Romantic Story: ‘‘अभी औफिस से घर पहुंची ही थी आरोही कि सुमित्रा उस की मां उस के सामने आ कर खड़ी हो गईं. ‘‘आज इतनी देर क्यों लगा दी आने में?’’
‘‘बताया तो था कि मीटिंग है आज, लेट आऊंगी,’’ सोफे पर पसरते हुए आरोही बोली, ‘‘प्लीज मां, 1 कप चाय पिला दो, सिर दर्द से फटा जा रहा है. उफ, दिल्ली का पौल्यूशन तो लोगों की जान ले कर रहेगा. ऊपर से यह सड़ी हुई गरमी और दिल्ली का ट्रैफिक तो पूछो ही मत. ऐसे में सिरदर्द नहीं होगा तो और क्या होगा,’’ अपने सिर पर बाम लगाती हुई आरोही भुनभुनाई.
तभी सुमित्रा चाय ले कर आ गई.
‘‘ओह, थैंक्यू मां,’’ गरमगरम अदरक वाली चाय पी कर आरोही को थोड़ा अच्छा लगा.
‘‘कई बार फोन किया तुझे. कम से कम फोन तो उठा सकती थी?’’
सुमित्रा आरोही की बगल में बैठती हुई शिकायती लहजे में बोलीं.
‘‘फोन की आवाज सुनाई नहीं पड़ी होगी शायद,’’ चाय का घूंट भरते हुए आरोही बोली, ‘‘वरना जरूर उठाती. वैसे भी औफिस आवर में मैं अपने फोन की आवाज कम ही रखती हूं. कोई जरूरी काम था क्या?’’
‘‘हां, तभी तो फोन कर रही थी. अच्छा यह देख 2-3 लड़कों के फोटो भेजे हैं तुम्हारी इंदौर वाली मौसी ने. बायोडाटा भी भेजा है. देख कर बता, कैसा लगा. तीनों लड़के अच्छीअच्छी पोस्ट पर हैं. लाखों में सैलरी है इन की और घर से भी मजबूत.’’
‘‘मां,’’ सुमित्रा आगे कुछ और कहतीं उस से पहले ही आरोही बोल पड़ी, ‘‘मां, आप को कितनी बार समझऊं कि मुझे अभी शादी नहीं करनी. एक तो वैसे ही मेरा सिर दुख रहा है ऊपर से आप… जब करनी होगी बता दूंगी न,’’ बोल कर आरोही अपने कमरे की तरफ बढ़ गई तो सुमित्रा भी उस के पीछेपीछे कमरे में पहुंच गईं और कहने लगीं, ‘‘शादी नहीं करनी तो क्या उम्रभर कुंआरी ही बैठी रहेगी? शादी की भी एक उम्र होती है बेटा. समय से शादी और बच्चे हो जाएं तो अच्छा है न.’’
‘‘बच्चे. अब ये बच्चे कहां से आ गए?’’ आरोही ने अपना माथा ही पीट लिया, ‘‘मां, अभी आप जाओ यहां से प्लीज, सुबह बात करती हूं. गुड नाइट.’’
‘‘अरे पर सुन तो… समय से बच्चे होना भी तो जरूरी है. डाक्टर क्या कहते हैं कि 30 के पहले बच्चे कर लेने चाहिए. इस साल पूरे 27 की हो जाएगी तू. उम्र निकलते देर नहीं लगाती है बेटा. फिर अच्छा लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा, समझ मेरी बात.’’
‘‘समझ गई मैं, अब जाओ यहां से,’’ बोल कर आरोही ने अपने कमरे का दरवाजा लगा लिया. कल संडे है तो वह देर तक आराम से सोना चाहती है. किसी की कोई डिस्टरबैंस नहीं चाहिए उसे. इसलिए अपना फोन भी स्विच्डऔफ कर बेफिक्र हो कर सो गई.
आरोही अपनी मां और छोटे भाई अक्षत के साथ दिल्ली में रहती है और उस के पिता महावीर प्रसाद गुजरात पुलिस में हैं. 7-8 महीने पर घर आते हैं, फिर कुछ दिन रह कर वापस चले जाते हैं. आरोही दिल्ली की ही एक कंपनी में जौब करती हैं. आरोही बचपन से ही पढ़ने में तेज रही है. इंजीनियरिंग के बाद उस की दिल्ली की ही एक बड़ी कंपनी में जौब लग गई.
आरोही का सपना था कि जब उस की जौब लगेगी, तब वह अपने सारे सपने पूरे करेगी. खूब घूमेगीफिरेगी, ऐश करेगी. मन चाहे कपड़े पहनेगी. मगर जौब लगते ही उस की मां उस की शादी के लिए पीछे पड़ गईं. बेटी पराया धन होती है. मांबाप आखिर कब तक बेटी को अपने घर में बैठाए रख सकते हैं, परिवार, समाज क्या कहेगा जैसी फिलौस्फी भरी बातें कहना शुरू कर देती थीं जिस से आरोही और इरीटेट हो उठती थी.
लड़की चाहे कितनी ही पढ़लिख क्यों न जाए और क्यों न लड़कों के बराबर सैलरी उठाती हो, लेकिन इस के बावजूद मांबाप को अपनी बेटी कम ही लगती है. कहीं अच्छे लड़के हाथ से निकल न जाएं, इस के लिए वे लड़के वालों की सारी शर्तें भी मानने को तैयार हो जाते हैं. बेटी की शादी की चिंता उन्हें ऐसे खाए जाती है जैसे लगता है दुनिया में अच्छे लड़के बचे ही नहीं हैं अब और अगर उन की बेटी की शादी नहीं हुई तो कितना बड़ा अनर्थ हो जाएगा.
तभी तो सुमित्रा ने एक लड़के वालों की यह शर्त भी मान ली थी कि अगर वे लोग नहीं चाहते कि शादी के बाद आरोही नौकरी करे तो वह नहीं करेगी. मगर यह बात सुनते ही आरोही तिलमिला उठी थी और पलटवार करते हुए उस ने भी बोल दिया कि अगर वह कहेगी कि शादी के बाद लड़का अपनी जौब छोड़ दे तो क्या वह अपनी जौब छोड़ देगा? आखिर क्यों परिवार की जिम्मेदारी के चलते वह अपनी खुशियों का गला घोंट दे? आखिर क्यों एक लड़की से ही यह उम्मीद की जाती है कि शादी के बाद वह लड़का और उस के परिवार के हिसाब से चले?
आरोही की बात पर लड़का और उस के परिवार वाले तिलमिला उठे थे और बोले थे कि ऐसी बदतमीज और मुंहफट लड़की से वे कभी अपने बेटे की शादी नहीं करेंगे.
‘‘हां, तो मत करिए,’’ आरोही ने भी तन कर जवाब दिया था.
‘‘शादी के बाद आप का बेटा नौकरी नहीं छोड़ सकता और मैं छोड़ दूं, क्यों छोड़ दूं क्या मैं ने दिनरात एक कर के पढ़ाई नहीं की? जौब पाने के लिए मैं ने जद्दोजहद नहीं की? क्या मेरे पेरैंट्स ने मुझ पर पैसे खर्च नहीं किए पढ़ाने के लिए? मगर सब से आप लोगों को क्या मतलब. आप लोगों को तो बस एक पढ़ीलिखी बाई चाहिए अपने बेटे के लिए जो उस का ध्यान रख सके, उस के लिए खाना पकाए, उस के कपड़े धोए, उस की छोटीछोटी जरूरतों का ध्यान रखे और हां, मोटा दहेज भी ले कर आए नहीं तो आप लोग मुझे जला कर मार भी सकते हैं. सही कह रही हूं न मैं?’’
‘‘नहीं मम्मी, आप मुझे आंखें मत दिखाओ क्योंकि मैं जो कह रही हूं सही ही कह रही हूं,’’ सुमित्रा की तरफ देखते आरोही बोली, ‘‘मैं शादी करूंगी तो अपनी शर्तों पर वरना नहीं.’’
आरोही की बात सुन कर लड़के वाले पैर पटकते हुए वहां से चले गए और सुमित्रा वहीं धम्म से सोफे पर बैठ कर सिसकने लगी. लेकिन आरोही कुछ न बोल कर सीधे अपने कमरे में चली गई. समझ नहीं आ रहा था उसे की कि क्यों उस की नुमाइश बनाई जा रही है लड़के वालों के सामने. आखिर किस बात में कम है वह लड़के से? हाई क्लास जौब है, देखने में सुंदर, फिर क्यों उस की मां जब देखो, शादी कर लो, अच्छे लड़के नहीं मिलेंगे फिर की रट लगाए रहती हैं?
सुमित्रा के मुंह से रोजरोज वही शादी की बातें सुन कर अब आरोही बोर होने लगी थी. मन तो कर रहा था उस का कि कहीं दूसरे शहर चली जाए रहने क्योंकि जब देखो, कभी बूआ, तो कभी मौसी, चाची उसे ज्ञान देने पहुंच जातीं कि बेटा, तुम्हारी मां सही कह रही हैं. कर लो न शादी. अरे, शादी कोई हलुवा है, जो बनाया और खा लिया? किसी को अच्छे से जानेपरखे बिना कैसे शादी कर सकती है वह?
किसी तरह करवटें बदलते हुए आरोही को देर रात नींद आई. सुबह संडे था, इसलिए करीब 2 बजे सो कर उठी. एक संडे ही मिलता है जब वह अच्छे से सो पाती है और यह बात सुमित्रा भी जानती हैं, इसलिए उसे परेशान नहीं करतीं, सोने देती हैं.
सो कर उठने के बाद आरोही फ्रैश हो खाना खा कर सीधे अपने कमरे में आ गई और लैपटौप ले कर बैठ गई ताकि सुमित्रा फिर शादी की बात ले कर न बैठ जाए उस के सामने. शाम को थोड़ी देर के लिए वह अपनी सहेली सांची के घर चली गई. कुछ देर उस के साथ बिता कर वापस घर आई तो सुमित्रा फिर शुरू हो गईं. मांबेटी में उसी बात को ले कर झगड़ा भी हो गया और इस कारण आरोही ठीक से सो भी नहीं पाई.
इधर सुबह जब अन्वय उठा तो देखा रात के डेड़ बजे उस के फोन पर आरोही का फोन आया था लेकिन वह उठा नहीं पाया था. ‘आरोही का फोन. लेकिन इतनी रात को उस ने मुझे क्यों फोन किया, ठीक तो होगी वह?’ अन्वय के मन में नैगेटिव विचार उभर आए. ‘‘हैलो, आरू, फोन किया था तुम ने मुझे. कोई बात है क्या?’’
‘‘फोन. ओह, शायद गलती से लग गया होगा. अच्छा, सुनो, मैं जरा लेट से औफिस के लिए निकलूंगी. तुम चले जाना,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया.
इधर अन्वय सोच में पड़ गया कि आरोही कुछ अजीब ही विहेव नहीं कर रही है. वैसे आधी रात को उस ने अन्वय को फोन लगाया तो था, पर पता नहीं झठ क्यों बोल गई कि गलती से लग गया होगा. अन्वय ने वापस आरोही को फोन किया.
‘‘हां, बोलो अन्वय. हांहां, मैं चली जाऊंगी तुम चिंता मत करो.’’
‘‘तबीयत तो ठीक हैं तुम्हारी? सच बोलो?’’
अन्वय को चिंता करते देख उसे अच्छा लगा, ‘‘हां, वह जरा फीवर जैसा लग रहा है.’’
‘‘ऐसे कैसे अचानक फीवर हो गया? कल तक तो ठीक थी. अच्छा, मैं आता हूं.’’
‘‘अरे, नहीं मैं अब ठीक…’’ वह कहती रही पर अन्वय ने फोन काट दिया और कुछ ही देर में वह दवा के साथ आरोही के सामने खड़ा था.
‘‘ओह, तुम भी न. मैं ने दवा ले ली थी. बेकार में परेशान होने की जरूरत नहीं थी.’’
‘‘क्यों जरूरत नहीं थी? एक काम करो, आज छुट्टी ले लो. आराम करो.’’
मगर आरोही कहने लगी कि वह छुट्टी नहीं ले सकती. जाना पड़ेगा.
‘‘ठीक है तो तुम तैयार हो जाओ. मैं तब तक हाल मैं बैठता हूं.’’
औफिस जाते समय रस्ते भर आरोही यही सोचती रही कि क्या करे.
कैसे बताए मांपापा को कि वह किसी और से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है.
रोज की तरह औफिस से निकल कर दोनों अपने फैवरिट ‘यूनाइटेड कौफी हाउस’ में आ कर बैठ गए. अन्वय का औफिस आरोही के औफिस से हो कर गुजरता है इसलिए वह उसे वहां ड्रौप कर अपने औफिस चला जाता है.
दोनों रोज साथ ही औफिस आतेजाते हैं. अन्वय ने बैरा को इशारे से 2 कप कौफी लाने को कहा और आरोही की तरफ देखते हुए बोला, कुछ खाओगी, मंगाएं?
‘‘नहीं, बस कौफी,’’ केवल इतना ही बोल कर आरोही चुप हो गई.
‘‘क्या हुआ, सब ठीक है? इतनी चुपचुप क्यों हो?’’
अन्वय की बात पर आरोही अजीब तरह से हंस कर बोली, ‘‘क्यों, चुप रहना गुनाह है क्या?’’
‘‘नहीं, मैं ने तो ऐसे ही पूछा.’’
कौफी आ चुकी थी. दोनों धीरेधीरे कौफी पी रहे थे. लेकिन आरोही को आज
कौफी में कोई टेस्ट नहीं लग रहा था. किसी तरह कौफी को अपने गले से नीचे उतारा और कंधे पर बैग टांग उठ खड़ी हुई, ‘‘चले अब?’’
अन्वय कुछ देर बैठना चाहता था. कुछ बात करनी थी उसे आरोही से, ‘‘आरू, बैठो न थोड़ी देर, मुझे तुम से कुछ कहना है.’’
‘‘क्या, बोलो?’’
कुरसी पर बैठते हुए आरोही बोली.
‘‘कभीकभी मैं बहुत डर जाता हूं कि मैं कहीं तुम्हें खो न दूं,’’ आरोही का हाथ अपने हाथ में लेते हुए अन्वय इमोशनल हो गया.
‘‘सच में?’’ अन्वय की आंखों में झंकते हुए आरोही बोली, ‘‘अच्छा, ठीक है अब ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. चलो अब घर नहीं चलना?’’
अन्वय जो बोलना चाह रहा था बोल नहीं पाया उस से. खैर, रोज की तरह आरोही को उस के घर छोड़ते हुए अन्वय अपने घर की तरफ निकल गया.
औफिस से आ कर आरोही इतनी थक चुकी थी कि कुछ करने का मन नहीं हो रहा था. खाना खा कर सोने गई तो नींद भी नहीं आ रही थी. सोचने लगी कि कब तक वह अपने मांपापा से अपने और अन्वय के रिश्ते को छिपाएगी. एक दिन बताना तो पड़ेगा वरना मां यों ही शादी के लिए उस के पीछे पड़ी रहेगी. लेकिन उस से
पहले उसे अन्वय को परखना है, जानना है कि वह उस से सच्चा प्यार करता है या सिर्फ दिखावा कर रहा है.
‘‘सुबह जैसे ही उस की आंखें खुलीं, सुमित्रा सामने खड़ी दिखीं.
‘‘मां… आप ने तो डरा ही दिया मुझे. क्या है बोलो? देखो, फालतू की बातें फिर शुरू मत कर देना.’’
‘‘ऐसे कैसे बात कर रही हो?’’ सुमित्रा बेटी के रूखे व्यवहार से दुखी हो उठीं.
‘‘तो कैसे बात करूं? रोज तो औफिस में खटती हूं. उस पर भी आराम से सोने नहीं देतीं आप. कभी पापा फोन कर के परेशान करते हैं तो कभी आप. अच्छा बोलो, क्या बात है?’’ इस बार उस ने जरा नर्मी से कहा.
‘‘मैं तो बस यह पूछने आई थी कि लड़के की तसवीर देखी तूने कैसा लगा?’’
‘‘नहीं देखी क्योंकि मुझे कोई इंटरैस्ट नहीं है इन लड़कों में. और आप क्या बोलती रहती हैं कि लड़का बहुत बड़ी पोस्ट पर है. लाखों की सैलरी है. तो मैं क्या घर बैठी हूं? मैं भी अच्छी पोस्ट पर हूं और मेरी भी लाखों में सैलरी है. मैं भी अच्छे घराने से विलौंग करती हूं. फिर क्यों आप गिरीपड़ी बातें करती हैं मां कि इतना अच्छा रिश्ता हाथ से चला जाएगा. तो चला जाए, मेरी बला से.’’
बेटी के तेवर देख सुमित्रा सिटपिटा गईं. इसलिए जबान पर जरा मिठास लाते हुए बोलीं, ‘‘लेकिन बेटा मैं तो तेरे भले के लिए ही बोल रही हूं और एक न एक दिन शादी तो करेगी ही न तू. अगर तूने किसी को पसंद कर रखा है तो यह भी बता दे?’’
‘‘आ ऐसी कोई बात नहीं है मां और कुछ होगा तो बताऊंगी ही न. अच्छा मुझे एक जरूरी फोन करना है, मैं आप से बाद में बात कराती हूं,’’ कह कर आरोही पता नहीं किस से फोन पर बात करने लगी.
आरोही भी समझ रही थी कि उस के मांपापा की चिंता जायज है. हर मांबाप को अपने बच्चे की शादी की चिंता होती है. लेकिन अभी वह अपने मातापिता को अपने और अन्वय के रिश्ते के बारे में बताना नहीं चाहती थी. नहीं… नहीं… उस के मातापिता प्रेम विवाह के खिलाफ नहीं हैं. जातिपांति भी नहीं मानते हैं वे. हां, लेकिन इस बात पर शायद एतराज हो उन्हें कि अन्वय की आर्थिक स्थिति हमारे जैसी मजबूत नहीं है. लेकिन मुझे इस बात से कोई एतराज नहीं है और इस के लिए मैं उन्हें मना भी लूंगी.
बात यह है कि अन्वय मुझे किस हद तक प्यार करता है वह देखना है मुझे. कहीं ऐसा तो नहीं कि कल को अगर मेरे साथ कोई हादसा हो जाए. तो वह मुझे बीच राह में छोड़ कर भाग जाए क्योंकि ऐसे कई किस्से सुन चुकी हूं जहां एक प्रेमी, पति बनते ही अपने असली
रूप में आ गया. छोटीछोटी बातों को ले कर पत्नी पर शक करता, उसे मारतापिटता यहां तक कि तलाक तक दे देता और औरत बेचारी बन कर रह जाती है.
मेरी सहेली सांची के साथ यही तो हुआ. एक दिन जब उस के पति को पता चला कि शादी से पहले किसी ने उस का रेप कर दिया तो उस बात को ले कर उस ने उसे कितना प्रताडि़त किया. यहां तक कहा कि उस का बच्चा उस का नहीं, उस रैपिस्ट का है और फिर एक दिन उस ने सांची को तलाक दे दिया. बेचारी, अपनी बेटी को ले कर मांबाप के घर रह रही है. लेकिन मैं अपने साथ कभी ऐसा नहीं होने दूंगी. अच्छे से समझबूझ कर ही शादी करूंगी ताकि कल को मुझे पछताना न पड़े.
मां और अक्षत कुछ दिनों के लिए इंदौर वाली मौसी के घर गए हुए थे. इसलिए मुझे खुद ही अपने लिए नाश्ताखाना बनाना पड़ रहा था. झड़ूपोंछा, बरतनकपड़ों के लिए बाई आती थी. अपने लिए मैं ने 1 कप कौफी बनाई और आ कर बालकनी में बैठ गई. समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पता लगाऊं कि अन्वय मुझ से किस हद तक प्यार करता है. मगर जैसे भी हो, पता तो लगाना ही पड़ेगा.
‘मैं तो केवल प्रेम की परीक्षा ले रही हूं. लोग तो प्रेम में जिंदगी तक हार जाते हैं. वैसे मुझे उस की जिंदगी नहीं चाहिए. भरोसा और विश्वास चाहिए कि हर हाल में वह मेरा साथ निभाएगा या नहीं. हो सकता है मेरा यह तरीका उसे अच्छा न लगे. लेकिन भविष्य के लिए यही सही है’ अपने मन में सोच आरोही ने गहरी सांस ली और बालकनी से उठ कर अपने कमरे में आ गई.
आरोही बाथरूम जा ही रही थी कि सांची का फोन आ गया, ‘‘हैलो, सोई है या जागी मैडम?’’ सांची ने फोन पर कहा.
‘‘जाग रही हूं, बोल? अरे, रे… हम ने तो आज साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाया था न. ओह शिट भूल गई मैं,’’ आरोही को बुरा लगा, ‘‘प्लीज,’’ आरोही ने माफी मंगाते हुए कहा कि अगले संडे जरूर उस के साथ मूवी देखने जाएगी.
‘‘अरे, कोई बात नहीं. इतना परेशान क्यों हो रही है. न तो फिल्म भगे जा रही है, न हम,’’ सांची हंस पड़ी, ‘‘वैसे एक बात बता कोई प्रौब्लम है क्या?’’
‘‘उफ, वही शादी का प्रैशर.’’
‘‘तो तू उन्हें बता क्यों नहीं देती अपने और अन्वय के रिश्ते के बारे में? क्यों नहीं बता देती कि तुम अन्वय से शादी करना चाहती हो. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे मांपापा दूसरी जाति के लड़के से तुम्हारे विवाह के खिलाफ होंगे?’’
‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बता नहीं. बल्कि इस मामले में मेरे मांपापा बहुत खुले विचारों के हैं.’’
‘‘तो दिक्कत क्या है फिर?’’ सांची हैरान थी.
‘‘दिक्कत कुछ नहीं है, पर मैं अन्वय को परखना चाहती हूं कि क्या सच में मुझ से प्यार करता है. जानती है सांची, तेरे साथ जो हुआ न उस से ही मैं ने सबक लिया.’’
‘‘तू भी न. मेरी बात कुछ और थी. मेरा समय खराब था जो मेरा पति मुझे छोड़ गया. मुझ से अपनी तुलना मत कर. अन्वय ऐसा लड़का नहीं है और वह तो तुम्हें इतना प्यार करता है कि आधी रात को भी उसे बुलाए तो दौड़ा चला आएगा. नहींनहीं यार, इतना मत सोच.’’
‘‘हां, तेरी बात सही है,’’ एक लंबी सांस लेते हुए आरोही हंस पड़ी, ‘‘लेकिन परखने में हरज ही क्या है. चल, आजा मेरे घर साथ में चाय पीते हैं,’’ आरोही ने फोन रख दिया और सांची यह सोच कर परेशान हो उठी कि यह आरोही भी पागल है एकदम. ऐसा भी कोई करता है.
दरवाजे की घंटी बजी तो आरोही समझ गई कि सांची ही आई होगी, ‘‘आजा. अन्वय भी आता ही होगा. मैं तब तक चाय रखती हूं.’’
कुछ देर में अन्वय भी आ गया. आरोही सब के लिए ट्रे में चाय ले आई. दोनों को चाय दे कर वह अपनी भी चाय लेकर बैठ गई. अभी उसने चाय का पहला घूंट लिया ही कि अचानक से वह नीचे जमीन पर गिर गई. वह अजीब तरह से मुंह बनाने लगी. उस के हाथपैर फड़कने लगे. वह ऊपर शून्य भाव में देखने लगी. उस की मांसपेशियां अकड़ गईं एकदम.
‘‘आरूआरू, क्या हो गया तुम्हें?’’ अन्वय आरोही को हिलाते हुए बोला, वह प्यार से आरोही को ‘आरू’ बुलाता है. उसे इस हालत में देख वह बुरी तरह घबरा गया. सांची भी समझ नहीं पा रही थी कि अच्छीभली आरोही को अचानक क्या हो गया. उसने उसे उठाया और बिस्तर पर लिटा कर उस के सिर के निचे तकिया रख दिया. उसे पानी पिलाया तो उसे थोड़ा आराम महसूस हुआ.
‘‘मैं… मैं… अभी डाक्टर को फोन करता हूं,’’ कह कर उस ने अपना फोन निकाला ही था कि आरोही ने उस का हाथ पकड़ लिया और धीरे से बोली कि डाक्टर को बुलाने की कोई जरूरत नहीं है. अब वह ठीक है. उसे ऐसे मिरगी के दौरे अकसर पड़ते रहते हैं.’’
‘‘मिरगी. तू तुम्हें मिरगी के दौरे पड़ते हैं कब से?’’
‘‘बचपन से ही,’’ आरोही बोली.
‘‘बचपन से लेकिन तुम ने कभी मुझे
बताया नहीं?’’
‘‘वह इलाज के बाद दौरे पड़ने बंद हो गए थे. लेकिन फिर पड़ने लगे…’’ तिरछी
नजर से अन्वय की तरफ देखते हुए आरोही बोली. देख रही थी कि वह कैसे रिएक्ट करता है. इधर सांची तो समझ ही रही थी कि उसे कोई दौरा नहीं पड़ा है बल्कि नाटक कर रही है.
‘‘कोई बात नहीं, मैं एक अच्छे डाक्टर को जानता हूं. उस के पास चलेंगे,’’ आरोही के सराहने बैठ अन्वय उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘सच में मैं बहुत डर गया था कि अचानक तुम्हें क्या हो गया.’’
‘‘यह जान कर तुम्हें बुरा नहीं लगा कि मुझे मिरगी आती है?’’ आरोही ने सवाल किया.
‘‘हां लगा लेकिन इस बात से कि तुम बचपन से सफर कर रही हो और मैं इस बात से अनजान हूं. कोई बात नहीं, अब जान गया न. अब से तुम्हारा ध्यान रखूंगा.’’
आरोही को आश्चर्य हुआ कि उसे यह जान कर जरा भी बुरा नहीं लगा कि जिस से वह प्रेम करता है और जिस से शादी करने वाला है वह एक मिरगी पेशैंट है.
‘‘बहुत हो चुका यार, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए,’’ उस दिन कौफी शौप में काफी पीते हुए अन्वय बोला तो आरोही कहने लगी कि हां, उसे भी लगता है अब उन्हें अपने रिश्ते को एक नाम दे देना चाहिए.
‘‘वैसे, मैं ने तो हमारे बारे में अपने घर वालों को सब कुछ बता दिया है और यह भी बोल दिया है मैं तुम से ही शादी करूंगा. लेकिन क्या तुम ने अपने मांपापा से बात की हमारे बारे में?’’
‘‘नहीं, लेकिन सोच रही हूं आज ही उन से बात कर लूं.’’
दूसरे दिन जब दोनों कौफी शौप में मिले तो आरोही बहुत उदास थी. अन्वय के पूछने पर बोली कि उस के मांपापा उस की इस शादी के खिलाफ हैं. कहते हैं अगर तुम ने अपनी मरजी से शादी की तो हम तुम से सारा रिश्ता खत्म कर लेंगे.
‘‘अच्छा, ऐसा कहा उन्होंने?’’ सुन कर अन्वय भी उदास हो उठा.
इसी तरह कुछ दिन और बीत गए. एक रोज आरोही घबराती हुई अन्वय के पास आई
और कहने लगी, ‘‘अन्वय, चलो हम भाग कर शादी कर लेते हैं क्योंकि मेरे मांपापा कभी हमारी शादी के लिए राजी नहीं होंगे. हम इस शहर से बहुत दूर चले जाएंगे. तुम पैसों की चिंता मत करो, मैं अपने सारे गहने ले आई हूं, जो मां ने मेरी शादी के लिए बनवाए थे और ये पैसे भी. कुछ दिन तो इन से गुजारा हो ही जाएगा हमारा. फिर कोई न कोई जौब मिल ही जाएगी हमें.’’
आरोही की बात सुन कर अन्वय हैरानी से उसे देखने लगा, ‘‘ऐसे देख क्या रहे हो, चलो न? इस से पहले कि मेरे मांपापा को सब पता चल जाए… देखो, बहुत अच्छा मौका है यह.’’
‘‘यह क्या कह रही हो तुम. पागल हो गई हो क्या? नहीं मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा.’’
‘‘तुम समझ नहीं रहे हो अन्वय.’’
‘‘सब समझ रहा हूं मैं. हम कोई छोटे बच्चे नहीं हैं जो ऐसी बेतुकी हरकत करें. सोचा है तुम्हारे ऐसा करने से तुम्हारे मांपापा पर क्या बीतेगी? कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे वे. क्या तुम यही चाहती हो? जाओ अपने घर और ये गहने और पैसे भी लेती जाओ.’’
‘‘आरोही जैसे ही जाने लगी, अन्वय ने उसे रोका, ‘‘मैं तुम्हे तुम्हारे घर तक छोड़ आता हूं,’’ फिर वह खुद आरोही को उस के घर छोड़ आया.
सांची ने जब आरोही के मुंह से भाग कर शादी करने वाली बात सुनी और जाना कि अन्वय ने क्या कहा तो उसे आरोही पर गुस्सा आ गया.
‘‘बस हो गया और कितना परखेगी उसे?’’
सांची की बात पर आरोही अजीब तरह से मुसकराई.
‘‘बड़ी जालिम है तू सच में. छोड़ दे न अब बेचारे को, कितना इम्तिहान लेगी. वैसे अब क्या करने वाली है तू?’’
‘‘सब्र रख बहन,’’ आरोही खतरनाक तरीके से हंसती हुई बोली.
अन्वय की दादी और उस के चाचाचाची यूपी के एक गांव में रहते हैं. एक दिन खबर आई कि अन्वय की दादी की तबीयत बहुत खराब है. शायद अब न बचें, इसलिए आ कर मिल लो. अन्वय अपनी दादी को देखने अपने गांव चला गया यह सोच कर कि जैसे ही वह ठीक हो जाएंगी, आ जाएगा. लेकिन उस की दादी गुजर गईं. इसलिए उसे कुछ दिन और अपने गांव में रुकना पड़ गया. 1 महीने बाद दिल्ली आया और पहले की तरह अपने काम में लग गया. लेकिन देख रहा था वह. आरोही पहले की तरह फ्रैश नहीं लगी उसे. कुछ चुपचुप थी. पूछा भी कितनी बार कि सब अब ठीक है? और हर बार वह केवल सिर हिला कर जवाव देती हां ठीक है.
एक दिन आरोही अन्वय को फोन कर फूटफूट कर रोने लगी, ‘‘आरू, क्या हुआ तुम रो क्यों रही हो? हांहां, मैं अभी आता हूं, तुम चुप हो जाओ पहले,’’ अन्वय जिन कपड़ों में था उन्हीं कपड़ों में भगा. देखा तो आरोही अभी भी रोए जा रही थी, ‘‘क्या हुआ, बताओ मुझे? आंटीअंकल ने कुछ कहा?’’
‘‘अन्वय, जब जब तुम अपने गांव गए थे न. तब,’’ आरोही डरडर कर बोल रही थी, ‘‘तब एक रोज मैं औफिस से घर आ रही थी, तब 2 लड़कों ने मेरे साथ…’’
‘‘तुम्हारे साथ क्या. बोलो न?’’ अन्वय का दिल धकधक कर रहा था.
‘‘तब उन 2 लड़कों ने मेरा रेप… रेप किया था,’’ बोल कर आरोही फिर फूटफूट कर रोने लगी.
‘‘क्या रेप?’’ रेप की बात सुन कर अन्वय को जोर का धक्का लगा.
‘‘मुझे लग रहा है, शायद मैं प्रैगनैंट… क्योंकि इस महीने मेरा पीरियड मिस हो गया. अब मैं क्या करूंगी अन्वय. मांपापा तो मेरी जान ही ले लेंगे जब उन्हें पता चलेगा कि मैं प्रैगनैंट हूं. कुछ करो अन्वय वरना मैं अपनी जान दे दूंगी,’’ अन्वय के सीने से लग आरोही सिसक पड़ी.
‘‘तुम… तुम… चिंता मत करो. मेरी पहचान की एक लेडी डाक्टर है, उस के पास चलते हैं. सब ठीक हो जाएगा. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.’’
आरोही हैरान थी कि रेप जैसी इतनी बड़ी बात सुन कर अन्वय को बुरा नहीं लगा और वह उसे डाक्टर के पास ले जा रहा है. डाक्टर अनुभवा, अन्वय की ही कास्ट की थी. दोनों ने साथ में ही स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी. जहां अन्वय ने इंजीनियरिग फील्ड चुनी, वहीं अनुभवा ने मेडिकल. दोनों आज भी पक्के दोस्त थे.
अन्वय उसे डाक्टर अनुभवा के पास ले गया और सब बात बताते हुए कहा कि वह इस का बच्चा गिरा दे.
मगर जांच के बाद डाक्टर ने बताया कि प्रैगनैंसी तो दूर की बात, आरोही का
रेप तक नहीं हुआ है क्योंकि इस की हाइमनअभी तक सुरक्षित है. डाक्टर की बात सुन कर अन्वय के पैरों तले की जमीन खिसक गई. तो फिर आरोही ने ऐसा क्यों कहा कि उस का रेप हुआ था और वो प्रैगनैंट हो गई.
‘‘तुम ने झठ कहा मुझ से कि तुम्हारा रेप हुआ है क्यों?’’ अन्वय इतनी जोर से चीखा कि आरोही हिल गई.
‘‘नहींनहीं अन्वय, मैं ने कोई झठ नहीं बोला तुम से. बल्कि वे दोनों लड़के खींच कर मुझे उस पुरानी बिल्डिंग में ले गए थे, उस के बाद मैं बेहोश हो गई थी. मुझे लगा उन दोनों ने मेरा रेप किया और भाग गए. जब मुझे होश आया तो वहां पर कोई नहीं था. फिर किसी तरह मैं अपने घर पहुंची. मां को कुछ नहीं बताया.
तुम्हें भी बड़ी मुश्किल से बता पाई हूं वह भी जब मेरा पीरियड मिस हो गया तब. मुझे लगा उन दोनों ने मेरा रेप किया और मैं प्रैगनैंट हो गई.’’
‘‘तुम्हें लगा लेकिन मुझे क्या लगा पता भी है तुम्हें?’’ अन्वय गुस्से से भर उठा.
‘‘वैसे तुम्हें बता दूं कि न तो मेरा कोई रेप हुआ है और न ही मुझे मिरगी की बीमारी है
और उस दिन गहनेपैसे ले कर भागने का जो प्लान बनाया था वह सब भी तुम्हें परखने के लिए ही था. मैं जानना चाहती थी कि इन सब के बावजूद तुम मुझ से उतना ही प्यार करोगे या छोड़ दोगे मुझे.’’
आरोही की बात सुन कर अन्वय की आंखें फटी की फटी रह गईं.
‘‘ओह, तो झठी कहानी बनाई तुम ने और तुम्हें कोई बीमारी भी नहीं है. देखना चाहती थी कि मैं तुम्हारे गहनेपैसे देख कर लालच में तो नहीं आ जाऊंगा. वैरी गुड,’’ अन्वय जोरजोर से तालियां बजाने लगा, ‘‘अरे, मैं तो तुम्हें इतना प्यार करता हूं कि तुम्हारे जान देने की बात सुन कर भागाभागा आ गया. लेकिन तुम इतनी छोटी सोच वाली लड़की हो, नहीं पता था मुझे. छि: तुम मेरा टैस्ट ले रही थी. अगर मैं ऐसा तुम्हारे साथ करता तो?’’
‘‘बिलकुल करो, मैं ने कब मना किया,’’ बड़ी बेफिक्री से बोल कर आरोही हंसी.
अन्वय का गुस्सा सिर चढ़ गया, ‘‘मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूं. तुम्हारे दिमाग में इतनी गंदगी भरी है, नहीं पता था मुझे,’’ आरोही की तरफ नफरतभरी नजरों से देखते हुए अन्वय बोला, ‘‘आज से मैं तुम्हें नहीं जानता. कोई रिश्ता नहीं है हमारे बीच, समझं तुम?’’ बोल कर वह वहां से निकलने ही लगा.
तभी पीछे से आरोही बोली, ‘‘हांहां जाओ, लेकिन एक बात सुनते जाओ. यही सब लड़कियों के साथ सदियों से होता आया है, तब तो किसी को बुरा नहीं लगा.’’
आरोही की बात पर अन्वय ने पीछे मुड़ कर देखा.
‘‘बल्कि आज भी हो रहा है. लड़की नाटी है, मोटी है, दुबली है, काली है, बदसूरत है कह कर तुम लड़के और परिवार वाले लड़कियों का तिरस्कार करते हो. अरे, तुम लड़कों को तो शादी से पहले यह सर्टिफिकेट भी चाहिए होता है कि लड़की का कौमार्य सुरक्षित है या नहीं. छि:, शर्म नहीं आती ऐसा करने पर और मुझे बुरा बोल रहे हो एक लड़की का अगर रेप हो जाए तो भी लड़की ही मुंह छिपाती फिरती है और रेपिस्ट आजाद घूमता है. रेपिस्ट से कोई नहीं पूछता कि तुम ने रेप क्यों किया. लेकिन लड़की को कठघरे में जरूर खड़ा करते हैं कि अरे, तुम्हारा रेप हुआ है.
‘‘शादी से पहले एक लड़की को पता नहीं क्याक्या डर सताते हैं. जिन लड़कियों के शादी से पहले बौयफ्रैंड रहे हों और शादी घर वालों की मरजी से कर रही है तो उस लड़की का डर बहुत बड़ा होता है कि कहीं होने वाला पति कुछ जान गया तो उसे छोड़ दिया या तलाक दे दिया तो… शादीब्याह के मामले में ज्यादातर लड़कियों को ही सवाल झेलने पड़ते हैं.
‘‘बोलो न क्यों हर समय लड़कियां ही सवालों के जवाब देती रहें. लड़कों से ऐसे सवाल क्यों नहीं पूछे जाते कि शादी से पहले उस का किसी के साथ संबंध तो न था? उस ने कभी किसी लड़की का रेप तो नहीं किया? उस का कौमार्य क्यों नहीं जांचा जाता? क्या वर्जिनिटी सिर्फ लड़कियों का ठेका है?’’
आरोही की बात पर अन्वय ने कोई जवाब नहीं दिया.
‘‘इस के बाद भी तुम्हें लगता है कि मैं ने जो किया गलत किया तो जाओ और अगर लगे कि मैं ने जो किया सही किया तो आ जाना. मैं यहीं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’
पूरी रात अवन्य के मन में उथलपुथल मचती रही, ‘आखिर क्या गलत कहा आरोही ने
बोलो, क्यों हर बार लड़कियां ही क्यों परखी जाती हैं? क्यों हर बार दोष निकाल कर उन का तिरस्कार किया जाता है? जब एक लड़की का रेप होता है, तब भी दोषी वह कैसे हो जाती है? जब आरोही ने कहा था कि 2 लड़कों ने उस का रेप किया, तब तुम्हारा भी मन अजीब हो गया था न? झठ मत बोलो,’ अन्वय के दिल से आवाज आई, ‘हां, लगा था मुझे. लेकिन अन्वय तब भी मेरा प्यार उस के लिए कम नहीं हुआ था. लेकिन फिर मुझे उस की बात का इतना बुरा क्यों लगा? नहीं लगना चाहिए था.
प्यार की परीक्षा ही ली न उस ने? तो क्या गलत किया? कहीं बहुत देर न हो जाए,’ अपने मन में सोच अन्वय ने फोन उठा लिया और आरोही को मैसेज किया, ‘‘सौरी, तुम सही थीं. मैं आ रहा हूं तुम्हारे पास.’’
अन्वय का मैसेज पढ़ कर आरोही मुसकरा उठी.
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