Dark Circles: आंखों के डार्क सर्कल्स से न हों परेशान, जानें सही इलाज

Dark Circles: सुरभि को हमेशा आंखों के नीचे काले घेरे रहते हैं, जिस से उन्हें हमेशा कहीं जाने से पहले कसींलर लगा कर मेकअप करना पड़ता है. उन्होंने इस बारे में कभी डाक्टर से सलाह नहीं ली, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह उन्हें अपनी मां से मिला है और यह जाने वाला नहीं है. मां को भी उन्होंने हमेशा आंखों के नीचे काले घेरे को देखा है.

असल में डार्क सर्कल्स आनुवंशिक हो सकते हैं, क्योंकि यह आप के परिवार के इतिहास से आ सकता है, क्योंकि आनुवंशिक कारण आंखों के नीचे की त्वचा को पतला बना सकते हैं या हाइपरपिग्मेंटेशन (मिलेनिन का अधिक उत्पादन) को बढ़ा सकते हैं, जिस से रक्त वाहिकाएं और गहरी त्वचा अधिक दिखाई देने लगती हैं. लेकिन ये केवल आनुवंशिक के कारण नहीं होते हैं, बल्कि आज की गलत लाइफस्टाइल भी इस के जिम्मेदार हो सकते हैं, जिसे जान लेना जरूरी है.

डार्क सर्कल्स नहीं बीमारी

यहां ये समझना आवश्यक है कि डार्क सर्कल कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक लक्षण है, जो अस्थायी या लंबे समय तक रह सकता है. इस का रंग कई वजहों से भूरा, नीला या बैंगनी हो सकता है. साथ ही यह किसी भी उम्र में हो सकता है और अधिकतर लड़के और लड़कियों में आजकल देखने को मिलता है.

इस बारे में मुंबई की स्किन केयर क्लिनिक की त्वचा रोग विशेषज्ञ डा. शरीफा चौस कहते हैं कि आंखों के नीचे काले घेरे (डार्क सर्कल्स) वे हिस्से हैं जहां त्वचा का रंग गहरा दिखाई देता है या छाया जैसी लगती है, जिस से चेहरा थका हुआ या उम्रदराज लगता है. यह स्थिति त्वचा में पिगमेंट जमा होने, पतली त्वचा के कारण रक्त वाहिकाएं दिखने या चेहरे के वौल्यूम घटने से पड़ने वाली छाया के कारण होती है.

जानें वजह

डा. आगे कहते हैं कि सूरज की रोशनी, आनुवंशिक कारण या किसी त्वचा की सूजन के बाद होने वाला हाइपरपिगमेंटेशन त्वचा को गहरा कर सकता है. आंखों की त्वचा पतली होने या कोलेजन की कमी से नीचे की नसें और रक्त जमाव अधिक दिखाई देने लगते हैं.

चेहरे की चरबी या वौल्यूम कम होने से आंखों के नीचे गड्ढे बन जाते हैं, जिस से छाया जैसी लगती है. ऐलर्जी, नाक बंद होना या सूजन भी नसों की दृश्यता और पिगमेंटेशन बढ़ा सकते हैं. इस के अलावा उम्र बढना, हार्मोनल बदलाव, आयरन की कमी या अन्य बीमारियां भी कारण हो सकती हैं. इस के आलवा आज के समय में जीवनशैली भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसलिए उसे सुधारना बहुत आवश्यक होता है.

जीवनशैली से जुड़े कारण

नींद की कमी, तनाव और थकान डार्क सर्कल्स को बढ़ा सकते हैं, हालांकि कई बार ये मुख्य वजह नहीं भी हो सकते हैं, क्योंकि कई बार ऐसा देखा गया है कि पानी की कमी, ज्यादा शराब या धूम्रपान से त्वचा पतली और बेजान हो जाती है. धूप में ज्यादा रहना, आंखों के आसपास पिगमेंटेशन बढ़ाता है. पोषक तत्त्वों की कमी (जैसे आयरन, विटामिन बी12) और थायरायड या साइनस की समस्या के कारण भी यह हो सकता है. आनुवंशिक कारण की अगर बात करें, तो उम्र के साथ चेहरे की चरबी कम हो सकती है, जिसे बदलना संभव नहीं होता.

कुछ बातें निम्न हैं, जिन से डार्क सर्कल को कम किया जा सकता है :

डार्क सर्कल कम करने के उपाय

  • ऐलर्जी का इलाज करें.
  • पोषण की कमी पूरी करें.
  • पर्याप्त नींद लें और पानी पीएं.
  • हर दिन सनस्क्रीन और सनग्लासेस का उपयोग करें.
  • मोइस्चराइजर, विटामिन सी या रेटिनौलयुक्त क्रीम त्वचा को मजबूत बनाती हैं और धीरेधीरे रंग हलका करती हैं.
  • आंखों को रगड़ना, किसी भी अज्ञात व्हाइटनिंग क्रीम या टूथपेस्ट का उपयोग न करें इस से त्वचा खराब हो सकती है.
  • कंसीलर या कलर करेक्टर से तुरंत लुक सुधारा जा सकता है.

अगर फिर भी डार्क सर्कल्स रहें, तो त्वचा रोग विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें.

उपचार के विकल्प

टौपिकल ट्रीटमैंट्स : डाक्टर द्वारा दी गई रेटिनौल, विटामिन सी, ऐंटी औक्सीडेंट्स या पिगमेंट लाइटनिंग क्रीम्स उपयोगी हो सकती हैं. मसलन :

 

  • प्रोसीजरल ट्रीटमैंट्स.
  • कैमिकल पिल्स
  • लेजर.

प्लेटलेट रिच प्लाजमा (पीआरपी)

डर्मल फिलर्स (वौल्यूम बढ़ाने के लिए)

इलाज का चुनाव कारण के अनुसार किया जाता है, जैसे पिगमेंट, नसें या त्वचा का होलोनेस आदि. इन में से कुछ प्रक्रियाओं में कई सीजन और रिकवरी टाइम लगता है और इस के नतीजे व्यक्ति विशेष की लाइफस्टाइल पर निर्भर करते हैं.

डार्क सर्कल्स से जुड़े मिथक

 

  • डार्क सर्कल्स सिर्फ नींद की कमी से होते हैं. नींद जरूरी है, लेकिन आनुवंशिक कारण, पिगमेंटेशन और चेहरे की वॉल्यूम लॉस भी प्रमुख कारण हैं.

 

  • खीरा या चाय के टी बैग्स से डार्क सर्कल हमेशा के लिए हट जाते हैं. ये सिर्फ ठंडक और अस्थायी राहत देते हैं, पर स्थायी इलाज नहीं हैं.

 

  • टूथपेस्ट या ब्लीचिंग एजेंट से त्वचा गोरी हो जाती है. ये त्वचा को जला सकते हैं और पिगमेंटेशन बढ़ा सकते हैं.

 

  • एक ही इलाज से सब के डार्क सर्कल ठीक हो जाते हैं. इलाज कारण पर निर्भर करता है, सही निदान और विशेषज्ञ की सलाह जरूरी है.

इस प्रकार डार्क सर्कल्स से नजात पाना आज समस्या नहीं, सही समय पर सही इलाज और लाइफस्टाइल के बदलाव से इसे कम किया जा सकता है, इसलिए देर न करें, बल्कि समय रहते अपनी खूबसूरती को निखारें और बन जाएं खूबसूरत आंखों की मलिका.

Dark Circles

Pregnancy Test: प्रैगनैंट हैं, यह कैसे पता करें

Pregnancy Test: प्रैगनैंट होना हर महिला का सपना होता है और पीरियड मिस होना इस का पहला संकेत होता है लेकिन इस के आलावा भी कई कारण होते हैं जिस से पता चलता है आप प्रैगनैंट हैं. वैसे भी प्रैगनैंट होना किसी भी महिला के लिए काफी पर्सनल मामला होता है, इसलिए पहले वह इस के लिए खुद कनफर्म होना चाहती है. उस के बाद ही यह खुशखबरी सब को सुनती है. तो आइए, जानें कैसे पता करें कि आप प्रैगनैंट हैं.

पीरियड मिस होना एक बड़ा संकेत

अगर पीरियड रैगुलर हैं और अचानक किसी महीने पीरियड नहीं आया तो हो सकता है ऐसा प्रैगनैंसी की वजह से ही हुआ हो. हालांकि कई बार पीरियड्स खून की कमी होने और टैंशन होना जैसे अन्य कारणों से भी मिस हो सकता है, लेकिन एक बार जांच करवा लेना जरूरी होता है.

जी मिचलाना और उलटी आना

कई बार महिला को लगता है कुछ गलत खापी लिया होगा इस वजह से ऐसा हो रहा है. लेकिन अगर यह लगातार हो रहा है तो हो सकता है कि आपका शरीर प्रैगनैंसी के लिए तैयार हो रहा है क्योंकि ऐसा तब होता है जब शरीर में हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है.

यूरिन पास करने की फ्रीक्वेंसी का बढ़ जाना

यदि आप आपनी ओवुलेशन प्रक्रिया के बाद गर्भधारण कर लेती हैं, तो आप एक दिन में सामान्य से अधिक बार यूरिन  के लिए जा सकती हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान आप के शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ जाती है, जिस से आपकी किडनी अधिक मात्रा में तरल पदार्थ निकालने लगती है जो यूरिन की सहायता से बाहर निकलता है.

कमर में दर्द तो नहीं

कई बार पीरियड्स के जाने पर भी कमर दर्द होता है. बिलकुल वैसा ही दर्द कमर के निचले हिस्से में हो रहा है तो यह प्रैगनैंसी भी हो सकता है.

सिरदर्द होना भी एक वजह

गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में शरीर में बढ़ते रक्त परिसंचरण और (निश्चित रूप से) बढ़ते हार्मोन के स्तर के कारण सिर में दर्द होना आम बात हो सकती है.

मूड स्विंग का होना

हार्मोन में असंतुलन होने की वजह से मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर प्रभावित होते हैं जिस की वजह से आप ज्यादा भावुक हो जाती हैं. कई बार यह लक्षण तनाव के कारण भी पैदा होता है. इसलिए कभी किसी बात पर बहुत हंसी आ जाती है और किसी बात पर दुखी हो जाना स्वभाविक हो जाता है.

कौंस्टिपेशन (कब्ज) होना भी वजह

हार्मोनल असंतुलन होने के कारण आप के शरीर की मांसपेशियां रिलैक्स हो जाती हैं. इन के साथ साथ आप का पाचनतंत्र भी रिलैक्स हो कर धीमी गति से काम करने लगता है जिस की वजह से आपको कौंस्टिपेशन की शिकायत हो सकती है. जैसेजैसे आप की गर्भावस्था का समय आगे बढ़ता है वैसेवैसे आप के कौंस्टिपेशन की समस्या भी बढ़ सकती है. इस से बचने के लिए आप को पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए और खुद को हमेशा हाइड्रेट रखने की कोशिश करनी चाहिए.

ब्रैस्ट में चेंज आने लगता है

हार्मोन्स में बदलाव के कारण स्तनों में संवेदनशीलता, भारीपन और दर्द महसूस हो सकता है. इस के साथ ही कुछ महिलाओं में निपल्स का रंग गहरा हो सकता है.

टेस्ट और स्मेल में बदलाव होना

अगर कोई महिला गर्भवती होती है तो हो सकता है कि खाने की कुछ चीजों की महक उस को बुरी लग सकती हैं व कुछ की अच्छी भी लग सकती हैं. ऐसा भी होता है कि जो चीजें पहले पसंद होती हैं उन का टेस्ट बुरा लगने लगता है. यह बहुत ही सामान्य बात है क्योंकि प्रैगनैंसी में ऐसा होता है.

स्पौटिंग होना भी वजह

कभीकभी गर्भधारण के समय हलका ब्लीडिंग (स्पौटिंग) और पेट में हलका खिंचाव हो सकता है. इसे इंप्लांटेशन ब्लीडिंग कहा जाता है, जो फर्टिलाइज्ड एग के यूटेरस की दीवार से चिपकने के कारण होता है.

वीकनैस होना भी एक लक्षण

अगर आप को बुखार नहीं है और अन्य कोई बीमारी भी नहीं है, बस कुछ दिनों से थकान महसूस हो रही है, तो गर्भधारण करने के बाद एक महिला का खुद में कमजोरी और सुस्ती अनुभव करना सामान्य है. यह भी गर्भावस्था के शुरुआती लक्षणों में से एक हो सकता है.

प्रैगनैंट होने के कितने दिनों में ये लक्षण दिखने लगते हैं

अगर आप प्रैगनैंट हो गए हैं तो 10 से 15 दिन के अंदर अंदर आप को ये लक्षण दिखने लगते हैं.

प्रैगनैंसी को ऐसे कन्फर्म करें 

यूरिन प्रैगनैंसी होम किट : सुबह उठने के तुरंत बाद वाशरूम जाएं और किसी प्लास्टिक के कंटेनर में यूरिन इकट्ठा करें. थोड़े से यूरिन से ही आप यह टेस्ट कर सकती हैं.

प्रैगनैंसी टेस्ट किट में एक ड्रौपर होता है. कंटेनर से उस ड्रौपर की मदद से यूरिन की बूंदें ले कर उसे सैंपल वेल पर डालें.

प्रैगनैंसी का रिजल्ट आने में पूरे 5 मिनट लगते हैं. टेस्ट किट पर धीरेधीरे गुलाबी लाइनें नजर आने लगेंगी. अगर एक गुलाबी लाइन दिखती है, तो इस का मतलब रिजल्ट निगेटिव है यानी आप प्रैगनैंट नहीं हैं.

अगर टेस्ट किट पर 2 गुलाबी लाइनें नजर आएं, तो इस का मतलब आप प्रैगनैंट हैं.

कई बार किट पर 2 लाइनें तो दिखती हैं, लेकिन उन का कलर अलगअलग होता है. गुलाबी के साथ एक नीली लाइन नजर आ सकती है. इस का मतलब टेस्ट फेल है. दूसरे किट से फिर से टेस्ट करें.  अगर आपका परिणाम प्रैगनैंट दिखाता है, तभी आप को गाइनकोलौजिस्ट के पास चेकअप के लिए जाना चाहिए.

गायनकोलौजिस्ट से सलाह लें

अल्ट्रासाउंड : यह एक अन्य प्रमुख तरीका है जिस का उपयोग प्रैगनैंसी की जांच के लिए किया जाता है. इस में अल्ट्रासाउंड के द्वारा गर्भाशय की जांच की जाती है और गर्भधारण की पुष्टि की जाती है.

ब्लड टेस्ट : यह एक रक्त की जांच होती है जिस के आधार पर डाक्टर प्रैगनैंसी कन्फर्म करते हैं. लक्षण हो या न हो डाक्टर से कंसल्ट कर के बीटा एचसीजी टेस्ट करवाना चाहिए. चाहे यूपीटी में जो भी रिजल्ट आए बाद में बीएचसीजी करवाना ही चाहिए.

प्रैगनैंसी टेस्ट कब कराएं

अगर पीरियड की डेट मिस हो गए हो और पीरियड्स नहीं आ रहे हों और साथ में ये सभी लक्षण भी आप महसूस कर रही हों तो हो सकता है कि आप प्रैगनैंट हों. इसे कन्फर्म करना जरूरी है और यही समय है जब आप डाक्टर के पास जा सकती हैं. यह तकनीक गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में बच्चे के लिए छवियों को बनाती है.

Pregnancy Test

Shilpa Shetty: जानें शिल्पा की फिटनेस का राज, खान-पान को लेकर दी सही हिदायत

Shilpa Shetty: 50 साल की उम्र में भी शिल्पा शेट्टी 25 साल की हीरोइन को पीछे छोड़ती है क्योंकि वह आज भी बला की खूबसूरत है, आज भी शिल्पा उतनी ही खूबसूरत है जितनी आज से 25 साल पहले थी. उनके खूबसूरत फिगर के चलते वह जो भी पहनती है वह उन पर अच्छा लगता है. आज फिल्मों को लेकर वह भले ही बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं है लेकिन रियलिटी शोज की जजिंग वेब सीरीज और कई प्रोडक्ट्स के लिए मॉडलिंग करने के चलते हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं.

हर कोई यह जानने को उत्सुक रहता है कि वह ऐसा क्या खाती है या उनका क्या लाइफस्टाइल है , जो आज भी वह स्लिम ट्रिम और जवान नजर आती है. इसके पीछे खास वजह है शिल्पा का अनुशासन प्रिय  रहना , आज भी शिल्पा शेट्टी पूरी शिद्दत के साथ योग और जिम वर्कआउट रोजाना करती हैं, उनके योगा सेशन के वीडियो सोशल मीडिया पर हमेशा मिलते हैं जिसे देखकर कहीं लोग योगा करके फिट होने की कोशिश करते हैं.

योग और वर्कआउट के अलावा शिल्पा शेट्टी खान पान को लेकर भी अलग डाइट और स्टाइल रखती है , जिसे फॉलो करके कई लड़कियां अपना काया पलट कर सकती हैं.

एक्ट्रेस के अनुसार वह कोई स्ट्रिक्ट डाइट फॉलो नहीं करती बल्कि सही तरीके से खान पान का ध्यान रखती है. जैसे शिल्पा अपने दिन की शुरुआत डेढ़ गिलास गुनगुने पानी के साथ करती हैं, फिर नोनी जूस  की कुछ मात्रा पीती है जो एनर्जी बूस्टर का काम करता है आखिर में एक बड़ा चम्मच नारियल तेल से कुल्ला करती हूं, जो शिल्पा के अनुसार एक आयुर्वेदिक विधि है जिसमें मुंह में तेल भर के चार-पांच मिनट तक उसको मुंह में ही घूमना है.

इस प्रक्रिया के बाद शिल्पा ब्रेकफास्ट करती है जिसमें वह ताजा फल , जैसे आम सेब बादाम दूध, कुछ स्लाइस, थोड़ी मूसली भी ले लेती हूं , और कई बार नाश्ते में अंडे भी खाती हूं , क्योंकि मुझे अंडा बहुत पसंद है. शिल्पा के अनुसार  शरीर में फैट बढ़ने से रोकने के लिए वह नारियल का दूध  पीती है , और लंच में देसी घी का सेवन करना जरूरी समझती हूं , क्योंकि देसी घी शरीर की मजबूती के लिए अहम रोल अदा करता है , इसके अलावा केला भी सेहत के लिए बहुत अच्छा है क्योंकि उसमें कार्बोहाइड्रेट होता है.  जो अच्छी सेहत के लिए जरूरी होता है, लेकिन कई लोग मोटे होने के डर से इससे दूर रहते है . जबकि ये बहुत जरूरी है शरीर के लिए . इसके अलावा लंच में मै ब्राउन राइस दाल चिकन  मछली साथ में चपाती और सलाद खाना भी पसंद करती हूं. मेरी कोशिश रहती है कि मैं ऐसा ही खाना खाऊं जो मेरे वजन को नियंत्रित रखें और मैं एक्टिव भी रहूं  और इसके अलावा हल्का खाना खाने से चेहरे का ग्लो भी बना रहता है

शाम के टाइम स्नैक्स में अंडे के साथ टोस्ट और एक कप चाय लेना पसंद करती हूं और रात के खाने में एकदम हल्का-फुल्का जैसे सुपर ग्रिल्ड व्यंजन लेना पसंद करती हूं. मेरी कोशिश रहती है कि मेरे शरीर में 1800 कैलरी से ज्यादा ना जाए,

खाने को लेकर खास टिप्स

मेरा खाना जैतून के तेल में या स्वास्थ्यवर्धक तेल मैं बनता है जो बहुत ही कम मात्रा में होता है.  मैं खाने में सफेद चीनी सफेद सफेद चावल से पूरी तरह दूरी रखती हूं .

शाम के नाश्ते में हेवी स्नेक्स से दूर रहती हूं क्योंकि उसमें ज्यादा कैलोरी होती और वजन बढ़ने के चांसेस भी ज्यादा होते हैं.

मैं भले ही पूरे हफ्ते स्ट्रिक्ट डाइट करती हूं, लेकिन हफ्ते में एक दिन मेरे लिए चीट डे होता है, जिसमें होटल जाकर मैं अपना पसंदीदा खाना खा लेती हूं.

बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के अगर वर्क फ्रंट की बात करें तो शिल्पा का अभिनय करियर 1993 में एक सुपरहिट फिल्म बाजीगर के साथ हुआ. उसके बाद शिल्पा ने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दी, जैसे मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, धड़कन, हंगामा 2, लाइफ इन मेट्रो, जैसी कई हिट फिल्में देने वाली शिल्पा शेट्टी ने हिंदी के अलावा तेलुगू तमिल कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. अपने फिल्मी करियर के ढलान के दौरान शिल्पा शेट्टी ने ब्रिटिश रियलिटी शो बिग ब्रदर की विजेता बनकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई. इसके साथ उनकी फिल्मों में और ग्लैमर वार्ड में फिर से एक अलग पहचान बनी. और फिल्मों के अलावा शिल्पा शेट्टी डांस शो झलक दिखला जा, नच बलिए जैसे डांस शोज की जज भी रह चुकी है.

इतना ही नहीं शिल्पा शेट्टी विदेशी फिल्म केडी: द डेविल में 2024 में काम कर चुकी है. इसके अलावा शिल्पा शेट्टी के योग वीडियो भी लोगों द्वारा पसंद किए जाते हैं. ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ने के अलावा शिल्पा ने एक रेस्टोरेंट की भी शुरुआत की जिसका नाम वैलनेस ब्रांड है. शिल्पा एक प्रोडक्शन हाउस भी चलाती है. 2014 में बतौर निर्माता शिल्पा शेट्टी ने फिल्म डिशक्याउंन का निर्माण किया.

शिल्पा शेट्टी और पति राज कुंद्रा से जुड़े गंभीर विवाद

प्रसिद्धि के साथसाथ विवादों में घिरना सेलिब्रिटीज के लिए आम बात है. जिसके चलते शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुंद्रा कई बार विवादों में घिर चुके हैं. जैसे पोर्नोग्राफी फिल्म बनाने के चक्कर में जहां पति राज कुंद्रा को जेल की हवा खानी पड़ी वही 2002 में बिटकॉइन पोजी स्कीम घोटाले में मनी लांड्रिंग से जुड़ा मामला सामने आया इसमें शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुंद्रा पर कई आरोप लगे. जिसके चलते खबरों के अनुसार 97 करोड़ की प्रॉपर्टी कुर्क की गई थी.

इतना ही नहीं शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुंद्रा ने आईपीएल की टीम राजस्थान रॉयल्स को खरीदा था साल 2013 में इसी टीम के कुछ खिलाड़ी मैच फिक्सिंग मैं फंस गए थे, इस दौरान राज कुंद्रा पर भी मैच फिक्सिंग का आरोप लगा, इसके अलावा हाल ही में शिल्पा शेट्टी और पति राज कुंद्रा पर लोटस कैपिटल फाइनेंशियल विशेष लिमिटेड की डायरेक्टर और बिजनेसमैन दीपक कोठारी ने 60 करोड़ की धोखा घड़ी का आरोप लगाया.

जिस पर अभी सुनवाई चल रही है. इस केस के लिए शिल्पा और उनके पति पर आरोप लगाया गया है इस सेलिब्रिटी ने बिजनेस एक्सपेंड करने के बहाने पैसे लिए लेकिन उसका इस्तेमाल निजी खर्चों में किया.

Shilpa Shetty

Shahrukh Khan कैसे बने दुनिया के सबसे अमीर एक्टर

Shahrukh Khan: बौलीवुड के बादशाह शाहरुख खान का नाम हाल ही में दुनिया के सबसे अमीर एक्टर की श्रेणी में शामिल हुआ. 1 अक्टूबर 2025 को जारी की गई हुरून रिच लिस्ट में इंडिया के सबसे अमीर एक्टर की श्रेणी में शामिल शाहरुख खान की नेटवर्थ 1.4 बिलियन डॉलर अर्थात 12490 करोड़ रुपए बताई गई है.

गौरतलब है बिलियनर्स की लिस्ट में शामिल शाहरुख खान ने विदेशी एक्टर अर्नाल्ड, टेलर स्विफ्ट और सेलेना गोमेज, टॉम क्रूज आदि अमीर ऐक्टरों को काफी पीछे छोड़ दिया है. इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार शाहरुख की नेटवर्थ 12490 करोड़ है.

शाहरुख के अनुसार सफलता पाने से ज्यादा उस सफलता को संभालना ज्यादा मुश्किल है

शाहरुख खान ने बतौर एक्टर अपनी करियर की शुरुआत टीवी अर्थात छोटे पर्दे से आर्मी और सर्कस सीरियल से की थी, उस दौरान शाहरुख खान ने भी शायद नहीं सोचा होगा, कि वह एक दिन इतने बड़े एक्टर बन जाएंगे की पूरी दुनिया में सबसे अमीर एक्टर कहलाएंगे, लेकिन इस बात का विश्वास उनकी मां को जरूर था की एक दिन उनका बेटा शाहरुख बतौर एक्टर सबके दिलों पर राज करेगा.

शाहरुख खान ने अपने इंटरव्यू में अपनी मां के इसी कॉन्फिडेंस को साझा किया था, इस दुख के साथ कि अगर काश मेरी मां आज जिंदा होती तो अपने बेटे की ये कामयाबी देख कर बहुत खुश होती, शाहरुख खान के अनुसार एक कलाकार के लिए कामयाबी पाना या पैसा कमाना उतना मुश्किल नहीं है जितना कि उसको संभाल पाना है.

गौरतलब है पिछले कुछ सालों में शाहरुख की जिंदगी में कई बड़े उतार चढ़ाव आए लेकिन उसका असर शाहरुख ने कभी भी अपने काम पर नहीं पड़ने दिया.

मजे की बात तो यह है की हाल ही में जब शाहरुख खान ने अपना बंगला मन्नत रिनोवेशन के लिए खाली किया और कुछ समय के लिए दूसरी जगह शिफ्ट हुए तो कुछ ढोंगी ज्योतिष भविष्यवाणी करने लगे कि शाहरुख खान बैंक करप्ट हो गए हैं जिस वजह से उनको अपना बंगला खाली करना पड़ा, इस दौरान कई हेटर्स और ढोंगी ज्योतिष ने शाहरुख को दिवालिया घोषित कर दिया था, जिसका मुंह तो जवाब शाहरुख ने दुनिया का सबसे अमीर एक्टर का अचीवमेंट के साथ दिया.

शाहरुख खान की खासियत है, कि चाहे जो हो जाए वह कभी अपना आपा नहीं खोते और ना ही कभी गुस्से से पेश आते है, बस वो पब्लिकली अपने अंदाज में कह देते हैं, कुर्सी की पेटीयां बांध लो मौसम बदलने वाला है.

खास बात ये है कि वो मौसम बदल भी देते हैं, बतौर एक्टर उनकी फिल्में जवान और पठान की अपार सफलता इस बात का उदाहरण है.

एक्टिंग के जरिए कमाए हुए पैंसो को कई सारे बिजनेस में इन्वेस्ट करके 10 हजार करोड़ में शाहरुख का फैला हुआ कारोबार

एक समय था जब बॉलीवुड के कई एक्टर अपना कमाया हुआ पैसा शराब और शबाब में तबाह कर दिया करते थे, और जब उनका आखिरी वक्त आया तो उनके पास कुछ नहीं बचा था सिवाय बीमारी के. लेकिन आज के एक्टर ग्लैमर वर्ल्ड की चमक दमक की सीमित समय सीमा से वाकिफ हैं जिसके चलते वह एक्टिंग से कमाया पैसा किसी ना किसी बिजनेस में इन्वेस्ट कर देते हैं जिसका जीता जागता उदाहरण 12,490 करोड़ के मालिक शाहरुख खान है, जिसने अपनी एक्टिंग से कमाया पैसा कई अलगअलग व्यवसाय में इन्वेस्ट किया और उस पैसे को दोगुना तिगुना करके उससे भी कहीं ज्यादा कमाकर अपना खुद का अंपायर खड़ा कर लिया जिसके वह बेताज बादशाह है.

एक्टिंग के जरिए कमाए पैसों को उन्होंने कई सारे बिजनेस में इस तरह इन्वेस्ट कर किया कि उनकी 10000 करोड़ की नेट इनकम सिर्फ उनके कई बिजनेस के जरिए दिखाई देती है. पेश है इसी पर एक नजर.

1 साल में 5000 करोड़ बढ़ी बादशाह शाहरुख खान की नेटवर्थ …. हुरून इंडिया रिच लिस्ट 2024 में शाहरुख की नेटवर्थ 7300 करोड़ दर्ज की गई थी . लेकिन 2025 में महज 1 साल में उनकी नेटवर्थ 5000 करोड रुपए बढ़कर 12490 करोड़ पहुंच गई.

शाहरुख खान की फिल्मों की फीस के अलावा प्रोडक्शन हाउस रेड चिली एंटरटेनमेंट से भी बड़ी कमाई आती है जिसमें वह फिल्म, वेब सीरीज और विज्ञापन का निर्माण करते हैं. उनके रेड चिली प्रोडक्शन हाउस में बनी फिल्में जवान और डंकी ने ज़बरदस्त कमाई की है, इसके अलावा 2006 में शाहरुख ने रेड चिलीज वीएफएक की स्थापना भी की, जो एक आधुनिक विजुअल इफेक्ट स्टूडियो है.

इसके अलावा शाहरुख खान ब्रांड एंडोर्समेंट के लिए करोड़ों की फीस लेते हैं, साथ ही पत्नी गौरी खान डी डेकोर की फाउंडर है, वही उनका बेटा आर्यन खान लग्जरी क्लोदिंग ब्रांड डीव्योल के मालिक है. इसके अलावा आर्यन ने 120 करोड़ के बजट में वेब सीरीज द बेड्स ऑफ बॉलीवुड बनाई जिसने अच्छा बिजनेस किया.

उनके बंगले मन्नत की कीमत 200 करोड़ है जो रिनोवेशन के बाद और बढ़ जाएगी. इसके अलावा शाहरुख खान के पास दिल्ली, अलीबाग, दुबई, लंदन और इंग्लैंड में प्रॉपर्टी है. लंदन के पॉकलेन में अपार्टमेंट, बारवेर्ली हिल्स में विला,दिल्ली में प्रॉपर्टी, अलीबाग में फार्महाउस, दुबई में नया घर, आदि प्रॉपर्टी है.

शाहरुख खान ने रेडीको खेतान, और निखिल कामत के साथ मिलकर डी यावोल स्पिरिट नामक एक लग्जरी एल्कोबेव (मादक पेय शराब ) कंपनी की स्थापना की है. जो प्रीमियर शराब का उत्पादन और विपणन करती है, यह साझेदारी भारतीय और अंतरराष्ट्रीय प्रीमियम शराब बाजार को लक्षित करती है, इसका पहला उत्पाद लग्जरी टेकीला है. इस कंपनी का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डिजाइन आधारित प्रीमियम स्पिरिट का उद्घाटन करना है. यह साझेदारी भारत के प्रीमियम शराब बाजार में प्रवेश करने और उसको बढ़ाने पर केंद्रित है.

शाहरुख खान की कारों का कलेक्शन

शाहरुख खान के पास बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज से लेकर रोल्स-रॉयस और ओडी तक कई लग्जरी गाड़ी शामिल है. उनकी सबसे महंगी कार बुगाटी वेरॉन की कीमत 12 करोड़ है, रोल्स-रॉयस कार की कीमत 9.5 करोड़ है. और बैटले कॉन्टिनेंटल कार की कीमत 3.29 है.

इसके अलावा क्रिकेट प्रेमी शाहरुख आबूधाबी नाइट राइडर्स, लॉस एंजेलिस नाइट राइडर्स, ट्रीन बांगो नाइट राइडर्स जिसकी ब्रैंड वैल्यू 109 करोड़ मिलियन डॉलर है. अर्थात 966 करोड़ से ज्यादा है. शाहरुख खान कोलकाता नाइट राइडर्स आईपीएल टीम के सह मालिक है जहां से उनके अतिरिक्त आय अच्छी कमाई होती है.

इन सब से यही साबित होता है कि वह एक सफल एक्टर ही नहीं बल्कि एक अच्छे बिजनेस मैन भी है, जो आज की युवा पीढ़ी के लिए मिसाल है.

Shahrukh Khan

Best Hindi Story: अपने लिए वक्त

Best Hindi Story: ‘‘कहां जा रही हो चंचलिका?’’ जयश्री ने अपार्टमैंट से बाहर जा रही चंचलिका को टोका. वह अभीअभी कहीं बाहर से आकर अपार्टमेंट के अंदर प्रवेश कर रही थी. ‘‘जा रही हूं प्रवीण के साथ बाहर.’’ चंचलिका ने फीकी मुसकराहट के साथ कहा. ‘‘ओहो प्रवीण के साथ बाहर…? ’’ जयश्री ने उसे छेड़ा. ‘‘आज मेरा मन था घर में आराम करने का पर प्रवीण है कि मानता नहीं,’’ चंचलिका ने थोड़ा झंझलाते हुए कहा. इस बीच कैब ड्राइवर की कौल आ गई, ‘‘कैब वाला इंतजार कर रहा है. फिर मिलती हूं. सी यू,’’ बोलते हुए चंचलिका आगे बढ़ गई और फिर फोन रिसीव कर ड्राइवर से कहा, ‘‘एक मिनट में आई.’’ कैब ठीक गेट के बाहर खड़ी थी. कैब में बैठ कर चंचलिका ने ड्राइवर को ओटीपी बताया. ड्राइवर ने अपने मोबाइल में ओटीपी फीड किया और कैब को आगे बढ़ा दी. आज चंचलिका का बिलकुल मूड नहीं था बाहर जाने का.

उस ने प्रवीण से कहा भी कि आज मुझे माफ करो. मगर प्रवीण ने उस की एक न सुनी. लाचार हो कर उसे बाहर जाने के लिए तैयार होना पड़ा. कैब सड़क पर दौड़ी जा रही थी क्योंकि आज ट्रैफिक काफी कम था. चंचलिका अपने खयालों में खोई हुई थी… पिछले 7 महीनों से चंचलिका प्रवीण के साथ डेटिंग कर रही थी. इन 7 महीनों में एक भी रविवार को वह फ्री नहीं रह पाई है.

ऐसा नहीं था कि प्रवीण के साथ समय बिताना उसे अच्छा नहीं लगता था बल्कि उस के साथ समय बिताना बहुत ही अच्छा लगता था. प्रवीण उस का साथ अधिक से अधिक चाहता था और वह इसे बहुत ही अच्छा मानती थी. पर कभीकभी मुश्किल हो जाती थी उस के लिए. जैसे आज का दिन. औफिस में पिछले 3 दिनों से वह इतनी व्यस्त रही कि पूछो मत. औफिस से आतेआते 10 बज जाते थे. सुबह जल्दी निकालना पड़ता था. ऐसेऐसे कार्यक्रम हुए पिछले 3 दिनों में कि लंच करने तक का समय मुश्किल से निकल पता था. ऐसे में वह इस रविवार को आराम करना चाहती थी.

कल भी औफिस से आतेआते 10 बज गए थे. 11 बजे तक वह सो पाई थी. सोचा था आज दिनभर घर में रहेगी और आराम करेगी पर सुबह 6 बजे ही प्रवीण की कौल आ गई थीं. जानू, सोना, हीरा, मोती उस का कुछ भी संबोधन अच्छा नहीं लग रहा था. जी चाह रहा था कि फोन काट कर फिर से सो जाए. नैटवर्क की कृपा से फोन एक बार कट भी गया. उस ने कौल बैक करने के स्थान पर सोना उचित समझ पर अगले ही पल प्रवीण का फिर से फोन आ गया. ‘‘बाबा आज मैं बहुत थक गई हूं. अभी सो रही हूं. बाद में फोन करती हूं,’’ चंचलिका ने उबासी लेते हुए कहा. ‘‘जितना सोओगी उतना ही थकान हावी रहेगी. जल्दी से उठ जाओ.

आज चलेंगे पिंक पर्ल. वाटर गेम्स का मजा लेंगे,’’ प्रवीण ने कहा. ‘‘नहीं, आज नहीं. फिर कभी,’’ उस ने प्रोग्राम को टालने की कोशिश की. ‘‘ऐसा मत कहो, मैं ने 2 टिकट ले भी लिए हैं,’’ प्रवीण ने मनुहार की. चंचलिका कुछ देर चुप रही. उसे लगा वह जोर से चिल्ला कर डांट दे प्रवीण को कि सिर्फ अपनी बात समझ में आती है तुम्हें, दूसरों का कोई खयाल नहीं रहता पर प्रत्यक्षत: बोली, ‘‘कितने बजे आना है?’’ ‘‘दैट्स लाइक अ गुड गर्ल,’’ प्रवीण खुश हो गया. बोला, ‘‘11 बजे तक मेरे फ्लैट में आ जाओ. यहां से इकट्ठा चल पड़ेंगे. आज दोपहर का लंच और शाम के स्नैक्स वहीं ले कर आएंगे. दिनभर वाटर पार्क में मस्ती करेंगे.

यदि आने में दिक्कत हो तो मैं आ जाता हूं कार ले कर.’’ ‘‘थोड़ी देर से चलें तो कैसा रहेगा?’’ चंचलिका ने कहा. ‘‘ठीक है, 12 तक आ जाओ,’’ प्रवीण ने कहा और फोन काट दिया. थोड़ी देर और सोने की इच्छा हो रही थी चंचलिका की पर इतनी देर बात करने के बाद नींद उड़ चुकी थी. साथ ही यह भी चिंता थी कि 12 बजे तक प्रवीण के फ्लैट पर पहुंचना भी है. अंत में उस ने बिस्तर छोड़ दिया. सिर भारी लग रहा था. सब से पहले उस ने चाय बना कर पी. कुछ कपड़े इकट्ठा हो गए थे धोने के लिए, उन्हें धोया. फिर ब्रेकफास्ट तैयार कर ब्रेकफास्ट किया.

नहाधो कर बेमन से वह बाहर निकली. ‘‘लोकेशन यही दिखा रहा है,’’ ड्राइवर की आवाज सुन कर उस की तंद्रा भंग हुई. ‘‘हां, यहीं रोक दो, बार कोड देना,’’ उस ने बार कोड स्कैन कर कैब का भुगतान किया और प्रवीण को कौल करनी चाही. तभी देखा कि मोबाइल पर ऐप मैसेज आया हुआ था, ‘प्रवीण हैज इन्वाइटेड यू,’ यह प्रवीण की खासीयत थी. वह पहले ही ऐप के जरीए उसे फ्लैट में प्रवेश करने का पास भेज दिया करता था. गेट पर गार्ड को दिखाकर वह अंदर चली गई. प्रवीण के फ्लैट की डोरबैल जैसे ही दबाई, प्रवीण बाहर निकाल आया, ‘‘हैलो, यू आर लेट बाय फाइव मिनट,’’ वह चहका.

चंचलिका कहना तो चाहती थी कि मैं तो आना ही नहीं चाहती थी पर सिर्फ इतना ही बोली, ‘‘5 मिनट चलता है.’’ ‘‘नैपोलियन ने अपने कमांडर को 1 मिनट लेट आने पर क्या बोला था पता है? चेंज योर वाच और आई विल चेंज माई कमांडर,’’ प्रवीण ने कहा. ‘‘तुम थे वहां सुनने के लिए?’’ चंचलिका ने पूछा. ‘‘अरे, मैं ही कमांडर था. उस के बाद मैं कभी भी देर से नहीं पहुंचता,’’ प्रवीण ने कहा और जोरदार ठहाका लगाया. चंचलिका उस का साथ नहीं दे पाई. उसे चुप देख कर प्रवीण चिंतित हो गया, ‘‘क्या हुआ? परेशान लग रही हो?’’ ‘‘अरे बाबा बुरी तरह थकी हुई हूं, आराम चाहिए मुझे,’’ चंचलिका ने कहा. बाहर घूमनेफिरने से ही थकावट दूर होती है. चाय पीओगी?’’ प्रवीण ने कहा. ‘‘नहीं अभी ब्रेकफास्ट ले कर आई हूं.

चाय की इच्छा नहीं है,’’ चंचलिका ने कहा. ‘‘तो फिर चलते हैं,’’ प्रवीण ने दीवार पर टंगी गाड़ी की चाबी हाथ में लेते हुए कहा. दोनों बाहर निकले. गाड़ी की चाबी के साथ ही वह फ्लैट की भी एक चाबी रखता था. फ्लैट का दरवाजा लौक कर दोनों साथ में लिफ्ट में दाखिल हो गए. लिफ्ट से बेसमैंट में जा कर गाड़ी में बैठे और चल पड़े वाटर पार्क की ओर. दिनभर खूब मस्ती की दोनों ने. वहीं लंच लिया. शाम को स्नैक्स भी वहीं लिए. 7 बजे प्रवीण ने चंचलिका को उस के फ्लैट पर पहुंचाया और फिर वापस लौट गया.

कपड़े बदलते वक्त चंचलिका सोच रही थी कि इस में कोई दो मत नहीं कि प्रवीण मेरा बहुत खयाल रखता है पर कभीकभी अपने लिए भी समय चाहता है इनसान. अगर प्रवीण का यही रवैया रहा तो कहीं उस के प्रति दिल में अरुचि न पैदा हो जाए. कैसे समझऊं यह बात मैं प्रवीण को? सोचतेसोचते चंचलिका सोफे पर ही सो गई. नींद खुली तो रात के 11 बज रहे थे. खाना बनाने की जरा भी इच्छा नहीं हुई उस की.

बिस्तर पर जा कर वह फिर से सो गई. आखिर अगले दिन औफिस भी तो जाना था. दिन बीतते रहे और शनिवार आ गया. चंचलिका की एक सखी थी विनीता. उ स ने अपनी लिखी एक कहानी संग्रह भेजा था. वह उन कहानियों को पढ़ना चाहती थी. मौका निकाल कर 1-2 कहानियां पढ़ तो ली थीं पर अधिकांश कहानियां नहीं पढ़ पाई थी. कभीकभी विनीता पूछ भी लेती थी. उसे कहते हुए बुरा भी लगता था कि वह अभी तक उस की कहानियां नहीं पढ़ पाई है.

अगले रविवार को चंचलिका ने इस काम के लिए मन ही मन तय कर रखा था. पर शनिवार को ही प्रवीण का फोन आ गया, ‘‘कल हम चलेंगे सैयारा देखने मौल औफ जयपुर में. पहले कहीं खाना खाएंगे फिर 4 का शो देख कर वापस आएंगे.’’ ‘‘मुझे माफ करो, यह रविवार मैं ने किसी और काम के लिए रखा है. तुम देख आओ सैयारा,’’ चंचलिका ने कहा. ‘‘क्या बात कर रही हो? अकेले मूवी देखने में वह आनंद नहीं आता. ऐसा कौन सा काम है जिस के लिए तुम्हें सारा दिन चाहिए?’’ प्रवीण ने कहा. ‘‘प्रवीण समझ करो बात को. मुझे कई महीनों से अपने लिए समय नहीं मिला है. मुझे अपने लिए भी समय चाहिए होता है और कल मैं कोई फोन भी नहीं उठाऊंगी. प्लीज मुझे डिस्टर्ब मत करना,’’ चंचलिका ने रूखेपन से कहा.

इस के बाद प्रवीण ने सिर्फ ‘ओके’ कहा और फोन काट दिया. कुछ देर के लिए बुरा भी लगा चंचलिका को. पर वह जानती थी अगर उस की बात मान लेगी तो फिर पूरा रविवार उसे उस के साथ रहना पड़ेगा और फिर पछताना पड़ेगा उसे. रविवार को चंचलिका देर से सो कर उठी. आराम से अपने काम निबटाए और फिर विनीता का कहानी संग्रह पढ़ने लगी. उन कहानियों में एक कहानी ‘नया रास्ता’ शीर्षक से थी जो काफी हद तक उस की अभी की स्थिति को दर्शाती थीं. उस कहानी का नायक नायिका से इतना चिपका रहता था कि नायिका का जीना दूभर हो गया था. फिर नायिका ने एक नया रास्ता अपनाया. वह नायक से इतना ज्यादा चिपकने लगी कि नायक को कहना पड़ा कि इतनी नजदीकी भी ठीक नहीं. मुझे अपने लिए कुछ समय चाहिए.

नायिका ने उसे तब समझया कि वह उसे बस यही बताना चाहती थी कि हर व्यक्ति को चाहे वह पति हो, पत्नी हो, प्रेमी हो या प्रेमिका अपने लिए समय चाहिए होता है. क्या यही उपाय वह अपना सकती है प्रवीण के साथ? चंचलिका ने सोचा और फिर निर्णय ले लिया कि वह यही उपाय अपनाएगी प्रवीण को समझने के लिए. कुछ दिन तो प्रवीण शांत रहा पर फिर उसी ढर्रे पर चलने लगा. अब चंचलिका ने भी उसे दिनरात कौल करना शुरू कर दिया. कई बार उसे बिना काम के अपने फ्लैट पर बुला लेती. प्रवीण पहले तो खुशीखुशी उस की कौल उठाता रहा और खुशीखुशी उस के फ्लैट पर आता भी रहा पर बाद में उसे परेशानी होने लगी. एक दिन चंचलिका ने फोन कर उसे अपने फ्लैट पर बुलाया.

औफिस में थक कर उस समय वह घर आया ही था. चंचलिका के फोन पर वह उस के पास आ तो गया पर रास्ते में ट्रैफिक ने उस की हालत पतली कर दी. चंचलिका ने उसे बताया, ‘‘एक स्टोर से नमकीन लाई हूं. सोचा तुम्हारे साथ इस का स्वाद चखूं. प्रवीण बहुत परेशान महसूस कर रहा था. उस के दिमाग में कुछकुछ बात आ रही थी कि चंचलिका यह सब उसे यह समझने के लिए कर रही है कि आपस में कितना भी प्रेम हो अपने लिए सभी को वक्त चाहिए होता है. ‘‘चंचलिका, तुम यह सब यही समझने के लिए कर रही हो न कि हर व्यक्ति को अपने लिए वक्त चाहिए चाहे वह किसी के कितना भी नजदीक क्यों न हो?’’ प्रवीण ने कहा.

चंचलिका चुप रही. बस उसे देखती रही. प्रवीण ने आगे बात बताई, ‘‘मैं समझ गया हूं. पहले तुम ने स्पष्ट रूप से समझया था. मैं ने तुम्हारी बातों की परवाह नहीं की थी. अब तुम व्यवहार से इस बात को समझ रही हो. मैं समझ गया. आगे से मैं इस बात का खयाल रखूंगा कि तुम पर अपने प्रोग्राम न ला दूं, हम जो भी करें दोनों की सहमति से करें.’’ चंचलिका ने प्यार से प्रवीण की नाक पकड़ कर हिला दी. बोली, ‘‘चलो इसी बात पर नमकीन के साथसाथ चाय भी बना लाती हूं. और हां खाना भी मेरे हाथ का बना हुआ खा कर ही जाना.’’

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Romantic Story: प्यार की परीक्षा

Romantic Story: ‘‘अभी औफिस से घर पहुंची ही थी आरोही कि सुमित्रा उस की मां उस के सामने आ कर खड़ी हो गईं. ‘‘आज इतनी देर क्यों लगा दी आने में?’’

‘‘बताया तो था कि मीटिंग है आज, लेट आऊंगी,’’ सोफे पर पसरते हुए आरोही बोली, ‘‘प्लीज मां, 1 कप चाय पिला दो, सिर दर्द से फटा जा रहा है. उफ, दिल्ली का पौल्यूशन तो लोगों की जान ले कर रहेगा. ऊपर से यह सड़ी हुई गरमी और दिल्ली का ट्रैफिक तो पूछो ही मत. ऐसे में सिरदर्द नहीं होगा तो और क्या होगा,’’ अपने सिर पर बाम लगाती हुई आरोही भुनभुनाई.

तभी सुमित्रा चाय ले कर आ गई.

‘‘ओह, थैंक्यू मां,’’ गरमगरम अदरक वाली चाय पी कर आरोही को थोड़ा अच्छा लगा.

‘‘कई बार फोन किया तुझे. कम से कम फोन तो उठा सकती थी?’’

सुमित्रा आरोही की बगल में बैठती हुई शिकायती लहजे में बोलीं.

‘‘फोन की आवाज सुनाई नहीं पड़ी होगी शायद,’’ चाय का घूंट भरते हुए आरोही बोली, ‘‘वरना जरूर उठाती. वैसे भी औफिस आवर में मैं अपने फोन की आवाज कम ही रखती हूं. कोई जरूरी काम था क्या?’’

‘‘हां, तभी तो फोन कर रही थी. अच्छा यह देख 2-3 लड़कों के फोटो भेजे हैं तुम्हारी इंदौर वाली मौसी ने. बायोडाटा भी भेजा है. देख कर बता, कैसा लगा. तीनों लड़के अच्छीअच्छी पोस्ट पर हैं. लाखों में सैलरी है इन की और घर से भी मजबूत.’’

‘‘मां,’’ सुमित्रा आगे कुछ और कहतीं उस से पहले ही आरोही बोल पड़ी, ‘‘मां, आप को कितनी बार समझऊं कि मुझे अभी शादी नहीं करनी. एक तो वैसे ही मेरा सिर दुख रहा है ऊपर से आप… जब करनी होगी बता दूंगी न,’’ बोल कर आरोही अपने कमरे की तरफ बढ़ गई तो सुमित्रा भी उस के पीछेपीछे कमरे में पहुंच गईं और कहने लगीं, ‘‘शादी नहीं करनी तो क्या उम्रभर कुंआरी ही बैठी रहेगी? शादी की भी एक उम्र होती है बेटा. समय से शादी और बच्चे हो जाएं तो अच्छा है न.’’

‘‘बच्चे. अब ये बच्चे कहां से आ गए?’’ आरोही ने अपना माथा ही पीट लिया, ‘‘मां, अभी आप जाओ यहां से प्लीज, सुबह बात करती हूं. गुड नाइट.’’

‘‘अरे पर सुन तो… समय से बच्चे होना भी तो जरूरी है. डाक्टर क्या कहते हैं कि 30 के पहले बच्चे कर लेने चाहिए. इस साल पूरे 27 की हो जाएगी तू. उम्र निकलते देर नहीं लगाती है बेटा. फिर अच्छा लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा, समझ मेरी बात.’’

‘‘समझ गई मैं, अब जाओ यहां से,’’ बोल कर आरोही ने अपने कमरे का दरवाजा लगा लिया. कल संडे है तो वह देर तक आराम से सोना चाहती है. किसी की कोई डिस्टरबैंस नहीं चाहिए उसे. इसलिए अपना फोन भी स्विच्डऔफ कर बेफिक्र हो कर सो गई.

आरोही अपनी मां और छोटे भाई अक्षत के साथ दिल्ली में रहती है और उस के पिता महावीर प्रसाद गुजरात पुलिस में हैं. 7-8 महीने पर घर आते हैं, फिर कुछ दिन रह कर वापस चले जाते हैं. आरोही दिल्ली की ही एक कंपनी में जौब करती हैं. आरोही बचपन से ही पढ़ने में तेज रही है. इंजीनियरिंग के बाद उस की दिल्ली की ही एक बड़ी कंपनी में जौब लग गई.

आरोही का सपना था कि जब उस की जौब लगेगी, तब वह अपने सारे सपने पूरे करेगी. खूब घूमेगीफिरेगी, ऐश करेगी. मन चाहे कपड़े पहनेगी. मगर जौब लगते ही उस की मां उस की शादी के लिए पीछे पड़ गईं. बेटी पराया धन होती है. मांबाप आखिर कब तक बेटी को अपने घर में बैठाए रख सकते हैं, परिवार, समाज क्या कहेगा जैसी फिलौस्फी भरी बातें कहना शुरू कर देती थीं जिस से आरोही और इरीटेट हो उठती थी.

लड़की चाहे कितनी ही पढ़लिख क्यों न जाए और क्यों न लड़कों के बराबर सैलरी उठाती हो, लेकिन इस के बावजूद मांबाप को अपनी बेटी कम ही लगती है. कहीं अच्छे लड़के हाथ से निकल न जाएं, इस के लिए वे लड़के वालों की सारी शर्तें भी मानने को तैयार हो जाते हैं. बेटी की शादी की चिंता उन्हें ऐसे खाए जाती है जैसे लगता है दुनिया में अच्छे लड़के बचे ही नहीं हैं अब और अगर उन की बेटी की शादी नहीं हुई तो कितना बड़ा अनर्थ हो जाएगा.

तभी तो सुमित्रा ने एक लड़के वालों की यह शर्त भी मान ली थी कि अगर वे लोग नहीं चाहते कि शादी के बाद आरोही नौकरी करे तो वह नहीं करेगी. मगर यह बात सुनते ही आरोही तिलमिला उठी थी और पलटवार करते हुए उस ने भी बोल दिया कि अगर वह कहेगी कि शादी के बाद लड़का अपनी जौब छोड़ दे तो क्या वह अपनी जौब छोड़ देगा? आखिर क्यों परिवार की जिम्मेदारी के चलते वह अपनी खुशियों का गला घोंट दे? आखिर क्यों एक लड़की से ही यह उम्मीद की जाती है कि शादी के बाद वह लड़का और उस के परिवार के हिसाब से चले?

आरोही की बात पर लड़का और उस के परिवार वाले तिलमिला उठे थे और बोले थे कि ऐसी बदतमीज और मुंहफट लड़की से वे कभी अपने बेटे की शादी नहीं करेंगे.

‘‘हां, तो मत करिए,’’ आरोही ने भी तन कर जवाब दिया था.

‘‘शादी के बाद आप का बेटा नौकरी नहीं छोड़ सकता और मैं छोड़ दूं, क्यों छोड़ दूं क्या मैं ने दिनरात एक कर के पढ़ाई नहीं की? जौब पाने के लिए मैं ने जद्दोजहद नहीं की? क्या मेरे पेरैंट्स ने मुझ पर पैसे खर्च नहीं किए पढ़ाने के लिए? मगर सब से आप लोगों को क्या मतलब. आप लोगों को तो बस एक पढ़ीलिखी बाई चाहिए अपने बेटे के लिए जो उस का ध्यान रख सके, उस के लिए खाना पकाए, उस के कपड़े धोए, उस की छोटीछोटी जरूरतों का ध्यान रखे और हां, मोटा दहेज भी ले कर आए नहीं तो आप लोग मुझे जला कर मार भी सकते हैं. सही कह रही हूं न मैं?’’

‘‘नहीं मम्मी, आप मुझे आंखें मत दिखाओ क्योंकि मैं जो कह रही हूं सही ही कह रही हूं,’’ सुमित्रा की तरफ देखते आरोही बोली, ‘‘मैं शादी करूंगी तो अपनी शर्तों पर वरना नहीं.’’

आरोही की बात सुन कर लड़के वाले पैर पटकते हुए वहां से चले गए और सुमित्रा वहीं धम्म से सोफे पर बैठ कर सिसकने लगी. लेकिन आरोही कुछ न बोल कर सीधे अपने कमरे में चली गई. समझ नहीं आ रहा था उसे की कि क्यों उस की नुमाइश बनाई जा रही है लड़के वालों के सामने. आखिर किस बात में कम है वह लड़के से? हाई क्लास जौब है, देखने में सुंदर, फिर क्यों उस की मां जब देखो, शादी कर लो, अच्छे लड़के नहीं मिलेंगे फिर की रट लगाए रहती हैं?

सुमित्रा के मुंह से रोजरोज वही शादी की बातें सुन कर अब आरोही बोर होने लगी थी. मन तो कर रहा था उस का कि कहीं दूसरे शहर चली जाए रहने क्योंकि जब देखो, कभी बूआ, तो कभी मौसी, चाची उसे ज्ञान देने पहुंच जातीं कि बेटा, तुम्हारी मां सही कह रही हैं. कर लो न शादी. अरे, शादी कोई हलुवा है, जो बनाया और खा लिया? किसी को अच्छे से जानेपरखे बिना कैसे शादी कर सकती है वह?

किसी तरह करवटें बदलते हुए आरोही को देर रात नींद आई. सुबह संडे था, इसलिए करीब 2 बजे सो कर उठी. एक संडे ही मिलता है जब वह अच्छे से सो पाती है और यह बात सुमित्रा भी जानती हैं, इसलिए उसे परेशान नहीं करतीं, सोने देती हैं.

सो कर उठने के बाद आरोही फ्रैश हो खाना खा कर सीधे अपने कमरे में आ गई और लैपटौप ले कर बैठ गई ताकि सुमित्रा फिर शादी की बात ले कर न बैठ जाए उस के सामने. शाम को थोड़ी देर के लिए वह अपनी सहेली सांची के घर चली गई. कुछ देर उस के साथ बिता कर वापस घर आई तो सुमित्रा फिर शुरू हो गईं. मांबेटी में उसी बात को ले कर झगड़ा भी हो गया और इस कारण आरोही ठीक से सो भी नहीं पाई.

इधर सुबह जब अन्वय उठा तो देखा रात के डेड़ बजे उस के फोन पर आरोही का फोन आया था लेकिन वह उठा नहीं पाया था. ‘आरोही का फोन. लेकिन इतनी रात को उस ने मुझे क्यों फोन किया, ठीक तो होगी वह?’ अन्वय के मन में नैगेटिव विचार उभर आए. ‘‘हैलो, आरू, फोन किया था तुम ने मुझे. कोई बात है क्या?’’

‘‘फोन. ओह, शायद गलती से लग गया होगा. अच्छा, सुनो, मैं जरा लेट से औफिस के लिए निकलूंगी. तुम चले जाना,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया.

इधर अन्वय सोच में पड़ गया कि आरोही कुछ अजीब ही विहेव नहीं कर रही है. वैसे आधी रात को उस ने अन्वय को फोन लगाया तो था, पर पता नहीं झठ क्यों बोल गई कि गलती से लग गया होगा. अन्वय  ने वापस आरोही को फोन किया.

‘‘हां, बोलो अन्वय. हांहां, मैं चली जाऊंगी तुम चिंता मत करो.’’

‘‘तबीयत तो ठीक हैं तुम्हारी? सच बोलो?’’

अन्वय को चिंता करते देख उसे अच्छा लगा, ‘‘हां, वह जरा फीवर जैसा लग रहा है.’’

‘‘ऐसे कैसे अचानक फीवर हो गया? कल तक तो ठीक थी. अच्छा, मैं आता हूं.’’

‘‘अरे, नहीं मैं अब ठीक…’’ वह कहती रही पर अन्वय ने फोन काट दिया और कुछ ही देर में वह दवा के साथ आरोही के सामने खड़ा था.

‘‘ओह, तुम भी न. मैं ने दवा ले ली थी. बेकार में परेशान होने की जरूरत नहीं थी.’’

‘‘क्यों जरूरत नहीं थी? एक काम करो, आज छुट्टी ले लो. आराम करो.’’

मगर आरोही कहने लगी कि वह छुट्टी नहीं ले सकती. जाना पड़ेगा.

‘‘ठीक है तो तुम तैयार हो जाओ. मैं तब तक हाल मैं बैठता हूं.’’

औफिस जाते समय रस्ते भर आरोही यही सोचती रही कि क्या करे.

कैसे बताए मांपापा को कि वह किसी और से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है.

रोज की तरह औफिस से निकल कर दोनों अपने फैवरिट ‘यूनाइटेड कौफी हाउस’ में आ कर बैठ गए. अन्वय का औफिस आरोही के औफिस से हो कर गुजरता है इसलिए वह उसे वहां ड्रौप कर अपने औफिस चला जाता है.

दोनों रोज साथ ही औफिस आतेजाते हैं. अन्वय ने बैरा को इशारे से 2 कप कौफी लाने को कहा और आरोही की तरफ देखते हुए बोला, कुछ खाओगी, मंगाएं?

‘‘नहीं, बस कौफी,’’ केवल इतना ही बोल कर आरोही चुप हो गई.

‘‘क्या हुआ, सब ठीक है? इतनी चुपचुप क्यों हो?’’

अन्वय की बात पर आरोही अजीब तरह से हंस कर बोली, ‘‘क्यों, चुप रहना गुनाह है क्या?’’

‘‘नहीं, मैं ने तो ऐसे ही पूछा.’’

कौफी आ चुकी थी. दोनों धीरेधीरे कौफी पी रहे थे. लेकिन आरोही को आज

कौफी में कोई टेस्ट नहीं लग रहा था. किसी तरह कौफी को अपने गले से नीचे उतारा और कंधे पर बैग टांग उठ खड़ी हुई, ‘‘चले अब?’’

अन्वय कुछ देर बैठना चाहता था. कुछ बात करनी थी उसे आरोही से, ‘‘आरू, बैठो न थोड़ी देर, मुझे तुम से कुछ कहना है.’’

‘‘क्या, बोलो?’’

कुरसी पर बैठते हुए आरोही बोली.

‘‘कभीकभी मैं बहुत डर जाता हूं कि मैं कहीं तुम्हें खो न दूं,’’ आरोही का हाथ अपने हाथ में लेते हुए अन्वय इमोशनल हो गया.

‘‘सच में?’’ अन्वय की आंखों में झंकते हुए आरोही बोली, ‘‘अच्छा, ठीक है अब ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. चलो अब घर नहीं चलना?’’

अन्वय जो बोलना चाह रहा था बोल नहीं पाया उस से. खैर, रोज की तरह आरोही को उस के घर छोड़ते हुए अन्वय  अपने घर की तरफ निकल गया.

औफिस से आ कर आरोही इतनी थक चुकी थी कि कुछ करने का मन नहीं हो रहा था. खाना खा कर सोने गई तो नींद भी नहीं आ रही थी. सोचने लगी कि कब तक वह अपने मांपापा से अपने और अन्वय के रिश्ते को छिपाएगी. एक दिन बताना तो पड़ेगा वरना मां यों ही शादी के लिए उस के पीछे पड़ी रहेगी. लेकिन उस से

पहले उसे अन्वय को परखना है, जानना है कि वह उस से सच्चा प्यार करता है या सिर्फ दिखावा कर रहा है.

‘‘सुबह जैसे ही उस की आंखें खुलीं, सुमित्रा सामने खड़ी दिखीं.

‘‘मां… आप ने तो डरा ही दिया मुझे. क्या है बोलो? देखो, फालतू की बातें फिर शुरू मत कर देना.’’

‘‘ऐसे कैसे बात कर रही हो?’’ सुमित्रा बेटी के रूखे व्यवहार से दुखी हो उठीं.

‘‘तो कैसे बात करूं? रोज तो औफिस में खटती हूं. उस पर भी आराम से सोने नहीं देतीं आप. कभी पापा फोन कर के परेशान करते हैं तो कभी आप. अच्छा बोलो, क्या बात है?’’ इस बार उस ने जरा नर्मी से कहा.

‘‘मैं तो बस यह पूछने आई थी कि लड़के की तसवीर देखी तूने कैसा लगा?’’

‘‘नहीं देखी क्योंकि मुझे कोई इंटरैस्ट नहीं है इन लड़कों में. और आप क्या बोलती रहती हैं कि लड़का बहुत बड़ी पोस्ट पर है. लाखों की सैलरी है. तो मैं क्या घर बैठी हूं? मैं भी अच्छी पोस्ट पर हूं और मेरी भी लाखों में सैलरी है. मैं भी अच्छे घराने से विलौंग करती हूं. फिर क्यों आप गिरीपड़ी बातें करती हैं मां कि इतना अच्छा रिश्ता हाथ से चला जाएगा. तो चला जाए, मेरी बला से.’’

बेटी के तेवर देख सुमित्रा सिटपिटा गईं. इसलिए जबान पर जरा मिठास लाते हुए बोलीं, ‘‘लेकिन बेटा मैं तो तेरे भले के लिए ही बोल रही हूं और एक न एक दिन शादी तो करेगी ही न तू. अगर तूने किसी को पसंद कर रखा है तो यह भी बता दे?’’

‘‘आ ऐसी कोई बात नहीं है मां और कुछ होगा तो बताऊंगी ही न. अच्छा मुझे एक जरूरी फोन करना है, मैं आप से बाद में बात कराती हूं,’’ कह कर आरोही पता नहीं किस से फोन पर बात करने लगी.

आरोही भी समझ रही थी कि उस के मांपापा की चिंता जायज है. हर मांबाप को अपने बच्चे की शादी की चिंता होती है. लेकिन अभी वह अपने मातापिता को अपने और अन्वय के रिश्ते के बारे में बताना नहीं चाहती थी. नहीं… नहीं… उस के मातापिता प्रेम विवाह के खिलाफ नहीं हैं. जातिपांति भी नहीं मानते हैं वे. हां, लेकिन इस बात पर शायद एतराज हो उन्हें कि अन्वय की आर्थिक स्थिति हमारे जैसी मजबूत नहीं है. लेकिन मुझे इस बात से कोई एतराज नहीं है और इस के लिए मैं उन्हें मना भी लूंगी.

बात यह है कि अन्वय मुझे किस हद तक प्यार करता है वह देखना है मुझे. कहीं ऐसा तो नहीं कि कल को अगर मेरे साथ कोई हादसा हो जाए. तो वह मुझे बीच राह में छोड़ कर भाग जाए क्योंकि ऐसे कई किस्से सुन चुकी हूं जहां एक प्रेमी, पति बनते ही अपने असली

रूप में आ गया. छोटीछोटी बातों को ले कर पत्नी पर शक करता, उसे मारतापिटता यहां तक कि तलाक तक दे देता और औरत बेचारी बन कर रह जाती है.

मेरी सहेली सांची के साथ यही तो हुआ. एक दिन जब उस के पति को पता चला कि शादी से पहले किसी ने उस का रेप कर दिया तो उस बात को ले कर उस ने उसे कितना प्रताडि़त किया. यहां तक कहा कि उस का बच्चा उस का नहीं, उस रैपिस्ट का है और फिर एक दिन उस ने सांची को तलाक दे दिया. बेचारी, अपनी बेटी को ले कर मांबाप के घर रह रही है. लेकिन मैं अपने साथ कभी ऐसा नहीं होने दूंगी. अच्छे से समझबूझ कर ही शादी करूंगी ताकि कल को मुझे पछताना न पड़े.

मां और अक्षत कुछ दिनों के लिए इंदौर वाली मौसी के घर गए हुए थे. इसलिए मुझे खुद ही अपने लिए नाश्ताखाना बनाना पड़ रहा था. झड़ूपोंछा, बरतनकपड़ों के लिए बाई आती थी. अपने लिए मैं ने 1 कप कौफी बनाई और आ कर बालकनी में बैठ गई. समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पता लगाऊं कि अन्वय मुझ से किस हद तक प्यार करता है. मगर जैसे भी हो, पता तो लगाना ही पड़ेगा.

‘मैं तो केवल प्रेम की परीक्षा ले रही हूं. लोग तो प्रेम में जिंदगी तक हार जाते हैं. वैसे मुझे उस की जिंदगी नहीं चाहिए. भरोसा और विश्वास चाहिए कि हर हाल में वह मेरा साथ निभाएगा या नहीं. हो सकता है मेरा यह तरीका उसे अच्छा न लगे. लेकिन भविष्य के लिए यही सही है’ अपने मन में सोच आरोही ने गहरी सांस ली और बालकनी से उठ कर अपने कमरे में आ गई.

आरोही बाथरूम जा ही रही थी कि सांची का फोन आ गया, ‘‘हैलो, सोई है या जागी मैडम?’’ सांची ने फोन पर कहा.

‘‘जाग रही हूं, बोल? अरे, रे… हम ने तो आज साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाया था न. ओह शिट भूल गई मैं,’’ आरोही को बुरा लगा, ‘‘प्लीज,’’ आरोही ने माफी मंगाते हुए कहा कि अगले संडे जरूर उस के साथ मूवी देखने जाएगी.

‘‘अरे, कोई बात नहीं. इतना परेशान क्यों हो रही है. न तो फिल्म भगे जा रही है, न हम,’’ सांची हंस पड़ी, ‘‘वैसे एक बात बता कोई प्रौब्लम है क्या?’’

‘‘उफ, वही शादी का प्रैशर.’’

‘‘तो तू उन्हें बता क्यों नहीं देती अपने और अन्वय के रिश्ते के बारे में? क्यों नहीं बता देती कि तुम अन्वय से शादी करना चाहती हो. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे मांपापा दूसरी जाति के लड़के से तुम्हारे विवाह के खिलाफ होंगे?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बता नहीं. बल्कि इस मामले में मेरे मांपापा बहुत खुले विचारों के हैं.’’

‘‘तो दिक्कत क्या है फिर?’’ सांची हैरान थी.

‘‘दिक्कत कुछ नहीं है, पर मैं अन्वय को परखना चाहती हूं कि क्या सच में मुझ से प्यार करता है. जानती है सांची, तेरे साथ जो हुआ न उस से ही मैं ने सबक लिया.’’

‘‘तू भी न. मेरी बात कुछ और थी. मेरा समय खराब था जो मेरा पति मुझे छोड़ गया. मुझ से अपनी तुलना मत कर. अन्वय ऐसा लड़का नहीं है और वह तो तुम्हें इतना प्यार करता है कि आधी रात को भी उसे बुलाए तो दौड़ा चला आएगा. नहींनहीं यार, इतना मत सोच.’’

‘‘हां, तेरी बात सही है,’’ एक लंबी सांस लेते हुए आरोही हंस पड़ी, ‘‘लेकिन परखने में हरज ही क्या है. चल, आजा मेरे घर साथ में चाय पीते हैं,’’ आरोही ने फोन रख दिया और सांची यह सोच कर परेशान हो उठी कि यह आरोही भी पागल है एकदम. ऐसा भी कोई करता है.

दरवाजे की घंटी बजी तो आरोही समझ गई कि सांची ही आई होगी, ‘‘आजा. अन्वय भी आता ही होगा. मैं तब तक चाय रखती हूं.’’

कुछ देर में अन्वय भी आ गया. आरोही सब के लिए ट्रे में चाय ले आई. दोनों को चाय दे कर वह अपनी भी चाय लेकर बैठ गई. अभी उसने चाय का पहला घूंट लिया ही कि अचानक से वह नीचे जमीन पर गिर गई. वह अजीब तरह से मुंह बनाने लगी. उस के हाथपैर फड़कने लगे. वह ऊपर शून्य भाव में देखने लगी. उस की मांसपेशियां अकड़ गईं एकदम.

‘‘आरूआरू, क्या हो गया तुम्हें?’’ अन्वय आरोही को हिलाते हुए बोला, वह प्यार से आरोही को ‘आरू’ बुलाता है. उसे इस हालत में देख वह बुरी तरह घबरा गया. सांची भी समझ नहीं पा रही थी कि अच्छीभली आरोही को अचानक क्या हो गया. उसने उसे उठाया और बिस्तर पर लिटा कर उस के सिर के निचे तकिया रख दिया. उसे पानी पिलाया तो उसे थोड़ा आराम महसूस हुआ.

‘‘मैं… मैं… अभी डाक्टर को फोन करता हूं,’’  कह कर उस ने अपना फोन निकाला ही था कि आरोही ने उस का हाथ पकड़ लिया और धीरे से बोली कि डाक्टर को बुलाने की कोई जरूरत नहीं है. अब वह ठीक है. उसे ऐसे मिरगी के दौरे अकसर पड़ते रहते हैं.’’

‘‘मिरगी. तू तुम्हें मिरगी के दौरे पड़ते हैं कब से?’’

‘‘बचपन से ही,’’ आरोही बोली.

‘‘बचपन से लेकिन तुम ने कभी मुझे

बताया नहीं?’’

‘‘वह इलाज के बाद दौरे पड़ने बंद हो गए थे. लेकिन फिर पड़ने लगे…’’  तिरछी

नजर से अन्वय की तरफ देखते हुए आरोही बोली. देख रही थी कि वह कैसे रिएक्ट करता है. इधर सांची तो समझ ही रही थी कि उसे कोई दौरा नहीं पड़ा है बल्कि नाटक कर रही है.

‘‘कोई बात नहीं, मैं एक अच्छे डाक्टर को जानता हूं. उस के पास चलेंगे,’’ आरोही के सराहने बैठ अन्वय उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘सच में मैं बहुत डर गया था कि अचानक तुम्हें क्या हो गया.’’

‘‘यह जान कर तुम्हें बुरा नहीं लगा कि मुझे मिरगी आती है?’’ आरोही ने सवाल किया.

‘‘हां लगा लेकिन इस बात से कि तुम बचपन से सफर कर रही हो और मैं इस बात से अनजान हूं. कोई बात नहीं, अब जान गया न. अब से तुम्हारा ध्यान रखूंगा.’’

आरोही को आश्चर्य हुआ कि उसे यह जान कर जरा भी बुरा नहीं लगा कि जिस से वह प्रेम करता है और जिस से शादी करने वाला है वह एक मिरगी पेशैंट है.

‘‘बहुत हो चुका यार, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए,’’ उस दिन कौफी शौप में काफी पीते हुए अन्वय बोला तो आरोही कहने लगी कि हां, उसे भी लगता है अब उन्हें अपने रिश्ते को एक नाम दे देना चाहिए.

‘‘वैसे, मैं ने तो हमारे बारे में अपने घर वालों को सब कुछ बता दिया है और यह भी बोल दिया है मैं तुम से ही शादी करूंगा. लेकिन क्या तुम ने अपने मांपापा से बात की हमारे बारे में?’’

‘‘नहीं, लेकिन सोच रही हूं आज ही उन से बात कर लूं.’’

दूसरे दिन जब दोनों कौफी शौप में मिले तो आरोही बहुत उदास थी. अन्वय के पूछने पर बोली कि उस के मांपापा उस की इस शादी के खिलाफ हैं. कहते हैं अगर तुम ने अपनी मरजी से शादी की तो हम तुम से सारा रिश्ता खत्म कर लेंगे.

‘‘अच्छा, ऐसा कहा उन्होंने?’’ सुन कर अन्वय भी उदास हो उठा.

इसी तरह कुछ दिन और बीत गए. एक रोज आरोही घबराती हुई अन्वय के पास आई

और कहने लगी, ‘‘अन्वय, चलो हम भाग कर शादी कर लेते हैं क्योंकि मेरे मांपापा कभी हमारी शादी के लिए राजी नहीं होंगे. हम इस शहर से बहुत दूर चले जाएंगे. तुम पैसों की चिंता मत करो, मैं अपने सारे गहने ले आई हूं, जो मां ने मेरी शादी के लिए बनवाए थे और ये पैसे भी. कुछ दिन तो इन से गुजारा हो ही जाएगा हमारा. फिर कोई न कोई जौब मिल ही जाएगी हमें.’’

आरोही की बात सुन कर अन्वय हैरानी से उसे देखने लगा, ‘‘ऐसे देख क्या रहे हो, चलो न? इस से पहले कि मेरे मांपापा को सब पता चल जाए… देखो, बहुत अच्छा मौका है यह.’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम. पागल हो गई हो क्या? नहीं मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा.’’

‘‘तुम समझ नहीं रहे हो अन्वय.’’

‘‘सब समझ रहा हूं मैं. हम कोई छोटे बच्चे नहीं हैं जो ऐसी बेतुकी हरकत करें. सोचा है तुम्हारे ऐसा करने से तुम्हारे मांपापा पर क्या बीतेगी? कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे वे. क्या तुम यही चाहती हो? जाओ अपने घर और ये गहने और पैसे भी लेती जाओ.’’

‘‘आरोही जैसे ही जाने लगी, अन्वय ने उसे रोका, ‘‘मैं तुम्हे तुम्हारे घर तक छोड़ आता हूं,’’ फिर वह खुद आरोही को उस के घर छोड़ आया.

सांची ने जब आरोही के मुंह से भाग कर शादी करने वाली बात सुनी और जाना कि अन्वय ने क्या कहा तो उसे आरोही पर गुस्सा आ गया.

‘‘बस हो गया और कितना परखेगी उसे?’’

सांची की बात पर आरोही अजीब तरह से मुसकराई.

‘‘बड़ी जालिम है तू सच में. छोड़ दे न अब बेचारे को, कितना इम्तिहान लेगी. वैसे अब क्या करने वाली है तू?’’

‘‘सब्र रख बहन,’’ आरोही खतरनाक तरीके से हंसती हुई बोली.

अन्वय की दादी और उस के चाचाचाची यूपी के एक गांव में रहते हैं. एक दिन खबर आई कि अन्वय की दादी की तबीयत बहुत खराब है. शायद अब न बचें, इसलिए आ कर मिल लो. अन्वय अपनी दादी को देखने अपने गांव चला गया यह सोच कर कि जैसे ही वह ठीक हो जाएंगी, आ जाएगा. लेकिन उस की दादी गुजर गईं. इसलिए उसे कुछ दिन और अपने गांव में रुकना पड़ गया. 1 महीने बाद दिल्ली आया और पहले की तरह अपने काम में लग गया. लेकिन देख रहा था वह. आरोही पहले की तरह फ्रैश नहीं लगी उसे. कुछ चुपचुप थी. पूछा भी कितनी बार कि सब अब ठीक है? और हर बार वह केवल सिर हिला कर जवाव देती हां ठीक है.

एक दिन आरोही अन्वय को फोन कर फूटफूट कर रोने लगी, ‘‘आरू, क्या हुआ तुम रो क्यों रही हो? हांहां, मैं अभी आता हूं, तुम चुप हो जाओ पहले,’’ अन्वय जिन कपड़ों में था उन्हीं कपड़ों में भगा. देखा तो आरोही अभी भी रोए जा रही थी, ‘‘क्या हुआ, बताओ मुझे? आंटीअंकल ने कुछ कहा?’’

‘‘अन्वय, जब जब तुम अपने गांव गए थे न. तब,’’ आरोही डरडर कर बोल रही थी, ‘‘तब एक रोज मैं औफिस से घर आ रही थी, तब 2 लड़कों ने मेरे साथ…’’

‘‘तुम्हारे साथ क्या. बोलो न?’’ अन्वय का दिल धकधक कर रहा था.

‘‘तब उन 2 लड़कों ने मेरा रेप… रेप किया था,’’ बोल कर आरोही फिर फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘क्या रेप?’’ रेप की बात सुन कर अन्वय को जोर का धक्का लगा.

‘‘मुझे लग रहा है, शायद मैं प्रैगनैंट… क्योंकि इस महीने मेरा पीरियड मिस हो गया. अब मैं क्या करूंगी अन्वय. मांपापा तो मेरी जान ही ले लेंगे जब उन्हें पता चलेगा कि मैं प्रैगनैंट हूं. कुछ करो अन्वय वरना मैं अपनी जान दे दूंगी,’’ अन्वय के सीने से लग आरोही सिसक पड़ी.

‘‘तुम… तुम… चिंता मत करो. मेरी पहचान की एक लेडी डाक्टर है, उस के पास चलते हैं. सब ठीक हो जाएगा. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.’’

आरोही हैरान थी कि रेप जैसी इतनी बड़ी बात सुन कर अन्वय  को बुरा नहीं लगा और वह उसे डाक्टर के पास ले जा रहा है. डाक्टर अनुभवा, अन्वय की ही कास्ट की थी. दोनों ने साथ में ही स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी. जहां अन्वय ने इंजीनियरिग फील्ड चुनी, वहीं अनुभवा ने मेडिकल. दोनों आज भी पक्के दोस्त थे.

अन्वय उसे डाक्टर अनुभवा के पास ले गया और सब बात बताते हुए कहा कि वह इस का बच्चा गिरा दे.

मगर जांच के बाद डाक्टर ने बताया कि प्रैगनैंसी तो दूर की बात, आरोही का

रेप तक नहीं हुआ है क्योंकि इस की हाइमनअभी तक सुरक्षित है. डाक्टर की बात सुन कर अन्वय के पैरों तले की जमीन खिसक गई. तो फिर आरोही ने ऐसा क्यों कहा कि उस का रेप हुआ था और वो प्रैगनैंट हो गई.

‘‘तुम ने झठ कहा मुझ से कि तुम्हारा रेप हुआ है क्यों?’’ अन्वय इतनी जोर से चीखा कि आरोही हिल गई.

‘‘नहींनहीं अन्वय, मैं ने कोई झठ नहीं बोला तुम से. बल्कि वे दोनों लड़के खींच कर मुझे उस पुरानी बिल्डिंग में ले गए थे, उस के बाद मैं बेहोश हो गई थी. मुझे लगा उन दोनों ने मेरा रेप किया और भाग गए. जब मुझे होश आया तो वहां पर कोई नहीं था. फिर किसी तरह मैं अपने घर पहुंची. मां को कुछ नहीं बताया.

तुम्हें भी बड़ी मुश्किल से बता पाई हूं वह भी जब मेरा पीरियड मिस हो गया तब. मुझे लगा उन दोनों ने मेरा रेप किया और मैं प्रैगनैंट हो गई.’’

‘‘तुम्हें लगा लेकिन मुझे क्या लगा पता भी है तुम्हें?’’ अन्वय गुस्से से भर उठा.

‘‘वैसे तुम्हें बता दूं कि न तो मेरा कोई रेप हुआ है और न ही मुझे मिरगी की बीमारी है

और उस दिन गहनेपैसे ले कर भागने का जो प्लान बनाया था वह सब भी तुम्हें परखने के लिए ही था. मैं जानना चाहती थी कि इन सब के बावजूद तुम मुझ से उतना ही प्यार करोगे या छोड़ दोगे मुझे.’’

आरोही की बात सुन कर अन्वय की आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘ओह, तो झठी कहानी बनाई तुम ने और तुम्हें कोई बीमारी भी नहीं है. देखना चाहती थी कि मैं तुम्हारे गहनेपैसे देख कर लालच में तो नहीं आ जाऊंगा. वैरी गुड,’’ अन्वय जोरजोर से तालियां बजाने लगा, ‘‘अरे, मैं तो तुम्हें इतना प्यार करता हूं कि तुम्हारे जान देने की बात सुन कर भागाभागा आ गया. लेकिन तुम इतनी छोटी सोच वाली लड़की  हो, नहीं पता था मुझे. छि: तुम मेरा टैस्ट ले रही थी. अगर मैं ऐसा तुम्हारे साथ करता तो?’’

‘‘बिलकुल करो, मैं ने कब मना किया,’’ बड़ी बेफिक्री से बोल कर आरोही हंसी.

अन्वय का गुस्सा सिर चढ़ गया, ‘‘मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूं. तुम्हारे दिमाग में इतनी गंदगी भरी है, नहीं पता था मुझे,’’ आरोही की तरफ नफरतभरी नजरों से देखते हुए अन्वय बोला, ‘‘आज से मैं तुम्हें नहीं जानता. कोई रिश्ता नहीं है हमारे बीच, समझं तुम?’’  बोल कर वह वहां से निकलने ही लगा.

तभी पीछे से आरोही बोली, ‘‘हांहां जाओ, लेकिन एक बात सुनते जाओ. यही सब लड़कियों के साथ सदियों से होता आया है, तब तो किसी को बुरा नहीं लगा.’’

आरोही की बात पर अन्वय ने पीछे मुड़ कर देखा.

‘‘बल्कि आज भी हो रहा  है. लड़की नाटी है, मोटी है, दुबली है, काली है, बदसूरत है कह कर तुम लड़के और परिवार वाले लड़कियों का तिरस्कार करते हो. अरे, तुम लड़कों को तो शादी से पहले यह सर्टिफिकेट भी चाहिए होता है कि लड़की का कौमार्य सुरक्षित है या नहीं. छि:, शर्म नहीं आती ऐसा करने पर और मुझे बुरा बोल रहे हो एक लड़की का अगर रेप हो जाए तो भी लड़की ही मुंह छिपाती फिरती है और रेपिस्ट आजाद घूमता है. रेपिस्ट से कोई नहीं पूछता कि तुम ने रेप क्यों किया. लेकिन लड़की को कठघरे में जरूर खड़ा करते हैं कि अरे, तुम्हारा रेप हुआ है.

‘‘शादी से पहले एक लड़की को पता नहीं क्याक्या डर सताते हैं. जिन लड़कियों के शादी से पहले बौयफ्रैंड रहे हों और शादी घर वालों की मरजी से कर रही है तो उस लड़की का डर बहुत बड़ा होता है कि कहीं होने वाला पति कुछ जान गया तो उसे छोड़ दिया या तलाक दे दिया तो… शादीब्याह के मामले में ज्यादातर लड़कियों को ही सवाल झेलने पड़ते हैं.

‘‘बोलो न क्यों हर समय लड़कियां ही सवालों के जवाब देती रहें. लड़कों से ऐसे सवाल क्यों नहीं पूछे जाते कि शादी से पहले उस का किसी के साथ संबंध तो न था? उस ने कभी किसी लड़की का रेप तो नहीं किया? उस का कौमार्य क्यों नहीं जांचा जाता? क्या वर्जिनिटी सिर्फ लड़कियों का ठेका है?’’

आरोही की बात पर अन्वय ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘इस के बाद भी तुम्हें लगता है कि मैं ने जो किया गलत किया तो जाओ और अगर लगे कि मैं ने जो किया सही किया तो आ जाना. मैं यहीं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

पूरी रात अवन्य के मन में उथलपुथल मचती रही, ‘आखिर क्या गलत कहा आरोही ने

बोलो, क्यों हर बार लड़कियां ही क्यों परखी जाती हैं? क्यों हर बार दोष निकाल कर उन का तिरस्कार किया जाता है? जब एक लड़की का रेप होता है, तब भी दोषी वह कैसे हो जाती है? जब आरोही ने कहा था कि 2 लड़कों ने उस का रेप किया, तब तुम्हारा भी मन अजीब हो गया था न? झठ मत बोलो,’ अन्वय के दिल से आवाज आई, ‘हां, लगा था मुझे. लेकिन अन्वय तब भी मेरा प्यार उस के लिए कम नहीं हुआ था. लेकिन फिर मुझे उस की बात का इतना बुरा क्यों लगा? नहीं लगना चाहिए था.

प्यार की परीक्षा ही ली न उस ने? तो क्या गलत किया? कहीं बहुत देर न हो जाए,’ अपने मन में सोच अन्वय ने फोन उठा लिया और आरोही को मैसेज किया, ‘‘सौरी, तुम सही थीं. मैं आ रहा हूं तुम्हारे पास.’’

अन्वय का मैसेज पढ़ कर आरोही मुसकरा उठी.

Romantic Story

Satire: नैपो बेबी की रीलें- जेन जी की क्रांति

Satire: हमारे समय में लोकतंत्र को सब से बड़ा खतरा विपक्ष से नहीं, नैपो बेबीज से है. ये ऐसे पौधे हैं जिन की खाद भ्रष्टाचार का पैसा और धूप सत्ता की ताकत है. नेपाल का हालिया आंदोलन इस बात का सुबूत है कि जनता अब इंस्टारील्स के तख्तापलट को भी गंभीरता से लेने लगी है. सोचिए, एक तरफ आम नेपाली युवा बेरोजगारी, महंगाई और भविष्य की चिंता में धंसे हुए हैं और दूसरी तरफ नैपो बेबीज महंगी कारों की चाबियां झनझनाते, लंदन, न्यूयौर्क के स्कूलों की पढ़ाई का बखान करते, इंस्टाग्राम पर अपने बाप की दौलत का तमाशा दिखाते फिरते हैं.

यही विरोधाभास अंतत: फट पड़ा. नेपाल में लोग सड़कों पर उतर आए न नारों के लिए, न किसी वैचारिक एजेंडे के लिए बल्कि नैपो बेबीज की ऐयाशी की रील्स देख कर. आम जनता ने पहली बार समझ कि डिजिटल क्रांति का मतलब क्या होता है जब जनता का गुस्सा व्यूज बन कर सरकार को गिरा दे. ये नैपो बेबी कौन हैं? ये वे लोग हैं जिन की डिक्शनरी में ‘मेहनत’ शब्द नहीं है. इन की डिगरियां विदेश से हैं पर अक्ल जमीनी स्तर पर शून्य.

इन की लाइफ में सब से बड़ा काम है कार के बोनट पर बैठ कर रील बनाना, पार्टी करना, महंगी शराब उड़ाना, रोड रेज करना और फिर बाप के ओहदे से छूट जाना. आम युवा नौकरी ढूंढ़ें, ये ‘नया क्लब’ ढूंढ़ते हैं. गाड़ी चलाना इन्हें स्पोर्ट्स समझ में आता है, कानून नहीं. जब ये अपनी मसिडीज में गले में हाथ डाले लिपटी गर्लफ्रैंड के साथ स्पीडिंग करते हैं तो महाकाल भी घबराहट में फुटपाथियों के ऊपर मंडराने लगते हैं. बाप भ्रष्टाचार करे, बेटा डिस्को में नोट उछाले. बाप संसद में हंगामा करे बेटा पब में. मेहनत सिर्फ जिम में, वह भी फोटो क्लिक कराने की. इन के लिए राजनीति कैरियर नहीं, वसीयत है. इन के संघर्ष की कहानियां व इंस्टाग्राम फिल्टर दोनों नकली हैं. पापा की फोन बुक इन का टेलैंट है.

यदि पूछो बड़ा हो कर बेटा क्या बनेगा तो बताएंगे बेटा पहले से ही बनाबनाया है. एक आम नौजवान की जिंदगी हर महीने की किस्त और रोजगार के संघर्ष में बीत रही है, जबकि नैपो बेबी की जिंदगी में किस्त सिर्फ गडि़यों की ईएमआई की होती है. उसे भी पापा भरते हैं. जब ये रील्स वायरल हुईं. जहां महंगी कारें, डौलर के बंडल और स्विमिंगपूल में शैंपेन तैर रही थी तो जनता ने पूछा, ‘‘ये पैसे कहां से आए?’’ उत्तर सरल था. हमारे टैक्स और इन के बाप की लूट से. यही सवाल ज्वालामुखी बन गया. नेपाल की सड़कों पर वही नौजवान उतरे, जिन के लिए कल तक डाटा पैक भी महंगा था. आज वे पूछ रहे थे, ‘‘हमें बेरोजगारी और इन्हें बाप की विरासत में ऐयाशी क्यों?’’ पापा की फोन बुक इन का टेलैंट है.

ये क्विक कौमर्स हैं राजनीति के. नैपो बेबी का असली गुण यही है कि ये न तो खुद के दम पर पासपोर्ट बनवा सकते हैं, न लाइसैंस, न नौकरी. सभी चीजें बाप की मुहर से आती हैं. वे बारबार जनता को भरोसा दिलाने की कोशिश करते हैं कि न पापा के दम पर न उन की मनी के दम पर बल्कि हनी अपने टेलैंट के दम पर मुकाम बना रहे हैं. नेपाल में सरकार गिरी, पर गिराने वाला नारा गरीबी, बेरोजगारी दूर करो, महंगाई कम करो नहीं था. चिनगारी का कार्य किया.

नैपो बेबी की रील्स और बवाल बढ़ने पर सोशल मीडिया पर रातोंरात ठोकी प्रतिबंध की कील्स ने. युवाओं ने देखा कि हमें रोजगार, रोटी के लाले और ये रोज नई लग्जरी कार निकालें तो तख्त हिलना तय था. नैपो बेबीज की नस्ल वैश्विक है. घाटी का देख लो, नेताओं की औलादें विदेशों में पढ़ रही हैं और स्थानीय युवाओं को नफरत और नारे थमा रहे हैं. दरअसल, नैपो बेबी लोकतंत्र को अपने पापा की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी मानते हैं. मगर एक दिन जनता का गुस्सा आता है और फिर नैपो बेबी की पूरी पीढ़ी सत्ता से उखड़ नप जाती है. हद पार की तो पलक झपकते सत्ता के पार लगा दिए जाओगे. नेपाल ने यह कर दिखाया. अब नैपो बेबी समझ लें. रील्स सिर्फ व्यूज नहीं लातीं, कभीकभी क्रांति भी ले आती हैं. बिगड़ैल औलाद की रील्स बाप की पौलिटिकल ओबीच्यूरी बन जाती हैं.

Satire

Love Story: आधीअधूरी या पूरी

Love Story: मेरे जीवन में उस का प्रवेश बरखा की शीतल फुहारों समान हुआ था जो बारिश से धुले आसमान में सतरंगी इंद्रधनुषीय छटा की भांति कुछ देर दृष्टिगोचर हो विलीन हो गया. मैं उस के मिलन और विछोह का अर्थ भी न समझ सका कि वह बिजली की भांति मेरे जीवन को कुछ क्षण चमका कर ओझल हो गई. मेरे बालपन की 11-12 वर्ष की उम्र में उस का आगमन हुआ था. मैं एक सरकारी स्कूल में कक्षा 6 का छात्र था.

उसी स्कूल में मेरी ही कक्षा में एक नई लड़की ने दाखिला लिया. उस के कक्षा में प्रवेश करते ही सभी बच्चों की निगाहें उसे देखने के लिए उठीं, मैं भी उधर ही देखने के लिए घूमा. सांवली सी साधारण नैननक्श की होते हुए भी वह अन्य लड़कियों से अलग थी. उस की नीली आंखों में अजीब सा आकर्षण था जो मेरे जीवन में हलचल मचाने के लिए काफ़ी था. उसे रोज निहारते रहना मुझे अच्छा लगने लगा. वह अन्य लड़कियों के साथ अलग बैंच पर बैठती थी. मैं उसे दूर से ही निहारता रहता.

वह भी मुझे वहीं से बैठीबैठी देखा करती. हम दोनों में कभी कोई बात नहीं हुई, बस एकदूसरे को देखना अच्छा लगता था तो देखते रहते. उस का नाम आभा है यह मुझे स्कूल की हाजिरी लेते वक्त मास्टरजी के पुकारने से ज्ञात हुआ. शायद ऐसे ही मेरा नाम भी उसे पता लग गया होगा. 70 वर्ष पूर्व के बच्चे प्रेम क्या होता है जानते भी नहीं थे. हम दोनों अबोध, अबोले मासूमियत से भरे आंखों ही आंखों से एकदूसरे को निहारते रहते. खेल के मैदान में पहुंचता तो वह भी आ जाती और दूर से खड़ीखड़ी मुझे ताकती रहती. वह झला झलती तो मैं उसे देखता रहता. हम दोनों ने कभी एकदूसरे से बात नहीं की न कक्षा में न कक्षा के बाहर. बस हमें एकदूसरे को देखते रहने में खुशी महसूस होती थी. वार्षिक परीक्षा का परिणाम आने के बाद अचानक एक दिन वह अपने नाम के अनुरूप अपनी आभा बिखेर आकाश की बिजली की भांति चमक कर चली गई. मेरा मन कुछ दिनों तक उदास रहा. समय के साथ उस की यादें कम होती गईं.

मैं अपनी उच्च शिक्षा ग्रहण करने में व्यस्त हो गया परंतु उसे भूल नहीं पाया. जड़ें कहीं दिल की गहराई में पैठी हुई थीं. युवावस्था में पहुंच मैं ने उस के प्रति अपने लगाव के बारे में सोचा और इस गुत्थी को सुलझने की कोशिश की. जितना सुलझया उस से ज्यादा उलझ. मन ने सोचा कहीं मैं उस से प्यार तो नहीं करने लगा. मेरा बालमन तुरंत बोला कि बच्चू प्यार जानते हो क्या होता है? मैं ने कहा कि उस समय तो नहीं जानता था पर अब कुछ कुछ जान गया हूं. स्कूल के दिनों में उसे देखे बिना मुझे चैन नहीं पड़ता था. वह भी तो दूर से मुझे ताकती रहती थी. जब मैं खेल के मैदान में पहुंचता वह भी तुरंत आ जाती. बता यह प्यार नहीं तो क्या था? हम एकदूसरे को निहार वापस अपनी कक्षा में आ जाते. यों ही मन ही मन मैं अपने आप को भुलावे में रख कर उस की उन्हीं भावनाओं को प्यार का रूप देने की हिमाकत करता या वास्तव में प्यार करता था दोनों का अंतर नहीं समझ सका.

एक लंबे अंतराल के बाद मैं उच्च शिक्षा ग्रहण कर अपने ही शहर के एक कालेज में लैक्चरर के पद पर नियुक्त हो गया. मेरी नौकरी लगने से मेरे मातापिता बहुत खुश हुए. अब उन की एक ही इच्छा शेष थी वह थी मेरी शादी. वे जल्द से जल्द मेरी शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. शादी करने का अभी मेरा इरादा नहीं था. दिल के किसी कोने से उस का खयाल उभरता, मन उड़ान भरने लगता. कभी सोचता बड़ी हो गई होगी, कैसी दिखती होगी, मेरी याद भी होगी या नहीं. कहां होगी, क्या किया है उस ने, कभी मुझे मिली तो क्या हम दोनों एकदूसरे को पहचान भी पाएंगे? हो सकता है कि शादी हो गई हो बच्चे भी हों.

यह सब सोचतेसोचते दिमाग का दही बनने लगता. थकहार कर अपनी किताबें उठा अगले लैक्चर की तैयारी करने की कोशिश करता. वह भी नहीं होता तो थकहार कर सो जाता. दिनों का काम ही गुजरना है, गुजरते जाते हैं किसी के दिन गम में तो किसी के खुशी में और किसी के दिन पुरानी यादों में. पुरानी यादें… कितनी सुहानी, कितनी मीठी. बचपन की हैं तो सोने में सुहागा. क्या भूलूं क्या याद करूं बैठा हुआ सोच रहा था कि दरवाजे की कुंडी खटकी. विचारों में खलल पड़ने पर झल्लाहट में उठ दरवाजा खोला, सामने अपने बचपन के यार राम प्रकाश को देख सारी झल्लाहट हवा हो गई.

वह मेरी उतरी शक्ल देख पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है जो इतना परेशान नजर आ रहा है?’’ मैं ने कहा, ‘‘तू पहले अंदर तो आ. चौखट पर खड़ा हो कर बातें करेगा क्या?’’ मैं उस के साथ अपने कमरे में आया. कमरे में बैठ उस की तरफ मुखातिब होते हुए बोला, ‘‘मेरी बात छोड़ अपनी सुना. डाक्टर बन गया है, अपने मरीजों को ढंग से देखता है कि नहीं? कैसी प्रैक्टिस चल रही है? कहां पर है आजकल? शादी कर ली क्या?’’ रामप्रकाश इतने सवाल सुन झल्ला गया. मेरी पीठ पर धौल जमाते हुए कहने लगा, ‘‘इतने दिनों बाद आया हूं कुछ चायपानी तो पिलाया नहीं ऊपर से सवाल पर सवाल दाग रहा है. तेरी आदत अभी तक गई नहीं. चल पहले पानी पिला गला सूख रहा है.’’ मैं रामप्रकाश के लिए पानी ले कर आया. पानी पीने के बाद गिलास टेबल पर रख आराम से पैर पसार कर सोफे पर बैठ गया.

यह उस की पुरानी आदत थी. राम की आवाज सुन मां चाय बनाने चली गईं. मां जानती थीं कि थोड़ी देर बाद ही वह उन के पास चाय की फरमाइश करने आ जाएगा. दरअसल, राम को मां के हाथों की बनी चाय बहुत पसंद थी. मां को भी उस की हर पसंदनापसंद पता थी. बचपन से घर में आताजाता रहा था. राम मां से चाय के लिए कहने ही वाला था कि मां चाय ले कर आ गईं. साथ में ढेर सारा नमकीन भी. राम ने मां के पैर छुए हम दोनों चाय पीते हुए एकदूसरे से चुहलबाजी कर देर तक ढेरों बातें करते रहे. वह अचानक ही बोला, ‘‘तुझे याद है अपने साथ आभा नाम की एक लड़की पढ़ती थी जो तुझे घूरती रहती थी, पता है वह डाक्टर बन गई है?’’ आभा नाम सुन सोते से जागा. उसे झिंझड़ते हुए बोला, ‘‘क्या बात कर रहा है, तुझे पक्का यकीन है कि वह वही थी?’’ रामप्रकाश ने बताया कि वह एक सेमिनार में गया था वहीं उस से मुलाकात हुई थी.

मैं ने उसे नहीं पहचाना मेरा नाम सुन कर वह स्वयं ही मेरे पास आई और पूछने लगी कि ‘‘क्या आप फलांफलां शहर से आए हैं?’’ मेरे हां कहने पर बोली कि मेरी याद है मैं आभा आप के साथ उसी शहर के सरकारी स्कूल में पढ़ती थी. मुझे सब याद आ गया. मैं ने कहा, ‘‘हां याद आया आप 1 साल तक हमारे साथ उसी स्कूल में पढ़ी हैं.’’ ‘‘आभा ने तेरा नाम लेकर पूछा कि क्या आप उन्हें जानते हैं? वे भी हमारे साथ पढ़ते थे?’’ ‘‘उस के मुख से तेरा नाम सुन जोर से हंसते हुए मैं ने कहा कि वह तो मेरा लंगोटिया यार है. उसी शहर में एक कालेज में लैक्चरर बन गया है. बच्चों को ज्ञान बांटता रहता है.’’ ‘‘आभा के चेहरे पर अनेक भाव आ और जा रहे थे. खुशी उस के चेहरे से टपक रही थी. चहकते हुए बोली कि आप जब भी वहां जाएं मेरे बारे में उन्हें जरूर बताइएगा और कहिएगा कि मैं अभी तक उन्हें भूली नहीं हूं. आभा ने अपने शहर और होस्टल का पता बताया साथ में तेरा पता पूछ मुसकराती, गुनगुनाती चली गई.’’ रामप्रकाश से आभा की बातें सुन कर हक्काबक्का सा हो मैं उस का मुंह ताकने लगा.

रामप्रकाश कहने लगा, ‘‘क्या तू भी उसे भूला नहीं है? वह वहां मुसकरा रही है यहां तू पगलाया दिख रहा है,’’ यह कहते हुए उस ने आभा के हास्टल का पता बताया और हंसता हुआ अपने घर चला गया. मेरा मन जैसे अपना होश ही खो बैठा. जीवन में अनेक वसंत एकसाथ खिल उठे. पोस्ट औफिस से ढेर सारे लिफाफे और टिकट ले कर आया और उसे पत्र लिखने बैठा. किस नाम से संबोधित करूं, क्या डाक्टर नाम से या आभा नाम से. उन दिनों में वह मेरी दोस्त भी नहीं थी, कौन थी वह मेरी कि मैं उस के बारे में सुन कर बेचैन हो रहा था. आखिर मैं ने ‘आभा’ नाम से ही संबोधित करते हुए 2 लाइन का पत्र लिख डाक में डाल दिया.

आभा को भी कहां चैन था. उस ने रामप्रकाश से मिलने के बाद ही मुझे 2 लाइन का पत्र डाल दिया था कि मैं आप का इंतजार कर रही हूं, कब आएंगे? मेरे पंख परवाज मिलते ही उड़ने को बेताब हो उठे. तुरंत पत्र लिख डाक में डाल दिया कि फलां ट्रेन से आ रहा हूं तुम स्टेशन पर मिलना. ट्रेन की रातभर की यात्रा बड़ी लंबी लग रही थी, समय ही नहीं कट रहा था. नींद कोसों दूर, मन उमंग में उड़ान भर झम और घूम रहा था. साथ में यह जिज्ञासा भी थी कि हम एकदूसरे को कैसे पहचानेंगे, बातचीत की पहल कौन करेगा यदि नहीं आई तो? जैसेतैसे रात कटी, सवेरा होते ही ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुंच गई. मैं ट्रेन से उतर वेटिंगरूम में पहुंच कर तरोताजा हो बाहर आया.

स्टेशन के दरवाजे के पास पहुंच मेरी निगाहें उसे खोजने लगीं. वह भी मुझे खोज रही थी. भीड़ छंटते ही उस ने अचानक मेरे सामने आ कर मुझ से पूछा, ‘‘क्या आप रामप्रकाश के मित्र हैं?’’ ‘‘मैं ने कहा हां.’’ अपना परिचय देते हुए बोली, ‘‘मैं आभा.’’ मेरे मुंह से बोल ही नहीं निकले, भौचक सा खड़ा हुआ कभी उसे देखता कभी अपने को. कुछ पल मौन रह. पहल करते हुए आभा ने कहा, ‘‘यहीं खड़े रहने का विचार है क्या?’’ मेरी तंद्रा टूटी. मैं ने कहा, ‘‘मैं कहीं खो गया था.’’ वह पूछ बैठी, ‘‘कहां?’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी नीली आंखों में.’’ आभा के साथ मैं अपने बचपन के दोस्त के घर पहुंचा, आभा का परिचय कराया, चायनाश्ता कर हम दोनों घूमने निकल गए. आभा के साथ उस के होस्टल गया.

वह एमबीबीएस करने के बाद पीजी की परीक्षा की तैयारी कर रही थी. उस ने मुझे पूरा मैडिकल कालेज घुमाया. दोपहर का भोजन हम ने वहीं कैंटीन में किया. शाम तक वहीं बैठ कर अपने बचपन और बीते दिनों की बातें एकदूसरे को सुना हंसतेहंसाते रहे. बचपन की जिस बात को हम बचपना समझ रहे थे वह वास्तव में प्यार का अंकुर था जो अब फूट रहा था. 3-4 दिन यों ही बीत गए, सुबह का निकला मैं रात को अपने दोस्त के घर पहुंचता. भाभीजी खिलखिला कर कहतीं, ‘‘वाह देवरजी क्या ऊंचा हाथ मारा है अब बस बरात की तैयारी कर लो.’’ मैं ने उन से कहा, ‘‘माताजी को तो आप ही राजी करोगी, शादी की तैयारी भी आप को ही करनी है.’’ पत्र लिखते रहने का वादा कर मैं आभा से विदा ले वापस आ गया. हमारे संपर्क का माध्यम अब पत्र थे.

हफ्ते में 1-2 पत्र उस के आते और प्रत्युत्तर में मेरे भी उतने ही पहुंच जाते. दुनिया गोल है यह अब पता लगा, अबोध, अबोले बच्चों के एकदूसरे के प्रति आकर्षण ने दोनों को यौवनकाल में मिला दिया. वक्त का चक्र कब किस का समय बदल दे कोई नहीं जानता. महीने 2 महीने में मैं आभा से मिलने चला जाता. 2-3 दिन वहां रुकता एकदूसरे से दिल की बातें कर नई उमंगों से सराबोर हो वापस आता. कभीकभी मैं उस से शादी के बाद आगे के भविष्य की बातें करने लगता कि वह कहां रहेगी, किसी हौस्पिटल में काम करेगी या अपना क्लीनिक खोल प्राइवेट प्रैक्टिस करेगी. वह हंस कर टाल देती कहती, ‘‘शादी की जल्दी क्या है समय आने पर हो जाएगी.’’ मेरी माताजी भी मुझ पर शादी करने का दबाव डाल रही थीं, वे जल्द से जल्द अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती थीं.

मैं उन्हें यह कह कर टाल देता कि अभी शादी की जल्दी क्या है? मैं ने आभा के बारे में उन्हें कुछ नहीं बताया था, पर मुझे यकीन था कि वे मेरी इच्छा जरूर पूरी करेंगी. मैं ने सोचा कि शादी के बारे में पहले आभा से सब बातें तय कर लूं फिर उन्हें बताऊंगा. इधर हम दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था उधर तकदीर अपनी तदबीर से जीवन की शतरंज की गोटी बिछा रही थी. भविष्य की अनहोनी से अनजान मैं अपने नए जीवन के तानेबाने बुन रहा था. वसंत का मदहोश महीना विरह की आग लगाने लगा, रातभर करवट बदलते बीत जाती. मन ने कुछ निर्णय लिया और मैं रात की ट्रेन से आभा से मिलने चल दिया.

अचानक मुझे आया देख वह चौंक गई, मेरी ओर देख अपनी आंखों का जादू बिखेरते हुए बोली, ‘‘सब ठीक तो है न?’’ हंसते हुए मैं बोला, ‘‘मदमाते इस वसंती मौसम में सब ठीक कैसे हो सकता है तुम्हारी याद सताती है? अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. मेरी माताजी भी मेरी शादी का इंतजार कर रही हैं.’’ आभा ने कहा, ‘‘अभीअभी तो आए हो 1-2 दिन बाद इस बारे में बात करेंगे अभी कौफी पीने चलते हैं थकान दूर कर लो,’’ आभा को कौफी बहुत पसंद थी. 2-3 दिन ऐसे ही इधरउधर घूमने में निकल गये. मेरा मन घबरा रहा था कुछ अनहोनी का आभास भी हो रहा था. मैं रात की ट्रेन से वापसी का टिकट बुक करा चुका था.आभा और मैं एक पार्क में बैठे हुए वसंती मौसम का आनंद ले रहे थे.

तभी मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हारा शादी का क्या इरादा है? मुझे आज वापस भी जाना है, मैं चाहता हूं कि इस बार माताजी को यह खुशखबरी दे ही दूं.’’ आभा यह सुन कर बोली, ‘‘अपने मातापिता को इस संबंध में बताने से पहले मैं तुम्हें अपने बारे में कुछ बताना चाहती हूं.’’ मैं आश्चर्य से उस की ओर देख कुछ सोचने लगा. कुछ क्षण मौन रहने के बाद आभा ने कहा, ‘‘तुम अपने मातापिता के इकलौते बेटे हो और उन की इच्छा होगी कि उन के खानदान की वंश बेल आगे बढ़ती रहे…’’ आभा की बात बीच में ही काटते हुए मैं ने कहा, ‘‘भला यह भी कोई कहने की बात है हर किसी की यही इच्छा होती है.’’ वह मेरे मुंह पर हाथ रख कहने लगी, ‘‘शांत मन हो ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनो, दिल से नहीं दिमाग से सोच कर जवाब देना.’’ बातें करते हुए आभा अपने अतीत में खो गई, उसे वह दिन याद आ रहा था जब वह उस छोटे शहर और अपनी चाहत को छोड़ कर एक नए शहर में जा रही थी. मन ही मन वह काफी दुखी थी. अभी प्यार को समझने की उम्र भी नहीं थी किस को बोले और क्या बोले कि उस का यहां बहुत कुछ छूट रहा है.

आभा को वह पल भी याद आया जब उस के पिताजी मां से कह रहे थे कि अच्छा हुआ कि मेरा तबादला बड़े शहर में हो गया अब हम आभा को किसी बड़े डाक्टर को दिखा सकते हैं. वहां उस का ठीक से इलाज भी हो जाएगा. आभा के पेट में अकसर दर्द उठता रहता था. यहां के इलाज से फायदा नहीं हो रहा था. वह अपनी जिंदगी का एक अमूल्य हिस्सा छोड़ कर मातापिता के साथ बड़े शहर आ गई. उस के मातापिता ने वहां पहुंच कर बड़े हौस्पिटल में उसे दिखाया.

सघन जांच के बाद डाक्टर ने बताया कि उस के गर्भाशय में गांठ है जिस का औपरेशन करना होगा. कुछ क्षण मौन रहने के बाद डाक्टर ने कहा कि एक बात और है औपरेशन के बाद यह मां नहीं बन सकेगी. आप लोग सोचविचार कर जवाब दीजिए तभी हम औपरेशन करेंगे. डाक्टर की बातें सुन मातापिता दुविधा में पड़ गए. वे कुछ निर्णय लेने की स्थिति में नहीं थे. एक तरफ बेटी का जीवन तो दूसरी तरफउस की बाकी बची जिंदगी. आखिर काफी सोचविचार कर के उन्होंने डाक्टर को औपरेशन करने की अनुमति दे दी. औपरेशन के बाद आभा को उस की मां ने धीरेधीरे सब बातें बता दीं. आभा ने तभी एक निर्णय लिया कि वह बड़ी हो कर डाक्टर ही बनेगी, अपने निर्णय से मातापिता को भी अवगत करा दिया.

अचानक अपने विचारों को झटका दे वर्तमान में वापसी कर उस ने कहना शुरू किया, ‘‘चूंकि मैं एक डाक्टर हूं और जानती हूं कि किसी कारणवश मैं मां नहीं बन सकती, तुम से शादी करूंगी तो तुम्हारे मातापिता की खवाहिश अधूरी रह जाएगी.’’ कुछ क्षण मौन में बीते. अपनी जादुई आंखें मेरी आंखों में डाल कर बोली, ‘‘जरा सोचो, क्या हम दोनों दोस्त बने रहकर ज्यादा खुश रह सकते हैं या पतिपत्नी. निर्णय तुम्हें लेना है.’’ मैं यह सुन अवाक रह गया. मुंह से बोल ही नहीं निकला जबान जैसे तालू से चिपक गई थी. असमंजस की स्थिति से मुझे उबारते हुए बड़े ही प्यार से बोली, ‘‘देखो सोचसमझ कर ही किसी नतीजे पर पहुंचना ठीक होता है् जल्दबाजी अच्छी नहीं होती.’’ अचानक अपने हाथ की घड़ी में समय देखा. मुसकराई और बोली, ‘‘मुझे अपनी नाइट ड्यूटी पर जाना है और तुम्हें स्टेशन, हम फिर मिलेंगे.’’ उसे हौस्पिटल छोड़ता हुआ मैं स्टेशन के लिए रवाना हो गया. लुटापिटा थकाहारा सा स्टेशन पहुंचा. 1 कप चाय पी ट्रेन में बैठ गया. व्यथित मन मझधार में फंस कर चक्कर काट रहा था.

दिल से बीचबीच में आवाज आती काश यह सब झठ होता. कुदरत के खेल निराले हैं. बचपन में मिलना फिर बिछड़ना जवानी में मिलना फिर बिछड़ना क्या यही नियति है? अगर ऐसा ही था तो दोबारा क्यों मिलाया? मेरे पास इन सवालों के जवाब नहीं थे. कभी अपना प्यार याद आता तो कभी बूढ़े मांबाप का चेहरा. सारी रात आंखों में कट गई. सुबह थकाहारा घर पहुंचा, पहुंचते ही सीधे अपने कमरे में जा कर लेट गया. माताजी ने कमरे में आ कर पूछा ‘‘क्या हुआ, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ मैं ने कहा, ‘‘बुखार आ गया था अब ठीक हूं.’’ मां तो मां होती हैं. झट तेल ले आईं सिर में मालिश कर कहने लगीं, ‘‘अब ठीक हो जाओगे.’’ मां का आशीर्वाद भरा हाथ सिर पर आते ही मन को शांति मिली.

कुछ देर लेटे रहने के बाद स्वयं को तरोताजा महसूस कर उठ गया. अपने सकुशल पहुंचने का 2 लाइन का पत्र लिख डाक में डाल दिया. मैं हमेशा वापस आने पर आभा को एक लंबी सी चिट्ठी लिख कर डालता था परंतु इस बार सिर्फ चंद लाइनें. क्या सोचेगी वह? अपना निर्णय भी बताना है, क्या करूं क्या न करूं. मेरी नैया मझधार में डोल रही थी. कल चिट्ठी लिखूंगा सोचतेसोचते कितने ही कल निकल गए पर मेरा कल नहीं आना था तो नहीं आया. 8-10 दिन बाद आभा की एक लंबी सी चिट्ठी आई, हैरानपरेशान मन को कुछ चैन आया.

आभा ने मुझे संबोधित करते हुए लिखा था कि उस ने बहुत सोचसमझ कर एक निर्णय लिया है और इसे पूरा करने में मेरा सहयोग चाहती है. उस ने लिखा था कि चूंकि मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान हूं और उन की इच्छा पूरी करना मेरा फर्ज है. तुम्हारे मातापिता की अभिलाषा अपने परिवार की वंश बेल को फलीभूत होते हुए देखने की है जिसे मैं पूरा नहीं कर सकती. ‘‘मैं अपने प्यार को यहीं विराम दे रही हूं. जो प्यार रूह से किया जाता है वही वास्तव में प्यार होता है, प्यार का कोई नाम नहीं होता.

हमारा प्यार बचपन का पवित्र प्यार है, अब भी है और हमेशा रहेगा. शादी के बंधन में बंधने से प्यार का रूप कुछ और ही हो जाता है. ‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारे मातापिता को सुखी देखना चाहती हूं. कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. ऐसे ही कुछ निर्णय दिल से नहीं विवेक से लिए जाते हैं. मैं ने जो कुछ भी सोचा है उसी में हम दोनों की खुशियां निहित हैं. ‘‘मेरा चयन गायनिक में पीजी के लिए हो गया है फिलहाल मैं शादी नहीं करूंगी. तुम अपने मातापिता की इच्छानुसार शादी जरूर कर लेना. ‘‘यही हमारे प्यार का सुखद अंत होगा. मैं तुम्हें भूल तो नहीं पाऊंगी और जानती हूं कि तुम भी नहीं भूल पाओगे क्योंकि तुम से ज्यादा मैं तुम्हें जानती हूं. हम मिलतेमिलाते रहेंगे.

आशा है तुम मेरे निर्णय का सम्मान करोगे.’’ पत्र पढ़ कर सन्न रह गया,आंखों में अश्रुबिंदु छलछला गए. क्या जवाब दूं. सारे सवालजवाब तो उसी ने कर दिए. आभा के पास से वापस आने के बाद से मन और शरीर वैसे ही अधमरा था. अब पत्र पढ़ कर तो जैसे जान ही निकल गई. मन की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी. अक्ल ने भी जैसे काम करना बंद कर दिया. क्या करूं कुछ सूझ ही नहीं रहा था. नियति ने हमारे प्यार का क्या यही अंत रचा था? 2-4 गहरीगहरी सांसें ले अपने मन पर काबू किया और शांति से सोचसमझ कर आखिरी बार आभा से मिलने का निर्णय लिया. मन कहीं भटक रहा था. तन स्थिर था दोनों के बीच किसी तरह तालमेल बैठाने में लगा हुआ था.

आभा के पत्र को वापस लिफाफे में डाला, जाने की तैयारी करने के लिए जरूरी सामान निकाल कर पलंग पर रखा. विचारों की रेलमपेल के बीचोंबीच दरवाजे की कुंडी की खटखटाहट ने खलल डाल दिया. झंझलाते हुए मैं ने दरवाजा खोला. देखा तो सामने रामप्रकाश खड़ा था. मुझे इस हालत में देख वह सकते में आ गया. बिना कुछ कहेसुने धकियाते हुए मुझे कमरे में ले आया. कमरे में बिखरा सामान और मेरे चेहरे पर उड़ती हवाइयां देख उस ने मन ही मन अंदाजा लगा लिया कि हम दोनों के बीच कुछ तो हुआ है. सबकुछ देखने के बाद उस ने पूछा, ‘‘बता आभा और तेरे बीच सब ठीकठाक है न?’’ कोई उत्तर न दे कर मैं ने उस के हाथ में आभा का पत्र थमा दिया.

एक ही सांस में रामप्रकाश ने आभा का पत्र पढ़ लिया. पत्र पढ़ कर वापस लिफाफे में डाला. मेरी ओर मुखातिब हो बोला, ‘‘तुझ से एक ही बात पूछ रहा हूं सचसच बताना. अपना एक बच्चा होना चाहिए सिर्फ एक इसी कारण आभा की बात मान कर तू दूसरी लडकी से शादी करेगा. अरे पढ़ेलिखे बेवकूफ आदमी यह बता कि उस दूसरी लड़की से भी शादी के बाद बच्चा नहीं हुआ तो क्या करेगा? क्या मुझे नहीं देखा? मैं मां को सारी बातें समझ दूंगा.’’ रामप्रकाश की बातों ने मुझे अंदर तक हिला दिया, यह क्या अनर्थ करने जा रहा था मैं? बचपन के बिछड़े अब मिले वह भी कुदरत ने मौका दिया और मैं उसे गंवाने को तैयार हूं. नहीं ऐसा नहीं कर सकता मैं, राम ने सच ही कहा था कि मैं पढ़ालिखा बेवकूफ आदमी ही हूं. एक बच्चे के कारण 2 जिंदगियां बरबाद नहीं होने दूंगा. मेरा बड़बड़ाना चालू था. एकाएक राम ने मुझे झकझरते हुए पूछा, ‘‘क्या बड़बड़ा रहा है तू?’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं आभा की बात नहीं मानूंगा, उसे राजी कर उसी से शादी करूंगा. तू ने मेरी आंखों से परदा हटा दिया. चल मेरे साथ मैं मां को खुशखबरी दे दूं.’’ हम दोनों की कुछकुछ बातें मां के कानों में जा रही थीं.

चाय देने के बहाने वे कमरे में आईं. कमरे की हालत और मेरी उतरी सूरत देख ठिठक कर दरवाजे पर खड़ी की खड़ी रह गईं. रामप्रकाश ने आगे बढ़ कर मां के हाथ से चाय ले कर टेबल पर रखी और झक कर उन के पैर छुए. मां ने प्रश्नवाचक निगाहों से रामप्रकाश से पूछा, ‘‘बेटा राम सचसच बताना क्या हुआ है?’’ राम ने पलक झपकते ही सारी बात मां को बता दीं. मां ने मेरी ओर देखा और फिर कहने लगीं, ‘‘मुझे तो शुरू से सब समझ में आ गया था. तुम्हारा बारबार जानेआने और चेहरे के हावभाव से मैं अनजान नहीं थी बस इंतजार कर रही थी कि तुम मुझे कब बताओगे? ‘‘आभा मां नहीं बन सकती तो क्या हुआ उस ने अपना सच नहीं छिपाया इस बात से मैं बहुत खुश हूं. बेटे राम की ही भांति हम भी किसी बच्चे को गोद ले कर उसे एक अच्छी जिंदगी देंगे,’’ मैं ने मां के चरणों में प्रणाम किया.

मन इतना हलका हो गया था कि जैसे हवा में उड़ रहा हो. वह उड़तेउड़ते आभा से बातें करने लगा. आभा और मैं पार्क में बैठ कर बातचीत में मशगूल हो कर अपनी जिंदगी की पुस्तक के पन्नों को अपने ख्वाबों के सतरंगी रंगों से सजा कर रखने में लगे हुए थे. ऐसे समय मेरी आंखें अकसर बंद हो जाती थीं. तब आभा हंस कर कहती ज्यादा ख्वाब मत देखा करो. ख्वाबों में आंखें बंद रहती हैं और बंद आंखों से ठोकरें ही लगती हैं. मेरा एक ही जवाब होता कि तुम हो न और हौले से मुसकरा देता.

लेखक- आशा सक्सेना

Love Story

Hindi Fictional Story: डाक्टर की मेहरबानी- क्या गलती कर बैठी आशना?

Hindi Fictional Story: एकदिन गौतम अपनी मोटरसाइकिल से आशना को ले कर शहर से कुछ दूर स्थित एक पार्क में पहुंचा.  झील के किनारे एकांत में दोनों प्रेमी पैर पसारे बैठे थे. उन्हें लगा दूरदूर तक उन्हें देखने वाला कोई नहीं है.

तभी  झील के पानी में छपाक की धीमी सी आवाज हुई, तो आशना बोली, ‘‘लगता है किसी ने पानी में पत्थर फेंका है… कोई आसपास है और हमें देख रहा है.’’

‘‘अरे, ऐसा कुछ नहीं है. कभीकभी मछलियां ही पानी के ऊपर उछलती रहती हैं. यह उन्हीं की आवाज है,’’ गौतम बोला.

आशना के बालों से उठती भीनीभीनी मादक खुशबू से गौतम को बिन पीए ही अजीब सा नशा हो रहा था. उस ने पूछा, ‘‘तुम कौन से ब्रैंड का तेल लगाती हो?’’

आशना मुसकरा दी और फिर उस ने धीरेधीरे गौतम की जांघ पर अपना सिर रख दिया. गौतम उस के लंबे बालों को हाथों में ले कर

कभी सूंघता तो कभी सहलाता. मौसम भी खुशनुमा था. वह आशना के चेहरे पर देर से निगाहें टिकाए था.

आशना ने पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो?’’

‘‘तुम्हारे मृगनयनों को.’’

‘‘अब चलें? शाम हो चली है. अंधेरा होने से पहले घर पहुंचना होगा,’’ कह वह धीरेधीरे उठ खड़ी हुई और अपनी साड़ी की सलवटें ठीक करने लगी. आसमानी रंग की प्लेन साड़ी उस पर अच्छी लग रही थी. तभी हवा का एक झोंका आया और उस के आंचल ने उड़ कर गौतम के चेहरे को ढक लिया.

गौतम ने उस के पल्लू को पकड़ लिया तो वह बोली, ‘‘छोड़ दो आंचल.’’

‘‘मौसम है आशिकाना और आज प्यार करने को जी चाह रहा है.’’

‘‘छोड़ो, देर हो रही है.’’

‘‘चलो आज छोड़ देता हूं,’’ कह आशना की कमर के खुले हिस्से को अपनी बांह के घेरे में ले कर उसे कस कर अपनी ओर खींच लिया और फिर सट कर दोनों बाइक की तरफ चल पड़े.

गौतम और आशना की इन हरकतों को थोड़ी ही दूर बैठा एक दंपती देख रहा था. डाक्टर प्रेम लाल और डाक्टर शीला माथुर. उस पार्क से थोड़ी दूर उन का अस्पताल था. कभीकभी अस्पताल से छूटने पर अपना तनाव और थकान कम करने के लिए वे भी इसी झील के किनारे बैठते थे.

उन दोनों प्रेमियों के जाने पर शीला बोलीं, ‘‘मैं इस लड़के को जानती हूं. कुछ दिनों तक मैं उस के महल्ले में रही थी. एकदम आवारा लड़का है. अमीर बाप का बिगड़ा लड़का है. कालेज में एक ही क्लास में 3 साल से फेल होता आ रहा है और नईनई लड़कियों को फंसाता है. एक लड़की ने इस के दुष्कर्मों के चक्कर में पड़ कर आत्महत्या का भी प्रयास किया था.’’

डाक्टर प्रेम ने कहा, ‘‘छोड़ो, हमें क्या लेनादेना है इन लोगों से.’’

इस घटना के करीब 4-5 महीने बाद डाक्टर दंपती की नाइट ट्यूटी थी. अचानक एक औटोरिकशा से एक दंपती ने एक लड़की को सहारा दे कर उतारा. वे उस लड़की के साथ इमरजैंसी रूम में डाक्टर के पास गए. औरत बोली, ‘‘डाक्टर साहब, यह मेरी बेटी है. आज दोपहर से ही इस के पेट में बहुत दर्द हो रहा है और ब्लीडिंग भी हो रही है.’’

डाक्टर ने लड़की का ब्लड प्रैशर चैक किया और तुरंत फोन पर कहा, ‘‘डाक्टर शीला, आप तुरंत यहां आ जाएं. एक इमरजैंसी केस है.’’

2 मिनट के अंदर ही स्त्रीरोग विशेषज्ञा शीला वहां आ गईं. उन्होंने रोगी को बैड पर लिटा कर परदा लगा दिया. कुछ देर बाद वे बोलीं, ‘‘इसे तो बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो रही है. फौरन औपरेशन थिएटर में ले जाना होगा… मु झे लगता है औपरेशन करना होगा.’’

औपरेशन का नाम सुन कर उस लड़की के मातापिता घबरा उठे. पिता ने पूछा, ‘‘डाक्टर साहिबा, खतरे की कोई बात तो नहीं है?’’

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. आप लोग ओटी के बाहर इंतजार करें,’’ कह वे अपने पति डाक्टर प्रेम के साथ औपरेशन थिएटर में गईं.

थोड़ी देर बार एक नर्स ने बाहर आ कर पूछा, ‘‘इस लड़की के गार्जियन आप लोग हैं?’’

उस के पिता उठ कर बोले, ‘‘हां, मैं उस का पिता हूं.’’

नर्स ने एक पेपर देते हुए कहा, ‘‘आप जल्दी से इस पर साइन कर दें, लड़की का औपरेशन करना है, अभी तुरंत.’’

‘‘क्या बात है सिस्टर?’’

‘‘अभी बात करने का वक्त नहीं है. बाकी बातें औपरेशन के बाद डाक्टर से पूछ लेना. आप को डिस्चार्ज से पहले एक बोतल खून ब्लड बैंक में जमा कराना होगा. अभी हम अपने स्टौक से खून चढ़ा रहे हैं.’’

उस आदमी ने ब्लड बैंक में जा कर अपना खून जमा किया और वापस आ कर ओटी के बाहर बैंच पर बैठते हुए पत्नी से कहा, ‘‘पता नहीं बैठेबैठाए आशना बिटिया को अचानक क्या हो गया है?’’

औपरेशन टेबल पर डाक्टर ने आशना से पूछा, ‘‘क्या यह उसी लड़के के साथ का नतीजा है, जिस के साथ अकसर तुम लेक पार्क में जाती हो?’’

आशना ने रोते हुए कहा, ‘‘जी डाक्टर, पर मेरी एक गलती का अंजाम यह होगा, मैं नहीं जानती थी. आप मेरी जान बचाने की कोशिश न करें, मुझे मरने दें.’’

‘‘मैं तुम्हारी तरह बेवकूफ और गैरजिम्मेदार नहीं हूं… मैं अपनी ड्यूटी जानती हूं.’’

‘‘पर मैं इस कलंक के साथ जी कर क्या करूंगी? अगर मु झे बचा भी लेती हैं तो भी मैं सुसाइड करने वाली हूं… मेहरबानी कर मुझे मरने दें.’’

‘‘तुम घबराओ नहीं, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने दूंगी और तुम यहां से सहीसलामत घर जाओगी. आगे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना और अपने मातापिता की इज्जत का खयाल करना.’’

‘‘जी, डाक्टर.’’

‘‘बस, अब तुम पर ऐनेस्थीसिया का असर होगा और मैं औपरेशन करने जा रही हूं.’’

करीब 2 घंटे बाद डाक्टर शीला ओटी से बाहर आईं. उन्हें देखते ही आशना के मातापिता दौड़े आए. पूछा, ‘‘अब कैसी है हमारी बेटी?’’

‘‘आप बेटी को सही समय पर अस्पताल ले आए वरना और ज्यादा ब्लीडिंग होने से जान का खतरा था. आप की बेटी का औपरेशन सफल रहा और खतरे की कोई बात नहीं है.’’

‘‘पर उसे हुआ क्या है?’’ आशना के पिता ने पूछा.

‘‘आप मेरे साथ मेरे कैबिन में आएं.’’

दोनों मातापिता डाक्टर के कैबिन में गए, तो डाक्टर शीला ने पेशैंट के पिता से पूछा, ‘‘आप ने फाइल में बेटी की उम्र 17 साल लिखी है यानी वह नाबालिग है… माफ करना आशना गर्भवती थी?’’

‘‘पर यह कैसे संभव है?’’

‘‘यह तो आप की बेटी ही बता सकती है. उस का एक फर्टलाइज्ड एग गर्भाशय तक नहीं पहुंच सका और फैलोपियन ट्यूब में ही ठहर गया था. जब गर्भ बड़ा हो गया तो उस की नली फट गई और ब्लीडिंग होने लगी. उस नली को हम ने काट कर निकाल दिया है. अब चिंता की कोई बात नहीं है.’’

आशना के मातापिता ने आश्चर्य से डाक्टर की तरफ देखा और फिर शर्म से सिर  झुका लिया.

आशना को 1 सप्ताह बाद डिस्चार्ज होना था. डाक्टर शीला की सहायक ने पूछा, ‘‘डिस्चार्ज फाइल में क्या लिखें मैम? आप ने कहा था डिस्चार्ज फाइल तैयार करते समय आप से पूछने को?’’

‘‘पेशैंट को देने वाली डिस्चार्ज स्लिप पर तुम पूरा सच लिखना और हौस्पिटल की फाइल में लिखना दाहिनी साइड की फैलोपियन ट्यूब फट गई थी, जिसे औपरेशन कर निकाल दिया गया है. आगे एक नोट लिख देना कि डिटेल रिपोर्ट्स औफ सर्जरी गायनोकोलौजिस्ट की फाइल में है और यह डिटेल पेपर्स की फाइल मुझे दे देना, साथ ही यह बात बस हमारे बीच ही रहे. तुम भी एक औरत हो, समझ सकती हो.’’

शीला के पति डाक्टर प्रेम भी तब तक वहां आ गए थे. उन्होंने कहा, ‘‘शीला, यह तुम क्या कर रही हो? हौस्पिटल फाइल में ही औपरेशन नोट्स रहने दो. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, पेशैंट के प्रति हमदर्दी का यह मतलब नहीं है कि तुम अस्पताल के नियम तोड़ दो.’’

‘‘तरीके से तो आप सही कह रहे हैं, पर इस नाबालिग बच्ची की नाजायज प्रैगनैंसी की खबर और लोगों के बीच फैल सकती है जिस से लड़की की बदनामी होगी. इस के भविष्य पर भी प्रतिकूल असर हो सकता है. मैं डाक्टर के साथ एक औरत भी हूं और इस लड़की का दर्द समझ सकती हूं.’’

फिर वे आशना के पिता से बोलीं, ‘‘मुझे आप की फाइल में सच लिखना पड़ेगा. यह फाइल आप की है, आप चाहें तो इसे नष्ट करें या रखें. आप की बेटी के हित में जितना मुझसे हो सकता था, मैंने वही किया है.’’

मां ने पूछा, ‘‘आशना भविष्य में मां बन सकती है या नहीं?’’

‘‘हां, बन सकती है. उस की एक फैलोपियन ट्यूब बिलकुल सही सलामत है.’’

‘‘पर इसके औपरेशन का दाग तो पेट पर रह जाएगा? शादी के बाद कहीं पति को कोई शक की संभावना तो नहीं रहेगी?’’

‘‘मैं ने लैप्रोस्कोपिक विधि से औपरेशन किया है. बहुत ही छोटा सा चीरा लगाया है. उस के पेट पर कोई बड़ा निशान नहीं रहेगा. जो है वह भी जल्दी भर जाएगा. आशना की शादी में अभी काफी समय बाकी है. मैं ने उस से बात की है. वह अपनी भूल पर शर्मिंदा है और बता रही थी कि अब वह पढ़ाई पर सीरियस होगी और एमए करने के बाद ही शादी करेगी.’’

आशना जब डिस्चार्ज हो कर घर आई तो उस ने मां से कहा, ‘‘अब मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रही… जी कर क्या करूंगी?’’

‘‘खबरदार जो ऐसी बेवकूफी की बातें दिमाग में लाई. इसे एक हादसा समझ कर भूल जाओ. आगे किसी से इस की चर्चा भी नहीं करना. पति से भी नहीं. मन लगा कर पढ़ोलिखो. हम तुम्हारी शादी धूमधाम से करेंगे.’’

फिर मां ने अपने पति से कहा, ‘‘आप अब आशना से इस बारे में कुछ न कहेंगे. मैंने उस से बात की है. वह अपनी भूल पर बहुत शर्मिंदा है. वह अब पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएगी.

‘‘भला हो उस लेडी डाक्टर का जिस ने हमारी इज्जत बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.’’

इस घटना के 7 साल बाद आशना फिर डाक्टर शीला के अस्पताल में आई. इस बार वह शादीशुदा थी और अपने पति के साथ थी. वह गर्भवती थी और चैकअप के लिए आई थी. शीला ने उस के पति को बाहर इंतजार करने के लिए कहा और आशना को अंदर बुलाया.

डाक्टर शीला ने आशना से पूछा, ‘‘तुम्हारे पेट का दाग लगभग मिट गया है. अभी कौन सा महीना चल रहा है?’’

‘‘5वां महीना चल रहा है मैम.’’

चैक करने के बाद डाक्टर शीला बोलीं, ‘‘बच्चा एकदम ठीक है. बस अपने खानपान पर ध्यान देना और थोड़ा ऐक्टिव रहने की कोशिश करना. इस से नैचुरल प्रसव में आसानी होगी. कंप्लीट रैस्ट की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हारे पति बाहर बेचैन हो रहे हैं, तुम से बहुत प्यार करते हैं न?’’

‘‘जी मैम, मैं ने अपने पास्ट की बात उन्हें नहीं बताई है. मैं तो आत्महत्या करने की सोच रही थी, आप ने मुझे मरने से बचा लिया और मेरा भविष्य भी संवार दिया. आप के आभार के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं,’’ और उस की आंखें भर आईं.

‘‘यह गुड न्यूज जल्दी से अपने पति को दो,’’ डाक्टर शीला बोलीं.

आशना कैबिन से बाहर निकली तो उस की आंखें अभी तक गली थीं. उस के पति ने पूछा  ‘‘क्या बात है आशना, सब ठीक है न? तुम्हारी आंखें गीली क्यों हैं?’’

‘‘ये खुशी के आंसू हैं… जच्चाबच्चा दोनों ठीक हैं. मिठाई खिलाना न भूलना आशना,’’ डाक्टर शीला ने कहा.

आशना और उस के पति दोनों ने हंस कर डाक्टर को थैंक्स कहा.

Hindi Fictional Story

Family Love Story: माय डैडी बेस्ट कुक

Family Love Story: “सुनो! पेपर सोप और सैनीटाईजर पर्स में रख लिया है ना… और मास्क मत उतारना… दूरी बनाकर ही अपना काम करना है और हाथ बार-बार धोती रहना…” दो दिन के लिए टूर पर जाती विजया को पति कैलाश बस में बिठाने तक हिदायतें दे रहा था.

“हाँ बाबा! सब याद रखूँगी… और तुम भी अपना और निक्कू का खयाल रखना… संतरा को टाइम पर आने को कह देना ताकि आप दोनों को खाने-पीने की परेशानी ना हो…” विजया ने भी अपनी हिदायतों का पिटारा खोल दिया. बस चल दी तो कैलाश हाथ हिलाकर विदा करता हुआ पार्किंग की तरफ बढ़ गया.

“स्कूल बंद होने के कारण बच्चों को घर में संभाले रखना कितना मुश्किल होता है… लेकिन कोई बात नहीं… दो दिन की ही तो बात है… संभाल लूँगा… फिर संतरा तो है ही…” मन ही मन सोचता… योजना बनाता… कैलाश घर की तरफ बढ़े जा रहा था. घर आकर देखा तो संतरा अपना काम निपटा रही थी.

“संतरा ना हो तो हम बाप-बेटे को दूध-ब्रेड से ही काम चलाना पड़े.” सोचते हुये कैलाश ने भी अपना टिफिन पैक करवाया और निक्कू को संतरा के पास छोडकर ऑफिस के लिए निकल गया.

“पापा! कार्टून चलाने दो ना.” रात को निक्कू ने कैलाश के हाथ से रिमोट लेने की जिद की.

“अभी ठहरो. आठ बजे हमारे प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं, उसके बाद.” कैलाश ने रिमोट वापस अपने कब्जे में कर लिया. मन मसोस कर निक्कू भी वहीं बैठकर भाषण समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा.

“आज रात बारह बजे से पूरे देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन किया जाएगा. समस्त देशवासियों से विनती है कि जो जहां है, वो वहीं रहकर इसमें सहयोग करे.” प्रधानमंत्री का उद्बोधन सुनते ही कैलाश के माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आई. उसने तुरंत विजया को फोन लगाया.

“सुना तुमने! आज रात से पूरे देश में लॉकडाउन होने जा रहा है.” कैलाश के स्वर में चिंता थी.

“हाँ सुना! लेकिन तुम फिक्र मत करो. हमारा विभाग आवश्यक सेवाओं में शामिल है इसलिए ऑफिस बंद नहीं होगा.” विजया ने पति को आश्वस्त करने की कोशिश की.

“वो सब तो ठीक है लेकिन लॉकडाउन में तुम वापस कैसे आओगी?” कैलाश ने उत्तेजित होते हुये कहा.

“देखते हैं. कुछ न कुछ उपाय तो करना ही पड़ेगा. तुम फिक्र मत करो. बस! अपना और निक्कू का खयाल रखना. गुड नाइट.” कहते हुये विजया ने फोन काट दिया लेकिन कैलाश की चिंता दूर नहीं हुई. पूरी रात करवट बदलते-बदलते बीती. सुबह फोन की घंटी से आँख खुली. देखा तो संतरा का फोन था.

“साहब! हमारे मोहल्ले में एक आदमी कोरोना का मरीज निकला है. आसपास कर्फ़्यू लगा दिया गया है. मैं नहीं आ सकूँगी.” संतरा की बात सुनते ही कैलाश की नींद उड़ गई. वह फौरन बिस्तर से बाहर आया और निक्कू के कमरे में गया. निक्कू अभी तक सो रहा था. उसके चेहरे पर मासूमियत बिखरी थी. कैलाश को उस पर प्यार उमड़ आया.

“कितना बेपरवाह होता है बचपन भी.” कैलाश ने निक्कू के बालों में हाथ फिरा दिया. निक्कू ने आँखें खोली.

“दूध कहाँ है?” निक्कू ने कहा तो कैलाश को याद आया कि निक्कू दूध पीने के बाद ही फ्रेश होने जाता है. वह रसोई की तरफ लपका. दूध गर्म करके उसमें चॉकलेट पाउडर मिलाया और निक्कू को दिया. पहला घूंट भरते ही निक्कू ने मुँह बिचका दिया.

“आज इसका टेस्ट अजीब सा हैं. मुझे नहीं पीना.” निक्कू ने गिलास उसे वापस थमा दिया. कैलाश ने रसोई में रखे दूध को सूंघा तो उसमें से खट्टी-खट्टी गंध आ रही थी.

“उफ़्फ़! रात में दूध को फ्रिज में रखना भूल गया. विजेता ही ये सब काम निपटाती है इसलिए दिमाग में ही नहीं आया.” सोचते हुये कैलाश कुछ परेशान सा हो गया और दूध की व्यवस्था के बारे में सोचने लगा.

भाषण में कहा गया था कि आवश्यक दुकानें खुली रहेंगी. याद आते ही  कैलाश ने तुरंत गाड़ी निकाली और दूध पार्लर से दूध के पैकेट लेकर आया. घर पहुँचते ही मेल चेक किया तो पता चला कि आज से आधे कर्मचारी ही ऑफिस आएंगे. उसे आज नहीं कल ऑफिस जाना है. उसने राहत की सांस ली और दूध गर्म करने लगा. इस बीच मोबाइल पर अपडेट्स देखना भी चालू था. सर्रर्रर्र… से दूध उबल कर स्लैब पर बिखर गया तो कैलाश ने अपना माथा पीट लिया. मोबाइल एक तरफ रखकर वह रसोई साफ करने लगा.

“घर संभालना किसी मोर्चे से कम नहीं.” अचानक ही उसका मन विजया और संतरा के प्रति आदर से भर उठा.

“पापा! आज नाश्ते में क्या है?” निक्कू रसोई के दरवाजे पर खड़ा था.

“अभी तो ब्रेड-जैम से काम चला ले बेटा. लंच में बढ़िया खाना खिलाऊंगा.” कैलाश ने उसे किसी तरह राजी किया और ब्रेड पर जैम लगाकर निक्कू को नाश्ता दिया. दो-तीन ब्रेड खुद भी खाकर वह अपना लैपटाप लेकर बैठ गया और ऑफिस के काम को अपडेट करने लगा.

“पापा! खाने में क्या बनाओगे? आपको आता तो है ना बनाना?” निक्कू ने पूछा तो कैलाश सचमुच सोच में पड़ गया. उसे तो कुछ बनाना आता ही नहीं. बेचारी विजेता कितना चाहती थी कि कभीकभार वह भी रसोई में उसकी मदद करे लेकिन उसने तो अपने हिस्से का काम संतरा के सिर डालकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी.

कैलाश रसोई में घुसा. आटे का डिब्बा निकालकर परात में आटा साना और उसे गूंधने की कोशिश करने लगा. कभी आटे में पानी ज्यादा तो कभी पानी में आटा ज्यादा… किसी तरह पार पाई तो देखा कि इतना आटा तो वे दोनों पूरे सप्ताह भी खत्म नहीं कर सकेंगे.

“चलो ठीक ही है, रोज-रोज की एक्सर्साइज़ से मुक्ति मिली.” सोचते हुये कैलाश ने सिंक में अपने हाथ धोये और फ्रिज में से सब्जी निकालने लगा. लौकी… करेला… टिंडे… नाम सुनते ही निक्कू मना में सिर हिला रहा था. कैलाश भी खुश था क्योंकि उसे ये सब बनाना भी कहाँ आता था. किसी तरह आलू पर आकार बात टिकी तो कैलाश ने भी राहत की सांस ली.

धो-काटकर आलू कूकर में डाले. मसाले और थोड़ा पानी डालकर कूकर बंद कर दिया. सीटी पर सीटी बज रही थी लेकिन कैलाश को कुछ भी अंदाज नहीं था कि गैस कब बंद की जाये. थोड़ी देर में कूकर में से जलने की गंध आने लगी तो कैलाश ने भागकर गैस बंद कि. ठंडा होने पर जब कूकर खुला तो माथा पीटने के अलावा कुछ भी शेष नहीं था. सब्जी तो जली ही, कूकर भी साफ करने लायक नहीं बचा था. निक्कू का मुँह फूला सो अलग.

किसी तरह दो मिनट नूडल बना-खाकर भूख मिटाई गई लेकिन कैलाश ने ठान लिया था कि आज रात वह निक्कू को शाही डिनर जरूर करवाएगा.

शाम को जब विजया का फोन आया तो कैलाश ने झेंपते हुये दिन की घटना का जिक्र किया. सुनकर वह भी हँसे बिना नहीं रह सकी.

“अच्छा सुनो! उस खट्टी गंध वाले दूध का क्या करूँ?” कैलाश ने पूछा.

“एकदम सही समय पर याद दिलाया. तुम उसे गर्म करके उसमें एक नीबू निचोड़ दो. पनीर बन जाए तो उसके पराँठे सेक लेना.” विजेता ने आइडिया दिया तो कैलाश भी खुश हो गया. उसने विडियो कॉल पर विजेता की निगरानी में पनीर बनाया और उसे एक कपड़े में बांधकर कुछ देर के लिए लटका दिया. दो घंटे बाद जब पनीर का सारा पानी निकल गया तो विजया की मदद से उसने पनीर का भरावन भी तैयार कर लिया. अब शाम को कैलाश पूरी तरह से बेटे को शाही डिनर खिलाने के लिए तैयार था.

आटा तो दोपहर से गूँथा हुआ ही था, कैलाश ने खूब सारा भरावन भर के परांठा बेला और निक्कू की तरफ गर्व से देखते हुये उसे तवे पर पटक दिया.

“पापा! करारा सा बनाना.” निक्कू भी बहुत उत्साहित था. तभी कैलाश का फोन बजा और वह कॉल लेने चला गया. नेटवर्क कमजोर होने के कारण कैलाश फोन लेकर बालकनी में आ गया. बात खत्म करके जब वह रसोई में आया तो तवे से उठते धुएँ को देखकर घबरा गया. उसने भागकर पराँठे को पलटा लेकिन तवा बहुत गर्म था और जल्दबाज़ी में उसे चिमटा कहाँ याद आता। नतीजन! पराँठे को छूते ही उसका हाथ जल गया और हड़बड़ाहट में पनीर के भरावन वाला प्याला स्लैब से नीचे गिर गया.

“गई भैंस पानी में!” कैलाश ने सिर धुन लिया. निक्कू का मूड तो खराब होना ही था.

“पापा प्लीज! आपसे नहीं होगा. मम्मी को बुला लीजिये.” निक्कू रोने लगा. वह अब कैलाश के हाथ का बना कुछ भी अंटशंट नहीं खाना चाहता था. निक्कू को खुश करने के लिए कैलाश ने ऑनलाइन खाने की तलाश की लेकिन उसे नाउम्मीदी ही हाथ लगी.

तभी उसे याद आया कि ऐसी ही कई परिस्थितियों में विजया झटपट मटरपुलाव बना लिया करती है. निक्कू भी शौक से खा लेता है. कैलाश ने फटाफट चावल धोये और थोड़े से मटर छील लिये. गैस पर कूकर भी चढ़ा दिया लेकिन फिर वही समस्या… कूकर में पानी कितना डाले और कितनी देर पकाये…

तुरंत हाथ फोन की तरफ बढ़े और विजया का नंबर डायल हुआ लेकिन कैलाश ने तुरंत फोन काट दिया. वह बार-बार अपने अनाड़ीपन का प्रदर्शन कर उसे परेशान नहीं करना चाहता था. घड़ी की तरफ देखा तो अभी नौ ही बजे थे. उसने संतरा को फोन लगाया.

“अरे साब! पुलाव बनाना कौन बड़ा काम है. पहले घी डालकर लोंग-इलाइची तड़का लो फिर चावल और जितना चावल लिया, ठीक उससे दुगुना पानी डालो… मसाले डालकर दो सीटी कूकर में लगाओ और पुलाव तैयार…” संतरा ने हँसते हुये बताया तो कैलाश को आश्चर्य हुआ.

“ये औरतें भी ना! कमाल होती हैं… कैसे उँगलियों पर हिसाब रखती हैं.” कैलाश ने सोचा. लेकिन तभी उसे कुछ और याद आ गया.

“और मसाले? उनका क्या हिसाब है?” कैलाश ने तपाक से पूछा.

“मसलों का कोई हिसाब नहीं होता साब. आपका अपना स्वाद ही उनका हिसाब है. पहले अपने अंदाज से जरा कम मसाले डालिए, फिर चम्मच में थोड़ा सा लेकर चख लीजिये… कम-बेसी हो तो और डाल लीजिये.” संतरा ने उसी सहजता से बताया तो कैलाश को पुलाव बनाना बहुत आसान लगने लगा.

और हुआ भी यही. यह डिश उसकी उम्मीद से कहीं बेहतर बनी थी. खाने के बाद निक्कू के चेहरे पर आई मुस्कान देखकर कैलाश का आत्मविश्वास लौटने लगा.

अगले दिन कैलाश को ऑफिस जाना था. पूरा दिन निक्कू अकेला घर पर रहेगा यह सोचकर ही वह परेशान हो गया. उसने रात को सोने से पहले ही निक्कू को आवश्यक हिदायतें देकर उसे सावधानी से घर पर रहने के लिए समझा दिया था.

आज कैलाश अपने हर काम में अतिरिक्त सावधानी बरत रहा था. दूध गर्म करके निक्कू को उठाना… फिर वेज सैंडविच का नाश्ता और लंच के लिए आलू का परांठा… ये सब करने में उसने यू ट्यूब की पूरी-पूरी मदद ली. विजया जैसा उँगलियाँ चाटने वाला तो नहीं लेकिन हाँ! काम चलाऊ खाना बन गया था.

शाम को घर वापस आते हुये जब उसने एक परचून की दुकान खुली देखी तो गाड़ी रोक ली. मुँह पर मास्क लगाकर वह भीतर गया और एक पैकेट मैदा और आधा किलो छोले खरीद लिए. साथ ही इमली का छोटा पैकेट भी. कई बार विजया ने उससे ये सामान मंगवाया है जब वो छोले-भटूरे बनाती है.

“निक्कू को बहुत पसंद हैं. कल सुबह मुझे ऑफिस नहीं जाना है. निक्कू को सरप्राइज दूँगा. शाम तक विजया आ ही जाएगी.” मन ही मन खुश होता हुआ अपनी प्लानिंग समझाने और छोले-भटूरे बनाने की विधि पूछने के लिए उसने विजया को फोन लगाया.

“सॉरी कैलाश! हमें अभी वापस आने की परमिशन नहीं मिली. लगता है तुम्हें कुछ दिन और अकेले संभालना पड़ेगा.” विजया के फोन ने उसे निराश कर दिया. आँखों के सामने तवा… कड़ाही… भगोना… चकला और बेलन नाचने लगे. मन खराब हो गया लेकिन घर पहुँचते ही जिस तरह निक्कू उससे लिपटा, वह सारा अवसाद भूल गया.

“पापा! आज हम दोनों मिलकर खाना बनाएँगे. आप रोटी बनाना और मैं डिब्बे में से अचार निकालूँगा…” निक्कू ने हँस कर कहा तो उसे फिर से जोश आ गया.

“लेकिन मैं गोल रोटी नहीं बना सकता…” कैलाश ने मुँह बनाया.

“कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएगी.” निक्कू खिलखिलाया तो कैलाश दुगुने जोश से भर गया. रात को दोनों ने आम के मीठे अचार के साथ पराँठे खाये. पराँठों की शक्ल पर ना जाया जाए तो स्वाद इतना बुरा भी नहीं था.

कैलाश ने रात को छोले भिगो दिये. सुबह दही डालकर भटूरे के लिए मैदा भी गूँध लिया. थोड़ा ठीला रह गया था लेकिन चल जाएगा. प्याज-टमाटर काटकर रख लिए. इमली को छानकर उसका गूदा अलग कर लिया. ये सारी तैयारी उसने निक्कू के जागने से पहले ही कर ली.अब छोले बनाने की रेसिपी देखने के लिये उसने यू ट्यूब खोला.

“छोला रेसिपी” टाइप करते ही बहुत सी लिंक स्क्रीन पर दिखाई देने लगी. सभी में सबसे पहला निर्देश था- “सबसे पहले नमक-हल्दी डालकर छोले उबाल लें.” यही तो सबसे बड़ी समस्या थी कि छोले कैसे उबालें… कितना पानी डाले… कितनी देर पकाये… कूकर को कितनी सीटी लगाए…

उसने विजया की अलमारी में से कुछ पत्रिकाएँ निकाली जिन्हें वह रेसिपी के लिये संभाल कर रखती है. उन्हीं में से एक में उसे छोले-भटूरे बनाने की रेसिपी मिल गई. कैलाश खुश हो गया लेकिन पहला वाक्य पढ़ते ही फिर से माथा ठनक गया. लिखा था- “सबसे पहले छोले उबाल लें.” यानी समस्या तो अब भी जस की तस थी.

“विजया को फोन लगाए बिना नहीं बैठेगा.” सोचकर उसने विजया को फोन लगाया.

“बहुत आसान है कैलाश! छोलों में दो उंगल ऊपर तक पानी डालो. फिर नमक-हल्दी डालकर दो चम्मच घी भी डाल देना. अब कूकर में प्रेशर आने दो. एक सीटी आते ही गैस को सिम कर देना. आधा घंटा पकने देना. छोले उबल जाएंगे.” विजया ने जिस सहजता से बताया उसे सुनकर कैलाश को लगा कि छोले बनाना सचमुच बहुत आसान है.

छोले उबल चुके थे. बाकी का काम रेसिपी बुक और यू ट्यूब की मदद से हो जाएगा. कैलाश ने गैस पर कड़ाही चढ़ा दी. एक तरफ रेसिपी बुक खुली थी, दूसरी तरफ यू ट्यूब पर विडियो चल रहा था. कैलाश उन्हें देख-पढ़कर पूरी तन्मयता से छोले बनाने में जुट गया.

तेल गरम होने पर पहले प्याज, लहसुन और अदरक का पेस्ट डाला फिर सब्जी वाले मसाले डालकर उन्हें अच्छी तरह से पकाया. उबले हुये छोले कड़ाही में डालते समय कैलाश के चेहरे पर मुस्कान तैर गई. पिछले घंटे भर की सारी घटनाएँ आँखों के सामने घूम गई.

इमली का गूदा डालकर जब कैलाश ने चम्मच में लेकर छोले चखे तो उसे यकीन ही नहीं हुआ कि वह भी इतने स्वादिष्ट छोले बना सकता है.

अब बारी थी भटूरे बनाने की. कैलाश ने रेस्टोरेंट जैसे बड़े-बड़े भटूरे बेलने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली. तभी उसे निक्कू की बात याद आ गई- “रोटी गोल नहीं बनी… कोई बात नहीं. पेट में जाकर गोल हो जाएंगी.” कैलाश मुस्कुरा दिया.

“बड़े भटूरे जरूरी तो नहीं… छोटों में भी वही स्वाद आएगा.” कैलाश ने एक छोटा सा भटूरा बेला और सावधानी से गर्म तेल में छोड़ दिया. कचोरी की तरह फूलकर भटूरा कड़ाही में नाचने लगा और इसके साथ ही कैलाश भी.

“तो आज हमारे निक्कू राजा के लिए एक खास सरप्राइज़ है.” कैलाश ने उसे दूध का गिलास थमा कर उठाया.

“क्या?” निक्कू ने पूछा.

“छोले-भटूरे.”

“तो क्या मम्मी आ गई?” निक्कू खुश हो गया.

“नहीं रे! पापा की  तरफ से है.” निक्कू बुझ गया. कैलाश मुस्कुरा दिया.

“निक्कू! सरप्राइज़ तैयार है.” कैलाश प्लेट में छोले-भटूरे लेकर खड़ा था. निक्कू को यकीन नहीं हो रहा था. वह खुशी के मारे उछल पड़ा. पहला कौर मुँह में डालने ही वाला था कि कैलाश बोला- “आहा! गर्म है… जरा आराम से.”

निक्कू खाता जा रहा था… उसकी आँखें फैलती जा रही थी… चेहरे पर संतुष्टि के भाव लगातार बढ़ते जा रहे थे और इसके साथ ही कैलाश के चेहरे की मुस्कान भी. उसने विजया को विडियो पर कॉल लगाई और उसे यह दृश्य दिखाया. वह भी हँस दी.

“पापा! आप एक अच्छे कुक बन सकते हो.” निक्कू ने अपनी उंगली और अंगूठे को आपस में मिलाकर “लाजवाब” का इशारा किया तो विडियो पर ऑनलाइन विजया ने तालियाँ बजकर बेटे की बात का समर्थन किया.

“तुम आराम से आना… हमारी फिक्र मत करना… हम मैनेज कर लेंगे…” कैलाश ने विजया से कहा. उसे आज परीक्षा में पास होने जैसी खुशी हो रही थी.

“माय डैडी इज द बेस्ट कुक.” निक्कू ने एक निवाला कैलाश के मुँह में डालकर कहा. स्वाद सचमुच लाजवाब था. कैलाश ने विजया की तरफ देखकर अपनी कॉलर ऊंची की और बाय करते हुये फोन काट दिया.

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