Aamir Khan की ‘सितारे जमीन पर’ के सितारे गर्दिश में, ट्रेलर लांच के बाद ही फिल्म विवादों में

Aamir Khan : आमिर खान अपनी फिल्मों को लेकर जितने परफेक्शनिस्ट हैं ,उतना ही फिलहाल उनके एक्टिंग करियर का बेड़ा गर्क हो रखा है. 3 साल पहले हौलीवुड फिल्म की कौपी करके बनी फिल्म लाल सिंह चड्ढा जिसमें आमिर खान ने सरदार जी की भूमिका निभाई थी उसका बौक्स ऑफिस पर डब्बा गोल पहले ही हो गया था. उसके बाद आमिर खान अपनी तीसरी नंबर की प्रेमिका गौरी को लेकर तो कभी अन्य कई दिलचस्प बातों को लेकर हमेशा चर्चा में बने रहे, यहां तक कि उनके जन्मदिन पर पूरा एक हफ्ता उनकी फिल्मों का महोत्सव भी मनाया गया .

लेकिन 3 साल के बाद जब एक बार फिर आमिर खान अपनी नई फिल्म सितारे जमीन पर लेकर दर्शकों के सामने प्रस्तुत हुए तो शुरुआत में ही गड़बड़ शुरू हो गई. सबसे पहले तो पहलगाम अटैक के बाद सितारे जमीन का ट्रेलर सही समय पर रिलीज नहीं हो पाया क्योंकि शोक माहौल के चलते आमिर खान ने खुद ही टेलर रिलीज की डेट आगे बढ़ा दी.

आखिरकार जब ट्रेलर रिलीज हुआ तो सितारे जमीन पर के ऊपर विवादों की गाज गिर गई. जहां एक ओर उनकी लाल सिंह चड्ढा हौलीवुड फिल्म की नकल थी, वही एक बार फिर रिलीज होने वाली फिल्म सितारे जमीन पर हौलीवुड फिल्म चैंपियंस की कौपी बताया जा रहा है, खास बात तो यह है कि चैंपियंस फिल्म भी स्पेनिश फिल्म की कौपी थी. जिस वजह से फिल्म का ट्रेलर रिलीज होते ही ट्रोलर ने इससे हौलीवुड और स्पेनिश फिल्म की सस्ती नकल बताना शुरू कर दिया और कई दर्शकों द्वारा ट्रेलर नापसंद किया गया . तो कई आलोचको ने ट्रेलर देखकर ही फिल्म की बुराई शुरू कर दी , 2007 में तारे ज़मीन पर की सीक्वेल बनी फिल्म सितारे जमीन पर उस वक्त और विवादों में घिर गई.

जब हाल ही में पर आए भारत और पाकिस्तान युद्ध संकट के दौरान आमिर खान ने एक भी ट्वीट नहीं किया . इसके अलावा लोगों ने इस बात को भी विवाद का विषय बनाया कि आमिर खान 2020 में तुर्की गए थे और वहां पर फर्स्ट लेडी से मिले थे क्योंकि फिलहाल तुर्की और पाकिस्तान के रिश्ते अच्छे हैं इसलिए 2026 में इस पुरानी बात का मुद्दा बनाकर कुछ ट्रोलर फिल्म का बहिष्कार करने की धमकी दे रहे हैं . गौरतलब है सितारे जमीन पर की ट्रेलर रिलीज पर ये हालात है . तो 20 जून 2025 को जब फिल्म रिलीज होगी तो क्या आलम होगा. यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. आमिर खान के प्रशंसक सितारे जमीन पर के विवादों की वजह से दुखी तो जरूर हो गए होंगे.

Malai Kulfi Recipe : गर्मियों में लें मलाई कुल्फी का मजा, घर पर इस तरह करें तैयार

Malai Kulfi Recipe : आइसक्रीम एक ऐसी चीज है. जिसे खाने का मन कभी भी किसी भी समय हो जाता है. यह हर मौसम में सभी को पंसद आती है. आमतौर में गर्मी के मौसम में आइस क्रीम की ज्यादा डिमांड होती है. खासकर के बच्चों के बीच. वह बाहर गए नहीं कि आइसक्रीम की मांग शुरु कर देते है. आप चाहे तो आइसक्रीम की जगह घर पर मलाई कुल्फी बना सकते है. जो सेहतमंद होने के साथसाथ टेस्टी होती है. तो फिर देर किस बात की, दीजिए अपने बच्चों को घर पर ही स्पेशल मलाई कुल्फी की पार्टी.

सामग्री

2 कप दूध

आधा कप कंडेंस्ड मिल्क

एक चौथाई कप दूध पाउडर

आधा छोटा चम्मच इलायची

पिस्ता और बादाम के टुकड़े

तीन बड़े चम्मच चीनी (चाहे तो)

ऐसे बनाएं टेस्टी मलाई कुल्फी

– सबसे पहले एक बाउल लें. इसमें सभी सामग्री को डाल लें.

– गैस जलाकर धीमी आंच में 20-25 मिनट पकने दे. जब तक कि यह गाढ़ा न हो जाएं.

– इसे गैस से उतार कर ठंडा होने के लिए रख दें.

– इन्हें 4 अलग-अलग कुल्फी मोल्ड में डालकर फ्रीजर में 7-8 घंटे के लिए जमने के लिए रख दें.

– फ्रीज से मोल्ड को निकालकर कुछ देर के लिए रख दें.

– कुल्फी मोल्ड से निकालें और काटकर सर्व करें.

“Kiara Advani ने स्विमसूट लुक के लिए खूब मेहनत की” : अनाइता श्राफ फैशन स्टाइलिस्ट

Kiara Advani : ऋतिक रोशन अभिनित वार 2 का टीजर जैसे ही रिलीज हुआ, इंटरनेट पर बवाल मच गया. जहां एक ओर ऋतिक रोशन और जूनियर एनटीआर अपने दमदार एक्शन अवतार से फैंस का दिल जीत रहे थे, वहीं कियारा आडवाणी की एक झलक ने सोशल मीडिया पर आग लगा दी. कियारा ने टीजर में नियान लाइम ग्रीन बिकिनी में पूल के किनारे वाक करते हुए सबका ध्यान खींचा. उनका यह बोल्ड और ग्लैमरस लुक इंटरनेट पर वायरल हो गया.

भारत की शीर्ष फैशन स्टाइलिस्ट अनाइता श्राफ अदजानिया ने वार 2 में कियारा का यह लुक डिज़ाइन किया है. वे कहती हैं, “यह पहली बार था जब मैंने कियारा को किसी फिल्म के लिए स्टाइल किया, और ब्रीफ था—’हौट’. मैंने पहले भी कई फिल्मों में स्विमसूट स्टाइल किए हैं, लेकिन इस बार मैं चाहती थी कि यह लुक बिल्कुल नेचुरल और रिलैक्स्ड लगे, जैसे कोई लड़की समुद्र तट पर होती है, बिल्कुल आत्मविश्वास के साथ.”

अनाइता आगे बताती हैं, “शूटिंग के दौरान भी मैं कियारा से यही कहती रही, ‘अपने में रहो, कौन्फिडेंट रहो , किसी और के लिए नहीं’ कियारा ने अपने इस लुक पर काम किया , मेहनत की.’ यह लुक इसलिए काम करता है क्योंकि वह इसे सिर्फ निभा नहीं रही थीं, बल्कि जी रही थीं. कियारा के लुक में और भी सरप्राइज होंगे, ऐसा अनाइता ने इशारा किया. वे कहती हैं, “मैंने जानबूझकर एक असामान्य रंग चुना जो कि ना पूरी तरह हरा, ना पूरी तरह पीला, एक आकर्षक, अनोखा शेड जो तुरंत ध्यान खींचे.”

बिकिनी के डिज़ाइन पर बात करते हुए अनाइता बताती हैं, “कट बेहद सिंपल है, लेकिन सामने से देखने पर एक नया ट्विस्ट है. हमने पहली बार बिकिनी चार्म्स का प्रयोग किया है, जो सेंटर में लगे हैं. यह मिस्ट्री और मस्ती का सही बैलेंस बनाता है. और आखिर में वे कहती हैं, “उस धात्विक चमक (मेटालिक शीन) को कैसे भूल सकते हैं! यह हमें 70 के दशक के ग्लैमर की याद दिलाता है, लेकिन साथ ही आज की जेन Z के बोल्ड और फंकी स्टाइल का भी हिस्सा लगता है. ”

अनाइता के अनुसार, “कियारा ने इस लुक के लिए कड़ी मेहनत की. वह इसमें इतनी सहज थीं कि उन्हें यह सोचने की ज़रूरत ही नहीं थी कि कैसे घूमना है, क्या करना है, बस अपने शरीर में पूरी तरह आज़ाद है और जो शानदार बौडी आप स्क्रीन पर देख रहे हैं. वो पूरी तरह उनकी मेहनत का नतीजा है.
वार 2, वाईआरएफ स्पाय यूनिवर्स की छठी फिल्म है और 14 अगस्त, 2025 को हिंदी, तमिल और तेलुगु में दुनियाभर में रिलीज होगी. इसका निर्देशन अयान मुखर्जी ने किया है और निर्माण आदित्य चोपड़ा ने किया है.

Skin Care Tips : हाथों की झुर्रियों से कैसे छुटकारा पाएं?

Skin Care Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

घर में काम करते हुए पानी में हाथ बहुत देर तक रहते हैं और बहुत ड्राई हो जाते हैं. यहां तक कि उन पर  झुर्रियां दिखने लग जाती हैं. बताइए क्या करूं?

जवाब-

जब पानी में हाथ बहुत देर तक रहते हैं तो हाथों का मौइस्चर खत्म हो जाता है. ऐसे में उन्हें मौइस्चराइज करना बहुत जरूरी है. आप चाहें तो पानी में काम करते समय दस्तानों का इस्तेमाल कर सकती हैं. साथ ही जहांजहां पानी का काम करती हैं वहां एक मौइस्चराइजर की बोतल जरूर रखें. जब भी हाथ पानी से निकाले उन को सुखा कर मौइस्चराइजर जरूर लगा ले. हलकी मसाज करती रहें. इस से हाथ ड्राई नहीं होंगे और झुर्रियां भी नहीं आएंगी.

रात को हाथों को धो कर सुखा कर 1 चम्मच ग्लिसरीन में 1 चम्मच रोजवाटर और 5 बूंदें नीबू के मिला लें. इस को हाथों पर लगा कर मसाज करें. यह बहुत ही अच्छे मौइस्चराइजर का काम करेगा. ग्लिसरीन न हो तो शहद का इस्तेमाल किया जा सकता है. चाहें तो रोज ताजा ऐलोवेरा जैल भी लगाया जा सकता है. ऐलोवेरा जैल में कुछ बूंदें नीबू रस की मिलाने और हाथों पर मसाज करने से रंग गोरा भी होगा और हाथों का मौइस्चर भी बना रहेगा. झुर्रियां भी कम होंगी.

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हाथ दिन भर काम करते हैं. और बदले में हम उनको क्या देते हैं… लापरवाही भरी देखभाल. बस थोड़ी क्रीम लगाई और हो गया काम. जबकि सच यह है कि हाथों को देखभाल की उतनी जरूरत होती है, जितनी आपके चेहरे को.

सर्दियों में शरीर के बाकी अंगों की बजाय हाथ ज्यादा शुष्क रहते हैं. हाथों की त्वचा काफी पतली होती है और इसमें तैलीय ग्रथिंयां भी बहुत कम होती हैं.

गृहणियों के हाथ दैनिक दिनचर्या के दौरान बार-बार साबुन व डिटरजेंट के संपर्क में आते हैं, जिस वजह से हाथों की त्वचा को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है और वे रुखे हो जाते हैं.

नहाते समय हाथों पर तेल का प्रयोग करना चाहिए. नहाने के तुरंत बाद शरीर में बॉडी लोशन व क्रीम लगाने से शरीर में नमी बनी रहती है. हाथों की सुंदरता के लिए और सौंदर्य बनाए रखने के आप इन टिप्स को प्रयोग में ला सकती हैं.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Plus Size Model: बौडी शेमिंग को मुंहतोड़ जवाब देती नेहा पारुलकर

Plus Size Model: नेहा पारुलकर वर्तमान में एक ऐक्टिव प्लससाइज मौडल और बौडी पौजिटिविटी इन्फ्लुएंसर के रूप में काम कर रही हैं. नेहा का जन्म मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ. वे एक मिडिल क्लास परिवार से हैं. उन के परिवार ने शुरू में उन के कैरियर चौइस को ले कर संदेह जताया था. नेहा ने बचपन से ही अपने वजन और बौडी शेप को ले कर बौडी शेमिंग का सामना किया.

उन्हें सामाजिक दबाव और नैगेटिव कमैंट्स का सामना करना पड़ा, जिस ने उन के कौंफिडैंस को प्रभावित किया. फिर भी, उन्होंने धीरेधीरे सैल्फलव और कौंफिडैंस की जर्नी शुरू की.

फैशन और मौडलिंग के प्रति उन की रुचि ने उन्हें इस फील्ड में कैरियर बनाने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने मुंबई में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और संभवतया कालेज स्तर की पढ़ाई भी की. नेहा पारुलकर का कैरियर एक प्रेरणादायक कहानी है, जो दर्शाती है कि डिटरमिनेशन और कौंफिडैंस के साथ कोई भी अपने सपनों को साकार कर सकता है.

 

मौडलिंग की शुरुआत

नेहा ने भारत में पहली बार आयोजित प्लससाइज फैशन शो में हिस्सा लिया, जहां उन्होंने रैंप पर अपनी कौंफिडैंसभरी चाल से सभी का ध्यान खींचा. यह उन के मौडलिंग कैरियर की शुरुआत थी. उन्होंने 2016 के आसपास मौडलिंग शुरू की और 4 साल से अधिक समय तक रैंप पर चलीं.

नेहा भारत की एकमात्र प्लससाइज मौडल हैं जिन्होंने लैक्मे फैशन वीक में लगातार 4 बार रैंप वौक किया है. यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि लैक्मे फैशन वीक भारत का चर्चित फैशन इवैंट है. हालांकि, उन्होंने बताया कि प्लससाइज मौडल्स को लैक्मे फैशन वीक में पेमेंट नहीं किया जाता, क्योंकि आयोजक मानते हैं कि वे उन्हें मौका दे रहे हैं, जबकि नियमित मौडल्स को लाखों में भुगतान मिलता है.

बौडी पौजिटिविटी इन्फ्लुएंसर नेहा एक प्रभावशाली सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं, जो अपने इंस्टाग्राम और अन्य प्लेटफौर्म्स के जरिए बौडी पौजिटिविटी व सैल्फलव को बढ़ावा देती हैं. वे कहती हैं कि जब वे अपने शरीर को ले कर स्ट्रगल कर रही थीं तब उन्हें कोई रोल मौडल नहीं मिला. इसलिए, उन्होंने खुद दूसरों के लिए वह प्रेरणा बनने का फैसला किया.

उन की पोस्ट्स और मैसेज उन लोगों को प्रेरित करते हैं जो अपने वजन, फिजिक या रंग के कारण हीनभावना महसूस करते हैं. नेहा की पोस्ट्स भी सौफिस्टिकेटेड और मोटिवेशनल हैं, जो बौडी पौजिटिविटी और फैशन पर केंद्रित हैं, बिना किसी कंट्रोवर्शियल कंटैंट के.

2019 में उन्हें टौप 100 डिजिटल इन्फ्लुएंसर्स में शामिल किया गया था. नेहा एक टेडएक्स स्पीकर रही हैं, जहां उन्होंने अपनी बौडी पौजिटिविटी और कौंफिडैंस की यात्रा साझा की, जो उन के लिए एक बड़ा सम्मान था. वे उन टेडएक्स स्पीकर्स से प्रेरित थीं जिन्हें उन्होंने बचपन में देखा था. उन की स्पीच में उन्होंने कौंफिडैंस, सोसायटी प्रैशर को हैंडल करने और सैल्फलव के महत्त्व पर जोर दिया.

वे इस मंच को अपनी प्रेरणा का स्रोत मानती हैं. अपनी कहानी के माध्यम से युवाओं, खासकर अगली पीढ़ी, को प्रेरित करने पर ध्यान दे रही हैं, ताकि वे बौडीशेमिंग को रोकें. नेहा अपने यूट्यूब चैनल पर भी सक्रिय रहती हैं, जहां वे प्लससाइज फैशन, मेकअप टिप्स, और बौडी पौजिटिविटी से संबंधित कंटैंट शेयर करती हैं.

वे ट्रिंग इंडिया के साथ जुड़ी हैं, जहां लोग उन के माध्यम से पर्सनल मैसेज या ब्रैंड प्रमोशन बुक कर सकते हैं. यह उन के फैंस के साथ जुड़ने का एक नया तरीका है. उन के फेसबुक पेज पर 6 हजार से अधिक लाइक्स हैं. वे वहां भी रैगुलर अपडेट्स शेयर करती हैं. 2020 में नेहा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे रोजाना बौडी शेमिंग का सामना करती हैं.

उन्होंने ट्रोल्स को जवाब देने के लिए एक जबरदस्त इंस्टाग्राम पोस्ट शेयर की थी, जिस में लिखा था, “जबतक आप जानते हैं कि आप कौन हैं और क्या आप को खुश करता है, दूसरों की राय माने नहीं रखती. आप को वैलिडेशन की जरूरत नहीं है.” वे फैशन इंडस्ट्री में प्लससाइज कपड़ों की कमी को उजागर करती रहती हैं.

2018 में उन्होंने एक पत्रिका से बातचीत में बताया था कि मुंबई के एक मौल में उन्हें अपने साइज (40) के कपड़े नहीं मिले, प्लससाइज सैक्शन में केवल सीमित, सादे डिजाइन उपलब्ध थे.

2025 में नेहा मौडलिंग, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसिंग और ब्रैंड कोलैबोरेशन के क्षेत्र में सक्रिय हैं. वे रैगुलर इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर कंटैंट पोस्ट करती हैं, जिन में फैशन, मेकअप, और मोटिवेशनल कंटैंट शामिल हैं. वे अपने ब्लौग प्लस एंड प्राउड के माध्यम से 47 हजार से अधिक फौलोअर्स के साथ बौडी पौजिटिविटी को बढ़ावा दे रही हैं. उन्होंने अपनी प्रोफाइल में फैशन एन्थुसिस्ट लिखा हुआ है. उन की ज्यादातर पोस्ट फैशन को ले कर हैं.

नेहा की सोशल मीडिया प्रेजैंस ने उन्हें एक शक्तिशाली बौडी पौजिटिविटी आइकन बनाया है, जो ट्रोल्स का डट कर मुकाबला करती हैं. वे लगातार मैगज़ीन और डिजिटल प्लेटफौर्म्स पर फीचर हो रही हैं, जो उन की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है. वे चाहती हैं कि प्लससाइज कपड़ों की उपलब्धता बढ़े और डिजाइनर सभी आकारों के लिए स्टाइलिश कपड़े बनाएं.

वे अगली पीढ़ी को एजुकेट करना चाहती हैं ताकि बौडीशेमिंग कम हो और समाज में सभी को स्वीकार किया जाए.

 

फैशन और स्टाइल

नेहा हमेशा से फैशन की शौकीन रही हैं. उन्होंने अपने वजन के कारण कपड़ों के चयन में होने वाली हिचक को दूर किया और अब वे हर तरह के आउटफिट्स में कौंफिडैंस के साथ नजर आती हैं. वे कहती हैं कि फैशन में समावेशिता की कमी है. आज फैशन ऐसा है कि वह पर्टिकुलर बौडी शेप वालों के लिए बना हुआ है और उन्होंने कई बार दुकानों में अपने साइज के कपड़े न मिलने की चुनौती का सामना किया.

नेहा ने बताया कि कौंफिडैंस हासिल करना एक लंबा प्रोसैस था. उन्होंने धीरेधीरे लोगों को अपने वजन पर टिप्पणी करने से मना करना शुरू किया और अपनी देखभाल पर ध्यान दिया. शुरू में वे इंडियन सोसायटी के ब्यूटी पैरामीटर्स से प्रभावित थीं, लेकिन बाद में उन्होंने इन मानदंडों को नजरअंदाज कर खुद को स्वीकार किया.

 

नैगेटिविटी को किया डील

नेहा ने अपने चारों ओर एक बुलबुला बनाया है जो नैगेटिव कमैंट्स को उन तक पहुंचने से रोकता है. वे अब ट्रोल्स से उदासीन रहती हैं. वे बताती हैं कि बौडीशेमिंग का सामना वे रोज करती हैं. पुरुष और महिलाएं दोनों ही इस समस्या से जूझते हैं, लेकिन महिलाओं को ज्यादा शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है.

नेहा का उद्देश्य उन लोगों के लिए रोलमौडल बनना है जो अपने शरीर या समाज के दबावों के कारण स्ट्रगल कर रहे हैं. वे चाहती हैं कि लोग समझें कि उन का वजन उन की पहचान नहीं है.

नेहा सिखाती हैं कि हमें अपने शरीर और पर्सनैलिटी को स्वीकार करना चाहिए, चाहे समाज के मानदंड कुछ भी हों. कौंफिडैंस हमारी सब से बड़ी ताकत है. नेहा ने नैगेटिव कमैंट्स को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. हालांकि यह भी हकीकत है कि अपने बढ़े वजन को जस्टीफाई करना कोई तुक नहीं बल्कि फिट और अच्छे फिजिक में आना ज्यादा मोटिवेट करता है.

Hindi Moral Tales : संकट की घड़ी – क्यों डर गया था नीरज

Hindi Moral Tales : उस ने घड़ी देखी. 7 बजने को थे. मतलब, वह पूरे 12 घंटों से यहां लगा हुआ था. परिस्थिति ही कुछ ऐसी बन गई थी कि उसे कुछ सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं मिला था.

जब से वह यहां इस अस्पताल में है, मरीज और उस के परिजनों से घिरा शोरगुल सुनता रहा है. किसी को बेड नहीं मिल रहा, तो किसी को दवा नहीं मिल रही. औक्सीजन का अलग अकाल है. बात तो सही है. जिस के परिजन यहां हैं या जिस मरीज को जो तकलीफ होगी, यहां नहीं बोलेगा, तो कहां बोलेगा. मगर वह भी किस को देखे, किस को न देखे. यहां किसी को अनदेखा भी तो नहीं किया जा सकता. बस किसी तरह अपनी झल्लाहट को दबा सभी को आश्वासन देना होता है. किसी को यह समझने की फुरसत नहीं कि यहां पीपीई किट पहने किस नरक से गुजरना होता है. इसे पहने पंखे के नीचे खड़े रहो, तो पता ही नहीं चलता कि पंखा चल भी रहा है या नहीं. और यहां सभी को अपनीअपनी ही पड़ी है.

ठीक है कि सरकारी अस्पताल है और यहां मुसीबत में हारीबीमारी के वक्त ही लोग आते हैं. मगर इस कोरोना के चक्कर में तो जैसे मरीजों की बाढ़ आई है. और यहां न फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर है और न ह्यूमन रिसोर्सेज हैं. सप्लाई चेन औफ मेडिसिन का कहना ही क्या! किसी को कहो कि मरीज के लिए दवा बाहर से खरीदनी होगी या औक्सीजन का इंतजाम करना होगा, तो वह पहली नजर में ऐसे देखता है, मानो उसी ने अस्पताल से दवाएं या औक्सीजन गायब करवा दिया हो या वही उस की ब्लैक मार्केटिंग करवा रहा हो.

ऐसी खबरें अखबारों और सोशल मीडिया में तैर भी रही हैं. मगर फिर भी ऐसे में एक डाक्टर करे तो क्या. उस का काम मरीजों का इलाज करना है, न कि ब्लैक मार्केटियरों को पकड़ना या सुव्यवस्था कायम करना है. आखिर किस समाज में अच्छेबुरे लोग नहीं होते. फिर भी दवाएंऔक्सीजन आदि की व्यवस्था करा भी दें, तो ऐसे देखेंगे, मानो उसी पर अहसान कर रहा हो.

सैकंड शिफ्ट में आई नर्स मीना के साथ वह वार्ड का एक चक्कर लगा वापस लौटा. थोड़ी देर बाद उस ने उस से पूछा, “डाक्टर भानु आए कि नहीं?” “सर, उन्होंने फोन किया था कि थोड़ी देर में बस पहुंचने ही वाले हैं.”

“देखो, मैं अभी निकल रहा हूं. 10 घंटे से यहां लगा हुआ हूं. अगर और रुका, तो मैं कहीं बेहोश ना हो जाऊं, ऐसा मुझे लग रहा है.”

“ठीक है सर, मैं आप की हालत देख रही हूं. आप घर जाइए.” उस ने सावधानी से पहले पीपीई किट्स को और उस के बाद अपने गाउन और दस्ताने को खोला. इन्हें खोलते हुए उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी दूसरी दुनिया से बाहर निकला हो. इस के बाद उस ने स्वयं को सैनिटाइज करना शुरू किया. वहां से बाहर निकल कर अपनी कार के पास आया. वहां थोड़ी भीड़ कम थी. फिर भी उस ने मास्क हटा जोर से सांस खींच फेफड़ों में हवा भरी.

विगत समय के डाक्टर यही तो गलती करते थे कि अपने कमरे में जा कर गाउन, दस्ताने के साथ मास्क को भी हटा लेते थे. जबकि वहां के वातावरण में वायरस तो होता ही था, जो उन्हें अपनी चपेट में ले लेता था.

कार को सावधानी के साथ चलाते हुए वह मुख्य मार्ग पर आया. हालांकि शाम 7 बजे से लौकडाउन है. फिर भी कुछ दुकानें खुली हैं और लोग चहलकदमी करते नजर आ रहे हैं. ‘कब समझेंगे ये लोग कि वे किस खतरनाक दौर से गुजर रहे हैं ’ वह बुदबुदाया, ‘भयावह हो रहे हालात, प्रशासन की चेतावनी और सख्ती के बावजूद परिस्थितियों को समझ नहीं रहे हैं ये लोग.’

अपने घर के पास पहुंच कर उस ने चैन की सांस ली. उस ने हार्न बजा कर ही अपने आने की सूचना दी.  घर का दरवाजा खुला था और ढाई वर्ष का बेटा नीरज बरामदे में ही खेल रहा था. “पापा आ गए मम्मी,” कहते हुए वह दौड़ कर गेट तक आ गया था. मीरा घर से बाहर निकली और गेट को पूरी तरह से खोल दिया था. उस ने सावधानी से कार को घर के सामने पार्क किया. तब तक नीरज कार के चारों ओर चक्कर लगाता रहा. उस के कार के उतरते ही वह उस से चिपट पड़ा, तो उस ने उसे जोर से ढकेला और चिल्लाने लगा, “मीरा, तुम्हें अक्ल नहीं है, जो बच्चे को इस तरह खुले में छोड़ दिया.

“मैं अस्पताल से आ रहा हूं और यह मुझ से चिपक रहा है. दिनभर घर में टैलीविजन पर सीरियल देखती रहती हो. तुम्हें क्या पता कि वहां क्या चल रहा है. हमेशा जान जोखिम में डाल कर काम करना होता है वहां. संभालो नीरज को. और बाथरूम में गीजर औन किया है कि नहीं. कि मुझे ही वहां जा कर उसे औन करना होगा.”

“कहां का गुस्सा कहां उतारते हो,” धक्का खा कर गिरे बेटे को उठाते हुए मीरा बोली, “यह बच्चा क्या समझेगा कि बाहर क्या चल रहा है. प्ले स्कूल भी बंद है. घर में बंदबंद बच्चा आखिर करे क्या?” बाथरूम में जा कर उस ने अपने सारे कपड़े उतार कर एक टब में छोड़ दिए. फिर इस गरमी में भी पानी के गरम फव्वारे से साबुन लगा स्नान करने लगा.

नहाधो कर जब वह बाहर आया, तो उसे कुछ चैन मिला. एक कोने में उस की नजर पड़ी तो देखा कि नीरज अभी तक सुबक रहा था. वह उस की उपेक्षा कर अपने कमरे में चला तो गया, मगर उसे ग्लानि सी महसूस हो रही थी. बच्चे को उसे इस तरह ढकेलना नहीं चाहिए था.

मगर, क्या उस ने गलत किया. अस्पताल के परिसर में दिनभर कार खड़ी थी. वह खुद कोरोना पेशेंटों से जूझ कर आया था. कितनी भी सावधानी रख लो, इस वायरस का क्या ठिकाना कि कहां छुप कर चिपका बैठा हो. वह तो उस ने उसी के भले के लिए उसे किनारे किया था. नहींनहीं, किनारे नहीं किया था, बल्कि उसे ढकेल दिया था.

जो भी हो, उस ने उस के भले के लिए ही तो ऐसा किया था. अस्पताल से आने के बाद उस का दिमाग कहां सही रहता है. कोई बात नहीं, वह उसे मना लेगा. बच्चा है, मान जाएगा.  इसी प्रकार के तर्कवितर्क उस के दिमाग में चलते रहे .वह ड्राइंगरूम में आया. मीरा उस के लिए ड्राइंगरूम में चायनाश्ता रख गई.

12 साला बेटी मीनू उसे आ कर बस देख कर चली गई. और वह वहां अकेला ही बैठा रहा. फिर वह उठा और नीरज को गोद में उठा लाया.  पहले तो वह रोयामचला और उस की गिरफ्त से भाग छूटने की कोशिश करने लगा. अंततः वह उस की बांहों में मुंह छुपा कर रोने लगा. मीरा उसे चुपचाप देखती रही. उस का मुंह सूजा हुआ था. रोज की तो यही हालत है. वह क्या करे, कहां जाए. उस की इसी तुनकमिजाजी की वजह से उस ने अपनी स्कूल की लगीलगाई नौकरी छोड़ दी थी. और इन्हें लगता है कि मैं घर में बैठी मटरगश्ती करती हूं.

उस ने मीरा को आवाज दी, तो वह आ कर दूसरे कोने में बैठ गई.“तुम मुझे समझने की कोशिश करो,” उसी ने चुप्पी तोड़ी, “बाहर का वातावरण इतना जहरीला है, तो अस्पताल का कैसा होगा, इस पर विचार करो. वहां से कब बुलावा आ जाए, कौन जानता है.” “दूसरे लोग भी नौकरी करते हैं, बिजनेस करते हैं,” मीरा बोली, “मगर, वे अपने बच्चों को नहीं मारते… और न ही घर में उलटीसीधी बातें करते हैं.”

“अब मुझे माफ भी कर दो बाबा,” वह बोला, “अभी अस्पताल की क्या स्थिति है, तुम क्या जानो. रोज लोगों को अपने सामने दवा या औक्सीजन की कमी में मरते देखता हूं. मैं भी इनसान हूं. उन रोतेबिलखते, छटपटाते परिजनों को देख मेरी क्या हालत होती है, इसे समझने का प्रयास करो. और ऐसे में जब तुम लोगों का ध्यान आता है, तो घबरा जाता हूं.”

“मैं ने कब कहा कि आप परेशान नहीं हैं. तभी तो इस घर को संभाले यहां पड़ी रहती हूं. फिर भी आप को खुद पर नियंत्रण रखना चाहिए. ऐसा क्या कि नन्हे बच्चे पर गुस्सा उतारने लगे.” मीरा वहां से उठी और एक बड़ा सा चौकलेट ला कर उसे छिपा कर देती हुई बोली, “ये लीजिए और नीरज को यह कहते हुए दीजिए कि आप खास उस के लिए ही लाए हैं. बच्चा है, खुश हो जाएगा.”

मीरा की तरकीब काम कर गई थी. उस के हाथ से चौकलेट ले कर नीरज बहल गया था. पहले उस ने चौकलेट के टुकड़े किए. एकएक टुकड़ा पापामम्मी के मुंह में डाला. फिर एक टुकड़ा बहन को देने चला गया.  फिर पापा के पास आ कर उस की बालसुलभ बातें शुरू हो गईं. वह उसे ‘हांहूं’ में जवाब देता रहा. उस ने घड़ी देखी, 9 बज रहे थे. और उस पर थकान और नींद हावी हो रही थी. अचानक नीरज ने उसे हिलाया और कहने लगा, “अरे, आप तो सो रहे हैं. मम्मीमम्मी, पापा सो रहे हैं.”

मीरा किचन से निकल कर उस के पास आई और बोली, “आप बुरी तरह थके हैं शायद. इसीलिए आप को नींद आ रही है. मैं खाना निकालती हूं. आप खाना खा कर सो जाइए.” डाइनिंग टेबल तक वह किसी प्रकार गया. मीरा ने खाना निकाल दिया था. किसी प्रकार उस ने खाना खत्म किया और वापस कमरे में आ कर अपने बेड पर पड़ रहा. नीरज उस के पीछेपीछे आ गया था. उसे मीरा यह कहते हुए अपने साथ ले गई कि पापा काफी थके हैं. उन्हें सोने दो.

सचमुच थकान तो थी ही, मगर अब चारों तरफ शांति है, तो उसे नींद क्यों नहीं आ रही. वह उसी अस्पताल में क्यों घूम रहा है, जहां हाहाकार मचा है. कोई दवा मांग रहा है, तो किसी को औक्सीजन की कमी हो रही है. बाहर किसी जरूरतमंद मरीज के लिए उस के परिवार वाले एक अदद बेड के लिए गुहार लगा रहे हैं, घिघिया रहे हैं. और वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो विवश सा खड़ा है.

दृश्य बदलता है, तो बाहर कोई सरकार को, तो कोई व्यवस्था को कोस रहा है. कैसेकैसे बोल हैं इन के, ‘ये लालची डाक्टर, इन का कभी भला नहीं होगा… इस अस्पताल के बेड के लिए भी पैसा मांगते हैं… सारी दवाएं बाजार में बेच कर कहते हैं कि बाजार से खरीद लाओ… और औक्सीजन सिलिंडर के लिए भी बाजार में दौड़ो… क्या करेंगे, इतना पैसा कमा कर? मरने के बाद ऊपर ले जाएंगे क्या? इन के बच्चे कैसे अच्छे होंगे, जब ये कुकर्म कर रहे हैं?’

“नीरज… नीरज, मीनू कहां हो… कहां हो तुम,” वह चिल्लाया, तो मीरा भागीभागी आई, “क्या हुआ जी…? क्यों घबराए हुए हो…? कोई बुरा सपना देखा क्या…?”वह बुरी तरह पसीने से भीगा थरथर कांप रहा था. मीनू और नीरज भयभीत नजरों से उसे देख रहे थे. वह नीरज को गोद में भींच कर रोने लगा था. बेटी मीनू का हाथ उस के हाथ में था. मीरा उसे सांत्वना दे रही थी, “चिंता मत कीजिए. यह संकट की घड़ी भी टल जाएगी. सब ठीक हो जाएगा.”

Latest Hindi Stories : कारावास – लाले और जाले की कहानी

Latest Hindi Stories :  मलिक साहब एक वकील थे, जो अमेरिका जा कर बस गए थे. जब वह स्वदेश आए तो उन से उन की वकालत के दिनों के केसों में सब से रोचक केस सुनाने के लिए कहा गया.

यह कहानी उन्हीं के कथनानुसार है. उन्होंने बताया, ‘मेरे गुरु लाहौर के एक प्रसिद्ध वकील थे. उन के पास फौजदारी मुकदमों की लाइन लगी रहती थी. बड़ेबड़े मुकदमे वह खुद लिया करते थे और छोटेमोटे चोरीडकैती वगैरह के मुकदमे मुझे दिया करते थे. मैं बहुत मेहनत से काम करता था, इसलिए जल्दी ही मेरी गिनती बड़े वकीलों में होने लगी थी.

मेरे 2 क्लायंट थे, जो अकसर छोटेमोटे अपराध किया करते थे. एक का नाम जाले था, जो खातेपीते घराने का था. उसे खानेकमाने की कोई चिंता नहीं थी. जबकि दूसरे का नाम लाले था. वह था तो गरीब घर का, लेकिन उस का शरीर पहलवानों जैसा था.

उस के डीलडौल की वजह से उस से कोई पंगा नहीं लेता था. दोनों मेरे पक्के क्लायंट थे और अपना हर केस मुझे ही देते थे. कभीकभी तो दोनों मेरी फीस भी एडवांस में दे देते थे. वे कहते थे, ‘‘वकील साहब, रख लो. अगर कभी हम किसी केस में फंसे तो इसे अपनी फीस समझ लेना.’’

जाले खातेपीते घराने का था और उस की पीठ पर उस के ताऊ का हाथ था. ताऊ की कोई संतान नहीं थी, इसलिए ताऊ की पूरी संपत्ति और कारोबार उसे ही मिलना था. वह अकसर जुआ खेला करता था, इसलिए पैसे से तंग रहता था.

इस के लिए कई बार वह घटिया हरकतें भी करता था. मसलन, जैसे छोटे बच्चों से पैसे छीन लेना, किसी छोटी बच्ची के कानों से सोने की बालियां उतार लेना.

दूसरी ओर लाला यानी लाले मेहनतमजदूरी करता था. जुआ वह भी खेलता था. जब पैसे नहीं होते थे तो वह अपने मांबाप या विवाहिता बहन से बहाने से पैसे मांग लेता था. जब कहीं से पैसे नहीं मिलते थे तो वह कहीं हाथ मार कर अपना शौक पूरा कर लेता था. सब उस से डरते थे और उसे लाला पहलवान कह कर बुलाते थे.

गर्मियों में जब मैं रोज अपने औफिस के लिए निकलता तो अपने भाई की दूध की दुकान पर जरूर जाता था. वहां मैं पिस्ता, बादाम और खोए का ठंडा दूध पी कर जाता था. एक दिन मैं दूध पी रहा था तो लाले वहां आ गया.

उस ने बोस्की का सूट और बढि़या जूते पहन रखे थे और बहुत खुश था. उस ने मुझे देखते ही जोर से कहा, ‘‘अरे वकील साहब आप?’’ फिर जेब से बहुत सारे नोट निकाल कर बोला, ‘‘लो साल भर की फीस इकट्ठी ही एडवांस में ले लो.’’

मैं ने कहा, ‘‘लाले, इतना रुपया कहां से आया, क्या कहीं लंबा हाथ मारा है?’’

वह बोला, ‘‘मलिक साहब, कल रात ताश के पत्ते मेरे ऊपर मेहरबान थे, बाजी पर बाजी जीतता गया. अब खूब मौज करूंगा. आप भी एडवांस फीस ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.’’

मैं ने उस का दिल रखने के लिए थोड़े से पैसे ले कर कह दिया, ‘‘ठीक है, खूब मौजमस्ती करो.’’

इस के एक हफ्ते बाद मोहल्ले में सुबहसवेरे शोर हुआ तो मेरी आंखें खुल गईं. जा कर पता किया तो पता चला कि लाले की हत्या हो गई है. यह जानकारी भी मिली कि उस की हत्या जाले ने की है. मुझे यकीन नहीं हुआ, क्योंकि वे दोनों घनिष्ठ मित्र थे. इस के अलावा लाले वैसे भी इतना ताकतवर था कि वह 2-3 के बस में नहीं आ सकता था. उसे जाले जैसा कमजोर आदमी नहीं मार सकता था.

जहां उस की हत्या हुई थी, वह जगह मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं थी. मैं घटनास्थल पर पहुंचा. वहां लोगों ने बताया कि रात दोनों ने जुआ खेला था और दोनों हारजीत पर लड़ पड़े. जाले ने चाकू निकाल कर लाले को भोंक दिया और वह मर गया.

लाले की लाश घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर पड़ी थी. चाकू लगने से वह भागा होगा, इसलिए खून की लकीर जमीन पर पड़ी थी. लगता था, उसे पहले खूब शराब पिलाई गई होगी, जिस से उसे आसानी से मारा जा सके. वैसे तो दोनों मेरे क्लाइंट थे, लेकिन लाले के घर वालों ने पहले मुझे अपना वकील कर लिया और जाले के घर वालों ने एक मशहूर वकील किया. मुझे लाले के मरने का बड़ा दुख था, उस की सब बुराइयों के बावजूद मैं उसे पसंद करता था. मुझे उस की वह बात याद आ रही थी कि वकील साहब पैसे एडवांस में ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.

हो सकता है, उस से यह बात उस की मौत कहलवा रही हो. लाले की पार्टी गरीब थी, उस की ओर से मुकदमा उस के पिता लड़ रहे थे. जाले की पार्टी धनी थी, उस की ओर से उस का ताऊ मुकदमा लड़ रहा था, जो बहुत पैसे वाला था. उस ने जाले को खुली छूट दे रखी थी, जो मरजी आए करो पर बड़ा बदमाश बन कर दिखाओ. वह उस के लिए बहुत पैसे खर्च कर रहा था.

मैं ने मुकदमे की तैयारी शुरू कर दी. चश्मदीद गवाह एक ही था और वह जाले की बिरादरी का था. मुझे यकीन नहीं था कि वह जाले के खिलाफ गवाही देगा. ऐसा ही हुआ. उस ने गवाही देने से साफ मना कर दिया. बाद में पता चला कि जाले के ताऊ ने उसे गवाही न देने के लिए पैसे दिए थे और जाले की बहन से उस का रिश्ता भी कर दिया था. मुकदमा चला, गवाह न मिलने की वजह से जाले साफ छूट गया.

लाले के मांबाप बहुत गरीब थे. मुकदमा हार कर घर बैठ गए. बाद में वे दोनों जवान बेटे के गम में मर गए. जाले जेल से रिहा हो कर घर आ गया. पूरे मोहल्ले में उस की धाक जम गई. जब भी जाले का और मेरा सामना होता था तो वह मुझ से बड़े घमंड से कहता था, ‘‘आप ने लाले का मुकदमा लड़ कर अच्छा नहीं किया.’’

एक हत्या कर के उस की हिम्मत बढ़ गई और वह चरस, गांजे का कारोबार करने लगा. इलाके में अपनी धाक जमाने के लिए वह अपराध करने लगा था. अब उस ने मुझे अपना वकील भी करना छोड़ दिया था.

उस इलाके में एक और जेबकतरा था, जो बहुत बड़ा बदमाश था. उस की जाले से दोस्ती हो गई और दोनों मिल कर बदमाशी करने लगे. उन्होंने दुकानदारों से हफ्तावसूली शुरू कर दी थी. एक दिन जब वे हफ्तावसूली कर रहे थे तो दोनों की एक दुकानदार से लड़ाई हो गई.

दुकानदार भी दो थे, दोनों ने हफ्ता देने से मना कर दिया. वे दोनों बहुत दिलेर थे. चारों में जबरदस्त लड़ाई हुई. दोनों ओर से चाकूछुरियां चलीं, जिस में एक दुकानदार और जाले का साथी मारे गए. जाले भी घायल हो गया और वहां से फरार हो गया.

एक दुकानदार ने जाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. जाले ने भी अपने साथी की हत्या के लिए मुकदमा दर्ज कराना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. कारण यह था कि लड़ाई उन की दुकान पर हुई थी और जाले व उस का साथी एक मील चल कर वहां लड़ने आए थे.

फौजदारी मुकदमों के लिए मैं बहुत मशहूर था, इसलिए उस दुकानदार ने मुझे अपना वकील कर लिया. एक बार फिर मैं जाले के खिलाफ मुकदमा लड़ने लगा. जाले के ताऊ ने लाहौर का एक मशहूर महंगा वकील कर लिया था. जाले जेल चला गया. जाले हर पेशी पर बड़े घमंड से आया करता था. वह मेरी ओर गुस्से से देखता था और इशारों में मुझे धमकियां भी देता था.

जाले के घर वाले भी मुझे धमकियां देने लगे, जिस से डर कर मैं मुकदमा न लड़ूं. मैं ने मन लगा कर मेहनत की, जिस से मेरे क्लाइंट बहुत खुश थे. केस सैशन में चला. मेरे गवाहों ने बहुत अच्छी गवाही दी. जाले के वकील ने एक गवाह पेश किया, जो हिस्ट्रीशीटर था. वह ठीक से गवाही नहीं दे पाया. जाले का वकील बहुत परेशान था. हर बड़े वकील को अपने केस की चिंता होती है. उस ने जाले को शक का लाभ ले कर उसे बरी कराने या फांसी से बचाने की तरकीब सोची.

हर अदालत में पुलिस का एक व्यक्ति होता है, जो थानों से मिली हर केस की सभी फाइलें अपने पास रखता है और अदालत तक पहुंचाता है. जब मुकदमा दायर हो जाता है तो उस मुकदमे की दूसरी फाइल उस के पास रहती है, जिसे पुलिस फाइल कहते हैं. उस में विवेचना अधिकारी की हर दिन की काररवाई दर्ज की जाती है. अधिकतर वकील उस फाइल को देख नहीं पाते, लेकिन जो होशियार वकील होते हैं, उस फाइल से अपने मतलब की बहुत सी चीजें निकाल लेते हैं.

जाले के वकील ने जाले के ताऊ से कह कर एक नई डाक्टरी रिपोर्ट लगवा दी जो असल रिपोर्ट से अलग थी. दोनों रिपोर्टों में भिन्नता के कारण अपराधी को शक का लाभ मिल सकता था.

मैं अदालत जाने से पहले उस पुलिस फाइल को जरूर देखता था. मैं ने वह रिपोर्ट देखी तो मेरे पैरों तले से जमीन निकल गई. मैं ने पुलिस वाले से पूछा तो उस ने बताया कि उसे पता नहीं लेकिन फाइल थानेदार ने मंगवाई थी. मैं ने तुरंत अपने क्लायंट से कहा, ‘‘समय रहते कुछ करना है तो कर लो.’’

वे लोग भी बहुत होशियार थे. उन्होंने पुलिस वाले को अच्छी रकम दे कर वह रिपोर्ट निकलवा दी.

पेशी के दिन जाले का वकील और थानेदार बड़े भरोसे से अदालत में आए. पहले विवेचना अधिकारी के बयान हुए. वकील बहुत खुश था कि उस रिपोर्ट की बिनाह पर वे लोग मुकदमा जीत जाएंगे. थानेदार और वकील ने पूरी फाइल देख ली, लेकिन वह रिपोर्ट नहीं मिली. दोनों को पसीना आ गया कि वह रिपोर्ट कहां गई. शोर इसलिए नहीं कर सकते थे कि अदालत के पास जो रिपोर्ट थी, वह असली थी.

मैं ने लोहा गरम देख कर चोट की, ‘‘योर औनर, ऐसी कोई रिपोर्ट न तो थी और न है. नई रिपोर्ट कोई डाक्टर बना कर भी नहीं दे सकता, इसलिए यह पूरा मामला ही झूठ का पुलिंदा है.’’

जाले का वकील कोई सबूत पेश नहीं कर सका, इसलिए अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी. मेरे क्लाइंट बहुत खुश हुए. उन्होंने मेरी जेब में बहुत मोटी रकम डाल दी. मैं ने मना किया तो वे कहने लगे कि केस हाईकोर्ट में तो जाना ही है, और इसे आप ही लड़ेंगे.

केस हाईकोर्ट में गया. मेरे क्लायंट ने एक और महंगा वकील कर लिया. हम दोनों ने मिल कर मुकदमा लड़ा. यहां भी हम जीत गए. लेकिन अदालत ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.

जाले को उस की करनी की सजा मिल गई, लेकिन मुझे इस बात का बहुत दुख हुआ कि 2 आदमियों का हत्यारा फांसी से बच गया. लेकिन यह दुनिया की अदालत का फैसला था, अभी कुदरत का फैसला बाकी था. कुदरत की ओर से जो सजा उसे मिलनी थी, उस के लिए जाले का जिंदा रहना जरूरी था.

लाले के मातापिता मरते दम तक जाले को कोसते रहे. दूसरी ओर उस दुकानदार के घर वाले व और भी कई लोग थे, जो उसे कोस रहे थे. कहते हैं, कमजोर की हाय आसमान से टकराती है और इस का नतीजा बड़ा भयानक होता है.

एक दिन खबर आई कि जाले जेल में अंधा हो गया है. यह बात यकीन करने के काबिल नहीं थी, क्योंकि वह 26-27 साल का गबरू जवान था, उसे कोई बीमारी भी नहीं थी. जेल के डाक्टरों ने बहुत बारीकी से उस की आंखों को टेस्ट किया, लेकिन उन की समझ में बीमारी नहीं आई. एक डाक्टर ने कहा, ‘‘यह बीमारी हमारी समझ से बाहर है. आंखें भलीचंगी हैं, उन में कोई खराबी नहीं लेकिन अचरज की बात है कि आंखों की रोशनी कैसे चली गई.’’

जाले की दुनिया अंधेरी हो गई थी, जबकि वह लोगों की दुनिया में अंधेरा फैलाता रहा था. जेल अधिकारियों ने बड़ेबड़े आई स्पेशलिस्ट्स को दिखाया, लेकिन किसी की समझ में बीमारी नहीं आई. अब अंधे जाले के लिए जेल का जीवन और भी कठिन हो गया. अब वह कुछ नहीं कर सकता था. हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर था. वह रोरो कर अपने गलत कर्मों की माफी मांगता था.

लेकिन लगता था कि बेकसूर लोगों की बददुआएं अभी और असर दिखाने वाली थीं. कुछ दिनों बाद खबर आई कि जाले जेल में गूंगा हो गया है. इस बीमारी का भी बहुत इलाज हुआ, लेकिन सब बेकार. उस के बाद खबर आई कि जाले चलनेफिरने से भी बेकार हो गया. जाले को जेल के अस्पताल भेज दिया गया. सभी डाक्टर इस बात पर हैरान थे कि भलाचंगा आदमी गूंगा, लंगड़ा, अंधा कैसे हो गया?

जेल के दूसरे बंदी उसे देख कर कानों को हाथ लगाते थे. अब वह अपाहिज हुआ अस्पताल में पड़ा रहता था. न बोल सकता था, न हाथपैर चला सकता था. जेल के डाक्टरों ने जेल अधिकारियों से बात की और उस के घर वालों से संपर्क किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उस की रिहाई का प्रार्थनापत्र डाल दिया, जो जेल के डाक्टरों की संस्तुति पर मंजूर हो गया.

वह जेल से रिहा हो कर अपने घर आ गया. वह पेशाब व शौच बिस्तर पर ही कर देता था. कुछ ही दिनों में उस के घर वाले उस से तंग आ गए और उस की चारपाई घर से बाहर रख दी. उस की साफसफाई के लिए एक सफाई कर्मचारी को लगा दिया गया.

हर आनेजाने वाला उसे देख कर कानों को हाथ लगाता था. वह वही जाले था, जो कभी सब के सामने अकड़ कर चलता था. आज वह अपने मुंह से मक्खी भी नहीं उड़ा सकता था. घर के लोग उस के मरने की दुआएं करने लगे थे. एक दिन सब की दुआ काम आई और वह अपनी जिंदगी की कैद से आजाद हो गया.

क्या यहां पर आ कर कहानी खत्म हो गई? नहीं, अभी एक और गुनहगार बचा हुआ था, जो कानून और दुनिया वालों की नजरों से छिपा हुआ था. वह अपने आप में संतुष्ट था कि उस की ओर किसी का ध्यान नहीं गया.

वह व्यक्ति जाले को बहुत बड़ा बदमाश बनाना चाहता था. उसे बदमाश बनाने में उस ने अपना धन लगाया. वह था, उस का ताऊ. एक दिन उस की पिंडली पर एक छोटा सा घाव हो गया, जो ठीक नहीं हुआ और डाक्टरों ने उस की पिंडली से टांग काट दी.

वह घाव फिर घुटने तक पहुंच गया और फिर उस की रान से टांग काटनी पड़ी. यह भी चलनेफिरने में अक्षम हो गया था.

चारपाई पर पड़ा रहता था. रातदिन बीमारी के कारण बहुत कमजोर हो गया था. अंत में एक दिन वह भी दुनिया से चला गया.

Short Stories in Hindi : मन की दराज से – क्या हुआ दो सहेलियों के साथ

Short Stories in Hindi :  नित्या ने घर के काम से फ्री हो कर फोन उठाया. फेसबुक खोलते ही उस का खून जल गया. जयस्वी ने एक प्रतिष्ठित पत्रिका में अपनी नई प्रकाशित कहानी की फोटो डाला था. नित्या उस की पोस्ट्स पर लाइक्स और कमैंट्स की बाढ़ देख कर मन ही मन उसे कोसने लगी कि इसे कोई काम नहीं है क्या? फिर एक कहानी लिख दी. वैसे तो कहती है कि बहुत व्यस्त रहती हूं. लिखने का समय कैसे मिल जाता है? झठी कहीं की. मैं इस से अच्छा ही लिखती हूं पर क्या करूं, टाइम ही नहीं मिलता.

नित्या मन ही मन फुंकी जा रही थी कि तभी उस के फोन पर जयस्वी का नंबर चमका. नित्या का मन हुआ कि जयस्वी से कभी बात न करे, उस का फोन ही न उठाए, पर बहुत बेमन से फोन उठा ‘हैलो’ कहा तो जयस्वी ने अपनी सदाबहार चहकती आवाज में कहा, ‘‘नित्या, यह तू साउंड इतना लो क्यों कर रही है? भैया को फिर से झगड़ा कर के औफिस भेजा है क्या?’’

नित्या ने फीकी सी नकली हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘नहीं, ठीक हूं. बस आज लेट उठी तो सब काम बहुत जल्दीजल्दी निबटाए इसलिए थक

गई हूं.’’

जयस्वी ने शरारत से कहा, ‘‘क्यों भई, लेट क्यों उठी? तुम्हारे बच्चे होस्टल चले गए तो तुम्हारा सैकंड हनीमून शुरू हो गया क्या?’’

नित्या आज चिढ़ी बैठी थी, बोली, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है, देर रात तक फेसबुक पर ‘कश्मीर फाइल्स’ पर सब ज्ञानी लोगों की पोस्ट्स पढ़ती रही, ट्विटर पर भी नामी लोगों की बहस पढ़ती रही, कब 3 बज गए, पता ही नहीं चला. तू बढि़या है, इन सब बातों में अपना टाइम खराब नहीं करती,’’ फिर उस के मन की जलन बाहर आ ही गई, ‘‘जब मरजी लिखने बैठ जाती है, तेरी ऐश है भई.’’

‘‘अरे, इस में ऐश की क्या बात हो गई? मैं समझ नहीं?’’

‘‘भई, तुझे लिखने के लिए इतना समय मिल जाता है… यहां तो घर के काम में फंस कर सारा लेखन ठप्प पड़ा रहता है,’’ आज नित्या का मूड सचमुच बहुत खराब हो गया था, अंदर की जलन रोके नहीं रुक रही थी.

जयस्वी ने शांत स्वर में कहा, ‘‘नित्या, मुझे भी घर के काम हैं, दोनों बच्चे अभी पढ़ ही रहे हैं और तू तो मुझ से भी अच्छा लिखती है. बस तू उन बातों में टाइम खराब कर देती है जिन में नहीं करना चाहिए.’’

‘‘जरा बताना किस चीज में मैं अपना टाइम खराब करती हूं?’’

‘‘सोशल मीडिया पर.’’

‘‘तो क्या करंट इशूज पर नजर न रखें?’’

‘‘बिलकुल रखें, पर तुम तो लोगों की बहस पढ़ कर अपना टाइम खराब कर देती हो. उतने टाइम में तो तुम आराम से अपना शौक पूरा कर सकती हो. सोशल मीडिया पर जाओ पर कुछ टाइम मैनेजमैंट के साथ.’’

‘‘चल अच्छा, बाद में बात करते हैं,’’ आज नित्या को जयस्वी की कोई बात अच्छी नहीं लग रही थी. वह माथे पर हाथ रख कर आंखें बंद कर मन ही मन जलतीकुढ़ती रही और बीते 5 साल उस की आंखों के आगे न चाहते हुए भी तैरने लगे…

सोशल मीडिया पर ही नित्या और जयस्वी की दोस्ती हुई थी, दोनों को लेखन का शौक था और दोनों ही एकदूसरे की लिखी कहानियां पसंद करती थीं. नित्या अलवर में और जयस्वी चंडीगढ़ में रहती थी. दोनों ही फेसबुक फ्रैंड्स बनीं, फिर फोन नंबर लिएदिए गए, अब दोनों बैस्ट टाइप फ्रैंड्स थीं. दोनों को शुरू में लगा कि चलो, अपने जैसे शौकों वाले इंसान के साथ बातें करने के लिए कितना कुछ होता है, किताबों की बातें, पत्रिकाओं की बातें, लेखकों की बातें, दोनों अकसर अपनेअपने पति के औफिस जाने के बाद थोड़ी देर जरूर बातें करतीं.

पर जैसेकि समय के साथसाथ बहुत कुछ बदल जाता है, इंसान को पता ही नहीं चलता कि कब दिलों का प्यार ईर्ष्या नाम की दीमक चाटने लगती है, कब दोस्ती जैसे खूबसूरत रिश्ते में जलन, बराबरी अपनी पैठ बना जाती है, फिर जब 2 में से किसी एक के भी दिल में ये भाव आ जाएं तो उस रिश्ते को खतम होते देर नहीं लगती.

पता नहीं इन भावों को एक बार नित्या ने अपने दिल में जगह दी तो दिनबदिन उस का मन कुंठित होता गया. अब धीरेधीरे 5 सालों में नित्या जयस्वी को अपनी दोस्त नहीं, एक कंपीटिटर समझने लगी थी. उस के मन की जिस दराज में जयस्वी की निश्छल दोस्ती, स्नेह और अपनापन था, उस जगह अब सिर्फ गुस्सा, जलन और बुराई जम गई थी. कोमल भाव इस दराज से जैसे नित्या ने बाहर निकाल कर फेंक दिए थे.

जयस्वी अपने काम से काम रखने वाली इंसान थी, उसे सपने में भी

अंदाजा नहीं हुआ कि जब वह खुशीखुशी नित्या को बताती है कि कैसे उस ने अपने व्यस्त समय से कुछ पल निकाल कर एक कहानी लिखने की कोशिश की है, अब पहले की तरह नित्या उस की लगन को नहीं सराहती. अब जब नित्या कहती है कि तुम्हें तो पता नहीं कैसे इतने आइडियाज आते हैं, तुम्हें तो लिखने के अलावा कोई काम ही नहीं, तो नित्या की आवाज में आई चिढ़ पर उस का ध्यान ही नहीं जाता. वह तो पहले की तरह अपनी हर रचना को लिखने भेजने की प्रक्रिया नित्या से शेयर करती रही पर जब नित्या ने उस से पढ़नेलिखने की बातों की जगह मौसम, राजनीति की बातें बस फोन पर एक औपचारिकता निभाने के लिए शुरू कर दीं तो जयस्वी चौंकी. उस ने नित्या से प्यार से पूछा, ‘‘क्या हुआ, नित्या? आजकल तुम कुछ लिख नहीं रही?’’

‘‘बस, तुम लिख रही हो न, काफी है. तुम खुश रहो.’’

‘‘अरे, यह क्या बात हुई? हम दोनों ही लिखते आए हैं न. दोनों ही लिखेंगे, दोस्त.’’

नित्या अब पहले की तरह न लिखने के लिए समय निकाल रही थी, न कुछ सोचतीविचारती थी. आजकल उस का सारा खाली समय सोशल मीडिया पर बीत रहा था. क्रिएटिविटी कम होती जा रही थी और जयस्वी की लगन और मेहनत देख कर खुद सुधरने के बजाय बस ईर्ष्या में डूबी रहती. जयस्वी के साथ मिल कर उस ने 1 उपन्यास लिखने का विचार बनाया था, अब कहां जयस्वी के 3 उपन्यासों ने धूम मचा दी थी, वहीं नित्या ने अपने उपन्यास को हाथ भी न लगाया था. जयस्वी के एक उपन्यास ने एक बड़ा पुरस्कार क्या जीता, नित्या ने उस से कन्नी काटनी शुरू कर दी. पहले रोज होने वाली बातें 2 दिन के अंतराल पर होने लगीं, फिर 1 हफ्ते के अंतराल पर और फिर कभीकभार रस्मअदायगी.

जयस्वी और नित्या को अब एकदूसरे के बारे में फेसबुक से ही पता चलता. जहां इतने गैर आजकल सोशल मीडिया से जुड़ कर अच्छे दोस्त बन जाते हैं, वहीं सोशल मीडिया से ही दोस्त बनीं ये दोनों अब एकदूसरे से अजनबियों की तरह व्यवहार करने लगी थी. नित्या को उस की जलन उसे बहुत पीछे लिए जा रही थी.

जयस्वी की आदत थी कि उस की कोई भी रचना कहीं छपती, वह सोशल मीडिया पर जरूर डालती जिसे देख कर नित्या उसे मन ही मन कोसती. वह अब बस यही देखती कि किस ने क्या पोस्ट किया, क्या ट्वीट किया फिर किसे ट्रोल किया गया, फिर क्या बहस हुई, किस पौलिटिकल पार्टी को सपोर्ट करने वाले लेखक क्या लिख रहे हैं, किसे बुरा कह रहे हैं, अपनी फोटोज डालती, उन के लाइक्स और कमैंट्स गिनती, कभी खुश होती, कभी मायूस होती. धीरेधीरे दोनों सहेलियां एकदूसरे से दूर होती गईं.

सोशल मीडिया पर अपना ज्यादा समय बिताने की गलती नित्या समझने को तैयार नहीं थी. उस के पति भी उसे कई बार टोक चुके थे कि वह बस फोन ले कर बैठी रहती है, लिखतीपढ़ती नहीं है, पर उस के कानों पर जूं भी नहीं रेंग रही थी, उलटा साथी लेखिकाओं की उपलब्धियां देखदेख कर चिढ़ती रहती. खासतौर पर जयस्वी से तो उस की ईर्ष्या इतनी बढ़ चुकी थी कि वह कई बार सोचती, उसे ब्लौक ही कर दे. न उस की छपी कहानियों की उसे कोई तसवीर दिखेगी, न उस का खून जलेगा.

नित्या सचमुच बहुत अच्छा लिखती थी पर अब सोशल मीडिया का चसका उसे ले डूबा था और रहीसही कमी ईर्ष्या के भाव ने पूरी कर दी थी. अब उस के मन में लेखन के लिए नएनए विचार न उठते, पहले की तरह अब बातबात में उसे विषय न सूझते.

फिर एक दिन नित्या के जीवन में आई, सुरभि. उस के पड़ोस में आया यह नया परिवार उसे पहली नजर में खूब भाया. सुरभि का एक ही बेटा था. उस के पति नवीन अकसर टूर पर रहते. नित्या की उस से दोस्ती दिनबदिन खूब बढ़ती गई. वह अब लगभग रोज शाम को सुरभि के घर चली जाती, तो कभी उसे बुला लेती.

सुरभि की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी जितनी नित्या की थी. पर नित्या उसे सचमुच बहुत स्नेह देती, उस के हर काम आने के लिए तैयार रहती. जब सुरभि को पता चला कि नित्या एक अच्छी लेखिका भी है तो उस के लिए उस के दिल में सम्मान और बढ़ गया. सुरभि का साथ नित्या को अच्छा लगता. वह शाम होते ही सजतीसंवरती और फिर सुरभि के साथ शाम की सैर पर जाती. अब कभीकभी नित्या कुछ लिख भी लेती.

अचानक सुरभि ने नित्या से दूरी बनानी शुरू कर दी तो नित्या को जैसे एक झटका लगा. वह हैरान थी कि वह तो इतना प्यार करती है, फिर सुरभि अब उस से न मिलने के बहाने क्यों बनाने लगी है. कभी ताला लगा कर उस के आने से पहले ही सैर पर चली जाती, कभी उस का फोन भी न उठाती. नित्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस का मन हुआ कि वह उस से साफसाफ पूछेगी कि क्या उस की कोई बात उसे बुरी लगी है.

नित्या ने कोई कहानी लिखी थी, वह छपी तो पत्रिका ले कर नित्या खुशीखुशी सुरभि को दिखाने गई. सुरभि ने बेमन से उसे आ कर बैठने के लिए कहा. नित्या को बुरा लगा पर वह आज सुरभि से पूछने आई थी कि उसे उस की कौन सी बात बुरी लग गई है. सुरभि ने कहानी की तसवीर देख कर कहा, ‘‘बड़ी ऐश है आप की.’’

‘‘अरे, कैसी ऐश?’’

‘‘यही कि सजधज कर घूमते रहो, मूड हुआ तो लिख लो, सारे शौक पूरे कर लेती हैं आप तो. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम सब जगह अपना टाइम पास भी कर लेती हैं, एक हम हैं कि घर के कामों से ही फुरसत नहीं.’’

नित्या के सामने जैसे किसी ने आईना रख दिया हो. उसे लगा उस के सामने सुरभि नहीं, एक नित्या बैठी है और उस की खुद की जगह जयस्वी बैठी है. उसे जयस्वी को कही अपने बातें याद आईं.

नित्या ने कहा, ‘‘कैसी बातें कर रही हो? सुरभि, मैं तो खुशीखुशी तुम्हारे साथ टाइम बिताने आती हूं. मुझे अच्छा लगता है तुम्हारा साथ.’’

‘‘हां, जानती हूं, अच्छा ही लगता होगा यह दिखाना कि देखो, मेरे पास कितने सुंदरसुंदर कपडे़ हैं, देखो मैं कहानियां भी लिख सकती हूं, आप बस मेरे सामने शोऔफ करने आती हैं. मैं आप का स्वभाव जान चुकी हूं.’’

नित्या की आंखों में इस अजीब से अपमान के कारण आंसू आ गए, वह वापस

जाने के लिए उठ गई, सुरभि ने रोका भी नहीं. घर आ कर वह अपमानित सी बैड पर लेट गई. सोचने लगी कि सुरभि ने जो भी कहा, ईर्ष्यावश कहा. सुरभि की बातों में सिर्फ ईर्ष्या थी. उस ने तो कभी उस के सामने कोई भी शोऔफ नहीं किया. अचानक उसे अपने ही दिमाग में चल रहा ईर्ष्या शब्द जैसे झकझर गया. जो ईर्ष्यावश सुरभि ने उस के साथ किया, वह भी तो वैसा ही जयस्वी के साथ कर चुकी है. जयस्वी तो उसे हर जगह अपने साथ ले कर चलना चाहती थी.

वह उस के साथ उतनी मेहनत नहीं कर पा रही थी तो जयस्वी के प्रति अपने मन में ईर्ष्या को जगह दे कर इतनी निश्छल दोस्त को अपने से दूर कर बैठी है. उसे अपने प्रिय व्यंग्यकार हरिशंकर परसाईजी की लिखी बात याद आ गई कि सच्चा मित्र वही है जो अपने दोस्त की सफलता को पचा सके. उफ, कितना सच है यह. वह अपनी इतनी अच्छी दोस्त को यों ही खो बैठी थी. उस ने जयस्वी के प्रति अपने मन की दराज में रखे जलन, गुस्से और चिढ़ के भाव अचानक बाहर निकाल कर फेंक दिए.

ऐसा करते ही जैसे उस का मन का कोनाकोना कोमल भाव से चहक उठा. अचानक उठी, अपना फोन उठाया और जयस्वी का फोन नंबर मिला दिया. दोनों सहेलियां बहुत दिनों बाद फिर किताबों, कहानियों की बातें कर रही थीं.

Hindi Moral Tales : यह दोस्ती हम नहीं झेलेंगे

Hindi Moral Tales :  रात को 8 से ऊपर का समय था. मेरे खास दोस्त रामहर्षजी की ड्यूटी समाप्त हो रही थी. रामहर्षजी पुलिस विभाग के अधिकारी हैं. डीवाईएसपी हैं. वे 4 सिपाहियों के साथ अपनी पुलिस जीप में बैठने को ही थे कि बगल से मैं निकला. मैं ने उन्हें देख लिया. उन्होंने भी मुझे देखा.

उन के नमस्कार के उत्तर में मैं ने उन्हें मुसकरा कर नमस्कार किया और बोला, ‘‘मैं रोज शाम को 7 साढ़े 7 बजे घूमने निकलता हूं. घूम भी लेता हूं और बाजार का कोई काम होता है तो उसे भी कर लेता हूं.’’

‘‘क्या घर चल रहे हैं?’’ रामहर्षजी ने पूछा.

मैं घर ही चल रहा था. सोचा कि गुदौलिया से आटोरिकशा से घर चला जाऊंगा पर जब रामहर्षजी ने कहा तो उन के कहने का यही तात्पर्य था कि जीप से चले चलिए. मैं आप को छोड़ते हुए चला जाऊंगा. उन के घर का रास्ता मेरे घर के सामने से ही जाता था.

लोभ विवेक को नष्ट कर देता है. यही लोभ मेरे मन में जाग गया. नहीं तो पुलिस जीप में बैठने की क्या जरूरत थी. रामहर्षजी ने तो मित्रता के नाते ऐसा कहा था पर मुझे अस्वीकार कर देना चाहिए था.

यदि मैं पैदल भी जाता तो 20-25 मिनट से अधिक न लगते और लगभग 15 मिनट तो जीप ने भी लिए ही, क्योंकि सड़क पर भीड़ थी.

‘‘जाना तो घर ही है,’’ मैं ने जैसे प्रसन्नता प्रकट की.

‘‘तो जीप से ही चलिए. मैं भी घर ही चल रहा हूं. ड्यूटी खत्म हो गई है. आप को घर छोड़ दूंगा.’’

पुलिस की जीप में बैठने में एक बार संकोच हुआ, पर फिर जी कड़ा कर के बैठ गया. मैं अध्यापक हूं, इसलिए जी कड़ा करना पड़ा. अध्यापकी बड़ा अजीब काम है. सारा समाज अपराध करे पर जब अध्यापक अपराध करता है तो लोग कह बैठते हैं कि अध्यापक हो कर ऐसा किया. छि:-छि:. कोई यह नहीं कहता कि व्यापारी ने ऐसा किया, नेता ने ऐसा किया या अफसर ने ऐसा किया. अध्यापक से समाज सज्जनता की अधिक आशा करता है.

बात भी ठीक है. मैं इस से सहमत हूं. समाज को बनाने की जिम्मेदारी दूसरों की भी है पर अध्यापक की सब से ज्यादा है. दूसरों का आदर्श होना बाद में है, अध्यापक को पहले आदर्श होना चाहिए.

मैं जीप में बैठ गया. रामहर्षजी ड्राइवर की बगल में बैठे. बाद में 4 सिपाही बैठे. 2 सामने और 1-1 मेरी अगलबगल.

जीप चल पड़ी.

जैसे ही जीप थोड़ा आगे बढ़ी, मैं ने चारों तरफ देखा. अगलबगल में इक्का, रिकशा, तांगा और कारें आजा रही थीं. किनारों पर दाएंबाएं लोग पैदल आजा रहे थे.

जीप में मेरे सामने बैठे दोनों सिपाही डंडे लिए थे, जबकि अगलबगल में बैठे सिपाहियों के हाथों में बंदूकें थीं. मैं चुपचाप बैठा था.

एकाएक मेरे दिमाग में अजीब- अजीब से विचार आने लगे. मेरा दिमाग सोच रहा था, यदि किसी ने मुझे पुलिस की जीप में सिपाहियों के बीच में बैठे देख लिया तो क्या सोचेगा. क्या वह यह नहीं सोचेगा कि मैं ने कोई अपराध किया है और पुलिस मुझे पकड़ कर ले जा रही है. पुलिस शरीफ लोगों को नहीं पकड़ती, अपराधियों को पकड़ती है.

मेरा चेहरा भी ऐसा है जो उदासी भरा गंभीर सा बना रहता है, हंसने में मुझे कठिनाई होती है. लोग जिन बातों पर ठहाके लगाते हैं, मैं उन पर मुसकरा भी नहीं पाता. मेरा स्वभाव ही कुछ ऐसा है- मनहूसोें जैसा.

अपने अपराधी होने की बात जैसे ही मेरे मन में आई, मैं घबराने लगा. शरीर से पसीना छूटने लगा. मन में पछतावा होने लगा कि यह मैं ने क्या किया. 10 रुपए के लोभ में इतनी बड़ी गलती कर डाली. अब बीच में जीप कैसे छोड़ूं. यदि मैं कहूं भी कि मुझे यहीं उतार दीजिए तो मेरे मित्र रामहर्षजी क्या सोचेंगे. प्रेम और सज्जनता के नाते ही तो उन्होंने मुझे जीप में बैठा लिया था.

मेरी मानसिक परेशानी बढ़ती जा रही थी. बचने का कोई उपाय सूझ नहीं रहा था. एकतिहाई दूरी पार कर चुका था. यदि अब आटोरिकशा से जाता या पैदल जाता तो व्यावहारिक न होता. मुझे यह ठीक नहीं लगा कि इतनी आफत झेल लेने के बाद जीप से उतर पड़ूं.

जीप आगे बढ़ रही थी. तभी मेरे एक मित्र शांतिप्रसादजी मिले. उन्होंने मुझे जीप में देखा पर मैं ने ऐसा बहाना बनाया मानो मैं उन्हें देख नहीं रहा हूं. उन्होंने मुझे नमस्कार भी किया पर मैं ने उन के नमस्कार का उत्तर नहीं दिया.

नमस्कार करते समय शांतिप्रसादजी मुसकराए थे. तो क्या यह सोच कर कि पुलिस मुझे पकड़ कर ले जा रही है, लेकिन शांतिप्रसाद के स्वभाव को मैं जानता हूं. वे मेरी तकलीफ पर कभी हंस नहीं सकते, सहानुभूति ही दिखा सकते हैं. फिर भी मैं यह सोच कर परेशान हो रहा था कि शांति भाई मुझे पुलिस की जीप में बैठा देख कर न जाने क्या सोच रहे होंगे. यदि सचमुच उन्होंने मेरे बारे में गलत सोचा या यही सोचा कि पुलिस गलती से मुझे गिरफ्तार कर के ले जा रही है, तब भी वे बड़े दुखी होंगे.

अब पुलिस की जीप में बैठना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था. मैं बारबार पछता रहा था कि क्यों जरा से पैसे के लोभ में आ कर पुलिस की गाड़ी में बैठ गया. अब तक न जाने मुझे कितने लोग देख चुके होंगे और क्याक्या सोच रहे होंगे.

चलतेचलते एकाएक जीप रुक गई. रामहर्षजी उतरे और 2 ठेले वालों को भलाबुरा कहते हुए डांटा. ठेले वाले ठेला ले कर भागे. वास्तव में उन ठेले वालों से रास्ता जाम हो रहा था, पर मित्र महोदय ऐसी भद्दीभद्दी गालियां दे सकते हैं, यह सुन कर मैं आश्चर्य में पड़ गया. हालांकि दूसरे पुलिस वालों को मैं ने उस से भी भद्दी बातें कहते हुए सुना है, पर एक अध्यापक का मित्र ऐसी बातें करेगा, यह अजीब लगा. लग रहा था मैं ने बहुत बड़ी भूल की है. मैं कहां फंस गया, किस जगह आ गया. लोग क्या जानें कि डीवाईएसपी रामहर्षजी मेरे मित्र हैं. लोग तो यही जानेंगे कि रामहर्षजी पुलिस अधिकारी हैं और मैं किसी कारण जीप में बैठा हूं, शायद किसी अपराध के कारण.

जब जीप रुकी हुई थी और रामहर्षजी ठेले वालों को डांट रहे थे, राजकीय इंटर कालेज के अध्यापक शशिभूषण वर्मा बगल से निकले. उन्होंने मुझे पुलिस के साथ जीप में देखा तो रुक गए, ‘‘अरे, विशेश्वरजी, आप. क्या बात है? कोई घटना घटी क्या. मैं साथ चलूं?’’

इस समय मैं शशिभूषण को न देखने का बहाना नहीं कर सकता था. बोला, ‘‘जीप गुदौलिया से लौट रही थी. डीवाईएसपी साहब ने मुझे जीप में बैठा लिया कि आप को घर छोड़ देंगे. डीवाईएसपी साहब मेरे मित्र हैं.’’

फिर मैं ने हंस कर कहा, ‘‘मैं ने कोई अपराध नहीं किया है. आप चिंता मत करिए. मैं न थाने जा रहा हूं, न जेल,’’ यह सुन कर मेरे मित्र शशिभूषण भी हंस पड़े. सिपाहियों को भी हंसी आ गई.

रामहर्षजी सड़क की भीड़ को ठीकठाक कर के जीप में आ कर बैठ गए थे. ड्राइवर ने जीप स्टार्ट की. आगे फिर थोड़ी भीड़ मिली. पुलिस की गाड़ी देख कर भीड़ अपनेआप इधरउधर हो गई और जीप आगे बढ़ती चली गई.

मेरा घर अभी भी नहीं आया था जबकि कई लोग मुझे मिल चुके थे. मैं चाह रहा था कि घर आए और मुझे पुलिस जीप से मुक्ति मिले. अब तक मैं काफी परेशान हो चुका था.

आखिर घर आया. जीप दरवाजे पर रुकी. मेरा छोटा बेटा पुलिस को देख कर डरता है. वह घर में भागा और दादी को पुलिस के आने की सूचना दी.

मां, दौड़ीदौड़ी बाहर आईं. मैं तब तक जीप से उतर कर दरवाजे पर आ गया था. उन्होंने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या बात है. तुम पुलिस की जीप में क्यों बैठे थे? किसी से झगड़ा तो नहीं हुआ. मारपीट तो नहीं हो गई. कहीं चोट तो नहीं लगी है. फिर तो सिपाही घर नहीं आएंगे?’’

‘‘मां, तुम तो यों ही डर रही हो,’’ मैं ने मां को सारी बात बताई.

वे बोलीं, ‘‘मैं तो डर ही गई थी. आजकल पुलिस बिना बात लोगोें को परेशान करती है. अखबार में मैं रोज ऐसी घटनाएं पढ़ती रहती हूं. गुंडेबदमाशों का तो पुलिस कुछ कर नहीं पाती और भले लोगों को सताती है.’’

‘‘अरे, नहीं मां, रामहर्षजी ऐसे आदमी नहीं हैं. वे मेरे बड़े अच्छे मित्र हैं. तभी तो उन्होंने मुझे जीप में बैठा लिया था. वे कभी किसी को बेमतलब परेशान नहीं करते.’’

‘‘चलो, ठीक है,’’ बात समाप्त हो गई.

घर आ कर मैं ने कपड़े बदले, हाथमुंह धोया और बैठक में बैठ कर चाय पीने लगा.

‘‘टन…टन…टन…’’ घंटी बजी. मैं ने दरवाजा खोला.

‘‘आइए, आइए, आज कहां भूल पड़े,’’ मैं ने हंस कर रामपाल सिंह से कहा. रामपाल सिंह मेरे फुफेरे भाई हैं.

बैठक में आ कर कुरसी पर बैठते ही रामपाल सिंह बोले, ‘‘भाई, मैं तो घबरा कर आया हूं. लड़के ने तुम को नई सड़क पर पुलिस जीप से जाते देखा था. पुलिस बगल में बैठी थी. क्या बात थी. तुम्हें पुलिस क्यों ले जा रही थी? मैं यही जानने आया हूं्.’’

मैं ने रामपाल सिंह को सारा किस्सा बताया. फिर यह कहा, ‘‘मुझे पुलिस जीप में बैठा देख कर न जाने किसकिस ने क्याक्या सोचा होगा और न जाने कौनकौन परेशान हुआ होगा.’’

‘‘तब आप को पुलिस जीप में नहीं बैठना चाहिए था. जिस ने देखा होगा, उसे ही भ्रम हुआ होगा. हमलोग अध्यापक हैं,’’ वे बोले.

‘‘आप ठीक कहते हैं भाई साहब, मुझे अपने किए पर बहुत दुख हुआ. आज मैं ने यही अनुभव किया. आज मैं ने कान पकड़ लिए हैं. ऐसा नहीं होगा कि फिर कभी किसी पुलिस जीप में बैठूं.’’

मैं अभी बात कर ही रहा था कि हमारे एक पड़ोसी घबराए हुए आए और मेरा हालचाल पूछने लगे. चाय फिर से आ गई थी और तीनों चाय पी रहे थे. पुलिस जीप में बैठने की बात मैं अपने पड़ोसी को भी बता रहा था. मेरी बात पड़ोसी सुन कर खूब हंसे.

मैं पुलिस जीप में क्या बैठा, एक आफत ही मोल ले ली. एक बूढ़ी महिला मेरी मां से इसी बारे में पूछने आईं, एक पड़ोसिन ने श्रीमतीजी से पूछा और एक महाशय ने रात के 11 बजे फोन कर के बगल वाले घर में बुलाया, क्योंकि मेरे घर में फोन नहीं है. मैं मोबाइल रखता हूं जिस का नंबर उन के पास नहीं था. फोन पर उन्होंने पूरी जानकारी ली.

2 व्यक्ति दूसरे दिन भी मेरा हालचाल लेने आए, ‘‘भाई साहब, हम तो डर ही गए थे इस बात को सुन कर.’’

तीसरे दिन दोपहर को एक महाशय जानकारी लेने आए और कालेज में प्रिंसिपल ने पूरी जानकारी ली.

यद्यपि इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि शहर में मेरे प्रति लोगों की बड़ी अच्छी धारणा है तथा मेरे शुभचिंतकों की संख्या काफी अधिक है, पर अब मैं ने 2 प्रतिज्ञाएं भी की हैं, पहली, कि मैं कभी लोभ नहीं करूंगा और दूसरी, कि कभी पुलिस की जीप में नहीं बैठूंगा. पहली प्रतिज्ञा में कभी गड़बड़ी हो भी जाए, पर दूसरी प्रतिज्ञा का तो आजीवन पालन करूंगा.

रामहर्षजी गुदौलिया में बाद में भी मिले हैं और उन्होंने जीप में बैठने का प्रेमपूर्वक आग्रह भी किया है, पर मैं किसी न किसी बहाने टाल गया. जरा से लोभ के लिए अब प्रतिज्ञा तोड़ कर परेशानी में न पड़ने की कसम जो खा रखी है.

Famous Hindi Stories : ब्रैंड दीवानी – क्या था सुमित का जवाब

Famous Hindi Stories : भव्या बहुत देर तक मौल में इधरसेउधर घूमती रही. आखिकार उस के पति अक्षर ने झंझला कर कहा, ‘‘लेना क्या है तुम्हें? एक बार ले कर खत्म करो.’’

भव्या की मोटीमोटी आंखों में आंसू आ गए. रोंआसी आवाज में बोली, ‘‘मुझे मीना बाजार की साड़ी ही पसंद आ रही हैं.’’

‘‘तो ले लो, क्या समस्या हैं?’’ अक्षर बोला.

भव्या ?िझकते हुए बोली, ‘‘बहुत महंगी है, 20 हजार की.’’

भव्या यह साड़ी करवाचौथ के लिए लेना चाहती थी, इसलिए अक्षर उस का दिल नहीं तोड़ना चाहता था. अत: भव्या को साड़ी दिलवा दी थी. भव्या बेहद खुश हो गई.

फिर दोनों मेकअप का सामान लेने चले गए. वहां पर भी भव्या ने महंगे ब्रैंड का सामान लिया. यही कहानी चप्पलों और अन्य सामान खरीदते हुए दोहराई गई.

जब भव्या और अक्षर मौल से बाहर निकले तो अक्षर अपनी आधी तनख्वाह भव्या के ब्रैंडेड सामान पर खर्च कर चुका था.

भव्या घर आ कर अपनी सास मृदुला को सामान दिखाने लगी तो मृदुला बोलीं, ‘‘बेटा इतने महंगे कपड़े खरीदने की क्या जरूरत थी? मैं तुम्हें सरोजनी नगर मार्केट ले चलती, इस से भी अच्छे और सुंदर कपड़े मिल जाते.’’

भव्या बोली, ‘‘मम्मी मगर वे ब्रैंडेड नहीं होते न. ब्रैंडेड चीजों की बात ही कुछ और होती है. मुझे तो ब्रैंडेड चीजें बेहद पसंद हैं.’’

करवाचौथ के रोज भव्या बहुत प्यारी लग रही थी. लाल रंग की साड़ी में एकदम शोला लग रही थी.

रात को चांद निकल गया था और बहुत हंसीखुशी के माहौल में जब पूरा परिवार

डिनर करने के लिए बैठा तो भव्या बोली, ‘‘अक्षर मेरा गिफ्ट कहां है?’’

अक्षर ने अपनी जेब से एक अंगूठी निकाली तो भव्या बोली, ‘‘यह क्या किसी लोकल ज्वैलरी शौप से लाए हो तुम? तनिष्क, जीवा कोई भी ब्रैंड नहीं मिला तुम्हें?’’

और फिर भव्या बिना खाना खाए पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई.

अक्षर अपमानित सा डाइनिंगटेबल पर बैठा रहा. सब की भूख मर गई थी.

मृदुला अक्षर से बोलीं, ‘‘बेटा तुम परेशान मत हो. धीरेधीरे ही सही भव्या हमारे रंग में रंग जाएगी.’’

अक्षर बोला, ‘‘3 साल तो हो गए हैं मम्मी, आखिर कब समझेगी भव्या?’’

जब अक्षर कमरे में पहुंचा तो भव्या अपनी मम्मी से वीडियो कौल पर बात कर रही थी.

रात में भव्या बोली, ‘‘पता है तुम्हें अंशिका दीदी को जीजू ने करवाचौथ पर तनिष्क का डायमंड सैट गिफ्ट किया है. तुम ने दी है बस यह अंगूठी वह भी ऐसी ही.’’

अक्षर गुस्सा पीते हुए बोला, ‘‘भव्या, अंशिका का पति इतने महंगे गिफ्ट अफोर्ड कर सकता होगा, मैं नहीं कर सकता हूं.’’

भव्या बोली, ‘‘अरे सब लोग करवाचौथ पर अपनी बीवी के लिए क्याक्या नही करते और एक तुम हो?’’

‘‘आगे से मेरे लिए यह व्रत करने की जरूरत नही है,’’ अक्षर गुस्से में बोला.

भव्या जोरजोर से रोने लगी. अक्षर बिना कुछ कहे पीठ फेर कर सो गया. अक्षर और भव्या के मध्य यह बात इतनी बार दोहराई गई है कि अब दोनों को ऐसे ही रात बिताने की आदत पड़ गई थी.

सुबह अक्षर और भव्या के बीच अबोला ही रहा. मगर शाम को अक्षर भव्या के लिए उस की पसंद की आइसक्रीम ले आया. आइसक्रीम पकड़ाते हुए बोला, ‘‘भव्या मेरा दोस्त सुमित और उस की पत्नी शालिनी कल रात खाने पर आएंगे.’’

भव्या एकदम से उत्साहित होते हुए बोली, ‘‘सुमित वह ही दोस्त है न जिस ने शादी में मुझे बांबेसिलैक्शन की बेहद प्यारी औरगेंजा की साड़ी गिफ्ट करी थी?’’

अक्षर हंसते हुए बोला, ‘‘हां वह ही है.’’

भव्या सुमित से पहले 2 बार मिल चुकी थी और दोनों ही बार भव्या सुमित की पर्सनैलिटी और उस के शाही अंदाज से प्रभावित थी. आज तक भव्या ने सुमित की पत्नी शालिनी को देखा नहीं था, मगर बस सुना था कि शालिनी बेहद सुलझ हुई महिला हैं.

शाम को जब शालिनी और सुमित आए तो शालिनी को देख कर भव्या चौंक गई. सुमित के शानदार व्यक्तित्व के आगे शालिनी कहीं भी नही ठहरती थी.

शालिनी का रंग दबा हुआ था और कद भी छोटा था. जहां सुमित ने चमचमाता हुआ सूट पहना हुआ था वहीं शालिनी एक सिंपल सी कौटन की साड़ी में बेहद सामान्य लग रही थी.

भव्या ने देखा जहां सुमित बातचीत में भी निपुण था वहीं शालिनी अधिकतर मौन रहती. सुमित ने स्टार्टर्स के बाद शालिनी से कहा, ‘‘भई भव्या भाभी का गिफ्ट तो दो, जो हम लाए हैं.’’

शालिनी ने मुसकराते हुए भव्या को 2 पैकेट्स पकड़ा दिए.

भव्या बोली, ‘‘क्या दोनों मेरे लिए हैं?’’

‘‘जी भाभी,’’ सुमित बोला.

तभी भव्या तुनक कर बोली, ‘‘मुझे आप भव्या कह सकते हो, मैं आप दोनों से ही छोटी हूं.’’

अक्षर भी बोला, ‘‘हां भई भव्या ठीक कह रही हैं.’’

भव्या ने जल्दीजल्दी पैकेट खोले, ‘‘एक पैकेट में हैदराबाद के सच्चे मोतियों का सैट था तो दूसरे में जयपुरी बंदेज की लाल रंग की साड़ी.’’

भव्या ?िझकते हुए बोली, ‘‘मैं इतने महंगे गिफ्ट कैसे ले सकती हूं?’’

सुमित बोला, ‘‘अरे भव्या तुम्हारी खूबसूरती के सामने तो सब फीका है.’’

एकाएक सब चुप हो गए, सुमित अपनी जीभ काटते हुए बोला, ‘‘तोहफे की कीमत नहीं, देने वाले की भावना समझनी चाहिए.’’

भव्या मगर उस पूरी शाम सुमित के आगेपीछे घूमती रही. उसे अच्छे से पता था कि सुमित उस की खूबसूरती का कायल है और दिल से भी दिलदार है. अगर वह थोड़ाबहुत उस से हंसबोल लेगी तो क्या ही बुरा होगा. बेचारा सुमित कितने महंगे और ब्रैंडेड गिफ्ट्स देता है और एक उस की ससुराल वाले हैं जो हमेशा कंजूसी करते हैं.

रात को भव्या ने वही साड़ी पहन कर देखी. वास्तव में भव्या उस साड़ी में शोला लग रही थी. फिर न जाने क्या सोचते हुए भव्या ने अपनी एक सैल्फी खींची और एकाएक सुमित को भेज दी.

तुरंत सुमित का रिप्लाई आया, ‘‘साड़ी की कीमत तो अब वसूल हुई है. मैं ने तुम्हारे लिए एकदम सही कलर चुना था.’’

भव्या का मैसेज पढ़ कर रंग लाल हो गया. उसे शर्म भी आ रही थी कि क्यों उस ने सुमित को फोटो भेजा. पर अब क्या कर सकती थी?

रात को नहा कर भव्या निकली ही थी कि उस के फोन पर सुमित के 2 मैसेज आए थे. भव्या ने बिना पढ़े ही छोड़ दिए. उसे एकाएक अक्षर को देख कर ग्लानि हो रही थी.

अगले दिन जब भव्या शाम को दफ्तर से घर पहुंची तो सुमित वहीं बैठा था.

अक्षर बोला, ‘‘भव्या सुमित की थोड़ी मदद कर दो. अगले हफ्ते भाभी का जन्मदिन है, सुमित को भाभी के लिए गिफ्ट सलैक्ट करना है.’’

भव्या बोली, ‘‘तुम नहीं चलोगे?’’

‘‘नहीं कल एक जरूरी प्रेजैंटेशन है,’’

अक्षर बोला.

भव्या ने निर्णय ले लिया कि वह सुमित से दूरी बना कर रखेगी.

गाड़ी में बैठ कर सब से पहले कार तनिष्क के शोरूम के आगे रुकी.

सुमित बोला, ‘‘अच्छा सा ब्रेसलेट और झमके पसंद करो.’’

भव्या ठंडी सांस भरते हुए खुद का कोस

रही थी.

जब सुमित ने 5 लाख का बिल चुकाया

तो भव्या बोली, ‘‘अक्षर तो कभी इतना खर्च

नहीं करेंगे.’’

सुमित बोला, ‘‘आप के पति हमारी तरह दिलदार नहीं हैं.’’

भव्या ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया.

फिर सुमित ने भव्या की पसंद से सूट, साड़ी खरीदी.

सुमित फिर भव्या से बोला, ‘‘चलो काफी देर हो गई, डिनर कर लेते हैं.’’

भव्या का मन था मगर फिर भी उस ने ऊपरी मन से कहा, ‘‘नहीं घर पर अक्षर इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ सुमित बोला.

भव्या को मन ही मन बहुत गुस्सा भी आ रहा था कि क्या वो कोई नौकर है जो सुमित की बीवी के लिए शौपिंग कर के अपना समय बरबाद करे. घर आ कर उस ने सुमित से बोल दिया कि वह आगे से नहीं जाएगी.

रातभर भव्या की आंखों के सामने वह हीरे का ब्रेसलेट और वह कपड़े घूमते रहे.

अगले दिन शालिनी का जन्मदिन था. भव्या बिना मन पार्टी में जाने के लिए तैयार हुई. शालिनी आज दर्शनीय लग रही थी. सुमित शालिनी के आगेपीछे घूम रहा था. न जाने क्यों भव्या के पूरे शरीर में आग लग गई.

तभी केक काटने का ऐलान हो गया. सुमित ने शालिनी के हाथों में उपहार की डब्बी पकड़ा दी.

शालिनी ने खोल कर देखा तो हीरे के झमके जगमगा रहे थे. शालिनी खुशी से सुमित के गले लग गई.

भव्या सोच रही थी कि सुमित ने ब्रेसलेट क्यों नहीं दिया. फिर बात आईगई हो गई.

एक रोज भव्या के मोबाइल पर सुमित का मैसेज था कि कोई अर्जेंट काम है. वह

दफ्तर में लंचटाइम पर उस के पास आ रहा है. न जाने क्यों भव्या मना नहीं कर पाई. लंचटाइम तक भव्या का काम में मन नहीं लग पाया. सुमित की मर्सिडीज, दौलत, उस की दिलदारी न चाहते हुए भी भव्या को खींचती थी.

भव्या ने आखिरी बार अपनेआप को बाथरूम के मिरर में देखा और फिर बालों पर आखिरी बार ब्रश फेर कर भव्या बाहर निकल गई.

सुमित रास्ते भर इधरउधर की बातें करता रहा. भव्या भी हांहूं में जवाब देती रही.

लंच और्डर करने से पहले सुमित बोला, ‘‘हाथ आगे करो भव्या,’’ फिर सुमित ने बिना कुछ कहे भव्या की कलाई में वह ब्रेसलेट पहना दिया और धीमे से बोला, ‘‘हैप्पी बर्थडे इन एडवांस.’’

भव्या की आंखों में हीरे से भी अधिक चमक थी. उल्लासित सी भव्या बोली, ‘‘यह आप ने मेरे लिए लिया था? पर मैं इतना महंगा तोहफा कैसे ले सकती हूं.’’

सुमित बोला, ‘‘कह देना तुम ने खरीदा है. तुम्हीं इस की असली हकदार हो.’’

भव्या अंदर से जानती थी यह गलत है, मगर हीरे के ब्रेसलेट का लालच भव्या पर हावी हो गया कि वह मना नहीं कर पाई.

जब शाम को भव्या घर पहुंची तो बेहद खुश थी. उस की गोरी कलाई पर ब्रेसलेट बेहद फब रहा था. उस ने अपने घर में सब से झठ बोल दिया कि यह ब्रेसलेट उस ने क्रैडिट कार्ड से खरीदा.

भव्या रातदिन सुमित के साथ चैट करती रहती थी. सुमित भव्या की जिंदगी में ताजा हवा के झंके की तरह आया था. भव्या का लालच उसे किस राह पर ले कर जा रहा था, यह खुद भव्या को भी समझ नहीं आ रहा था.

सुमित और भव्या हफ्ते में 2-3 बार मिल लेते थे. सुमित एक दौलतमंद इंसान था जिसे खूबसूरत लड़कियों के साथ फ्रैंडशिप करने का शौक था. वह सामान की तरह लड़कियां बदलता था. इस बात का अक्षर को पता था, मगर उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सुमित उस की पत्नी भव्या के साथ भी वही खेल खेलेगा.

एक दिन अक्षर ने भव्या को सुमित के साथ देख भी लिया. जब अक्षर ने भव्या से पूछा तो भव्या बोली, ‘‘अरे मैं और सुमित बस अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं.’’

अक्षर ने कहा, ‘‘यह दोस्ती कब और कैसे हो गई?’’

भव्या ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम मुझ पर शक कर रहे हो?’’

अक्षर शांति से बोला, ‘‘तुम पर नहीं भव्या, मैं सुमित के मंसूबों पर शक कर रहा हूं. ध्यान रहे कि तुम बस उस की दोस्त ही रहो.’’

जब भव्या ने यह बात सुमित को बताई तो वह गुस्से में बोला, ‘‘अक्षर जैसे लोग ऐसा ही सोचते हैं… उन्हें न खुद खुश रहना है और न दूसरों को रहने देना है. अगर हमारी मुलाकातें हम दोनों को खुशी देती हैं तो उस में क्या गलत है? मैं और तुम कोई बेवफाई थोड़े ही कर रहे हैं?’’

भव्या ने भी चुपचाप सिर हिला दिया.

अक्षर ने भव्या के व्यवहार में आए परिवर्तन को अनुभव कर लिया था. वह सामने से और इशारों में बहुत बार भव्या को समझ चुका था, मगर भव्या ने उस की बातों को कानों पर ही टाल दिया.

विवाह के 3 सालों में पहली बार उसे इतना रोमांचक अनुभव हो रहा था वरना तो शादी के बाद से ही अक्षर की कंजूसी से तंग आ चुकी थी. पिछले माह ही तो वह सुमित के साथ लेह लद्दाख घूम आई थी. मगर सुमित चंद माह में ही भव्या से उकता गया. वैसे भी वह अक्षर की बीवी थी इसलिए सुमित अब इस रिश्ते पर पूर्णविराम लगाना चाहता था.

उधर भव्या इस खुशफहमी में जी रही थी कि उस का और सुमित का रिश्ता हमेशा ऐसे ही चलता रहेगा.

पिछले 1 हफ्ते से सुमित ने एक बार भी भव्या को पिंग नहीं किया तो वह

बेचैन हो गई. उस ने सुमित को खुद ही 2-3 मैसेज किए, मगर वे अनरीड ही रहे. भव्या को सुमित का बरताव समझ नहीं आ रहा था, इसलिए 10 दिन के बाद वह खुद ही सुमित के औफिस जा धमकी.

भव्या को देख कर सुमित सकपका गया. बोला, ‘‘अरे मैं तुम्हें मैसेज करने ही वाला था.भव्या मुझे लगता है अब इस दोस्ती को यहीं खत्म कर देते हैं.’’

भव्या बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘तुम मेरे दोस्त की बीवी हो, अगर उसे पता चल गया तो ठीक नहीं होगा,’’ सुमित बोला

‘‘पता लग जाने दो, मैं भी अब दोहरी जिंदगी से तंग आ गई हूं,’’ भव्या बोली.

सुमित अचकचाते हुए बोला, ‘‘भव्या यह क्या कह रही हो तुम? क्या इस टाइमपास को कुछ और समझने लगी हो? देखो भव्या जैसे तुम्हें अलगअलग ब्रैंड के सामान का शौक है वैसे ही मुझे अलगअलग ब्रैंड की लड़कियों का शौक है. तुम भी तो एक ही ब्रैंड से बोर हो जाती होगी तो मेरे साथ भी वैसा ही है.’’

भव्या सुमित के जवाब से ठगी खड़ी रह गई. यह महंगे ब्रैंड के सामान का शौक उसे कभी ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर देगा, उस ने कभी सोचा नहीं था. सुमित के लिए वह एक इंसान नहीं, एक ब्रैंड है, एक सामान है. भव्या ने हीरे का ब्रेसलेट सुमित की टेबल पर रखा और चुपचाप बाहर निकल गई. उसे समझ आ गया था कि सामान के ब्रैंड से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है इंसान का ब्रैंडेड होना.

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