Kapil Sharma का 21-21-21 फ‍िटनेस रूल, किया जबरदस्त ट्रांसफॉर्मेशन

Kapil Sharma: हमेशा सबको हंसाने वाले स्टैंड अप कॉमेडियन और एक्टर कपिल शर्मा फिलहाल अपनी हंसाने की कला के वजह से नहीं बल्कि अपने जबरदस्त ट्रांसफॉर्मेशन की वजह से चर्चा में है . आजकल कपिल शर्मा पहले से कहीं ज्यादा दुबले पतले और हैंडसम नजर आ रहे हैं. खबरों के अनुसार उन्होंने अपना यह नया लुक अपनी आने वाली फिल्म किस किसको प्यार करूं 2 के लिए मेहनत करके बनाया है.
गौरतलब है कपिल शर्मा ने अपना यह फिगर ट्रांसफॉर्मेशन महज 63 दिनों में 11 किलो वजन कम करके हासिल किया है. जिसके लिए उन्होंने 21 21 21 फिटनेस प्लान फॉलो किया है . ये 21 21 21 प्लान एक ऐसा प्लान है जिसमें ना तो ज्यादा एक्सरसाइज है और ना ही बहुत ज्यादा डाइट फॉलो करना है.

कपिल शर्मा के फिटनेस कोच योगेश भटेजा ने कपिल के फिटनेस का राज शेयर करते हुए बताया की कपिल ने 21-21 -21 फिटनेस प्लान फॉलो किया है. जिसमें 21 दिन के बाद एक बदलाव होता है जिसमें पहला फेज होता है जिसमें सिर्फ अपने शरीर को अच्छे से हिलाना डुलाना जैसे फ्री स्टाइल एक्सरसाइज करना स्ट्रेचिंग करना शामिल होता है.

इन दिनों आप जलेबी भी खा ले तो कोई परवाह नहीं , लेकिन शरीर को हिलाना डुलाना वर्कआउट करना मुख्य मकसद होता है इसमें शरीर को एक्टिव बनाना मुख्य लक्ष्य होता है वजन घटाना नहीं , इसके बाद दूसरे फेस में 21 दिन तक खाने में बैलेंस बनाना क्या खाना यह बताया जाता है और उसे फॉलो किया जाता है जिसमें ना तो कोई डाइट फॉलो करना होता है ,और ना ही खाने में कोई बदलाव करना है और अंतिम आखिर के 21 दिनों में मेंटल और इमोशनल फिटनेस के लिए ट्रेनिंग देते हैं जिसमें आदमी को अपनी खराब आदतों को पहचानना है और उस पर नियंत्रण करना है.

अगर आप अपनी खराब आदत पर कंट्रोल कर लेते हैं तो वजन कम करने का प्रोग्राम अपने आप शुरू हो जाता है सही खानपान और सही आदतों के चलते जब ऑटोमेटेकली आपका वजन कम होता है को किसी और मोटिवेशन की जरूरत नहीं पड़ती , अपने शरीर के बदलाव को देखकर मोटिवेट हो जाते हैं और वजन कम करने की प्रक्रिया तेज कर देते हैं इसी फिटनेस प्रोग्राम को फोलो करके कपिल ने अपना 63 दिनों में 11 किलो वजन कम किया है. Kapil Sharma

Family Story: देवरानी वर्सेज जेठानी

Family Story: ‘‘वाह भई, मजा आ गया… भाभी के हाथों में तो जैसे जादू की छड़ी है… बस खाने पर घुमा देती हैं और खाने वाला समझ ही नहीं पाता कि खाना खाए या अपनी उंगलियां चाटे,’’ मयंक ने 2-4 कौर खाते ही हमेशा की तरह खाने की तारीफ शुरू कर दी तो रसोई में फुलके सेंकती सीमा भाभी के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई.

पास ही खड़ी महिमा के भीतर कुछ दरक सा गया, मगर उस ने हमेशा की तरह दर्द की उन किरचों को आंखों का रास्ता नहीं दिखाया, दिल में उतार लिया.

‘‘अरे भाभी, महिमा को भी कुछ बनाना सिखा दो न… रोजरोज की सादी रोटीसब्जी से हम ऊब गए… बच्चे तो हर तीसरे दिन होटल की तरफ भागते हैं,’’ मयंक ने अपनी बात आगे बढ़ाई तो लाख रोकने की कोशिशों के बावजूद महिमा की पलकें नम हो आईं.

इस के पास कहां इतना टाइम होता है जो रसोई में खपे… एक ही काम होगा… या तो कलम पकड़ लो या फिर चकलाबेलन… सीमा की चहक में छिपे व्यंग्यबाण महिमा को बेंध गए, मगर बात तो सच ही थी, भले कड़वी सही.

महिमा एक कामकाजी महिला है. सरकारी स्कूल में अध्यापिका महिमा को मलाल रहता है कि वह आम गृहिणियों की तरह अपने घर को वक्त नहीं दे पाती. ऐसा नहीं है कि उसे अच्छा खाना बनाना नहीं आता, मगर सुबह उस के पास टाइम नहीं होता और शाम को वह थक कर इतनी चूर हो चुकी होती है कि कुछ ऐक्स्ट्रा बनाने की सोच भी नहीं पाती.

महिमा सुबह 5 बजे उठती है. सब का नाश्ता, खाना बना कर 8 बजे तक स्कूल पहुंचती है. दोपहर 3 बजे तक स्कूल में व्यस्त रहती है. उस के बाद घर आतेआते इतनी थक जाती है कि यदि घंटाभर आराम न करे तो रात तक चिड़चिड़ाहट बनी रहती है. रात को रसोई समेटतेसमटते 11 बज जाते हैं. अगले दिन फिर वही दिनचर्या.

इतनी व्यस्तता के बाद महिमा चाह कर भी सप्ताह के 6 दिन पति या बच्चों की खाने, नाश्ते की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाती. एक रविवार

का दिन उसे छुट्टी के रूप में मिलता है, मगर यह एक दिन बाकी 6 दिनों पर भारी पड़ता है. सब से पहले तो वह खुद ही इस दिन थोड़ा देर से उठती. फिर सप्ताह भर के कल पर टलने वालेकाम भी इसी दिन निबटाने होते हैं. मिलनेजुलने वाले दोस्तरिश्तेदार भी इसी रविवार की बाट जोहते हैं. इस तरह रविवार का दिन मुट्ठी में से पानी की तरह फिसल जाता है.

क्या करे महिमा… अपनी ग्लानि मिटाने के लिए वह बच्चों को हर रविवार होटल में खाने की छूट दे देती है. धीरेधीरे बच्चों को भी इस आजादी और रूटीन की आदत सी हो गई है. महिमा महसूस करती है कि उस का घर सीमा भाभी के घर की तरह हर वक्त सजासंवरा नहीं दिखता. घर के सामान पर धूलमिट्टी की परत भी दिख जाती है. कई बार छोटेछोटे मकड़ी के जाले भी नजर आ जाते हैं. इधरउधर बिखरे कपड़े और जूते तो रोज की बात है. लौबी में रखी डाइनिंगटेबल भी खाने के कम, बच्चों की किताबों, स्कूल बैग, हैलमेट आदि रखने के ज्यादा काम आती है.

कई बार जब महिमा झुंझला कर साफसफाई में जुट जाती है, तो बच्चे पूछ बैठते हैं, ‘‘आज अचानक यह सफाई का बुखार कैसे चढ़ गया? कोई आने वाला है क्या?’’ तब वह और भी खिसिया जाती.

हालांकि महिमा ने अपनी मदद के लिए कमला को रखा हुआ है, मगर वह उस के स्कूल जाने के बाद आती है, इसलिए जो जैसा कर जाती है उसी में संतुष्ट होना पड़ता है.

स्कूल में आत्मविश्वास से भरी दिखने वाली महिमा भीतर ही भीतर अपना आत्मविश्वास खोती जा रही थी. यदाकदा अपनी तुलना सीमा भाभी से करने लगती कि कितने आराम से रहती हैं सीमा भाभी. घर भी एकदम करीने से सजा हुआ… अच्छे खाने से पतिबच्चे भी खुश.

दिन में 2-3 घंटे एसी की ठंडी हवा में आराम… और एक मैं हूं…. चाहे हजारों रुपए महीना कमाती हूं… कभी अपने पैसे का रोब नहीं झाड़ती… जेठानी के सामने हमेशा देवरानी ही बनी रहती हूं… कभी भी रानी बनने का गरूर नहीं दिखाती… फिर भी मयंक ने कभी मेरी काबिलियत पर गर्व नहीं किया. बच्चे भी अपनी ताई के ही गुण गाते रहते हैं.

वैसे देखा जाए तो वे सब भी कहां गलत हैं. कहते हैं कि दिल तक पहुंचने का रास्ता पेट से हो कर गुजरता है. मगर मैं कहां इन दूरियों को तय कर पाई हूं… जल्दीजल्दी जो कुछ बना पाती हूं बस बना देती हूं. एक सा नाश्ता और खाना खाखा कर बेचारे ऊब जाते होंगे… कैसी मां और पत्नी हूं… अपने परिवार तक को खुश नहीं रख पाती… महिमा खुद को कोसने लगती और फिर अवसाद के दलदल में थोड़ा और गहरे धंस जाती.

क्या करूं? क्या इतनी मेहनत से लगी नौकरी छोड़ दूं? मगर अब यह सिर्फ नौकरी कहां रही… यह तो मेरी पहचान बन चुकी है. स्कूल के बच्चे जब मुझे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं. उन के अभिभावक बच्चों के सामने मेरा उदाहरण देते हैं तो वे कितने गर्व के पल होते हैं… वह अनमोल खुशी को क्या सिर्फ इतनी सी बात के लिए गंवा दूं कि पति और बच्चों को उन का मनपसंद खाना खिला सकूं. महिमा अकसर खुद से ही सवालजवाब करने लगती, मगर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाती.

इसी बीच महिमा की स्कूल में गरमी की छुट्टियां हो गईं. उस ने तय कर लिया कि इन पूरी छुट्टियों में वह सब की शिकायतें दूर करने की कोशिश करेगी. सब का मनपसंद खाना बनाएगी. नईनई डिशेज बनाना सीखेगी… घर को एकदम साफसुथरा और सजा कर रखेगी…

छुट्टी का पहला दिन. नाश्ते में गरमगरम आलू के परांठे देखते ही सब के चेहरे खिल उठे. भूख से अधिक ही खा लिए सब ने. उन्हें संतुष्ट देख कर महिमा का दिल भी खुश हो गया. मयंक टिफिन ले कर औफिस निकल गया और बच्चे कोचिंग क्लास. महिमा घर को समेटने में जुट गई.

दोपहर ढलतेढलते पूरा घर चमक उठा. लगा मानो दीवाली आने वाली है. मयंक और बच्चे घर लौट आए. आते ही बच्चों ने अपनी किताबें और बैग व मयंक ने अपनी फाइलें और हैलमेट लापरवाही से डाइनिंगटेबल पर पटक दिया. महिमा का मूड उखड़ गया, मगर उस ने एक लंबी सास ली और सारा सामान यथास्थान पर रख कर डाइनिंगटेबल फिर से सैट कर दी.

महिमा ने रात के खाने में भी 2 मसालेदार सब्जियों के अलावा रायता और सूजी का हलवा भी बनाया. सजी डाइनिंगटेबल देख कर मयंक और बच्चे खुश हो गए. उन्हें खुश देख कर महिमा भी खुश हो उठी.

अब रोज यही होने लगा. नाश्ते में अकसर मैदा, बेसन, आलू और अधिक तेलमिर्च मसाले का इस्तेमाल होता था. रात में भी महिमा कई तरह के व्यंजन बनाती थी. अधिक वैरायटी बनाने के चक्कर में अकसर रात का खाना लेट हो जाता था और गरिष्ठ होने के कारण ठीक से हजम भी नहीं हो पाता था.

अभी 15 दिन भी नहीं बीते थे कि मयंक ने ऐसिडिटी की शिकायत की. रातभर खट्टी डकारों और सीने में जलन से परेशान रहा. सुबह डाक्टर को दिखाया तो उस ने सादे खाने और कई तरह के दूसरे परहेज बताने के साथसाथ क्व2 हजार का दवाओं का बिल थमा दिया.

दूसरी तरफ घर को साफसुथरा और व्यवस्थित रखने के प्रयास में बच्चों की आजादी छिनती जा रही थी. महिमा उन्हें हर वक्त टोकती रहती कि इस्तेमाल करने के बाद अपना सामान प्रौपर जगह पर रखें. मगर बरसों की आदत भला एक दिन में छूटती है और फिर वैसे भी अपना घर इसीलिए तो बनाया जाता है ताकि वहां अपनी मनमरजी से अपने तरीके से रहा जाए. मां की टोकाटाकी से बच्चे घर वाली फीलिंग के लिए तरसने लगे, क्योंकि घर अब होटल की तरह लगने लगा था.  घर को संवारने और सब को मनपसंद खाना खिलाने की कवायद में महिमा पूरा दिन उलझी रहने लगी. हर वक्त कोई न कोई नई डिश या नया आइडिया उस के दिमाग में पकता रहता. साफसफाई के लिए भी दिन भर परेशान होती, कभी कमला पर झल्लाती तो कभी बच्चों को टोकती. नतीजन, एक दिन रसोई में खड़ीखड़ी महिमा गश खा कर गिर पड़ी. मयंक ने उसे उठा कर बिस्तर में लिटाया. बेटे ने तुरंत डाक्टर को फोन किया.

चैकअप करने के बाद पता चला कि महिमा का बीपी बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है. डाक्टर ने आराम करने की सलाह के साथसाथ मसालेदार, ज्यादा घी व तेल वाले खाने से परहेज करने की सलाह दी. साथ ही लंबाचौड़ा बिल थमाया वह अलग.

‘‘सौरी मयंक मैं एक अच्छी पत्नी और मां की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकी,’’ महिमा ने मायूसी से कहा.

‘‘पगली यह तुम से किस ने कहा? तुम ने तो हमेशा अपनी जिम्मेदारियां पूरी शिद्दत के साथ निभाई है. मुझे गर्व है तुम पर,’’ मयंक ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

‘‘तो फिर वे हमेशा सीमा भाभी की तारीफें… वह सब क्या है?’’ महिमा ने संशय से पूछा.

‘‘अरे बावली, तुम भी गजब करती हो… पता नहीं किस आसमान तक अपनी सोच के घोड़े दौड़ा लेती हो,’’ मयंक ने ठहाका लगाते हुए कहा.

महिमा अचरज के भाव लिए मुंह खोले उसे देख रही थी. जब हमारी सगाई हुई थी उस के बाद से ही सीमा भाभी के व्यवहार में परिवर्तन नजर आने लगा था. उन्हें लगने लगा था कि नौकरीपेशा बहू आने के बाद घर में उन की अहमियत कम हो जाएगी. यह भी हो सकता है कि तुम उन पर अपने पैसे का रोब दिखाओ. बस, तभी हम सब ने तय कर लिया था कि सीमा भाभी को इस कमतरी के एहसास से छुटकारा दिलाना है और इसीलिए हम सब बातबात में उन की तारीफ करते हैं ताकि वे किसी हीनभावना से ग्रस्त न हो जाएं. मगर इस सारे गणित में अनजाने में ही सही, हम से तुम्हारा पक्ष नजरअंदाज होता रहा. हम सब तुम्हारे गुनाहगार हैं,’’ मयंक ने शर्मिंदा होते हुए अपने कान पकड़ लिए.

यह देख महिमा खिलखिला पड़ी, ‘‘तो अब सजा तो आप को मिलेगी ही… आप सब को अगले 20 दिन और इसी तरह का चटपटा और मसालेदार खाना खाना पड़ेगा.’’

‘‘न बाबा न… इतनी बड़ी सजा नहीं… हमें तो वही सादी रोटीसब्जी चाहिए ताकि हमारा पेट भी हैप्पी रहे और जेब भी. क्यों बच्चो?’’ मयंक ने नाटकीयता से कहा. अब तक बच्चे भी वहां आ चुके थे.

‘‘ठीक है, मगर सप्ताह में एक दिन तो होटल जाने दोगे और हमें अपनी मनपसंद डिशेज खाने दोगे न?’’ दोनों बच्चे एकसाथ चिल्लाए तो महिमा के होंठों पर भी मुसकराहट तैर गई. Family Story

Drama Story in Hindi: धोखेबाज पति

Drama Story in Hindi: ‘कौन कहता है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं? आदमी में समझ होनी चाहिए,’ रूपेश ने दिल ही दिल में कहा. फिर उस ने अर्चना के सुंदर मुखड़े की ओर ताका व उस के बाद उस की नजरें अपनी पत्नी शिखा के चेहरे पर पड़ीं. शिखा अपनी प्लेट में धीरेधीरे उंगलियां चला रही थी. अर्चना से रूपेश की मुलाकात अपने एक मित्र के कार्यालय में हुई थी, जो उसे इंतजार करने को कह कर खुद कहीं चला गया था. एकडेढ़ घंटे की बातचीत के बाद अर्चना और रूपेश में इतनी घनिष्ठता हो गई थी कि रूपेश को अर्चना के बगैर रहना कठिन महसूस होने लगा था. कुछ दिनों तक सिनेमाघरों, पार्कों और होटलों में मुलाकातों के बाद रूपेश उसे अपने घर लाने की लालसा को न दबा पाया. शिखा को रूपेश ने जब यह कहा कि वह अर्चना को भी अपने घर में रहने दे तो शिखा पर मानो बिजली गिर पड़ी थी. वह काफी चीखीचिल्लाई थी किंतु रूपेश ने उस को समझाया था कि जब हम अपने हर रिश्तेदार, मित्रों और जानपहचान वालों की खुशियों के लिए सबकुछ करने को तैयार रहते हैं, तब यह कितनी अजीब बात है कि पतिपत्नी, जिन का रिश्ता संसार में सब से बड़ा और गहरा होता है, एकदूसरे की खुशियों का खयाल न रखें.

रूपेश ने शिखा से कहा कि अर्चना पर और घर पर उसे पूरा अधिकार होगा. उस को अपनी हर इच्छा को पूरा करने का अधिकार होगा. बस, वह अर्चना को उस के साथ इस घर में रहने पर आपत्ति न उठाए. पड़ोसियों को वह यही बताए कि अर्चना उस की मामी की या चाची की लड़की है और वह, यहां पर नौकरी करने आई है तथा अब उन लोगों के साथ ही रहेगी. आखिर जब शिखा ने देखा कि रूपेश को समझानेबुझाने का अब कोई फायदा नहीं है तो एक हफ्ते की खींचतान के बाद उस ने रूपेश की इच्छा के आगे सिर झुका दिया. रूपेश के पांव धरती पर न टिकते थे. वह उसी दिन जा कर अर्चना को अपने घर ले आया. पड़ोसियों से कहा गया कि वह शिखा की बहन है. रिश्तेदारों ने आपत्ति उठाई तो रूपेश ने यह कह कर मुंह बंद कर दिया कि जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी. शिखा ने अर्चना का खुले दिल से स्वागत किया. उस के रहने की व्यवस्था रूपेश के कमरे में कर दी गई. अर्चना को नहानेधोने के लिए शिखा स्नानघर में खुद ले गई. अपने हाथों से तौलिया, साबुन, तेल वहां पहुंचाया. बाथरूम स्लीपर खुद अर्चना के पांव के पास रख दिए. रूपेश मानो खुशियों के हिंडोलों में झूल रहा था. नहाने के बाद नाश्ते की मेज पर बड़े आग्रह के साथ शिखा ने अर्चना को खिलायापिलाया. शिखा से ऐसे बरताव की आशा रूपेश को कभी न थी.

रूपेश मन ही मन मुसकरा रहा था और अपने सुंदर जीवन की कल्पना में डूबतैर रहा था. औटोरिकशा की भड़भड़ाहट से उस की कल्पना में सहसा विघ्न पड़ा. औटोरिकशा से एक लंबाचौड़ा खूबसूरत युवक उतरा और ‘हैलो शिखा’ बोलते हुए घर में घुस गया. शिखा एकाएक उस की तरफ बढ़ी. किंतु फिर थोड़ा रुक गई. उस नौजवान ने आगे बढ़ कर शिखा के कंधे पर अपनी बांह रख दी.

‘‘रूपेश भैया, जरा औटोरिकशा से सामान तो उतार लाना,’’ उस नवयुवक ने रूपेश की तरफ मुंह फेर कर कहा. कुछ न समझते हुए भी रूपेश ने औटोरिकशे वाले से उस नवयुवक का सामान अंदर रखवाया और उसे पैसे दे कर चलता किया. शिखा और वह युवक सोफे पर पासपास बैठे बातों में मग्न थे जैसे जिंदगीभर की सारी बातें आज ही खत्म कर के दम लेंगे.

‘‘आप की तारीफ,’’ रूपेश ने शिखा से पूछा. शिखा थोड़ा सा मुसकराई और शर्म से सिमटसिकुड़ गई. फिर उस ने एक बार उस नवयुवक के सुंदर मुखड़े की ओर ताका. ‘‘यह संजय है. तुम्हें शायद याद होगा कि एक बार तुम्हारे बहुत जोर देने पर मैं ने स्वीकार किया था कि शादी से पहले मैं भी किसी से प्यार करती थी. मेरी अधूरी प्रेमकहानी का हीरो यही है.’’ रूपेश को झटका सा लगा. उस की आंखें फैल गईं.

‘‘जब मैं ने अर्चना को साथ रखने की बात सुनी और तुम ने मेरा पूरा हक और मेरी खुशियां मुझे देने का वचन दे दिया, तब मैं ने संजय को अपने साथ रखने का फैसला कर लिया,’’ शिखा ने अपनी आंखों को नचाते हुए कहा, ‘‘अपने मिलनेजुलने वालों से हम यही कहेंगे कि संजय आप के मामाजी, फूफाजी या चाचाजी का बेटा है और यह नौकरी के सिलसिले में यहां आया हुआ है और अब हमारे साथ ही रहेगा.’’ ‘‘अरे, शिखा डार्लिंग, पहले तो मुझे यकीन ही नहीं आया. किंतु जब तुम ने बताया कि तुम लोग एकदूसरे की खुशियों के लिए झूठे रस्मोरिवाज तोड़ रहे हो तब मैं ने उस महान आदमी के दर्शन करने के लिए यहां आने का निश्चय कर ही लिया,’’ संजय बोला.

‘‘अब तुम इन से खुद पूछ लो,’’ शिखा ने संजय की तरफ देखा और फिर वह अपने पति की तरफ घूम गई, ‘‘क्यों जी, है न यही बात? आप मेरी खुशियों के आगे दीवार तो नहीं बनेंगे? प्यार की जिस प्यास से मैं आज तक तड़पती रही हूं, अब उसे बुझाने में आप मुझे पूरा सहयोग देंगे न?’’ ‘‘हांहां.’’ रूपेश आगे कुछ न कह सका.

‘‘डार्लिंग, तुम थकेहारे आए हो. आओ, नहाधो लो ताकि थकावट दूर हो जाए.’’

‘‘स्नानघर किधर है?’’ संजय ने पूछा. ‘‘जाइए जी, इन को स्नानघर बताइए,’’ शिखा ने कहा, ‘‘और हां, यह तौलिया और साबुन वहां रख दीजिएगा.’’ रूपेश ने तौलिया और साबुन हाथ में ले लिया और स्नानघर की ओर मुड़ा. संजय उस के पीछेपीछे चल पड़ा.

‘‘अरे हां, यह बाथरूम स्लीपर भी साथ ले जाइए.’’ शिखा ने संजय का ब्रीफकेस खोल कर उस में से बाथरूम स्लीपर निकाले. संजय बाथरूम से स्लीपर लेने के लिए पलटा.

‘‘अरे, नहीं. आप चलिए. ये ले कर आते हैं.’’ शिखा ने बाथरूम स्लीपर रूपेश की तरफ बढ़ा दिए. रूपेश ने कंधे उचकाए और फिर बाथरूम स्लीपर पकड़ कर आगे बढ़ गया.

स्नानघर से पानी गिरने की आवाज आ रही थी और संजय मग्न हो कर गुनगुना रहा था. ‘‘यह क्या मजाक है?’’ रूपेश ने शिखा से कमरे में लौटते ही कहा.

‘‘कैसा मजाक, क्या आप को संजय का यहां आना अच्छा नहीं लगा?’’ शिखा ने पूछा. ‘‘नहीं, यह बात नहीं, मैं पूछता हूं कि संजय के बाथरूम स्लीपर मुझ से उठवाना क्या तुम्हें शोभा देता है?’’

‘‘डार्लिंग, मैं आप की खुशी के लिए अर्चना बहन की दिल से सेवा कर रही हूं. आप मेरी खुशी के लिए माथे पर बल न डालिए. कहीं ऐसा न हो कि संजय के दिल को चोट पहुंचे. वह बहुत भावुक है,’’ शिखा ने कहा. रूपेश मन ही मन ताव खाए कंधे हिला कर रह गया.

‘‘अब ऐसा करिए, दो?पहर के खाने के लिए कुछ सब्जी वगैरह लेते आइए. आप डब्बों में बंद सब्जी ले आइए.’’ रूपेश ने अर्चना की तरफ देखा.

‘‘यदि अर्चना बहन आराम करना चाहती हैं तो आराम करें या आप के साथ जाना चाहती हैं तो बाजार घूम आएं. मैं रसोई की तैयारी करती हूं.’’ ‘‘नहीं, अर्चना यहीं रहेगी,’’ रूपेश ने जल्दी से कहा.

‘‘क्या आप मुझे संजय के साथ अकेले छोड़ते हुए डरते हैं?’’ शिखा ने तीखी नजरों से रूपेश की तरफ देखा. ‘‘नहीं, मैं ऐसा तंगदिल नहीं हूं. मैं तो इसलिए कह रहा हूं कि यह काम में तुम्हारी मदद करेगी,’’ रूपेश ने जल्दी से कहा और फिर थैला उठा कर बाहर निकल गया.

रूपेश ताव खाते हुए बाजार की ओर जा रहा था. उस के घर में उस की पत्नी उस से किसी के जूते उठवाए, यह कहां तक ठीक था. शिखा ने यदि अर्चना के लिए तौलिया, साबुन, स्लीपर स्नानघर में पहुंचा दिए तो अपनी खुशी से. उस ने उसे मजबूर तो नहीं किया था? संजय को बुलाने से पहले वह उस से पूछ तो लेती, सलाह तो कर लेनी चाहिए थी. और अब नौकर की तरह थैला थमा कर उसे बाजार की ओर ठेल दिया है. यह ठीक है कि शिखा को उस ने घर में पूरा हक देने का वादा जरूर किया था, मगर उसे एकदूसरे की बेइज्जती करने का तो अधिकार नहीं है.

इस की कुछ न कुछ सजा जरूर संजय और शिखा को मिलनी चाहिए. वे दोनों फूड पौयजन से बीमार हो जाएं तो कैसा रहे? रूपेश के दिमाग में एकदम विचार उभरा. हां, यह ठीक रहेगा. उस के कदम एक डिपार्टमैंटल स्टोर की ओर बढ़े.

‘‘आप के यहां कोई ऐसी डब्बाबंद सब्जी है जिस से फूड पौयजन होने का खतरा हो?’’ उस ने सेल्समैन से सीधा सवाल किया. ‘‘क्या मजाक करते हैं, साहब? हमारे यहां तो बिलकुल ताजा स्टौक है,’’ सेल्समैन ने दांत निकालते हुए कहा.

‘‘एकआध डब्बा भी नहीं?’’ ‘‘क्या आप स्वास्थ्य विभाग से आए हैं?’’ सेल्समैन ने सतर्क हो कर पूछा.

‘‘नहीं, डरो नहीं. हां, यह बताओ कि कोई ऐसा डब्बा…’’ ‘‘जी नहीं. हम इमरजैंसी से पहले और इमरजैंसी के बाद भी अच्छा ही माल बेचते रहे हैं,’’ सेल्समैन ने कहा.

‘‘अच्छा, कोई ऐसी दुकान का पता बता दो जहां ऐसी डब्बाबंद सब्जी मिल जाए.’’ अपनी बेइज्जती के बाद की भावना से पागल हो रहे रूपेश ने 500 रुपए का नोट सेल्समैन की तरफ सरकाया. ‘‘क्रांति बाबू, जरा पुलिस को फोन करना. यह पागल आदमी किसी की हत्या करना चाहता है,’’ सेल्समैन ने टैलीफोन के करीब बैठे एक नौजवान से कहा.

पुलिस का नाम सुन कर रूपेश उड़नछू हो गया. 500 रुपए का नोट काउंटर से उठाने की भी उसे सुध न रही, संजय व शिखा को बीमार कर देने का विचार भी उस के दिमाग से उड़ गया. अब तो वह उन दोनों की सेहत ठीक रहने की ख्वाहिश कर रहा था. उस के डरे हुए मस्तिष्क में यह विचार उभरा कि संजय व शिखा को कुछ हो गया तो सेल्समैन की गवाही पर वह पकड़ लिया जाएगा. रात को खाने के बाद कौफी का दौर चला. वे चारों बैठक में बैठे थे. संजय अपने चुटकुलों से सब को हंसाता रहा.

‘‘क्या बात है, डार्लिंग, तुम कुछ नहीं बोल रहे हो?’’ अर्चना ने रूपेश के करीब सरकते हुए कहा. ‘‘मैं तो कहता हूं, रूपेशजी, यदि सब लोग आप की तरह समझदार हो जाएं तो प्रेम के कारण होने वाली सारी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं,’’ संजय ने कहा.

‘‘और प्रेम में निराश हो कर आत्महत्याएं भी कोई न करे,’’ अर्चना बोली. ‘‘मानव जाति को कितना अच्छा सुझाव दिया है रूपेशजी ने,’’ शिखा

ने कहा. ‘‘मगर पहले तो तुम अडि़यल घोड़े की तरह दुलत्तियां झाड़ रही थीं, मरनेमारने की धमकियां दे रही थीं,’’ रूपेश ने शिखा की तरफ देख कर कहा.

‘‘तब मैं तुम्हारे दिल की गहराई नाप नहीं पाई थी.’’ ‘‘अच्छा भई, तुम दिल की गहराइयां नापो. हम तो नींद की गहराइयों में उतरने चले,’’ संजय उठ खड़ा हुआ, ‘‘शिखा डार्लिंग, सोने का कमरा किधर है?’’

‘‘वह बाएं कोने वाला इन का है और दाएं वाला हमारा.’’ ‘‘अच्छा भई, गुडनाइट,’’ स्लीपिंग गाउन सरकाता हुआ संजय दाईं ओर के सोने के कमरे की ओर बढ़ गया.

संजय के चले जाने के बाद कुछ देर तक अर्चना अंगरेजी पत्रिका के पन्ने पलटती रही. फिर वह भी अंगड़ाई ले कर उठ खड़ी हुई.

‘‘सोना नहीं है, रूपेश डार्लिंग?’’ ‘‘तुम चलो, मैं थोड़ी देर और बैठूंगा.’’ रूपेश ने अनमने स्वर में कहा.

‘‘ओके, गुडनाइट.’’ ‘‘गुडनाइट,’’ रूपेश कुछ नहीं बोला लेकिन शिखा ने स्वेटर पर सलाई चलाते हुए कहा.

फिर बैठक में खामोशी छा गई. घड़ी की टिकटिक और शिखा की सलाइयों की टकराहट इस खामोशी को तोड़ देती. रूपेश अनमना सा कुरसी पर बैठा रहा.

‘‘अब सो जाइए, 1 बजने को है, मुझे तो नींद आ रही है,’’ शिखा ऊन के गोलों में सलाइयां खोंसती हुई बोली. शिखा ने स्वेटर और ऊन के गोलों को कारनेस पर टिका कर एक अंगड़ाई ली, रूपेश की तरफ देखा और और फिर पलट पड़ी दाएं कोने वाले सोने के कमरे की ओर.

‘‘रुक जाओ, शिखा,’’ रूपेश तड़प कर शिखा और कमरे के दरवाजे के बीच बांहें फैला कर खड़ा हो गया, ‘‘बेशर्मी की भी हद होती है.’’ ‘‘बेशर्मी, कैसी बेशर्मी? रूपेश डार्लिंग, तुम ने मुझे जो हक दिया है मैं उसी का इस्तेमाल कर रही हूं. हट जाओ, मेरी वर्षों से मुरझाई हुई खुशियों के बीच दीवार न बनो. मुझे खुशियों का रास्ता दिखा कर राह में कांटे न बिछाओ.’’

‘‘अपने पति के सामने ऐसा कदम उठाते हुए तुझे डर नहीं लगता? शर्म नहीं आती?’’ ‘‘डर, शर्म आप से? क्यों? यह तो बराबरी का सौदा है. रात काफी हो चुकी है, सो जाइए. आप का कमरा उधर है,’’ शिखा ने बाएं कोने में कमरे की ओर इशारा किया, ‘‘छोडि़ए, मेरा रास्ता.’’

‘‘बेशर्म, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम इतनी गिर सकती हो. तुम्हारी इस हरकत से एक पति के दिल पर क्या गुजर सकती है, यह तुम ने कभी सोचा है?’’ रूपेश की आंखें क्रोध से जल उठीं. ‘‘मर्द जब दूसरी पत्नी ब्याह कर लाता है तब क्या अपनी पहली पत्नी के दिल में उठने वाली चीखों की शहनाइयों के शोर को सुनता है? रातरातभर कोठों पर ऐश की शमाएं जलाने वाले पति कभी अपनी पत्नी के दिल के अंधेरों में झांक कर देखते हैं? हर जवान लड़की पर लार टपकाने वाला पति कभी यह भी सोचता है कि उस की पत्नी के गालों पर आंसू के निशान क्यों बने रहते हैं? आप ने जब अर्चना को लाने की तजवीज पेश की थी, तब मैं भी रोईचिल्लाई थी. अब मैं संजय के पास जा रही हूं तो आप क्यों चीख उठे?’’

‘‘मैं उस का सिर तोड़ दूंगा,’’ रूपेश कमरे की तरफ बढ़ा. ‘‘अरे, रुको तो,’’ शिखा ने उस की बांह पकड़ ली.

‘‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहता. उसे इसी वक्त चलता कर दो.’’ ‘‘और अर्चना?’’

‘‘वह भी जाएगी. मेरा फैसला गलत था. मैं अंधे जज्बात की धारा में बह गया था,’’ रूपेश ने हथियार डाल दिए. ‘‘अंधे जज्बात नहीं, वासना ने तुम्हें अंधा कर दिया था. रूपेश भैया,’’ संजय पूरे कपड़े पहन अतिथिकक्ष के दरवाजे पर खड़ा था.

रूपेश कभी सोने के कमरे की तरफ और कभी अतिथिकक्ष के दरवाजे पर खड़े संजय की ओर देख रहा था. ‘‘जी हां, आप का खयाल ठीक है. मैं सोने के कमरे में स्लीपिंग सूट पहन कर गया जरूर था. किंतु दूसरे दरवाजे से बाहर निकल गया था,’’ संजय ने कहा, ‘‘आप को फिर कोई शो करना हो तो याद कीजिएगा. यह रहा मेरा कार्ड.’’

‘नितिन…निर्देशक तथा स्टेज आर्टिस्ट,’ रूपेश कार्ड की पहली पंक्ति पर अटक गया. ‘‘आगे हमारे ड्रामा क्लब का पता भी लिखा है. नोट कर लीजिए,’’ नितिन मुसकरा दिया.

रूपेश मुंह फाड़ कभी कार्ड को तो कभी उस युवक को देख रहा था, जो संजय से नितिन बन गया था.

‘‘यह नितिन है, हमारे शहर के माने हुए कलाकार और भैया के जिगरी दोस्त. जब मैं ने भैया को आप की अर्चना को साथ रखने की जिद के बारे में लिखा तब उन्होंने नितिन की सहायता से यह सारा नाटक रचवाया,’’ शिखा ने सारी बात समझाते हुए कहा. ‘‘ओह,’’ रूपेश ने एक लंबी सांस ली और धम से सोफे पर बैठ गया. Drama Story in Hindi:

Online Friendship: फेसबुक, इंस्टा, व्हाट्सएप ने बदली दोस्ती की परिभाषा…

Online Friendship: जिंदगी में जैसे मां बाप, भाई बहन ,पति पत्नी, अन्य रिश्ते जरूरी होते हैं, वैसे ही इन सभी रिश्तों से बड़ा होता है एक ऐसा रिश्ता जो खून का रिश्ता तो नहीं होता लेकिन दिल से जुड़ा रिश्ता होता है, और वह रिश्ता होता है दोस्ती का रिश्ता.

एक ऐसा सच्चा दोस्त जिससे हम अपने दिल की सारी बातें कर सकते हैं , कोई दिखावा नहीं होता, दोस्तों के बीच कोई सेंसर नहीं होता, वह हमारी औकात देखकर हमें जज नहीं करता, जिससे हमारा दिल का रिश्ता होता है, सच्चे दोस्त वह होते हैं जो हर हाल में आपका साथ देते हैं, बारिश के मौसम में भीगे हुए चेहरे के पीछे आंखों में भरे आंसुओं को भी पहचान लेते है , जिससे मिलने के बाद और दिल की बातें करने के बाद आपका मन हल्का हो जाता है.

ऐसा सच्चा और प्यार करने वाला निस्वार्थ दोस्त हर इंसान की जिंदगी में एक जरूर होता है . जो मरते दम तक हमारे साथ रहता है, आसमान की बुलंदियों को छूने वाले सेलिब्रिटी हो या अमीर इंसान हो, या गरीबी में जीने वाले आम इंसान ही क्यों ना हो.

असल दोस्त का मतलब यह होता है जब वह आपसे मिले तो खुले दिल से मिले, जैसे की  उसके सामने हमारी छवि बिल्कुल आईने में देखने जैसी हो, जो पूरी तरह पारदर्शी हो, सच्चा दोस्त अगर गाली देकर बात करें , कड़वा बोले, तो भी बुरा नहीं लगता क्योंकि हमें पता होता है कि वह किसी भी हाल में हमारा बुरा नहीं चाहता. जिनके पास ऐसे दोस्त होते हैं जहां पर वह दिल खोलकर बात कर सके , सोच समझ कर बोलने की जरूरत ना पड़े, ऐसे लोगों को दिल का इलाज करने के लिए डॉक्टर और अस्पतालों और औजारों की जरूरत नहीं पड़ती. क्योंकि वह पहले ही दोस्त के सामने अपना सारा टेंशन और दिल की बाते  शेयर कर चुके होते हैं.

सलमान खान के पिता सलीम खान ने अपने एक इंटरव्यू में अच्छे इंसान की पहचान बताई थी . सलीम साहेब अनुसार अच्छा इंसान की पहचान ये होती है,की जिसका नौकर पुराना हो, और दोस्त पुराने हो . वह अच्छा इंसान होता है , कहने का मतलब यह है कि आज के स्वार्थी युग में जो लोग अपने से ज्यादा अपने दोस्तों की परवाह करते हैं ,बिना किसी शर्त के अपने दोस्त से प्यार करते हैं वह अच्छे इंसान की श्रेणी में गिने जाते हैं, लेकिन आज जैसे-जैसे इंसान तरक्की कर रहा है इंटरनेट और पैसों के पीछे भाग के  तरक्की और कामयाबी की राह में जितना आगे बढ़ रहा है, उतना ही वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से दूर होता जा रहा है.

हर इंसान को खुश होने के लिए दोस्तों की जरूरत होती है इसलिए वह इंटरनेट के जरिए हजारों में दोस्त बना रहा है जिनके बारे में वह खुद ठीक से जानता भी नहीं, सोशल मीडिया के जरिए बनने वाले दोस्त के बारे में हम उतना ही जानते हैं जितना कि वह फेसबुक इंस्टाग्राम व्हाट्सएप जैसे सोशल साइट पर हमें बताते हैं .

 फेस बुक, इंस्टाग्राम , व्हाट्सएप जैसे एप के जरिए दोस्तों की तादाद ज्यादा लेकिन उन दोस्तों की दोस्ती कम या नकली….

जब से फेसबुक इंस्टाग्राम जैसे पब्लिक रिलेटेड ऐप आए हैं , कई लोगों ने इसको ही अपने नए दोस्त बनाने का जरिया बना लिया है. इन एप्स के जरिए हम एक ऐसे इंसान को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं जिन्हें हम ठीक से जानते भी नहीं , ऐसे में जब वह इंसान हमारी फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर लेता है , तो उस इंसान की प्रोफाइल से जुड़े बाकी लोगों को भी हमारी सारी डिटेल मिलती है. ऐसे में उस इंसान की तरह ही कई अन्य लोग भी हमे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं, और हम बिना कुछ सोचे समझे खाली दोस्तों की संख्या बढ़ाने के चक्कर में फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करते जाते हैं, ऐसे में हमारे दोस्तों की संख्या तो बढ़ जाती है, लेकिन उन दोस्तों में से एक भी दोस्त ऐसा नहीं होता जिससे हम दिल की बात कर सके.

ऐसे ही एक फेसबुक के फ्रेंड लिस्ट में एक अमीर आदमी ने ऐसा दोस्त सेलेक्ट कर लिया जिस के बारे में उसे कुछ पता भी नहीं था, लिहाजा एक बार जब उसकी कार सिग्नल पर रुकी तो वहां पर फूल बेच रहे एक लड़के ने उस कार मलिक को बताया कि वह उसका फेसबुक पर फ्रेंड है , ये सुनते ही उस अनजान इंसान को फ्रेंड बनाने वाला  कार मलिक हक्का-बक्का रह गया.

कहने का मतलब यह है कि नेट के जरिए बनाए गए दोस्त या प्यार भरे रिश्ते की कोई गारंटी नहीं होती , वह असल दोस्त नहीं होते, दोस्त वह होते हैं जिनसे मिलने के बाद हम अपना टेंशन कुछ समय के लिए ही सही भूल जाते हैं , और मस्ती भरे मूड में आ जाते हैं. या फिर अगर हम किसी मुसीबत या परेशानी में है तो ऐसे अच्छे दोस्त हमे सहीं गाइड भी करते हैं.

 

फिल्म इंडस्ट्री में भी कई स्टार्स ऐसे हैं जिनके दोस्त सालों पुराने और मजेदार है…..

बॉलीवुड में कई ऐसे एक्टर हैं जो अपनी सच्ची दोस्ती के लिए पहचाने जाते हैं , अक्षय कुमार के कई ऐसे दोस्त हैं जिन में लड़कियां भी शामिल हैं , उनके बचपन के दोस्त हैं , जिनसे आज स्टार बनने के बाद भी अक्षय कुमार मिलते जुलते रहते हैं , और कपिल कॉमेडी शो जैसे मनोरंजन शो में अक्षय अपने सारे पुराने दोस्तों को लेकर जाते हैं, खुद कपिल के भी पुराने दोस्त उनके शो में काम कर रहे है ,जो पंजाब से ही उनके साथ है.

इसी तरह अजय देवगन और तब्बू की दोस्ती तो तब से है  जब से उनके अभिनय करियर की शुरुआत हुई थी, अमिताभ बच्चन और डैनी की दोस्ती, जितेंद्र ऋषि कपूर राकेश रोशन की दोस्ती, सलमान खान की कुमार गौरव, मोहनीश बहल, अनिल कपूर साजिद नाडियाडवाला और शाहरुख खान से गहरी दोस्ती, शाहरुख खान के कई दोस्त हैं जो दिल्ली में रहते हैं , फराह खान उनकी अच्छी दोस्त है, आलिया भट्ट अपनी बचपन की स्कूल फ्रेंड की शादी अटेंड करने खास गोवा गई थी, करीना कपूर और अमृता अरोड़ा की गहरी दोस्ती आज भी कायम है.

इन सारे नामचीन स्टारों ने जिनके लाखों फैन हैं लेकिन बावजूद इसके उनके करीबी दोस्त जिसके सामने वह दिल की बात कर सकते हैं, जिसके सामने कोई दिखावा नहीं करना पड़ता, यह अपने दोस्त को स्टार की तरह नहीं बल्कि एक नॉर्मल दोस्त की तरह पहचानते हैं, ऐसे दोस्तों की जरूरत सिर्फ फिल्मी स्टारों को ही नहीं बल्कि हर किसी को होती है,इसलिए फेसबुक और इंस्टा पर नए और अंजान दोस्त बनाने के बजाय ऐसे दोस्त बनाएं जिनसे आपके दिल और विचार मिले, और उनके साथ आप सब कुछ भूल कर खुश रहे. Online Friendship

Hindi Family Story: दुनिया- असमा की जिंदगी में किसने मचाई खलबली

Hindi Family Story: यह फ्लैट सिस्टम भी खूब होता है. कंपाउंड में सब्जी वाला आवाजें लगाता तो मैं पैसे डाल कर तीसरी मंजिल से टोकरी नीचे उतार देती, लेकिन मेरे लाख चीखनेचिल्लाने पर भी सब्जी वाला 2-4 टेढ़ीमेढ़ी दाग लगी सब्जियां व टमाटर चढ़ा ही देता. एक दिन मामूली सी गलती पर पोस्टमैन 1,800 रुपए का मनीऔर्डर ले कर मेरे सिर पर सवार हो गया और आज हौकर हमारा अखबार फ्लैट नंबर 111 में डाल गया.

मिसेज अनवर वही अखबार लौटाने आई थीं. मैं ने शुक्रिया कह कर उन से अखबार लिया और फौर्मैलिटी के तौर पर उन्हें अंदर आने के लिए कहा तो वे ?ाट से अंदर आ गईं और फैल कर बैठ गईं. कुछ देर इधरउधर की बातें कर के मैं उन के लिए कौफी लेने किचन की तरफ बढ़ी तो वे भी मेरे पीछे ही चली आईं और लाउंज में मौजूद चेयर संभाल ली. मैं ने वहीं उन्हें कौफी का कप थमाया और लंच की तैयारी में जुट गई.

वे बोलीं, ‘‘कुछ देर पहले मैं ने तुम्हारे फ्लैट से एक साहब को निकलते देखा था. उन्हें लाख आवाजें दी मगर उन्होंने सुनी नहीं, इसलिए मुझे खुद ही आना पड़ा.’’

‘‘चलिए अच्छी बात है, इसी बहाने आप से मुलाकात तो हो गई,’’ कह कर मैं मुसकरा दी. फिर गोश्त कुकर में चढ़ाया, फ्रिज से सब्जी निकाली और उन के सामने बैठ कर छीलने लगी.

‘‘सच कहती हूं, जब से तुम आई हो तब से ही तुम से मिलने को दिल करता था, मगर इस जोड़ों के दर्द ने कहीं आनेजाने के काबिल कहां छोड़ा है.’’

मैं खामोशी से लौकी के बीज निकालती रही.

तब उन्होंने पूछा, ‘‘तुम्हारे शौहर तो मुल्क से बाहर हैं न?’’

‘‘जी…?’’ मैं ने चौंक कर उन्हें देखा, ‘‘जिन साहब को आप ने सुबह देखा, वही तो…’’

‘‘हैं… वे तुम्हारे शौहर हैं?’’

मिसेज अनवर जैसे करंट खा कर उछलीं और मैं ने ऐसे सिर झुका लिया जैसे आफताब सय्यद मेरे शौहर नहीं, मेरा जुर्म हों. वैसे इस किस्म के जुमले मेरे लिए नए नहीं थे मगर

हर बार जैसे मुझे जमीन में धंसा देते थे. मैं ने लाख बार उन्हें टोका है कि कम से कम बाल ही डाई कर लिया करें, मगर बनावट उन्हें पसंद ही नहीं है.

मिसेज अनवर ने यों तकलीफ भरी सांस ली जैसे मेरी सगी हों. फिर बोलीं, ‘‘कितनी प्यारी दिखती हो तुम, तुम्हारे घर वालों को तुम्हें जहन्नुम में धकेलते वक्त जरा भी खयाल नहीं आया?’’

फिर वे लगातार व्यंग्य भरे वाक्य मु?ा पर बरसाती रहीं और कौफी पीती रहीं.

मेरी अम्मी को सारी जिंदगी ऐसे ही लोगों की जलीकटी बातें सताती रहीं. अब्बा बैंकर थे और बहुत जल्दी दुनिया छोड़ गए थे. अम्मी पढ़ीलिखी थीं, इसलिए अब्बा की बैंकरी उन के हिस्से में आ गई. अम्मी की आधी जिंदगी 2-2 पैसे जमा करते गुजरी. उन्होंने अपने लहू से अपने पौधों की परवरिश की, मगर जब फल खाने का वक्त आया तो…

बड़ी आपा शक्ल की प्यारी मगर मिजाज की ऊंची निकलीं. उन के लिए रिश्ते तो आते रहे मगर उन की उड़ान बहुत ऊंची थी. मास्टर डिगरी लेने के बाद उन्हें लैक्चररशिप मिल गई तो उन की गरदन में कुछ ज्यादा ही अकड़ आ गई और अम्मी के खाते में बेटी की कमाई खाने का इलजाम आ पड़ा.

बेटी की शादी कब कर रही हैं आप? अब कर ही डालिए. इतनी देर भी सही नहीं. लोग ऐसे कहते जैसे अम्मी के कान और आंखें तो बंद हैं. वे मशवरे के इंतजार में बैठी हैं. अम्मी बेटी की बात मुंह पर कैसे लातीं. किसकिस को बड़ी आपा के मिजाज के बारे में बतातीं. अम्मी पाईपाई पर जान देती थीं और सारा जमाजोड़ बेटियों के लिए बैंक में रखवा देती थीं.

आपा हर रिश्ते पर नाक चढ़ा कर कह देतीं, ‘‘असमा या हुमा की कर दीजिए न, आखिर उन्हें भी तो आप को ब्याहना ही है.’’ और इस से पहले कि असमा या हुमा के लिए कुछ होता बड़े भैया उछलने लगे, ‘मेरी शादी होगी तो जारा सरदरी से ही.’ अम्मी भौचक्की रह गईं. अभी तो पेड़ का पहला फल भी न खाया था. अभी दिन ही कितने हुए थे बड़े भाई को नौकरी करते हुए. जारा सरदारी भैया की कुलीग थी. अम्मी ने ताड़ लिया कि बेटा बगावत के लिए आमादा है. ऐसे में हथियार डाल देने के अलावा कोई चारा न था. फिर वही हुआ जो भाई ने चाहा था.

जारा सरदरी को अपनी कमाई पर बड़ घमंड और शौहर पर पूरा कंट्रोल था. ससुराल वालों से उस का कोई मतलब न था. बहुत जल्दी उस ने अपने लिए अलग घर बनवा लिया.

अम्मी को बड़ी आपा की तरफ से बड़ी मायूसी हो रही थी लेकिन हुमा के लिए एक ऐसा रिश्ता आ गया, जो अम्मी को भला लगा. आखिरकार बड़ी आपा के नाम की सारी जमापूंजी खर्च कर उन्होंने उसे ब्याह दिया. हुमा का भरापूरा ससुराल था. ससुराल के लोगों के मिजाज अनूठे थे. इस पर शौहर निखट्टू.

उस की सारी उम्मीदें ससुराल वालों से थीं कि वे उसे घरजमाई रख लें, कारोबार करवा दें या घर दिलवा दें. यह कलई बाद में खुली.  झूठ पर झूठ बोल कर अम्मी को दोनों हाथों से लूटा गया मगर ससुराल वालों की हवस पूरी न हुई.

हुमा बहुत जल्दी घर लौट आई. उस का सारा दहेज ननदों के काम आया. फिर बहुत मुश्किल से तलाक मिलने पर उसे छुटकारा मिला. लेकिन इस पर खानदान के कई लोगों ने अम्मी को यों लताड़ा जैसे अम्मी को पहले से सब कुछ पता था.

हुमा का उजड़ना उन्हें मरीज बना गया. वे आहिस्ताआहिस्ता घुल रही थीं. एक रोज वे बिस्तर से जा लगीं, मगर सांसें जैसे हम दोनों बहनों में अटकी थीं.

कभीकभी बड़े भैया बीवीबच्चे समेत घर आते तो अम्मी की परेशानियां जबान पर आ जातीं. लेकिन वे हर बात उड़ा जाते. अम्मी, हो जाएगा सब कुछ. आप फिक्र न किया करें.

परेशानियों के इसी दौर में छोटे भैया से मायूस हो कर अम्मी ने उन्हें ब्याहा. छोटे भैया अपने पैरों पर खड़े थे, लेकिन घर की जिम्मेदारियों से दूर भागते थे. घर की गाड़ी अम्मी के बचाए पैसों पर ही चल रही थी. लेकिन घर चलाने के लिए एक जिम्मेदार औरत का होना जरूरी होता है, यह सोच कर ही अम्मी ने छोटे भैया को ब्याह दिया था.

लेकिन अम्मी एक बार फिर मात खा गईं. छोटी भाभी बहुत होशियार और सम?ादार साबित हुईं, मगर मायके के लिए. उन के दिलोदिमाग पर मायके का कब्जा था. कोई न कोई बहाना बना कर मायके की तरफ दौड़ लगाना और कई दिन डेरा डाल कर वहां पड़ी रहना उन की फितरत थी. ससुराल में वे कभीकभी ही नजर आतीं. अचानक छोटे भैया को दुबई में नौकरी का चांस मिल गया और भाभी का पड़ाव हमेशा के लिए मायके में बन गया.

इस दौरान एक खुशी की बात यह हुई कि बड़ी आपा के लिए एक भला रिश्ता मिल गया. संजीदा, सोबर और जिम्मेदार एहसान अलवी. खूब पढ़ेलिखे थे और एक अरसे से अमेरिका में रहते थे. आपा जितनी उम्र की थीं, उस से कम की ही नजर आती थीं और एहसान अलवी अपनी उम्र से 2-4 साल ज्यादा के दिखते थे.

अम्मी को फिर इनकार का अंदेशा था. उन्होंने आपा को सम?ाया, ‘‘ऐसा रिश्ता फिर मिलने वाला नहीं. समझे कि गोल्डन चांस है. पानी पल्लू के नीचे से गुजर जाए तो लौट कर नहीं आता.’’

पता नहीं क्या हुआ कि यह बात आपा की अक्ल में समा गई. फिर चट मंगनी, पट ब्याह. आपा अमेरिका चली गईं.

शादी के नाम पर हुमा रोने बैठ जाती और एक ही रट लगाती, ‘मुझे नहीं करनी शादीवादी.’

मैं आईने के सामने खड़ी होती तो आठआठ आंसू रोती. हमारे खानदान के हर घर में रिश्ता मौजूद था, मगर लड़के 4 अक्षर पढ़ कर किसी काबिल हो जाते हैं, तो खानदान की फीकी सीधी लड़कियों पर हाथ नहीं रखते हैं. ऐसे में सारी रिश्तेदारी धरी की धरी रह जाती है. फिर अब उन्हें बदला भी लेना था. अम्मी ने भी तो खानदान की किसी लड़की पर हाथ नहीं रखा था. उन के दोनों बेटों की बीवियां तो पराए खानदान की थीं. इस धक्कमपेल में मेरी उम्र 30 पार कर गई.

फिर अचानक बड़ी आपा की ससुराल के किसी फंक्शन में आफताब सय्यद के रिश्तेदारों ने मुझे पसंद किया. आफताब की सारी फैमिली कनाडा में रहती थी और उन के सभी भाईबहन शादीशुदा थे. आफताब की पहली शादी नाकाम हो चुकी थी. बीवी ने नया घर बसा लिया था. उन के 2 बच्चे थे, जो आफताब के पास ही थे. अम्मी को मेरी नेक सीरत पर भरोसा था और मुझे भी कहीं न कहीं तो समझौता करना ही था. पानी पल्लू के नीचे से गुजर जाए तो लौट कर नहीं आता, यह बात मैं ने गिरह में बांध ली थी.

आफताब बहुत खयाल रखने वाले शौहर साबित हुए. हमारी उम्र में फर्क बहुत ज्यादा न था मगर दुनिया तो यही समझती थी कि वे मुझ से बहुत बड़े हैं और बच्चों समेत सारी गृहस्थी मेरी मुट्ठी में है. इस एहसास की ?झोल में कोई न कोई कंकड़ डाल कर हलचल मचा ही देता था. तब मुझे लगता था कि इंसान अपनी जिंदगी से समझौता कर भी ले तो दुनिया उसे कहां छोड़ती है? Hindi Family Story

Family Story: जा तुझको भूला दिया

Family Story: समीर ने अपनी घड़ी की तरफ देखा और उठ गया. आज रविवार था तो समय की कोई पाबंदी नहीं थी. आज न तो कोई मीटिंग थी, न ही औफिस जाने की जल्दी, न ही आज उस को सुबहसुबह अपने पूरे दिन का टाइमटेबल देखना था.

समीर की नौकरानी की आज छुट्टी थी या फिर यह कहा जा सकता है कि समीर नहीं चाहता था कि आज कोई भी उस को डिस्टर्ब करे. समीर ने खुद अपने लिए कौफी बनाई और बालकनी में आ कर बैठ गया. कौफी पीतेपीते वह अपने बीते दिनों की याद में डूबता गया.

अपना शहर और घर छोड़े उसे 2 साल हो चुके थे. यह नौकरी काफी अच्छी थी, इसलिए उस ने घर छोड़ कर दिल्ली आ कर रहना ही बेहतर समझा था, वैसे यह एक बहाना था. सचाई तो यह थी कि वह अपनी पुरानी यादों को छोड़ कर दिल्ली आ गया था.

उस की पहली नौकरी अपने ही शहर लुधियाना में थी. वहां औफिस में पहली बार वह सुमेधा से मिला था. औफिस में वह उस का पहला दिन था. वहां लंच से पहले का समय सब लोगों के साथ परिचय में ही बीता था. सब एकएक कर के अपना नाम और पद बता रहे थे…

एक बहुत प्यारी सी आवाज मेरे कानों में पड़ी. एक लड़की ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘हैलो, आई एम सुमेधा.’

सीधीसादी सी दिखने वाली सुमेधा में कोई खास बात तो थी जिस की वजह से मैं पहली ही मुलाकात में उस की तरफ आकर्षित होता चला गया था और मैं ने उस से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘हैलो, आई एम समीर.’

हमारी बात इस से आगे बढ़ी नहीं थी. दूसरे दिन औफिस के कैफेटेरिया में मैं अपने औफिस में बने नए दोस्त नीलेश के साथ गया तो सुमेधा से मेरी दूसरी मुलाकात हुई. सुमेधा वहां खड़ी थी. नीलेश ने उस की तरफ देखते हुए कहा, ‘सुमेधा, तुम भी हमारे साथ बैठ कर लंच कर लो.’

सुमेधा हम लोगों के साथ बैठ गई. मैं चोरीचोरी सुमेधा को देख रहा था. मैं ने पहले कभी किसी लड़की को इस तरह देखने की कोशिश नहीं की थी.

मेरे और सुमेधा के घर का रास्ता एक ही था. हम दोनों एकसाथ ही औफिस से घर के लिए निकलते थे. उस समय मेरे पास अपनी बाइक तक नहीं थी, तो बस में सुमेधा के साथ सफर करने का मौका मिल जाता था. रास्ते में हम बहुत सारी बातें करते हुए

जाते थे, जिस से हमें एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जानने को मिला. वह अपने जीवन में कुछ करना चाहती थी, सफलता पाना चाहती थी. उस के सपने काफी बड़े थे. मुझे अच्छा लगता था उस की बातों को सुनना.

धीरेधीरे मैं और सुमेधा एकदूसरे के साथ ज्यादा वक्त बिताने लगे. शायद सुमेधा भी मुझे पसंद करने लगी थी, ऐसा मुझे लगता था.

‘कल रविवार को तुम लोगों का क्या प्लान है?’ एक दिन मैं और नीलेश जब औफिस की कैंटीन में बैठे थे, तो सुमेधा ने बड़ी बेबाकी से आ कर पूछा.

‘कुछ खास नहीं,’ नीलेश ने जवाब दिया.

‘और तुम्हारा कोई प्लान हो तो बता दो समीर,’ सुमेधा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

‘नहीं…कुछ खास नहीं. तुम बताओ?’ मैं ने कहा.

‘कल मूवी देखने चलें?’ सुमेधा ने कहा.

‘आइडिया अच्छा है,’ नीलेश एकदम से बोला.

‘तो ठीक है तय हुआ. कल हम तीनों मूवी देखने चलेंगे,’ कह कर सुमेधा चली गई.

‘देखो समीर, कल तुम अपने दिल की बात साफसाफ सुमेधा से बोल देना. मुझे लगता है कि सुमेधा भी तुम्हें पसंद करती है,’ नीलेश ने एक सांस में यह बात बोल दी.

मैं उस का चेहरा देखे जा रहा था. वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त बन गया था. शायद अब वह मेरे दिल की बात भी पढ़ने लगा था.

‘देखो, मैं ने जानबूझ कर हां बोला है और मैं कोई बहाना बना कर कल नहीं आऊंगा. तुम दोनों मूवी देखने अकेले जाना. इस से तुम्हें एकसाथ वक्त बिताने का मौका मिलेगा और अपने दिल की बात कहने का भी.’

‘लेकिन…’

‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, तुम्हें अपने दिल की बात कल उस से कहनी ही होगी. वह आ कर तो यह बात बोलेगी नहीं.’

मैं ने नीलेश को गले लगा लिया,

‘धन्यवाद नीलेश…’

‘ओह रहने दे, तेरी शादी में भांगड़ा करना है बस इसलिए ऐसा कर रहा हूं,’ यह कह कर नीलेश हंसने लगा.

आज रविवार था और नीलेश का प्लान कामयाब हो चुका था. उस ने सुमेधा को फोन कर के कह दिया था कि उस की मौसी बिना बताए उस को सरप्राइज देने के लिए पूना से यहां उस से मिलने आई हैं. इसलिए वह मूवी देखने नहीं आ सकता. लेकिन हम उस की वजह से अपना प्लान और मूड खराब न करें. इस से उस को अच्छा नहीं लगेगा.

सुमेधा मान गई और न मानने का तो कोई सवाल ही नहीं था. मैं मन ही मन नीलेश के दिमाग की दाद दे रहा था.

मौल के बाहर मैं सुमेधा का इंतजार कर रहा था. सुमेधा जैसे ही औटो से उतरी मैं ने उस को देख लिया था. सफेद सूट में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. मैं उस को बस देखे जा रहा था. उस ने मेरी तरफ आ कर मुझ से हाथ मिलाया और कहा, ‘ज्यादा इंतजार तो नहीं करना पड़ा?

‘नहीं, मैं बस 20 मिनट पहले आया था,’

मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा.

‘ओह, आई एम सौरी. ट्रैफिक बहुत है आज, रविवार है न इसलिए,’ उस ने हंसते हुए कहा.

हम दोनों ने मूवी साथ देखी. लेकिन मूवी बस वह देख रही थी. मेरा ध्यान मूवी पर कम और उस पर ज्यादा था.

मूवी के बाद हम दोनों वहीं मौल के एक रेस्तरां में बैठ गए. सुमेधा मूवी के बारे में ही बात कर रही थी.

‘मुझे तुम से कुछ कहना है सुमेधा,’ मैं ने सुमेधा की बात बीच में ही काटते हुए कहा.

‘हां, बोलो समीर…,’ सुमेधा ने कहा.

‘देखो, मैं ने सुना है कि लड़कियों का सिक्स सैंस लड़कों से कुछ ज्यादा होता है, लेकिन फिर भी मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अगर तुम को मेरी बात पसंद न आए तो तुम मुझ से साफसाफ बोल देना. और हां, इस से हमारी दोस्ती में कोई फर्क नहीं आना चाहिए.’

‘लेकिन बात क्या है, बोलो तो पहले,’ सुमेधा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

‘मुझे डर था कि कहीं अपने दिल की बात बोल कर मैं अपने प्यार और दोस्ती दोनों को ही न खो दूं. फिर नीलेश की बात याद आई कि कम से कम एक बार बोलना जरूरी है, जिस से सचाई का पता चल सके. मैं ने सुमेधा की तरफ देखते हुए अपनी पूरी हिम्मत जुटाते हुए कहा, ‘आई…आई लव यू सुमेधा. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’

मेरी बात सुन कर सुमेधा एकदम अवाक रह गई. उस के चेहरे के भाव एकदम बदल गए.

‘सुमेधा, कुछ तो बोलो… देखो, अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मैं माफी चाहूंगा. जो मेरे मन में था और जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करता हूं वह मैं ने तुम से कह दिया और यकीन मानो आज तक यह बात न तो मैं ने कभी किसी से कही है और न ही कहने का दिल किया कभी.’

सुमेधा मुझे देखे जा रही थी और मेरी घबराहट उस की नजरों को देख कर बढ़ती जा रही थी. वह धीमी आवाज में बोली, ‘मैं तुम से नाराज हूं…’

मैं उस की तरफ एकटक देखे जा रहा था.

‘मैं तुम से नाराज हूं इसलिए क्योंकि तुम ने यह बात कहने में इतना समय लगा दिया और मुझे लगता था कि मुझे ही प्रपोज करना पड़ेगा.’

उस की बात को सुन कर मुझे लगा कि कहीं मेरे कानों ने कुछ गलत तो नहीं सुन लिया था. कहीं यह सपना तो नहीं? लेकिन वह कोई सपना नहीं हकीकत थी.

मैं ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘तुम ने मुझे डरा दिया था सुमेधा. मुझे लगा कहीं प्यार की बात बोल कर मैं अपनी दोस्ती न खो दूं.’

‘अच्छा… और अगर न बताते तो शायद अपने प्यार को खो देते,’ सुमेधा ने कहा.

उस दिन से ज्यादा खुश शायद मैं पहले कभी नहीं हुआ था. जब एम.ए. में फर्स्ट क्लास आया था तब भी और जब नौकरी मिली थी तब भी. एक अजीब सी खुशी थी उस दिन.

सुमेधा और मैं घंटों मोबाइल पर बात किया करते थे और मौका मिलते ही एकदूसरे के साथ वक्त बिताते थे.

उस दिन के बाद एक दिन सुमेधा ने मुझे बहुत खूबसूरत सा हार दिखाते हुए बाजार में कहा, ‘देखो समीर, कितना प्यारा लग रहा है.’

मैं ने कहा, ‘तुम से ज्यादा नहीं.’

वह बोली, ‘जनाब, यह मेरी खूबसूरती को और बढ़ा सकता है.’

उस वक्त मन तो था कि मैं उस को वह हार दिलवा कर उस की खूबसूरती में चार चांद लगा दूं, लेकिन मेरी सैलरी इतनी नहीं थी कि उस को वह हार दिलवा सकता.

सुमेधा समझ गई थी. उस ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, ‘इतना भी खूबसूरत नहीं है कि इस हार की इतनी कीमत दी जाए. लगता है अपने शोरूम के पैसे भी जोड़ दिए हैं. चलो समीर चाय पीते हैं.’

मुझे सुमेधा की वह बात अच्छी लगी. वह खूबसूरत तो थी ही, समझदार भी थी.

वक्त बीतता गया. सुमेधा चाहती थी कि मैं शादी से पहले अपने पैरों पर अच्छे से खड़ा हो जाऊं ताकि शादी के बाद बढ़ती हुई जिम्मेदारियों से कोई परेशानी न आए. बात भी सही थी. अभी मेरी सैलरी इतनी नहीं थी कि मैं शादी जैसी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभा सकूं.

हमारे प्यार को 1 साल से ज्यादा हो गया था. वक्त कैसे बीत गया पता ही नहीं चला.

आज सुमेधा औफिस नहीं आई थी. मैं ने सुमेधा को फोन किया, लेकिन पूरी रिंग जाने के बाद भी उस ने मोबाइल नहीं उठाया.

हो सकता है वह व्यस्त हो किसी काम में. क्या हुआ होगा, जो सुमेधा ने मुझे नहीं बताया कि आज वह छुट्टी पर है. पूरा दिन बीत गया लेकिन सुमेधा का कोई फोन नहीं आया. मुझे बहुत अजीब लग रहा था. क्या आज वह इतनी व्यस्त है कि एक बार भी फोन या मैसेज करना जरूरी नहीं समझा?

अगले दिन भी वही सब. न मेरा फोन उठाया और न खुद फोन या मैसेज किया. बस अपने सर को उस ने अपनी छुट्टी के लिए एक मेल भेजा था, जिस में बस यह लिखा था कि कोई जरूरी काम है.

क्या जरूरी काम हो सकता है? मैं सोच नहीं पा रहा था.

नीलेश ने कहा, ‘तुम उस के घर के फोन पर बात करने की कोशिश क्यों नहीं करते?’

‘अगर किसी और ने फोन उठाया तो?’ मैं ने उस के सवाल पर अपना सवाल किया.

‘तो तुम बोल देना कि तुम उस के औफिस से बोल रहे हो और यह जानना चाहते हो कि कब तक छुट्टी पर है वह.’

हिम्मत कर के मैं ने उस के घर के फोन पर काल किया. पहली बार किसी ने फोन नहीं उठाया. नीलेश के कहने पर मैं ने दोबारा कोशिश की. इस बार फोन पर आवाज आई जो मैं सुनना चाहता था.

‘हैलो सुमेधा, मैं समीर बोल रहा हूं. कहां हो, कैसी हो? और तुम औफिस क्यों नहीं आ रही हो? मैं ने तुम्हारा मोबाइल नंबर कितनी बार मिलाया, लेकिन तुम ने फोन नहीं उठाया. सब ठीक तो है?’

सुमेधा चुपचाप मेरी बातों को बस सुने जा रही थी.

‘सुमेधा कुछ तो बोलो.’

‘अब मुझे कभी फोन मत करना समीर…’ सुमेधा ने धीमी आवाज में कहा.

‘क्या, पर हुआ क्या यह तो बताओ?’ मैं ने बेचैन हो कर पूछा.

‘पापा को माइनर हार्ट अटैक आया था. अब उन की हालत ठीक है. मेरे लिए एक रिश्ता आया था पापा ने वह रिश्ता तय कर दिया है और उन की हालत को ध्यान में रखते हुए मैं न नहीं कर पाई.’

‘तुम्हें उन्हें मेरे बारे में तो बताना चाहिए था,’ मैं ने कहा.

‘समीर वह लड़का बिजनैसमैन है,’ सुमेधा ने एकदम से कहा.

‘ओह, तो शायद इसीलिए तुम्हारी उस से शादी हो रही है,’ मैं ने कहा.

‘तुम जो भी समझो मैं मना नहीं करूंगी. अगले महीने मेरी शादी है. मैं ने आज ही अपना रिजाइनिंग लैटर अपने सर को मेल कर दिया है. बाय समीर.’

मैं बस फोन को देखे जा रहा था और नीलेश मुझे देखे जा रहा था. उस का मेरे प्यार को स्वीकार करना जितना खूबसूरत सपने की तरह था, उतना ही आज उस का यह बोलना किसी बुरे सपने से कम नहीं था. मैं चाहता था कि दोनों बातों में से सिर्फ एक ख्वाब बन जाए, लेकिन दोनों ही हकीकत थीं.

आज इस बात को पूरे 3 साल हो गए. उस दिन के बाद मैं ने कभी सुमेधा को न तो फोन किया और न ही उस ने मेरा हाल जानने की कोशिश की. जिस दिन उस की शादी थी उसी दिन मुझे दिल्ली की एक मल्टीनैशनल कंपनी से इस नौकरी का औफर आया था. यहां की सैलरी से दोगुनी सैलरी और एक फ्लैट. सब कुछ ठीक ही नहीं बल्कि एकदम परफैक्ट. आज जो मेरे पास है अगर वह मेरे पास 3 साल पहले होता तो शायद आज सुमेधा मिसेज समीर होती.

वक्त बदल गया और वक्त के साथ लोग भी. आज मैं जिस मुकाम पर पहुंच गया हूं शायद उस समय इन सब चीजों की कल्पना उस ने कभी की ही नहीं होगी. उस वक्त मैं सिर्फ समीर था लेकिन आज एक मल्टीनैशनल कंपनी का जनरल मैनेजर. आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन मेरी सफलता को बांटने के लिए वह नहीं है जिस के लिए शायद मैं यह सब करना चाहता था.

अचानक मेरे मोबाइल की बजी. घंटी ने मुझे मेरी यादों से बाहर निकाला.

नीलेश का फोन था. सब कुछ बदल जाने के बाद भी मेरी और नीलेश की दोस्ती नहीं बदली थी. शायद कुछ रिश्ते सच में सच्चे और अच्छे होते हैं.

‘‘कब तक पहुंचेगा?’’ नीलेश ने पूछा.

‘‘निकलने वाला हूं बस,’’ मैं ने नीलेश से कहा.

‘‘जल्दी निकल यार,’’ कह कर नीलेश ने फोन रख दिया.

नीलेश की शादी है आज. शादी दिल्ली में ही हो रही थी. मुझे सीधे शादी में ही शरीक होना था. अपने सब से अच्छे दोस्त की शादी में न जाने का कोई बहाना होता भी तो भी मैं उस को बना नहीं सकता था.

मैं फटाफट तैयार हुआ. अपनी कार निकाली और चल दिया. वहां पहुंचा तो चारों तरफ फूलों की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. नीलेश बहुत स्मार्ट लग रहा था. मैं ने उस की तरफ फूलों का गुलदस्ता बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारी नई जिंदगी की शुरुआत है और मेरी दिल से शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं.’’

नीलेश मेरे गले लग गया. और लोगों को भी उसे बधाइयां देनी थीं, इसलिए मैं स्टेज से नीचे उतर गया. उतर कर जैसे ही मैं पीछे मुड़ा तो देखा कि लाल साड़ी में एक महिला मेरे पीछे खड़ी थी. उस के साथ उस का पति और बेटा भी था.

वह कोई और नहीं सुमेधा थी, जो मेरी ही तरह अपने दोस्त की शादी में शामिल होने आई थी. मुझे देख कर वह चौंक गई. वह मुझ से कुछ कहती, इस से पहले ही मेरी पुरानी कंपनी के सर ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वैल डन समीर. मुझे तुम पर बहुत गर्व है. थोड़े से ही समय में तुम ने बहुत सफलता हासिल कर ली है. मैं सच में बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए.’’

मैं बस हां में सिर हिला रहा था और जरूरत पड़ने पर ही जवाब दे रहा था. मेरा दिमाग इस वक्त कहीं और था.

सुमेधा अपने पति के साथ खड़ी थी. उस का पति एक बिजनैसमैन था, लेकिन उस की कंपनी इतनी बड़ी नहीं थी. आज मेरा स्टेटस उस से ज्यादा था.

यह मैं क्या सोच रहा हूं? मेरी सोच इतनी गलत कब से हो गई? मुझे किसी की व्यक्तिगत और व्यावसायिक जिंदगी से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. मेरा दम घुट सा रहा था. अब इस से ज्यादा मैं वहां नहीं रुक सकता था. मैं जैसे ही बाहर जाने लगा सुमेधा ने पीछे से मुझे आवाज लगाई.

‘‘समीर…’’

उस के मुंह से अपना नाम सुनते ही मन में आया कि उस से सारे सवालों के जवाब मांगूं. पूछूं उस से कि जब प्यार किया था तो विश्वास क्यों नहीं किया? सब कुछ एकएक कर के उस की आवाज से मेरी आंखों के सामने आ गया.

लेकिन अब वह पहले वाली सुमेधा नहीं थी. अब वह मिसेज सुमेधा थी. मुझे उस का सरनेम तो क्या उस के पति का नाम भी मालूम नहीं था और मुझे कोई दिलचस्पी भी नहीं थी ये सब जानने की. न मैं उस का हाल जानना चाहता था और न ही अपना बताना.

मैं ने पलट कर उस की आंखों में आखें डाल कर कहा, ‘‘क्या मैं आप को जानता हूं?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखती रही. अगर मैं पहले वाला समीर नहीं था तो वह भी पहले वाली सुमेधा नहीं रही थी.

शायद मेरा यही सवाल हमारी आखिरी मुलाकात का जवाब था. उस की चुप्पी से मुझे मेरा जवाब मिल गया और मैं वहां से चल दिया.

Family Story

Crime Story: घिनौना खेल

Crime story: गुड विल सोसायटी के टावर नंबर 1 के टौप फ्लोर के कोने वाले फ्लैट में तन्मय और तमन्ना रहते हैं. एकदम एकांत फ्लैट. अपनी निजता का ध्यान रखते हुए उन्होंने यह फ्लैट मार्केट रेट से अधिक किराए पर लिया. नौजवानों के दिल कुछ जुदा ढंग से धड़कते हैं और उन के धड़कने के लिए पूरी आजादी भी चाहिए.

उन के सामने का टावर नंबर 2 था. थोड़ी दूरी अवश्य थी. निजता को ध्यान में रखते हुए सोसायटी के विभिन्न टावरों के बीच दूरी थी. दूरी तो अवश्य थी लेकिन बालकनियां आमनेसामने थीं. बालकनी में खड़े हो कर हाथ हिला कर हायहैलो हो जाती थी.

टावर नंबर 2 में तन्मय के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में एक अधेड़ दंपती सविता व राजेश अपने 2 छोटे बच्चों के संग रहते थे. शाम के समय उन के बच्चे सोसायटी के पार्क में खेलते और सविता बालकनी से उन पर नजर रखती थी. कहने को तो तन्मय और तमन्ना अपने को पति पत्नी कहते थे लेकिन उन का कोई विधिवत विवाह नहीं हुआ था. वास्तव में वे दोनों लिव इन पार्टनर थे. किराया आधाआधा देते थे और घर का सारा खर्च भी आधाआधा उठाते थे. सोसायटी में वे किसी से बातचीत नहीं करते थे और अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त रहते थे. दोनों के पास फ्लैट की 1-1 चाबी होती थी.

जो जब चाहे बिना डोरबैल बजाए घर में प्रवेश करते थे. सविता को उन दोनों का व्यवहार अजीब लगता था. न मांग में सिंदूर न ही कोई मंगलसूत्र? न ही चूडि़यां. हमेशा जींसटौप में तमन्ना दिखाई देती थी और कभीकभी मिनीस्कर्ट और हौट पैंट में आतेजाते दिखाई देती. राजेश समझता कि हम ने उन का क्या करना है. तू दूसरों के बारे में मत सोच,अपने परिवार पर ध्यान दे.

सविता भी तपाक से उत्तर देती. उस का हौटपैंट के साथ ब्लाउज से भी छोटा टौप पहनना नंगापन है. बैडरूम में जो मरजी पहने या न पहने, मैं ने क्या करना है. कम से कम घर से बाहर तो ढंग के कपड़े पहने. हमारे छोटेछोटे बच्चे हैं, कल वे ऐसे कपड़े पहनें तो क्या आप बरदास्त करोगे?

राजेश के पास इस का कोई उत्तर नहीं था. अत: बात घुमाई, ‘‘उन का प्रेम को दर्शाने का एक तरीका है. आजकल के युवा ऐसे कपड़े पहन कर रिझते हुए प्रेम करते हैं.’’

‘‘तो आप कहना चाहते हो, मैं ने आप को कभी नहीं रिझया?’’

‘‘तोबातोबा मेरे कहने का यह मतलब थोड़े था. तुम आज भी जालिम कातिल लगती हो.’’

‘‘फिर थोड़ी सी सब्जी फ्रूट ले आओ.’’

मुसकराते हुए सोसायटी के बाहर मदरडेयरी के बूथ चला गया. सब्जीफ्रूट खरीदने के बाद राजेश सोसायटी के गेट पर घुस रहा था तभी तमन्ना ओला कैब से उतरी. चुस्त जींसटौप, ऊंची ऐड़ी के सैंडल और आंखों पर बड़ा सा चश्मा पहने लंबे डग भरते हुए चल रही थी. राजेश उस की मटकती कमर देखता धीरेधीरे उस के पीछे चल रहा था. ऊपर बालकनी में खड़ी सविता सब देख रही थी.

फ्लैट के भीतर पहुंचते ही सविता ने राजेश को आड़े हाथों लिया, ‘‘पतली कमर का मजा ले आए?’’

‘‘तोबातोबा क्या बात कर रही हो.’’ ‘‘मुझे अभी चश्मा नहीं लगा है. अंधेरे में भी दूर तक दिखाई देता है.’’

‘‘मुझे तेरी शादी के टाइम वाली कमर याद आ गई. मैं बस तुलना कर रहा था. तेरी कमर ज्यादा पतली थी.’’

सविता सब समझती थी. हर मर्द की तरह राजेश भी खूबसूरत लड़की को देखता रह जाता. तमन्ना ने अपने फ्लैट का दरवाजा खोला. भीतर तन्मय डाइनिंग टेबल पर ही बोतल के साथ बैठा था. तमन्ना ने एक बीयर की बोतल खोली और गट से पी गई.

‘‘क्या बात है, मेरी जानेमन नाराज सी लग रही है?’’

‘‘एक तो औफिस वालों ने काम का प्रैशर डाला हुआ है. ऊपर से सोसायटी में घुसो तो साले खड़ूस ऐसे पीछे चलते हैं, जैसे कोई लड़की कभी देखी न हो.’’

तन्मय ने तमन्ना को अपने गले लगाते हुए गालों पर एक प्यार भरा चुंबन अंकित किया, ‘‘तू है ही इतनी सैक्सी. बेचारे बुड्ढों को गोली मार.’’

तमन्ना तन्मय से शारीरिक हो गई. ड्राइंगरूम की बालकनी का दरवाजा खुला था. खिड़की पर भी कोई परदा नहीं था.कमरे की लाइट में दोनों के हिलतेडुलते जिस्म की स्पष्ट छवि अपनी बालकनी में खड़ी सविता को दिखाई दे रही थी, ‘‘जो बंद कमरे में होना चाहिए, खुलेआम हो रहा है. आग लगे ऐसी जवानी को,’’ बड़बड़ाती हुई सविता अपने कमरे में चली गई.

सविता सही बड़बड़ा रही थी कि निगोड़ी जवानी को आग लगे. तन्मय और तमन्ना जवानी के जोश में होश खो बैठे थे. न अपना होश था न समाज की फिक्र. धड़ल्ले से बिना शादी के एकसाथ रहते हुए जीवन आजादी के साथ बिना रोकटोक के मस्ती के साथ जी रहे हैं.

1 घंटे बाद भी तन्मय और तमन्ना मदहोश थे. यही हाल उन का पिछले 2 वर्ष से चल रहा था जब से वे दोनों लिव इन में रह रहे हैं.

तमन्ना पिछले कुछ दिनों से औफिस के काम में इतनी व्यस्त रही, उसे टूर पर भी जाना पड़ा. 10 दिन का टूर बना. काम 7 दिन में ही समाप्त हो गया. वैसे तो हररोज रात को दोनों की फोन पर बातचीत होती, लेकिन मिलन नहीं हो रहा था. काम जल्दी खत्म होने पर कंपनी की अनुमति से तमन्ना जल्दी वापस रवाना हो गई. वह तन्मय को सरप्राइज देना चाहती थी.

उस ने अपने वापस आने का कार्यक्रम तन्मय को नहीं बताया.

जैसे ही तमन्ना ने अपनी चाबी से फ्लैट का दरवाजा खोला उस के खुद के लिए सरप्राइज तैयार था. तन्मय एक अन्य लड़की के साथ शारीरिक था. उन को देखते ही तमन्ना एकदम स्तब्ध हो गई. उसे उस पल कुछ नहीं सूझ.

तमन्ना को अचानक देखते ही तन्मय के होश उड़ गए. उसे तमन्ना के आने की कतई उम्मीद नहीं थी.

तन्मय और लड़की भौचक्के देखते रहे. लड़की अपने वस्त्र समेटने लगी. तमन्ना के हाथ में सूटकेस ट्रौली थी. उस ने उठा कर दोनों के ऊपर फेंक मारी. सूटकेस लड़की को लगा. वस्त्र उस के हाथ से छूट गए. एक खूंख्वार शेरनी की तरह तमन्ना उस लड़की पर झपटी और उस का हाथ पकड़ कर खींचा. लड़की छूटने की कोशिश कर रही थी. तन्मय को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करे.

तमन्ना उस लड़की को खींच कर दरवाजे तक ले गई. दरवाजा खोला और बाहर धकेल दिया और फिर दरवाजा बंद कर दिया. वैसे तो फ्लैट कोने वाला था. उसी फ्लोर के दूसरे फ्लैट में एक किट्टी पार्टी थी जहां सम्मिलित होने सविता 3 और हमउम्र अधेड़ महिलाओं के साथ लिफ्ट से बाहर निकली.

तमन्ना की चीखनेचिल्लाने की आवाज के साथ गंदी गालियां उन्होंने सुनी. वे सभी रुक कर तमन्ना के फ्लैट की ओर देखने लगीं. फ्लैट के दरवाजे पर एक लगभग नग्न अवस्था में बदहवास लड़की अपने को छिपाने की असफल कोशिश कर रही थी.

फ्लैट के भीतर तन्मय और तमन्ना के झगड़ने की आवाज भी आ रही थी. सविता के साथ बाकियों को भी कुछ समझ नहीं आया. तभी दरवाजा खुला. तमन्ना गुस्से में अपशब्द बकते हुए तन्मय को धक्का दे रही थी, ‘‘तेरी हिम्मत कैसे हुई इस के साथ हमबिस्तर होने की?’’

अब तन्मय भी बोल उठा, ‘‘कौन सी तू ने मेरे साथ शादी की है जो बीवी वाला रोब झड़ रही है? मैं किस के भी साथ रहूं, तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली, मैं तुझ से पूछता हूं तू कहां जाती है, कहां रहती है?’’

‘‘इस फ्लैट का आधा किराया देती हूं.’’

अब सविता और बाकी महिलाओं को सारा माजरा समझ आ गया. जिस फ्लैट में किट्टी पार्टी थी, वहां से एक चादर ला कर उस लड़की का तन ढक कर फ्लैट के अंदर ले गए. तमन्ना ने फ्लैट का दरवाजा बंद कर दिया. तन्मय बाहर खड़ा रहा.

महिलाओं की आंखें उसे घूर रही थीं. उस की नजर झुकी हुई थी. सविता से रुका नहीं गया. वह दो टूक बोल ही उठी, ‘‘दोनों के बारे में कुछ बताएगा या फिर बुत बन कर दोनों से पिटेगा?’’

तन्मय ने सिर्फ लोअर पहना हुआ था. वह सीढि़यों से नीचे भाग गया. महिलाओं ने उस लड़की से पूछताछ की. लड़की रो पड़ी. उस के कपड़े और पर्स फ्लैट के अंदर था.

सविता ने फ्लैट की डोरबैल बजाई. तमन्ना ने दरवाजा खोला. उसे कोई शर्म नहीं थी. उलटा सविता चढ़ गई, ‘‘क्या है? फिल्म देख ली न और क्या देखना है. मेरे मुंह मत लगना.’’

सविता चुपचाप लौट गई, ‘‘नंगों से तो कुदरत भी डरती है. हमारी क्या औकात है,’’ किट्टी पार्टी वाले फ्लैट में घुस गई.

‘‘इस नंगीमुंगी लड़की को दफा करो. जहन्नुम में जाएं तीनों. बेशर्मी की हद है. अपनी पार्टी क्यों खराब करें. शो मस्ट गो औन.’’

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ लड़की गिड़गिड़ाने लगी.

‘‘चादर हम ने दी है. एक बार तमन्ना से अपने कपड़े मांग ले.’’

उस लड़की ने डोरबेल बजाई. हालांकि तमन्ना खुद लिव इन में थी लेकिन तन्मय को दूसरी लड़की के साथ देख नहीं सकी. उस ने लिव इन को तोड़ने का निश्चय कर लिया. तमन्ना ने उसे कपड़े नहीं दिए. बालकनी में गई और उस के कपड़ों में आग लगा दी.

‘‘आज तो इस को नंगा घूमना पड़ेगा,’’ जलते हुए कपड़े बालकनी से नीचे फेंक दिए. उस का पर्स खोल कर क्रैडिटडैबिट कार्ड तोड़ कर फेंक दिए. नकद नोटों को भी आग लगा दी और पर्स नीचे फेंक दिया.

सोसायटी में सब की जबान पर यही प्रसंग था कि फ्लैट मालिक को फोन किया जाए,

ऐसे किराएदार सोसायटी में नहीं चलेंगे. इनको हटाना होगा. तमन्ना अपना आपा खो चुकी थी. उस ने तन्मय के सारे कपड़े बालकनी में रखे और आग लगा दी. तन्मय का लैपटौप बालकनी से नीचे फेंक दिया. आग देखते सोसायटी के लोग घबरा गए. उन्होंने पुलिस और फायर ब्रिगेड को फोन किया. कुछ नौजवान आगे बढ़े. फ्लैट का दरवाजा तोड़ा गया.

पुलिस आई तमन्ना को काबू किया.आग बुझाई गई. पुलिस तमन्ना और लड़की को पुलिस स्टेशन ले गई. एक कौंस्टेबल की ड्यूटी लगा दी. जैसे तन्मय आए, पुलिस स्टेशन ले आए. महिला पुलिस ने लड़की को पहनने को कपड़े दिए. सब के परिवार को बुलाया गया. तन्मय और तमन्ना के परिवार दिल्ली से बाहर रहते थे. उन्हें नहीं मालूम था. पता चल गया. पूरी सोसायटी में बदनाम अलग हो गए. परिवार की नजरों में गिर गए. चाहे जितने आधुनिक बन जाएं, भारतीय समाज में गुपचुप तो सबकुछ स्वीकार्य है लेकिन खुल्लमखुल्ला नहीं.

तन्मय सिर्फ लोअर में घूम रहा था. आधी रात को जैसे सोसायटी के गेट के पास आया. तैनात कौंस्टेबल उसे पुलिस स्टेशन ले गया.

तमन्ना ने तन्मय को खूब खरीखोटी सुनाई. हाथापाई हो गई. सोसायटी में एक सज्जन टीवी चैनल में कार्यरत थे. वे लाइव कवरेज के लिए पुलिस स्टेशन पहुंच गए. अपनी बदनामी से बचने के लिए उस लड़की ने तन्मय पर धोखा, फुसलाना, विवाह के ?ांसे में शारीरिक संबंधों के आरोप जड़ दिए.

तमन्ना ने भी ऐसे आरोप जड़ दिए. अगर तन्मय उस के प्रति निष्ठावान नहीं है तब आसानी से उसे किसी और लड़की के साथ रहने लायक नहीं छोड़ेगी. मन ही मन उसने ठान लिया था.

बैडरूम में होने वाला सीन सार्वजनिक हो गया. टीवी चैनल पर कवरेज हो गई. तन्मय के लिए लिव इन एक खेल था, दो नावों पर सवार तन्मय बचने के लिए गोते लगा रहा था. Crime story

Malaika Arora: सेलेब्स का फिटनैस सीक्रेट

Malaika Arora: एक्ट्रेस 49 साल की हैं लेकिन उन की फिटनैस और फिगर 20 साल वालियों पर भारी पड़ती है. उन की फिटनैस उन्हें कौन्फिडैंस देती है और वे लगभग किसी भी तरह की ड्रैस ट्राई करने से नहीं हिचकतीं. वहीं अगर आज की मैरिड वूमन की बात करें तो वे शादी के कुछ सालों बाद ही बेडौल हो जाती हैं. उन के लिए फिगर मैंटेन करना सिर्फ शादी तक ही जरूरी है.

एक रिसर्च में यह सामने आया है कि 35 से 49 साल के बीच की लगभग 50त्न महिलाएं ओवरवेट हैं. शौकिंग बात यह है कि इन में से ज्यादातर ओवरवेट होने की वजह मोटापे को नहीं बल्कि उम्र को मानती हैं. खुद को फिट और सैक्सुअली अट्रैक्टिव बनाए रखने में आखिर बुराई क्या है. आइए, जानते हैं कुछ सेलेब्स के फिटनैस सीक्रेट्स:

मलाइका का फास्टिंग फंडा

मलाइका अरोड़ा 49 वर्ष की उम्र में भी खूबसूरती और सैक्सी फिगर के चलते कम उम्र की हीरोइनों को टक्कर देती हैं. उन की खूबसूरती और सैक्सी फिगर के चर्चे हमेशा बौलीवुड में होते रहते हैं. सलमान खान की भाभी और अरबाज खान की बीवी मलाइका अरोड़ा खान अब पति से तलाक ले कर अपनी जिंदगी अच्छे से बिता रही हैं. तलाक होने के मानसिक तनाव के बावजूद मलाइका ने अपनी फिगर को ले कर कभी कोई ढील नहीं दी.

हाल ही में मलाइका ने खुद अपना रूटीन और डाइट प्लान बताया, ‘‘मैं सुबह 7 बजे और दोपहर को 12 बजे तक कुछ भी नहीं खाती हूं. सूरज ढलने के बाद मैं कुछ नहीं खाती. सुबह उठने के बाद सिर्फ 1 चम्मच घी खाती हूं.

12 बजे के बाद पूरे परिवार के साथ खाना खाती हूं. मैं एकसाथ ही पूरा खाना खाती हूं जिस में दालचावल, रोटीसब्जी, सलाद शामिल होता है. मेरा मानना है एक उम्र के बाद आप की बौडी को हर चीज की जरूरत होती है. खाने में परहेज आप की बौडी पर गलत परिणाम दे सकता है. चूंकि मैं पूरा दिन मेहनत करती हूं इसलिए मु  झे प्रौपर खाना खाने की भी जरूरत है.

‘‘मुझे लगता है शरीर को पूरी डाइट मिलनी चाहिए ताकि बाहरी तकलीफों से जू  झने की ताकत मिले. मैं इंटरमिटैंट फास्टिंग करती हूं जो मेरे लिए बहुत अच्छा काम करती है. यह वाली फास्टिंग मु  झे पूरी तरह तरोताजा रखती है मैं ठीक से सो पाती हूं और फ्रैश हो कर उठती हूं. दिमाग पर, शरीर पर कोई भारीपन नहीं लगता. मु  झे बहुत ज्यादा डाइटिंग करना पसंद नहीं है इसलिए पहले भी मैं एक दिन छोड़ एक दिन डाइटिंग या फास्टिंग करती थी लेकिन हमेशा से मैं ने एक ही बार खाना खाने का नियम फौलो किया है.

‘‘मैं ने एक पोर्शन खाने का अपने लिए तय कर के रखा है जिस में न तो मैं कम खाती हूं और न ही ज्यादा. इस के अलावा में योग और जिम कर के अपनेआप को फिट और फाइन रखती हूं. 49 की उम्र में अपनी अच्छी सेहत का राज है सही डाइट ओर ऐक्सरसाइज.’’

अनीता राज की फिटनैस

इस के अलावा 62 वर्षीय अनीता राज अपने अभिनय कैरियर को ले कर जितना सीरियस हैं, उतना ही अपनी हैल्थ और फिटनैस को ले कर भी. उन्हें फिटनैस फ्रीक भी कहा जा सकता है क्योंकि चाहे जो हो जाए वे अपना जिम और ऐक्सरसाइज मिस नहीं करतीं. अपना काफी समय वर्कआउट करते हुए जिम में बिताती हैं.

‘यह रिश्ता क्या कहलाता है’ की दादी सा अर्थात अनीता राज फिटनैस के मामले में सब को फेल करती हैं. उन के बायसैप्स देख उन के फैंस भी चौंक गए, अनीता राज इस उम्र में पुशअप और शोल्डर के लिए ज्यादा वेट उठाती हैं जिस की वजह से उन के बाइसैप्स और मसल्स काफी मजबूत और शेप में हैं. स्क्रीन पर भले ही अनीता राज सीधीसाधी, सादगी से भरी नजर आती हों  लेकिन असल जिंदगी में वे बौडीबिल्डर हैं. उन के शोल्डर और बायसैप्स काफी अच्छे बने हुए हैं.

शिल्पा की फिगर का राज

50 साल की हो चुकीं शिल्पा शेट्टी की फिगर को देख कर उन की उम्र का अंदाज लगाना मुश्किल है. शिल्पा की जबरदस्त फिटनैस का सीक्रेट बैलेंस्ड डाइट और ऐक्सरसाइज है. शिल्पा कार्डिओ और वेट ट्रेनिंग भी करती हैं ताकि स्टैमिना बढ़ने के साथसाथ मसल्स भी स्ट्रौंग रहें. प्रोसैस्ड फूड आइटम्स न तो वे अपने परिवार को देती हैं और न ही खुद खाती हैं. उन का फोकस हमेशा प्रोटीन और फाइबर वाले खाने पर ही होता है.        Malaika Arora

Teenage Life: उम्र का एक खूबसूरत पड़ाव

Teenage Life: ‘‘तितली की तरह उड़ना, झरनों की तरह बहना चाहती हूं,

सितारों की बुलंदी छूना चाहती हूं पर

कुछ छोटेछोटे सवाल सालते हैं मुझे,

जिन के जवाब हर हाल में पाना चाहती हूं,

इतने पहरे, इतने बंधन क्यों हैं आखिर?

मैं पूछना चाहती हूं. मैं पूछना चाहती हूं.’’

यह आवाज आती है हर जवां होती लड़की के दिल से…

उम्र का बहुत ही नाजुक मोड़ है यह. शुरूशुरू में शारीरिक बदलाव को मन स्वीकार नहीं करता. लगता है मानो आजादी छिन गई हो. अपने मन की बात शेयर करें तो किस से करें. मन है कि ठहर नहीं पाता और दिमाग सवालों के घेरे में उल  झ जाता है. क्या, कब, क्यों, कैसे जैसे अनेक सवाल मन को कुरेदते हैं और सही मार्गदर्शन के अभाव में एक सामान्य सहज प्रक्रिया के तहत सवालों के अपने तरीके से इंटरप्रिटेशन निकलने लगते हैं. यह महसूस होने लगता है कि हम भी कुछ कर सकते हैं. खुद निर्णय लेने की चाह होने लगती है और यकीन भी हो जाता है कि यह सही होगा.

10 से 16 वर्ष की उम्र जीवन का एक ऐसा पड़ाव जब शरीर का गठन शुरू होता है अनेक तरह के बदलाव होने लगते हैं. शारीरिक बदलाव के साथसाथ मानसिक उथलपुथल भी जारी रहती है. लड़कियों में यह बदलाव लड़कों से ज्यादा जल्दी आते हैं अर्थात व लड़कों की तुलना में जल्दी जवान होती हैं.

‘‘मेरी उम्र 13 साल है. कुछ दिनों पहले एक सुबह मैं जब बिस्तर से उठी तो मैं ने कुछ अलग महसूस किया. मेरा लोअर खराब था. चादर पर भी लाल धब्बे थे. मां ने देखा तो बोली, ‘‘चादर उठा कर धोने डाल दे.’’

मु  झे एक सूती कपड़ा ला कर दिया और उस का इस्तेमाल बताया. मैं ने मां को ऐसा करते हुए देखा था पर मां ने मु  झे कभी इस बारे में बताया नहीं था. मैं बहुत ही दुविधा में थी.’’

वहीं एक दूसरी लड़की की दास्तान, ‘‘एक दिन जब मैं स्कूल से लौटी तो पता चला कि मु  झे पीरियड्स शुरू हो गए हैं. मां को बताया तो वे मुसकराईं और फिर सैनिटरी नैपकिन ला कर मु  झे उसका प्रयोग बताया. वैसे मां मु  झे पहले भी इस बारे में बता चुकी थीं.’’

अलगअलग किशोरियों के अलगअलग अनुभव

1946 में वाल्ट डिज्नी के प्रोडक्शन ‘द स्टोरी औफ मैंस्ट्रुएशन’ में मासिकधर्म के बारे में विस्तार से बताया है और कई टिप्स भी दिए गए हैं. इस तरह का खुलापन हमारे समाज में 21वीं सदी में भी नहीं आ पाया है. इस दौरान हारमोंस में भी कई तरह के बदलाव आते हैं जिन के बारे में सिर्फ सुना ही होता है. आज से लगभग 4 दशक पहले सैनिटरी नैपकिंस का उपयोग सिर्फ संपन्न परिवारों की लड़कियों के द्वारा ही किया जाता था. सामान्य घरों की अधिकतर लड़कियां सूती कपड़े का प्रयोग करती थीं. गांव और आदिवासी महिलाओं द्वारा घासफूंस इस्तेमाल करने की बात सुनी है जो रोंगटे खड़े कर देती है.

यूनिसेफ इस संबंध में सरकारों के साथ मिल कर अनूठे प्रयोग कर रहा है. सर्व शिक्षा अभियान के तहत किशोरियों के लिए प्रशिक्षण मौड्यूल तैयार कर उन्हें आने वाले जीवन के लिए तैयार करने को वचनबद्ध दिखाई देता है.

इस उम्र में आ कर ब्रा की आवश्यकता होती है जो एक ऐसा शब्द है जिसे हम आज भी खुल कर बोलने में हिचकते हैं. कई किशोरियां तो आज भी नमी के कारण होने वाली परेशानियों से बेखबर हो कर इसे कपड़ों के बीच छिपा कर सुखाती हैं. कुछ  झिझक और कुछ लोगों की वहशी मानसिकता इस की वजह हो सकती है. जवान होती बेटी के लिए सही नाप की ब्रा भी अनिवार्य जरूरत है. इस उम्र में उसे अंत:वस्त्रों के सुंदर कलर और डिजाइनें लुभाती हैं.

शोध पर आधारित सचाई

प्राय: मान लिया जाता है कि इस उम्र में लड़कियां मासूमियत से बाहर निकल कर चंचल हो जाती हैं और उन पर बंधन और निगरानी जरूरी है, मगर शोध पर आधारित सचाई यह है कि अगर सही मार्गदर्शन न मिले तो लड़कियां चंचल नहीं बल्कि मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाती हैं क्योंकि एक जिद मन में होती है कुछ नया जानने की. अगर जिज्ञासा शांत न हो पाई और अधकचरे ज्ञान के आधार पर कोई गलती हो गई तो अपराधबोध भी हावी हो जाता है.

स्कूली किताबों में भी इस उम्र में होने वाले परिवर्तन के बारे में पढ़ाया जाता है लेकिन मातापिता की ही तरह शिक्षकशिक्षिकाएं भी इस विषय में पूरी तरह से सहज नहीं हो पाते हैं और पूरी तरह से किशोर मन की जिज्ञासा को शांत नहीं कर पाते हैं. नतीजा यह होता है कि किशोरियां इन सवालों के जवाब कहीं और से जानना चाहती हैं.

हमारे रूढि़वादी परिवारों में मातापिता से भी लड़कियां इस बारे में खुल कर बात नहीं कर पाती हैं. इंटरनैट और साथियों के माध्यम से आधाअधूरा ज्ञान प्राप्त कर संतुष्टि करना चाहती हैं. विपरीत लिंग की तरफ आकर्षण इस उम्र में बढ़ने लगता है और कई बार उचित जानकारी के अभाव में परेशानी का सबब भी बन जाता है. मातापिता सहयोग देने वाले हों तो ठीक वरना वे दुश्मन लगने लगते हैं.

नएनए प्रयोग करना पसंद

किशोरियां मनपसंद खाना चाहती हैं. पहनावे को ले कर नएनए प्रयोग करना चाहती हैं. युगल गीत और फिल्में उन्हें बरबस आकर्षित करने लगती हैं. मनपसंद लोगों के साथ घूमनाफिरना चाहती हैं. कई बार आईने में खुद को देखती हैं. किसी सुंदर अभिनेत्री से अपनी तुलना करती हैं और अगर कुछ कमी पाती हैं तो निराश हो जाती है. प्यूबर्टी की अवस्था एक मीठी सी दस्तक दे कर हर किसी के जीवन में आती है.

इस उम्र में मुंहासे, मासिकधर्म की अन्य मुसीबतें, 4-5 दिन तक होने वाले रक्तस्राव को सहन करना, कल तक बेफिक्र घूमने वाली एक बच्ची के लिए मुश्किल तो होता ही है. बारबार अपने मुंहासों को देखती है जो चेहरे की खूबसूरती को कम करते हैं. टीवी पर आने वाले ऐड उस की दुविधा को और बढ़ा देते हैं. वह रासायन युक्त क्रीम का प्रयोग करना चाहती हैं क्योंकि उस की नजर में दागधब्बे चेहरे पर बिलकुल अच्छे नहीं. इसी तरह दांतों का टेढ़ामेड़ा या खराब होना भी इस उम्र में सालता है. कमसिन चेहरा उस पर 2 आंखें न जाने क्याक्या खोजती रहती हैं और नाउम्मीद होने पर मायूस हो कर चेहरे की रंगत उतर जाती है.

एक राजकुमार भी सपने में आने लगता है, जिस की तलाश में वह निकल पड़ती है और जब वह मिल जाए तो खुद को दुनिया में सब से खुश समझती है. इस उम्र में यह आकर्षण स्वाभाविक है.

सम्मान से जीने का अधिकार

यों तो दुनियाभर में महिलाओं की स्थिति अच्छी हुई है पर बड़ी होती लड़कियों को समानता और अहिंसा का वातावरण आज भी नहीं मिल पा रहा है. घर में लाख पहरे हैं तो बाहर उन्हें घूरती वहशी निगाहें. यह सच है कि इस उम्र में लिंग बोध यानी जैंडर की बात सम  झ आने लगती है.

एक किशोरी के ही शब्दों में, ‘‘बच्चों का भी स्वाभिमान होता है. सम्मान से जीने का अधिकार होता है. मांपापा जब मेरे दोस्तों के बारे में भलाबुरा कहते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता. रमन मेरा नया दोस्त बना है. क्या बुराई है उस में. पढ़ने में अच्छा है. स्कूल में स्पोर्ट्स और म्यूजिक क्लब का ऐक्टिव मैंबर है. पढ़ाई में मेरी मदद करता है. सब से बड़ी बात मु  झे उस के साथ समय बिताना पसंद है पर न जाने क्यों घर में सब को ऐतराज है.’’

कुछ और किशोरियों के सवाल

‘‘बचपन से ही हम दोनों साथ खेलते आए थे. अगलबगल में घर थे. साथ स्कूल जाना, शाम को देर तक खेलना, तितलियों के पीछे भागना, फूल तोड़ना, चिडि़यों की चहचहाहट सुनना,

जुगनू पकड़ना, कच्चेपक्के फल तोड़ना. कभी किसी ने रोकाटोका नहीं. बेधड़क हो कर मैं उस के घर चली जाती थी और खुद वह कभी भी आ जाता था.

‘‘पर ये क्या, जब से मैं 9वीं कक्षा में आई हूं मेरा स्कूल भी बदल दिया है. मु  झे उस के साथ घूमने और बात करने पर भी रोक लगा दी जाती है. यों तो अब पढ़ाई के कारण बाहर खेलने का समय नहीं मिलता लेकिन कभी कुछ पूछने उस के घर भी जाना चाहूं तो भी मना कर दिया जाता है. न जाने क्या बात है, मैं सम  झ नहीं पाती.’’

‘‘मेरी मां को लगता है कि मैं बड़ी हो रही हूं. मु  झे घर के काम आने चाहिए. मैं इनकार नहीं करती पर मु  झे सब्जी काटने, आटा गूंधने का काम दे कर जब मां किट्टी में या सहेली के घर जाती हैं तो मु  झे जरा भी अच्छा नहीं लगता.’’

एक और टीनऐजर कहती है, ‘‘मेरा स्मार्टफोन इस्तेमाल करना और दोस्तों से बातें करना खासकर पापा को बिलकुल पसंद नहीं है.

‘‘मेरी तो समझ में ही नहीं आता कि मैं छोटी हूं या बड़ी. बड़े लोग अपने ढंग से हमारी उम्र को इंटरप्रेट करते हैं. कभी कह देते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो. सम  झदार हो जाओ और कभी अपने मन का कुछ करना चाहो तो कहते हैं अभी तुम छोटे हो.’’

ये सारे सवाल आज के नहीं हैं. वर्षों से ये सवाल बने हुए हैं. हां, आजादी की परिभाषा और दायरा समय के साथ जरूर बदल गया है. प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी, जिन्होंने हाल में ही इस दुनिया से विदा ले ली, अपनी रचना ‘एक कहानी यह भी’ में अपनी जीवनयात्रा का वर्णन करते हुए कहती हैं कि किशोरावस्था से ही किसी न किसी बात पर पिता से विचारों का टकराव होता रहता था. पिता उन के अंदर कुंठा बन कर रहे.

स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों जब वे नारे लगाते हुए सड़कों में घूमतीं तो पिता विरोध करते और वह कसक आज तक उन के मन में बनी हुई है. वे बताती हैं कि बचपन में वे सांवले रंग की थीं और दुबलीपतली थीं जबकि बड़ी बहन गोरी थी और सुंदर थी. पिता दोनों बहनों में हर वक्त तुलना करते थे, जिस ने में एक ऐसी हीनग्रंथि पैदा कर दी कि नाम और प्रतिष्ठा पाने के बावजूद वे उस से उबर नहीं पाईं.    Teenage Life

Grihshobha Empower Her Event in Noida – A Colorful Affair

Grihshobha Empower Her Event in Noida : On June 28, the Grihshobha Empower Her event was held at Rama Celebration Banquet Hall, Noida. The event was scheduled to begin at 11:30 AM, but by 11 AM, women had already started arriving with great enthusiasm to register and be a part of their favorite magazine’s event.

As you know, Grihshobha, India’s No. 1 Hindi women’s magazine, is published in 8 languages. It provides knowledge on health, beauty, cooking, financial planning, and more, offering a modern and balanced perspective to empower every woman. The Empower Her initiative has already been successfully held in Mumbai, Bengaluru, Ahmedabad, Lucknow, Indore, Chandigarh, Ludhiana, and Jaipur. Now, Season 3 of Empower Her began in Delhi and Mumbai, followed by Bengaluru, and now Noida, with more cities to follow.

After breakfast, the event began. As always, the host, Kritika, welcomed the women with great energy. Women of all ages—from teenagers to young and middle-aged—were present, radiating enthusiasm. After all, this event was not just a gathering but a celebration of confident, curious, stylish, smart, and active women.

Event Partners & Activities

The event’s main partners were:

  • HDFC Mutual Fund (Financial Education Partner)

  • Kisna Diamond & Gold Jewelry (Jewelry Partner)

  • Green Leaf Aloe Vera Gel (Beauty Partner by Brihans Natural Products)

The event kicked off with promotional videos by Delhi Press, followed by a Bollywood dance warm-up game, where women danced and enjoyed themselves.

Session 1: Women’s Mental Health

Speaker: Shirley Raj (Clinical Psychologist)
Shirley Raj, a consultant psychologist, trainer, and former faculty at Amity University, emphasized the importance of self-care for women. She explained that self-care is not selfish but a necessity. Key takeaways:

  • Reduce screen time

  • Express emotions openly

  • Learn to say “NO”

  • Seek professional help if needed

  • A happy woman creates a positive home environment

Session 2: SIP Saheli – Financial Session

Speaker: Khushboo Pandey (Financial Educator & Mutual Fund Expert)
With over 10 years of experience in top financial firms like Kotak, ICICI Prudential, and DSP, Khushboo now works with HDFC AMC. She educated women on:

  • Goal-based investment strategies

  • Systematic Investment Plans (SIPs)

  • Long-term wealth creation

  • HDFC Mutual Fund’s SIP Saheli initiative

Kisna Diamond & Gold Jewelry Session

Speaker: Rajesh Purohit (COO, Kisna Diamond & Gold Jewelry)
He highlighted how gold and diamonds symbolize strength, elegance, and timeless beauty. A fun Q&A round was held, with winners receiving gifts from Kisna.

Session 3: Beauty & Skincare

Speaker: Dr. Akanksha Jain (Skin & Beauty Expert) With 20+ years of experience at top clinics like VLCC, Arogya, and Alive Wellness, Dr. Jain shared:

  • Why skincare is essential at every age

  • Customized skincare based on skin type

  • Beauty tips for glowing skin

Games, Prizes & Lunch

Throughout the event, games and Q&A rounds kept the energy high, with winners receiving exciting gifts. The event concluded with lunch and goodie bags, leaving the women happy and empowered.

This Grihshobha Empower Her event in Noida was a perfect blend of knowledge, fun, and empowerment, inspiring women to take charge of their mental health, finances, and beauty with confidence!

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