Romantic Story in Hindi: मौन- एक नए रिश्ते की अनकही जबान

Romantic Story in Hindi: सर्द मौसम था, हड्डियों को कंपकंपा देने वाली ठंड. शुक्र था औफिस का काम कल ही निबट गया था. दिल्ली से उस का मसूरी आना सार्थक हो गया था. बौस निश्चित ही उस से खुश हो जाएंगे.

श्रीनिवास खुद को काफी हलका महसूस कर रहा था. मातापिता की वह इकलौती संतान थी. उस के अलावा 2 छोटी बहनें थीं. पिता नौकरी से रिटायर्ड थे. बेटा होने के नाते घर की जिम्मेदारी उसे ही निभानी थी. वह बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी रहा है. मल्टीनैशनल कंपनी में उसे जौब पढ़ाई खत्म करते ही मिल गई थी. आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक तो वह था ही, बोलने में भी उस का जवाब नहीं था. लोग जल्दी ही उस से प्रभावित हो जाते थे. कई लड़कियों ने उस से दोस्ती करने की कोशिश की लेकिन अभी वह इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता था.

श्रीनिवास ने सोचा था मसूरी में उसे 2 दिन लग जाएंगे, लेकिन यहां तो एक दिन में ही काम निबट गया. क्यों न कल मसूरी घूमा जाए. श्रीनिवास मजे से गरम कंबल में सो गया.

अगले दिन वह मसूरी के माल रोड पर खड़ा था. लेकिन पता चला आज वहां टैक्सी व बसों की हड़ताल है.

‘ओफ, इस हड़ताल को भी आज ही होना था,’ श्रीनिवास अभी सोच में पड़ा ही था कि एक टैक्सी वाला उस के पास आ कानों में फुसफुसाया, ‘साहब, कहां जाना है.’

‘अरे भाई, मसूरी घूमना था लेकिन इस हड़ताल को भी आज होना था.’

‘कोई दिक्कत नहीं साहब, अपनी टैक्सी है न. इस हड़ताल के चक्कर में अपनी वाट लग जाती है. सरजी, हम आप को घुमाने ले चलते हैं लेकिन आप को एक मैडम के साथ टैक्सी शेयर करनी होगी. वे भी मसूरी घूमना चाहती हैं. आप को कोई दिक्कत तो नहीं,’ ड्राइवर बोला.

‘कोई चारा भी तो नहीं. चलो, कहां है टैक्सी.’

ड्राइवर ने दूर खड़ी टैक्सी के पास खड़ी लड़की की ओर इशारा किया.

श्रीनिवास ड्राइवर के साथ चल पड़ा.

‘हैलो, मैं श्रीनिवास, दिल्ली से.’

‘हैलो, मैं मनामी, लखनऊ से.’

‘मैडम, आज मसूरी में हम 2 अनजानों को टैक्सी शेयर करना है. आप कंफर्टेबल तो रहेंगी न.’

‘अ…ह थोड़ा अनकंफर्टेबल लग तो रहा है पर इट्स ओके.’

इतने छोटे से परिचय के साथ गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर ने बताया, ‘सर, मसूरी से लगभग 30 किलोमीटर दूर टिहरी जाने वाली रोड पर शांत और खूबसूरत जगह धनौल्टी है. आज सुबह से ही वहां बर्फबारी हो रही है. क्या आप लोग वहां जा कर बर्फ का मजा लेना चाहेंगे?’

मैं ने एक प्रश्नवाचक निगाह मनामी पर डाली तो उस की भी निगाह मेरी तरफ ही थी. दोनों की मौन स्वीकृति से ही मैं ने ड्राइवर को धनौल्टी चलने को हां कह दिया.

गूगल से ही थोड़ाबहुत मसूरी और धनौल्टी के बारे में जाना था. आज प्रत्यक्षरूप से देखने का पहली बार मौका मिला है. मन बहुत ही कुतूहल से भरा था. खूबसूरत कटावदार पहाड़ी रास्ते पर हमारी टैक्सी दौड़ रही थी. एकएक पहाड़ की चढ़ाई वाला रास्ता बहुत ही रोमांचकारी लग रहा था.

बगल में बैठी मनामी को ले कर मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे. मन हो रहा था कि पूछूं कि यहां किस सिलसिले में आई हो, अकेली क्यों हो. लेकिन किसी अनजान लड़की से एकदम से यह सब पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

मनामी की गहरी, बड़ीबड़ी आंखें उसे और भी खूबसूरत बना रही थीं. न चाहते हुए भी मेरी नजरें बारबार उस की तरफ उठ जातीं.

मैं और मनामी बीचबीच में थोड़ा बातें करते हुए मसूरी के अनुपम सौंदर्य को निहार रहे थे. हमारी गाड़ी कब एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर पहुंच गई, पता ही नहीं चल रहा था. कभीकभी जब गाड़ी को हलका सा ब्रेक लगता और हम लोगों की नजरें खिड़की से नीचे जातीं तो गहरी खाई देख कर दोनों की सांसें थम जातीं. लगता कि जरा सी चूक हुई तो बस काम तमाम हो जाएगा.

जिंदगी में आदमी भले कितनी भी ऊंचाई पर क्यों न हो पर नीचे देख कर गिरने का जो डर होता है, उस का पहली बार एहसास हो रहा था.

‘अरे भई, ड्राइवर साहब, धीरे… जरा संभल कर,’ मनामी मौन तोड़ते हुए बोली.

‘मैडम, आप परेशान मत होइए. गाड़ी पर पूरा कंट्रोल है मेरा. अच्छा सरजी, यहां थोड़ी देर के लिए गाड़ी रोकता हूं. यहां से चारों तरफ का काफी सुंदर दृश्य दिखता है.’

बचपन में पढ़ते थे कि मसूरी पहाड़ों की रानी कहलाती है. आज वास्तविकता देखने का मौका मिला.

गाड़ी से बाहर निकलते ही हाड़ कंपा देने वाली ठंड का एहसास हुआ. चारों तरफ से धुएं जैसे उड़ते हुए कोहरे को देखने से लग रहा था मानो हम बादलों के बीच खड़े हो कर आंखमिचौली खेल रहे होें. दूरबीन से चारों तरफ नजर दौड़ाई तो सोचने लगे कहां थे हम और कहां पहुंच गए.

अभी तक शांत सी रहने वाली मनामी धीरे से बोल उठी, ‘इस ठंड में यदि एक कप चाय मिल जाती तो अच्छा रहता.’

‘चलिए, पास में ही एक चाय का स्टौल दिख रहा है, वहीं चाय पी जाए,’ मैं मनामी से बोला.

हाथ में गरम दस्ताने पहनने के बावजूद चाय के प्याले की थोड़ी सी गरमाहट भी काफी सुकून दे रही थी.मसूरी के अप्रतिम सौंदर्य को अपनेअपने कैमरों में कैद करते हुए जैसे ही हमारी गाड़ी धनौल्टी के नजदीक पहुंचने लगी वैसे ही हमारी बर्फबारी देखने की आकुलता बढ़ने लगी. चारों तरफ देवदार के ऊंचेऊंचे पेड़ दिखने लगे थे जो बर्फ से आच्छादित थे. पहाड़ों पर ऐसा लगता था जैसे किसी ने सफेद चादर ओढ़ा दी हो. पहाड़ एकदम सफेद लग रहे थे.

पहाड़ों की ढलान पर काफी फिसलन होने लगी थी. बर्फ गिरने की वजह से कुछ भी साफसाफ नहीं दिखाई दे रहा था. कुछ ही देर में ऐसा लगने लगा मानो सारे पहाड़ों को प्रकृति ने सफेद रंग से रंग दिया हो. देवदार के वृक्षों के ऊपर बर्फ जमी पड़ी थी, जो मोतियों की तरह अप्रतिम आभा बिखेर रही थी.

गाड़ी से नीचे उतर कर मैं और मनामी भी गिरती हुई बर्फ का भरपूर आनंद ले रहे थे. आसपास अन्य पर्यटकों को भी बर्फ में खेलतेकूदते देख बड़ा मजा आ रहा था.

‘सर, आज यहां से वापस लौटना मुमकिन नहीं होगा. आप लोगों को यहीं किसी गैस्टहाउस में रुकना पड़ेगा,’ टैक्सी ड्राइवर ने हमें सलाह दी.

‘चलो, यह भी अच्छा है. यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को और अच्छी तरह से एंजौय करेंगे,’ ऐसा सोच कर मैं और मनामी गैस्टहाउस बुक करने चल दिए.

‘सर, गैस्टहाउस में इस वक्त एक ही कमरा खाली है. अचानक बर्फबारी हो जाने से यात्रियों की संख्या बढ़ गई है. आप दोनों को एक ही रूम शेयर करना पड़ेगा,’ ड्राइवर ने कहा.

‘क्या? रूम शेयर?’ दोनों की निगाहें प्रश्नभरी हो कर एकदूसरे पर टिक गईं. कोई और रास्ता न होने से फिर मौन स्वीकृति के साथ अपना सामान गैस्टहाउस के उस रूम में रखने के लिए कह दिया.

गैस्टहाउस का वह कमरा खासा बड़ा था. डबलबैड लगा हुआ था. इसे मेरे संस्कार कह लो या अंदर का डर. मैं ने मनामी से कहा, ‘ऐसा करते हैं, बैड अलगअलग कर बीच में टेबल लगा लेते हैं.’

मनामी ने भी अपनी मौन सहमति दे दी.

हम दोनों अपनेअपने बैड पर बैठे थे. नींद न मेरी आंखों में थी न मनामी की. मनामी के अभी तक के साथ से मेरी उस से बात करने की हिम्मत बढ़ गई थी. अब रहा नहीं जा रहा था,  बोल पड़ा, ‘तुम यहां मसूरी क्या करने आई हो.’

मनामी भी शायद अब तक मुझ से सहज हो गई थी. बोली, ‘मैं दिल्ली में रहती हूं.’

‘अच्छा, दिल्ली में कहां?’

‘सरोजनी नगर.’

‘अरे, वाट ए कोइनस्टिडैंट. मैं आईएनए में रहता हूं.’

‘मैं ने हाल ही में पढ़ाई कंप्लीट की है. 2 और छोटी बहनें हैं. पापा रहे नहीं. मम्मी के कंधों पर ही हम बहनों का भार है. सोचती थी जैसे ही पढ़ाई पूरी हो जाएगी, मम्मी का भार कम करने की कोशिश करूंगी, लेकिन लगता है अभी वह वक्त नहीं आया.

‘दिल्ली में जौब के लिए इंटरव्यू दिया था. उन्होंने सैकंड इंटरव्यू के लिए मुझे मसूरी भेजा है. वैसे तो मेरा सिलैक्शन हो गया है, लेकिन कंपनी के टर्म्स ऐंड कंडीशंस मुझे ठीक नहीं लग रहीं. समझ नहीं आ रहा क्या करूं?’

‘इस में इतना घबराने या सोचने की क्या बात है. जौब पसंद नहीं आ रही तो मत करो. तुम्हारे अंदर काबिलीयत है तो जौब दूसरी जगह मिल ही जाएगी. वैसे, मेरी कंपनी में अभी न्यू वैकैंसी निकली हैं. तुम कहो तो तुम्हारे लिए कोशिश करूं.’

‘सच, मैं अपना सीवी तुम्हें मेल कर दूंगी.’

‘शायद, वक्त ने हमें मिलाया इसलिए हो कि मैं तुम्हारे काम आ सकूं,’ श्रीनिवास के मुंह से अचानक निकल गया. मनामी ने एक नजर श्रीकांत की तरफ फेरी, फिर मुसकरा कर निगाहें झुका लीं.

श्रीनिवास का मन हुआ कि ठंड से कंपकंपाते हुए मनामी के हाथों को अपने हाथों में ले ले लेकिन मनामी कुछ गलत न समझ ले, यह सोच रुक गया. फिर कुछ सोचता हुआ कमरे से बाहर चला गया.

सर्दभरी रात. बाहर गैस्टहाउस की छत पर गिरते बर्फ से टपकते पानी की आवाज अभी भी आ रही है. मनामी ठंड से सिहर रही थी कि तभी कौफी का मग बढ़ाते हुए श्रीनिवास ने कहा, ‘यह लीजिए, थोड़ी गरम व कड़क कौफी.’

तभी दोनों के हाथों का पहला हलका सा स्पर्श हुआ तो पूरा शरीर सिहर उठा. एक बार फिर दोनों की नजरें टकरा गईं. पूरे सफर के बाद अभी पहली बार पूरी तरह से मनामी की तरफ देखा तो देखता ही रह गया. कब मैं ने मनामी के होंठों पर चुंबन रख दिया, पता ही नहीं चला. फिर मौन स्वीकृति से थोड़ी देर में ही दोनों एकदूसरे की आगोश में समा गए.

सांसों की गरमाहट से बाहर की ठंड से राहत महसूस होने लगी. इस बीच मैं और मनामी एकदूसरे को पूरी तरह कब समर्पित हो गए, पता ही नहीं चला. शरीर की कंपकपाहट अब कम हो चुकी थी. दोनों के शरीर थक चुके थे पर गरमाहट बरकरार थी.

रात कब गुजर गई, पता ही नहीं चला. सुबहसुबह जब बाहर पेड़ों, पत्तों पर जमी बर्फ छनछन कर गिरने लगी तो ऐसा लगा मानो पूरे जंगल में किसी ने तराना छेड़ दिया हो. इसी तराने की हलकी आवाज से दोनों जागे तो मन में एक अतिरिक्त आनंद और शरीर में नई ऊर्जा आ चुकी थी. मन में न कोई अपराधबोध, न कुछ जानने की चाह. बस, एक मौन के साथ फिर मैं और मनामी साथसाथ चल दिए.

Romantic Story in Hindi

Family Story in Hindi: मुंहबोली बहनें

Family Story in Hindi: आज अनाइका के मुंह से यह सुन कर कि कल रोहन भैया उस के घर गए थे, मेरा दिमाग खराब हो गया. मैं ने मन ही मन तय किया कि आज कालेज से सीधा ताईजी के घर जाऊंगी और रोहन भैया की अच्छी खबर लूंगी. नाक में दम कर रखा है भैया ने अपनी हरकतों से. लाख बार समझा चुकी हूं उन्हें, पर उन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती.

अपनी इज्जत का तो फालूदा बना ही रहे हैं साथ ही मेरी भी छीछालेदर करवा रहे हैं. कालेज में सारा दिन मैं तमतमाई सी ही रही और कालेज छूटते ही मैं ने अपनी स्कूटी ताईजी के घर की ओर मोड़ ली. ताईजी मुझे देख कर बहुत खुश हुईं, ‘‘अरे सोनाली, तू इस समय? लगता है सीधा कालेज से ही आ रही है, तब तो तुझे भी जोर की भूख लगी होगी. चल, फटाफट हाथमुंह धो कर आ जा, मैं रोहन का खाना ही लगाने जा रही थी, वह भी बस अभीअभी कालेज से आया है.’’

‘‘ताईजी, खाना तो आप रोहन भैया को ही खिलाइए, मैं तो आज उन का खून पी कर ही अपना पेट भरूंगी,’’ कह कर मैं धड़धड़ाती हुई रोहन भैया के कमरे में घुस गई. ‘‘अरे मम्मा, आप ने इस भूखी शेरनी को मेरे कमरे में क्यों भेज दिया? यह तो लगता है मुझे कच्चा ही चबाने आई है,’’ मेरे तेवर और हावभाव देख कर रोहन भैया पलंग और कुरसी लांघते हुए भाग कर किचन में ताईजी की बगल में आ खड़े हुए.

‘‘ताईजी, आप रोहन भैया को समझा दीजिए, मेरा दिमाग और खराब न करें वरना मैं या तो इन्हें जान से मार डालूंगी या खुद आत्महत्या कर लूंगी, पक गई हूं मैं इन की हरकतों से.’’ ‘‘बहन, तू मुझे मारने का आइडिया दिमाग से निकाल दे, उस में काफी प्लानिंग की जरूरत पड़ेगी, ऐसा कर तू ही आत्महत्या कर ले, वही तेरे लिए सरल और परिवार के लिए कम दुखद होगा. मेरे पीछे क्यों पड़ी है तू? और हां, तुझे रस्सी, चूहा मारने की दवा या रेल समयसारिणी जो भी चाहिए बता देना, मैं सब उपलब्ध करा दूंगा. मेरे होते हुए तू भागदौड़ न करना,’’ रोहन भैया ने ऐसा कह कर मेरे गुस्से की आग में 4 चम्मच घी और उड़ेल दिए.

‘‘देखा ताईजी, कैसा जी जलाते हैं, भैया. आप भी इन्हें कुछ नहीं कहतीं इसीलिए तो बिगड़ते जा रहे हैं.’’ ‘‘हुआ क्या है, पहले तू मुझे कुछ बताए, तब तो मैं समझूं. तू तो जब से आई है बस, खूनखराबे की ही बातें किए जा रही है. मैं कुछ समझूं तब तो कुछ बोलूं,’’ ताईजी हंसते हुए बोलीं.

‘‘ताईजी, आप इन्हें समझा दीजिए कि मेरी सहेलियों का पीछा करना छोड़ दें,’’ सोनाली गुस्से से बोली. ‘‘ओए कद्दू, कौन करता है तेरी सहेलियों का पीछा? वही मेरे पीछे पड़ी रहती हैं. कोई कहती है, ‘रोहनजी, प्लीज मेरा लाइब्रेरी कार्ड बनवा दीजिए, रोहन भैया काउंटर पर बड़ी लंबी कतार लगी है, आप प्लीज मेरी फीस जमा करा दीजिए,’ अब कोई इतने प्यार से विनती करे तो मैं कोई पत्थर दिल तो हूं नहीं, जो पिघलूं न? छोटेमोटे काम कर देता हूं. क्या करूं मेरा दिल ही कुछ ऐसा है, किसी को मना कर ही नहीं पाता हूं,’’ अपनी विवशता बताते हुए रोहन बोला.

‘‘हां, जैसे मुझे समझ में नहीं आता कि आप क्यों उन का काम करते हैं. उन पर अच्छा प्रभाव डालने के लिए भला इस से अच्छा मौका और कहां मिलेगा आप को.’’ ‘‘अब तुम ही बताओ मम्मा, इस चुहिया की कुछ सहेलियां मेरे पास आ कर कहती हैं, प्लीज रोहन भैया, हमारा फलां काम करवा दीजिए तो मैं भला कैसे मना कर सकता हूं उन्हें? जब उन्होंने मुझे भैया कह दिया तो मेरी मुंहबोली बहनें हो गईं न और बहनों के प्रति भाई की कुछ जिम्मेदारी बनती है कि नहीं? और कुछ कहती हैं, ‘रोहनजी, प्लीज हमारा फलां काम… रोहनजी प्लीज’ कहने वालों के प्रति तो मेरी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि न जाने भविष्य में इन में से किस के साथ मेरा रिश्ता जुड़ जाए, इसलिए उन के काम तो मैं अपनी तथाकथित बहनों के काम से भी ज्यादा रुचि और मन से करता हूं.’’

‘‘रोहन, तू सचमुच बिगड़ रहा है, जरूरत से ज्यादा नटखटपन अच्छी बात नहीं है, सोनाली तेरी बहन है तो इस की सहेलियां भी तेरी छोटी बहन ही हुईं. तुझे हरएक के साथ तमीज से पेश आना चाहिए,’’ ताईजी उन्हें समझाते हुए बोलीं. ‘‘मम्मा, अब आप भी सोनाली की भाषा न बोलिए. जिस ने मुझे भैया कह दिया वह तो मेरे लिए सोनाली के ही समान हो जाती है पर जो खुद ही मुझे भैया न कहना चाहे, ‘रोहनजी प्लीज…’ कहे तो वहां मैं नटखट कैसे हो गया? नटखट तो वह हुई न?’’

मुझे पता था कि रोहन भैया से बहस में जीतना असंभव है. उन की वाक्पटुता ने ही तो उन के व्यक्तित्व में चार चांद लगा कर उन्हें हमारे कालेज का हीरो बना कर मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी. कालेज में उन के चाहने वालों की एक लंबी कतार है.

इसीलिए बहुत सी युवतियां मुझे पुल बना कर उन तक पहुंचने की कोशिश में किसी न किसी बहाने मेरे आगेपीछे लग कर मेरा जीना मुश्किल करती रहती हैं. फिर जिन को रोहन भैया थोड़ा भी भाव दे देते हैं, वे तो तारीफों के पुल बांध कर उन्हें आकाश पर बैठा देतीं और जिन पर उन की नजरें इनायत नहीं होतीं वे उन में दस दोष निकाल देती हैं, मेरे लिए दोनों ही तरह की बातें सुनना बरदाश्त के बाहर हो जाता है और कई बार अनायास ही मैं लड़कियों से बहस कर बैठती हूं. ‘‘रोहन भैया, कालेज तक तो ठीक था पर अब तो आप ने मेरी सहेलियों के घर के चक्कर काटना और उन के घर जाना भी शुरू कर दिया है. आखिर क्या चाहते हैं आप?’’ सोनाली ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा.

‘‘ऐ छिपकली, तेरी कौन सी सहेली हूर की परी है जिस के घर के चक्कर मैं काटने लगा. जरा मैं भी तो सुनूं,’’ रोहन भैया अपनी हेकड़ी जमाते हुए बोले. ‘‘कल अनाइका के घर नहीं गए थे आप?’’ मैं ने खा जाने वाली नजरों से उन्हें घूरा.

‘‘अच्छा जिस के घर कल मैं गया था, उस का नाम अनाइका है? तब तो निश्चय ही वह हूर की परी होगी. अच्छा किया तुम ने मुझे बता दिया. अब कल उसे कालेज में गौर से देखूंगा,’’ कह कर रोहन भैया जोरजोर से हंसने लगे. ‘‘हद हो गई रोहन भैया, आप की बेशर्मी की,’’ मैं ने भी चिढ़ कर अपनी मर्यादा की सीमा लांघते हुए कहा.

‘‘देख सोनाली, मैं तेरी बात को हंस कर टाल रहा हूं तो इस का मतलब यह नहीं कि तू जो मन में आए बोलती जाए और एक बात साफसाफ सुन ले, मैं नहीं गया था किसी अनाइका के घर का चक्कर काटने. मैं अपने दोस्त संवेग के घर गया था. तेरी उस हूर की परी का घर भी वहीं था, उस ने मुझे देख कर अपने घर आने को कहा तो मैं चला गया. इस में मेरी क्या गलती है?’’ ‘‘आप की गलती यही है कि आप उस के घर गए. उस ने आप को बुलाया या आप वहां गए, मैं नहीं जानती पर आप का अनाइका के घर जाना ही आज कालेज में दिन भर चर्चा का विषय बना रहा था.

सब बोल रहे थे कि अनाइका और रोहन के बीच कुछ चल रहा है. आप सोच भी नहीं सकते कि यह सब सुन कर मेरा दिमाग कितना खराब होता है. रोज किसी न किसी के साथ आप का नाम जोड़ा जाता है. मुझे लग रहा था अब आप सुधर रहे हैं कि तभी अनाइका का नाम लिस्ट में जुड़ गया.’’

‘‘मेरे और अनाइका के बीच कुछ चल रहा है, यह बात अनाइका ने मुझे क्यों नहीं बताई? इतनी बड़ी बात मुझ से छिपा कर रखी? मुझे भी बता देती तो मैं थोड़ा अपने पर इतरा लेता,’’ रोहन भैया ने चिंतित मुद्रा में मुंह बना कर कहा, ‘‘सोनाली, कमी मुझ में नहीं उन लड़कियों की सोच में है. किसी से दो बातें कर लो तो सीधा ‘चक्कर चलना’ ही मान बैठती हैं.’’ रोहन भैया मेरी किसी बात को गंभीरता से लेने को तैयार ही नहीं थे. मैं झक मार कर वहां से उठ ही गई, ‘‘ठीक है रोहन भैया, आप के लिए तो हर बात बस, मजाक ही होती है, पर कालेज में होने वाली बातों का मुझ पर असर पड़ता है. कोई मेरे भाई के बारे में अनापशनाप कहे तो मैं बरदाश्त नहीं कर पाती हूं. अगले साल मैं अपना कालेज ही बदल लूंगी. न आप के कालेज में रहूंगी, न आप के बारे में कुछ सुनूंगी और न ही मेरा दिमाग खराब होगा,’’ कह कर मैं अपना बैग उठा कर वहां से निकल पड़ी.

‘‘ओए मधुमक्खी, कालेज बदलना तो अकेली ही जाना, अपनी सहेलियों को मत ले जाना वरना मेरे कालेज में तो पतझड़ आ जाएगा,’’ कह कर रोहन भैया फिर होहो कर के हंसने लगे. मुझे पता था कि रोहन भैया चिकने घड़े हैं. मेरी किसी बात का उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. फिर भी हर 10-15 दिन में मैं उन से इस बात को ले कर बहस कर ही बैठती थी.

12वीं के बाद बीकौम में जब मुझे दीनदयाल डिग्री कालेज में ऐडमिशन मिला था तो मैं फूली नहीं समाई थी. नामीगिरामी कालेज में ऐडमिशन पाने की खुशी के साथसाथ एक सुकून का एहसास यह सोचसोच कर भी हो रहा था कि रोहन भैया के होते हुए मुझे किसी काम के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी. मेरा सारा काम बैठेबिठाए हो जाएगा. रोहन भैया उसी कालेज से एमकौम कर रहे थे और कालेज में उन के रोब के किस्से उन के मुंह से सालों से सुनती चली आ रही थी.

कालेज पहुंची तो सचमुच रोहन भैया की कालेज में पहचान देख कर मैं दंग रह गई. छात्रसंघ के सक्रिय सदस्य होने के कारण सारे प्रोफैसर और विद्यार्थी न केवल उन्हें अच्छी तरह जानते थे बल्कि वाक्पटुता और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण उन्हें पसंद भी बहुत करते थे. युवतियों के तो वे खासकर सर्वप्रिय नेता माने जाते थे. उन में वे किशन कन्हैया के नाम से मशहूर थे. लड़कियां उन के इर्दगिर्द मंडराने के अवसर तलाशती रहती थीं.

कालेज में उन के जलवे देख कर मैं भी अपना सिक्का जमाने के लिए सभी के सामने रोब जमाते हुए यह कहने लगी कि रोहन मेरे भैया हैं और मुझे बहुत प्यार करते हैं, लेकिन उस के बाद से ही मेरी मुसीबतों का सिलसिला शुरू हो गया. रोज कोई न कोई युवती अपना कोई न कोई काम ले कर मेरे पास हाजिर हो जाती कि मैं अपने भाई से उस का काम करवा दूं.

शुरूशुरू में तो मैं बड़े मन से सब के काम करवा देती थी, क्योंकि ऐसे छोटेमोटे काम करवाना रोहन भैया के बाएं हाथ का खेल था, पर धीरेधीरे मैं बोर हो कर जब उन्हें टालने लगी तब उन्होंने खुद रोहन भैया, रोहन भैया कह कर अपना काम निकलवाना शुरू कर दिया. युवतियां मुंह पर तो उन्हें भैया कहतीं लेकिन पीठ पीछे उन को देख कर आहें भरती थीं. ये सब देखसुन कर दिनप्रतिदिन मेरा दिमाग खराब होने लगा. ये रोहन भैया जो घर में एक गिलास पानी तक अपने हाथ से ले कर नहीं पीते हैं, इतनी समाज सेवा क्यों करते हैं, कालेज में ये सब भी मुझे बड़ी अच्छी तरह समझ में आने लगा था.

‘युवतियों को इंप्रैस करने की कला कोई रोहन से सीखे. रोहन से अपना काम करवाना हो तो किसी सुंदर युवती के माध्यम से कहलवाओ फिर देखो कैसे चुटकी बजाते काम हो जाता है,’ जैसी बातें जब मैं सुनती तो मुझे बहुत बुरा लगता. मुझे लगा कि रोहन भैया को पता नहीं होगा कि उन के बारे में ऐसीऐसी बातें की जाती हैं तो मैं उन्हें बता दूं ताकि वे संभल जाएं. पर धीरेधीरे मेरी समझ में आ गया कि दीवार से सिर टकराने का कोई फायदा नहीं है. उन के बारे में कोई क्या कह रहा है या क्या सोच रहा है इस का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता. वे करेंगे अपने मन की ही.

मैं ने रोहन भैया से इस बारे में कोई भी बात करना बंद कर दिया. मैं ने तो अब ध्यान देना ही बंद कर दिया पर मेरे नाम का इस्तेमाल कर रोहन भैया की न जाने कितनी मुंहबोली बहनें दिनप्रतिदिन बनती रहीं. कालेज की पढ़ाई खत्म होते ही साल भर के अंदर मेरी शादी भी हो गई. मेरी शादी के 3 साल बाद रोहन भैया की शादी तय होने की खबर जब मुझे मिली तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. मुझे पक्का यकीन था कि रोहन भैया तो प्रेम विवाह ही कर रहे होंगे पर जब ताईजी ने बताया कि लड़की उन्होंने पसंद की है तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा.

भाभी सुंदर और समझदार थीं. शादी के बाद रोहन भैया के स्वभाव में भी बहुत परिवर्तन आ गया. अब वे काफी शांत और गंभीर रहने लगे थे. कालेज के समय वाली उच्छृंखलता अब कहीं उन के स्वभाव में नहीं दिखती थी. साल भर तक तो उन का दांपत्य जीवन बहुत अच्छी तरह चला पर अचानक न जाने क्या हुआ कि भैयाभाभी के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. उन के बीच अकसर बहस होने लगी. ताईजी के लाख पूछने पर भी दोनों में से कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं होता. उसी दौरान मैं मायके गई थी तो ताईजी के यहां भी सब से मिलने चली गई. ताईजी ने उन लोगों के बिगड़ते रिश्ते के बारे में बताते हुए मुझे भाभी से बात कर के कारण जानने को कहा. पहले तो भाभी ने बात को टालना चाहा किंतु मेरे हठ पकड़ लेने पर उन्होंने जो कहा उस पर यकीन करना मुश्किल था.

भाभी ने कहा, ‘‘रोहन का शक्की स्वभाव उन के वैवाहिक जीवन पर ग्रहण लगा रहा है. मेरे एक मुंहबोले भाई को ले कर इन के मन में शक का कीड़ा कुलबुला रहा है. मैं उन्हें हर तरह से समझा चुकी हूं कि उस के साथ मेरा भाईबहन के अलावा और किसी तरह का कोई संबंध नहीं है पर इन्हें मेरी किसी बात पर यकीन ही नहीं है. मेरी हर बात के जवाब में बस यही कहते हैं, ‘ये मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता क्या होता है मुझे न समझाओ. किसी अमर्यादित रिश्ते पर परदा डालने के लिए मुंहबोला भाई और मुंहबोली बहन का जन्म होता है.’ इन का कहना है कि या तो अपने मुंहबोले भाई से ही रिश्ता रख लो या मुझ से. अब तुम ही बताओ इतने सालों का रिश्ता क्या कह कर खत्म करूं? कितने अपमान की बात है मेरे लिए इतना बड़ा आरोप सहना.’’

मैं ने भाभी को आश्वस्त करते हुए कहा कि आप चिंता न करें मैं भैया से बात करती हूं. मैं जब रोहन भैया से इस बारे में बात करने गई तो बात शुरू करने से पहले ही उन्होंने मेरा मुंह यह कह कर बंद कर दिया, ‘‘सोनाली, अगर तुम मुझे कुछ समझाने आई हो तो बेहतर होगा कि वापस चली जाओ.’’ रोहन भैया के रूखे व्यवहार के आगे तो मेरी बात शुरू करने की हिम्मत ही नहीं हुई. बातबात पर उन से झगड़ने और बहस कर बैठने वाली मुझ सोनाली की बोलती ही बंद हो गई. पर बात चूंकि उन के वैवाहिक रिश्ते को बचाने की थी इसलिए हिम्मत कर के मैं उन के पास बैठ गई.

‘‘रोहन भैया, बात इतनी बड़ी नहीं है कि आप ने अपना और भाभी का रिश्ता दावं पर लगा दिया है. भाभी कह रही हैं कि उन का मुंहबोला भाई है तो उन की बात का आप यकीन क्यों नहीं करते? आखिर कालेज में आप की भी तो कई मुंहबोली बहनें थीं फिर…’’ मैं आगे कुछ और बोलूं उस से पहले ही रोहन भैया वहां से उठ खड़े हुए, ‘‘हां, सोनाली, मेरी कई मुंहबोली बहनें थीं और मैं कइयों का मुंहबोला भाई था इसीलिए इस रिश्ते की हकीकत मुझ से ज्यादा कोई नहीं जानता. कह दो अपनी भाभी से या तो मैं या वह मुंहबोला भाई, जिसे चुनना है चुन ले.’’ मैं अवाक सी भैया का मुंह देखती रह गई. कालेज वाले भैया तो वे थे ही नहीं जिन से मैं कुछ बहस कर सकती. ‘रोहन भैया, रोहन भैया’ कहने वाली कालेज की बहनों का उन्हें देख कर आहें भरना मैं भी कहां भूल पाई थी कि किसी तरह का तर्क दे कर उन की सोच को झुठलाने की कोशिश करने की हिम्मत जुटा पाती.

मेरे पास भाभी को समझाने के अलावा और कोई रास्ता शेष नहीं बचा था. रोहन भैया का शक उन के अपने अनुभव पर आधारित था. न जाने मुंहबोले भाईबहन के रिश्तों को उन्होंने किस तरह जिया था. दुनिया को तो वे अपने ही अनुभव के आधार पर देखेंगे. ‘‘रिश्ता बचाना है तो आप के सामने रोहन भैया की शर्त मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है भाभी, क्योंकि उन का शक उन के अनुभव पर आधारित है और अपने ही अनुभव को भला वे कैसे नकार सकते हैं. रिश्ता बचाने के लिए त्याग आप को ही करना पड़ेगा,’’ भारी मन से भाभी से यह सब कह कर मैं चुपचाप अपने घर की ओर चल दी.

Family Story in Hindi

Fictional Story: छंट गया कुहरा- विक्रांत के मोहपाश में बंधी जा रही थी माधुरी

Fictional Story: विक्रांत को स्कूटर से अंतिम बार जाते हुए देखने के लिए माधुरी बालकनी में जा कर खड़ी हो गई. विक्रांत के आंखों से ओझल होते ही उसे लगा जैसे सिर से बोझ उतर गया हो. अब न किसी के आने का इंतजार रहेगा, न दिल की धड़कनें बढ़ेंगी और न ही उस के न आने से बेचैनी और मायूसी उस के मन को घरेगी. यह सोच कर वह बहुत ही सुकून महसूस कर रही थी.

जब किसी के चेहरे से मुखौटा उतर कर वास्तविक चेहरे से सामना होता है तो जितनी शिद्दत से हम उसे चाहते हैं उसी अनुपात में उस से नफरत भी हो जाती है, एक ही क्षण में दिल की भावनाएं उस के लिए बदल जाती हैं. ऐसा ही माधुरी के साथ हुआ था.

माधुरी के विवाह को 5 साल हो गए थे. विवाह के बाद दिल्ली की पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाले परिवार में पलीबढ़ी माधुरी को उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर में रहने से और अपने पति मनोहर के अंतर्मुखी स्वभाव के कारण बहुत ऊब और अकेलापन लगने लगा था.

विक्रांत मनोहर के औफिस में ही काम करना था. अविवाहित होने के कारण अकसर वह मनोहर के साथ औफिस से उस के घर आ जाता था. माधुरी को भी उस का आना अच्छा लगता था. फिर वह अकसर खाना खा कर ही जाता था. खातेखाते वह खाने की बहुत तारीफ करता, जबकि अपने पति के मुंह से ऐसे बोल सुनने को माधुरी तरस जाती थी.

उस के आते ही घर में रौनक सी हो जाती थी. माधुरी उस से किताबों, कहानियों, फिल्मों, सामाजिक गतिविधियों पर बात कर के बहुत संतुष्टि अनुभव करती थी. धीरेधीरे वह उस की ओर खिंचती चली गई. जिस दिन वह नहीं आता तो उसे कुछ कमी सी लगती, मन उदास हो जाता. धीरेधीरे माधुरी को एहसास होने लगा कि इस तरह उस का विक्रांत की ओर आकर्षित होना मनोहर के प्रति अन्याय होगा, यह सोच कर वह मन से बेचैन रहने लगी. उसे लगने लगा कि जैसे वह कोई अपराध कर रही है, विवाहोपरांत किसी भी परपुरुष से एक सीमा तक ही अपनी चाहत रखना उचित है, उस के बाद तो वह शादीशुदा जिंदगी के लिए बरबादी का द्वार खोल देती है.

सबकुछ समझते हुए भी पता नहीं क्यों वह अपनेआप को उस से मिले बिना रोक नहीं पाती थी. जादू सा कर दिया था जैसे उस ने उस पर. अब तो यह हालत थी कि जिस दिन वह नहीं आता था तो वह अपने पति से उस के न आने का कारण पूछने लगी थी.

एक साथ काम करते हुए मनोहर को आभास होने लगा था कि विक्रांत कुछ रहस्यमय है. औफिस में 1-2 और लोगों से भी उस ने पारिवारिक संबंध बना रखे थे, जिन के घर भी अकसर वह जाया करता था.

धीरेधीरे मनोहर को भी माधुरी का विक्रांत के प्रति पागलपन अखरने लगा था. उस ने माधुरी को कई बार समझाया कि उस का विक्रांत के प्रति इतना आकर्षण ठीक नहीं है. वह अकेला है, पता नहीं क्यों विवाह नहीं करता. उसे तो अपना समय काटना है. लेकिन उस की समझ में नहीं आया और दिनप्रतिदिन उस का आकर्षण बढ़ता ही गया. उस की प्रशंसा भरी बातों में वह उलझती ही जा रही थी. एक तरफ अपराधभावना तो दूसरी ओर उसे न छोड़ने की विवशता. दोनों ने उसे मानसिक रोगी बना दिया था.

मनोहर जानता था कि माधुरी उस के लिए समर्पित है. विक्रांत ने ही अपनी बातों के जाल से उसे सम्मोहित कर रखा है और उस दिन को कोसता रहता था जब वह पहली बार उसे अपने घर लाया था. हर तरह से समझा कर वह थक गया.

धीरेधीरे माधुरी को विक्रांत से रिश्ता रखना तनाव अधिक खुशी कम देने लगा था. जिस रिश्ते का भविष्य सुरक्षित न हो, उस का यह परिणाम होना स्वाभाविक है, लेकिन वह उस से रिश्ता तोड़ने में अपने को असमर्थ पाती थी. ऊहापोह में 3 साल बीत गए. इस बीच वह एक चांद सी बेटी की मां भी बन गई थी.

अचानक एक दिन माधुरी के साथ ऐसी घटना घटी जिस ने उस के पूरे वजूद को ही हिला कर रख दिया. मनोहर के औफिस जाते ही विक्रांत औफिस में ही काम करने वाले रमनजी की बेटी नेहा, उम्र यही कोई 20 वर्ष होगी को उस के घर ले कर आया. पूर्व परिचित थी और अकसर वह माधुरी के घर आती रहती थी.

विक्रांत का भी उस परिवार से घनिष्ठ संबंध था. विक्रांत आते ही बिना किसी भूमिका के बोला, ‘‘इस का गर्भपात करवाना है. इस के साथ बलात्कार हुआ है…’’

1 मिनट को माधुरी को लगा जैसे कमरे की दीवारें उस की आंखों के सामने घूम रही हैं. जब उस ने इस बात की पुष्टि की तब जा कर माधुरी को विश्वास हुआ. इस से पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि विक्रांत जो कह रहा है वह सच है.

डाक्टर मित्र ने कहा, ‘‘10 दिन भी देर हो जाती तो गर्भपात नहीं हो सकता था… पर एक बार के बलात्कार से कोई लड़की गर्भवती नहीं होती, ये सब फिल्मों में ही होता है… इस के जरूर किसी से शारीरिक संबंध हैं.’’

यह सुन माधुरी का माथा ठनका कि अरे, जिस तरह विक्रांत को उस के चेहरे के हावभाव से नेहा के लिए परेशान देख रही हूं. वह सामान्य नहीं है. मैं तो सोच रही थी कि कितना भला है जो एक लड़की की मदद कर रहा है, पर अब डाक्टर के कहने पर मुझे कुछ शक हो रहा है कि यह क्यों नेहा को ले कर इतना परेशान है… तो क्या… उस ने मुझे अपनी परेशानी से मुक्ति पाने के लिए मुहरा बनाया है… उसे पता है कि मेरी एक डाक्टर फ्रैंड भी है… और यह भी जानता है कि मैं उस की मदद के लिए हमेशा तत्पर हूं. वह मन ही मन बुदबुदाई और फिर गौर से नेहा और विक्रांत का चेहरा पढ़ने लगी.

गर्भपात होते ही विक्रांत का तना चेहरा कितना रिलैक्स लग रहा था. उस के बाद वह माधुरी को साधिकार यह कह कर गायब हो गया था कि वह उसे उस के घर पहुंचा दे और किसी को कुछ न बताए. माधुरी का शक यकीन में बदल गया था.

माधुरी ने अपनी डाक्टर फ्रैंड की मदद से नेहा से हकीकत उगलवाने की ठान ली.

डाक्टर ने कड़े शब्दों में पूछा, ‘‘सच बता कि यह किस का बच्चा था?’’

उस ने पहले तो कुछ नहीं बताया. बस यह कहती रही कि कालेज के रास्ते में किसी ने उस के साथ बलात्कार किया था. लेकिन जब माधुरी ने उस से कहा कि सच बोलेगी तो वह उस की मदद करेगी नहीं तो उस की मां को सब बता देगी, तब वह धीरेधीरे कुछ रुकरुक कर बोली, ‘‘यह बच्चा विक्रांत अंकल का था. मैं उन की बातों से प्रभावित हो कर उन्हें चाहने लगी थी. उन्होंने मुझ से विवाह का वादा कर के मुझे समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया,’’ और वह रोने लगी.

‘‘उफ, अंकल के रिश्ते को ही विक्रांत ने दागदार कर दिया. कितना विश्वासघात किया उस ने उस परिवार के साथ, जिस ने उस पर विश्वास कर के अपने घर में प्रवेश करने की अनुमति दी. जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया,’’ माधुरी यह अप्रत्याशित बात सुन कर बिलकुल सकते की हालत में थी. उस के दिमाग में विचारों का तूफान उठ रहा था. उस का मन विक्रांत के प्रति घृणा से भर उठा.

माधुरी का उतरा चेहरा देख कर उस की डाक्टर फ्रैंड थोड़ा मुसकराई और फिर बोली, ‘‘तू तो ऐसे परेशान है जैसे तेरे साथ ही कुछ गलत हुआ है?’’

‘‘तू सही सोच रही है…मेरा भी मानसिक बलात्कार उस ने किया है. अब मेरी आंखें खुल चुकी हैं. इतना गिरा हुआ इंसान कोई हो सकता है, मैं सोच भी नहीं सकती. मैं ने अपने जीवन के 3 साल उस के जाल में फंस कर बरबाद कर दिए.’’ माधुरी ने उसे भारी मन से बताया.

प्रतिक्रियास्वरूप उसे मुसकराते देख कर उसे अचंभा हुआ और फिर प्रश्नवाचक नजरों से उस की ओर देखने लगी तो वह बोली, ‘‘मैं सारी कहानी कल ही तुम तीनों के हावभाव देख कर समझ गई थी. आखिर इस लाइन में अनुभव भी कोई चीज है. तुझे पता है मेरे पति नील मनोवैज्ञानिक हैं. उन से मुझे बहुत जानकारी मिली है. ऐसे लोग बिल्ली की तरह रास्ता देख लेते हैं और वहीं शिकार के लिए मंडराते रहते हैं, शारीरिक शोषण के लिए कुंआरी लड़कियों को विवाह का झांसा दे कर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं…विवाहित से ऐसी आशा करना खतरनाक होता है, इसलिए उन्हें मानसिक रूप से सम्मोहित कर के अपने टाइम पास का अड्डा बना लेते हैं…

‘‘उन्हें पता होता है कि स्त्रियां अपनी प्रशंसा की भूखी होती हैं, इसलिए इस अस्त्र का सहारा लेते हैं. ऐसे रिश्ते दलदल के समान होते हैं. जिस से अगर कोई समय रहते नहीं ऊबरे तो धंसता ही चला जाता है. शुक्र है जल्दी सचाई सामने आ गई, वरना….’’ माधुरी अवाक उस की बातें सुनती रही और उस की बात पूरी होने से पहले ही उस के गले से लिपट कर रोने लगी.

माधुरी ने थोड़ा संयत हो कर अपनी आवाज को नम्र कर के नेहा से पूछा, ‘‘जब इतना कुछ हो गया है तो तुम्हारा विवाह उस से करवा देते हैं. तुम्हारी मां से बात करती हूं.’’

‘‘नहीं…मैं उन से नफरत करती हूं, उन्होंने नाटक कर के मुझे फंसाया है. उन के और लड़कियों से भी संबंध हैं…उन्होंने मुझे खुद बताया है, प्लीज आप किसी को मत बताइएगा. उन्होंने कहा है कि यदि मैं किसी को बताऊंगी तो वे मेरे फोटो दिखा कर मुझे बदनाम कर देंगे,’’ और उस ने रोते हुए हाथ जोड़ दिए.

‘‘ठीक है, जैसा तुम कहोगी वैसा ही होगा,’’ माधुरी ने उसे सांत्वना दी.

अस्पताल से माधुरी नेहा को अपने घर ले आई, उस के आराम का पूरा ध्यान रखा. फिर उसे समझाते हुए बोली, ‘‘तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है, मैं हूं न. तुम्हें अपनी मां को सबकुछ बता देना चाहिए ताकि उस का तुम्हारे घर आना बंद हो जाए. नहीं तो वह हमेशा तुम्हें ब्लैममेल करता रहेगा. वह तुम्हारे फोटो दिखाएगा तो उस का भी तो नाम आएगा. फिर उस की नौकरी चली जाएगी, इसलिए वह कदापि ऐसा कदम नहीं उठा सकता. सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए तुम्हें धमका रहा है. तुम अपनी मां से बात नहीं कर सकती तो मैं करती हूं.’’ माधुरी से अधिक उस की पीड़ा को और कौन समझ सकता था.

माधुरी की बात सुन कर नेहा को बहुत हिम्मत मिली. वह उस से लिपट कर देर तक रोती रही.

माधुरी ने नेहा की मां को फोन कर के अपने घर बुलाया और फिर सारी बात बता दी. पूरी बात सुन कर उस की मां की क्या हालत हुई यह तो भुक्तभोगी ही समझ सकता है. माधुरी के समझाने पर उन्होंने नेहा को कुछ नहीं कहा पर उन को क्या पता कि जब वह खुद ही उस की बातों के जाल में फंस गई तो नेहा की क्या बात…

वे रोते हुए बोलीं, ‘‘आप प्लीज किसी को मत बताइएगा, नहीं तो इस से शादी कौन करेगा? आप का एहसान मैं जिंदगीभर नहीं भूलूंगी.

अब मेरे घर के दरवाजे उस के लिए हमेशा के लिए बंद.’’

माधुरी ने उन्हें आश्वस्त कर के बिदा किया. उन के जाने के बाद वह पलंग पर लेट कर फूटफूट कर बच्चों की तरह रोने लगी. पूरे दिन का गुबार आंसुओं में बह गया. अब वह बहुत हलका महसूस करने लगी. उसे लगा कि उस के जीवन पर छाया कुहरा छंट गया है, सूर्य की किरणें उस के लिए नया सबेरा ले कर आई हैं.

अब माधुरी शाम को अपने पति मनोहर के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी. पति के आते ही उस ने सारी बात बताते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, मैं भटक गई थी.’’

‘‘तुम्हारी इस में कोई गलती नहीं. मैं जानता था देरसबेर तुम्हारी आंखें जरूर खुलेंगी. देखो विवाह को एक समझौता समझ कर चलने में ही भलाई है. हर चीज चाही हुई किसी को नहीं मिलती. मुझे भी तो तुम्हारी यह मोटी नाक नहीं अच्छी लगती तो क्या मैं सुंदर नाक वाली ढूंढ़ूं…’’

अभी उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वह खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर पति के गले से लिपट कर खुद को बहुत सुरक्षित महसूस कर रही थी. अगले दिन विक्रांत मनोहर के साथ आया. माधुरी उस के सामने नहीं आई तो वह सारी स्थिति समझ थोड़ी देर बाद लौट गया.

Fictional Story

Hair Extensions: पाएं मनचाहा हेयरस्टाइल

Hair Extensions: बाल हर लड़की की पर्सनैलिटी का एक अहम हिस्सा है. हर लड़की चाहती है कि उस के बाल लंबे, घने और खूबसूरत हों, लेकिन पौल्यूशन, स्ट्रैस और लाइफस्टाइल के कारण बालों का झड़ना और पतले होना नौर्मल है. ऐसे में हेयर ऐक्सटेंशन एक जादुई समाधान बन कर सामने आया है, जो कुछ ही घंटों में आप के लुक को बदल सकता है.

हेयर ऐक्सटेंशन क्या है

हेयर ऐक्सटेंशन असली या आर्टिफिशियल बालों से बनाए जाते हैं जिन्हें आप के नैचुरल बालों में जोड़ दिया जाता है ताकि बालों की लंबाई और घनापन बढ़ाया जा सके, जिस से आप के लुक को बदला जा सके और आजकल मौडल्स, सैलिब्रिटीज से ले कर आम लड़कियां भी इन का इस्तेमाल कर रही हैं.

हेयर टौपर्स

हेयर टौपर्स एक तरह का हेयरपीस या विग का छोटा हिस्सा होता है, जिसे उन लोगों के लिए बनाया गया है जिन के सिर के ऊपर के बाल पतले हो जाते हैं या बाल झड़ने की समस्या हो जाती है. यह आप के प्राकृतिक बालों के साथ मिल कर उन्हें घना और सुंदर लुक देता है. यह छोटा और हलका होता है लेकिन पूरे विग की तरह नहीं होता, सिर्फ सिर के ऊपर वाले हिस्से को कवर करता है जो आप को नैचुरल लुक देता है. इस में क्लिप्स लगे होते हैं जिन्हें बालों में लगा कर फिक्स कर सकते हैं.

स्टाइलिंग की सुविधा

हेयर टौपर को स्ट्रैट, कर्ल या अलगअलग हेयरस्टाइल में इस्तेमाल किया जा सकता है.

क्लिपइन बैंग्स

क्लिपइन बैंग्स एक तरह का हेयर ऐक्सटेंशन होता है, जो आप के माथे पर आगे की तरफ आने वाले छोटे बालों (फ्रिंग्स बैंग्स) जैसा लुक देता है. इसे क्लिप की मदद से बहुत आसानी से बालों में लगाया और निकाला जा सकता है. इस को आसानी से यूज किया जा सकता है. यह आप को बिना कटिंग के नया लुक देता है. आप बैंग्स ट्राई करना चाहती हैं लेकिन बाल कटवाने का रिस्क नहीं लेना चाहतीं, तो यह बैस्ट औप्शन है. नैचुरल लुक देता है और बेहतर क्वालिटी की क्लिपइन बैंग्स आप के असली बालों की तरह ही दिखते हैं. ये कई वैरायटी व अलगअलग स्टाइल में मिलते हैं, जैसेकि ब्लंट बैंग्स, साइड बैंग्स, लेयर्ड बैंग्स आदि. ये रीयूजेबल (बारबार इस्तेमाल होने वाले) होते हैं. एक बार खरीदने के बाद आप इन्हें कई बार अलगअलग मौकों पर लगा सकती हैं.

हेलो हेयर

हेलो हेयर एक तरह का हेयर ऐक्सटेंशन है, जिसे बिना क्लिप, गोंद या टेप के आसानी से लगाया जा सकता है. इस में एक पारदर्शी नायलोन वायर लगा होता है, जो सिर के ऊपर हैलो या मुकुट जैसा बना कर बैठता है और नीचे लंबे व घने बालों का लुक देता है. इसे पहनने और उतारने में सिर्फ 1 मिनट लगता है साथ ही इस से कोई नुकसान नहीं होता है. इस में गोंद, टेप या क्लिप का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए आप के असली बालों को कोई नुकसान नहीं होता. यह आप को नैचुरल लुक देता है और अच्छी क्वालिटी के हैलो हेयर आप के असली बालों से पूरी तरह मिक्स हो कर नैचुरल लगता है. साथ ही यह हलका होने के कारण सिर पर बोझ नहीं डालता और घंटों तक आसानी से पहना जा सकते है. हैलो हेयर को स्ट्रेट, कर्ल या अलगअलग हेयरस्टाइल में बदला जा सकता है.

हेयर ऐक्सटेंशन

हेयर ऐक्सटेंशन एक ऐसा हेयर प्रोडक्ट है, जिस की मदद से आप के बालों की लंबाई और घनापन (वौल्यूम) बढ़ाया जा सकता है. यह असली या नकली बालों से बने होते हैं और इन्हें आप के प्राकृतिक बालों में जोड़ कर नया और स्टाइलिश लुक दिया जाता है.

अगर आप को लंबे बाल तुरंत चाहिए और आप के बाल छोटे हैं तो ऐक्सटेंशन से तुरंत लंबे हो जाते हैं. यह पतले बालों में वौल्यूम देता है. ऐक्सटेंशन से नए हेयरस्टाइल, कर्ल्स, स्ट्रैट और अलगअलग लुक ट्राई कर सकते हैं. कुछ ऐक्सटेंशन तुरंत निकाल सकते हैं, तो कुछ लंबे समय तक लगाए जा सकते हैं. इस में आप को कलरिंग का औप्शन भी मिलता है जिस में बिना असली बालों को डाई किए, कलर वाले ऐक्सटेंशन से नया लुक पा सकते हैं.

स्ट्रैंडआउट्स

यह एक तरह का क्लिपइन रंगीन बालों का स्ट्रैंड होता है, जिसे आप अपने असली बालों में जोड़ कर तुरंत नया, ग्लैमरस और परफैक्ट लुक पा सकते हैं वह भी बालों को  बिना डाई और ख़राब करे बिना. यह एक मजेदार और लड़कियों का फेवरिट ट्रेंड है. यह उन के लिए परफैक्ट है जो जल्दीजल्दी नया हेयरकलर ट्राई करना चाहती हैं, लेकिन बालों को डैमेज होने से भी बचाना चाहती हैं.

Hair Extensions

Child’s Education: ऐजुकेशन को ले कर मांबाप का सख्त नजरिया क्यों

Child’s Education: आज का समय हो या पहले का, हर मांबाप की इच्छा होती है बच्चों को शिक्षित करना और इतना पढ़ानालिखाना कि बच्चा उच्च शिक्षा ले कर डाक्टर, इंजीनियर यहां तक कि आईएएस औफिसर बन जाए, ताकि उस की समाज में न सिर्फ रुतबा हो, बल्कि उन का बच्चा आलीशान जिंदगी भी जिएं.

हर मांबाप यही चाहते हैं कि जिस तरह उन को अपनी जिंदगी बसर करने के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष करना पड़ा, ऐसा उन के बच्चों को न करना पड़े, जिस के चलते वे कर्ज ले कर भी अपने बच्चों को इतना शिक्षित बनाते हैं या बनाने की कोशिश करते हैं ताकि उन का बच्चा समाज में सम्मानित जिंदगी जी सकें. इस की वजह से वे कई बार अपने बच्चों की पढ़ाई को ले कर इतने कड़क हो जाते हैं कि बच्चा  कई बार डर के मारे गलत कदम उठा लेता है, जो एक बच्चे के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक भी हो जाता है.

बच्चों में डर

कई बार मांबाप की यह इच्छा जिद में बदल जाती है और फिर डर के मारे या विद्रोही हो कर बच्चे मांबाप के खिलाफ चले जाते हैं या कई बार आत्महत्या तक कर लेते हैं, जो किसी भी हद तक सही नहीं है.

अगर मांबाप बच्चों को पढ़नेलिखने पर जोर देते हैं तो वह सिर्फ इसलिए कि उन का बच्चा अनपढ़ होने की वजह से बेवकूफ न बनें या कोई उन का फायदा न उठा सके.

एक पढ़ालिखा इंसान भले ही डाक्टर, इंजीनियर न हो लेकिन उसे इतना ज्ञान जरूर होता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है या क्या सही है और क्या गलत है. इसलिए शिक्षित होने के बाद एक बच्चा जब एक आदमी या औरत के रूप में समाज में सरवाइव करता है तो कोई उस का फायदा नहीं उठा पाता.

शिक्षा से मिलती है सही राह

इस के अलावा शिक्षा इंसान को सभ्य बनाती है और वह आत्मविश्वास के साथ किसी भी माहौल में अपनेआप को ऐडजस्ट कर सकता है.

लेकिन एक सच यह भी है कि हर बच्चा इंटेलिजेंट नहीं होता. कई बार कोई बच्चा तेज दिमाग नहीं होता, बल्कि उस की दिलचस्पी किसी अन्य क्षेत्र में होती है. वह अपनेआप को डाक्टर या इंजीनियर बनने के लायक नहीं समझता. ऐसे में मांबाप और बच्चे के बीच तालमेल नहीं बैठ पाता और ऐसे बच्चे मांबाप से बगावत तक कर देते हैं.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि मांबाप बच्चों को शिक्षा का महत्त्व कैसे समझाएं? बिना बच्चों पर दबाव डाले, बच्चों की दिलचस्पी शिक्षा की तरफ कैसे ले जाएं?

मांबाप ऐक्टर हों, डाक्टर हों, वकील हों या इंजीनियर या फिर अनपढ़ ही क्यों न हों लेकिन वे अपने बच्चों को शिक्षित देखना चाहते हैं, क्योंकि हर मांबाप के मन में अपने बच्चों को ले कर बहुत उम्मीदें होती हैं. वे चाहते हैं कि उन का बच्चा अपने मांबाप का नाम रौशन करें, उन के बुढ़ापे का सहारा बनें. जैसे आज वह अपने बच्चों की उंगली पकड़ कर चला रहे हैं, वैसे कल बुढ़ापे में वे उन का हाथ पकड़ कर सहारा बनें.

इन सब बातों के अलावा मांबाप अपने बच्चों को शिक्षित इसलिए भी करना चाहते हैं ताकि वे एक अच्छा इंसान बन सकें. गौरतलब है कि पिता की उस बच्चों से ज्यादा उम्मीदें होती हैं जो तेज दिमाग का होता है और स्कूल में पढ़ाई के दौरान 70-80% या अधिक नंबर लाता है. ऐसे में मांबाप को लगता है कि अगर वे कोशिश करें तो उन का बच्चा हायर ऐजुकेशन में कमाल कर सकता है. वहीं अगर बच्चा डफर है और 40% तक ही उस का रिजल्ट होता है तो ऐसे बच्चों पर मांबाप ज्यादा दबाव भी नहीं डालते.

ऐसे में बच्चों को यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि वे कितनी मुश्किलों से अपने बच्चों की पढ़ाई का बंदोबस्त कर रहे हैं और अगर बच्चा अच्छी पढ़ाई करेगा तो आगे की जिंदगी में उस को बहुत सारे फायदे मिलेंगे.

मारपीट से नहीं प्यार से समझाएं

आप बच्चों को मारपीट कर नहीं बल्कि प्यार से समझा कर अगर पढ़ाई की तरफ ध्यान आकर्षित कराते हैं, तो बच्चा भी मांबाप की भावनाओं को समझ कर दिल से पढ़ाई करेगा. ज्यादा सख्ती या मारपीट बच्चों को या तो डरपोक बना देगा यह विद्रोही. दोनों ही सूरत में मांबाप से बच्चे दूर होते जाएंगे.

कई बार बच्चों को किसी और क्षेत्र में जैसे ग्लैमर वर्ल्ड या कोई और क्षेत्र में बहुत ज्यादा दिलचस्पी होती है लेकिन मांबाप बच्चों को इस के लिए सपोर्ट नहीं करते, क्योंकि उन का मानना होता है कि अगर बच्चा डाक्टर, इंजीनियर या किसी ऊंचे पद पर जाता है, तो वह बहुत ज्यादा नहीं तो कम से कम इतना तो कमा ही लेगा कि वह अपना और अपने परिवार का आसानी से गुजारा कर सके. ऐसा नहीं है कि किसी और क्षेत्र से जुड़ने पर उस में कमाई नहीं है या कोई और क्षेत्र अपनाने पर खाने के फांके पड़ जाएंगे, बल्कि कई क्षेत्र या बिजनैस ऐसे हैं जिन में काम कर के डाक्टर और इंजीनियर से ज्यादा कमाई हो सकती है.

इन क्षेत्रों में काम करने के लिए या पैसे कमाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है और इस की कोई गारंटी भी नहीं होती.

मेहनत से मिलती है कामयाबी

कोई ऐक्टर हो, मौडल हो, डाइरैक्टर हो और अगर वक्त ने साथ दिया तो एक फिल्म के ₹40-50 करोड़ भी कमा लेते हैं और अगर वक्त ने साथ नहीं दिया तो टेलैंट होने के बाद भी काम नहीं मिलता और घर बैठना पड़ता है. इसलिए वक्त को अपने पक्ष में करने के लिए कङी मेहनत करनी पङती है.

कहने का मतलब यह है कि मांबाप बच्चों पर प्रेशर इसलिए भी डालते हैं कि वे पढ़लिख कर कोई ऐसी नौकरी करें या काम करें, जिस में उन की लाइफ और भविष्य सुरक्षा और शांति के साथ गुजरे. एक बार मांबाप अपने लिए रिस्क लेने के लिए तैयार हो जाएंगे लेकिन बच्चों को ले कर वे बहुत इमोशनल होते हैं पर हमेशा अपने बच्चों को कामयाब देखना चाहते हैं.

यही वजह है कि हर मांबाप अपने बच्चों को उज्जवल भविष्य देने के लिए उच्च शिक्षा दिलाने पर जोर देते हैं ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो जाए.

Child’s Education

कंगना-प्रियंका के वकील 2 साल के लिए वकालत से बैन, रोजलिन खान से हारे

Rizwan Siddiqui: रिजवान सिद्दीकी, जिन्होंने कंगना रनौत को ऋतिक रोशन के साथ हुए विवाद में कंगना को और एक कानूनी मामले में प्रियंका चोपड़ा को भी रिप्रजेंट किया था, अब एक लंबे चले केस के बाद अनुशासनात्मक काररवाई का सामना कर रहे हैं.

2018 में सिद्दीकी को ठाणे क्राइम ब्रांच ने एक प्राइवेट जासूस के जरीए कथित तौर पर कौल डेटा रिकौर्ड (CDRs) निकालने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जिस में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी का नाम भी शामिल था. हालांकि उन्हें मुंबई की अदालत ने छोड़ दिया था, लेकिन अधिकारियों ने उन के खिलाफ सुबूत होने की बात कही थी.

रंग लाई मेहनत

अब अभिनेत्री और कैंसर सर्वाइवर रोजलिन खान उर्फ ​​रेहाना खान द्वारा शुरू की गई लगभग एक दशक लंबी लड़ाई के बाद बार काउंसिल औफ इंडिया ने पेशेवर दुराचार के आधार पर सिद्दीकी का वकालत करने का लाइसेंस 2 साल के लिए निलंबित कर दिया है. यह मामला जो मूल रूप से महाराष्ट्र में लंबित था, अंतिम निर्णय के लिए राष्ट्रीय न्याय संस्था को स्थानांतरित कर दिया गया था.

फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए रोजलिन खान ने कहा, “यह राहत सालों के उत्पीड़न, कलंक और शक्तिशाली लौबी के दबाव के बाद मिली है. न्याय मांगने के लिए मुझे ‘विवादास्पद’ करार दिया गया. अपराध को हल करने के बजाय, सिस्टम ने मेरे चरित्र को ही बदनाम करने की कोशिश की. यह फैसला सिर्फ मेरी जीत नहीं है, बल्कि यह महाराष्ट्र में गहराई तक फैली हुई अन्याय को उजागर करता है और हर उस महिला को आवाज देता है जिसे शक्ति और हेरफेर से चुप कराया गया है.

लंबी लङी लङाई

उन्होंने आगे कहा, “मेरे 11 साल के दर्द की तुलना में 2 साल का निलंबन पर्याप्त नहीं है. मैं व्यक्तिगत रूप से इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाऊंगी। यह तो बस शुरुआत है.

वे कहती हैं कि मैं उन लोगों के लिए एक करारा तमाचा हूं जिन्होंने हेरफेर से मुझे हराने की कोशिश की. उन्होंने मुझे एक आपराधिक केस हरवा दिया, लेकिन बिना लौ की डिग्री के मैं ने एक वकील की डिग्री छीन ली है. अब, मैं इस लौबी के खिलाफ कई लड़ाई जीतने के लिए यहां हूं.

रोजलिन खान ने बार काउंसिल औफ इंडिया के सामने अपना केस खुद पेश (लड़ा) किया और जीत लिया.

Rizwan Siddiqui

Hindi Short Story: काश, मेरा भी बौस होता

Hindi Short Story: आज फिर अनीता छुट्टी पर है. इसका अंदाज मैंने इसी से लगा लिया कि वह अभी तक तैयार नहीं हुई. लगता है कल फिर वह बौस को अदा से देखकर मुसकराई होगी. तभी तो आज दिनभर उसे मुसकराते रहने के लिए छुट्टी मिल गई है.

मेरे दिल पर सांप लोटने लगा. काश, मेरा भी बौस होता…बौसी नहीं…तो मैं भी अपनी अदाओं के जलवे बिखेरती, मुसकराती, इठलाती हुई छुट्टी पर छुट्टी करती चली जाती और आफिस में बैठा मेरा बौस मेरी अटेंडेंस भरता होता…पर मैं क्या करूं, मेरा तो बौस नहीं बौसी है.

बौस शब्द कितना अच्छा लगता है. एक ऐसा पुरुष जो है तो बांस की तरह सीधा तना हुआ. हम से ऊंचा और अकड़ा हुआ भी पर जब उस में फूंक भरो तो… आहा हा हा. क्या मधुर तान निकलती है. वही बांस, बांसुरी बन जाता है.

‘‘सर, एक बात कहें, आप नाराज तो नहीं होंगे. आप को यह सूट बहुत ही सूट करता है, आप बड़े स्मार्ट लगते हैं,’’ मैं ऐसा कहती तो बौस के चेहरे पर 200 वाट की रोशनी फैल जाती है.

‘‘ही ही ही…थैंक्स. अच्छा, ‘थामसन एंड कंपनी’ के बिल चेक कर लिए हैं.’’

‘‘सर, आधे घंटे में ले कर आती हूं.’’

‘‘ओ के, जल्दी लाना,’’ और बौस मुसकराते हुए केबिन में चला जाता. वह यह कभी नहीं सोचता कि फाइल लाने में आधा घंटा क्यों लगेगा.

पर मेरी तो बौसी है जो आफिस में घुसते ही नाक ऊंची कर लेती है. धड़मधड़म कर के दरवाजा खोलेगी और घर्रर्रर्रर्र से घंटी बजा देगी, ‘‘पाल संस की फाइल लाना.’’

‘‘मेम, आज आप की साड़ी बहुत सुंदर लग रही है.’’वह एक नजर मेरी आंखों में ऐसे घूरती है जैसे मैं ने उस की साड़ी का रेट कम बता दिया हो.

‘‘काम पूरा नहीं किया क्या?’’ ठां… उस ने गरम गोला दाग दिया. थोड़ी सी हवा में ठंडक थी, वह भी गायब हो  गई, ‘‘फाइल लाओ.’’

दिल करता है फाइल उस के सिर पर दे मारूं.

‘‘सर, आज मैं बहुत थक गई हूं, रात को मेहमान भी आए थे, काफी देर हो गई थी सोने में. मैं जल्दी चली जाऊं?’’ मैं अपनी आवाज में थकावट ला कर ऐसी मरी हुई आवाज में बोलती जैसी मरी हुई भैंस मिमियाती है तो बौस मुझे देखते ही तरस खा जाता.

‘‘हां हां, क्यों नहीं. पर कल समय से आने की कोशिश करना,’’ यह बौस का जवाब होता.

लेकिन मेरे मिमियाने पर बौसी का जवाब होता है, ‘‘तो…? तो क्या मैं तुम्हारे पांव दबाऊं? नखरे किसी और को दिखाना, आफिस टाइम पूरा कर के जाना.’’

मन करता है इस का टाइम जल्दी आ जाए तो मैं ही इस का गला दबा दूं.

‘‘सर, मेरे ससुराल वाले आ रहे हैं, मैं 2 घंटे के लिए बाहर चली जाऊं,’’ मैं आंखें घुमा कर कहती तो बौस भी घूम जाता, ‘‘अच्छा, क्या खरीदने जा रही हो?’’ बस, मिल जाती परमिशन. पर यह बौसी, ‘‘ससुराल वालों से कह दिया करो कि नौकरी करने देनी है कि नहीं,’’ ऐसा जवाब सुन कर मन से बददुआ निकलने लगती है. काश, तुम्हारी कुरसी मुझे मिल जाती तो…लो इसी बात में मेरी बौसी महारानी पानी भरती दिखाई देती.

उस दिन पति से लड़ाई हो गई तो रोतेरोते ही आफिस पहुंची थी. मेरे आंसू देखते ही बौसी बोली, ‘‘टसुए घर छोड़ कर आया करो.’’ लेकिन अगर मेरा बौस होता तो मेरे आंसू सीधे उस के (बौस के) दिल पर छनछन कर के गरम तवे पर ठंडी बूंदों की तरह गिरते और सूख जाते. वह मुझ से पूछता, ‘क्या हुआ है? किस से झगड़ा हुआ.’ तब मैं अपने पति को झगड़ालू और अकड़ू बता कर अपने बौस की तारीफ में पुल बांधती तो वह कितना खुश हो जाता और मेरी अगले दिन की एक और छुट्टी पक्की हो जाती.

कोई भी अच्छी ड्रेस पहनूं या मेकअप करूं तो डर लगने लगता है. बौसी कहने लगती है, ‘‘आफिस में सज कर किस को दिखाने आई हो?’’ अगर बौस होता तो ऐसे वाहियात सवाल थोड़े ही करता? वह तो समझदार है, उसे पता है कि मैं उस के दिल के कोमल तारों को छेड़ने और फुसलाने के लिए ही तो ऐसा कर रही हूं. वह यह सब जान कर भी फिसलता ही जाएगा. फिसलता ही जाएगा और उस की इसी फिसलन में उस की बंद आंखों में मैं अपने घर के हजारों काम निबटा देती.

पर मेरी किस्मत में बौस के बजाय बौसी है, बासी रोटी और बासी फूल सी मुरझाई हुई. उस के होेते हुए न तो मैं आफिस टाइम पर शौपिंग कर पाती हूं, न ही ससुराल वालों को अटेंड कर पाती हूं, न ही घर जा कर सो पाती हूं, न ही अपने पति की चुगली उस से कर के उसे खुश कर पाती हूं और न ही उस के रूप और कपड़ों की बेवजह तारीफ कर के, अपने न किए हुए कामों को अनदेखा करवा सकती हूं.

अगर मेरा बौस होता तो मैं आफिस आती और आफिस आफिस खेलती, पर काम नहीं करती. पर क्या करूं मैं, मेरी तो बौसी है. इस के होने से मुझे अपनी सुंदरता पर भी शक होने लगा है. मेरा इठलाना, मेरा रोना, मेरा आंसू बहाना, मेरा सजना, मेरे जलवे, मेरे नखरे किसी काम के नहीं रहे.

इसीलिए मुझे कभी-कभी अपने नारी होने पर भी संदेह होने लगा है. काश, कोई मेरी बौसी को हटाकर मुझे बौस दिला दे, ताकि मुझे मेरे होने का एहसास तो होता.

Hindi Short Story

Hindi Emotional Story: अलविदा काकुल

Hindi Emotional Story: पेरिस का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा चार्ल्स डि गाल, चारों तरफ चहलपहल, शोरशराबा, विभिन्न परिधानों में सजीसंवरी युवतियां, तरहतरह के इत्रों से महकता वातावरण…

काकुल पेरिस छोड़ कर हमेशाहमेशा के लिए अपने शहर इसलामाबाद वापस जा रही थी. लेकिन अपने वतन, अपने शहर, अपने घर जाने की कोई खुशी उस के चेहरे पर नहीं थी. चुपचाप, गुमसुम, अपने में सिमटी, मेरे किसी सवाल से बचती हुई सी. पर मैं तो कुछ पूछना ही नहीं चाहता था, शायद माहौल ही इस की इजाजत नहीं दे रहा था. हां, काकुल से थोड़ा ऊंचा उठ कर उसे सांत्वना देना चाहता था. शायद उस का अपराधबोध कुछ कम हो. पर मैं ऐसा कर न पाया. बस, ऐसा लगा कि दोनों तरफ भावनाओं का समंदर अपने आरोह पर है. हम दोनों ही कमजोर बांधों से उसे रोकने की कोशिश कर रहे थे.

तभी काकुल की फ्लाइट की घोषणा हुई. वह डबडबाई आंखों से धीरे से हाथ दबा कर चली गई. काकुल चली गई.

2 वर्षों पहले हुई जानपहचान की ऐसी परिणति दोनों को ही स्वीकार नहीं थी. हंगरी के लेखक अर्नेस्ट हेंमिग्वे ने लिखा है कि ‘कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जैसे बरसात के दिनों में रुके हुए पानी में कागज की नावें तैराना.’ ये नावें तैरती तो हैं, पर बहुत दूर तक और बहुत देर तक नहीं. शायद हमारा रिश्ता ऐसी ही एक किश्ती जैसा था.

टैक्निकल ट्रेनिंग के लिए मैं दिल्ली से फ्रांस आया तो यहीं का हो कर रह गया. दिलोदिमाग में कुछ वक्त यह जद्दोजेहद जरूर रही कि अपनी सरकार ने मुझे उच्चशिक्षा के लिए भेजा था. सो, मेरा फर्ज है कि अपने देश लौटूं और देश को कुछ दूं. लेकिन स्वार्थ का पर्वत ज्यादा बड़ा निकला और देशप्रेम छोटा. लिहाजा, यहीं नौकरी कर ली.

शुरू में बहुत दिक्कतें आईं. अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने वाले फ्रैंच समुदाय में किसी का भी टिकना बहुत कठिन है. बस, एक जिद थी, एक दीवानगी थी कि इसी समुदाय में अपना लोहा मनवाना है. जैसा लोकप्रिय मैं अपनी जनकपुरी में था, वैसा ही कुछ यहां भी होना चाहिए.

पहली बात यह समझ आई कि अंगरेजी से फ्रैंच समुदाय वैसे ही भड़कता है जैसे लाल रंग से सांड़. सो, मैं ने फ्रैंच भाषा पर मेहनत शुरू की. फ्रैंच समुदाय में अपनी भाषा, अपने देश, अपने भोजन व सुंदरता के लिए ऐसी शिद्दत से चाहत है कि आप अंगरेजी में किसी से पता भी पूछेंगे तो जवाब यही मिलेगा, ‘फ्रांस में हो तो फ्रैंच बोलो.’

पेरिस की तेज रफ्तार जिंदगी को किसी लेखक ने केवल 3 शब्दों में कहा है, ‘काम करना, सोना, यात्रा करना.’ यह बात पहले सुनी थी, यकीन यहीं देख कर आया. मैं कुछकुछ इसी जिंदगी के सांचे में ढल रहा था, तभी काकुल मिली.

काकुल से मिलना भी बस ऐसे था जैसे ‘यों ही कोई मिल गया था सरेराह चलतेचलते.’ हुआ ऐसा कि मैं एक रैस्तरां में बैठा कुछ खापी रहा था और धीमे स्वर में गुलाम अली की गजल ‘चुपकेचुपके रातदिन…’ गुनगुना रहा था. कौफी के 3 गिलास खाली हुए और मेरा गुनगुनाना गाने में तबदील हो गया. मेज पर उंगलियां भी तबले की थाप देने लगी थीं. पूरा आलाप ले कर जैसे ही मैं ‘दोपहर… की धूप में…’ तक पहुंचा, अचानक एक लड़की मेरे सामने आ कर झटके से बैठी और पूछा, ‘वू जेत पाकी?’

‘नो, आई एम इंडियन.’

‘आप बहुत अच्छा गाते हैं, पर इस रैस्तरां को अपना बाथरूम तो मत समझिए’.

‘ओह, माफ कीजिएगा,’ मैं बुरी तरह झेंप गया.

काकुल से दोस्ती हो गई, रोज मिलनेजुलने का सिलसिला  शुरू हुआ. वह इसलामाबाद, पाकिस्तान से थी. पिताजी का अपना व्यापार था. जब उन्होंने काकुल की अम्मी को तलाक दिया तो वह नाराज हो कर पेरिस में अपनी आंटी के पास आ गई और तब से यहीं थी. वह एक होटल में रिसैप्शनिस्ट का काम देखती थी.

ज्यादातर सप्ताहांत, मैं काकुल के साथ ही बिताने लगा. वह बहुत से सवाल पूछती, जैसे ‘आप जिंदगी के बारे में क्या सोचते हैं?’

‘हम बचपन में सांपसीढ़ी खेल खेलते थे, मेरे खयाल से जिंदगी भी बिलकुल वैसी है…कहां सीढ़ी है और कहां सांप, यही इस जीवन का रहस्य है और यही रोमांच है,’ मैं ने अपना फलसफा बताया.

‘आप के इस खेल में मैं क्या हूं, सांप या सीढ़ी?’ बड़ी सादगी से काकुल ने पूछा.

‘मैं ने कहा न, यही तो रहस्य है.’

मैं ने लोगों को व्यायाम सिखाना शुरू किया. मेरा काम चल निकला. मुझे यश मिलना शुरू हुआ. मैं ज्यादा व्यस्त होता गया. काकुल से मिलना बस सप्ताहांत पर ही हो पाता था.

कम मिलने की वजह से हम आपस में ज्यादा नजदीक हुए. एक इतवार को स्टीमर पर सैर करते हुए काकुल ने कहा, ‘मैं आप को आई एल कहा करूं?’

‘भई, यह ‘आई एल’ क्या बला है?’ मैं ने अचकचा कर पूछा.

‘आई एल, यानी इमरती लाल, इमरती हमें बहुत पसंद है. बस यों जानिए, हमारी जान है, और आप भी…’ सांझ के आकाश की सारी लालिमा काकुल के कपोलों में समा गई थी.

‘एक बात पूछूं, क्या पापामम्मी को काकुल मंजूर होगी?’ उस ने पूछा.

मैं ने पहली बार गौर किया कि मेरे पापामम्मी को अंकल, आंटी कहना वह कभी का छोड़ चुकी है. मुझे भी नाम से बुलाए उसे शायद अरसा हो गया था.

‘काकुल, अगर बेटे को मंजूर, तो मम्मीपापा को भी मंजूर,’ मैं ने जवाब दिया.

काकुल ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और अपनी आंखें बंद कर लीं. शायद बंद आंखों से वह एक सजीसंवरी दुलहन और उस का दूल्हा देख रही थी. इस से पहले उस ने कभी मुझ से शादी की इच्छा जाहिर नहीं की थी. बस, ऐसा लगा, जैसे काकुल दबेपांव चुपके से बिना दरवाजा खटखटाए मेरे घर में दाखिल हो गई हो.

मैं ज्यादा व्यस्त होता गया, सुबह नौकरी और शाम को एक ट्रेनिंग क्लास. पर दिन में काकुल से फोन पर बात जरूर होती. अब मैं आने वाले दिनों के बारे में ज्यादा गंभीरता से सोचता कि इस रिश्ते के बारे में मेरे पापामम्मी और उस के पापा, कैसी प्रतिक्रया जाहिर करेंगे. हम एकदूसरे से निभा तो पाएंगे? कहीं यह प्रयोग असफल तो नहीं होगा? ऐसे ढेर सारे सवाल मुझे घेरे रहते.

एक दिन काकुल ने फोन कर के बताया कि उस के अब्बा के दोस्त का बेटा जावेद, कुछ दिनों के लिए पेरिस आया हुआ है. हम कुछ दिनों के लिए आपस में मिल नहीं पाएंगे. इस का उसे बहुत रंज रहेगा, ऐसा उस ने कहा.

धीरेधीरे काकुल ने फोन करना कम कर दिया. कभी मैं फोन करता तो काकुल से बात कम होती, वह जावेदपुराण ज्यादा बांच रही होती. जैसे, जावेद बहुत रईस है, कई देशों में उस का कारोबार फैला हुआ है. अगर जावेद को बैंक से पैसे निकालने हों तो उसे बैंक जाने की कोई जरूरत नहीं. मैनेजर उसे पैसे देने आता है. उस की सैक्रेटरी बहुत खूबसूरत है. उस का इसलामाबाद में खूब रसूख है. वह कई सियासी पार्टियों को चंदा देता है. जावेद का जिस से भी निकाह होगा, उस का समय ही अच्छा होगा.

मुझे बहुत हैरानी हुई काकुल को जावेद के रंग में रंगी देख कर. मैं ने फोन करना बंद कर दिया.

जैसे बर्फ का टुकड़ा धीरेधीरे पिघल कर पानी में तबदील हो जाता है, उसी तरह मेरा और काकुल का रिश्ता भी धीरेधीरे अपनी गरमी खो चुका था. रिश्ते की तपिश एकदूसरे के लिए प्यार, एक घर बसाने का सपना, एकदूसरे को खूब सारी खुशियां देने का अरमान, सब खत्म हो चुका था.

इस अग्निकुंड में अंतिम आहुति तब पड़ी जब काकुल ने फोन पर बताया कि उस के अब्बा उस का और जावेद का निकाह करना चाहते हैं. मैं ने मुबारकबाद दी और रिसीवर रख दिया.

कई महीने गुजर गए. शुरूशुरू में काकुल की बहुत याद आती थी, फिर धीरेधीरे उस के बिना रहने की आदत पड़ गई. एक दिन वह अचानक मेरे अपार्टमैंट में आई. गुमसुम, उदास, कहीं दूर कुछ तलाशती सी आंखें, उलझे हुए बाल, पीली होती हुई रंगत…मैं उसे कहीं और देखता तो शायद पहचान न पाता. उसे बैठाया, फ्रिज से एक कोल्ड ड्रिंक निकाल कर, फिर जावेद और उस के बारे में पूछा.

‘जावेद एक धोखेबाज इंसान था, वह दिवालिया था और उस ने आस्ट्रेलिया में निकाह भी कर रखा था. समय रहते अब्बा को पता चल गया और मैं इस जिल्लत से बच गई,’ काकुल ने जवाब दिया.

‘ओह,’ मैं ने धीमे से सहानुभूतिवश गरदन हिलाई. चंद क्षणों के बाद सहज भाव से पूछा, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘मैं आज शाम की फ्लाइट से वापस इसलामाबाद जा रही हूं. मुझे विदा करने एअरपोर्ट पर आप आ पाएंगे तो बहुत अच्छा लगेगा.’

‘मैं जरूर आऊंगा.’

शायद वह चाहती थी कि मैं उसे रोक लूं. मेरे दिल के किसी कोने में कहीं वह अब भी मौजूद थी. मैं ने खुद अपनेआप को टटोला, अपनेआप से पूछा तो जवाब पाया कि हम 2 नदी के किनारों की तरह हैं, जिन पर कोई

पुल नहीं है. अब कुछ ऐसा बाकी नहीं है जिसे जिंदा रखने की कोशिश की जाए.

अलविदा…काकुल…अलविदा…

Hindi Emotional Story

Social Story: कामिनी आंटी- आखिर क्या थी विभा के पति की सच्चाई

Social Story: विभा को खिड़की पर उदास खड़ा देख मां से रहा नहीं गया. बोलीं, ‘‘क्या बात है बेटा, जब से घूम कर लौटी है परेशान सी दिखाई दे रही है? मयंक से झगड़ा हुआ है या कोई और बात है? कुछ तो बता?’’ ‘‘कुछ नहीं मां… बस ऐसे ही,’’ संक्षिप्त उत्तर दे विभा वाशरूम की ओर बढ़ गई.

‘‘7 दिन हो गए हैं तुझे यहां आए. क्या ससुराल वापस नहीं जाना? मालाजी फोन पर फोन किए जा रही हैं… क्या जवाब दूं उन्हें.’’ ‘‘तो क्या अब मैं चैन से इस घर में कुछ दिन भी नहीं रह सकती? अगर इतना ही बोझ लगती हूं तो बता दो, चली जाऊंगी यहां से,’’ कहते हुए विभा ने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘अरे मेरी बात तो सुन,’’ बाहर खड़ी मां की आंखें आंसुओं से भीग गईं. अभी कुछ दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से अपनी इकलौती लाडली बेटी विभा की शादी की थी. सब कुछ बहुत अच्छा था. सौफ्टवेयर इंजीनियर लड़का पहली बार में ही विभा और उस की पूरी फैमिली को पसंद आ गया था. मयंक की अच्छी जौब और छोटी फैमिली और वह भी उसी शहर में. यही देख कर उन्होंने आसानी से इस रिश्ते के लिए हां कर दी थी कि शादी के बाद बेटी को देखने उन की निगाहें नहीं तरसेंगी. लेकिन हाल ही में हनीमून मना कर लौटी बेटी के अजीबोगरीब व्यवहार ने उन की जान सांसत में डाल दी थी.

पत्नी के चेहरे पर पड़ी चिंता की लकीरों ने महेश चंद को भी उलझन में डाल दिया. कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि ‘‘हैलो आंटी, हैलो अंकल,’’ कहते हुए विभा की खास दोस्त दिव्या ने बैठक में प्रवेश किया. ‘‘अरे तुम कब आई बेटा?’’ पैर छूने के लिए झुकी दिव्या के सिर पर आशीर्वादस्वरूप हाथ फेरते हुए दिव्या की मां ने पूछा.

‘‘रात 8 बजे ही घर पहुंची थी आंटी. 4 दिन की छुट्टी मिली है. इसीलिए आज ही मिलने आ गई.’’

‘‘तुम्हारी जौब कैसी चल रही है?’’ महेश चंद के पूछने पर दिव्या ने हंसते हुए उन्हें अंगूठा दिखाया और आंटी की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘विभा कैसी है? बहुत दिनों से उस से बात नहीं हुई. मैं ने फोन फौर्मैट करवाया है, इसलिए कौल न कर सकी और उस का भी कोई फोन नहीं आया.’’ ‘‘तू पहले इधर आ, कुछ बात करनी है,’’ विभा की मां उसे सीधे किचन में ले गईं.

पूरी बात समझने के बाद दिव्या ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह तुरंत विभा की परेशानी को समझ उन से साझा करेगी.

बैडरूम के दरवाजे पर दिव्या को देख विभा की खुशी का ठिकाना न रहा. दोनों 4 महीने बाद मिल रही थीं. अपनी किसी पारिवारिक उलझन के कारण दिव्या उस की शादी में भी सम्मिलित न हो सकी थी.

‘‘कैसी है मेरी जान, हमारे जीजू बहुत परेशान तो नहीं करते हैं?’’ बड़ी अदा से आंख मारते हुए दिव्या ने विभा को छेड़ा. ‘‘तू कैसी है? कब आई?’’ एक फीकी हंसी हंसते हुए विभा ने दिव्या से पूछा.

‘‘क्या हुआ है विभा, इज समथिंग रौंग देयर? देख मुझ से तू कुछ न छिपा. तेरी हंसी के पीछे एक गहरी अव्यक्त उदासी दिखाई दे रही है. मुझे बता, आखिर बात क्या है?’’ दिव्या उस की आंखों में देखते हुए बोली. अचानक विभा की पलकों के कोर गीले हो चले. फिर उस ने जो बताया वह वाकई चौंकाने वाला था.

विभा के अनुसार सुहागरात से ही फिजिकल रिलेशन के दौरान मयंक में वह एक झिझक सी महसूस कर रही थी, जो कतई स्वाभाविक नहीं लग रही थी. उन्होंने बहुत कोशिश की, रिलेशन से पहले फोरप्ले आदि भी किया, बावजूद इस के उन के बीच अभी तक सामान्य फिजिकल रिलेशन नहीं बन पाया और न ही वे चरमोत्कर्ष का आनंद ही उठा पाए. इस के चलते उन के रिश्ते में एक चिड़चिड़ापन व तनाव आ गया है. यों मयंक उस का बहुत ध्यान रखता और प्यार भी करता है. उस की समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे. मांपापा से यह सब कहने में शर्म आती है, वैसे भी वे यह सब जान कर परेशान ही होंगे.

विभा की पूरी बात सुन दिव्या ने सब से पहले उसे ससुराल लौट जाने के लिए कहा और धैर्य रखने की सलाह दी. अपना व्यवहार भी संतुलित रखने को कहा ताकि उस के मम्मीपापा को तसल्ली हो सके कि सब कुछ ठीक है. दिव्या की सलाह के अनुसार विभा ससुराल आ गई. इस बीच उस ने मयंक के साथ अपने रिश्ते को पूरी तरह से सामान्य बनाने की कोशिश भी की और भरोसा भी जताया कि मयंक की किसी भी परेशानी में वह उस के साथ खड़ी है. उस के इस सकारात्मक रवैए का तुरंत ही असर दिखने लगा. मयंक की झिझक धीरेधीरे खुलने लगी. लेकिन फिजिकल रिलेशन की समस्या अभी तक ज्यों की त्यों थी.

कुछ दिनों की समझाइश के बाद आखिरकार विभा ने मयंक को काउंसलर के पास चलने को राजी कर लिया. दिव्या के बताए पते पर दोनों क्लिनिक पहुंचे, जहां यौनरोग विशेषज्ञ डा. नमन खुराना ने उन से सैक्स के मद्देनजर कुछ सवाल किए. उन की परेशानी समझ डाक्टर ने विभा को कुछ देर बाहर बैठने के लिए कह कर मयंक से अकेले में कुछ बातें कीं. उन्हें 3 सिटिंग्स के लिए आने का सुझाव दे कर डा. नमन ने मयंक के लिए कुछ दवाएं भी लिखीं.

कुछ दिनों के अंतराल पर मयंक के साथ 3 सिटिंग्स पूरी होने के बाद डा. नमन ने विभा को फोन कर अपने क्लिनिक बुलाया और कहा, ‘‘विभाजी, आप के पति शारीरिक तौर पर बेहद फिट हैं. दरअसल वे इरैक्शन की समस्या से जूझ रहे हैं, जो एक मानसिक तनाव या कमजोरी के अलावा कुछ नहीं है. इसे पुरुषों के परफौर्मैंस प्रैशर से भी जोड़ कर देखा जाता है.

‘‘इस समय उन्हें आप के मानसिक संबल की बहुत आवश्यकता है. आप को थोड़ा मजबूत हो कर यह जानने की जरूरत है कि किशोरावस्था में आप के पति यौन शोषण का शिकार हुए हैं और कई बार हुए हैं. अपने से काफी बड़ी महिला के साथ रिलेशन बना कर उसे संतुष्ट करने में उन्हें शारीरिक तौर पर तो परेशानी झेलनी ही पड़ी, साथ ही उन्हें मानसिक स्तर पर भी बहुत जलील होना पड़ा है, जिस का कारण कहीं न कहीं वे स्वयं को भी मानते हैं. इसीलिए स्वेच्छा से आप के साथ संबंध बनाते वक्त भी वे उसी अपराधबोध का शिकार हो रहे हैं. चूंकि फिजिकल रिलेशन की सफलता आप की मानसिक स्थिति तय करती है, लिहाजा इस अपराधग्रंथि के चलते संबंध बनाते वक्त वे आप के प्रति पूरी ईमानदारी नहीं दिखा पाते, नतीजतन आप दोनों उस सुख से वंचित रह जाते हैं. अत: आप को अभी बेहद सजग हो कर उन्हें प्रेम से संभालने की जरूरत है.’’ विभा को काटो तो खून नहीं. अपने पति के बारे में हुए इस खुलासे से वह सन्न रह गई.

क्या ऐसा भी होता है. ऐसा कैसे हो सकता है? एक लड़के का यौन शोषण आदि तमाम बातें उस की समझ के परे थीं. उस का मन मानने को तैयार नहीं था कि एक हट्टाकट्टा नौजवान भी कभी यौन शोषण का शिकार हो सकता है. पर यह एक हकीकत थी जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था. अत: अपने मन को कड़ा कर वह पिछली सभी बातों पर गौर करने लगी. पूरा समय मजाकमस्ती के मूड में रहने वाले मयंक का रात के समय बैड पर कुछ अनमना और असहज हो जाना, इधर स्त्रीसुलभ लाज के चलते विभा का उस की प्यार की पहल का इंतजार करना, मयंक की ओर से शुरुआत न होते देख कई बार खुद ही अपने प्यार का इजहार कर मयंक को रिझाने की कोशिश करना, लेकिन फिर भी मयंक में शारीरिक सुख के लिए कोई उत्कंठा या भूख नजर न आना इत्यादि कई ऐसी बातें थीं, जो उस वक्त विभा को विस्मय में डाल देती थीं. खैर, बात कुछ भी हो, आज एक वीभत्स सचाई विभा के सामने परोसी जा चुकी थी और उसे अपनी हलक से नीचे उतारना ही था.

हलकेफुलके माहौल में रात का डिनर निबटाने के बाद विभा ने बिस्तर पर जाते ही मयंक को मस्ती के मूड में छेड़ा, ‘‘तुम्हें मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं है न?’’ ‘‘नहीं तो, ऐसा बिलकुल नहीं है. अब तुम्हीं तो मेरे जीने की वजह हो. तुम्हारे बगैर जीने की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता,’’ मयंक ने घबराते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अगर ऐसा है तो तुम ने अपनी जिंदगी की सब से बड़ी सचाई मुझ से क्यों छिपाई?’’ विभा ने प्यार से उस की आंखों में देखते हुए कहा. ‘‘मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहता था, लेकिन मुझे डर था कहीं तुम मुझे ही गलत न समझ बैठो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं विभा और किसी भी कीमत पर तुम्हें खोना नहीं चाहता था, इसीलिए…’’ कह कर मयंक चुप हो गया.

फिर कुछ देर की गहरी खामोशी के बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए मयंक बताने लगा. ‘‘मैं टैंथ में पढ़ने वाला 18 वर्षीय किशोर था, जब कामिनी आंटी से मेरी पहली मुलाकात हुई. उस दिन हम सभी दोस्त क्रिकेट खेल रहे थे. अचानक हमारी बौल पार्क की बैंच पर अकेली बैठी कामिनी आंटी को जा लगी. अगले ही पल बौल कामिनी आंटी के हाथों में थर. चूंकि मैं ही बैटिंग कर रहा था. अत: दोस्तों ने मुझे ही जा कर बौल लाने को कहा. मैं ने माफी मांगते हुए उन से बौल मांगी तो उन्होंने इट्स ओके कहते हुए वापस कर दी.’’

‘‘लगभग 30-35 की उम्र, दिखने में बेहद खूबसूरत व पढ़ीलिखी, सलीकेदार कामिनी आंटी से बातें कर मुझे बहुत अच्छा लगता था. फाइनल परीक्षा होने को थी. अत: मैं बहुत कम ही खेलने जा पाता था. कुछ दिनों बाद हमारी मुलाकात होने पर बातचीत के दौरान कामिनी आंटी ने मुझे पढ़ाने की पेशकश की, जिसे मैं ने सहर्ष स्वीकार लिया. चूंकि मेरे घर से कुछ ही दूरी पर उन का अपार्टमैंट था, इसलिए मम्मीपापा से भी मुझे उन के घर जा कर पढ़ाई करने की इजाजत मिल गई.’’ ‘‘फिजिक्स पर कामिनी आंटी की पकड़ बहुत मजबूत थी. कुछ लैसन जो मुझे बिलकुल नहीं आते थे, उन्होंने मुझे अच्छी तरह समझा दिए. उन के घर में शांति का माहौल था. बच्चे थे नहीं और अंकल अधिकतर टूअर पर ही रहते थे. कुल मिला कर इतने बड़े घर में रहने वाली वे अकेली प्राणी थीं.

‘‘बस उन की कुछ बातें हमेशा मुझे खटकतीं जैसे पढ़ाते वक्त उन का मेरे कंधों को हौले से दबा देना, कभी उन के रेंगते हाथों की छुअन अपनी जांघों पर महसूस करना. ये सब करते वक्त वे बड़ी अजीब नजरों से मेरी आंखों में देखा करतीं. पर उस वक्त ये सब समझने के लिए मेरी उम्र बहुत छोटी थी. उन की ये बातें मुझे कुछ परेशान अवश्य करतीं लेकिन फिर पढ़ाई के बारे में सोच कर मैं वहां जाने का लोभ संवरण न कर पाता.’’ ‘‘मेरी परीक्षा से ठीक 1 दिन पहले पढ़ते वक्त उन्होंने मुझे एक गिलास जूस पीने को दिया और कहा कि इस से परीक्षा के वक्त मुझे ऐनर्जी मिलेगी. जूस पीने के कुछ देर बाद ही मुझे कुछ नशा सा होने लगा. मैं उठने को हुआ और लड़खड़ा गया. तुरंत उन्होंने मुझे संभाल लिया. उस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद न रहा.

2-3 घंटे बाद जब मेरी आंख खुली तो सिर में भारीपन था और मेरे कपड़े कुछ अव्यवस्थित. मैं बहुत घबरा गया. मुझे कुछ सही नहीं लग रहा था. कामिनी आंटी की संदिग्ध मुसकान मुझे विचलित कर रही थी. दूसरे दिन पेपर था. अत: दिमाग पर ज्यादा जोर न देते हुए मैं तुरंत घर लौट आया. ‘‘दूसरा पेपर मैथ का था. चूंकि फिजिक्स का पेपर हो चुका था, इसलिए कामिनी आंटी के घर जाने का कोई सवाल नहीं था. 2-3 दिन बाद कामिनी आंटी का फोन आया. आखिरी बार उन के घर में मुझे बहुत अजीब हालात का सामना करना पड़ा था. अत: मैं अब वहां जाने से कतरा रहा था. लेकिन मां के जोर देने पर कि चला जा बटा शायद वे कुछ इंपौर्टैंट बताना चाहती हों, न चाहते हुए भी मुझे वहां जाना पड़ा.

‘‘उन के घर पहुंचा तो दरवाजा अधखुला था. दरवाजे को ठेलते हुए मैं उन्हें पुकारता हुआ भीतर चला गया. हाल में मद्धिम रोशनी थी. सोफे पर लेटे हुए उन्होंने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया. कुछ हिचकिचाहट में उन के समीप गया तो मुंह से आ रही शराब की तेज दुर्गंध ने मुझे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. मैं पीछे हट पाता उस से पहले ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे पर अपने ऊपर खींच लिया. बिना कोई मौका दिए उन्होंने मुझ पर चुंबनों की बौछार शुरू कर दी. यह क्या कर रही हैं आप? छोडि़ए मुझे, कह कर मैं ने अपनी पूरी ताकत से उन्हें अपने से अलग किया और बाहर की ओर लपका.

‘‘रुको, उन की गरजती आवाज ने मानो मेरे पैर बांध दिए, ‘मेरे पास तुम्हें कुछ दिखाने को है,’ कुटिलता से उन्होंने मुसकराते हुए कहा. फिर उन के मोबाइल में मैं ने जो देखा वह मेरे होश उड़ाने के लिए काफी था. वह एक वीडियो था, जिस में मैं उन के ऊपर साफतौर पर चढ़ा दिखाई दे रहा था और उन की भंगिमाएं कुछ नानुकुर सी प्रतीत हो रही थीं. ‘‘उन्होंने मुझे साफसाफ धमकाते हुए कहा कि यदि मैं ने उन की बातें न मानीं तो वे इस वीडियो के आधार पर मेरे खिलाफ रेप का केस कर देंगी, मुझे व मेरे परिवार को कालोनी से बाहर निकलवा देंगी. मेरे पावों तले जमीन खिसक गई. फिर भी मैं ने अपना बचाव करते हुए कहा कि ये सब गलत है. मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया है.

‘‘तब हंसते हुए वे बोलीं, तुम्हारी बात पर यकीन कौन करेगा? क्या तुमने देखा नहीं कि मैं ने किस तरह से इस वीडियो को शूट किया है. इस में साफसाफ मैं बचाव की मुद्रा में हूं और तुम मुझ से जबरदस्ती करते नजर आ रहे हो. मेरे हाथपांव फूल चुके थे. मैं उन की सभी बातें सिर झुका कर मानता चला गया. ‘‘जाते समय उन्होंने मुझे सख्त हिदायत दी कि जबजब मैं तुम्हें बुलाऊं चले आना. कोई नानुकुर नहीं चलेगी और भूल कर भी ये बातें कहीं शेयर न करूं वरना वे मेरी पूरी जिंदगी तबाह कर देंगी.

‘‘मैं उन के हाथों की कठपुतली बन चुका था. उन के हर बुलावे पर मुझे जाना होता था. अंतरंग संबंधों के दौरान भी वे मुझ से बहुत कू्ररतापूर्वक पेश आती थीं. उस समय किसी से यह बात कहने की मैं हिम्मत नहीं जुटा सका. एक तो अपनेआप पर शर्मिंदगी दूसरे मातापिता की बदनामी का डर, मैं बहुत ही मायूस हो चला था. मेरी पूरी पढ़ाई चौपट हो चली थी.

करीब साल भर तक मेरे साथ यही सब चलता रहा. एक बार कामिनी आंटी ने मुझे बुलाया और कहा कि आज आखिरी बार मैं उन्हें खुश कर दूं तो वे मुझे अपने शिकंजे से आजाद कर देंगी. बाद में पता चला कि अंकलजी का कहीं दूसरी जगह ट्रांसफर हो गया है.

‘‘महीनों एक लाचार जीवन जीतेजीते मैं थक चुका था. उस बेबसी और पीड़ा को मैं भूल जाना चाहता था. उसी साल मुझे भी पापा ने पढ़ने के लिए कोटा भेज दिया, जहां मैं ने मन लगा कर पढ़ाई की, पर अतीत की इन परछाइयों ने मेरा पीछा शादी के बाद भी नहीं छोड़ा जिस कारण आज तक मैं तुम्हारे साथ न्याय नहीं कर पाया. मैं शर्मिंदा हूं, मुझे माफ कर दो विभा,’’ मयंक की आंखों में दर्द उतर आया. ‘‘नहीं मयंक तुम क्यों माफी मांग रहे हो. माफी तो उसे मांगनी चाहिए जिस ने अपराध किया है. मैं उस औरत को उस के किए की सजा दिलवा कर रहूंगी और तुम्हें न्याय,’’ कह विभा ने मयंक के आंसू पोंछे.

‘‘नहीं विभा, वह औरत बहुत शातिर है. मुझे उस से बहुत डर लगता है.’’ ‘‘तुम्हारा यही डर तो मुझे खत्म करना है.’’ कहते हुए विभा ने मन में कुछ ठान लिया. अगले दिन से विभा ने कामिनी आंटी के बारे में पता करने की मुहिम छेड़ दी. जिस अपार्टर्मैंट में वे रहती थीं, वहां जा कर खोजबीन करने पर उसे सिर्फ इतना पता चल सका कि कामिनी आंटी के पति का ट्रांसफर भोपाल में हुआ है. लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी.

अपने सासससुर को भी उस ने मयंक की इस आपबीती के बारे में बताया, जिसे सुन कर वे भी सिहर उठे. अपने बेटे के साथ महीनों हुए इस शोषण के खिलाफ उन्होंने भी आवाज उठाने में एक पल की देर न लगाई. एक दिन फेसबुक पर कुछ देखते समय विभा के मन में अचानक एक विचार कौंधा. उस ने कामिनी गुप्ता के नाम से एफबी पर सर्च किया. भोपाल की जितनी भी कामिनी मिलीं उन में उस कामिनी को ढूंढ़ना असंभव नहीं पर मुश्किल जरूर था, पर अपने पति को न्याय दिलाने के लिए विभा कुछ भी करने को तैयार थी.

आखिरकार उस की सास ने जिस एक कामिनी की फोटो पर उंगली रखी, विभा उसे देखती ही रह गई. साफ दमकता रंग, आकर्षक व्यक्तित्व की धनी कामिनी आंटी आज 10 साल बाद भी अपनी वास्तविक उम्र से कम ही नजर आ रही थीं. यकीनन उन्हें देख कर इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वे एक संगीन जुर्म में लिप्त रह चुकी हैं.

तुरंत विभा ने उन्हें फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. 2-3 दिन बाद कामिनी आंटी ने विभा की फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार ली. धीरेधीरे उस ने कामिनी आंटी की तारीफों के पुल बांधते हुए उन से मेलजोल बढ़ाया और उन का फोन नंबर ले लिया. अब उस का अगला कदम पुलिस को इस मामले की जानकारी देना था. लेकिन चूंकि सालों पुराने हुए इस अपराध को साबित करने के लिए उन के पास कोई ठोस सुबूत नहीं था. अत: पुलिस ने उन की सहायता करने में अक्षमता जताई.

विभा जानती थी कि अगर सुबूत चाहिए तो उसे कामिनी आंटी के पास जाना ही होगा. उस ने मयंक को समझाया और हौसला दिया कि वह एक बार फिर से कामिनी आंटी का सामना करे. योजना के तहत विभा ने कामिनी आंटी से फोन पर बात करते हुए उन्हें बताया कि वह पर्सनल काम से अपने पति के साथ भोपाल आ रही है. कामिनी आंटी ने उसे अपने घर आने का निमंत्रण दिया.

नियत समय पर विभा ने कामिनी आंटी के घर की बैल बजाई. कुछ पलों के पश्चात उन्हें दरवाजे पर देख वितृष्णा से उस का मुंह कसैला हो गया, पर अपनी भावनाओं पर काबू रख उस ने मुसकुराते हुए हाल के अंदर प्रवेश किया. सहज भाव से कामिनी आंटी ने उस का स्वागत किया. कुछ औपचारिक बातों के मध्य ही मयंक ने दरवाजे पर दस्तक दी. दरवाजे पर एक आकर्षक पुरुष को देख कामिनी आंटी कुछ अचरज से भर उठीं. उन्होंने मयंक पर प्रश्नवाचक निगाह डालते हुए उस का परिचय जानना चाहा. इधर विभा मयंक से अनजान बन वहीं खड़ी रही. मयंक अपना परिचय देता, उस से पहले ही कामिनी आंटी ने उसे लगभग पहचानते हुए पूछा, ‘‘तुम?’’ ‘‘दाद देनी पड़ेगी आप की नजर की, कुछ ही पलों में मुझे पहचान लिया.’’

कामिनी आंटी कुछ और कहतीं उस से पहले ही विभा ने उन से चलने की इजाजत मांग ली. ‘‘तुम यहां किस मकसद से आए हो?

क्या चाहते हो?’’ विभा के जाते ही वे मयंक पर बरस पड़ीं. ‘‘अरे वाह, पहले तो आप मुझे बुलाते न थकती थीं और आज इतना बेगाना व्यवहार.’’ मयंक ने अपने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘अच्छा, तो तुम मुझे धमकाने आए हो. भूल गए सालों पहले मैं ने तुम्हारी क्या हालत की थी?’’ कामिनी आंटी अपनी असलियत पर आ चुकी थीं. ‘‘अच्छी तरह याद है. इसीलिए तो आप के उन गुनाहों की सजा दिलाने चला आया,’’ मयंक ने हंस कर कहा.

‘‘तुम्हें मेरा पता किस ने दिया और क्या सुबूत है तुम्हारे पास कि मैं ने तुम्हारे साथ कुछ गलत किया है?’’ कामिनी आंटी बौखलाहट में बोले जा रही थीं, ‘‘तुम मुझे अच्छी तरह से जानते नहीं हो, इसलिए यहां आने की भूल कर दी. तुम्हारे जैसे जाने कितने मयंकों को मैं ने अपनी वासना के जाल में फंसाया और बरबाद कर दिया.

तुम आज भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. अभी मेरे पास वह वीडियो मौजूद है जिसे मैं ने तुम्हें फंसाने के लिए बनाया था. तुम कल भी मेरा दिल बहलाने का खिलौना थे और आज भी वही हो. अपनी सलामती चाहते हो तो निकल जाओ यहां से,’’ कामिनी आंटी ने चिल्लाते हुए कहा.

‘‘जरूर निकल जाएंगे, लेकिन आप को सलाखों के पीछे पहुंचा कर, कामिनी आंटी,’’ कहती हुई विभा अंदर आ कर मयंक के पास उस का हाथ पकड़ कर खड़ी हो गई. उस के पीछे महिला पुलिस भी थी. किसी फिल्मी ड्रामे की तरह अचानक हुए इस घटनाक्रम से कामिनी आंटी बौखला गईं बोलीं, ‘‘ये क्या हो रहा है? कौन हो तुम सब? मैं किसी को नहीं जानती… निकल जाओ तुम सब यहां से.’’

‘‘इतनी आसानी से मैं आप को कुछ भी भूलने नहीं दूंगी. मैं हूं विभा मयंक की पत्नी. आप की एक नापाक हरकत ने मेरे बेकुसूर पति की जिंदगी तबाह कर दी. अब बारी आप की है. इंस्पैक्टर यही है वह कामिनी जिस ने मेरे पति का शारीरिक शोषण किया था, जिस के सारे सुबूत इस कैमरे में मौजूद हैं,’’ सैंटर टेबल के फूलदान से विभा ने एक हिडेन कैमरा निकालते हुए पुलिस को सौंप दिया, जिसे उस ने कुछ देर पहले ही कामिनी आंटी की नजर बचा कर रख दिया था. अपनी घिनौनी करतूत के सुबूत को सामने देख अचानक ही कामिनी आंटी ने अपना रुख बदला और मयंक के सामने गिड़गिड़ाने लगीं, ‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो, मैं आइंदा किसी के साथ ऐसा नहीं करूंगी. तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, प्लीज मुझे बचा लो.’’

‘‘कुछ सालों पहले मैं ने भी यही शब्द आप के सामने कहे थे और हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाया था, लेकिन आप ने जरा भी दया नहीं दिखाई थी,’’ कामिनी आंटी की ओर घृणा से देखते हुए मयंक ने मुंह फेर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पता चला कि कामिनी आंटी के पति उन्हें शारीरिक सुख देने के काबिल नहीं थे, जिस से न ही वे कभी मां बन सकीं और न ही उन्हें शारीरिक सुख मिला. लेकिन इस सुख को पाने के लिए उन्होंने जो रास्ता अपनाया वह नितांत गलत था.

इधर मयंक का खोया सम्मान उसे वापस मिल चुका था. ‘‘थैंक्यू सो मच विभा,

तुम ने मुझे एक शापित जिंदगी से मुक्ति दिला कर मेरा खोया आत्मविश्वास वापस दिलाया है,’’ कहतेकहते मयंक का गला भर्रा गया. ‘‘अच्छा तो इस के बदले मुझे क्या मिलेगा?’’ शरारत से हंसते हुए विभा ने उसे छेड़ा.

‘‘ठीक है तो आज रात को अपना गिफ्ट पाने के लिए तैयार हो जाओ,’’ मयंक भी मस्ती के मूड में आ चुका था. शादी के बाद पहली बार मयंक के चेहरे पर वास्तविक खुशी देख कर विभा ने चैन की सांस ली और शरमा कर अपने प्रिय के गले लग गई.

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Sad Story in Hindi: नंबर- ऋची की दर्द भरी कहानी

Sad Story in Hindi: ‘‘खिड़कियों में से रातरानी की महक अंदर झंक रही थी और चंद्रमा की रजत रोशनी ऋ ची के मुख पर तैर रही उन तमाम खुशियों को उजागर करने के लिए जैसे बेताब हुई जा रही थी. वह अपने भीतर बह रहे प्रेममय सागर को समेटने का भरसक प्रयास करने में लगी थी, पर खुशियों की लहरें दिल की दीवारों को बारबार लांघ कर उस के तनमन को छू कर रोमरोम पुलकित कर देतीं. मन में हिलोरें ले रही इन लहरों ने उस की रातों की नींद चुरा रखी थी.

ध्यान बारबार मोबाइल की ओर जा रहा था. घर में  मम्मीपापा इस समय तक गहरी नींद में सो जाते हैं. समीर रोज रात 12 बजे फोन कर ही देता. 12 बजे के बाद 1 मिनट भी देर हो जाती तो ऋची का जी ऊपरनीचे होने लगता. मन कई तरह की आशंकाओं से घिर जाता.

ऋची के समंदर में डुबकी लगा ही रही थी कि तभी मोबाइल के रिंगटोन ने चिंताओं की सारी लकीरें मिटा दीं.

वह कुछ कहती उस से पहले ही समीर ने कहा, ‘‘स्वीटहार्ट आज इस नाचीज को तुम्हारी सेवा में आने में थोड़ी देर हो गई.’’

ऋची खिलखिलाते हुए कहने लगी, ‘‘और 5 मिनट भी देर करते समी तो मेरी जानही निकल जाती,’’ वह प्यार से समीर को समी ही कहती.

‘‘डार्लिंग मैं तुम्हारा पीछा आसानी से नहीं छोड़ूंगा… जीएंगे तो साथ मरेंगे तो साथ.’’

‘‘सचमुच? लव यू समी… तुम न होते तो पता नहीं जिंदगी कितनी बेरंग सी लगती.’’

‘‘कितनी, बताओ तो जरा?’’ वह हंसते हुए पूछने लगा.

‘‘जैसे नमक के बिना सब्जी, बरखा के बगैर सावन, बिना चांद की रात, सूरज के बिना दिन और…’’

‘‘बस… बस… अब बस भी करो स्वीटहार्ट. ऋची कैसी दिख रही हो जरा बताओ न प्लीज… तुम्हें देख लूं तो दिन सफल हुआ समझ.’’

‘‘तुम तो हीरो बनने लगे समी, लेकिन इस वक्त मैं फोटो नहीं भेज पाऊंगी…’’

‘‘क्यों तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं?’’

‘‘अपनेआप से भी ज्यादा भरोसा तुम पर है समी, पर अभी नहीं प्लीज. परसों तुम्हारा बर्थडे है, मेरे लिए बहुत स्पैशल डे, बोलो कब और कहां मिलोगे?’’

‘‘ओह ऋची परसों आने में अभी पूरे 32 घंटे पड़े हैं, कल ही मिलते न.’’

‘‘कल मुझे प्रोजैक्ट सबमिट करना है तो कालेज में देर हो जाएगी. कल तो फोन पर बात भी हो पाना मुश्किल लग रहा है…’’

‘‘ऋची चाहो तो जान ले लो पर इतनी बड़ी सजा मत दो, तुम से बात किए बिना दिन काटना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘समी इस प्रोजैक्ट से बहुत से स्टूडैंट्स जुड़े हैं और यह प्रोजैक्ट सफल रहा तो मेरी प्रमोशन तय समझ.’’

‘‘तो क्या मुझ से ज्यादा इंपौरटैंट यह प्रोजैक्ट है?’’

‘‘समी तुम जानते हो घरगृहस्थी की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर है. आए दिन मम्मीपापा का हौस्पिटल चलता रहता है.’’

‘‘अच्छा चलो जैसेतैसे दिल पर पत्थर रख लूंगा, पर परसों पक्का हमें मिलना है. तुम रोज वे कैफे में ठीक शाम 6 बजे आ जाना.’’

‘‘ओके गुड नाइट समी…’’

‘‘क्या ऋची कम से कम कोई इमोजी ही भेज दो जैसे मैं तुम्हें भेजता हूं.’’

‘‘तुम भी न समी…’’ कहते हुए उस ने एक प्यारी सी इमोजी भेजी और सिरहाने फोन रख कर सोने की कोशिश करने लगी.

ऋची दूसरे दिन कालेज में व्यस्त रही. कालेज से लौटते वक्त ही समी के लिए कितने ही गिफ्ट ले आई, हाथ से कार्ड बनाया.

समी को बधाई देने के लिए ऋची बेताब हुए जा रही थी. जैसे ही रात में 12 बजे उस ने समी को वीडियोकौल की, काले रंग के कौड सैट में उस की खूबसूरती और निखर कर आ रही थी. हैप्पी वाला बर्थडे माइ लव… बर्थडे बौय के लिए ऋची हाजिर है,’’ कहते हुए वह खिलखिलाने लगी.

‘‘थैंक्स डार्लिंग. इतना शानदार सरप्राइज आज तो तुम गजब कहर ढा रही हो… जी कर रहा है अभी तुम्हारे पास आ जाऊं,’’ कहते हुए गाने लगा, ‘‘चांद सी महबूबा बांहों में हो ऐसा मैं ने सोचा था हां तुम…’’

‘‘अरे वाह समी तुम तो गाते भी अच्छा हो.’’

बातों का यह सिलसिला आधी रात तक जारी था. फिर ऋची बोली, ‘‘चलो अब सोते है.’’

‘‘अच्छा चलो आज की रात तुम्हारे फोटो के सहारे ही बितानी होगी… अपना फोटो भेजो. और हां तुम जानती ही हो कैसे फोटो भेजना है.’’

‘‘ठीक है बाबा आज तो तुम्हें मना नहीं कर सकतीं, कहते हुए उस ने कितने ही फोटो समी को भेज दिए.

दूसरे दिन समी से मिलने का ख्वाब आंखों में संजो कर वह सो गई .सुबह मम्मी आवाज दे उस से पहले ही ऋची उठ गई. यह देख मम्मी को आश्चर्य हुआ. कहने लगी, ‘‘क्या बात है बेटा आज बड़ी खुश लग रही हो?’’

‘‘हां मम्मी आज मेरी फ्रैंड है न नैनी उस का बर्थडे है. आज उस ने पार्टी रखी है, कालेज से उधर ही जाऊंगी, आने में देर होगी आप चिंता मत करना.’’

‘‘बेटा, तुम्हारे पापा को देर रात तक घूमनाफिरना. यह सब बिलकुल पसंद नहीं. अभी समय कैसा है यह तुम भी अच्छे से जानती हो, तुम समय से आ जाना.’’

‘‘मम्मी अब मैं बड़ी हो गई हूं, प्लीज आप हर बात में रोकटोक न करो तो अच्छा,’’ कहते हुए वह निकल गई. बैग में ही अलग से ड्रैस रख ली थी.

शाम ठीक 6 बजे वह रोज वे कैफे पहुंच गई. समी वहां पहले से ही मौजूद था. उसे देखते ही कहने लगा, ‘‘ओह वैलकम स्वीटहार्ट कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था.’’

‘‘समी मैं ठीक 5 बजे पहुंच गई देखो.’’

‘‘मैं तो सुबह से 5 बजने के इंतजार में 4 बजे ही यहां आ कर बैठ गया, सच में ऋची कुदरत ने तुम्हें बहुत फुरसत से घड़ा है… मेरा बस चले तो दुनियाजहां की खुशियां तुम्हारे कदमों में रख दूं, तुम्हारे साथ रहने में जो मजा है वह दुनिया की किसी चीज में नहीं है सच में.’’

यह सब सुन ऋची के सपनों को जैसे पर लग गए हों.

‘‘अच्छा बोलो क्या और्डर करूं?’’

बर्थडे तुम्हारा है समी… आज की ट्रीट मेरी ओर से.

‘‘स्वीटहार्ट तुम्हें देख कर मेरी तो भूखप्यास सब उड़नछू हो जाती है. सैंडविच और कौफी ले कर लौंग ड्राइव पर चलते हैं. ऋची मना मत करना प्लीज मुझे उम्मीद है आज के दिन तुम मेरा दिल नहीं तोड़ोगी.’’

दोनों काफी और सैंडविच ले निकल पड़े लौंग ड्राइव पर.

‘‘समी कहां जा रहे हैं हम? कितना सुनसान रास्ता है.’’

‘‘ऋची मैं हूं न साथ,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी.

उस का स्पर्श ऋची के मन को लुभा रहा था. बहुत आगे निकलने पर उस ने नदी

किनारे गाड़ी रोकी. और ऋची के हाथों में हाथ डाल कर आगे बढ़ने लगा. दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था.

‘‘समी, काश, वक्त यहीं ठहर जाए और हम यों ही साथ में रहें.’’

‘‘अरे, हम कौन से अलग रहने वाले हैं ऋची तुम्हें तो मैं जीवनभर अपनी पलकों पर बैठा कर रखना चाहता हूं.’’

‘‘कितने अच्छे हो समी तुम,’’ कहते हुए वह समी से लिपट गई.

चारों तरफ अंधेरा घिर आया था ऋची के मोबाइल पर बारबार उस की मम्मी का फोन आ रहा था. ऋची ने मोबाइल साइलैंट मोड पर डाल दिया और कहने लगी, ‘‘समी, अब तुम मुझे घर ड्रौप कर दो काफी देर हो गई है.’’

‘‘ऋची, तुम से अलग रहने का मन ही नहीं करता. ऐसा लगता है हम दूर कहीं भाग चलें जहां बस तुम हो और मैं पर तुम्हें तो हर वक्त जाने की जल्दबाजी रहती है,’’ ऐसा कहते हुए उस ने बाइक स्टार्ट की और स्पीड से ऋची के घर की तरफ बढ़ने लगा.

ऋची के पापा बालकनी में खड़े उसी का इंतजार कर रहे थे और मम्मी घबराहट के मारे बेचैन हुए जा रही थीं.

पापा ने देख लिया ऋची किसी लड़के के साथ गाड़ी पर सट कर बैठी है. जैसे ही उस ने घर में कदम रखा आगबबूला हो गए. ऋची ने अपने पापा का यह रूप पहले कभी नहीं देखा था.

वह भी तमतमाते हुए अपने कमरे में गई और फिर दरवाजा लौक कर गुमसुम सी बैठी रही. मम्मी ने कई बार दरवाजा खटखटाया पर उस ने एक नहीं सुनी. आधी रात जब समी ने फोन किया तो ऐसा लगा किसी दर्द की दवा मिल गई हो.

ऋची कहने लगी, ‘‘समी तुम्हारी बांहों में सचमुच जन्नत है. इस कमरे की दीवारें जैसे मुझे काटती हैं… तुम्हारे बिना कितना अकेलापन महसूस होता है… पता नहीं कब तक ऐसा ही चलेगा.’’

‘‘मैं चाहूं तो कल ही तुम से शादी कर सकता हूं. दिक्कत तो तुम्हें ही है ऋची.’’

‘‘क्या करूं अपने मम्मीपापा की एकलौती बेटी जो हूं. उन की खुशियां मेरे इर्दगिर्द ही हैं. अच्छा समी अब रखती हूं, मम्मी लगातार दरवाजा नौक कर रही हैं.’’

ऋची ने दरवाजा खोला और मुंह फुला कर लेट गई. मम्मी उसे समझने लगीं, ‘‘बेटी, अभी तुम ने दुनिया देखी नहीं, आए दिन अखबारों में दिल दहलाने वाली खबरें पढ़पढ़ कर डर लगने लगा है. वैसे कौन है वह लड़का जिस ने तुम्हें घर छोड़ा और वह करता क्या है, तुम उसे कहां मिली?’’

मम्मी, नैनी की बहन की शादी में मिला था… समीर नाम है उस का… प्राइवेट कंपनी में जौब करता है और हम दोनों एकदूजे को पसंद करते हैं.’’

‘‘पागल हो गई हो ऋची एक मुलाकात में तुम उसे दिल दे बैठी… उस की जातपात, खानदान कैसा है जानती हो तुम. तुम्हारी अक्ल तो ठिकाने है? बेटा थोड़ा समझने की कोशिश करो. तुम हमारी एकलौती बेटी हो हम तुम्हारे लिए जो सोचेंगे वह अच्छा ही सोचेंगे.’’

‘‘मम्मी, आप मेरे हो कर भी मुझे खुश नहीं रख सकते और वह पराया हो कर भी मेरी भावनाओं को सम?ाता है. आप कुछ न कहो वही बेहतर होगा,’’ कहते हुए वह तुनक कर घर से निकल पड़ी.

ऋची के घर से निकलते ही उस की मम्मी स्वयं को बेसहारा महसूस करने लगीं. वे हताश हो कर सोफे पर बैठ गईं.

तभी उस के पापा आए और पूछने लगे, ‘‘क्या हुआ गीता तुम इतनी चिंतित क्यों लग रही हो?’’

‘‘हमें जिस बात का डर था आखिर वही हुआ. हमारी ऋची उस समीर को चाहने लगी है. उम्र की इस दहलीज पर मन में प्यार की भावनाओं का उफान स्वाभाविक है लेकिन यह ब्याह कर चली गई तो हमारा क्या होगा यह सोचा है कभी?’’

‘‘हां तुम सही कह रही हो शादी के बाद वह हमारा ध्यान रख पाएगी इस की कोई गारंटी नहीं है गीता. हमें किसी भी तरह उसे समीर से दूर करना होगा… कोई तरकीब सोचनी होगी.’’

समी कैफे में बैठ ऋची का इंतजार कर रहा था. उसे देखते ही कहने लगा, ‘‘क्या हुआ मेरी जान तुम इतनी मुर?ाई सी क्यों हो? मैं तुम्हें इस तरह नहीं देख सकता माई लव.’’

यह सुन वह भावुक हो रोने लगी, ‘‘समी अब जल्द ही हम शादी कर लेते हैं. मेरे मम्मीपापा तो जैसे मेरे दुश्मन बन बैठे हैं. उन्हें एहसास ही नहीं कि मैं बड़ी हो रही हूं और मेरे भी कुछ अरमान हैं.’’

‘‘ठीक है मैं आज ही बात करता हूं अपने मम्मीपापा से… वैसे उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा ऋची. चलो अब कल मिलते हैं,’’ कहते हुए वह विदा हुआ.

ऋची घर आते ही सीधे अपने कमरे में चली गई तो उस के पीछेपीछे मम्मीपापा भी चल दिए. पापा कहने लगे, ‘‘सौरी बेटा तुम्हें कल बहुत भलाबुरा कह गया. हम चाहते हैं तुम्हारी शादी किसी अच्छे खानदान में हो… देखो बहुत से बायोडाटा तुम्हारे लिए आए हुए हैं. हमें समीर के बारे में पता चला है वह लड़का तुम्हारे काबिल नहीं है… परिवार की आर्थिक स्थिति भी खास ठीक नहीं है.’’

‘‘मम्मीपापा मुझे शादी रुपयों से नहीं इंसान से करनी है. मैं शादी करूंगी तो समी से ही.’’

‘‘देखो बेटी यह जीवनभर का फैसला पलभर में लेना सही नहीं है. 2-4 दिन में ये सारे बायोडाटा देख लो फिर सोचते हैं,’’ कह कर वे अपने बैडरूम में चले गए.

नींद ऋची के आंखों से कोसों दूर थी. इस एकांत में वह बस समी के ही सपने देख रही थी. पानी पीने उठी तो बोतल खाली पड़ी थी. वह रसोई में पानी की बोतल लेने जा ही रही थी कि तभी मम्मीपापा की बातें सुन कर वह वहीं स्तब्ध रह गई.

मम्मी पापा से कह रही थी, ‘‘तुम्हारी पैंशन से केवल हमारी दवाइयां आ पाती हैं यह ब्याह कर चली गई तो हम खाएंगे क्या? ऋची भले ही बेटी है पर इस ने बेटे से बढ़ कर सारी जिम्मेदारियां उठाई हैं. मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा इसे कैसे समीर से दूर करें.’’

‘‘चिंता मत करो गीता कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आएगा. मैं ने जो बायोडाटा उस के रूम में रखे हैं वे सब अमीर घरानों के ही हैं. हां, कुछ लड़के उन्नीस हैं. किसी की उम्र बड़ी तो किसी को कोई छोटीमोटी तकलीफें… उस से ऋची के जीवन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा और हमारा बुढ़ापा भी आराम से कट जाएगा. हमें या तो घरजंवाई मिल जाए या कोई धनाढ्य परिवार, आजकल तो बेटी वाले भी रुपए ले रहे हैं और हम तो मजबूर हैं… क्या करें हमारे पास सहारे के लिए ऋची के अतिरिक्त कोई और विकल्प ही नहीं है. समीर खुद ही साधारण परिवार से है. उस से ब्याह करेगी तो हमें कुछ आर्थिक सहयोग मिलने से रहा यह तो पक्का. इसलिए किसी भी तरह इस के दिलोदिमाग से समीर का भूत निकालना जरूरी है. अब यह मान गई तो ठीक वरना कुछ उलटीसीधी तरकीब सोचनी होगी. चलो अब काफी रात हो चुकी है सो जाओ गीता. सोचते हैं… इस समस्या का समाधान भी मिल ही जाएगा,’’ और फिर चचा पर विराम लग गया.

ऋची का मन क्रोध में धधक रहा था. आंखों से अंश्रुधारा बहने लगी. इतनी ओछी बात समीर से साझ करने में भी शर्म आ रही थी. मन मसोस कर उस ने जैसे जहर का घूंट पी लिया.वह बारबार अपने को कोस रही थी. सारी रात ऊहापोह में करवटें बदलते हुए निकली.

सुबहसुबह समी का मैसेज देख उसे कुछ राहत मिली. उस ने लिखा था कि ऋची मम्मीपापा हमारी शादी को ले कर राजी हो गए हैं. अब तुम जब चाहो हम साथ रह सकते हैं.

ऋची घर में सामान्य बने रहने का स्वांग रचने लगी. वह धीरेधीरे कर अपने सारे जरूरी सामान की पैकिंग करने लगी. उस ने समी को कोर्ट मैरिज के लिए राजी कर लिया था.

ऋची अपने मम्मीपापा से कहने लगी, ‘‘मुझे ट्रेनिंग लेने कालेज से 8 दिन दूसरे शहर जाना होगा… यह ट्रेनिंग ले लूं तो मेरी प्रमोशन आसानी से हो जाएगीं.’’

‘थोड़े दिन ही सही शादी की बला टली’ यह सोच कर मम्मीपापा खुश हो रहे थे.

ऋची ने बैग पैक किया टैक्सी की और सीधे कोर्ट में पहुंची जहां समी पहले से ही मौजूद था.

ऋची का मन आजाद पंछी सा उड़ने लगा. उस के दिल के सूने आंगन में समी ने प्रेम के कई रंग भर दिए थे. इस नए घर में उसे वह सबकुछ मिला जो तमन्ना एक नवविवाहिता की रहती है.

समी औनलाइन मीटिंग में व्यस्त था तभी गृहस्थी ने अपने मोबाइल से अपने मम्मीपापा को मैसेज किया, ‘मम्मीपापा, आप को यह जान कर अफसोस होगा कि आप का लौटरी टिकट यानी मैं हमेशाहमेशा के लिए वह घर छोड़ चुकी हूं. मैं उम्र के 30 साल पार कर चुकी हूं और अपना भलाबुरा सम?ाती हूं. अपने स्वार्थ के लिए जब मातापिता अपनी बेटी की खुशियां कुरबान कर सकते हैं तो जरूरी नहीं मैं भी आप की जिम्मेदारी उठाऊं.’

मैसेज पढ़ते ही ऋची के मम्मीपापा की हालत खराब हो गई. वे बारबार नंबर डायल करने लगे लेकिन गृहस्थी ने मोबाइल स्विच औफ कर दिया. दूसरे दिन नया सिम कार्ड ले कर उस ने अपना मोबाइल नंबर बदल लिया.

एक नए नंबर के सहारे गृहस्थी अपने नए जीवन की शुरुआत कर चुकी थी. एक नया नंबर उसे स्वार्थ की उन तमाम परछाइयों से दूर करने के लिए पर्याप्त था.

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