सिंगल रहना ज्यादा अच्छा है: शब्बीर अहलूवालिया

Shabir Ahluwalia: धारावाहिक ‘हिपहिप हुर्रे’ से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता शब्बीर अहलूवालिया को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है. धारावाहिक ‘हिपहिप हुर्रे’ के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

उन्होंने ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’, ‘कसम से’, ‘कसौटी जिंदगी की’ आदि कई लोकप्रिय धारावाहिकों में काम किया है. वे टीवी के सुपरस्टार माने जाते हैं. उन्होंने अपने कैरियर में निगेटिव और पौजिटिव दोनों तरह की भूमिका निभाई है.

टीवी के अलावा उन्होंने ‘शूटआउट ऐट लोखंडवाला’ और ‘मिशन इस्तांबुल’ जैसी फिल्मों में भी काम किया है. शांत, धैर्यवान, गंभीर और हैंसडम शब्बीर अहलूवालिया इन दिनों सोनी सब टीवी पर ‘उफ ये लव है मुश्किल’ में ऐडवोकेट युग सिन्हा की भूमिका निभा रहे हैं, जो उन के अनुसार एक गंभीर चरित्र है, जिसे दर्शक पसंद कर रहे हैं.

उन्होंने खास गृहशोभा के लिए बात की.पेश हैं, कुछ खास अंश :

शब्बीर का इस शो को करने की खास वजह इस की कहानी है. उन्होंने आजतक ऐसी भूमिका नहीं निभाई. वे कहते हैं कि इस शो के लिए मुझे अपना वजन भी कम करना पड़ा. बातचीत और हावभाव को बदलना पड़ा है, लेकिन शो में उन की भूमिका को लोग पसंद कर रहे हैं, यही उन की बड़ी उपलब्धि है.

प्यार नहीं था मुश्किल

शब्बीर के लाइफ में कोई मुश्किल भरा प्यार नहीं रहा. वे कहते हैं कि सब कुछ बहुत स्मूद रहा है, फिर चाहे वह पेरैंट्स, बच्चे हों या दोस्त, सभी के साथ प्यार, खूबसूरत और स्ट्रैस फ्री रहा. मैं ने कांची कौल के साथ लव मैरिज किया है, लेकिन किसी प्रकार की मुश्किल नहीं हुई. मुश्किल थी, तो सिर्फ शादी की रस्में, जो इतने लंबे होते हैं कि दूल्हा और दुलहन के लिए समस्या हो जाती है. इस के अलावा लाइफ में कोई मुश्किल नहीं है.

बदली है प्यार की परिभाषा

इस के अलावा आजकल हर तरीके का प्यार देखने को मिल रहा है, जो आजाद है और अपनी राह खुद चुन रहा है. इस में किसी प्रकार की जातिगत भेदभाव, उम्र, देश, रंग आदि की कोई सीमा तय नहीं है. यह मेरे लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि प्यार मेरे लिए वह एहसास है, जिस में बिना बात किए भी साथ रहने में अच्छा लगता हो, कुछ समय सुकून से बिताया जा सकता हो, जिस में परिवार, बच्चे, दोस्त, पार्टनर आदि कोई भी हो सकता है.

निभाई अलग भूमिका

किसी प्रोजैक्ट को चुनते समय शब्बीर उस की कहानी, अभिनय की बारीकियां और दर्शकों का उस में जुड़ाव कितना हो सकेगा, उसे देखते हैं. इस के अलावा उन्होंने हमेशा एक अलग भूमिका निभाने की कोशिश की है, लेकिन सकारात्मक भूमिका उन्हें हमेशा से अधिक पसंद रहा है. वे कहते हैं कि माध्यम कोई भी हो, अभिनय करना पसंद है.

जैनरेशन है स्मार्ट

आज की जैनरेशन के शादी न करने की वजह के बारे में पूछने पर शब्बीर बताते हैं कि मेरे खयाल से हर जैनरेशन की एक सोच होती है, जो समय के साथसाथ बदलता रहता है. आज की नई पीढ़ी सोचसमझ कर हर कदम को रखती है और वह ठीक भी है. पहले व्यायाम को कोई भी व्यक्ति जीवन का मुख्य काम नहीं मानता था, लेकिन आज के यूथ अपने शरीर को सब से अधिक महत्त्व देते हैं, फिर चाहे वह जानवरों के प्रति प्रेम, पर्यावरण पर ध्यान देना हो.

वे कहते हैं कि सिंगल रहना अच्छा है, अगर आप की मैरिड लाइफ सही नहीं है. आज की जैनेरेशन काफी स्मार्ट है और हमारा फ्यूचर उन के हाथ में सुरक्षित है.

वजन घटाना नहीं आसान

इस शो में शब्बीर ने अपना वजन काफी घटाया है. इसे बारे में उन का कहना है कि वजन घटाने को ले कर मैं काफी चिंतित था, क्योंकि मैं सप्लिमैंट्स नहीं लेता, लेकिन डाक्टर की सलाह पर अगर कोई लेना चाहे, तो कोई गलत बात भी नहीं. उन्हें ऐसे सप्लिमैंट्स को लेने से पहले इस के साइड इफैक्ट्स के बारे में भी अच्छी जानकारी ले लेनी चाहिए.

वे बताते हैं कि मुझे वजन घटाने के लिए सप्लिमैंट्स नहीं लेना पड़ा, क्योंकि वजन बढ़ाना मेरे हाथ में है, जो बहुत आसान है, लेकिन घटाने के लिए रेजीम को फौलो करना पड़ता है. मैं स्पोर्ट्स का शौकीन हूं और हर प्रकार के खेल खेलता हूं, जिस में क्रिकेट, फुटबाल, बैडमिंटन आदि मैं नियमित रूप से खेलता हूं. इस के अलावा मैं ने खाने को बंद नहीं किया, उस की मात्रा को कम किया. मसलन अगर मैं पहले 4 अंडे खाता था, तो अब 2 अंडे और 1 ब्रेड खाऊंगा. इस में थोड़ा रुकना पड़ता है कि दिमाग को समझ में आए कि मेरा पेट भर चुका है. मैं ने दिमाग को समझा दिया है. कम खाने का मजा उतना ही आता है, जितना अधिक खाने का होता है. Shabir Ahluwalia

Family Kahani: मेरी अमावस मुझे लौटा दो

Family Kahani: सुमि अपने कमरे में पलंग पर  यों ही खाली सी बैठी थी.  अब तक तो उसे तैयार हो जाना चाहिए था. उमेश आता ही होगा उसे लेने के लिए. आज उन की एक नई दुकान का मुहूर्त होना था और ऐसे अवसरों पर सुमि की उपस्थिति का महत्त्व तो होता ही है.

उस के पास ही पड़े डब्बे के अधखुले ढक्कन में से नई साड़ी झांक रही थी. यही उसे आज पहननी थी. सुमि ने ढक्कन उठा कर एक ओर रख दिया और साड़ी अपने हाथों में ले ली. पीले रेशम की चौड़े बौर्डर की यह साड़ी वास्तव में बहुत खूबसूरत थी. कपड़ों के विषय में उमेश की पसंद हमेशा ऊंची रही है.

सुमि को याद आया, जब उमेश उस के लिए पहली बार रेशम की साड़ी खरीद कर लाया था तो कैसे देर तक वह उस पर हाथ फिराफिरा कर साड़ी की रेशमी स्निग्धता को अपने भीतर उतारती रही थी. आज तो ऐसी अनगिनत साडि़यों से उस की अलमारियां भरी पड़ी थीं, किंतु एक समय वह भी था जब उस के लिए नई साड़ी खरीदने का मौका किसी तीजत्योहार पर ही आता था. तब जैसेतैसे कर के जमा की गई अपनी छोटी सी पूंजी जेब में ले कर वह और उमेश बड़ीबड़ी दुकानों के बाहर सजी, शीशे के भीतर से झांकती साडि़यों को कैसी ललचाई नजरों से देखा करते थे. अपनी वह अकिंचन पूंजी तब उन्हें ऐसी दुकानों के भीतर पांव रखने की अनुमति नहीं देती थी. घूमफिर कर किसी एक छोटी सी दुकान से मोलभाव कर के तब उन्हें वही साड़ी खरीदनी होती थी जो उन के बजट में समा जाए.

घर आने पर जब बाजार की चकाचौंध नजरों से ओझल हो जाती तो सुमि को अपनी वही साड़ी कीमती लगने लगती और वह उमेश से कहती, ‘नाहक इतने पैसे बरबाद किए. वही ले लेते, जो इस के पहले देखी थी. 50 रुपए की बचत हो जाती.’

किंतु उमेश के मन में वह चकाचौंध इतनी शीघ्र समाप्त नहीं होती थी, ‘सुमि, जल्द ही एक समय ऐसा आएगा जब मैं तुम्हें ढेर सारी साडि़यों से लाद दूंगा. ऐेसेऐसे गहने बना कर दूंगा कि सब देखते रह जाएंगे.’ उमेश के ऐसे उद्गारों पर सुमि फूली न समाती थी. कितना प्यार करता था वह उस से. उसी प्यार की सुगंध से महकी- महकी वह उस के कंधे पर सिर टिका देती और कहती, ‘तुम्हारी ये दोनों भुजाएं ही हजारों आभूषणों से बढ़ कर हैं.’

उमेश तब उसे अपनी बांहों में भर लेता और कहता, ‘तुम बहुत भोली हो, सुमि. इसीलिए तो मैं तुम से इतना प्यार करता हूं. मैं एक बड़ा आदमी बनना चाहता हूं और बन कर दिखाऊंगा.’

उसे बांहों में लिएलिए वह भविष्य के रंगीन सपनों में खो जाया करता था. तब बहुत आशावादी था उमेश.  शादी के तीसरे वर्ष सुमि ने एक बच्चे को जन्म दिया. दीवाली के दिन ही उन दोनों ने मिल कर उस का नाम रखा दीपक. उस दिन दोनों कितने प्रसन्न थे. अमावस की वह काली रात उन्हें ऐसी लग रही थी मानो सौसौ सूरज उग आए हों उन के जीवन में. उस के बाद तो उमेश का छोटा सा व्यवसाय दिन पर दिन बढ़ता ही गया मानो दीपक अपनी नन्ही हथेलियों में सुखसमृद्धि  रूपी प्रकाश को ले आया था. अब तो यह हाल हो गया कि उमेश के छूने से मिट्टी भी सोना बन जाती.

उमेश ने अपने वचन के मुताबिक सुमि को गहनों व कपड़ों से लाद दिया था. अपना छोटा सा घर छोड़ कर अब वे बडे़ घर में आ गए थे. इतने बड़े घर की देखभाल अकेली सुमि कर नहीं सकती थी इसलिए नौकरचाकर उस ने रख लिए. धीरेधीरे उस का रसोईघर भी एक कुशल रसोइए के हाथों में चला गया क्योंकि घर पर अब आएदिन पार्टियों के आयोजन होते रहते थे.

दीपक का कमरा खिलौनों से इस कदर भरा हुआ था कि वह कमरा कम, खिलौनों की दुकान अधिक लगता था. दीपक एक न एक खिलौना उठाए घर भर में चहकता फिरता था.

दौलत की यह बाढ़ बहुत कुछ ले कर आई मगर बहुत कुछ नष्ट भी कर गई. उमेश जब इस बाढ़ के पानी को लांघ कर उस तक पहुंचा तो वह उस का पहले वाला उमेश नहीं रह गया था. अब वह था उमेश चंद माथुर. शहर के प्रमुख व्यवसायियों में से एक. दिन पर दिन उस के गोदामों की संख्या बढ़ती जा रही थी. इस के लिए अनेक कर्मचारी व प्रबंधक थे. फिर भी अब तक ऊपरी देखभाल उमेश स्वयं ही करता था. सुबह 8 बजे जो वह घर से निकलता तो रात 10 बजे के पहले कभीकभार ही लौट पाता था.

आरंभ में तो अकसर उमेश सुमि से फोन पर कह दिया करता था कि दोपहर के खाने पर वह उस की प्रतीक्षा न करे, किंतु अब तो फोन आना भी बंद हो गया था क्योंकि अब यह रोजमर्रा की बात हो गई थी. अब तो रात का खाना भी सुमि अकसर अकेली ही खाती थी क्योंकि व्यवसाय के सिलसिले में उमेश की शामें किसी न किसी व्यापारी के साथ ही गुजरती थीं. फिर उसे ले कर वह किसी अच्छे रेस्तरां में खाना खा कर ही आता.

जब तक सुमि दीपक के साथ व्यस्त थी तब तक उसे समय उतना भारी मालूम नहीं पड़ता था. अपने खाली समय का एकएक क्षण वह दीपक की किलकारियों से भर लेती. लेकिन जल्दी ही दीपक के लिए एक आया का प्रबंध कर दिया गया. फिर 4 साल का होतेहोते उमेश ने दीपक को नैनीताल के एक नामी स्कूल के होस्टल में भेज दिया.

इस प्रकार सुमि का अकेलापन दिन पर दिन बढ़ता गया. उमेश चाहता था कि वह भी शेष संपन्न स्त्रियों की भांति किटी पार्टियों में जाया करे और अपने घर में भी ऐसी पार्टियों का आयोजन किया करे. इस से उस का समय आसानी से व्यतीत होता और धनाढ्य परिवारों की स्त्रियों में उस का उठनाबैठना भी होता. किंतु सुमि को यह सब बिलकुल पसंद न था. अपनी दौलत के नशे में डूब कर ताश के पत्ते फेंटती और किटी पार्टियों में अपने कपड़े और गहनों की नुमाइश करती स्त्रियों की बनावटी बातों से वह जल्दी ही ऊब जाती थी. वे सामने होने पर जिस से हंस कर बातें करतीं, पीठ पीछे उसी की बुराई करने लग जाती थीं. स्वयं को दूसरों से बड़ा कर के दिखाना ही उन का उद्देश्य होता था.

सुमि के लिए तो बस, वही दिन उत्साह से भरे होते थे जब उसे दीपक से मिलने होस्टल जाना होता था या दीपक अपनी छुट्टियां व्यतीत करने के लिए घर आने वाला होता था. तब वह दिनदिन भर बाजार घूम कर उस की पसंद की चीजें इकट्ठा करती थी. लेकिन दीपक के वापस जाते ही फिर वही खालीपन उसे घेर लेता था.

उमेश का साथ तो अब उसे किसी पार्टी व आयोजन में साथ जाने भर तक ही मिलता था. वहां जा कर भी वह अपने मित्रों में व्यस्त हो जाता था. देर रात में वे दोनों थके हुए लौटते और सो जाते. सुमि उन दिनों की याद में खो जाती, जब वे घंटों बैठे इधरउधर की बातें किया करते थे. अचानक दरवाजा खुला, तो सुमि की विचारशृंखला भंग हो गई.

‘‘तुम अभी तक ऐसे ही बैठी हो, दुकान से 2 बार फोन आ चुका है. सब हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं.’’

‘‘अ…हां…अभी तैयार होती हूं,’’ अतीत की स्मृतियों को जबरन पीछे धकेल कर वह जैसे ही खड़ी हुई उसे जोर का चक्कर आने लगा. वह दोनों हाथों से सिर थाम कर पलंग पर निढाल गिर पड़ी.

यह देख कर उमेश ने घबराहट में नौकरों को आवाज दे डाली और स्वयं डाक्टर को टैलीफोन करने लगा. 15-20 मिनट में ही डाक्टर आ पहुंचे. इस बीच वह बौखलाया सा सुमि का सिर दबा रहा था तो कभी उस के ठंडे हाथों को अपने हाथों की गरमी पहुंचाने का प्रयत्न कर रहा था.

डाक्टर ने आ कर भलीभांति जांच की, एक इंजैक्शन लगाया और एक कागज पर कुछ दवाओं के नाम लिख दिए. उस ने उमेश को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘अधिक चिंता की वजह से इन के दिमाग पर बोझ है. डरने की कोई बात नहीं है. हां, कमजोरी काफी है पर जल्दी ही ठीक हो जाएंगी. लेकिन इन्हें अधिक प्रसन्न रखने का प्रयत्न कीजिए.’’

डाक्टर के जाते ही उमेश ने स्वयं न आ सकने की सूचना अपने प्रबंधक रामदयाल को दे दी और कहा कि कार्यक्रम की तारीख आगे बढ़ा दी जाए. फोन पर ही उस ने उस दिन के अपने शेष कार्यक्रम भी रद्द कर दिए और 1-2 दिन घर पर ही सुमि के साथ रहने का निश्चय किया.

सुमि को अभी तक होश नहीं आया था. उमेश पलंग के पास आरामकुरसी घसीट कर बैठ गया. कुरसी की पीठ से उस ने अपना सिर टिका दिया और आंखें मूंद लीं. एक अरसे के बाद ऐसी फुरसत से बैठना उसे नसीब हुआ था. उस ने अनुभव किया कि इन पिछले कुछ वर्षों में मानो वह तेज गति वाले वाहन पर सवार था, जिस की रफ्तार वह और अधिक बढ़ाता जा रहा था. एकाएक ही वाहन के आगे कोई छाया सी आई. तब उसे एक झटके से ब्रेक लगाना पड़ा. वाहन रुक तो गया लेकिन उस के रुकते ही वह छाया आहत हो चुकी थी, उतर कर देखा तो वह छाया कोई नहीं उस की सुमि ही थी.

‘‘नहीं,’’ ऐसे भयानक विचारों से घबरा कर उस ने अपने सिर को जोर का झटका दिया और आंखें खोल दीं. ‘‘क्या हुआ?’’ सुमि अपनी क्षीण आवाज में पूछ रही थी. अपने ही ध्यान में उसे पता न चल सका कि सुमि को होश आ गया है. उस ने लपक कर पहले उस के माथे पर हाथ रखा. फिर हलके हाथों से उस की दोनों बांहें सहला कर पूछने लगा, ‘‘कैसी हो, सुमि?’’

‘‘तुम क्या सोच रहे थे? गए नहीं? मैं अब ठीक हूं,’’ थकीथकी सी सुमि बोल रही थी.

उस की बात का उत्तर न दे कर उमेश ने रधिया को आवाज लगाई कि सुमि के लिए एक गिलास गरम दूध ले आए. ‘‘मैं ठीक हूं. तुम व्यर्थ में परेशान हो रहे हो. काम पर नहीं जाओगे आज?’’ सुमि ने पुन: उसे टोका.

‘‘आज कहीं नहीं जाऊंगा, सुमि. मैं बहुत तेज भाग रहा था, तुम ने मुझे चेता दिया. बस, तुम जल्दी ठीक हो जाओ, काम तो होते ही रहेंगे. तुम कैसी हो गई हो, मैं ने कभी ध्यान ही नहीं दिया, आखिर तुम्हें किस बात का दुख है, सुमि?’’

‘‘मेरी अमावस मुझे लौटा दो, उमेश. वही शांत और स्निग्ध अमावस, जिस दिन मैं ने दीपक को जन्म दिया था. तुम्हारी दौलत की चकाचौंध से मुझे घबराहट होने लगी है. हम ने संपन्नता का सपना देखा तो साथसाथ था लेकिन उसे भोग रहे हैं अलगअलग. तुम मुझ से दूर चले गए हो, दीपक दूर हो गया है. मुझे मेरे दीपक की रोशनी लौटा दो. दीवाली आने में कुछ ही दिन रह गए हैं, तुम जा कर उसे ले आओ. कम से कम दीवाली पर तो उसे हमारे साथ होना चाहिए.’’

इतना कहने में ही सुमि थक सी गई और चुप हो कर उमेश के चेहरे पर नजर गड़ाए देखती रही. उमेश के भीतर भी भावनाओं का ज्वार उमड़ आया था.

‘‘मैं कल ही जाऊंगा और दीपक को अपने साथ ले कर आऊंगा, अब वह यहीं रहेगा हमारे साथ. आखिर इस शहर में अच्छे स्कूलों की कोई कमी तो है नहीं, अब वह यहीं पढ़ेगा.’’

‘‘सच, उमेश, सच कह रहे हो.’’

‘‘मैं न जाने किस अंधेरे में गुम हो गया था. मैं धन का अंबार तो लगाता गया पर यह न देख सका कि हमारे संबंध उस के नीचे दबते चले जा रहे हैं,’’ उमेश धीरेधीरे कह रहा था मानो अपनेआप से बात कर रहा हो.

डाक्टर की दवा से सुमि शीघ्र ही अच्छी हो गई, कुछ कमजोरी रह गई थी, लेकिन मन में उत्साह पुन: उमड़ने लगा था. वह पूरे मनोयोग से दीवाली की तैयारियों में जुट गई. तीसरे दिन दीपक को साथ ले कर उमेश लौट आया.

दीवाली के दिन हर साल की तरह उमेश चंद माथुर की कोठी आनेजाने वाले लोगों का ध्यान अपनी सजावट से आकर्षित कर रही थी. रंगबिरंगे बल्बों की लडि़यां पेड़पौधों तक को जगमगा रही थीं, लेकिन सुमि ने तो बाहर निकल कर वह सब देखा भी नहीं. वह तो माटी के दीयों में तेल भरने में व्यस्त थी और मन ही मन सोच रही थी कि माटी की पवित्रता की स्पर्धा भला बिजली के बल्ब कैसे कर सकेंगे.

दीपक मां के आसपास ही मंडरा रहा था. तभी उमेश भी भीतर आ गया, ‘‘लाओ, बाकी काम मैं खुद कर दूं, तुम जा कर तैयार हो जाओ.’’

सुमि काम छोड़ कर उठ खड़ी हुई और हंस कर उमेश की तरफ देखा. उमेश ने दीपक को अपने पास बुलाया और फिर दोनों मिल कर शेष दीयों में तेल भरने लगे. तब सुमि की आंखों में प्रसन्नता की नदी तैरने लग गई थी. Family Kahani

Hindi Kahaniyan: एकदूसरे से करते हैं प्यार हम

Hindi Kahaniyan: ‘‘शिवानी मेरी शर्ट कहां है?’’ पुनीत ने चिल्लाते हुए पूछा.

‘‘अरे आप भी न… यह तो रही. बैड पर,’’ शिवानी कमरे में आते हुए बोली.

‘‘शर्ट तो बस एक बहाना था, तुम इधर आओ न, पूरा दिन इधरउधर लगी रहती हो,’’ पुनीत ने शिवानी को अपनी बांहों में भरते हुए शरारत से कहा.

‘‘छोड़ो भी, क्या कर रहे हो… अभी बहुत काम है मुझे,’’ शिवानी ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

‘‘भाभी वह… सौरीसौरी. आप दोनों लगे रहो, मैं चलती हूं,’’ पावनी कमरा खुला देख सीधा अंदर आ गई, तो दोनों थोड़ा सकपका से गए.

‘‘अरे, नहीं… ऐसा कुछ नहीं. कुछ काम था पावनी?’’ अर्पिता ने अपनी ननद से पूछा.

‘‘भाभी, नीचे शायद नई काम वाली आई है. मां बुला रही हैं आप को,’’ पावनी ने कहा.

शिवानी इस घर की बहू नहीं इस घर की आत्मा है. अगरबत्ती की खुशबू की तरह इस घर में रचबस गई. 8 साल हो गए हैं शिवानी और पुनीत की शादी को हुए. आते ही शिवानी ने एक सुघड़ गृहिणी की तरह घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लीं. शिवानी के सासससुर उस की तारीफ करते नहीं थकते, वहीं पावनी भी उस की ननद कम छोटी बहन ज्यादा है.

शादी के कुछ ही समय बाद शिवानी की सास को पैरालाइसिस का दौरा पड़ा और उन के शरीर के आधे हिस्से ने काम करना बंद कर दिया पर यह शिवानी की मेहनत का ही असर था कि 6 महीनों के भीतर ही उस की सासूमां की तबीयत में जबरदस्त सुधार हुआ. वह बिलकुल बेटी की तरह उन का खयाल रखती. सास भी उसे बेटी से कम नहीं समझती थीं. ससुरजी शुगर के मरीज थे, पर शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो जब उस ने दवा देने में देरी की हो. शिवानी इस घर में रचबस गई थी.

‘‘मम्मा, कल स्कूल में साइंस प्रोजैक्ट है. टीचर ने कहा है कल सब बच्चे अपना प्रोजैक्ट सबमिट करवाएं,’’ विभोर ने कहा.

‘‘उफ, फिर से ये कमबख्त प्रोजैक्ट… पता नहीं ये स्कूल वाले बच्चों को पढ़ाते हैं या उन के पेरैंट्स को. कभी यह प्रोजैक्ट तो कभी वह प्रोजैक्ट,’’ शिवानी को खीज सी हुई.

‘‘बहू तुम्हारा फोन आया है,’’ शिवानी की सास की आवाज आई.

‘‘आई मम्मी,’’ शिवानी ने आवाज दी.

‘‘बेटा तुम ड्रैस चेंज करो मैं आती हूं,’’ शिवानी ने विभोर का गाल थपथपाया.

‘‘हैलो शिवानी मैं ज्योति. अगले हफ्ते कालेज रियूनियन है, तू आ रही है न? कितना मजा आएगा… हम सब अपने पुराने दिन याद करेंगे. कितने मजे किए हैं हमने कालेज में… देख तू प्लान खराब मत करना इस बार,’’ ज्योति ने कहा.

‘‘कालेज रियूनियन… थोड़ा मुश्किल है ज्योति… बहुत काम है घर में… समय ही कहां मिल पाता है यार,’’ शिवानी ने कहा.

‘‘शिवानी तू तो सच में बदल गई है… कभी टाइम ही नहीं होता तेरे पास. कहां गई हमारे कालेज की वह रौकस्टार? हम ने तो सोचा था बड़े दिनों बाद तुझ से गिटार पर वही गाना फिर से सुनेंगे… तुझे पता है श्रेया अमेरिका से आ रही है और तू है कि यहीं रहती है. फिर भी तुझे समय ही नहीं… चल देख कोशिश करना,’’ कह ज्योति ने फोन काट दिया.

‘‘कालेज रियूनियन’’ वह बुदबुदाई और फिर से काम में लग गई. विभोर को खाना खिला कर फिर रात के खाने की तैयारी में लग गई. रात के खाने के बाद थकहार कर कमरे में आई. कपड़े चेंज करने के लिए अलमारी खोली तो अचानक पुराना कालेज का अलबम दिखाई दिया.

‘‘मम्मी, नींद आ रही है. चलो न,’’ विभोर उस का दुपट्टा पकड़ कर बोला.

शिवानी ने अलबम साइड में रखा और विभोर को सुलाने लग गई. उस के सोने के बाद उस ने अलबम उठाया. कालेज की पुरानी यादें फिर से ताजा हो गई. वह अल्हड़ खिलखिलाती लड़की पूरे कालेज में रौकस्टार के नाम से पहचानी जाती थी. न जाने कितने लड़के उस की इस अदा पर फिदा थे, मगर मजाल है उस ने किसी को भाव दिया हो.

म्यूजिक का शौक तो उसे बचपन से था. उस पर जब से पापा ने गिटार ला कर दिया था वह सच की रौकस्टार बनी रहती थी. कालेज में कोई भी फंक्शन हो या कोई भी इंटर कालेज प्रोग्राम प्रतियोगिता वही हमेशा पहले स्थान पर आती. उस ने अपने शिमला ट्रिप के फोटो देखे. कैंप में बोन फायर था और वह गिटार पर अपना गाना गा रही थी…

‘‘हम रहें या न रहें कल,

पल याद आएंगे ये पल,

पल ये हैं प्यार के पल,

चल आ मेरे संग चल,

चल… सोचें क्या… छोटी सी है ये जिंदगी.’’

शायद वह उस दिन गा नहीं रही थी, उन पलों को पूरी शिद्दत से जी रही थी.

‘‘क्या हुआ आज सोने का इरादा नहीं है, घड़ी देखो रात के 11 बज गए हैं.’’ पुनीत ने कहा तो मानो वह उस पल से अचानक लौट आई.

‘‘हां,’’ शिवानी ने कहा और फिर कपड़े बदलने चली गई.

अगले दिन उठ सब का ब्रेकफास्ट तैयार किया. विभोर को नहला कर स्कूल भेजा. कामवाली के भी आने का टाइम हो गया. उस ने सारे झूठे बरतन धोने के लिए रखे. पापाजी के लिए चाय चढ़ाई और मशीन में कपड़े डाल दिए. घड़ी में देखा 10 बजे रहे थे. पुनीत 11 बजे औफिस जाएंगे. उन के लिए लंच की तैयारी करनी है. सुबह शिवानी किसी रोबोट से कम नहीं होती. 11 बज गए. लगता है आज फिर कामवाली नहीं आएगी. लंच का डब्बा तैयार किया. वह कमरे में किसी काम से गई. कल रात उस ने वह अलबम ड्रैसिंग टेबल पर ही छोड़ दिया था. उस ने उसे उठाया. एक बार खोला और अपनेआप को आईने में देखा.

‘‘कहां गई वह शिवानी,’’ अपनेआप को आईने में देख शिवानी सोच रही थी. ग्रैजुएशन होने के बाद पिताजी की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं रहती. उन्होंने उस की शादी का निर्णय लिया और जब पुनीत का रिश्ता आया, तो उस ने हां कह दिया. इस घर में आने के बाद एक चंचल सी लड़की न जाने कब इतनी जिम्मेदार बन गई.

ऐसा नहीं है कि उसे किसी बात की कमी है, फिर भी आज उस की मुसकान तभी है जब सब के चेहरे पर खुशी है. उसे तो याद भी नहीं कब उस ने आखिरी बार अपने गिटार को छुआ था. इतना मशगूल हो गई थी वह इस नई जिंदगी में कि उस ने तो गुनगुनाना ही छोड़ दिया.

‘‘शिवानी,’’ पुनीत की आवाज थी. वह झट से दौड़ी चली गई.

‘‘शिवानी… मेरे औफिस का टाइम हो रहा है. लंच का डब्बा कहां है?’’ पुनीत ने पूछा.

वह किचन में गई और लंच का डब्बा ला कर पुनीत को पकड़ा दिया.

‘‘भाभी, आज मैं मूवी जा रही हूं, शायद आने में थोड़ी देर हो जाए. प्लीज तुम देख लेना,’’ पावनी ने शिवानी पर बांहों का घेरा बनाते हुए कहा.

‘‘हां, पर ज्यादा देर मत करना,’’ शिवानी ने कहा.

‘‘लव यू मेरी प्यारी भाभी,’’ पावनी ने शिवानी के गाल को चूमते हुए कहा. शिवानी के चेहरे पर एक मुसकान आ गई. फिर वह अपने कामों में लग गई. मगर आज उस का मन तो कहीं और ही था.

‘‘शिवानी, शिवानी बेटा… देखो दूध बह रहा है,’’ उस की सास ने कहा.

‘‘ओह,’’ शिवानी ने कहा.

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ तबीयत तो ठीक है? उन्होंने पूछा.

‘‘हां, मम्मी,’’ शिवानी ने कहा.

विभोर स्कूल से आया तो उस का चेहरा लटका था. शिवानी ने पूछा तो वह रोने लगा. ‘‘मम्मी, आप बिलकुल अच्छी नहीं हो. आप को मैं ने कल प्रोजैक्ट को कहा. आप ने बनाया नहीं. टीचर ने डांटा,’’ शिवानी को याद आया कि कल उस से विभोर ने कहा था, मगर वह भूल ही गई. विभोर का चेहरा बुझ गया.

रात के 8 बज गए. पुनीत के आने का समय था. शिवानी डाइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी. तभी पुनीत भी आ गए.

‘‘चलिए आप भी हाथ धो लीजिए, खाना तैयार है,’’ शिवानी ने पुनीत से कहा.

पावनी भी आ गई थी.

‘‘इतनी देर कैसे हुई पावनी?’’ मांजी ने पूछा.

‘‘वह कुछ काम था… भाभी को बता कर गई थी,’’ पावनी ने कहा.

‘‘शिवानी, तुम ने बताया नहीं,’’ सासूमां ने पूछा.

‘‘मैं भूल गई,’’ शिवानी ने कहा.

‘‘शिवानी, लगता है तुम कुछ ज्यादा ही भुलक्कड़ हो गई हो. आज तुम ने लंच में मुझे भरे हुए डब्बे की जगह खाली टिफिन पकड़ा दिया,’’ पुनीत ने कहा.

‘‘पता है पापा, मम्मी तो मेरा प्रोजैक्ट करवाना भूल गईं… टीचर ने डांटा मुझे,’’ विभोर ने मुंह बनाते हुए कहा.

शिवानी की आंखों से आंसू छलक आए. वह रोने लगी. किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी.

‘‘अरे पुनीत हड़बड़ी में हो गया होगा और विभोर तू खेलने में लग गया होगा, तूने याद दिलाया दोबारा मम्मी को?’’ सासूमां ने कहा.

‘‘नहीं मम्मी, किसी की कोई गलती नहीं. मेरी ही गलती है सारी… शायद मैं ही एक परफैक्ट बहू नहीं हूं, एक अच्छी मां नहीं हूं, मैं कोशिश करती हूं पर नहीं कर पाती… मुझे माफ कर दीजिए…

मैं आप की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई,’ शिवानी ने सुबकते हुए कहा.

‘‘नहीं बेटा, तू तो हम सब की जान है,’’ उस की सास ने कहा पर आज शिवानी के आंसू थम ही नहीं रहे थे.

‘‘पुनीत, शिवानी बिटिया को कमरे में ले जा बेटा,’’ शिवानी के ससुरजी ने कहा.

सब शिवानी का उदास चेहरा देख हैरान थे. किसी को भी शिवानी से कोई शिकायत नहीं थी. सब के मन में एक ही बात थी कि अचानक शिवानी के साथ ऐसा क्या हुआ?

3 दिन बाद शिवानी का जन्मदिन आने वाला था. सब सदस्य साथ बैठे और सोचा कि अचानक शिवानी को क्या हो गया. कुछ बात हुई और इस बार परिवार वालों ने सोचा कि यह जन्मदिन उस के लिए कुछ खास होगा.

‘‘पावनी क्या कर रही हो तुम?’’ शिवानी ने पूछा.

‘‘भाभी तुम आंखें मत खोलना बस,’’ पावनी ने अपने हाथों से शिवानी की आंखों को बंद कर रखा था.

सरप्राइज. उस ने देखा हौल पूरा उस की पसंद के पीले गुलाबों से सजाया हुआ था. सामने टेबल पर एक बड़ा सा केक रखा था. सभी उस का इंतजार कर रहे थे.

‘‘शिवानी बेटा, यह तुम्हारे लिए,’’ उस के ससुरजी ने दीवान की तरफ इशारा करते हुए कहा.

एक बड़ा सा बौक्स सामने दीवान पर पड़ा था.

‘‘देखो तो सही मम्मी,’’ विभोर आंखें टिमटिमाते हुए बोला.

शिवानी ने अपना तोहफा खोला तो उस की आंखों से आंसू बह निकले.

इस में उस के लिए नया गिटार था.

‘‘शिवानी, जब से तुम इस घर में आई हो तुम ने सारे घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. पर हम सब शायद अपनी जिम्मेदारी भूल गए थे. तुम ने हम सब का तो खयाल रखा पर उस पुरानी शिवानी को भुला दिया जो चहकती रहती थी. घरपरिवार की जिम्मेदारियों का कोई अंत नहीं होता बेटा, पर हम सब चाहते हैं कि तुम कुछ समय खुद के लिए भी निकालो.

‘‘आज से हमें हमारी पुरानी शिवानी वापस चाहिए, जिस के गानों से यह घर गूंज उठता था, हम कोशिश करेंगे कि तुम्हारी थोड़ी जिम्मेदारियां हम कम कर सकें,’’ शिवानी की सास उस के सिर पर अपना हाथ रखते हुए बोली.

‘‘बहू, आज से विभोर को बसस्टौप तक ड्रौप करने की जिम्मेदारी मेरी, आते हुए मैं राशन का सामान भी ले आऊंगा. इसी बहाने मेरी वाक भी हो जाएगी,’’ शिवानी के ससुरजी ने कहा.

‘‘भाभी, आज से मैं विभोर को रोज 1 घंटा जरूर पढ़ाऊंगी,’’ पावनी बोली.

‘‘और हां बहू, किचन के छोटेमोटे काम मैं ही संभाल लूंगी. अगर तुम मुझे यों ही बैठा रखोगी तो मैं पड़ेपड़े बीमार हो जाऊंगी,’’ शिवानी की सास ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘आज से घर के सारे हिसाबकिताब की जिम्मेदारी और सभी बिल भरने का जिम्मा मेरा. चलो, अब ये आंसू बहाना बंद करो. 2 दिन बाद कालेज का रियूनियन है न… तुम बताओगी नहीं तो क्या हमें पता नहीं चलेगा… और हां, उस में हमारी रौकस्टार शिवानी को एक धांसू परफौर्मैंस जो देना है… तो सुनिए मेहरबान कद्रदान सब अपनी जगह ले लें, आ रही है हमारी रौकस्टार शिवानी,’’ पुनीत ने आंख मारते हुए कहा.

शिवानी की आंखों से और आंसू बह निकले. अब शिवानी गिटार बजा रही थी और पूरा घर कोरस में एकसाथ गा रहा था.

‘‘एकदूसरे से करते हैं प्यार हम…’’ Hindi Kahaniyan

Social Story in Hindi: बैलेंसशीट औफ लाइफ

Social Story in Hindi: औफिस में अनन्या अपने सहकर्मियों के साथ जल्दीजल्दी लंच कर रही थी. लंच के फौरन बाद उस का एक महत्त्वपूर्ण प्रेजैंटेशन था, जिस के लिए वह काफी उत्साहित थी. इस मीटिंग की तैयारी वह 1 हफ्ते से कर रही थी.

उस की अच्छी फ्रैंड सनाया ने टोका, ‘‘खाना तो कम से कम आराम से खा लो, अनन्या. काम तो होता रहेगा.’’

‘‘हां, जानती हूं, पर इस प्रेजैंटेशन के लिए बहुत मेहनत की है, राहुल का स्कूल उस का होमवर्क, उस का खानापीना सुमित ही देख रहा है आजकल.’’

‘‘सच में, तुम्हें बहुत अच्छा पति मिला है.’’

‘‘हां, उस की सपोर्ट के बिना मैं कुछ कर ही नहीं सकती.’’

लंच कर के अनन्या एक बार फिर अपने काम में डूब गई. पवई की इस अत्याधुनिक बिल्डिंग के अपने औफिस के हर व्यक्ति की प्रशंसा की पात्र थी अनन्या. सब उस के गुणों की, मेहनत की तारीफ करते नहीं थकते थे. आधुनिक, स्मार्ट, सुंदर, मेहनती, प्रतिभाशाली अनन्या

10 साल पहले सुमित से विवाह कर दिल्ली से यहां मुंबई आई थी और पवई में ही अपने फ्लैट में अनन्या, सुमित और उन का बेटे राहुल का छोटा सा परिवार खुशहाल जीवन जी रहा था.

अनन्या ने अपने काम से संतुष्ट हो कर घड़ी पर एक नजर डाली. तभी व्हाट्सऐप पर सुमित का मैसेज आया, ‘‘औल दि बैस्ट’, साथ ही किस की इमोजी. अनन्या को अच्छा लगा, मुसकराते हुए जवाब भेजा. अचानक उस के फोन की स्क्रीन पर मेघा का नाम चमका तो उस ने हैरान होते हुए फोन उठा लिया. मेघा उस की कालेज की घनिष्ठ सहेली थी. वह इस समय दिल्ली में थी.

मेघा ने कुछ परेशान सी आवाज में कहना शुरू किया, ‘‘अनन्या, तुम औफिस में हो?’’

‘‘अरे, क्या हुआ? न हाय, न हैलो, सीधे सवाल तुम ठीक तो हो न?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं अनन्या, पर बड़ी गड़बड़ हो गई.’’

‘‘क्या हुआ? कुछ बताएगी भी.’’

‘‘मार्केट में राघव की आत्मकथा ‘‘बैलेंसशीट औफ लाइफ’’ आई है न. उस ने तेरा और अपना पूरा किस्सा इस में लिख दिया है.’’

‘‘क्या?’’ तेज झटका लगा अनन्या को.

‘‘हां, मैं ने अभी पढ़ी नहीं है पर मेरे पति संजीव को बुक पढ़ कर किसी ने

बताया कि किसी अनन्या की कहानी लिख कर तो इस ने शायद उस की लाइफ में तूफान ला दिया होगा. संजीव समझ गए कि शायद यह अनन्या तुम ही हो, आज शायद संजीव यह बुक लाएंगे तो पढ़ूंगी. मेरा तो दिमाग ही घूम गया सुन कर. सुमित जानता है न उस के बारे में?’’

‘‘हां, जानता तो है कि मैं और राघव एकदूसरे को पसंद करते थे और हमारा विवाह उस के महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के चलते हो नहीं पाया और उस ने धनदौलत के लिए किसी बड़े बिजनैसमैन की बेटी से विवाह कर लिया था और आज वह भी देश का जानामाना नाम है.’’

मेघा ने अटकते हुए संकोचपूर्वक कहा, ‘‘अनन्या, सुना है तुम्हारे और उस के बीच होने वाले सैक्स की बात उस ने…’’

अनन्या एक शब्द नहीं बोल पाई, आंखें अचानक आंसुओं से भरती चली गईं. अपमान के घूंट चुपचाप पीते हुए, ‘‘बाद में फोन करती हूं.’’ कह कर फोन रख दिया.

मेघा ने उसी समय मैसेज भेजा, ‘‘प्लीज डौंट बी सैड, फ्री होते ही फोन करना.’’

कुछ पल बाद सनाया ने आ कर उसे झंझोड़ा तो जैसे वह होश में आई, ‘‘क्या हुआ अनन्या? एसी में भी इतना पसीना.. तेरी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हांहां, बस ऐसे ही.’’

‘‘टैंशन में हो?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं,’’ अनन्या फीकी सी हंसी हंस दी. यों ही कह दिया, ‘‘प्रेजैंटेशन के बारे में सोच रही थी.’’

‘‘कोई और बात है जानती हूं, तू इतनी कौन्फिडैंट है, प्रेजैंटेशन के बारे में सोच कर माथे पर इतना पसीना नहीं आएगा. नहीं बताना चाहती तो कोई बात नहीं. ले, पानी पी और चल.’’

अनन्या ने उस दिन कैसे अपना प्रेजैंटेशन दिया, वही जानती थी. अतीत की परछाईं से उ ने स्वयं को बड़ी मुश्किल से निकाला था. मन अतीत में पीछे ले जाता रहा था और दिमाग वर्तमान पर ध्यान देने के लिए आगे धकेलता रहा था. तभी वह सफल हो पाई थी. उस के सीनियर्स ने उस की तारीफ कर उस का मनोबल बढ़ाया था. ‘‘तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही,’’ कह कर वह घर के लिए जल्दी निकल गई.

राहुल स्कूल से डे केयर में चला जाता था. सुमित आजकल उसे लेता हुआ ही घर आता था, वह चुपचाप घर जा कर बैड पर पड़ गई.

राघव उस का पहला प्यार था. कौलेज में वह उस के प्यार में ऐसे मगन हुई कि यही मान लिया कि जीवन भर का साथ है. राघव एक छोटे से कसबे से दिल्ली में किराए का कमरा ले कर पढ़ता था. राघव के बहुत बार आग्रह करने पर वह एक ही बार उस के कमरे पर गई थी.

वहीं भावनाओं में बह कर अनन्या ने पूर्ण समर्पण कर दिया था. आगे विवाह से पहले कभी ऐसा न हो, यह सोच कर फिर कभी उस के कमरे पर नहीं गई थी. पर दिल्ली के मशहूर धनी बिजनैसमैन की बेटी गीता से दोस्ती होने पर राघव को गीता के साथ ही भविष्य सुरक्षित लगा तो कई बहानों से दूरियां बनाते हुए राघव अनन्या से दूर होता चला गया.

अनन्या भी राघव में आए परिवर्तन को भलीभांति भांप गई थी. उस ने पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई, कैरियर पर लगा दिया था और अपने प्यार को कई परतों में दिल में दबा कर यह जख्म समय के ऊपर ही भरने के लिए छोड़ दिया था.

कुछ समय बाद मातापिता की पसंद सुमित से विवाह कर मुंबई चली आई और सुमित व राहुल को पा बहुत संतुष्ट व सुखी थी पर आजकल जो आत्मकथा लिखने का फैशन बढ़ता जा रहा है, उस की चपेट में कहीं उस का वर्तमान न आ जाए, यह फांस अनन्या के गले में ऐसे चुभ रही थी कि उसे एक पल भी चैन नहीं आ रहा था. जिस प्यार के एहसास की खुशबू को अपने दिल में ही दबा उस की स्मृति से लंबे समय तक सुवासित हुई थी, आज जैसे उस एहसास से दुर्गंध आ रही थी.

अपनी सफलता, प्रसिद्धि के नशे में चूर राघव ने अपनी आत्मकथा में उस का प्रसंग लिख उस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थी. कहीं ससुराल वाले, मायके और राहुल बड़ा हो कर यह सब जान न ले. कितने ही अपने, दोस्त, परिचत, रिश्तेदार उस के चरित्र पर दाग लगाने के लिए खड़े हो जाएंगे.

औफिस में जिन लोगों की नजरों में आज अपने लिए इतना स्नेह और सम्मान दिखता है, उस का क्या होगा? राघव ने यह क्यों नहीं सोचा? अपने लालच, फरेब, महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में लिख कर अपनी चालबाजियां दुनिया के सामने रखता, एक लड़की जो अब कहीं शांति से अपने परिवार के साथ जी रही है, उस के शांत जीवन में कंकड़ मार कर उथलपुथल मचाने का क्या औचित्य है?

अनन्या के मन में क्रोध, अपमान की इतनी तेज भड़ास थी कि उस ने मेघा को फोन मिलाया.

मेघा ने फोन उठाते ही प्यार से कहा, ‘‘अनन्या, तू बिलकुल परेशान मत होना, पढ़ कर तुझे बताऊंगी क्या लिखा है उस ने.’’

‘‘नहीं, रहने दे मैं कल औफिस जाते हुए खरीद लूंगी, अगर बुक स्टोर में दिख गई तो. पढ़ लूं फिर बताऊंगी उसे, छोड़ूगी नहीं उसे.’’

दोनों ने कुछ देर बातें करने के बाद फोन रख दिया.

सुमित और राहुल के आने तक अनन्या ने प्रत्यक्षतया तो स्वयं को सामान्य कर लिया था, पर अंदर ही अंदर बहुत दुखी व उदास थी.

अगले दिन औफिस जाते हुए वह एक मशहूर बुकशौप पर गई. ‘न्यू कौर्नर’ में उसे ‘बैलेंसशीट औफ लाइफ’ दिख गई. उसे खरीद कर उस ने छुट्टी के लिए औफिस फोन किया और फिर घर वापस आ गई.

सुमित और राहुल तो जा चुके थे, बैड पर लेट कर उसने बुक पढ़नी शुरू की. राघव के जीवन के आरंभिक काल में उस की कोई रुचि नहीं थी. उस ने वहां से पन्ने पलटने शुरू किए जहां से उसे अंदाजा था कि उस का जिक्र होगा. उस का अंदाजा सही था. कालेज के दिनों में उस ने स्वयं को अनन्या नाम की क्लासमेट का हीरो बताया था. जैसेजैसे उस ने पढ़ना शुरू किया, क्रोध से उस का चेहरा लाल होता चला गया.

लिखा था, ‘मेरा पूरा ध्यान बड़ा आदमी बनने में था. मैं आगे, बहुत आगे बढ़ना चाहता था, पर अनन्या का साथ मेरे पैरों की बेड़ी बन रहा था. मैं उस समय किसी भी लड़की को गंभीरतापूर्वक नहीं सोचना चाहता था पर मैं भी एक लड़का था, युवा था, कोई खूबसूरत लड़की मुझे पूर्ण समर्पण का निमंत्रण दे रही थी तो मैं कैसे नकार देता?

‘कुछ पलों के लिए ही सही, उस के सामीप्य में मेरे कदम डगमगाते तो जरूर पर उस के प्यार और साथ को मैं मंजिल नहीं समझ सकता था. पर हर युवा की तरह मैं भी ऐसी बातों में अपना कुछ समय तो नष्ट कर ही रहा था. एक अनन्या ही नहीं, उस समय एक ही समय पर मेरे 3-4 लड़कियों से शारीरिक संबंध बने, मेरे लिए ये लड़कियां बस सैक्स का उद्देश्य ही पूरा कर रही थीं.’

अनन्या ने इस के आगे कुछ पढ़ने की जरूरत ही नहीं समझी, उन पलों के पीछे इतना कटु सत्य था. उस ने स्वयं को अपमानित सा महसूस किया. आंखों से आंसू बह निकले. प्रेम के जिस कोमल एहसास में भीग कर एक लड़की एक लड़के को अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है, उस लड़के के लिए वह कुछ महत्त्व नहीं रखता? किसी पुरुष के लिए लड़कियों की भावनाओं से खेलना इतना आसान क्यों हो जाता है? अनन्या अजीब सी मनोस्थिति में आंखें बंद किए बहुत देर तक यों ही पड़ी रही.

फिर उस ने मेघा को फोन मिलाया, ‘‘मेघा, मैं राघव को सबक सिखा कर रहूंगी. छोड़ूगी नहीं उसे.’’

‘क्या करेगी, अनन्या? इस में खुद ही तुम्हें तकलीफ न उठानी पड़े… वह अब एक मशहूर आदमी है.’’

‘‘होगा बड़ा आदमी. मेरे बारे में लिख कर किसी लड़की की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की सजा तो उसे जरूर दूंगी मैं. उस का नंबर चाहिए मुझे, प्लीज, मेघा इस में हैल्प कर.’’

‘‘अनन्या, दिल्ली में अगले ही हफ्ते हमारे कालेज के एक प्रोग्राम में वह मुख्य अतिथि बन कर आ रहा है, मैं ने यह सुना है.’’

‘‘ठीक है, थैंक्स, मैं आ रही हूं.’’

‘‘सुन तो.’’

‘‘नहीं, बस अब वहीं आ कर बात करूंगी.’’

अनन्या ने मन ही मन बहुत देर सोच लिया था कि सुमित से कहेगी कि अपने मम्मीपापा से मिलने का मन कर रहा है. वह दिल्ली जा रही है. राघव को सब के सामने ऐसे लताड़ेगी कि याद रखेगा. मौकापरस्त, लालची?

शाम को सुमित और राहुल कुछ जल्दी ही आए. सुमित ने बहुत ही चिंतित स्वर में आते ही कहा, ‘‘उफ अनु, तुम कहां हो? तुम ने आज फोन ही नहीं उठाया. मुझे लगा किसी मीटिंग में होगी और यह चेहरा इतना क्योंउतरा है?’’

सुमित के प्यार भरे स्वर से अनन्या की आंखें झरझर बहने लगीं.

राहुल उस से लिपट गया, ‘‘क्या हुआ, मम्मा?’’

‘‘कुछ नहीं, बेटा,’’ कहते हुए अनन्या ने उसे प्यार किया.

‘‘अनन्या, तुम घर कब आईं?’’

‘‘आज औफिस गई ही नहीं?’’

‘‘अरे, क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है? लंच तो किया था न?’’

‘‘नहीं, भूख नहीं थी. सौरी, सुमित, मेरा फोन साइलैंट था आज.’’ इतने में ही सुमित की नजर बैड पर जैसे फेंकी गई स्थिति में उस बुक पर पड़ी जिस ने अनन्या को बहुत परेशान कर दिया था. सुमित ने बुक उठाई. एक नजर डाली, फिर वापस रख दी कहा, ‘‘मैं अभी आया. तुम आराम करो?’’

सुमित ने खुद फ्रैश हो कर राहुल के हाथमुंह धुला कर कपड़े बदलवाए. इतने में अनन्या 2 कप चाय और राहुल के लिए दूध और नाश्ता ले आई. तीनों ने कुछ चुपचाप ही खायापीया.

राहुल को टीवी पर कार्टून देखने के लिए कह कर सुमित बैड पर अनन्या के पास ही आ कर बैठ गया. अनन्या का मन कर रहा था अपने मन की पूरी बात सुमित से शेयर कर ले पर उस ने कुछ सोच कर स्वयं को रोक लिया.

सुमित ने अनन्या का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया. फिर कहा, ‘‘अनन्या, राघव की बुक से इतनी टैंशन में आने की जरूरत नहीं है.’’

अनन्या को हैरत का एक तेज झटका लगा.  बोली, ‘‘यह सब पता है तुम्हें?’’

‘‘हां, इस बुक को मार्केट में आए 1 महीना हो चुका है. पैसे से तो बड़ा आदमी बन गया

वह, पर मानवीय मूल्यों को समझ ही नहीं पाया. ऐसे लोगों को मैं मानसिक रूप से गरीब ही समझता हूं.’’

अब अनन्या स्वयं को रोक नहीं पाई. सुमित के गले में बांहें डाल कर फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘अरे अनु, तुम्हें रोने की कोई जरूरत नहीं है. मैं अतीत की बात वर्तमान में करने में विश्वास ही नहीं रखता. वह उस उम्र की बात थी. उस का आज हमारे जीवन में कोई स्थान नहीं है.’’

सुमित के गले लगी अनन्या देर तक अपना मन हलका करती रही. सुमित उस की पीठ पर हाथ फेरता हुआ उसे शांत करता रहा. सुबकियों के बीच भी सुमित जैसा पति पा कर अनन्या स्वयं को धन्य समझती रही थी.

थोड़ी देर बाद अनन्या ने पूछा, ‘‘इस बुक के बारे में तुम्हें कैसे पता चला?’’

‘‘दिल्ली में मेरा दोस्त, जो किताबी कीड़ा है,’’ मुसकराते हुए कहा सुमित ने, ‘‘अनुज ने इसे पढ़ा था, उस ने मुझ से फोन पर मजाक कर के मुझे छेड़ा कि यह अनन्या कहीं तुम ही तो नहीं, मैं ने उस समय हंसी में टाल दिया था पर मैं अनुज से बातें करने के बाद समझ गया था कि तुम्हारे बारे में ही लिखा गया है पर ऐसी बातों को तूल देने में मैं कोई समझदारी नहीं समझता. जो हुआ सो हुआ. इसलिए, तुम से यह बात नहीं की. तुम भी इस बात को इग्नोर कर दो.’’

‘‘मगर सुमित, मैं ऐसे व्यक्ति को सबक सिखाना चाहती हूं, जो अपनी कहानी की पब्लिसिटी के लिए कई लड़कियों के जीवन से खिलवाड़ कर रहा है. यह तो तुम इतने अच्छे इंसान हो मगर जरा सोचो, कोई और हो तो क्याक्या हो सकता है. मेरे मन को तभी सुकून मिलेगा जब मैं उसे ऐसा सबक सिखाऊंगी कि पब्लिसिटी को तरसते लोग आजीवन याद रखे…मैं दिल्ली जाना चाहती हूं, सुमित.’’

‘‘उस के लिए तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जो तुम्हें उसे कहना है, फोन पर कह लो. वैसे क्या कहना है?’’

‘‘उस का फोन नंबर कहां है हमारे पास? मैं उसे मानहानि के केस की धमकी दे कर उस का अपमान करना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है, तुम चाहो तो गीता से बात भी कर सकती हो. वैसे हमें सिर्फ डराना और मानसिक परेशानी ही तो देनी है उसे. हमें उस का पैसा तो बिलकुल भी नहीं चाहिए. मुझे आराम से गीता का नंबर मिल सकता है. मेरे बौस की रिश्तेदार है वह. सुना है अच्छे स्वभाव की है. जरा भी घमंड नहीं है.’’

‘‘ठीक है, सुमित, मुझे उस का नंबर दे दो. वह शायद मुझे भी पहचान ही जाए. तुम मेरे साथ हो तो अब मुझे किसी भी बात की चिंता नहीं है.’’

‘‘पर मेरी एक शर्त है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मुझे तुम्हारे चेहरे पर दुख या उदासी न दिखे.’’ अनन्या मुसकराती हुई सुमित से लिपट गई अब उस का मन हलका हो गया था. मन पर रखा एक भारी पत्थर जैसे हट गया था.

अगले दिन सुमित ने अनन्या के फोनपर गीता का नंबर भेज दिया. अनन्या ने लंच टाइम में एक शांत जगह जा कर गीता का नंबर मिलाया. गीता ने फोन उठाया तो अनन्या ने कालेज के दिनों का अपना परिचय दिया, गीता को सब याद आ गया. बोली, ‘‘कैसी हो? मेरा नंबर कैसे मिला?’’

‘‘कहां से मिला, वह छोड़ो गीता, बस यह पूछने का मन हुआ कि अपने पति की आत्मकथा पढ़ी होगी तुम ने कैसी लगी?’’

गीता का स्वर कुछ धीमा हुआ, ‘‘क्यों? अपना नाम आने पर परेशान हो?’’

‘‘मुझे राघव का नंबर दे सकती हो? इतने सच दुनिया के सामने रखने पर उसे गर्व हो रहा होगा न. बधाई तो बनती है न?’’

‘‘मैं समझी नहीं. वैसे राघव इस समय मेरे सामने ही बैठा है.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है. क्या तुम फोन स्पीकर पर कर सकती हो? प्लीज.’’

गीता ने फोन स्पीकर पर कर लिया. अनन्या की ठहरी हुई, गंभीर आवाज स्पीकर पर गूंज उठी, ‘‘मैं ने फोन इसलिए किया है राघव कि तुम्हें पहले स्वयं ही बता दूं कि मैं तुम पर मानहानि का दावा करने जा रही हूं 2 करोड़ का. अपनी कहानी में तुम ने जिस तरह मेरे बारे में लिखा है, मैं तुम्हें छोड़ूगी नहीं.

‘‘गीता तुम्हारे जैसे लालची पति को जीवनसाथी बना कर कितनी खुश है, यह तो वही जानती होगी पर लड़कियों की भावनाओं के साथ खेलने वाले इंसान की पब्लिसिटी पाने की ऐसी आदत पर उसे शर्म तो जरूर आती होगी, तुम ने तो उसे भी शर्मिंदा किया है.

‘‘गीता, तुम तो एक औरत हो, इस हरकत में अपने पति का साथ कैसे दे पाई? वह लेखिका जिस से राघव ने यह किताब लिखवाई है, जानती हो, कौन है? वह भी इस का शिकार रही है,

यह आदमी तुम्हारे पैसे से उस का मुंह बंद कर सकता है पर मैं इसे सबक सिखा कर रहूंगी. तुम्हारे पैसे ने राघव को तुम्हारा पति तो बना दिया पर चरित्र?’’

गीता के मुंह से हलकी सी आवाज निकली, ‘‘तुम्हारा पति क्या कहेगा?’’

‘‘उस ने यही कहा कि ऐसे आदमी को सजा मिलनी चाहिए जो लड़कियों के साथ खेले, फिर दुनिया के सामने अपने पौरुष का ऐसा डंका पीटे कि लड़कियां टूट जाएं, यह सर्वथा अनुचित है. और वाह, क्या नाम रखा है, ‘बैलैंसशीट औफ लाइफ’ नफेनुकसान के हिसाबकिताब में माहिर, रुपएपैसे के लालच में उलझा हुआ एक चरित्रहीन व्यक्ति अपनी कहानी को और नाम भी क्या दे सकता था? तुम लोगों के बच्चे तो बड़े हो कर अपने पिता के चरित्र पर बड़ा गर्व करेंगे. वाह.’’

गीता ने कहा, ‘‘अनन्या, मुझे थोड़ा समय दो.’’

अनन्या ने फिर फोन काट दिया. इतनी देर तक राघव सिर पर हाथ रखे ही बैठा रहा. उस में गीता से आंखें मिलाने का साहस नहीं था. गीता ने यह किताब लिखवाने के लिए पहले ही मना किया था पर राघव ने उस की एक न सुनी थी. आज वह एक सफल बिजनैसमैन था, गीता के मातापिता गुजर चुके थे. वह अब सारी प्रौपटी की एकमात्र अधिकारी थी.

गीता ने राघव की छिटपुट गलतियां कई बार माफ की थीं, पर आज गीता ने राघव को जिन जलती नजरों से देखा, राघव उन नजरों को सह न सका. चुपचाप बैठा रहा. गीता नि:शब्द उसे पहले घूरती रही, फिर इतना ही कहा, ‘‘यह बुक मार्केट से तुरंत वापस ले लो. एक भी कौपी कहीं न दिखे और फौरन सब से माफी मांगो नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा,’’ कह कर गीता अपना पर्स उठा कर वहां से चली गई.

राघव को इस के सिवा कोई और रास्ता सूझ भी नहीं रहा था. गीता उस के साथ बहुत अनर्थ कर सकती है, यह वह जानता था. वह जो भी था, गीता की दौलत के दम पर था. वह गीता को नाराज नहीं कर सकता था. अत: उस ने गीता को फौरन फोन किया, ‘‘आईएम वैरी सौरी, डियर तुम ने जैसा कहा है वैसा ही होगा.’’

राघव ने उसी समय अपने सैक्रेटरी को बुला कर गीता के कहे अनुसार आदेश दिए.

अगली सुबह अनन्या राहुल को तैयार कर रही थी. तभी अपने फोन पर कुछ पढ़ता हुआ सुमित हंस पड़ा. अनन्या ने आंखों से ही कारण पूछा तो सुमित ने अपना फोन उस की ओर बढ़ा कर कुछ पढ़ने का इशारा किया. ट्विटर पर राघव का माफीनामा था और लिखा था कि इस बुक को  मार्केट से विदड्रा कर रहा है.

सुमित ने अनन्या के कंधे पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘खुश?’’

‘‘थैंक्यू वैरी मच, सुमित. तुम्हारे जैसा जीवनसाथी पा कर मैं धन्य हो गई.’’

सुमित ने उस के माथे को चूम लिया. अचानक अनन्या ने अपने फोन को उठा कर कोई नंबर मिलाया तो सुमित ने पूछा, ‘‘किसे?’’

‘‘गीता को थैंक्स कहना है कि उस ने एक स्त्री के मन की बात को समझा. उस ने जो गरिमा दिखाई, बहुत अच्छा लगा. वैसे भी ऐसे पति के साथ निभाना आसान तो नहीं होगा. उसे थैंक्स कहना फर्ज है मेरा.’’

‘हां’ में सिर हिलाता हुआ सुमित उसे प्यार भरी नजरों से देख रहा था. Social Story in Hindi

Sad Hindi Story: ये मेरा मायका नहीं

Sad Hindi Story:  ‘‘मम्मी,आप नानी के यहां जाने के लिए पैकिंग करते हुए भी इतनी उदास क्यों लग रही हैं? आप को तो खुश होना चाहिए. नानी, मामा से मिलने जा रही हैं, पिंकी दीदी, सोनू भैया भी मिलेंगे.’’

‘‘नहींनहीं खुश तो हूं, बस जाने से पहले क्याक्या काम निबटाने हैं, यही सोच रही हूं.’’

‘‘खूब ऐंजौय करना मम्मी, हमारी पढ़ाई के कारण तो आप का जल्दी निकलना भी नहीं होता,’’ कह कर मेरे गाल पर किस कर के मेरी बेटी सुकन्या चली गई.

सही तो कह रही है, कोई मायके जाते हुए भी इतना उदास होता है? मायके जाते समय तो एक धीरगंभीर स्त्री भी चंचल तरुणी बन जाती है पर सुकन्या को क्या बताऊं, कैसे दिखाऊं उसे अपने मन पर लगे घाव. 20 साल की ही तो है. दुनिया के दांवपेचों से दूर. अभी तो उस की अपनी अलग दुनिया है, मांबाप के साए में हंसतीमुसकराती, खिलखिलाती दुनिया.

मेरे जाने के बाद अमित, सुकन्या और उस से 3 साल छोटे सौरभ को कोई परेशानी न हो, इस बात का ध्यान रखते हुए घर की साफसफाई करने वाली रमाबाई और खाना बनाने वाली कमला को अच्छी तरह निर्देश दे दिए थे. अपना बैग बंद कर मैं अमित का औफिस से आने का इंतजार कर रही थी.

सौरभ ने भी खेल कर आने पर पहला सवाल यही किया, ‘‘मम्मी, पैकिंग हो गई? आप बहुत सीरियस लग रही हैं, क्या हुआ?’’

‘‘नहीं, ठीक हूं,’’ कहते हुए मैं ने मुसकराने की कोशिश की.

इतने में अमित भी आ गए. हम चारों ने साथ डिनर किया. खाना खत्म होते ही अमित बोले, ‘‘सुजाता, आज टाइम पर सो जाना. अब किसी काम की चिंता मत करना, सुबह 5 बजे  एअरपोर्ट के लिए निकलना है.’’

सब काम निबटाने में 11 बज ही गए. सोने लेटी तो अजीब सा दुख और बेचैनी थी. किसी से कह नहीं पा रही थी कि मुझे नहीं जाना मां के घर, मुझे नहीं अच्छे लगते लड़ाईझगड़े. अकसर सोचती हूं क्या शांति और प्यार से रहना बहुत मुश्किल काम है? बस अमित मेरी मनोदशा समझते हैं, लेकिन वे भी क्या कहें, खून के रिश्तों का एक अजीब, अलग ही सच यह भी है कि अगर कोई गैर आप का दिल दुखाए तो आप उस से एक झटके में किनारा कर सकते हैं, लेकिन ये खून के अपने सगे रिश्ते मन को चाहे बारबार लहूलुहान करें आप इन से भाग नहीं सकते. कल मैं मुंबई एअरपोर्ट से फ्लाइट पकड़ूंगी, 2 घंटों में दिल्ली पहुंच कर फिर टैक्सी से मेरठ मायके पहुंच जाऊंगी. जहां फिर कोई झगड़ा देखने को मिलेगा. झगड़ा वह भी मांबेटे के बीच का, सोच कर ही शर्म आ जाती है, रिटायर्ड टीचर मां और पढ़ेलिखे मुझ से 5 साल बड़े नरेन भैया, गीता भाभी और मेरी भतीजी पिंकी व भतीजे सोनू के बीच का झगड़ा, कौन गलत है कौन सही, मैं कुछ सोचना नहीं चाहती, लेकिन दोनों मुझे फोन पर एकदूसरे की गलती बताते रहते हैं, तो मन का स्वाद कसैला हो जाता है मेरा.

मायके का यह तनाव आज का नहीं है.

5 साल पहले मां जब रिटायर हुई थीं तब से यही चल रहा है. आपस के स्नेहसूत्र कहां खो गए, पता ही नहीं चला. पिछली बार मैं 2 साल पहले गई थी. इन 2 सालों में हर फोन पर तनाव बढ़ता ही दिखा. अब तो हालत यह हो गई है कि मुझ से तो कोई यह पूछता ही नहीं है कि मैं कैसी हूं, अमित और बच्चे कैसे हैं, बस मेरे ‘नमस्ते’ कहते ही शिकायतों का पिटारा खोल देते हैं सब. ऐसे माहौल में मायके जाते समय किस बेटी का दिल खुश होगा? मैं तो अब भी न जाती पर मां ने फौरन आने के लिए कहा है तो मैं बहुत बेमन से कल जा रही हूं. काश, पापा होते. बस, इतना सोचते ही आंखें भर आती हैं मेरी.

मैं 13 वर्ष की ही थी जब उन का हार्टफेल हो गया था. उन का न रहना जीवन में एक ऐसा खालीपन दे गया जिस की कमी मुझे हमेशा महसूस हुई है. उन्हें ही याद करतेकरते मेरी आंख कब लगी, पता ही नहीं चला.

सुबह बच्चों को अच्छी तरह रहने के निर्देश देते हुए हम एअरपोर्ट के लिए निकल गए. अमित से बिदा ले कर अंदर चली गई और नियत समय पर उदास सा सफर खत्म हुआ.

जैसे ही घर पहुंची, मां गेट पर ही खड़ी थीं, टैक्सी से उतरते ही घर पर एक नजर डाली तो बाहर से ही मुझे जो बदलाव दिखा उसे देख मेरा दिल बुझ गया. अब घर के एक गेट की जगह 2 गेट दिख रहे थे और एक ही घर के बीच में दिख रही थी एक दीवार. दिल को बड़ा धक्का लगा.

मैं ने गेट के बाहर से ही पूछा, ‘‘मां, यह क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, मेरे बस का नहीं था रोजरोज का क्लेश. अब दीवार खींचने से शांति रहती है. वे लोग उधर खुश, मैं इधर खुश.’’

खुश… एक ही आंगन के 2 हिस्से. इस में खुश कैसे रह सकता है कोई?

मां और मेरी आवाज सुन कर भैया और उन का परिवार भी अपने गेट पर आ गया.

भैया ने मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कैसी है सुजाता?’’

गीता भाभी भी मुझ से गले मिलीं. पिंकी, सोनू तो चिपट ही गए, ‘‘बूआ, हमारे घर चलो.’’

इतने में मां ने कहा, ‘‘सुजाता, चल अंदर यहां कब तक खड़ी रहेगी?’’

मैं तो कुछ समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो गया, क्या करूं.

भैया ने ही कहा, ‘‘जा सुजाता, बाद में मिलते हैं.’’

मैं अपना बैग उठाए मां के पीछे चल दी. दीवार खड़ी होते ही घर का पूरा नक्शा बदल गया था. छत पर जाने वाली सीढि़यां भैया के हिस्से में चली गई थीं. अब छत पर जाने के लिए भैया के गेट से अंदर जाना था. आंगन का एक बड़ा हिस्सा भैया की तरफ था और एक छोटी गैलरी मां के हिस्से में जहां से बाहर का रास्ता था.

आंगन और गैलरी के बीच खड़ी एक दीवार जिसे देखदेख कर मेरे दिल

में हौल उठ रहे थे. मां एकदम शांत और सामान्य थीं. नहाधो कर मैं थोड़ी देर लेट गई. मां चाय ले आईं और फिर खुल गया शिकायतों का पिटारा. मैं अनमनी सी हो गई. इतनी दूर मैं क्या इसलिए आई हूं कि यह जान सकूं कि भाभी ने टाइम पर खाना क्यों नहीं बनाया, भैया भाभी के साथ उन के मायके क्यों जाते हैं बारबार, भाभी उन्हें बिना बताए पिक्चर क्यों गईं बगैराबगैरा…

मां ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? बहुत थक गई क्या? बहुत चुप है?’’

मैं ने भर्राए गले से कहा, ‘‘मां, यह दीवार…’’

बात पूरी नहीं होने दी मां ने, ‘‘बहुत अच्छा हुआ, अब रोज की किटकिट बंद हो गई. अब शांति है. अब बोल, क्या खाएगी और इन लोगों को सिर पर मत चढ़ाना.’’

मैं अवाक मां का मुंह देखती रह गई. इतने में दीवार के उस पार से भैया की आवाज आई, ‘‘सुजाता, लंच यहीं कर लेना. तेरी पसंद का खाना बना है.’’

पिंकी की आवाज भी आई, ‘‘बूआ, जल्दी आओ न.’’

मां ने पलभर सोचा, फिर कहा, ‘‘चल, अच्छा, एक चक्कर काट आ उधर, नहीं तो कहेंगे मां ने भाईबहन को मिलने नहीं दिया.’’

मैं भैया की तरफ गई. पिंकी, सोनू की बातें शुरू हो गईं. दोनों सुकन्या और सौरभ की बातें पूछते रहे और फिर धीरेधीरे भैया और भाभी ने भी मां की शिकायतों का सिलसिला शुरू कर दिया, ‘‘मां हर बात में अपनी आर्थिक स्वतंत्रता की बात करती हैं, उन्हें पैंशन मिलती है, वे किसी पर निर्भर नहीं हैं. बातबात में गुस्सा करती हैं. समय के साथ कोई समझौता नहीं करती हैं.’’

मैं यहां क्यों आ गई, मुझे समझ नहीं आ रहा था. कैसे रहूंगी यहां. यहां सब मुझ से बड़े हैं. मैं किसी को क्या समझाऊं और आज तो पहला ही दिन था.

इतने में मां की आवाज आई, ‘‘सुजाता, खाना लग गया है, आ जा.’’

मैं फिर मां के हिस्से में आ गई. मैं ने बहुत उदास मन से मां के साथ खाना खाया. मां ने मेरी उदासी को मेरी थकान समझा और फिर मैं थोड़ी देर लेट गई. बैड की जिस तरफ मैं लेटी थी वहां से बीच की दीवार साफ दिखाई दे रही थी जिसे देख कर मेरी आंखें बारबार भीग रही थीं.

अपनेअपने अहं के टकराव में मेरी मां और मेरे भैया यह भूल चुके थे कि इस घर की बेटी को आंगन का यह बंटवारा देख कर कैसा लगेगा. मुझे तो यही लग रहा था कि मेरा तो इस घर में गुजरा बचपन, जवानी सब बंट गए हैं. आंगन का वह कोना जहां पता नहीं कितनी दोपहरें सहेलियों के साथ गुड्डेगुडि़या के खेल खेले थे, अमरूद का वह पेड़ जिस के नीचे गरमियों में चारपाई बिछा कर लेट कर पता नहीं कितने उपन्यास पढ़े थे. छत पर जाने वाली वे बीच की चौड़ी सीढि़यां जहां बैठ कर लूडोकैरम खेला था, अब वे सब दीवार के उस पार हैं जहां जाने पर मां की आंखों में नाराजगी के भाव दिखेंगे. मां के हिस्से में वह जगह थी जहां हर तीजत्योहार पर सब साथ बैठते थे, आज वह खालीखाली लग रही थी. घर का बड़ा हिस्सा भैया के पास था. मां ने अपनी जरूरत और घर की बनावट के हिसाब से दीवार खड़ी करवा दी थी.

यही चल रहा था. मैं भैया की तरफ होती तो मां बुला लेतीं और बारबार पूछतीं कि नरेन क्या कह रहा था, भैयाभाभी पूछते मां मुझे क्या बताती हैं उन के बारे में. मैं ‘कुछ खास नहीं’ का नपातुला जवाब सब को देती. मुझे महसूस होता घर भी मेरे दिल की तरह उदास है. मैं मन ही मन अपने जाने के दिन गिनती रहती. अमित और बच्चों से फोन पर बात होती रहती थी. दिनभर मेरा पूरा समय इसी कोशिश में बीतता कि सब के संबंध अच्छे हो जाएं, लेकिन शाम तक परिणाम शून्य होता.

एक दिन मैं ने मां से पूछ ही लिया, ‘‘मां, मुझे आप ने फोन पर इस दीवार के बारे में नहीं बताया और फौरन आने के लिए क्यों कहा था?’’

मां ने कहा, ‘‘ऐसे ही, गीता को दिखाना था मैं अकेली नहीं हूं… बेटी है मेरे साथ.’’

मैं ने भैया से पूछा, ‘‘आप ने फोन पर बताया नहीं कुछ?’’

जवाब भाभी ने दिया, ‘‘बस, फोन पर क्या बताते, दीवार खींच कर मां खुश हो रही हैं तो हमें भी क्या परेशानी है. हम भी आराम से हैं.’’

मेरे मन में आया ये सब खुश हैं तो मुझे ही क्यों तकलीफ हो रही है घर के आंगन में खड़ी दीवार से.

एक दिन तो हद हो गई. मां मुझे साड़ी दिलवाने मार्केट ले जा रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘मां, पिंकी व सोनू को भी बुला लेती हूं. उन्हें उन की पसंद का कुछ खरीद दूंगी.’’

मां ने फौरन कहा, ‘‘नहीं, हम दोनों ही जाएंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘मां, बच्चे हैं, उन से कैसा गुस्सा?’’

‘‘मुझे उन सब पर गुस्सा आता है.’’

मैं उस समय उन्हें नहीं ले जा पाई. उन्हें मैं अलग से ले कर गई. उन्हें उन की पसंद के कपड़े दिलवाए. फिर हम तीनों ने आइसक्रीम खाई. जब से आई थी यह पहला मौका था कि मन को कुछ अच्छा लगा था. पिंकी व सोनू के साथ समय बिता कर मन बहुत हलका हुआ.

5 दिन बीत रहे थे. मुझे अजीब सी मानसिक थकान महसूस हो रही थी. पूरा दिन दोनों तरफ की आवाजों पर कभी इधर, तो कभी उधर घूमती दौड़ती रहती. मन रोता मेरा. किसी को एक बेटी के दिल की कसक नहीं दिख रही थी. किस बेटी का मन नहीं चाहता कि कभी वह 2-3 साल में अपने मायके आए तो प्यार और अपनेपन से भरे रिश्तों की मिठास यादों में साथ ले कर जाए. मगर मैं जल्दी से जल्दी अपने घर मुंबई जाना चाहती थी, क्योंकि मेरा मायका मायका नहीं रह गया था.

वह तो ऐसा मकान था जहां दीवार की दोनों तरफ मांबेटा बुरे पड़ोसियों की तरह रह रहे थे. इस माहौल में किसी बेटी के दिल को चैन नहीं आ सकता था.

मैं ने अमित को बता दिया कि मैं 1 हफ्ते में ही आ रही हूं. अमित सब समझ गए थे. 7वें दिन मैं ने अपना बैग पैक किया. सब से कसैले मन से बिदा ली. भैया ने अपने जानपहचान की टैक्सी बुलवा दी थी. टैक्सी में बैठ कर सीट पर सिर टिका कर मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं. लगा बिदाई तो आज हुई है मायके से. शादी के बाद जो बिदाई हुई थी उस में फिर मायके आने की, सब से मिलने की एक आस, चाह और कसक थी, लेकिन अब लग रहा था कभी नहीं आ पाऊंगी. इतने प्यारे, मीठे रिश्ते में आई कड़वाहट सहन करना बहुत मुश्किल था. मायके में खड़ी बीच की दीवार रहरह कर मेरी आंखों के आगे आती रही और मेरे गाल भिगोती रही. Sad Hindi Story

Parivarik Kahani: माधुरी दीक्षित सी सुंदर लड़की

Parivarik Kahani: लगभग 20 साल बाद जब उस दिन मैं ने अल्पना को देखा तो सोचा भी नहीं था कि अमेरिका वापस जाते वक्त एक विलक्षण सी परिस्थिति में अल्पना भी मेरे साथसाथ अमेरिका जा रही होगी…

उस दिन ड्राईक्लीन हो कर आए कपड़ों में मेरे कुरते पाजामे की जगह लेडीज ड्रैस देख कर उसे वापस दे कर अपना कुरता पाजामा लेने के लिए मैं ड्राईक्लीन की दुकान पर गया था. वहीं पर मैं ने इतने सालों बाद अल्पना को देखा.

उसे दुकानदार से झगड़ता देख कर विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसी बेहूदगी बातें करने वाली औरत अल्पना होगी. लेकिन यकीनन वह अल्पना ही थी.

कुछ देर तक तो मैं दुकानदार और अल्पना के बीच का झगड़ा झेलता रहा और फिर दुकान के बाहर से ही बिना अल्पना की तरफ देखते हुए बड़े ही शांत स्वर में मैं ने दुकानदार से कहा, ‘‘भैयाजी, मेरे कुरते पाजामे की जगह यह किसी की लेडीज ड्रैस आ गई है मेरे कपड़ों में… प्लीज, जरा देखेंगे क्या?’’

‘‘अरे, यह मेरी ड्रैस आप के पास कैसे आई? 4-5 दिन हो गए हैं इसे खोए हुए… इतने दिन क्यों सोए रहे?’’ गुस्से से कह अल्पना ने लगभग झपटते हुए मेरे हाथ से ड्रैस ले ली.

यह सब कहते हुए उस ने मुझे देखा नहीं था. लेकिन मैं ने उसे पहचान लिया था. उस के गुस्से को नजरअंदाज करते हुए मैं ने कहा था, ‘‘अरे, अंजू तुम? तुम यहां कैसे? तुम… आप अल्पना ही हैं न?’’

मेरी बात सुन उस ने तुरंत मेरी तरफ देखा और फिर बोली, ‘‘अरे हां, मैं वही तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड अल्पना हूं… लेकिन आप यानी अरुण यहां कैसे? आप तो अमेरिका सैटल हो गए थे न?’’

फिर करीब 10-15 मिनट की बातचीत में उस ने 20 सालों का पूरा लेखाजोखा मेरे सामने रख दिया था. मेरे अमेरिका जाने के तुरंत बाद ही उस की शादी हो गई थी. अमीर मांबाप की लाडली बेटी होने के बावजूद मांबाप की अपेक्षाओं के विपरीत जगह उस की शादी हुई थी. उस का पति किसी प्राइवेट कंपनी में सहायक मैनेजर तो था, लेकिन घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे. इसीलिए उसे अपनी सैंट्रल गवर्नमैंट की नौकरी अब तक जारी रखनी पड़ी थी. उस की एक ही बेटी है और इंजीनियरिंग के आखिरी साल में पढ़ रही है. और ऐसी कितनी ही बातें वह लगातार बताती जा रही थी और बिना कुछ बोले मैं उसे निहारता जा रहा था.

इन 20 सालों में अल्पना थोड़ी मोटी हो गई थी, लेकिन अब भी बहुत सुंदर लग रही थी… गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें और कंधों तक कटे बाल… सचमुच आज भी अल्पना उतनी ही आकर्षक थी जितनी 20 साल पहले थी.

बीते सालों की कई यादें संजोए हुए मैं सोच ही रहा था कि उस से क्या कहूं, तभी वह फिर से बोल पड़ी, ‘‘तुम कब आए अमेरिका से यहां? अब यहीं रहोगे कि वापस जाओगे? मृणाल कैसी है? बालबच्चे कितने हैं तुम्हारे?’’

‘‘अरे भई, अब सारी बातें यहीं रास्ते में खड़ीखड़ी करोगी क्या? चलो घर चलो मेरे… मैं यहीं पास में रहता हूं. मैं अपनी कार ले कर आया हूं… चलो घर चलो.’’

‘‘नहीं नहीं, आज रहने दो. आज जरा जल्दी में हूं… फिर कभी… अपना कार्ड दे दो… मैं पहुंच जाऊंगी कभी न कभी तुम्हारे घर.’’

‘‘अभी थोड़ी देर पहले दुकानदार से लड़ते वक्त तो तुम्हें जल्दी नहीं थी… अब कह रही हो जल्दी में हूं…’’

‘‘लड़ने से फायदा ही हुआ न? एक तो तुम मिल गए और मेरी बेटी की खोई हुई ड्रैस भी मिल गई.’’

‘‘लड़ने झगड़ने में काफी ऐक्सपर्ट हो गई हो तुम. क्या पति से भी ऐसे ही लड़ती हो?’’

‘‘और नहीं तो क्या…? कुदरत ने हर औरत को एक पति लड़ने के लिए ही तो दिया होता है… मृणाल ने तुम्हें बताया नहीं अब तक?’’

हम बातें करते करते मेरी गाड़ी के बिलकुल पास आ गए थे. मेरी नई मर्सिडीज को देख कर अल्पना की आंखें कुछ देर चुंधिया सी गई थीं और फिर अचानक बोल पड़ी थी, ‘‘वाऊ… मर्सिडीज… बड़े ठाट हैं तुम्हारे तो.’’

मेरी कार को निहारते वक्त अल्पना का चेहरा किसी भोलेभाले बच्चे सा हो गया था.

‘‘चलो, अंजू आज मैं ही तुम्हें तुम्हारे घर तक पहुंचा देता हूं… तुम्हारा घर भी देख लूंगा… चलो बैठो.’’

‘‘वाऊ, दैट्स ग्रेट… लेकिन थोड़ी देर रुको… मैं ने यहीं पास की गली में अपनी ड्रैस सिलने दी है. अभी उसे ले कर आती हूं… गली बहुत छोटी है… तुम्हारी मर्सिडीज नहीं जा सकती… मुझे सिर्फ 5-10 मिनट लगेंगे… चलेगा?’’

‘‘औफकोर्स चलेगा… मैं यहीं गाड़ी में बैठ कर तुम्हारा इंतजार करता हूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘ठीक है,’’ कह कर वह चली गई.

गाड़ी में बैठेबैठे 20 साल पहले की न जाने कितनी यादें मेरे मन में उमड़ने लगीं…

20 साल पहले यहां दिल्ली में ही लाजपत नगर में हम दोनों के परिवार साथसाथ के मकानों में रहते थे. हमारे 2 मकानों के बीच सिर्फ एक दीवार थी. आंगन हमारा साझा था. अल्पना के परिवार में अल्पना के मांबाप, अल्पना और उस का उस से 10 साल छोटा भाई सुरेश यानी 4 लोग थे. मेरा परिवार अल्पना के परिवार से बड़ा था. हमारे परिवार में मां बाबा, हम 4 भाई बहन, हमारी दादी और हमारी एक बिनब्याही बूआ कुल 8 लोग थे. लाजपत नगर में तब सिर्फ हमारे ही 2 परिवार महाराष्ट्रीयन थे, इसलिए हमारे दोनों परिवारों में बहुत ज्यादा प्यार और अपनापन था.

अल्पना की मां मेरी मां से 10-12 साल छोटी थीं, इसलिए हर वक्त मेरी मां के पास कुछ न कुछ नया सीखने हमारे घर आती रहती थीं. अल्पना का छोटा भाई सुरेश अल्पना से 10 साल छोटा होने के कारण हम दोनों परिवारों में सब से छोटा था, इसलिए सब को प्यारा लगता था. अल्पना के पिताजी बैंक में बहुत बड़ी पोस्ट पर होने के कारण हरदम व्यस्त रहते थे. अल्पना देखने में सुंदर तो थी ही, लेकिन उस के बातूनी, चंचल और मिलनसार स्वभाव के कारण हम सभी भाई बहनों की वह बैस्ट फ्रैंड बन गई थी. मेरी दोनों बहनें तो हरदम उसी की बातें करती रहतीं… मेरा बड़ा भाई अजय अपने नए नए शुरू किए बिजनैस में हरदम व्यस्त रहता था, लेकिन मेरे और अल्पना के हमउम्र होने के कारण हमारी बहुत बनती थी.

12वीं कक्षा तक मैं और अल्पना एक ही स्कूल में पढ़ते थे. 12वीं कक्षा पास करने के बाद इंजीनियरिंग करने के लिए मैं मुंबई चला गया. इंजीनियरिंग करतेकरते मेरी अपनी क्लास की मृणाल से दोस्ती हो गई, जो फिर प्यार में बदल गई. शादी करने के बाद मृणाल और मैं दोनों अमेरिका चले गए. उस के बाद अल्पना और उस के परिवार की यादें मेरे लिए धुंधली सी पड़ती गई थीं.

मैं अमेरिका में ही था. तभी अल्पना की शादी हो गई थी. यह खबर मुझे अपनी मां से मिली थी. मां बाबा थे तब तक अल्पना और उस के परिवार की कुछ न कुछ खबर मिलती रहती थी… 7-8 साल पहले मां का और फिर बाबा का देहांत हो जाने के बाद कभी इतने करीबी रहने वाले अल्पना के परिवार से मानों मेरा संबंध ही टूट गया था.

आजकल सचमुच जीवन इतना फास्ट हो गया है कि जो वर्तमान में चल रहा है बस उसी के बारे में हम सोच सकते हैं… बस उसी से जुड़े रहते हैं… कभीकभार भूतकाल इस तरह अल्पना के रूप में सामने आ जाता है तभी हम भूतकाल के बारे में सोचने लगते हैं.

मैं अपने ही विचारों में खोया हुआ था कि तभी अल्पना सामने आ खड़ी हुई तो मैं वर्तमान में लौटा. फिर कार का दरवाजा खोल कर अल्पना को बैठने को कहा.

‘‘क्यों, मन अमेरिका पहुंच गया था क्या?’’ कार में बैठते हुए अल्पना ने कहा, ‘‘अमेरिका से कब आए? अब क्या यहीं रहोगे या वापस जाना है?’’

‘‘वापस जाना है… यहां बस साल भर के लिए एक प्रोजैक्ट पर आया हूं…. यहां पास ही एक किराए पर मकान ले लिया है… आजकल इंडिया में काफी सुविधाएं हो गई हैं.’’

‘‘और मृणाल कैसी है? बच्चे क्या कररहे हैं?’’

‘‘एक ही बेटा है.’’

‘‘क्या पढ़ाई कर रहा है?’’

‘‘इंजीनियरिंग कर रहा है… आखिरी साल है उस का भी.’’

‘‘यानी तुम्हें भी एक ही लड़का है?’’

‘‘हांहां, बिलकुल तुम्हारी ही तरह हम दोनों एक जान और हमारी अकेली जान.’’

हम बातें करतेकरते अल्पना के घर तक पहुंच गए थे. अल्पना के कहने पर मैं उस का फ्लैट देखने ऊपर उस के घर गया.

छोटा सा 2 कमरों का फ्लैट था, लेकिन निहायत खूबसूरती से सजाया गया था. डाइनिंग टेबल के साथ लगी खिड़की के इर्दगिर्द लहराता हुआ मनीप्लांट, घर के द्वार पर रखा मोगरे का गमला. उस छोटे से ड्राइंगरूम में घर की हर चीज घर की गृहिणी की कलात्मक रुचि की गवाही दे रही थी.

घर को निहारते हुए अनायास ही मैं बोल पड़ा, ‘‘वाह, क्या बढि़या सजा रखा है तुम ने घर… नौकरी करते हुए भी कैसे कर लेती हो यह सब…?’’

मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी अंदर से एक बेहद हैंडसम व्यक्ति लगभग चिल्लाता हुआ बाहर आया और अल्पना पर बरस पड़ा, ‘‘इतनी देर तक कहां मटरगस्ती हो रही थी… मुझे काम पर जाना है… याद भी है? तुम्हारी तरह औफ नहीं है मेरा.’’

अल्पना की बड़ी विचित्र स्थिति हो गई थी. मैं भी हैरान हो कर कभी अल्पना को कभी उस इनसान को देख बड़ी मुश्किल से खुद को संभाले खड़ा था.

‘‘ये मेरे पति हैं शशिकांत और शशि ये हैं अरुण… मैं ने तुम्हें इन के बारे में बताया था न… हमारे पड़ोस में रहते थे,’’ अल्पना ने कुछ झेंपते हुए अपने पति से मेरी मुलाकात करानी चाही थी.

‘‘अच्छा… ठीक है… लेकिन मेरे पास अब जरा भी फुरसत नहीं है और होती भी तो तुम्हारे पुराने यारों से परिचित होने का मुझे कोई शौक नहीं है…’’ कह वह मेरे हाथ मिलाने के लिए बढ़े हाथ को इग्नोर कर अंदर चला गया.

मैं अवाक खड़ा रह गया. फिर बोला, ‘‘ओके अंजू, मैं चलता हूं… मृणाल राह देख रही होगी,’’ और फिर उस की तरफ बिना देखे ही घर से बाहर निकल आया.

गाड़ी में बैठतेबैठते अनायास ही मेरी नजरें ऊपर गईं तो देखा अल्पना अपनी छोटी सी बालकनी में खड़ी हो कर बड़ी असहाय सी नजरों से मुझे देख रही थी. आंखों में आंसू थे, जिन्हें छिपाने का प्रयास कर रही थी. उस की वे असहाय सी नजरें मेरा घर तक पीछा करती रहीं.

घर पहुंचते ही मृणाल को सारी बात बताई तो वह भी अवाक सी रह गई. हमारी शादी के बाद से ही मृणाल अल्पना और उस के पूरे परिवार को जानती थी. अल्पना की मां की दी हुई कांजीवरम की साड़ी आज भी मृणाल ने संभाल कर रखी है. अल्पना की सुंदरता और मिलनसार स्वभाव से तो मृणाल उसे देखते ही प्रभावित हो गई थी और कभीकभी मुझे चिढ़ाते हुए कहती कि ऐसी माधुरी दीक्षित सी सुंदर लड़की पड़ोस में थी फिर भी तुम मेरे पीछे कैसे पड़ गए थे अरुण.

जाने कितनी देर तक हम दोनों अल्पना के बारे में ही बातें करते रहे.

तभी मेरे मोबाइल पर फोन आ गया.

‘‘मैं… मैं अल्पना बोल रही हूं.’’

‘‘बोलो.’’

‘‘तुम्हें सौरी कहने के लिए फोन किया है… तुम पहली बार हमारे घर आए और… और तुम्हारी बिना वजह इनसल्ट हो गई.’’

‘‘अरे, नहींनहीं… मेरी इनसल्ट की छोड़ो… तुम मुझे सचसच बताओ कि तुम दोनों में कोई प्रौब्लम चल रही है क्या?’’

‘‘प्रौब्लम? मेरी कोई प्रौब्लम नहीं. सारी प्रौब्लम्स शशि की ही हैं.’’

‘‘जरा खुल कर बताओ. शायद मैं कुछ मदद कर सकूं?’’

‘‘अब फोन पर नहीं बता सकती… लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि शशि का गुस्सैल व शक्की स्वभाव मेरे लिए सहना मुश्किल होता जा रहा है. उस के इस स्वभाव की वजह से ही मैं किसी के घर नहीं जाती और न किसी को अपने घर बुलाती… कल अचानक तुम मिल गए… मुझे पहुंचाने घर तक आ गए… न जाने कैसे मैं ने तुम्हें ऊपर अपने घर में बुला लिया…’’

‘‘तुम ने ये सारी बातें मां बाबा को बताई हैं कि नहीं?’’

‘‘शुरूशुरू में कोशिश की थी बताने की उसी का परिणाम आज तक भुगत रही हूं.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘तुम्हें तो पता ही है मेरे बाबा भी कितने गुस्सैल थे… उन्हें जब यह सब पता चला तो उन्होंने शशि को गुस्से में बहुत कुछ बोल दिया था… जो नहीं बोलना चाहिए था वह भी बोल गए थे…

‘‘अरे, मेरी शादी के वक्त से ही शशि बाबा को पसंद नहीं था. उस की नौकरी, तनख्वाह कुछ भी उन्हें मेरे लायक नहीं लगा था. लेकिन शशि देखने में इतना हैंडसम था कि मैं देखते ही उस के प्यार में पागल हो गई थी. और मांबाप के लाख समझाने पर भी मैं शशि से ही शादी करने की जिद कर बैठी थी. आखिर मेरी जिद की वजह से मेरी शशि से शादी हो गई. शादी के बाद हम दोनों जब भी मांबाबा के घर जाते शशि को हमेशा ही लगता कि उस की नौकरी और कम तनख्वाह के कारण बाबा उसे नीची नजरों से देखते हैं.

‘‘मैं ने जब शशि की शिकायत बाबा से करी तो बाबा ने गुस्से में भर कर उसे सुना दिया कि तुम मेरी बेटी के लायक कभी थे ही नहीं और कभी हो भी नहीं सकते.

‘‘यह सब सुनने के बाद मेरा मायका छूट गया. शशि के स्वभाव ने और भयंकर रूप धारण कर लिया था… यही है मेरी गृहस्थी का असली रूप. मां बाबा और सुरेश अब अमेरिका में ही रहने लगे हैं… न वे कभी मेरे से मिलने आए और न मैं कभी उन के पास गई… जीवन में मुझे एक ही सुख मिला है और वह है मेरी बेटी प्रिया. उसे देख कर ही मैं जी रही हूं.’’

‘‘बेटी से कैसा सलूक है तुम्हारे पति का?’’

‘‘बेटी को तो वह बहुत प्यार करता है. लेकिन उस के स्वभाव के कारण प्रिया उस से डरी डरी सी रहती है… हम दोनों के झगड़े में पिसती जा रही है… हर समय सहमी सहमी सी रहती है.’’

‘‘तुम्हें कुछ दिन सुरेश के साथ मां बाबा के साथ जा कर रहना चाहिए.’’

‘‘मां बाबा सुरेश के साथ काफी सैटल हो गए हैं. उन्होंने वहां की सिटीजनशिप भी ले ली है. सुरेश और उस की पत्नी उन की बहुत सेवा करते हैं… ऐसे में मुझे अपना यह दुख उन के सिर पर डालना ठीक नहीं लगता. अच्छा यह सब रहने दो… तुम्हें और एक बात बतानी थी. मैं कल 4 बजे तक तुम्हारे घर आऊंगी… कुछ काम है… मां बाबा के कुछ पेपर्स देने हैं. तुम जब अमेरिका जाओ तो पेपर्स सुरेश को मेल कर देना.’’

‘‘हांहां, जरूर… जरूर आना कल. मैं और मृणाल वेट करेंगे… अपनी बेटी को भी लाना… उस से भी मुलाकात हो जाएगी,’’ कह कर मैं ने फोन बंद कर दिया.

मगर दूसरे दिन दोपहर 4 बजे तक का इंतजार हमें करना ही नहीं पड़ा. सुबहसुबह 7 बजे ही प्रिया का यानी अल्पना की बेटी का फोन आ गया. बहुत ही डरी आवाज में उस ने कहा, ‘‘अंकल, आप प्लीज अभी हमारे घर आ जाएं. कल पापा ने मम्मी को बहुत मारा है… मम्मी ने ही आप को फोन करने को कहा था.’’

मैं ने बिना कुछ सोचेसमझे अपनी गाड़ी निकाली. मृणाल को भी साथ ले लिया. फिर अपने एक पुलिस वाले दोस्त इंस्पैक्टर राणा को पुलिस की वरदी में अपने साथ ले लिया.

अल्पना के घर पहुंच गए. अल्पना की हालत बहुत खराब थी. उस की एक आंख सूजी हुई थी. दोनों गालों पर भी चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. एक हाथ भी जख्मी था. वह बहुत घबराई हुई थी और कराह रही थी. प्रिया उस की बगल में बैठी थी. शशिकांत पलंग की दूसरी ओर सिर पकड़े बैठा था.

मुझे और मेरे साथ आए पुलिस इंस्पैक्टर को देख कर शशिकांत घबरा गया. फिर दूसरे  ही पल अपने तमाम पुरुष अहंकार को समेटते हुए अल्पना की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘क्या तुम ने बुलाया है इन्हें यहां?’’

‘‘मैं इंस्पैक्टर राणा… आप की बेटी के फोन के आधार पर यहां इन्वैस्टिगेशन करने आया हूं.’’

शशिकांत इंसपैक्टर राणा की बात सुन कर हक्काबक्का रह गया.

मैं और मृणाल भी चुपचाप खड़े थे. पहले तो इंस्पैक्टर राणा ने शशिकांत को अपने कब्जे में किया. फिर मृणाल प्रिया के साथ घर पर रुकी रही और मैं और अल्पना पुलिस स्टेशन चले गए. अल्पना ने थाने में शशिकांत के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई.

इस के बाद अल्पना और प्रिया को ले कर हम दोनों अपने घर आ गए. घर आते ही मृणाल ने पहले सब के लिए चाय बनाई. अल्पना को पानी दे कर थोड़ा शांत  होने दिया और फिर थोड़ी देर बाद बहुत ही शांत संयत भाव से मैं ने अल्पना से पूछा, ‘‘क्या है यह सब अंजू? पत्नी पर इस तरह हाथ उठाना गुनाह है, यह क्या तुम्हारा पति जानता नहीं? क्या पहले भी कभी उस ने इस तरह मारा था?’’

‘‘ऐसा दूसरी बार हुआ है… 2-3 साल पहले मुझे औफिस में अचानक चक्कर आ गया था… मेरी तबीयत बहुत बिगड़ गई थी. तब मेरा एक कलीग मुझे घर छोड़ने आया था… तब भी शशि ने मुझे रात को इसी तरह मारा था… वह मेरे लिए बहुत पजैसिव है… मेरे साथ किसी और पुरुष को वह देख ही नहीं सकता.’’

‘‘वह देख नहीं सकता, लेकिन तुम यह सब सह कैसे लेती हो? पति को तुम्हारा नौकरी कर के पैसे कमाना मंजूर है, लेकिन तुम्हारे साथ किसी को देखना मंजूर नहीं? यह क्या बात हुई?’’

‘‘मैं ने भी यह सब हजार बार सोचा है अरुण… सिर्फ अपनी बेटी की सोच सब सहती रही हूं.’’

‘‘लेकिन सहन करने की कोई सीमा होती है, अंजू… मैं मानता हूं कि तुम मांबाबा, सुरेश और सब के बारे में सोच कर अपना दर्द आज तक छिपाती रही हो, लेकिन सहनशीलता की भी कोई सीमा होनी चाहिए… इतनी मार सहने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है. कभी न कभी सहनशीलता का भी अंत होना ही चाहिए.’’

‘‘वह आज हो गया अरुण… इतने दिनों तक मैं अपनी इस स्वीट बेटी के लिए चुप रही थी, लेकिन अब नहीं… अब वह सब समझ चुकी है… अब मुझे शशि से अलग होने से कोई नहीं रोक सकता.’’

‘‘वैरी गुड… हम सब तुम्हारे साथ हैं.’’

2-3 महीने तक प्रिया और अल्पना हमारे साथ ही रही. फिर अल्पना ने कोर्ट में तलाक का नोटिस दे दिया.

शशि काफी दिनों तक हमारे घर आ कर अल्पना को मनाने का नाटक करता रहा,

लेकिन अल्पना नहीं मानी. तलाक के लिए 6 महीने का सैपरेशन का समय जब शुरू हुआ तभी हमारा अमेरिका वापस जाने का समय भी आ गया. अल्पना और प्रिया के पास भी पासपोर्ट थे ही… जब हम दोनों अमेरिका वापस जा रहे थे तब अल्पना और प्रिया भी हमारे साथ अमेरिका जा रही थीं. उन दोनों को सुरेश तक पहुंचाने का जिम्मा मैं ने ही लिया था. Parivarik Kahani

Hindi Family Story: शादीशुदा औरत का पुरुष दोस्त

Hindi Family Story: मेरे बचपन का दोस्त रमेश काफी परेशान और उत्तेजित हालत में मुझ से मिलने मेरी दुकान पर आया और अपनी बात कहने के लिए मुझे दुकान से बाहर ले गया. वह नहीं चाहता था कि उस के मुंह से निकला एक शब्द भी कोई दूसरा सुने.

‘‘मैं अच्छी खबर नहीं लाया हूं पर तेरा दोस्त होने के नाते चुप भी नहीं रह सकता,’’ रमेश बेचैनी के साथ बोला.

‘‘खबर क्या है?’’ मेरे भी दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं.

‘‘वंदना भाभी को मैं ने आज शाम नेहरू पार्क में एक आदमी के साथ घूमते देखा है. वह दोनों 1 घंटे से ज्यादा समय तक साथसाथ थे.’’

‘‘इस में परेशान होने वाली क्या बात है?’’ मेरे मन की चिंता काफी कम हो गई पर बेचैनी कायम रही.

‘‘संजीव, मैं ने जो देखा है उसे सुन कर तू गुस्सा बिलकुल मत करना. देख, हम दोनों शांत मन से इस समस्या का हल जरूर निकाल लेंगे. मैं तेरे साथ हूं, मेरे यार,’’ रमेश ने भावुक हो कर मुझे अपनी छाती से लगा लिया.

‘‘तू ने जो देखा है, वह मुझे बता,’’ उस की भावुकता देख मैं, मुसकराना चाहा पर गंभीर बना रहा.

‘‘यार, उस आदमी की नीयत ठीक नहीं है. वह वंदना भाभी पर डोरे डाल रहा है.’’

‘‘ऐसा तू किस आधार पर कह रहा है?’’

‘‘अरे, वह भाभी का हाथ पकड़ कर घूम रहा था. उस के हंसनेबोलने का ढंग अश्लील था…वे दोनों पार्क में प्रेमीप्रेमिका की तरह घूम रहे थे…वह भाभी के साथ चिपका ही जा रहा था.’’

जो व्यक्ति वंदना के साथ पार्क में था, उस के रंगरूप का ब्यौरा मैं खुद रमेश को दे सकता था पर यह काम मैं ने उसे करने दिया.

‘‘क्या तू उस आदमी को पहचानता है?’’ रमेश ने चिंतित लहजे में प्रश्न किया.

मैं ने इनकार में सिर दाएंबाएं हिला कर झूठा जवाब दिया.

‘‘अब क्या करेगा तू?’’

‘‘तू ही सलाह दे,’’ उस की देखादेखी मैं भी उलझन का शिकार बन गया.

‘‘देख संजीव, भाभी के साथ गुस्सा व लड़ाईझगड़ा मत करना. आज घर जा कर उन से पूछताछ कर पहले देख कि वह उस के साथ नेहरू पार्क में होने की बात स्वीकार भी करती हैं या नहीं. अगर दाल में काला होगा… उन के मन में खोट होगा तो वह झूठ का सहारा लेंगी.’’

‘‘अगर उस ने झूठ बोला तो क्या करूं?’’

‘‘कुछ मत करना. इस मामले पर सोचविचार कर के ही कोई कदम उठाएंगे.’’

‘‘ठीक है, पूछताछ के बाद मैं बताता हूं तुझे कि वंदना ने क्या सफाई दी है.’’

‘‘मैं कल मिलता हूं तुझ से.’’

‘‘कल दुकान की छुट्टी है रमेश, परसों आना मेरे पास.’’

रमेश मुझे सांत्वना दे कर चला गया. घर लौटने तक मैं रहरह कर धीरज और वंदना के बारे में विचार करता रहा.

हमारी शादी को 5 साल बीत चुके हैं. वंदना उस समय भी उसी आफिस में काम करती थी जिस में आज कर रही है. धीरज वहां उस का वरिष्ठ सहयोगी था. शादी के बाद जब भी वह आफिस की बातें सुनाती, धीरज का नाम वार्तालाप में अकसर आता रहता.

वंदना मेरे संयुक्त परिवार में बड़ी बहू बन कर आई थी. आफिस जाने वाली बहू से हम दबेंगे नहीं, इस सोच के चलते मेरे मातापिता की उस से शुरू से ही नहीं बनी. उन की देखादेखी मेरा छोटा भाई सौरभ व बहन सविता भी वंदना के खिलाफ हो गए.

सौरभ की शादी डेढ़ साल पहले हुई. उस की पत्नी अर्चना, वंदना से कहीं ज्यादा चुस्त व व्यवहारकुशल थी. वह जल्दी ही सब की चहेती बन गई. वंदना और भी ज्यादा अलगथलग पड़ गई. इस के साथ सब का क्लेश व झगड़ा बढ़ता गया.

अर्चना के आने के बाद वंदना बहुत परेशान रहने लगी. मेरे सामने खूब रोती या मुझ से झगड़ पड़ती.

‘‘आप की पीठ पीछे मेरे साथ बहुत ज्यादा दुर्व्यवहार होता है. मैं इस घर में नहीं रहना चाहती हूं,’’ वंदना ने जब अलग होने की जिद पकड़ी तो मैं बहुत परेशान हो गया.

मुझे वंदना के साथ गुजारने को ज्यादा समय नहीं मिलता था. उस की छुट्टी रविवार को होती और दुकान के बंद होने का दिन सोमवार था. मुझे रात को घर लौटतेलौटते 9 बजे से ज्यादा का समय हो जाता. थका होने के कारण मैं उस की बातें ज्यादा ध्यान से नहीं सुन पाता. इन सब कारणों से हमारे आपसी संबंधों में खटास और खिंचाव बढ़ने लगा.

यही वह समय था जब धीरज ने वंदना के सलाहकार के रूप में उस के दिल में जगह बना ली थी. आफिस में उस से किसी भी समस्या पर हुई चर्चा की जानकारी मुझे वंदना रोज देती. मैं ने साफ महसूस किया कि मेरी तुलना में धीरज की सलाहों को वंदना कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण, सार्थक और सही मानती थी.

‘‘आप का झुकाव अपने घर वालों की तरफ सदा रहेगा जबकि धीरज निष्पक्ष और सटीक सलाह देते हैं. मेरे मन की अशांति दूर कर मेरा हौसला बढ़ाना उन्हें बखूबी आता है,’’ वंदना के इस कथन से मैं भी मन ही मन सहमत था.

घर के झगड़ों से तंग आ कर वंदना ने मायके भाग जाने का मन बनाया तो धीरज ने उसे रोका. घर से अलग होने की वंदना की जिद उसी ने दूर की. उसी की सलाह पर चलते हुए वह घर में ज्यादा शांत व सहज रहने का प्रयास करती थी.

इस में कोई शक नहीं कि धीरज की सलाहें सकारात्मक और वंदना के हित में होतीं. उस के प्रभाव में आने के बाद वंदना में जो बदलाव आया उस का फायदा सभी को हुआ.

पत्नी की जिंदगी में कोई दूसरा पुरुष उस से ज्यादा अहमियत रखे, ये बात किसी भी पति को आसानी से हजम नहीं होगी. मैं वंदना को धीरज से दूर रहने का आदेश देता तो नुकसान अपना ही होता. दूसरी तरफ दोनों के बीच बढ़ती घनिष्ठता का एहसास मुझे वंदना की बातों से होता रहता था और मेरे मन की बेचैनी व जलन बढ़ जाती थी.

धीरज को जाननासमझना मेरे लिए अब जरूरी हो गया. तभी मेरे आग्रह पर एक छुट्टी वाले दिन वंदना और मैं उस के घर पहुंच गए. मेरी तरह उस दिन वंदना भी उस के परिवार के सदस्यों से पहली बार मिली.

धीरज की मां बड़ी बातूनी पर सीधीसादी महिला थीं. उस की पत्नी निर्मला का स्वभाव गंभीर लगा. घर की बेहतरीन साफसफाई व सजावट देख कर मैं ने अंदाजा लगाया कि वह जरूर कुशल गृहिणी होगी.

धीरज का बेटा नीरज 12वीं में और बेटी निशा कालिज में पढ़ते थे. उन्होंने हमारे 3 वर्षीय बेटे सुमित से बड़ी जल्दी दोस्ती कर उस का दिल जीत लिया.

कुल मिला कर हम उन के घर करीब 2 घंटे तक रुके थे. वह वक्त हंसीखुशी के साथ गुजरा. मेरे मन में वंदना व धीरज के घनिष्ठ संबंधों को ले कर खिंचाव न होता तो उस के परिवार से दोस्ती होना बड़ा सुखद लगता.

‘‘तुम्हें धीरज से अपने संबंध इतने ज्यादा नहीं बढ़ाने चाहिए कि लोग गलत मतलब लगाने लगें,’’ अपनी आंतरिक बेचैनी से मजबूर हो कर एक दिन मैं ने उसे सलाह दी.

‘‘लोगों की फिक्र मैं नहीं करती. हां, आप के मन में गलत तरह का शक जड़ें जमा रहा हो तो साफसाफ कहो,’’ वंदना ध्यान से मेरे चेहरे को पढ़ने लगी.

‘‘मुझे तुम पर विश्वास है,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘और इस विश्वास को मैं कभी नहीं तोड़ूंगी,’’ वंदना भावुक हो गई, ‘‘मेरे मानसिक संतुलन को बनाए रखने में धीरज का गहरा योगदान है. मैं उन से बहुत कुछ सीख रही हूं…वह मेरे गुरु भी हैं और मित्र भी. उन के और मेरे संबंध को आप कभी गलत मत समझना, प्लीज.’’

धीरज के कारण वंदना के स्वभाव में जो सुखद बदलाव आए उन्हें देख कर मैं ने धीरेधीरे उन के प्रति नकारात्मक ढंग से सोचना कम कर दिया. अपनी पत्नी के मुंह से हर रोज कई बार उस का नाम सुनना तब मुझे कम परेशान करने लगा.

उस दिन रात को भी वंदना ने खुद ही मुझे बता दिया कि वह धीरज के साथ नेहरू पार्क घूमने गई थी.

‘‘आज किस वजह से परेशान थीं तुम?’’ मैं ने उस से पूछा.

‘‘मैं नहीं, बल्कि धीरज तनाव के शिकार थे,’’ वंदना की आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘उन्हें किस बात की टैंशन है?’’

‘‘उन की पत्नी के ई.सी.जी. में गड़बड़ निकली है. शायद दिल का आपरेशन भी करना पड़ जाए. अभी दोनों बच्चे छोटे हैं. फिर उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं है. इन्हीं सब बातों के कारण वह चिंतित और परेशान थे.’’

कुछ देर तक खामोश रहने के बाद वंदना ने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और भावुक लहजे में बोली, ‘‘जो काम धीरज हमेशा मेरे साथ करते हैं, वह आज मैं ने किया. मुझ से बातें कर के उन के मन का बोझ हलका हुआ. मैं एक और वादा उन से कर आई हूं.’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘यही कि इस कठिन समय में मैं उन की आर्थिक सहायता भी करूंगी. मुझे विश्वास है कि आप मेरा वादा झूठा नहीं पड़ने देंगे. हमारे विवाहित जीवन की सुखशांति बनाए रखने में उन का बड़ा योगदान है. अगर उन्हें 10-20 हजार रुपए देने पड़ें तो आप पीछे नहीं हटेंगे न?’’

वंदना के मनोभावों की कद्र करते हुए मैं ने सहज भाव से मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘अपने गुरुजी के मामलों में तुम्हारा फैसला ही मेरा फैसला है, वंदना. मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं. हमारा एकदूसरे पर विश्वास कभी डगमगाना नहीं चाहिए.’’

अपनी आंखों में कृतज्ञता के भाव पैदा कर के वंदना ने मुझे ‘धन्यवाद’ दिया. मैं ने हाथ फैलाए तो वह फौरन मेरी छाती से आ लगी.

इस समय वंदना को मैं ने अपने हृदय के बहुत करीब महसूस किया. धीरज और उस के दोस्ताना संबंध को ले कर मैं रत्ती भर भी परेशान न था. सच तो यह था कि मैं खुद धीरज को अपने दिल के काफी करीब महसूस कर रहा था.

धीरज को अपना पारिवारिक मित्र बनाने का मन मैं बना चुका था.

2 दिन बाद रमेश परेशान व उत्तेजित अवस्था में मुझ से मिलने पहुंचा. वक्त की नजाकत को महसूस करते हुए मैं ने भी गंभीरता का मुखौटा लगा लिया.

‘‘क्या वंदना भाभी ने उस व्यक्ति के साथ नेहरू पार्क में घूमने जाने की बात तुम्हें खुद बताई, संजीव?’’ रमेश ने मेरे पास बैठते ही धीमी, पर आवेश भरी आवाज में प्रश्न पूछा.

‘‘हां,’’ मैं ने सिर हिलाया.

‘‘अच्छा,’’ वह हैरान हो उठा, ‘‘कौन है वह?’’

‘‘उन का नाम धीरज है और वह वंदना के साथ काम करते हैं.’’

‘‘उस के साथ घूमने जाने का कारण भाभी ने क्या बताया?’’

‘‘किसी मामले में वह परेशान थे. वंदना से सलाह लेना चाहते थे. उस से बातें कर के मन का बोझ हलका कर लिया उन्होंने,’’ मैं ने सत्य को ही अपने जवाब का आधार बनाया.

‘‘मुझे तो वह परेशान या दुखी नहीं, बल्कि एक चालू इनसान लगा है,’’ रमेश भड़क उठा, ‘‘उस ने भाभी का कई बार हाथ पकड़ा… कंधे पर हाथ रख कर बातें कर रहा था. मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि भाभी को ले कर उस की नीयत खराब है.’’

‘‘मेरे भाई, तेरा अंदाजा गलत है. वंदना धीरज को अपना शुभचिंतक व अच्छा मित्र मानती है,’’ मैं ने उसे प्यार से समझाया.

‘‘मित्र, पराए पुरुष के साथ शादीशुदा औरत की मित्रता कैसे हो सकती है?’’ उस ने आवेश भरे लहजे में प्रश्न पूछा.

‘‘एक बात का जवाब देगा?’’

‘‘पूछ.’’

‘‘हम दोस्तों में सब से पहले विकास की शादी हुई थी. अनिता भाभी के हम सब लाड़ले देवर थे. उन का हाथ हम ने अनेक बार पकड़ कर उन से अपने दिल की बातें कही होंगी. क्या तब हमारे संबंधों को तुम ने अश्लील व गलत समझा था?’’

‘‘नहीं, क्योंकि हम एकदूसरे के विश्वसनीय थे. हमारे मन में कोई खोट नहीं था,’’ रमेश ने जवाब दिया.

‘‘इस का मतलब कि स्त्रीपुरुष के संबंध को गलत करार देने के लिए हाथ पकड़ना महत्त्वपूर्ण नहीं है, मन में खोट होना जरूरी है?’’

‘‘हां, और तू इस धीरज…’’

‘‘पहले तू मेरी बात पूरी सुन,’’ मैं ने उसे टोका, ‘‘अगर मैं और तुम हाथ पकड़ कर घूमें… या वंदना तेरी पत्नी के साथ हाथ पकड़ कर घूमे…फिल्म देख आए…रेस्तरां में कौफी पी ले तो क्या हमारे और उन के संबंध गलत कहलाएंगे?’’

‘‘नहीं, पर…’’

‘‘पहले मुझे अपनी बात पूरी करने दे. हमारे या हमारी पत्नियों के बीच दोस्ती का संबंध ही तो है. देख, पहले की बात जुदा थी, तब स्त्रियों का पुरुषों के साथ उठनाबैठना नहीं होता था. आज की नारी आफिस जाती है. बाहर के सब काम करती है. इस कारण उस की जानपहचान के पुरुषों का दायरा काफी बड़ा हुआ है. इन पुरुषों में से क्या कोई उस का अच्छा मित्र नहीं बन सकता?’’

‘‘हमें दूसरों की नकल नहीं करनी है, संजीव,’’ मेरे मुकाबले अब रमेश कहीं ज्यादा शांत नजर आने लगा, ‘‘हम ऐसे बीज बोने की इजाजत क्यों दें जिस के कारण कल को कड़वे फल आएं?’’

‘‘मेरे यार, तू भी अगर शांत मन से सोचेगा तो पाएगा कि मामला कतई गंभीर नहीं है. पुरानी धारणाओं व मान्यताओं को एक तरफ कर नए ढंग से और बदल रहे समय को ध्यान में रख कर सोचविचार कर मेरे भाई,’’ मैं ने रमेश का हाथ दोस्ताना अंदाज में अपने हाथों में ले लिया.

कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने सोचपूर्ण लहजे में पूछा, ‘‘अपने दिल की बात कहते हुए जैसे तू ने मेरा हाथ पकड़ लिया, क्या धीरज को भी वंदना भाभी का वैसे ही हाथ पकड़ने का अधिकार है?’’

‘‘बिलकुल है,’’ मैं ने जोर दे कर अपनी राय बताई.

‘‘स्त्रीपुरुष के रिश्ते में आ रहे इस बदलाव को मेरा मन आसानी से स्वीकार नहीं कर रहा है, संजीव,’’ उस ने गहरी सांस खींची.

‘‘क्योंकि तुम भविष्य में उन के बीच किसी अनहोनी की कल्पना कर के डर रहे हो. अब हमें दोस्ती को दोस्ती ही समझना होगा…चाहे वह 2 पुरुषों या 2 स्त्रियों या 1 पुरुष 1 स्त्री के बीच हो. रिश्तों के बदलते स्वरूप को समझ कर हमें स्त्रीपुरुष के संबंध को ले कर अनैतिकता की परिभाषा बदलनी होगी.

‘‘देखो, किसी कुंआरी लड़की के अपने पुरुष प्रेमी से अतीत में बने सैक्स संबंध उसे आज चरित्रहीन नहीं बनाते. शादीशुदा स्त्री का उस के पुरुष मित्र से सैक्स संबंध स्थापित होने का हमारा भय या अंदेशा उन के संबंध को अनैतिकता के दायरे में नहीं ला सकता. मेरी समझ से बदलते समय की यही मांग है. मैं तो वंदना और धीरज के रिश्ते को इसी नजरिए से देखता हूं, दोस्त.’’

मैं ने साफ महसूस किया कि रमेश मेरे तर्क व नजरिए से संतुष्ट नहीं था.

‘‘तेरीमेरी सोच अलगअलग है यार. बस, तू चौकस और होशियार रहना,’’ ऐसी सलाह दे कर रमेश नाराज सा नजर आता दुकान से बाहर चला गया.

मेरा उखड़ा मूड धीरेधीरे ठीक हो गया. बाद में घर पहुंच कर मैं ने वंदना को शांत व प्रसन्न पाया तो मूड पूरी तरह सुधर गया.

हां, उस दिन मैं जरूर चौंका था जब हम रामलाल की दुकान में गए थे और वहां रमेश की पत्नी किसी के हाथों से गोलगप्पे खा रही थी और रमेश मजे में आलूचाट की प्लेट साफ करने में लगा था. यह आदमी कौन था मैं अच्छी तरह जानता था. वह रमेश के मकान में ऊपर चौथी मंजिल पर रहता है और दोनों परिवारों में खासी पहचान है. मैं ने गहरी सांस ली, एक और चेला, गुरु से आगे निकल गया न. Hindi Family Story

Inspiring Story : दीपिका म्हात्रे : घरेलू काम से स्टैंड-अप कौमेडी तक

लेखिका: सबा गुरमत

किस्मत ने एक मोड़ लिया और दीपिका म्हात्रे सुर्खियों में आ गईं. उन की कामयाबी का रास्ता बनाने में दूसरी महिलाओं ने तो उन का साथ दिया ही, इस के अलावा उन के खुद के निर्भीक स्वभाव ने भी उन के लिए राह बनाई.
यह आदत थी, बिना किसी डर के उन नाइंसाफियों का हंस कर सामना करना, जो रोजमर्रा की जिंदगी में उन्हें झेलनी पड़ती थीं.

साल 2017 के मार्च महीने के शुरुआती दिनों में दीपिका घरेलू कामगार के तौर पर एकसाथ कई जगहों पर काम कर रही थीं. एक दिन उन को महिला दिवस पर आयोजित किए जा रहे एक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया.
यह कार्यक्रम संगीता व्यास ने आयोजित किया था, जो उसी हाउसिंग सोसाइटी की निवासी थीं, जहां दीपिका और उन की बड़ी बहन रागिनी काम करती थीं. इस कार्यक्रम के माध्यम से लोग अपने हुनर का प्रदर्शन कर रहे थे. रागिनी ने एक जोरदार गाना गाया, उन की एक और दोस्त ने नृत्य किया, लेकिन दीपिका का इरादा कुछ और ही था.
दीपिका ने याद किया कि उन्होंने संगीता से कहा था, ‘मैं कुछ कौमेडी करूंगी.’ लेकिन जब वे मुंबई के पश्चिमी उपनगर गोरेगांव स्थित, अब बंद हो चुके सभागार ‘पितारा द आर्ट बौक्स’ के मंच पर पहुंचीं, तब उन्हें खुद भी नहीं पता था कि वे क्या करने वाली हैं. फिर वे दर्शकों की तरफ मुड़ीं, अपनी जिंदगी के अनुभवों को साझा किया और उन लोगों पर चुटकी ली जिन्होंने उन के जैसे कामगारों की जिंदगी को थोड़ा बेवजह मुश्किल बनाया था.

कार्यक्रम के दौरान दीपिका ने बताया, ‘‘जब भी मैं नियोक्ताओं के घर खाना बनाती थी तो मैडम मु?ा से कहती थीं कि दीपिका, रोटी में ज्यादा घी मत डालना, सैंडविच में ज्यादा चीज मत डालना, मैं डाइट पर हूं, मेरा वजन बढ़ा तो गलती तुम्हारी होगी. तब मैं कहती कि अगर मेरा थोड़ा सा घी आप का वजन बढ़ा देगा तो आप जो रात को पिज्जाबर्गर खाते हैं उन का क्या? उन्हें तो पहले कम करना पड़ेगा.’’

जिंदगी में बदलाव

किस्मत से कार्यक्रम के दिन वहां रिचल लोपेज नाम की एक पत्रकार भी मौजूद थीं. जब कार्यक्रम समाप्त हुआ, तो उन्होंने दीपिका से बातचीत की और जल्द ही उन्हें जानीमानी स्टैंड-अप कौमेडियन अदिति मित्तल से मिलवाया. यहीं से दीपिका की जिंदगी में बदलाव आने शुरू हुए.

अदिति ने दीपिका को अपने साए में लिया. उन्होंने दीपिका के जोक्स की धार को तराशने में मदद की, मंच पर प्रस्तुत करने का सलीका सिखाया और कौमेडी सर्किट में लोगों से जुड़ने में मदद की.

दीपिका ने बताया, ‘‘उन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया. स्टेज पर कैसे खड़ा होना है, माइक कैसे पकड़ना है, कब मुड़ना है और जब दर्शक हंसें तो क्या करना है. पहले तो मैं बस मंच पर जाती थी, खड़ी होती थी, कुछ भी बोल देती थी और मस्ती करती थी.’’

दीपिका अपने पति दिलीप के साथ

मार्च, 2018 में अदिति के यूट्यूब शो ‘बैड गर्ल्स’ में दीपिका की एक परफौर्मैंस की रिकौर्डिंग दिखाई गई. यह शो उन महिलाओं को पेश करता था जो पारंपरिक रास्तों से हट कर काम कर रही थीं. दीपिका की यह परफौर्मैंस मुंबई के पौश उपनगर बांद्रा में स्थित कौमेडी वेन्यू ‘हैबिटैट’ में हुई थी.

चटक लाल और सुनहरे कुरते में सजी दीपिका ने जैसे ही माइक संभाला वे बिलकुल सहज नजर आ रही थीं. वे बोलीं, ‘‘नमस्ते, मैं दीपिका म्हात्रे हूं, मैं मेड का काम करती हूं. मैं ने देखा है कि स्टैंड-अप कौमेडियन हमेशा अपनी मेड की स्टोरी बोलते हैं, मगर आज मैं बोलूंगी.’’

सैट के दौरान दीपिका ने मुसकराते हुए सुखसुविधाओं में जीने वालों की सोच पर तंज कसा. दीपिका ने सब से सख्त आलोचना उन लोगों के लिए रखी जो अपने घरेलू कामगारों के साथ अन्याय करते हैं. जहां रोजमर्रा की आदतों में जाति और वर्ग का भेदभाव अकसर छिपा होता है और काम के अनौपचारिक ढांचे की वजह से शोषण की गुंजाइश बनी रहती है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं जिस बिल्डिंग में काम करने जाती हूं, वहां मैं बहुत स्पैशल हूं क्योंकि वहां मेरे लिए लिफ्ट अलग है और बरतन भी अलग हैं.’’ कुछ पल ठहर कर वे फिर बोलीं, ‘‘आप छिपाओ अपने बरतन, रोटी तो आप मेरे ही हाथ की तोड़ते हो न.’’इतना सुनते ही सभागार दर्शकों की तालियों और सीटियों से गूंज उठा.

 फुलटाइम कौमेडियन के रूप में स्थापित

तब से अब तक 50 वर्षीय दीपिका ने खुद को फुलटाइम कौमेडियन के रूप में स्थापित किया है और वे न केवल भारत में बल्कि विदेश में भी अपनी पहचान बना रही हैं. उन्होंने कई पुरस्कार जीते हैं, जिन में से एक उन्हें मशहूर बौलीवुड अभिनेत्री करीना कपूर खान के हाथों मिला, जिसे वे गर्व से याद करती हैं. उन्हें कई टैलीविजन शो में भी आमंत्रित किया गया है, जिन में जीटीवी प्रस्तुत ‘डांस इंडिया डांस: सुपरमौम्स’, स्टार प्लस प्रस्तुत ‘सब से स्मार्ट कौन?’ और मराठी गेम शो ‘सक्के शेजारी’ शामिल हैं. लाइव शो के साथसाथ वे कई ब्रैंड्स के विज्ञापनों में भी नजर आ चुकी हैं. ब्रिटेन के अखबार द गार्जियन में छपे एक सराहनीय प्रोफाइल में लिखा गया, ‘‘म्हात्रे के सैट्स को भारत की गहरी सामाजिक असमानता और अमीरों की गरीबों को बराबर न समझ पाने की कमजोरी पर तीखा प्रहार माना जा सकता है.’’

भारत के समकालीन कौमेडी सीन में, जहां अधिकांश कलाकार जाति और वर्ग के विशेषाधिकार वाले हैं, वहां अकसर हाशिए के लोगों को मजाक का पात्र बनाया जाता है. लेकिन दीपिका उन कुछ चुनिंदा हास्य कलाकारों में से हैं जो इस ढांचे को पलट रही हैं. उन का हास्य अभिजात वर्ग को खुश करने के बजाय उन से टकराने और उन को जगाने के लिए है.

अमीरों को आईना दिखाना चाहती

‘‘मैं अमीरों को आईना दिखाना चाहती हूं,’’ उन्होंने मुझसे कहा. हमारी बातचीत 2018 में उसी हैबिटैट वेन्यू में हो रही थी, जहां उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत में प्रदर्शन किया था.
‘‘मैं चाहती हूं कि वे यह समझ जाएं कि हम भी इंसान हैं,’’ दीपिका ने कहा.

दीपिका का जन्म मुंबई के प्रभादेवी इलाके की एक चाल में हुआ था, जो सिद्धिविनायक मंदिर से कुछ ही कदमों की दूरी पर है. इस एकजुट बस्ती में बड़े होते हुए दीपिका को बचपन से ही हंसीमजाक और खेलकूद से प्यार हो गया था.

‘‘चाल में हर तरह के फंक्शन होते थे. गणपति, नवरात्रि, दीवाली, शादीब्याह हम सब एकदूसरे के घर जाते थे और बहुत मजा करते थे. उसी वक्त से मुझे मजाक करना अच्छा लगने लगा था,’’ दीपिका ने बताया.

हालांकि दीपिका को अदिति मित्तल की कौमेडी पसंद है और वे अभिनेता कौमेडियन जानी लीवर और उन की बेटी जैमी लीवर के काम को भी फौलो करती हैं, लेकिन उन की शुरुआती प्रेरणा के स्रोत केवल उन की अपनी जिंदगी और आसपास का माहौल था.

दीपिका के पिता एक सरकारी अस्पताल में क्लर्क थे और मां वड़ापाव की छोटी सी ठेली चलाती थीं. दोनों मिल कर 5 बच्चों का पालनपोषण करते थे. ‘‘मेरी असली प्रेरणा मेरे मातापिता हैं क्योंकि वे बेहद मेहनती थे,’’ दीपिका ने कहा, ‘‘वे दिनरात काम करते थे.’’ दीपिका ने 10वीं कक्षा तक की अपनी पढ़ाई म्युनिसिपल स्कूल से की. वे स्कूल में चुपचाप रहने वाली छात्रा थीं, जो ज्यादा हलचल में नहीं पड़ती थीं.

‘‘मैं ने कभी किसी स्कूल प्रोग्राम में हिस्सा नहीं लिया,’’ उन्होंने याद करते हुए कहा.

‘‘मुझे तो बस दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मजाक करने की आदत थी,’’ उन्होंने नीबू पानी पीते हुए कहा.

उन दिनों दीपिका एक और नाम से जानी जाती थीं, कमल. शादी के बाद उन्होंने अपना नाम बदल दिया. उस समय वे 20 साल की थीं. दीपिका याद करते हुए बताती हैं, ‘‘मेरे पति भी उसी चाल से थे, उन के परिवार ने मेरे बारे में मेरे घर वालों से बात की थी.’’

दीपिका के पति दिलीप, जो अब 55 साल के हैं, पहले एक सिक्युरिटी गार्ड के तौर पर काम करते थे.

शादी के तुरंत बाद यह नवविवाहित जोड़ा कांदिवली चला गया, जो दीपिका के मायके से करीब 26 किलोमीटर दूर था. वहां वे दिलीप के बड़े परिवार के साथ रहने लगे, जिस में उन के 5 भाई भी शामिल थे. वहां से वे और उत्तर की ओर बढ़े, पहले विरार और आखिरकार नल्लासोपरा बस गए.

टाइनी मिरेकल्स फाउंडेशन के साथ स्टैंड-अप शो के लिए हुए कोलौबोरेशन के दौरान एक औडियंस मेंबर दीपिका के साथ सैल्फी लेते हुए

संघर्ष के वे दिन

शादी के कुछ साल बाद दिलीप को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगीं, जिन में अस्थमा भी शामिल था, जो लगातार बिगड़ता गया. उस समय दीपिका और दिलीप 3 बेटियों की परवरिश कर रहे थे, जिन का उन्होंने इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला कराया था. दिलीप की सैलरी का अकसर आधा हिस्सा उन के इलाज पर खर्च हो जाता था.

‘‘मैं ने उन से कहा कि आप घर पर रहें, बच्चों और घर का खयाल रखें और मैं बाहर जा कर काम ढूंढ़ लूंगी,’’ दीपिका याद करते हुए बताती हैं.

‘‘जो भी काम मिला, मैं ने किया,’’ दीपिका ने कहा. उस समय वे लगभग 25 साल की थीं. उन के दिन का शैड्यूल बेहद थकाऊ होता था.

वे सुबह 3 बजे उठतीं, आटा गूंथतीं और स्कूल की शिक्षिकाओं को देने के लिए रोटियां बनाती थीं. फिर वे अपने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करतीं और घर के बाकी कामों को संभालतीं. सुबह 9 बजे वे अचार, पापड़ और फरसान (नमकीन स्नैक्स) आसपास की बस्तियों में बेचने निकल जातीं.

‘‘मैं ने इतनी मेहनत की है, बाप रे, पूछो ही मत,’’ दीपिका ने कहा. उन की रोज की कमाई मुश्किल से 150 रुपए होती थी, जो जरूरत की चीजों में ही खत्म हो जाती थी. बाद में दीपिका को एक एजेंसी के जरीए केयरटेकिंग का काम मिला.

‘‘मैं ने 104 साल के अंकल की देखभाल की है. एक दिन के बच्चे की भी और आंटियों की भी,’’ उन्होंने बताया. लेकिन यह काम फिर भी उन के घर का खर्च चलाने के लिए काफी नहीं था.

2010 के शुरुआत में दीपिका ने लोकल अखबार में घरेलू कामगार एजेंसी का एक विज्ञापन देखा और उस नौकरी के लिए आवेदन किया. इंटरव्यू के लिए वे मुंबई के पश्चिमी उपनगर मलाड की एक हाउसिंग सोसाइटी में गईं. मैं ने उन से कहा, ‘‘जो भी काम है, मैं कर लूंगी. मेरी हालत बहुत खराब है,’’ उन्होंने याद करते हुए बताया.

उस दंपती ने उन्हें खाना बनाने के काम पर रख लिया. जल्द ही दीपिका 5 घरों में काम करने लगीं और लोकल ट्रेन में नकली गहने बेच कर अपना गुजारा चलाने लगीं.

करीब 10 साल तक रोज दीपिका का दिन सुबह 4 बजे शुरू होता था. तब वे लोकल ट्रेन में गहने बेचने निकल जाती थीं. फिर दोपहर तक घरघर जा कर खाना बनातीं और सफाई का काम करतीं. इस काम को निबटाने के बाद वे सीधे थोक बाजार जातीं, जहां से वे गहनों का नया स्टौक ला कर अगली सुबह की तैयारी करतीं.

लोकल ट्रेन में दीपिका के ग्राहक अकसर 10 रुपए जैसी छोटी रकम पर भी खूब मोलभाव करते थे. ग्राहकों द्वारा किए जाने वाले बेधड़क मोलभाव पर दीपिका की पैनी नजर 2018 के हैबिटैट में किए गए स्टैंड-अप सैट में भी दिखाई देती है.

‘‘मौल में जाते हैं आप लोग, उधर स्टिकर पे जो भाव रहता है वही भाव देते हैं. उधर ऐसा मांडवल नहीं करते,’’ उन्होंने कहा, ‘‘तो मैं ने भी स्टिकर लगाना चालू कर दिया है. यहां इंसान के लिए दया कम और स्टीकर के लिए इज्जत ज्यादा है,’’ दीपिका ने तीखे व्यंग्य के साथ जोड़ा.

पूरे दिन कई घरों में मेहनत करने के बाद भी दीपिका को कुल मिला कर लगभग 15 हजार रुपए ही मिलते थे, हर घर से करीब 3 हजार रुपए. नकली गहनों की बिक्री से होने वाली अतिरिक्त आमदनी मिला कर उन की कुल कमाई मुश्किल से 20 हजार से 25 हजार रुपए तक पहुंचती थी.

लेकिन अब उन्होंने मुसकुराते हुए कहा, ‘‘जितना मैं पहले एक महीने में नहीं कमा पाती थी, उतना कभीकभी अब एक ही दिन में कमा लेती हूं.’’

दीपिका अपनी ज्वैलरी शौप में. फुल टाइम कौमेडी कैरियर चुनने के बाद दीपिका ने इमिटेशन ज्वैलरी स्टोर भी शुरू किया.

कड़वी सचाइयां सामने लाती हैं

हालांकि दीपिका की कौमेडी कड़वी सचाइयां सामने लाती हैं. वे इसे हमेशा हलके अंदाज में पेश करती हैं. खुद पर तंज करते हुए और अपनी हंसी से माहौल को खुशनुमा बनाते हुए.

एक बार बैंगलुरु में एक शो के दौरान, दीपिका ने बताया, ‘‘एक दर्शक को पतिपत्नी के रिश्तों में लैंगिक असमानता पर किए गए उन के मजाक से आपत्ति हो गई,’’ मैं ने उन से कहा, ‘‘सर, मैं ने यह कभी नहीं कहा कि सारे पति बुरे होते हैं. लेकिन 10त्न पति ऐसे जरूर होते हैं जो शराब पीते हैं, अपनी पत्नियों को मारते हैं, झगड़ा करते हैं और मेरे जोक्स उन लोगों के बारे में होते हैं,’’ शायद दीपिका उस आदमी का मन बदलने में सफल रहीं. प्रदर्शन के बाद वे उन्हें कौमेडी सैट पर बधाई देने आए.

दीपिका कहती हैं कि जिंदगी का कोई भी पहलू मजाक से परे नहीं है. चाहे वे रोमांटिक रिश्ते हों या राजनीति, ‘‘लेकिन मुझे अमीरों पर मजाक करना था,’’ उन्होंने साफ कहा.

हमारी बातचीत के दौरान उन का फोन लगातार आने वाले नोटिफिकेशन से बज रहा था. दीपिका बताती हैं कि इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स ने उन की पहुंच को काफी बढ़ाया है, ‘‘अब मैं दूसरे शहरों में भी शो करती हूं जैसे बैंगलुरु, हैदराबाद और भी कई जगहों पर. लोग मुझे इंस्टाग्राम पर डाइरैक्ट मैसेज कर के अपने इवेंट्स में परफौर्म करने के लिए बुलाते हैं या स्टैंड-अप करने का आग्रह करते हैं,’’ इतना ही नहीं, उन्हें विदेशों से भी आमंत्रण आने लगे हैं.

जब तक दीपिका ने खुद मंच पर कौमेडी नहीं की थी, तब तक उन्होंने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. उन्होंने कुछ टैलीविजन शो जरूर देखे थे, लेकिन उन में से कोई भी उन के मन पर असर नहीं छोड़ पाया. अदिति मित्तल के साथ हुई बातों ने उन्हें यह एहसास दिलाया कि एक घरेलू कामगार के रूप में उन के पास ऐसे अनुभव हैं जो इस इंडस्ट्री में किसी और के पास नहीं हैं और यही उन की सब से बड़ी ताकत है.

हास्य को एक नया आकार देती है

घरेलू काम के 2 दशकों की आपबीती दीपिका के हास्य को एक नया आकार देती है. उन के अपने अनुभवों के साथ ही उन की उन सहेलियों के अनुभव भी शामिल हैं, जो इस काम में हैं. अदिति की सलाह पर दीपिका ने अपने उन विचारों और तजरबों को लिखना शुरू किया, जिन्हें वे स्टैंड-अप में विकसित करना चाहती थीं. उस के बाद से अब तक वे कई डायरियां भर चुकी हैं, उन्होंने बताया.

दीपिका बताती हैं, ‘‘अमीर लोग जब खुद के लिए चाय बनाते हैं, तो उस में खूब सारा दूध डालते हैं, लेकिन जब हमारे लिए बनाते हैं तो उस में थोड़ा सा दूध डाल कर कहते हैं कि यह तुम पी लो. उन की कुछ सहेलियों को तो चाय भी नहीं मिलती या फिर उन्हें वे गिलास दिए जाते हैं जो खासतौर पर कामवालों के लिए रखे गए होते हैं. यहां तक कि जब कुछ घरों में काम करने वालों को खाना भी दिया जाता है, तो वह अकसर बासी होता है.

‘‘अगर आप को खाना देना ही है,’’ दीपिका कहती हैं, ‘‘तो 2 दिन पहले क्यों नहीं देते? मुझे यह बहुत गलत लगता है.’’

दीपिका ने याद किया कि कई बार जब वे किसी ऐसी लिफ्ट में चढ़ गईं जो सिर्फ रिहायशियों के लिए थी, तो लोग गुस्से में चिल्लाने लगे थे, ‘‘हम आप के घरों के अंदर आते हैं, आप के लिए खाना बनाते हैं, आप हमारे हाथों से मसाज तक करवाते हैं. हम आप की सारी सफाई करते हैं,’’ दीपिका ने ऐसे लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तो फिर आप हमें अपनी लिफ्ट में खड़ा क्यों नहीं देख सकते?’’

ऐसी बातें दीपिका को चुभती हैं. ‘‘इसी तरह के भेदभाव के खिलाफ मैं अपनी आवाज उठाना चाहती हूं,’’ उन्होंने कहा.

जब भी दीपिका के दिमाग में कोई नया आइडिया आता है, तो वे पहले उसे डायरी में दर्ज करती हैं. उस के बाद वे लगभग 1 महीने तक उस पर मेहनत करती हैं. उस की टाइमिंग, संदर्भ और प्रस्तुति को निखारती हैं, तब फिर जा कर मंच पर प्रस्तुत करती हैं. अदिति मित्तल आज भी उन की स्क्रिप्ट और परफौर्मैंस को संवारने में मदद करती हैं. एक समय तो ऐसा था कि दोनों का एजेंट भी एक ही होता था.

शुरुआत में दीपिका को इस बात की चिंता थी कि उन की जिंदगी और पृष्ठभूमि बाकी भारतीय कौमिक्स से काफी अलग है. उन्हें डर था कि क्या वे इस दुनिया में खुद को फिट कर पाएंगी. लेकिन जल्द ही उन्होंने महसूस किया कि ज्यादातर कौमेडियन ने उन्हें खुले दिल से अपनाया, ‘‘कभी किसी ने मेरा मजाक नहीं उड़ाया,’’ दीपिका ने कहा, ‘‘कई बार तो उन्होंने मुझे टैक्निक्स सिखाने में भी मदद की.’’

दीपिका कहती हैं कि जब कुछ कौमेडियन घरेलू कामगारों को आसान मजाक का जरीया बनाते हैं, तो उन्हें बुरा लगता है. ‘‘एक घरेलू कामगार अपना घर छोड़ कर आप के घर आती है, अपना काम पूरी ईमानदारी से करती है,’’ दीपिका ने कहा, ‘‘तो आप उस का मजाक मत उड़ाइए, उसे छोटा मत दिखाइए.’’

2021 में टूथपेस्ट ब्रैंड कोलगेट ने दीपिका की जिंदगी पर आधारित एक लंबा विज्ञापन बनाया. इस विज्ञापन में उन के जीवन की झलक दिखाई गई. उन के घर से ले कर लोकल ट्रेन में सफर और फिर स्टेज पर उन की परफौर्मैंस तक. विज्ञापन का अंत  “Keep India Smiling”   नामक कोलगेट की छात्रवृत्ति योजना के प्रचार से होता है. यह छात्रवृत्ति वंचित बच्चों के लिए है. फिलहाल दीपिका कुछ हिंदी और मराठी टीवी चैनलों से बातचीत कर रही हैं ताकि वे शो होस्ट करने की संभावनाएं तलाश सकें.

बाएं से दाईं तरफ संगीता व्यास , निधि गोयल, अदिति मित्तल और पत्रकार फे डिसूजा के साथ दीपिका.

पहचान और शोहरत

इस तरह की पहचान और शोहरत ने उन लोगों का नजरिया बदल दिया है. अब वे उन्हें सम्मान से देखने लगे हैं. लेकिन दूसरी ओर दीपिका बताती हैं, ‘‘उन के कुछ रिश्तेदारों में कुंठा पैदा हुई है. कभीकभी मेरे रिश्तेदार ताना मारते थे- कहते थे कि अखबार में यह क्या छपा है, तुम्हें कामवाली बाई कह रहे हैं,’’ दीपिका ने याद करते हुए कहा, मैं उन से कहती कि कम से कम मेरा नाम तो छपा है, आप का तो कहीं नहीं आया.’’

दीपिका खुद ‘बाई’ शब्द को अपमानजनक मानती हैं. ‘बाई’ के बजाए वे ‘ताई’ का इस्तेमाल करने की वकालत करती हैं. मराठी भाषा में यह सम्मान से, बड़ी बहन के लिए कहा जाता है.

दीपिका बताती हैं कि उन के सब से बड़े समर्थक उन के पति और बेटियां ही रही हैं. उन की मं?ाली बेटी ऐश्वर्या, जो एक इवेंट मैनेजर हैं, अब दीपिका की बुकिंग्स भी संभालती हैं. दीपिका की बेटियों से कभीकभी यह भी पूछा जाता है कि क्या वे अपनी मां को परफौर्म करने के लिए राजी कर सकती हैं. वे कहती हैं, ‘‘हमारी मां पैसे लेती हैं, फ्री में नहीं आतीं, आप को उन के मैनेजर से बात करनी पड़ेगी,’’ दीपिका ने हंसते हुए बताया, ‘‘उन्हें भी इस बात पर गर्व होता है.’’

हैबिटैट, जहां दीपिका ने अपने कैरियर की शुरुआत की और जहां हम बात कर रहे थे, भारत में कौमेडियन होने की नाजुक स्थिति का प्रतीक है. इस साल मार्च में महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली राजनीतिक पार्टी शिव सेना के सदस्यों ने इस स्थल को तोड़फोड़ का शिकार बनाया था. वजह थी एक स्टैंड-अप कौमेडियन कुणाल कामरा का जोक, जो उन्होंने शिंदे पर किया था और जो हैबिटैट में रिकौर्ड किए गए एक सैट का हिस्सा था.

जब मैं ने दीपिका से पूछा कि क्या उन्हें भारत में कौमेडी के मौजूदा हालात को ले कर चिंता होती है? तो उन्होंने बेहिचक जवाब दिया, ‘‘मुझे डर नहीं लगता, अगर लोगों को लड़ना है तो आने दो.’’

हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया कि वे खुद राजनीतिक व्यंग्य नहीं करती हैं. दीपिका का फोकस अब भी अमीरों की विचित्रताओं और मेहनतकश वर्ग के साथ उन के व्यवहार ही हैं. ‘‘हम भी इंसान हैं,’’ दीपिका ने कहा, ‘‘हमारे साथ भी इंसानों की तरह व्यवहार किया जाना चाहिए, न कि जानवर समझ कर जो 24 घंटे काम करने के लिए बने हैं.’’

रूढि़यों और सोच को चुनौती

दीपिका बताती हैं कि घरेलू कामगारों की तनख्वाह अकसर बेहद कम होती है और नौकरी देने वाले थोड़ी सी तनख्वाह बढ़ाने में भी कंजूसी करते हैं, जबकि यही लोग औनलाइन शौपिंग पर हजारों रुपए खर्च कर देते हैं. वे बताती हैं कि दिन में कईकई घंटों तक काम करने के बावजूद घरेलू कामगारों को आमतौर पर महीने में केवल 2 दिन की ही छुट्टी मिलती है, जोकि अधिकांश वेतनभोगी पेशेवरों को मिलने वाली साप्ताहिक छुट्टियों की तुलना में कम हैं.

दीपिका की सफलता ने उन की कुछ दोस्तों को भी हिम्मत दी है. अब वे भी अपनी आवाज उठाने लगी हैं. ‘‘वे अपनी मैडम को मेरे वीडियो दिखाती हैं,’’ दीपिका हंसते हुए कहती हैं, ‘‘वे इस जागरूकता को घरेलू कामगारों के अधिकारों के एक संगठन में बदलना चाहती हैं. यह विचार वे सही साझेदार मिलने पर और अधिक सक्रिय रूप से आगे बढ़ाएंगी.

इस बीच दीपिका अपनी कौमेडी के जरीए घरेलू कामगारों को ले कर बनी रूढि़यों और सोच को चुनौती देने की कोशिश कर रही हैं.

कुछ शो के दौरान वे बताती हैं कि जब वे दर्शकों के गंभीर चेहरे देखती हैं, तो घबरा जाती हैं कि शायद उन के जोक्स का असर नहीं हुआ है. लेकिन वही लोग बाद में आ कर मुझे गले लगाते हैं और कहते हैं, ‘‘आप अपनी कौमेडी से बहुत अच्छा काम कर रही हैं, हमारी आंखें खोल दीं आप ने. हमें समझ नहीं आ रहा था कि हंसें या रोएं.’’

सोशल मीडिया पर भी लोग उन के पोस्ट पर कमैंट करते हैं, सराहना करते हैं या यह वादा करते हैं कि वे अपने यहां काम करने वालों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करेंगे. ‘‘तभी लगता है कि जो भी काम मैं ने हाथ में लिया है, उस में मैं कुछ हद तक सफल तो रही हूं,’’ दीपिका ने कहा और फिर मुसकराते हुए जोड़ा, ‘‘मैं दुनिया बदल दूंगी.’’

Instagram रील्स ने बढ़ाई फल खाने की उलझन, क्या कहता है साइंस

Instagram: सोशल मीडिया पर इन दिनों कब खाना है, कितना खाना है और क्या खाना चाहिए कि इतनी ओपिनियन हैं कि हम अपने पसंद के अनुसार हेल्दी खाना तक नहीं खा पाते. अब खाने के साथ फ्रू्ट्स के सेवन को लेकर भी विभिन्न आयुर्वेद और एलोपैथी डॉक्टर्स की अलग राय है. एक डॉक्टर ने तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ये तक कह दिया कि एक्सरसाइज ही ना करें, न वॉक न जिम. जबकि सभी हमें दिन में 30 मिनट्स कम से कम वर्कआउट की सलाह देते हैं. इतने मतभेदों में आखिर किसी मानें हम.

फ्रूट्स को लेकर भी राय है रात को फल मत खाओ, खाने के बाद फल गैस बनाते हैं, फल खाना है तो खाली पेट ही खाओ,  ऐसे तमाम सलाह इंस्टाग्राम, यूट्यूब, रील्स और डॉक्टरों की शॉर्ट क्लिप्स में रोजाना सुनने को मिलती हैं. इतने मतभेद हैं कि इंसान उलझकर रह जाता है. क्या खाएं, कब खाएं, कितना खाएं. ये तय करने से पहले ही भूख खत्म हो जाती है.

खाने के साथ फल खाने को लेकर खासकर आयुर्वेद और एलोपैथी की राय अलग-अलग है. कुछ लोग कहते हैं कि खाने के तुरंत बाद फल खाना पाचन को खराब करता है, वहीं कुछ लोग इसे एक मिथ मानते हैं. तो क्या वाकई खाने के साथ फल खाना नुकसानदेह है? चलिए तथ्यों, विज्ञान से इस सवाल का जवाब ढूंढते हैं.

  1. आयुर्वेद का दृष्टिकोण

आयुर्वेद के अनुसार, भोजन और फल का पाचन समय (Digestion Time) अलग-अलग होता है. आयुर्वेद कहता है कि:

फल जल्दी पचते हैं (लगभग 30-45 मिनट में), वहीं अन्न (गेहूं, चावल, दाल आदि) को पचने में 2 से 4 घंटे तक लग सकते हैं. अगर हम दोनों को एक साथ खाते हैं, तो फल पेट में ‘रुक’ जाते हैं और किण्वन (fermentation) की प्रक्रिया से गैस, एसिडिटी, या ब्लोटिंग हो सकती है. इस कारण आयुर्वेद में “food combining” के नियम हैं — जिनमें फल को अकेले, खासकर खाली पेट खाने की सलाह दी जाती है.

 

पर क्या ये बातें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही हैं?

एलोपैथी और न्यूट्रिशन साइंस क्या कहता है?

आधुनिक पोषण विज्ञान (Modern Nutrition Science) कहता है कि शरीर के भीतर पाचन एक जटिल लेकिन व्यवस्थित प्रक्रिया है. हमारा शरीर खाने में मौजूद हर चीज (कार्ब, फैट, प्रोटीन, फाइबर, फल, सब्जी) को पहचानता है और अलग-अलग एंजाइम्स की मदद से उसे पचाता है.

 

अब बात करते हैं कुछ रिसर्च की:

क्या फल खाना धीमा करता है खाना पचाना?

नहीं. साल 2009 में “American Journal of Clinical Nutrition” में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जब भोजन के साथ फल या फाइबरयुक्त भोजन खाया गया, तो पेट फलों में मौजूद सोल्यूबल फाइबर जैसे पेक्टिन से ज्यादा देर तक फुल रहता है, यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है क्योंकि इससे शुगर धीरे-धीरे रिलीज़ होती है, जिससे ब्लड शुगर स्थिर रहता है. और इससे बाउल मूवमेंट भी अच्छी होती है तो इससे कब्ज से परेशान लोगों को भी फायदा मिलता है.

 

 क्या खाने के साथ फल गैस बनाते हैं?

कुछ लोग अनुभव करते हैं कि खाने के बाद फल खाने से गैस बनती है. पर इसका कारण फल नहीं, बल्कि उनकी इनडिविजुअल डाइजेस्टिव टॉलरेंस होती है, जैसे कुछ लोगों को दूध से गैस होती है, तो कुछ को छोले, काले चने या राजमा गैस बनाते हैं.

University of California, Davis की एक डायजेस्टिव स्टडी के अनुसार, फल में मौजूद फाइबर और नेचुरल शुगर (फ्रुक्टोज़) सामान्य स्थिति में गैस नहीं बनाते, हाँ, यदि किसी को पहले से IBS (Irritable Bowel Syndrome) या Fructose Intolerance है, तो समस्या हो सकती है. यानी कुल मिलाकर फ्रुट्स को किसी भी समय और चीजों से पेयर करके खाने से अधिकतर लोगों के लिए सेफ है.

 

 क्या खाने के साथ फल खाने से उसका न्यूट्रिशन घट जाता है?

नहीं, फलों का पोषण (जैसे विटामिन C, पोटैशियम, फाइबर) आपके शरीर में वैसे ही अवशोषित होता है, चाहे आप उसे अकेले खाएं या उसे रोटी सब्जी या चावल के साथ या बाद में खाए.

 

यह धारणा कहां से आई कि “फल खाने के साथ नहीं खाने चाहिए”?

ये धारणा कई हद तक आयुर्वेदिक फूड-कॉम्बिनेशन नियमों, इंटरमिटेंट फास्टिंग ट्रेंड्स और सोशल मीडिया “डाइट गुरुओं” की बातें सुनकर बनी है. सोशल मीडिया ने इसमें चार चांद लगा दिए हैं. क्योंकि हर दूसरी रील आपको कुछ अलग कहती है. हर डॉक्टर कुछ अलग सलाह देते हैं ऐसे में लोग कंफ्यूज हो जाते हैं कि क्या खाएं क्या नहीं.

 

 कब फल खाना फायदेमंद है?

खाने के साथ फल खाना नुकसानदेह नहीं है, आप जब चाहें जो भी चाहें फल खा सकते हैं. सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध 30 सेकंड की क्लिप आपके जीवन के लिए आधार नहीं हो सकती. जब तक कोई डॉक्टर ठोस सबूत, रिसर्च पेपर हाथ में रखकर बात न करे, उनकी बातों पर विश्वास करना बेकार है. सबकी बॉडी अलग होती है, और खाने को लेकर अलग रिएक्ट करती है. इसलिए

 

किसी भी चीज़ को “जहर” या “जादू” न बनाएं

फल पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. यह सच है कि भोजन के समय, मात्रा और पाचन की आदतें हर इंसान के शरीर पर अलग असर डालती हैं. लेकिन फल को “खाने के साथ न खाओ वरना पेट सड़ जाएगा” जैसी बातें अधूरी जानकारी पर आधारित हैं. संतुलन और आत्म-निरीक्षण ही सबसे बड़ी कुंजी है. अगर आपको फल खाने के बाद कोई दिक्कत नहीं होती, तो आप उन्हें भोजन के साथ भी खा सकते हैं. अगर कोई गैस, ब्लोटिंग या भारीपन महसूस करता है तो टाइमिंग एडजस्ट कर सकते हैं. हर दिन बदलती इंस्टाग्राम की राय से ज़्यादा आपकी बॉडी की फीडबैक मायने रखती है.

 

सीजनल और लोकल फलों को खाएं, एक्जॉटिक के चक्कर में न पड़ें

सोशल मीडिया में फिटनेस इंफ्लूएंसरों ने हमारे बजट को भी गड़बड़ा दिया है. उनके हिसाब से जो मंहगा है वो ही अच्छा है. विदेशी फल अवोकाडो को इन दिनों इतना प्रोमोट किया जा रहा है कि जो उसे नहीं खा रहा उसे लग रहा है वो ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाएगा, क्योंकि इतना हेल्दी फ्रूट उसके बजट से बाहर है,120 रूपये में एक पीस बिकने वाला अवाकाडो इन दिनों स्टेट्स सिंबल भी बन गया है, हेल्थ और फिटनेस की दुनिया का सुपरस्टार बन चुका है, लेकिन बहुत से लोगों के मन में यह सवाल होता है कि आखिर इसमें ऐसा खास क्या है? ये कहां से आया, और भारत में इसके जैसा फल कौन-सा है.

अवोकाडो की बात करें तो इसकी खेती की शुरुआत 5000–7000 साल पहले मैक्सिको में मानी जाती है. आज अमेरिका, मैक्सिको, पेरू, चिली, और दक्षिण अफ्रीका इसके सबसे बड़े उत्पादक हैं. भारत में यह दक्षिण भारत (केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र के कुछ भागों) में उगाया जाता है.

अगर इंडियन लोकल और सीजनल फ्रूट की बात करें तो अमरूद काफी फैक्टर्स में अवाकाडो को पछाड़ देता है. न्यूट्रीशनल वेल्यू पर फोकस करें तो अवोकाडो बनाम अमरूद: न्यूट्रिशनल तुलना (100 ग्राम में)

पोषक तत्व

अवोकाडो (Avocado)

अमरूद (Guava)

कैलोरी

160 kcal- 68 kcal

कार्बोहाइड्रेट

8.5 g-14 g

शुगर

0.7 g-9 g

फाइबर

6.7 g-5.4 g

फैट

15 g (Healthy fats)-0.9 g

प्रोटीन

2 g-2.6 g

विटामिन C

10 mg (11% RDA)-228 mg (380% RDA!)

विटामिन A

7 mcg-31 mcg

फोलेट (B9)

81 mcg-49 mcg

पोटेशियम

485 mg-417 mg

मैग्नीशियम

29 mg-22 mg

 

स्रोत: USDA Food Data Central और IFCT, ICMR 2021

अब अगर आपको अपना वजन बढ़ाना है तो जरुर अवाकाडो को चुनिए क्योंकि इसमें कैलोरी अमरूद से ज्यादा है. लेकिन विटामिन सी और विटामिन ए की कैटेगरी में अमरुद अवाकाडो से कहीं आगे है. सिर्फ हेल्दी फैट के मामले में अवाकाडो आगे है लेकिन ये फैट आप ओलिव ओयल या फिर घी, नारियल से पा सकते हैं.

हम ये नहीं कर रहे हैं कि आप अवाकाडो मत खाइए, लेकिन अवाकाडो सिर्फ इसलिए मत खाइए कि इसे सब खा रहे हैं. अगर आपको पसंद है और आपको जेब अलाउड कर तभी इसे लें. अदरवाइज बहुत से हेल्दी और किफायती फ्रूट्स आपके लोकल वेंड्र्स आपको उपलब्ध करा सकते हैं.

कुल मिलाकर आप ये समझें कि किसी की भी कही किसी बात को मानने से पहले एक बार गूगल जरुर कर लें कि इस बात में कितनी सच्चाई है. आज के युग में यू आर जस्ट वन टच अवे फ्रोम इन्फोर्मेंशन. तो इस सुविधा का इस्तेमाल करें पढ़े लिखे गवार बनने से बचें.

 

मजेदार ड्रेसिंग से फ्रूट चाट का टेस्ट बढ़ाएं

आपको यदि फल खाना बोरिंग लगता है तो ये ड्रेसिंग ट्राई कर सकते हैं. इससे आपकी फ्रूट चाट के फ्लेवर बढ़ जाएंगे.

 

1- हनी-लेमन फ्रूट ड्रेसिंग (Sweet & Tangy)

1 टेबल स्पून शहद, 1 छोटा नींबू का रस, थोड़ा सा नींबू का ज़ेस्ट(यानी कसा हुआ जरा सा नींबू का छिलका), एक चुटकी काला नमक या सेंधा नमक, थोड़ी सी काली मिर्च पाउडर. इन सभी चीजों को अच्छे से मिलाएं और कटे हुए फलों पर डालकर हल्के हाथ से मिक्स करें.

 

  1. मिर्च-मसाला ट्विस्ट (Spicy Street-Style)

1/2 टीस्पून भुना जीरा पाउडर, 1/2 टीस्पून चाट मसाला, चुटकी भर कश्मीरी लाल मिर्च पाउडर, 1 टीस्पून नींबू का रस, थोड़ा काला नमक एक कटोरी या छोटी डब्बे में डालकर अच्छे से मिक्सर कें और ड्रेसिंग को कटे हुए पाइनएप्पल, पपीता, अमरूद, तरबूज पर डालें.

 

  1. पीनट बटर-हनी योगर्ट ड्रेसिंग (Protein Rich Creamy)

2 टेबल स्पून दही (ग्रीक योगर्ट हो तो बेहतर), 1 टीस्पून पीनट बटर (स्मूद टाइप), 1 टीस्पून शहद, एक चुटकी दालचीनी पाउडर. सभी चीज़ों को मिक्स कर के एक क्रीमी ड्रेसिंग बनाएं. केला, सेब, अंगूर और स्ट्रॉबेरी के साथ बढ़िया कॉम्बो तैयार होगा.

इस तरह कि बहुत सी डेसिंग रेसिपी से आप अपने फ्रूट चाट के स्वाद को बढ़ा सकते हैं.  Instagram

Hindi Love Story: महक और मोहित की लव स्टोरी

Hindi Love Story:  महक अपनी ही मस्ती में झूमती, गुनगुनाती चली आ रही थी. अपार खुशी से उस का मन गुलाब की तरह खिल उठा था. वह मोहित से मिल कर जो आ रही थी. मोहित, जिस के लिए बचपन से उस का दिल धड़कता था. जब वह मात्र 10 वर्ष की थी, तब मोहित उस के पड़ोस में रहने आया था. उस के और मोहित के परिवार में अच्छी दोस्ती हो गई थी.

एक दिन मोहित की मम्मी ने मजाक में कह दिया, ‘‘महक तो सचमुच बड़ी प्यारी है. इसे तो मैं अपने घर की बहू बनाऊंगी.’’

बस फिर क्या था, सब हंस दिए थे. मोहित और महक तो मारे शर्म के लाल हो गए थे.

‘‘मुझे शादी ही नहीं करनी,’’ कहते हुए महक अपने घर भाग गई.

मगर यह बात यहीं समाप्त नहीं हुई थी. तभी से मोहित और महक के मन में प्रेम का बीज आरोपित हो गया था. यह बीज समय के साथ धीरेधीरे पनपने लगा था और फिर प्रीत का एक हराभरा वृक्ष बन कर तैयार हो गया था. बचपन दोनों का साथ खेलते बीता था.

12वीं कक्षा के बाद मोहित मैडिकल की पढ़ाई करने के लिए लखनऊ चला गया. दूर रहने पर भी दोनों अनकहे प्रेम की मधुर डोर से बंधे रहे थे. जब मोहित रुड़की आता तो दोनों सारा दिन साथ ही गुजारते. ऐसा लगता जैसे महक और मोहित दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं. महक तो मोहित के प्यार में राधा की तरह दिनरात डूबी रहती थी.

मोहित की मैडिकल की पढ़ाई पूरी होने पर एक दिन मोहित और महक बगीचे में हरसिंगार के वृक्ष के नीचे बैठे थे. तभी मोहित ने महक को बड़े सीधे शब्दों में प्रोपोज करते हुए कहा, ‘‘महक, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

महक के गाल शर्म से लाल हो गए. वह नजर नीची किए मुसकरा रही थी. बिना कुछ बोले ही महक ने आंखों ही आंखों में स्वीकृति दे दी थी. हवा के एक झोंके के साथ हरसिंगार के कुछ फूल उन के ऊपर आ गिरे. महकते हुए फूलों से उन की प्रीत महक उठी. प्रकृति भी उन दोनों को मानो आशीर्वाद दे रही थी.

महक अपने प्रेम के विषय में अपने मातापिता को सबकुछ सच बता देना चाहती थी. उसे पूरी आशा थी कि उस के मातापिता भी उस के निर्णय से बहुत खुश होंगे, क्योंकि मोहित था ही इतना प्यारा और व्यवहारकुशल.

अनेक सपने संजोती हुई वह घर पहुंची ही थी कि उस के पिता सुरेंद्रजी का फोन आ गया. उन्होंने महक से कहा, ‘‘बेटा, मेरी अलमारी में एक ब्लू फाइल रखी है उसे निकाल कर ड्राइवर को दे दो. तुम्हारी मां अभी कहीं गई हुई हैं.’’

‘‘जी पापा,’’ महक ने कह वह अलमारी में फाइल ढूंढ़ने लगी. फाइल ढूंढ़ते समय उसे एक फाइल पर अपना नाम दिखाई दिया. वह थोड़ा रुकी. उस ने वह फाइल ड्राइवर को दे दी, पर अपने नाम की फाइल के विषय में उस की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी. उसे लगा ऐसे चोरी से पापा के पेपर देखना गलत है, पर वह अपने मन को न रोक सकी.

उस ने अलमारी से वह फाइल निकाली और देखने लगी. इस में एक पुराने मुकदमे के पेपर्स थे, जिन में पीडि़ता का नाम महक लिखा था और अभियुक्त कोई जोगेंद्र सिंह था. स्तब्ध सी वह बारबार उलटपलट कर कागजात देख रही थी. उस फाइल से उसे पता चला कि जब वह मात्र 3 वर्ष की थी तब उस अपराधी ने उस के साथ दुष्कर्म किया था. उस का दिल धक से रह गया. महक की सारी खुशी काफूर हो गई थी.

उसे इस फाइल पर विश्वास नहीं हो रहा था. उसे लगा कोई और महक होगी, पर पीडि़ता के मातापिता का नाम लिखा था. उसी के मातापिता का नाम था. उस के हाथपैर कांपने लगे थे. वह जमीन में बैठ कर जोरजोर से रोने लगी. उस की आंखों के समाने अंधेरा छा गया. उस ने अपने शरीर को कभी मोहित को भी छूने की इजाजत नहीं दी थी. फिर वह कौन दुष्ट था, जिस ने उसे दूषित किया? उसे अपनेआप से नफरत होने लगी थी.

उस के प्यार के हरेभरे वृक्ष पर अचानक बिजली गिर पड़ी और लहलहाते वृक्ष के पत्ते और टहनियां जल उठीं. उसे लगा कि वह अब अपने प्यारे मोहित के योग्य ही नहीं रही. उसे अपने ही शरीर से घिन हो रही थी. अपनी जिस पावनता पर उसे फख्र था, वही आज न जाने कहां गायब हो गई थी. महक रोतेरोते उस फाइल को देख रही थी. तभी उस ने डाक्टर का भी एक नोट पढ़ा, जिस में लिखा था, ‘‘अंदरूनी चोट के कारण महक अब कभी मां नहीं बन सकेगी.’’

महक को अपनी दुनिया समाप्त होती नजर आने लगी थी. उसे अपनी जिंदगी व्यर्थ लगने लगी थी. वह सोच रही थी कि आखिर किस के लिए और क्यों जीएं? उसे ऐसा लग रहा था जैसे उस का सबकुछ लुट गया हो. वह बहुत देर तक रोती रही. जब उस की मां मनीषा घर आईं, तो उन्होंने उस के हाथ में वह फाइल देखी. उन्हें पूरी स्थिति समझते देर नहीं लगी. वे उसे उठाते हुए बोलीं, ‘‘उठ बेटा.’’

महक जोरजोर से चिल्लाने लगी, ‘‘मुझे हाथ मत लगाओ, मैं गंदी हूं.’’

मां ने उसे बहुत समझाया, ‘‘बेटा, इस में तुम्हारा क्या दोष है?’’

महक को एक गहरा आघात पहुंचा था. उस राक्षस की कल्पना मात्र से वह बुरी तरह डर गई थी. महक अपनी मां के सीने से चिपक कर रोए जा रही थी. दोनों मांबेटियों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

कुछ देर बाद पिता भी घर आ गए पर महक ने अपनेआप को एक कमरे में बंद कर लिया था. उस में पिता का सामना करने की हिम्मत नहीं थी. पिता को जब सारी बात पता चली तो उन के पैरों के नीचे से जमीन सरक गई. जिस सत्य को उन्होंने इतने वर्षों से छिपा रखा था, आज वह महक के सामने अचानक प्रकट हो गया. सुरेंद्र इस सच को आजीवन महक से छिपाना चाहते थे ताकि उन की फूल सी बच्ची को कभी आघात न पहुंचे. उन्हें अपने ऊपर बहुत क्रोध आ रहा था कि क्यों उन्होंने महक से फाइल देने के लिए कहा, पर होनी को कौन टाल सकता है?

महक इस आघात से बहुत परेशान हो गई. वह बहुत उदास हो गई. न किसी से बात करती और न किसी के सामने आती. दूसरे दिन मोहित उस के घर आया. मनीषा ने महक का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, ‘‘महक, देख तो मोहित आया है.’’

पहले तो महक ने कोई जवाब नहीं दिया पर मां के बारबार खटखटाने पर उस ने कह दिया, ‘‘मेरा सिर दुख रहा है. मैं दवा खा कर सो रही हूं.’’ निराश मोहित घर लौट गया और महक तकिए में मुंह छिपा कर रोती रही. पूरा तकिया आंसुओं से भीग गया. उस का रोना बंद ही नहीं हो रहा था.

महक की हालत देख कर मनीषा बहुत दुखी थीं. उन की आंखों के सामने वह पुरानी घटना चित्रवत घूमने लगी… एक दिन जब वे नन्ही महक को एक पार्क में ले गई थीं तब कुछ पलों के लिए वे महक को अकेला छोड़ कर उस के लिए गुब्बारा लेने चली गईं. बस उसी समय महक को कोई चुरा ले गया. मनीषा चिंतित सी उसे सब जगह ढूंढ़ती रहीं. सुरेंद्र भी अपनी बच्ची को ढूंढ़ने के लिए तुरंत वहां पहुंच गए. पुलिस में भी रिपोर्ट लिखवा दी. मातापिता का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.

सुबह से दोपहर हो गई पर महक का कोई पता नहीं चल रहा था. बहुत देर बाद अचानक पार्क के एक कोने में खून से लथपथ महक अचेतावस्था में पड़ी मिली. उसे देख कर मातापिता को समझते देर नहीं लगी कि उस के साथ क्या हुआ है. वे उसे डाक्टर के पास ले गए.

डाक्टर ने कहा, ‘‘इतनी छोटी बच्ची के साथ किसी ने बड़ी निर्दयता से दुष्कर्म किया है. मुझे यह बताते हुए बहुत अफसोस है कि अब यह बच्ची कभी मां नहीं बन सकेगी.’’

मातापिता के दुख और क्रोध का कोई ठिकाना नहीं था. सुरेंद्र ने तभी प्रण कर लिया कि अपराधी को उस के किए की सजा अवश्य दिलाएंगे.

कुछ समय बाद वह अपराधी पुलिस की गिरफ्त में आ गया था. उसे जेल में डाल दिया गया. फिर मुकदमे की तारीखें चलती रहीं. सुरेंद्र को बहुत परेशानी झेलनी पड़ी, पर उन्होंने अपराधी को सजा दिलवाने की ठान रखी थी. सालों कोशिश करने पर भी मुकदमे का निर्णय न होने से कभीकभी तो मनीषा और सुरेंद्र बहुत निराश हो जाते थे.

अंतत: उन के लिए वह दिन बड़े ही संतोष और चैन का दिन था, जब नाबालिग बच्ची के साथ ऐसा कुकृत्य करने वाले उस अपराधी को सजा ए मौत सुनाई.

सुरेंद्र और मनीषा महक को इन सब बातों से दूर रखना चाहते थे. अत: उन्होंने अलीगढ़ शहर छोड़ कर रुड़की में रहना शुरू कर दिया था.

मनीषा अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी कि अचानक घंटी बज उठी. उस ने देखा दरवाजे पर मोहित खड़ा था.

‘‘आओ बेटा,’’ मनीषा ने उसे अंदर आने को कहा.

मोहित को देखते ही महक उठ कर चुपचाप अपने कमरे में चली गई. मोहित महक के बदले व्यवहार से बहुत आश्चर्यचकित था. उसे महक का उदास चेहरा परेशान कर रहा था. वह सोच रहा था कि महक 2 दिन पहले तो कितनी खुश थी, कितनी चहक रही थी, फिर ऐसा क्या हो गया कि वह इतनी उदास हो गई है? मुझ से बात क्यों नहीं कर रही है?

फिर उस ने मनीषा से पूछा, ‘‘आंटी, क्या बात है महक इतनी बुझीबुझी क्यों है? मुझ से मिलती क्यों नहीं है?’’

मनीषा मोहित की परेशानी समझ रही थीं. वे मन ही मन मोहित और महक के प्यार के विषय में भी जानती थीं, हालांकि मोहित और महक ने उन्हें अपने प्यार के विषय में कभी नहीं बताया था. पर मां तो आखिर मां होती है. वह तो आंखों की भाषा से ही सबकुछ समझ जाती है.

मनीषा जानती थीं कि मोहित ही महक को इस अंधेरे से निकाल सकता है. अत: उन्होंने मोहित को महक के जीवन में घटित घटना के बारे में संक्षेप में बताते हुए कहा, ‘‘मोहित, तुम महक के बहुत अच्छे मित्र हो. मेरा विश्वास है कि तुम ही उसे इस कठिन स्थिति से निकाल सकते हो.’’

मोहित ने पूरी घटना सुनी. उस के तनबदन में आग लग गई. उस की जान महक के साथ यह कैसा बहशीपन? उस ने अपनेआप को संयत करने का प्रयास किया. वह महक से बात करने की कोशिश करने लगा, पर महक तो अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकलती. वह 1 महीने तक कोशिश करता रहा.

महक के मातापिता भी उसे समझासमझा कर परेशान हो गए पर उसे उस सदमे से बाहर लाने में असमर्थ रहे. डिप्रैशन बढ़ता ही जा रहा था. सुरेंद्र और मनीषा उसे मनोवैज्ञानिक के पास भी ले गए पर कोई आशाजनक सुधार नहीं हुआ.

मोहित इस बिगड़ी स्थिति से बहुत परेशान हो गया था. महक का दर्द उसे अंदर तक व्यथित कर देता. वह महक को भरपूर प्यार दे कर वापस अपनी दुनिया में लाना चाहता था.

एक दिन जब घर में सुरेंद्र और मनीषा नहीं थे, तब मोहित का महक से आमनासामना हो गया. मोहित ने उस का हाथ पकड़ लिया. बोला, ‘‘महक प्लीज…’’

महक अपना हाथ छुड़ा कर भागने लगी. उस की आंखों से टपटप आंसू बह रहे थे. पर मोहित उस का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया. कहने लगा, ‘‘महक तुम मुझ से बात क्यों नहीं कर रहीं? मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.

तुम्हारी यह उदासी मेरी जान ले लेगी. तुम ही मेरी जिंदगी हो.’’ महक कुछ नहीं बोली. वह तो बस लुटी सी रोती रोती जा रही थी.

मोहित ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ ही जीवन के सारे सपने पूरे करना चाहता हूं. तुम्हारे बिना तो मैं जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता.’’

महक फूटफूट कर रोने लगी, मोहित, मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं. किसी के गंदे हाथों ने मुझे…’’

मोहित ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और कहने लगा, ‘‘बस महक, कुछ मत बोलो. मुझे सब पता है. मनीषा आंटी ने मुझे सब बता दिया है.’’

महक की हिचकियां और तेज हो गईं. वह मोहित को फटीफटी आंखों से देख रही थी.

फिर बोली, ‘‘मोहित, मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकती. मैं मां भी नहीं बन सकती. मेरा जीना बेकार है. प्लीज मुझे भूल जाओ. अपनी नई दुनिया बसा लो.’’

मोहित ने उसे एक प्यार की झप्पी दी और कहा, ‘‘महक, मुझे कुछ नहीं चाहिए. अगर तुम मेरे साथ हो तो दुनिया की सारी खुशियां मेरे साथ हैं. क्या तुम मुझे अपने से अलग कर के मुझे दुखी देखना चाहती हो? अपनी जान से दूर रह कर मैं कैसे जिंदा रह पाऊंगा?’’

महक मोहित के पास खड़ी रोती रही. फिर बोली, ‘‘मोहित तुम से शादी कर के मेरा मन मुझे कचोटता रहेगा. मुझे हमेशा ऐसा लगेगा जैसे मैं ने तुम्हें जूठी पत्तल दी. मैं अपवित्र हूं.’’ मोहित ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम कैसे अपवित्र हो सकती हो? अपवित्र, मक्कार दुष्ट तो वह राक्षस है, जिस ने तुम्हारे साथ यह दुष्कृत्य किया था. वह दुष्ट, जिस ने शिशु कन्या को भी नहीं छोड़ा… वह सब से बड़ा दानव है. तुम अपने को क्यों कोस रही हो? तुम परमपवित्र हो.’’

‘‘ये सब तुम मुझे झूठी सांत्वना देने के लिए कह रहे हो न? मुझे तुम्हारी दया नहीं चाहिए. अब तो मैं तुम्हें बच्चा भी नहीं दे सकती… तुम्हें तो बच्चे इतने पसंद हैं,’’ महक ने तीखे स्वर में कहा. उस की आंखें रोतेरोते लाल हो गई थीं. उस की कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उस का भविष्य क्या होगा.

मोहित ने उसे पुन: समझाया, ‘‘महक, तुम चिंता मत करो. हम कोई बच्चा गोद ले लेंगे या फिर सैरोगेट मदर से बच्चा पैदा कर लेंगे. आज के विज्ञान के युग में बहुत कुछ संभव हो सकता है. हम मातापिता जरूर बनेंगे. बस तुम मेरी खुशी के लिए पहले जैसी बन जाओ. मैं तुम्हें ऐसे उदास नहीं देख सकता.

अंकल और आंटी भी कितने परेशान हैं. प्लीज, तुम अपनी सोच बदलो. मुझे अपनी पहले वाली हंसमुख, चुलबुली, प्यारी सी महक चाहिए. अपनी महक से मिलने के लिए मैं बेचैन हूं.’’

मोहित कई दिनों तक महक को समझाता रहा. मोहित घर आता फिर मनीषा से पूछता, ‘‘आंटी, मैं महक को अपने साथ घुमाने ले जाऊं?’’ मनीषा भी सहर्ष उसे मोहित के साथ भेज देतीं. मनीषा और सुरेंद्र को मोहित से बहुत आशा थी.

मोहित हर दिन एक नए अंदाज में महक से प्यार की बातें करता. उस के खोए आत्मसम्मान और विश्वास को जगाता. उस में प्रेम की भावना के प्राण फूंकता. धीरेधीरे उस का प्रयास रंग लाने लगा. समय बदलने लगा था. उन के प्रेम के वृक्ष पर आत्मसम्मान और विश्वास की कोंपलें फूटने लगी थीं. उस की शाखाओं पर फिर मुसकराहट के फूल खिल उठे थे. चहकती चिडि़यां फिर आ कर नीड़ बनाने लगी थीं. पावनी प्रीत की मधुरता और प्रसन्नता से वह वृक्ष पुन: लहलहाने लगा था.

महक और मोहित को पुन: प्रसन्न देख कर सुरेंद्र और मनीषा भी बहुत खुश थे. एक दिन मोहित ने सुरेंद्र और मनीषा से कहा, ‘‘अंकल मैं महक से विवाह करना चाहता हूं.’’ मोहित की बात सुनते ही सुरेंद्र और मनीषा की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे. महक खुशी से खिल उठी थी.

सुरेंद्र और मनीषा ने प्रसन्नता से कहा, ‘‘यह तो हमारे लिए दुनिया की सब से बड़ी खुशी है. महक और तुम्हारी जोड़ी बहुत सुंदर है. तुम दोनों ही एकदूसरे के पूरक हो.’’

सुरेंद्र और मनीषा ने मोहित के मातापिता के सामने महक और मोहित के विवाह का प्रस्ताव रखा तो वे तुरंत तैयार हो गए. मुंह मीठा कराते हुए मोहित की मां दीप्ति बेहद खुशी से बोलीं, ‘‘मनीषाजी, मैं ने तो बचपन में ही इसे अपनी बहू मान लिया था.’’

सब के मन में शहनाई की धुन बज उठी थी. Hindi Love Story

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