Hindi Moral Tales : भटकन – आखिर कौन थी मिताली

Hindi Moral Tales : मिताली से मुलाकात का दिन था. साउथ एक्स के एक रैस्टोरैंट में कौशलजी प्रतीक्षा कर रहे थे तभी मिताली को आते देख उन के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई. पर मिताली आज चुपचुप व उदास थी.

‘‘क्या बात है? उदास लग रही हो?’’

‘‘क्या बताऊं, आज का दिन मेरे लिए ठीक नहीं है अभी आते वक्त मैट्रो में किसी ने मेरे बैग से मनीपर्स निकाल लिया. उस में रखे रुपए मां को भिजवाने थे,’’ उस की आंखें छलछला उठीं, ‘‘सौरी, मैं तो आप को खुशी देने आई थी पर अपना ही रोना ले कर बैठ गई,’’ इतना कह कर उस ने टिश्यूपेपर आंखों पर रख लिया.

‘‘तुम भी अजीब लड़की हो. इस में सौरी जैसी क्या बात है. यह बताओ कि कितने रुपए चाहिए मां को भेजने के लिए? कल तुम्हें मिल जाएंगे.’’

‘‘पर आप क्यों…’’ और आवाज रुंध गई थी मिताली की.

‘‘मुझ से यह रोनी सूरत नहीं देखी जाती, समझीं. अब ज्यादा मत सोचो और बताओ.’’

‘‘तो सर, अभी 10 हजार रुपए चाहिए. मां का इलाज भी चल रहा है और…पर मैं ये रुपए अगले महीने ही आप को दे पाऊंगी.’’

‘‘हांहां, यह बाद में सोच लेना. अभी तो अपना मूड ठीक करो और गरमगरम कौफी पियो.’’

‘‘थैंक्स फौर दिस हैल्प, सर,’’ उस ने कौशलजी का हाथ पकड़ धीरे से चूम लिया. कुछ पल वे प्रस्तर मूर्ति बने रह गए, पर मन में कुछ अच्छा लगा था.

2 वर्ष पहले पत्नी रमा की मृत्यु के बाद से कौशलजी उदास व अकेले पड़ गए थे. घर की ओर बढ़ते कदम बोझिल हो जाते. अकेला घर काटता सा प्रतीत होता. यों तो पुस्तकें, टीवी उन के साथी बनने के लिए हाजिर थे पर बातचीत, कुछ हंसी, मस्ती की खुराक के बिना उन का मन उदासी से घिरा रहता.

अब की होली भी अकेली व फीकी ही गई थी. बेटा टूर पर था, बेटी दूसरे शहर में थी. तभी लखनऊ की होली की याद कर के उन के होंठ स्वत: ही मुसकरा उठे. फिर कुछ पल बाद, बुदबुदा उठे, ‘रमा, तुम्हारे साथ ही सारे रंग भी चले गए हैं. लोग कहते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ विरक्ति आनी चाहिए लेकिन खुशी के साथ जीने की इच्छा तो हर उम्र में होती है.’

स्वभाव से बातूनी व हंसमुख कौशलजी की उदासी, बेटे के पास दिल्ली की फ्लैट संस्कृति में जस की तस रही. वे यहां अपना अकेलापन दूर करने की इच्छा से आए थे पर बेटा राहुल अपनी जौब में इतना व्यस्त था कि साथ में ब्रेकफास्ट या डिनर भी न हो पाता. आसपास भी हमउम्र नहीं. यंग जैनरेशन अपने जौब आदि में व्यस्त. ऐसे में अखबार, टीवी के बाद, नजदीकी बाजार या पार्क का चक्कर लगा आते.

एक दिन कौशलजी, अपना पीएफ तथा रुकी पैंशन के लाखों में रुपए मिलने की खबर से इतने उत्साहित थे कि तत्काल अपने बच्चों को यह बात बताना चाहते थे. उन्होंने राहुल को फोन लगाया. उस के फोन न उठाने पर दोबारा फोन करते रहे. तब राहुल ने खीज कर कहा कि वह अभी बात नहीं कर सकता. बारबार फोन मत करना. फ्री होने पर वह कौल कर लेगा.

उन्होंने सोचा, ‘हां, राहुल ठीक ही तो कह रहा है. वह उन की तरह फ्री थोड़े ही है. चलो स्वाति बिटिया को बता देता हूं यह बात.’

‘हैलो पापा, मैं एक पार्टी के साथ हूं. बाद में बात करती हूं. बायबाय.’

सभी व्यस्त हैं. एक मैं ही भटक रहा हूं. 2 हफ्ते बीत गए पर बच्चों से बात नहीं हो पाई. उन्होंने भी निश्चय कर लिया था कि बच्चों को डिस्टर्ब नहीं करेंगे.

एक दिन फिर मन भटका तो अपनी अटैची से फोटो एलबम निकाल कर देखने लगे. पत्नी, परिवार, सालीसलहज की फोटो देखतेदेखते अतीत की सुखद यादों में खो गए.

शादी के बाद रमा के साथ जब पहली बार ससुराल गए थे तब शाम को संगीत की महफिल जमी थी. रीना का गाना समाप्त होते ही उन्होंने एक गुलाब का फूल उस की ओर उछाल दिया था. वह फूल उस की कुरती के गले में जा गिरा. तब रीना ने शिकायती नजरों से उन्हें देख अपनी नजरें शरमा कर झु़का ली थीं. इस पर उन्होंने ठहाका लगाते हुए कहा था, ‘भई इकलौती साली साहिबा पर फूल फेंकने का हक तो बनता है.’

इसी बीच, यादों से बाहर आए तो पत्नी रमा की फोटो पर हाथ रखते हुए बुदबुदाए, ‘तुम थीं तो सारी दुनिया जैसे साथ थी. अब एकदम अकेला हो गया हूं. तुम कहा करती थीं कि बच्चों की जिम्मेदारी पूरी होने के साथसाथ तुम्हारा रिटायरमैंट भी हो जाएगा.

तब हम निश्ंिचत हो कर खूब घूमेंगेफिरेंगे, अपने लिए जीएंगे पर तुम तो बीच में ही चली गईं, रमा,’ और उन के गालों पर आंसू लुढ़क आए.

मन को शांत करने के लिए उन्होंने चाय बनाई और उसे पीते हुए, पास रखे अखबार के एक विज्ञापन पर उन की दृष्टि पड़ गई, ‘फ्रैंडशिप क्लब अकेलेपन को दूर करने, निराशा से उबरने का सहज साधन. फ्रैंडशिप क्लब जौइन करें, मोबाइल नंबर 9910033333 एक बार फोन मिलाइए.’

कुछ देर की ऊहापोह के बाद कौशलजी ने वह नंबर मिला लिया. ‘हैलो, नमस्कार. कहिए, मैं आप की क्या हैल्प कर सकती हूं?’ एक मधुर आवाज सुनाई दी.

‘वो…मैं ने अभी फ्रैंडशिप क्लब का विज्ञापन देखा तो…’

‘हां, हां कहिए, आप की क्या समस्या है?’

‘मैं अकेलेपन से परेशान हूं. बताइए क्या तरीका है?’ कौशलजी ने जल्दी से अपनी बात खत्म की.

‘हां, हां, सर, हमारा क्लब खुशी बांटता है. आप का नाम जान सकती हूं?’

‘मैं एक रिटायर्ड व्यक्ति हूं और मेरा नाम कौशल है. थोड़ी बातचीत व नेक दोस्ती द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण समय व्यतीत करना चाहता हूं, बस.’

‘मैं, मिताली हूं. आप की दोस्त बनने को तैयार हूं. पूरी कोशिश होगी कि आप को खुशी दे सकूं और विश्वास दिलाती हूं कि मेरा साथ अच्छा लगेगा. इस के लिए क्लब की कुछ शर्तें होती हैं. मैं अपनी बौस से बात कराती हूं.’

कुछ ही सैकंड्स में दूसरी आवाज आई जो कि क्लब की प्रैसिडैंट नीलिमा की थी, ‘डील के अनुसार, मिताली से आप की मुलाकात किसी रैस्टोरैंट या ओपनप्लेस में ही संभव होगी, हर बार समय डेढ़ से 2 घंटे तक होगा. हर मीटिंग के 2 हजार रुपए कैश देने होंगे. मैंबरशिप की फीस 10 हजार रुपए होगी जो कि 3 माह तक वैलिड होगी और…’

‘फीस तो बहुत ज्यादा है मैडम,’ बीच में ही कौशलजी बोल पड़े.

‘अरे, सर, आप कल अपने घर के पास वाले रैस्टोरैंट में मिलिए. वहां हम तय कर लेंगे. आप रिटायर्ड व्यक्ति हैं, ठीक है, छूट मिल जाएगी. पर क्लब को एक बार अपनी सेवा का अवसर तो दीजिए. कल 12 बजे मुलाकात होगी. मैं और मिताली साथ होंगे. आप का दिन अच्छा हो सर. बायबाय.’ फोन बंद हो गया.

मिताली से हुई दोस्ती से कौशलजी संतुष्ट हो उठे थे. मिताली की बातों का तरीका, उस का हंसना, बतियाना, कौशलजी की बातों में दिलचस्पी लेना कौशलजी को खुशी के साथसाथ सुकून दे रहा था. 2 हफ्ते में 1 बार की मुलाकात अब हर हफ्ते की मुलाकात बन गई थी.

2 माह बीत गए थे पर कौशलजी को अपने बेटेबेटी से बातें शेयर करने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई, बेटाबेटी भी अपनी नौकरी व जिंदगी में इतने व्यस्त थे कि इस परिवर्तन की ओर उन का ध्यान ही नहीं गया.

एक दिन रैस्टोरैंट में बातें करते हुए कौशलजी किसी बात पर ठहाका लगा कर हंस पड़े पर तुरंत ही झेंप कर वे चुप हो गए. तभी बाएं ओर की तीसरी टेबल से एक व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ.

‘‘हैलो, कौशल, पहचाना मुझे?’’

कुछ पल देख, ‘‘ओह दिनेश, तुम यहां कैसे? तुम तो इलाहाबाद में थे न. और इतने वर्षों बाद भी तुम ने मुझे पहचान लिया पर शायद मैं दूर से देखता तो तुम्हें पहचान न पाता,’’ कौशलजी दोस्त से मिल कर खुश होते हुए बोले.

‘‘हां, हां, भई मेरी खेती जो साफ हो गई है और खोपड़ी सफाचट मैदान. तुम तो यार वैसे ही लगते हो आज भी. और यह तुम्हारी बिटिया है?’’

‘‘न, न, यह मेरी यंग दोस्त है, एक अच्छी दोस्त.’’

मिताली के जाने के बाद कौशल अपने जीवन की बातें पत्नी की मृत्यु, रिटायरमैंट के बाद का अकेलापन, संवादहीनता की व्यथा जैसी कई बातें बताते रहे. दिनेश के द्वारा युवती दोस्त के बारे में पूछे जाने पर अखबार के विज्ञापन से ले कर रजिस्टे्रशन व

मीटिंग की सारी बातें बताईं.

‘‘यह ठीक नहीं है, यार. ऐसी दोस्ती सिर्फ पैसे पर टिकी होती है. तुम्हारे साथ हंसनाबोलना तो ड्यूटी मात्र है, तुम्हारे प्रति कोई सद्भावना या संवेदना नहीं…’’

‘‘पर यह बहुत अच्छी लड़की है,’’ बात पूरी होने से पूर्व ही कौशल बोल पड़े.

‘‘चलो माना कि अच्छी है वह, पर कौन मानेगा कि उस के साथ तुम्हारा दोस्ती भर का रिश्ता है. और जब तुम्हारे बच्चों को पता लगेगा तब क्या होगा, यह सोचा है तुम ने?’’ दिनेश ने कौशलजी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘तुम ये सब इसीलिए कह रहे हो कि तुम अकेले नहीं हो. एकाकीपन की पीड़ा क्या होती है, तुम सोच नहीं सकते,’’ अपनी उंगलियों को मरोड़ते हुए कौशल जैसे मन की व्यथा निकाल रहे थे.

‘‘ठीक है तुम्हारी बात, पर अकेलेपन को दूर करने के और भी रास्ते हैं. इस तरह की दोस्ती सिर्फ एक मकड़जाल है जिस में फंस कर व्यक्ति छटपटाता है. पिछले दिनों अखबार में एक ऐसा ही समाचार छपा था. 65 वर्ष का व्यक्ति इस जाल में ऐसा फंसा कि चिडि़यां चुग गईं खेत वाली बात हो गई. छीछालेदर हुई, सो अलग.

‘‘कहो तो तुम्हारे लिए, अपने जैसा ही हलका जौब देखूं. यह रुपएपैसे के लिए नहीं बल्कि अपना समय अच्छी तरह व्यतीत करने का तरीका है. या तो फिर कोई समाजिक संस्था जौइन कर लो.’’

‘‘नहीं, अब मुझे कोई भी बंधनयुक्त कार्य नहीं करना,’’ कौशलजी ने चिढ़ कर जवाब दिया.

‘‘शायद तुम भूल रहे हो कि बद अच्छा, बदनाम बुरा होता है. और यह बात तुम्हीं कहा करते थे,’’ दिनेश ने फिर कौशल को समझाने की कोशिश की.

‘‘छोड़ो यह बात, मैं कोई बच्चा नहीं हूं. कोई और बात करो,’’ अपना हाथ छुड़ाते हुए कौशल ने कहा.

इस वक्त इस बात का छोर यहीं छूट गया.

‘‘पापा, वह कौन थी जिस के साथ नटराज में आप बातें कर रहे थे. मैं अपने साथी के साथ वहां गया था, इसीलिए आप से बात नहीं कर पाया.’’

राहुल के इस प्रश्न पर कौशल सकपका गए. तभी राहुल का मोबाइल बज उठा और वह बाहर चला गया.

‘क्या मैं राहुल से कह पाऊंगा कि वह लड़की मेरी दोस्त है. तो क्या दिनेश का कहना सही है?’ पर सिर उठाते इस विचार को उन्होंने झटक डाला.

एक दिन को कौशलजी व मिताली, मौल के कौफी शौप में आधा घंटा बिता कर, मौल घूमने लगे. पर्स शौप में ब्रैंडेड लाल रंग का पर्स देख कर मिताली रुक नहीं पाई. अपने कंधे पर उसे लटका कर आईने में देख चहक उठी.

तभी कौशलजी के पूछने पर कि वह पर्स उसे पसंद है तो खरीद ले.

‘‘काफी महंगा है,’’ कह कर टाल दिया पर साथ ही चेहरा उदास भी हो गया, ‘‘इतना महंगा पर्स तो देख ही सकती हूं, खरीद नहीं सकती मैं.’’

‘‘चलो मेरी तरफ से गिफ्ट है तुम्हारे लिए. मैं पेमैंट कर दूंगा. तुम ले लो.’’

मिताली के चेहरे पर खिल आई खुशी को देख कौशल सोचने लगे, ‘इस को खुशी देने में मुझे भी कितनी खुशी मिल रही है.’

जब तक मिताली से एक बार फोन पर बात नहीं हो जाती, कौशल बेचैनी अनुभव करने लगे हैं. इसीलिए वे बात करने की सोच ही रहे थे कि टूर से लौटे राहुल ने फाइनैंशियल एडवाइजर के आने की बात कह, पापा से अपनी ‘मनी’ अपनी इच्छा से इन्वैस्ट करने की बात कही.

‘‘पिछले 2 माह से एक ऐडवांस प्रोजैक्ट के कारण वक्त नहीं मिल पाया. आज मनी एडवाइजर के सामने मैं भी आप के साथ रहूंगा, पापा, आप जैसा चाहेंगे वैसा हो जाएगा.’’

‘‘अभी रहने दो, फिर देखा जाएगा,’’ कौशलजी ने बात को टाला.

‘‘क्यों, आप कुछ और सोच रहे हैं क्या?’’

‘‘हां, फिलहाल तुम उसे मना कर दो.’’

नाश्ते के बाद कौशलजी टीवी में आ रही एक पुरानी फिल्म देखने में मग्न थे. डोरबैल की आवाज पर मन मसोस कर उठे, ‘‘कोई सैल्स बौय ही होगा,’’ पर दरवाजे पर दिनेश को देख, खुशी से चहक उठे, ‘‘अरे वाह, आज इस वक्त यहां कैसे? तुम तो अपनी जौब पर जाते हो फिर…पर अच्छा हुआ तुम आए. बैठो मैं गरमागरम चाय लाता हूं, फिर दोनों गपें लगाएंगे.’’

‘‘नहीं, आज हम कनाटप्लेस चल रहे हैं. वहीं खाएंगेपीएंगे, घूमेंगे. कुछ अलग सा दिन बिताएंगे.’’

दोढाई घंटे की विंडो शौपिंग के बाद एक रैस्टोरैंट में बैठे दोनों मित्र प्रसन्न थे. लंच का और्डर दे कर दिनेश लघुशंका के लिए वाशरूम की ओर बढ़ गए. वापसी पर उन की निगाह जानीपहचानी शक्ल पर पड़ी. वह मिताली थी जो कि एक युवा से सट कर या कहें कि लिपट कर ही बैठी थी. खूब खिलखिला रही थी.

उन के मन की उथलपुथल चेहरे पर उतर आई.

‘‘क्या हुआ, अभी तो तुम बड़े खुश थे. अब उदास क्यों हो गए?’’

‘‘कुछ नहीं. ऐसी कोई बात नहीं है,’’ इधरउधर की एकदो बातों के बाद, ‘‘अरे हां, तुम्हारी उस यंग दोस्त के क्या हाल हैं?’’ डोसे के टुकड़े को सांभर में डुबोते हुए दिनेश ने पूछा.

‘‘तुम गलत सोचते हो उस के लिए. वह तो परिस्थिति की मारी लड़की है. अकेली अपनी मां की जिम्मेदारी उठा रही है. यहां वह पीजी में रहती है. आजकल वह अपनी बीमार मां को देखने गांव गई है. अब वह अपनी मां को साथ रखने के लिए यहीं एक छोटा सा घर चाहती है. मन की बात बताऊं, मैं तो उस की इस में सहायता करना चाहता हूं. जरूरतमंद लड़की है, उस की हैल्प से मुझे संतुष्टि मिलती है,’’ वे बोले जा रहे थे.

‘‘कौशल, तुम कह रहे थे कि मिताली, मां को देखने गांव गई है. फोन कर के उस की मां का हाल तो पूछो.’’

‘‘हां, पूछ लूंगा.’’

‘‘अभी बात करो और धीमी आवाज में स्पीकार औन कर लेना. देखता हूं, मैं भी कुछ सहयोग कर दूंगा. ऐसी लड़की की सहायता करनी ही चाहिए,’’ दिनेश ने आवाज सुनने के लिए फोन पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा.

‘‘चलो ठीक है. हैलो मिताली, अब तुम्हारी मां कैसी हैं?’’

‘‘थोड़ी बेहतर हैं सर. मैं मां के पास ही बैठी हूं. पड़ोसी भी बैठे हैं यहां. मैं बाद में आप से बात करती हूं. ओके बाय,’’ और फोन बंद कर दिया.

तभी दिनेश ने कौशल का हाथ पकड़ा और बिना कुछ कहे उस तरफ ले गए जहां से मिताली का आधा चेहरा, पीठ, हंसना आदि स्पष्ट दिख रहे थे.

कौशलजी बुत बने खड़े रह गए.

‘‘ओह, यह तो मिताली है और वह युवक हमारे ब्लौक के आखिरी छोर पर रहने वाला रितेश है. उस की सुंदर पत्नी व 2 बच्चे हैं. औफिस के वक्त यह यहां पर? इतने मुखौटे…इतनी चालें…मिताली का भोला चेहरा…आंसुओं से डबडबाती आंखें…मां की बीमारी की बात, अपनी नौकरी की कहानी जो कि रिसैशन के कारण छूट गई और उसे यह फ्रैंड्स क्लब मजबूरी में जौइन करना पड़ा. और भी न जाने क्याक्या…ओह, मैं तो मूर्ख ही बनता रहा और न जाने कब तक बनता रहता. अगले माह उस के फ्लैट के लिए 1 लाख रुपए देने वाला था.’’

कौशलजी का चेहरा दुख, छलावे और पछतावे से रोंआसा हो उठा. आवाज भर्रा उठी, ‘‘खैर…बस, अब यह एकाकीपन और नहीं भटकाएगा, और न यह मेरे व्यक्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा पाएगा.’’

स्वयं को दृढ़तापूर्वक संयत करते हुए कौशलजी ने दूसरी ओर कदम बढ़ा दिए.

‘‘यह हुई न दिलदार वाली बात. मैं आज बहुत खुश हूं. मेरा दोस्त वापस आ गया है,’’ कह कर दिनेश ने अपना हाथ कौशल के कंधे पर रख दिया.

Famous Hindi Stories : कच्चे पंखों की फड़फड़ाहट – क्या टूटा लावण्या का विश्वास

Famous Hindi Stories  : ‘‘बुढ़ापे में तो बिस्तर पर चुपचाप सोना ही था लेकिन यहां तो आप ने 39 साल की उम्र में ही मुझे खाली पलंग के हवाले कर दिया है,’’ सोने से पहले आज भी लावण्या उदास सी अपने पति आनंद से वीडियो काल पर कह रही थी. उस का मन आनंद के बिना बिलकुल भी नहीं लगता था. दूसरे जिले में तबादले के बाद आनंद भी लावण्या के बगैर अधूरा सा हो गया था.

‘अब तो मेरा मन भी कर रहा है कि नौकरी छोड़ कर आ जाऊं घर वापस,’ आनंद ने भी बुझी सी आवाज में उस से अपने दिल का हाल बताया.

अब दिल चाहे जो भी कहे, सरकारी नौकरी भले साधारण ही क्यों न हो, लेकिन आज के जमाने में उस को छोड़ देना मुमकिन न था. इसे आनंद भी समझता था और लावण्या भी. सो, दोनों हमेशा की तरह फोन स्क्रीन के जरीए ही एकदूसरे की आंखों में डूबने की कोशिश करते रहे.

तभी लावण्या बोली, ‘‘लीजिए, सोनू भी बाथरूम से आ गया है, बात कीजिए और डांट सुनिए इस की,’’ कह कर लावण्या ने मोबाइल फोन अपने 13 साल के एकलौते बेटे सोनू को थमा दिया.

सोनू अपने पापा को देखते ही शुरू हो गया, ‘‘पापा, आप ने बोला था कि इस बार 15 दिनों के बीच में भी आएंगे… तो क्यों नहीं आए?’’

आनंद प्यार से उस को अपनी मजबूरियां बताता रहा. बात खत्म होने के बाद कमरे में नाइट बल्ब चमकने लगा और लावण्या सोनू को अपने सीने से लगा कर लेट गई.

सोनू फिर से जिद करने लगा, ‘‘मम्मी, आज कोई नई कहानी सुनाओ.’’

‘‘अच्छा बाबा, सुनो…’’ लावण्या ने नई कहानी बुननी शुरू की और उसे सुनाने लगी. नींद धीरेधीरे उन दोनों को जकड़ती चली गई.

आधी रात को लावण्या की आंख खुली तो उस ने फिर अपने कपड़े बेतरतीब पाए. साड़ी सामान्य से ज्यादा ऊपर उठी थी. उस ने बैठ कर जल्दी से उसे ठीक किया और सोनू के सिर पर हाथ फेरा. वह निश्चिंत हो कर सो रहा था.

दरवाजा तो बंद था, लेकिन गरमी का मौसम होने के चलते कमरे की खिड़की खुली थी. लावण्या खिड़की के पास जा कर बाहर गलियारे में देखने लगी. नीचे वाले कमरे में 2 छात्र किराए पर रहते थे. कहीं किसी काम से इधर आए न हों…

‘‘कितनी लापरवाह होती जा रही हूं मैं… नींद में कपड़ों का भी खयाल नहीं रहता,’’ सबकुछ ठीक पा कर बुदबुदाते हुए लावण्या बिस्तर पर आ कर लेट गई. इधर कुछ हफ्तों में तकरीबन यह चौथी बार था जब उस को बीच रात में जागने पर अपने कपड़े बेतरतीब मिले.

एक दिन सोनू के स्कूल की छुट्टी थी और उन किराएदार लड़कों की कोचिंग की भी. ऐसा होने पर आजकल सोनू बस खानेपीने के समय ही ऊपर लावण्या के पास आता था और फिर नीचे उन्हीं लड़कों के पास भाग जाता था कि भैया यह दिखा रहे हैं, वह दिखा रहे हैं. लावण्या जानती थी कि दोनों लड़के सोनू से खूब घुलमिल चुके हैं. वह निश्चिंत हो कर घर के काम निबटाने लगी.

तभी सोनू हंसता और शोर मचाता हुआ वहां से भागा आया. पीछेपीछे वे दोनों लड़के भी दौड़े चले आए.

सोनू बिस्तर पर आ गिरा और वे दोनों उसे पकड़ने लगे.

लावण्या ने टोका, ‘‘अरेअरे… यहां बदमाशी नहीं… नीचे जाओ सब…’’

‘‘ठीक है आंटी…’’ उन में से एक लड़के ने कहा और उस के बाद वे दोनों लड़के सोनू का हाथ पकड़ कर उसे नीचे ले गए.

उन तीनों के चले जाने के बाद लावण्या की नजर बिस्तर पर पड़े एक मोबाइल पर गई जो उन दोनों में से किसी का था. लावण्या ने उन्हें बुलाना चाहा, लेकिन वे दोनों जा चुके थे.

लावण्या ने वह मोबाइल टेबल पर रखा ही था कि तभी उस की स्क्रीन पर ब्लिंक होती किसी नोटिफिकेशन से उस का ध्यान उस पर गया. उस ने अनायास ही मोबाइल उठा कर देखा तो कोई वीडियो फाइल डाउनलोड हो चुकी थी. फाइल के नाम से ही उसे शक हो रहा था, सो उस ने उस को ओपन किया.

वीडियो देखते ही लावण्या की आंखें फैलती चली गईं. लड़कों ने कोई बेहूदा फिल्म डाउनलोड की थी. उस ने उस मोबाइल फोन पर ब्राउजर ओपन किया तो एड्रैस बार में कर्सर रखते ही सगेसंबंधियों पर आधारित कहानियों के ढेरों सुझाव आने लगे जो उन्होंने पहले सर्च कर रखे थे.

उसी समय किसी के सीढि़यों से ऊपर आने की आहट हुई. लावण्या ने जल्दी से मोबाइल बिस्तर पर रख दिया.

वही किराएदार लड़का अपना मोबाइल लेने आया था. उस ने पूछा, ‘‘आंटी, क्या मेरा मोबाइल है यहां?’’

‘‘हां, पलंग पर है,’’ लावण्या ने थोड़ी झल्लाहट के साथ जवाब दिया लेकिन उस लड़के का ध्यान उस पर नहीं गया और वह मोबाइल ले कर वापस नीचे चला गया.

लावण्या को कोई हैरानी नहीं हो रही थी, क्योंकि क्या लड़का और क्या लड़की, ये सब चीजें तो आज स्मार्टफोन के जमाने में आम बात हो चुकी हैं. उसे चिंता होने लगी थी तो बस सोनू के साथ उन लड़कों की बढ़ती गलबहियों की.

इस के बाद लावण्या ने सोनू को उन के पास जाने से रोकना शुरू किया. जब वह उन के पास जाना चाहता, तो वह उसे किसी बहाने से उलझा लेती. इस के बाद भी वह कभी न कभी उन के पास चला ही जाता था.

एक रात बिजली नहीं थी और लावण्या के घर का इनवर्टर भी डाउन हो गया था. गरमी के चलते उस की नींद खुल गई और प्यास भी लगने लगी थी. पानी पी आती लेकिन आलस भी हो

रहा था. इसी उधेड़बुन में वह चुपचाप लेटी रही.

तभी लावण्या को अपनी तरफ सोनू के हाथ की हरकत महसूस हुई. लावण्या को कुछ अलग सी छुअन लगी सो वह यों ही लेटी रही कि देखे आगे क्या होगा.

उन हाथों के पड़ावों के बारे में जैसेजैसे लावण्या को पता चलता गया, उस के आश्चर्य की सीमाएं टूटती गईं. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा और प्यास से सूखे मुंह में कसैले स्वाद ने भी अपनी जगह बना ली. जी तो चाहा कि सोनू को उठा कर थप्पड़ मारने शुरू कर दे, लेकिन विचारों के बवंडर ने ऐसा करने नहीं दिया.

कुछ देर बाद सोनू ने धीरे से करवट बदली और शांत हो गया. लावण्या उठ कर बिस्तर पर बैठ गई और अपनी हालत को देखने लगी. अकसर रात में अपने कपड़ों के बिखरने का राज जान कर उस की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे थे. आखिर उन लड़कों का बुरा असर उस के कलेजे के टुकड़े को भी अपनी चपेट में ले गया था.

लावण्या सोच रही थी कि उस की परवरिश में आखिर कहां कमी रह गई, जो बाहरी चीजें इतनी आसानी से उस के खून में आ मिलीं? वह उसी हाल में पूरी रात पलंग पर बैठी रही.

अगली सुबह नाश्ता बनाते समय लावण्या ने सोनू के सामने अनजान बने रहने की भरसक कोशिश की लेकिन रहरह कर उस के अंदर का हाल उस के शब्दों से लावा बन कर फूटने को उतावला हो जाता और सोनू हैरानी से उस का मुंह ताकने लगता.

सोनू के स्कूल चले जाने के बाद लावण्या लगातार अपने मन को मथती रही. आनंद से इस बारे में बात करे या नहीं? अपनी मां को बताए कि दीदी को, वह फैसला नहीं ले पा रही थी.

कई दिनों तक लावण्या इसी उधेड़बुन में रही, लेकिन किसी से कुछ कहा नहीं. सोनू से बात करते समय अब उस ने मां वाली गरिमा का ध्यान रखना शुरू कर दिया.

आखिरकार उस के दिल ने फैसला कर लिया कि सोनू उस का जिगर है, उम्र के इस मोड़ पर वह भटक सकता है मगर खो नहीं सकता.

इस के अलावा सोनू बहुत कोमल मन का भी था. अपनी छोटी सी गलती के भी पकड़े जाने पर वह काफी घबरा उठता. और यहां तो इतनी बड़ी बात थी. सीधेसीधे उस से इस बारे में कुछ कहना किसी बुरी घटना को न्योता देने के बराबर था.

लावण्या ने तय किया कि वह उन जरीयों को तोड़ देगी जो उस के बेटे के कच्चे मन की फड़फड़ाहट को अपने अनुसार हांकना चाह रहे हैं.

लावण्या ने उन लड़कों और सोनू के बीच हो रही बातचीत को छिपछिप कर सुनना शुरू किया. उस का सोचना बिलकुल सही निकला.

वे लड़के लगातार सोनू के बचपन को अधपकी जवानी में बदलना चाह रहे थे और उन की घिनौनी चर्चाओं का केंद्र लावण्या होती थी.

सोनू फटीफटी आंखों से उन की बातें सुनता रहता था. नए हार्मोंस से भरे उस के किशोर मन के लिए ये अनोखे अनुभव जो थे. लावण्या सबकुछ अपने मोबाइल फोन में रेकौर्ड करती गई.

लगातार उन को मार्क करने के बाद एक दिन लावण्या ने अपने संकल्प को पूरा करने का मन बना लिया और उन लड़कों के कमरे में गई.

सोनू अभीअभी वहां से निकला था. उसे देख कर दोनों चौंक उठे. एक ने बनावटी भोलेपन से पूछा, ‘‘क्या बात है आंटी? आप यहां…’’

लावण्या ने सोनू के साथ होने वाली उन की बातचीत की वीडियो रेकौर्डिंग चला कर मोबाइल फोन उन की ओर कर दिया. यह देख दोनों लड़के घबरा गए.

लावण्या गुस्साई नागिन सी फुफकार उठी, ‘‘अपने बच्चे पर तुम लोगों का साया भी मैं अब नहीं देख सकती. अभी और इसी वक्त यहां से अपना सामान बांध लो वरना मैं ये रेकौर्डिंग पुलिस को दिखाने जा रही हूं.’’

वे दोनों उस के पैरों पर गिर पड़े, पर लावण्या ने उन को झटक दिया और गरजी, ‘‘मैं ने कहा कि अभी निकलो तो निकलो.’’

वे दोनों उसी पल अपना बैग उठा कर वहां से भाग निकले. लावण्या सोनू के पास आई. वह इन बातों से अनजान बैठा कोई चित्र बना रहा था.

लावण्या ने उस से पूछा तो बोला कि पूरा होने पर दिखाएगा. चित्र बना कर उस ने दिखाया तो उस में लावण्या और अपना टूटफूटा मगर भावयुक्त स्कैच बनाया था उस ने और लिखा था, ‘मेरी मम्मी, सब से प्यारी.’

लावण्या ने उसे गले लगा लिया और चूमने लगी. उस की आंखों से आंसू बह निकले और दिल अपने विश्वास की जीत पर उत्सव मनाने लगा. उस के कलेजे का टुकड़ा बुरा नहीं था, बस जरा सा भटका दिया गया था जिस को वापस सही रास्ते पर आने में अब देर नहीं थी.

Hindi Kahani : घर ससुर – क्यों राजी हुए बापूजी

Hindi Kahani :  मेहुल ने तल्ख शब्दों में पूछा था, ‘‘मैं आप से फिर पूछ रहा हूं पिताजी कि आप घर आ रहे हैं या नहीं. आखिर कब तक दामाद के घर पड़े रहेंगे? अपनी नहीं तो मेरी इज्जत का तो कुछ खयाल कीजिए. भला आज तक किसी ने ‘घर ससुर’ बनने की बात सुनी है. मुझे तो लगता है कि आप का दिमाग ही चल गया है जो ऐसी बातें करते हैं.’’

‘‘नहीं सुनी तो अब सुन लो, और कितनी बार कहूं कि मैं ने  घर ससुर बनने का फैसला काफी सोचसमझ कर लिया है. मुझे अपने दामाद का घर ही अच्छा लग रहा है. कम से कम यहां एक प्याली चाय के लिए 10 बार कुत्ते की तरह भौंकना नहीं पड़ता. सीमा और किशोर मेरी हर बात का पूरा खयाल रखते हैं.

‘‘और सुनो, मेहुल, जब वे लोग भी मुझे बोझ समझने लगेंगे तो दिल्ली का ‘आशीर्वाद सीनियर सिटीजन्स होम’ तो है

ही   मुझ   जैसे उपेक्षित और बोझ बन चुके बूढ़ों के लिए. इसलिए तुम लोग अब मेरी चिंता मत करो,’’ मेघा के ससुर रुद्रप्रताप सिंह बोले.

जवाब में मेहुल कुछ और विषवमन करता हुआ बोला, ‘‘तो फिर बने रहिए घर ससुर और दामाद के हाथों अपनी इज्जत की धज्जियां उड़वाते रहिए.’’

मेघा को अपने ससुर के कहे शब्द स्पष्ट सुनाई पडे़, ‘‘हांहां, अपना आत्मसम्मान खो कर बेइज्जत बाप बने रहने से कहीं बेहतर है कि मैं इज्जतदार ‘घर ससुर’ ही बना रहूं,’’ और इसी के साथ उन्होंने फोन पटक कर अपनी नाराजगी जाहिर की तो मेहुल ने भी गुस्से में स्पीकर का स्विच बंद कर दिया.

मेघा को अपनेआप पर ग्लानि हो आई. सोचने लगी कि उस के मायके में जब लोगों को पता चलेगा कि उस की और मेहुल की लापरवाही के चलते उस के ससुर को बेटी के घर जाना पड़ा तो मायके के लोग उन के बारे में क्या सोचेंगे. उस की भाभियां क्या मां को ताना मारने का ऐसा सुनहरा अवसर हाथ से जाने देंगी. नहींनहीं, किसी भी तरह रिश्तेदारों को यह खबर होने से पहले उसे अपने ससुर को मना कर वापस लाना ही पडे़गा.

इस बारे में पहले मेहुल से बात करनी होगी. यह सोच कर मेघा ने मेहुल से कहा, ‘‘देखो, जो भी हुआ ठीक नहीं हुआ. आखिर वह तुम्हारे पिताजी हैं और उन्होंने तुम को दो बातें कह भी दीं तो क्या हुआ, तुम्हें चुप रहना था. थोड़ा सा सह लेते और उन से नरमी से पेश आते तो यों बात का बतंगड़ नहीं बनता.’’

‘‘हांहां, अब तो तुम भली बनने का नाटक करोगी ही लेकिन तब एक वृद्ध व्यक्ति को समय पर खाना और चायनाश्ता देने में तुम्हारी नानी मरती थी. उस पर रातदिन बाबूजी की शिकायत करकर के तुम्हीं ने मेरा जीना हराम कर रखा था. अब भी तुम्हें बाबूजी के जाने का दुख नहीं है बल्कि उन के साथ पेंशन के 10 हजार रुपए जाने का गम सता रहा है.’’

इस तरह मेहुल ने सारा दोष मेघा के सिर मढ़ दिया तो वह तिलमिला उठी और व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘तो तुम भी कौन सा बाबूजी की याद में तड़प रहे हो. अपने दिल पर हाथ रख कर कहो कि तुम्हें बाबूजी के रुपयों की कोई जरूरत नहीं है.’’

मेहुल को जब मेघा ने उलटा आईना दिखाया तो वह खामोश हो गया. फिर कुछ नरमी से बोला, ‘‘खैर, जो हो गया सो हो गया. अब इस पर बहस कर के क्या फायदा. सोचो कि उन्हें कैसे बुलाया जाए. क्योंकि जितना मैं उन्हें जानता हूं वह अब खुद आने वाले नहीं हैं. अभी तो वह सीमा के घर हैं पर जहां कहीं उन के आत्म- सम्मान को जरा सी ठेस पहुंची तो वह ‘आशीर्वाद सीनियर सिटीजन्स होम’ जाने में एक पल की भी देर नहीं लगाएंगे. उस के बाद वहां से वह शायद ही वापस आएं.’’

‘‘तुम कहो तो मैं बात कर के देखती हूं,’’ मेघा बोली, ‘‘अब गलती हम ने की है तो उसे सुधारने की कोशिश भी हमें ही करनी पडे़गी. पिताजी हैं.’’

‘‘नहीं, रहने दो,’’ मेहुल बोला, ‘‘बाबूजी को गए महीना भर तो हो ही गया है. अब हफ्ते भर बाद ही बच्चों की क्रिसमस की छुट्टियां होने वाली हैं. हम सब जा कर बाबूजी को मना कर आदर के साथ ले आएंगे.’’

यह सब सुन कर हुर्रे कहते हुए रानी और फनी परदे के पीछे से निकल आए जो मम्मीपापा की ऊंची आवाज सुन कर वहां आ गए थे.

‘‘मां, सच में दादाजी हमारे पास वापस आ जाएंगे?’’ दोनों बच्चे खुशी से उछलते हुए एक स्वर में बोले.

‘‘हां, बेटे, वह जरूर आएंगे. हम सब मिल कर उन्हें लेने जाएंगे,’’ मेघा भीगे स्वर में बोली तो मेहुल के चेहरे पर भी स्नेहसिक्त मुसकान आ गई.

बच्चों की छुट्टियां शुरू होने पर वे अपनी कार से बाबूजी को लेने निकल पडे़. मेहुल ने घर छोड़ने से पहले फोन पर सीमा से यह पूछ लिया था कि बाबूजी घर पर हैं कि नहीं और उन का कहीं जाने का कार्यक्रम तो नहीं है.’’

सच है बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो साथ रहने वाले अपनों के महत्त्व को समझ नहीं पाते पर किसी कारण से जब वही अपने दूर चले जाते हैं तब उन की कमी शिद्दत से महसूस करते हैं. यही हाल मेहुल और मेघा का था. जब तक बाबूजी साथ रहते थे उन्हें हर समय ऐसा लगता था कि बाबूजी बेवजह उन के कामों में टोकाटाकी करते हैं. बच्चों से गैरजरूरी बातें कर के उन का समय बरबाद करते हैं. बाबूजी ने सब पर ही एक तरह से अंकुश लगा रखा था. ऐसा लगता था मानो उन की आजादी खत्म हो गई थी.

बाबूजी कहते थे कि जीवन में कुछ बनने के लिए अपने बच्चों में अनुशासन का बीजारोपण करने के लिए खुद को अनुशासित रह कर आचरण करना पड़ता है तभी बच्चे भी हमें अपना आदर्श मान कर हम से कुछ सीख पाते हैं. तब मेघा और मेहुल को उन की ये बातें कोरी बकवास लगा करती थीं किंतु आज उन्हें बाबूजी की कही एकएक बात में सचाई का आभास हो रहा है.

बाबूजी से हर महीने उन की पेंशन को लेना तो उन्हें याद रहा या यों कहें कि अपना अधिकार तो उन्हें याद रहा पर फर्ज निभाने से वे चूक गए. अपनी सहेलियों के साथ गप लड़ाते हुए मेघा अकसर भूल जाती कि बाबूजी चाय के लिए इंतजार कर रहे हैं. वह शुगर के मरीज हैं पर उन के ही दिए पैसों से शुगर फ्री खरीदने में उन्हें पैसों की बरबादी लगती थी.

मेहुल ने भी कभी यह न सोचा कि वृद्ध पिता को उस से भी कुछ उम्मीदें हो सकती हैं. दो घड़ी मेहुल से बात करने को वह तरस जाते पर उस को इस की कोई परवा न थी. बाबूजी ने तो मेहुल के बड़ा होते ही उसे अपना मित्र बना लिया था पर वही कभी उन का दोस्त नहीं बन पाया.

अचानक गाड़ी घर्रघर्र कर हिचकोले खा कर रुक गई. यह तो अच्छा हुआ कि पास ही में एक मोटर गैराज  था. धक्के दे कर गाड़ी को वहां तक ले जाया गया. मैकेनिक ने जांच करने के बाद बताया कि ब्रेक पाइप फट गया है और उसे ठीक होने में कम से कम एक दिन तो लगेगा ही. चूंकि यह एक इत्तेफाक था कि हादसा मेघा के मायके वाले शहर में हुआ था. इसलिए कोई उपाय न देख उन्होंने गाड़ी ठीक होने तक मेघा के मायके में रुकने का फैसला लिया.

एक टैक्सी कर मेहुल अपने परिवार को ले कर ससुराल की ओर चल दिया. उन्हें अचानक आया देख कर सभी बहुत खुश हुए. मेघा के परिवार में मम्मीपापा के अलावा उस के 2 बडे़ भाई और भाभियां थीं. बडे़ भैया के 2 जुड़वां बेटे जय और लय तथा छोटे भैया की एक बेटी स्वीटी थीं. बच्चों में उम्र का ज्यादा फासला नहीं था इसलिए जल्दी ही वे एकदूसरे से घुलमिल गए और हुड़दंग मचाने लगे.

मांबाबूजी के साथ थोड़ी देर बातें करने के बाद मेघा मेहुल को वहीं छोड़ कर रसोई की ओर चल पड़ी जहां उस की  दोनों भाभियां रात के खाने की तैयारी में जुटी थीं.

मेघा ने भाभियों का हाथ बंटाना चाहा पर उन्होंने उस का मन रखने के लिए चावल बीनने की थाली पकड़ा दी और वहीं रसोई के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठा लिया. मेघा ने देखा कि उस की भाभियों ने बातोंबातों में कितने सारे पकवान बना लिए. वे जब 2 तरह की सब्जियां बना रही थीं तब मेघा ने पूछ लिया कि भाभी यह कम तेलमसाले की सब्जी किस के लिए बना रही हो तो बड़ी भाभी ने कहा कि मम्मीपापा बहुत सी खाने की चीजों से परहेज करते हैं. उन की उम्र देखते हुए उन के लिए थोड़ा अलग से बनाना पड़ता है.

‘‘पर मांबाबूजी को तो कोई बीमारी नहीं है. फिर उन के लिए आप लोग इतना झंझट क्यों कर रही हैं?’’ मेघा ने पूछा.

जवाब छोटी भाभी ने दिया, ‘‘तो क्या हुआ, बुजुर्ग लोग हैं, परहेज करते हैं तभी तो उन का स्वास्थ्य अच्छा है. फिर उन के लिए कुछ करने में कष्ट कैसा? यह तो हमारा फर्ज है. वैसे भी तुम जितना अपने ससुर के लिए करती हो उस हिसाब से हम तो कुछ भी नहीं करतीं.’’

‘‘मैं ने क्या किया और आप को कैसे पता चला?’’ मेघा कुछ असमंजस भरे स्वर में बोली.

‘‘अब रहने भी दो, दीदी,’’ बड़ी भाभी हंसती हुई बोलीं, ‘‘ज्यादा बनो मत. कल ही तो तुम्हारे ससुरजी का फोन आया था. उन्होंने ही तुम्हारे और मेहुल के बारे में हमें सबकुछ बताया.’’

मेघा के मन में जाने कैसेकैसे कुविचार और संदेह सिर उठाने लगे कि बाबूजी ने जरूर उन की शिकायत की होगी और इसीलिए भाभियां उसे यों ताने मार रही हैं पर मन का संशय प्रकट न कर मेघा बोली, ‘‘क्या बताया बाबूजी ने, क्या वह हम से नाराज हैं?’’

‘‘भला क्यों नाराज होंगे? वह तो तुम्हारी और मेहुल की बहुत तारीफ कर रहे थे. कह रहे थे कि बहू तो ऐसी है कि किसी चीज के लिए मेरे मुंह खोलने से पहले ही वह समझ जाती है कि मुझे क्या चाहिए.’’

पता नहीं भाभी और क्याक्या कहती रहीं, मेघा को और कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था. उस की अंतरात्मा उसे धिक्कारने लगी कि अपनी नासमझी की वजह से उस ने कभी बाबूजी की परवा नहीं की. अपनी सुविधानुसार इस बात का खयाल किए बगैर कि वह खाना बाबूजी के स्वास्थ्य के लिए उचित है या नहीं, वह कुछ भी उन के सामने रख देती थी.

शुरुआत में 1-2 बार बाबूजी ने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की थी पर उस ने कोई ध्यान न दिया. नतीजतन, उन की तबीयत आएदिन खराब हो जाती थी. एक उस की भाभियां हैं जो उस के स्वस्थ मातापिता का कितना ध्यान रखती हैं और एक वह है.

दूसरी ओर बाबूजी हैं कि इतना होने पर भी मायके में उस की किसी से शिकायत न कर तारीफ ही की. पश्चात्ताप की आग में जलती हुई उस की भावनाएं आंसुओं के रूप में आंखों से छलकने लगीं. वह मन ही मन प्रतिज्ञा करने लगी कि अब आगे से वह कभी भी बाबूजी को किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगी.

उधर मेहुल भी मेघा के भाइयों का अपने मातापिता के साथ व्यवहार देख कर ग्लानि से भरा जा रहा था. मेघा के दोनों भाई अपना खुद का कारोबार संभालते थे. दोनों ने ही घर आ कर उस दिन की बिक्री से प्राप्त रुपयों से अपने पिताजी को अवगत कराया. हालांकि उन्होंने किसी से भी रुपयों का ब्योरा देने के लिए नहीं कहा था. कुछ देर पास बैठ पितापुत्र ने एकदूसरे का हालचाल पूछा. फिर वे लोग मेहुल के साथ व्यस्त हो गए.

मेहुल मन ही मन सोच रहा था कि वह तो अपने पिता का इकलौता पुत्र है. इसलिए उसे तो उन की हर बात की ओर ध्यान देने की जरूरत है. मां के गुजर जाने के बाद वह अपनी बात कहते भी तो किस से. वह क्यों नहीं अब तक अपने पिता के मन की पीड़ा को समझ पाया. अब से वह बाबूजी के पेंशन के रुपयों को हाथ भी नहीं लगाएगा बल्कि उन की जरूरतों को अपने कमाए रुपए से पूरी करेगा.

अगले दिन गाड़ी ठीक हो कर घर आ गई पर मेघा के घर वालों ने जिद कर के उन्हें 2 दिन और रोक लिया. इस दौरान मेहुल ने मेघा के भाइयों का अपने मातापिता के  साथ बातचीत और व्यवहार को देख कर पहली बार जाना कि बुजुर्गों के अनुभव से कैसे लाभ उठाया जा सकता है. बच्चे कैसे दादा- दादी की वजह से अपने पारिवारिक इतिहास को जानते हैं तथा अपनी संस्कृति और रिश्तों की जड़ों से जुड़ते हैं. हमारे बुजुर्ग ही तो इन सारी चीजों की मूल जड़ होते हैं, हम तो बस, शाखा मात्र होते हैं. यदि मूल जड़ को ही काट कर फेंक दिया जाए तो गृहस्थी का वृक्ष कैसे फलफूल सकता है.

जब से मेघा और मेहुल बच्चों सहित बाबूजी को लेने निकले तो उन दोनों के सामने अपना ध्येय बिलकुल साफ हो चुका था. उन्हें विश्वास था कि उन की नादानी को माफ कर बाबूजी अवश्य उन के साथ वापस अपने घर आ जाएंगे. भला उन जैसा स्वाभिमानी व्यक्ति कभी ‘घर ससुर’ बन कर थोड़े ही रह सकता है. यह सब तो उन्हें सबक सिखाने के लिए बाबूजी ने कहा होगा. इस विश्वास के साथ वे खुशी मन से अपनी मंजिल की ओर बढ़ चले.

Hindi Stories Online : जिंदगी का पहिया – क्या हुआ था आशा के साथ

Hindi Stories Online :  उस का नाम कई बार बदला गया. उस ने जिंदगी के कई बडे़ उतारचढ़ाव देखे. झुग्गीझोंपड़ी की जिंदगी वही जान सकता है, जिस ने वहां जिंदगी बिताई हो. तंग गलियां, बारिश में टपकती छत. बाप मजदूरी करता, मां का साया था नहीं, मगर लगन थी पढ़ने की. सो, वह पास के ही एक स्कूल से मिडिल पास कर गई.

मिसेज क्लैरा से बातचीत कर के उस की अंगरेजी भी ठीक हो चली थी. पासपड़ोस के आवारा, निठल्ले लड़के जब फिकरे कसते, तो दिल करता कि वह यहां से निकल भागे. मगर वह जाती कहां? बाप ही तो एकमात्र सहारा था उस का. आम लड़कियों की तरह उस के भी सपने थे. अच्छा सा घर, पढ़ालिखा, अच्छे से कमाता पति. मगर सपने कब पूरे होते हैं?

उस का नाम आशा था. उस के लिए मिसेज क्लैरा ही सबकुछ थीं. वही उसे पढ़ालिखा भी रही थीं. वे कहतीं कि आगे पढ़ाई कर. नर्सिंग की ट्रेनिंग कराने का जिम्मा भी उन्हीं के सिर जाता है. उसे अच्छे से अस्पताल में नौकरी दिलाने में मिसेज क्लैरा का ही योगदान था. वह फूली नहीं समाती थी.

सफेद यूनिफौर्म में वह घर से जब निकली, तो वही आवारा लड़के आंखें फाड़ कर कहते, ‘‘मेम साहब, हम भी तो बीमार हैं. एक नजर इधर भी,’’ पर वह अनसुना कर के आगे बढ़ जाती. पड़ोस का कलुआ भी उम्मीदवारों की लिस्ट में था. अस्पताल में शकील भी था. वह वहां फार्मासिस्ट था. वह था बेहद गोराचिट्टा और उस की बातों से फूल झड़ते थे. लोगों ने महसूस किया कि फुरसत में वे दोनों गपें हांकते थे. आशा की हंसी को लोग शक की नजरों से देखने लगे थे. सोचते कि कुछ तो खिचड़ी पक रही है. इस बात से मिसेज क्लैरा दुखी थीं. वे तो अपने भाई के साथ आशा को ब्याहना चाहती थीं. इश्क और मुश्क की गंध छिपती नहीं है. आखिरकार आशा से वह आयशा शकील बन गई. उन दोनों ने शानदार पार्टी दी थी.

यह देख मिसेज क्लैरा दिमागी आघात का शिकार हो गई थीं. वे कई दिन छुट्टी पर रहीं… आशा यानी आयशा उन से नजरें मिलाने से कतरा रही थी.

मिसेज क्लैरा का गुस्सा वाजिब था. वे तो अपने निखट्टू भाई के लिए एक कमाऊ पत्नी चाहती थीं. मगर अब क्या हो सकता था, तीर कमान से निकल चुका था.

आयशा वैसे तो हंसबोल रही थी, मगर उस के दिल पर एक बोझ था.

शकील ने भांपते हुए कहा, ‘‘क्या बात है? क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं. बस, थकान है,’’ कह कर उस ने बात टाल दी.

मिसेज क्लैरा सबकुछ भुला कर अपने काम में बिजी हो गईं. आयशा ने उन की नजरों से बचने के लिए दूसरे अस्पताल में नौकरी तलाश ली थी. आयशा की दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया था. उस का स्वभाव अब भी वैसा ही था. मरीजों को दवा देना, उन का हालचाल पूछना. उस का बचपन का देखा सपना पूरा हो चला था. वह कच्चे मकान और बदबूदार गलियों से निकल कर स्टाफ क्वार्टर में रहने को आ गई थी. धीरेधीरे कुशल घरेलू औरत की तरह उस ने सारे सुख के साधन जुटा लिए थे. 3 साल में वह दोनों 2 से 4 बन चुके थे. एक बेटा और एक बेटी.

कल्पनाओं की उड़ान इनसान को कहां से कहां ले जाती है. इच्छाएं दिनोंदिन बढ़ती चली जाती हैं. बच्चों की देखभाल की चिंता किए बिना ही शकील परदेश चला गया… आयशा ने लाख मना किया, मगर वह नहीं माना. आयशा रोज परदेश में शकील से बातें करती व बच्चों का और अपने प्यार का वास्ता देती. बस, उस के सपने 4 साल ही चल सके. मिडिल ईस्ट में शायद शकील ने अलग घर बसा लिया था. आयशा के सपने बिखर गए. शुरूशुरू में तो शकील के फोन भी आ जाते थे कि अपना और बच्चों का ध्यान रखना. कभीकभार वैसे भी आते रहे. दिनों के साथ प्यार पर नफरत की छाया पड़ने लगी.

‘‘बुजदिल… बच्चों पर ऐसा ही प्यार उमड़ रहा था, तो देश छोड़ कर गया ही क्यों?’’

आयशा समझ गई थी कि शकील अब लौट कर नहीं आएगा… वह नफरत से कहती, ‘‘सभी मर्द होते ही बेवफा हैं.’’ आयशा अब पछता रही थी. उसे अपने सपने पूरे करने के बजाय मिसेज क्लैरा के सपने पूरे करने चाहिए थे. ‘पलभर की भूल, जीवन का रोग’ सच साबित हो गया. शकील भी शायद आयशा से छुटकारा पाना चाहता था और वह भी… आसानी से तलाक भी हो गया. उस दिन वह फूटफूट कर रोई थी.

बच्चों ने पूछा, ‘मम्मी, क्या पापा अब नहीं आएंगे?’

‘‘नहीं…’’ आयशा रोते हुए बोली थी.

‘क्यों नहीं?’ बच्चों ने पूछा था.

‘‘क्योंकि, तुम्हारे पापा ने नई मम्मी ढूंढ़ ली है.’’

आशा ने मिसेज क्लैरा के भाई से शादी कर ली… उन्हें शांति मिल गई थी. पर वे खुद कैंसर से पीडि़त थीं. अब वह आशा ग्रेस मैसी बन चुकी थी. मिसेज क्लैरा की जिंदगी ने आखिरी पड़ाव ले लिया था. वे भी दुनिया सिधार चुकी थीं. अब वह और ग्रेस मैस्सी… यही जीवन चक्र रह गया था. मगर उस का बेटा शारिक ग्रेस को स्वीकार न कर सका. शारिक अकसर घर से बाहर रहने लगा. वह समझदार हो चला था. वह लाख मनाती कि अब तुम्हारे पापा यही हैं.

‘‘नहीं… मेरे पापा तो विदेश में हैं. मैं अभी तुम्हारी शिकायत पापा से करूंगा. मुझे पापा का फोन नंबर दो.’’

यह सुन कर आशा हैरान रह जाती. आशा की बेटी समीरा गुमसुम सी रहने लगी थी. ग्रेस भी आशा के पैसों पर ऐश कर रहा था. आज मिसेज क्लैरा न थीं, जो हालात संभाल लेतीं. आशा आज कितनी अकेली पड़ गई थी. अस्पताल और घर के अलावा उस ने कहीं आनाजाना छोड़ दिया था. हंसी उस से कोसों दूर हो चली थी, मगर जिम्मेदारियों से वह खुद को अलग नहीं कर सकी थी.

शारिक को आशा ने अच्छी तालीम दिलाई. वह घर छोड़ कर जाना चाहता था. सो, वह भी चला गया. शराब ने ग्रेस को खोखला कर दिया था. वह दमे का मरीज बन चुका था.

शारिक 2-4 दिन को घर आता, तो नाराज हो जाता. वह कहता, ‘‘मम्मी, कहे देता हूं कि इसे घर से निकालो. यह हरदम खांसता रहता है. सारा पैसा इस की दवाओं पर खर्च हो जाता है.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते बेटा.’’

‘‘मम्मी, आप ने दूसरी शादी क्यों की?’’

और यह सुन कर आशा चुप्पी लगा जाती. वह तो खुद को ही गुनाहगार मानती थी, मगर वह जानती थी कि उस ने मिसेज क्लैरा के चलते ऐसा किया. वह उस की गौडमदर थीं न? आशा अब खुद ईसाई थी, मगर उस ने अपने बच्चों को वही धर्म दिया, जिस का अनुयायी उन का बाप था.

समीरा की शादी भी उस ने उसी धर्म में की, जिस का अनुयायी उस का बाप था. आशा का घर दीमक का शिकार हो चला था. वह फिर से झुगनी बस्ती में रहने को पहुंच गई थी. ग्रेस ने उसी झुगनी बस्ती में दम तोड़ा. बेटे शारिक को उस ने ग्रेस के मरने की सूचना दी, मगर वह नहीं आया.

आशा अब तनहा जिंदगी गुजार रही थी. उस की ढलती उम्र ने उसे भी जर्जर कर दिया था. रात में न जाने कितनी यादें, न जाने कितने आघात उसे घेर लेते. वह खुद से ही पूछती, ‘‘मां बनना क्या जुर्म है? क्या वही जिंदगी का बोझ ढोने को पैदा होती है?’’ उसे फिल्म ‘काजल’ का वह डायलौग याद आ रहा था, जिस में मां अपने बेटे का इंतजार करती है. धूपबत्ती जल रही है. गंगाजल मुंह में टपकाया जा रहा है. डूबती सांसों से कहती है, ‘स्त्री और पृथ्वी का जन्म तो बोझ उठाने के लिए ही हुआ है.’

आशा के सीने पर लगी चोट अब धीरेधीरे नासूर बन कर रिस रही थी.

बेटा शारिक आखिरी समय में आया और बेटी समीरा भी आई. मां को देख बेटा भावविभोर था, ‘‘मम्मी, आखिरी समय है आप का. अब भी लौट आओ. ‘‘अच्छा, जैसी तुम्हारी इच्छा. मरने के बाद इस शरीर को चाहे आग में जला देना, चाहे मिट्टी के हवाले करना…’’ और वह दुनिया से चली गई. किसी की आंख से एक आंसू भी नहीं टपका. अंतिम यात्रा में कुछ लोग ही शामिल थे.

‘‘क्या यह वही नर्स थी. क्या नाम था… मैसी?’’

‘‘तो क्या हुआ अंतिम समय में तो वह कलमा गो यानी मुसलिम थी. कहां ले जाएं इसे. यहीं पास में एक कब्रिस्तान है. वहीं ले चलें. और आशा मिट्टी में समा गई.’’ मैं अकसर उधर से गुजर रहा होता. आवारा लड़के क्रिकेट खेलते नजर आते. वहां कुछ ही कबे्रं रही होंगी. शायद लावारिस लोगों की होंगी. लेकिन आशा के वारिस भी थे. एक बेटा और एक बेटी. इस नाम के कब्रिस्तान में कोई दीया जलाने वाला न था. अब चारों तरफ ऊंचीऊंची इमारतें बन गई थीं. लोगों ने अपनी नालियों के पाइप इस कब्रिस्तान में डाल दिए थे. 3 महीने बाद आशा की बेटी समीरा बैंक की पासबुक लिए मेरे पास आई और बोली, ‘‘मम्मी के 50 हजार रुपए बैंक में जमा हैं. जरा चल कर आप सत्यापन कर दें. हम वारिस हैं न?’’ और मैं सोच रहा था कि आशा न जाने कितनी उम्मीदें लिए दुनिया से चली गई. वह जिस गंदी बस्ती में पलीबढ़ी, वहीं उस ने दम तोड़ा.

मेरे दिमाग में कई सवाल उभरे, ‘क्या फर्क पड़ता है, अगर आशा किसी ईसाई कब्रिस्तान में दफनाई जाती? क्या फर्क पड़ता है, अगर वह ताबूत में सोई होती? शायद, उस के नाम का एक पत्थर तो लगा होगा.’

‘‘हाय आशा…’’ मेरे मुंह से निकला और मेरी पलकें भीग गईं.

Interesting Hindi Stories : उस के साहबजी – श्रीकांत की जिंदगी में कुछ ऐसे शामिल हुई शांति

Interesting Hindi Stories : दरवाजे की कौलबैल बजी तो थके कदमों से कमरे की सीढि़यां उतर श्रीकांत ने एक भारी सांस ली और दरवाजा खोल दिया. शांति को सामने खड़ा देख उन की सांस में सांस आई.

शांति के अंदर कदम रखते ही पलभर पहले का उजाड़ मकान उन्हें घर लगने लगा. कुछ चल कर श्रीकांत वहीं दरवाजे के दूसरी तरफ रखे सोफे पर निढाल बैठ गए और चेहरे पर नकली मुसकान ओढ़ते हुए बोले, ‘‘बड़ी देर कर देती है आजकल, मेरी तो तुझे कोई चिंता ही नहीं है. चाय की तलब से मेरा मुंह सूखा जा रहा है.’’

‘‘कैसी बात करते हैं साहबजी? कल रातभर आप की चिंता लगी रही. कैसी तबीयत है अब?’’ रसोईघर में गैस पर चाय की पतीली चढ़ाते हुए शांति ने पूछा.

पिछले 2 दिनों से बुखार में पड़े हुए हैं श्रीकांत. बेटाबहू दिनभर औफिस में रहते और देर शाम घर लौट कर उन्हें इतनी फुरसत नहीं होती की बूढ़े पिता के कमरे में जा कर उन का हालचाल ही पूछ लिया जाए. हां, कहने पर बेटे ने दवाइयां ला कर जरूर दे दी थीं पर बूढ़ी, बुखार से तपी देह में कहां इतना दम था कि समयसमय पर उठ कर दवापानी ले सके. उस अकेलेपन में शांति ही श्रीकांत का एकमात्र सहारा थी.

श्रीकांत एएसआई पद से रिटायर हुए. तब सरकारी क्वार्टर छोड़ उन्हें बेटे के साथ पौश सोसाइटी में स्थित उस के आलीशान फ्लैट में शिफ्ट होना पड़ा. नया माहौल, नए लोग. पत्नी के साथ होते उन्हें कभी ये सब नहीं खला. मगर सालभर पहले पत्नी की मृत्यु के बाद बिलकुल अकेले पड़ गए श्रीकांत. सांझ तो फिर भी पार्क में टहलते हमउम्र साथियों के साथ हंसतेबतियाते निकल जाती मगर लंबे दिन और उजाड़ रातें उन्हें खाने को दौड़तीं. इस अकेलेपन के डर ने उन्हें शांति के करीब ला दिया था.

35-36 वर्षीया परित्यक्ता शांति  श्रीकांत के घर पर काम करती थी. शांति को उस के पति ने इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि वह उस के लिए बच्चे पैदा नहीं कर पाई. लंबी, छरहरी देह, सांवला रंग व उदास आंखों वाली शांति जाने कब श्रीकांत की ठहरीठहरी सी जिंदगी में अपनेपन की लहर जगा गई, पता ही नहीं चला. अकेलापन, अपनों की उपेक्षा, प्रेम, मित्रता न जाने क्या बांध गया दोनों को एक अनाम रिश्ते में, जहां इंतजार था, फिक्र थी और डर भी था एक बार फिर से अकेले पड़ जाने का.

पलभर में ही अदरक, इलायची की खुशबू कमरे में फैल गई. चाय टेबल पर रख शांति वापस जैसे ही रसोईघर की तरफ जाने को हुई तभी श्रीकांत ने रोक कर उसे पास बैठा लिया और चाय की चुस्कियां लेने लगे, ‘‘तो तूने अच्छी चाय बनाना सीख ही लिया.’’

मुसकरा दी शांति, दार्शनिक की सी मुद्रा में बोली, ‘‘मैं ने तो जीना भी सीख लिया साहबजी. मैं तो अपनेआप को एक जानवर सा भी नहीं आंकती थी. पति ने किसी लायक नहीं समझा तो बाल पकड़ कर घर से बाहर निकाल दिया. मांबाप ने भी साथ नहीं दिया. आप जीने की उम्मीद न जगाते तो घुटघुट कर या जहर खा कर अब तक मर चुकी होती, साहबजी.’’

‘‘पुरानी बातें क्यों याद करती है पगली. तू क्या कुछ कम एहसान कर रही है मुझ पर? घंटों बैठ कर मेरे अकेलेपन पर मरहम लगाती है, मेरे अपनों के लिए बेमतलब सी हो चुकी मेरी बातों को माने देती है और सब से बड़ी बात, बीमारी में ऐसे तीमारदारी करती है जैसे कभी मेरी मां या पत्नी करती थी.’’

भीग गईं 2 जोड़ी पलकें, देर तक दर्द धुलते रहे. आंसू पोंछती शांति रसोईघर की तरफ चली गई. उस की आंखों के आगे उस का दूषित अतीत उभर आया और उभर आए किसी अपने के रूप में उस के साहबजी. उन दिनों कितनी उदास और बुझीबुझी रहती थी शांति. श्रीकांत ने उस की कहानी सुनी तो उन्होंने एक नए जीवन से उस का परिचय कराया.

उसे याद आया कैसे उस के साहबजी ने काम के बाद उसे पढ़नालिखना सिखाया. जब वह छुटमुट हिसाबकिताब करना भी सीख गई, तब श्रीकांत ने उस के  सिलाई के हुनर को आगे बढ़ाने का सुझाव दिया. आत्मविश्वास से भर गई थी शांति. श्रीकांत के सहयोग से अपनी झोंपड़पट्टी के बाहर एक सिलाईमशीन डाल सिलाई का काम करने लगी. मगर अपने साहबजी के एहसानों को नहीं भूल पाई, समय निकाल कर उन की देखभाल करने दिन में कई बार आतीजाती रहती.

सोसाइटी से कुछ दूर ही थी उस की झोंपड़ी. सो, श्रीकांत को भी सुबह होते ही उस के आने का इंतजार रहता. मगर कुछ दिनों से श्रीकांत के पड़ोसियों की अनापशनाप फब्तियां शांति के कानों में पड़ने लगी थीं, ‘खूब फांस लिया बुड्ढे को. खुलेआम धंधा करती है और बुड्ढे की ऐयाशी तो देखो, आंख में बहूबेटे तक की शर्म नहीं.’

खुद के लिए कुछ भी सुन लेती, उसे तो आदत ही थी इन सब की. मगर दयालु साहबजी पर लांछन उसे बरदाश्त नहीं था. फिर भी साहबजी का अकेलापन और उन की फिक्र उसे श्रीकांत के घर वक्तबेवक्त ले ही आती. वह भी सोचती, ‘जब हमारे अंदर कोई गलत भावना नहीं तब जिसे जो सोचना है, सोचता रहे. जब तक खुद साहबजी आने के लिए मना नहीं करते तब तक मैं उन से मिलने आती रहूंगी.’

शाम को पार्क में टहलने नहीं जा सके श्रीकांत. बुखार तो कुछ ठीक था मगर बदन में जकड़न थी. कांपते हाथों से खुद के लिए चाय बना, बाहर सोफे पर बैठे ही थे कि बहूबेटे को सामने खड़ा पाया. दोनों की घूरती आंखें उन्हें अपराधी घोषित कर रही थीं.

श्रीकांत कुछ पूछते, उस से पहले ही बेटा उन पर बरस उठा, ‘‘पापा, आप ने कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा हमें. एक नौकरानी के साथ…छी…मुझे तो कहते हुए भी शर्म आती है.’’

‘‘यह क्या बोले जा रहे हो, अविनाश?’’ श्रीकांत के पैरों तले से मानो जमीन खिसक गई.

अब बहू गुर्राई, ‘‘अपनी नहीं तो कुछ हमारी ही इज्जत का खयाल कर लेते. पूरी सोसाइटी हम पर थूथू कर रही है.’’

पैर पटकते हुए दोनों रोज की तरह भीतर कमरे में ओझल हो गए. श्रीकांत वहीं बैठे रहे उछाले गए कीचड़ के साथ. वे कुछ समझ नहीं पाए कहां चूक हुई. मगर बच्चों को उन की मुट्ठीभर खुशी भी रास नहीं, यह उन्हें समझ आ गया था. ये बेनाम रिश्ते जितने खूबसूरत होते हैं उतने ही झीने भी. उछाली गई कालिख सीधे आ कर मुंह पर गिरती है.

दुनिया को क्या लेना किसी के  सुखदुख, किसी की तनहाई से.

वे अकेलेपन में घुटघुट कर मर जाएं या अपनों की बेरुखी को उन की बूढ़ी देह ताउम्र झेलती रहे या रिटायर हो चुका उन का ओहदा इच्छाओं, उम्मीदों को भी रिटायर घोषित क्यों न कर दे. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर न जाने उन की खुशियों पर ही क्यों यह समाज सेंध लगा कर बैठा है?

श्रीकांत सोचते, बूढ़ा आदमी इतना महत्त्वहीन क्यों हो जाता है कि वह मुट्ठीभर जिंदगी भी अपनी शर्तों पर नहीं जी पाता. बिलकुल टूट गए थे श्रीकांत, जाने कब तक वहीं बैठे रहे. पूरी रात आंखों में कट गई.

दूसरे दिन सुबह चढ़ी. देर तक कौलेबैल बजती रही. मगर श्रीकांत ने दरवाजा नहीं खोला. बाहर उन की खुशी का सामान बिखरा पड़ा था और भीतर उन का अकेलापन. बुढ़ापे की बेबसी ने अकेलापन चुन लिया था. फिर शाम भी ढली. बेटाबहू काम से खिलखिलाते हुए लौटे और दोनों अजनबी सी नजरें  श्रीकांत पर उड़ेल, कमरों में ओझल हो गए.

Dry Skin से हैं परेशान, तो इन तरीकों से करें हाइड्रेटेड

Dry Skin : हाईड्रेटेड त्वचा की उम्र धीरे धीरे बढ़ती है और ऐसी त्वचा पर मुंहासे आने की संभावना भी कम होती है. त्वचा को मौइस्चराइज करने से मुंहासे आने की संभावना कम हो जाती है. त्वचा के पी एच स्तर को सामान्य बनाये रखने के लिए उचित मात्रा में नमी की आवश्यकता होती है. यदि पी एच का स्तर सामान्य नहीं रहा तो मुंहासे आने की संभावना बहुत अधिक होती है.

कई बार त्वचा के बहुत अधिक तैलीय  होने पर चेहरे को मॉस्चराइज करने के लिए तेलों का ही प्रयोग किया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह अतिरिक्त ऑइल पहले से ही उपस्थित ऑइल के प्रभाव को प्रभावहीन बना देता है.

1. ग्लिसरीन

ग्लिसरीन अत्यंत शुष्क त्वचा के लिए बहुत अच्छा मॉस्चराइजर है. नहाने से पहले या मुंह धोने से पहले चेहरे पर ग्लिसरीन लगायें. अधिक लाभ के लिए अपने मॉस्चराइजर में ग्लिसरीन मिलकर लगायें.

2. नारियल का तेल

जी हां, नारियल तेल का उपयोग चेहरे पर किया जा सकता है. रात में सोते समय नारियल के तेल से चेहरे की मालिश करें तथा सुबह उठकर नरम और मुलायम त्वचा पायें. स्किन को हाईड्रेटेड रखने के लिए इस उपाय को अवश्य अपनाएं.

3. एलो वेरा जैल

त्वचा को हाइड्रेटेड रखने के लिए एलो वेरा सबसे अच्छा घटक है. इसका उपयोग आप दिन में कभी भी कर सकते हैं.

4. विटामिन ई ऑइल

विटामिन सी के कैप्सूल से तेल निकालकर उसे अपने लोशन या क्रीम में मिलाकर लगायें और त्वचा को मॉस्चराइज करें. विश्वास करें, त्वचा को हाइड्रेटेड रखने के लिए इसे अपनाएं और आप बाद में अवश्य हमें शुक्रिया कहेंगे.

5. ऑलिव ऑइल (जैतून का तेल)

ऑलिव ऑइल त्वचा के लिए बहुत अच्छा होता है क्योंकि इसमें पोषक तत्व तथा विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. रात में सोने से पहले इस तेल से त्वचा की मालिश करें और सुबह आपकी त्वचा नरम और मुलायम हो जायेगी.

6. रोज वॉटर (गुलाब जल)

चेहरे को दिन भर नम बनाये रखने के लिए चेहरे पर गुलाब जल छिडकें. जब भी आपको त्वचा सूखी लगे तब आप इसका छिड़काव करें. यह हाईड्रेटेड त्वचा पाने का सबसे आसान तरीका है.

Shake Recipe : गर्मियों में ट्राई करें स्ट्रौबेरी-मैंगो चौकलेट शेक, स्वाद से है भरपूर

Shake Recipe : जैसेजैसे वक्त बीत रहा है, हर रोज गर्मी का पारा चढ़ रहा है. एक तरफ जहां सूरज हमें तपा रहा है, वहीं, प्रकृति ने हमारी सुरक्षा के लिए बहुत कुछ दिया है. इस सीजन के फेवरेट और फलों के राजा आम से बना आमरस तो गर्मी का रामबाण इलाज है ही, इससे कई दूसरी रेसिपी भी बनाई जा सकती हैं. जो इस समर आपको स्वाद और सेहत दोनों देंगी.

आम का टेस्ट और जूसी फ्लेवर इसे औल टाइम फेवरेट बनाता है. लेकिन चिलचिलाती धूप से आने के बाद इसका स्वाद और भी ज्यादा टेस्टी हो जाता है. तो इस गर्मी जरूर बनाएं स्ट्राबरी-मैंगो चौकलेट शेक.

सामग्री

फेंटी हुई मलाई- 2 कप

पिंघली हुई वाइट चौकलेट- 1 कप

आम का गूदा-1 कप

स्ट्रौबेरी पल्प- 1 कप

विधि

एक कप फेंटी हुई मलाई और आधा कप पिंघली हुई वाइट चॉकलेट में आम का गूदा मिला दें. अब बची हुई एक कप मलाई और वाइट चॉकलेट को स्ट्रॉबेरी के गूदे में मिलाएं.

एक ग्लास में इस स्ट्रॉबेरी मिक्स को भरकर 5 मिनट के लिए फ्रिज में रखें. अब इस पर ऊपर से मैंगो मिक्स डाल दें और फ्रेश स्ट्रॉबेरी से सजाकर सर्व करें.

Marriage : मैं शादी नहीं करना चाहता, लेकिन घरवाले मान नहीं रहे?

Marriage :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

मैं 27 वर्षीय युवक हूं और एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पद पर काम करता हूं. अपनी समस्या मैं खुद हूं. दरअसल, मुझे न तो किसी लड़की में दिलचस्पी रही है और न ही मैं ने अभी तक किसी युवती से सैक्स संबंध ही बनाए हैं. अलबत्ता एक लड़के से मेरी दोस्ती जरूर है और हम पिछले 3 सालों से साथ रह रहे हैं. मातापिता अब मेरी शादी करना चाहते हैं पर मैं किसी लड़की की जिंदगी तबाह नहीं करना चाहता. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

ऐसा लगता है कि आप होमो सैक्सुअल हैं. मनोचिकित्सकों का मानना है कि समान सैक्स के व्यक्ति के प्रति आकर्षण का एक कारण अपनेपन का एहसास नहीं मिलना भी है.

दरअसल, घरपरिवार से दुखी रहने वाले लोग या फिर किसी अन्य वजह से परेशानी के कारण दूसरे द्वारा सहारा देना उन्हें एकदूसरे के करीब लाता है.

रिसर्च के मुताबिक समान सैक्स के प्रति झुकाव की वजह हारमोंस का असंतुलित होना भी हो सकती है. कुछ आनुवंशिक कारण से होता है तो कुछ अन्य प्रभाव की वजह से.

बेहतर होगा कि पहले आप किसी सैक्सुअल काउंसलर से मिलें और जरूरत हो तो मैडिकल चैकअप भी कराएं. स्थिति तभी पूरी तरह स्पष्ट हो पाएगी.

आप को अपनी जिंदगी किस के साथ और कैसे बितानी है, यह निर्णय भी आप खुद ही लें. यों तो हमारे समाज में ऐसे रिश्तों को स्वीकार नहीं किया जाता, मगर अब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 हटा कर समलैंगिकों को उन का हक दे दिया है.

जयपुर, राजस्थान के मालवीय नगर में रहने वाली 20 साला निधि कोचिंग के लिए टोंक फाटक जाती थी और वहां से ही अपने बौयफ्रैंड के साथ नारायण सिंह सर्किल के पास बने सैंट्रल पार्क की झाडि़यों में जिस्मानी संबंध बना कर उस से बाजार में खूब खरीदारी कराती थी. यही हाल कुछ समय पहले तक उस की बड़ी बहन कीर्ति का था. उस के भी कई बौयफ्रैंड थे. एक बार जब वह एक बौयफ्रैंड के साथ एक पार्क में संबंध बना रही थी कि तभी वहां 5-6 कालेज के दादा किस्म के लड़के आ गए. उन लड़कों को देख कीर्ति का बौयफ्रैंड वहां से भाग गया, मगर उन लड़कों ने कीर्ति को दबोच लिया और 3-4 घंटे तक उस का बलात्कार किया. जब कीर्ति को होश आया, तो वह गिरतेपड़ते अपने घर पहुंची. उस के बाद उस ने अपने सभी बौयफ्रैंडों से दोस्ती खत्म कर ली और अपना ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया. वह आज एक बड़ी सरकारी अफसर है.

कई साल पहले राजस्थान के धौलपुर जिले के बसेड़ी कसबे में जाटव जाति का एक गरीब परिवार का लड़का चंद्रपाल जब पटवारी की नौकरी पर लगा था, तब उस के मांबाप ने उसे समझाया था कि वह अपनी नौकरी ईमानदारी से करे. अपने मांबाप की इन बातों को सुन कर चंद्रपाल ने अपना काम ईमानदारी से करना शुरू कर दिया था.

पटवारी की नौकरी करते हुए वह कुछ सालों बाद भूअभिलेख निरीक्षक बन गया और उस के बाद नायब तहसीलदार और अब तहसीलदार बन कर ईमानदारी से अपना काम कर रहा है.

30 साला मनोज एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क है. कमाऊ महकमे में होने के चलते वह हजार दो हजार रुपए रोजाना ऊपर की कमाई कर लेता है. वह जयपुर के प्रताप नगर हाउसिंग बोर्ड में अपनी 23 साला बीवी सुप्रिया के साथ रहता है.

जब मनोज की बीवी 3 बच्चों की मां बन गई, तो उस का झुकाव अपनी 20 साला कालेज में पढ़ने वाली साली नेहा की ओर हो गया. वह उसे अपने पास ही रखने लगा. उस ने अपनी साली को पैसे और महंगेमहंगे तोहफे दे कर पटा लिया था. बीवी के सो जाने पर वह अपनी साली के कमरे में चला जाता था.

एक रात को अचानक नींद खुल जाने से जब मनोज की बीवी सुप्रिया ने उसे अपने बैड पर नहीं देखा, तो वह अपनी छोटी बहन नेहा के कमरे में चली गई. वहां पर उन दोनों को साथ देख वह गुस्से में आगबबूला हो उठी.

कुछ दिनों तक तो वे दोनों एकदूसरे से दूर रहे, मगर फिर होटल में मिलने लगे. एक दिन जब वे होटल में पुलिस द्वारा पकड़े गए, तो उन के मांबाप को बहुत दुख हुआ.

वे दोनों जीजासाली सोच रहे थे कि अगर सुप्रिया उन के बीच रोड़ा नहीं बनती, तो उन्हें होटल में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. लिहाजा, उन्होंने सुप्रिया की गला घोंट कर हत्या कर दी.

हत्या के बाद वे दोनों वहां से फरार हो गए. दूसरे दिन जब पड़ोस के लोगों को मालूम हुआ, तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया.कई दिनों के बाद सुप्रिया की हत्या के जुर्म में मनोज और नेहा को गिरफ्तार कर लिया गया.

दूसरों की ऐसी भूल से सबक ले कर जो लोग इन्हें अपनी जिंदगी में शामिल नहीं करते हैं, वे सुख भरी जिंदगी बिताते हैं.

इस तरह लें Perfect Selfie और कमाएं ज्यादा लाइक

Perfect Selfie : आजकल सोशल मीडिया का जमाना है. सुबह की पहली चाय की चुस्की से लेकर रात में बिस्तर पर लेटने तक की सारी अपडेट फोटो और वीडियो के जरिए लोग अपने दोस्तों और फौलोवर्स के साथ शेयर करना पसंद करते हैं. यूजर्स के अंदर सेल्‍फी का क्रेज बढ़ता ही जा रहा है. मौका मिलते ही लोग सेल्‍फी लेना नहीं भूलते. लेकिन सेल्फी लेना भी एक कला है. सेल्फी लेने के लिए सही एंगल लाइटिंग, पोज़, जैसी कई बातों का धयान रखना होता है ताकि आपकी सेल्फी अच्छी आये और ज्यादा से ज्यादा लोग उसे लाइक कर सकें. आइये जाने कैसे ले सकते हैं अच्छी सेल्फी.

बाई डिफौल्‍ट मोड

हम आपको बता दें कि फोन में सभी सेटिंग औटो पर रहना ही बाई डिफौल्ट मोड होता है. अगर आपकी सभी सेटिंग्स बाई डिफौल्ट मोड पर हो, तो इससे सेल्फी अच्छी आएगी. साथ ही आपको सेल्फी लेने में टाइम भी कम लगेगा और लाइट और इफेक्‍ट अपने आप ही सेट हो जाएगा.

पोर्ट्रेट मोड

आपके iPhone में एक पोर्ट्रेट मोड है, जिसका आप शानदार पोर्ट्रेट शौट्स लेने के लिए फायदा उठा सकते हैं. पोर्ट्रेट मोड में 6 पोर्ट्रेट लाइट औप्शन हैं – नैचुरल, स्टूडियो, कंटूर, स्टेज, स्टेज मोनो, और हाई‑की मोनो, जिनमें से सभी अलगअलग स्थितियों के हिसाब से थोड़ा अलग लाइटिंग टोन प्रदान करते हैं.

बैकग्राउंड लाइट पर भी धयान दें

सेल्फी लेने से पहले बैकग्राउंड लाइट चैक करें. ऐसा न हो कि सेल्फी ले रहे हों और पीछे से लाइट आ रही हो. लाइट के कारण चेहरा साफ नहीं आएगा. जब भी फोटो क्लिक करें तो ध्यान रखें कि उजाला सामने से आ रहा हो या फिर साइड से। इससे फोटो स्वाभाविक दिखती है.

कैमरा एंगल को चेहरे के नीचे रखने की जगह ऊपर की ओर रखें

अगर आप कैमरा एंगल को अपने चेहरे के नीचे रखने की जगह ऊपर की ओर रखेंगी तो सेल्फी ज्यादा बेहतर आएगी. नीचे की ओर कैमरा रखने से ऐसा हो सकता है कि चेहरे पर प्रौपर लाइट न पड़े और साथ ही साथ चेहरा मोटा भी लगे. अगर चेहरे को पतला दिखाना है तो इसके लिए सेल्फी को ऊपर की ओर से खींचें. आपकी आंखें ऊपर की ओर होनी चाहिए और साथ ही साथ आपकी आईब्रो भी अगर थोड़ी सी चढ़ी हुई होगी तो चेहरे के फीचर्स ज्यादा बेहतर दिखेंगे.

नेचुरल लाइट का यूज करें

अगर अच्छी फोटो लेनी है तो कमरे की खिड़कियां या दरवाजे खोल दें या फिर जिस जगह सूरज की रौशनी हो वहां लें. आप खुद देखेंगे कि नेचुरल लाइट में फोटो बहुत अच्छी आती है.

नाइट मोड

अगर आपके फोन में नाइट मोड का फीचर है तो उसका यूज़ अँधेरे में फोटो लेने के लिए कर सकते हैं. अगर ज़्यादा अंधेरा होने पर शौट लेना है तो अपनी फोटो को ब्राइट करने के लिए अपने फोन के नाइट मोड का इस्तेमाल करें.

एक्सपोज़र एडजस्ट करें (Adjust exposure)

अगर आप कम रोशनी वाली जगह पर सेल्फी लेना चाहते हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. आप अपने iPhone के साथ मैन्युअल रूप से एक्सपोज़र एडजस्ट कर सकते हैं. बस अपने सबजेक्ट को फोकस रखें और स्क्रीन पर टैप करें. एक लाइट चिह्न दिखाई देगा जिसे आप लाइट की आवश्यकता के अनुसार मैन्युअल रूप से एक्सपोज़र एडजस्ट करने के लिए ऊपर और नीचे घुमा सकते हैं.

ग्रुप सेल्फी लेने से बचें

सेल्फी का मतलब ही है अपना फोटो लेना या फिर साथ में एक बन्दे को और लिया जा सकता है. लेकिन कई बार हम अपने पुरे फ्रेंड सर्कल की सेल्फी एक साथ लेने में लग जाते हैं लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है. इससे फोटो भी अच्छा नहीं आता. दरअसल, ग्रुप सेल्फी में कई बार फोकस की समस्‍या रहती है और जरूरी चीजें आउट औफ फोकस हो जाती हैं.

3 से 5 सेकेंड का टाइमर का यूज करें

कई बार होता है न कि सेल्फी में एंगल और फोटो सब अच्छा आ रहा होता है लेकिन स्क्रीन पर दिए बटन को दबाना बहुत मुश्किल हो जाता है. सेल्फी लेते समय हाथ हिल जाता है या फिर कोई ख़ास चीज काटने लगती है.या फिर चीजें ब्‍लर हो जाती हैं. ऐसे में आप सेल्फ टाइमर का उपयोग कर सकते हैं. इससे सेल्फी अच्छी भी आएगी और मेहनत भी कम होगी.

सेल्फी के पोज़ पर भी धयान दें

सेल्फी लेने का शौक तब शॉक में बदल जाता है जब पोज़ इतना बेकार आता है कि बाद में पछतावा होता है कि काश सही पोज़ कैसे बनता है इस पर भी धयान दे दिया होता. इसलिए सेल्‍फी लेते वक्‍त आप थोड़ा साइड पोज दें यानी की फोटो दाईं या बाईं ओर से ही लें. इससे आपका फीचर शार्प और अधिक आकर्षक आता है. इसके आलावा सेल्फी के लिए हमेशा एक पोज देने से बेहतर है कि आप कुछ नया पोज ट्राई करें. इसके लिए आप चश्मा लगाएं या फिर किसी के साथ खड़े हों.

अपने फोन के पीछे के कैमरे का प्रयोग करें

कई सेलफोन्स में दो केमरे होते हैं: एक आगे और एक पीछे. सेल्फी लेने के लिए आगे के कैमरे की बजाय पीछे के कैमरे का उपयोग करें क्योंकि आगे के कैमरे की अपेक्षा पीछे का कैमरा हायर रेसोलुशन पिक्चर देता है जिससे धुंधली सेल्फी से मुक्ति मिलती है .अपना फ़ोन चारों और घुमाना होगा और फोटो लेने के लिए आपको अपना चेहरा भी नहीं दिखेगा, फिर भी पीछे के कैमरे का उपयोग करने से होने वाली परेशानी उठाकर भी आप अच्छी सेल्फी पाकर फ़ायदे में रहेंगे.

फोटो एडिटिंग करते समय धयान दें

वैसे तो फोटो में नेचुरल लुक हीअच्छा लगता है. ज्यादा एडिट करने से फोटो दिखावटी लगती है. अगर फोटो को एडिट करना है तो अलग से एप्स की जगह फोन के कैमरे में दिए एडिट फीचर्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

फ्लैश लाइट का इस्तेमाल

सेल्फी अगर दिन के समय ले रहे हैं तो फ्लैश लाइट का इस्तेमाल न करें. इससे प्राकृतिक फोटो नहीं आती है और अधिक रोशनी के कारण तस्वीर ख़राब हो सकती है या दिखावटी लग सकती है.

सेल्फी स्टिक का करें प्रयोग

अगर आप अकेले सफर पर हैं, तो सेल्फी फोटो के लिए सेल्‍फी स्टिक का इस्‍तेमाल करें. स्टिक की वजह से कैमरा आपसे थोड़ा दूर हो जाता है और आप अपनी तस्वीर दूर से लेने में सक्षम होते हैं.

फिल्टर्स का प्रयोग करें

अधिकतर लोग जो सेल्फी लेते हैं उनके फोन में एक एप्लीकेशन होता है जिसकी मदद से कलर और लाइट फिल्टर्स का प्रयोग करके मनपसंद डायमेंशन डाले जा सकते हैं. प्रत्येक फ़िल्टर हर एक सेल्फी के लिए सही नहीं होता इसलिए किसी एक को सेटल करने से पहले इस बात को समझें कि आपके लिए क्या सही है. जैसे कि सबसे सामान्य फिल्टर्स हैं “ब्लैक और व्हाइट” और “सेपिया”. अगर आपके फोन में ये एप इनस्टौल नहीं है तब भी शायद आपके पास ये फीचर्स हो सकते हैं. अन्य फिल्टर्स के द्वारा फोटो को विन्टेज़, क्रीपी या रोमांटिक लुक दिए जाते हैं. इन सभी को टेस्ट करके देखें कि इनमे से कौन सा फ़िल्टर आपके फोटो के लिए सबसे अच्छा है.

Brother Sister Relationship: जब भाईबहन के बीच पनपने लगे जलन

Brother Sister Relationship: दिल्ली के नेब सराय इलाके में एक भाई ने अपनी बहन और मांबाप को मौत के घाट उतार दिया. आरोपी के मातापिता की शादी की 27वीं सालगिरह थी. मृतकों की पहचान राजेश कुमार (51), कोमल (46) और कविता (23) के रूप में हुई थी. राजेश कुमार सेना से रिटायर थे और फिलहाल सिक्योरिटी औफिसर के रूप में काम कर रहे थे. उन की पत्नी हाउसवाइफ थी और बेटी पढ़ाई कर रही थी.

पूछताछ में पता चला कि पिता उसे पढ़ाई के लिए डांटते रहते थे. लेकिन उस का मन पढ़ाई में नहीं लगता था. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने घर के बाहर कई लोगों के सामने उसे पीटा था. इतना ही नहीं, वह घर में भी अलगथलग महसूस करता था. उस ने यह भी बताया कि घर में मम्मी और बहन भी उसे सपोर्ट नहीं करती थीं. उसी दौरान उसे पता चला कि पिता पूरी प्रौपर्टी उस की बहन के नाम कर रहे हैं तो वह नाराज हो गया और उस ने उन्हें मारने का फैसला कर लिया. उस ने सब से पहले अपनी बहन की सोते समय गला काट कर हत्या कर दी. फिर वह ऊपर गया जहां उस ने अपने पिता की गरदन पर चाकू मारा. उस के बाद उस ने वाशरूम गई अपनी मां का गला काट दिया.

इसी तरह की कई घटनाएं आएदिन सुनने को मिल जाती हैं कि प्रौपर्टी के लिए बहन ने भाई को मार डाला या घर में बहन को ज्यादा इज्जत मिलने से भाई ने बहन को ठिकाने लगा दिया.

हम बचपन से सुनते और देखते आए हैं कि भाईबहन का रिश्ता दुनिया के सब से अनमोल और प्योर रिश्तों में से एक माना जाता है. यह एक ऐसा रिलेशन होता है जिस में बचपन की शरारतें, प्यार, मस्ती, एकदूसरे की चिंता और साथ ही कभीकभी नोकझोंक भी शामिल होती है. बचपन से ही भाईबहन एकसाथ बड़े होते हैं, एक ही छत के नीचे खेलते हैं, झगड़ते हैं, फिर मान जाते हैं.

इन दोनों के रिलेशन को मांबाप का प्यार और संस्कार दोनों को एकसाथ आगे बढ़ाने में मदद करता है. लेकिन कई बार सिचुएशन ऐसी हो जाती है कि इस रिश्ते में कंपीटिशन और जलन की भावना घर करने लगती है. यह भावना धीरेधीरे भाईबहन के रिश्ते को खराब करने लगती है और यदि समय रहते इसे सुलझाया न जाए तो यह ऊपर दी गई घटना का रूप भी ले सकती है.

यह जरूरी नहीं कि जलन की भावना केवल बहन को भाई से हो कि उस के मातापिता भाई को ज्यादा चाहते हैं और सभी सुखसुविधाएं भी उसी को देते हैं. हालिया दौर में यह स्थिति बदल सी गई है. घर में अगर बहन को ज्यादा तवज्जुह मिलती है तो भाई भी खुन्नस से भर जाते हैं.

दोनों में इस जलन की भावना के पीछे कई कारण हो सकते हैं. अकसर देखा जाता है कि मातापिता की अपेक्षाएं, सामाजिक तुलना, पारिवारिक माहौल आदि इस भावना को जन्म देने में आग में घी का काम करते हैं. जब मातापिता किसी एक संतान की उपलब्धियों को ज्यादा महत्त्व देते हैं और दूसरे को इग्नोर करते हैं, तो ऐसा महसूस करने वाला बच्चा धीरेधीरे अपने भाई या बहन से जलन महसूस करने लगता है. यह जलन बचपन से ही मन में घर कर जाती है और बड़े होने के साथसाथ यह भावना और गहरी होती चली जाती है.

कई बार मातापिता अनजाने में ही दोनों बच्चों की तुलना करने लगते हैं. पढ़ाई में कौन बेहतर है, खेलकूद में कौन आगे है, कौन अधिक जिम्मेदार है, किस की नौकरी अच्छी है. यहां तक कि जब बच्चों में उन की शकलसूरत और रंगभेद किया जाता है तब बच्चे के मन में हीनभावना आ जाती है. इस से वह दबा हुआ फील करने लगता है और मन ही मन घुटता जाता है.

यदि किसी एक बच्चे को ज्यादा सराहा जाता है, तो दूसरा बच्चा यह महसूस करने लगता है कि उसे पर्याप्त प्यार और पहचान नहीं मिल रही. यह भावना तब और भी गहरी हो जाती है जब समाज, रिश्तेदार या दोस्त भी इस तुलना को बढ़ावा देने लगते हैं.

कुछ मामलों में पैसा और परवरिश भी भाईबहन के बीच जलन की भावना को जन्म देती है. यदि परिवार में किसी एक भाई या बहन को अधिक सुविधाएं, बेहतर शिक्षा या दूसरे से ज्यादा संपत्ति मिलती है, तो दूसरे को यह लग सकता है कि उस के साथ अन्याय हुआ है. संपत्ति का बंटवारा कई बार भाईबहनों के बीच दुश्मनी का सब से बड़ा कारण बन जाता है.

इस के अलावा, जब कोई भाई या बहन किसी क्षेत्र में बहुत अच्छा कर रहा हो और दूसरा संघर्ष कर रहा हो, तो दूसरे के मन में हीनभावना आ सकती है. यदि मातापिता और परिवार इस अंतर को और बढ़ाने लगते हैं, तो यह भावना जलन का रूप ले सकती है.

ऐसा ही हुआ सुमित और रिया के बीच. सुमित और रिया बचपन से ही हर खुशी और हर मुश्किल में साथ रहते थे. बचपन में साथ खेलना, झगड़ना, फिर मान जाना उन की रोज की आदत थी. लेकिन जैसेजैसे वे बड़े हुए, उन के बीच एक अनकही दूरी आने लगी.

सुमित पढ़ाई में बहुत तेज था, हर परीक्षा में अव्वल आता और घर में उस की खूब तारीफ होती. रिया भी मेहनती थी, लेकिन उस के अंक हमेशा औसत ही रहते. हर बार जब सुमित की तारीफ होती, रिया के मन में यह खयाल आता कि क्या वह अपने मातापिता की पसंदीदा संतान नहीं है? धीरेधीरे यह भावना जलन में बदलने लगी.

समय बीतता गया. सुमित ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर एक बड़ी कंपनी में नौकरी पा ली, जबकि रिया ने एक छोटे से स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली. अब रिश्तेदार भी अकसर तुलना करने लगे “सुमित ने तो नाम कमा लिया, रिया बस एक मामूली टीचर रह गई.” ये बातें रिया को अंदर ही अंदर चुभने लगीं.

एक दिन, जब सुमित घर आया तो उस ने मांपापा के लिए एक महंगा उपहार ला कर दिया. मां की आंखों में खुशी के आंसू थे और उन्होंने सुमित को गले से लगा लिया. रिया एक कोने में खड़ी यह सब देख रही थी. उस के मन में जलन का भाव और गहरा हो गया. उसे लगा कि मातापिता को अब उस की कोई परवा नहीं है.

अगले दिन रिया ने सुमित से बिना बात के झगड़ा कर लिया. सुमित को समझ नहीं आया कि आखिर उस की बहन इतनी गुस्से में क्यों है. लेकिन फिर उस ने गौर किया कि रिया उस से पहले की तरह बात नहीं करती, हंसती नहीं और हमेशा चुपचुप सी रहती है.

एक दिन, जब रिया स्कूल से लौटी तो देखा कि सुमित ने उस के लिए एक सुंदर डायरी ला कर रखी थी, जिस पर लिखा था, “मेरी सब से प्यारी बहन के लिए, जो मेरी प्रेरणा है.” यह पढ़ कर रिया की आंखों से आंसू बह निकले. उस ने सुमित से लिपट कर रोते हुए कहा, “भैया, मुझे माफ कर दो, मैं हमेशा यह सोचती रही कि तुम मुझ से बेहतर हो, लेकिन सच तो यह है कि तुम ने हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.”

सुमित ने कहा, “तू मेरी बहन है, रिया. हमारे रिश्ते में तुलना या जलन के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. हम दोनों एक ही परिवार का हिस्सा हैं और हमें हमेशा एकदूसरे की खुशियों में खुश रहना चाहिए.”

उस दिन रिया को एहसास हुआ कि जलन एक ऐसा जहर है जो प्यारभरे रिश्तों को भी धीरेधीरे खराब कर सकता है.

इस वाकेआ में तो समय रहते रिया ने अपनी खटास दूर कर ली. लेकिन कई बार ये छोटीमोटी जलन और मनमुटाव बड़े हादसों का कारण बन जाते हैं. मातापिता का अधिक लगाव भी इस समस्या को बढ़ा सकता है. यदि माता या पिता किसी एक संतान को अधिक प्यार और ध्यान देते हैं, तो दूसरे को यह लग सकता है कि उस के साथ भेदभाव किया जा रहा है.

हालांकि, इस समस्या को हल करने के कई तरीके हो सकते हैं. सब से पहले, मातापिता को चाहिए कि वे अपने सभी बच्चों के साथ समान व्यवहार करें और उन की भावनाओं को समझने की कोशिश करें. क्योंकि अगर मातापिता ही अपने बच्चे को इज्जत नहीं देंगे तो उस के भाईबहन भी उसे कुछ नहीं समझेंगे. किसी भी बच्चे को यह महसूस नहीं होना चाहिए कि वह अपने मातापिता के प्यार और ध्यान से वंचित है. तुलना करने से बचना चाहिए और हर बच्चे की व्यक्तिगत क्षमताओं को पहचान कर उसे प्रोत्साहित करना चाहिए.

भाईबहनों को भी आपस में संवाद बनाए रखना चाहिए. अगर किसी को दूसरे से कोई शिकायत हो तो उसे खुल कर व्यक्त करना चाहिए, न कि मन में जलन की भावना पालनी चाहिए. अकसर गलतफहमियां ही रिश्तों में दरार पैदा करती हैं, इसलिए कम्युनिकेशन की कमी नहीं होनी चाहिए.

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