Long Story: नादानियां- प्रथमा और राकेश के बीच ऐसा क्या हुआ

Long Story: प्रथमा की शादी को 3 साल हो गए हैं. कितने अरमानों से उस ने रितेश की जीवनसंगिनी बन कर इस घर में पहला कदम रखा था. रितेश से जब उस की शादी की बात चल रही थी तो वह उस की फोटो पर ही रीझ गई थी. मांपिताजी भी संतुष्ट थे क्योंकि रितेश 2 बहनों का इकलौता भाई था और दोनों बहनें शादी के बाद अपनेअपने घरपरिवार में रचीबसी थीं. सासससुर भी पढ़ेलिखे व सुलझे विचारों के थे.

शादी से पहले जब रितेश उसे फोन करता था तो उन की बातों में उस की मां यानी प्रथमा की होने वाली सास एक अहम हिस्सा होती थी. प्रथमा प्रेमभरी बातें और होने वाले पति के मुंह से खुद की तारीफ सुनने के लिए तरसती रह जाती थी और रितेश था कि बस, मां के ही गुणगान करता रहता. उसी बातचीत के आधार पर प्रथमा ने अनुमान लगा लिया था कि रितेश के जीवन में उस की मां का पहला स्थान है और उसे पति के दिल में जगह बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.

शादी के बाद हनीमून की योजना बनाते समय रितेश बारबार हरिद्वार, ऋ षिकेश, मसूरी जाने का प्लान ही बनाता रहा. आखिरी समय तक वह अपनी मम्मीपापा से साथ चलने की जिद करता रहा. प्रथमा इस नई और अनोखी जिद पर हैरान थी क्योंकि उस ने तो यही पढ़ा व सुना था कि हनीमून पर पतिपत्नी इसलिए जाते हैं ताकि वे ज्यादा से ज्यादा वक्त एकदूसरे के साथ बिता सकें और उन की आपसी समझ मजबूत हो. मगर यहां तो उलटी गंगा बह रही है. मां के साथ तीर्थ पर ही जाना था तो इसे हनीमून का नाम देने की क्या जरूरत है. खैर, ससुरजी ने समझदारी दिखाई और उन्हें हनीमून पर अकेले ही भेजा.

स्मार्ट और हैंडसम रितेश का फ्रैंडसर्किल बहुत बड़ा है. शाम को औफिस से घर आते ही जहां प्रथमा की इच्छा होती कि वह पति के साथ बैठ कर आने वाले कल के सपने बुने, उस के साथ घूमनेफिरने जाए, वहीं रितेश अपनी मां के साथ बैठ कर गप मारता और फिर वहां से दोस्तों के पास चला जाता. प्रथमा से जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं था. रात लगभग 9 बजे लौटने के बाद खाना खा कर वह सो जाता. हां, हर रात वह सोने से पहले प्रथमा को प्यार जरूर करता था. प्रथमा का कोमल हृदय इस बात से आहत हो उठता, उसे लगता जैसे पति ने उसे सिर्फ अपने बिस्तर में ही जगह दी है, दिल में नहीं.

वह केवल उस की आवश्यकतापूर्ति का साधन मात्र है. ऐसा नहीं है कि उस की सास पुरानी फिल्मों वाली ललिता पंवार की भूमिका में है या फिर वह रितेश को उस के पास आने से रोकती है, बल्कि वह तो स्वयं कई बार रितेश से उसे फिल्म, मेले या फिर होटल जाने के लिए कहती. रितेश उसे ले कर भी जाता है मगर उन के साथ उस की मां यानी प्रथमा की सास जरूर होती है. प्रथमा मन मसोस कर रह जाती, मगर सास को मना भी कैसे करे. जब पति खुद चाहता है कि मां उन के साथ रहे तो फिर वह कौन होती है उन्हें टोकने वाली.

कई बार तो उसे लगता कि पति के दिल में उस का एकछत्र राज कभी नहीं हो सकता. वह उस के दिल की रानी सास के रहते तो नहीं बन सकती. उस की टीस तब और भी बढ़ जाती है जब उस की बहन अपने पति के प्यार व दीवानगी के किस्से बढ़ाचढ़ा कर उसे बताती कि कैसे उस के पति अपनी मां को चकमा दे कर और बहाने बना कर उसे फिल्म दिखाने ले जाते हैं, कैसे वे दोनों चांदनी रातों में सड़कों पर आवारगी करते घूमते हैं और चाटपकौड़ी, आइसक्रीम का मजा लेते हैं. प्रथमा सिर्फ आह भर कर रह जाती. हां, उस के ससुर उस के दर्द को समझने लगे थे और कभी बेकार में चाय बनवा कर, पास बैठा कर इधरउधर की बातें करते तो कभी टीवी पर आ रही फिल्म को देखने के लिए उस से अनुरोध करते.

दिन गुजरते रहे, वह सब्र करती रही. लेकिन जब बात सिर से गुजरने लगी तो उस ने एक नया फैसला कर लिया अपनी जीवनशैली को बदलने का. प्रथमा को मालूम था कि राकेश मेहरा यानी उस के ससुरजी को चाय के साथ प्याज के पकौड़े बहुत पसंद हैं, हर रोज वह शाम की चाय के साथ रितेश की पसंद के दूसरे स्नैक्स बनाती रही है और कभीकभी रितेश के कहने पर सासूमां की पसंद के भी. मगर आज उस ने प्याज के पकौड़े बनाए. पकौड़े देखते ही राकेश के चेहरे पर लुभावनी सी मुसकान तैर गई.

प्रथमा ने आज पहली बार गौर से अपने ससुरजी को देखा. राकेश की उम्र लगभग 55 वर्ष थी, मगर दिखने में बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व है उन का. रितेश अपने पापा पर ही गया है, यह सोच कर प्रथमा के दिल में गुदगुदी सी हो गई.

राकेश ने जीभर कर पकौड़ों की तारीफ की और प्रथमा से बड़े ही नाटकीय अंदाज में कहा, ‘‘मोगाम्बो खुश हुआ. अपनी एक इच्छा बताओ, बच्ची. कहो, क्या चाहती हो?’’ प्रथमा खिल उठी. फिलहाल तो उस ने कुछ नहीं मांगा मगर आगे की रणनीति मन ही मन तय कर ली. 2 दिनों बाद उस ने राकेश से कहा, ‘‘आज यह बच्ची आप से आप का दिया हुआ वादा पूरा करने की गुजारिश करती है. क्या आप मुझे कार चलाना सिखाएंगे?’’

‘‘क्यों नहीं, अवश्य सिखाएंगे बालिके,’’ राकेश ने कहा. जब वे बहुत खुश होते हैं तो इसी तरह नाटकीय अंदाज में बात करते हैं. अब हर शाम औफिस से आ कर चायनाश्ता करने के बाद राकेश प्रथमा को कार चलाना सिखाने लगा. जब राकेश उसे क्लच, गियर, रेस और ब्रेक के बारे में जानकारी देता तो प्रथमा बड़े मनोयोग से सुनती. कभीकभी घुमावदार रास्तों पर कार को टर्न लेते समय स्टीयरिंग पर दोनों के हाथ आपस में टकरा जाते. राकेश ने इसे सामान्य प्रक्रिया समझते हुए कभी इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया मगर प्रथमा के गाल लाल हो उठते थे.

लगभग महीनेभर की प्रैक्टिस के बाद प्रथमा ठीकठाक कार चलाने लगी थी. एक दिन उस ने भी राकेश के ही अंदाज में कहा, ‘‘जहांपनाह, कनीज आप को गुरुदक्षिणा देने की चाह रखती है.’’ ‘‘हमारी दक्षिणा बहुत महंगी है बालिके,’’ राकेश ने भी उसी अंदाज

में कहा. ‘‘हमें सब मंजूर है, गुरुजी,’’ प्रथमा ने अदब से झुक कर कहा तो राकेश को हंसी आ गई और यह तय हुआ कि आने वाले रविवार को सब लोग चाट खाने बाहर जाएंगे.

चूंकि ट्रीट प्रथमा के कार चलाना सीखने के उपलक्ष्य में थी, इसलिए आज कार वही चला रही थी. रितेश अपनी मां के साथ पीछे वाली सीट पर और राकेश उस की बगल में बैठा था. आज प्रथमा को गुडफील हो रहा था. चाट खाते समय जब रितेश अपनी मां को मनुहार करकर के गोलगप्पे खिला रहा था तो प्रथमा को बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा था बल्कि वह तो राकेश के साथ ही ठेले पर आलूटिकिया के मजे ले रही थी. दोनों एक ही प्लेट में खा रहे थे. अचानक मुंह में तेज मिर्च आ जाने से प्रथमा सीसी करने लगी तो राकेश तुरंत भाग कर उस के लिए बर्फ का गोला ले आया. थोड़ा सा चूसने के बाद जब उस ने गोला राकेश की तरफ बढ़ाया तो राकेश ने बिना हिचक उस के हाथ से ले कर गोला चूसना शुरू कर दिया. न जाने क्या सोच कर प्रथमा के गाल दहक उठे. आज उसे लग रहा था मानो उस ने अपने मिशन में कामयाबी की पहली सीढ़ी पार कर ली.

इस रविवार राकेश को अपने रूटीन हैल्थ चैकअप के लिए जाना था. रितेश औफिस के काम से शहर से बाहर टूर पर गया है. राकेश ने डाक्टर से अगले हफ्ते का अपौइंटमैंट लेने की बात कही तो प्रथमा ने कहा, ‘‘रितेश नहीं है तो क्या हुआ? मैं हूं न. मैं चलूंगी आप के साथ. हैल्थ के मामले में कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए.’’ दोनों ससुरबहू फिक्स टाइम पर क्लिनिक पहुंच गए. वहां आज ज्यादा पेशेंट नहीं थे, इसलिए वे जल्दी फ्री हो गए. वापसी में घर लौटते हुए प्रथमा ने कार मल्टीप्लैक्स की तरफ घुमा दी. तो राकेश ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कुछ काम है क्या यहां?’’

‘‘जी हां, काम ही समझ लीजिए. बहुत दिनों से कोई फिल्म नहीं देखी थी. रितेश को तो मेरे लिए टाइम नहीं है. एक बहुत ही अच्छी फिल्म लगी है, सोचा आज आप के साथ ही देख ली जाए,’’ प्रथमा ने गाड़ी पार्किंग में लगाते हुए कहा. राकेश को उस के साथ यों फिल्म देखना कुछ अजीब सा तो लग रहा था मगर उसे प्रथमा का दिल तोड़ना भी ठीक नहीं लगा, इसलिए फिल्म देखने को राजी हो गया. सोचा, ‘सोचा बच्ची है, इस का भी मन करता होगा…’

प्रथमा की बगल में बैठा राकेश बहुत ही असहज सा महसूस कर रहा था, क्योंकि बारबार सीट के हत्थे पर दोनों के हाथ टकरा रहे थे. उस से भी ज्यादा अजीब उसे तब लगा जब उस के हाथ पर रखा अपना हाथ हटाने में प्रथमा ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई बल्कि बहुत ही सामान्य भाव से फिल्म का मजा लेती रही. उन्होंने ही धीरे से अपना हाथ हटा लिया. ऐसा ही एक वाकेआ उस दिन भी हुआ जब प्रथमा उसे पिज्जा हट ले कर गई थी. दरअसल, उन की बड़ी बेटी पारुल की ससुराल घर से कुछ ही दूरी पर है. पिछले दिनों पारुल के ससुरजी ने अपनी आंख का औपरेशन करवाया था.

आज शाम राकेश को उन से मिलने जाना था. प्रथमा ने पूछा, ‘‘मैं भी आप के साथ चलूं? इस बहाने शहर में मेरी कार चलाने की प्रैक्टिस भी हो जाएगी.’’ सास से अनुमति मिलते ही प्रथमा कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ कर राकेश के साथ चल दी. वापसी में उस ने कहा, ‘‘चलिए, आज आप को पिज्जा हट ले कर चलती हूं.’’

‘‘अरे नहीं, तुम तो जानती हो कि मुझे पिज्जा पसंद नहीं,’’ राकेश ने टालने के अंदाज में कहा. ‘‘आप से पिज्जा खाने को कौन कह रहा है. वह तो मुझे खाना है. आप तो बस पेमैंट कर देना,’’ प्रथमा ने अदा से मुसकराते हुए कहा. न चाहते हुए भी राकेश को गाड़ी से उतरना ही पड़ा. पास आते ही प्रथमा ने अधिकार से उस की बांहों में बांहें डाल कर जब कहा, ‘‘दैट्स लाइक अ परफैक्ट कपल,’’ तो राकेश से मुसकराते भी नहीं बना.

पिज्जा खातेखाते प्रथमा बीचबीच में उसे भी आग्रह कर के खिला रही थी. मना करने पर भी जबरदस्ती मुंह में ठूंस देती. राकेश समझ नहीं पा रहा था कि उस के साथ क्या हो रहा है. वह प्रथमा की इस हरकत को उस का बचपना समझ कर नजरअंदाज करता रहा. प्रथमा कुछ और जिद करे, इस से पहले ही वह रितेश का फोन आने का बहाना बना कर उसे घर ले आया.

‘‘यह देखिए. मैं आप के लिए क्या ले कर आई हूं,’’ प्रथमा ने एक दिन राकेश को एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा. ‘‘क्या है यह?’’ राकेश ने उसे उलटपलट कर देखा.

‘‘यह है ज्ञान का खजाना यानी बुक्स. आज से हम दोनों साथसाथ पढ़ेंगे,’’ प्रथमा ने नाटकीय अंदाज में कहा. वह जानती थी कि नौवेल्स पढ़ना राकेश की कमजोरी है. राकेश ने एक छोटी सी लाइब्रेरी भी घर में बना रखी थी और सब को सख्त हिदायत थी कि जब वह लाइब्रेरी में हो तो कोई भी उसे डिस्टर्ब न करे. मगर अब प्रथमा का भी दखल उस में होने लगा था. शाम का वह समय जो वे दोनों कार चलाना सीखने को जाया करते थे, अब बंद लाइब्रेरी में किताबों को देने लगे. राकेश ने जब प्रथमा के लाए नौवेल्स को पढ़ना शुरू किया तो उसे महसूस हुआ कि इन में लगभग सभी नौवेल्स में एक बात कौमन थी.

वह यह कि सभी में घुमाफिरा कर विवाहेतर संबंधों की वकालत की गई थी. विभिन्न परिस्थितियों में नजदीकी रिश्तों में बनने वाले इन ऐक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशन को अपराध या आत्मग्लानि की श्रेणी से बाहर रखा गया था. एक दिन तो राकेश से कुछ भी कहते नहीं बना जब प्रथमा ने ऐसे ही एक किराएदार का उदाहरण दे कर उस से पूछा जिस के अजीबोगरीब हालात में अपनी बहू से अंतरंग संबंध बन गए थे, ‘‘मुझे लगता है इस का फैसला गलत नहीं था. आप इस की जगह होते तो क्या करते?’’

राकेश का माथा ठनका. अब उस ने प्रथमा की बचकानी हरकतों पर गौर करना शुरू किया. उसे दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगी. उसे याद आया कि बातबात पर ‘पापा’ कहने वाली प्रथमा आजकल उस से बिना किसी संबोधन के ही बात करती है. उस की उम्र का अनुभव उसे चेता रहा था कि प्रथमा उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश कर रही है मगर उस के घर का संस्कारी माहौल इस की बगावत कर रहा था, वह ऐसी किसी भी संभावना के खिलाफ था.

इस कशमकश से बाहर निकलने के लिए राकेश ने एक रिस्क लेने की ठानी. वह अपने तजरबे को परखना चाहता था. प्रथमा की मानसिकता को परखना चाहता था. जल्द ही उसे ऐसा एक मौका भी मिल गया. साल अपनी समाप्ति पर था. हर जगह न्यू ईयर सैलिब्रेशन की तैयारियां चल रही थीं. रितेश को उस के एक इवैंट मैनेजर दोस्त ने न्यू ईयर कार्निवाल का एक कपल पास दिया. ऐन मौके पर रितेश का जाना कैंसिल हो गया तो प्रथमा ने राकेश से जिद की, ‘‘चलिए न. हम दोनों चलते हैं.’’ राकेश को अटपटा तो लगा मगर वह इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था, इसलिए उस के साथ जाने के लिए तैयार हो गया.

पार्टी में प्रथमा के जिद करने पर वह डांसफ्लोर पर भी चला गया. जैसा कि उस का अनुभव कह रहा था, प्रथमा उस से एकदम चिपक कर डीजे की तेज धुन पर थिरक रही थी. कभी अचानक उस की बांहों में झूल जाती तो कभी अपना चेहरा बिलकुल उस के पास ले आती. अब राकेश का शक यकीन में बदल गया. वह समझ गया कि यह उस का वहम नहीं है बल्कि प्रथमा अपने पूरे होशोहवास में यह सब कर रही है.

मगर क्यों? क्या यह अपने पति यानी रितेश के साथ खुश नहीं है? क्या इन के बीच सबकुछ ठीक नहीं है? प्रथमा जनून में अपनी हदें पार कर के कोई सीन क्रिएट करे, इस से पहले ही वह उसे अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वहां से वापस ले आया. राकेश को रातभर नींद नहीं आई. पिछले दिनों की घटनाएं उस की आंखों में चलचित्र की तरह गुजरने लगीं.

रितेश का अपनी मां से अत्यधिक लगाव ही प्रथमा के इस व्यवहार की मूल जड़ था. नवविवाहिता पत्नी को छोड़ कर उस का अपनी मां के पल्लू से चिपके रहना एक तरह से प्रथमा के वजूद को चुनौती थी. उसे लग रहा था कि उस का रूप और यौवन पति को बांधने में नाकामयाब हो रहा है. ऐसे में इस नादान बच्ची ने यह रास्ता चुना. शायद उस का अवचेतन मन रितेश को जताना चाहता था कि उस के लावण्य में कोई कमी नहीं है. वह किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है.

बेचारी बच्ची, इतने दिनों तक कितनी मानसिक असुरक्षा से जूझती रही. रितेश को तो शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा कि उस का मम्मीप्रेम क्या गुल खिला रहा है. और वह भी तो इस द्वंद्व को कहां समझ सका…या फिर शायद प्रथमा मुझ पर डोरे डाल कर अपनी सास को कमतरी का एहसास कराना चाहती है. ‘कारण जो भी हो, मुझे प्रथमा को इस रास्ते से वापस मोड़ना ही होगा,’ राकेश का मन उस के लिए द्रवित हो उठा. उस ने मन ही मन आगे की कार्ययोजना तय कर ली और ऐसा होते ही उस की आंखें अपनेआप मुंदने लगीं और वह नींद की आगोश में चला गया.

अगले दिन राकेश ने औफिस से आते ही पत्नी के पास बैठना शुरू कर दिया और चाय उस के साथ ही पीने लगा. वह रितेश को किसी न किसी बहाने से उस की चाय ले कर प्रथमा के पास भेज देता ताकि वे दोनों कुछ देर आपस में बात कर सकें. चाय पी कर राकेश पत्नी को ले कर पास के पार्क में चला जाता. जाने से पहले रितेश को हिदायत दे कर जाता कि वह दोस्तों के पास जाने से पहले प्रथमा के साथ कम से कम 1 घंटे बैठे.

शुरूशुरू में तो प्रथमा और रितेश को इस फरमान से घुटन सी हुई क्योंकि दोनों को ही एकदूसरे की आदत अभी नहीं पड़ी थी मगर कुछ ही दिनों में उन्हें एकदूसरे का साथ भाने लगा. कई बार राकेश दोनों को अकेले सिनेमा या फिर होटल भी भेज देता था. हां, पत्नी को अपने साथ घर पर ही रोके रखता. एकदो बार रितेश ने साथ चलने की जिद भी की मगर राकेश ने हर बार यह कह कर टाल दिया कि अब इस उम्र में बाहर का खाना उन्हें सूट नहीं करता. राकेश ने महसूस किया कि अब रितेश भी प्रथमा के साथ अकेले बाहर जाने के मौके तलाशने लगा है यानी उस की योजना सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

हनीमून के बाद रितेश कभी प्रथमा को मायके के अलावा शहर से बाहर घुमाने नहीं ले गया. इस बार उन की शादी की सालगिरह पर राकेश ने जब उन्हें 15 दिनों के साउथ इंडिया ट्रिप का सरप्राइज दिया तो रितेश ने जाने से मना का दिया, कहा, ‘‘हम दोनों के बिना आप इतने दिन अकेले कैसे रहेंगे? आप के खाने की व्यवस्था कैसे होगी? नहीं, हम कहीं नहीं जाएंगे और अगर जाना ही है तो सब साथ जाएंगे.’’ ‘‘अरे भई, मैं तो तुम दोनों को इसलिए भेज रहा हूं ताकि कुछ दिन हमें एकांत मिल सके. मगर तुम हो कि मेरे इशारे को समझ ही नहीं रहे.’’ राकेश ने अपने पुराने नाटकीय अंदाज में कहा तो रितेश की हंसी छूट गई. उस ने हंसते हुए प्रथमा से चलने के लिए पैकिंग करने को कहा और खुद भी उस की मदद करने लगा.

15 दिनों बाद जब बेटाबहू लौट कर आए तो दोनों के ही चेहरों पर असीम संतुष्टि के भाव देख कर राकेश ने राहत की सांस ली. दोनों उस के चरणस्पर्श करने को झुके तो उन्होंने बच्चों को बांहों में समेट लिया. प्रथमा ने आज न जाने कितने दिनों बाद उसे फिर से ‘पापा’ कह कर संबोधित किया था. राकेश खुश था कि उस ने राह भटकती एक नादान को सही रास्ता दिखा दिया और खुद भी आत्मग्लानि से बच गया.

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Family Kahani: पहेली- क्या ससुराल में शिखा को प्रताड़ित किया जाता था

Family Kahani: मैं शनिवार की शाम औफिस से ही एक रात मायके में रुकने आ गई. सीमा दीदी भी 2 दिनों के लिए आई हुई थी. सोचा सब से जी भर कर बातें करूंगी पर मेरे पहुंचने के घंटे भर बाद ही रवि का फोन आ गया.

मैं बाथरूम में थी, इसलिए मम्मी ने उन से बातें करीं.

‘‘रवि ने फोन कर के बताया है कि तेरी सास को बुखार आ गया है,’’ कुछ देर बाद मुझे यह जानकारी देते हुए मां साफतौर पर नाराज नजर आ रही थीं.

मैं फौरन तमतमाती हुई बोली, ‘‘अभी मुझे यहां पहुंचे 1 घंटा भी नहीं हुआ है कि बुलावा आ गया. सासूमां को मेरी 1 दिन की आजादी बरदाश्त नहीं हुई और बुखार चढ़ा बैठीं.’’

‘‘क्या पता बुखार आया भी है या नहीं,’’ सीमा दीदी ने बुरा सा मुंह बनाते हुए अपने मन की बात कही.

‘‘मैं ने जब आज सुबह सासूमां से यहां 1 रात रुकने की इजाजत मांगी थी, तभी उन का मुंह फूल गया था. दीदी तुम्हारी मौज है, जो सासससुर के झंझटों से दूर अलग रह रही हो,’’ मेरा मूड पलपल खराब होता जा रहा था.

‘‘अगर तुझे इन झंझटों से बचना है, तो तू अपनी सास को अपनी जेठानी के पास भेजने की जिद पर अड़ जा,’’ सीमा दीदी ने वही सलाह दोहरा दी, जिसे वे मेरी शादी के महीने भर बाद से देती आ रही हैं.

‘‘मेरी तेजतर्रार जेठानी के पास न सासूमां जाने को राजी हैं और न बेटा भेजने को. तुम्हें तो पता ही है पिछले महीने सास को जेठानी के पास भेजने को मेरी जिद से खफा हो कर रवि ने मुझे तलाक देने की धमकी दे दी थी. अपनी मां के सामने उन की नजरों में मेरी कोई वैल्यू नहीं है, दीदी.’’

‘‘तू रवि की तलाक देने की धमकियों से मत डर, क्योंकि हम सब को साफ दिखाई देता है कि रवि तुझ पर जान छिड़कता है.’’

‘‘सीमा ठीक कह रही है. तुझे रवि को किसी भी तरह से मनाना होगा. तेरी सास को दोनों बहुओं के पास बराबरबराबर रहना चाहिए,’’ मां ने दीदी की बात का समर्थन किया.

मैं ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘मां, फिलहाल मुझे वापस जाना होगा.’’

‘‘पागलों जैसी बात न कर,’’ मां भड़क उठीं, ‘‘तू जब इतने दिनों बाद सिर्फ 1 दिन को बाहर निकली है, तो यहां पूरा आराम कर के जा.’’

‘‘मां, मेरी जिंदगी में आराम करना कहां लिखा है? मुझे वापस जाना ही पड़ेगा,’’ कह अपना बैग उठा कर मैं ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

‘‘शिखा, तू इतना डर क्यों रही है? देख, रवि ने तेरे फौरन वापस आने की बात एक बार भी मां से नहीं कही है,’’ दीदी ने मुझे रोकने को समझाने की कोशिश शुरू की.

‘‘दीदी, अगर मैं नहीं गई, तो इन का मूड बहुत खराब हो जाएगा. तुम तो जानती ही हो कि ये कितने गुस्से वाले इनसान हैं.’’

उन सब का समझाना बेकार गया और करीब घंटे भर बाद मुझे दीदी व जीजाजी कार से वापस छोड़ गए. अपनी नाराजगी दर्शाने के लिए दोनों अंदर नहीं आए.

मुझे अचानक घर आया देख रवि चौंकते हुए बोले, ‘‘अरे, तुम वापस क्यों आ गई हो?

मैं ने तुम्हें बुलाने के लिए थोड़े ही फोन किया था.’’

मेरे लौट आने से उन की आंखों में पैदा हुई खुशी की चमक को नजरअंदाज करते हुए मैं ने शिकायत की, मुझे 1 दिन भी आप ने चैन से अपने मम्मीपापा के घर नहीं रहने दिया. क्या 1 रात के लिए आप अपनी बीमार मां की देखभाल नहीं कर सकते थे?

‘‘सच कह रहा हूं कि मैं ने तुम्हारी मम्मी से तुम्हें वापस भेजने को नहीं कहा था.’’

‘‘वापस बुलाना नहीं था, तो फोन क्यों किया?’’

‘‘फोन तुम्हें सूचना देने के लिए किया था, स्वीटहार्ट.’’

‘‘क्या सूचना कल सुबह नहीं दी जा सकती थी?’’ मेरे सवाल का उन से कोई जवाब देते नहीं बना.

उन के आगे बोलने का इंतजार किए बिना मैं सासूमां के कमरे की तरफ चल दी.

सासूमां के कमरे में घुसते ही मैं ने तीखी आवाज में उन से एक ही सांस में कई सवाल पूछ डाले, ‘‘मम्मीजी, मौसमी बुखार से इतना डरने की क्या जरूरत है? क्या 1 रात के लिए आप अपने बेटे से सेवा नहीं करा सकती थीं? मुझे बुलाने को क्यों फोन कराया आप ने?’’

‘‘मैं ने एक बार भी रवि से नहीं कहा कि तुझे फोन कर के बुला ले. इस मामले में मेरे ऊपर चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं है, बहू,’’ सासूमां फौरन मुझ से भिड़ने को तैयार हो गईं.

‘‘इन के लिए तो मैं खाना साथ लाई हूं. आप ने क्या खाया है? मैं सुबह जो दाल बना कर…’’

‘‘मेरा मन कोई दालवाल खाने का नहीं कर रहा है,’’ उन्होंने नाराज लहजे में जवाब दिया.

‘‘तो बाजार से टिक्की या छोलेभठूरे मंगवा दूं?’’

‘‘बेकार की बातें कर के तू मेरा दिमाग मत खराब कर, बहू.’’

‘‘सच में मेरा दिमाग खराब है, जो आप की बीमारी की खबर मिलते ही यहां भागी चली आई. जिस इनसान के पास इतनी जोर से चिल्लाने और लड़ने की ऐनर्जी है, वह बीमार हो ही नहीं सकता है,’’ मैं ने उन के माथे पर हाथ रखा तो मन ही मन चौंक पड़ी, क्योंकि मुझे महसूस हुआ मानो गरम तवे पर हाथ रख दिया हो.

‘‘तू मुझे और ज्यादा तंग करने के लिए आई है क्या? देख, मेरे ऊपर किसी तरह का एहसान चढ़ाने की कोशिश मत कर.’’

उन की तरफ से पूरा ध्यान हटा कर मैं रवि से बोली, ‘‘आप खड़ेखड़े हमें ताड़ क्यों रहे हो? गीली पट्टी क्यों नहीं रखते हो मम्मीजी के माथे पर? इन्हें तेज बुखार है.’’

‘‘मैं अभी गीली पट्टी रखता हूं,’’ कह वे हड़बड़ाए से रसोई की तरफ चले गए.

‘‘मैं आप के लिए मूंग की दाल की खिचड़ी बनाने जा रही….’’

‘‘मैं कुछ नहीं खाऊंगी. मेरे लिए तुझे कष्ट करने की जरूरत नहीं है,’’ वे नाराज ही बनी रहीं.

मैं भी फौरन भड़क उठी, ‘‘आप को भी मुझे ज्यादा तंग करने की जरूरत नहीं है. पता नहीं मैं क्यों आप के इतने नखरे उठाती हूं? बड़े भाईसाहब के पास जा कर रहने में पता नहीं आप को क्या परेशानी होती है?’’

‘‘तू एक बार फिर कान खोल कर सुन ले कि यह मेरा घर है और मैं हमेशा यहीं रहूंगी. तुझ से मेरे काम न होते हों, तो मत किया कर.’’

‘‘बेकार की चखचख से मेरा समय बरबाद करने के बजाय यह बताओ कि क्या चाय पीएंगी?’’ मैं ने अपने माथे पर यों हाथ मारा मानो बहुत तंग हो गई हूं.

‘‘तू मेरे साथ ढंग से क्यों नहीं बोलती है, बहू?’’ यह सवाल उन्होंने कुछ धीमी आवाज में पूछा.

‘‘अब मैं ने क्या गलत कहा है?’’

‘‘तू चाय पीने को पूछ रही है या लट्ठ मार रही है?’’

‘‘आप को तो मुझ से जिंदगी भर शिकायत बनी रहेगी,’’ मैं अपनी हंसी नहीं रोक पा रही थी, इसलिए तुरंत रसोई की तरफ चल दी.

मैं रसोई में आ कर दिल खोल कर मुसकराई और फिर खिचड़ी व चाय बनाने में लगी.

कुछ देर बाद पीछे से आ कर रवि ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और भावुक हो कर बोले, ‘‘मां का तेज बुखार देख कर मैं घबरा गया था. अच्छा हुआ जो तुम फौरन चली आईं. वैसे वैरी सौरी कि तुम 1 रात भी मायके में नहीं रह पाई.’’

‘‘तुम ने कब मेरी खुशियां की चिंता की है, जो आज सौरी बोल रहे हो?’’ मैं ने उचक कर उन के होंठों को चूम लिया.

‘‘तुम जबान की कड़ी हो पर दिल की बहुत अच्छी हो.’’

‘‘मैं सब समझ रही हूं. अपनी बीमार मां की सेवा कराने के लिए मेरी झूठी तारीफ करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘नहीं, तुम सचमुच दिल की बहुत अच्छी हो.’’

‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच.’’

‘‘तो कमरे में मेरे लौटने से पहले सो मत जाना. अपने प्रोग्राम को गड़बड़ कराने की कीमत तो पक्का मैं आज रात को ही वसूल करूंगी,’’ मैं ने उन से लिपट कर फटाफट कई सारे चुंबन उन के गाल पर अंकित कर दिए.

‘‘आजकल तुम्हें समझना मेरे बस की तो बात नहीं है,’’ उन्होंने कस कर मुझे अपनी बांहों में भींच लिया.

‘‘तो समझने की कोशिश करते ही क्यों हो? जाओ, जा कर अपनी मम्मी के पास बैठो,’’ कह मैं ने हंसते हुए उन्हें किचन से बाहर धकेल दिया.

वे ठीक कह रहे हैं. महीने भर से अपने व्यवहार में आए बदलाव के कारण मैं अपनी सास और इन के लिए अनबूझ पहेली बन गई हूं.

अपनी सास के साथ वैसे अभी भी मैं बोलती तो पहले जैसा ही तीखा हूं पर अब मेरे काम हमेशा आपसी रिश्ते को मजबूती देने व दिलों को जोड़ने वाले होते हैं. तभी मैं बिना बुलाए अपनी बीमार सास की सेवा करने लौट आई.

कमाल की बात तो यह है कि मुझ में आए बदलाव के कारण मेरी सासूमां भी बहुत बदल गई हैं. अब वे अपने सुखदुख मेरे साथ सहजता से बांटती हैं. पहले हमारे बीच नकली व सतही शांति कायम रहती थी पर अब आपस में खूब झगड़ने के बावजूद हम एकदूसरे के साथ खुश व संतुष्ट नजर आती हैं.

सब से अच्छी बात यह हुई है कि अब हमारे झगड़ों व शिकायतों के कारण रवि टैंशन में नहीं रहते हैं और उन का ब्लडप्रैशर सामान्य रहने लगा है. सच तो यही है कि इन की खुशियों व विवाहित जीवन की सुखशांति बनाए रखने के लिए ही मैं ने खुद को बदला है.

‘‘मम्मी और मेरे बीच हो रहे झगड़े में कभी अपनी टांग अड़ाई, तो आप की खैर नहीं,’’ महीने भर पहले दी गई मेरी इस चेतावनी के बाद वे मंदमंद मुसकराते हुए हमें झगड़ते देखते रहते हैं.

‘‘जोरू के गुलाम, कभी तो अपनी मां की तरफ से बोला कर,’’ मम्मीजी जब कभी इन्हें उकसाने को ऐसे डायलौग बोलती हैं, तो ये ठहाका मार कर हंस पड़ते हैं.

सासससुर से दूर रह रही अपनी सीमा दीदी की मौजमस्ती से भरी जिंदगी की तुलना अपनी जिम्मेदारियों भरी जिंदगी से कर के मेरे मन में इस वक्त गलत तरह की भावनाएं कुलबुला रही हैं. सासूमां के ठीक हो जाने के बाद पहला मौका मिलते ही किसी छोटीबड़ी बात पर उन से उलझ कर मैं अपने मन की सारी खीज व तनाव बाहर निकाल फेंकूंगी.

Family Kahani

Family Love Story: माई स्मार्ट मौम

Family Love Story: ‘‘वाउ, कितनी स्मार्ट हैं तुम्हारी मौम. उन की स्किन कितनी सौफ्ट और यंग है. रिअली तुम दोनों मांबेटी नहीं, 2 बहनें लगती हो.’’

प्रिया मुझ से मेरी मौम की तारीफ कर रही थी. मुझे तो खुश होना चाहिए, मगर मैं उदास थी. मुझे जलन हो रही थी अपनी मां से. कोई इस बात पर यकीन नहीं करेगा. कहीं किसी बेटी को अपनी मां से जलन हो सकती है, भला? पर मेरी जिंदगी की यही हकीकत थी.

मैं समझती हूं, मेरी मां दूसरों से अलग हैं. 40-42 वर्ष की उम्र में भी उन की खूबसूरती देख सब हतप्रभ रह जाते हैं.

ऐसा नहीं है कि मैं खूबसूरत नहीं हूं. मैं कालेज की सब से प्यारी और चुलबुली लड़की के रूप में जानी जाती हूं. मगर मौम की खूबसूरती में जो ग्रेस और ठहराव है वह शायद मुझ में नहीं.

इस बात का एहसास मुझे तब हुआ जब मेरा बौयफ्रैंड मेरी मां को दीवानों की तरह चाहने लगा. यह सब अचानक नहीं हुआ था. किसी प्लानिंग के तहत भी नहीं हुआ. मैं मां को दोष नहीं दे सकती, पर अचानक सामने आई इस हकीकत ने मुझे झंझोड़ कर रख दिया. मां की वजह से मेरा बौयफ्रैंड मुझ से दूर हो रहा था. इस बात की कसक मेरे मन में कड़वाहट भरने लगी थी.

2-3 महीने पहले तक कितनी खुश थी मैं. विकास मेरी जिंदगी में एकाएक ही आ गया था. मैं ने फ्रैंच क्लासेज जौइन की थी. कालेज के बाद मैं फ्रैंच क्लासेज के लिए जाती. वहीं मुझे विकास मिला. कूल, हैंडसम और परफैक्ट फिजिक वाले विकास पर मैं पहली नजर में ही फिदा हो गई. उसे भी मैं पसंद आ गई थी. बहुत जल्द हमारे बीच दोस्ती हो गई और फिर हम ने एकदूसरे को जिंदगी के सब से खूबसूरत रिश्ते में बांध लिया.

उन दिनों मैं बहुत खुश रहा करती थी. एक दिन मौम ने टोका, ‘‘क्या बात है, मेरी बिटिया, आजकल गीत गुनगुनाने लगी है, खोईखोई सी रहती है अपनी दुनिया में गुम. जरा मैं भी तो जानूं, किस राजकुमार ने हमारी बेटी की दुनिया खूबसूरत बना दी है?’’

मैं शरमा गई थी. अपनी मौम के गले लग गई. मौम प्यार से मुझे दुलारने लगीं. मैं ने उन के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘मौम, मेरे बाद आप अकेली हो जाओगी न.’’

‘‘मौम, आप शादी कर लो फिर से,’’ एकाएक बोल गई थी मैं.

मौम ने मुझे फिर से गले लगा लिया. कितने प्यारे लमहे थे वो. तब मुझे कहां पता था कि मौम ही मेरी खुशियों को नजर लगा देंगी. वैसे मैं मौम के बहुत करीब हूं. उन की जिंदगी में मेरे सिवा कोई है भी तो नहीं.

20 साल की उम्र में उन की शादी हुई. एक साल बाद मैं पैदा हो गई. इस के अगले साल पापा इस दुनिया से रुखसत हो गए. तब से आज तक मौम ने ही मुझे पालापोसा, बड़ा किया. अपनी जिंदगी के हादसे से वे बिखरी नहीं, बल्कि और भी मजबूत हो कर उभरीं. उन्हें पापा की जगह जौब मिल गई थी. तब से वे मेरे लिए मम्मीपापा दोनों के दायित्त्व निभा रही थीं.

मेरे मनमस्तिष्क को उद्वेलित करने वाला वह हादसा तब मेरे साथ हुआ जब विकास के प्यार में गुम मैं अपनी दुनिया में मदहोश रहती थी. उस दिन मेरी छुट्टी थी. पर मौम को जिम के लिए निकलना था. वे अभी दरवाजे के पास ही थीं कि पड़ोस की उर्वशी मुझ से मिलने आ गई. उर्वशी की मां भी उसी जिम में जाती थीं जहां मेरी मौम जाया करतीं. दोनों सहेलियां थीं.

मौम के जाते ही उर्वशी मेरे पास बैठती हुई बोली, ‘‘यार, क्या लगती हैं आंटीजी, गोरी, लंबी, छरहरी, लंबेकाले बाल, मुसकराता चेहरा और चमकती त्वचा. सच कहती हूं, जो भी उन को देखे, दीवाना हो जाए.’’

‘‘इट्स ओके, यार. बट, यह मत भूल कि अब उन का नहीं, हमारा समय है. अपनी सुंदरता की चिंता कर.’’ मैं ने उस का ध्यान बांटना चाहा पर वह थोड़ी सीरियस होती हुई बोली, ‘‘यार, मुझे लगता है, समय आ गया है जब तुझे अपनी चिंता करनी चाहिए. तुझे शायद बुरा लगे पर यह सच है कि तेरी मां का अफेयर चल रहा है.’’

‘‘क्या, वाकई?’’ मैं ने आश्चर्य से कहा.

‘‘हां. वह कोई और नहीं, नया जिम ट्रेनर है जो तुम्हारी मौम के पीछे पड़ा है.’’

मैं इस बात से चकित तो थी पर प्रसन्न भी थी. मैं खुद चाहती थी कि मौम मेरे बाद किसी से जुड़ जाएं.

मुझे आघात तब लगा जब उर्वशी ने उस जिम ट्रेनर की फोटो दिखाई. वह कोई और नहीं, मेरा विकास ही था.

खुद को संभालना मुझे मुश्किल हो रहा था. मैं समझ नहीं पाई कि विकास ने मेरे प्यार का तिरस्कार किया है या वाकई मौम के आगे मैं कुछ भी नहीं, एकाएक ही मौम के प्रति मेरा मन घृणा और विद्वेष से भर उठा.

अब मैं मौम पर नजर रखने लगी. वाकई वे आजकल ज्यादा ही स्टाइलिश कपड़े पहन कर निकला करतीं. उन के चेहरे पर सदैव एक रहस्यमयी मुसकान खिली होती. वे गुनगुनाने लगी थीं. अपनी ही दुनिया में खोई रहती थीं.

मुझे यह सब देख कर खुश होना चाहिए पर विकास की वजह से मुझे खीझ होती थी. मैं गुमसुम रहने लगी. विकास की नजरों में मुझे मौम का चेहरा नजर आने लगा. वह भी अब मुझ से बचने की कोशिश करता, जितना हो पाता नजरें चुराने का प्रयास करता.

मैं इन परिस्थितियों में घिरी बहुत ही बेचैन रहने लगी. अकसर लगता कि मुझे सारी बात मौम को बता देनी चाहिए. शायद कोई समाधान निकल आए या असलियत जानने के बाद मौम विकास को अपनी जिंदगी से निकाल दें.

एक दिन हिम्मत जुटा कर मैं ने मौम को बातों ही बातों में विकास की फोटो दिखाते हुए बताया कि यही विकास है जिस के लिए मेरे दिल में बहुत सारा प्यार है. मौम उस फोटो को देर तक देखती रहीं. उन का चेहरा पीला पड़ गया था. जरूर उन्हें झटका लगा होगा कि वे जिसे अपना प्यार समझ रही थीं, वास्तव में वह तो उन की बेटी का प्यार है. मैं ध्यान से मौम का चेहरा देखती रही. मन में सुकून था कि अब मौम उसे छोड़ देंगी.

पर हुआ मेरी सोच के विपरीत. मौम अब मुझे ही विकास से दूर रहने की सीख देने लगीं. अगले दिन मैं जब कालेज के लिए तैयार हो रही थी तो मौम मेरे करीब आईं और समझाने के अंदाज में कहने लगीं, ‘‘बेटा, प्यार का रिश्ता बहुत ही नाजुक होता है. इस में एकदूसरे के लिए मन में विश्वास और सम्मान की भावना जितनी आवश्यक है उतना ही एकदूसरे के प्रति समर्पण भी. यदि कोई तुम्हें प्यार करे तो सिर्फ तुम से करे और यदि ऐसा नहीं है तो उसे अपनी जिंदगी से निकाल देना ही बेहतर होता है.’’

मैं ने कुछ कहा नहीं, पर मौम का तात्पर्य समझ रही थी. वे मुझे विकास से दूर हो जाने की सलाह दे रही थीं. यह जानते हुए भी कि वे ही हमारे बीच आई थीं, न कि मैं उन के बीच.

उस दिन कालेज जा कर मैं बहुत रोई. मुझे लग रहा था जैसे मेरा सब से कीमती सामान कोई छीन कर भाग गया हो और मैं कुछ भी नहीं कर सकी. सब से ज्यादा दुख मुझे इस बात का था कि मौम ने मेरी खुशी से ज्यादा अपनी खुशी को तवज्जुह दी थी. यह सब मेरे लिए बहुत अप्रत्याशित था. मुझे मौम पर गुस्सा आ रहा था और अकेलापन भी महसूस हो रहा था. एक अजीब सा एहसास था जो न जीने दे रहा था, न मरने. अपनी ही तनहाइयों में कहीं मैं खोने लगी थी.

मैं मौम से कट सी गई जबकि मौम पहले की तरह जिम जाती रहीं. एक दिन मौम के पीछे उर्वशी फिर से मेरे घर आई. मुझे अंदर ले जा धीरे से बोली, ‘‘जानती है, आज तेरी मौम उस विकास के साथ डेट पर जा रही हैं. मेरी मौम ने यह न्यूज दी है मुझे.’’

चौंक गई थी मैं. ‘‘कहां जा रही हैं,’’ मैं ने पूछा.

‘‘मनभावन रैस्टोरैंट. ट्रीट विकास की तरफ से है. कल तेरी मौम का उस जिम में अंतिम दिन है न.’’

‘‘यानी, मौम अब जिम नहीं जाएंगी?’’

‘‘नहीं. मगर आज जब विकास ने डेट पर चलने को कहा तो वे मान गईं. आज वह पक्के तौर पर उन्हें प्रपोज करेगा.’’

मैं ने उसी पल तय कर लिया कि वेश बदल कर मैं उन की बातें सुनने के लिए वहां जरूर जाऊंगी और उसी रैस्टोरैंट में लोगों के सामने मां को उन की इस हरकत के लिए जलीकटी भी सुनाऊंगी.

उर्वशी के बताए समय पर मैं उस रैस्टोरैंट में पहुंच गई. मौम और विकास जहां बैठे थे, उस की बगल वाली टेबल बुक की और बैठ गई. विकास बहुत प्रेम से मौम की तरफ देख रहा था. मेरे तनबदन में आग लग रही थी. थोड़ी इधरउधर की बातों के बाद विकास ने कह ही दिया कि वह उन्हें पसंद करता है. विकास प्रपोज करने के लिए अंगूठी भी साथ ले कर आया था. मैं उठ कर उन के रंग में भंग डालने ही वाली थी कि मौम के शब्दों ने मुझे चौंका दिया.

मौम कह रही थीं, ‘‘विकास, प्रेम समर्पण का दूसरा नाम है. इस में ठहराव जरूरी है. यदि आप किसी से प्यार करते हैं तो बस, आप उसी के हो जाते हैं. मगर तुम्हारे साथ ऐसा नहीं. तुम एकसाथ मुझे और प्रिया को प्यार कैसे कर सकते हो?’’

‘‘प्रिया को आप जानती हैं?’’ वह चौंका.

‘‘हां, वह मेरी बेटी है और मैं ने बहुत करीब से उसे तुम्हारे प्यार में सराबोर देखा है. तुम उस से प्यार नहीं करते थे क्या?’’

विकास पहले तो हकबकाया, फिर सपाट लहजे में बोला, ‘‘नो, कुसुमजी, वह तो प्रिया ही मेरे पीछे पड़ी थी. उस में बहुत बचपना है. मुझे तो आप जैसी मैच्योर और ग्रेसफुल जीवनसाथी की आवश्यकता है.’’

‘‘जैसे प्रिया में तुम्हें आज बचपना लगने लगा है, क्या पता वैसे ही आज मैं तुम्हें अच्छी लग रही हूं पर कल मेरी बढ़ती उम्र तुम्हें खटकने लगे? मुझे छोड़ कर तुम किसी और के करीब हो जाओ. विकास, प्यार इंसान के गुणदोष या रंगरूप से नहीं, बल्कि दिल व सोच से होता है. प्यार किसी एक के प्रति समर्पण का नाम है, एक से दूसरे के प्रति परिवर्तन का नहीं.’’

‘‘मगर कुसुमजी, आप भी तो मुझे…’’

विकास ने कुछ बोलना चाहा पर मौम ने उसे रोक दिया, ‘‘नो विकास, आई थिंक, तुम मुझे समझ सकोगे. मैं तुम्हें पसंद करती थी, पर अब, इस से आगे कुछ सोचना भी मत. इट्स माई फाइनल डिसीजन.’’

मौम उठ गई थीं और विकास अवाक सा उन्हें जाता देखता रहा. मैं खुशी से उछलती हुई उठी और पीछे से जा कर मौम को चूम लिया.

Family Love Story

Emotional Story: 7 बजे की ट्रेन

Emotional Story: एक उदास शाम थी. स्टेशन के बाहर गुलमोहर के पीले सूखे पत्ते पसरे हुए थे जो हवा के धीमे थपेड़ों से उड़ कर इधरउधर हो रहे थे. स्टेशन पहुंचने के बाद उन्हीं पत्तों के बीच से हो कर रेणू प्लेटफौर्म के अंदर आ चुकी थी. वह धीमेधीमे कदमों से प्लेटफौर्म के एक किनारे पर स्थित महिला वेटिंगरूम की ओर जा रही थी. 7 बजे की ट्रेन थी और अभी 6 ही बजे थे. ट्रेन के आने में देर थी.

शहर में उस की मां का घर स्टेशन से दूर है और ट्रांसपोर्टेशन की भी बहुत अच्छी सुविधा नहीं है. इसलिए वहां से थोड़ा समय हाथ में रख कर ही चलना पड़ता है, लेकिन आज संयोग से तुरंत ही एक खाली आटो मिल गया जिस के कारण रेणू स्टेशन जल्दी पहुंच गई थी.

पिताजी की मृत्यु के बाद मां घर में अकेली ही रह गई थी. घर के सामने सड़क के दूसरी ओर एक पीपल का पेड़ था और उस के बाद थोड़ी दूरी पर एक बड़ा सा तालाब. दोपहर के समय सड़क एकदम सुनसान हो जाती थी. कम आबादी होने के कारण इधर कम ही लोग आतेजाते थे. सुबह तो थोड़ी चहलपहल रहती भी थी पर दोपहर होतेहोते, जिन्हें काम पर जाना होता वे काम पर चले जाते बाकी अपने घरों में दुबक जाते.

दूर तक सन्नाटा पसरा रहता. यह सूनापन मां के घर के आंगन में भी उतर आता था. घर के आंगन में स्थित हरसिंगार की छाया तब छोटी हो जाती.

मां कितनी अकेली हो गई थी. आज जब वह घर से निकल रही थी तो मां उस का हाथ पकड़ कर रोने लगी. इतना लाचार और उदास उस ने मां को कभी नहीं देखा था. उस की आंखों में अजीब सी बेचैनी और बेचारगी झलक रही थी.

जब वह छोटी थी तो घर की सारी जिम्मेदारियां मां ही उठाती थी. वह मानसिक रूप से कितनी मजबूत थी. पिताजी तो अपने काम से अकसर बाहर ही रहते थे. बस, वे महीने के आखिर में अपनी सारी कमाई मां के हाथ में रख देते थे.

घरबाहर का सारा काम मां ही किया करती थी. उसे स्कूल, ट्यूशन छोड़ना और लाना सब वही करती थी. उस समय तो वह इलाका जहां आज उन का घर है, और भी उजाड़ था. स्कूल बस के आने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था.

उसे याद है जब एक बार वह बीमार हो गई थी और कोई रिकशा नहीं मिल रहा था तो मां उसे अपनी गोद में ले कर उस सड़क तक ले गई थी जहां आटोरिकशा मिलता था. उस के बाद वहां से शहर के नामी अस्पताल में ले गई थी और उस का इलाज कराया था. तब उसे डाक्टरों ने 3 दिन तक अस्पताल में भरती रखा था.

मां कितनी मुस्तैदी से अकेले ही अस्पताल में रह कर उस की देखभाल करती रही थी. पिताजी तो उस के एक सप्ताह बाद ही आ पाए थे. इस बार मां बता रही थी कि जब वह बीमार हुई तो 3 दिन तक बुखार से घर में अकेले तड़पती रही. कोई उसे डाक्टर के पास ले जाने वाला भी कोई नहीं था. वह तो भला हो दूध वाले का, जिस ने दया कर के एक दिन उसे डाक्टर के यहां पहुंचा दिया था.

यह सब बताते हुए मां कितनी बेबस और कमजोर दिख रही थी. उम्र के इस पड़ाव में अकेले रह जाना एक अभिशाप ही तो है. रेणू यह सब सोच ही रही थी.

रेणू अपने मांबाप की इकलौती संतान थी. उस के मातापिता ने कभी दूसरे संतान की चाहत नहीं की. वे कहते कि एक ही बच्चे को अगर अच्छे से पढ़ायालिखाया जाए तो वह 10 के बराबर होता है. रेणू को याद है कि उस की बड़ी ताई ने जब उस की मां से कहा था कि अनुराधा, तुम्हारे एक बेटा होता तो अच्छा रहता, तो कैसे उस की मां उन पर झुंझला गई थी. वह कहने लगी थी कि आज के जमाने में बेटी और बेटा में भी भला कोई अंतर रह गया है. बेटियां आजकल बेटों से बढ़ कर काम कर रही हैं. हम तो अपनी बेटी को बेटे से बढ़ कर परवरिश देंगे.

प्लेटफौर्म पर कोई ट्रेन आ कर रुकी थी, जिस के यात्री गाड़ी से उतर रहे थे. अचानक प्लेटफौर्म पर भीड़ हो गई थी. लाउडस्पीकर पर ट्रेन के आने और उस के गंतव्य के संबंध में घोषणा हो रही थी. रेणू ने तय किया कि वेटिंगरूम में जाने से पूर्व एक कप चाय पी ली जाए और तब फिर आराम से वेटिंगरूम में कोई पत्रिका पढ़ते हुए समय आसानी से गुजर जाएगा. यही सोच कर वह एक टी स्टौल पर रुक गई.

उस के मांपिताजी ने उसे पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इंजीनियरिंग करने के बाद रेणू आज बेंगलुरु में एक अच्छी कंपनी में कार्य कर रही थी. उस के पति भी वहीं एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत थे. दोनों की मासिक आय अच्छीखासी थी. किसी चीज की कोई कमी नहीं थी.

अब तक प्लेटफौर्म पर भीड़ छंट चुकी थी. प्लेटफौर्म पर आई गाड़ी निकल चुकी थी. रेणू ने वेटिंगरूम की ओर जाने का निश्चय किया. बगल के बुक स्टौल से उस ने एक पत्रिका भी खरीद ली थी. रेणू धीरेधीरे वेटिंगरूम की ओर बढ़ रही थी पर उस का मन फिर उड़ कर मां के उदास आंगन की ओर चला गया था. क्या मां ने चाय पी होगी? वह सोचने लगी. मां बता रही थी कि अब वह एक वक्त ही खाना बनाती है. एक बार सुबह कुछ बना लिया, फिर उसे ही रात में भी गरम कर के खा लेती थी. जितनी बार खाना बनाओ, उतनी बार बरतन धोने का झंझट.

इस बार रेणू ने अपनी मां को कुछ ज्यादा ही उदास पाया था. इस बार वह आई भी तो पूरे 1 साल के बाद थी. प्राइवेट कंपनी में वेतन भले ही ज्यादा मिलता हो पर जीने की आजादी खत्म हो जाती है और अभी तो उस का तरक्की करने का समय है. अभी तो जितनी मेहनत करेगी उतनी ही तरक्की पाएगी. इतनी दूर बेंगलुरु से बारबार आना संभव भी तो नहीं था. जब तक पिताजी थे, मां अकसर फोन कर के भी उस का हालचाल लेती रहती थी पर अब वह इस बात से भी उदासीन हो गई थी.

पहले बगल में मेहरा आंटी रहती थीं तो मां को कुछ सहारा था. उन से बोलबतिया लेती थी और एकदूसरे को मदद भी करती रहती थीं. इस बार जब रेणू आई और उस ने मेहरा आंटी के बारे में पूछा तो मां ने बताया कि उस का बेटा विनीत उसे मुंबई ले कर चला गया है अपने पास. हालांकि रेणू ने यह महसूस किया था कि जैसे मां कह रही हो कि उस का तो बेटा था, उसे अपने साथ ले गया.

अपनी इन्हीं विचारों में डूबी रेणू अचानक से किसी चीज से टकराई, नीचे देखा तो वह एक आदमी था, जिस के दोनों पैर कटे थे. वह हाथ फैला कर उस से भीख मांग रहा था. वह आदमी बारबार अपने दोनों पैर दिखा कर उस से कुछ पैसे देने का अनुरोध कर रहा था. उस के चेहरे पर जो भाव थे, उसे देख कर रेणू चौंक गई. उसे लगा वह मानो गहरे पानी में डूबती जा रही है और सांस नहीं ले पा रही है.

ऐसे ही भाव तो उस की मां के चेहरे पर भी थे जब वह अपनी मां से विदा ले रही थी. उसे लगा वह चक्कर खा कर गिर जाएगी. वह बगल में ही पड़ी एक बैंच पर धम्म से बैठ गई. वह आदमी अब भी उस के पैरों के पास उसे आशाभरी नजरों से देख रहा था. उसे उस आदमी की आंखों में अपनी मां की आंखें दिखाई दे रही थीं. ऐसी ही आंखें… बिलकुल ऐसी ही आंखें तो थीं उस की मां की जब वह घर से स्टेशन के लिए निकल रही थी.

रेणू ने अपनी आंखें बंद कर लीं और वहीं बैठी रही. 7 बज गए थे. बेंगलुरु जाने वाली ट्रेन का जोरजोर से अनाउंसमैंट हो रहा था. ट्रेन निकल जाने के बाद प्लेटफौर्म पर शांति छा गई और रेणू के मन में भी. रेणू थोड़ी देर वहीं बैठी रही.

अब उस का मन बहुत हलका हो गया था. आटो में बैठे हुए उस के मोबाइल पर मैसेज प्राप्त होने का रिंगटोन बजा. उस ने देखा कि बेंगलुरु जाने वाली अगले दिन की ट्रेन में 2 लोगों के टिकट कन्फर्म हो गए हैं. उस ने अपने पति को एक थैंक्स का मैसेज भेज दिया.

‘‘मां, आज क्या खाना बना रही हो? बहुत जोरों की भूख लगी है,’’ मां ने जैसे ही दरवाजा खोला, रेणू ने मां से कहा.

‘‘अरे, गई नहीं तुम? क्या हुआ, तबीयत तो ठीक है? ट्रेन तो नहीं छूट गई?’’ मां के स्वर में बेटी की खैरियत के लिए स्वाभाविक उद्विग्नता थी.

‘‘हां, मां सब ठीक है,’’ कहती हुई रेणू सोफे पर बैठ गई और मां को खींच कर वहीं बिठा लिया और उस की गोद में अपना सिर रख दिया. ऐसी शांति और ऐसा सुख, मां की गोद के अलावा कहां मिल सकता है. रेणू सोच रही थी. उस के गाल पर पानी की 2 गरम बूंदें गिर पड़ीं. ये शायद मां की खुशी के आंसू थे. अगले दिन बेंगलुरु जाने वाली ट्रेन में 2 औरतें सवार हुई थीं.

Emotional Story

Best Hindi Story: चश्मा- एस्थर ने किया पाखंडी गुरूजी को बेनकाब

लेखिका- प्रेमलता यदु

Best Hindi Story: आज एस्थर का ससुराल में पहला दिन था. उस ने सोचा जब परिवार के हर सदस्य ने उसे खुले दिल से अपनाया है तो क्यों ना वह भी उन के ही रंग में रंग जाए और उन जैसा ही बन कर सब का दिल जीत ले. यही सोच वह भोर होने से पहले अपनी सासूमां सुनंदा की भांति ही जाग गई.

रोज सुबह 8 बजने जागने वाली एस्थर आज अलार्म लगा कर 5:30 बजे ही जाग गई. घर के सभी लोगों की सुबह की शुरुआत चाय से होती है, इसलिए वह चाय बनाने के लिए रसोईघर की ओर चल पड़ी.

उस ने कभी सोचा ही नहीं था की पराग का परिवार इतनी सहजतापूर्वक उस की और पराग की शादी के लिए स्वीकृति प्रदान कर देगा और उसे पूरे दिल से अपना लेगा, क्योंकि अकसर पराग की बातों से उसे ऐसा प्रतीत होता था कि उस का परिवार एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार है पर कल के रिसैप्शन पार्टी में एस्थर का यह भ्रम टूट गया. उसे एक पल के लिए भी यह महसूस नहीं हुआ कि वह किसी दूसरे धर्म या समुदाय में ब्याही है.

जाति, धर्म कभी भी प्यार एवं स्नेह के बीच दीवार नहीं बन सकते, पराग के परिवार ने इस बात पर मुहर लगा दी थी.

यही सब सोचती हुई अभी वह रसोईघर में प्रवेश करने ही वाली थी कि सुमित्रा बुआ जोरजोर से चिल्लाने लगीं,”अरे…अरे… बहुरिया यह क्या अनर्थ करने जा रही हो…”

सुमित्रा बुआ अपना ससुराल छोड़ कर यहां मायके में डेरा डाले बैठी हैं. सुबहसुबह ही जाग जाती हैं और अकसर माला फेरने का ढोंग रचा हौल में धुनी रमाए बैठ जाती हैं. आज भी वह अपना आसन जमाए बैठी हुई थीं.

असल में उन का सुबह से ले कर रात तक केवल इस बात पर पूरा ध्यान रहता है कि घर में कौनकौन सदस्य क्याक्या कर रहा है? भगवान की अराधना तो सब एक आडंबर मात्र ही थी.

बुआ का चिल्लाना सुन सुनंदा दौड़ती हुई बाथरूम से वहां आ ग‌ई. एस्थर भी सुमित्रा बुआ को इस तरह चिल्लाता देख पूरी तरह से स्तब्ध रह गई और डर कर रसोईघर के दरवाजे पर ही ठिठक गई.

सुनंदा कुछ पूछती इस से पहले ही सुमित्रा बुआ गुर्राती हुईं एस्थर से बोलीं,”इस घर पर पांव धर कर तुम पहले ही हमारे भैया की जातबिरादरी में नाक कटा चुकी हो. कुल तो भ्रष्ट कर ही दिया है और अब बिन नहाए भीतर जा कर हमारा धर्म भी भ्रष्ट करने का इरादा है क्या? कुछ नियम, धर्म है कि नहीं? वैसे भी तुम्हें मोमबत्ती जलाने के अलावा कुछ मालूम ही क्या होगा पर भौजी तुम… तुम को तो इतना वर्ष हो गया है इस घर में आए फिर भी अब तक तुम हमारे घर का नियम जान नहीं पाईं क्या?

“अपनी बहुरिया को तनिक ज्ञान दो, उस को इस घर के तौरतरीके सिखाओ, बताओ उस को इस घर में क्या होता है क्या नहीं. तुम पुत्रमोह में इतनी अंधी हो गई हो कि सब भूल ग‌ईं?”

यह सुन एस्थर सहम सी गई. वह कुछ समझ ही नहीं पाई कि आखिर उस से क्या चूक हो गई कि जो बुआ कल रात तक सभी के समक्ष उस की बलाईयां लेते हुए नहीं थक रही थीं, आज अचानक सुबह होते ही ऐसा क्या हो गया कि तीखे और कड़वे वचन उगल रही है.

सुनंदा लड़खड़ाती जबान में बोलीं,”दीदी, उस का घर में आज पहला दिन है धीरेधीरे सब सीख जाएगी. आप चिंता ना करें, मैं स्वयं उसे सब बता दूंगी. इस बार माफ कर दीजिए.”

“हां…. सिखाना तो अब पड़ेगा ही. केवल विजातीय बहू नहीं लाया है तुम्हारा लाडला बेटा, बल्कि गैर धर्म की लड़की ही घर उठा लाया है.”

यह सुन सुनंदा वहां से चुपचाप जाती हुई एस्थर को भी अपने संग चलने का इशारा कर गई. एस्थर भी सुनंदा के पीछे हो ली.

एक कोने में जा कर सुनंदा अपना हाथ एस्थर के सिर पर रखती हुई बोलीं,”दीदी के बातों का बुरा नहीं मानना. उन की जबान ही थोड़ी कड़वी है लेकिन वह दिल की बहुत अच्छी हैं. तुम एक काम करो पहले नहा लो, तब तक मैं पूजा कर लेती हूं फिर दोनों मिल कर चायनाश्ता बनाते हैं,” इतना कह सुनंदा चली गई.

*एस्थर* को सुबहसुबह नहाने की आदत नहीं है पर वह क्या करे ससुराल वालों का दिल जीतना बहुत जरूरी है क्योंकि पराग पहले ही कह चुका है कि उस की वजह से परिवार के लोगों को किसी प्रकार की कोई शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए वरना वह उस की कोई मदद नहीं कर पाएगा.

घर के सदस्यों के प्रति नकारात्मक विचारों की बेल एस्थर के मन को जकड़ने लगे जिन्हें वह झटक नहाने चली गई और जब वह तैयार हो कर पहुंची तो उस ने देखा सासूमां ने सभी के लिए चायनाश्ता बना लिया है और सभी बैठक में नाश्ते के साथ चाय की चुसकियां ले रहे हैं.

सुनंदा बेचारी भागभाग कर सभी के प्लेट्स पर कभी कचौड़ियां परोस रही थीं तो कभी चटनी. कोई मीठी चटनी की फरमाइश कर रहा था तो कोई हरी धनिया की चटनी, पर उन की मदद कोई नहीं कर रहा. यहां तक कि उन की अपनी बेटी शिल्पी भी उन का हाथ बंटाने के बजाय उलटा उन से दोपहर पर बनने वाले खाने की सूची में अपनी फरमाइश जोड़ रही थी.

यह सब देख एस्थर अंदर ही अंदर क्रोध से भर गई पर स्वयं पर संयम रखती हुई शांत खड़ी रही. वह काफी देर तक वहां खड़ी रही लेकिन किसी ने भी उस से कुछ नहीं कहा.

सभी इस प्रकार व्यवहार कर रहे थे जैसे वह वहां पर उपस्थित ही नहीं है. यहां तक कि पराग ने भी उसे अनदेखा कर दिया.

सब का रवैया देख एस्थर की आंखें नम हो गईं पर किसी को भी इस बात का आभास तक नहीं हुआ, तभी सुनंदा बोलीं,”एस्थर तुम भी चाय पी लो.”

सुनंदा का इतना कहना था कि पराग की दादी, सुमित्रा बुआ की मां, सुनंदा की सासूमां और इस घर की मुखिया गायत्री देवी भड़कती हुई सुनंदा से बोलीं,”बहू, अब तुम इस घर की केवल बहू ही नहीं रहीं सास भी बन गई हो, तो इस बात का ध्यान रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है कि गलती से भी कोई चूक ना हो. यह तुम्हारा मायके नहीं है जहां कुछ भी चल जाएगा.”

“जी मां जी,” सुनंदा ने सिर झुकाए हुए ही जवाब दिया.

तभी फिर दोबारा गायत्री देवी अपने रोबदार आवाज में बोलीं,”आज मैं ने अपने गुरु महाराज को घर पर बुलाया है. उस की सारी व्यवस्था तुम कर लेना. पूजा की सारी सामग्री गुरू महाराज स्वयं ही ले आएंगे. उन्होंने कहा है कि आज वे घर के साथसाथ इस छोरी का नामकरण और शुद्धिकरण भी करेंगे.”

इतना सुनते ही माला फेरतीं सुमित्रा बुआ अपनी ईश्वर अराधना पर अल्पविराम लगाते हुए बोलीं,”अम्मां, नामकरण… भला क्यों?”

“अरे भई, इस छोरी का नाम जो इतना विचित्र है पुकार लो तो ऐसा लगे है जैसे जबान ही पूरी अशुद्ध हो गई हो और फिर गुरु महाराज ने भी कहा है कि नाम बदलने से ही पराग का वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहेगा अन्यथा नहीं और उन्होंने यह भी कहा है कि हमारे कुल और पूर्वज पर जो इस छोरी की वजह से कलंक लगा है वह धुल जाएगा और हमारे पूर्वजों को वहां परलोक में किसी प्रकार की कोई यातना नहीं सहनी पड़ेगी. शिल्पी की शादी हेतु भी ग्रहशांति करने का कह रहे थे गुरूजी.

“मोहन, तुम जल्दी बैंक जा कर ₹1 लाख निकाल लाना. पूजा में जरूरत पड़ेगी.”

₹1 लाख सुनते ही पराग के पिता और गायत्री देवी के पुत्र मोहनजी के कान खड़े हो गए और उन्होंने आश्चर्य से कहा, “अम्मां ₹1 लाख वह भी पूजा के लिए… बहुत ज्यादा नहीं है क्या?”

“बहुत ज्यादा कहां है भैया…यह तो बहुत ही कम है. इस प्रकार की पूजा में ₹1-2 लाख खर्च हो जाते हैं. वह तो गुरू महाराज की हम सब पर कृपा एवं उन का आशीष है और फिर अम्मां उन की परमभक्त हैं इसलिए इतने कम में सब काम हो रहा है वरना आप और भाभी ने तो जो अपने पुत्रमोह में इस गैर धर्म की छोरी को बहू बना कर घर ले आए हैं उस के लिए तो आजीवन आप को और इस घर के पूर्वजों को सदा के लिए कष्ट भोगना पड़ता.”

यह सुन पराग बोला,”पापा, आप चिंता ना करें, मैं अपने अकाउंट से रुपए निकाल लूंगा.”

एस्थर आश्चर्य से पराग की ओर देखने लगी. उस ने आज से पहले कभी पराग का यह अंधविश्वासी अवतरण नहीं देखा था. उस ने कभी सोचा नहीं था कि इतना पढ़ालिखा और आधुनिकता का आवरण ओढ़ने वाला यह पूरा परिवार असल में पूर्ण रूप से अंधविश्वास के गिरफ्त में जकड़ा हुआ होगा.

*वह* विचार करने लगी कि इतना रूढ़िवादी और अंधविश्वासी परिवार ने उसे स्वीकार किया तो किया कैसे?

असल में वह इस सत्य से अनभिज्ञ थी कि इस ब्राह्मण परिवार का उसे अपनाना एक पाखंड था. वह तो बस यह नहीं चाहते थे कि उन का इकलौता कमाऊ बेटा शादी कर के अलग हो जाए क्योंकि अभी उन की छोटी बेटी की भी शादी होनी बाकी थी जिस में दहेज लगना था और एस्थर स्वयं भी एक कमाऊ मुरगी थी जिस का वह भरपूर इस्तेमाल कर सकते थे. इसलिए उन्होंने एस्थर को अलग धर्म का होते हुए भी अपनाने का स्वांग रचा.

इन सब बातों के बीच सहसा एस्थर को ऐसा एहसास हुआ जैसे गुरू महाराज और ग्रह शांति की बातें सुन सासूमां सुनंदा के चेहरे का रंग उड़ गया है और शिल्पी भी थोड़ी घबराई एवं असहज लगने लगी है.

अब तक जो लड़की हंसखेल रही थी, मुसकरा रही थी अचानक वह वहां से उठ कर चली गई और उसे इस प्रकार जाता देख सुनंदा भी उस के पीछे हो गईं.

दोनों को इस तरह परेशान देख एस्थर भी वहां से चली गई. जब वह शिल्पी के कमरे के करीब पहुंची तो उस ने सुना शिल्पी कह रही है,”अम्मां, मैं पूजा में ग्रहशांति हेतु नहीं बैठूंगी चाहे मेरी शादी हो या ना हो.”

सुनंदा उसे समझाने का प्रयत्न करते हुए कह रही थीं,”देखो शिल्पी, अम्मांजी ने गुरू महाराज को तुम्हारे ग्रहशांति हेतु पहले ही कह दिया है इसलिए इस बार तो तुम्हें बैठना ही होगा और फिर इस में तुम्हारा ही भला है. इस पूजा से तुम्हें अच्छा घरपरिवार मिलेगा.”

माजरा क्या है यह जानने के लिए एस्थर कमरे के अंदर जा अपनी सासूमां सुनंदा से बोली,”क्या बात है मम्मीजी, शिल्पी ग्रहशांति के नाम से इतना रो क्यों रही है?”

सुनंदा ने कोई जवाब नहीं दिया बस वह लगातार शिल्पी को पूजा पर बैठने के लिए मना रही थी.

तभी शिल्पी चिढ़ती और जोर से चिल्लाती हुई बोली,”अम्मां, आप समझती क्यों नहीं. पूजा के बाद हर बार मैं बेहोश हो जाती हूं. मेरा पूरा शरीर दर्द से भर जाता है. मुझे बहुत डर लगता है मम्मी. प्लीज, मैं पूजा में नही बैठूंगी.”

शिल्पी का डर उस के शब्दों से अधिक उस की आंखों में नजर आ रहा था.

*शिल्पी* को अपनी मां के समक्ष गिड़गिड़ाता देख एस्थर ने बड़े सहज भाव से कहा,”मम्मीजी, क्या शिल्पी का पूजा में बैठना जरूरी है?”

“बस… अभी तुम्हें इस घर में आए चंद घंटे ही हुए हैं. बेहतर होगा ज्यादा सवालजवाब करना छोड़ो और मेरे साथ चल के गुरू महाराज की सेवा और उन के खानपान की व्यवस्था में मेरा हाथ बंटाओ. और हां, पराग से कहना ₹1 लाख अधिक निकाल ले क्योंकि गुरू महाराज को पूजा के उपरांत दक्षिणा भी देना होगा ताकि शिल्पी के लिए अच्छे रिश्ते आएं.”

सासूमां की बातें सुन एस्थर यह जान चुकी थी कि वक्त रहते उसे सही कदम उठाना होगा अन्यथा उस का घर बरबाद हो जाएगा. साथ ही वह अपनी पहचान खो देगी और उस का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा.

इस घरपरिवार के लोगों पर अंधविश्वास का ऐसा चश्मा लगा हुआ था जिसे उतार पाना इतना आसान नहीं था. यदि वह प्रयास भी करेगी तो सफल होना मुश्किल था, इसलिए वह यह जानते हुए कि शुद्धिकरण, नामकरण और शादी के लिए ग्रहशांति की पूजा सब बकवास एवं बेकार की बातें हैं, पूजा में हिस्सा लेने एवं अपनी सासूमां का हाथ बंटाने को वह स्वेच्छा से तैयार हो गई.

*गुरू* महाराज निर्धारित समय पर अपने 5 शिष्यों के साथ घर पहुंचे. सभी उन का चरणस्पर्श करने लगे. एस्थर दूर ही खड़ी सब देख रही थी.

तभी दादी एस्थर की ओर इशारा करती हुई बोलीं,”अरे बहूरानी, तुम्हें अलग से कहना पड़ेगा… जाओ और गुरू महाराज का आशीष लो.”

एस्थर ने जैसे ही गुरू चरणों में अपना शीश नवाया, आशीष देते हुए गुरू महाराज ने उसे जिस प्रकार से स्पर्श किया एवं उन के शिष्यों की जो दृष्टि उस पर पड़ी वह सिहर उठी. उसी क्षण गायत्री देवी ने गुरू महाराज को पूजा प्रारंभ करने का आग्रह किया तो उन्होंने एक अजीब सी मादक मुसकान लिए एस्थर की ओर इशारा करते हुए बोले,”हम पहले इस लड़की का शुद्धिकरण करेंगे फिर पूजा संपन्न होगा.”

फिर वे उस कमरे की ओर बढ़ ग‌ए जहां पहले से ही सारे कर्मकांड की व्यवस्था की गई थी. सासूमां के इशारे पर एस्थर भी गुरू महाराज के साथ उस कमरे में चली गई और घर के बाकी सदस्य वहीं हाल में ही गुरूजी के साथ आए शिष्यों के संग पूजा की बाकी तैयारियों में जुट गए.

करीब 2 घंटे बाद गुरू महाराज और एस्थर कमरे से बाहर निकले फिर गुरूजी तुरंत ही अपने शिष्यों के साथ पूजा की वेदी पर पूजा कराने लगे.

पूजा कराते हुए बारबार उन्हें एस्थर के साथ कमरे में बिताए क्षण स्मरण होने लगे कि कैसे एस्थर ने बड़ी चालाकी से अपने मोबाइल फोन का कैमरा कमरे में छिपा दिया था जिस में उन की सारी हरकतें कैद हो गई थीं. किस प्रकार उन्होंने एस्थर को भभूत का पुड़िया खाने को दिया जिस में बेहोशी की दवा थी. कैसे वे अपने साथ लाए पूजा समाग्री में नशीली मादक दवाएं ले कर आए थे और उस का सेवन कर वे एस्थर को बेहोश समझ उस के साथ दुराचार करने का प्रयत्न करने लगे.

यह सब विचार करते हुए गुरू महाराज आननफानन में पूजा निबटा जल्दी से जल्दी यहां से निकाल जाना चाहते थे क्योंकि एस्थर की दी हुई धमकी उन के कानों में गूंज रही थी,”चुपचाप शांतिपूर्ण ढंग से पूजा निबटा कर यहां से निकलो, वरना पुलिस बुला कर तुम्हारा यह वीडियो दिखा, तुम्हें पाखंड, ढोंग, मासूम लड़कियों की इज्जत से खेलने, उन्हें अपना शिकार बना और दूसरों को धर्म और ग्रहों का डर दिखा कर लूटने के नाम पर अंदर करवा दूंगी.”

पूजा संपन्न करा जब गुरू महाराज जाने लगे तो गायत्रीजी बड़ी विनम्रता पूर्वक बोलीं,”गुरूजी, आप ने इस छोरी का नामकरण और मेरी पोती का ग्रह शांति तो कराया नहीं?”

गुरू महाराज एस्थर की ओर घूरते हुए बोले,”नामकरण की कोई आवश्यकता नहीं है. शादी बहुत ही शुभ लग्न में हुई है. यह कन्या ईश्वर का वरदान है. आप के घर पर इस के पैर पड़ते ही घर की सभी विघ्न बाधाएं दूर हो गईं. सभी ग्रह अपनेआप ठीक स्थानों पर चले गए हैं इसलिए ग्रहशांति की भी अब कोई आवश्यकता नहीं.”

इतना कह गुरू महाराज चले गए और घर के सभी सदस्यों का एस्थर की ओर देखने का नजरिया ही बदल गया. सभी बड़े प्यार से उसे देखने लगे और एस्थर यह सोच कर मुसकराने लगी कि चश्मा तो अब भी सब के आंखों पर चढ़ा हुआ है लेकिन इस चश्मे की वजह से अब ना तो शिल्पी की शादी रुकेगी और ना ही उस का दैहिक शोषण होगा, जो अब तक होता आया है.

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Home Buyers Guide: घर खरीदने जा रहे हैं, तो इन बातों का धयान रखें

Home Buyers Guide: दो दीवाने शहर में, रात में और दोपहर में

आब-ओ-दाना ढूंढते हैं एक आशियाना ढूंढते हैं

घरौंदा फिल्म का यह गाना, तो आपने सुना ही होगा जोकि हम सभी के जीवन की सच्चाई को उजागर करता है. वाकई अपना घर खरीदना हर किसी का सपना होता है. सब यही सोचते हैं की अच्छी नौकरी के साथ एक अच्छा घर भी हो. लेकिन मुश्किलें तब बढ़ जातीं हैं, जब प्रौपर्टी खरीदने की जानकारी बिल्कुल नहीं या कम होती है. तो जानिए कुछ आसान टिप्स जो आपके सपनों के आशियाने को खरीदने में आपकी मदद करेंगी!

सबसे पहले अपना बजट बनाए

कई लोगों को लगता है कि बजट कम है, तो क्या हुआ. अभी लोन लें लेंगे या किसी से उधार ले कर बड़ा घर ले लेते हैं आखिर घर एक बार ही बनाया जाता है. लेकिन ये सोच सही नहीं है क्योंकि जितनी अपनी चादर हो उतने ही पैर पसारने चाहिए. अगर आप की सेविंग्स कम हैं. तो फिर आपको होम लोन लेना पड़ जाएगा. लेकिन ज्यादा होम लोन लेने से आपको ज्यादा इंटरेस्ट देना होगा. इसीलिए उस बजट में घर खरीदें. जहां आपको होम लोन ज्यादा न लेना पड़े.

होम लोन लेने से पहले धयान दें

घर की कीमत और कैसे घर लेना है ये तय करने के बाद देखें कि आपको होम लोन की जरूरत पड़ रही है या नहीं. अगर पड़ रही है तो कितनी और आपके पास जमा पूंजी कितनी है. साथ ही यह भी कैल्कुलेट करें कि आपको होम लोन कितने साल के लिए लेना चाहिए. दरअसल, आप जितने कम साल के लिए लोन लेंगे, आपको ईएमआई उतनी ही अधिक चुकानी होगी.

हालांकि, ऐसे आप पर ब्याज कम लगेगा, लेकिन अपनी सैलरी के हिसाब से यह भी देखना जरूरी है कि आपके बाकी खर्चों पर घर की ईएमआई का असर न पड़े. सबसे पहले बैंक से पता करें कि आप की मौजूदा सैलरी पर आप को कितना होम लोन मिल पाएगा. होम लोन लेने से पहले सभी बैंकों के औफर्स और ब्याज दरें चेक कर लें, जहां सब से किफायती लगे वहां से लोन लें.

औन-साइट लाइसेंस और अप्रूवल

घर खरीदते समय ये जानना बहुत जरूरी है कि जहां आप अपने सपनों का घर खरीदने जा रहे हैं वहां की प्रौपर्टी से जुड़े सभी दस्तावेज जैसे; स्थानीय अथौरिटी से प्रौपर्टी के लिए अप्रूवल और क्लीयरेंस. साथ ही कुछ और जरूरी कागजात हैं जो आपको चेक करने चाहिए जैसे; बिल्डर के पास प्रोजेक्ट के लिए टाइटल डीड, रिलीज सर्टिफिकेट, प्रोपर्टी टैक्स रिसिप्ट और फायर अप्रूवल जैसे सभी कागज होने चाहिए.  इसके साथसाथ जमीन के इस्तेमाल के लिए वेरिफिकेशन और RERA सर्टिफिकेशन का होना भी जरूरी है.

रेरा रजिस्ट्रेशन चेक करें

सब से पहले यह चेक करें कि प्रोजेक्ट राज्य की रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथौरिटी (RERA) में रजिस्टर है या नहीं. इस से आप को प्रोजेक्ट की सही जानकारी और कानूनी सुरक्षा मिलती है.

प्रौपर्टी विवाद मुक्त हो

आजकल बहुत धोखाधड़ी है जिस जमीन पर मकान बना होता है वह विवादों में फांसी होती और उस पर केस चल रहा होता है और अगर आपका बिल्डर केस हार गया तो आपको अपनी ही खरीदी हुए प्रौपर्टी से हाथ धोना पड़ सकता है इसलिए तय करें कि जमीन का मालिकाना हक डेवलपर के नाम पर है और वह विवाद-मुक्त है.

बिल्डर का पिछला रिकार्ड भी देखें

डेवलपर द्वारा पहले पूरे किए गए प्रोजेक्ट्स, समय पर डिलीवरी, निर्माण गुणवत्ता और ग्राहकों की प्रतिक्रिया की जांच करें. यह सब आप को इंटरनेट पर मिल जाएगा या फिर उस बिल्डर के बाकि प्रोजेक्ट को देखकर आएं इस से आप को काफी जानकारी मिलेगी कि तरह का है. सब देखकर ही अपना पैसा वहां लगाएं.

पजेशन कब मिलेगा यह तय करें

पजेशन मिलने की तारीख के बारे में स्पष्ट बातचीत करें और देरी की स्थिति में जुर्माने से संबंधित शर्तों को भी समझें. क्यूंकि कई बार ये प्रोजेक्ट शुरू तो हो जाते हैं लेकिन इन में कई सालों की देरी हो जाती है जो आप के लिए मुश्किल कड़ी कर  इसलिए इस से सम्बंधित सारी शर्तों को अपने पेपर वर्क में ऐड कराएं.

औल-इनक्लूसिव कौस्ट

कई बार बिल्डर आपको जितनी रकम बताता है, बाद में पता चलता है ये मकान इन हैंड उससे भी कई ज्यादा पड़ेगा और वो चीज आपके बजट से बाहर है. ये चीज पहले ही तय कर लें कि जीएसटी, मेंटेनेंस डिपौजिट, पार्किंग, क्लब हाउस चार्ज जैसे सभी खर्च इस में शामिल हैं या नहीं. अगर नहीं है, तो अभी इन सभी को जोड़कर ओवरआल कौस्ट निकालें और फिर कोई फैसला लें.

लोकेशन जरूर देखें

कई बार हम बस ये देखते हैं कि घर हमारे बजट में हैं, तो चलो बुक करा देते हैं लेकिन बाद में जब हम उस में रहने आते हैं तो पता चलता है वहां न तो कोई मार्किट हैं, न ही पब्लिक ट्रांस्पोर्ट की सुविधा है. इस के अलावा भी लगता है हमने आबादी से बहुत दूर घर ले लिया जहां से सभी कुछ दूर हैं. लेकिन अब कोई औप्शन नहीं होता है इसलिए आसपास की सुविधाएं, ट्रांसपोर्ट, स्कूल, अस्पताल और भविष्य में एरिया का विकास देखें तभी कोई घर बुक कराएं.

औक्युपेंसी सर्टिफिकेट (OC)

जब तक OC न मिले, कब्जा न लें. यह बिल्डिंग की वैधता का प्रमाण होता है.

एजेंट को कमीशन देने से बचें

किसी एजेंट के माध्यम से घर खरीदने पर वह एक से डेढ़ फीसदी कमीशन लेता है. कुछ एजेंट घर बेचने वाले से भी कमीशन लेते हैं. यह आमतौर पर 1 फीसदी होता है. घर बेचने वाला अंतत: यह लागत खरीदार से ही वसूलता है. ऐसे में खरीदार को 2.5 से 3 फीसदी का डायरेक्ट और इनडायरेक्ट कमीशन देना पड़ जाता है. अगर डिवेलपर और बायर के बीच कोई एजेंट नहीं होगा तो यह कमीशन बच जाएगा. ऐसे में कोशिश करें कि घर सीधे डिवलेपर या सेलर्स से खरीदें.

रेडी टू मूव और अंडर कंस्ट्रक्शन क्या चाहते हैं आप

रेडी टू मूव घर में आप जाकर तुरंत शिफ्ट हो सकते हैं. लेकिन अंडर कंस्ट्रक्शन घर जो किसी प्रोजेक्ट के तहत बनाया जा रहा है. उस में रहने के लिए आपको वेट करना होता है. अगर आप जहां रह रहे हैं वहां आपका किराया ज्यादा नहीं है. यानी आपको रहने की कोई दिक्कत नहीं है. तो फिर आप अंडर कंस्ट्रक्शन घर में पैसा लगा सकते हैं. इसमें आप रेडी टू मूव घर के बजाय लाखों रुपए बचा सकते हैं.

लेकिन आपको इसमें बिल्डर से पहले ही पता कर लेना चाहिए कि घर का पजेशन आपको कब तक मिल पाएगा. अगर तय समय तक आपको पोजीशन नहीं मिला तो आपको मुआवजा दिया जाएगा या फिर नहीं यह भी पता कर लेना जरूरी है. लेकिन अगर आप जहां रहते हैं वहां का किराया ज्यादा है. तो फिर आप रेडी टू मूव घर ले सकते हैं.

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Pregnancy Sonography: प्रैगनैंसी में सोनोग्राफी कितनी जरूरी है

Pregnancy Sonography: क्या सोनोग्राफी करवाना जरूरी है? इस से मेरे बच्चे को नुकसान तो नहीं पहुंचेगा? कहीं डाक्टर अपने पैसे बनाने के लिए, तो बेवजह टेस्ट करवा कर मुझे तंग तो नहीं कर रहें? ये कुछ ऐसे सवाल है, जो हर प्रेग्नेंट वुमन के मन में आना नार्मल है और इन्हीं कुछ सवालों के जवाब हम आज इस लेख में देंगें.

सोनोग्राफी या अल्ट्रासाउंड क्या है?

गर्भावस्था सोनोग्राफी, जिसे प्रसूति सोनोग्राफी भी कहा जाता है अल्ट्रासाउंड, एक गैर-आक्रामक इमेजिंग तकनीक है जिस का उपयोग गर्भ के अंदर भ्रूण, प्लेसेंटा और एमनियोटिक द्रव को देखने के लिए किया जाता है. उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों का उपयोग करके, सोनोग्राफी विस्तृत चित्र बनाती है जो भ्रूण के विकास और मां के स्वास्थ्य की निगरानी करने में मदद करती है.

अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी जांच के जरिए डाक्टर शिशु के शरीर में होने वाली बीमारियों और अंदरूनी अंगो की गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं. अल्ट्रासाउंड एक तरह का साउंड वेव टेस्ट होता है, जिस से हमारे शरीर के अंदर के हिस्सों की गतिविधियों की विशेष तस्वीरें मिलती हैं.

सोनोग्राफी या अल्ट्रासाउंड करना क्यों जरूरी है?

  • अल्ट्रासाउंड के माध्यम से शिशु के विकास की जांच की जाती है. इस से यह पता चलता है कि शिशु का वजन, लंबाई, और आकार सही तरीके से बढ़ रहा है या नहीं.
  • गर्भ में शिशु की स्थिति का पता लगाने में अल्ट्रासाउंड मदद करता है. इस से यह पता चलता है कि शिशु का सिर नीचे है या ऊपर.
  • अल्ट्रासाउंड के माध्यम से गर्भनाल की स्थिति और उस की सेहत की जांच की जाती है.
  • अल्ट्रासाउंड के माध्यम से शिशु की दिल की धड़कन सुनी जा सकती है, जिससे यह पता चलता है कि उसका दिल सही तरीके से काम कर रहा है या नहीं.
  • अल्ट्रासाउंड के माध्यम से शिशु में किसी भी प्रकार के जन्म दोषों की जांच की जा सकती है.

पहला अल्ट्रासाउंड 6 से 9 सप्ताह के बीच होता है

यह आमतौर पर 6-9 सप्ताह के बीच किया जाता है और यह प्रेग्नेंसी को कन्फर्म करने का सबसे सटीक तरीका है. अगर प्रेग्नेंसी में कोई कम्प्लेकशन है तो इसका पता भी अल्ट्रासाउंड से लग जाता है. अल्ट्रासाउंड में गर्भ नलिका और गर्भस्थ बच्चा की स्थिति की जांच की जाती है. यह जांच करता है कि गर्भ नलिका सही जगह पर है या नहीं, गर्भस्थ बच्चे का विकास सही हो रहा है या नहीं, गर्भस्थ बच्चे की धड़कन सामान्य है या नहीं.

2 माह की गर्भवती अल्ट्रासाउंड सामान्य तौर पर तभी किया जाता है जब डाक्टर इस की सलाह दे. कुछ मामलों में 1 माह की गर्भवती अल्ट्रासाउंड भी किया जा सकता है, खासतौर पर जब महिला को किसी प्रकार की परेशानी हो रही हो या डॉक्टर को गर्भ की स्थिति जल्दी जानने की आवश्यकता हो.

दूसरा अल्ट्रासाउंड 18 से 20 हफ्तों के बीच किया जाता है

18 से 20 हफ़्तों के बीच बच्चे का विकास काफी तेजी से होने लगता है इसलिए ऐसे में यह देखना जरूरी होता है कि बच्चा ठीक से बढ़ रहा है या नहीं. यही वह समय होता है जब बच्चे के अंग विकसित होने लगते हैं तो यह जांच करना भी जरूरी होता है कि बच्चे के दिमाग, किडनी, दिल ठीक से काम कर भी रहें हैं या नहीं.

इस स्कैन के दौरान, आपके बच्चे की गर्दन के पीछे तरल पदार्थ की मोटाई मापी जाती है, जिस से आनुवंशिक स्थितियों की अधिक संभावना का संकेत मिल सकता है. इस तरह जांच कर के अगर कोई जेनेटिक बीमारी हो तो उसका पता भी लगाया जा सकता है.

तीसरा अल्ट्रासाउंड 28 से 32 हफ्ते के बीच होता है

तीसरे अल्ट्रासाउंड से गर्भस्थ शिशु के शारीरिक विकास और वजन की निगरानी की जाती है. डाक्टर देखते हैं कि बच्चे का वजन जन्म के हिसाब से सही है या नहीं. यह समय भ्रूण की स्थिति और हार्टबीट की पुष्टि करने के लिए उपयुक्त होता है.

चौथा अल्ट्रासाउंड 34 से 36 हफ्ते के दौरान

चौथा अल्ट्रासाउंड बच्चे के विकास को मौनिटर करने के लिए, गर्भ में बच्चे की पोजीशन जानने के लिए, गर्भनाल का पता लगाने, गर्भ में फ्लूइड की मात्रा की जांच करने के लिए किया जाता है और यह करना जरूरी भी होता है ताकि सही ढंग से डिलीवरी की जा सकें.

अल्ट्रासाउंड के लिए पानी पीकर जाना चाहिए

अल्ट्रासाउंड से पहले अधिक पानी पीने की सलाह दी जाती है, खासकर शुरुआती तिमाही के दौरान. इससे आपका मूत्राशय भर जाता है, जिससे डाक्टर को गर्भाशय और गर्भस्थ शिशु की स्पष्ट छवियां मिलती हैं. आमतौर पर, अल्ट्रासाउंड से लगभग एक घंटे पहले एक लीटर पानी पीने की सलाह दी जाती है.

अल्ट्रासाउंड करवाने के फायदे क्या है

  • अल्ट्रासाउंड करवाने के दौरान महिलाओं को सुई, कट नहीं लगता है.
  • अल्ट्रासाउंड बिल्कुल दर्द रहित तकनीक है.
  • अल्ट्रासाउंड एक्स-रे और सिटी स्कैन से ज्यादा सुरक्षित है.
  • अल्ट्रासाउंड का कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता है.
  • अल्ट्रासाउंड बच्चे की छवि को बिल्कुल स्पष्ट दिखाता है, जो कि एक्स-रे में सभव नहीं है.

आज की तारीख में अल्ट्रासाउंड हर गर्भवती महिला बहुत आसान से करवा सकती है. यह ज्यादा महंगा भी नहीं है.

अल्ट्रासाउंड करवाते समय क्या सावधानियां बरते:

  • डाक्टर की सलाह के अनुसार ही अल्ट्रासाउंड करवाएं.
  • अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए हमेशा अनुभवी और योग्य चिकित्सक का चयन करें.
  • केवल आवश्यक होने पर ही अल्ट्रासाउंड करवाएं.

Pregnancy Sonography

Hindi Drama Story: वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई

लेखक- साधना जैन

Hindi Drama Story: कभी कभी जिंदगी में कुछ घटनाएं ऐसी भी घटती हैं, जो अपनेआप में अजीब होती हैं. ऐसा ही वाकिआ एक बार मेरे साथ घटा था, जब मैं दिल्ली से हैदराबाद जा रहा था. उस दिन बारिश हो रही थी, जिस की वजह से मुझे एयरपोर्ट पहुंचने में 10 मिनट की देरी हो गई थी और काउंटर बंद हो चुका था. आज पूरे 2 साल बाद जब मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा और बारिश को उसी दिन की तरह मदमस्त बरसते देखा, तो अचानक से वह भूला हुआ किस्सा न जाने कैसे मेरे जेहन में ताजा हो गया.

मैं खुद हैरान था, क्योंकि पिछले 2 सालों में शायद ही मैं ने इस किस्से को कभी याद किया होगा.

एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर होने के चलते काम की जिम्मेदारियां इतनी ज्यादा हैं कि कब सुबह से शाम और शाम से रात हो जाती है, इस का हिसाब रखने की फुरसत नहीं मिलती. यहां तक कि मैं इनसान हूं रोबोट नहीं, यह भी खुद को याद दिलाना पड़ता है.

लेकिन आज हवाईजहाज से उतरते ही उस दिन की एकएक बात आंखों के सामने ऐसे आ गई, जैसे किसी ने मेरी जिंदगी को पीछे कर उस दिन के उसी वक्त पर आ कर रोक दिया हो. चैकआउट करने के बाद भी मैं एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकला या यों कहें कि मैं जा ही नहीं पाया और वहीं उसी जगह पर जा कर बैठ गया, जहां 2 साल पहले बैठा था.

मेरी नजरें भीड़ में उसे ही तलाशने लगीं, यह जानते हुए भी कि यह सिर्फ मेरा पागलपन है. मेन गेट की तरफ देखतेदेखते मैं हर एक बात फिर से याद करने लगा.

टिकट काउंटर बंद होने की वजह से उस दिन मेरे टिकट को 6 घंटे बाद वाली फ्लाइट में ट्रांसफर कर दिया गया था. मेरा उसी दिन हैदराबाद पहुंचना बहुत जरूरी था. कोई और औप्शन मौजूद न होने की वजह से मैं वहीं इंतजार करने लगा.

बारिश इतनी तेज थी कि कहीं बाहर भी नहीं जा सकता था. बोर्डिंग पास था नहीं, तो अंदर जाने की भी इजाजत नहीं थी और बाहर ज्यादा कुछ था नहीं देखने को, तो मैं अपने आईपैड पर किताब पढ़ने लगा.

अभी 5 मिनट ही बीते होंगे कि एक लड़की मेन गेट से भागती हुई आई और सीधा टिकट काउंटर पर आ कर रुकी. उस की सांसें बहुत जोरों से चल रही थीं. उसे देख कर लग रहा था कि वह बहुत दूर से भागती हुई आ रही है, शायद बारिश से बचने के लिए. लेकिन अगर ऐसा ही था तो भी उस की कोशिश कहीं से भी कामयाब होती नजर नहीं आ रही थी. वह सिर से पैर तक भीगी हुई थी.

यों तो देखने में वह बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस के बाल कमर से 2 इंच नीचे तक पहुंच रहे थे और बड़ीबड़ी आंखें उस के सांवले रंग को संवारते हुए उस की शख्सीयत को आकर्षक बना रही थीं.

तेज बारिश की वजह से उस लड़की की फ्लाइट लेट हो गई थी और वह भी मेरी तरह मायूस हो कर सामने वाली कुरसी पर आ कर बैठ गई. मैं कब किताब छोड़ उसे पढ़ने लगा था, इस का एहसास मुझे तब हुआ, जब मेरे मोबाइल फोन की घंटी बजी.

ठीक उसी वक्त उस ने मेरी तरफ देखा और तब तक मैं भी उसे ही देख रहा था. उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं था. मैं सकपका गया और उस पल की नजर से बचते हुए फोन को उठा लिया.

फोन मेरी मंगेतर का था. मैं अभी उसे अपनी फ्लाइट मिस होने की कहानी बता ही रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने बैठी उस लड़की पर फिर से पड़ी. वह थोड़ी घबराई हुई सी लग रही थी. वह बारबार अपने मोबाइल फोन पर कुछ चैक करती, तो कभी अपने बैग में.

मैं जल्दीजल्दी फोन पर बात खत्म कर उसे देखने लगा. उस ने भी मेरी ओर देखा और इशारे में खीज कर पूछा कि क्या बात है? मैं ने अपनी हरकत पर शर्मिंदा होते हुए उसे इशारे में ही जवाब दिया कि कुछ नहीं.

उस के बाद वह उठ कर टहलने लगी. मैं ने फिर से अपनी किताब पढ़ने में ध्यान लगाने की कोशिश की, पर न चाहते हुए भी मेरा मन उस को पढ़ना चाहता था. पता नहीं, उस लड़की के बारे में जानने की इच्छा हो रही थी.

कुछ मिनट ही बीते होंगे कि वह लड़की मेरे पास आई और बोली, ‘सुनिए, क्या आप कुछ देर मेरे बैग का ध्यान रखेंगे? मैं अभी 5 मिनट में चेंज कर के वापस आ जाऊंगी.’

‘जी जरूर. आप जाइए, मैं ध्यान रख लूंगा,’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘थैंक यू. सिर्फ 5 मिनट… इस से ज्यादा टाइम नहीं लूंगी आप का,’ यह कह कर वह बिना मेरे जवाब का इंतजार किए वाशरूम की ओर चली गई.

10-15 मिनट बीतने के बाद भी जब वह नहीं आई, तो मुझे उस की चिंता होने लगी. सोचा जा कर देख आऊं, पर यह सोच कर कि कहीं वह मुझे गलत न समझ ले. मैं रुक गया. वैसे भी मैं जानता ही कितना था उसे. और 10 मिनट बीते. पर वह नहीं आई.

अब मुझे सच में घबराहट होने लगी थी कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया. वैसे, वह थोड़ी बेचैन सी लग रही थी. मैं उसे देखने जाने के लिए उठने ही वाला था कि वह मुझे सामने से आती हुई नजर आई. उसे देख कर मेरी जान में जान आई. वह ब्लैक जींस और ह्वाइट टौप में बहुत अच्छी लग रही थी. उस के खुले बाल, जो शायद उस ने सुखाने के लिए खोले थे, किसी को भी उस की तरफ खींचने के लिए काफी थे.

वह अपना बैग उठाते हुए एक फीकी सी हंसी के साथ मुझ से बोली, ‘सौरी, मुझे कुछ ज्यादा ही टाइम लग गया. थैंक यू सो मच.’

मैं ने उस की तरफ देखा. उस की आंखें लाल लग रही थीं, जैसे रोने के बाद हो जाती हैं. आंखों की उदासी छिपाने के लिए उस ने मेकअप का सहारा लिया था, लेकिन उस की आंखों पर बेतरतीबी से लगा काजल बता रहा था कि उसे लगाते वक्त वह अपने आपे में नहीं थी. शायद उस समय भी वह रो रही हो.

यह सोच कर पता नहीं क्यों मुझे दर्द हुआ. मैं जानने को और ज्यादा बेचैन हो गया कि आखिर बात क्या है.

मैं ने अपनी उलझन को छिपाते हुए उस से सिर्फ इतना कहा, ‘यू आर वैलकम’.

कुछ देर बाद देखा तो वह अपने बैग में कुछ ढूंढ़ रही थी और उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. शायद उसे अपना रूमाल नहीं मिल रहा था.

उस के पास जा कर मैं ने अपना रूमाल उस के सामने कर दिया. उस ने बिना मेरी तरफ देखे मुझ से रूमाल लिया और उस में अपना चेहरा छिपा कर जोरजोर से रोने लगी.

वह कुरसी पर बैठी थी. मैं उस के सामने खड़ा था. उसे रोते देख जैसे ही मैं ने उस के कंधे पर हाथ रखा, वह मुझ से चिपक गई और जोरजोर से रोने लगी. मैं ने भी उसे रोने दिया और वे कुछ पल खामोश अफसानों की तरह गुजर गए.

कुछ देर बाद जब उस के आंसू थमे, तो उस ने खुद को मुझ से अलग कर लिया, लेकिन कुछ बोली नहीं. मैं ने उसे पीने को पानी दिया, जो उस ने बिना किसी झिझक के ले लिया.

फिर मैं ने हिम्मत कर के उस से सवाल किया, ‘अगर आप को बुरा न लगे, तो एक सवाल पूछं?’

उस ने हां में अपना सिर हिला कर अपनी सहमति दी.

‘आप की परेशानी का सबब पूछ सकता हूं? सब ठीक है न?’ मैं ने डरतेडरते पूछा.

‘सब सोचते हैं कि मैं ने गलत किया, पर कोई यह समझने की कोशिश नहीं करता कि मैं ने वह क्यों किया?’ यह कहतेकहते उस की आंखों में फिर से आंसू आ गए.

‘क्या तुम्हें लगता है कि तुम से गलती हुई, फिर चाहे उस के पीछे की वजह कोई भी रही हो?’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा.

‘मुझे नहीं पता कि क्या सही है

और क्या गलत. बस, जो मन में आया वह किया?’ यह कह कर वह मुझ से अपनी नजरें चुराने लगी.

‘अगर खुद जब समझ न आए, तो किसी ऐसे बंदे से बात कर लेनी चाहिए, जो आप को नहीं जानता हो, क्योंकि वह आप को बिना जज किए समझने की कोशिश करेगा?’ मैं ने भी हलकी मुसकराहट के साथ कहा.

‘तुम भी यही कहोगे कि मैं ने गलत किया?’

‘नहीं, मैं यह समझने की कोशिश करूंगा कि तुम ने जो किया, वह क्यों किया?’

मेरे ऐसा कहते ही उस की नजरें मेरे चेहरे पर आ कर ठहर गईं. उन में शक तो नहीं था, पर उलझन के बादलजरूर थे कि क्या इस आदमी पर यकीन किया जा सकता है? फिर उस ने अपनी नजरें हटा लीं और कुछ पल सोचने के बाद फिर मुझे देखा.

मैं समझ गया कि मैं ने उस का यकीन जीत लिया है. फिर उस ने अपनी परेशानी की वजह बतानी शुरू की.

दरअसल, वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में बड़ी अफसर थी. वहां उस के 2 खास दोस्त थे रवीश और अमित. रवीश से वह प्यार करती थी. तीनों एकसाथ बहुत मजे करते. साथ ही, आउटस्टेशन ट्रिप पर भी जाते. वे दोनों इस का बहुत खयाल रखते थे.

एक दिन उस ने रवीश से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उस ने कभी उसे दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं माना. रवीश ने उसे यह भी बताया कि अमित उस से बहुत प्यार करता है और उसे उस के बारे में एक बार सोच लेना चाहिए.

उसे लगता था कि रवीश अमित की वजह से उस के प्यार को स्वीकार नहीं कर रहा, क्योंकि रवीश और अमित में बहुत गहरी दोस्ती थी. वह अमित से जा कर लड़ पड़ी कि उस की वजह से ही रवीश ने उसे ठुकरा दिया है और साथ में यह भी इलजाम लगाया कि कैसा दोस्त है वह, अपने ही दोस्त की गर्लफ्रैंड पर नजर रखे हुए है.

इस बात पर अमित को गुस्सा आ गया और उस के मुंह से गाली निकल गई. बात इतनी बढ़ गई कि वह किसी और के कहने पर, जो इन तीनों की दोस्ती से जला करता था, उस ने अमित के औफिस में शिकायत कर दी कि उस ने मुझे परेशान किया. इस वजह से अमित की नौकरी भी खतरे में पड़ गई.

इस बात से रवीश बहुत नाराज हुआ और अपनी दोस्ती तोड़ ली. यह बात उस से सही नहीं गई और वह शहर से कुछ दिन दूर चले जाने का मन बना लेती है, जिस की वजह से वह आज यहां है.

यह सब बता कर उस ने मुझ से पूछा, ‘अब बताओ, मैं ने क्या गलत किया?’

‘गलत तो अमित और रवीश भी नहीं थे. वह थे क्या?’ मैं ने उस के सवाल के बदले सवाल किया.

‘लेकिन, रवीश मुझ से प्यार करता था. जिस तरह से वह मेरी केयर करता था और हर रात पार्टी के बाद मुझे महफूज घर पहुंचाता था, उस से तो यही लगता था कि वह भी मेरी तरह प्यार में है.’

‘क्या उस ने कभी तुम से कहा कि वह तुम से प्यार करता है?’

‘नहीं.’

‘क्या उस ने कभी अकेले में तुम से बाहर चलने को कहा?’

‘नहीं. पर उस की हर हरकत से

मुझे यही लगता था कि वह मुझे प्यार करता है.’

‘ऐसा तुम्हें लगता था. वह सिर्फ तुम्हें अच्छा दोस्त समझ कर तुम्हारा खयाल रखता था.’

‘मुझे पता था कि तुम भी मुझे ही गलत कहोगे,’ उस ने थोड़ा गुस्से से बोला.

‘नहीं, मैं सिर्फ यही कह रहा हूं कि अकसर हम से भूल हो जाती है यह समझने में कि जिसे हम प्यार कह रहे हैं, वो असल में दोस्ती है, क्योंकि प्यार और दोस्ती में ज्यादा फर्क नहीं होता.’

‘लेकिन, उस की न की वजह अमित भी तो सकता है न?’

‘हो सकता है, लेकिन तुम ने यह जानने की कोशिश ही कहां की. अच्छा, यह बताओ कि तुम ने अमित की शिकायत क्यों की?’

‘उस ने मुझे गाली दी थी.’

‘क्या सिर्फ यही वजह थी? तुम ने सिर्फ एक गाली की वजह से अपने दोस्त का कैरियर दांव पर लगा दिया?’

‘मुझे नहीं पता था कि बात इतनी बढ़ जाएगी. मैं सिर्फ उस से माफी मंगवाना चाहती थी?

‘बस, इतनी सी ही बात थी?’ मैं ने उस की आंखों में झांक कर पूछा.

‘नहीं, मैं अमित को हर्ट कर के रवीश से बदला लेना चाहती थी, क्योंकि उस की वजह से ही रवीश ने मुझे इनकार किया था.’

‘क्या तुम सचमुच रवीश से प्यार करती हो?’

मेरे इस सवाल से वह चिढ़ गई और गुस्से में खड़ी हो गई.

‘यह कैसा सवाल है? हां, मैं उस से प्यार करती हूं, तभी तो उस के यह कहने पर कि मैं उस के प्यार के तो क्या दोस्ती के भी लायक नहीं. यह सुन कर मुझे बहुत हर्ट हुआ और मैं घर क्या अपना शहर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘पर जिस समय तुम ने रवीश से अपना बदला लेने की सोची, प्यार तो तुम्हारा उसी वक्त खत्म हो गया था, प्यार में सिर्फ प्यार किया जाता है, बदले नहीं लिए जाते और वह दोनों तो तुम्हारे सब से अच्छे दोस्त थे?’

मेरी बात सुन कर वह सोचती हुई फिर से कुरसी पर बैठ गई. कुछ देर तक तो हम दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला. कुछ देर बाद उस ने ही चुप्पी तोड़ी और बोली, ‘मुझ में क्या कमी थी, जो उसे मुझ से प्यार नहीं हुआ?’ और यह कहतेकहते वह मेरे कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.

‘हर बार इनकार करने की वजह किसी कमी का होना नहीं होता. हमारे लाख चाहने पर भी हम खुद को किसी से प्यार करने के लिए मना नहीं सकते. अगर ऐसा होता तो रवीश जरूर ऐसा करता,’ मैं ने भी उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘सब मुझे बुरा समझते हैं,’ उस ने बच्चे की तरह रोते हुए कहा.

‘नहीं, तुम बुरी नहीं हो. बस टाइम थोड़ा खराब है. तुम अपनी शिकायत वापस क्यों नहीं ले लेतीं?’

‘इस से मेरी औफिस में बहुत बदनामी होगी. कोई भी मुझ से बात तक नहीं करेगा?’

‘हो सकता है कि ऐसा करने से तुम अपनी दोस्ती को बचा लो और क्या पता, रवीश तुम से सचमुच प्यार करता हो और वह तुम्हें माफ कर के अपने प्यार का इजहार कर दे,’ मैं ने उस का मूड ठीक करने के लिए हंसते हुए कहा.

यह सुन कर वह हंस पड़ी. बातों ही बातों में वक्त कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. मेरी फ्लाइट जाने में अभी 2 घंटे बाकी थे और उस की में एक घंटा.

मैं ने उस से कहा, ‘बहुत भूख लगी है. मैं कुछ खाने को लाता हूं,’ कह कर मैं वहां से चला गया.

थोड़ी देर बाद मैं जब वापस आया, तो वह वहां नहीं थी. लेकिन मेरी सीट पर मेरे बैग के नीचे एक लैटर था, जो उस ने लिखा था:

‘डियर,

‘आज तुम ने मुझे दूसरी गलती करने से बचा लिया, नहीं तो मैं सबकुछ छोड़ कर चली जाती और फिर कभी कुछ ठीक नहीं हो पाता. अब मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. तुम अजनबी नहीं होते, तो शायद मैं कभी तुम्हारी बात नहीं सुनती और मुझे अपनी गलती का कभी एहसास नहीं होता. अजनबी ही रहो, इसलिए अपनी पहचान बताए बिना जा रही हूं. शुक्रिया, सहीगलत का फर्क समझाने के लिए. जिंदगी ने चाहा, तो फिर कभी तुम से मुलाकात होगी.’

मैं खत पढ़ कर मुसकरा दिया. कितना अजीब था यह सब. हम ने घंटों बातें कीं, लेकिन एकदूसरे का नाम तक नहीं पूछा. उस ने भी मुझ अजनबी को अपने दिल का पूरा हाल बता दिया. बात करते हुए ऐसा कुछ लगा ही नहीं कि हम एकदूसरे को नहीं जानते और मैं बर्गर खाते हुए यही सोचने लगा कि वह वापस जा कर करेगी क्या?

फोन की घंटी ने मुझे मेरे अतीत से जगाया. मैं अपना बैग उठा कर एयरपोर्ट से बाहर निकल गया. लेकिन निकलने से पहले मैं ने एक बार फिर चारों तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वह मुझे नजर आ जाए. मुझे लगा कि शायद जिंदगी चाहती हो मेरी उस से फिर मुलाकात हो. यह सोच कर मैं पागलपन पर खुद ही हंस दिया और अपने रास्ते निकल पड़ा.

अच्छा ही हुआ, जो उस दिन हम ने अपने फोन नंबर ऐक्सचेंज नहीं किए और एकदूसरे का नाम नहीं पूछा. एकदूसरे को जान जाते, तो वह याद आम हो जाती या वह याद ही नहीं रहती.

अकसर ऐसा होता है कि हम जब किसी को अच्छी तरह जानने लगते हैं, तो वो लोग याद आना बंद हो जाते हैं. कुछ रिश्ते अजनबी भी तो रहने चाहिए, बिना कोई नाम के.

Hindi Drama Story

Hindi Story: बदबू- कमली की अनोखी कहानी

Hindi Story: ‘‘इतनी रात गए कहां से आ रहा है? हम सब परेशान हो रहे थे कि शाम से तू किधर है…’’ बापू की यह पूछताछ किसना को अखर गई.

‘‘तुम से चुपचाप सोया भी नहीं जाता है? अरे, जरा मुझे भी सुकून से अपने हिसाब से जीने दो,’’ किसना की तल्खी देख बापू समझ गए कि उन का बेटा जरूर कोई तीर मार कर आया है.

‘चलो, इस निखट्टू ने आज कुछ तो किया,’ यह सोचते हुए बापू नींद के आगोश में गुम हो गए.

कमरे में कमली अधनींदी सी लेटी हुई थी. आहट सुन कर वह उठ बैठी. देखा कि किसना ने कुछ नोट निकाले और उन्हें अलमारी में रखने लगा. कमली की आंखें खुशी से चमक उठीं. उसे लगा कि 2 महीने ईंटभट्ठे पर काम करने की तनख्वाह आखिरकार किसना को मिल ही गई. कमली को पलभर में जरूरतों की झिलमिल करती लंबी फेहरिस्त पूरी होती दिखने लगी.

‘‘लगता है कि रज्जाक मियां ने आखिरकार तुम्हारी पूरी तनख्वाह दे ही दी. मैं तो सोच रही थी कि हर बार की तरह इस बार भी आजकल कर के 6 महीने में आधी ही तनख्वाह देगा,’’ कमली ने चहकते हुए पूछा.

‘‘अरे, वह क्यों देने लगा? इतना ही सीधा होता, तो हमारा खून क्यों पीता?’’ किसना ने खाट पर पसरते हुए कहा.

कमली ने देखा कि किसना पसीने से भीगा हांफ रहा था.

‘बेचारा दिनभर मजदूरी और काम की तलाश में भटकतादौड़ता रहता है,’ कमली ने सोचा.

कोई और दिन होता, तो कमली भी किसना को काट खाने ही दौड़ती कि कुछ कमा कर लाओ नहीं तो घर कैसे चलेगा, पर आज तो अलमारी में रखे नोट उस के दिल में हलचल मचा रहे थे.

कमली गुनगुनाती हुई एक लोटा पानी ले आई.

‘‘लो, पानी पी लो. लग रहा है कि तुम बहुत थक गए हो…

‘‘क्या हुआ… तुम्हारी छाती धौंकनी सी क्यों चल रही है?

‘‘अरे, रज्जाक भाई ने पैसा नहीं दिया, तो फिर किस ने दिया पैसा?’’ कमली ने लाड़ जताते हुए पूछा.

‘‘जब से आया हूं, पहले बापू ने, फिर तुम ने मेरा दिमाग चाट कर रख दिया है. क्या कुछ देर शांति नहीं मिल सकती मुझे?’’ लोटा फेंकते हुए किसना ने कहा और करवट ले कर सोने की कोशिश करने लगा.

कमली ने चुपचाप किसना को एक चादर ओढ़ा दी और बगल में लेट गई.

किसना बेचैन सा रातभर करवटें बदलते रहा. वह कभी उठ बैठता, तो कभी लेट जाता.

सुबह के 5 बजे कमली उठी और तैयार हो कर उस ने ग्रेटर नोएडा की बस पकड़ी, जहां वह कुछ घरों मेंझाड़ूपोंछा और बरतन धोने का काम करती थी.

बिजली की फुरती से काम निबटाती कमली 5वें घर में जा पहुंची. वहां वह चायनाश्ता बनाती थी. साहब और बीबीजी को दे कर वह खुद भी खाती थी. कमली के वे साहब और बीबीजी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. सो, वहां सुबह की हड़बड़ी नहीं रहती थी. वे दोनों देर तक सोने के आदी थे. आज भी सवा 10 बज गए थे. डोरबैल की आवाज से ही बीबीजी जागी थीं.

‘‘आओ कमली… पहले चाय बना ले… मैं तुम्हारे साहब को जगाती हूं…’’ कह कर बीबीजी बाथरूम में हाथमुंह धोने चली गईं.

जब तक चाय उबली, फुरतीली कमली ने सब्जीभाजी काट ली और कुकर में छौंक दी. इस के बाद कमली ने साहबजी और बीबीजी को चाय थमा दी और खुद भी वहीं फर्श पर बैठ कर चाय पीने लगी. लगातार 4-5 घंटे काम करने के बाद वह हर दिन यहीं पलभर के लिए आराम करती थी.

साहबजी ने टैलीविजन चला दिया था. बारबार ‘दादरी दादरी’ सुन कर कमली के कान खड़े हुए, चाय हाथ से छलकतेछलकते बची.

जब दादरी के बिसाहड़ा गांव का नाम भी सुना, तो बीबीजी ने पूछा, ‘‘कमली, तुम भी तो काम करने दादरी से ही आती हो न? क्या तुम इन को जानती हो? रात एक भीड़ ने इन की हत्या कर दी…’’ मारे गए आदमी के फोटो को दिखाते हुए बीबीजी ने पूछा.

‘‘हाय… हम तो इन के पीछे वाली बस्ती में ही रहते हैं. इन्हें किस ने मारा?’’ कमली एकदम से चिल्लाई.

अब कमली के हलक से चाय नहीं उतर रही थी. वह गुमसुम सी वहीं खड़ी हो गई.

‘‘बीबीजी, आज मुझे जल्दी जाने दो. मैं ने सब्जी बना दी है… रोटी आप बना लेना…’’ कहते हुए कमली घर लौटने को बेचैन हो उठी.

जैसेतैसे कमली अपनी बस्ती के पास पहुंची, तो देखा कि वहां जमघट लगा हुआ था. टैलीविजन पर रिपोर्ट दिखाने वाले, पुलिस और भी न जाने कौनकौन से लोग दिख रहे थे. आज तक इस जगह कोई नेता नहीं पहुंचा था, वहीं आज पूरी भीड़ लगी हुई थी.

कमली की आंखों के सामने बारबार मरने वाले का चेहरा आ रहा था.

माहौल की गरमी से डरतीझुलसती कमली अपनी झोंपड़ी तक पहुंची, पर पता नहीं क्यों अंदर का माहौल बड़ा ही ठंडा सा था. किसना उसे देखते ही खुश हो गया. वह बोला ‘‘अरे वाह. अच्छा हुआ, जो तू जल्दी आ गई. मैं चिकन लाया हूं, झट से पका दे. मुझे तो बड़े जोरों की भूख लगी है. मैं ने मसाला पीस रखा है.’’

कमली नाक और मुंह पर कपड़ा बांध कर चिकन बनाने में जुट गई. शुद्ध शाकाहारी कमली अभी भी हाथ से चिकन छू नहीं पाती थी, सो चमचे की मदद से उठाउठा कर पकाने में जुट गई.

‘उफ, आज तो मेरा उपवास हो गया,’ कमली ने सोचा, क्योंकि जिस दिन मांस पकता था, उस दिन वह खाना नहीं खा पाती थी. पर पति और ससुर की खुशी के लिए वह बना जरूर देती.

‘‘अरे, तुम ने कुछ सुना क्या… कल किस की हत्या हो गई बस्ती में? टैलीविजन पर देख कर मैं 5 नंबर वाली के यहां से काम छोड़ कर दौड़ी चली आई,’’ कमली बारबार पूछ रही थी, पर मानो किसना के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही थी.

तभी बाहर से ससुरजी भी झोंपड़ी में आ गए. उन के चेहरे की हालत बाहर के मौसम से बड़ी मेल खा रही थी. दोनों बापबेटे आपस में खुसुरफुसुर करने लगे. कमली अपने काम में लगी रही. मांस की बदबू बरदाश्त के बाहर थी, फिर भी कमली ने चिकन बनाया, फिर चावल भी बना दिए.

अब कमली को उबकाई आ रही थी. पिछवाड़े में जा कर वह टाट की आड़ में हथेलियों को रगड़रगड़ कर धोने लगी, फिर नहाई भी. नहाने के बाद उस का मन थोड़ा ठीक लग रहा था. बापबेटे दोनों खाने पर टूटे पड़े थे. उसे दया आ गई कि हाथ हमेशा तंग रहने के चलते कहां इन्हें मांस नसीब होता है जल्दी. वह तो कल रात किसना पैसे लाया तो…

घर में भर गई मांस की बदबू से बचने के लिए कमली बाहर निकल गई, पर बाहर तो उस से भी ज्यादा बदबू फैली हुई थी. आबोहवा में फैली ताजा मौत की बदबू, अफवाहों की बदबू, उस प्रतिबंधित मांस के जिक्र की बदबू, सब से बढ़ कर अपनों द्वारा अपनों को दिए गए दर्द की बदबू, उस ताजा बेवा के बिलखने की बदबू… रिश्तों के सड़ने की बदबू.

यह सोच कर कमली का सिर घूमने लगा. काफी देर से रोकी गई उबकाई निकल ही गई. हार कर उसे घर में फिर वापस आना ही पड़ा. बापबेटे दोनों आज खुश दिख रहे थे. ‘‘मेरे बारबार पूछने पर भी तुम ने क्यों नहीं बताया कि कल रात हुआ क्या था?’’ कमली ने नाक पर आंचल रखते हुए पूछा.

‘‘अरे, जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा ही. इस में बताने वाली कौन सी बात थी? हमें वैसे भी चुप रहने को कहा गया है,’’ किसना ने कहा.

उबकाई आने के बाद कमली का जी मिचलाना भले ठीक हो गया था, पर भड़ास अभी बाकी थी. ‘‘वह जो मैं ने अभी पकाया था, क्या मांस नहीं था?’’ कमली ने पूछा. ‘‘अगर जीव हत्या की बात करती हो, तो सिर्फ वही जीव होता है, जो दूसरों के घर में पकता है. तुम्हारे घर जो पका था, वह क्या था फिर?’’

‘‘मैं तो शुद्ध शाकाहरी घर से हूं, यहां तुम्हारी खुशी के लिए सबकुछ पकाती हूं या नहीं? तो क्या पड़ोसी की थोड़ी पसंद को बरदाश्त नहीं किया जा सकता है?’’ ‘‘अरे, जीवजंतु से रिश्ते जोड़ते हो, फिर पेट में मेरी बेटी है, पता लगवा कर क्यों मरवाया था पिछले साल उसे? क्या बेटी मां से कमतर होती है?’’ ऐसा कहते हुए कमली हांफने लगी थी. उसे कल रात के रुपए याद आ गए. अलमारी खोली, तो सामने ही दिख गए, ऐसा लगा जैसे उस ने फिर से मांस देख लिया.

वह रसोई से चिकन वाला चमचा उठा लाई और उसी से नोटों को ठेलते हुए घर के बाहर निकालने लगी. ‘‘पागल हो गई हो क्या? पैसे को फेंक रही हो,’’ कहते हुए किसना ने पैसे उठाए, झाड़े और उन्हें चूमता हुआ वापस अलमारी में रख आया.

हार कर कमली वहीं पसर गई और आंख बंद कर सोने की कोशिश करने लगी थी. वैसे भी आज उस का बिना मतलब उपवास हो गया था. उबकाई आने के बाद अंतडि़यां अब मरोड़ मार रही थीं. कमली की आधी रात को आंख खुली. सड़क से छन कर आ रही रोशनी में उसे अधखुली अलमारी से झांकते नोटों की तरफ नजर पड़ी. लेकिन वहां नोट कहां थे, वहां तो किसी के जले हुए मांस के टुकड़े पड़े थे, उस की बदबू से फिर मन बेचैन हो गया.

वह कोने में रखे चिकन पकाने वाले चमचे को फिर से उठा लाई और अलमारी से पैसे गिराने लगी. खटपट की आवाज से किसना की नींद खुल गई, पर अब की बार वह चिल्लाया नहीं, धीरे से नोटों को फिर से उठा कर चारपाई के नीचे रखे टिन के डब्बे में सहेज दिए. किसना उकड़ू बैठ कर कमली को देखने लगा. वह दिनभर में कैसी बीमार सी हो गई थी.

कमली उसे ही घूरे जा रही थी. उस की आंखों में तैरते सवालों के सैलाब में वह खुद को डूबता सा महसूस कर रहा था.

‘‘मुझे ऐसे न देखो, कमली. 2 दिन पहले तारिक भाई ने मुझे और कुछ और लोगों को अपने घर पर बुलाया था और हमें ये पैसे दिए थे. वह बोला था कि चाचा को मारने के बाद और पैसे मिलेंगे. घर में फूटी कौड़ी नहीं थी…’’ बमुश्किल किसना ने थूक गटकते हुए अपना मुंह खोला.

‘‘पर, तारिक तो चाचा की ही बिरादरी का…’’ चौंकते हुए कमली ने पूछा.

‘‘हां. अब तो जो होना था सो हो गया. खराब तो मुझे भी बहुत लग रहा है, वरना मुझे क्या मालूम था कि वे क्या खाते हैं, क्या नहीं खाते हैं. मुझे तो बस इतना पता था कि हमारे घर खाने को कुछ नहीं था,’’ पैरे के अंगूठे से जमीन कुरेदता किसना बोला.

‘‘मैं इतने घरों में काम करती हूं. मैं ने कभी उन की चीजों की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा और तू ने चंद रुपयों के लिए किसी की जान ले ली.

‘‘कल मैं कितना खुश हो रही थी कि मेरा मरद पैसे कमा कर लाया है. जाने कितने सपने संजो लिए थे मैं ने कि कैसे कहां खर्च करूंगी, किसी के खून से रंगे ये नोट हमें नहीं पचेंगे रे किसना,’’ कमली ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘मैं ने अकेले तो नहीं मारा उन्हें. और भी तो बहुत लोग थे,’’ किसना ने कमली को बताया. वे दोनों ही अगले 2 दिनों तक गुनाह के झंझावातों से जूझते रहे. रातदिन बड़ी मुश्किल से बिना खाए ही कट रहे थे, क्योंकि फिर उन रुपयों पर इन की लाली किसना ने भी महसूस की थी.

राजनीति की बिसात पर चालें चली जा चुकी थीं. शतरंज के पैदल सिपाही की कुरबानी दी जा चुकी थी. सत्ता और शतरंज सब से पहले आम नागरिकों की ही कुरबानी मांगते हैं. तीसरे दिन ही पुलिस की जीप चुनचुन कर 2 दिनों के लिए बादशाह बने तथाकथितों को अपने साथ लिए जा रही थी और उन पैसों को भी, जिस के लालच ने इन्हें ‘गरीब’ से सीधे ‘दंगाई’ बना दिया था.

बीच चौराहे पर अपनी बिखरी जिंदगी की किरचें चुनती कमली ने देखा कि तारिक भाई मारे गए शख्स के बेटे के कंधे पर हाथ रख रहे थे. कहीं से आवाज आई, ‘हमारा नेता कैसा हो, तारिक भाई जैसा हो.’ इस शोर तले कमली धुंधली आंखों से किसना को जीप में हथकड़ी पहने जाते देखती रह गई.

Hindi Story

Long Story in Hindi: और सीता जीत गई

Long Story in Hindi: बीच में एक छोटी सी रात है और कल सुबह 10-11 बजे तक राकेश जमानत पर छूट कर आ जाएगा. झोंपड़ी में उस की पत्नी कविता लेटी हुई थी. पास में दोनों छोटी बेटियां बेसुध सो रही थीं. पूरे 22 महीने बाद राकेश जेल से छूट कर जमानत पर आने वाला है. जितनी बार भी कविता राकेश से जेल में मिलने गई, पुलिस वालों ने हमेशा उस से पचास सौ रुपए की रिश्वत ली. वह राकेश के लिए बीड़ी, माचिस और कभीकभार नमकीन का पैकेट ले कर जाती, तो उसे देने के लिए पुलिस उस से अलग से रुपए वसूल करती.

ये 22 महीने कविता ने बड़ी परेशानियों के साथ गुजारे. पारधियों की जिंदगी से यह सब जुड़ा होता है. वे अपराध करें चाहे न करें, पुलिस अपने नाम की खातिर कभी भी किसी को चोर, कभी डकैत बना देती है. यह कोई आज की बात थोड़े ही है. कविता तो बचपन से देखती आ रही है. आंखें रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर खुली थीं, जहां उस के बापू कहीं से खानेपीने का इंतजाम कर के ला देते थे. अम्मां 3 पत्थर रख कर चूल्हा बना कर रोटियां बना देती थीं. कई बार तो रात के 2 बजे बापू अपनी पोटली को बांध कर अम्मां के साथ वह स्टेशन छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चले जाते थे. कविता जब थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे मालूम पड़ा कि बापू चोरी कर के उस जगह से भाग लेते थे और क्यों न करते चोरी? एक तो कोई नौकरी नहीं, ऊपर से कोई मजदूरी पर नहीं रखता, कोई भरोसा नहीं करता. जमीन नहीं, फिर कैसे पेट पालें? जेब काटेंगे और चोरी करेंगे और क्या…

लेकिन आखिर कब तक ऐसे ही सबकुछ करते रहने से जिंदगी चलेगी? अम्मां नाराज होती थीं, लेकिन कहीं कोई उपाय दिखलाई नहीं देता, तो वे भी बेबस हो जाती थीं. शादीब्याह में वे महाराष्ट्र में जाते थे. वहां के पारधियों की जिंदगी देखते तो उन्हें लगता कि वे कितने बड़े नरक में जी रहे हैं. कविता ने बापू से कहा भी था, ‘बापू, हम यहां औरंगाबाद में क्यों नहीं रह सकते?’

‘इसलिए नहीं रह सकते कि हमारे रिश्तेदार यहां कम वहां ज्यादा हैं और यहां की आबोहवा हमें रास नहीं आती,’ बापू ने कहा था. लेकिन, शादी के 4-5 दिनों में खूब गोश्त खाने को मिलता था. बड़ी खुशबू वाली साबुन की टिकिया मिलती थी. कविता उसे 4-5 बार लगा कर खूब नहाती थी, फिर खुशबू का तेल भी मुफ्त में मिलता था. जिंदगी के ये 4-5 दिन बहुत अच्छे से कटते थे, फिर रेलवे स्टेशन पर भटकने को आ जाते थे. इधर जंगल महकमे वालों ने पारधी जाति के फायदे के लिए काम शुरू किया था, वही बापू से जानकारी ले रहे थे, जिस के चलते शहर के पास एक छोटे से गांव टूराखापा में उस जाति के 3-4 परिवारों को बसा दिया गया था. इसी के साथ एक स्कूल भी खोल दिया गया था. उन से कहा जाता था कि उन्हें शिकार नहीं करना है. वैसे भी शिकार कहां करते थे? कभी शादीब्याह में या मेहमानों के आने पर हिरन फंसा कर काट लेते थे, लेकिन वह भी कानून से अपराध हो गया था.

यहां कविता ने 5वीं जमात तक की पढ़ाई की थी. आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना था. बापू ने मना कर दिया था, ‘कौन तुझे लेने जाएगा?’

अम्मां ने कहा था, ‘औरत की इज्जत कच्ची मिट्टी के घड़े जैसी होती है. एक बार अगर टूट जाए, तो जुड़ती नहीं है.’ कविता को नहीं मालूम था कि यह मिट्टी का घड़ा उस के शरीर में कहां है, इसलिए 5 साल तक पढ़ कर घर पर ही बैठ गई थी. बापू दिल्ली या इंदौर से प्लास्टिक के फूल ले आते, अम्मां गुलदस्ता बनातीं और हम बेचने जाते थे. 10-20 रुपए की बिक्री हो जाती थी, लेकिन मौका देख कर बापू कुछ न कुछ उठा ही लाते थे. अम्मां निगरानी करती रहती थीं. कविता भी कभीकभी मदद कर देती थी. एक बार वे शहर में थे, तब कहीं कोई बाबाजी का कार्यक्रम चल रहा था. उस जगह रामायण की कहानी पर चर्चा हो रही थी. कविता को यह कहानी सुनना बहुत पसंद था, लेकिन जब सीताजी की कोई बात चल रही थी कि उन्हें उन के घर वाले रामजी ने घर से निकाल दिया, तो वहां बाबाजी यह बतातेबताते रोने लगे थे. उस के भी आंसू आ गए थे, लेकिन अम्मां ने चुटकी काटी कि उठ जा, जो इशारा था कि यहां भी काम हो गया है.

बापू ने बैठेबैठे 2 पर्स निकाल लिए थे. वहां अब ज्यादा समय तक ठहर नहीं सकते थे, लेकिन कविता के कानों में अभी भी वही बाबाजी की कथा गूंज रही थी. उस की इच्छा हुई कि वह कल भी जाएगी. धंधा भी हो जाएगा और आगे की कहानी भी मालूम हो जाएगी. बस, इसी तरह से जिंदगी चल रही थी. वह धीरेधीरे बड़ी हो रही थी. कानों में शादी की बातें सुनाई देने लगी थीं. शादी होती है, फिर बच्चे होते हैं. सबकुछ बहुत ही रोमांचक था, सुनना और सोचना. उन का छोटा सा झोंपड़ा ही था, जिस पर बापू ने मोमजामा की पन्नी डाल रखी थी. एक ही कमरे में ही वे तीनों सोते थे. एक रात कविता जोरों से चीख कर उठ बैठी. बापू ने दीपक जलाया, देखा कि एक भूरे रंग का बिच्छू था, जो डंक मार कर गया था. पूरे जिस्म में जलन हो रही थी. बापू ने जल्दी से कहीं के पत्ते ला कर उस जगह लगाए, लेकिन जलन खूब हो रही थी. कविता लगातार चिल्ला रही थी. पूरे 2-3 घंटे बाद ठंडक मिली थी. जिंदगी में ऐसे कई हादसे होते हैं, जो केवल उसी इनसान को सहने होते हैं, कोई और मदद नहीं करता. सिर्फ हमदर्दी से दर्द, परेशानी कम नहीं होती है.

आखिर पास के ही एक टोले में कविता की शादी कर दी गई थी. लड़का काला, मोटा सा था, जो उस से ज्यादा अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन था तो वह उस का घरवाला ही. फिर वह बापू के पास के टोले का था, इसलिए 5-6 दिनों में अम्मां के साथ मुलाकात हो जाती थी. यहां कविता के पति की आधा एकड़ जमीन में खेती थी. 8-10 मुरगियां थीं. लग रहा था कि जिंदगी कुछ अच्छी है, लेकिन कभीकभी राकेश भी 4-5 दिनों के लिए गायब हो जाता था. बाद में पता चला कि राकेश भी डकैती या बड़ी चोरी करने जाता है. हिसाब होने पर हजारों रुपए उसे मिलते थे. कविता भी कुछ रुपए चुरा कर अम्मां से मिलने जाती, तो उन्हें दे देती थी.

लेकिन कविता की जिंदगी वैसे ही फटेहाल थी. कोई शौक, घूमनाफिरना कुछ नहीं. बस, देवी मां की पूजा के समय रिश्तेदार आ जाते थे, उन से भेंटमुलाकात हो जाती थी. शादी के 4 सालों में ही वह 2 लड़कियों की मां बन गई थी. इस बीच कभी भी रात को पुलिस वाले टोले में आ जाते और चारों ओर से घेर कर उन के डेरों की तलाशी लेते थे. कभीकभी उन के कंबल या कोई जेवर ही ले कर वे चले जाते थे. अकसर पुलिस के आने की खबर उन्हें पहले ही मिल जाती थी, जिस के चलते रात में सब डेरे से बाहर ही सोते थे. 2-4 दिनों के लिए रिश्तेदारियों में चले जाते थे. मामला ठंडा होने पर चले आते थे. इन्हें भी यह सबकुछ करना ठीक नहीं लगता था, लेकिन करें तो क्या करें? आधा एकड़ जमीन, वह भी सरकारी थी और जोकुछ लगाते, उस पर कभी सूखे की मार और कभी ओलों की बौछार हो जाती थी. सरकारी मदद भी नहीं मिलती थी, क्योंकि जमीन का कोई पट्टा भी उन के पास नहीं था. जोकुछ भी थोड़ाबहुत कमाते, वह जमीन खा जाती थी, लेकिन वे सब को यही बताते थे कि जमीन से जो उग रहा है, उसी से जिंदगी चल रही है. किसी को यह थोड़े ही कहते कि चोरी करते हैं.

पिछले 7-8 महीनों से बापू ने महुए की कच्ची दारू भी उतारना चालू कर दी थी. अम्मां उसे शहर में 1-2 जगह पहुंचा कर आ जाती थीं, जिस के चलते खर्चापानी निकल जाता था. कभीकभी राकेश रात को सोते समय कहता भी था कि यह सब उसे पसंद नहीं है, लेकिन करें तो क्या करें? सरकार कर्जा भी नहीं देती, जिस से भैंस खरीद कर दूध बेच सकें. एक रात वे सब सोए हुए थे कि किसी ने दरवाजे पर जोर से लात मारी. नींद खुल गई, तो देखा कि 2-3 पुलिस वाले थे. एक ने राकेश की छाती पर बंदूक रख दी, ‘अबे उठ, चल थाने.’

‘लेकिन, मैं ने किया क्या है साहब?’ राकेश बोला.

‘रायसेन में बड़े जज साहब के यहां डकैती डाली है और यहां घरवाली के साथ मौज कर रहा है,’ एक पुलिस वाले ने डांटते हुए कहा.

‘सच साहब, मुझे नहीं मालूम,’ घबराई आवाज में राकेश ने कहा. कविता भी कपड़े ठीक कर के रोने लगी थी.

‘ज्यादा होशियारी मत दिखा, उठ जल्दी से,’ और कह कर बंदूक की नाल उस की छाती में घुसा दी थी. कविता रो रही थी, ‘छोड़ दो साहब, छोड़ दो.’

पुलिस के एक जवान ने कविता के बाल खींच कर राकेश से अलग किया और एक लात जमा दी. चोट बहुत अंदर तक लगी. 3-4 टोले के और लोगों को भी पुलिस पकड़ कर ले आई और सब को हथकड़ी लगा कर लातघूंसे मारते हुए ले गई. कविता की दोनों बेटियां उठ गई थीं. वे जोरों से रो रही थीं. वह उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकती थी. पूरी रात जाग कर काटी और सुबह होने पर उन्हें ले कर वह सोहागपुर थाने में पहुंची. टोले से जो लोग पकड़ कर लाए गए थे, उन सब की बहुत पिटाई की गई थी. सौ रुपए देने पर मिलने दिया. राकेश ने रोरो कर कहा, ‘सच में उस डकैती की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’ लेकिन भरोसा कौन करता? पुलिस को तो बड़े साहब को खुश करना था और यहां के थाने से रायसेन जिले में भेज दिया गया. अब कविता अकेली थी और 2-3 साल की बेटियां. वह क्या करती? कुछ रुपए रखे थे, उन्हें ले कर वह टोले की दूसरी औरतों के साथ रायसेन गई. वहां वकील किया और थाने में गई. वहां बताया गया कि यहां किसी को पकड़ कर नहीं लाए हैं.

वकील ने कहा, ‘मारपीट कर लेने के बाद वे जब कोर्ट में पेश करेंगे, तब गिरफ्तारी दिखाएंगे. जब तक वे थाने के बाहर कहीं रखेंगे. रात को ला कर मारपीट करने के बाद जांच पूरी करेंगे.’ हजार रुपए बरबाद कर के कविता लौट आई थी. बापू के पास गई, तो वे केवल हौसला ही देते रहे और क्या कर सकते थे. आते समय बापू ने सौ रुपए दे दिए थे. कविता जब लौट रही थी, तब फिर एक बाबाजी का प्रवचन चल रहा था. प्रसंग वही सीताजी का था. जब सीताजी को लेने राम वनवास गए थे और अपमानित हुई सीता जमीन में समा गई थीं. सबकुछ इतने मार्मिक तरीके से बता रहे थे कि उस की आंखों से भी आंसू निकल आए, तो क्या सीताजी ने आत्महत्या कर ली थी? शायद उस के दिमाग ने ऐसा ही सोचा था. जब कविता अपने टोले पर आई, तो सीताजी की बात ही दिमाग में घूम रही थी. कैसे वनवास काटा, जंगल में रहीं, रावण के यहां रहीं और धोबी के कहने से रामजी ने अपने से अलग कर के जंगल भेज दिया गर्भवती सीता को. कैसे रहे होंगे रामजी? जैसे कि वह बिना घरवाले के अकेले रह रही है. न जाने वह कब जेल से छूटेगा और उन की जिंदगी ठीक से चल पाएगी.

इस बीच टोले में जो कागज के फूल और दिल्ली से लाए खिलौने थोक में लाते, उन्हें कविता घरघर सिर पर रख कर बेचने जाती थी. जो कुछ बचता, उस से घर का खर्च चला रही थी. अम्मांबापू कभीकभी 2-3 सौ रुपए दे देते थे. जैसे ही कुछ रुपए इकट्ठा होते, वह रायसेन चली जाती. पुलिस ने राकेश को कोर्ट में पेश कर दिया था और कोर्ट ने जेल भेज दिया था. जमानत करवाने के लिए वकील 5 हजार रुपए मांग रहा था. कविता घर का खर्च चलाती या 5 हजार रुपए देती? राकेश का बड़ा भाई, मेरी सास भी थीं. वे घर पर आतीं और कविता को सलाह देती रहती थीं. उस ने नाराजगी भरे शब्दों में कह दिया, ‘क्यों फोकट की सलाह देती हो? कभी रुपए भी दे दिया करो. देख नहीं रही हो कि मैं कैसे बेटियों को पाल रही हूं,’ कहतेकहते वह रो पड़ी थी. जेठ ने एक हजार रुपए दिए थे. उन्हें ले कर कविता रायसेन गई, जो वकील ने रख लिए और कहा कि वह जमानत की अर्जी लगा देगा. उस वकील का न जाने कितना बड़ा पेट था. कविता जो भी देती, वह रख लेता था, लेकिन जमानत किसी की नहीं हो पाई थी. बस, जेल जा कर वह राकेश से मिल कर आ जाती थी. वैसे, राकेश की हालत पहले से अच्छी हो गई थी. बेफिक्री थी और समय से रोटियां मिल जाती थीं, लेकिन पंछी पिंजरे में कहां खुश रहता है. वह भी तो आजाद घूमने वाली कौम थी. कविता रुपए जोड़ती और वकील को भेज देती थी. आखिर पूरे 22 महीने बाद वकील ने कहा, ‘जमानतदार ले आओ, साहब ने जमानत के और्डर कर दिए हैं.’

फिर एक परेशानी. जमानतदार को खोजा, उसे रुपए दिए और जमानत करवाई, तो शाम हो गई. जेलर ने छोड़ने से मना कर दिया. कविता सास के भरोसे बेटियां घर पर छोड़ आई थी, इसलिए लौट गई और राकेश से कहा कि वह आ जाए. सौ रुपए भी दे दिए थे. रात कितनी लंबी है, सुबह नहीं हुई. सीताजी ने क्यों आत्महत्या की? वे क्यों जमीन में समा गईं? सीताजी की याद आई और फिर कविता न जाने क्याक्या सोचने लगी. सुबह देर से नींद खुली. उठ कर जल्दी से तैयार हुई. बच्चियों को भी बता दिया था कि उन का बाप आने वाला है. राकेश की पसंद का खाना पकाने के लिए मैं जब बाजार गई, तो बाबाजी का भाषण चल रहा था. कानों में वही पुरानी कहानी सुनाई दे रही थी. उस ने कुछ पकवान लिए और टोले पर लौट आई.

दोपहर तक खाना तैयार कर लिया और कानों में आवाज आई, ‘राकेश आ गया.’ कविता दौड़ते हुए राकेश से मिलने पहुंची. दोनों बेटियों को उस ने गोद में उठा लिया और अपने घर आने के बजाय वह उस के भाई और अम्मां के घर की ओर मुड़ गया. कविता तो हैरान सी खड़ी रह गई, आखिर इसे हो क्या गया है? पूरे 22 महीने बाद आया और घर छोड़ कर अपनी अम्मां के पास चला गया.

कविता भी वहां चली गई, तो उस की सास ने कुछ नाराजगी से कहा, ‘‘तू कैसे आई? तेरा मरद तेरी परीक्षा लेगा. ऐसा वह कह रहा है, सास ने कहा, तो कविता को लगा कि पूरी धरती, आसमान घूम रहा है. उस ने अपने पति राकेश पर नजर डाली, तो उस ने कहा, ‘‘तू पवित्तर है न, तो क्या सोच रही है?’’

‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है…’’ कविता ने कहा. उस ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा, ‘‘पूरे 22 महीने बाद मैं आया हूं, तू बराबर रुपए ले कर वकील को, पुलिस को देती रही, इतना रुपया लाई कहां से?’’ कविता के दिल ने चाहा कि एक पत्थर उठा कर उस के मुंह पर मार दे. कैसे भूखेप्यासे रह कर बच्चियों को जिंदा रखा, खर्चा दिया और यह उस से परीक्षा लेने की बात कह रहा है. उस समाज में परीक्षा के लिए नहाधो कर आधा किलो की लोहे की कुल्हाड़ी को लाल गरम कर के पीपल के सात पत्तों पर रख कर 11 कदम चलना होता है. अगर हाथ में छाले आ गए, तो समझो कि औरत ने गलत काम किया था, उस का दंड भुगतना होगा और अगर कुछ नहीं हुआ, तो वह पवित्तर है. उस का घरवाला उसे भोग सकता है और बच्चे पैदा कर सकता है.

राकेश के सवाल पर कि वह इतना रुपया कहां से लाई, उसे सबकुछ बताया. अम्मांबापू ने दिया, उधार लिया, खिलौने बेचे, लेकिन वह तो सुन कर भी टस से मस नहीं हुआ.

‘‘तू जब गलत नहीं है, तो तुझे क्या परेशानी है? इस के बाप ने मेरी 5 बार परीक्षा ली थी. जब यह पेट में था, तब भी,’’ सास ने कहा. कविता उदास मन लिए अपने झोंपड़े में आ गई. खाना पड़ा रह गया. भूख बिलकुल मर गई.

दोपहर उतरतेउतरते कविता ने खबर भिजवा दी कि वह परीक्षा देने को तैयार है. शाम को नहाधो कर पिप्पली देवी की पूजा हुई. टोले वाले इकट्ठा हो गए. कुल्हाड़ी को उपलों में गरम किया जाने लगा. शाम हो रही थी. आसमान नारंगी हो रहा था. राकेश अपनी अम्मां के साथ बैठा था. मुखियाजी आ गए और औरतें भी जमा हो गईं. हाथ पर पीपल के पत्ते को कच्चे सूत के साथ बांधा और संड़ासी से पकड़ कर कुल्हाड़ी को उठा कर कविता के हाथों पर रख दिया. पीपल के नरम पत्ते चर्रचर्र कर उठे. औरतों ने देवी गीत गाने शुरू कर दिए और वह गिन कर 11 कदम चली और एक सूखे घास के ढेर पर उस कुल्हाड़ी को फेंक दिया. एकदम आग लग गई. मुखियाजी ने कच्चे सूत को पत्तों से हटाया और दोनों हथेलियों को देखा. वे एकदम सामान्य थीं. हलकी सी जलन भर पड़ रही थी. मुखियाजी ने घोषणा कर दी कि यह पवित्र है. औरतों ने मंगलगीत गाए और राकेश कविता के साथ झोंपड़े में चला आया. रात हो चुकी थी. कविता ने बिछौना बिछाया और तकिया लगाया, तो उसे न जाने क्यों ऐसा लगा कि बरसों से जो मन में सवाल उमड़ रहा था कि सीताजी जमीन में क्यों समा गईं, उस का जवाब मिल गया हो. सीताजी ने जमीन में समाने को केवल इसलिए चुना था कि वे अपने घरवाले राम का आत्मग्लानि से भरा चेहरा नहीं देखना चाहती होंगी. राकेश जमीन पर बिछाए बिछौने पर लेट गया. पास में दीया जल रहा था. कविता जानती थी कि 22 महीनों के बाद आया मर्द घरवाली से क्या चाहता होगा?

राकेश पास आया और फूंक मार कर दीपक बुझाने लगा. अचानक ही कविता ने कहा, ‘‘दीया मत बुझाओ.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं तेरा चेहरा देखना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों? क्या मैं बहुत अच्छा लग रहा हूं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘तुझे जो बिरादरी में नीचा देखना पड़ा, तू जो हार गया, वह चेहरा देखना चाहती हूं. मैं सीताजी नहीं हूं, लेकिन तेरा घमंड से टूटा चेहरा देखने की बड़ी इच्छा है.’’ उस की बात सुन कर राकेश भौंचक्का रह गया. कविता ने खुद को संभाला और दोबारा कहा, ‘‘शुक्र मना कि मैं ने बिरादरी में तेरी परीक्षा लेने की बात नहीं कही, लेकिन सुन ले कि अब तू कल परीक्षा देगा, तब मैं तेरे साथ सोऊंगी, समझा,’’ उस ने बहुत ही गुस्से में कहा.

‘‘क्या बक रही है?’’

‘‘सच कह रही हूं. नए जमाने में सब बदल गया है. पूरे 22 महीनों तक मैं ईमानदारी से परेशान हुई थी, इंतजार किया था.’’ राकेश फटी आंखों से उसे देख रहा था, क्योंकि उन की बिरादरी में मर्द की भी परीक्षा लेने का नियम था और वह अपने पति का मलिन, घबराया, पीड़ा से भरा चेहरा देख कर खुश थी, बहुत खुश. आज शायद सीता जीत गई थी.

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