Brother Sister Relationship: जब भाईबहन के बीच पनपने लगे जलन

Brother Sister Relationship: दिल्ली के नेब सराय इलाके में एक भाई ने अपनी बहन और मांबाप को मौत के घाट उतार दिया. आरोपी के मातापिता की शादी की 27वीं सालगिरह थी. मृतकों की पहचान राजेश कुमार (51), कोमल (46) और कविता (23) के रूप में हुई थी. राजेश कुमार सेना से रिटायर थे और फिलहाल सिक्योरिटी औफिसर के रूप में काम कर रहे थे. उन की पत्नी हाउसवाइफ थी और बेटी पढ़ाई कर रही थी.

पूछताछ में पता चला कि पिता उसे पढ़ाई के लिए डांटते रहते थे. लेकिन उस का मन पढ़ाई में नहीं लगता था. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने घर के बाहर कई लोगों के सामने उसे पीटा था. इतना ही नहीं, वह घर में भी अलगथलग महसूस करता था. उस ने यह भी बताया कि घर में मम्मी और बहन भी उसे सपोर्ट नहीं करती थीं. उसी दौरान उसे पता चला कि पिता पूरी प्रौपर्टी उस की बहन के नाम कर रहे हैं तो वह नाराज हो गया और उस ने उन्हें मारने का फैसला कर लिया. उस ने सब से पहले अपनी बहन की सोते समय गला काट कर हत्या कर दी. फिर वह ऊपर गया जहां उस ने अपने पिता की गरदन पर चाकू मारा. उस के बाद उस ने वाशरूम गई अपनी मां का गला काट दिया.

इसी तरह की कई घटनाएं आएदिन सुनने को मिल जाती हैं कि प्रौपर्टी के लिए बहन ने भाई को मार डाला या घर में बहन को ज्यादा इज्जत मिलने से भाई ने बहन को ठिकाने लगा दिया.

हम बचपन से सुनते और देखते आए हैं कि भाईबहन का रिश्ता दुनिया के सब से अनमोल और प्योर रिश्तों में से एक माना जाता है. यह एक ऐसा रिलेशन होता है जिस में बचपन की शरारतें, प्यार, मस्ती, एकदूसरे की चिंता और साथ ही कभीकभी नोकझोंक भी शामिल होती है. बचपन से ही भाईबहन एकसाथ बड़े होते हैं, एक ही छत के नीचे खेलते हैं, झगड़ते हैं, फिर मान जाते हैं.

इन दोनों के रिलेशन को मांबाप का प्यार और संस्कार दोनों को एकसाथ आगे बढ़ाने में मदद करता है. लेकिन कई बार सिचुएशन ऐसी हो जाती है कि इस रिश्ते में कंपीटिशन और जलन की भावना घर करने लगती है. यह भावना धीरेधीरे भाईबहन के रिश्ते को खराब करने लगती है और यदि समय रहते इसे सुलझाया न जाए तो यह ऊपर दी गई घटना का रूप भी ले सकती है.

यह जरूरी नहीं कि जलन की भावना केवल बहन को भाई से हो कि उस के मातापिता भाई को ज्यादा चाहते हैं और सभी सुखसुविधाएं भी उसी को देते हैं. हालिया दौर में यह स्थिति बदल सी गई है. घर में अगर बहन को ज्यादा तवज्जुह मिलती है तो भाई भी खुन्नस से भर जाते हैं.

दोनों में इस जलन की भावना के पीछे कई कारण हो सकते हैं. अकसर देखा जाता है कि मातापिता की अपेक्षाएं, सामाजिक तुलना, पारिवारिक माहौल आदि इस भावना को जन्म देने में आग में घी का काम करते हैं. जब मातापिता किसी एक संतान की उपलब्धियों को ज्यादा महत्त्व देते हैं और दूसरे को इग्नोर करते हैं, तो ऐसा महसूस करने वाला बच्चा धीरेधीरे अपने भाई या बहन से जलन महसूस करने लगता है. यह जलन बचपन से ही मन में घर कर जाती है और बड़े होने के साथसाथ यह भावना और गहरी होती चली जाती है.

कई बार मातापिता अनजाने में ही दोनों बच्चों की तुलना करने लगते हैं. पढ़ाई में कौन बेहतर है, खेलकूद में कौन आगे है, कौन अधिक जिम्मेदार है, किस की नौकरी अच्छी है. यहां तक कि जब बच्चों में उन की शकलसूरत और रंगभेद किया जाता है तब बच्चे के मन में हीनभावना आ जाती है. इस से वह दबा हुआ फील करने लगता है और मन ही मन घुटता जाता है.

यदि किसी एक बच्चे को ज्यादा सराहा जाता है, तो दूसरा बच्चा यह महसूस करने लगता है कि उसे पर्याप्त प्यार और पहचान नहीं मिल रही. यह भावना तब और भी गहरी हो जाती है जब समाज, रिश्तेदार या दोस्त भी इस तुलना को बढ़ावा देने लगते हैं.

कुछ मामलों में पैसा और परवरिश भी भाईबहन के बीच जलन की भावना को जन्म देती है. यदि परिवार में किसी एक भाई या बहन को अधिक सुविधाएं, बेहतर शिक्षा या दूसरे से ज्यादा संपत्ति मिलती है, तो दूसरे को यह लग सकता है कि उस के साथ अन्याय हुआ है. संपत्ति का बंटवारा कई बार भाईबहनों के बीच दुश्मनी का सब से बड़ा कारण बन जाता है.

इस के अलावा, जब कोई भाई या बहन किसी क्षेत्र में बहुत अच्छा कर रहा हो और दूसरा संघर्ष कर रहा हो, तो दूसरे के मन में हीनभावना आ सकती है. यदि मातापिता और परिवार इस अंतर को और बढ़ाने लगते हैं, तो यह भावना जलन का रूप ले सकती है.

ऐसा ही हुआ सुमित और रिया के बीच. सुमित और रिया बचपन से ही हर खुशी और हर मुश्किल में साथ रहते थे. बचपन में साथ खेलना, झगड़ना, फिर मान जाना उन की रोज की आदत थी. लेकिन जैसेजैसे वे बड़े हुए, उन के बीच एक अनकही दूरी आने लगी.

सुमित पढ़ाई में बहुत तेज था, हर परीक्षा में अव्वल आता और घर में उस की खूब तारीफ होती. रिया भी मेहनती थी, लेकिन उस के अंक हमेशा औसत ही रहते. हर बार जब सुमित की तारीफ होती, रिया के मन में यह खयाल आता कि क्या वह अपने मातापिता की पसंदीदा संतान नहीं है? धीरेधीरे यह भावना जलन में बदलने लगी.

समय बीतता गया. सुमित ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर एक बड़ी कंपनी में नौकरी पा ली, जबकि रिया ने एक छोटे से स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली. अब रिश्तेदार भी अकसर तुलना करने लगे “सुमित ने तो नाम कमा लिया, रिया बस एक मामूली टीचर रह गई.” ये बातें रिया को अंदर ही अंदर चुभने लगीं.

एक दिन, जब सुमित घर आया तो उस ने मांपापा के लिए एक महंगा उपहार ला कर दिया. मां की आंखों में खुशी के आंसू थे और उन्होंने सुमित को गले से लगा लिया. रिया एक कोने में खड़ी यह सब देख रही थी. उस के मन में जलन का भाव और गहरा हो गया. उसे लगा कि मातापिता को अब उस की कोई परवा नहीं है.

अगले दिन रिया ने सुमित से बिना बात के झगड़ा कर लिया. सुमित को समझ नहीं आया कि आखिर उस की बहन इतनी गुस्से में क्यों है. लेकिन फिर उस ने गौर किया कि रिया उस से पहले की तरह बात नहीं करती, हंसती नहीं और हमेशा चुपचुप सी रहती है.

एक दिन, जब रिया स्कूल से लौटी तो देखा कि सुमित ने उस के लिए एक सुंदर डायरी ला कर रखी थी, जिस पर लिखा था, “मेरी सब से प्यारी बहन के लिए, जो मेरी प्रेरणा है.” यह पढ़ कर रिया की आंखों से आंसू बह निकले. उस ने सुमित से लिपट कर रोते हुए कहा, “भैया, मुझे माफ कर दो, मैं हमेशा यह सोचती रही कि तुम मुझ से बेहतर हो, लेकिन सच तो यह है कि तुम ने हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.”

सुमित ने कहा, “तू मेरी बहन है, रिया. हमारे रिश्ते में तुलना या जलन के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. हम दोनों एक ही परिवार का हिस्सा हैं और हमें हमेशा एकदूसरे की खुशियों में खुश रहना चाहिए.”

उस दिन रिया को एहसास हुआ कि जलन एक ऐसा जहर है जो प्यारभरे रिश्तों को भी धीरेधीरे खराब कर सकता है.

इस वाकेआ में तो समय रहते रिया ने अपनी खटास दूर कर ली. लेकिन कई बार ये छोटीमोटी जलन और मनमुटाव बड़े हादसों का कारण बन जाते हैं. मातापिता का अधिक लगाव भी इस समस्या को बढ़ा सकता है. यदि माता या पिता किसी एक संतान को अधिक प्यार और ध्यान देते हैं, तो दूसरे को यह लग सकता है कि उस के साथ भेदभाव किया जा रहा है.

हालांकि, इस समस्या को हल करने के कई तरीके हो सकते हैं. सब से पहले, मातापिता को चाहिए कि वे अपने सभी बच्चों के साथ समान व्यवहार करें और उन की भावनाओं को समझने की कोशिश करें. क्योंकि अगर मातापिता ही अपने बच्चे को इज्जत नहीं देंगे तो उस के भाईबहन भी उसे कुछ नहीं समझेंगे. किसी भी बच्चे को यह महसूस नहीं होना चाहिए कि वह अपने मातापिता के प्यार और ध्यान से वंचित है. तुलना करने से बचना चाहिए और हर बच्चे की व्यक्तिगत क्षमताओं को पहचान कर उसे प्रोत्साहित करना चाहिए.

भाईबहनों को भी आपस में संवाद बनाए रखना चाहिए. अगर किसी को दूसरे से कोई शिकायत हो तो उसे खुल कर व्यक्त करना चाहिए, न कि मन में जलन की भावना पालनी चाहिए. अकसर गलतफहमियां ही रिश्तों में दरार पैदा करती हैं, इसलिए कम्युनिकेशन की कमी नहीं होनी चाहिए.

निर्देशक Guddu Dhanoa ने नए कलाकारों के लिए दिया ये खास मैसेज

Guddu Dhanoa : ‘बिच्छू’ और ‘जिद्दी’ फिल्म से सफलता पाने वाले लेखक, निर्माता निर्देशक गुड्डू धनोवा का शुरुआती दौर काफी संघर्ष पूर्ण रहा, लेकिन उन्होंने मेहनत, धीरज और लगन से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई, उनकी ऐक्शन फिल्में हमेशा ही दर्शकों की पसंद रही है, जिसमें उन्होंने हमेशा नए स्टारकास्ट को प्रमुखता दी है, जिसमें शाहरुख खान को फिल्म दीवाना में लौन्च किया, जो उनकी पहली फिल्म थी. जबकि दिलजीत दोसांझ को फिल्म द  लौयन औफ पंजाब में लौन्च किया. आज भी उन्होंने अभिनेत्री पलक तिवारी को ‘रोमियो एस 3’ में परिचय करवाया है. जिसमें दर्शक उनके काम की काफी सराहना कर रहे है. वह बौलीवुड फिल्म स्टार धर्मेंद्र के चचेरे भाई हैं.

उनकी फिल्म ‘रोमियो एस 3’ रिलीज हो चुकी है, जो एक ऐक्शन ड्रामा फिल्म है, जिसे दर्शक पसंद कर रहे है. उन्होंने खास गृहशोभा से अपनी जर्नी और इंडस्ट्री की उतारचढ़ाव के बारें में बात की पेश है कुछ खास अंश.

ऐक्शन फिल्में बनाना पसंद

निर्देशक गुड्डू को हमेशा ऐक्शन वाले मनोरंजन से भरपूर एक्शन फिल्में बनाना पसंद करते है, इसलिए उन्होंने देर से ही सही लेकिन एक अच्छी फिल्म से दर्शकों को परिचित करवाया है. वे कहते है कि मैं कई सालों से एक अच्छी थ्रिलर ऐक्शन फिल्म बनाने के बारें में सोच रहा था, क्योंकि हर फिल्म की एक समय होती है, जब उसे बनना पड़ता है और यही इस फिल्म के साथ भी हुआ है. निर्माता जयंतीलाल गाडा का ये सपना था कि वे अभिनेता ठाकुर अनूप सिंह को हिन्दी फिल्म में लौन्च करेंगे, उन्होंने इस फिल्म की योजना बनाई, ऐसे में मेरे फ्रेंड दीपक शर्मा ने जब इसकी कहानी सुनी, तो उन्होंने मेरा नाम सुझाया और मुझे बुलाया गया. इसकी कहानी नई और अच्छी लगी, क्योंकि मैं काफी समय से ऐसी कहानी ढूंढ रह था, जिसमें एक्शन के साथसाथ मनोरंजन भी हो. इस फिल्म में रोमियो एक औपरेशन है, जिसे हीरो अंजाम तक पहुंचाता है.

नए कलाकारों के साथ काम करना है पसंद

आपने अभिनेत्री पलक तिवारी के साथ अभी काम किया है, नई जेनरेशन के साथ काम करना क्या आसान होता है या मुश्किल?

गुड्डू कहते है कि मैंने हमेशा नए कलाकार के साथ काम किया है, मेरी पहली पिक्चर जिसे मैंने प्रोड्यूस किया था, उसमें मैंने अभिनेता गोविंदा और अभिनेत्री किमी काटकर नएनए थे, इसके बाद डेविड धवन की फिल्म गोला बारूद थी, उसमें चंकी पांडे नया था, फिल्म दीवाना में अभिनेता शाहरुख खान और अभिनेत्री दिव्या भारती बिल्कुल नए थे, इसके बाद अभिनेता अक्षय कुमार के साथ फिल्म एलान किया, वे भी उस समय नए थे.

फिल्म गुंडाराज में अजय देवगन नया था. इस तरह से मेरे जिंदगी में जो बड़ा स्टार आया वे सनी देओल थे, जिनके साथ मैंने फिल्म जिद्दी बनाई. इस तरह मेरा अनुभव हमेशा नए लोगों के साथ काम करने का रहा है और नए लोगों के साथ काम करने और सिखाने में बहुत मज़ा आता है. अगर ये सीखे हुए है तो काम करना और भी अधिक आसान होता है. पलक तिवारी भी नई है, लेकिन बहुत अच्छी सीखी हुई वन टेक आर्टिस्ट है. इसके अभिनेता अनूप सिंह राठौर भी अच्छे आर्टिस्ट है.

स्टार किड्स की फ्लौप फिल्मों की वजह

अभी तक कई नए स्टार किड्स ने फिल्में की, लेकिन फिल्में फ्लौप रही, जिसके जिम्मेदार एक निर्देशक को ही माना जा रहा है. इस बारें में गुड्डू कहते हैं कि एक कलाकार की प्रतिभा को एक निर्देशक ही उसके अंदर से निकाल सकता है. अगर उनके अंदर उतनी प्रतिभा नहीं भी है, तो उन्हे सीखाना और बताना पड़ता है. अभिनेता धर्मेन्द्र ने जब सनी देओल को फिल्म जिद्दी के लिए लॉन्च किया था, तो पूरा ध्यान, टेकनीशियन, सब्जेक्ट, कंटेन्ट, अच्छा डायरेक्टर, म्यूजिक डायरेक्टर आदि पर था. उस फिल्म के गाने भी हिट रहे. हिन्दी फिल्म में अच्छे गानों का होना बहुत जरूरी होता है, जिससे कई फिल्में हिट हो चुकी है.

हौलिवुड को कौपी करना पड़ रहा भारी

ऐक्शन फिल्मों के बदलते दौर के बारें में पूछने पर निर्देशक कहते हैं कि मैंने कई एक्शन फिल्में बनाई और मेरी फिल्मों में एक्शन, कहानी के अंदर, परिवार और इमोशन के साथ जुड़ा हुआ होता था, जिसमें भाईबहन, मातापिता सबके चरित्र की अहमियत फिल्म में होती थी, जो आज की फिल्मों में नहीं है, साउथ में आज भी वैसी ही फिल्में बन रही है और फिल्में हिट भी हो रही है. जैसे यशराज ने दीवार, त्रिशूल, घायल, घातक, जिद्दी आदि बनाई थी, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. अब वैसी फिल्में बन नहीं रही, क्योंकि अब हिन्दी सिनेमा वाले हौलिवुड स्टाइल, वहां की तकनीक की कौपी कर रहे है और वे ऐसा क्यों कर रहे है, इसे मैं भी समझ नहीं पा रहा. मैँ वैसी सिनेमा को बहुत मिस करता हूं और अगर मैंने कभी फिल्म बनाई, तो वैसी ही फिल्म बनाऊंगा. ये फिल्म तो पहले से लिखी गई थी, लेकिन मैंने इस पर राइटर को बैठाकर बहुत काम किया है.

था बहुत संघर्ष

गुड्डू धनोवा के निर्देशक बनने की पीछे की कहानी भी बहुत दिलचस्प है, वे हंसते हुए कहते है कि मैं डायरेक्टर बनने नहीं आया था, ऐक्टर बनने ही आया था और अभिनेता धर्मेन्द्र मेरे कजिन है. जब मैं इस क्षेत्र में आया तो बहुत संघर्ष रहा, मैं वीरू देवगन के पास फाइटर बनने गया था, जबकि अभिनेत्री जया प्रदा के पास मैं ड्राइवर की नौकरी के लिए भी दो बार गया था. उस दौरान उनकी सेक्रेटरी ने कहा कि मैडम एक तारीख को आएंगी, मैं तब गया फिर पता चल 15 को आएंगी, फिर 15 को गया, लेकिन मैडम नहीं आई और मुझे वहां नौकरी नहीं मिली. फिर मेरी बहन ने मुझे विक्रमजीत फिल्म्स के साथ काम करने का कहा, मैंने वहां काम शुरू किया और वहां कई वर्कशौप किये और पूरी फिल्म मेकिंग सीखा. तब मैंने पहली फिल्म सितमगर बनाई, इसके बाद बेताब फिल्म को प्रोडक्शन मैनेजर के तौर पर काम किया. इसके बाद फिल्म अर्जुन, मेरा लहू को मैंने प्रोड्यूस किया. फिल्म गोलाबारूद को भी मैंने ही प्रोड्यूस किया था, जिसके निर्देशक डेविड धवन थे. इसके बाद मैंने फिल्म दीवाना प्रोड्यूस किया, इस फिल्म के बाद से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा, लेकिन यहां मुश्किल ये हुई कि फिल्म दीवाना के हिट होते ही उसके डायरेक्टर राज कंवर ने मेरी दूसरी फिल्म को उस तय पारिश्रमिक में करने से मना कर दिया, जबकि उनके साथ दो फिल्मों का कान्टैक्ट था. यहां मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने खुद पिक्चर डायरेक्ट करने की ठान ली और निर्देशक के रूप में मेरी पहली फिल्म एलान बनी.

अच्छी कंटेंट बनाना जरूरी

आज हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री पीछे जा रही है, कई सिनेमा हौल बंद हो चुके है, इसके जिम्मेदार के बारें में पूछने पर गुड्डू धनोवा कहते हैं कि आज दर्शकों के पसंद की चीजें फिल्म मेकर नहीं बना पा रहे हैं और जो भी कुछ थोड़ा दर्शकों को पसंद आ रहा है, वह इतना अधिक मात्रा में बन रहा है कि उसका चार्म अब दर्शकों के बीच में नहीं है, क्योंकि घर बैठे एक अच्छी कहानी दर्शक देख पाते है. मुझे पता है कि मेरी फिल्म भी 8 हफ्ते के बाद में ओटीटी पर आ जाएगी और उन 8 हफ्ते में मेरे पास इतना कंटेन्ट है कि घर बैठे ही मेरा पूरा समय उसी में बीत रहा है, ऐसे में कुछ अलग होने पर ही दर्शक हॉल तक आएंगे वरना नहीं. इसमें बजट भी बड़ी बात होती है. मेरी फिल्म बड़ी बजट की नहीं है, लेकिन मैंने जितना हो सकें, लार्जर देन लाइफ बनाने की कोशिश की है.

ले पूरी ट्रैनिंग

आगे गुड्डू ने ओटीटी प्लेटफौर्म के लिए वेब सीरीज ‘शुभचिंतक’ बनाने की पहल की है, जिसका काम शुरू हो चुका है, ये एक ऐक्शन सहित फुल ड्रामा वाली वेब सीरीज होगी. अपकमिंग कलाकारों के लिए उनका मैसेज है कि जब भी आप इस इंडस्ट्री में आते है, पूरी ट्रैनिंग के साथ आए, दिल से काम करें और एक टाइमबाउंड के साथ आएं, जो 2 से 3 साल तक का ही हो. अगर आप फिल्म इंडस्ट्री में सफल होते है, तो ईमानदारी से काम करें और नहीं तो अपने पेरेंट्स के साथ रहकर दूसरे किसी फील्ड में काम की तलाश करें, यहां रहकर अपना लाइफ खराब न करें.

Content Creators in India: मुश्किल है सोशल मीडिया पर टिके रहना

Content Creators in India: “साड़ी वाली दीदी आई, सैलरी चुराने आई”, “सच बोलना अब जोक बन गया है, और जोक बोलना जुर्म”, “हम होंगे कंगाल”, ये गाने और लाइनें मशहूर और उस से ज्यादा विवादित स्टैंडअप कौमेडियन कुनाल कामरा की हैं, जो अकसर राजनीतिक स्टैंडअप कौमेडी करते हैं और चर्चाओं में रहते हैं. बीते दिनों उन्होंने ‘नया भारत’ नाम से 45 मिनट का एक स्टैंडअप यूट्यूब पर अपलोड किया जिस में ये लाइनें थीं जो कुछ ही मिनटों में सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं.

36 वर्षीय स्टैंडअप कैमेडियन ने अपने आखिरी शो में शिंदे के राजनीतिक कैरियर पर कटाक्ष किया था. कामरा ने फिल्म ‘दिल तो पागल है’ के एक गाने की पैरोडी की थी, जिस में शिंदे को गद्दार कहा गया. कामरा का वीडियो सामने आने के बाद 22 मार्च की रात शिवसेना शिंदे गुट के समर्थकों ने मुंबई हैबिटेट कौमेडी क्लब में जम कर तोड़फोड़ की और उन के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई. उन पर आरोप लगाया गया कि कौमेडी को नाम पर वे सरकार की बुराई कर रहे हैं.

इस मामले को एक बड़े यूथ तबके ने फ्रीडम औफ स्पीच माना और बड़ी संख्या में उन्हें सपोर्ट किया. हुआ यह कि कुनाल कामरा के आमतौर पर जो स्टैंडअप 2-3 मिलियन की रीच पाते हैं उस में उन्हें डेढ़ करोड़ व्यूज मिल चुके हैं.

सोशल मीडिया में जहां डांस रील्स, ट्रैंडिंग औडियो, फैशन कंटैंट और ट्रैवल व्लौग्स ही दिखाई देते हैं वहां ऐसे कंटैंट भी देखने को मिलते हैं जो विवाद तो पैदा करते ही हैं, साथ में क्रिटिकल भी खूब देखे व सुने जाते हैं. परिणाम यह कि डांस रील या फैशन रील बनाने वाले इन्फ्लुएंसर्स जहां 4-6 महीने ट्रैंड में रह कर दम तोड़ जाते हैं और कहीं खो जाते हैं वहीं कुछ हट कर काम करने वाले लंबे समय तक सोशल मीडिया पर बने रहते हैं. ऐसा कंटैंट जो लोगों को सोचने पर मजबूर करे. ऐसा कंटैंट जो क्रिटिकल हो, सच्चाई के साथ हो और जनता के काम का हो.

ये चलते ही इसलिए हैं क्योंकि ये थोड़े यूनीक तरीके से अपनी बातें कह रहे हैं और जरूरी यह कि वे बातें कह रहे हैं जो सुनाई कम दे रही हैं.

ये क्रिएटर्स करते क्या हैं?

यर लोग किसी पार्टी का प्रचार नहीं करते, बल्कि जो सामने है, उसे बिना डर के दिखाते हैं. इन का कंटैंट सरकाज्म से भरा होता है यानी सटायर जिस में हास्य के जरिए गंभीर सवाल उठाए जाते हैं.

भारत की रेंटिंग गोला उर्फ शमिता यादव अपने वीडियो में नेताओं की स्पीच, सरकारी फैसलों और न्यूज चैनल्स की प्रोपगंडा रिपोर्टिंग को कटपेस्ट कर के नया, मजेदार और सोचने लायक वीडियो बना देती हैं. शमिता के इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ट्विटर पर लाखों फौलोअर्स हैं. कुनाल कामरा केस के बाद उन्होंने और तेजी से अपने कंटैंट को पोस्ट करना शुरू कर दिया.

रैंटिंग गोला अपने एक इंटरव्यू में बताती हैं कि उन्हें सरकार के बारे में लोगों से बात करना काफी इंट्रैस्टिंग लगता था. धीरेधीरे उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए वीडियो पोस्ट करना शुरू किया. उस के बाद राजनेताओं की मिमिक्री करना शुरू किया और लोगों को वह सब  काफी पसंद भी आने लगा. बता दें कि रैंटिंग गोला पौलिटिकल कंसल्टैंट के तौर पर काम करती थीं, अब वे फुलटाइम सोशल मीडिया कंटैंट बनाती हैं.

रैंटिंग गोला के अलावा देश में और भी कई फेमस स्टैंडअप कौमेडियन हैं. उन में वरुण ग्रोवर का नाम भी ऊपर आता है. वे अपनी कविता और स्टैंडअप के जरिए करप्शन, सैंसरशिप और लोकतंत्र की हालत पर कटाक्ष करते हैं. हाल में उन्होंने ‘कौमेडी इज डिफिकल्ट’ नाम से एक स्टैंडअप अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड किया, जिसे 20 लाख लोग देख चुके हैं. इस वीडियो में उन्होंने पौलिटिकल सटायर किए हैं.

बता दें, वरुण ग्रोवर के यूट्यूब पर 10 लाख सबस्क्राइबर्स हैं. वे अकसर एंटी स्टैब्लिश्मेंट कंटैंट डालते रहते हैं जिन्हें खूब पसंद किया जाता है.

हाल में ‘सुपरबौयज औफ मालेगांव’ फिल्म की स्क्रिप्ट उन्होंने लिखी. वे डाक्यूमैंट्री स्टाइल में असली मुद्दों पर रिसर्च कर के वीडियो बनाते हैं, जैसे बेरोजगारी, पेपर लीक, किसान आंदोलन, मीडिया की गिरावट आदि. उन की कविताएं जैसे ‘हम कागज नहीं दिखाएंगे…’ जिस में खूब व्यंग्य था, काफी चर्चित रहा.

वरुण ग्रोवर का कहना है, “लोकतंत्र में अगर कोई सवाल नहीं पूछता, तो फिर वह लोकतंत्र नहीं रहता.”

जहां एक तरह लोग जल्दी वायरल होने के लिए कुछ भी ऊटपटांग कंटैंट बनाते हैं, कुछ अपने जिस्म की नुमाइश करते हैं वहां इतना रिस्की कंटैंट बनाना चैलेंज से कम नहीं. यही चैलेंज इन्हें औथेंटिक बनाता है, क्योंकि इस में कई रिस्क होते हैं, जैसे-

-वीडियो हटाया जा सकता है

-चैनल बंद हो सकता है

-पुलिस केस या लीगल नोटिस आ सकता है

-ट्रोल्स और आईटी सैल की औनलाइन गालियां मिल सकती हैं

फिर भी ये क्रिएटर्स बोलते हैं. इन्हें सुनने वाले टाइमपास के लिए नहीं आते बल्कि इन से कुछ काम का ले कर जाते हैं. यही कारण भी है कि भले इन के व्यूअर्स बहुत अधिक नहीं होते पर वे इन के साथ स्टिक रहते हैं और लगातार बने रहते हैं. जैसे, एक क्रिएटर ने कहा था- “लोग अब मीम से ज्यादा सच्चाई जानने में इंट्रैस्टेड हैं.”

मिलती हैं धमकियां, फिर भी बोलते हैं क्यों?

कई क्रिएटर्स को ट्रोलिंग, लीगल नोटिस और यहां तक कि गिरफ्तारी तक का सामना करना पड़ा है. लेकिन फिर भी वे पीछे नहीं हटते. और यही चीज उन के औडियंस को सब से ज्यादा इंस्पायर करती है.

कुनाल कामरा, वरुण ग्रोवर और ध्रुव राठी इन सभी का सोशल मीडिया पर अच्छाखासा फैनबेस है. लोग इन्हें सपोर्ट करते हैं. कुनाल कामरा के केस के बाद उन की वीडियोज पर भारीभरकम व्यूज आने लगे. यहां तक कि जब उन पर एफआईआर दर्ज हुई तो उन के फैंस ने कमैंट सैक्शन पर पैसे डोनेट करने शुरू कर दिए और लिखा कि आप वीडियो बनाते रहिए, आप के वकील के पैसे हम देंगे.

यानी, अब लोग सिर्फ हंसीमजाक ही नहीं, बल्कि ऐसे कंटैंट को ज्यादा पसंद करते हैं जिस में इंडिपेंडैंट वौयस हो और बिना किसी डर के सच्चाई सामने रखी गई हो.

Hindi Folk Tales : काश, तुम भाभी होती

Hindi Folk Tales :  पुनीत पटना इंजीनियरिंग कालेज में प्रीफाइनल ईयर में पढ़ रहा था. उस का भाई प्रेम इंजीनियरिंग कर 2 साल पहले अमेरिका नौकरी करने गया था. उस के पिता सरकारी नौकरी में थे. वह साइकिल से ही कालेज जाया करता था. एक दिन जाड़े के मौसम में वह कालेज जा रहा था. उस दिन उस का एग्जाम था. अचानक उस की साइकिल की चेन टूट गई. ठंड में इतनी सुबह कोई साइकिल रिपेयर की दुकान भी नहीं खुली थी और न ही कोई अन्य सवारी जल्दी मिलने की उम्मीद थी. उस के पास समय  भी बहुत कम बचा था. कालेज अभी  3 किलोमीटर दूर था. वह परेशान रोड पर खड़ा था. तभी एक लड़की स्कूटी से आई और बोली, ‘‘मे आई हैल्प यू?’’

पुनीत ने अपनी परेशानी का कारण बताया. लड़की स्कूटी पर बैठ गई और पुनीत से बोली ‘‘आप साइकिल पर बैठ जाएं और मेरे कंधे को पकड़ लें. बिना पैडल किए मेरे साथ कुछ दूर चलें. मेरा कालेज आधा किलोमीटर पर है. उस के बाद मैं आप को इंजीनियरिंग कालेज तक छोड़ दूंगी.’’

थोड़ी दूर पर मगध महिला कालेज के गेट पर उस ने दरबान को साइकिल रिपेयर करवाने के लिए बोल कर पुनीत से कहा, ‘‘आप मेरी स्कूटी पर बैठ जाएं, मैं आप को ड्रौप कर देती हूं. कालेज से लौटते वक्त अपनी साइकिल दरबान से ले लेना. हां, उसे रिपेयर के पैसे देना न भूलना.’’

उस लड़की ने पुनीत को कालेज ड्रौप कर दिया. पुनीत ने कहा ‘‘थैंक्स, मिस… क्या नाम…?’’

लड़की बिना कुछ बोले चली गई. कुछ दिनों बाद पुनीत कालेज से लौटते समय सोडा फाउंटेशन रैस्टोरैंट में एक किनारे टेबल पर बैठा था. पुनीत लौन में जिस टेबल पर बैठा था उस पर सिर्फ 2 कुरसियां ही थीं. दूसरी कुरसी खाली थी. बाकी सारी टेबलें भरी थीं.

वह अपना सिर झुकाए कौफी सिप कर रहा था कि एक लड़की की आवाज उस के कानों में पहुंची, ‘‘मे आई सिट हियर?’’ उस ने सिर उठा कर लड़की को देखा तो वह स्कूटी वाली लड़की थी. उस ने कहा, ‘‘श्योर, बैठो… सौरी बैठिए. इट्स माय प्लेजर. उस दिन आप का नाम नहीं पूछ सका था.’’

वह बोली, ‘‘मैं वनिता और फाइनल ईयर एमए में हूं.’’

‘‘और मैं पुनीत, थर्ड ईयर बीटेक में हूं.’’

दोनों में कुछ फौर्मल बातें हुईं. पुनीत बोला, ‘‘मैं रीजेंट में इवनिंग शो देखने जा रहा था. अभी शो शुरू होने में थोड़ा टाइम बाकी था, तो इधर आ गया.’’

वनिता ने अपना बिल पे किया और वह बाय कह कर चली गई. पुनीत ने वनिता का बिल पे करना चाहा था पर उस ने मना कर दिया.

इधर पुनीत के भाई प्रेम की शादी उस के पिता ने एक लड़की से तय कर रखी थी. बस, प्रेम की हां की देरी थी. उन्होंने लड़की की विधवा मां को वचन भी दे रखा था. पर प्रेम अमेरिका में पटना की ही किसी पिछड़ी जाति की लड़की से प्यार कर रहा था बल्कि कुछ दिनों से साथ रह भी रहा था. उस लड़की से अपनी शादी की इच्छा जताते हुए प्रेम ने मातापिता से अनुरोध किया था.

प्रेम के मातापिता दोनों बहुत पुराने विचारों के थे और खासकर पिता बहुत जिद्दी व कड़े स्वभाव के थे. उन्होंने दोनों बेटों को साफसाफ बोल रखा था कि वे बेटों की शादी अपनी मरजी से अच्छी स्वजातीय लड़की से ही करेंगे. उन्होंने प्रेम को भी बता दिया था कि यह रिश्ता मानना ही होगा वरना मातापिता के श्राद्ध के बाद जो करना हो करे.

मातापिता के दबाव में प्रेम ने टालने की नीयत से उन से कहा कि वे पुनीत को लड़की देखने को भेज दें, उसे पसंद आए तो सोच कर बताऊंगा. इधर प्रेम ने पुनीत को सचाई बता दी थी.

पुनीत की मां ने उस से कहा, ‘‘जा बेटे, अपने भैया की दुलहनिया देख कर आओ.’’

पुनीत मातापिता के बताए पते पर होने वाली भाभी को देखने गया. पुनीत ने उसे महल्ले में पहुंचने पर घर की सही लोकेशन पूछने के लिए दिए गए नंबर पर फोन किया. फोन एक लड़की ने उठाया और निर्देश देते हुए कहा, ‘‘मैं बालकनी में खड़ी रहूंगी, आप बाईं तरफ सीधे आगे आएं.’’

वनिता ने उस लड़की से परिचय कराते हुए कहा, यह मेरी सहेली कुमुद…

पुनीत उस पते पर पहुंचा तो बालकनी में वनिता को देख कर चकित हुआ. वनिता ने उसे अंदर आने को कहा. वहां 2 प्रौढ़ महिलाओं के साथ वनिता एक और लड़की के साथ बैठी हुई थी. वनिता ने उस लड़की से परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह मेरी सहेली कुमुद, यह उस की मां और उस किनारे में मेरी मां.’’ दोनों की माताएं उन लोगों को बातें करने के लिए बोल कर चली गईं.

वनिता पुनीत से बोली, ‘‘कुमुद मैट्रिक तक मेरे ही स्कूल में पढ़ी है. मुझ से एक साल सीनियर थी. हमारे पड़ोस में ही रहती थी. इस के पिता अब नहीं रहे. इस की मां कुमुद की शादी को ले कर काफी चिंतित हैं.’’

पुनीत बोला ‘‘क्यों?’’

‘‘कुमुद ही आप के भाई की गर्लफ्रैंड है. कुछ महीनों से अमेरिका में वे साथ ही रह रहे हैं. दोनों में फिजिकल रिलेशनशिप भी चल रहा है. वैसे, आप के मातापिता मुझ से रिश्ता करना चाहते हैं. पर मैं कुमुद की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं करूंगी. कुमुद को मैं अपनी बहन समझती हूं. मैं प्रेम और कुमुद के बीच रोड़ा नहीं बन सकती हूं. आप अपने पेरैंट्स को समझाएं कि अपनी जिद छोड़ दें वरना प्रेम, कुमुद और मेरी तीनों की जिंदगी तबाह हो जाएगी.’’

पुनीत कुछ पल खामोश था. फिर बोला, ‘‘मैं किसी को दुखी नहीं देखना चाहता हूं. घर जा कर बात करता हूं. डोंट वरी. मुझ से जो बन पड़ेगा, अवश्य करूंगा. मैं आप को फोन करूंगा.’’

पुनीत के जाने के बाद कुमुद ने वनिता से कहा, ‘‘तुम्हें अगर प्रेम पसंद है तो तुम्हारे लिए मैं प्रेम से रिलेशन ब्रेक कर सकती हूं.’’

‘‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. मां मेरे लिए जरूरत से ज्यादा चिंतित है. वैसे भी, प्रेम तुम्हारे अलावा किसी और के साथ रिलेशन में होता तो भी मेरे लिए उस से शादी की बात सोचना भी असंभव थी.’’

‘‘मैं एक बात कहूं?’’

‘‘हां, श्योर.’’

‘‘पुनीत बहुत अच्छा लड़का है. अगर तेरा किसी और से चक्कर नहीं चल रहा है तो तू उस से शादी कर ले.’’

‘‘क्या बात करती हो? मैं मास्टर्स कर रही हूं और वह तो अभी बीटैक थर्ड ईयर में है.’’

‘‘पगली, तुम्हें पता नहीं है कि उस का कैंपस सलैक्शन भी हो गया है. और प्रेम बोल रहा था कि पुनीत सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा है. कंपीट कर गया तो समझ तेरी लौटरी लग जाएगी, नहीं तो इंजीनियर है ही.’’

‘‘फिर भी, तुम क्या समझती हो मैं जा कर उसे प्रपोज करूं?’’

‘‘नहीं, मैं अभी प्रेम की मां को फोन पर इस प्रपोजल के लिए बोल देती हूं. घर आ कर पुनीत ने मातापिता को विस्तार से समझाया. उस ने कहा, ‘‘भैया चाहते तो अमेरिका में ही कोर्ट मैरिज कर लेते, तो उस स्थिति में आप क्या कर लेते. भैया ने आप का सम्मान करते हुए आप से अनुमति मांगी है. मैं ने उस लड़की को देखा है, कुमुद नाम है उस का. काफी अच्छी लड़की है. वह भी आई हुई है. आजकल वयस्क जोड़ों को जातपांत और धर्म शादी करने से नहीं रोक सकते. आप 3 लोगों की खुशियां क्यों छीनना चाहते हैं?’’

मां ने कहा, ‘‘तुम मुझे कुमुद से मिलवाओ, फिर मैं पापा को समझाने की कोशिश करूंगी.’’

‘‘वह तो कल सुबह मुंबई की फ्लाइट से जा रही है. वहीं से अमेरिका चली जाएगी.’’

फिर पुनीत और मां दोनों जा कर कुमुद से मिले. मांबेटे दोनों ने मिल कर पिताजी को काफी समझाया. तब उन्होंने कहा, ‘‘मुझे समाज में शर्मिंदा होना पड़ेगा. वनिता की बूढ़ी विधवा मां को वचन दे चुका हूं. रिश्तेदारी में भी इस बारे में काफी लोगों को बता चुका हूं.’’

उसी समय अमेरिका से प्रेम ने मां से फोन पर कुछ बात की. मां ने कहा, ‘‘हम ने तुम्हारे लिए वनिता की मां को बोल रखा था. वनिता में तुम्हें क्या खराबी नजर आती है. वैसे भी कुमुद तो पिछड़ी जाति की है. तेरे पापा को समझाना बहुत मुश्किल है.’’

प्रेम ने कहा, ‘‘आप लोगों ने पहले मुझे वनिता के बारे में कभी नहीं बताया था. वनिता को मैं ने देखा जरूर है पर मेरे मन में उस से शादी की बात कभी नहीं थी. और जहां तक कुमुद की जाति का सवाल है तो आप लोग दकियानूसी विचारों को छोड़ दें. अमेरिका, यूरोप और अन्य उन्नत देशों में आदमी की पहचान उस की योग्यता से है, न कि धर्म या जाति से. यह उन की उन्नति का मुख्य कारण है. और हां, अगर मैं शादी करूंगा तो कुमुद से ही वरना शादी नहीं करूंगा,’’ इतना बोल कर प्रेम ने फोन काट दिया.

उस की मां ने पुनीत से पूछा ‘‘यह वनिता कैसी लड़की है रे?’’

‘‘मां, वह बहुत अच्छी लड़की है. पढ़नेलिखने और देखने में भी. मैं उस से  2 बार पहले भी मिल चुका हूं.’’

फिर उस के मातापिता दोनों ने आपस में कुछ देर अकेले में बात कर पुनीत से कहा, ‘‘अब इस समस्या का हल तुम्हारे हाथ में है.’’

‘‘मैं भला इस में क्या कर सकता हूं?’’

‘‘कुमुद को हम बड़ी बहू स्वीकार कर लेंगे. पर तुम्हें भी हमारी इज्जत रखनी होगी. वनिता तेरी पत्नी बनेगी.’’

‘‘अभी तो मुझे पढ़ना है. वैसे वह एमए फाइनल में है मां. हो सकता है उम्र में मुझ से बड़ी हो.’’

‘‘लव मैरिज में सीनियरजूनियर या उम्र का खयाल तुम लोग आजकल कहां करते हो. और क्या पता कुमुद प्रेम से बड़ी हो? मैं वनिता की मां को फोन करती हूं. अगर थोड़ी बड़ी भी हुई तो क्या बुराई है इस में,’’ इतना बोल कर उस ने वनिता की मां से फोन पर कुछ बात की.

पुनीत गंभीर हो कर कुछ सोचने लगा था. थोड़ी देर बाद मां ने कहा, ‘‘पुनीत, तुम वनिता से बात कर लो. मैं ने उस की मां  को कहा कि कल शाम तुम दोनों रैस्टोरैंट में मिलोगे.’’ पुनीत और वनिता दोनों अगली शाम को उसी रैस्टोरैंट में मिले. पुनीत बोला, ‘‘मां ने अजब उलझन में डाल दिया है. मैं क्या करूं? आप को ठीक लग रहा है?’’

वनिता बोली, ‘‘मुझे तो कुछ बुरा नहीं दिखता इस में? हां, ज्यादा अहमियत आप की पसंद की है. मैं आप की पसंदनापसंद के बारे में नहीं जानती हूं.’’

‘‘आप तो हर तरह से अच्छी हैं, आप को कोई नापसंद कर ही नहीं सकता. फिर भी मुझे कुछ देर सोचने दें.’’

‘‘हां, वैसे दोनों में किसी को जल्दी भी नहीं है. पर मुझे कुमुद की चिंता है. वैसे हम दोनों के परिवार और कुमुद के परिवार सभी की भलाई इसी में है, और हां, मां बोल रही थी कि मैं पढ़ाई में आप से सीनियर हूं.’’

पुनीत चुपचाप सिर झुकाए बैठा था. तो वनिता बोली, ‘‘मैं अगर सीनियर लगती हूं तो इस साल एग्जाम ड्रौप कर दूंगी. मंजूर?’’

पुनीत हंसते हुए बोला, ‘‘नहीं, आप ऐसा कुछ नहीं करें. आप अपना पीजी इसी साल करें.’’

‘‘एक शर्त पर.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘अभी इसी वक्त से हम लोग आप कहना छोड़ कर एकदूसरे को तुम कहेंगे.’’

‘‘आप भी… सौरी तुम भी न…. पर मेरी भी एक शर्त है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘शादी पढ़ाई पूरी होने के बाद ही होगी, भले सगाई अभी हो जाए.’’

‘‘मंजूर है. फोन पर रोज बात करनी होगी और वीकैंड में यहीं मिला करेंगे.’’

‘‘एग्रीड.’’

दोनों एकसाथ हंस पड़े. अगले पल वे वहां से निकल कर एकदूसरे का हाथ पकड़े सड़क पार कर सामने फैले गांधी मैदान में टहलने लगे.

पुनीत बोला, ‘‘पर मुझे एक बात का अफसोस रह गया. मैं तो घाटे में रहा.’’

‘‘कौन सी बात?’’ वनिता ने पूछा.

‘‘अगर भैया की शादी तुम से और मेरी शादी किसी और लड़की से होती तो मैं विनविन सिचुएशन में होता न.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम मेरी भाभी होतीं, तो मेरे दोनों हाथों में लड्डू होते.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पत्नी पर तो हंड्रेड परसैंट हक रहता ही और अगर तुम मेरी भाभी होतीं तो देवर के नाते भाभी से छेड़छाड़ करने और मजाक करने का हक बोनस में बनता ही था.’’

‘यू नौटी बौय,’ बोल कर वनिता उस के कान खींचने लगी.

Interesting Hindi Stories : अपनी जिंदगी – क्या मां ने दिया रंजना का साथ

Interesting Hindi Stories : उस लोकल ट्रेन की बोगी में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी, इसलिए रंजना ने जल्दी से खिड़की की तरफ वाली सीट पकड़ ली थी. उसे चलती हुई ट्रेन से बाहर खेत, मैदान, पेड़पौधे, नदी, पहाड़ देखना अच्छा लगता था, पर इस बार उस की इच्छा बाहर देखने की नहीं हो रही थी. उस का मन अंदर से उदास था, इसलिए वह अनमने ढंग से सीट पर बैठ गई थी. पास ही दूसरी तरफ की सीट पर उस के मामाजी बैठे हुए थे.

ट्रेन के अंदर कभी चाय वाला, कभी मूंगफली वाला, तो कभी फल बेचने वाले आ और जा रहे थे.

रंजना इन चीजों से बेखबर थी. उस का ध्यान ट्रेन के अंदर नहीं था, इसलिए वह खयालों में खोने लगी थी. उसे अलगअलग तरह के शोर से घबराहट हो रही थी, इसलिए वह आंखें बंद कर के सोचने लगी थी.

आज से तकरीबन डेढ़ साल पहले वह अपने मामा के घर पढ़ने आई थी. हालांकि उस की मम्मी नहीं चाहती थीं कि उन की सब से लाड़ली बेटी अपने मामामामी पर बो झ बने. उस के मामामामी के कोई औलाद नहीं थी, इसलिए मामामामी के कहने पर उन के घर जाने के लिए तैयार हुई थी. उस की मामी का अकेले मन नहीं लगता था, तभी उस की मम्मी भेजने को राजी हुई थीं.

रंजना की मम्मी के राजी होने के पीछे की एक वजह यह भी थी कि वे चाहती थीं कि उन की बेटी पढ़लिख जाए. गांव में 11वीं जमात के लिए स्कूल नहीं था, जबकि मामामामी जहां रहते थे, वहां ये सब सुविधाएं थीं.

रंजना 3 भाईबहनों में सब से बड़ी थी. उस के पापाजी खेतीबारी करते थे. घर में किसी तरह की कमी नहीं थी.

मम्मी दिल पर पत्थर रख कर बेटी रंजना को भेजने को राजी हुई थीं. वैसे, वे नहीं चाहती थीं कि उन की बेटी उन से दूर रहे. पर गांव में आगे की पढ़ाईलिखाई का उचित इंतजाम नहीं था, इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए न चाहते हुए भी वे मामामामी के घर भेजना उचित सम झी थीं.

आइसक्रीम वाले ने आइसक्रीम की आवाज लगाई. उस के मामाजी ने उस से आइसक्रीम के लिए पूछा, ‘‘रंजना, आइसक्रीम खाओगी?’’

‘‘नहीं मामाजी, मेरी इच्छा नहीं है,’’ रंजना अनिच्छा जाहिर करते हुए उस लोकल ट्रेन की खिड़की से बाहर देखने लगी थी.

रंजना के मामाजी चाय वाले से चाय खरीद कर सुड़कने लगे थे, क्योंकि वह चाय नहीं लेती थी, इसलिए वह बाहर की तरफ देख रही थी. लेकिन उस का मन बाहर भी टिक नहीं पा रहा था. अभी भीड़ उस का ध्यान मामा के गांव की गलियों में ही था. उसे रोना आ रहा था. वह किस मुंह से मम्मी से बात करेगी?

रंजना अपनेआप को कुसूरवार मान रही थी. लेकिन उस ने कोई बहुत बड़ा अपराध नहीं किया था. उस का अपराध सिर्फ यही था कि वह एक दूसरी जाति के लड़के से प्यार करने लगी थी. वह अपनी मम्मी की हिदायतों के मुताबिक खुद पर काबू नहीं रख पाई थी.

मम्मी ने घर से निकलते हुए उसे दुनियादारी के लिए सम झाया था, ‘‘अपने मामामामी का मान रखना. कभी भी कुछ गलत काम मत करना कि अपने मातापिता के साथ मामामामी को भी सिर  झुकाना पड़ जाए. बेटी की एक गलती के चलते घर की मानमर्यादा चली जाती है. इसे हमेशा याद रखना,’’ और उस का सिर चूम कर घर से विदा किया था.

लेकिन यहां रंजना एक ऐसे लड़के से प्यार कर बैठी थी, जहां उस की जाति के लोग छोटा मानते थे. पर राजेश का इस में क्या कुसूर था? उस का सिर्फ इतना ही कुसूर था कि उस ने निचले तबके में जन्म लिया था, जबकि इनसान का किसी जाति या धर्म में जन्म लेना किसी के वश में नहीं होता है. पर, राजेश एक अच्छा इनसान था.

रंजना राजेश के साथ स्कूल और कोचिंग आतीजाती थी. वह कैसे उस की तरफ खींचती चली गई थी, उसे पता भी नहीं चला था. दोनों हमउम्र होने के चलते एकदूसरे से खूब ठिठोली करते. पगडंडियों पर हंसहंस कर बातें करते. एकदूसरे का मजाक उड़ाते. बिना वजह भी खूब हंसते. बिना बात किए एक पल भी नहीं रह पाते थे. यह सब कब प्यार में बदल गया, उसे पता भी नहीं चला. फिर तो वे एकदूसरे के प्यार में पागल हो गए थे. आज उसी पागलपन ने उसे पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वह पढ़ना चाहती थी और वह यहां पढ़ने के लिए ही तो आई थी.

उस दिन रात के अंधेरे में रंजना राजेश के आगोश में थी. दोनों एकदूसरे की बांहों में चिपके हुए मस्ती में डूबे हुए थे. वे एकदूसरे के होंठों को चूम रहे थे. राजेश उस के कोमल अंगों से खेलने लगा था. दोनों के जिस्म में गरमी बढ़ने लगी थी. वे एकदूसरे में समा जाने की कोशिश कर रहे थे, तभी उस के मामा आ गए थे. यह सब उन के लिए खून खौलाने वाला था.

अचानक मामा ने उन दोनों को एकदूसरे के आगोश में लिपटे हुए रंगे हाथों पकड़ लिया था. वे काफी गुस्से में थे.

रंजना राजेश को किसी तरह भगा चुकी थी.

मामामामी को यह पसंद नहीं था कि रंजना एक निचले तबके के लड़के के प्यार में पड़ जाए और इस की चर्चा पूरे गांव में हो, इसलिए उस की मामी ने मामा को सम झाया था, ‘‘इस का यहां रहना ठीक नहीं है. पानी सिर से ऊपर जा चुका है. इस की कच्ची उम्र का पागलपन है. कहीं ऊंचनीच हो गई, तो हम लोग जीजी को क्या मुंह दिखाएंगे? हमारी बिरादरी में बदनामी होगी सो अलग. इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.’’

सरल स्वभाव के मामा ने मामी की हां में हां मिलाई थी, क्योंकि वे मामी के आज्ञाकारी पति थे. वे उन की बातों को कभी भी टालते नहीं थे. वहीं मामी

काफी उग्र स्वभाव की थीं. उन में जातपांत, छुआछूत की सोच कूटकूट कर भरी हुई थी.

दूसरी वजह यह थी कि वे ब्राह्मण थे. इस परिवार के लोग निचले तबके से काम तो ले सकते हैं, पर प्यार के नाम पर एकदूसरे की जान के दुश्मन बन बैठते हैं. इसलिए उस के मामामामी दोनों ने फौरन फैसला किया कि उसे गांव में मम्मीपापा के पास छोड़ आएं. यही  वजह थी कि आज उस के मामा रंजना को उस के घर छोड़ने जा रहे थे.

राजेश देखने में स्मार्ट था. दोनों को स्कूल और कोचिंग आनेजाने के दौरान ही एकदूसरे से नजदीकियां बढ़ी थीं. राजेश पढ़नेलिखने में बहुत अच्छा था, जबकि रंजना गांव से आई थी. राजेश उसे पढ़ने में भी मदद करता था. उस की फर्स्ट ईयर की कोचिंग क्लासेज में परफौर्मैंस अच्छी हो चुकी थी.

रंजना का अपना गांव काफी पिछड़ा हुआ था. लेकिन यहां छोटामोटा बाजार होने के चलते लोग थोड़ीबहुत शहरी रंगढंग में ढल चुके थे. पास ही रेलवे स्टेशन था. यहां के लड़केलड़कियां लोकल ट्रेन से स्कूल और कोचिंग आतेजाते थे. ट्रेन से उतर कर कुछ दूरी गांव की पगडंडियों पर चलना पड़ता था. उन्हीं पगडंडियों के बीच उन दोनों का प्यार पनपा था. वह राजेश के साथ जीना चाहती थी. राजेश भी उसे बहुत प्यार करता था.

जैसे ही ट्रेन हिचकोले खा कर रुकी, रंजना के मामाजी ने उसे  झक झोरा, ‘‘चलो रंजना, स्टेशन आ गया. अब उतरना है,’’ सुन कर वह सकपका गई थी.

रंजना अतीत से वर्तमान में आ गई थी. दोनों तेजी से ट्रेन से उतर गए थे, क्योंकि यहां ट्रेन बहुत कम समय के लिए रुकती थी.

रंजना जल्द ही आटोरिकशा से घर पहुंच चुकी थी. उस की मम्मी अचानक आई अपनी बेटी और भाई को देख कर खुश थीं, लेकिन उन के मन में शक पैदा होने लगा था. उस के पापाजी को आने से कोई खास फर्क नहीं हुआ था. लेकिन उस की मम्मी सम झ नहीं पा रही थीं. अभी उस की स्कूल की छुट्टी के दिन भी नहीं थे, फिर वह अचानक कैसे आ गई. मामाजी जल्दी ही शाम की गाड़ी से लौट गए थे.

हालांकि रंजना के मामाजी उस के मम्मीपापा को सबकुछ बता चुके थे. यह सब सुन कर उस के घर का माहौल ही बदल गया था. उस के पापाजी ने उसे घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया था. उस की पढ़ाईलिखाई छूट गई थी. अब वह उदास रहने लगी थी. जल्दीजल्दी उस के लिए रिश्त ढूंढ़ा जाने लगा था. काफी भागदौड़ के बाद उस की शादी तय हो गई, लेकिन उस की उदासी दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी.

कुछ दिन बीतने के बाद रंजना की उदासी में कोई सुधार नहीं हुआ. उस की मम्मी ने उसे सम झाने की कोशिश की, ‘‘हम ऊंची जाति वाले हैं. इस तरह की ओछी हरकत से हम लोगों की समाज में बदनामी होगी. हम लोगों का ऊंचा खानदान है. जल्दी ही तुम्हारी शादी हो जाएगी,’’ उस की मम्मी हिदायत दे रही थीं और उस के सिर

पर उंगलियां भी फिरा रही थीं.

वह मम्मी से गले लग कर फफकफफक कर रोने लगी थी. उस दिन उस के पापाजी घर पर नहीं थे.

‘‘मम्मी, मैं राजेश के बिना नहीं जी पाऊंगी. मैं उसे बहुत प्यार करती हूं.’’

मम्मी उस के सिर को प्यार से सहला रही थीं और सम झा रही थीं, ‘‘बेटी, अपनी बिरादरी में क्या लड़कों की कमी है? तुम्हारे लिए उस से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ा जाएगा.’’

‘‘नहीं मम्मी, मु झे सिर्फ राजेश चाहिए,’’ उस ने रोते हुए उन्हें बताया.

उस की मम्मी अपनी बेटी के रोने  से विचलित हो गई थी. फिर भी वह  उसे ढांढ़स बंधा रही थीं, ‘‘सबकुछ  ठीक हो जाएगा. वक्त हर मर्ज की  दवा है.’’

उस दिन रंजना की मम्मी रात को अपने बिस्तर पर करवटें बदल रही थीं. वे काफी बेचैन थीं. शायद उन्हें अपनी बेटी का दुख सहा नहीं जा रहा था. उन्हें भी याद आ रहा थे, अपनी जिंदगी के बीते हुए वे सुनहरे पल, जब वे अपनी जवानी के दिनों में अपने ही गांव के पड़ोस के एक लड़के से प्यार करने लगी थीं. लेकिन वे अपने मातापिता को नहीं बता पाई थीं. मातापिता की इज्जत का खयाल कर के दिल पर पत्थर रख उन के द्वारा तय किए गए उस के पापा से ही शादी कर ली थी.

रंजना की मम्मी सोच रही थीं, ‘काश, मैं इतनी हिम्मत कर पाती. कम से कम अपनी बेटी की तरह वे भी अपनी मां से कह पातीं.’

आज भी वे अपने पहले प्यार को भुला नहीं पाई थीं. मन में कहीं न कहीं इस बात का मलाल जरूर था. क्योंकि उन का प्यार अधूरा रह गया था. वे सोच रही थीं कि अगर वे अपने प्रेमी को पा लेतीं, तो शायद उन की जिंदगी कुछ अलग होती.

आज मम्मी फैसला ले रही थीं, कुछ भी हो जाए, वे अपनी बेटी को उस रास्ते पर नहीं जाने देंगी, जिस रास्ते पर उन्होंने चल कर खुद की जिंदगी बरबाद कर ली थी. शादी तो कर ली थी, पर अपने पति से प्यार नहीं कर पाई थीं. दोनों के बीच काफी  झगड़े होते थे.

मम्मी शादी की चक्की में पिस रही थीं. उन्होंने अपनेआप को खो दिया  था. उन की अपनी पहचान कहीं बिखर गई थी.

आज वे भले ही 3 बच्चों की मां बन चुकी थीं, पर प्यार तो किसी कोने में दुबक गया था. उन की जिंदगी में नीरसता भर गई थी. ऐसे बंधनों से उन्हें कभीकभी ऊब सी होने लगती थी. उन्हें ऐसा महसूस होता था, जैसे वे अनदेखी बेडि़यों में जकड़ ली गई हैं.

बस, सुबह जागो, खाना पकाओ, घर के लोगों को खिलाओ, सब का ध्यान रखो. खुद का ध्यान भाड़ में जाए. पति के लिए व्रत करो, बेटेबेटी के लिए व्रत करो. सब के लिए बलिदान करो, सब के लिए त्याग करो. खुद के लिए कुछ भी नहीं. वही पुराने ढर्रे पर चलते रहो. क्या उन्होंने अपनी जिंदगी के बारे में यही सब सोचा था?

रंजना के पापाजी और मामाजी उस के लिए रिश्ता तय करने गए थे, बल्कि लड़के वालों को कुछ पैसे भी पहुंचाने गए थे. उस के पापाजी 2 दिन बाद

ही लौटेंगे.

पापाजी के जाने के बाद मम्मी अपनी बेटी से खुल कर बातें कर रही थीं. वे राजेश के बारे में पूरी जानकारी ले चुकी थीं. फिर खुद ही राजेश से टैलीफोन से बात भी की थी. सबकुछ जान कर, संतुष्ट होने के बाद ही उसे बुलाया था.

मम्मी हैरान, पर खुश थीं. राजेश समय से हाजिर हो गया था. मम्मी की नजर में राजेश सुंदर और होनहार लड़का था. उन्होंने राजेश से कई तरह के सवालजवाब किए थे.

अगले दिन सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. मम्मी ने  झक झोर कर रंजना को जगाया. उसे आधे घंटे में तैयार होने के लिए बोला. वह सम झ नहीं पाई थी कि उसे कहां जाना है और क्या करना है? वह कई बार उन से पूछ चुकी थी, पर मम्मी कोई जवाब नहीं दे रही थीं.

तभी दरवाजे पर मोटरसाइकिल रुकने की आवाज आई थी. रंजना सोच रही थी कि अभी तो उस के पापाजी के भी आने का समय नहीं है. उसे मालूम था कि उस के पापाजी दूसरे दिन ही आ पाएंगे. उस की मम्मी उस के लिए बैग पैक कर रही थीं. उस के सारे कपड़े, गहने बैग में समेट दिए थे.

रंजना ने जैसे  ही दरवाजा खोला, राजेश अंधेरे में अपनी मोटरसाइकिल के साथ खड़ा था. वह अभी भी नहीं सम झ पा रही थी कि आखिर उस की मम्मी क्या चाहती हैं? उस के छोटे भाईबहन सब सोए हुए थे.

मम्मी जो कुछ भी कर रही थीं, बहुत ही सावधानी से कर रही थी. उन्होंने राजेश को बैग पकड़ा दिया और बोलीं, ‘‘देखो, इस का खयाल रखना. इसे कभी हमारी कमी महसूस नहीं होने देना. मैं ने अपनी बेटी को बड़े नाजों  से पाला है. तुम कुछ दिन के लिए  कहीं दूर चले जाओ, जहां तुम्हें कोई देख न सके.’’

रंजना सारा माजरा सम झ चुकी थी. वह राजेश के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ गई थी. उस की मम्मी डबडबाई आंखों से सिर्फ इतना ही बोल पाई थीं, ‘‘जा बेटी, अपनी जिंदगी जी ले.’’

रंजना भी फफकफफक कर रोने लगी थी. वह मोटरसाइकिल स्टार्ट होने से पहले उतर कर अपनी मम्मी के गले लग गई थी.

रंजना की मम्मी बोलीं, ‘‘बेटी, जल्दी कर…’’ फिर उन्होंने सहारा दे कर मोटरसाइकिल पर बैठने में रंजना की मदद की थी.

राजेश मोटरसाइकिल स्टार्ट कर चल दिया था. मम्मी अंधेरे में हाथ हिलाती रहीं, जब तक कि वे दोनों उन की आंखों से ओ झल नहीं हो गए थे.

Hindi Fiction Stories : छुई मुई नहीं

Hindi Fiction Stories : “आज का पेपर पढ़ा आप ने?” सुलक्षणा अपने पति दर्शन से बोली.

“हां, सुबह पढ़ा था. कोई खास खबर है क्या?” दर्शन औफिस से आ कर चाय का कप उठा कर तीन सीटर सोफे पर बैठते हुए बोला.

“वो कामिनी देवी वाली खबर पढ़ी?” सुलक्षणा ने दूसरा प्रश्न किया.

“नहीं, मैं ने नहीं पढ़ी… कामिनी देवी वही ना, मशहूर कारोबारी रति प्रसादजी की पत्नी,” दर्शन ने पूछा.

“हां, वही… आज एक खोजी पत्रकार ने खुलासा किया कि उन का एक 28 साल के एक युवक के साथ संबंध थे,” सुलक्षणा कुछ झिझकते हुए बोली.

“अरे, इस में हैरानी कैसी? हो जाते हैं कई बार ऐसे संबंध,” दर्शन बोला.

“पर, कामिनीजी की उम्र 42 साल है और रति प्रसादजी भी साउंड फिजिक वाले व्यक्ति हैं,” सुलक्षणा दोनों की उम्र का रहस्य खोलते हुए बोली.

“ऐसी कोई कमी तो नहीं लगती उन में. स्त्रीपुरुष के व्यक्तिगत संबंधों में रूपरंग, कदकाठी जैसी चीजें माने नहीं रखती हैं, बल्कि अहम बात जो माने रखती है, वह है दोनों के बीच आपसी समझ और उस से मिली संतुष्टि,” दर्शन सुलक्षणा को समझाते हुए बोले.

“यह क्या कोई खाने का व्यंजन है, जो खाने के बाद संतुष्टि देगा,” सुलक्षणा मजाक में बोली.

“यह खाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. खाए गए व्यंजन का स्वाद तो कुछ समय बाद समाप्त हो जाता है, लेकिन एक बार मिली सही तरह की संतुष्टि अगले कई दिनों तक याद रहती है. और उसी संतुष्टि को पुनः पाने के लिए फिर से संबंध स्थापित किए जाते हैं. यही संतुष्टि पतिपत्नी के बीच संबंधों को बनाए रखती है और दोनों के बीच प्रेम बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है,” दर्शन समझाता हुआ बोला.

“मतलब, कामिनीजी…?” कहते हुए सुलक्षणा दर्शन की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगी.

“देखो, यह द्विपक्षीय संबंध है, इसलिए गलती दोनों से हो सकती है,” दर्शन सुलक्षणा को समझाने लगा.

“उस में क्या गलती? 10 मिनट का ही तो काम रहता है,” सुलक्षणा बेझिझक हो कर बोली.

“यही तो बात है सुलक्षणा. यह महज 10 मिनट या सिर्फ दो अंगों के मिलन की बात नहीं है, बल्कि उन पलों में डूब कर उन पलों का भरपूर आनंद लेने व देने की है,” दर्शन समझाते हुए बोला.

“वो कैसे…?” सुलक्षणा सोफे पर दर्शन से सट कर बैठते हुए बोली. अब उस ने दर्शन के हाथों को अपने हाथों में ले लिया.

“वो ऐसे कि आज भी हमारे भारतीय समाज में जीवन से जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय पर बात करना उचित नहीं समझा जाता है.

“ना ही बच्चे इस बारे में अपने मम्मीपापा से पूछ पाते हैं और ना ही मातापिता इस वर्जित विषय में अपने बच्चों को कुछ बतला पाते हैं. जितने भी साथी दोस्त रहते हैं, उन की जानकारी भी लगभग एक समान ही रहती है. इसी कारण प्रायः इस विषय पर बात करने वालों को
एक्स्ट्रा आर्डिनरी बोल्ड कह कर हेयदृष्टि से देखा जाता है. बचे पतिपत्नी, जो इस विषय पर खुल कर बातें कर सकते हैं और उन्हें करना
भी चाहिए. किंतु हमारे भारतीय परिवेश में जहां ज्यादातर विवाह परिजनों के द्वारा तय किए जाते हैं और लड़का व लड़की भिन्न पारिवारिक वातावरण से आते हैं, यह सोच कर इस विषय पर बात नहीं करते कि सामने वाला क्या सोचेगा. इसी कारण दस मिनट पूर्ति कर काम पूरा
कर लिया जाता है,” दर्शन बोला.

“तुम ठीक बोल रहे हो दर्शन. विदाई के समय मुझे भी इसी तरह की सीख दी गई थी कि जैसा दर्शन कहे वैसा करना. अपनी तरफ से कोई बात मत बोलना,” सुलक्षणा बोली.

“मैं जानता हूं. अभी हमारी शादी को मात्र 6 माह ही गुजरे हैं, इसीलिए तुम्हें यह सब समझा पा रहा हूं. बच्चे होने के बाद शायद तुम समझ ना पाओ या मैं तुम्हें समझा ना पाऊं, क्योंकि तब तक ट्रेन प्लेटफार्म छोड़ चुकी होगी,” दर्शन सुलक्षणा की आंखों में झांक कर बोला.

“तो मुझे क्या करना चाहिए?” कहते हुए सुलक्षणा दर्शन की गोद में सिर रख कर लेट गई और दर्शन उस के बालों में अपनी उंगलियां घुमाने
लगा, जो कभीकभी सुलक्षणा के होंठों तक पहुंच जाती थी.

ज्यादातर भारतीय औरतें अपने पति के साथ बिस्तर पर लेटने के साथ ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती हैं, जबकि ऐसा नहीं
होता. पति की अपनी कई इच्छाएं होती हैं, जिन में वह पत्नी का भरपूर सहयोग चाहता है. इतना ही नहीं, वह चाहता है कि पत्नी भी अपनी इच्छा पति पर बिना शर्माए जाहिर करे. बिस्तर पर जाने के बाद इसे सिर्फ 10 मिनट की प्रक्रिया ना समझें, बल्कि उन पलों को जितना लंबा खींच सकते हैं खींचें. यही पल तो उन्हें सर्वोच्च संतुष्टि यानी सुपर सेटिस्फेक्शन देने वाले होते हैं,” दर्शन सुलक्षणा के होंठ, चेहरे और गले पर हाथ घुमाते हुए बोला.

“मतलब, कामिनीजी के मामले में उन्हें संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई,” सुलक्षणा दर्शन के हाथ की एक उंगली को हलके से काटते हुए बोली.

“यह उन दोनों के बीच की बात है. हो सकता है कि कामिनीजी स्वयं आगे हो कर ना बोल पाई हों या रति प्रसादजी स्वयं हावी रहे हों. और कामिनीजी को एक्सप्रेस करने का मौका ही ना दिया हो,” दर्शन बोला.

“लेकिन जानू, कामिनीजी अपनी उम्र के व्यक्ति की तरफ भी तो आकर्षित हो सकती थीं. अपने से छोटे लड़के से उन्हें क्या मिला
होगा,” सुलक्षणा बुरा सा मुंह बना कर बोली.

“यहां कुछ दूसरा मनोविज्ञान काम करता है. वास्तव में यह प्रेम था ही नहीं, बल्कि विशुद्ध सैक्स था. अपनी उम्र के माध्यम से वह छोटी उम्र के व्यक्ति को आदेशित कर हर वो काम करवा सकती थीं, जो वह स्वयं रति प्रसादजी के सामने किसी कारण से नहीं कह पा रही थीं या उन से नहीं कह सकती थीं,” दर्शन बोला.

“मतलब स्पष्ट है कि रति प्रसादजी कामिनीजी को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे थे. और इसी कारण कामिनीजी की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहे थे,” सुलक्षणा ने उत्सुकता से पूछा.

“संभवतः ऐसा ही हुआ हो,” दर्शन बोला, “चलो, बात करतेकरते 2 घंटे हो गए. अब खाना खा लिया जाए?”

“चलो…” सुलक्षणा बोली.

“और एक बात आदमी के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है और जिंदगी का रास्ता उस के बेड (बिस्तर) से हो कर जाता है,” दर्शन समझाता हुआ बोला.

“आप ने मुझे नया पाठ पढ़ा दिया,” कहते हुए सुलक्षणा ने दर्शन के दोनों गालों पर गहरे चुंबन अंकित कर दिए.

“अरे, वाह. 6 महीने में पहली बार बेडरूम के बाहर. वाह, मेरी छुईमुई,” कह कर दर्शन ने भी सुलक्षणा को चूम लिया.

“अब छुईमुई… नहीं हूं. अब मैं हूं फ्लावर औफ एक्सप्रेशन,” कह कर सुलक्षणा मुसकरा दी.

खाना लगाते समय वह गुनगुना रही थी, ‘सजना है मुझे सजना के लिए…’ आज वह इस गीत को संपूर्ण अर्थों में समझ रही थी.

Hindi Story Collection : तू मुझे कबूल – क्या वापस मिली शायरा और सुहैल की खुशियां

Hindi Story Collection : शायरा और सुहैल एकसाथ खेलते बड़े हुए थे. उन्होंने पहले दर्जे से 7वें दर्जे तक एकसाथ पढ़ाई की थी. शायरा के अब्बा बड़ी होती लड़कियों के बाहर निकलने के सख्त खिलाफ थे, इसलिए उसे घर बैठा दिया गया.

उस समय शायरा और सुहैल को लगा था, जैसे उन की खुशियों पर गाज गिर गई हो, मगर दोनों के घर गांव की एक ही गली में होने के चलते उन्हें इस बात की खुशी थी कि शायरा की पढ़ाई छूट जाने के बाद भी वे दोनों एकदूसरे से दूर नहीं थे.

उन दोनों के अब्बा मजदूरी कर के घर चलाते थे, मगर माली हालात के मामले में दोनों ही परिवार तंगहाल नहीं थे. शायरा के चाचा खुरशीद सेना में सिपाही थे, बड़ी बहन नाजनीन सुहैल के बड़े भाई अरबाज के साथ ब्याही थी, जो सौफ्टवेयर इंजीनियर थे और बैंगलुरु में रहते थे. शायरा का एकलौता भाई जफर था, उस से बड़ा, जिस की गांव में ही परचून की दुकान थी.

सुहैल 3 भाइयों में बीच का था. अरबाज बैंगलुरु में सैटल था. गुलफान और सुहैल अभी पढ़ रहे थे. सुहैल खूब  मन लगा कर पढ़ रहा था, ताकि सेना में बड़ा अफसर बन सके.

स्कूल से आते ही सुहैल का पहला काम होता शायरा के घर पहुंच कर उस से खूब बातें करना. उस समय घर में शायरा के अलावा बस उस की अम्मी हुआ करती थीं.

शायरा कोई काम कर रही होती तो सुहैल उसे बांह पकड़ कर छत पर ले जाता. जब वे छोटे थे, तब उन की योजनाओं में गुड्डेगुडि़यों और खिलौनों से खेलना शामिल था, मगर अब वे बड़े हो गए थे तो योजनाएं भी बदल गई थीं.

वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे

अब सुहैल को लगता था कि वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे, मगर उस के मासूम बरताव को देख कर वह ठहर जाता.

एक दिन स्कूल से छुट्टी ले कर सुहैल ने शहर जा कर कोई फिल्म देखी. वापस लौटते हुए फिल्म की प्यार से सराबोर कहानी उस के जेहन पर छाई हुई थी. जैसे ही वह और शायरा छत पर पंहुचे, उस ने बिना कोई बात किए शायरा का हाथ पकड़ लिया.

ऐसा नहीं था कि उस ने शायरा का हाथ पहली बार पकड़ा हो, मगर उस की आंखों में तैर रहे प्यार के भाव को महसूस कर के शायरा घबरा गई और हाथ छुड़ा कर नीचे चली गई.

सुहैल चुपचाप अपने घर लौट आया. अब हालात बदल गए थे. स्कूल से आते ही वह अपना होमवर्क खत्म करता और उस के बाद शायरा के घर जा कर बस उसे देखभर आता.

समय बीतता गया. सुहैल की ग्रेजुएशन खत्म हो चुकी थी. घर वाले शादी की बात करने लगे थे, मगर सुहैल कह देता, ‘‘अभी मु?ो सीडीएस की तैयारी करनी है और फिर नौकरी लग जाने के बाद शादी करूंगा.’’

एक शाम सुहैल सीडीएस का इम्तिहान दे कर लौटा और सीधा शायरा के घर पहुंच गया. शायरा खाना बना रही थी. सुहैल ने हाथ पकड़ कर उसे उठाया, तो वह धीरे से बोली, ‘‘क्या करते हो… रोटी बनानी है मु?ो.’’

सुहैल ने शायरा की एक न सुनी और छत पर ले आया. वहां दोनों हाथों से उस का चेहरा ऊपर कर के बोला, ‘‘मेरी जल्द ही नौकरी लग जाएगी और फिर हम दोनों शादी कर लेंगे.’’

शायरा चुप खड़ी रही. उस का दिल तो कह रहा था कि सुहैल उसे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करे.

‘‘मैं अब्बा से कहूंगा कि वे तेरे घर आ कर हमारे रिश्ते की बात करें,’’ कह कर सुहैल अपने घर चला आया.

कई दिन बाद शायरा को खबर लगी कि सुहैल की नौकरी लग गई है और उसे श्रीनगर भेज दिया गया है. यह सुनते ही शायरा को लगा जैसे घरमकान, गलीकूचा सब बदरंग हो गए हों. न खाने का मन करता था और न ही किसी से बात करने को दिल करता. दिनभर या तो वह काम करती रहती या छत पर चली जाती. रात तो तारे गिनते कब बीत जाती, उसे पता ही न चलता.

शायरा की यह हालत देख कर एक रात उस की अम्मी ने अपने शौहर से कहा कि वे सुहैल के अब्बा से उन दोनों के रिश्ते की बात कर आएं.

अगले दिन शायरा के अब्बू घर लौटे, तो शायरा ने उन्हें पानी दिया. जब वह जाने लगी, तो उन्होंने उसे रोक लिया और बोले, ‘‘मैं ने निजाम से बात कर ली है. कहते हैं कि जैसे ही सुहैल छुट्टी पर आएगा, तुम दोनों का निकाह कर देंगे.’’

शायरा भाग कर कमरे में चली गई और तकिए में मुंह छिपा कर खूब मुसकराई. उस दिन उस ने भरपेट खाना खाया और कई दिनों के बाद अच्छी नींद आई. अब इंतजार था तो सुहैल के घर लौट आने का.

एक दिन अब्बू ने बताया कि एक महीने बाद सुहैल घर लौट कर आ रहा है. यह सुन कर शायरा की खुशी का ठिकाना न रहा. अब तो बस दिन गिनने थे. महीने का समय ही कितना होता है? मगर जल्द ही उसे एहसास हो गया कि अगर किसी अजीज का इंतजार हो, तो एक दिन भी सदियों सा बड़ा हो जाता है.

शायरा सुबह उठती तो खुश होती कि चलो एक दिन बीता, मगर दिनभर बस घड़ी की तरफ निगाहें जमी रहतीं.

आखिर वह दिन भी आया, जब उसे पता चला कि सुहैल घर लौट आया  है. मेरठ नजदीक था तो चाचा भी घर  आ गए.

शाम को मौलवी की हाजिरी में दोनों परिवार के लोगों ने बैठ कर 10 दिन बाद का निकाह तय कर दिया.

शायरा को यकीन ही न था कि उसे मनमांगी मुराद मिल गई थी. घर में चूंकि चहलपहल थी, इसलिए सुहैल से मिलने का तो सवाल ही न था. बस, तसल्ली यह थी कि 10 ही दिनों की तो बात थी.

शादी में अभी 3 दिन बचे थे. घर में हर तरफ खुशी का माहौल था. अचानक एक बुरी खबर आई कि बैंगलुरु वाली बहन नाजनीन को बच्चों को स्कूल से लाते समय एक बस ने कुचल दिया. उन की मौके पर ही मौत हो गई.

एक पल में जैसे खुशियां मातम में बदल गईं. कुछ लोग तुरंत बैंगलुरु रवाना हो गए. हालात की नजाकत देखते  हुए उन्हें बैंगलुरु में ही दफना कर सब लौटे, तो अरबाज भी दोनों बच्चों के साथ आए.

शादी का समय नजदीक था, मगर शायरा ऐसे माहौल में शादी करने के हक में नहीं थी. उस ने जब यह बात सुहैल को बताई, तो उस ने शायरा का साथ दिया, मगर दोनों जानते थे कि कोई भी फैसला करना तो बड़ों को ही है.

शायरा दिनभर नाजनीन के बच्चों को अपने साथ रखती, उन के खानेपीने, नहलाने जैसी हर जरूरत का खयाल रखती. अरबाज दिन में 2-3 बार आ कर उस से बच्चों के बारे में जरूर जानते, उन का हालचाल लेते.

शादी की तैयारियां भी चुपचाप जारी थीं. शायरा भी कबूल कर चुकी थी कि बहन की मौत कुदरत की मरजी थी और यह शादी भी. उस ने मन ही मन खुद को तैयार भी कर लिया था.

शाम का समय था. सब लोग घर के आंगन में बैठे थे कि अरबाज और उस के अब्बू एकसाथ वहां पहुंचे. उन्हें बैठा कर चाय दी गई. शायरा उठ कर दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘क्या बात है मियां, कुछ परेशान हो?’’ शायरा के अब्बू ने अरबाज के अब्बा से पूछा.

निजाम कुछ पल खामोश रहे, फिर कहा, ‘‘नाजनीन चली गई. अभी उस की उम्र ही कितनी थी. उस के बच्चे भी अभी बहुत छोटे हैं. अरबाज की हालत भी मु?ा से देखी नहीं जाती.’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘अरबाज अभी जवान है. लंबी उम्र पड़ी है. कैसे कटेगी? और इन बच्चों को कौन पालेगा? आखिर इन सब के बारे में भी तो हमें ही सोचना है.’’

‘‘अब क्या किया जा सकता है?’’

‘‘नाजनीन के बच्चे शायरा के साथ घुलमिल गए हैं. अगर अरबाज और शायरा का निकाह कर दें तो कैसा रहे?’’

एक पल के लिए खामोशी छा गई. शायरा ने सुना तो उस के शरीर से जैसे जान निकल गई.

‘‘वह सुहैल से प्यार करती है. वह नहीं मानेगी,’’ शायरा के अब्बा बोले.

‘‘औरत जात की मरजी के माने ही क्या हैं? जानवर की तरह जिस के हाथ रस्सी थमा दी गई उसी से बंध गई. तुम अपनी कहो. मंजूर हो तो निकाह की तैयारी करें. अरबाज की भी नौकरी का सवाल है.’’

शायरा के अब्बा इसलाम ने अपनी बीवी जुबैदा की ओर देखा, तो जुबैदा ने हां में सिर हिला दिया.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी.’’

अगले ही दिन से शादी की तैयारी शुरू हो गई. सुहैल को इस निकाह की खबर लगी, तो उस ने अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.

जब यह खबर शायरा ने सुनी, तो उसे लगा कि जाने से पहले सुहैल उस से मिलने जरूर आएगा. मगर वह नहीं आया. उन के घर से खबर ही आनी बंद हो गई.

शादी बहुत सादगी से हो रही थी. शायरा को जब निकाह के लिए ले जाया गया, तो उस की हालत ऐसी थी जैसे मुरदे को मैयत के लिए ले जाया जा रहा हो. उस के सारे सपने टूट गए थे. जीने की वजह ही खत्म हो गई थी.

शायरा को लग रहा था कि जब उस से पूछा जाएगा कि अरबाज वल्द निजाम आप को कबूल है, तो वह कैसे कह पाएगी कि कबूल है?

दूल्हे से पूछा गया, ‘‘शायरा वल्द इसलाम आप को कबूल है?’’

आवाज आई, ‘‘कबूल है.’’

शायरा की जैसे धड़कन बढ़ गई. फिर शायरा से पूछा गया, ‘‘मोहतरमा, सुहैल वल्द निजाम आप को  कबूल है?’’

शायरा ने जैसे ही सुहैल का नाम सुना, तो उस ने धड़कते दिल और  चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘कबूल है.’’

दरअसल, अरबाज को पता चल चुका था कि शायरा सुहैल को चाहती है. उस ने सुहैल से बात की और शादी के दिन शायरा को यह खूबसूरत तोहफा देने की सोची. अब सुहैल और शायरा एक हो चुके थे.

Best Hindi Stories : स्नेह छाया – असली मां से मिलकर क्या हुआ रिंदू के साथ

Best Hindi Stories : बीए फाइनल की परीक्षा देकर दिल्ली के एक पीजी होस्टल से थकीमांदी घर झारखंड के रांची में पहुंची. सोचा था जीभर कर सोऊंगी और अपनी पसंद की हर चीज मां से बनवा कर खाऊंगी. सो खुशीखुशी बहुत सारी कल्पनाएं करती हुई घर लौटी थी.

घर पहुंचने पर दरवाजे पर बक्का मिल गए. फूलों की क्यारियों को सींचते हुए उन्होंने स्नेहभरी आंखों से मुझे देखा और ‘मुनिया’ कह कर पुकारा. बचपन रांची में गुजरा था और आज भी तब के जमाने का अच्छा सा बड़ा घर हमारा था. बक्का कब से हमारे यहां है, मैं भूल चुकी थी.

बक्का का वैसे असली नाम तो अच्छाभला रामवृक्ष था, पर इस बड़े नाम को न बोल कर मैं उन्हें बक्का कह कर ही पुकारती थी. फिर तो रामवृक्ष अच्छेखासे नाम के होते हुए भी सब के लिए बक्का बन कर रह गए. उन्होंने कभी एतराज भी नहीं किया. शायद अपनी इस मुनिया की हर बात उन्हें प्यारी थी. मां के होते हुए भी इन्हीं बक्का ने मुझे पालपोस कर बड़ा किया. ऐसा क्यों? यह बात में बताऊंगी.

‘‘बहूजी, मुनिया आ गई.’’ बक्का ने खुशीखुशी से झूमते हुए मां को आवाज दी.

मैं ने बक्का को नमस्ते की. उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘जीती रहो, बेटी, इस बार तुम कुछ दुबली हो गर्ई हो.’

मैं जब भी कुछ दिनों बाद बक्का से मिलती हूं, उन्हें पहले से दुबली और कमजोर ही दिखाई देती हूं.

‘‘हां, बक्का, तुम्हारी बनाई चाय जो मुझे नहीं मिलती. वह मिले तो अभी फिर मोटी हो जाऊं.’’  मैं ने हंस कर बक्का को छेड़ा.

‘‘धत, हम को चिढ़ाए बगैर नहीं मानेगी.’’ कहते हुए बक्का खुशी से खिल उठे और रसोईघर में जा कर उन्होंने कनहाई की नाक में दम करना शुरू कर दिया, ताकि उन की लाडली को जल्दी चाय मिल सके.

मैं दौड़ कर मां के कमरे में जा कर उन से लिपट गई. मां ने मुझे अपने पास खींच लिया और प्यार से मेरे बालों में हाथ फेरती हुई बोली, ‘‘पहले यह बता ङ्क्षरदू कि तेरे एक्जाम कैसे हुए?’’

‘‘अच्छे हुए, मां 90′ से तो ज्यादा आ ही जाएंगे’’ मैं ने विश्वासपूर्वक जवाब दिया.

फिर चाय आ गई, साथ ही कनहाई ने सूजी का हलवा, गरी की बरफी और गरमागरम पकौड़े भी मेरे सामने सजा दिए.

खातेखाते मैं ने पूछा, ‘‘मां, पिताजी कब तक वापस आ रहे हैं?’’

‘‘तेरे पिताजी काम के सिलसिले में अकसर बाहर जाते रहते हैं.’’ मेरी बात का जवाब देते हुए मां ने कहा, ‘‘कल ही वह वापस आ रहे है. उन के साथ सर्वजीत भी आ रहा है.’’

‘‘सर्वजीत? यह सर्वजीत कौन है और वह यहां क्यों आ रहा है?’’ मैं यह सब पूछतेपूछते रह गई, क्योंकि इसी समय मुझे अचानक याद आ गया कि पिताजी ने अपने पिछली बार फोन पर कहा था.

‘‘रिंदू, तुम्हारी परीक्षा समाप्त हो जाए तब इस विषय में तुम से बात करूंगा यही सोचा था. पर सर्वजीत के घरवाले जल्दी कर रहे हैं, इसलिए तुम्हें बता रहा हूं. सर्वजीत ने तीन साल पहले एम.डी. पास की थी. अब तो उस की प्रैक्टिस भी जम गई है. उस का परिवार आज के परिवारों को देखते हुए बड़ा है. 3 बहनें और अकेला भाई सर्वजीत. बेटी, मैं लडक़े को देख कर उस के साथ तुम्हारे संबंध का विचार मन ही मन कर बैठा हूं. उस के घरवालों से सिर्फ यही कहा है कि लडक़ी एमवीए की परीक्षा दे ले, तब इस बारे में कुछ विचार करेंगे. मेरी पसंद तुम्हारी भी पसंद हो, यह जरूरी नहीं है. तुम इस बारे में सोचने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हो. पर सर्वजीत को तुम जरूर पसंद करोगी, ऐसा मेरा विश्वास है. उसे देख कर तुम चाहो तो मेरा विचार बदल भी सकती हो.’

उन की बात सुन कर मैं सोचती रही थी कि सर्वजीत में ऐसी क्या खूबी है कि मैं हां कर दूंगी, पर पिताजी मेेे साथ जोरजबरदस्ती कभी नहीं करेंगे, इस का मुझे भरोसा था.

पिताजी शाम की गाड़ी से घर आए. साथ में सर्वजीत भी था.

‘‘ङ्क्षरदू यह सर्वजीत है.’’ फिर उस की तरफ मुंह कर बोले, ‘‘यह मेरी बेटी ङ्क्षरदू है.’’

इस तरह पिताजी ने हम दोनों का परिचय कराया. मेरी ओर देख कर वह मुसकराया. मुझे उस का चेहरा खिलाखिला सा लगा.

‘‘अरे ङ्क्षरदू, सर्वजीत को चाय तो पिलाओ,’’ कहते हुए पिताजी अंदर चले गए.

सर्वजीत को देखते ही मां ने उसे पसंद कर लिया. उस के सहज आचरण, हंसमुख स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व ने सब का मन ही तो मोह लिया था. वह इतना भला, स्मार्ट और हंसमुख था कि मैं भी उस के आकर्षण में बंधती चली गई.

वह चारपांच दिन हमारे घर रुका? जाने वाले दिन वह मुझ से एकांत में मिला और बोला, ‘‘ङ्क्षरदू, क्या मैं तुम्हें पसंद हूं?’’

मैं ने संकोचवश कोई उत्तर नहीं दिया. मुझे चुप देख उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी इस चुप्पी को मैं इनकार समझूं या स्वीकृति.’’

वह जवाब के लिए मेरी ओर देखने लगा. मैं फिर भी न बोली तो उस ने फिर कहा, ‘‘अच्छा रिंदू, एक कागज पर हां या ना लिख कर मुझे किसी समय दे देना.’’ बोल कर वह वापस चला गया.

मैं तो पहली दृष्टि में ही उसे स्वीकार कर चुकी थी फिर ना कैसे कहती? ‘हां’ कहना चाहती थी, पर शर्म से कुछ बोल नहीं पाई.

मुझे बक्का ने क्यों पाला, इस की एक लंबी कहानी है. जब मैं पांच महीने की थी तभी मेरी मां पिताजी को छोड़ कर अपने एक लंगोटिया दोस्त विक्रांत के साथ चली गई थी. उस ने पिताजी के प्यार के अलावा अपनी दुधमुंही बच्ची की ममता का भी गला घोंट दिया था. पिताजी ने सहमति से तलाक के कागजों पर हस्तांक्षर कर दिए थे. मेरी कस्टडी मांगी थी जिस पर मेरी असली मां ने तुरंत हां भर दी थी.

पिताजी तब निरीह और बेसहारा से हो गए. इस दुॢदन में बक्का पिताजी के साथ ही थे..उन्होंने हर तरह से हमें सहारा दिया. घर भी संभालते थे और मुझ जैसी छोटी बच्ची की पूरी देखभाल भी करते थे.

धीरेधीरे दो साल का लंबा समय बीत गया. पिताजी को अपना एकाकी जीवन खलने लगा. ऐसे में चमकदार आंखों में उल्लास और होंठों पर रहरह कर फूट पडऩे वाली मुसकान लिए उन्हें एक टूर में अंजनी मिली. पूरी बात जान कर भी वह पिताजी की तरफ ङ्क्षखचती गई और पिताजी ने उसे विवाह को कहा, वह मिलने घर आई और न जाने क्यों मैं तब उन की गोद में चड़ गई और जब तक वह गई नहीं, मैं गोद से उतरी नहीं उन्होंने मुझे बड़े प्यार से खाना अपने हाथ से खिलाया था. फिर विवाह हो गया. उसे वहां अच्छी नौकरी मिल गई और वह रांची जैसे वैंक्वड शहर से छुटकारा पाई थी. पिताजी का अकेलापन दूर हो गया. वही अंजनी अब मेरी मां हैं. जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी तब मैं ढाई साल की थी.

तब तक मां के प्यार की पूॢत बक्का कर रहे थे. अब नई मां ने आ कर पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. बक्का और पिताजी यह देखकर चकित थे कि नईनई ब्याह कर आई इस लडक़ी ने अपनी सौत की संतान को अपने प्यार व दुलार से किस तरह अपना लिया है. मुझे जन्म देने वाली मां पिताजी के मित्र विक्रांत के साथ लिवरपूल (इंगलैंड) रहने लगी थी.

हमारा जवाब जाने पर सर्वजीत के घर से भी हां हो गई थी. उस के घर के लोग भी झारखंड के ही थे. वे आकर हां कर गए थे.

इस के बाद सर्वजीत का एक छोटा सा पार्सल आया. उस में एक हीरे की अंगूठी व एक राइङ्क्षटग पैड था. अंगूठी की बात तो समझ में आई, पर यह राइङ्क्षटग पैड किस लिए? यह जिज्ञासा उस का पत्र पढ़ कर शांत हुई. उस ने लिखा था : ङ्क्षरदू, अपनी तरफ से अंगूठी भेज रहा हूं. लिखना, तुम्हें पसंद आई या नहीं. ट्रेन में तुम्हारी स्वीकृति का छोटा सा ‘कागजी लड्डू’ मिला था. राइङ्क्षटग पैड इसलिए भेज रहा हूं ताकि तुम्हें आगे से लिखने के लिए कागज की कमी महसूस न हो और अपनी बात कहने के लिए कागजी लड्डïू प्रयोग न करना पड़े. अब जी खोल कर लिखा करना.’

हुआ यह था कि जब मैं औरों के साथ सर्वजीत को पहुंचाने स्टेशन गई थी तो एक छोटे से कागज पर सिर्फ ‘हां’ लिख कर मैं साथ लेती गई थी. अनजाने में उस छोटे से कागज को रास्ते भर गोलगोल मोड़ती रही थी और जब ट्रेन चली तो मैं ने उसे सर्वजीत के हाथ में रख दिया था. मोबाइल के जमाने में पत्र से हां कहना सर्वजीप को बहुत भाया.

दोनों ओर से खूब चैङ्क्षटग हुई, सर्वजीत के घरवालों ने शादी एक महीने के अंदर करने की जिद की और मैं ब्याह कर उस के घर आ गई.

ससुराल आने पर पता चला कि सर्वजीत की 3 बहनों की शादी पहले ही हो गर्ई थी. अब उस घर की बहू बनकर मैं सर्वजीत व उस के मातापिता के परिवार में शामिल हो गई.

कुछ दिनों बाद मैं सर्वजीत के साथ अपने मातापिता से मिलने आई. सब बहुत खुश थे. अपनी मुनिया और दामाद की खातिर में लगे थे. इसी समय अचानक मुंबई से मेरी असल मां फोन आया कि वह रांची आ रही है.

पिताजी उसे पा कर परेशान हो गए. बक्का अलग परेशान थे. मुझे पता चला तो मैं भी अजीब से ऊहापोह में फंस गई.

बिना कुछ कहे ही सब के चेहरे से लग रहा था. मानो सभी कह रहे हों कि उसे यहां आने की क्या जरूरत आ पड़ी. वह हमारे लिए तो कब की मरखप गई थी.

बक्का की घबराहट तो देखते ही बनती थी. उन्हें डर था कि  सर्वजीत और उस के घर वालों को जब असली मां के लिवरपूल चले जानेकी बात का पता चलेगा तो उस की मुनिया की ङ्क्षजदगी नष्ट हो जाएगी. बक्का को मेरे अनिष्ट की बात स्वप्न में भी दुख देती थी.

माताजी, पिताजी और मुझे पास बैठा कर सर्वजीत ने बात शुरू ही की थी कि उसे बक्का का खयाल आ गया. बक्का हमारे परिवार के हर दुखसुख के भागीदार थे. एक मामूली नौकर से कब वह परिवार के सदस्य हो गए थे यह पता ही नहीं चला. हम से ज्यादा हमारी ङ्क्षचता में घुलते थे बक्का. सर्वजीत उन्हें खोज कर पकड़ लाया और पास बैठने को कहा.

हमें संकोच में देख कर उस ने कहा, ‘‘आप लोग इतने परेशान क्यों हैं? मुझे सब मालूम है कि ङ्क्षरदू को जन्म देने वाली मां आ रही है. मुझे आज से काफी साल पहले ही सारी बातों की जानकारी मिल गई थी. सच पूछिए तो स्वयं विक्रांतजी ने ही फोन कर के इस घटना की खबर मुझे दी थी और आग्रह किया था कि जब मैं अपनी बहन की सहेली की शादी में कानपुर जाऊं  तो ङ्क्षरदू को भी देख लूं. उस शादी में आप भी आएंगे, इस की जानकारी भी आप की पहली पत्नी ने ही दी थी. वह शादी आप के घनिष्ठ दोस्त के बेटे से हो रही थी. वहीं मैं गया. आप सब को देखा, पर किसी पर जाहिर नहीं होने दिया. रिदू की सुंदरता और आप लोगों को परिवार मुझे भी भा गया. आप की पहली पत्नी ने मुझे बारबार यही लिखा था कि उन की गलतियों की सजा उन की मासूम बच्ची को नहीं मिलनी चाहिए. मेरी अपनी मान्यता भी यही है कि निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए.’’

सर्वजीत इतना बोल कर चुप हो गया. यह हमें बाद में पता चला कि  पिताजी को सर्वजीत पहली बार जब कानपुर में मिला था,  तभी उन्होंने उस सब कुछ बता दिया था. उन के संकोच को ताड़ कर सर्वजीत ने उन्हें समझाया था और आश्वासन दिया था कि इस विषय में वह घरवालों को कुछ नहीं बताएगा.

मैं दुविधा में थी. एक ओर जन्म देने वाली उस मां को देखने की उत्सुकता थी जो एकदम निष्ठुर हो कर मुझे छोड़ गई थी और दूसरी ओर अपना पालनपोषण करने वाली स्नेहमयी मां का खयाल था, जो एकदम गुमसुम बैठी हुई थी.

इस के दूसरे दिन श्रीमती विक्रांत अर्थात मुझे जन्म देने वाली मां आई. एयरपोर्ट जा कर पिताजी उन्हें घर लाए. वह बहुत थकी, बीमार और उदास लग रही थीं.

सर्वजीत ने पूरे माहौल को अपनी सौम्य मुसकान और सहज आचरण से बोझिल नहीं होने दिया. इस के लिए मैं उस की तहेदिल से आभारी हूं.

मेरी जन्मदात्री मेरी वर्तमान मां से पहली बार मिलीं. दोनों के आपसी व्यवहार को देख कर ऐसा लग रहा था कि किसी को किसी से कोई शिकवाशिकायत नहीं है.

दोनों की बातें रात देर तक होती रहीं. बाद में मां ने हमें बताया, ‘‘लिवरपूल से तो वह काफी पहले आ गई थीं. मुंबई के टाटा कैंसर हस्पताल में थीं. वहीं से आ रही हैं. उन्हें छाती का कैसर हो गया था. उन का एक स्तन निकाल दिया गया. कितनी ही बार कीमोथेरापी हुई. हरसेपटिन भी दी गई पर अब अंत सा आ गया है. वह अपने जीवन से हताश हो चुकी हैं. ङ्क्षजदगी को थोड़ी सी जो मुहलत मिली है, उस में वह अपने सब अपराधों और गलतियों के लिए क्षमा मांगने आई हैं.’’

कई साल पहले विक्रांत एक कार दुर्घटना में इंग्लैंड में गुजर गए थे. तब सब कुछ बेचकर वह मुंबई आ कर अकेली रह रही थीं, तभी इस जानलेवा रोग ने उन्हें दबोच लिया.

मुझे पास बुला कर उन्होंने प्यार करना चाहा, पर मैं काठ बनी वहीं बैठी रही. उस मां के लिए मैं प्यार कहां से लाऊं जिस ने अपनी रंगीन तबीयत के लिए मुझ दुधमुुंही को बिलखता छोड़ दिया था.

अकेले में सर्वजीत ने मुझे बहुतेरा समझाया, पर मैं उन के पास जाने से कतराती रही, प्यार करना तो दूर की बात थी.

मेरी नई मां ने प्यार से समाझाया, ‘‘ङ्क्षरदू, तुम्हारी मां अब नहीं बचेगी. एक बार प्यार कर लो. उन्हें शांति मिल जाएगी, वरना मरते दम तक उन के मन में दुख रहेगा.’’

मैं चुप रही. मन बारबार यही कहता था, ‘मां, तुम ने मुझे प्यार की शीतल छाया दी है. उस के बदले में यदि कुछ चाहती हो तो कुछ और आज्ञा करो, पर उस निष्ठुर मां के लिए स्नेह नहीं मांगो.’

फिर बक्का ने दुलारते हुए समझाया, ‘‘मुनिया, अब तुम भी माफ कर दो. आखिर वह तुम्हारी मां हैं. जब बुरा वक्त आने वाला होता है तो दुर्बुद्धि आ ही जाती है. अच्छे से अच्छा आदमी भी भटक जाता है.’’

बक्का अपनी वे अनसोई रातें भूल चुके थे जो उन्होंने मुझे रातरात भर कंधे पर उठाए गुजारी थीं. वह  अपने उन कष्ट के क्षणों को भी भूल गए थे जब मैं बीमार पडऩे पर मां के लिए बिलखती रहती थी और वह रातरात भर जाग कर मुझे चुप कराते रहते थे. तब उन्हें मां पर क्रोध आता था, पर अब उस हृदयहीन मां के उन गुनाहों को भुला कर वह उस का पक्ष ले रहे थे.

पिताजी ने मुझे बुला कर अपने पास बिठा लिया, पर उन्होंने कहा कुछ भी नहीं. बस, मेरे बालों पर धीरेधीरे अपना हाथ फेरते रहे वह बिना कहे ही सब कुछ कह गए. और मेरे व्यथित व्याकुल मन ने सब समझ लिया. जब इतना सब कुछ सह कर पिताजी ने उन्हें माफ कर दिया है तो मेरी भी कटुता समाप्त होने लगी.

अंतत: मैं मां के पलंग के पास जा कर उन का हाथ थाम कर बैठ गर्ई और रोती रही. उन की आंखों से भी आंसू बह निकले. रोतेरोते वह बोलीं, ‘‘ङ्क्षरदू, मेरी बच्ची, मेरे जीवन से तुम्हें सबक लेना चाहिए. तुम ने मुझे क्षमा कर दिया. इस से मेरे मन को तो शांति मिलेगी ही, साथ ही तुम भी सुखी रहोगी. सर्वजीत के रूप में अनमोल हीरा तेरे पास है. मेरे लिए इस से बढ़ कर खुशी दूसरी नहीं है.’’

एक महीने बाद मां नहीं रही. मरने से पहले उन्होंने अपनी सारी चलअचल संपत्ति सर्वजीत के नाम कर दी.

बक्का आज भी हमारे साथ रहते हैं और अपनी मुनिया की देखभाल करते रहते हैं. पिताजी और मां सुखी हैं. घर के ड्राइंगरूम में असली मां की तसवीर लगी है. किसी के पूछने पर छोटी मां उसे अपनी बड़ी बहन की तसवीर बतला कर मौन हो जाती हैं.

Hindi Stories Online : टूटते-जुड़ते सपनों का दर्द

Hindi Stories Online :  कालेज की लंबी गोष्ठी ने पिं्रसिपल गौरा को बेहद थका डाला था. मौसम भी थोड़ा गरम हो चला था, इसलिए शाम के समय भी हवा में तरावट का अभाव था. उन्होंने जल्दीजल्दी जरूरी फाइलों पर हस्ताक्षर किए और हिंदी की प्रोफेसर के साथ बाहर आईं. अनुराधा की गाड़ी नहीं आई थी, सो उन्हें भी अपनी गाड़ी में साथ ले लिया. घर आने पर अनुराधा ने बहुत आग्रह किया कि चाय पी कर ही वे जाएं, लेकिन एक तो गोष्ठी की गंभीर चर्चाओं पर बहस की थकान, दूसरे मन की खिन्नता ने वह आमंत्रण स्वीकार नहीं किया. वे एकदम अपने कमरे में जाना चाह रही थीं.

सुबह से ही मन खिन्न हो उठा था. अगर यह अति आवश्यक गोष्ठी नहीं होती तो वे कालेज जाती भी नहीं. आज की सुबह आंखों में तैर उठी. कितनी खुश थीं सुबह उठ कर. सिरहाने की लंबी खिड़की खोलते ही सिंदूरी रंग का गोला दूर उठता हुआ रोज नजर आता. आज भी वे उस रंग के नाजुक गाढ़ेपन को देख कर मुग्ध हो उठी थीं. तभी पड़ोस में रहने वाली अनुराधा के नौकर ने बंद लिफाफा ला कर दिया, जो कल शाम की डाक से आया था और भूल से उन के यहां डाकिया दे गया था.

उसी मुदित भाव से लिफाफा खोला. छोटी बहन पूर्वा का पत्र था उस में. गोल तकिए पर सिर टेक कर आराम से पढ़ने लगीं, लेकिन पढ़तेपढ़ते उन का मन पत्ते सा कांपने लगा और चेहरे से जैसे किसी ने बूंदबूंद खुशी निचोड़ ली थी. ऐसा लगा कि वे ऊंची चट्टान से लुढ़क कर खाई में गिर कर लहूलुहान हो गई हैं. जैसे कोई दर्द का नुकीला पंजा है जो धीरेधीरे उन की ओर खौफनाक तरीके से बढ़ता आ रहा है. उन की आंखों से मन का दर्द पानी बन कर बह निकला.

दरवाजे की घंटी बजी. दुर्गा आ गई थी काम करने. गौरा ने पलकों में दर्द समेट लिया और कालेज जाने की तैयारी में लग गईं. मन उजाड़ रास्तों पर दौड़ रहा था, पागल सा. आंखें खुली थीं, पर दृष्टि के सामने काली परछाइयां झूल रही थीं. कितनी कठिनाई से पूरा दिन गुजारा था उन्होंने. हंसीं भी, बोलीं भी, कई मुखौटे उतारतीचढ़ाती भी रहीं, परंतु भीतर का कोलाहल बराबर उन्हें बेरहमी से गरम रेत पर पछाड़ता रहा. क्या पूर्वा का जीवन संवारने की चेष्टा व्यर्थ गई? क्या उन के हाथों कोई अपराध हुआ है, जिस की सजा पूरी जिंदगी पूर्वा को झेलनी होगी?

अपने कमरे में आ कर वे बिस्तर पर निढाल हो कर पड़ गईं. मैले कपड़ों की खुली बिखरी गठरी की तरह जाने कितने दृश्य आंखों में तैरने लगे. विचारों का काफिला धूल भरे रास्तों में भटकने लगा.

3 भाइयों के बाद उन का जन्म हुआ था. सभी बड़े खुश हुए थे. कस्तूरी काकी और सोना बूआ बताती रहती थीं कि 7 दिन तक गीत गाए गए थे और छोटेबड़े सभी में लड्डू बांटे गए थे. बाबा ने नाम दिया, गौरा. सोचा होगा कि बेटी के बाद और लड़के होंगे. इसी पुत्र लालसा के चक्कर में 2 बहनें और हो गईं. तब न गीत गाए गए और न लड्डू ही बांटे गए.

कहते हैं न कि जब लोग अपनी स्वार्थ लिप्सा की पूर्ति मनचाहे ढंग से प्राप्त नहीं कर पाते हैं तब घर के द्वारदेहरी भी रुष्ट हो जाते हैं. वहां यदि अपनी संतान में बेटाबेटी का भेद कर के निराशा, कुंठा, निरादर और घृणा को बो दिया जाए तो घर एक सन्नाटा भरा खंडहर मात्र रह जाता है.

उस भरेपूरे घर में धीरेधीरे कष्टों के दायरे बढ़ने प्रारंभ होने लगे. बड़े भाई छुट्टी के दिन अपने साथियों के साथ नदी स्नान के लिए गए थे. तैरने की शर्त लगी. उन्हें नदी की तेज लहरें अपने चक्रवात में घेर कर ले डूबीं. लौट कर आई थी उन की फूली हुई लाश. घर भर में कुहराम मच गया था. मां और बाबूजी पागल हो उठे. बाबा की आंखें सूखे कुएं की तरह अंधेरों से अट गईं.

धीमेधीमे शब्दों में कहा जाने लगा कि तीनों लड़कियां भाई की मौत का कारण बनी हैं. न तीनों नागिनें पैदा होतीं और न हट्टाकट्टा भाई मौत का ग्रास बनता. समय ने सभी के घावों को पूरना शुरू ही किया था कि बीच वाले भाई हीरा के मोतीझरा निकला. वह ऐसा बिगड़ा कि दवाओं और डाक्टरों की सारी मेहनत पर पानी फेरता रहा.

मौत फिर दबेपांव आई और चुपचाप अपना काम कर गई. इस बार के हाहाकार ने आकाश तक हिला दिया. पिता एकदम टूट गए. 20 वर्ष आगे का बुढ़ापा एक रात में ही उन पर छा गया था. बाबा खाट से चिपक गए थे. मां चीखचीख कर अधमरी हो उठीं और बिना किसी लाजहिचक के जोरजोर से घोषणा करने लगीं कि मेरी तो लड़कियां ही साक्षात मौत बन कर पूरा कुनबा खत्म करने आई हैं. इन का तो मुंह देखना भी पाप है.

महल्ला, पड़ोस, रिश्तेदार सभी परिवार के सदस्यों के साथ तीनों बहनों को भरपूर कोसने लगे. अपने ही घर में तीनों किसी एकांत कोने में पड़ी रहतीं, अपमानित और दुत्कारी हुईं. न कोई प्यार से बोलता, न कोई आंसू पोंछता. तीनों की इच्छाएं मर कर काठ हो गईं. लाख सोचने पर भी वे यह समझ नहीं पाईं कि भाइयों की मृत्यु से उन का क्या संबंध है, वे मनहूस क्यों हैं.

तीसरा भाई बचपन से जिद्दी व दंगली किस्म का था. अब अकेला होने पर वह और बेलगाम हो गया था. सभी उसी को दुलारते रहते. उस की हर जिद पूरी होती और सभी गलतियां माफ कर दी जातीं. नतीजा यह हुआ कि वह स्कूल में नियमित नहीं गया. उलटेसीधे दोस्त बन गए. घर से बाहर सुबह से शाम तक व्यर्थ में घूमता, भटकता रहता. ऐसे ही गलत भटकाव में वह नशे का भयंकर आदी हो गया. न ढंग से खाता, न नींद भर सो पाता था. मातापिता से खूब जेबखर्च मिलता. कोई सख्ती से रोकनेटोकने वाला नहीं था. एक दिन कमरे में जो सोया तो सुबह उठा ही नहीं. उस के चारों ओर नशीली गोलियों और नशीले पाउडरों की रंग- बिरंगी शीशियां फैली पड़ी थीं और वह मुंह से निकले नीले झाग के साथ मौत की गोद में सो रहा था.

उस की ऐसी घिनौनी मौत को देख कर तो जैसे सभी गूंगेबहरे से हो उठे थे. पूरे पड़ोस में उस घर की बरबादी पर हाहाकार मच गया था. कहां तक चीखतेरोते? आंसुओं का समंदर भीतर के पहाड़ जैसे दुख ने सोख लिया था. घर भर में फैले सन्नाटे के बीच वे तीनों बहनें अपराधियों की तरह खुद को सब की नजरों से छिपाए रहती थीं. उचित देखभाल और स्नेह के अभाव में तीनों ही हर क्षण भयभीत रहतीं. अब तो उन्हें अपनी छाया से भी भय लगने लगा था. दिन भर उन्हें गालियां दे कर कोसा जाता और बातबात पर पिटाई की जाती.

जानवर की तरह उन्हें घर के कामों में जुटा दिया गया था. वे उस घर की बेटियां नहीं, जैसे खरीदी हुई गुलाम थीं, जिन्हें आधा पेट भोजन, मोटाझोटा कपड़ा और अपशब्द इनाम में मिलते थे. पढ़ाई छूट गई थी. गौरा तो किसी तरह 10वीं पास कर चुकी थी लेकिन छोटी चित्रा और पूर्वा अधिक नहीं पढ़ पाईं. जब भी सगी मां द्वारा वे दोनों जानवरों की तरह पीटी जातीं, तब भयभीत सी कांपती हुई दोनों बड़ी बहन के गले लग कर घंटों घुटीघुटी आवाज में रोती रहती थीं.

कुछ भीतरी दुख से, कुछ रातदिन रोने से पिता की आंखें कतई बैठ गई थीं. वे पूरी तरह से अंधे हो गए थे. मां को तो पहले ही रतौंधी थी. शाम हुई नहीं कि सुबह होने तक उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता था. बाबा का स्नेह उन बहनों को चोरीचोरी मिल जाया करता था लेकिन शीघ्र ही उन की भी मृत्यु हो गई थी.

पिता की नौकरी गई तो घर खर्च का प्रश्न आया. तब बड़ी होने के नाते गौरा अपना सारा भय और अपनी सारी हिचक,  लज्जा भुला कर ट्यूशन करने लगी थी. साथ ही प्राइवेट पढ़ना शुरू कर दिया. बहनों को फिर से स्कूल में दाखिला दिलाया. तीनों बहनों में हिम्मत आई, आत्मसम्मान जागा.

तीनों मांबाबूजी की मन लगा कर सेवा करतीं और घरबाहर के काम के साथसाथ पढ़ाई चलती रही. वे ही मनहूस बेटियां अब मां और बाबूजी की आंखों की ज्योति बन उठी थीं, सभी की प्रशंसा की पात्र. महल्ले और रिश्तेदारी में उन के उदाहरण दिए जाने लगे. घर में हंसीखुशी की ताजगी लौट आई. इस ताजगी को पैदा करने में और बहनों को ऊंची शिक्षा दिलाने में वे कब अपने तनमन की ताजगी खो बैठीं, यह कहां जान सकी थीं? विवाह की उम्र बहुत पीछे छूट गई थी. छोटेबड़े स्कूलों का सफर करतेकरते इस कालेज की प्रिंसिपल बन गईं. घर में गौरा दीदी और कालेज में प्रिंसिपल डा. गौरा हो गई थीं. छोटी दोनों बहनों की शादियां उन्होंने बड़े मन से कीं. बेटियों की तरह विदा किया.

चित्रा के जब लगातार 5 लड़कियां हुईं, तब उस को ससुराल वालों से इतने ताने मिले, ऐसीऐसी यातनाएं मिलीं कि एक बार फिर उस का मन आहत हो उठा. बहुत समझाया उन लोगों को. दामाद, जो अच्छाखासा पढ़ालिखा, समझदार और अच्छी नौकरी वाला था, उसे भी भलेबुरे का ज्ञान कराया, परंतु सब व्यर्थ रहा.

चित्रा की ससुराल के पड़ोस में ही सुखराम पटवारी की लड़की सत्या की शादी हुई थी. उस ने आ कर बताया था, ‘बेकार इन पत्थरों के ढोकों से सिर फोड़ती हो, दीदी. उन पर क्या असर होने वाला है? हां, जब भी तुम्हारे खत जाते हैं या उन्हें समाज, संसार की बातें समझाती हो, तब और भी जलीकटी सुनाती हैं चित्रा की सास और जेठानी. जिस दामाद को भोलाभाला समझती हो, वह पढ़ालिखा पशु है. मारपीट करता है. हर समय विधवा ननद तानों से चित्रा को छलनी करती रहती है. चित्रा तो सूख कर हड्डियों का ढांचा भर रह गई है. बुखार, खांसी हमेशा बनी रहती है. ऊपर से धोबिया लदान, छकड़ा भर काम.’’

वे कांप उठी थीं सत्या से सारी बातें सुन कर. उस के लिए उन का मन भीगभीग उठा था. बचपन में मां से दुत्कारी जाने पर वे उसे गोदी में छिपा लेती थीं. उन की विवशता भीतर ही भीतर हाहाकार मचाए रहती थी.

एक दिन बुरी खबर आ ही गई कि क्षयरोग के कारण चित्रा चल बसी है. शुरू से ही अपमान से धुनी देह को क्षय के कीटाणु चाट गए अथवा ससुराल के लोग उस की असामयिक मौत के जिम्मेदार रहे? प्रश्नों से घिर उठीं वे हमेशा की तरह.

और इधर आज महीनों बाद मिला यह पूर्वा का पत्र. क्या बदल पाईं वे बहनों का जीवन? सोचा था कि जो कुछ उन्हें नहीं मिला वह सबकुछ बहनों के आंचल में बांध कर उन के सुखीसंपन्न जीवन को देखेगी. कितनी प्रसन्न होगी जीवन की इस उतरती धूप की गहरी छांव में. अपनी सारी महत्त्वाकांक्षाएं और मेहनत से कमाई पाईपाई उन पर न्योछावर कर दी थी. हृदय की ममता से उन्हें सराबोर कर के अपने कर्तव्यों का एकएक चरण पूरा किया परंतु…

पंखे की हवा से जैसे पूर्वा के पत्र का एकएक अक्षर उन के सामने गरम रेत के बगलों की तरह उड़ रहा था या कि जैसे पूर्वा ही सामने बैठ कर हमेशा की तरह आंसुओं में डूबी भाषा बोल रही थी. किसे सुनाएं वे मन की व्यथा? पत्र का एक- एक शब्द जैसे लावा बन कर भीतर तक झुलसाए जा रहा था :

‘दीदी, मैं रह गई थी बंजर धरती सी सूनीसपाट. कितने वर्ष काटे मैं ने ‘बंजर’ शब्द का अपमान सहते हुए और आप भी क्या कम चिंतित और बेचैन रही थीं मेरी मानसिकता देखसुन कर? फिर भी मैं अपनेआप को तब सराहने लगी थी जब आप के बारबार समझाने पर मेरे पति और ससुराल के सदस्य किसी बच्चे को गोद लेने के लिए इस शर्त पर तैयार हो गए थे कि एकदम खोजबीन कर के तुरंत जन्मा बच्चा ही लिया जाएगा और आप ने वह दुरूह कार्य भी संपन्न कराया था.

‘‘फूल सा कोमल सुंदर बच्चा पा कर सभी निहाल हो उठे थे. सास ने नाम दिया, नवजीत. ससुर प्यार से उसे पुकारते, निर्मल. बच्चे की कच्ची दूधिया निश्छल हंसी में हम सभी निहाल हो उठे. आप भी कितनी निश्ंिचत और संतुष्ट हो उठीं, लेकिन दीदी, पूत के पांव पालने में दिखने शुरू हो गए थे. मैं ने आप को कभी कुछ नहीं बताया था. सदैव उस की प्रशंसा ही लिखतीसुनाती रही. आज स्वयं को रोक नहीं पा रही हूं, सुनिए, यह शुरू से ही बेहद हठी और जिद्दी रहा. कहना न मानना, झूठ बोलना और बड़ों के साथ अशिष्ट व्यवहार करना आदि. स्कूल में मंदबुद्धि बालक माना गया.

‘क्या आप समझती हैं कि हमसब चुप रहे? नहीं दीदी, लाड़प्यार से, डराधमका कर, अच्छीअच्छी कहानियां सुना कर और पूरी जिम्मेदारी से उस पर नजर रख कर भी उस के स्वभाव को रत्ती भर नहीं बदल सके. आगे चल कर तो कपटछल से बातें करना, झूठ बोलना, धोखा देना और चोरी करना उस की पहचान हो गई. पेशेवर चोरों की तरह वह शातिर हो गया. स्कूल से भागना, सड़क पर कंचे खेलना, उधार ले कर चीजें खाना, मारनापीटना, अभद्र भाषा बोलना आदि उस की आदत हो गई. सभी परेशान हो गए. शक्लसूरत से कैसा मनोहारी, लेकिन व्यवहार में एकदम राक्षसी प्रवृत्ति वाला.

‘उम्र बढ़ने के साथसाथ उस की आवारागर्दी और उच्छृंखलता भी बढ़ने लगी. दीदी, अब वह घर से जेवर, रुपया और अपने पिता की सोने की चेन वाली घड़ी ले कर भाग गया है. 2 दिन हो चुके हैं. गलत दोस्तों के बीच क्या नहीं सीखा उस ने? जुए से ले कर नशापानी तक. सब बहुत दुखी हैं. कैसे करते पुलिस में खबर? अपनी ही बदनामी है. स्कूल से भी उस का नाम काट दिया गया था. हम क्या रपट लिखाएंगे, किसी स्कूटर की चोरी में उस की पहले से ही तलाश हो रही है.

‘दीदी, यह कैसा पुत्र लिया हम ने? इस से अच्छा तो बांझपन का दुख ही था. यों सांससांस में शर्मनाक टीसें तो नहीं उठतीं. संतानहीन रह कर इस दोहरेतिहरे बोझ तले तो न पिसती हम लोगों की जिंदगी. पढ़ेलिखे, सुरुचिपूर्ण, सुसंस्कृत परिवार के वातावरण में उस बालक के भीतर बहता लहू क्यों स्वच्छ, सुसंस्कृत नहीं हुआ, दीदी? हमारी महकती बगिया में कहां से यह धतूरे का पौधा पनप उठा? लज्जा और अपमान से सभी का सुखचैन समाप्त हो गया है. गौरा दीदी, आप के द्वारा रोपा गया सुनहरा स्वप्न इतना विषकंटक कैसे हो उठा कि जीवन पूर्णरूप से अपाहिज हो उठा है. परंतु इस में आप का भी क्या दोष?’

पत्र का अक्षरअक्षर हथौड़ा बन कर सुबह से उन पर चोट कर रहा था. टूटबिखर तो जाने कब की वे चुकी थीं, परंतु पूर्वा के खत ने तो जैसे उन के समूचे अस्तित्व को क्षतविक्षत कर डाला था. वे सोचने लगीं कि कहां कसर रह गई भला? इन बहनों को सुख देने की चाह में उन्होंने खुद को झोंक दिया. अपने लिए कभी क्षण भर को भी नहीं सोचा.

क्या लिख दें पूर्वा को कि सभी की झोली में खुशियों के फूल नहीं झरा करते पगली. ठीक है कि इस बालक को तुम्हारी सूनी, बंजर कोख की खुशी मान कर लिया था, एक तरह से उधार लिया सुख. एक बार जी तो धड़का था कि न जाने यह कैसी धरती का अंकुर होगा? जाने क्या इतिहास होगा इस का? लेकिन तसल्ली भरे विश्वास ने इन शंकालु प्रश्नों को एकदम हवा दे दी थी कि तुम्हारे यहां का सुरुचिपूर्ण, सौंदर्यबोध और सभ्यशिष्ट वातावरण इस के भीतर नए संस्कार भरने में सहायक होगा. पर हुआ क्या?

लेकिन पूर्वा, इस तरह हताश होने से काम नहीं चलेगा. इस तरह से तो वह और भी बागी, अपराधी बनेगा. अभी तो कच्ची कलम है. धीरज से खाद, पानी दे कर और बारबार कटनीछंटनी कर के क्या माली उसी कमजोर पौधे को जमीन बदलबदल कर अपने परीक्षण में सफल नहीं हो जाता? रख कर तो देखो धैर्य. बुराई काट कर ही उस में नया आदमी पैदा करना है तुम्हें. टूटे को जोड़ना ही पड़ता है. यह सोचते ही उन में एक नई शक्ति सी आ गई और वे पूर्वा को पत्र लिखने बैठ गईं.

Latest Hindi Stories : जीवनधारा – कौनसा हादसा हुआ था संगीता के साथ

Latest Hindi Stories :  हादसे जिंदगी के ढांचे को बदलने की कितनी ताकत रखते हैं, इस का सही अंदाजा उन की खबर पढ़नेसुनने वालों को कभी नहीं हो सकता.

एक सुबह पापा अच्छेखासे आफिस गए और फिर उन का मृत शरीर ही वापस लौटा. सिर्फ 47 साल की उम्र में दिल के दौरे से हुई उन की असामयिक मौत ने हम सब को बुरी तरह से हिला दिया.

‘‘मेरी घरगृहस्थी की नाव अब कैसे पार लगेगी?’’ इस सवाल से उपजी चिंता और डर के प्रभाव में मां दिनरात आंसू बहातीं.

‘‘मैं हूं ना, मां,’’ उन के आंसू पोंछ कर मैं बारबार उन का हौसला बढ़ाती, ‘‘पापा की सारी जिम्मेदारी मैं संभालूंगी. देखना, सब ठीक हो जाएगा.’’

मुकेश मामाजी ने हमें आश्वासन दिया, ‘‘मेरे होते हुए तुम लोगों को भविष्य की ज्यादा चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. संगीता ने बी.काम. कर लिया है. उस की नौकरी लगवाने की जिम्मेदारी मेरी है.’’

मुझ से 2 साल छोटे मेरे भाई राजीव ने मेरा हाथ पकड़ कर वादा किया, ‘‘दीदी, आप खुद को कभी अकेली मत समझना. अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करते ही मैं आप का सब से मजबूत सहारा बन जाऊंगा.’’

राजीव से 3 साल छोटी शिखा के आंखों से आंसू तो ज्यादा नहीं बहे पर वह सब से ज्यादा उदास, भयभीत और असुरक्षित नजर आ रही थी.

मोहित मेरा सहपाठी था. उस के साथ सारी जिंदगी गुजारने के सपने मैं पिछले 3 सालों से देख रही थी. इस कठिन समय में उस ने मेरा बहुत साथ दिया.

‘‘संगीता, तुम सब को ‘बेटा’ बन कर दिखा दो. हम दोनों मिल कर तुम्हारी जिम्मेदारियों का बोझ उठाएंगे. हमारा प्रेम तुम्हारी शक्ति बनेगा,’’ मोहित के ऐसे शब्दों ने इस कठिन समय का सामना करने की ताकत मेरे अंगअंग में भर दी थी.

परिवर्तन जिंदगी का नियम है और समय किसी के लिए नहीं रुकता. जिंदगी की चुनौतियों ने पापा की असामयिक मौत के सदमे से उबरने के लिए हम सभी को मजबूर कर दिया.

मामाजी ने भागदौड़ कर के मेरी नौकरी लगवा दी. मैं ने काम पर जाना शुरू कर दिया तो सब रिश्तेदारों व परिचितों ने बड़ी राहत की सांस ली. क्योंकि हमारी बिगड़ी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने वाला यह सब से महत्त्वपूर्ण कदम था.

‘‘मेरी गुडि़या का एम.बी.ए. करने का सपना अधूरा रह गया. तेरे पापा तुझे कितनी ऊंचाइयों पर देखना चाहते थे और आज इतनी छोटी सी नौकरी करने जा रही है मेरी बेटी,’’ पहले दिन मुझे घर से विदा करते हुए मां अचानक फूटफूट कर रो पड़ी थीं.

‘‘मां, एम.बी.ए. मैं बाद में भी कर सकती हूं. अभी मुझे राजीव और शिखा के भविष्य को संभालना है. तुम यों रोरो कर मेरा मनोबल कम न करो, प्लीज,’’ उन का माथा चूम कर मैं घर से बाहर आ गई, नहीं तो वह मेरे आंसुओं को देख कर और ज्यादा परेशान होतीं.

मोहित और मैं ने साथसाथ ग्रेजुएशन किया था. उस ने एम.बी.ए. में प्रवेश लिया तो मैं बहुत खुश हुई. अपने प्रेमी की सफलता में मैं अपनी सफलता देख रही थी. मन के किसी कोने में उठी टीस को मैं ने उदास सी मुसकान होंठों पर ला कर बहुत गहरा दफन कर दिया था.

पापा के समय 20 हजार रुपए हर महीने घर में आते थे. मेरी कमाई के 8 हजार में घर खर्च पूरा पड़ ही नहीं सकता था. फ्लैट की किस्त, राजीव व शिखा की फीस, मां की हमेशा बनी रहने वाली खांसी के इलाज का खर्च आर्थिक तंगी को और ज्यादा बढ़ाता.

‘‘अगर बैंक से यों ही हर महीने पैसे निकलते रहे तो कैसे कर पाऊंगी मैं दोनों बेटियों की इज्जत से शादियां? हमें अपने खर्चों में कटौती करनी ही पडे़गी,’’ मां का रातदिन का ऐसा रोना अच्छा तो नहीं लगता पर उन की बात ठीक ही थी.

फल, दूध, कपडे़, सब से पहले खरीदने कम किए गए. मौजमस्ती के नाम पर कोई खर्चा नहीं होता. मां ने काम वाली को हटा दिया. होस्टल में रह रहे राजीव का जेबखर्च कम हो गया.

इन कटौतियों का एक असर यह हुआ कि घर का हर सदस्य अजीब से तनाव का शिकार बना रहने लगा. आपस में कड़वा, तीखा बोलने की घटनाएं बढ़ गईं. कोई बदली परिस्थितियों के खिलाफ शिकायत करता, तो मां घंटों रोतीं. मेरा मन कभीकभी बेहद उदास हो कर निराशा का शिकार बन जाता.

‘‘हिम्मत मत छोड़ो, संगीता. वक्त जरूर बदलेगा और मैं तुम्हारे पास न भी रहूं, पर साथ तो हूं ना. तुम बेकार की टेंशन लेना छोड़ दो,’’ मोहित का यों समझाना कम से कम अस्थायी तौर पर तो मेरे अंदर जीने का नया जोश जरूर भर जाता.

अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में मैं जीजान से जुटी रही और परिवर्तन का नियम एकएक कर मेरी आशाओं को चकनाचूर करता चला गया.

बी.टेक. की डिगरी पाने के बाद राजीव को स्कालरशिप मिली और वह एम.टेक. करने के लिए विदेश चला गया.

‘‘संगीता दीदी, थोड़ा सा इंतजार और कर लो, बस. फिर धनदौलत की कमी नहीं रहेगी और मैं आप की सब जिम्मेदारियां, अपने कंधों पर ले लूंगा. अपना कैरियर बेहतर बनाने का यह मौका मैं चूकना नहीं चाहता हूं.’’

राजीव की खुशी में खुश होते हुए मैं ने उसे अमेरिका जाने की इजाजत दे दी थी.

राजीव के इस फैसले से मां की आंखों में चिंता के भाव और ज्यादा गहरे हो उठे. वह मेरी शादी फौरन करने की इच्छुक थीं. उम्र के 25 साल पूरे कर चुकी बेटी को वह ससुराल भेजना चाहती थीं.

मोहित ने राजीव को पीठपीछे काफी भलाबुरा कहा था, ‘‘उसे यहां अच्छी नौकरी मिल रही थी. वह लगन और मेहनत से काम करता, तो आजकल अच्छी कंपनी ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहायता करती हैं. मुझे उस का स्वार्थीपन फूटी आंख नहीं भाया है.’’

मोहित के तेज गुस्से को शांत करने के लिए मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी थी.

मां कभीकभी कहतीं कि मैं शादी कर लूं, पर यह मुझे स्वीकार नहीं था.

‘‘मां, तुम बीमार रहती हो. शिखा की कालिज की पढ़ाई अभी अधूरी है. यह सबकुछ भाग्य के भरोसे छोड़ कर मैं कैसे शादी कर सकती हूं?’’

मेरी इस दलील ने मां के मुंह पर तो ताला लगाया, पर उन की आंखों से बहने वाले आंसुओं को नहीं रोक पाई.

एम.बी.ए. करने के बाद मोहित को जल्दी ही नौकरी मिल गई थी. उस ने पहली नौकरी से 2 साल का अनुभव प्राप्त किया और इस अनुभव के बल पर उसे दूसरी नौकरी मुंबई में मिली.

अपने मातापिता का वह इकलौता बेटा था. उन्हें मैं पसंद थी, पर वह उस की शादी अब फौरन करने के इच्छुक थे.

‘‘मैं कैसे अभी शादी कर सकती हूं? अभी मेरी जिम्मेदारियां पूरी नहीं हुई हैं, मोहित. मेरे ससुराल जाने पर अकेली मां घर को संभाल नहीं पाएंगी,’’ बडे़  दुखी मन से मैं ने शादी करने से इनकार कर दिया था.

‘‘संगीता, कब होंगी तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी? कब कहोगी तुम शादी के लिए ‘हां’?’’ मेरा फैसला सुन कर मोहित नाराज हो उठा था.

‘‘राजीव के वापस लौटने के बाद हम….’’

‘‘वह वापस नहीं लौटेगा…कोई भी इंजीनियर नहीं लौटता,’’ मोहित ने मेरी बात को काट दिया, ‘‘तुम्हारी मां विदेश में जा कर बसने को तैयार होंगी नहीं. देखो, हम शादी कर लेते हैं. राजीव पर निर्भर रह कर तुम समझदारी नहीं दिखा रही हो. हम मिल कर तुम्हारी मां व छोटी बहन की जिम्मेदारी उठा लेंगे.’’

‘‘शादी के बाद मुझे मां और छोटी बहन को छोड़ कर तुम्हारे साथ मुंबई जाना पड़ेगा और यह कदम मैं फिलहाल नहीं उठा सकती हूं. मेरा भाई मुझे धोखा नहीं देगा. मोहित, तुम थोड़ा सा इंतजार और कर लो, प्लीज.’’

मोहित ने मुझे बहुत समझाया पर मैं ने अपना फैसला नहीं बदला. मां भी उस की तरफ से बोलीं, पर मैं शादी करने को तैयार नहीं हुई.

मोहित अकेला मुंबई गया. मुझे उस वक्त एहसास नहीं हुआ पर इस कदम के साथ ही हमारे प्रेम संबंध के टूटने का बीज पड़ गया था.

वक्त ने यह भी साबित कर दिया कि राजीव के बारे में मोहित की राय सही थी.

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने वहीं नौकरी कर ली. वह हम से मिलने भी आया, एक बड़ी रकम भी मां को दे कर गया, पर मेरी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर लेने को वह तैयार नहीं हुआ.

परिस्थितियों ने मुझे कठोर बना दिया था. मेरे आंसू न मोहित ने देखे न राजीव ने. इन का सहारा छिन जाने से मैं खुद को कितनी अकेली और टूटा हुआ महसूस कर रही थी, इस का एहसास मैं ने इन दोनों को जरा भी नहीं होने दिया था.

मां रातदिन शादी के लिए शोर मचातीं, पर मेरे अंदर शादी करने का सारा उत्साह मर गया था. कभी कोई रिश्ता मेरे लिए आ जाता तो मां का शोर मचाना मेरे लिए सिरदर्द बन जाता. फिर रिश्ते आने बंद हो गए और हम मांबेटी एकदूसरे से खिंचीखिंची सी खामोश रह साथसाथ समय गुजारतीं.

मैं 30 साल की हुई तब शिखा ने कंप्यूटर कोर्स कर के अच्छी नौकरी पा ली. शादी की सही उम्र तो उसी की थी. उस के लिए एक अच्छा रिश्ता आया तो मैं ने फौरन ‘हां’ कर दी.

राजीव ने उस की शादी का सारा खर्च उठाया. वह खुद भी शामिल हुआ. मां ने शिखा को विदा कर के बड़ी राहत महसूस की.

राजीव ने जाने से पहले मुझे बता दिया कि वह अपनी एक सहयोगी लड़की से विवाह करना चाहता है. शादी की तारीख 2 महीने बाद की थी.

उस ने हम दोनों की टिकटें बुक करवा दीं. पर मैं उस की शादी में शामिल होने अमेरिका नहीं गई.

मां अकेली अमेरिका गईं और कुछ सप्ताह बिता कर वापस लौटीं. वह ज्यादा खुश नहीं थीं क्योंकि बहू का व्यवहार उन के प्रति अच्छा नहीं रहा था.

‘‘मां, तुम और मैं एकदूसरे का ध्यान रख कर मजे से जिंदगी गुजारेंगे. तुम बेटे की खुदगर्जी की रातदिन चर्चा कर के अपना और मेरा दिमाग खराब करना बंद कर दो अब,’’  मेरे समझाने पर एक रात मां  मुझ से लिपट कर खूब रोईं पर कमाल की बात यह है कि मेरी आंखों से एक बूंद आंसू नहीं टपका.

अब रुपएपैसे की मेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रही थी. मैं ने मां व अपनी सुविधा के लिए किस्तों पर कार भी  ले ली. हम दोनों अच्छा खातेपहनते. मेरी शादी न होने के कारण मां अपना दुखदर्द लोगों को यदाकदा अब भी सुना देतीं. मैं सब  को हंसतीमुसकराती नजर आती, पर सिर्फ मैं ही जानती थी कि मेरी जिंदगी कितनी नीरस और उबाऊ हो कर मशीनी अंदाज में आगे खिसक रही थी.

‘संगीता, तू किसी विधुर से…किसी तलाकशुदा आदमी से ही शादी कर ले न. मैं नहीं रहूंगी, तब तेरी जिंदगी अकेले कैसे कटेगी?’ मां ने एक रात आंखों में आंसू भर कर मुझ से पुराना सवाल फिर पूछा था.

‘जिंदगी हर हाल में कट ही जाती है, मां. मैं जब खुश और संतुष्ट हूं तो तुम क्यों मेरी चिंता कर के दुखी होती हो? अब स्वीकार कर लो कि तुम्हारी बड़ी बेटी कुंआरी ही मरेगी,’ मैं ने मुसकराते हुए उन का दुखदर्द हलका करना चाहा था.

‘तेरे पिता की असामयिक मौत ने मुझे विधवा बनाया और तुझे उन की जिम्मेदारी निभाने की यह सजा मिली कि तू बिना शादी किए ही विधवा सी जिंदगी जीने को मजबूर है,’ मां फिर खूब रोईं और मेरी आंखें उस रात भी सूनी रही थीं.

अपने भाई, छोटी बहन व पुराने प्रेमी की जिंदगियों में क्या घट रहा है, यह सब जानने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं रही थी. अतीत की बहुत कुछ गलीसड़ी यादें मेरे अंदर दबी जरूर पड़ी थीं, पर उन के कारण मैं कभी दुखी नहीं होती थी.

मेरी समस्या यह थी कि अपना वर्तमान नीरस व अर्थहीन लगता और भविष्य को ले कर मेरे मन में किसी तरह की आशा या उत्साह कतई नहीं बचा था. मैं सचमुच एक मशीन बन कर रह गई थी.

जिंदगी में समय के साथ बदलाव आना तो अनिवार्य ही है. मेरी जिंदगी की गुणवत्ता भी कपूर साहब के कारण बदली.

कपूर साहब आफिस में मेरे सीनियर थे. अपने काम में वह बेहद कुशल व स्वभाव के अच्छे थे. एक शाम बरसात के कारण मुझ से अपनी चार्टर्ड बस छूट गई तो उन्होंने अपनी कार से मुझे घर तक की ‘लिफ्ट’ दी थी.  वह चाय पीने के लिए मेरे आग्रह पर घर के अंदर भी आए. मां से उन्होंने ढेर सारी बातें कीं. हम मांबेटी दोनों के दिलों पर अच्छा प्रभाव छोड़ने के बाद ही उन्होंने उस शाम विदा ली थी.

अगले सप्ताह ऐसा इत्तफाक हुआ कि हम दोनों साथसाथ आफिस की इमारत से बाहर आए. जरा सी नानुकुर के बाद मैं उन के साथ कार में घर लौटने को राजी हो गई.

‘‘कौफी पी कर घर चलेंगे,’’ मुझ से पूछे बिना उन्होंने एक लोकप्रिय रेस्तरां के सामने कार रोक दी थी.

हम ने कौफी के साथसाथ खूब खायापिया भी. एक लंबे समय के बाद मैं खूब खुल कर हंसीबोली भी.

उस रात मैं इस एहसास के साथ सोई कि आज का दिन बहुत अच्छा बीता. मन बहुत खुश था और यह चाह बलवती  थी कि ऐसे अच्छे दिन मेरी जिंदगी में आते रहने चाहिए.

मेरी यह इच्छा पूरी भी हुई. कपूर साहब और मेरी उम्र में काफी अंतर था. इस के बावजूद मेरे लिए वह अच्छे साबित हो रहे थे. सप्ताह में 1-2 बार हम जरूर छोटीमोटी खरीदारी के लिए या खानेपीने को घूमने जाते. वह मेरे घर पर भी आ जाते. मां की उन से अच्छी पटती थी. मैं खुद को उन की कंपनी में काफी सुरक्षित व प्रसन्न पाती. मेरे भीतर जीने का उत्साह फिर पैदा करने में वह पूरी तरह से सफल रहे थे.

फिर एक शाम सबकुछ गड़बड़ हो गया. वह पहली बार मुझे अपने फ्लैट में उस शाम ले कर गए जब उन की पत्नी दोनों बच्चों समेत मायके गई हुई थीं.

उन्हें ताला खोलते देख मैं हैरान तो हुई थी, पर खतरे वाली कोई बात नहीं हुई. उन की नीयत खराब है, इस का एहसास मुझे कभी नहीं हुआ था.

फ्लैट के अंदर उन्होंने मेरे साथ अचानक जोरजबरदस्ती करनी शुरू की, तो मुझे जोर का सदमा लगा.

मैं ने शोर मचाने की धमकी दी, तो वह गुस्से से बिफर कर गुर्राए, ‘‘इतने दिनोें से मेरे पैसों पर ऐश कर रही हो, तो अब सतीसावित्री बनने का नाटक क्यों करती हो? कोई मैं पागल बेवकूफ हूं जो तुम पर यों ही खर्चा कर रहा था.’’

उन से निबटना मेरे लिए कठिन नहीं था, पर अकेली घर पहुंचने तक मैं आटोरिकशा में लगातार आंसू बहाती रही.

घर पहुंच कर भी मेरा आंसू बहाना जारी रहा. मां ने बारबार मुझ से रोने का कारण पूछा, पर मैं उन्हें क्या बताती.

रात को मुझे नींद नहीं आई. रहरह कर कपूर साहब का डायलाग कानों में गूंजता, ‘…अब सतीसावित्री बनने का नाटक क्यों करती हो? कोई मैं पागल, बेवकूफ हूं जो तुम पर यों ही खर्चा कर रहा था.’

यह सच है कि उन के साथ मेरा वक्त बड़ा अच्छा गुजरा था. अपनी जिंदगी में आए इस बदलाव से मैं बहुत खुश थी, पर अब अजीब सी शर्मिंदगी व अपमान के भाव ने मन में पैदा हो कर सारा स्वाद किरकिरा कर दिया था.

रात भर मैं तकिया अपने आंसुओं से भिगोती रही. अगले दिन रविवार होने के कारण मैं देर तक सोई.

जब आंखें खुलीं तो उम्मीद के खिलाफ मैं ने खुद को सहज व हलका पाया. मन ने इस स्थिति का विश्लेषण किया तो जल्दी ही कारण भी समझ में आ गया.

नींद आने से पहले मेरे मन ने निर्णय लिया था, ‘मैं अब खुश रह कर जीना चाहती हूं और जिऊंगी भी. यह नेक काम मैं अब अपने बलबूते पर करूंगी. किसी कपूर साहब, राजीव या मोहित पर निर्भर नहीं रहना है मुझे.’

‘परिस्थितियों के आगे घुटने टेक कर…अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर मेरी जीवनधारा अवरुद्ध हो गई थी, पर अब ऐसी स्थिति फिर नहीं बनेगी.’

‘मेरी जिंदगी मुझे जीने के लिए मिली है. दूसरों की जिंदगी सजानेसंवारने के चक्कर में अपनी जिंदगी को जीना भूल  जाना मेरी भूल थी. कपूर साहब मेरी जिस नासमझी के कारण गलतफहमी का शिकार हुए हैं, उसे मैं कभी नहीं दोहराऊंगी. जिंदगी का गहराई से आनंद लेने से मुझे अब न अतीत की यादें रोक पाएंगी, न भविष्य की चिंताएं.’

अपने अंतर्मन में इन्हीं विचारों को गहराई से प्रवेश दिला कर मैं नींद के आगोश में पहुंची थी.

अपनी भावदशा में आए सुखद बदलाव का कारण मैं इन्हीं सकारात्मक विचारों को मान रही थी.

कुछ दिन बाद मेरे एक दूसरे सहयोगी नीरज ने मुझ से किसी बात पर शर्त लगाने की कोशिश की. मैं जानबूझ कर वह शर्त हारी और उसे बढि़या होटल में डिनर करवाया.

इस के 2 दिन बाद मैं चोपड़ा और उस की पत्नी के साथ फिल्म देखने गई. अपने इन दोनों सहयोगियों के टिकट मैं ने ही खरीदे थे.

पड़ोस में रहने वाले माथुर साहब मुझे मार्किट में अचानक मिले, तो उन्हें साथसाथ कुल्फी खाने की दावत मैं ने ही दी और जिद कर के पैसे भी मैं ने ही दिए.

मैं ने अपनी रुकी हुई जीवनधारा को फिर से गतिमान करने के लिए जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिए थे.

कपूर साहब की तरह मैं किसी दूसरे पुरुष को गलतफहमी का शिकार नहीं बनने देना चाहती थी.

इस में कोई शक नहीं कि मेरी जिंदगी में हंसीखुशी की बहार लौट आई थी. अपनों से मिले जख्मों को मैं ने भुला दिया था. उदासी और निराशा का कवच टूट चुका था.

हंसतेमुसकराते और यात्रा का आनंद लेते हुए मैं जिंदगी की राह पर आगे बढ़ चली थी. मेरा जिंदगी भर साथ निभाने को कभी कोई हमराही मिल गया, तो ठीक, नहीं तो उस के इंतजार में रुक कर अपने अंदर शिकायत या कड़वाहट पैदा करने की फुर्सत मुझे बिलकुल नहीं थी.

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