Family Kahani: लोग सूरत के दीवाने बड़ी जल्दी हो जाते हैं लेकिन अगर सीरत अच्छी न हो तो इंसान किसी काम का नहीं होता. दुनिया में सीरत को समझने वाले भी बहुत कम लोग ही होते हैं. दरअसल, सीरत वह हीरा है जो कोयले की खान में मिलता है. ‘‘संध्या प्लीज मुझे छोड़ कर मत जाओ मैं इस नन्ही सी जान को तुम्हारे बिना कैसे संभालूंगा... संध्या... संध्या...’’ प्रभात बच्चे को गोद में लिए मृत संध्या को झकझर रहा था... ‘‘ प्रभात बेटा, दुलहन की मांग में सिंदूर भरो,’’ मां की आवाज सुन कर प्रभात अपने अतीत की यादों से बाहर निकाला. प्रभात की यादों में आज भी उस की संध्या जिंदा थी जिसे वक्त ने उस से छीन लिया था.
वह जातेजाते 5 साल के बेटे निशांत को उस के हवाले कर गई थी. मां की आवाज सुनने के बाद प्रभात को यंत्रवत बराबर में विवाह की बेदी पर बैठी निशा को बिना देखे उस की मांग में सिंदूर भर दिया. फेरे लेते वक्त भी उस का व्यवहार अलग ही रहा गठबंधन का खयाल न होता तो शायद वह सातों फेरे अकेले ही घूम लेता. कन्यादान के समय निशा की हथेली और कलाई पर नजर फिसल गई थी. ‘‘उफ, कितनी काली है,’’ नजरों को समेट कर पंडितजी की ओर देखने लगा. ‘‘पंडितजी, सातों जन्म के शादी के मंत्र एक ही जन्म में पढ़ेंगे क्या?’’ प्रभात ने झल्ला कर कहा. ‘‘बस... समझ लीजिए हो ही गया,’’ कहते हुए पंडितजी दानदक्षिणा की पोटली समेटने लगे. ‘‘ जाओ बेटी अपने पति के साथ बड़ों का आशीर्वाद ले लो,’’ प्रभात की मां ने दोनों के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
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