Chilli Potato: टेस्ट में ट्विस्ट

Chilli Potato : ‘बारिश के मौसम में चटपटे जायके भी चखने हैं और कुछ नया भी चाहिए तो ये रैसिपीज आप के लिए ही हैं.’

चिली पोटैटो सामग्री

– 200 ग्राम आलू
– 20 ग्राम कौर्नफ्लोर
– 30 ग्राम लहसुन
– 15 ग्राम अदरक
– 20 एमएल टोमैटो सौस
– 10 एमएल चिली सौस
– 5 एमएल सिरका
– 25 एमएल शहद
– 5 ग्राम सफेद तिल
– थोड़ा सा हरा प्याज कटा
– 100 एमएल तेल
– नमक स्वादानुसार.

विधि

आलुओं के छिलके उतार कर लंबा पतला काट कर थोड़ी देर ठंडे पानी में छोड़ दें. फिर सौस बनाने के लिए एक कड़ाही में प्याज, अदरकलहसुन, शहद, चिली सौस और सिरका डाल कर अच्छी तरह चलाएं. जब सौस तैयार हो जाए तब कटे आलुओं के टुकड़ों को कौर्नफ्लोर में डिप कर के क्रिस्पी होने तक डीप फ्राई करें. फिर एक प्लेट में निकाल कर हरे प्याज और सफेद तिल से गार्निश कर सर्व करें.

Hindi Story: एलियन से प्रेम

Hindi Story: आखिर कौन था वह आदमी जिस की खातिर निशा बेचैन हो उठती थी? उस की बेचैनी उस दिन और बढ़ गई जब उस ने एक शाम छत से किसी बेजान शरीर को श्मशान की तरफ ले जाते देखा…

‘‘अभी तक तो जीवन में गति ही नहीं थी, फिर अब यह जीवन इतनी तेजी से क्यों भाग रहा है? सालों बाद ऐसा क्यों महसूस हो रहा है?’’ आधी रात बीत  चुकी थी और घड़ी की टिक… टिक… टिक… करती आवाज.

चारों तरफ कमरे में अंधेरा था, मगर लैंप की रोशनी में घड़ी को निहारती निशा की आंखें थकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. ये आंखें शायद कह रही थीं कि अगर यह घड़ी रुक जाए तो शायद समय भी ठहर जाए, फिर तो जिंदगी अपनेआप ठहर जाएगी. इसी इंतजार में निशा अभी तक के जीवन का तोलमोल करती न जाने कब तक बैठी सोचती रही कि कभी इतना एकाकीपन न था मगर आज?

औफिस के छोटे से उस कैबिन में 7 लोग बैठते थे. उंगलियां कंप्यूटर पर काम करती थीं, मगर  हर समय हंसीमजाक और ठहाके. निशा भी उन में से एक थी, मगर क्या मजाल जो चेहरे पर कभी मुसकराहट की एक छोटी सी भी लकीर दिखाई दे जाए. उधर से कमैंट मिलते, ‘‘हंसने में भी टैक्स लगता है क्या?’’

निशा जैसी थी वैसी ही थी. कोई परिवर्तन नहीं, सालों से एक ही जीवन, एक ही रूटीन, एक ही व्यवहार, कहीं कोई बदलाव नहीं. न कोई इच्छा, न आकांक्षा, न जीवन के प्रति कोई चाहत. जीवन यों ही दौड़ता चला जा रहा था, मगर रोकने का कोई प्रयास भी नहीं, सिर्फ चलते रहो, गतिहीन जीवन का एहसास लिए. न पीछे मुड़ने की चाहत, न सामने देखने की इच्छा…यही थी निशा.

उन 7 लोगों में 3 महिलाएं और 3 पुरुष थे. 7वीं निशा थी, जिस के बारे में यह कहा जा सकता था रक्तमांस से बना एक पुतला जिसमें जान डाल दी गई थी. इसलिए उसे स्त्री या पुरुष न कह कर इंसान कहा जाए तो बेहतर होगा.

निशा की बगल वाली कुरसी पर नेहा बैठती थी. हर समय हंसीमजाक. निशा उस में शामिल नहीं होती, मगर विरोध भी नहीं करती. सभी की बातें सुनती जवाब भी देती, लेकिन अपनी उसी धीरगंभीर मुद्रा में.

नेहा हमेशा निशा को टोकती, ‘‘निशा, तुम शादी क्यों नहीं करती?’’

निशा अपनी उसी चिरपरिचित मुद्रा में जवाब देती. ‘‘कोई मिले तब तो करूं.’’

तब नेहा गुस्से में कहती. ‘‘क्यों इतनी बड़ी दुनिया में पुरुषों की कमी है क्या? कहो तो मैं बात करूं?’’

‘‘मगर मेरे लायक तो इस दुनिया में कोई है ही नहीं. मेरे खयाल से अभी उस ने जन्म ही नहीं लिया है.’’

‘‘इतना घमंड,’’ नेहा ऊंचे स्वर में बोलती.

‘‘इस में घमंड की क्या बात है, जो सही है वही कहा है मैं ने,’’ निशा सहज भाव से कहती.

‘‘इस धरती पर तो तुम्हारा कोई है ही नहीं. कहो तो दूसरे ग्रह से किसी एलियन को पकड़ कर लाती हूं, उसी से कर लेना,’’ नेहा मुंह बना कर कहती.

‘‘अगर मेरे लायक होगा तो उसी से कर लूंगी,’’ निशा सहज हो कर कहती.

एमबीए करने के बाद निशा को इस मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते हुए 10 वर्ष गुजर गए थे. उस के साथ काम करने वाले कितने लोग आए और कंपनी छोड़ कर चले गए. मगर निशा ने इस कंपनी को नहीं छोड़ा. इस बडी सी दुनिया में निशा के जीवन के 2 ही आधार थे- एक उस की यह कंपनी और दूसरा वह घर जहां वह पेइंगगैस्ट थी या यों कहें तो जीवन जीने का बहाना.

गोपाल मजाक में कभी निशा को कहते, ‘‘निशाजी आप की खूबसूरती पर तरस आता है.’’

‘‘क्यों?’’ निशा मौनिटर की तरफ देखती हुई पूछती.

‘‘इस खूबसूरती को छूने वाली आंखें कहां हैं?’’ गोपाल हंसते हुए कहते.

‘‘क्यों? घर से ले कर चौराहों, सड़कों और औफिस तक कितनी आंखें पीछा करती हैं. आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?’’ निशा मुंह बनाते हुए कहती.

‘‘ये सारी आंखें तो सिर्फ आप के बाहरी सौंदर्य को छूती हैं, मगर इस सौंदर्य के पीछे छिपी आत्मा को छूने वाला कहां है?’’ गोपाल पूछते.

‘‘वह इस दुनिया में नहीं आया है,’’ निशा सहज भाव से कहती.

जीवन की शुरुआत होती है, फिर मंथर गति से चलती हुई अंत तक पहुंचती है. शुरुआत फिर अंत. मगर अब तक किस ने जाना था कि निशा के जीवन की शुरुआत कब हुई और कब अंत हो गया.

निशा के जीवन के बारे में सभी कहते, ‘‘निशा तुम ने अपना जीवन समाप्त कर लिया.’’

कठोर धरातल पर चलती निशा का हृदय भी उसी एहसास के तले दब चुका था. संवेदनाओं से ऊपर उठ चुकी निशा बड़ी सहज हो कर बोल उठती. ‘‘मगर मेरे जीवन की तो अभी शुरुआत ही नहीं हुई है.’’

समय और जीवन दोनों में होड़ लगी थी, जीत किस की होगी, यह न समय को पता था ना जीवन को. समय को एहसास था वह आगे निकल चुका है, जीवन पीछे है. जीवन को भी यही लगता कि वह आगे है, समय पीछे है. मगर वास्तविकता यह थी कि दोनों साथसाथ चल रहे थे. निशा की जिंदगी इसी एहसास के साथ चल रही थी. हर रोज वह घर से निकलती गलियों को पार करती सड़क पर आती और सड़क पर खड़ी उन इमारतों को देखती जो सालों से यों ही खड़ी थीं. उन के पास से कितने लोग आए और गुजर गए. आनेजाने का सिलसिला सालों से चलता आ रहा था. मगर इमारते वहीं की वहीं थीं.

कभीकभी निशा सिहर उठती उन को देख कर. वे बोलती प्रतीत होतीं. निशा सुनने का प्रयास करती और एक दिन उस ने सुना.

‘‘कुछ पल ठहर जाओ,’’ घबराई हुई निशा के कदम और तेज हो गए.

आज सुबह जैसे ही निशा ने अपने कैबिन में प्रवेश किया, उसे ठहाकों की आवाज मिली. देखा, गोपाल हंस रहे थे, साथ में सारे सहयोगी भी.

‘‘आइए निशाजी आप का स्वागत है,’’ गोपाल ने कहा.

‘‘क्या बात है मेरी प्रमोशन हो गई क्या?’’ निशा ने भी उसी अंदाज में कहा.

‘‘प्रमोशन तो नहीं, मगर आप की बगल वाली कुरसी का पड़ोसी बदल गया है, अब इस कमरे में हम 7 की जगह 8 हो गए हैं,’’ गोपाल ने कहा.

‘‘कौन है वह?’’ निशा ने पूछा.

‘‘धैर्य रखिए, जल्द ही आप का पड़ोसी आएगा,’’ रमेश ने मुंह बनाते हुए कहा.

गोपाल चुप थे. निशा ने तिरछी नजरों से मिस्टर रमेश की तरफ देखा और व्यंग्य से मुसकराती हुई बोली, ‘‘रमेश मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, मगर देख रही हूं, आप जरूर अनमने से हो गए हैं.’’

समय मुसकरा रहा था.

‘‘घमंड मत करो निशा, प्रारब्ध को कैसे टालोगी?’’ आज वही सवेरा था,

वही औफिस, वही लोग, मगर निशा अनमनी हो चुकी थी. उस की बगल वाली कुरसी पर बैठा वह विचित्र मानव कुछ इस तरह का था कि न बैठने का शऊर, न बात करने की तमीज देख कर लगता मानो किसी  सर्कस से भागा जोकर हो. जोरजोर से बोलना, जोरजोर से हंसना, हर किसी से जबरदस्ती बात करना. उस का बेढंगा व्यक्तित्व निशा को अनमना कर चुका था. पूरे औफिस में वह हंसी का पात्र था.

निशा उसे देख कर क्रोधित हो उठती, ‘‘इस के साथ मैं काम कैसे कर पाऊंगी?’’

निशा गंभीर थी. उस के दिमाग में एक बार इस्तीफे का भी खयाल आया. मगर फिर निशा ने अपनेआप को समझे लिया कि मुझे इस से क्या? यह जिस तरह का है, अधिक दिन टिकेगा नहीं.

उस के बेढंगेपन ने सभी को परेशान कर दिया था, जिन में निशा कुछ अधिक ही थी. उस की अजीब आदतें थीं, न किसी की बात मानता था, न किसी का कहा हुआ करता था. अच्छा या बुरा अपनी मरजी का मालिक था. सभी उस से बातें करते, सिर्फ निशा को छोड़ कर.

वक्त बितता रहा, जीवन चलता रहा. सभी थे वह भी था. मगर एक बात किसी ने महसूस नहीं की कि हर क्षण थोड़ाथोड़ा माहौल बदल रहा है. मगर यह कैसा बदलाव था? समय भी असमंजस में था. वह सभी से कुछ भी बोल जाता, मगर एक निशा ही थी, जिस के पास आते ही उस का व्यक्तित्व बदल जाता था.

महसूस निशा ने भी किया था, मगर उस की चेतना ने उसे नकार दिया था. उस की बातें सभी को खिजाती थीं, मगर आज हंसाने लगी थीं. वह ‘एक’ कहीं हावी तो नहीं हो रहा था, मगर किस कारण से?

आज सुबह ही औफिस में उस की किसी से कहासुनी हो गई, माहौल गरम था. सभी की प्रतिक्रिया उस के प्रति नकारात्मक थी. जो सीनियर थे उन्होंने उसे डांटा, जो जूनियर थे वे पीठ पीछे कानाफूसी कर रहे थे और जो साथ वाले थे उस के सामने उस की आलोचना कर रहे थे. उस माहौल में निशा अनमनी हो चुकी थी. उस से रहा नहीं गया क्योंकि सभी का कार्य इस से प्रभावित हो रहा था. वह उठी और पहली बार जोर से चिल्लाई, ‘‘विशाल तुम इधर आओ.’’

वह करीब आया., ‘‘यह क्या तमाशा हो

रहा है?’’

वह और करीब आया. बहुत करीब. निशा ने उस की आंखें देखी और चौंक पड़ी.

गुस्सा, उत्तेजना कहां थे सब? समय कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला. निशा विशाल को समझती रही. विशाल खामोश अपलक देखता, सुनता रहा. आज निशा अपनी उम्र से कहीं अधिक बड़ी थी और विशाल उम्र से बहुत छोटा, एक मासूम बच्चा.

रात्रि का दूसरा पहर बीत चुका था, मगर निशा की आंखों में नींद नहीं थी. ‘वे आंखें’ और जिंदगी मानो घुलमिल गई थी. क्या था उन आंखों में? क्षोभ, विक्षोभ, ग्लानि या उस से अलग कुछ और? भविष्य का कोई संकेत? ‘वे आंखें’ और निशा का हृदय…तपते रेत पर जल की बूंदें थीं या बंजर जमीन को जल ने भिगोने की कोशिश की थी? चौंक पडी निशा, झटके से बिस्तर से उठ खड़ी हुई, ‘‘नहीं,’’ और फिर आईने के पास खड़ी हो गई, ‘‘नहीं,’’ फिर से वही आवाज.

‘यह मैं नहीं हूं. यह निशा नहीं है यह हो ही नहीं सकती,’ कब तक वह बड़बड़ाती रही, उसे स्वयं याद नहीं था. पल गुजर गए. अब निशा बिलकुल शांत थी. द्वंद्व निद्रा से छोटा पड़ गया था. औफिस का वही माहौल था जो पहले था. ऐसा नहीं कहा जा सकता था क्योंकि आज तो वह था मगर, निशा. वह तो निश्चल, स्थिर थी. उस दिन निशा की उंगलियां कीबोर्ड पर और आंखें स्क्रीन पर थीं. तभी आवाज आई, ‘‘मैम, जरा यह पेपर डिस्कस करना है.’’

ठहरे हुए जल में मानो किसी ने पत्थर फेंका हो. निशा ने नजरें उठाईं. करीब खड़ा वह पूछ रहा था. निशा ने कुछ नहीं कहा सिर्फ सहमति में सिर हिलाया. वह बोलता रहा, वह सुनती रही. वह जा चुका था, मगर वह किसी के हृदय को विकल कर चुका था.

आईने के सामने खड़ी निशा स्तब्ध थी, ‘‘यह मैं नहीं कोई और है,’’ अपने चांदी से चमकते बालों को वह बड़े जतन से काले बालों के भीतर छिपा रही थी. ‘‘यह क्या देख रही हूं मैं? जो देख रही हूं, महसूस कर रही हूं क्या वह सच है? विचित्र एहसास है यह. आज स्वयं में स्फुरण महसूस कर रही हूं. एक अजीब शक्ति, उत्साह, नयापन… यह जिंदगी के प्रति मेरा नजरिया क्यों बदल रहा है? क्या कारण हो सकता है.’’

निशा ने स्वयं को ढूंढ़ना चाहा तो सकपका गई. सामने वही आंखें थीं, वही मासूम सा चेहरा. ‘‘नहीं’’ रोमरोम चीत्कार कर उठा था. वह झटके से उठ खडी हुई.

विशाल की खिलखिलाहट पूरे औफिस में गूंज रही थी. वही बेसिरपैर की बातें जिन का निशा कभी विरोध किया करती थी, किंतु आज वह मुसकान में बदल चुकी थी. निशा विशाल से खुल चुकी थी. अब केंचुल के भीतर छटपटाती जिंदगी बाहर निकल चुकी थी. वह हंसती, उस से बातें करती, उस से लड़ती झगड़ती और जब कभी विशाल उस के बहुत करीब आता तो चाह कर भी दूरी नहीं बना पाती. उस के बाहरी व्यक्तित्व से अलग हट कर उस के भीतर कुछ पढ़ने का प्रयास निशा के व्यक्तित्व को बदल रहा था.

हर पल, हर क्षण उस की आंखें उसे देखतीं, कुछ ढूंढ़तीं, खोजतीं, उस के हृदय को टटोलतीं और जब वह आंखें बंद करती तो स्तब्ध रह जाती, ‘‘कितना स्वच्छ, कितना निर्मल, कितना पवित्र. फिर बाहरी आवरण ऐसा क्यों है?’’ लंच का समय होता और विशाल की व्यक्तिगत बातें शुरू हो जातीं, फिर  तो ठहाकों से पूरा माहौल गूंज उठता.

विशाल मुंह बनाते हुए बोल रहा था, ‘‘यह कंप्यूटर की मगजमारी मुझे रास नहीं आती, वे भी क्या दिन थे जब मैं नानी के यहां गांव में कभी नहर के किनारे, कभी आम के पेड़ पर तो कभी खेतों में होता था और मजा तो तब आता जब दूसरे के बगीचे से आम चुराता था.’’

गोपाल ने पूछा, ‘‘आम चुराते हुए कभी आप पकड़ में आए या नहीं?’’

कई बार विशाल ने कहा, ‘‘एक बार मैं आम चुरा कर भाग रहा था कि खेत वाले ने मुझे देख लिया. फिर क्या था, डंडा ले कर जो वह मेरे पीछे दौड़ा मैं आगेआगे और वह पीछेपीछे. फिर तो नहर, खेत, बगीचा, पोखर पार करता हुआ घर पहुंचा तो नानी वहां पहले से ही डंडा ले कर बैठी हुई थीं.’’

विशाल का इस प्रकार लगातार बोलना और लोगों का सुनना, औफिस की दिनचर्या बन चुकी थी. कहीं हंसनेहंसाने का दौर चल रहा था तो कहीं भीतर द्वंद्व चल रहा था. निशा हर पल एक युद्ध लड़ रही थी.

‘‘आखिर उस में क्या है? क्यों मैं खिंची चली जा रही हूं. नहीं. मुझे उस से दूरी बनानी होगी,’’ उस की यह दृढ़ता विशाल के आते ही न जाने कहां चली जाती.

उस दिन निशा अनमनी हो कर अपनी कुरसी पर बैठी कंप्यूटर पर काम कर रही थी. तभी विशाल तूफान की तरह आया, ‘‘क्या निशाजी जब देखो तब काम, छोडि़ए भी आइए थोड़ा गप्प की जाए.’’

निशा झल्ला गई, ‘‘मुझे परेशान मत करो, बहुत से काम करने हैं.’’

‘‘मैं करने दूंगा तभी तो करेंगी,’’ और फिर विशाल ने निशा के हाथ से फाइल ले ली और उस के दोनों हाथों को पकड़ कर खींचते हुए उसे टैरेस तक ले गया, ‘‘देखिए, इस खुली हवा में आप की तबीयत खुश हो जाएगी.’’

निशा सिहर उठी थी और अनजाने में उस के मुंह से निकल पड़ा. ‘‘मगर मेरी खुशी से तुम्हें क्या मतलब?’’

‘‘मतलब है तभी तो यहां लाया हूं,’’ विशाल ने कहा.

‘‘क्या?’’ चौंक उठी निशा.

‘‘पहले आप मेरे करीब आइए,’’ विशाल ने बडे सहज भाव से कहा.

निशा की आंखें फैल गईं.

‘‘मैं ने कहा न आप पहले मेरे करीब आइए,’’ कह कर विशाल स्वयं ही निशा के बहुत करीब आ गया.

सांसें बुरी तरह निशा को स्पर्श करने लगी थीं. निशा ने अपनी आंखें बंद कर लीं. जिंदगी को इतने करीब से उस ने कहां देखा था. निशा का रोमरोम झंकृत हो चला था. सांसें तेज चल रही थीं. अभी तक उस का हाथ विशाल के हाथों में ही था. विशाल उस के और करीब आया. उस के होंठ निशा के गालों को स्पर्श कर रहे थे. यथार्थ को भूल चुकी थी निशा. मदहोशी छाने लगी थी. आज उस के पांव तले जमीन नहीं थी. अपने अस्तित्व को भूल चुकी थी वह. स्वयं से बाहर निकलना चाहती थी, मगर वर्षों से अपने आसपास उस ने जो बेडियां कस ली थीं. उन्हें तोड़ना आसान नहीं था. आज आत्मा में छटपटाहट थी. शरीर भी आत्मा का साथ दे रहा था.

कांप रही थी निशा. जीवन… सिर्फ जीवन… इतना खूबसूरत? इतनी गहराई? इतनी संवेदनशीलता?

इस अनुभूति का तो उसे ज्ञान ही नहीं था. आपा खो बैठी निशा और विशाल को अपनी बांहों में ले लिया. उस की पूरी दुनिया उस की बांहों के इर्दगिर्द समा चुकी थी. निशा की बांहें कसती जा रही थीं मानो आज उस की आत्मा और पूरा शरीर विशाल में समा जाना चाहता था.

संवेदना के इस सागर में गहरी उतरती गई निशा. न डूबने का भय, न इस सागर से ऊपर निकलने की लालसा. डूबती गई निशा. आज वह सागर की गहराई से भी आगे निकलना चाहती थी कि अचानक निशा के कानों में विशाल की आवाज गूंजी मानो बहुत दूर से आ रही हो, ‘‘जन्मदिन मुबारक हो निशा जी.’’

और फिर पीछे से औफिस की पूरी मंडली आ पहुंची. निशा की तंद्रा भंग हो गई, ‘‘यह क्या? कहां थी वह?’’ उसे संभलने में समय लगा मगर विशाल ने उसे संभाल लिया. सभी खिलाखिला रहे थे.

निशा असहज हो उठी. तभी गोपाल बोल उठे, ‘‘निशाजी,’’ जो हम लोग आज तक नहीं कर पाए वह विशाल ने कर दिखाया. आप की फाइल में से आप के जन्मदिन के बारे में पता किया गया. आप ने तो कभी नहीं बताया था.’’

निशा की आंखें बंद थीं. रात काफी बीत चुकी थी. बाहर सन्नाटा था, मगर भीतर तूफान था, ‘‘यह क्या किया मैं ने? वह मैं तो नहीं थी? निशा नहीं थी, वह तो कोई और ही थी?’’

अचानक उसे महसूस हुआ पास ही कोई खड़ा है. उस ने आंखें खोलीं, ‘‘अरे सामने तो निशा खड़ी है. फिर मैं कौन हूं?’’ सामने वाली निशा हंसी.

‘‘केंचुल से बाहर निकलो निशा. कब तक उस रूखे से बेजान, जीवनहीन केंचुल में बंद रहोगी? उतारो उसे. देखो उस साधारण से व्यक्तित्व को जिस ने तुम्हें जीवन जीने पर मजबूर कर दिया है. एक झटके में उठ बैठी निशा.

‘‘इस दुनिया में किसी की ताकत नहीं है जो निशा को बदल दे. यह तुम नहीं तुम्हारा वह बेजान सा केंचुल बोल रहा है जिस में तुम कैद हो. उधर से आवाज आई. तुम उस पल के बारे में बोल रही हो न. मैं लज्जित उस पल से,’’ निशा ने नजरें झकाते हुए कहा.

‘‘लज्जित क्यों हो? तुम्हारा अपने व्यक्तित्व पर जो गुरूर था वह

टूट गया या फिर एक साधारण से व्यक्ति ने तुम्हारी आत्मा को झकझर कर रख दिया है या फिर डरती हो उस दुनिया में जाने से जहां जाने में तुम्हें देर हो चुकी है या फिर इसी बेजान से जीवन जीने में तुम्हें आनंद आने लगा है या फिर आदत हो गई है?’’ उधर से सवाल पूछे गए.

‘‘इतने सवाल?’’ निशा की आंखें फैल गईं.

‘‘अपनेआप को ढूंढ़ो निशा. अपने भीतर झंको.’’

‘‘जीवन के इस मोड़ पर?’’

‘‘जीवन जीने के लिए किसी मोड़ को नहीं देखते हैं. कुछ लमहे जीने के लिए, उन लमहों को अंजाम देने की मत सोचो, पल को जीना सीखो.’’

निशा बदल चुकी थी, लेकिन पूरी तरह नहीं. केंचुल अब भी था. प्रत्येक क्षण वह उस में से झंकने की कोशिश अवश्य कर रही थी. परंतु इस बदलाव को किसी ने देखा नहीं. उम्र के इस मोड़ पर जिंदगी बदल रही थी. क्षणक्षण जीने की कोशिश हो रही थी. किंतु बेडि़यां तो अब भी थीं. कहीं द्वंद्व था तो कहीं दायरे सीमित थे. इन सब के बीच झलता निशा का अहं.

निशा जब भी विशाल को देखती एक अजीब कशिश महसूस करती. विचित्र कशमकश थी. एक तरफ उस की जुदाई बरदाश्त नहीं कर पाती, दूसरी तरफ उस की नजदीकियों को भी स्वीकार नहीं कर पाती थी. आंखें बंद करती तो आह निकलती. यह कैसी दुविधा है? कैसा द्वंद्व? यह जिंदगी तो मेरी नहीं, फिर मैं इसे कैसे ढो रही हूं? किंतु मैं इसे ढो कहां रही हूं? मैं तो इस में जी रही हूं, एक अद्भुत एहसास के साथ जिस में असीम गहराई है, जहां डूबने का न डर है, न किनारे आने की ख्वाहिश. आज खामोशियों में शोर है, अकेलेपन में भीड़ का एहसास है. यह कहां आ गई मैं जीवन के इस मोड़ पर?’’ और घबरा कर उस ने आंखें खोल दीं.

विचित्र क्षण था वह, दूरिया भी थीं, सन्नाटा भी था, मन में हलचल

थी, आवेग था मगर, ऊपर से सबकुछ शांत और रूखा था. क्षण बीत रहे थे कि अचानक आशा की एक किरण दिखाई पड़ी. दूर से एक औटो आता दिखा. निशा आगे बढ़ी, औटो को रोका और उस में बैठने ही वाली थी कि अचानक अचेतन ने पुकारा, ‘‘पीछे मुड़ कर देखो निशा,’’ और निशा पलटी. औटो की रोशनी में उस ने विशाल को देखा और स्तब्ध रह  गई.

‘‘वही आंखें,’’ उस के पांव स्वत: ही पीछे लौट पड़े. औटो आगे बढ़ गया. वह विशाल के पास गई और कहा, ‘‘बहुत जिद्दी हो तुम, चलो घर छोड़ दो.’’

घर पहुंच कर निशा ने कहा, ‘‘घर के अंदर नहीं चलोगे तुम?’’

‘‘नहीं मैम बहुत देर हो चुकी है.’’

‘‘क्यों सड़क पर तुम्हें देर नहीं हो रही थी? आओ मेरे साथ.’’

विशाल कुछ नहीं बोला. आज्ञाकारी बच्चे की तरह चुपचाप उस के पीछे चल पड़ा. दरवाजे पर पहुंच कर निशा ठिठक गई, फिर हंस पड़ी और बोली, ‘‘जानते हो मेरे भीतर की इस दुनिया में पहली बार किसी को प्रवेश मिला है.’’

चौंक गया विशाल, ‘‘क्यों मैडम?’’

‘‘मैं ने वह अधिकार किसी को नहीं दिया है.’’

‘‘क्यों?’’ विशाल ने पूछा.

‘‘कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ी,’’ निशा ने सहज होते हुए कहा.

‘‘तो क्या आज आवश्यकता है?’’ विशाल ने सवाल किया.

निशा ने पलट कर देखा, विशाल मुसकरा रहा था. वह कुछ नहीं बोली. वह भी चुप रहा. फिर खामोशी.

दीवारें दोनों को आंखें फाड़े देख रही थीं. कहीं द्वंद्व था, कहीं उफान था, अंतआर्त्मा की पुकार थी, पलपल उत्तेजना थी, जिंदगी जीवन चाहती थी मगर बाहरी आवरण इतना सख्त था कि बड़ी बेरहमी से इस ने सभी को कुचल डाला.

‘‘यहां घुटन हो रही है. चलो विशाल टैरेस की खुली हवा में चलते हैं,’’ और झटके से उठ खड़ी हुई निशा.

विशाल पीछेपीछे चल पड़ा. टैरेस पर आते ही निशा सहज हो गई.

विशाल ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘मैम, आप की दुनिया में प्रवेश के लिए क्षमा चाहता हूं, आप अपने बारे में कुछ बताएंगी?’’

‘‘मेरे होश में आने से पहले मेरे मातापिता का देहांत हो चुका था. चाचाचाची के यहां पलीबढ़ी, परंतु जिस दिन अपने पैरों पर खड़ी हुई उन्होंने भी दुनिया छोड़ दी.’’

झटके भर में निशा ने अपनी दुनिया में विशाल को प्रवेश दे दिया था, किंतु

एक झटके में उस ने इस द्वार को बंद भी कर दिया.

‘‘विशाल, तुम अपने घर से इतना दूर रहते हो, घर की याद नहीं आती है?’’

‘‘आदत हो गई है मैम,’’ उस ने दो टूक जवाब दिया.

‘‘छुट्टियों में जा रहे हो?’’ नहीं वह बोला.

‘‘क्यों?’’ निशा चौंकी.

‘‘क्योंकि वहां किसी को मेरी जरूरत नहीं.’’

‘‘क्यों?’’ उस ने फिर पूछा.

‘‘मुझे कोई पसंद नहीं करता मैम.’’ ‘‘तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? दुनिया का कोई मांबाप ऐसा नहीं होता,’’ निशा ने कहा.

‘‘पता नहीं. मैं तो घर का अर्थ जानता ही नहीं. बचपन से होस्टल में रहा हूं. छुट्टियों में कभी घर जाता तो खुश होने के बदले हजार नसीहतें मिलतीं. मेरी आदतें खराब हैं या मेरा व्यवहार बुरा है.’’

‘‘तुम ने कारण ढूंढ़ने की कोशिश की है?’’ निशा ने पूछा.

‘‘हां, वह इसलिए कि मुझ में कभी स्थिरता नहीं रही, बचपन में मैं बहुत शरारती था. मेरी शरारतें जब सीमाएं पार करने लगीं तो मुझे होस्टल में डाल दिया गया. मेरे शरारती होने का कारण मेरा संयुक्त परिवार था. मेरे मातापिता परिवार में ही उलझे रह गए और मैं अपनी मरजी का मालिक बनता गया,’’ कह कर विशाल चुप हो गया.

‘‘नौकरी तो अब तुम करने लगे हो,’’ मेरे खयाल से अब तो तुम्हारे

परिवार वाले तुम से संतुष्ट होंगे?’’ निशा ने पूछा.

‘‘नहीं, अब भी मैं स्थिर नहीं हूं. अभी तक मैं ने कई नौकरियां छोड़ी हैं. जो मिलता है उस से संतुष्ट नहीं हो पाता. किस चीज की तलाश है यह भी नहीं जान पाया. आज न मैं अपनेआप से संतुष्ट हूं, न दूसरे मुझ से,’’ कह कर विशाल चुप हो गया.

फिर एक लंबी चुप्पी. निशा ने फिर चुप्पी तोड़ी, ‘‘हमेशा अपनी कमियों को दूसरों के सामने क्यों उछालते हो, फिर हंसी के पात्र बनते हो.’’

‘‘बनने दीजिए, इस से कहीं न कहीं मुझे संतोष मिलता है,’’ विशाल ने कहा.

‘‘एक बात कहूं विशाल, तुम में हजारों गुण हैं, फिर भी जो तुम में मैं ने देखा, महसूस किया वह आज तक मैं ने कहीं नहीं पाया. जानते हो वह क्या है? तुम्हारा पारदर्शी व्यक्तित्व. अपने अवगुणों को इतनी आसानी से स्वीकार कर लेना, इगो तुम्हारे पास है ही नहीं, जो भीतर से वह बाहर से भी, बिलकुल स्वच्छ. तुम्हारी यही बातें मेरे हृदय को स्पर्श करती हैं,’’ निशा ने कहा.

विशाल ने निशा की तरफ देखा और कहा, ‘‘आप मेरे बारे में इतना सोचती हैं मैम?’’

‘‘क्या करूं तुम ने मजबूर जो कर दिया है,’’ निशा हंसी.

‘‘नहीं मैम, मजबूर तो आप ने मुझे कर दिया है. आप ने मुझे बदलने पर मजबूर कर दिया है. मुझे यह एहसास दिलाया है कि कोई है जो मेरी भावनाओं को समझता है. ऐसा मेरे जीवन में पहली बार हुआ है. मेरी सारी जिद आप के सामने खत्म हो जाती है. स्वयं को पहचानने लगा हूं आप के कारण.’’

निशा ने विशाल की तरफ देखा, मगर कहा कुछ नहीं. आज आंखें बोल रही थी.

‘‘आज तुम स्वयं को पहचान रहे हो विशाल, मगर यहां तो किसी जिंदगी को पूरे जीवन का एहसास मिल गया है. आज मेरे वश में होता तो इस पूरे पल को रोक लेती,’’ निशा ने आंखें बंद कर लीं.

विशाल उठ कर खड़ा हो गया, ‘‘मैं जा रहा हूं मैम.’’

अनायास निशा के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘नहीं, ऐसा मत कहो. इस एहसास से मुझे बाहर मत निकालो. ठहर जाओ. इस पल को समेट तो लूं. पता नहीं कब बिखर जाए.’’

विशाल चौंका, ‘‘निशाजी…’’

‘‘मत कहो निशाजी, भूल जाओ इस निशा को, मैं कैद हूं  इस निशा के भीतर, मुझे  बाहर आने दो. मेरी मदद करो विशाल. मेरी मदद करो,’’ और निशा विशाल के कदमों के पास बैठ गई. नियति आंखें फाड़े देख रही कि यह क्या. क्या है यह.

जीवनदान के लिए विनती की जा रही है या प्रेम की भीख मांगी जा रही है? कहां गया वह पूरा व्यक्तित्व, अस्तित्व? आज वनदेवी पौधों के सामने गुहार लगा रही थी या सृष्टि के रचयिता सृष्टि के सामने रो रहे थे? या फिर प्रकृति मानव के सामने सिर झकाए खड़ी थी?

समय स्तब्ध था और केंचुल दूर कहीं निढाल पड़ा था. मगर केंचुल के भीतर का जीवन अब बिलकुल शांत था. न कोई छटपटाहट, न कोई तडप. वह कैद से जो बाहर निकल पड़ा था.

समय बीत रहा था. एक जीव स्तब्ध था, दूसरा बिलकुल शांत और फिर निशा

के जीवन का वह क्षण आया. विशाल झका और निशा को ऊपर उठाया, पल बीता और निशा विशाल की बांहों में थी. इस अभूतपूर्व एहसास के बीच डूबतीउतरती निशा आज निशा से ऊपर निकल चुकी थी.

‘‘प्रेम करते हो मुझ से?’’ केंचुल के बाहर के जीव ने सवाल किया.

‘‘सम्मान करता हूं,’’ विशाल की आवाज थी.

फिर तो सवालजवाब का सिलसिला चल पड़ा.

‘‘मेरी भावनाओं को समझते हो?’’

‘‘मैं उन भावनाओं की कद्र करता हूं.’’

‘‘तुम ने मुझे प्रेम का एहसास दिलाया है विशाल.’’

‘‘नहीं, मैं सिर्फ जीवन को आप के करीब लाया है.’’

‘‘तुम ने मेरे व्यक्तित्व को बदल कर रख दिया है.’’

‘‘कहां. मैं ने तो सिर्फ आवरण उतारा है.’’

‘‘तुम्हारे कारण मैं अपनेआप को पहचान पाई हूं.’’

‘‘यह तो मेरे साथ हुआ है मैम. आप ने मुझे मेरी पहचान दिलाई है, कद्र करता हूं मैं आपकी.’’

‘‘सचमुच मेरी तरफ तुम्हारा यह झकाव है या मेरा भ्रम है ?’’

‘‘यह झकाव नहीं है मैम. मेरी अटूट श्रद्धा है आप के लिए.’’

‘‘तुम ने मुझ में क्या देखा विशाल?’’

‘‘वही जो मुझे अपने मातापिता, अपने परिवार से न मिला.’’

‘‘तुम्हारे कारण मेरे जीवन की शुरुआत हुई.’’

‘‘आप के कारण मेरे जीवन की तलाश

खत्म हुई.’’

कुदरत निशा को मुंह फाड़े देख रही थी. यह निशा को क्या हो गया है? यह अपने द्वारा किए गए सिर्फ सवालों को ही सुन रही है या  फिर विशाल के उत्तरों को भी सुन रही है? स्वयं में मदहोश निशा को न समय का ज्ञान था, न सामने वाला क्या कह रहा है उस का. वह तो स्वयं को कह रही थी और स्वयं को ही सुन रही थी. बांहों के घेरे अभी उस के इर्दगिर्द थे. चेतनाशून्य हो चुकी निशा कब तक उन घेरों में जीवन का एहसास लेती रही वह स्वयं न जान पाई.

रात्रि का दूसरा पहर… विशाल अब जा चुका था, मगर एहसास अब भी थे. जीवन भी

विचित्र खेल खेलता है. कब किस को किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दे, पता नहीं चलता. इतनी कू्ररता क्यों? वह यह क्यों नहीं देखता कि इस मोड़ पर भीड़ है या सुनसान है, पांव थके हैं या चलने को आतुर, अकेला चल पाएगा या किसी हमकदम की जरूरत है? निशा ने बिना सोचेसमझे जिस जीवन को जीना शुरू किया था, उस जीवन की राह कहां तक जाती है उसे क्या पता था.

आज निशा यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि काश यह समय ठहर जाए, इस की गति थम जाए, मैं इसे करीब से देख तो लूं, इस की गहराइयों में जी तो लूं. पता नहीं फिर मिले न मिले.

आज तो ऐसा प्रतीत होता था मानो जीवन की गति इतनी तेज हो गई है कि उस के साथ चलने में उसके पांव थकने लगे थे, मगर भीतर ऊर्जा थी, स्फूर्ति थी.

अचानक निशा की तंद्रा टूटी, घड़ी के सामने बैठी वह बहुत देर से अपने अब तक के जीवन के पन्नों को पलट रही थी.

‘‘3 जीवन तो मैं ने जी लिए. परिवार के साथ, स्वयं के साथ और अब विशाल. चौथा जीवन कैसा होगा.?’’ झट से उठ पड़ी निशा.

दिन की शुरुआत विशाल की खिलखिलाहट से हुई, हंसतेहंसते उस ने जोरजोर से गाना शुरू किया.

निशा चिल्लाई, ‘‘तुम्हारी बेसिरपैर की हरकतें फिर शुरू हो गईं.’’

‘‘मैम, सामने देखिए न क्या नजारा है.’’

निशा ने कैबिन की खिड़की से झंका, ‘‘सामने तो लड़की बैठी है.’’

‘‘वही तो.’’ विशाल उछल रहा था.

‘‘यों बंदर की तरह क्या उछल रहे हो? कभी लड़की नहीं देखी क्या?’’

‘‘देखी है, मगर यह तो चीज ही कुछ और है.’’

‘‘चीज का क्या मतलब?’’ निशा फिर चिल्लाई, ‘‘तुम जानते हो इस तरह की भाषा मुझे पसंद नहीं. शर्म नहीं आती है तुम्हें?’’

‘‘सौरी मैम,’’ विशाल ने नजरें झका लीं. नजरें तो झक गईं, मगर समय की आंखें फैल गई.

अप्रतिम सौंदर्य की मूर्ति चित्रा को जो भी देखता, उस की नजरें थम सी जाती. चित्रा अब इस नए परिवार की सदस्य थी. उस ने औफिस जौइन कर लिया था. गौरवर्ण की चित्रा मनमोहिनी थी. मीठे रस घोलती अपनी बातों से सब का मन मोह लिया था उस ने. सभी उस से बातें करने, उस के संपर्क में रहने को आतुर रहते. विचित्र बात तो यह थी कि विशाल उन में सब से आगे था.

समय एक बार फिर करवट बदल रहा था. चित्रा ने बहुत कम समय में ही पूरे माहौल को बदल कर रख दिया. विशाल और चित्रा की खिलखिलाहट पूरे औफिस में गूंजती. लंच के समय में 2 ही केंद्रबिंदु होते चित्रा और विशाल. दोनों में लगातार नोकझंक चलती, कोई कम नहीं था. शुरू में तो सिर्फ मजाक था, मगर यह मजाक गंभीर बनता जा रहा था.

‘‘मैम देखिए चित्रा की आदतें मुझे अच्छी नहीं लगती,’’ विशाल हर पल कोई न कोई शिकायत ले कर निशा के पास आता रहता. वह उसे समझती तो चुप हो जाता.

यह दिनचर्या बन चुकी थी. विशाल के दिन की शुरुआत ही चित्रा से होती. भले ही वह शिकायत, लड़ाई या नोकझंक से शुरू होती. निशा के पास भी बैठता तो उसी की बातें करता. माहौल इतना जल्दी बदल जाएगा, यह किसी ने सोचा भी न था.

उस दिन सुबहसुबह निशा झल्लाई, ‘‘काम की बातें किया करो विशाल, जब देखो तब

चित्रा की बातें ले कर बैठ जाते हो.’’

‘‘मैं क्या करूं मैम, वह मुझ से उलझती रहती है.’’

‘‘तुम उलझने देते हो तभी तो उलझती है और सबों के साथ ऐसा क्यों नहीं करती?’’

‘‘मुझे क्या पता वह ऐसा क्यों करती है?’’ विशाल ने कहा.

‘‘अपनेआप में झंक कर देखो विशाल, जीवन तुम्हारे लिए मजाक है, लेकिन यह मजाक कहीं तुम्हारे लिए गंभीरता का विषय न बन जाए,’’ एक झटके में निशा ने कह तो दिया, मगर उस की बातें कहीं और अंकित हो चुकी थीं.

मोड फिर बदले थे, निशा जिंदगी को छू रही थी, मगर जिंदगी तो उसे स्पर्श करती हुई कहीं और निकल रही थी. एहसास सभी को हो रहे थे, लेकिन निशा अभी तक अनभिज्ञ थी. स्वयं में खोई हुई वह समय से अनजान, उस मंजिल की चाहत में चल पड़ी थी, जिस के पास जाने के रास्ते हैं भी या नहीं यह उसे पता नहीं था या फिर वह जानना ही नहीं चाहती थी?

2 दिन हो गए थे चित्रा नहीं आई थी. अपनेअपने काम में सभी मग्न थे किंतु विशाल… निशा ने उसे सुबह से ही नहीं देखा था. शाम हो चुकी थी, वह उसे ढूंढ़ती हुई बगल वाले कैबिन में गई. देखा कि विशाल शांति से अपना काम कर रहा था. निशा उस के पीछे खड़ी थी, मगर इस सब से अनजान विशाल का मनमस्तिष्क तो कहीं और था.

‘‘क्या बात है विशाल? बड़े गंभीर हो?’’

‘‘कुछ नहीं मैम,’’ बिना पीछे मुड़े ही उस

ने कहा.

निशा वहीं बैठ गई. केंचुल से कोई बाहर निकल रहा था. वह चुहलबाजी के मूड में आ गई. उस ने विशाल को छू कर कहा, ‘‘यह विशाल नहीं है,’’ वह और करीब आई. उस ने विशाल की आंखों को स्पर्श किया, ‘‘ये विशाल की आंखें नहीं है?’’ वह कभी उस की आंखों को स्पर्श करती, कभी होठों को तो कभी उस के बालों को और खिलखिला कर हंसती जाती. यह कौन आ गया? यह मेरा विशाल तो नहीं है?’’

अचानक विशाल पीछे मुड़ा, ‘‘मैम, यह आप को क्या हो गया है?’’

‘‘मुझे कुछ भी नहीं हुआ है, लेकिन तुम्हें जरूर कुछ हो गया है,’’ निशा ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘चलो उठो बहुत देर हो गई है,’’ कहते हुए वह उसे बाहर तक ले आई.

वह कुछ नहीं बोला, सिर झकाए उस के साथ चलता रहा.

‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, तुम मेरे घर चलो.’’

विशाल कुछ नहीं बोला, उस के साथ चल दिया. घर पहुंच कर निशा उसे सहज बनाने की कोशिश में लग गई. मगर वह ज्यों का त्यों बना रहा.

निशा उस के करीब बैठ गई, ‘‘क्या बात है मुझ से नहीं कहोगे?’’

कई बार पूछने के बाद भी विशाल कुछ नहीं बोला तो निशा उठने लगी. अचानक विशाल बच्चों की तरह निशा की गोद में सिर रख कर बिलख पड़ा.

निशा स्तब्ध रह गई, ‘‘यह क्या?’’

‘‘मैम, उस ने मेरे जीवन को बदल कर रख दिया है. मेरी सीधी सी जिंदगी में उथलपुथल मचा दी.’’

‘‘मगर किस ने? कुछ बताओगे?’’ निशा ने चौंकते हुए पूछा.

विशाल फिर चुप हो गया. निशा ने उस के चेहरे को अपनी हाथों में लिया और ऊपर उठाते हुए उस की आंखों में देखा. उस के हाथ कांप रहे थे, आंखों में सैलाब उतर आया था, हृदय में तूफान था, मगर इन सबसे ऊपर स्वयं को सहज बनाते हुए, आवाज में एक अजीव उत्कंठा लिए हुए निशा ने  क्षीण स्वर में पूछा, ‘‘किस ने.’’

‘‘चित्रा ने,’’ विशाल उत्तेजित होते हुए बोला.

निशा की आंखें फैल गई.

‘‘उस ने मेरी आत्मा को झकझर दिया है, वह मेरी जिंदगी में तूफान बन कर आई है. मैं उस के बिना नहीं जी सकता, नहीं रह सकता.’’

एकबारगी निशा का पूरा शरीर कांप उठा. विशाल अब बिलकुल शांत था. भीतर की पीड़ा उस ने किसी अपने के सामने जो रख दी थी.

विशाल जा चुका था. अधलेटी निशा आंखें खोले निहार रही थी, परंतु किसे? समय को या फिर स्वयं को? आज जीवन फिर स्तब्ध था, मौन था. आज उसे भी समय का ज्ञान न था. दूर पड़ा केंचुल निशा को बुला रहा था. और निशा… भीतर कुछ टूटा था. उस ने भी महसूस किया था. पर साथसाथ कुछ और महसूस किया था निशा ने. उस टूटन को और फिर उस टूटन के बाद हुए एहसास को. निशा ने करवट बदली.

विचित्र एहसास है, ‘‘इतनी पीड़ा…’’

सुबह हो चुकी थी वही दिनचर्या, किंतु एक खालीपन का एहसास लिए. अब पुरानी दिनचर्या में कुछ और शामिल हो चुका था. शाम को जल्दी घर लौटना, टैरेस में बैठ कर सामने बेजान से पर्वत को देखना और उसी के करीब डूबते सूर्य की लालिमा को निहारना.

शाम ढल चुकी थी, औफिस से 2 पांव बाहर निकले. ये पांव उसी इंसान के थे जहां

शरीर तो था, मगर आत्मा बेजान थी. वही रास्ते, वही मोड़. कुछ भी तो नहीं बदला था, सबकुछ पूर्ववत. पांव ठिठके सामने चौराहा था. आंखें सामने टिकीं. एक रास्ता श्मशान तक  जाता था. आंखें पीछे की ओर मुड़ीं और उस ने सोचा, ‘मुझे तो पीछे की ओर लौटना है.’

‘‘अचानक शोर…यह शोर कैसा?’’

‘‘क्या खामोश श्मशान ने शोर किया है?’’ उस ने सामने देखा. श्मशान तो खामोश था. उस ने फिर पीछे देखा. रास्ते भी खामोश थे. फिर यह शोर कहां से. अचानक बाईं ओर उस ने देखा और होठ मुसकुरा दिए. कुदरत ने भी उस मुसकराहट को देखा. उस ने भी मुसकुराना चाहा किंतु.

‘‘यह क्या?’’ उस की तो आंखें नम थीं. इस निशारूपी इंसान की मुसकुराहट बढ़ती गई और यह हंसी में तबदील तब हुई जब वह बरात ठीक  श्मशान के रास्ते के सामने से निकल गई.

टैरेस में बैठी निशा बिलकुल सहज थी और बातें कर रही थी मगर किस से. वहां तो कोई भी नहीं था. परंतु उस की बातों को सुना हवाओं ने, डूबते सूर्य ने, बेजान पहाड़ों ने. निशा कह रही थी. उस दिन जीवन कुछ यों लगा:

सूरज की मुसकुराहट तो थी मगर,

चांद की विरह की वेदना लिए हुए.

ओस की बूंदें तो थीं मगर,

क्षणभंगुरता के भय से सिमटी हुईं.

सुबह की हंसती लालिमा तो थी मगर,

शाम की उदास लालिमा का एहसास लिए हुए.

आकाश मुट्ठी में करने को आतुर,

पक्षी उत्साहित तो थे मगर,

धरती पर फिर से लौटने का गम लिए हुए.

मंदिर में घंटियों का शोर तो था मगर,

पत्थर की मूर्तियों की खामोशी लिए हुए.

बरात तो निकली थी मगर,

श्मशान की गलियों से गुजरते हुए.

जीवन सफर के आनंद से विभोर तो था मगर,

मंजिल न मिलने का दर्द लिए हुए.

Shanaya Kapoor Debut: डेब्यू के लिए तैयार स्टारकिड, रो पड़े संजय कपूर

Shanaya Kapoor: कपूर खानदान से एक और बेटी फिल्मों में डेब्यू करने को तैयार है, जिस की खूबसूरती के चर्चे आम हैं. युवाओं की पसंदीदा शनाया कपूर फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने जा रही हैं, जिस का ट्रेलर हाल ही में जारी किया गया, जहां संजय कपूर अपनी बेटी के कैरियर की पहली शुरुआत देख कर इतने भावुक हो गए कि स्टेज पर बिना कुछ बोले आंखों में आंसू लिए वापस अपनी सीट पर बैठ गए.

रो पड़े संजय कपूर

संजय कपूर ही नहीं, उन की वाइफ महीप कपूर भी अपनी बेटी की पहली फिल्म के ट्रेलर लौंच पर भावविभोर नजर आईं.

फिल्म की बात करें तो ‘आंखों की गुस्ताखियां’ एक रोमांटिक फिल्म है जिस में शनाया के हीरो विक्रांत मैसी हैं. खास बात यह है कि फिल्म का नाम ‘आंखों की गुस्ताखियां है’ लेकिन ट्रेलर में हीरोइन शनाया आंखों पर काली पट्टी बांधे नजर आई हैं. इस बात के पीछे क्या राज है, यह तो फिल्म रिलीज होने पर ही पता चलेगा.

रिजैक्शन का दर्द

शनाया भले ही स्टारपुत्री हैं, लेकिन उन्होंने भी रिजैक्शन का दर्द झेला है. शनाया के अनुसार एक फिल्म के लिए उन्होंने ऑडिशन दिया था जोकि उन की बहुत ही फेवरिट फिल्म थी लेकिन उस फिल्म में मामला नहीं जमा. उस रिजैक्शन से वे बहुत ज्यादा दुखी हुई थीं.

वे कहती हैं कि मुझे एक बात समझ में आई कि हम फिल्म नहीं चुनते बल्कि फिल्म हमें चुनती है. फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ के लिए मैं ऐसा कह सकती हूं कि इस फिल्म में मैं ने सबा शेरगिल का किरदार निभाया है जो एक महत्त्वाकांक्षी अभिनेत्री है.

वे कहती हैं,”डायरेक्टर संतोष सिंह ने जब इस फिल्म के लिए चुनाव किया, तो इस बात का मुझे अनुभव हुआ क्योंकि जिस प्रोजैक्ट के लिए ऑडिशन दिया था वह सफल नहीं हुआ, लेकिन उसी डायरेक्टर ने मेरा ऑडिशन टेप डायरेक्टर संतोष सिंह को दिया और वही ऑडिशन टेप देख कर डायरेक्टर संतोष ने मुझे इस फिल्म के लिए साइन कर लिया.

आने वाली फिल्में

फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ 11 जुलाई, 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. इस फिल्म के अलावा शनाया कपूर आदर्श गौरव के साथ एक थ्रिलर फिल्म में भी काम कर रही हैं.  Shanaya Kapoor

Parenting Tips: जानें बच्चे को कितना दें जेब खर्च

Parenting Tips: मृणालिनी अपने दोनों बच्चों को हर सप्ताह 10 रूपये जेब खर्च देती थी और बच्चे उस दिन खुशी-खुशी स्कूल जाते थे, लेकिन कई बार कुछ बच्चों के पेरेंट्स उन्हें अधिक पैसे देते है, जिससे उनके बच्चों को ख़राब लगता था, कई बार तो उसने अपने पैसे जेब से निकाले नहीं और कह दिया माँ ने आज जेब खर्च नहीं दिया, शायद भूल गयी होगी. बच्चे ने ये बात माँ को कभी नहीं बताया. अगली सप्ताह फिर 10 रुपये जोड़कर जब 20 रुपये होते, तो वे पैसे निकाल कर स्कूल कैंटीन से कुछ खा लेते थे. एक दिन माँ की नजर सोनू की बैग साफ़ करते-करते 10 रुपये पर पड़ी, उन्होंने बेटे से इसकी वजह पूछी, क्योंकि जेब खर्च वाले दिन मृणालिनी अपने बच्चों को टिफिन न देकर फ्रूट्स देती थी. इस पर 8 साल का सोनू रोने लगा,उसकी दीदी मिताली ने सारी बात बताई. तब माँ ने दोनों को किसी बात को उनसे न छुपाने की सलाह दी और अगले सप्ताह से माँ ने हर सप्ताह 20 रुपये देना शुरू कर दिया.

रखे नजर खर्च पर

जेब खर्च बच्चे को दिया जाय या नहीं, इसे लेकर वैज्ञानिक, समाजशात्री और मनोचिकित्सक की राय अलग-अलग है. कुछ के अनुसार पॉकेट मनी से बच्चे को पैसे की कीमत सिखाना आसान होता है. इससेबच्चा किसी भी चीज को खरीदते समय पैसे के बदले में वस्तु लेने के लायक है या नहीं उसकी परख कर पाताहै. यहींचीजें उसको भविष्य में बचत करने की जरुरत को समझने में सहायक होता है. जबकि कुछ मानते है कि इससे बच्चे में पैसे की लालच बढ़ जाती है और उतने पैसे न मिलने पर कुछ गलत कर बैठते है. देखा जाय तो जेब खर्च बच्चे को बना और बिगाड़ भी सकती है. इसलिए बच्चे को सोच-समझ कर जेब खर्च देना चाहिए और बच्चा किस पर उस पैसे को खर्च करता है, उसकी जानकारी पेरेंट्स को होनी चाहिए. कई बार बच्चे के पास अधिक पैसे न होने पर किसी दूसरे बच्चे के बैग से या माता-पिता की अलमारी से भी निकालते हुए पाया गया है, ऐसा होने परबच्चे के साथ माता-पिता का सीधा संवाद होना चाहिए. छोटे बच्चे अधिकतर जो भी गलत करते है, डर की वजह से बता देते है, लेकिन थोड़े बड़े बच्चे ऐसा नहीं करते. इसलिए व्यस्त होने पर भी बच्चे के साथ रोज कुछ क्वालिटी समय बिताएं.

समझाएं पैसे का महत्व

इस बारें में मुंबई की मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी कहते है कि बच्चे को जेब खर्च देते समय कुछ बातों का ख़ास ध्यान रखना चाहिए, जो निम्न है,

  • परिवार की आमदनी जितनी भी हो, उसमे पारदर्शिता का होना, अर्थात् बच्चे को भी उसके बारें में जानकारी होना,
  • परिवार में किसी लक्ज़री सामान को खरीदते समय लिए गए निर्णय में बच्चों की भागीदारीका होना, इससे बच्चे को अपने भविष्य में किसी वस्तु को खरीदते समय निर्णय लेने में आसान होना,
  • बचत की इच्छा का विकसित होना,
  • वित्तीय ज्ञान होनाआदि है.

पेरेंट्स न करें गलतियाँ

कुछ पेरेंट्स के पास कमाई का जरिया अधिक होता है, जिससे वे अपनी झूठी शान दिखाने के लिए कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते है, जिसका पछतावा उन्हें बाद में होता है,इसलिए कुछ बातों को बच्चों के साथ शेयर न करना ही अच्छा होता है. सुझाव निम्न है,

  • बचपन में पेरेंट्स को जेब खर्च का न मिलना,
  • खुद के बच्चे की सारी इच्छाएं पूरी करना,
  • बच्चे को शांति से बैठने के लिए भी उनकी पसंद की वस्तु देना,
  • बच्चे की जिद को पहले पूरा करने के लिए आपस में कॉम्पिटीशन करना आदि कई है.
  • पैसे की मात्रा आपसी समझ के आधार पर दें,
  • बच्चे को हमेशा अस्तित्व, एहसास और पर्यावरण का ज्ञान होने की जरुरत,
  • पैसा देते समय हमेशा पेरेंट्स को बच्चे के व्यवहार को ध्यान दें, जिससे बच्चा अपनी शान किसी के आगे न दिखाएं, उसे नीचा न समझे, किसी के लिए भी सम्मान उसके व्यवहार में होना जरुरी है.

दें रिवॉर्ड गलत व्यवहार के लिए

इसके आगे डॉ. हरीश कहते है कि अगर बच्चा कही से पैसा निकाला है तो उसकी जरुरत क्या है, उसे पेरेंट्स को देखना है. मेरे पास अधिकतर बच्चे फ़ोन को लेकर आते है जैसे किसी के पास आई फ़ोन है, लेकिन मेरे पास नहीं. इस तरह की समस्या से पेरेंट्स परेशान रहते है, बच्चे के हिसाब से ये चीजे अगर किसी के पास है, तो उसका आत्मविश्वास उससे अधिक बढ़ जाता है. ऐसे बच्चों को माता-पिता सामने बैठाकर आत्मविश्वास के बारें में समझाना जरुरी है.

अपने अनुभव के बारें में मनोचिकित्सक कहते है कि एक परिवार में केवल 20 रूपये मिसिंग था. महिला ने अपने मेड को शक किया, उसके मना करने पर उन्होंने बच्चों से पूछा, बच्चों ने पहले मना किया, फिर छोटा बच्चा बड़े को बाथरूम में ले गया और उससे अपनी गलती बताने को कहा. बड़े ने कहा, तुम भी तो मेरे साथ बड़ा पाव खाए हो, तो तुम्ही बता दो. माँ के कान में ये बात पड़ने पर माँ ने इसका रिवॉर्ड उन दोनों के लिए एक सप्ताह टीवी न चलाने का रखा, इससे दोनों रोने और कूदने लगे, जैसे कुछ गंभीर बात हो, पर माँ अपनी बात पर अटल रही, इससे फॅमिली के बीच संवाद बढ़ा और माँ की इस रिवार्ड से बच्चों ने फिर कभी अनुपयुक्त काम नहीं किया.

इसके अलावा एक टीनेजर बच्चे ने 50 हजार रूपये अलमारी से निकाल कर उड़ा दिया और खुद माँ के साथ जाकर पुलिस स्टेशन में कंप्लेन किया. पुलिस ने पडोसी और घरवालों से पूछताछ की, लेकिन कुछ पता नहीं चला. शक के आधार पर पुलिस उस बच्चे को पकड़ी और थोड़ी जोर लगाकर बात करने पर उसने बताया कि माँ के घर से जाने पर वह पड़ोस से चाभी लेकर पैसा निकाला था. डॉक्टर के अनुसार ऐसे बच्चों को सुधारना आसान होता है. पैरेंट्स को घबराना नहीं चाहिए. मेरा सभी माता-पिता से कहना है कि बच्चों को इमोशनल सेफ्टी अवश्य दें. कुछ गलत करने पर माता-पिता और स्कूल उसे सही करें. Parenting Tips

Unwanted Hairs: अनचाहे बालों से परेशान हैं? तुरंत नोट करें ये नुस्खे

Unwanted Hairs: हेयरलेस दिखना सब को अच्छा लगता है खासकर गरमी के मौसम में शौर्ट ड्रैस में तो यह जरूरी ही हो जाता है. आप चाहें शेविंग, वैक्सिंग या ट्वीचिंग करा सकती हैं. अब घर बैठे आप खुद लेजर हेयर रिमूवर से अनचाहे बालों से छुटकारा पा सकती हैं. लेजर हेयर रिमूवर क्या है: लेजर प्रकाश किरणों से हेयर फौलिकल्स को जला कर नष्ट कर दिया जाता है, जिस के चलते हेयर रिप्रोडक्शन नहीं हो पाता है. इस प्रोसैस में एक से ज्यादा सिटिंग्स लेनी पड़ती हैं.

सैल्फ लेजर हेयर रिमूवर:

लेजर तकनीक 2 तरीकों से बाल हटाती है- एक आईपीएल और दूसरा लेजर हेयर रिमूवर. दोनों एक ही सिद्धांत पर काम करती हैं- हेयर फौलिकल्स को नष्ट करना. आमतौर पर घर में हैंड हेल्ड आईपीएल रिमूवर का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, इस में लेजर बीम नहीं होती फिर भी इंटैंस पल्स लाइट बीम द्वारा यह टारगेट एरिया के बालों की जड़ों तक पहुंच कर फौलिकल्स को लेजर की तरह मार देती हैं जिस के चलते वह एरिया बहुत दिनों तक हेयरलेस रहता है. इसे चेहरे पर भी यूज कर सकती हैं पर आंखों को बचा कर.

आईपीएल हेयर रिमूवर किस के लिए सही है: आधुनिक विकसित तकनीक से निर्मित आईपीएल रिमूवर सभी तरह के बालों से छुटकारा पाने का दावा करता है. आमतौर पर त्वचा और बालों के रंग में कंट्रास्ट यानी स्पष्ट अंतर रहने पर यह अच्छा परिणाम देता है, जैसे फेयर स्किन और डार्क स्किन में यह उतना अच्छा काम नहीं कर सकता है क्योंकि इसे मैलानिन और फौलिकल्स में अंतर सम झने में कठिनाई होती है. ऐसे में स्किन बर्न की संभावना रहती है.

आईपीएल की सीमा:

लेजर की तुलना में आईपीएल कम शक्तिशाली होता है, इसलिए हेयर फौलिकल्स को उतनी ज्यादा शक्ति से नहीं मारता है जितना प्रोफैशनल लेजर रिमूवर से और इसलिए इस का असर धीमा होता है. इसे आंखों के बेहद नजदीक और होंठों के ऊपर इस्तेमाल न करें. आंखों के निकट यूज से पहले चश्मा लगा लें. प्रैगनैंसी और ब्रैस्टफीडिंग में भी बिना डाक्टर की सलाह के न इस्तेमाल करें.

आईपीएल इस्तेमाल से पहले: इस की शुरुआत सर्दी के मौसम में बेहतर है. टारगेट एरिया पर कोई पाउडर, परफ्यूम या कैमिकल न हो. बाल अधिक बड़े हों तो उन्हें 3-4 मिलीमीटर तक ट्रिम कर लें.

कैसे इस्तेमाल करें:

इस हेयर रिमूवर को इस्तेमाल करना आसान है. आईपीएल को बिजली लाइन में प्लग कर मशीन को टारगेट एरिया के निकट लाएं. फिर उस एरिया पर 90 डिग्री पर रखते हुए इसे औन कर आईपीएल बीम फोकस करें. यह प्रति मिनट 100 या ज्यादा शौट्स या फ्लैशेज उत्पन्न कर आप के बालों को मिनटों में हटा देगा.

लगभग 30 मिनटों के अंदर आप पैरों, कांख और बिकिनी लाइन के बालों से मुक्त हो सकती हैं. अपनी त्वचा और बालों के रंग (काले, भूरे, सुनहरे) रूप (मोटाई, लंबाई) के अनुसार दिए गए निर्देशानुसार लाइट इंटैंसिटी को एडजस्ट कर सकती हैं. शुरू में इसे 2 सप्ताह के अंतराल पर फिर इस्तेमाल करना होगा. बाद में पूर्णतया हेयरलेस त्वचा दिखने के लिए हर 3-4 महीनों पर इसे यूज करना होगा पर बाल पहले की तुलना में कम घने, पतले और हलके रंग के होंगे.

फायदे:

यह कम शक्तिशाली प्रकाश किरणों का इस्तेमाल करता है, जिस से लेजर की तुलना में बहुत कम साइड इफैक्ट होने की संभावना है.

इस के लिए बारबार बैटरी बदलने या रिचार्ज की आवश्यकता नहीं है. आमतौर पर निर्माता इस डिवाइस की लाइफ 10+वर्षों तक बताते हैं.

आईपीएल मुंहासे, बर्थ मार्क, फाइन लाइंस आदि के कुछ हलके दागधब्बे भी हटा सकता है.

साइड इफैक्ट और कौस्ट

इस्तेमाल के दौरान हलका दर्द महसूस होना:

ऐसे में आइस पैक या नंबिंग क्रीम से आराम मिलेगा. टारगेट एरिया की त्वचा का हलका रैड या पिंक होना अथवा फूलना. यह  2-3 दिनों में स्वत: ठीक हो जाता है.

बहुत ज्यादा लाइट के चलते मामूली स्किन बर्न हो सकता है. कभी स्किन पिगमैंट मैलानिन को हानि होने से धब्बा हो सकता है.

विशेष:

कोई चाहे कितना भी दावा करे लेजर से भी परमानैंट हेयरलेस होना संभव नहीं है. कुछ महीनों के बाद इसे फिर रिपीट करना होगा. लेजर आईपीएल से बेहतर है पर यह बहुत महंगा है.

लेजर हेयर रिमूवल कौस्ट:

लेजर हेयर रिमूविंग की कौस्ट इन बातों पर निर्भर करती है- छोटा शहर या मैट्रो, टारगेट एरिया, त्वचा और बालों का रंग, कितनी सीटिंग्स होंगी और लेजर विधि का चुनाव. आमतौर पर प्रोफैशनल द्वारा फुलबौडी लेजर रिमूविंग की कौस्ट करीब  2 लाख होता है.

उदाहरण:

कांख के बालों के लिए ₹2,000 से ₹4,000, हाथों के बालों के लिए ₹7,000 से ₹1,45,000, पैरों के बालों के लिए ₹11,000 से ₹21,000 तक लग सकते हैं.

आईपीएल की कौस्ट:

मीडियम लैवल आईपीएल करीब ₹5,500 में मिल जाता है. इस का मूल्य नंबर औफ शौट्स या फ्लैशेज अथवा अन्य फीचर्स पर भी निर्भर करता है. Unwanted Hairs

Family Story: ब्लाउज- इंद्र ने अपनी पत्नी के कपड़ों के साथ क्या किया?

Family Story: इंद्रपत्नी की मृत्यु के बाद बेटी के साथ अमेरिका चले गए थे. 65 साल की आयु में जब पत्नी विमला कैंसर के कारण उन का साथ छोड़ गई तो उन की जीवननैया डगमगा उठी. इसी उम्र में तो एकदूसरे के साथ की जरूरत अधिक होती है और इसी अवस्था में वह हाथ छुड़ा कर किनारे हो गई थी.

पिता की मानसिक अवस्था को देख कर अमेरिकावासी दोनों बेटों ने उन्हें अकेला छोड़ना उचित नहीं समझा और जबरदस्ती साथ ले गए. अमेरिका में दोनों बेटे अलगअलग शहर में बसे थे. बड़े बेटे मनुज की पत्नी भारतीय थी और फिर उन के घर में 1 छोटा बच्चा भी था, इसलिए कुछ दिन उस के घर में तो उन का मन लग गया. पर छोटे बेटे रघु के घर वे 1 सप्ताह से अधिक समय नहीं रह पाए. उस की अमेरिकन पत्नी के साथ तो वे ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते थे. उन्हें सारा दिन घर का अकेलापन काटने को दौड़ता था. अत: 2 ही महीनों में वे अपने सूने घर लौट आए थे.

अब घर की 1-1 चीज उन्हें विमला की याद दिलाती और वे सूने घर से भाग कर क्लब में जा बैठते. दोस्तों से गपशप में दिन बिता कर रात को जब घर लौटते तो अपना घर ही उन्हें बेगाना लगता. अब अकेले आदमी को इतने बड़े घर की जरूरत भी नहीं थी. अत: 4 कमरों वाले इस घर को उन्होंने बेचने का मन बना लिया. इंद्र ने सोचा कि वे 2 कमरों वाले किसी फ्लैट में चले जाएंगे. इस बड़े घर में तो पड़ोसी की आवाज भी सुनाई नहीं पड़ती, क्योंकि घर के चारों ओर की दीवारें एक दूरी पैदा करती थीं. फ्लैट सिस्टम में तो सब घरों की दीवारें और दरवाजे इतने जुड़े हुए होते हैं कि न चाहने पर भी पड़ोसी के घर होते शोरगुल को आप सुन सकते हैं.

सभी मित्रों ने भी राय दी कि इतने बड़े घर में रहना अब खतरे से भी खाली नहीं है. आए दिन समाचारपत्रों में खबरें छपती रहती हैं कि बूढ़े या बूढ़ी को मार कर चोर सब लूट ले गए. अत: घर को बेच कर छोटा फ्लैट खरीदने का मन बना कर उन्होंने धीरेधीरे घर का अनावश्यक सामान बेचना शुरू कर दिया. पुराना भारी फर्नीचर नीलामघर भेज दिया. पुराने तांबे और पीतल के बड़ेबड़े बरतनों को अनाथाश्रम में भेज दिया. धोबी, चौकीदार, नौकरानी और ड्राइवर आदि को जो सामान चाहिए था, दे दिया. अंत में बारी आई विमला की अलमारी की. जब उन्होंने उन की अलमारी खोली तो कपड़ों की भरमार देख कर एक बार तो हताश हो कर बैठ गए. उन्हें हैरानी हुई कि विमला के पास इतने अधिक कपड़े थे, फिर भी वह नईनई साडि़यां खरीदती रहती थी.

पहले दिन तो उन्होंने अलमारी को बंद कर दिया. उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि इतने कपड़ों का वे क्या करेंगे. इसी बीच उन्हें किसी काम से मदुरै जाना पड़ा. वे अपनी कार से निकले थे. वापसी पर एक जगह उन की कार का टायर पंक्चर हो गया और उन्हें वहां कुछ घंटे रुकना पड़ा. जब तक कोई सहायता आती और कार चलने लायक होती, वे वहां टहलने लगे. पास ही रेलवे लाइन पर काम चल रहा था और सैकड़ों मजदूर वहां काम पर लगे हुए थे. काम बड़े स्तर पर चल रहा था, इसलिए पास ही मजदूरों की बस्ती बस गई थी.

इंद्र ने ध्यान से देखा कि इन मजदूरों का जीवन कितना कठिन है. हर तरफ अभाव ही अभाव था. कुछ औरतों के शरीर के कपड़े इतने घिस चुके थे कि उन के बीच से उन का शरीर नजर आने लगा था. एक युवा महिला के फटे ब्लाउज को देख कर उन्हें एकदम से अपनी पत्नी के कपड़ों की याद हो आई. वे मन ही मन कुदरत पर मुसकरा उठे कि एक ओर तो जरूरत से ज्यादा दे देती है और दूसरी ओर जरूरत भर का भी नहीं. इसी बीच उन की गाड़ी ठीक हो गई और वे लौट आए.

दूसरे दिन तरोताजा हो कर इंद्र ने फिर से पत्नी की अलमारी खोली तो बहुत ही करीने से रखे ब्लाउज के बंडलों को देखा. जो बंडल सब से पहले उन के हाथ लगा उसे देख कर वे हंस पड़े. वे ब्लाउज 30 साल पुराने थे. कढ़ाई वाले उस लाखे रंग के ब्लाउज को वे कैसे भूल सकते थे. शादी के बाद जब वे हनीमून पर गए तो एक दिन विमला ने यही ब्लाउज पहना था.

उस ब्लाउज के हुक पीछे थे. विमला को साड़ी पहनने का उतना अभ्यास नहीं था. कालेज में तो वह सलवारकमीज ही पहनती थी तो अब साड़ी पहनने में उसे बहुत समय लगता था. उस दिन जब वे घूमने के लिए निकलने वाले थे तो विमला को तैयार हो कर बाहर आने के लिए कह कर वे होटल के लौन में आ कर बैठ गए. कुछ समय तो वे पेपर पढ़ते रहे और कुछ समय इधरउधर के प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते रहे. आधे घंटे से ऊपर समय हो गया, मगर विमला बाहर नहीं आई. वे वापस कमरे में गए तो कमरे का दृश्य देख कर जोर से हंस पड़े. कमरे का दरवाजा खोल कर विमला दरवाजे की ओट में हो गई. और वह चादर ओढ़े थी.

वे बोले, ‘‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुईं?’’

‘‘नहीं. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी. तुम्हें कैसे बुलाऊं, समझ में नहीं आ रहा था.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘ब्लाउज बंद नहीं हो रहा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हुक पीछे हैं और मुझ से बंद नहीं हो रहे.’’

‘‘तो कोई दूसरी ड्रैस पहन लेतीं.’’

‘‘पहले यह उतरे तो… मैं तो इस में फंसी बैठी हूं.’’

विमला की स्थिति देख कर वे बहुत हंसे थे. फिर उन्होंने उस के ब्लाउज के पीछे के हुक बंद कर दिए थे. तब कहीं जा कर उस ने साड़ी पहनी थी. ब्लाउज के हुक बंद करने का उन का यह पहला अनुभव था और वे इतना रोमांचित हो गए कि विमला के ब्लाउज के हुक उन्होंने फिर से खोल दिए. वह कहती ही रह गई कि इतनी मुश्किल से साड़ी बांधी है और तुम ने सारी मेहनत बेकार कर दी. उस के बाद जब भी वह इस ब्लाउज को पहनती थी तो दोनों खूब हंसते थे.

मगर आज हंसने वाली बहुत दूर जा चुकी थी. हनीमून के दौरान पहना गया हर ब्लाउज उन्हें याद आने लगा. सफेद मोतियों से सजा काला ब्लाउज तो विमला के गोरे रंग पर बेहद खिलता था. जिस दिन विमला ने यह ब्लाउज पहना था उस की उंगलियां उस की गोरी पीठ पर ही फिसलती रहीं.

तब वह खीज उठी और बोली, ‘‘बस करो सहलाना गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, अपनी बीवी की ही तो पीठ सहला रहा हूं.’’

‘‘मैं ने कहा न गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, तुम्हारी तो पीठ में गुदगुदी हो रही है यहां तो सारे शरीर में गुदगुदी हो रही है.’’

‘‘बस करो अपनी बदमाशी.’’

विमला की खीज को देख कर उन्होंने चलतेचलते ही उसे अपनी बांहों के घेरे में कस कर कैद कर लिया था और वह नीला ब्लाउज तो विमला पर सब से ज्यादा सुंदर लगता था. नीली साड़ी के साथ वह नीला हार और नीली चूडि़यां भी पहन लेती थी. उस की चूडि़यों की खनक इंद्र को परेशान कर जाती थी. विमला जितनी बार भी हाथ उठाती चूडि़यां खनक उठती थीं और सड़क चलता आदमी मुड़ कर देखता कि यह आवाज कहां से आ रही है.

इंद्र चिढ़ाने के लिए विमला से बोले, ‘‘ये चूडि़यां क्या तुम ने राह चलतों को आकर्षित करने के लिए पहनी हैं? जिसे देखो वही मुड़ कर देखता है. यह मुझ से देखा नहीं जाता.’’

तब विमला खूब हंसी और फिर उस ने मजाकमजाक में सारी चूडि़यां उतार कर इंद्र के हवाले करते हुए कहा, ‘‘अब तुम ही

इन्हें संभालो.’’ तब एक पेड़ की छाया में बैठ कर इंद्र ने विमला की गोरी कलाइयों को फिर से चूडि़यों से भर दिया था.

इतनी प्यारी यादों के जाल में इंद्र इतना उलझ गए और 1-1 ब्लाउज को ऐसे सहलाने लगे मानो विमला ही लिपटी हो उन ब्लाउजों में.

इंद्र बड़ी मुश्किल से यादों के जाल से बाहर आए. फिर उन्होंने दूसरा बंडल उठाया. इस बंडल के अधिकतर ब्लाउज प्रिंटेड थे. उन्हें याद हो आया कि एक जमाने में सभी महिलाएं ऐसे ही प्रिंटेड ब्लाउज पहनती थीं. प्लेन साड़ी और प्रिंटेड ब्लाउज का फैशन कई वर्षों तक रहा था. उन्हें उस बंडल में वह काला प्रिंटेड ब्लाउज भी नजर आ गया जिसे खरीदने के चक्कर में उन में आपस में खूब वाक् युद्ध हुआ था.

विमला को एक शादी में जाना था और उस की तैयारी जोरशोर से चल रही थी.

एक दिन सुबह ही चेतावनी मिल गई थी, ‘‘देखो आज शाम को जल्दी वापस आना. मुझे बाजार जाना है. शीला की शादी में मुझे काली साड़ी पहननी है और उस के साथ का प्रिंटेड ब्लाउज खरीदना है.’’

‘‘तुम खुद जा कर ले आना.’’

‘‘नहीं तुम्हारे साथ ही जाना है. उस के साथ की मैचिंग ज्वैलरी भी खरीदनी है.’’

‘‘अच्छा कोशिश करूंगा.’’

‘‘कोशिश नहीं, तुम्हें जरूर आना होगा.’’

‘‘ओ.के. मैडम. आप का हुक्म सिरआंखों पर.’’ पर शाम होतेहोते इंद्र यह बात भूल गए और रात को जब घर लौटे तो चंडीरूपा विमला से उन का सामना हुआ. उन्हें अपनी कही बात याद आई तो तुरंत अपनी गलती को सुधार लेना चाहा. बोले, ‘‘अभी आधा घंटा है बाजार बंद होने में. जल्दी से चलो.’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जाना. आधे घंटे में भी कोई खरीदारी होती है?’’

‘‘अरे, तुम चलो तो.

तुम्हारे लिए मैं बाजार फिर से खुलवा लूंगा.’’

‘‘बस करो अपनी बातें. मुझे पता है आजकल तुम मुझे बिलकुल प्यार नहीं करते. सारा दिन काम और फिर दोस्त ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं आजकल.’’

‘‘यही बात मैं तुम्हारे लिए कहूं तो कैसा लगेगा? अब तो तुम्हारे बच्चे ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं. तुम मेरा ध्यान नहीं रखती हो.’’

‘‘शर्म नहीं आती है तुम्हें

ऐसा कहते हुए? बच्चे क्या सिर्फ मेरे हैं?’’

विमला की आंखों में आंसू देख कर वे संभल गए और बोले, ‘‘अब जल्दी चलो. झगड़ा बाद में कर लेंगे,’’ और फिर उन्होंने जबरदस्ती विमला को घसीट कर कार में बैठाया और कार स्टार्ट कर दी थी.

पहली ही दुकान में उन्हें इस काले प्रिंटेड ब्लाउज का कपड़ा मिल गया. फिर ज्वैलरी शौप में काले और सफेद मोतियों की मैचिंग ज्वैलरी भी मिल गई. फिर वे बाहर ही खाना खा कर घर लौटे.

इसी बंडल में उन्हें बिना बांहों का पीली बुंदकी वाला ब्लाउज भी नजर आया. जब विमला ने पहली बार बिना बांहों का ब्लाउज पहना था तो वे अचरज से उसे देखते रह गए थे. फिर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं उन्होंने महसूस की थीं. एक ओर तो वे विमला की गोल मांसल और गोरी बांहों को देखते रह गए, तो दूसरी ओर उन में ईर्ष्या की भावना भी पैदा हो गई. वे विमला को ले कर बहुत ही पजैसिव हो उठे थे इसलिए उन्होंने विमला से कहा, ‘‘मेरी एक बात मानोगी?’’

‘‘बोलो.’’

‘‘यह ब्लाउज पहन कर तुम बाहर मत जाना. लोगों की नजर लग जाएगी.’’

‘‘बेकार की बातें मत करो. मेरी सारी सहेलियां पहनती हैं. किसी को नजर नहीं लगती है. तुम अपनी सोच को जरा विशाल बनाओ. इतने संकुचित विचारों वाले मत बनो.’’

‘‘मुझे जो कहना था, कह दिया. आगे तुम्हारी मरजी,’’ कह कर वे बिलकुल खामोश हो गए.

विमला ने उन की बात रख ली और फिर कभी बिना बांहों वाला ब्लाउज नहीं पहना. उसी बंडल में 20 ब्लाउज ऐसे निकले जो बिना बांहों के थे. लगता था विमला ने एकसाथ ही इतने सारे ब्लाउज सिलवा लिए थे. पर अब देखने से पता चलता कि उन्हें कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया.

अब उन्होंने अगला बंडल उठाया. इस में तरहतरह के ब्लाउज थे. कुछ रेडीमेड ब्लाउज थे, कुछ डिजाइनर ब्लाउज थे, 1-2 ऊनी ब्लाउज और कुछ मखमल के ब्लाउज भी थे.

जब काले मखमल के ब्लाउज पर इंद्र ने हाथ फेरा तो वे बहुत भावुक हो उठे. जब विमला ने यह काला ब्लाउज पहना तो उन की नजर उस की गोरी पीठ और बांहों पर जम कर रह गई.

40 साल पार कर चुकी विमला भी उस नजर से असहज हो उठी और बोली, ‘‘कैसे देख रहे हो? क्या मुझे पहले कभी नहीं देखा?’’

‘‘देखा तो बहुत बार है पर इस मखमली ब्लाउज में तुम्हारी गोरी रंगत बहुत खिल रही है. मन कर रहा है कि देखता ही रहूं.’’

‘‘तो मना किस ने किया है,’’ वह इतरा कर बोली.

कुछ साडि़यां ब्लाउजों सहित हैंगरों पर लटकी थीं. एक पेंटिंग साड़ी इंद्र ने हैंगर सहित उतार ली. हलकी पीली साड़ी पर गहरे पीले रंग के बड़ेबड़े गुलाब बने थे. इस साड़ी को पहन कर 50 की उम्र में भी विमला उन्हें कमसिन नजर आ रही थी. उस की देहयष्टि इस उम्र में भी सुडौल थी. अपने शरीर का रखरखाव वह खूब करती थी. जरा सा मेकअप कर लेती तो अपनी असली उम्र से 10 साल छोटी लगती.

उधर इंद्र ने कभी अपने शरीर की ओर ध्यान नहीं दिया. उन की तोंद निकल आई थी. बाल तो 40 के बाद ही सफेद होने शुरू हो गए थे. बाल काले करने के लिए वे कभी राजी नहीं हुए. सफेद बाल और तोंद के कारण वे अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

तभी तो एक दिन जब उन के एक मित्र घर आए तो गजब हो गया. मित्र का स्वागत करने के लिए विमला ड्राइंगरूम में आई और हैलो कह कर चाय लाने अंदर चली गई. उस दिन विमला ने यही पीली साड़ी पहनी हुई थी. वह चाय की ट्रे रख कर फिर अंदर चली गई.

आधे घंटे बाद जब मित्र चलने लगे तो बोले, ‘‘यार तू ने भाभीजी से मिलवाया ही नहीं.’’

‘‘अरे अभी तो तुम्हें हैलो कह कर चाय रख कर गई थी.’’

‘‘वे भाभी थीं क्या? मैं ने समझा तुम्हारी बेटी है.’’

‘‘अब तुम चुप हो जाओ, नहीं तो मेरे से पिटोगे.’’

‘‘जो मैं ने देखा और महसूस किया, वही तो बोला. अब इस में बुरा मानने की क्या बात है? छोटी उम्र की लड़की से शादी करोगे तो बापबेटी ही तो नजर आओगे.’’

‘‘तुम मेरे मेहमान हो अन्यथा उठा कर बाहर फेंक देता.’’

दोनों की बातें सुन कर विमला भी ड्राइंगरूम में चली आई. फिर अपने पति के बचाव में बोली, ‘‘लगता है भाईसाहब का चश्मा बदलने वाला है. जा कर टैस्ट करवाइए. अब सफेद बालों और काले बालों से तो उम्र नहीं जानी जाती. आप मेरे पति का मजाक नहीं उड़ा सकते.’’

बात हंसी में उड़ा दी गई. पर हकीकत यही थी कि विमला अपनी उम्र से 10 साल छोटी और इंद्र अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

छोटे बेटे की शादी में सिलवाए ब्लाउज ने तो उन्हें हैरानी में ही डाल दिया. अधिकतर विमला अपनी खरीदारी स्वयं ही करती थी और स्वयं ही भुगतान भी करती थी. पर उस दिन दर्जी की दुकान से एक नौकर ब्लाउज ले कर आया और क्व800 की रसीद दे कर पैसे मांगने लगा. क्व800 एक ब्लाउज की सिलवाई देख कर वे चकित रह गए. उन्होंने रुपए तो नौकर को दे दिए पर विमला से सवाल किए बिना नहीं रह पाए.

‘‘तुम्हारे एक ब्लाउज की सिलवाई रू 800 है?’’

‘‘हां, है. पर तुम्हें इस से क्या मतलब? मेरे बेटे की शादी है, मेरा भी सजनेसंवरने का मन है.’’

‘‘इतना महंगा ब्लाउज पहन कर ही तुम लड़के की मां लगोगी?’’

‘‘आज तक तो कभी मेरे खर्च का हिसाब नहीं मांगा. आज भी चुप रहो भावी ससुरजी,’’ कह कर विमला जोर से हंस दी.

उन्हें तो उस ब्लाउज में कुछ विशेष नजर नहीं आया था पर विमला की सहेलियों के बीच वह ब्लाउज चर्चा का विषय रहा. उस ब्लाउज को देखते ही उन्हें विमला का वह सुंदर चेहरा याद हो आया, जो बेटे की शादी की खुशी में दमक रहा था.

फिर उन की नजर कुछ ऐसे ब्लाउजों पर भी पड़ी, जिन्हें देख कर लगता था कि उन्हें कभी पहना ही नहीं गया है. पता नहीं विमला को ब्लाउज सिलवाने का कितना शौक था. उन्हें लगा इतने ब्लाउज देख कर वे पागल हो जाएंगे. औरत का मनोविज्ञान समझना उन की समझ से परे था. पर अफसोस जिस विमला को ब्लाउज सिलवाने का इतना शौक था, वही विमला जीवन के आखिरी दिनों में ब्लाउज नहीं पहन सकती थी.

2 साल पहले उसे स्तन कैंसर हुआ और जब तक उस का इलाज शुरू होता वह पूरी बांह में फैल चुका था. उस से अपनी बांह भी ऊपर नहीं उठती थी. बीमारी और कीमोथेरैपी ने उस के गोरे रंग को भी झुलसा दिया था. 3 महीनों में ही वह अलविदा कह गई थी.

आज इंद्र उन्हीं ब्लाउजों के अंबार में बैठे यादों के सहारे कुछ जीवंत क्षणों को फिर से जीने का प्रयास कर रहे थे. पर कुछ समय बाद वे उठे और उन्होंने अपने नौकर को आवाज लगाई. कहा, ‘‘इस अलमारी के सारे कपड़ों को संदूकों में बंद कर के कार में रख दो.’’

सुबह होते ही इंद्र कार ले कर उस रेलवेलाइन जा पहुंचे और फिर दोनों संदूकों को मजदूरों के हवाले कर बहुत ही हलके मन से घर लौट आए कि विमला के कपड़ों से किसी की नग्नता ढक जाएगी. Family Story

Top 10 Monsoon Food Recipes In Hindi: मौनसून की टॉप 10 फूड रेसिपी हिंदी में

Monsoon Food Recipes In Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Monsoon Food Recipes In Hindi 2025. मौनसून में बाहर की चीजें खाने से हेल्थ पर इफेक्ट पड़ता है और कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं. वहीं इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर देखने को मिलता है क्योंकि वह बिना सोचे समझे बाहर की बनीं चीजें खा लेते हैं. इसी लिए आज हम आपके लिए कुछ मौनसून की टेस्टी रेसिपीज लेकर आए हैं, जिन्हें आप अपने बच्चों को आसानी से घर पर बनाकर खिला सकते हैं. इन Food Recipes से आप घर बैठे अपने बच्चों और फैमिली का कुकिंग से दिल जीत सकती हैं. अगर आपको भी है मौनसून के इस सीजन में घर पर नई नई रेसिपी ट्राय करनी है तो यहां पढ़िए गृहशोभा की Monsoon Food Recipes In Hindi.

1. Monsoon Special: नाश्ते में बनाएं इंस्टेंट जाली डोसा

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नाश्ता हर महिला की रोज की ही समस्या है, घर में जितने सदस्य उतनी ही विविध पसन्द. पुरानी पीढ़ी को उपमा, वेरमिसेली और उत्तपम जैसी चीजों के स्थान पर परांठा, पूरी जैसे खाद्य पदार्थ पसन्द आते हैं तो नई पीढ़ी को परांठे और पूरी ऑयली लगते हैं. ब्रेड और उससे बने नाश्ते भी रोज नहीं खाये जा सकते. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए आज हम आपको एक ऐसे नाश्ते के बारे में बता रहे हैं जिसे घर पर उपलब्ध सामग्री से ही बड़ी आसानी से बनाया जा सकता है, साथ ही यह बच्चे बड़े सभी को बहुत पसंद भी आएगा.

2. Monsoon Special: दूध से मिठाई बनाने के टिप्स

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मिठाई भारतीयों का एक प्रिय डेजर्ट है. भोजनोपरांत कुछ मीठा होना ही चाहिए. पेड़ा, बर्फी, लड्डू, रबड़ी, आदि अनेकों मिठाईयां हैं जिन्हें बेसन, खोया और आटा आदि से बनाया जाता है. दूध से रबड़ी, कुल्फी, श्रीखंड आदि बनाये जाते हैं. दूध से मिठाईयां बनाते समय आंच का ध्यान रखने की अतिरिक्त सावधानी रखने की आवश्यकता होती है क्योंकि गैस की धीमी, तेज और मद्धिम आंच से ही दूध की मिठाइयों की रंगत निर्धारित होती है.

3. Monsoon Special: घर पर बनाएं बच्चों के लिए ये शानदार मिल्क शेक

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बच्चों को अक्सर दूध पीना पसंद नहीं होता, कई बार दूध के साथ बच्चों का छत्तीस का अकड़ा भी रहता है. लेकिन बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए दूध बहुत ज़रूरी खाद्य पदार्थ होता है. इसलिए हर माता-पिता अपने बच्चों को दूध पीने के लिए देते हैं. ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि दूध ना देकर दूध से तैयार कुछ बेहतरीन रेसिपीज को बनाकर सेवन के लिए ज़रूर दिया जाए…

4. Monsoon Special: बारिश में बनाएं रेड कैबेज पकौड़े

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बारिश का मौसम प्रारम्भ हो चुका है और रिमझिम फुहारों के बीच पकौड़े खाने का मजा भी कुछ अलग ही होता है. आमतौर पर हम प्याज, आलू या मिक्स वेज पकौड़े बनाते हैं पर आज हम आपको इन सबसे अलग रेड कैबेज अर्थात रेड या पर्पल कैबेज के पकोड़े बनाना बता रहे हैं जो सेहतमंद भी हैं और स्वादिष्ट भी. रेड कैबेज में विटामिन के और फाइबर प्रचुर मात्रा में तथा जिंक, मैग्नीशियम और आयरन अल्प मात्रा में पाए जाते हैं.

5. Monsoon Special: बारिश में लें टेस्टी चाट का मजा

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बारिश का मौसम शुरू हो चुका है, और बारिश की रिमझिम फुहारों के पड़ते ही मन कुछ चटपटा और तीखा खाने को करने लगता है. चाट यूं तो हर मौसम में ही अच्छी लगती है परन्तु बारिश में चाट खाने का मजा ही कुछ और होता है. इसी तरीके में आज हम आपको चाट की झटपट बनने वाली दो रेसिपीज के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से बना सकती हैं…

6. Monsoon Special: 3 तरह की ग्रेवी से सब्जी का स्वाद बढ़ाए

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सब्जी का स्वाद उसकी ग्रेवी से बढ़ जाता है. भारतीयो को हर खाने में मिर्च मसाले पसंद आते है, भारतिय रसोई में सब्जी में ग्रेवी कई तरीके से बनाई जाती है. कई ऐसे पकवान होते हैं जो बिना ग्रेवी के अच्छे ही नहीं लगते, जैसे- छोले, पनीर की सब्जी, और आलू दम इत्यादि. आज हम तीन ऐसी ग्रेवी के बारे में बताने जा रहे हैं जो आप विभिन्न सब्जी रेसिपीज में ट्राई कर सकती हैं. हालांकि इस दौरान यह ध्यान रखना जरूरी है कि सब्जी में ग्रेवी किस तरह की रखनी है, यानि पतली या गाढ़ी. इस बात को ध्यान में रखते हुए अगर आप सब्जी की ग्रेवी बनाएंगी तो परिवार वाले उंगलियां चाटते हुए सब्जी के स्वाद का आनंद उठाएंगे.

7. Monsoon Special: चटनी के साथ परोसें गरमागरम मूंग दाल के पकौड़े

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मौनसून में पकौड़े हर किसी को पसंद आते हैं, लेकिन अक्सर लोग घर पर बनाने की बजाय रेस्टोरेंट से बनाना पसंद करते हैं. पर आज हम आपको मूंग दाल के पकौड़े की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप चटनी के साथ मूंग दाल के पकौड़ों के साथ अपनी फैमिली को गरमागरम परोसें.

8. Monsoon Special: फैमिली के लिए बनाएं ओनियन चीज पिज्जा

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अगर आप भी बारिश के मौसम में कुछ टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो ओनियन चीज पिज्जा की ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन साबित होगा. ओनियन चीज पिज्जा आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली को स्नैक्स में खिला सकते हैं.

9. Monsoon Special: बारिश में लें चीजी कॉर्न समोसे का मजा

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बारिश का मौसम देश में अपनी दस्तक दे चुका है. इस समय कॉर्न भरपूर मात्रा में बाजार में मिलता है. यूं तो आजकल फ्रोजन कॉर्न के रूप में साल भर ही कॉर्न उपलब्ध रहते हैं परन्तु बारिश का तो मौसम ही भुट्टों का होता है. देशी भुट्टे जहां छोटे दाने के वहीं स्वीट कॉर्न बड़े दाने और मिठास लिए होते हैं. कॉर्न में आयरन, फाइबर, तथा अनेकों मिनरल्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं इसलिए इन्हें अपनी डाइट में किसी न किसी रूप में अवश्य शामिल करना चाहिए.

10. Monsoon Special: स्नैक्स में खिलाएं पनीर हौट डौग

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बारिश के मौसम में अगर आप टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो पनीर हौट डौग की ये रेसिपी आपके लिए अच्छा औप्शन है. पनीर हौट डौग को आप आसानी से अपनी फैमिली के लिए कम समय में बना सकते हैं. Monsoon Food Recipes In Hindi

Social Story: पुश्तैनी रिवॉल्वर

Social Story: वैसे तो रणबीर ग्रुप ने शहर में कई दर्शनीय इमारतें बनाई थीं, लेकिन उन के द्वारा नवनिर्मित ‘स्वप्नलोक’ वास्तुशिल्प में उन का अद्वितीय योगदान था. उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री एवं अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की प्रशंसा के उत्तर में ग्रुप के चेयरमैन रणबीर ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘किसी भी प्रोजैक्ट की कामयाबी का श्रेय उस से जुड़े प्रत्येक छोटेबड़े व्यक्ति को मिलना चाहिए, इसीलिए मैं अपने सभी सहकर्मियों का बहुत आभारी हूं, खासतौर से अपने आर्किटैक्ट विभोर का जिन के बगैर मैं आज जहां खड़ा हूं वहां तक कभी नहीं पहुंचता.’’

समारोह के बाद जब विभोर ने रणबीर को धन्यवाद दिया तो उस ने सरलता से कहा, ‘‘किसी को भी उस के योगदान का समुचित श्रेय न देने को मैं गलत समझता हूं विभोर.’’

‘‘ऐसा है तो फिर मेरी सफलता का श्रेय तो मेरी सासससुर खासकर मेरी सास को मिलना चाहिए सर,’’ विभोर बोला, ‘‘यदि आप का इस सप्ताहांत कोई और कार्यक्रम न हो तो आप सपरिवार हमारे साथ डिनर लीजिए, मैं आप को अपने सासससुर से मिलवाना चाहता हूं.’’

‘‘मैं गरिमा और बच्चों के साथ जरूर आऊंगा विभोर. तुम्हारे सासससुर इसी शहर में रहते हैं?’’

‘‘जी हां, मैं उन के साथ यानी उन के ही घर में रहता हूं सर वरना मेरी इतनी बड़ी कोठी लेने की हैसियत कहां है…’’

‘‘कमाल है, अभी कुछ रोज पहले तो हम तुम्हारी प्रमोशन की पार्टी में तुम्हारे घर आए थे और उस से पहले भी आ चुके हैं, लेकिन उन से मुलाकात नहीं हुई कभी.’’

‘‘वे लोग मेरी पार्टियों में शरीक नहीं होते सर, न ही मेरी निजी जिंदगी में दखलंदाजी करते हैं. लेकिन मेरे बीवीबच्चों का पूरा खयाल रखते हैं. इसीलिए तो मैं इतनी एकाग्रता से अपना काम कर रहा हूं, क्योंकि न तो मुझे बीमार बच्चे को डाक्टर के पास ले जाना पड़ता है और न ही बीवी के अकेलेपन को दूर करने या गृहस्थी के दूसरे झमेलों के लिए समय निकालने की मजबूरी है. जब भी फुरसत मिलती है बेफिक्री से बीवीबच्चों के साथ मौजमस्ती कर के तरोताजा हो जाता हूं,’’ विभोर बोला.

‘‘ऋतिका इकलौती बेटी है?’’

‘‘नहीं सर, उस के 2 भाई अमेरिका में रहते हैं. पहले तो उन का वापस आने का इरादा था, मगर मेरे यहां आने के बाद दोनों लौटना जरूरी नहीं समझते. मिलने के लिए आते रहते हैं. कोठी इतनी बड़ी है कि किसी के आनेजाने से किसी को कोई दिक्कत नहीं होती.’’

रणबीर को ऋतिका के मातापिता बहुत ही सुलझे हुए, संभ्रांत और सौम्य

लगे. खासकर ऋतिका की मां मृणालिनी. न जाने क्यों उन्हें देख कर रणबीर को ऐसा लगा कि उस ने उन्हें पहले भी कहीं देखा है.

उस के यह कहने पर मृणालिनी ने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘जरूर देखा होगा ‘दीपशिखा’ महिला क्लब के किसी समारोह या फिर अपनी शादी में,’’ मां की मृत्यु में कहना मृणालिनी ने मुनासिब नहीं समझा.

‘‘ठीक कहा आप ने,’’ रणबीर चहका, ‘‘किसी समारोह की तो याद नहीं, लेकिन बहुत सी तसवीरों में आप हैं मां के साथ.’’

‘‘मां की शादी से पहले की तसवीरों में भी देखा होगा, क्योंकि मैं और रुक्की शादी के पहले एक बार एनसीसी कैंप में मिली थीं और वहीं हमारी दोस्ती हुई थी.’’

रणबीर भावुक हो उठा. उस की मां रुक्मिणी को रुक्की उन के बहुत ही करीबी लोग कह सकते थे. रूप और धन के दंभ में अपने को विशिष्ट समझने वाली मां यह हक किसीकिसी को ही देती थीं यानी मृणालिनी उस की मां की अभिन्न सखी थीं.

‘‘विभोर को मालूम है कि मां आप की सहेली थीं?’’ रणबीर ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि उस का हमारे परिवार से जुड़ने से पहले ही रुक्की का देहांत हो गया था. विभोर बहुत मेहनती और लायक लड़का है,’’ मृणालिनी ने दर्प से कहा.

‘‘सही कह रही हैं आप. विभोर के बगैर तो मैं 1 कदम भी नहीं चल सकता. और अब तो मुझे आप का सहारा भी चाहिए मांजी. मां के देहांत के बाद आज आप से मिल कर पहली बार लगा जैसे मैं फिर से सिर्फ रणबीर बन कर जी सकता हूं.’’

‘‘गाहेबगाहे ही क्यों जब जी करे,’’ मृणालिनी ने स्नेह से उस का सिर सहलाते

हुए कहा.

‘‘रणबीर सर से क्या बातें हुईं मां?’’ अगली सुबह विभोर ने पूछा.

‘‘कुछ खास नहीं, बस उस की मां के बारे में,’’ मृणालिनी ने अनमने भाव से कहा.

‘‘पूरी शाम?’’ विभोर ने हैरानी से पूछा.

‘‘रुक्की थी ही ऐसी विभोर, उस के बारे में जितनी भी बातें की जाएं कम हैं, अमीर बाप की बेटी होने के बावजूद उस में रत्ती भर घमंड नहीं था. वह एनसीसी की अच्छी कैडेट थी. उस के बाप ने उसे रिवौल्वर इनाम में दिया था. मेरी निशानेबाजी से प्रभावित हो कर रुक्की ने अपने रिवौल्वर से मुझे प्रैक्टिस करवाई थी. तभी तो मुझे निशानेबाजी की प्रतियोगिता में इनाम मिला था.’’

‘‘लगता है मां अपनी सहेली की याद आने की वजह से विचलित हैं,’’ ऋतिका बोली.

‘‘और अब विचलित होने की बारी मेरी है, क्योंकि हम व्हिस्पर वैली में जो अरेबियन विलाज बना रहे हैं न उस बारे में मुझे आज रणबीर सर से विस्तृत विचारविमर्श करना है और अगर मां की याद में व्यथित होने के कारण उन्होंने मीटिंग टाल दी या दिलचस्पी नहीं ली तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी,’’ विभोर ने कहा.

लेकिन उस का खयाल गलत था. रणबीर ने बड़े उत्साह और दिलचस्पी से विभोर की प्रस्तावना पर विचार किया और सुझाव दिया, ‘‘अपने पास जमीन की कमी नहीं है विभोर. क्यों न तुम 2 को जोड़ कर पहले 1 बड़ा भव्य विला बनाओ. अगर लोगों को पसंद आया तो और वैसे बना देंगे.’’

‘‘लेकिन कीमत बहुत ज्यादा हो जाएगी सर और फिर कोई ग्राहक न मिला तो?’’

‘‘परवाह नहीं,’’ रणबीर ने उत्साह से कहा, ‘‘खुद के काम आ जाएगा. यही सोच कर बनाओ कि यह बेचने के लिए नहीं अपने लिए है. विभोर, तुम दूसरे काम उमेश और दिनेश को देखने दो. तुम इसी प्रोजैक्ट के निर्माण पर ध्यान दो और जल्दी यह काम पूरा करो. मैं सतबीर से कह दूंगा कि तुम्हें पैसे की दिक्कत न हो.’’

‘‘फिर तो देर होने का सवाल ही नहीं उठता सर,’’ विभोर ने आश्वासन दिया. उस के बाद वह काम में जुट गया.

रणबीर इस प्रोजैक्ट में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहा था, अकसर साइट पर भी आता रहता था. एक सुबह जब विभोर साइट पर जा रहा था तो उस ने देखा कि ढलान शुरू होने से कुछ पहले उस के कई सहकर्मियों की गाडि़यां और मोटरसाइकिलें, स्कूटर सड़क के किनारे खड़े हैं और कुछ लोग उस की गाड़ी को रोकने को हाथ हिला रहे हैं.

‘‘रणबीर साहब की गाड़ी भी खड़ी है साहब,’’ ड्राइवर ने गाड़ी रोकते हुए कहा.

विभोर चौंक पड़ा कि क्या वे इतनी सुबह यहां मीटिंग कर रहे हैं?

‘‘सर, बड़े साहब की गाड़ी में उन की लाश पड़ी है,’’ उसे गाड़ी से उतरते देख कर एक आदमी लपक कर आया और बोला.

विभोर भागता हुआ गाड़ी के पास पहुंचा. रणबीर ड्राइवर की सीट पर बैठा

था, उस की दाहिनी कनपटी पर गोली लगी थी और दाहिने हाथ में रिवौल्वर था. सीटबैल्ट बंधी होने के कारण लाश गिरी नहीं थी. रणबीर जौगर्स सूट और शूज में थे यानी वे सुबह को सैर के लिए तैयार हुए थे. ‘वे तो घर के पास के पार्क में ही सैर करते थे. फिर गाड़ी में यहां कैसे आ गए?’ विभोर सोच ही रहा था कि तभी पुलिस की गाड़ी आ गई.

इंस्पैक्टर देव को देख कर विभोर को तसल्ली हुई. उस के बारे में मशहूर था कि कितना भी पेचीदा केस क्यों न हो वह सप्ताह भर में सुलझा लेता है.

‘‘लाश पहले किस ने देखी?’’ देव ने पूछा.

‘‘मैं ने इंस्पैक्टर,’’ एक व्यक्ति सामने आया, ‘‘मैं प्रोजैक्ट मैनेजर विभास हूं. मैं जब साइट पर जाने के लिए यहां से गुजर रहा था तो साहब की गाड़ी खड़ी देख कर रुक गया. गाड़ी के पास जा कर मैं ने अधखुले शीशे से झांका तो साहब को खून में लथपथ पाया. मैं ने तुरंत साहब के घर और पुलिस को फोन कर दिया.’’

कुछ देर बाद रणबीर की पत्नी गरिमा, बेटी मालविका, बेटा कबीर, छोटा भाई सतबीर और उस की पत्नी चेतना आ गए. देव ने शोकविह्वल परिवार को संयत होने के लिए थोड़ा समय देना बेहतर समझा. कुछ देर के बाद गरिमा ने विभोर से पूछा कि क्या साइट पर कुछ गड़बड़ है, क्योंकि आज रणबीर रोज की तरह सुबह सैर पर निकले थे, पर चंद मिनट बाद ही लौट आए और चौकीदार से गाड़ी की चाबी मंगवा कर गाड़ी ले कर चले गए.

‘‘हमें तो किसी ने फोन नहीं किया,’’ विभास और विभोर ने एकसाथ कहा, ‘‘और साइट के चौकीदार को तो हम ने साहब का नंबर दिया भी नहीं है.’’

‘‘क्या मालूम भैया ने खुद दे दिया हो,’’ सतबीर बोला, ‘‘वह इस प्रोजैक्ट में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे.’’

‘‘अगर किसी ने फोन किया था तो इस का पता मोबाइल से चल जाएगा,’’ देव ने कहा, ‘‘यह बताइए यह रिवौल्वर क्या रणबीर साहब का अपना है?’’

गरिमा और बच्चों ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘मैं इस रिवौल्वर को पहचानता हूं इंस्पैक्टर,’’ सतबीर बोला, ‘‘यह हमारा पुश्तैनी रिवौल्वर है.’’

‘‘लेकिन यह रिवौल्वर था कहां सतबीर?’’ गरिमा ने पूछा.

सतबीर ने कंधे उचकाए, ‘‘मालूम नहीं भाभी. दादाजी के निधन के कुछ समय बाद मैं पढ़ने के लिए बाहर चला गया था. जब लौट कर आया तो पापा पुरानी हवेली बेच कर हम दोनों भाइयों के लिए नई कोठियां बनवा चुके थे. पुराने सामान का खासकर इस रिवौल्वर का क्या हुआ, मुझे खयाल ही नहीं आया.’’

‘‘चाचा जब बड़े दादाजी गुजरे तब दयानंद काका थे क्या?’’ कबीर ने पूछा.

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘क्योंकि दयानंद काका को जरूर मालूम होगा कि यह रिवौल्वर किस के पास था,’’ कबीर बोला.

‘‘यह दयानंद काका कौन हैं और कहां मिलेंगे?’’ देव ने उतावली से पूछा.

‘‘घर के पुराने नौकर हैं और हमारे साथ ही रहते हैं,’’ गरिमा बोली.

‘‘उन से रिवौल्वर के बारे में पूछना बहुत जरूरी है, क्योंकि आत्महत्या दिखाने की कोशिश में हत्यारे ने गोली चला कर रिवौल्वर मृतक के हाथ में पकड़ाया है,’’ देव बोला.

‘‘दयानंद काका आ गए,’’ तभी औटो से एक वृद्ध को उतरते देख कर मालविका ने कहा.

‘‘साहब, काकाजी की जिद्द पर हमें इन्हें यहां लाना पड़ा,’’ दयानंद के साथ आए एक युवक ने कहा.

‘‘अच्छा किया,’’ सतबीर ने कहा और सहारा दे कर बिलखते दयानंद को गाड़ी के पास ले गया.

‘‘इस रिवौल्वर को पहचानते हो काका?’’ देव ने कुछ देर के बाद पूछा.

दयानंद ने आंसू पोंछ कर गौर से रिवौल्वर को देखा. फिर बोला, ‘‘हां, यह तो साहब का पुश्तैनी रिवौल्वर है. यह यहां कैसे आया?’’

‘‘यह रिवौल्वर किस के पास था?’’ सतबीर ने पूछा.

‘‘किसी के भी नहीं. बड़े बाबूजी के कमरे की अलमारी में जहां उन का और मांजी का सामान रखा है, उसी में रखा रहता था.’’

‘‘आप को कैसे मालूम?’’ कबीर ने पूछा.

‘‘हमीं से तो रणबीर भैया उस कमरे की साफसफाई करवाते थे. इस इतवार को भी करवाई थी.’’

‘‘तब मैं कहां थी?’’ गरिमा ने पछा.

‘‘होंगी यहीं कहीं,’’ दयानंद ने अवहेलना से कहा.

‘‘भैया कब क्या करते थे, इस की कभी खबर रखी आप ने?’’

‘‘पहले मेरे सवाल का जवाब दो काका,’’ देव ने बात संभाली, ‘‘उस रोज क्या उन्होंने यह रिवौल्वर अलमारी से निकाला था?’’

‘‘जी हां, हमेशा ही सब चीजें निकालते थे, फिर उन्हें बड़े प्यार से पोंछ कर वापस रख देते थे.’’

‘‘इतवार को भी रिवौल्वर वापस रखा था?’’

‘‘मालूम नहीं, हम तो अपना काम खत्म कर के भैया को वहीं छोड़ कर आ गए थे.’’

‘‘भैया को मांबाप से बहुत लगाव था. उन्होंने उन का कमरा जैसा था वैसा ही रहने दिया था. वे हमेशा उस कमरे में अकेले बैठना पसंद करते थे,’’ सतबीर ने जैसे सफाई दी.

इंस्पैक्टर देव फोटोग्राफर और फोरेंसिक वालों के साथ व्यस्त हो गया.

फिर शोकसंतप्त परिवार से बोला, ‘‘मैं आप की व्यथा समझता हूं, लेकिन हत्यारे को पकड़ने के लिए मुझे आप सब से कई अप्रिय सवाल करने पड़ेंगे. अभी आप लोग घर जाइए. लेकिन कोई भी घर से बाहर नहीं जाएगा खासकर दयानंद काका.’’

‘‘जो हमें मालूम होगा, हम जरूर बताएंगे इंस्पैक्टर. लेकिन हम सब से ज्यादा विभोर बता सकते हैं, क्योंकि भाभी से भी ज्यादा समय भैया इन के साथ गुजारते थे,’’ सतबीर ने विभोर का परिचय करवाया.

रणबीर के शरीर को पोस्टमाटर्म के लिए ले जाने को जैसे ही ऐंबुलैंस में रखा, पूरा परिवार बुरी तरह बिलखने लगा.

‘‘आप ही को इन सब को संभालना होगा विभोर साहब,’’ विभास ने कहा.

‘‘घर पर और भी कई इंतजाम करने पड़ेंगे विभास. आप साइट का काम बंद करवा कर बंगले पर आ जाइए और कुछ जिम्मेदार लोगों को अभी बंगले पर भिजवा दीजिए,’’ विभोर ने कहा.

विभोर जितना सोचा था उस से कहीं ज्यादा काम करने को थे. बीचबीच में मशवरे के लिए उसे परिवार के पास अंदर भी जाना पड़ रहा था. एक बार जाने पर उस ने देखा कि ऋतिका और मृणालिनी भी आ गई हैं. मृणालिनी गरिमा को गले लगाए जोरजोर से रो रही थी. चेतना और सतबीर उन्हें हैरानी से देख रहे थे.

‘‘ये मेरी सास हैं और आप की मां की घनिष्ठ सहेली. यह बात कुछ महीने पहले ही उन्होंने सर को बताई थी, तब से सर अकसर उन से मिलते रहते थे,’’ विभोर ने धीरे से कहा.

‘‘हां, भैया ने बताया तो था कि मां की एक सहेली से मिल कर उन्हें लगता है कि जैसे मां से मिले हों. मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि वे आप की सास हैं,’’ सतबीर बोला.

‘‘विभोर साहब, बेहतर रहेगा अगर आप अपनी सासूमां को संभाल लें, क्योंकि उन के इस तरह रोने से भाभी और बच्चे और व्यथित हो जाएंगे और फिर हमें उन्हें संभालना पड़ेगा,’’ चेतना ने कहा.

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ कह कर विभोर ने ऋतिका को बुलाया, ‘‘मां को घर ले जाओ ऋतु. अगर इन की तबीयत खराब हो गई तो मेरी परेशानी और बढ़ जाएगी.’’

कुछ देर बाद ऋतिका का घर से फोन आया कि मां का रोनाबिलखना बंद ही नहीं हो रहा, ऐसी हालत में उन्हें छोड़ कर वापस आना वह ठीक नहीं समझती. तब विभोर ने कहा कि उसे आने की आवश्यकता भी नहीं है, क्योंकि वहां कौन आया या नहीं आया देखने की किसी को होश नहीं है.

एक व्यक्ति के जाने से जीवन कैसे अस्तव्यस्त हो जाता है, यह विभोर को पहली बार पता चला. सतबीर और गरिमा ने तो यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि रणबीर ने जो प्रोजैक्ट शुरू कराए थे, उन्हें उस की इच्छानुसार पूरा करना अब विभोर की जिम्मेदारी है. उन दोनों को भरोसा था कि विभोर कभी कंपनी या उन के परिवार का अहित नहीं करेगा. विभोर की जिम्मेदारियां ही नहीं, उलझनें भी बढ़ गई थीं.

रणबीर की मृत्यु का रहस्य उस के मोबाइल पर मिले अंतिम नंबर से और भी उलझ गया था. वह संदेश एक अस्पताल के सिक्का डालने वाले फोन से भेजा गया था और वहां से यह पता लगाना कि फोन किस ने किया था, वास्तव में टेढ़ी खीर था. पहले दयानंद के कटाक्ष से लगा था कि वह गरिमा के खिलाफ है और शायद गरिमा रणबीर की अवहेलना करती थी, लेकिन बाद में दयानंद

ने बताया कि वैसे तो गरिमा रणबीर के प्रति संर्पित थी बस उस की नियमित सुबह की सैर या दिवंगत मातापिता के कमरे में बैठने की आदत में गरिमा, बच्चों व सतबीर की कोई दिलचस्पी नहीं थी. दयानंद के अनुसार यह सोचना भी कि सतबीर या गरिमा रणबीर की हत्या करा सकते हैं, हत्या जितना ही जघन्य अपराध होगा.

मामला दिनबदिन सुलझने के बजाय उलझता ही जा रहा था. इंस्पैक्टर

देव का कहना था कि विभोर ही रणबीर के सब से करीब था. अत: उसे ही सोच कर बताना है कि रणबीर के किस के साथ कैसे संबंध थे. रणबीर की किसी से दुश्मनी थी, यह विभोर को बहुत सोचने के बाद भी याद नहीं आ रहा था और अगर किसी से थी भी तो उस की पहुंच रणबीर के रिवौल्वर तक कैसे हुई? इंस्पैक्टर देव का तकाजा बढ़ता जा रहा था कि सोचो और कोई सुराग दो. Social Story

Social Story: भाभी हो तो ऐसी

Social Story: ‘‘क्या आप मेरी बात सुनने की कृपा करेंगी?’’ रघु चीखा था. पर उस की पत्नी ईशा एक शब्द भी नहीं सुन पाई थी. वह कंप्यूटर पर काम करते हुए इयरफोन से संगीत का आनंद भी उठा रही थी. लेकिन ईशा ने रघु की भावभंगिमा से उस के क्रोधित होने का अनुमान लगाया और कानों में लगे तारों को निकाल दिया.

‘‘क्या है? क्यों घर सिर पर उठा रखा है?’’ ईशा भी रघु की तरह क्रोध में चीखी.

‘‘तो सुनो मेरी कजिन रम्या विवाह के बाद यहीं वाशिंगटन में रहने आ रही है. उस के पति रोहित यहां किसी सौफ्टवेयर कंपनी में कार्यरत हैं. विवाह के बाद वह भारत से पहली बार यहां आ रही है. उस का फोन आया तो मुझे मजबूरन कुछ दिन अपने साथ रहने को कहना पड़ा,’’ रघु ने स्पष्ट स्वर में कहा.

‘‘रम्या कुछ जानापहचाना नाम लगता है. कहीं वही तुम्हारी बूआजी की बेटी तो नहीं जिन के पड़ोस में तुम कई वर्ष रहे हो?’’

‘‘हां वही, सगी बहन से भी अधिक अपनापन मिला है उस से. इसीलिए न चाह कर भी अपने साथ रहने का आमंत्रण देने को मजबूर हो गया,’’ क्रोध उतरने के साथ ही रघु का स्वर भी सहज हो गया था.

‘‘ठीक है, वह तुम्हारी फुफेरी बहन है और यह तुम्हारा घर. मैं कौन होती हूं उसे यहां आने से रोकने वाली? पर मैं साफ कह देती हूं कि मुझ से कोई आशा मत रखना. अगले 2-3 महीने मैं बहुत व्यस्त रहूंगी. मुझ से उन के स्वागतसत्कार की आशा न रखना,’’ ईशा ने अपना निर्णय सुना दिया. थोड़ी कहासुनी के बाद ईशा दोबारा अपने काम में व्यस्त हो गई. न जाने क्यों आजकल उन दोनों का हर वार्त्तालाप बहस से शुरू हो कर झगड़े में बदल जाता है. दोनों उच्च शिक्षा प्राप्त करने भारत से आए थे. पहली बार उस ने रघु को विदेशी विद्यार्थी सहायता केंद्र में देखा था और देखती ही रह गई थी. नैननक्श, रूपरंग, कदकाठी किसी भी नजरिए से वह भारतीय नहीं लगता था. पर उसे हिंदी बोलते देख उसे सुखद आश्चर्य हुआ था.

‘‘अरे, आप तो हिंदी बोल लेते हैं?’’ ईशा ने आश्चर्य से प्रश्न किया था.

‘‘शायद आप जानना चाहती हैं कि मैं भारतीय हूं या नहीं. तो सुनिए मैं हूं रघुनंदन, विशुद्ध भारतीय. हिंदी में काम चला लेता हूं, पर मेरी मातृभाषा तेलुगू है. उस्मानिया मैडिकल कालेज से एमबीबीएस कर के यहां रैजिडैंसी कर रहा हूं. और आप?’’

‘‘मैं…मैं ईशा मुंबई से बी.फार्मा कर के यहां एमएस कर रही हूं. पहली बार अमेरिका आई हूं, अत: जहां भी कोई भारतीय नजर आता है तो मन बात करने को मचल उठता है,’’ ईशा ने अपना परिचय दिया.

‘‘यकीन मानिए आप को निराश नहीं होना पड़ेगा. यहां आप को इतने भारतीय मिलेंगे कि विदेश में होने की भावना अधिक समय तक मन में नहीं टिकेगी,’’ कह रघु हंस दिया. धीरेधीरे दोनों के बीच मित्रता गहरी होने लगी. दोनों इतनी जल्दी विवाह के बंधन में बंध जाएंगे यह दूसरों ने तो क्या स्वयं रघु और ईशा ने भी नहीं सोचा था. वर्षों पहले ईशा के मातापिता कार दुर्घटना में चल बसे थे. संपन्न परिवार की इकलौती वारिस ईशा को उस के नानानानी और मामा ने बड़े प्यार से पाला था. रघु ने ईशा के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा तो ईशा ने तुरंत स्वीकार लिया. ईशा के नानानानी ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी. साथ ही राहत की सांस ली कि ईशा ने स्वयं ही योग्य वर चुन लिया. पर रघु के मातापिता को जब यह पता चला कि ईशा दूसरी जाति की है तो उन्होंने मुंह बना लिया. उन के यहां एक पंडित हर चौथे रोज आता था और उस ने उन्हें पढ़ा दिया था कि विजाति में विवाह करने से नर्क मिलता है.

‘जब तुम ने निर्णय ले ही लिया है, तो हमारे आशीर्वाद की क्या जरूरत है. समझ लेना हम दोनों मर गए तुम्हारे लिए. पिता का ई मेल पढ़ कर सकते में आ गया रघु. ईशा और रघु एक सादे समारोह में विवाह के  बंधन में बंध गए. ईशा के नानानानी उस के विवाह का जश्न मनाना चाहते थे, पर रघु ने साफ मना कर दिया. भारत जाने पर यदि वह अपने घर नहीं जा सकता तो कहीं नहीं जाएगा. रघु के कई संबंधी आसपास ही रहते थे पर उस के मातापिता के डर से अधिकतर उस से कतराने लगे थे. विवाह के बाद दोनों ने सुखद भविष्य की कल्पना की थी. पर विवाहपूर्व का प्रेम कपूर की भांति उड़ गया. दोनों हर बात पर भड़कते हुए एकदूसरे को खरीखोटी सुनाते और एकदूसरे को आहत करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते थे. ऐसे में रम्या के आने का समाचार सुन कर पुलक उठा था रघु. रम्या और उस के परिवार से उस की अनेक मधुर यादें जुड़ी थीं. उसे लगा मानो रेगिस्तान में गरम हवा के थपेड़ों के बीच अचानक ठंडी बयार बहने लगी हो. उस ने सोचा था कि रम्या के आने का समाचार सुन कर ईशा खुश होगी. विवाह के बाद पहली बार उस के परिवार का कोई आ रहा था पर ईशा के व्यवहार ने उसे बहुत आहत किया था अगले 2 सप्ताह रघु ने जितने उत्साह से रम्या के स्वागत की तैयारी की उतनी तो अपने विवाह की भी नहीं की थी. ईशा कुतूहल से सब देखती पर देख कर भी अनदेखा कर देती. न वह टोकती न रघु उत्तर देता. दोनों के बीच दिनरात की चिकचिक का स्थान अब तटस्थता ने ले लिया था.

रम्या और रोहित जब आए तो ईशा अपने कक्ष में थी. रम्या का चहकना सुन कर वह अपने कक्ष से बाहर आई. ‘‘ईशा भाभी,’’ रम्या उत्साह से बोली और लपक कर ईशा से लिपट गई.

‘‘रोहित मैं कहती थी न कि रघु भैया ने हीरा चुना है ईशा के रूप में. कैसा गरिमापूर्ण व्यक्तित्व है और कैसा अद्भुत सौंदर्य,’’ रम्या ने रोहित से कहा.

‘‘इस में कतई संदेह नहीं. मैं ने तो फोटो देखते ही कह दिया था,’’ रोहित ने हां में हां मिलाई.

‘‘फोटो से कहां पता चलता है. वह न बोलता है न भावनाओं को व्यक्त करता है,’’ रम्या अब भी मुग्धभाव से ईशा को निहार रही थी.

‘‘रम्या, छोड़ो यह नखशिख वर्णन. दोनों जल्दी से नहाधो कर तैयार हो जाओ. आज का भोजन हम बाहर करेंगे,’’ रघु ने रम्या के वार्त्तालाप को बीच में ही रोक दिया था.

‘‘क्या रघु भैया. हवाईजहाज का बेस्वाद खाना खा कर परेशान हो गए हम तो. हम तो घर का खाना खाएंगे. भाभी तुम चिंता मत करो मैं अभी 5 मिनट में नहाधो कर आई. आज सब के लिए खाना मैं बनाऊंगी और रम्या तुरंत बाथरूम में चली गई.’’ रम्या शीघ्र ही नहाधो कर आ गई. गुलाबी रंग के सूट में एकदम तरोताजा लग रही थी. ईशा कनखियों से उसे देखती रही. कोई खास गहने नहीं पहने थे उस ने. गले में मंगलसूत्र और दोनों हाथों में सोने की 4-4 चूडि़यां. कानों में शायद हीरे के कर्णफूल थे. हाथपैरों में लगी मेहंदी देख कर वह स्वयं को रोक नहीं सकी.

‘‘बड़ी अच्छी मेहंदी लगाई है. रंग अभी तक गहरा है,’’ ईशा ने रम्या की हथेलियां थामते हुए मेहंदी के डिजाइन पर नजर दौड़ाई.

‘‘इतनी आसानी से थोड़े छूटेगी… पूरे 8 घंटे बैठ कर लगवाई थी,’’ और रम्या खिलखिला कर हंस दी.

‘‘कोई बात नहीं. विवाह क्या बारबार होता है? हमारे विवाह में न मेहंदी, न डोली, न बाजा और न ही बराती. बस 2-4 मित्र और 2 हस्ताक्षर.’’

‘‘क्या कह रही हो भाभी?’’

‘‘मेरे लिए कौन करता यह सब? मातापिता तो रहे नहीं. नानानानी, मामामामी यहां आ नहीं सके. हम वहां गए नहीं और रघु के मातापिता के बारे में तो तुम जानती ही हो,’’ खाना बनाते हुए दोनों घनिष्ठ सहेलियों की तरह बातें कर रही थीं.

‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई, कितनी मूर्ख हूं मैं भी,’’ अचानक रम्या ने माथे पर हाथ मारा. फिर, ‘‘मेरे साथ आओ,’’ कह वह ईशा को अपने साथ खींच ले गई. ‘‘यह देखो, आप दोनों के लिए शांता मामी ने भेजा है. शांता मामी आप दोनों को बहुत याद करती हैं. रघु का नाम लेते ही उन की आंखें छलछला जाती हैं. मनोहर मामा कुछ नहीं बोलते या फिर उन का दर्प बोलने नहीं देता. पर मन की बात चेहरे पर आ ही जाती है. उन की दयनीय स्थिति देख कर कलेजा मुंह को आता है.’’ ईशा ने सिल्क की भारी जरी की साड़ी पर हाथ फेरा था. कढ़ाईदार साड़ी और 1 हीरे का सैट. उपहार देख कर ईशा बुत सी बनी बैठी रह गई.

‘‘रघु के लिए शेरवानीनुमा कुरतापाजामा है. मामी का बहुत मन था कि रघु अपने विवाह के समय इसे पहने.’’

‘‘पता नहीं रम्या, मैं यह सब उपहार ले भी पाऊंगी या नहीं. रघु को तुम नहीं जानती. वे एकदम से आगबबूला हो जाते हैं.’’

‘‘मैं खूब जानती हूं रघु को. भाभी यह तो मातापिता का आशीर्वाद है. इसे अस्वीकार कर के तुम उन का अपमान नहीं कर सकतीं,’’ और फिर रम्या ने उपहार ईशा के कक्ष में रख दिए.

‘‘खाना बहुत स्वादिष्ठ बना है. किस ने बनाया है?’’ रघु ने भोजन करते हुए पूछा.

‘‘हम दोनों ने मिल कर बनाया है,’’ कहते हुए ईशा को न जाने क्याक्या याद आया.

नानी ने बड़े जतन से उसे खाना बनाना सिखाया था. उस के बनाए खाने की सब कितनी प्रशंसा करते थे. क्या हो गया है उसे? विवाह के बाद तो उस की जीवन में रुचि ही समाप्त हो गई है. रम्या और रोहित 1 सप्ताह ईशा और रघु के साथ रहे. इस बीच रोहित ने अलग अपार्टमैंट ले लिया. विवाहपूर्व वह अपने मित्र के साथ रहता था, किंतु नई जगह रम्या को अकेलापन न लगे, इसलिए रघु के घर के पास ही नए घर में व्यवस्थित होने का निर्णय लिया था. जब भी समय मिलता दोनों मिलने चले आते. रम्या ने शीघ्र ही कुछ नए मित्र बना लिए और कुछ पुराने खोज निकाले. जब से रम्या आई थी ईशा की जीवनशैली भी बदलने लगी थी. रम्या ने उस के जीवन में भी नई ऊर्जा का संचार कर दिया था. इसी बीच 7 महीने का समय बीत गया. एक दिन रम्या और रोहित अचानक आ धमके.

‘‘आज हम बहुत जरूरी बात करने आए हैं, चायपानी सब बाद में,’’ रम्या आते ही बोली.

‘‘तो पहले कह ही डालो, फिर चैन से बैठो,’’ रघु ने कहा.

‘‘हम भारत जा रहे हैं,’’ रम्या ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘क्या? सदा के लिए?’’

‘‘नहीं, मेरे भोले भैया, केवल 1 माह के लिए. दिव्या का विवाह है और…’’

‘‘दिव्या कौन?’’ ईशा ने पूछा.

‘‘रम्या की छोटी बहन है,’’ रघु का उत्तर था.

‘‘और क्या?’’

‘‘मनोहर मामा की षष्टिपूर्ति (60 साल का होना) का उत्सव है 20 जून को.’’

‘‘अच्छा,’’ रघु के मुख से निकला.

‘‘आप दोनों भी चलने की तैयारी कर लो,’’ रम्या ने मानो आदेश दिया हो.

‘‘हम क्यों?’’ रघु ने पूछा.

‘‘यह भी ठीक है, आप तो मेरे विवाह में भी नहीं आए थे तो दिव्या के विवाह में क्यों जाने लगे. पर मनोहर मामा की षष्टिपूर्ति के उत्सव में तो आप अवश्य जाना चाहेंगे.’’

‘‘कभी नहीं, उन्होंने तुम्हें आमंत्रित किया है, सभी मित्रों, संबंधियों को भी किया होगा, पर मुझे सूचित करने की जरूरत नहीं समझी.’’

‘‘यह भी ठीक है, फिर भी सोच लो. अपने घर जाने के लिए भी क्या किसी निमंत्रण की जरूरत होती है?’’

‘‘रम्या, क्या तुम पापा के क्रोध को नहीं जानतीं? हमारे विवाह के समय उन्होंने हमें आशीर्वाद तक नहीं दिया.’’

‘‘तुम ने आशीर्वाद मांगा ही कब भैया? क्या तुम ईशा को ले कर एक बार भी उन से मिलने गए?’’

‘‘उन्होंने कभी बुलाया भी तो नहीं.’’

‘‘विवाह तुम ने अपनी मरजी से किया… तुम्हें स्वयं जाना चाहिए था. यह देखो षष्टिपूर्ति उत्सव का निमंत्रणपत्र. उत्तराकांक्षी के स्थान पर तुम्हारा नाम लिखा है. तुम्हें तो स्वयं जा कर सारा प्रबंध करना चाहिए. मनोहर मामा का जन्मदिन तो याद है न तुम्हें?’’ और रम्या ने निमंत्रणपत्र रघु की ओर बढ़ा दिया. रघु देर तक निमंत्रणपत्र को देखता रहा. फिर रम्या को लौटा दिया.

‘‘तुम्हारे तर्क अपने स्थान पर ठीक हैं रम्या, पर मैं इस तरह जाने के लिए स्वयं को आश्वस्त नहीं कर पा रहा हूं,’’ रघु ने दोटूक शब्दों में कहा. कुछ देर तक मौन पसरा रहा मानो चाह कर भी कोई कुछ बोल नहीं पा रहा हो.

‘‘रम्या, रघु अपनी मरजी के मालिक हैं पर मैं तुम्हारे साथ चलूंगी. मुझे नानानानी से भी क्षमा मांगनी है… उन का आशीर्वाद लेना है. रघु के मातापिता से मेरा भी कोई संबंध है. अपने मातापिता को तो मैं खो चुकी हूं, पर अब उन्हें नहीं खोना चाहती,’’ ईशा ने अपना निर्णय सुनाया.

‘‘यह हुई न बात. मुझे अपनी ईशा भाभी पर गर्व है. हम गरमगरम जलेबियां और समोसे ले कर आए थे. 50% लक्ष्य प्राप्त करने में तो हमें सफलता मिल ही गई. चलो, अब गरमगरम चाय पीएंगे,’’ और फिर रम्या और ईशा चाय बनाने चली गईं. रोहित जलेबियां और समोसे प्लेट में लगाने लगा. रघु मुंह फुलाए सोफे पर बैठा अपने ही विचारों में खोया था.

‘‘भ्राताश्री, कब तक यों बैठे रहेंगे? आइए, चाय लीजिए,’’ रम्या नाटकीय अंदाज में बोल कर खिलखिला दी.

‘‘रम्या बहुत नटखट हो गई हो तुम. जब देखो तब मेरा मजाक उड़ाती रहती हो,’’ रघु चाय का कप उठाते हुए बोला.

‘‘कैसी बातें करते हो भैया, मजाक और आप का? मैं ऐसा साहस भला कैसे कर सकती हूं? मैं तो केवल आप को अपने साथ भारत ले जाने की कोशिश कर रही हूं,’’ रम्या मुसकराई.

‘‘लगता है तुम अपनी कोशिश में कुछकुछ सफलता प्राप्त कर रही हो.’’

‘‘कुछकुछ सफलता? अर्थात आप भी हमारे साथ चल रहे हैं?’’

‘‘हां, जब ईशा ने जाने का निर्णय ले ही लिया है, तो मैं उसे अकेले तो नहीं छोड़ सकता,’’ रघु ने संकुचित स्वर में कहा तो हंसते हुए भी ईशा की आंखों में आंसू भर आए, जिन्हें छिपाने के लिए उस ने मुंह फेर लिया. Social Story

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