False Eyelashes: फाल्स आईलैशेज कैसे लगाएं

False Eyelashes: आंखों की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए आईशैडो, आईलाइनर और मसकारा तो जरूरी है ही साथ ही आईलैशेज भी आई मेकअप का एक जरूर हिस्सा होता है. फाल्स आईलैशेज लगा कर आप अपनी आंखों को बड़ा और खूबसूरत दिखा सकती हैं. लेकिन ऐसा करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है.

आईलैशेज लगाने के लिए क्या सामान चाहिए

  • नकली आईलैशेज
  • मसकारा
  • आईलाइनर
  • आईलैश
  • ग्लू
  • चिमटी

फाल्स आईलैशेज कितने तरह की होती हैं

फाल्स लैशेज हर टाइप में अवेलेबेल हैं और आप इन्हें अपनी चौइस के अनुसार चुन सकती हैं. सिंगल लेयर से ले कर रैनबोज और ग्लिटर आईलैशेज तक, इन में आप को बहुत से औप्शन मिल जाएंगे. आप की पूरी लैश लाइन को कवर करने के लिए हैवी लैशेज, क्लस्टर लैशेज या स्ट्रिप और यहां तक कि मैग्नेटिक वाले भी जो आसानी से लगाए जा सकते हैं. साथ ही आप को ह्यूमन हेयर से लेकर सिंथेटिक फाइबर तक, हर चीज से बनी पलकें मिल जाएंगी.

इस के आलावा अगर आप की आंखें बड़ी हैं तो थोड़ी लंबी और घनी पलकें बेहतर रहेंगी, वहीं अगर आप की आंखें छोटी हैं तो छोटी और पतली पलकें चुनें.

2 तरह के फाल्स आईलैशेज आते हैं

बाजार में 2 तरह के फाल्स आईलैशेज आते हैं. ग्लू वाले और मैग्नेटिक लैशेज. ग्लू लैशेज सस्ते तो होते हैं, लेकिन ये लौंग लास्टिंग नहीं होते. साथ ही इन्हें लगाना भी मुश्किल होता है. यदि ग्लू सही से न लगें तो ये उखड़ जाते हैं या लैशेज अलग से लगे हुए भी नजर आते हैं. वहीं, मैग्नेटिक लैशेज लगाने में बेहद आसान होते हैं और इन्हें बारबार यूज किया जा सकता है. ये थोड़े महंगे होते हैं, लेकिन सुविधाजनक होने से इन की कीमत खलती नहीं. इन्हें लगाने के लिए ग्लू की जरूरत नहीं होती. बस, ओरिजनल लैशेज पर मसकारा लगा कर इसे लगाया जाता है और इस के मैग्नेट्स को अच्छी ग्रिप मिल जाती है. ये लौंगलास्टिंग होता है और जब तक इन्हें उतारा न जाएं ये अपनी जगह पर फिक्स रहते हैं.

फाल्स लैशेज को अपने हिसाब से कस्टमाइज करें

आप की पलके छोटी हैं या बड़ी ये आप को देखना है, इसलिए फाल्स लैशेज को अप्लाई करने से पहले इन्हें ट्रिम कर लें. इनर कौर्नर की बजाय आउटर कौर्नर पर से इन्हें ट्रिम करना शुरू करें.

अपनी असली पलकों को क्लीन करें

आंखों पर फाल्स लैशेज को लगाने से पहले अपनी आंखों की पलकों को अच्छी तरह से साफ करें. इस के लिए एक मसकारा ब्रश लें और अच्छी तरह से अपनी पलकों को क्लीन करें.

आईलैशेज पर ग्लू लगाएं

आइलैश स्ट्रिप के बाहरी किनार पर एक एप्लीकेटर या छोटे ब्रश से लैश ग्लू लगाएं. उसे अपनी लैशेज पर लगाने के पहले ग्लू को थोड़ा देर सूखने के लिए छोड़ दें.

आप चाहें तो आप के नौन डोमिनैंट हाथ से लैश ग्लू को दबा कर उस की एक पतली लाइन भी बना सकती हैं. अब अगले स्टेप में ग्लू लगे हुए आईलैशेज को अपनी आंखों के पास लाएं और आप की जो असली पलकें हैं उस के ठीक ऊपर लगाएं. कुछ मिनट तक रुकें ताकि ग्लू पूरी तरह से सुख जाएं. अब दूसरी आंख पर पलक लगाने के लिए भी यही स्टेप्स फौलो करें.

अब मसकारा लगाएं

मसकारा लगाना बहुत जरूरी होता है ताकि आप की नकली पलकें असली देखें. ये आप की नैचुरल लैश को नकली लैश के साथ ब्लैंड करने में मदद करेगा, जिस से एक और भी नैचुरल लुक मिलेगा. इस के लिए मस्कारे को अपनी नकली पलकों पर अप्लाई करें. इस से आप की लैश में फाल्स लैश अच्छे से ब्लैंड हो जाएंगी और अधिक लंबी दिखेंगी. साथ ही मसकारा लगाने से आप की आंखें बड़ी और खूबसूरत दिखेंगी.

फाल्स लैशेज उतारते समय सावधानी

ग्लू फाल्स आईलैशेज को हमेशा गीले कौटन से नम कर के उतारें. एक बार यूज होने के बाद दोबारा यूज न करें. वहीं मैग्नेटिक फाल्स आईलैशेज को आप सूखे हाथों से उतारें और संभाल कर रखें, क्योंकि इन्हें आप दोबारा पहन सकती हैं. कोशिश करें कि लैशेज लगा कर मुंह धोने से बचें क्योंकि इस से आंखों में इन्फेक्शन का खतरा बढ़ता है.

  • गोंद की मात्रा सीमित रखें
  • चमकदार या गहनों वाली पलकों से बचें.
  • पलकों को हटाते समय बहुत अधिक सतर्कता बरतें.
  • नकली पलकों को हटाने के बाद असली पलकों की अच्छी तरह सफाई करें.
  • फौर्मेल्डिहाइड वाले गोंद से बचें.
  • अपनी नकली पलकों को कभी भी दूसरों के साथ साझा न करें.
  • सोने के पहले नकली आइलैशेज को निकाल दें.
  • नकली लैशेज को अच्छी रौशनी वाली जगह में बैठकर ही लगाएं.
  • आप नकली आइलैशेज को दोबारा भी इस्तेमाल कर सकती हैं.
  • और ज्यादा नैचुरल लुक पाने के लिए किसी भी तरह के गैप्स को भरने के लिए आइलाइनर लगाएं.
  • ग्लो को अपनी असली पलकों पर न लगाएं वार्ना उसे हटाते समय असली पलकें टूट सकती हैं.
  • अपनी आइलैशेज को ग्लू करने के पहले ध्यान रखें कि आप का मेकअप पूरा हो गया हो. आप की आइलैशेज कितनी लंबी या मोटी है, उस के अनुसार उन के ऊपर आइशैडो लगाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है.

आंखों में हो सकती है जलन

नकली पलकें लगाते वक्त अगर आप को आंखों में जलन होती है, तो इसे तुरंत हटा लें क्योंकि इस से आप की आंखों में संक्रमण हो सकता है. ध्यान रहे, सोते वक्त कभी भी नकली पलके नहीं लगानी चाहिए. कुछ लोगों को नकली पलकें लगाते समय दिक्कत हो सकती है. ऐसा होने पर डाक्टर की सलाह जरूर लें.

False Eyelashes

Hair Care: सर्दियों में कलर्ड बालों की केयर

Hair Care: सर्दियां जहां एक ओर ठंडक और आराम ले कर आती हैं, वहीं दूसरी ओर हमारी बालों की सेहत और रंग (कलर) के लिए चुनौती भी बन जाती हैं. ठंडी हवाएं, रूखी हवा और गरम पानी से धोना, ये सब मिल कर बालों की नमी छीन लेते हैं, जिस से हेयर कलर जल्दी फीका पड़ने लगता है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपने कलर्ड बालों की सही देखभाल करें ताकि वे सर्द मौसम में भी चमकदार और हैल्दी रहें.

हाइड्रेशन है सब से जरूरी

सर्दियों की सब से बड़ी समस्या है ड्राइनैस. जब स्कैल्प और बालों से नमी खत्म होती है, तो कलर डल दिखने लगता है.

  • हफ्ते में 1-2 बार डीप कंडीशनिंग मास्क लगाएं.
  • ह्याल्युरोनिक एसिड, और्गन औयल या शीया बटर वाले हेयर क्रीम और सीरम यूज करें.
  • बाल धोने के बाद कंडीशनर लगाना न भूलें.
  • कलर सेफ शैंपू और कंडीशनर चुनें.

सामान्य शैंपू में सल्फेट (एसएलएस/एसएलइएस) होते हैं जो कलर को जल्दी निकाल देते हैं.

  • इस्तेमाल करें सल्फेट फ्री, पैरबेन फ्री और कलर प्रोटैक्ट फौर्मूला वाले शैंपू.
  • शैंपू करते समय गुनगुने पानी का उपयोग करें. बहुत गरम पानी बालों का कलर फीका करता है.
  • सूरज की किरणों और हीट से बचाव करें.
  • सर्दियों में भले धूप अच्छी लगती हो, लेकिन यूवी किरणें हेयर कलर को औक्सीडाइज कर देती हैं.
  • बाहर निकलते समय यूवी प्रोटेक्शन सीरम या स्प्रे का उपयोग करें.
  • हेयर ड्रायर या स्ट्रैटनर का उपयोग सीमित करें और हमेशा हीट प्रोटेक्ट स्प्रे लगाएं.

औयलिंग का स्मार्ट तरीका

  • तेल लगाना हमेशा फायदेमंद होता है, लेकिन कलर्ड बालों के लिए हलके और नौनस्टिकी औयल चुनें.
  • और्गन, जोजोबा या नारियल तेल को हलका गरम कर के स्कैल्प पर लगाएं.
  • बहुत देर तक तेल न रखें. आमतौर पर 30-40 मिनट काफी है, वरना कलर की गहराई पर असर पड़ सकता है.
  • 2025 में हेयर केयर में डीआईवाई मास्क ट्रेंड बहुत लोकप्रिय है. कम बार बाल धोएं. सर्दियों में रोजाना बाल धोना जरूरी नहीं.
  • 2–3 दिनों में एक बार वाश करें.
  • नौन वाश दिनों में ड्राई शैंपू या हेयर मिस्ट का इस्तेमाल करें ताकि बाल ताजा रहें.

 

अंदर से पोषण भी जरूरी है

आप का खानपान भी बालों के रंग और मजबूती पर असर डालता है.

अपने आहार में शामिल करें :

 

  • ओमेगा-3 फैटी एसिड (फ्लैक्सीड, अखरोट)

 

  • प्रोटीन (अंडा, दालें, दूध)

 

  • विटामिन ई और बायोटिन (बादाम, एवोकाडो)

 

कलर टचअप का सही टाइम

सर्दियों में बारबार कलरिंग से बचें क्योंकि बाल पहले से ही रूखे होते हैं. कलर टचअप 6–8 हफ्ते के अंतराल पर कराएं. हेयर टोनर का इस्तेमाल करें ताकि कलर फ्रैश बना रहे.

सर्दियों में कलर्ड बालों की केयर का राज है हाइड्रेशन, प्रोटेक्शन और सही प्रोडक्ट्स का चुनाव.

थोड़ा सा ध्यान और सही ट्रेंड्स अपना कर आप सर्दियों की ठंडी हवा में भी अपने बालों की चमक और रंग को बरकरार रख सकते हैं.याद रखें कि हेयर कलर तभी सुंदर लगता है जब बाल हैल्दी और मोइस्चराइज्ड हों.

Hair Care

Nora Fatehi: फिल्म थामा के आइटम गाने में मचाया धमाल

Nora Fatehi: दिनेश विजन और मैडॉक फिल्म्स लेकर आए हैं ‘कमरिया गर्ल’ – नोरा फतेही को ‘थामा’ में, अपने धमाकेदार दूसरे गाने – ‘दिलबर की आँखों का’ के साथ एक बार फिर अपने पिछले गाने हाय गर्मी की तरह गर्मी बढ़ाने का दिल बना लिया है.

दिलबर दिलबर,कमरिया और हाय गर्मी जैसे कई हिट नंबर देने वाली नोरा फ़तेही अब एक बार फिर दिवाली पर धमाका ले कर आ रही है, अपनी मादक अदाओं के साथ दिलबर की आंखों में गाने के जरिए जहां ‘थामा’ का ट्रेलर यूट्यूब पर नंबर 1 पर ट्रेंड कर रहा है और ‘तुम मेरे न हुए, ना सही’ ने भी टॉप ट्रेंडिंग गानों में अपनी जगह बनाई है, वहीं अब नोरा फतेही के सबसे चमकदार अंदाज़ में प्रस्तुत ‘दिलबर की आँखों का’ स्क्रीन पर आग लगाने को तैयार है.

मैडॉक फिल्म्स की बहुप्रतीक्षित हॉरर-कॉमेडी ‘थामा’ का दूसरा गीत ‘दिलबर की आँखों का’ अब रिलीज़ हो गया है.‘स्त्री’ के प्रसिद्ध गीत ‘कमरिया’ में अपने अविस्मरणीय प्रदर्शन के लिए जानी जाने वाली नोरा फतेही अब अपनी करिश्माई मौजूदगी और बेजोड़ डांस मूव्स के साथ एक बार फिर दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने आ रही हैं. पहली बार, असली ‘कमरिया गर्ल’ मैडॉक हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स में वापसी कर रही हैं – एक ऐसा पल जो पूरे चक्र को पूरा करता है, जिसमें है ताल, भावना और वो खास नोरा फतेही का जादू जिसे दर्शक हमेशा पसंद करते आए हैं.

रेट्रो अहसास से भरपूर यह गीत क्लासिक बॉलीवुड चार्म और आधुनिक रिदम्स का शानदार संगम है. विजय गांगुली द्वारा कोरियोग्राफ किया गया यह गाना टी-सीरीं द्वारा प्रस्तुत किया गया है.इसकी जोशीली बीट्स और आकर्षक दृश्यता इसे फिल्म के एलबम का प्रमुख आकर्षण बनाती हैं. इस गीत को बहुमुखी गायिका रश्मीत कौर ने अपनी दमदार आवाज़ से सजाया है, जिसने गाने में नई ऊर्जा और जान भर दी है.

नोरा फतेही ने अपने सिग्नेचर करिश्मे से हर फ्रेम को एक विजुअल स्पेक्टेकल में बदल दिया है. अपनी खुशी जाहिर करते हुए ग्लोबल स्टार नोरा फतेही ने कहा, “‘दिलबर की आँखों का’ परफॉर्म करना मेरे लिए एक बेहद रोमांचक अनुभव था. हर बीट को महसूस करना और यह जानना कि दर्शक भी हमारे साथ थिरकेंगे, इसे और खास बना देता है। यह गीत पूरी तरह से विस्फोटक है और बॉलीवुड ग्लैमर की उसी परंपरा को आगे बढ़ाता है जिसे दर्शक हमेशा मुझसे जोड़ते हैं. कोरियोग्राफी दमदार है, हुक स्टेप बेहद आकर्षक है और हर पल ऐसा था जैसे संगीत की धड़कन के साथ नाच रहे हों.

संगीत की विभिन्न परतों को खोजना वाकई एक रोमांचक सफर था और मुझे उम्मीद है दर्शक भी वही जोश महसूस करेंगे.संगीतकार जोड़ी सचिन-जिगर, जो अपने आधुनिक और कालातीत संगीत के लिए प्रसिद्ध हैं, ने इस गीत को कंपोज़ किया है.वे कहते हैं,

“हम चाहते थे कि यह गाना हर मायने में जीवंत महसूस हो – बीट, धुन और परफॉर्मर के साथ उसका तालमेल. हमारा मकसद ऐसा ट्रैक बनाना था जो एनर्जी से भरपूर हो लेकिन अपनी आत्मा भी बनाए रखे. रश्मीत की आवाज़ और नोरा का परफॉर्मेंस इस विज़न को शानदार ढंग से साकार करते हैं.

गीत के बोल दिग्गज अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे हैं, जिन्होंने गीत में खेल, ऊर्जा और भावनात्मक गहराई का सुंदर मिश्रण पेश किया है

इस दिवाली रिलीज़ हो रही थामा रोमांस, हास्य, ड्रामा और अलौकिक रहस्य का संगम लेकर आ रही है – दो आत्माओं की प्रेमगाथा जो सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ती हैं.फिल्म का ट्रेलर दर्शकों से जबरदस्त प्रतिक्रिया पा चुका है और यह फिल्म मैडॉक हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स (MHCU) का विस्तार करने जा रही है.

टी-सीरीज़ द्वारा प्रस्तुत दिलबर की आँखों का अपने संक्रामक संगीत, सटीक कोरियोग्राफी और नोरा की मंत्रमुग्ध उपस्थिति के साथ दर्शकों को थिरकने पर मजबूर करेगा. यह गाना इस त्योहारी सीजन का चार्टबस्टर बनने के लिए तैयार है.

Nora Fatehi

Esha Deol बनी हैंडबॉल प्रो लीग (HPL) 2026 की ब्रांड एंबैसडर

Esha Deol: धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की बेटी ईशा देओल जिन्होंने धूम, युवा, नो एंट्री, जैसी हिट फिल्म दे कर सबको अपना दीवाना बना दिया था, ईशा को कोई मेरे दिल से पूछे के लिए फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला. अपने सफल करियर के दौरान ईशा ने फिल्मों से किनारा कर लिया था. और शादी करके सेटल हो गई थी, वह एक बार फिर अभिनय करियर में सक्रिय है आज वह न सिर्फ वेब सीरीज कर रही है बल्कि कई प्रॉडक्ट की ब्रांड एम्बेसडर भी है, लेकिन इसके अलावा ईशा की खेल में भी दिलचस्पी भी है जिसके चलते ईशा ने हर बार अपनी पॉपुलरिटी ओर बढ़ाती जा रही हैं.

बॉलीवुड की दमदार एक्ट्रेस ईशा देओल अब खेल के मैदान में भी दिखाएंगी अपना जलवा! उन्हें हैंडबॉल प्रो लीग (HPL) की आधिकारिक ब्रांड एंबेसडर घोषित किया गया है. यह शानदार लीग फरवरी 2026 में नागपुर में होने जा रही है.

कम ही लोग जानते हैं कि ईशा खुद अपने स्कूल के दिनों में स्टेट-लेवल हैंडबॉल प्लेयर रह चुकी हैं, यानी ये सिर्फ ब्रांडिंग नहीं, बल्कि एक दिल से जुड़ा हुआ रिश्ता है.

ईशा की ये नई पारी देशभर में हैंडबॉल को नया जोश और पहचान देने वाली है, खासकर यंग एथलीट्स और महिला खिलाड़ियों के बीच.

हर साल अपनी पौपुलैरिटी बढ़ाती जा रही हैंडबॉल प्रो लीग अब एक धमाकेदार सीज़न के लिए तैयार है जहां देश-विदेश के टॉप खिलाड़ी मैदान में उतरेंगे. ईशा देओल के साथ अब लीग को मिलेगा ग्लैमर, जोश और स्पोर्ट्स स्पिरिट का परफेक्ट कॉम्बो.

नागपुर एडिशन होगा एनर्जी, एथलेटिसिज़्म और जज़्बे का त्योहार और इस पूरे माहौल की जान होंगी हमारी अपनी ईशा देओल.

Esha Deol

Hindi Fictional Story: मसीहा

Hindi Fictional Story: ‘‘बला की खूबसूरत लड़की थी जो मेरे ही घर के सामने रहती थी. खिड़की पर खड़ा हो कर मैं उसे घंटों निहारा करता. मेरे घर वालों के नाम पर कोई न था. जब से होश संभाला मामामामी ही मातापिता की जगह मिले. उन्होंने ही बताया कि सड़क दुर्घटना में मेरे मातापिता चल बसे थे और मैं कार सीटर में बंधा होने के कारण बच गया. कुदरत की मुझ पर खासी कृपा थी. मामाजी के घर कोई औलाद पैदा नहीं हुई तो मैं ही सब का लाडला बना रहा बल्कि दोनों परिवारों की संपत्ति का इकलौता वारिस मैं ही था ऊपर से इतनी खूबसूरत पड़ोसिन.

मेरा दिल बल्लियों उछलता रहता. मैं ने कई बार उस से बात करने की कोशिश भी की पर वह नाक पर मक्खी तक न बैठने देती थी. खैर, लड़कियां टीनेज में खामोश हो जाती हैं यही सोच कर मैं ने खुद को समझ लिया था. एमबीबीएस के बाद मास्टर्स के लिए एडिनबर्ग विश्वविद्यालय जाना चाहता था जहां दुनियाभर से लोग शोध के लिए पहुंचते हैं. रिजल्ट का इंतजार ही कर रहा था कि उन्हीं दिनों उस की 10वीं की बोर्ड परीक्षा का प्रवेशपत्र आया. सैंटर मेरे ही स्कूल में पड़ा. यह बात उस के पिता ने ही बताई और कहा कि मैं और आंटी जौब के लिए जाते हैं. तुम ही आएशा को परीक्षा देने के लिए सैंटर पर छोड़ आना. मैं ने उसी दिन उस का नाम जाना था. इतना प्यारा नाम आएशा हां.

वही तो मेरा आशियां सजाने वाली थी. अब एक नया काम मेरे हिस्से आ गया. अपने नाम के साथ उस का नाम जोड़ कर नोटबुक में लिखता रहता. आएशा, शिवम, नाम से ही लगता मानो हम एकदूजे के लिए ही बने थे. उम्र का वह दौर ऐसा ही होता है. पहले के लोग गलत नहीं करते थे जो आग और फूस के बीच दूरियां बना कर रखते थे. अब मैं अपनी बाइक से भी प्यार करने लगा था उस पर आएशा जो बैठने वाली थी. वह भी अजीब मिट्टी की बनी थी. चुपचाप आ कर बैठ जाती और सीधा स्कूल गेट के अंदर चली जाती. वापसी में भी वही स्थिति थी. ‘हां’ या ‘न’ के लिए सिर हिला कर जवाब देती.

मेरा बड़ा दिल करता कि एक बार उन हसीन लबों से अपना नाम ही सुन लूं. फिर खुद को समझबुझ लेता कि ज्यादा की लालच की तो जो मिला है वह भी न छूट जाए. इस तरह उस की हाई स्कूल की परीक्षाएं खत्म हुईं और मेरी यूनिवर्सिटी का एडमिट कार्ड आ गया. वीजा वगैरह कराते हुए समय निकल गया. फुरसत ही नहीं हुई कि अपनी मनमोहिनी से मन की बात कह सकूं. खिड़की के उस पार के इंतजार पर भरोसा था. निगाहों को निगाहों से आश्वासित कर मैं पढ़ने के लिए यहां आ गया. अब जब जौब लग गई है तो सोचता हूं मामामामी से मिल कर आएशा से रिश्ते की बात चला दूं.

आखिर उस के पिता ने मुझ में कुछ तो देखा होगा तभी तो किशोर उम्र में भरोसा कर सके थे. उम्रभर की जिम्मेदारी भी दे सकते हैं. कुदरत ने साथ दिया तो ले कर ही लौटूंगा.’’ मारिया जो अब तक दम साधे मेरी प्रेम कहानी सुन रही थी उस की आंखों में जैसे एक नई रोशनी आ गई. वह जब से यहां आया था वही तो एक दोस्त बनी थी. यूनिवर्सिटी में साथ थी जहां मैं मैडिकल और वह नर्सिंग की छात्रा थी. एक रोज बातों ही बातों में हिंदुस्तान देखने की उस की ललक ने हमारी दोस्ती करा दी. पहलेपहल एक विदेशी का अपने प्रति झकाव देख कर मैं डर गया मगर वह बस दोस्त थी और उस ने कभी अपनी सीमाएं नहीं लांघीं तो मैं भी आश्वस्त हो कर उस से अपना अतीत साझ कर बैठा जिसे सुन कर वह बेहद रोमांचित हो गई. उस का कुतुहल चरम पर था, ‘‘जीवन में एक न एक बार प्यार तो सब करते हैं. कुछ अपनी कहानियों को अंजाम दे पाते हैं तो कुछ की कहानियां अंतर्मन में ही दफन हो जाती हैं. तुम एक सच्चे आशिक हो. अपना मंजिल पा कर सफलतम बनो. मैं बेसब्री से तुम दोनो का इंतजार करूंगी…’’ उस शाम साथ बैठे तो बातों ही बातों में सुबह हो गई. जो कुछ मारिया ने कहा वह अंदर तक बैठ गया. उस की कत्थई आंखें पंजाबी पिता की देन थीं जिसे उस ने जन्म के पहले ही खो दिया था. तभी मेरे साथ बातें करती वह अकसर खो जाती.

मुझे अपनी मां के हाथों के व्यंजन खिलाती. हां, मुझ में अपने खोए हुए रिश्ते को ढूंढ़ रही थी. ‘‘माफ करना. मेरी कहानी तुम्हें दुखी कर देगी मुझे इस का जरा भी अंदाजा नहीं था.’’ ‘‘तुम्हें दुखी होने की जरूरत नहीं दोस्त. तुम ने तो हमेशा ही मेरे खालीपन को भरा है.’’ उस ने भरीभरी आंखों से कहा तो एहसास हुआ विदेशों में कितना अकेलापन है. उस के वालेट में सहेजी पिता की तसवीर देख कर एक स्वाभाविक अपनापन महसूस हुआ. हां, वह भारत के बाहर भारत की बेटी थी इस नाते वह भी मेरी ही जिम्मेदारी थी. उस से बातें खत्म कर के मैं ने दिल्ली की फ्लाइट ले तो ली पर सारे रास्ते उस के बारे में सोचता रहा. एक मैं ने ही मातापिता को नहीं खोया था बल्कि उस ने तो पिता की बस तसवीर ही देखी थी. उस के लिए पिता तो नहीं बन सकता था मगर एक दर्द का रिश्ता तो बन ही गया था और वह मित्र बन कर इस डोर को कभी नहीं टूटने देगा यही सोचता सफर कब कट गया पता नहीं चला.

दिल्ली की आबोहवा अब भी वैसी ही थी. शरीर को छूते ही सारी थकान हर ले गई. कैब ले कर चंडीगढ़ पहुंचा तो पूरे शरीर में झरझरी सी दौड़ गई. जोशीले कदम उठे तो सीधे उसी खिड़की के नीचे रुके. ‘‘तुम आ गए बेटा?’’ आएशा के पिता घर के बाहर ही खड़े मिल गए. उन्होंने बढ़ कर गले लगा लिया जैसे पहले से ही राह देख रहे हों. शायद मामाजी ने बता दिया होगा. घर में घुसते ही मामी ने सारी राम कहानी कह सुनाई, ‘‘दहेज के लोभियों के हाथों पड़ गई थी. पता नहीं कैसे उस के पड़ोसियों ने पिता को फोन कर दिया और ऐन वक्त पर न पहुंचते तो न जाने क्या हो जाता. चलो… बेचारी की जान बच गई, तब से यहीं रहती है.. कहते हैं ब्याह के नाम से ही नफरत हो गई है उसे.’’ इतनी बड़ी बात हो गई और मुझ से किसी ने बताया तक नहीं. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था पर लगा कि मेरी पढ़ाई में बाधा न पड़े यही सोच कर मुझ से छिपाया होगा. भारी व धड़कते मन से आएशा के घर में प्रवेश किया.

सामने ही उसे देख बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल पाया. खूबसूरत तो वह पहले ही थी, ऊपर से काली नागिन सी चोटी जो घुटनों तक लहराती थी वह छोटी हो स्टोल बन गले से लिपट गई थी. चेहरे पर अब भी वही तटस्थता जैसे कोई नाराजगी हो. ‘‘कैसी हो?’’ ‘‘क्यों पूछ रहे हो?’’ ‘‘हक से पूछ रहा हूं यार.’’ ‘‘तो हक दिया भी होता…’’ मेरी बेजबान गुडि़या बोल पड़ी तो एहसास हुआ कि अनजाने में एक अपराध तो हुआ है. उस से कुछ कहेसुने बिना चले जाना प्रेम से पलायन करना था. माना मुंह से न कहा था मगर निगाहों ने असीमित वादे किए थे. सोचा था कुछ बन कर ही लौटेगा मगर उसे अपने मंसूबों के बारे में न बता अंधेरे में रखने की गलती तो हुई थी. ‘‘अरे बेटा. चाय पी कर जाना,’’ कह कर आएशा की मां ने बैठा लिया. आशु के हाथों की चाय पीने की ललक ने रुकने पर मजबूर कर दिया था.

फिर अंकल ने बताया कि दहेज के भूखे भेडि़ए कैसे नकाब पहने घूमते हैं. पहचानने में भूल हो गई बेटा. खुद कहा, एक जोड़ी कपड़े में बच्ची को भेजिए. हमें कुछ भी नहीं चाहिए पर बच्ची को सताते रहे. मैं तो मौत के मुंह से निकाल कर लाया हूं इसे. केस ही ऐसा था कि तुरंत तलाक मिल गया है. चाय के साथ आशु सामने थी. खूबसूरत मेहंदी लगे हाथ जो अकसर ख्वाबों में आते और नींद से जगा कर चाय पिलाते थे. उस की जगह एक जले हुए हाथ का प्याला जब मुझ तक पहुंचा तो चाय हलक से न उतर पाई. रुंधे गले से बस इतना ही कहा, ‘‘आप लोगों को मंजूर हो तो मैं आएशा से शादी करना चाहता हूं.’’ ‘‘नहीं यह नहीं हो सकता.’’ आएशा बुदबुदा उठी तो लगा दोबारा गलती कर दी. आएशा की मरजी तो पूछी ही नहीं. फौरन घुटनों के बल बैठा और बोला, ‘‘मेरी हमसफर बनोगी?’’ ‘‘कहा न नहीं.’’ ‘‘मगर क्यों?’’ मेरे प्रश्न के जवाब में वह मुझे खींचती हुई अपने कमरे में ले आई.

उस के कमरे की उस खिड़की तक पहुंच कर खुद को धन्य महसूस कर रहा था जो हमारे प्रणय की सब से बड़ी साक्षी थी. एक मिनट को महसूस ही न हुआ कि इस बेहद निजी स्थान पर भला उसे क्योंकर लाई होगी. इतने सालों के प्रवास ने मुझे तो खुले दिमाग का बना दिया था मगर आएशा भी… पता नहीं क्या करेगी. आगे क्या कुछ घटने वाला है यह सोच कर मन ही मन रोमांचित था कि उस ने आवरण हटा दिया. आग ने उस खूबसूरत हिस्से को झलसा दिया था जिसे संवारते हुए स्त्री जीवन बीतता है. ‘‘इसे पाना चाहते हो. यहां क्या पाओगे? बिल्डिंग में आग लग जाए तो इंश्योरैंस वसूल कर नई इमारत खड़ी की जाती है तुम इस बिगड़ी इमारत का क्या करोगे?’’ उन आंखों में दुख और क्रोध के बादल थे. बादलों के पार मेरा चांद था जो दाग होते हुए भी बेहद खूबसूरत था.

सब से बड़ी बात यह कि सोतेजागते जिस की कल्पना की थी यह वही था. सफेद शरीर पर गुलाबी निशान मेरे लिए प्रेम के प्रश्नपत्र थे जिन में शतप्रतिशत अंक लाने हेतु मैं कटिबद्ध था. मैं उस आफताब के दागों से जरा भी विचलित नहीं हुआ तो वह चीख उठी. ‘‘पगली, मैं ने तुम से प्रेम किया है तुम्हारे शरीर से नहीं. तुम मेरा चांद हो और मैं चकोर बस बीच में कोई ग्रहण आ गया. प्रतीक्षा मेरी नियति है मैं और प्रतीक्षा कर लूंगा. मैं तुम में आशाओं के दीप जलाऊंगा. वादा है तुम से इसे वापस वैसा ही बना दूंगा ताकि तुम्हारा खोया विश्वास लौट आए.

तुम फिर से वैसी ही बन जाओगी जिसे पाने की ललक मैं सारा जीवन दांव पर लगा दूं. मुझे इस रिश्ते को उस मुकाम पर ले जाना है,’’ मैं ने नजरों से ही हौले से सहलाते हुए कहा, ‘‘प्रेम समर्पण है… शायद तुम्हारे लिए ही सर्जन बना हूं. इस संगमरमर में लगी काई को अपने हाथों साफ करूंगा और जब वापस इस में उतना ही गुरुर आ जाएगा तब हम नए जीवन में कदम रखेंगे…’’ दोनों की आंखों से बहते आंसू आएशा का मन भिगो गए. तन तो कब से भावावेश में आ कर उस के तन का चादर बन गया था. अपनेआप को उस से अलग कर बाहर निकला और घर वालों से कहा, ‘‘पंडितजी से विवाह की तिथि निकलवा लें. जितनी जल्दी हो सके शादी कर के लौटना चाहता हूं. आएशा के जले अंगों की प्लास्टिक सर्जरी अब इंगलैंड में होगी. मैं वीजा के लिए देखता हूं.’’ विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं.

न जाने क्या था हम दोनों के बीच कि बगैर बोले ही मौन ने प्यार का संदेश पहुंचा दिया था. मेरे शब्दों की गंभीरता ने आएशा के पिता को यह भान करा दिया था कि जो दुख उन्होंने अपनी बेटी के हिस्से में लिखा था उसे हरने उस का मसीहा आ चुका है. खिड़की फिर से गुलजार हो गई. अब एक मधुरता आएशा के लावण्य को और बढ़ा रही थी. मैं उस की खूबसूरती में फिर से खो जाना चाहता था पर काम बहुत थे. शादी, सर्टिफिकेट, वीजा वगैरह, सब निबटा कर मैं ने मारिया को फोन किया और यह सारा वृत्तांत जब कह सुनाया तो खुशी के मारे वह रो पड़ी. मेरी प्रेम कहानी के पूरी होने की खुशी उस की आवाज से 7 समंदर पार तक आ रही थी. प्यार के पंछी जो मिल गए थे.

हमारे घोंसले को संवारने की जिम्मेदारी उस ने स्वयं ही ले ली और स्वागत की तैयारियों में जुट गई. उसे एक कुंआरे घर को नवयुगल के सपनों का संसार जो बनाना था. उस ने आएशा के इलाज के लिए डाक्टर से अपौइंटमैंट ले ली और डौक्यूमैंट्स भी तैयार करा दिए ताकि सर्जरी में देर न हो. हम सीधे अस्पताल पहुंचे और पति के रूप में कंसेट पर हस्ताक्षर करते हुए दिल वैसे ही धड़का जैसे वह पहली बार बाइक पर आ बैठी हो. आज अपने हाथों अपने प्रेम को संवारने की बरसों पुरानी ख्वाहिश पूरी करने जा रहा था.

Hindi Fictional Story

Family Kahani: सीरत

Family Kahani: लोग सूरत के दीवाने बड़ी जल्दी हो जाते हैं लेकिन अगर सीरत अच्छी न हो तो इंसान किसी काम का नहीं होता. दुनिया में सीरत को समझने वाले भी बहुत कम लोग ही होते हैं. दरअसल, सीरत वह हीरा है जो कोयले की खान में मिलता है. ‘‘संध्या प्लीज मुझे छोड़ कर मत जाओ मैं इस नन्ही सी जान को तुम्हारे बिना कैसे संभालूंगा… संध्या… संध्या…’’ प्रभात बच्चे को गोद में लिए मृत संध्या को झकझर रहा था… ‘‘ प्रभात बेटा, दुलहन की मांग में सिंदूर भरो,’’ मां की आवाज सुन कर प्रभात अपने अतीत की यादों से बाहर निकाला. प्रभात की यादों में आज भी उस की संध्या जिंदा थी जिसे वक्त ने उस से छीन लिया था.

वह जातेजाते 5 साल के बेटे निशांत को उस के हवाले कर गई थी. मां की आवाज सुनने के बाद प्रभात को यंत्रवत बराबर में विवाह की बेदी पर बैठी निशा को बिना देखे उस की मांग में सिंदूर भर दिया. फेरे लेते वक्त भी उस का व्यवहार अलग ही रहा गठबंधन का खयाल न होता तो शायद वह सातों फेरे अकेले ही घूम लेता. कन्यादान के समय निशा की हथेली और कलाई पर नजर फिसल गई थी. ‘‘उफ, कितनी काली है,’’ नजरों को समेट कर पंडितजी की ओर देखने लगा. ‘‘पंडितजी, सातों जन्म के शादी के मंत्र एक ही जन्म में पढ़ेंगे क्या?’’ प्रभात ने झल्ला कर कहा. ‘‘बस… समझ लीजिए हो ही गया,’’ कहते हुए पंडितजी दानदक्षिणा की पोटली समेटने लगे. ‘‘ जाओ बेटी अपने पति के साथ बड़ों का आशीर्वाद ले लो,’’ प्रभात की मां ने दोनों के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

निशा का हाल भी कुछ ऐसा ही था. उसे भी प्रभात की ओर देखने में, न साथ चलने में कोई दिलचस्पी थी. वह तो बस अपनी 7 साल की बेटी जीवा के लिए इस विवाहबंधन में बंधने के लिए तैयार हो गई थी. दरअसल, जीवा हर समय बीमार रहती थी और उस हालत में उस के जबान पर पापा नाम की रट होती थी. निशा कुछ भी कर ले फिर भी उसे पापा ही अपने आसपास चाहिए होते थे. उस नन्ही सी बच्ची को कैसे समझती कि उस के पापा विदेश जा कर किसी गोरी मेम की खिदमत में लग चुके हैं. कुछ महीने तक तो निशा के गिड़गिड़ाने पर पैसे आते रहे फिर अचानक से तलाकनामे के पेपर आ गए.

इसे भारतीय महिला निशा ने अपने स्वाभिमान पर एक बड़ा धब्बा समझ तलाक के कागजों पर दस्तखत कर दिए. ये सब बातें जीवा की समझ में कहां आने वाली थीं, वह तो केवल अपने क्लासमेट्स के पापा की तरह अपने पापा को भी अपने आसपास देखना चाहती थी. बच्चों की जिंद्द के आगे मातापिता को झकना ही पड़ता है और हुआ भी वही. विवाह के मंडप में जिस गठबंधन को दूल्हादुलहन अपना सब से कीमती गहना समझ कर संभलते रहते हैं वही गठबंधन अभी प्रभात को फांस की तरफ लग रहा था. विदाई की गाड़ी में बैठते ही सब से पहले उस ने अपने आप को उस बंधन से अलग किया क्योंकि उस बंधन में जो ताकत थी वह उसे संध्या से अलग कर रही थी जिस से अलग होने की कल्पना मात्र भी प्रभात नहीं करना चाहता था. विदाई की गाड़ी मंदिर से चली और गुलाबी रंग के दोमंजिला मकान के सामने पहुंच कर रुक गई. यह मकान प्रभात का अपना मकान था. प्रभात सोनी, भोपाल मध्य प्रदेश के शहर में एक सरकारी इंजीनियर था. उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. कमी थी तो केवल जज्बात की. रश्म के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि प्रभात अपनी मां से पहले ही इन बातों का जिक्र कर चुका था कि यह शादी केवल बच्चों के लिए किया हुआ एक समझता है. इसे कभी भी वास्तविकता का रूप न कोई दे और न ही देने की कोशिश करें. ‘‘कोई नहीं मतलब कोई नहीं,’’ इशारा निशा की तरफ था.

बेशक प्रभात और निशा एकदूसरे के साथ विवाह के बंधन में बंध चुके थे लेकिन मन एकदूसरे से बिलकुल जुदा थे. उन्होंने नजर उठा कर अभी तक एकदूसरे को देखा भी नहीं था बातचीत तो दूर की बात थी. प्रभात संध्या से इतना प्रेम करता था कि उस के जाने के बाद भी उस का कमरा ज्यों का त्यों सजा कर रखता था और शाम को औफिस से आने के बाद भी उसी कमरे में रहना पसंद करता था. कमरे में हमेशा संध्या की पसंद का गाना चलता रहता था… ‘‘इन रश्मों को, इन कसमों को, इन रिश्तेनातों को मैं न भूलूंगा…’’ प्रभात और निशा के बीच केवल उन के बच्चों के प्रति जिम्मेदारी का बंधन था जिसे वे दोनों ही बखूबी निभा रहे थे. एक तरफ निशा प्रभात के बेटे निशांत से जुड़ती जा रही थी तो दूसरी तरफ जीवा पापा की प्यारी बन चुकी थी. हफ्तों से ले कर महीने बीते गए लेकिन प्रभात और निशा के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया. दोनों ने बच्चों की देखभाल को ही अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बना लिया था.

इस बीच प्रभात के मातापिता उन के साथ रहने आए जिन का मकसद प्रभात और निशा के गृहस्थी को करीब से देखना था. निशा ने सासससुर की सेवा में कोई कमी नहीं रखी. ‘‘बेटी, प्रभात को उस की पुरानी जिंदगी से बाहर निकालो और उस की शुरुआत तुम्हें उस के कमरे से करनी होगी, वहां अपना हक जमाओ,’’ जाते वक्त सासूमां ने इतना ही कहा था. निशा के टूटे मन में ऐसी कोई इच्छा नहीं थी फिर भी मां समान सास की इच्छा के आगे केवल ‘‘कोशिश करूंगी,’’ इतना ही कह पाई थी. देखतेदेखते 1 साल गुजर गया. लेकिन प्रभात और निशा ने एक दिन भी एकदूसरे से जरूरी कामों के अलावा कोई बात नहीं की. ऐसा नहीं था कि वे एकदूसरे से नफरत करते थे या हमेशा लड़ते रहते थे पर कभी कोई चाहत जागी ही नहीं थी. शारीरिक ख्वाहिश ने अंतर्मन के रेशे को छेड़ा ही नहीं था.

दोनों ने शांतिवार्त्ता के तहत ही अपनेअपने काम बांट लिए थे. निशा का काम बच्चों का होमवर्क कराना होता था तो प्रभात का काम स्कूल पहुंचाना. उन्होंने अपने कामों को कुछ इस तरह बांट लिया था कि नदी के किनारे बन गए थे जो साथ तो हमेशा रहते हैं पर मिलते कभी नहीं. एक दिन घर की सफाई करतेकरते निशा संध्या के कमरे में चली गई. प्रभात ने अपने कमरे में कुछ ऐसी तकनीकी व्यवस्था कर रखी थी कि दरवाजा खुलते ही रिकौर्ड बजने लगता था. ‘‘इन रश्मों को, इन कसमों को, इन रिश्तेनातों को मैं ना भूलूंगा मैं ना भूलूंगी…’’ निशा कुछ देर तक कमरे को निहारती रही. ठीक सामने की दीवार पर नजर पड़ी जहां संध्या की तसवीर बड़े से फ्रेम में लगी थी. सचमुच बेहद खूबसूरत थी संध्या.

तीखे नैननक्श, काले घने बाल, मुसकराता चेहरा. वहीं बाएं हिस्से में आदमकद आईना भी था जिस में निशा ने स्वयं को देखा तो नजरें अपनेआप नीची हो गईं. संध्या के सामने निशा कुछ भी नहीं थी. दिल के किसी कोने में कुछ हुआ. संध्या के मर कर भी जिंदा रहने की वजह उसे आज समझ में आ रही थी. इतनी खूबसूरत पत्नी को भला कोई कैसे भूल सकता है. वैसे तो कोई चाह भी नहीं थी कि प्रभात उस का हो जाए या उस के साथ अपनापनभरा कोई व्यवहार करे पर आज संध्या की तसवीर देखने के बाद तो रहीसही उम्मीद भी जाती रही. आज बच्चों का रिपोर्ट कार्ड आया था. दोनों ही अपनीअपनी कक्षा में अव्वल आए थे. निशा के खुशी का ठिकाना न था लेकिन अपनी खुशियां बांटे तो किस के साथ. बच्चों ने अपनीअपनी पसंद के खाने की फरमाइश की थी और निशा खाना बनाने में व्यस्त हो गई थी साथ ही साथ यों ही गुनगुनाए भी जा रही थी, ‘‘इन रश्मों को इन कसमों को इन रिश्तेनातों को मैं ना भूलूंगा मैं ना भूलूंगी.’’ तभी प्रभात औफिस से वापस आ गया. प्रभात के कदम आज संध्या के कमरे की तरफ न जा कर रसोई की तरफ मुड़ गए क्योंकि आवाज वहीं से आ रही थी. ‘‘इतनी कशिश, यह तो केवल संध्या में थी और कहीं नहीं,’’ कदम रसोई घर के दरवाजे पर रुक गए. आहट के साथ ही गाना भी बंद हो गया.

पहली बार दोनों ने एकदूसरे को यों आमनेसामने देखा था. नजरें स्थिर हो गई थीं पर जल्द ही सिमट गई थीं. प्रभात का मन ग्लानि और हीनभावना से भर गया. निशा के चेहरे में देखने लायक कुछ भी न था. सांवला चेहरा, सूखे होंठ, अस्तव्यस्त साड़ी. नजरें सिमट कर अपने जूतों पर टिक गईं, कदम पीछे मुड़ गए और सीधे संध्या वाले कमरे में जा कर राहत मिली. उस फ्रेम के सामने खड़ा हो गया. समुद्र का पानी पीने के बाद मटके के ठंडे पानी जैसा एहसास हुआ. ‘‘लेकिन गाना?’’ उस का ध्यान टूटा, ‘‘निशा को इस गाने के बारे में कैसे पता चला,’’ जा कर पूछना चाहता था. ‘‘क्या वह इस कमरे में आई थी?’’ ‘‘पर क्यों?’’ उस की इतनी हिम्मत,’’ अंतर्द्वंद्व चलता रहा.आज पहली बार निशा के लिए कुछ जागा था गुस्सा ही सही. बच्चे रिपोर्ट कार्ड दिखाने आए, ‘‘ पापा… पापा…’’ जीवा ने आवाज लगाई. ‘‘ए चुप. पापा बिजी हैं, हम उन्हें खाते वक्त दिखा देंगे,’’ निशांत ने समझया और दोनों लौट गए. निशा ने खाना बनाने के बाद बच्चों को खिलाया प्रभात को कई बार बुलावा भेजा पर हर बार औफिस के काम का बहाना आया तो निशा भी बच्चों को सुलातेसुलाते कब सो गई पता ही नहीं चला. अगले दिन बच्चों को स्कूल भेज कर प्रभात का लंच बौक्स तैयार कर मेज पर रख दिया.

निशा ने फिल्मों में देखा था पति औफिस जाते वक्त पत्नी को प्यारदुलार करते हैं लेकिन उस ने इन जज्बातों को दफना दिया था. बस इसी बात से खुश थी कि जीवा अब स्वस्थ रहने लगी थी. दिन के करीब 12 बजे थे. प्रिंसपल मैडम का फोन आया, ‘‘हैलो आप निशांत की मम्मी बोल रही हैं?’’ ‘‘जी,’’ निशा ने जवाब दिया. ‘‘दरअसल, आप के हस्बैंड का फोन नहीं लग रहा है. मैं निशांत के स्कूल से उस की प्रिंसिपल बोल रही हूं. आप जल्दी से सिटी हौस्पिटल आ जाइए,’’ निशांत के प्रिंसिपल ने इतना कह कर फोन रख दिया था. ‘‘क्या हुआ निशांत को बोलिए बोलिए न?’’ निशा चिल्लाती रही. किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया न होने पर निशा के चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें खिंच गईं. दरअसल, आज ही प्रभात 4 दिनों के टूर पर दिल्ली गया था और आज ही… घबराई हुई निशा ने अलमारी से कुछ पैसे निकाल पर्स में रखे और निकल पड़ी. जातेजाते पड़ोसिन को जीवा को अपने पास रखने का अनुरोध करना नहीं भूली.

औटोरिकशा में बैठने के बाद पैरों की ओर ध्यान गया. हड़बड़ाहट में चप्पल पहनना भूल गई थी. पैरों को समेट कर साड़ी से ढक लिया. करीब आधे घंटे में औटो वाले ने हौस्पिटल के सामने उतार दिया. भाड़ा दे कर छुट्टे की परवाह किए बगैर भागती हुई हौस्पिटल के अंदर पहुंची. रिसैप्शन से पूछ कर सीधे बच्चों वाले विभाग की ओर तेज कदमों से चलने लगी. मन अनजान आशंकाओं से घिरा हुआ था. कोई अनिष्ट न हो कुदरत को याद करती हुई निशांत के पास पहुंची. ‘‘निशांत कहां है? निशा ने सामने खड़ी एक संभ्रांत महिला से पूछा जो निशांत की टीचर थीं. ‘‘देखिए आप घबराइए मत सब ठीक हो जाएगा,’’ संभ्रांत महिला ने बड़े ही शांत स्वर में कहा. ‘‘मैं ने पूछा निशांत कहां है,’’ निशा ने थरथराए गले से पूछा. ‘‘उसे आईसीयू में ले गए हैं.’’ निशा भागती हुई आई.आईसीयू के सीसे से देखा निशांत लेटा हुआ था.

उस का बाएं हिस्से के चेहरे से ले कर कंधे तक ढका हुआ था उसे देखते ही कलेजा मुंह को आ गया. प्रभात से क्या कहेगी और सब से बड़ी बात ऐसा क्या हुआ कि सुबह हंसताखेलता बच्चा अभी इस हाल में पड़ा है. ‘‘ऐसा क्या हो गया उस के साथ? सुबह तो मैं ने उसे इन्हीं हाथों से तैयार कर के भेजा था,’’ निशा भावुक हो रोने लगी. ‘‘दरअसल, जो बच्चा हर साल अव्वल आता था उस ने निशांत को अपना रिपोर्ट कार्ड दिखाने के लिए कहा. जब निशांत ने दिखाने से मना किया तो उस ने… लैबौरटरी से ऐसिड ला कर निशांत पर फेंक दिया,’’ संभ्रांत महिला ने एक सांस में घटित घटना बयां कर दी. कुछ घंटों के बाद एक नर्स तेज कदमों से चलती हुई आई और बोली, ‘‘अभी निशांत ख़तरे से बाहर है बस…’’ ‘‘ बस क्या?’’ निशा ने बदहवास हो उसे झकझरा. ‘‘उस के चेहरे और गरदन की चमड़ी हमेशा झलसी ही रहेगी और उसे इस हादसे की याद दिलाती रहेंगी.’’ ‘‘कोई उपाय हो तो बताइए?’’ निशा ने विकल होते हुए कहा. ‘‘हां है कोई अपने शरीर की चमड़ी डोनेट करे तो…’’ नर्स को तभी दूसरे केस का बुलावा आ गया तो वह जल्दी से चली गई.

निशा को आज न केवल मां का कर्तव्य निभाना था बल्कि प्रभात की गैरमौजूदगी में उस के परिवार को सुरक्षित भी रखना था. वह सीधे डाक्टर के कैबिन में चली गई, जहां 2-3 डाक्टर बैठे केस स्टडी कर रहे थे. ‘‘क्या मेरी चमड़ी मेरे बेटे के काम आ सकती है?’’ सभी डाक्टर्स एकदूसरे की ओर देखने लगे. उन में से एक ने कहा, ‘‘बट मैम आप की स्किन खराब हो जाएगी.’’ ‘‘मेरा स्किन,’’ निशा के होंठ फड़फड़ाए. ‘जिसे उस का पति ही नहीं देखना चाहता वह रहे या बिगड़ जाए क्या फर्क पड़ता है,’ निशा ने मन ही मन सोचा. उस ने हाथ जोड़ कर विनती की, ‘‘यह पूरा शरीर निशांत का है जहां से, जिस हिस्से का स्किन चाहिए आप ले लीजिए लेकिन मेरे बच्चे की जिंदगी तबाह होने से बचा लीजिए.’’ ‘‘लेकिन मैडम इस के लिए हमें आप के पति की स्वीकृति चाहिए क्योंकि पत्नी का बिगड़ा हुआ शरीर अकसर पति देखना पसंद नहीं करते फिर उन की निजी जिंदगी…’’ ‘‘उस की चिंता आप न करें बस आप आगे की काररवाई करें जिस पेपर पर साइन करने के लिए कहेंगे मैं कर दूंगी,’’ निशा ने आंसुओं को आंचल से पोंछते हुए कहा.

सर्जरी शुरू की गई और सफल भी रही. बस निशा की जांघ वाला हिस्सा बीभत्स हो गया था. अलबत्ता निशांत के चेहरे पर अलग चमड़ी होने जैसा कोई निशान नहीं था. यह सभी के लिए खुशी की बात थी. प्रभात जब मीटिंग से फारिग हुआ तो 10 मिस्डकौल देख कर घबराया. प्रिंसिपल से आधीअधूरी जानकारी मिली. समय पर फोन न उठा पाने के कारण खुद को कोसता हुआ टूर कैंसल कर वापस आया और सीधा हौस्पिटल पहुंचा. निशांत को ऐसी हालत में देख कर वह कुछ देर के लिए सदमे में चला गया. उसे संध्या का चेहरा याद आ रहा था. ऐसे ही अस्पताल में वह भी उस दिन पड़ी थी और फिर वह सब को छोड़ कर चली गई थी.

आज निशांत को इस हालत में देख कर खुद को संभाल नहीं पा रहा था. वह रोए जा रहा था. नर्स ने डाक्टर द्वारा बुलाए जाने का संदेश दिया तो वह आंसू पोंछता हुआ डाक्टर के पास पहुंचा. नमनजी, यह वक्त रोने का नहीं है आप की पत्नी ने आप के बेटे को नई जिंदगी दे दी है. आज अगर वे समय पर अपना स्किन डोनेट नहीं करतीं तो शायद कुछ भी हो सकता था. डाक्टर ने कहा. यह सुन प्रभात के चेहरे पर कई तरह के भाव आतेआते रहे. ‘‘ सुना है वह…’’ ‘‘ जी आप ने सही सुना है, आज तक मैं उस से नफरत ही करता आया हूं,’’ प्रभात की सिसकी अब तक जोर पकड़ चुकी थी.

मन अब केवल निशा के आगे घुटने टेकने का कर रहा था, जिस ने निशा को ढंग से देखा तक नहीं था आज उस के हृदय में उस के लिए श्रद्धा के भाव उमड़ रहे थे. ‘‘मैं अपनी पत्नी से मिल सकता हूं?’’ ‘‘बिलकुल आप अपनी पत्नी और बच्चे दोनों से मिल सकते हैं,’’ डाक्टर ने कहा. निशा के पास पहुंच प्रभात ने उस के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया, ‘‘निशा, मैं निशांत को खोना नहीं चाहता. उस की मां को एक बार खो चुका हूं उस की निशानी के नाम पर मेरे पास सिर्फ उस की यादें हैं और निशांत है. मैं इस के बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगा. तुम ने जो कुछ भी किया…’’ कहतेकहते प्रभात की आंखें नम हो गईं. निशा ने हक से अपने हाथ प्रभात के होंठों पर रख दिए.

आंसू तो उस की आंखों में भी थे पर वे खुशी के थे. कुछ दिनों के बाद निशांत को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. उस का चेहरा पहले जैसा हो चुका था. उस दिन प्रभात पहले घर आ गया था. ड्राइवर से उस ने निशांत और निशा को पीछे से ले कर आने का आदेश दे दिया था. प्रभात ने कुमकुम थाल सजाया, दरवाजे पर चावलों से भरा कलश रखा. निशा ने जब इन तैयारियों को देखा तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह मुसकराए या नवेली दुलहन की तरह शरमाए. पर इन सब भावनाओं के बीच वह कमरा कहीं न कहीं खटक रहा था जिस में अभी भी संध्या का बड़ा सा फोटो लगा था.

वह वहां से उसे हटा कर अपनी सासूमां का वादा पूरा करना चाहती थी. वह सभी से नजरें बचा कर यह काम करना चाहती थी. इसीलिए जैसे ही उसे मौका मिला वह उस कमरे की तरफ चल पड़ी. दिल जोरजोर से धड़क रहा था जैसे कुछ चुराने जा रही हो. ‘कहीं प्रभात को बुरा लगा तो? लगता है तो लगे आखिर कब तक उस मृत आत्मा के साथ कोई जीएगा भला,’ मन ने सवालजवाब किया. तब तक उस के हाथ दरवाजे के हैंडल पर पड़ चुके थे. दरवाजा खुला, धड़कन तेज हो गई. आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था आश्चर्य का ठिकाना न रहा. ऐसा भी हो सकता है कभी सोचा न था. संध्या के फोटो की जगह निशा का फोटो लगा था. तब तक प्रभात भी कमरे में आ चुका था. आहट सुन कर मुड़ने ही वाली थी कि प्रभात ने उसे अपनी मजबूत बाहों से थाम लिया.

वह भी छुईमुई सी बन उस की बांहों में सिमट गई. ‘‘हम एक बार जन्म लेते हैं, एक बार मरते हैं और प्यार… मुझे तुम्हारी सूरत से नहीं सीरत से प्यार है निशा और तुम्हें?’’ प्रभात ने निशा की आंखों में आंखें डाल कर पूछा जिस में प्रभात का चेहरा साफ नजर आ रहा था. निशा भला क्या कहती. उस की आंखों ने खुशी के रस को उंड़ेल कर जवाब दे दिया था. सही माने में निशा और प्रभात का मिलन हो रहा था. पूर्व की दिशा में उगने वाले भोर के तारे ने इस बात की पुष्टि कर दी थी.

Family Kahani

Family Story: झांसी की रानी- सुप्रतीक ने अपनी बेटी से क्या कहा

Family Story: ‘‘पापा, आप हमेशा झांसी की रानी की तसवीर के साथ दादी का फोटो क्यों रखते हैं?’’ नवेली ने अपने पापा सुप्रतीक से पूछा था.

‘‘तुम्हारी दादी ने भी झांसी की रानी की तरह अपने हकों के लिए तलवार उठाई थी, इसलिए…’’ सुप्रतीक ने कहा. सुप्रतीक का ध्यान मां के फोटो पर ही रहा. चौड़ा सूना माथा, होंठों पर मुसकराहट और भरी हुई पनियल आंखें. मां की आंखों को उस ने हमेशा ऐसे ही डबडबाई हुई ही देखा था. ताउम्र, जो होंठों की मुसकान से हमेशा बेमेल लगती थी. एक बार सुप्रतीक ने देखा था मां की चमकती हुई काजल भरी आंखों को, तब वह 10 साल का रहा होगा. उस दिन वह जब स्कूल से लौटा, तो देखा कि मां अपनी नर्स वाली ड्रेस की जगह चमकती हुई लाल साड़ी पहने हुए थीं और उन के माथे पर थी लाल गोल बिंदी. मां को निहारने में उस ने ध्यान ही नहीं दिया कि कोई आया हुआ है.

‘सुप्रतीक देखो ये तुम्हारे पापा,’ मां ने कहा था.

‘पापा, मेरे पापा,’ कह कर सुप्रतीक ने उन की ओर देखा था. इतने स्मार्ट, सूटबूट पहने हुए उस के पापा. एक पल को उसे अपने सारे दोस्तों के पापा याद आ गए, जिन्हें देख वह कितना तरसा करता था.

‘मेरे पापा तो उन सब से कहीं ज्यादा स्मार्ट दिख रहे हैं…’ कुछ और सोच पाता कि पापा ने उसे बांहों में भींच लिया.

‘ओह, पापा की खुशबू ऐसी होती है…’

सुप्रतीक ने दीवार पर टंगे मांपापा के फोटो की तरफ देखा, जैसे बिना बिंदी मां का चेहरा कुछ और ही दिखता है, वैसे ही शायद मूंछें उगा कर पापा का चेहरा भी बदल गया है. मां जहां फोटो की तुलना में दुबली लगती थीं, वहीं पापा सेहतमंद दिख रहे थे. सुप्रतीक देख रहा था मां की चंचलता, चपलता और वह खिलखिलाहट. हमेशा शांत सी रहने वाली मां का यह रूप देख कर वह खुश हो गया था. कुछ पल को पापा की मौजूदगी भूल कर वह मां को देखने लगा. मां खाना लगाने लगीं. उन्होंने दरी बिछा कर 3 प्लेटें लगाईं.

‘सुधा, बेटे का क्या नाम रखा है?’ पापा ने पूछा था.‘सुप्रतीक,’ मां ने मुसकराते हुए कहा.

‘यानी अपने नाम ‘सु’ से मिला कर रखा है. मेरे नाम से कुछ नहीं जोड़ा?’ पापा हंसते हुए कह रहे थे.

‘हुं, सुधा और घनश्याम को मिला कर भला क्या नाम बनता?’ सुप्रतीक सोचने लगा.

‘आप यहां होते, तो हम मिल कर नाम सोचते घनश्याम,’ मां ने खाना लगाते हुए कहा था.

‘घनश्याम हा…हा…हा… कितने दिनों के बाद यह नाम सुना. वहां सब मुझे सैम के नाम से जानते हैं. अरे, तुम ने अरवी के पत्ते की सब्जी बनाई है. सालों हो गए हैं बिना खाए,’ पापा ने कहा था. सुप्रतीक ने देखा कि मां के होंठ ‘सैमसैम’ बुदबुदा रहे थे, मानो वे इस नाम की रिहर्सल कर रही हों. सुप्रतीक ने अब तक पापा को फोटो में ही देखा था. मां दिखाती थीं. 2-4 पुराने फोटो. वे बतातीं कि उस के पापा विदेश में रहते हैं. लेकिन कभी पापा की चिट्ठी नहीं आई और न ही वे खुद. फोनतो तब होते ही नहीं थे. मां को उस ने हमेशा बहुत मेहनत करते देखा था. एक अस्पताल में वे नर्स थीं, घरबाहर के सभी काम वे ही करती थीं. जिस दिन मां की रात की ड्यूटी नहीं होती थी, वह देखता कि मां देर रात तक खिड़की के पास खड़ी आसमान को देखती रहती थीं. सुप्रतीक को लगता कि मां शायद रोती भी रहती थीं. उस दिन खाना खाने के बाद देर तक वे तीनों बातें करते रहे थे. सुप्रतीक ने उस पल में मानो जमाने की खुशियां हासिल कर ली थीं. सुबह उठा, तो देखा कि पापा नहीं थे.

‘मां, पापा किधर हैं?’ सुप्रतीक ने हैरानी से पूछा था.

‘तुम्हारे पापा रात में ही होटल चले गए, जहां वे ठहरे हैं.’ मां का चेहरा उतरा हुआ लग रहा था. माथे की लकीरें गहरी दिख रही थीं. आंखों में काजल की जगह फिर पानी था. थोड़ी देर में फिर पापा आ गए, वैसे ही खुशबू से सराबोर और फ्रैश. आते ही उन्होंने सुप्रतीक को सीने से लगा लिया. आज उस ने भी कस कर भींच लिया था उन्हें, कहीं फिर न चले जाएं.

‘पापा, अब आप भी हमारे साथ रहिएगा,’ सुप्रतीक ने कहा था.

‘मैं तुम्हें अपने साथ अमेरिका ले जाऊंगा. हवाईजहाज से. वहीं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा. बड़ा आदमी बनाऊंगा…’ पापा बोल रहे थे. सुप्रतीक उस सुख के बारे में सोचसोच कर खुश हुआ जा रहा था.

‘पर, तुम्हारी मम्मी नहीं जा पाएंगी, वे यहीं रहेंगी. तुम्हारी एक मां वहां पहले से हैं, नैंसी… वे होटल में तुम्हारा इंतजार कर रही हैं,’ पापा को ऐसा बोलते सुन सुप्रतीक जल्दी से हट कर सुधा से सट कर खड़ा हो गया था.

‘मैं कल से ही तुम्हारे आने की वजह समझने की कोशिश कर रही थी. एक पल को मैं सच भी समझने लगी थी कि तुम सुबह के भूले शाम को घर लौटे हो. जब तुम्हारी पत्नी है, तो बच्चे भी होंगे. फिर क्यों मेरे बच्चे को ले जाने की बात कर रहे हो?’ सुधा अब चिल्लाने लगी थी, ‘एक दिन अचानक तुम मुझे छोड़ कर चले गए थे, तब मैं पेट से थी. तुम्हें मालूम था न?

‘एक सुबह अचानक तुम ने मुझ से कहा था कि तुम शाम को अमेरिका जा रहे हो, तुम्हें पढ़ाई करनी है. शादी हुए बमुश्किल कुछ महीने हुए थे. तुम्हारी दहेज की मांग जुटाने में मेरे पिताजी रास्ते पर आ गए थे. लेकिन अमेरिका जाने के बाद तुम ने कभी मुझे चिट्ठी नहीं लिखी. ‘मैं कितना भटकी, कहांकहां नहीं गई कि तुम्हारे बारे में जान सकूं. तुम्हारे परिवार वालों ने मुझे ही गुनाहगार ठहराया. अब क्यों लौटे हो?’ मां अब हांफ रही थीं. सुप्रतीक ने देखा कि पापा घुटनों के बल बैठ कर सिर झुकाए बोलने लगे थे, ‘सुधा, मैं तुम्हारा गुनाहगार हो सकता हूं. सच बात यह है कि मुझे अमेरिका जाने के लिए बहुत सारे रुपयों की जरूरत थी और इसी की खातिर मैं ने शादी की. तुम मुझे जरा भी पसंद नहीं थीं. उस शादी को मैं ने कभी दिल से स्वीकार ही नहीं किया. ‘बाद में मैं ने नैंसी से शादी की और अब तो मैं वहीं का नागरिक हो गया हूं. लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद हम मांबाप नहीं बन सके. यह तो मेरा ही खून है. मुझे मेरा बेटा दे दो सुधा…’

अचानक काफी बेचैन लगने लगे थे पापा. ‘देख रहा हूं कि तुम इसे क्या सुख दे रही हो… सीधेसीधे मेरा बेटा मेरे हवाले करो, वरना मुझे उंगली टेढ़ी करनी भी आती है.’ सुप्रतीक देख रहा था उन के बदलते तेवर और गुस्से को. वह सुधा से और चिपट गया. तभी उस के पापा पूरी ताकत से उसे सुधा से अलग कर खींचने लगे. उस की पकड़ ढीली पड़ गई और उस के पापा उसे खींच कर घर से बाहर ले जाने लगे कि अचानक मां रसोई वाली बड़ी सी छुरी हाथ में लिए दौड़ती हुई आईं और पागलों की तरह पापा पर वार करने लगीं. पापा के हाथ से खून की धार निकलने लगी, पर उन्होंने अभी भी सुप्रतीक का हाथ नहीं छोड़ा था. चीखपुकार सुन कर अड़ोसपड़ोस से लोग जुटने लगे थे. किसी ने इस आदमी को देखा नहीं था. लोग गोलबंद होने लगे, पापा की पकड़ जैसे ही ढीली हुई, सुप्रतीक दौड़ कर सुधा से लिपट गया. लाल साड़ी में मां वाकई झांसी की रानी ही लग रही थीं. लाललाल आंखें, गुस्से से फुफकारती सी, बिखरे बाल और मुट्ठी में चाकू. सुप्रतीक ने देखा कि सड़क के उस पार रुकी टैक्सी में एक गोरी सी औरत उस के पापा को सहारा देते हुए बिठा रही थी.

‘‘नवेली, तुम्हारी दादी बहुत बहादुर और हिम्मत वाली थीं,’’ सुप्रतीक ने अपनी बेटी से कहा. सुप्रतीक की निगाहें फिर से मां के फोटो पर टिक गई थीं.

Family Story

Short Story in Hindi: रावण अब भी जिंदा है

Short Story in Hindi: मीना सड़क पर आ कर आटोरिकशे का इंतजार करने लगी, मगर आटोरिकशा नहीं आया. वह अकेली ही बूआ के यहां गीतसंगीत के प्रोग्राम में गाने आई थी. तब बूआ ने भी कहा था, ‘अकेली मत जा. किसी को साथ ले जा.’

मीना ने कहा था, ‘क्यों तकलीफ दूं किसी को? मैं खुद ही आटोरिकशे में बैठ कर चली जाऊंगी?’ मीना को तो अकेले सफर करने का जुनून था. यहां आने से पहले उस ने राहुल से भी यही कहा था, ‘मैं बूआ के यहां गीत गाने जा रही हूं.’

‘चलो, मैं छोड़ आता हूं.’

‘नहीं, मैं चली जाऊंगी,’ मीना ने अनमने मन से कह कर टाल दिया था.

तब राहुल बोला था, ‘जमाना बड़ा खराब है. अकेली औरत का बाहर जाना खतरे से खाली नहीं है.’

‘आप तो बेवजह की चिंता पाल रहे हैं. मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूं, जो कोई रावण मुझे उठा कर ले जाएगा.’

‘यह तुम नहीं तुम्हारा अहम बोल रहा है,’ समझाते हुए एक बार फिर राहुल बोला था, ‘जब से दिल्ली में चलती बस में निर्भया के साथ…’

‘इस दुनिया में कितनी औरतें ऐसी हैं, जो अकेले ही नौकरी कर रही हैं…’ बीच में ही बात काटते हुए मीना बोली थी, ‘मैं तो बस गीत गा कर वापस आ जाऊंगी.’

यहां से उस की बूआ का घर 3 किलोमीटर दूर है. वह आटोरिकशे में बैठ कर बूआ के यहां पहुंच गई थी. वहां जा कर राहुल को फोन कर दिया था कि वह बूआ के यहां पहुंच गई है. फिर वह बूआ के परिवार में ही खो गई. मगर अब रात को सड़क पर आ कर आटोरिकशे का इंतजार करना उसे महंगा पड़ने लगा था.

जैसेजैसे रात गहराती जा रही थी, सन्नाटा पसरता जा रहा था. इक्कादुक्का आदमी उसे अजीब सी निगाह डाल कर गुजर रहे थे. जितने भी आटोरिकशे वाले गुजरे, वे सब भरे हुए थे. जब कोई औरत किसी स्कूटर के पीछे मर्द के सहारे बैठी दिखती थी, तब मीना भी यादों में खो जाती थी. वह इसी तरह राहुल के स्कूटर पर कई बार पीछे बैठ चुकी थी.

आटोरिकशा तो अभी भी नहीं आया था. रात का सन्नाटा उसे डरा रहा था. क्या राहुल को यहां बुला ले? अगर वह बुला लेगी, तब उस की हार होगी. वह साबित करना चाहती थी कि औरत अकेली भी घूम सकती है, इसलिए उस ने राहुल को फोन नहीं किया.

इतने में एक सवारी टैंपो वहां आया. वह खचाखच भरा हुआ था. टैंपो वाला उसे बैठने का इशारा कर रहा था. मीना ने कहा, ‘‘कहां बैठूंगी भैया?’’

वह मुसकराता हुआ चला गया. तब वह दूसरे टैंपों का इंतजार करने लगी, मगर काफी देर तक टैंपो नहीं आया. तभी एक शख्स उस के पास आ कर बोला, ‘‘चलोगी मेरे साथ?’’

‘‘कहां?’’ मीना ने पूछा.

‘‘उस खंडहर के पास. कितने पैसे लोगी?’’ उस आदमी ने जब यह कहा, तब उसे समझते देर न लगी. वह आदमी उसे धंधे वाली समझ रहा था. वह भी एक धंधे वाली औरत बन कर बोली, ‘‘कितना पैसा दोगे?’’ वह आदमी कुछ न बोला. सोचने लगा. तब मीना फिर बोली, ‘‘जेब में कितना माल है?’’

‘‘बस, 50 रुपए.’’

‘‘जेब में पैसा नहीं है और आ गया… सुन, मैं वह औरत नहीं हूं, जो तू समझ रहा है,’’ मीना ने कहा.

‘‘तब यहां क्यों खड़ी है?’’

‘‘भागता है कि नहीं… नहीं तो चप्पल उतार कर सारा नशा उतार दूंगी तेरा,’’ मीना की इस बात को सुन कर वह आदमी चलता बना.

अब मीना ने ठान लिया था कि वह खाली आटोरिकशे में नहीं बैठेगी, क्योंकि उस ड्राइवर में अकेली औरत को देख कर न जाने कब रावण जिंदा हो जाए?

‘‘कहां चलना है मैडम?’’ एक आटोरिकशा वाला उस के पास आ कर बोला. जब मीना ने देखा कि उस की आंखों में वासना है, तब वह समझ गई कि इस की नीयत साफ नहीं है.

वह बोली, ‘‘कहीं नहीं.’’

‘‘मैडम, अब कोई टैंपो मिलने वाला नहीं है…’’ वह लार टपकाते हुए बोला, ‘‘आप को कहां चलना है? मैं छोड़ आता हूं.’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना है,’’ वह उसे झिड़कते हुए बोली.

‘‘जैसी आप की मरजी,’’ इतना कह कर वह आगे बढ़ गया.

मीना ने राहत की सांस ली. शायद आटोरिकशे वाला सही कह रहा था कि अब कोई टैंपो नहीं मिलने वाला है. अगर वह मिलेगा, तो भरा हुआ मिलेगा. मगर अब कितना भी भरा हुआ टैंपो आए, वह उस में लद जाएगी. वह लोगों की निगाह में बाजारू औरत नहीं बनना चाहती थी.

मीना को फिल्मों के वे सीन याद आए, जब हीरोइन को अकेले पा कर गुंडे उठा कर ले जाते हैं, मगर न जाने कहां से हीरो आ जाता है और हीरोइन को बचा लेता है. मगर यहां किसी ने उस का अपहरण कर लिया, तब उसे बचाने के लिए कोई हीरो नहीं आएगा.

मीना आएदिन अखबारों में पढ़ती रहती थी कि किसी औरत के साथ यह हुआ, वह हुआ, वह यहां ज्यादा देर खड़ी रहेगी, तब उसे लोग गलत समझेंगे.

तभी मीना ने देखा कि 3-4 नौजवान हंसते हुए उस की ओर आ रहे थे. उन्हें देख वह सिहर गई. अब वह क्या करेगी? खतरा अपने ऊपर मंडराता देख कर वह कांप उठी. वे लोग पास आ कर उस के आसपास खड़े हो गए. उन में से एक बोला, ‘यहां क्यों खड़ी है?’’

दूसरे आदमी ने जवाब दिया, ‘‘उस्ताद, ग्राहक ढूंढ़ रही है.’’

तीसरा शख्स बोला, ‘‘मिला कोई ग्राहक?’’

पहले वाला बोला, ‘‘अरे, कोई ग्राहक नहीं मिला, तो हमारे साथ चल.’’

मीना ने उस अकेले शख्स से तो मजाक कर के भगा दिया था, मगर यहां 3-3 जिंदा रावण उस के सामने खड़े थे. उन्हें कैसे भगाए?

वे तीनों ठहाके लगा कर हंस रहे थे, मगर तभी पुलिस की गाड़ी सायरन बजाती हुई आती दिखी.

एक बोला, ‘‘चलो उस्ताद, पुलिस आ रही है.’’

वे तीनों वहां से भाग गए. मगर मीना इन पुलिस वालों से कैसे बचेगी? पुलिस की जीप उस के पास आ कर खड़ी हो गई. उन में से एक पुलिस वाला उतरा और कड़क आवाज में बोला, ‘‘इतनी रात को सड़क पर क्यों खड़ी है?’’

‘‘टैंपो का इंतजार कर रही हूं,’’ मीना सहमते हुए बोली.

‘‘अब रात को 11 बजे टैंपो नहीं मिलेगा. कहां जाना है?’’

‘‘सर, सांवरिया कालोनी.’’

‘‘झूठ तो नहीं बोल रही है?’’

‘‘नहीं सर, मैं झूठ नहीं बोलती,’’ मीना ने एक बार फिर सफाई दी.

‘‘मैं अच्छी तरह जानता हूं तुम जैसी धंधा करने वाली औरतों को…’’ पुलिस वाला जरा अकड़ कर बोला, ‘‘अब जब पकड़ी गई हो, तो सती सावित्री बन रही हो. बता, वे तीनों लोग कौन थे?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम सर.’’

‘‘झूठ बोलते शर्म नहीं आती तुझे,’’ पुलिस वाला फिर गरजा.

‘‘मैं सच कह रही हूं सर. वह तीनों कौन थे, मुझे कुछ नहीं मालूम. मुझे अकेली देख कर वे तीनों आए थे. मैं वैसी औरत नहीं हूं, जो आप समझ रहे हैं,’’ मीना ने अपनी सफाई दी.

‘‘चल थाने, वहां सब असलियत का पता चल जाएगा. चल बैठ जीप में… सुना कि नहीं?’’

‘‘सर, मुझे मत ले चलो. मैं घरेलू औरत हूं.’’

‘‘अरे, तू घरगृहस्थी वाली औरत है, तो रात के 11 बजे यहां क्या कर रही है? ठीक है, बता, तेरा पति कहां है?’’

‘‘सर, वे तो घर में हैं.’’

‘‘मतलब, वही हुआ न… तू धंधा करने के लिए रात को अकेली निकली है और अपने पति की आंखों में धूल झोंक रही है. तेरा झूठ यहीं पकड़ा गया…

‘‘अच्छा, अब बता कि तू कहां से आ रही है?’’

‘‘बूआ के यहां गीतसंगीत के प्रोग्राम में आई थी सर. वहीं देर हो गई.’’

‘‘फिर झूठ बोल रही है. बैठ जीप में,’’ पुलिस वाला अब तक उस पर शिकंजा कस चुका था.

‘‘ठीक है सर, अगर आप को यकीन नहीं हो रहा है, तो मैं उन्हें फोन कर के बुलाती हूं, ताकि आप को असलियत का पता चल जाए,’’ कह कर वह पर्स में से मोबाइल फोन निकालने लगी.

तभी पुलिस वाला दहाड़ा, ‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है. मुझे मालूम है कि तू अपने पति को बुला कर उस के सामने अपने को सतीसावित्री साबित करना चाहेगी. सीधेसीधे क्यों नहीं कह देती है कि तू धंधा करती है.’’

मीना की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था कि तभी अचानक राहुल उसे गाड़ी से आता दिखाई दिया. उस ने आवाज लगाई, ‘‘राहुल… राहुल.’’

राहुल पास आ कर बोला, ‘‘अरे मीना, तुम यहां…’’

अचानक उस की नजर जब पुलिस पर पड़ी, तब वह हैरानी से आंखें फाड़ते हुए देखता रहा. पुलिस वाला उसे देख कर गरजा, ‘‘तुम कौन हो?’’

‘‘मैं इस का पति हूं.’’

‘‘तुझे झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती,’’ पुलिस वाला अपनी वरदी का रोब दिखाते हुए बोला, ‘‘तुम दोनों मुझे बेवकूफ बना रहे हो. अपनी पत्नी से धंधा कराते हुए तुझे शर्म नहीं आती. चल थाने में जब डंडे पड़ेंगे, तब भूल जाएगा अपनी पत्नी से धंधा कराना.’’

यह सुन कर राहुल हाथ जोड़ता हुआ बोला, ‘‘आप यकीन रखिए सर, यह मेरी पत्नी है, बूआ के यहां गीत गाने अकेली गई थी. लौटने में जब देर हो गई, तब बूआ ने बताया कि यह तो घंटेभर पहले ही निकल चुकी है.

‘‘जब यह घर न पहुंची, तब मैं इसे ढूंढ़ने के लिए निकला. अगर आप को यकीन न हो, तो मैं बूआ को यहीं बुला लेता हूं.’’

‘‘ठीक है, ठीक है. तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो,’’ पुलिस वाले ने जरा नरम पड़ते हुए कहा.

‘‘अकेली औरत को देर रात को बाहर नहीं भेजना चाहिए,’’ पुलिस वाले को जैसे अब यकीन हो गया था, इसलिए अपने तेवर ठंडे करते हुए वह बोला, ‘‘यह तो मैं समय पर आ गया, वरना वे तीनों गुंडे आप की पत्नी की न जाने क्या हालत करते. फिर आप लोग पुलिस वालों को बदनाम करते.’’

‘‘गलती हमारी है. आगे से मैं ध्यान रखूंगा,’’ राहुल ने हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुए कहा.

पुलिस की गाड़ी वहां से चली गई. मीना नीचे गरदन कर के खड़ी रही. राहुल बोला, ‘‘देख लिया अकेले आने का नतीजा.’’

‘‘राहुल, मुझे शर्मिंदा मत करो. रावण तो एक था, मगर इस 2 घंटे के समय में मुझे लगा कि आज भी कई रावण जिंदा हैं.

‘‘अगर आप नहीं आते, तो वह पुलिस वाला मुझे थाने में बैठा देता,’’ कह कर मीना ने मन को हलका कर लिया.

‘‘तो बैठो गाड़ी में…’’ गुस्से से राहुल ने कहा, ‘‘बड़ी लक्ष्मीबाई बनने चली थी.’’ मीना नजरें झुकाए चुपचाप गाड़ी में जा कर बैठ गई.

Short Story in Hindi

Crime Story: दरिंदे- बलात्कार के आरोप में क्यों नहीं मिली राजेश को सजा

crime story: वह अपना सिर घुटनों में छिपा कर बैठी थी लेकिन रहरह कर एक जोर का कहकहा लगता और सारी मेहनत बेकार हो जाती. पास बैठा सोनाली का पति सुरेंद्र भरी आवाज में उसे दिलासा देने में जुटा था, ‘‘ऐसे हिम्मत मत हारो… ठंडे दिमाग से सोचेंगे कि आगे क्या करना है.’’ सुरेंद्र के बहते आंसू सोनाली की साड़ी और चादर पर आसरा पा रहे थे. बच्चों को दूसरे कमरे में टैलीविजन देखने के लिए कह दिया गया था. 6 साल का विकी तो अपनी धुन में मगन था लेकिन 10 साल का गुड्डू बहुतकुछ समझने की कोशिश कर रहा था. विकी बीचबीच में उसे टोक देता मगर वह किसी समझदार की तरह उसे कोई नया चैनल दिखा कर बहलाने लगता था.

2 साल पहले तक सोनाली की जिंदगी में सबकुछ अच्छा चल रहा था. पति की साधारण सरकारी नौकरी थी, पर उन के छोटेछोटे सपनों को पूरा करने में कभी कोई अड़चन नहीं आई थी. पुराना पुश्तैनी घर भी प्यार की गुनगुनाहट से महलों जैसा लगता था. बूढ़े सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने सोनाली को मांबाप की कमी कभी महसूस नहीं होने दी थी. एक दिन सुरेंद्र औफिस से अचानक घबराया हुआ लौटा और कहने लगा था, ‘कोई नया मंत्री आया है और उस ने तबादलों की झड़ी लगा दी है. मुझे भी दूसरे जिले में भेज दिया गया है.’ ‘क्या…’ सोनाली का दिल धक से रह गया था.

2 घंटे तक अपने परिवार से दूर रहने से घबराने वाला सुरेंद्र अब 2 हफ्ते में एक बार घर आ पाता था. बच्चे भी बहुत उदास हुए, लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता. मनचाही जगह पर पोस्टिंग मिल तो जाती, मगर उस की कीमत उन की पहुंच से बाहर थी. हार कर सोनाली ने खुद को किसी तरह समझा लिया था. वीडियो काल, चैटिंग के सहारे उन का मेलजोल बना रहता था. जब भी सुरेंद्र घर आता था, सोनाली को रात छोटी लगने लगती थी. सुरेंद्र की बांहों में भिंच कर वह प्यार का इतना रस निचोड़ लेने की कोशिश करती थी कि उन का दोबारा मिलन होने तक उसे बचाए रख सके. उस के दिल की इस तड़प को समझ कर निंदिया रानी तो उन्हें रोकटोक करने आती नहीं थी.

बिस्तर से ले कर जमीन तक बिखरे दोनों के कपड़े भी सुबह होने के बाद ही उन को आवाज देते थे. जिंदगी की गाड़ी चलती रही, लेकिन अपनी दुनिया में मगन रहने वाली सोनाली एक बड़े खतरे से अनजान थी. उस खतरे का नाम राजेश सिंह था जो ठीक उन के पड़ोस में रहता था. शरीर से बेहद लंबेतगड़े राजेश को न अपनी 55 पार कर चुकी उम्र का कोई लिहाज था और न ही गांव के रिश्ते से कहे जाने वाले ‘चाचा’ शब्द का. उस की गंदी नजरें खूबसूरत बदन की मालकिन सोनाली पर गड़ चुकी थीं.

दबंग राजेश सिंह हत्या, देह धंधा जैसे अनेक मामलों में फंस कर कई बार जेल जा चुका था लेकिन हमेशा किसी न किसी से पैरवी करा कर बाहर आ जाता था. सुरेंद्र का साधारण समुदाय से होना भी राजेश सिंह की हिम्मत बढ़ाता था. राजेश सिंह का कोई तय काम नहीं था. बेटों की मेहनत पर खेतों से आने वाला अनाज खा कर पड़े रहना और चुनाव के समय अपनी जाति के नेताओं के पक्ष में इधर से उधर दलाली करना उस का पेशा था. हालांकि बेटे भी कोई दूध के धुले नहीं थे. बाकी सारा समय अपने दरवाजे पर किसीकिसी के साथ बैठ कर यहांवहां की गप हांकना राजेश सिंह की आदत थी. सोनाली बाहर कम ही निकलती थी, लेकिन जब भी जाती और राजेश सिंह को पता चल जाता तो घर से निकलने से ले कर वापस लौटने तक वह उस को ही ताकता रहता.

उस के उभारों और खुले हिस्सों को तो वह ऐसे देखता जैसे अभी खा जाएगा. एक दिन सोनाली जब आटोरिकशा पर चढ़ रही थी तो उस की साड़ी के उठे भाग के नीचे दिख रही पिंडलियों को घूरने की धुन में राजेश सिंह अपने दरवाजे पर ठोकर खा कर गिरतेगिरते बचा. उस के साथ बैठे लोग जोर से हंस पड़े. सोनाली ने घूम कर उन की हंसी देखी भी, पर उन की भावना नहीं समझ पाई. आखिर वह दिन भी आया जिस ने सोनाली का सबकुछ छीन लिया. उस के सासससुर किसी संबंधी के यहां गए हुए थे और छोटा बेटा विकी नानी के घर था. बड़ा बेटा गुड्डू स्कूल में था.

बाहर हो रही तेज बारिश की वजह से मोबाइल नैटवर्क भी खराब चल रहा था जिस के चलते सोनाली और सुरेंद्र की ठीक से बात नहीं हो पा रही थी. ऊब कर उस ने मोबाइल फोन बिस्तर पर रखा और नहाने चली गई. सोनाली ने दोपहर के भोजन के लिए दालचावल चूल्हे पर पहले ही चढ़ा दिए थे और नहाने के बीच में कुकर की सीटियां भी गिन रही थी. हमेशा की तरह उस का नहाना पूरा होतेहोते कुकर ने अपना काम कर लिया. सोनाली ने जल्दीजल्दी अपने बालों और बदन पर तौलिए लपेटे और बैडरूम में भागी आई. बालों को झटपट पोंछ कर उस ने बिस्तर पर रखे नए सूखे कपड़े पहनने के लिए जैसे ही अपने शरीर पर बंधा तौलिया हटाया कि अचानक 2 मजबूत हाथों ने उसे पीछे से दबोच लिया.

अचानक हुए इस हमले से बौखलाई सोनाली ने पीछे मुड़ कर देखा तो हमलावर राजेश सिंह था जो छत के रास्ते उस के घर में घुस आया था और कमरे में पलंग के नीचे छिप कर उस का ही इंतजार कर रहा था. उस के मुंह से शराब की तेज गंध भी आ रही थी. सोनाली चीखती, इस से पहले ही किसी दूसरे आदमी ने उस का मुंह भी दबा दिया. वह जितना पहचान पाई उस के मुताबिक वह राजेश सिंह का खास साथी भूरा था और उम्र में राजेश सिंह के ही बराबर था.

सोनाली के कुछ सोचने से पहले ही वे दोनों उसे पलंग पर लिटा कर वहां रखी उस की ही साड़ी के टुकड़े कर उसे बांध चुके थे. सोनाली के मुंह पर भूरा ने अपना गमछा लपेट दिया था. इस के बाद राजेश सिंह ने पहले तो कुछ देर तक अपनी फटीफटी आंखों से सोनाली के जिस्म को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उस के ऊपर झुकता चला गया.

काफी देर बाद हांफता हुआ राजेश सिंह सोनाली के ऊपर से उठा. भयंकर दर्द से जूझती, पसीने से तरबतर सोनाली सांयसांय चल रहे सीलिंग फैन को नम आंखों से देख रही थी. टैलीविजन पर रखा सोनाली, सुरेंद्र और बच्चों का ग्रुप फोटो गिर कर टूट चुका था. रसोईघर में चूल्हे पर चढ़े दालचावल सोनाली के सपनों की तरह जल कर धुआं दे रहे थे. इस के बाद भूरा बेशर्मी से हंसता हुआ अपनी हवस मिटाने के लिए बढ़ा. राजेश सिंह बिस्तर पर पड़े सोनाली के पेटीकोट से अपना पसीना पोंछ रहा था. भूरा ने अपने हाथ सोनाली के कूल्हों पर रखे ही थे कि तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई. राजेश सिंह ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो गुड्डू की स्कूल वैन का ड्राइवर उसे साथ ले कर खड़ा था. राजेश सिंह ने जल्दी से भूरा को हटने का इशारा किया.

वह झल्लाया चेहरा लिए उठा और अपने कपड़े ठीक करने लगा. ‘तुम ने बहुत ज्यादा समय ले ही लिया इस के साथ, नहीं तो हम को भी मौका मिल जाता न,’ भूरा भुनभुनाया. लेकिन राजेश सिंह ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और जैसेतैसे अपने कपड़े पहन कर जिधर से आया था, उधर से ही भाग गया. जब दरवाजा नहीं खुला तो गुड्डू के कहने पर ड्राइवर ने ऊपर से हाथ घुसा कर कुंडी खोली. घुसते ही अंदर के कमरे का सब नजारा दिखता था. ड्राइवर के तो होश उड़ गए. उस ने शोर मचा दिया. सुरेंद्र आननफानन आया. सोनाली के बयान पर राजेश सिंह और भूरा पर केस दर्ज हुए.

दोनों की गिरफ्तारी भी हुई लेकिन राजेश सिंह ने अपनी पहचान के नेता से बयान दिलवा लिया कि घटना वाले दिन वह और भूरा उस के साथ मीटिंग में थे. मैडिकल जांच पर भी सवाल खड़े कर दिए गए. कुछ समाचार चैनलों और स्थानीय महिला संगठनों ने थोड़े दिनों तक अपनीअपनी पब्लिसिटी के लिए प्रदर्शन जरूर किए, बाद में अचानक शांत पड़ते गए. सालभर होतेहोते राजेश सिंह और भूरा दोनों बाइज्जत बरी हो कर निकल आए. ऊपरी अदालत में जाने लायक माली हालत सुरेंद्र की थी नहीं.

आज राजेश सिंह के घर पर हो रही पार्टी सुरेंद्र और सोनाली के घावों पर रातभर नमक छिड़कती रही. इस के बाद राजेश सिंह और भी छुट्टा सांड़ हो गया. छत पर जब भी सोनाली से नजरें मिलतीं, वह गंदे इशारे कर देता. इस सदमे से सोनाली के सासससुर भी बीमार रहने लगे थे. राजेश सिंह के छूट जाने से सोनाली के मन में भरा डर अब और बढ़ने लगा था.

रातों को अपने निजी अंगों पर सुरेंद्र का हाथ पा कर भी वह बुरी तरह से चौंक कर जाग उठती थी. कई बार सोनाली के मन में खुदकुशी का विचार आया, लेकिन अपने पति और बच्चों का चेहरा उसे यह गलत कदम उठाने नहीं देता था. दिन बीतते गए. गुड्डू का जन्मदिन आ गया. केवल उस की खुशी के लिए सोनाली पूरे परिवार के साथ होटल चलने को राजी हो गई. खाना खाने के बाद वे लोग काउंटर पर बिल भर रहे थे कि तभी सामने राजेश सिंह दिखाई दिया. सफेद कुरतापाजामा पहने हुए वह एक पान की दुकान की ओट में किसी से मोबाइल फोन पर बात कर रहा था. राजेश सिंह पर नजर पड़ते ही सोनाली के मन में उसी दिन का उस का हवस से भरा चेहरा घूमने लगा.

उस के द्वारा फोन पर कहे जा रहे शब्द उसे वही आवाज लग रहे थे जो उस की इज्जत लूटते समय वह अपने मुंह से निकाल रहा था. सोनाली का दिमाग तेजी से चलने लगा. उबलते गुस्से और डर को काबू में रख वह आज अचानक कोई फैसला ले चुकी थी. उस ने सुरेंद्र के कान में कुछ कहा. सुरेंद्र ने बच्चों से खाने की मेज पर ही बैठ कर इंतजार करने को बोला और होटल के दरवाजे के पास आ कर खड़ा हो गया. सोनाली ने आसपास देखा और राजेश सिंह के ठीक पीछे आ गई.

वह अपनी धुन में था इसलिए उसे कुछ पता नहीं चला. सोनाली ने अपने पेटीकोट की डोरी पहले ही थोड़ी ढीली कर ली थी. उस ने राजेश सिंह का दूसरा हाथ पकड़ा और अपने पेटीकोट में डाल लिया. राजेश सिंह ने चौंक कर सोनाली की तरफ देखा. वह कुछ समझ पाता, इस से पहले ही सोनाली उस का हाथ पकड़ेपकड़े रोते हुए चिल्लाने लगी,

‘‘अरे, यह क्या बदतमीजी है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसी घटिया हरकत करने की?’’ सोनाली के चिल्लाते ही सुरेंद्र होटल से भागाभागा वहां आया और उस ने राजेश सिंह पर मुक्कों की बरसात कर दी. वह मारतेमारते जोरजोर से बोल रहा था, ‘‘राह चलती औरत के पेटीकोट में हाथ डालेगा तू?’’ जिन लोगों ने राजेश सिंह का हाथ सोनाली के पेटीकोट में घुसा देख लिया था, वे भी आगबबूला हुए उधर दौड़े और उस को पीटने लगे. भीड़ जुटती देख सुरेंद्र ने अपने जूते के कई जोरदार वार राजेश सिंह के पेट और गुप्तांग पर कर दिए और मौका पा कर भीड़ से निकल गया.

जब तक कुछ लोग बीचबचाव करते, तब तक खून से लथपथ राजेश सिंह मर चुका था. जो सजा उसे बलात्कार के आरोप में मिलनी चाहिए थी, वह उसे छेड़खानी के आरोप ने दिलवा दी थी.

crime story

Shraddha Das: इस सीरिज में IMDb रैंक में शाहरुख सलमान को भी पीछे छोड़ा

Shraddha Das: अभिनेत्री श्रद्धा दास इस समय सफलता और ग्रेटिटूड की लहर पर सवार हैं. उनकी सीरीज़, ‘सर्च: द नैना मर्डर केस’ में उनके रोल ने उन्हें आधिकारिक IMDb की लोकप्रिय भारतीय हस्तियों की सूची में पर पहुंचा दिया है.

यह पैन इंडिया स्टार अब शाहरुख खान, सलमान खान, जान्हवी कपूर, कियारा आडवाणी और कोंकणा सेन शर्मा जैसी हस्तियों से आगे निकल गई हैं.

अपनी IMDb रैंक में इस नाटकीय उछाल के बारे में जानकर अभिनेत्री ने अपना आश्चर्य व्यक्त किया. दास ने कहा, “मुझे इस बारे में पता नहीं था जब तक कि मेरे एक दोस्त ने मुझे यह नहीं भेजा और 15 से 4 पर आने के कारण मैं बहुत अभिभूत और हैरान थी. सीरीज में ‘रक्षा’ का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री ने अपनी इस नई पहचान का श्रेय दर्शकों के प्यार को दिया. उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता था कि ‘सर्च: द नैना मर्डर केस’ सीरीज़ में मेरा रक्षा का किरदार मुझे दर्शकों से इतना प्यार दिलाएगा! मैं आभारी महसूस कर रही हूं! और सीरीज़ भी सुपरहिट है.

IMDb चार्ट्स पर एक सपना हुआ सच

इंडस्ट्री के कुछ सबसे बड़े नामों के साथ सूचीबद्ध होना अभिनेत्री के लिए एक बड़ी बात है, जिन्होंने मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय सिनेमा (तेलुगु, तमिल, मलयालम, और कन्नड़ फिल्मों) के साथ-साथ कुछ हिंदी और बंगाली प्रोजेक्ट्स में भी काम किया है.

अपने करियर को दर्शाते हुए श्रद्धा ने साझा किया, “मैं सालों से इन अभिनेताओं को देखती आई हूँ, और सिर्फ़ उसी सूची में होना ही मेरे लिए सम्मान की बात है.” श्रद्धाने आगे कहा, “लेकिन सूची में शीर्ष पर होना कल्पना से परे है. मैं लंबे समय से काम कर रही हूँ, लेकिन आखिरकार मुझे मेरा हक मिल रहा है.

जब उनसे लोकप्रियता में अचानक आए उछाल के संभावित कारण के बारे में पूछा गया, जो प्लेटफॉर्म पर सेलिब्रिटी प्रोफाइल के पेज व्यूज़ को मापता है, तो दास ने अनुमान लगाया कि इस सीरीज़ की पहुंच और अलग-अलग भाषाओं में किए गए उनके काम ने इसमें एक बड़ी भूमिका निभाई है.

क्षेत्रीय दर्शकों के प्रभाव को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, “हाँ, शायद यही कारण हो सकता है.” उन्होंने जोड़ा, “तेलुगु, कन्नड़ और बंगाली दर्शक भी इसे अपनी डब भाषाओं में ज़रूर देखे होंगे. लेकिन मुझे हिंदी दर्शकों से भी इतने सारे संदेश मिल रहे हैं. यहाँ तक कि फ्रांस और कनाडा के लोगों से भी!” उन्होंने शो की व्यापक अंतरराष्ट्रीय पहुँच को उजागर किया.

आभार व्यक्त करते हुए एक हार्दिक संदेश में, श्रद्धा दास ने अपने प्रशंसकों को उनके समर्थन और पहचान के लिए धन्यवाद दिया.

उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “मैं आपसे प्यार करती हूं! हर उस व्यक्ति को धन्यवाद, हर उस राज्य से जहाँ मैंने काम किया है और उन लोगों को भी जहाँ मैंने काम नहीं किया है! और मेरे काम को पहचानने के लिए धन्यवाद.

अभिनेत्री अपनी फ़िल्मों ‘आर्या 2’ और ‘दिल तो बच्चा है जी’ में अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं और उनकी वर्तमान रैंकिंग उनके काम की बढ़ती हुई वैश्विक और बहु-सांस्कृतिक अपील का प्रमाण है.

Shraddha Das

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें