें देख आइएगा. जरूरत पड़े तो डाक्टर को दिखा दीजिए.’’

‘‘अब यही बचा है? मेरी बीमारी का ढिंढ़ोरा सारे शहर में पीटना था. खुद नहीं दिखा सकते थे डाक्टर को? डाक्टर की बात छोड़ो, माथा तक छू कर नहीं देखा. क्या पहले कभी मुझे छुआ नहीं?’’

सुधा हंस कर बोली, ‘‘खुद छुआ है भई, इस में क्या शक है? पर मधु इतना गुस्सा केवल इसीलिए कि माथा छू कर बुखार नहीं देखा? तुम्हें डाक्टर को दिखाने के लिए क्या वे बिना छुट्टी लिए घर बैठ जाते? तुम्हीं सोचो जो काम तुम 3 घंटे में करती हो, बेचारे ने इतनी जल्दी कैसे किया होगा?’’

‘‘यही तो बात है, मेरी उन्हें अब जरूरत ही नहीं. इतने कार्यकुशल…’’

‘‘खाक कार्यकुशल,’’ सुधा गुस्से से बोल पड़ी, ‘‘तुम्हारे आराम के लिए खुद कितनी परेशानी उठाई उन्होंने? इस में तुम्हें उन का प्यार नहीं दिखता? अच्छा हुआ, मैं आ गई. डाक्टर से ज्यादा तुम्हें मेरी जरूरत थी. ऐसा करो, आंखों से गुस्से की पट्टी उतार कर देखो चुपचाप. आंखें खुली, जबान बंद. सब पता लग जाएगा कि सचाई क्या है और उन लोगों को तुम्हारी कितनी जरूरत है? तुम्हारी चिंता कम करने के लिए ही वे सब तुम्हारी देखभाल कर रहे हैं.’’

माधवी को सुधा की बातें कुछ समझ आईं, कुछ नहीं पर उस ने तय किया कि जबान बंद और आंखें खुली रख कर देखने की कोशिश करेगी. शाम को एकएक कर सब घर लौटे. पहले बच्चे, फिर राकेश. उस ने आते ही पूछा, ‘‘क्या हाल है? बिन्नो आई थी? दवा ली?’’

‘‘हां, एक गोली ली थी,’’ माधवी ने धीरे से कहा.

ठीक है, आराम करो. और कोई तो नहीं आया था?’’

‘‘नहीं तो. किसी को आना था क्या?’’

‘‘नहीं भई, यों ही पूछ लिया.’’

‘‘हां, याद आया, सुधा आई थी,’’ माधवी बोली. सुनते ही राकेश के चेहरे पर इतमीनान झलक उठा. वह उत्साह से बोला, ‘‘चलो बच्चो, दू पी लो. फिर हम सब खिचड़ी बनाएंगे.’’

गुडि़या सोचते हुए बोली, ‘‘पिताजी, हमें खिचड़ी बनानी तो आती नहीं है.’’

‘‘अच्छा, तो क्या बनाना आता है?’’

गुडि़या चुप हो गई क्योंकि उसे तो कुछ भी बनाना नहीं आता था. उसे देख कर सब हंसने लगे.

राकेश उत्साहपूर्वक बोला, ‘‘चलो, हम सब मिल कर बनाएंगे. तुम्हारी मां आराम करेंगी.’’

रसोई से आवाजें आ रही थीं. माधवी सुन रही थी, ‘‘पिताजी, चावलदाल बीनने होंगे?’’

‘‘नहीं बेटा, धो कर काम चल जाएगा.’’

‘‘पर पिताजी मां तो शायद बीनती भी हैं.’’

‘‘शायद न? तुम्हें पक्का तो नहीं मालूम?’’

माधवी का मन हुआ कि चिल्ला कर बता दे, ‘चावल, दाल बीने जाएंगे,’ पर फिर सोचा, ‘हटाओ, कौन उस से पूछने आ रहा है जो वह बताने जाए?’

खिचड़ी बन कर आई. राकेश ने पहली प्लेट उसी को पेश की. पहला चम्मच मुंह में डालते ही कंकड़ दांतों के नीचे बज गया. सब एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. दोचार कौर के बाद राकेश ने खिसियाते हुए कहा, ‘‘कंकड़ हैं खिचड़ी में.’’

पप्पू बोला, ‘‘पिताजी, कहा था न कि चावल, दाल बीनने पड़ेंगे.’’

‘‘चुप, पिताजी क्या रोज बनाते हैं? जैसा मालूम था बेचारों को वैसा बना दिया,’’ गुडि़या पप्पू को घूरते हुए बोली.

‘‘बेटा, डबलरोटी खा लो,’’ राकेश ने धीरे से कहा.

‘‘पिताजी, सवेरे से बस डबलरोटी ही तो खा रहे हैं. नाश्ते में, टिफिन में, दूध के साथ, अब फिर?’’ पप्पू गुस्से से बोला. गुडि़या बिगड़ कर बोली, ‘‘तू एकदम बुद्धू है क्या? मां इतनी बीमार हैं, एक दिन डबलरोटी खा कर तू दुबला हो जाएगा? पिताजी ने भी सवेरे से क्या खाया है? कितने परेशान हैं?’’

गुडि़या की इस बात से कमरे में  सन्नाटा छा गया. सब अपनीअपनी प्लेटों के सामने चुप बैठे थे.

पप्पू अपनी प्लेट छोड़ कर उठा और मां की बगल में लेटता हुआ बोला, ‘‘मां, आप कब ठीक होंगी? जल्दी ठीक हो जाइए, कुछ सही नहीं चल रहा है.’’

गुडि़या मां का सिर दबाते हुए बोली, ‘‘अभी चाहें तो और आराम कर लीजिए, हम लोग काम चला लेंगे.’’

राकेश ने माधवी का माथा छू कर कहा, ‘‘अब लगता है, बुखार कम है.’’

माधवी आनंद की लहरों में डूबती उतराती उनींदे स्वर में बोली, ‘‘तुम सब जा कर होटल से खाना खा आओ.’’

‘‘और तुम?’’ राकेश के प्रश्न के जवाब में असीम तृप्ति से उस का हाथ अपने माथे पर दबा कर माधवी ने कहा, ‘‘मैं अब सोऊंगी.’’ Family Drama Story

Hindi Social Story: मां का घर

Hindi Social Story: विमान ने उड़ान भरी तो मैं ने खिड़की से बाहर देखा. मुंबई की इमारतें छोटी होती गईं, बाद में इतनी छोटी कि माचिस की डब्बियां सी लगने लगीं. प्लेन में बैठ कर बाहर देखना मुझे हमेशा बहुत अच्छा लगता है. बस, बादल ही बादल, उन्हें देख कर ऐसा लगता है कि रुई के गोले चारों तरफ बिखरे पड़े हों. कई बार मन होता है कि हाथ बढ़ा कर उन्हें छू लूं.

मुझे बचपन से ही आसमान का हलका नीला रंग और कहींकहीं बादलों के सफेद तैरते टुकड़े बहुत अच्छे लगते हैं. आज भी इस तरह के दृश्य देखती हूं तो सोचती हूं कि काश, इस नीले आसमान की तरह मिलावट और बनावट से दूर इनसानों के दिल भी होते तो आपस में दुश्मनी मिट जाती और सब खुश रहते.

दिल्ली पहुंचने में 2 घंटे का समय लगना था. बाहर देखतेदेखते मन विमान से भी तेज गति से दौड़ पड़ा, एअरपोर्ट से बाहर निकलूंगी तो अभिराम भैया लेने आए हुए होंगे, वहां से हम दोनों संपदा दीदी को पानीपत से लेंगे और फिर शाम तक हम तीनों भाईबहन मां के पास मुजफ्फरनगर पहुंच जाएंगे.

हम तीनों 10 साल के बाद एकसाथ मां के पास पहुंचेंगे. वैसे हम अलगअलग तो पता नहीं कितनी बार मां के पास चक्कर काट लेते हैं. अभिराम भैया दिल्ली में हृदयरोग विशेषज्ञ हैं. संपदा दीदी पानीपत में गर्ल्स कालेज की पिं्रसिपल हैं और मैं मुंबई में हाउसवाइफ हूं. 10 साल से मुंबई में रहने के बावजूद यहां के भागदौड़ भरे जीवन से अपने को दूर ही रखती हूं. बस, पढ़नालिखना मेरा शौक है और मैं अपना समय रोजमर्रा के कामों को करने के बाद अपने शौक को पूरा करने में बिताती हूं. शशांक मेरे पति हैं. मेरे दोनों बच्चे स्नेहा और यश मुंबई के जीवन में पूरी तरह रम गए हैं. मां के पास तीनों के पहुंचने का यह प्रोग्राम मैं ने ही बनाया है. कुछ दिनों से मन नहीं लग रहा था. लग रहा था कि रुटीन में कुछ बदलाव की जरूरत है.

स्नेहा और यश जल्दी कहीं जाना नहीं चाहते, वे कहीं भी चले जाते हैं तो दोनों के चेहरों से बोरियत टपकती रहती है, शशांक सेल्स मैनेजर हैं, अकसर टूर पर रहते हैं. एक दिन अचानक मन में आया कि मां के पास जाऊं और शांति से कम से कम एक सप्ताह रह कर आऊं. शशांक या बच्चों के साथ कभी जाती हूं तो जी भर कर मां के साथ समय नहीं बिता पाती, इन्हीं तीनों की जरूरतों का ध्यान रखती रह जाती हूं, इस बार सोचा अकेली जाती हूं. मां वहां अकेली रहती हैं, हमारे पापा का सालों पहले देहांत हो चुका है. मां टीचर रही हैं. अभी रिटायर हुई हैं.

हम तीनों भाईबहनों ने उन्हें साथ रहने के लिए कई बार कहा है लेकिन वे अपना घर छोड़ना नहीं चाहतीं, उन्हें वहीं अच्छा लगता है. सुबहशाम काम के लिए राधाबाई आती है. सालों से वैसे भी मां ने अपने अकेलेपन का रोना कभी नहीं रोया, वे हमेशा खुश रहती हैं, किसी न किसी काम में खुद को व्यस्त रखती हैं.

हां, तो मैं ने ही दीदी और भैया के साथ यह कार्यक्रम बनाया है कि हम तीनों अपनेअपने परिवार के बिना एक सप्ताह मां के साथ रहेंगे. अपनी हर व्यस्तता, हर जिम्मेदारी से स्वयं को दूर रख कर. कभी अपने लिए, अपने मन की खुशी के लिए भी तो कुछ सोच कर देखें, बस कुछ दिन.

अभिराम भैया को अपने मरीजों से समय नहीं मिलता, दीदी कालेज की गतिविधियों में व्यस्त रह कर कभी अपने स्वास्थ्य की भी चिंता नहीं करतीं, मेरा एक अलग निश्चित रुटीन है लेकिन मेरे प्रस्ताव पर दोनों सहर्ष तैयार हो गए, शायद हम तीनों ही कुछ बदलाव चाह रहे थे. शशांक तो मेरा कार्यक्रम सुनते ही हंस पड़े, बोले, ‘हम लोगों से इतनी परेशान हो क्या, सुखदा?’

मैं ने भी छेड़ा था, ‘हां, तुम लोगों को भी तो कुछ चेंज चाहिए, मैं जा रही हूं, मेरा भी चेंज हो जाएगा और तुम लोगों का भी, बोर हो गई हूं एक ही रुटीन से,’ शशांक ने हमेशा की तरह मेरी इच्छा का मान रखा और मैं आज जा रही हूं.

एअरहोस्टैस की आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई, मैं काफी देर से अपने विचारों में गुम थी. दिल्ली पहुंच कर जैसे ही एअरपोर्ट से बाहर आई, अभिराम भैया खड़े थे, उन्होंने हाथ हिलाया तो मैं तेजी से बढ़ कर उन के पास पहुंच गई, उन्होंने हमेशा की तरह मेरा सिर थपथपाया, बैग मेरे हाथ से लिया. बोले, ‘‘कैसी हो सुखदा, मान गए तुम्हें, यह योजना तुम ही बना सकती थीं, मैं तो अभी से एक हफ्ते की छुट्टी के लिए ऐक्साइटेड हो रहा हूं, पहले घर चलते हैं, तुम्हारी भाभी इंतजार कर रही हैं.’’

रास्ते भर हम आने वाले सप्ताह की प्लानिंग करते रहे. भैया के घर पहुंच कर स्वाति भाभी के हाथ का बना स्वादिष्ठ खाना खाया. अपने भतीजे राहुल के लिए लाए उपहार मैं ने उसे दिए तो वह चहक उठा. भैया बोले, ‘‘सुखदा, थोड़ा आराम कर लो.’’

मैं ने कहा, ‘‘बैठीबैठी ही आई हूं, एकदम फ्रैश हूं, कब निकलना है?’’

भाभी ने कहा, ‘‘1-2 दिन मेरे पास रुको.’’

‘‘नहीं भाभी, आज जाने दो, अगली बार रुकूंगी, पक्का’’

‘‘हां भई, मैं कुछ नहीं बोलूंगी बहनभाई के बीच में,’’ फिर हंस कर कहा, ‘‘वैसे कुछ अलग तरह का ही प्रोग्राम बना है इस बार, चलो, जाओ तुम लोग, मां को सरप्राइज दो.’’

मैं ने भाभी से विदा ले कर अपना बैग उठाया, भैया ने अपना सामान तैयार कर रखा था. हम भैया की गाड़ी से ही पानीपत बढ़ चले. वहां संपदा दीदी हमारा इंतजार कर रही थीं. ढाई घंटे में दीदी के पास पहुंच गए, वहां चायनाश्ता किया, जीजाजी हमारे प्रोग्राम पर हंसते रहे, अपनी टिप्पणियां दे कर हंसाते रहे, बोले, ‘‘हां, भई, ले जाओ अपनी दीदी को, इस बहाने थोड़ा आराम मिल जाएगा इसे,’’ फिर धीरे से बोले, ‘‘हमें भी.’’ सब ठहाका लगा कर हंस पड़े. दीदी की बेटियों के लिए लाए उपहार उन्हें दे कर हम मां के पास जाने के लिए निकल पड़े. पानीपत से मुजफ्फरनगर तक का समय कब कट गया, पता ही नहीं चला.

मुजफ्फरनगर में गांधी कालोनी में  जब कार मुड़ी तो हमें दूर से ही  अपना घर दिखाई दिया, तो भैया बच्चों की तरह बोले, ‘‘बहुत मजा आएगा, मां के लिए यह बहुत बड़ा सरप्राइज होगा.’’

हम ने धीरे से घर का दरवाजा खोला. बाहरी दरवाजा खोलते ही गेंदे के फूलों की खुशबू हमारे तनमन को महका गई. दरवाजे के एक तरफ अनगिनत गमले लाइन से रखे थे और मां अपने बगीचे की एक क्यारी में झुकी कुछ कर रही थीं. हमारी आहट से मुड़ कर खड़ी हुईं तो खड़ी की खड़ी रह गईं, इतना ही बोल पाईं, ‘‘तुम तीनों एकसाथ?’’

हम तीनों ही मां के गले लग गए और मां ने अपने मिट्टी वाले हाथ झाड़ कर हमें अपनी बांहों में भरा तो पल भर के लिए सब की आंखें भर आईं, फिर हम चारों अंदर गए, दीदी ने कहा, ‘‘यह कार्यक्रम सुखदा ने मुंबई में बनाया और हम आप के साथ पूरा एक हफ्ता रहेंगे.’’

मां की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, हमारे सुंदर से खुलेखुले घर में मां अकेली ही तो रहती हैं. हां, एक हिस्सा उन के किराएदार के पास है. मां के मना करने पर भी हम दोनों मां के साथ किचन में लग गईं और भैया थोड़ी देर सो गए. इतनी देर गाड़ी चलाने से उन्हें कुछ थकान तो थी ही. फिर हम चारों ने डिनर किया, अपनेअपने घर सब के हालचाल लिए. सोने को हुए तो बिजली चली गई, मां को फिक्र हुई, बोलीं, ‘‘तुम तीनों को दिक्कत होगी अब, इनवर्टर भी खराब है, तुम लोगों को तो ए.सी.  की आदत है. मैं तो छत पर भी सो जाती हूं.’’

संपदा  दीदी ने कहा, ‘‘मां, मुझ से छत पर नहीं सोया जाएगा.’’

भैया बोले, ‘‘फिक्र क्यों करती हो दीदी, चल कर देखते हैं.’’ और हम चारों अपनीअपनी चटाई ले कर छत पर चले गए. हम छत पर क्या गए, तनमन खुशी से झूम उठा. क्या मनमोहक दृश्य था, फूलों की मादक खुशबू छाई हुई थी, संदली हवाओं के बीच धवल चांदनी छिटकी हुई थी. हम सब खुले आसमान के नीचे चटाई बिछा कर लेट गए, फ्लैटों में तो कभी छत के दर्शन ही नहीं हुए थे. खुले आकाश के आंचल में तारों का झिलमिल कर टिमटिमाना बड़ा ही सुखद एहसास था. बचपन में मां ने कई बार बताया था, ठीक 4 बजे भोर का तारा निकल आता है.

‘‘प्रकृति में कितना रहस्य व आनंद है लेकिन आज का मनुष्य तो बस, मशीन बन कर रह गया है. अच्छा किया तुम लोग आ गए, रोज की दौड़भाग से तुम लोगों को कुछ आराम मिल जाएगा,’’ मां ने कहा.

प्राकृतिक सुंदरता को देखतेदेखते हम कब सो गए, पता ही नहीं चला जबकि ए.सी. में भी इतना आनंद नहीं था. सब ने सुबह बहुत ही तरोताजा महसूस किया. जैसे हम में नई चेतना, नए प्राण आ गए थे. गमले के पौधों की खुशबू से पूरा वातावरण महक रहा था. रजनीगंधा व बेले की खुशबू ने तनमन दोनों को सम्मोहित कर लिया था. हम नीचे आए, मां नाश्ता तैयार कर चुकी थीं. भैया अपनी पसंद के आलू के परांठे देख कर खुश हो गए. उत्साह से कहा, ‘‘आज तो खा ही लेता हूं, बहुत हो गया दूध और कौर्नफ्लेक्स का नाश्ता.’’

मैं ने कहा, ‘‘मां, मुझे तो कुछ हलका ही दे दो, मुझे सुबह कुछ हलका ही लेने की आदत है.’’

दीदी भी बोलीं, ‘‘हां, मां, एक ब्रैडपीस ही दे दो.’’

अभिराम भैया ने टोका, ‘‘यह पहले ही तय हो गया था कि कोई खानेपीने के नखरे नहीं करेगा, जो बनेगा सब एकसाथ खाएंगे.’’

मां हंस पड़ीं, ‘‘क्या यह भी तय कर के आए हो?’’

दीदी बोलीं, ‘‘हां, मां, सुखदा ने ही कहा था, दीदी आप अपना माइग्रेन भूल जाना और मैं कमरदर्द तो मैं ने इस से कहा था, तू भी फिगर और ऐक्सरसाइज की चिंता मुंबई में ही छोड़ कर आना.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, चलो, चारों नाश्ता करते हैं.’’

हम ने डट कर नाश्ता किया और फिर मां के साथ किचन समेट कर खूब बातें कीं.

राधाबाई आई तो हम तीनों बाजार घूमने चले गए. दिल्ली, मुंबई के मौल्स में घूमना अलग बात है और यहां दुकानदुकान जा कर खरीदारी करना अलग बात है. हम तीनों ने अपनेअपने परिवार के लिए कुछ न कुछ खरीदा, फोन पर सब के हालचाल लिए और फिर अपनी मनपसंद जगह ‘गोल मार्किट’ चाट खाने पहुंच गए. हमारा डाक्टर भाई जिस तरह से हमारे साथ चाट खा रहा था, कोई देखता तो उसे यकीन ही नहीं होता कि वह अपने शहर का प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ है. ढीली सी ट्राउजर पर एक टीशर्ट पहने दीदी को देख कर कौन कह सकता है कि वे एक सख्त पिं्रसिपल हैं, मैं ये पल अपने में संजो लेना चाहती थी, दीदी ने मुझे कहीं खोए हुए देख कर पूछा भी, ‘‘चाट खातेखाते हमारी लेखिका बहन कोई कहानी ढूंढ़ रही है क्या?’’ मैं हंस पड़ी.

हम तीनों ने मां के लिए साडि़यां खरीदीं और खाने का काफी सामान पैक करवा कर घर आए. बस, अब हम तीनों मां के साथ बातें करते, चारों कभी घूमतेफिरते ‘शुक्रताल’ पहुंच जाते कभी बाजार. भैया ने अपने मरीजों से, दीदी ने कालेज से और मैं ने अपने गृहकार्यों से जो समय निकाल लिया था, उसे हम जी भर कर जी रहे थे. शाम होते ही हम अपनी चटाइयां ले कर छत पर पहुंच जाते, इनवर्टर ठीक हो चुका था लेकिन छत पर सोने का सुख हम खोना नहीं चाहते थे. अपनी मां के साथ हम तीनों छत पर साथ बैठ कर समय बिताते तो हमें लगता हम किसी और ही दुनिया में पहुंच गए हैं.

मैं सोचती महानगर में सोचने का वक्त भी कहां मिलता है, अपनी भावनाओं को टटोलने की फुरसत भी कहां मिलती है. शाम की लालिमा को निहार कर कल्पनाओं में डूबने का समय कहां मिलता है, सुबह सूरज की रोशनी से आंखें चार करने का पल तो कैद हो जाता है कंकरीट की दीवारों में.

दीदी अपना माइग्रेन और मैं अपना कमरदर्द भूल चुकी थी. आंगन में लगे अमरूद के पेड़ से जब भैया अमरूद तोड़ कर खाते तो दृश्य बड़ा ही मजेदार होता.

छठी रात थी. कल जाना था, छत पर गए तो लेटेलेटे सब चुप से थे, मेरा दिल भी भर आया था, ये दिन बहुत अच्छे बीते थे, बहुत सुकून भरे और निश्चिंत से दिन थे, ऐसा लगता रहा था कि फिर से बचपन में लौट गए थे, वही बेफिक्री के दिन. सच ही है किसी का बचपन उम्र बढ़ने के साथ भले ही बीत जाए लेकिन वह उस के सीने में सदैव सांस लेता रहता है. यह संसार, प्रकृति तो नहीं बदलती, धूपछांव, चांदतारे, पेड़पौधे जैसे के तैसे अपनी जगह खड़े रहते हैं और अपनी गति से चलते रहते हैं. वह तो हमारी ही उम्र कुछ इस तरह बढ़ जाती है कि बचपन की उमंग फिर जीवन में दिखाई नहीं देती.

मां ने मुझे उदास और चुप देखा तो मेरे लेखन और मेरी प्रकाशित कहानियों की बातें छेड़ दीं क्योेंकि मां जानती हैं यही एक ऐसा विषय है जो मुझे हर स्थिति में उत्साहित कर देता है. मुझे मन ही मन हंसी आई, बच्चे कितने भी बड़े हो जाएं, मां हमेशा अपने बच्चों के दिल की बात समझ जाती है. मां ने मेरी रचनाओं की बात छेड़ी तो सब उठ कर बैठ गए. मां, दीदी, भैया वे सब पत्रिकाएं जिन में मेरी रचनाएं छपती रहती हैं जरूर पढ़ते हैं और पढ़ते ही सब मुझे फोन करते हैं और कभीकभी तो किसी कहानी के किसी पात्र को पढ़ते ही समझ जाते हैं कि वह मैं ने वास्तविक जीवन के किस व्यक्ति से लिया है. फिर सब मुझे खूब छेड़ते हैं. कुछ हंसीमजाक हुआ तो फिर सब का मन हलका हो गया.

जाने का समय आ गया, दिल्ली से ही फ्लाइट थी. मां ने पता नहीं क्याक्या, कितनी चीजें हम तीनों के साथ बांध दी थीं. हम तीनों की पसंद के कपड़े तो पहले ही दिलवा लाईं. अश्रुपूर्ण नेत्रों से मां से विदा ले कर हम तीनों पानीपत निकल गए, रास्ते में ही अगले साल इसी तरह मिलने का कार्यक्रम बनाया, यह भी तय किया परिवार के साथ आएंगे, यदि बच्चे आ पाए तो अच्छा होगा, हमें भी तो अपने बच्चों का प्रकृति से परिचय करवाना था, हमें लगा कहीं महानगरों में पलेबढ़े हमारे बच्चे प्रकृति के उस रहस्य व आनंद से वंचित न रह जाएं जो मां की बगिया में बिखरा पड़ा था और अगर बच्चे आना नहीं चाहेंगे तो हम तीनों तो जरूर आएंगे, पूरे साल से बस एक हफ्ता तो हम कभी अपने लिए निकाल ही सकते हैं, मां के साथ बचपन को जीते हुए, प्रकृति की छांव में. Hindi Social Story

Family Story in Hindi: अच्छी फ्रेंड है या गर्लफ्रैंड

Family Story in Hindi: बेटे राहुल के स्वभाव में मुझे कुछ बदलाव साफ दिखाई दे रहे थे, ये बदलाव तो प्राकृतिक थे इसलिए इस में कुछ हैरानी की बात नहीं थी और जब राहुल के 14वें जन्मदिन पर मैं ने घर पर उस के दोस्तों के लिए पार्टी रखी तो उस के ग्रुप में पहली बार 2-3 लड़कियां आईं. विजय मेरे कान में फुसफुसाए, ‘अरे वाह, बधाई हो, तुम्हारा लड़का जवान हो गया है.’ मैं ने उन्हें घूरा फिर मुसकरा दी. मुझे उन लड़कियों को देख कर अच्छा लगा. छोटी सी बच्चियां कोने में बैठ गईं, मैं ने उन्हें दिल से अटैंड किया. लड़के- लड़कियां आजकल साथ पढ़ते हैं, साथ खेलते हैं, मैं उन की दोस्ती को बुरा भी नहीं मानती.

उन तीनों में से 1 लड़की स्वाति कुछ ज्यादा ही संकोच में बैठी थी. बाकी 2 मुझे देख कर मुसकराती रहीं, दोचार बातें भी कीं, लेकिन स्वाति ने मुझ से नजरें भी नहीं मिलाईं तो मुझे बहुत अजीब सा लगा. मैं ने अपनी 17 वर्षीया बेटी स्नेहा से कहा भी, ‘‘यह लड़की इतना शरमा क्यों रही है?’’

स्नेहा बोली, ‘‘अरे मम्मी, छोड़ो भी, इतने बच्चों में 1 लड़की के व्यवहार पर इतना क्यों सोच रही हैं?’’ मेरी तसल्ली नहीं हुई. मैं ने विजय से कहा, ‘‘वह लड़की तो कुछ भी नहीं खा रही है, बहुत संकोच कर रही है, सब बच्चों को देखो, कितनी मस्ती कर रहे हैं.’’

विजय ने कहा, ‘‘हां, कुछ ज्यादा ही चुप है. खैर, छोड़ो, बाकी बच्चे तो मस्त हैं न.’’

राहुल ने केक काटा तो हमें खिलाने के बाद उस की नजरें सीधे स्वाति पर गईं तो मैं ने राहुल की मुसकराहट में एक पल के लिए कुछ नई सी बात नोट की, मां हूं उस की लेकिन किसी से कुछ कहने की बात नहीं थी. खैर, कुछ गेम्स फिर डिनर के बाद बच्चे खुशीखुशी अपने घर चले गए. मैं ने बाद में राहुल से पूछा, ‘‘सिया और रश्मि तो सब से अच्छी तरह बात कर रही थीं, यह स्वाति क्यों इतना शरमा रही थी?’’

राहुल मुसकराया, ‘‘हां, उसे शरम आ रही थी.’’

‘‘क्यों? शरमाने की क्या बात थी?’’

‘‘अरे मम्मी, हमारे सब दोस्त हम दोनों का साथ नाम ले कर खूब चिढ़ाते हैं न.’’

मैं चौंकी, ‘‘क्या? क्यों चिढ़ाते हैं?’’

‘‘अरे, आप को भी न हर बात समझा कर बतानी पड़ती है मम्मी. सब दोस्त एकदूसरे को किसी न किसी लड़की का नाम ले कर छेड़ते हैं.’’ मैं अपने युवा होते बेटे के समझाने के इतने स्पष्ट ढंग पर कुछ हैरान सी हुई, फिर मैं ने कहा, ‘‘यह कोई उम्र है इन मजाकों की, पढ़नेलिखने, खेलने की उम्र है.’’

‘‘लीव इट, मम्मी, आप हर बात को इतना सीरियसली क्यों लेती हैं…सभी ऐसी बातें करते हैं.’’

फिर मैं ने आने वाले दिनों में नोट किया कि राहुल का फोन पर बात करना बढ़ गया है. कई बार मैं उठाती तो फोन काट दिया जाता था, फिर राहुल के उठाने पर बात होती रहती थी. मेरे पूछने पर राहुल साफ बताता कि स्वाति का फोन है. मैं कहती, ‘‘इतनी क्या बात करनी होती है तुम दोनों को.’’

राहुल नाराज हो जाता, ‘‘मेरी फ्रैंड है, क्या मैं उस से बात नहीं कर सकता?’’ धीरेधीरे यह सब बढ़ता ही जा रहा था.

स्वाति हमारी ही सोसायटी में रहती थी. उस के मम्मीपापा दोनों नौकरीपेशा थे. मैं उन से कभी नहीं मिली थी. राहुल और स्वाति एक ही स्कूल में थे, एक ही बस में जाते थे. दोनों के शौक भी एक जैसे थे. राहुल अपने स्कूल की फुटबाल टीम का बहुत अच्छा प्लेयर था और स्वाति उस के हर मैच में उस का साहस बढ़ाने के लिए उपस्थित रहती. मैं विजय से कहती, ‘‘कुछ ज्यादा ही हो रहा है दोनों का.’’ विजय कहते, ‘‘तुम यह सब नहीं रोक पाओगी. अब तो उस की ऐसी उम्र भी नहीं है कि ज्यादा डांटडपट की जाए.’’

अब तक हमेशा 90 प्रतिशत से ऊपर अंक लाने वाला मेरा बेटा कहीं पढ़ाई में न पिछड़ जाए, इस बात की मुझे ज्यादा चिंता रहती. मैं रातदिन अब राहुल की हरकतों पर नजर रखती और महसूस करती कि मैं किसी भी तरह राहुल और स्वाति को एकदूसरे से मिलने से रोक ही नहीं सकती, सारा दिन तो साथ रहते थे दोनों. कुछ और समय बीता. राहुल और स्वाति दोनों ने 10वीं की बोर्ड की परीक्षाओं में 85 प्रतिशत अंक प्राप्त किए तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा.

विजय कहते, ‘‘देखा? इतने दिन तुम अपना खून जलाती रहीं, पढ़ाई तो दोनों ने अच्छी की.’’

मैं कुछ कह नहीं पाई. राहुल को हम ने गिफ्ट में एक मोबाइल फोन ले दिया तो वह बहुत खुश हुआ, कई दिनों से कह रहा था कि उसे फोन चाहिए. फिर मैं ने ही धीरेधीरे अपने मन को समझा लिया कि स्वाति राहुल की गर्लफ्रैंड है और मैं उसे कुछ नहीं कह सकती. सांवली सी, पतलीदुबली स्वाति महाराष्ट्रियन थी, हम उत्तर भारतीय कायस्थ. वह मुझ से अब भी कतराती थी. एक ही सोसायटी थी, कई बार सामना होता तो वह नजरें चुरा लेती. मुझे गुस्सा आता. राहुल से कहती, ‘‘और भी तो लड़कियां हैं, सब हायहलो करती हैं और इस लड़की को इतनी भी तमीज नहीं कि कभी विश कर दे.’’

राहुल तुरंत उस की साइड लेता, ‘‘वह आप से डरती है, मम्मी.’’

‘‘क्यों? क्या मैं उसे कुछ कहती हूं?’’

‘‘नहीं, मैं ने उसे बताया है कि आप को उस की और मेरी दोस्ती के बारे में पता है और आप को यह सब बिलकुल पसंद नहीं है.’’

मैं कहती, ‘‘दोस्ती को मैं थोड़े ही बुरा समझती हूं लेकिन हद से बाहर कुछ दिखता है तो गुस्सा तो आता ही है. सब खबर है मुझे.’’

राहुल पैर पटकता चला जाता. कुछ समय और बीता, दोनों की 12वीं भी हो गई. इस बार राहुल के 91 प्रतिशत और स्वाति के 93 प्रतिशत अंक आए. हम सब बहुत खुश थे. अब राहुल ने कौमर्स ली, स्वाति ने साइंस. अब तो कई मेरी करीबी सहेलियां सोसायटी के गार्डन में सैर करते हुए स्वाति को आतेजाते देख कर मुझे कोहनी मारतीं, ‘‘देख, तेरे बेटे की गर्लफैं्रड जा रही है.’’ मैं ऊपर से मुसकरा देती और दिल ही दिल में सोचती, इस का मतलब अच्छे- खासे मशहूर हैं दोनों. मुझे अच्छी तरह पता चल गया था कि दोनों एकदूसरे को बहुत सीरियसली लेते हैं. अब मैं ही विजय से कहती, ‘‘बचपन से ये दोनों साथ हैं, मुझे तो लगता है अपने पैरों पर खड़ा होने पर ये विवाह भी करेंगे.’’

विजय मेरी इतनी गंभीरता से कही गई बात को हलकेफुलके ढंग से लेते और हंस कर कहते, ‘‘वाह, क्या हमारे घर में महाराष्ट्रियन बहू आ रही है? क्या बुराई है?’’ अब तो मैं भी मानसिक रूप से उसे बहू के रूप में देखने के लिए तैयार हो गई थी. मन ही मन कई बातें उस के बारे में सोचती रहती. स्नेहा कभी अपनी टिप्पणी देती, कभी चुपचाप हमारी बात सुनती. वह भी हमें राहुल और स्वाति की कई बातें बताती रहती.

वक्त अपनी रफ्तार से चल रहा था. राहुल का यहीं मुंबई में ऐडमिशन हुआ, स्वाति का कोटा में. मैं सोचती अब तो बस फोन ही माध्यम होगा इन की बातचीत का. स्वाति कोटा चली गई. राहुल कई दिन चुप व गंभीर सा रहा. फोन पर बात कर रहा होता तो मैं समझ जाती उधर कौन है. वह कई बार फोन पर दोस्तों से बात करता लेकिन जब वह स्वाति से बात करता तो उस के बिना बताए मैं उस के चेहरे के भावों से समझ जाती कि उधर स्वाति है फोन पर.

अब राहुल बीकौम के साथसाथ सीए भी कर रहा था. मैं ने आश्चर्यजनक रूप से एक बड़ा परिवर्तन महसूस किया. अब किसी अवनि के फोन आने लगे थे. राहुल की बातों से पता चला कि उस की क्लासफैलो अवनि उस की खास दोस्त है. 1-2 बार वह उसे किसी प्रोजैक्ट की तैयारी के लिए 2-3 दोस्तों के साथ घर भी लाया. उन की दोस्ती साधारण दोस्ती से हट कर लगी. अवनि ने मुझ से पूरे कौन्फिडैंस से बात की, किचन में मेरा हाथ बंटाने भी आ गई. वह साउथइंडियन थी, स्मार्ट थी. जब तक घर में रही, राहुलराहुल करती रही. मैं चुपचाप उस की भावभंगिमाओं का निरीक्षण करती रही और इस नतीजे पर पहुंची कि जो संबंध अब तक राहुल का स्वाति से था, वही आज अवनि से है.

मुझे मन ही मन राहुल पर गुस्सा आने लगा कि यह क्या तमाशा है, कभी किसी लड़की से इतनी दोस्ती तो कभी किसी और से. वह अवनि के साथ फोन पर गप्पें मारता रहता. मैं ने 1-2 बार पूछ ही लिया, ‘‘स्वाति कैसी है?’’

‘‘ठीक है, क्यों?’’

‘‘उस से बात तो होती रहती होगी?’’

‘‘हां, कभी फ्री होता हूं तो बात हो जाती है, वह भी बिजी है, मैं भी.’’

मैं ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मुझे पता है तुम कहां बिजी हो.’

मैं ने इतना ही कहा, ‘‘तुम्हारी तो वह अच्छी फ्रैंड है न, उस के लिए तो टाइम मिल ही जाता होगा.’’

वह झुंझला गया, ‘‘तो क्या उस से रोज बात करता रहूं? और रोजरोज कोई क्या बात करे.’’

मैं हैरान उस का मुंह देखती रह गई और वह पैर पटकता वहां से चला गया.

अब राहुल पर मुझे हर समय गुस्सा आता रहता. अवनि कभी भी उस के दोस्तों के साथ आ जाती, लंच करती, हम सब से खूब बातें करती. रात को बैडरूम में विजय को देखते ही मेरे मन का गुबार निकलना शुरू हो जाता, ‘‘हुंह, पुरुष है न, किसी लड़की की भावनाओं से खेलना अपना हक समझता है, बचपन से जिस के साथ घूम रहा है, जिस के साथ सोसायटी में अच्छेखासे चर्चे हैं, अब इतने आराम से उसे भूल कर किसी और लड़की से दोस्ती कर ली है, आवारा कहीं का.’’

विजय कहते, ‘‘प्रीति, तुम क्यों बच्चों की बातों में अपना दिमाग खराब करती रहती हो. यह उम्र ही ऐसी है, ज्यादा ध्यान मत दिया करो.’’

मैं चिढ़ जाती, ‘‘हां, आप तो उसी की साइड लेंगे, खुद भी तो एक पुरुष हो न.’’

‘‘अरे, हम तो हमेशा से आप के गुलाम हैं, कभी शिकायत का मौका दिया है,’’ विजय नाटकीय स्वर में कहते तो भी मैं चुप रहती.

मेरा ध्यान स्वाति में रहता. मैं उसी के बारे में सोचती. कोई भी काम करते हुए मुझे उस का ध्यान आ जाता कि बेचारी को राहुल का व्यवहार कितना खलता होगा, उसे राहुल का बचपन का साथ याद आता होगा.

काफी समय बीतता चला गया. स्नेहा एमबीए कर रही थी, राहुल का भी सीए पूरा होने वाला था. यह पूरा समय मुझे स्वाति का ध्यान आता रहा था. राहुल के किसी फोन से मुझे अब यह न लगता कि वह स्वाति के संपर्क में भी है. अवनि से उस की घनिष्ठता बढ़ गई थी. एक दिन मुझे शौपिंग के लिए जाना था, विजय ने कहा, ‘‘तुम शाम को 6 बजे कैफे कौफी डे पहुंच जाना, वहीं कुछ खापी कर शौपिंग करने चलेंगे.’’

मैं वहां पहुंची, एक कार्नर में बैठ गई. विजय को फोन कर के पूछा कि कितनी देर में आ रहे हो. उन्होंने कहा, ‘‘तुम और्डर दे दो, मैं भी पहुंच ही रहा हूं.’’

मैं ने और्डर दे कर यों ही नजरें इधरउधर दौड़ाईं तो मैं चौंक पड़ी, स्वाति एक टेबल पर एक लड़के के साथ बैठी थी और दोनों चहकते हुए आसपास के माहौल से बेखबर अपनी बातों में व्यस्त थे. मैं गौर से स्वाति को देखती रही, वह काफी खुश लग रही थी. मेरी नजरें स्वाति से हट नहीं रही थीं, शायद उसे भी किसी की घूरती निगाहों का एहसास हुआ हो, उस ने इधरउधर देखा, चौंक कर उस लड़के को कुछ कहा, फिर उठ कर आई, मेरी टेबल के पास खड़ी हुई, मुझे नमस्ते की. मैं ने उसे बैठने का इशारा करते हुए उस के हालचाल पूछे.

वह बैठी तो नहीं लेकिन आज पहली बार वह मुझ से बात कर रही थी. मैं ने उस की पढ़ाई के बारे में पूछा. उस से बात करतेकरते मेरी नजर उस के पीछे आ कर खड़े हुए लड़के पर पड़ी. स्वाति ने उस से परिचय करवाया, ‘‘आंटी, यह आकाश है, कोटा में मेरे कालेज में ही है. यहीं मुंबई में ही रहता है.’’ मैं ने दोनों से कुछ हलकीफुलकी बात की, फिर वे दोनों ‘बाय आंटी’ कह कर चले गए.

मैं स्वाति को हंसतेमुसकराते जाते देखती रही. मैं सोच रही थी, यह लड़की कभी नहीं जान पाएगी कि यह कितने दिनों से मेरे दिमाग पर छाई थी. मैं ने मन ही मन पता नहीं क्या रिश्ता बना लिया था इस से, पता नहीं इस की कितनी भावनाओं से मेरा मन जुड़ गया था, लेकिन आज मैं स्वाति को खुश देख कर बेहद खुश थी. Family Story in Hindi

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