Social Story: कामिनी आंटी- आखिर क्या थी विभा के पति की सच्चाई

Social Story: विभा को खिड़की पर उदास खड़ा देख मां से रहा नहीं गया. बोलीं, ‘‘क्या बात है बेटा, जब से घूम कर लौटी है परेशान सी दिखाई दे रही है? मयंक से झगड़ा हुआ है या कोई और बात है? कुछ तो बता?’’ ‘‘कुछ नहीं मां… बस ऐसे ही,’’ संक्षिप्त उत्तर दे विभा वाशरूम की ओर बढ़ गई.

‘‘7 दिन हो गए हैं तुझे यहां आए. क्या ससुराल वापस नहीं जाना? मालाजी फोन पर फोन किए जा रही हैं… क्या जवाब दूं उन्हें.’’ ‘‘तो क्या अब मैं चैन से इस घर में कुछ दिन भी नहीं रह सकती? अगर इतना ही बोझ लगती हूं तो बता दो, चली जाऊंगी यहां से,’’ कहते हुए विभा ने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘अरे मेरी बात तो सुन,’’ बाहर खड़ी मां की आंखें आंसुओं से भीग गईं. अभी कुछ दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से अपनी इकलौती लाडली बेटी विभा की शादी की थी. सब कुछ बहुत अच्छा था. सौफ्टवेयर इंजीनियर लड़का पहली बार में ही विभा और उस की पूरी फैमिली को पसंद आ गया था. मयंक की अच्छी जौब और छोटी फैमिली और वह भी उसी शहर में. यही देख कर उन्होंने आसानी से इस रिश्ते के लिए हां कर दी थी कि शादी के बाद बेटी को देखने उन की निगाहें नहीं तरसेंगी. लेकिन हाल ही में हनीमून मना कर लौटी बेटी के अजीबोगरीब व्यवहार ने उन की जान सांसत में डाल दी थी.

पत्नी के चेहरे पर पड़ी चिंता की लकीरों ने महेश चंद को भी उलझन में डाल दिया. कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि ‘‘हैलो आंटी, हैलो अंकल,’’ कहते हुए विभा की खास दोस्त दिव्या ने बैठक में प्रवेश किया. ‘‘अरे तुम कब आई बेटा?’’ पैर छूने के लिए झुकी दिव्या के सिर पर आशीर्वादस्वरूप हाथ फेरते हुए दिव्या की मां ने पूछा.

‘‘रात 8 बजे ही घर पहुंची थी आंटी. 4 दिन की छुट्टी मिली है. इसीलिए आज ही मिलने आ गई.’’

‘‘तुम्हारी जौब कैसी चल रही है?’’ महेश चंद के पूछने पर दिव्या ने हंसते हुए उन्हें अंगूठा दिखाया और आंटी की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘विभा कैसी है? बहुत दिनों से उस से बात नहीं हुई. मैं ने फोन फौर्मैट करवाया है, इसलिए कौल न कर सकी और उस का भी कोई फोन नहीं आया.’’ ‘‘तू पहले इधर आ, कुछ बात करनी है,’’ विभा की मां उसे सीधे किचन में ले गईं.

पूरी बात समझने के बाद दिव्या ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह तुरंत विभा की परेशानी को समझ उन से साझा करेगी.

बैडरूम के दरवाजे पर दिव्या को देख विभा की खुशी का ठिकाना न रहा. दोनों 4 महीने बाद मिल रही थीं. अपनी किसी पारिवारिक उलझन के कारण दिव्या उस की शादी में भी सम्मिलित न हो सकी थी.

‘‘कैसी है मेरी जान, हमारे जीजू बहुत परेशान तो नहीं करते हैं?’’ बड़ी अदा से आंख मारते हुए दिव्या ने विभा को छेड़ा. ‘‘तू कैसी है? कब आई?’’ एक फीकी हंसी हंसते हुए विभा ने दिव्या से पूछा.

‘‘क्या हुआ है विभा, इज समथिंग रौंग देयर? देख मुझ से तू कुछ न छिपा. तेरी हंसी के पीछे एक गहरी अव्यक्त उदासी दिखाई दे रही है. मुझे बता, आखिर बात क्या है?’’ दिव्या उस की आंखों में देखते हुए बोली. अचानक विभा की पलकों के कोर गीले हो चले. फिर उस ने जो बताया वह वाकई चौंकाने वाला था.

विभा के अनुसार सुहागरात से ही फिजिकल रिलेशन के दौरान मयंक में वह एक झिझक सी महसूस कर रही थी, जो कतई स्वाभाविक नहीं लग रही थी. उन्होंने बहुत कोशिश की, रिलेशन से पहले फोरप्ले आदि भी किया, बावजूद इस के उन के बीच अभी तक सामान्य फिजिकल रिलेशन नहीं बन पाया और न ही वे चरमोत्कर्ष का आनंद ही उठा पाए. इस के चलते उन के रिश्ते में एक चिड़चिड़ापन व तनाव आ गया है. यों मयंक उस का बहुत ध्यान रखता और प्यार भी करता है. उस की समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे. मांपापा से यह सब कहने में शर्म आती है, वैसे भी वे यह सब जान कर परेशान ही होंगे.

विभा की पूरी बात सुन दिव्या ने सब से पहले उसे ससुराल लौट जाने के लिए कहा और धैर्य रखने की सलाह दी. अपना व्यवहार भी संतुलित रखने को कहा ताकि उस के मम्मीपापा को तसल्ली हो सके कि सब कुछ ठीक है. दिव्या की सलाह के अनुसार विभा ससुराल आ गई. इस बीच उस ने मयंक के साथ अपने रिश्ते को पूरी तरह से सामान्य बनाने की कोशिश भी की और भरोसा भी जताया कि मयंक की किसी भी परेशानी में वह उस के साथ खड़ी है. उस के इस सकारात्मक रवैए का तुरंत ही असर दिखने लगा. मयंक की झिझक धीरेधीरे खुलने लगी. लेकिन फिजिकल रिलेशन की समस्या अभी तक ज्यों की त्यों थी.

कुछ दिनों की समझाइश के बाद आखिरकार विभा ने मयंक को काउंसलर के पास चलने को राजी कर लिया. दिव्या के बताए पते पर दोनों क्लिनिक पहुंचे, जहां यौनरोग विशेषज्ञ डा. नमन खुराना ने उन से सैक्स के मद्देनजर कुछ सवाल किए. उन की परेशानी समझ डाक्टर ने विभा को कुछ देर बाहर बैठने के लिए कह कर मयंक से अकेले में कुछ बातें कीं. उन्हें 3 सिटिंग्स के लिए आने का सुझाव दे कर डा. नमन ने मयंक के लिए कुछ दवाएं भी लिखीं.

कुछ दिनों के अंतराल पर मयंक के साथ 3 सिटिंग्स पूरी होने के बाद डा. नमन ने विभा को फोन कर अपने क्लिनिक बुलाया और कहा, ‘‘विभाजी, आप के पति शारीरिक तौर पर बेहद फिट हैं. दरअसल वे इरैक्शन की समस्या से जूझ रहे हैं, जो एक मानसिक तनाव या कमजोरी के अलावा कुछ नहीं है. इसे पुरुषों के परफौर्मैंस प्रैशर से भी जोड़ कर देखा जाता है.

‘‘इस समय उन्हें आप के मानसिक संबल की बहुत आवश्यकता है. आप को थोड़ा मजबूत हो कर यह जानने की जरूरत है कि किशोरावस्था में आप के पति यौन शोषण का शिकार हुए हैं और कई बार हुए हैं. अपने से काफी बड़ी महिला के साथ रिलेशन बना कर उसे संतुष्ट करने में उन्हें शारीरिक तौर पर तो परेशानी झेलनी ही पड़ी, साथ ही उन्हें मानसिक स्तर पर भी बहुत जलील होना पड़ा है, जिस का कारण कहीं न कहीं वे स्वयं को भी मानते हैं. इसीलिए स्वेच्छा से आप के साथ संबंध बनाते वक्त भी वे उसी अपराधबोध का शिकार हो रहे हैं. चूंकि फिजिकल रिलेशन की सफलता आप की मानसिक स्थिति तय करती है, लिहाजा इस अपराधग्रंथि के चलते संबंध बनाते वक्त वे आप के प्रति पूरी ईमानदारी नहीं दिखा पाते, नतीजतन आप दोनों उस सुख से वंचित रह जाते हैं. अत: आप को अभी बेहद सजग हो कर उन्हें प्रेम से संभालने की जरूरत है.’’ विभा को काटो तो खून नहीं. अपने पति के बारे में हुए इस खुलासे से वह सन्न रह गई.

क्या ऐसा भी होता है. ऐसा कैसे हो सकता है? एक लड़के का यौन शोषण आदि तमाम बातें उस की समझ के परे थीं. उस का मन मानने को तैयार नहीं था कि एक हट्टाकट्टा नौजवान भी कभी यौन शोषण का शिकार हो सकता है. पर यह एक हकीकत थी जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था. अत: अपने मन को कड़ा कर वह पिछली सभी बातों पर गौर करने लगी. पूरा समय मजाकमस्ती के मूड में रहने वाले मयंक का रात के समय बैड पर कुछ अनमना और असहज हो जाना, इधर स्त्रीसुलभ लाज के चलते विभा का उस की प्यार की पहल का इंतजार करना, मयंक की ओर से शुरुआत न होते देख कई बार खुद ही अपने प्यार का इजहार कर मयंक को रिझाने की कोशिश करना, लेकिन फिर भी मयंक में शारीरिक सुख के लिए कोई उत्कंठा या भूख नजर न आना इत्यादि कई ऐसी बातें थीं, जो उस वक्त विभा को विस्मय में डाल देती थीं. खैर, बात कुछ भी हो, आज एक वीभत्स सचाई विभा के सामने परोसी जा चुकी थी और उसे अपनी हलक से नीचे उतारना ही था.

हलकेफुलके माहौल में रात का डिनर निबटाने के बाद विभा ने बिस्तर पर जाते ही मयंक को मस्ती के मूड में छेड़ा, ‘‘तुम्हें मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं है न?’’ ‘‘नहीं तो, ऐसा बिलकुल नहीं है. अब तुम्हीं तो मेरे जीने की वजह हो. तुम्हारे बगैर जीने की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता,’’ मयंक ने घबराते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अगर ऐसा है तो तुम ने अपनी जिंदगी की सब से बड़ी सचाई मुझ से क्यों छिपाई?’’ विभा ने प्यार से उस की आंखों में देखते हुए कहा. ‘‘मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहता था, लेकिन मुझे डर था कहीं तुम मुझे ही गलत न समझ बैठो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं विभा और किसी भी कीमत पर तुम्हें खोना नहीं चाहता था, इसीलिए…’’ कह कर मयंक चुप हो गया.

फिर कुछ देर की गहरी खामोशी के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए मयंक बताने लगा. ‘‘मैं टैंथ में पढ़ने वाला 18 वर्षीय किशोर था, जब कामिनी आंटी से मेरी पहली मुलाकात हुई. उस दिन हम सभी दोस्त क्रिकेट खेल रहे थे. अचानक हमारी बौल पार्क की बैंच पर अकेली बैठी कामिनी आंटी को जा लगी. अगले ही पल बौल कामिनी आंटी के हाथों में थर. चूंकि मैं ही बैटिंग कर रहा था. अत: दोस्तों ने मुझे ही जा कर बौल लाने को कहा. मैं ने माफी मांगते हुए उन से बौल मांगी तो उन्होंने इट्स ओके कहते हुए वापस कर दी.’’

‘‘लगभग 30-35 की उम्र, दिखने में बेहद खूबसूरत व पढ़ीलिखी, सलीकेदार कामिनी आंटी से बातें कर मुझे बहुत अच्छा लगता था. फाइनल परीक्षा होने को थी. अत: मैं बहुत कम ही खेलने जा पाता था. कुछ दिनों बाद हमारी मुलाकात होने पर बातचीत के दौरान कामिनी आंटी ने मुझे पढ़ाने की पेशकश की, जिसे मैं ने सहर्ष स्वीकार लिया. चूंकि मेरे घर से कुछ ही दूरी पर उन का अपार्टमैंट था, इसलिए मम्मीपापा से भी मुझे उन के घर जा कर पढ़ाई करने की इजाजत मिल गई.’’ ‘‘फिजिक्स पर कामिनी आंटी की पकड़ बहुत मजबूत थी. कुछ लैसन जो मुझे बिलकुल नहीं आते थे, उन्होंने मुझे अच्छी तरह समझा दिए. उन के घर में शांति का माहौल था. बच्चे थे नहीं और अंकल अधिकतर टूअर पर ही रहते थे. कुल मिला कर इतने बड़े घर में रहने वाली वे अकेली प्राणी थीं.

‘‘बस उन की कुछ बातें हमेशा मुझे खटकतीं जैसे पढ़ाते वक्त उन का मेरे कंधों को हौले से दबा देना, कभी उन के रेंगते हाथों की छुअन अपनी जांघों पर महसूस करना. ये सब करते वक्त वे बड़ी अजीब नजरों से मेरी आंखों में देखा करतीं. पर उस वक्त ये सब समझने के लिए मेरी उम्र बहुत छोटी थी. उन की ये बातें मुझे कुछ परेशान अवश्य करतीं लेकिन फिर पढ़ाई के बारे में सोच कर मैं वहां जाने का लोभ संवरण न कर पाता.’’ ‘‘मेरी परीक्षा से ठीक 1 दिन पहले पढ़ते वक्त उन्होंने मुझे एक गिलास जूस पीने को दिया और कहा कि इस से परीक्षा के वक्त मुझे ऐनर्जी मिलेगी. जूस पीने के कुछ देर बाद ही मुझे कुछ नशा सा होने लगा. मैं उठने को हुआ और लड़खड़ा गया. तुरंत उन्होंने मुझे संभाल लिया. उस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद न रहा.

2-3 घंटे बाद जब मेरी आंख खुली तो सिर में भारीपन था और मेरे कपड़े कुछ अव्यवस्थित. मैं बहुत घबरा गया. मुझे कुछ सही नहीं लग रहा था. कामिनी आंटी की संदिग्ध मुसकान मुझे विचलित कर रही थी. दूसरे दिन पेपर था. अत: दिमाग पर ज्यादा जोर न देते हुए मैं तुरंत घर लौट आया. ‘‘दूसरा पेपर मैथ का था. चूंकि फिजिक्स का पेपर हो चुका था, इसलिए कामिनी आंटी के घर जाने का कोई सवाल नहीं था. 2-3 दिन बाद कामिनी आंटी का फोन आया. आखिरी बार उन के घर में मुझे बहुत अजीब हालात का सामना करना पड़ा था. अत: मैं अब वहां जाने से कतरा रहा था. लेकिन मां के जोर देने पर कि चला जा बटा शायद वे कुछ इंपौर्टैंट बताना चाहती हों, न चाहते हुए भी मुझे वहां जाना पड़ा.

‘‘उन के घर पहुंचा तो दरवाजा अधखुला था. दरवाजे को ठेलते हुए मैं उन्हें पुकारता हुआ भीतर चला गया. हाल में मद्धिम रोशनी थी. सोफे पर लेटे हुए उन्होंने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया. कुछ हिचकिचाहट में उन के समीप गया तो मुंह से आ रही शराब की तेज दुर्गंध ने मुझे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. मैं पीछे हट पाता उस से पहले ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे पर अपने ऊपर खींच लिया. बिना कोई मौका दिए उन्होंने मुझ पर चुंबनों की बौछार शुरू कर दी. यह क्या कर रही हैं आप? छोडि़ए मुझे, कह कर मैं ने अपनी पूरी ताकत से उन्हें अपने से अलग किया और बाहर की ओर लपका.

‘‘रुको, उन की गरजती आवाज ने मानो मेरे पैर बांध दिए, ‘मेरे पास तुम्हें कुछ दिखाने को है,’ कुटिलता से उन्होंने मुसकराते हुए कहा. फिर उन के मोबाइल में मैं ने जो देखा वह मेरे होश उड़ाने के लिए काफी था. वह एक वीडियो था, जिस में मैं उन के ऊपर साफतौर पर चढ़ा दिखाई दे रहा था और उन की भंगिमाएं कुछ नानुकुर सी प्रतीत हो रही थीं. ‘‘उन्होंने मुझे साफसाफ धमकाते हुए कहा कि यदि मैं ने उन की बातें न मानीं तो वे इस वीडियो के आधार पर मेरे खिलाफ रेप का केस कर देंगी, मुझे व मेरे परिवार को कालोनी से बाहर निकलवा देंगी. मेरे पावों तले जमीन खिसक गई. फिर भी मैं ने अपना बचाव करते हुए कहा कि ये सब गलत है. मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया है.

‘‘तब हंसते हुए वे बोलीं, तुम्हारी बात पर यकीन कौन करेगा? क्या तुमने देखा नहीं कि मैं ने किस तरह से इस वीडियो को शूट किया है. इस में साफसाफ मैं बचाव की मुद्रा में हूं और तुम मुझ से जबरदस्ती करते नजर आ रहे हो. मेरे हाथपांव फूल चुके थे. मैं उन की सभी बातें सिर झुका कर मानता चला गया. ‘‘जाते समय उन्होंने मुझे सख्त हिदायत दी कि जबजब मैं तुम्हें बुलाऊं चले आना. कोई नानुकुर नहीं चलेगी और भूल कर भी ये बातें कहीं शेयर न करूं वरना वे मेरी पूरी जिंदगी तबाह कर देंगी.

‘‘मैं उन के हाथों की कठपुतली बन चुका था. उन के हर बुलावे पर मुझे जाना होता था. अंतरंग संबंधों के दौरान भी वे मुझ से बहुत कू्ररतापूर्वक पेश आती थीं. उस समय किसी से यह बात कहने की मैं हिम्मत नहीं जुटा सका. एक तो अपनेआप पर शर्मिंदगी दूसरे मातापिता की बदनामी का डर, मैं बहुत ही मायूस हो चला था. मेरी पूरी पढ़ाई चौपट हो चली थी.

करीब साल भर तक मेरे साथ यही सब चलता रहा. एक बार कामिनी आंटी ने मुझे बुलाया और कहा कि आज आखिरी बार मैं उन्हें खुश कर दूं तो वे मुझे अपने शिकंजे से आजाद कर देंगी. बाद में पता चला कि अंकलजी का कहीं दूसरी जगह ट्रांसफर हो गया है.

‘‘महीनों एक लाचार जीवन जीतेजीते मैं थक चुका था. उस बेबसी और पीड़ा को मैं भूल जाना चाहता था. उसी साल मुझे भी पापा ने पढ़ने के लिए कोटा भेज दिया, जहां मैं ने मन लगा कर पढ़ाई की, पर अतीत की इन परछाइयों ने मेरा पीछा शादी के बाद भी नहीं छोड़ा जिस कारण आज तक मैं तुम्हारे साथ न्याय नहीं कर पाया. मैं शर्मिंदा हूं, मुझे माफ कर दो विभा,’’ मयंक की आंखों में दर्द उतर आया. ‘‘नहीं मयंक तुम क्यों माफी मांग रहे हो. माफी तो उसे मांगनी चाहिए जिस ने अपराध किया है. मैं उस औरत को उस के किए की सजा दिलवा कर रहूंगी और तुम्हें न्याय,’’ कह विभा ने मयंक के आंसू पोंछे.

‘‘नहीं विभा, वह औरत बहुत शातिर है. मुझे उस से बहुत डर लगता है.’’ ‘‘तुम्हारा यही डर तो मुझे खत्म करना है.’’ कहते हुए विभा ने मन में कुछ ठान लिया. अगले दिन से विभा ने कामिनी आंटी के बारे में पता करने की मुहिम छेड़ दी. जिस अपार्टर्मैंट में वे रहती थीं, वहां जा कर खोजबीन करने पर उसे सिर्फ इतना पता चल सका कि कामिनी आंटी के पति का ट्रांसफर भोपाल में हुआ है. लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी.

अपने सासससुर को भी उस ने मयंक की इस आपबीती के बारे में बताया, जिसे सुन कर वे भी सिहर उठे. अपने बेटे के साथ महीनों हुए इस शोषण के खिलाफ उन्होंने भी आवाज उठाने में एक पल की देर न लगाई. एक दिन फेसबुक पर कुछ देखते समय विभा के मन में अचानक एक विचार कौंधा. उस ने कामिनी गुप्ता के नाम से एफबी पर सर्च किया. भोपाल की जितनी भी कामिनी मिलीं उन में उस कामिनी को ढूंढ़ना असंभव नहीं पर मुश्किल जरूर था, पर अपने पति को न्याय दिलाने के लिए विभा कुछ भी करने को तैयार थी.

आखिरकार उस की सास ने जिस एक कामिनी की फोटो पर उंगली रखी, विभा उसे देखती ही रह गई. साफ दमकता रंग, आकर्षक व्यक्तित्व की धनी कामिनी आंटी आज 10 साल बाद भी अपनी वास्तविक उम्र से कम ही नजर आ रही थीं. यकीनन उन्हें देख कर इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वे एक संगीन जुर्म में लिप्त रह चुकी हैं.

तुरंत विभा ने उन्हें फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. 2-3 दिन बाद कामिनी आंटी ने विभा की फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार ली. धीरेधीरे उस ने कामिनी आंटी की तारीफों के पुल बांधते हुए उन से मेलजोल बढ़ाया और उन का फोन नंबर ले लिया. अब उस का अगला कदम पुलिस को इस मामले की जानकारी देना था. लेकिन चूंकि सालों पुराने हुए इस अपराध को साबित करने के लिए उन के पास कोई ठोस सुबूत नहीं था. अत: पुलिस ने उन की सहायता करने में अक्षमता जताई.

विभा जानती थी कि अगर सुबूत चाहिए तो उसे कामिनी आंटी के पास जाना ही होगा. उस ने मयंक को समझाया और हौसला दिया कि वह एक बार फिर से कामिनी आंटी का सामना करे. योजना के तहत विभा ने कामिनी आंटी से फोन पर बात करते हुए उन्हें बताया कि वह पर्सनल काम से अपने पति के साथ भोपाल आ रही है. कामिनी आंटी ने उसे अपने घर आने का निमंत्रण दिया.

नियत समय पर विभा ने कामिनी आंटी के घर की बैल बजाई. कुछ पलों के पश्चात उन्हें दरवाजे पर देख वितृष्णा से उस का मुंह कसैला हो गया, पर अपनी भावनाओं पर काबू रख उस ने मुसकुराते हुए हाल के अंदर प्रवेश किया. सहज भाव से कामिनी आंटी ने उस का स्वागत किया. कुछ औपचारिक बातों के मध्य ही मयंक ने दरवाजे पर दस्तक दी. दरवाजे पर एक आकर्षक पुरुष को देख कामिनी आंटी कुछ अचरज से भर उठीं. उन्होंने मयंक पर प्रश्नवाचक निगाह डालते हुए उस का परिचय जानना चाहा. इधर विभा मयंक से अनजान बन वहीं खड़ी रही. मयंक अपना परिचय देता, उस से पहले ही कामिनी आंटी ने उसे लगभग पहचानते हुए पूछा, ‘‘तुम?’’ ‘‘दाद देनी पड़ेगी आप की नजर की, कुछ ही पलों में मुझे पहचान लिया.’’

कामिनी आंटी कुछ और कहतीं उस से पहले ही विभा ने उन से चलने की इजाजत मांग ली. ‘‘तुम यहां किस मकसद से आए हो?

क्या चाहते हो?’’ विभा के जाते ही वे मयंक पर बरस पड़ीं. ‘‘अरे वाह, पहले तो आप मुझे बुलाते न थकती थीं और आज इतना बेगाना व्यवहार.’’ मयंक ने अपने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘अच्छा, तो तुम मुझे धमकाने आए हो. भूल गए सालों पहले मैं ने तुम्हारी क्या हालत की थी?’’ कामिनी आंटी अपनी असलियत पर आ चुकी थीं. ‘‘अच्छी तरह याद है. इसीलिए तो आप के उन गुनाहों की सजा दिलाने चला आया,’’ मयंक ने हंस कर कहा.

‘‘तुम्हें मेरा पता किस ने दिया और क्या सुबूत है तुम्हारे पास कि मैं ने तुम्हारे साथ कुछ गलत किया है?’’ कामिनी आंटी बौखलाहट में बोले जा रही थीं, ‘‘तुम मुझे अच्छी तरह से जानते नहीं हो, इसलिए यहां आने की भूल कर दी. तुम्हारे जैसे जाने कितने मयंकों को मैं ने अपनी वासना के जाल में फंसाया और बरबाद कर दिया.

तुम आज भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. अभी मेरे पास वह वीडियो मौजूद है जिसे मैं ने तुम्हें फंसाने के लिए बनाया था. तुम कल भी मेरा दिल बहलाने का खिलौना थे और आज भी वही हो. अपनी सलामती चाहते हो तो निकल जाओ यहां से,’’ कामिनी आंटी ने चिल्लाते हुए कहा.

‘‘जरूर निकल जाएंगे, लेकिन आप को सलाखों के पीछे पहुंचा कर, कामिनी आंटी,’’ कहती हुई विभा अंदर आ कर मयंक के पास उस का हाथ पकड़ कर खड़ी हो गई. उस के पीछे महिला पुलिस भी थी. किसी फिल्मी ड्रामे की तरह अचानक हुए इस घटनाक्रम से कामिनी आंटी बौखला गईं बोलीं, ‘‘ये क्या हो रहा है? कौन हो तुम सब? मैं किसी को नहीं जानती… निकल जाओ तुम सब यहां से.’’

‘‘इतनी आसानी से मैं आप को कुछ भी भूलने नहीं दूंगी. मैं हूं विभा मयंक की पत्नी. आप की एक नापाक हरकत ने मेरे बेकुसूर पति की जिंदगी तबाह कर दी. अब बारी आप की है. इंस्पैक्टर यही है वह कामिनी जिस ने मेरे पति का शारीरिक शोषण किया था, जिस के सारे सुबूत इस कैमरे में मौजूद हैं,’’ सैंटर टेबल के फूलदान से विभा ने एक हिडेन कैमरा निकालते हुए पुलिस को सौंप दिया, जिसे उस ने कुछ देर पहले ही कामिनी आंटी की नजर बचा कर रख दिया था. अपनी घिनौनी करतूत के सुबूत को सामने देख अचानक ही कामिनी आंटी ने अपना रुख बदला और मयंक के सामने गिड़गिड़ाने लगीं, ‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो, मैं आइंदा किसी के साथ ऐसा नहीं करूंगी. तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, प्लीज मुझे बचा लो.’’

‘‘कुछ सालों पहले मैं ने भी यही शब्द आप के सामने कहे थे और हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाया था, लेकिन आप ने जरा भी दया नहीं दिखाई थी,’’ कामिनी आंटी की ओर घृणा से देखते हुए मयंक ने मुंह फेर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पता चला कि कामिनी आंटी के पति उन्हें शारीरिक सुख देने के काबिल नहीं थे, जिस से न ही वे कभी मां बन सकीं और न ही उन्हें शारीरिक सुख मिला. लेकिन इस सुख को पाने के लिए उन्होंने जो रास्ता अपनाया वह नितांत गलत था.

इधर मयंक का खोया सम्मान उसे वापस मिल चुका था. ‘‘थैंक्यू सो मच विभा,

तुम ने मुझे एक शापित जिंदगी से मुक्ति दिला कर मेरा खोया आत्मविश्वास वापस दिलाया है,’’ कहतेकहते मयंक का गला भर्रा गया. ‘‘अच्छा तो इस के बदले मुझे क्या मिलेगा?’’ शरारत से हंसते हुए विभा ने उसे छेड़ा.

‘‘ठीक है तो आज रात को अपना गिफ्ट पाने के लिए तैयार हो जाओ,’’ मयंक भी मस्ती के मूड में आ चुका था. शादी के बाद पहली बार मयंक के चेहरे पर वास्तविक खुशी देख कर विभा ने चैन की सांस ली और शरमा कर अपने प्रिय के गले लग गई.

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Sad Story in Hindi: नंबर- ऋची की दर्द भरी कहानी

Sad Story in Hindi: ‘‘खिड़कियों में से रातरानी की महक अंदर झंक रही थी और चंद्रमा की रजत रोशनी ऋ ची के मुख पर तैर रही उन तमाम खुशियों को उजागर करने के लिए जैसे बेताब हुई जा रही थी. वह अपने भीतर बह रहे प्रेममय सागर को समेटने का भरसक प्रयास करने में लगी थी, पर खुशियों की लहरें दिल की दीवारों को बारबार लांघ कर उस के तनमन को छू कर रोमरोम पुलकित कर देतीं. मन में हिलोरें ले रही इन लहरों ने उस की रातों की नींद चुरा रखी थी.

ध्यान बारबार मोबाइल की ओर जा रहा था. घर में  मम्मीपापा इस समय तक गहरी नींद में सो जाते हैं. समीर रोज रात 12 बजे फोन कर ही देता. 12 बजे के बाद 1 मिनट भी देर हो जाती तो ऋची का जी ऊपरनीचे होने लगता. मन कई तरह की आशंकाओं से घिर जाता.

ऋची के समंदर में डुबकी लगा ही रही थी कि तभी मोबाइल के रिंगटोन ने चिंताओं की सारी लकीरें मिटा दीं.

वह कुछ कहती उस से पहले ही समीर ने कहा, ‘‘स्वीटहार्ट आज इस नाचीज को तुम्हारी सेवा में आने में थोड़ी देर हो गई.’’

ऋची खिलखिलाते हुए कहने लगी, ‘‘और 5 मिनट भी देर करते समी तो मेरी जानही निकल जाती,’’ वह प्यार से समीर को समी ही कहती.

‘‘डार्लिंग मैं तुम्हारा पीछा आसानी से नहीं छोड़ूंगा… जीएंगे तो साथ मरेंगे तो साथ.’’

‘‘सचमुच? लव यू समी… तुम न होते तो पता नहीं जिंदगी कितनी बेरंग सी लगती.’’

‘‘कितनी, बताओ तो जरा?’’ वह हंसते हुए पूछने लगा.

‘‘जैसे नमक के बिना सब्जी, बरखा के बगैर सावन, बिना चांद की रात, सूरज के बिना दिन और…’’

‘‘बस… बस… अब बस भी करो स्वीटहार्ट. ऋची कैसी दिख रही हो जरा बताओ न प्लीज… तुम्हें देख लूं तो दिन सफल हुआ समझ.’’

‘‘तुम तो हीरो बनने लगे समी, लेकिन इस वक्त मैं फोटो नहीं भेज पाऊंगी…’’

‘‘क्यों तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं?’’

‘‘अपनेआप से भी ज्यादा भरोसा तुम पर है समी, पर अभी नहीं प्लीज. परसों तुम्हारा बर्थडे है, मेरे लिए बहुत स्पैशल डे, बोलो कब और कहां मिलोगे?’’

‘‘ओह ऋची परसों आने में अभी पूरे 32 घंटे पड़े हैं, कल ही मिलते न.’’

‘‘कल मुझे प्रोजैक्ट सबमिट करना है तो कालेज में देर हो जाएगी. कल तो फोन पर बात भी हो पाना मुश्किल लग रहा है…’’

‘‘ऋची चाहो तो जान ले लो पर इतनी बड़ी सजा मत दो, तुम से बात किए बिना दिन काटना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘समी इस प्रोजैक्ट से बहुत से स्टूडैंट्स जुड़े हैं और यह प्रोजैक्ट सफल रहा तो मेरी प्रमोशन तय समझ.’’

‘‘तो क्या मुझ से ज्यादा इंपौरटैंट यह प्रोजैक्ट है?’’

‘‘समी तुम जानते हो घरगृहस्थी की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर है. आए दिन मम्मीपापा का हौस्पिटल चलता रहता है.’’

‘‘अच्छा चलो जैसेतैसे दिल पर पत्थर रख लूंगा, पर परसों पक्का हमें मिलना है. तुम रोज वे कैफे में ठीक शाम 6 बजे आ जाना.’’

‘‘ओके गुड नाइट समी…’’

‘‘क्या ऋची कम से कम कोई इमोजी ही भेज दो जैसे मैं तुम्हें भेजता हूं.’’

‘‘तुम भी न समी…’’ कहते हुए उस ने एक प्यारी सी इमोजी भेजी और सिरहाने फोन रख कर सोने की कोशिश करने लगी.

ऋची दूसरे दिन कालेज में व्यस्त रही. कालेज से लौटते वक्त ही समी के लिए कितने ही गिफ्ट ले आई, हाथ से कार्ड बनाया.

समी को बधाई देने के लिए ऋची बेताब हुए जा रही थी. जैसे ही रात में 12 बजे उस ने समी को वीडियोकौल की, काले रंग के कौड सैट में उस की खूबसूरती और निखर कर आ रही थी. हैप्पी वाला बर्थडे माइ लव… बर्थडे बौय के लिए ऋची हाजिर है,’’ कहते हुए वह खिलखिलाने लगी.

‘‘थैंक्स डार्लिंग. इतना शानदार सरप्राइज आज तो तुम गजब कहर ढा रही हो… जी कर रहा है अभी तुम्हारे पास आ जाऊं,’’ कहते हुए गाने लगा, ‘‘चांद सी महबूबा बांहों में हो ऐसा मैं ने सोचा था हां तुम…’’

‘‘अरे वाह समी तुम तो गाते भी अच्छा हो.’’

बातों का यह सिलसिला आधी रात तक जारी था. फिर ऋची बोली, ‘‘चलो अब सोते है.’’

‘‘अच्छा चलो आज की रात तुम्हारे फोटो के सहारे ही बितानी होगी… अपना फोटो भेजो. और हां तुम जानती ही हो कैसे फोटो भेजना है.’’

‘‘ठीक है बाबा आज तो तुम्हें मना नहीं कर सकतीं, कहते हुए उस ने कितने ही फोटो समी को भेज दिए.

दूसरे दिन समी से मिलने का ख्वाब आंखों में संजो कर वह सो गई .सुबह मम्मी आवाज दे उस से पहले ही ऋची उठ गई. यह देख मम्मी को आश्चर्य हुआ. कहने लगी, ‘‘क्या बात है बेटा आज बड़ी खुश लग रही हो?’’

‘‘हां मम्मी आज मेरी फ्रैंड है न नैनी उस का बर्थडे है. आज उस ने पार्टी रखी है, कालेज से उधर ही जाऊंगी, आने में देर होगी आप चिंता मत करना.’’

‘‘बेटा, तुम्हारे पापा को देर रात तक घूमनाफिरना. यह सब बिलकुल पसंद नहीं. अभी समय कैसा है यह तुम भी अच्छे से जानती हो, तुम समय से आ जाना.’’

‘‘मम्मी अब मैं बड़ी हो गई हूं, प्लीज आप हर बात में रोकटोक न करो तो अच्छा,’’ कहते हुए वह निकल गई. बैग में ही अलग से ड्रैस रख ली थी.

शाम ठीक 6 बजे वह रोज वे कैफे पहुंच गई. समी वहां पहले से ही मौजूद था. उसे देखते ही कहने लगा, ‘‘ओह वैलकम स्वीटहार्ट कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था.’’

‘‘समी मैं ठीक 5 बजे पहुंच गई देखो.’’

‘‘मैं तो सुबह से 5 बजने के इंतजार में 4 बजे ही यहां आ कर बैठ गया, सच में ऋची कुदरत ने तुम्हें बहुत फुरसत से घड़ा है… मेरा बस चले तो दुनियाजहां की खुशियां तुम्हारे कदमों में रख दूं, तुम्हारे साथ रहने में जो मजा है वह दुनिया की किसी चीज में नहीं है सच में.’’

यह सब सुन ऋची के सपनों को जैसे पर लग गए हों.

‘‘अच्छा बोलो क्या और्डर करूं?’’

बर्थडे तुम्हारा है समी… आज की ट्रीट मेरी ओर से.

‘‘स्वीटहार्ट तुम्हें देख कर मेरी तो भूखप्यास सब उड़नछू हो जाती है. सैंडविच और कौफी ले कर लौंग ड्राइव पर चलते हैं. ऋची मना मत करना प्लीज मुझे उम्मीद है आज के दिन तुम मेरा दिल नहीं तोड़ोगी.’’

दोनों काफी और सैंडविच ले निकल पड़े लौंग ड्राइव पर.

‘‘समी कहां जा रहे हैं हम? कितना सुनसान रास्ता है.’’

‘‘ऋची मैं हूं न साथ,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी.

उस का स्पर्श ऋची के मन को लुभा रहा था. बहुत आगे निकलने पर उस ने नदी

किनारे गाड़ी रोकी. और ऋची के हाथों में हाथ डाल कर आगे बढ़ने लगा. दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था.

‘‘समी, काश, वक्त यहीं ठहर जाए और हम यों ही साथ में रहें.’’

‘‘अरे, हम कौन से अलग रहने वाले हैं ऋची तुम्हें तो मैं जीवनभर अपनी पलकों पर बैठा कर रखना चाहता हूं.’’

‘‘कितने अच्छे हो समी तुम,’’ कहते हुए वह समी से लिपट गई.

चारों तरफ अंधेरा घिर आया था ऋची के मोबाइल पर बारबार उस की मम्मी का फोन आ रहा था. ऋची ने मोबाइल साइलैंट मोड पर डाल दिया और कहने लगी, ‘‘समी, अब तुम मुझे घर ड्रौप कर दो काफी देर हो गई है.’’

‘‘ऋची, तुम से अलग रहने का मन ही नहीं करता. ऐसा लगता है हम दूर कहीं भाग चलें जहां बस तुम हो और मैं पर तुम्हें तो हर वक्त जाने की जल्दबाजी रहती है,’’ ऐसा कहते हुए उस ने बाइक स्टार्ट की और स्पीड से ऋची के घर की तरफ बढ़ने लगा.

ऋची के पापा बालकनी में खड़े उसी का इंतजार कर रहे थे और मम्मी घबराहट के मारे बेचैन हुए जा रही थीं.

पापा ने देख लिया ऋची किसी लड़के के साथ गाड़ी पर सट कर बैठी है. जैसे ही उस ने घर में कदम रखा आगबबूला हो गए. ऋची ने अपने पापा का यह रूप पहले कभी नहीं देखा था.

वह भी तमतमाते हुए अपने कमरे में गई और फिर दरवाजा लौक कर गुमसुम सी बैठी रही. मम्मी ने कई बार दरवाजा खटखटाया पर उस ने एक नहीं सुनी. आधी रात जब समी ने फोन किया तो ऐसा लगा किसी दर्द की दवा मिल गई हो.

ऋची कहने लगी, ‘‘समी तुम्हारी बांहों में सचमुच जन्नत है. इस कमरे की दीवारें जैसे मुझे काटती हैं… तुम्हारे बिना कितना अकेलापन महसूस होता है… पता नहीं कब तक ऐसा ही चलेगा.’’

‘‘मैं चाहूं तो कल ही तुम से शादी कर सकता हूं. दिक्कत तो तुम्हें ही है ऋची.’’

‘‘क्या करूं अपने मम्मीपापा की एकलौती बेटी जो हूं. उन की खुशियां मेरे इर्दगिर्द ही हैं. अच्छा समी अब रखती हूं, मम्मी लगातार दरवाजा नौक कर रही हैं.’’

ऋची ने दरवाजा खोला और मुंह फुला कर लेट गई. मम्मी उसे समझने लगीं, ‘‘बेटी, अभी तुम ने दुनिया देखी नहीं, आए दिन अखबारों में दिल दहलाने वाली खबरें पढ़पढ़ कर डर लगने लगा है. वैसे कौन है वह लड़का जिस ने तुम्हें घर छोड़ा और वह करता क्या है, तुम उसे कहां मिली?’’

मम्मी, नैनी की बहन की शादी में मिला था… समीर नाम है उस का… प्राइवेट कंपनी में जौब करता है और हम दोनों एकदूजे को पसंद करते हैं.’’

‘‘पागल हो गई हो ऋची एक मुलाकात में तुम उसे दिल दे बैठी… उस की जातपात, खानदान कैसा है जानती हो तुम. तुम्हारी अक्ल तो ठिकाने है? बेटा थोड़ा समझने की कोशिश करो. तुम हमारी एकलौती बेटी हो हम तुम्हारे लिए जो सोचेंगे वह अच्छा ही सोचेंगे.’’

‘‘मम्मी, आप मेरे हो कर भी मुझे खुश नहीं रख सकते और वह पराया हो कर भी मेरी भावनाओं को सम?ाता है. आप कुछ न कहो वही बेहतर होगा,’’ कहते हुए वह तुनक कर घर से निकल पड़ी.

ऋची के घर से निकलते ही उस की मम्मी स्वयं को बेसहारा महसूस करने लगीं. वे हताश हो कर सोफे पर बैठ गईं.

तभी उस के पापा आए और पूछने लगे, ‘‘क्या हुआ गीता तुम इतनी चिंतित क्यों लग रही हो?’’

‘‘हमें जिस बात का डर था आखिर वही हुआ. हमारी ऋची उस समीर को चाहने लगी है. उम्र की इस दहलीज पर मन में प्यार की भावनाओं का उफान स्वाभाविक है लेकिन यह ब्याह कर चली गई तो हमारा क्या होगा यह सोचा है कभी?’’

‘‘हां तुम सही कह रही हो शादी के बाद वह हमारा ध्यान रख पाएगी इस की कोई गारंटी नहीं है गीता. हमें किसी भी तरह उसे समीर से दूर करना होगा… कोई तरकीब सोचनी होगी.’’

समी कैफे में बैठ ऋची का इंतजार कर रहा था. उसे देखते ही कहने लगा, ‘‘क्या हुआ मेरी जान तुम इतनी मुर?ाई सी क्यों हो? मैं तुम्हें इस तरह नहीं देख सकता माई लव.’’

यह सुन वह भावुक हो रोने लगी, ‘‘समी अब जल्द ही हम शादी कर लेते हैं. मेरे मम्मीपापा तो जैसे मेरे दुश्मन बन बैठे हैं. उन्हें एहसास ही नहीं कि मैं बड़ी हो रही हूं और मेरे भी कुछ अरमान हैं.’’

‘‘ठीक है मैं आज ही बात करता हूं अपने मम्मीपापा से… वैसे उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा ऋची. चलो अब कल मिलते हैं,’’ कहते हुए वह विदा हुआ.

ऋची घर आते ही सीधे अपने कमरे में चली गई तो उस के पीछेपीछे मम्मीपापा भी चल दिए. पापा कहने लगे, ‘‘सौरी बेटा तुम्हें कल बहुत भलाबुरा कह गया. हम चाहते हैं तुम्हारी शादी किसी अच्छे खानदान में हो… देखो बहुत से बायोडाटा तुम्हारे लिए आए हुए हैं. हमें समीर के बारे में पता चला है वह लड़का तुम्हारे काबिल नहीं है… परिवार की आर्थिक स्थिति भी खास ठीक नहीं है.’’

‘‘मम्मीपापा मुझे शादी रुपयों से नहीं इंसान से करनी है. मैं शादी करूंगी तो समी से ही.’’

‘‘देखो बेटी यह जीवनभर का फैसला पलभर में लेना सही नहीं है. 2-4 दिन में ये सारे बायोडाटा देख लो फिर सोचते हैं,’’ कह कर वे अपने बैडरूम में चले गए.

नींद ऋची के आंखों से कोसों दूर थी. इस एकांत में वह बस समी के ही सपने देख रही थी. पानी पीने उठी तो बोतल खाली पड़ी थी. वह रसोई में पानी की बोतल लेने जा ही रही थी कि तभी मम्मीपापा की बातें सुन कर वह वहीं स्तब्ध रह गई.

मम्मी पापा से कह रही थी, ‘‘तुम्हारी पैंशन से केवल हमारी दवाइयां आ पाती हैं यह ब्याह कर चली गई तो हम खाएंगे क्या? ऋची भले ही बेटी है पर इस ने बेटे से बढ़ कर सारी जिम्मेदारियां उठाई हैं. मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा इसे कैसे समीर से दूर करें.’’

‘‘चिंता मत करो गीता कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आएगा. मैं ने जो बायोडाटा उस के रूम में रखे हैं वे सब अमीर घरानों के ही हैं. हां, कुछ लड़के उन्नीस हैं. किसी की उम्र बड़ी तो किसी को कोई छोटीमोटी तकलीफें… उस से ऋची के जीवन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा और हमारा बुढ़ापा भी आराम से कट जाएगा. हमें या तो घरजंवाई मिल जाए या कोई धनाढ्य परिवार, आजकल तो बेटी वाले भी रुपए ले रहे हैं और हम तो मजबूर हैं… क्या करें हमारे पास सहारे के लिए ऋची के अतिरिक्त कोई और विकल्प ही नहीं है. समीर खुद ही साधारण परिवार से है. उस से ब्याह करेगी तो हमें कुछ आर्थिक सहयोग मिलने से रहा यह तो पक्का. इसलिए किसी भी तरह इस के दिलोदिमाग से समीर का भूत निकालना जरूरी है. अब यह मान गई तो ठीक वरना कुछ उलटीसीधी तरकीब सोचनी होगी. चलो अब काफी रात हो चुकी है सो जाओ गीता. सोचते हैं… इस समस्या का समाधान भी मिल ही जाएगा,’’ और फिर चचा पर विराम लग गया.

ऋची का मन क्रोध में धधक रहा था. आंखों से अंश्रुधारा बहने लगी. इतनी ओछी बात समीर से साझ करने में भी शर्म आ रही थी. मन मसोस कर उस ने जैसे जहर का घूंट पी लिया.वह बारबार अपने को कोस रही थी. सारी रात ऊहापोह में करवटें बदलते हुए निकली.

सुबहसुबह समी का मैसेज देख उसे कुछ राहत मिली. उस ने लिखा था कि ऋची मम्मीपापा हमारी शादी को ले कर राजी हो गए हैं. अब तुम जब चाहो हम साथ रह सकते हैं.

ऋची घर में सामान्य बने रहने का स्वांग रचने लगी. वह धीरेधीरे कर अपने सारे जरूरी सामान की पैकिंग करने लगी. उस ने समी को कोर्ट मैरिज के लिए राजी कर लिया था.

ऋची अपने मम्मीपापा से कहने लगी, ‘‘मुझे ट्रेनिंग लेने कालेज से 8 दिन दूसरे शहर जाना होगा… यह ट्रेनिंग ले लूं तो मेरी प्रमोशन आसानी से हो जाएगीं.’’

‘थोड़े दिन ही सही शादी की बला टली’ यह सोच कर मम्मीपापा खुश हो रहे थे.

ऋची ने बैग पैक किया टैक्सी की और सीधे कोर्ट में पहुंची जहां समी पहले से ही मौजूद था.

ऋची का मन आजाद पंछी सा उड़ने लगा. उस के दिल के सूने आंगन में समी ने प्रेम के कई रंग भर दिए थे. इस नए घर में उसे वह सबकुछ मिला जो तमन्ना एक नवविवाहिता की रहती है.

समी औनलाइन मीटिंग में व्यस्त था तभी गृहस्थी ने अपने मोबाइल से अपने मम्मीपापा को मैसेज किया, ‘मम्मीपापा, आप को यह जान कर अफसोस होगा कि आप का लौटरी टिकट यानी मैं हमेशाहमेशा के लिए वह घर छोड़ चुकी हूं. मैं उम्र के 30 साल पार कर चुकी हूं और अपना भलाबुरा सम?ाती हूं. अपने स्वार्थ के लिए जब मातापिता अपनी बेटी की खुशियां कुरबान कर सकते हैं तो जरूरी नहीं मैं भी आप की जिम्मेदारी उठाऊं.’

मैसेज पढ़ते ही ऋची के मम्मीपापा की हालत खराब हो गई. वे बारबार नंबर डायल करने लगे लेकिन गृहस्थी ने मोबाइल स्विच औफ कर दिया. दूसरे दिन नया सिम कार्ड ले कर उस ने अपना मोबाइल नंबर बदल लिया.

एक नए नंबर के सहारे गृहस्थी अपने नए जीवन की शुरुआत कर चुकी थी. एक नया नंबर उसे स्वार्थ की उन तमाम परछाइयों से दूर करने के लिए पर्याप्त था.

Sad Story in Hindi

Romantic Story in Hindi: अधूरा सपना- कौन थी अभीन का प्यार

Romantic Story in Hindi: पता नही क्यों जब भी शादी में , बैंड बाजे की धुन में कोइ फिल्मी गाने की सैड सौंग बजती है, अभीन की धड़कने तेज हो जाती. उसकी आंखे बंद हो जाती कुछ पल के लिए ,दिल और मन रूआंसा सा हो जाता है  कुछ पल के लिए.  रभीना हां यही तो नाम था उस लड़की का जिसे देख देख वो फिल्मी प्यार मे डुब जाता था. रभीना अभीन को के प्रति सीरियस है इसका एहसास कभी भी नही होने देती थी. ये बात अभीन को भी पता था. पर अभीन हर शाम गुप्ता स्टोर के पास पांच बजे के करीब खडा़ हो जाता था ,ताकि वो टियूशन जाती रभीना का दीदार कर सके. रोज दीदार के नाम पर खडा़ तो नही हो सकता था गुप्ता जी के स्टोर पर ,इसलिए कुछ ना कुछ रोज अभीन को दुकान से खरीदना ही पड़ता था. गुप्ता अंकल सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने रहते थे. अभीन अभी अभी बारहवीं में तो गया था.

मैथ ,फिजिक्स ,केमिस्ट्री के प्रशनो केा रट्टा मारने के बाद वो तुरंत रभीना के याद में डूब जाता था. और याद में भी ऐसे डूबता मानो सच में गोता लगा रहा हो. रभीना उसकी बाहों में ,रभीना उसके जोक पर लागातार हंसते हुए. अभीन, रभीना को बस सोचता जाता और अपना होश खोता जाता. अभीन के इस पढ़ाकू व्यवहार से मां चिंतित रहने लगी. ऐसी भी क्या पढाइ जो बंद कमरे में पढते -पढते बिना खाये पिये सो जाये. मां को कहां पता था कि अभीन बंद कमरे सिर्फ पढाई नही करता. वारहवीं का इग्जाम खत्म होते होते ही अभीन का प्यार और भी परवान चढ़ने लगा. अभीन से रभीना कभी बात नही करती थी. इन दो सालो में भी अभीन रभीना से बात नही कर पाया. पर इससे अभीन को कोइ फर्क नही पड़ता था. वो हर रोज गुप्ता स्टोर से खरीदारी कर आता.

गुप्ता जी के दुकान की ऐसी कोइ चीज नही रही हो जिसे अभीन ने नही खरीदी हो. अब तो गुप्ता अंकल ही अभीन को बता देते थे कि बेटे आज सर्ट में लगाने वाली बटन ही खरीद ले ,बेटे आज ना हेयर डाई खरीद ले. और फिर अभीन दे देा अंकल कह कर टियूशन जाती अभीना को निहारता निढाल हो जाता कुछ पलो के लिए. अभीन पढ़ने में तो तेज था ही साथ ही उसने अपने बेहतर जीवन के सपने भी बुने थे.

उसका प्यार जितना फिल्मी था उतना ही फिल्मी उसके सपने थे. पर उसकी खूबसूरत सपने में भी खूबसूरत रभीना भी थी. एक अच्छी पैकेज वाली नौकरी ,एक मकान और छोटी सी कार में खुद से डाªइव करते हुए रभीना को बारिश के बूदों में घुमााना. अपनी इसी सपने को पूरा करने के लिए अभीन दिन रात पढा़ई करता था. अभी भी अभीना उसके लिए सपना ही थी , एक कल्पना जिसे देख वो खुश हुआ करता था. जिसे महसूस कर वो अपने सपनो को सच करने के लिए आइ लीड को पीटते नींद केा भगाने के लिए आंख के पुतलियों पे उर्जा देती पानी की छिंटो के सहारे पढाई करता था.

पहली कोशिश में पहली ही दफा में ही अभीन ने इजीनियरिंग परीक्षा इंट्रेस निकाल ली. अपार खुशी ,पर दुखः इस बात की थी  ,कि अब गुप्ता अंकल के दुकान पर रोज समान खरीदने का मौका नही मिलेगा. अब वो अब अपनी सपना को अपने खव्वाब को रोज अपनी आंखो से दीदार नही कर पायेगा. अभीन वापस अपने घर आते ही चिंतित हो उठा. उसके कइ दिनो से इस तरह के व्यवहार से उसके माता पिता भी चिंतित हो उठे. हमेशा खुश रहने वाला लड़का इतना परेशान क्यों है ?

अभीन के होश उड़े हुए थे. वो थोड़ा बेसुध सा रहने लगा. अभीन अब उतावले से रभीना से बात करने और उसे मिलने के रास्ते तलाशने लगा. अपने मोहल्ले में ही रहने वाली रभीना के लिए उसने कभी ऐसी कोशिश नही की थी. उसने कभी ये बात नही सोची थी कि ऐसा भी कभी अवस्था आयेगा. आखिरकर वो अपने मासी के घर रहने वाली रेंटर निकली. किसी बहाने से अभीन अपने मासी के यहां पहुंच भी गया.

पर ये क्या रभीना दो बार सामने से गुजरी , उसने ध्यान ही नही दिया. गुप्ता अंकल के स्टोर पर तो रोज मुझे देख हंसती थी. वो मुझसे कही ज्यादा खुश लगती थी ,मुझे गुप्ता अंकल के स्टोर पर इंतजार करता देख. पर आज ना जाने ऐसा व्यवहार क्यू कर रही है. अभीन को रभीना पर गुस्सा भी आ रहा था. ऐसी भी क्या बेरूखी. आखिर अभीन गुस्सा होकर यो कहें निराश होकर अपने हल्के कदम और भारी मन के साथ कब अपने घर पहुच गया उसे भी  पता ना चला. अभीन अभी भी गुस्से में ही था. रात का भोजन नही ,अगले दिन, दिन भर कमरे से बाहर निकलना नही.

अभीन के माता पिता परेशान हो गये. कही ऐसा तो नही कि अभीन घर से दूर इंजीनियरिंग की पढाई करने जाने से दुखी है. अभीन माता पिता से, घर से दूर रहने के फायदे और स्वालंबी बनने की जरूरत पर लम्बी लेक्चर सूनते सूनते बोर होने लगा. तो घर से निकला. माता पिता समझे अब अभीन समझदार हो गया. अभीन गुप्ता अंकल क स्टोर पर पहुंचा. दो साल में पहली बार अभीन गुप्ता अंकल के स्टोर पर साम पांच बजे के बाद मुरझाया चेहरा लेकर पहुंचता है. गुप्ता अंकल ने पुछा ’’ अरे तुमने बताया नही  तुमने आइआइटी एक बार में ही निकाल ली.’’ ’’ हां अंकल निकाल ली  ’’ कह कर अभीन चुपचाप हो गया. और एका एक अपने मासी के घर की ओर बढ चला. आज रभीना से पुछ ही लुंगा कि शादी करोगी या नही ? और कुछ ही देर में अभीन रभीना के घर के दरवाजे पर था. पर ये क्या उसके दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. तभी उसकी मासी आवाज देती हैं. ’’ अरे अभीन उधर रेंटर के कमरे की ओर क्या कर रहा है ़ इधर आ ’’  ’’ आता हूं मासी  ये आपके रेंटर कहां गये ,इनका दवाजा बंद है  लगता है मार्केट गये हैं !’’  ’’ नही नही !

मार्केट नही गये अपने गांव गये हैं. उनकी बेटी है ना रभीना उसकी शादी है अगल हप्ते ’’. अभीन अंदर से हिल जाता है. रोते हुए अपने घर की ओर दैाड़ता है. उसका दिमाग भारी लगने लगता है. अपने बहते आॅशु को पोछते हुए दौड़ते हुए चलने लगता है. अभीन को मालुम है कि लोग उसे रोते हुए देख रहे हैं. पर आंशु रोकना उसके बस की बात नही थी , सो उसने दौड़ कर घर जल्द पहुंचना ही अच्छा समझा. और बंद कमरे में जी भर रोया अभीन और रोते हुए थक कर सो गया. रात को सपने में भी आयी राभीना ,पर कहीं से ऐसा नही लगा जैसे रभीना उसकी जिंदगी से चली गयी हो. पहले की ही तरह अभीन के बाहों में लिपटी अभीन के बाल को खींचती.

और अभीन के जोक पर पहले चुपचाप रहती ये भी कोइ जोक है. और फिर खिलखिला कर हसंती और जी खोल कर हंसती. अभीन के चेतन में अभी भी था कि रभीना उसकी जिंदगी से चली गयी है. पर उसकी हिम्म्त ही नही हुइ पुछने की ,क्यूकिं रभीना तो अभी उसकी बाहों मे थी. सुबह तैयार होकर अपने सपने को पूरा करने के लिए अभीन आईआईटी दिल्ली निकल रहा था. पर उसका सपना थोड़ा थेाड़ा अधूरा सा लग रहा था क्यूकि इस सपने में रभीना नही थी.

Romantic Story in Hindi

Best Hindi Story: मिसेज अवस्थी इज प्रैग्नैंट- क्यों परेशान थी मम्मी

Best Hindi Story: पूरे घर में तूफान से पहले की शांति छाई हुई थी. पूरे महल्ले में एक हमारा ही घर ऐसा था जहां 4 पीढि़यां एकसाथ रह रही थीं. मेरी दादीसास इस का सारा क्रैडिट मेरी सासूमां को देती थीं, जिन्होंने अपनी उम्र के 15वें वसंत में ही उन के घर को खुशियों से भर दिया था और मेरे ससुरजी के 5 छोटे भाईबहनों सहित खुद अपनी 7 संतानों को पालपोस कर बड़ा किया.

दरअसल, मेरे पति सुमित मम्मीजी की गोद में तभी आ गए थे, जब वे स्वीट सिक्सटीन की थीं. उन्होंने अपनी सास को पोता थमा दिया और उन से घर की चाबियां हथिया लीं. वह दिन और आज का दिन, मजाल है किसी की जो हमारी मम्मीजी के सामने 5 मिनट भी नजरें उठा कर बातें कर ले.

हमारी दादीसास अपने बच्चों को भुला कर अपने पोतेपोतियों में व्यस्त हो गईं. कहते हैं न कि सूद से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है. उन के सभी बच्चे अपने हर छोटेछोटे काम के लिए अपनी भाभी यानी हमारी मम्मीजी पर आश्रित हो गए.

समय बीता, सब का अपनाअपना घर बस गया. मैं बड़ी बहू बन कर इस घर में आ गई और मेरे पीछेपीछे मेरी 2 देवरानियां भी आ गईं. ननदें ब्याह कर अपनेअपने घर चली गईं. दादीजी की जबान से मम्मीजी की बहुत सी वीरगाथाएं सुनी थीं, परंतु लाख चाह कर भी मैं वह स्थान न ले पाई, जो मम्मीजी ने बरसों पहले ले लिया था.

वे थी हीं कुछ हिटलर टाइप की. अपनी सत्ता छोड़ने को तैयार ही नहीं, इसलिए मैं ने भी उन की सीट हथियाने का विचार छोड़ कर दादी के लाड़लों की लिस्ट में शामिल होने का मन बना लिया था.

परंतु कल शाम हमारी फैमिली डाक्टर कुलकर्णी के क्लीनिक से जो फोन आया, उस ने तो पूरे घर में तहलका मचा दिया.

हमारी मम्मीजी पेट से थीं. फोन मैं ने ही सुना था. सुन कर मुंह खुला का खुला रह गया. दूसरी तरफ से डाक्टर की सहायक का सुरीला स्वर उभरा था, ‘‘कांग्रैचुलेशंस, मिसेज अवस्थी इज प्रैग्नैंट.’’

मैं शायद संसार की ऐसी पहली बहू थी, जो अपनी सास के गर्भवती होने की खबर उन्हें दे रही थी.

पूरे घर में तहलका मच गया. मम्मीजी अपने कमरे में नजरबंद हो गईं. दादीजी की खुशी सातवें आसमान पर थी. घर में पुरुषों के आने से पहले ही उन्होंने मेरे 7 वर्षीय बेटे अजय से मोबाइल से नंबर लगवा कर सारे रिश्तेदारों को यह खुशखबरी सुना कर अपने सास होेने के कर्तव्य का निर्वाह भी कर लिया.

हम तीनों बहुओं में से मैं ने और मझली देवरानी ने यह तय किया कि अपनेअपने पति को यह खबर सारे कामों से निबट कर रात को शयनकक्ष में ही सुनाएंगे. मगर छोटी देवरानी मोनाली को पति अतुल को अभी यह खबर सुनाने से सख्त मना कर दिया, क्योंकि वह इस समय शहर से बाहर था और बेवजह उसे तनाव देना ठीक नहीं लगा.

जब रात के खाने के समय मम्मीजी के साथसाथ पापाजी को भी नदारद पाया, तो हम समझ गए कि उन्हें भी खबर मिल गई होगी.

सुमित तो यह सुनते ही मुंह तक चादर ओढ़ कर सो गए, परंतु उस रात किसी की भी आंखों में नींद नहीं थी, क्योंकि रात भर सभी के कमरों के दरवाजों के बारबार खुलने व बंद होने की आवाजें आती रही थीं.

सुबह 6 बजतेबजते मेरी व मझली देवरानी सोनू की सहेलियों के फोन भी आ गए. किस ने बताया होगा इन लोगों को, मैं आंखें मलती हुई सोच रही थी. तभी दूध वाली की याद आई, क्योंकि 4-5 दिन पहले दूध लेते समय मम्मीजी को उसी के सामने उलटी आई थी. उस ने हंस कर पूछा भी था, ‘‘क्यों, दीदीजी सब ठीक तो है न? इस उम्र में भी उलटी आ रही है?’’

और कल जब फोन आया था तब भी वह यहीं पर थी. किसी ने बौखलाहट की वजह से उस पर ध्यान ही नहीं दिया था.

आज सुबह से ही मम्मीजी के दर्शन नहीं हुए. इत्तफाक से आज रविवार भी था, इसलिए सभी घर पर ही थे.

सुबह से ही मम्मी के काम बंट गए. स्नान के बाद जहां दादीजी ने पूजा घर संभाला, वहीं मुझे रसोई की ड्यूटी मिली.

जहां सुबह से दादीजी ने यह खबर पेपर वाले, सब्जी वाले को खुशीखुशी सुनाई, वहीं मोनाली थोड़ी शर्मिंदा थी. आखिर उस के रहते मम्मीजी ने जो बाजी मार ली थी.

‘‘कुसुम दीदी, यह कैसे संभव है?’’ उस ने आंखें फाड़ते हुए पूछा.

‘‘अरे मोनाली, हमारी मम्मीजी अभी सिर्फ 48 साल की ही तो हैं. उन की माहवारी भी अभी तक पूरी तरह से नहीं रुकी है. कुछ रेयर केसेज में ऐसा कभीकभी हो जाता है,’’ मैं ने उस की अवस्था को भांपते हुए उसे

आश्वस्त किया.

‘‘मैं ने भी नोटिस किया था, जब से मम्मीजी बरेली वाली शादी से लौटी हैं, उन का चेहरा बुझाबुझा सा है. पहले वाली चुस्तीफुरती नहीं है,’’ सोनू ने भी सोचते हुए कहा.

दादीजी को धोबिन से इस खबर की चर्चा करते देख कर मझले देवर राहुल, दादी के पास आ कर बोले, ‘‘दादी, प्लीज चुप हो जाइए. यह कोई शान की बात नहीं है.’’

‘‘तू चुप कर और पंडितजी को बुला ला. पूजा करवानी है. पूरे महल्ले में मिठाई बांटनी है,’’ दादीजी ने उसे डांटते हुए कहा तो राहुल अपना सिर पकड़ कर लौट गए और धोबिन मुसकराने लगी.

अब दादीजी की जबान पर कौन ताला लगाए. वे तो सभी से अपने बहादुर पुत्र की मर्दानगी का बखान बढ़ाचढ़ा कर कर रही थीं.

‘‘भैया, रिपोर्ट गलत भी तो हो सकती है,’’ नाश्ते की मेज पर राहुल ने सुमित से कहा.

‘‘काश, ऐसा ही हो,’’ गहरी सांस लेते हुए सुमित बोले.

मुझे दोनों भाइयों की शक्ल देख कर हंसी भी आ रही थी और दया भी.

सुबह की सैर पर पापाजी की अनुपस्थिति, आज उन के दोस्तों को घर तक खींच लाई. चाय सर्व करते समय इस उम्र में भी उन लोगों के गुलाबी होते झुर्रियों वाले गाल और पास बैठी मुसकराती हुई दादीजी को देख कर मैं समझ गई थी कि उन लोगों को भी खुशखबरी मिल गई है.

आज पूरे घर में मेरा ही राज था. माली, महाराज, धोबिन, चमकी, सोनू, मोनाली आदि मेरे नेतृत्व में अपनेअपने काम को अंजाम दे रहे थे. हां, बीचबीच में दादीजी आ कर मेरा मार्गदर्शन कर रही थीं. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. किसी महिला के राष्ट्रपति बनने की उस खुशी को आज मैं ने पहली बार पर्सनली महसूस किया था.

मम्मीजी और पापाजी का नाश्ता ले कर मैं दादीजी के साथ उन के कमरे में पहुंची. वहां का नजारा तो और भी रोमांचक था. हमेशा शेरनी की तरह गरजने वाली हमारी मम्मीजी आज मेमने की तरह नजरें झुकाए बैठी थीं. मेरा दिल यह देख कर बल्लियों उछल रहा था. जी चाह रहा था कि उन्हें चूम लूं, पर कहते हैं न कि घायल भी हो तब भी शेरनी तो शेरनी ही होती है.

पापाजी कमरे के दूसरे कोने में बैठे थे. अचानक मेरी नजरों ने नीचे से ऊपर तक उन का मुआयना किया, परंतु मुझे कहीं से भी यह नहीं लगा कि उन का यह दीनहीन शरीर ऐसा गुल भी खिला सकता है.

दादीजी को मम्मीजी की नजरें उतारते देख पापाजी कमरे से बाहर आ गए, तो उन के पीछेपीछे मैं भी बाहर आ गई.

‘‘दादाजी, चमकी आंटी कह रही थीं कि घर में मेहमान आने वाला है, कौन है वह?’’ मेरे बेटे अजय ने मासूमियत से पूछा, तो आंगन में खड़े माली, चमकी, सोनू सभी मुसकरा दिए. पापाजी जल्द ही गेट से बाहर हो लिए.

‘‘दीदीजी, आज क्या पकवान बनाए?’’ चमकी ने चहकते हुए पूछा.

‘‘क्यों, कोई त्योहार है क्या?’’ मैं ने त्योरियां चढ़ाते हुए पूछा.

‘‘कुछ ऐसा ही तो है. थोड़ी देर में तीनों चाचा अपने परिवारों समेत आ रहे हैं,’’ चमकी मुसकराते हुए बोली.

‘‘उफ, लगता है दादीजी का बुलावा है,’’ मैं ने खीजते हुए कहा.

‘‘तू इतना मुसकरा क्यों रही है?’’ सोनू ने चिढ़ते हुए चमकी से पूछा.

‘‘हमें तो मांजी के बारे में सोचसोच कर गुदगुदी हो रही है. हम ने भी अपने लल्ला के पापा को आज जल्दी काम से लौट आने को फोन कर दिया है,’’ चमकी मुंह में साड़ी का पल्लू ठूंसती हुई शरमा कर बोली.

कुछ देर बाद बाहर शोरगुल सुन कर मैं ने महाराज व चमकी को कुछ निर्देश दिए व रसोई से बाहर आई.

बाहर हमारा आधा खानदान पधार चुका था. मम्मीजी की सभी देवरानियां मेरे पीछेपीछे मम्मीजी के कमरे की ओर लपकीं. सोनू, मोनाली और मैं भी वहीं थे.

‘‘अब मैं बच्चों को, महल्ले वालों को क्या मुंह दिखाऊंगी छोटी. अपने पोतेपोतियों से क्या कहूंगी कि तुम्हारे छोटे चाचा आने वाले हैं,’’ अपनी देवरानी के गले लगते हुए मम्मीजी फूटफूट कर रो पड़ीं.

मुझे तो सुबह से इस नए रिश्ते का आभास ही नहीं हुआ था.

‘‘मैं ने इन से कितना मना किया, पर ये मेरी सुनते ही कहां हैं,’’ मम्मीजी रोती हुई अपना दुखड़ा सुना रही थीं.

‘‘अरे दीदी, क्या नहीं सुनते? भैयाजी तो सारी उम्र आप की हां में हां मिलाते आए हैं. अब थोड़ी सी अपने मन की कर ली तो क्या बुरा किया? एक मेरे वे हैं, पत्थर हैं पत्थर,’’ मम्मीजी की सब से छोटी देवरानी अपने पति को कोसते हुए बोलीं.

उन को हम तीनों की उपस्थिति का शायद आभास ही नहीं था.

‘‘पापाजी इस उम्र में भी मम्मीजी के साथ…’’ आंखें फाड़ते हुए मोनाली ने कहा तो मैं ने कुहनी मार कर उसे चुप रहने का इशारा किया.

मम्मीजी को यों रोता देख कर हम बहुओं का भी दिल पसीज गया था, परंतु हमारे अंदर तो उन्हें सांत्वना देने की हिम्मत नहीं थी.

पूरे घर में मेला सा लगा हुआ था. अब तक सुमित और राहुल भी चाचा लोगों के पास आ गए थे. बच्चे ऐंजौय कर रहे थे. उन्हें अचानक इस गैटटुगैदर का अर्थ समझ नहीं आ रहा था. जिसे देखो वही होंठ दबा कर मुसकरा रहा था, परंतु पूरी भीड़ में पापा नहीं थे.

अचानक मेरे मोबाइल पर मेरी सहेली सीमा की आवाज आई, ‘‘एक मजेदार बात सुनाऊं कुसुम?’’

‘‘क्या है?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मेरे पापाजी आज सुबह तेरे घर से लौट कर आए हैं न, तभी से मम्मी के साथ बाहर घूमने गए हैं. दोनों बड़े खुश लग रहे थे,’’ उस ने चहकते हुए कहा.

मुझे समझते देर न लगी कि उस के पापाजी में यह खुशहाल परिवर्तन हमारे यहां की खुशखबरी सुनने से ही आया है.

‘‘डाक्टर से एक बार और कन्फर्म कर लेते हैं,’’ चाचाजी झेंपते हुए सुमित से बोले.

‘‘आज संडे है, क्लीनिक बंद है और वैसे भी डाक्टर 2 दिनों के लिए चेन्नई गई हैं. फोन किया था मैं ने तो पता चला,’’ मैं ने बड़ी बहू होने का फर्ज निभाते हुए कहा.

‘‘अरे क्या पक्का करना रह गया है अब. उस का चेहरा नहीं देखा, कैसा पीला पड़ गया है. कुछ दिनों पहले ही तो वह लल्ला के संग गई थी अपनी जांच करवाने उसी डाक्टरनी के पास,’’ दादीजी ने झिड़कते हुए कहा तो सब चुप हो गए.

आज मम्मीजी की सत्ता लगभग मेरे हाथों में थी, इसलिए भागदौड़ भी कुछ ज्यादा थी और खीज भी हो रही थी. इसलिए मम्मीजी के कमरे के आसपास मोनाली को तैनात कर जेठानीदेवरानियों की खबरें एकत्र करने का निर्देश दे कर मैं सोनू को साथ ले रसोई की ओर बढ़ गई.

रसोई में भी मन कहां लग रहा था. थोड़ी देर बाद मोनाली ने आ कर एक खबर सुनाई. उन लोगों के बीच यह तय हुआ है कि अपने पूरे प्रसवकाल में मम्मीजी दुबई वाली बूआजी के पास रहेंगी और फिर बच्चा भी उन्हें दे दिया जाएगा. उन की अपनी औलाद नहीं है. बूआजी से फोन पर इस की स्वीकृति भी ले ली गई है.

इस खबर ने मुझे खुशी से भर दिया कि चलो उतना समय ही सही, मम्मीजी की कुरसी पर बैठने का मौका तो मिलेगा.

खैर, दोपहर का भोजन समय पर तैयार हो गया. खाने पर सभी मम्मीजी को मिस कर रहे थे.

दोपहर के कामों से निबट कर मैं और चमकी रात के भोजन का सामान लाने मार्केट निकले.

‘‘कुसुम, अब मिसेज अवस्थी की तबीयत कैसी है?’’ पड़ोस की चावला आंटी ने चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान बिखेरी.

‘‘जी…जी…ठीक है,’’ मैं ने झेंपते हुए कहा और आगे बढ़ गई.

‘‘कुसुम भाभी, मम्मी पूछ रही थीं कि हमारा टैलीफोन का बिल भी आप जमा कर देंगी?’’ 2 घर छोड़ 14 वर्षीय चंचल ने अपने घर के गेट पर से ही पूछा.

‘‘क्यों, मम्मी को कहीं जाना है क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, मम्मीपापा ने आज सुबह अचानक ही माउंट आबू जाने का प्रोग्राम बना लिया. इस बार दोनों ही जा रहे हैं. हमें नहीं ले जा रहे हैं,’’ रूठते हुए चंचल बोली.

‘‘लो दीदी, बम तो आप के घर फूटा है, पर धमाके दूरदूर तक हो रहे हैं,’’ चमकी मुसकराते हुए बोली.

हर 2 घर छोड़ कर अलगअलग लोगों की अलगअलग प्रतिक्रियाएं देखीं हम ने. ये सब हमारे घर के उस महान समाचार की ही उपज था.

‘‘दीदी, आज 6 बजे ही फ्लाइट से अतुल आ रहे हैं,’’ घर पहुंची तो मोनाली ने चहकते हुए कहा.

‘‘पर उन्हें तो कल आना था न?’’ मैं ने पूछा.

‘‘काम जल्दी खत्म हो गया, इसलिए आज ही पहुंच जाएंगे. वैसे भी कल रात से मुझे उन की कुछ ज्यादा ही याद आ रही है,’’ मोनाली शरमा कर बोली, तो हम सब भी मुसकरा दिए.

वैसे मम्मीजी के इस समाचार ने महल्ले के प्रौढ़ जोड़ों में जहां नई ऊर्जा का संचार किया था, वहीं नवविवाहितों की गरमी को भी और बढ़ा दिया था.

‘‘भाभी, सब ठीक तो है न? रास्ते में शर्माजी मुझे रोक कर कहने लगे कि घर जल्दी पहुंचो, सब इंतजार कर रहे हैं,’’ मेरे चरणस्पर्श करते हुए घर का माहौल देख हैरानपरेशान से अतुल ने पूछा.

मोनाली ने उस के कान में कुछ कहा तो थोड़ी देर सोच कर वह जोरजोर से हंसने लगा.

उस की हंसी देख कर हम सब सकते में आ गए. परंतु अतुल ने कुछ न कहा और इशारे से मम्मीजी के कमरे में आने को कहा. सभी बुत की तरह उस के पीछे हो लिए.

‘‘बधाई हो मम्मीजी,’’ उस ने शरारत से हंसते हुए कहा.

मम्मीजी को काटो तो खून नहीं.

‘‘क्या कहा था डाक्टर की सहायक ने?’’ उस ने हंसते हुए हम लोगों से पूछा.

‘‘यही कि मिसेज अवस्थी इज प्रैग्नैंट,’’ मैं ने सफाई दी.

‘‘तो आप सब ने मम्मीजी को…’’ और वह पेट पकड़ कर हंसने लगा.

अब की बार मम्मीजी ने धीरे से गरदन उठाई.

‘‘हंसना बंद कर और साफसाफ बता,’’ दादीजी बोलीं.

‘‘उफ दादी, इस घर में मम्मी के अलावा 3 और मिसेज अवस्थी भी हैं,’’ मुश्किल से हंसी रोकते हुए अतुल बोला.

अब सब की निगाहें मुझ पर और सोनू पर थीं. हम दोनों शर्म से पानीपानी हो रहे थे. न जाते बन रहा था न रुकते. मोनाली पर कोई इसलिए शक नहीं कर रहा था, क्योंकि हमारे खानदान के रिवाज के अनुसार, उसे तो 3 सप्ताह पहले ही गौना करा कर यहां लाया गया था.

‘‘तो क्या कुसुम या सोनू में से कोई?’’ दादी के शब्दों में हैरानी थी.

यह सुनते ही मम्मीजी के तेवर भी बदलने लगे.

‘‘सौरी दादी, वह मोनाली है,’’ अतुल बोला.

इस के बाद मोनाली तो कमरे से ऐसे गायब हुई जैसे गधे के सिर से सींग. मेरी और सोनू की जान में जान आई.

दरअसल, हुआ यह कि रिवाज के मुताबिक शादी के 7 महीने तक मोनाली को मायके में ही रहना था, परंतु दोनों के घर एक ही शहर में होने की वजह से अतुल और मोनाली को एकदूसरे से मिलने की छूट थी. इन्हीं मुलाकातों ने मोनाली को गर्भवती कर दिया.

घर वालों के डर से अतुल ही गुप्त रूप से मोनाली को डाक्टर कुलकर्णी के पास यूरिन टैस्ट के लिए ले गया था. परंतु उस का परिणाम स्वयं डाक्टर ने अतुल को बता दिया था. वह यह खुशखबरी घर वापस आ कर देना चाहता था.

उधर शादी से लौटने के बाद बदहजमी व अन्य परेशानियों के कारण मम्मीजी की तबीयत भी ढीली हो गई थी और संयोग से उन का भी यूरिन टैस्ट उन्हीं डाक्टर के क्लीनिक पर हुआ. मम्मीजी के तो डाक्टर के पास जाने की बात हम सभी जानते थे, परंतु अतुल और मोनाली भी वहां गए थे, यह कोई नहीं जानता था. उस पर मम्मीजी की ढीली तबीयत ने आग में घी का काम कर दिया.

बस, इतनी छोटी सी गलतफहमी ने न सिर्फ हमारे घर की सत्ता पलट दी थी, बल्कि प्रेम के नाम पर महल्ले में नई क्रांति भी आ गई थी.

अब दनदनाते हुए मम्मीजी खड़ी हो गईं. मुझे यह समझते देर न लगी कि मेरे एक दिन के राजपाट का अंत हो चुका है.

अब सभी पापाजी को ढूंढ़ रहे थे.

‘‘रीगल थिएटर में बैठे होंगे, जाओ बुला लाओ,’’ मम्मीजी की रोबदार आवाज गरजी.

‘‘आप को कैसे पता दादीजी?’’ मेरे बेटे अजय ने हैरानी से पूछा.

‘‘अरे बेटा, जब तुम्हारे दादाजी हद से ज्यादा परेशान होते हैं न तो अंगरेजी फिल्म देखने चले जाते हैं और इस समय अंगरेजी फिल्म रीगल में ही लगी है,’’ मम्मीजी ने अनजाने पापाजी के व्यक्तित्व की एक पोल खोल दी.

‘‘कुछ भी हो दीदी, पापाजी हैं बड़े हीरो वरना मम्मीजी की जबान पर यह बात कभी न आती कि मैं ने इन से कितना मना किया, यह हैं कि सुनते ही नहीं हैं,’’ सोनू ने धीरे से मम्मी की नकल करते हुए कहा तो मेरी भी हंसी छूट गई.

मम्मीजी अपने रोब के साथ रसोई की ओर चल दीं, रात के खाने का इंतजाम करने.

अब सभी खुशी मनाने के मूड में थे, क्योंकि मिसेज अवस्थी इज रीयली प्रैग्नैंट.

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Sara Ali Khan: पीसीओडी के बावजूद 96 से 51 किलो की हुई सारा

Sara Ali Khan: महिलाओं में पीसीओडी की समस्या एक ऐसी बीमारी है जिसमें वजन कम करने में कई दिक्कतें आती है, इस प्रौब्लम में आम लड़कियों की तरह आसानी से वजन कम नहीं होता. इस वजह से ऐसी लड़कियां न सिर्फ निराश हो जाती है बल्कि डिप्रेशन का शिकार भी हो जाती हैं. अभिनेत्री सारा अली खान फिल्मों में आने से पहले बहुत ज्यादा मोटी थी, खाने पीने की भी शौकीन थी और मस्तमौला वाली जिंदगी जी रही थी.वह पीसीओडी बीमारी से जूझ रही थी इसलिए भी उनका वजन कम नहीं हो रहा था, बल्कि दिन ब दिन बढ़ रहा था. एक समय ऐसा आया कि सारा अली खान का वजन 96 तक पहुंच गया , लेकिन जब सारा अली खान ने फिल्मों में काम करने का फैसला किया तो सबसे पहले उन्होंने शेप में आने क वजन के लिए वजन कम करने फैसला किया. जिसके लिए उन्होंने फिटनेस जर्नी की शुरुआत की. इसमें सही डाइट, सही वर्कआउट और सही लाइफस्टाइल पर ध्यान केंद्रित किया. यह फिटनेस जर्नी अनुशासन से भरी हुई थी और यह जर्नी कुछ महीनों की नहीं बल्कि कई सालों की थी , वह अपना वजन कम करने के लिए लगातार डटी रही और आखिरकार 96 किलो की भारीभरकम सारा अली खान से 51 किलो की नाजुक कली और सेक्सी गर्ल बन गई.

पीसीओडी की समस्या होते हुए भी सारा अली खान ने किस तरह किया वजन कम ….

जैसा कि कहते हैं जहां चाह वहां रहा, सारा अली खान ने भी पीसीओडी की दिक्कत से बाहर निकलते हुए डॉक्टर की सलाह और सख्त रूटीन की मदद से मोटापे पर विजय पाई. और साइज जीरो तक का फिगर बनाने की कोशिश में जुटी रही. एक्ट्रेस ने अपनी डाइट से पिज्जा, बर्गर, समोसा, वडा पाव जैसे जंक फूड को पूरी तरह से बाहर कर दिया इसकी बजाय दाल, सब्जी, रोटी, सलाद खाना शुरू किया. सुबह के नाश्ते में अखरोट बादाम जैसी चीजें शामिल की. नींबू पानी और शहद से सुबह की शुरुआत करने लगीं.
सारा अली खान ने डॉक्टर की सलाह के अनुसार अपने खाने का पूरा सिस्टम क्वांटिटी और क्वालिटी मेंटेन की. इसके साथ ही फिटनेस का पूरा ध्यान रखा.

वर्कआउट और कसरत के दौरान सारा अली खान ने खास तौर पर इन बातों का ध्यान रखा…..

जैसा कि कहां जाता है परफेक्ट फिगर के लिए 70% डाइट और 30% एक्सरसाइज जरूरी होती है. इसी बात को ध्यान में रखकर सारा अली ने अपने वर्कआउट और एक्सरसाइज पर खास तौर पर ध्यान दिया, जैसे योग कार्डियो और पिलेट्स को रोजमर्रा की एक्सरसाइज में शामिल किया. इसके अलावा ट्रेडमिल पर कम से कम एक डेढ़ घंटा चलना रस्सी कूदना और डांस की मदद से कैलरी बर्न करना शुरू किया. बॉडी को फ्लैक्सिबल बनाने के लिए स्ट्रेंथ ट्रेनिंग और स्विमिंग का सहारा लिया.

शारीरिक तौर पर फिट रहने के लिए मानसिक तौर पर फिट रहना भी बहुत जरूरी होता है. इसके लिए सारा अली खान हर दिन खूब पानी पीती है. नियमित तौर पर 8 घंटे की नींद लेती है. अपनी सोच को पॉजिटिव रखती हैं और खुद को खुश रखने के लिए छोटी-छोटी प्रगति करती रहती है. मानसिक तौर पर फिट रहने के लिए सारा अली खान तनाव और निगेटिव लोगों से दूरी बनाकर रखती है.

इसके अलावा अपना मेटाबॉलिज्म को तेज करने के लिए डेली रूटीन में जीरा सौंफ का पानी, ग्रीन टी और डिटॉक्स ड्रिंक लेना भी नहीं भूलती.
सारा अली खान ने अपनी इस फिटनेस जर्नी से यह तो साबित कर ही दिया है कि अगर कुछ करने पर आए और एक बार कुछ ठान ले तो कोई भी चीज मुश्किल नहीं है बस मंजिल तक पहुंचने के लिए जुनून होना जरूरी है.

Sara Ali Khan

Rajkummar Rao ने मंगवाया अमिताभ का वीडियो, मां के लिए तोहफा

Rajkummar Rao: कलाकार छोटा हो या बड़ा , हिट हो या फ्लॉप, हर किसी का कोई ना कोई फेवरेट कलाकार होता है जो उनकी प्रेरणा होता है. लेकिन कई बार उन कलाकार के मातापिता भी अपने पसंदीदा कलाकार को देखना या सुनना चाहते हैं. कलाकार और आम इंसान का रिश्ता दिल का रिश्ता होता है, पसंद का रिश्ता होता है, आपसी मुलाकात नहीं होने के बावजूद भी वह दिल से प्यार करने लगते हैं, तभी तो बॉलीवुड के सुपरस्टार फिर चाहे वह अमिताभ बच्चन हो या शाहरुख खान या  फिर सलमान खान हो, उनके कई सारे प्रशंसक इन कलाकारों की एक झलक देखने के लिए घंटों इनके घर के बाहर इंतजार करते नजर आते हैं.

हाल ही में राजकुमार राव ने भी ऐसा ही एक किस्सा शेयर किया जो उनकी मां से रिलेटेड था. राजकुमार राव के अनुसार उनकी मां जो अब इस दुनिया में नहीं है वह अमिताभ बच्चन की बहुत बड़ी फैन थी और उनकी दिली तमन्ना थी कि वह एक बार अमिताभ बच्चन से जरूर मिले और अमित जी को करीब से देखें, लेकिन उनकी बीमारी की वजह से यह संभव नहीं हो पाया, और उनका देहांत हो गया. राजकुमार राव के अनुसार, “ मुझे बहुत गिल्टी थी कि मैं अपनी मां की इच्छा पूरी नहीं कर पाया.

लिहाजा उसके बाद जब मैं एक बार अमित जी के संपर्क में आया तो मैंने उनसे अपनी मां की इच्छा जाहिर करते हुए एक वीडियो बनाकर अपनी मां के लिए देने की गुजारिश की.  यह भी आश्वासन दिया कि वह वीडियो सिर्फ उनकी मां और अमित जी के बीच में ही रहेगा.  अमित जी ने मेरी भावनाओं को समझते हुए पेन ड्राइव में एक वीडियो बना कर भेजा तो मैंने वह वीडियो अपनी मां की फोटो के सामने चलाया.

आश्चर्य की बात यह है कि मां के फोटो के सामने अमित जी का वीडियो चलने के बाद वह अपने आप ही पेन ड्राइव से गायब हो गया, ऐसा कैसे हुआ मुझे खुद समझ नहीं आया लेकिन ऐसा लगा जैसे वह सचमुच ही अमित जी का वीडियो मेरी मां के लिए ही था, जिसे बाद में कोई और देख ही नहीं पाया.”

राजकुमार राव ने अमिताभ बच्चन को स्पेशली थैंक्स बोलते हुए सोशल मीडिया पर कहा, अमिताभ बच्चन सिर्फ अच्छे एक्टर ही नहीं बल्कि अच्छे इंसान भी हैं जो उन्होंने  मेरी मां की इच्छा पूरी कर दी. इस बात के लिए मैं अमित जी का हमेशा शुक्रगुजार रहूंगा, और दिल से उन्हें प्यार देना चाहूंगा.

गौरतलब है जो लोग दूसरों की भावना का ख्याल रखते हैं कद्र करते हैं उनको प्यार करने वालों की संख्या भी लाखों करोड़ों में होती है और वह आम इंसान ना होकर आसमान में चमकते सितारे की तरह होते हैं जैसे कि बॉलीवुड के सुपरस्टार शहंशाह अमिताभ बच्चन.

Freedom After Marriage: क्या शादी के बाद आजादी खत्म हो जाती है?

Freedom After Marriage: भारतीय कंस्टीटूशन ने औरतों को जो अधिकार दिए हैँ वो मर्दवादी समाज को हजम नहीं हो रहे. मीडिया, राजनीती और अदालतों में ज्यादातर मर्दवादी मानसिकता के लोग बैठे हैँ जो औरतों के अधिकारों के खिलाफ हर तरह के हठकंडे अपनाते हैँ. कई मामलों में इस मर्दवादी लॉबी की मानसिकता उजागर होती रहती है. न्यायालय में बैठे जजों ने तलाक के कई मामलों में ऐसी अनर्गल टिप्पड़िया की हैँ जिससे इन जजों के अंदर औरतों के खिलाफ बैठी कुंठायें साफ झलक जाती हैँ.

अभी हाल ही में एक महिला के तलाक का मामला सुप्रीम पहुंचा. महिला और उसका पति सिंगापुर में जॉब कर रहे थे. दोनों के दो छोटे बच्चे भी हैँ. सिंगापुर में आपसी मनमुटाव के चलते महिला हैदराबाद आ गई और यहीं रहने लगी. दोनों के बीच रिश्ते इतने खराब हो गये की महिला को तलाक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ गया.

वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये अदालत में पेश हुई महिला ने कहा कि उसका पति, जो सिंगापुर में रह रहा था और इस समय भारत में है, इस मामले को सुलझाने के लिए तैयार नहीं है. वह सिर्फ मुलाकात का अधिकार तथा बच्चों की कस्टडी चाहता है.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की पीठ ने महिला से पूछा कि बच्चों के साथ सिंगापुर लौटने में आपको क्या दिक्कत है? महिला ने कुछ कठिनाइयों का हवाला देते हुए कहा कि सिंगापुर में पति के व्यवहार के कारण उसके लिए वापस लौटना बेहद मुश्किल हो गया है.

सिंगल मदर होने के नाते आजीविका के लिए नौकरी की जरूरत पर जोर देते हुए महिला ने कहा कि उसे अलग रह रहे पति से कोई गुजारा भत्ता नहीं मिला है. पति के वकील ने कहा कि दोनों की ही सिंगापुर में काफी अच्छी नौकरी है, लेकिन पत्नी ने बच्चों के साथ सिंगापुर लौटने से इन्कार कर दिया. पत्नी को आजादी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह असंभव है कि विवाह के बाद पति या पत्नी यह कह सकें कि वे अपने जीवनसाथी से स्वतंत्र होना चाहते हैं. जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की पीठ ने आगाह किया कि “अगर कोई स्वतंत्र रहना चाहता है, तो उसे विवाह नहीं करना चाहिए. हम बिल्कुल स्पष्ट हैं. कोई भी पति या पत्नी यह नहीं कह सकता कि जब तक हमारा विवाह जारी है, मैं अपने जीवनसाथी से स्वतंत्र रहना चाहता हूं. यह असंभव है. विवाह का मतलब क्या है? दो दिलों और दो व्यक्तियों का एक साथ आना. आप स्वतंत्र कैसे हो सकते हैं? अगर पति-पत्नी साथ आ जाते हैं, तो हमें खुशी होगी, क्योंकि बच्चे बहुत छोटे हैं. उन्हें घर टूटा हुआ देखने को न मिले”

दोनों पक्षों को मतभेद सुलझाने का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा कि हर पति-पत्नी का आपस में कोई न कोई विवाद होता ही है. पीठ ने पक्षकारों से कहा कि आप सभी शिक्षित हैं. आपको इन मुद्दों को सुलझाना होगा.

स्वतंत्रता हर नागरिक का मौलिक अधिकार है. चाहे वो शादी में हो या न हो. कंस्टीटूशन के प्रियंबल में ही व्यक्ति की गरिमा की बात की गई है. शादीशुदा औरत या मर्द को भी अपनी गरिमा के साथ जीने का पूरा अधिकार है. संविधान के अनुच्छेद 21 भी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है. कोई महिला अपने पति से बिना तलाक लिए अलग रह सकती है और अपनी स्वतंत्रता का आनंद ले सकती है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार” निहित है, जो प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार देता है इसका मतलब है कि एक महिला अपनी मर्जी से अपने पति से अलग रहने का फैसला कर सकती है, और उसे ऐसा करने के लिए तलाक लेना जरूरी नहीं है.

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 10 के तहत पति या पत्नी को अलग रहने (जुडिशियल सेपरेशन) का प्रावधान है. इस प्रावधान के तहत बिना तलाक लिए पति-पत्नी को अलग रहने की अनुमति है.

यदि कोई महिला अपने पति से अलग रहने का फैसला करती है, तो भी वह निर्वाह भत्ता (मेंटेनेंस) की मांग कर सकती है. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125, या घरेलू हिंसा अधिनियम (2005) के तहत वह अलग रहते हुए भी आर्थिक सहायता के लिए आवेदन कर सकती है. यदि महिला का अपने पति से अलग रहने का कारण घरेलू हिंसा है, तो महिला घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत सुरक्षा, आवास, और आर्थिक सहायता मांग सकती है.

भारतीय संविधान के अनुसार एक महिला को अपने पति से बिना तलाक लिए अलग रहने और स्वतंत्र जीवन जीने का पूरा अधिकार है. विवाह से किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता भंग नहीं होती. शादीशुदा व्यक्ति भी आजादी के साथ जीवन जी सकता है. इस तरह कोर्ट की यह टिप्पड़ी की शादीशुदा व्यक्ति आजाद नहीं है बिलकुल अनर्गल और असंवैधानिक साबित होती है.

Freedom After Marriage

Hindi Long Story: चित्तशुद्धि- क्यों सुकून की तलाश कर रही थी आभा

लेखिका- कंवल भारती

Hindi Long Story: इस शहर में मेरा पहली बार आना हुआ है. यह मेरे लिए अनजाना है. 5 साल तक एक ही शहर में रहने के बाद मेरा ट्रांसफर इस शहर में हुआ है. हुआ क्या है, किसी तरह कराया है. जहां से मैं आई हूं वहां एक मंत्री का इतना दबदबा था कि उस के गुंडे औफिस आ कर मेज पर चढ़ कर बैठ जाते थे, और मंत्री के नाम पर गलत काम कराने का दबाव बनाते थे. गालियां उन की जबान पर हर वक्त धरी रहती थीं. औरत तक का कोई लिहाज उन की नजरों में नहीं था.

मैं स्टेशन से बाहर निकलती हूं. बहुत सारे रिकशे खड़े हैं. मैं हाथ के संकेत से एक रिकशे वाले को बुलाती हूं. मैं उस से कुछ कहे बिना ही रिकशे में बैठ जाती हूं. रिकशे वाला पूछ रहा है, ‘‘बहनजी, कहां जाइएगा?’’ मैं उस से विकास भवन चलने को कहती हूं. नए शहर में रिकशे में बैठ कर घूमना मु झे अच्छा लगता है. सड़कें, बाजार और दिशाएं अच्छी तरह दिखाई देती हैं.

रिकशे वाला स्टेशन से बाहर निकल कर सीधे रोड पर चल रहा है. यह स्टेशन रोड है. कुछ दूर चल कर सड़क पर ढेर सी सब्जियों की दुकानें देख रही हूं. मैं अनुमान लगाती हूं, शायद यह यहां की सब्जी मंडी है. मैं रिकशे वाले से कन्फर्म करती हूं. वह बता रहा है, ‘‘बहनजी, यह अनाज मंडी है. सब्जियां भी यहां बिकती हैं.’’

मैं देख रही हूं, सड़क के दोनों ओर सब्जियों के ढेर से सड़क काफी संकरी हो गई है. गाय और सांड़ खुले घूम रहे हैं. इस भीड़ वाले संकरे रास्ते से निकल कर आगे दाहिने हाथ पर राजकीय चिकित्सालय की इमारत दिख रही है. फिर चौक आता है. रिकशे वाला कह रहा है, ‘‘यहां बाईं तरफ घंटाघर है, यह सामने नगरपालिका है.’’

रिकशा चौक से आगे जा कर बाएं मुड़ जाता है. इस रोड की सजीधजी दुकानें बता रही हैं कि यह यहां का मुख्य बाजार है. मैं दोनों ओर गौर से देखती जा रही हूं. किराने, वस्त्रों, साडि़यों, रेडीमेड गारमैंट्स, बरतन, स्टेशनरी आदि की काफी सारी दुकानें नजर आ रही हैं. साडि़यों के एक शोरूम पर नजर पड़ती है. बहुत ही भव्य शोरूम लग रहा है. अब तो इस शहर में रहना ही है. सो, मैं निश्चित कर रही हूं, इस शोरूम पर जरूर आना है.

कुछ दूर चल कर एक संकरा पुल आता है. इस पुल पर काफी जाम है. रिकशे वाला धीरेधीरे रास्ता बनाते हुए चल रहा है. पुल के नीचे नदी है, पर उस में पानी ज्यादा नहीं दिख रहा है. रिकशे वाला पुल और नदी का नाम बता रहा है, पर मेरा ध्यान उस की तरफ नहीं है. इसलिए मैं उसे सुन नहीं पाई. पुल पार करते ही बाईं ओर एक बड़ी सी मिठाई की दुकान नजर आई. रिकशे वाला बता रहा है, ‘‘बहनजी, इस दुकान की इमरती दूरदूर तक मशहूर है.’’

इमरती मुझे बहुत अच्छी लगती है. पर अब डायबिटीज की पेशेंट हूं, इसलिए परहेज करती हूं. इसी वक्त चमेली की खुशबू नथुनों में भर जाती है. देखती हूं कि सड़क के दोनों ओर इत्र की दुकानें हैं. यहां से आगे चल कर फिर एक बाजार आया है. दुकानों के बोर्ड पढ़ती हूं, कोई गंज बाजार है.

रिकशा अब बाएं मुड़ रहा है. आगे एक देशी शराब का ठेका बाईं तरफ दिखाई दे रहा है.

रिकशा वाला कह रहा है, ‘‘यहां शाम को मछली बाजार लगता है.’’ पर मैं उस की बात अनसुनी कर देती हूं. यहां से कोई 20 मिनट बाद कलैक्ट्रेट का गेट दिखाई देने लगा है. रिकशा इसी गेट के अंदर प्रवेश कर रहा है. मैं बाईं ओर जिला कोषागार का औफिस देख रही हूं. उस के थोड़ा ही आगे विकास भवन की बिल्डिंग दिखाई देने लगी है. रिकशा वहीं पर रुक जाता है.

मैं रिकशे से उतरती हूं. मैं उस से किराया पूछती हूं, वह 10 रुपए मांग रहा है. यहां इतना कम किराया. मु झे यह ठीक नहीं लग रहा है. मैं मन में सोच रही हूं, यह तो इस के श्रम के साथ न्याय नहीं है. पर मैं कर भी क्या सकती हूं. मैं ने उसे 10 रुपए दिए. बाद में सौ रुपए का नोट अलग से दिया कि वह मेरी तरफ से तुम्हारे बच्चों के लिए मिठाई है. आज इस शहर में मेरा पहला दिन है. जाओ, उसी दुकान से इमरती ले कर घर जाना.

रिकशे वाले की आंखों में खुशी देख कर मैं अपने बचपन की यादों में खो जाती हूं. पिताजी चीनी मिल में मजदूर थे. एक दिन जब वे रात में ड्यूटी से घर आए, तो उन के हाथों में मिठाई का डब्बा था. उस में इमरतियां थीं. मां ने पूछा था ‘मिठाई कहां से लाए,’ तो पिताजी ने बताया था, ‘एक नए अफसर आए हैं. उन के साथ मिल के विभागों में घूमा था. उन्होंने मु झ से घरगृहस्थी की बातें पूछी थीं. जब चलने को हुआ, तो उन्होंने 50 रुपए दे कर कहा था कि बच्चों के लिए मिठाई ले जाना.’ उस दिन मैं ने पहली बार इमरती खाई थी. ओह, मैं भी कहां खो गई. वर्तमान में लौटती हूं.

मैं सूटकेस ले कर विकास भवन में प्रवेश करती हूं. अपने विभाग में जा कर अपना जौइनिंग लैटर बनवाती हूं. बाबू बताता है, डीएम साहब अवकाश पर हैं, उन का चार्ज सीडीओ के पास है. मैं बाबू के साथ सीडीओ से मिलने जाती हूं. मैं उन्हें जिला समाज कल्याण अधिकारी के पद पर अपना जौइनिंग लैटर सौंपती हूं.

आज का दिन ऐसे ही बीत जाता है. सीडीओ से मिल कर अच्छा लग रहा है. रोबदाब वाली अफसरी उन में नहीं दिखी. वे मु झे मिलनसार और सहयोगी स्वभाव के लगे. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या इस शहर में कोई संबंधी है?’’ मेरे मना करने पर उन्होंने तुरंत ही मेरे आवास की समस्या भी हल कर दी है.

डीआरडीए के परियोजना निदेशक का ट्रांसफर हो गया था, और उन का आवास खाली पड़ा था. वे मु झे उस की चाबी दिलवा देते हैं. मैं उन का आभार व्यक्त करती हूं.

बाबू ने आवास की साफसफाई करवा दी है. कुछ जरूरी सामान भी उस ने उपलब्ध करा दिया है. अकसर नई जगह पर नींद थोड़ी मुश्किल से आती है. पर 12 घंटे की रेलयात्रा की थकान थी, इसलिए लेटते ही नींद ने आगोश में ले लिया था. सुबह 6 बजे आंख खुली. आदत के अनुसार अखबार के लिए बाहर आई. पर अखबार कहां से होता. किसी हौकर से डालने को कहा भी नहीं गया था.

संयोग से साइकिल पर एक हौकर आता दिखाई दिया. मैं उस से एक हिंदी और एक इंग्लिश का अखबार लेती हूं, और यही 2 अखबार उस से रोज डालने को कहती हूं. ब्रश कर के चाय बनाती हूं. मैं दूध का इस्तेमाल नहीं करती हूं. बाकी सारा सामान इलैक्ट्रिक केतली, शुगरफ्री के पाउच और टीबैग्स घर से साथ ले कर आईर् हूं. चाय पीने के साथ अखबार पढ़ती हूं.

एक खबर पढ़ कर चौंक जाती हूं. क्या सरला इसी शहर में है? क्या यह वही सरला है, जो मेरी क्लासपार्टनर थी या यह कोई और है? नाम तो उस का भी सरला था. बहुत छुआछूत करती थी. मगर यह वही सरला है, तब तो यह बिलकुल नहीं बदली. वैसी की वैसी ही कूपमंडूक है अभी तक. सच में कुछ लोग कभी नहीं बदलते. घुट्टी में दिए गए संस्कार उन में ऐसे रचबस जाते हैं कि उन की पूरी दिनचर्या संस्कारों की गुलाम हो जाती है. अच्छाबुरा, और सहीगलत में वे कोई अंतर ही नहीं कर पाते. बस, उन के लिए उन की मान्यताएं, आस्थाएं और संस्कार ही उन का परम धर्म होते हैं. मु झे याद है, एक बार मैं ने कहा था, चल सरला, आज बाहर किसी रैस्तरां में कुछ खापी कर आते हैं.

वह तुरंत बोली थी, ‘तुम जाओ, मु झे अपना धर्म नहीं भ्रष्ट करना.’

मैं ने कहा, ‘क्या रैस्तरां में खाने से धर्म भ्रष्ट हो जाता है?’

‘और क्या?’

‘तु झ से किस ने कहा?’

‘किसी ने नहीं कहा, पर क्या तु झे पक्का पता है कि वहां जातकुजात के लोग नहीं होते हैं? ब्राह्मण ही खाना बनाते और परोसते हैं?’

‘तू जातपांत को मानती है?’

‘हां, मैं तो मानती हूं.’

उस का रिऐक्शन इतना खराब होगा, मु झे नहीं पता था. मैं तो सुन कर अवाक रह गई थी.

अगर यह वही सरला है, तब तो उस की नौकरानी ने उस के खिलाफ केस कर के ठीक ही किया है. बताइए, यह कोई बात हुई कि जो नौकरानी 6 महीने से चायनाश्ता और खाना बना रही थी, उसे इस वजह से मारपीट कर के नौकरी से निकाल दिया कि वह उसे ब्राह्मण सम झ रही थी जबकि वह यादव निकली. इस ब्राह्मणदंभी को यह नहीं पता कि जो आटा वह बाजार से लाती है, वह किस जाति या धर्म के खेत के गेहूं का आटा है- ब्राह्मण के, यादव के, चमार के या मुसलमान के?

पर ऐसे लोग यहां भी तर्क जमा लेते हैं, कहते हैं, अग्नि में तप कर सब शुद्ध हो जाता है. अन्न अग्नि में शुद्ध हो जाता है, लेकिन उसे बनाने वाला शुद्ध नहीं होता है. वह अगर ब्राह्मण है तो ब्राह्मण ही रहता है, और यादव है तो यादव ही रहता है. मैं तो यह खबर पढ़ कर ही परेशान हुई जा रही हूं, यह कितनी अवैज्ञानिक सोच है, कह रही है, नौकरानी ने मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया. इतने दिनों से मैं एक शूद्रा के हाथ का बना खाना खा रही थी.

मैं सरला से मिलने की सोचने लगी हूं. पर पहले तो यह पता करना होगा कि वह रहती कहां है. पर इस से भी पहले उस का फोन नंबर मिलना जरूरी है. यहां भी सीडीओ साहब काम आते हैं. और मु झे उस के आवास का पता व फोन नंबर मिल जाता है. मैं तुरंत नंबर मिलाती हूं. फोन स्विचऔफ जा रहा है. हो सकता है ऐसी परिस्थिति में उसे अनेक लोगों के फोन आ रहे होंगे. उसी से बचने के लिए उस ने फोन स्विचऔफ कर दिया होगा. पर उस से मिलना जरूरी है. इसलिए मैं उस से मिलने उस के आवास की ओर चल देती हूं.

ट्रांजिट होस्टल में सैकंड फ्लोर पर जा कर मैं एक दरवाजे की घंटी बजाती हूं. दरवाजा सरला ही खोलती है. मैं इतने सालों के बाद भी उसे पहचान लेती हूं. पर वह मु झे देख कर अवाक सी है, …..पहचानने का भाव उस की आंखों में मु झे दिख रहा है. फिर पूछती है, ‘‘जी कहिए?’’

मेरे जवाब देने से पहले ही वह फिर बोल पड़ती है, ‘‘बोलिए, किस से मिलना है?’’

‘‘अरे सरला, मु झे पहचाना नहीं? मैं आभा हूं, कानपुर वाली तेरी क्लासफैलो.’’

फिर वह थोड़ा चौंक कर बोली, ‘‘अरे आभा तू? तू यहां कैसे? माफ करना यार, कोई 10 साल के बाद मिल रही हो, इसलिए पहचान नहीं पाई. आओ, अंदर आओ.’’

मैं उस के साथ अंदर प्रवेश करती हूं. ड्राइंगरूम एकदम साफसुथरा लग रहा है, करीने से सजा हुआ. मैं सोफे पर बैठ जाती हूं. वह फ्रिज में से पानी की बोतल निकाल कर गिलास में डालती है और मु झे दे कर मेरे पास ही बैठ जाती है. फिर ढेर सारे सवाल करती है, ‘‘और बता, तू इतनी मोटी जो हो गई, पहचानती कैसे? और तू इस शहर में क्या कर रही है? किसी रिलेटिव के पास आई है क्या? और तु झे मेरा पता कैसे मिला?’’

‘‘अरे रुक यार, कितने सवाल पूछेगी एकसाथ?’’

वह हंसने लगती है. पर मैं देख रही हूं कि उस की हंसी में स्वाभाविकता नहीं है. एकदम फीकी सी हंसी. मैं सम झ रही हूं, वह खुश नहीं है, अंदर से परेशान है.

मैं उसे बताती हूं, ‘‘मैं ने यहां कल ही समाज कल्याण अधिकारी के पद पर जौइन किया है. आज ही सुबह अखबार में तेरी खबर पढ़ी, और बेचैन हो गई. इतनी चिंतित हुई कि किसी तरह तेरा नंबर और पता लिया. पहले फोन किया, वह स्विचऔफ जा रहा था. फिर मिलने चली आई.’’

‘‘किस से मिला मेरा फोन नंबर और पता?’’

‘‘अब यह सब छोड़. वैसे सीडीओ साहब से ही मिला.’’

‘‘क्या बात है, एक ही दिन में काफी मेहरबान हो गए सीडीओ साहब?’’ उस ने व्यंग्यात्मक मजाक किया.

‘‘हां, तो क्या हुआ? भले व्यक्ति हैं. मिलनसार हैं.’’

‘‘और मोहब्बत वाले हैं,’’ यह कह कर वह फिर हंसी.

‘‘हां, हैं मोहब्बत वाले. अब तो खुश. अब तू बता, तू ने यह क्या कांड कर डाला?’’

‘‘कैसा कांड?’’

‘‘अरे, तेरी कुक ने तु झ पर मारपीट का मामला दर्ज कराया है. यह कांड नहीं है.’’

‘‘अरे, वह कुछ नहीं है, उस से मैं निबट लूंगी.’’

‘‘कैसे? यह कहेगी कि वह  झूठ बोल रही है?’’

‘‘हां, तो क्या हुआ?’’

‘‘तेरे लिए गरीब औरत के लिए कोई इज्जत नहीं है?’’

‘‘काहे की गरीब और काहे की इज्जत? क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है? मेरा धर्म भ्रष्ट कर के चली गई?’’ उस ने क्रोध से भर कर कहा.

‘‘कैसा धर्म भ्रष्ट? क्या किया उस ने?’’

तब उस ने बताया, ‘‘मु झे एक ब्राह्मण कुक की जरूरत थी. एक व्यक्ति ने एक औरत को मेरे यहां भेजा कि यह बहुत अच्छा खाना बनाती है और ब्राह्मण भी है. उस व्यक्ति के विश्वास पर मैं ने उसे रख लिया. वह काम करने लगी. सुबह में वह नाश्ता बनाती और दोनों समय का खाना बना कर, खिला कर चली जाती थी. अचानक 6 महीने बाद उस की कालोनी की एक औरत उस से मिलने आई. मैं ने उस से पूछा, ‘तुम इसे कैसे जानती हो?’ उस ने बताया, ‘यह हमारी ही कालोनी में रहती है.’

‘‘मैं ने पूछा, ‘कौन है यह,’ तो वह बोली, ‘यादव है.’

‘‘यह सुन कर मेरे तो बदन में आग लग गई. इतना बड़ा  झूठ मेरे साथ, यह घोर अनर्र्थ था. मैं 6 महीने से एक शूद्रा के हाथों का बना खाना खा रही थी. मेरे नवरात्र के व्रत तक भ्रष्ट कर गई. मेरा सारा धर्म भ्रष्ट कर गई.’’

मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब है कि तु झे दूसरी औरत ने बताया कि वह कुक यादव है, तब तु झे पता चला.’’

‘‘हां, वरना मैं ब्राह्मण ही सम झती रहती.’’

‘‘और भ्रष्ट होती रहती?’’

‘‘और क्या? मु झे उस ने बचा लिया.’’

‘‘अच्छा, उस पहले व्यक्ति ने उसे ब्राह्मण बताया था.’’

‘‘हां.’’

‘‘मतलब यह कि एक ने कहा, वह ब्राह्मण है, तो तू ने उसे ब्राह्मण मान लिया, दूसरे ने कहा, वह यादव है, तो तू ने उसे यादव मान लिया. कोई तीसरा उसे चमार बताता, तो उसे मान लेती.’’

‘‘तू कहना क्या चाहती है?’’

‘‘मैं यह कहना चाहती हूं कि औरत की जाति को पहचानने का तेरे पास कोई मापदंड नहीं है. जो भी जाति औरत अपनी बताएगी, या दूसरा व्यक्ति बताएगा, तू उसी पर विश्वास करेगी.’’

अब वह घूम गई, क्योंकि कोई जवाब उस के पास नहीं है. मैं ने कहा, ‘‘सरला, औरत के वर्ग की कोई पहचान नहीं है.’’

‘‘क्यों नहीं है?’’ उस ने बहस में अपने अज्ञान को निरर्थक छिपाने का प्रयास किया.

‘‘बता क्या पहचान है? किस चीज से पहचानेगी – चेहरे से? भाषा से? पहनावे से?’’

वह मौन रही.

‘‘अच्छा, तू बता, तेरी क्या पहचान है? तू कैसे साबित करेगी कि तू ब्राह्मण है?’’ मैं ने तर्क किया, ‘‘पुरुष तो अपना जनेऊ दिखा कर साबित कर देगा, पर औरत क्या दिखा कर साबित करेगी कि वह ब्राह्मण है?’’

वह सोच में पड़ गई थी. गरम लोहा देख कर मैं ने फिर तर्क का प्रहार किया, ‘‘क्या तेरा जनेऊ हुआ है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘मेरा भी नहीं हुआ है,’’ मैं ने कहा, ‘‘तू धर्म को ज्यादा सम झती है. जिस का जनेऊ नहीं होता, उसे क्या कहते हैं?’’

वह चुप.

मैं ने कहा, ‘‘उसे शूद्र कहते हैं. तब बिना जनेऊ के तू भी शूद्रा हुई कि नहीं? मैं भी शूद्रा हुई कि नहीं?’’

उस का ब्राह्मण अहं आहत हो गया, तुरंत बोली, ‘‘एक ब्राह्मणी शूद्रा कैसे हो सकती है?’’

‘‘नहीं हो सकती न, फिर सम झा तू, किस तरह ब्राह्मण है?’’

‘‘मेरे पिता ब्राह्मण हैं, दादा ब्राह्मण थे, मेरी मां ब्राह्मण हैं,’’ उस ने तर्क दिया.

मैं ने कहा, ‘‘यह कोई तर्कनहीं है. तेरे पिता और दादा ब्राह्मण हो सकते हैं, पर तेरी मां भी ब्राह्मण हैं, इस का दावा तू कैसे कर सकती है? खुद तेरी मां भी ब्राह्मण होने का दावा नहीं कर सकती.’’

‘‘तू कैसी अजीब बातें कर रही है, क्यों नहीं कर सकती मेरी मां ब्राह्मण होने का दावा?’’ उस ने क्रोध में जोर दे कर कहा.

‘‘क्योंकि वे औरत हैं, इसलिए.’’

‘‘मतलब?’’

मतलब यह है कि औरत उस तरल पदार्थ की तरह है, जो जिस बरतन में रखा जाता है, वह उसी का रूप धारण कर लेता है. औरत अपने पिता या पति के वर्ग से जानी जाती है, उस का अपना कोई वर्ण नहीं होता है. वह ब्राह्मण से विवाह करने पर ब्राह्मणी, ठाकुर से विवाह करने पर ठकुरानी, लाला से विवाह करने पर लालानी होगी, और शूद्र वर्ण में जिस जाति से विवाह करेगी, उस की भी वही जाति मानी जाएगी. सरला, मैं फिर कह रही हूं कि औरत का अपना कोई वर्ण नहीं होता है.’’

वह मौन हो कर सुन रही थी. पर मैं सम झ रही थी कि उसे यह अच्छा नहीं लग रहा था. मैं ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘तुम्हारी मां भी तुम्हारे पिता के वर्ण से ब्राह्मण हैं, और दादी भी तुम्हारे दादा के वर्ण से ब्राह्मण थीं. इस से पहले की पीढि़यों के बारे में भी जहां तक तुम्हें याद है, वहीं तक बता सकती हो. उस के बाद वह भी नहीं.’’

मैं ने आगे कहा, ‘‘तू ऋतु को तो जानती होगी. अभी पिछले महीने उस की किन्हीं प्रोफैसर शर्मा से शादी हुई है.’’

‘‘इस में अचरज क्या है?’’ अब उस ने पूछा.

‘‘सरला, अचरज यह है कि ऋतु की मां ब्राह्मण नहीं थीं. रस्तोगी जाति की थीं, जिसे शायद सुनार कहते हैं. फिर वह एक शूद्रा की बेटी हुई कि नहीं? पर चूंकि उस के पिता भट्ट थे, इसलिए वह भी ब्राह्मण है. अब उस के बच्चे भी भट्ट ब्राह्मण कहलाएंगे, क्योंकि दूसरी पीढ़ी में वह ब्राह्मण हो गई. इसलिए सरला, यह ब्राह्मण का भूत दिमाग से निकाल दे.’’

पर हार कर भी सरला हार मानने को तैयार नहीं थी. उस ने गुण का सवाल खड़ा कर दिया, ‘‘तो क्या ब्राह्मण का कोई गुण नहीं होता?’’

अनजाने में यह उस ने एक अच्छा प्रश्न उठा दिया था. मु झे उसे निरुत्तर करने का एक और अवसर मिल गया. मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब है, तू ने यह मान लिया कि ब्राह्मण गुण से होता है?’’

‘‘बिलकुल, इस में क्या शक है?’’

‘‘गुड, अब यह बता, ब्राह्मण के गुण क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘हां, ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘क्या तू नहीं जानती?’’

‘‘हां, मैं नहीं जानती. तू बता?’’ फिर मैं ने कहा, ‘‘अच्छा छोड़, यह बता, ब्राह्मण के कर्म क्या हैं.’’

‘‘वेदों का पठनपाठन और दान लेना.’’

‘‘गुड, और ब्राह्मणी के?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि यह कर्म जो तू ने बताए हैं, वे तो ब्राह्मण के कर्म हैं. ब्राह्मणी के कर्म क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण और ब्राह्मणी एक ही बात है.’’

‘‘एक ही बात नहीं है, सरला. स्त्री के रूप में ब्राह्मणी वेदों का पठनपाठन नहीं कर सकती. उस का कोई संस्कार भी नहीं होता. वह यज्ञ भी नहीं कर सकती. एक ब्राह्मणी के नाते क्या तू यह सब कर्म करती है?’’

‘‘नहीं, मेरी इस में कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘वैरी गुड. अब तू ने सही बात कही. यार, तबीयत खुश कर दी. अब मैं तु झे बताती हूं कि शास्त्रों में ब्राह्मण का गुण भिक्षाटन कर के जीविका कमाना है. तू नौकरी क्यों कर रही है? यह तो ब्राह्मण का गुण नहीं है.’’

‘‘यार, तेरी बातें तो अब मु झे सोचने पर मजबूर कर रही हैं. मैं इतनी पढ़ीलिखी, क्यों भीख मांगूंगी? यह तो व्यक्ति की क्षमताओं का तिरस्कार है.’’

‘‘व्यक्ति की क्षमताओं का ही नहीं, गुणों का भी.

‘‘हर व्यक्ति में ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, वैश्य है और शूद्र है. गुण के आधार पर वह स्त्री ब्राह्मण है, जिसे तू ने शूद्रा मान कर मारपीट कर निकाल दिया. उसे अगर पढ़नेलिखने का अवसर मिलता और बौस बन कर तेरे ऊपर बैठी होती, तो क्या तू तब भी उस से नफरत करती? लेकिन मैं जानती हूं, तू तब भी करती. तेरे जैसे अशुद्ध चित्त वाले जातीय अभिमानी लोग ही समाज को रुढि़वादी बनाए हुए हैं.’’

वह गुमसुम बैठी थी. मैं ने कहा, ‘‘यार, तू ने तो चाय भी नहीं पिलाई. चल, आज मैं ही तु झे चाय बना कर पिलाती हूं.’’ यह कह कर मैं उस के किचन में चली जाती हूं.

Hindi Long Story

Moral Story: लालच- रंजीता के साथ आखिर क्या हुआ

Moral Story: रंजीता बहुत खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन बननेसंवरने में उसे बहुत दिलचस्पी थी. जब वह सजसंवर कर खुद को आईने में देखती, तो मुसकराने लगती. रंजीता अपनी असली उम्र से कम लगती थी. उसे घर के कामों में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी और वह बाजार में खरीदारी करने की शौकीन थी.

रंजीता को शेरोशायरी से लगाव था और वह अपनी शोखियों से महफिल लूट लेने का दम रखती थी. रंजीता का अपने पति रमेश से झगड़ा चल रहा था. इसी बीच उन के महल्ले का साबिर मुंबई से लौट आया था. वह चलता पुरजा था.

एक दिन मुशायरे में उन दोनों का आमनासामना हो गया. साबिर ने आदाब करते हुए कहा, ‘‘आप तो पहुंची हुई शायरा लगती हैं. आप मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में क्यों नहीं कोशिश करती हैं?’’ रंजीता पति रमेश की जलीकटी बातों से उकताई हुई थी. साबिर की बातों से जैसे जले पर रूई के फाहे सी ठंडक मिली. उस ने अपना भाव जाहिर करते हुए कहा, ‘‘साबिर, आप क्या मुझे बेवकूफ समझते हैं?’’

साबिर ने तुरंत अपना जाल बिछाया, ‘‘नहीं मैडम, मैं सच कह रहा हूं कि आप वाकई पहुंची हुई शायरा हैं.’’ रंजीता ने साबिर को अपने घर दिन के खाने पर बुला लिया. रात के खाने पर रमेश से झगड़ा हो सकता था.

खाने पर रंजीता व साबिर ने खूब खयालीपुलाव पकाए और योजना बनाई कि रंजीता अपनी जमापूंजी ले कर हफ्ते के आखिर में जा रही ट्रेन से मुंबई चलेगी. साबिर ने तो उस की जवान होती लड़की को भी साथ चलने के लिए कहा, पर रंजीता ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं. बेटी को घर पर ही रख कर वह अपनी पक्की सहेली से बेटी से मिलते रहने की कह कर 50 हजार रुपए ले कर चल दी.

रंजीता जब गाड़ी में बैठी, तो उस का दिल धकधक कर रहा था. पर वह मन में नए मनसूबे बनाती जा रही थी. इन्हीं सब बातों को याद करती हुई वह मुंबई पहुंच गई. साबिर ने उसे वेटिंग रूम में ही तैयार होने को कहा और फोन पर किसी से मिलने की मुहलत मांगी.

रंजीता का चेहरा बुझ सा गया था. वह नए शहर में गुमसुम हो गई थी. साबिर ने उस से कहा, ‘‘चलो, कहीं होटल में कुछ खा लेते हैं.’’

कुछ देर में वे दोनों एक महंगे रैस्टोरैंट में थे. साबिर ने उस से पूछे बिना ही काफी महंगी डिश का और्डर किया. जब दोनों ने खाना खा लिया, तो साबिर ने यों जाहिर किया कि मानो उस का पर्स मिल नहीं रहा था. झक मार कर रंजीता ने ही वह भारी बिल अदा किया. रंजीता को घर की भी बेहद याद आ रही थी. घर से दूर आ कर वह महसूस कर रही थी कि पति के साए में वह कितनी बेफिक्र रहती थी.

अब साबिर व रंजीता एक टैक्सी से किसी सरजू के दफ्तर जा रहे थे. इस बार रंजीता ने खुद ही टैक्सी का भाड़ा दे दिया. उस ने साबिर को नौटंकी करने का चांस नहीं दिया. सरजू एक ऐक्टिंग इंस्टीट्यूट चलाता था. हालांकि वह खुद एक पिटा हुआ ऐक्टर था, पर मुंबई में ऐक्टिंग सिखाने का उस का धंधा सुपरहिट था.

सरजू के दफ्तर तक रंजीता को पहुंचा कर साबिर को जैसे कुछ याद आया. वह उठ खड़ा हुआ और ‘बस, अभी आता हूं’ कह कर बगैर रंजीता के जवाब का इंतजार किए चला गया. अब रंजीता और सरजू आमनेसामने बैठे थे. वह इधरउधर देखने की कोशिश करने लगी, जबकि सरजू उसे देख रहा था.

कुछ देर की खामोशी के बाद सरजू बोला, ‘‘लगता है कि आप थकी हुई हैं. आप ऐसा कीजिए कि रात तक नींद ले लीजिए.’’ सरजू की एक नौकरानी ने सोने का कमरा दिखा दिया. रंजीता सोई तो नहीं, पर वह उस कमरे में अपनी शायरी की किताब निकाल कर पढ़ने लगी. कब आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला.

सुबह जब संगीता को होश आया, तो उस ने खुद को पुलिस से घिरा पाया. एक खूबसूरत लड़की भी उस के पास खड़ी थी. पुलिस इंस्पैक्टर विनोद ने कहा, ‘‘लगता है कि आप होश में आ गई हैं.’’

रंजीता उठ बैठी. कपड़े टटोले. वह लड़की मुसकरा रही थी. इंस्पैक्टर विनोद ने उस लड़की को देख कर कहा, ‘‘थैंक्स समीरा मैडम, अब आप जा सकती हैं.’’

रंजीता भी उठ खड़ी हुई. इंस्पैक्टर विनोद ने कहा, ‘‘आप भी समीरा मैडम का शुक्रिया अदा कीजिए.’’ रंजीता कुछ नहीं समझी. तब इंस्पैक्टर विनोद ने बताया, ‘‘आप को साबिर ने सरजू को बेच दिया था. यह शख्स ऐटिंक्ग इंस्टीट्यूट की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा चलाता है.

समीरा मैडम को इन्होंने इसी तरह से धोखा दे कर बेचा था, पर वे बार डांसर बन कर आज आप जैसी धोखे की शिकार औरतों को बचाने की मुहिम चलाती हैं.’’ समीरा बोली, ‘‘और विनोदजी जैसे पुलिस इंस्पैक्टर मदद करें, तभी हम बच सकती हैं, वरना…’’

यह कहते हुए समीरा के आंसुओं ने सबकुछ कह दिया. तभी वह नौकरानी आ गई. समीरा ने उसे कुछ रुपए दिए और बताया कि इसी काम वाली ने उसे फोन कर के बताया था. शाम को रंजीता अपने शहर जा रही ट्रेन पर सवार हो गई. उस ने मन ही मन समीरा का शुक्रिया अदा किया और इस मायानगरी को अलविदा कह दिया.

Moral Story

Hindi Drama Story: दीया और सुमि- क्या हुआ था उसके साथ

Hindi Drama Story: “अरे दीया, चलो मुसकरा भी दो अब. इस दुनिया की सारी समस्याएं केवल तुम्हारी तो नहीं हैं,” सुमि ने कहा तो यह लाजवाब बात सुन कर दीया हंस दी और उस ने सुमि के गाल पर एक मीठी सी चपत भी लगा दी.

“अरे सुनो, हां, तो यह चाय कह रही है कि गरमगरम सुड़क लो ठंडी हो जाऊंगी तो चाय नहीं रहूंगी,” सुमि ने कहा.

“अच्छा, मेरी मां,” कह कर दीया ने कप हाथों में थामा और होंठों तक ले आई. सुमि के हाथ की गरम चाय घूंटघूंट पी कर मन सचमुच बागबाग हो गया उस का.

“चलो, अब मैं जरा हमारे दिसु बाबा को बाहर सैर करा लाती हूं. तुम अपना मन हलका करो और यह संगीत सुनो,” कह कर सुमि ने 80 के दशक के गीत लगा दिए और बेबी को ले कर बाहर निकल गई.

दीया ने दिसु के बाहर जाने से पहले उसे खूब प्यार किया…’10 महीने का दिसु कितना प्यारा है. इस को देख कर लगता है कि यह जीवन, यह संसार कितना सुंदर है,’ दीया ने मन ही मन सोचा और खयालों में डूबती चली गई.

यादों के सागर में दीया को याद आया 2 साल पहले वाला वह समय, जब मेकअप रूम में वह सुमि से टकरा गई थी. दीया तैयार हो रही थी और सुमि क्लब के मैनेजर से बहस करतेकरते मेकअप रूम तक आ गई थी. वह मैनेजर दीया को भी कुछ डांस शो देता था, पर दीया तो उस से भयंकर नफरत करती थी. दीया का मन होता कि उस के मुंह पर थूक दे, क्योंकि उस ने दीया को नशीली चीजें पिला कर जाने कितना बरबाद कर डाला था. आज वह मैनेजर सुमि को गालियां दे रहा था.

आखिरकार सुमि को हां करनी पड़ी, “हांहां, इसी बदन दिखाती ड्रैस को पहन कर नाच लूंगी.”

यह सुन कर वह धूर्त मैनेजर संतुष्ट हो कर वहां से तुरंत चला गया और जातेजाते बोलता रहा, “जल्दी तैयार हो जाना.”

“क्या तैयार होना है, यह रूमाल ही तो लपेटना है…” कह कर जब सुमि सुबक रही थी, तब दीया ने उसे खूब दिलासा दिया और कहा, “सुनो, मैं आप का नाम तो नहीं जानती, पर यही सच है कि हम को पेट भरना है और
उस कपटी मैनैजर को पैसा कमाना है. जानती हो न इस पूरी धरती की क्या बिसात, वहां स्वर्ग में भी यह दौलत ही सब से बड़ी चीज है.”

इस तरह माहौल हलका हुआ. सुमि ने अपना नाम बताया, तब उन दोनों ने एकदूसरे के मन को पढ़ा. कुछ बातें भी हुईं और उस रात क्लब में नाचने के बाद अगले दिन सुबह 10 बजे मिलने का वादा किया.

आधी रात तक खूबसूरत जवान लड़कियों से कमर मटका कर और जाम पर जाम छलका कर उन के मालिक, मैनेजर या आयोजक सब दोपहर बाद तक बेसुध ही रहने वाले थे. वे दोनों एक पार्क में मिलीं और बैंच पर बैठ गईं. दोनों कुछ पल खामोश रहीं और सुमि ने बात शुरू की थी, फिर तो एकदूसरे के शहर, कसबे, गांव, घरपरिवार और घुटन भरी जिंदगी की कितनी बातें एक के बाद एक निकल पड़ीं और लंबी सांस ले कर सुमि बोली, “कमाल है न कि यह समय भी कैसा खेल दिखाता है. जिन को हम ने अपना समझ कर अपनी हर समस्या साझा कर ली, वे ही दोस्त से देह के धंधेबाज बन गए, वह भी हमारी देह के.”

“हां सुमि, तुम सही कह रही हो. कल रात तुम को देखा तो लगा कि हम दोनों के सीने में शायद एकजैसा दर्द है,” कहते हुए दीया ने गहरी सांस ली. आज कितने दिनों के बाद वे दोनों दिल की बात कहसुन रही थीं.

सुमि को तब दीया ने बताया कि रामपुर में उस का पंडित परिवार किस तरह बस पूजा और अनुष्ठान के भरोसे ही चल रहा था, पर सारी दुनिया को कायदा सिखा रहे उस घर में तनिक भी मर्यादा नहीं थी. उस की मां को उस के सगे चाचा की गोद में नींद आती और पिता से तीसरेचौथे दिन शराब के बगैर सांस भी न ली जाती.

“तो तुम कुछ कहती नहीं थी?” सुमि ने पूछा.

“नहीं सुमि, मैं बहुत सांवली थी और हमारे परिवार मे सांवली लड़की किसी मुसीबत से कम नहीं होती, तो मैं घर पर कम रहती थी.”

“तुम कहां रहती थी?”

“सुमि, मैं न बहुत डरपोक थी और जब भी जरा फुरसत होती तो सेवा करने चली जाती. कभी कहीं किसी के बच्चों को पढ़ा देती तो किसी के कुत्तेबिल्ली की देखभाल करती बड़ी हो गई तो किसी की रसोई तक संभाल देती पर यह बात भीतर तक चुभ जाती कि कितनी सांवली है, इस को कोई पसंद नहीं करेगा,” दीया तब लगातार बोलती रही थी.

सुमि कितने गौर से सुन रही थी. अब वह एक सहेली पा कर उन यादों के अलबम पलटने लगी.

दीया बोलने लगी, “एक लड़का मेरा दोस्त बन गया. उस ने कभी नहीं कहा कि तुम सांवली हो और जब जरूरत होती वह खास सब्जैक्ट की किताबें और नोट्स आगे रखे हुए मुझे निहारता रहता.

“इस तरह मैं स्कूल से कालेज आई तो अलगअलग तरह की नईनई बातें सीख गई. मेरे कसबे के दोस्तों ने बताया था कि अगर कोई लड़का तुम से बारबार मिलना चाहे तो यही रूप सच्चे मददगार का भी रूप है और मैं ने आसानी से इस बात पर विश्वास कर लिया था.”

एक दिन इसी तरह कोई मुश्किल सब्जैक्ट समझाते हुए उस लड़के के एकाध बाल उलझ कर माथे पर आ गए थे तो दीया का मन महक गया. उस के चेहरे पर हलकीहलकी उमंग उठी थी.

हालांकि दीया की उम्र 20 साल से ज्यादा नहीं थी, पर उस के दिल पर एक स्थायी चाहत थी, जिस का रास्ता बारबार उसी अपने और करीबी से लगने वाले मददगार लड़के के पास जाता दिखाई देता था.

दीया कालेज में पढ़ने वाले उस लड़के का कोई इतिहासभूगोल जानती नहीं थी और जानना भी नहीं चाहती थी. सच्चा प्यार तो हमेशा ईमानदार होता है, वह सोचती थी. एक दिन वह अपने घर से रकम और गहने ले कर चुपचाप
रवाना हो गई. वह बेफिक्र थी, क्योंकि पूरे रास्ते उस का फरिश्ता उस को गोदी मे संभाले उस के साथ ही तो था और बहुत करीब भी था.

दीया उस लड़के के साथ बिलकुल निश्चिंत थी, क्योंकि उस को जब भी अपने मददगार यार के चेहरे पर मुसकराहट दिखाई देती थी, वह यही मान लेती थी कि भविष्य सुरक्षित है, जीवन बिलकुल मजेदार होने वाला है. आने वाले दिन तो और भी रसीले और चमकदार होंगे.

मगर दीया कहां जानती थी कि वे कोरे सपने थे, जो टूटने वाले थे. यह चांदनी 4-5 दिन में ही ढलने लगी. एक दिन वह लड़का अचानक उठ कर कहीं चला गया. दीया ने उस का इंतजार किया, पर वह लौटा नहीं, कभी नहीं.

उस के बाद दीया की जिंदगी बदल गई. वह ऐसे लोगों के चंगुल में फंस जो उसे यहांवहां नाचने के लिए मजबूर किया गया. इतना ही नहीं उस को धमकी मिलती कि तुम्हारी फिल्म बना कर रिलीज कर देंगे, फिर किसी कुएं या पोखर मे कूद जाना.

दीया को कुछ ऐसा खिलाया या पिलाया जाता कि वह सुबह खुद को किसी के बैडरूम में पाती और छटपटा जाती. कई दिनों तक यों ही शहरशहर एक अनाचारी से दूसरे दुराचारी के पलंग मे कुटने और पिसने के बाद वह सुमि से मिल गई.

सुमि ने दीया को पानी की बोतल थमा दी और बताया, “मैं खुद भी अपने मातापिता के मतभेद के बीच यों ही पिसती रही जैसे चक्की के 2 पाटों में गेहूं पिस जाता है. मां को आराम पसंद था पिता को सैरसपाटा और लापरवाही भरा जीवन. घर पर बस नौकर रहते थे. हमारे दादा के बगीचे थे. पूरे साल रुपया ही बरसता रहता था. अमरूद, आम से ले कर अंगूर, अनार के बगीचे.”

“अच्छा तो इतने पैसे मिलते थे…” दीया ने हैरानी से कहा.

“हां दीया, और मेरी मां बस बेफिक्र हो कर अपने ही आलस में रहती थी. पिता के बाहर न जाने कितने अफेयर चल रहे थे. वे बाजारू औरतों पर दौलत लुटा रहे थे, पर मां मस्तमगन रहती. इस कमजोरी के तो नौकर भी खूब मजे लेते. वे मां को सजधज कर तैयार हो कर बाहर सैरसपाटा करने में मदद करते और घर पर पिता को महंगी शराब के पैग पर पैग बना कर देते.

“मां और पिता दोनों से नौकरों को खूब बख्शीश मिलती और उन की मौज ही मौज होती, लेकिन जब भी मातापिता एक दूसरे के सामने पड़ते तो कुछ पल बाद ही उन दोनों में भयंकर बहस शुरू हो जाती, कभी रुपएपैसे के हिसाब को ले कर तो कभी मुझे ले कर कि मैं किस की जिम्मेदारी हूं.

“मेरा अकेला उदास मन मेरे हमउम्र पडो़सी मदन पर आ गया था. वह हर रोज मेरी बातें सुनता, मुझे पिक्चर दिखा लाता और पढ़ाई में मेरी मदद करता. कालेज में तो मेरा एक ही सहारा था और वह था मदन.

“पर एक दिन वह मेरे घर आया और शाम को तैयार रहना कह कर मुझे एक पार्टी में ले गया जहां मुझे होश आया तो सुबह के 5 बज रहे थे. मेरे अगलबगल 2 लड़के थे, मगर मदन का कोई अतापता ही नहीं था.

“मैं समझ गई थी कि मेरे साथ क्या हुआ है. मैं वहां से भागना चाहती थी, पर मुझे किसी ने बाल पकड़ कर रोक दिया और कहा कि कार में बैठो. वे लोग मुझे किसी दूसरे शहर ले गए और शाम को एक महफिल में सजधज कर शामिल होने को कहा.

“वह किसी बड़े आदमी की दावत थी. मैं अपने मातापिता से बात करने को बेचैन थी, मगर मुझे वहां कोई गोली खिला दी गई और मेरा खुद पर कोई कंट्रोल न रहा. फिर मेरी हर शाम नाचने में ही गुजरने लगी.”

“ओह, सुमि,” कह कर दीया ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया था. आज 2 अजनबी मिले, पर अनजान होते हुए भी कई बातें समान थीं. उन की सरलता का फायदा उठाया गया था.

“देखो सुमि, हमारे फैसले और प्राथमिकता कैसे भी हों, वे होते तो हमारे ही हैं फिर उन के कारण यह दिनचर्या कितनी भी हताशनिराश करने वाली हो, दुविधा कितना भी हैरान करे, हम सब के पास 1-2 रास्ते तो हर हाल ही में रहते ही हैं और चुनते समय हम उन में से भी सब से बेहतरीन ही चुनते हैं, पर जब नाकाम हो जाते है, तो खुद को भरम में रखते हुए कहते हैं कि और कोई रास्ता ही नही था. इस से नजात पाए बिना दोबारा रास्ता तलाशना बेमानी है,” कह कर दीया चुप हो गई थी.

अब सुमि कहने लगी, “हमारे साथ एक बात तो है कि हम ने भरोसा किया और धोखा खाया, पर आज इस बुरे वक्त में हम दोनों अब अकेले नहीं रहेंगे. हम एकदूसरे की मदद के लिए खड़े हैं.”

“हां, मैं तैयार हूं,” कह कर दीया ने योजना बनानी शुरू की. तय हुआ कि 2 दिन बाद अपना कुछ रुपया ले कर रेल पकड़ कर निकल जाएंगी. उस के बाद जो होगा देखा जाएगा, अभी इस नरक से तो निकल लें.

यह बहुत अच्छा विचार था. 2 दिन बाद इस पर अमल किया. सबकुछ आराम से हो गया. वे दोनों चंडीगढ़ आ गईं. वहां उन्होंने एक बच्चा गोद लिया.

दीया यही सोच रही थी कि कुछ आवाज सी हुई. सुमि और दिसु लौट आए थे.

सुमि ने दीया की गीली आंखें देखीं और बोली, “ओह दीया, यह अतीत में डूबनाउतरना क्या होता है, क्यों होता है, किसलिए होता है, मैं नहीं जानती, क्योंकि मैं गुजरे समय के तिलिस्म में कभी पड़ी ही नहीं. मैं वर्तमान में जीना पसंद करती हूं. बीते समय और भविष्य की चिंता में वे लोग डूबे रहते हैं, जिन के पास डूबने का और कोई साधन नहीं होता…”

“अच्छा, मेरी मां,” कह कर दीया ने सुमि को अपने गले लगा लिया.

Hindi Drama Story

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