Family Story : 32 साल का विराज सुबह से रात के 12 बजने का इंतजार कर रहा है क्योंकि इस वक्त मैट्रिमोनी साइट द्वारा ढूंढ़ी गई अपनी परफैक्ट मेट, अत्यधिक सुंदर चंचल से बात
करने का समय होता है. विराज इस बीच चंचल को एक बार भी मैसेज नहीं करता ताकि उसे यह न महसूस हो कि वह उस के लिए कितना ज्यादा डिसपरेट है, मगर हां सचाई तो यही है कि वह तो यही चाहता है कि चंचल उसे दिनभर मैसेज करती रहे और वह 1-2 घंटों के बाद उस के मैसेज का रिप्लाई करे और वह भी हां, हूं में. अब यह दिखाना भी तो जरूरी है न कि वह कितना व्यस्त रहता है. उस के पास भी बाकी काम हैं. अब क्या कहेंगे इंसान की इज्जत तो उपलब्ध न हो कर ही तो बनती है. अब यही वह दिनरात
उसे मैसेज करता रहता है तो चंचल को तो यही लगता न कि वह कितना फ्री और चेप है और इसी वजह से उस का पत्ता कट हो जाए. जैसी विराज की सामान्य शक्ल है उस के हिसाब से चंचल जैसी खूबसूरत कैंडिडेट तो उसे सपने में
ही मिल सकती थी इसलिए वह एक भी गलती नहीं करना चाहता था जिस से कि चंचल विराज को छोड़ कर अपने दूसरे औप्शंस को गहराई से ले.
दिनभर अपनी आईटी जौब से थका, पूरी फुरती के साथ आधी रात कमरे से यहांवहां टहल रहा था. उस का मोबाइल बिस्तर पर पड़ा था और उस के बजने का इंतजार था तभी मोबाइल की घंटी बजी. उस ने झट से मोबाइल उठा कर मैसेज पढ़ा. वह तेजी से दौड़ कर मोबाइल झपट लेता है और बिना खोले विराज मैसेज देखता है.
‘‘हाय फ्री हो क्या?’’ चंचल का मैसेज आया.
विराज ने मैसेज पढ़ कर तुरंत जवाब नहीं दिया. 10 मिनट बीतने का इंतजार करने लगा ताकि चंचल को यह महसूस हो कि विराज कितना व्यस्त इंसान है.
10 मिनट बाद विराज बोला, ‘‘सौरी तुम्हारा मैसेज अभीअभी देखा. औफिस की कल एक इंपौर्टैंट मीटिंग है उसी की तैयारी कर रहा था. आज दिन कैसा गया तुम्हारा?’’ और फिर चंचल से चैटिंग करने में व्यस्त हो जाता.
‘‘तुम बिजी थे तो मैं भी फ्री नहीं थी. सुबह 11 बजे उठी, फिर पार्लर गई. वहीं दोपहर हो गई. फिर दोस्तों के साथ मौल गई. शाहरुख की फिल्म देखी. वहां से घर आतेआते शाम हो गई. एकदम थक गई हूं. मन कर रहा है कि कोई हाथपैर दबा दे बस.’’
‘‘जब कभी मम्मी की कमर में दर्द बढ़ जाता है तो मैं ही तो अपने हाथों से उन का दर्द दूर करता हूं. वे ऐसे ही नहीं कहतीं कि मेरे हाथों में जादू है जादू.’’
‘‘कितनी खुश होगी तुम्हारी पत्नी जिसे तुम मिलोगे. और तुम अपनी सुनाओ तुम्हारा दिन कैसा गया?’’
‘‘सच बताऊं तो जैसेतैसे तुम्हारी यादों के सहारे दिन बीतने का इंतजार कर रहा था कि कब रात हो और तुम से बात हो.’’
‘‘क्या तुम्हें मैं सच में इतनी अच्छी लगती हूं?’’
‘‘जितना तुम सोच सकती हो उस से भी कहीं ज्यादा.’’
‘‘तुम कब तक चैट करते रहोगे? आगे कुछ इरादा है कि नहीं?’’
‘‘मेरा बस चले तो तुम्हें इसी वक्त अपनी दुलहन बना कर घर ले आऊं.’’
‘‘सच? मेरा जी भी यही करता है. तुम ने मेरे लिए अपनी मम्मी से बात की?’’
‘‘तुम्हारा फोटो दिखाया तो था.’’
‘‘फिर?’’
‘‘उन्हें तुम थोड़ी मौड लगी खासतौर से तुम्हारा पाउट किया हुआ फोटो उन्हें जरा भी
न भाया.
‘‘उन्हें क्या मैं सुंदर नहीं लगी?’’
‘‘सुंदर तो तुम बहुत हो. तुम्हारे सिवा अपनेआप को किसी और के साथ नहीं देख सकता चंचल.’’
‘‘ झूठ क्या बोलूं तुम से. मैं 2 लड़कों के साथ और चैट कर रही हूं, मगर मु झे सब से अच्छे तुम ही लगे.’’
‘‘तुम मु झे प्रौमिस करो मेरे अलावा तुम किसी से शादी की हां नहीं करोगी. तुम जो बोलोगी, जैसा करने को कहोगी सब बात मानूंगा तुम्हारी बस एक बार शादी कर लो मु झ से.’’
‘‘तुम भी प्रौमिस करो कि जल्दी अपनी मम्मी को मेरे लिए मनाओगे.’’
‘‘हां माई बेबी प्रौमिस.’’
‘‘गुड नाइट.’’
‘‘गुड नाइट.’’
विराज फिर से वह पूरी चैट पढ़ता है जो उस ने शुरू से उसे भेजी थी और इस सारी चैट्स को पढ़ने के बाद उसे महसूस होता है कि बातबात में उस के दिल में उस हाल ए बयां कर दिया है. चंचल न चाहते हुए भी उसे उस के पीछे पागल सम झ रही होगी.
अब जो सम झे. विराज की तो अगली परीक्षा अपनी मुंह फट मां को सम झाने की थी, जिन्हें चंचल पसंद नहीं आई थी. विराज बहुत पैंतरे आजमा चुका था उन्हें मनाने के. आखिरी औप्शन जो बचा था उस ने वह दांव भी चला और अनशन पर बैठ गया.
‘‘ये ले तेरे पसंदीदा आलू के परांठे,’’ शारदाजी यानी विराज की मां, अपना पसीना पोंछते हुए थकान और पीठ दर्द के मारे एक
हाथ अपनी कमर पर रख उस के पास प्लेट ले कर पहुंचीं.
‘‘मु झे नहीं खाना,’’ कह कर विराज ने अपना मुंह फेर लिया.
‘‘अब बताएगा कि… लड़की के लिए और कितने दिन भूखा रहेगा तू. जैसा उस का नाम है वैसे ही निकलेगी. फिर मत बोलना मम्मी आप ने बताया नहीं था.’’
‘‘मैं शादी करूंगा तो उसी से.’’
‘‘पता कराया था मैं ने उस के बारे में. उस लड़की के घर में पैर टिकते ही नहीं, पूरा दिन पार्लर में बैठी रहती है. हर रिलीज पिक्चर वह देखती है. भले ही वह कितनी भी घटिया क्यों न हो. जैसे तू आज भूखा बैठा है तेरे बच्चे भी कल को ऐसे ही बैठे रहेंगे याद रखना.’’
‘‘मां सुंदर कितनी है वह’’
‘‘सुंदरता का क्या अचार डालेगा? घरगृहस्थी के लिए थोड़ी सरल और सजग लड़की की जरूरत होती है. पूरी तनख्वाह तो उस के लिपस्टिकपाउडर में खर्च हो जानी है तेरी.’’
‘‘मम्मी…’’
‘‘अरे क्या हुआ अपनी मम्मी को क्यों
याद कर रहे हो,’’ कंचन की आवाज हैडफोन लगाए विराज के कान में पड़ी और वह भूतकाल को भूत में छोड़ कर वर्तमान में लौट आया
और उसे एहसास हुआ कि वह तो कल की बात थी. इस बीच उस के जीवन में बहुत कुछ घट चुका है.
‘‘यह तार वाला ब्रश मेरी उंगलियों में चुभ गया,’’ विराज बरतन धोते हुए बोला.
‘‘कितनी बार कहा है बरतन दस्ताने पहन कर साफ किया करो और हां जल्दी हाथ चलाओ पूरे कपड़े और झाड़ूपोंछा भी बचा है,’’ चंचल की आवाज उस के कानों में पड़ी.
‘‘तुम भी तो कुछ काम में मेरी मदद कर दो,’’ इतने काम का बो झ पा कर विराज ने उसे कहा.
‘‘तुम देख नहीं रहे मेरे सिर में मेहंदी और हाथों में नेलपौलिश लगी हुई है.’’
बरतन धोने के पानी के छींटों को पोंछते हुए विराज ने पीछे मुड़ कर चंचल की तरफ देखा जो क्व3 हजार की नाइटी पहन कर किसी महारानी की तरह एक पैर पर दूसरा पैर ताने सोफे में टिक कर बैठ अपनी नेलपौलिश लगी उंगलियों में फूंक मार रही थी.
तभी चिंटू आ कर अपनी मम्मी से कहने लगा, ‘‘मम्मीमम्मी भूख लगी है, खाने को कुछ दो न.’’
‘‘अरे अभी कुछ देर पहले ही तो चिप्स दिए थे. इतनी जल्दी तुम्हें कैसे भूख लग जाती है? सुनोजी इसे बिस्कुट का पैकेट दे देना,’’ चंचल खानापीना बनाने में अपना कीमती समय बिलकुल जाया नहीं करती. जो काम विराज को 2 मिनट गले लगा कर अपना दुखड़ा सुना कर, 4 पपियां दे कर कराया जा सकता है उस में वह अपने हाथ मैले क्यों करे.
पेट में चूहे तो विराज के भी खूब कूद रहे थे, नाश्ते के नाम पर सुबह से एक कप चाय मिली थी और वह भी उस ने खुद बनाई थी. शायद यह अपनी मां के बने खाने का तिरस्कार करने का ही दुष्परिणाम है जिसे वह आज भोग रहा है.
अपनी चोटिल उंगली में दर्द को महसूस करते उसे हर पल अपनी मां की कही कड़वी मगर सच्ची बातें याद आने लगीं, ‘काश समय रहते सुन लेता तो आज ये दिन देखना नहीं पड़तो,’ विराज खुद से बड़बड़ता है.
‘‘विराज क्या बड़बड़ा रहे हो? तुम्हारा मतलब क्या है मैं सब सम झती हूं,’’ चंचल बोली.
‘‘मैं कह रहा था कि काश कामवाली
समय रहते आ जाती तो इतना काम करना नहीं पड़ता,’’ विराज को पता है अगर चंचल नाराज
हो गई तो उस के 3 दिन सूजे हुए मुंह को मनाने के लिए क्व5 हजार से कम की चपत नहीं लगने वाली.
‘‘वह तो अच्छा है कि तुम्हारा वर्क फ्रौम होम है नहीं तो ये सब काम मैं अकेली कैसे करती,’’ चंचल बरतन साफ करती हुई विराज की कमर को प्यार से पकड़ते हुए बोली.
विराज मन ही मन सोचने लगा कि बीवियों को लगता है कि हम बस हैडफोन लगा कर गाने सुनते रहते हैं.
‘‘सुनोजी खाने में क्या खाओगे बताओ?’’ चंचल ने पूछा.
आंसू बस बहने ही वाले थे विराज के कि अचानक उस के चेहरे पर खुशी दौड़ने लगी कि चलो शायद आज शादी के 4 साल बाद उसे अपने कर्तव्य की याद आ गई हो.
‘‘जो तुम बोलो.’’
‘‘फ्रिज में उबले राजमा रखे हैं, उन्हीं को तड़का लगा दो और कुकर में चावल धो कर चढ़ा दो. मैं तब तक नहा कर आती हूं. शाम को शादी में भी जाना है याद है न?’’
विराज शादी का नाम सुन कर आग बबूला हो गया. फिर खुद पर नियंत्रण कर बड़बड़ाने लगा कि कर लो बेटा शादी. शादी का लड्डू किसी को नहीं पचता. अब भी वक्त है संभल जाओ नहीं तो मेरी तरह बहुत पछताओगे.
‘‘किस वक्त की बात कर रहे हो?’’ चंचल ने पूछा.
‘‘मैं बोल रहा हूं तुम्हारे नहाने में अभी वक्त है. तब तक खाना तैयार हो जाएगा.’’
‘‘विराज एक बात कहूं? तुम्हें पा कर मैं धन्य हो गई, आई लव यू तुम्हारा जैसा हस्बैंड सब को मिले,’’ चंचल उस के गालों को चूम कर टौवेल उठा कर नहाने चल गई.
पिछले 4 सालों से यही खेल चल रहा है, जैसे ही उसे अपने दुख का एहसास हो, चंचल उसे कोई न कोई लौलीपौप दिखा कर वापस अपनी ओर खींच लेती. चंचल की तो नहीं पर विराज की जिंदगी ऐसी ही कभी खुशी कभी गम मोड़ पर बीते जा रही थी.
अपनी इतनी तारीफ सुन कर विराज की थकी रगों में तेजी आ गई. उस ने चंचल के आने से पहले झटपट डाइनिंगटेबल तरहतरह के व्यंजनों से सजा दी. उसे पता था चंचल को नहाने में आज पूरा 1 घंटा लगने वाला है इसलिए उस ने चिंटू को खाना खिला कर सुला दिया, छिपतेछिपाते थोड़ाबहुत अपना पेट भी शांत कर लिया.
बाथरूम से निकलते समय चंचल की नजर घड़ी पर गई, ‘‘अरे
दोपहर के 2 बज गए. चिंटू को खाना खिला दो.’’
‘‘खाना खिला भी दिया और सुला भी दिया.’’
‘‘परफैक्ट फादर. तुम भी खा लो सुबह से भूखे होंगे.’’
‘‘तुम्हारे बिना आज तक खाया है कभी?’’
मुसकराते हुए चंचल ने कहा, ‘‘बस 2 मिनट में आई.’’
पूरे आधे घंटे बाद चंचल
और विराज खाना खाने अखिरकार बैठ गए, ‘‘आज शाम का क्या
प्लान है?’’
‘‘मैं खाना खाने के बाद पार्लर निकलूंगी, तुम चिंटू को ले कर शादी में आ जाना, हम सीधा वहीं मिलेंगे.’’
‘‘तुम ने इतना महंगा मेकअप का सामान औनलाइन खरीदवाया तो था, उसी से तैयार हो जाओ. तुम तो हो ही इतनी सुंदर, तुम्हें हर बार पार्लर जाने की क्या जरूरत है?’’
‘‘वह कोई खास काम का नहीं और मेरी सैंसिटिव स्किन को सूट भी नहीं कर रहा. अब तुम भी अपनी मम्मी जैसे बात मत करो. इतना कमाते किसलिए हो? खाना खत्म करने के बाद अपना एटीएम मेरे पर्स में रख देना और कार की चाबी भी.’’
‘‘कार की चाबी क्यों? औटो कर लो.
चिंटू मेरे साथ रहेगा तो टू व्हीलर में हम कैसे आएंगे?’’
‘‘मैं इतनी तैयार हो कर क्या औटो से शादी वाले घर जाऊंगी? लोग क्या कहेंगे?’’
‘‘अच्छा ठीक है संभाल के चलाना.’’
अपनी और चंचल की खाने की प्लेट
धुलने रख कर विराज सीधे अपना पर्स खोल
कर अपना क्रैडिट कार्ड मजबूती से पकड़ कर
ठगा हुआ सोच रहा था कि अपनी खूनपसीने
की कमाई केवल पार्लर में बहती जा रही है
और कहने को मेकअप भी न्यूड. जब कुछ दिखता ही नहीं है तो फिर पैसे किस बात के लेते हैं ये लोग?
शाम हुई और गड्ढों से बचतेबचाते टू व्हीलर के धक्के खाते कोट टाई पहले विराज और चिंटू शादी में पहुंच गए. अपनी मां को परेशान मुद्रा में आते देख उसे पता था वह आगे उस से क्या पूछने वाली है.
‘‘अरे कैसा कमजोर दिख रहा है तू? और यह उंगली में चोट कैसे लगी? क्या उस ने फिर से तु झ से बरतन साफ करवाए?’’
‘‘नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं है वह तो बस ऐसे ही लग गई.’’
‘‘मां हूं तेरी. चेहरा देख कर बता सकती
हूं. तु झे पिछली बार दस्ताने दिए तो थे उन्हें
क्यों नहीं पहनता? जाने किस घड़ी तेरी मति
मारी गई थी. यह तो अच्छा हुआ जो तेरे बाबूजी इस दुनिया में नहीं रहे, नहीं तो अपने टौपर इंजीनियर बेटे को ये सब करते देख फिर से
मर जाते.’’
‘‘दादीदादी पापा ने आज खाना भी बनाया, झाड़ूपोंछा और कपड़े भी…’’
विराज चिंटू का मुंह बंद करने लगा.
अपना सिर पीटते शारदाजी आगे कहने लगीं, ‘‘बेटा यह बात 100 आने सच है कि तेरी शादी का लड्डू बस देखने भर का सुंदर है.’’
शारदाजी अपने बेटे के बुझे हुए चेहरे
को देख कर सम झ गई थीं कि उस की घर में कैसी दशा हो गई है और यह वर्क फ्रौम होम
की वजह से बेचारा कोल्हू का बैल बनता जा रहा था.
‘‘मम्मी छोड़ो न पुरानी बातें, घर कब आओगी रहने?’’
‘‘बेटा मु झे माफ कर मैं नहीं आ पाऊंगी. उसे दिनभर आईने के सामने बैठे रहना देखना मु झ से बरदाश्त नहीं होगा.’’
वहीं दूसरी ओर कायाकल्प ब्यूटीपार्लर में, ‘‘यह देखिए हो गईं आप तैयार. मेकअप किया भी है और पता भी नहीं चल रहा है. भाभी आप ऐसे ही बहुत सुंदर हैं और आज तो आप बहुत कमाल की दिख रही हैं.’’
‘‘हां ऊष्मा सच में तुम्हारे हाथों में तो
कमाल है. थैंक्स चलो मैं अब निकलती हूं नहीं
तो शादी मैं लोग मु झे देखे बिना अपनेअपने घर चले जाएंगे.’’
‘‘हा… हा… हा…’’
‘‘कितने हुए?’’
‘‘आप को डिस्काउंट देने के बाद क्व2,500.’’
‘‘यह लो एटीएम कार्ड.’’
‘‘भाभीजी कमाल है जो आप को ऐसे पति मिले है.’’
‘‘ऐसे क्यों कह रही हो? तुम तो कभी उन से मिली भी नहीं,’’ चंचल अपनी भौंहें चढ़ा, पाउट मारते हाथों से चेहरा संवारते पार्लर में लगबड़े से आईने में खुद को निहारते हुए बोली.
‘‘भाभी आइडिया लग जाता है. देखो आप हर महीने आते हो, हर बार हजारों के बिल बनते हैं. फिर भी जीजाजी आप को जरा भी मना नहीं करते हैं.’’
‘‘हां वह बात तो है. चलो मैं निकलती हूं,’’ बहुत देर हो रही है.
‘‘औटो मंगवा दूं?’’
‘‘अरे नहींनहीं. आज तो मैं कार खुद चला कर आई हूं.’’
‘‘अरे वाह क्या बात है भाभी. शादी का लड्डू मिले तो आप के जैसा.’’
‘‘चल हट नजर मत लगा.’’
सिर से पैर तक चमकती चंचल कार स्टार्ट कर कार का दरवाजा खोल कर बैठ गई फिर कार स्टार्ट कर शादी के लिए चल दी. बीचबीच में बैक मिरर को अपनी ओर सैट कर बारबार अपनेआप को निहारती खुश होने लगती.
शादी में पहुंच उस के पैर लाल कालीन पर पड़े नहीं कि सब की निगाहें दुलहन को छोड़ उसे देख ठहरने लगीं. सच में आज चंचल बहुत आकर्षक लग रही थी.
चंचल ने फोन कर विराज को अपने आने की जानकारी दी. विराज उस के पास आ गया.
‘‘आज तो भई कमाल हो गया… बहुत सुंदर दिख रही हो चंचल,’’ विराज बोला.
‘‘थैंक यू, मेरा रास्ते में आतेआते गला सूख गया कुछ पीने के लिए जूस ले आइए न.’’
‘‘हां अभी लाया.’’
वहीं दूर से विराज और चंचल को देखता ज्वालामुखी से भी ज्यादा ज्वलंत पीडि़त हताश, एक जोड़ा उन्हें देख एकदूसरे पर टीकाटिप्पणी और दोषारोपण करता हुआ एक जोड़ा सहज रूप से लड़ रहा था.
‘‘देखो चंचल भाभी कितनी सुंदर दिख रही है बिलकुल टिपटौप. एक बच्चा होने के बाद भी अपनेआप को कितना मैंटेन कर रखा है और यहां पप्पू को हुए पूरे 9 साल होने को आ रहे हैं, वजन कम होना तो दूर की बात है देखना वह दिन दूर नहीं जब तुम फूल कर फट जाओगी और अपना मेकअप देखो जरा. ऐसा लगता है जैसे सीधा सो के उठ कर आ गई हो,’’ पति बोला.
‘‘आप को पता है विराज भाई साहब घर में कितना काम करते हैं? अगर आप उन के जैसे 1 दिन में बन जाएं और मैं चंचल भाभी से कम दिख जाऊं तो मेरा नाम अभिलाषा नहीं.’’
‘‘सब फालतू की बात.’’
‘‘फालतू की बात? सुबह से शाम तक
मेरी जिंदगी हलदीमिर्चीराईजीरे के बीच बस भुनती जा रही है. आप न कभी किचन में मेरी मदद करना न ही अपने बच्चे को देखना.
मु झे अपने लिए वक्त कहां से मिलेगा बताइए? एक बात और बता दूं, लोगों को दूसरों की
थाली में रखा लड्डू ज्यादा पसंद आता है
अपनी थाली का तो जहर लगता है जहर.’’
‘‘जहर है तो जहर ही तो लगेगा. तुम से तो कोई बात करना ही बेकार है.’’
‘‘हां तो मत करीए, मैं चली कुछ खाने.’’
‘‘जाओ और अपना और वजन बढ़ाओ. देखना दूसरों के लिए कुछ बचने न पाए,’’ शायद नहीं सुना. जाने दो. कहां गईं चंचल भाभी? वह यहांवहां उन्हें ढूंढ़ने लगा. तभी उस की नजर चंचल पर पड़ी तो उस की आंखें खुशी से चमकने लगीं.
सब एक पंडाल के नीचे बैठे थे सामने डीजे बज रहा था. तभी वहां से एक लड़की आती है और चंचल के पास आ कर उस से बोली, ‘‘नमस्ते चंचल भाभी, विराज भैया आइए न डीजे चालू होने वाला है.’’
‘‘हांहां बस आए,’’ चंचल तपाक से बोल विराज का हाथ खींचते हुए डांस फ्लोर में ले जाने लगी.
‘‘चंचल तुम्हें पता है मु झे डांस करना नहीं आता.’’
‘‘तो क्या मैं अकेले डांस करूंगी? आइए न मेरे लिए थोड़ा सा बस.’’
‘‘ठीक है तुम कहती हो तो,’’ विराज उस के साथ न न करते हुए भी एक बार में उठ खड़ा हुआ.
अब जिस की बीवी सुंदर हो और आज के दिन विशेष सुंदर दिख रही हो तो उसे कोई कैसे मना कर सकता है और शादी भी तो उस ने इसीलिए तो की थी ताकि वह लोगों को जता सके कि सामान्य से दिखने वाले विराज की पत्नी कितनी खूबसूरत है.
वे दोनों और बाकी लोग डांस फ्लोर में आ कर खड़े हो चुके थे. चंचल को डांस करते देखने के लिए भीड़ इकट्ठा हो गई.
डीजे वाले ने गाना लगाया, ‘‘जब से हुई है शादी आंसू बहा रहा हूं, आफत गले पड़ी है उस को निभा रहा हूं.’’
यह गाना जो हर नखरे वाली खूबसूरत बीवी का सीधासाधा सा पति अकसर अकेले में सच्चे दिल से गुनगुनाया करता था, उसे भरी महफिल में सुन विराज का बहुत जोर से डांस निकलने लगा और उस ने जो चंचल के साथ ऐक्सप्रैशन के साथ स्टैप दिए कि भई वाह. एकदम औरिजिनल..
उस के बाद विराज को देख कर बाकी भुक्तभोगी भी साथ आ गए, ‘‘शादी कर के फंस गया यार अच्छाखासा था कुंआरा जो खाए पछताए जो न खाए वह रह जाए, दूर से मीठा दिखता है यह कड़वा लड्डू प्यारा,’’ गाने पर डांस कर सब ने रंग जमा दिया.
दूर से उस मंडप में बैठीं अपनी बहू और बेटे का डांस देखते हुए शारदाजी मन ही मन सोच रही थीं कि उन के बेटे की घर में हालत कैसी भी हो, मगर वह खुश तो है. वे अपने खयालों में थीं कि उन की भाभी उन के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘शारदा, विराज और कंचन कितना बढि़या डांस कर रहे हैं और तेरी बहू सच में बहुत सुंदर है.’’
‘‘हां भाभी यह तो उस की जिंदगी की हकीकत के गाने हैं. मेरी बहू अपनी खूबसूरती के बल पर घर में कुछ अलग तरीके से बेटे को नचाती है, यहां दूसरे तरीके से,’’ शारदा मीठे जूस को पीते हुए बोलीं, जो उसे सच में बड़ा कड़वा लग रहा था.
शादी के लड्डू की परफैक्ट विधि बहुत सिंपल है- एकदूसरे की खामियों के साथ एकदूसरे को खुशीखुशी स्वीकार करना बाकी सब तो मोहमाया है.