Body Polishing : बौडी पौलिशिंग का कोई साइड इफैक्ट तो नहीं पड़ेगा ?

Body Polishing : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

शादी से पहले की गई शौपिंग में व्यस्त रहने के कारण मेरी स्किन टैन हो गई है, इसलिए मैं बौडी पौलिशिंग करवाना चाहती हूं. इस का कोई साइड इफैक्ट तो नहीं पड़ेगा?

जी नहीं यह पूरी तरह से एक प्राकृतिक उपचार है, इसलिए शरीर पर इस का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता. इस के लिए खास तरह के प्रोडक्ट प्रयोग किए जाते हैं जैसे बौडी क्रीम, बौडी औयल, बौडी साल्ट, बाम, बौडी पैक, ऐक्सफौलिएशन क्रीम वगैरह. इस में सब से पहले स्क्रब को पूरे शरीर पर लगा कर हलके गीले हाथों से हलकेहलके रगड़ा जाता है और 10 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है. स्क्रबिंग की मदद से बौडी की डैड स्किन निकल जाती है और साथ ही टैनिंग भी रिमूव हो जाती है. नैचुरल तरीके से बनाया गया यह स्क्रब त्वचा की रंगत को निखारने में सहायक होता है. इस के बाद बौडी को वाश कर के उस पर स्किन ग्लो पैक लगा लें और सूख जाने के बाद इसे वाश कर लें. इस के बाद बौडी शाइनर लगा कर त्वचा की 5 से 10 मिनट तक मसाज करें. बौडी पौलिशिंग द्वारा त्वचा की मृत कोशिकाएं हटती हैं, साथ ही टैनिंग भी रिमूव होती है, जिस से त्वचा में कोमलता व निखार आता है. नई बनने वाली दुलहन मसाज से स्ट्रैस फ्री फील करती है व बौडी रिलैक्स होती है, साथ ही पूरी बौडी की रंगत एकजैसी हो जाती है.

गरमी शुरू होते ही मेरी स्किन रूखी, पपड़ीदार हो जाती है और उस पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. इस समस्या को दूर करने का उपाय बताएं?

गरमियों में ऐलर्जी की समस्या बढ़ जाती है. इस मौसम में सैंसिटिव स्किन में नमी की कमी की वजह से लाल चकत्ते भी पड़ जाते हैं. चकत्ते होने पर आप साबुन की जगह सुबहशाम अल्कोहल फ्री क्लींजर का उपयोग करें.

इसी तरह घरेलू आयुर्वेदिक उपचार के तौर पर स्किन पर तिल के तेल की मालिश कर सकती हैं. मलाई में कुछ शहद की बूंदें मिला कर उसे त्वचा पर लगा कर 10-15 मिनट तक लगा रहने दीजिए. फिर इसे फ्रैश वाटर  से धो लें. यह ट्रीटमैंट सामान्य तथा ड्राई दोनों प्रकार की स्किन के लिए उपयोगी है.

मेरी उम्र 21 साल है. मेरी आंखें काफी छोटी हैं. मुझे कोई ऐसी मेकअप टैक्नीक बताएं जिस से मेरी आंखें बड़ी और अट्रैक्टिव नजर आएं?

अपनी आंखों को अट्रैक्टिव व बड़ी दिखाने के लिए आप ब्लैक के बजाय व्हाइट कलर की आई पैंसिल अप्लाई करनी करें और ध्यान रहे कि आईलाइनर बहुत थिन यानी पतला लगाएं. बाद में मसकारा लगा लें. आर्टिफिशियल आईलैशेज भी लगा सकती हैं, लेकिन ध्यान रहे कि मीडियम थिन आईलैशेज लगाएं. ऐसा आई मेकअप करने से आप की आंखें बड़ी और खूबसूरत नजर आएंगी. आंखें काफी छोटी हों तो आई मेकअप के लिए आईशैडो भी लाइट कलर का ही अप्लाई करें. सब से अच्छा रहेगा कि आप आईलैशेज ऐक्सटैंशन करवा लें. आप को रोज आईलैशेज नहीं लगाना पड़ेगा. यह आराम से 1-2 महीने चल जाएगी. बीचबीच में फिलिंग करवा सकती हैं.

मैं चिपचिपे डैंड्रफ की समस्या से ग्रस्त हूं. मैं ने कई ऐंटीडैंड्रफ शैंपू इस्तेमाल किए परंतु सब बेकार रहे. कृपया समाधान बताएं?

डैंड्रफ की समस्या आमतौर पर ड्राई और औयली दोनों किस्म के बालों में होती है. इस को यदि समय रहते कंट्रोल न किया जाए तो इस के ?ाड़ने से त्वचा में इन्फैक्शन फैलने का डर रहता है, साथ ही बालों की जड़ें भी कमजोर हो जाती हैं, जिस की वजह से हेयर फौल की समस्या उत्पन्न हो जाती है. इसलिए इसे समय रहते रोकना बेहद आवश्यक है.

इस के लिए सप्ताह में कम से कम 3 बार बालों में शैंपू करें और बाल धोने के लिए बहुत ज्यादा गरम पानी के बजाय कुनकुने पानी का प्रयोग कीजिए. इन्फैक्शन से बचने के लिए आप अपनी कंघी, तौलिया व तकिए को अलग रखें और इन की सफाई का भी खासतौर पर खयाल रखें. जब भी बाल धोएं तो ये तीनों चीजें किसी अच्छे ऐंटीसैप्टिक के घोल में आधा घंटा डुबो कर रखें और धूप में सुखा कर ही दोबारा इस्तेमाल करें.

सिर में औयली बाल होने के कारण रूसी है तो एक चम्मच त्रिफला पाउडर को 1 गिलास पानी में डाल कर कुछ देर के लिए उबाल लें. ठंडा हो जाने पर इसे छान लें और फिर 2 बड़े चम्मच सिरके में मिक्स कर लें और रात में इस टौनिक से सिर की मसाज कर लें. सुबह किसी अच्छे शैंपू से बाल धो लें. इन सब विधियों के बावजूद यदि आप की समस्या का हल न हो तो किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक में जा कर ओजोन ट्रीटमैंट या बायोप्ट्रोन की सिटिंग्स ले सकती हैं. इस से डैंड्रफ तो कंट्रोल होगा ही, साथ ही डैंड्रफ की वजह से हो रहा हेयर फौल में भी रुक जाएगा.

मेरी उम्र 45 साल है. चेहरे की रंगत दिनबदिन खत्म होती जा रही है. इस के लिए कोई घरेलू उपाय बताएं?

नियमित रूप से करीपत्तों का उपयोग करने से आप के चेहरे की रंगत में निखार आ जाएगा. करीपत्तों का इस्तेमाल करने के लिए इन्हें अच्छी तरह धूप में सुखा लें. उस के बाद इन का पाउडर बना लें. उस में जरूरत के हिसाब से कुछ बूंदें शहद, गुलाबजल और 1 छोटा चम्मच मुलतानी मिट्टी मिला कर फेस पैक बना लें. अब इस पेस्ट को 20 से 30 मिनट तक चेहरे पर लगा रहने दें. उस के बाद चेहरे को सादे पानी से धो लें. कुछ ही दिनों में चेहरे की त्वचा पर इस का अच्छा असर दिखाई देने लगेगा.

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Personality : करें बातें दिल खोल कर

Personality : रात 8 बजे संगीता ने कीर्ति को फोन मिलाया और रोज की तरह दिनभर की गौसिप शुरू कर दी.

‘‘आज फिर बौस ने सब के सामने मु झे फटकार लगाई मैं सब सम झती हूं, ये सब वे अर्पिता के सामने ज्यादा करता हैं,’’ संगीता  ने अपना रोना रोते हुए कहा.

‘‘अर्पिता कौन?’’

‘‘बताया तो था वह नई कोऔर्डिनेटर.’’

‘‘उस पर इंप्रैशन जमा रहा होगा कुछ दिनों बाद शांत हो जाएगा.’’

‘‘मु झ से बरदाश्त नहीं होता मन करता जौब छोड़ दूं.’’

‘‘इसे जौइन करे 6 महीने ही हुए हैं छोड़ देगी तो बौस का क्या बिगड़ जाएगा? नुकसान तो तेरा ही होगा.’’

‘‘फिर क्या करूं?’’

‘‘जो बातें बुरी लगी हैं उन्हें डायरी में नोट कर ले. नई नौकरी ढूंढ़ती रह. जब मिल जाए तो अपने खड़ूस बौस को सारी बातें सुना कर जाना.’’

‘‘नई नौकरी नहीं मिली तो क्या करूंगी?’’

‘‘लिखने से तेरी भड़ास तो निकल जाएगी और हो सकता है तेरे बौस को ही नई नौकरी मिल जाए.’’

‘‘यानी बौस ही बदल जाएगा, ठीक है यह भी कर के देख लेती हूं.’’

‘‘छोड़ फालतू बातें, यह बता ऋषभ से तेरी दोस्ती कहां तक पहुंची?’’

कीर्ति की बात सुनते ही संगीता का मूड चेंज हो गया. वह हंस कर ऋषभ के संग अपने रिश्ते को बताने लगी.

संगीता इकलौती संतान है. स्कूलकालेज की सहेलियां अपनी नौकरी या नई गृहस्थी में व्यस्त हो चुकी हैं. यहां बैंगलुरु में आ कर अचानक उसे एहसास होने लगा कि वह कितनी अकेली हो गई है. वह जल्दी मित्र नहीं बना पाती और पुरानी सहेलियां को भी क्या डिस्टर्ब करे, सोच कर मन ही मन घुट रही थी कि एक दिन मौल में कीर्ति मिल गई. दोनों  एक ही शहर कानपुर से हैं, यह जान कर दोनों बहुत खुश हो गईं. अब तीज त्यौहार पर साथ ही घर जाने लगी. धीरेधीरे कीर्ति संगीता की प्रिय सहेली बन गई, जिस से वह अपनी हर बात शेयर कर लेती है.

क्या आप के पास है ऐसी सहेली जिस से खुल कर अपने दिल की बातें कर सकें? आजकल युवाओं को नौकरी में प्रतिस्पर्धा, अकेलापन, नया माहौल, घरपरिवार, पुराने मित्रों से दूरी आदि कारक अवसाद की ओर खींच रहे हैं.

ऐसे में यह बहुत जरूरी होता है कि आप के पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक मित्र अवश्य हो जिस से दिल खोल कर बातें कर सकें. मगर मित्रता के चयन में कुछ बातों का ध्यान अवश्य दें:

हमउम्र

हमउम्र मित्र आप की समस्याओं को भलीभांति सम झता है क्योंकि वह भी उसी दौर से गुजर रहा होता है. अगर आप और मित्र की उम्र में 10-15 वर्ष का अंतर होगा तो उस के साथ खुल कर अपनी बात रखने में आप को  िझ झक महसूस होगी.

समानलिंगी

लड़की और लड़कों की मित्रता या संबंधों में कोई बुराई नहीं है किंतु स्त्री विमर्श या समस्याओं को जितना बेहतर एक स्त्री सम झ सकती है उतनी गहराई से कोई पुरुष मित्र न तो सोच सकता है न ही सम झा सकता है. यही बात पुरुषों के लिए भी लागू होती है. मित्रों की सूची में तो महिला, पुरुष दोनों शामिल हो सकते हैं लेकिन बैस्टी तो समलिंगी ही चुनें.

सकारात्मक विचार

मित्रता उसी से करें जिस से बात करने के बाद आप को अपने अंदर सकारात्मक ऊर्जा महसूस हो. नकारात्मक बातें करने वाले मित्रों की  संगत से दूरी बना कर रखें. कुछ लोग हर बात को ले कर दुखी रहते हैं. ऐसों से मित्रता आप को भी अवसाद की ओर ले जाएगी.

जिंदादिल मित्रता

जिंदादिल मित्रता से मतलब है समय का सदुपयोग करते हुए हर पल का आनंद लेना. जैसे वीकैंड में फिल्म, थिएटर या विंडों शौपिंग का  प्रोग्राम बनाना अथवा एकदूसरे के फ्लैट में जा कर मनपसंद भोजन बनाना या बाहर से और्डर कर दिल खोल कर गप्पें लगाना.

प्रकृति प्रेमी

पेड़पौधों, नदी, तालाब, समुद्र जिसे आकर्षित करते हो, ऐसे मित्र होने पर नई यात्राओं का योग बनता है. यात्राएं हमारे अंदर जीवन के प्रति प्रेम और नवीन उमंग का संचार करती हैं. ऐसे में अपनी प्रिय सहेली का साथ हो तो यात्रा का आनंद कई गुना बढ़ जाता है. यदि उस की यात्राओं में दिलचस्पी नहीं है तो आप उसे प्रेरित करें.

मित्रता मजबूत रखने के गुण

अपनी मित्रता को मजबूती प्रदान करने के लिए एकदूसरे की निजता का सम्मान करें, उस की व्यक्तिगत बातों को किसी तीसरे के सामने न खोलें.

भावनात्मक स्तर पर जुड़ने के बाद उस की भावनाओं का सम्मान करें. उसे उचित राय प्रदान करें. यदि वह भावनात्मक स्तर पर कमजोर हो तो उसे मनोचिकित्सक से उपचार को तैयार करें. रुपयों का लेनदेन बराबर का रखें. यह मित्रता में दूरी ला सकता है. मित्रता में एकतरफा लेनदेन से दूरी बनाए.

मौका मिलने पर मित्र के परिवारजनों से भी अवश्य मिलें. उन से भी संपर्क सूत्र बना कर रखें ताकि वे भी आप दोनों की खोजखबर लेते रहें और मौका पड़ने पर मदद भी कर सकें.

भागदौड़ की जिंदगी में यदि आप के पास कोई अपना है तो आप की जिंदगी आसान हो जाएगी.  40 की उम्र के बाद मेनोपौज की वजह से शरीर में फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन की कमी हो जाती है और इस कारण सैक्स की इच्छा होने पर भी गीलापन कम होता है और चरमसुख नहीं मिल पाता.

शरीर में ऐस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए आहार संबंधी जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए. खाने में मौसमी फल, हरी सब्जियां, दूध, पनीर आदि का नियमित सेवन करना चाहिए और नियमित व्यायाम करना चाहिए.

सैक्स करते वक्त क्रीम का प्रयोग किया जा सकता है. इस से चिकनाई बनी रहेगी और सैक्स में आनंद भी आएगा. बेहतर है कि सैक्स से पहले फोरप्ले करें. इस से भी काफी हद तक सूखेपन की समस्या से बचा जा सकता है.

Hill Station पर जाने का बना रहे हैं प्लानिंग, तो इन बातों का रखें ध्यान

Hill Station Trip  : औली हो या मनाली, लेह हो या दार्जिलिंग, मसूरी हो या कश्मीर पहाड़ों में जाने की बात ही दिल में नई उमंगें भर देती है. जब आप बर्फीले इलाकों में जा रहे होते हैं तो जोश कुछ अलग ही होता है. आप सोचते हैं कि कैसे पहाड़ों पर जा कर वहां बर्फ के गोले बना कर एकदूसरे पर फेंक कर खेलेंगे, खूबसूरत फोटो लेंगे, टैंट लगा कर रात को आसमान निहारेंगे, ऐडवैंचर स्पोर्ट्स का आनंद लेंगे, कैंपफायर के साथसाथ गानाबजाना आदि करेंगे.

मगर सच तो यह है कि जब आप इन जगहों पर कुछ तैयारी के बिना जाते हैं तो ट्रिप तकलीफदायक भी हो सकता है. पहाड़ों पर किसी भी तरह का कोई प्रैडिक्शन नहीं चलता. चाहे वह मौसम से जुड़ा हो, स्नो फाल से जुड़ा हो या भूस्खलन संबंधित हो. यानी पहाड़ों पर जाने का मतलब कही न कहीं अपनेआप में ही बड़ा रिस्क है. कभी मौसम बदलने से आप बीमार हो जाते हैं तो कभी पहाड़ पर चढ़ते समय सांस फूल जाती है या पैर दर्द करने लग जाते हैं. फिर अगर बारिश और आ जाए तो आप की यात्रा ऐसी बिगड़ जाती है कि आप को वापस उस जगह जाने के नाम से ही चिढ़ हो सकती है.

सही तैयारी न हो तो कई दफा ट्रैकिंग या ऐडवैंचर करते वक्त आप के साथ कुछ गलत भी हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि आप पहाड़ों पर घूमने और ऐडवैंचर करने जाते समय कुछ बातों का खयाल रखें और कुछ तैयारी कर लें.

तो चलिए जर्नी से पहले और इस के दौरान याद रखने की इन बातों पर ध्यान देते हैं:

पहाड़ी इलाकों में आप कहीं भी जा रहे हों यह तो सम झ ही लें कि कही न कहीं थोड़ाबहुत पैदल तो चढ़ना ही होगा. ऐडवैंचर का मजा लेना है तो और भी ज्यादा फिटनैस की जरूरत होगी. इसलिए इस बात के लिए मानसिक एवं शारीरिक रूप से तैयार रहें.

पैदल ट्रैक के दौरान आप के पैरों मे दर्द न हो और आसानी से ट्रैक कर लें इस के लिए यात्रा से कम से कम 20 दिन पहले से आप को 5-7 किलोमीटर चलने की आदत डालनी होगी ताकि शरीर पहाड़ों पर पैदल चलने के लिए आसानी से तैयार हो सके.

आप को एक ऐक्स्ट्रा छोटा खाली बैग हमेशा साथ में पैक कर के ले जाना चाहिए क्योंकि जब आप किसी स्थान पर घूमोगे तो बड़े बैग को तो आप होटल में रखोगे. पहाड़ों पर कभी भी बारिश शुरू हो सकती है इसलिए छोटे बैग (बैगपैक) में एक जोड़ी ऐक्स्ट्रा कपड़े, मैडिसिन, रेनकोट या छतरी आदि डाल कर बैग को अपने साथ दिनभर रखें ताकि बारिश में भीगने या बीमार होने की स्थिति में यह सामान काम आ जाए.

पहाड़ी यात्रा पर हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा मौजे, गरम कपड़े, मफलर, फर्स्ट एड किट, टौर्च, ऐक्स्ट्रा शू लेस, डायरीपेन, कैश कुछ पासपोर्ट साइज फोटो, आईडी कार्ड की कुछ फोटोकौपी, छाता, ग्लूकोस पाउडर, मार्कर, छोटी कैंची, बिस्कुट, नमकीन, चौकलेट्स, रेनकोट, सनग्लास, कैमरे की ऐक्स्ट्रा बैटरी, ऐक्स्ट्रा मैमोरी कार्ड, हैंड ग्लव्स, गरम पानी की बोतल, रस्सी, सूईधागा, सिक्के, प्रिंटेड टिकट्स आदि चीजें जरूर अपने साथ रखें.

अगर आप फ्लाइट से सीधा अधिक ऊंचाई पर जा रहे हैं (दिल्ली से लेह) तो अपने साथ डायमौक्स टैबलेट जरूर रखें पर इन का उपयोग डाक्टर के बताए अनुसार ही करें.

नए जूते पहन कर यात्रा पर न चले जाएं. उन्हें थोड़े दिन पहन कर फिर यात्रा पर ले जाएं. जूते भी बढि़या कंपनी के खरीदें ताकि वे कहीं फटें न या कहीं ठोकर लगने से पैर की उंगलियां चोटित न हों और बिना फिसले पहाड़ी इलाकों पर अच्छे से चल सकें.

अपने साथ उलटी की गोलियां एवं कपूर की डिब्बी जरूर रखें. औक्सीजन की कमी महसूस होने पर कपूर सूंघते रहना चाहिए.

ध्यान रहे बैकपैक एक अच्छी कंपनी का ट्रैक बैग हो नहीं तो ट्रैक के समय आप इसे ज्यादा समय तक उठा नहीं पाएंगे और आप को बैक पेन शुरू हो जाएगा.

यात्रा प्लानिंग में हमेशा एक दिन ऐक्स्ट्रा बचा कर रखें ताकि कोई चीज किसी कारण देखने से छूट जाए तो बचे हुए एक दिन में उसे कवर कर सकें.

सफर में सनग्लास का साथ होना जरूरी है. एक तो आप के फोटो काफी आकर्षक आएंगे दूसरा आप की आंखे स्नो ब्लाइंडनैस जैसी समस्या से बच जाएंगी. अगर आप दिनभर बर्फ में बिना सनग्लास के घूमेंगे तो निश्चित ही आप की आंखों को नुकसान पहुंचेगा.

गरम कपड़े रखना न भूलें. इन की बड़ी लिस्ट है. सब से पहले आप को जरूरत रहेगी थर्मल कपड़ों की. इन से काफी हद तक आप सर्दी से लड़ पाओगे. इस के साथ ही आप को अच्छी क्वालिटी के आकर्षक जैकेट की की जरूरत रहेगी. दस्ताने और सौक्स के कई सारे पेयर आप को चाहिए होंगे. सिर को ढकने के लिए मंकी कैप, स्कार्फ, मफलर ये चीजें आप के सिर को ठंडी बर्फीली हवाओं से बचाएंगी. कपड़े 1 या 2 दिन के ज्यादा ही रखें क्योंकि पहाड़ों में कपड़े गीले हो गए तो आसानी से सूखेंगे नहीं.

कभी पहाड़ों पर घूमने जाएं तो आप के पास सनस्क्रीन होना चाहिए. इस का एसपीएफ 30 या उस से ऊपर होना चाहिए. कमरे से बाहर निकलते ही रोज सुबह इसे चेहरे पर अच्छी तरह लगा लेना चाहिए. इस से आप के चेहरे की रक्षा होगी, चेहरा फटेगा नहीं और कालापन नहीं आएगा.

जब करना हो ऐडवैंचर

ऐडवैंचर स्पोर्ट्स बहुत रोमांचकारी होते हैं. उस रोमांच के बारे में सोचें जब आप पैराग्लाइडिंग करते हुए चट्टान से ऊपर उठ कर हवा में तैरते हैं, राफ्टिंग करते समय पानी में उतरते हैं या ऊंचे पहाड़ों पर ट्रैक करते हैं. इन सभी रोमांच का अनुभव खूबसूरत हो इस के लिए पहले से सावधानीपूर्वक योजना और तैयारी की आवश्यकता होती है. इन में सब से जरूरी है अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देना.

ड्रैस का चुनाव

प्रत्येक खेल के लिए कपड़ों की अपनी अलगअलग जरूरतें होती हैं. ज्यादा ऊंचाई वाली ट्रैकिंग के लिए तापमान में उतारचढ़ाव को संभालने के लिए लेयर्ड ड्रैस का होना जरूरी है जबकि स्कूबा डाइविंग और सर्फिंग के लिए वेटसूट से कोई सम झौता नहीं किया जा सकता.

सेफ्टी गियर्स

सुरक्षा गियर का उपयोग करें. मसलन, हैलमेट, हार्नेस, लाइफ जैकेट और घुटने या कुहनी के गार्ड सुरक्षित ऐडवैंचर तय करते हैं. सुरक्षा गियर पहनने से कभी सम झौता न करें, भले ही यह असुविधाजनक लगे.

स्टैमिना बढ़ाएं

रौक क्लाइंबिंग, राफ्टिंग और स्कीइंग जैसे ऐडवैंचर स्पोर्ट्स में कोर और ऊपरी शरीर की ताकत की जरूरत होती है. वेट ट्रेनिंग, बौडी वेट ऐक्सरसाइज और कोर वर्कआउट को शामिल करने से मदद मिल सकती है.

ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज करें

ऊंचाई पर या पानी के नीचे की गतिविधियों जैसे स्कूबा डाइविंग में सांस पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है. गहरी सांस लेने की तकनीक सीखना या नियंत्रित सांस लेने का अभ्यास करना बहुत फायदेमंद हो सकता है. शारीरिक तैयारी से आप चोटों से बच पाते हैं और कठिन परिस्थितियों में सहज बने रहते हैं.

वैदर पर रहे नजर

मौसम की स्थिति किसी ऐडवैंचर स्पोर्ट्स को सफल या असफल बना सकती है. उदाहरण के लिए तेज हवाओं में पैराग्लाइडिंग खतरनाक है और बारिश में चट्टानों पर चढ़ना लगभग असंभव है.

ट्रैकिंग के लिए एरिया समझें

अगर आप ट्रैकिंग या कैंपिंग कर रहे हैं तो जान लें कि आप को किन जानवरों का सामना करना पड़ सकता है. कुछ क्षेत्रों में भालू या सांप जैसे वन्यजीव होते हैं. ऐसे में यह जानना महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि कैसे प्रतिक्रिया करनी है.

जब ज्यादा हाइट पर जाएं

यदि आप अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जा रहे हैं जैसेकि किसी पर्वतीय ट्रैक पर तो ऊंचाई से होने वाली बीमारी और औक्सीजन के स्तर में कमी के लिए तैयार रहें. बहुत जल्दी चढ़ाई करने से दिक्कतें आ सकती हैं. यहां तक कि फिट लोगों को भी. धीरेधीरे चढ़ना, हाइड्रेटेड रहना और अपने शरीर को एडजस्ट होने का समय देना बहुत बड़ा अंतर ला सकता है.

ऊंचाई पर होने वाली बीमारी के लक्षणों में सिरदर्द, मतली और सांस लेने में तकलीफ शामिल है. यदि आप इन में से किसी भी लक्षण का अनुभव करते हैं तो रुकना और अपने शरीर को एडजस्ट होने का समय देना आवश्यक है.

हाइड्रेटेड रहें

ऊंचाई पर ट्रैकिंग करने से आप जितनी जल्दी सोचते हैं उस से कहीं ज्यादा तेजी से डिहाइड्रेट हो जाते हैं. भरपूर पानी पीने से सिरदर्द और चक्कर आने जैसी समस्या से बचा जा सकता है.

जानें कि कब लौटना है

खतरनाक परिस्थितियों में खुद को बहुत ज्यादा पुश करना उचित नहीं है. ऐडवैंचर स्पोर्ट्स का मतलब है मौजमस्ती करना और अपनी सीमाओं का सम्मान करना. ऐडवैंचर स्पोर्ट्स शारीरिक चुनौतियों के साथसाथ मानसिक चुनौतियों से भी जू झते हैं. ऊंचाइयों, गहरे पानी या तेज बहाव का सामना करना डरावना हो सकता है लेकिन मानसिक मजबूती आप को इन डरों से निबटने में मदद करेगी.

जब करनी हो ट्रैकिंग

पहाड़ों पर ट्रैक करते वक्त हमेशा ट्रैकिंग स्टिक या छड़ को साथ रखें. छड़ी के सपोर्ट से ट्रैक करने में कई जगह आसानी हो जाएगी.

हमेशा अपने हर बैग में अपना विजिटिंग कार्ड रखें या मार्कर से अपने बैग पर अपना कौंटैक्ट नंबर लिख दें. बैग कही भूल जाने के केस में शायद कोई आप के छोड़े हुए नंबर पर कौल कर आप को वापस पहुंचा दे.

अपने साथ हमेशा कोई भी मौस्किटो रेपेलैंट क्रीम जैसेकि ओडोमास रखें. सपोज करो आप कही जंगल में कैंप में रहे और रातभर मच्छर आसपास घूमते रहे तो आप की नींद भी खराब होगी और अगला दिन भी. आप इसे अपने हर सफर पर साथ रखें. कभीकभी होटल के किसी कमरे में आप ने कुछ देर रात को खिड़की खोली और फिर कुछ मच्छर कमरे में आ गए तो भी आप की नींद खराब होनी है. ऐसे केस में ओडोमौस काम आएगी.

अगर आप किसी खतरनाक ट्रैक के लिए निकल रहे हैं और वह भी सर्दियों या मौनसून में तो याद रखें सर्दियों में स्नोफाल और मौनसून में भूस्खलन के कारण आप को कहीं पर भी 1 या 2 दिन फंसे रहना पड़ सकता है. ऐसे मौसम में अगर आप स्ट्रिक्ट शैड्यूल बना कर रिटर्न की फ्लाइट या ट्रेन बुक कराते हैं तो हो सकता है आप पहाड़ों में फंस जाने के कारण उस दिन ट्रेन या फ्लाइट का सफर मिस कर दें. सर्दियों और मौनसून में अपने तय किए कार्यक्रम में 1 या 2 दिन हमेशा ऐक्स्ट्रा रखें या रिटर्न जाने के लिए बुकिंग सेफ जोन में पहुंच कर ही करें.

रात को अपने मोबाइल की बैटरी, पावर बैंक, कैमरे की बैटरी को हमेशा गरम कपड़े की कुछ मोटी लेयर में लपेट कर बैग के अंदर बीच में दबा कर रखें क्योंकि रात को ज्यादा ठंड के

कारण बिना इस्तेमाल किए ही आप के हर डिवाइस की बैटरी तेजी से कम होती रहेगी. अगर आप इन्हें खुला रख देंगे तो रातभर में आप के हर डिवाइस की बैटरी पूरी डिस्चार्ज हो जाएगी.

लोअर ऐप्टिट्यूड से हायर ऐप्टिट्यूड पर आने का सफर अगर फ्लाइट से हो रहा है तो फ्लाइट से उतरने से पहले ही अपने शरीर को पूरा ढक लें. काफी लोग दिल्ली से लेह तक 1 घंटे में ही फ्लाइट से आ जाते हैं और ऐप्टिट्यूड में 1 घंटे में ही इतने बड़े चेंज को उन का शरीर  झेल नहीं पाता और वे लेह में ही बीमार पड़ जाते हैं और तत्काल वापस दिल्ली की फ्लाइट से लेह छोड़ देते हैं.

दवाइयां/मैडिकल किट साथ ले कर चलें. अगर आप किसी रैग्युलर दवा को रोज ले रहे हैं तो कोशिश करें यात्रा के दिन के हिसाब से सारी दवा अपने साथ ले कर चलें. कम से कम 5 दिन की दवा आप ऐक्स्ट्रा अपने साथ रखें. यह मान कर चलें कि आप की दवा पहाड़ों पर भी केवल बड़े शहरों में मिल सकती है पर ट्रैक या छोटे औफ बीट गांवों में नहीं. इसलिए एक छोटी मैडिकल किट हमेशा साथ रखें जिस में सर्दी, बुखार, दस्त, अपच, गैस, दर्द, उलटी आदि की दवा साथ रखें. चोट लगने की स्थिति में कोई क्रीम, पैरासिटामोल, गरम पट्टी, रुई, छोटी कैंची तो साथ होनी ही चाहिए. इलैक्ट्रौल, ओआरएस, ईनो के कुछ पैकेट भी मैडिकल किट में होने चाहिए.

ट्रैकिंग या बर्फ वाले रास्ते काफी फिसलन भरे होते हैं. अगर आप सामान्य जूते पहन कर चलोगे तो फिसल कर हड्डियां तुड़वा बैठोगे. इसलिए आप को अपने साथ मजबूत और बढि़या क्वालिटी के ट्रैकिंग शूज रख लेने चाहिए. अगर आप लंबे विंटर ट्रैक पर जा रहे हैं तो एक जोड़ी जूते ऐक्स्ट्रा आप के पास होने चाहिए. जूते वाटरप्रूफ हों तो सब से बढि़या बात है.

हमेशा अपने साथ एक ऐक्स्ट्रा मोबाइल रखें. ट्रैक के दौरान आप का मोबाइल अगर कहीं खो गया तो कम से कम ऐक्स्ट्रा मोबाइल से फोटोग्राफी कर पाओगे. आप का फोन अगर गिर गया और स्क्रीन पूरी टूट गई तो इस ऐक्स्ट्रा फोन में सिम डाल कर काम चला सकते हैं. इस में आप औफलाइन मैप और गाने डाल कर भी रख सकते हैं ताकि मुख्य फोन की बैटरी बिना कम किए इस फोन से गाने वगैरह सुन सकते हैं. मुख्य फोन की स्टोरेज फुल होने पर डाटा इस में ट्रांसफर कर सकते हैं.

एक सीटी हमेशा साथ रखें. अगर कभी अनजान पहाड़ों पर अकेले फंस जाएं और हैल्प के लिए चीखते हुए गला खराब हो जाए तो सीटी बजाएं. पहाड़ों पर वैसे भी सीटी की आवाज आते ही लोकल लोग अलर्ट हो जाते हैं.

ट्रैक के दौरान पानी ज्यादा पीएं. कोई पेयपदार्थ रास्ते में मिले तो पहले उसे प्राथमिकता दें. ट्रैक से पहले पूरा पेट भर कर खाना न खाएं.

सही औप्शन चुनें

जब ऐडवैंचर स्पोर्ट्स की बात आती है तो हरेक ऐडवैंचर में शारीरिक मजबूती, जोखिम सहने का हौसला और आवश्यक कौशल की जरूरत होती है.

अपनी रुचियों और सहजता के स्तर के अनुसार स्पोर्ट्स डिसाइड करें. अगर आप ऊंचाई पर सहज हैं तो राक क्लाइंबिंग या पैराग्लाइडिंग आप के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है. अगर आप को पानी पसंद है तो राफ्टिंग या सर्फिंग पर विचार करें.

यह भी देखें कि आप की फिटनैस का स्तर क्या है. कुछ ऐडवैंचर स्पोर्ट्स शारीरिक रूप से कठिन होते हैं जिन में सहनशक्ति और ज्यादा ताकत की आवश्यकता होती है, जबकि कुछ जैसे हौट एअर बैलूनिंग शारीरिक रूप से कम कठिन होते हैं. फिर भी रोमांचकारी होते हैं. स्कूबा डाइविंग जैसी कुछ गतिविधियों के लिए खास स्थानों की यात्रा की आवश्यकता हो सकती है.

याद रखें सही खेल का चयन आप की सुरक्षा के साथसाथ आप की व्यक्तिगत सुविधा और रुचि से भी संबंधित होता है. जोखिमों के बारे में भी जानें. भले ही रोमांच से आकर्षित हो रहे हों लेकिन संभावित जोखिमों और खतरों के बारे में जागरूक होना भी उतना ही आवश्यक है. उदाहरण के लिए रौक क्लाइंबिंग के लिए आप को लीड फाल और रोप बर्न के बारे में सम झना होगा जबकि सर्फिंग के लिए धाराओं और ज्वार के बारे में जानकारी की आवश्यकता होती है.

Prachi Tehlan : खेल के मैदान से फिल्मी परदे तक का सफर

Prachi Tehlan : प्राची तेहलान एक ऐसा नाम है जिसे आप ने खेल के मैदान से ले कर फिल्मी पर्दे तक देखा होगा. उन के सफर की शुरुआत हुई भारतीय नेटबौल टीम से जहां उन्होंने न सिर्फ देश का प्रतिनिधित्व किया बल्कि कौमनवैल्थ गेम्स जैसे बड़े मंच पर अपना जौहर भी दिखाया. खेल ने उन्हें सिर्फ जीतना ही नहीं बल्कि हर मोड़ पर उठ कर खड़े होना सिखाया.

खेल के बाद उन के जीवन का दूसरा अध्याय शुरू हुआ सिनेमा के साथ. पिछले 8 सालों में उन्होंने कई भाषाओं में फिल्मों और शोज में काम किया. एक कलाकार के रूप में उन्होंने खुद को हर किरदार में  झोंक दिया चाहे वह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि हो, ऐक्शन से भरपूर रोल हो या फिर दिल को छू लेने वाली कहानियां. अब उन की नजर हौलीवुड पर है जहां वे अपने अभिनय के नए आयाम दिखा सकें.

उन की कहानी यहीं खत्म नहीं होती. वह एक सोशल ऐंटरप्रेन्योर भी हैं. प्राची तेहलान फाउंडेशन के जरीए वह महिलाओं के सशक्तीकरण और लड़कियों की शिक्षा के लिए काम कर रही हैं. अब वह खेल गतिविधियों और टूर्नामैंट्स को भी फाउंडेशन का हिस्सा बनाना चाहती हैं ताकि आने वाले युवाओं को सही दिशा मिल सके.

फिल्मों के प्रति अपने जुनून को एक नई उड़ान देने के लिए उन्होंने “Raystride Studios”
नाम से अपना प्रोडक्शन हाउस भी शुरू किया है.

जीवन के हर पल को जीने और महसूस करने का उन का एक अलग ही अंदाज है. उन्हें किताबें पढ़ना, नई जगहों को एक्सप्लोर करना खासकर पहाड़ों और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी करने का शौक है.

एक स्पोर्ट्स पर्सन से एक्ट्रेस बनने का सफर

यह कहानी 2016 की है. उस वक्त वह ऐक्सेंचर में कंसल्टैंट के तौर पर काम कर रही थी. खेल के मैदान से ले कर कौरपोरेट वर्ल्ड तक का सफर चल ही रहा था कि अचानक एक दिन उन के फेसबुक फैन पेज पर एक संदेश आया. यह पेज उन्होंने अपने स्पोर्ट्स कैरियर के दौरान बनाया था.

संदेश था टीवी इंडस्ट्री के एक बड़े शो ‘दीया और बाती हम’ से. उन्होंने प्राची को आरजू राठी के किरदार के लिए अप्रोच किया. इस शो में उन्हें एक पैरेलल लीड रोल औफर हुआ. उस वक्त तक प्राची ने कभी नहीं सोचा था कि वह कैमरे के सामने भी जाएंगी. लेकिन स्क्रिप्ट पढ कर उन्हें लगा कि यह किरदार उन के अंदर छिपी एक नई पहचान को बाहर लाने का जरिया बन सकता है. बस फिर क्या था उन्होंने Accenture कंफर्टेबल जौब को छोड़ कर अपने सपनों के पीछे भागने का फैसला कर लिया और इस तरह ऐक्टिंग के सफर की शुरुआत हुई. खेल के मैदान से ले कर फिल्मी पर्दे तक यह सफर जितना अनपेक्षित था उतना ही रोमांचक भी.

इस तरह उन्होंने अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत स्टार प्लस के 2 प्रमुख शोज में लीड रोल्स निभा कर की. इन शोज में से पहला था ‘दीया और बाती हम’ और दूसरा ‘इक्यावन’, जिसमें उन्होंने सुशील पारेख का किरदार निभाया. इसके बाद उन्होंने पंजाबी सिनेमा में कदम रखा और दो फिल्में कीं—“BAILARAS ” और “Arjan.

Prachi Tehlan

फिर उन्होंने साउथ इंडस्ट्री में अपनी पहली फिल्म की— ममंगम जिस में उन्हें मलयालम सुपरस्टार ममूटी के अपोजिट काम करने का मौका मिला. ये फिल्म सिर्फ उन के कैरियर का मील का पत्थर नहीं थी बल्कि इस ने उन को साउथ सिनेमा के प्रति एक खास लगाव भी दिया. इसके बाद मलयालम फिल्म में फिर से काम किया जिस में प्राची के अपोजिट थे पर्यटन और पैट्रोलियम मंत्री सुरेश गोपी. यह फिल्म जल्द ही रिलीज होने वाली है. तेलुगु इंडस्ट्री में भी उन्होंने एक फिल्म की जिस में उन के अपोजिट थे अमनप्रीत जो मशहूर ऐक्ट्रैस रकुल प्रीत सिंह के भाई हैं.

वह कहती हैं कि हर प्रोजैक्ट ने उन्हें कुछ नया सिखाया लेकिन सुपरस्टार ममूटी के साथ काम करने का अनुभव और सुशील पारेख का किरदार उन के दिल के बेहद करीब है. ये दोनों ही प्रोजैक्ट्स उन के कैरियर की नींव बन गए.

लंबी हाइट ने भी दिया साथ

खूबसूरत, आत्मविश्वास से भरपूर, 5 फुट 9 इंच लंबी प्राची तेहलान की सफलता के पीछे उन की लंबी हाइट की भी अहम भूमिका है. बात बास्केटबौल और नैटबौल खेलने की हो या फिर ‘दीया और बाती’ में मौका मिलने की, इस लंबी हाइट ने उन का साथ दिया. दरअसल ‘दीया और बाती’ में एक लंबी लड़की की जरूरत थी. यह भी एक वजह थी कि उन्हें वहां मौका मिला और वह ऐक्ट्रैस बन पाई.

साउथ सिनेमा से लगाव

दिल्ली में जन्मी, हरियाणा के जाट परिवार से ताल्लुक रखने वाली दिल से देसी प्राची तेहलान को स्पोर्ट्स ने सिखाया कि ये पूरा देश ही उन का घर है. इसलिए देश के किसी भी कोने में खुद को बे िझ झक महसूस करती हैं. आजकल वह केरल में हैं. यह वो जगह है जिस ने उन्हें पहली बड़ी पहचान दी फिल्म ‘ममंगम’ के जरीए.

वह कहती हैं कि साउथ सिनेमा की बात ही अलग है. यहां की कहानियां भारतीय संस्कृति की जड़ों से निकली होती हैं— गहरी, भावुक और दिल को छू जाने वाली. यहां के टैक्नीशियन और फिल्ममेकर्स में एक अलग ही जुनून है. हर सीन, हर फ्रेम में उन की मेहनत और पैशन  झलकता है. यहां सिर्फ फिल्में नहीं बनाई जाती बल्कि कला को पूजा जाता है. साउथ में सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि एक इमोशनल कनैक्शन है. यही वजह है कि यहां के दर्शक इतने पैशनेट हैं. उन का प्यार और क्रेज ही है जो इस इंडस्ट्री को लगातार नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है और शायद यही वो वजह है कि यहां का सिनेमा बिजनैस के मामले में भी दिनबदिन तरक्की कर रहा है

आज के समाज में महिलाओं की स्थिति

प्राची कहती हैं कि आज की भारतीय महिलाएं वे नहीं रहीं जो 10 साल पहले थीं. अब वे ज्यादा मजबूत, जागरूक और महत्वाकांक्षी हैं. चाहे घर बैठे कमाना हो या किसी भी इंडस्ट्री में कदम रखना हो आज उन के पास हर मौका है. आज की महिलाएं सिर्फ सपने नहीं देखती बल्कि उन्हें पूरा करने का हौसला भी रखती हैं. वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं— शिक्षा, कारोबार, खेल, मनोरंजन— हर जगह. और सच कहूं तो कई इंडस्ट्रीज में वो पुरुषों से भी बेहतर कर रही हैं. ये दौर महिलाओं का है. महिलाएं कमजोर नहीं बल्कि हर मायने में मजबूत हैं. वे अपनी शर्तों पर जी रहे हैं, अपने हक के लिए आवाज उठा रही हैं और खुद को साबित कर रही हैं. इसलिए अब उन्हें कमजोर सम झने का वक्त बीत चुका है. महिलाएं यहां हैं, पूरी ताकत और आत्मविश्वास के साथ और इस दौर को अपने नाम करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.

वह कहती हैं, ‘‘सच कहूं तो मैं अपना बैस्ट कर रही हूं और मुझे इस पर फक्र है. मेरे आसपास ऐसे मर्द हैं, जो मेरे सपनों, मेरे एम्बिशन को दिल से अपनाते हैं. वो मु झे पूरा सपोर्ट करते हैं, मेरे हर कदम पर मेरे साथ खड़े रहते हैं और मु झे ऊंचाइयों पर बढ़ते देख खुशी महसूस करते हैं. मुझे नहीं पता कि पूरी सोसाइटी कैसी है लेकिन मेरे आसपास की दुनिया तो बहुत ही प्रोग्रेसिव है. मेरे भाई, मेरे पापा, मेरे दोस्त— हर कोई मेरी तरक्की में मेरी ताकत बन कर खड़ा है.’’

अवार्ड्स और अचीवमैंट्स

प्राची के लिए सब से बड़ी उपलब्धि रही 21 साल की उम्र में भारत को अपनी कप्तानी में पहला मैडल दिलाना. इंडियन नैटबौल की पूर्व कप्तान प्राची की कप्तानी में 2011 में भारतीय टीम ने दक्षिण एशियाई बीच खेलों में अपना पहला पदक जीता था. उसी सफर ने उन्हें लिम्का बुक औफ रिकार्ड्स में सब से कम उम्र की भारतीय कप्तान के रूप में दर्ज कराया. उन का एक और सपना था IIT/IIM में पढ़ने का. भले वहां पढ़ नहीं पाई लेकिन TED& स्पीकर बन कर वहां अपनी कहानी सुनाना उन के लिए किसी सपने के सच होने जैसा था. फिल्मी सफर में हर भाषा की पहली फिल्म के लिए उन्हें बैस्ट डेब्यूटेंट के नौमिनेशन मिले. NIKON के लिए वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी की ब्रैंड ऐंबेसेडर भी बनी.

एक घटना जिस ने जिंदगी बदल दी

प्राची बताती हैं, ‘‘लौकडाउन ने मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया. कोरोना ने हमें सिखाया कि जिंदगी बहुत अनिश्चित है. जिंदगी में महत्त्वपूर्ण क्या है, इस बात को सम झना जरूरी है. हमें एंबिशियस होना चाहिए. काम करना भी जरूरी है. मगर जीवन में बैलेंस रखना भी बहुत जरूरी है. हम जिंदगी में बस दौड़े जा रहे थे. कंपीटीशन में उलझे हुए थे मगर हमें यह सम झना जरूरी है कि अपनों के साथ समय बिताना, खूबसूरत यादें सजाना और खुश रहना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. कोरोना ने मेरे सोचने का नजरिया बदला, मेरे जीने का तरीका बदला, यहां तक कि खुद को देखने का अंदाज भी बदल दिया. सच कहें तो लौकडाउन एक वरदान साबित हुआ. यही वो दौर था जिस ने मु झे मेरे अब तक के सब से बेहतर और सशक्त वर्जन के रूप में ढाला. कहते हैं, कभीकभी ठहराव में भी तरक्की छिपी होती है. और मेरे लिए वही ठहराव मेरी सब से बड़ी तरक्की बन गया.’’

फोटो : पीयूष तानपुरे
फोटो : पीयूष तानपुरे

भावुक करने वाले पल

कुछ लम्हें जिंदगी में ऐसे होते हैं जो हमेशा दिल में बस जाते हैं. प्राची बताती हैं कि उन के लिए ऐसे दो पल थे—

पहला जब उन्हें 2010 के कौमनवैल्थ गेम्स के लिए भारतीय टीम का कप्तान बनने का मौका मिला. उस पल की खुशी आज भी दिल में ताजा है. उन्होंने जब पापा को कौल कर के ये खबर सुनाई तो वो गर्व और खुशी के आंसू निकल आए. वह पल अमूल्य था.

दूसरा जब उन्होंने अपना पहला साउथ इंडियन फिल्म प्रोजैक्ट साइन किया— सुपरस्टार ममूटी के साथ. मुंबई के BKC में शूटिंग के बाद वो एग्रीमैंट साइन करना और फिर से पापा को कौल कर ये खुशखबरी देना ऐसा एहसास था जिस की खुशी शब्दों में बयां नहीं हो सकती.

महिलाओं की ताकत

प्राची कहती हैं महिलाओं की सब से बड़ी ताकत है उन की भावनाएं और उन का इंटुइशन. ये 2 ऐसे हथियार हैं जिन्हें अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो एक औरत खुद के हितों की रक्षा करने के साथसाथ दुनिया को भी बेहतर बना सकती है. अगर एक औरत को अपनी जिंदगी के कुछ पहलुओं पर कंट्रोल मिल जाए तो वो अपनी भावनात्मक सम झ और ज्ञान के जरीए वो कर सकती है जो शायद कोई और नहीं कर पाए. कहते हैं, दिल की सुनो और दिमाग से चलो. औरतें यही तो करती हैं— दिल की सुन कर, दिमाग से रास्ता बनाती हैं. यही उन की असली शक्ति है. इस के अलावा समाज में स्त्रियों की स्थिति मजबूत करने के लिए जरूरी है कि स्त्रियां सेल्फ डिफेंस करना सीखें. वे शिक्षित हों और यहां के सिस्टम को दुरुस्त किया जाए ताकि लोग गलत करने से पहले 10 बार सोचें. लड़कियों को बाहर निकलने से पहले यह न सोचना पड़े कि कहीं कोई दुर्घटना न घट जाए.

Summer Skin Care Tips : शाइनी और रिच लुक के लिए चुनें ये सनस्क्रीन क्रीम

Summer Skin Care Tips : समर सीजन में घर से बाहर निकलना हो तो सब से पहले तेज धूप से स्किन को प्रोटैक्ट करने की चिंता सताने लगती है क्योंकि टैनिंग या फिर यूवी रेज से स्किन को जो प्रौब्लम्स होती हैं वे जल्दी ठीक नहीं होतीं. ऐसे में सनस्क्रीन से बेहतर औप्शन भला क्या हो सकता है. लेकिन क्या आप अपनी स्किन के लिए सही सनस्क्रीन इस्तेमाल कर रही हैं जो आप की त्वचा को हार्मफुल यूवी रेज से प्रोटैक्शन देने के साथसाथ उसे शाइनी और रिच लुक भी दे. और जिस में स्किन के लिए गुणों से भरपूर पपाया के बैनीफिट्स भी हों.

आइए, जानते हैं शाइनी और रिच लुक के साथ सन प्रोटैक्शन के लिए कैसी सनस्क्रीन चुनें:

एसपीएफ 50 वाली सनस्क्रीन है बैस्ट

एसपीएफ 50 वाली सनस्क्रीन हार्मफुल यूवी किरणों से आप की स्किन को 98त्न तक सुरक्षा देती है. इन किरणों की वजह से ही स्किन पर सनबर्न जैसी समस्या होती है. इतना ही नहीं यह आप को प्रीमैच्योर एजिंग की वजह से आने वाले रिंकल्स से भी प्रोटैक्ट करती है. यह स्किन प्रोटैक्शन देने के साथसाथ स्किन टैक्स्चर को भी इंप्रूव करती है जिस से स्किन शाइनी लुक देती है.

धूप में ज्यादा देर तक रहने से हाइपरपिगमैंटेशन की समस्या भी हो जाती है जिस से स्किन टन इवन नहीं रह जाती. एसपीएफ 50 सनस्क्रीन इस से भी प्रोटैक्ट करती है.

पपाया के गुण

पपाया स्किन हैल्थ के लिए जरूरी गुणों से भरपूर है. इस में मौजूद ऐंजाइम और विटामिंस स्किन को हाइड्रेट रखने में मदद करते हैं. यह त्वचा को नैचुरली ऐक्सफोलिएट करता है जिस से त्वचा में निखार आता है. इस में पाया जाने वाला पपैन ऐंजाइम स्किन की डेड सैल्स को रिमूव करने में हैल्प करता है और वह खली हुई दिखती है. इतना ही नहीं इस में रिंकल्स को कम करने और पिंपल्स की रोकथाम के गुण भी होते हैं.

तो अब आप को धूप में बाहर निकलने से डरना नहीं पड़ेगा क्योंकि पपाया के गुणों से भरपूर एसपीएफ 50 वाली सनस्क्रीन आप को पूरा सन प्रोटैक्शन देगी.

 Cracked Heels : गर्मियों में भी एड़ियां फटने से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

 Cracked Heels : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

ज्यादातर देखा गया है कि सर्दियों में एडि़या फटती हैं, पर मेरी एडि़यां गरमियों में भी फटने लग जाती हैं. क्या करूं?

जवाब-

गरमियों में हम न तो पैरों की मसाज करती हैं न ही उन पर कोई क्रीम लगाती हैं. कुछ महिलाओं की स्किन बहुत ड्राई होने की वजह से गरमियों में क्रीम न लगाने की वजह से उन की एडि़यां फटने लग जाती हैं. गरमियों में पैर जल्दी गंदे भी हो जाते हैं क्योंकि शूज के बदले चप्पलें पहनी जाती हैं. ऐसे में पैरों के फटने के चांसेज और ज्यादा बढ़ जाते हैं.

आप हमेशा रात को पैरों को ठीक से धो कर हलकी सी क्रीम लगा कर थोड़ी सी मसाज कर के सोएं. इस से एडि़या नहीं फटेंगी. यदि फटी हुई हैं तो कुछ दिन लगातार गरम पानी में थोड़ा सा नीबू का रस, थोड़ी सी फिटकरी और शैंपू डाल कर पैरों को भिगोए. कुछ देर बाद निकाल कर स्क्रब कर लें. पैरों को साफ पानी से धो व पोंछ कर कोई क्रीम लगा कर अच्छी तरह मसाज करें. हो सके तो कौटन की सौक्स पहन कर रखें. ऐसा लगातार करने से फटी एडि़यां ठीक हो जाएंगी. अगर बहुत ज्यादा फट गई हैं तो वैसलीन लगा लें.

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बदलते मौसम में हम अपने चेहरे और हाथों की स्किन का तो खूब खयाल रखते हैं, लेकिन अकसर यह भूल जाते हैं कि हमारी पर्सनैलिटी में जितनी इंपौर्टैंस चेहरे और हाथों की खूबसूरती की है उतने ही अहम हमारे पैर भी हैं, जिन पर मौसम की मार सब से पहले पड़ती है, लेकिन हम उन्हीं को अपनी टेक केयर लिस्ट में सब से आखिर में रखते हैं. नतीजा यह होता है कि हमारी एडि़यां फट जाती हैं, पैर बेजान नजर आने लगते हैं.

आप अपने पैरों का खयाल कैसे रख सकती हैं और ऐसी कौन सी चीजें हैं, जो आप के पैरों में फिर से जान डाल देंगी, यही बताने के लिए हम यह लेख आप के लिए ले कर आए हैं.

एडि़या फटने के कारण

एडि़या फटने की सब से आम वजह है मौसम का बदलना, साथ ही मौसम के अनुरूप पैरों को सही तरीके से मौइस्चराइज न करना और जब मौसम शुष्क हो जाता है तो यह परेशानी और बढ़ जाती है.

देखा जाए तो अधिकतर महिलाएं फटी एडि़यों से परेशान होती हैं, क्योंकि काम करते समय अकसर उन के पैर धूलमिट्टी का ज्यादा सामना करते हैं इस के साथ ही इन कारणों की वजह से भी एडि़यां फटती हैं:

– लंबे समय तक खड़े रहना

– नंगे पैर चलना

– खुली एडि़यों वाले सैंडल पहनना

– गरम पानी में देर तक नहाना

– कैमिकल बेस्ड साबुन का  इस्तेमाल करना – सही नाप के जूते न पहनना.

बदलते मौसम के कारण वातावरण में नमी कम होना फटी एडि़यों की आम वजह है. साथ ही बढ़ती उम्र में भी एडि़यों का फटना आम बात है. ऐसे में कई बार एडि़यां दरारों के साथ रूखी हो जाती हैं. कई मामलों में उन दरारों से खून भी रिसना शुरू हो जाता है, जो काफी दर्दनाक होता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hindi Folk Tales : नई सुबह – क्या अमृता ने की दूसरी शादी

Hindi Folk Tales :  अमृता को नींद नहीं आ रही थी.  वह जीवन के इस मोड़ पर आ  कर अपने को असहाय महसूस कर रही थी. उस ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसे दिन भी आएंगे कि हर पल बस, दुख और तकलीफ के एहसास के अलावा सोचने के लिए और कुछ नहीं बचेगा. एक तरफ उस ने गुरुजी के मोह में आ कर संन्यास लेने का फैसला लिया था और दूसरी ओर दादा, माधवन से शादी करने को कह रहे थे. इसी उधेड़बुन में उलझी अमृता सोच रही थी.

उस के संन्यास लेने के फैसले से सभी चकित थे. बड़ी दीदी तो बहुत नाराज हुईं, ‘यह क्या अमृता, तू और संन्यास. तू तो खुद इन पाखंडी बाबाओं के खिलाफ थी और जब अम्मां के गुरुभाई आ कर धर्म और मूल्यों की बात कर रहे थे तो तू ने कितनी बहस कर के उन्हें चुप करा दिया था. एक बार बाऊजी के साथ तू उन के आश्रम गई थी तो तू ने वहां जगहजगह होने वाले पाखंडों की कैसी धज्जियां उड़ाई थीं कि बाऊजी ने गुस्से में कितने दिन तक बात नहीं की थी और आज तू उन्हीं लोगों के बीच…’

बड़े भाईसाहब, जिन्हें वह दादा बोलती थी, हतप्रभ हो कर बोले थे, ‘माना कि अमृता, तू ने बहुत तकलीफें झेली हैं पर इस का मतलब यह तो नहीं कि तू अपने को गड्ढे में डाल दे.’

दादा भी शुरू से इन पाखंडों के बहुत खिलाफ थे. वह मां के लाख कहने के बाद भी कभी आश्रम नहीं गए थे.

सभी लोग अमृता को बहुत चाहते थे लेकिन उस में एक बड़ा अवगुण था, उस का तेज स्वभाव. वह अपने फैसले खुद लेती थी. यदि और कोई विरोध करता तो वह बदतमीजी करने से भी नहीं चूकती थी. इसलिए जब भी कोई उस से एक बार बहस करता तो जवाब में मिले रूखेपन से दोबारा साहस नहीं करता था.

अब शादी को ही लें. नरेन से शादी करने के उस के फैसले का सभी ने बहुत विरोध किया क्योंकि पूरा परिवार नरेन की गलत आदतों के बारे में जानता था पर अमृता ने किसी की नहीं सुनी. नरेन ने उस से वादा किया था कि शादी के बाद वह सारी बुरी आदतें छोड़ देगा…पर ऐसा बिलकुल नहीं हुआ, बल्कि यह सोच कर कि अमृता ने अपने घर वालों का विरोध कर उस से शादी की है तो अब वह कहां जाएगी, नरेन ने उस पर मनमानी करनी शुरू कर दी थी.

शुरुआत में अमृता झुकी भी पर जब सबकुछ असहनीय हो गया तो फिर उस ने अपने को अलग कर लिया. नरेन के घर वाले भी इस शादी से नाखुश थे, सो उन्होंने नरेन को तलाक के लिए प्रेरित किया और उस की दूसरी शादी भी कर दी.

अब इस से घर के लोगों को कहने का अवसर मिल गया कि उन्होंने तो नरेन के बारे में सही कहा था लेकिन अमृता की हठ के चलते उस की यह दशा हुई है. वह तो अमृता के पक्ष में एक अच्छी बात यह थी कि वह सरकारी नौकरी करती थी इसलिए कम से कम आर्थिक रूप से उसे किसी का मुंह नहीं देखना पड़ता था.

बाबूजी की मौत के बाद मां अकेली थीं, सो वह अमृता के साथ रहने लगीं. अब अमृता का नौकरी के बाद जो भी समय बचता, वह मां के साथ ही गुजारती थी. मां के पास कोई विशेष काम तो था नहीं इसलिए आश्रम के साथ उन की गतिविधियां बढ़ती जा रही थीं. आएदिन गुरुजी के शिविर लगते थे और उन शिविरों में उन को चमत्कारी बाबा के रूप में पेश किया जाता था. लोग अपनेअपने दुख ले कर आते और गुरु बाबा सब को तसल्ली देते, प्रसाद दे कर समस्याओं को सुलझाने का दावा करते. कुछ लोगों की परेशानियां सहज, स्वाभाविक ढंग से निबट जातीं तो वह दावा करते कि बाबा की कृपा से ऐसा हो गया लेकिन यदि कुछ नहीं हो पाता तो वह कह देते कि सच्ची श्रद्धा के अभाव में भला क्या हो सकता है?

अमृता शुरू से इन चीजों की विरोधी थी. उसे कभी धर्मकर्म, पूजापाठ, साधुसंत और इन की बातें रास नहीं आई थीं पर अब बढ़ती उम्र के साथ उस के विरोध के स्वर थोड़े कमजोर पड़ गए थे. अत: मां की बातें वह निराकार भाव से सुन लेती थी.

मां ने बेटी के इस बदलाव को सकारात्मक ढंग से लिया. उन्होंने सोचा कि शायद अमृता उन के धार्मिक क्रियाकलापों में रुचि लेने लग गई है. उन्होंने एक दिन गुरुजी को घर बुलाया. बड़ी मुश्किल से अमृता गुरुजी से मिलने को तैयार हुई थी. गुरुजी भी अमृता से मिल कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि एक सुंदर, पढ़ीलिखी युवती अगर उन के आश्रम से जुड़ जाएगी तो उन का भला ही होगा.

गुरुजी ने अमृता के मनोविचार भांपे और उस के शुरुआती विरोध को दिल से स्वीकारा. उन्होंने स्वीकार किया कि वाकई कुछ मामलों में उन का आश्रम बेहतर नहीं है. अमृता ने जो बातें बताईं वे अब तक किसी ने कहने की हिम्मत नहीं की थी इसलिए वह उस के बहुत आभारी हैं.

अमृता ने गुरुजी से बात तो महज मां का मन रखने को की थी पर गुरुजी का मनोविज्ञान वह भांप न सकी. गुरुजी उस की हर बात का समर्थन करते रहे. अब नारी की हर बात का समर्थन यदि कोई पुरुष करता रहे तो यह तो नारी मन की स्वाभाविक दुर्बलता है कि वह खुश होती है. अमृता बहुत दिन से अपने बारे में नकारात्मक बातें सुनसुन कर परेशान थी. उस ने गुरुजी से यही उम्मीद की थी कि वह उसे सारी दुनिया का ज्ञान दे डालेंगे, लेकिन गुरुजी ने सब्र से काम लिया और उस से सारी स्थिति ही पलट गई.

गुरुजी जब भी मिलते उस की तारीफों के पुल बांधते. अमृता का नारी मन बहुत दिन से अपनी तारीफ सुनने को तरस रहा था. अब जब गुरुजी की ओर से प्रशंसा रूपी धारा बही तो वह अपनेआप को रोक नहीं  पाई और धीरेधीरे उस धारा में बहने लगी. अब वह गुरुजी की बातें सुन कर गुस्सा नहीं होती थी बल्कि उन की बहुत सी बातों का समर्थन करने लगी.

गुरुजी के बहुत आग्रह पर एक दिन वह आश्रम चली गई. आश्रम क्या था, भव्य पांचसितारा होटल को मात करता था. शांत और उदास जिंदगी में अचानक आए इस परिवर्तन ने अमृता को झंझोड़ कर रख दिया. सबकुछ स्वप्निल था. उस का मजबूत व्यक्तित्व गुरुजी की मीठीमीठी बातों में आ कर न जाने कहां बह गया. उन की बातों ने उस के सोचनेसमझने की शक्ति ही जैसे छीन ली.

जब अमृता की आंखें खुलीं तो वह अपना सर्वस्व गंवा चुकी थी. गुरुजी की बड़ीबड़ी आध्यात्मिक बातें वास्तविकता की चट्टान से टकरा कर चकनाचूर हो गई थीं. वह थोड़ा विचलित भी हुई, लेकिन आखिर उस ने उस परिवेश को अपनी नियति मान लिया.

उसे लगा कि वैसे भी उस का जीवन क्या है. उस ने सारी दुनिया से लड़ाई मोल ले कर नरेन से शादी कर ली पर उसे क्या मिला…एक दिन वह भी उसे छोड़ कर चला गया और दे कर गया अशांति ही अशांति. नरेन के मामले में खुद गलत साबित होने से उस का विश्वास पहले ही हिल चुका था, ऊपर से रिश्तेदारों द्वारा लगातार उस की असफलता का जिक्र करने से वह घबरा गई थी. आज इस आश्रम में आ कर उसे लगा कि वह सभी अप्रिय स्थितियों से परे हो गई है.

दादा भी माधवन से शादी के लिए उस के बहुत पीछे पड़ रहे थे, वह मानती थी कि माधवन एक अच्छा युवक था, लेकिन वह भला किसी के लिए क्या कह सकती थी. नरेन को भी उस ने इतना चाहा था, परंतु क्या मिला?

दूसरी ओर उस की बड़ी बहन व दादा चाहते थे कि जो गलती हो गई सो हो गई. एक बार ऐसा होने से कोई जिंदगी खत्म नहीं हो जाती. वे चाहते थे कि अमृता के लिए कोई अच्छा सा लड़का देख कर उस की दोबारा शादी कर दें, नहीं तो वह जिंदगी भर परेशान रहेगी.

इस के लिए दादा को अधिक मेहनत भी नहीं करनी थी. उन्हीं के आफिस में माधवन अकाउंटेंट के पद पर काम कर रहा था. वह वर्षों से उसे जानते थे. उस के मांबाप जीवित नहीं थे, एक बहन थी जिस की हाल ही में शादी कर के वह निबटा था. हालांकि माधवन उन की जाति का नहीं था लेकिन बहुत ही सुशील नवयुवक था. दादा ने उसे हर परिस्थितियों में हंसते हुए ही देखा था और सब से बड़ी बात तो यह थी कि वह अमृता को बहुत चाहता था.

शुरू से दादा के परिवार के संपर्क में रहने के कारण वह अमृता को बहुत अच्छी तरह जानता था. दादा भी इस बात से खुश थे. लेकिन इस से पहले कि वह कुछ करते अमृता ने नरेन का जिक्र कर घर में तूफान खड़ा कर दिया था.

आज जब अमृता बिलकुल अकेली थी तो खुद संन्यास के भंवर में कूद गई थी. दादा को लगता, काश, माधवन से उस की शादी हो जाती तो आज अमृता कितनी खुश होती.

अमृता का तलाक होने के बाद दादा के दिमाग में विचार आया कि एक बार माधवन से बात कर के देख लेते हैं, हो सकता है बात बन ही जाए.

वह माधवन को समीप के कैफे में ले गए. बहुत देर तक इधरउधर की बातें करते रहे फिर उन्होंने उसे अमृता के बारे में बताया. कुछ भी नहीं छिपाया.

माधवन बहुत साफ दिल का युवक था. उस ने कहा, ‘दादा, आप को मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. आप कितने अच्छे इनसान हैं. मैं भी इस दुनिया में अकेला हूं. एक बहन के अलावा मेरा है ही कौन. आप जैसे परिवार से जुड़ना मेरे लिए गौरव की बात है और जहां तक बात रही अमृता की पिछली जिंदगी की, तो भूल तो किसी से भी हो सकती है.’

माधवन की बातों से दादा का दिल भर आया. सचमुच संबंधों के लिए आपसी विश्वास कितना जरूरी है. दादा ने सोचा, अब अमृता को मनाना मुश्किल काम नहीं है लेकिन उन को क्या पता था कि पीछे क्या चल रहा है.

जैसे ही अमृता के संन्यास लेने की इच्छा का उन्हें पता चला, उन पर मानो आसमान ही गिर पड़ा. वह सारे कामकाज छोड़ कर दौड़ेदौड़े वहां पहुंच गए. वह मां से बहुत नाराज हो कर बोले, ‘मैं यह क्या सुन रहा हूं?’

‘मैं क्या करूं,’ मां बोलीं, ‘खुद गुरु महाराज की मरजी है. और वह गलत कहते भी क्या हैं… बेचारी इस लड़की को मिला भी क्या? जिस आदमी के लिए यह दिनरात खटती रही वह निकम्मा मेरी फूल जैसी बच्ची को धोखा दे कर भाग गया और उस के बाद तुम लोगों ने भी क्या किया?’

दादा गुस्से में लालपीले होते रहे और जब बस नहीं चला तो अपने घर वापस आ गए.

दूसरी ओर अमृता गुरुजी के प्रवचन के बाद जब कमरे की ओर लौट रही थी, तब एक महिला ने उस का रास्ता रोका. वह रुक गई. देखा, उस की मां की बहुत पुरानी सहेली थी.

‘अरे, मंजू मौसी आप,’ अमृता ने पूछा.

‘हां बेटा, मैं तो यहां आती भी नहीं, लेकिन तेरे कारण ही आज मैं यहां आई हूं.’

‘मेरे कारण,’ वह चौंक गई.

‘हां बेटा, तू अपनी जिंदगी खराब मत कर. यह गुरु आज तुझ से मीठीमीठी बातें कर तुझे बेवकूफ बना रहा है पर जब तेरी सुंदरता खत्म हो जाएगी व उम्र ढल जाएगी तो तुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक देगा. मैं ने तो एक दिन तेरी मां से भी कहा था पर उन की आंखों पर तो भ्रम की पट्टी बंधी है.’

अमृता घबरा कर बोली, ‘यह आप क्या कह रही हैं, मौसी? गुरुजी ने तो मुझे सबकुछ मान लिया है. वह तो कह रहे थे कि हम दोनों मिल कर इस दुनिया को बदल कर रख देंगे.’

मंजू मौसी रोने लगीं. ‘अरे बेटा, दुनिया तो नहीं बदलेगी, बदलोगी केवल तुम. आज तुम, कल और कोई, परसों…’

‘बसबस… पर आप इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकती हैं?’ अमृता ने बरदाश्त न होने पर पूछा.

‘इसलिए कि मेरी बेटी कांता को यह सब सहना पड़ा था और फिर उस ने तंग आ कर आत्महत्या कर ली थी.’

अमृता को लगा कि सारी दुनिया घूम रही है. एक मुकाम पर आ कर उस ने यही सोच लिया था कि अब उसे स्थायित्व मिल गया है. अब वह चैन से अपनी बाकी जिंदगी गुजार सकती है, लेकिन आज पता चला कि उस के पांवों तले की जमीन कितनी खोखली है.

उसी शाम दादा का फोन आया. दादा उसे घर बुला रहे थे. अमृता दादा की बात न टाल सकी. वह फौरन दादा के पास चली गई. दादा उसे देख कर बहुत खुश हुए. थोड़ी देर हालचाल पूछने के बाद दादा बोले, ‘ऐसा है, अमृता… यह तुम्हारा जीवन है और इस बात को मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि अगर तुम संन्यास लेना चाहोगी तो तुम्हें कोई रोक नहीं सकता. आज गुरुजी तुम्हें इस आश्रम से जोड़ रहे हैं तो इसलिए कि तुम सुंदर और पढ़ीलिखी हो. लेकिन इन के व्यवहार, चरित्र की क्या गारंटी है. कल को जिंदगी क्या मोड़ लेती है तुम्हें क्या पता. अगर कल से गुरु का तुम्हारे प्रति व्यवहार का स्तर गिर जाता है तो फिर तुम क्या करोगी? जिंदगी में तुम्हारे पास लौटने का क्या विकल्प रहेगा? अमृता, मेरी बहन, ऐसा न हो कि जीवन ऐसी जगह जा कर खड़ा हो जाए कि तुम्हारे पास लौटने का कोई रास्ता ही न बचे. सबकुछ बरबाद होने के बाद तुम चाह के भी लौट न पाओ.’

दादा की बात सुन कर अमृता की आंखें भर आईं.

‘और हां, जहां तक बात है तुम्हारी पुरानी जिंदगी की, तो उसे एक हादसा मान कर तुम नए जीवन की शुरुआत कर सकती हो. इस जीवन में सभी तो नरेन की तरह नहीं होते…और हम खुद भी अपनी जिंदगी से सबक ले कर आगे के लिए अपनी सोच को विकसित कर सकते हैं. माधवन तुम्हें बहुत पसंद करता है. मैं ने तुम्हारे बारे में उसे सबकुछ साफसाफ बता रखा है. उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है.’

अमृता उस रात एक पल भी नहीं सो पाई थी. मंजू मौसी व दादा की बातों ने उस के मन में हलचल मचा दी थी. एक ओर गुरुजी का फैला हुआ मनमोहक जाल था जिस की असलियत इतनी भयावह थी तो दूसरी ओर माधवन था, जिस के साथ वह नई जिंदगी शुरू कर सकती थी. वह दादा के साथ 3 साल से काम कर रहा था, दादा का सबकुछ देखा हुआ था. और सही भी है, आज नरेन ऐसा निकल गया, इस का मतलब यह तो नहीं कि सारी दुनिया के मर्द ही ऐसे होते हैं.

सही बात तो यह है कि जब वह किसी जोड़े को हंस कर बात करते देखती है तो उस के दिल में कसक पैदा हो जाती है.

फिर गुरुजी का भी क्या भरोसा… उस के मन ने उस से सवाल पूछा, आज वह उस की बातों का अंधसमर्थन क्यों करते हैं? क्या उस की सुंदरता व अकेली औरत होना तो इन बातों का कारण नहीं है? वाकई, सुंदर शरीर के अलावा उस में क्या है…जिस दिन उस की सुंदरता नहीं रही…फिर…क्या वह कांता की तरह आत्महत्या…

यह विचार आते ही अमृता पसीनापसीना हो उठी. सचमुच अभी वह क्या करने जा रही थी. अगर वह यह कदम उठा लेती तो फिर चाहे कितनी ही दुर्गति होती, क्या इस जीवन में कभी वापस आ सकती थी? उस ने निर्णय लिया कि वह अब केवल दादा की ही बात मानेगी. उसे अब इस आश्रम में नहीं रहना है. वह बस, सुबह का इंतजार करने लगी, कब सुबह हो और वह यहां से बाहर निकले.

धीरेधीरे सुबह हुई. चिडि़यों की चहचहाहट सुन कर उस की सोच को विराम लगा और वह वर्तमान में आ गई. सूरज की किरणें उजाला बन उस के जीवन में प्रवेश कर रही थीं. उस ने दादा को फोन लगाया.

‘‘दादा, मैं ने आप की बात मानने का फैसला किया है.’’

दादा खुशी से झूम कर बोले, ‘‘अमृता…मेरी बहन, मुझे विश्वास था कि तुम मेरी बात ही मानोगी. मैं तो तुम्हारे जवाब का ही इंतजार कर रहा था. मैं उस से बात करवाता हूं.’’

दादा की बात सुन कर अमृता का हृदय जोरों से धड़क उठा.

थोड़ी देर बाद…

‘‘हैलो, अमृता, मैं माधवन बोल रहा हूं. तुम्हारे इस निर्णय से हमसब बहुत खुश हैं. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम मेरे साथ बहुत खुश रहोगी. मैं तुम्हारा बहुत ध्यान रखूंगा, कम से कम इतना तो जरूर कि तुम कभी संन्यास लेने की नहीं सोचोगी.’’

अमृता, माधवन की बातों से शरमा गई. वह केवल इतना ही बोल सकी, ‘‘नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं सोचूंगी,’’ और फिर धीरे से फोन रख दिया.

इस के बाद अमृता आश्रम से निकल कर ऐसे भागी जैसे उस के पीछे ज्वालामुखी का लावा हो…

Moral Stories in Hindi : ममता का डौलर – क्या हुआ आनंदी के साथ

Moral Stories in Hindi : पलंग पर चारों ओर डौलर बिखरे हुए थे. कमरे के सारे दरवाजे व खिड़कियां बंद थीं, केवल रोशनदान से छन कर आती धूप के टुकड़े यहांवहां छितराए हुए थे. डौलर के लंबेचौड़े घेरे के बीच आनंदी बैठी थीं. उन के हाथ में एक पत्र था. न जाने कितनी बार वे यह पत्र पढ़ चुकी थीं. हर बार उन्हें लगता कि जैसे पढ़ने में कोईर् चूक हो गई है, ऐसा कैसे हो सकता है. उन का बेटा ऐसे कैसे लिख सकता है. जरूर कोई मजबूरी रही होगी उस के सामने वरना उन्हें जीजान से चाहने वाला उन का बेटा ऐसी बातें उन्हें कभी लिख ही नहीं सकता. हो सकता है उस की पत्नी ने उसे इस के लिए मजबूर किया हो.

पर जो भी वजह रही हो, सुधाकर ने जिस तरह से सब बातें लिखी थीं, उस से तो लग रहा था कि बहुत सोचसमझ कर उस ने हर बात रखी है.

कितनी बार वे रो चुकी थीं. आंसू पत्र में भी घुलमिल गए थे. दुख की अगर कोई सीमा होती है तो वे उसे भी पार कर चुकी थीं.

ताउम्र संघर्षों का सामना चुनौती की तरह करने वाली आनंदी इस समय खुद को अकेला महसूस कर रही थीं. बड़ीबड़ी मुश्किलें भी उन्हें तोड़ नहीं सकी थीं, क्योंकि तब उन के पास विश्वास का संबल था पर आज मात्र शब्दों की गहरी स्याही ने उन के विश्वास को चकनाचूर कर दिया था. बहुत हारा हुआ महसूस कर रही थीं. यह उन को मिली दूसरी गहरी चोट थी और वह भी बिना किसी कुसूर के.

हां, उन का एक बहुत बड़ा कुसूर था कि उन्होंने एक खुशहाल परिवार का सपना देखा था. उन्होंने ख्वाबों के घोंसलों में नन्हेंनन्हें सपने रखे थे और मासूम सी अपनी खुशियों का झूला अपने आंगन में डाला था. उमंगों के बीज परिवारनुमा क्यारी में डाले थे और सरसों के फूलों की पीली चूनर के साथ ही प्यार की इंद्रधनुषी कोमल पत्तियां सजा दी थीं. पर धीरेधीरे उन के सपने, उन की खुशियां, उन की पत्तियां सब बिखरती चली गईं. खुशहाल परिवार की तसवीर सिर्फ उन के मन की दीवार पर ही टंग कर रह गई. अपनी मासूम सी खुशियों का झूला जो बहुत शौक से उन्होंने अपने आंगन में डाला था, उस पर कभी बैठ झूल ही नहीं पाईं वे. हिंडोला हिलता रहता और वे मनमसोस कर रह जातीं.

शादी एक समझौता है, यह बात उन की मां ने उन की शादी होने से बहुत पहले ही समझानी शुरू कर दी थी. पर वे हमेशा सोचती थीं कि समझौता करने का तो मतलब होता है कि चाहे पसंद हो या न हो, चाहे मन माने या न माने, जिंदगी को दूसरे के हिसाब से चलने दो. फिर प्यार, एहसास, एकदूसरे के लिए सम्मान और समपर्ण की भावना कैसे पनपेगी उस बंधन में.

आनंदी को यह सोच कर भी हैरानी होती कि जब शादी एक बंधन है तो उस में कोईर् खुल कर कैसे जी सकता है. एकदूसरे को अगर खुल कर जीने ही नहीं दिया जाएगा या एक साथी, जो हमेशा पति ही होता है, दूसरे पर अपने विचार, अपनी पसंदनापसंद थोपेगा तो वह खुश कैसे रह पाएगा.

मां डांटतीं कि बेकार की बातें मत सोचा कर. इतना मंथन करने से चीजें बिगड़ जाती हैं. मां को उन्होंने हमेशा खुश ही देखा. कभी लगा ही नहीं कि वे किसी तरह का समझौता कर रही हैं. पापामम्मी का रिश्ता उन्हें बहुत सहज लगता था. फिर बड़ी दीदी और उस के बाद मंझली दीदी की शादी हुई तो उन को देख कर कभी नहीं लगा कि वे दुखी हैं. आनंदी को तब यकीन हो गया था कि उन्हें भी ऐसा ही सहज जीवन जीने का मौका मिलेगा. सारे मंथन को विराम दे, वे रंजन के साथ विवाह कर उन के घर में आ गईर् थीं.

शुरुआती दिन घोंसले का निर्माण करने के लिए तिनके एकत्र करने में फुर्र से उड़ गए, खट्टेमीठे दिन, थोड़ीबहुत चुहलबाजी, दैहिक आकर्षण और उड़ती हुई रंगबिरंगी तितलियों से बुने सपनों के साथ. समय बीता तो आनंदी को एहसास होने लगा कि रंजन और वे बिलकुल अलग हैं. रंजन रिश्ते को सचमुच बंधन बनाने में यकीन रखते हैं. खुल कर सांस लेना मुश्किल हो गया उन के लिए.

दरवाजे पर खटखट हुई तो आनंदी सोच और डौलरों के घेरे से हिलीं. अंधेरा था कमरे में. दोपहर कब की शाम की बांहों में समा गई थी. लाइट जलानी ही पड़ी उन्हें.

‘‘मांजी दूध लाया हूं. आप डेयरी पर नहीं आईं तो मैं ही देने चला आया. एकदम ताजा निकाल कर लाया हूं.’’

चुपचाप दूध ले लिया उन्होंने. वरना अन्य दिनों की तरह कहतीं, ‘बहुत पानी मिलाने लगे हो आजकल.’ जब मेरा बेटा आएगा न, तब एकदम खालिस दूध लाना या तब ज्यादा दूध देना पड़ेगा तुझे. मेरे बेटे को दूध अच्छा लगता है. बड़े शौक से पीता है.

कमरे में आईं तो रोशनी आंखों को चुभने लगी. निराशा की परतें उन के चेहरे पर फैली हुई थीं. ऐसा लग रहा था कि मात्र कुछ घंटों में ही वे 2 साल बूढ़ी हो गई हैं. उदास नजरों से उन्होंने एक बार फिर डौलरों को देखा. पलकें नम हो गईं. नहीं देखना चाहतीं वे इन डौलरों को. क्या करेंगी वे इन का. जीरो वाट का बल्ब जलाया उन्होंने. लेकिन धुंधले में भी डौलर चमक रहे थे. उन के भीतर जो पीड़ा की लपटें सुलग रही थीं, उन की रोशनी से खुद को बचाना उन के लिए ज्यादा मुश्किल था.

रंजन के साथ लड़ाई होना आम बात हो गई थी. वे कुछ फैसला लेतीं, उस से पहले ही उन्हें पता चला कि उन के अंदर एक अंकुर फूट गया है. सचमुच समझौता करने लगीं वे उस के बाद. उम्मीद भी थी कि रंजन घर में बच्चा आने के बाद सुधर जाएंगे. ऐयाशियां, दूसरी औरतों से संबंध रखना और शराब पीना शायद छोड़ दें, पर वे गलत थीं.

बच्चा आने के बाद रंजन और उग्र हो गए और बोलने लगे, बहुत कहती थी न कि चली जाएगी. अकेले बच्चे को पालना आसान नहीं. हां, वे जानती थीं इस बात को, इसलिए सहती रहीं रंजन की ज्यादतियों को.

तब मां ने समझाया, तू नौकरी करती है न, चाहे तो अलग हो जा रंजन से. हम सब तेरे साथ हैं. वह नहीं मानी. जिद थी कि समझौता करती रहेंगी. सुधाकर पर रंजन का बुरा असर न पड़े, यह सोच कर दिल पर पत्थर रख कर उसे होस्टल में डाल दिया.

उन की सारी आस, उम्मीद अब सुधाकर पर ही आ कर टिक गई थी. बस, वे चाहती थीं कि सुधाकर खूब पढे़ और रंजन के साए से दूर रहे. वैसे भी रंजन के सुधाकर को ले कर न कोई सपने थे न ही वे उस के कैरियर को ले कर परेशान थे. संभाल लेगा मेरा बिजनैस, बस वे यही कहते रहते. आनंदी नहीं चाहती थीं कि सुधाकर उन का बिजनैस संभाले जो लगभग बुरी हालत में था. उन का औफिस दोस्तों का अड्डा बन चुका था.

वे कभी समझ ही नहीं पाईं रंजन को. कोई अपने परिवार से ज्यादा दोस्तों को महत्त्व कैसे दे सकता है, कोई अपनी पत्नी व बेटे से बढ़ कर शराब को महत्त्व कैसे दे सकता है, कोई परिवार संभालने की कोशिश कैसे नहीं कर सकता. पर रंजन ऐसे ही थे. जिम्मेदारी से दूर भागते थे. कमिटमैंट तो जैसे उन के लिए शब्द बना ही नहीं था.

यह तो शुक्र था कि सुधाकर मेहनती निकला. लगातार आगे बढ़ता गया. रंजन उन दोनों को छोड़ कर किसी और औरत के पास रहने लगे. सुधाकर अकसर दुखी रहने लगा. बिखरे हुए परिवार में सपने दम न तोड़ दें, यह सोच कर आनंदी ने अपनी जमापूंजी की परवा न कर उसे विदेश भेज दिया. वे चाहती थीं कि बेटा विदेश जाए, खूब पैसा और नाम कमाए ताकि उन के जीवन की काली परछाइयों से दूर हो जाए. उसे उन के जीवन की कड़वाहट को न झेलना पड़े. पतिपत्नी के रिश्तों में आई दीवारों व अलगाव के दंश उसे न चुभें.

मां से अलग होना सुधाकर के लिए आसान न था. उस ने देखा था अपनी मां को अपने लिए तिलतिल मरते हुए, उस की खुशियों की खातिर त्याग करते हुए. वह नहीं जाना चाहता था विदेश, पर आनंदी पर जैसे जिद सवार हो गई थी. सब ने समझाया था कि ऐसा मत कर. बेटा विदेश गया तो पराया हो जाएगा. तू अकेली रह जाएगी. पर वे नहीं मानीं.

वे सुधाकर को कामयाब देखना चाहती थीं. वे उसे रंजन की परछाईं से दूर रखना चाहती थीं, मां की ममता तब शायद अंधी हो गईर् थी, इसीलिए देख ही नहीं पाईं कि बेटे को यह बात कचोट गई है.

पिता का प्यार जिसे न मिला हो और जो मां के आंचल में ही सुख तलाशता हो, जिस के मन के तार मां के मन के तारों से ही जुड़े हों, उस बेटे को अपने से दूर करने पर आनंदी खुद कितनी तड़पी थीं, यह वही जानती हैं. पर सुधाकर भी आहत हुआ था.

कितना कहा था उस ने, ‘मां, तुम मेरे बिना कैसे रहोगी. मैं यहीं पढ़ सकता हूं.’ पर वे नहीं मानीं और भेज दिया उसे आस्ट्रेलिया. फिर उसे वहीं जौब भी मिल गई. वह बारबार उन्हें बुलाता रहा कि मां अब तो आ जाओ. और वे कहती रहीं कि बस 2 साल और हैं नौकरी के, रिटायर होते ही आ जाऊंगी. वे जाने से पहले सारे लोन चुकाना चाहती थीं. बेटे पर कोई बोझ डालना तो जैसे आंनदी ने सीखा ही नहीं था. फिर विश्वास भी था कि बेटा तो उन्हीं का है. एक बार सैटल हो जाए तो कह देंगी कि आ कर सब संभाल ले. बुला लेंगी उसे वापस. कामयाबी की सीढि़यां तो चढ़ने ही लगा है वह.

नहीं आ पाया सुधाकर. जौब में उलझा तो खुद की जड़ें पराए देश में जमाने की जद्दोजेहद में लग गया. फिर उस की मुलाकात रोजलीना से हुई और उस से ही शादी भी कर ली. मां को सूचना भेज दी थी. पर इस बार आने का इसरार नहीं किया था. रोजलीना का साथ पा कर उस के बीते दिनों के जख्म भर गए थे. अपने परिवार को सींचने में वह मां के त्याग को याद रखना चाह कर भी नहीं रख पाया.

रोजलीना ने साफ कह दिया था कि वह किसी तरह की दखलंदाजी बरदाश्त नहीं कर सकती. वैसे भी वह मानती थी कि इंडियन मदर अपने बेटों को ले कर बहुत पजैसिव होती हैं, इसलिए वह नहीं चाहती थी कि आनंदी वहां उन के साथ आ कर रहें.

सुधाकर मां से यह सब नहीं कह सकता था. मां की तकलीफें अभी भी उसे कभीकभी टीस दे जाती थीं. पर अब उस की एक नई दुनिया बस गई थी और वह नहीं चाहता था कि मांपापा की तरह उस के वैवाहिक जीवन में भी कटुता की काली छाया पसरे.

रोजलीना को वह किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था. एक सुखद वैवाहिक जीवन की राह न जाने कब से उस के भीतर पलती आईर् थी. बहुत कठिन था उस के लिए मां और पत्नी में से एक को चुनना, पर मां के पास वह वापस लौट नहीं पा रहा था और पत्नी को छोड़ना नहीं चाहता था.

वैसे भी मां का उसे अपने से दूर करने की टीस भी उसे अकसर गहरी पीड़ा से भर जाती थी. पिता के प्यार से वंचित सुधाकर मां से दूर नहीं रहना चाहता था. भले ही मां ने उसे भविष्य संवारने के लिए अपने से उसे दूर किया था, पर फिर भी किया तो, अकसर वह यही सोचता. ऐसे में रोजलीना का पलड़ा भारी होना स्वाभाविक ही था.

आनंदी को लगा जैसे उन का गला सूख रहा है, पर पानी के लिए वे उठीं नहीं. रात गहरा गईर् थी. वे समझ चुकी थीं कि सुधाकर को विदेश भेजने की उन की जिद ने उन के जीवन में भी इस रात की तरह अंधेरा भर दिया है. बेटे की खुशियां चाहना क्या सच में इतना बड़ा कुसूर हो सकता है या नियति की चाल ही ऐसी होती है. शायद अकेलापन ही उन के हिस्से में आना था. वे जान चुकी थीं कि वह जा चुका है कभी न लौटने के लिए. उन्होंने एक बार और पत्र पढ़ा.

लिखा था, ‘‘मां, आई एम सौरी. मैं आप से दूर नहीं जाना चाहता था पर मुझे जाना पड़ा और अब चाह कर भी मैं स्वदेश वापस लौटने में असमर्थ हूं. आप के त्याग को कभी भुलाया नहीं जा सकता और इस बात की ग्लानि भी रहेगी कि मैं आप के प्रति कोई फर्ज न निभा सका. शायद पापा से विरासत में मुझे यह अवगुण मिला होगा. जिम्मेदारी नहीं निभा पाया, तभी तो डौलर भेज रहा हूं और आगे भी भेजता रहूंगा. पर मेरे लौटने की उम्मीद मत रखना. अब मैं इस दुनिया में बस गया हूं, यहां से बाहर आ कर फिर भारत में बसना मुमकिन नहीं है. आप भी ऐसा ही चाहती थीं न.’’

आनंदी ने डौलरों पर हाथ फेरा. पूरी ममता जिस बेटे पर लुटा दी थी, उस ने कागज के डौलर भेज उस ममता के कर्ज से मुक्ति पा ली थी.

Hindi Moral Tales : जिंदगी – मंगरू के साथ क्या हुआ

Hindi Moral Tales :  पटना का गांधी मैदान. ‘‘हां, यही तो बोला था महेंद्र ने,’’ वह ट्रेन से उतर कर बुदबुदाया. मंगरू पहली बार पटना आया था. महेंद्र ने उसे गांव में समझाया था, ‘देख मंगरू, दिनभर ठेला ले कर घूमते हुए 500 रुपए कमाते हो तुम. और यहां तो खाली घूमनेफिरने के 500 रुपए मिल रहे हैं. चायनाश्ते और खाने का भी बढि़या इंतजाम है. मतलब, जेब से कुछ खर्च नहीं, फोकट में घूमना हो जाएगा. बस, पार्टी का झंडा भर साथ में ले कर चलना है. मंत्रीजी के प्रताप से मुफ्त में रेलगाड़ी में जाना है.’

मंगरू कुछ कहता, उस से पहले महेंद्र ने उस के कान में मंत्र फूंका था, ‘लगे हाथ किशना से भी मिल लेना. सुना है, गांधी मैदान में कोई होटल खोले बैठा है.’

बात तो ठीक थी. कितने दिन से मंगरू का मन कर रहा था कि बेटे किशना से मिल आए. मगर मौका ही हाथ नहीं लग रहा था, इसलिए वह नेताजी की रैली में शामिल होने के लिए तैयार हो गया था.

गाड़ी से उतरते वक्त मंगरू ने जेब में से परची निकाल कर देखी. हां, यही तो पता दिया था किशना का. मगर टे्रन कमबख्त इतनी लेट थी कि दोपहर के बजाय रात 7 बजे पटना स्टेशन पहुंची थी. अब इस समय उसे कहां खोजेगा वह कि उस की जेब में रखा मोबाइल फोन घनघनाने लगा.

मंगरू ने लपक कर मोबाइल फोन निकाला और तकरीबन चिल्लाने वाले अंदाज में बोला, ‘‘हां बबुआ, स्टेशन पहुंच गया हूं. अब कहां जाना है?’’

‘स्टेशन से बाहर निकल कर आटोस्टैंड पर आ जाइए,’ किशना बोल रहा था, ‘वहीं से गांधी मैदान के लिए आटोरिकशा पकड़ लेना. 5 मिनट में पहुंचा देगा.’

अपना झोला, लाठी और पोटली संभाल कर मंगरू बाहर निकला. बाहर रेलवे स्टेशन दूधिया रोशनी से नहाया हुआ था. हजारोंलाखों की भीड़ इधरउधर आजा रही थी. उस ने झोले को खोल कर देखा. पार्टी का झंडा सहीसलामत था. एक जोड़ी कपड़ा, गमछा और चनेचबेने भी ठीकठाक थे. किशना की मां ने कुछ पकवान बना कर उस के लिए बांध कर रख दिए थे.

आटोरिकशा में बैठा मंगरू आंख फाड़े भागतीदौड़ती, खरीदारी करती, खातीपीती भीड़ को देखता रहा कि ड्राइवर ने उसे टोका, ‘‘आ गया गांधी मैदान. उतरिए न बाबा.’’

आटोस्टैंड की दूसरी तरफ गांधी मैदान के विशाल परिसर को उस ने नजर भर निहारा, ‘बाप रे,’ इतना बड़ा मैदान. बेटे किशना का होटल किधर होगा.’

एक बार फिर मोबाइल घनघनाया, ‘हां, आप गेट के पास ही खड़े रहिए…’ किशना बोल रहा था, ‘मैं आप को लेने वहीं आ रहा हूं.’

मंगरू मैदान के किनारे लोहे के विशाल फाटक के पास खड़ा ही था कि उसे किशना आता दिखा. उसे देख वह लपक कर उस के पास पहुंचा. पैर छूने के बाद किशना ने उसी मैदान में रखी हुई एक बैंच पर बिठा दिया.

‘‘कहां है तुम्हारा होटल?’’ अधीर सा होते हुए मंगरू बोला, ‘‘बहुत मन कर रहा है तुम्हारा होटल देखने का.’’

‘‘वह भी देख लीजिएगा,’’ किशना कुछ बुझे स्वर में बोला, ‘‘चलिए, पहले कुछ चायनाश्ता तो करवा दूं आप को.

‘‘और हां, वह रहा आप की पार्टी का पंडाल. सुना है, तकरीबन 20 लाख रुपए खर्च हुए हैं पंडाल बनाने में. भोजनपानी और रहने का अच्छा इंतजाम है.’’

एक जगह पूरीसब्जी का नाश्ता करा और चाय पिला कर किशना बोला, ‘‘अब चलिए आप को पंडाल दिखा दूं.’’

‘‘अरे, रात में तो वहीं रहना है…’’ मंगरू जोश में था, ‘‘आखिर उसी के लिए तो आया हूं. बाकी तुम्हारा गांधी मैदान बहुत बड़ा है.’’

‘‘शहर भी तो बहुत बड़ा है बाऊजी,’’ किशना बिना लागलपेट के बोला, ‘‘इस शहर में ढेरों मैदान हैं. मगर उन में रात के 10 बजे के बाद कोई नहीं रह सकता. पुलिस पहरा देती है. भगा देती है लोगों को.’’

‘‘देखो, तुम्हारी माई ने तुम्हारे खाने के लिए कुछ भेजा?है…’’ मंगरू झोले में से पोटली निकालते हुए बोला, ‘‘वह तो थोड़े चावलदाल भी दे रही थी कि लड़का कुछ दिन घर का अनाज पा लेगा. लेकिन मैं ने ही मना कर दिया कि इसे ढो कर कौन ले जाए.’’

‘‘अच्छा किया आप ने जो नहीं लाए…’’ किशना की आवाज में लड़खड़ाहट सी थी, ‘‘यह शहर है. यहां सबकुछ मिलता है. बस, खरीदने की औकात होनी चाहिए.’’

‘‘सब ठीक चल रहा है न?’’

‘‘सब ठीक चल रहा है. कमाई भी ठीकठाक हो जाती है.’’‘‘तभी तो हर महीने 2-3 हजार रुपए भेज देते हो.’’

‘‘भेजना ही है. अपना घर मजबूत रहेगा, तो हम बाहर भी मजबूत रहेंगे. जो काम मिला, वही कर रहा हूं. बाकी नौकरी कहां मिलती है.’’

‘‘अरे, यह क्या,’’ मंगरू चौंका. एक ठेले के पास 2-4 लड़के कुछकुछ काम कर रहे थे और वहां ग्राहकों की भीड़ लगी थी. एक कड़ाही में पूरी या भटूरे तल रहा था. दूसरा उन्हें प्लेटों में छोले, अचार और नमकमिर्चप्याज के साथ ग्राहकों को दे रहा था. तीसरा जूठे बरतनों को धोने में लगा था, जबकि चौथा रुपएपैसे का लेनदेन कर रहा था. इधर एक तरफ से अनेक ठेलों की लाइनें लगी हुई थीं, जिन पर इडलीडोसा, लिट्टीचोखा, चाटपकौड़े, मोमो, मैगी, अंडेआमलेट और जाने क्या कुछ बिक रहा था.

‘‘यही है हमारा होटल बाऊजी…’’ फीकी हंसी हंसते हुए किशना बोल रहा था, ‘‘ठेके के साइड में पढि़ए. लिखा

है ‘किशन छोलाभटूरा स्टौल’. इसी होटलरूपी ठेले से हम 5 जनों का पेट पल रहा है.

‘‘इतना बड़ा गांधी मैदान है. थक जाने पर यहीं कहीं आराम कर लेते हैं. और रात के वक्त चारों तरफ सूना पड़ जाने पर यह सड़क, यह जगह बहुत बड़ी दिखने लगती है. सो, कहीं भी किसी दुकान के सामने चादर बिछा कर सो जाते हैं.’’

‘‘यह भी कोई जिंदगी हुई?’’ मंगरू ने पूछा.

‘‘हां बाऊजी, यह भी जिंदगी ही है. बड़े शहरों में लाखों लोग ऐसी ही जिंदगी जीते हैं.’’

‘‘और वह तुम्हारी पढ़ाई, जिस के पीछे तुम ने पटना में रह कर 7 साल लगाए, हजारों रुपए खर्च हुए.’’

‘‘आज की पढ़ाई सिर्फ सपने दिखाती है, नौकरी या कामधंधा नहीं देती. मैं ने आप की जिंदगी को नजदीक से देखाजाना है. बस उसे अपनी जिंदगी में उतार लिया और जिंदगी आगे चल पड़ी. यही नहीं, मेरे साथ मेरे 4 साथियों की जिंदगी भी पटरी पर आ गई, नहीं तो यहां लाखों बेरोजगार घूम रहे हैं.’’

मंगरू एकटक कभी किशना को तो कभी गांधी मैदान को देखता रहा.

‘‘यह एक कार्टन है बाऊजी, जिस में आप लोगों के लिए नए कपड़े हैं. छोटे भाईबहनों के लिए खिलौने हैं. इसे साथ ले जाना.’’

थोड़ी देर के बाद किशना मंगरू को गांधी मैदान के पास लगे पार्टी के पंडाल में पहुंचा आया. वहां एक तरफ पुआल के ऊपर दरियां बिछी थीं, जिन पर हजारों लोग लेटे या बैठे हुए थे. पर मंगरू को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. वह वहीं अनमना सा लेट गया, चुपचाप.

Latest Hindi Stories: प्रेमजाल – रमन के साथ कौनसी ठगी हुई थी

Latest Hindi Stories : “पर तुम मुझे आज प्यार करने से क्यों रोक रही हो? आज तो हमारी सुहागरात है…” 45 साल के रमन ने अपनी नईनवेली बीवी तान्या से कहा.

तान्या सिर झुकाए बैठी रही तो एक बार फिर रमन ने अपने होंठों को उस की ओर बढ़ाया, तो वह पीछे हटते हुए बोली, “नहीं, यह सब अभी नहीं… मैं आप का साथ नहीं दे सकती.”

“पर क्यों?” रमन ने हैरान हो कर पूछा.

“दरअसल, मुझे अभी पीर बाबा की दरगाह पर चादर चढ़ानी है. उस से पहले मैं आप के साथ संबंध नहीं बना सकती.”

“अच्छा तो ठीक है… पर कम से कम गले तो लगा लो,” रमन ने अपनी बांहें फैलाते हुए कहा.

“जी नहीं, अभी कुछ भी नहीं,” कहते हुए तान्या हलके से शरमा गई.

रमन की पहली बीवी केतकी की मौत एक सड़क हादसे में हो गई थी और उस की 7 साल की बेटी रिंकी के सिर में काफी चोट आई थी. बेटी की जान तो बच गई, पर सिर पर चोट लगने से उस की आवाज जाती रही.

वैसे तो रमन अपनी बीवी की मौत के बाद इतना ज्यादा गमजदा हो गया था कि उसे कुछ भी होश नहीं था, पर आसपड़ोस और रिश्तेदारों ने उसे समझाया कि जो होना था हो चुका है, अब अपनेआप को संभालो. तुम्हें भले ही एक बीवी की जरूरत न हो, पर तुम्हारी बेटी को अभी भी एक मां की जरूरत है, इसलिए तुम्हें जल्द से जल्द शादी कर लेनी चाहिए.

बेटी को एक मां जरूरत है… यह बात रमन को अच्छी तरह समझ में आ गई थी, इसलिए उस ने मैट्रीमोनियल साइटों पर अपने लिए बीवी की खोज शुरू कर दी और जल्द ही उस की खोज पूरी भी हो गई जब उसे तान्या का फोन नंबर और दूसरी जानकारी एक मैट्रीमोनियल साइट पर मिली.

रमन ने तान्या से बात की और अपने बारे में बिना कुछ छिपाए सबकुछ बता दिया. तान्या ने भी रमन को अपने बारे में जो बताया वह यह था कि उस के मांबाप बचपन में ही गुजर गए थे. मामामामी ने ही उसे पालापोसा है और इस दुनिया में वह और उस का भाई मयूर ही हैं.

रमन ने तान्या के मामामामी से मिल कर रिश्ता पक्का करने की बात कही तो तान्या ने उसे बताया कि वे दोनों उस के छोटे भाई के साथ मलयेशिया घूमने गए हैं. हां, तान्या ने अपने भाई मयूर की बात रमन से वीडियो काल पर जरूर करा दी थी और तान्या की दास्तान सुन कर रमन को काफी अपनापन सा लगने लगा था.

कुछ दिनों के बाद तान्या ने भी शादी के लिए हां कर दी थी. रमन तान्या जैसी मौडर्न और खूबसूरत लड़की पा कर खुश था, क्योंकि तान्या रमन के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने वाली लड़की साबित हुई. उस ने जल्द ही रमन के बिजनैस में भी दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था और समयसमय पर बेबाकी से रमन को अपनी राय दिया करती, जिस पर रमन अमल भी करता था.

तान्या ने रमन की मदद करने के नाम पर उस के बैंक की डिटेल और खातों के बारे में जानकारी भी ले ली थी.

एक दिन तान्या ने रमन को बताया कि उस का भाई मयूर आने वाला है, इसलिए उसे मयूर को रिसीव करने बसस्टैंड जाना होगा.

तकरीबन 2 घंटे के बाद मयूर, तान्या और रमन एकसाथ बैठ कर चाय पी रहे थे. इस दौरान रमन की आंखें यह देख कर बारबार भर आ रही थीं कि अपने भाई मयूर के आने की खुशी और उस की खिदमत करने के बीच में भी तान्या उस की बेटी रिंकी का बराबर ध्यान रख रही थी.

रमन ने यह भी महसूस किया था कि तान्या और मयूर दोनों एकदूसरे की भावनाओं की काफी कद्र करते हैं और उन के मन में प्रेम और आदर का भाव भी है.

पहली पत्नी की मौत के बाद रमन ने औरत के शरीर का सुख नहीं जाना था और तान्या ने अब भी मन्नत के नाम पर रमन से शारीरिक दूरी बना रखी थी. अब यह दूरी मयूर के आ जाने से और भी ज्यादा बढ़ गई थी.

एक दिन जब रमन शाम को मयूर से मिलने उस के कमरे में गया तो रमन ने देखा कि मयूर मोबाइल फोन पर किसी लड़की से वीडियो काल कर रहा था. रमन को यह समझते देर नहीं लगी कि यह लड़की मयूर की गर्लफ्रैंड है.

रमन ने वहां से हट जाना ही उचित समझा, पर मयूर ने उसे हाथ पकड़ कर बिठा लिया.इतना ही नहीं, मयूर ने अपनी गर्लफ्रैंड से अपने जीजाजी की बात भी कराई.

वीडियो काल खत्म करने के बाद मयूर रमन से मुखातिब हुआ और पूछा, “जीजाजी, लड़की कैसी लगी?”

“बहुत सुंदर है,” रमन ने कहा.

“दरअसल, एक बात मैं दीदी से कहने में हिचक रहा हूं… मेरी गर्लफ्रैंड नमिता अभी नईनई दिल्ली में आई है और उस के पास रहने के लिए कोई अच्छी और महफूज जगह नहीं है… आप कहें तो मैं उसे यहीं ले आऊं…”

“अरे… हांहां… क्यों नहीं…” मयूर ने यह बात कुछ इस अंदाज में कही थी कि रमन उसे मना नहीं कर पाया और उस ने नमिता को घर लाने की इजाजत दे दी.

मयूर नमिता को घर ले आया था. 3 कमरों का यह मकान जहां कुछ दिनों पहले तक एक खामोशी छाई रहती थी वहां आज कितनी चहलपहल थी, यह देख कर रमन बहुत खुश था और यही खुशी उसे अपनी बेटी रिंकी के चेहरे पर भी दिखाई देती थी, जब वह नमिता के साथ खेलती थी.

नमिता, रिंकी और तान्या एक कमरे में सोते थे, जबकि मयूर और रमन दूसरे कमरे में.

घर के कामों में तो नमिता का जवाब नहीं था. वह तान्या से भी कुशल थी. चाहे रमन को शेविंग किट देनी हो या फिर गाड़ी की चाबी, हर समय नमिता ही तैयार रहती. रमन ने तान्या से कहा भी कि तुम से पहले मेरी आवाज तो नमिता सुन ही लेती है, इस पर तान्या सिर्फ मुसकरा कर रह गई.

रमन और नमिता के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं, ऐसा ही कुछ अहसास होने लगा था तान्या को.

“क्या बात है… आजकल नमिता तुम्हारे आसपास ही घूमती रहती है… कहीं कुछ दाल में काला तो नहीं है?” तान्या ने शरारती लहजे में पूछा.

“हां भई… क्यों नहीं… नमिता जैसी खूबसूरत जैसी लड़की से कौन नहीं इश्क करना चाहेगा,” बदले में रमन ने भी चुटकी ली और दोनों हंसने लगे.

एक दिन रमन औफिस में काम कर रहा था कि तान्या का फोन आया, ‘रिंकी की तबीयत अचानक खराब हो गई है, जल्दी से घर आ जाओ.’

रमन सारा कामकाज छोड़ कर जल्दी से घर पहुंचा तो उस ने देखा कि रिंकी तो आराम से नमिता के साथ बैठी खेल रही थी.

“पर मुझे तो तान्या ने फोन किया था कि रिंकी की तबीयत खराब है…” रमन ने नमिता से कहा.

“जी… और इसीलिए हम लोग रिंकी को ले कर डाक्टर को दिखा भी ले आए… एक इंजैक्शन लगा है… और तब से रिंकी को आराम भी हो गया है. दीदी और मयूर पास वाले मैडिकल स्टोर से दवा लाने गए हैं,” नमिता ने रमन को बताया, “आप थकेथके से लगते हैं… बैठिए, मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं,” यह कह कर नमिता चाय बनाने चली गई और रमन अपनी बेटी को खेलता देख कर खुश होता हुआ सोफे पर पसर गया.

नमिता चाय ले आई थी. चाय पीते ही रमन को नींद सी आने लगी और वह सोफे पर हो ढेर हो गया. वह कितनी देर सोया होगा, उसे कुछ होश नहीं था, पर जब उस की आंख खुली तो उस के शरीर के सभी कपड़े गायब थे और नमिता भी तकरीबन बिना कपड़ों के बैठी हुई रो रही थी. दूसरी तरफ मयूर बैठा हुआ था.

“यह सब क्या है नमिता?” पूछता हुआ परेशान था रमन.

“मेरी इज्जत लूटने के बाद यह सवाल करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती…” नमिता की आंखों में शोले उबल रहे थे.

“क्या मतलब है तुम्हारा?” रमन चीखा.

“मतलब साफ है जीजाजी, आप ने नमिता को अकेला पा कर उस की इज्जत लूट ली है और यह रहा इस का सुबूत,” यह कह कर मयूर ने अपना मोबाइल फोन रमन की आंखों के सामने घुमाया तो उसे देख कर रमन की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

मोबाइल फोन की तसवीरो में रमन नंगी हालत में नमिता पर छाया हुआ नजर आ रहा था. कुछ इसी तरह की और तसवीरें भी थीं, जिन से साफ हो रहा था कि नमिता का रेप रमन ने किया है.

“अब हम क्या करेंगे… किस को मुंह दिखाएंगे… मैं दीदी और रिंकी को बुला कर लाता हूं और ये तसवीरें सोशल मीडिया पर डाल देता हूं, ताकि आप की सचाई सब को पता चल सके,” गुस्से में भरा मयूर बाहर की ओर लपका, तो रमन ने मयूर को पकड़ लिया, “नहींनहीं, बाहर किसी को यह सब मत बताओ…”

पर मयूर तो गुस्से से उबाल रहा था. वह नमिता को इंसाफ दिलाने की बात करने लगा. रमन को अपनी बदनामी का डर सताने लगा था.

रमन का मन तो एक पिता का था, पर दिमाग एक बिजनैसमैन का था, इसलिए उस ने जल्दी ही मयूर से विनती की कि वह यह बात तान्या और रिंकी से न कहे और न ही तसवीरें सोशल मीडिया पर डाले.

मयूर तो इसी ताक में था. उस ने कहा कि नमिता को इस घटना से बहुत सदमा लगा है. उस का इलाज कराने के नाम पर उस ने फौरन ही 30 लाख रुपए की मांग कर दी.

“पर ये तो बहुत ज्यादा हैं?” रमन बोला.

“आप की इज्जत से ज्यादा तो नहीं…” मयूर ने कहा.

“पर वादा करो कि तसवीरें तुम तान्या को नहीं दिखाओगे…” रमन ने कहा.

“आप के सामने ही डिलीट कर देंगे और हम यहां से चले भी जाएंगे, पर पैसा मिलने के बाद,” मयूर बोला.

रमन तुरंत ही पैसों का इंतजाम करने में जुट गया और मयूर के खाते में पैसे ट्रांसफर करते ही उस से तसवीरों को डिलीट करने को कहा. मयूर ने भी उन तसवीरों को उसी के सामने डिलीट कर दिया.

हालांकि रमन के काफी पैसे इस डील में चले गए थे, फिर भी उसे चैन की सांस मिली कि कम से कम उस की बीवी और बेटी को इस कांड की भनक नहीं लगी थी.

मयूर और नमिता रमन के घर से जा चुके थे और घर की रौनक फिर से लौट आई थी. तान्या अब भी रिंकी का ध्यान रख रही थी, यह देख कर रमन को सुकून मिला था.

खाना खा कर रमन जल्दी ही सो गया था, पर रात में प्यास लगने के चलते अचानक उस की आंख खुली. रसोईघर में जाते समय उस के कानों में आवाज पड़ी. यह तान्या के हंसने की आवाज थी.

तान्या फोन पर बोल रही थी, “तुम चिंता मत करो नमिता, अभी तो सिर्फ तुम ने ही 30 लाख झटके हैं इस रमन नाम के बेवकूफ आदमी से, अभी देखो मैं भी ड्रामा फैला कर इसे और ठगती हूं. और फिर तेरे बदन की गरमी भी तो मुझे बहुत दिन से नहीं मिली है… जब तुझ से मिलूंगी तो सारी कसर निकाल लूंगी…”

ये बातें सुन कर रमन सन्न रह गया था. उसे समझते देर नहीं लगी कि वह भयंकर ठगी का शिकार हो गया है.

पर रमन के पास इन सब बातों के लिए कोई सुबूत नहीं था और अगर वह तान्या से कुछ कहता तो मामला बिगड़ सकता था, इसलिए वह मन ही मन उस से निबटने का प्लान बनाने लगा.

अगले दिन जब तान्या बाथरूम में नहाने के लिए घुसी, उसी समय रमन ने तान्या का लैपटौप खोला और उस की छानबीन करने लगा. लैपटौप को खंगालना आसान नहीं था, पर फिर भी रमन को काफी जानकारी मिल गई, जिस से यह पता चल गया कि तान्या, नमिता और मयूर का एक गैंग है, जो विधुर, बड़ी उम्र के पैसे वालों और कुंआरे लड़कों को मैट्रीमोनियल साइट पर खोज कर उन से मेलजोल बढ़ाते हैं और फिर मयूर, नमिता और तान्या ठीक उसी तरह से लोगों को भी ठगते हैं, जिस तरह से उन्होंने रमन को ठगा था.

लैपटौप पर नमिता और तान्या के कुछ ऐसे वीडियो थे, जिन से यह पता चलता था कि वे दोनों समलैंगिक हैं.

“तो इसीलिए तान्या को मेरे साथ सैक्स करने से परहेज था,” कहते हुए रमन का माथा ठनक गया था.

रमन ने इन सारी चीजों की जानकारी पुलिस को दे दी, जिस पर पुलिस ने अपनी तफतीश भी शुरू कर दी थी.

फिर अचानक एक दिन जैसे ज्वालामुखी फटने का नाटक शुरू कर दिया तान्या ने… उस ने मोबाइल फोन पर रमन और नमिता की वही तसवीरें रमन को दिखाईं और बोली, “आप जैसे मर्द, जो दूसरी लड़कियों को देख कर लार गिराते हैं, को मैं अच्छी तरह जानती हूं… रेप कर दिया आप ने इस बेचारी का, तभी तो मयूर और नमिता रातोंरात मुझ से बिना मिले ही चले गए.”

“क्या होगा अगर रिंकी को यह सब पता चल जाए तो? मुझे आज ही तुम से तलाक चाहिए,” तान्या की आवाज ऊंची होती जा रही थी.

“रिंकी को कुछ मत बताना, नहीं तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी… मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा,” रमन ने गिड़गिड़ाने की ऐक्टिंग की.

“ठीक है. मैं अपने वकील से तुम्हारी बात कराती हूं. वह तुम्हें तलाक का सारा खर्चा बता देगा,” यह कह कर तान्या ने अपने वकील का नंबर डायल किया.

वकील ने रमन को समझाया कि अपनी बीवी को तलाक देने में उस का बहुत पैसा खर्च हो जाएगा, क्योंकि सारे सुबूत रमन के खिलाफ हैं और फिर गुजारा भत्ता भी देना होगा, इसलिए बेहतर है कि वह कोर्ट के बाहर ही तान्या से समझौता कर ले.

वकील की आवाज सुन कर रमन यह जान गया था कि फोन पर कोई वकील नहीं, बल्कि अपनी आवाज को बदल कर मयूर ही बोल रहा था.

रमन ने तान्या से कोर्ट के बाहर समझौता करने की बात कही तो तान्या ने पूरे 5 लाख रुपए ले कर मामला रफादफा करने की बात कर दी.

“ठीक है. तुम मुझे आजाद कर दो, मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दे दूंगा… पर रिंकी को कुछ मत बताना,” रमन ने कहा.

रमन कमरे में आ कर सोने का नाटक करने लगा, पर नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. वह किसी भी तरह से इस गैंग का परदाफाश करना चाहता था, पर इस शातिर गैंग से कैसे पार पाना है, इसी के तानेबाने में रमन रातभर डूबा रहा.

अगली सुबह रमन ने तान्या को अपने साथ बाहर चलने को कहा और सीधा आर्य समाज मंदिर ले आया, जहां पर नमिता एक लड़के के साथ शादी रचाने जा रही थी. रमन ने तान्या का हाथ मजबूती से पकड़ा हुआ था, ताकि वह वहां से भाग न सके.

“अरे दोस्त, इस दुलहन से तुम किसी मैट्रोमोनियल साइट पर मिले होगे?” रमन ने दूल्हे से सीधा सवाल किया.

“पर आप कौन हैं और ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?” उस लड़के ने पूछा.

“मैं कौन हूं, यह खास बात नहीं है, बल्कि इस समय तुम्हारा यह जानना जरूरी है कि तुम इस समय एक ठग दुलहन के गैंग के शिकंजे में फंसने वाले हो…” कहते हुए रमन ने आपबीती सुनानी शुरू कर दी, “ये लड़कियां, जो असल में लैस्बियन हैं, इस मयूर नाम के लड़के के साथ मिल कर मैट्रीमोनियल साइट पर मौजूद मर्दों से शादी कर के उन्हें अपना शिकार बनाती हैं, पति पर रेप करने का आरोप लगाती हैं, उसे बेहोश कर के उस का फर्जी वीडियो बना कर ब्लैकमेल करती हैं…” रमन बोले जा रहा था, जबकि अपनी पोल खुलते देख कर मयूर, तान्या और नमिता ने वहां से भागने की कोशिश की.

रमन द्वारा बुलाए जाने के चलते वहां पहले से ही मौजूद पुलिस ने उन तीनों को गिरफ्तार कर लिया और कड़ाई से पूछताछ में उन्होंने अपना गुनाह भी कुबूल कर लिया.

इस घटना से रमन को इतना तगड़ा झटका लगा कि उस ने फिर से शादी न करने की कसम खाई और अपनी बेटी रिंकी का खुद ही ध्यान रखने का फैसला किया.

रमन ने अपने साथ हुई ठगी को सोशल मीडिया और लोकल अखबारों में भी छपवाया, ताकि लोग ठगी और ब्लैकमेलिंग के इस तरह के फर्जी प्रेमजाल से बच सकें.

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