Famous Hindi Stories : उम्मीदें – तसलीमा का क्या था फैसला

Famous Hindi Stories :  भारत से पाकिस्तान जाने वाली अंतिम समझौता एक्सप्रेस टे्रन जैसे ही प्लेटफार्म पर आ कर लगी, तसलीमा को लगा कि उस का दिल बैठता जा रहा है.

उस ने अपने दोनों हाथों से उन 3 औरतों को और भी कस कर पकड़ लिया जिन के जीने की एकमात्र उम्मीद तसलीमा थी और अब न चाहते हुए भी उन औरतों को इन के हाल पर छोड़ कर उसे जाना पड़ रहा था, दूर, बहुत दूर, सरहद के पार, अपनी ससुराल.

तसलीमा का शौहर अनवर हर 3 महीने बाद ढेर सारे रुपयों और सामान के साथ उसे पाकिस्तान से भारत भेज देता ताकि वह मायके में अपने बड़े होने का फर्ज निभा सके. बीमार अब्बू के इलाज के साथ ही अम्मी की गृहस्थी, दोनों बहनों की पढ़ाई, और भी जाने क्याक्या जिम्मेदारियां तसलीमा ने अपने पति के सहयोग से उठा रखी हैं पर अब इस परिवार का क्या होगा?

तसलीमा के दोनों भाई तारिक और तुगलक जब से एक आतंकवादी गिरोह के सदस्य बने हैं तब से अब्बू भी बीमार रहने लगे. उन का सारा कारोबार ही ठप पड़ गया. ऊपर से थाने के बारबार बुलावे ने तो जैसे उन्हें तोड़ ही दिया. बुरे समय में रिश्तेदारों ने भी मुंह फेर लिया. अकेले अब्बू क्याक्या संभालें, एक दिन ऐसा आ गया कि घर में रोटी के लाले पड़ गए.

ऐसे में बड़ी बेटी होने के नाते तसलीमा को ही घर की बागडोर संभालनी थी. वह तो उसे अनवर जैसा शौहर मिला वरना कैसे कर पाती वह अपने मायके के लिए इतना कुछ.

तसलीमा सोचने लगी कि अब जो वह गई तो जाने फिर कब आना हो पाए. कई दिनों की दौड़धूप के बाद तो किसी तरह उस के अब्बू सरहद पार जाने वाली इस आखिरी ट्रेन में उस के लिए एक टिकट जुटा पाए थे.

कमसिन कपोलों पर चिंता की रेखाएं लिए तसलीमा दाएं हाथ से अम्मी को सहला रही थी और उस का बायां हाथ अपनी दोनों छोटी बहनों पर था.

तसलीमा ने छिपी नजरों से अब्बू को देखा जो बारबार अपनी आंखें पोंछ रहे थे और साथ ही नन्हे असलम को गोद में खिला रहे थे. उन्हें देख कर उस के मन में एक हूक सी उठी. बेचारे अब्बू की अभी उम्र ही क्या है. समय की मार ने तो जैसे उन्हें समय से पहले ही बूढ़ा बना दिया है.

नन्हे असलम के साथ बिलकुल बच्चा बन जाते हैं. तभी तो वह जब भी अपने नाना के घर हिंदुस्तान आता है, उन से ही चिपका रहता है.

लगता है, जैसे नाती को गले लगा कर वह अपने 2-2 जवान बेटों का गम भूलने की कोशिश करते हैं पर हाय रे औलाद का गम, आज तक कोई भूला है जो वह भूल पाते?

तसलीमा ने अपने ही मन से पूछा, ‘क्या खुद वह भूल पाई है अपने दो जवान भाइयों को खोने का गम?’

ससुराल में इतनी खुशहाली और मोहब्बत के बीच भी कभीकभी उस का दिल अपने दोनों छोटे भाइयों के लिए क्या रो नहीं पड़ता? अनवर की मजबूत बांहों में समा कर भी क्या उस की आंखें अपने भाइयों के लिए भीग नहीं जातीं? अगर वह अपने भाइयों को भूल सकी होती तो अनवर के छोटे भाइयों में तारिक और तुगलक को ढूंढ़ती ही क्यों?

‘‘दीदी, देखो, अम्मी को क्या हो गया?’’

तबस्सुम की चीख से तसलीमा चौंक उठी.

खयालों में खोई तसलीमा को पता ही नहीं चला कि कब उस की अम्मी उस की बांहों से फिसल कर वहीं पर लुढ़क गईं.

‘‘यह क्या हो गया, जीजी. अम्मी का दिल तो इतना कमजोर नहीं है,’’ सब से छोटी तरन्नुम अम्मी को सहारा देने के बजाय खुद जोर से सिसकते हुए बोली.

अब तक तसलीमा के अब्बू भी असलम को गोद में लिए ही ‘क्या हुआ, क्या हुआ’ कहते हुए उन के पास आ गए.

तसलीमा ने देखा कि तीनों की जिज्ञासा भरी नजरें उसी पर टिकी हैं जैसे इन लोगों के सभी सवालों का जवाब, सारी मुश्किलों का हल उसी के पास है. उस के मन में आ रहा था कि वह  खूब चिल्लाचिल्ला कर रोए ताकि उस की आवाज दूर तक पहुंचे… बहुत दूर, नेताओं के कानों तक.

पर तसलीमा जानती है कि वह ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि अगर वह जरा सा भी रोई तो उस के अब्बू का परिवार जो पहले से ही टूटा हुआ है और टूट जाएगा. आखिर वही तो है इन सब के उम्मीद की धुरी. अब जबकि कुछ ही मिनटों में वह इन्हें छोड़ कर दूसरे मुल्क के लिए रवाना होने वाली है, उन्हें किसी भी तरह की तकलीफ नहीं देना चाहती थी.

समझौता एक्सप्रेस जब भी प्लेटफार्म छोड़ती है, दूसरी ट्रेन की अपेक्षा लोगों को कुछ ज्यादा ही रुला जाती है. यही इस गाड़ी की विशेषता है. आखिर सरहद पार जाने वाले अपनों का गम कुछ ज्यादा ही होता है, पर आज तो यहां मातम जैसा माहौल है.

कहीं कोई सिसकियों में अपने गम का इजहार कर रहा है तो कोई दिल के दर्द को मुसकान में छिपा कर सामने वाले को दिलासा दे रहा है. आज यहां कोसने वालों की भी कमी नहीं दिखती. कोई नेताओं को कोस रहा है तो कोई आतंकवादियों को, जो सारी फसाद की जड़ हैं.

तसलीमा किसे कोसे? उसे तो किसी को कोसने की आदत ही नहीं है. सहसा उसे लगा कि काश, वह औरत के बजाय पुरुष होती तो अपने परिवार को इस तरह मझधार में छोड़ कर तो न जाती.

मन जितना अशांत हो रहा था स्वर को उतना ही शांत बनाते हुए तसलीमा बोली, ‘‘अम्मी को कुछ नहीं हुआ है, वह अभी ठीक हो जाएंगी. तरन्नुम, रोना बंद कर और जा कर अम्मी के लिए जरा ठंडा पानी ले आ और अब्बू, आप मेरा टिकट कैंसल करवा दो. मैं आप लोगों को इस हालात में छोड़ कर पाकिस्तान हरगिज नहीं जाऊंगी.’’

टिकट कैंसल करने की बात सुनते ही अम्मी को जैसे करंट छू गया हो, वह धीरे से बोलीं, ‘‘कुछ नहीं हुआ मुझे. बस, जरा चक्कर आ गया था. तू फिक्र न कर लीमो, अब मैं बिलकुल ठीक हूं.’’

इतने में तरन्नुम ठंडा पानी ले आई. एक घूंट गले से उतार कर अम्मी फिर बोलीं, ‘‘कलेजे पर पत्थर रख कर तेरा रिश्ता तय किया था मैं ने. लेदे कर एक ही तो सुख रह गया है जिंदगी में कि बेटी ससुराल में खुशहाल है, वह तो मत छीन. अरे, ओ लीमो के अब्बू, मेरी लीमो को ले जा कर गाड़ी में बैठा दीजिए. आ बेटा, तुझे सीने से लगा कर कलेजा ठंडा कर लूं,’’ इतना कह कर अम्मी अब्बू की गोद से नन्हे असलम को ले कर पागलों की तरह चूमने लगीं.

शायद नन्हे असलम को भी इतनी देर में विदाई की घंटी सुनाई पड़ने लगी. वह रोंआसा हो कर इन चुंबनों का अर्थ समझने की कोशिश करने लगा.

इतने में तीनों बहनें एकदूसरे से विदा लेने लगीं.

तबस्सुम धीरे से तसलीमा के कान में बोली, ‘‘दीदी, आप बिलकुल फिक्र न करो, आज से घर की सारी जिम्मेदारी मेरी है, मैं अम्मी और तरन्नुम को यहां संभाल लेती हूं, आप निश्ंिचत हो कर जाओ.’’

तसलीमा ने डबडबाई आंखों से तबस्सुम को देखा. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की चुलबुली बहन आज कितनी बड़ी हो गई है. सच, जिम्मेदारी उठाने के लिए उम्र नहीं, शायद परिस्थितियां ही जिम्मेदार होती हैं.

असलम को गोद में ले कर तसलीमा चुपचाप अब्बू और कुली के पीछे चल दी. वह जानती थी कि अब अगर आगे उस ने कुछ कहने की कोशिश की या पीछे मुड़ कर देखा तो बस, सारी कयामत यहीं बरपा हो जाएगी.

जब तक गाड़ी प्लेटफार्म पर खड़ी रही, अब्बू ने अपनेआप को सामान सजाने में व्यस्त रखा और तसलीमा ने अपने आंसुओं को रोकने में. पर गाड़ी की सीटी बजते ही उसे लगा कि अब बस, कयामत ही आ जाएगी.

जैसेजैसे अब्बू पीछे छूटने लगे, वह प्लेटफार्म भी पीछे छूटने लगा जहां की एक बेंच पर उस की अम्मी बहनों को साथ लिए बैठी हैं, वह शहर पीछे छूटने लगा जहां वह नाजों पली, वह वतन पीछे छूटने लगा जिसे तसलीमा परदेस जा कर और ज्यादा चाहने लगी थी.

तसलीमा को लगा कि गाड़ी की बढ़ती रफ्तार के साथ उस के आंसुओं की रफ्तार भी बढ़ रही है. अपने आंसुओं की बहती धारा में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि कब नन्हा असलम सुबकने लगा. भला अपनी मां को इस तरह रोता देख कौन बच्चा चुप रहेगा?

‘‘बच्चे को इधर दे दो, बहन. जरा घुमा लाऊं तो इस का मन बहल जाएगा. आ मुन्ना, आ जा,’’ कह कर किसी ने असलम को उस की गोद से उठा लिया. वह थी कि बस, दुपट्टे में चेहरा छिपा कर रोए जा रही थी. उस ने यह भी नहीं देखा कि उस के बच्चे को कौन ले जा रहा है.

आखिर जब शरीर में न तो रोने की शक्ति बची और न आंखों में कोई आंसू बचा तो तसलीमा ने धीरे से चेहरा उठा कर चारों तरफ देखा. उस डब्बे में हर उम्र की महिलाएं मौजूद थीं. पर किसी की गोद में उस का असलम नहीं था और न ही आसपास कहीं दिखाई दे रहा था. मां का दिल तड़प उठा. अब वह क्या करे? कहां ढूंढ़े अपने जिगर के टुकड़े को?

इतने में एक नीले बुरके वाली युवती अपनी गोद में असलम को लिए उसी के पास आ कर बैठ गई. तसलीमा ने लपक कर अपने बच्चे को गोद में ले लिया और बोली, ‘‘आप को इस तरह मेरा बच्चा नहीं ले कर जाना चाहिए था. घबराहट के मारे मेरी तो जान ही निकल गई थी.’’

‘‘बहन, क्या करती, बच्चा इतनी बुरी तरह से रो रहा था और आप को कोई होश ही नहीं था. ऐसे में मुझे जो ठीक लगा मैं ने किया. थोड़ा घुमाते ही बच्चा सो गया. गुस्ताखी माफ करें,’’ युवती ने मीठी आवाज में कहा.

शायद यह उस के मधुर व्यवहार का ही अंजाम था कि तसलीमा को सहसा ही अपने गलत व्यवहार का एहसास हुआ. वाकई असलम नींद में भी हिचकियां ले रहा था.

‘‘बहन, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए कि तुम ने मेरा उपकार किया और मैं एहसान मानने के बदले नाराजगी जता रही हूं,’’ थोड़ा रुक कर तसलीमा फिर बोली, ‘‘दरअसल, इन हालात में मायका छोड़ कर मुझे जाना पड़ेगा, यह सोचा नहीं था.’’

‘‘ससुराल तो जाना ही पड़ता है बहन, यही तो औरत की जिंदगी है कि जाओ तो मुश्किल, न जाओ तो मुश्किल,’’ नीले बुरके वाली युवती बोली, साथ ही उस का मुसकराता चेहरा कुछ फीका पड़ गया.

‘‘हां, यह तो है,’’ तसलीमा बोली, ‘‘पहले जब भी ससुराल जाती थी तो मायके वालों से दोबारा मिलने की उम्मीद तो रहती थी, मगर इस बार…’’ इतना कहतेकहते तसलीमा को लगा कि उस का गला फिर से रुंध रहा है.

फिर उस ने बात बदलने के लिए पूछा, ‘‘आप अकेली हैं?’’

‘‘हां, अकेली ही समझो. जिस का दामन पकड़ कर यहां परदेस चली आई थी, वह तो अपना हुआ नहीं, तब किस के सहारे यहां रहती. इसलिए अब वापस पाकिस्तान लौट रही हूं. वहां रावलपिंडी के पास गांव है, वैसे मेरा नाम नजमा है और तुम्हारा?’’

‘‘तसलीमा.’’

तसलीमा सोचने लगी कि इनसान भी क्या चीज है. हालात के हाथों बिलकुल खिलौना. किसी और जगह मुलाकात होती तो हम दो अजनबी महिलाओं की तरह दुआसलाम कर के अलग हो जाते पर यहां…यहां दोनों ही बेताब हैं एकदूसरे से अपनेअपने दर्द को कहने और सुनने के लिए, जबकि दोनों ही जानती हैं कि कोई किसी का गम कम नहीं कर सकता पर कहनेसुनने से शायद तकलीफ थोड़ा कम हो और फिर समय भी तो गुजारना है. इसी अंदाज से तसलीमा बोली, ‘‘क्या आप के शौहर ने आप को छोड़ दिया है?’’

‘‘नहीं, मैं ने ही उसे छोड़ दिया,’’ नजमा ने एक गहरी सांस खींचते हुए कहा, ‘‘सच्ची मुसलमान हूं, कैसे रहती उस काफिर के साथ जो अपने लालची इरादों को मजहब की चादर में ढकने की नापाक कोशिश कर रहा था.’’

तसलीमा गौर से नजमा को देख रही थी, शायद उस के दर्द को समझने की कोशिश कर रही थी.

इतने में नजमा फिर बोली, ‘‘जब पाकिस्तान से हम चले थे तो उस ने मुझ से कहा था कि हिंदुस्तान में उसे बहुत अच्छा काम मिला है और वहां हम अपनी मुहब्बत की दुनिया बसाएंगे, पर यहां आ कर पता चला कि वह किसी नापाक इरादे से भारत भेजा गया है जिस के बदले उसे इतने पैसे दिए जाएंगे कि ऐशोआराम की जिंदगी उस के कदमों पर होगी.

‘‘मुझ से मुहब्बत सिर्फ नाटक था ताकि यहां किसी को उस के नापाक इरादों पर शक न हो. मजहब और मुहब्बत के नाम पर इतना बड़ा धोखा. फिर भी मैं ने उसे दलदल से बाहर निकालने की कोशिश की थी. कभी मुहब्बत का वास्ता दे कर तो कभी आने वाली औलाद का वास्ता दे कर, पर आज तक कोई दलदल से बाहर निकला है जो वह निकलता. हार कर खुद ही निकल आई मैं उस की जिंदगी से. आखिर मुझे अपनी औलाद को एक नेकदिल इनसान जो बनाना है.’’

तसलीमा ने देखा कि अपने दर्द का बयान करते हुए भी नजमा के होंठों पर आत्मविश्वास की मुसकान है, आंखों में उम्मीदें हैं. उस ने दर्द का यह रूप पहले कभी नहीं देखा था.

क्या नजमा का दर्द उस के दर्द से कम है? नहीं तो? फिर भी वह मुसकरा रही है, अपना ही नहीं दूसरों का भी गम बांट रही है, अंधेरी राहों में उम्मीदों का चिराग जला रही है. वह ऐसा क्यों नहीं कर सकती? फिर उस के पास तो अनवर जैसा शौहर भी है जो उस के एक इशारे पर सारी दुनिया उस के कदमों पर रख दे. क्या सोचेंगे उस के ससुराल वाले जब उस की सूजी आंखों को देखेंगे. कितना दुखी होगा अनवर उसे दुखी देख कर.

नहीं, अब वह नहीं रोएगी. उस ने खिड़की से बाहर देखा. जिन खेत-खलिहानों को पीछे छूटते देख कर उस की आंखें बारबार भीग रही थीं, अब उन्हीं को वह मुग्ध आंखों से निहार रही थी. कौन कहता है कि इन रास्तों से दोबारा नहीं लौटना है? कौन कहता है सरहद पार जाने वाली ये आखिरी गाड़ी है? वह लौटेगी, जरूर लौटेगी, इन्हीं रास्तों से लौटेगी, इसी गाड़ी में लौटेगी, जब दुनिया नहीं रुकती है तो उस पर चलने वाले कैसे रुक सकते हैं?

तसलीमा ने असलम को सीने से लगा लिया और नजमा की तरफ देख कर प्यार से मुस्कुरा दी. अब दोनों की ही आंखें चमक रही थीं, दर्द के आंसू से नहीं बल्कि उम्मीद की किरण से.

Hindi Kahaniyan : हैप्पी बर्थडे – दादाजी ने कैसे दिया दादी को सरप्राइज

Hindi Kahaniyan : आज भोर में दादीमां की नींद खुल गई थी. पास ही दादाजी गहरी नींद में सो रहे थे. कुछ दिन पहले ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. अब ठीक थे, लेकिन कभीकभी सोते समय नींद की गोली खानी पड़ती थी. दादाजी को सोता देख दादीमां के होंठों पर मुसकान दौड़ गई. आश्वस्त हो कर फिर से आंखें बंद कर लीं. थोड़ी देर में उन्हें फिर से झपकी आगई.

अचानक गाल पर गीलेपन का एहसास हुआ. आंख खोल कर देखा तो श्वेता पास खड़ी थी.

गाल पर चुंबन जड़ते हुए श्वेता ने कहा, ‘‘हैप्पी बर्थडे, दादीमां.’’

‘‘मेरी प्यारी बच्ची,’’ दादीमां का स्वर गीला हो गया, ‘‘तू कितनी अच्छी है.’’

‘‘मैं जाऊं, दादीमां? स्कूल की बस आने वाली है.’’

श्वेता ने दादाजी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘कैसे सो रहे हैं.’’

दादीमां को लगा कि सच में दादाजी बरसों से जाग रहे थे. अब कहीं सोने को मिला था.

सचिन ने प्रवेश किया. हाथ में 5 गुलाबों का गुच्छा था. दादीमां को गुलाब के फूलों से विशेष प्यार था. देखते ही उन की आंखों में चमक आ जाती थी.

चुंबन जड़ते हुए सचिन ने फूलों को दादीमां के हाथ में दिया और कहा, ‘‘हैप्पी बर्थडे.’’

‘‘हाय, तू मेरा सब से अच्छा पोता है,’’ दादीमां ने खुश हो कर कहा, ‘‘मेरी पसंद का कितना खयाल रखता है.’’

सचिन ने शरारत से पूछा, ‘‘दादीमां, अब आप की कितनी उम्र हो गई?’’

‘‘चल हट, बदमाश कहीं का. औरतों से कभी उन की आयु नहीं पूछनी चाहिए,’’ दादीमां ने हंस कर कहा.

‘‘अच्छा, चलता हूं, दादीमां,’’ सचिन बोला, ‘‘बाहर लड़के कालिज जाने के लिए इंतजार कर रहे हैं.’’

दादीमां आहिस्ता से उठीं, खटपट से कहीं दादाजी जाग न जाएं. वह बाथरूम गईं और आधे घंटे बाद नहा कर बाहर आ गईं और कपड़े बदलने लगीं.

बेटे तरुण ने नई साड़ी ला कर दी थी. दादीमां वही साड़ी पहन रही थीं.

‘‘हाय मां,’’ तरुण ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘हैप्पी बर्थडे. आज आप कितनी सुंदर लग रही हैं.’’

‘‘चल हट, तेरी बीवी से सुंदर थोड़ी हूं,’’ दादीमां बहू के ऊपर तीर छोड़ना कभी नहीं भूलती थीं.

‘‘किस ने कहा ऐसा,’’ तरुण ने मां को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मेरी मां से सुंदर तो तुम्हारी मां भी नहीं थीं. तुम्हारी मां ही क्यों, मां की मां की मां में भी कोई तुम्हारे जैसी सुंदर नहीं थीं.’’

‘‘चापलूस कहीं का,’’ दादीमां ने प्यार से चपत लगाते हुए कहा, ‘‘इतना बड़ा हो गया पर बात वही बच्चों जैसी करता है.’’

‘‘अब तुम्हारा तो बच्चा ही हूं न,’’ तरुण ने हंस कर कहा, ‘‘मैं दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रहा हूं. पापाजी को क्या हो गया? अभी तक सो रहे हैं.’’

‘‘सो कहां रहा हूं,’’ दादाजी ने आंखें खोलीं और उठते हुए कहा, ‘‘इतना शोर मचा रहे हो, कोई सो सकता है भला.’’

‘‘पापाजी, आप बहुत खराब हैं,’’ तरुण ने शिकायती अंदाज में कहा, ‘‘आप चुपकेचुपके मांबेटे की खुफिया बातें सुन रहे थे.’’

‘‘खुफिया बातें कान में फुसफुसा कर कही जाती हैं. इस तरह आसमान सिर पर उठा कर नहीं,’’ दादाजी ने चुटकी ली.

‘‘क्या करूं, पापाजी, सब लोग कहते हैं कि मैं आप पर गया हूं,’’ तरुण ने दादाजी को सहारा देते हुए कहा, ‘‘अब आप तैयार हो जाइए. वसुधा आप लोगों के लिए कोई विशेष व्यंजन बना रही है.’’

‘‘क्यों, कोई खास बात है क्या?’’ दादाजी ने प्रश्न किया.

‘‘पापाजी, कोई खास बात नहीं, कहते हैं न कि सब दिन होत न एक समान. इसलिए सब के जीवन में एक न एक दिन तो खासमखास होता ही है,’’ तरुण ने रहस्यमयी मुसकान से कहा.

‘‘तू दर्शनशास्त्र कब से पढ़ने लगा,’’ दादाजी ने कहा.

‘‘चलता हूं, पापाजी,’’ तरुण की आंखें मां की आंखों से टकराईं.

क्या सच ही इन को याद नहीं कि आज इन की पत्नी का जन्मदिन था जिस ने 55 साल पहले इन के जीवन में प्रवेश किया था? अब बुढ़ापा न जाने क्या खेल खिलाता है.

डगमगाते कदमों से दादाजी ने बाथरूम की तरफ रुख किया. दादीमां ने सहारा देने का असफल प्रयत्न किया.

दादाजी ने झिड़क कर कहा, ‘‘तुम अपने को संभालो. देखो, मैं अभी भी अभिनेता दिलीप कुमार की तरह स्मार्ट हूं. अपना काम खुद करता हूं. काश, तुम मेरी सायरा बानो होतीं.’’

दादाजी ने बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. अंदर से गाने की आवाज आ रही थी, ‘अभी तो मैं जवान हूं, अभी तो मैं जवान हूं.’

दादीमां मुसकराईं. बिलकुल सठिया गए हैं.

बहू वसुधा ने कमरे में आते ही कहा, ‘‘हाय मां, हैप्पी बर्थडे,’’ फिर उस की नजर साड़ी पर गई तो बोली, ‘‘तरुण सच ही कह रहे थे. इस साड़ी में आप खिल गई हैं. बहुत सुंदर लग रही हैं.’’

‘‘तू भी कम नहीं है, बहू,’’ यह कहते समय दादीमां के गालों पर लाली आ गई.

जातेजाते वसुधा बोली, ‘‘मां, मैं खाना लगा रही हूं. आप दोनों जल्दी से आ जाइए. गरमागरम कचौरी बना रही हूं.’’

दादीमां का बचपन सीताराम बाजार में कूचा पातीराम में बीता था. अकसर वहां की पूरी, हलवा, कचौरी और जलेबी का जिक्र करती थीं. जिस तरह दादीमां बखान करती थीं उसे सुन कर सुनने वालों के मुंह में पानी आ जाता था.

वसुधा मेरठ की थी और उसे ये सारे व्यंजन बनाने आते थे. दादीमां को अच्छे तो लगते थे लेकिन उस की प्रशंसा करने में हर सास की तरह वह भी कंजूसी कर जाती थीं. शुरूमें तो वसुधा को बुरा लगता था. लेकिन अब सास को अच्छी तरह पहचान लिया था.

थोड़ी देर बाद दादाजी और दादीमां बाहर आ कर कुरसी पर बैठ गए. उन के आने की आवाज सुन कर वसुधा ने कड़ाही चूल्हे पर रख दी.

सूजी का मुलायम खुशबूदार हलवा पहले दादीजी ने खाना शुरू किया. कचौरी के साथ वसुधा ने दहीजीरे के आलू बनाए थे.

दादाजी 2 कचौरियां खा चुके थे.

दादीमां ने दादाजी से हलवे की तारीफ में कहा, ‘‘शुद्ध घी में बनाया है न… बना तो अच्छा है लेकिन हजम भी तो होना चाहिए.’’

‘‘अरे वाह, तुम ने तो और ले लिया,’’ दादाजी ने निराश स्वर में कहा.

उन दोनों की बातें सुन कर वसुधा हंस पड़ी, ‘‘पापा, मैं फिर बना दूंगी.’’

दिल का दौरा पड़ जाने से दादाजी को काफी परहेज करना व करवाना पड़ता था.

दिन में दादीमां की दोनों बहनों व उन के परिवार के लोग फोन पर जन्मदिन की बधाई दे रहे थे. उन के भाईभाभी का कनाडा से फोन आया. बहुत अच्छा लगा दादीमां को. वह बहुत खुश थीं और दादाजी मुसकरा रहे थे.

रात को तो पूरा परिवार जमा था. बेटी और दामाद भी उपहार ले कर आ गए थे. खूब हल्लागुल्ला हुआ. लड़के-लड़कियां फिल्मी धुनों पर नाच रहे थे. तरुण अपने बहनोई से हंसीमजाक कर रहा था तो वसुधा अपनी ननद के साथ अच्छेअच्छे स्नैक्सबना कर किचन से भेज रही थी. बस, मजा आ गया.

‘‘दादीमां, आप का बर्थडे सप्ताह में कम से कम एक बार अवश्य आना चाहिए,’’ सचिन ने दादीमां से कहा, ‘‘काश, मेरा बर्थडे भी इसी तरह मनाया जाता.’’

दादीमां ने अचानक कहा, ‘‘आज मुझे सब लोगों ने बधाई दी. बस, एक को छोड़ कर.’’

‘‘कौन, मां?’’ तरुण ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘यह गुस्ताखी किस ने की?’’ सचिन ने कहा.

‘‘इन्होंने,’’ दादीमां ने पति की ओर देख कर कहा.

दादाजी एकदम गंभीर हो गए. ‘‘क्या कहा? मैं ने बधाई नहीं दी?’’

दादाजी अभी तक गुदगुदे दीवान पर सहारा ले कर बैठे थे कि अचानक पीछे लुढ़क गए. शायद धक्का सा लगा. ऐसे कैसे भूल गए. सब का दिल दहल गया.

‘‘हाय राम,’’ दादीमां झपट कर दादाजी के पास गईं. लगभग रोते हुए बोलीं, ‘‘आंखें खोलो. मैं ने ऐसा क्या कह दिया?’’

दादाजी को शायद फिर से दिल का दौरा पड़ गया, ऐसा सब को लगा. दादीमां की आंखें नम हो गईं. उन्होंने कान छाती पर लगा कर दिल की धड़कन सुनने की कोशिश की. एक कान से सुनाई नहीं दिया तो दूसरा कान छाती पर लगाया.

‘‘हैप्पी बर्थडे,’’ दादाजी ने आंखें खोल कर मुसकरा कर कहा, ‘‘अब तो कह दिया न.’’

‘‘यह भी कोई तरीका है,’’ दादीमां ने आंसू पोंछते हुए कहा. अब उन के होंठों पर हंसी लौट आई थी.

सब हंस रहे थे.

‘‘तरीका तो नहीं है,’’ दादाजी ने उठते हुए कहा, ‘‘लेकिन याद तो रहेगा न.’’

‘‘छोड़ो भी,’’ दादीमां ने शरमा कर कहा.

‘‘वाह, इसे कहते हैं 18वीं सदी का रोमांस,’’ सचिन ने ताली बजाते हुए कहा.

फिर तो सारा घर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

Hindi Stories Online : कार यार – क्या उसकी अंधविश्वासी मां सच्चे इंसान की कीमत समझ पाई?

Hindi Stories Online : आज मैं आप सब को अपनी कहानी सुनाने के मूड में हूं. मु?ो लगता है कि मेरा नाम कार यार है क्योंकि 3 साल पहले मैं जब इस घर में आई, सब ने मु?ो देखते ही कहा कि व्हाट अ कार यार. जयदेव, जिन्हें मैं मन ही मन पापा कहने लगी हूं, मम्मी मधु (जिन्होंने मु?ो देखते ही मु?ा पर प्यार बरसा दिया था), 12 साल का आरव जिस ने मेरे साथ खूब फोटो खिंचवाए थे और तुरंत इंस्टाग्राम पर डाल दिए थे तथा 20 साल की पीहू ने तो मेरा कैसा वैलकम किया था, क्या बताऊं. मु?ो चूम ही लिया था. तब तो कालेज जाती थी, पता नहीं मेरे साथ कितनी सैल्फीज ली गई थीं. मेरे ऊपर ही चढ़ कर बैठ गई थी, पापा से कहा था, ‘‘थैंक यू पापा.’’

पीहू को आरव ने खींच कर उतारा था. सिक्युरिटी गार्ड को बुला कर इन चारों ने मेरे साथ बहुत फोटो लिए थे. बाकी फ्लैट्स की खिड़कियों से कुछ लोग मुझे देख कर खुश हो रहे थे.

इस अमन फैमिली को देख कर उन्होंने हाथ हिला दिया था, कहा था, ‘‘अमनजी, क्या कार है, यार.’’

कुछ ने तुरंत खिड़की बंद कर ली थी.

पीहू किसी को बता कर बहुत खुश थी, ‘‘कैसी पतली, स्लिम, ब्यूटीफुल सी कार है यार. तुम लोग जल्दी आओ.’’

उस दिन सब लोग मेरे साथ ही डिनर पर गए थे. आरव ने बहुत जिद की थी कि कार वही चलाएगा, पर पापा बिलकुल पापा वाले मूड में आ गए और मम्मी बिलकुल मम्मी वाले मूड में, ‘‘नहीं, आरव. अभी रात को बहुत ट्रैफिक होगा, पापा को चलाने दो.’’

आरव भी अपना मूड खराब नहीं करना चाहता था. बोला, ‘‘तो ठीक है, मैं दिन में कार ले कर जाऊंगा.’’

शैतान पीहू ने माचिस लगाई, ‘‘कल तो कालेज जाओगे न भैया? दिन में कब चलाओगे?’’

‘‘चुप रह.’’

‘‘मम्मी, देखो भैया मु?ा से कैसे बात कर

रहे हैं.’’

पापा ने हमेशा की तरह पीहू की शिकायत पर ध्यान दिया, ‘‘आरव, छोटी बहन से ठीक से बात किया करो.’’

आरव पीहू को घूर कर रह गया पर जिस तरह पीछे बैठी पीहू ने भाई को डांट

पड़ने पर अंगूठा दिखाया, आरव को हंसी आ गई. मुझे भी. मैं समझ गई कि मैं ठीक घर में आई हूं, मेरा मन लगा रहेगा. मम्मी ने रास्ते में कहा, ‘‘पहले जरा मंदिर हो लें? नई कार आई है. शुभ होगा.’’

पापा ने जवाब दिया, ‘‘जो मंदिर जाते हैं, उन का कभी अशुभ नहीं होता? उन की कार का ऐक्सीडैंट कभी नहीं होता? तुम्हारे उस भाई की

तो हड्डियां ही टूट गई हैं जो कार में ही रोज मंदिर जाता है.’’

मम्मी बुरी तरह चिढ़ गईं, ‘‘जहां मन हो चलो, आज का दिन शुभ है. मैं अपना मूड खराब नहीं करना चाहती.’’

पीहू और आरव चुपचाप मुसकराते रहे जैसे जानते हों, यही होगा. मम्मी भले ही मंदिर नहीं जा पाई थीं पर आंखें बंद कर पता नहीं कौन से मंत्र बुदबुदा रही थीं. जिस होटल में डिनर करना था, पहले यह देखा गया कि वहां पार्किंग है न.

पापा ने कहा, ‘‘मैं रोड पर कार खड़ी नहीं करूंगा, किसी ने एक खरोंच भी लगा दी तो मुझे गुस्सा आ जाएगा. वैसे भी मुंबई के ट्रैफिक में लोग दूसरों की गाडि़यों की चिंता ज्यादा नहीं करते.’’

मैं तभी समझ गई थी कि इस घर में मेरे रंगरूप का ध्यान रखा जाएगा. पार्किंग मिल गई, साफ समझ आ रहा था कि कार नई है, अभी तक मु?ा पर कहींकहीं फूल सजे हुए थे. डिनर कर के सब लोग 2 घंटे में बाहर आ गए. तब तक पार्किंग में आतेजाते कई लोगों ने मु?ो घूरा. सुंदर चीजों को समाज ऐसे ही तो घूर कर देखता है. किसी ने तो छू भी लिया था, मेरा मौडल भी डिसकस कर लिया था. जब पार्किंग में भी कई लोगों ने कहा, ‘‘व्हाट अ कार यार.’’

मुझे लगा मेरा नाम कार यार ही है या यों भी कह सकते हैं कि मैं ने अपना नाम ‘कार यार’ रख लिया. है न मजेदार बात. एक कार ने अपना नाम अपनी तारीफ सुन कर ‘कार यार’ रख लिया.

डिनर कर के सब 2 घंटे बाद आए थे. पापा ने मुझे चारों तरफ से देखा तो आरव ने टोका, ‘‘पापा, अब क्या देख रहे हैं? अब कोई खड़ेखड़े कार को तो ठोक कर नहीं जाएगा न?’’

मम्मी अच्छा खाना खा कर शायद अच्छे मूड में थीं, ‘‘अब इन का यही हाल होगा. पैनिक करते रहेंगे. पिछली कार के साथ 5 साल यही सब किया.’’

मुझे पता चला कि पापा के पास पहले भी कार थी. वह कार पापा ने अपने छोटे भाई को दे दी है.

खैर, खुशी से हंसतेबोलते सब घर लौट आए थे. सोसाइटी में कई लोग मिले थे. सब ने मेरी तारीफ की थी, पूरे परिवार को बधाई दी थी.

आरव ने पापा से कहा, ‘‘पापा, प्लीज एक चक्कर मैं भी लगा आऊं?’’

‘‘ठीक है. हम सब भी चलते हैं, चलो, आइसक्रीमपार्लर चलते हैं, तुम कार भी चला लोगे, इस बहाने मैं भी तसल्ली कर लूंगा कि तुम कार ठीक से चला लोगे.’’

सब से पहले भाग कर कार में पीहू बैठी. मुझे समझ आ गया था कि घर में सब से नटखट यही है और सब की लाडली भी. अब मम्मी और पीहू पीछे बैठी थीं. पापा ने अपनी निगरानी में आरव से मु?ो चलवाया.

वह कह रहा था, ‘‘पापा, डौंट वरी, मैं ने बहुत बार अपने दोस्तों की कार चलाई है.’’

‘‘आरव तो बड़े धैर्य से कार चलाता है,’’ जैसे ही पापा ने कहा पीहू बोल उठी, ‘‘पापा, मैं भी चलाऊं?’’

‘‘अभी नहीं बेटा. अब तो कार आ ही गई है, सब चलाते ही रहेंगे. सुबह औफिस जाना है, छुट्टी वाले दिन चलाना.’’

मम्मी बोलीं, ‘‘मतलब अब हम लोगों को कार तभी मिलेगी जब तुम्हारे औफिस की छुट्टी होगी.’’

पापा हंस पड़े, ‘‘हां लग तो ऐसा ही रहा है. पर जब मैं टूर पर जाऊंगा, तब तुम लोग आराम से चलाना.’’

पापा तो महीने में 15 दिन टूर पर ही रहते हैं. अब जब रोज की तरह दिन बीतने लगे, मुझे घर के हर मैंबर के बारे में पूरी जानकारी मिलती गई. पापा बहुत अच्छे हैं. उन का औफिस घर से आधे घंटे की दूरी पर है. वे पूरे रास्ते बस अपनी धुन में रहते हैं. ट्रैफिक में फंसने से चिढ़ते हैं. सेल्स और मार्केटिंग वाली जौब में हैं, किसी का फोन आ जाए तो स्पीकर पर रख कर बस सेल्स, टारगेट की बातें करते हैं, ट्रैफिक में फंसने पर कभीकभी किसी दोस्त या अपने भाईबहन को फोन कर लेते हैं. देखने में अच्छे हैं, काम से काम रखने वाले इंसान हैं. परिवार से बहुत प्यार करते हैं. कभी ज्यादा ट्रैफिक हुआ तो मम्मी को फोन कर के बता देते हैं कि आ ही रहा हूं, ट्रैफिक बहुत है. परेशान मत होना.

पापा टूर पर जाते हैं तो मम्मी के हाथ में होती है मेरी चाबी. आरव जिद करता रह जाता है कि कार की चाबी उसे चाहिए. मम्मी रोज तो नहीं पर कभीकभी खुद निकलती हैं मेरे साथ वरना आरव और पीहू के बीच ही मेरी चाबी के लिए घमासान चलता रहता है. दोनों ऐसीऐसी कहानियां बनाते हैं कि अच्छेअच्छे राइटर प्लाट लिखने में फेल हो जाएं. पर मम्मी भी मम्मी हैं, इन दोनों की नसनस पहचानती हैं.

आरव जब मेरे साथ कहीं जाता है, मजा आता है. पहले वह अपने दोस्तों को उन के घर से पिक करता है, फिर दोस्त मेरी बहुत तारीफ करते हैं. कभीकभी खुद भी चलाते हैं जिस का पता मम्मीपापा और पीहू को कभी नहीं चल पाता. सब कालेज से छुट्टी कर के इधरउधर घूमते हैं और फिर जब आरव अपनी गर्लफ्रैंड कीरा के साथ कहीं जाता है, दोनों की बातें सुनसुन कर मेरा बहुत ऐंटरटेनमैंट होता है.

कीरा की बातें, ‘यहां से कार मत ले जाना. यहां मेरे पेरैंट्स आतेजाते रहते हैं. यहां से कार मत लेना, मेरा भाई इस एरिया में कहीं घूम न रहा हो,’ वह बहुत पैनिक करती रहती है.

कभी दोनों रोमांस करते हैं, कभी नोकझोंक. बढि़या जोड़ी है दोनों की. आरव की

गर्लफ्रैंड है, यह मम्मीपापा को नहीं पता है. उन्हें लगता है कि उन का होनहार बेटा सीधा कालेज आताजाता है, कभी दोस्तों के साथ घूम कर आ जाता है.

पीहू को पता है, पर उस ने मम्मीपापा को नहीं बताया है. पीहू की एक फ्रैंड कविता ने आरव के साथ जब कीरा को देखा तुरंत फोन कर के पीहू को बता दिया. अब कविता जैसी दोस्त है तो पीहू को सब पता है, कीरा कौन है, कहां रहती है. आरव जब मेरे साथ होता है तो वह ऐसे बैठता है जैसे वह कोई हीरो हो. लगता तो हीरो ही है, जिम जाता है, अच्छे कपड़े पहन कर हलकीहलकी दाढ़ी, स्टाइलिश हेयर कट, हंसमुख सा स्वभाव. घर का लाड़ला बेटा कीरा के सामने सौरी ही बोलता रह जाता है.

एक बार दोस्तों के साथ इस बात पर हंस रहा था कि यार मैं इतना सौरी क्यों बोलता हूं, मुझे भी नहीं पता. दोस्तों ने कहा कि यार, हम भी इन लड़कियों से बहस खत्म कर के सौरी बोल कर अपनी जान छुड़ाते हैं. ऐसी बातें करते हैं ये लड़के. कभीकभी तो ये लड़के ऐसी बातें करते हैं कि मैं शरमा जाती हूं. इन्हें क्या पता दीवारों की तरह कारों के भी कान होते हैं.

मम्मी जब मुझे ले कर निकलती हैं, मैं थोड़ा बोर हो जाती हूं. वे बैठते ही कोई भजन लगा देती हैं. जितनी देर कार चलाती हैं, भजन सुनती हैं. फोन पर बातें करेंगी तो हर बार वही. अपने दोस्तों से यही बात करती रहती हैं कि इस बार कीर्तन किस के घर है? भजन कब है? या फिर किसी रिश्तेदार से बात करेंगी तो यही कि फलाने ने यह कर दिया, यह कह दिया. मम्मी अच्छी हैं, मुझे बहुत प्यार करती हैं. अपनी दोस्तों को उन्होंने मेरे आने पर एक पार्टी भी दी. पर इन सब की बातें मुझे उतनी पसंद नहीं.

असल में मुझे सब से ज्यादा मजा आता है पीहू के साथ. मैं चाहती हूं, वही मेरे साथ घूमे, मस्ती करे. पर वह छोटी है, उसे मेरी चाबी कम मिलती है. पापा के टूर पर जाने पर मम्मी और आरव के बाद उसे बड़ी मुश्किल से मेरी चाभी मिलती है. सब को यही लगता है कि वह पता नहीं ठीक से कार चला भी लेगी या नहीं, पर सच यह है कि वह बहुत अच्छी ड्राइविंग करती है. प्यारी सी पतली गुडि़या जैसी है, खूब स्टाइलिश कपड़े पहनती है, बहुत अच्छा परफ्यूम लगा कर आती है, देर तक उस की खुशबू में मैं महकती रहती हूं. फिर वह मस्त गाने सुनती हुई अपनी दोस्तों के साथ कहीं निकलती है.

दोस्त भी कविता जैसी हैं, खूब गौसिप होती है, इस की गर्लफ्रैंड, उस का बौयफ्रैंड लेटैस्ट मूवी, कौन सा गाना सुनना है, कौन सा हीरो, कौन सी हीरोइन किस के फैवरिट हैं.

इन लड़कियों की बातें, इन की दुनिया बिलकुल अलग है. इन के ग्रुप में सबीना भी है, ऐंजेला भी है. आरव और पीहू दोनों के हर धर्म के दोस्त हैं. मुझे यह देख कर अच्छा लगता है. मम्मी अपने साथ बस अपने धर्म के लोग रखती हैं. पापा के औफिस में भी शायद सब तरह के लोग हैं. मुझे पापा की एक बात एक दिन बहुत अच्छी लगी थी. वे फोन पर किसी से कह रहे थे, ‘‘मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मेरे साथ किस धर्म का इंसान बैठा है, बस जो भी साथ हो, वह साफसुथरा होना चाहिए बस.’’

उस दिन से मेरी नजरों में उन की इज्जत बढ़ गई है. हां, तो मैं पीहू के बारे में बता रही थी कि वह बहुत अच्छी ड्राइविंग करती है.

एक दिन का मजेदार किस्सा बताती हूं, एक दिन आरव को फीवर था, पापा टूर पर. मौका अच्छा था. उसे मेरी चाबी बड़े आराम से मिल गई. वह पहली बार मेरे साथ कालेज के लिए निकली. रास्ते में कहीं जाम था. आप को पता ही है कि जब लोग देखते हैं कि कोई लड़की कार चला रही तो कैसे ताने कसे जाते हैं. अब जाम में मेरी पीहू की क्या गलती. वह तो चुपचाप गाने सुन रही थी. इतने में पीछे से कोई जोरजोर से हौर्न बजाने लगा, अपनी कार का शीशा नीचे कर पीहू का मजाक उड़ाने लगा, बोला, ‘‘ओए, पापा की परी. आगे बढ़ो.’’

बस, पापा की परी को जो गुस्सा आया, फिर तो इस पापा की परी, मेरी प्यारी पीहू ने भी ठान लिया कि बच्चू, बताती हूं तुम्हें. फिर पापा की परी ने पीछे वाले को अपने से आगे नहीं जाने दिया तो नहीं जाने दिया. फिर अपने मोड़ पर मुड़ने तक पापा की परी आराम से गाने सुनती हुई, उसे घूरती हुई, गाली देने की ऐक्टिंग करते हुए यह जा, वह जा.

अब बताओ, पीहू पर किसे लाफ नहीं आएगा? ऐसे लोगों के साथ मुंबई के इस ट्रैफिक में लड़कियों के लिए इतना धैर्य रखना आसान है क्या? कई बार सोचती हूं, आसपास देखती भी हूं कि कोई लड़की कार चला रही होती है तो आसपास की कारों वाले लोग कुछ न कुछ तो बोलते ही हैं. और यह आरव भी तो पीहू को चिढ़ाता है कि किसी को उड़ा कर तो नहीं आई?

एक बार चारों जा रहे थे. पीहू ने पापा को मना लिया कि आज वह कार चलाएगी. आरव मम्मी के साथ पीछे बैठा हंसता रहा,  ‘‘क्या आज हम सब ठीक से घर तो पहुंच जाएंगे न?’’

पीहू तो बस अपने में मस्त कार चलाती रही, पापा उसे शाबाशी देते रहे. तो बस मु?ो पीहू के साथ सब से ज्यादा मजा आता है. उसे देख कर मैं इस समाज में एक लड़की की स्थिति बेहतर रूप से सम?ा पाती हूं.

एक ही परिवार के हर सदस्य का स्वभाव कितना अलग होता है न. जहां पापा मेरी मैंटेनैंस पर इतना ध्यान देते हैं, पैट्रोल हमेशा रहता है, वहीं आरव और पीहू को कभी पैट्रोल पंप जाना पड़ जाए तो लगता है कि पता नहीं जैसे पापा ने पहाड़ पर चढ़ जाने को बोल दिया हो. दोनों झांकना शुरू कर देते हैं. मुझ पर जरा सी भी धूल पापा को बरदाश्त नहीं होती. प्रकाश जो मेरी सफाई करता है, बहुत कामचोर है. जब पापा टूर पर जाते हैं तो सम?ा जाता है कि मम्मी तो रोजरोज मेरी सफाई करने के लिए टोकेंगी नहीं, मम्मी वैसे शांति पसंद हैं. आरव और पीहू सोचते हैं कि प्रकाश को क्या ही कहें. पापा करवा लेंगे. प्रकाश को पता है कि पापा जब जाते हैं, शनिवार को ही वापस आते हैं तो कामचोर शनिवार को सुबह मुझे ऐसे चकमा देता है कि कोई उसे यह नहीं कह सकता कि वह अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है.

आरव और पीहू जब अपनेअपने दोस्तों के साथ,मेरे साथ होते हैं तो मैं देखती हूं कि लड़कों और लड़कियों के बात करने के टौपिक्स कितने अलग होते हैं. जहां आरव का गु्रप क्रिकेट की बातें करता है, अपनीअपनी गर्लफ्रैंड्स पर हंसता है, कालेज बंक करने के प्रोग्राम बनाता है, कभीकभी फ्यूचर के, कैरियर के प्लान भी बना लेता है, वहीं पीहू का गु्रप लेटैस्ट म्यूजिक अलबम, नया कौस्मैटिक ब्रैंड, हौलीवुड फिल्मों की बातें करता है. और अब सीजर और रैंबो की बातें बताती हूं, इसी बिल्डिंग में 2 पिल्ले हुए. पीहू उन्हें

रोक थोड़ी देर देखने खड़ी हो जाती तो बस उन का पीहू से ऐसा बैंड बना कि पीहू को तो जैसे 2 खिलौने मिल गए. बिल्डिंग में एक किनारे एक जगह बनी हुई है, डौग्स ऐंड कैट्स फीडिंग प्लेस. यहां पर ऐनिमल लवर्स कुछ खाना रखते रहते हैं, एक साफ बरतन में पानी रख दिया जाता है. हां, तो उन 2 पिल्लों का नाम पीहू ने सीजर और रैंबो रख दिया है. अब तो सीजर और रैंबो पीहू के पीछे ऐसे पड़ते हैं कि पूछिए मत. दूर से देख लेते हैं कि मैं आ रही हूं और समझ जाते हैं कि अभी पीहू निकलेगी, पीहू का कार से निकलना मुश्किल कर देते हैं. वह मेरा दरवाजा ही बहुत मुश्किल से खोल पाती है, दोनों पीहू को ऐसा दौड़ाते हैं कि लोग इन का खेल देखने के लिए खड़े हो जाते हैं. अब तो पूरे परिवार से ही सीजर और रैंबो को ऐसा लगाव हो गया है कि इन चारों में से कोई भी सीजर और रैंबो को दिख जाए तो दोनों इतनी अंगड़ाइयां लेते हैं कि हंसी आने लगती है. पीहू से ही मुझे पता चला कि कुत्ते अपनी खुशी जाहिर करने के लिए भी कभीकभी अंगड़ाई लेते हैं.

तब मुझे बहुत दुख होता है जब मम्मी कभीकभी अचानक बीमार पड़ जाती हैं और पापा अपना सब काम छोड़ कर उन्हें ले कर हौस्पिटल भागते हैं. किसी को चैन नहीं आता. मम्मी को अकसर कुछ न कुछ हो जाता है. उन दिनों सब उदास से रहते हैं, कोई भी मेरे साथ कहीं जाता है, चुपचाप अपना काम कर के आ जाता है, उन दिनों जब भी पीहू कुछ सामान लेने निकलती है, कोई गाना नहीं सुनती, कोई फोन नहीं करती, बस चुपचाप रो रही होती है. फिर जब मम्मी ठीक हो जाती है. तब घर में खुशी का माहौल बनता है. यही परिवार होता है शायद. अब यह मेरा भी तो परिवार हो गया है. ये लोग कहीं घूमने चले जाते हैं तो मेरा मन नहीं लगता. बोल नहीं सकती, बस मन ही मन इंतजार करती रहती हूं.

मुझे खुशी है कि मैं इस परिवार का हिस्सा हूं और आज तक इस बात पर खुश हूं कि मेरी उम्र 3 साल हो गई है, मुझे देख कर अब भी लोग यही कहते हैं कि व्हाट अ कार यार.

Marriage : कैसे निभाएं कम उम्र के लड़के से शादी

Marriage : मध्य प्रदेश के पिपरिया की रहने वाली 30 साल की संजना बैंगलुरु की एक आईटी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है. पिछले 2-3 सालों से शादी के लिए उसे बहुत से लड़कों के बायोडाटा आ रहे थे. संजना के मम्मीपापा को जो लड़के पसंद आते हैं, वे संजना को पसंद नहीं आते. इस बजह से मामला टलता रहा. 2024 की दीपावली के बाद एक शुभम नाम के लड़के का बायोडाटा जब उस के पापा ने संजना को भेजा तो उसे देख कर संजना की आंखों में चमक आ गई.

शुभम भी पुणे की एक औटोमोबाइल कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है, परंतु उस की उम्र 26 साल है. संजना ने जब पहल कर के शुभम से बात की तो पाया कि वैचारिक रूप से उन में काफी समानता है. रिश्ते की बात आगे बढ़ाई तो कुछ रिश्तेदारों ने लड़के की उम्र का हवाला दे कर रिश्ता न करने की सलाह दे डाली.

संजना से जब उस के पापा ने इस संबंध में बात की तो संजना ने दो टूक जबाब देते हुए कहा, ‘‘पापा शादी के लिए उम्र के बजाय लड़के की योग्यता और उस की आपसी सम झ ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. यदि लड़के वालों को कोई आपत्ति न हो तो मु झे यह रिश्ता पसंद है.’’

संजना से हरी  झंडी मिलते ही दोनों की शादी 15 दिसंबर, 2024 को धूमधाम से हो गई और समाज के लिए एक संदेश भी छोड़ गई कि शादी के लिए लड़के का लड़की से बड़ा होना जरूरी नहीं है. आज के दौर में संजना और शुभम की शादी कोई अकेली मिसाल नहीं है. अब इस तरह की शादियों का ट्रैंड चल निकला है.

आपसी सूझबूझ

ऐसा नहीं है कि कम उम्र के लड़कों से शादी मौजूदा वक्त में ही हो रही है. वर्षों पहले भी कभीकभार इस तरह की शादियां समाज में होती रही हैं. रिटायरमैंट के करीब पहुंच रहीं स्कूल टीचर शहनाज बानों ने 36 साल पहले अपने से कम उम्र के जाफर खान से शादी की थी. जाफर की उस समय सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी लगी थी. ऐसे में घर वालों ने उम्र न देख कर दोनों के एक ही फील्ड और नौकरीपेशा होने की वजह से शादी कर दी थी. आपसी सू झबू झ से उन का जीवन आज भी खुशहाल है और उम्र का बंधन कभी रिश्ते में बाधा नहीं बन सका. कहने का मतलब यही है कि लड़कालड़की के व्यवसाय, आपसी समन्वय और रुचियों को ध्यान में रखते हुए सुखद दांपत्य के लिए इस तरह की शादियां की जा सकती हैं.

लड़का भले ही अपने से कम उम्र का हो, यदि वह अच्छाखासा कमाने वाला है तो उम्र का बंधन कोई माने नहीं रखता. नौकरी करने वाली लड़कियों को यदि अपने से बड़ी उम्र का बेरोजगार लड़का मिला तो जीवनभर पत्नी की कमाई खाएगा, इस से अच्छा तो यही है कि कम उम्र के लड़के से शादी कर लड़कियां अपना भविष्य सुखद बना सकती हैं. कम उम्र के लड़कों से शादी करने का एक फायदा लड़कियों को यह भी रहता है कि ऐसे लड़के उन पर रोब  झाड़ने के बजाय उन का सम्मान करते हैं.

भारत के मशहूर क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर  की शादी 24 मई, 1995 को अंजलि से हुई थी. अंजलि अपने पति सचिन तेंदुलकर से 6 साल बड़ी हैं. शादी के पहले सचिन और अंजलि ने 5 साल तक एकदूसरे को डेट किया था. सचिन और अंजलि ने अपने रिश्तों का खुलासा 1994 में किया, जब उन्होंने न्यूजीलैंड में सगाई की. सगाई के कुछ समय बाद अगले साल 1995 में दोनों ने शादी भी कर ली और आज 30 साल बाद भी ये खूबसूरत जोड़ा लोगों के लिए मिसाल बना हुआ है.

परिपक्व सोच

फिल्म ‘दिल चाहता है’ में अक्षय खन्ना ने जिस लड़के का किरदार निभाया है, उसे खुद से उम्र में बड़ी महिला से प्यार हो जाता है. यह बात वे अपने सब से जिगरी 2 दोस्तों को बताते हैं, लेकिन उन के दोस्त उन के प्यार की गहराई को सम झने की जगह उन का मजाक बनाने लगते हैं. इस फिल्म में दिखाए गए मजाकिया सीन दरअसल इस तरह के रिश्तों की हकीकत बयां करते हैं.

मैरिज काउंसलर के पास बहुत से ऐसे क्लाइंट आते हैं जिन के बीच अनबन की वजह दोस्तों का मजाक या रिश्तेदारों के ताने होते हैं. पतिपत्नी को चाहिए कि समाज के तानों की परवाह न करते हुए अपने रिश्ते को मजबूत बनाने पर ज्यादा ध्यान दें. वैसे तो कोई भी रिश्ता आम सहमति और पसंद के साथ ही शुरू होता है. खुद से कम उम्र के लड़कों को पसंद करते समय लड़कियों के दिमाग में एक ही बात चलती है- पुराने रिश्तों को भुलाना.

कई उदाहरण हैं

अगर दोनों की आपसी सम झ बेहतर है तो लड़का और लड़की एकदूसरे की जरूरतों को पूरा कर देते हैं. बड़ी उम्र की लड़कियां आत्मनिर्भर होती हैं. ऐसी लड़कियों के साथ लड़कों को बहुत अधिक चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ती है. उम्र के लिहाज से रिश्तों के सफल या असफल होने के उदाहरण आसानी से मिल जाते हैं. जहां सैफ अली खान और उन की पहली पत्नी अमृता सिंह के बीच उम्र का बड़ा फासला था और उन की शादी कामयाब नहीं रही. बाद में सैफ ने खुद से उम्र में काफी छोटी करीना कपूर से शादी की.

वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी कई उदाहरण हैं जहां पत्नी के बड़ी उम्र के होने के बाद शादियां कामयाब रहीं, जैसे प्रियंका चोपड़ा और निक जोन्स की शादी. मिस वर्ल्ड रही बौलीवुड ऐक्ट्रैस प्रियंका चोपड़ा ने अमेरिकन सिंगरऐक्टर निक जोन्स से 2018 में शादी की थी. निक और प्रियंका की उम्र में 10 साल का फासला है. ये ऐज गैप उस वक्त चर्चा का विषय बन गया था. लेकिन आज भी उन की जोड़ी हिट है. निक द्वारा प्रियंका का हाथ मांगने की भी दिलचस्प कहानी है.

प्रियंका की मां मधु चोपड़ा की मानें तो निक जोन्स ने प्रियंका से शादी करने के लिए उन के सामने प्रपोजल रखा था. टीवी इंटरव्यू में वे कहती हैं, ‘‘जब निक पहली बार भारत आए तो उन्होंने और प्रियंका ने महसूस ही नहीं होने दिया कि उन के बीच कुछ चल रहा है. निक मु झे लंच पर ले गए, जहां उन्होंने मु झ से पूछा कि मैं प्रियंका के लिए किस तरह का लड़का चाहती हूं. तब मैं ने पूरी लिस्ट सुनानी शुरू कर दी और उन्होंने बस मेरा हाथ थाम लिया और कहा, ‘‘मैं वो लड़का हूं, क्या मैं वह व्यक्ति बन सकता हूं? मैं प्रौमिस करता हूं कि आप की लिस्ट में जो कुछ भी शामिल है वह अनटिक नहीं रहेगा. मैं निक की बातों से प्रभावित हुई और बहुत खुशी महसूस हुई और मैं ने भी हां कर दी.’’

भारतीय क्रिकेटरों की जोडि़यां भी हैं मिसाल

कम उम्र के लड़कों से शादी करने में केवल फिल्म ऐक्ट्रैस ही आगे नहीं है भारतीय क्रिकेटरों ने भी अपने से बड़ी उम्र की लड़कियों से शादी कर के मिसाल कायम की है. भारत के क्रिकेटर रोबिन उथप्पा अपनी पत्नी शीतल गौतम से 4 साल छोटे हैं. रोबिन उथप्पा ने 3 मार्च, 2016 को शीतल गौतम से शादी की थी. रोबिन उथप्पा ने काफी लंबे समय तक रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी का फैसला किया था. रोबिन और शीतल बैंगलुरु के एक ही कालेज में पढ़ाई करते थे. शीतल इस कालेज में रोबिन उथप्पा की सीनियर थीं. 7 साल तक दोनों ने एकदूसरे को डेट किया था. रोबिन की वाइफ शीतल गौतम पूर्व में टैनिस खिलाड़ी रह चुकी हैं. उथप्पा क्रिश्चियन परिवार से आते हैं, जबकि शीतल गौतम का हिंदू धर्म से तअल्लुक हैं. ऐसे में इन दोनों ने 3 मार्च, 2016 को पहले ईसाई धर्म के अनुसार शादी की और फिर एक हफ्ते बाद 11 मार्च, 2016 को दोनों ने हिंदू रीतिरिवाज से शादी की थी.

दिग्गज भारतीय लैग स्पिन गेंदबाज अनिल कुंबले और चेतना कुंबले की शादी 1 जुलाई, 1999 को हुई थी. चेतना कुंबले अपने पति अनिल कुंबले से 7 साल बड़ी हैं. अनिल कुंबले की पत्नी का भी अपने पहले पति के साथ तलाक हुआ था. चेतना नाम की इस महिला के साथ कुंबले ने 1999 में शादी की थी. अब यह कपल एकदूसरे के साथ लंबे समय से खुशी से रह रहा है.

तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह और संजना गणेशन की शादी 15 मार्च, 2021 को हुई थी. संजना गणेशन अपने पति जसप्रीत बुमराह से

1 साल और 7 सात महीने बड़ी हैं. बुमराह और संजना ने गोवा में शादी की थी. शादी में इस जोड़े का परिवार और करीबी दोस्त ही शामिल हुए थे.

ऐक्ट्रैस की शदियां भी कम उम्र के ऐक्टर्स से कम उम्र के लड़कों से शादी करने वालों की लिस्ट में मिस वर्ल्ड ऐश्वर्या राय भी शामिल हैं. ऐश्वर्या ने भी अपने से 3 साल छोटे अभिनेता अभिषेक बच्चन के साथ शादी रचाई थी.

2007 में दोनों शादी के बंधन में बंधे. तब ऐश की उम्र 34 साल थी और अभिषेक की उम्र 31 साल थी यानी कपल को शादी के पूरे 15 साल हो चुके हैं. वे एक प्यारी सी बेटी आराध्या बच्चन के मातापिता भी बन चुके हैं.

बौलीवुड फिल्मों को बहुत पहले छोड़ चुकीं नम्रता शिरोडकर ने साउथ के सुपरस्टार महेश बाबू से शादी की है. नम्रता पति महेश से बड़ी हैं. दोनों की उम्र में 4 साल का अंतर है. महेश बाबू और नम्रता ने अपनी शादी का फैसला करने से पहले

5 साल तक डेट किया था. दोनों 10 फरवरी, 2005 को शादी के बंधन में बंधे थे और अब उन के 2 बच्चे हैं गौतम और सितारा.

बौलीवुड के सब से चहेते और हौट कपल्स की लिस्ट में बिपाशा बसु और करण सिंह ग्रोवर का नाम भी शुमार है. बिपाशा अपने पति करण सिंह ग्रोवर से उम्र में पूरे 6 साल बड़ी हैं. बिपाशा ने टीवी के मशहूर अभिनेता करण से शादी रचाई थी. इस जोड़े ने 2016 में शादी की थी. बिपाशा और करण भी एक बेटी के मातापिता बन चुके हैं. उन की बेटी का नाम देवी है. बिपाशा अकसर देवी के क्यूट वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं.

कैटरीना ने अपना हमसफर बस एक  झटके में ही चुन लिया था. जहां सभी पहले यह कयास लगाते थे कि सलमान खान के साथ कैटरीना की शादी होगी, लेकिन सभी खबरें तब अफवाह बन कर रह गईं जब कैटरीना ने विक्की कौशल से शादी कर ली. कैटरीना की उम्र 40 साल और विक्की कौशल की उम्र 35 साल है यानी कैटरीना कैफ और विक्की कौशल की उम्र के बीच 5 साल का अंतर है. दोनों 2021 में शादी के बंधन में बंध गए थे. इन की जोड़ी को देख कर साफ पता चलता है कि उन्हें अपने ऐज गैप से कोई फर्क नहीं पड़ता है यानी अगर दिल राजी तो सब राजी.

Pimples : पिंपल के दागों को दूर करने का तरीका बताएं?

Pimples : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 18 वर्षीय युवती हूं. अपने चेहरे पर होने वाले कीलमुंहासों और उन से होने वाले दागों से बहुत परेशान हूं. ऐसा कोई घरेलू उपाय बताएं जिस से मेरी समस्या दूर हो सके?

जवाब

अगर मुंहासे लाल रंग के हैं तो उन पर पूरी रात कौलगेट लगाए रखें. सुबह धो लें. इस के अलावा मुंहासों पर बेकिंग पाउडर में पानी मिला कर भी लगा सकती हैं. ये दोनों उपाए मुंहासों को हटाने में कारगर साबित होंगे. जहां तक मुंहासों के दागों का सवाल है तो आप पल्प में हलदी मिला कर उसे दागों पर लगाएं. इस के अलावा आप ऐलोवेरा जैल, नीम, तुलसी पाउडर का पेस्ट बना कर भी मुंहासों के दागों पर लगा सकती हैं. जरूर लाभ होगा.

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हमारे सारे प्रयास बेदाग त्वचा पाने की दिशा में होते हैं. एक ऐसी त्वचा जिस पर कोई दाग, धब्बा, झुर्रियां, झाइयां व मुंहासे ना हों. ऐसी त्वचा पाना आसान नहीं है लेकिन कुछ विटामिन फेस मास्क यह करिश्मा दिखा सकते हैं.

एक साफ और निखरी त्वचा पाने के लिए आपको विटामिन व मिनरल की सबसे अधिक जरूरत होती है. विटामिन ई आपको दागों से छुटकारा दिलाता है जबकि विटामिन सी आपकी त्वचा को जवां बनाए रखता है.

इन फेस मास्क को बनाने के लिए आप किसी भी कैप्सूल का इस्तेमाल नहीं कर सकती. इसके लिए आपको आपकी त्वचा व त्वचा से जुड़ी समस्याओं की समझ होनी चाहिए.

जैसे एस्पिरिन की गोलियों में मौजूद सलिसीक्लिक एसिड मुंहासों से छुटकारा दिलाता है जबकि विटामिन ई के कैप्सूल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट आपकी त्वचा को साफ व कोमल बनाते हैं.

लेकिन इन सब से भी अधिक जरूरी बात है कैप्सूल को इस्तेमाल करने की मात्रा. कौन सा कैप्सूल कितनी मात्रा में इस्तेमाल करना है या बनाए गए लेप को हफ्ते में कितनी बार लगाना चाहिए जैसे सवालों के जवाब भी पता होने चाहिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Recipes For Working Couple : वर्किंग कपल के लिए परफैक्ट हैं ये चावल से बने शुगर फ्री डेजर्ट

Recipes For Working Couple : गरमियों का मौसम है और इस भीषण गरमी में अकसर कुछ ठंडाठंडा खाने का मन करता है पर इस गरमी में बहुत अधिक देर तक किचन में रहने का मन भी नहीं करता और हम चाहते हैं कुछ ऐसा डेजर्ट जिसे झटपट बनाया जा सके.

वर्किंग कपल्स जिन के पास समय का अभाव रहता है, उन के लिए ये डेजर्ट एकदम परफैक्ट हैं क्योंकि इसे आप 5 से 10 मिनट में घर में उपलब्ध सामग्री के साथ बना सकते हैं. डीप फ्राइड और बिना शुगर के बना होने से यह बहुत हैल्दी भी होता है. तो आइए, जानते हैं कि आप इसे कैसे बना सकते हैं :

राइस फ्रूट बाउल

कितने लोगों के लिए : 4
बनने में लगने वाला समय : 10 मिनट
मील टाइप : वेज

सामग्री

पके हुए चावल : 1 कप
हंग कर्ड : ½ कप
अंगूर : 250 ग्राम
बारीक कटे फल : आम, सेब, केला आदि
बीज निकले खजूर: 6
रोज सीरप : 2 बङे चम्मच
मिक्स सीड्स : 1 टीस्पून

विधि

खजूर को बारीक टुकड़ों में काट लें. हंग कर्ड, चावल और खजूर को एक साथ मिला लें. अंगूर को साफ कर के मिक्सी में ग्राइंड कर लें. लेयरिंग करने के लिए चावल और फलों को 2 भाग में कर लें. अब सर्विंग डिश में पहले चावल की परत लगाएं फिर रोज सीरप, फिर फल और इसी प्रकार दूसरी लेयर लगा दें. आखिरी लेयर चावल की लगा कर ऊपर से कटे फल और मिक्स सीड्स से गार्निश करें. फ्रिज में रख कर ठंडा कर के सर्व करें.

मैंगो राइस पुडिंग

कितने लोगों के लिए : 4
बनने में लगने वाला समय : 10 मिनट
मील टाइप : वेज

सामग्री

पके हुए चावल : 1 कप
ब्रैड स्लाइस : 4
फुल क्रीम दूध : 2 कप
मिल्क पाउडर : 1 छोटा चम्मच
कौर्नफ्लोर : 1 छोटा चम्मच
किशमिश : 10-12
बारीक कटे पके आम : 1 कप
पके आम का गूदा : ½ कप
बारीक कटा पिस्ता : 1 बङा चम्मच

विधि

कौर्नफ्लोर और मिल्क पाउडर को 2 बङे चम्मच दूध में डाल कर अच्छी तरह घोल लें. जब दूध में उबाल आ जाए तो दूध में कौर्नफ्लोर और मिल्कपाउडर को डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. लगातार चलाते हुए 5 मिनट तक पका कर गैस बंद कर दें और मिश्रण को ठंडा होने दें. आम के गूदे और किशमिश को एकसाथ मिक्सी में पीस कर ठंडे दूध के मिश्रण में अच्छी तरह मिला दें.

अब एक चौकोर डिश में पहले चावल, फिर दूध, फिर ब्रैड और ऊपर से कटे आम की लेयर लगाएं. इसी तरह से 3 लेयर्स को रिपीट करें. अंतिम लेयर को कटे आम और पिस्ता कतरन से गार्निश करें. फ्रिज में रख कर ठंडा करें. मनचाहे आकार में काट कर सर्व करें.

मनोरंजन के साथ, इंसानियत का पाठ पढ़ा गई राजकुमार राव की फिल्म Bhool Chuk Maaf

Bhool Chuk Maaf Review : मेडाक फिल्म ज्यादातर हौरर फिल्में बनाने के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन इस बार निर्माता दिनेश विजन और लेखक निर्देशक करण शर्मा राजकुमार राव अभिनीत एक अलग तरह की रोमांटिक कौमेडी ड्रामा फिल्म भूल चूक माफ लेकर आए हैं जिसकी कहानी टाइम लूप में फंसे आशिक दूल्हे पर आधारित है. फिल्म का हीरो राजकुमार राव जिसकी शादी वामिका गब्बी अर्थात तितली के साथ होने वाली है.

जिसके साथ उसका काफी समय से प्रेम चल रहा था. दोनों दूल्हा दुल्हन अपनी शादी को लेकर खुश है वही टाइम लूप के चलते समय की सुई 29 तारीख पर ही अटक जाती है जिस दिन दूल्हे की हल्दी है. अगले दिन 30 तारीख को दूल्हे की शादी है लेकिन शादी की तारीख आती ही नहीं बारबार हल्दी की तारीख अर्थात 29 तारीख पर ही समय की सूई अटक जाती है. उसके बाद क्या कुछ होता है दूल्हा पागल जैसा हो जाता है, तितली भी अपने दूल्हे की पागलपन वाली हरकतों से परेशान हो जाती है.

घर के बाकी सदस्य को क्या क्या झेलना पड़ता है , इस पूरी फिल्म में मनोरंजन के साथ हास्य का तड़का लगाते हुए दिखाया गया है.  इसके अलावा शादी के लिए सरकारी नौकरी का जुगाड़ , रिश्तेदारों के ताने बाने, हमेशा छाया की तरह रहने वाले दोस्तों की क्या बातें, दूल्हा दुल्हन के बीच प्यार भरी नोक झोक ने फिल्म को दिलचस्प बनाया है. लेकिन इन सभी हंसी ठिठोलो के बीच भूल चूक माफ के कहानी कार ने एक संदेश देने की कोशिश भी की है. हीरो के जरिए इंसानियत का पाठ भी पढ़ाया है, जो इस मनोरंजक फिल्म की जान है.

फिल्म के अन्य पहलुओं की बात करें तो इस फिल्म का डायरेक्शन इंटरवल से पहले थोड़ा ढीला रहा है , लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म ने अच्छा ग्रिप पकड़ा है. फिल्म का संगीत तनिष्क बागची का है जो कर्ण प्रिय है.

अन्य कलाकारों ने जैसे संजय मिश्रा, रघुवीर यादव , सीमा पाहवा ने अपने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है . राजकुमार राव इस तरह के किरदारों के लिए पहले से मंझे हुए हैं . लेकिन फिल्म की हीरोइन वामिका ग़ब्बी ने यूं पी स्टाइल का तड़का बेहतरीन तरीके से लगाया है. फिल्म का टाइटल भूल चूक माफ कहानी के हिसाब से पूरी तरह फिट है. 23 मई 2025 को यह फिल्म थिएटर में रिलीज हो जाएगी.

Poetry Influencers: इंस्टाग्राम रील्स में धड़कतीं शायरियां

Poetry Influencers: इंस्टाग्राम या यूट्यूब खोलो, तो कहीं न कहीं कोई अपनी कविता पढ़ता मिल जाता है. प्यार, तनहाई, समाज, जिंदगी हर मुद्दे पर कुछ न कुछ कहा जा रहा है वह भी शायरी के अंदाज में. ये यंग पोएट्री इन्फ्लुएंसर्स आज की जनरेशन के जज्बातों को अपनी आवाज और अल्फाज के जरिए बयान कर तो रहे हैं मगर शायद ही किसी की शायरी है जो कैफ़ी आजमी, फैज अहमद फैज, गुलजार या जावेद अखतर की तरह जबान पर चढ़ पा रही हो. मिलिए ऐसे इन्फ़्लुएंसर्स से.

 

प्रिया मलिक

प्रिया मलिक की कविताएं मोटिवेट करती हैं. लाइन्स हार्ड हैं. वह लव, ब्रेकअप और औरतों की आजादी जैसे मुद्दों पर लिखती है. उस का बोलने का अंदाज अनोखा है. उन की लिखी हुई कविताएं जैसे- ‘जैसे तुम प्यार करते हो’, ‘चाय ठंडी हो रही है’, ‘तू बन शेरनी तू दिखा दम’, ‘मैं तुम्हे फिर मिलूंगी’ उन के फैंस के बीच काफी पौपुलर हैं.

 

हेली शाह

हेली शाह नई जनरेशन की आवाज है. उस की शायरी में सैल्फ लव, स्ट्रगल और लाइफ की रिऐलिटी का ब्लैंड है. उस का अंदाज सौफ्ट लेकिन असरदार है. लड़कियां उस की शायरी से अपने को कनैक्ट महसूस करती हैं.

 

नायाब मिधा

नायाब मिधा भारत की यंग पौपुलर पोएट्री आर्टिस्टों में से एक है. वह जो तुकबंदियां बनाती है, जो कहानियां और सिनैरियो अपने शब्दों के माध्यम से बयान करती है वह बढ़िया होता है.

 

केशव झा

समय रैना के शो ‘इंडियाज गौट लेटेंट’ से मशहूर हुआ केशव झा अब ओपनमाइक पोएट्री करने लगा है. समय का खुद का कैरियर डांवांडोल जरूर हुआ पर उस के शो से यंगस्टर्स को मौका मिला. केशव अपनी शायरी में शुद्ध हिंदी का इस्तेमाल करता है.

 

आशिष बागरेचा

अपनी रीलों के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुंचने वाले बागरेचा के इंस्टाग्राम पर 2.3 मिलियन फौलोअर्स हैं. मोहब्बत, जिंदगी, गम को ले कर कविताएं लिखता है. आशिष भारत में टौप पोएट्री इन्फ्लुएंसर्स में से एक है.

Personality Test : डौमिनैंट पर्सनैलिटी तो नहीं आप ?

Personality Test : सुनो वह ब्लू सूट पहनना अपनी बहन की शादी में, कहीं अपना फैवरिट पिंक मत पहन लेना, बिलकुल बकवास लगता है वह. और हां शनिवार को जाने का और सोमवार को वापसी का रिजर्वेशन करा लिया है मैं ने तो उतना ही सामान पैक करना,’’ कहता हुआ समीर औफिस के लिए निकल गया.

अनु सोचने लगी कि मैं मायके में क्या पहनूंगी और कब जा कर वापस आऊंगी सबकुछ अकेले ही तय कर लिया समीर ने जैसे मेरी कोई मरजी ही नहीं.

उधर शैलेश अपने कमरे में खड़े पत्नी को आवाज लगा रहे कि उन के कपड़े निकाल कर नहीं रखे तो आज क्या पहन कर औफिस जाएंगे. अब पूरा वार्डरोब देख कर भी वे यह तय नहीं कर पा रहे कि क्या पहना जाए. हमेशा सविता की मरजी के अनुसार कपड़े पहनने के कारण अब वे खुद फैसला लेने के आदी ही न रहे थे.

देखा जाए तो दोनों ही केस में कितनी आसानी हो गई एक साथी के लिए. कोई जिम्मेदारी नहीं सबकुछ तय कराकराया मिल गया. समीर तो अनु के जीवन से जुड़ा हर निर्णय ऐसे ही करता आया है. फिर चाहे कैसे कपड़े पहनने की बात हो या कहीं जाने की यहां तक कि रैस्टोरैंट में खाना और्डर करने तक सब जगह वह सब से पहले फैसला ले लेता है और अनु मुसकरा कर उस की मरजी में ही अपनी खुशी जता देती है.

वहीं शैलेश को जीवन में बस शांति चाहिए जो पत्नी के इशारों पर चलने से ही संभव थी तो उस ने भी इस स्थिति को चुपचाप स्वीकार करने में ही भलाई समझ. ऐसे में व्यक्ति को अपने पार्टनर की खींची गई लकीर पर ही चलते रहना होता है. ऐसे पार्टनर को ही कहते हैं डौमिनैंट पर्सनैलिटी.

ऐसा व्यक्ति हमेशा अपने नजदीकी लोगों को अपने प्रभाव में रखता है या यों कहें कि लोगों को अपनी प्रभुसत्ता मानता है.

यों तो डौमिनैंट लोग बड़े जिम्मेदार होते हैं और उन की कोशिश अपने परिवार के लिए सबकुछ बेहतरीन करने की होती है लेकिन उन बेहतरीन फैसलों के लिए वे यह भूल जाते हैं कि उन का साथी भी अपनी राय और सोचसमझ रखता और उस साथी की समझ उन से बेहतर भी हो सकती है. डौमिनैंट व्यक्ति हमेशा अपनी बात को सही साबित करने में लगा रहता है. यहां तक कि इस कारण किसी से भी लड़ पड़ता है. उसे हर काम अपनी पसंद के अनुसार ही करना होता है जबकि किसी काम को करने के कई दूसरे तरीके भी सही हो सकते हैं.

कुछ अच्छा है

ऐसे व्यक्ति का साथी काफी बर्डनलैस हो जाता है. उसे काफी सारी घरेलू पारिवारिक जिम्मेदारियों से फुरसत मिल जाती है. वह अपने शौक के लिए समय निकाल पाता है.

मुश्किल है सफर

डौमिनेट व्यक्ति के साथी का व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है. उसे अपने हर निर्णय में किसी की मदद चाहिए होती है. फिर एक दिन वह आता है जब कोई निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती भी है तो उस के अंदर निर्णय लेने की क्षमता ही नहीं बची होती. वह उस कठपुतली की तरह हो जाता है जिसे डोरी पकड़ कर कहीं भी घुमा दो.

ऐसे साथी का आत्मविश्वास कम होतेहोते खत्म ही हो जाता है. लेकिन घर बनाए रखने के लिए वह अपने आत्मविश्वास का अंत भी सहन कर लेता है और जीवन में कभी अकेले रह जाने की स्थिति में तो बड़ी मुश्किल हो जाती है.

डौमिनैंट व्यक्ति अकसर अपने साथी से खिंचाखिंचा रहता है. खुद ही अपने साथी का आत्मविश्वास खत्म कर के यह व्यक्ति दूसरे कौन्फिडैंट लोगों की ओर आकर्षित होने लगता है. वहीं कई जगह तो ऐसी स्थिति तलाक का कारण भी बन जाती है.

दूसरी ओर ऐसे लोगों से उन के अनेक रिश्तेदार, दोस्त और साथी दूरी बनाने लगते हैं कि कोई भी अपने ऊपर किसी की हुकूमत बदाश्त नहीं करता. ऐसे व्यक्ति सबकुछ कर के भी अकेले रह जाते हैं.

कहीं आप भी डौमिनैंट पर्सनैलिटी तो नहीं

अकसर डौमिनैंट लोगों को यह एहसास ही नहीं होता कि वे किस हद तक लोगों की जिंदगी में दखलंदाजी करने के आदी हैं यानी कितने डौमिनैंट हैं.

ऐसे में आप को खुद अपना टैस्ट ले कर देख लेना चाहिए. इस के लिए कुछ प्रश्नों के उत्तर आप अपनेआप से पूछ सकते हैं जैसे-

1. किसी भी घरेलू मुद्दे पर फैसला लेने से पहले क्या आप उसे परिवार के सामने टेबल पर रखते हैं? टेबल पर रखे जाने का अर्थ है कि क्या उस पर परिवार की राय पूछी जाती है?

2. क्या आप का किया हर फैसला ही आखिरी फैसला होता है?

3. क्या परिवार में कोई किस रंग के कपड़े पहनेगा यह भी आप अकेले तय करना चाहते हैं?

4. क्या आप को अपने परिवार की पसंद कभी पसंद नहीं आती?

5. क्या आप को हमेशा यह लगता है कि आप का परिवार कहीं समाज में आप की खिल्ली न उड़वा दे इसीलिए आप ज्यादा रोकटोक करते हैं?

6. क्या आप हमेशा अपने साथी की तरफ से असुरक्षित महसूस करते हैं?

7. क्या आप मानते हैं कि आप अपने साथी से ज्यादा समझदार हैं?

यदि इन में से अधिकतर प्रश्नों के उत्तर हां हैं तो समझ लीजिए कि आप एक डौमिनैंट पर्सनैलिटी के मालिक हैं.

अब सवाल यह है कि जब आप को अपने डौमिनैंट होने से कोई दिक्कत नहीं है तो इसे क्यों बदलें. हो सकता है आज आप को अपनी इस सोच से कोई दिक्कत न हो और आप खुद को अपने परिवार का बेताज बादशाह समझते हों लेकिन समझ लें कि यह बादशाहत आगे चल कर आप के गले का कांटा बन सकती है. कैसे? इस तरह:

पहली बात तो यद्द कि जीवन की गाड़ी दोनों पहियों पर चले तभी सही से चलती है नहीं तो एक ही पहिया दूसरे को कहां तक घसीट सकता है क्योंकि जीवन में जब कभी साथी से सहायता चाहिए होती है तो वद्द नहीं मिल पाती.

दूसरे जिस व्यक्ति ने कभी कोई निर्णय न लिया ही वह एक दिन कुंठित हो जाता है. सोचिए सारी जिंदगी एक कुंठित व्यक्ति के साथ गुजारनी होगी.

अकेले सारे निर्णय लेते रहने के कारण परिवार की हरेक जिम्मेदारी आप के सिर आ जाती है और फिर एक दिन आप इस बढ़े हुए बोझ से दबने लगते हैं पर तब भी किसी के साथ जिम्मेदारी को बांट नहीं पाते.

साथ चलें मिल कर

कुदरत ने हर व्यक्ति को अपनी एक पर्सनैलिटी के साथ दुनिया में भेजा है जिस में उस की पसंदनापसंद शामिल है. मातापिता या साथी होने के नाते उसे सहीगलत, अच्छेबुरे और ठीकठाक में फर्क सिखाना आप की जिम्मेदारी है. लेकिन सिर्फ जो आप सोचते हैं या पसंद करते हैं वही एकमात्र सत्य है ऐसा सोचना ठीक नहीं.

याद रखिए कभी भी किसी का आत्मविश्वास न खत्म होने दें. अपने साथी का आत्मविश्वास खत्म कर के आप खुद को ही कमजोर करते हैं और ऐसे व्यक्ति से फिर आप परफैक्शन की उम्मीद भी नहीं कर सकते. वहीं मिलनेजुलने वाले भी उस व्यक्ति को ‘कन्फ्यूज्ड’ कह कर चिढ़ाते हैं और हम भूल जाते है कि यह ‘कन्फ्यूज स्टेट औफ माइंड’ भी हमारी ही देन है. अत: बेहतर है कि अपने साथी और परिवार को फूलनेफलने का पूरा अवसर दें व उन का मार्गदर्शन करें और उन से अपने लिए सलाह मांगें भी.

राइटर- सबा नूरी

Relationship Tips : ब्रेकअप के बाद खत्म नहीं होती जिंदगी

Relationship Tips : कमिटेड रिलेशनशिप जिंदगी को खुशहाली से भर देती है. सबकुछ इतना अच्छा और खुशनुमा लगता है कि बस जिंदगी यों ही अपने साथी की बांहों में कट जाए. लेकिन जब यही खूबसूरत रिश्ता टूट जाता है, जिसे हम ब्रेकअप कहते हैं तो वह जिंदगी का सब से दर्दनाक पल होता है. अपने साथी के साथ बिताए वे खूबसूरत पल जब ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर ढह जाते हैं तो जिंदगी एकदम वीरान लगने लगती है.

प्यार की शुरुआत में एकदूसरे से बेहद प्यार का दावा करने वाले कुछ महीनों या फिर साल 2 साल में एकदूसरे से इतने ज्यादा उकता जाते हैं कि अलग होने का फैसला ले लेते हैं और ब्रेकअप कर लेते हैं. ब्रेकअप होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे रिलेशनशिप में रहते हुए पार्टनर को धोखा देना, इग्नोर करना, अपने रिश्ते को टेकन फौर ग्रांटेड लेना, पार्टनर को समय न देना या फिर आपसी अंडरस्टैंडिंग, बौंडिंग, लगाव, कैमिस्ट्री की कमी आदि के कारण ब्रेकअप की नौबत आ जाती है.

ऐसे में व्यक्ति स्ट्रैस और डिप्रैशन में चला जाता है. वह खानापीना यहां तक कि लोगों से मिलनाजुलना भी छोड़ देता है और अपनेआप को एककमरे में बंद कर लेता है, जिस का प्रभाव उस की सेहत पर पड़ने लगता है.

ऐक्सपर्ट का कहना है कि प्यार एक टौनिक की तरह होता है जो हमारे मस्तिष्क में फीलगुड कैमिकल को बढ़ाने का काम करता है. इस से इंसान बहुत अच्छा महसूस करता है. वहीं ब्रेकअप के बाद कई तरह की शारीरिक समस्याएं, चिंताएं और तनाव आदि पैदा हो जाता है. ऐसे में स्ट्रैस हारमोंस बढ़ता है जो हार्ट अटैक का कारण बन सकता है. इस कंडीशन को ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम कहा जाता है.

ब्रेकअप के बाद महिलाएं ज्यादा स्ट्रैस में

इवोलूशनरी बिहेवियरल साइंस नाम के जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी में बिंगमटन यूनिवर्सिटी कालेज लंदन के अनुसंधानकर्ताओं ने 96 देशों के 5 हजार 705 प्रतिभागियों का इंटरव्यू लिया और उन्हें ब्रेकअप से जुड़े शारीरिक और भावनात्मक दर्द को 1 से 10 स्केल पर रेट करने को कहा. स्टडी के नतीजे बताते हैं कि महिलाओं पर ब्रेकअप यानी दिल टूटने का फिजिकली और इमोशनली दोनों ही तरह से ज्यादा नकारात्मक असर पड़ता है. स्टडी में शामिल महिला प्रतिभागियों ने ब्रेकअप से जुड़े भावनात्मक दर्द को 6.84 रेटिंग दी जबकि पुरुषों ने 6.58 तो वहीं शारीरिक दर्द को महिलाओं ने 4.21 की रेटिंग दी जबकि पुरुषों ने नए 3.75 भी.

ऐसा तब ज्यादा होता है जब महिलाएं अपने पार्टनर के साथ फिजिकल रिलेशनशिप में होती हैं और उन का ब्रेकअप हो जाता है. तब वे ज्यादा स्ट्रैस और डिप्रैशन में आ जाती हैं. पुरुष ‘फाइट या फ्लाइट यानी लड़ो या भागो’ पर ज्यादा विश्वास करते हैं, वहीं महिलाएं ब्रेकअप को दिल से लगा बैठती हैं, जिस से वे ज्यादा स्ट्रैस में आ जाती हैं.

भूलना मुश्किल

एक स्टडी की मानें तो पुरुषों को या तो ब्रेकअप से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता या फिर वे ब्रेकआप के दर्द को भुलाने के लिए शराब और ड्रग्स जैसी चीजों का सहारा लेने लगते हैं, वहीं महिलाएं आत्महत्या जैसे कदम उठाने का सोचने लगती हैं.

विशाखा और निवेद एकदूसरे को दिलोजान से प्यार करते थे. वे 5 सालों से एकदूसरे के साथ पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. मगर उन के बीच न जाने ऐसा क्या हुआ कि उन के रास्ते अलग होते चले गए. 5 सालों से रिलेशन में रह रहे विशाखा और निवेद के ब्रेकअप की बात सुन कर उन के दोस्त भी शौक्ड रह गए. ब्रेकअप के बाद निवेद तो अपनी लाइफ में आगे बढ़ गया, मगर विशाखा उस डिप्रैशन से उबर नहीं पाई. उस का प्यार पर से विश्वास ही उठ गया. वह इंडिया छोड़ कर हमेशा के लिए अमेरिका अपनी बड़ी बहन के पास रहने चली गई.

कहते हैं प्यार करना और निभाना

2 अलगअलग बातें हैं और कभीकभी तमाम कोशिशों के बावजूद रिश्ते में परेशानियां आती चली जाती हैं. जब आप अपने साथी से सच्चा प्यार करते हैं और यदि आप को अपने प्यार में धोखा मिलता है तो ऐसे लोगों के लिए लाइफ में मूवऔन करना बेहद मुश्किल हो जाता है. वे जल्दी अपने रिश्तों को भुला नहीं पाते हैं. पुरानी यादें, इमोशंस को भुलाया जा सकता है लेकिन जब फिजिकल रिश्ते से जुड़े हों तो यह महिलाओं के लिए भूलना बहुत मुश्किल हो जाता है और वे स्ट्रैस में चली जाती हैं, जबकि पुरुषों को उतना ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है और वे अपनी जिंदगी में जल्दी आगे बढ़ जाते हैं, जबकि महिलाएं ऐसा बहुत मुश्किल से कर पाती हैं.

खुद को व्यस्त रखें

खाली दिमाग यहांवहां भटकता है. पुरानी यादें दिलाता है, इसलिए जहां तक हो सके खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करें. इस से न केवल आप समस्या के बारे में बारबार सोचने से बचेंगी बल्कि आप के अंदर आत्मविश्वास का संचार भी होगा. आप चाहें तो किसी हौबी क्लास में या औफिस के काम में व्यस्त हो जाएं ताकि उस की आप को याद ही न सताए.

चेहरे की सुंदरता पर ध्यान दें

ब्रेकअप के बाद अकसर महिलाएं उदास रहने लगती हैं, जिस का असर उन की त्वचा पर दिखने लगता है. पुरानी बातें बिसार कर खुद पर ध्यान दें. चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए स्किन केयर रूटीन को अपनाएं, न्यू हेयरस्टाइल और नेल आर्ट के माध्यम से खुद को निखारें ताकि आप का तनमन दोनों खिलेखिले नजर आएं.

फिटनैस पर ध्यान दें

ब्रेकअप के बाद बहुत सी महिलाएं स्ट्रैस इटिंग करने लगती हैं, जिस से उन का वजन बढ़ जाता है और वे और डिप्रैशन में चली जाती हैं. ऐसे में आप अपनी सेहत का ध्यान रखें. ज्यादा खाने से बचें और फिटनैस पर ध्यान दें.

रहें पौजिटिव

ब्रेकअप के बाद लगने लगता है जैसे सबकुछ खत्म हो गया. जीवन में अब कुछ बचा ही नहीं है इसलिए अब जीने का कोई फायदा नहीं है. लेकिन ऐसा नहीं. जिंदगी इतनी छोटी भी नहीं है कि एक चोट से टूट कर खत्म हो जाए. अपने मन में सकारात्मक सोच लाएं और सोचें कि यह आप की जिंदगी है और किसी और के लिए आप अपने अनमोल जीवन को यों ही खत्म नहीं कर सकती हैं. अतीत के बारे में सोचसोच कर दुखी होने से अच्छा है जीवन में आगे बढ़ें. अच्छीअच्छी किताबें पढ़ें, मनपसंद म्यूजिक सुनें, घूमने जाएं. इस से आप का मन खुश होगा और आप जीवन के बारे में पौजिटिव सोच पाएंगी.

यह सब करने के बाद भी आप इस परेशानी से बाहर नहीं आ पा रही हैं तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह लें.

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