Empower Her Event : महिला सशक्तीकरण पर गृहशोभा का भव्य आयोजन

 Empower Her Event : गृहशोभा महिला पाठकों के विशेष विकास, व्यक्तित्व निर्माण और उत्थान के उद्ïदेश्य से दिल्ली प्रैस प्रकाशन टीम और गृहशोभा मासिक पत्रिका की ओर से हाल ही में ‘एंपॉवर हर’ इवेंट बहुत ही भव्य रूप से आयोजित किया गया.
इस कार्यक्रम के प्रमुख प्रायोजक थे- फाइनैंशियल एजुकेशन पार्टनर एचडीएफसी, सिल्क प्योरिटी पार्टनर सिल्क मार्क, ज्वैलरी पार्टनर जीआरटी ज्वैलर्स, ब्यूटी पार्टनर ग्रीन लीफ, एसोसिएट स्पॉन्सर नंदिनी और मीडिया पार्टनर प्रजाप्रगति एवं प्रगति टीवी.
यह कार्यक्रम गत 22 जून को बैंगलुरु के राजभवन रोड स्थित द कैपिटल होटल में आयोजित किया गया था. इस पूरे इवेंट का फोकस महिलाओं के सशक्तीकरण पर था.  इस कार्यक्रम में शहर की सैकड़ों महिलाएं बड़ी उत्सुकता के साथ स्किन केयर, स्वास्थ्य, वित्तीय ज्ञान, सिल्क मार्क संबंधित जानकारी और मनोरंजन के लिए एकत्रित हुईं.
मानसिक स्वास्थ्य सैशन
डाक्टर भावना प्रसाद जो तुमकुर की कंसल्टैंट न्यूरोसाइकिएट्रिस्ट, चाइल्ड साइकिएट्री स्पैशलिस्ट और प्रसिद्ध डि एडिक्शन मोटिवेशन स्पीकर हैं. उन्होंने बताया कि महिलाएं दिनभर के घरेलू कार्य, पति, बच्चे, बुजुर्गों की देखभाल, बाहर के कामकाज, औफिस (यदि कामकाजी हों) और घर के नियमित कामों से मानसिक तनाव का शिकार होती हैं.
महिलाएं अपने जीवन की हर अवस्था- बचपन से ले कर वृद्धावस्था तक में कभी भी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ सकती हैं. उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाते हुए बताया कि जैसे अन्य बीमारियों में हम डाक्टर से इलाज कराते हैं, वैसे ही मानसिक समस्याओं का भी इलाज जरूरी है.
डाक्टर भावना ने समाज में मानसिक स्वास्थ्य को ले कर फैले अंधविश्वास और टैबू को खत्म करने का आह्वान किया. प्रसूति के बाद की समस्याएं, किशोरों में डिप्रैशन आदि विषयों पर भी उन्होंने जानकारी दी और उपस्थित महिलाओं के सवालों के उत्तर भी दिए.
एसआईपी सहेली सैशन
गिरिजाराणी, कावडप्पु, एचडीएफसी एएमसी लिमिटेड की जौइंट एवीपी हैं और इन्हें फाइनैंस क्षेत्र में 20 से अधिक वर्षों का अनुभव है. मोर्गन एसेट्स और कोटक म्यूचुअल फंड्स की बुनियादी जानकारी, महिलाओं को इस में निवेश क्यों करना चाहिए, बैंक की एसबी और आरडी अकाउंट्ïस की तुलना में इस से कैसे ज्यादा फायदा हो सकता है, एसआईपी के माध्यम से निवेश करने से पैसे कैसे और कितनी तेजी से बढ़ सकते हैं- इन सभी बातों को स्पष्ट रूप से समझाया. म्यूचुअल फंड्ïस के प्रकार और उन में महिलाओं की भागीदारी को भी इन्होंने रेखांकित किया.
स्किन केयर ब्यूटी सैशन
अनिता शर्ली, अखिल कर्नाटक ब्यूटीशियन एसोसिएशन की अध्यक्षा, प्रसिद्ध मेकअप आॢटस्ट और श्रीले ब्यूटी ट्रेङ्क्षनग एकेडमी की वरिष्ठ ब्यूटीशियन हैं. इन्होंने महिलाओं को बताया कि मेकअप आत्मविश्वास बढ़ाने में कैसे मदद करता है और आज की आधुनिक महिलाओं के लिए यह कितना जरूरी है.

अनीता शर्ली ने मेकअप करते समय बरती जाने वाली सावधानियां, सामान्य गलतियों को सुधारने के तरीके आदि की जानकारी मौडल्स के माध्यम से लाइव डैमो के साथ दी.

सिल्क मार्क सैशन
डी.एन. संदीप, जोकि सैंट्रल सिल्क बोर्ड के असिस्टैंट डाइरैक्टर (इंस्पैक्शन) हैं, ने बताया कि सिल्क मार्क और्गनाइजेशन औफ इंडिया किस प्रकार रेशम की शुद्धता की पुष्टि करता है. इन्होंने रेशम क्या है, इस की उत्पत्ति, इतिहास और 4 प्रकार- मलबरी, टसर, एरी और मूगा के बारे में जानकारी दी.

डी.एन. संदीप ने ककून, वाइल्ड सिल्क, फ्लेम टैस्ट, वाङ्क्षशग केयर, स्टोरेज, कैमिकल टैस्ट और सिल्क मार्क लेबल लगे खरीदना ही क्यों जरूरी है- इन सभी बातों पर विस्तार से प्रकाश डाला.

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर सैशन
आशा सोमनाथ शहर की प्रसिद्ध फैशन ऐक्सपर्ट हैं और कई टीवी चैनलों पर नजर आ चुकी हैं. इन्होंने महिलाओं को बताया कि अगर वे दिल से चाहें तो अपने शौक और जनून को आत्मविश्वास के साथ विकसित कर एक सफल सैलिब्रिटी भी बन सकती हैं.

आशा सोमनाथ ने कई उदाहरणों के जरीए उपस्थित महिलाओं को प्रेरित किया.

गेमिंग सैशन
पूरे कार्यक्रम का संचालन कर रही ऐंकर समायरा ने महिलाओं को बेहद रोचक मनोरंजन प्रदान किया. संगीत और नृत्य में भाग लेती महिलाओं ने हंसतेखेलते खूब आनंद उठाया. प्रत्येक सत्र के दौरान संबंधित विषयों पर और मनोरंजन से जुड़ी क्विज प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं, जिन में सही उत्तर देने वाली महिलाओं को गृहशोभा टीम द्वारा आकर्षक पुरस्कार औन द स्पौट दिए गए.

Empower Her : नोएडा में गृहशोभा एम्पावर हर के रंग

Empower Her : नोएडा के रामा सेलिब्रेशन बैंक्वेट हॉल में इस 28 जून को गृहशोभा एम्पावर हर इवेंट का आयोजन किया गया. इवेंट की शुरुआत का समय सुबह 11. 30 बजे का था. मगर 11 बजे से ही महिलाएं पूरे जोश और उत्साह के साथ अपना रजिस्ट्रशन कराने पहुंचने लगीं ताकि अपनी प्रिय पत्रिका गृहशोभा के इवेंट का हिस्सा बन सकें

जैसा कि आप जानते हैं भारत की नंबर 1 हिंदी महिला पत्रिका गृहशोभा 8 भाषाओं में प्रकाशित होती है. यह आप को हर तरह की नॉलेज देती है. चाहे स्वास्थ्य हो, सौंदर्य हो या फिर खाना बनाना और फाइनेंशियल प्लानिंग, गृहशोभा हर विषय पर एक मॉडर्न और बैलेंस्ड नजरिया देती है ताकि हर महिला सशक्त बन सके. गृहशोभा एम्पावर हर का पहले भी मुंबई, बेंगलुरु, अहमदाबाद, लखनऊ, इंदौर, चंडीगढ़, लुधियाना और जयपुर में सफल आयोजन हो चुका है. अब सीजन 3 एम्पावर हर का सफर पहले शुरू हुआ दिल्ली और मुंबई से फिर बेंगलुरु और अब नोएडा. इस के बाद और भी कई शहरों में आयोजित किए जाएंगे.

नाश्ते के बाद कार्यक्रम की शुरुआत हुई. हर बार की तरह एंकर कृतिका ने पूरे जोश के साथ इवेंट में शामिल महिलाओं का स्वागत किया. हॉल में हर उम्र की महिलाएं नजर आ रही थीं. टीनएजर्स से ले कर युवा और अधेड़ महिलाओं में भी पूरी एनर्जी दिख रही थी. वैसे भी इवेंट तो एक बहाना है. ये उन महिलाओं का जश्न है जो आत्मविश्वासी, जिज्ञासु, स्टाइलिश, स्मार्ट और एक्टिव हैं.

नोएडा में हुए इस इवेंट के मुख्य पार्टनर — एचडीएफसी म्यूचुअल फंड- फाइनेंसियल एजुकेशन पार्टनर , किसना डायमंड और गोल्ड ज्वेलरी- ज्वेलरी पार्टनर, ग्रीन लीफ एलोवेरा जेल -ब्यूटी पार्टनर (बृहंस नेचुरल प्रोडक्ट्स द्वारा) के साथ दिल्ली प्रेस के प्रमोशनल वीडिओज़ सब से पहले दिखाए गए. इस के बाद महिलाओं ने वार्म-अप गेम सेगमेंट के तहत बॉलीवुड डांस गेम का आनंद लिया. सब का उत्साह देखते ही बनता था. मंच मंच पर आ कर भी महिलाओं और लड़कियों ने धूम मचाया.

पहला सेशन : वुमन मेन्टल हेल्थ सेशन

शर्ली राज के साथ वुमन मेन्टल हेल्थ सेशन में महिलाओं को उन के सेल्फ केयर की अहमियत बताई गई. शर्ली राज एक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट होने के साथ प्राइवेट क्लीनिकों में एक कंसलटेंट, एक ट्रेनर और यहां तक कि एमिटी विश्वविद्यालय में भी पढ़ा चुकी हैं. वह एमपावर – द सेंटर , लाजपत नगर में आउटरीच सहयोगी भी हैं. उन का फील्ड बचपन के विकास संबंधी विकार जैसे ऑटिज्म और एडीएचडी से ले कर एडल्ट्स में एंजाइटी प्रोब्लम्स जैसे जीएडी, ओसीडी, फोबिया, पैनिक अटैक आदि सब से जुड़ा है. उन्होंने थेरेपी के मल्टीपल फॉर्म्स में ट्रेनिंग लिया है. वह कहती हैं कि सेल्फ केयर कोई स्वार्थ नहीं बल्कि एक ज़रूरत है. जब आप खुद के लिए थोड़ा समय निकालती हैं तो आपका मन शांत होता है और यही शांति पूरे घर के माहौल को सकारात्मक बना देती है. आप स्क्रीन टाइम कम करें, अपनी भावनाएं व्यक्त करें, दूसरों से मदद माँगें, “ना” कहना सीखें और जरूरत पड़े तो प्रोफेशनल मदद लेने से ना झिझकें. जब एक औरत खुद का ध्यान रखती है तब वह और भी बेहतर माँ, पत्नी और इंसान बन पाती है. आप खुश होंगी तभी आपका परिवार भी खुश रहेगा.

दूसरा सेशन : एसआईपी सहेली फाइनेंस सेशन

इस के बाद फाइनेंशियल एजुकेटर और म्यूचुअल फंड एक्सपर्ट खुशबू पांडे को आमंत्रित किया गया जो लोगों को गोल बेस्ड इन्वेस्टमेंट इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजीज के जरिए स्मार्ट इन्वेस्टमेंट डिसिशन लेने, फाइनेंसियल गोल्स निर्धारित करने और लॉन्ग टर्म वेल्थ बनाने में मदद करती है. कोटक, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, डीएसपी जैसे टॉप फाइनेंशियल ब्रैंड्स में काम करने का 10 साल से भी ज़्यादा का अनुभव रखने वाली खुशबू पांडे अब एचडीएफसी एएमसी में स्मार्ट और आसान निवेश संबंधी जानकारी के साथ महिलाओं को सशक्त बनाती हैं.
एचडीएफसी म्यूचुअल फंड द्वारा आयोजित इस सेशन में खुशबू ने महिलाओं को म्यूच्यूअल फंड्स में निवेश से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दीं और उन्हें एचडीएफसी म्यूचुअल फंड द्वारा की गई अद्भुत पहल एसआईपी सहेली के बारे में भी बताया. साथ ही इन्वेस्टमेंट की जरूरतों से अवगत कराया.

किसना डायमंड्स एंड गोल्ड ज्वैलरी सेशन

इस के बाद किसना डायमंड्स एंड गोल्ड ज्वैलरी की तरफ से सीओओ राजेश पुरोहित मंच पर आए. उन्होंने बताया कि कैसे सोना और हीरे सिर्फ़ महिलाओं के सबसे अच्छे दोस्त नहीं हैं बल्कि वे ताकत, शालीनता और कालातीत सुंदरता का प्रतीक हैं. फिर किसना डायमंड एंड गोल्ड ज्वैलरी द्वारा एक शानदार सा गेम राउंड की शुरुआत हुई जिस में कई सवाल पूछे गए और जीतने वालों को किसना की तरफ से उपहार दिए गए. किसना का एवी भी चलाया गया. ब्यूटी पार्टनर ग्रीन लीफ द्वारा भी सवाल जवाब राउंड के तहत पुरस्कार दिए गए.

तीसरा सेशन : ब्यूटी एंड स्किन केयर सेशन

इस सेशन की एक्सपर्ट थीं डॉ. आकांक्षा जैन जो वीएलसीसी, आरोग्य, अलाइव वेलनेस जैसे शीर्ष क्लीनिकों में 20 से अधिक वर्षों का अनुभव रखती हैं. वह एलांटिस एस्थेटिक्स की ओनर भी हैं. खूबसूरती , सेहत और आत्मविश्वास एक साथ बढ़ाने के टिप्स ले कर आई आकांक्षा जैन ने महिलाओं को ब्यूटी और स्किन केयर से जुड़े बहुत सारे टिप्स दिए. उन्होंने बताया कि स्किन केयर क्यों जरूरी है. हर उम्र में अलग तरह के स्किन केयर की जरूरत होती है. सब की स्किन टाइप भी अलग होती है और उसी अनुरूप उस की केयर जरूरी है. उन्होंने बहुत से स्किन केयर और ब्यूटी टिप्स के साथ अपना सेशन समाप्त किया.

प्रोग्राम के बीच बीच में गेम्स और सवाल जवाब के दौर चलते रहे और जीतने वाली महिलाओं को गिफ्ट दिए गए. अंत में महिलाओं ने लंच किया और फिर गुडी बैग्स ले कर ख़ुशी ख़ुशी अपने घरों को गईं.

Drama Story in Hindi: इसमें बुरा क्या है

Drama Story in Hindi: महेश और आभा औफिस जाने के लिए तैयार हो ही रहे थे कि आभा का मोबाइल बज उठा. आभा ने नंबर देखा, ‘रुक्मिणी है,’ कहते हुए फोन उठाया. कुछ ही पलों बाद ‘ओह, अच्छा, ठीक है,’ कहते हुए फोन रख दिया. चेहरे पर चिंता झलक रही थी. महेश ने पूछा, ‘‘कहीं छुट्टी तो नहीं कर रही है?’’

‘‘3 दिन नहीं आएगी. उस के घर पर मेहमान आए हैं.’’ दोनों के तेजी से चलते हाथ ढीले पड़ गए थे. महेश ने कहा, ‘‘अब?’’

‘‘क्या करें, मैं ने पिछले हफ्ते 2 छुट्टियां ले ली थीं जब यह नहीं आई थी और आज तो जरूरी मीटिंग भी है.’’

‘‘ठीक है, आज और कल मैं घर पर रह लेता हूं. परसों तुम छुट्टी ले लेना,’’ कह कर महेश फिर घर के कपड़े पहनने लगे. उन की 10वीं कक्षा में पढ़ रही बेटी मनाली और चौथी कक्षा में पढ़ रहा बेटा आर्य स्कूल के लिए तैयार हो चुके थे. नीचे से बस ने हौर्न दिया तो दोनों उतर कर चले गए. आभा भी चली गई. महेश ने अंदर जा कर अपनी मां नारायणी को देखा. वे आंख बंद कर के लेटी हुई थीं. महेश की आहट से भी उन की आंख नहीं खुली. महेश ने मां के माथे पर हाथ रख कर देखा, बुखार तो नहीं है?

मां ने आंखें खोलीं. महेश को देखा. अस्फुट स्वर में क्या कहा, महेश को समझ नहीं आया. महेश ने मां को चादर ओढ़ाई, किचन में जा कर उन के लिए चाय बनाई, साथ में एक टोस्ट ले कर मां के पास गए. उन्हें सहारा दे कर बिठाया. अपने हाथ से टोस्ट खिलाया. चाय भी चम्मच से धीरेधीरे पिलाई. 90 वर्ष की नारायणी सालभर से सुधबुध खो बैठी थीं. वे अब कभीकभी किसी को पहचानती थीं. अकसर उन्हें कुछ पता नहीं चलता था. रुक्मिणी को उन्हीं की देखरेख के लिए रखा गया था. रुक्मिणी के छुट्टी पर जाने से बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाती थी. इतने में साफसफाई और खाने का काम करने वाली मंजू बाई आई तो महेश ने कहा, ‘‘मंजू, देख लेना मां के कपड़े बदलने हों तो बदल देना.’’

मां का बिस्तर गीला था. मंजू ने ही उन्हें सहारा दे कर खड़ा किया. बिस्तर महेश ने बदल दिया. ‘‘मां के कपड़े बदल दो, मंजू,’’ कह कर महेश कमरे से बाहर गए तो मंजू ने नारायणी को साफ धुले कपड़े पहनाए और मां को फिर लिटा दिया.

नारायणी के 5 बेटे थे. सब से बड़ा बेटा नासिक के पास एक गांव में रहता था. बाकी चारों बेटे मुंबई में ही रहते थे. महेश घर में सब से छोटे थे. नारायणी ने हमेशा महेश के ही साथ रहना पसंद किया था. महेश का टू बैडरूम फ्लैट एक अच्छी सोसाइटी में दूसरे फ्लोर पर था. एक वन बैडरूम फ्लैट इसी सोसाइटी में किराए पर दिया हुआ था. पहले महेश उसी में रहते थे पर बच्चों की पढ़ाई और मां की दिन पर दिन बढ़ती अस्वस्थता के चलते बाकी भाइयों के आनेजाने से वह फ्लैट काफी छोटा पड़ने लगा था. तो वे इस फ्लैट में शिफ्ट हो गए थे. मां की सेवा और देखरेख में महेश और आभा ने कभी कोई कमी नहीं छोड़ी थी. कुछ महीनों पहले जब नारायणी चलतीफिरती थीं, रुक्मिणी का ध्यान इधरउधर होने पर सीढि़यों से उतर कर नीचे पहुंच जाती थीं. फिर वाचमैन ही उन्हें ऊपर तक छोड़ कर जाया करता था. महेश के सामने वाले फ्लैट में रहने वाले रिटायर्ड कुलकर्णी दंपती ने हमेशा महेश के परिवार को नारायणी की सेवा करते ही देखा था. उन के दोनों बेटे विदेश में कार्यरत थे. आमनेसामने दोनों परिवारों में मधुर संबंध थे. पर जब से नारायणी बिस्तर तक सीमित हो गई थीं, सब की जिम्मेदारी और बढ़ गई थी.

बच्चे स्कूल से वापस आए तो महेश ने हमेशा की तरह पहले मां को बिठा कर अपने हाथ से खिलाया. उस के औफिस में रहने पर रुक्मिणी ही उन का हर काम करती थी. फिर बच्चों के साथ बैठ कर खुद लंच किया. मां की हालत देख कर महेश की आंखें अकसर भर आती थीं. उसे एहसास था कि उस के पैदा होने के एक साल बाद ही उस के पिता की मृत्यु हो गई थी. पिता गांव के साधारण किसान थे. 5 बेटों को नारायणी ने कई छोटेछोटे काम कर के पढ़ायालिखाया था. अपने बच्चों को सफल जीवन देने में जो मेहनत नारायणी ने की थी उस के कई प्रत्यक्षदर्शी रिश्तेदार थे जिन के मुंह से नारायणी के त्याग की बातें सुन कर महेश का दिल भर आता था. यह भी सच था कि जितनी जिम्मेदारी और देखरेख मां की महेश करते थे उतनी कोई और बेटा नहीं कर पाया था. शायद, इसलिए नारायणी हमेशा महेश के साथ ही रहना पसंद करती थीं.

नारायणी को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा जाता था, यहां तक कि घूमनेफिरने का प्रोग्राम भी इस तरह बनाया जाता था कि कोई न कोई घर पर उन के पास रहे. मनाली की इस साल 10वीं बोर्ड की परीक्षा थी. तो वह अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी. शाम को महेश के बड़े भाई का फोन आया कि वे होली पर मां को देखने सपरिवार आ रहे हैं. मनाली के मुंह से तो सुनते ही निकला, ‘‘पापा, उस दौरान बोर्ड की परीक्षाएंशुरू होंगी. मैं सब लोगों के बीच कैसे पढ़ूंगी?’’ ‘‘ओह, देखते हैं,’’ महेश इतना ही कह पाए. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था पर आजकल मां को देखने के नाम पर जो भीड़ अकसर जुटती रहती थी उस से महेश और आभा को काफी असुविधा हो रही थी. हर भाई के 2 या 3 बच्चे तो थे ही, सब आते तो उन की आवभगत में महेश या आभा को औफिस से छुट्टी करनी ही पड़ती थी, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान पड़ता. मां को देखने आने का नाम ही होता, उन के पास बैठ कर उन की सेवा करने की इच्छा किसी की भी नहीं होती. सब घूमतेफिरते, अच्छेअच्छे खाने की फरमाइश करते. भाभियां तो मां के गीले कपड़े बदलने के नाम से ही कोई बहाना कर वहां से हट जातीं. आभा ही रुक्मिणी के साथ मिल कर मां की सेवा में लगी रहती. अब महेश थोड़ा चिंतित हुए, दिनभर सोचते रहे कि क्या करें, मां की तरफ से भी लापरवाही न हो, बच्चों की पढ़ाई में भी व्यवधान न हो.

महेश और आभा दोनों ही मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पदों पर थे. आर्थिक स्थिति अच्छी ही थी, शायद इसलिए भी दिनभर कई तरह की बातें सोचतेसोचते आखिर एक रास्ता महेश को सूझ ही गया. रात को आभा लौटी तो महेश, भाई के सपरिवार आने का और मनाली की परीक्षाओं का एक ही समय होने के बारे में बताते हुए कहने लगे, ‘‘आभा, दिनभर सोचने के बाद एक बात सूझी है. मैं दूसरा फ्लैट खाली करवा लेता हूं. मां को वहां शिफ्ट कर देते हैं. मां के लिए किसी अतिविश्वसनीय व्यक्ति का उन के साथ रहने का प्रबंध कर देते हैं.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो महेश? मां अकेली रहेंगी?’’

‘‘अकेली कहां? हम वहां आतेजाते ही रहेंगे. पूरी नजर रहेगी वहां हमारी. जो भी रिश्तेदार उन्हें देखने के नाम से आते हैं, वहीं रह लेंगे और यहां भी आने की किसी को मनाही थोड़े ही होगी. मैं ने बहुत सोचा है इस बारे में, मुझे इस में कुछ गलत नहीं लग रहा है. थोड़े खर्चे बढ़ जाएंगे, 2 घरों का प्रबंध देखना पड़ेगा, किराया भी नहीं आएगा. लेकिन हम मां की देखरेख में कोई कमी नहीं करेंगे. बच्चों की पढ़ाई भी डिस्टर्ब नहीं होने देंगे.’’

‘‘महेश, यह ठीक नहीं रहेगा? मां को कभी दूर नहीं किया हम ने,’’ आभा की आंखें भर आईं.

‘‘तुम देखना, यह कदम ठीक रहेगा. किसी को परेशानी नहीं होगी. और अगर किसी को भी तकलीफ हुई तो मां को यहीं ले आएंगे फिर.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम्हें ठीक लगे.’’

अगला एक महीना महेश और आभा काफी व्यस्त रहे. दूसरा फ्लैट बस 2 बिल्ंडग ही दूर था. किराएदार भी महेश की परेशानी समझ जल्दी से जल्दी फ्लैट खाली करने के लिए तैयार हो गए. महेश ने स्वयं उन के लिए दूसरा फ्लैट ढूंढ़ने में सहयोग किया. महेश की रिश्तेदारी में एक लता काकी थीं, जो विधवा थीं, जिन की कोई संतान भी नहीं थी. वे कभी किसी रिश्तेदार के यहां रहतीं, कभी किसी आश्रम में चली जातीं. महेश ने उन की खोजबीन की तो पता चला वे पुणे में किसी रिश्तेदार के घर में हैं. महेश खुद कार ले कर उन्हें लेने गए. नारायणी जब स्वस्थ थीं, वे तब कई बार उन के पास मिलने आती थीं. महेश को देख कर लता काफी खुश हुईं और जब महेश ने कहा, ‘‘बस, मैं आप पर ही मां की देखभाल का भरोसा कर सकता हूं काकी, आप उन के साथ रहना, घर के कामों के लिए मैं एक फुलटाइम मेड का प्रबंध कर दूंगा,’’ लता खुशीखुशी महेश के साथ आ गईं.

दूसरा फ्लैट खाली हो गया. एक फुलटाइम मेड राधा का प्रबंध भी हो गया था. एक रविवार को मां को दूसरे फ्लैट में ले जाया जा रहा था. महेश और आभा ने उन के हाथ पकड़े हुए थे. वे बिलकुल अंजान सी साथ चल रही थीं. सामने वाले फ्लैट के मिस्टर कुलकर्णी पूरी स्थिति जानते ही थे. वे कह रहे थे, ‘‘महेशजी, आप ने सोचा तो सही है पर आप की भागदौड़ और खर्चे बढ़ने वाले हैं.’’

‘‘हां, देखते हैं, आगे समझ आ ही जाएगा, यह सही है या नहीं?’’ आभा ने वहां किचन पूरी तरह से सैट कर ही दिया था. लता काकी को सब निर्देश दे दिए गए थे. महेश ने उन्हें यह भी संकेत दे दिया था कि वे उन्हें हर महीने कुछ धनराशि भी जरूर देंगे. वे खुश थीं. उन्हें अब एक ठिकाना मिल गया था. सोसाइटी में पहले तो जिस ने सुना, हैरान रह गया. कई तरह की बातें हुईं. किसी ने कहा, ‘यह तो ठीक नहीं है, बूढ़ी मां को अकेले घर में डाल दिया.’ पर समर्थन में भी लोग थे. उन का कहना था, ‘ठीक तो है, मां जी को देखने इतना आनाजाना होता है, लोगों की भीड़ रहती थी, यह अच्छा विचार है.’ महेश और बाकी तीनों भी मां के आसपास ही रहते, जिस को समय मिलता, वहीं पहुंच जाता. मां अब किसी को पहचानती तो थीं नहीं, पर फिर भी सब ज्यादा से ज्यादा समय वहीं बिताते. वहां की हर जरूरत पर उन का ध्यान रहता. मिस्टर कुलकर्णी ने अकसर देखा था महेश सुबह औफिस जाने से पहले और आने के बाद सीधे वहीं जाते हैं और छुट्टी वाले दिन तो अकसर सामने ताला रहता, मतलब सब नारायणी के पास ही होते. 3 महीने बीत गए. होली पर भाई सपरिवार आए. पहले तो उन्हें यह प्रबंध अखरा पर कुछ कह नहीं पाए. आखिर महेश ही थे जो सालों से मां की सेवा कर रहे थे. मनाली की परीक्षाएं भी बिना किसी असुविधा के संपन्न हो गई थीं. मां की हालत खराब थी. उन्होंने खानापीना छोड़ दिया था. डाक्टर को बुला कर दिखाया गया तो उन्होंने भी संकेत दे दिया कि अंतिम समय ही है. कभी भी कुछ हो सकता है. बड़ी मुश्किल से उन के मुंह में पानी की कुछ बूंदें या जूस डाला जाता. लता काकी को इन महीनों में एक परिवार मिल गया था.

मां को कुछ होने की आशंका से लता काकी हर पल उदास रहतीं और एक रात नारायणी की सांसें उखड़ने लगीं तो लता काकी ने फौरन महेश को इंटरकौम किया. महेश सपरिवार भागे. मां ने हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं. सब बिलख उठे. महेश बच्चे की तरह रो रहे थे. आभा ने सब भाइयों को फोन कर दिया. सुबह तक मुंबई में ही रहने वाले भाई पहुंच गए, बाकी रिश्तेदारों का आना बाकी था. सोसाइटी में सुबह खबर फैलते ही लोग इकट्ठा होते गए. भीड़ में लोग हर तरह की बातें कर रहे थे. कोई महेश की सेवा के प्रबंध की तारीफ कर रहा था, वहीं सोसाइटी के ही दिनेशजी और उन की पत्नी सुधा बातें बना रहे थे, ‘‘अंतिम दिनों में अलग कर दिया, अच्छा नहीं किया, मातापिता बच्चों के लिए कितना करते हैं और बच्चे…’’

वहीं खड़े मिस्टर कुलकर्णी से रहा नहीं गया. उन्होंने कहा, ‘‘भाईसाहब, महेशजी ने अपनी मां की बहुत ही सेवा की है, मैं ने अपनी आंखों से देखा है.’’

‘‘हां, पर अंतिम समय में दूर…’’

‘‘दूर कहां, हर समय तो ये सब उन के आसपास ही रहते थे. उन की हर जरूरत के समय, वे कभी अकेली नहीं रहीं, आर्थिक हानिलाभ की चिंता किए बिना महेशजी ने सब की सुविधा का ध्यान रखते हुए जो कदम उठाया था, उस में कुछ भी बुरा नहीं है. आप के बेटेबहू भी तो अपने बेटे को ‘डे केयर’ में छोड़ कर औफिस जाते हैं न, तो इस का मतलब यह तो नहीं है न, कि वे अपने बेटे से प्यार नहीं करते. आजकल की व्यस्तता, बच्चों की पढ़ाई, सब ध्यान में रखते हुए कुछ नए रास्ते सोचने पड़ते हैं. इस में बुरा क्या है. बातें बनाना आसान है. जिस पर बीतती है वही जानता है.  महेशजी और उन का परिवार सिर्फ प्रशंसा का पात्र है, एक उदाहरण है.’’ वहां उपस्थित बाकी लोग मिस्टर कुलकर्णी की बात से सहमत थे. दिनेशजी और उन की पत्नी ने भी अपने कहे पर शर्मिंदा होते हुए उन की बात के समर्थन में सिर हिला दिया था. Drama Story in Hindi

Romantic Story: शादी कर लो ममा

Romantic Story: मेरेजीवन में तुम वसंत की तरह आए और पतझड़ की तरह चले गए. तुम ने न तो मेरी भीगी आंखों को देखा और न ही मेरी आहों को महसूस किया.

यदि मैं चाहती तो तुम्हें बता देती कि तलाक लेना इतना भी आसान नहीं जितनी आसानी से मैं ने तुम्हारे उन तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए, जिन्होंने मेरी वजूद की नींव को ही हिला दिया.

यदि मैं चाहती तो अपनी इस टूटीबिखरी जिंदगी का मुआवजा तुम से जीवनभर वसूलती रहती पर मेरे अंदर की औरत को यह कतई मंजूर नहीं था, क्योंकि जिस रिश्ते को अंजाम तक पहुंचना ही नहीं था उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ने में ही मुझे अपनी और तुम्हारी भलाई दिखी थी.

मगर मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ चंद्र? हमतुम प्यार करते थे न? तुम ने मेरी नौकरी के साथ ही मुझे अपनाया था न? फिर शादी के बाद ऐसा क्या हुआ जो तुम आम मर्दों की तरह अपनी जिद को मुझ पर लादने लगे?

अब तुम्हें क्या पता कि यह नौकरी मुझे कितनी मुश्किल से मिली थी पर तुम ने तो बिना सोचेसमझे ही फैसला कर लिया और हुक्म दे दिया कि यह नौकरी छोड़ दो निर्मला.

चंद्र तुम्हें क्या पता कि मुश्किलों से मिली चीज को आसानी से छोड़ा नहीं जा सकता. फिर यह तो मेरी नौकरी थी न. तुम ने मुझे एक बेटी दी. याद है उस के जन्म पर हम दोनों कितने खुश थे पर तुम्हारी जिद ने इस खुशी के एहसास को भी कम कर दिया. तुम्हारा कहना था कि औरत का काम घर और बच्चे संभालना है. मैं हैरान थी. तुम कितने बदल गए थे. धीरेधीरे मुझे लगने लगा था कि तुम्हारे साथ मेरा कोई भविष्य नहीं है. तुम मेरी सोच को दबा कर मुझ पर हुकूमत करना चाहते थे.

आखिर हमारे तलाक का मुकदमा अदालत में आ ही गया. 5 साल तक हर तारीख पर मैं अदालत की सीढि़यां चढ़तीउतरती रही. दिलदिमाग सब सुन्न पड़ गए थे. कभीकभी सोचती पता नहीं कब छुटकारा मिलेगा, पर आखिर छुटकारा मिल ही गया. जब 2 लोग आपसी तालमेल से साथ नहीं रह सकते तो कानून भी आखिर कब तक उन्हें बांध कर रख सकता था. पर जिस दिन तलाक मिल गया उस दिन लगा जैसे सबकुछ टूट कर बिखर गया और एक डर ने धड़कनें बढ़ा दीं. जब एक दिन चंद्र ने कानून के जरीए प्रिया को पाने की कोशिश की.

मगर तुम ने पास आ कर कहा, ‘‘निर्मला प्रिया तुम्हारे पास ही रहेगी, पर कभी यह मत भूलना कि वह मेरी भी बेटी है. मैं उस से मिलने आता रहूंगा, उस की चिंता रहेगी मुझे.’’

मैं क्या कहती. सबकुछ तो टूट गया था. पहले चंद्र से प्यार हुआ, फिर परिवार से बगावत कर के उस से शादी हुई. बच्ची पैदा हुई और फिर अकेली हो गई. नौकरी और चंद्र में से मुझे किसी एक को चुनना था और मैं ने नौकरी को चुन लिया. जानती थी सरकारी नौकरी थी. मरते दम तक साथ देगी पर चंद्र? उस ने तो बीच चौराहे पर अकेला छोड़ दिया था.

जख्म ताजा था, दर्द भी काफी था पर समय के साथसाथ हर जख्म भर जाता है,

ऐसा सुना था और सोचा मेरा भी भर ही जाएगा.

चंद्र और प्रिया के बीच एक डेट फिक्स हो गई थी. हर महीने का एक दिन उस ने प्रिया के नाम किया था. उस दिन का इंतजार प्रिया भी बेसब्री से करती. चंद्र आता और प्रिया को ले जाता. शाम को जब प्रिया वापस आती तो उस के पास ढेर सारे गिफ्ट होते. वह कहती कि मां पापा कितने अच्छे हैं, मेरा कितना खयाल रखते हैं और मैं… मेरे दिल में एक हूक सी उठती. इस बात का जवाब मुझे कभी नहीं मिलता कि मैं कैसी मां हूं.

प्रिया का कहना भी ठीक था. चंद्र ने न तो वह घर मुझ से वापस लिया, न ही अपनी बेटी, फिर मैं उस पर क्या इलजाम लगाऊं.

तलाक के बाद चंद्र ने कहा, ‘‘निर्मला, तुम प्रिया के साथ इसी घर में रहोगी.’’

मगर वह जैसे ही जाने लगा प्रिया उस से लिपट गई. पापा, मैं आप के साथ जाऊंगी.

5 साल की बच्ची की यह जिद मुझे अखर गई और मैं ने उसे कस कर तमाचा जड़ दिया. उसी दिन से हम मांबेटी के बीच एक हलकी सी दरार पैदा हो गई और फिर धीरेधीरे चौड़ी होती गई.

मैं कभीकभी सोचती कि क्या सारी गलती मेरी थी? क्या मुझे अपने पति को उस के दंभ के साथ अपनाए रखना चाहिए था? आखिर चंद्र ने क्यों मेरी नौकरी छुड़ानेकी जिद ठान ली थी? यह तो ठीक था कि नौकरी छोड़ने के बाद मैं चैन की जिंदगी गुजारती, एक आम औरत की तरह औरतों के साथ मेलजोल बढ़ाती, किट्टी पार्टियों में हिस्सेदारी करती और महल्ले में क्याक्या हो रहा है उस की पूरीपूरी जानकारी रखती. रोज पति से गहनों कपड़ों की फरमाइश करती. मगर मैं एक आम औरत से हट कर थी. मैं कैसे अपने अंदर की क्षमता को मार कर एक आम औरत बन जाती? क्या पुरुष की दासी बनने के बाद ही उस की गृहस्थी पर राज करने का अधिकार औरत को मिल सकता है?

विचारों की यह कशमकश हर पल, हर घड़ी मन में कुहराम मचाए रखती पर समझ में नहीं आता कि गलती किस की थी?

मैं एक मध्यवर्गीय परिवार की बेटी थी. पिता रिटायर्ड अध्यापक थे. उन के पास 2 कमरों का छोटा सा फ्लैट था. एक कमरे में पापामम्मी और दूसरे में भाईभाभी और उन के बच्चे रहते थे. तलाक के मुकदमे के दौरान ही भाभी के तेवर बदलने लगे थे. उस ने एक दिन कह ही डाला, ‘‘तलाक के बाद तुम प्रिया के साथ कहां रहोगी निर्मला?’’

यानी एक तलाकशुदा लड़की को अपने पिता के घर में कोई जगह नहीं थी. आज सोचती हूं तो मन कांप उठता है. यदि चंद्र ने मुझे यह मकान रहने को न दिया होता तो?

पिछले 12 सालों से दिलोदिमाग घटनाओं के चक्रव्यूह में फंसा था कि अचानक जिंदगी में कुछ बदलाव आया. दफ्तर में नया बौस आ गया था. काम के दौरान अकसर फाइलें ले कर बौस के पास जाना पड़ता. बौस का नाम था शेखर.

धीरेधीरे मुझे महसूस होने लगा कि शेखर मुझ में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगा है.

एक दिन शेखर ने कहा, ‘‘पता चला है कि आप का अपने पति से तलाक हो गया है?’’

‘‘जी हां,’’ मैं ने धीरे से कहा और फिर फाइल उठा कर चलने लगी तो शेखर ने फिर कहा, ‘‘मैं आप की तकलीफ को समझता हूं, क्योंकि मैं भी इस दर्द से गुजर चुका हूं.’’

मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. मैं उन के कैबिन से बार आ गई.

एक लंबे अरसे से मर्द से दूर रहने के बाद मैं पत्थर की शिला सी बन गई थी पर अब आतेजाते शेखर की नजरों का सेंक मेरे अंदर की रूखीसूखी औरत को पिघलाने लगा था.

एक दिन आईने के सामने बैठ कर मैं ने खुद को गौर से देखा. मुझे लगा मेरा खूबसूरत चेहरा अभी भी वैसा ही है. चंद्र अकसर कहा करता था, ‘‘तुम कितनी सुंदर हो निर्मला.’’

बरसों बाद अचानक मेरी सोच ने करवट ली कि निर्मला तू क्यों खुद को मिटा रही है? खुद को संभाल निर्मला.

मैं अगले दिन जब दफ्तर पहुंची तो साथ काम करने वाली महिलाओं ने कहा, ‘‘वाऊ… निर्मला आज तो जंच रही हो.’’

मैं ने पुरुष सहकर्मियों की आंखों में भी अपने लिए प्रशंसा के भाव देखे.

उस दिन शाम को छुट्टी के बाद बस स्टौप पर पहुंची तो अचानक शेखर की गाड़ी पास आ खड़ी हुई, ‘‘निर्मलाजी गाड़ी में बैठिए. मैं ड्रौप कर दूंगा.’’

‘‘नहीं सर मैं चली जाऊंगी.’’

‘‘जानता हूं आप रोज ही जाती हैं बस से, पर देख रही हैं काले बादल कैसे गरज रहे हैं… लगता है जल्दी बारिश शुरू होने लगेगी. फिर आप की बेटी भी तो आप का इंतजार कर रही होगी.’’

प्रिया का खयाल आते ही मैं गाड़ी में बैठ गई. लेकिन घर पहुंचतेपहुंचते तेज बरसात होने लगी थी. घर के सामने शेखर ने गाड़ी रोकी तो मैं ने कहा, ‘‘सर, बारिश तेज हो गई है. आप अंदर आ जाइए. बारिश बंद होने के बाद चले जाना.’’

शेखर मेरे साथ अंदर आ गए. प्रिया मोबाइल पर किसी से बात कर रही थी. उस ने शेखर को हैरानी से देखा तो मैं ने कहा, ‘‘प्रिया, ये शेखर सर हैं हमारी कंपनी के बौस.’’

प्रिया ने शेखर को नमस्ते की और फिर अपने कमरे में चली गई. मैं ने महसूस किया कि प्रिया को शेखर का आना अच्छा नहीं लगा.

मैं ने कौफी बनाई और प्याला शेखर को थमा दिया. कुछ देर तक शेखर हमारे बारे में कुछ पूछते रहे, फिर बरसात के रुकते ही चले गए.

शेखर के जाने के बाद प्रिया मेरे पास आई और बोली, ‘‘मम्मा, मुझे तुम्हारा गैरों से मेलजोल पसंद नहीं है.’’

मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘कोई अपना भी तो नहीं है.’’

प्रिया ने मुझे घूर कर देखा और फिर चली गई. लेकिन उस दिन के बाद मुझे लगा कि शेखर मुझ में दिलचस्पी लेने लगे हैं. उन्होंने एक दिन अपने बारे में बताया कि न चाहते हुए भी उन्हें अपनी पत्नी से तलाक लेना पड़ा.

अब कभीकभी शेखर मुझे अपनी गाड़ी में खाने पर ले जाते. धीरेधीरे मुझे उन का साथ अच्छा लगने लगा और हम दोनों और करीब आने लगे. मुझे लगने लगा कि मेरे मन का सूना कोना अब भरने लगा है. जबतब शेखर को भी मैं घर खाने पर बुलाने लगी थी. लेकिन मुझे यह बात अच्छी तरह समझ में आ रही थी कि यदि मैं ने शेखर के साथ रिश्ते में एक कदम आगे बढ़ाया तो यह बात प्रिया को कतई मंजूर नहीं होगी.

शेखर अब इस रिश्ते को नाम देना चाहते थे. वे मुझे से शादी करना चाहते थे

पर प्रिया… उस का क्या होगा? वह बहुत संवेदनशील है… इस रिश्ते को कभी नहीं कुबूलेगी. लेकिन शेखर कहते कि माना प्रिया बड़ी संवेदनशील है, पर धीरेधीरे सौतेले पिता को कुबूल कर लेगी मगर मैं जानती थी शेखर के मामले में मैं उसी दो राहे पर आ खड़ी हुई थी जहां 17 साल पहले खड़ी थी. तब मुझे नौकरी और पति दोनों में से एक को चुनना था और अब मुझे शेखर और प्रिया दोनों में से एक को चुनना होगा, क्योंकि प्रिया किसी भी कीमत पर सौतेले पिता को कुबूल नहीं करेगी.

एक दिन प्रिया जब चंद्र से मिल कर आई तो गुस्से में भरी थी. उस ने आते ही अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. मैं देर तक दरवाजा खुलवाने की कोशिश करती रही, लेकिन प्रिया ने कोई जवाब नहीं दिया. मैं डर गई कि कहीं प्रिया कुछ ऐसावैसा न कर ले. मगर 1 घंटे बाद जब वह बाहर आई तो बहुत उदास थी. मैं उस का हाथ पकड़ अपने कमरे में ले आई और फिर खींच कर अपनी गोद में लिटा लिया और पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

प्रिया फूटफूट कर रोने लगी, ‘‘मम्मा, पापा ने शादी कर ली है.’’

उफ, अपने आदर्श पिता की जो तसवीर बेटी के मन में बसी थी वह टूट गईं. मेरे अंदर भी कुछकुछ टूटने लगा. चंद्र काफी दूर था… मेरे और उस के बीच कुछ भी नहीं था पर उस की शादी की बात सुन कर दर्द फिर हिलोरें लेने लगा.

मैं ने प्रिया को अपनी बांहों में बांध कर उस का दर्द कम करने की कोशिश की. फिर उठ कर चाय बना लाई. वह चुपचाप चाय पीने लगी. पर मेरे अंदर एक डर समाया था. शेखर जल्द ही शादी की तारीख तय करने वाले थे… यदि प्रिया ने कोई सीधा सवाल मुझ से पूछ लिया तो?

मैं उठी और आईने के सामने खड़ी हो कर कई सवाल किए. फिर मुझे अपने सवालों के जवाब मिल गए और मैं प्रिया के पास आ गई.

इस से पहले कि प्रिया मुझ से कुछ कहती मैं ने कहा, ‘‘प्रिया, पापा ने शादी कर ली है तो क्या… तुम्हारी ममा है न तुम्हारे साथ… तुम्हारी ममा सिर्फ तुम्हारी है.’’

यह सुनते ही प्रिय मेरे सीने से लग गई.

इस के बाद मैं ने शेखर से कह दिया कि हम केवल दोस्त हो सकते हैं, और किसी रिश्ते में नहीं बंध सकते. शेखर काफी समझदार थे. उन्होंने सहज रूप से इसे स्वीकार लिया.

हर बार की तरह उस दिन भी चंद्र की गाड़ी आ खड़ी हुई और चंद्र हौर्न बजाने लगा. लेकिन प्रिया ने कहा, ‘‘नहीं जाना  ममा मुझे.’’

तब तक चंद्र दरवाजे पर आ गया था.

पिता को देख कर प्रिया भड़क गई. बोली, ‘‘कौन हैं आप?’’

चंद्र ने हैरानी से प्रिया को देखा. उस के तेवरों की तपिश को महसूस किया. फिर चुपचाप सीढि़यां उतर लौट गया.

मैं ने हैरानी से प्रिया को देखा, तो वह बोली, ‘‘वह एक अजनबी है ममा.’’

प्रिया की बात सुन कर एक फीकी सी मुसकराहट मेरे होंठों पर आ गई और फिर मैं किचन में चली गई.

सतही तौर पर तो लगता था कि सबकुछ ठीक हो गया है, पर ऐसा कुछ था नहीं. मैं और प्रिया दोनों ही सहज नहीं हो पा रही थीं.

मैं प्रिया को आश्वस्त करना चाहती थी और इसीलिए शेखर से भी दूरियां बना ली थीं. लेकिन मैं महसूस कर रही थी कि कोई अपराधबोध प्रिया को अंदर ही अंदर खल रहा है.

एक दिन प्रिया कालेज से लौटी तो मुझे घर में देख कर बोली, ‘‘ममा, आप आज औफिस नहीं गईं?’’

‘‘मन कुछ ठीक नहीं था, इसलिए सोचा घर पर ही रह कर कुछ पढूंलिखूं तो शायद…’’

‘‘ममा, क्या मैं बहुत बुरी बेटी हूं?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘ओह नो… तुम तो मेरी प्यारी बेटी हो. ऐसा क्यों सोचती हो तुम?’’

‘‘ममा, पिछले कुछ दिनों से जो कुछ घटित हो रहा है उस ने मुझे कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है.’’

प्रिया को मैं ने घूर कर देखा तो लगा कि वह छोटी बच्ची नहीं रही. उस की बातों

से लगने लगा था कि हालात ने उसे गंभीर बना दिया है.

तभी प्रिया बोली, ‘‘ममा, मैं आप की उदासी का कारण समझ सकती हूं कि पापा ने आप को कितना दर्द दिया है.’’

मैं ने टालने की गरज से कहां, ‘‘चलो हाथमुंह धो लो… देखो तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो.’’

‘‘नहीं ममा मैं अब यह समझने लगी हूं कि अकेलापन इंसान को किस कदर आहत कर देता है… शायद इसीलिए पापा ने भी शादी कर ली.’’

मैं ने प्रिया को हैरानी से देखा और समझा कि वह कुछ कहना चाहती है पर शायद संकोच के कारण कह नहीं पा रही. मैं ने चाय का प्याला उस के सामने रखा और खुद भी खोमोशी से चाय पीने लगी.

तभी प्रिया ने कहा, ‘‘ममा, मैं आज आप के औफिस गई थी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘शेखर अंकल से मिलने… सच कहूं तो कभीकभी हम अपनेआप में इतने खो जाते हैं कि सामने वाले को समझ ही नहीं पाते.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘यही कि शेखर अंकल अच्छे इंसान हैं.’’ प्रिया ने यह कहा तो मेरे दिल की धड़कने बढ़ने लगीं. मैं उस के अगले किसी भी सवाल के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी.

तभी प्रिया ने कहा, ‘‘क्या आप शेखर अंकल को पसंद करती हैं?’’

शेखर का उदास चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम गया और फिर मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘‘हां.’’

प्रिया खिलखिला कर हंसने लगी. फिर बोली, ‘‘तो फिर आप उन से शादी क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘मगर तुम… नहीं प्रिया यह नहीं हो सकता,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों नहीं हो सकता बल्कि मैं तो कहती हूं यही होगा. आप ने बहुत दुख झेले हैं ममा… अब आप को जीवनसाथी मिलेगा और मुझे अपना पापा.’’

मैं प्रिया के इस बदले मिजाज से हैरान थी.

तभी दरवाजे पर आहट हुई. शेखर थे. उन्होंने अंदर आ कर मेरा हाथ थाम लिया, ‘‘प्रिया बिलकुल ठीक कह रही है निर्मला… सही फैसले सही समय पर ले लेने में ही बुद्धिमत्ता होती है.’’

मैं ने प्रिया की ओर देखा. उस की आंखों में इस रिश्ते के लिए स्वीकृति थी और फिर मैं ने भी शेखर को अपनी स्वीकृति दे दी.

‘‘मुझे यह बात अच्छी तरह समझ में आ रही थी कि यदि मैं ने शेखर के साथ रिश्ते में एक कदम आगे बढ़ाया तो यह बात प्रिया को कतई मंजूर नहीं होगी…’’  Romantic Story

Family Kahani: मां के मन का दर्दभरा कोना

Family Kahani: कामवाली बाई चंदा से गैस्टरूम की सफाई कराते समय जैसे ही नीरा ने डस्टबिन खोला, उस में पड़ी बीयर की बोतलों से आ रही शराब की बदबू उस के नथुनों में जा घुसी. इस से उस का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह तमतमाती हुई कमरे से बाहर निकली और जोर से चिल्लाई, ‘‘रोहन…रोहन, जल्दी नीचे आओ. मुझे अभी तुम से बात करनी है.’’ उस का तमतमाया चेहरा देख कर चंदा डर के कारण एक कोने में खड़ी हो गई. रोहन के साथसाथ दोनों बेटियां 9 वर्षीया इरा और 12 वर्षीया इला भी हड़बड़ाती सी कमरे से बाहर आ गईं. ‘‘ये बीयर की बोतलें घर में कहां से आईं रोहन?’’ नीरा ने क्रोध से पूछा.

‘‘आशीष लाया था, पर तुम इतने गुस्से में क्यों हो? आखिर हुआ क्या?’’ हमेशा शांत और खुश रहने वाली नीरा को इतना आक्रोशित देख कर रोहन ने हैरान होते हुए पूछा. ‘‘ये बीयर की बोतलें मेरे घर में क्यों आईं और किस ने डिं्रक की?’’ नीरा ने फिर गुस्से से चीखते हुए पूछा.

‘‘अरे, कल तुम मम्मी के यहां गई थीं न, तब मेरे कुछ दोस्त यहां आ गए. उन में से एक का जन्मदिन था. तो खापी कर चले गए. पर इस में इतना आसमान सिर पर उठाने की क्या बात है?’’ रोहन ने तनिक झुंझलाते हुए कहा. ‘‘रोहन, तुम्हें पता है कि मुझे ये सब बिलकुल भी पसंद नहीं है. और मेरे ही घर में, मेरा ही पति.’’ नीरा चीखती हुई बोली और जोरजोर से रोने लगी. नीरा का रौद्र रूप देख कर सभी हैरान थे. थोड़ी देर बाद इरा और इला चुपचाप तैयार हो कर अपने स्कूल चली गईं. नाश्ता कर के रोहन औफिस जाने से पहले नीरा से बोला, ‘‘चंदा के जाने के बाद तुम थोड़ा आराम कर लेना, तुम्हारी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही.’’

नीरा बिना कोई उत्तर दिए शांत बैठी रही. चंदा के जाने के साथ ही घर का काम भी खत्म हो गया. डायनिंग टेबल पर खाना लगा कर नीरा आंखें बंद कर के लेटी ही थी कि बड़ी बेटी इला स्कूल से आ गई. दरवाजा खोल कर वह फिर बिस्तर पर आ लेटी. इला अपना खाना ले कर मां के पास ही आ कर बैठ गई.

नीरा का मूड कुछ ठीक देख कर वह धीरे से बोली, ‘‘मां, सुबह आप को इतना गुस्सा क्यों आ गया था. इतना गुस्सा होते मैं ने आप को कभी नहीं देखा.’’

‘‘तो इस से पहले तुम्हारे पापा ने भी तो ऐसा काम नहीं किया था,’’ नीरा दुखी होती हुई बोली. ‘‘मम्मा, पापा तो कभी नहीं पीते, हो सकता है कोई और ले कर आ गया हो. आजकल तो यह फैशन माना जाता है, मां.’’

‘‘फैशन को स्थायी आदत बनते देर नहीं लगती, बेटा. अब तू जा और अपनी पढ़ाई कर. तेरी इस सब में पड़ने की उम्र नहीं है,’’ नीरा ने इला को टालने की गरज से कहा. ‘‘मां, आप भी न,’’ इला ने तुनक कर कहा और अपने रूम में चली गई.

नीरा सोचने लगी, इला को तो उस ने समझा दिया, वह बहल भी गई पर अपने मन के उस कोने को वह कहां ले जाए जहां सिर्फ दुख ही दुख था. वह अपने बचपन में बहुत कुछ देख चुकी थी. उस के पापा रेलवे में थे और कभीकभार पीना उन के शौक में शामिल था. वे जब भी पी कर आते, मम्मीपापा दोनों में जम कर लड़ाई होती. 7 साल की बच्ची नीरा डर कर एक कोने में खड़ी हो कर दोनों को झगड़ते देखती और फिर सो जाती. अगली सुबह मांपापा को प्यार से बातें करते देखती तो फिर खुश हो जाती. धीरेधीरे नीरा को समझ आने लगा था कि मां को पापा का शराब पीना बिलकुल भी पसंद नहीं था. पापा मां से कभी न पीने का प्रौमिस करते और कुछ दिनों बाद फिर पी कर आ जाते और मां गुस्से से पागल हो जातीं.

उस समय वह 10 साल की थी जब मामा की शादी में वे लोग आगरा गए थे. पापा उस दिन कुछ ज्यादा ही पी कर आ गए थे, इतनी कि उन से ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. नाना के घर में ये सब मना था. मामा और नाना की आंखों से मानो क्रोध के अंगारे निकल रहे थे. मां एक कोने में खड़ी आंसू बहा रही थीं. आज तक उन्होंने मायके में किसी को पापा के शराब पीने के बारे में नहीं बताया था. पर आज पापा ने उन्हें सब के सामने बेइज्जत कर दिया था. मामा किसी तरह उन्हें बैड पर लिटा कर आ गए थे. तब से उस के मन में भी शराब के प्रति नफरत भर गई थी.

अचानक इला की आवाज से वह पुरानी बातों से बाहर निकली. ‘‘मां, पापा आ गए हैं, चाय बना दी है, आप भी आ कर पी लीजिए.’’

वह उठ कर डायनिंग टेबल पर आ कर बैठ गई और खामोशी से चाय पीने लगी.

‘‘कैसी तबीयत है अब नीरा?’’ रोहन ने प्यार से पूछा. ‘‘मेरी तबीयत को क्या हुआ है?’’ नीरा तुनक कर बोली.

‘‘वह सुबह, तुम…’’ रोहन कुछ बोलता उस से पहले ही नीरा ने रोहन का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोली, ‘‘रोहन, प्लीज दोबारा ऐसा मत करना. तुम तो कभी नहीं पीते थे, फिर अब ये दोस्तों को घर ला कर पीनापिलाना कैसे शुरू कर दिया?’’ ‘‘अरे, मैं कहां पीता हूं. आज शादी को 15 साल हो गए, तुम्हें कभी शिकायत का मौका मिला? पर हां, परहेज भी नहीं है. कालेज में कभीकभार पी लेता था. तुम्हें तो पता ही है कि पिछले महीने मेरा कालेज का दोस्त आशीष तबादला हो कर यहीं आ गया है. उसे लगा कि मैं अभी भी…सो, वही ले कर आ गया. कुछ और मित्र भी थे उस के साथ. तुम थीं नहीं तो यहीं खापी कर चले गए. झूठ नहीं कहूंगा, उन के साथ मैं ने भी थोड़ी सी ली थी. पर मुझे नहीं लगता कि वह इतनी बड़ी बात है जिस के लिए तुम इतनी ज्यादा परेशान हो,’’ रोहन ने प्यार से नीरा को समझाने की कोशिश करते हुए यह कहा तो नीरा की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

वह भर्राए हुए स्वर में बोली, ‘‘रोहन, आज तक कभी ऐसा अवसर आया ही नहीं जो मैं तुम्हें बताती कि इस शराब के कारण मेरा बचपन, मेरे मातापिता का प्यार सब गुम हो गया और मैं समय से बहुत पहले ही बड़ी हो गई.’’ ‘‘क्या मतलब, पापाजी?’’ रोहन हैरानी से बोला.

‘‘हां रोहन, पापा डिं्रक करते थे, पर कभीकभार. मां ने अपने घर में कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था. पर फिर भी शुरू में उन्होंने अनदेखा किया और पापा से शराब छोड़ने के लिए कहा. पहले जब भी पापा पी कर आते थे, तो चुपचाप आ कर सो जाते थे. धीरेधीरे पापा का पीना बढ़ता गया. जब भी पापा पी कर आते, मां का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचता. दोनों में जम कर बहस होती और हमारा घर महाभारत का मैदान बन जाता था,’’ कहते हुए नीरा एक बार फिर अतीत में पहुंच गई. ‘‘तुम्हें पता है रोहन, जब मैं 12वीं की फाइनल परीक्षा दे रही थी तो एक दिन पापा पी कर घर आ गए. मम्मीपापा में उस दिन बात हाथापाई तक पहुंच गई. पापा गुस्से में घर से बाहर चले गए और रातभर वापस नहीं आए. दोनों को याद भी नहीं रहा कि कल उन की बेटी का एग्जाम है. नतीजा यह हुआ कि अगले दिन होने वाला मेरा कैमिस्ट्री का पेपर शराब की भेंट चढ़ गया. मैं पूरी रात रोती ही रही,’’ नीरा ने उदासी भरे स्वर में कहा.

‘‘ओह, तो इसलिए तुम सुबह गुस्से में थीं. पर आज तक तुम ने इस बारे में कभी बताया ही नहीं,’’ रोहन ने गंभीर स्वर में कहा. ‘‘मैं जब शादी के बाद यहां आई तो सब से ज्यादा खुश इसी बात से थी कि तुम्हारे यहां शराब को कोई हाथ भी नहीं लगाता था. मैं तुम्हें ये बातें बता कर अपने पापा की इमेज खराब नहीं करना चाहती थी. पर आज…’’ नीरा ने गहरी सांस लेते हुए बात अधूरी ही छोड़ दी.

‘‘चलो, अब दुख देने वाली यादों को दिल से निकाल दो. ये बंदा तुम्हारा दीवाना है, जो तुम कहोगी वही करेगा. चलो, हम दोनों मिल कर डिनर की तैयारी करते हैं,’’ रोहन ने हंसते हुए कहा और नीरा को ले कर किचन में चला गया. ‘‘रोहन, तुम सच कह रहे हो न?’’ पहले के अनुभवों से डरी नीरा गैस पर कुकर चढ़ाती हुई बोली.

‘‘हां भई, हां. पर एक बात कहूं नीरा, बुरा मत मानना. चूंकि तुम्हारे पापाजी तो हमारी शादी के 6 माह बाद ही गुजर गए थे पर जितना मैं ने उन्हें तुम्हारे बाबत जाना है, उस से लगता है कि वे सुलझे हुए इंसान थे. फिर उन को पीने की इतनी लत कैसे लग गई कि वे छोड़ ही नहीं पाए. जरूर तुम्हारी मम्मी तुम्हारे पापा को अपना दीवाना नहीं बना पाई होंगी. देखो, तुम ने कैसे मुझे अपने प्यार के जाल में बांध रखा है,’’ रोहन ने माहौल को हलका करने की गरज से नीरा को छेड़ते हुए कहा. ‘‘हां, रोहन, तुम काफी हद तक सही हो. मां ने पापा को कभी समझने की कोशिश नहीं की. पापा अपने परिवार को बहुत चाहते थे और मां उन के परिवार से उतनी ही नफरत करती थीं. अकसर इन्हीं मुद्दों पर बहस शुरू होती, जो झगड़े का रूप ले लेती. पापा गुस्से में घर से बाहर चले जाते और शराब का सहारा ले लेते. हमारे घर में रुपयापैसा सबकुछ था. बस, शांति नहीं थी.

‘‘इसीलिए तो मैं कह रही थी रोहन कि कभीकभार पीना कब हमेशा की लत बन जाती है, इंसान को पता ही नहीं चलता. तुम्हें ताज्जुब होगा कि पापा मेरी शादी के दिन भी खुद को कंट्रोल नहीं कर पाए थे और विदाई से पहले पी कर आए थे. उन का अंत भी शराब से ही हुआ. एक रात नशे में गाड़ी चला कर आ रहे थे कि एक ट्रक ने टक्कर मार दी. उस समय चूंकि मेरी नईनई शादी हुई थी, इसलिए उन की मौत को सिर्फ दुर्घटना के रूप में ही प्रस्तुत किया गया. परंतु सचाई यह थी कि वे शराब के नशे में गाड़ी चला रहे थे,’’ बोलतेबोलते नीरा सिसकने लगी. ‘‘बस, अब और दुखी होने की जरूरत नहीं है. खाना खाते हैं चल कर,’’ रोहन ने नीरा का मूड बदलने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘हां, इला और इरा को भी आवाज लगा दो, तब तक मैं खाना लगाती हूं,’’ नीरा ने आंसू पोंछते हुए कहा और टेबल पर खाना लगाने लगी. ‘‘अरे वाह, आलू के परांठे,’’ इरा कैसरोल में आलू के परांठे देख कर खुशी से चहकती हुई बोली.

‘‘वेरी अनएक्सपैक्टिड, वरना मां का सुबह से मूड देख कर तो मुझे लगा था कि आज खाने में खिचड़ी या दलिया ही मिलने वाला है. पापा, आप ने खाना बनाया?’’ इरा ने मुसकराते हुए तिरछी नजरों से रोहन की ओर देखते हुए पूछा. ‘‘अरे, नहीं भाई, तुम्हारी मम्मी ने ही बनाया है. तुम्हारी मम्मी की यही तो खासियत है कि परिस्थितियां कैसी भी हों, यह अपने बच्चों और पति को नहीं भूलती. क्यों, है न नीरा?’’ रोहन ने मुसकराते हुए उस की ओर देखते हुए कहा तो वह भी अपनी मुसकान को नहीं रोक सकी.

दोनों बेटियां खाना खा कर चली गईं तो रोहन ने नीरा का हाथ अपने हाथ में ले लिया और प्यार से बोला, ‘‘मेरे दिल की रानी, इतनी पीड़ा, इतना दुख अपने मन में समेटे थी और मुझे आज तक आभास ही नहीं हुआ. कैसा पति हूं मैं?’’ रोहन ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘नहीं रोहन, ऐसा मत कहो. खुद को जरा भी दोष मत दो. तुम्हारे जैसा समझदार और प्यार करने वाला पति, फूल सी प्यारी 2 बेटियां और इतने अच्छे सासससुर को पा कर मैं अपनी दुखतकलीफ भूल गई थी. पर आज ये बोतलें देख कर लगा कि अतीत की काली परछाइयां एक बार फिर मुझे घेरने आ गई हैं,’’ नीरा गंभीर स्वर में बोली. ‘‘आज से, बल्कि अभी से ही यह बंदा तुम से प्रौमिस करता है कि शराब या उस से जुड़ी किसी भी चीज को ताउम्र हाथ नहीं लगाएगा. खुश…’’ रोहन ने प्यार से नीरा के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘दरअसल नीरा, हम पुरुष बड़े अलग मिजाज के होते हैं. हम से जो काम प्यार से करवाया जा सकता है, वह गुस्से और अहं से बिलकुल मुमकिन नहीं है. बस, शायद मम्मीजी से यहीं चूक हो गई. वे प्यार और समझदारी से काम लेतीं तो शायद बात कुछ और होती. वे पापा को समझ नहीं पाईं, पर इस का मतलब यह भी नहीं कि पापा शराब पी कर घर के माहौल को और खराब करते. कभी अच्छे पलों में वे भी तो मां को समझाने की कोशिश कर सकते थे. उन्होंने खुद कभी इसे छोड़ने के बारे में क्यों नहीं सोचा?’’ रोहन बरतन सिंक में रखते हुए धीरे से बोला.

‘‘ऐसा नहीं है रोहन, पापा ने कई बार छोड़ने की कोशिश की पर शायद उन्हें घर में वह कोना ही नहीं मिल पाता था जहां वे सुकून तलाशते थे. दादी, चाचा, बूआ या परिवार के दूसरे सदस्यों के लिए जब भी पापा कुछ करना चाहते, मां बिफर जातीं. पापा घर से दूर और शराब के नजदीक होते गए. न मां खुद को बदल पा रही थीं और न पापा. ऐसा नहीं कि दोनों में प्यार की कोई कमी थी, बस, जैसे ही शराब बीच में आ जाती, घर का पूरा माहौल ही बदल जाता था.’’ ‘‘अरे, बाप रे, 12 बज गए. सुबह मुझे औफिस भी जाना है,’’ कह कर रोहन उसे बैडरूम में ले गया.

जब वह बिस्तर पर लेटी तो रोहन ने उस का सिर अपने सीने पर रख लिया और बोला, ‘‘आज के बाद इस घर में ऐसी कोई चर्चा नहीं होगी.’’ नीरा बरसों से मन में दबी कड़वाहट, दुख, तकलीफ सब भूल कर चैन की नींद सो गई. Family Kahani

Family Drama Story: मोहल्ले वालों की बेटी

Family Drama Story: आजकल टैलीविजन पर सुबह-सुबह ग्रहनक्षत्रों की बात अधिक ही होने लगी है. लगता है, 12 राशियां, 9 ग्रहों के जोड़तोड़, कुल 108 के अंकों में ही 1 अरब से अधिक की जनसंख्या उलझ गई है. सुबह घूमते समय भी लोग आज के चंद्रमा की बात करते मिल जाते हैं. उन का कुसूर नहीं है. हम जैसा सोचते हैं, बाहर वैसा ही दिखाई पड़ता है. उस दिन माथुर साहब मिल गए थे, बोले, ‘‘भीतरिया कुंड पर कोई बनारस के झा आए हुए हैं, कालसर्प दोष निवारण करा रहे हैं.’’

‘‘तो,’’ मैं चौंक गया. उन्होंने जेब से एक परचा निकाला, मुझे देना चाहा.

‘‘नहीं, आप ही रखें. जो होना है, वह तो होगा ही, वह होता है, तो फिर इन उपायों के क्या लाभ? ये कोई सरकारी बाबू तो नहीं हैं, जो पैसे ले कर फाइल निकाल देते हैं.’’

उन का चेहरा कुछ उदास हो गया. वे तेजी से आगे बढ़ गए. मैं ने देखा वे अन्य किसी व्यक्ति के साथ खड़े हो कर शायद मेरी ही चर्चा कर रहे होंगे, क्योंकि बारबार वे दोनों मेरी तरफ देख रहे थे. पर अगले ही दिन, कालसर्प दोष लग ही गया था.

अचानक पड़ोस के खन्नाजी के घर से रोने की तेज आवाज सुनाई दी थी, ‘इन्हें क्या हो गया?’

तभी बाहर कौलबैल बज गई. पड़ोसी गुप्ताजी खड़े थे.

‘‘आप ने सुना?’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘खन्नाजी का सुबह ऐक्सिडैंट हो गया. वे फैक्टरी से आ रहे थे, पीछे से तेजी से आ रहा टैंकर टक्कर मारता हुआ निकल गया. पीछे आ रहे लोगों ने खन्नाजी को संभाला, पर तब तक उन की मृत्यु हो चुकी थी. अब चलते हैं, उन के घर उन के परिवार वालों को फोन कर दिया है, वे लोग तो शाम तक आ जाएंगे.’’

‘‘हूं, दुख कभी कह कर नहीं आता है और सुख कभी कह कर नहीं जाता है, यह प्रकृति का रहस्य है.’’

बाहर बरामदे में खन्नाजी का शव रखा था. पोस्टमार्टम के बाद उन के सहयोगी शव ले आए थे. खन्नाजी अपने प्लांट में लोकप्रिय थे. पत्नी तो उन के शव को देखते ही अचानक कोमा में चली गईं. डाक्टर को सूचना दे दी गई. उन की छोटी सी 7 साल की बेटी सूनी आंखों से अपने पिता के शव को देख रही थी. सभी पड़ोसी जमा हो गए थे.

डाक्टर ने तुरंत उन की पत्नी को अस्पताल में भरती करने को कहा. ऐंबुलैंस बुलाई गई, पर अस्पताल पहुंचतेपहुंचते उन की पत्नी भी पति के साथ चल बसी थीं.

शाम तक सभी रिश्तेदार आ गए थे. दाहसंस्कार हुआ. 3 दिन तक सब जमा रहे. समस्या थी, अब डौल्फिन कहां जाए? जो लड़की सामने पार्क में सब से आगे रहती थी, तितलियों से बात करती थी, वह अचानक पथरा गई थी.

खन्ना के मकान का क्या होगा? बैंक में उन का कितना रुपया है? उन के इंश्योरैंस का क्या होगा? ये सवाल रिश्तेदारों के जेहन में उछल रहे थे. डौल्फिन की नानी ने चाहा, डौल्फिन को अपने साथ ले जाएं, पर लड़की है, जिम्मेदारी किस की होगी? मामा ने हाथ खींच लिए थे. चाचाताऊ वकीलों से बात करने चले गए थे.

डौल्फिन चुपचाप अपने कमरे में रह गई थी. उस की आंखों के आंसू मानो धरती सोख गई हो, ‘‘अरे, इसे रुलाओ,’’ महिलाओं ने कहा, ‘‘नहीं तो यह भी मर जाएगी.’’

पड़ोस की बुजुर्ग महिला, मालतीजी, जो रिटायर्ड अध्यापिका थीं, वे ही डौल्फिन के लिए खाना ले कर आती थीं, पर डौल्फिन कुछ नहीं खाती थी, वे उसे बस अपनी छाती से चिपटाए बैठी रहतीं. मालतीजी का लड़का न्यूयार्क में था, बेटी पेरिस में, दोनों ही सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. उन के अपने घर बस गए थे. वे लोग बुलाते तो मालतीजी यही कहतीं, ‘बेटा, यहां अपना घर है, सब अपने हैं, वहां अब कहां रहा जाए?’ बच्चे ही साल में चक्कर लगा जाते. मालतीजी रिटायरमैंट के बाद शुरूशुरू में बच्चों के पास कुछ दिनों के लिए रहने चली जातीं पर धीरेधीरे उन का जाना कम होता चला गया.

‘‘यह बुढि़या क्यों आती है यहां?’’ डौल्फिन की ताई ने अपनी देवरानी से पूछा.

‘‘क्या पता? इस के पास खन्नाजी ने रुपए रखे हों.’’

तब तक खबर आ गई थी कि डौल्फिन को शहर के चिल्ड्रन होम में रखने का फैसला घर वालों ने कर लिया है. उस का कौन संरक्षक होगा, उस का फैसला कोर्ट तय करेगा. तब तक वह वहीं रहे, यही तय हुआ है. मकान और उस के सामान को ताला लगा देंगे. घर वाले अब जाना चाहते हैं.

‘‘क्या यह बच्ची अनाथालय में रहेगी?’’

‘‘तो हम क्या कर सकते हैं? जब उस के घर वाले यही चाहते हैं, तो हम लोग क्या हैं?’’

पर क्या डौल्फिन से भी किसी ने पूछा है? सवाल बड़ा था. दोनों ही पक्षकारों में कुछ सुलह भी हो गई थी. पैसा, मकान झगड़ोगे तो सब चला जाएगा. हां, मिल कर कोई कार्यवाही कर लेते हैं, इसी में सब को लाभ है. फिर जहां कोर्ट कहेगा, वहां बच्ची रह लेगी, अभी तो यह मामला कोर्ट में है. इस पर दोनों पार्टियों में सहमति हो गई थी.

पर दूसरे ही दिन मानो भूचाल आ गया हो. मालतीजी अपने साथ डौल्फिन को ले जा रही थीं.

‘‘आप इसे अपने साथ नहीं रख सकतीं,’’ रिश्तेदार कह रहे थे.

‘‘हां, मैं ने कोर्ट में दरख्वास्त दी है, इस को अनाथालय भेजना उचित नहीं है. मैं ने अपनी जमानत दी है, मैं ने इसे गोद नहीं लिया है, न मुझे आप का यह मकान लेना है, न इंश्योरैंस का धन. मेरा खुद का मकान बहुत बड़ा है. यह वहां पढ़ लेगी. मुझे इसे पढ़ाना है. यही मैं ने मजिस्ट्रेट से कहा है, अपनी जमानत दी है. जब तक कोर्ट का निर्णय नहीं आता, तब तक मेरे पास रहने की इजाजत मिल गई है. आप लोग मकान में ताला लगा दें, मुझे वहां से कुछ नहीं लेना है. खन्नाजी आप के रिश्तेदार थे, उन से मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’

रुचि खन्ना, मालतीजी को आंटी कहा करती थीं. उस की दोपहर उन के घर पर ही बीतती थी. और तब डौल्फिन भी मां के साथ आ कर उन के घर में खेलती रहती थी. वह उन्हें नानी ही कहती थी. उन के यहां पर कंप्यूटर था, लैपटौप भी था और उन का बेटा तरहतरह के कैमरे भी रख गया था. वह आती, कहती, मेरा फोटो खींचो. फिर वह उन फोटो को लैपटौप पर देखा करती थी. उस के चेहरे की तरहतरह की मुद्राएं मालतीजी को सहेजना पसंद था.

पर अब जो हुआ, उस पर किसी का भी विश्वास होना कठिन था.

अगले दिन सुबह ही पार्क में बुजुर्गों की मीटिंग थी. कुछ उन के इस कदम की सराहना कर रहे थे, कुछ चिंता, ‘‘क्या वह उसे गोद लेगी? कितने दिन अपने पास रख पाएगी? अन्यथा किसी रिश्तेदार को सौंप देगी? पर फिर यही तय हुआ, वह जो मदद मांगेगी तो कर देंगे.’’

बस अपना बस्ता और खिलौने ले कर डौल्फिन मालती के घर आ गई थी. उस का घर यथावत बंद हो गया था, रिसीवरी में यह किस के पास रहेगी? विवाद का विषय अब संपत्ति के फैसले से जुड़ गया था.

दिनभर डौल्फिन उन के ही पास रहती, वे उसे पार्क में ले जातीं, पर वह न तो पहले की तरह दौड़ती, भागती, न ही किसी से बोलती. बस, चुपचाप पार्क की बैंच पर बैठी रहती. स्कूल से भी फोन आया था, इम्तिहान भी आने वाले थे, मालतीजी उसे खुद पढ़ाने लग गई थीं. उसे बाजार ले जा कर उस के लिए नए कपड़े ले आई थीं. उन्होंने स्कूल की शिक्षिका को घर पर ही पढ़ाने के लिए बुला लिया था.

हां, वह पढ़ती रही, वह 10वीं पास कर गई थी. तब इस महल्ले में मेरा रहना शुरू हुआ था. कानपुर से मैं यहां पर कोचिंग इंस्टिट्यूट में कैमिस्ट्री पढ़ाने आ गया था. अच्छा पैकेज था, पत्नी को भी काम मिल गया था. यहीं पार्क के सामने हम ने अपना घर किराए पर ले लिया था.

तभी एक दिन मेरे घर पर महल्ले के बुजुर्गों ने कौलबैल बजाई. उस दिन कोई अवकाश था. मुझ से मिलने कौन आएगा? चौंक गया मैं. दरवाजे पर देखा, काफी लोग थे. मैं समझा शायद चंदा मांगने आए होंगे.

‘‘आप?’’

‘‘हम इसी महल्ले में रहते हैं. यह जो सामने पार्क है, इस की कमेटी बना रखी है, इस के सदस्य हैं.’’

‘‘हां, पार्क बहुत सुंदर है, मैं भी शाम को घूमता हूं.’’

‘‘हां, वहीं आप को देखते हैं, आज सोचा, मिल लें.’’

‘‘क्यों नहीं, आज्ञा दें, आप लोग बैठें.’’

‘‘आज्ञा?’’ वे लोग हंसे, तभी एक सज्जन, जिन्होंने अपनेआप को रिटायर्ड प्रिंसिपल बताया था, बोले, ‘‘हम आप से एक रिक्वैस्ट करने आए हैं.’’

‘‘कहें.’’

‘‘आप डौल्फिन को नहीं जानते,’’ तब उन्होंने मुझे उस दुर्घटना के बारे में बताया था और किस प्रकार मालतीजी ने इस डौल्फिन की मदद में अपनेआप को पूरी तरह लगा दिया था. उन का बेटा जब अमेरिका से आया था तो वह उन्हें अमेरिका ले जाना चाहता था लेकिन उन्होंने अमेरिका जाना ठीक न समझा और डौल्फिन को नहीं छोड़ा. यह डौल्फिन महल्ले के सभी लोगों की बेटी हो गई है.

‘‘हम सब उसी के लिए आप से सहायता मांगने आए हैं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, 10वीं में डौल्फिन की मैरिट आई है. वह डाक्टर बनना चाहती है. पर जहां आप पढ़ाते हैं, वहां की फीस बहुत ज्यादा है, साथ ही यहां से बहुत दूर है. बहरहाल, हम ने एक आटो लगा दिया है, उस से वह जाया करेगी. आप वहां उस का ध्यान

रख लें, संभाल लें, आप की भी…’’ कहतेकहते उन का गला भर्रा गया था.

मैं अवाक् था, क्या कहता, महीने की भी फीस वास्तव में ज्यादा है. पर अब तो टैस्ट भी हो गए हैं, सीटें भर गई हैं, इन्हें क्या कहूं?

‘‘क्या सोच रहे हैं आप?’’ वे बोले.

‘‘उस ने एंट्रैंस टैस्ट तो पास कर लिया होगा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह जा नहीं पाई, तब बीमार हो गई थी और इंस्टिट्यूट में वह जाना नहीं चाहती है.’’

‘‘ठीक है, आप कल आ जाएं, मैं बात करूंगा.’’

 

उन के जाते ही पत्नी ने कहा, ‘‘किस झमेले में पड़ गए हो. मुझे भी यहां उस के बारे में बताया था, पता नहीं अपने रिश्तेदारों के यहां न भेज कर इन्होंने कौन सा पुण्य किया है?’’

मुझे हंसी आ गई, क्या कहता, स्त्री मन को कौन पढ़ पाया है. जिन रिश्तेदारों को धन से मतलब है, वहां किसी के जीवन का क्या अर्थ है. हमारे समाज में स्त्री का स्त्री होना  ही अभिशाप है. लड़की वह भी बिना मातापिता की, अचानक मेरा सिर मालतीजी के सम्मान में झुक गया था.

मैं ने पत्नी से कहा, ‘‘तुम अपने मन से कह रही हो या मुझे खुश करने के लिए?’’

वह अचानक स्तब्ध रह गई, ‘‘कैसे इन लोगों ने इस बच्ची को पाला है?’’

‘‘तो फिर.’’

‘‘तुम मदद कर सको तो कर दो,’’ उस ने अचानक मुंह फेर लिया था, वह अपने आंसू नहीं रोक पाई थी.

करुणा का पाठ, किसी पाठ्यपुस्तक में नहीं होगा, यह तो जीवन के थपेड़े कब सौंप जाते हैं, कहना कठिन है.

कालेज में वे सभी लोग एकसाथ आए थे. मैं ने उन्हें विजिटर्स में बैठा दिया था और डौल्फिन की मार्कशीट ले कर माहेश्वरीजी से मिला था.

‘‘यह क्या है?’’ वे चौंके.

‘‘एक फौर्म है.’’

फौर्म उन्होंने हाथ में ले लिया, ‘‘क्या नाम है, डौल्फिन,’’ और हंस पड़े, ‘‘मार्क्स तो बहुत हैं. यह तो मैरिट में है. इस ने एंट्रैंस क्यों नहीं दिया?’’

‘‘नहीं दे पाई,’’ मैं ने सामने रखा पानी का गिलास उठाया और पानी के घूंट के साथ अपनेआप को संयत किया, डौल्फिन की पूरी कहानी सुनाई.

माहेश्वरीजी भी स्तब्ध रह गए थे.

‘‘यह लड़की नीचे बैठी है.’’

‘‘इस के साथ कौन आया है?’’ वे बोले.

‘‘महल्ले के बुजुर्ग,  वे सब इस के संरक्षक हैं.’’

‘‘फौर्म दे दो.’’

‘‘पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘वे सब इतनी फीस नहीं दे पाएंगे,’’ मैं ने अटकते हुए कहा था.

अचानक माहेश्वरीजी सीट से उठ कर खड़े हुए, और खिड़की के पास खड़े हो गए. मैं अवाक् था, देखा उन के गाल के पास से पानी की लकीर सी खिंच गई है.

‘‘इसे ‘ए’ बैच में भेज दो,’’ वे धीरे से बोले, ‘‘इस का फौर्म कहां है?’’

फौर्म पर उस का नाम लिखा था और मार्कशीट साथ में लगी हुई थी. जहां मातापिता, संरक्षक के हस्ताक्षर होने थे, वह कालम खाली पड़ा था. उन्होंने पैन उठाया और फौर्म पूरा भर दिया.

डौल्फिन उन की उम्मीदों पर खरी उतरी थी, मेरे सामने ही वह पीएमटी में अच्छी रैंक से पास हो गई थी. बोर्ड में उस की मैरिट थी. जब उस का परिणाम आया था, महल्ले  ने पार्टी दी थी, मैं भी तब वहीं था. पर उस के बाद वहां से मुझे नागपुर आना पड़ गया. वहां के विश्वविद्यालय में मेरा चयन हो गया था.

समय किसी के चाहने से ठहरता नहीं है. उस की अपनी गति है. मैं भी इस शहर को, यहां के लोगों को भूल ही गया था. शास्त्र भी कहता है, ज्यादा बोझा स्मृति पर डाला नहीं जाता, ‘भूल जाना’ स्वास्थ्य के  लिए अच्छा है. यहां के विश्वविद्यालय में पीएचडी के लिए मौखिक परीक्षा थी. मैं परीक्षक था. मुझे आना पड़ा. सोचा तो यही था, एक बार पुराने महल्ले में हो आऊं, छोड़े 10 साल हो गए हैं, क्या पता अब वहां कौन हो? मालतीजी भी हैं या नहीं और डौल्फिन, अचानक उस की याद आ गई. पर संबंध भी समय के साथ टूट जाते हैं. मोबाइल में मेमोरी भी वही नंबर रखती है जो हम फीड करते हैं. यह तो नौकरी के साथ घटी घटना थी, बस. विश्वविद्यालय की कार ने दरवाजे पर उतारा. मैं अपना ब्रीफकेस ले कर स्टेशन की तरफ तेजी से बढ़ ही रहा था कि तभी एक कार तेजी से मेरे पास आ कर रुकी.

मैं चौंक गया, ‘‘आप?’’

सुंदर सी युवती, जिस के साथ एक छोटा सा खूबसूरत बच्चा था, अचानक कार से उतरी.

‘‘अंकल, मैं डौल्फिन, आप को कई पत्र लिखे, पर आप का जवाब ही नहीं आया, आप की यूनिवर्सिटी का पता लगाया था, वहां भी कोरियर भेजा था, पर आप तो हमें भूल ही गए.’’

‘‘तुम?’’

‘‘हां, मैं आप का यूनिवर्सिटी से पीछा कर रही हूं, मुझे तो आज ही पता लगा था कि आप मौखिक साक्षात्कार लेने आए हैं. वहां गई थी, वहां पता लगा कि आप ट्रेन से जा रहे हैं, पर आप की ट्रेन तो लेट है.’’

मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा उसे देखे जा रहा था.

‘‘अंकल, नानी आप को बहुत याद करती हैं, उन्होंने आप का फोटो भी अस्पताल के हौल में लगा रखा है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, मैं ने पढ़ाई पूरी कर के, एमडी भी कर लिया, नानी ने मेरी शादी भी कर दी, रोहित भी डाक्टर हैं, नानी ने हमारा क्लीनिक खुलवा दिया है, हम नानी के पास, नानी हमारे पास रहती हैं.’’

‘‘बहुत अच्छा, तुम ने जो मालतीजी को साथ ही रखा वरना इस बुढ़ापे में उन की देखभाल करने वाला था ही कौन.’’

‘‘घर चलिए आप, मैं आप को नहीं जाने दूंगी, हमारा पूरा महल्ला भी आप को याद करता है, पर आप तो, बड़े शहर के हो…’’ वह हंस रही थी.

मैं अचानक मानस समुद्र के उद्वेलित जल में उठती, फूटती, डौल्फिन का नृत्य देख कर चकित था. बहुत पहले गोआ गया था, अचानक समुद्र में तेज पानी का उछाल देख कर चौंक गया था, पास खड़ा कोई कह रहा था, बाहर से डौल्फिन ला कर यहां छोड़ी गई है. मैं उसे नहीं देख पाया था. क्या पता कोई और हो, पर यहां डौल्फिन अपने होने का सचमुच एहसास करा रही थी. Family Drama Story

Family Story: रूममेट

Family Story: आएशा का सपना था कि वह बड़ी हो कर कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना नाम कमाए. इसी सपने को ले कर वह अपने गांव से इलाहाबाद के एक प्रसिद्ध कालेज पहुंची थी, पर वहां सीनियर्स को देख कर अचकचा गई. उसे कुछ ऐसा महसूस होने लगा जैसे वे सब उस से अलग हैं. उन के व्यक्तित्व के आगे वह खुद को बौना महसूस करती. उस के पास गिनेचुने 3-4 सलवारसूट थे. अन्य लड़कियां जींस और टौप पहन कर घूमतीं.

आएशा को अंगरेजी उतनी ही आती थी जितनी कंप्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिए जरूरी होती है जबकि उस के अन्य सहपाठी फर्राटेदार अंगरेजी बोलते. लड़कियों के बाल भी मौडर्न स्टाइल में कटे होते. आएशा के बाल लंबे थे. वह 2 चोटियों के अलावा कोई और स्टाइल बनाना जानती ही नहीं थी.

अपने इन खयालों की वजह से वह किसी से बातचीत करने में भी अचकचाती थी. वैसे भी हौस्टल में उस की रूममेट आलिया को किसी कारणवश कालेज जौइन करते ही घर जाना पड़ गया था. पहले से वह किसी को जानती नहीं थी, इसलिए ज्यादातर वह अकेली ही रहती. कक्षा में अन्य छात्र उसे अकसर चिढ़ाते. कभीकभी सीधे कटाक्ष भी करते थे. वह काफी उदास रहने लगी. हालांकि वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी, पर उस का ध्यान इन चीजों की वजह से पढ़ाई में लगना कुछ कम हो गया था.

एक दिन आएशा अपने कमरे में इसी तरह उदास बैठी थी कि अचानक दस्तक हुई. ‘उस के कमरे में कौन आ गया’, यह सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला. सामने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी. उस ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय, आई

एम आलिया, योर रूममेट. तुम जरूर आएशा होगी?’’

डर के मारे एक क्षण के लिए आएशा के मुंह से कुछ नहीं निकला. उस ने यह तो सोचा ही नहीं था कि उस की रूममेट को भी उसे झेलना पड़ेगा. उस के मन में यही विचार चलने लगे थे कि यह आलिया भी उस का मजाक बनाएगी. उस ने सहमते हुए अपना हाथ आलिया से मिलाया पर आलिया के चेहरे पर फैली मुसकान देख कर वह अपना डर कुछ भूल गई.

आलिया ने कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम बहुत होशियार हो और 12वीं में तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आए थे. भई, मैं तो पढ़ाई में बहुत पीछे हूं. मुझ से अंगरेजी कितनी ही बुलवा लो, पिक्चरों की कहानियां कितनी ही पूछ लो और लेटैस्ट फैशन स्टाइल के बारे में कुछ भी जान लो, पर पढ़ाई में तो मेरा हाल बड़ा ही बुरा है. मैं तो यह जान कर खुश हो गई कि तुम मेरी रूममेट हो. खूब जमेगी अपनी,’’ कह कर आलिया ने आएशा को गले लगा लिया. उस का चुलबुलापन देख कर आएशा भी मुसकराए बिना रह न सकी. दोनों ने मिल कर कुछ देर तक बातें की और फिर दोनों सो गईं.

आलिया में न जाने क्या बात थी कि वह जल्दी ही आएशा की दोस्त बन गई पर आलिया के अन्य दोस्तों से वह कभी दोस्ती नहीं कर सकी. वह ऐसी जगहों पर आलिया के पास जाती ही नहीं थी, जहां पर उस के अन्य दोस्त होते.

आलिया की खास सहेलियां तारा और शिवानी तो उसे खासकर अच्छी नहीं लगती थीं. वह अकसर उस का और उस के कपड़ों का खूब मजाक बनाती थीं. उस के बोलने के तरीके पर तो वे कई बार उस के सामने ही उस का मजाक उड़ा दिया करती थीं.

एक दिन आएशा पढ़ने में व्यस्त थी. आलिया अपना मोबाइल छोड़ कर कहीं गई हुई थी. मोबाइल बारबार बज रहा था. उस ने देखा कि उस पर डैडी लिखा आ रहा है. आएशा को लगा कि हो सकता है, कोई जरूरी फोन हो. वह आलिया को ढूंढ़ने लगी. ढूंढ़तेढूंढ़ते वह तारा और शिवानी के कमरे के पास पहुंची. अंदर से आवाजें आ रही थीं, ‘‘यार, आलिया तेरी कोई बात समझ में नहीं आती. तू खुद तो इतनी मस्त है पर उस आएशा को अपने साथ क्यों टांगे रखती है?’’ शायद यह तारा और शिवानी की मिलीजुली आवाजें थीं.

आलिया ने जवाब दिया, ‘‘यार, तुम लोग हर किसी को एक ही नजरिए से देखते हो, जबकि हर किसी में कुछ न कुछ खासीयत होती है. वह हमारी तरह मौडर्न भले ही न हो, पर पढ़नेलिखने में हम से बहुत आगे है. उस की देखादेखी मैं भी थोड़ाबहुत पढ़ने लगी हूं.’’

ये सब बातें सुन कर आएशा की आंखें भर आईं. तभी आलिया का फोन एक बार फिर बज उठा. आलिया और उस की सहेलियों का ध्यान एकदम से फोन लाने वाले की ओर गया. आएशा ने आलिया से कहा, ‘‘मैं तुम्हें तुम्हारा मोबाइल देने आई थी.’’

आलिया ने उस की आंखों के आंसू देख लिए थे. वह अपना मोबाइल ले कर और सहेलियों को बाय कह कर अपने कमरे में आ गई.

आलिया की मम्मी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. पिछली बार भी उस को इसी वजह से घर जाना पड़ा था. उस की मम्मी उस से बात करना चाह रही थीं. बात खत्म होने के बाद उस ने आएशा को देखा. वह बिस्तर पर लेट कर किताब पढ़ने की कोशिश करने कर रही थी आलिया समझ गई कि उस का ध्यान पढ़ाई की तरफ नहीं है. वह सोचने लगी कि यदि इस तरह उस का ध्यान भटकता रहा तो उस की पढ़ाई ठीक तरह से नहीं हो पाएगी. वह अब तक उसे अच्छे से जाननेसमझने लगी थी.

आलिया उस के पास जा कर बैठी. उस ने सब से पहले उस की किताब उठा कर साइड में रख दी, फिर उस का काले फ्रेम वाला चश्मा निकाल दिया. उस की दोनों चोटियों को खोल दिया. आएशा उसे ध्यान से देख रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि आलिया करना क्या चाह रही है.

आलिया उसे उठा कर शीशे के आगे ले गई और कहा, ‘‘देखो आएशा, तुम कितनी सुंदर हो. तुम कैसी दिखती हो, इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, पर मैं यह देख रही हूं कि हमारी अन्य क्लासमेट्स को इस से फर्क पड़ता है और तुम को भी पड़ने लगा है. तो क्यों न इस बार  कुछ ऐसा कर दें कि उन का भी मुंह बंद हो जाए और तुम को भी अपने पर कुछ एतबार हो जाए. बोलो, हो तैयार?’’

आएशा के यह कहने पर कि उसे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता आलिया उसे चुपचाप देखती और सुनती रही. लेकिन अचानक आएशा फट पड़ी और जोर से चिल्लाई, ‘‘हां, पड़ता है मुझे फर्क. तुम्हारे अलावा हर कोई मुझ से बात करने से कतराता है. आज मैं ने सुना कि तुम्हारी सहेलियां भी किस तरह मेरा मजाक उड़ा रही थीं. मुझे सब फूहड़गंवार समझते हैं,’’ वह रोती हुई बिस्तर पर औंधे मुंह लेट कर सुबकने लगी.

आलिया उस के पास आ कर बैठी और धीरे से बोली, ‘‘अगर कोई और तुम्हें कुछ नहीं समझता है तो यह उस की दिक्कत है. पर मेरे पास एक आइडिया है. तुम्हें मेरे अनुसार ही चलना होगा. 2 महीने बाद हमारे कालेज में ब्यूटी क्वीन का चुनाव होना है. तुम उस में भाग लोगी और तुम्हारी पूरी टे्रनिंग मेरे जिम्मे है. वैसे मैं फ्री में कोई काम नहीं करती हूं. इस के बदले तुम्हें मुझे पढ़ाना होगा.’’

आएशा उस की ओर देखती हुई बोली, ‘‘ब्यूटी क्वीन और मैं? दिमाग तो नहीं फिर गया है तुम्हारा?’’

आलिया ने उस के होंठों पर उंगली रखते हुए कहा, ‘‘मैडम… तुम को कुछ बोलना नहीं है, सिर्फ करना है. यह बात अभी हम किसी को नहीं बताएंगे.’’

अब आलिया रोज शाम को पहले आएशा से कंप्यूटर सीखती और फिर उस को अंगरेजी बोलना सिखाती, उस को चलने व बात करने का तरीका और न जाने किनकिन चीजों पर लैक्चर देती. 2 महीने में आएशा काफी फर्राटेदार अंगरेजी बोलना सीख गई थी.

प्रतियोगिता के एक दिन पहले उसे ले जा कर आलिया ने उस के बाल स्टाइलिश तरीके से कटवा दिए. खुद के अच्छे कपड़े आएशा को पहना कर उसे ट्राई करवाती रहती थी. उस ने अपनी सब से अच्छी डै्रस प्रतियोगिता के दिन आएशा को पहनने को दी.

जब प्रतियोगिता के दिन आएशा को ले कर आलिया पहुंची तो कुछ क्षण के लिए किसी ने आएशा को पहचाना ही नहीं. प्रतियोगिता में तारा और शिवानी भी भाग ले रही थीं, पर सभी आएशा को देख कर आश्चर्यचकित थे. मन ही मन दोनों सोच रही थीं, ‘रूप अच्छा बना लिया, पर भाषा का क्या करेगी?’

थोड़ी ही देर में जब जजेस ने प्रश्न पूछे तो उस के उत्तर सुन कर वे काफी प्रभावित हुए.

आएशा जब ब्यूटी क्वीन चुन ली गई तो आएशा के साथसाथ आलिया की खुशी का भी ठिकाना न था. वह खुशी से झूम उठी. तारा और शिवानी ने उसे आ कर बधाई दी और अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी.

कार्यक्रम खत्म होने के बाद आएशा जब वापस अपने कमरे में पहुंची तो  आलिया को धन्यवाद देने लगी. आलिया ने कहा, ‘‘मैडम, इस के बदले आप को अभी मुझे बहुत पढ़ाना है. मुझे भी तुम्हारी ही तरह जीत हासिल करनी है.’’

फिर आलिया धीरे से मुसकराती हुई बोली, ‘‘जिस क्षेत्र को हम ने चुना है, उसे  मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूं कि आगे बढ़ने के लिए रूप से ज्यादा दिमाग की जरूरत पड़ेगी. पर चूंकि लोग तुम पर कमैंट मारते थे और तुम भी थोड़ी सी उदास रहने लगी थी, इसलिए मैं ने बस, तुम्हारी थोड़ी सी मदद की, पर मेहनत और गुण तो तुम्हारे ही थे. अब इन बातों में तुम भी कभी ध्यान नहीं दोगी, यह मैं जानती हूं. मैं अपने उन दोस्तों को भी अच्छी तरह जानती हूं जो तुम्हारा मजाक बनाते थे. देख लेना कल ही तुम से दोस्ती करने आ जाएंगे.’’

सुबह उठते ही उन के दरवाजे पर दस्तक हुई. आलिया सो रही थी. आएशा ने दरवाजा खोला तो सामने तारा और शिवानी बुके लिए हुए खड़ी थीं. वे उस के गले लग कर उस से एक बार फिर माफी मांगती हुई बोलीं, ‘‘आएशा, क्या तुम हमें भी अपना दोस्त बना सकती हो?’’

आएशा वापस 2 चोटियों में आ गई थी, पर उस के चेहरे पर एक नए आत्मविश्वास का तेज था. उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, आखिर तुम दोनों मेरी सब से अच्छी सहेली की दोस्त जो हो.’’

आलिया भी तब तक जग गई थी और उन की बातें सुन मुसकरा उठी. Family Story

Hindi Drama Story: डिवोर्स के पेपर

Hindi Drama Story: उसके हाथों में कोर्ट का नोटिस फड़फड़ा रहा था. हत्प्रभ सी बैठी थी वह… उसे एकदम जड़वत बैठा देख कर उस के दोनों बच्चे उस से चिपक गए. उन के स्पर्श मात्र से उस की ममता का सैलाब उमड़ आया और आंसू बहने लगे. आंसुओं की धार उस के चेहरे को ही नहीं, उस के मन को भी भिगो रही थी. न जाने इस समय वह कितनी भावनाओं की लहरों पर चढ़उतर रही थी. घबराहट, दुख, डर, अपमान, असमंजस… और न जाने क्याक्या झेलना बाकी है अभी. संघर्षों का दौर है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. जब भी उसे लगता कि उस की जिंदगी में अब ठहराव आ गया है, सबकुछ सामान्य हो गया है कि फिर उथलपुथल शुरू हो जाती है.

दोनों बच्चों को अकेले पालने में जो उस ने मुसीबतें झेली थीं, उन के स्थितियों को समझने लायक बड़े होने के बाद उस ने सोचा था कि वे कम हो जाएंगी और ऐसा हुआ भी था. पल्लवी 11 साल की हो गई थी और पल्लव 9 साल का. दोनों अपनी मां की परेशानियों को न सिर्फ समझने लगे थे वरन सचाई से अवगत होने के बाद उन्होंने अपने पापा के बारे में पूछना भी छोड़ दिया था. पिता की कमी वे भी महसूस करते थे, पर नानी और मामा से उन के बारे में थोड़ाबहुत जानने के बाद वे दोनों एक तरह से मां की ढाल बन गए थे. वह नहीं चाहती थी कि उस के बच्चों को अपने पापा का पूरा सच मालूम हो, इसलिए कभी विस्तार से इस बारे में बात नहीं की थी. उसे अपनी ममता पर भरोसा था कि उस के बच्चे उसे गलत नहीं समझेंगे.

कागज पर लिखे शब्द मानो शोर बन कर उस के आसपास चक्कर लगा रहे थे, ‘चरित्रहीन, चरित्रहीन है यह… चरित्रहीन है इसलिए इसे बच्चों को अपने पास रखने का भी हक नहीं है. ऐसी स्त्री के पास बच्चे सुरक्षित कैसे रह सकते हैं? उन्हें अच्छे संस्कार कैसे मिल सकते हैं? इसलिए बच्चों की कस्टडी मुझे मिलनी चाहिए… एक पिता होने के नाते मैं उन का ध्यान ज्यादा अच्छी तरह रख सकता हूं और उन का भविष्य भी सुरक्षित कर सकता हूं…’

चरित्रहीन शब्द किसी हथौड़े की तरह उस के अंतस पर प्रहार कर रहा था. मां को रोता देख पल्लवी ने कोर्ट का कागज मां के हाथों से ले लिया. ज्यादा कुछ तो समझ नहीं आया. पर इतना अवश्य जान गई कि मां पर इलजाम लगाए जा रहे हैं.

‘‘पल्लव तू सोने जा,’’ पल्लवी ने कहा तो वह बोला, ‘‘मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूं. सब जानता हूं. हमारे पापा ने नोटिस भेजा है और वे चाहते हैं कि हम उन के पास जा कर रहें. ऐसा कभी नहीं होगा. मम्मी आप चिंता न करें. मैं ने टीवी में एक सीरियल में देखा था कि कैसे कोर्ट में बच्चों को लेने के लिए लड़ाई होती है. मैं नहीं जाऊंगा पापा के पास. दीदी आप भी नहीं जाना.’’

पल्लव की बात सुन कर वह हैरान रह गई. सही कहते हैं लोग कि वक्त किसी को भी परिपक्व बना सकता है.

‘‘मैं भी नहीं जाऊंगी उन के पास और कोर्ट में जा कर कह दूंगी कि हमें मम्मी के पास ही रहना है. फिर कैसे ले जाएंगे वे हमें. मुझे तो उन की शक्ल तक याद नहीं. इतने सालों तक एक बार भी हम से मिलने नहीं आए. फिर अब क्यों ड्रामा कर रहे हैं?’’ पल्लवी के स्वर में रोष था.

कोई गलती न होने पर भी वह इस समय बच्चों से आंख नहीं मिला पा रही थी. छि: कितने गंदे शब्द लिखे हैं नोटिस में… किसी तरह उस ने उन दोनों को सुलाया.

रात की कालिमा परिवेश में पसर चुकी थी. उसे लगा कि अंधेरा जैसे धीरेधीरे उस की ओर बढ़ रहा है. इस बार यह अंधेरा उस के बच्चों को छीनने के लिए आ रहा है. भयभीत हो उस ने बच्चों की ओर देखा… नहीं, वह अपने बच्चों को अपने से दूर नहीं होने देगी… अपने जिगर के टुकड़ों को कैसे अलग कर सकती है वह?

तब कहां गया था पिता का अधिकार जब उसे बच्चों के साथ घर छोड़ने पर मजबूर किया गया था? बच्चों की बगल में लेट कर उस ने उन के ऊपर हाथ रख दिया जैसे कोई सुरक्षाकवच डाल दिया हो.

उस के दिलोदिमाग में बारबार चरित्रहीन शब्द किसी पैने शीशे की तरह चुभ रहा था. कितनी आसानी से इस बार उस पर एक और आरोप लगा दिया गया है और विडंबना तो यह है कि उस पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया गया है जिसे कभी झल्ली, मूर्ख, बेअक्ल और गंवारकहा जाता था. आभा को लगा कि नरेश का स्वर इस कमरे में भी गूंज रहा है कि तुम चरित्रहीन हो… तुम चरित्रहीन हो… उस ने अपने कानों पर हाथ रख लिए. सिर में तेज दर्द होने लगा था.

समय के साथ शब्दों ने नया रूप ले लिया, पर शब्दों की व्यूह रचना तो बरसों पहले ही हो चुकी थी. अचानक ‘तुम गंवार हो… तुम गंवार हो…’ शब्द गूंजने लगे… आभा घिरी हुई रात के बीच अतीत के गलियारों में भटकने लगी…

‘‘मांबाप ने तुम जैसी गंवार मेरे पल्ले बांध मेरी जिंदगी खराब कर दी है. तुम्हारी जगह कोई पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा बीवी होती तो मुझे कितनी मदद मिल जाती. एक की कमाई से घर कहां चलता है. तुम्हें तो लगता है कि घर संभाल रही हो तो यही तुम्हारी बहुत बड़ी क्वालिफिकेशन है. अरे घर का काम तो मेड भी कर सकती है, पर कमा कर तो बीवी ही दे सकती है,’’ नरेश हमेशा उस पर झल्लाता रहता.

आभा ज्यादातर चुप ही रहती थी. बहुत पढ़ीलिखी न सही पर ग्रैजुएट थी. बस आगे कोई प्रोफैशनल कोर्स करने का मौका ही नहीं मिला. कालेज खत्म होते ही शादी कर दी गई. सोचा था शादी के बाद पढ़ेगी, पर सासससुर, देवर, ननद और गृहस्थी के कामों में ऐसी उलझी कि अपने बारे में सोच ही नहीं पाई. टेलैंट उस में भी है. मूर्ख नहीं है. कई बार उस का मन करता कि चिल्ला कर एक बार नरेश को चुप ही करा दे, पर सासससुर की इज्जत का मान रखते हुए उस ने अपना मुंह ही सी लिया. घर में विवाद हो, यह वह नहीं चाहती थी.

मगर मन ही मन ठान जरूर लिया था कि वह पढ़ेगी और स्मार्ट बन कर दिखाएगी…

स्मार्ट यानी मौडर्न और वह भी कपड़ों से…

ऐसी नरेश की सोच थी… पर वह स्मार्टनैस सोच में लाने में विश्वास करती थी. जल्दीजल्दी 2 बच्चे हो गए, तो उस की कोशिशें फिर ठहर गईं. बच्चों की अच्छी परवरिश प्राथमिकता बन गई. मगर खर्चे बढ़े तो नरेश की झल्लाहट भी बढ़ गई. बहन की शादी पर लिया कर्ज, भाई की भी पढ़ाई और मांबाप की भी जिम्मेदारी… गलती उस की भी नहीं थी. वह समझ रही थी इसलिए उस ने सिलाई का काम करने का प्रस्ताव रखा, ट्यूशन पढ़ाने का प्रस्ताव रखा पर गालियां ही मिलीं.

‘‘कोई सौफिस्टिकेटेड जौब कर सकती हो तो करो… पर तुम जैसी गंवार को कौन नौकरी देगा. बाहर निकल कर उन वर्किंग वूमन को देखो… क्या बढि़या जिंदगी जीती हैं. पति का हाथ भी बंटाती हैं और उन की शान भी बढ़ाती हैं.’’

आभा सचमुच चाहती थी कि कुछ करे. मगर वह कुछ सोच पाती उस से पहले ही विस्फोट हो गया.

‘‘निकल जा मेरे घर से… और अपने इन बच्चों को भी ले जा. मुझे तेरी जैसी गंवार की जरूरत नहीं… मैं किसी नौकरीपेशा से शादी करूंगा. तेरी जैसी फूहड़ की मुझे कोई जरूरत नहीं.’’

सकते में आ गई थी वह. फूहड़ और गंवार मैं हूं कि नरेश… कह ही नहीं पाई वह.

सासससुर के समझाने पर भी नरेश नहीं माना. उस के खौफ से सभी डरते थे. उस के चेहरे पर उभरे एक राक्षस को देख उस समय वह भी डर गई थी. सोचा कुछ दिनों में जब उस का गुस्सा शांत हो जाएगा, वह वापस आ जाएगी. 2 साल की पल्लवी और 1 साल के पल्लव को ले कर जब उस ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा था तब उसे क्या पता था कि नरेश का गुस्सा कभी शांत होगा ही नहीं.

मायके में आ कर भाईभाभी की मदद व स्नेह पा कर उस ने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमैंट की पढ़ाई की. फिर जब एक कंपनी में उसे नौकरी मिली तो लगा कि अब उस के सारे संघर्ष खत्म हो गए हैं. बच्चों को अच्छे स्कूल में डाल दिया. खुद का किराए पर घर ले लिया.

इतने सालों बाद फिर से यह झंझावात कहां से आ गया. यह सच है कि नरेश ने तलाक नहीं लिया था, पर सुनने में आया था कि किसी पैसे वाली औरत के साथ ऐसे ही रह रहा था. सासससुर गांव चले गए थे और देवर अपना घर बसा कर दूसरे शहर में चला गया था. फिर अब बच्चे क्यों चाहिए उसे…

वह इस बार हार नहीं मानेगी… वह लड़ेगी अपने हक के लिए. अपने बच्चों की खातिर. आखिर कब तक उसे नरेश के हिसाब से स्वयं को सांचे में ढालते रहना होगा. उसे अपने अस्तित्व की लड़ाई तो लड़नी ही होगी. आखिर कैसे वह जब चाहे जैसा मरजी इलजाम लगा सकता है और फिर किस हक से… अब वह तलाक लेगी नरेश से.

अदालत में जज के सामने खड़ी थी आभा. ‘‘मैं अपने बच्चों को किसी भी हालत में इसे नहीं सौंप सकती हूं. मेरे बच्चे सिर्फ मेरे हैं. पिता का कोई दायित्व कब निभाया है इस आदमी ने…’’

‘‘तुम्हारी जैसी महत्त्वाकांक्षी, रातों को देर तक बाहर रहने वाली, जरूरत से ज्यादा स्मार्ट और मौडर्न औरत के साथ बच्चे कैसे सुरक्षित रह सकते हैं? पुरुषों के साथ मीटिंग के बहाने बाहर जाती है, उन से हंसहंस कर बातें करती है… मैं ने इसे छोड़ दिया तो क्या यह अब किसी भी आदमी के साथ घूमने के लिए आजाद है? जज साहब, मैं इसे अभी भी माफ करने को तैयार हूं. यह चाहे तो वापस आ सकती है. मैं इसे अपना लूंगा.’’

‘‘नहीं. कभी नहीं. तुम इसलिए मुझे अपनाना चाहते हो न, क्योंकि मैं अब कमाती हूं. तुम्हें उस अमीर औरत ने बेइज्जत कर के बाहर निकाल दिया है और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें कमा कर खिलाऊं? नरेश मैं तुम्हारे हाथों की कठपुतली बनने को तैयार नहीं हूं और न ही तुम्हें बच्चों की कस्टडी दूंगी. हां, तुम से तलाक जरूर लूंगी.

‘‘जज साहब अगर बच्चों को अच्छी जिंदगी देने के लिए मेहनत कर पैसा कमाना चारित्रहीनता की निशानी है तो मैं चरित्रहीन हूं. जब मैं घर की देहरी के अंदर खुश थी तो मुझे गंवार कहा गया, जब मैं ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा तो मैं चरत्रिहीन हो गई. आखिर यह कैसी पुरुष मानसिकता है… अपने हिसाब से तोड़तीमरोड़ती रहती है औरत के अस्तित्व को, उस की भावनाओं को अपने दंभ के नीचे कुचलती रहती है… मुझे बताइए मैं चरित्रहीन हूं या नरेश जैसा पुरुष?’’ आभा के आंसू बांध तोड़ने को आतुर हो उठे थे. पर उस ने खुद को मजबूती से संभाला.

‘‘मैं तुम्हें तलाक देने को तैयार नहीं हूं. तुम भिजवा दो तलाक का नोटिस. चक्कर लगाती रहना फिर अदालत के बरसों तक,’’ नरेश फुफकारा था.

केस चलता जा रहा था. पल्लवी और पल्लव को आभा को न चाहते हुए भी केस में घसीटना पड़ा. जज ने कहा कि बच्चे इतने बड़े हैं कि उन से पूछना जरूरी है कि वे किस के साथ रहना चाहते हैं.

‘‘हम इस आदमी को जानते तक नहीं हैं. आज पहली बार देख रहे हैं. फिर इस के साथ कैसे जा सकते हैं? हम अपनी मां के साथ ही रहेंगे.’’

अदालत में 2 साल तक केस चलने के बाद जज साहब ने फैसला सुनाया, ‘‘नरेश को बच्चों की कस्टडी नहीं मिल सकती और आभा पर मानसिक रूप से अत्याचार करने व उस की इज्जत पर कीचड़ उछालने के जुर्म में उस पर मानहानि का मुकदमा चलाया जाए. ऐसी घृणित सोच वाले पुरुष ही औरत की अस्मिता को लहूलुहान करते हैं और समाज में उसे सम्मान दिलाने के बजाय उस के सम्मान को तारतार कर जीवन में आगे बढ़ने से रोकते हैं. आभा को परेशान करने के एवज में नरेश को उन्हें क्व5 लाख का हरजाना भी देना होगा.’’

आभा ने नरेश के आगे तलाक के पेपर रख दिए. बुरी तरह से हारे हुए नरेश के सामने कोई विकल्प ही नहीं बचा था. दोनों बच्चों के लिए तो वह एक अजनबी ही था. कांपते हाथों से उस ने पेपर्स पर साइन कर दिए. अदालत से बाहर निकलते हुए आभा के कदमों में एक दृढ़ता थी. दोनों बच्चों ने उसे कस कर पकड़ा था. Hindi Drama Story

Bald Look Trend: यंग गर्ल्स को चाहिए बाल्ड लड़के, वजह जान चौंक जाएंगे

Bald Look Trend: निशा को कालेज में एक बाल्ड लुक वाले लड़का सुमित से प्यार हुआ और 2 साल बाद उस ने उस से शादी भी कर ली. सुमित एक कौरपोरेट संस्था में काम करता है. निशा को सुमित के बाल्ड होने का कोई गम नहीं, क्योंकि उसे ऐसे लड़के अधिक हैंडसम और स्मार्ट लगते हैं. चाहता तो सुमित विग पहन सकता था, लेकिन निशा को सुमित का बाल्ड हेयर लुक अधिक पसंद है, इसलिए सुमित के बारबार कहने पर भी निशा ने हेयर ट्रांसप्लांट करवाने से मना कर दिया.

असल में सुमित के परिवार में कई पुरुष गंजेपन के शिकार हैं, इसलिए केवल 21 साल की उम्र में उस के भी बाल कम होने लगे. इस के लिए उस ने कई प्रकार के इलाज कराए, लेकिन बाल जस के तस ही रहे. उस के सिर पर कई खाली पैच बन गए. अंत में उस ने सिर के पूरे बाल मुंडवा लिए. उस के इस लुक को सभी ने पसंद किया और निशा को भी उस का यह लुक काफी पसंद है.

वजह क्या

आजकल यह देखा जा रहा है कि तनाव के चलते आज के युवाओं के बाल तेजी से झड़ रहे हैं और वे कम उम्र में गंजेपन का शिकार हो रहे हैं. आसपास, समाज और परिवार में गंजेपन को अच्छा नहीं माना जाता. इस से बचने के लिए युवा आकर्षक बने रहने के लिए हेयर ट्रांसप्लांट कराने से भी गुरेज नहीं रखते, जिस से कई बार उन्हे कई जोखिमों से गुजरना पड़ता है.

ऐसे युवाओं के लिए हम एक अच्छी खबर ले कर आए हैं और अब उन्हें अपने गंजेपन को ले कर किसी प्रकार की चिंता नहीं होनी चाहिए.

प्रभावशाली व्यक्तित्व

एक रिसर्च में खुलासा किया गया है कि गंजे लड़कों को लड़कियां ज्यादा पसंद करती हैं. पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि लड़कियां गंजे लड़कों को ज्यादा पसंद करती हैं. ऐसे में यदि आप हेयर ट्रांसप्लांट करवाने के बाद अपने हेयरस्टाइल से लड़कियों को इंप्रेस करने की सोच रहे हैं, तो आप का यह प्रयास व्यर्थ जाएगा. मतलब यह कि अगर आप के बाल झड़ जाएं, तो अब आप को मन में हीनता पालने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि आप के गंजे लुक पर ही लड़कियां मर मिटेंगी.

एक रिपोर्ट के मुताबिक हलके या घने बालों वाले लोगों की तुलना में गंजे लोग ज्यादा प्रभावशाली व्यक्तित्व के माने जाते हैं. यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने करीब 552 युवकों व युवतियों से पुरुषों को ले कर लिखित और मौखिक जानकारी इकट्ठा की, जिन में घने हेयर वाले पुरुषों से अधिक, प्राकृतिक रूप से बाल्ड लड़कों को अधिक आकर्षक माना गया.

ईमानदारी, समझदारी और मैच्योरिटी के मामले में गंजे पुरुष काफी आगे हैं, जिन्हें लड़कियां अधिक पसंद करती हैं.

बाल्ड हेड पुरुष अधिक आकर्षक

हाल ही में हुए दूसरे सर्वेक्षण में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि ज्यादातर लड़कियों ने गंजे पुरुषों को अनाकर्षक के बजाय आकर्षक पाया. केवल 19% ने गंजापन को अनाकर्षक पाया, जबकि 44% ने कहा कि उन्हें यह पसंद है.

अनेक अध्ययनों से यह भी पता चला है कि आज की आत्मनिर्भर  लड़कियां जितनी अधिक उम्र की होती जाती हैं, उतनी ही अधिक वे बाल्ड हेडेड पुरुषों को पसंद करती हैं. इस के लिए किसी शरीरिक विशेषताओं का होना जरूरी नहीं. जरूरत होती है, स्मार्टनैस और पहनावे की, जो आप के व्यक्तित्व के अनुसार होने की जरूरत होती है.

गर्ल्स को डेट करने में नहीं समस्या

किसी बाल्ड लड़के को डेट करने की अगर बात हो, तो आप को बता दें कि हाल ही में किए गए एक  अध्ययन में लगभग 800 लड़कियों का सर्वेक्षण किया गया, जिस में 92.94% प्रतिभागियों ने कहा कि किसी रिश्ते में रूपरंग की तुलना में व्यक्तित्व अधिक महत्त्वपूर्ण होता है, जो कोई भी शक्लसूरत के व्यक्ति के हाथ में होता है. बाल्ड लड़के से उन्हें डेट करने में उन्हे कोई एतराज नहीं.

मशहूर गंजे पुरुष के साथ सुंदरियों ने किया डेटिंग

हौलीवुड के गंजे सितारों के ट्रैक रिकौर्ड पर नजर डालने से पता चलता है कि सुपर मौडल्स को भी अपने सिर पर बालों की जरा भी परवाह नहीं होती. जेसन स्टैथम की सगाई दुनिया की सब से खूबसूरत महिलाओं में से एक से हुई है. विन डीजल ने भी कमाल कर दिया है और सर्फर केली स्लेटर गिसेले बुंडचेन से ले कर पामेला एंडरसन तक कई मौडलों के साथ डेट कर चुकी हैं.

इस से यह सिद्ध हो गया है कि किसी महिला के लिए आकर्षक होना पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक होता है, इस में बाल्ड लड़के भी फिट बैठ सकते हैं.

बौलीवुड के बाल्ड हेडेड सुपरस्टार्स

बौलीवुड के मशहूर फिल्ममेकर राकेश रोशन की भी बाल्ड हेडेड हैं और यही उन की सफलता का राज भी है. उन्होंने बहुत कम उम्र में अपने सिर के पूरे बाल एक फिल्म के सफल होने पर मुंडवा डाले थे. उन्होंने जब भी फिल्मों में बतौर हीरो ऐक्टिंग किया, विग पहन कर किया. उन की पत्नी पिंकी को उन का यह लुक हमेशा पसंद रहा है.

साउथ सुपरस्टार रजनीकांत भी बाल्ड हेडेड हैं, लेकिन वे फिल्मों में हमेशा विग पहन कर ही अभिनय करते हैं. उन की पत्नी को उन के गंजेपन से कोई समस्या नहीं. इस के अलावा अनुपम खेर, सोनू सूद, अमिताभ बच्चन, संजय दत्त आदि सभी बाल्ड हेडेड होने के बावजूद सुपरस्टार की श्रेणी में आते हैं.

कब लगते है अनाकर्षक

गंजे पुरुष के अनाकर्षक लगने की वजह उन का सही मेकओवर न होना है. मसलन जिन पुरुषों के गंजेपन के धब्बे होते हैं या सिर के बीच में केश न हो कर चारों ओर केश हों, ऐसे लड़के इस पैटर्न गंजेपन को छिपाने की कोशिश कर रहे होते हैं. वे अकसर कम माचो मैन और कमजोर दिखाई देते हैं. इसे अकसर गंजे से हारने वाले की श्रेणी में रख दिया जाता है.

गंजेपन को आकर्षक बनाने के लिए पूरी तरह से मुंडवा देना ही सबसे उचित होता है.

बाल्ड हेड की सही देखभाल 

बाल्ड हेड के रखरखाव के लिए नियमित रूप से शेव करना, सिर की त्वचा को मोइस्चराइज करना और धूप से बचाव करना महत्त्वपूर्ण है. कुछ सुझाव निम्न हैं :

  • जितना अधिक शेव करेंगे, सिर की त्वचा उतनी ही चिकनी रहेगी.
  • शेव करने के बाद सिर की त्वचा को मोइस्चराइजर करना महत्त्वपूर्ण है ताकि यह हाइड्रेटेड रहे और सूखापन या खुजली से बचा जा सके.
  • सूरज की हानिकारक यूवी किरणों से सिर की त्वचा को बचाने के लिए बाहर जाते समय टोपी या सनस्क्रीन का उपयोग करें.
  • सिर की त्वचा को साफ रखना भी महत्त्वपूर्ण है, इसलिए इसे नियमित रूप से धोएं, लेकिन बहुत अधिक नहीं
  • यदि आप शैंपू का उपयोग करना चाहते हैं, तो एक हलके, सल्फेटमुक्त शैंपू का उपयोग करें.
  • कंडीशनर का उपयोग करने से भी सिर की त्वचा को हाइड्रेटेड रखने में मदद मिल सकती है.

इस प्रकार यह उन लड़कों के लिए एक अच्छी खबर है जो गंजेपन की ओर बढ़ रहे हैं या गंजे हो चुके हैं. ऐसे में बाल उगाने के लिए लाखों रुपए खर्च करने की जगह आप कौन्फिडैंट हो कर घूमें, क्योंकि लड़कियों को गंजे, लेकिन आत्मविश्वास से भरे पुरुष ही ज्यादा पसंद आते हैं. Bald Look Trend

Family Story: सुधरा संबंध: निलेश और उस की पत्नी के बीच तनाव क्यों?

Family Story: शादी की वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर हम दोनों पतिपत्नी साथ बैठे चाय की चुसकियां ले रहे थे. संसार की दृष्टि में हम आदर्श युगल थे. प्रेम भी बहुत है अब हम दोनों में. लेकिन कुछ समय पहले या कहिए कुछ साल पहले ऐसा नहीं था. उस समय तो ऐसा प्रतीत होता था कि संबंधों पर समय की धूल जम रही है.

मुकदमा 2 साल तक चला था तब. आखिर पतिपत्नी के तलाक का मुकदमा था. तलाक के केस की वजह बहुत ही मामूली बातें थीं. इन मामूली सी बातों को बढ़ाचढ़ा कर बड़ी घटना में ननद ने बदल दिया. निलेश ने आव देखा न ताव जड़ दिए 2 थप्पड़ मेरे गाल पर. मुझ से यह अपमान नहीं सहा गया. यह मेरे आत्मसम्मान के खिलाफ था. वैसे भी शादी के बाद से ही हमारा रिश्ता सिर्फ पतिपत्नी का ही था.

उस घर की मैं सिर्फ जरूरत थी, सास को मेरे आने से अपनी सत्ता हिलती लगी थी, इसलिए रोज एक नया बखेड़ा. निलेश को मुझ से ज्यादा अपने परिवार पर विश्वास था और उन का परिवार उन की मां तथा एक बहन थीं. मौका मिलते ही मैं अपने बेटे को ले कर अपने घर चली गई. मुझे इस तरह आया देख कर मातापिता सकते में आ गए. बहुत समझाने की कोशिश की मुझे पर मैं ने तो अलग होने का मन बना लिया था. अत: मेरी जिद के आगे घुटने टेक दिए.

दोनों ओर से अदालत में केस दर्ज कर दिए गए. चाहते तो मामले को रफादफा भी किया जा सकता था, पर निलेश ने इसे अपनी तौहीन समझा. रिश्तेदारों ने मामले को और पेचीदा बना दिया. न सिर्फ पेचीदा, बल्कि संगीन भी. सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा. यह भी कहा कि ऐसी औरत न वफादार होती है न पतिव्रता. इसे घर में रखना, अपने शरीर में मियादी बुखार पालते रहने जैसा है.

बुरी बातें चक्रवृत्ति ब्याज की तरह बढ़ती हैं. अत: दोनों तरफ से खूब आरोप उछाले गए. ऐसा लगता था जैसे दोनों पक्षों के लोग आरोपों की कबड्डी खेल रहे हैं. निलेश ने मेरे लिए कई असुविधाजनक बातें कहीं. निलेश ने मुझ पर चरित्रहीनता का तो हम ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया. 6 साल तक शादीशुदा जीवन बिताने और 1 बच्चे के मातापिता होने के बाद आज दोनों तलाक के लिए लड़ रहे थे. हम दोनों पतिपत्नी के हाथों में तलाक के लिए अर्जी के कागजों की प्रति थी. दोनों चुप थे, दोनों शांत, दोनों निर्विकार.

मुकदमा 2 साल तक चला था. 2 साल हम पतिपत्नी अलग रहे थे और इन 2 सालों में बहुत कुछ झेला था. मैं ने नौकरी ढूंढ़ ली थी. बेटे का दाखिला एक अच्छे स्कूल में करा दिया था. सब से बड़ी बात हम दोनों में से ही किसी ने भी अपने बच्चे की मनोस्थिति नहीं पढ़ी.

बेटा हमारे अलग होने के फैसले से खुश नहीं था, पर सब कुछ उस की आंखों के सामने हुआ था तो वह चुप था. मुकदमे की सुनवाई पर दोनों को आना होता. दोनों एकदूसरे को देखते जैसे चकमक पत्थर आपस में रगड़ खा गए हों. दोनों गुस्से में होते. दोनों में बदले की भावना का आवेश होता. दोनों के साथ रिश्तेदार होते जिन

की हमदर्दियों में जराजरा विस्फोटक पदार्थ भी छिपा होता. जब हम पतिपत्नी कोर्ट में दाखिल होते तो एकदूसरे को देख कर मुंह फेर लेते. वकील और रिश्तेदार दोनों के साथ होते. दोनों पक्ष के वकीलों द्वारा अच्छाखासा सबक सिखाया जाता कि हमें क्या कहना है. हम दोनों वही कहते. कई बार दोनों के वक्तव्य बदलने लगते तो फिर संभल जाते.

अंत में वही हुआ जो हम सब चाहते थे यानी तलाक की मंजूरी. पहले उन के साथ रिश्तेदारों की फौज होती थी, धीरेधीरे यह संख्या घटने लगी. निलेश की तरफ के रिश्तेदार खुश थे, दोनों के वकील खुश थे, पर मेरे मातापिता दुखी थे. अपनीअपनी फाइलों के साथ मैं चुप थी. निलेश भी खामोश.

यह महज इत्तफाक ही था. उस दिन की अदालत की फाइनल कार्रवाई थोड़ी देर से थी. अदालत के बाहर तेज धूप से बचने के लिए हम दोनों एक ही टी स्टौल में बैठे थे. यह भी महज इत्तफाक ही था कि हम पतिपत्नी एक ही मेज के आमनेसामने थे.

मैं ने कटाक्ष किया, ‘‘मुबारक हो… अब तुम जो चाहते हो वही होने को है.’’

‘‘तुम्हें भी बधाई… तुम भी तो यही चाह रही थीं. मुझ से अलग हो कर अब जीत जाओगी,’ निलेश बोला. मुझ से रहा नहीं गया. बोली, ‘‘तलाक का फैसला क्या जीत का प्रतीक

होता है?’’

निलेश बोले, ‘‘तुम बताओ?’’

मैं ने जवाब नहीं दिया, चुपचाप बैठी रही, फिर बोली, ‘‘तुम ने मुझे चरित्रहीन कहा था… अच्छा हुआ अब तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पीछा छूटा.’’

‘‘वह मेरी गलती थी, मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था.’’

‘‘मैं ने बहुत मानसिक तनाव झेला,’’ मेरी आवाज सपाट थी. न दुख, न गुस्सा, निलेश ने कहा, ‘‘जानता हूं पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो स्त्री के मन को लहूलुहान कर देता है… तुम बहुत उज्ज्वल हो. मुझे तुम्हारे बारे में ऐसी गंदी बात नहीं कहनी चाहिए थी. मुझे बेहद अफसोस है.’’

मैं चुप रही, निलेश को एक बार देखा. कुछ पल चुप रहने के बाद उन्होंने गहरी सांस ली और फिर कहा, ‘‘तुम ने भी तो मुझे दहेज का लोभी कहा था…’’

‘‘गलत कहा था,’’ मैं निलेश की ओर देखते हुए बोली.

कुछ देर और चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं कोई और आरोप लगाती, लेकिन मैं नहीं…’’

तभी चाय आ गई. मैं ने चाय उठाई. चाय जरा सी छलकी. गरम चाय मेरे हाथ पर गिरी तो सीसी की आवाज निकली.

निलेश के मुंह से उसी क्षण उफ की आवाज निकली. हम दोनों ने एकदूसरे को देखा.

‘‘तुम्हारा कमर दर्द कैसा है?’’ निलेश का पूछना थोड़ा अजीब लगा.

‘‘ऐसा ही है,’’ और बात खत्म करनी चाही.

‘‘तुम्हारे हार्ट की क्या कंडीशन है? फिर अटैक तो नहीं पड़ा, मैं ने पूछा.’’

‘‘हार्ट…डाक्टर ने स्ट्रेन…मैंटल स्ट्रैस कम करने को कहा है,’’ निलेश ने जानकारी दी.

एकदूसरे को देखा, देखते रहे एकटक जैसे एकदूसरे के चेहरे पर छपे तनाव को पढ़ रहे हों.

‘‘दवा तो लेते रहते हो न?’’ मैं ने निलेश के चेहरे से नजरें हटा पूछा.

‘‘हां, लेता रहता हूं. आज लाना याद नहीं रहा,’’ निलेश ने कहा.

‘‘तभी आज तुम्हारी सांसें उखड़ीउखड़ी सी हैं,’’ बरबस ही हमदर्द लहजे में कहा.

‘‘हां, कुछ इस वजह से और कुछ…’’ कहतेकहते वे रुक गए.

‘‘कुछ…कुछ तनाव के कारण,’’ मैं ने बात पूरी की.

वे कुछ सोचते रहे, फिर बोले,  ‘‘तुम्हें 15 लाख रुपए देने हैं और 20 हजार रुपए महीना भी.’’

‘‘हां, फिर?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नोएडा में फ्लैट है… तुम्हें तो पता है. मैं उसे तुम्हारे नाम कर देता हूं. 15 लाख फिलहाल मेरे पास नहीं हैं,’’ निलेश ने अपने मन की बात कही.

नोएडा वाले फ्लैट की कीमत तो 30 लाख होगी?

मुझे सिर्फ 15 लाख चाहिए… मैं ने अपनी बात स्पष्ट की.

‘‘बेटा बड़ा होगा… सौ खर्च होते हैं,’’ वे बोले.

‘‘वह तो तुम 20 हजार महीना मुझे देते रहोगे,’’ मैं बोली.

‘‘हां जरूर दूंगा.’’

‘‘15 लाख अगर तुम्हारे पास नहीं हैं तो मुझे मत देना,’’ मेरी आवाज में पुराने संबंधों की गर्द थी.

वे मेरा चेहरा देखते रहे.

मैं निलेश को देख रही थी और सोच रही थी कि कितना सरल स्वभाव है इन का… जो कभी मेरे थे. कितने अच्छे हैं… मैं ही खोट निकालती रही…

शायद निलेश भी यही सोच रहे थे. दूसरों की बीमारी की कौन परवाह करता है? यह करती थी परवाह. कभी जाहिर भी नहीं होने देती थी. काश, मैं इस के जज्बे को समझ पाता.

हम दोनों चुप थे, बेहद चुप. दुनिया भर की आवाजों से मुक्त हो कर खामोश.

दोनों भीगी आंखों से एकदूसरे को देखते रहे.

‘‘मुझे एक बात कहनी है,’’ निलेश की आवाज में झिझक थी.

‘‘कहो,’’ मैं ने सजल आंखों से उन्हें देखा.

‘‘डरता हूं,’’ निलेश ने कहा.

‘‘डरो मत. हो सकता है तुम्हारी बात मेरे मन की बात हो.’’

‘‘तुम्हारी बहुत याद आती रही,’’ वे बोले.

‘‘तुम भी,’’ मैं एकदम बोली.

‘‘मैं तुम्हें अब भी प्रेम करता हूं.’’

‘‘मैं भी,’’ तुरंत मैं ने भी कहा.

दोनों की आंखें कुछ ज्यादा ही सजल हो गई थीं. दोनों की आवाज जज्बाती और चेहरे मासूम.

‘‘क्या हम दोनों जीवन को नया मोड़ नहीं दे सकते?’’ निलेश ने पूछा.

‘‘कौन सा मोड़?’’ पूछ ही बैठी.

‘‘हम फिर से साथसाथ रहने लगें… एकसाथ… पतिपत्नी बन कर… बहुत अच्छे दोस्त बन कर?’’

‘‘ये पेपर, यह अर्जी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘फाड़ देते हैं. निलेश ने कहा और अपनेअपने हाथ से तलाक के कागजात फाड़ दिए. फिर हम दोनों उठ खड़े हुए. एकदूसरे के हाथ में हाथ डाल कर मुसकराए.’’

दोनों पक्षों के वकील हैरानपरेशान थे. दोनों पतिपत्नी हाथ में हाथ डाले घर की तरफ चल दिए. सब से पहले हम दोनों मेरे घर आए. मातापिता से आशीर्वाद लिया. आज उन के चेहरे पर संतुष्टि थी. 2 साल बाद मांपापा को इतना खुश देखा था. फिर हम बेटे के साथ इन के घर, हमारे घर, जो सिर्फ और सिर्फ पतिपत्नी का था. 2 दोस्तों का था, चल दिए.

वक्त बदल गया और हालात भी. कल भी हम थे और आज भी हम ही पर अब किसी कड़वाहट की जगह नहीं. यह सुधरा संबंध है. पतिपत्नी के रिश्ते से भी कुछ ज्यादा खास. Family Story

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