Fictional Story: चावल पर लिखे अक्षर- क्या हुआ था सीमा के साथ

लेखक- डा. रंजना जायसवाल

Fictional Story: दशहरे की छुट्टियों के कारण पूरे 1 महीने के लिए वर्किंग वूमेन होस्टल खाली हो गया था. सभी लड़कियां हंसतीमुसकराती अपनेअपने घर चली गई थीं. बस सलमा, रुखसाना व नगमा ही बची थीं. मैं उदास थी. बारबार मां की याद आ रही थी. बचपन में सभी त्योहार मुझे अच्छे लगते थे. दशहरे में पिताजी मुझे स्कूटर पर आगे खड़ा कर रामलीला व दुर्गापूजा दिखाने ले जाते. दीवाली के दिन मां नाना प्रकार के पकवान बनातीं, पिताजी घर सजाते. शाम को धूमधाम से गणेशलक्ष्मी पूजन होता. फिर पापा ढेर सारे पटाखे चलाते. मैं पटाखों से डरती थी. बस, फुलझडि़यां ही घुमाती रहती. उस रात जगमगाता हुआ शहर कितना अच्छा लगता था. दीवाली के दिन यह शहर भी जगमगाएगा पर मेरे मन में तब भी अंधेरा होगा. 10 वर्ष की थी मैं जब मां का देहांत हो गया. तब से कोई भी त्योहार, त्योहार नहीं लगा. सलमा वगैरह पूछती हैं कि मैं अपने घर क्यों नहीं जाती? अब मैं उन्हें कैसे कहूं कि मेरा कोई घर ही नहीं.

मन उलझने लगा तो सोचा, कमरे की सफाई कर के ही मन बहलाऊं. सफाई के क्रम में एक पुराने संदूक को खोला तो सुनहरे डब्बे में बंद एक शीशी मिली. छोटी और पतली शीशी, जिस के अंदर एक सींक और रुई के बीच चावल का एक दाना चमक रहा था, जिस पर लिखा था, ‘नोरा, आई लव यू.’ मैं ने उस शीशी को चूम लिया और अतीत में डूबती चली गई. यह उपहार मुझे अनवर ने दिया था. दिल्ली के प्रगति मैदान में एक छोटी सी दुकान है, जहां एक लड़की छोटी से छोटी चीजों पर कलाकृतियां बनाती है. अनवर ने उसी से इस चावल पर अपने प्रेम का प्रथम संदेश लिखवाया था.

अनवर मेरे सौतेले बडे़ भाई के मित्र थे, अकसर घर आया करते थे. पिताजी की लंबी बीमारी, फिर मृत्यु के समय उन्होंने हमारी बहुत मदद की थी. भाई उन पर बहुत विश्वास करता था. वह उस के मित्र, भाई, राजदार सब थे पर भाई का व्यवहार मुझ से ठीक न था. कारण यह था कि पिताजी ने अपनी आधी संपत्ति मेरे नाम लिख दी थी. वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी मेरी शादी कर के बाकी संपत्ति पर अधिकार कर ले. पर मैं आगे पढ़ना चाहती थी.

एक दिन इसी बात को ले कर उस ने मुझे काफी बुराभला कहा. मैं ने गुस्से में सल्फास की गोलियां खा लीं पर संयोग से अनवर आ गए. वह तत्काल मुझे अस्पताल ले गए. भाई तो पुलिस केस के डर से मेरे साथ आया तक नहीं. जहर के प्रभाव से मेरा बुरा हाल था. लगता था जैसे पूरे शरीर में आग लग गई हो. कलेजे को जैसे कोई निचोड़ रहा हो. उफ , इतनी तड़प, इतनी पीड़ा. मौत जैसे सामने खड़ी थी और जब डाक्टर ने जहर निकालने  के लिए नलियों का प्रयोग किया तो मैं लगभग बेहोश हो गई.

जब होश आया तो देखा अनवर मेरे सिरहाने उदास बैठे हुए हैं. मुझे होश में देख कर उन्होंने अपना ठंडा हाथ मेरे तपते माथे पर रख दिया. आह, ऐसा लगा किसी ने मेरी सारी पीड़ा खींच ली हो. मेरी आंखों से आंसू बहने लगे तो उन की भी आंखें नम हो आईं. बोले, ‘पगली, रोती क्यों है? उस जालिम की बात पर जान दे रही थी? इतनी सस्ती है तेरी जान? इतनी बहादुर लड़की और यह हरकत…?’

मैं ने रोतेरोेते कहा, ‘मैं अकेली पड़ गई हूं, कोई मेरे साथ नहीं है. मैं क्या करूं?’

वह बोले, ‘आज से यह बात मत कहना, मैं हूं न, तुम्हारा साथ दूंगा. बस, आज से इन प्यारी आंखों में आंसू न आने पाएं. समझीं, वरना मारूंगा.’

मैं रोतेरोते हंस पड़ी थी.

अनवर ने भाई को राजी कर मेरा एम.ए. में दाखिला करा दिया. फिर तो मेरी दुनिया  ही बदल गई. अनवर घर में मुझ से कम बातें करते पर जब बाहर मिलते तो खूब चुटकुले सुना कर हंसाते. धीरेधीरे वह मेरी जिंदगी की एक ऐसी जरूरत बनते जा रहे थे कि जिस दिन वह नहीं मिलते मुझे सूनासूना सा लगता था.

एक दिन मैं अपने घर में पड़ोसी के बच्चे के साथ खेल रही थी. जब वह बेईमानी करता तो मैं उसे चूम लेती. तभी अनवर आ गए और हमारे खेल में शामिल हो गए. जब मैं ने बच्चे को चूमा तो उन्होंने भी अपना दायां गाल मेरी तरफ बढ़ा दिया. मैं ने शरारत से उन्हें भी चूम लिया. जब उन्होंने अपने होंठ मेरी तरफ बढ़ाए तो मैं शरमा गई पर उन की आंखों का चुंबकीय आकर्षण मुझे खींचने लगा और अगले ही पल हमारे अधर एक हो चुके थे. एक अजीब सा थरथराता, कोमल, स्निग्ध, मीठा, नया एहसास, अनोखा सुख, होंठों की शिराओं से उतर कर विद्युत तरंगें बन रक्त के साथ प्रवाहित होने लगा. देह एक मद्धिम आंच में तपने लगी और सितार के कसे तारों से मानो संगीत बजने लगा. तभी भाई की चीखती आवाज से हमारा सम्मोहन टूट गया. अनवर भौचक्के से खड़े हो गए थे. भाई की लाललाल आंखों ने बता दिया कि हम कुछ गलत कर रहे थे.

‘क्या कर रही थी तू बेशर्म, मैं जान से मार डालूंगा तुम्हें,’ उस ने मुझे मारने के लिए हाथ उठाया तो अनवर ने उस का हाथ थाम लिया.

‘इस की कोई गलती नहीं. जो कुछ दंड देना हो मुझे दो.’

भाई चीखा, ‘कमीने, मैं ने तुझे अपना दोस्त समझा और तू…जा, चला जा…फिर कभी मुंह मत दिखाना. मैं गद्दारों से दोस्ती नहीं रखता.’

अनवर आहत दृष्टि से कुछ क्षण भाई को देखते रहे. कल तक वह उस के लिए आदर्श थे, मित्र थे और आज इस पल इतने बुरे हो गए. उन्होंने लंबी सांस ली और धीरेधीरे बाहर चले गए.

मेरा मन तड़पने लगा. यह क्या हो गया? अनवर अब कभी नहीं आएंगे. मैं ने क्यों चूम लिया उन्हें? वह बच्चे नहीं हैं? अब क्या होगा? उन के बिना मैं कैसे जी सकूंगी? मैं अपनेआप में इस प्रकार गुम थी कि भाई क्या कह रहा है, मुझे सुनाई ही नहीं दे रहा था.

उस घटना के कई दिन बाद अनवर मिले और मुझे बताया कि भाई उन्हें घर से ले कर आफिस तक बदनाम कर रहा है. उन के हिंदू मकान मालिक ने उन से कह दिया कि जल्द मकान खाली करो. आफिस में भी काम करना मुश्किल हो रहा है. सब उन्हें अजीब  निगाहों से घूरते हुए मुसकराते हैं, मानो वह कह रहे हों, ‘बड़ा शरीफ बनता था?’ सब से बड़ा गुनाह तो उन का मुसलमान होना बना दिया गया है. मुझे भाई पर क्रोध आने लगा.

अनवर बेहद सुलझे हुए, शरीफ, समझदार व ईमानदार इनसान के रूप में प्रसिद्ध थे. कहीं अनवर बदनामी के डर से कुछ कर  न बैठें, यही सोच कर मैं ने दुखी स्वर में कहा, ‘यह सब मेरी नासमझी के कारण हुआ, मुझे माफ कर दें.’ वह प्यार से बोले, ‘नहीं पगली, इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं, दोष उमर का है. मैं ने ही कब सोचा था कि तुम से’…वाक्य अधूरा था पर मुझे लगा खुशबू का एक झोंका मेरे मन को छू कर गुजर गया है, मन तितली बन कर उस सुगंध की तलाश में उड़ने लगा.

अचानक उन्होंने चुप्पी तोड़ी, ‘सीमा, मुझ से शादी करोगी?’ यह क्या, मैं अपनेआप को आकाश के रंगबिरंगे बादलों के बीच दौड़तेभागते, खिल- खिलाते देख रही हूं. ‘सीमा, बोलो सीमा, क्या दोगी मेरा साथ?’ मैं सम्मोहित व्यक्ति की तरह सिर हिलाने लगी.

वह बोले, ‘मैं दिल्ली जा रहा हूं, वहीं नौकरी ढूंढ़ लूंगा…यहां तो हम चैन से जी नहीं पाएंगे.’

अनवर जब दिल्ली से लौटे थे तो मुझे चावल पर लिखा यह प्रेम संदेश देते हुए बोले थे, ‘आज से तुम नोरा हो…सिर्फ मेरी नोरा’…और सच  उस दिन से मैं नोरा बन कर जीने लगी थी.

अनवर देर कर रहे थे. उधर भाई की ज्यादतियां बढ़ती जा रही थीं. वह सब के सामने मुझे अपमानित करने लगा था. उस का प्रिय विषय ‘मुसलिम बुराई पुराण’ था. इतिहास और वर्तमान से छांटछांट उस ने मुसलमानों की गद्दारियों के किस्से एकत्र कर लिए थे और उन्हें वह रस लेले कर सुनाता. मुझे पता था कि यह सब मुझे जलाने के लिए कर रहा था. भाई जितनी उन की बुराई करता, उतनी ही मैं उन के नजदीक होती जा रही थी. हम अकसर मिलते. कभीकभी तो पूरे दिन हम टैंपो से शहर का चक्कर लगाते ताकि देर तक साथ रह सकें. अजीब दिन थे, दहशत और मोहब्बत से भरे हुए. उन की एक नजर, एक मुसकराहट, एक बोल, एक स्पर्श कितना महत्त्वपूर्ण हो उठा था मेरे लिए.

वह अपने प्रेमपत्र कभी मेरे घर के पिछवाडे़ कूडे़ की टंकी के नीचे तो कभी बिजली के खंभे के पास ईंटों के नीचे दबा जाते.

मैं कूड़ा फेंकने के बहाने जा कर उन्हें निकाल लाती. वे पत्र मेरे लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रेमपत्र होते थे.

उन्हें मेरा सतरंगी दुपट्टा विशेष प्रिय था, जिसे ओढ़ कर मैं शाम को छत पर टहलती और वह दूर सड़क से गुजरते हुए फोन पर विशेष संकेत दे कर अपनी बेचैनी जाहिर करते. भाई घूरघूर कर मुझे देखता और मैं मन ही मन रोमांचकारी खुशी से भर उठती.

एक दिन जब मैं विश्वविद्यालय से घर पहुंची तो ड्राइंग रूम से भाई के जोरजोर से बोलने की आवाज सुनाई दी. अंदर जा कर देखा तो धक से रह गई. अनवर सिर झुकाए खडे़ थे. अनवर को यह क्या सूझा? आखिर वही पागलपन कर बैठे न, कितना मना किया था मैं ने? पर ये मर्द अपनी ही बात चलाते हैं. इतना आसान तो नहीं है जातिधर्म का भेदभाव मिट जाना? चले आए भाई से मेरा हाथ मांगने, उफ, न जाने क्याक्या कहा होगा भाई ने उन्हें. भाई मुझे देख कर और भी शेर हो गया. उन का हाथ पकड़ कर बाहर की तरफ धकेलते हुए गालियां बकने लगा. मैं किंकर्तव्यविमूढ़ थी. बाहर कालोनी के कुछ लोग भी जमा हो गए थे. मैं तमाशा बनने के डर से कमरे में बंद हो गई. रात भर तड़पती रही.

दूसरे दिन शाम को किसी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया. खोल कर देखा तो अनवर के एक मित्र थे. किसी भावी आशंका से मेरा मन कांप उठा. वह बोले, ‘अनवर ने काफी मात्रा में जहर खा लिया है और मेडिकल कालिज में मौत से लड़ रहा है. बारबार नोरानोरा पुकार रहा है. जल्दी चलिए.’ मैं घबरा गई. मैं ने जल्दी से पैरों में चप्पल डालीं और सीढि़यां उतरने लगी. देखा तो आखिरी सीढ़ी पर भाई खड़ा था. मैं ठिठक गई. फिर साहस कर बोली, ‘मुझे जाने दो, बस, एक बार देखना चाहती हूं उन्हें.’

‘नहीं, तुम नहीं जाओगी, मरता है तो मर जाने दो, साला अपने पाप का प्रायश्चित्त कर रहा है.’

‘प्लीज, भाई, चाहो तो तुम भी साथ चलो, बस, एक बार मिल कर आ जाऊंगी.’

‘कदापि नहीं, उस गद्दार का मुंह भी देखना पाप है.’

‘भाई, एक बार मेरी प्रार्थना सुन लो, फिर तुम जो चाहोगे वही करूंगी. अपने हिस्से की जायदाद भी तुम्हारे नाम कर दूंगी.’

‘सच? तो यह लो कागज, इस पर हस्ताक्षर कर दो.’ उस ने जेब से न जाने कब का तैयार दस्तावेज निकाल कर मेरे सामने लहरा दिया. मेरा मन घृणा से भर उठा. जी तो चाहा कागज के टुकडे़ कर के उस के मुंह पर दे मारूं पर इस समय अनवर की जिंदगी का सवाल था. समय बिलकुल नहीं था और बाहर कालोनी वाले जुटने लगे थे. मैं ने भाई के हाथ से पेन ले कर उस दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए और तेजी से लोगों के बीच से रास्ता बनाती अनवर के मित्र के स्कूटर पर बैठ गई.

जातेजाते भाई के कुछ शब्द कान में पडे़, ‘देख रहे हैं न आप लोग, यह अपनी मर्जी से जा रही है. कल कोई यह न कहे, सौतेले भाई ने घर से निकाल दिया. विधर्मी की मोहब्बत ने इसे पागल कर दिया है. अब मैं इसे कभी घर में घुसने नहीं दूंगा. मेरे खानदान का नाम और धर्म सब भ्रष्ट कर दिया है इस कुलकलंकिनी ने.’

स्कूटर मेडिकल कालिज की तरफ बढ़ा जा रहा था. मेरी आंखों में आंसू छलछला आए, ‘तो यह…यह है मां के घर से मेरी विदाई.’ अनवर खतरे से बाहर आ चुके थे. उन्हें होश आ गया पर मुझे देखते ही वह थरथरा उठे, ‘तुम…तुम कैसे आ गईं? जाओ, लौट जाओ, कहीं पुलिस…’ मैं ने अनवर का हाथ दबा कर कहा, ‘आप चिंता न करें, कुछ नहीं होगा.’ पर अनवर का भय कम नहीं हो रहा था. वह उसी तरह थरथराते रहे और मुझे वापस जाने को कहते रहे. मैं उन्हें कैसे समझाती कि मैं सबकुछ छोड़ आई हूं, अब मेरी वापसी कभी नहीं होगी.

वह नीमबेहोशी में थे. जहर ने उन के दिमाग पर बुरा असर डाला था. उन को चिंतामुक्त करने के लिए मैं बाहर इमली के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ गई. बीचबीच में जा कर उन के पास पडे़ स्टूल पर बैठ जाती और निद्रामग्न उन के चेहरे को देखती रहती और सोचती, ‘किस्मत ने मुझे किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है?’ आगे का रास्ता सुझाई नहीं पड़ रहा था.

पक्षी चहचहाने लगे तो पता चला कि सुबह हो चुकी है. मैं अनवर के सिरहाने बैठ कर उन का सिर सहलाने लगी. उन्होंने आंखें खोल दीं और मुसकराए. उन की मुसकराहट ने मेरे रात भर के तनाव को धो दिया. मारे खुशी के मेरी आंखें नम हो आईं.

‘सच ही सुबह हो गई है क्या?’ मैं ने उन की तरफ शिकायती नजरों से देखा, ‘तुम ने ऐसा क्यों किया अनवर, क्यों…मुझे छोड़ कर पलायन करना चाहते थे. एक बार भी नहीं सोचा कि मेरा क्या होगा?’

उन्होंने शायद मेरी आंखें पढ़ ली थीं. कमजोर स्वर में बोले, ‘मैं ने बहुत सोचा और अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ये मजहबी लोग हमें कहीं भी साथ जीने नहीं देंगे. इन के दिलों में एकदूसरे के लिए इतनी घृणा है कि हमारा प्रेम कम पड़ जाएगा. नोरा, तुम ने सुना होगा, बाबरी मसजिद गिरा दी गई है. चारों तरफ दंगेफसाद, आगजनी, उफ, इतनी जानें जा रही हैं पर इन की खून की प्यास नहीं बुझ रही है. तब सोचा, तुम्हें पाने का एक ही उपाय है, तुम्हारे भाई से तुम्हारा हाथ मांग लूं. आखिर वह मेरा पुराना मित्र है, शायद इनसानियत की कोई किरण उस में शेष हो, पर नहीं.’ अनवर की आंखों से आंसू टपक पडे़.

मेरे मन में हाहाकार मचा हुआ था. एक पहाड़ को टूटते देख रही थी मैं. मैं बोली, पर हमें हारना नहीं है अनवर. जैसे भी जीने दिया जाएगा हम जीएंगे. यह हमारा अधिकार है. तुम ठीक हो जाओ फिर सोचेंगे कि हमें क्या करना है. मैं यहां से वर्किंग वूमन होस्टल चली जाऊंगी…’ बात अधूरी रह गई. उसी समय कुछ लोग वहां आ कर खडे़ हो गए. उन की वेशभूषा ने बता दिया कि वे अनवर के रिश्तेदार हैं. वे लोग मुझे ऐसी नजरों से देख रहे थे कि मैं कट कर रह गई. अनवर ने मुझे चले जाने का संकेत किया. मैं वहां से सीधे बस अड्डे आ गई.

महीनों गुजर गए. अनवर का कोई समाचार नहीं मिला. न जाने उन के रिश्तेदार उन्हें कहां ले गए थे. मेरे पास सब्र के सिवा कोई रास्ता न था. एक दिन अचानक उन का खत मिला. मैं ने कांपते हाथों से उसे खोला. लिखा था, ‘नोरा, मुझे माफ करना. मैं तुम्हारा साथ न निभा सका. मुझे सब अपनी शर्तों पर जीने को कहते हैं. मैं कमजोर पड़ गया हूं. तुम सबल हो, समर्थ हो, अपना रास्ता खोज लोगी. मैं तुम से बहुत दूर जा रहा हूं, शायद कभी न लौटने के लिए.’

छनाक की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी तो देखा वह पतली शीशी हाथ से छूट कर टूट गई पर चावल का वह दाना साबुत था और उस पर लिखे अक्षर उसी ताजगी से चमक रहे थे.

Fictional Story

Short Story: नीलोफर- क्या दोबारा जिंदगी जी पाई नीलू

लेखिका- शर्मिला चौहान

Short Story: खिड़की के सामने अशोक की झांकती टहनी पर छोटा सा आशियाना बना रखा था उस ने. जितनी छोटी वह खुद थी, उस के अनुपात से बित्ते भर का उस का घर. मालती जबजब शुद्ध हवा के लिए खिड़की पर आती, उसे देखे बिना वापस न जाती. वह थी ही इतनी खूबसूरत चिकनीचमकती, पीठ जहां खत्म होती वहीं से पूंछ शुरू. भूरे छोटे परों पर 2-4 नीले परों का आवरण चढ़ा था, यही नीला आवरण उसे दूसरी चिडि़यों से अलग करता था. उस छोटी सी मादा को भी अपनी सब से खूबसूरज चीज पर अभिमान तो जरूर ही था.

खाली समय में चोंच से नीले परों को साफ करती, अपनी हलकी पीलापन लिए भूरी आंखों से चारों ओर का जायजा लेती कि उस के सुंदर रूप को कोई निहार भी रहा है या नहीं. उस छोटी, नन्ही चिडि़या के परों के कारण मालती ने उस का नाम ‘नीलोफर’ रख दिया था.

‘‘मम्मी, नीलोफर ने शायद अंडे दिए हैं… वह उस घोंसले से हट ही नहीं रही,’’ मालती की 24 साल की बेटी नीलू ने उसी खिड़की के पास से मालती को आवाज दी.

‘‘मुझे भी ऐसा ही लगता है, इसलिए इतनी मेहनत कर के घर बनाया उस ने,’’ कहती हुई मालती भी खिड़की के  बाहर झांकने लगी.

नीलू को बाहर टकटकी बांधे देख कर मालती नीलू के बालों पर उंगलियों से कंघी

करने लगी.

‘‘आप ने इस चिडि़या का नाम नीलोफर क्यों रखा मम्मी?’’ नीलू अभी भी उस छोटी चिडि़या में गुम थी.

‘‘उस के नीले पर कितने प्यारे हैं, बस इसीलिए वह नीलोफर हो गई,’’ मालती ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘मेरा नाम नीलू क्यों रखा?’’ नीले ने अगला सवाल किया.

‘‘इसलिए कि तुम्हारी नीली आंखें झील सी पारदर्शी हैं. तुम्हारे मन की बात आंखें कह देती

हैं तो तुम नीलू हो,’’ मालती ने कहा और फिर नीलू की ह्वीलचेयर को धकेल कर बैठक की ओर ले गई.

नीलू ने रिमोट से टैलीविजन चालू किया और कुछ पजांबी डांस वाले गानों का मजा लेने लगी. किसी त्योहार का दृश्य था और रंगबिरंगी पोशाकें पहने लड़कियां ढोल की थाप पर झूमझूम कर नाच रही थीं. मालती ने कनखियों से नीलू को देखा, वह तन्मय हो कर गाना गा रही थी और कमर के ऊपर के शरीर को नाचने की मुद्रा में ढालने में लगी थी.

उसे गाने के बोल और नत्ृय की मुद्राओं

में तल्लीन देख कर मालती उस के बचपन में

खो गई…

‘‘मम्मी, मुझे क्लासिकल डांस नहीं

सीखना है, मुझे तो डांस वाले फिल्मी गाने पसंद हैं,’’ 7 साल की नीलू ने जिद कर के बौलीवुड गानों पर नाचना शुरू किया था.

‘‘क्या है मम्मी, यह दिनभर बंदरिया की तरह उछलकूद मचाती रहती है… आईने के

सामने मटकती रहती है और कोई काम नहीं

है क्या इसे?’’ नीलू से 4 साल बड़ा शुभम झल्लाता रहता.

‘‘आप भी नाचो न, आप को तो आता ही नहीं,’’ कहती नीलू उसे और चिढ़ाती.

समय पंख लगा कर उड़ता गया और नीलू

9 साल की हो गई.

‘‘कल सबुह बस से शुभम की स्कूल पिकनिक जा रही है. हम उसे स्कूल बस तक छोड़ आएंगे,’’ मालती ने अपने पति से कहा.

‘‘मैं भी जाऊंगी भैया को छोड़ने,’’ नीलू ने रात को ही कह दिया था.

सुबह सब कार से शुभम को स्कूल बस

तक छोड़ कर वापस आ रहे थे.

‘‘पापा, रुको न, हम वहां रुक कर कुछ खाते हैं. मेरी फ्रैंड्स कहती हैं कि सुबह यहां वड़ा पाव, इडलीडोसा और सैंडविच बहुत अच्छे मिलते हैं,’’ स्कूल के रास्ते पर एक छोटे से रैस्टोरैंट के आगे नीलू ने कहा.

सब अभी उतर ही रहे थे कि नीलू दौड़ कर सड़क पार करने लगी.

‘‘नीलू… बेटा रुको…’’ मालती की आवाज बाजू से गुजरती कार के ब्रेक मारने में दब गई.

मिनटों में पासा पलट गया था. लहूलुहान नीलू अस्पताल में बेहोश पड़ी थी. तब से आज तक कभी खड़ी नहीं हो पाई. खेलताकूदता, दौड़ता, नाचता बचपन कमर के नीचे से शांत हो गया. ह्वीलचेयर में उस की दुनिया समा गई थी.

‘‘मम्मी, भैया को आज वीडियोकौल करेंगे तो मुझे उन से एक बैग मंगवाना है,’’ नीलू की आवाज से चौंक कर मालती वर्तमान में आ गई.

‘‘हां, आज करते हैं शुभम को कौल,’’ अमेरिका में जौब कर रहे बेटे शुभम के बारे में बात हो रही थी.

दूसरे दिन सुबहसुबह भाई से बात कर के अपने लिए एक मल्टीपर्पज बैग लाने को कह कर नीलू ह्वीलचेयर ले कर खिड़की पर आ गई.

पापा और भाई की सलाह से नीलू ने अपनी पढ़ाई तो चालू रखी ही, साथ ही हस्तकला की सुंदर चीजें भी बनाती रही. कुदरत ने उस के पैरों की सारी शक्ति मानो हाथों को दे दी. बारीक धागों, सीपियों, मोतियों, जूट से खूबसूरत बैग और वाल हैगिंग बनाती थी.

उस के काम में मदद करने के लिए मालती तो थी ही, साथ ही एक और लड़की को रखा था जो सामान उठाने, रखने में मदद करती थी. बड़ेबड़े बुटीक से और्डर आते थे और सब मिल कर उन्हें समय पर पूरा करते. धीरेधीरे जिंदगी अपनी गति फिर पकड़ने लगी थी.

‘‘मम्मी, आप को मेरी बहुत चिंता होती रहती है न?’’ एक चिरपरिचित से अंदाज में नीलू कहा करती थी.

‘‘नहीं तो, मैं क्यों करूंगी चिंता? तू

तो खुद समझदार है, अपने काम कर लेती है. बुटीक के और्डर भी संभालती है और पढ़ाई

भी कर रही है,’’ मालती हमेशा उसे प्रोत्साहित करती.

‘‘चेहरे पर इतनी झुर्रियां आ गई, आंखों के नीचे काले निशान हो गए. अब भी कहोगी कि कोई चिंता नहीं,’’ नीलू की गहरी नीली आंखें अंदर तक भेद जातीं.

नीलू की कमर से निचले अंगों की स्वच्छता, कपड़े पहनाने का काम मालती खुद करती थी. एक जवान लड़की को किसी दूसरे के हाथों से ये सब काम करवाने की स्थिति का सामना रोज ही दोनों करते थे.

अचानक, चींचीं, चींचीं की आवाज के साथ कांवकांव का शोर होने लगा.

‘‘मम्मी देखो. नीलोफर के घोंसले में एकसाथ 3-4 कौए आ गए. उसे परेशान कर रहे हैं. बचाओ मम्मी, नीलोफर को, उस के अंडों को,’’ नीलू की आवाज दर्दनाक थी जैसे कोई उस पर घात कर रहा हो.

मालती रसोई से भाग कर कमरे की खिड़की पर आ गई. नीलू की ओर देखा, वह पसीने से तरबतर हो रही थी.

‘‘मम्मी, प्लीज नीलोफर को बचा लो. ये कौए उसे मार डालेंगे. आप ने जैसे मुझे बचा लिया, इस को भी बचा लो मम्मा…’’ नीलू की आवाज कुएं से बाहर आने का प्रयास कर रही थी. एक अंधकार जिस में वह खुद जी रही थी, एक सन्नाटा जिस को वह झेल रही थी. दूरदूर तक आशाओं का क्षितिज था, जो हमेशा मुट्ठी से फिसलने को लालायित रहता.

‘‘बेटा, हरेक को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है. कोई दूसरा कुछ मदद तो कर सकता है पर जीवनभर साथ नहीं दे सकता,’’ मालती ने नीलू का हाथ थाम लिया, ‘‘नीलोफर की लड़ाई उस की अपनी है. हम सिर्फ कुदरत से प्रार्थना कर सकते हैं कि उसे शक्ति दे.’’

‘‘आप तो उन कौओं को भगा सकती हो न, मैं तो उठ कर उन्हें नहीं मार सकती,’’ नीलू की आवाज कंपकंपा रही थी.

‘‘अपने अंडों की चिंता हम से ज्यादा नीलोफर को खुद है. तुम देखो, वह कैसे अपनी लड़ाई लड़ेगी,’’ मालती ने बेटी को दिलासा तो दे दिया परंतु एक नन्ही सी चिडि़या की शक्ति पर उस को विश्वास नहीं था. अत: अंदर से एक बड़ी लकड़ी ले आई.

‘‘सामने देख कर हत्प्रभ रह गई कि

4 कौओं से अकेली नीलोफर पूरे विश्वास से

जूझ रही थी. अपनी छोटी परंतु नुकीली चोंच से, कौए की आंखों पर वार करकर के 2 कौओं को भगा दिया उस ने. एक नजर अपने अंडों पर डाली, पंख फड़फड़ा शक्ति का संचार किया,

परंतु यह क्या.. उस के नीले चमकीले पंखों में से 2 गिर गए.

एक भरपूर निगाह गिरे पंखों पर डाल कर वह तेजी से चींचीं, चींचीं करती हुई बचे दोनों कौओं पर वार करने लगी.

सांस थाम कर खिड़की से मालती और

नीलू उस नन्ही सी चिडिंया का हौसला

बढ़ा रहे थे. पक्षी मन की बात समझ लेते हैं

जिसे जुबान के रहते मनुष्य नहीं समझ पाते. संबल देती 4 आंखों ने नीलोफर को बिजली सी गति दे दी.

उड़उड़ कर वह अपनी चोंच से लगातार

वार करती रही. कौओं की बड़ी, मोटी चोंच से खुद को बचाना छोड़ दिया उस ने और आक्रामक हो गई.

आखिर एक मां के आगे वे दोनों हार गए और भाग खड़े हुए. लंबी सांस भर कर नीलोफर ने अपने घोंसले में सुरक्षित अंडों को प्रेम से जीभर देखा. उस की नजर खिड़की पर रुक गई, जहां दोनों मादा तालियां बजा कर उस का अभिनंदन कर रही थीं.

नीलोफर अपने क्षतिग्रस्त शरीर का मुआयना करने लगी. जगहजगह कौओं की चोंच से घाव हो गए थे.

उस के चमकीले, नीले पंख अब शरीर छोड़ कर नीचे गिर गए थे. उस की आखों में एक बंदू सी चमकने लगी.

‘‘नीलोफर, तुम दुनिया की सब से

खूबसूरत चिडि़या हो, तुम्हें नीले पंखों की जरूरत ही नहीं है. आज तुम्हारी खूबसूरती को मैं ने महसूस किया है,’’ नीलू की बात, उस छोटे से पंछी ने कितनी समझी पता नहीं पर खुशी से चिचियाने लगी.

नीलू ने घूम कर मालती की ओर देखा. मम्मी के दमकते चेहरे पर आज कोई झर्री आंखों के नीचे कोई कालापन नहीं दिखाई दिया.

Short Story

Moral Story: उजियारी सुबह- क्या था बिन ब्याही मां रीना का फैसला

लेखिका- अमृता पांडे

Moral Story: लौबी की दीवार में बड़े से फ्रेम में लगी मोहित की तसवीर को देख कर रीना उदास हो जाती है. आंसू की कुछ बूंदें उस की आंखों से लुढ़क जाते हैं. 15 अगस्त का दिन था और बाहर काफी धूमधाम थी. आजादी का सूरज धरा के कणकण पर अपनी स्वर्णिम रश्मियां बिखेरता हुआ जलथल से अठखेलियां कर रहा था. आज था रीना की बेटी का पहला जन्मदिन. मोहित की कमी तो हर दिन हर पल उसे खलती थी, फिर आज बिटिया के जन्मदिन पर तो खलनी ही थी.

मोहित के जाने के बाद से उस की हर सुबह स्याह थी, हर शाम उदास थी. रात अकसर आंसुओं का सैलाब ले कर आती, जिस में वह जीभर डूब जाती थी. अगली सुबह सूजन से भरी मोटीमोटी आंखें उस के गम की कहानी कहतीं.

पिछले डेढ़ साल से रीना घर से ही काम कर रही थी. वह मन ही मन कुदरत को धन्यवाद देती कि वर्क फ्रौम होम की वजह से उस की मुश्किल आसान हो गई वरना दुधमुंही बच्ची को किस के पास छोड़ कर औफिस जाती. यों भी और बच्चों की बात अलग होती है. पर वह किसकिस को क्या सफाई देती. आप कितने ही बहादुर क्यों न हों पर कभीकभी समाज की वर्जनाओं को तोड़ना मुश्किल हो जाता है.

कोरोना की वजह से रीना घर से बाहर कम ही निकल रही थी, क्योंकि तीसरी लहर का खतरा बना हुआ था और इसे बच्चों के लिए खतरनाक बताया गया था. वह अपनी बेटी को किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहती थी. आखिर यही तो एक निशानी थी उस के प्यार की. उस ने औनलाइन और्डर कर के ही सजावट की सारी चीजें गुब्बारे, बंटिंग्स आदि ऐडवांस में ही मंगा ली थी. शाम के लिए केक और खानेपीने की दूसरी चीजों का और्डर दे कर वह निश्चिंत हो गई थी.

वह डेढ़ वर्ष पुरानी यादों में खो गई. कितना पागल हो गया था मोहित, जब रीना ने बहुत ही घबराते हुए उसे अपने गर्भवती होने का शक जाहिर किया था. घर में ही टेस्ट कराने पर पता चला कि खबर पक्की है.

प्यार से उसे थामते हुए बोला था वह,”यह तो बहुत अच्छी खबर है. यों मुंह लटका कर क्यों खड़ी हो. कुदरत का शुक्रिया अदा करो और आने वाले मेहमान का स्वागत करो.”

“तुम पागल हो मोहित… बिना शादी के यह आफत… क्या हमारा समाज इसे स्वीकारता है?” वह रोते हुए बोली।

“प्रौब्लम इज ए क्वैश्चन प्रपोज्ड फौर सौल्यूशन. हम शादी कर लेंगे. बस, प्रौब्लम सौल्व,” कहते हुए मोहित ने उस के बालों में हाथ फेरा.

और दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था. एक तो 3 महीने के बाद गर्भपात कराना गैर कानूनी काम और दूसरा, साथ में कोरोना की मार. सारे अस्पताल कोविड-19 के रोगियों से भरे थे. कोरोनाकाल में डाक्टर दूसरे गंभीर रोगियों को ही नहीं देख रहे थे. फिर गर्भवती महिला का वहां जाना खतरे से खाली भी नहीं था. कुछ एक अस्पतालों में डाक्टरों से मिन्नत भी की थी पर बेकार. कोई भी डाक्टर किसी पैशंट की जांच के लिए राजी ही नहीं था.

रीना को मोहित पर पूरा भरोसा था. पिछले दोढाई साल से उस के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी. उस के स्वभाव को काफी हद तक जान लिया था रीना ने. मगर कहते हैं न कि हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ और है. इस प्रेमी जोड़े के साथ भी यही हुआ. कोरोनारूपी दानव उन के घर तक पहुंच चुका था. मोहित को बहुत तेज बुखार आया और जब कुछ दिनों तक नहीं उतरा तो जांच कराई गई. वही हुआ जिस का डर था. वह कोरोना पौजिटिव निकला. आननफानन में अस्पताल में भरती कराया गया. संक्रमण का डर था इसलिए रीना को वहां जाने की मनाही थी. 1-2 बार डाक्टर से बहुत जिद कर के आईसीयू के बाहर से मोहित की एक झलक पा ली थी उस ने.

हालत बिगड़ती रही और मोहित ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. पीछे छोड़ गया रोतीबिलखती रीना को और अपने अजन्मे बच्चे को.

दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था रीना पर. बदहवास सी वह घंटों तक घर के फर्श पर ही पड़ी रही. कोरोना संक्रमित होने के कारण मोहित का संस्कार भी पुलिस ने ही करवाया था. खबर मिलने पर मोहित के कुछ दोस्तों ने रीना को संभाला और उस की सहेलियों को इत्तला दी.

मोहित के परिवार वालों को भी यह दुखद खबर दी गई। वे अपने बेटे के गम में इतने डूबे हुए थे कि उन्हें इस बात का भी ध्यान नहीं रहा कि रीना से भी उन के बेटे का कोई रिश्ता था। भला इस तरह के रिश्ते को कौन स्वीकार करता है? विवाह नाम की संस्था हमारे समाज में आज भी उतनी ही संगठित है जितनी वर्षों पहले थी. हम कितना ही कुछ कहना कह लें मगर बिना शादी का रिश्ता रिश्ता नहीं माना जाता. रीना को सामने देखते ही वे बरस पड़े. अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार उसी को ठहराने लगे. रीना को याद आया कि मोहित की मां ने उस पर न जाने क्याक्या लांछन लगा दिए थे. कितने गंदेगंदे शब्दों से उसे संबोधित किया था। उन्होंने तो रोहित की मौत का जिम्मेदार पूरी तरह से उसे ठहरा कर पुलिसिया काररवाई करने की भी ठान ली थी, वह तो कोरोना पौजिटिव रिपोर्ट ने उसे बचा लिया वरना कानूनी काररवाई भी झेल रही होती.

“छि: क्या मैं वास्तव में ऐसी ही हूं, जैसा मोहित की मां मुझे कहती हैं?
क्या मैं मोहित की मौत की जिम्मेदार हूं, जैसा उस की बहन रोरो कर कह रही थी?” परेशान होकर वह बारबार अपनेआप से यही सवाल करती.

दुनिया की नजरों में भले ही रीना का प्यार, उस का बच्चा अवैध था पर रीना की नजरों में तो यह एक पवित्र प्रेम की निशानी थी. वे दोनों एकदूसरे से बहुत अधिक प्यार करते थे. बस, फर्क इतना ही था कि बैंडबाजे के साथ दुनिया के सामने वह रीना के घर उसे ब्याहने नहीं गया था और उस की मांग में सिंदूर नहीं भरा था। वह रोरो कर यही बड़बड़ाती, फिर मूर्छित हो कर गिर जाती. उस की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी.

सोसायटी में रहने वाले लोग आज के समय में इतने संवेदनाहीन हो गए हैं कि सामने वाले घर में क्या हो रहा है, इस की खबर भी उन्हें नहीं रहती. पड़ोसी के दुखसुख में शरीक होने की जहमत भी नहीं उठाते. लेकिन यह खबर पूरी सोसाइटी में आग की तरह फैल गई. रीना के बारे में जब पता चला तो सब उस के खिलाफ हो गए. उस पर सोसाइटी का माहौल खराब करने तक का इल्जाम लग गया. ऐसे में ज्यादा दिनों तक वहां रह पाना उस के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था. वह अपने परिवार के पास भी नहीं जाना चाहती थी क्योंकि उसे पता था कि वहां से भी कोई सहारा नहीं मिलने वाला है. पर दोस्त लोग भी कब तक उस की देखभाल कर पाते, सब की अपनीअपनी गृहस्थी, अपनेअपने काम थे. भला एक अभागिन प्रेमिका का दर्द कौन समझ पाता है?

सदियों से जमाने में यह होता आया है कि प्रेमियों को जुदा करने में समाज को मजा आया है. रीना की जिन सहेलियों को इस बात का पता था उन्होंने भी उसे यही सलाह दी कि वह अपनी मां के पास घर चली जाए. कहीं कोई बात हो जाए तो कानून की पचङे में फंसने का डर तो हर किसी को रहता ही है. यह सच है कि जब विपदा आती है तो वह इंसान को हर तरफ से घेर लेती है.

मोहित के ही एक दोस्त ने रीना को अपनी कार से उस के शहर छोड़ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी. और वह कर भी क्या सकता था.

घर में जब मां को पता चला तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. हमारे समाज में अनब्याही मां को न तो समाज स्वीकार करता है और न ही कोई परिवार. मां तो खुद ही असहाय थी. पिता की मौत हुए कई वर्ष हो चुके थे. फिर अविवाहित बेटी इस तरह घर में आ गई. समाज के तानों से कौन बचाएगा?

मां ने तो गुस्से में कह दिया था, “डूब कर मर जाती किसी कुएं में. यहां क्यों आई…. कहां भाग गया वह तेरा प्रेमी यह हाल कर के?”

“मां, मोहित कहीं भागा नहीं. वह कुदरत के पास चला गया है. कोरोना ने उसे अपना शिकार बना लिया वरना वह ऐसा नहीं था. उस के बारे में एक भी शब्द गलत मत कहना,” इतने दिनों में पहली बार मुंह से कुछ बोली थी रीना.

उस की एक बाल विधवा बुआ भी उसी घर में रहती थीं, जिन्होंने सामाजिक तानेबाने को बहुत अच्छे तरीके से पहचाना था.

रीना की ओर देखते हुए बोलीं, “सोचा भी नहीं तूने क्या मुंह दिखाएंगे हम समाज को. लोग थूथू करेंगे.”

“छोटी 2 बहनें शादी के लिए तैयार बैठी हैं. कौन करेगा इन से शादी? लोग तो यही कहेंगे कि जैसी बड़ी बहन है, वैसी ही छोटी भी होंगी चरित्रहीन.”

इन लोगों ने यह सब कह तो दिया पर यह नहीं सोचा कि ऐसी हालत में रीना से यह सब बातें करने से उस की क्या मानसिक स्थिति होगी.

इतना ही नहीं, इस बीच धोखे से रीना के पेट में पल रहे बच्चे को खत्म करने के भी कई घरेलू उपाय किए गए पर वे कारगर साबित नहीं हुए. उलटा रीना के स्वास्थ्य पर असर पड़ा. रक्तस्राव होने लगा और जान पर बन आई.

इस मुश्किल भरी परिस्थितियों में खुद को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था. एक रात्रि वह निकल पड़ी किसी अनजान डगर पर. उसे बारबार मां और बुआ के कड़वे शब्द याद आ रहे थे कि डूब कर मर जा किसी कुएं में या फंदे से लटक जा.

रात का समय था. वह रेलवे ट्रैक के किनारेकिनारे चली जा रही थी. विक्षिप्त सी हो गई थी वह. आसपास चल रहे लोग उसे देखते घूरते और आगे बढ़ जाते. यही तो समाज का दस्तूर है. किसी की मजबूरी के बारे में जाने बगैर हम उस के बारे में कितनी सारी धारणाएं बना लेते हैं. पूर्वाग्रह से ग्रसित यही समाज तो नासूर है हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए.

तभी कहीं दूर से रेल की सीटी बजी. धड़धड़ाती हुई ट्रेन आ रही थी और उस की आहट से पूरी धरती में कंपन हो रहा था. रीना का दिल भी एक बारगी कांप उठा. सच कितना मुश्किल होता है मरने के लिए साहस जुटाना . खासकर ऐसे में जब जीने की कोई वजह हो. ट्रेन अब पास आ चुकी थी. इंजन की लाइट दूर से दिखने लगी थी.

उस ने अपने पेट पर हाथ फेरा और आसमान की ओर देख कर जोर से चिल्लाई,”मोहित, मैं आ रही हूं तुम्हारे पास. तुम्हारी परी को भी ला रही हूं. तीनों मिल कर वहीं रहेंगे सुकून से.”

वहीं पर तैनात रेलवे का एक गार्ड जो काफी देर से उस की गतिविधियों को देख रहा था, अब उसे बात समझ में आ गई थी. वह उस के करीब हो लिया. जैसे ही ट्रेन करीब आती, रीना तेजी से ट्रैक के साथसाथ दौड़ने लगी. सिपाही ने तत्परता दिखाते हुए एक झटके से उसे पकड़ लिया.

जब अपने साथ न दें तो कई बार पराए भी अपने लगने लगते हैं. वह पुलिस वाले का हाथ पकड़ कर रोने लगी,”भैया, क्यों बचा लिया आप ने मुझे? क्या करूंगी मैं इस दुनिया में जी कर. यहां मेरा कोई अपना नहीं. जो था वह तो छोड़ कर चला गया.

अब, समाचारपत्र को भी खबर चाहिए होती है और अगले दिन यही बात स्थानीय समाचारपत्र का हिस्सा बन गई कि एक अविवाहित गर्भवती महिला ट्रेन से कटने जा रही थी और रेलवे के गार्ड ने उसे बचा लिया. बात उस की बड़ी विवाहित दीदी तक जा पहुंची थी. वे उसे अपने साथ घर ले आईं पर यहां भी विडंबना देखिए कि रीना तक तो ठीक था पर बच्चे को रखने की सलाह वे भी नहीं दे रही थीं।

दीदी बोलीं,”देख रीना, मोहित तेरा बौयफ्रैंड था. पति तो था नहीं.
जो हुआ वह बुरा हुआ लेकिन मोहित की याद में कहां तक पूरी जिंदगी बिताएगी. यह खयाल अपने मन से निकाल दे. कभी न कभी तुझे जिंदगी में किसी साथी की जरूरत तो महसूस होगी ही और उस वक्त यही बच्चा तेरी जिंदगी में आड़े आएगा. आगे क्या बताऊं तू खुद समझदार है.”

एक बार फिर दुनियादारी ने रीना को निराश किया. जिस दीदी से कुछ उम्मीद की आस लिए यहां आई थी, वह भी बेरहम निकली. रीना अपनेआप में शारीरिक बदलाव महसूस करने लगी थी और यह दूसरों को भी नजर आने लगे थे. लोगों में कानाफूसी होने लगी थी. उस ने दीदी का घर भी छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझी. दीदी को डर था कि कहीं दोबारा कोई घातक कदम न उठा ले. उस ने उसे समझा कर कुछ समय के लिए रोक लिया.

“रीना, तू फिक्र मत कर. हम तेरे साथ हैं. लेकिन इस बच्चे के बारे में दुविधा बनी हुई है।”

“दीदी, मां कहती हैं कि मैं ने पाप किया है.”

दीदी कुछ दृढ़ता से बोलीं,” देख रीना, यह पापपुण्य की परिभाषा तो न सब हमारे समाज की बनाई हुई है. इस से बाहर निकलना हमारे लिए मुश्किल है. मेरे आसपास के लोग भी जब तुझे देखेंगे तो यही पूछेंगे न कि इस का पति कहां है? यह समाज है. किसकिस का मुंह बंद करेगी?”

रीना उदास बैठी सोच रही थी कि आएदिन हत्या, लूटपाट की घटनाएं समाचारपत्र पत्रिकाओं में छपती हैं. उन लोगों पर कोई काररवाई नहीं होती. भ्रूण हत्या आज भी चोरीछिपे होती है. किसी की जान लेना यहां पाप नहीं पर किसी को जन्म देना पाप है. वाह रे, कैसा समाज है?

खैर, तय समय पर परी का जन्म हुआ. प्रसव वेदना के साथसाथ और भी कई तरह की वेदनाएं सहीं. दीदी ने भी एक तरह से इशारा सा कर दिया था कि अब वह अपना इंतजाम कहीं देख ले. बेटी को ले कर रीना दीदी का घर छोड़ कर दूसरे शहर में आ गई थी और तब से यहीं रह रही थी.

अचानक दरवाजे की घंटी बजती है और परी उस ओर जाने की कोशिश करती है. रीना ने देखा तो दूध और ग्रौसरी वाला था.

यों तो घर में कोई भीड़भाड़ नहीं फिर भी रौनक थी. 15 अगस्त का पावन दिन था. साथ में बेटी का जन्मदिन भी. रीना कभी देशप्रेम के गाने बजाती और कभी जन्मदिन के. रीना अकेले ही मातापिता दोनों का कर्तव्य निभाते हुए अपनी बेटी के जन्मदिन के अवसर पर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। अब तो उस की नन्ही परी थोड़ाथोड़ा चलने लगी थी. 2-4 कदम चलती, फिर गिर जाती. फिर खुद ही संभल जाती. जब से कुछ समझने लगी थी तो उस ने सिर्फ मां को ही तो देखा था. पापा नाम का भी कोई प्राणी होता है, यह बात तो उसे पता भी नहीं थी.

अपने छोटे से घर को रीना ने बहुत ही कलात्मक ढंग से सजाया था और अपने स्टाफ के कुछ खास लोगों को पार्टी में बुलाया था. परी बिटिया को भी मेहरून रंग का सुंदर सा फ्रौक पहनाया था. बड़ी ही सुंदर लग रही थी उस की परी फ्रौक में. यह फ्रौक पिछले डेढ़ साल से रीना ने अपने बौक्स में छिपा कर रखा था जैसे चोरी का कोई सामान हो.

उस की आंखें फिर सजल हो उठीं. उस की आंखें के सामने सुनहरे दिनों की तसवीर घूमने लगी, जब मोहित को उस के गर्भवती होने का पता चला था तो उसी ने यह फ्रौक औनलाइन और्डर करवाया था. इसे देख कर रीना तो लजा ही गई थी. आज उस फ्रौक में उन की बेटी परी बहुत सुंदर लग रही थी. रीना उस के नन्हेनन्हे हाथों को देखती तो सोचती, ‘मोहित होता तो कितना खुश होता. पर आज उसे देखने के लिए वह रहा ही नहीं.’

कहता था, ‘बेटी होगी हमारी. देख लेना. बिलकुल तुम्हारी जैसी चंचल प्यारी सी.’

ये यादें उसे कमजोर करने के लिए काफी थीं पर रीना ने भी ठान लिया था कि वह अकेली अपनी बेटी को पालपोस कर बड़ा बनाएगी. आंखों के कोर में छिपे आंसुओं को पोंछते हुए उस ने परी को गोद में उठाया. एक नजर मोहित की तसवीर पर डाली और मेहमानों का इंतजार करने लगी. सूरज कुछ निस्तेज सा हो कर पश्चिम की ओर लौट रहा था पर रीना की गोद में परी एक नई सुबह का एहसास दे रही थी.

Moral Story

Hindi Story: भटकाव के बाद- परिवार को चुनने की क्या थी मुकेश की वजह

Hindi Story: संजीव का फोन आया था कि वह दिल्ली आया हुआ है और उस से मिलना चाहता है. मुकेश तब औफिस में था और उस ने कहा था कि वह औफिस ही आ जाए. साथसाथ चाय पीते हुए गप मारेंगे और पुरानी यादें ताजा करेंगे. संजीव और मुकेश बचपन के दोस्त थे, साथसाथ पढ़े थे. विश्वविद्यालय से निकलने के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए थे. मुकेश ने प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से केंद्र सरकार की नौकरी जौइन कर ली थी. प्रथम पदस्थापना दिल्ली में हुई थी और तब से वह दिल्ली के पथरीले जंगल में एक भटके हुए जानवर की तरह अपने परिवार के साथ जीवनयापन और 2 छोटे बच्चों को उचित शिक्षा दिलाने की जद्दोजहद से जूझ रहा था. संजीव के पिता मुंबई में रहते थे.

शिक्षा पूरी कर के वह वहीं चला गया था और उन के कारोबार को संभाल लिया. आज वह करोड़ों में नहीं तो लाखों में अवश्य खेल रहा था. शादी संजीव ने भी कर ली थी, परंतु उस के जीवन में स्वच्छंदता थी, उच्छृंखलता थी और अब तो पता चला कि वह शराब का सेवन भी करने लगा था. इधरउधर मुंह मारने की आदत पहले से थी.

अब तो खुलेआम वह लड़कियों के साथ होटलों में जाता था. कारोबार के सिलसिले में वह अकसर दिल्ली आया करता था. जब भी आता, मुकेश को फोन अवश्य करता था और कभीकभार मौका निकाल कर उस से मिल भी लेता था, परंतु आज तक दोनों की मुलाकात मुकेश के औफिस में ही हुई थी. मुकेश की जिंदगी कोल्हू के बैल की तरह थी, बस एक चक्कर में घूमते रहना था, सुबह से शाम तक, दिन से ले कर सप्ताह तक और इसी तरह सप्ताह-दर-सप्ताह, महीने और फिर साल निकलते जाते, परंतु उस के जीवन में कोई विशेष परिवर्तन होता दिखाई नहीं पड़ रहा था.

नौकरी के बाद उस के जीवन में बस इतना परिवर्तन हुआ था कि दिल्ली में पहले अकेला रहता था, शादी के बाद घर में पत्नी आ गई थी और उस के बाद 2 बच्चे हो गए थे परंतु जीवन जैसे एक ही धुरी पर अटका हुआ था. निम्नमध्यवर्गीय जीवन की वही रेलमपेल, वही समस्याएं, वही कठिनाइयां और रातदिन उन से जूझते रहने की बेचैनी, कशमकश और निष्प्राण सक्रियता, क्योंकि कहीं न कहीं उसे यह लगता था कि उस के पारिवारिक जीवन में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं होने वाला है, सो जीवन के प्रति ललक, जोश और उत्तेजना दिनोंदिन क्षीण होती जा रही थी.

उधर से संजीव ने कहा था, ‘‘अरे यार, इस बार मैं तेरे औफिस नहीं आने वाला हूं. आज 31 दिसंबर है और तू मेरे यहां आएगा, मेरे होटल में. आज हम दोनों मिल कर नए साल का जश्न मनाएंगे. मेरे साथ मेरे 2 दोस्त भी हैं, तुझे मिला कर 4 हो जाएंगे. सारी रात मजा करेंगे. बस, तू तो इतना बता कि मैं तेरे लिए गाड़ी भेजूं या तू खुद आ जाएगा?’’ मुकेश सोच में पड़ गया. सुबह घर से निकलते समय उस के बच्चों ने शाम को जल्दी घर आने के लिए कहा था. वह दोनों शाम को बाहर घूमने जाना चाहते थे. घूमफिर कर किसी रेस्तरां में उन सब का खाना खाने का प्रोग्राम था. वह जल्दी से कोई जवाब नहीं दे पाया, तो उधर से संजीव ने अधीरता से कहा, ‘‘क्या सोच रहा है यार. मैं इतनी दूर से आया हूं और तू होटल आने में घबरा रहा है.’’

उस ने बहाना बनाया, ‘‘यार, आज बच्चों से कुछ कमिटमैंट कर रखा है और तू तो जानता है, मैं कुछ खातापीता नहीं हूं. तुम लोगों के रंग में भंग हो जाएगा.’’ ‘‘कुछ नहीं होगा, तू भाभी और बच्चों को फोन कर दे. बता दे कि मैं आया हुआ हूं. और सुन, एक बार आ, तू भी क्या याद करेगा. तेरे लिए स्पैशल इंतजाम कर रखा है.’’ उस की समझ में नहीं आया कि संजीव ने उस के लिए क्या स्पैशल इंतजाम कर रखा है. स्पैशल इंतजाम के रहस्य ने उस की निम्नमध्यवर्गीय मानसिकता की सोच के ऊपर परदा डाल दिया और वह ‘स्पैशल इंतजाम’ के रहस्य को जानने के लिए बेताब हो उठा.

उस ने संजीव से कहा कि वह आ रहा है परंतु उस से वादा ले लिया कि उसे 10 बजे तक फ्री कर देगा. फिर पूछा, ‘‘कहां आना है?’’ संजीव ने हंसते हुए कहा, ‘‘तू एक बार आ तो सही, फिर देखते हैं. पहाड़गंज में होटल न्यू…में आना है. मेन रोड पर ही है.’’ मुकेश ने कहा कि वह मैट्रो से आ जाएगा और फिर फोन कर के पत्नी से कहा कि घर आने में उसे थोड़ी देर हो जाएगी. वह घर में ही खाना बना कर बच्चों को खिलापिला दे. आते समय वह उन के लिए चौकलेट और मिठाई लेता आएगा. उस की बात पर पत्नी ने कोई एतराज नहीं किया. वह जानती थी कि उस का पति एक सीधासादा इंसान है और बेवजह कभी घर से बाहर नहीं रहता. उसे अपनी पत्नी और बच्चों की बड़ी परवा रहती है.

मुकेश होटल पहुंचा तो संजीव उसे लौबी में ही मिल गया. बड़ी गर्मजोशी से मिला. हालचाल पूछे और कमरे की तरफ जाते हुए होटल के मैनेजर से परिचय कराया. मैनेजर बड़ी गर्मजोशी से मिला जैसे मुकेश बहुत बड़ा आदमी था. कमरे में उस के 2 दोस्त बैठे बातें कर रहे थे. संजीव ने उन से मुकेश का परिचय कराया. वे दोनों दिल्ली के ही रहने वाले थे. मुकेश से बड़ी खुशदिली से मिले, परंतु मुकेश शर्म और संकोच के जाल में फंसा हुआ था. होटल के बंद माहौल में वह अपने को सहज नहीं महसूस कर पा रहा था. इस तरह के होटलों में आना उस के लिए बिलकुल नया था. ऐसा कभी कोई संयोग उस के जीवन में नहीं आया था. कभीकभार पत्नी और बच्चों के साथ छोटेमोटे रेस्तराओं में जा कर हलकाफुलका खानापीना अलग बात थी. संजीव अपने दोस्तों की तरफ मुखातिब होते हुए बोला, ‘‘चलो, कुछ इंतजाम करो, मेरा बचपन का दोस्त आया है. आज इस की तमन्नाएं पूरी कर दो. बेचारा, कुएं का मेढक है. इस को पता तो चले कि दुनिया में परिवार के अतिरिक्त भी बहुतकुछ है, जिन से खुशियों के रंगबिरंगे महल खड़े किए जा सकते हैं.’’ फिर उस ने मुकेश की पीठ में धौल जमाते हुए कहा, ‘‘चल यार बता, तेरी क्याक्या इच्छाएं हैं, तमन्नाएं और कामनाएं हैं, आज सब पूरी करवा देंगे. यह मेरे मित्र का होटल है और फिर आज तो साल का अंतिम दिन है. कुछ घंटों के बाद नया साल आने वाला है. आज सारे बंधन तोड़ कर खुशियों को गले लगा ले.’’

संजीव कहता जा रहा था. ‘पहले तो कभी इतना अधिक नहीं बोलता था,’ मुकेश मन ही मन सोच रहा था. पहले वह भी मुकेश की तरह शर्मीला और संकोची हुआ करता था. दोनों एक कसबेनुमां गांव के रहने वाले थे. उन के संस्कारों में नैतिकता और मर्यादा का अंश अत्यधिक था. मुकेश दिल्ली आ कर भी अपने पंख नहीं फैला सका था. पिंजरे में कैद पंछी की तरह परिवार के साथ बंध कर रह गया था, जबकि संजीव ने मुंबई जा कर जीवन को खुल कर जीने के सभी दांवपेंच सीख लिए थे. सच कहा गया है, संपन्नता मनुष्य में बहुत सारे गुणअवगुण भर देती है, परंतु उस के अवगुण भी दूसरों को सद्गुण लगते हैं. जबकि गरीबी मनुष्य से उस के सद्गुणों को भी छीन लेती है. उस के सद्गुण भी दूसरों को अवगुण की तरह दिखाई पड़ते हैं. संजीव के एक दोस्त अमरजीत ने कहा, ‘‘आप के मित्र तो बड़े संकोची लगते हैं, लगता है, कभी घर से बाहर नहीं निकले.’’

मुकेश वाकई संकोच में डूबा जा रहा था. जिस तरह की बातें संजीव कर रहा था, उस तरह के माहौल से आज तक वह रूबरू नहीं हुआ था. वह किसी तरह के झमेले में पड़ने के लिए यहां नहीं आया था. वह तो केवल संजीव के जोर देने पर उस से मिलने के लिए आ गया था. उस ने सोचा था, कुछ देर बैठेगा, चायवाय पिएगा, गपशप मारेगा, और फिर घर लौट आएगा. रास्ते में बच्चों के लिए केक खरीद लेगा, वह भी खुश हो जाएंगे. दिसंबर की बेहद सर्द रात में भी मौसम इतना गरम था कि उसे अपना कोट उतारने की इच्छा हो रही थी. पर मन मार कर रह गया. सभी सोचते कि वह भी मौजमस्ती के मूड में है. उस ने संजीव के मुंह की तरफ देखा. वह उसे देख कर मुसकरा रहा था, जैसे उस के मन की बात समझ गया था. बोला, ‘‘सोच क्या रहा है? कपड़े वगैरह उतार कर रिलैक्स हो जा. अभी तो मजमस्ती के लिए पूरी रात बाकी है.’’ संजीव का एक दोस्त मोबाइल पर किसी से बात कर रहा था और दूसरा दोस्त इंटरकौम पर खानेपीने का और्डर कर रहा था. संजीव स्वयं मुकेश से बात करने के अतिरिक्त मोबाइल पर बीचबीच में बातें करता जा रहा था. गोया, उस कमरे में मुकेश को छोड़ कर सभी व्यस्त थे. उन की व्यस्तता में कोई चिंता, परेशानी या उलझन नहीं दिखाई दे रही थी. मुकेश व्यस्त न होते हुए भी व्यस्त था, उस के दिमाग में चिंता, उलझन और परेशानियों का लंबा जाल फैला हुआ था, जिस में वह फंस कर रह गया था. उस के जाल में उस की पत्नी फंसी हुई थी, उस के मासूम बच्चे फंसे हुए थे. उस के बच्चों की आंखों में एक कातर भाव था, जैसे मूकदृष्टि से पूछ रहे हों, ‘पापा, हम ने आप से कोई बहुत कीमती और महंगी चीज तो नहीं मांगी थी. बस, एक छोटा सा केक लाने के लिए ही तो कहा था. वह भी आप ले कर नहीं आए. पापा, आप घर कब तक आएंगे? हम आप का इंतजार कर रहे हैं.’

मुकेश के मन में एक तरह की अजीब सी बेचैनी और दिल में ऐसी घबराहट छा गई. जैसे वह अपने ही हाथों अपने बच्चों का गला घोंट रहा था, उन के अरमानों को चकनाचूर कर रहा था. पत्नी के साथ छल कर रहा था. वह उठ कर खड़ा हो गया और संजीव से बोला, ‘‘यार, मुझे घर जाना है, आप लोग एंजौय करो. वैसे भी मैं आप लोगों का साथ नहीं दे पाऊंगा.’’ ‘‘तो क्या हो गया? जूस तो ले सकता है, चिकन, मटन, फिश तो ले सकता है.’’

‘‘क्या 10 बजे तक फ्री हो जाऊंगा?’’ मुकेश ने जैसे हथियार डालते हुए कहा. ‘‘क्या यार, तुम भी बड़े घोंचू हो. बच्चों की तरह घर जाने की रट लगा रखी है. पत्नी और बच्चे तो रोज के हैं, परंतु यारदोस्त कभीकभार मिलते हैं. नए साल का जश्न मनाने का मौका फिर पता नहीं कब मिले,’’ संजीव थोड़ा चिढ़ते हुए बोला. थोड़ी देर में चिकनमटन की तमाम सारी तलीभुनी सामग्री मेज पर लग गई. मुकेश मन मार कर बैठा था, मजबूरी थी. अजीब स्थिति में फंस गया था. न आगे जाने का रास्ता उस के सामने था, न पीछे हट सकता था. संजीव उस की मनोस्थिति नहीं समझ सकता था. अपनी समझ में वह अपने दोस्त को जीवन की खुशियों से रूबरू होने का मौका भी प्रदान कर रहा था. परंतु मुकेश की स्थिति गले में फंसी हड्डी की तरह थी, जो उसे तकलीफ दे रही थी.

मुकेश के हाथ में जूस का गिलास था, परंतु जब भी वह गिलास को होंठों से लगाता, जूस का पीला रंग बिलकुल लाल हो जाता. खून जैसा लाल और गाढ़ा रंग देख कर उसे उबकाई आने लगती और बड़ी मुश्किल से वह घूंट को गले से नीचे उतार पाता. संजीव और उस के दोस्त बारबार उसे कुछ न कुछ खाने के लिए कहते और वह ‘हां, खाता हूं’ कह कर रह जाता, चिकनमटन के लजीज व्यंजनों की तरफ वह हाथ न बढ़ाता. उस के कानों में सिसकियों की आवाज गूंजने लगती, अपने बच्चों के सिसकने की आवाज… कितने छोटे और मासूम बच्चे हैं, अभी 7 और 5 वर्ष के ही तो हैं. इस उम्र में बच्चे मांबाप से बहुत ज्यादा लगाव रखते हैं. उन की उम्मीदें बहुत छोटी होती हैं, परंतु उन के पूरा होने पर मिलने वाली खुशी उन के लिए हजार नियामतों से बढ़ कर होती है.

तभी एक सुंदर, छरहरे बदन की युवती ने वहां कदम रखा. उस ने हंसते हुए संजीव के बाकी दोनों दोस्तों से हाथ मिलाया, फिर प्रश्नात्मक दृष्टि से मुकेश की तरफ देखने लगी. संजीव ने कहा, ‘‘मेरा यार है, बचपन का, थोड़ा संकोची है.’’ बीना ने अपना हाथ मुकेश की तरफ बढ़ाया. उस ने भी हौले से बीना की हथेली को अपनी दाईं हथेली से पकड़ा. बीना का हाथ बेहद ठंडा था. उस ने बीना की आंखों में देखा, वह मुसकरा रही थी. उस का चेहरा ही नहीं आंखें भी बेहद खूबसूरत थीं. चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था, होंठों पर लिपस्टिक नहीं थी, बावजूद इस के वह बहुत सुंदर लग रही थी. मुकेश अपनी भावनाओं को छिपाते हुए बोला, ‘‘संजीव, अगर बुरा न मानो तो मुझे जाने दो. तुम लोग एंजौय करो. मैं कल तुम से मिलूंगा,’’ कह कर उठने का उपक्रम करने लगा. हालांकि यह एक दिखावा था, अंदर से उस का मन रुकने के लिए कर रहा था, परंतु मध्यवर्गीय व्यक्ति मानमर्यादा का आवरण ओढ़ कर मौजमस्ती करना पसंद करता है. बदनामी का भय उसे सब से अधिक सताता है, इसीलिए वह जीवन की बहुत सारी खुशियों से वंचित रहता है.

संजीव ने उस की बांह पकड़ कर फिर से कुरसी पर बिठा दिया, ‘‘बेकार की बातें मत करो.’’ संजीव की बात सुन कर मुकेश का हृदय धाड़धाड़ बजने लगा, जैसे किसी कमजोर पुल के ऊपर से रेलगाड़ी तेज गति से गुजर रही हो. वह समझ नहीं पाया कि यह खुशी के आवेग की धड़कन है या अनजाने, आशंकित घटनाक्रम की वजह से उस का हृदय तीव्रता के साथ धड़क रहा है? बीना ने मुकेश की तरफ देख कर आंख मार दी. वह झेंप कर रह गया.

संजीव बाहर निकलते हुए बोला, ‘‘चलो, जल्दी करो. मुकेश को घर जाना है.’’ संजीव बगल वाले कमरे में चला गया. मुकेश कमरे में अकेला रह गया, विचारों से गुत्थमगुत्था. उस ने अपने दिमाग को बीना के सुंदर चेहरे, पुष्ट अंगों और गदराए बदन पर केंद्रित करना चाहा, परंतु बीचबीच में उस की पत्नी का सौम्य चेहरा बीना के चंचल चेहरे के ऊपर आ कर बैठ जाता. उस के मन को बेचैनी घेरने लगती, परंतु यह बेचैनी अधिक देर तक नहीं रही. मुकेश चाहता था, वह बीना के शरीर की ढेर सारी खुशबू अपने नथुनों में भर ले, ताकि फिर जीवन में किसी दूसरी स्त्री के बदन की खुशबू की उसे जरूरत न पड़े. परंतु यहां खुशबू थी कहां? कमरे में एक अजीब सी घुटन थी. उस घुटन में मुकेश तेजतेज सांसें लेता हुआ अपने फेफड़ों को फुला रहा था और एकटक बीना के शरीर को ताक रहा था, जैसे बाज गौरैया को ताकता है. परंतु यहां बाज कौन था और गौरैया कौन, यह न मुकेश को पता था, न बीना को.

बीना तंदरुस्त लड़की थी और उस के हावभाव से लग रहा था कि वह किसी भले घर की नहीं थी. उस ने हाथ पकड़ कर मुकेश को खड़ा किया और बोली, ‘‘क्या खूंटे की तरह गड़े बैठे हो? कुछ डांसवांस नहीं करोगे? जल्दी करो. आज सारी रात जश्न मनेगा,’’ उस ने मुकेश के सामने खड़े हो कर अपने बाल संवारते हुए कुछ तल्खी से कहा. वह चुप बैठा रहा तो बीना ने बेताब हो कर अपने हाथों से उसे उठाते हुए कहा,  ‘‘आओ, अब डांस करो.’’ वह अचानक उठ खड़ा हुआ, जैसे उस के शरीर में कोई करंट लगा हो.

बीना बोली, ‘‘यह क्या? तुम्हें तो कुछ आता ही नहीं, वैसे के वैसे खड़े हो, खंभे की तरह…’’ परंतु मुकेश ने उस की तरफ दोबारा नहीं देखा. लपक कर वह बाहर आ गया. संजीव से भी मिलने की उस ने आवश्यकता नहीं समझी. गैलरी में आ कर उस ने इधरउधर देखा. इक्कादुक्का वेटर कमरों में आजा रहे थे. बाहर का वातावरण शांत था और हवा में हलकीहलकी सर्दी का एहसास था. वह होटल के बाहर आ गया. होटल के बाहर आ कर उसे चहलपहल का एहसास हुआ. उस ने समय देखा, 10 बजने में कुछ ही मिनट शेष थे. गोल मार्केट की दुकानें खुली होंगी, यह सोच कर वह गोल मार्केट की ओर चल दिया. साढ़े 10 बजे के लगभग जब हाथ में केक और मिठाई का डब्बा ले कर वह घर पहुंचा तो उस के मन में अपराधबोध था. आत्मग्लानि के गहरे समुद्र में वह डुबकी लगा रहा था. पत्नी ने जब दरवाजा खोला तो वह उस से नजरें चुरा रहा था. पत्नी को सामान पकड़ा कर वह अंदर आया. दोनों बच्चे उसे जगते हुए मिले. वे टीवी पर नए साल का कार्यक्रम देख रहे थे. उसे देख कर एकदम से चिल्लाए, ‘‘पापा आ गए, पापा आ गए. क्या लाए पापा हमारे लिए?’’

उस ने पत्नी की तरफ इशारा कर दिया. बच्चे मम्मी की तरफ देखने लगे तो उस ने लपक कर बारीबारी से दोनों बच्चों को चूम लिया. तब तक उस की पत्नी ने सामान ला कर मेज पर रख दिया, ‘‘वाउ, मिठाई और केक…अब मजा आएगा.’’ मुकेश के मन में एक बहुत बड़ी शंका घर कर गई थी. और वह शंका धीरेधीरे बढ़ती जा रही थी. उसे तत्काल दूर करना आवश्यक था. वह इंतजार नहीं कर सकता था. मुकेश दोनों बच्चों को नाचतागाता छोड़ कर पत्नी के पीछेपीछे किचन में आ गया. पत्नी ने उसे ऐसे आते देख कर कहा, ‘‘आप जूतेकपड़े उतार कर फ्रैश हो लीजिए. मैं पानी ले कर आती हूं.’’ ‘‘वह बाद मे कर लेंगे,’’ कह कर उस ने पत्नी को पीछे से पकड़ कर अपनी बांहों में भर लिया. पत्नी के हाथ से गिलास छूट गया. फुसफुसा कर बोली, ‘यह क्या कर रहे हैं आप?  ऐसा तो पहले कभी नहीं किया, बिना जूतेकपड़े उतारे और वह भी किचन में…’

‘‘पहले कभी नहीं किया, इसीलिए तो कर रहा हूं,’’ उस ने पूरी ताकत के साथ पत्नी के शरीर को भींच लिया. उस के शरीर में जैसे बिजली प्रवाहित होने लगी थी.

‘बच्चे देख लेंगे?’ पत्नी फिर फुसफुसाई. मुकेश के मन में हजार रंगों के फूल खिल कर मुसकराने लगे. उस के मन का भटकाव खत्म हो चुका था. अब उस के मन में कोई शंका नहीं थी, परंतु मुकेश को एक बात समझ में नहीं आ रही थी. कहते हैं कि आदमी को पराई औरत और पराया धन बहुत आकर्षित करता है. इन दोनों को प्राप्त करने के लिए वह कुछ भी कर सकता है. मुकेश को पराई नारी वह भी इतनी सुंदर, बिना किसी प्रयत्न के सहजता से उपलब्ध हुई थी, फिर वह उसे क्यों नहीं भोग पाया? यह रहस्य कोई मनोवैज्ञानिक ही सुलझा सकता था. मुकेश के लिए यह रहस्य एक बड़ा आश्चर्य था.

Hindi Story

Hindi Drama Story: टकराती जिंदगी- क्या कसूरवार थी शकीला

लेखक- एच. भीष्मपाल

Hindi Drama Story: जिंदगी कई बार ऐसे दौर से गुजर जाती है कि अपने को संभालना भी मुश्किल हो जाता है. रहरह कर शकीला की आंखों से आंसू बह रहे थे. वह सोच भी नहीं पा रही थी कि अब उस को क्या करना चाहिए. सोफे पर निढाल सी पड़ी थी. अपने गम को भुलाने के लिए सिगरेट के धुएं को उड़ाती हुई भविष्य की कल्पनाओं में खो जाती. आज वह जिस स्थिति में थी, इस के लिए वह 2 व्यक्तियों पर दोष डाल रही थी. एक थी उस की छोटी बहन बानो और दूसरा था उस का पति याकूब.

‘मैं क्या करती? मुझे उन्होंने पागल बना दिया था. यह वही व्यक्ति था जो शादी से पहले मुझ से कहा करता था कि अगर मैं ने उस से शादी नहीं की तो वह खुदकुशी कर लेगा. आज उस ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि मैं अपना शौहर, घर और छोटी बच्ची को छोड़ने को मजबूर हो गई हूं. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं अब क्या करूं,’ शकीला मन ही मन बोली.

‘मैं ने याकूब को क्या नहीं दिया. वह आज भूल गया कि शादी से पहले वह तपेदिक से पीडि़त था. मैं ने उस की हर खुशी को पूरा करने की कोशिश की. मैं ने उस के लिए हर चीज निछावर कर दी. अपना धन, अपनी भावनाएं, हर चीज मैं ने उस को अर्पण कर दी. सड़कों पर घूमने वाले बेरोजगार याकूब को मैं ने सब सुख दिए. उस ने गाड़ी की इच्छा व्यक्त की और मैं ने कहीं से भी धन जुटा कर उस की इच्छा पूरी कर दी. मुझे अफसोस इस बात का है कि उस ने मेरे साथ यह क्यों किया. मुझे इस तरह जलील करने की उसे क्या जरूरत थी? अगर वह एक बार भी कह देता कि वह मेरे से ऊब गया है तो मैं खुद ही उस के रास्ते से हट जाती. जब मेरे पास अच्छी नौकरी और घर है ही तो मैं उस के बिना भी तो जिंदगी काट सकती हूं.

‘बानो मेरी छोटी बहन है. मैं ने उसे अपनी बेटी की तरह पाला है, पर उसे मैं कभी माफ नहीं कर सकती. उस ने सांप की तरह मुझे डंस लिया. पता नहीं मेरा घर उजाड़ कर उसे क्या मिला? मुझे उस के कुकर्मों का ध्यान आते ही उस पर क्रोध आता है.’ बुदबुदाते हुए शकीला सोफे से उठी और बाहर अपने बंगले के बाग में घूमने लगी.

20 साल पहले की बात है. शकीला एक सरकारी कार्यालय में अधिकारी थी. गोरा रंग, गोल चेहरा, मोटीमोटी आंखें और छरहरा बदन. खूबसूरती उस के अंगअंग से टपकती थी. कार्यालय के साथी अधिकारी उस के संपर्क को तरसते थे. गाने और शायरी का उसे बेहद शौक था. महफिलों में उस की तारीफ के पुल बांधे जाते थे.

याकूब उत्तर प्रदेश की एक छोटी सी रियासत के नवाब का बिगड़ा शहजादा था. नवाब साहब अपने समय के माने हुए विद्वान और खिलाड़ी थे. याकूब को पहले फिल्म में हीरो बनने का शौक हुआ. वह मुंबई गया पर वहां सफल न हो सका. फिर पेंटिंग का शौक हुआ परंतु इस में भी सफलता नहीं मिली. उस के पिता ने काफी समझाया पर वह कुछ समझ न सका. गुस्से में उस ने घर छोड़ दिया. दिल्ली में रेडियो स्टेशन पर छोटी सी नौकरी कर ली. कुछ दिन के बाद वह भी छोड़ दी. फिर शायरी और पत्रकारिता के चक्कर में पड़ गया. न कोई खाने का ठिकाना न कोई रहने का बंदोबस्त. यारदोस्तों के सहारे किसी तरह से अपना जीवन निर्वाह कर रहा था. शरीर, डीलडौल अवश्य आकर्षक था. खानदानी तहजीब और बोलने का लहजा हर किसी को मोह लेता था.

और फिर एक दिन इत्तेफाक से उसे शकीला से मिलने का मौका मिला. एक इंटरव्यू लेने के सिलसिले में वह शकीला के कार्यालय में गया. उस के कमरे में घुसते ही उस ने ज्यों ही शकीला को देखा, उस के तनबदन में सनसनी सी फैल गई. कुछ देर के लिए वह उसे खड़ाखड़ा देखता रहा. इस से पहले कि वह कुछ कहे, शकीला ने उस से सामने वाली कुरसी पर बैठने का अनुरोध किया. बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. शकीला भी उस की तहजीब और बोलने के अंदाज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी. इंटरव्यू का कार्य खत्म हुआ और उस से फिर मिलने की इजाजत ले कर याकूब वहां से चला गया.

याकूब के वहां से चले जाने के बाद शकीला काफी देर तक कुछ सोच में पड़ गई. यह पहला मौका था

जब किसी के व्यक्तित्व ने उसे

प्रभावित किया था. कल्पनाओं के समुद्र में वह थोड़ी देर के लिए डूब गई. और फिर उस ने अपनेआप को झटक दिया और अपने काम में लग गई. ज्यादा देर तक उस का काम में मन नहीं लगा. आधे दिन की छुट्टी ले कर वह घर चली गई.

शकीला उत्तर प्रदेश के जौनपुर कसबे के मध्य-वर्गीय मुसलिम परिवार की कन्या थी. उस की 3 बहनें और 2 भाई थे. पिता का साया उस पर से उठ गया था. 2 भाइयों और 2 बहनों का विवाह हो चुका था और वे अपने परिवार में मस्त थे. विधवा मां और 7 वर्षीय छोटी बहन बानो के जीवननिर्वाह की जिम्मेदारी उस ने अपने ऊपर ले रखी थी. उस की मां को अपने घर से विशेष लगाव था. वह किसी भी शर्त पर जौनपुर छोड़ना नहीं चाहती थी. उस की गुजर के लिए उस का पिता काफी रुपयापैसा छोड़ गया था. घरों का किराया आता था व थोड़ी सी कृषि भूमि की आय भी थी.

शकीला के सामने समस्या बानो की पढ़ाई की थी. शकीला की इच्छा थी कि वह अच्छी और उच्च शिक्षा प्राप्त करे. वह उसे पब्लिक स्कूल में डालना चाहती थी जो जौनपुर में नहीं था. आखिरकार बड़ी मुश्किल से उस ने अपनी मां को रजामंद कर लिया और वह बानो को दिल्ली ले आई. शकीला बानो से बेहद प्यार करती थी. बानो को भी अपनी बड़ी बहन से बहुत प्यार था.

याकूब और शकीला के परस्पर मिलने का सिलसिला जारी रहा. कुछ दिन कार्यालय में औपचारिक मिलन के बाद गेलार्ड में कौफी के कार्यक्रम बनने लगे. शकीला ने न चाह कर भी हां कर दी. बानो के प्रति अपनी जिम्मेदारी महसूस करते हुए भी वह याकूब से मिलने के लिए और उस से बातचीत करने के लिए लालायित रहने लगी. उन दोनों को इस प्रकार मिलते हुए एक साल हो गया. प्यार की पवित्रता और मनों की भावनाओं पर दोनों का ही नियंत्रण था. परस्पर वे एकदूसरे के व्यवहार, आदतों और इच्छाओं को पहचानने लगे थे.

एक दिन याकूब ने उस के सामने हिचकतेहिचकते विवाह का प्रस्ताव रखा. यह सुन कर शकीला एकदम बौखला उठी. वह परस्पर मिलन से आगे नहीं बढ़ना चाहती थी. यह सुन कर वह उठी और ‘ना’ कह कर गेलार्ड से चली गई. घर जा कर वह अपने लिहाफ में काफी देर तक रोती रही. वह समझ नहीं पा रही थी कि वह जिंदगी के किस दौर से गुजर रही है. वह क्या करे, क्या न करे, कुछ सोच नहीं पा रही थी.

इस घटना का याकूब पर बहुत बुरा असर पड़ा. वह शकीला की ‘ना’ को सुन कर तिलमिला उठा. इस गम को भुलाने के लिए उस ने शराब का सहारा लिया. अब वह रोज शराब पीता और गुमसुम रहने लगा. खाने का उसे कोई होश न रहा. उस ने शकीला से मिलना बिलकुल बंद कर दिया. शकीला के इस व्यवहार ने उस के आत्मसम्मान को बहुत ठेस पहुंचाई.

उधर शकीला की हालत भी ठीक न थी. बानो के प्रति अपने कर्तव्य को ध्यान में रखते हुए वह याकूब को ‘ना’ तो कह बैठी, परंतु वह अपनी जिंदगी में कुछ कमी महसूस करने लगी. याकूब के संपर्क ने थोडे़ समय के लिए जो खुशी ला दी थी वह लगभग खत्म हो गई थी. वह खोईखोई सी रहने लगी. रात को करवटें बदलती और अंगड़ाइयां लेती परंतु नींद न आती. शकीला ने सोने के लिए नींद की गोलियों का सहारा लेना शुरू किया. चेहरे की रौनक और शरीर की स्फूर्ति पर असर पड़ने लगा. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे. वह इसी सोच में डूबी रहती कि बानो की परवरिश कैसे हो. यदि वह शादी कर लेगी तो बानो का क्या होगा?

अत्यधिक शराब पीने से याकूब की सेहत पर असर पड़ने लगा. उस का जिगर ठीक से काम नहीं करता था. खाने की लापरवाही से उस के शरीर में और कई बीमारियां पैदा होने लगीं. याकूब इस मानसिक आघात को चुपचाप सहे जा रहा था. धीरेधीरे शकीला को याकूब की इस हालत का पता चला तो वह घबरा गई. उसे डर था कि कहीं कोई अप्रिय घटना न घट जाए. वह याकूब से मिलने के लिए तड़पने लगी. एक दिन हिम्मत कर के वह उस के घर गई. याकूब की हालत देख कर उस की आंखों से आंसू बहने लगे. याकूब ने फीकी हंसी से उस का स्वागत किया. कुछ शिकवेशिकायतों के बाद फिर से मिलनाजुलना शुरू हो गया. अब जब याकूब ने उस से प्रार्थना की तो शकीला से न रहा गया और उस ने हां कर दी.

शादी हो गई. शकीला और याकूब दोनों ही मजे से रहने लगे. हर दम, हर पल वे साथ रहते, आनंद उठाते. 3 वर्ष देखते ही देखते बीत गए. बानो भी अब जवान हो गई थी. उस ने एम.ए. कर लिया था और एक अच्छी फर्म में नौकरी करने लगी थी.

शकीला ने बानो को हमेशा अपनी बेटी ही समझा था. शादी से पहले शकीला और याकूब ने आपस में फैसला किया था कि जब तक बानो की शादी नहीं हो जाती वह उन के साथ ही रहेगी. याकूब ने उसे बेटी के समान मानने का वचन शकीला को दिया था. शकीला ने कभी अपनी संतान के बारे में सोचा भी नहीं था. वह तो बानो को ही अपनी आशा और अपने जीवन का लक्ष्य समझती थी.

याकूब कुछ दिनों के बाद उदास रहने लगा. यद्यपि बानो से वह बेहद प्यार करता था परंतु उसे अपनी संतान की लालसा होने लगी. वह शकीला से केवल एक बच्चे के लिए प्रार्थना करने लगा. न जाने क्यों शकीला मां बनने से बचना चाहती थी परंतु याकूब के इकरार ने उसे मां बनने पर मजबूर कर दिया. फिर साल भर बाद शकीला की कोख से एक सुंदर बेटी ने जन्म लिया. प्यार से उन्होंने उस का नाम जाहिरा रखा.

शकीला और याकूब अपनी जिंदगी से बेहद खुश थे. जाहिरा ने उन की खुशियों को और भी बढ़ा दिया था. जाहिरा जब 3 वर्ष की हुई तो याकूब के पिता नवाब साहब आए और उसे अपने साथ ले गए. जाहिरा को उन्होंने लखनऊ के प्रसिद्ध कानवेंट में भरती कर दिया. याकूब और शकीला दोनों ही इस व्यवस्था से प्रसन्न थे.

कार्यालय की ओर से शकीला को अमेरिका में अध्ययन के लिए भेजने का प्रस्ताव था. वह बहुत प्रसन्न हुई परंतु बारबार उसे यही चिंता सताती कि बानो के रहने की व्यवस्था क्या की जाए. उस ने याकूब केसामने इस समस्या को रखा. उस ने आश्वासन दिया कि वह बानो की चिंता न करे. वह उस का पूरा ध्यान रखेगा. इन शब्दों से आश्वस्त हो कर शकीला अमेरिका के लिए रवाना हो गई.

शकीला एक साल तक अमेरिका में रही और जब वापस दिल्ली के हवाई अड्डे पर उतरी तो याकूब और बानो ने उस का स्वागत किया. कुछ दिन बाद शकीला ने महसूस किया कि याकूब कुछ बदलाबदला सा नजर आता है. वह अब पहले की तरह खुले दिल से बात नहीं करता था. उस के व्यवहार में उसे रूखापन नजर आने लगा. उधर बानो भी अब शकीला से आंख मिलाने में कतराने लगी थी. शकीला को काफी दिन तक इस का कोई भान नहीं हुआ परंतु इन हरकतों से वह कुछ असमंजस में पड़ गई. याकूब को अब छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ जाता था. अब वह शकीला के साथ बाहर पार्टियों में भी न जाने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ लेता. वह ज्यादा से ज्यादा समय तक बानो के साथ बातें करता.

एक दिन शकीला को कार्यालय में देर तक रुकना पड़ा. जब वह रात को अपने बंगले में पहुंची तो दरवाजा खुला था. वह बिना खटखटाए ही अंदर चली आई. वहां उस ने जो कुछ देखा तो एकदम सकपका गई. बानो का सिर याकूब की गोदी में और याकूब के होंठ बानो के होंठों से सटे हुए थे. शकीला को अचानक अपने सामने देख कर वे एकदम हड़बड़ा कर उठ गए. उन्हें तब ध्यान आया कि वे अपनी प्रेम क्रीड़ाओं में इतने व्यस्त थे कि उन्हें दरवाजा बंद करना भी याद न रहा.

शकीला पर इस हादसे का बहुत बुरा असर पड़ा. वह एकदम गुमसुम और चुप रहने लगी. याकूब और बानो भी शकीला से बात नहीं करते थे. शकीला को बुखार रहने लगा. उस का स्वास्थ्य खराब होना शुरू हो गया. उधर याकूब और बानो खुल कर मिलने लगे. नौबत यहां तक पहुंची कि अब बानो ने शकीला के कमरे में सोना बंद कर दिया. वह अब याकूब के कमरे में सोने लगी. दफ्तर से याकूब और बानो अब देर से साथसाथ आते. कभीकभी इकट्ठे पार्टियों में जाते और रात को बहुत देर से लौटते. शकीला को उन्होंने बिलकुल अलगथलग कर दिया था. शकीला उन की रंगरेलियों को देखती और चुपचाप अंदर ही अंदर घुटती रहती. 1-2 बार उस ने बानो को टोका भी परंतु बानो ने उस की परवा नहीं की.

शकीला की सहनशक्ति खत्म होती जा रही थी. रहरह कर उस को अपनी मां की बातें याद आ रही थीं. उस ने कहा था, ‘बानो अब बड़ी हो गई है. वह उसे अपने पास न रखे. कहीं ऐसा न हो कि वह उस की सौत बन जाए. मर्द जात का कोई भरोसा नहीं. वह कब, कहां फिसल जाए, कोई नहीं कह सकता.’

इस बात पर शकीला ने अपनी मां को भी फटकार दिया था, पर वह स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी कि याकूब इस तरह की हरकत कर सकता है. वह तो उसे बेटी के समान समझता था. शकीला को बड़ा मानसिक कष्ट  था, पर समाज में अपनी इज्जत की खातिर वह चुप रहती और मन मसोस कर सब कुछ सहे जा रही थी.

बानो के विवाह के लिए कई रिश्तों के प्रस्ताव आए. शकीला की दिली इच्छा थी कि बानो के हाथ पीले कर दे परंतु जब भी लड़के वाले आते, याकूब कोई न कोई कमी निकाल देता और बानो उस प्रस्ताव को ठुकरा देती. आखिर शकीला ने एक दिन याकूब से साफसाफ पूछ लिया. यह उन की पहली टकराहट थी. तूतू मैंमैं हुई. याकूब को भी गुस्सा आ गया. गुस्से के आवेश में याकूब ने शकीला को बीते दिनों की याद दिलाते हुए कहा, ‘‘शकीला, मैं यह जानता था कि तुम ने पहले रिजवी से निकाह किया था. जब वह तुम्हारे नाजनखरे और खर्चे बरदाश्त नहीं कर सका तो वह बेचारा बदनामी के डर से कई साल तक इस गम को सहता रहा. तुम ने मुझे कभी यह नहीं बताया कि तुम्हारे एक लड़के को वह पालता रहा. आज वह लड़का जवान हो गया है. तुम ने उस के साथ जैसा क्रूर व्यवहार किया उस को वह बरदाश्त नहीं कर सका. कुछ अरसे बाद सदा के लिए उस ने आंखें मूंद लीं.

‘‘तुम्हें याद है जब मैं ने तुम्हें उस की मौत की खबर सुनाई थी तो तुम केवल मुसकरा दी थीं और कहा था कि यह अच्छा ही हुआ कि वह अपनी मौत खुद ही मर गया, नहीं तो शायद मुझे ही उसे मारना पड़ता.’’

शकीला की आंखों से आंसू बहने लगे. फिर वह तमतमा कर बोली, ‘‘यह झूठ है, बिलकुल झूठ है. उस ने मुझे कभी प्यार नहीं किया. वह निकाह मांबाप द्वारा किया गया एक बंधन मात्र था. वह हैवान था, इनसान नहीं, इसीलिए आज तक मैं ने किसी से इस का जिक्र तक नहीं किया. फिर इस की तुम्हें जरूरत भी क्या थी? तुम ने मुझ से, मेरे शरीर से प्यार किया था न कि मेरे अतीत से.’’

‘‘शकीला, जब से मैं ने तुम्हें देखा, तुम से प्यार किया और इसीलिए विवाह भी किया. तुम्हारे अतीत को जानते हुए भी मैं ने कभी उस की छाया अपने और तुम्हारे बीच नहीं आने दी. आज तुम मेरे ऊपर लांछन लगा रही हो पर यह कहां तक ठीक है? तुम एक दोस्त हो सकती हो परंतु बीवी बनने के बिलकुल काबिल नहीं. मैं तुम्हारे व्यवहार और तानों से तंग आ चुका हूं. तुम्हारे साथ एक पल भी गुजारना अब मेरे बस का नहीं.’’

याकूब और शकीला में यह चखचख हो ही रही थी कि बानो भी वहां आ गई. बानो को देखते ही शकीला बिफर गई और रोतेरोते बोली, ‘‘मुझे क्या मालूम था कि जिसे मैं ने बच्ची के समान पाला, आज वही मेरी सौत की जगह ले लेगी. मां ने ठीक ही कहा था कि मैं जिसे इतनी आजादी दे रही हूं वह कहीं मेरा घर ही न उजाड़ दे. आज वही सबकुछ हो रहा है. अब इस घर में मेरे लिए कोई जगह नहीं.’’

बानो से चुप नहीं रहा गया. वह भी बोल पड़ी, ‘‘आपा, मैं तुम्हारी इज्जत करती हूं. तुम ने मुझे पालापोसा है पर अब मैं अपना भलाबुरा खुद समझ सकती हूं. छोटी बहन होने के नाते मैं तुम्हारे भूत और वर्तमान से अच्छी तरह वाकिफ हूं. तुम्हारे पास समय ही कहां है कि तुम याकूब की जिंदगी को खुशियों से भर सको. तुम ने तो कभी अपनी कोख से जन्मी बच्ची की ओर भी ध्यान नहीं दिया. आराम और ऐयाशी की जिंदगी हर एक गुजारना चाहता है परंतु तुम्हारी तरह खुदगर्जी की जिंदगी नहीं. याकूब परेशान और बीमार रहते हैं. उन्हें मेरे सहारे की जरूरत है.’’

बानो के इस उत्तर को सुन कर शकीला सकपका गई. अब तक वह याकूब को ही दोषी समझती थी परंतु आज तो उस की बेटी समान छोटी बहन भी बेशर्मी से जबान चला रही थी. अगले दिन ही उस ने उन के जीवन से निकल जाने का निर्णय कर लिया.

शकीला जब अगले दिन अपने कार्यालय में पहुंची तो उस की मेज पर एक कार्ड पड़ा था. लिखा  था, ‘शकीला, हम साथ नहीं रह सकते.

Hindi Drama Story

Love Story: प्यार- संजय को क्यों हो गया था कस्तूरी से प्यार

Love Story: ‘‘अरे संजय… चल यार, आज मजा करेंगे,’’ बार से बाहर निकलते समय उमेश संजय से बोला. दिनेश भी उन के साथ था.

संजय ने कहा, ‘‘मैं ने पहले ही बहुत ज्यादा शराब पी ली है और अब मैं इस हालत में नहीं हूं कि कहीं जा सकूं.’’

उमेश और दिनेश ने संजय की बात नहीं सुनी और उसे पकड़ कर जबरदस्ती कार में बिठाया और एक होटल में जा पहुंचे.

वहां पहुंच कर उमेश और दिनेश ने एक कमरा ले लिया. उन दोनों ने पहले ही फोन पर इंतजाम कर लिया था, तो होटल का एक मुलाजिम उन के कमरे में एक लड़की को लाया.

उमेश ने उस मुलाजिम को पैसे दिए. वह लड़की को वहीं छोड़ कर चला गया.

वह एक साधारण लड़की थी. लगता था कि वह पहली बार इस तरह का काम कर रही थी, क्योंकि उस के चेहरे पर घबराहट के भाव थे. उस के कपड़े भी साधारण थे और कई जगह से फटे हुए थे.

संजय उस लड़की के चेहरे को एकटक देख रहा था. उसे उस में मासूमियत और घबराहट के मिलेजुले भाव नजर आ रहे थे, जबकि उमेश और दिनेश उस को केवल हवस की नजर से देखे जा रहे थे.

तभी उमेश लड़खड़ाता हुआ उठा और उस ने दिनेश व संजय को बाहर जाने के लिए कहा. वे दोनों बाहर आ गए.

अब कमरे में केवल वह लड़की और उमेश थे. उमेश ने अंदर से कमरा बंद कर लिया. संजय को यह सब बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन उमेश और दिनेश ने इतनी ज्यादा शराब पी ली थी कि उन्हें होश ही न था कि वे क्या कर रहे हैं.

काफी देर हो गई, तो संजय ने दिनेश को कमरे में जा कर देखने को कहा.

दिनेश शराब के नशे में चूर था. लड़खड़ाता हुआ कमरे के दरवाजे पर पहुंच कर उसे खटखटाने लगा. काफी देर बाद लड़की ने दरवाजा खोला.

उस लड़की ने दिनेश से कहा कि उस का दोस्त सो गया है, उसे उठा लो. नशे की हालत में चूर दिनेश उस लड़की की बात सुनने के बजाय पकड़ कर उसे अंदर ले गया और दरवाजा बंद कर लिया.

संजय दूर बरामदे में बैठा यह सब देख रहा था. दिनेश को भी कमरे में गए काफी देर हो गई, तो संजय ने दरवाजा खड़काया.

इस बार भी उसी लड़की ने दरवाजा खोला. वह अब परेशान दिख रही थी. उस ने संजय की तरफ देखा और कहा, ‘‘ बाबू, ये लोग कुछ कर भी नहीं कर रहे और मेरा पैसा भी नहीं दे रहे हैं.

मुझे पैसे की जरूरत है और जल्दी घर भी जाना है,’’ कहते हुए उस लड़की का गला बैठ सा गया.

संजय ने लड़की को अंदर चलने को कहा और थोड़ी देर में उसे उसी होटल के दूसरे कमरे में ले गया. उस ने जाते हुए देखा कि उमेश और दिनेश शराब में चूर बिस्तर पर पड़े थे.

संजय ने दूसरे कमरे में उस लड़की को बैठने को कहा. लड़की घबराते हुए बैठ गई. वह थोड़ा जल्दी में लग रही थी. संजय ने उसे पास रखा पानी पीने को दिया, जिसे वह एक सांस में ही पी गई.

पानी पीने के बाद वह लड़की खड़ी हुई और संजय से बोली, ‘‘बाबू, अब जो करना है जल्दी करो, मुझे पैसे ले कर जल्दी घर पहुंचना है.’’

संजय को उस की मासूम बातों पर हंसी आ रही थी. उस ने उसे पैसे दे दिए तो उस ने पैसे रख लिए और संजय को पकड़ कर बिस्तर पर ले गई और अपने कपड़े उतारने लगी.

संजय ने उस का हाथ पकड़ा और कपड़े खोलने को मना किया. लड़की बोली, ‘‘नहीं बाबू, कस्तूरी ऐसी लड़की नहीं है, जो बिना काम के किसी से भी पैसे ले ले. मैं गरीब जरूर हूं, लेकिन भीख नहीं लूंगी.’’

संजय अब बोल नहीं पा रहा था. तभी कस्तूरी ने संजय का हाथ पकड़ा और उसे बिस्तर पर ले गई, यह सब इतना जल्दी में हुआ कि संजय कुछ कर नहीं पाया.

कस्तूरी ने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और संजय के भी कपड़े उतारने लगी. अब कस्तूरी संजय के इतने नजदीक थी कि उस के मासूम चेहरे को वह बड़े प्यार से देख रहा था. वह कस्तूरी की किसी बात का विरोध नहीं कर पा रहा था. उस के मासूम हावभाव व चेहरे से संजय की नजर हटती, तब तक कस्तूरी वह सब कर चुकी थी, जो पतिपत्नी करते हैं.

कस्तूरी ने जल्दी से कपड़े पहने और होटल के कमरे से बाहर निकल गई. संजय अभी भी कस्तूरी के खयालों में खोया हुआ था.

समय बीतता गया, लेकिन संजय के दिमाग से कस्तूरी निकल नहीं पा रही थी.

एक दिन संजय बाजार में सामान खरीद रहा था. उस ने देखा कि कस्तूरी भी उस के पास की ही एक दुकान से सामान खरीद रही थी.

संजय उस को देख कर खुश हुआ. उस ने कस्तूरी को आवाज दी तो कस्तूरी ने मुड़ कर देखा और फिर दुकानदार से सामान लेने में जुट गई.

संजय उस के पास पहुंचा. कस्तूरी ने संजय की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. कस्तूरी ने सामान खरीदा और दुकान से बाहर निकल गई.

संजय उसे पीछे से आवाज देता रहा, लेकिन उस ने अनसुना कर दिया.

कुछ दिन बाद संजय को कस्तूरी फिर दिखाई दी. उस दिन संजय ने कस्तूरी का हाथ पकड़ा और उसे भीड़ से दूर खींच कर ले गया और उस से उस की पिछली बार की हरकत के बारे में पूछना चाहा, तो संजय के पैरों की जमीन खिसक गई. उस ने देखा, कस्तूरी का चेहरा पीला पड़ चुका था और वह बहुत कमजोर हो गई थी. उस ने अपनी फटी चुनरी से अपना पेट छिपा रखा था, जो कुछ बाहर दिख रहा था.

कस्तूरी वहां से जाने के लिए संजय से जोरआजमाइश कर रही थी. संजय ने किसी तरह उसे शांत किया और भीड़ से दूर एक चाय की दुकान पर बिठाया.

संजय ने गौर से कस्तूरी के चेहरे की तरफ देखा, तो उस का दिल बैठ गया. कस्तूरी सचमुच बहुत कमजोर थी. संजय ने कस्तूरी से उस की इस हालत के बारे में पूछा, तो पहले तो कुछ नहीं बोली, लेकिन संजय ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो वह रोने लगी.

संजय कुछ समझ नहीं पा रहा था. कस्तूरी ने अपने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘बाबू, मेरी यह हालत उसी दिन से है, जिस दिन आप और आप के दोस्त मुझे होटल में मिले थे.’’

संजय ने उस की तरफ सवालिया नजरों से देखा, तो वह फिर बोली, ‘‘बाबू, मैं कोई धंधेवाली नहीं हूं. मैं उस गंदे नाले के पास वाली कच्ची झोंपड़पट्टी में रहती हूं. उस दिन पुलिस मेरे भाई को पकड़ कर ले गई थी, क्योंकि वह गली में चरसगांजा बेच रहा था. उसे जमानत पर छुड़ाना था और मेरे मांबाप के पास पैसा नहीं था. अब मुझे ही कुछ करना था.

‘‘मैं ने अपने पड़ोस में सब से पैसा मांगा, लेकिन किसी ने नहीं दिया. थकहार कर मैं बैठ गई तो मेरी एक मौसी बोली कि इस बेरहम जमाने में कोई मुफ्त में पैसा नहीं देता.

‘‘मौसी की यह बात मेरी समझ में आई और मैं आप और आप के दोस्तों तक पहुंच गई.’’

कस्तूरी चुप हुई, तो संजय ने अपने चेहरे के दर्द को छिपाते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी यह हालत कैसे हुई?’’

कस्तूरी ने कहा, ‘‘बाबू, यह जान कर आप क्या करोगे? यह तो मेरी किस्मत है.’’

संजय ने फिर जोर दिया, तो कस्तूरी बोली, ‘‘बाबू, उस दिन आप के दिए गए पैसे से मैं अपने भाई को हवालात से छुड़ा लाई, तो भाई ने पूछा कि पैसे कहां से आए. मैं ने झूठ बोल दिया कि किसी से उधार लिए हैं.’’

थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह फिर बोली, ‘‘बाबू, सब ने पैसा देखा, लेकिन मैं ने जो जिस्म बेच कर एक जान को अपने शरीर में आने दिया, तो उसे सब नाजायज कहने लगे और जिस भाई को मैं ने बचाया था, वह मुझे धंधेवाली कहने लगा और मुझे मारने लगा. वह मुझे रोज ही मारता है.’’

यह सुन कर संजय के कलेजे का खून सूख गया. इस सब के लिए वह खुद को भी कुसूरवार मानने लगा. उस की आंखों में भी आंसू छलक आए थे.

कस्तूरी ने यह देखा तो वह बोली, ‘‘बाबू, इस में आप का कोई कुसूर नहीं है. अगर मैं उस रात आप को जिस्म नहीं बेचती तो किसी और को बेचती. लेकिन बाबू, उस दिन के बाद से मैं ने अपना जिस्म किसी को नहीं बेचा,’’ यह कहते हुए वह चुप हुई और कुछ सोच कर बोली, ‘‘बाबू, उस रात आप के अच्छे बरताव को देख कर मैं ने फैसला किया था कि मैं आप की इस प्यार की निशानी को दुनिया में लाऊंगी और उसी के सहारे जिंदगी गुजार दूंगी, क्योंकि हम जैसी गरीब लड़कियों को कहां कोई प्यार करने वाला जीवनसाथी मिलता है.’’

इतना कह कर कस्तूरी का गला भर आया. वह आगे बोली, ‘‘बाबू, यह आप की निशानी है और मैं इसे दुनिया में लाऊंगी, चाहे इस के लिए मुझे मरना ही क्यों न पड़े,’’ इतना कह कर वह तेजी से उठी और अपने घर की तरफ चल दी.

यह सुन कर संजय जैसे जम गया था. वह कह कर भी कुछ नहीं कह पाया. उस ने फैसला किया कि कल वह कस्तूरी के घर जा कर उस से शादी की बात करेगा.

वह रात संजय को लंबी लग रही थी. सुबह संजय जल्दी उठा और बदहवास सा कस्तूरी के घर की तरफ चल दिया. वह उस के महल्ले के पास पहुंचा तो एक जगह बहुत भीड़ जमा थी. वह किसी अनहोनी के डर को दिल में लिए भीड़ को चीर कर पहुंचा, तो उस ने जो देखा तो जैसे उस का दिल बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हो.

कस्तूरी जमीन पर पड़ी थी. उस की आंखें खुली थीं और चेहरे पर वही मासूम मुसकराहट थी.

संजय ने जल्दी से पूछा कि क्या हुआ है तो किसी ने बताया कि कस्तूरी के भाई ने उसे चाकू से मार दिया है, क्योंकि सब कस्तूरी के पेट में पल रहे बच्चे की वजह से उसे बेइज्जत करते थे.

संजय पीछे हटने लगा, अब उसे लगने लगा था कि वह गिर जाएगा. तभी पुलिस का सायरन बजने लगा तो भीड़ छंटने लगी.

संजय पीछे हटते हुए कस्तूरी को देख रहा था. उस का एक हाथ अपने पेट पर था और शायद वह अपने प्यार को मरते हुए भी बचाना चाहती थी. उस के चेहरे पर मुसकराहट ऐसी थी, जैसे उन खुली आंखों से संजय को कहना चाहती हो, ‘बाबू, यह तुम्हारे प्यार की निशानी है, पर इस में तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है.’

संजय पीछे मुड़ा और अपने घर पहुंच कर रोने लगा. वह अपनेआप को माफ नहीं कर पा रहा था, क्योंकि अगर वह कल ही उस से शादी की बात कर लेता तो शायद कस्तूरी जिंदा होती.

बारिश होने लगी थी. बादल जोर से गरज रहे थे. वे भी कस्तूरी के प्यार के लिए रो रहे थे.

Love Story

मेकअप के मामले में ब्राइड्स अक्सर क्या गलतियां करती हैं और उनसे कैसे बचें

Bridal makeup: शादी का दिन हर लड़की के लिए जिंदगी का सबसे खास दिन होता है. हर ब्राइड चाहती है कि उस दिन वह सबसे सुंदर दिखे लेकिन इसी चाह में कई बार कुछ छोटीछोटी गलतियां पूरे ब्राइडल लुक का चार्म बिगाड़ देती हैं. कभी बेस बहुत हैवी हो जाता है तो कभी लिपस्टिक शेड सूट नहीं करता. कई बार कैमरे की लाइट में मेकअप एकदम अलग दिखता है और चेहरा नेचुरल ग्लो की बजाय नकली चमक से भर जाता है.

आज हम ऐसे मेकअप मिस्टेक्स के बारे में बात करेंगे जो ब्राइड्स को शादी वाले दिन परेशान करती हैं और इनसे कैसे बचा जा सकता है ताकि आप अपने खास दिन को और भी स्पेशल बना सकें.

ऐसा मेकअप लुक चुनना जो आपके फेसकट से मैच न करता हो-

ब्राइड्स अक्सर सोशल मीडिया पर देखे गए ट्रेंड के आधार पर मेकअप चुनती हैं, बिना यह सोचे कि उनके चेहरे के आकार पर क्या जंचेगा. हो सकता है कि किसी सेलिब्रिटी या फोटो में देखी गई ब्राइड पर जो अच्छा लगे, वह आपके चेहरे के आकार के लिए बिल्कुल भी सही न हो.

इससे कैसे बचें:

किसी ऐसे प्रोफेशनल मेकअप आर्टिस्ट के साथ काम करें जो आपके चेहरे के आकार को समझता हो. आपका मेकअप आपके फेसकट के हिसाब से होना चाहिए जैसे कि सौफ्ट लुक के लिए वार्म कलर्स का इस्तेमाल करना या आपके चिक बोल्स को हाई करने के लिए बोल्ड टोन का इस्तेमाल करना.

ट्रायल रन न लेना

कई ब्राइड्स मेकअप ट्रायल न कराने की गलती करती हैं, जिससे शादी के दिन आखिरी समय में तनाव या निराशा हो सकती है. ट्रायल रन आपको अपने लुक के साथ प्रयोग करने और अपनी पसंद की चीजें बताने का मौका देता है.

इससे कैसे बचें:

हमेशा अपनी शादी से कम से कम 2 महीने पहले ट्रायल शेड्यूल जरूर करें. इससे आपको जरूरत पड़ने पर अपने लुक में बदलाव करने का पर्याप्त समय मिल जाएगा. अपनी पसंदीदा स्टाइल की तस्वीरें जरूर लाएं, लेकिन अपने मेकअप आर्टिस्ट के सुझावों के लिए भी तैयार रहें.

मौसम पर ध्यान न देना

ब्राइड्स अक्सर अपने मेकअप की प्लानिंग करते समय मौसम का ध्यान रखना भूल जाती हैं. गर्मी, नमी या हवा के कारण मेकअप पिघल सकता है, जिससे आपका लुक फीका पड़ सकता है.

इससे कैसे बचें:

अपनी शादी के मौसम के बारे में हमेशा सोचें. अगर आपकी शादी गर्मियों में या किसी नम जगह पर हो रही है, तो ज्यादा टिकाऊ मेकअप चुनें जैसे मैट फाउंडेशन और वाटरप्रूफ मस्कारा आदि. सभी शादियों में, सब कुछ अपनी जगह पर बनाए रखने के लिए सेटिंग स्प्रे का इस्तेमाल करें.

मेकअप पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देना

कभीकभी सबसे अलग दिखने या अट्रैक्टिक दिखने की चाहत में ब्राइड्स जरूरत से ज्यादा मेकअप अपना लेती हैं. जरूरत से ज़्यादा मेकअप फोटोज में ओवर लग सकता है और किसी प्लास्टिक पुट्टी की तरह लगता है. आप खुद से अलग महसूस कर सकती हैं.

इससे कैसे बचें:

अपने सामान्य लुक का एक पॉलिश्ड, एलिगेंट वर्जन अपनाने का लक्ष्य रखें. बहुत ज्यादा लेयर्स का इस्तेमाल न करें.

टचअप प्रोड्क्ट्स लाना भूल जाना

कुछ ब्राइड्स मानती हैं कि उनके मेकअप बिना किसी रखरखाव के बेदाग रहेंगे. हालांकि, हकीकत यह है कि दिन भर में छोटे मोटे टचअप अक्सर जरूरी होते हैं.

इससे कैसे बचें:

शादी के दिन के लिए एक छोटी सी ब्राइडल ब्यूटी किट तैयार करें जिसमें लिपस्टिक, पाउडर, हेयरपिन और मिनी हेयरस्प्रे जैसी जरूरी चीजें हों. अपने मेकअप आर्टिस्ट या स्टाइलिस्ट से जरूर पूछ लें कि आपको दिन भर में किनकिन टचअप उत्पादों की जरूरत पड़ेगी.

स्किनकेयर न करना

कई ब्राइड्स अपनी शादी के दिन से पहले सही से स्किनकेयर नहीं करती. यह सोचकर कि सिर्फ मेकअप ही उन्हें मनचाहा बेदाग लुक दे सकता है. लेकिन आपकी त्वचा की स्थिति इस बात में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है कि मेकअप कैसा लगेगा.

इससे कैसे बचें:

अपना स्किनकेयर रूटीन शादी से महीनों पहले शुरू कर दें. त्वचा को हाइड्रेट करने, एक्सफोलिएट करने और लाइफस्टाइल पर ध्यान दें. अपनी त्वचा को बेहतरीन बनाए रखने के लिए, अपने खास दिन से एक या दो हफ्ते पहले फेशियल करवाना न भूलें.

फोटोग्राफी लाइटिंग पर ध्यान न देना

जो चीज असल में अच्छी लगती है, जरूरी नहीं कि वो तस्वीरों में भी अच्छी लगे, खासकर कुछ खास मेकअप तकनीकों के साथ. एक आम गलती यह है कि हम इस बात पर ध्यान नहीं देते कि अलग-अलग लाइट जैसे नेचिरल लाइट या आर्टिफिशियल लाइट.

इससे कैसे बचें:

अपनी शादी के लिए लाइटिंग को समझने के लिए अपने फ़ोटोग्राफर के साथ मिलकर काम करें. तस्वीरों में फ्लैशबैक से बचने के लिए मैट या साटन फाउंडेशन का इस्तेमाल करें, और ऐसे मेकअप शेड्स चुनें जो लेचिरल लाइट में तो उभरकर दिखें, लेकिन फ्लैश या आर्टिफिशियल लाइट में ज्यादा तीखे न दिखें.

इन आम गलतियों से बचकर और पहले से प्लानिंग करके आप यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि आपका लुक सबसे अट्रैक्टिव दिखे.

Bridal makeup

Puffy Eyes का पक्का इलाज, जानें असरदार उपाय

Puffy Eyes: 22 वर्षीय निकिता की आंखें पिछले कुछ दिनों से सूजी हुई दिखती थीं. निकिता ने कई बार मेकअप का सहारा लिया, लेकिन शाम होतेहोते आंखें फिर सूज जाती थीं. उस ने लोगों की सलाह के अनुसार घरेलू उपचार किया, लेकिन ठीक नहीं हुआ. इस के बाद उस ने नौन सर्जिकल थेरैपी का सहारा लिया और अब उसे पूरी तरह से पफी आइज से छुटकारा मिल चुका है.

असल में सूजी हुई आंखें (पेरिऔर्बिटल एडिमा) तब होता है जब आंखों के आसपास तरल पदार्थ जमा हो जाता है, जो बाद में कई बार आंखों के नीचे काले घेरे, खुजली या लालिमा भी दिखाई पड़ सकती है. इस के कई कारण हो सकते हैं :

-अधिक रोने, ऐलर्जी, ज्यादा सोडियम खाने या पर्याप्त नींद न लेने या अन्य कारणों से आंखें सूज सकती हैं.

-सूजन किसी अंतर्निहित स्थिति, जैसेकि गुलाबी आंखें या किडनी की बीमारी के कारण भी हो सकती हैं.

-कई बार ध्रूमपान से ऐलर्जी होने पर भी आंखों में सूजन आ सकती है.

-सूजन आमतौर पर समय के साथ ठीक हो जाती है, लेकिन कई उपचार और जीवनशैली में बदलाव कर के आप इस से जल्दी छुटकारा पा सकते हैं.

प्राथमिक लक्षण

सूजी हुई आंखों का मुख्य लक्षण आप की आंखों के आसपास या नीचे के ऊतकों में अस्थायी सूजन है. अमेरिकन एकेडमी औफ औप्थल्मोलौजी (एएओ) के अनुसार, आंखों के नीचे सूजन आमतौर पर उम्र बढ़ने के कारण त्वचा का ढीला पड़ना है. यह तब होता है, जब आंखों के नीचे की चरबी उम्र के साथ खिसक जाती है, जिस से त्वचा फूली हुई दिखती है.

यह एक अलग प्रकार का सूजन है, जो तरल पदार्थ के जमा होने के कारण होता है. आंखों के नीचे के इस सूजन को ढीली त्वचा, चरबी की थैली, पिगमेंटेशन (त्वचा के रंग में बदलाव) और प्राकृतिक छाया के मिश्रण के रूप में पहचाना जा सकता है. आजकल यह कम उम्र के यूथ में भी देखा जा रहा है, जिस का इलाज जरूरी है.

वजह जानें

आंसू, जमाव या सूजन के कारण

आंखों के आसपास की त्वचा में तरल पदार्थ जमा हो जाता है, क्योंकि आंखों के आसपास की त्वचा का ऊतक आप के शरीर में सब से पतला होता है, इसलिए वहां होने वाली कोई भी सूजन विशेष रूप से ध्यान देने योग्य होती है. हालांकि सूजी हुई आंखें कभी भी चिंता का कारण नहीं होती, लेकिन यह अधिक गंभीर स्वास्थ्य समस्या का संकेत भी हो सकती है.

कब करें चिंता

सूजी हुई आंखों को ले कर चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन अगर आप की आंखें कई दिनों तक सूजी हुई रहती हैं, तो डाक्टर की सलाह अवश्य लें ताकि समय रहते इस का इलाज हो सके. यदि आप के गुरदे मूत्र में अतिरिक्त प्रोटीन उत्सर्जित करते हैं, तो आप की आंखें सूजी हुई हो सकती हैं, जो कि गुरदे की क्षति का प्रारंभिक संकेत होता है.

और्बिटल सैल्युलाइटिस के संक्रमण की स्थिति में भी आंखों के पास की वसा और मांसपेशियों को प्रभावित कर सकता है.

यदि इस का उपचार न किया जाए तो इस से दृष्टि हानि या सैप्सिस (रक्त विषाक्तता) जैसी जटिलताएं हो सकती हैं.

सूजी हुई आंखों से छुटकारा पाने के तरीके

सूजी हुई आंखों का इलाज सूजन के कारण पर निर्भर करता है, जिसे डाक्टर पूरी जांच के बाद पता कर पाते हैं.

जीवनशैली में परिवर्तन

आप सूजी हुई आंखों की समस्या को कम करने के लिए जीवनशैली में कई बदलाव कर सकते हैं, जो निम्न हैं :

-ऐलर्जी पैदा करने वाले तत्त्वों के संपर्क में आने से बचें.

-अपने आहार में पोटेशियमयुक्त खाद्यपदार्थ शामिल करें.

-अपनी पलकें बहुत अधिक न रगड़ें.

– दिनभर खूब पानी पीएं.

-पर्याप्त नींद लें और सिर ऊंचा कर के सोएं.

-धूम्रपान से बचें.

-शराब के सेवन को सीमित करें.

-सोडियम सेवन को सीमित करें.

-सोने से पहले तरल पदार्थ का सेवन कम करें. लेकिन इस के बावजूद भी आंखों की पफीनेस कम नहीं हुई, तो लोकल या क्लीनिकल सर्जरी की आवश्यकता होती है.

इस बारे में डर्मेटोलौजिस्ट डा. सोमा सरकार कहती हैं कि आजकल के यूथ की लाइफस्टाइल बहुत खराब है. वे नींद पूरी नहीं करते और अधिक समय तक कंप्यूटर के पास बैठे रहते हैं, जिस से उन की आंखें पफी हो जाती हैं, जिस से उन्हें कई बार नौन सर्जिकल प्रोसेस या सर्जिकल प्रोसेस का सहारा लेना पड़ता है.

नौन सर्जिकल प्रोसेस

माइक्रो लिफ्ट थेरैपी : सूजी हुई आंखों के इलाज में प्रभावी होती है, क्योंकि यह सूक्ष्म विद्युत धाराओं का उपयोग कर के मांसपेशियों को टोन किया जाता है, जो लिंफेटिक ड्रैनेज को ऐक्टिव करती है और सूजन को कम करती है. यह एक गैर सर्जिकल तरीका है जो त्वचा को कसता और उठाता है.

अल्थेरैपी : आंखों के नीचे सूजन और पफीनेस को कम करने के लिए अल्थेरैपी और अन्य उपचार कई प्रमुख क्लीनिकों में उपलब्ध हैं. यह एक गैर सर्जिकल तरीका है जो त्वचा को कसने और कोलेजन उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्रित अल्ट्रासाउंड ऊर्जा का उपयोग करता है.

माइक्रोनिडलिंग

माइक्रोनिडलिंग पफी आइज के इलाज में प्रभावी प्रक्रिया है, क्योंकि यह कोलेजन उत्पादन को ऐक्टिव करती है, जिस से त्वचा की बनावट और इलैस्टिसिटी में सुधार होता है. यह सूजन को कम करने और रक्तसंचार को बेहतर बनाने में भी मदद करती है.

ये सभी नौन सर्जिकल प्रोसेस टेंपररी होते हैं, अधिक दिनों तक इस का असर नहीं रहता है, लेकिन कुछ हद तक पफीनेस कम हो सकता है, लेकिन अगर किसी को बहुत अधिक आंखों में पफीनेस होता है, तो उसे सर्जिकल प्रोसेस में जाना पड़ता है.

सर्जिकल इंटरवेनशन

ब्लेफेरोप्लास्टी (पलकों की एक सर्जरी) सूजी हुई आंखों को कम कर सकती है. एक नेत्र सर्जन आप की निचली पलक के अंदर या आप की पलकों के नीचे एक छोटा सा चीरा लगाकर अतिरिक्त त्वचा या फैट को हटा सकते हैं या उस की जगह बदल सकते हैं ताकि तरल पदार्थ जमा होने वाली जगहों को कम किया जा सके. फिर सर्जन चीरों को बंद करने के लिए छोटे टांकें लगाते हैं. इस में डाक्टर तय करते हैं कि ब्लेफेरोप्लास्टी आप के लिए सही है या नहीं.

इस के अलावा आप त्वचा संबंधी कुछ इलाज भी कर सकते हैं, मसलन सूजी हुई आंखों को कम करने के लिए कैमिकल पील्स, फिलर्स या लेजर रीसर्फेसिंग पर विचार कर सकते हैं. ये उपचार त्वचा को कसते हैं, जिस से उन जगहों के पफीनेस से छुटकारा पाने में मदद मिलती है, जहां तरल पदार्थ जमा हो सकता है.

इस प्रकार पफी आइज को हटाना मुश्किल नहीं, लेकिन जब भी इसे करवाना चाहें, तो किसी प्रशिक्षित डाक्टर की सलाह लें, ताकि आप का चेहरा आप के मनमुताबिक खूबसूरत दिखें.

Puffy Eyes

No Wash Days Trend: सर्दियों में बारबार बाल धोने की जरूरत क्यों नहीं है

No Wash Days Trend: सर्दियों का मौसम आते ही ठंडी हवाएं बालों की नमी छीन लेती हैं. ऐसे में रोजाना बाल धोना बालों को और ज्यादा रूखा, बेजान और फ्रिजी बना सकता है. यही वजह है कि आजकल ‘नो वाश डेज ट्रेंड’ बहुत पौपुलर हो रहा है. यानि बालों को रोज न धोना, बल्कि उन्हें स्मार्ट तरीकों से फ्रैश और साफ बनाए रखना.

नो वाश डेज ट्रेंड क्या है

नो वाश डेज ट्रेंड का मतलब है कि आप अपने बालों को हर रोज शैंपू न करें. इस के बजाय, बालों को 2-3 दिनों तक बिना धोए ही साफ और फ्रैश लुक में बनाए रखें. यह ट्रेंड न सिर्फ बालों को नैचुरल औयल्स से पोषण देता है बल्कि ठंड में स्कैल्प को ड्राई होने से भी बचाता है. कम वाश, ज्यादा केयर, यही है इस ट्रेंड का मंत्र.

क्यों है यह ट्रेंड फायदेमंद

स्कैल्प हैल्थ में सुधार : रोज शैंपू करने से स्कैल्प के नैचुरल औयल निकल जाते हैं.

बालों में नमी बनी रहती है : सर्दियों में बाल जल्दी ड्राई हो जाते हैं, नो वाश डेज उन्हें सौफ्ट बनाए रखते हैं.

हेयर कलर टिकता है : बारबार बाल धोने से कलर्ड बालों का शेड जल्दी फीका पड़ता है.

समय की बचत : ठंड में बाल धोना और सुखाना दोनों मुश्किल होता है, यह ट्रेंड आप का समय बचाता है.

नो वाश डेज में बालों को कैसे रखें फ्रैश

ड्राई शैपू का इस्तेमाल करें : यह स्कैल्प से औयल सोख कर बालों को तुरंत फ्रैश दिखाता है.

स्कैल्प टौनिक लगाएं : यह स्कैल्प को क्लीन और हैल्दी रखता है.

हेयर परफ्यूम या मिस्ट : हलकी खुशबू से बालों में ताजगी बनी रहती है.

सिल्क स्कार्फ या टोपी पहनें : यह बालों को डस्ट से बचाती है और स्टाइलिश भी लगती है.

ब्रशिंग करें : हर दिन बालों को हलके हाथों से ब्रश करें ताकि नैचुरल औयल पूरे बालों में फैल सके.

किन लोगों के लिए यह ट्रेंड बेहतर है

-जिन के बाल ड्राई या वेवी हैं.

-जिन के बालों में कलर या कैमिकल ट्रीटमैंट हुआ है.

-जो सर्दियों में बालों को बारबार धोना पसंद नहीं करते हैं.

ब्यूटी ऐक्सपर्ट की सलाह

नो वाश डेज ट्रेंड सिर्फ एक फैशन नहीं, बल्कि बालों को हैल्दी रखने की समझदारी है.

सही प्रोडक्ट्स और थोड़ी सी देखभाल से आप हर दिन ‘गुड हेयर डे’ पा सकते हैं.

नो वाश डेज ट्रेंड सर्दियों में बालों की हैल्थ और ब्यूटी दोनों को बनाए रखने का स्मार्ट तरीका है. सही प्रोडक्ट्स और थोड़ी देखभाल से आप बिना रोज शैंपू किए भी बालों को चमकदार, फ्रैश और खूबसूरत रख सकते हैं.

No Wash Days Trend

Ectopic Pregnancy: गलत प्रैगनैंसी कहांकहां हो सकती है, जानें ऐक्सपर्ट की राय

Ectopic Pregnancy: नेहा को सेकंड प्रैगनैंसी के समय हमेशा कमजोरी, उलटी, खाने की इच्छा न होना आदि लगातार हो रहा था. पहले तो उसे लगा कि यह सब प्रैगनैंसी की वजह से है, लेकिन जब यह सब लगातार होने लगा, तो उस ने गाइनोकोलौजिस्ट से संपर्क किया, क्योंकि पहली प्रैगनैंसी में उसे कम समय तक ही असहजता महसूस हुआ था, इस बार कुछ अधिक समय तक परेशानी होने की वजह से उस ने डाक्टर की सलाह से सोनोग्राफी करवाई.

पता चला कि उस की प्रैगनैंसी सही जगह पर नहीं है और 2 जुड़वां बच्चे एक ही यूट्रस में है. ऐसे में बच्चे का सही विकास संभव नहीं और नेहा की सेहत के लिए भी यह प्राण घातक था. इसलिए उसे अबौर्शन का रास्ता अपनाना पड़ा. सही समय पर सही निर्णय से नेहा को गलत प्रैगनैंसी से छुटकारा मिला.

न बनें अंधविश्वासी

यह सही है कि अधिकतर स्त्री गलत प्रैगनैंसी को समझ नहीं पाती और किसी प्रकार की शारीरिक असहजता को सहती जाती है. इस बारे में मुंबई खार की पी. डी. हिंदुजा अस्पताल एवं चिकित्सा अनुसंधान केंद्र की स्त्रीरोग एवं प्रसूति विशेषज्ञ, डा. रंजना धानु कहती हैं कि यहां नेहा को अपनी प्रैगनैंसी को ले कर इसलिए शक हुआ, क्योंकि उस की पहली प्रैगनैंसी के समय ऐसा कुछ नहीं हुआ था और समय रहते उस ने इलाज करवा लिया, जबकि अधिकतर लड़कियां पहली गर्भधारण से खुश हो जाती हैं और कुछ तो अंधविश्वासी परिवार की प्रैशर में आ कर छिपाती हैं और 3 महीने तक डाक्टर के पास तक नहीं जातीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि किसी की बुरी नजर उन की प्रैगनैंसी पर पड़ जाएगी और गर्भ ठहरेगा नहीं, जबकि ऐसा कुछ नहीं होता.

गलत गर्भधारण को अधिक देर से अबौर्शन करवाने पर मां की जान को भी खतरा हो सकता है.

असल में गर्भधारण सामान्यरूप से यूट्रस में होता है, जहां अंडाणु और शुक्राणु के मिलने के बाद गर्भवती महिला के शरीर में बच्चे का विकास होता है, लेकिन कभीकभी गर्भ का विकास गर्भाशय के बाहर भी हो सकता है, जो एक रिस्क और खतरनाक स्थिति बन जाती है. इस समय जल्द से जल्द डाक्टर की सलाह बहुत आवश्यक है, ताकि इलाज के बाद फिर से एक अच्छी प्रैगनैंसी हो सके.

आइए, जानते हैं गलत प्रैगनैंसी कहांकहां हो सकती है और कब डाक्टर की तुरंत सलाह जरूरी है:

-फैलोपियन ट्यूब में गर्भवती होना एक खतरनाक स्थिति होती है, जिसे ऐक्टोपिक गर्भावस्था कहा जाता है. जब निषेचित अंडाणु गर्भाशय के बजाय फैलोपियन ट्यूब में इंप्लांट हो जाता है, तो यह गर्भावस्था खतरनाक हो सकती है क्योंकि फैलोपियन ट्यूब गर्भाशय जितनी जगह नहीं दे पाता है और वह फट सकता है. इस स्थिति में महिला को अंदरूनी रक्तस्राव हो सकता है, जो जानलेवा हो सकता है. समय रहते इलाज न किए जाने पर स्त्री की जान भी जा सकती है.

-गर्भाशय के बाहर होने वाली प्रैगनैंसी भी दुर्लभ होती है, लेकिन कभीकभी  गर्भाशय के बाहर अंडाशय, पेट या सर्विक्स में भी गर्भ ठहर सकता है. ऐसे केसेज में गर्भ का सही तरीके से विकास नहीं हो पाता और इस के परिणामस्वरूप गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, मसलन गर्भवस्था से पेट में अत्यधिक रक्तस्राव होना, जो जीवन के लिए खतरे का कारण बन सकता है.

-प्लैसेंटा प्रिविया एक स्थिति है, जिस में प्लैसेंटा गर्भाशय के निचले हिस्से में स्थित होता है, जो जन्म के समय समस्या उत्पन्न कर सकता है. यह आमतौर पर गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे त्रैमासिक के दौरान पता चलता है, जब गर्भाशय में रक्तस्राव होने लगता है. यह स्थिति खतरनाक हो सकती है और इस की पहचान के लिए अल्ट्रासाउंड परीक्षण की आवश्यकता होती है.

जल्दी अबौर्शन करवाने वाली प्रैगनैंसी

इस के आगे डाक्टर कहती हैं कि ये सभी प्रैगनैंसी की जांच शुरू में एक बार करवा लेनी चाहिए, ताकि किसी भी समस्या का समाधान जल्दी मिले. मां और बच्चे दोनों की जान को बचाया जा सके. इन गर्भावस्थाओं में समस्या इतनी गंभीर हो सकती है कि यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है. जल्दी अबौर्शन करने वाले प्रैगनैंसी निम्न हैं :

 

  1. ऐक्टोपिक गर्भावस्था तब होती है जब गर्भ का अंडाणु गर्भाशय के बाहर, आमतौर पर फैलोपियन ट्यूब में इंप्लांट हो जाता है. इस स्थिति में गर्भ का विकास गर्भाशय में नहीं हो पाता और फैलोपियन ट्यूब का आकार गर्भ के विकास के लिए पर्याप्त नहीं होता है. यदि इस स्थिति का समय रहते इलाज न किया जाए, तो फैलोपियन ट्यूब फट सकता है, जिस से अंदरूनी रक्तस्राव हो सकता है, जो कई बार जानलेवा होने की वजह से जल्दी एबौर्ट करना पड़ता है. अगर गर्भ का आकार छोटा हो और ट्यूब न फटा हो, तो दवाओं से इस का इलाज किया जा सकता है, ट्यूब के फटने पर सर्जरी करनी पड़ती है.

 

  1. गर्भकालीन मधुमेह की अवस्था में कई बार शुगर स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है, तो इसे गर्भकालीन मधुमेह कहा जाता है. इस समस्या का इलाज नियमित रूप से किया जा सकता है, लेकिन यदि स्थिति बहुत गंभीर हो और मां के स्वास्थ्य को खतरा हो, जैसेकि प्री-ऐक्लम्प्सिया या अधिक ब्लड शुगर के कारण बच्चे के विकास में समस्या हो, तो कभीकभी गर्भ को समाप्त करने का निर्णय लिया जा सकता है.

 

  1. क्रोमोसोमल ऐबनौर्मेलिटी में बच्चे के क्रोमोजोमल दोष (जैसे डाउन सिंड्रोम, अनसेफली या अन्य गंभीर जन्म दोष) हो सकते हैं. यदि बच्चे के दोष बहुत गंभीर हों और उस का लाइफ थ्रैटनिंग हो, तो डाक्टर गर्भवती महिला की गर्भ को समाप्त करने का विकल्प दे सकते हैं. इस निर्णय में डाक्टर और परिवार की सलाह और काउंसलिंग बहुत महत्त्वपूर्ण होती है. अगर बच्चा मां की जीवन के लिए खतरा है, तो गर्भ को जल्द समाप्त करना एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है.

 

  1. कभीकभी गर्भ का प्लैसेंटा गर्भाशय के निचले हिस्से में स्थित होता है, तो बच्चे के जन्म के समय बहुत ब्लीडिंग का कारण बन सकता है. यदि स्थिति बहुत गंभीर हो और अन्य उपायों से स्थिति में सुधार न हो सके, तो कई बार गर्भ को समाप्त करने का निर्णय लिया जाना अच्छा होता है.

 

  1. गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं में अगर गर्भवती महिला की स्थिति बहुत गंभीर हो, जैसेकि गंभीर दिल की बीमारी, गुरदे की समस्या या अन्य चिकित्सा जटिलताएं, तो गर्भ को समाप्त करना एक अच्छा विकल्प होता है, क्योंकि इस से मां की जान को खतरे से बचाया जा सकता है, इस स्थिति में डाक्टर पूरी तरह से स्त्री के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेते हैं.

 

  1. बहु गर्भावस्था भी एक जटिल प्रैगनैंसी होती है. यह अधिकांश आईवीएफ गर्भधारण बहुभ्रूणीय गर्भावस्था से जुड़े हुए होते हैं. इस अवस्था में स्त्री को प्रीएक्लेंपसिया, ऐक्लेंपसिया, प्लैसेंटा प्रीविया और मधुमेह भी होने का खतरा रहता है.

गलत प्रैगनैंसी के लक्षण

प्रैगनैंसी अधिकतर सामान्य और स्वस्थ होती हैं, लेकिन कुछ गर्भावस्थाएं उच्च जोखिम वाली होती हैं, जिन में यदि उचित देखभाल और उपचार नहीं किया जाए, तो मां और बच्चे दोनों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.

कुछ लक्षण निम्न हैं, जिसे नजरअंदाज कभी न करें :

-गर्भवती होने के बावजूद पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द हो रहा हो, हलका रक्तस्राव हो रहा हो और मासिकधर्म पूरी तरह से बंद न हुआ हो, तो यह ऐक्टोपिक गर्भावस्था के संकेत हो सकते हैं.

-गर्भावस्था के 20 सप्ताह बाद उच्च रक्तचाप के लक्षण दिखने पर डाक्टर से संपर्क करें. प्री-ऐक्लेंपसिया के लक्षणों में हाथों और पैरों में सूजन, पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, धुंधली दृष्टि और सिर में भारी दर्द शामिल हो सकते हैं. यह स्थिति गंभीर हो सकती है और इस से मिरगी जैसे संकट उत्पन्न हो सकते हैं.

-प्रैगनैंसी के दौरान अत्यधिक वजन बढ़ने या शारीरिक कमजोरी का सामना होने पर भी डाक्टर की सलाह अवश्य लें. यह स्थिति बच्चे और मां दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है, खासकर अगर शुगर लेवल नियंत्रित न किया गया हो.

-गर्भावस्था के दौरान अचानक बिना दर्द के ब्लीडिंग होना प्लैसेंटा प्रिविया का संकेत हो सकता है.

-महिला को अचानक पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द या भारी रक्तस्राव का अनुभव होना भी चिंता का विषय हो सकता है, इस स्थिति में मिसकेरिज होने का खतरा रहता है.

-गर्भवती स्त्री का 1 महीने में 3 किलोग्राम से अधिक वजन बढ़ जाना.

– धुंधली दृष्टि, आंखों में दर्द या अंधेरे में अधिक आराम की आवश्यकता महसूस होना आदि प्री-ऐक्लेंपसिया का लक्षण हो सकता है.

-गर्भावस्था के दौरान सांस लेने में कठिनाई भी गंभीर स्थिति हो सकती है और यह गर्भकालीन मधुमेह या अन्य जटिलताओं का संकेत हो सकता है.

-गर्भ में बच्चे की हलचल में कमी महसूस हो, तो भी यह चिंता का कारण हो सकता है, ऐसे में तुरंत डाक्टर से संपर्क करना चाहिए, ताकि बच्चे की सेहत की जांच की जा सके.

इस प्रकार सही प्रैगनैंसी को आप तभी समझ सकते हैं, जब आप ने शुरू से डाक्टर की सलाह लिया हो, क्योंकि एक स्वस्थ गर्भधारण ही एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे कर आप के जीवन में खुशियां ला सकता है.

Ectopic Pregnancy

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