Drama Story: अपना कौन- मधुलिका आंटी का अपनापन

Drama Story: मम्मीपापा अचानक ही देहरादून छोड़ कर दिल्ली आ बसे. यहां का स्कूल और सहेलियां कशिश को बहुत पसंद आईं. देहरादून पिछली कक्षा की किताबों की तरह पीछे छूट गया. बस, मधुलिका आंटी की याद गाहेबगाहे आ जाती थी.

‘‘देहरादून से सभी लोग आप से मिलने आते हैं. बस, मधुलिका आंटी नहीं आतीं,’’ कशिश ने एक रोज हसरत से कहा.

‘‘मधुलिका आंटी डाक्टर हैं और देवेन अंकल वकील. दोनों ही अपनी प्रैक्टिस छोड़़ कर कैसे आ सकते हैं?’’ मां ने बताया.

मां और भी कुछ कहना चाह रही थीं लेकिन उस से पहले ही पापा ने कशिश को पानी पिलाने को कहा. वह पानी ले कर आई तो सुना कि पापा कह रहे थे, ‘कशिश की यह बात तुम मधु को कभी मत बताना.’

कशिश को समझ में नहीं आया कि इस में न बताने वाली क्या बात थी.

जल्दी ही उम्र का वह दौर शुरू हो गया जिस में किसी को खुद की ही खबर नहीं रहती तो मधु आंटी को कौन याद करता.

मम्मीपापा न जाने कैसे उस के मन की बात समझ लेते थे और उस के कुछ कहने से पहले ही उस की मनपसंद चीज उसे मिल जाती थी. उस की सहेलियां उस की तकदीर से रश्क किया करतीं. कशिश का मेडिकल कालिज में अंतिम वर्ष था. मम्मीपापा दोनों चाहते थे कि वह अच्छे नंबरों से पास हो. वह भी जीजान से पढ़ाई में जुटी हुई थी कि दादी के मरने की खबर मिली. दादादादी अपने सब से छोटे बेटे सुहास और बहू दीपा के साथ चंडीगढ़ में रहते थे. पापा के अन्य भाईबहन भी वहां पहुंच चुके थे. घर में काफी भीड़ थी. दादी के अंतिम संस्कार के बाद दादाजी ने कहा, ‘‘शांति बेटी, तुम्हारी मां के जो जेवर हैं, मैं चाहता हूं कि वह तुम सब आपस में बांट लो. तू सब से बड़ी है इसलिए सब के जाने से पहले तू बराबर का बंटवारा कर दे.’’

रात को जब कशिश दादाजी के लिए दूध ले कर गई तो दरवाजे के बाहर ही अपना नाम सुन कर ठिठक गई. दादाजी शांति बूआ से पूछ रहे थे, ‘‘तुझे कशिश से चिढ़ क्यों है. वह तो बहुत सलीके वाली और प्यारी बच्ची है.’’

‘‘मैं कशिश में कोई कमी नहीं निकाल रही पिताजी. मैं तो बस, यही कह रही हूं कि मां के गहने हमारी पुश्तैनी धरोहर हैं जो सिर्फ  मां के अपने बच्चों को मिलने चाहिए, किसी दूसरे की औलाद को नहीं. मां के जो भी जेवर अभी विभा भाभी को मिलेंगे वह देरसवेर देंगी तो कशिश को ही, यह नहीं होना चाहिए.’’ शांति बूआ समझाने के स्वर में बोलीं.

कशिश इस के आगे कुछ नहीं सुन सकी. ‘दूसरे की औलाद’ शब्द हथौड़े की तरह उस के दिलोदिमाग पर प्रहार कर रहा था. उस ने चुपचाप लौट कर दूध का गिलास नौकर के हाथ दादाजी को भिजवा दिया और सोचने लगी कि वह किसी दूसरे यानी किस की औलाद है.

दूसरी जगह और इतने लोगों के बीच मम्मीपापा से कुछ पूछना तो मुनासिब नहीं था. तभी दीपा चाची उसे ढूंढ़ती हुई आईं और बरामदे में पड़ी कुरसी पर निढाल सी लेटी कशिश को देख कर बोलीं, ‘‘थक गई न. जा, सो जा अब.’’

तभी कशिश के दिमाग में बिजली सी कौंधी. क्यों न दीपा चाची से पूछा जाए. दोनों की उम्र में ज्यादा फर्क न होने के कारण उस की दीपा चाची से बहुत बनती थी और पिछले 3-4 रोज से एकसाथ काम करते हुए दोनों में दोस्ती सी हो गई थी.

‘‘आप से कुछ पूछना है चाची, बताएंगी ?’’ उस ने निवेदन करने के अंदाज में कहा.

‘‘जरूर,’’ दीपा ने प्यार से उस का सिर सहलाया.

‘‘मैं कौन हूं?’’

कशिश के इस प्रश्न से दीपा चौंक पड़ी फिर संभल कर बोली, ‘‘मेरी प्यारी भतीजी, कशिश.’’

‘‘मगर मैं आप की असली भतीजी तो नहीं हूं न, क्योंकि मैं डा. विकास और डा. विभा की नहीं किसी दूसरे की औलाद…’’

‘‘यह तू क्या कह रही है?’’ दीपा ने बात काटी.

‘‘जो भी कह रही हूं  चाची, सही कह रही हूं’’ और कशिश ने शांति बूआ और दादाजी के बीच हुई बातचीत दोहरा दी.

दीपा झल्ला कर बोली, ‘‘तुम्हारी शांति बूआ को भी बगैर बवाल मचाए खाना नहीं पचता…’’

‘‘उन्होंने कोई बवाल नहीं मचाया, चाची, सिर्फ सचाई बताई है पर अगर आप मुझे यह नहीं बताएंगी कि मैं किस की औलाद हूं तो बवाल मच सकता है.’’

‘‘मैं जो बताऊंगी उस पर तू यकीन करेगी?’’

अगर यकीन नहीं करना होता तो आप से पूछती ही क्यों? असलियत जानने के बाद मैं मम्मीपापा से कुछ नहीं पूछूंगी और कम से कम यहां तो कतई नहीं.

‘‘कभी भी और कहीं भी नहीं पूछना बेटे, वरना वे बहुत दुखी होंगे कि शायद उन की परवरिश में ही कोई कमी रह गई. तुम डा. मधुलिका और देंवेंद्र नाथ वर्मा की बेटी हो. विभा भाभी और मधुलिका बचपन की सहेलियां हैं. यह स्पष्ट होने पर कि बचपन में हुई किसी दुर्घटना के चलते विभा भाभी कभी मां नहीं बन सकतीं, मधुलिका ने उन की गोद में तुम्हें डाल दिया था. विभा भाभी और विकास भाई साहब ने तुम्हें शायद ही कभी शिकायत का मौका दिया हो.’’

कशिश ने सहमति में सिर हिलाया.

‘‘मम्मीपापा से मुझे कोई शिकायत नहीं है लेकिन मधु आंटी ने मुझे क्यों और कैसे दे दिया?’’

‘‘दोस्ती की खातिर.’’

‘‘दोस्ती ममता से ज्यादा…’’

तभी अंदर से बहुत उत्तेजित स्वर सुनाई देने लगे. सब से ऊंचा स्वर विकास का था.

‘‘मेरे लिए मेरे जीवन की सब से अमूल्य निधि मेरी बेटी है, जिस के लिए मैं देहरादून से सरकारी नौकरी छोड़ कर चला आया. उस के लिए क्या चंद गहने नहीं छोड़ सकता? मैं कल सवेरे यानी आप के बंटवारे से पहले ही यहां से चला जाऊंगा’’

‘‘लेकिन मां की उठावनी?’’ शांति बूआ ने पूछा.

‘‘उस के लिए आप सब हैं न. मां की अंत समय में सेवा कर ली, मेरे लिए यही बहुत है,’’ विकास ने कड़वे स्वर में कहा, ‘‘जो लोग मेरी बेटी को पराया समझते हों उन के साथ रहना मुझे गवारा नहीं है.’’

दीपा ने कशिश की ओर देखा और उस ने चुपचाप सिर झुका लिया.

‘‘यह अब नहीं रुकेगा. रोक कर शांति तुम बात मत बढ़ाओ,’’ दादाजी का स्वर उभरा. उसी समय विकास कशिश को पुकारता हुआ वहां आया और उसे इस तरह बांहों में भर कर अपने कमरे में ले गया जैसे कोई कशिश को उस से छीन न ले, ‘‘कल हम दिल्ली लौट रहे हैं कशिश, सो अब तुम सो जाओ. सुबह जल्दी उठना होगा,’’ विकास ने कहा.

‘‘जी, पापा,’’ कशिश ने कहा और चुपचाप बिस्तर पर लेट गई. विकास ने बत्ती बुझा दी.

‘‘विकास,’’ कुछ देर के बाद विभा का स्वर उभरा, ‘‘मुझे लगता है इस तरह लौट कर तुम सब की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हो.’’

‘‘शांति बहनजी ने जिस बेदर्दी से मेरी भावनाओं को कुचला है न उस के मुक ाबले में मेरी ठेस तो बहुत मामूली है,’’ विकास ने तल्खी से कहा, ‘‘जो भी मेरी बेटी को नकारेगा उसे मैं कदापि स्वीकार नहीं करूंगा… चाहे वह कोई भी हो… यहां तक कि तुम भी.’’

अगली सुबह उन्हें विदा करने को केवल दादाजी, सुहास और दीपा ही थे और सब शायद अप्रिय स्थिति से बचने के लिए नींद का बहाना कर के उठे ही नहीं.

घर आ कर विभा और विकास अपने काम में व्यस्त हो गए और कशिश पढ़ाईर् में. हालांकि कशिश को लग रहा था कि चंडीगढ़ से लौटने के बाद पापा उसे ले कर कुछ ज्यादा ही पजेसिव हो गए हैं लेकिन वह अपने असली मातापिता से मिलने और यह जानने को बेचैन थी कि उन्होंने उसे अपनी गोद से उठा कर दूसरे की गोद में क्यों डाल दिया? उस ने मम्मी की डायरी में से मधुलिका मौसी का फोन नंबर और पता तो नोट कर लिया था मगर वह खत या फोन के जरिए नहीं, स्वयं मिल कर यह बात पूछना चाहती थी.

परीक्षा सिर पर थी और पढ़ाई में दिल नहीं लग रहा था. कशिश यही सोचती रहती थी कि क्या बहाना बना कर देहरादून जाए. समीरा उस की खास सहेली थी. उस से कशिश की बेचैनी छिप नहीं सकी. उस के पूछने पर कशिश को बताना ही पड़ा.

‘‘समझ में नहीं आ रहा कि देहरादून किस बहाने से जाऊं.’’

‘‘तू भी अजब भुलक्कड़ है. कई बार तो बता चुकी हूं कि सालाना परीक्षा खत्म होते ही मेरे बड़े भाई की शादी है और बरात देहरादून जाएगी. मैं तुझे बरात में ले चलती हूं. वहां जा कर तू जहां कहेगी तुझे पहुंचवाने का इंतजाम करवा दूंगी. सो अब सारी चिंता छोड़ कर पढ़ाई कर.’’

समीरा की बात से कशिश को कुछ राहत मिली. और फिर शाम को समीरा उस के मम्मीपापा से मिल कर बरात में चलने की स्वीकृति लेने उस के घर आ गई.

‘‘बरात में जाने के बारे में सोचने के बजाय फिलहाल तो तुम दोनों पढ़ाई में ध्यान लगाओ,’’ पापा ने समीरा की बात सुन कर बड़े प्यार से दोनों का सिर सहलाया.

‘‘अंतिम साल की परीक्षा है. इस के नतीजे पर तुम्हारा पूरा भविष्य निर्भर करता है. कशिश को तो मैं कार्डियोलोजी में महारत हासिल करने के लिए अमेरिका भेज रहा हूं. तुम्हारा क्या इरादा है, समीरा?’’

‘‘अगर मैं भी कार्डियोलोजिस्ट बन गई अंकल, तो मुझ में और कशिश में दोस्ती के  बजाय स्पर्धा हो जाएगी और हमारी दोस्ती खत्म हो ऐसा रिस्क मुझे नहीं लेना है. सो कुछ और सोचना पडे़गा मगर सोचने को फिलहाल आप ने मना कर दिया है,’’ समीरा हंसी.

समीरा को विदा कर के कशिश जब अंदर आई तो उस ने अपने पापा को यह कहते सुना, ‘‘मैं नहीं चाहता विभा कि कशिश देहरादून जाए और मधुदेवेन से मिले. इसलिए समीरा के भाई की शादी से पहले ही कशिश को ले कर कहीं और घूमने चलते हैं.’’

‘‘कैसे जाओगे विकास? इस बार आई.एम.ए. का वार्षिक अधिवेशन तुम्हारी अध्यक्षता में होगा और वह उन्हीं दिनों में है.’’

कशिश लपक कर कमरे में आई और कहने लगी, ‘‘मेरी एक बात मानेंगी, मम्मा? आप प्लीज, मधु मौसी को मेरे देहरादून आने के बारे में कुछ मत बताना क्योंकि मैं शादी की रौनक छोड़ कर उन से मिलने नहीं जाने वाली.’’

पापा के चेहरे पर यह सुन कर राहत के भाव उभरे थे.

‘‘ठीक कहती हो. अपनी सहेलियों को छोड़ कर मां की सहेली के साथ बोर होने की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘थैंक यू, पापा,’’ कह कर कशिश बाहर आ कर दरवाजे के पास खड़ी हो गई.

पापा, मम्मी से कह रहे थे कि अच्छा है, कशिश उन दिनों शादी में जा रही है क्योंकि हम दोनों तो अधिवेशन की तैयारी में व्यस्त हो जाएंगे और यह घर पर बोर होती रहने से बच जाएगी. इस तरह समस्या हल होते ही कशिश जीजान से पढ़ाई में जुट गई.

देहरादून स्टेशन पर बरात का स्वागत करने वालों में कई महिलाएं भी थीं. लड़की के पिता सब का एकदूसरे से परिचय करवा रहे थे. एक अत्यंत चुस्तदुरुस्त, सौम्य महिला का परिचय करवाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह डा. मधुलिका हैं. कहने को तो हमारी फैमिली डाक्टर और पड़ोसिन हैं लेकिन हमारे परिवार की ही एक सदस्य हैं. हमारे से ज्यादा शादी की धूमधाम इन की कोठी में है क्योंकि सभी मेहमान वहीं ठहरे हुए हैं.’’

कशिश को यकीन नहीं हो रहा था कि उस का काम इतनी आसानी से हो जाएगा. उस ने आगे बढ़ कर मधुलिका को अपना परिचय दिया. मधुलिका ने उसे खुशी से गले से लगाया और पूछा कि विभा क्यों नहीं आई?

‘‘आंटी, मम्मीपापा आजकल एक अधिवेशन में भाग ले रहे हैं. मैं भी इस बरात में महज आप से मिलने आई हूं,’’ कशिश ने बिना किसी हिचक के कहा, ‘‘मुझे आप से अकेले में बात करनी है.’’

मधुलिका चौंक पड़ी फिर संभल कर बोली, ‘‘अभी तो एकांत मिलना मुश्किल है. रात को बरात की खातिरदारी से समय निकाल कर तुम्हें अपने घर ले चलूंगी.’’

‘‘उस में तो बहुत देर है, उस से पहले ही घर ले चलिए न,’’ कशिश ने मनुहार की.

‘‘अच्छा, दोपहर को क्लिनिक से लौटते हुए ले जाऊंगी.’’

दोपहर को मधुलिका ने खुद आने के बजाय उसे लाने के लिए अपनी गाड़ी भेज दी. वह अपने क्लिनिक में उस का इंतजार कर रही थी.

‘‘तुम अकेले में मुझ से बात करना चाहती हो, जो फिलहाल घर पर मुमकिन नहीं  है. बताओ क्या बात है?’’ मधुलिका मुसकराई.

‘‘मैं यह जानना चाहती हूं कि आप ने मुझे क्यों नकारा, क्यों मुझे दूसरों को पालने के लिए दे दिया? मां, मुझे मालूम हो चुका है कि मैं आप की बेटी हूं,’’ और कशिश ने चंडीगढ़ वाला किस्सा उन्हें सुना दिया.

‘‘विभा और विकास ने तुम्हें क्या वजह बताई?’’ मधुलिका ने पूछा.

‘‘उन्हें मैं ने बताया ही नहीं कि मुझे सचाई पता चल गई है. वह दोनों मुझे इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि  मैं कभी सपने में भी उन से कोई अप्रिय बात पूछ कर उन्हें दुखी नहीं कंरूगी.’’

‘‘यानी कि तुम्हें विभा और विकास से कोई शिकायत नहीं है?’’

‘‘कतई नहीं. लेकिन आप से है. आप ने क्यों मुझे अपने से अलग किया?’’

‘‘कमाल है, बजाय मेरा शुक्रिया अदा करने के कि तुम्हें इतने अच्छे मम्मीपापा दिए, तुम शिकायत कर रही हो?’’

‘‘सवाल अच्छेबुरे का नहीं बल्कि उन्हें दिया क्यों, यह है?’’

‘‘मान गए भई, पली चाहे कहीं भी हो, रहीं वकील की बेटी,’’ मधुलिका ने बात हंसी में टालनी चाही.

‘‘मगर वकील की बेटी को डाक्टर की बेटी कहलवाने की क्या मजबूरी थी?’’

‘‘मजबूरी कुछ नहीं थी बस, दोस्ती थी. विभा मां नहीं बन सकती थी और अनाथालय से किसी अनजान बच्चे को अपनाने में दोनों हिचक रहे थे. बेटे और बेटी के जन्म के बाद मेरा परिवार तो पूरा हो चुका था. सो जब तुम होने वाली थीं तो हम लोगों ने फैसला किया कि चाहे लड़का हो या लड़की यह बच्चा हम विभा और विकास को दे देंगे. ऐसा कर के मैं नहीं सोचती कि मैं ने तुम्हारे साथ कोई अन्याय किया है.’’

‘‘अन्याय तो खैर किया ही है. पहले तो सब ठीक था मगर असलियत जानने के बाद मुझे अपने असली मातापिता का प्यार चाहिए…’’

तभी कुछ खटका हुआ और एक प्रौढ़ पुरुष ने कमरे में प्रवेश किया. मधुलिका चौंक ०पड़ी.

‘‘आप इस समय यहां?’’

‘‘कोर्ट से लौट रहा था तो बाहर तुम्हारी गाड़ी देख कर देखने चला आया कि खैरियत तो है.’’

‘‘ऋचा की बरात में कशिश भी आई है. मुझ से अकेले में बात करना चाह रही थी, सो यहां बुलवा लिया,’’ मधुलिका ने कहा और कशिश की ओर मुड़ी,‘‘यह तुम्हारे देवेन अंकल हैं.’’

‘‘अंकल क्यों, पापा कहिए न?’’ कशिश नमस्ते कर के देवेन की ओर बढ़ी लेकिन देवेन उस की अवहेलना कर के मधुलिका के जांच कक्ष में

जाते हुए कड़े स्वर में बोले, ‘‘इधर आओ, मधु.’’

मधुलिका सहमे स्वर में कशिश को रुकने को कह कर परदे के पीछे चली गई.

‘‘यह सब क्या है, मधु? मैं ने तुम्हें कितना समझाया था कि अपने बेटेबेटी का प्यार और हक बांटने के लिए मुझे तीसरी औलाद नहीं चाहिए, तुम गर्भपात करवाओ. मगर तुम नहीं मानीं और इसे अपनी सहेली के लिए पैदा किया. खैर, उन के दिल्ली जाने के बाद मैं ने चैन की सांस ली थी मगर यह फिर टपक पड़ी मुझे पापा कहने, हमारे सुखी परिवार में सेंध लगाने के लिए. साफ कहे दे रहा हूं मधु, मेरे लिए यह अनचाही औलाद है. न मैं स्वयं इस का अस्तित्व स्वीकार करूंगा न अपने बच्चों…’’

कशिश आगे और नहीं सुन सकी. उस ने फौरन बाहर आ कर एक रिकशा रोका. अब उसे दिल्ली जाने का इंतजार था, जहां उस के मम्मीपापा व्यस्तता के बावजूद उस के बगैर बेहाल होंगे. प्यार जन्म से नहीं होता है. प्यार तो प्यार करने वालों से होता है और जो प्यार उसे अपने दिल्ली वाले मातापिता से मिला, उस का तो कोई मुकाबला ही नहीं.

Drama Story

Hindi Love Story: इस प्यार को हो जाने दो

Hindi Love Story: प्यार धर्मजाति की दीवारों से परे पनपता है. अफजल और पूनम इस की गिरफ्त में थे. लेकिन रिश्तेदार व जमाने वाले ऐसे प्यार को धर्म की भट्टी में राख करने को उतारू रहते हैं. यह तो पूनम व अफजल के लिए किसी कड़े इम्तिहान से कम न था, क्या हुआ दोनों का…

कालेज के वार्षिक उत्सव की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. सभी छात्रछात्राएं अपनीअपनी खूबियों के अनुसार कार्यक्रम में भाग ले रहे थे. अफजल को गजलें लिखने का शौक था. उस की गजल का हर शब्द काबिलेतारीफ होता. पूरा कालेज दीवाना था उस की गजलों का. पूनम को गीतसंगीत बहुत पसंद था. बहुत मीठी आवाज थी उस की. पूरा कालेज उसे ‘स्वर कोकिला’ के नाम से जानता था. दोनों हर कार्यक्रम में एकसाथ ही भाग लेते. और न जाने कब दोनों एकदूसरे को चाहने लगे.

वेलैंटाइन डे पास आ रहा था. कालेज व बाजार में उस का माहौल अपना असर दिखा रहा था. कालेज के कई लड़केलड़कियां कार्ड खरीद कर लाए थे और अफजल से कुछ पंक्तियां लिख कर देने को कह रहे थे ताकि वे कार्ड में लिख अपने प्यार का इजहार कर सकें.

वहीं, कुछ लोगों ने वेलैंटाइन डे पर लाल गुलाब का गुलदस्ता बनवाया था. अफजल आज एक लाल गुलाब ले कर पूनम के पास जा पहुंचा और बोला, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं, पूनम. क्या तुम स्वीकारोगी मेरा प्यार?’’ यह कह वह अपने प्यार का इजहार कर बैठा. पूनम अफजल को मन ही मन चाहने लगी थी. सो, उस ने फूल हाथ में ले, शरमाते हुए, झुकी पलकों संग उस के प्यार को स्वीकार कर लिया था.

दोनों का प्यार बादलों के संग उड़ते हुए आजाद परिंदों की तरह परवाज करने लगा था. कालेज के बाद दोनों छिपछिप कर मिलने लगे थे. लेकिन इश्क और मुश्क भला छिपाए छिपे हैं किसी से? कालेज के सभी लोग उन्हें ‘हंसों का जोड़ा’ के नाम से पुकारते. इसी तरह मिलते और प्यार में डूबे 4 वर्ष बीत गए.

कालेज खत्म कर दोनों अपनीअपनी नौकरियों में लग गए. पूनम अपनी पूरी तनख्वाह अपनी मां के हाथ में रखती, हां, कुछ रुपए हर तनख्वाह में से अपने भाइयों के लिए उपहार के लिए रख लेती.

अब पूनम के घर में उस के विवाह के लिए चर्चा होने लगी थी और वह बहुत चिंतित हो गई थी. आज पूनम जब अफजल से मिली, कहने लगी, ‘‘अफजल, मेरे मातापिता मेरी शादी की बात कर रहे हैं और मुझे नहीं लगता कि वे हमारे प्यार को स्वीकारेंगे.’’

अफजल ने जवाब में कहा, ‘‘पूनम, तुम घबराओ नहीं. तुम अपनी मां को बताओ तो सही या मैं तुम्हारे पिताजी से बात करूं?’’

पूनम कहने लगी, ‘‘अफजल, देखती हूं, आज मैं ही मां को बता देती हूं.’’

जैसे ही मां ने सुना, वे तो बिफर पड़ी और आव देखा न ताव, जा बताया पिताजी को. जैसे ही पूनम के पिताजी ने उस के मुंह से अफजल का नाम सुना, तो वे आगबबूला हो उठे. मां तो कोसने लगी,  ‘‘कहा था लड़की को इतनी छूट मत दो. अब पोत रही है न हमारे मुंह पर कालिख. क्या फायदा इस को पढ़ानेलिखाने का. रातदिन इस की चिंता लगी रही. कभी देर से घर आती तो कलेजा मुंह को आ जाता. किंतु यह दिन दिखाएगी, ऐसा तो सोचा भी न था. मैं सोचती थी पढ़लिख जाए तो अच्छे घर में रिश्ता हो जाएगा. अपने पैरों पर खड़ी होगी तो किसी की मुहताज न होगी. पर हमें तो इस ने कहीं का न छोड़ा, अब क्या मुंह दिखाएंगे हम समाज में.’’

पिताजी बोले, ‘‘अगर प्रेम ही करना था तो कोई हिंदू लड़का नहीं मिला था. इन मुसलमानों में ही तुझे ज्यादा प्यार नजर आया? उन के घर में बुर्का पहन कर रहेगी? मांसमछली खाएगी? अपने धर्म की गीता छोड़ 5 वक्त नमाज पढ़ेगी? अरे, समझती क्यों नहीं, नाम भी बदल देंगे तेरा, जो कि तेरी अपनी पहचान है, कहीं की न रहेगी तू?’’

पूनम ने कितनी बार समझाने की कोशिश की थी अपनी मां को. वह कहती, ‘‘मां, अफजल एक नेक इंसान है, 4 साल साथ में गुजारे हैं हम ने और फिर हम एकदूसरे को अच्छे से समझते भी हैं. ऐसे में तुम क्यों खिलाफ हो उस के? उस की जगह किसी हिंदू लड़के से शादी कर लूं और हमारे विचार ही आपस में न मेल खाएं तो उस शादी का क्या फायदा मां? शादी तो 2 इंसानों का मिलन होता है, उस में धर्म की दीवार क्यों मां? क्या तुम पिताजी के साथ खुश हो मां?’’ जैसेतैसे अपनी जिंदगी की गाड़ी घसीट ही तो रहे हैं आप लोग.’’

इतना सुन मां ने उस के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया, ‘‘बेशर्म, जबान लड़ाती है, इतनी अंधी हो गई है उस मुसलमान के प्यार में?’’

उस के घर में तो धर्म का बोलबाला था, कोई उस की बात समझना तो दूर की बात, सुनने के लिए भी तैयार न था. इसी कारण उन दोनों ने कोर्टमैरिज करने का फैसला किया. और कोई चारा भी न था.

शादी के बाद जब वे दोनों पूनम के घर आशीर्वाद लेने आए, उस के पिता कहने लगे, ‘‘हमारी छूट व प्यार का गलत फायदा उठाया है तुम ने. जरा सोचो, तुम्हारे छोटे भाइयों का क्या होगा आगे? कुछ तो लिहाज किया होता. बिरादरी में हमारी नाक क्यों कटवा दी? तुझे पैदा होते ही क्यों न मार डाला हम ने? जाओ, अब जहां रिश्ता जोड़ा है वहीं जा कर रहो. अब तो वे तुम्हारा धर्म भी परिवर्तन कर देंगे. अल्लाहअल्लाह करना रातदिन.’’

पूनम चुपचाप सब सुन रही थी. बीचबीच में कुछ बोलने की कोशिश करती, किंतु पिताजी के गुस्से के सामने चुप हो जाती. थोड़ी सी आस अपने दोनों भाइयों से थी. किंतु जैसे ही उस ने उन से नजरें मिलाने की कोशिश की, एक ने तो मुंह फेर लिया और दूसरे ने उस का हाथ पकड़ दरवाजे का रास्ता दिखा दिया और कहा, ‘‘जाओ दीदी, अब इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए सदा के लिए बंद हैं.’’

अफजल दरवाजे के बाहर ही खड़ा सुन रहा था. वह चाहता था कि पूनम के पिताजी से बात करे, किंतु पूनम ने उसे रोक दिया था और वह अफजल से बोली, ‘‘चलो अफजल, घर चलते हैं, पिताजी नहीं मानने वाले.’’

उस के जातेजाते पिताजी ने कह दिया था, ‘‘यदि वे तुम्हें इस्तेमाल कर तलाक दे कर निकाल दें तो लौट कर न आना वापस.’’ अफजल को भी बहुत बुरा लग रहा था कि पूनम उस से प्यार व निकाह क्या कर बैठी, आशीर्वाद मिलना तो दूर, उस के लिए उस के मातापिता के घर के दरवाजे भी हमेशा के लिए बंद हो गए थे. सो, दोनों अफजल के घर आ पहुंचे.

अफजल की मां ने नई बहू के स्वागत की पूरी तैयारियां कर रखी थीं. अफजल के रिश्तेदार इस विवाह के खिलाफ थे. आखिर हिंदू व मुसलिम एकदूसरे के कट्टर दुश्मन जो बने बैठे हैं. सो, उस की मां अकेली ही स्वागत कर रही थी अपनी बहू का. अफजल की मां ने उसे बेटी सा प्यार दिया. वे कहने लगीं, ‘‘बेटी, तुम मेरे अफजल के लिए अपना सबकुछ छोड़ कर आई हो. अब मैं ही तुम्हारी मांबाप, भाई हूं. इस घर में कोई परेशानी हो तो जरूर कहना.’’

अफजल की मां की बातें पूनम को बहुत सुकून दे रही थीं. कहां तो एक तरफ उस के अपने घर वाले उसे कोस रहे थे और जब से उस की व अफजल की बात उन्हें मालूम हुई, एक दिन भी वह चैन की नींद न सो पाई थी और न ही एक भी निवाला सुकून से खाया था. ऐसा मालूम होता था जैसे बरसों से भूखी हो व थकी हो.

2 दिनों बाद दोनों हनीमून के लिए मसूरी घूमने को गए. वहां की वादियों में दोनों रम जाना चाहते थे. लेकिन वहां भी पूनम को अपने मातापिता की बातें याद आती रहतीं. खैर, 15 दिन पूरे हुए, हनीमून खत्म हुआ. अब अफजल व पूनम दोनों को दफ्तर जाना था. अफजल की मां पूनम को सगी बेटी सा प्यार दे रही थीं. एक ही वर्ष में उस ने चांद सी बेटी को जन्म दिया.

पूनम को लगा शायद उस के

मातापिता अपनी नातिन को देख

कर खुश हो जाएंगे. सो, एक दिन उस ने अपनी मां को फोन मिलाया. पिताजी ने फोन उठाया और उस की आवाज सुन मां को फोन थमा दिया. मां ने तो उस की बात सुने बिना ही कह दिया, ‘‘पूनम, तुम हमारे लिए सदा के लिए मर चुकी हो.’’

उन की बात सुन कर पूनम खूब रोई. उस दिन पूनम ने मन ही मन अपने मातापिता से सदा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था.

पूनम अपनी सास के साथ पूरी तरह हिलमिल गई थी. कभीकभी छुट्टी के दिन वह अपनी सास के बुटीक में भी जा कर उन का हाथ बंटाती.

पूनम की सास ने किसी भी मसजिदमजार में जाना बंद कर दिया और पूनम मंदिरों में नहीं जाती. वे नया साल, अपनी विवाह की वर्षगांठ, बच्चों के जन्मदिन जम कर मनाते.

ईद के दिन रिश्तेदारों के यहां खाना खाते और दीवालीहोली पर सब को घर पर खाने पर बुलाते. जो मुसलिम रिश्तेदार पहले नाराज थे, धीरेधीरे घुलमिल गए.

ऐसा चलते पूरे 7 वर्ष बीत गए. अब सास का शरीर भी जवाब देने लगा था. सो, बुटीक कम ही संभालती थीं. लेकिन पूनम उन का पूरा सहारा बन गई थी बुटीक को चलाने में. बारबार सास कहतीं, ‘‘अब शरीर तो साथ देता नहीं, लगता है बुटीक बंद ही करना पड़ेगा और वे बहुत दुखी हो जातीं.’’

पूनम उन के दुख को समझती थी. काम के चलते अफजल एक वर्ष के लिए अमेरिका चले गए. तभी अचानक एक दिन पूनम के भाई का फोन आया. पूनम बहुत खुश हो गई और कहने लगी, ‘‘मां कैसी है?’’ उस के भाई ने उस से बहुत प्यार से बात की. पूनम का मीठा रुख देख अगले दिन मां का भी फोन आया. पूनम तो मानो चहक उठी और पूछने लगी, ‘‘कैसी हो मां तुम सब, पिताजी कैसे हैं?’’

मां कहने लगी, ‘‘बेटी पूनम, तुम्हारे पिता तो बूढ़े हो चले हैं, भाई पढ़ाईलिखाई में तो कुछ खास अच्छे निकले नहीं. सो, तुम्हारे पिताजी ने उन्हें एक दुकान खुलवा दी. किंतु दोनों के दोनों एक फूटी कौड़ी घर में नहीं देते हैं, बल्कि कर्जा और हो गया. जिस बैंक से लोन ले कर कारोबार शुरू किया वह भी अब चुका नहीं पा रहे हैं. यदि तुम कुछ रुपयों का इंतजाम कर सको…’’

उसे ठीक तरह बात करते देख मां ने भाइयों के लोन चुकाने के लिए पूनम से रुपए मांग ही लिए.

अब पूनम सब समझ गई थी कि आज भी उन्होंने पूनम से सिर्फ उन की अपनी जरूरत पूरी करवाने के लिए ही फोन किया था. एक वह दिन था जब वह अफजल से निकाह करना चाहती थी, तो उस के परिवार वालों ने उस से रिश्ता तोड़ लिया था. तब तो उन्हें बेटी से ज्यादा धर्म प्यारा हुआ करता था. और आज, जब पैसों की जरूरत आन पड़ी तो अब वह अपनी हो गई. वरना क्या जैसे अफजल की मां ने हिम्मत कर अकेली हो कर भी गैरधर्म की लड़की को अपना लिया, क्या उस के अपने मांबाप, भाई साथ नहीं दे सकते थे उस का? और उस के निकम्मे भाइयों के लिए मां उस से वापस रिश्ता जोड़ने के लिए राजी हो गई. फिर भी उस ने अपनी मां को मीठा जवाब दे दिया ‘‘हां मां, देखती हूं.’’

और कुछ ही दिनों में जब उस की अपनी सास बीमार हुई और औपरेशन करवाना पड़ा तो पूनम ने अपने बैंक अकाउंट में से पैसे निकलवा कर अपनी सास का दिल का औपरेशन करवाया और उस की सेवा में लग गई. उस के बाद उस ने अपनी नौकरी छोड़ सास का बुटीक भी पूरी तरह से संभाल लिया. सास और बहू अब मांबेटी बन गई थीं. पूनम मन ही मन सोचती रहती, ऐसा धर्म किस काम का जिस की दीवार इतनी बड़ी होती है कि उस के सामने खून के रिश्ते भी बौने हो जाते हैं? और अपने धर्म को निभाने के लिए खून से जुड़े रिश्तों ने उसे छोड़ दिया था. उस ने तो धर्म की वह दीवार ढहा दी थी और वह गुनगुना रही थी –

धर्म, जाति, ऊंचनीच की दीवारों को ढह जाने दो.

इस प्यार को हो जाने दो, इस प्यार को हो जाने दो…

Hindi Love Story

Hindi Fictional Story: सबक- आखिर कैसे बदल गई निशा?

Hindi Fictional Story: सुबह सैर कर के लौटी निशा ने अखबार पढ़ रहे अपने पति रवि को खुशीखुशी बताया, ‘‘पार्क में कुछ दिन पहले मेरी सपना नाम की सहेली बनी है. आजकल उस का अजय नाम के लड़के से जोरशोर के साथ इश्क चल रहा है.’’ ‘‘मुझे यह क्यों बता रही हो?’’ रवि ने अखबार पर से बिना नजरें उठाए पूछा.

‘‘यह सपना शादीशुदा महिला है.’’ ‘‘इस में आवाज ऊंची करने वाली क्या बात है? आजकल ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं.’’

‘‘आप को चटपटी खबर सुनाने का कोई फायदा नहीं होता. अभी औफिस में कोई समस्या पैदा हो जाए तो आप के अंदर जान पड़ जाएगी. उसे सुलझाने में रात के 12 बज जाएं पर आप के माथे पर एक शिकन नहीं पड़ेगी. बस मेरे लिए आप के पास न सुबह वक्त है, न रात को,’’ निशा रोंआसी हो उठी. ‘‘तुम से झगड़ने का तो बिलकुल भी वक्त नहीं है मेरे पास,’’ कह रवि ने मुसकराते हुए उठ कर निशा का माथा चूमा और फिर तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

निशा ने माथे में बल डाले और फिर सोच में डूबी कुछ पल अपनी जगह खड़ी रही. फिर गहरी सांस खींच कर मुसकराई और रसोई की तरफ चल पड़ी. उस दिन औफिस में रवि को 4 परचियां मिलीं. ये उस के लंच बौक्स, पर्स, ब्रीफकेस और रूमाल में रखी थीं. इन सभी पर निशा ने सुंदर अक्षरों में ‘आईलवयू’ लिखा था.

इन्हें पढ़ कर रवि खुश भी हुआ और हैरान भी क्योंकि निशा की यह हरकत उस की समझ से बाहर थी. उस के मन में तो निशा की छवि एक शांत और खुद में सीमित रहने वाली महिला की थी.

रोज की तरह उस दिन भी रवि को औफिस से लौटने में रात के 11 बज गए. उन चारों परचियों की याद अभी भी उस के दिल को गुदगुदा रही थी. उस ने निशा को अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘आज कोई खास दिन है क्या?’’ ‘‘नहीं तो,’’ निशा ने मुसकराते हुए

जवाब दिया. ‘‘फिर वे सब परचियां मेरे सामान में क्यों रखी थीं?’’

‘‘क्या प्यार का इजहार करते रहना गलत है?’’ ‘‘बिलकुल नहीं, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ ‘‘तुम ने शादी के 2 सालों में पहले कभी ऐसा नहीं किया, इसलिए मुझे हैरानी हो रही है.’’

‘‘तो फिर लगे हाथ एक नई बात और बताती हूं. आप की शक्ल फिल्म स्टार शाहिद कपूर से मिलती है.’’ ‘‘अरे नहीं. मजाक मत उड़ाओ, यार,’’ रवि एकदम से खुश हो उठा था.

‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं उड़ा रही हूं, जनाब. वैसे मेरा अंदाजा है कि आप बन रहे हो. अब तक न जाने कितनी लड़कियां आप से यह बात कह चुकी होंगी.’’ ‘‘आज तक 1 ने भी नहीं कही है यह बात.’’

‘‘चलो शाहिद कपूर नहीं कहा होगा, पर आप के इस सुंदर चेहरे पर जान छिड़कने वाली लड़कियों की कालेज में तो कभी कमी नहीं रही होगी,’’ निशा ने अपने पति की ठोड़ी बड़े स्टाइल से पकड़ कर उसे छेड़ा. ‘‘मैडम, मेरी दिलचस्पी लड़कियों में नहीं, बल्कि पढ़नेलिखने में थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती कि कालेज में आप की कोई खास सहेली नहीं थी. आज तो मैं उस के बारे में सब कुछ जान कर ही रहूंगी,’’ निशा बड़ी अदा से मुसकराई और फिर स्टाइल से चलते हुए चाय बनाने के लिए रसोई में घुस गई. उस दिन से रवि के लिए अपनी पत्नी के बदले व्यवहार को समझना कठिन होता चला

गया था. उस रात निशा ने रवि से उस की गुजरी जिंदगी के बारे में ढेर सारे सवाल पूछे. रवि शुरू में झिझका पर धीरेधीरे काफी खुल गया. उसे पुराने दोस्तों और घटनाओं की चर्चा करते हुए बहुत मजा आ रहा था.

वैसे वह पलंग पर लेटने के कुछ मिनटों बाद ही गहरी नींद में डूब जाता था, लेकिन उस रात सोतेसोते 1 बज गया.

‘‘गुड नाइट स्वीट हार्ट,’’ निशा को खुद से लिपटा कर सोने से पहले रवि की आंखों में उस के लिए प्यार के गहरे भाव साफ नजर आ रहे थे.

अगले दिन निशा सैर कर के लौटी तो उस के हाथ में एक बड़ी सी चौकलेट थी. रवि के सवाल के जवाब में उस ने बताया, ‘‘यह मुझे सपना ने दी है. उस का प्रेमी अजय उस के लिए ऐसी 2 चौकलेट लाया था.’’ ‘‘क्या तुम्हें चौकलेट अभी भी पसंद है?’’

‘‘किसी को चौकलेट दिलवाने का खयाल आना बंद हो जाए, तो क्या दूसरे इंसान की उसे शौक से खाने की इच्छा भी मर जाएगी?’’ निशा ने सवाल पूछने के बाद नाटकीय अंदाज में गहरी सांस खींची और अगले ही पल खिलखिला कर हंस भी पड़ी. रवि ने झेंपे से अंदाज में चौकलेट के कुछ टुकड़े खाए और साथ ही साथ मन में निशा के लिए जल्दीजल्दी चौकलेट लाते रहने का निश्चय भी कर लिया.

‘‘आज शाम को क्या आप समय से लौट सकेंगे?’’ औफिस जा रहे रवि की टाई को ठीक करते हुए निशा ने सवाल किया. ‘‘कोई काम है क्या?’’

‘‘काम तो नहीं है, पर समय से आ गए तो आप का कुछ फायदा जरूर होगा.’’ ‘‘किस तरह का फायदा?’’

‘‘आज शाम को वक्त से लौटिएगा और जान जाइएगा.’’ निशा ने और जानकारी नहीं दी तो मन में उत्सुकता के भाव समेटे रवि को औफिस जाना पड़ा.

मन की इस उत्सुकता ने ही उस शाम रवि को औफिस से जल्दी घर लौटने को मजबूर कर दिया था. उस शाम निशा ने उस का मनपसंद भोजन तैयार किया था. शाही पनीर, भरवां भिंडी, बूंदी का रायता और परांठों के साथसाथ उस ने मेवा डाल कर खीर भी बनाई थी.

‘‘आज किस खुशी में इतनी खातिर कर रही हो?’’ अपने पसंदीदा भोजन को देख कर रवि बहुत खुश हो गया. ‘‘प्यार का इजहार करने का यह क्या बढि़या तरीका नहीं है?’’ निशा ने इतराते हुए पूछा तो रवि ठहाका मार कर हंस पड़ा.

भर पेट खाना खा कर रवि ने डकार ली और फिर निशा से बोला, ‘‘मजा आ गया, जानेमन. इस वक्त मैं बहुत खुश हूं… तुम्हारी किसी भी इच्छा या मांग को जरूर पूरा करने का वचन देता हूं.’’ ‘‘मेरी कोई इच्छा या मांग नहीं है, साहब.’’

‘‘फिर पिछले 2 दिनों से मुझे खुश करने की इतनी ज्यादा कोशिश क्यों की जा रही है?’’ ‘‘सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को खुश देख कर मुझे खुशी मिलती है, हिसाबकिताब रख कर काम आप करते होंगे, मैं नहीं.’’ निशा ने नकली नाराजगी दिखाई तो रवि फौरन उसे मनाने के काम में लग गया.

रवि ने मेज साफ करने में निशा का हाथ बंटाया. फिर उसे रसोई में सहयोग दिया. निशा जब तक सहज भाव से मुसकराने नहीं लगी, तब तक वह उसे मनाने का खेल खेलता रहा. उस रात खाना खाने के बाद रवि निशा के साथ कुछ देर छत पर भी घूमा. बड़े लंबे समय के बाद दोनों ने इधरउधर की हलकीफुलकी बातें करते हुए यों साथसाथ समय गुजारा.

अगले दिन रविवार होने के कारण रवि देर तक सोया. सैर से लौट आने के बाद निशा ने चाय बनाने के बाद ही उसे उठाया. दोनों ने साथसाथ चाय पी. रवि ने नोट किया कि निशा लगातार शरारती अंदाज में मुसकराए जा रही है. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या आज भी मुझे कोई सरप्राइज मिलने वाला है?’’

‘‘बहुत सारे मिलने वाले हैं,’’ निशा की मुसकान रहस्यमयी हो उठी. ‘‘पहला बताओ न?’’

‘‘मैं ने अखबार छिपा दिया है.’’ ‘‘ऐसा जुल्म न करो, यार. अखबार पढ़े बिना मुझे चैन नहीं आएगा.’’

‘‘आप की बेचैनी दूर करने का इंतजाम भी मेरे पास है.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘आइए,’’ निशा ने उस का हाथ पकड़ा और छत पर ले आई. छत पर दरी बिछी हुई थी. पास में सरसों के तेल से भरी बोतल रखी थी. रवि की समझ में सारा माजरा आया तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा और उस ने खुशी से पूछा, ‘‘क्या तेल मालिश करोगी?’’

‘‘यस सर.’’ ‘‘आई लव तेल मालिश.’’ रवि फटाफट कपड़े उतारने लगा.

‘‘ऐंड आईलवयू,’’ निशा ने प्यार से उस का गाल चूमा और फिर अपने कुरते की बाजुएं चढ़ाने लगी.

रवि के लिए वह रविवार यादगार दिन बन गया.

तेल मालिश करातेकराते वह छत पर ही गहरी नींद सो गया. जब उठा तो आलस ने उसे घेर लिया.

‘‘गरम पानी तैयार है, जहांपनाह और आज यह रानी आप को स्नान कराएगी,’’ निशा की इस घोषणा को सुन कर रवि के तनमन में गुदगुदी की लहर दौड़ गई.

रवि तो उसे नहाते हुए ही जी भर कर प्यार करना चाहता था पर निशा ने खुद को उस की पकड़ में आने से बचाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी से खेल बिगड़ जाता है, साहब.

अभी तो कई सरप्राइज बाकी हैं. प्यार का जोश रात को दिखाना.’’ ‘‘तुम कितनी रोमांटिक…कितनी प्यारी…कितनी बदलीबदली सी हो गई हो.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ उस की कमर पर साबुन लगाते हुए निशा ने जरा सी बगल गुदगुदाई तो वह बच्चे की तरह हंसता हुआ फर्श पर लुढ़क गया. निशा ने बाहर खाना खाने की इच्छा जाहिर की तो रवि उसे ले कर शहर के सब

से लोकप्रिय होटल में आ गया. भर पेट खाना खा कर होटल से बाहर आए तो यौन उत्तेजना का शिकार बने रवि ने घर लौटने की इच्छा जाहिर की. ‘‘सब्र का फल ज्यादा मीठा होता है, सरकार. पहले इस सरप्राइज का मजा तो ले लीजिए,’’ निशा ने अपने पर्स से शाहरुख खान की ताजा फिल्म के ईवनिंग शो के 2 टिकट निकाल कर उसे पकड़ाए तो रवि ने पहले बुरा सा मुंह बनाया पर फिर निशा के माथे में पड़े बलों को देख कर फौरन मुसकराने लगा.

निशा को प्यार करने की रवि की इच्छा रात के 10 बजे पूरी हुई. निशा तो कुछ देर पार्क में टहलना चाहती थी, लेकिन अपनी मनपसंद आइसक्रीम की रिश्वत खा कर वह सीधे घर लौटने को राजी हो गई. रवि का मनपसंद सैंट लगा कर जब वह रवि के पास पहुंची तो उस ने अपनी बांहें प्यार से फैला दीं.

‘‘नो सर. आज सारी बातें मेरी पसंद से हुई हैं, तो इस वक्त प्यार की कमान भी आप मुझे संभालने दीजिए. बस, आप रिलैक्स करो और मजा लो.’’ निशा की इस हिदायत को सुन कर रवि ने खुशीखुशी अपनेआपको उस के हवाले कर दिया.

रवि को खुश करने में निशा ने उस रात कोईर् कसर बाकी नहीं छोड़ी. अपनी पत्नी के इस नए रूप को देख कर हैरान हो रहा रवि मस्ती भरी आवाज में लगातार निशा के रंगरूप और गुणों की तारीफ करता रहा. मस्ती का तूफान थम जाने के बाद रवि ने उसे अपनी छाती से लगा कर पूछा, ‘‘तुम इतनी ज्यादा कैसे बदल गईर् हो, जानेमन? अचानक इतनी सारी शोख, चंचल अदाएं कहां से सीख ली हैं?’’

‘‘तुम्हें मेरा नया रूप पसंद आ रहा है न?’’ निशा ने उस की आंखों में प्यार से झांकते

हुए पूछा. ‘‘बहुत ज्यादा.’’

‘‘थैंक यू.’’ ‘‘लेकिन यह तो बताओ कि ट्रेनिंग कहां से ले रही हो?’’

‘‘कोई देता है क्या ऐसी बातों की ट्रेनिंग?’’ ‘‘विवाहित महिला एक पे्रमी बना ले तो उस के अंदर सैक्स के प्रति उत्साह यकीनन बढ़ जाएगा. कम से कम पुरुषों के मामले में तो ऐसा पक्का होता है. कहीं तुम ने भी तो अपनी उस पार्क वाली सहेली सपना की तरह किसी के साथ टांका फिट नहीं कर लिया है?’’

‘‘छि: आप भी कैसी घटिया बात मुंह से निकाल रहे हो?’’ निशा रवि की छाती से और ज्यादा ताकत से लिपट गई, ‘‘मुझ पर शक करोगे तो मैं पहले जैसा नीरस और उबाऊ ढर्रा फिर से अपना लूंगी.’’ ‘‘ऐसा मत करना, जानेमन. मैं तो तुम्हें जरा सा छेड़ रहा था.’’

‘‘किसी का दिल दुखाने को छेड़ना नहीं कहते हैं.’’ ‘‘अब गुस्सा थूक भी दो, स्वीटहार्ट. आज तुम ने मुझे जो भी सरप्राइज दिए हैं, उन के लिए बंदा ‘थैंकयू’ बोलने के साथसाथ एक सरप्राइज भी तुम्हें देना चाहता है.’’

‘‘क्या है सरप्राइज?’’ निशा ने उत्साहित लहजे में पूछा. ‘‘मैं ने तुम्हारी गर्भनिरोधक गोलियां फेंक

दी है?’’ ‘‘क्यों?’’ निशा चौंक पड़ी.

‘‘क्योंकि अब 3 साल इंतजार करने के बजाय मैं जल्दी पापा बनना चाहता हूं.’’ ‘‘सच.’’ निशा खुशी से उछल पड़ी.

‘‘हां, निशा. वैसे तो मैं भी अब ज्यादा से ज्यादा समय तुम्हारे साथ बिताने की कोशिश किया करूंगा, पर अकेलेपन के कारण तुम्हारे सुंदर चेहरे को मुरझाया सा देखना अब मुझे स्वीकार नहीं. मेरे इस फैसले से तुम खुश हो न?’’ निशा ने उस के होंठों को चूम कर अपना जवाब दे दिया.

रवि तो बहुत जल्दी गहरी नींद में सो गया, लेकिन निशा कुछ देर तक जागती रही. वह इस वक्त सचमुच अपनेआप को बेहद खुश व सुखी महसूस कर रही थी. उस ने मन ही मन अपनी सहेली सपना और उस के प्रेमी को धन्यवाद दिया. इन दोनों के कारण ही उस के विवाहित जीवन में आज रौनक पैदा हो गई थी.

पार्क में जानपहचान होने के कुछ दिनों बाद ही अजय ने सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने के प्रयास शुरू कर दिए थे. सपना तो उसे डांट कर दूर कर देती, लेकिन निशा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

‘‘सपना, मैं देखना चाहती हूं कि वह तुम्हारा दिल जीतने के लिए क्याक्या तरकीबें अपनाता है. यह बंदा रोमांस करने में माहिर है और मैं तुम्हारे जरीए कुछ दिनों के लिए इस की शागिर्दी करना चाहती हूं.’’

निशा की इस इच्छा को जान कर सपना हैरान नजर आने लगी थी. ‘‘पर उस की शागिर्दी कर के तुम्हें हासिल क्या होगा?’’ आंखों में उलझन के भाव लिए सपना ने पूछा.

‘‘अजय के रोमांस करने के नुसखे सीख कर मैं उन्हें अपने पति पर आजमाऊंगी, यार.

उन्हें औफिस के काम के सिवा आजकल और कुछ नहीं सूझता है. उन के लिए कैरियर ही सबकुछ हो गया है. मेरी खुशी व इच्छाएं ज्यादा माने नहीं रखतीं. उन के अंदर बदलाव लाना मेरे मन की सुखशांति के लिए जरूरी हो गया

है, यार.’’ अपनी सहेली की खुशी की खातिर सपना ने अजय के साथ रोमांस करने का नाटक चालू रखा. सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने को वह जो कुछ भी करने की इच्छा प्रकट करता, निशा उसी तरकीब को रवि पर आजमाती.

पिछले दिनों निशा ने रवि को खुश करने के लिए जो भी काम किए थे, वे सब अजय की ऐसी ही इच्छाओं पर आधारित थे. उस ने कुछ महत्त्वपूर्ण सबक भविष्य के लिए भी सीखे थे. ‘विवाहित जीवन में ताजगी, उत्साह

और नवीनता बनाए रखने के लिए पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे का दिल जीतने के प्रयास

2 प्रेमियों की तरह ही करते रहना चाहिए,’ इस सबक को उस ने हमेशा के लिए अपनी गांठ में बांध लिया. ‘अपने इस मजनू को अब हरी झंडी दिखा दो,’ सपना को कल सुबह यह संदेशा देने की बात सोच कर निशा पहले मुसकराई और फिर सो रहे रवि के होंठों को हलके से चूम कर उस ने खुशी से आंखें मूंद लीं.

Hindi Fictional Story

Story in Hindi: धोखा- अनुभव के साथ क्या करना चाहती थी अनुभा

Story in Hindi: ‘‘हैलो मिस्टर अनुभव, क्या मैं आप के 2 मिनट ले सकती हूं?’’ मेरे केबिन में अभीअभी दाखिल हुई मोहतरमा के मधुर स्वर ने मुझे एक सुखद अहसास से भर दिया था. फाइलों से आंखें हटा कर चश्मा संभालते हुए मैं ने सामने देखा तो देखता ही रह गया.

लग रहा था जैसे हर तरफ कचनार के फूल बिखर गए हों और सारा आलम मदहोश हो रहा हो. फ्लौवर प्रिंट वाली स्टाइलिश पिंक मिडी और घुंघराले लहराते बालों को स्टाइल से पीछे करती बाला के गुलाबी होंठों पर गजब  की आमंत्रणपूर्ण मुसकान थी.

हाल ही में वायरल हुए प्रिया के वीडियो की तरह उस ने नजाकत से अपनी भौंहों को नचाते हुए कुछ कहा, जिसे मैं समझ नहीं पाया, फिर भी बल्लियों उछलते अपने दिल को काबू में करते हुए मैं ने विनम्रता से उसे बैठने का इशारा किया.

‘‘मिस्टर अनुभव, मैं अनुभा. आप का ज्यादा वक्त न लेते हुए अपनी बात कहती हूं. पहले यह बताइए कि आप की उम्र क्या है?’’

ऊपर से नीचे तक मुझ पर निगाहें घुमाते हुए उस ने बड़ी अदा से कहा, ‘‘वैसे आप की कसी हुई बौडी देख कर तो लगता है कि आप 40 से ऊपर नहीं हैं. मगर किसी ने मुझे आप के पास यह कह कर भेजा है कि आप 50 प्लस हैं और आप हमारी पौलिसी का फायदा उठा सकते हैं.’’

वैसे तो मैं इसी साल 55 का हो चुका हूं, मगर अनुभा के शब्दों ने मुझे यह अहसास कराया था कि मैं अब भी कितना युवा और तंदुरुस्त दिखता हूं. भले ही थोड़ी सी तोंद निकल आई हो, चश्मा लग गया हो और सिर के सामने के बाल गायब हो रहे हों, मगर फिर भी मेरी पर्सनैलिटी देख कर अच्छेखासे जवान लड़के जलने लगते हैं.

मैं उस की तरफ देख कर मुसकराता हुआ बोला, ‘‘अजी बस शरीर फिट रखने का शौक है. उम्र 50 की हो गई है. फिर भी रोज जिम जाता हूं. तभी यह बौडीशौडी बनी है.’’

वह भरपूर अंदाज से मुसकराई, ‘‘मानना पड़ेगा मिस्टर अनुभव, गजब की प्लीजैंट पर्सनैलिटी है आप की. मेरे जैसी लड़कियां भी तुरंत फ्लैट हो जाएं आप पर.’’

कहते हुए एक राज के साथ उस ने मेरी तरफ देखा और फिर कहने लगी, ‘‘एक्चुअली हमारी कंपनी 50 प्लस लोगों के लिए एक खास पौलिसी ले कर आई है. जरा गौर फरमाएं यह है कंपनी और पौलिसी की डिटेल्स.’’

उस ने कुछ कागजात मेरी तरफ आगे बढ़ाए और खुद मुझ पर निगाहों के तीर फेंकती हुई मुसकराती रही. मैं ने कागजों पर एक नजर डाली और सहजता से बोला, ‘‘जरूर मैं लेना चाहूंगा.’’

‘‘ओके देन. फिर मैं कल आती हूं आप के पास. तब तक आप ये कागज तैयार रखिएगा.’’

कुरसी से उठते हुए उस ने फिर मेरी तरफ एक भरपूर नजर डाली और पूछा, ‘‘वैसे किस जिम में जाते हैं आप?’’

मैं सकपका गया क्योंकि जिम की बात तो उस पर इंप्रैशन जमाने के लिए कही थी. फिर कुछ याद करते हुए बोला, ‘‘ड्रीम पैलेस जिम, कैलाशपुरी में है ना, वही.’’

‘‘ओह, वाट ए कोइंसीडैंस! मैं भी तो वहीं जाती हूं. किस समय जाते हैं आप?’’

‘‘मैं 8 बजे,’’ मैं ने कहा.

‘‘अच्छा कभी हम मिले नहीं. एक्चुअली मैं 6 बजे जाती हूं ना!’’ इठलाती हुई वह दरवाजे से निकलते हुए उसी मधुर स्वर में बोली, ‘‘ओके देन बाय. सी यू.’’

वह बाहर चली गई और मैं अपने खयालों के गुलशन को आबाद करने लगा. सामने लगे शीशे में गौर से अपने आप को हर एंगल से निहारने लगा. सचमुच मेरी पर्सनैलिटी प्लीजैंट है, इस बात का अहसास गहरा हो गया था. यानी इस उम्र में भी मुझे देख कर बहुतों के दिल में कुछकुछ होता है.

मैं सोचने लगा कि सामने वाले आकाशचंद्र की साली को मैं अकसर उसी वक्त बालकनी में खड़ी देखता हूं जब मैं गाड़ी निकाल कर औफिस के लिए निकल रहा होता हूं. यानी वह इत्तफाक नहीं प्रयास है.

हो न हो मुझे देखने का बहाना तलाशती होगी और फिर पिंकी की दीदी भी तो मुझे देख कितनी खुश हो जाती है. आज जो हुआ वह तो बस दिल को ठंडक ही दे गया था. सीधेसीधे लाइन मार रही थी. बला की अदाएं थीं उस की.

मैं अपनी बढ़ी धड़कनों के साथ कुरसी पर बैठ गया. कुछ देर तक उसी के खयालों में खोया रहा. कल फिर आएगी. ठीक से तैयार हो कर आऊंगा. मैं सोच ही रहा था कि पत्नी का फोन आ गया. मैं ने जानबूझ कर फोन नहीं उठाया. कहीं मेरी आवाज के कंपन से वह अंदाजा न लगा ले और फिर औरतों को तो वैसे भी पति की हरकतों का तुरंत अंदाजा हो जाता है.

अचानक मेरी सोच की दिशा बदली कि मैं यह क्या कर रहा हूं. 55 साल का जिम्मेदार अफसर हूं. घर में बीवी, बच्चे सब हैं और मैं औफिस में किसी फुलझड़ी के खयालों में डूबा हुआ हूं. न…न…अचानक मेरे अंदर की नैतिकता जागी, पराई स्त्री के बारे में सोचना भी गलत है. मैं सचमुच काम में लग गया. बीवी के फोन ने मेरे दिमाग के शरारती तंतुओं को फिर से सुस्त कर दिया. शाम को जब घर पहुंचा तो बीवी कुछ नाराज दिखी.

‘‘मेरा फोन क्यों नहीं उठाया? कुछ सामान मंगाना था तुम से.’’

‘‘बस मंगाने के लिए फोन करती हो मुझे? कभी दिल लगाने को भी फोन कर लिया करो.’’ मेरी बात पर वह ऐसे शरमा कर मुसकराई जैसे वह कोई नई दुलहन हो. फिर वह तुरंत चाय बनाने चली गई और मैं कपड़े बदल कर रोज की तरह न्यूज देखने बैठ गया. पर आज समाचारों में मन ही नहीं लग रहा था? बारबार उस हसीना का चेहरा निगाहों के आगे आ जाता.

अगले दिन वह मोहतरमा नियत समय पर उसी अंदाज में अंदर आई. मेरे दिल पर छुरियां चलाती हुई वह सामने बैठ गई. कागजी काररवाई के दौरान लगातार उस की निगाहें मुझ पर टिकी रहीं. मैं सब महसूस कर रहा था पर पहल कैसे करता? 2 दिन बाद फिर से आने की बात कह कर वह जाने लगी. जातेजाते फिर से मेरे दिल के तार छेड़ती हुए बोली, ‘‘कल मैं 8 बजे पहुंची थी जिम, पर आप नजर नहीं आए.’’

मैं किसी चोर की तरह सकपका गया.

‘‘ओह, कल एक्चुअली बीवी के मायके जाना पड़ गया, सो जिम नहीं जा सका.’’

‘‘…मिस्टर अनुभव, आई डोंट नो, पर ऐसा क्या है आप में जो मुझे आप की तरफ खींच रहा है. अजीब सा आकर्षण है. जैसा मैं महसूस कर रही हूं क्या आप भी…?’’

उस के इस सवाल पर मुझे लगा जैसे कि मेरी सांसें ही थम गई हों. अजीब सी हालत हो गई थी मेरी. कुछ भी बोल नहीं सका.

‘ओके सी यू मैं इंतजार करूंगी.’’ कह कर वह मुसकराती हुई चली गई.

मैं आश्चर्य भरी खुशी में डूबा रहा. वह जिम में मेरा इंतजार करेगी. तो क्या सचमुच वह मुझ से प्यार करने लगी है. यह सवाल दिल में बारबार उठ रहा था.

फिर तो औफिस के कामों में मेरा मन ही नहीं लगा. हाफ डे लीव ले कर सीधा पहुंच गया ड्रीम प्लेस जिम. थोड़ी प्रैक्टिस की और अगले दिन से रोजाना 8 बजे आने की बात तय कर घर आ गया.

बीवी मुझे जल्दी आया देख चौंक गई. मैं बीमारी का बहाना कर के कमरे में जा कर चुपचाप लेट गया. एक्चुअली किसी से बात करने की कोई इच्छा ही नहीं हो रही थी. मैं तो बस डूब जाना चाहता था अनुभा के खयालों में.

अगले दिन से रोजाना 8 बजे अनुभा मुझे जिम में मिलने आने लगी. कभीकभी हम चाय कौफी पीने या टहलने भी निकल जाते. मेरी बीवी अकसर मेरे बरताव और रूटीन में आए बदलाव को ले कर सवाल करती पर मैं बड़ी चालाकी से बहाने बना देता.

जिंदगी इन दिनों बड़ी खुशगवार गुजर रही थी. अजीब सा नशा होता था उस के संग बिताए लम्हों में. पूरा दिन उसी के खयालों की खुशबू में विचरते हुए गुजर जाता.

मैं तरहतरह के महंगे गिफ्ट्स ले कर उस के पास पहुंचता, वह खुश हो जाती. कभीकभी वह करीब आती, अनजाने ही मुझे छू कर चली जाती. उस स्पर्श में गजब का आकर्षण होता. मुझे लगता जैसे मैं किसी और ही दुनिया में पहुंच गया हूं.

धीरेधीरे मेरी इस मदहोशी ने औफिस में मेरे परफौर्मेंस पर असर डालना शुरू कर दिया. मेरा बौस मुझ से नाखुश रहने लगा. पारिवारिक जीवन पर भी असर पड़ रहा था. एक दिन मेरे किसी परिचित ने मुझे अनुभा के साथ देख लिया और जा कर बीवी को बता दिया.

बीवी चौकन्नी हो गई और मुझ से कटीकटी सी रहने लगी. वह मेरे फोन और आनेजाने के समय पर नजर रखने लगी थी. मुझे इस बात का अहसास था पर मैं क्या करता? अब अनुभा के बगैर रहने की सोच भी नहीं सकता था.

एक दिन अनुभा मेरे बिलकुल करीब आ कर बोली, ‘‘अब आगे?’’

‘‘आगे क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आगे बताइए मिस्टर, मैं आप की बीवी तो बन नहीं सकती. आप के उस घर में रह नहीं सकती. इस तरह कब तक चलेगा?’’

‘तुम कहो तो तुम्हारे लिए एक दूसरा घर खरीद दूं.’’

वह मुसकुराती हुई बोली, ‘‘अच्छे काम में देर कैसी? मैं भी यही कहना चाहती थी कि हम दोनों का एक खूबसूरत घर होना चाहिए. जहां तुम बेरोकटोक मुझ से मिलने आ सको. किसी को पता भी नहीं चलेगा. फिर तो तुम वह सब भी पा सकोगे जो तुम्हारी नजरें कहती हैं. मेरे नाम पर एक घर खरीद दोगे तो मुझे भी ऐतबार हो जाएगा कि तुम मुझे वाकई चाहते हो. फिर हमारे बीच कोई दूरी नहीं रह जाएगी.’’

मेरा दिल एक अजीब से अहसास से खिल उठा. अनुभा पूरी तरह से मेरी हो जाएगी. इस में और देर नहीं होनी चाहिए. मैं ने मन में सोचा. तभी वह मेरे गले में बांहें डालती हुई बोली, ‘‘अच्छा सुनो, तुम मुझे कैश रुपए दे देना. मेरे अंकल प्रौपर्टी डीलर हैं. उन की मदद से मैं ने एक घर देखा है. 40 लाख का घर है. ऐसा करो आधे रुपए मैं लगाती हूं आधे तुम लगा दो.’’

‘‘ठीक है मैं रुपयों का इंतजाम कर दूंगा.’’ मैं ने कहा तो वह मेरे सीने से लग गई.

अगले 2-3 दिनों में मैं ने रुपयों का इंतजाम कर लिया. चैक तैयार कर उसे सरप्राइज देने के खयाल से मैं उस के घर के एडै्रस पर जा पहुंचा. बहुत पहले उस ने यह एडै्रस दिया था पर कभी भी मुझे वहां बुलाया नहीं था.

आज मौका था. बडे़ अरमानों के साथ बिना बताए उस के घर पहुंच गया. दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था. अंदर से 2 लड़कों की बातचीत के स्वर सुनाई पड़े तो मैं ठिठक गया. दोनों किसी बात पर ठहाके लगा रहे थे.

एक हंसता हुआ कह रहा था, ‘‘यार अनुज, अनुभा बन कर तूने उस अनुभव को अच्छे झांसे में लिया. लाखों के गिफ्ट्स लुटा चुका है तुझ पर. अब 20-25 लाख का चेक ले कर आ रहा होगा. यार कई सालों से तू लड़की बन कर लोगों को लूटता आ रहा है पर यह दांव आज तक का सब से तगड़ा दांव रहा…’’

‘‘बस यह चेक मिल जाए मुझे फिर बेचारा ढूंढता रहेगा कहां गई अनुभा?’’ लड़कियों वाली आवाज निकालता हुआ बगल में खड़ा लड़का हंसने लगा. बाल ठीक करता हुआ वह पलटा तो मैं देखता रह गया. यह अनुभा था यानी लड़का जो लड़की बन कर मेरे जज्बातों से खेल रहा था. सामने बिस्तर पर लड़की के गेटअप के कपड़े, ज्वैलरी और लंबे बालों वाला विग पड़ा था. वह जल्दी जल्दी होंठों पर लिपस्टिक लगाता हुआ कहने लगा, ‘‘यार उस तोंदू, बुड्ढे को हैंडसम कहतेकहते थक चुका हूं.’’

उस का दोस्त ठहाके लगाता हुआ बोला, ‘‘लेले मजे यार, लड़कियों की आवाज निकालने का तेरा हुनर अब हमें मालामाल कर देगा.’’

मुझे लगा जैसे मेरा कलेजा मुंह को आ जाएगा. उलटे पैर तेजी से वापस लौट पड़ा. लग रहा था जैसे वह लपक कर मुझे पकड़ लेगा. हाईस्पीड में गाड़ी चला कर घर पहुंचा.

मेरा पूरा चेहरा पसीने से भीग रहा था. सामने उदास हैरान सी बीवी खड़ी थी. आज वह मुझे बेहद निरीह और मासूम लग रही थी. मैं ने बढ़ कर उसे सीने से लगा लिया. वह चिंतातुर नजरों से मेरी तरफ देख रही थी. मैं नजरें चुरा कर अपने कमरे में चला आया.

शुक्र था मेरी इस बेवफाई और मूर्खतापूर्ण कार्य का खुलासा बीवी के आगे नहीं हुआ था. वरना मैं धोबी का वह कुत्ता बन जाता जो न घर का होता है और न घाट का.

Story in Hindi

Gauri Khan का रेस्टोरेंट TORII, अनोखे नाम व दाम की वजह से चर्चा में

Gauri Khan: बौलीवुड इंडस्ट्री में या यूं कहें ग्लैमर इंडस्ट्री में अगर छोले भटूरे गोलगप्पे का स्टाइलिश नाम रखकर किसी नामी गिरामी होटल में किसी अतरंग नाम से वेस्टन डिश के नाम पर ग्राहकों को परोस दिया जाए तो वहां भी इससे प्रभावित होकर कस्टमर इसके लिए हजारों रुपए देने में हिचकिचाएंगे नहीं. क्योंकि आखिरकार नाम बिकता है चीज जो भी हो.

इसी ट्रेंड के चलते आजकल बौलीवुड में कई सेलेब्स के बीच नएनए नाम से होटल या रेस्टोरेंट खोलने का ट्रेंड सा चल गया है, जिसके चलते आजकल कई बौलीवुड एक्टर एक्ट्रेस होटल के बिजनेस में एंट्री कर रहे हैं, शिल्पा शेट्टी हो या क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर हो, या मलाइका अरोड़ा खान और गौरी खान ही क्यों ना हो, हर कोई इस व्यवसाय में अपना इन्वेस्टमेंट करना सही समझ रहा है.

ऐसा ही कुछ आजकल शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान है जो पहले से ही कई कमर्शियल प्रौपर्टीज की मालकिन शाहरुख खान के प्रोडक्शन हाउस रेड चिलीज एंटरटेनमेंट की फाउंडर है, जिसके चलते वह 1600 करोड़ की नेटवर्थ रखती हैं.

बावजूद इसके हाल ही में गौरी खान ने एक रेस्टोरेंट शुरू किया है,  जो अच्छी खासी कमाई कर रहा है इस होटल की नेटवर्थ इनकम करोड़ो में है , इस होटल का नाम टोरी TORII है.

टोरी रेस्टोरेंट में मिलने वाले आइटम के दाम और नाम काफी अनोखे हैं, जैसे अगर नॉर्मल पकोड़े की बात करें तो उसकी कीमत 950 रुपए है, सलाद 1100 रुपए में है,

टोरी स्पेशल डिश 4700 में है,  टोरी वेड ग़योजा सेलेक्शन के 8 पीस 1500 में है.

टोरी रेस्टोरेंट में मिलने वाली कई डिश के नाम और दाम अनोखे हैं. जैसे एनौकी मशरूम टेम्पूरा 600 में, सिंगापुर मिर्च के साथ लोटस रूट 750 में, चिकन या किटोरी एनजेंड लैम्ब चाप 3800 में, मीशो ब्लैक कांड 4700 में, सी फूड के शौकीन के लिए नार्वेजियन 1900 में, श्रीम्प कुशियां की कीमत 650 है.

गौरी खान के इस रेस्टोरेंट TOrii में जैसे अनोखे नाम वैसे ही दाम भी है.

गौरतलब है गौरी खान का यह प्रसिद्ध होटल उस वक्त विवादों से भी घिर गया था, जब एक कंटेंट क्रिएटर ने इस रेस्टोरेंट वालों पर नकली पनीर परोसने का इल्जाम लगाया था.

Gauri Khan

क्या है Borderline Personality Disorder, जानें इसके लक्षण व उपचार

Borderline Personality Disorder: एक महिला पेशेंट भावनात्मक परेशानियों के साथ मनोचिकित्सक के पास आई और बोलने लगी,“मैं बाहर निकलना चाहती हूं, मैं नहीं चाहती पर खुद को रोक नहीं पाती. मुझे कोई समझता नहीं, मुझे अच्छा भी नहीं लगता, कभीकभी खुदकुशी के विचार आते हैं.”

उस ने बताया कि शादी के बाद व्यस्तता और दूरी के कारण पति से भावनात्मक दूरी बन गई. रिश्ते में बारबार जुड़ना और अचानक टूटना उस की जिंदगी बन गई. वह अत्यधिक ईर्ष्या, परवाह की आवश्यकता और अकेलेपन की भावना से पीड़ित थी. गुस्सा अनियंत्रित हो जाना और खुद को नुकसान पहुंचाने के प्रयास भी हुए थे. परिवार के इतिहास में उस के पिता को भी यही मानसिक परेशानी रही थी.

लक्षण व उपचार                         

मनोचिकित्सक ने ध्यानपूर्वक सुनने के बाद उसे बीपीडी यानि बौर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऔर्डर का निदान बताया और समझाया कि इस के कई लक्षण भावनात्मक अस्थिरता, रिश्तों में अतिव्यापकता और अचानक दूरी, खुद की पहचान में धुंधलापन, आत्मघातक विचार और आवेग नियंत्रण की समस्याएं आदि हैं.

डाक्टर ने आश्वस्त किया कि यह बीमारी व्यक्तित्व का हिस्सा है, पर नियंत्रण योग्य है और उपचार से जीवन बेहतर किया जा सकता है.

उपचार के रूप में उन्होंने डाइलैक्टिकल बिहेवियर थेरैपी (डीबीटी) की सलाह दी. इस के 5 मुख्य घटक बताए गए- व्यक्तिगत चिकित्सा, समूह कौशल प्रशिक्षण, माइंडफुलनैस, आवश्यकतानुसार फोन पर सलाह और रोगी के देखभाल के लिए परिवार व समर्थन प्रणाली की ट्रेनिंग. इन्हें अपना कर क्षणिक भावनाओं को नियंत्रित करना, तनाव का सामना करना और आवेगों पर काबू पाना सिखाया जाता है. जरूरत के अनुसार दवाइयां भी दी जा सकती हैं, पर थेरैपी लंबी चलती है और नियमितता जरूरी है.

उपचार के परिणाम

मरीज ने पहले कुछ सत्रों में सुधार देखा. उस का बेटा अब उस से बात करने लगा, पर वह नियमित अभ्यास छोड़ देती और इंप्लसिव फोन काल्स व सत्र छोड़ने की प्रवृत्ति वापस आ जाती. डाक्टर ने परिवार के सहयोग और मरीज के संकल्प पर जोर दिया और बताया कि यह बीमारी परिवारिक सहयोग और रोगी की प्रतिबद्धता से खत्म किया जा सकता है.

Borderline Personality Disorder

Destination Wedding: कम बजट में ऐसे करें डैस्टिनेशन वेडिंग

Destination Wedding: वेडिंग सीजन शुरू हो चुका है और आजकल हर युवा अपनी शादी को स्वीट और  यूनिक मैमोरी बनाना चाहता है क्योंकि आज शादी 2 परिवारों या वर और वधू का मिलन ही नहीं, बल्कि विवाह करने वाले जोड़ों की जिंदगी का महत्त्वपूर्ण इवेंट होता है. इस इवेंट को यादगार बनाने के लिए आजकल डैस्टिनेशन वेडिंग का चलन बढ़ गया है.

डैस्टिनेशन वेडिंग यानि किसी दूसरे शहर या पर्यटन स्थल पर जा कर विवाह करना. आम वेडिंग की अपेक्षा डैस्टिनेशन वेडिंग थोड़ी महंगी तो पड़ती है पर यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो आप कम खर्चे में भी डैस्टिनेशन वेडिंग कर सकते हैं.

यदि आप भी आने वाले वेडिंग सीजन में डैस्टिनेशन वेडिंग करने का प्लान कर रहे हैं तो निम्न टिप्स आप के बहुत काम के हैं :

एअरलाइंस और होटल्स के साथ करें पार्टनरशिप डील्स

डैस्टिनेशन वेडिंग में सब से ज्यादा खर्च मेहमानों को ले जाने में होता है. यदि आप के गेस्ट ज्यादा हैं और फ्लाइट से जाना है तो आप ग्रुप बुकिंग कर के काफी खर्च बचा सकते हैं. एअरलाइंस एकसाथ 20-30 बुकिंग करने पर डिस्काउंट औफर करते हैं. होटल भी स्टे व ट्रैवल औफर्स देते हैं और इस तरह आप दोनों की एकसाथ बुकिंग कर के खर्चे में 15 से 20% तक बचत कर सकते हैं.

कोलेबोरेशन से बचाएं बजट

आजकल सोशल मीडिया में कोलेबोरेशन बहुत ट्रेंडिंग है. इस के लिए विभिन्न ब्रैंड्स ज्वैलरी डिजाइनर, डैकोरेटर्स, फोटोग्राफर, प्रोमोशन के लिए स्पौंसरशिप देते हैं. इस के बदले उन के प्रोडक्ट्स का उपयोग करना होता है और सोशल मीडिया या कार्ड्स में क्रेडिट देना होता है. इस प्रकार के कोलेबोरेशन से आप के बजट में काफी बचत हो जाती है.

सभी रस्मों के लिए एक ही वैन्यू चुनें

शादी, संगीत और रिसेप्शन अलगअलग वैन्यू पर चुनने से लाइटिंग, डैकोरेशन और ट्रांसपोर्ट पर अलगअलग खर्च होता है. इस से बचने के लिए सभी रस्मों को एक ही वैन्यू पर करें, भले ही रस्म के अनुसार आप सैटअप में थोड़ाबहुत बदलाव कर सकते हैं. इस से 20-25% तक बचत हो जाती है

ई इन्विटेशन, डिजिटल फोटोबुक हैं किफायती

पारंपरिक प्रिंटेड कार्ड्स और गिफ्ट पर अनावश्यक लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं और अंत में वे कार्ड रद्दी की टोकरी में चले जाते हैं.

आजकल डिजिटल युग का जमाना है. आप कस्टम ई कार्ड्स या वीडियो इन्विटेशन का प्रयोग करें. ये मिनटों में मेहमानों के पास पहुंच जाते हैं. अलबम की जगह डिजिटल फोटोबुक बना कर आप काफी बचत कर सकते हैं.

औफ सीजन में करें शादी

शादियों के सीजन में होटल, फ्लाइट, डैकोरेशन और कैटरिंग सभी कीमतें आसमान छूती हैं. औफ सीजन में आप खर्चे में कटौती कर सकते हैं.

मैन्यू में लोकल का दें तड़का

डैस्टिनेशन वेडिंग में सामान्य मैन्यू के साथसाथ स्थानीय व्यंजन को शामिल करें. इस से आप के मेहमानों को नया टैस्ट तो मिलेगा ही साथ ही साथ बजट भी मेंटेन होगा. लोकल केटर्स सस्ते में मिल जाते हैं और शादी में फैस्टिवल्स जैसी वाइव आती है.

रेंट का भी लें अनुभव

आजकल रेंटल ज्वैलरी और आउटफिट काफी चलन में हैं. इस से आप बहुत कम खर्चे में फैशनेबल ज्वैलरी और आउटफिट कैरी कर सकते हैं. आप कुछ ज्वैलरी और आउटफिट खरीद लें शेष को रेंट पर ले कर काफी खर्च बचा सकते हैं.

मेहमानों की संख्या सीमित रखें

डैस्टिनेशन वेडिंग में चूंकि मेहमानों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ट्रेन, फ्लाइट या बस से ले जाने की व्यवस्था करनी होती है, ऐसे में जितने कम मेहमानों की संख्या होगी उतना ही खर्च बचेगा.

कोरोना के बाद से वैसे ही सीमित मेहमानों की उपस्थिति में शादियां होने लगी हैं. सीमित मेहमानों की उपस्थिति में शादी कर के आप लोकल के लोगों के लिए अलग से रिसेप्शन प्लान कर सकते हैं.

Destination Wedding

Megha Ray: ऐक्ट्रैस बनने से पहले मेरी लाइफ काफी ग्लैमरस थी

Megha Ray: ब्यूटी ब्लौगर से कैरियर की शुरुआत करने वाली खूबसूरत, हंसमुख और विनम्र अभिनेत्री मेघा रे मुंबई की हैं. अभिनय के क्षेत्र में उन्होंने धारावाहिक ‘दिल ये जिद्दी है’ से कदम रखी और आगे बढ़ीं. मेघा को हमेशा से ही स्टाइलिश रहना पसंद है.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक जौब भी किया. उसी दौरान उन्होंने ब्लौगिंग की शुरुआत की, जिस में उन्होंने ब्यूटी और स्टाइल को काफी महत्त्व दिया. अभिनय की शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने कारपोरेट का जौब छोड़ दिया, जिस में उन के पेरैंट्स का काफी सहयोग रहा है.

इन दिनों मेघा सन नियो की शो ‘दिव्य प्रेम : प्यार और रहस्य की कहानी’ में मुख्य भूमिका निभा रही हैं, जिसे ले कर वे काफी उत्सुक हैं.

उन्होंने खास गृहशोभा के लिए बात की. पेश हैं, कुछ खास अंश :

इस शो को करने की खास वजह के बारे में पूछने पर मेघा कहती हैं कि यस फैमिली ओरिएंटेड फैंटेसी शो है, जिसे बच्चे से ले कर वयस्क सभी पसंद कर रहे हैं. प्यार, रोमांस के अलावा इस में ऐक्शन भी है. इस शो में तैयारी करने का अधिक समय नहीं मिलता  कौस्ट्यूम ट्रायल पर काम होता है, सब कुछ सैट के फ्लोर पर ही सीन के आधार पर हो जाता है. यह शो काल्पनिक ही बनाया गया है.

सुपर हीरो का किरदार निभाना कठिन 

मेघा को रियल लाइफ में सुपर हीरो की फिल्में और शोज बहुत पसंद हैं. उन्होंने ‘शक्तिमान’, ‘बैटमैन’, ‘सुपरमैन’ की फिल्में बचपन में काफी देखी हैं. वे कहती हैं कि मुझे सुपर वूमन बनने की भी इच्छा थी, जिसे मैं ने इस शो में किया है. मेरे लिए यह बहुत मजेदार है. ऐक्शन करना मुझे अच्छा लगता है. इस शो को करते हुए एक बार मेरे एंकल में इंज्यूरी आ गई थी, उस व्यक्त शो को रोकना संभव नहीं था, मुझे उसी अवस्था में शूट करना पड़ा था. चोट के साथ ऐक्शन करना मेरे लिए काफी कठिन था.

नहीं करती रिलेट

मेघा रियल लाइफ में बहुत शांत स्वभाव की हैं और ड्रामा उन्हें बिलकुल पसंद नहीं. वे कहती हैं कि मैं रियल लाइफ में खुश और शांत रहना पसंद करती हूं. मेरी भूमिका से मैं खुद को रिलेट नहीं कर पाती.

मिली प्रेरणा

मेघा कहती हैं कि मैं ने पढ़ाई इंजीनियरिंग में की है, लेकिन ऐक्टिंग मेरा पैशन था. मैं ने औडिशन देना शुरू किया और बहुत जल्दी मुझे ‘दिल ये जिद्दी है’ शो मिला. उसी से मेरी जर्नी शुरू हुई, मुझे लोगों ने जानापहचाना और काम मिलते गए. मेरी जर्नी बहुत अच्छी रही. मुझे हमेशा से परफौर्म करना पसंद रहा है.

परिवार का सहयोग

परिवार का सहयोग मेघा के साथ हमेशा रहा है. अगर कुछ उन्हें समझ में नहीं आता है तो मेघा उन्हें क्लीयर कर देती हैं और काम की बारीकियां बताती हैं. वे कहती है कि मैं उड़ीसा की हूं, लेकिन मैं मुंबई में पलीबड़ी हुई हूं. शुरू में मैं ने जब ऐक्टिंग की इच्छा उन्हें बताई तो वे बहुत कन्फ्यूज्ड थे, क्योंकि यह एक अनिश्चित फील्ड है, जहां कभी भी कुछ भी हो सकता है और उस वक्त मैं जौब कर रही थी, लेकिन उन का मुझ पर भरोसा रहा और पूरा सहयोग दिया. मुझे भी खुद पर विश्वास रहा है कि मैं कुछ अच्छा ही करने जा रही हूं और हुआ भी.

रही चुनौतियां

मेघा किसी भी चुनौती का सामना करने में थोड़ी घबराती अवश्य हैं, लेकिन कोशिश जारी रखती हैं. वे कहती हैं कि मैं ने अपने पेरैंट्स से कुछ समय अभिनय के क्षेत्र में कोशिश करने के लिए मांगा था, लेकिन बहुत जल्दी मुझे ब्रेक मिल गया. हालांकि पहला ब्रेक मिलना मेरे लिए कठिन था, क्योंकि मेरा कोई गौडफादर यहां नहीं है, लेकिन मैं ने मेहनत की है. इंडस्ट्री को समझना, खुद को ग्रूम करना, औडिशन देना वगैरह करतेकरते करीब 3 महीने में मुझे पहला ब्रेक मिल गया था.

अभिनय की मेरी तैयारी बचपन से ही अनजाने में शायद चल रही थी, क्योंकि मैं आईने के सामने हो या डांस क्लासेज आदि, सभी जगहों पर ऐक्टिंग की कोशिश करती थी. इस से मुझे इस क्षेत्र में आने में सफलता मिली. साथ ही मेरे साथ काम करने वाले लोग जिन्होंने मेरे टेलैंट को पहचाना और ऐक्टिंग का अवसर दिया.

काम मिलना जरूरी

हिंदी फिल्मों और वैब सीरीज में काम करने की इच्छा मेघा को हमेशा से रही है, लेकिन वे वैसी भूमिका तलाश कर रही हैं, जो सब से अलग और खास हो.

मेघा कहती हैं कि मैं ने पहले बहुत सारी चीजें सोची थी, लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं, क्योंकि इंडस्ट्री में जब भी कोई अपरच्युनिटी मिलती है, तभी तुरंत ग्रैब करना पड़ता है. अधिक समय सोचने के लिए नहीं मिलता, क्योंकि कंपीटिशन यहां बहुत होता है. मुझे फैंटेसी और ऐक्शन पसंद है, जो मुझे इस धारावाहिक में मिला है. रियल स्टोरी में मैं तब काम करना चाहूंगी, जब उसे करने में मजा आ जाए.

इंटीमेट सीन्स करने में सहज नहीं

मेघा कहती हैं कि इंटीमेट सीन्स करने में मैं सहज नहीं, लेकिन कुछ दृश्य में इंटीमेट सीन्स करने पड़ते हैं. ऐसे में मैं इंटीमेट सीन्स के कोआर्डिनेटर का सहारा लेना पसंद करूंगी, ताकि सीन्स को एथिकली शूट किया जा सके.

इंडस्ट्री के बारे में

मेघा कहती हैं कि इंडस्ट्री के बारे में लोगों की भावनाएं काफी अलग हैं. बाहर से इंडस्ट्री ग्लैमरस लगती है, जबकि मेरी लाइफ ऐक्ट्रैस बनने से पहले काफी ग्लैमरस थी. यहां लाइफ आसान नहीं होती, सोने तक का समय नहीं मिलता. आमतौर पर 12 घंटे सैट पर होते हैं फिर ट्रैफिक में अटकते हुए घर पहुंचते हैं और 14-16 घंटे यों निकाल जाते हैं. घर पहुंच कर केवल एकदूसरे की शक्ल ही देख पाते हैं.

खुद की डाइट और लाइफस्टाइल को ले कर बहुत डिसप्लिन में रहना पड़ता है. इस के अलावा यहां के लोग और और कारपोरेट के लोगों में अंतर कुछ नहीं है, क्योंकि मैं ने दोनों जगहों पर काम किया है. यहां लोगों का प्यार अधिक होता है, लेकिन कुछ अलग नहीं होता. मैं यहां अब खुद को काफी हंबल फील करती हूं.

सुपर पावर मिलने पर

मेघा का मानना है कि दुनिया में बहुत सारी चीजें गलत हो रही हैं. आज भी वूमन सैफ्टी पूरे विश्व में कम है. सैफ्टी पर मैं काम कर उसे बदलना चाहती हूं, ताकि एक सुंदर और सुरक्षित वातावरण बन सकें.

Megha Ray

फ्लॉप होने के बाद जिस्मफरोशी के दलदल में फंसी एक्ट्रैस, शरीर पर कीड़े पड़े

Nisha Noor: ग्लैमर वर्ड की चकाचौंध, महंगी लाइफस्टाइल, खूबसूरत कपड़े, ज्वेलरी, महंगी कारों में घूमना, करीबन हर लड़की का सपना होता है और इस सपने को पूरा करने के लिए कई सारी लड़कियां हर दिन फिल्म इंडस्ट्री के दरवाजे खटखटाती है ताकि उन को भी इस ग्लैमर वर्ल्ड का हिस्सा बनने का मौका मिले. इन में से कई को सफलता मिल भी जाती है लेकिन इस सफलता की कीमत कितनी महंगी होती है इस सफलता को पाने के लिए क्या कुछ खोना पड़ता है कितना दुख झेलना पड़ता है यह छोटे शहर से आई लड़कियां ही बहुत अच्छे से जानती हैं जिन्होंने इस मुंबई शहर में ग्लैमर वर्ल्ड में अपना मुकाम हासिल करने के लिए बहुत कुछ झेला है बॉलीवुड हो या साउथ इंडस्ट्री यहां पर हीरोइन बनना आसान नहीं है.

अगर हीरोइन बन भी गए तो उस पोजीशन को संभाल के रखना उस से भी ज्यादा मुश्किल है. ऐसी ही एक दर्दनाक कहानी एक ऐसी हीरोइन की है जो साउथ सिनेमा में कई लोगों के दिलों पर राज करती थी इस एक्ट्रेस का नाम निशा नूर है. जिस का साउथ इंडस्ट्री में काफी नाम था. इस एक्ट्रेस ने कमल हसन से ले कर रजनीकांत जैसे साउथ के दिग्गज स्टार के साथ फिल्मों में काम किया है लेकिन निशा नूर की जिंदगी में एक ऐसा समय आ गया जब उन को काम मिलना बंद हो गया, ऐसे में अपना स्टेट्स मैंटेन रखने के लिए निशा नूर जिस्मफरोशी के धंधे में उतर गई.

1995 में लोकप्रिय यह हीरोइन अचानक ही एक्टिंग की दुनिया से गायब हो गई और बदनसीब के चलते जिस्मफरोशी से नाता जोड़ लिया.

12 साल तक यह हीरोइन दुनिया की नजर से दूर रही और एक दिन अचानक 2007 में तमिलनाडु के नागुर दरगाह के पास इस हीरोइन की लाश मिली. जिस में कीड़े पड़ चुके थे, इस हीरोइन की दर्दनाक मौत देख कर वहां मौजूद लोगों के रोंगटे खड़े हो गए.

जांच पड़ताल के बाद उस की असली पहचान मिली तो उस के परिवार वालों को सूचित किया गया लेकिन परिवार वालों ने भी उस हीरोइन की बॉडी लेने से इनकार कर दिया.

एक समय की प्रसिद्ध हीरोइन निशा नूर को जब अस्पताल पहुंचाया गया तो पता चला उसे ऐडस जैसी जानलेवा बीमारी हो गई थी, इस के बाद उस के परिवारवालों ने भी उससे नाता तोड़ लिया था.

निशा नूर घर से भाग कर फिल्मों में आई थी 1980 में तमिल फिल्म मंगला नायागी से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी इस फिल्म के बाद उन्हें और कई फिल्में मिली तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. ऐसे में जब उनका बुरा वक्त आया तो परिवार सहित सभी ने उनसे मुंह मोड़ लिया.

1980 से 1995 के बीच निशा ने करीबन 17 फिल्मों में काम किया, हालांकि फिल्मों में वह बतौर हीरोइन नहीं बल्कि सह कलाकार के रूप में पहचान बना चुकी थी, लेकिन एक समय ऐसा आ गया की निशा नूर की वह पहचान भी खो गई. और ऐसे में आर्थिक तंगी से गुजरने के लिए वह जिस्मफरोशी के धंधे में चली गई लेकिन यह किसी को नहीं पता था की दरगाह के पास मिलने वाली लाश जिस में कीड़े पड़ चुके थे वह साउथ की नामी एक्ट्रेस निशा नूर की लाश है.

निशा नूर के इस बुरे दौर में एक एनजीओ ने उनकी मदद की थी उसे एनजीओ ने निशा का इलाज कराने की कोशिश भी की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आखिरकार एक दर्दनाक मौत के साथ इस अभिनेत्री का अंत हो गया.

साउथ की इस एक्ट्रेस की दर्दनाक मौत से उन सभी लड़कियों को सीख लेनी चाहिए जो ग्लैमर के नशे में चूर होकर बिना सोचे समझे किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाती हैं. जबकि सच्चाई यह है कि गलत रास्ते पर चलकर सफलता पाने के बजाय अगर सही तरीका अपना कर कोशिश की गई तो देर से ही सही लेकिन सफलता जरूर कदम चूमेगी. वरना कामयाबी पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने वाली लड़कियों का हाल इस हीरोइन की तरह इतना खराब हो जाता है कि आगे बढ़ने के लिए उनके पास कोई रास्ता नहीं रहता.

nisha noor

Urvashi Dholakia: टीवी की खलनायिका कोमोलिका की फिटनेस का राज

Urvashi Dholakia: प्रसिद्ध टीवी एक्ट्रेस उर्वशी ढोलकिया जो कोमालिका के किरदार से पहचानी जाती है और 46 वर्ष की उम्र में भी उर्वशी आज भी अभिनय क्षेत्र में सक्रिय है. उनकी 17 साल की उम्र में शादी हुई और 18 साल की उम्र में उनका तलाक हो गया.

लेकिन बावजूद इसके उन्होंने हाथ नहीं मानी उर्वशी ने सब कुछ भूल कर अपने काम पर फोकस किया दो जुड़वा बच्चों को जन्म देने के बाद एक बार फिर उर्वशी ढोलकिया बिग बॉस 6 की विजेता बनी.

46 वर्षीय उर्वशी ढोलकिया आज भी उतनी ही फिट और फाइन दिखती है जितना कि आज से 20 साल पहले दिखा करती थी. टीवी पर अपनी खूबसूरत छाप छोड़ने वाली कोमोलिका को आज भी दर्शन नहीं भूले हैं आज भी वह उतनी ही जवान दिखती है जितना कि अपनी जवानी के दिनों में दिखा करती थी.

आज भी उनकी खूबसूरती किसी से छिपी नहीं है. आखिर उनकी सेहत और फिटनेस का राज क्या है. उनके खानपान और फिटनेस को लेकर क्या रूटीन है वह जवान दिखने के लिए डाइट कितना फॉलो करते हैं? ऐसी कई बातों का जवाब दिया उर्वशी ढोलकिया ने और अपनी फिटनेस को लेकर उन्होंने कई राज खोले.

उर्वशी के अनुसार फिगर मेंटेन करने को लेकर “मैं चाइनीस थ्योरी अपनाती हूं जिसके तहत मैं वह सब चीज खाती हूं लेकिन बहुत कम मात्रा में और रेगुलर भी नहीं खाती लेकिन जो भी कुछ खाती हूं अच्छे मन से खाती हूं और खाते वक्त यह नहीं सोचती कि इसका असर मेरे शरीर पर क्या और कितना पड़ेगा. फिर चाहे वह बर्गर हो चाट हो या रोल्स ही क्यों ना हो.”

उर्वशी के अनुसार क्योंकि मुझे ट्यूमर हो चुका है इसलिए मैं चावल गेहूं से परहेज करती हूं. क्योंकि मुझे शुगर की बीमारी भी है इसलिए मैं अनाज कम खाती हूं.

रोजमर्रा में मैं नाचनी अर्थात रागी के आटे की रोटी और सब्जी खाती हूं और इसके अलावा में जो भी कुछ खाती हूं, उसे एक्सरसाइज के जरिए कैलरीज निकालने की कोशिश करती हूं मैं कभी भी वर्कआउट मिस नहीं करती.

चाहे जो हो जाए मैं वर्कआउट जरूर करती हूं. इसके अलावा मैं बहुत पानी पीती हूं जो मुझे कई सारी बीमारियों से दूर रखता है और मेरा फेस भी ग्लो करता है. मैं अपने पर्सनल अनुभव से कह रही हूं अगर हम फिट और खुश रहते हैं तो हम  लंबा जीते हैं. मैं सब कुछ खाती हूं जो मुझे पसंद है.

मेरा मानना है फिट रहने के लिए बहुत ज्यादा डाइट क्या एक्सरसाइज करने की जरूरत नहीं है, सही खाना खाकर,  थोड़ा अनुशासन में रहकर, खास तौर पर आलस छोड़कर खुश और पॉजिटिव सोच के साथ अगर हम जीते हैं तो हमें अच्छी जिंदगी जीने से कोई नहीं रोक सकता , क्योंकि हर इंसान की जिंदगी में सुख-दुख लगा रहता है लेकिन अगर हमें खुश रहना है.

अच्छी जिंदगी जीनी है तो सब भूलकर जिंदगी में आगे बढ़ना जरूरी है. तभी आप एक अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी लाइफ स्टाइल पा पाएंगे.

Urvashi Dholakia

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