Hindi Folk Tales : लिपस्टिक – बौस की नजर में कौन रही सटीक

Hindi Folk Tales : मधुरिमा ने लाल ड्रैस के साथ लाल रंग की लिपस्टिक लगाई और जब वह आईने में देखने लगी तो उसे खुद अपने पर प्यार आ गया था.

मन ही मन खुद पर इतराते हुए वह सोच रही थी कि आज की डील तो फाइनल हो कर ही रहेगी. जब स्त्री हो कर उस का अपना मन खुद को देख कर काबू नहीं हो पा रहा है तो पुरुषों का क्या कुसूर?

औफिस पहुंची. मिस्टर देवेश उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. उसे देखते ही उन्होंने शरारत से सीटी बजाई. ये ही तो हैं उन की कंपनी का तुरुप का इक्का. लड़की में गजब का टैलेंट हैं. वह जहां कहीं भी उन के साथ जाती हैं, डील करवा कर ही आती हैं. 23 वर्ष की उम्र के हिसाब से मधुरिमा काफ़ी तेज़ थी.

मिस्टर देवेश जैसे ही मधुरिमा के साथ बाहर निकले तो करिश्मा से टकरा गए. करिश्मा को देखते ही उन का मूड खराब हो गया था. करिश्मा अगर चाहे तो इस कंपनी के वारेन्यारे कर सकती है, पर उसे तो बस काम से मतलब है. प्रैजेंटेशन गजब का बनाती है और हर क्लाइंट को अपनी बात अच्छे से समझाने में सक्षम है. पर फिर भी वह  आज तक उस लक्ष्मणरेखा को पार नहीं कर पाई है, जिसे बड़ी आसानी से पार कर के मधुरिमा ने अपने लिए सोने की लंका खड़ी कर ली थी.

मधुरिमा ज़्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. पर मर्दों को पटाने में दक्ष थी. यह ही उस की काबिलीयत थी जिस के सहारे वह धीरेधीरे एक रिसैप्शनिस्ट के पद से बौस की ख़ास बन गई थी. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि मधुरिमा, मिस्टर देवेश की उपपत्नी है. पर इन सब बातों से मधुरिमा की तेज रफ़्तार पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.

करिश्मा जब मधुरिमा से कहती, ‘मधु, हर कंपनी में ऐसा वर्क कल्चर नहीं होता है. कुछ स्किल्स बढ़ाओ, कब तक इस कंपनी में रेंगती रहोगी?’

मधुरिमा तब मुसकराते हुए बोलती, ‘जिस के पास जो है करिश्मा, वह उसे ही तो प्रयोग करेगा. तुम जैसी साधरण शक्लसूरत वाली लड़कियां मुझ से अधिक पढ़ालिखा होने पर भी, मुझ से कम कमा रही हैं. प्रैजेंटेशन तुम बनाती हो, पर प्रोजैक्ट मैं ही फाइनल करवा सकती हूं. मेरी बात मानो, इस मुर्दनी से चेहरे पर लिपस्टिक के एकदो कोट अवश्य लगा लिया करो, सामने वाले को अच्छा लगेगा.’

करिश्मा को मालूम था कि मधुरिमा कुछ गलत नहीं कह रही थी. पर वह उन लड़कियों में से नहीं थी जो काबिलीयत के बजाय लिपस्टिक के बलबूते पर तरक़्क़ी करती हैं.

अगले दिन औफिस में मिस्टर देवेश ने पार्टी का आयोजन किया था. पार्टी के मौके पर मिस्टर देवेश ने बोला, ‘हमारी इवैंट कंपनी के लिए आज बहुत बड़ा दिन है. मिस मधुरिमा की मेहनत के कारण हमें इस वर्ष का सब से बड़ा कौन्ट्रैक्ट मिला है.

दफ़्तर के सभी लोगों के चेहरों   पर व्यंग्यात्मक मुसकान आ गई थी. मधुरिमा पार्टी की स्टार थी.

करिश्मा का मन खिन्न हो उठा था. दिनरात मेहनत कर के उस ने प्रैजेंटेशन बनाई थी. अगर प्रैजेंटेशन ही अच्छी न बनती तो उन लोगों को वहां एंट्री ही न मिल पाती. करिश्मा यही  सब सोच रही थी कि विवेक हाथों में जूस का गिलास ले कर आ गया और बोला, ‘करिश्मा, क्या सोच रही हो?’

‘इस रंगबिरंगी दुनिया का यह उसूल है कि  जो दिखता है वह ही बिकता है,’ करिश्मा बोली, ‘जानते तो हो , मैं चाह कर भी उस राह पर नहीं चल सकती.’

विवेक को करिश्मा से लगाव सा था. इस कंपनी में वह सब से अलग थी. विवेक करिश्मा को उत्साहित करते हुए बोला, ‘करिश्मा, तुम मेहनत करती रहो, मुझे विश्वास है कि तुम जरूर कोई करिश्मा कर के रहोगी.’

ग्रे और पर्पल सूट में करिश्मा बहुत ही सौम्य लग रही थी. वहीँ, मधुरिमा लाल फ्रौक में एकदम आग लग रही थी.

आज करिश्मा जैसे ही दफ़्तर में घुसी, तो देखा एक नया  चेहरा मिस्टर देवेश के केबिन में था. विवेक करिश्मा को देख कर हंसते हुए बोला, ‘अब देखो, मधुरिमा की  नई प्रतिद्वंद्वी आ गई है.’

करिश्मा गुस्से से  बोली, ‘क्या पता काम में बढ़िया हो, तुम लड़कियों के बारे में बहुत जजमैंटल हो, विकास. हर छोटे कपड़े पहनने वाली लड़की नाक़ाबिल नहीं होती.’

मिस्टर देवेश की छोटी सी इवैंट कंपनी थी- ‘पार्टी मास्टर.’ मिस्टर देवेश कानपुर  से दिल्ली नौकरी करने आए थे. लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया था कि उन की नौकरी के वेतन में उन के बड़ेबड़े सपने पूरे नहीं हो सकते. इसलिए कुछ सालों बाद उन्होंने यह इवैंट मैनेजमैंट कंपनी खोल ली थी. शुरू के एकदो वर्ष के भीतर ही उन्हें समझ आ गया था कि मेहनत के साथसाथ इस क्षेत्र में सफल होने के लिए और भी हुनर चाहिए. धीरेधीरे उन की कंपनी में विवेक, करिश्मा, मधुरिमा, सोहैल और जस्सी जुड़ गए थे. सोहैल और जस्सी कंपनी के लिए प्रोजैक्ट लाते थे. उन प्रोजैक्ट के लिए प्लानिंग का काम करिश्मा और विवेक करते थे. लेकिन बहुत बार फाइनल होतेहोते डील अटक जाती थी. हाई सोसाइटी में बहुत सारे क्लाइंट्स को कुछ फ़ेवर चाहिए होते थे.

मिस्टर देवेश ने इशारों से करिश्मा को ये सब समझाना चाहा था लेकिन वह टस से मस नहीं हुई थी. तभी सोहैल के तहत मधुरिमा का इस कंपनी में पदार्पण हुआ था. मधुरिमा कपड़ों के साथसाथ विचारों में भी काफी खुली हुई थी. उस ने  ‘पार्टी मास्टर’  को ग्लैमरस बना दिया था. कंपनी बहुत तेजी के साथ तरक्क़ी की राह पर अग्रसर थी. मधुरिमा कहने को किसी भी कार्य में

दक्ष नहीं थी पर वह देवेश को खुश करने के साथसाथ सारे क्लाइंट्स का भी ख़याल रखती थी. मधुरिमा ‘पार्टी मास्टर’ की स्टारपरफौर्मर थी.

परंतु आज यह शेख और हसीन चेहरा देख कर हर कोई एकदूसरे की तरफ देख रहा था. तभी मिस्टर देवेश केबिन से बाहर आए और बोले, ‘फ्रेंड्स जैसेजैसे हमारी कंपनी तरक्की कर रही है, हमारा परिवार भी बढ़ रहा है. ये हैं मिस नताशा,जो मिस भोपाल रह चुकी हैं. मैं आशा करता हूं, अब हमारी कंपनी का सक्सैस ग्राफ़ और तेज़ी के साथ ऊपर जाएगा.’

विवेक, जस्सी के कान में फुसफुसा रहा था, ‘हमारा काम तो और बढ़ गया है. ये लड़कियां उलटेसीधे तरीके से प्रोजैक्ट हथिया लेंगी और करिश्मा व मुझे रातदिन मेहनत करनी पड़ेगी.’

आज मधुरिमा के बजाय मिस्टर देवेश का पूरा ध्यान नताशा की तरफ था. मधुरिमा के चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उस के चेहरे पर राख पोत दी हो.

अब औफिस का नज़ारा बदल गया था. मिस्टर देवेश को नताशा से बहुत उम्मीदें थीं. अब मधुरिमा लिपस्टिक के कितने भी शेड्स लगा ले लेकिन मिस्टर देवेश को कोई भी शेड आकर्षित नहीं कर पाता था. क्लाइंट्स को भी अब नई लिपस्टिक गर्ल में अधिक इंटरैस्ट था. मधुरिमा के इतिहास और भूगोल से वे सब भलीभांति परिचित थे. अब उन्हें कुछ नया चाहिए था.

एक दिन मिस्टर देवेश, नताशा के साथ किसी मीटिंग को अटेंड करने गए हुए थे. करिश्मा विकास के साथ प्रैजेंटेशन बनाने में व्यस्त थी. मधुरिमा जस्सी और सोहैल के साथ ऐसे ही गपें लगा रही थी. तभी एक औरत ने दनदनाते हुए औफिस में प्रवेश किया. गौर वर्ण, छोटीछोटी बिल्ली जैसी सतर्क आंखें, उठी हुई नाक और विलासी मोटे अधर. आते ही  तेजी से हुंकार

भरते हुए बोली, ‘कौन हैं मधुरिमा?’

मधुरिमा उठते हुए बोली, ‘जी, मैं.’

वह औरत लगभग चिग्घाड़ते हुए बोली, ‘तुम जैसी लड़कियां मेरे पति के लिए बस एक टाइमपास हो. तुझे क्या लगा, अपने पेट में किसी का भी पाप ले कर घूमेगी और उस का इलजाम मेरे पति पर लगाएगी? उस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह ऐसा करे, तू बस उस के लिए ऐयाशी के समान से ज्यादा कुछ नहीं है. जिस का बच्चा है, या तो उस के साथ शादी कर ले या मार दे. पर यहां से तेरा कोई फायदा नहीं होगा.’

जैसे आंधी की तरह वह औरत आई थी, वैसे ही तूफान की तरह चली गई. मधुरिमा जहां थी वहीं की वहीं की वही खड़ी रही और उस का शरीर पत्ते की तरह कांप रहा था. करिश्मा ने दूर से देखा, मधुरिमा का चेहरा हल्दी की तरह पीला पड़ गया था. अगर सोहैल सहारा न देता तो मधुरिमा जरूर लड़खड़ा कर गिर पड़ती. विकास और करिश्मा मधुरिमा को डाक्टर के पास ले कर गए. डाक्टर ने विकास से पूछा, ‘आप इन के हस्बैंड हैं क्या? देखिए, इन का तीसरा माह शुरू होने वाला है, ऐसी हालत में इतना तनाव इन के लिए सही नहीं है.’

उस रात विकास की सलाह पर  करिश्मा, मधुरिमा के पास उस के घर में ही रुक गई थी. उस के घर की हर दरोदीवार पर मिस्टर देवेश की मौजूदगी के चिन्ह इंगित थे. रात में खाना खाते हुए जब करिश्मा ने मधुरिमा से पूछा, ‘मधु, क्या करना है, क्या अकेले पाल पाओगी इस बच्चे

को?’

मधु आंखों में आंसू भरते हुए बोली, ‘देवेश इस बच्चे को अपना नाम देने के लिए तैयार नहीं है. उस के हिसाब से यह मेरी मौजमस्ती का परिणाम है. करिश्मा, मैं ने सब देवेश की तरक़्क़ी के लिए किया था और मैं दिल से उसे प्यार करती हूं, पर देवेश ने नताशा के आते ही मुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया.’

करिश्मा ने कहा, ‘सब से पहले बच्चे के बारे में सोचो और फिर कहीं और नौकरी कर लो.’

मधुरिमा बोली, ‘पिछले 3 माह से कोशिश कर रही हूं, पर मुझ जैसी सिंपल ग्रेजुएट के लिए मार्केट में कोई नौकरी नहीं है. कंप्यूटर तक तो ठीक से औपरेट नहीं कर पाती हूं.’

करिश्मा को मधु के लिए बहुत दुख हो रहा था. पर यह राह मधु ने खुद ही अपने लिए चुनी थी. फिर  अचानक से 7 दिनों के लिए मधुरिमा दफ़्तर से गायब हो गई थी. जब 7 दिनों बाद मधुरिमा ने दफ़्तर में प्रवेश किया तो वह बेहद थकी हुई लग रही थी. मधुरिमा ने ही करिश्मा को बताया कि मिस्टर देवेश ने इस शर्त पर उसे अपनी ज़िंदगी में जगह दी है कि वह गर्भपात करा ले और अपना मुंह बंद कर के जो काम कर सकती है, करे. मिस्टर देवेश की ज़िंदगी के साथसाथ अब मधुरिमा दफ़्तर के लिए भी एक फ़ालतू सामान बन गई थी.

आज मिस्टर देवेश की बहुत बड़ी डील होनी थी. नताशा खूब अच्छे से तैयार हो कर आई थी. पर इस बार क्लाइंट को प्रैजेंटेशन समझाते हुए नताशा उन के प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाई. हर बार की तरह नताशा इस बार भी अपनी अदाओं के जलवे बिखेरने लगी. पर उस की दाल नहीं गल पा रही थी. जब डील हाथ से निकलने वाली ही थी, तभी ऐन वक्त पर करिश्मा ने आ कर बात संभाल ली. कंपनी के निदेशक करिश्मा से इतने अधिक प्रभावित हुए थे कि उन्होंने करिश्मा को अपनी कंपनी में क्रिएटिव हेड टीम की पोस्ट औफर कर दी और साथ ही साथ, रहने के लिए फ्लैट और यहां से दुगना वेतन.

विकास धीरे से करिश्मा के कान में फुसफुसा कर बोला, ‘मैं कहता था न, कि करिश्मा, तुम जरूर करिश्मा करोगी.’

करिश्मा मन ही मन सोच रही थी कि लिपस्टिक से मिलने वाली सफलता लिपस्टिक की तरह ही जल्दी फेड हो जाती हैं लेकिन मेहनत से प्राप्त किया हुआ हुनर कभी फेड नहीं हो सकता. काश, मधुरिमा इस बात को अब भी समझ कर कुछ कर ले. तभी करिश्मा ने देखा, नताशा एक कोने में खड़े हुए अपनी लिपस्टिक को टचअप कर रही थी.

Hindi Moral Tales : समय बड़ा बलवान – एक क्षण में राजा को रंक बनते लोग

Hindi Moral Tales : आधी रात को गांधीनगर जिला आरोग्य अधिकारी का फोन आया, ‘‘डा. माहेश्वरी, तुम्हें कल सुबह जितना जल्दी हो सके स्वास्थ्य टीम के साथ सूरत के लिए निकलना है. वहां बाढ़ से हालात बद से बदतर हो रहे हैं,’’ कहते हुए उन्होंने फोन काट दिया.

प्रतिनियुक्ति की बात सुन कर दूसरे सरकारी अधिकारियों की तरह मेरा दिमाग भी खराब हो गया. अपना घर व अस्पताल छोड़ कर अनजान शहर में जा कर चिकित्सा का कार्य करना. कई सरकारी चिकित्सकों ने प्रतिनियुक्ति की बारंबारता से हैरान हो कर सरकारी नौकरी ही छोड़ दी. पर नौकरी तो नौकरी ही होती है, भले ही चिकित्सक की सम्मानित नौकरी ही क्यों न हो.

अचानक सूरत जाने की बात सुन कर पत्नी उदास हो गई. बच्ची बहुत ही छोटी थी. शुक्र था कि मां मेरे यहां ही थीं. आधी रात को ही बैग तैयार कर दिया.

‘‘खाने का सूखा नाश्ता ले लो. पता नहीं, इस हालत में सूरत में कुछ मिलेगा भी कि नहीं?’’ पत्नी ने सलाह दी. हालांकि, जौहरियों का शहर अपने खानपान के लिए मशहूर था.

‘‘इतना बड़ा शहर है, कुछ न कुछ तो खाने को मिलेगा ही.’’

मेरे मना करने के बाद भी उस ने नमकीन व मूंगफली के पैकेट मेरे बैग में डाल दिए.

हम सरकारी एंबुलैंस वाहन से पूरी टीम के साथ सूरत के लिए निकल गए. हमारे साथ दूसरी गाडि़यां भी थीं जिन में आसपास के सरकारी चिकित्सकों की टीमें थीं. गांधीनगर में भी बरसात चालू थी और बादलों से पूरा आकाश भरा पड़ा था.

जैसे ही हम बड़ौदा से आगे निकले, टै्रफिक बढ़ता ही जा रहा था. गाडि़यां धीरेधीरे चल पा रही थीं. बड़ौदा से सूरत का 3 घंटे का रास्ता 6 घंटे से भी ज्यादा हो गया था. ऊपर से सड़क पर बड़ेबड़े गड्ढे.

करीब 5 बजे हम सूरत पहुंचे. सूरत शहर के अंदर पहुंचते ही भयावह स्थिति का अंदाजा लगा. शहर के किनारे पर ही एक फुट तक पानी था जो बढ़ ही रहा था. हमें ऐसे लग रहा था कि हम जैसे आस्ट्रिया की राजधानी वियना में प्रवेश कर रहे हैं, जहां पूरा शहर पानी के अंदर बसा हुआ है, सड़कें पानी की बनी हुई हैं और दोनों ओर खूबसूरत इमारतें हैं. हमें कंट्रोल रूम जा कर रिपोर्टिंग करनी थी जो शहर के बीचोंबीच था. यह जानकारी हमारा ड्राइवर पान की दुकान से लाया था.

सूरत शहर भव्य व हजारों साल पुराना है. हजारों वर्षों से यहां से गुजराती व्यापारी जलमार्ग से पूरी दुनिया में व्यापार करते थे. यहीं पर पुर्तगालियों ने अपनी पहली कोठी स्थापित की थी जिस की अनुमति मुगल सम्राट जहांगीर ने दी थी.

यह शहर उस समय पूरी दुनिया के सामने आया जब 90 के दशक में प्लेग ने पूरे शहर को जकड़ लिया था. पूरी दुनिया भारत आने से डर गई थी, उसी शहर से जहां पूरी दुनिया ने भारत में आधित्पय जमाने की कोशिश की थी.

यह शहर सच में बहुत ही खूबसूरत व भव्य था. बड़ी इमारतें, चौड़े रास्ते व खूबसूरत चौराहे. यह शहर अभी भी टैक्सटाइल व हीरेजवाहरात के लिए पूरी दुनिया में महत्त्वपूर्ण शहर है. कच्चे हीरे यहां लाए जाते हैं और तराश कर पूरी दुनिया में भेजे जाते हैं.

अब हम 2-3 फुट पानी में रेंग रहे थे. हम कंट्रोल रूम रात के 7 बजे पहुंचे. कंट्रोल रूम में भी 2-3 फुट पानी था. औफिस प्रथम मंजिल पर था. हम ने वहां प्रतिनियुक्ति पत्र दिया और अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. उन्होंने हमारा बेमन से स्वागत किया, शायद वे भी प्रतिनियुक्ति पर आए हुए थे.

‘‘तुम्हारा कार्यक्षेत्र उधना स्वाथ्य केंद्र में है और वहीं से वे तुम्हें जहां का आदेश दें वहां जाना है. और तुम्हारा कैंप स्थल पब्लिक स्कूल में है, वहीं तुम्हें रुकना है,’’ उन्होंने एक लिखित आदेश दिया जिस में पूरा पता था.

हम पब्लिक स्कूल की ओर चले. चाय की जोरदार तलब हो रही थी, हालांकि हम ने रास्ते में 3-4 बार चाय पी थी.

लंबा व उबाऊ रास्ता होने के कारण थकान व चिड़चिड़ाहट हो रही थी. दुकानें बंद थीं और चाय के ठेले नदारद थे. 3 किलोमीटर की दूरी एक घंटे में तय करने के बाद हमारा अस्थायी आशियाना एक पब्लिक स्कूल दिखा. यह पब्लिक स्कूल भी महानगर के प्राइवेट स्कूल जैसा दिखा. कैंपस छोटा, पर ऊंचा था. ड्राइवर ने गली में ही गाड़ी पार्क की और हम ने सामान उतार कर स्कूल में प्रवेश किया.

टेबल पर एक वृद्ध सज्जन बैठे थे. वे स्कूल के ट्रस्टी थे. पास में ही खाना बन रहा था, जो शायद हमारे जैसे प्रतिनियुक्ति वालों के लिए था. हमें ऊपर दूसरी मंजिल पर रुकवाया गया था जहां फर्श पर ही बिस्तर लगे हुए थे. मैं ने दूसरी मंजिल पर जाने से पहले उन सज्जन से पूछा, ‘‘क्या चाय मिल सकती है?’’ हालांकि सब की इच्छा थी पर कोईर् भी संकोच के कारण कह नहीं रहा था.

‘‘हां, पर उस ने अभी ही गैस बंद की है क्योंकि अब शाम का खाना बन रहा है,’’ उन्होंने सीधे न कह कर चाय न बनाने का कारण बताया.

‘‘ओह,’’ मेरे पीछे से डा. गज्जर की आवाज आई.

‘‘धन्यवाद, कोई बात नहीं,’’ मैं ने कहा और सामान ले कर दूसरी मंजिल पर पहुंच गया.

हम ने ऊपर जा कर हाथमुंह धोए, नाइट सूट पहन कर थोड़ी देर बाद नीचे आ गए क्योंकि खाने का समय हो गया था. हमारे साथ आए स्वास्थ्य कार्यकर्ता डोडियार भाई ने कहा, ‘‘साहब, जल्दी चलते हैं, नहीं तो वह भी खत्म हो जाएगा.’’ उस की बात सुन कर सब हंसते हुए नीचे आ गए.

दूसरे जिले से आईर् टीमों ने खाना शुरू कर दिया था. काफी लंबी लाइन लगी हुई थी. हम भी अनुशासित रूप से प्लेट ले कर लाइन में लग गए. ऐसा लग रहा था कि हम भी बाढ़ प्रभावित हैं. हमारे साथ आए डा. वैष्णव ने कहा, ‘‘मैं यहां लंगर का खाना नहीं खाऊंगा, मैं होटल में खाने जा रहा हूं.’’

यह सुन कर डा. पटेल हंसने लगे, ‘‘तो फिर तुम्हें उपवास रखना पड़ेगा. शहर में आज सारे होटल बंद हैं क्योंकि नदी का पानी काफी बढ़ चुका है.’’

मन मार कर उन्हें भी प्लेट ले कर लाइन में लगना पड़ा. खाना अच्छा व स्वादिष्ठ भी था. पर जब एक ही चपाती डाली तो मैं ने एक और चपाती के लिए कहा, तो उस ने ऐसा जवाब दिया कि मैं ने तो क्या, लाइन में खड़े किसी ने भी मांगने की गुस्ताखी नहीं की. उस का जवाब सुन कर मूड बहुत ही खराब हो गया था.

रात के 9 बज चुके थे. सब खाना खा कर बातें करने के मूड में थे. पर थकावट इतनी थी कि 10 बजतेबजते सब सो चुके थे.

दूसरे दिन सुबह 6 बजे उठ कर हम नहाधो कर नीचे आए. हालांकि उस में समय लगा क्योंकि लोग ज्यादा थे और बाथरूम कम थे. नीचे देखा तो रात को और भी टीमें आई थीं. मेरी पुरानी जगह पाटन शहर के पहचान वाले मिले. हम दोनों को ही काफी समय बाद मिलने की खुशी हुई.

चाय बन रही थी. चाय पी कर हम उधना स्वास्थ्य केंद्र गए जहां से हमें किधर जाना है, इस बात के आदेश मिलने थे.

वहां हमें निर्देश मिले कि हमें फलां जगह जाना है और एंबुलैंस में ही सब की जांच कर के दवा देनी है और कोई गंभीर हो तो उसे यहां लाना है. हमें आज सूरत की सब से मशहूर जगह पार्ले पौइंट मिली. वह वीआईपी जगह थी. हमें यहां ज्यादा मरीज मिलने की आशा नहीं थी. बाहर आ कर हम ने स्थानीय व्यक्ति से जगह पूछी. वहीं पर हमें आज का ही अखबार भी मिला, यह हमारे लिए खुशी की बात थी. मैं ने 2-3 तरह के अखबार ले लिए जिस से स्थानीय जानकारी ज्यादा मिल सके और यदि काम नहीं हो तो समय भी कट जाए. अखबार पर थोड़ी नजर रास्ते में ही डाल ली. काफी भयावह दृश्य थे. कुछ हादसों की तसवीरें भी थीं और हमेशा की तरह सरकारी तंत्र पर दोषारोपण भी थे.

ेहमारा पहला पड़ाव नजदीक ही था, पर पानी भरा होने व ड्राइवर को रास्ता पता न होने के कारण थोड़ा समय लगा. यह स्थल पानी में डूबा हुआ था और पानी तेज धार के साथ बह भी रहा था. मेरे कहने पर ड्राइवर ने गाड़ी फुटपाथ पर चढ़ा दी जिस से हम मरीजों को आसानी से देख सकें, हालांकि, हमें सूरत के सब से पौश एरिया में मरीजों के आने की उम्मीद कम थी.

पहले वहां नजदीक में कोई नहीं था, पर एंबुलैंस व डाक्टर देख कर धीरेधीरे लोग आने लगे. एंबुलैंस का पीछे का दरवाजा खुला हुआ था. मैं जांच कर रहा था और मेरा स्टाफ दवाई दे रहा था. इतने दिनों की बरसात के चलते ठंड के कारण लोग बीमार पड़ गए थे. उन्हें बुखार व सर्दी थी. दूसरे, काफी मरीज ब्लडप्रैशर व मधुमेह के थे. इतने दिनों की बाढ़ के कारण उन की दवाइयां खत्म हो गई थीं. मैं उन का रक्तचाप माप कर दवाइयां दे रहा था, तो कुछ लोग एडवांस में ही बुखार व सर्दी की दवा मांग रहे थे कि कहीं बीमार पड़ गए तो काम आएगी. हम ने हंसते हुए थोड़ी दवा उन्हें भी दे दी. मैं ने गौर से देखा कि सरकारी दवा लेने वाले लगभग सभी वर्गों के थे.

यहां 2-3 घंटे मरीजों को देख कर थोड़ी दूर दूसरी जगह गए. यह कमर्शियल जगह थी, ऊंचीऊंची बिल्ंिडगें थीं जिन के नीचे शौपिंग कौम्पलैक्स थे. और इन के बेसमैंट में पानी भरा हुआ था. पानी पहली मंजिल की दूसरी दुकान में भी घुस गया था. मैं सोच रहा था कि लाखों रुपयों का फर्नीचर और न जाने कितना सामान पानी के कारण खराब हो गया और इन व्यापारियों की जीवनभर की कमाई इस में लगी हुई होगी.

यहां पर हमारी एंबुलैंस तो थी ही साथ में, सड़क पर छोटीमोटी नावें भी चल रही थीं जहां कार व दोपहिए वाहन चलते थे. यह थोड़ा रोमांचक पर अजीब लग रहा था. यह तो ऐसा हुआ कि कभी नाव सड़क पर, तो कभी कार सड़क पर.

नाव में से सामाजिक कार्यकर्ता राहत सामग्री, दूध के पाउच व फूड पैकेट बांट रहे थे. कई नावों के ऊपर उन का एक कार्यकर्ता अपने संगठन का  झंडा लगाए हुए खड़ा था. हर श्रेणी के लोग हाथ आगे कर के पैकेट ले रहे थे.

पार्ले के आगे एक भाईसाहब जौगिंग के लिए निकल रहे थे. जहां खुली जगह थी वहां जौगिंग कर रहे थे. मैं ने उन की ओर हंसते हुए हाथ हिलाया तो वे रुक गए, ‘‘आज भी जौगिंग?’’

‘‘हां, 30 वर्षों से कर रहा हूं चाहे कैसी भी परिस्थतियां हों, आदत हो गई है. आज भी मन नहीं माना, तो घर से निकल पड़ा,’’ उन्होंने भी मुसकराते हुए कहा. उन से सूरत शहर व बाढ़ के बारे में बातें हुईं. वे अपनी सूरत शहर की नगरपालिका की बातबात पर बड़ाई कर रहे थे.

तो मैं ने कहा, ‘‘आप की नगरपालिका इतनी अच्छी है तो बाढ़ ही क्यों आई? क्या पानी निकासी के मार्ग अच्छे नहीं हैं?’’

‘‘डा. साहब, यह तो पूर्णिमा व महाराष्ट्र में भंयकर भारी बरसात के मेल के कारण हुआ.’’ उन्हें मेरा व्यंग्यबाण अच्छा नहीं लगा.

मेले व तीजत्योहार तो सम झा जो पूर्णिमा के कारण होते हैं. पर बाढ़ का कारण वह भी पूर्णिमा? मु झे सोचते हुए देखते उन्होंने कहा, ‘‘हां, यह शहर तापी नदी व समुद्र के बीच बसा हुआ है. तापी नदी यहीं शहर के बीचोंबीच बह कर समुद्र में मिलती है. तापी नदी पर ही सूरत से पहले उकाई डैम बना हुआ है. अभी पूर्णिमा के समय समुद्र में ज्वारभाटा आता है जिस से नदी का पानी समुद्र में जाना तो दूर, उलटा समुद्र का पानी बाहर किनारे पर आता है. इस कारण नदी का सारा पानी उबल कर सूरत शहर में ही फैल गया. ऊपर से शहर में बरसात हो रही है. पानी को कोई रास्ता ही नहीं मिल रहा है बाहर जाने का. आज ज्वार कम हुआ है, इसलिए आशा है कि जल्दी ही पानी समुद्र में चला जाएगा और शहर में पानी का लैवल कम हो जाएगा,’’ उन्होंने विस्तार से बाढ़ का कारण बताया जो मेरे जैसे मरु रेगिस्तानी बाश्ंिदे के लिए आश्चर्य का विषय था.

उन्होंने अपने शहर के लोगों की समृद्धि के किस्से सुनाए. कैसे यहां का सब्जी वाला सब्जी के भाव पूछने पर ही भड़क जाता है और व्यंग्य से बोलता है, ‘रहने दो न साहब, यह सब्जी तो यहां के हीरे तराशने वाले ही खा सकते हैं.’ हम उन की बातें गौर व आश्चर्य से सुन रहे थे. यह व्यावसायिक एरिया होने के कारण यहां मरीज ज्यादा नहीं थे. पर हमें आज का पूरा समय यहीं गुजारना था.

दोपहर के 2 बज रहे थे. अब खाने का सवाल था. मैं ने फोन कर के दूसरी टीम से पूछा, ‘‘खाने की कोई व्यवस्था पता चली?’’ तो पता चला कि मैडिकल कालेज, जो यहां से लगभग 5 किलोमीटर दूर है, में खाने की व्यवस्था है. मैं ने स्टाफ से कहा, ‘‘ठीक है, शाम को ही खा लेंगे.’’

‘‘सर, अभी 2-3 घंटे के बाद जब भूख लगेगी तो क्या करेंगे? चाय तक नहीं मिल रही है, खाना कहां मिलेगा?’’ उस की बात सही थी, आज सुबह नाश्ता भी नहीं किया था.

हम मैडिकल कालेज पहुंचे जहां दुनियाभर की एंबुलैंस व सरकारी गाडि़यां खड़ी थीं. नंबर प्लेट से लग रहा था कि पूरे गुजरात की गाडि़यां यहां आई हुई हैं, जीजे 01 से ले कर जीजे 30 तक.

हम भी खाने की लाइन में खड़े हो गए. आज मिनरल वाटर की बोतलें भी थीं. हम ने खाने के साथ कुछ ऐक्स्ट्रा भी लीं ताकि पूरे दिन काम आएं. यहां दूसरी बातें भी पता चलीं कि डीजल के कूपन भी मिल रहे थे. हमारा ड्राइवर कूपन ले कर आया.

यहां आए हुए 3-4 दिन हो गए थे. अब पानी उतरना शुरू हो गया था. उतरता हुआ पानी नयनरम्य लग रहा था. पानी बहुत ही तेजी से उतर रहा था क्योंकि बांध से पानी छोड़ा जाना बंद हो चुका था और ज्वारभाटे का असर खत्म हो चुका था. कुछ दिनों बाद पानी अपना निशान छोड़ चुका था.

अब शहर में चहलपहल बढ़ रही थी. नावें एक तरफ हो चुकी थीं. उस की जगह राहत गाडि़यों ने ली जो पूरे शहर में घूम रही थीं. जहां पानी उतर चुका थो वहां कीचड़ ही कीचड़ था. पर अभी भी बेसमैंट में पानी भरा हुआ था, जिसे उस के मालिक पंप से निकालने की कोशिश कर रहे थे. इतना पानी था कि 24 घंटे पंप चलने के बाद भी पानी निकल नहीं पाया. दुकान का फर्नीचर, जो प्लाइवुड का था, पानी में रह कर किताब, मतलब, परतदार बन चुका था. सामान का तो पूछो ही मत. सबकुछ जैसे शून्य हो गया. पार्किंग में खड़ी गाडि़यां खराब हो चुकी थीं और सर्विस सैंटर के आगे लंबी लाइनें लगी थीं. सर्विस सैंटर ने भी पूरे गुजरातभर से अपने कारीगर यहां बुलाए. चारों तरफ तबाही के मंजर थे.

सूरत आए हुए 5वां दिन था. आज हमें वराछा विस्तार में भेजा गया था. यह सूरत का सब से पौश विस्तार गिना जाता था. यह रईसों का इलाका माना जाता है. यहां पूरे सूरत शहर की तरह बड़ीबड़ी इमारतों की जगह बड़ेबड़े बंगले थे. ऐसे ही एक बड़े बंगले के सामने खाली जगह, जहां पेवर ब्लौक का मैदान था, हम ने अपनी एंबुलैंस पार्क की.

मैं वहीं मैडिसिन ले कर चाइना मोजैक की बैंच पर बैठ गया. यहां मरीजों के आने की संभावना बहुत ही कम थी. कुछ ही देर बाद एक सज्जन नए मौडल की मर्सिडीज गाड़ी से उतरे. उन्होंने इस मौसम में भी सफेद  झक नए कपड़े पहने हुए थे. पायजामे के किनारे कीचड़ लगा हुआ था. उन की दोनों हाथों की दस की दस उंगलियों में महंगे हीरेरत्न, जो सोने की भारीभरकम अंगूठियों में मढे़ हुए थे, दिख रहे थे. पीछे से उन का वरदीधारी ड्राइवर बहुत सारा सामान ले कर उतरा.

पहले तो वे बंगले की ओर, जिस के ऊपर गोल्डन रंग की धातु से स्वयं लिखा हुआ था, जा रहे थे, लेकिन हमें देख कर वे रुके और हमारी ओर आए.

‘‘सरकार की ओर से मैडिकल इमरजैंसी सेवा. आप डाक्टर हैं?’’ उन्होंने मेरे गले में स्टेथोस्कोप देख कर, मेरी ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘जी हां,’’ मैं ने भी अपना हाथ उन की ओर बढ़ाते हुए अपना परिचय दिया.

‘‘कहां से आए हैं डाक्टर साहब,’’ उन्होंने कुछ औपचारिक प्रश्न पूछे.

‘‘गांधीनगर से.’’

‘‘ओह, हैरान हो गए होंगे यहां आ कर?’’

‘‘इस शहर वालों से कम,’’ मैं ने अपने 5 दिन के अनुभव पर कहा.

यह सुन कर वे हंसने लगे, ‘‘यह आप का बड़प्पन है. आइए मेरे घर, सामने है,’’ उन्होंने अपने घर की ओर इशारा करते हुए कहा.

हम हिचक रहे थे.

‘‘आइए न प्लीज, हमारे यहां एक कप चाय पीजिए. आप तो हमारे शहर के मेहमान हैं,’’ उन्होंने आग्रहपूर्वक कहा.

स्टेथोस्कोप गाड़ी में रख कर स्टाफ के साथ मैं उन के बंगले में गया.

उन का ड्राइंगरूम प्रथम मंजिल पर था जो फाइवस्टार होटल जितना विशाल व भव्य था. छत पर बेल्जियम के  झूमर लटक रहे थे. उन के ड्राइंगरूम की एक भी चीज ऐसी नहीं थी जिसे मैं अपने वेतन से खरीद सकूं.

‘‘श्यामलाल, चाय व नाश्ता बनाना,’’ उन्होंने अपने नौकर को आदेश दिया. फिर सूरत शहर के बारे में वर्तमान हालात के बारे में हम से बातें कीं.

चाय व नाश्ता शानदार था. क्रौकरी शायद बेल्जियम के सब से अच्छे स्टोर की थी, एकदम क्रिस्टल क्लीयर और उस पर यूरोपियन संस्कृति की मीनाकारी थी. नाश्ता करते समय उन्होंने अपनी कंपनी के बारे में संक्षिप्त में बताया. उन की कंपनी अपने तराशे हुए डायमंड सिर्फ अमेरिका के मशहूर रिटेल स्टोर को ही सप्लाई करती है. यह पूरी फर्म उन्होंने अपने मजबूत इरादों व मेहनत से खड़ी की थी. उन के पिता का राजस्थान में अनाज का काम था.

‘‘आप बहुत ही सुशील व सह्यदयी व्यक्ति हैं जिन्हें अपने अरबों की दौलत पर और खुद की सफलता पर जरा सा भी घमंड नहीं है,’’ मैं ने शानदार मेहमाननवाजी के लिए धन्यवाद देते हुए कहा. यह सुन कर वे जोर से हंसने लगे, ‘‘डा. साहब, यदि आप मु झे बाढ़ से पहले मिलते, तो यह आप कभी नहीं कहते.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मेरे साथ मेरा स्टाफ भी उन की ओर हैरानी से देखने लगे.

‘‘सच बात है डाक्टर साहब. इस बाढ़ से पहले मु झे अपनी सफलता व मेहनत पर और मेरी मेहनत से कमाई अथाह दौलत पर बहुत ही घमंड था. मैं कभी भी किसी से सीधेमुंह बात तक नहीं करता था. मेरे पैसे के इस अहंकार से मेरे बचपन के दोस्त तक मुझ से दूर हो गए. मैं अपनी कंपनी में काम करने वालों को गुलाम सम झता था, जो मेरे द्वारा दिए गए वेतन के कारण जी रहे हैं.’’

‘‘फिर अचानक कुछ ही दिनों में आप पर यह जादुई बदलाव कैसे आया?’’ मेरे अंदर का कहानीकार जाग उठा.

‘‘जिस दिन हम ने सरकार की घोषणा सुनी कि तापी बांध से इतना पानी छोड़ेंगे कि पूरा सूरत शहर कई दिनों तक जल पल्लवित हो जाएगा और सभी नागरिक लंबे समय के लिए खानेपीने की व्यवस्था कर के रखें, मैं ने उस समय यही सोचा कि यह घोषणा मेरे जैसे लोगों के लिए नहीं है, जिन के घर में पूरे वर्ष में भी कभी कम नहीं पड़ता. पर पत्नी ने नौकर को भेज कर काफी सामान मंगा लिया था.

‘‘पर इस बार बाढ़ सूरतवासियों की अपेक्षा से भी ज्यादा लंबी चली. मेरे यहां बाकी वस्तुओं से सब चलता रहा, पर दूध तीसरे दिन ही खत्म हो गया. हम बड़ी उम्र के लोग चाय के बिना जैसेतैसे कुछ दिन निकाल दें, पर छोटेछोटे बच्चे बिना दूध के कैसे रह सकते हैं. पाउडर का दूध तो बच्चे सूंघ कर ही मना कर देते हैं. सारा बाजार बंद था.

‘‘ऐसे ही दोपहर को मेरा बच्चा दूध के बिना रो रहा था और उस समय सरकारी व स्वयंसेवी संस्थाएं हमारे घर के सामने नाव से दूध व दूसरे सामान का वितरण करने के लिए आई थीं. मैं ने भी मजबूरी में दूध के लिए हाथ लंबा कर के कहा, ‘दूध चाहिए,’ उन्होंने उस हाथ में दो थैली दूध की रखीं जिस हाथ में चारों उंगलियों में से एक तर्जनी में लक्जमबर्ग से खरीदा शुद्ध पुखराज था, मध्यमा में नीलम, जो गोलकुंडा की खानों से निकला हुआ था, अंगुष्ठा में लंदन का माणिक जगमगा रहा था. पहली अंगूठी में अफ्रीका से खरीदा हीरा था. 10 करोड़ रुपए से भी ज्यादा सोने की अंगूठियों में नग मढ़े हुए थे जो मैं ने दुनिया के बाजार से मुंहमांगी कीमत से खरीदे थे क्योंकि वे मु झे बहुत ही पसंद आए थे.

‘‘10 करोड़ के हाथ में 40 रुपए का दूध मु झे मेरी औकात बता रहा था कि, ‘सेठ, समय ही ताकतवर होता है,’ उन्होंने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘हमें हमारी उपलब्धि पर खुश होना चाहिए, न कि अभिमानी. इस बाढ़ ने मेरे गर्व व अभिमान को उसी तरह से तोड़ दिया जिस तरह बड़े से बड़ा चमकदार शीशा एक फेंके हुए छोटे से पत्थर के सामने टूट जाता है,’’ हमें मुख्य दरवाजे तक छोड़ते हुए उन्होंने कहा.

Latest Hindi Stories : बेहाल मध्यमवर्गीय परिवार

Latest Hindi Stories :  आपदा के समय रमेशचंद्र के मध्यमवर्गीय परिवार के भूखों मरने की नौबत आ गई. सरकार की तरफ से भी किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में उन्होंने देश में आपदा के हालात चल रहे थे, इस स्थिति में लोग न जाने कैसेकैसे अपने परिवार का पेट भर रहे थे. सरकार भी ऐसी स्थिति में जरूरतमंदों की यथासंभव सहायता कर रही थी. लेकिन एक परिवार ऐसा था जिसे खाने के लाले पड़े थे. सरकार से भी उसे कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसी स्थिति में रमेशचंद्र ने आपदा राहत कंट्रोल रूम में फोन किया, ‘‘नमस्कार जी, क्या आप आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहे हैं?’’

‘‘हां जी बोलिए, मैं आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.
तभी रमेशचंद्र ने लड़खड़ाती जुबान से कहा, ‘‘साहब, हमारे घर के पास झुग्गियों में कुछ बेहद लाचार किस्मत के मारे मजदूर रहते हैं, जोकि अपना राशन खत्म होने के कारण कई दिनों से भूख से तड़प रहे हैं. इन बेचारों की तुरंत मदद कर के उन की जान बचा लो साहब.’’औफिसर ने रमेशचंद्र को हड़काते हुए कहा, ‘‘उन लोगों ने मदद के लिए फोन क्यों नहीं किया और तुम क्यों कर रहे हो?’’‘‘साहब, गुस्सा मत होइए. वो बेचारे भूख से बहुत परेशान हैं. बात करने तक की स्थिति में नहीं हैं.’’ रमेशचंद्र ने प्यार से कहा.
‘‘ठीक है एड्रेस बताओ, कहां मदद पहुंचवानी है और कितने लोग हैं?’’

औफिसर ने पूछा. ‘‘जी साहब, लिखो. मकान नबंर 1008, सेक्टर 27, सिटी सेंटर. यहां 2 बच्चे व 4 लोग बड़े लोग हैं.’’ रमेशचंद्र ने बताया. यह सुनते ही उस अफसर ने गुस्से में भर कर रमेशचंद्र को डांटते हुए कहा, ‘‘तेरा दिमाग खराब है क्या, अभी तो झुग्गी बता रहा था और अब मकान का पता लिखवा रहा है, इस सेक्टर में तो सब पैसे वाले लोग रहते हैं.’’रमेशचंद्र ने बड़ी लाचारी से कहा, ‘‘जी साहब, दिमाग भी खराब है और आजकल किस्मत भी खराब चल रही है. आप ठीक कह रहे हैं कि इस सेक्टर में पैसे वाले लोग रहते हैं.

लेकिन साहब झुग्गी का कोई नंबर तो होता नहीं और अगर आप की टीम झुग्गी ढूंढने में इधरउधर भटकती रही और उन को मदद देर से पहुंची तो उन मुसीबत के मारों पर भूख के चलते पहाड़ टूट सकता है. साहब, उन की जान जा सकती है. इसलिए मैं ने अपने घर का पता लिखवा दिया है.’’‘‘तुम्हारी बातों से लगता है कि उन लोगों की बहुत गंभीर स्थिति है. चलो ठीक है, हम तुरंत मदद भिजवा रहे हैं, लेकिन तुम को जरा भी इंसान व इंसानियत की फिक्र नहीं है, एक टाइम रोटी बनवा कर तुम भी उन बेचारों को खिलवा सकते थे.

‘‘ऐसा कर के तुम्हारा कुछ बिगड़ तो नहीं जाता. खैर, मैं तुरंत मदद करने वाली जिला राहत टीम को आप के पास भेज रहा हूं. टीम आधे घंटे में तुम्हारे पास उन लोगों के लिए खाना व एक महीने का राशन ले कर पहुंच रही है.’’ ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद साहब. मैं हमेशा आप का बहुत एहसानमंद रहूंगा, वो लाचार भूखे लोग आप को हमेशा दिल से दुआ देंगे साहब.’’ रमेशचंद्र ने कहा.‘‘ठीक है, मैं ने इस काम के लिए टीम के वरिष्ठ अधिकारी विजय की ड्यूटी लगा दी. वो खाना व राशन ले कर निकलने वाले हैं. तुम उन का इंतजार करना.’’

‘‘जी साहब, मैं उन का इंतजार करूंगा, आप चिंता न करें.’’ लगभग आधे घंटे बाद रमेशचंद्र के मोबाइल पर काल आई. फोन करने वाले ने उन से कहा, ‘‘मैं जिला राहत टीम से विजय बोल रहा हूं, घर के बाहर आ जाओ. ‘‘जी साहब, अभी आया.’’ कहते हुए रमेशचंद्र घर से बाहर निकले तो देखा कि एक जीप में 2 लोग खाना व सामान ले कर इंतजार कर रहे थे, वह पास घबराते हुए उन के पहुंचे और बोले, ‘‘साहब नमस्कार, मैं रमेशचंद्र हूं.’’ ‘‘ठीक है, बताओ कौन सी झुग्गी है जिन लोगों की खाने और राशन से मदद करनी है?’’ विजय ने कहा.

‘‘आप क्यों परेशान होते हैं, आप खाना व सामान मुझे दे दो, मैं उन की झुग्गी पर खुद ही पहुंचा दूंगा.’’ रमेशचंद्र बोले. ‘‘नहीं, मैं खुद दे कर आऊंगा. साहब का आदेश है कि उन मुसीबत के मारे लोगों से मिल कर जरूर आना और उन की कोई और जरूरत हो तो उन से पूछ लेना. तुम मुझे उन से मिलवाओ, जिस से मैं समय से अपना काम कर के किसी दूसरे व्यक्ति की मदद करने जा सकूं.’’ यह सुन कर रमेशचंद्र पसीने से तरबतर हो घबराते हुए बोले, ‘‘जी ठीक है, जैसा आप का आदेश, चलिए.’’

वह विजय को अपने छोटे से अव्यवस्थित घर के अंदर ले जाने लगे. ‘‘तुम आपदा के समय में मेरा टाइम खराब नहीं करो, हमें और भी जरूरतमंदों की सहायता करनी है. इसलिए हमारे पास आप के यहां बैठने का समय नहीं है. हमें जल्दी से उन झुग्गियों पर ले चलो.’’ रमेशचंद्र उस से नजरें छिपा कर बोले, ‘‘साहब मैं आप का टाइम खराब नहीं कर रहा बल्कि आप को जरूरतमंद लोगों के पास ही ले जा रहा हूं.’’
‘‘मैं तुम्हारे खिलाफ कानूनी काररवाई करूंगा, तुम ने इस भयंकर आपदा काल में झूठ बोल कर हमारा टाइम खराब किया. तुम इंसानियत के दुश्मन हो, जिस घर में तुम चलने के लिए बोल रहे हो, उस घर के लोगों को मदद की आवश्यकता नहीं हो सकती. कोई भी इस बात का अंदाजा घर और गाड़ी देख कर लगा सकता है. मैं फोन कर के पुलिस को बुलाता हूं.’’

विजय गुस्से से लाल हो कर मोबाइल से कोई नंबर मिलाने लगा तो रमेशचंद्र घबरा गए. उन्होंने मानमनौव्वल कर के जैसेतैसे उसे रोका तो वह बेहद गुस्से में वापस अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगा.
रमेशचंद्र उसे रोकते हुए बोले, ‘‘साहब, अगर आप खाना और राशन दे जाएं तो आप का बहुत एहसान होगा. हम लोगों की जान बच जाएगी. मुझे और मेरे घर वालों को खाने व राशन की बहुत सख्त जरूरत है.’’

‘‘क्यों झूठ बोल रहे हो, तुम को जरूरतमंद लोगों का अधिकार मारते हुए शर्म नहीं आती. तुम्हारे घर के लोगों को मदद की क्या जरूरत है. तुम तो स्वयं सक्षम हो. तुम क्यों लाचार, मजबूर गरीबों का हक मारना चाहते हो, भयावह आपदा के काल में इतना बड़ा अपराध मत करो और वैसे भी तुम ने मदद झूठ बोल कर किसी अन्य व्यक्ति के लिए मंगवाई है.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘साहब, कुछ तो रहम करो मुझ पर और मेरे परिवार पर. हम लोग सक्षम नहीं हैं. आप एक बार घर के अंदर जा कर देखो तो सही, हमें मदद की बहुत सख्त जरूरत है साहब.’’

‘‘अगर तुम्हारी बात झूठ निकली तो मैं तुम्हें जेल भिजवा कर ही दम लूंगा. ठीक है, चलो तुम्हारे घर के अंदर चल कर देखते हैं.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र घबराते, लड़खड़ाते हुए विजय को अपने घर के अंदर ले गए.घर के अंदर की हालत देख कर जैसे विजय के पैरों तले की जमीन खिसक गई, उस की आंखें फटी रह गईं. वहां पर भूख से बिलखते 12 व 15 साल के 2 बच्चे और रमेशचंद्र के बुजुर्ग मातापिता और उन की 40 वर्षीय पत्नी मौजूद थी. उन सभी की स्थिति बेहद दयनीय थी.

यह देख कर विजय कुछ नहीं बोल पाया. उस ने तुरंत उन लोगों की जांच के लिए डाक्टर को बुलाने के लिए फोन किया और साथ आए आदमी से गाड़ी से खाना व राशन घर के अंदर रखने के लिए कहा.
यह सब देख कर रमेशचंद्र की आंखों से आंसू की धारा फूट पड़ी और कहा, ‘‘साहब, आज आप ने मेरे परिवार की जान बचा कर मुझ को हमेशा के लिए अपना ऋणी बना लिया. साहब, मेरा परिवार एक हफ्ते से भूखा है और मुझ को कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. इसलिए आज मैं ने परिवार की जान बचाने की खातिर झुग्गियों के नाम पर झूठ बोल कर राहत सामग्री मंगवाई थी.’’

रमेशचंद्र जमीन पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लगे.विजय ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘जब तक डाक्टर साहब आते हैं, तब तक जरा मुझे अपने बारे में विस्तार से बताओ. यह घर और गाड़ी तो तुम्हारी ही है ना?’’‘‘हां साहब, यह घर भी मेरा है यह गाड़ी भी मेरी है. अभी साल भर पहले अपनी व मातापिता की ताउम्र की कमाई व बैंक से लोन ले कर दोनों खरीदे थे. लेकिन यह पता नहीं था कि लोन लेने के एक साल बाद ही आपदा के चक्कर में एकाएक मेरी नौकरी चली जाएगी और दरदर ठोकर खाने की स्थिति आ जाएगी.

‘‘साहब, हमारी कमाई तो बैंक का लोन भरने व बच्चों की पढ़ाई में ही खत्म हो जाती है. घर का खर्चा पिताजी की पेंशन से बड़ी ही मुश्किल से चल पाता है. हमारे पास किसी तरह की कोई भी बचत हो ही नहीं पाती. लेकिन अब तो खाने के भी लाले पड़ गए हैं. हम मध्यमवर्गीय तो आज के व्यावसायिक दिखावे वाले दौर में केवल कर्ज चुकाने के लिए जिंदा हैैं.’’ रमेशचंद्र ने अपनी व्यथा सुनाई. ‘‘लेकिन तुम अपने पड़ोसियों, परिचितों, रिश्तेदारों व यारदोस्तों से तो मदद मांग सकते थे.’’ विजय ने कहा.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं साहब, मैं ने मदद के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन हर कोई मदद की बात को मजाक मान कर टाल देता था. यह उधार की गाड़ी व मकान आज मेरी व मेरे परिवार की जान का दुश्मन बन गया है, इस के चलते कोई भी मेरी मदद करने के लिए तैयार नहीं है. ‘‘कई बार मदद के लिए आपदा राहत कंट्रोल रूम भी फोन किया, लेकिन उन्होंने भी परिचय सुनते ही मुझे झिड़क दिया और दुत्कारते हुए कहा कि तुम गरीबों का हक मारना चाहते हो.

‘‘मैं खुद कई बार सामाजिक संगठनों द्वारा बंटने वाले भोजन व राशन भी लेने गया, पर वहां पर वो लोग मदद करते समय फोटो खींच रहे थे, इसलिए शर्म व बच्चों के भविष्य के बारे में सोच कर मैं बारबार वहां से वापस आ जाता था.’’ रमेश की दयनीय स्थिति समझने के बाद विजय की आंखों में आंसू आ गए. वह नि:शब्द हो गया. वह सोचने लगा कि एक मध्यमवर्गीय परिवार भी इतने गंभीर आर्थिक संकट में हो सकता है, आज उस की समझ में आ गया.

इतने में घर के गेट पर डाक्टर की गाड़ी आ कर रुकी, तो विजय उस गाड़ी के पास पहुंचा और डाक्टर को घर के अंदर ले गया. डाक्टर ने घर के सभी लोगों का चैकअप किया. चैकअप करने के बाद डाक्टर ने बताया, ‘‘भूख के चलते इन लोगों की हालत बहुत खराब है अगर इन को आज समय पर भोजन और चिकित्सा नहीं मिलती तो इन की जान जा सकती थी. अब मैं ने इन को एक हफ्ते की दवाई व विटामिन की गोलियां दे दी हैं. अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया है अगर कोई दिक्कत होगी तो मुझे फोन कर के बुला लेंगे.’’ ‘‘वैसे एक हफ्ते बाद मैं खुद इन को देखने आ जाऊंगा. खाना खाने के बाद ये एकएक खुराक दवा ले लेंगे. और बाकी कैसे खानी है, वह भी समझा दिया है. सुबह तक ये लोग अपने आप को काफी ठीक महसूस करने लगेंगे.’’ डाक्टर फिर वहां से चला जाता है.

विजय ने भी रमेशचंद्र को अपना पर्सनल नंबर देते हुए कहा, ‘‘आज सच में तुम ने मेरी आंखें खोल दीं, शासन, प्रशासन व जिला राहत टीम ने यह कभी भी नहीं सोचा था कि एक मध्यमवर्गीय परिवार पर भी आपदा के कारण इतनी भयंकर मार पड़ सकती है. मैं अभी औफिस जा कर अपने सीनियरों को स्थिति से अवगत करवाऊंगा और उन से भविष्य में मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद का भी प्रावधान करने की बात कहूंगा.’’‘‘साहब, मेरा भी आप से एक यही निवेदन है कि सरकार को अब मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद के लिए भी ध्यान देना चाहिए. क्योंकि सामाजिक संस्थाओं द्वारा मदद करते समय फोटो खींचने की वजह से कई लोग चाहते हुए भी उन से मदद नहीं ले पाते.

यह मजबूरी व लाचारी उन के जीवन पर बहुत भारी पड़ सकती है, इसलिए सरकार को उन का ध्यान रखना चाहिए.’’ रमेशचंद्र ने कहा. ‘‘बिलकुल. तुम ने हमारी आंखें खोल दी हैं और हम मध्यमवर्गीय परिवारों के सहयोग के लिए भी हरसंभव प्रयास करेंगे.’’विजय ने अपनी जेब में रखे 5 हजार रुपए निकाल कर रमेश को दिए तो रमेश ने पैसे लेने से इनकार कर दिया. बहुत इनकार करने के बाद भी विजय ने अधिकार के साथ जबरन पैसे देते हुए कहा, ‘‘सब का ध्यान रखना, कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन करना. अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’ इस के बाद वह गाड़ी में बैठ कर आंखों में आंसू लिए अपने औफिस की तरफ यह सोचता हुआ चल दिया कि धनवान लोगों के पास दौलत की कोई कमी नहीं. वह आपदा में भी साधन इकट्ठा कर के जीवन जी लेंगे. गरीब की मदद सरकार व समाजसेवी और धनवान लोग करते हैं.

लेकिन एक मध्यमवर्गीय परिवार के पास न तो दौलत है न वो गरीब है, जो कोई उस की मदद करे. ऐसे में वो आपदा के वक्त कैसे अपना और अपने परिवार का गुजारा करेगा. सरकारी तंत्र को भी इस तरह के हालात बनने से पहले ही मध्यमवर्गीय परिवारों की इस समस्या का समाधान करना चाहिए.
हमारे देश के सिस्टम को ध्यान रखना चाहिए कि मजबूरी, लाचारी किसी भी वक्त किसी भी व्यक्ति के सामने आ सकती है, इसलिए हमेशा मानवीय मूल्यों व संवेदनाओं के आधार पर मदद का प्रावधान करना चाहिए.

Quick Recipes: रैसिपी क्रिएटर्स का नया तड़का- क्विक फूड ट्रैंड

Quick Recipes: हम सभी का खाने के साथ एक अनोखा रिश्ता है. खाना तैयार करना यानी कुकिंग एक आर्ट है. कलिनरी स्किल्स में खाना बनाना, गैस्ट्रोनौमी, तैयारी, प्लेटिंग, प्रेजैंटेशन व बहुतकुछ और शामिल है. कुछ लोग स्वादिष्ठ डिसेज बनाना पसंद करते हैं और कुछ लोग स्वादिष्ठ खाना खाने का लुत्फ उठाना पसंद करते हैं.

भोजन सिर्फ एक बेसिक जरूरत ही नहीं है, बल्कि यह एक लाइफस्टाइल चौइस भी है. आज के डिजिटल युग में खाना दुनियाभर में क्रिएटर्स, शेफ और आम लोगों द्वारा बनाया जा रहा है, वहीं, इस के बनाने, परोसने व खाने की प्रक्रिया भी खूब देखी जा रही है.

कोविड 19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया सीमित सी हो गई थी, तब भोजन लोगों के जीवन का और भी अहम हिस्सा बन गया. डालगोना कौफी बनाने से ले कर ओरियो मगकेक बनाने, पैनकेक तलने से ले कर तवापिज्जा तक के कंटैंट से सोशल मीडिया चैनल भरे हुए थे.

दिल्ली की अंकिता का 18वां बर्थडे था. कोरोना की वजह से सभी बेकरी शौप्स बंद थीं. किराने की दुकानों पर केवल जरूरत का सामान मिल रहा था. अंकिता ने सोचा, इस बार तो उस का बर्थडे सैलिब्रेट नहीं होगा. तभी उस की बड़ी बहन आकृति ने यूट्यूब पर एक वीडियो का टाइटल पढ़ा जिस में लिखा था- ‘सिर्फ दो चीजों से 2 मिनट में बिना गैस जलाए बनाएं मार्केट से भी अच्छा सौफ्ट, स्पंजी, टैस्टी चौकलेट केक’. फिर क्या था, आकृति ने रैसिपी को फौलो करते हुए अंकिता के लिए केक बना दिया. अंकिता इसे देख कर बहुत खुश हुई. आकृति बोली, “आल थैंक्स टू दिस रैसिपी.”

सोशल मीडिया अब सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह एक ऐसा प्लेटफौर्म बन गया है जहां लोग नएनए ट्रैंड्स को फौलो करते हैं और अपनी रुचि के अनुसार कंटैंट देखते हैं. भारत में सोशल मीडिया पर सब से ज्यादा देखे जाने वाले कंटैंट में आजकल ‘क्विक फूड रैसिपी’ हैं.

चाहे इंस्टाग्राम हो, यूट्यूब हो या फेसबुक, हर जगह फूड व्लौगर्स और कंटैंट क्रिएटर्स तेजी से बढ़ रहे हैं और अपने दर्शकों को झटपट बनने वाली स्वादिष्ठ रैसिपी दिखा रहे हैं.

 

फूड कंटैंट क्रिएटर्स का बढ़ता प्रभाव

सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर फूड व्लौगर्स और कंटैंट क्रिएटर्स की संख्या लगातार बढ़ रही है. ये क्रिएटर्स न केवल स्वादिष्ठ और आकर्षक रैसिपी साझा करते हैं, बल्कि नएनए फूड ट्रैंड्स भी सेट कर रहे हैं.

 

कंटैंट क्रिएटर्स के लिए बढ़ते अवसर

सोशल मीडिया ने कई नए शेफ और फूड एंथुसियस्ट को पहचान दिलाई है. बीते कई सालों से कुकिंग रिऐलिटी शो चल रहे हैं, जिन में पार्टिसिपैंट्स को फिनाले में पहुंचने के बाद ही उन की कुकिंग को पहचान मिलती है. ऐसे शोज में आने के लिए भी कई जगह हाथपैर मारने पड़ते हैं. लेकिन सोशल मीडिया ने इस जरूरत को भी खत्म कर दिया है.

अब किसी को बड़े रैस्तरां या टीवी शो की जरूरत नहीं, वे सिर्फ एक स्मार्टफोन व अच्छी कुकिंग स्किल के जरिए लाखों दर्शकों तक अपनी पहुंच बना रहे हैं. इस से वीमेन को बड़ा एक्सपोजर मिला है. बचपन से लड़कियों को कहा जाता रहा कि उन की जगह सिर्फ किचन में है. उन्होंने इस बात को पौजिटिवली लेते हुए किचन के रास्ते अपनी अलग पहचान बनी ली है. आज ऐसी कई फीमेल फूड कंटैंट क्रिएटर हैं जो वीडियोज बना कर लाखोंकरोड़ों रुपए कमा रही हैं.

इन में सब से पहला नाम फूड कंटैंट के लिए नैशनल अवार्ड पाने वाली कबिता सिंह का आता है. नवंबर 2014 में, उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल ‘कबीता किचन’ शुरू किया और रोजमर्रा की साधारण रैसिपी पोस्ट कीं. उन की लाइफ उन के चैनल पर पोस्ट 89वें वीडियो के बाद से बदल गई, जिस में उन्होंने ब्रेड-गुलाब-जामुन की रैसिपी शेयर की थी. उस से उन के चैनल को काफी पौपुलैरिटी मिली. उन्होंने लाखों व्यूज बटोरे. आज वो भारत की सब से सफल सोशल मीडिया क्रिएटर हैं. उन्हें यूट्यूब पर 1 करोड़ से ज्यादा लोग फौलो करते हैं.

इसी लिस्ट में ब्रिस्टी कुमारी का नाम भी आता है. ब्रिस्टी ने 2019 से सोशल मीडिया पर सिंपल रैसिपीज शेयर करना शुरू किया. उन का समय तब चमका जब उन्होंने कोरोना काल में केवल 3 इंग्रीडिएंट्स से बनने वाले केक की रैसिपी शेयर की. तब से ले कर आज तक उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. आज ब्रिस्टी के 60 लाख से भी ज्यादा सब्सक्राइबर हैं और इंस्टाग्राम पर 27 लाख लोग उन्हें फौलो करते हैं. इसी तरह कई अन्य ऐसी कंटैंट क्रिएटर हैं जो अपनी कूकिंग स्किल्स से फेमस हो चुकी हैं.

 

फूड व्लौगिंग अब सिर्फ एक शौक नहीं बल्कि एक फुलटाइम कैरियर बन चुका है. कंटैंट क्रिएटर्स ब्रैंड स्पौंसरशिप, एडवरटाइजमैंट, एफिलिएट मार्केटिंग और खुद की ई कुकबुक व औनलाइन क्लासेज से खासी कमाई कर रहे हैं. निशा मधुलिका और तरला दलाल इस का सब से बेहतरीन उदाहरण हैं. निशा मधुलिका खाने की रैसिपीज शेयर करतेकरते भारत की सब से अमीर महिला यूट्यूबर बन चुकी हैं.

 

फूड ट्रैंड्स और वायरल रैसिपीज

कई ऐसी रैसिपीज हैं जो सोशल मीडिया के कारण वायरल हुईं, जैसे कि डलगोना कौफी, चौकलेट लावा केक, और 2 मिनट मैगी ट्विस्ट. ये ट्रैंड्स सोशल मीडिया पर तेजी से फैलते हैं और लाखों लोगों तक पहुंचते हैं. क्रिएटर्स के इन फूड रैसिपीज को सैलिब्रिटी भी फौलो करने लगे हैं. लेकिन कुकिंग विडियोज का ट्रैंड अब पुराना हो चला है. आजकल क्विक फूड का ट्रैंड है.

जैसा कि अब सोशल मीडिया पर फूड कंटैंट क्रिएटर्स की भरमार हो चुकी है तो अब क्रिएटर्स बड़े कुकिंग विडियोज बनाने की जगह रील्स और शौर्ट्स का सहारा ले रहे हैं. 10 से 30 सैकंड के वीडियोज में कुकिंग रैसिपीज शेयर की जाती हैं. ये रील्स और शौर्ट्स लोगों को ज्यादा अट्रैक्ट कर रहे हैं.

 

क्यों लोकप्रिय हो रही हैं क्विक फूड रैसिपीज?

आजकल लोग बिजी रहने लगे हैं. औफिस का काम, घर की जिम्मेदारियां और सोशल लाइफ को बैलेंस करने में समय की कमी होती है. ऐसे में लोग ऐसे व्यंजन पसंद करते हैं जो कम समय में बन जाएं और स्वादिष्ठ भी हों.

 

आसान और कम इंग्रीडिएंट्स

क्विक फूड रैसिपी में आमतौर पर ऐसे चीजों का उपयोग किया जाता है जो हर घर में आसानी से उपलब्ध होते हैं. यह एक बड़ा कारण है कि लोग इन डिसेज को देखना और आजमाना पसंद करते हैं. इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शौर्ट्स पर खूबसूरती से सजाए गए व्यंजन लोगों को आकर्षित करते हैं. ज्यादातर सोशल मीडिया यूजर्स ऐसी रैसिपीज पसंद करते हैं जो न केवल जल्दी बन जाएं बल्कि किफायती भी हों. इस वजह से कम बजट में बनने वाली रैसिपीज तेजी से वायरल होती हैं.

यहां कुछ ऐसे सोशल मीडिया अकाउंट्स के नाम हैं जो क्विक रैसिपी वीडियोज बनाते हैं और लाखों की संख्या में लोग इन के कंटैंट को पसंद कर रहे हैं.

  1. श्रेया जैन (स्पून औफ दिल्ली)
  2. पवित्रा कौर (द क्लासी फूडफिले)
  3. निधि जैन (कुक विद निधि)
  4. भारत वाधवा (भारत किचन)
  5. संज्योत कीर (योर फूड लैब)

 

क्विक फूड रैसिपी की लोकप्रियता भारत में लगातार बढ़ रही है. लोग इन्हें न केवल देख कर एंजौय कर रहे हैं, बल्कि इन्हें घर पर आजमा भी रहे हैं. आने वाले समय में यह ट्रैंड और भी तेजी से बढ़ेगा और सोशल मीडिया पर फूड कंटैंट की मांग और भी अधिक होगी. साथ ही, नए किचन गैजेट्स, हैल्दी फूड ट्रैंड्स और लाइव कुकिंग क्लासेज भी इस डिजिटल फूड क्रांति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे.

Famous Hindi Stories : असली पहचान

Famous Hindi Stories : वह मेरी पड़ोसिन की बूआ का बेटा था. मेरे परिवार के लोग राजेश को टपोरी समझते थे पर उसी टपोरी ने वह कर दिखाया था जिस के बारे में न तो मैं ने कभी सोचा था न मेरे परिवार में किसी को उम्मीद थी.

आज जब राजेश का फोन आया कि नीलू मां बनने वाली है तो मेरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई. मां और बाबूजी के साथ मेरे देवर भी तरहतरह के मनसूबे बनाने लगे और मैं सोचने लगी कि इस दुनिया में कितने ऐसे लोग हैं जो जैसे दिखते हैं वैसे अंदर से होते नहीं और जो बाहर से भोलेभाले दिखते हैं स्वभाव से भी वैसे हों यह जरूरी नहीं.

नीलू मेरी सब से छोटी ननद है. मेरी आंखों के सामने उस की बचपन की तसवीर घूमने लगी और मेरा मन 15 साल पीछे की बातों को याद करने लगा.

मैं इस घर में बहू बन कर जब आई थी तब मेरे दोनों देवर व ननद छोटेछोटे थे. मेरे पति सब से बड़े थे. उन में व बाकी बहनभाइयों में उम्र का काफी फासला था. हमारी शादी के दूसरे दिन ही बूआ सास ने मजाक में कहा था, ‘बहू, तुम्हें पता है कि तुम्हारे पति व अन्य बहनभाइयों में उम्र का इतना अंतर क्यों है? तुम्हारे पति के जन्म के बाद मेरी भाभी ने सोचा थोड़ा आराम कर लिया जाए…’ और इतना कह कर वह जोर का ठहाका मार का हंस पड़ी थीं.

नईनई भाभी पा कर मेरे छोटेछोटे देवर तो मेरे आगेपीछे चक्कर काटते और मेरा आंचल पकड़ कर घूमते रहते थे. पर मैं ने गौर किया कि मेरी सब से छोटी ननद नीलू जो लगभग 6-7 साल की थी, मेरे सामने आने से कतराती थी. यदि वह कभी हिम्मत कर के पास आती भी थी तो उस के भाई उसे झिड़क देते थे. यहां तक कि मांजी भी हमेशा उसे अपने कमरे में जाने को बोलतीं. नीलू मुझे सहमी सी नजर आती.

शादी के कुछ दिन बाद घर मेहमानों से खाली हो गया था. कोई काम नहीं था तो सोचा कमरे में पेंटिंग ही लगा दूं. मैं अपने कमरे में पेंटिंग लगा रही थी कि देखा, नीलू चुपचाप मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गई है. मुझे इस तरह उस का चुपचाप आना अच्छा लगा.

‘आओ नीलू, तुम अपनी भाभी के पास नहीं बैठोगी? तुम मुझ से बातें क्यों नहीं करतीं.’

मैं उस से प्यार से अभी पूछ ही रही थी कि मेरा बड़ा देवर संजय आ गया और नीलू की ओर देख कर बोला, ‘अरे, भाभी, यह क्या बातें करेगी…इतनी बड़ी हो गई पर इसे तो ठीक से बोलना तक नहीं आता.’

संजय ने बड़ी आसानी से यह बात कह दी. मैं ने देखा कि नीलू का खिला चेहरा बुझ सा गया. मैं ने सोचा कि इस बारे में संजय को कुछ नसीहत दूं. पर तभी मांजी मेरे कमरे में आ गईं और आते ही उन्होंने भी नीलू को डांटते हुए कहा, ‘तू यहां खड़ीखड़ी क्या कर रही है. जा, जा कर पढ़ाई कर.’

नीलू अपने मन के सारे अरमान लिए चुपचाप वापस अपने कमरे में चली गई.

उस के जाने के बाद मांजी बोलीं, ‘देखो बहू, मैं ने तुम्हारे लिए यह सूट खरीदा है,’ और वह मुझे सूट दिखाने लगीं, पर मेरा मन नीलू पर ही लगा रहा.

शाम को जब यह घर आए तो चायनाश्ते के समय मैं ने इन से पूछा, ‘आप एक बात बताइए कि यह नीलू इतनी डरीसहमी सी क्यों रहती है?’

यह गौर से मुझे देखते हुए बताने लगे कि वह साफसाफ बोल नहीं पाती. दरअसल, नीलू ने बोलना ही देर से शुरू किया और 6 साल की होने के बावजूद हकलाहकला कर बोलती है.

‘आजकल तो कितनी मेडिकल सुविधाएं हैं. आप नीलू को किसी स्पीच थेरेपिस्ट को क्यों नहीं दिखाते?’

उस समय उन्होंने मेरी बात हवा में उड़ा दी पर मैं ने मन ही मन सोचा कि मैं खुद नीलू को दिखाने के लिए किसी स्पीच थेरेपिस्ट के पास जाऊंगी. इस बारे में जब मैं ने बाबूजी से बात की तो उन्होंने भी कोई उत्सुकता नहीं दिखाई लेकिन उन्होंने सीधे मना भी नहीं किया.

अगले हफ्ते मैं नीलू को शहर की एक लोकप्रिय महिला स्पीच थेरेपिस्ट के पास ले गई.

थोड़ी देर बाद जब थेरेपिस्ट नीलू का विश्लेषण कर के बाहर आईं तो बोलीं, ‘इस का हकला कर बोलना उतनी परेशानी की बात नहीं है जितना इस के व्यक्तित्व का दबा होना. इसे लोगों के सामने आने में घबराहट होती है क्योंकि लोग इस के हकलाने का मजाक उड़ाते हैं. इसी से यह खुल कर नहीं रहती और न ही बोल पाती है.’

मैं नीलू को ले कर घर चली आई. मैं ने निश्चय किया कि नीलू को ले कर मैं बाहर निकला करूंगी, उसे अपने साथ घुमाने ले जाया करूंगी और उस दिन से मैं नीलू पर और ज्यादा ध्यान देने लगी.

मैं ने नीलू के व्यक्तित्व को निखारने की जैसे कसम खा ली थी. इस के नतीजे जल्दी ही हम सब के सामने आने लगे. उस दिन तो घर में खुशी की लहर ही दौड़ गई जब नीलू अपने स्कूल में कविता प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार ले कर घर आई थी.

समय पंख लगा कर कितनी तेजी से उड़ गया, पता ही नहीं चला. मेरे सभी देवरों की शादी हो गई. अब घर में बस, नीलू ही थी. उस ने भी एम.ए. कर लिया था. हम लोग उस की शादी के लिए लड़का देख रहे थे. जल्द ही लड़का भी मिल गया जो डाक्टर था. परिवार के लोगों ने बड़ी धूमधाम से नीलू की शादी की.

शादी के बाद के कुछ महीनों तक तो सब कुछ ठीकठाक चलता रहा. धीरेधीरे मैं ने महसूस किया कि नीलू की आवाज में खुशी नहीं झलकती. मैं ने पूछा भी पर उस ने कुछ बताया नहीं और शादी के केवल 2 साल बाद ही नीलू अकेले मायके वापस आ गई.

उस के बुझे चेहरे को देख कर हम सभी परेशान रहते थे. मैं ने सोचा भी कि कुछ दिन बीत जाएं तो उस के ससुराल फोन करूं. क्या पता पतिपत्नी में खटपट हुई हो.

15 दिन बाद जब मैं ने नीलू के ससुराल फोन किया तो उस की सास व पति के जवाब सुन कर सन्न रह गई.

‘मेरा तो एक ही बेटा है, आप ने हम से झूठ बोल कर शादी की और अपनी तोतली बेटी हमें दे दी. उस पर वह बांझ भी है. मैं तो सीधे तलाक के पेपर भिजवाऊंगी,’ इतना कह कर नीलू की सास ने फोन काट दिया.

घर में सन्नाटा छा गया. मांजी ने मुझे भी कोसना शुरू कर दिया, ‘मैं कहती थी कि यह कभी ठीक नहीं होगी. तुम्हारे उस ‘स्पीच थेरेपी’ जैसे चोंचलों से कुछ होने वाला नहीं है. लो, देखो, अब रखो अपनी छाती पर इसे जिंदगी भर.’

मुझे नीलू की सास की बात सुन कर उतना दुख नहीं हुआ जितना कि अपनी सास की बातों से हुआ. दरअसल, नीलू एकदम ठीक हो गई थी पर नए माहौल में एकाध शब्द पर थोड़ा अटकती थी जोकि पता नहीं चलता था. पर उस के ससुराल वालों ने उसे कैसे बांझ करार दे दिया यह बात मेरी समझ में नहीं आई. क्या 2 साल ही पर्याप्त होते हैं किसी स्त्री की मातृत्व क्षमता को नापने के लिए?

खैर, बात काफी आगे बढ़ चुकी थी. आखिर तलाक हो ही गया. इस के बाद नीलू एकदम चुप सी रहने लगी. जैसे कि मेरी शादी के समय थी. बंद कमरे में रहना, किसी से बातें न करना.

एक दिन मैं ने जिद कर के नीलू को अपने साथ बाहर चलने के लिए यह सोच कर कहा कि घर से बाहर निकलेगी तो थोड़ा बदलाव महसूस करेगी. रास्ते में ही पड़ोस की बूआ का बेटा राजेश मिल गया. उस ने मुझे रोक कर नमस्कार किया और बोला, ‘भाभी, मुझे मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई है और कंपनी वालों ने रहने के लिए फ्लैट दिया है. किसी दिन मम्मी से मिलने के लिए आप मेरे घर आइए न.’

‘ठीक है भैया, किसी दिन मौका मिला तो आप के घर जरूर आऊंगी,’ इतना कह कर मैं नीलू के साथ बाजार चली गई.

एक दिन मैं बूआ के घर गई. उन का घरपरिवार अच्छा था. अपना खुद का कारोबार था. मैं ने बातों ही बातों में बूआ से नीलू का जिक्र किया तो वह बोल पड़ीं, ‘अरे, उस बच्ची की अभी उम्र ही क्या है? कहीं दूसरी शादी करा दें तो ठीक हो जाएगी.’

‘लेकिन बूआ, कौन थामेगा उस का हाथ? अब तो उस पर बांझ होने का ठप्पा भी लग गया है. यद्यपि मैं ने उस के तमाम मेडिकल चेकअप कराए हैं पर उस में कहीं कोई कमी नहीं है,’ इतना कहते- कहते मेरा गला जैसे भर्रा गया.

‘मैं कैसा हूं आप के घर का दामाद बनने के लिए?’ राजेश बोला तो मैं ने उसे डांट दिया कि यह मजाक का वक्त नहीं है.

‘भाभी, मैं मजाक नहीं सच कह रहा हूं. मैं नीलू का हाथ थामने को तैयार हूं बशर्ते आप लोगों को यह रिश्ता मंजूर हो.’

मेरा मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया. आश्चर्य से मैं बूआ की ओर पलटी तो मुझे लगा कि उन्हें भी राजेश से यह उम्मीद नहीं थी.

थोड़ी देर रुक कर वह बोलीं, ‘मैं घूमघूम कर समाजसेवा करती हूं और जब अपने घर की बारी आई तो पीछे क्यों हटूं? फिर जब राजेश को कोई एतराज नहीं है तो मुझे क्यों होगा?’

राजेश मेरी ओर मुड़ कर बोला, ‘भाभी, जहां तक बच्चे की बात है तो इस दुनिया में सैकड़ों बच्चे अनाथ पड़े हैं. उन्हीं में से किसी को अपने घर ले आएंगे और उसे अपना बच्चा बना कर पालेंगे.’

राजेश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर मुझे सहसा विश्वास ही नहीं हुआ. जिस की पहचान हम उस के पहनावे से करते रहे वह तो बिलकुल अलग ही निकला और जो सूटटाई के साथ ‘जेंटलमैन’ बने घूमते थे वह कितने खोखले निकले.

मेरे मन से राजेश के लिए सैकड़ों दुआएं निकल पड़ीं. मेरा रोमरोम पुलकित हो उठा था. मुझे टपोरी ड्रेस में भी राजेश किसी राजकुमार की तरह लग रहा था.

घर आ कर मैं ने यह बात परिवार के दूसरे लोगों को बताई तो सब इस के लिए तैयार हो गए और फिर जल्दी ही नीलू की शादी राजेश के साथ कर दी गई. शादी के साल भर बाद ही वे दोनों अनाथ आश्रम जा कर एक बच्चा ले आए और आज जब नीलू खुद मां बनने वाली है तो मेरा मन खुशी से झूम उठा है.

मैं ने राजेश से फोन पर बात की और उसे बधाई दी तो वह कहने लगा कि भाभी, हम मांबाप तो पहले ही बन चुके थे पर बच्चों से परिवार पूरा होता है न. बेटी तो हमारे पास पहले से ही है अब जो भी होगा उसे ले कर कोई गिलाशिकवा नहीं रहेगा, क्योंकि वह हमारा ही अंश होगा.

राजेश के मुंह से यह सुन कर सचमुच मन भीग सा गया. राजेश ने मानवता की जो मिसाल कायम की है, यदि ऐसे ही सब हो जाएं तो समाज में कोई परेशानी आए ही न. यह सोच कर मेरी आंखों में राजेश व उसके परिवार के प्रति कृतज्ञता के आंसू आ गए.

लेखक- बबिता श्रीवास्तव

Short Stories in Hindi : खाउड्या – रिश्वत लेना आखिर सही है या गलत

Short Stories in Hindi :  सीतू झोंपड़पट्टी वाले थाने में नयानया सिपाही भरती हुआ था. एक दिन थानेदार ने उसे रामू बनिए को बुला लाने के लिए भेजा.

रामू बनिया तो घर पर नहीं मिला, पर उस के मुनीम ने सीतू को 50 रुपए का नोट पकड़ा कर कहा, ‘‘थानेदार से कह देना कि सेठजी आते ही थाने में हाजिर हो जाएंगे.’’

लौट कर सीतू ने 50 रुपए का नोट थानेदार की मेज पर रख दिया और साथ ही मुनीम का पैगाम भी कह सुनाया.

जब वह जाने लगा तो थानेदार ने 50 रुपए का नोट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इसे रख लो, यह तुम्हारा इनाम है.’’

बाद में थाने के सिपाहियों ने सीतू का काफी मजाक उड़ाया और बताया कि मुनीम ने 50 रुपए उसे दिए थे, न कि थानेदार को. थानेदार तो 100 रुपए से कम को हाथ तक नहीं लगाता.

सीतू 50 रुपए ले कर खुश हो गया. यह उस की पहली ऊपर की कमाई थी. थानेदार उस की ईमानदारी का कायल हो गया. इस के बाद से थानेदार को जहां से भी पैसा ऐंठना होता, तो वह सीतू को भेज देता या अपने साथ ले जाता.

सीतू जो भी पैसा ऐंठ कर लाता था, उस में से उसे भी हिस्सा मिलता था. धीरेधीरे उस के पास काफी पैसा जमा हो गया. पर मन के किसी कोने में उसे अपनी इस ऊपर की कमाई से एक तरह के जुर्म का अहसास होता, मगर जब वह अपनी तुलना दूसरों से करता तो यह अहसास कहीं गायब हो जाता.

सीतू को एक बात अकसर चुभती थी कि कसबे के लोग बाकी सिपाहियों को तो पूरी इज्जत देते और सलाम करते थे, मगर उसे केवल मजबूरी में ही सलाम करते थे. वह चाहता था कि उसे भी दूसरे सिपाहियों के बराबर समझा जाए, मगर वह इस बारे में कुछ कर नहीं सकता था.

वैसे, अब सीतू काफी सुखी था.

उस के पास सरकारी मकान था. एक साइकिल भी उस ने खरीद ली थी. वह शान से साफसुथरे कपड़ों में रहता था. कम से कम झोंपड़पट्टी के लोग तो उस की कद्र करते ही थे.

सीतू अपने साथी सिपाहियों के मुकाबले खुद को बेहतर समझता था. उस के सभी साथी शादीशुदा थे, मगर वह इस झंझट से अभी तक आजाद था. मांबाप की याद भी उसे ज्यादा नहीं आती थी, क्योंकि उसे उन से ज्यादा लगाव कभी रहा ही नहीं था.

एक दिन सीतू अपनी साइकिल पर सवार हो कर बाजार से गुजर रहा था कि एक जगह भीड़ लगी देख कर वह रुक गया. उस ने देखा कि झोंपड़पट्टी में रहने वाली एक लड़की भीड़ से घिरी खड़ी थी और रोते हुए गालियां बक रही थी. वह कभीकभार भीड़ पर पत्थर भी फेंक रही थी.

भीड़ में शामिल लोग लड़की के पत्थर फेंकने पर इधरउधर भागते हुए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहे थे.

सीतू ने देखा कि कुछ लफंगे से दिखाई देने वाले लड़के उस लड़की को घेरने की कोशिश कर रहे थे. सीतू ने पास खड़े झोंपड़पट्टी में रहने वाले एक बूढ़े आदमी से पूछा, ‘‘बाबा, आखिर माजरा क्या है?’’

बूढ़े ने सीतू को पुलिस की वरदी में देख कर पहले तो मुंह बिचकाया, फिर बोला, ‘‘यह लड़की यहां बैठ कर लकड़ी के खिलौने बेच रही थी. जब सब खिलौने बिक गए, तो उस ने पैसे रख लिए और थैले में से रोटी निकाल कर खाने लगी.

‘‘तभी ये 3 बदमाश लड़के यहां आ धमके. एक ने उसे 50 का नोट दिखा कर पूछा कि ‘चलती है क्या मेरे साथ?’ तो लड़की ने उस के मुंह पर थूक दिया.

‘‘बस फिर क्या था, तीनों लड़के उस पर टूट पड़े. लड़की की चीखपुकार सुन कर भीड़ जमा हो गई तो लड़कों ने शोर मचा दिया कि इस लड़की ने चोरी की है. बस, तभी से यह नाटक चल रहा है.’’

इतना बता कर वह बूढ़ा सीतू को इस तरह घूर कर देखने लगा मानो कह रहा हो, ‘है हिम्मत इस लड़की को इंसाफ दिलाने की?’

इतना सुनते ही सीतू साइकिल की घंटी बजाते हुए भीड़ में जा घुसा. उस ने कड़क लहजे में लड़की से पूछा, ‘‘ऐ लड़की, यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘साहब, ये तीनों मुझ से बदतमीजी कर रहे हैं. मैं ने रोका तो जबरदस्ती करने लगे. मैं ने शोर मचाया तो बोले कि मैं चोर हूं, पर मैं ने कोई चोरी नहीं की है,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘साहब, यह झूठी है. यह तो पक्की चोर है. इस ने पहले भी कई चोरियां की हैं. जो घड़ी इस के हाथ में बंधी है वह मेरी है,’’ एक लड़के ने कहा.

‘‘इस ने मेरा 50 का नोट चुराया है,’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘ये लड़के झूठ बोलते हैं साहब. मैं ने चोरी नहीं की है,’’ लड़की ने सीतू के आगे हाथ जोड़ कर कहा.

लड़की के मुंह से ‘साहब’ सुन कर सीतू की छाती चौड़ी हो गई. उस ने एक लड़के से पूछा, ‘‘क्या सुबूत है कि यह घड़ी तेरी है?’’

इस से पहले कि वह लड़का कुछ कह पाता, भीड़ में से किसी की आवाज आई, ‘‘इस लड़की के पास क्या सुबूत है कि यह घड़ी इसी की है?’’

यह सुन कर सीतू भड़क उठा. साइकिल स्टैंड पर लगा कर उस ने अपना डंडा निकाल लिया. फिर वह भीड़ की तरफ मुड़ गया और हवा में डंडा लहराते हुए बोला, ‘‘किसे चाहिए सुबूत? इस लड़की के पास यह सुबूत है कि घड़ी इस के कब्जे में है… और किसी को कुछ पूछना है? चलो, भागो यहां से. क्या यहां जादूगर का तमाशा हो रहा है?’’

सीतू की फटकार सुन कर वहां जमा हुए लोग धीरेधीरे खिसकने लगे.

‘‘देखो साहब, वे तीनों भी भाग रहे हैं,’’ लड़की बोली.

‘‘तुम तीनों यहीं रुको और बाकी सब लोग जाएं,’’ सीतू ने उन लफंगों को रोकते हुए कहा.

जब भीड़ छंट गई, तो सीतू उन लड़कों से बोला, ‘‘चलो, थाने चलो.’’

थाने का नाम सुन कर उन तीनों लड़कों के साथसाथ वह लड़की भी घबरा गई. वह बोली, ‘‘देखो साहब, ये तो बदमाश हैं, मगर मैं थाने नहीं जाना चाहती.’’

‘‘अरी, तुझे कोई खा जाएगा क्या वहां? मैं हूं न तेरे साथ,’’ सीतू उसे दिलासा देते हुए बोला.

‘‘साहब, घड़ी इसी के पास रहने दीजिए. कहां थाने के चक्कर में फंसाते हैं,’’ एक लड़का बोला.

‘‘साला… फिर कहता है कि मैं चोर हूं. चलो साहब, थाने ही चलो,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘गाली नहीं देते लड़की,’’ सीतू ने लड़की से कहा और फिर लड़कों से बोला, ‘‘मैं तुम लोगों को तब से देख रहा हूं, जब तुम ने इस लड़की को 50 का नोट दिखाया था.’’

यह सुन कर तीनों लड़कों के चेहरे फीके पड़ गए. सीतू ने लड़की को बूढ़े के पास रुकने को कहा और तीनों लड़कों को ले कर थाने की ओर बढ़ चला. लड़कों ने आपस में कानाफूसी की और एक लड़के ने सौ का नोट सीतू की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अब तो जाने दो साहब. कभीकभी गलती हो जाती है.’’

सीतू ने एक नजर नोट पर डाली और फिर इधरउधर देखा, कुछ लोग उन्हें देख रहे थे.

‘‘रिश्वत देता है. इस जुर्म की दफा और लगेगी,’’ कहते हुए सीतू उन्हें धकेलता हुआ सड़क के मोड़ पर ले गया.

‘‘साहब, इस समय तो हमारे पास इतने ही पैसे हैं,’’ कहते हुए लड़के ने 50 का नोट और बढ़ा दिया.

सीतू ने इधरउधर देखा, वहां उन्हें कोई नहीं देख रहा था. वह बोला, ‘‘ठीक है, अब आगे ऐसी घटिया हरकत मत करना.’’

‘अरे साहब, कसम पैदा करने वाले की, अब ऐसा कभी नहीं करेंगे,’ तीनों ने एकसाथ कहा.

‘‘अच्छा जाओ, मगर दोबारा अगर पकड़ लिया तो सीधा सलाखों के पीछे डाल दूंगा,’’ सीतू ने नोट जेब में रखते हुए कहा.

सीतू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, फिर धीरेधीरे साइकिल धकेलता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां बूढ़े के पास लड़की को छोड़ कर गया था. लड़की तो वहां नहीं थी, पर बूढ़ा वहीं बैठा हुआ था. बूढ़ा सीतू को सिर से पैर तक घूर रहा था.

‘‘ऐ बूढ़े, वह लड़की कहां गई?’’ सीतू ने पूछा.

बूढ़े ने सीतू को घूरते हुए कहा, ‘‘पुलिस में भरती हो गए तो क्या यह तमीज भी भूल गए कि बड़ेबूढ़ों से किस तरह बात करते हैं. वह लड़की चली गई, पर इस से तुम्हें क्या मतलब? तुम्हारी जेब तो गरम हो गई न, जाओ ऐश करो.’’

‘‘क्या बकता है? किस की जेब की बात करता है? तुम ने उस लड़की को क्यों जाने दिया?’’ सीतू भड़क उठा.

‘‘इस इलाके में कोई भी तुम पुलिस वालों पर यकीन नहीं करता. ऐसे में वह लड़की क्या करती? सोचा था कि अपनी बिरादरी का एक आदमी पुलिस में आया है तो वह कुछ ठीक करेगा, मगर वाह री पुलिस की नौकरी, बेच दी अपनी ईमानदारी शैतान के हाथों और बन गया खाउड्या… जा खाउड्या अपना काम कर.’’

‘‘क्या बकता है? थाने में बंद कर दूंगा,’’ कहने को तो सीतू कह गया, मगर न जाने क्यों वह बूढ़े से नजरें नहीं मिला पाया.

सीतू इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि रिश्वत लेना जुर्म है, मगर आज तक किसी पुलिस वाले ने उसे यह बात नहीं बताई थी. हां, साथियों ने यह जरूर समझाया था कि रिश्वतरूलेते समय पूरी तरह से चौकस रहना बहुत ही जरूरी होता है.

लेखक- मदन बड़ोलिया

Hindi Story Collection : सबक – सुधीर जीजाजी के साथ क्या हुआ

Hindi Story Collection : रक्षाबंधन पर मैं मायके गई तो भैया ने मेरे ननदोई सुधीर जीजाजी के विषय में कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘नहीं भैया, ऐसा हो ही नहीं सकता, जरूर आप को कोई भ्रम हुआ होगा.’’

‘‘नहीं अनु, मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ. पिछले महीने औफिस के काम से दिल्ली गया तो सोचा, सुधीर से भी मिल लूं क्योंकि उन से मुलाकात हुए काफी अरसा हो चुका था. काम से फारिग होने के बाद जब मैं सुधीर के घर पहुंचा तो वे मुझे अचानक आया हुआ देख कर कुछ घबरा से गए. उन्होंने मेरा स्वागत वैसा नहीं किया जैसा कि मेरे पहुंचने पर अकसर किया करते थे. तभी मेरी नजर शोकेस में रखी एक तसवीर पर गई. उस तसवीर में सुधीर के साथ संध्या नहीं, कोई और युवती थी. जब मैं बाथरूम से फ्रैश हो कर आया तो वह तसवीर वहां से गायब थी लेकिन वह तसवीर वाली युवती ही उन की रसोई में चायनाश्ता तैयार कर रही थी.’’

‘‘भैया, हो सकता है वह उन की मेड हो.’’

‘‘शायद मैं भी यही समझता, अगर मैं ने वह तसवीर न देखी होती.’’

‘‘देखने में कैसी थी वह युवती?’’ मैं अपनी उत्सुकता छिपा न सकी.

देखने में सुंदर मगर बहुत ही साधारण थी. एक बात और मैं ने नोटिस की, मेरे अचानक आ जाने से वह सुधीर की तरह असहज नहीं थी, बिलकुल सामान्य नजर आ रही थी. उस के हाथ की चाय और नाश्ते में आलूप्याज की पकौडि़यों और सूजी के हलवे के स्वाद से ही मैं ने जान लिया था कि वह साक्षात अन्नपूर्णा होने के साथसाथ एक कुशल गृहिणी है.

‘‘सुधीर जीजाजी ने आप का उस से परिचय नहीं करवाया?’’

‘‘उस को चायनाश्ते के लिए कहते वक्त सुधीर शायद मुझे यह दर्शा रहे थे कि वह उन की मेड है लेकिन उन के साथ उस की तसवीर, फिर तसवीर का गायब होना और मेरी उपस्थिति से सुधीर का असहज होना इस बात की तरफ साफ संकेत कर रहा था कि वह युवती उन की मेड नहीं बल्कि कुछ और है.’’

‘‘भैया, इस विषय में हमें संध्या दी को तुरंत बता देना चाहिए,’’ मैं ने उतावले स्वर में कहा.

‘‘नहीं अनु, इस विषय में तुम संध्या दी को कुछ नहीं बताओगी,’’ भैया के बजाय भाभी बड़े ही कठोर और आदेशात्मक लहजे में बोलीं. ‘‘भाभी, आप एक औरत हो कर भी औरत के साथ अन्याय की बात कर रही हैं. संध्या दी मेरे पति की सगी बहन हैं, मेरी ननद हैं. जैसे मैं आप की ननद हूं’’ ‘‘जानती हूं मैं, संध्या आप के पति की सगी बहन है, लेकिन 14 साल पहले वह अपने पति से बुरी तरह लड़झगड़ कर अपनी मरजी से अपनी दोनों बेटियों को ले कर मायके आ गई थी. सुधीर और उन के परिवार वालों ने लाख कोशिश की कि वह लौट आए लेकिन हर बार उन्हें संध्या दी ने अपमानित किया. ऐसी स्थिति में सुधीर के मांबाप ने चाहा भी कि दोनों का तलाक हो जाए लेकिन संध्या दी पर तो जैसे जिंदगीभर सुधीर को परेशान करने का जनून सवार था. शायद इसी वजह से उस ने सुधीर को तलाक भी नहीं दिया.’’

‘‘जानती हो अनु, जब तुम्हारी संध्या दी ने अपना ससुराल छोड़ा था तब अपने पति के मुंह पर थूक कर गई थी. तो भला, कौन पति अपनी ऐसी बेइज्जती सहेगा? इतना सबकुछ हो जाने के बावजूद, सुधीर की इंसानियत और बड़प्पन देखो कि वे उस का और दोनों बेटियों का पूरा खर्चा बिना किसी हीलहुज्जत के नियम से दे रहे हैं. उन की हर सुखसुविधा का खयाल भी रखते हैं. महीने में उन से मिलने भी आते हैं.’’

‘‘यह तो उन का फर्ज है, भाभी. वे एक पिता और पति भी हैं,’’ मैं ने संध्या दी का पक्ष लेते हुए कहा. ‘‘सारे फर्ज सुधीर के ही हैं, तुम्हारी संध्या दी के कुछ भी नहीं,’’ भाभी कड़वे स्वर में बोलीं, ‘‘अनु, तुम ही बताओ तुम्हारी संध्या दी ने शादी के बाद अपने पति को क्या सुख दिया? उन का जीवन खराब कर दिया. कभी उन्हें मानसिक शांति नहीं मिली. मुझे तो आश्चर्य होता है कि उन की बेटियां कैसे हो गईं? उन्हें तो सुधीर के सान्निध्य से ही घिन आती थी. उन के हर काम, व्यवहार में उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती थीं. उन के कपड़े धोना तो दूर, उन्हें हाथ तक न लगाती थी. उन्हें खाने तक के लिए तरसा दिया था. वे बेचारे मां के पास खाते तो उन पर ताने कसती, उन पर व्यंग्य करती. तो बताओ अनु, क्या ऐसी औरत से हम सहानुभूति रखें? ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो अपने पति और ससुराल वालों

इतना कर्कश व्यवहार रखती हैं. एक अच्छी और सुघड़ औरत वह होती है जो परिवार को तोड़ती नहीं, बल्कि जोड़ती है. लेकिन तुम्हारी संध्या दी ने तो जोड़ना नहीं, तोड़ना सीखा है. प्रेम और मिलनसार व्यवहार जैसे शब्द तो शायद उन के शब्दकोश में हैं ही नहीं. सच पूछो, तो मुझे बेहद खुशी है कि सुधीर उस औरत के साथ हंसीखुशी रह रहे हैं.’’

‘‘भाभी, आप जो कुछ कह रही हैं वह हम सब जानते हैं. न वे व्यवहार की अच्छी हैं न स्वभाव की. जबान की भी बेहद कड़वी हैं या दूसरे शब्दों में कहें वे शुद्ध खालिस स्वार्थ की प्रतिमा हैं. मायके में भी किसी से नहीं बनी, तभी तो किराए के मकान में रह रही हैं. लेकिन एक औरत होने के नाते हमें ऐसा होने से रोकना चाहिए और संध्या दी को सबकुछ बता देना चाहिए.’’

‘‘अनु, इस मामले में मेरी सोच तुम से जुदा है. मैं भी एक औरत हूं लेकिन इस प्रकरण में मैं सुधीर का साथ दूंगी क्योंकि हर जगह आदमी ही गलत नहीं होता. 95 प्रतिशत मामलों में दोषी न होते हुए भी पुरुषों को ही दोषी ठहराया जाता है. अगर एक पति अपनी कर्कशा पत्नी को पूरा खर्चा दे रहा है, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा है और इस के एवज में अगर वह अपना एकाकीपन दूर करने के लिए एक औरत के साथ सुखी, संतुष्ट और तनावमुक्त जीवन जी रहा है तो इस में गलत क्या है? वह औरत भी पूरी सचाई से वाकिफ है, तो बुरा क्या है. प्लीज, जैसा चल रहा है, चलने दो. इस बारे में संध्या को बताने का मतलब साफ है कि सुधीर का जीवन पहले से और भी बदतर हो जाना क्योंकि संध्या की फितरत से वाकिफ हूं मैं.’’

‘‘लेकिन भाभी, उस औरत को अंत में क्या हासिल होगा? कानूनी रूप से तो संध्या ही उन की पत्नी हैं. सुधीर जीजाजी के न रहने पर उन की सारी संपत्ति, जमीनजायदाद और पैंशन पर तो संध्या दी का ही हक होगा. यह सब छिपा कर हम उस औरत के साथ भी तो एक तरह से अन्याय ही कर रहे हैं,’’ मैं ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘नहीं अनु, तुम किसी के साथ कोई अन्याय नहीं कर रही हो. मैं जानती हूं, सुधीर जैसे नेकदिल इंसान मात्र अपने सुख और स्वार्थ के लिए उस औरत के साथ कोई धोखा नहीं करेंगे, न ही उसे अंधेरे में रखेंगे. पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ वे अपना रिश्ता निभाएंगे. मुझे पूरा विश्वास है सुधीर जैसे पढ़ेलिखे, समझदार और दूरदर्शी व्यक्ति ने उस के सुखी और सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ न कुछ प्रबंध अवश्य कर दिया होगा.

‘‘रही बात संध्या की, तो ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो बिना वजह अपने पति और ससुराल वालों को प्रताडि़त कर के उन्हें कानूनी धमकी दे कर अपने मायके आ जाती हैं. इस श्रेणी में तुम्हारी संध्या दी भी आती हैं. यह बात मैं ही नहीं, तुम और तुम्हारे ससुराल वाले और यहां तक कि दोनों तरफ के रिश्तेदार व पड़ोसी भी जानते हैं. इसलिए यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ती हूं कि तुम संध्या को बता कर सुधीर की खुशहाल जिंदगी में जहर घुलवाओगी या चुप रह कर उन की वर्तमान खुशियां बरकरार रखोगी,’’ कह कर भाभी चुप हो गईं.

जानती हूं मैं, भाभी ने जो कुछ कहा है वह एकदम सच कहा है क्योंकि सुधीर जीजाजी उन के करीबी रिश्तेदार हैं. उन्होंने अपना दर्द उन से बयां किया है. मैं अजीब कशमकश में हूं कि एक निर्दोष आदमी की खुशियों की खातिर चुप रहूं या फिर एक कटु, कठोर व कर्कशा औरत के न्याय के लिए बोलूं… फिर भी यह तो मैं भी मानती हूं कि पतिपत्नी के रिश्ते को चाहे वह पति हो या पत्नी, कोई एक भी उस रिश्ते को तोड़ने का जिम्मेदार है तो कुसूरवार वही है. ऐसे में दोषी के साथ सहानुभूति दिखाना बेकुसूर के साथ बेइंसाफी होगी. सुधीर जीजाजी को पूरा हक है कि वे अपनी जिंदगी को नए सिरे से संवारें.

Hindi Fiction Stories : एक किताब सा चेहरा

Hindi Fiction Stories : वह अकसर मुझे दिखाई देती थी, जब मैं अपनी साइकिल से सूनीसूनी सड़कों पर शिमला की ठंडक को मन में लिए जब भी निकला हूं मैं… बर्फीले हवा के झेंके सी गुजर जाती है वह. नहीं, वह नहीं गुजरती मैं ही गुजर जाता हूं. उस के पास धीमीधीमी साइकिल पर चलतेचलते मेरा मन होता है कि मैं रुक जाऊं उसे देखने के लिए. कभी तो ऐसा भी लगा साइकिल पर ही रुक कर पलट कर देख लूं. पर शायद यह लुच्चापन लगेगा, वह मुझे लोफर या बदमाश भी समझ सकती है. मैं नहीं कहलाना चाहता बदमाश उस की नजरों में. इसलिए सीधा ही चला जाता हूं. मन में कसक लिए उसे अच्छी तरह देखने की.

वह मुझे आजकल की लड़कियों सी नहीं दिखती थी. अगर तुम पूछोगे कि आजकल की लड़कियां तो मैं बिलकुल पसंद नहीं करूंगा. आज की लड़कियों को पसंद करता भी नहीं क्यों एक फूहड़पन सा झलकता है इन लड़कियों में. अजीब सा चेहरा बना कर बात करना, सैल्फी खींचखींच कर चेहरे और विशेषकर होंठों को सिकोड़े रहने की आदत की शिकार नहीं बीमार कहिए बीमार हो गई हैं आज की लड़कियां.

पहनावा सोचते ही उबकाई आने लगती है. मुझे जीरो साइज के पागलपन में पागल लड़कियां अपने शरीर की गोलाइयों को पूरा सपाट बना देती हैं. इस से जो आकर्षण होना चाहिए वह बचता ही नहीं. अब आप कहेंगे मैं पागल हूं जो आज के माहौल के लिए, आधुनिक युग के लिए ऐसा बोल रहा हूं.

तो साहब, ऐसा नहीं शरीर को प्रयोगशाला बनाने के साथ ही कपड़ों की तो बात ही क्या है? घुटनों के पास से फटी जींस, कमर, पेट दिखाता टौप, कहींकहीं तो पिडलियों के पास से भी फटी जींस के भीतर से झंकते शरीर को देख कर मुझे तो घिन आती है. कहीं से भी सुंदर नहीं दिखती ऐसी लड़कियां. आगे भी सुन लीजिए. बालों को भी नहीं छोड़ा, नीले, लाल कलर के रंग में रंग बाल देख कर मसखरी करने वाले जोकरों की याद आ जाती है.

अब आप बोलें या सोचें क्या इन से प्रेम किया जा सकता है? दिल में बसाया जा सकता है लंबे प्रेम संबंध चलें ऐसी कोई कल्पना की जा सकती है? नहीं साहब, बिलकुल नहीं. एक बात तो बताना ही भूल गया जनाब कि इन का प्रेम भी फास्ट फूड जैसा होने लगा है. विश्वास ही नहीं होता ये कितनों के साथ एकसाथ प्रेम करती हैं. एक से ब्रेकअप हुआ तो दूसरा रैडी है. दूसरे के साथ ब्रेकअप हुआ तो तीसरा तैयार है… नुक्कड़ पर फोन करने की देर है.

अब ऐसे फास्ट फूड के जमाने में कोई शीतल झरने सी लड़की. जी हां लड़की, दिख जाए तो मन बावला हो उठता है. मेरा भी मन बावला हो उठा उस लड़की को देख कर.

घर पर जा कर मैं ने प्रण किया अब तो मैं कुछ दिनों में उस लड़की से जरूरजरूर बात करूंगा. मैं शिमला की ठंडक को मन में संजोए सो गया. कमरे के दरवाजे और खिड़की पर बर्फ की परतें जमनी शुरू हो गई थीं. गरम रजाई के भीतर उस लड़की की सांसों की गरमी मैं महसूस कर रहा था, बर्फ से ढकी पहाडि़यों के पीछे से लड़की का चेहरा बारबार झंक कर मुझे रातभर परेशान करता रहा और मैं जागता रहा, सोता रहा.

सुबह जब नींद खुली तो देखा 9 बजने जा रहे थे. बर्फ की परतें जो रात से

खिड़की और दरवाजे पर लिपटी थीं. हलकीहलकी पिघलने लगी थीं. हलकी सी धूप पहाडि़यों से अंगड़ाई लेते हुए पहाडि़यों की गोद में बसे कौटेजों पर बिखरने लगी थी. क्या करूं? मन नहीं कर रहा था उठने का. चाय पी लेता हूं. नाश्ते के बाद निकलूंगा. आज संडे है पर संडे को भी लाइब्रेरी खुलती है. नाश्ते के बाद 11 साढ़े 11बजे तक लाइब्रेरी पहुंच जाऊंगा. रास्ते में फिर मिलेगी वह लड़की. मैं आज पक्का उस से बात करूंगा, चाहे जो हो. यही सोच कर मैं ने चाय पी पर चाय ठंडी हो गई थी.

गरम करने के लिए दोबारा केतली उठाई. चाय के बाद मैं ने गाम पानी के गीजर को औन किया. तब तक कपड़ों की तैयारी में लग गया कि आज कौन से कपड़े पहनूं जिन से वह लड़की इंप्रैस हो जाए. सोचतेसोचते सब्ज कलर की जींस और ब्लैक टीशर्ट निकाली. हलकेहलके गरम पानी की उड़ती भाप में भी लड़की का चेहरा बनता रहा बिगड़ता रहा, पहाडि़यों से भी वह झंकती रही. मैं उसे देखता रहा.

नहा कर जब बाहर आया तो भूख सी महसूस हो रही थी मुझे. फ्रिज देखा तो कुछ अंडे थे, लेकिन ब्रैड नहीं थी. अब क्या करूं? केसरोल देखा तो कल का एक परांठा बचा पड़ा था. चलो हो गया नाश्ते का इंतजाम. बासी परांठा और ताजा आमलेट. फटाफट मैं प्याज, हरीमिर्च और धनियापत्ती काट कर अंडे फेंटने लगा. नाश्ता भी मैं ने गरम कंबल में लिपटे हुए खाया. नाश्ते के बाद आदमकद आइने के सामने खड़ा हुआ. खुद को आईने में देख कर सोचने लगा कि क्या वह मुझे पसंद करेंगी? बुरा तो नहीं मैं 5 फुट 11 इंच की हाइट, हलकेहलके कर्ली बाल, लंबी नाक, घनी मूंछें, खिलता रंग. पसंद करेगी बात भी करेगी. चेहरे से कुछकुछ शायर सा लगता हूं जैसेजैसे याद नहीं आ रहा, किस ने कहा था? शायद किसी दोस्त ने. ‘वह उस गीत सा…’ कौन सा गीत हां याद आया:

‘किसी नजर को तेरा इंजतार आज भी है…’ सुरेश वाडकर पर फिल्माया गया था यह गीत. डिंपल कपाडि़या बेचैन सी हो कर आती है. चलो देखते हैं…

तैयार हो कर कौटेज से बाहर निकला. धूप अच्छी लग रही थी. हलकीहलकी कुनकुनी सी. जींसब्लेजर में भी इंतजार वाले गीत सा महसूस कर रहा था. फिर सोचा साइकिल आज ठीक रहेगी. काश बाइक ले कर आता घर से, घर तो दिल्ली था, जौब शिमला में थी. साइकिल पसंद थी, इसलिए साइकिल उठा लाया. पर साइकिल से क्या वह इंप्रैस होगी? ऐसा करता हूं मकानमालिक से बाइक ले लेता हूं आज. बाइक ठीक रहेगी.

मकानमालिक ने दे दी बाइक की चाबी. वे आज रैस्ट के मूड में थे. शाम को ही निकलने के मूड में थे. संडे जो था. खैर मैं ने बाईक निकाली और चल दिया शिमला की अजगर जैसी सड़कों पर. सर्पीली सड़कों के जाल, पहाडि़यों की गगन चूमती चोटियां, हंसता सूरज, मुसकराती धूप, पौधोंफूलों से टपकती बर्फ, पिघलती बर्फ की खामोशियां, हवाओं में बहती खुशबू, गरमगरम कपड़ों में कौटेजों से निकल कर धूप को पीते लोग.

हरियाली की चूनर, चिनार के पेड़ों की वे कतारें, कौटेज से उठता धुआं. सबकुछ कितना मनमोहक है, कितना सुंदर, प्यारा और जीवन से प्यार करना सिखाता. ये प्रकृति का अद्भुत चित्र. एक अनदेखे चित्रकार की खूबसूरत कलाकृति यह सृष्टि. बाइक पर उसे याद आया सड़क के किनारे एक छोटा सा देव स्थान है. वह तुंरत उस जगह पहुंच गया.

जूते खोल कर वह आगे बढ़ा. देखा तो घना वटवृक्ष है, उस ने ध्यान से देखा तो पाया बरसों पुराना है शायद सैकड़ों साल पुराना. बहुत घना. उस के नीचे पक्के चबूतरे पर एक देव प्रतिमा थी. सामने एक दीपक जल रहा था. बरगद के पीछे बड़ी काली पहाड़ी थी, पहाड़ी से लगा था छोटा सा तालाब. दीपक जल रहा है. मतलब कोई जला कर गया है. बरगद पर सैकड़ों धागे बंधे थे. शायद मन्नत के धागे… मैं ने पास के तालाब में हाथ धो कर जेब से रूमाल निकाल कर माथे को ढका. देव प्रतिमा के सामने जा कर अपना शीश झका कर जैसे ही आंखें बंद कीं, फिर उस लड़की का चेहरा नाच उठा.

मैं नहीं जानता मुझे क्या हुआ. क्यों आया मैं तेरे द्वार पर इस दौर में मुझे सुकून से भरे कुछ पल दे दे. ऐसा सुकून, शांति जिस की मेरे देश को भी जरूरत हैं. अमनशांति से भर दे सब की झली. कुछ पल तक मैं दीपक की जादू भरी लौ को देखता रहा. फिर न जाने क्या सोच कर वहां पूजा की थाली में रखा रंगीन कलावा ले कर वृक्ष के दामन में बांध कर वापस आ गया.

बाइक स्टार्ट कर के वापस अपनी मंजिल लाइब्रेरी की तरफ चला. अफसोस सारे रास्ते मुझे वह लड़की नहीं दिखी. मन उदास हो चला, दुखी हो गया.

लाइब्रेरी के बाहर बाइक खड़ी करतेकरते भी मन उदास और निराश था, जल्दी से बुक्स ले कर वापस हो जाऊंगा, क्या पता, वह बीमार हो गई हो. आज कुछ ज्यादा ही लोग थे. लाइब्रेरी में. यह एक मात्र लाइब्रेरी थी, जिस में दिन भर पढ़ने के शौकीन विद्यार्थी आते रहते थे. मुझे भी किताबों का शौक था.

बड़े दिनों से टौलस्टौय की बुक ‘इंसान और हैवान’ की तलाश में था. मैं ने अपनी

बुक के लिए शैल्फ पर नजरें दौड़ानी शुरू कीं. आधा घंटा हो गया था. दूसरी वाली शैल्फ में देखता हूं, यह सोच कर मैं ने पलट कर देखा तो सामने से कोई टकरा गया. मेरी बुक जमीन पर मैं ने जल्दी से बुक उठाई और सौरी कहा. यह क्या… सामने तो वही लड़की थी, जिसे मैं देखा करता था.

अरे यह. चमत्कार हो गया. दिल इतनी तेजी से धड़कने लगा जैसे लो बाहर ही आ जाएगा. सौरी बोलने के बाद मैं अपलक उसे निहारता ही रह गया.

‘‘क्या हुआ आप को? सौरी बोल तो दिया आप ने. अब क्या हुआ,’’ लड़की की आवाज मेरे कानों तक पहुंची.

‘‘जीजी हां, वह मैं थोड़ा जल्दी में था,’’ मैं ने अपनी धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘कोई बात नहीं… देख ली आप ने?’’ लड़की बोली.

‘‘जी देखी तो लेकिन उस शैल्फ में तो नहीं मिली… इस में देख लेता हूं.’’

‘‘कौन सी बुक है?’’ वह पूछने लगी.

मैं ने कहा, ‘‘टौलस्टौय की बुक ‘इंसान और  हैवान.’’

‘‘अच्छा… कहीं यह तो नहीं,’’ कह कर उस ने बुक अपने हाथ में रख कर मेरी नजरों के सामने की.

‘‘अरे हां ये ही… मैं खुशी से बोला, ‘‘लेकिन आप ने तो अपने नाम से इशू करवाई होगी? आप पढ़ लीजिए. मैं फिर ले लूंगा,’’ मेरा स्वर उदासी भरा था.

‘‘अरे नहीं, आप पढ़ लीजिए मैं फिर पढ़ लूंगी,’’ वह बोली.

मैं खुश हो गया. मैं ने उसे थैंक्स कहा.

‘‘ओकेजी,’’ वह बोली.

‘‘अच्छा आप अभी रुकेंगी या जाएंगी,’’ मैं ने हिम्मत जुटाई.

‘‘मैं अब निकलूंगी,’’ वह बोली.

‘‘अगर आप चाहें तो मैं आप को छोड़ दूं? मैं ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं चलिए साथ चलते हैं,’’ वह बोली.

मैं बाहर आ गया. वह भी साथ थी. मैं ने बाइक निकाली.

‘‘अरे यह क्या… बाइक,’’ वह बोली.

‘‘जी बाइक. बाइक पर नहीं बैठोगी?’’ मैं ने थोड़े आश्चर्य से पूछा.

‘‘नहींनहीं ऐसा कुछ नहीं, लेकिन आप की तो साइकिल ही अच्छी है,’’ वह बोली. ‘‘फिर इन खूबसूरत नजारों को देखने के लिए मुझे पैदल जाना ही पसंद है,’’ वह मुसकराती बोली.

‘उफ, कितनी कातिल मुसकान है,’ मैं ने सोचा, ‘लुट जाते होंगे न जाने कितने इस मुसकान पर.’

‘‘चलिए बाइक यहीं छोडि़ए हम कुछ देर घूम लेते हैं,’’ वह बोली.

‘‘ओके,’’ मैं ने कहा फिर बाइक वहीं छोड़ी और उस के साथ चल दिया.

घुमावदार सड़कें, बर्फ से छिपतेढकते, पेड़, बर्फ

कहींकहीं पिघल कर पैरों को छू कर ठंड भर देती शरीर में. कुछ दूरी पर छोटा सा कौफीहाउस था पहाड़ी के दामन में. मैं ने कहा, ‘‘अगर एतराज न हो तो 1-1 कौफी पी लें?’’

‘‘जरूर,’’ वह बोली.

बड़े दिनों बाद आज धूप निकली थी इस बर्फीले हिल स्टेशन पर. गरम कपड़ों में लोग जगहजगह धूप का आनंद ले रहे थे.

कौफीहाउस में कुछ लोग थे, मैं ने खिड़की के पास वाली टेबल पसंद की. लकड़ी के कौटेज मुझे बहुत पसंद है. कौफीहाउस की डैकोरेशन बड़ी प्यारी थी.

वह मेरे सामने थी, बीच में थी टेबल, टेबल पर था पीले, सफेद, पिंक गुलाबों का गुलदस्ता, जो शायद कुछ देर पहले ही सजाया गया था.

‘क्या बात शुरू करूं?’ मैं ने सोचा. फिर ध्यान आया. अरे नाम…

‘‘हम लाइब्रेरी से इतनी देर से साथ हैं… हम ने एकदूसरे का नाम भी नहीं पूछा,’’ मैं ने कहा.

‘‘ओह,’’ कह कर वह मुसकरा दी. मुसकराते ही दाएं गाल का डिंपल भी मुसकरा दिया.

‘‘मैं आकाश हूं. मतलब मेरा नाम आकाश है. मैं जौब करता हूं. घर मेरा इंदौर में है. शिमला की बर्फ और खूबसूरती मुझे पंसद है. यहां का औफर आया तो तुरंत हां कर दी,’’ अपनी बात समाप्त कर के मैं उसे देखने लगा.

‘‘मैं गीतिका हूं. मुझे भी पहाडि़यों और चर्च से घिरा शिमला पसंद है. मेरे मामा यहां रहते हैं, पापामम्मी भोपाल में हैं. पापा सरकारी जौब में हैं. मम्मी हाउसवाइफ हैं. मुझे पढ़ने का शौक है तो मामा के यहां रह कर पढ़ाई भी करती हूं और अच्छे साहित्यकारों को भी पढ़ती हूं.’’

‘‘साहब, और्डर,’’ तभी वेटर ने आ कर हमारे बातचीत के क्रम को भंग किया.

‘‘कौफी के साथ क्या लोगी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जो आप का मन करे,’’ कह गीतिका मुसकरा दी.

‘‘ओके,’’ कह कर मैं ने पनीर सैंडवीच और कौफी का और्डर कर दिया.

सूर्य की किरणें कौटेज की दरारों से अंदर आ कर शैतानियां कर रही थीं. बर्फ की धुंध को चीर कर बड़े दिनों बाद धूप निकली थी जो अच्छी लग रही थी. धूप की शैतानियों को देखतेदेखते मैं ने गीतिका को देखा जो खिड़की से फूलों को देख रही थी.

मैं ने उसे देखा कि खिलता हुआ रंग, होंठों की बाईं तरफ तिल जो सौंदर्य पर पहरा दे रहा था, कमल सी आंखें, जो खामोशखामोश सी कोई कहानी छिपाए हैं. मुझे पसंद हैं सुंदर आंखें. लंबा कद, मांसलता लिए शरीर, ब्लैक कलर का सूट, उस पर पिंक कलर का ऐंब्रौयडरी वाला दुपट्टा, हलकाहलका काजल. काश, मेरी लाइफपार्टनर बने. मैं कल्पना में खो गया.

‘‘साहब, कौफी,’’ तभी वेटर की आवाज सुनाई दी.

‘‘गीतिका, क्या सोचती हो मेरे बारे में? मैं ने पूछा, मैं तो अकसर ही तलाशता था जब मैं लाइब्रेरी आता था,’’ कह उस के चेहरे के भाव देखने लगा.

‘‘जी मैं ने भी कई बार देखा था आप को. आप मुझे देखने के लिए साइकिल धीमी कर देते थे,’’ कह गीतिका खिलखिला दी. हंसतेहंसते ही उस ने अपने आंखों पर हाथ रख लिए. यह अंदाज मेरे दिल में उतर गया. ऐसा लगा जैसे नन्हेनन्हे घुंघरू बज उठे हों.

‘‘हां गीतिका मैं भी तुम से बात करना चाहता था, पर कर नहीं पाता था. मुझे ओवरस्मार्ट बनने वाली लड़कियां पसंद नहीं हैं. शरीर दिखाऊ कपड़े, अजीब सा हेयरस्टाइल, सिगरेट का धुआं उड़ाती लड़कियों का मानसिक दीवालिया समझता हूं मैं.’’

‘‘अच्छाजी,’’ गीतिका बोली, ‘‘कौफी

खत्म हो गई है. अब चलते हैं मामा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘गीतिका थोड़ी देर प्लीज,’’ मैं रिकवैस्ट के अंदाज में बोला.

‘ओके,’’ कह कर वह बैठ गई.

‘‘एक कौफी और मंगा लें?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मंगा लीजिए.’’

‘‘गीतिका तुम्हारी हौबी क्या है?’’

‘‘पढ़ना. बताया तो था आप को. इस के अलावा प्रकृति की सुंदरता को निहारना पसंद है. भीड़ से मुझे घबराहट होती,’’ गीतिका शिमला की पहाडि़यों को निहारती हुई बोली.

‘‘सच, कितनी सुंदर हौबीज हैं तुम्हारी.’’ मैं बहुत खुश हो उठा. मन ही मन उस देव स्थान पर मेरा सिर झकने लगा.

‘‘गीतिका हम फिर मिलेंगे न?’’ मैं ने उस की तरफ देख कर पूछा.

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘मुझे यह बुक पढ़ कर वापस कर देना मुझे भी पढ़नी है.’’

‘‘ओके बाय,’’ मैं ने हाथ हिला कर कहा.

‘‘बाय फिर मिलते हैं,’’ कह कर वह चली गई. मैं उसे जाते देखता रहा दूर तक.

मन में उस की सूरत बसाए जब अपने रूम पहुंचा तो देखा कि मेरे मकानमालिक एक

बड़ा सा लिफाफा लिए मेरा इंतजार कर रहे थे. मुझे देखते ही बोले, ‘‘तुम्हारे घर से आया है.’’

मैं लिफाफा ले कर रूम में पहुंचा. जैसे ही लिफाफा खोला तो कई फोटो नीचे गिर पड़े, हाथ में ले कर जैसे ही फोटो पर नजर गई, तो आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ. गीतिका के फोटो थे, पापामम्मी ने मेरे लिए लड़की पसंद की थी. मोबाइल के फोटो देखने को खुद मैं ने ही मना किया हुआ था. नहीं समझ आता फोटो फिल्टर हैं या औरिजनल. सामने हो तो बात ही अलग होती है मैं ने तुंरत घर फोन किया.

‘‘बेटा देख ले लड़की को,’’ पापा बोले. ‘‘गीतिका भी शिमला में ही है. पता कर के मुलाकात कर ले.’’

मैं क्या बोलता पापा को कि मैं तो मिल कर देख चुका हूं गीतिका को. मैं ने तुरंत हां कर दी शादी के लिए मेरे सपनों का चेहरा अब मेरा जीवनसाथी बनने जा रहा था.

तेरी सुरमई सूरत जब फूल बन जाए,

किताबी आंखों पर मेरी गजल हो जाए,

बन कर मैं देखूं तुझे रांझे की नजर से,

मेरे प्रेम के एहसास में तू हीर बन जाए.

यही थी मेरे गुलाबी सपनों का गुलाबी सपना किताब सा चेहरा.

Short Moral Stories in Hindi : सवाल का जवाब

Short Moral Stories in Hindi : जफर दफ्तर से थकाहारा जैसेतैसे रेलवे के नियमों को तोड़ कर एक धीमी रफ्तार से चल रही ट्रेन से कूद कर, मन ही मन में कचोटने वाले एक सवाल के साथ, उदासी से मुंह लटकाए हुए रात के साढ़े 8 बजे घर पहुंचा था. बीवी ने खाना बना कर तैयार कर रखा था, इसलिए वह हाथमुंह धोने के लिए वाशबेसिन की ओर बढ़ा तो देखा कि उस की 7 साल की बड़ी बेटी जैना ठीक उस के सामने खड़ी थी. वह हंस रही थी. उस की हंसी ने जफर को अहसास करा दिया था कि जरूर उस के ठीक पीछे कुछ शरारत हो रही है.

जफर ने पीछे मुड़ कर देखने के बजाय अपनी गरदन को हलका सा घुमा कर कनखियों से पीछे की ओर देखना बेहतर समझा कि कहीं उस के पीछे मुड़ कर देखने से शरारत रुक न जाए.

आखिरकार उसे समझ आ गया कि क्या शरारत हो रही है. उस की दूसरी

6 साला बेटी इज्मा ठीक उस से डेढ़ फुट पीछे वैसी ही चाल से जफर के साए की तरह उस के साथ चल रही थी.

बस, फिर क्या था. एक खेल शुरू हो गया. जहांजहां जफर जाता, उस की छोटी बेटी इज्मा उस के पीछे साए की तरह चलती. वह रुकता तो वह भी उसी रफ्तार से रुक जाती. वह मुड़ता तो वह भी उसी रफ्तार से मुड़ जाती. किसी भी दशा में वह जफर से डेढ़ फुट पीछे रहती.

इज्मा को लग रहा था कि जफर उसे नहीं देख रहा है, जबकि वह उस को कभीकभी कनखियों से देख लेता, इस तरह कि उसे पता न चले.

इस अनचाहे आकस्मिक खेल की मस्ती में जफर अपने 2 दिन पहले की सारी परेशानी और गम भूल सा गया था. तभी उसे अहसास हुआ कि इस नन्ही परी ने खेलखेल में उसे गम और परेशानियों का हल दे दिया था. इस मस्ती में उसे उस के बहुत बड़े सवाल का जवाब मिल गया था, जिस का जवाब ढूंढ़तेढूंढ़ते वह थक चुका था.

पिछले 2 दिनों से वह हर वक्त दिमाग में सवालिया निशान लगाए घूम रहा था. मगर जवाब कोसों दूर नजर आ रहा था, क्योंकि 2 दिन पहले उस की दोस्त नेहा ने कुछ ऐसा कर दिया था जिस के गम के बोझ में जफर जमीन के नीचे धंसता चला जा रहा था.

हमेशा सच बोलने का दावा करने वाली नेहा ने उस से एक झूठ बोला था. ऐसा झूठ, जिसे वह कतई बरदाश्त नहीं कर सकता था.

आखिर क्यों और किसलिए नेहा ने ऐसा किया?

इस सवाल ने दिमाग की सारी बत्तियों को बुझा कर रख दिया था. इस झूठ से जफर का उस के प्रति विश्वास डगमगा गया था.

वह ठगा सा महसूस कर रहा था. उसे लगने लगा था कि अब वह दोबारा कभी भी नेहा पर भरोसा नहीं कर पाएगा. ऐसा झूठ जिस ने रिश्तों के साथ मन में भी कड़वाहट भर दी थी और जो आसानी से पकड़ा गया था, क्योंकि उस शख्स ने जफर को फोन कर के बता दिया था कि नेहा अभीअभी उस से मिलने आई थी. जब जफर ने पूछा तो नेहा ने इनकार कर दिया था.

नेहा ने झूठ बोला था और उस शख्स ने सचाई बता दी थी. इतनी छोटी सी बात पर झूठ जो किसी मजबूरी की वजह से भी हो सकता था, जफर ने दिल से लगा लिया था. इस झूठ को शक और अविश्वास की कसौटी पर रख कर वह नापतोल करने लगा.

झूठ के पैमाने पर नेहा से अपने रिश्ते को नापने लगा तो सारी कड़वाहट उभर कर सामने आ गई. सारी कमियां याद आने लगीं. अच्छाई भूल गया. अच्छाई में भी बुराई दिखने लगी और यही वजह उस की परेशानी का सबब बन गई. उस के जेहन में एक, बस एक ही सवाल गूंज रहा था कि नेहा ने उस से आखिर क्यों झूठ बोला था?

जफर की नन्ही परी इज्मा ने बड़ी मासूमियत से उसे गम के इस सैलाब

से बाहर निकाल लिया था. उसे अपने सवाल का जवाब उस की इन मस्तियों में मिल गया था क्योंकि अब वह समझ गया था कि उस की बेटी थोड़ी मस्ती के लिए उस की साया बन कर, उस की पीठ के पीछे चल कर खेल खेल रही थी, जिस का मकसद खुशी था. अपनी भी और उस की भी. ठीक उसी तरह नेहा भी उस से झूठ बोल कर एक खेल खेल रही थी.

जफर की पीठ पीछे की घटना थी. उस ने शायद उस नन्ही परी की तरह

ही आंखमिचौली करने की सोची थी, क्योंकि इस से पहले कितनी ही बार जफर ने उस को परखा था. उस ने कभी झूठ नहीं बोला था. आज शायद उस का मकसद भी उस नन्ही परी की तरह मस्ती करने का था. शायद कुछ समय बाद वह सबकुछ बता देने वाली थी जिस तरह नन्ही परी ने बाद में बता दिया था.

जफर ठहरा जल्दी गुस्सा होने वाला इनसान, उस की एक न सुनी और बारबार फोन करने पर भी उसे सच बताने का मौका ही नहीं दिया था.

वह हैरान थी और डरी हुई भी. उस ने उस से बात तक नहीं की. जब तक बात न हो, गिलेशिकवे और बढ़ जाते हैं. बातचीत से ही रिश्तों की खाइयां कम होती हैं. यहां बातचीत के नाम पर

2 दिनों से सिर्फ ‘हां’ या ‘न’ दो जुमले इस्तेमाल हो रहे थे.

नेहा जफर की नाराजगी को ले कर परेशान थी और वह उस के झूठ को ले कर. नन्ही परी की मस्ती की अहमियत को इस सवाल के जवाब के रूप में समझ कर मेरी दिमाग की सारी घटाएं छंट गई थीं. दिल पर छाया कुहरा अब ऐसे हट गया था, जैसे सूरज की किरणों से कुहरे की धुंध हट जाया करती है.

सबकुछ साफ दिखाई दे रहा था. समझ में आ गया था कि कोई सच्चा इनसान कभीकभी छोटीछोटी बातों के लिए झूठ क्यों बोल देता है. शायद मस्ती के लिए. जो बात वह दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा कर भी नहीं सोच पा रहा था, वह इस नन्ही परी इज्मा की शरारत ने समझा दी थी, वह भी कुछ ही पलों में.

जफर का गुस्सा अब पूरी तरह से शांत हो गया था. एकदम शांत. वह समझ गया था कि उसे क्या करना है.

जफर ने खुद ही नेहा को फोन किया. नेहा ने सफाई देने की कोशिश की, मगर जफर ने उसे रोक दिया.

जफर ने अपनी नन्ही परी इज्मा का पूरा किस्सा सुनाया. अब नेहा एकदम शांत थी. उस की नाराजगी और सफाई अब दोनों की ही कोई अहमियत नहीं रह गई थी. फिर उस ने पहले की तरह एक चुटकुला छेड़ दिया था और वे दोनों सबकुछ भूल कर पहले जैसे हो गए थे.

लेखक- मौहम्मद आसिफ

Body Polishing : बौडी पौलिशिंग का कोई साइड इफैक्ट तो नहीं पड़ेगा ?

Body Polishing : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

शादी से पहले की गई शौपिंग में व्यस्त रहने के कारण मेरी स्किन टैन हो गई है, इसलिए मैं बौडी पौलिशिंग करवाना चाहती हूं. इस का कोई साइड इफैक्ट तो नहीं पड़ेगा?

जी नहीं यह पूरी तरह से एक प्राकृतिक उपचार है, इसलिए शरीर पर इस का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता. इस के लिए खास तरह के प्रोडक्ट प्रयोग किए जाते हैं जैसे बौडी क्रीम, बौडी औयल, बौडी साल्ट, बाम, बौडी पैक, ऐक्सफौलिएशन क्रीम वगैरह. इस में सब से पहले स्क्रब को पूरे शरीर पर लगा कर हलके गीले हाथों से हलकेहलके रगड़ा जाता है और 10 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है. स्क्रबिंग की मदद से बौडी की डैड स्किन निकल जाती है और साथ ही टैनिंग भी रिमूव हो जाती है. नैचुरल तरीके से बनाया गया यह स्क्रब त्वचा की रंगत को निखारने में सहायक होता है. इस के बाद बौडी को वाश कर के उस पर स्किन ग्लो पैक लगा लें और सूख जाने के बाद इसे वाश कर लें. इस के बाद बौडी शाइनर लगा कर त्वचा की 5 से 10 मिनट तक मसाज करें. बौडी पौलिशिंग द्वारा त्वचा की मृत कोशिकाएं हटती हैं, साथ ही टैनिंग भी रिमूव होती है, जिस से त्वचा में कोमलता व निखार आता है. नई बनने वाली दुलहन मसाज से स्ट्रैस फ्री फील करती है व बौडी रिलैक्स होती है, साथ ही पूरी बौडी की रंगत एकजैसी हो जाती है.

गरमी शुरू होते ही मेरी स्किन रूखी, पपड़ीदार हो जाती है और उस पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. इस समस्या को दूर करने का उपाय बताएं?

गरमियों में ऐलर्जी की समस्या बढ़ जाती है. इस मौसम में सैंसिटिव स्किन में नमी की कमी की वजह से लाल चकत्ते भी पड़ जाते हैं. चकत्ते होने पर आप साबुन की जगह सुबहशाम अल्कोहल फ्री क्लींजर का उपयोग करें.

इसी तरह घरेलू आयुर्वेदिक उपचार के तौर पर स्किन पर तिल के तेल की मालिश कर सकती हैं. मलाई में कुछ शहद की बूंदें मिला कर उसे त्वचा पर लगा कर 10-15 मिनट तक लगा रहने दीजिए. फिर इसे फ्रैश वाटर  से धो लें. यह ट्रीटमैंट सामान्य तथा ड्राई दोनों प्रकार की स्किन के लिए उपयोगी है.

मेरी उम्र 21 साल है. मेरी आंखें काफी छोटी हैं. मुझे कोई ऐसी मेकअप टैक्नीक बताएं जिस से मेरी आंखें बड़ी और अट्रैक्टिव नजर आएं?

अपनी आंखों को अट्रैक्टिव व बड़ी दिखाने के लिए आप ब्लैक के बजाय व्हाइट कलर की आई पैंसिल अप्लाई करनी करें और ध्यान रहे कि आईलाइनर बहुत थिन यानी पतला लगाएं. बाद में मसकारा लगा लें. आर्टिफिशियल आईलैशेज भी लगा सकती हैं, लेकिन ध्यान रहे कि मीडियम थिन आईलैशेज लगाएं. ऐसा आई मेकअप करने से आप की आंखें बड़ी और खूबसूरत नजर आएंगी. आंखें काफी छोटी हों तो आई मेकअप के लिए आईशैडो भी लाइट कलर का ही अप्लाई करें. सब से अच्छा रहेगा कि आप आईलैशेज ऐक्सटैंशन करवा लें. आप को रोज आईलैशेज नहीं लगाना पड़ेगा. यह आराम से 1-2 महीने चल जाएगी. बीचबीच में फिलिंग करवा सकती हैं.

मैं चिपचिपे डैंड्रफ की समस्या से ग्रस्त हूं. मैं ने कई ऐंटीडैंड्रफ शैंपू इस्तेमाल किए परंतु सब बेकार रहे. कृपया समाधान बताएं?

डैंड्रफ की समस्या आमतौर पर ड्राई और औयली दोनों किस्म के बालों में होती है. इस को यदि समय रहते कंट्रोल न किया जाए तो इस के ?ाड़ने से त्वचा में इन्फैक्शन फैलने का डर रहता है, साथ ही बालों की जड़ें भी कमजोर हो जाती हैं, जिस की वजह से हेयर फौल की समस्या उत्पन्न हो जाती है. इसलिए इसे समय रहते रोकना बेहद आवश्यक है.

इस के लिए सप्ताह में कम से कम 3 बार बालों में शैंपू करें और बाल धोने के लिए बहुत ज्यादा गरम पानी के बजाय कुनकुने पानी का प्रयोग कीजिए. इन्फैक्शन से बचने के लिए आप अपनी कंघी, तौलिया व तकिए को अलग रखें और इन की सफाई का भी खासतौर पर खयाल रखें. जब भी बाल धोएं तो ये तीनों चीजें किसी अच्छे ऐंटीसैप्टिक के घोल में आधा घंटा डुबो कर रखें और धूप में सुखा कर ही दोबारा इस्तेमाल करें.

सिर में औयली बाल होने के कारण रूसी है तो एक चम्मच त्रिफला पाउडर को 1 गिलास पानी में डाल कर कुछ देर के लिए उबाल लें. ठंडा हो जाने पर इसे छान लें और फिर 2 बड़े चम्मच सिरके में मिक्स कर लें और रात में इस टौनिक से सिर की मसाज कर लें. सुबह किसी अच्छे शैंपू से बाल धो लें. इन सब विधियों के बावजूद यदि आप की समस्या का हल न हो तो किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक में जा कर ओजोन ट्रीटमैंट या बायोप्ट्रोन की सिटिंग्स ले सकती हैं. इस से डैंड्रफ तो कंट्रोल होगा ही, साथ ही डैंड्रफ की वजह से हो रहा हेयर फौल में भी रुक जाएगा.

मेरी उम्र 45 साल है. चेहरे की रंगत दिनबदिन खत्म होती जा रही है. इस के लिए कोई घरेलू उपाय बताएं?

नियमित रूप से करीपत्तों का उपयोग करने से आप के चेहरे की रंगत में निखार आ जाएगा. करीपत्तों का इस्तेमाल करने के लिए इन्हें अच्छी तरह धूप में सुखा लें. उस के बाद इन का पाउडर बना लें. उस में जरूरत के हिसाब से कुछ बूंदें शहद, गुलाबजल और 1 छोटा चम्मच मुलतानी मिट्टी मिला कर फेस पैक बना लें. अब इस पेस्ट को 20 से 30 मिनट तक चेहरे पर लगा रहने दें. उस के बाद चेहरे को सादे पानी से धो लें. कुछ ही दिनों में चेहरे की त्वचा पर इस का अच्छा असर दिखाई देने लगेगा.

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