Hindi Drama Story: डिवोर्स के पेपर

Hindi Drama Story: उसके हाथों में कोर्ट का नोटिस फड़फड़ा रहा था. हत्प्रभ सी बैठी थी वह… उसे एकदम जड़वत बैठा देख कर उस के दोनों बच्चे उस से चिपक गए. उन के स्पर्श मात्र से उस की ममता का सैलाब उमड़ आया और आंसू बहने लगे. आंसुओं की धार उस के चेहरे को ही नहीं, उस के मन को भी भिगो रही थी. न जाने इस समय वह कितनी भावनाओं की लहरों पर चढ़उतर रही थी. घबराहट, दुख, डर, अपमान, असमंजस… और न जाने क्याक्या झेलना बाकी है अभी. संघर्षों का दौर है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. जब भी उसे लगता कि उस की जिंदगी में अब ठहराव आ गया है, सबकुछ सामान्य हो गया है कि फिर उथलपुथल शुरू हो जाती है.

दोनों बच्चों को अकेले पालने में जो उस ने मुसीबतें झेली थीं, उन के स्थितियों को समझने लायक बड़े होने के बाद उस ने सोचा था कि वे कम हो जाएंगी और ऐसा हुआ भी था. पल्लवी 11 साल की हो गई थी और पल्लव 9 साल का. दोनों अपनी मां की परेशानियों को न सिर्फ समझने लगे थे वरन सचाई से अवगत होने के बाद उन्होंने अपने पापा के बारे में पूछना भी छोड़ दिया था. पिता की कमी वे भी महसूस करते थे, पर नानी और मामा से उन के बारे में थोड़ाबहुत जानने के बाद वे दोनों एक तरह से मां की ढाल बन गए थे. वह नहीं चाहती थी कि उस के बच्चों को अपने पापा का पूरा सच मालूम हो, इसलिए कभी विस्तार से इस बारे में बात नहीं की थी. उसे अपनी ममता पर भरोसा था कि उस के बच्चे उसे गलत नहीं समझेंगे.

कागज पर लिखे शब्द मानो शोर बन कर उस के आसपास चक्कर लगा रहे थे, ‘चरित्रहीन, चरित्रहीन है यह… चरित्रहीन है इसलिए इसे बच्चों को अपने पास रखने का भी हक नहीं है. ऐसी स्त्री के पास बच्चे सुरक्षित कैसे रह सकते हैं? उन्हें अच्छे संस्कार कैसे मिल सकते हैं? इसलिए बच्चों की कस्टडी मुझे मिलनी चाहिए… एक पिता होने के नाते मैं उन का ध्यान ज्यादा अच्छी तरह रख सकता हूं और उन का भविष्य भी सुरक्षित कर सकता हूं…’

चरित्रहीन शब्द किसी हथौड़े की तरह उस के अंतस पर प्रहार कर रहा था. मां को रोता देख पल्लवी ने कोर्ट का कागज मां के हाथों से ले लिया. ज्यादा कुछ तो समझ नहीं आया. पर इतना अवश्य जान गई कि मां पर इलजाम लगाए जा रहे हैं.

‘‘पल्लव तू सोने जा,’’ पल्लवी ने कहा तो वह बोला, ‘‘मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूं. सब जानता हूं. हमारे पापा ने नोटिस भेजा है और वे चाहते हैं कि हम उन के पास जा कर रहें. ऐसा कभी नहीं होगा. मम्मी आप चिंता न करें. मैं ने टीवी में एक सीरियल में देखा था कि कैसे कोर्ट में बच्चों को लेने के लिए लड़ाई होती है. मैं नहीं जाऊंगा पापा के पास. दीदी आप भी नहीं जाना.’’

पल्लव की बात सुन कर वह हैरान रह गई. सही कहते हैं लोग कि वक्त किसी को भी परिपक्व बना सकता है.

‘‘मैं भी नहीं जाऊंगी उन के पास और कोर्ट में जा कर कह दूंगी कि हमें मम्मी के पास ही रहना है. फिर कैसे ले जाएंगे वे हमें. मुझे तो उन की शक्ल तक याद नहीं. इतने सालों तक एक बार भी हम से मिलने नहीं आए. फिर अब क्यों ड्रामा कर रहे हैं?’’ पल्लवी के स्वर में रोष था.

कोई गलती न होने पर भी वह इस समय बच्चों से आंख नहीं मिला पा रही थी. छि: कितने गंदे शब्द लिखे हैं नोटिस में… किसी तरह उस ने उन दोनों को सुलाया.

रात की कालिमा परिवेश में पसर चुकी थी. उसे लगा कि अंधेरा जैसे धीरेधीरे उस की ओर बढ़ रहा है. इस बार यह अंधेरा उस के बच्चों को छीनने के लिए आ रहा है. भयभीत हो उस ने बच्चों की ओर देखा… नहीं, वह अपने बच्चों को अपने से दूर नहीं होने देगी… अपने जिगर के टुकड़ों को कैसे अलग कर सकती है वह?

तब कहां गया था पिता का अधिकार जब उसे बच्चों के साथ घर छोड़ने पर मजबूर किया गया था? बच्चों की बगल में लेट कर उस ने उन के ऊपर हाथ रख दिया जैसे कोई सुरक्षाकवच डाल दिया हो.

उस के दिलोदिमाग में बारबार चरित्रहीन शब्द किसी पैने शीशे की तरह चुभ रहा था. कितनी आसानी से इस बार उस पर एक और आरोप लगा दिया गया है और विडंबना तो यह है कि उस पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया गया है जिसे कभी झल्ली, मूर्ख, बेअक्ल और गंवारकहा जाता था. आभा को लगा कि नरेश का स्वर इस कमरे में भी गूंज रहा है कि तुम चरित्रहीन हो… तुम चरित्रहीन हो… उस ने अपने कानों पर हाथ रख लिए. सिर में तेज दर्द होने लगा था.

समय के साथ शब्दों ने नया रूप ले लिया, पर शब्दों की व्यूह रचना तो बरसों पहले ही हो चुकी थी. अचानक ‘तुम गंवार हो… तुम गंवार हो…’ शब्द गूंजने लगे… आभा घिरी हुई रात के बीच अतीत के गलियारों में भटकने लगी…

‘‘मांबाप ने तुम जैसी गंवार मेरे पल्ले बांध मेरी जिंदगी खराब कर दी है. तुम्हारी जगह कोई पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा बीवी होती तो मुझे कितनी मदद मिल जाती. एक की कमाई से घर कहां चलता है. तुम्हें तो लगता है कि घर संभाल रही हो तो यही तुम्हारी बहुत बड़ी क्वालिफिकेशन है. अरे घर का काम तो मेड भी कर सकती है, पर कमा कर तो बीवी ही दे सकती है,’’ नरेश हमेशा उस पर झल्लाता रहता.

आभा ज्यादातर चुप ही रहती थी. बहुत पढ़ीलिखी न सही पर ग्रैजुएट थी. बस आगे कोई प्रोफैशनल कोर्स करने का मौका ही नहीं मिला. कालेज खत्म होते ही शादी कर दी गई. सोचा था शादी के बाद पढ़ेगी, पर सासससुर, देवर, ननद और गृहस्थी के कामों में ऐसी उलझी कि अपने बारे में सोच ही नहीं पाई. टेलैंट उस में भी है. मूर्ख नहीं है. कई बार उस का मन करता कि चिल्ला कर एक बार नरेश को चुप ही करा दे, पर सासससुर की इज्जत का मान रखते हुए उस ने अपना मुंह ही सी लिया. घर में विवाद हो, यह वह नहीं चाहती थी.

मगर मन ही मन ठान जरूर लिया था कि वह पढ़ेगी और स्मार्ट बन कर दिखाएगी…

स्मार्ट यानी मौडर्न और वह भी कपड़ों से…

ऐसी नरेश की सोच थी… पर वह स्मार्टनैस सोच में लाने में विश्वास करती थी. जल्दीजल्दी 2 बच्चे हो गए, तो उस की कोशिशें फिर ठहर गईं. बच्चों की अच्छी परवरिश प्राथमिकता बन गई. मगर खर्चे बढ़े तो नरेश की झल्लाहट भी बढ़ गई. बहन की शादी पर लिया कर्ज, भाई की भी पढ़ाई और मांबाप की भी जिम्मेदारी… गलती उस की भी नहीं थी. वह समझ रही थी इसलिए उस ने सिलाई का काम करने का प्रस्ताव रखा, ट्यूशन पढ़ाने का प्रस्ताव रखा पर गालियां ही मिलीं.

‘‘कोई सौफिस्टिकेटेड जौब कर सकती हो तो करो… पर तुम जैसी गंवार को कौन नौकरी देगा. बाहर निकल कर उन वर्किंग वूमन को देखो… क्या बढि़या जिंदगी जीती हैं. पति का हाथ भी बंटाती हैं और उन की शान भी बढ़ाती हैं.’’

आभा सचमुच चाहती थी कि कुछ करे. मगर वह कुछ सोच पाती उस से पहले ही विस्फोट हो गया.

‘‘निकल जा मेरे घर से… और अपने इन बच्चों को भी ले जा. मुझे तेरी जैसी गंवार की जरूरत नहीं… मैं किसी नौकरीपेशा से शादी करूंगा. तेरी जैसी फूहड़ की मुझे कोई जरूरत नहीं.’’

सकते में आ गई थी वह. फूहड़ और गंवार मैं हूं कि नरेश… कह ही नहीं पाई वह.

सासससुर के समझाने पर भी नरेश नहीं माना. उस के खौफ से सभी डरते थे. उस के चेहरे पर उभरे एक राक्षस को देख उस समय वह भी डर गई थी. सोचा कुछ दिनों में जब उस का गुस्सा शांत हो जाएगा, वह वापस आ जाएगी. 2 साल की पल्लवी और 1 साल के पल्लव को ले कर जब उस ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा था तब उसे क्या पता था कि नरेश का गुस्सा कभी शांत होगा ही नहीं.

मायके में आ कर भाईभाभी की मदद व स्नेह पा कर उस ने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमैंट की पढ़ाई की. फिर जब एक कंपनी में उसे नौकरी मिली तो लगा कि अब उस के सारे संघर्ष खत्म हो गए हैं. बच्चों को अच्छे स्कूल में डाल दिया. खुद का किराए पर घर ले लिया.

इतने सालों बाद फिर से यह झंझावात कहां से आ गया. यह सच है कि नरेश ने तलाक नहीं लिया था, पर सुनने में आया था कि किसी पैसे वाली औरत के साथ ऐसे ही रह रहा था. सासससुर गांव चले गए थे और देवर अपना घर बसा कर दूसरे शहर में चला गया था. फिर अब बच्चे क्यों चाहिए उसे…

वह इस बार हार नहीं मानेगी… वह लड़ेगी अपने हक के लिए. अपने बच्चों की खातिर. आखिर कब तक उसे नरेश के हिसाब से स्वयं को सांचे में ढालते रहना होगा. उसे अपने अस्तित्व की लड़ाई तो लड़नी ही होगी. आखिर कैसे वह जब चाहे जैसा मरजी इलजाम लगा सकता है और फिर किस हक से… अब वह तलाक लेगी नरेश से.

अदालत में जज के सामने खड़ी थी आभा. ‘‘मैं अपने बच्चों को किसी भी हालत में इसे नहीं सौंप सकती हूं. मेरे बच्चे सिर्फ मेरे हैं. पिता का कोई दायित्व कब निभाया है इस आदमी ने…’’

‘‘तुम्हारी जैसी महत्त्वाकांक्षी, रातों को देर तक बाहर रहने वाली, जरूरत से ज्यादा स्मार्ट और मौडर्न औरत के साथ बच्चे कैसे सुरक्षित रह सकते हैं? पुरुषों के साथ मीटिंग के बहाने बाहर जाती है, उन से हंसहंस कर बातें करती है… मैं ने इसे छोड़ दिया तो क्या यह अब किसी भी आदमी के साथ घूमने के लिए आजाद है? जज साहब, मैं इसे अभी भी माफ करने को तैयार हूं. यह चाहे तो वापस आ सकती है. मैं इसे अपना लूंगा.’’

‘‘नहीं. कभी नहीं. तुम इसलिए मुझे अपनाना चाहते हो न, क्योंकि मैं अब कमाती हूं. तुम्हें उस अमीर औरत ने बेइज्जत कर के बाहर निकाल दिया है और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें कमा कर खिलाऊं? नरेश मैं तुम्हारे हाथों की कठपुतली बनने को तैयार नहीं हूं और न ही तुम्हें बच्चों की कस्टडी दूंगी. हां, तुम से तलाक जरूर लूंगी.

‘‘जज साहब अगर बच्चों को अच्छी जिंदगी देने के लिए मेहनत कर पैसा कमाना चारित्रहीनता की निशानी है तो मैं चरित्रहीन हूं. जब मैं घर की देहरी के अंदर खुश थी तो मुझे गंवार कहा गया, जब मैं ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा तो मैं चरत्रिहीन हो गई. आखिर यह कैसी पुरुष मानसिकता है… अपने हिसाब से तोड़तीमरोड़ती रहती है औरत के अस्तित्व को, उस की भावनाओं को अपने दंभ के नीचे कुचलती रहती है… मुझे बताइए मैं चरित्रहीन हूं या नरेश जैसा पुरुष?’’ आभा के आंसू बांध तोड़ने को आतुर हो उठे थे. पर उस ने खुद को मजबूती से संभाला.

‘‘मैं तुम्हें तलाक देने को तैयार नहीं हूं. तुम भिजवा दो तलाक का नोटिस. चक्कर लगाती रहना फिर अदालत के बरसों तक,’’ नरेश फुफकारा था.

केस चलता जा रहा था. पल्लवी और पल्लव को आभा को न चाहते हुए भी केस में घसीटना पड़ा. जज ने कहा कि बच्चे इतने बड़े हैं कि उन से पूछना जरूरी है कि वे किस के साथ रहना चाहते हैं.

‘‘हम इस आदमी को जानते तक नहीं हैं. आज पहली बार देख रहे हैं. फिर इस के साथ कैसे जा सकते हैं? हम अपनी मां के साथ ही रहेंगे.’’

अदालत में 2 साल तक केस चलने के बाद जज साहब ने फैसला सुनाया, ‘‘नरेश को बच्चों की कस्टडी नहीं मिल सकती और आभा पर मानसिक रूप से अत्याचार करने व उस की इज्जत पर कीचड़ उछालने के जुर्म में उस पर मानहानि का मुकदमा चलाया जाए. ऐसी घृणित सोच वाले पुरुष ही औरत की अस्मिता को लहूलुहान करते हैं और समाज में उसे सम्मान दिलाने के बजाय उस के सम्मान को तारतार कर जीवन में आगे बढ़ने से रोकते हैं. आभा को परेशान करने के एवज में नरेश को उन्हें क्व5 लाख का हरजाना भी देना होगा.’’

आभा ने नरेश के आगे तलाक के पेपर रख दिए. बुरी तरह से हारे हुए नरेश के सामने कोई विकल्प ही नहीं बचा था. दोनों बच्चों के लिए तो वह एक अजनबी ही था. कांपते हाथों से उस ने पेपर्स पर साइन कर दिए. अदालत से बाहर निकलते हुए आभा के कदमों में एक दृढ़ता थी. दोनों बच्चों ने उसे कस कर पकड़ा था. Hindi Drama Story

Bald Look Trend: यंग गर्ल्स को चाहिए बाल्ड लड़के, वजह जान चौंक जाएंगे

Bald Look Trend: निशा को कालेज में एक बाल्ड लुक वाले लड़का सुमित से प्यार हुआ और 2 साल बाद उस ने उस से शादी भी कर ली. सुमित एक कौरपोरेट संस्था में काम करता है. निशा को सुमित के बाल्ड होने का कोई गम नहीं, क्योंकि उसे ऐसे लड़के अधिक हैंडसम और स्मार्ट लगते हैं. चाहता तो सुमित विग पहन सकता था, लेकिन निशा को सुमित का बाल्ड हेयर लुक अधिक पसंद है, इसलिए सुमित के बारबार कहने पर भी निशा ने हेयर ट्रांसप्लांट करवाने से मना कर दिया.

असल में सुमित के परिवार में कई पुरुष गंजेपन के शिकार हैं, इसलिए केवल 21 साल की उम्र में उस के भी बाल कम होने लगे. इस के लिए उस ने कई प्रकार के इलाज कराए, लेकिन बाल जस के तस ही रहे. उस के सिर पर कई खाली पैच बन गए. अंत में उस ने सिर के पूरे बाल मुंडवा लिए. उस के इस लुक को सभी ने पसंद किया और निशा को भी उस का यह लुक काफी पसंद है.

वजह क्या

आजकल यह देखा जा रहा है कि तनाव के चलते आज के युवाओं के बाल तेजी से झड़ रहे हैं और वे कम उम्र में गंजेपन का शिकार हो रहे हैं. आसपास, समाज और परिवार में गंजेपन को अच्छा नहीं माना जाता. इस से बचने के लिए युवा आकर्षक बने रहने के लिए हेयर ट्रांसप्लांट कराने से भी गुरेज नहीं रखते, जिस से कई बार उन्हे कई जोखिमों से गुजरना पड़ता है.

ऐसे युवाओं के लिए हम एक अच्छी खबर ले कर आए हैं और अब उन्हें अपने गंजेपन को ले कर किसी प्रकार की चिंता नहीं होनी चाहिए.

प्रभावशाली व्यक्तित्व

एक रिसर्च में खुलासा किया गया है कि गंजे लड़कों को लड़कियां ज्यादा पसंद करती हैं. पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि लड़कियां गंजे लड़कों को ज्यादा पसंद करती हैं. ऐसे में यदि आप हेयर ट्रांसप्लांट करवाने के बाद अपने हेयरस्टाइल से लड़कियों को इंप्रेस करने की सोच रहे हैं, तो आप का यह प्रयास व्यर्थ जाएगा. मतलब यह कि अगर आप के बाल झड़ जाएं, तो अब आप को मन में हीनता पालने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि आप के गंजे लुक पर ही लड़कियां मर मिटेंगी.

एक रिपोर्ट के मुताबिक हलके या घने बालों वाले लोगों की तुलना में गंजे लोग ज्यादा प्रभावशाली व्यक्तित्व के माने जाते हैं. यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने करीब 552 युवकों व युवतियों से पुरुषों को ले कर लिखित और मौखिक जानकारी इकट्ठा की, जिन में घने हेयर वाले पुरुषों से अधिक, प्राकृतिक रूप से बाल्ड लड़कों को अधिक आकर्षक माना गया.

ईमानदारी, समझदारी और मैच्योरिटी के मामले में गंजे पुरुष काफी आगे हैं, जिन्हें लड़कियां अधिक पसंद करती हैं.

बाल्ड हेड पुरुष अधिक आकर्षक

हाल ही में हुए दूसरे सर्वेक्षण में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि ज्यादातर लड़कियों ने गंजे पुरुषों को अनाकर्षक के बजाय आकर्षक पाया. केवल 19% ने गंजापन को अनाकर्षक पाया, जबकि 44% ने कहा कि उन्हें यह पसंद है.

अनेक अध्ययनों से यह भी पता चला है कि आज की आत्मनिर्भर  लड़कियां जितनी अधिक उम्र की होती जाती हैं, उतनी ही अधिक वे बाल्ड हेडेड पुरुषों को पसंद करती हैं. इस के लिए किसी शरीरिक विशेषताओं का होना जरूरी नहीं. जरूरत होती है, स्मार्टनैस और पहनावे की, जो आप के व्यक्तित्व के अनुसार होने की जरूरत होती है.

गर्ल्स को डेट करने में नहीं समस्या

किसी बाल्ड लड़के को डेट करने की अगर बात हो, तो आप को बता दें कि हाल ही में किए गए एक  अध्ययन में लगभग 800 लड़कियों का सर्वेक्षण किया गया, जिस में 92.94% प्रतिभागियों ने कहा कि किसी रिश्ते में रूपरंग की तुलना में व्यक्तित्व अधिक महत्त्वपूर्ण होता है, जो कोई भी शक्लसूरत के व्यक्ति के हाथ में होता है. बाल्ड लड़के से उन्हें डेट करने में उन्हे कोई एतराज नहीं.

मशहूर गंजे पुरुष के साथ सुंदरियों ने किया डेटिंग

हौलीवुड के गंजे सितारों के ट्रैक रिकौर्ड पर नजर डालने से पता चलता है कि सुपर मौडल्स को भी अपने सिर पर बालों की जरा भी परवाह नहीं होती. जेसन स्टैथम की सगाई दुनिया की सब से खूबसूरत महिलाओं में से एक से हुई है. विन डीजल ने भी कमाल कर दिया है और सर्फर केली स्लेटर गिसेले बुंडचेन से ले कर पामेला एंडरसन तक कई मौडलों के साथ डेट कर चुकी हैं.

इस से यह सिद्ध हो गया है कि किसी महिला के लिए आकर्षक होना पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक होता है, इस में बाल्ड लड़के भी फिट बैठ सकते हैं.

बौलीवुड के बाल्ड हेडेड सुपरस्टार्स

बौलीवुड के मशहूर फिल्ममेकर राकेश रोशन की भी बाल्ड हेडेड हैं और यही उन की सफलता का राज भी है. उन्होंने बहुत कम उम्र में अपने सिर के पूरे बाल एक फिल्म के सफल होने पर मुंडवा डाले थे. उन्होंने जब भी फिल्मों में बतौर हीरो ऐक्टिंग किया, विग पहन कर किया. उन की पत्नी पिंकी को उन का यह लुक हमेशा पसंद रहा है.

साउथ सुपरस्टार रजनीकांत भी बाल्ड हेडेड हैं, लेकिन वे फिल्मों में हमेशा विग पहन कर ही अभिनय करते हैं. उन की पत्नी को उन के गंजेपन से कोई समस्या नहीं. इस के अलावा अनुपम खेर, सोनू सूद, अमिताभ बच्चन, संजय दत्त आदि सभी बाल्ड हेडेड होने के बावजूद सुपरस्टार की श्रेणी में आते हैं.

कब लगते है अनाकर्षक

गंजे पुरुष के अनाकर्षक लगने की वजह उन का सही मेकओवर न होना है. मसलन जिन पुरुषों के गंजेपन के धब्बे होते हैं या सिर के बीच में केश न हो कर चारों ओर केश हों, ऐसे लड़के इस पैटर्न गंजेपन को छिपाने की कोशिश कर रहे होते हैं. वे अकसर कम माचो मैन और कमजोर दिखाई देते हैं. इसे अकसर गंजे से हारने वाले की श्रेणी में रख दिया जाता है.

गंजेपन को आकर्षक बनाने के लिए पूरी तरह से मुंडवा देना ही सबसे उचित होता है.

बाल्ड हेड की सही देखभाल 

बाल्ड हेड के रखरखाव के लिए नियमित रूप से शेव करना, सिर की त्वचा को मोइस्चराइज करना और धूप से बचाव करना महत्त्वपूर्ण है. कुछ सुझाव निम्न हैं :

  • जितना अधिक शेव करेंगे, सिर की त्वचा उतनी ही चिकनी रहेगी.
  • शेव करने के बाद सिर की त्वचा को मोइस्चराइजर करना महत्त्वपूर्ण है ताकि यह हाइड्रेटेड रहे और सूखापन या खुजली से बचा जा सके.
  • सूरज की हानिकारक यूवी किरणों से सिर की त्वचा को बचाने के लिए बाहर जाते समय टोपी या सनस्क्रीन का उपयोग करें.
  • सिर की त्वचा को साफ रखना भी महत्त्वपूर्ण है, इसलिए इसे नियमित रूप से धोएं, लेकिन बहुत अधिक नहीं
  • यदि आप शैंपू का उपयोग करना चाहते हैं, तो एक हलके, सल्फेटमुक्त शैंपू का उपयोग करें.
  • कंडीशनर का उपयोग करने से भी सिर की त्वचा को हाइड्रेटेड रखने में मदद मिल सकती है.

इस प्रकार यह उन लड़कों के लिए एक अच्छी खबर है जो गंजेपन की ओर बढ़ रहे हैं या गंजे हो चुके हैं. ऐसे में बाल उगाने के लिए लाखों रुपए खर्च करने की जगह आप कौन्फिडैंट हो कर घूमें, क्योंकि लड़कियों को गंजे, लेकिन आत्मविश्वास से भरे पुरुष ही ज्यादा पसंद आते हैं. Bald Look Trend

Family Story: सुधरा संबंध: निलेश और उस की पत्नी के बीच तनाव क्यों?

Family Story: शादी की वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर हम दोनों पतिपत्नी साथ बैठे चाय की चुसकियां ले रहे थे. संसार की दृष्टि में हम आदर्श युगल थे. प्रेम भी बहुत है अब हम दोनों में. लेकिन कुछ समय पहले या कहिए कुछ साल पहले ऐसा नहीं था. उस समय तो ऐसा प्रतीत होता था कि संबंधों पर समय की धूल जम रही है.

मुकदमा 2 साल तक चला था तब. आखिर पतिपत्नी के तलाक का मुकदमा था. तलाक के केस की वजह बहुत ही मामूली बातें थीं. इन मामूली सी बातों को बढ़ाचढ़ा कर बड़ी घटना में ननद ने बदल दिया. निलेश ने आव देखा न ताव जड़ दिए 2 थप्पड़ मेरे गाल पर. मुझ से यह अपमान नहीं सहा गया. यह मेरे आत्मसम्मान के खिलाफ था. वैसे भी शादी के बाद से ही हमारा रिश्ता सिर्फ पतिपत्नी का ही था.

उस घर की मैं सिर्फ जरूरत थी, सास को मेरे आने से अपनी सत्ता हिलती लगी थी, इसलिए रोज एक नया बखेड़ा. निलेश को मुझ से ज्यादा अपने परिवार पर विश्वास था और उन का परिवार उन की मां तथा एक बहन थीं. मौका मिलते ही मैं अपने बेटे को ले कर अपने घर चली गई. मुझे इस तरह आया देख कर मातापिता सकते में आ गए. बहुत समझाने की कोशिश की मुझे पर मैं ने तो अलग होने का मन बना लिया था. अत: मेरी जिद के आगे घुटने टेक दिए.

दोनों ओर से अदालत में केस दर्ज कर दिए गए. चाहते तो मामले को रफादफा भी किया जा सकता था, पर निलेश ने इसे अपनी तौहीन समझा. रिश्तेदारों ने मामले को और पेचीदा बना दिया. न सिर्फ पेचीदा, बल्कि संगीन भी. सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा. यह भी कहा कि ऐसी औरत न वफादार होती है न पतिव्रता. इसे घर में रखना, अपने शरीर में मियादी बुखार पालते रहने जैसा है.

बुरी बातें चक्रवृत्ति ब्याज की तरह बढ़ती हैं. अत: दोनों तरफ से खूब आरोप उछाले गए. ऐसा लगता था जैसे दोनों पक्षों के लोग आरोपों की कबड्डी खेल रहे हैं. निलेश ने मेरे लिए कई असुविधाजनक बातें कहीं. निलेश ने मुझ पर चरित्रहीनता का तो हम ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया. 6 साल तक शादीशुदा जीवन बिताने और 1 बच्चे के मातापिता होने के बाद आज दोनों तलाक के लिए लड़ रहे थे. हम दोनों पतिपत्नी के हाथों में तलाक के लिए अर्जी के कागजों की प्रति थी. दोनों चुप थे, दोनों शांत, दोनों निर्विकार.

मुकदमा 2 साल तक चला था. 2 साल हम पतिपत्नी अलग रहे थे और इन 2 सालों में बहुत कुछ झेला था. मैं ने नौकरी ढूंढ़ ली थी. बेटे का दाखिला एक अच्छे स्कूल में करा दिया था. सब से बड़ी बात हम दोनों में से ही किसी ने भी अपने बच्चे की मनोस्थिति नहीं पढ़ी.

बेटा हमारे अलग होने के फैसले से खुश नहीं था, पर सब कुछ उस की आंखों के सामने हुआ था तो वह चुप था. मुकदमे की सुनवाई पर दोनों को आना होता. दोनों एकदूसरे को देखते जैसे चकमक पत्थर आपस में रगड़ खा गए हों. दोनों गुस्से में होते. दोनों में बदले की भावना का आवेश होता. दोनों के साथ रिश्तेदार होते जिन

की हमदर्दियों में जराजरा विस्फोटक पदार्थ भी छिपा होता. जब हम पतिपत्नी कोर्ट में दाखिल होते तो एकदूसरे को देख कर मुंह फेर लेते. वकील और रिश्तेदार दोनों के साथ होते. दोनों पक्ष के वकीलों द्वारा अच्छाखासा सबक सिखाया जाता कि हमें क्या कहना है. हम दोनों वही कहते. कई बार दोनों के वक्तव्य बदलने लगते तो फिर संभल जाते.

अंत में वही हुआ जो हम सब चाहते थे यानी तलाक की मंजूरी. पहले उन के साथ रिश्तेदारों की फौज होती थी, धीरेधीरे यह संख्या घटने लगी. निलेश की तरफ के रिश्तेदार खुश थे, दोनों के वकील खुश थे, पर मेरे मातापिता दुखी थे. अपनीअपनी फाइलों के साथ मैं चुप थी. निलेश भी खामोश.

यह महज इत्तफाक ही था. उस दिन की अदालत की फाइनल कार्रवाई थोड़ी देर से थी. अदालत के बाहर तेज धूप से बचने के लिए हम दोनों एक ही टी स्टौल में बैठे थे. यह भी महज इत्तफाक ही था कि हम पतिपत्नी एक ही मेज के आमनेसामने थे.

मैं ने कटाक्ष किया, ‘‘मुबारक हो… अब तुम जो चाहते हो वही होने को है.’’

‘‘तुम्हें भी बधाई… तुम भी तो यही चाह रही थीं. मुझ से अलग हो कर अब जीत जाओगी,’ निलेश बोला. मुझ से रहा नहीं गया. बोली, ‘‘तलाक का फैसला क्या जीत का प्रतीक

होता है?’’

निलेश बोले, ‘‘तुम बताओ?’’

मैं ने जवाब नहीं दिया, चुपचाप बैठी रही, फिर बोली, ‘‘तुम ने मुझे चरित्रहीन कहा था… अच्छा हुआ अब तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पीछा छूटा.’’

‘‘वह मेरी गलती थी, मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था.’’

‘‘मैं ने बहुत मानसिक तनाव झेला,’’ मेरी आवाज सपाट थी. न दुख, न गुस्सा, निलेश ने कहा, ‘‘जानता हूं पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो स्त्री के मन को लहूलुहान कर देता है… तुम बहुत उज्ज्वल हो. मुझे तुम्हारे बारे में ऐसी गंदी बात नहीं कहनी चाहिए थी. मुझे बेहद अफसोस है.’’

मैं चुप रही, निलेश को एक बार देखा. कुछ पल चुप रहने के बाद उन्होंने गहरी सांस ली और फिर कहा, ‘‘तुम ने भी तो मुझे दहेज का लोभी कहा था…’’

‘‘गलत कहा था,’’ मैं निलेश की ओर देखते हुए बोली.

कुछ देर और चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं कोई और आरोप लगाती, लेकिन मैं नहीं…’’

तभी चाय आ गई. मैं ने चाय उठाई. चाय जरा सी छलकी. गरम चाय मेरे हाथ पर गिरी तो सीसी की आवाज निकली.

निलेश के मुंह से उसी क्षण उफ की आवाज निकली. हम दोनों ने एकदूसरे को देखा.

‘‘तुम्हारा कमर दर्द कैसा है?’’ निलेश का पूछना थोड़ा अजीब लगा.

‘‘ऐसा ही है,’’ और बात खत्म करनी चाही.

‘‘तुम्हारे हार्ट की क्या कंडीशन है? फिर अटैक तो नहीं पड़ा, मैं ने पूछा.’’

‘‘हार्ट…डाक्टर ने स्ट्रेन…मैंटल स्ट्रैस कम करने को कहा है,’’ निलेश ने जानकारी दी.

एकदूसरे को देखा, देखते रहे एकटक जैसे एकदूसरे के चेहरे पर छपे तनाव को पढ़ रहे हों.

‘‘दवा तो लेते रहते हो न?’’ मैं ने निलेश के चेहरे से नजरें हटा पूछा.

‘‘हां, लेता रहता हूं. आज लाना याद नहीं रहा,’’ निलेश ने कहा.

‘‘तभी आज तुम्हारी सांसें उखड़ीउखड़ी सी हैं,’’ बरबस ही हमदर्द लहजे में कहा.

‘‘हां, कुछ इस वजह से और कुछ…’’ कहतेकहते वे रुक गए.

‘‘कुछ…कुछ तनाव के कारण,’’ मैं ने बात पूरी की.

वे कुछ सोचते रहे, फिर बोले,  ‘‘तुम्हें 15 लाख रुपए देने हैं और 20 हजार रुपए महीना भी.’’

‘‘हां, फिर?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नोएडा में फ्लैट है… तुम्हें तो पता है. मैं उसे तुम्हारे नाम कर देता हूं. 15 लाख फिलहाल मेरे पास नहीं हैं,’’ निलेश ने अपने मन की बात कही.

नोएडा वाले फ्लैट की कीमत तो 30 लाख होगी?

मुझे सिर्फ 15 लाख चाहिए… मैं ने अपनी बात स्पष्ट की.

‘‘बेटा बड़ा होगा… सौ खर्च होते हैं,’’ वे बोले.

‘‘वह तो तुम 20 हजार महीना मुझे देते रहोगे,’’ मैं बोली.

‘‘हां जरूर दूंगा.’’

‘‘15 लाख अगर तुम्हारे पास नहीं हैं तो मुझे मत देना,’’ मेरी आवाज में पुराने संबंधों की गर्द थी.

वे मेरा चेहरा देखते रहे.

मैं निलेश को देख रही थी और सोच रही थी कि कितना सरल स्वभाव है इन का… जो कभी मेरे थे. कितने अच्छे हैं… मैं ही खोट निकालती रही…

शायद निलेश भी यही सोच रहे थे. दूसरों की बीमारी की कौन परवाह करता है? यह करती थी परवाह. कभी जाहिर भी नहीं होने देती थी. काश, मैं इस के जज्बे को समझ पाता.

हम दोनों चुप थे, बेहद चुप. दुनिया भर की आवाजों से मुक्त हो कर खामोश.

दोनों भीगी आंखों से एकदूसरे को देखते रहे.

‘‘मुझे एक बात कहनी है,’’ निलेश की आवाज में झिझक थी.

‘‘कहो,’’ मैं ने सजल आंखों से उन्हें देखा.

‘‘डरता हूं,’’ निलेश ने कहा.

‘‘डरो मत. हो सकता है तुम्हारी बात मेरे मन की बात हो.’’

‘‘तुम्हारी बहुत याद आती रही,’’ वे बोले.

‘‘तुम भी,’’ मैं एकदम बोली.

‘‘मैं तुम्हें अब भी प्रेम करता हूं.’’

‘‘मैं भी,’’ तुरंत मैं ने भी कहा.

दोनों की आंखें कुछ ज्यादा ही सजल हो गई थीं. दोनों की आवाज जज्बाती और चेहरे मासूम.

‘‘क्या हम दोनों जीवन को नया मोड़ नहीं दे सकते?’’ निलेश ने पूछा.

‘‘कौन सा मोड़?’’ पूछ ही बैठी.

‘‘हम फिर से साथसाथ रहने लगें… एकसाथ… पतिपत्नी बन कर… बहुत अच्छे दोस्त बन कर?’’

‘‘ये पेपर, यह अर्जी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘फाड़ देते हैं. निलेश ने कहा और अपनेअपने हाथ से तलाक के कागजात फाड़ दिए. फिर हम दोनों उठ खड़े हुए. एकदूसरे के हाथ में हाथ डाल कर मुसकराए.’’

दोनों पक्षों के वकील हैरानपरेशान थे. दोनों पतिपत्नी हाथ में हाथ डाले घर की तरफ चल दिए. सब से पहले हम दोनों मेरे घर आए. मातापिता से आशीर्वाद लिया. आज उन के चेहरे पर संतुष्टि थी. 2 साल बाद मांपापा को इतना खुश देखा था. फिर हम बेटे के साथ इन के घर, हमारे घर, जो सिर्फ और सिर्फ पतिपत्नी का था. 2 दोस्तों का था, चल दिए.

वक्त बदल गया और हालात भी. कल भी हम थे और आज भी हम ही पर अब किसी कड़वाहट की जगह नहीं. यह सुधरा संबंध है. पतिपत्नी के रिश्ते से भी कुछ ज्यादा खास. Family Story

Samantha Ruth: तलाक के बाद ठुकरा दिए ऐलिमनी के करोड़ों रुपए

Samantha Ruth: कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन के लिए पैसे से ज्यादा इमोशंस महत्त्वपूर्ण होते हैं जिस के चलते पति द्वारा ऐलिमनी के नाम पर दिया गया पैसा टूटे दिल का जख्म नहीं भर सकता, लेकिन फिर भी ज्यादातर लोग प्यार, शादी और रिश्ते से ज्यादा पैसे को महत्ता देते हैं और भविष्य के लिए ऐलिमनी के नाम पर जो भी मिलता है तलाक के बाद पति से ले लेते हैं.

खुद पर विश्वास

लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ऐलिमनी ठुकराने का भी दम रखते हैं. ऐसी ही एक मशहूर ऐक्ट्रैस सामंथा रुथ प्रभु हैं जिन की शादी 2017 में नागा चैतन्य से हुई थी. वे दोनों 2021 में दोनों अलग हो गए थे. उन के रिश्ते के टूटने की वजह तो पता नहीं चल पाई लेकिन खबरों के अनुसार उन के पति साउथ के सुपरस्टार नागा चैतन्य ने 200 करोड़ एलिमनी औफर दिया था जिसे सामंथा रूथ ने लेने से इनकार कर दिया.

उन को ₹50 करोड़ का भी औफर दिया था, लेकिन उसे भी सामंथा ने लेने से इनकार कर दिया क्योंकि उन के हिसाब से दिल तोड़ने और बेवफाई की भरपाई की कोई कीमत नहीं होती.

 

प्यार, शादी और धोखा

सामंथा को जब नागा चैतन्य से प्यार में धोखा मिला था, तब सामंथा मां बनने की तैयारी कर रही थीं. लिहाजा, सामंथा ने अपने पति नागा चैतन्य से तलाक के बाद एलिमनी लेने से मना कर दिया और अपनी मेहनत के दम पर सिर्फ साउथ में ही नहीं, बल्कि बौलीवुड में भी अपनी अलग पहचान बना ली.

फिल्म ‘पुष्पा’ में स्पैशल कैमियो करने के अलावा वरुण धवन के साथ फिल्म ‘हनी बनी’ को ले कर भी वे काफी चर्चा में हैं.

तलाक के बाद समांथा को अपनी बीमारी औटोइम्यून मायोसिटीस के बारे में भी पता चला जिस का जिक्र उन्होंने करण जौहर के शो में किया था. इतनी सारी मुश्किलों के बावजूद समांथा प्रभु बौलीवुड और साउथ में पूरी तरह सक्रिय हैं, वही उन के पति नागा चैतन्य ने दूसरी शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसा ली है. Samantha Ruth

Romantic Story : इसे ही प्यार कहते हैं

Romantic Story :  अनुपम और शिखा दोनों इंगलिश मीडियम के सैंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ते थे. दोनों ही उच्चमध्यवर्गीय परिवार से थे. शिखा मातापिता की इकलौती संतान थी जबकि अनुपम की एक छोटी बहन थी. धनसंपत्ति के मामले में शिखा का परिवार अनुपम के परिवार की तुलना में काफी बेहतर था. शिखा के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. उन की ऊपरी आमदनी काफी थी. शहर में उन का रुतबा था. अनुपम और शिखा दोनों पहली कक्षा से ही साथ पढ़ते आए थे, इसलिए वे अच्छे दोस्त बन गए थे. दोनों के परिवारों में भी अच्छी दोस्ती थी. शिखा सुंदर थी अनुपम देखने में काफी स्मार्ट था.

उस दिन उन का 10वीं के बोर्ड का रिजल्ट आने वाला था. शिखा भी अनुपम के घर अपना रिजल्ट देखने आई. अनुपम ने अपना लैपटौप खोला और बोर्ड की वैबसाइट पर गया. कुछ ही पलों में दोनों का रिजल्ट भी पता चल गया. अनुपम को 95 प्रतिशत अंक मिले थे और शिखा को 85 प्रतिशत. दोनों अपनेअपने रिजल्ट से संतुष्ट थे. और एकदूसरे को बधाई दे रहे थे. अनुपम की मां ने दोनों का मुंह मीठा कराया.

शिखा बोली, ‘‘अब आगे क्या पढ़ना है, मैथ्स या बायोलौजी? तुम्हारे तो दोनों ही सब्जैक्ट्स में अच्छे मार्क्स हैं?’’

‘‘मैं तो पीसीएम ही लूंगा. और तुम?’’

‘‘मैं तो आर्ट्स लूंगी, मेरा प्रशासनिक सेवा में जाने का मन है.’’

‘‘मेरी प्रशासनिक सेवा में रुचि नहीं है. जिंदगीभर नेताओं और मंत्रियों की जीहुजूरी करनी होगी.’’

‘‘मैं तुम्हें एक सलाह दूं?’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘तुम पायलट बनो. तुम पर पायलट वाली ड्रैस बहुत सूट करेगी और तुम दोगुना स्मार्ट लगोगे. मैं भी तुम्हारे साथसाथ हवा में उड़ने लगूंगी.’’

‘‘मेरे साथ?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, पायलट अपनी बीवी को साथ नहीं ले जा सकते, क्या.’’

तब शिखा को ध्यान आया कि वह क्या बोल गई और शर्म के मारे वहां से भाग गई. अनुपम पुकारता रहा पर उस ने मुड़ कर पीछे नहीं देखा. थोड़ी देर में अनुपम की मां भी वहां आ गईं. वे उन दोनों की बातें सुन चुकी थीं. उन्होंने कहा, ‘‘शिखा ने अनजाने में अपने मन की बात कह डाली है. शिखा तो अच्छी लड़की है. मुझे तो पसंद है. तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो. अगर तुम्हें पसंद है तो मैं उस की मां से बात करती हूं.’’

अनुपम बोला, ‘‘यह तो बाद की बात है मां, अभी तक हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं. पहले मुझे अपना कैरियर देखना है.’’

मां बोलीं, ‘‘शिखा ने अच्छी सलाह दी है तुम्हें. मेरा बेटा पायलट बन कर बहुत अच्छा लगेगा.’’

‘‘मम्मी, उस में बहुत ज्यादा खर्च आएगा.’’

‘‘खर्च की चिंता मत करो, अगर तुम्हारा मन करता है तब तुम जरूर पायलट बनो अन्यथा अगर कोई और पढ़ाई करनी है तो ठीक से सोच लो. तुम्हारी रुचि जिस में हो, वही पढ़ो,’’ अनुपम के पापा ने उन की बात सुन कर कहा.

उन दिनों 21वीं सदी का प्रारंभ था. भारत के आकाशमार्ग में नईनई एयरलाइंस कंपनियां उभर कर आ रही थीं. अनुपम ने मन में सोचा कि पायलट का कैरियर भी अच्छा रहेगा. उधर अनुपम की मां ने भी शिखा की मां से बात कर शिखा के मन की बात बता दी थी. दोनों परिवार भविष्य में इस रिश्ते को अंजाम देने पर सहमत थे.

एक दिन स्कूल में अनुपम ने शिखा से कहा, ‘‘मैं ने सोच लिया है कि मैं पायलट ही बनूंगा. तुम मेरे साथ उड़ने को तैयार रहना.’’

‘‘मैं तो न जाने कब से तैयार बैठी हूं,’’ शरारती अंदाज में शिखा ने कहा.

‘‘ठीक है, मेरा इंतजार करना, पर कमर्शियल पायलट बनने के बाद ही शादी करूंगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम.’’

अब अनुपम और शिखा दोनों काफी नजदीक आ चुके थे. दोनों अपने भविष्य के सुनहरे सपने देखने लगे थे. देखतेदेखते दोनों 12वीं पास कर चुके थे. अनुपम को अच्छे कमर्शियल पायलट बनने के लिए अमेरिका के एक फ्लाइंग स्कूल जाना था.

भारत में मल्टीइंजन वायुयान और एयरबस ए-320 जैसे विमानों पर सिमुलेशन की सुविधा नहीं थी जोकि अच्छे कमर्शियल पायलट के लिए जरूरी था. इसलिए अनुपम के पापा ने गांव की जमीन बेच कर और कुछ प्रोविडैंट फंड से लोन ले कर अमेरिकन फ्लाइंग स्कूल की फीस का प्रबंध कर लिया था. अनुपम ने अमेरिका जा कर एक मान्यताप्राप्त फ्लाइंग स्कूल में ऐडमिशन लिया. शिखा ने स्थानीय कालेज में बीए में ऐडमिशनले लिया.

अमेरिका जाने के बाद फोन और वीडियो चैट पर दोनों बातें करते. समय का पहिया अपनी गति से घूम रहा था. देखतेदेखते 3 वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका था. अनुपम को कमर्शियल पायलट लाइसैंस मिल गया. शिखा को प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. उस ने अनुपम से कहा कि प्रशासनिक सेवा के लिए वह एक बार और कंपीट करने का प्रयास करेगी.

अनुपम ने प्राइवेट एयरलाइंस में पायलट की नौकरी जौइन की. लगभग 2 साल वह घरेलू उड़ान पर था. एकदो बार उस ने शिखा को भी अपनी फ्लाइट से सैर कराई. शिखा को कौकपिट दिखाया और कुछ विमान संचालन के बारे में बताया. शिखा को लगा कि उस का सपना पूरा होने जा रहा है. एक साल बाद अनुपम को अंतर्राष्ट्रीय वायुमार्ग पर उड़ान भरने का मौका मिला. कभी सिंगापुर, कभी हौंगकौंग तो कभी लंदन.

शिखा को दूसरे वर्ष भी प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. इधर शिखा के परिवार वाले उस की शादी जल्दी करना चाहते थे. अनुपम ने उन से 1-2 साल का और समय मांगा. दरअसल, अनुपम के पिता उस की पढ़ाई के लिए काफी कर्ज ले चुके थे. अनुपम चाहता था कि अपनी कमाई से कुछ कर्ज उतार दे और छोटी बहन की शादी हो जाए.

वैसे तो वह प्राइवेट एयरलाइंस घरेलू वायुसेवा में देश में दूसरे स्थान पर थी पर इस कंपनी की आंतरिक स्थिति ठीक नहीं थी. 2007 में कंपनी ने दूसरी घरेलू एयरलाइंस कंपनी को खरीदा था जिस के बाद इस की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी थी. 2010 तक हालत बदतर होने लगे थे. बीचबीच में कर्मचारियों को बिना वेतन 2-2 महीने काम करना पड़ा था.

उधर शिखा के पिता शादी के लिए अनुपम पर दबाव डाल रहे थे. पर बारबार अनुपम कुछ और समय मांगता ताकि पिता का बोझ कुछ हलका हो. जो कुछ अनुपम की कमाई होती, उसे वह पिता को दे देता. इसी वजह से अनुपम की बहन की शादी भी अच्छे से हो गई. उस के पिता रिटायर भी हो गए थे.

रिटायरमैंट के समय जो कुछ रकम मिली और अनुपम की ओर से मिले पैसों को मिला कर उन्होंने शहर में एक फ्लैट ले लिया. पर अभी भी फ्लैट के मालिकाना हक के लिए और रुपयों की जरूरत थी. अनुपम को कभी 2 महीने तो कभी 3 महीने पर वेतन मिलता जो फ्लैट में खर्च हो जाता. अब भी एक बड़ी रकम फ्लैट के लिए देनी थी.

एक दिन शिखा के पापा ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आज अनुपम से फाइनल बात कर लेता हूं, आखिर कब तक इंतजार करूंगा और दूसरी बात, मुझे पायलट की नौकरी उतनी पसंद भी नहीं. ये लोग देशविदेश घूमते रहते हैं. इस का क्या भरोसा, कहीं किसी के साथ चक्कर न चल रहा हो.’’

अनुपम के मातापिता तो चाहते थे कि अनुपम शादी के लिए तैयार हो जाए, पर वह तैयार नहीं हुआ. उस का कहना था कि कम से कम यह घर तो अपना हो जाए, उस के बाद ही शादी होगी. इधर एयरलाइंस की हालत बद से बदतर होती गई. वर्ष 2012 में जब अनुपम घरेलू उड़ान पर था तो उस ने दर्दभरी आवाज में यात्रियों को संबोधित किया, ‘‘आज की आखिरी उड़ान में आप लोगों की सेवा करने का अवसर मिला. हम ने 2 महीने तक बिना वेतन के अपनी समझ और सामर्थ्य के अनुसार आप की सेवा की है.’’

इस के चंद दिनों बाद इस एयरलाइंस की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों का लाइसैंस रद्द कर दिया गया. पायलट हो कर भी अनुपम बेकार हो गया.

शिखा के पिता ने बेटी से कहा, ‘‘बेटे, हम ने तुम्हारे लिए एक आईएएस लड़का देखा है. वे लोग तुम्हें देख चुके हैं और तुम से शादी के लिए तैयार हैं. वे कोई खास दहेज भी नहीं मांग रहे हैं वरना आजकल तो आईएएस को करोड़ डेढ़करोड़ रुपए आसानी से मिल जाता है.’’

‘‘पापा, मैं और अनुपम तो वर्षों से एकदूसरे को जानते हैं और चाहते भी हैं. यह तो उस के साथ विश्वासघात होगा. हम कुछ और इंतजार कर सकते हैं. हर किसी का समय एकसा नहीं होता. कुछ दिनों में उस की स्थिति भी अच्छी हो जाएगी, मुझे पूरा विश्वास है.’’

‘‘हम लोग लगभग 2 साल से उसी के इंतजार में बैठे हैं, अब और समय गंवाना व्यर्थ है.’’

‘‘नहीं, एक बार मुझे अनुपम से बात करने दें.’’

शिखा ने अनुपम से मिल कर यह बात बताई. शिखा तो कोर्ट मैरिज करने को भी तैयार थी पर अनुपम को यह ठीक नहीं लगा. वह तो अनुपम का इंतजार भी करने को तैयार थी.

शिखा ने पिता से कहा, ‘‘मैं अनुपम के लिए इंतजार कर सकती हूं.’’

‘‘मगर, मैं नहीं कर सकता और न ही लड़के वाले. इतना अच्छा लड़का मैं हाथ से नहीं निकलने दूंगा. तुम्हें इस लड़के से शादी करनी होगी.’’

उस के पिता ने शिखा की मां को बुला कर कहा, ‘‘अपनी बेटी को समझाओ वरना मैं अभी के तुम को गोली मार कर खुद को भी गोली मार दूंगा.’’ यह बोल कर उन्होंने पौकेट से पिस्तौल निकाल कर पत्नी पर तान दी.

मां ने कहा, ‘‘बेटे, पापा का कहना मान ले. तुम तो इन का स्वभाव जानती हो. ये कुछ भी कर बैठेंगे.’’

शिखा को आखिरकार पिता का कहना मानना पड़ा ही शिखा अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की पत्नी थी. उस के पास सबकुछ था, घर, बंगला, नौकरचाकर. कुछ दिनों तक तो वह थोड़ी उदास रही पर जब वह प्रैग्नैंट हुई तो उस का मन अब अपने गर्भ में पलने वाले जीव की ओर आकृष्ट हुआ.

उधर, अनुपम के लिए लगभग 1 साल का समय ठीक नहीं रहा. एक कंपनी से उसे पायलट का औफर भी मिला तो वह कंपनी उस की लाचारी का फायदा उठा कर इतना कम वेतन दे रही थी कि वह तैयार नहीं हुआ. इस के कुछ ही महीने बाद उसे सिंगापुर के एक मशहूर फ्लाइंग एकेडमी में फ्लाइट इंस्ट्रक्टर की नौकरी मिल गई. वेतन, पायलट की तुलना में कम था पर आराम की नौकरी थी. ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी थी  इस नौकरी में. अनुपम सिंगापुर चला गया.

इधर शिखा ने एक बेटे को जन्म दिया. देखतेदेखते एक साल और गुजर गया. अनुपम के मातापिता अब उस की शादी के लिए दबाव बना रहे थे. अनुपम ने सबकुछ अपने मातापिता पर छोड़ दिया था. उस ने बस इतना कहा कि जिस लड़की को वे पसंद करें उस से फाइनल करने से पहले वह एक बार बात करना चाहेगा.

कुछ दिनों बाद अनुपम अपने एक दोस्त की शादी में भारत आया. वह दोस्त का बराती बन कर गया. जयमाला के दौरान स्टेज पर ही लड़की लड़खड़ा कर गिर पड़ी. उस का बाएं पैर का निचला हिस्सा कृत्रिम था, जो निकल पड़ा था. पूरी बरात और लड़की के यहां के मेहमान यह देख कर आश्चर्यचकित थे.

दूल्हे के पिता ने कहा, ‘‘यह शादी नहीं हो सकती. आप लोगों ने धोखा दिया है.’’

लड़की के पिता बोले, ‘‘आप को तो मैं ने बता दिया था कि लड़की का एक पैर खराब है.’’

‘‘आप ने सिर्फ खराब कहा था. नकली पैर की बात नहीं बताई थी. यह शादी नहीं होगी और बरात वापस जाएगी.’’

तब तक लड़की का भाई भी आ कर बोला, ‘‘आप को इसीलिए डेढ़ करोड़ रुपए का दहेज दिया गया है. शादी तो आप को करनी ही होगी वरना…’’

अनुपम का दोस्त, जो दूल्हा था, ने कहा, ‘‘वरना क्या कर लेंगे. मैं जानता हूं आप मजिस्ट्रेट हैं. देखता हूं आप क्या कर लेंगे. अपनी दो नंबर की कमाई के बल पर आप जो चाहें नहीं कर सकते. आप ने नकली पैर की बात क्यों छिपाई थी. लड़की दिखाने के समय तो हम ने इस की चाल देख कर समझा कि शायद पैर में किसी खोट के चलते लंगड़ा कर चल रही है, पर इस का तो पैर ही नहीं है, अब यह शादी नहीं होगी. बरात वापस जाएगी.’’

तब तक अनुपम भी दोस्त के पास पहुंचा. उस के पीछे एक महिला गोद में बच्चे को ले कर आई. वह शिखा थी. उस ने दुलहन बनी लड़की का पैर फिक्स किया. वह शिखा से रोते हुए बोली, ‘‘भाभी, मैं कहती थी न कि मेरी शादी न करें आप लोग. मुझे बोझ समझ कर घर से दूर करना चाहा था न?’’

‘‘नहीं मुन्नी, ऐसी बात नहीं है. हम तो तुम्हारा भला सोच रहे थे.’’ शिखा इतना ही बोल पाई थी और उस की आंखों से आंसू निकलने लगे. इतने में उस की नजर अनुपम पर पड़ी तो बोली, ‘‘अनुपम, तुम यहां?’’

अनुपम ने शिखा की ओर देखा. मुन्नी और विशेष कर शिखा को रोते देख कर वह भी दुखी था. बरात वापस जाने की तैयारी में थी. दूल्हेदोस्त ने शिखा को देख कर कहा, ‘‘अरे शिखा, तुम यहां?’’

‘‘हां, यह मेरी ननद मुन्नी है.’’

‘‘अच्छा, तो यह तुम लोगों का फैमिली बिजनैस है. तुम ने अनुपम को ठगा और अब तुम लोग मुझे उल्लू बना रहे थे. चल, अनुपम चल, अब यहां नहीं रुकना है.’’

अनुपम बोला, ‘‘तुम चलो, मैं शिखा से बात कर के आता हूं.’’

बरात लौट गई. शिखा अनुपम से बोली, ‘‘मुझे उम्मीद है, तुम मुझे गलत नहीं समझोगे और माफ कर दोगे. मैं अपने प्यार की कुर्बानी देने के लिए मजबूर थी. अगर ऐसा नहीं करती तो मैं अपनी मम्मी और पापा की मौत की जिम्मेदार होती.’’

‘‘मैं ने न तुम्हें गलत समझा है और न ही तुम्हें माफी मांगने की जरूरत है.’’

लड़की के पिता ने बरातियों से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आप लोग क्षमा करें, मैं बेटी के हाथ तो पीले नहीं कर सका लेकिन आप लोग कृपया भोजन कर के जाएं वरना सारा खाना व्यर्थ बरबाद जाएगा.’’

मेहमानों ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में हमारे गले के अंदर निवाला नहीं उतरेगा. बिटिया की डोली न उठ सकी इस का हमें भी काफी दुख है. हमें माफ करें.’’

तब अनुपम ने कहा, ‘‘आप की बिटिया की डोली उठेगी और मेरे घर तक जाएगी. अगर आप लोगों को ऐतराज न हो.’’

वहां मौजूद सभी लोगों की निगाहें अनुपम पर गड़ी थीं. लड़की के पिता ने  झुक कर अनुपम के पैर छूने चाहे तो उस ने तुरंत उन्हें मना किया.

शिखा के पति ने कहा, ‘‘मुझे शिखा ने तुम्हारे बारे में बताया था कि तुम दोनों स्कूल में अच्छे दोस्त थे. पर मैं तुम से अभी तक मिल नहीं सका था. तुम ने मेरे लिए ऐसे हीरे को छोड़ दिया.’’

मुन्नी की शादी उसी मंडप में हुई. विदा होते समय वह अपनी भाभी शिखा से बोली, ‘‘प्यार इस को कहते हैं, भाभी. आप के या आप के परिवार को अनुपम अभी भी दुखी नहीं देखना चाहते हैं.’’

Love Story : रूम शेयरिंग में लव

Love Story : सर्द मौसम था, हड्डियों को कंपकंपा देने वाली ठंड. शुक्र था औफिस का काम कल ही निबट गया था. दिल्ली से उस का मसूरी आना सार्थक हो गया था. बौस निश्चित ही उस से खुश हो जाएंगे.

श्रीनिवास खुद को काफी हलका महसूस कर रहा था. मातापिता की वह इकलौती संतान थी. उस के अलावा 2 छोटी बहनें थीं. पिता नौकरी से रिटायर्ड थे. बेटा होने के नाते घर की जिम्मेदारी उसे ही निभानी थी. वह बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी रहा है. मल्टीनैशनल कंपनी में उसे जौब पढ़ाई खत्म करते ही मिल गई थी. आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक तो वह था ही, बोलने में भी उस का जवाब नहीं था. लोग जल्दी ही उस से प्रभावित हो जाते थे. कई लड़कियों ने उस से दोस्ती करने की कोशिश की लेकिन अभी वह इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता था.

श्रीनिवास ने सोचा था मसूरी में उसे 2 दिन लग जाएंगे, लेकिन यहां तो एक दिन में ही काम निबट गया. क्यों न कल मसूरी घूमा जाए. श्रीनिवास मजे से गरम कंबल में सो गया.

अगले दिन वह मसूरी के माल रोड पर खड़ा था. लेकिन पता चला आज वहां टैक्सी व बसों की हड़ताल है.

‘ओफ, इस हड़ताल को भी आज ही होना था,’ श्रीनिवास अभी सोच में पड़ा ही था कि एक टैक्सी वाला उस के पास आ कानों में फुसफुसाया, ‘साहब, कहां जाना है.’

‘अरे भाई, मसूरी घूमना था लेकिन इस हड़ताल को भी आज होना था.’

‘कोई दिक्कत नहीं साहब, अपनी टैक्सी है न. इस हड़ताल के चक्कर में अपनी वाट लग जाती है. सरजी, हम आप को घुमाने ले चलते हैं लेकिन आप को एक मैडम के साथ टैक्सी शेयर करनी होगी. वे भी मसूरी घूमना चाहती हैं. आप को कोई दिक्कत तो नहीं,’ ड्राइवर बोला.

‘कोई चारा भी तो नहीं. चलो, कहां है टैक्सी.’

ड्राइवर ने दूर खड़ी टैक्सी के पास खड़ी लड़की की ओर इशारा किया.

श्रीनिवास ड्राइवर के साथ चल पड़ा.

‘हैलो, मैं श्रीनिवास, दिल्ली से.’

‘हैलो, मैं मनामी, लखनऊ से.’

‘मैडम, आज मसूरी में हम 2 अनजानों को टैक्सी शेयर करना है. आप कंफर्टेबल तो रहेंगी न.’

‘अ…ह थोड़ा अनकंफर्टेबल लग तो रहा है पर इट्स ओके.’

इतने छोटे से परिचय के साथ गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर ने बताया, ‘सर, मसूरी से लगभग 30 किलोमीटर दूर टिहरी जाने वाली रोड पर शांत और खूबसूरत जगह धनौल्टी है. आज सुबह से ही वहां बर्फबारी हो रही है. क्या आप लोग वहां जा कर बर्फ का मजा लेना चाहेंगे?’

मैं ने एक प्रश्नवाचक निगाह मनामी पर डाली तो उस की भी निगाह मेरी तरफ ही थी. दोनों की मौन स्वीकृति से ही मैं ने ड्राइवर को धनौल्टी चलने को हां कह दिया.

गूगल से ही थोड़ाबहुत मसूरी और धनौल्टी के बारे में जाना था. आज प्रत्यक्षरूप से देखने का पहली बार मौका मिला है. मन बहुत ही कुतूहल से भरा था. खूबसूरत कटावदार पहाड़ी रास्ते पर हमारी टैक्सी दौड़ रही थी. एकएक पहाड़ की चढ़ाई वाला रास्ता बहुत ही रोमांचकारी लग रहा था.

बगल में बैठी मनामी को ले कर मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे. मन हो रहा था कि पूछूं कि यहां किस सिलसिले में आई हो, अकेली क्यों हो. लेकिन किसी अनजान लड़की से एकदम से यह सब पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

मनामी की गहरी, बड़ीबड़ी आंखें उसे और भी खूबसूरत बना रही थीं. न चाहते हुए भी मेरी नजरें बारबार उस की तरफ उठ जातीं.

मैं और मनामी बीचबीच में थोड़ा बातें करते हुए मसूरी के अनुपम सौंदर्य को निहार रहे थे. हमारी गाड़ी कब एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर पहुंच गई, पता ही नहीं चल रहा था. कभीकभी जब गाड़ी को हलका सा ब्रेक लगता और हम लोगों की नजरें खिड़की से नीचे जातीं तो गहरी खाई देख कर दोनों की सांसें थम जातीं. लगता कि जरा सी चूक हुई तो बस काम तमाम हो जाएगा.

जिंदगी में आदमी भले कितनी भी ऊंचाई पर क्यों न हो पर नीचे देख कर गिरने का जो डर होता है, उस का पहली बार एहसास हो रहा था.

‘अरे भई, ड्राइवर साहब, धीरे… जरा संभल कर,’ मनामी मौन तोड़ते हुए बोली.

‘मैडम, आप परेशान मत होइए. गाड़ी पर पूरा कंट्रोल है मेरा. अच्छा सरजी, यहां थोड़ी देर के लिए गाड़ी रोकता हूं. यहां से चारों तरफ का काफी सुंदर दृश्य दिखता है.’

बचपन में पढ़ते थे कि मसूरी पहाड़ों की रानी कहलाती है. आज वास्तविकता देखने का मौका मिला.

गाड़ी से बाहर निकलते ही हाड़ कंपा देने वाली ठंड का एहसास हुआ. चारों तरफ से धुएं जैसे उड़ते हुए कोहरे को देखने से लग रहा था मानो हम बादलों के बीच खड़े हो कर आंखमिचौली खेल रहे हों. दूरबीन से चारों तरफ नजर दौड़ाई तो सोचने लगे कहां थे हम और कहां पहुंच गए.

अभी तक शांत सी रहने वाली मनामी धीरे से बोल उठी, ‘इस ठंड में यदि एक कप चाय मिल जाती तो अच्छा रहता.’

‘चलिए, पास में ही एक चाय का स्टौल दिख रहा है, वहीं चाय पी जाए,’ मैं मनामी से बोला.

हाथ में गरम दस्ताने पहनने के बावजूद चाय के प्याले की थोड़ी सी गरमाहट भी काफी सुकून दे रही थी.मसूरी के अप्रतिम सौंदर्य को अपनेअपने कैमरों में कैद करते हुए जैसे ही हमारी गाड़ी धनौल्टी के नजदीक पहुंचने लगी वैसे ही हमारी बर्फबारी देखने की आकुलता बढ़ने लगी. चारों तरफ देवदार के ऊंचेऊंचे पेड़ दिखने लगे थे जो बर्फ से आच्छादित थे. पहाड़ों पर ऐसा लगता था जैसे किसी ने सफेद चादर ओढ़ा दी हो. पहाड़ एकदम सफेद लग रहे थे.

पहाड़ों की ढलान पर काफी फिसलन होने लगी थी. बर्फ गिरने की वजह से कुछ भी साफसाफ नहीं दिखाई दे रहा था. कुछ ही देर में ऐसा लगने लगा मानो सारे पहाड़ों को प्रकृति ने सफेद रंग से रंग दिया हो. देवदार के वृक्षों के ऊपर बर्फ जमी पड़ी थी, जो मोतियों की तरह अप्रतिम आभा बिखेर रही थी.

गाड़ी से नीचे उतर कर मैं और मनामी भी गिरती हुई बर्फ का भरपूर आनंद ले रहे थे. आसपास अन्य पर्यटकों को भी बर्फ में खेलतेकूदते देख बड़ा मजा आ रहा था.

‘सर, आज यहां से वापस लौटना मुमकिन नहीं होगा. आप लोगों को यहीं किसी गैस्टहाउस में रुकना पड़ेगा,’ टैक्सी ड्राइवर ने हमें सलाह दी.

‘चलो, यह भी अच्छा है. यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को और अच्छी तरह से एंजौय करेंगे,’ ऐसा सोच कर मैं और मनामी गैस्टहाउस बुक करने चल दिए.

‘सर, गैस्टहाउस में इस वक्त एक ही कमरा खाली है. अचानक बर्फबारी हो जाने से यात्रियों की संख्या बढ़ गई है. आप दोनों को एक ही रूम शेयर करना पड़ेगा,’ ड्राइवर ने कहा.

‘क्या? रूम शेयर?’ दोनों की निगाहें प्रश्नभरी हो कर एकदूसरे पर टिक गईं. कोई और रास्ता न होने से फिर मौन स्वीकृति के साथ अपना सामान गैस्टहाउस के उस रूम में रखने के लिए कह दिया.

गैस्टहाउस का वह कमरा खासा बड़ा था. डबलबैड लगा हुआ था. इसे मेरे संस्कार कह लो या अंदर का डर. मैं ने मनामी से कहा, ‘ऐसा करते हैं, बैड अलगअलग कर बीच में टेबल लगा लेते हैं.’

मनामी ने भी अपनी मौन सहमति दे दी.

हम दोनों अपनेअपने बैड पर बैठे थे. नींद न मेरी आंखों में थी न मनामी की. मनामी के अभी तक के साथ से मेरी उस से बात करने की हिम्मत बढ़ गई थी. अब रहा नहीं जा रहा था,  बोल पड़ा, ‘तुम यहां मसूरी क्या करने आई हो.’

मनामी भी शायद अब तक मुझ से सहज हो गई थी. बोली, ‘मैं दिल्ली में रहती हूं.’

‘अच्छा, दिल्ली में कहां?’

‘सरोजनी नगर.’

‘अरे, वाट ए कोइनस्टिडैंट. मैं आईएनए में रहता हूं.’

‘मैं ने हाल ही में पढ़ाई कंप्लीट की है. 2 और छोटी बहनें हैं. पापा रहे नहीं. मम्मी के कंधों पर ही हम बहनों का भार है. सोचती थी जैसे ही पढ़ाई पूरी हो जाएगी, मम्मी का भार कम करने की कोशिश करूंगी, लेकिन लगता है अभी वह वक्त नहीं आया.

‘दिल्ली में जौब के लिए इंटरव्यू दिया था. उन्होंने सैकंड इंटरव्यू के लिए मुझे मसूरी भेजा है. वैसे तो मेरा सिलैक्शन हो गया है, लेकिन कंपनी के टर्म्स ऐंड कंडीशंस मुझे ठीक नहीं लग रहीं. समझ नहीं आ रहा क्या करूं?’

‘इस में इतना घबराने या सोचने की क्या बात है. जौब पसंद नहीं आ रही तो मत करो. तुम्हारे अंदर काबिलीयत है तो जौब दूसरी जगह मिल ही जाएगी. वैसे, मेरी कंपनी में अभी न्यू वैकैंसी निकली हैं. तुम कहो तो तुम्हारे लिए कोशिश करूं.’

‘सच, मैं अपना सीवी तुम्हें मेल कर दूंगी.’

‘शायद, वक्त ने हमें मिलाया इसलिए हो कि मैं तुम्हारे काम आ सकूं,’ श्रीनिवास के मुंह से अचानक निकल गया. मनामी ने एक नजर श्रीकांत की तरफ फेरी, फिर मुसकरा कर निगाहें झुका लीं.

श्रीनिवास का मन हुआ कि ठंड से कंपकंपाते हुए मनामी के हाथों को अपने हाथों में ले ले लेकिन मनामी कुछ गलत न समझ ले, यह सोच रुक गया. फिर कुछ सोचता हुआ कमरे से बाहर चला गया.

सर्दभरी रात. बाहर गैस्टहाउस की छत पर गिरते बर्फ से टपकते पानी की आवाज अभी भी आ रही है. मनामी ठंड से सिहर रही थी कि तभी कौफी का मग बढ़ाते हुए श्रीनिवास ने कहा, ‘यह लीजिए, थोड़ी गरम व कड़क कौफी.’

तभी दोनों के हाथों का पहला हलका सा स्पर्श हुआ तो पूरा शरीर सिहर उठा. एक बार फिर दोनों की नजरें टकरा गईं. पूरे सफर के बाद अभी पहली बार पूरी तरह से मनामी की तरफ देखा तो देखता ही रह गया. कब मैं ने मनामी के होंठों पर चुंबन रख दिया, पता ही नहीं चला. फिर मौन स्वीकृति से थोड़ी देर में ही दोनों एकदूसरे की आगोश में समा गए.

सांसों की गरमाहट से बाहर की ठंड से राहत महसूस होने लगी. इस बीच मैं और मनामी एकदूसरे को पूरी तरह कब समर्पित हो गए, पता ही नहीं चला. शरीर की कंपकपाहट अब कम हो चुकी थी. दोनों के शरीर थक चुके थे पर गरमाहट बरकरार थी.

रात कब गुजर गई, पता ही नहीं चला. सुबहसुबह जब बाहर पेड़ों, पत्तों पर जमी बर्फ छनछन कर गिरने लगी तो ऐसा लगा मानो पूरे जंगल में किसी ने तराना छेड़ दिया हो. इसी तराने की हलकी आवाज से दोनों जागे तो मन में एक अतिरिक्त आनंद और शरीर में नई ऊर्जा आ चुकी थी. मन में न कोई अपराधबोध, न कुछ जानने की चाह. बस, एक मौन के साथ फिर मैं और मनामी साथसाथ चल दिए. Love Story

Aamir Khan: घर के बाहर फैंस को देख हुए खुश, लेकिन बाद में जो हुआ…

Aamir Khan: हर कलाकार की तमन्ना होती है कि उसके हजारों लाख को फैन हो जो उनकी एक झलक पाने के लिए अपने पसंदीदा कलाकार का घंटों इंतजार करें. बॉलीवुड में कुछ ही कलाकार ऐसे हैं जिनकी झलक देखने के लिए उनके घर के बाहर हजारों में भीड़ जमा होती है. इसमें पहला नाम आता है अमिताभ बच्चन का जिनके जुहू स्थित बंगले के बाहर हमेशा हफ्ते में एक दिन रविवार को हजारों की तादाद में भीड़ जमा होती है, अमिताभ बच्चन की एक झलक देखने के लिए घंटो उनका इंतजार करती है, ऐसा ही कुछ सलमान और शाहरुख के घर के बाहर भी उनके फैंस की भीड़ का नजारा देखने को मिलता रहता है.

लेकिन तीनों खानों में आमिर खान ही एक ऐसे खान है जो इतनी ज्यादा डाउन टू अर्थ है कि उनके घर के बाहर कभी आमिर के फैंस की भीड़ देखने को नहीं मिली, सरल स्वभाव के परफेक्शनिस्ट आमिर खान इतने डाउन टू अर्थ है, की प्लेन में भी वो बिजनेस क्लास में नहीं बल्कि आम लोगों के साथ इकोनॉमी क्लास में सफर करते है.

और लातूर जैसे गांव जाकर पानी योजना पर गांव वालों के साथ मिल कर काम करते हैं. इसी के चलते हाल ही में जब एक इंटरव्यू के दौरान आमिर खान से सवाल किया गया कि सलमान और शाहरुख की तरह उनके घर के बाहर भीड़ क्यों नहीं लगती? जिसके जवाब में आमिर खान ने हंसते हुए बताया, की एक बार उनके भी घर के बाहर फैंस की भीड़ थी जब की वह अपना घर रिपेयर होने के चक्कर में कार्टर रोड पर एक बिल्डिंग में 3 साल के लिए शिफ्ट हुए थे.

एक बार उनके घर के बाहर प्रशंसकों की अच्छी खासी भीड़ थी, जिसे देखकर आमिर खान के अनुसार वह बहुत खुश हुए यह सोच कर कि आखिरकार मेरे लिए भी मेरे फैंस मिलने के लिए मेरे घर के बाहर खड़े हुए हैं, उस वक्त मैं अपने उन फैंस से मिलने उनके पास पहुंचा तो पता चला कि वो भीड़ मेरे लिए नहीं बल्कि टाइगर श्रॉफ के ने लगी हुई है. जो कि उसी बिल्डिंग में रहते हैं.

अपने लिए आई हुई भीड़ को लेकर मुझे जो गलतफहमी हुई थी वो पूरी तरह दूर हो गई. उस वक्त मुझे लगा कि शायद मैं उतना बड़ा स्टार नहीं हूं जितना कि अमित जी, सलमान और शाहरुख खान है.

आमिर खान भले ही अपने आप को स्टार ना मानते हो लेकिन उनसे बेहतर कलाकार कोई नहीं है. इस बात में कोई दो राय नहीं है… Aamir Khan

Family Kahani: यूएस में घरसंसार

Family Kahani: ‘‘आप यह नहीं सोचना कि मैं उन की बुराई कर रही हूं, पर…पर…जानती हैं क्या है, वे जरा…सामाजिक नहीं हैं.’’

उस महिला का रुकरुक कर बोला गया वह वाक्य, सोच कर, तोल कर रखे शब्द. ऋचा चौंक गई. लगा, इस सब के पीछे हो न हो एक बवंडर है. उस ने महिला की आंखों में झांकने का प्रयत्न किया, पर आंखों में कोई भाव नहीं थे, था तो एक अपारदर्शी खालीपन.

मुझे आश्चर्य होना स्वाभाविक था. उस महिला से परिचय हुए अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ था और उस से यह दूसरी मुलाकात थी. अभी तो वह ‘गीताजी’ और ‘ऋचाजी’ जैसे औपचारिक संबोधनों के बीच ही गोते खा रही थी कि गीता ने अपनी सफाई देते हुए यह कहा था, ‘‘माफ करना ऋचाजी, हम आप को टैलीफोन न कर सके. बात यह है कि हम…हम कुछ व्यस्त रहे.’’

ऋचा को इस वाक्य ने नहीं चौंकाया. वह जान गई कि अमेरिका में आते ही हम भारतीय व्यस्त हो जाने के आदी हो जाते हैं. भारत में होते हैं तो हम जब इच्छा हो, उठ कर परिचितों, प्रियजनों, मित्रों, संबंधियों के घर जा धमकते हैं. वहां हमारे पास एकदूसरे के लिए समय ही समय होता है. घंटों बैठे रहते हैं, नानुकर करतेकरते भी चायजलपान चलता है क्योंकि वहां ‘न’ का छिपा अर्थ ‘हां’ होता है. किंतु यहां सब अमेरिकन ढंग से व्यस्त हो जाते हैं. टैलीफोन कर के ही किसी के घर जाते हैं और चाय की इच्छा हो तो पूछने पर ‘हां’ ही करते हैं क्योंकि आप ने ‘न’ कहा तो फिर भारतीय भी यह नहीं कहेगा, ‘‘अजी, ले लो. एक कप से क्या फर्क पड़ेगा आप की नींद को,’’ बल्कि अमेरिकन ढंग से कंधे उचका कर कहेगा, ‘‘ठीक है, कोई बात नहीं,’’ और आप बिना चाय के घर.

अमेरिका आए ऋचा को अभी एक माह ही हुआ था. घर की याद आती थी. भारत याद आता था. यहां आने पर ही पता चलता है कि हमारे जीवन में कितनी विविधता है. दैनिक जीवन को चलाने के संघर्ष में ही व्यक्ति इतना डूब जाता है कि उसे कुछ हट कर जीवन पर नजर डालने का अवसर ही नहीं मिलता. यहां जीवन की हर छोटी से छोटी सुखसुविधा उपलब्ध है और फिर भी मन यहां की एकरसता से ऊब जाता है. अजीब एकाकीपन में घिरी ऋचा को जब एक अमेरिकन परिचिता ने ‘फार्म’ पर चलने की दावत दी तो वह फूली न समाई और वहीं गीता से परिचय हुआ था.

शहर से 20-25 किलोमीटर दूर स्थित इस ‘फार्म’ पर हर रविवार शाम को ‘गुडविल’ संस्था के 20-30 लोग आते थे, मिलते थे. कुछ जलपान हो जाता था और हफ्तेभर के लिए दिमाग तरोताजा हो जाता था. यह अनौपचारिक ‘मंडल’ था जिस में विविध देशों के लोगों को आने के लिए खास प्रेरित किया जाता था. सांस्कृतिक आदानप्रदान का एक छोटा सा प्रयास था यह.

यहीं उन गोरे चेहरों में ऋचा ने यह भारतीय चेहरा देखा और उस का मन हलका हो गया. वही गेहुआं रंग, काले घने बाल, माथे पर बिंदी और साड़ी का लहराता पल्ला. दोनों ने एकदूसरे की ओर देखा और अनायास दोनों चेहरों पर मुसकान थिरक गई. फिर परिचय, फिर अतापता, टैलीफोन नंबर का लेनदेन और छोटीमोटी, इधरउधर की बातें. कई दिनों बाद हिंदी में बातचीत कर अच्छा लगा.

तब गीता ने कहा था, ‘‘मैं टैलीफोन करूंगी.’’

और दूसरे सप्ताह मिली तो टैलीफोन न कर सकने का कारण बतातेबताते मन में लगी काई पर से जबान फिसल गई. उस के शब्द ऋचा ने पकड़ लिए, ‘‘वे सामाजिक नहीं हैं…’’ शब्द नहीं, मर्म को छूने वाली आवाज थी शायद, जो उसे चौंका गई. सामाजिक न होना कोई अपराध नहीं, स्वभाव है. गीता के पति सामाजिक नहीं हैं. फिर?

बातचीत का दौर चल रहा था. हरीहरी घास पर रंगबिरंगे कपड़े पहने लोग. लगा वातावरण में चटकीले रंग बिखर गए थे. ऋचा भी इधरउधर घूमघूम कर बातों में उलझी थी. अच्छा लग रहा था, दुनिया का नागरिक होने का आभास. ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की एक नन्ही झलक.

यहां मलयेशिया से आया एक परिवार था, कोई ब्राजील से, ये पतिपत्नी मैक्सिकन थे और वे कोस्टारिका के. सब अपनेअपने ढंग से अंगरेजी बोल रहे थे. कई ऋचा की भारतीय सिल्क साड़ी की प्रशंसा कर रहे थे तो कई बिंदी की ओर इशारा कर पूछ रहे थे कि यह क्या है? क्या यह जन्म से ही है आदि. कुल मिला कर ऐसा समां बंधा था कि ऋचा की हफ्तेभर की थकान मिट गई थी. तभी उस की नजर अकेली खड़ी गीता पर पड़ी. उस का पति बच्चों को संभालने के बहाने भीड़ से दूर चला गया था और उन्हें गाय दिखा रहा था.

ऋचा ने सोचा, ‘सचमुच ही गीता

का पति सामाजिक नहीं है. पर फिर यहां क्यों आते हैं? शायद गीता के कहने पर. किंतु गीता भी कुछ खास हिलीमिली नहीं इन लोगों से.’

‘‘अरे, आप अकेली क्यों खड़ी हैं?’’ कहती हुई ऋचा उस के पास जा खड़ी हुई.

‘‘यों ही, हर सप्ताह ही तो यहां आते हैं. क्या बातचीत करे कोई?’’ गीता ने दार्शनिक अंदाज से कहा.

‘‘हां, हो सकता है. आप तो काफी दिनों से आ रही हैं न?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम्हारे पति को अच्छा लगता है यहां? मेरा मतलब है भीड़ में, लोगों के बीच?’’

‘‘पता नहीं. कुछ कहते नहीं. हर इतवार आते जरूर हैं.’’

‘‘ओह, शायद तुम्हारे लिए,’’ ऋचा कब आप से तुम पर उतर आई वह जान न पाई.

‘‘मेरे लिए, शायद?’’ और गीता के होंठों पर मुसकान ठहर गई, पर होंठों का वक्र बहुत कुछ कह गया. ऋचा को लगा, कदाचित उस ने किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया था, अनजाने ही अपराधबोध से उस ने झट आंखें फेर लीं.

तभी गीता ने उस के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘सच मानो, ऋचा. मैं तो यहां आना बंद ही करने वाली थी कि पिछली बार तुम मिल गईं. बड़ा सहारा सा लगा. इस बार बस, तुम्हारी वजह से आई हूं.’’

‘‘मेरी वजह से?’’

‘‘हां, सोचा दो बातें हो जाएंगी. वरना हमारे न कोई मित्र हैं, न घर आनेजाने वाले. सारा दिन घर में अकेले रह कर ऊब जाती हूं. शाम को कभी बाजार के लिए निकल जाते हैं पर अब तो इन बड़ीबड़ी दुकानों से भी मन ऊब गया है. वही चमकदमक, वही एक सी वस्तुएं, वही डब्बों में बंद सब्जियां, गत्तों के चिकने डब्बों में बंद सीरियल, चाहे कौर्नफ्लैक लो या ओटबार्न, क्या फर्क पड़ता है.’’

गीता अभी बहुत कुछ कहना चाहती थी पर अब चलने का समय हो गया था. उस के पति कार के पास खड़े थे. वह उठ खड़ी हुई. ऋचा को लगा, गीता मन को खोल कर घुटन निकाल दे तो उसे शायद राहत मिलेगी. इस परदेस में इनसान मन भी किस के सामने खोले?

वह अपनी भावुकता को छिपाती हुई बोली, ‘‘गीता, कभी मैं तुम्हारे घर आऊं तो? बुरा तो नहीं मानेंगे तुम्हारे पति?’’

‘‘नहीं. परंतु हां, वे कभी कार से लेने या छोड़ने नहीं आएंगे, जैसे आमतौर पर भारतीय करते हैं. इन से यह सामाजिक औपचारिकता नहीं निभती,’’ वह चलते- चलते बोली. फिर निकट आ गई और साड़ी का पल्ला संवारते हुए धीरे से बोली, ‘‘तभी तो नौकरी छूट गई.’’

और वह चली गई, ऋचा के शांत मन में कंकड़ फेंक कर उठने वाली लहरों के बीच ऋचा का मन कमल के पत्ते की भांति डोलने लगा.

इस परदेस में, अपने घर से, लोगों से, देश से हजारों मील दूर वैसे ही इनसान को घुटन होती है, निहायत अकेलापन लगता है. ऊपर से गीता जैसी स्त्री जिसे पति का भी सहारा न हो. कैसे जी रही होगी यह महिला?

अगली बार गीता मिली तो बहुत उदास थी. पिछले पूरे सप्ताह ऋचा अपने काम में लगी रही. गीता का ध्यान भी उसे कम ही आया. एक बार टैलीफोन पर कुछ मिनट बात हुई थी, बस. अब गीता को देख फिर से मन में प्रश्नों का बवंडर खड़ा हो गया.

इस बार गीता और अधिक खुल कर बोली. सारांश यही था कि पति नौकरी छोड़ कर बैठ गए हैं. कहते हैं भारत वापस चलेंगे. उन का यहां मन नहीं लगता.

‘‘तो ठीक है. वहां जा कर शायद ठीक हो जाएं,’’ ऋचा ने कहा.

गीता की अपारदर्शी आंखों में अचानक ही डर उभर आया.

ऋचा सिहर गई, ‘‘नहीं. ऐसा न कहो. वहां मैं और अकेली पड़

जाऊंगी. इन के सब वहां हैं. इन का पूरा मन वहीं है और मेरा यहां.’’

तब पता चला कि गीता के 2 भाई हैं जो अब इंगलैंड में ही रहते हैं, पहले यहां थे. मातापिता उन के पास हैं. बहन कनाडा में है.

‘‘हमारी शादियां होने तक तो हम सब भारत में थे. फिर एकएक कर के इधर आते गए. मैं सब से छोटी हूं. मेरी शादी के बाद मातापिता भी भाइयों के पास आ गए.’’

गीता एक विचित्र परिस्थिति में थी. पति भारत जाना चाहते थे,वह रोकती थी. घर में क्लेश हो जाता. वे कहते कि अकेले जा कर आऊंगा तो भी गीता को मंजूर नहीं था क्योंकि उसे डर था कि मांबाप, भाईबहनों के बीच में से निकल कर वे नहीं आएंगे.

‘‘बच्चों की खातिर तो लौट आएंगे,’’ ऋचा ने समझाया.

‘‘बच्चों की खातिर? हुंह,’’ स्पष्ट था कि गीता को इस बात का भी भय था कि उन्हें बच्चों से भी लगाव नहीं है. ऋचा को अजीब लगा क्योंकि हर रविवार को बच्चों के साथ वे घंटों खेलते हैं, उन्हें प्यार से रखते हैं.

ऋचा कई बार सोचती, ‘आखिर कमी कहां रह गई है, वह तो सिर्फ गीता का दृष्टिकोण ही जान पाई है. उस के पति से बात नहीं हुई. वैसे गीता यह भी कहती है कि उस के पति बहुत योग्य व्यक्ति हैं और नामी कंप्यूटर वैज्ञानिक हैं. फिर यह सब क्या है?’

अब तो जब मिलो, गीता की वही शिकायत होती. पति ने फिलहाल अकेले भारत जाने की ठानी है. 3-4 महीने में वे चले जाएंगे. तत्पश्चात बच्चों की छुट्टियां होते ही वह जाएगी और फिर सब लौट आएंगे. पिछले 2 रविवारों को ऋचा फार्म पर गई नहीं थी. तीसरे रविवार गई तो गीता मिली. वही चिंतित चेहरा.

गीता के चेहरे पर भय की रेखाएं अब पूरी तरह अंकित थीं.

‘‘उन के बिना यहां…’’ गीता का वाक्य अभी अधूरा ही था कि ऋचा बोल पड़ी.

‘‘उन से इतना लगाव है तो लड़ती क्यों हो?’’

गीता चुप रही. फिर कुछ संभल कर बोली, ‘‘हमारा जीवन तो अस्तव्यस्त हो जाएगा न. बच्चों को स्कूल पहुंचाना, हर हफ्ते की ग्रौसरी शौपिंग, और भी तो गृहस्थी के झंझट होते हैं.’’

तभी गीता की परिचिता एक अमेरिकी महिला आ कर उस से कुछ कहने लगी. गीता का रंग उड़ गया. ऋचा ने उस की ओर देखा. गीता अंगरेजी में जवाब देने के प्रयास में हकला रही थी. ऋचा ने गीता की ओर से ध्यान हटा लिया और दूर एक पेड़ की ओर ध्यानमग्न हो देखने लगी. कुछ देर बाद अमेरिकन महिला चली गई. ऋचा को पता तब चला जब गीता ने उसे झकझोरा.

‘‘तुम ऋचा, दार्शनिक बनी पेड़ ताक रही हो. मैं इधर समस्याओं से घिरी हूं.’’

ऋचा ने उस की शिकायत सुनी- अनसुनी कर दी.

‘‘गीता, यह तुम्हारी अमेरिकी सहेली है. है न?’’

‘‘हां. नहीं. सच पूछो ऋचा, तो मैं कहां दोस्ती बढ़ाऊं? कैसे? अंगरेजी बोलना भी तो नहीं आता. मांबाप ने हिंदी स्कूलों में पढ़ाया.’’

‘‘ऐसा मत कहो,’’ ऋचा ने बीच में टोका, ‘‘अपनी भाषा के स्कूल में पढ़ना कोई गुनाह नहीं.’’

‘‘पर इस से मेरा हाल क्या हुआ, देख रही हो न?’’

‘‘यह स्कूल का दोष नहीं.’’

‘‘फिर?’’

‘‘दोष तुम्हारा है. अपने को समय व परिस्थिति के मुताबिक ढाल न सकना गुनाह है. बेबसी गुनाह है. दूसरे पर अवलंबित रहना गुनाह है. यही गुनाह औरत सदियों से करती चली आ रही है और पुरुषों को दोष देती चली आ रही है,’’ ऋचा तैश में बोलती चली गई. चेहरा तमतमाया हुआ था.

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो, ऋचा?’’

‘‘बताती हूं. सामने पेड़ देख रही हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘उन पेड़ों की टहनियों से ‘लेस’ की भांति नाजुक, हलके हरे रंग की बेल लटक रही है. है न?’’

‘‘हां. पर इन से मेरी समस्या का क्या ताल्लुक?’’

‘‘अमेरिका के दक्षिणी प्रांतों में ये बेलें प्रचुर मात्रा में मिलती हैं…’’

‘‘सुनो, ऋचा. इस वक्त मैं न कविता के मूड में हूं, न भूगोल सीखने के,’’ गीता लगभग चिढ़ गई थी.

ऋचा के चेहरे पर हलकी मुसकराहट उभर आई. फिर अपनी बात को जारी रखते हुए कहने लगी, ‘‘इन बेलों को ‘स्पेनिश मौस’ कहते हैं. इन की खासीयत यह है कि ये बेलें पेड़ से चिपक कर लटकती तो हैं पर उन पर अवलंबित नहीं हैं.’’

‘‘तो मैं क्या करूं इन बेलों का?’’

‘‘तुम्हें स्पेनिश मौस बनना है.’’

‘‘मुझे? स्पेनिश मौस?’’

‘‘हां, ‘अमर बेल’ नहीं, स्पेनिश मौस. ’’

‘‘पहेलियां न बुझाओ, ऋचा,’’ गीता का कंठ क्रोध और अपनी असहाय दशा से भर आया.

‘‘गीता, तुम्हारी समस्या की जड़ है तुम्हारी आश्रित रहने की प्रवृत्ति. पति पर निर्भर रहते हुए भी तुम्हें अपना अस्तित्व स्पेनिश मौस की भांति अलग रखना है. उन के साथ रहो, प्यार से रहो, पर उन्हें बैसाखी मत बनाओ. अपने पांव पर खड़ी हो.’’

‘‘कहना आसान है…’’ गीता कड़वाहट में कुछ कहने जा रही थी. पर ऋचा ने बात काट कर अपने ढंग से पूरी की, ‘‘और करना भी.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘पहला कदम लेने भर की देर है.’’

‘‘तो पहला कदम लेना कौन सिखाएगा?’’

‘‘तुम्हारा अपना आत्मबल, उसे जगाओ.’’

‘‘कैसे जगाऊं?’’

‘‘तुम्हें अंगरेजी बोलनी आती है, जिस की यहां आवश्यकता है, बोलो?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘कार चलानी आती है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘यहां आए कितने वर्ष हो गए?’’

‘‘8.’’

‘‘अब तक क्यों नहीं सीखी?’’

‘‘विश्वास नहीं है अपने पर.’’

‘‘बस, यही है हमारी आम औरत की समस्या और यहीं से शुरू करना है तुम्हें. मदद मैं करूंगी,’’ ऋचा ने कहा.

गीता के चेहरे पर कुछ भाव उभरे, कुछ विलीन हो गए.

‘स्पेनिश मौस,’ वह बुदबुदाई. दूर पेड़ों पर स्पेनिश मौस के झालरनुमा गुच्छे लटक रहे थे. अनायास गीता को लगा कि अब तक उस ने नहीं जाना था कि स्पेनिश मौस की अपनी खूबसूरती है.

‘‘यह सुंदर बेल है ऋचा, है न?’’ आंखों में झिलमिलाते सपनों के बीच से वह बोली.

‘‘हां, गीता. पर स्पेनिश मौस बनना और अधिक सुंदर होगा.’’ Family Kahani

Hindi Story: दुलहन का घूंघट

Hindi Story: ‘‘एकबार, बस एक बार हां कर दो प्राची. कुछ ही घंटों की तो बात है. फिर सब वैसे का वैसा हो जाएगा. मैं वादा करती हूं कि यह सब करने से तुम्हें कोई मानसिक या शारीरिक क्षति नहीं पहुंचेगी.’’

शुभ की बातें प्राची के कानों तक तो पहुंच रही थीं परंतु शायद दिल तक नहीं पहुंच पा रही थीं या वह उन्हें अपने दिल से लगाना ही नहीं चाह रही थी, क्योंकि उसे लग रहा था कि उस में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह अपनी जिंदगी के नाटक का इतना अहम किरदार निभा सके.

‘‘नहीं शुभ, यह सब मुझ से नहीं होगा. सौरी, मैं तुम्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु मैं मजबूर हूं.’’

‘‘एक बार, बस एक बार, जरा दिव्य की हालत के बारे में तो सोचो. तुम्हारा यह कदम उस के थोड़े बचे जीवन में कुछ खुशियां ले आएगा.’’

प्राची ने शुभ की बात को सुनीअनसुनी करने का दिखावा तो किया पर उस का मन दिव्य के बारे में ही सोच रहा था. उस ने सोचा, रातदिन दिव्य की हालत के बारे में ही तो सोचती रहती हूं. भला उस को मैं कैसे भूल सकती हूं? पर यह सब मुझ से नहीं होगा.

मैं अपनी भावनाओं से अब और खिलवाड़ नहीं कर सकती. प्राची को चुप देख कर शुभ निराश मन से वहां से चली गई और प्राची फिर से यादों की गहरी धुंध में खो गई.

वह दिव्य से पहली बार एक मौल में मिली थी जब वे दोनों एक लिफ्ट में अकेले थे और लिफ्ट अटक गई थी. प्राची को छोटी व बंद जगह में फसने से घबराहट होने की प्रौब्लम थी और वह लिफ्ट के रुकते ही जोरजोर से चीखने लगी थी. तब दिव्य उस की यह हालत देख कर घबरा गया था और उसे संभालने में लग गया था.

खैर लिफ्ट ने तो कुछ देर बाद काम करना शुरू कर दिया था परंतु इस घटना ने दिव्य और प्राची को प्यार के बंधन में बांध दिया था. इस मुलाकात के बाद बातचीत और मिलनेजुलने का सिलसिला चल निकला और कुछ ही दिनों बाद दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे. प्राची अकसर दिव्य के घर भी आतीजाती रहती थी और दिव्य के मातापिता और उस की बहन शुभ से भी उस की अच्छी पटती थी.

इसी बीच मौका पा कर एक दिन दिव्य ने अपने मन की बात सब को कह दी, ‘‘मैं प्राची के साथ शादी करना चाहता हूं,’’ किसी ने भी दिव्य की इस बात का विरोध नहीं किया था.

सब कुछ अच्छा चल रहा था कि एक दिन अचानक उन की खुशियों को ग्रहण लग गया.

‘‘मां, आज भी मेरे पेट में भयंकर दर्द हो रहा है. लगता है अब डाक्टर के पास जाना ही पड़ेगा.’’ दिव्य ने कहा और वह डाक्टर के पास जाने के लिए निकल पड़ा.

काफी इलाज के बाद भी जब पेट दर्द का यह सिलसिला एकदो महीने तक लगातार चलता रहा तो कुछ लक्षणों और फिर जांचपड़ताल के आधार पर एक दिन डाक्टर ने कह ही दिया, ‘‘आई एम सौरी. इन्हें आमाशय का कैंसर है और वह भी अंतिम स्टेज का. अब इन के पास बहुत कम वक्त बचा है. ज्यादा से ज्यादा 6 महीने,’’ डाक्टर के इस ऐलान के साथ ही प्राची और दिव्य के प्रेम का अंकुर फलनेफूलने से पहले ही बिखरता दिखाई देने लगा.

आंसुओं की अविरल धारा और खामोशी, जब भी दोनों मिलते तो यही मंजर होता.

‘‘सब खत्म हो गया प्राची, अब तुम्हें मुझ से मिलने नहीं आना चाहिए.’’ एक दिन दिव्य ने प्राची को कह दिया.

‘‘नहीं दिव्य, यदि वह आना चाहती है, तो उसे आने दो,’’ शुभ ने उसे टोकते हुए कहा. ‘‘जितना जीवन बचा है, उसे तो जी लो वरना जीते जी मर जाओगे तुम. मैं चाहती हूं इन 6 महीनों में तुम वह सब करो जो तुम करना चाहते थे. जानते हो ऐसा करने से तुम्हें हर पल मौत का डर नहीं सताएगा.’’

‘‘हो सके तो इस दुख की घड़ी में भी तुम स्वयं को इतना खुशमिजाज और व्यस्त कर लो कि मौत भी तुम तक आने से पहले एक बार धोखा खा जाए कि मैं कहीं गलत जगह तो नहीं आ गई. जब तक जिंदगी है भरपूर जी लो. हम सब तुम्हारे साथ हैं. हम वादा करते हैं कि हम सब भी तुम्हें तुम्हारी बीमारी की गंभीरता का एहसास तक नहीं होने देंगे.’’

बहन के इस ऐलान के बाद उन के घर का वातावरण आश्चर्यजनक रूप से बदल

गया. मातम का स्थान खुशी ने ले लिया था. वे सब मिल कर छोटी से छोटी खुशी को भी शानदार तरीके से मनाते थे, वह चाहे किसी का जन्मदिन हो, शादी की सालगिरह हो या फिर कोई त्योहार. घर में सदा धूमधाम रहती थी.

एक दिन शुभ ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, आप की इच्छा थी कि आप दिव्य की शादी धूमधाम से करो. दिव्य आप का इकलौता बेटा है. मुझे लगता है कि आप को अपनी यह इच्छा पूरी कर लेनी चाहिए.’’

मां उसे बीच में ही रोकते हुए बोलीं, ‘‘देख शुभ बाकी सब जो तू कर रही है, वह तो ठीक है पर शादी? नहीं, ऐसी अवस्था में दिव्य की शादी करना असंभव तो है ही, अनुचित भी है. फिर ऐसी अवस्था में कौन करेगा उस से शादी? दिव्य भी ऐसा नहीं करना चाहेगा. फिर धूमधाम से शादी करने के लिए पैसों की भी जरूरत होगी. कहां से आएंगे इतने पैसे? सारा पैसा तो दिव्य के इलाज में ही खर्च हो गया.’’

‘‘मां, मैं ने कईर् बार दिव्य और प्राची को शादी के सपने संजोते देखा है. मैं नहीं चाहती भाई यह तमन्ना लिए ही दुनिया से चला जाए. मैं उसे शादी के लिए मना लूंगी. फिर यह शादी कौन सी असली शादी होगी, यह तो सिर्फ खुशियां मनाने का बहाना मात्र है. बस आप इस के लिए तैयार हो जाइए.

‘‘मैं कल ही प्राची के घर जाती हूं. मुझे लगता है वह भी मान जाएगी. हमारे पास ज्यादा समय नहीं है. अंतिम क्षण कभी भी आ सकता है. रही पैसों की बात, उन का इंतजाम भी हो जाएगा. मैं सभी रिश्तेदारों और मित्रों की मदद से पैसा जुटा लूंगी,’’ कह कर शुभ ने प्राची को फोन किया कि वह उस से मिलना चाहती है.

और आज जब प्राची ने शुभ के सामने यह प्रस्ताव रखा तो प्राची के जवाब ने शुभ को निराश ही किया था परंतु शुभ ने निराश होना नहीं सीखा था.

‘‘मैं दिव्य की शादी धूमधाम से करवाऊंगी और वह सारी खुशियां मनाऊंगी जो एक बहन अपने भाई की शादी में मनाती है. इस के लिए मुझे चाहे कुछ भी करना पड़े.’’ शुभ अपने इरादे पर अडिग थी.

घर आते ही दिव्य ने शुभ से पूछा, ‘‘क्या हुआ, प्राची मान गई क्या?’’

‘‘हां मान गई. क्यों नहीं मानेगी? वह तुम से प्रेम करती है,’’ शुभ की बात सुन कर दिव्य के चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई जो शुभ के इरादे को और मजबूत कर गई.

शुभ ने दिव्य की शादी के आयोजन की इच्छा और इस के लिए आर्थिक मदद की जरूरत की सूचना सभी सोशल साइट्स पर पोस्ट कर दी और इस पोस्ट का यह असर हुआ कि जल्द ही उस के पास शादी की तैयारियों के लिए पैसा जमा हो गया.

घर में शादी की तैयारियां धूमधाम से शुरू हो गईं. दुलहन के लिए कपड़ों और गहनों का

चुनाव, मेहमानों की खानेपीने की व्यवस्था, घर की साजसजावट सब ठीक उसी प्रकार होने लगा जैसा शादी वाले घर में होना चाहिए.

शादी का दिन नजदीक आ रहा था. घर में सभी खुश थे, बस एक शुभ ही चिंता में डूबी हुई थी कि दुलहन कहां से आएगी? उस ने सब से झूठ ही कह दिया था कि प्राची और उस के घर वाले इस नाटकीय विवाह के लिए राजी हैं पर अब क्या होगा यह सोचसोच कर शुभ बहुत परेशान थी.

‘‘मैं एक बार फिर प्राची से रिक्वैस्ट करती हूं. शायद वह मान जाए.’’ सोच कर शुभ फिर प्राची के घर पहुंची.

‘‘बेटी हम तुम्हारे मनोभावों को बहुत अच्छी तरह समझते हैं और हम तुम्हें पूरा सहयोग देने के लिए तैयार हैं पर प्राची को मनाना हमारे बस की बात नहीं. हमें लगता है कि दिव्य के अंतिम क्षणों में, उसे मौत के मुंह में जाते हुए पर मुसकराते हुए वह नहीं देख पाएगी, शायद इसीलिए वह तैयार नहीं है. वह बहुत संवेदनशील है,’’ प्राची की मां ने शुभ को समझाते हुए कहा.

‘‘पर दिव्य? उस का क्या दोष है, जो प्रकृति ने उसे इतनी बड़ी सजा दी है? यदि वह इतना सहन कर सकता है तो क्या प्राची थोड़ा भी नहीं?’’ शुभ बिफर पड़ी.

‘‘नहीं, तुम गलत सोच रही हो. प्राची का दर्द भी दिव्य से कम नहीं है. वह भी बहुत सहन कर रही है. दिव्य तो यह संसार छोड़ कर चला जाएगा और उस के साथसाथ उस के दुख भी. परंतु प्राची को तो इस दुख के साथ सारी उम्र जीना है. उस की हालत तो दिव्य से भी ज्यादा दयनीय है. ऐसी स्थिति में हम उस पर ज्यादा दबाव नहीं डाल सकते.

‘‘फिर हमें समाज का भी खयाल रखना है. शादी और उस के तुरंत बाद ही दिव्य की मृत्यु. वैधव्य की छाप भी तो लग जाएगी प्राची पर. किसकिस को समझाएंगे कि यह एक नाटक था. यह इतना आसान नहीं है जितना तुम समझ रही हो?’’ प्राची की मां ने शुभ को समझाने की कोशिश की.

उस दिन पहली बार शुभ को दिव्य से भी ज्यादा प्राची पर तरस आया लेकिन यह उस की समस्या का समाधान नहीं था. तभी उस के तेज दिमाग ने एक हल निकाल ही लिया.

वह बोली, ‘‘आंटी जी, बीमारी की वजह से इन दिनों दिव्य को कम दिखाई देने लगा है. ऐसे में हम प्राची की जगह उस से मिलतीजुलती किसी अन्य लड़की को भी दुलहन बना सकते हैं. दिव्य को यह एहसास भी नहीं होगा कि दुलहन प्राची नहीं, बल्कि कोई और है. यदि आप की नजर में ऐसी कोई लड़की हो तो बताइए.’’

‘‘हां है, प्राची की एक सहेली ईशा बिलकुल प्राची जैसी दिखती है. वह अकसर नाटकों में भी भाग लेती रहती है. पैसों की खातिर वह इस काम के लिए तैयार भी हो जाएगी. पर ध्यान रहे शादी की रस्में पूरी नहीं अदा की जानी चाहिए वरना उसे भी आपत्ति हो सकती है.’’

‘‘आप बेफिक्र रहिए आंटी जी, सब वैसा ही होगा जैसा फिल्मों में होता है, केवल दिखावा. क्योंकि हम भी नहीं चाहते हैं कि ऐसा हो और दिव्य भी ऐसी हालत में नहीं है कि वह सभी रस्में निभाने के लिए अधिक समय तक पंडाल में बैठ भी सके.’’

शादी का दिन आ पहुंचा. विवाह की सभी रस्में घर के पास ही एक गार्डन में होनी थीं. दिव्य दूल्हा बन कर तैयार था और अपनी दुलहन का इंतजार कर रहा था कि अचानक एक गाड़ी वहां आ कर रुकी. गाड़ी में से प्राची का परिवार और दुलहन का वेश धारण किए गए लड़की उतरी.

हंसीखुशी शादी की सारी रस्में निभाई जाने लगीं. दिव्य बहुत खुश नजर आ रहा था. उसे देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि यह कुछ ही दिनों का मेहमान है. यही तो शुभ चाहती थी.

‘‘अब दूल्हादुलहन फेरे लेंगे और फिर दूल्हा दुलहन की मांग भरेगा.’’ जब पंडित ने कहा तो शुभ और प्राची के मातापिता चौकन्ने हो गए. वे समझ गए कि अब वह समय आ गया है जब लड़की को यहां से ले जाना चाहिए वरना अनर्थ हो सकता है और वे बोले, ‘‘पंडित जी, दुलहन का जी घबरा रहा है. पहले वह थोड़ी देर आराम कर ले फिर रस्में निभा ली जाएं तो ज्यादा अच्छा रहेगा.’’ कह कर उन्होंने दुलहन जोकि छोटा सा घूंघट ओढ़े हुए थी, को अंदर चलने का इशारा किया.

‘‘नहीं पंडित जी, मेरी तबीयत इतनी भी खराब नहीं कि रस्में न निभाई जा सकें.’’ दुलहन ने घूंघट उठाते हुए कहा तो शुभ के साथसाथ प्राची के मातापिता भी चौक उठे क्योंकि दुलहन कोई और नहीं प्राची ही थी.

शायद जब ईशा को प्राची की जगह दुलहन बनाने का फैसला पता चला होगा तभी प्राची ने उस की जगह स्वयं दुलहन बनने का निर्णय लिया होगा, क्योंकि चाहे नाटक में ही, दिव्य की दुलहन बनने का अधिकार वह किसी और को दे, उस के दिल को मंजूर नहीं होगा.

आज उस की आंखों में आंसू नहीं, बल्कि उस के होंठों पर मुसकान थी. अपना सारा दर्द समेट कर वह दिव्य की क्षणिक खुशियों की भागीदारिणी बन गई थी. उसे देख कर शुभ की आंखों से खुशी और दुख के मिश्रित आंसू बह निकले. उस ने आगे बढ़ कर प्राची को गले से लगा लिया.

यह देख कर दिव्य के चेहरे पर एक अनोखी मुसकान आ गई. ऐसी मुसकान पहले किसी ने उस के चेहरे पर नहीं देखी थी. परंतु शायद वह उस की आखिरी मुसकान थी, क्योंकि उस का कमजोर शरीर इतना श्रम और खुशी नहीं झेल पाया और वह वहीं मंडप में ही बेहोश हो गया.

दिव्य को तुरंत हौस्पिटल ले जाना पड़ा जहां उसे तुरंत आईसीयू में भेज दिया गया. कुछ ही दिनों बाद दिव्य नहीं रहा परंतु जाते समय उस के होंठों पर मुसकान थी.

प्राची का यह अप्रत्याशित निर्णय दिव्य और उस के परिवार वालों के लिए वरदान से कम नहीं  था. वे शायद जिंदगी भर उस के इस एहसान को चुका न पाएं. प्राची के भावी जीवन को संवारना अब उन की भी जिम्मेदारी थी. Hindi Story

Family Story in Hindi: मेरे हिस्से की कोशिश

Family Story in Hindi: ट्रेन अभी लुधियाना पहुंची नहीं थी और मेरा मन पहले ही घबराने लगा था. वहां मेरा घर है, वही घर जहां जाने को मेरा मन सदा मचलता रहता था. मेरा वह घर जहां मेरा अधिकार आज भी सुरक्षित है, किसी ने मेरा बुरा नहीं किया. जो भी हुआ है मेरी ही इच्छा से हुआ है. जहां सब मुझे बांहें पसारे प्यार से स्वीकार करना चाहते हैं और अब उसी घर में मैं जाने से घबराता हूं. ऐसा लगता है हर तरफ से हंसी की आवाज आती है. शर्म आने लगती है मुझे. ऐसा लगता है मां की नजरें हर तरफ से मुझे घूर रही हैं. मन में उमड़घुमड़ रहे झंझावातों में उलझा मैं अतीत में विचरण करने लगता हूं.

‘वाह बेटा, वाह, तेरे पापा को तो नई पत्नी मिल ही गई, वे मुझे भूल गए, पर क्या तुझे भी मां याद नहीं रही. कितनी आसानी से किसी अजनबी को मां कहने लगा है तू.’

‘ऐसा नहीं है मुन्ना कि तू मेरे पास आता है तो मुझे किसी तरह की तकलीफ होती है. बच्चे, मैं तेरी बूआ हूं. मेरा खून है तू. मेरे भैयाभाभी की निशानी है तू. तू घर नहीं जाएगा तो अपने पिता से और दूर हो जाएगा. बेटा, अपने पापा के बारे में तो सोच. उन के दिल पर क्या बीतती होगी जब तू लुधियाना आ कर भी अपने घर नहीं जाता. दादी की सोच, जो हर पल द्वार ही निहारती रहती हैं कि कब उन का पोता आएगा और…’

‘ये दादी न होतीं तो कितना अच्छा होता न… इतनी लंबी उम्र भी किस काम की. न इंसान मर सकता है और न ही पूरी तरह जी पाता है… हमारे ही साथ ऐसा क्यों हो गया बूआ?’

बूआ की गोद में छिप कर मैं जारजार रो पड़ा था. बुरा लगा होगा न बूआ को, उन की मां को कोस रहा था मैं. पिछले 10 साल से दादी अधरंग से ग्रस्त बिस्तर पर पड़ी हैं और मेरी मां चलतीफिरती, हंसतीखेलती दादी की दिनरात सेवा करतीं. एक दिन सोईं तो फिर उठी ही नहीं. हैरान रह गए थे हम सब. ऐसा कैसे हो सकता है, अभी तो सोई थीं और अभी…

‘अरे, यमराज रास्ता भूल गया. मुझे ले जाना था इसे क्यों ले गया… मेरा कफन चुरा लिया तू ने बेटी. बड़ी ईमानदार थी, फिर मेरे ही साथ बेईमानी कर दी.’

विलाप करकर के दादी थक गई थीं. मांगने से मौत मिल जाती तो दादी कब की इस संसार से जा चुकी होतीं. बस, यही तो नहीं होता न. अपने चाहे से मरा नहीं न जाता. मरने वाला छूट जाता है और जो पीछे रह जाते हैं वे तिलतिल कर मरते हैं क्योंकि अपनी इच्छा से मर तो पाते नहीं और मरने वाले के बिना जीना उन्हें आता ही नहीं.

‘इस होली पर जब आओ तो अपने ही घर जाना अनुज. भैया, मुझ से नाराज हो रहे थे कि मैं ही तुम्हें समझाती नहीं हूं. बेटे, अपने पापा का तो सोच. भाभी गईं, अब तू भी घर न जाएगा तो उन का क्या होगा?’

‘पिताजी का क्या? नई पत्नी और एक पलीपलाई बेटी मिल गई है न उन्हें.’

‘चुप रह, अनुज,’ बूआ बोलीं, ‘ज्यादा बकबक की तो एक दूंगी तेरे मुंह पर. क्या तू ने भैया को इस शादी के लिए नहीं मनाया था? हम सब तो तेरी शादी कर के बहू लाने की सोच रहे थे. तब तू ने ही समझाया था न कि मेरी शादी कर के समस्या हल नहीं होगी. कम उम्र की लड़की कैसे इतनी समस्याओं से जूझ पाएगी, हर पल की मरीज दादी का खानापीना और…’

‘हां, मुझे याद है बूआ, मैं नहीं कहता कि जो हुआ मेरी मरजी से नहीं हुआ. मैं ने ही पापा को मनाया था कि वे मेरी जगह अपनी शादी कर लें. विभा आंटी से भी मैं ने ही बात की थी. लेकिन अब बदले हालात में मैं यह सब सहन नहीं कर पा रहा हूं. घर जाता हूं तो हर कोने में मां की मौजूदगी का एहसास होने से बहुत तकलीफ होती है. जिस घर में मैं इकलौती संतान था अब एक 18-20 साल की लड़की जो मेरी कानूनी बहन है, वही अधिकारसंपन्न दिखाई देती है. दादी को नई बहू मिल गई, पापा को नई पत्नी और उस लड़की को पिता.’

‘यह तो सोचने की बात है न मुन्ना. तुझे भी तो एक बहन मिली है न. विभा को तू मां न कह लेकिन कोई रिश्ता तो उस से बांध ले. जितनी मुश्किल तेरे लिए है इस रिश्ते को स्वीकारने की उतनी ही मुश्किल उन के लिए भी है. वे भी कोशिश कर रहे हैं, तू भी तो कर. उस बच्ची के सिर पर हाथ रखेगा तभी तुझे  बड़प्पन का एहसास होगा. तू क्या समझता है उन दोनों के लिए आसान है एक टूटे घर में आ कर उस की किरचें समेटना, जहां कणकण में सिर्फ तेरी मां बसी हैं. तेरा घर तो वहीं है. उन मांबेटी के बारे में जरा सोच.

‘तुम चैन से दिल्ली में रह कर अगर अपनी नौकरी कर रहे हो तो इसीलिए कि विभा घर संभाल रही है. तुम्हारे पिता का खानापीना देखती है, दादी को संभालती है. क्या वह तुम्हारे घर की नौकरानी है, जिस का मानसम्मान करना तुम्हें भारी लग रहा है.

‘6 महीने हो गए हैं भाभी को मरे और इन 6 महीनों में क्या विभा ने कोई प्रयास नहीं किया तुम्हारे समीप आने का? वह फोन पर बात करना चाहती है तो तुम चुप रहते हो. घर आने को कहती है तो तुम घर नहीं जाते. अब क्या करे वह? उस का दोष क्या है. बोलो?’ बहुत नाराज थीं बूआ. किसी का भी कोई दोष नहीं है. मैं दोष किसे दूं. दोष तो समय का है, जिस ने मेरी मां को छीन लिया.

मैं निश्ंिचत हूं कि मेरे पिता का घर उजड़ कर फिर बस गया है और उस के लिए समूल प्रयास भी मेरा ही था. सब व्यवस्थित हैं. मेरे दोस्त विनय की विधवा चाची हैं विभा आंटी. हम दोनों के ही प्रयास से यह संभव हो पाया है.

मां तो एक ही होती है न, उन्हें मैं मां नहीं मान पा रहा हूं. और वह लड़की अणिमा, जो कल तक मेरे मित्र की चचेरी बहन थी अब मेरी भी बहन है. उम्र भर बहन के लिए मां से झगड़ा करता रहा, बहन का जन्म मां की मौत के बाद होगा, कब सोचा था मैं ने.

लुधियाना आ गया. ऐसा लग रहा था मानो गाड़ी का समूल भार पटरी पर नहीं मेरे मन पर है. एक अपराधबोध का बोझ. क्या सचमुच मैं ने अपनी मां के साथ अन्याय किया है? घर आ गया मैं. कांपते हाथ से मैं ने दरवाजे की घंटी बजा दी. मां की जगह कोई और होगी, इसी भाव से समूल चेतना सुन्न होने लगी.

‘‘आ गया मुन्ना…बेटा, आ जा.’’

दादी का स्वर कानों में पड़ा. दरवाजा खुला था. पापा भी नहीं थे घर पर. दादी अकेली थीं. दादी ने पास बिठा कर प्यार किया और देर तक रोते रहे हम.

‘‘बड़ा निर्मोही है रे मुन्ना. घर की याद नहीं आती.’’

अब क्या उत्तर दूं मैं. चारों तरफ नजर घुमा कर देखा.

‘‘दादी, कहां गए हैं सब. पापा कहां हैं?’’

‘‘अणिमा कहीं चली गई है. विभा और तेरा बाप उसे ढूंढ़ने गए हैं.’’

‘‘कहीं चली गई. क्या मतलब?’’

‘‘इस घर में उस का मन नहीं लगता,’’ दादी बोलीं, ‘‘तू भी तो आता नहीं. यह घर उजड़ गया है मुन्ना. खुशी तो सारी की सारी तेरी मां अपने साथ ले गई. मुझे भी तो मौत नहीं न आती. सभी घुटेघुटे जी रहे हैं. कोई भी तो खुश नहीं है न. इस तरह नहीं जिया जाता मुन्ना.’’

चारों तरफ एक उदासी सी नजर आई मुझे. उठ कर सारा घर देख आया. मेरा कमरा वैसा का वैसा ही था जैसा पहले था. जाहिर था कि इस कमरे में कोई नहीं रहता. पापा को फोन किया.

‘‘पापा, कहां हैं आप? मैं घर आया और आप कहां चले गए?’’

‘‘अणिमा अपने घर चली आई है मुन्ना. वह वापस आना ही नहीं चाहती. विनय भी यहीं है.’’

‘‘पापा, आप घर आइए. मैं वहां पहुंचता हूं. मैं बात करता हूं उस से.’’

घटनाक्रम इतनी जल्दी बदल जाएगा किस ने सोचा था. मैं जो खुद अपने घर आना नहीं चाहता अब अपने से 8 साल छोटी लड़की से पूछने जा रहा हूं कि वह घर क्यों नहीं आती? कैसी विडंबना है न, जिस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं है उसी सवाल का जवाब उस से पूछने जा रहा हूं.  जब मैं विनय और अणिमा के पास पहुंचा तब तक पापा घर के लिए निकल चुके थे. विभा आंटी भी पापा के साथ लौट चुकी थीं. अणिमा वहां विनय के साथ थी.

‘‘वह घर मेरा नहीं है विनय भैया. देखा न मेरी मां उस आदमी के साथ चली भी गईं. मेरी चिंता नहीं है उन्हें. अनुज की मां तो उसे मर कर छोड़ गईं, मेरी मां तो मुझे जिंदा ही छोड़ गईं. अब मां मुझे प्यार नहीं करतीं. अनुज घर नहीं आता तो क्या मेरा दोष है? उस के कमरे में मत जाओ, उस की चीजों को मत छेड़ो, मेरा घर कहां है, विनय भैया. घर तो मेरी मां को मिला है न, मुझे नहीं. मेरे अपने पिता का घर है न यह. मैं यहीं रहूंगी अपने घर में. नहीं जाऊंगी वहां.’’

दरवाजे की ओट में बस खड़ा का खड़ा रह गया मैं. इस की पीड़ा मेरी ही तो पीड़ा है न. काटो तो खून नहीं रहा मुझ में. किस शब्दकोष का सहारा ले कर इस लड़की को समझाऊं. गलत तो कहीं नहीं है न यह लड़की. सब को अपनी ही पीड़ा बड़ी लगती है. मैं सोच रहा था मेरा घर कहीं नहीं रहा और यह लड़की अणिमा भी तो सही कह रही है न.

‘‘आसान नहीं है पराए घर में जा कर रहना. वह उन का घर है, मेरा नहीं. मैं यहां रहूं तो अनुज के पापा को क्या समस्या है?’’

‘‘तुम अकेली कैसे रह सकती हो यहां?’’

‘‘क्यों नहीं रह सकती. यह मेरा कमरा है. यह मेरा सामान है.’’

‘‘वह घर भी तुम्हारा ही है, अणिमा.’’

विनय अपनी चचेरी बहन अणिमा को समझा रहा था और वह समझना नहीं चाह रही थी. जैसे किसी और में मां को देखना मेरे लिए मुश्किल है उसी तरह मेरे पिता को अपना पिता बना लेना इस के लिए भी आसान नहीं हो सकता. भारी कदमों से सामने चला आया मैं. कुछ कहतीकहती रुक गई अणिमा. कितनी बदलीबदली सी लग रही है वह. चेहरे की मासूमियत अब कहीं है ही नहीं. हालात इंसान को समय से पहले ही बड़ा बना देते हैं न. उस की सूजीसूजी आंखें बता रही हैं कि वह बहुत देर से रो रही है. मैं घर नहीं आता हूं तो क्या उस का गुस्सा पापा और दादी इस बच्ची पर उतारते हैं? ठीक ही तो किया इस ने जो घर ही छोड़ कर आ गई. इस की जगह मैं होता तो मैं भी यही करता. ‘‘ओह, आ गए तुम भी.’’

दांत पीस कर कहा अणिमा ने. मेरे लिए उस के मन में उमड़ताघुमड़ता जहर जबान पर न आ जाए तो क्या करे.

इस रिश्ते में तो कुछ भी सामान्य नहीं है. इस रिश्ते को बचाने के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. अणिमा मेरी बहन नहीं थी लेकिन इसे अपनी बहन मानना पड़ेगा मुझे. स्नेह दे कर अपना बनाना होगा मुझे. यही मेरी न हो पाई तो विभा आंटी भी मेरी मां कभी नहीं बन सकेंगी. कब तक वे भी इस घर और उस घर में सेतु का काम कर पाएंगी. पास आ कर अणिमा के सिर पर हाथ रखा मैं ने. झरझर बह चली उस की आंखें जैसे पूछ रही हों मुझ से, ‘अब और क्या करूं मैं?’

‘‘मैं राखी पर नहीं आया, वह मेरी भूल थी. अब आया हूं तो क्या तुम यहां छिपी रहोगी. तिलक नहीं लगाओगी मुझे?’’

विनय भीगी आंखों से मुझे देख रहा था, मानो कह रहा हो जहां तक उसे करना था उस ने किया, इस से आगे तो जो करना है मुझे ही करना है.  अणिमा को अपनी छाती से लगा लिया तो नन्ही सी बालिका की तरह जारजार रो पड़ी वह. उस की भावभंगिमा समझ पा रहा था मैं. अपने हिस्से की कोशिश तो वह कर चुकी है. अब बाकी तो मेरे हिस्से की कोशिश है.

‘‘अपने घर चलो, अणिमा. यह घर भी तुम्हारा है, पगली. लेकिन उस घर में हमें तुम्हारी ज्यादा जरूरत है. मैं तुम सब से दूर रहा वह मेरी गलती थी. अब आया हूं तो तुम तो दूर मत रहो.  ‘‘मां से सदा बहन मांगा करता था. कुछ खो कर कुछ पाना ही शायद मेरे हिस्से में लिखा था इस तरह. तो इसी तरह ही सही, अणिमा के आंसू पोंछ मैं ने उस का मस्तक चूम लिया. जिस ममत्व से वह मेरे गले लगी थी उस से यह आभास पूर्ण रूप से हो रहा था मुझे कि देर हुई है तो मेरी ही तरफ से हुई है. अणिमा तो शायद पहले ही दिन से मुझे अपना मान चुकी थी. Family Story in Hindi

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