Fictional Story: सहायक प्रबंधक- खुद को ऋणी क्यों मान रहे थे राजशेखर

Fictional Story: चींटी की गति से रेंगती यात्री रेलगाड़ी हर 10 कदम पर रुक जाती थी. वैसे तो राजधानी से खुशालनगर मुश्किल से 2 घंटे का रास्ता होगा, पर खटारा रेलगाड़ी में बैठे हुए उन्हें 6 घंटे से अधिक का समय हो चुका था.

राजशेखरजी ने एक नजर अपने डब्बे में बैठे सहयात्रियों पर डाली. अधिकतर पुरुष यात्रियों के शरीर पर मात्र घुटनों तक पहुंचती धोती थी. कुछ एक ने कमीजनुमा वस्त्र भी पहन रखा था पर उस बेढंगी पोशाक को देख कर एक क्षण को तो राजशेखर बाबू उस भयानक गरमी और असह्य सहयात्रियों के बीच भी मुसकरा दिए थे.

अधिकतर औरतों ने एक सूती साड़ी से अपने को ढांप रखा था. उसी के पल्ले को करीने से लपेट कर उन्होंने आगे खोंस रखा था. शहर में ऐसी वेशभूषा को देख कर संभ्रांत नागरिक शायद नाकभौं सिकोड़ लेते, महिलाएं, खासकर युवतियां अपने विशेष अंदाज में फिक्क से हंस कर नजरें घुमा लेतीं. पर राजशेखरजी उन के प्राकृतिक सौंदर्य को देख कर ठगे से रह गए थे. उन के परिश्रमी गठे हुए शरीर केवल एक सूती धोती में लिपटे होने पर भी कहीं से अश्लील नहीं लग रहे थे. कोई फैशन वाली पोशाक लाख प्रयत्न करने पर भी शायद वह प्रभाव पैदा नहीं कर सकती थी. अधिकतर महिलाओं ने बड़े सहज ढंग से बालों को जूड़े में बांध कर स्थानीय फूलों से सजा रखा था.

तभी उन के साथ चल रहे चपरासी नेकचंद ने करवट बदली तो उन की तंद्रा भंग हुई.

‘यह क्या सोचने लगे वे?’ उन्होंने खुद को ही लताड़ा था. कितना गरीब इलाका है यह? लोगों के पास तन ढकने के लिए वस्त्र तक नहीं है. उन्होंने अपनी पैंट और कमीज पर नजर दौड़ाई थी…यहां तो यह साधारण वेशभूषा भी खास लग रही थी.

‘‘अरे, ओ नेकचंद. कब तक सोता रहेगा? बैंक में अपने स्टूल पर बैठा ऊंघता रहता है, यहां रेल के डब्बे में घुसते ही लंबा लेट गया और तब से गहरी नींद में सो रहा है,’’ उन के पुकारने पर भी चपरासी नेकचंद की नींद नहीं खुली थी.

तभी रेलगाड़ी जोर की सीटी के साथ रुक गई थी. ‘‘नेकचंद…अरे, ओ कुंभकर्ण. उठ स्टेशन आ गया है,’’ इस बार झुंझला कर उन्होंने नेकचंद को पूरी तरह हिला दिया.

वह हड़बड़ा कर उठा और खिड़की से बाहर झांकने लगा. ‘‘यह रहबरपुर नहीं है साहब, यहां तो गाड़ी यों ही रुक गई है,’’ कह कर वह पुन: लेट गया.

‘‘हमें रहबरपुर नहीं खुशालनगर जाना है,’’ राजशेखरजी ने मानो उसे याद दिलाया था.

‘‘रहबरपुर के स्टेशन पर उतर कर बैलगाड़ी या किसी अन्य सवारी से खुशालनगर जाना पड़ेगा. वहां तक यह टे्रन नहीं जाएगी,’’ नेकचंद ने चैन से आंखें मूंद ली थीं.

बारबार रुकती और रुक कर फिर बढ़ती वह रेलगाड़ी जब अपने गंतव्य तक पहुंची, दिन के 2 बज रहे थे.

‘‘चलो नेकचंद, शीघ्रता से खुशालनगर जाने वाली किसी सवारी का प्रबंध करो…नहीं तो यहीं संध्या हो जाएगी,’’ राजशेखरजी अपना बैग उठा कर आगे बढ़ते हुए बोले थे.

‘‘हुजूर, माईबाप, ऐसा जुल्म मत करो. सुबह से मुंह में एक दाना भी नहीं गया है. स्टेशन पर सामने वह दुकान है… वह गरम पूरियां उतार रहा है. यहां से पेटपूजा कर के ही आगे बढ़ेंगे हम,’’ नेकचंद ने अनुनय की थी.

‘‘क्या हुआ है तुम्हें नेकचंद? यह भी कोई खाने की जगह है? कहीं ढंग के रेस्तरां में बैठ कर खाएंगे.’’

‘‘रेस्तरां और यहां,’’ नेकचंद हंसा था, ‘‘सर, यहां और खुशालनगर तो क्या आसपास के 20 गांवों में भी कुछ खाने को नहीं मिलेगा. मैं तो बिना खाए यहां से टस से मस नहीं होने वाला,’’ इतना कह कर नेकचंद दुकान के बाहर पड़ी बेंच पर बैठ गया.

‘‘ठीक है, खाओ, तुम्हें तो मैं साथ ला कर पछता रहा हूं,’’ राजशेखरजी ने हथियार डाल दिए थे.

‘‘हुजूर, आप के लिए भी ले आऊं?’’ नेकचंद को पूरीसब्जी की प्लेट पकड़ा कर दुकानदार ने बड़े मीठे स्वर में पूछा था.

राजशेखरजी को जोर की भूख लगी थी पर उस छोटी सी दुकान में खाने में उन का अभिजात्य आड़े आ रहा था.

‘‘मेरी दुकान जैसी पूरीसब्जी पूरे चौबीसे में नहीं मिलती साहब, और मेरी मसालेदार चाय पीने के लिए तो लोग मीलों दूर से चल कर यहां आते हैं,’’ दुकानदार गर्वपूर्ण स्वर में बोला था.

‘‘ठीक है, तुम इतना जोर दे रहे हो तो ले आओ एक प्लेट पूरीभाजी. और हां, तुम्हारी मसालेदार चाय तो हम अवश्य पिएंगे,’’ राजशेखरजी भी वहीं बैंच पर जम गए थे.

नेकचंद भेदभरे ढंग से मुसकराया था पर राजशेखरजी ने उसे अनदेखा कर दिया था.

कुबेर बैंक में सहायक प्रबंधक के पद पर राजशेखरजी की नियुक्ति हुई थी तो प्रसन्नता से वह फूले नहीं समाए थे. किसी वातानुकूलित भवन में सजेधजे केबिन में बैठ कर दूसरों पर हुक्म चलाने की उन्होंने कल्पना की थी. पर मुख्यालय ने उन्हें ऋण उगाहने के काम पर लगा दिया था. इसी चक्कर में उन्हें लगभग हर रोज दूरदराज के नगरों और गांवों की खाक छाननी पड़ती थी.

पूरीसब्जी समाप्त होते ही दुकानदार गरम मसालेदार चाय दे गया था. चाय सचमुच स्वादिष्ठ थी पर राजशेखरजी को खुशालनगर पहुंचने की चिंता सता रही थी.

बैलगाड़ी से 4 मील का मार्ग तय करने में ही राजशेखर बाबू की कमर जवाब दे गई थी. पर नेकचंद इन हिचकोलों के बीच भी राह भर ऊंघता रहा था. फिर भी राजशेखर बाबू ने नेकचंद को धन्यवाद दिया था. वह तो मोटरसाइकिल पर आने की सोच रहे थे पर नेकचंद ने ही इस क्षेत्र की सड़कों की दशा का ऐसा हृदय विदारक वर्णन किया था कि उन्होंने वह विचार त्याग दिया था.

कुबेर बैंक की कर्जदार लक्ष्मी का घर ढूंढ़ने में राजशेखरजी को काफी समय लगा था. नेकचंद साथ न होता तो शायद वहां तक कभी न पहुंच पाते. 2-3-8/ए खुशालनगर जैसा लंबाचौड़ा पता ढूंढ़ते हुए जिस घर के आगे वह रुका, उस की जर्जर हालत देख कर राजशेखरजी चकित रह गए थे. ईंट की बदरंग दीवारों पर टिन की छत थी और एक कमरे के उस घर के मुख्यद्वार पर टाट का परदा लहरा रहा था.

‘‘तुम ने पता ठीक से देख लिया है न,’’ राजशेखरजी ने हिचकिचाते हुए पूछा था.

‘‘अभी पता चल जाएगा हुजूर,’’ नेकचंद ने आश्वासन दिया था.

‘‘लक्ष्मीलताजी हाजिर हों…’’ नेकचंद गला फाड़ कर चीखा था मानो किसी मुवक्किल को जज के समक्ष उपस्थित होने को पुकार रहा हो. उस का स्वर सुन कर आसपास के पेड़ों पर बैठी चिडि़यां घबरा कर उड़ गई थीं पर उस घर में कोई हलचल नहीं हुई. नेकचंद ने जोर से द्वार पीटा तो द्वार खुला था और एक वृद्ध ने अपना चश्मा ठीक करते हुए आगंतुकों को पहचानने का यत्न किया था.

‘‘कौन है भाई?’’ अपने प्रयत्न में असफल रहने पर वृद्ध ने प्रश्न किया था.

‘‘हम कुबेर बैंक से आए हैं. लक्ष्मीलताजी क्या यहीं रहती हैं?’’

‘‘कौन लता, भैया?’’

‘‘लक्ष्मीलता.’’

‘‘अरे, अपनी लक्ष्मी को पूछ रहे हैं. हां, बेटा यहीं रहती है…हमारी बहू है,’’ तभी एक वृद्धा जो संभवत: वृद्ध की पत्नी थीं, वहां आ कर बोली थीं.

‘‘अरे, तो बुलाइए न उसे. हम कुबेर बैंक से आए हैं,’’ राजशेखरजी ने स्पष्ट किया था.

‘‘क्या भैया, सरकारी आदमी हो क्या? कुछ मुआवजा आदि ले कर आए हो क्या?’’ वृद्ध घबरा कर बोले थे.

‘‘मुआवजा? किस बात का मुआवजा?’’ राजशेखरजी ने हैरान हो कर प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही कर दिया था.

‘‘हमारी फसलें खराब होने का मुआवजा. सुना है, सरकार हर गरीब को इतना दे रही है कि वह पेट भर के खा सके.’’

‘‘हुजूर, लगता है बूढ़े का दिमाग फिर गया है,’’ नेकचंद हंसने लगा था.

‘‘यह क्या हंसने की बात है?’’ राजशेखरजी ने नेकचंद को घुड़क दिया था.

‘‘देखिए, हम सरकारी आदमी नहीं हैं. हम बैंक से आए हैं. लक्ष्मीलताजी ने हमारे बैंक से कर्ज लिया था. हम उसे उगाहने आए हैं.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप? जरा बुलाओ तो लक्ष्मी को,’’ वृद्ध अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला था.

दूसरे ही क्षण लक्ष्मीलता आ खड़ी हुई थी.

‘‘लक्ष्मीलता आप ही हैं?’’ राजशेखरजी ने प्रश्न किया था.

‘‘जी हां.’’

‘‘मैं राजधानी से आया हूं, कुबेर बैंक से आप के नाम 82 हजार रुपए बकाया है. आप ने एक सप्ताह के अंदर कर्ज नहीं लौटाया तो कुर्की का आदेश दे दिया जाएगा.’’

‘‘क्या कह रहे हो साहब, 82 हजार तो बहुत बड़ी रकम है. हम ने तो एकसाथ 82 रुपए भी नहीं देखे. हम ने तो न कभी राजधानी की शक्ल देखी है न आप के कुबेर बैंक की.’’

‘‘हमें इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है. हमारे पास सब कागजपत्र हैं. तुम्हारे दस्तखत वाला प्रमाण है,’’ नेकचंद बोला था.

‘‘लो और सुनो, मेरे दस्तखत, भैया किसी और लक्ष्मीलता को ढूंढ़ो. मेरे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है. अंगूठाछाप हूं मैं. रही बात कुर्की की तो वह भी करवा ही लो. घर में कुछ बर्तन हैं. कुछ रोजाना पहनने के कपड़े और डोलबालटी. यह एक कमरे का टूटाफूटा झोपड़ा है. जो कोई इन सब का 82 हजार रुपए दे तो आप ले लो,’’ लक्ष्मीलता तैश में आ गई थी.

अब तक वहां भारी भीड़ एकत्रित हो गई थी.

‘‘साहब, कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है. लक्ष्मीलता तो केवल नाम की लक्ष्मी है. इसे बैंक तो छोडि़ए गांव का साहूकार 10 रुपए भी उधार न दे,’’ एक पड़ोसी यदुनाथ ने बीचबचाव करना चाहा था.

‘‘देखिए, मैं इतनी दूर से रेलगाड़ी, बैलगाड़ी से यात्रा कर के क्या केवल झूठ, आरोप लगाने आऊंगा? यह देखिए प्रोनोट, नाम और पता इन का है या नहीं. नीचे अंगूठा भी लगा है. 5 वर्ष पहले 10 हजार रुपए का कर्ज लिया था जो ब्याज के साथ अब 82 हजार रुपया हो गया है,’’ राजशेखरजी ने एक ही सांस में सारा विवरण दे दिया था.

वहां खड़े लोगों में सरसराहट सी फैल गई थी. आजकल ऐसे कर्ज उगाहने वाले अकसर गांव में आने लगे थे. अनापशनाप रकम बता कर कागजपत्र दिखा कर लोगों को परेशान करते थे.

‘‘देखिए, मैनेजर साहब. लक्ष्मीलता ने तो कभी किसी बैंक का मुंह तक नहीं देखा. वैसे भी 82 हजार तो क्या वह तो आप को 82 रुपए देने की स्थिति में नहीं है,’’ यदुनाथ तथा कुछ और व्यक्तियों ने बीचबचाव करना चाहा था.

‘‘अरे, लेते समय तो सोचा नहीं, देने का समय आया तो गरीबी का रोना रोने लगे? और यह रतन कुमार कौन है? उन्होंने गारंटी दी थी इस कर्ज की. लक्ष्मीलता नहीं दे सकतीं तो रतन कुमार का गला दबा कर वसूल करेंगे. 100 एकड़ जमीन है उन के पास. अमीर आदमी हैं.’’

‘‘रतन कुमार? इस नाम को तो कभी अपने गांव में हम ने सुना नहीं है. किसी और गांव के होंगे.’’

‘‘नाम तो खुशालनगर का ही लिखा है पते में. अभी हम सरपंचजी के घर जा कर आते हैं. वहां से सब पता कर लेंगे. पर कहे देते हैं कि ब्याज सहित कर्ज वसूल करेंगे हम,’’ राजशेखरजी और नेकचंद चल पड़े थे. सरपंचजी घर पर नहीं मिले थे.

‘‘अब कहां चलें हुजूर?’’ नेकचंद ने प्रश्न किया था.

‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा. क्या करें, क्या न करें. मुझे तो स्वयं विश्वास नहीं हो रहा कि उस गरीब लक्ष्मीलता ने यह कर्ज लिया होगा,’’ राजशेखरजी बोले थे.

‘‘साहब, आप नए आए हैं अभी. ऐसे सैकड़ों कर्जदार हैं अपने बैंक के. सब मिलीभगत है. सरपंचजी, हमारे बैंक के कुछ लोग, कुछ दादा लोग. किसकिस के नाम गिनेंगे. यह रतन कुमार नाम का प्राणी शायद ही मिले आप को. जमीन के कागज भी फर्जी ही होंगे,’’ नेकचंद ने समझाया था. निराश राजशेखर लौट चले थे.

बैंक पहुंचते ही मुख्य प्रबंधक महोदय की झाड़ पड़ी थी.

‘‘आप तो किसी काम के नहीं हैं राजेशखर बाबू, आप जहां भी उगाहने जाते हैं खाली हाथ ही लौटते हैं. सीधी उंगली से घी नहीं निकलता, उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है. पर आप कहीं तो गुंडों की धमकी से डर कर भाग खड़े होते हैं तो कभी गरीबी का रोना सुन कर लौट आते हैं. जाइए, विपिन बाबू से और कर्जदारों की सूची ले लीजिए. कुछ तो उगाही कर के दिखाइए, नहीं तो आप का रिकार्ड खराब हो जाएगा.’’

उन्हें धमकी मिल गई थी. अगले कुछ माह में ही राजशेखर बाबू समझ गए थे कि उगाही करना उन के बस का काम नहीं था. वह न तो बैंक के लिए नए जमाकर्ता जुटा पा रहे थे और न ही उगाही कर पा रहे थे.

एक दिन इसी उधेड़बुन में डूबे अपने घर से निकले थे कि उन के मित्र निगम बाबू मिल गए थे.

‘‘कहिए, कैसी कट रही है कुबेर बैंक में?’’ निगम बाबू ने पूछा था.

‘‘ठीक है, आप बताइए, कालिज के क्या हालचाल हैं?’’

‘‘यहां भी सब ठीकठाक है… आप को आप के छात्र बहुत याद करते हैं पर आप युवा लोग कहां टिकते हैं कालिज में,’’ निगम बाबू बोले थे.

राजशेखर बाबू को झटका सा लगा था. कर क्या रहे थे वे बैंक में? उन ऋणों की उगाही जिन्हें देने में उन का कोई हाथ नहीं था. जिस स्वप्निल भविष्य की आशा में वह व्याख्याता की नौकरी छोड़ कर कुबेर बैंक गए थे वह कहीं नजर नहीं आ रही थी.

वह दूसरे ही दिन अपने पुराने कालिज जा पहुंचे थे और पुन: कालिज में लौटने की इच्छा प्रकट की थी.

प्रधानाचार्य महोदय ने खुली बांहों से उन का स्वागत किया था. राजशेखरजी को लगा मानो पिंजरे से निकल कर खुली हवा में उड़ने का सुअवसर मिल गया हो.

‘Fictional Story

Sad Story: अहंकारी- क्या हुआ था कामना के साथ

Sad Story: अभिजीत 2 दिनों से घर नहीं लौटा था. उस की मां सरला देवी कंपनी में पूछ आई थीं. अभिजीत 2 दिन पहले कंपनी में आया था, यह चपरासी ने सरला देवी को बताया था. अभिजीत 25 साल का अच्छी कदकाठी का नौजवान था. वह सेठ गोपालदास की कंपनी में पिछले 2 साल से बतौर क्लर्क काम कर रहा था. अभिजीत के परिवार में उस की मां सरला देवी के अलावा 2 बहनें थीं.

2 साल पहले अभिजीत के पिता की मौत हो चुकी थी. वे भी सेठ गोपालदास की कंपनी में काम करते थे. उन्हीं की जगह अभिजीत इस कंपनी में काम कर रहा था. अभिजीत के इस तरह गायब होने से सरला देवी और उन की दोनों बेटियां परेशान थीं. सरला देवी को उम्मीद थी कि सेठ गोपालदास ने उसे कंपनी के किसी काम से बाहर भेजा होगा, पर अब उन के द्वारा इनकार किए जाने पर सरला देवी की परेशानी और बढ़ गई थी.

सरला देवी ने अभिजीत को हर जगह तलाश किया, पर वह कहीं नहीं मिला. आखिर वह गया तो कहां गया, यह बात उस की मां को बेहद परेशान करने लगी. फिर उन्होंने कंपनी के सिक्योरिटी गार्ड से बात की. पहले तो उस ने इधरउधर की बात की, फिर बता दिया कि उस दिन कंपनी की छुट्टी का समय हो गया था. उस में काम करने वाले लोग जा चुके थे. अभिजीत अपने थोड़े बचे काम को तेजी से निबटा रहा था, ताकि समय से घर लौट सके.

तभी सेठ गोपालदास की छोटी बेटी कामना कंपनी में आई. वह अभिजीत की टेबल के करीब आई और अपने हाथ टेबल पर टिका कर झुक गई. उस समय वह जींस और शर्ट पहने हुई थी, जो उस के भरेभरे जिस्म पर यों कसी हुई थीं कि उस के बदन की ऊंचाइयां और गहराइयां साफ दिख रही थीं.

अभिजीत अपने काम में मशगूल था. कामना ने उस का ध्यान खींचने के लिए अपना पैर धीरे से पटका. आवाज सुन कर अभिजीत ने नजरें उठा कर देखा तो बस देखता ही रह गया. कामना उस की टेबल पर हाथ टिकाए झुकी हुई थी, जिस से उस के भारी और दूधिया उभारों का ऊपरी हिस्सा शर्ट से झांक रहा था. वह गार्ड नौजवान था, पर समझदार भी था. उस ने सरला देवी को बताया कि उसे कामना का बरताव अजीब लगा था. वह कोने में खड़ा हो कर उन की बातें सुनने लगा. दफ्तर तो पूरा खाली ही था.  उन दोनों की बातचीत इस तरह थी:

‘कहां खो गए?’ कामना धीरे से बोली थी.

‘कहीं नहीं,’ अभिजीत ने बौखला कर अपनी नजरें उस के उभारों से हटा ली थीं. उस की बौखलाहट देख कर कामना के होंठों पर एक मादक मुसकान खिल उठी थी. वह अभिजीत के सजीले रूप को देखते हुए बोली थी, ‘क्यों, आज घर जाने का इरादा नहीं है?’

‘है तो…’ अभिजीत अपनेआप को संभालते हुए बोला था, ‘थोड़ा सा काम बाकी रह गया था, सोचा, पूरा कर लूं तो चलूं.’

‘काम का क्या है, वह तो होता ही रहेगा…’ कामना बोली थी, ‘पर इनसान को कभीकभी घूमनेफिरने का समय भी निकालना चाहिए.’

‘मैं समझा नहीं.’

‘मैं समझाती हूं…’ कामना अभिजीत की आंखों में झांकते हुए बोली थी, ‘अभिजीत, तुम्हें घर लौटने की जल्दी तो नहीं है न?’

‘कोई खास जल्दी नहीं…’ अभिजीत बोला था.

‘मैं आज मूड में हूं और अगर तुम्हें एतराज न हो, तो तुम मेरे साथ पापा के कमरे में चलो.’

‘पर मैं आप का मुलाजिम हूं और आप मेरे मालिक की बेटी.’

‘मैं इन बातों को नहीं मानती…’ कामना बोली थी, ‘मैं तो बस इतना जानती हूं कि मैं इनसान हूं और तुम भी. तुम मुझे अच्छे लगते हो. अब मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं या नहीं, तुम जानो.’

‘आप भी मुझे अच्छी लगती हैं…’ अभिजीत पलभर सोचने के बाद बोला था, ‘ठीक है.’ कामना अभिजीत को ले कर एक कमरे में पहुंचे. दफ्तर में अंधेरा था, पर दरवाजे में एक छेद भी था. गार्ड उसी से देखने लगा कि अंदर क्या हो रहा है.

उस गार्ड ने सरला देवी को बताया कि अभिजीत कामना की इस हरकत से परेशान लग रहा था.

‘अरे, तुम अभी तक खड़े ही हो?’ कामना बोली थी, ‘आराम से सोफे पर बैठो.’ अभिजीत आगे बढ़ कर कमरे में रखे गुदगुदे सोफे पर बैठ गया था. कामना आ कर उस के करीब बैठ गई थी और अभिजीत की आंखों में झांकते हुए बोली थी, ‘अभिजीत, तुम ने किसी से प्यार किया है?’ गार्ड सब सुन सकता था, क्योंकि पूरे दफ्तर में सन्नाटा था.

‘नहीं…’ अभिजीत बोला था, ‘कभी यह काम करने का मौका ही नहीं मिला.’

‘अगर मिला, तो क्या करोगे?’

अभिजीत चुप रहा था.

‘तुम ने जवाब नहीं दिया?’

‘हां, करूंगा’ वह बोला था.

‘आज मौका है और समय भी.’

‘पर लड़की?’

‘तुम्हारा मेरे बारे में क्या खयाल है?’ कहते हुए कामना ने अपनी शर्ट उतार दी. उस के ऐसा करते ही उस के उभार अभिजीत के सामने आ गए थे. उन को देखते ही अभिजीत के सब्र का बांध टूट गया था. जब कामना उस से लिपट गई, तो पलभर के लिए वह बौखलाया, फिर अपने हाथ कामना की पीठ पर कस दिए. इस के बाद तो अभिजीत सबकुछ भूल कर कामना की खूबसूरती की गहराइयों में उतरता चला गया. सरला देवी ने कामना के ड्राइवरसे भी पूछताछ की. उसे भी बहुतकुछ मालूम था. उस ने बताया कि पिछली सीट पर अकसर कामना मनमाने ढंग से उस का इस्तेमाल करने लगी थी. कामना का दिल जिस पर आ जाता, वह उसे अपने प्रेमजाल में फांसती, उस से अपना दिल बहलाती और जब दिल भर जाता, तो उसे अपनी जिंदगी से निकाल फेंकती.

ड्राइवर ने आगे बताया कि एक दिन उन दोनों में झगड़ा हुआ था. कामना का दिल उस से भर गया, तो वह उस से कन्नी काटने लगी. उस के इस रवैए से अभिजीत तिलमिला उठा. वह कामना से सच्चा प्यार करता था. जब कामना को पता चला तो वह बोली थी, ‘अपनी औकात देखी है तुम ने? तुम हमारी कंपनी में एक छोटे से मुलाजिम हो. मैं ब्राह्मण और तुम यादव. दूसरी जाति की लड़की को तुम प्यार कर पा रहे हो, क्या यह कम है. शादी की तो सोचना भी नहीं.’

‘पर तुम ने इसी मुलाजिम से दिल लगाया था?’

‘दिल नहीं लगाया था, बल्कि दिल बहलाया था. अब मेरा दिल तुम से भर गया है, इसलिए हमारे रास्ते अलग हैं.’

‘नहीं…’ अभिजीत तेज आवाज में बोला था, ‘तुम मुझे यों अपनी जिंदगी से नहीं निकाल सकती.’

‘और अगर निकाला तो?’

‘मैं सारी दुनिया को तुम्हारी हकीकत बता दूंगा.’ अभिजीत की बात सुन कर कामना पलभर को हड़बड़ाई, पर अगले ही पल उस की आंखों से गुस्सा टपकने लगा. वह अभिजीत को घूरते हुए बोली, ‘तुम ऐसा कर नहीं पाओगे. मैं तुम्हें ऐसा हरगिज करने नहीं दूंगी.’ यह बात सारा दफ्तर जानता था कि एक दिन अभिजीत से सेठ गोपालदास ने कठोर आवाज में सब के सामने बोला था, ‘तुम ने हमारी बेटी को अपने प्रेमजाल में फंसाया और उस की इज्जत पर हाथ डाला. यह बात खुद कामना ने मुझे बताई है.

‘कोई मेरी बेटी के साथ ऐसी हरकत करे, मैं यह बरदाश्त नहीं कर सकता. तुझे इस की सजा मिलेगी,’ इतना कहने के बाद सेठजी ने अपने आदमियों को इशारा किया था. सेठजी के आदमी अभिजीत को खींचते हुए दफ्तर से बाहर ले गए. इस के बाद अभिजीत को किसी ने नहीं देखा था. अभिजीत को गायब हुए जब 10 दिन बीत गए, तो सरला देवी समझ गईं कि अभिजीत मार दिया गया है. सरला देवी ने उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में लिखवा दी. सरला देवी अपने बेटे को ले कर यों परेशानी के दौर से गुजर रही थीं कि उन की मुलाकात अभिजीत के एक दोस्त से हुई, जो उसी के साथ काम करता था. उस ने सरला देवी को बताया कि अभिजीत को मारने में सेठ गोपालदास का हाथ है. सरला देवी ने अभिजीत के दोस्त को बताया कि कामना को सबक सिखाना है. कामना अपनी ऐयाशियों में डूबी हुई थी. अभिजीत की मौत से बेपरवाह कामना की नजरें एक दूसरे लड़के को ढूंढ़ रही थीं. उस ने रमेश को फांस लिया.

एक शाम जब कामना अपनी कार में लौंग ड्राइव पर निकली थी, तो रमेश उसे सरला देवी के घर ले गया. सरला देवी को देख कर कामना की घिग्घी बंध गई. वह सबकुछ उगल गई. रमेश ने उसे एक कुरसी से बांध दिया और कई घंटों तक तड़पने के लिए छोड़ दिया. इस के बाद कामना का पूरा बयान रेकौर्ड कर लिया. रात में जब सरला देवी ने उसे छोड़ा तो कहा, ‘‘जैसे मैं जिंदगीभर अभिजीत को याद करूंगी, वैसे ही तुम भी करना. यह टेप, यह बयान, हर बार तब काम आएंगे, जब तुम शादी करने की कोशिश करोगी.’’ कामना के पास कोई चारा नहीं बचा था. वह पैदल ही घर की ओर चल पड़ी, हारी और लुटी हुई.

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Best Hindi Story: खुल गई आंखें- रवि के सामने आई हकीकत

लेखक- किशोर श्रीवास्तव

Best Hindi Story: दफ्तर से अपने बड़े सरकारी बंगले पर जाते हुए उस दिन अचानक एक ट्रक ने रवि की कार को जोरदार टक्कर मार दी थी. कार का अगला हिस्सा बुरी तरह से टूटफूट गया था.

खून से लथपथ रवि कार के अंदर ही फंसा रह गया था. वह काफी समय तक बेहोशी की हालत में कार के अंदर ही रहा, पर उस की जान बचाने वाला कोई भी नहीं था.

हां, उस के आसपास तमाशबीनों की भीड़ जरूर लग गई थी. सभी एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे, पर किसी में उसे अस्पताल ले जाने या पुलिस को बुलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी.

भला हो रवि के दफ्तर के चपरासी रामदीन का, जो भीड़ को देख कर उसे चीरता हुआ रवि के पास तक पहुंच गया था. बाद में उसी ने पास के एसटीडी बूथ से 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुला लिया था.

जब तक पुलिस रवि को ले कर पास के नर्सिंगहोम में पहुंची तब तक उस के शरीर से काफी खून बह चुका था. रामदीन काफी समय तक अस्पताल में ही रहा था. उस ने फोन कर के दफ्तर से सुपरिंटैंडैंट राकेश को भी बुला लिया था जो वहीं पास में रहते थे.

रवि के एक रिश्तेदार भी सूचना पा कर अस्पताल पहुंच गए थे. गांव दूर होने व बूढ़े मांबाप की हालत को ध्यान में रखते हुए किसी ने उस के घर सूचना भेजना उचित नहीं समझा था. वैसे भी उस के गांव में संचार का कोई खास साधन नहीं था. इमर्जैंसी में तार भेजने के अलावा और कोई चारा नहीं होता था.

रवि की पत्नी गुंजा अपने सासससुर व देवर रघु के साथ गांव में ही रहती थी. वह 2 साल पहले ही गौना करा कर अपनी ससुराल आई थी. रवि के साथ उस की शादी बचपन में तभी हो गई थी, जब वे दोनों 10 साल की उम्र भी पार नहीं कर पाए थे.

गांव में रहने के चलते गुंजा की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद ही छूट गई थी पर रवि 5वीं जमात पास कर के अपने चाचा के पास शहर में ही पढ़ने आ गया था. उस ने अच्छीखासी पढ़ाई कर ली थी. शहर में पढ़ाई करने के चलते उस का मन चंचल हो गया था. वैसे भी वह गुंजा से हर मामले में बेहतर था.

शादी के समय तो रवि को कोई समझ नहीं थी, पर जब गौने के बाद विदा हो कर गुंजा उस के घर आई थी और पहली बार जवान और भरपूर नजरों से उस ने उसे देखा था तभी से उस का मन उस से उचट गया था.

गुंजा कामकाज में भी उतनी माहिर नहीं थी जितनी रवि ने अपनी पत्नी से उम्मीद की थी. यहां तक कि सुहागरात के दिन भी वह गुंजा से दूर ही रहा था.

गुंजा गांव की पलीबढ़ी लड़की थी. शक्लसूरत और पढ़ाईलिखाई में कम होने के बावजूद मांबाप से उसे अच्छे संस्कार मिले थे. उस ने रवि की अनदेखी के बावजूद उस के बूढ़े मांबाप और रवि के छोटे भाई रघु का साथ कभी नहीं छोड़ा.

मांबाप के लाख कहने के बावजूद रवि जब उसे अपने साथ शहर ले जाने को राजी नहीं हुआ तब भी उस ने उस से कोई खास जिद नहीं की, न ही अकेले शहर जाने का उस ने कोई विरोध किया.

शहर में आ कर रवि अपने दफ्तर और रोजमर्रा के कामों में ऐसा बिजी हुआ कि गांव जाना ही भूल गया. उसे अपने मांबाप से भी कुछ खास लगाव नहीं रह गया था क्योंकि वह अपनी बेढंगी शादी के लिए काफी हद तक उन्हीं को कुसूरवार मानता था.

तनख्वाह मिलने पर घर पर पैसा भेजने के अलावा रवि कभीकभार चिट्ठी लिख कर मांबाप व भाई का हालचाल जरूर पूछ लेता था, पर इस से ज्यादा वह अपने घर वालों के लिए कुछ भी नहीं कर पाता था.

3-4 दिन आईसीयू में रहने के बाद अब रवि को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया था. दफ्तर के अनेक साथी तन, मन और धन से उस की सेवा में लगे हुए थे. बड़े साहब भी लगातार उस की सेहत पर नजर रखे हुए थे.

नर्सिंगहोम में जहां सीनियर सर्जन डाक्टर अशोक लाल उस के इलाज पर ध्यान दे रहे थे, वहीं वह वहां की सब से काबिल नर्स सुधा चौहान की चौबीसों घंटे की निगरानी में था.

सुधा चौहान जितना नर्सिंगहोम के कामों में माहिर थी, उतना ही सरल उस का स्वभाव भी था. शक्लसूरत से भी वह किसी फिल्मी नर्स से कम नहीं थी. उस की रातदिन की सेवा और बेहतर इलाज के चलते रवि को जल्दी ही होश आ गया था.

उस समय सुधा ही उस के पास थी. उसे बेचैन देख कर सुधा ने सहारा दिया और उस के सिरहाने तकिया रख दिया. अगले ही पल नर्स सुधा ने शीशी से एक चम्मच दवा निकाल कर आहिस्ता से उस के मुंह में डाल दी

रवि कुछ कहने के लिए मुंह खोलना चाहता था, पर पूरे चेहरे पर पट्टी बंधी होने के चलते वह कुछ भी कह पाने में नाकाम था. सुधा ने हलकी मुसकान के साथ उसे इशारेइशारे में चुप रहने को कहा.

सुधा की निजी जिंदगी भी बहुत खुशहाल नहीं थी. उस का पति मनीष इस दुनिया में नहीं था. उस की रिया नाम की 5 साल की एक बेटी थी जो उस के साथ ही रहती थी.

मनीष सेना में कैप्टन था. जब रिया मां के पेट में थी उन्हीं दिनों बौर्डर पर सिक्योरिटी का जायजा लेते समय आतंकियों के एक हमले में उस की जान चली गई थी. इस के बाद सुधा टूट कर रह गई थी. पर मनीष की निशानी की खातिर वह जिंदा रही. अब उस ने लोगों की सेवा को ही अपने जीने का मकसद बना लिया था.

थोड़ी देर तक शांत रहने के बाद रवि कुछ बुदबुदाया. शायद उसे प्यास लग रही थी. सुधा उस के बुदबुदाने का मतलब समझ गई थी. उस ने 8-10 चम्मच पानी उस को पिला दिया. पानी पिला कर उस ने रूमाल से रवि के होंठों को पोंछ दिया था. फिर वह पास ही रखे स्टूल पर बैठ कर आहिस्ताआहिस्ता उस का सिर सहलाने लगी थी. यह देख कर रवि की आंखें नम हो गई थीं.

सुधा को रवि के बारे में मालूम था. डाक्टर अशोक लाल ने उसे रवि के बारे में पहले से ही सबकुछ बता दिया था. नर्सिंगहोम में रवि के दफ्तर से आनेजाने वालों का जिस तरह से तांता लगा रहता, उसे देख कर उस के रुतबे का अंदाजा लग जाता था.

कुछ दिनों के इलाज के बाद बेशक अभी भी रवि कुछ बोल पाने में नाकाम था, पर उस के हाथपैर हिलनेडुलने लगे थे. अब वह किसी चिट पर लिख कर अपनी कोई बात सुधा या डाक्टर के सामने आसानी से रख पा रहा था. कभी जब सुधा की रात की ड्यूटी होती तब भी वह पूरी मुस्तैदी से उस की सेवा में लगी रहती.

एक दिन सुबह जब सुधा अपनी ड्यूटी पर आई तो रवि बहुत खुश नजर आ रहा था. सुधा के आते ही रवि ने उसे एक चिट दी, जिस पर लिखा था, ‘आप बहुत अच्छी हैं, थैंक्स.’

चिट के जवाब में सुधा ने जब उस के सिर पर हाथ फेरते हुए मुसकरा कर ‘वैलकम’ कहा तो उस की आंखें भर आई थीं. उस दिन रवि के धीरे से ‘आई लव यू’ कहने पर सुधा शरमा कर रह गई थी.

सुधा का साथ पा कर रवि के मन में जिंदगी को एक नए सिरे से जीने की इच्छा बलवती हो उठी थी. जब तक सुधा उस के पास रहती, उस के दिल को बड़ा ही सुकून मिलता था.

एक दिन सुधा की गैरहाजिरी में जब रवि ने वार्ड बौय से उस के बारे में कुछ जानना चाहा था तो वार्ड बौय ने सुधा की जिंदगी की एकएक परतें उस के सामने खोल कर रख दी थीं.

सुधा की कहानी सुन कर रवि भावुक हो गया था. उस ने उसी पल सुधा को अपनाने और एक नई जिंदगी देने का मन बना लिया था. उस ने तय कर लिया था कि वह कैसे भी हो, सुधा को अपनी पत्नी बना कर ही दम लेगा. पर सवाल यह उठता था कि एक पत्नी के होते हुए वह दूसरी शादी कैसे करता?

उस दिन अस्पताल से छुट्टी मिलते ही रवि दफ्तर के कुछ काम निबटा कर सीधा अपने गांव चला गया था. जब वह सुबह अपने गांव पहुंचा तब घर वाले हैरान रह गए थे. बूढे़ मांबाप की आंखों में तो आंसू आतेआते रह गए थे.

पूरे घर में अजीब सा भावुक माहौल बन गया था. आसपास के लोग रवि के घर के दरवाजे पर इकट्ठा हो कर घर के अंदर का नजारा देखे जा रहे थे.

रवि बहुत कम दिनों के लिए गांव आया था. वह जल्दी से जल्दी गुंजा को तलाक के लिए तैयार कर शहर लौट जाना चाहता था. पर घर का माहौल एकदम से बदल जाने के चलते वह असमंजस में पड़ गया था. उस दिन पूरे समय गुंजा उस की खातिरदारी में लगी रही. वह उसे कभी कोई पकवान बना कर खिलाती तो कभी कोई. पर रवि पर उस की इस मेहमाननवाजी का कोई असर नहीं हो रहा था.

दिनभर की भीड़भाड़ से जूझतेजूझते और सफर की रातभर की थकान के चलते उस रात रवि को जल्दी ही नींद आ गई थी. गुंजा ने अपना व उस का बिस्तर एकसाथ ही लगा रखा था, पर इस की परवाह किए बगैर वह दालान में पड़े तख्त पर ही सो गया था. पर थोड़ी ही देर में उस की नींद खुल गई थी. उसे नींद आती भी तो कहां से. एक तो मच्छरमक्खियों ने उसे परेशान कर रखा था, उस पर से भविष्य की योजनाओं ने थकान के बावजूद उसे जगा दिया था.

रवि देर रात तक सुधा और अपनी जिंदगी के तानेबाने बुनने में ही लगा रहा. रात के डेढ़ बजे उस पर दोबारा नींद की खुमारी चढ़ी कि उसे अपने पैरों के पास कुछ सरसराहट सी महसूस हुई. उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उस के पैरों को गरम पानी में डुबो कर रख दिया हो.

रवि हड़बड़ा कर उठ बैठा. उस ने देखा, गुंजा उस के पैरों पर अपना सिर रखे सुबक रही थी. पास में ही मच्छर भगाने वाली बत्ती चारों ओर धुआं छोड़ रही थी. उस के उठते ही गुंजा उस से लिपट गई और फिर बिलखबिलख कर रोने लगी.

गुंजा रोते हुए बोले जा रही थी, ‘‘इस बार मुझे भी शहर ले चलो. मैं अब अकेली गांव में नहीं रह सकती. भले ही मुझे अपनी दासी बना कर रखना, पर अब अकेली छोड़ कर मत जाना, नहीं तो मैं कुएं में कूद कर मर जाऊंगी.’’

गुंजा की यह दशा देख कर अचानक रवि उस के प्रति कुछ नरम होते हुए भावुक हो उठा. वह अपने दिलोदिमाग में हाल में बने गए सपनों को भूल कर अचानक गुंजा की ओर मुखातिब हो चला था.

गुंजा ने जब बातों ही बातों में रवि को बताया कि उस ने शहर चलने के लिए एबीसीडी समेत अंगरेजी की कई कविताएं भी मुंहजबानी याद कर रखी हैं तो रवि उस के भोलेपन पर मुसकरा उठा.

आज पहली बार उसे गुंजा का चेहरा बहुत अच्छा लगा था और उस के मन में गुंजा के प्रति प्यार का ज्वार उमड़ पड़ा था. वह उस की कमियों को भूल कर पलभर में ही उस के आगोश में समाता चला गया था.

रवि गुंजा के बदन से खेलता रहा और वह आंखों में आंसुओं का समंदर लिए उस के प्यार का जवाब देती रही.

एक ही रात और कुछ समय के प्यार ने ही रवि के कई सपनों को जहां तोड़ दिया था वहीं उस के दिलोदिमाग में कई नए सपने भी बुनते चले गए थे. वह गुंजा को तन, मन व धन से अपनाने को तैयार हो गया था, पर सवाल यह था कि शहर जा कर वह सुधा को क्या जवाब देगा. जब सुधा को यह पता चलेगा कि वह पहले से ही शादीशुदा है और जब उस को अब तक का उस का प्यार महज नाटक लगेगा तो उस के दिल पर क्या बीतेगी.

इसी उधेड़बुन के साथ रवि अगली सुबह शहर को रवाना हो चला था. गुंजा को उस ने कह दिया था कि वह अगले हफ्ते उसे लेने गांव आएगा.

शहर पहुंचते ही रवि किसी तरह से सुधा से मिल कर उस से अपनी गलतियों व किए की माफी मांगना चाहता था. अपने बंगले पर पहुंच कर वह नहाधो कर सीधा नर्सिंगहोम पहुंचा, पर वहां सुधा से उस की मुलाकात नहीं हो पाई.

पता चला कि आज वह नाइट ड्यूटी पर थी. वह वहां से किसी तरह से पूछतापूछता सुधा के घर जा पहुंचा, पर वहां दरवाजे पर ताला लटका मिला. किसी पड़ोसी ने बताया कि वह अपनी बेटी के स्कूल गई हुई है.

मायूस हो कर रात को नर्सिंगहोम में सुधा से मिलने की सोच कर रवि सीधा अपने दफ्तर चला गया. आज उस का दिन बड़ी मुश्किल से कट रहा था. वह चाहता था कि किसी तरह से जल्दी से रात हो और वह सुधा से मिल कर उस से माफी मांग ले.

रात के 8 बजने वाले थे. सुधा के नर्सिंगहोम आने का समय हो चुका था, इसलिए तैयार हो कर रवि भी नर्सिंगहोम की ओर बढ़ चला था. मन में अपनी व सुधा की ओर से आतेजाते सवालों का जवाब ढूंढ़तेढूंढ़ते वह कब नर्सिंगहोम के गेट पर जा पहुंचा था, उसे पता ही नहीं चला.

रिसैप्शन पर पता चला कि सुधा प्राइवेट वार्ड के 4 नंबर कमरे में किसी मरीज की सेवा में लगी है. किसी तरह से इजाजत ले कर वह सीधा 4 नंबर कमरे में घुस गया, पर वहां का नजारा देख कर वह पलभर को ठिठक गया. सुधा एक नौजवान मरीज के अधनंगे शरीर को गीले तौलिए से पोंछ रही थी.

रवि को आगे बढ़ता देख उस ने उसे दरवाजे पर ही रुक जाने का इशारा किया. रवि दरवाजे पर ही ठिठक गया था.

मरीज का बदन पोंछने के बाद सुधा ने उसे दूसरे धुले हुए कपड़े पहनाए. उसे अपने हाथों से एक कप दूध पिलाया और कुछ बिसकुट भी तोड़तोड़ कर खिलाए. फिर वह उसे अपनी बांहों के सहारे से बिस्तर पर सुलाने की कोशिश करने लगी.

मरीज को नींद नहीं आते देख सुधा उस के सिर पर हाथ फेरते हुए व थपकी दे कर उसे सुलाने की कोशिश करने लगी थी. उस के ममता भरे बरताव से मरीज को थोड़ी ही देर में नींद आ गई थी.

जैसे ही मरीज को नींद आई, रवि लपक कर सुधा के करीब आ गया था. उस ने सुधा को अपनी बांहों में भरने की कोशिश की, पर सुधा छिटक कर उस से दूर हो गई.

‘‘अरे, यह आप क्या कर रहे हैं. आप वही हैं न, जो कुछ दिन पहले यहां एक सड़क हादसे के बाद दाखिल हुए थे. अब आप को क्या दिक्कत है?’ सुधा ने उस से पूछा.

‘‘अरे, यह क्या कह रही हो तुम? ऐसे अजनबियों जैसी बातें क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारा वही रवि हूं जिस ने तुम्हारे प्यार के बदले में तुम से भी उतना ही प्यार किया था और हम जल्दी ही शादी करने वाले थे,’’ कहता हुआ रवि उस के करीब आ गया.

रवि की बातों के जवाब में सुधा ने कहा, ‘‘मिस्टर आप रवि हैं या कवि, आप की बातें मेरी समझ से परे हैं. आप किस प्यार और किस शादी की बात कर रहे हैं, मैं समझ नहीं पा रही हूं.

‘‘देखिए, मैं एक नर्स हूं. मेरा काम यहां मरीजों की सेवा करना है. भला इस में प्यार और शादी कहां से आ गई.’’

‘‘तो क्या आप ने मुझे भी महज एक मरीज के अलावा कुछ नहीं समझा?’’ रवि बौखलाते हुए बोला.

सुधा ने अपने मरीज की ओर देखते हुए रवि को धीरेधीरे बोलने का इशारा किया और उसे खींचते हुए दरवाजे तक ले गई. वह उस को समझाते हुए बोली, ‘‘आप को गलतफहमी हुई है. हम यहां प्यार करने नहीं बल्कि अपने मरीजों की सेवा करने आते हैं.

‘‘अगर हम भी प्यारव्यार और शादीवादी के चक्कर में पड़ने लगे तो हमारे घर में हर दिन एक नया पति दिखाई देगा.

‘‘प्लीज, आप यहां से जाइए और मेरे मरीज को चैन से सोने दीजिए.’’

इस बीच मरीज ने अपनी आंखें खोल लीं. उस ने सुधा से पानी पीने का इशारा किया. सुधा तुरंत जग में से पानी निकाल कर चम्मच से उसे पिलाने बैठ गई. पानी पिलातेपिलाते वह मरीज के सिर को भी सहलाए जा रही थी.

रवि सुधा से अपनी जिस बात के लिए माफी मांगने आया था, वह बात उस के दिल में ही रह गई. उसे तसल्ली हुई कि सुधा के मन में उस के प्रति ऐसी कोई बात कभी आई ही नहीं थी, जिसे सोच कर उस ने दूर तक के सपने देख लिए थे.

सुधा रवि से ‘सौरी’ कहते हुए अपने मरीज की तीमारदारी में लग गई. रवि ने कमरे से बाहर निकलते हुए एक नजर सुधा व उस के मरीज पर डाली. मरीज को लगी हुई पेशाब की नली शायद निकल गई थी, इसलिए वह कराह रहा था. सुधा उसे प्यार से पुचकारते हुए फिर से नली को ठीक करने में लग गई थी.

सुधा की बातों और आज के उस के बरताव ने रवि के मन का सारा बोझ हलका कर दिया था.

आज रात रवि को जम कर नींद आई थी. एक हफ्ते तक दफ्तर के कामों में बिजी रहने के बाद रवि दोबारा अपने गांव जाने वाली रेल में सवार था. उस की रेल भी उसे गुंजा तक जल्दी पहुंचाने के लिए पटरियों पर सरपट दौड़ लगाती हुई आगे बढ़ी चली जा रही थी. जो गांव उसे कल तक काटता था और जिस की ओर वह मुड़ कर भी नहीं देखना चाहता था, आज उस के आगोश में समाने को बेताब था.

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Hindi Drama Story: फैसला- पत्नी से क्या छुपा रहा था समीर

Hindi Drama Story: नीरजा और रोहित थोड़ी देर बाद हमारे घर डिनर करने के लिए आने वाले हैं. शिखा ने बड़े उत्साह से उन के लिए खाना बनाया है. वह सुबह से ही बहुत खुश है जबकि मेरा मन अजीब सी खिन्नता और चिड़ का शिकार बना हुआ है. ‘‘खाना खाने के बाद आइसक्रीम खाने बाहर चलें या आप बड़ी वाली ब्रिक घर लाओगे?’’ बैडरूम में तैयार हो रही शिखा ने ऊंची आवाज कर के मुझसे पूछा.

‘‘मैं ब्रिक ले आता हूं. खाना खाने के बाद कौन बाहर जाने के झंझट में पड़ेगा. कौन सी आइसक्रीम लाऊं,’’ मेरे मन की खीज मेरी आवाज में साफ ?झलक रही थी.

‘‘आप नीरजा के साथ कालेज में पढ़े हो. क्या आप को याद नहीं कि उसे कौन सी आइसक्रीम पसंद है?’’

‘‘4 साल बाद ऐसी बातें कहां याद रहती हैं,’’ मैं ने झुझंलाए लहजे में जवाब दिया. ‘‘तो जो आप का मन करे, वही फ्लेवर ले आना. अब जल्दी जाओ और जल्दी आओ. उन लोगों के आने का समय हो रहा है.’’ ‘‘मैं जा रहा हूं. तुम आ कर दरवाजा बंद कर लो,’’ मैं सोफे से उठ कर दरवाजे की दिशा में चल पड़ा.

कालेज छोड़े 4 साल बीत चुके हैं पर मैं न नीरजा को भूला हूं, न रितु को. मुझे अच्छी तरह याद है कि नीरजा हमेशा मैंगो फ्लेवर वाली आइसक्रीम खाती थी. मैं मैंगो फ्लेवर वाली आइसक्रीम बिलकुल नहीं लाऊंगा. मैं नीरजा को खुश होने का कोई मौका नहीं देना चाहता हूं.

करीब 2 महीने पहले नीरजा और रोहित पहली बार हमें बाजार में अचानक मिल गए थे. नीरजा को बातों से किसी का दिल जीतने की कला हमेशा से आती है. बहुत जल्द ही उस ने शिखा के साथ अच्छी दोस्ती की नींव डाल दी थी.

शिखा बहुत भोली और सीधीसादी है. उस ने नीरजा और रोहित को उस पहली मुलाकात के समय ही अगले रविवार को घर पर खाने के लिए बुला लिया था. एकदूसरे के घर आनेजाने का उस दिन से शुरू हुआ सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था. इन मुलाकातों ने नीरजा के लिए मेरे मन में बसे नापसंदगी व चिड़ के भावों को और ज्यादा बढ़ाया ही है. मैं बिलकुल नहीं चाहता हूं कि वह मेरी बहुत अच्छी तरह से चल रही घरगृहस्थी की खुशियों व सुखशांति को नष्ट करने का कारण बने. मैं ने आइसक्रीम खरीदने के बजाय जानबूझ कर रसमलाई खरीदी जोकि नीरजा को कभी अच्छी नहीं लगती थी. मेरे बाजार से लौटने के साथसाथ ही रोहित और नीरजा भी आ पहुंचे.

वे लोग गुलदस्ता ले कर आए थे और फूल शिखा को बहुत पसंद हैं. नीरजा से इस भेंट को स्वीकार करने के बाद शिखा बड़े अपनेपन के साथ उस के गले लग गई. जब शिखा रसोई में जाने लगी तो नीरजा भी उस के साथ जाने को उठ खड़ी हुई. मैं रोहित के साथ आस्ट्रेलिया और भारत के बीच चल रहे एक दिवसीय मैचों की शृंखला की चर्चा करने लगा.

रोहित मुझे पहली मुलाकात से ही हंसमुख और समझदार इंसान लगा है. हम दोनों के बीच बहुत अच्छी दोस्ती हो सकती है पर बीच में नीरजा के होने के कारण मैं अपना हाथ उस के साथ दोस्ती के लिए नहीं बढ़ा सकता हूं.

आज भी जबजब मुझे एहसास हुआ कि हम दोनों के बीच वार्त्तालाप खुल कर हो रहा है, मैं ने जानबूझ कर बोलना कम कर दिया. फिर बीचबीच में मैं अपने कम बोलने के निर्णय को भूल जाता तो हम दोनों के ठहाकों से कमरा गूंज उठता. बिना कारण किसी खुशमिजाज इंसान को नापसंद करने का नाटक करना सचमुच कठिन काम है. उन के आने के करीब आधे घंटे बाद हम चारों खाना खाने डाइनिंग टेबल पर बैठ गए. शिखा ने सचमुच दिल से खाना बनाया था. रोहित ने जब खाने की तारीफ करी तो मुझे अच्छा लगा, पर जब नीरजा ने ऐसा किया तो मैं मन ही मन चिढ़ उठा.

‘‘समीर, तुम्हारा मूड क्यों उखड़ा हुआ है? क्या खाना तुम्हारी पसंद का नहीं बना है?’’ नीरजा ने अचानक यह सवाल पूछ कर मुझे रोहित और शिखा की नजरों का केंद्र बना दिया.

‘‘मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है कि इन का मूड सुबह से खराब क्यों बना हुआ है, पर कोई न कोई बात है जरूर,’’ शिखा ने यह बात यों तो मुसकरा कर कही पर मैं ने उस की आंखों में हलकी चिंता के भाव पढ़ लिए थे.

‘‘मेरा मूड ठीक ही है रोहित, तुम पनीर की सब्जी और लो न,’’ मैं ने वार्त्तालाप की दिशा बदलने की कोशिश करी.

‘‘समीर, कभीकभी मुझे लगता है कि…’’ नीरजा ने जानबूझ कर अपनी बात पूरी नहीं करी और मेरी तरफ शरारती भाव से देखने लगी.

‘‘क्या लगता है,’’ मैं ने इस अपेक्षित सवाल को पूछते हुए अपने स्वर में दिलचस्पी के भाव पैदा नहीं होने दिए.

‘‘मुझे कभीकभी ऐसा लगता है कि तुम अब भी रितु को नहीं भुला पाए हो,’’ उस ने मेरी टांग खींचने की कोशिश शुरू कर दी.

‘‘तुम बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार हो, नीरजा. शिखा जैसी समझदार, सुंदर और सुशील पत्नी को पाने के बाद कोई अपनी पुरानी प्रेमिका को भला क्यों याद करेगा?’’ मैं ने मुसकराने के बजाय संजीदा लहजे में जवाब दिया.

‘‘याद तो नहीं रखना चाहिए, पर तुम आदमी जरा अक्ल से पैदल होते हो. अब रोहित को ही लो. इन्हें मैं ने अंजु के जन्मदिन पर… अंजु इन की कालेज की प्रेमिका का नाम है. उस के जन्मदिन पर मैं ने इन्हें आंखों में आंसू भरे हर साल पकड़ा है. क्या मैं गलत कह रही हूं, रोहित?’’

“नहीं डियर,’’ रोहित ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘पहले प्यार को भुला पाना संभव नहीं होता है. पुरानी यादें आंखों में आंसू भर जाती हैं, पर वह कोई महत्त्वपूर्ण बात नहीं क्योंकि अब तुम्हारे अलावा मेरे दिल में कोई दूसरी औरत नहीं बसती है.’’

नीरजा के कुछ बोलने से पहले ही मैं ने आवेश भरे लहजे में कहा, ‘‘रोहित भाई, इन दूसरी औरतों की ताकत को कभी कम कर के मत आंकना. बड़ी चालाकी से वे अपने रूपजाल में अपने शिकार को फंसाती हैं. मेरा तो यह मानना है कि समझदार आदमी को ऐसी खूबसूरत नागिनों से किसी तरह का रिश्ता बनने ही नहीं देना चाहिए. अगर कोई आदमी पहले से होशियार नहीं रहे तो बाद में उजड़ी हुई अपनी घरगृहस्थी और आजीवन पीड़ा देने वाले दिल के जख्मों के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता है.’’

‘‘तुम्हारे गुस्से को देख कर लगता है कि अतीत में किसी दूसरी औरत ने तुम्हें अपने जाल में फंसाने की कोशिश की है, समीर,’’ रोहित ने मुझे छेड़ा तो शिखा और नीरजा खुल कर हंस पड़ीं. ‘‘तुम्हें कैसे पता लगा?’’ मैं ने हैरान दिखने का बढि़या नाटक किया तो पूरा घर हम सब के सम्मिलित ठहाकों की आवाज से गूंज उठा. मैं ने नोट किया कि इस पल के बाद से नीरजा चुपचुप सी हो गई थी. उस के दिल को चोट पहुंचाने में मैं सफल रहा हूं, ऐसा सोच कर मेरा मन खुशी महसूस कर रहा था और इस कारण मैं ज्यादा खुल कर रोहित से गपशप करने लगा. खाना खत्म होने के बाद जब शिखा रसमलाई लाई तो नीरजा ने शिकायत करी, ‘‘समीर, यह रसमलाई क्यों मंगवा ली?’’ तुम्हें तो याद होना चाहिए कि मैं रसमलाई बिलकुल नहीं पसंद करती हूं.’’

‘‘सौरी नीरजा, पर मुझे बिलकुल याद नहीं कि तुम रसमलाई पसंद नहीं करती हो. मैं ने रोहित को बड़े स्वाद से रसमलाई खाते देखा हुआ है और यह शिखा को भी बहुत अच्छी लगती है. सौरी, अब आगे से याद रखूंगा,’’ मेरी आवाज में अफसोस के भाव किसी को ढूंढ़े से भी नहीं मिलते.

‘‘मेरा तो आइसक्रीम खाने का मन कर रहा है,’’ वह किसी छोटी बच्ची की तरह मचल उठी.

‘‘तो तुम्हें आइसक्रीम खिलवा देते हैं. रोहित और आप बाजार से आइसक्रीम ले आओ, प्लीज,’’ शिखा ने मुझसे ऐसी प्रार्थना करी तो मैं मन ही मन जोर से किलस उठा.

‘‘थैंक यू, शिखा. समीर, तुम्हें तो याद नहीं रहा होगा इसलिए मैं बता देती हूं कि मुझे मैंगो फ्लेवर वाली आइसक्रीम ही पसंद है,’’ नीरजा का अपनी पसंद बताते हुए मुसकराना मेरा खून फूंक गया. मुझे मजबूरन रोहित के साथ आइसक्रीम लेने जाना पड़ा. रास्ते भर अधिकतर रोहित ही कुछकुछ सुनाता रहा. मैं ने यह जाहिर नहीं होने दिया कि मेरा मूड खराब हो रहा.

नीरजा ने छक कर आइसक्रीम खाई. वह मुझ से सहज हो कर हंसबोल रही थी पर मुझे उस की तरफ देखना भारी लग रहा था. जब विदा लेने को वे दोनों उठ खड़े हुए तब ही मैं ने मन ही मन बहुत राहत महसूस करी.

‘‘अगले संडे को तुम दोनों हमारे घर डोसा खाने आ रहे हो?’’ नीरजा ने हमें अपने घर आने को आमंत्रित किया.

‘‘शायद हम संडे को शिखा के भाई के घर जाएं, इसलिए शनिवार की सुबह को तुम्हारे यहां आने का प्रोग्राम पक्का करते हैं,’’ मैं ने उन के यहां पहुंचने को जानबूझ कर हामी नहीं भरी.

‘‘तब शनिवार की रात छोलेभठूरे की दावत कर देती हूं.’’

‘‘अभी कोई कार्यक्रम नहीं बनाओ. हम बाद में फोन पर बात कर के कुछ तय करेंगे.’’

मैं ने नोट किया कि विदा के समय नीरजा सोच में डूबी सी नजर आ रही थी. मुझे उस के खराब मूड की कोई परवाह नहीं हुई क्योंकि मैं उस से अच्छे संबंध बनने का इच्छुक ही नहीं था. सोने से पहले शिखा ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर अचानक संजीदा लहजे में बोलना शुरू किया, ‘‘समीर, मुझे आज पता लग गया है कि तुम नीरजा को क्यों पसंद नहीं करते हो. जब तुम रोहित के साथ आइसक्रीम लाने गए हुए थे, तब नीरजा ने मुझे तुम्हारी नापसंदगी का कारण बता दिया.’’

‘‘क्या बताया उस ने?’’ मैं ने माथे में बल डाल कर तीखे लहजे में पूछा.

‘‘यही कि रितु और तुम्हारे बीच गलतफहमी की जड़ में उस का तुम्हारे साथ खुल कर हंसनाबोलना था. जो हुआ उस का उसे आज तक अफसोस है क्योंकि वह रितु और तुम्हें बहुत पसंद करती थी.’’

‘‘मैं पुरानी बातों को याद नहीं करना चाहता हूं. मुझे रोहित से कोई शिकायत नहीं पर नीरजा से मिलनाजुलना अच्छा नहीं लगता है. इसीलिए हम उन के घर अगले संडे को नहीं जाएंगे,’’ अपना फैसला बताते हुए मैं चिढ़ सा उठा.

‘‘समीर, रोहित तुम्हें अपना बहुत दोस्त समझाने लगा है. तुम तो जानते ही हो कि वह आजकल बहुत तनाव में जी रहा है. अपने कुछ नजदीकी दोस्तों के हाथों उस ने बिजनैस में तगड़ा धोखा खाया है. नीरजा का मानना है कि रोहित को डिप्रैशन में जाने से बचाने में तुम से हुई दोस्ती बहुत अहम भूमिका निभा रही है. इस के लिए उस ने मेरे हाथ तुम्हें दिल से धन्यवाद भिजवाया है,’’ शिखा अपनी सहेली की तरफदारी करने की भरपूर कोशिश कर रही थी.

‘‘वह सब ठीक है, पर मुझे इन लोगों से कैसे भी संबंध नहीं रखने हैं,’’ मैं ने अपना फैसला फिर से दोहरा दिया.

‘‘लेकिन ऐसा करना तो गलत बात होगी समीर,’’ वह भावुक हो उठी, ‘‘मुझे एक बात सचसच बताओगे.’’

‘‘पूछो,’’ मैं तनाव से भर उठा.

‘‘क्या तुम्हें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं नीरजा का हमारे यहां आनाजाना और तुम्हारे साथ खूब खुल कर हंसनाबोलना हमारे बीच गलतफहमी न पैदा करा दे.’’

‘‘क्या ऐसा होना तुम्हें नामुमकिन लगता है?’’ मैं ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘बिलकुल नामुमकिन लगता है. अरे, मुझे तुम्हारे ऊपर पूरा विश्वास है. हमारे बीच प्यार की नींव इतनी कमजोर नहीं है जो नीरजा के तुम्हारे साथ हंसीमजाक करने से डगमगा जाएगी. तुम इस डर को अपने मन से निकाल दो. मैं कभी रितु की तरह गलतफहमी का शिकार नहीं बनूंगी,’’ उस ने मुझे आश्वस्त करना चाहा.

मैं ने शिखा की आंखों में गहराई से झंका. वहां मुझे अपने लिए प्यार का समुद्र लहराता नजर आया. एक बार को तो मेरा मन डगमगाया पर फिर मैं ने अपना फैसला बदलने का विचार झटके से त्याग दिया.

‘‘मैं किसी तरह का रिस्क नहीं लूंगा, शिखा. हम नीरजा और रोेहित से अच्छे संबंध नहीं बनाएंगे और इस मामले में मैं किसी तरह की दलील नहीं सुनना चाहता हूं,’’ अपना फैसला एक बार फिर से दोहराने के बाद मैं उठा और बैडरूम से निकल कर ड्राइंगरूम में चला आया.

मुझे मालूम है कि शिखा को इस मामले में मेरा अडि़यल रुख बिलकुल समझ में नहीं आ रहा होगा, पर मैं ने यह फैसला बहुत सोचसमझ कर किया है. शिखा को यह असलियत बताने की हिम्मत मेरे अंदर नहीं है कि वर्षों पहले रितु से मेरा प्रेम संबंध मेरी गलती के कारण टूटा था. नीरजा के साथ अपने खुल कर हंसनेबोलने का रितु ने नहीं बल्कि मैं ने गलत अर्थ लगाया था. मैं ने रितु को प्यार में धोखा दे कर नीरजा का प्रेमी बनने की कोशिश करी थी क्योंकि वह रितु से ज्यादा खूबसूरत और आकर्षक थी.

सच यही है कि नीरजा के प्रति मेरा दिल आज भी वैसा ही जबरदस्त आकर्षण महसूस करता है. मुझे पता है कि अगर हम भविष्य में मिलते रहे तो मैं फिर से फिसल जाऊंगा और उस स्थिति की कल्पना कर के ही मेरा मन कांप उठता है. अपनी भूल को दोहरा कर मैं शिखा की नजरों में गिर कर उस के प्यार को कभी नहीं खोना चाहूंगा.

मुझे मालूम है कि नीरजा और रोहित की दोस्ती को ठुकरा कर मैं ने सही कदम उठाया है. बाद में बुरी तरह पछताने के बजाय यह बेहतर है कि मैं अभी इस मसले में अडि़यल रुख अपना कर शिखा, रोहित व नीरजा की नजरों में बुरा बन जाऊं.

Hindi Drama Story

Social Story: खोखली रस्में

Social Story: ओह… यह एक साल, लमहेलमहे की कसक ताजा हो उठती है. आसपड़ोस, घरखानदान कोई तो ऐसा नहीं रहा जिस ने मुझे बुराभला न कहा हो. मैं ने आधुनिकता के आवेश में अपनी बेटी का जीवन खतरे के गर्त में धकेल दिया था. रुपए का मुंह देख कर मैं ने अपनी बेटी की जिंदगी से खिलवाड़ किया था और गौने की परंपरा को तोड़ कर खानदान की मर्यादा तोड़ डाली थी. इस अपराधिनी की सब आलोचना कर रहे थे. परंतु अंधविश्वास की अंधेरी खाइयों को पाट कर आज मेरी बेटी जिंदा लौट रही है. अपराधिनी को सजा के बदले पुरस्कार मिला है- अपने नवासे के रूप में. खोखली रस्मों का अस्तित्व नगण्य बन कर रह गया.

कशमकश के वे क्षण मुझे अच्छी तरह याद हैं जब मैं ने प्रताड़नाओं के बावजूद खोखली रस्मों के दायरे को खंडित किया था. मैं रसोई में थी. ये पंडितजी का संदेश लाए थे. सुनते ही मेरे अंदर का क्रोध चेहरे पर छलक पड़ा था. दाल को बघार लगाते हुए तनिक घूम कर मैं बोली थी, ‘देखो जी, गौने आदि का झमेला मैं नहीं होने दूंगी. जोजो करना हो, शादी के समय ही कर डालिए. लड़की की विदाई शादी के समय ही होगी.’

‘अजीब बेवकूफी है,’ ये तमतमा उठे, ‘जो परंपरा वर्षों से चली आ रही है, तुम उसे क्यों नहीं मानोगी? हमारे यहां शादी में विदाई करना फलता नहीं है.’

‘सब फलेगा. कर के तो देखिए,’ मैं ने पतीली का पानी गैस पर रख दिया था और जल्दीजल्दी चावल निकाल रही थी. जरूर फलेगा, क्योंकि तुम्हारा कहा झूठ हो ही नहीं सकता.’

‘जी हां, इसीलिए,’ व्यंग्य का जवाब व्यंग्यात्मक लहजे में ही मैं ने दिया.

‘क्योंकि अब हमारी ऐसी औकात नहीं है कि गौने के पचअड़े में पड़ कर 80-90 हजार रुपए का खून करें. सीधे से ब्याह कीजिए और जो लेनादेना हो, एक ही बार लेदे कर छुट्टी कीजिए.’ मैं ने अपनी नजरें थाली पर टिका दीं और उंगलियां तेजी से चावल साफ करने लगीं, कुछ ऐसे ही जैसे मैं परंपरा के नाम पर कुरीतियों को साफ कर हटाने पर तुली हुई थी. एक ही विषय को ले कर सालभर तक हम दोनों में द्वंद्व युद्ध छिड़ा रहा. ये परंपरा और मर्यादा के नाम पर झूठी वाहवाही लूटना चाहते थे. विवाह के सालभर बाद गौने की रस्म होती है, और यह रस्म किसी बरात पर होने वाले खर्च से कम में अदा नहीं हो सकती. मैं इस थोथी रस्म को जड़ से काट डालने को दृढ़संकल्प थी. क्षणिक स्थिरता के बाद ये बेचारगी से बोले, ‘विमला की मां, तुम समझती क्यों नहीं हो?’

‘क्या समझूं मैं?’ बात काटते हुए मैं बिफर उठी, ‘कहां से लाओगे इतने पैसे? 1 लाख रुपए लोन ले लिए, कुछ पैसे जोड़जोड़ कर रखे थे, वे भी निकाल लिए, और अब गौने के लिए 80-90 हजार रुपए का लटका अलग से रहेगा.’

‘तो क्या करूं? इज्जत तो रखनी ही पड़ेगी. नहीं होगा तो एक बीघा खेत ही बेच डालूंगा.’

‘क्या कहा? खेत बेच डालोगे?’ लगा किसी ने मेरे सिर पर हथौड़े का प्रहार किया हो. क्षणभर को मैं इज्जत के ऐसे रखरखाव पर सिर धुनती रह गई. तीखे स्वर में बोली, ‘उस के बाद? सुधा और अंजना के ब्याह पर क्या करोगे? तुम्हारा और तुम्हारे लाड़लों के भविष्य का क्या होगा? तुम्हारे पिताजी तो तुम्हारे लिए 4 बीघा खेत छोड़ गए हैं जो तुम रस्मों के ढकोसले में हवन कर लोगे, लेकिन तुम्हारे बेटे किस का खेत बेच कर अपनी मर्यादा की रक्षा करेंगे?’ सत्य का नंगापन शायद इन्हें दूर तक झकझोर गया था. बुत बने ये ताकते रह गए. फिर तिक्त हंसी हंस पड़े, ‘तुम तो ऐसे कह रही हो, विमला की मां, मानो 4 ही बच्चे तुम्हारे अपने हों और विमला तुम्हारी सौत की बेटी हो.’

‘हांहां, क्यों नहीं, मैं सौतेली मां ही सही, लेकिन मैं गौना नहीं होने दूंगी. शादी करो तब पूरे खानदान  को न्योता दो, गौना करो तब फिर पूरे खानदान को बुलाओ. कपड़ा दो,  गहना दो, यह नेग करो वह जोग करो. सिर में जितने बाल नहीं हैं उन से ज्यादा कर्ज लादे रहो, लेकिन शान में कमी न होने पाए.’ इन के होंठों पर विवश मुसकान फैल गई. जब कभी मैं ज्यादा गुस्से में रहती हूं, इसी तरह मुसकरा देते हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो. इन के होंठों की फड़कन कुछ कहने को बेताब थी, परंतु कह नहीं सके. उठ खड़े हुए और आंगन पार करते हुए कमरे की ओर चले गए. जब से विमला की शादी तय हुई, शादी संपन्न होने तक यही सिलसिला जारी रहा. ये कंजूसी से ब्याह कर के समाज में अपनी तौहीन करवाने को तैयार नहीं थे, और मैं रस्मों के खोखलेपन की खातिर चादर से पैर निकालने को तैयार नहीं थी. ‘गौने की रस्म अलग से करनी ही होगी. सदियों से यह हमारी परंपरा रही है,’ मैं इस थोथेपन में विश्वास करने को तैयार न थी.

छोटी ननद के ब्याह पर ही मैं ने यह निर्णय कर के गांठ बांधी थी. याद आता है तो दिल कट कर रह जाता है. ब्याह पर जो खर्च हुआ वह तो हुआ ही, सालभर घर बिठा कर उस का गौना किया गया तो 80 हजार रुपए उस में फूंक दिए गए. गौना करवाने आए वर पक्ष के लोगों की तथा खानदान वालों की आवभगत करतेकरते पैरों में छाले पड़ गए, तिस पर भी ‘मुरगी अपनी जान से गई, खाने वालों को मजा न आया’ वाली बात हुई. चारों ओर से बदनामी मिली कि यह नहीं दिया, वह नहीं दिया. ‘अरे, इस से अच्छी साड़ी तो मैं अपनी महरी को देती हूं… कंजूस, मक्खीचूस’ तथा इसी से मिलतीजुलती असंख्य उपाधियां मिली थीं.

मुझे विश्वास था कि मैं वर्तमान स्थिति और परिवेश में गौना करने में आने वाली कठिनाइयां बता कर इन्हें मना लूंगी. जल्दी ही मुझे इस में सफलता भी मिल गई. मेरी सलाह इन के निर्णय में परिवर्तित हो गई, किंतु ‘ये नहीं फलता है’ की आशंका से ये उबर नहीं पाए. विवाह संबंधी खरीदफरोख्त की कार्यवाहियां लगभग पूरी हो चुकी थीं. रिश्तेदारों और बरातियों का इंतजार ही शेष था. रिश्तेदारों में सब से पहले आईं इन की रोबदार और दबंग व्यक्तित्व वाली विधवा मौसी रमा, खानदानभर की सर्वेसर्वा और पूरे गांव की मौसी. दोपहर का समय था. विवाह हेतु खरीदे गए गहने, कपड़े एकएक कर मैं मौसीजी को दिखा रही थी. बातों ही बातों में मैं ने अपना फैसला कह सुनाया. सुनते ही मौसीजी ज्वालामुखी की तरह फट पड़ीं. क्रोध से भरी वे बोलीं, ‘क्यों नहीं करोगी तुम गौना?’

‘दरअसल, मौसीजी, हमारी इतनी औकात नहीं कि हम अलग से गौने का खर्च बरदाश्त कर सकें,’ मैं ने गहनों का बौक्स बंद कर अलमारी में रख दिया और कपड़े समेटने लगी.

‘अरे वाह, क्यों नहीं है औकात?’ मौसीजी के आग्नेय नेत्र मेरे तन को सेंकने लगे, ‘क्या तुम जानतीं नहीं कि शादी के समय विदाई करना हमारे खानदान में अच्छा नहीं समझा जाता?’

‘लेकिन इस से होता क्या है?’

‘होगा क्या…वर या वधू दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाएगी. सालभर के अंदर ही जोड़ा बिछुड़ जाता है.’ मैं तनिक भी नहीं चौंकी. पालतू कुत्ते की तरह पाले गए अंधविश्वासों के प्रति खानदान वालों के इस मोह से मैं पूर्वपरिचित थी.

अलमारी बंद कर पायताने की ओर बैठती हुई मैं ने जिज्ञासा से फिर पूछा, ‘लेकिन मौसीजी, हमारे खानदान में शादी के समय विदाई करना अच्छा क्यों नहीं समझा जाता, इस का भी तो कोई कारण अवश्य होगा?’

‘हां, कारण भी है, तुम्हारे ससुर के चचेरे चाचा की सौतेली बहन हुआ करती थीं. विवाह के समय ही उन का गौना कर दिया गया था. बेचारी दोबारा मायके का मुंह नहीं देख पाईं. साल की कौन कहे, महीनेभर में ही मृत्यु हो गई.’’

अब क्या कहूं, सास का खयाल न होता तो ठठा कर हंस पड़ती. तर्कशास्त्र की अवैज्ञानिक परिभाषा याद हो आई. किसी घटना की पूर्ववर्ती घटना को उस कार्य का कारण कहते हैं. आज वैज्ञानिक धरातल पर भी यह परिभाषा किसी न किसी रूप में जिंदा है. परंतु मुंहजोरी से कौन छेड़े मधुमक्खियों के छत्ते को. मैं सहज स्वर में बोली, ‘लेकिन मौसीजी, उन से पहले जो विवाह के समय ही ससुराल जाती थीं क्या उन की भी मृत्यु हो जाया करती थी?’

‘अरे, नहीं,’ अपने दाहिने हाथ को हवा में लहराती हुई मौसीजी बोलीं, ‘उन के तो नातीपोते भी अब नानादादा बने हुए हैं.’ प्रसन्नता का उद्वेग मुझ से संभल न सका, ‘फिर तो कोई बात ही नहीं है, सब ठीक हो जाएगा.’

‘कैसे नहीं है कोई बात?’ मौसीजी गुर्राईं, ‘गांवभर में हमारे खानदान का नाम इसीलिए लिया जाता है…दूरदूर के लोग जानते हैं कि हमारे यहां शादी से भी बढ़चढ़ कर गौना होता है. देखने वाले दीदा फाड़े रह जाते हैं. तेरी फूफी सास के गौने में परिवार की हर लड़की को 2-2 तोले की सोने की जंजीर दी गई थी और ससुराल वाली लड़कियों को जरी की साड़ी पहना कर भेजा गया था.’ तब की बात कुछ और थी, मौसीजी. तब हमारी जमींदारी थी. आज तो 2 रोटियों के पीछे खूनपसीना एक हो जाता है. महीनेभर नौकरी से बैठ जाओ तो खाने के लाले पड़ जाएं. फिर गौना का खर्च हम कहां से जुटा पाएंगे?’

इसे अपना अपमान समझ कर मौसीजी तमतमा कर उठ खड़ी हुईं, ‘ठीक है, कर अपनी बेटी का ब्याह, न हो तो किसी ऐरेगैरे का हाथ पकड़ा कर विदा कर दे, सारा खर्च बच जाएगा. आने दे सुधीर को, अब मैं यहां एक पल भी नहीं रह सकती. जहां बहूबेटियों का कानून चले वहां ठहरना दूभर है.’ मौसीजी के नेत्रों से अंगार बरस रहे थे. वे बड़बड़ाती हुईं अपने कमरे की ओर बढ़ीं तो मैं एकबारगी सकते में आ गई. मैं लपक कर उन के कमरे में पहुंची. वे अपनी साड़ी तह कर रही थीं. साड़ी उन के हाथ से खींच कर याचनाभरे स्वर में मैं बोली, ‘मौसीजी, आप तो यों ही राई का पर्वत बनाने लगीं. मेरी क्या बिसात कि मैं कानून चलाऊं?’

‘अरे, तेरी क्या बिसात नहीं है? न सास है, न ननद है, खूब मौज कर, मैं कौन होती हूं रोकने वाली?’ उन की आवाज में दुनियाजहान की विवशता सिमट आई. उन की आंखों में आंसू आ गए थे. लगा किसी ने मेरा सारा खून निचोड़ लिया हो. मैं विनम्र स्वर में बोली, ‘मौसीजी, आज तक कभी हम लोगों ने आप की बात नहीं टाली है. मैं हमेशा आप को अपनी सास समझ कर आप से सलाहमशविरा करती आई हूं. फिर भी आप..

परंतु मौसीजी का गुस्सा शांत नहीं हुआ. मैं उन का हाथ पकड़ कर उन्हें आंगन में ले आई और उन्हें आश्वस्त करने का प्रयत्न करने लगी. ये शाम को आए. मौसीजी बैठी हुई थीं. दोपहर का सारा किस्सा मैं ने सुना डाला. मौसीजी का क्रोध सर्वविदित था. ये हारे हुए जुआरी के स्वर में बोले, ‘तब?’

‘तब क्या?’ मैं बोली, ‘50 हजार रुपए मौसीजी से बतौर कर्ज ले लीजिए. 60-70 हजार रुपए चाचाजी से ले लेना. मिलाजुला कर किसी तरह कर दो गौना. मैं और क्या कहूं अब?’

‘बेटी मेरी है, उन्हें क्या पड़ी है?’

‘क्यों नहीं पड़ी है?’ मेरा रोष उमड़ आया, ‘जब बेटी के ब्याह की हर रस्म उन लोगों की इच्छानुसार होगी तो खर्च में भी सहयोग करना उन का फर्ज बनता है.’ संभवतया मेरे व्यंग्य को इन्होंने ताड़ लिया था. बिना उत्तर दिए तौलिया उठा कर बाथरूम में घुस गए. रात में भोजन करने के बाद ये और मौसीजी बैठक में चले गए. बच्चे अपने कमरे में जा चुके थे. पप्पू को सुलाने के बहाने मैं भी अपने कमरे में आ कर पड़ी रही. दिमाग की नसों में भीषण तनाव था. सहसा मैं चौंक पड़ी. मौसीजी का स्वर वातावरण में गूंजा, ‘अरे सुधीर, तेरी बहू कह रही थी कि गौना नहीं होगा. अब बता भला, जब विवाह में विदाई करना हमारे यहां फलता ही नहीं है तब भला गौना कैसे नहीं होगा?’

‘अब तुम से क्या छिपाना, मौसी?’ यह स्वर इन का था, ‘मैं सरकारी नौकर जरूर हूं, लेकिन खर्च इतना ज्यादा है कि पहले ही शादी में 1 लाख रुपए का कर्ज लेना पड़ गया. 2 और बेटियां ब्याहनी हैं सो अलग. 20-30 हजार रुपए से गौने में काम चलना नहीं है, और इतने पैसों का बंदोबस्त मैं कर नहीं पा रहा हूं.’ मौसीजी के मीठे स्वर में कड़वाहट घुल गई, ‘अरे, तो क्या बेटी को दफनाने पर ही तुले हो तुम दोनों? इस से तो अच्छा है उस का गला ही घोंट डालो. शादी का भी खर्च बच जाएगा.’

‘अरे नहीं, मौसीजी, तुम समझीं नहीं. गौना तो मैं करूंगा ही. देखो न, विवाह से पहले ही मैं ने गौने का मुहूर्त निकलवा लिया है. अगले साल बैसाख में दिन पड़ता है.’

‘सच?’ मौसीजी चहक पड़ीं.

‘और नहीं तो क्या? 50 हजार रुपए तुम दे दो, 60-70 हजार रुपए चाचाजी से ले लूंगा. कुछ यारदोस्तों से मिल जाएगा, ठाठ से गौना हो जाएगा.’

‘क्या, 50 हजार रुपए मैं दे दूं?’ मौसीजी इस तरह उछलीं मानो चलतेचलते पैरों के नीचे सांप आ गया हो.

‘अरे, मौसी, खैरात थोड़े ही मांग रहा हूं. पाईपाई चुका दूंगा.’

‘वह तो ठीक है, लेकिन इतने रुपए मैं लाऊंगी कहां से? मेरे पास रुपए धरे हैं क्या?’ मेरी आंखें उल्लास से चमकने लगीं. भला मौसी को क्या पता था कि परंपरा की दुहाई उन की भी परेशानी का कारण बनेगी? मैं दम साधे सुन रही थी. इन का स्वर था, ‘अरे, मौसी, दाई से कहीं पेट छिपा है? तुम हाथ झाड़ दो तो जमीन पर नोटों की बौछार हो जाए. हर कमरे में चांदी के रुपए गाड़ रखे हैं तुम ने, मुझे सब मालूम है.’ ‘अरे बेटा, मौत के कगार पर खड़ी हो कर मैं झूठ बोलूंगी? लोग पराई लड़कियों का विवाह करवाते हैं, और मैं अपनी ही पोती के ब्याह पर कंजूसी करूंगी? लौटाने की क्या बात है, जैसे मेरा श्याम है वैसे तू भी मेरा बेटा है.’ मेरी हंसी फूट पड़ी. लच्छेदार शब्दों के आवरण में मन की बात छिपाना कोई मौसीजी से सीखे. भला उन की कंजूसी से कौन नावाकिफ था.

क्षणिक निस्तब्धता के बाद इन की थकी सी आवाज फिर उभरी, ‘तब तो मौसी, अब इस परंपरा का गला घोंटना ही होगा. न मैं इतने रुपए का जुगाड़ कर पाऊंगा और न ही गौने का झंझट रखूंगा. बोलो, तुम्हारी क्या राय है?’ ‘जो तुम अच्छा समझो,’ जाने किस आघात से मौसीजी की आवाज को लकवा मार गया और वह गोष्ठी समाप्त हो गई. दूसरे दिन चाचाजी का भी सदलबल पदार्पण हुआ. परंपरा और रस्मों के खंडन की बात उन तक पहुंची तो वे भी आगबबूला हो उठे, ‘सुधीर, यह क्या सुन रहा हूं? मैं भी शहर में रहता हूं. मेरी सोसाइटी तुम से भी ऊंची है. लेकिन हम ने कभी अपने पूर्वजों की भावना को ठेस नहीं पहुंचाई. तुम लोग लड़की की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हो.’

‘चाचाजी, आप गलत समझ रहे हैं,’ ये बोले थे, ‘गौने के लिए तो मैं खूब परेशान हूं. लेकिन करूं क्या? आप लोगों की मदद से ही कुछ हो सकता है.’

चाचाजी के चेहरे पर प्रश्नचिह्न लटक गया. उन की परेशानी पर मन ही मन आनंदित होते हुए ये बोले, ‘मैं चाहता था, यदि आप 80 हजार रुपए भी बतौर कर्ज दे देते तो शेष इंतजाम मैं खुद कर लेता और किसी तरह गौना कर ही देता. आप ही के भरोसे मैं बैठा था. मैं जानता हूं कि आप पूर्वजों की मर्यादा को खंडित नहीं होने देंगे.’ चाचाजी का तेजस्वी चेहरा सफेद पड़ गया. उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. थूक निगलते हुए बोले, ‘तुम तो जानते ही हो कि मैं रिटायर हो चुका हूं. फंड का जो रुपया मिला था उस से मकान बनवा लिया. मेरे पास अब कहां से रुपए आएंगे?’ सुनते ही ये अपना संतुलन खो बैठे.

क्रोधावेश में इन की मुट्ठियां भिंच गईं. परंतु तत्काल अपने को संभालते हुए सहज स्वर में बोले, ‘चाचाजी, जब आप लोग एक कौड़ी की सहायता नहीं कर सकते, फिर सामाजिक मर्यादा और परंपरा के निर्वाह के लिए हमें परेशान क्यों करते हैं? यह कहां का न्याय है कि इन खोखली रस्मों के पीछे घर जला कर तमाशा दिखाया जाए? मुझ में गौना करने की सामर्थ्य ही नहीं है.’ इतना कह कर ये चुप हो गए. चाचाजी निरुत्तर खड़े रहे. उन के होंठों पर मानो ताला पड़ गया था.

थोड़ी देर पहले तक जो विमला के परम शुभचिंतक बने हुए थे, अब अपनीअपनी बगले झांक रहे थे. अब कोई व्यक्ति मेरी बेटी के प्रति सहानुभूति प्रकट करने वाला नहीं था. आज विमला भरीगोद लिए सहीसलामत अपने मायके लौट रही है. अंधविश्वास और खोखली रस्मों की निरर्थकता पाखंडप्रेमियों को मुंह चिढ़ा रही है. शायद वे भी कुछ ऐसा ही निर्णय लेने वाले हैं.

Social Story

लेखिका- मंजुला

Family Story: बदलते मूल्य- बाप-बेटे का बदलता रिश्ता

Family Story: बाप और बेटों का रिश्ता संक्रमण काल से गुजर रहा है. पहले बाप बेटे की विश्वसनीयता एवं चरित्र पर शंका किया करते थे, अब बेटे भी बाप को शंकालु दृष्टि से देखने लगे हैं. वे बचपन से ही प्रेम को आत्मसात करतेकरते मूंछ की रेख आने तक पूर्ण परिपक्व हो जाते हैं और उन्हें यौवन पार करतेकरते पिताश्री की गतिविधियां संदिग्ध लगने लगती हैं.

अब प्यार और विवाह में आयु का बंधन नहीं रहा. 60 के आसपास के चार्ल्स अभी भी राजकुमार हैं और वह आयु में अपने से बड़ी राजकुमारी कैमिला पार्कर को ब्याह कर राजमहल ले आए. पिता की शादी में युवा पुत्रों-हैरी और विलियम्स ने उत्साह से भाग लिया और आशीर्वाद…क्षमा करें, शुभकामनाएं दीं. कैमिला की बेटी लारा पार्कर नवयुगल को निहारनिहार कर स्वप्नलोक में खोती रही. वर्तमानकाल में सांस्कृतिक, सामाजिक व पारिवारिक मूल्य तेजी से बदल रहे हैं. ऐसे सामाजिक संक्रांतिकाल खंड में एक बेटे ने बाप से पूछा, ‘‘पापा, आज आप बडे़ स्मार्ट लग रहे हैं. कहां जा रहे हैं?’’

‘‘कहीं नहीं, बेटा,’’ बाप नजरें चुराते हुए बोला.

‘‘मेरी हेयरक्रीम से आप की चांद चमक रही है. अब समझ में आया. क्रीम जाती कहां है. मम्मी की नजरें बचा कर आईब्रो पेंसिल से मूंछें काली करते हैं. कहते हैं, कहीं नहीं जा रहे. क्या चक्कर है पिताश्री?’’ बेटे ने फिर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ बाप सकपकाया जैसे चोरी पकड़ी गई हो. फिर बोला, ‘‘बेटा, तुम तो फालतू में शक वाली बात कह रहे हो.’’

‘‘फालतू में नहीं, पापा, जरूर दाल में कुछ काला है. मम्मी सही कहती हैं, आप के लक्षण ठीक नहीं. मैं ने भी टीवी सीरियल देखे हैं. आप के कदम बहक गए हैं. आप को परलोक की चिंता नहीं. मुझे अपने भविष्य की है,’’ बेटा गंभीरता से बोला.

‘‘तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथ में है. बेटा, पढ़नेलिखने में दिल लगाओ,’’ बाप ने समझाया.

‘‘मैं पढ़ने में दिल लगाऊं और आप…’’ कहतेकहते बेटा रुक गया.

बाप सोच रहा था. बेटे को डांटूं या समझाऊं. तभी उस की निगाह बेटे के पैर पर गई. अपना नया जूता बेटे के पैर में देख पहले तो उसे क्रोध आया पर अगले पल ही यह सोच कर रह गया कि बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगा है. समझाने में ही भलाई है. फिर बोला, ‘‘तुम क्या कहना चाहते हो, बेटा?’’

बेटा मन ही मन सोच रहा था, ‘मेरा बाप बेकहम की तरह करोड़पति तो है नहीं, जो मुआवजा दे सके. न कोई सेलिब्रेटी है जिस का बदनाम हो कर भी नाम हो, न मैं आमिर की तरह अमीर हूं जो बाप से नाता तोड़ सकूं. पिताश्री घर में रहें इसी में परिवार की भलाई है. यह अकसर पैसा खींचने के लिए अच्छा है?’

प्रगटत: बेटे ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, पापा, बाहर जा रहा था. 100 रुपए दे दीजिए.’’

‘‘100 रुपए,’’ बाप दम साध कर बोला, ‘‘कल ही तो दिए थे. अब फिर…’’ पर उस ने समझौता करने में ही भलाई समझी. 100 रुपए देते हुए उस ने मुसीबत से छुटकारा पाया.

अब जेब खाली थी. अपना कार्यक्रम स्थगित किया, शयनकक्ष में झांका. पत्नी दूरदर्शन देखने में व्यस्त थी. पत्नी के मनोरंजन कार्यक्रम में व्यवधान डालने के परिणाम की कल्पना कर ही वह सिहर उठा. वह बाप से पति बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा था. चुपचाप किचन में चाय बनाने लगा. पत्नी के व्यस्त कार्यक्रम के मध्य उसे चाय पिला कर पतिधर्म निभाने का विचार करने लगा. तभी बरतन गिरने की आवाज से चौंकी पत्नी की चिल्लाहट गूंजी, ‘‘पप्पू, क्या खटरपटर मचा रखी है? क्लाइमेक्स बरबाद कर दिया.’’

‘‘जी, पप्पू नहीं पप्पू का पापा,’’ पति ने भय से उत्तर दिया.

‘‘कितनी बार मना किया कि किचन में संभल कर काम करो. 20 साल में कुछ नहीं सीख पाए. तुलसी की साड़ी देखो, एक एपीसोड में 6 बदलती है और मैं 6 माह से यही रगड़ रही हूं. मेरे भाग्य में तुम्हीं लिखे थे,’’ पत्नी ने विषय बदल दिया.

‘‘अरे भाग्यवान, क्यों नाराज होती हो. लो, मेरे हाथ की चाय पियो,’’ पति चापलूसी के स्वर में बोला.

‘‘हाय राम, पूरा दूध डाल दिया. फिर भी चाय है या काढ़ा,’’ पत्नी चाय सुड़कते हुए बोली.

‘‘दवा समझ कर पी लो, मैं तो 20 साल से पी रहा हूं.’’

‘‘मेरे हाथ की चाय तुम्हें काढ़ा लगती है, तो कल से तुम्हीं बनाओ.’’

‘‘बुरा मान गईं. मैं तो रोज बनाता हूं. क्या देख रही हो, कुमकुम…’’

‘‘सीरियल का नाम भी याद है. मुझे बदनाम करते हो, देख लो मजेदार है.’’

‘‘नहीं, मुझे काम है,’’ कहते हुए पति कमरे से बाहर निकलने लगा.

‘‘कांटा लगा…देखोगे?’’

जब से आकाशीय तत्त्व ने दूरदर्शन के माध्यम से गृहप्रवेश किया है, दिन में चांद दिखने लगा है और रात में सूरज या यों कहें कि दिन में सोते हैं, रात में टीवी देखते हैं. घर में सभी की समयसारणी निश्चित है कि कौन कब क्या देखेगा. बच्चे पढ़ाई सीरियल के हिसाब से करते हैं. खाने का समय बदल ही गया है. जब पत्नी के जायके का सीरियल नहीं आता तभी खाना मिलता है. खाने का जायका भी सीरियल के जायके पर निर्भर हो गया है. रसपूर्ण सीरियल के मध्य ठंडा व नीरस और नीरस सीरियल के मध्य गरम और रसपूर्ण भोजन मिलता है. दूरदर्शन ने नई पीढ़ी को अत्यधिक समझदार बना दिया है. वे मम्मी से मासूमियत से माला-डी के बारे में पूछते हैं. वयस्कों के चलचित्र भोलेपन से देखते हैं.

हमारी कथा के नायक पति, जो कभीकभी बाप बन जाते हैं, क्रोधित होते हुए घर में प्रवेश करते हैं, ‘‘कहां है पप्पू, सूअर का बच्चा?’’

‘‘मैं यहां हूं, पापा.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ? क्यों आसमान सिर पर उठाए हो?’’ पत्नी ने हस्तक्षेप किया.

‘‘पूछो इस से, मोटरसाइकिल पर लिए किसे घुमा रहा था?’’

‘‘किसे घुमा रहा था. मेरी सिस्टर थी ललिता,’’ बेटे ने निर्भीक हो कर उत्तर दिया.

‘‘लो, एक नई सिस्टर पैदा हो गई. मुझे तो मालूम नहीं, तुम्हारी मम्मी से ही पूछ लेते हैं,’’ बाप ने बेटे की मां की ओर देखा.

‘‘हाय राम, यह भी दिन देखने थे. पहले बेटे पर, अब मुझ पर शक करते हो? मेरी भी अग्निपरीक्षा लोगे? यह सब सुनने के पहले मैं मर क्यों नहीं गई,’’ पत्नी ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा.

‘‘देखो मम्मी, पापा की बुद्धि कुंठित है, सोच दकियानूसी है, पुराने जमाने के आदमी हैं, दुनिया मंगल पर पहुंच रही है और आप हैं कि चांद पर अटके हैं. जरा आंखें खोलिए, पापा,’’ बेटे ने समझाया.

‘‘तुम ने मेरी आंखें खोल दीं, बेटे, अभी तक अंधा था. अब समझ आया, साहिबजादे क्या गुल खिला रहे हैं.’’

‘‘पापा, अब गुल नहीं खिलते, ईमेल खुलते हैं, चैटिंग होती है. सुपर कंप्यूटर के जमाने में आप स्लाइड रूल खिसका रहे हैं. बदलिए आप. मुझ से चाहते क्या हैं?’’ बेटे ने पूछा.

‘‘मैं क्या चाहूंगा? तुम अच्छी तरह पढ़लिख कर नाम कमाओ, बस.’’

‘‘पढ़लिख कर आप जैसी नौकरी करूं, यही न?’’

‘‘मैं ने यह नहीं कहा. कुछ भी अच्छा करो, कोई रोलमाडल चुनो. कुछ सभ्यता सीखो,’’ बाप ने समझाया.

‘‘आप की पीढ़ी से किसे चुनूं? गांधी, नेहरू, सुभाष, शास्त्री देखे नहीं. जे पी, विवेकानंद के बारे में बस, सुना है. आप के जमाने के रोलमाडल कौन हैं? फिल्म वाले, डकैत, पैसे वाले, रसूख वाले, दोहरे चरित्र के नेता, अफसर…आप बताएं किस जैसा बनूं?’’

‘‘तुम बहुत बातें करने लगे हो, यही सीखा है. तुम्हारे दादा के सामने मेरी आवाज नहीं निकलती थी.’’

‘‘आप कुछ नहीं कहते थे…क्यों?’’ बेटे ने प्रश्न किया.

‘‘मैं अनुशासित था.’’

‘‘आप यह नहीं कहेंगे, दादाजी अनुशासनप्रिय थे. आप के सामने बात करता हूं तो आप कहते हैं, मैं उद्दंड हूं. यह नहीं कहते कि आप अनुशासनप्रिय नहीं. आप की पीढ़ी अनुशासनप्रिय नहीं. परिणाम हमारी पीढ़ी है,’’ बेटे ने अपना पक्ष रखा.

‘‘कहां की बकबक लगा रखी है?’’ बाप खीजते हुए बोला.

‘‘आप कहें तो प्रवचन. हम कहें तो बकबक. यही आप की पीढ़ी का दोहरा चरित्र है. आप विचार करें, मैं बाहर मूड फे्रश कर के आता हूं,’’ कहता हुआ बेटा उठा और बाहर चला गया.

बाप सोच रहा था, ‘नई पीढ़ी में गजब का आत्मविश्वास है. पप्पू बात सही कह रहा था या गोली खिला कर चला गया?’

Family Story

Short Story: नैगेटिव से पौजिटिव

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

Short Story: रीती जब कोरोना टेस्ट के लिए कुरसी पर बैठी, तब उस के हाथपैर कांप रहे थे और आंखों के सामने अंधेरा सा छा रहा था.

एक बार कुरसी पर बैठने के बाद रीती का मन किया कि वह भाग जाए… इतनी दूर… इतनी दूर कि उसे कोई भी न पकड़ सके… ना ही कोई बीमारी और ना ही कोई दुख… मन में दुख का खयाल आया तो रीती ने अपनेआप को मजबूत कर लिया.

“ये सैंपल देना… मेरे दुखों को झेलने से ज्यादा कठिन तो नहीं,” रीती कुरसी पर आराम से बैठ गई और अपनेआप को डाक्टर के हवाले कर दिया… ना कोई संकोच और ना ही कोई झिझक.

सैंपल देने के बाद रीती आराम से अकेले ही घर भी वापस आ गई थी. हाथपैर धोने के बाद भी कई बार अपने ऊपर सेनेटाइज किया और अपना मोबाइल हाथ में ले लिया और सोफे में धंस गई.

सामने दीवार पर रीती के पापा की तसवीर लगी हुई थी, जिस पर चढ़ी हुई माला के फूल सूख गए थे. अभी उन्हें गए हुए 10 दिन ही तो हुए हैं, कोरोना ने उन जैसे जिंदादिल इनसान को भी अपना निवाला बना लिया था.

रीती यादों के धुंधलकों में खोने लगी थी.

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पापा की बीमारी का रीती को पता चला था, तब उन से मिलने जाने के लिए वह कितना मचल उठी थी, पर अमन इस संक्रमण काल में रीती के उस के मायके जाने के सख्त खिलाफ थे, पर रीती समझ चुकी थी कि हो सकता है कि वह फिर कभी पापा को न देख सके, इसलिए उस ने अमन की चेतावनी की कोई परवाह नहीं की… और वैसे भी अमन कौन सा उस की चिंता और परवाह करते हैं जो रीती करती. इसलिए वह लखनऊ से बरेली अपने मायके पापा के पास पहुंच गई थी, पर पापा की हालत बहुत खराब थी. एक तो उन की उम्र, दूसरा अकेलापन.

पापा ने अपना पूरा जीवन अकेले ही तो काटा था, क्योंकि रीती की मां तो तब ही मर गई थी, जब वह केवल 10 साल की थी. और फिर पापा ने अकेले ही रीती की देखभाल की थी और उन के उसी निर्णय के कारण आज वे अकेले थे.

रीती गले से लग गई थी पापा के. पापा ने उसे अपने से अलग करना चाहा तो भी वह उन्हें जकड़े रही थी. बापबेटी अभी एकदूसरे से कुछ कहसुन भी न पाए थे कि अस्पताल से पापा के पास फोन आया कि उन की रिपोर्ट पौजिटिव आई है, इसलिए वे अपनेआप को घर में ही आइसोलेट कर लें, क्योंकि शहर के किसी अस्पताल में बेड और जगह नहीं है.

पापा रीती के पास से उठ खड़े हुए मानो उस से दूर जाना चाहते हों और दूसरे कमरे में चले गए.

पूरे एक हफ्ते तक रीती पापा के साथ रही. घरेलू नुसखों से इलाज करना चाहा, पर सब बेकार रहा. पापा को कोरोना निगल ही गया.

रीती लखनऊ वापस तो आई, पर अमन ने घर में घुसने नहीं दिया. अंदर से ही गोमती नगर वाले फ्लैट की चाभी फेंकते हुए कहा, “अपनी जांच करा लो और नैगेटिव हो तभी आना.”

अपने प्रति ऐसा तिरस्कार देख कर एक वितृष्णा से भर गई थी रीती. हालांकि अमन को कभी भी उस की जरूरत नहीं रही, ना ही उस के शरीर की और ना ही उस के मानसिक सहारे की. इस से पहले भी अमन और उस का रिश्ता सामान्य नहीं रहा. शादी के बाद पूरे एक हफ्ते तक अमन रीती के कमरे में ही नहीं गए, फिर एक दिन बड़े गुस्से में अंदर आए, उन की आंखों में प्यार की जगह नफरत थी.

वे शादी के समय हुई तमाम कमियों के शिकवेशिकायत ले कर आए और पूरी रात ऐसी बातों में ही गुजार दी.

कुछ दिन बाद अमन ने रीती को बताया कि वह उस से किसी तरह की उम्मीद न रखे, क्योंकि वह अपनी एक सहकर्मी से प्रेम करता है और रीती से उस की शादी महज एक समझौता है, जो अमन ने अपने मांबाप को खुश रखने के लिए किया है.

“हुंह… पुरुष अगर दुश्चरित्रता करे तो भी माफ है और अगर औरत अपने परिवार के खिलाफ जाए तो वह कुलटा और चरित्रहीन कहलाती है.”

मन ही मन में सोच रही थी रीती.

हालांकि अमन के अफेयर की बात कितनी सच थी, ये वह नहीं जान पाई थी, मगर कुछ दिन बाद अमन की हरकतों से इतना तो रीती जान गई थी कि अमन एक पुरुष के जिस्म में तो था, पर उस के अंदर पौरुष की शक्ति का अभाव था… शायद इसीलिए अमन ने रीती को खुद से ज्यादा उम्मीदें न लगाने के लिए अफेयर वाली बात बताई थी.

समझौता तो रीती ने भी किया था अमन से शादी करने का. वह शादी नहीं करना चाहती थी, पर पापा थे जो आएदिन उस की शादी के लिए परेशान रहते. रीती लड़कों का नाम सुन कर परेशान हो जाती. कोई भी लड़के उसे आकर्षित क्यों नहीं करते थे, हां, विश्वविद्यालय में पढ़ते समय कैंपस में कुछ लड़कियों की तरफ सहज ही खिंच जाती थी रीती, खासतौर से खेलकूद में रहने वाली मजबूत काठी की लड़कियां उसे बहुत जल्दी अपनी ओर आकर्षित करती थीं. इसी तरह की एक लड़की थी सुहाना, लंबे कद और तीखे नैननक्श वाली. रीती को सुहाना से प्यार होने लगा था, वह अपना बाकी का जीवन सुहाना के ही साथ बिताना चाहती थी.

ये बात बीए प्रथम वर्ष की थी, जब सुहाना को देखा था रीती ने और बस पता नहीं क्यों उस से बात करने का मन करने लगा, जानपहचान बढ़ाई. पता चला कि सुहाना भी लड़कियों के होस्टल में रहती है. सुहाना सुंदर थी या नहीं, ये बात तो रीती के लिए मायने ही नहीं रखती थी. उसे तो बस उस के साथ होना भाता था, कभीकभी पार्क में बैठेबैठे सुहाना के हाथ को अपने हाथ में पकड़ कर बातें करना रीती को अच्छा
लगता.

जाड़े की एक दोपहर में जब दोनों कुनकुनी धूप में बैठे हुए थे, तब सुहाना के सीने पर अपनी कोहनी का दबाव बढ़ा दिया था रीती ने, चिहुंक पड़ी थी सुहाना, “क…क्या कर रही है रीती?”

“अरे कुछ नहीं यार. बस थोड़ी सी एनर्जी ले रही हूं,” हंसते हुए रीती ने कहा, तो बात आईगई हो गई.

हालांकि अपनी इस मानसिक और शारीरिक हालत से रीती खुश थी, ऐसा नहीं था. वह भी एक सामान्य जीवन जीना चाहती थी, पर एक सामान्य लड़की की तरह उस के मन की भावनाएं नहीं थीं.

अपनी इस हालत के बारे में जानने के लिए रीती ने इंटरनेट का भी सहारा लिया. रीती ने कई लेख पढ़े और औनलाइन डाक्टरों से भी कंसल्ट किया.

रीती को डाक्टरों ने यही बताया कि उस का एक लड़की की तरफ आकर्षित होना एक सामान्य सी अवस्था है और इस दुनिया में वह अकेली नहीं है, बल्कि बहुत सी लड़कियां हैं, जो लैस्बियन हैं और रीती को इस के लिए अपराधबोध में पड़ने की आवश्यकता नहीं है.

सुहाना के प्रति रीती का प्रेम सामान्य है, ये जान कर रीती को और बल मिला. रीती अपना बाकी का जीवन सुहाना के नाम कर देना चाहती थी, पर उन्हीं दिनों सुहाना के साथ एक लड़का अकसर नजर आने लगा.

एक लड़के का इस तरह से सुहाना के करीब आना रीती को अच्छा नहीं लग रहा था, पर सुहाना… सुहाना भी तो उस लड़के की तरफ खिंचाव सा महसूस कर रही थी, एक प्रेम त्रिकोण सा बनने लगा था उन तीनों के बीच, जिस के दो सिरों पर तो एकदूसरे के प्रेम और खिंचाव का अहसास था, पर तीसरा बिंदु तो अकेला था और वह बिंदु अपना प्रेम प्रदर्शित करे भी तो कैसे? पर, रीती ने सोच लिया था कि वो आज सुहाना से अपने प्रेम का इजहार कर देगी और अपना बाकी का जीवन भी उस के साथ बिताने के लिए अपनेआप को समर्पित कर देगी.

“व्हाट…? हैव… यू गौन मैड… तुम जा कर अपना इलाज करवाओ और आज के बाद मेरे करीब मत आना,” सुहाना चीख रही थी और उस का बौयफ्रैंड अजीब नजरों से रीती को घूर रहा था और रीती किसी अपराधी की तरह सिर झुकाए खड़ी रही, और जब उसे कुछ समझ नहीं आया, तो वहीं पर धम्म से बैठ गई थी. सुहाना और उस का बौयफ्रैंड उसे छोड़ कर वहां से चले गए.

अगले दिन पूरे विश्वविद्यालय में रीती के लैस्बियन होने की बात फैल गई थी. कैंपस में लड़के उस पर फिकरे कसने लगे थे, “अरे तो हम में क्या बुराई है? कुछ नहीं तो एक किस ही दे दे.”

“अरे ओए सनी लियोन… हमें भी तो वो सब सिखा दे…”

रीती को ये सब बुरा लगने लगा था. अगर सुहाना को उस का साथ नहीं चाहिए था, तो साफ मना कर देती… पूरे कैंपस में सीन क्रिएट करने की क्या जरूरत थी… आज सब लोग उस पर हंस रहे हैं… इतनी बदनामी के बाद रीती को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? लड़कों और लड़कियों के ताने उसे जीने नहीं दे रहे थे… उस के पास अब विश्वविद्यालय और होस्टल छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था.

आज की क्लास उस की आखिरी क्लास होगी और फिर आज के बाद विश्वविद्यालय में कोई रीती को नहीं देखेगा… उस के बाद आगे रीती क्या करेगी? पापा से पढ़ाई छोड़ देने के बारे में क्या कहेगी? खुद उसे भी पता नहीं था.

अपने होस्टल के कमरे में रीती तेजी से अपना सामान पैक कर रही थी. उस के मन में सुहाना के प्रति भरा हुआ प्यार अब भी जोर मार रहा था.

रीती के दरवाजे पर दस्तक हुई. रीती ने आंसू पोंछ कर दरवाजा खोला तो देखा कि एमए की एक छात्रा उस के सामने खड़ी थी. वह रीती को धक्का दे कर अंदर आ गई और बोली, “क्या कुछ गलत किया है तुम ने? जो इस तरह अपनेआप से ही शर्मिंदा हो रही हो… और ये विश्वविद्यालय छोड़ कर जा रही हो…”

रीती अर्शिया नाम की उस लड़की को प्रश्नसूचक नजरों से देखने लगी. अर्शिया ने आगे रीती को ये बताया कि लैस्बियन होना कोई गुनाह नहीं है, बल्कि एक सामान्य सी बात है. प्रेम में सहजता बहुत आवश्यक है और फिर आजकल तो लोग लाखों रुपये खर्च कर के अपना जेंडर बदल रहे हैं. लोग बिना शादी किए सेरोगेसी के द्वारा बच्चों को गोद ले रहे हैं और फिर हम तो प्यार ही फैला रहे हैं, फिर हम कैसे गलत हो सकते हैं?

अर्शिया की बातें घाव पर मरहम के समान लग रही थीं रीती को.

“हम… तो क्या मतलब, तुम भी लैस्बियन हो,” रीती ने पूछा.

“हां… मैं एक लैस्बियन हूं, पर मुझे तुम्हारी तरह समलैंगिक कहलाने में कोई शर्म नहीं आती है, बल्कि मैं अपनी इस पहचान को लोगों के सामने रखने में नहीं हिचकती… आखिर हम किसी का रेप नहीं करते, किसी का मर्डर नहीं करते…फिर हमें शर्म कैसी?” अर्शिया ने अपनी बात कह कर रीती को बांहों में भर लिया और रीती ने भी पूरी ताकत से अपनी बांहें अर्शिया के इर्दगिर्द डाल दीं.

उस दिन के बाद से पढ़ाई पूरी होने तक अर्शिया और रीती एक ही साथ रहीं.
कुछ महीनों के बाद अर्शिया की नौकरी मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में लग गई थी. वह जाना तो नहीं चाहती थी, पर जीविका और कैरियर के नाम पर उसे जाना पड़ा. पर अर्शिया जल्दी वापस आने का वादा कर के गई थी और लगभग हर दूसरे दिन फोन करती रही.

रीती के पापा ने उस की शादी तय कर दी थी. मैं किसी लड़के से शादी कर के कैसे खुश रहूंगी? मैं एक समलैंगिक हूं, ये बात मुझे पापा से बतानी होगी, पर पापा से एक लड़की अपने लैस्बियन होने की बात कैसे बता सकती है? और रीती भी कोई अपवाद नहीं थी. सो, उस ने मोबाइल को अपनी बात कहने का माध्यम बनाया और पापा के व्हाट्सएप नंबर पर एक मैसेज टाइप किया, जिस में रीती ने अपने लैस्बियन होने की बात कबूली और ये भी कहा कि वे उस की शादी किसी लड़के से न तय करें, क्योंकि ऐसा कर के वे उस की निजता और उस के जीवन के साथ खिलवाड़ करेंगे.

कई दिनों तक पापा घर नहीं आए और ना ही उन का कोई रिप्लाई आया. एक बाप भला अपनी बेटी के लैस्बियन होने पर उस को क्या जवाब देता…?

फिर एक दिन पापा का रिप्लाई आ गया, जिस में समाज की दुहाई देते हुए उन्होंने कहा था कि एक बाप होने के नाते लड़की की शादी करना उन की मजबूरी है, क्योंकि उन्हें भी समाज में और लोगों को मुंह दिखाना है. अपनी लड़की के समलैंगिक होने की बात अन्य लोगों को बता कर वे अपनी नाक नहीं कटवाना चाहते, इसलिए उसे चुपचाप शादी करनी होगी.

पापा की मरजी के आगे रीती कुछ न कह सकी और उस की शादी अमन से हो गई थी.

रीती की शादी और अर्शिया की नौकरी भी उन दोनों के बीच का प्रेम नहीं कम कर पाई थी. अर्शिया फोन और सोशल मीडिया के द्वारा रीती से जुड़ी हुई थी.

रीती अभी और पता नहीं कितनी देर तक पुरानी यादों में डूबी रहती कि उस का मोबाइल फोन बज उठा. अमन का फोन था. बोला, “सुनो… तुम्हारी कोरोना की रिपोर्ट पौजिटिव आ गई है. मुझ से दूरी बनाए रखना… और तुम गोमती नगर वाले फ्लैट में ही रहती रहना… और मैं अब और तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता. मैं अस्पताल में जांच कराने जा रहा हूं. क्या पता तुम ने मुझे भी संक्रमित तो नहीं कर दिया?”

आंसुओं में टूट गई थी रीती… वह कोरोना पौजिटिव आई थी इसलिए नहीं, बल्कि इसलिए कि उस के पति ने एक कायर की भांति व्यवहार
किया था. महामारी के समय जब उसे अपने पति से देखभाल और प्यार की सब से ज्यादा जरूरत थी, तब उस के पति ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया था…

दुख के इस समय में उसे अर्शिया की याद सताने लगी थी. भारी मन से उस ने अर्शिया का नंबर मिला दिया. अर्शिया का नंबर ‘नोट रीचेबल’ आ रहा था.

“अपना फोन अर्शिया कभी बंद नहीं करती, फिर आज उस का मोबाइल…” किसी अनिष्ट की आशंका में डूब गई थी रीती.

तकरीबन 2 घंटे के बाद अर्शिया के फोन से रीती के मोबाइल पर फोन आया.

“लौकडाउन के कारण मेरी कंपनी बंद हो गई है, इसलिए मैं तुझ से मिलने लखनऊ आ गई हूं. कैब कर ली है… अपने घर की लोकेशन व्हाट्सएप पर भेज दे. जल्दी से पहुंचती हूं, फिर ढेर सारी बातें होंगी,” खुशी की लहर रीती के मन को बारबार भिगोने लगी थी.

आज इतने दिनों के बाद वह अपने प्यार से मिलेगी, अपने सच्चे प्यार से, जो न केवल उस के जिस्म की जरूरत को समझती है, बल्कि उस के मानसिक अहसास को भी अच्छी तरह जानती है.

लोकेशन भेजते ही रीती को खुद के पौजिटिव होने की बात याद आई. उस ने तुरंत कांपते हाथों से संदेश टाइप किया, “मैं तो कोरोना पौजिटिव हूं…मुझ से दूर ही रहना… अभी मत आओ.”

“ओके,” अर्शिया का उत्तर आया.

एक बार फिर से अकेले होने के अहसास से दम घुटने सा लगा था रीती का. तकरीबन आधे के घंटे बाद कालबेल बजी.

“भला यहां कौन आ गया?” भारी मन से रीती ने दरवाजा खोला. सामने कोई था, जो पीपीई किट पहने और चेहरे पर मास्क और फेस शील्ड लगा कर खड़ा था.

उस की आवाज से रीती ने उसे पहचाना. वो अर्शिया ही तो थी. रीती ने चाहा कि वह उस के गले लग जाए, पर ठिठक सी गई.

“भला किसी अपने को कोई बीमारी हो जाती है तो उसे छोड़ तो नहीं दिया जाता…अब मैं आ गई हूं… अब मैं घर पर ही तेरा इलाज करूंगी,” अर्शिया ने घर के अंदर आते हुए कहा.

अर्शिया ने रीती की रिपोर्ट के बाबत औनलाइन डाक्टरों से भी कंसल्ट किया और घरेलू नुसखों का भी सहारा लिया और पूरी सतर्कता के साथ रीती की सेवा की.

जब हृदय में प्रेम फूटता है, तो किसी भी बीमारी को सही होने में ज्यादा समय नहीं लगता. रीती के साथ भी यही हुआ. सही समय पर उचित दवा और प्यारभरी देखभाल के चलते जल्दी ही रीती ठीक होने लगी और कुछ दिनों बाद उस की अगली कोरोना रिपोर्ट नैगेटिव आ गई
थी.

आज उन दोनों के बीच कोई पीपीई किट नहीं थी. न जाने कितनी देर तक दोनों एकदूसरे से प्यार करते रहे थे.

“मैं अमन को तलाक देने जा रही हूं… पर, तुम्हें अपने से दूर नहीं जाने दूंगी,” रीती ने अर्शिया की गोद में लेटते हुए कहा.

“तो दूर जाना भी कौन चाहता है? पर, क्या समलैंगिक रिश्ते में रहने पर तुम्हें समाज से डर नहीं लगेगा ?” अर्शिया ने पूछा.

“तो समाज ने मेरा कौन सा ध्यान रखा है, जो मैं समाज का खयाल करूं… अब से मैं अपने लिए जिऊंगी… अभी तक तो मैं कितना नैगेटिव सोच रही थी… तुम्हारी संगत में आ कर पौजिटिव हुई हूं… और अब मैं इसे हमेशा अपने जीवन का हिस्सा बना कर रखूंगी,” दोनों ने एकदूसरे के हाथों को थाम लिया था. चारों ओर पौजिटिविटी का उजाला फैलने लगा था और रीती की सोच भी तो नैगेटिव से पौजिटिव हो गई थी.

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Celebrity Divorce: शादी के 14 साल बाद जय भानुशाली और माही का डिवोर्स

Celebrity Divorce: फिल्म इंडस्ट्री और टीवी इंडस्ट्री ऐसी जगह है जहां पर प्यार और शादी का मोल चीन के माल की तरह है चले तो चांद तक नहीं तो शाम तक. इसके पीछे खास वजह यह है कि इनके रिश्ते तो बड़े जोरशोर से बनते हैं लेकिन कम विश्वास और आपसी एटीट्यूड घमंड तनाव और डोमिनेटिंग स्वभाव के चलते ज्यादा समय तक टिक नहीं पाते, हम किसी से कम नहीं वाली भावना अगर शादी के बाद भी बरकरार रहती है तो रिश्तो में खटास आनी शुरू हो जाती है.

ऐसा ही कुछ टीवी पर्सनैलिटी और खूबसूरत जोड़ी जय भानुशाली और माही विज के साथ भी हुआ. जिसके चलते 14 साल पुरानी शादी तलाक में बदल गई. खबरों के अनुसार एक बेटी तारा और दो बच्चे जो इस जोड़ी ने गोद लिए हैं एक बेटा राजवीर और बेटी खुशी शामिल है, इन बच्चों को ताक में रख कर जय और माही ने तलाक की अर्जी कोर्ट में पेश कर दी है.

खबरों के अनुसार यह जोड़ी काफी पहले अलग हो गई थी लेकिन बच्चों की वजह से कोई फैसला नहीं ले रही थी. लेकिन ज्यादा शक और झगड़ों के चलते फाइनली माही और जय आपसी सहमति के साथ अलग होने के लिए तैयार हो गए हैं.

रिश्ते में तनाव की वजह जय की पत्नी माही के भरोसे की समस्याओं से शुरू हुआ जो धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि तलाक की नौबत आ गई वह रिश्ता कभी जो प्यार की मिसाल माना जाता था, वह अब तलाक के दरवाजे पर खड़ा है.

Celebrity Divorce

Sex during Pregnancy: प्रैगनैंसी में सैक्स- क्या सही है और क्या गलत

Sex during Pregnancy: प्रैगनैंट होना वैसे तो हर कपल के लिए काफी खुशी की बात होती है, लेकिन फिर भी उन के मन में कई सवाल आते हैं कि क्या अब हम सैक्स कर पाएंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि सैक्स करने पर हमारे बच्चे को कुछ नुकसान पहुंच जाए? क्या ऐसा कोई तरीका है जिस से हम सैक्स कर भी लें और बच्चा भी सुरक्षित रहे? यह सिर्फ एक कपल की बात नहीं है, सभी के मन में ये सवाल जरूर आते हैं.

यों ज्यादातर मामलों में प्रैगनैंट होने पर संबंध बनाना सुरक्षित ही होता है, लेकिन अगर डाक्टर किसी भी वजह से ऐसा करने के लिए मना करता है, तो आप सैक्स न करें. ऐसा तब होता है जब :

  • मिसकैरिज का खतरा लग रहा हो.
  • यदि डाक्टर को यह लग रहा हो कि आप की प्रीमैच्योर डिलिवरी होने के चांस हैं.
  • यदि प्लेसेंटा प्रीविया हो.
  • यदि गर्भाशय ग्रीवा में कोई भी संक्रमण हो.
  • अगर थकान या असहज महसूस हो रहा है, तो जबरदस्ती यौन संबंध बनाने के लिए डाक्टर मना करते हैं.
  • अगर पति को सर्दी, खांसी या किसी तरह का संक्रमण हो, तो पत्नी और होने वाले बच्चे को बचाने के लिए कुछ दिन दूर रहना सही होता है.
  • वेजाइना से असामान्य रक्तस्राव.
  • पानी की थैली फटना.
  • अगर गर्भ में 2 या 2 से ज्यादा भ्रूण पल रहे हैं तो आप को सैक्स करने से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसा न करने से आप की प्रैगनैंसी में समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

वेजाइना से खून निकलना गर्भपात की तरफ इशारा करता है. अगर खून आ रहा है तो आप को सैक्स नहीं करना चाहिए क्योंकि इस से आप को परेशानी हो सकती है.

प्रैगनैंसी में संबंध बनाते समय किन बातों का ध्यान रखें :

  • पेट पर दबाव न पड़े, इस के लिए ऐसी पोजिशन चुनें जो आरामदायक और सुरक्षित हो.
  • हलके और सहज तरीकों को अपनाएं ताकि किसी भी तरह का अनावश्यक दबाव न पड़े.
  • साफसफाई और हाइजीन का ध्यान रखें.

प्रैगनैंसी में सैक्स करने के फायदे भी बहुत हैं : 

  • पेल्विक की मांसपेशियां स्ट्रौंग बनती हैं. और्गेज्म के दौरान पेल्विक की मांसपेशियों की ऐक्सरसाइज होती है, जो डिलिवरी के लिए फायदेमंद हो सकती है.
  • प्रैगनैंसी में सैक्स करने से ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है, जिस से रक्तसंचार बेहतर हो सकता है. इस से मां और बच्चे को औक्सीजन और पोषण मिलता है.
  • नियमित रूप से संबंध बनाने से शरीर में ऐंटीबौडी बढ़ती है, जिस से मां का इम्यून सिस्टम बेहतर होता है और सफल प्रैगनैंसी में मदद मिलती है.
  • प्रैगनैंसी में सैक्स करना ऐक्सरसाइज भी है. सैक्स करने पर कैलोरी बर्न होती है और यह प्रैगनैंसी के लिए अच्छा माना जाता है.
  • सैक्स करने पर औक्सीटोसिन हारमोन रिलीज होता है, जो इस समय काफी अच्छा रहता है.
  • गर्भावस्था में कमरदर्द और मांसपेशियों में जकड़न होना सामान्य हैं. संबंध बनाने से शरीर में ऐंडोर्फिन हारमोन बढ़ता है, जिस से दर्द कम होता है.
  • गर्भावस्था के दौरान पतिपत्नी एकदूसरे के करीब महसूस कर सकते हैं और उन का भावनात्मक रिश्ता मजबूत होता है.
  • सैक्स के बाद रिलैक्सेशन महसूस होता है, जिस से नींद की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और प्रैगनैंसी में अच्छी नींद का मिलना बहुत जरूरी है.
  • औक्सीटोसिन एक हारमोन है, जो बच्चेदानी के सिकुड़ने और दूध उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है.
  • प्रैगनैंसी के दौरान मिशनरी सैक्स पोजिशन से बचना चाहिए.

प्रैगनेंसी के शुरुआती दिनों में सभी पोजिशन जो पसंद हों वे ठीक रहती हैं हालांकि तब भी बहुत ज्यादा तेज तरीके से सैक्स नहीं करना चाहिए. लेकिन इस के बाद आप को मिशनरी पोजिशन से बचना चाहिए क्योंकि इस पोजीशन के दौरान महिला पीठ के बल लेटती है और पुरुष ऊपर होता है. इस पोजिशन में सैक्स करने से गर्भाशय पर दबाव पड़ता है, जिस के कारण कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

करवट ले कर संबंध बनाना

इस में महिला साइड में लेटती है और पेट पर कोई दबाव नहीं पड़ता. प्रैगनैंसी के दौरान इस पोजिशन में सैक्स करने से महिला के पेट या गर्भ में पल रहे शिशु पर किसी तरह से कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है.

वूमेन औन टौप

इस पोजिशन में महिला पुरुष के ऊपर होती है इसलिए सैक्स में उस का पूरा कंट्रोल रहता है. जब भी असहज लगे वह रुक सकती है.

किनारे पर बैठना

महिला बैड के किनारे या कुरसी पर बैठ सकती है. यह पोजिशन खासकर तीसरी तिमाही में सुविधाजनक हो सकती है, जब पीठ के बल लेटने में असहजता महसूस होती है.

पुरुष की गोद में बैठना 

शुरुआती महीनों में महिला पुरुष की गोद में बैठ सकती है, यह पोजिशन हलकी और सहज मानी जाती है. इस में दोनों का चेहरा एकदूसरे के सामने होता है.

पीछे से संबंध

इस पोजिशन में भी पेट पर दबाव नहीं पड़ता, लेकिन इसे आराम और समझदारी से अपनाना चाहिए.

स्पूनिंग पोजिशन

इस में दोनों पार्टनर एकदूसरे की तरफ पीठ कर के एक ही दिशा में साइड में लेटते हैं. पुरुष पार्टनर महिला के पीछे होता है. यह पोजिशन पेट पर कोई दबाव नहीं डालती और गहरी पेनेट्रेशन से बचाती है.

Sex during Pregnancy

Personal Grooming: ग्रूमिंग क्यों जरूरी है, जानें ऐक्सपर्ट की राय

Personal Grooming: 5 साल पहले सातारा के एक गांव से जौब करने आई निशा को मुंबई की ऊंचीऊंची बिल्डिंग्स और रास्ते बहुत पसंद लगे थे, लेकिन यहां के लोगों के बात करने के तरीके और हावभाव निशा को अपने गांव से बहुत अलग लगा, क्योंकि यहां कोई किसी से अचानक बात नहीं करता. वह जहां रह रही है, वहां भी उस के साथ रहने वाली लड़कियां औफिस से आ कर सीधे अपने कमरे में चली जाती हैं.

एक बार तो वह जब ड्रैस पहन कर औफिस गई, तो सब उसे अजीब नजरों से घूरने लगे. बाद में उसे समझ में आया कि उस का पहनावा सब को अजीब लगा था, जिसे उस के पास बैठने वाली एक कलीग ने बताया. निशा को मुंबई पसंद है, लेकिन वहां टिके रहने और लोगों से जानपहचान बनाने के लिए खुद की ग्रूमिंग करनी पड़ी.

निशा ने औनलाइन सर्च किया और 3 महीने की ग्रूमिंग क्लासेज जौइन भी किया, जहां उसे नए व्यक्ति से बातचीत करने के तरीके, पोशाकों का चयन और कई सारी बातों को समझाया गया.

आज वह अपने बारे में बहुत कुछ समझ चुकी है और अपने माहौल में पूरी तरह से फिट हो चुकी है. साथ ही अब वह जौब को ऐंजौय कर रही है.

ग्रूमिंग है क्या

असल में जब आप किसी बड़े समूहों में खुद को बनाए रखना चाहते हैं और आप ने वैसी लाइफस्टाइल फौलो नहीं किया है, तो आप के लिए ग्रूमिंग जरूरी है क्योंकि यह न केवल पर्सनैलिटी को बनाए रखती है, बल्कि एक अच्छा रूप और आत्मविश्वास भी देती है, जिस से सामाजिक और व्यवसायिक स्थितियों में बेहतर छाप पड़ती है. यह आप की ओवरऔल डिवेलपमैंट से बढ़ कर व्यवहार और मैनर्स तक फैला हुआ है, जो एक सकारात्मक छवि बनाने में मदद करता है.

इस बारे में मनोवैज्ञानिक राशिदा कपाङिया कहती हैं कि किसी भी लड़के या लड़की को खुद की ग्रूमिंग जौब शुरू करने से पहले कर लेनी चाहिए, इस से आत्मविश्वास बढ़ता है और जल्दी जौब मिलने की संभावना होती है. यदि वे किसी छोटे शहर या गांव से आते हैं, तो वे यहां की लाइफस्टाइल से अपरिचित होते हैं, ऐसे में उन की ग्रूमिंग बहुत जरूरी है, नहीं तो वे नए माहौल में खुद को ऐडजस्ट नहीं करा पाते और मानसिक तनाव के शिकार होते हैं.

अपने एक अनुभव के बारे में राशिदा कहती हैं कि मेरे पास छोटे शहर का एक लड़का आया था, जो मुंबई को पसंद करता है, लेकिन उस के औफिस का माहौल उसे पसंद नहीं था. वह औफिस जाना नहीं चाहता था. मैं ने उसे समझाया, कई सेशन लिए, फिर उसे समझ में आया कि काम कैसे करना है, कैसे सब से मिलजुल कर अपनी बात रखनी है वगैरह.

ग्रूमिंग से होने वाले फायदे

दरअसल, ग्रूमिंग किसी भी व्यक्ति का पर्सनल डिवेलपमैंट होता है, जिस में कम्युनिकेशन स्किल्स, पर्सनल हाइजीन, आउटफिट आदि सभी चीजें मुख्य होती हैं. यों आज की जैनरेशन ग्रूमिंग को शर्मनाक मानती है. उन्हें लगता है कि दुनिया उन का मजाक बना रही है, जबकि उन्हें सब पता है. उन्हें समझना है कि केवल सोशल मीडिया के सहारे खुद की ग्रूमिंग नहीं की जा सकती. इस में एकदूसरे के साथ मिलबैठ कर व आपसी बातचीत का होना आवश्यक होता है, जिस की कमी उन्हें बाद में महसूस होती है.

ग्रूमिंग के फायदे निम्न हैं :

  • ग्रूमिंग आप की साफसुथरी और व्यवस्थित छवि पेश करती है, जो पेशेवर और सामाजिक माहौल में महत्त्वपूर्ण है.
  • जब आप अच्छा दिखते हैं और खुद का खयाल रखते हैं, तो आप का आत्मविश्वास स्वाभाविक रूप से बढ़ने लगता है.
  • ग्रूमिंग में रोज नहाना और त्वचा व बालों की देखभाल शामिल है, जो स्वास्थ्य और स्वच्छता बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है.
  • अच्छी ग्रूमिंग का एक अर्थ यह भी है कि आप अपने काम के प्रति गंभीर हैं और अपने पेशेवर जीवन में सफलता के लिए तैयार हैं.

दैनिक जीवन में अपनाएं कुछ आदतें

काउंसलर आगे कहती हैं कि सही ग्रूमिंग के लिए व्यक्ति को कुछ आदतों को खुद में विकास करना जरूरी होता है, जो निम्न हैं :

  • कहीं भी जाने से पहले या रोज, गरमी हो या सर्दी, एक बाथ अवश्य लें, ताकि शरीर से गंदगी और पसीने की बदबू हट जाएं.
  • परफ्यूम प्रयोग करने से न कतराएं.
  • त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से चेहरा धोएं, स्क्रब करें और मोइस्चराइजर लगाना न भूलें. लड़कियां जरूरत के अनुसार मेकअप का भी प्रयोग करें.
  • अपने बालों को नियमित रूप से ट्रिम करें और साफ रखें.
  • पहनावा साफ और अच्छी तरह से इस्तरी किए हुए कपड़े होने चाहिए. नाखून साफ और छोटे रखें.
  • केवल पहनावा और अच्छी डिग्री तक ग्रूमिंग सीमित नहीं होती, इस में ऐटिकेट्स और व्यवहार भी शामिल होते हैं, जो आप की पूर्ण विकास में योगदान करते हैं.

इस प्रकार ग्रूमिंग खुद को स्मार्ट और प्रभावशाली बनाए रखने और ऐसी आदतों को अपनाने के बारे में है, जो स्वयं और दूसरों के प्रति सम्मान दर्शाती हैं, जिसे हर व्यक्ति को कर लेना आवश्यक होता है, क्योंकि अगर आप अच्छे दिखेंगे तभी आप का प्रभाव आसपास के लोगों पर पड़ेगा और आप अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच सकेंगे.

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