Family Story : भाभीजी तो बहुत सुंदर हैं

Family Story :  32 साल का विराज सुबह से रात के 12 बजने का इंतजार कर रहा है क्योंकि इस वक्त मैट्रिमोनी साइट द्वारा ढूंढ़ी गई अपनी परफैक्ट मेट, अत्यधिक सुंदर चंचल से बात

करने का समय होता है. विराज इस बीच चंचल को एक बार भी मैसेज नहीं करता ताकि उसे यह न महसूस हो कि वह उस के लिए कितना ज्यादा डिसपरेट है, मगर हां सचाई तो यही है कि वह तो यही चाहता है कि चंचल उसे दिनभर मैसेज करती रहे और वह 1-2 घंटों के बाद उस के मैसेज का रिप्लाई करे और वह भी हां, हूं में. अब यह दिखाना भी तो जरूरी है न कि वह कितना व्यस्त रहता है. उस के पास भी बाकी काम हैं. अब क्या कहेंगे इंसान की इज्जत तो उपलब्ध न हो कर ही तो बनती है. अब यही वह दिनरात

उसे मैसेज करता रहता है तो चंचल को तो यही लगता न कि वह कितना फ्री और चेप है और इसी वजह से उस का पत्ता कट हो जाए. जैसी विराज की सामान्य शक्ल है उस के हिसाब से चंचल जैसी खूबसूरत कैंडिडेट तो उसे सपने में

ही मिल सकती थी इसलिए वह एक भी गलती नहीं करना चाहता था जिस से कि चंचल विराज को छोड़ कर अपने दूसरे औप्शंस को गहराई से ले.

दिनभर अपनी आईटी जौब से थका, पूरी फुरती के साथ आधी रात कमरे से यहांवहां टहल रहा था. उस का मोबाइल बिस्तर पर पड़ा था और उस के बजने का इंतजार था तभी मोबाइल की घंटी बजी. उस ने झट से मोबाइल उठा कर मैसेज पढ़ा. वह तेजी से दौड़ कर मोबाइल  झपट लेता है और बिना खोले विराज मैसेज देखता है.

‘‘हाय फ्री हो क्या?’’ चंचल का मैसेज आया.

विराज ने मैसेज पढ़ कर तुरंत जवाब नहीं दिया. 10 मिनट बीतने का इंतजार करने लगा ताकि चंचल को यह महसूस हो कि विराज कितना व्यस्त इंसान है.

10 मिनट बाद विराज बोला, ‘‘सौरी तुम्हारा मैसेज अभीअभी देखा. औफिस की कल एक इंपौर्टैंट मीटिंग है उसी की तैयारी कर रहा था. आज दिन कैसा गया तुम्हारा?’’ और फिर चंचल से चैटिंग करने में व्यस्त हो जाता.

‘‘तुम बिजी थे तो मैं भी फ्री नहीं थी. सुबह 11 बजे उठी, फिर पार्लर गई. वहीं दोपहर हो गई. फिर दोस्तों के साथ मौल गई. शाहरुख की फिल्म देखी. वहां से घर आतेआते शाम हो गई. एकदम थक गई हूं. मन कर रहा है कि कोई हाथपैर दबा दे बस.’’

‘‘जब कभी मम्मी की कमर में दर्द बढ़ जाता है तो मैं ही तो अपने हाथों से उन का दर्द दूर करता हूं. वे ऐसे ही नहीं कहतीं कि मेरे हाथों में जादू है जादू.’’

‘‘कितनी खुश होगी तुम्हारी पत्नी जिसे तुम मिलोगे. और तुम अपनी सुनाओ तुम्हारा दिन कैसा गया?’’

‘‘सच बताऊं तो जैसेतैसे तुम्हारी यादों के सहारे दिन बीतने का इंतजार कर रहा था कि कब रात हो और तुम से बात हो.’’

‘‘क्या तुम्हें मैं सच में इतनी अच्छी लगती हूं?’’

‘‘जितना तुम सोच सकती हो उस से भी कहीं ज्यादा.’’

‘‘तुम कब तक चैट करते रहोगे? आगे कुछ इरादा है कि नहीं?’’

‘‘मेरा बस चले तो तुम्हें इसी वक्त अपनी दुलहन बना कर घर ले आऊं.’’

‘‘सच? मेरा जी भी यही करता है. तुम ने मेरे लिए अपनी मम्मी से बात की?’’

‘‘तुम्हारा फोटो दिखाया तो था.’’

‘‘फिर?’’

‘‘उन्हें तुम थोड़ी मौड लगी खासतौर से तुम्हारा पाउट किया हुआ फोटो उन्हें जरा भी

न भाया.

‘‘उन्हें क्या मैं सुंदर नहीं लगी?’’

‘‘सुंदर तो तुम बहुत हो. तुम्हारे सिवा अपनेआप को किसी और के साथ नहीं देख सकता चंचल.’’

‘‘ झूठ क्या बोलूं तुम से. मैं 2 लड़कों के साथ और चैट कर रही हूं, मगर मु झे सब से अच्छे तुम ही लगे.’’

‘‘तुम मु झे प्रौमिस करो मेरे अलावा तुम किसी से शादी की हां नहीं करोगी. तुम जो बोलोगी, जैसा करने को कहोगी सब बात मानूंगा तुम्हारी बस एक बार शादी कर लो मु झ से.’’

‘‘तुम भी प्रौमिस करो कि जल्दी अपनी मम्मी को मेरे लिए मनाओगे.’’

‘‘हां माई बेबी प्रौमिस.’’

‘‘गुड नाइट.’’

‘‘गुड नाइट.’’

विराज फिर से वह पूरी चैट पढ़ता है जो उस ने शुरू से उसे भेजी थी और इस सारी चैट्स को पढ़ने के बाद उसे महसूस होता है कि बातबात में उस के दिल में उस हाल ए बयां कर दिया है. चंचल न चाहते हुए भी उसे उस के पीछे पागल सम झ रही होगी.

अब जो सम झे. विराज की तो अगली परीक्षा अपनी मुंह फट मां को सम झाने की थी, जिन्हें चंचल पसंद नहीं आई थी. विराज बहुत पैंतरे आजमा चुका था उन्हें मनाने के. आखिरी औप्शन जो बचा था उस ने वह दांव भी चला और अनशन पर बैठ गया.

‘‘ये ले तेरे पसंदीदा आलू के परांठे,’’ शारदाजी यानी विराज की मां, अपना पसीना पोंछते हुए थकान और पीठ दर्द के मारे एक

हाथ अपनी कमर पर रख उस के पास प्लेट ले कर पहुंचीं.

‘‘मु झे नहीं खाना,’’ कह कर विराज ने अपना मुंह फेर लिया.

‘‘अब बताएगा कि… लड़की के लिए और कितने दिन भूखा रहेगा तू. जैसा उस का नाम है वैसे ही निकलेगी. फिर मत बोलना मम्मी आप ने बताया नहीं था.’’

‘‘मैं शादी करूंगा तो उसी से.’’

‘‘पता कराया था मैं ने उस के बारे में. उस लड़की के घर में पैर टिकते ही नहीं, पूरा दिन पार्लर में बैठी रहती है. हर रिलीज पिक्चर वह देखती है. भले ही वह कितनी भी घटिया क्यों न हो. जैसे तू आज भूखा बैठा है तेरे बच्चे भी कल को ऐसे ही बैठे रहेंगे याद रखना.’’

‘‘मां सुंदर कितनी है वह’’

‘‘सुंदरता का क्या अचार डालेगा? घरगृहस्थी के लिए थोड़ी सरल और सजग लड़की की जरूरत होती है. पूरी तनख्वाह तो उस के लिपस्टिकपाउडर में खर्च हो जानी है तेरी.’’

‘‘मम्मी…’’

‘‘अरे क्या हुआ अपनी मम्मी को क्यों

याद कर रहे हो,’’ कंचन की आवाज हैडफोन लगाए विराज के कान में पड़ी और वह भूतकाल को भूत में छोड़ कर वर्तमान में लौट आया

और उसे एहसास हुआ कि वह तो कल की बात थी. इस बीच उस के जीवन में बहुत कुछ घट चुका है.

‘‘यह तार वाला ब्रश मेरी उंगलियों में चुभ गया,’’ विराज बरतन धोते हुए बोला.

‘‘कितनी बार कहा है बरतन दस्ताने पहन कर साफ किया करो और हां जल्दी हाथ चलाओ पूरे कपड़े और  झाड़ूपोंछा भी बचा है,’’ चंचल की आवाज उस के कानों में पड़ी.

‘‘तुम भी तो कुछ काम में मेरी मदद कर दो,’’ इतने काम का बो झ पा कर विराज ने उसे कहा.

‘‘तुम देख नहीं रहे मेरे सिर में मेहंदी और हाथों में नेलपौलिश लगी हुई है.’’

बरतन धोने के पानी के छींटों को पोंछते हुए विराज ने पीछे मुड़ कर चंचल की तरफ देखा जो क्व3 हजार की नाइटी पहन कर किसी महारानी की तरह एक पैर पर दूसरा पैर ताने सोफे में टिक कर बैठ अपनी नेलपौलिश लगी उंगलियों में फूंक मार रही थी.

तभी चिंटू आ कर अपनी मम्मी से कहने लगा, ‘‘मम्मीमम्मी भूख लगी है, खाने को कुछ दो न.’’

‘‘अरे अभी कुछ देर पहले ही तो चिप्स दिए थे. इतनी जल्दी तुम्हें कैसे भूख लग जाती है? सुनोजी इसे बिस्कुट का पैकेट दे देना,’’ चंचल खानापीना बनाने में अपना कीमती समय बिलकुल जाया नहीं करती. जो काम विराज को 2 मिनट गले लगा कर अपना दुखड़ा सुना कर, 4 पपियां दे कर कराया जा सकता है उस में वह अपने हाथ मैले क्यों करे.

पेट में चूहे तो विराज के भी खूब कूद रहे थे, नाश्ते के नाम पर सुबह से एक कप चाय मिली थी और वह भी उस ने खुद बनाई थी. शायद यह अपनी मां के बने खाने का तिरस्कार करने का ही दुष्परिणाम है जिसे वह आज भोग रहा है.

अपनी चोटिल उंगली में दर्द को महसूस करते उसे हर पल अपनी मां की कही कड़वी मगर सच्ची बातें याद आने लगीं, ‘काश समय रहते सुन लेता तो आज ये दिन देखना नहीं पड़तो,’ विराज खुद से बड़बड़ता है.

‘‘विराज क्या बड़बड़ा रहे हो? तुम्हारा मतलब क्या है मैं सब सम झती हूं,’’ चंचल बोली.

‘‘मैं कह रहा था कि काश कामवाली

समय रहते आ जाती तो इतना काम करना नहीं पड़ता,’’ विराज को पता है अगर चंचल नाराज

हो गई तो उस के 3 दिन सूजे हुए मुंह को मनाने के लिए क्व5 हजार से कम की चपत नहीं लगने वाली.

‘‘वह तो अच्छा है कि तुम्हारा वर्क फ्रौम होम है नहीं तो ये सब काम मैं अकेली कैसे करती,’’ चंचल बरतन साफ करती हुई विराज की कमर को प्यार से पकड़ते हुए बोली.

विराज मन ही मन सोचने लगा कि बीवियों को लगता है कि हम बस हैडफोन लगा कर गाने सुनते रहते हैं.

‘‘सुनोजी खाने में क्या खाओगे बताओ?’’ चंचल ने पूछा.

आंसू बस बहने ही वाले थे विराज के कि अचानक उस के चेहरे पर खुशी दौड़ने लगी कि चलो शायद आज शादी के 4 साल बाद उसे अपने कर्तव्य की याद आ गई हो.

‘‘जो तुम बोलो.’’

‘‘फ्रिज में उबले राजमा रखे हैं, उन्हीं को तड़का लगा दो और कुकर में चावल धो कर चढ़ा दो. मैं तब तक नहा कर आती हूं. शाम को शादी में भी जाना है याद है न?’’

विराज शादी का नाम सुन कर आग बबूला हो गया. फिर खुद पर नियंत्रण कर बड़बड़ाने लगा कि कर लो बेटा शादी. शादी का लड्डू किसी को नहीं पचता. अब भी वक्त है संभल जाओ नहीं तो मेरी तरह बहुत पछताओगे.

‘‘किस वक्त की बात कर रहे हो?’’ चंचल ने पूछा.

‘‘मैं बोल रहा हूं तुम्हारे नहाने में अभी वक्त है. तब तक खाना तैयार हो जाएगा.’’

‘‘विराज एक बात कहूं? तुम्हें पा कर मैं धन्य हो गई, आई लव यू तुम्हारा जैसा हस्बैंड सब को मिले,’’ चंचल उस के गालों को चूम कर टौवेल उठा कर नहाने चल गई.

पिछले 4 सालों से यही खेल चल रहा है, जैसे ही उसे अपने दुख का एहसास हो, चंचल उसे कोई न कोई लौलीपौप दिखा कर वापस अपनी ओर खींच लेती. चंचल की तो नहीं पर विराज की जिंदगी ऐसी ही कभी खुशी कभी गम मोड़ पर बीते जा रही थी.

अपनी इतनी तारीफ सुन कर विराज की थकी रगों में तेजी आ गई. उस ने चंचल के आने से पहले  झटपट डाइनिंगटेबल तरहतरह के व्यंजनों से सजा दी. उसे पता था चंचल को नहाने में आज पूरा 1 घंटा लगने वाला है इसलिए उस ने चिंटू को खाना खिला कर सुला दिया, छिपतेछिपाते थोड़ाबहुत अपना पेट भी शांत कर लिया.

बाथरूम से निकलते समय चंचल की नजर घड़ी पर गई, ‘‘अरे

दोपहर के 2 बज गए. चिंटू को खाना खिला दो.’’

‘‘खाना खिला भी दिया और सुला भी दिया.’’

‘‘परफैक्ट फादर. तुम भी खा लो सुबह से भूखे होंगे.’’

‘‘तुम्हारे बिना आज तक खाया है कभी?’’

मुसकराते हुए चंचल ने कहा, ‘‘बस 2 मिनट में आई.’’

पूरे आधे घंटे बाद चंचल

और विराज खाना खाने अखिरकार बैठ गए, ‘‘आज शाम का क्या

प्लान है?’’

‘‘मैं खाना खाने के बाद पार्लर निकलूंगी, तुम चिंटू को ले कर शादी में आ जाना, हम सीधा वहीं मिलेंगे.’’

‘‘तुम ने इतना महंगा मेकअप का सामान औनलाइन खरीदवाया तो था, उसी से तैयार हो जाओ. तुम तो हो ही इतनी सुंदर, तुम्हें हर बार पार्लर जाने की क्या जरूरत है?’’

‘‘वह कोई खास काम का नहीं और मेरी सैंसिटिव स्किन को सूट भी नहीं कर रहा. अब तुम भी अपनी मम्मी जैसे बात मत करो. इतना कमाते किसलिए हो? खाना खत्म करने के बाद अपना एटीएम मेरे पर्स में रख देना और कार की चाबी भी.’’

‘‘कार की चाबी क्यों? औटो कर लो.

चिंटू मेरे साथ रहेगा तो टू व्हीलर में हम कैसे आएंगे?’’

‘‘मैं इतनी तैयार हो कर क्या औटो से शादी वाले घर जाऊंगी? लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘अच्छा ठीक है संभाल के चलाना.’’

अपनी और चंचल की खाने की प्लेट

धुलने रख कर विराज सीधे अपना पर्स खोल

कर अपना क्रैडिट कार्ड मजबूती से पकड़ कर

ठगा हुआ सोच रहा था कि अपनी खूनपसीने

की कमाई केवल पार्लर में बहती जा रही है

और कहने को मेकअप भी न्यूड. जब कुछ दिखता ही नहीं है तो फिर पैसे किस बात के लेते हैं ये लोग?

शाम हुई और गड्ढों से बचतेबचाते टू व्हीलर के धक्के खाते कोट टाई पहले विराज और चिंटू शादी में पहुंच गए. अपनी मां को परेशान मुद्रा में आते देख उसे पता था वह आगे उस से क्या पूछने वाली है.

‘‘अरे कैसा कमजोर दिख रहा है तू? और यह उंगली में चोट कैसे लगी? क्या उस ने फिर से तु झ से बरतन साफ करवाए?’’

‘‘नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं है वह तो बस ऐसे ही लग गई.’’

‘‘मां हूं तेरी. चेहरा देख कर बता सकती

हूं. तु झे पिछली बार दस्ताने दिए तो थे उन्हें

क्यों नहीं पहनता? जाने किस घड़ी तेरी मति

मारी गई थी. यह तो अच्छा हुआ जो तेरे बाबूजी इस दुनिया में नहीं रहे, नहीं तो अपने टौपर इंजीनियर बेटे को ये सब करते देख फिर से

मर जाते.’’

‘‘दादीदादी पापा ने आज खाना भी बनाया,  झाड़ूपोंछा और कपड़े भी…’’

विराज चिंटू का मुंह बंद करने लगा.

अपना सिर पीटते शारदाजी आगे कहने लगीं, ‘‘बेटा यह बात 100 आने सच है कि तेरी शादी का लड्डू बस देखने भर का सुंदर है.’’

शारदाजी अपने बेटे के बुझे हुए चेहरे

को देख कर सम झ गई थीं कि उस की घर में कैसी दशा हो गई है और यह वर्क फ्रौम होम

की वजह से बेचारा कोल्हू का बैल बनता जा रहा था.

‘‘मम्मी छोड़ो न पुरानी बातें, घर कब आओगी रहने?’’

‘‘बेटा मु झे माफ कर मैं नहीं आ पाऊंगी. उसे दिनभर आईने के सामने बैठे रहना देखना मु झ से बरदाश्त नहीं होगा.’’

वहीं दूसरी ओर कायाकल्प ब्यूटीपार्लर में, ‘‘यह देखिए हो गईं आप तैयार. मेकअप किया भी है और पता भी नहीं चल रहा है. भाभी आप ऐसे ही बहुत सुंदर हैं और आज तो आप बहुत कमाल की दिख रही हैं.’’

‘‘हां ऊष्मा सच में तुम्हारे हाथों में तो

कमाल है. थैंक्स चलो मैं अब निकलती हूं नहीं

तो शादी मैं लोग मु झे देखे बिना अपनेअपने घर चले जाएंगे.’’

‘‘हा… हा… हा…’’

‘‘कितने हुए?’’

‘‘आप को डिस्काउंट देने के बाद क्व2,500.’’

‘‘यह लो एटीएम कार्ड.’’

‘‘भाभीजी कमाल है जो आप को ऐसे पति मिले है.’’

‘‘ऐसे क्यों कह रही हो? तुम तो कभी उन से मिली भी नहीं,’’ चंचल अपनी भौंहें चढ़ा, पाउट मारते हाथों से चेहरा संवारते पार्लर में लगबड़े से आईने में खुद को निहारते हुए बोली.

‘‘भाभी आइडिया लग जाता है. देखो आप हर महीने आते हो, हर बार हजारों के बिल बनते हैं. फिर भी जीजाजी आप को जरा भी मना नहीं करते हैं.’’

‘‘हां वह बात तो है. चलो मैं निकलती हूं,’’ बहुत देर हो रही है.

‘‘औटो मंगवा दूं?’’

‘‘अरे नहींनहीं. आज तो मैं कार खुद चला कर आई हूं.’’

‘‘अरे वाह क्या बात है भाभी. शादी का लड्डू मिले तो आप के जैसा.’’

‘‘चल हट नजर मत लगा.’’

सिर से पैर तक चमकती चंचल कार स्टार्ट कर कार का दरवाजा खोल कर बैठ गई फिर कार स्टार्ट कर शादी के लिए चल दी. बीचबीच में बैक मिरर को अपनी ओर सैट कर बारबार अपनेआप को निहारती खुश होने लगती.

शादी में पहुंच उस के पैर लाल कालीन पर पड़े नहीं कि सब की निगाहें दुलहन को छोड़ उसे देख ठहरने लगीं. सच में आज चंचल बहुत आकर्षक लग रही थी.

चंचल ने फोन कर विराज को अपने आने की जानकारी दी. विराज उस के पास आ गया.

‘‘आज तो भई कमाल हो गया… बहुत सुंदर दिख रही हो चंचल,’’ विराज बोला.

‘‘थैंक यू, मेरा रास्ते में आतेआते गला सूख गया कुछ पीने के लिए जूस ले आइए न.’’

‘‘हां अभी लाया.’’

वहीं दूर से विराज और चंचल को देखता ज्वालामुखी से भी ज्यादा ज्वलंत पीडि़त हताश, एक जोड़ा उन्हें देख एकदूसरे पर टीकाटिप्पणी और दोषारोपण करता हुआ एक जोड़ा सहज रूप से लड़ रहा था.

‘‘देखो चंचल भाभी कितनी सुंदर दिख रही है बिलकुल टिपटौप. एक बच्चा होने के बाद भी अपनेआप को कितना मैंटेन कर रखा है और यहां पप्पू को हुए पूरे 9 साल होने को आ रहे हैं, वजन कम होना तो दूर की बात है देखना वह दिन दूर नहीं जब तुम फूल कर फट जाओगी और अपना मेकअप देखो जरा. ऐसा लगता है जैसे सीधा सो के उठ कर आ गई हो,’’ पति बोला.

‘‘आप को पता है विराज भाई साहब घर में कितना काम करते हैं? अगर आप उन के जैसे 1 दिन में बन जाएं और मैं चंचल भाभी से कम दिख जाऊं तो मेरा नाम अभिलाषा नहीं.’’

‘‘सब फालतू की बात.’’

‘‘फालतू की बात? सुबह से शाम तक

मेरी जिंदगी हलदीमिर्चीराईजीरे के बीच बस भुनती जा रही है. आप न कभी किचन में मेरी मदद करना न ही अपने बच्चे को देखना.

मु झे अपने लिए वक्त कहां से मिलेगा बताइए? एक बात और बता दूं, लोगों को दूसरों की

थाली में रखा लड्डू ज्यादा पसंद आता है

अपनी थाली का तो जहर लगता है जहर.’’

‘‘जहर है तो जहर ही तो लगेगा. तुम से तो कोई बात करना ही बेकार है.’’

‘‘हां तो मत करीए, मैं चली कुछ खाने.’’

‘‘जाओ और अपना और वजन बढ़ाओ. देखना दूसरों के लिए कुछ बचने न पाए,’’ शायद नहीं सुना. जाने दो. कहां गईं चंचल भाभी? वह यहांवहां उन्हें ढूंढ़ने लगा. तभी उस की नजर चंचल पर पड़ी तो उस की आंखें खुशी से चमकने लगीं.

सब एक पंडाल के नीचे बैठे थे सामने डीजे बज रहा था. तभी वहां से एक लड़की आती है और चंचल के पास आ कर उस से बोली, ‘‘नमस्ते चंचल भाभी, विराज भैया आइए न डीजे चालू होने वाला है.’’

‘‘हांहां बस आए,’’ चंचल तपाक से बोल विराज का हाथ खींचते हुए डांस फ्लोर में ले जाने लगी.

‘‘चंचल तुम्हें पता है मु झे डांस करना नहीं आता.’’

‘‘तो क्या मैं अकेले डांस करूंगी? आइए न मेरे लिए थोड़ा सा बस.’’

‘‘ठीक है तुम कहती हो तो,’’ विराज उस के साथ न न करते हुए भी एक बार में उठ खड़ा हुआ.

अब जिस की बीवी सुंदर हो और आज के दिन विशेष सुंदर दिख रही हो तो उसे कोई कैसे मना कर सकता है और शादी भी तो उस ने इसीलिए तो की थी ताकि वह लोगों को जता सके कि सामान्य से दिखने वाले विराज की पत्नी कितनी खूबसूरत है.

वे दोनों और बाकी लोग डांस फ्लोर में आ कर खड़े हो चुके थे. चंचल को डांस करते देखने के लिए भीड़ इकट्ठा हो गई.

डीजे वाले ने गाना लगाया, ‘‘जब से हुई है शादी आंसू बहा रहा हूं, आफत गले पड़ी है उस को निभा रहा हूं.’’

यह गाना जो हर नखरे वाली खूबसूरत बीवी का सीधासाधा सा पति अकसर अकेले में सच्चे दिल से गुनगुनाया करता था, उसे भरी महफिल में सुन विराज का बहुत जोर से डांस निकलने लगा और उस ने जो चंचल के साथ ऐक्सप्रैशन के साथ स्टैप दिए कि भई वाह. एकदम औरिजिनल..

उस के बाद विराज को देख कर बाकी भुक्तभोगी भी साथ आ गए, ‘‘शादी कर के फंस गया यार अच्छाखासा था कुंआरा जो खाए पछताए जो न खाए वह रह जाए, दूर से मीठा दिखता है यह कड़वा लड्डू प्यारा,’’ गाने पर डांस कर सब ने रंग जमा दिया.

दूर से उस मंडप में बैठीं अपनी बहू और बेटे का डांस देखते हुए शारदाजी मन ही मन सोच रही थीं कि उन के बेटे की घर में हालत कैसी भी हो, मगर वह खुश तो है. वे अपने खयालों में थीं कि उन की भाभी उन के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘शारदा, विराज और कंचन कितना बढि़या डांस कर रहे हैं और तेरी बहू सच में बहुत सुंदर है.’’

‘‘हां भाभी यह तो उस की जिंदगी की हकीकत के गाने हैं. मेरी बहू अपनी खूबसूरती के बल पर घर में कुछ अलग तरीके से बेटे को नचाती है, यहां दूसरे तरीके से,’’ शारदा मीठे जूस को पीते हुए बोलीं, जो उसे सच में बड़ा कड़वा लग रहा था.

शादी के लड्डू की परफैक्ट विधि बहुत सिंपल है- एकदूसरे की खामियों के साथ एकदूसरे को खुशीखुशी स्वीकार करना बाकी सब तो मोहमाया है.

Hindi Story Collection : छलना- क्या थी माला की असलियत?

Hindi Story Collection : शलभ ने अपने नए मकान के बरामदे में आरामकुरसी डाली और उस पर लेट गया. शरद ऋतु की सुहानी बयार ने थपकी दी तो उस की आंख लग गई. तभी बगल वाले घर से स्त्रीपुरुष के लड़ने की तेज आवाज आने लगी. जब काफी देर तक पड़ोस का महाभारत बंद नहीं हुआ तो उस ने पत्नी को आवाज लगाई.

‘‘रमा, जरा देखो तो यह कैसा हंगामा है…’’

पत्नी के लौटने की प्रतीक्षा करते हुए शलभ सोचने लगा कि अपनी ससुराल के रिश्तेदारों से त्रस्त हो कर शांति और सुकून के लिए वह यहां आया था. बड़ी दौड़धूप करने के बाद दिल्ली से वह मेरठ में ट्रांसफर करवा सका था. उसे दिल्ली में पल भर भी एकांत नहीं मिलता था. रोज ही दफ्तर जाने के पहले व शाम को दफ्तर से लौटने पर कोई न कोई रिश्तेदार उस के घर आ टपकता था.

तनाव के कारण 33 वर्ष की आयु में ही उस के बाल खिचड़ी हो गए थे. अपनी उम्र से 10 वर्ष बड़ा लगता था वह. नौकरी की टैंशन, राजधानी के ट्रैफिक की टैंशन, रोजरोज की भागमभाग, ऊपर से पत्नी के नातेरिश्तेदारों का दखल.

10 मिनट बाद रमा आते ही चहक कर बोली, ‘‘सरप्राइज है, तुम्हारे लिए. सुनोगे तो झूम उठोगे. बगल वाले घर में मेरी मुंहबोली बहन माला है. उस का 2 वर्ष पहले ही विवाह हुआ है.’’

शलभ का चेहरा मुरझा गया. उस के मुंह से अस्पष्ट सी आवाज निकली, ‘‘यहां भी… ’’

रमा आगे बोली, ‘‘नहीं समझे  भई, मां की सहेली अनुभा मौसी की लड़की है यह. इस के विवाह में मैं नहीं जा पाई थी. अपना दीपू पैदा हुआ था न. मैं वहीं से अनुभा मौसी से फोन पर बात कर के आ रही हूं. कह दिया है मैं ने कि माला की जिम्मेदारी मेरी…’’

और सुनने की शक्ति नहीं थी शलभ में. पत्नी की बात काट कर उस ने विषैले स्वर में पूछा, ‘‘तो वही दोनों इतनी बेशर्मी से झगड़

रहे थे… ’’

आग्नेय नेत्रों से पति को घूरते हुए रमा बोली, ‘‘दोनों पैसे की तंगी से परेशान हैं. भलीचंगी नौकरी थी दोनों के पास. माला की कौलसैंटर में और महेश की एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी में. माला देर से घर लौटती थी इसलिए महेश ने उस की नौकरी छुड़वा दी. माला के नौकरी छोड़ते ही महेश की कंपनी भी अचानक बंद हो गई. 2 माह से बेचारों को वेतन नहीं मिला है… मैं ने फिलहाल 10 हजार रुपए देने का वादा…’’

चीख पड़ा शलभ बीच में ही, ‘‘बिना मुझ से पूछे किसी भी ऐरेगैरे को…’’

‘‘ऐरीगैरी नहीं, मेरी मौसी की बेटी है वह…’’ रमा दहाड़ी.

‘‘तो तुम्हारी मौसी क्यों नहीं…’’ बोलतेबोलते रुक गया शलभ. सामने गेट के अंदर प्रवेश कर रहा था एक अत्यंत सुंदर, आकर्षक सजाधजा जवान जोड़ा.  दोनों एकदूसरे के लिए बने दिख रहे थे. शलभ ठगा सा उन्हें देखने लगा.

तभी रमा ऊंचे सुर में चिल्लाई, ‘‘आओ, माला, महेश…’’

अपने शांत जीवन में अनाधिकार प्रवेश कर के खलल उत्पन्न करने वाले इस खूबसूरत जोड़े को नापसंद नहीं कर सका शलभ. सौंदर्य निहारना उस की कमजोरी थी. चायपानी के बाद माला धीरे से बोली, ‘‘दीदी… आप ने पैसे…’’

‘‘हांहां,’’ कहते हुए रमा ने रखे 10 हजार रुपए ला कर माला को दे दिए.

रुपए मिलते ही दोनों हंसते हुए गेट से बाहर हो गए और स्कूटर पर फौरन फुर्र हो गए. शाम को दोनों देर से लौटे और आते ही सीधे रमा के पास आ गए.

घर में प्रवेश करते ही माला सोफे पर पसर गई और बोली, ‘‘खाना हम दोनों यहीं खाएंगे. बिलकुल हिम्मत नहीं है कुछ करने की. बहुत थक गई हूं मैं…’’

‘‘कहां थे तुम दोनों अभी तक ’’ उत्सुकता से पूछा रमा ने.

‘‘पूरा समय ब्यूटीपार्लर में निकल गया,’’ चहक उठी माला, ‘‘पैडीक्योर, मैनीक्योर, फेशियल, हेयर कटिंग, सैटिंग व बौडी मसाज…’’

‘‘तुम तो वैसे ही इतनी सुंदर हो. तुम्हें इन सब की क्या जरूरत है  बहुत पैसे खर्च हो गए होंगे…’’ मरी सी आवाज निकली रमा के मुख से.

‘‘कुछ ज्यादा नहीं, बस 15 सौ रुपए ही लगे हैं,’’ लापरवाही से अपने खूबसूरत केशों को झटका देते हुए बोली माला, ‘‘मैंटेन न करो तो अच्छाखासा रूप भी बिगड़ जाता है. अपनी ओर तो तनिक देखो दीदी, क्या हुलिया बना रखा है आप ने  आप के रूप की मिसाल तो मां आज तक देती हैं. ऐसा लगता है कि आप ने कभी पार्लर में झांका तक नहीं है. या तो पैसा बचाओ या रूप… पैसा तो हाथ का मैल है. आज है कल नहीं…’’

शलभ की सहनशक्ति जवाब दे गई. उस ने कटाक्ष किया, ‘‘क्या महेश भी दिन भर ‘मैंस पार्लर’ में था ’’

‘‘नहींनहीं,’’ बोली माला, ‘‘उसे कहां फुरसत थी. तमाम बिल जो जमा करने थे. घर का किराया, बिजली का बिल, टैलीफोन का बिल…’’

घबरा गई रमा, ‘‘तब तो पूरे 10 हजार…’’

‘‘हां, पूरे खत्म हो गए. अभी दूध वाले का बिल बाकी है. साथ में रोज का जेब खर्च,’’ बेहिचक माला बोली.

शलभ क्रोध से मन ही मन बुदबुदाया, ‘हाथ में फूटी कौड़ी नहीं, अंदाज रईसों के…’

पति का क्रोधित रूप देख कर रमा घबरा कर बोली, ‘‘माला, तुम थकी हो दिन भर की. जा कर आराम करो. मैं आती हूं…’’

माला के जाते ही शलभ के अंदर दबा आक्रोश ज्वालामुखी की तरह फट पड़ा, ‘‘कहीं नहीं जाओगी तुम. तुम्हारे रिश्तेदारों से बच कर मैं यहां आया था सुकून की जिंदगी की तलाश में. लेकिन आसमान से गिरा खजूर में अटका.’’

पति से नजरें बचा कर रमा चुपके से 1 हजार रुपए और दे आई माला को और साथ में शीघ्रातिशीघ्र नौकरी ढूंढ़ने की हिदायत भी. उसे पता चला कि माला और महेश ने आसपास के कई लोगों से उधार लिया हुआ था. पैसा हाथ में नहीं रहने पर आपस में झगड़ते थे और पैसा हाथ में आते ही दोनों में तुरंत मेल हो जाता और हंसतेखिलखिलाते वे मौजमस्ती करने निकल पड़ते. स्कूटर में ऐसे सट कर बैठते मानो इन के समान कोई प्रेमी जोड़ा नहीं है. ऐसा लगता था कि उस समय झगड़ने वाले ये दोनों नहीं, कोई दूसरे थे. इन दोनों के आपसी झगड़े के कारण पड़ोसी भी 2 खेमों में बंट गए थे. कुछ माला का दोष बताते थे तो कुछ महेश का. इन दोनों का प्रसंग छिड़ते ही दोनों खेमे बहस पर उतारू हो जाते.

धीरेधीरे 6 माह गुजर गए. इस खूबसूरत जोड़े की असलियत जगजाहिर हो चुकी थी, इसलिए सब से कर्ज मिलना बंद हो गया था. अब मकानमालिक भी इन्हें रोज आ कर धमकाने लगा था. 6 माह से उस का किराया जो बाकी था. एक दिन क्रोधित हो कर मकानमालिक ने माला के घर का सामान सड़क पर फेंक दिया और कोर्ट में घसीटने की धमकी देने लगा. पड़ोसियों के बीचबचाव से वह बड़ी मुश्किल से शांत हुआ.

रोज की अशांति और फसाद से शलभ त्रस्त हो गया. उस का मेरठ से और नौकरी से मन उचाट हो गया. न तो वह मेरठ में रहना चाहता था, न ही दिल्ली वापस जाना चाहता था. इन 2 शहरों को छोड़ कर उस की कंपनी की किस अन्य शहर में कोई शाखा नहीं थी. आखिर नौकरी बदलने की इच्छा से शलभ ने मुंबई की एक फर्म में आवेदनपत्र भेज दिया.

एक शाम शलभ दफ्तर से अपने घर लौटा तो अपने गेट के बाहर पुलिया पर अकेली माला को उदास बैठा पाया. रमा अपनी परिचित के यहां लेडीज संगीत में गई हुई थी. देर रात तक चलने वाले कार्यक्रम के कारण वह शीघ्र लौटने वाली नहीं थी. पूछने पर माला ने बताया कि 6 माह से किराया नहीं देने के कारण मकानमालिक ने उस की व महेश की अनुपस्थिति में मकान पर अपना ताला लगा दिया है. महेश उसे यहां बैठा कर मकानमालिक को मनाने गया था.

शुलभ कुछ देर तो दुविधा की स्थिति में खड़ा रहा फिर उस ने माला को अपने घर के अंदर बैठने के लिए कहा. घर के अंदर आते ही माला शलभ के गले लग कर बिलखने लगी. हालांकि शलभ बुरी तरह चिढ़ा हुआ था मालामहेश की हरकतों से पर खूबसूरत माला को रोती देख उस का हृदय पसीज उठा.

माला का गदराया यौवन और आंसू से भीगा अद्वितीय रूप शलभ को पिघलाने लगा. माला के बदन के मादक स्पर्श से शलभ के तनबदन में अद्भुत उत्तेजना की लहर दौड़ गई. माला के बदन की महक व उस के नर्म खूबसूरत केशों की खुशबू उसे रोमांचित करने लगी.

शलभ के कान लाल हो गए, आंखों में गुलाबी चाहत उतर आई और हृदय धौंकनी के समान धड़कने लगा. तीव्र उत्तेजना की झुरझुरी ने उस के बदन को कंपकंपा दिया. पल भर में वह माला के रूप लावण्य के वशीभूत हो चुका था.

अपने को संयमित कर के शलभ ने माला को अपने सीने से अलग किया और धीरे से सोफे पर अपने सामने बैठा कर सांत्वना दी, ‘‘शांत हो जाओ. सब ठीक हो जाएगा…’’

माला ने अश्रुपूरित आंखों से शलभ की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘पैसा नहीं है हमारे पास… कैसे ठीक होगा ’’

‘‘मैं कुछ करता हूं…’’ अस्फुट भर्राया सा स्वर निकला शलभ के गले से.

‘‘आता हूं मैं बस अभी, तब तक तुम यहीं बैठो…’’ कह कर शलभ ने एटीएम कार्ड उठाया और गाड़ी से निकल पड़ा.

लौट कर शलभ ने माला के हाथ में 6 माह के किराए के 9 हजार जैसे ही थमाए उस ने खुशी से किलकारी मारी. शलभ सोफे पर बैठ कर जूते उतारने लगा तो वह अपने स्थान से उठी, खूबसूरत अदा से अपना पल्लू नीचे ढलका दिया और शलभ के एकदम करीब जा कर उस के कान में मादक स्वर में फुसफुसाई, ‘‘थैंक्यू जीजू, थैंक्यू.’’

माला के उघड़े वक्षस्थल की संगमरमरी गोलाइयों पर नजर पड़ते ही शलभ का चेहरा तमतमा गया और उस के मुख से कोई आवाज नहीं निकली. वह मुग्ध हो उसे देखने लगा. घर में माला महेश के विरुद्ध शलभ के स्वर एकाएक बंद हो गए. पति के रुख में अचानक बदलाव पा कर रमा को आश्चर्य तो हुआ पर वास्तविकता से अनभिज्ञ उस ने राहत की सांस ली. रोजरोज की तकरार से उसे मुक्ति जो मिल गई थी. नहीं चाहते हुए भी शलभ ने पत्नी से माला को 9 हजार रुपए देने की बात गुप्त रखी.

माला को भी इस बात का एहसास हो गया था कि उसे देख कर सदैव भृकुटि तानने वाला शलभ उस के रूप के चुंबकीय आकर्षण में बंध कर मेमना बन गया था. वह उसे अपने मोहपाश में बांधे रखने के लिए उस पर और अधिक डोरे डालने लगी. जब भी रमा किसी काम से बाहर जाती, सहजसरल भाव से वह माला के  ऊपर घर की देखरेख का जिम्मा सौंप देती. इस का भरपूर फायदा उठाती माला.

उस के दोनों हाथों में लड्डू थे. रमा के सामने आंसू बहा कर माला पैसे मांग लेती और शलभ उस पर आसक्त हो कर अब स्वयं ही धन लुटा रहा था. अपने सहज, सरल स्वभाव वाले निष्कपट अनुरागी पति को अपने प्रति दिनप्रतिदिन उदासीन व ऊष्मारहित  होते देख कर रमा का माथा ठनका पर बहुत सोचनेविचारने के बाद भी वह सत्य का पता नहीं लगा पाई.

माला केवल पैसे ऐंठने के लिए शलभ पर डोरे डाल रही थी. उस की तनिक भी रुचि नहीं थी शलभ में. पर एक दिन शलभ अपना संयम खो बैठा और माला के सामने प्रणय निवेदन करने लगा. पहले तो माला घबरा गई फिर उसे विचित्र नजरों से घूरने लगी फिर बोली, ‘‘जीजू फौरन 10 हजार रुपयों का इंतजाम करो, नहीं तो मैं आप का कच्चाचिट्ठा रमा दीदी के सामने खोलती हूं…’’

मरता क्या न करता. रुपए पा का माला प्रसन्न हुई. फिर उस का लोभ बढ़ता गया. उस ने रमा पर भी अपना भावनात्मक दबाव बढ़ा दिया. शीघ्र ही रमा के घर में आर्थिक तंगी शुरू हो गई. त्रस्त हो कर रमा ने अनुभा मौसी को वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए शीघ्र ही रुपए भेजने को कहा तो उन्होंने तमक कर उत्तर दिया, ‘‘छोटी बहन मानती हो न उसे. थोड़ी सी सहायता कर दी तो मुझ से पैसे मांगने लगीं तुम.’’

रमा ने फिर सारी बात मां को बताई तो मां ने भी उसे जम कर खरीखोटी सुना दी, ‘‘मुझ से पहले सलाह क्यों नहीं ली  पैसे लुटाने के बाद अब उस का रोना क्यों रो रही हो  अनुभा और उस के परिवार के काले कारनामों से त्रस्त हो कर हम ने सदा के लिए उन्हें त्याग दिया है.’’

रमा के दिलोदिमाग से मायके के रिश्तेदारों का नशा काफूर हो चुका था. उधर शलभ का मन माला की ओर से उचट हो गया था. लेकिन वे न तो पत्नी को सत्य बताने की हिम्मत जुटा पाए थे, न ही माला की रोज बढ़ती मांगों को पूरा कर पा रहे थे. उन की स्थिति चक्की के दो पाटों में फंसे अनाज जैसी थी. जिस की यंत्रणा वे भोग रहे थे. उन की नींद व चैन छिन गए थे. उन के द्वारा मुंबई की एक फर्म में भेजे गए आवेदनपत्र का अभी तक कोई जवाब भी नहीं आया था.

धीरेधीरे माला ने पुन: कौलसैंटर में कार्य करना शुरू कर दिया. महेश ने एक सिविल ठेकेदार के जूनियर सुपरवाइजर के रूप में काम पकड़ लिया. पर आय कम थी, उन के खर्चे अधिक. धीरेधीरे दोनों की जीवन की गाड़ी पटरी पर आने लगी.

तभी अचानक एक दिन माला कौलसैंटर से अचानक गायब हो गई. काम पर गई तो अपने घर नहीं लौटी. पुलिस ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं मिली. पता चला कि वह उस दिन कौलसैंटर पहुंची ही नहीं थी. बदहवास महेश इधरउधर मारामारा फिरता रहा. फिर कुछ दिनों बाद वह भी कहीं चला गया. लोगों ने अंदाजा लगाया कि वह अपने मातापिता के पास लौट गया होगा. पड़ोस के घर में सन्नाटा पसर गया. इस दंपती का क्या हश्र हुआ होगा, इस के बारे में लोग तरहतरह की अटकलें लगाने लगे. सब को अपना पैसा डूबने का दुख तो था ही, इस खूबसूरत युवा जोड़े का चले जाना भी कम दुखद नहीं था सब के लिए.

तभी अनुभा मौसी ने शलभ और रमा पर इलजाम मढ़ दिया कि इन्हीं दोनों की मिलीभगत ने मेरी बेटी और दामाद को गायब कर दिया है. बड़ी मुश्किल से जानपहचान वालों के हस्तक्षेप से ये दोनों पुलिस के चंगुल में आने से बचे.

अचानक एक दिन मुंबई की फर्म से इंटरव्यू के लिए शलभ को बुलावा आ गया. बच्चों की छुट्टियां थी. इंटरव्यू के साथ घूमना भी हो जाएगा, इस उद्देश्य से शलभ ने रमा और दोनों बच्चों को भी अपने साथ ले लिया.

पहले दिन इंटरव्यू संपन्न होने के बाद अगले दिन के लिए शलभ ने टूरिस्ट बस में चारों के लिए बुकिंग करवा ली. अगले दिन सुबह 10 बजे चारों मुंबई भ्रमण के लिए टूरिस्ट बस में सवार हो कर निकल पड़े. भ्रमण में फिल्म की शूटिंग दिखलाना भी तय था. पास ही के एक गांव में ग्रामीण परिवेश में एक लोकनृत्य का फिल्मांकन हो रहा था. करीब 75 बालाएं रंगबिरंगे आकर्षक ग्रामीण परिधानों में सजी संगीत पर थिरक रही थीं.

अचानक नन्हा दीपू चीख पड़ा, ‘‘मम्मा, वह देखो, सामने माला मौसी…’’

उसे पहचानने में रमा को देर नहीं लगी. वही चिरपरिचित खूबसूरत मासूम चेहरा. वह पति के कान में फुसफुसाई, ‘‘मैं इसे अनुभा मौसी को लौटा कर अपने नाम पर लगा हुआ दाग अवश्य मिटाऊंगी…’’

लताड़ लगाई शलभ ने, ‘‘खबरदार, अब इस पचड़े से दूर रहो. बाज आया मैं तुम्हारे रिश्तेदारों से…’’

लेकिन रमा नहीं मानी. पति की इच्छा के विरुद्ध उस ने टूरिस्ट बस का बकाया भ्रमण कैंसिल कर के टैक्सी किराए पर ले ली और शूटिंग के उपरांत उस का पीछा करते उस के घर जा पहुंची.

शलभ और रमा को एकाएक सामने पा कर माला अनजान बन गई. दोनों को पहचानने से इनकार कर दिया उस ने. सब्र का बांध टूट गया रमा का. क्रोध से चीखी वह, ‘‘तू यहां ऐश कर रही है और तेरी मां ने हम दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया कि तुझे गायब करने में हमारा हाथ है. चल अभी मेरे साथ इसी वक्त. तुझे मैं मौसी के पास ले चलती हूं.’’

माला ने मौन व्रत धारण कर लिया. क्रोध से आपा खो बैठी रमा. उस के केश पकड़ कर चिल्लाई, ‘‘जो अपने पति की नहीं हुई हमारी कैसे होती. तुझे मालूम है तेरे जाने के बाद तेरा महेश बदहवास हालत में लुटालुटा सा तुझे खोजा करता था. पता नहीं कहां है वह बेचारा.’’

माला ने अचानक चुप्पी तोड़ी और चीखने लगी, ‘‘बचाओ, बचाओ…’’

उस की चीखपुकार सुनते ही वहां भीड़ इकट्ठा होने लगी. घबरा कर रमा ने माला के केश छोड़ दिए. वहां रुकना उचित न समझ कर शलभ ने रमा की बांह पकड़ी और उसे टैक्सी की ओर खींच कर ले चला.

चलतेचलते वह बोला, ‘‘यहां तमाशा खड़ा न कर के हमें चुपचाप मेरठ में इस के तमाम कर्जदारों को इस का अतापता बता देना चाहिए, वही आगे की कार्यवाही करेंगे.’’

‘‘अतापता ’’ इधरउधर देखते हुए दोहराया रमा ने, ‘‘अरे, यह कौन सी जगह है हमें तो मालूम ही नहीं. रुको अभी आती हूं घर का नंबर, गलीमहल्ला सब पता कर के…’’

रमा जैसे ही पलट कर माला के घर के पास पहुंची तो जड़ हो गई. माला ताली पीटपीट कर हंसते हुए पूछ रही थी, ‘‘कहो मां, कैसी थी मेरी ऐक्टिंग  छुट्टी कर दी न मैं ने माला दीदी की  अब इधर आने की दोबारा जुर्रत नहीं करेंगी…’’

अनुभा मौसी ने शाबासी दी बेटी को, ‘‘मान गए भई, तू ने तो टौप हीरोइंस को भी मात कर दिया. क्या ऐक्टिंग थी तेरी. अब तो तू हीरोइन बनेगी…’’

सामने खड़े हीही कर रहे थे महेश व माला के पिता. रमा को काटो तो खून नहीं. उस में कुछ पूछने और सुनने की शक्ति नहीं थी. लौट कर आ बैठी कार में. पति को सारा वृत्तांत सुना कर वह फफकफफक कर रो पड़ी. सब की मिलीभगत थी. धोखा दे कर पैसा ऐंठने की अपनी सफलता पर जश्न मना रहे थे वे सब. बड़ी ही मासूमियत से सरल हृदयी लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर के छला था माला महेश ने.

छावा के बाद एक और फिल्म Kesari Veer , जो मुसलमान द्वारा हिंदुओं पर अत्याचार पर केंद्रित

Kesari Veer : हाल ही में निर्माता कानू चौहान, और निर्देशक प्रिंस धीमान निर्देशित फिल्म केसरी वीर सिनेमाघर में रिलीज हुई . फिल्म की कहानी ऐतिहासिक, पौराणिक, हिन्दू मुसलमान मार काट पर आधारित नजर आई.

गौरतलब है पिछले कुछ समय से बौलीवुड फिल्मों में जहां जबरन हिंदू धर्म पर आधारित रामायण महाभारत जैसे धार्मिक विषयों को धर्म के नाम पर प्रचार करने के उद्देश्य से कहानी में किसी न किसी तरह जबरदस्ती ठूसा जा रहा है. वहीं दूसरी और ऐसी फिल्में बन रही है जिसमें मुसलमान राजाओं द्वारा हिंदू योद्धाओं को क्रूरता और बेदर्दी के साथ बुरी तरह कत्ल किया जा रहा है.

विकी कौशल अभिनीत छावा और अब केसरी वीर इस बात का जीता जागता उदाहरण है. जो आज के समय में हिंदू मुसलमान के बीच मतभेद बढ़ाने के लिए काफी है. अगर केसरी वीर की बात करे तो केसरी वीर इतिहास के उस कालखंड से प्रेरित है जहां राजकुमार हमीर ने अपने 200 शूर वीरों के साथ राजा जफर की विशाल काय सेना का मुकाबला सोमनाथ मंदिर बचाने के लिए किया था. लेकिन उनको अपनी जान की आहुति देनी पड़ी क्योंकि सुबेदार जाफर के पास अनगिनत सैनिक बारूद ,तोपे बम आदि था , और राजा जाफर का मकसद मंदिर में घुस कर सारा सोना लूटना था.

माना जाता है इसी भव्य सोमनाथ मंदिर पर विभिन्न आक्रमणकरियों ने पहले भी 17 बार मंदिर से सोना लूटने के उद्देश्य से हमला किया था. अगर केसरी वीर में अभिनय करने वाले किरदारों की बात करें तो केसरी वीर में राजकुमार हमीर जी वीर के किरदार में सूरज पंचोली ने अपने किरदार के साथ न्याय करने की पूरी कोशिश की है , विवेक ओबेरॉय क्रूर राजा जफर के रूप में दर्शकों का ध्यान खींचते नजर आते हैं. हीरोइन आकांक्षा शर्मा और सुनील शेट्टी की एक्टिंग में दम नजर नहीं आया. इसकी सबसे बड़ी वजह है कमजोर डायरेक्शन , फिल्म की लंबी अवधि, ओर कलाकारों का बेअसर अभिनय . फिल्म का प्रसारण पूरी तरह नाटकीय लगता है.

ओवर एंड औल केसरी फिल्म सच्ची घटना पर आधारित कहानी होने के बावजूद फिल्म की कमजोरी मेकिंग और लंबी अवधि इस फिल्म को आकर्षक बनाने में कमजोर साबित रही है . फिल्म में मुसलमान द्वारा हिंदू वीरों का नरसंहार, सिर धड़ से अलग करना, लोगों को जिंदा जला देना. औरतों की इज्जत लूटना जैसे कई हिंसक दृश्यो का समावेश है. जिसमे जीत की खुशी कम लेकिन हार का दुख ज्यादा दिखाई देता है . फिर भी अगर जो दर्शक सच्ची घटना पर आधारित इस फिल्म को देखने की इच्छा रखते हैं, वह सिनेमाघर में जाकर यह फिल्म देख सकते है.

Newly Married Couple ऐसे दें घर को नया लुक

Newly Married  Couple : हर न्यूली मैरिड कपल अपने घर को अपनी पसंद से सजाना चाहता है यानी कौन सा सामान रखना है कौन सा हटाना है, किस सामान को कहां रखना है, कौन सी पेंटिंग टांगनी है और कहां टांगनी है आदि. मगर कई बार जब न्यूली मैरिड कपल पेरैंट्स के साथ उन के घर में जाते है तब आप को शायद कुछ भी करने से पहले उन से पूछना पड़े. ऐसे में आप ऐसा महसूस कर सकते हैं कि ये घर हमारा नहीं लेकिन तब आप उस घर के एक कमरे को एकदूसरे की पसंद से सजा सकते हैं ताकि आपस में प्यार बढ़े और उस कमरे से जुड़ाव महसूस कर सकें और उसे अपना कह सकें यानी हमारा कमरा.

एक नए शादीशुदा जोड़े के लिए अपने घर में जाना काफी ऐक्साइटिंग होता है. हर युवा कपल अपने घर या बैडरूम को अपनी पसंद से बिलकुल अलग तरीके से सजाना चाहता है ताकि एकदूसरे के बीच बौंडिंग और प्यार बढ़ सके.

जब आप जाएं अपने घर में

यदि न्यूली मैरिड कपल अपनी नई पारी की शुरुआत अपने नए घर से कर रहा होता है तो उस में एक नई ऐक्साइटमैंट होती है. वह चीजों को नया रंग रूप देने की कोशिश करता है. इस के लिए न्यूली मैरीड कपल को घर सैट करते समय शांति और सम झौते से काम लेना बहुत जरूरी है. जहां आप दोनों अकेले ही उस घर में रहने वाले हैं तो फिर आप को इस के लिए एकदूसरे से ही पूछने की जरूरत होती है. इस के लिए एकदूसरे की पसंद का खयाल रखें, दोनों मिल कर एकदूसरे की पसंद से घर को सजाएं.

इस से आप के बीच प्यार बढ़ेगा और रिश्ता मजबूत बना रहेगा क्योंकि नई शुरुआत है आप एकदूसरे की पसंदनापसंद को जानते नहीं हैं इसलिए यहां आप की सम झदारी केवल घर को सजाने नहीं बल्कि आप के रिश्ते को मजबूत बनाने का भी काम करेगी एवं आपस में प्यार को भी बढ़ाएगी.

शादी होने के बाद क्या आप भी अपने घर या कमरे को दोनों की पसंद से सजाना चाहते हैं? क्या आप भी अपने घर और रूम को अट्रैक्टिव बनाना चाहते हैं? तो जानें कुछ होम डैकोर टिप्स, जिन्हें हर न्यूली मैरिड कपल अपना कर या ट्राई कर अपने घर या रूम को अट्रैक्टिव बना सकता हैं:

करें प्लानिंग

नए घर या कमरे को सैट करते समय रूम की स्पेस और साइज पर ध्यान दें. उस के अनुसार सामान का चयन करें. कमरे को सुंदर बनाने के लिए उस में ऐक्सैसरीज जोड़ें. यह तय करें कि कहां से शुरू करना है. इंटीरियर ऐक्सपर्ट्स के अनुसार उन जगहों पर ज्यादा फोकस करना चाहिए जहां आप ज्यादा वक्त बिताने वाले हैं या बिताते हैं. इस के लिए निर्धारित करें कि घर या कमरे में किस सामान की आवश्यकता है? आप का बजट क्या है? फिर सामान खरीदें. कमरे में पर्याप्त रोशनी आए इस की व्यवस्था करें.

घर की उन जगहों को चुनना होगा जहां आप डैकोरेट करना चाहते हैं. कहां फर्नीचर रखना है, दीवारों को रंगना है या नहीं, घर या कमरे की किन दीवारों पर पैंटिग्स लगानी हैं आदि. यदि आप सारा काम प्लानिंग से करेंगे तो बिना किसी परेशानी के आप के सारे काम अच्छे से होंगे.

घर का एक कोना हो आप की पसंद का

अपने घर में सब का एक अलग कोना जरूर होता है जहां बैठ कर हम सुकून पाते हैं और फुरसत के कुछ क्षण अपनी पसंद का काम कर गुजारते हैं ताकि मूड को फ्रैश कर सकें. अकसर हम सभी जब घर के बाहर जाते हैं तो अपने घर के इस कोने को जरूर मिस करते हैं और शायद इसलिए ही हम किसी के घर या कमरे को अपना घर या कमरा कह या महसूस नहीं कर पाते. अत: आप अपने घर में जाएं या पेरैंट्स के साथ रहें एक कोना अपने लिए जरूर बनाएं जहां आप दोनों फुर्सत के कुछ पल आपस में बातचीत कर या अपनी पसंद का कोई काम कर के बिता सकें.

दीवारों का रंग कौन सा हो

हर न्यूली मैरिड कपल की इच्छा होती है कि उस के कमरे की दीवारों का रंग उस की पसंद का हो इस के लिए आप दोनों थोड़ा सा डिस्कस कर लें, एकदूसरे की पसंद का खयाल रखें. इस से आपस में प्यार बढ़ेगा. दीवारों का रंग कौन सा हो सफेद, हरा या नीला या पीला इस का चुनाव दोनों की पसंद से करें और अपने घर या रूम को अपने पसंदीदा रंग से सजाएं.

अपने हिसाब से करें सामान का चयन

आप के अपने घर या कमरे में कौन सा सामान रखना है कौन सा नहीं और यदि रखना है तो कहां और यदि पुराना समान है तो उस का उपयोग करना है या है नहीं, किस को देना है कबाड़ में या जरूरतमंद को ये सब आप केवल अपने ही घर कर सकते हैं, साथ ही कैसा सामान लिया जाए जो कमरे या घर की शोभा में चार चांद लगा दे दोनों एकदूसरे की पसंद को ध्यान में रख कर करें तो उन के बीच प्यार बढ़ेगा और रिश्ते को मजबूती मिलेगी.

संजोएं यादें

अकसर हम जहां बहुत लंबे समय तक रहते हैं वहां से हमारी कुछ यादें जुड़ जाती हैं, जिन को हम घर के उस कोने में फुरसत के समय में याद करते हैं इसलिए हर न्यूली मैरिड कपल जब अपने घर में जाए या अपने पेरैंट्स के साथ रहे, शुरुआत से ही अपनी यादें बनाए एवं उन्हें संजोएं. इस के लिए जब आप आप के घर या कमरे को सजा रहे हों या मिल कर कोई काम कर रहे हों या कोई त्योहार मना रहे हों अथवा पार्टी कर रहे हों तब कुछ पिक्स जरूर लें, साथ ही कुछ ऐसे हसीन पल जो आप ने एकदूसरे के साथ इस घर या कमरे में बिताए जिन्हें आप यादगार बनाना चाहते हैं उन्हें अपने कैमरे में कैद करना न भूलें ताकि जब याद आए उन हसीन पलों की तो उन्हें अपने पार्टनर संग याद कर खुशी महसूस कर सकें.

साथ ही यह भी कर सकते हैं

यदि आप के पास जगह कम है तो आप रूम में  मल्टीपर्पज फर्नीचर ले सकते हैं.

यदि आप के रूम में बालकनी है तो अपनी बालकनी को फूलपौधों से सजा कर रखें. यदि नहीं है तो इनडोर प्लांट्स कौर्नर में रखें. फूलपौधों की हरियाली में एक पौजिविटी होती है जो रिश्तों में मिठास भरने का काम करती है.

रूम में लाइट्स प्रौपर आए इस का ध्यान रखें. परदों का सही चयन करें. न्यूली मैरीड कपल के लिए घर सजाना एक नया अनुभव है इसलिए एकदूसरे को अपने विचार रखने का पूरा मौका दें, एकदूसरे की पसंद और आइडियाज का सम्मान करें.

How To Clean Saree Stains : साड़ी पर लगे हुए दागधब्बों को ऐसे करें साफ

How To Clean Saree Stains :  सिल्क साड़ियों के रखरखाव में विशेष देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि इन की बनावट बेहद खास होती है और ये साङियां बहुत सौफ्ट होती हैं. हमारे देश में बनारसी, कांचीपुरम, चंदेरी, पटोला, बालूचरी, कटान, टसर और कश्मीरी सिल्क जैसी अनेक सिल्क साड़ियां देखने को मिलती हैं.

इन में कांचीपुरम साड़ी अपनी बारीक सिल्क, बुनाई और विशिष्ट बौर्डर डिजाइन के लिए जानी जाती हैं. ये साड़िया दक्षिण भारत में खास तौर पर पहनी जाती हैं. ऐसे ही अलगअलग सिल्क देश के अलगअलग हिस्सों में बनाए जाते हैं। लेकिन सभी में एक समानता होती है कि वे बेहद खूबसूरत होती हैं। ऐसे में यदि कभी इन पर दागधब्बे लग जाएं, तो इसे छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है.

सही तरीका पता न होने पर साड़ी को नुकसान भी पहुंच सकता है. आज हम आप को कुछ टिप्स दे रहे हैं, जिन से आप सिल्क साड़ी पर लगे दाग को आसानी से हटा सकेंगे.

सिल्क साड़ी पर लगे हुए दागों को हटाना मुश्किल क्यों है

सिल्क साड़ी पर दाग जल्दी नहीं हटते क्योंकि सिल्क एक नाजुक और संवेदनशील फैब्रिक है. दाग को हटाने के लिए गलत तरीके से साफ करने पर सिल्क के धागे कमजोर हो सकते हैं और रंग भी फीका पड़ सकता है. दरअसल, सिल्क एक नाजुक फैब्रिक है। सिल्क के धागे बहुत पतले और नाजुक होते हैं, इसलिए इन्हें रगड़ने या कठोर रसायन के संपर्क में आने से नुकसान हो सकता है.

कुछ दाग, जैसे तेल या पसीने के दाग, सिल्क में आसानी से समा जाते हैं और उन्हें हटाना मुश्किल हो जाता है. जैसेजैसे दाग पुराना होता है, वैसेवैसे इसे हटाना और मुश्किल हो जाता है.

दाग को व्हाइट टिशू पेपर से हलके से दबाएं

कई बार दाग लगने पर हम उस दाग को रगड़ना शुरू कर देते हैं। इस का नतीजा होता है कि दाग चारों तरफ फैल जाता है. इसलिए दाग को रगड़ना नहीं है बल्कि किसी व्हाइट टिशू या सफेद कपडे से हलका सा दबा कर सोख लें. इस से दाग फैलेगा नहीं.

दाग साफ करने के लिए ठंढे पानी का यूज करें

किसी भी दाग को साफ करने के लिए गरम पानी का यूज न करें. इस से दाग और हार्ड हो जाएगा।

क्लीन विद पैट्रोल

साड़ी को साफ करने के लिए जहां दाग है वहां कौटन की मदद से पैट्रोल की 2-3 बूंदे लगाएं. इस से दाग निकल जाएगा.

साड़ी में हलदी और तेल के दाग कैसे हटाएं

इस के लिए बेकिंग सोडा और नीबू का रस एक बाउल में मिक्स करें और साफ कपडे या कौटन में इसे लगा कर इसे 10 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर हलके हाथ से नौर्मल पानी से धो लें.

साड़ी ब्लाउज पर जब पसीने के दाग लग जाएं

साड़ी के किनारों और अंडरआर्म्स पर पसीने के निशान बहुत जल्दी लग जाते हैं और दिखने में बहुत बुरे लगते हैं. इन्हें साफ करने के लिए विनेगर और पानी को बराबर मात्रा में मिला कर साड़ी और ब्लाउज पर लगाएं और 5 मिनट बाद किसी हलके डिटर्जेंट से उस जगह को धो लें.

साड़ी में चाय या कौफी के दाग

सब से पहले दाग को ठंडे पानी से साफ करें. उस के बाद कोई लिक्विड डिटर्जेंट लें और उस में विनेगर मिक्स कर के दाग पर लगाएं और हलके हाथों से उसे धो दें. दाग निकल जाएगा.

साड़ी में खून के दाग लग गए हों तो सब से पहले से दाग को ठंडे पानी में डूबो कर खून को निकाल लें। उस के बाद हाइड्रोजन पैरोक्साइड को लगा कर हटाने का प्रयास करें.

साड़ी में इंक के दाग लग गए हों तो

इंक के दाग हटाने के लिए अलकोहल या हैंड सैनेटाइजर का यूज किया जाता है. उसे दाग पर लगा कर 5 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर साफ पानी से धो लें.

कांजीवरम साड़ी पर हलके रंगों के दाग

दूध एक प्राकृतिक क्लीनर की तरह काम करता है, जो कांजीवरम साड़ी से हलके रंगों के दाग हटाने में मदद करता है. इस के लिए ठंडा दूध लें और उस में दाग वाले हिस्से को कुछ घंटों तक भिगो कर रखें. यह तरीका खासतौर पर हलके दागों के लिए प्रभावी होता है. भिगोने के बाद साड़ी को सामान्य पानी से धो लें ताकि दूध का असर पूरी तरह से निकल जाएं और साड़ी की चमक बनी रहे.

कांजीवरम साड़ी पर लगा पुराना दाग कैसे हटाएं

मुलतानी मिट्टी को थोड़े पानी में घोल कर पेस्ट बना लें और इसे दाग पर लगाएं. सूख जाने के बाद इसे धीरेधीरे रगड़ कर हटा दें, फिर साफ पानी से धो लें।कांजीवरम साड़ी पर चाय कौफी के दाग नीबू के रस में नमक मिला कर एक पेस्ट बना लें और उसे दाग पर लगा कर कुछ देर छोड़ दें. उस के बाद उसे नौर्मल पानी से धो लें. दाग हट जाएगा और अगर दाग न हटें तो फिर साड़ी को ड्राई क्लीनर को दें.

तेल के दाग वाली साड़ी को घर पर ड्राईक्लीन कैसे करें

सब से पहले तो तेल का दाग हटाने के लिए दाग वाली जगह पर टैलकम पाउडर डालें. आप देखेंगे कि पाउडर ने तेल सोख लिया है. जब आप उसे कुछ देर बाद हटाएंगे तो पाउडर पर तेल आ चुका होगा. इस के बाद आप एक बालटी में कोई भी माइल्ड शैंपू घोलें. दाग लगी स‍िल्‍क की साड़ी को इस घोल में डाल कर 10-15 म‍िनट के ल‍िए छोड़ दें. अब हल्के हाथों से दाग वाली जगह को रगड़ें. अब साफ पानी से कपड़ों को न‍िकाल लें. इन कपड़ों को ज्‍यादा रगड़ कर न‍िचोड़ें नहीं। इस से कपड़ों पर र‍िंकल पड़ जाते हैं. हैंगर लें और कपड़ों को सूखने डाल दें. अब इन कपड़ों के सूखने के बाद इन्‍हें सही से प्रेस करके ही अपनी अलमारी में रखना चाहिए.

Social Media: स्क्रौलिंग से बदल रहे हैं पोर्न सर्च के ट्रैंड्स

Social Media: भारत समेत दुनियाभर में पोर्न देखने वालों की संख्या और टाइम में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. एडल्ट कंटैंट आसानी से उपलब्ध हो रहा है. अब हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल है और इंटरनैट. पोर्न इंडस्ट्री तेजी से ग्रो कर रही है और लोगों में पोर्न को ले कर तरहतरह की इच्छाएं बढ़ने लगी है हैं. सर्च करने के तौरतरीके भी बदले हैं. इस में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ रहा है. इस में ऐसीऐसी इच्छाएं देखने को मिली हैं जो सरप्राइज करती हैं.

 

इस चलते पोर्नहब ने यूजर्स के सब से ज्यादा सर्च किए गए टर्म्स का डेटा शेयर किया है, कुछ आप को सरप्राइज दे सकते हैं.

 

पोर्नहब इनसाइट्स ने दुनियाभर के लाखों यूजर्स का डेटा जमा किया जिस में साइट के टौप ट्रैंड्स, मोस्ट पौपुलर कंटैंट और यहां तक कि फिल्मों व गेम्स के कैरेक्टर्स भी शामिल हैं. इस साल के ट्रैंड्स से पता चलता है कि पौप कल्चर और बेडरूम के ट्रैंड्स में कनैक्शन है. मगर कंटैंट जानने से पहले जान लेते हैं ऐसे टौप देशों के बारे में जहां पोर्न देखने का ट्रैफिक सब से ज्यादा है.

 

टौप ट्रैफिक वाले देश

 

2024 में भी अमेरिका नंबर वन पर रहा. वहां से सब से ज्यादा ट्रैफिक आया. 30 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले देश के लिए यह कोई हैरानी की बात नहीं है.

 

दूसरे नंबर पर फ्रांस रहा, जिस का कारण पेरिस ओलिंपिक्स हो सकता है क्योंकि उस इवैंट के चलते वहां बड़ी संख्या में विजिटर्स और ऐथलीट्स पहुंचे थे. फिलीपींस तीसरे, मेक्सिको चौथे और यूके 5वें नंबर पर रहे. टौप 20 देशों से 79.2 फीसदी डेली ट्रैफिक आता है.

 

यूजर्स कितना टाइम स्पैंड करते हैं?

 

पोर्नहब पर अब यूजर्स औसतन 29 सैकंड कम टाइम स्पैंड कर रहे हैं. अब एक विजिट का औसत टाइम 9 मिनट 40 सैकंड है.

 

18 से 24 साल के यूजर्स ने 79 सैकंड कम टाइम दिया, जबकि 65+ उम्र के यूजर्स ने औसत से 83 सैकंड ज्यादा टाइम स्पैंड किया.

 

मेक्सिको के यूजर्स ने सब से ज्यादा (11 मिनट 1 सैकंड) टाइम स्पैंड किया. नीदरलैंड्स दूसरे नंबर पर (10 मिनट 51 सैकंड) और अमेरिका तीसरे (10 मिनट 37 सैकंड) पर रहे.

 

फीमेल यूजर्स बढ़े

 

पिछले साल फीमेल यूजर्स ने मेल यूजर्स के मुकाबले 17 सैकंड ज्यादा टाइम स्पैंड किया. दुनियाभर में 38 फीसदी यूजर्स अब महिलाएं हैं, जो 2024 में 7 फीसदी बढ़ीं. ये बदलाव समाज में महिलाओं की सैक्सुअल नीड्स को औब्जर्व करने की वजह से हो सकता है.

 

डेटा के मुताबिक, महिलाएं ज्यादातर ‘लेस्बियन’ कंटैंट देखती हैं और ‘सिजरिंग’ व ‘पु*** लिकिंग’ जैसे टर्म्स सर्च करती हैं. सिजरिंग एक लेस्बियन सैक्सुअल एक्ट है जिस में 2 महिलाएं एकदूसरे के जननांगों को आपस में रगड़ कर सैक्सुअल प्लेजर पाने की कोशिश करती हैं. हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर इस पोजीशन को ले कर काफी रील्स और मीम बनने लगे हैं.

 

टौप परफौर्मर्स

 

एंजेला व्हाइट

अबेला डेंजर

वायलेट मायर्स

लाना रोड्स

एवा एल्फी

 

इन में से लाना रोड्स पोर्न इंडस्ट्री छोड़ चुकी है. वह एक मशहूर अमेरिकन मौडल और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर भी है. उस ने 2016-2017 के आसपास इस इंडस्ट्री में काम करना शुरू किया, जब वह 18 साल की थी और जल्दी ही टौप परफौर्मर्स में शुमार हो गई.

 

उसे ‘क्वीन औफ वीआर पोर्न’ भी कहा जाता था, क्योंकि उस ने वर्चुअल रिऐलिटी पोर्न में खूब काम किया. लाना के इंस्टाग्राम, टिकटौक और यूट्यूब पर 1 करोड़ से अधिक फौलोअर्स हैं. वह लाइफस्टाइल, ब्यूटी टिप्स और मैंटल हैल्थ पर कंटैंट शेयर करती है. लाना ने पोर्न इंडस्ट्री के डार्क साइड (एब्यूज, मैंटल हेल्थ इश्यूज) के बारे में खुल कर बात की है. एक इंटरव्यू में उस ने कहा कि उसे अपने पोर्न कैरियर पर पछतावा है.

 

मोस्ट पौपुलर कैटेगरीज

 

इस साल ‘मिल्फ’ नंबर 1 कैटेगरी बनी. उस ने ‘लेस्बियन’ को दो साल बाद टौप स्पौट से हटा दिया. इस के अलावा पोर्न देखने वालों में जैपनीज, लेस्बियन पोर्न देखने का क्रेज बढ़ा है.

 

अमेरिका में ‘एबोनी’ सब से पौपुलर रही. यह ब्लैक कम्युनिटी खासकर ब्लैक महिला एक्ट्रैस को ले कर है. अमेरिका में कई सारी बहसें इस पोर्न कैटगरी पर हो रही हैं और इसे नस्लभेदी बताया जाता है. वहीं कनाडा और औस्ट्रेलिया में ‘लेस्बियन’ कंटैंट ज्यादा देखा गया.

 

 

सोशल मीडिया ट्रैंड्स का असर

 

वर्ष 2024 में टिकटौक पर वायरल हुआ फ्रेज ‘वेरी डेम्युर, वेरी माइंडफुल’ का असर पोर्नहब पर भी देखने को मिला. डेम्युर का मतलब शर्मीला होता है. पोर्न साइट पर शरमीलेपन को सैक्सी तरीके से दिखाया गया. यानी, ऐसी पोर्न जहां एक्ट करने वाली लड़कियां कम बोलती हैं, संकोच करती हैं या शरमाती हैं उन्हें ज्यादा देखा गया. ‘डेम्युर’ सर्चेज 133 फीसदी बढीं. ‘माइंडफुल प्लेजर’ सर्चेज 112 फीसदी बढीं. यह वो कैटगरी है जहां टेंटेशन बिल्डअप किया जाता है और चीजें स्लो होती हैं.

 

एक टीवी शो ‘द सीक्रेट लाइफ औफ मौर्मन वाइव्स’ की वजह से ‘वाइव्स’ और ‘मोडेस्ट वाइव्स’ जैसे टर्म्स भी ट्रैंड करने लगे. इस टीवी शो में धार्मिक महिलाओं के स्कैंडल दिखाए गए थे. यानी, वे महिलाएं जो गृहीणी हैं, सीधीसादी हैं मगर अंदर से वाइल्ड हैं. जो अपनी सैक्सुअल इच्छाओं को जाहिर नहीं करतीं, जो संयमित कपड़े पहनती हैं, भोलीभाली होती हैं मगर सैक्स के दौरान वाइल्ड हो जाती हैं. ऐसे ही इस शोज की रील्स सोशल मीडिया के माध्यम से हमारे दिमाग पर बैठती हैं.

 

जब कोई ट्रैंड जैसे ‘बज इट चैलेंज’ या ‘बेला पोर्च हिप्नोटिक’ वायरल होता है तो पोर्नहब पर उस से जुड़ी सर्चेज बढ़ जाती हैं.

 

सोशल मीडिया एल्गोरिदम पर काम करता है, आप की पसंदनापसंद तक सीमित नहीं. यह इंटरनैट को अच्छे से पता है. वह जानता है कि आप किस तरह के कंटैंट को पसंद करते हैं- आप को खाने में क्या अच्छा लगता है, आप को कैसे कपड़े पहनने पसंद है और आप की सोच क्या है.

 

अगर आप इंस्टा या टिकटौक पर फिटनैस मौडल फौलो करते हैं, तो पोर्न हब का अल्गोरिदम ‘फिट बौडी पोर्न’ सजेस्ट करेगा. ऐसे ही सोशल मीडिया पर जो मीम, जैसे जोक्स, देखते हैं उन के सजेशन सामने दिखाई देते हैं.

 

ऐसे ही इंस्टा की ‘थर्स्ट ट्रैप’ (सैक्सी डांस वीडियो) की पोर्न साइट्स पर कैटेगरी बनी होती हैं. कुल मिला कर सोशल मीडिया हमारी फैंटेसीज को डायरैक्ट इंफ्लुएंस करता है, चाहे वह ट्रैंड्स के जरिए हो, इन्फ्लुएंसर्स के जरिए हो या अल्गोरिदम के.

पोटैटो चिप्स से लेकर दही सैंडविच तक, ये साइड डिशेज बढ़ा देगी खाने का जायका

Side Dishes Recipe In Hindi : दही सैंडविच

सामग्री

1 कप हंग कर्ड द्य 1/2 कप कच्चा नारियल कसा

1-2 हरीमिर्चें द्य 1 टुकड़ा अदरक, 4 ब्रैड स्लाइस

2 बड़े चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि

नारियल को मिर्च, अदरक, नमक व दही के साथ महीन पीस लें. इस चटनी को ब्रैड स्लाइस के बीच लगाएं व दूसरा ब्रैड स्लाइस ऊपर रख कर बंद करें. गरम तवे पर मक्खन लगा कर दोनों तरफ से सेंक लें. तिकोना काट कर गरमगरम सर्व करें.

‘जुकीनी को ट्विस्ट दे कर बनाएंगी तो बच्चे इसे मन से खाएंगे.’

जुकीनी नाचोज

सामग्री

1 जुकीनी, 2 बड़े चम्मच मैदा

1 बड़ा चम्मच कौर्न पाउडर, 1/2 कप ब्रैडक्रंब्स

3 बड़े चम्मच चीज कसा ,  तलने के लिए तेल

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च, 1/2 छोटा चम्मच मिक्स हर्ब्स

3 बड़े चम्मच टोमैटो चिली सौस, नमक स्वादानुसार.

विधि

जुकीनी के स्लाइस काट लें. मैदा व कौर्न पाउडर का पेस्ट बना लें. इस में नमक व मिर्च डाल दें. जुकीनी के स्लाइस को इस घोल में लपेट कर ब्रैडक्रंब्स में रोल कर गरम तेल में डीप फ्राई करें. ऊपर से चीज व मिक्स हर्ब्स डालें. टोमैटो चिली सौस के साथ परोसें.

‘कुछ नया ट्राई करना है तो ऐप्पल की यह डिश बना कर देखें.’

 स्पाइसी ऐप्पल पकौड़ा

सामग्री

1 कप ओट्स आटा, 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर, 1 सेब कटा द्य 1-2 हरीमिर्चें कटी, 1/4 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर

1/4 छोटा चम्मच गरम मसाला, तलने के लिए तेल.

विधि

ओट्स आटे में कौर्नफ्लोर, नमक, दालचीनी पाउडर, गरममसाला व हरीमिर्च मिलाएं. पानी के साथ गाढ़ा घोल बनाएं. इस में सेब डालें व अच्छी तरह मिलाएं. कड़ाही में तेल गरम कर चम्मच से घोल तेल में डाल कर पकौड़े तल लें.

‘पोटैटो के साथ चीज का कौंबिनेशन सभी को अच्छा लगता है.’

पोटैटो चिप्स चीज बाउल

सामग्री

1 पैकेट चिप्स द्य 2 बड़े चम्मच चीज कसा हुआ

2 प्याज कटे द्य 1 बड़ा चम्मच शिमला मिर्च कटी

1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस द्य 1 छोटा चम्मच पिज्जा सीजनिंग.

विधि

एक बाउल में चिप्स डाल कर ऊपर से चीज, प्याज व शिमला मिर्च डालें. फिर टोमैटो सौस व सीजनिंग डाल कर पहले से गरम ओवन में चीज के पिघलने तक रखें फिर सर्व करें. ‘क्रीम और चीज से बनी यह डिश बच्चे लंच बौक्स में भी ले जा सकते हैं.’

क्रीम चीज वोंटोन्स

सामग्री

4-5 स्प्रिंग रोल शीट्स, 150 ग्राम पनीर

1 प्याज कटा द्य 1 हरीमिर्च कटी, 2 बड़े चम्मच थिक क्रीम, 2 बड़े चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि

पनीर, क्रीम, नमक, प्याज व हरीमिर्च को अच्छी तरह मिला लें. स्प्रिंग रोल शीट्स में पनीर की फिलिंग भर कर रोल कर लें. ऊपर से बटर की लेयर लगाएं व 1800 पर गरम ओवन में 7-8 मिनट तक बेक करें. पलट कर बटर लगा कर फिर 3-4 मिनट बेक करें.

Reader’s Problem : देवर को क्राइम शो देखने की लत लग गई है, कहीं वह गलत दिशा में तो नहीं जाएगा?

Reader’s Problem :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 32 वर्षीया विवाहिता हूं. सासससुर नहीं रहे इसलिए 17 साल का देवर साथ ही रहता है. मैं उसे अपने बच्चे जैसा प्यार करती हूं. पर इधर कुछ दिनों से देख रही हूं कि वह टीवी पर अकसर क्राइम शो देखता है और उसी पर बातें भी करता है. कुछ दिनों पहले उस का 2-4 लड़कों से झगड़ा भी हो गया था. मैं ने डांटा तो पलट कर जवाब तो नहीं दिया पर उस ने उस दिन से मुझ से बात कम करता है. क्राइम शो देखने की लत कई बार मना करने पर भी उस ने नहीं छोड़ी है. उस की यह लत उसे गलत दिशा में तो नहीं ले जाएगी? कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

टीवी पर दिखने वाले अधिकतर क्राइम शो काल्पनिक होते हैं, जो समाज में जागरूकता तो नहीं फैलाते अलबत्ता लोगों को गुमराह जरूर करते हैं.

अकसर रिश्ते में धोखाधड़ी, एक दोस्त द्वारा दूसरे दोस्त का कत्ल, पैसे के लिए हत्या, शादी में धोखा, अवैध संबंध, पतिपत्नी में रिश्तों में विश्वास का अभाव दिखाना कहीं न कहीं लोगों के मन में अपनों के प्रति अविश्वास का भाव ही पैदा करता है. यकीनन, टीवी पर दिखाए जाने वाले अधिकतर क्राइम शो न सिर्फ रिश्तों को प्रभावित करते हैं, अपराधियों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं.

हाल ही में एक खबर सुर्खियों में आई थी जिस में एक आदमी ने अपनी ही पत्नी की निर्मम हत्या कर दी थी. जब वह पकड़ा गया तो उस ने पुलिस को बताया कि यह हत्या उस ने टीवी पर प्रसारित एक क्राइम शो देखने के बाद की थी. यह कोई एक मामला नहीं. आएदिन ऐसी घटनाएं घट रही हैं.

अधिकतर क्राइम शो में दिखाया जाता है कि अपराधी किस तरह अपराध करते वक्त एहतियात बरतता है, ताकि वह कानून के चंगुल में फंस न सके. इस से कहीं न कहीं आपराधिक मानसिकता के लोगों का गलत मार्गदर्शन ही होता है.

बच्चों को तो इन धारावाहिकों से दूर ही रखने में भलाई है. और फिर आप के देवर की उम्र तो अभी काफी कम है. उस का मन अभी पढ़ाई की ओर लगना चाहिए. आप उसे प्यार से समझाने की कोशिश करें. उसे अच्छी पत्रिकाएं या अच्छा साहित्य पढ़ने को दें या प्रेरित करें. आप चाहें तो अपने पति से भी बात करें ताकि समय रहते उसे सही दिशा की ओर मोड़ा जा सके.

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Interesting Hindi Stories : अनाम रिश्ता- क्या मानसी को मिला नीरज का साथ

Interesting Hindi Stories :  एयरपोर्ट के अंदर जाने से पहले बकुल ने मां मानसी के पैर छुए तो वे भावुक हो उठीं.

उन्होंने देखा ही नहीं था कि अपनी बाइक से पीछेपीछे नीरज भी बकुल को सी औफ करने के लिए आए हैं. वे उन्हें देख कर चौंक पड़ीं.

बकुल ने नीरज के भी पैर छुए और बोला, ‘‘सर मौम का खयाल रखिएगा.’’

‘‘नीरज तुम?’’ वे आश्चर्य से बोलीं.

‘‘बकुल जा रहा था, तो मुझे उसे छोड़ने तो आना ही था.’’

‘‘आ जाओ मेरे साथ गाड़ी में चलना.’’

‘‘नहीं, मैं अपनी बाइक से आया हूं.’’

उन की निगाहें काफी देर तक बकुल का पीछा करती रहीं, फिर जब वह अंदर चला गया तो अपने युवा बेटे की सफलता की खुशी के साथसाथ उस के बिछोह का सोच कर आंखें छलछला उठीं. वे गाड़ी के अंदर गुमसुम हो कर बैठ गईं. सूनी आंखों से खिड़की के बाहर देखने लगीं.

घर पहुंचीं तो रूपा से कौफी बनाने को कह कर बालकनी में खड़ी हो गई थीं. वह अपने में ही खोई हुई सी थीं.

तभी रूपा बोली, ‘‘मैडम कौफी.’’

वे भूल गई थीं कि उन्होंने रूपा से कौफी के लिए कहा था. वे कप उठा ही रही थीं कि डोरबैल बज उठी. वे समझ गई थीं कि नीरज के सिवा इस समय भला कौन हो सकता है.

‘‘रूपा एक कौफी और बना दो,’’ मानसी बोली.

नीरज जिस ने उन के अकेलेपन में, उन के कठिन समय में, कहा जाए तो हर कदम पर उन का साथ दिया था.

‘‘अकेलेअकेले कौफी पी जा रही है… एयरपोर्ट पर आप का उदास चेहरा देख कर अपने को नहीं रोक पाया और बाइक अपनेआप इधर मुड़ गई.’’

‘‘आज स्कूल नहीं गए?’’

‘‘कहां खोई हुई हैं आप? आज तो संडे है,’’ कह कर आदत के अनुसार हंस पड़ा.

‘‘आज बकुल गया है तो मन भर आया.’

चलो, तुम्हारी इतने दिनों की तपस्या सफल हो गई. तुम्हारा बेटा पढ़ लिख कर लायक बन गया, अब कुछ दिनों में अपनी किसी गर्लफ्रैंड के साथ शादी करने को बोलेगा, फिर अपनी दुनिया में रम जाएगा. यही तो दुनिया की रीति है.’’

‘‘हां वह तो तुम ठीक कह रहे हो, लेकिन जो मेरे जीवन का ध्येय था कि बेटे को कामयाब बनाऊं, वह तो तुम्हारी मदद से पूरा कर ही लिया.’’

‘‘मानसी कभी अपनी खुशी के बारे में भी तो सोचा करो.’’

‘‘तुम मेरे दोस्त हो तो, जो हर समय मेरी खुशी के बारे में ही सोचते रहते हो. अभी देखो बकुल गया इसलिए मन उदास हो रहा था, तो मुझे सहारा देने के लिए आ गए.’’

‘‘हां दोस्ती की है तो जिंदगीभर निभाऊंगा,’’ कह कर वे जोर से हंस पड़े.

नीरज की हंसी उन्हें बहुत मोहक लगती थी. वे भी हंस पड़ी थीं.

‘‘फिर पकड़ो मेरा हाथ,’’ कहते हुए उन्होंने अपना हाथ उन की तरफ बढ़ा दिया.

मानसी ने झिझकते हुए उन के हाथ पर अपना हाथ रख दिया. पुरुष के स्पर्श से उन का सर्वांग कंपकंपा उठा और वे उठ खड़ी हो गईं.

‘‘मानसी, चलो आज हम दोनों लंच के लिए कहीं बाहर चलते हैं… अभी 10 बजे हैं मैं 1 बजे तक आऊंगा.’’

‘‘बैठो. क्यों जा रहे हो?’’

‘‘अरे यार समझ करो अभी नहाया भी नहीं हूं, फिर आप के साथ लंच पर जाना है तो जरा ढंग से कपड़े वगैरह पहन कर आऊंगा. अभी तो बस बाइक उठाई और आ गया था.’’

नीरज चले गए थे. रूपा गाने की शौकीन थी. उस के मोबाइल पर गाना बज रहा था…

‘‘महलों का राजा मिला कि रानी बेटी

राज करे…’’

इस गीत के शब्दों नें उन्हें उन के अतीत में पहुंचा दिया और उन के अतीत का 1-1 पन्ना खुलता चला गया.

कितने सुनहरे सपनों को अपने मन में संजो कर वे अपने घर की देहरी से बाहर निकली थीं. 19 वर्ष की मानसी करोड़पति पिता की लाड़ली थीं. उन्होंने बीए में एडमिशन लिया ही था कि पिता मनोहर लाल ने उन की शादी तय कर दी. पैसे को मुट्ठी में पकड़ने वाले पापा ने बेटी की खुशियों के लिए अपनी तिजोरी का मुंह खोल दिया था. वे भी राजकुमार से स्वप्निल के सपनों में खो गई थीं. जब हाथी पर सवार हो कर स्वप्निल दूल्हे के वेष में आए तो बांके से सलोने युवक की तिरछी सी मुसकान पर वे मर मिटी थीं.

‘‘वाह मानसी, जीजू तो बिलकुल फिल्मी हीरो हैं,’’ जब उन की सहेलियों ने कहा तो वे शरमा उठी थीं.

तभी शीला मौसी आ गई और कहने लगी, ‘कुंवरजी को नजर मत लगा देना छोरियों.’

‘‘जीजाजी ने दामाद तो हीरा जैसा ढूंढ़ा है, राज करेगी मेरी मानसी.’’

सिर से पैर तक जेवरों से लदी हुईं, भारी लहंगे में सजीधजी मानसी ने ससुराल में कदम रखा था, तो वहां पर उन का भव्य स्वागत हुआ. सास मालतीजी और ननदों ने मिल कर उन के सपने साकार कर दिए थे. उन लोगों का लाड़प्यार पा कर वे अभिभूत हो उठी थीं.

स्वप्निल की बांहों में उन्हें जीवन की सारी खुशियां मिल गई थीं. कश्मीर में गुलमर्ग और पहलगाम की वादियों में बर्फ के गोलों से खेलती हुई वहां के सौंदर्य में खो गई थीं. स्वप्निल को घूमने का शौक था, कभी मुंबई के जुहू चौपाटी तो कभी महाबलीपुरम का बीच. कितने खुशनुमा दिन और रातें थीं.

फिर जब उन की जिंदगी में जुड़वां गोलूमोलू आ गए तो उन की जिम्मेदारियां बढ़ गईं और स्वप्निल भी पापा के साथ बिजनैस में बिजी हो गए.

गोलूमोलू 3 साल के थे तब एक दिन स्वप्निल घबराए हुए आए और बोले, ‘‘मानसी अपना बैग पैक कर लेना, सुबह हम लोगों को आगरा पहुंचना है. वन्या दी हौस्पिटल में एडमिट हैं, उन की हालत खराब है.’’

‘‘स्वप्निल, प्लीज सुबह चलिएगा, रात में यदि ड्राइवर को नींद का झंका आ गया.’’

‘‘फालतू बात मत करो. रात में 11-12 बजे निकलेंगे सुबह पहुंच जाएंगे. रात में रोड खाली मिलता है.’’

वे सहम कर चुप हो गई थीं. उन्होंने जल्दीजल्दी कुछ कपड़े बच्चों के और अपने व स्वप्निल के रखे और निकल पड़ी थीं. स्वप्निल की आंखें थकान के मारे नींद से बो?िल हो रही थीं. वे बारबार आंखों पर पानी डाल रहे थे. नियति को दोष दे कर हम सब अपने को दोषमुक्त कर लेते हैं परंतु दुर्घटना के लिए दोषी तो हम भी होते ही हैं.

जीवन में सुख और दुख उसी तरह से सुनिश्चित और संभाव्य हैं जैसे दिन

और रात. खुशियों के झले में झलने वाली मानसी नहीं जानती थीं कि भविष्य उन्हें जीवन के दुखद क्षणों की ओर खींच कर ले जा रहा है. गाड़ी में बैठते ही दोनों बच्चे और वे गहरी नींद में सो गए थे. शायद थके हुए स्वप्निल को भी नींद आ गई. कुछ ही देर में जोर का धमाका हुआ और उन्हें लगा कि कोई पिघला शीशा उन के ऊपर डाल रहा है. फिर कुछ पलों में ही वे मूर्छित हो गई थीं. अफरातफरी का माहौल, रात के गहरे अंधेरे में एक ट्रक ने जोर की टक्कर मार दी थी. सारे सपने तहसनहस हो गए. स्वप्निल उन्हें अकेला छोड़ गए. मोलू भी उन के साथ विदा हो गया.

गोलू को खरोंच भी नहीं आई थी, लेकिन उन का एक हाथ और एक पैर बुरी तरह कुचल गया था इसलिए वे 2 महीने तक नर्सिंगहोम में एडमिट रहीं. पापा आया करते और जरूरी कागजों पर साइन करवाते. न ही वे कहते कि कागज पढ़ लो और न ही वे कोई रुचि दिखातीं. अब तो यही लोग उन के जीवनदाता थे. कभी ईशा दी, कभी मम्मीजी गोलू को ले कर आया करतीं, लेकिन उन्हें बैड पर लेटे देख कर मम्मीजी की गोद में छिप जाता. उन की आंखों से अविरल आंसू बहते रहते. उन के दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था.

गोलू का नाम स्वप्निल ने बकुल रखा था, इसलिए अब सब लोग उसे बकुल ही पुकारा करते थे. उन के मम्मीपापा उन्हें अपने साथ आगरा ले जाना चाहते थे, लेकिन यहां पापाजी का कहना था कि जब तक औफिशियल काम न पूरे हों, तब तक यहीं रहो. बारबार कौन जाएगा साइन करवाने.

उन की अपनी मां दिनरात उन के साथ बनी रहतीं और पापा डाक्टरों से संपर्क में रहते. उन की कई बार प्लास्टिक सर्जरी भी होती रही. जब तक ये सब चलता रहा मम्मीजी खूब प्यार से बोलतीं और उन का ध्यान रखा करतीं.

6 महीने के बाद उन्हें पापा अपने साथ आगरा ले आए. यहां पर सब उन के बुरे दिनों को कोसते. मां के घर में तो बिलकुल भी चैन नहीं था. दादी, ताई, चाची, बूआ आदि का जमावड़ा और बस एक ही बात कि हायहाय 25 साल की छोरी. कैसे काटेगी पूरी जिंदगी और फिर जबरदस्ती रोने का नाटक करते हुए बातों में मशगूल हो जाना. पिछले जन्म के कर्म हैं, वे तो भुगतने ही पड़ेंगे.

ताई बोलीं, ‘‘मानसी तुम एकादशी का व्रत किया करो, मेरे साथ कल से मंदिर दर्शन करने चला करो. वहां गुरुजी बहुत बढि़या सत्संग करवाते हैं,’’

मम्मीपापा को यह विश्वास था कि पूजापाठ से कष्ट दूर हो जाएंगे.

‘‘यह क्या तुम ने लाल चूडि़यां पहन लीं?’’ बूआ ने घर में हंगामा मचा दिया. मम्मी उन के सामने जबान नहीं हिला सकती थीं.

‘‘मानसी अभी तक सो रही हो. उठो आज अमावस्या है. स्वप्निल की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मण भोजन और हवन है,’’ ताई ने उन्हें जगाते हुए जोर से कहा.

वे उठीं और भुनभना कर बोलीं, ‘‘स्वप्निल ने तो मुझे जिंदा ही मरणतुल्य कर दिया है. ऐसी जिंदगी से तो उसी दिन मर जाती तो ये सब न देखना पड़ता,’’ उन का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.

उन की बड़बड़ाहट को बूआ ने सुन लिया, ‘‘वाह रे छोकरी, मरे आदमी को कोस रही है. जाने कौन से पाप किए थे जो भरी जवानी  में  विधवा हो गई. अब तो चेत जाओ कम से कम अगला जन्म तो सुधार लो.’’

वे अपने को अनाथ सा महसूस कर रही थीं, तभी पापा आ गए और जोर से बोले, ‘‘मेरी लाडो को मत परेशान किया करो,’’ और वे पापा से लिपट कर सिसक पड़ीं.’’

अगले दिन सुबह विमला नहीं आई थी. बकुल भूखा था. वे किचन में बगैर नहाए चली गईं. मम्मी आ गईं और उन्हें किचन में देखते ही चिल्ला कर बोलीं, ‘‘मानसी तुम्हें जरा सा सबर नहीं था… मैं नहा कर आ तो रही थी?’’

‘‘बकुल जोर से रो रहा था.’’

‘‘आज पूर्णिमा है तुम ने बगैर नहाए सब छू लिया… अब फिर से किचन धोनी पड़ेगी.’’

‘‘उफ, मां कब तक इन कर्मकांड भरे ढकोसलों में पड़ी रहोगी. आप ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है,’’ वे पैर पटकते हुए अपने कमरे में जा कर सिसक पड़ीं, ‘‘यहां से अच्छा तो मेरे ससुराल वाले मुझे रखते हैं. आगरा रहते हुए 6 महीने हो चुके थे. मालती मम्मीजी का फोन लगभग रोज आ जाता और वे बकुल को याद करती रहतीं.

उन्होंने नाराज हो कर लखनऊ जाने का निश्चय कर लिया था. शायद मम्मी भी उन से परेशान हो चुकी थीं. उन्होंने बकुल से फोन पर कहला दिया, ‘‘दादी मुझे आना है.’’

अगली सुबह मम्मीजी ने गाड़ी भेज दी और वे लखनऊ पहुंच गईं. इस बीच पापा ने ईशा दी को अपने घर में बुला लिया. वे लोग सब अब यहीं रहने वाले हैं, यह बात तो उन्हें बहुत बाद में पता चली थी. उन का जीवन तो बोझ बन चुका था क्योंकि मम्मीजी का झकाव बेटियों की तरफ ज्यादा हो गया था. वे अब एक फालतू चीज बन कर रह गई थीं, जिस की कहीं कोई उपयोगिता नहीं थी. उन के पापा और ससुरजी के बीच जेवर, इंश्योरैंस के पैसे, बैंक लौकर के जेवर और एफडी आदि के लिए मनमुटाव शुरू हो गया था. पापा का कहना था कि उन की बेटी के नाम सब होना चाहिए. अकसर मीटिंग होती. दोनों तरफ के कुछ लोग बैठते. बहसा होती. लेकिन कुछ तय नहीं हो पाता क्योंकि पापाजी कुछ भी देना ही नहीं चाहते थे. लौकर के गहने, और इंश्योरैंस के रुपए, उन का स्त्री धन और कुछ प्रौपर्टी कुछ भी उन के नाम करने को तैयार नहीं हो रहे थे. 2 साल तक वे कभी ससुराल तो कभी मायके अपने दिन गुजारती रहीं.

वन्या दी, ईशा दी और मम्मीजी का एक ग्रुप बन गया था. वे उन्हें अपनी बातों में कम शामिल करतीं. खूब शौपिंग पर जातीं. लेकिन अपना सामान बहुत कम ही उन्हें दिखाया करतीं. वे अपने कमरे में टीवी और मोबाइल में सिर फोड़ती रहतीं.

ईशा दी की बेटी लवी और बकुल में दिनभर लड़ाईझगड़ा तो रोज की बात थी. लवी बड़ी थी, वह चुपचाप उस के चुटकी काट लिया करती. कभी बकुल रोते हुए उन के पास आता कि लवी ने मेरा खिलौना छीन लिया. दिनभर यही सब चलता रहता. वे लवी को कुछ नहीं कह सकती थीं. बकुल ही दिनभर डांट खाता. कभी वे नन्हे से बकुल को थप्पड़ लगा कर रो पड़ती थीं. मम्मीजी उस को अपनी गोद में बैठा कर प्यार तो करतीं, लेकिन लवी को कुछ न कहतीं.

एक दिन दोनों बच्चे लड़ रहे थे तो बकुल ने लवी को धक्का दे दिया. वह गिर गई

और होंठ में दांत चुभ गया. दी ने आव देखा न ताव बकुल के गाल पर जोर का थप्पड़ लगा दिया और जोरजोर चीखने लगी तो वे सह नहीं सकीं. गुस्से में बोलीं, ‘‘दी आपने नन्हे से बकुल को इतनी जोर से मारा कि देखिए उस के गाल पर आप की सारी उंगलियां छप गई हैं.’’

‘‘यह नहीं दिखता कि बकुल ने लवी को कितनी जोर से धक्का दिया है. कभी अपने बेटे को भी समझया करो. अब तुम बहुत बोलने लगी हो. भैया तो हैं नहीं जो तुम्हें कंट्रोल करें. अब तो बिना लगाम की घोड़ी बन गई हो,’’ वे बहुत देर तक बकबक करती रही थीं. मम्मीजी मूकदर्शक बनी सब सुनती रही थीं.’’

वे घंटों तक अपने कमरे में सिसकती रही थीं. मासूम बकुल उन के आंसू पोछता रहा.

वन्या दी भी आती रहतीं. ईशा दी तो रहती ही थीं. घर कभी खाली न रहता. वे बहू का फर्ज निभातेनिभाते दुखी हो जाती थीं. इस के बावजूद रोज की चिखचिख. खाना कैसा बना है. सलाद नहीं कटा, सब्जी बेकार है. दाल पतली है.

‘‘मानसी, तुम क्या करती रहती हो? रसोइए से ढंग से खाना भी नहीं बनवा सकतीं? जब खाने बैठो, तो इतना बेकार खाना,’’ कहते हुए पापाजी डाइनिंग टेबल से उठ गए थे. फिर तो हंगामा होना स्वाभाविक ही था.

ईशा दी के पति विनय उन के कमरे में आ कर उन्हें ज्ञान देने लगे, ‘‘भाभी, आप अकेली हो. भैया तो हैं नहीं. छोटा सा बच्चा भी साथ में है. इसलिए आप चुप रहा करिए और घर के कामों पर अपना ध्यान दिया करिए.’’

अब तो जबतब जीजू मौका देख कर उन से बात करते और उन के नजदीक भी आने की कोशिश करने लगे थे. अब वे उन के सामने जाने से कतराया करती थीं. वे उन की ललचाई निगाहों से झलस कर रह जाया करती थीं.

एक दिन तो हद हो गई जब अकेला पाते ही उन्होंने उन्हें अपने आगोश में जकड़ लिया. उन्होंने गुस्से में आव देखा न ताव एक थप्पड़ उन के गाल पर जड़ दिया.

वे उलटे चीखचीख कर कहने लगे कि यह तो उन्हें कब से परेशान कर रही थी. आज मौका लगते ही गले ही पड़ गई. मैं इसे धक्का न देता तो यह न जाने क्या करती.

सब लोग सबकुछ जानसमझ रहे थे, लेकिन वहां पर उन की तरफ से बोलने वाला तो कोई था ही नहीं क्योंकि उन का पति तो उन्हें मझधार में छोड़ कर जा चुका था. उन का जीवन तो बिना नाविक की नाव की तरह हो गया था जो भंवर में डूबउतरा रही थी. काश, पापा ने उन्हें पढ़लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा किया होता तो वे इस तरह से मायके और ससुराल की ठोकरें न खातीं.

अपनी बेबसी पर वे रो पड़ी थीं. अब उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वे

अब यहां एक दिन भी नहीं रहेंगी. उन्होंने पापा को फोन कर दिया था. वे सुबह आ गए, फिर तो जोर का झगड़ा शुरू हो गया. बकुल के लिए खींचातानी. बकुल स्वप्निल की निशानी है, इसलिए वह यहां पर उन लोगों के साथ ही रहेगा.

5 साल का अबोध बकुल भला क्या निर्णय लेता पापा 7-8 लोगों को ले कर आए. लंबी बैठक होती रही. जिन के भविष्य का फैसला होना था, उन की इच्छाअनिच्छा से किसी को कोई मतलब नहीं था. वे सब आपस में बुरी तरह उलझे हुए थे. जोरजोर से कहासुनी हो रही थी. पापा का कहना था कि उन्होंने मानसी को एक किलोग्राम सोने के जवर दिए थे. वह उस का स्त्रीधन है. आप को देना पड़ेगा. शादी में क्व4 करोड़ खर्च हुए थे, उस की भरपाई कैसे होगी?

अखिल पापाजी कह रहे थे, ‘‘यहां पर हम लोग उसे बेटी को तरह रख रहे हैं और इसे कोई बिजनैस करवा देंगे आखिर में वह मेरे वारिस की मां है, इसलिए इन लोगों को यहीं रहना होगा. जैसे पहले रहती थी वैसे रहे… जैसे मेरी ईशा वैसे यह मेरी तीसरी बेटी है.’’

नौबत यहां तक आ गई कि गालीगलौज और हाथापाई की स्थिति बन गई थी और मेरे पापा घमंड में बोले, ‘‘अखिल, कमीने, तेरा पाला जैसे रईस से पड़ा है, तेरे मुंह पर मैं मारता हूं सारा पैसा, सोना. तू पहले भी भिखमंगा था. शादी के नाम पर कहता रहा मुझे गाड़ी दो, सोना दो, कैश दो… नीच कहीं का.’’

पापा को अपने पैसे का गुरूर था और उन का अपना बचपना… बकुल को पापा ने अपनी गोद में उठाया और उन की उंगली पकड़ कर मैं बाहर गाड़ी में बैठ कर आगरा आ गई.

आगरा रहते भी 2 साल बीत गए थे. पापा ने एक साधारण परिवार के लड़के को पैसे का लालच दे कर उन के साथ शादी करने को राजी कर लिया. उस का नाम पीयूष था. वह भरतपुर में रहता था और वह इंश्योरैंस का काम करता था. इसी सिलसिले में वह पापा के पास आया करता और अपने को बैंक में कैशियर हूं, बताया करता. बकुल के लिए कभी चौकलेट तो कभी गेम वगैरह दे कर जाता. फिर धीरेधीरे उन के साथ भी मिलनाजुलना होने लगा. वह उन्हें भी लंच पर ले जाता. भविष्य को ले कर बातें करता. प्यार भरी बातें फोन पर भी होतीं. उस की आकर्षक पर्सनैलिटी की वे दीवानी होती जा रही थीं. उस के प्यार में वे अंधी हो रही थीं.

पीयूष ने कहा कि उन की मां बैड पर हैं, इसलिए वे चाहती हैं कि जल्दी से शादी कर ले, तो वे बहू को देख लें और उन्हें तो साथ में पोता भी मिल रहा है. पीयूष और बकुल के बीच जो ट्यूनिंग थी उस से वे आश्वस्त हो गई थी कि बकुल को पापा मिल जाएगा और उन के जीवन में फिर से खुशियां दस्तक दे देगी… उन के जीवन का अधूरापन भी समाप्त हो जाएगा. वे सादे ढंग से मंदिर शादी करना चाहती थीं, परंतु पीयूष की मां अपने बेटे को दूल्हे के वेष में देखने का सपना पूरा करना चाहती थीं.

फिर से वही धूमधाम हुई और वे पीयूष की दुलहनिया बन कर उस के घर पहुंच गईं. कुछ महीनों तक तो सबकुछ ठीकठाक रहा, लेकिन वे समझ गई थीं कि वह ठगी जा चुकी हैं. उन्हें बाद में मालूम हुआ कि पापा ने क्व20 लाख का लालच दिया था, इसलिए उस ने शादी की थी.

कुछ दिनों के बाद ही पीयूष दारू के नशे में रात में देर से आने लगा. नशे में बोलता कि तू तो जूठन है. तुझे छूने में घिन आती है. रोज रात को गालीगलौज करता. सुबह उठ कर झड़ू बरतन, नाश्ता, खाना बनाना, उन के लिए बहुत मुश्किल था. सबकुछ करने के बाद भी पीयूष की मां चिल्लातीं, ‘‘अपशकुनी एक को तो खा गई अब क्या मेरे लाल को भी खाएगी क्या.’’

पीयूष अपने साथ उन्हें मां के घर ले कर जाता और थोड़ी देर में लौटा लाता. पापा से कह कर उन्होंने एक नौकरानी बुलवाई, तो पीयूष के आत्मसम्मान को चोट पहुंची और वह नाराज हो उठा क्योंकि उस के मन में चोर था कि यहां की सब बातें नौकरानी के द्वारा मानसी के मातापिता तक पहुंच जाएंगी. इसीलिए पीयूष ने उसे तुरंत भगा दिया.

पीयूष की मां पैरालाइज्ड थीं. उन्हें नहलाना, गंदगी साफ करना जैसे काम उन के लिए बहुत कष्टदाई थे, परंतु 1 साल तक उस नर्क में गुजर करने की कोशिश करती रही थीं.

पीयूष ने झठ बोला था. वह बैंक में नौकरी नहीं करता था. उस ने पापा से दौलत ऐंठने के लिए शादी का ड्रामा रचा था. नन्हा बकुल पीयूष को देखते ही सहम जाता था, एक दिन वे बकुल को पढ़ा रही थीं कि नशे में झमता हुआ वह आ गया और बकुल को गाली दे कर उस की किताब उठा कर हवा में उछाल दी. फिर उसे जोर से धक्का देते हुए गालियों की बौछार कर दी. वे तेजी से उठीं और पीयूष के समने खड़ी हो कर बोली, ‘‘खबरदार यदि मेरे बेटे के साथ बदतमीजी की या उस पर हाथ उठाया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

वह न जाने किस नशे में डूबा हुआ था सो उस ने उन्हें भी जोर का धक्का दे दिया, ‘‘मुझ से मुंहजोरी करेगी… तेरी ऐसी दशा करूंगा कि सारा घमंड चूर हो जाएगा.’’

उन्होंने दीवार का सहारा ले कर अपने को गिरने से बचा लिया, परंतु उस दिन पीयूष की बदतमीजी और गालियां उन के लिए सहना मुश्किल हो गया.

बकुल उन की बांहों के घेरे में देर घंटों तक सिसकता रहा. वे भी कमरा बंद कर के आंसू बहाती रहीं.

सुबह हमेशा की तरह पीयूष उन के पैर पकड़ कर माफी मांगता रहा. लेकिन अब उन्होंने फैसला कर लिया था इस नर्कभरी जिंदगी से मुक्त होने का. अगले दिन मुंह अंधेरे बकुल का सामान एक बैग में रख कर वे भरतपुर से आगरा आने वाली बस में बैठ गई.

उस दिन एक नई मानसी ने जन्म लिया था. उन्होंने तय कर लिया था कि अब वे

अपने जीवन के निर्णय स्वयं किया करेंगी.

वे क्रोध में धधकती हुई अपने घर पहुंचीं और अपने पापा पर बरस पड़ी, ‘‘पापा, आप ने अपने पैसे के घमंड में मेरी जिंदगी को तमाशा बना कर रख दिया है. एक लालची को आप ने क्व20 लाख दे कर मेरे जीवन का सौदा कर दिया. अब किसी दूसरे ने आप से ज्यादा मोटी नोटों की गड्डी उस के मुंह पर मार दी और बस वह उन के सामने कुत्ते की तरह दुम हिलाने लगा. पापा आप ने न ही पीयूष के बारे में कुछ ठीक से पता लगाया और न ही ढंग से उस का घर देखा. उस की चिकनीचुपड़ी बातों में आप फंस गए. उस ने दूसरे के घर को अपना घर बताया. बस आप ने झटपट अपनी बेटी उसे सौंप दी. आप ने अपने पैसे के बलबूते बेटी को उस के हवाले कर के उस की जिंदगी को तमाशा बना कर रख दिया.’’

‘‘बस बहुत हुआ. अब आगे कोई तमाशा नहीं होगा. मैं पीयूष के बच्चे को जेल की हवा खिलाऊंगा देखती जाओ… कमीना कहीं का.’’

‘‘पापा भैया की शादी होने वाली है , इसलिए मैं कमला नगर वाले फ्लैट में अकेली

रहा करूंगी.’’

उन की बात सुन कर मम्मीपापा कसमसाए थे लेकिन अब उन की हिम्मत नहीं थी कि वह बोलें. उन की सहायता के लिए सेविका लक्ष्मी भी आ गई थी.

बकुल 5वीं कक्षा में आ गया था. उसे पढ़ालिखा कर अच्छा इंसान बनाना ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था, परंतु अभी तो नियति को उन के हिस्से के बहुत सारे पन्ने लिखने बाकी थे.

उन्होंने एक बुटीक खोल लिया और उस में मन लगाने लगी थीं. बुटीक चल नहीं पा रहा था. अत: उन का बुटीक से भी मन उचटता जा रहा था.

मालती मम्मीजी का मायका आगरा में ही था. वे अकसर अपनी मां से मिलने आती रहती थीं और उन के जीवन के हर उतारचढ़ाव की जानकारी रखती थीं क्योंकि वे अपने मायके में पहले भी महीनों रहा करती थीं. वे पहले कई बार उन्हें फोन किया करतीं, लेकिन वे कभी फोन उठाया करतीं और न ही कभी मिलने गईं, जबकि वे बारबार उन से मिलने के लिए आग्रह करती रहती थीं.

एक दिन वे बकुल के लिए ढेरों सामान ले कर उन के घर आ गईं. बकुल उन से चिपट गया और दादी मैं आप के साथ चलूं कहने लगा. दादीपोते का मिलन देख उन की आंखें भी भर आईं. वे महसूस कर रही थीं कि उन की वजह से बच्चे का मासूम बचपन छिन गया है. उस के मन में अपनी दादीबाबा और बूआ लोगों के प्रति प्यार था, कहीं कोने में एक सौफ्ट सा कार्नर था.

जितनी देर दादी रहतीं बकुल बहुत खुश रहता. वे अपने साथ उसे ले जातीं कभी आइस्क्रीम पार्लर तो कभी डिनर या लंच पर धीरेधीरे उन्होंने उन के साथ भी नजदीकियां बढ़ा लीं. वे बोलीं कि यहां अकेले रहती हो. वहां इस के बाबा तो तुम लोगों को देखने के लिए तरस रहे हैं… आदि वहां अपना बुटीक चला ही रहा है, उसी में काम बढ़ा लेना.

अनिश्चित सी धारा में जीवन बहे जा रहा था. बकुल भी बड़ा हो रहा था. वह उद्दंड और जिद्दी होता जा रहा था. उन के लिए उसे अकेले संभालना मुश्किल होता जा रहा था. वह उन्हें ही दोषी मानता था कि दादी का घर आप ने क्यों छोड़ा. वह कहता कि किसी दिन बाबा के पास अकेले ही चला जाएगा.

वह स्कूल नहीं जाना चाहता था, ट्यूशन

नहीं पढ़ना चाहता. बस मोबाइल या लैपटौप पर गेम खेलने में मशगूल रहता. वे तरहतरह से समझया करतीं.

मम्मी कभी किसी गुरु से ताबीज ला कर पहनातीं तो कभी उन की भभूत या जल उद्दंड बकुल उन्हीं के सामने उठा कर फेंक देता. उन्हें भी इन चीजों पर कोई विश्वास नहीं था.

पापा का पैसे का दिखावा बंद ही नहीं होता था. आज ये गुरुजी आ रहे हैं तो कल अखंड रामायण हो रही है. बेटी तुम इस मंत्र का जाप करते हुए 11 माला किया करो. बिटिया तुम्हारा मंगल भारी है इसीलिए वैवाहिक जीवन में संकट आ जाता है. मंगल का व्रत किया करो. बाबूजी मैं ऐसी पूजा करूंगा कि बिटिया के जीवन में खुशियां लौट आएंगी.

वे क्रोध में धधक पड़ी थीं, ‘‘पापा आप मेरी चिंता बिलकुल छोड़ दें. यदि ये गुरुजी मेरे जीवन में खुशियों की गारंटी लेते हैं तो ये अपना जीवन क्यों नहीं सुधार लेते? पाखंडी ठग कहीं के. बस लोगों को मूर्ख बना कर पैसा ऐंठना ही इन का धंधा है.’’

पापा भी उस दिन उन से नाराज हो गए कि यह जनम तो बिगड़ ही रखा है अगला भी बिगाड़ रही है. जो मन आए वह करो. कह कर चले गए.

मांपापा से उन्हें चिढ़ हो गई थी. पापा की जल्दबाजी में ही उन का जीवन बरबाद हुआ था. यदि पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होतीं तो भला उन के साथ यह सब होता.

स्वप्निल को दुनिया से विदा हुए 10 वर्ष पूरे हो चुके थे. पापाजी ने उन

की याद में एक मंदिर बनवाया था, जिस का उद्घाटन वे बकुल और उन के हाथों से करवाना चाहते थे, इसलिए पापाजी खुद उन्हें बुलाने के लिए आए थे. बकुल तो उन को देखते ही उन से लिपट गया और उन के साथ ही लखनऊ जाने के लिए मचल उठा. वहां चलने की जिद्द करता हुआ खानापीना छोड़ कर बैठ गया.

वे बकुल की बढ़ती उद्दंडता, उस का मोटापा, उस की बद्तमीजी के कारण परेशान हो चुकी थीं. मम्मीपापा उन को लखनऊ भेजने के लिए बिलकुल भी राजी नहीं थे, परंतु जब वन्या दी गाड़ी ले कर खुद आईं तो वे उन को देख कर भावुक हो गईं और उन के साथ लखनऊ पहुंच गई थी. वहां सब का लाड़प्यार पा कर उन्हें खुशी महसूस हुई थी.

एक बार उन्होंने स्त्रीधन और बकुल की परवरिश व खर्च की बात उठाई तो पापाजी ने उन के सामने सारे कागजात चाहे ऐक्सीडैंट का क्लेम, एफडी, प्रौपर्टी, लौकर से उन के गहने ला कर रख दिए. जब उन्होंने महीने के खर्च की बात करी तो फिर से माहौल गरम हो गया, लेकिन इस बार मम्मीजी ने बीचबचाव कर के यह कह दिया कि यदि यहां नहीं रहना चाहती तो गोमती नगर वाले फ्लैट में रह सकती हो. तुम मेरी बेटी हो, मेरी आंखों के सामने रहोगी और बकुल भी यहां रहेगा तो हम लोगों को खुशी होगी.

पापाजी भावुक हो कर बोले, ‘‘स्वप्निल तो  हम लोगों को छोड़ गया. अब उस की निशानी हम लोगों से मत दूर करो. जितना कुछ है सब बकुल के बालिग होने पर उसे मिलने वाला है. तब तक वे बकुल की कस्टोडियन बनी रहेंगी.’’

मम्मीजी का बुटीक था वे उसे उन्हें सौंपने को तैयार थीं.

एक तरह से सब उन के मनमाफिक हो रहा था. सब से खास बात तो यह थी कि बकुल उन लोगों के बीच बहुत खुश था और वहीं रहने की जिद कर रहा था.

उन्होंने अपनेआप फैसला किया कि बकुल की खुशी के लिए वे यहां रुकने को तैयार हैं. सब के चेहरे पर खुशी छा गई. बकुल दादीबाबा के पास आ कर बहुत ही खुश था.

बकुल का एडमिशन सिटी मौंटेसरी स्कूल में पापा ने करवा दिया. घर के कामों के लिए मम्मीजी ने सुरेखा को भेज दिया. सबकुछ उन के अनुकूल ही हो रहा था. बकुल की ट्यूशन के लिए पापाजी ने नीरज को भेज दिया.

लगभग 35-40 का नीरज गेहुएं रंग का सुदर्शन सा युवक था. वह सहमासहमा सा रहता, लेकिन पहली नजर में ही उन्हें वह अपनाअपना सा लगा. वह बकुल को पढ़ाने के साथसाथ इतना लाड़दुलार करता कि वह उन की बातों को बहुत ध्यान से सुनता और उन का कहना मानता. उस के स्वभाव में जल्द ही परिवर्तन दिखने लगा. वह अपने सर का इंतजार करता और उन का दिया होमवर्क पूरा कर के रखता.

धीरेधीरे नीरज उन से भी खुलने लगे थे. उन की पत्नी भी अपने बेटे को

ले कर उन्हें छोड़ कर अपने आशिक के साथ चली गई थी, इसलिए बकुल में उन्हें अपना बेटा सा नजर आता था.

वे स्वयं भी अपनी परित्यक्ता मां के इकलौते चिराग थे. अपनी मां के संघर्षों को, उन के अकेलेपन को, उन की मुसीबतों को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया था और अब किसी तरह से पोस्ट ग्रैजुएट हो कर एक कालेज में लैक्चरर बन गए थे, जहां क्व12 हजार दे कर क्व40 हजार पर साइन करवाते थे. अखिल अंकल उन के पापा के पुराने दोस्त थे और उन पर उन के बहुत एहसान भी थे. उन्हें पैसे की जरूरत भी थी. बस वे इस ट्यूशन के लिए तैयार हो गए थे.

बकुल को देख उन्हें अपने बचपन की दुश्वारियां और अकेलापन याद आने लगता था, इसलिए उन्हें अपना खाली समय उस के साथ बिताना अच्छा लगता था. वे छुट्टी वाले दिन बकुल को ले कर कभी अंबेडकर पार्क, कभी जू तो कभी इमामबाड़ा ले कर जाते और दोनों साथ में मस्ती कर के खुश होते. शायद बकुल को नीरज के अंदर अपने पापा की प्रतिमूर्ति दिखने लगी थी. बकुल के सुधरने की वजह से वे उन की बहुत एहसानमंद थी.

कभी नीरज अपनी दुख की कहानी सुनाते तो कभी वे अपने जीवन की व्यथा सुनातीं. बस दोनों को एकदूसरे से बातें करना अच्छा लगता. वे मन ही मन उन्हें प्यार करने लगी थीं. नीरज के लिए नाश्ता बनातीं, उन के आने से पहले तैयार हो जातीं और उन का इंतजार करतीं. जब नीरज के चेहरे पर मुसकराहट आती तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था. जब वहे उन की बनाई चाय या खाने की तारीफ करते तो वे खुश हो जातीं.

चाहे उन की इच्छा हो या बकुल को पूरा करने के लिए वे हर समय तैयार रहते.

उन का बुटीक भी अच्छा चल रहा था. बकुल को हाई स्कूल में 98% मार्क्स मिले उन के तो पैर ही जमीं पर नहीं पड़ रहे थे.

मम्मीजीपापाजी उन की और नीरज की नजदीकियों से नाराज हो गए थे, लेकिन अब उन्हें किसी की परवाह नहीं थी. बकुल अपने दोस्तों और कोचिंग में बिजी हो गया था, परंतु नीरज के साथ वह अपनी सारी बातें शेयर करता.

नीरज के बिना अब उन्हें अपनी जिंदगी अधूरी लगने लगी थी. बकुल बड़ा हो

चुका था. वहीं लखनऊ से ही इंजीनियरिंग कर रहा था. उन्हें अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी और न ही अब कोई परवाह थी कि कौन क्या कह रहा है. जिसे मन हो रिश्ता जोड़ें न मन हो तो तोड़ दे. वे अपनी दुनिया में खुश थीं, नीरज को पहली नजर में देखते ही उन्हें एहसास हुआ था कि हां यही प्यार है. प्यार में कोई ऐक्सपैक्टेशन नहीं होती. बस बिना किसी चाहत के किसी को दिलोजान से चाहो. शायद इसे ही प्यार में डूब जाना कहते हैं.

नीरज ने हर कदम पर उन का साथ दिया था यद्यपि दोनों ने ही इस रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया था, लेकिन इस अनाम रिश्ते ने उन के जीवन में पूर्णता ला दी थी.

घंटी की आवाज से उन की तंद्रा टूटी.

नीरज तैयार हो कर आए तो वे अपने पर कंट्रोल नहीं कर सकीं और बच्चे की तरह उन की बांहों में झल गईं.

Hindi Folk Tales : लिपस्टिक – बौस की नजर में कौन रही सटीक

Hindi Folk Tales : मधुरिमा ने लाल ड्रैस के साथ लाल रंग की लिपस्टिक लगाई और जब वह आईने में देखने लगी तो उसे खुद अपने पर प्यार आ गया था.

मन ही मन खुद पर इतराते हुए वह सोच रही थी कि आज की डील तो फाइनल हो कर ही रहेगी. जब स्त्री हो कर उस का अपना मन खुद को देख कर काबू नहीं हो पा रहा है तो पुरुषों का क्या कुसूर?

औफिस पहुंची. मिस्टर देवेश उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. उसे देखते ही उन्होंने शरारत से सीटी बजाई. ये ही तो हैं उन की कंपनी का तुरुप का इक्का. लड़की में गजब का टैलेंट हैं. वह जहां कहीं भी उन के साथ जाती हैं, डील करवा कर ही आती हैं. 23 वर्ष की उम्र के हिसाब से मधुरिमा काफ़ी तेज़ थी.

मिस्टर देवेश जैसे ही मधुरिमा के साथ बाहर निकले तो करिश्मा से टकरा गए. करिश्मा को देखते ही उन का मूड खराब हो गया था. करिश्मा अगर चाहे तो इस कंपनी के वारेन्यारे कर सकती है, पर उसे तो बस काम से मतलब है. प्रैजेंटेशन गजब का बनाती है और हर क्लाइंट को अपनी बात अच्छे से समझाने में सक्षम है. पर फिर भी वह  आज तक उस लक्ष्मणरेखा को पार नहीं कर पाई है, जिसे बड़ी आसानी से पार कर के मधुरिमा ने अपने लिए सोने की लंका खड़ी कर ली थी.

मधुरिमा ज़्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. पर मर्दों को पटाने में दक्ष थी. यह ही उस की काबिलीयत थी जिस के सहारे वह धीरेधीरे एक रिसैप्शनिस्ट के पद से बौस की ख़ास बन गई थी. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि मधुरिमा, मिस्टर देवेश की उपपत्नी है. पर इन सब बातों से मधुरिमा की तेज रफ़्तार पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.

करिश्मा जब मधुरिमा से कहती, ‘मधु, हर कंपनी में ऐसा वर्क कल्चर नहीं होता है. कुछ स्किल्स बढ़ाओ, कब तक इस कंपनी में रेंगती रहोगी?’

मधुरिमा तब मुसकराते हुए बोलती, ‘जिस के पास जो है करिश्मा, वह उसे ही तो प्रयोग करेगा. तुम जैसी साधरण शक्लसूरत वाली लड़कियां मुझ से अधिक पढ़ालिखा होने पर भी, मुझ से कम कमा रही हैं. प्रैजेंटेशन तुम बनाती हो, पर प्रोजैक्ट मैं ही फाइनल करवा सकती हूं. मेरी बात मानो, इस मुर्दनी से चेहरे पर लिपस्टिक के एकदो कोट अवश्य लगा लिया करो, सामने वाले को अच्छा लगेगा.’

करिश्मा को मालूम था कि मधुरिमा कुछ गलत नहीं कह रही थी. पर वह उन लड़कियों में से नहीं थी जो काबिलीयत के बजाय लिपस्टिक के बलबूते पर तरक़्क़ी करती हैं.

अगले दिन औफिस में मिस्टर देवेश ने पार्टी का आयोजन किया था. पार्टी के मौके पर मिस्टर देवेश ने बोला, ‘हमारी इवैंट कंपनी के लिए आज बहुत बड़ा दिन है. मिस मधुरिमा की मेहनत के कारण हमें इस वर्ष का सब से बड़ा कौन्ट्रैक्ट मिला है.

दफ़्तर के सभी लोगों के चेहरों   पर व्यंग्यात्मक मुसकान आ गई थी. मधुरिमा पार्टी की स्टार थी.

करिश्मा का मन खिन्न हो उठा था. दिनरात मेहनत कर के उस ने प्रैजेंटेशन बनाई थी. अगर प्रैजेंटेशन ही अच्छी न बनती तो उन लोगों को वहां एंट्री ही न मिल पाती. करिश्मा यही  सब सोच रही थी कि विवेक हाथों में जूस का गिलास ले कर आ गया और बोला, ‘करिश्मा, क्या सोच रही हो?’

‘इस रंगबिरंगी दुनिया का यह उसूल है कि  जो दिखता है वह ही बिकता है,’ करिश्मा बोली, ‘जानते तो हो , मैं चाह कर भी उस राह पर नहीं चल सकती.’

विवेक को करिश्मा से लगाव सा था. इस कंपनी में वह सब से अलग थी. विवेक करिश्मा को उत्साहित करते हुए बोला, ‘करिश्मा, तुम मेहनत करती रहो, मुझे विश्वास है कि तुम जरूर कोई करिश्मा कर के रहोगी.’

ग्रे और पर्पल सूट में करिश्मा बहुत ही सौम्य लग रही थी. वहीँ, मधुरिमा लाल फ्रौक में एकदम आग लग रही थी.

आज करिश्मा जैसे ही दफ़्तर में घुसी, तो देखा एक नया  चेहरा मिस्टर देवेश के केबिन में था. विवेक करिश्मा को देख कर हंसते हुए बोला, ‘अब देखो, मधुरिमा की  नई प्रतिद्वंद्वी आ गई है.’

करिश्मा गुस्से से  बोली, ‘क्या पता काम में बढ़िया हो, तुम लड़कियों के बारे में बहुत जजमैंटल हो, विकास. हर छोटे कपड़े पहनने वाली लड़की नाक़ाबिल नहीं होती.’

मिस्टर देवेश की छोटी सी इवैंट कंपनी थी- ‘पार्टी मास्टर.’ मिस्टर देवेश कानपुर  से दिल्ली नौकरी करने आए थे. लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया था कि उन की नौकरी के वेतन में उन के बड़ेबड़े सपने पूरे नहीं हो सकते. इसलिए कुछ सालों बाद उन्होंने यह इवैंट मैनेजमैंट कंपनी खोल ली थी. शुरू के एकदो वर्ष के भीतर ही उन्हें समझ आ गया था कि मेहनत के साथसाथ इस क्षेत्र में सफल होने के लिए और भी हुनर चाहिए. धीरेधीरे उन की कंपनी में विवेक, करिश्मा, मधुरिमा, सोहैल और जस्सी जुड़ गए थे. सोहैल और जस्सी कंपनी के लिए प्रोजैक्ट लाते थे. उन प्रोजैक्ट के लिए प्लानिंग का काम करिश्मा और विवेक करते थे. लेकिन बहुत बार फाइनल होतेहोते डील अटक जाती थी. हाई सोसाइटी में बहुत सारे क्लाइंट्स को कुछ फ़ेवर चाहिए होते थे.

मिस्टर देवेश ने इशारों से करिश्मा को ये सब समझाना चाहा था लेकिन वह टस से मस नहीं हुई थी. तभी सोहैल के तहत मधुरिमा का इस कंपनी में पदार्पण हुआ था. मधुरिमा कपड़ों के साथसाथ विचारों में भी काफी खुली हुई थी. उस ने  ‘पार्टी मास्टर’  को ग्लैमरस बना दिया था. कंपनी बहुत तेजी के साथ तरक्क़ी की राह पर अग्रसर थी. मधुरिमा कहने को किसी भी कार्य में

दक्ष नहीं थी पर वह देवेश को खुश करने के साथसाथ सारे क्लाइंट्स का भी ख़याल रखती थी. मधुरिमा ‘पार्टी मास्टर’ की स्टारपरफौर्मर थी.

परंतु आज यह शेख और हसीन चेहरा देख कर हर कोई एकदूसरे की तरफ देख रहा था. तभी मिस्टर देवेश केबिन से बाहर आए और बोले, ‘फ्रेंड्स जैसेजैसे हमारी कंपनी तरक्की कर रही है, हमारा परिवार भी बढ़ रहा है. ये हैं मिस नताशा,जो मिस भोपाल रह चुकी हैं. मैं आशा करता हूं, अब हमारी कंपनी का सक्सैस ग्राफ़ और तेज़ी के साथ ऊपर जाएगा.’

विवेक, जस्सी के कान में फुसफुसा रहा था, ‘हमारा काम तो और बढ़ गया है. ये लड़कियां उलटेसीधे तरीके से प्रोजैक्ट हथिया लेंगी और करिश्मा व मुझे रातदिन मेहनत करनी पड़ेगी.’

आज मधुरिमा के बजाय मिस्टर देवेश का पूरा ध्यान नताशा की तरफ था. मधुरिमा के चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उस के चेहरे पर राख पोत दी हो.

अब औफिस का नज़ारा बदल गया था. मिस्टर देवेश को नताशा से बहुत उम्मीदें थीं. अब मधुरिमा लिपस्टिक के कितने भी शेड्स लगा ले लेकिन मिस्टर देवेश को कोई भी शेड आकर्षित नहीं कर पाता था. क्लाइंट्स को भी अब नई लिपस्टिक गर्ल में अधिक इंटरैस्ट था. मधुरिमा के इतिहास और भूगोल से वे सब भलीभांति परिचित थे. अब उन्हें कुछ नया चाहिए था.

एक दिन मिस्टर देवेश, नताशा के साथ किसी मीटिंग को अटेंड करने गए हुए थे. करिश्मा विकास के साथ प्रैजेंटेशन बनाने में व्यस्त थी. मधुरिमा जस्सी और सोहैल के साथ ऐसे ही गपें लगा रही थी. तभी एक औरत ने दनदनाते हुए औफिस में प्रवेश किया. गौर वर्ण, छोटीछोटी बिल्ली जैसी सतर्क आंखें, उठी हुई नाक और विलासी मोटे अधर. आते ही  तेजी से हुंकार

भरते हुए बोली, ‘कौन हैं मधुरिमा?’

मधुरिमा उठते हुए बोली, ‘जी, मैं.’

वह औरत लगभग चिग्घाड़ते हुए बोली, ‘तुम जैसी लड़कियां मेरे पति के लिए बस एक टाइमपास हो. तुझे क्या लगा, अपने पेट में किसी का भी पाप ले कर घूमेगी और उस का इलजाम मेरे पति पर लगाएगी? उस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह ऐसा करे, तू बस उस के लिए ऐयाशी के समान से ज्यादा कुछ नहीं है. जिस का बच्चा है, या तो उस के साथ शादी कर ले या मार दे. पर यहां से तेरा कोई फायदा नहीं होगा.’

जैसे आंधी की तरह वह औरत आई थी, वैसे ही तूफान की तरह चली गई. मधुरिमा जहां थी वहीं की वहीं की वही खड़ी रही और उस का शरीर पत्ते की तरह कांप रहा था. करिश्मा ने दूर से देखा, मधुरिमा का चेहरा हल्दी की तरह पीला पड़ गया था. अगर सोहैल सहारा न देता तो मधुरिमा जरूर लड़खड़ा कर गिर पड़ती. विकास और करिश्मा मधुरिमा को डाक्टर के पास ले कर गए. डाक्टर ने विकास से पूछा, ‘आप इन के हस्बैंड हैं क्या? देखिए, इन का तीसरा माह शुरू होने वाला है, ऐसी हालत में इतना तनाव इन के लिए सही नहीं है.’

उस रात विकास की सलाह पर  करिश्मा, मधुरिमा के पास उस के घर में ही रुक गई थी. उस के घर की हर दरोदीवार पर मिस्टर देवेश की मौजूदगी के चिन्ह इंगित थे. रात में खाना खाते हुए जब करिश्मा ने मधुरिमा से पूछा, ‘मधु, क्या करना है, क्या अकेले पाल पाओगी इस बच्चे

को?’

मधु आंखों में आंसू भरते हुए बोली, ‘देवेश इस बच्चे को अपना नाम देने के लिए तैयार नहीं है. उस के हिसाब से यह मेरी मौजमस्ती का परिणाम है. करिश्मा, मैं ने सब देवेश की तरक़्क़ी के लिए किया था और मैं दिल से उसे प्यार करती हूं, पर देवेश ने नताशा के आते ही मुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया.’

करिश्मा ने कहा, ‘सब से पहले बच्चे के बारे में सोचो और फिर कहीं और नौकरी कर लो.’

मधुरिमा बोली, ‘पिछले 3 माह से कोशिश कर रही हूं, पर मुझ जैसी सिंपल ग्रेजुएट के लिए मार्केट में कोई नौकरी नहीं है. कंप्यूटर तक तो ठीक से औपरेट नहीं कर पाती हूं.’

करिश्मा को मधु के लिए बहुत दुख हो रहा था. पर यह राह मधु ने खुद ही अपने लिए चुनी थी. फिर  अचानक से 7 दिनों के लिए मधुरिमा दफ़्तर से गायब हो गई थी. जब 7 दिनों बाद मधुरिमा ने दफ़्तर में प्रवेश किया तो वह बेहद थकी हुई लग रही थी. मधुरिमा ने ही करिश्मा को बताया कि मिस्टर देवेश ने इस शर्त पर उसे अपनी ज़िंदगी में जगह दी है कि वह गर्भपात करा ले और अपना मुंह बंद कर के जो काम कर सकती है, करे. मिस्टर देवेश की ज़िंदगी के साथसाथ अब मधुरिमा दफ़्तर के लिए भी एक फ़ालतू सामान बन गई थी.

आज मिस्टर देवेश की बहुत बड़ी डील होनी थी. नताशा खूब अच्छे से तैयार हो कर आई थी. पर इस बार क्लाइंट को प्रैजेंटेशन समझाते हुए नताशा उन के प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाई. हर बार की तरह नताशा इस बार भी अपनी अदाओं के जलवे बिखेरने लगी. पर उस की दाल नहीं गल पा रही थी. जब डील हाथ से निकलने वाली ही थी, तभी ऐन वक्त पर करिश्मा ने आ कर बात संभाल ली. कंपनी के निदेशक करिश्मा से इतने अधिक प्रभावित हुए थे कि उन्होंने करिश्मा को अपनी कंपनी में क्रिएटिव हेड टीम की पोस्ट औफर कर दी और साथ ही साथ, रहने के लिए फ्लैट और यहां से दुगना वेतन.

विकास धीरे से करिश्मा के कान में फुसफुसा कर बोला, ‘मैं कहता था न, कि करिश्मा, तुम जरूर करिश्मा करोगी.’

करिश्मा मन ही मन सोच रही थी कि लिपस्टिक से मिलने वाली सफलता लिपस्टिक की तरह ही जल्दी फेड हो जाती हैं लेकिन मेहनत से प्राप्त किया हुआ हुनर कभी फेड नहीं हो सकता. काश, मधुरिमा इस बात को अब भी समझ कर कुछ कर ले. तभी करिश्मा ने देखा, नताशा एक कोने में खड़े हुए अपनी लिपस्टिक को टचअप कर रही थी.

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