“नए लोगों के लिए इंडस्ट्री बहुत मुश्किल है”

एक्शन फिल्मों में जबरदस्त भूमिका निभाने वाले अभिनेता विद्युत जामवाल ने मार्शल आर्ट की कठिन विधा ‘कलरिपैतु’ में डिग्री ली है. महज 3 साल की उम्र से ही विद्युत मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी था. इसके बाद उन्होंने करीब 25 शहरों में एक्शन शो किया है.

स्वभाव से विनम्र विद्युत आर्मी ऑफिसर के बेटे होने की वजह से पिता के ट्रान्सफर के साथ-साथ उन्हें हर जगह जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग नहीं छोड़ी. उन्हें बचपन में जैकी चैन की फिल्में देखना बहुत पसंद था. जिसकी भी फिल्म हिट होती, उसे वे अपना आइडियल मान लेते थें. जिसमें शाहरुख खान, अजय देवगन और अक्षय कुमार है. विद्युत ने बॉलीवुड के एक्शन हीरो के रूप में अपनी इमेज बना ली है. उनकी फिल्म कमांडो 2 रिलीज होने वाली है. वे अपनी फिल्म को लेकर बहुत उत्सुक हैं. पेश है उनसे हुई बातचीत के अंश.

इस फिल्म का मिलना कैसे हुआ?

सभी को ‘कमांडो’ का एक्शन इतना पसंद आया कि ‘कमांडो 2’ करना ही था. सबने मेरी एक्टिंग को काफी सराहा था. यह मुझे काफी अच्छा लगा. जब निर्देशक ने यह फिल्म बनाने की सोची तब उन्होंने सबसे पहले मुझे ही फोन लगाया और मैंने हां कर दिया.

इस फिल्म की खास आकर्षण क्या रही? कितना कठिन है ये फिल्म?

ये फिल्म मेरा अपना फ्रेंचाइज है. इसमें एक चुनौती ये रही कि मैं जो भी करूं, बेहतर करूं. इसकी स्टोरी अलग है. मैंने काफी मेहनत किया है. ‘कमांडो’ की पहली फिल्म में निर्माता ने एक नए लड़के को लिया था, जिसमें मुझे प्रूव करना था, लेकिन कमांडो 2 की कहानी से लेकर अभिनय सब अच्छी लगी थी. इसमें स्टंट बहुत कठिन है, इतने बड़े शरीर को लेकर एक खिड़की से निकलने वाला दृश्य बहुत कठिन था.

एक फिल्म के बाद दूसरी कितनी सफल होगी ये पता नहीं, ऐसे में आप कितना प्रेशर महसूस कर रहे हैं?

कमांडो 2 को बनाने में मैंने काफी समय लिया है. इसकी वजह यह थी कि ये फिल्म पहली फिल्म से भी बेहतर हो. मैंने मेहनत भी काफी की है, उम्मीद है फिल्म सफल होगी.

आर्मी बैकग्राउंड से होने की वजह से इस तरह की फिल्मों में काम करना कितना सहज होता है?

नॉन फिल्मी लोगों के लिए ये इंडस्ट्री बहुत मुश्किल है. आर्मी बैकग्राउंड से होने की वजह से मैं देश के हर कोने में गया हूं. इससे एक्सपोजर बहुत मिला है. फौजी का बेटा होने से आप हर तरह की परिस्थिति में अपने आप को सेट केर लेते है.

आप इंडस्ट्री की दिनचर्या में अपने आप को कैसे फिट करते हैं, क्योंकि आप फौजी बैकग्राउंड से हैं और मार्शल आर्ट को सीखा है?

मेरे लिए अनुसाशन का मतलब थोड़ा अलग है. मैं अपनी दिनचर्या को अपने हिसाब से तैयार कर लेता हूं. काम सब करता हूं, कुछ छूटता नहीं है. मेरे फादर नहीं हैं, एक मां है, जिनसे मैं काफी ‘क्लोज’ हूं. वह लन्दन में रहती हैं, लेकिन मैं दिन में एक से दो बार उनको फोन अवश्य कर लेता हूं.

आपको फिल्म इंडस्ट्री में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

मुझे हमेशा से कठिन काम पसंद है. मैं एक मार्शल आर्टिस्ट हूं और कमांडो के दौरान निर्माता विपुल शाह ने मुझे चुना, क्योंकि उन्हें पता था कि इस चरित्र में में फिट बैठूंगा. जब आप नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से होते है तो इतनी कैपिबिलिटी आपमें होनी चाहिए कि लोग आप को देखें. यूथ इस इंडस्ट्री में आने के लिए कुछ सिखते हैं. मैं तो पहले से ही सीखा हुआ था. फिल्मों में आने का भी उद्देश्य भी यही था. मेरी मां की संस्था केरल में है, जहां मार्शल आर्ट सिखाया जाता है. वही मैं पला-बड़ा हूं.

कितना संघर्ष था?

यहां काम मिलना मुश्किल है. हर बार प्रूव करना पड़ता है. अगर आप को मौका मिल भी जाए, तो आपको सपोर्ट नहीं मिलता. मैंने सोचा था कि मैं सूरज की तरह इतना चमकूं कि लोग मुझे ‘इग्नोर’ ना करें.

‘कमांडो’ के दौरान भी मैंने बिना वायर और केबल के एक्शन किया. कमांडो 2 में मैंने सब कुछ अपने आप किया और सोचा कि हर बार मैं दर्शकों को इतना कुछ दे दूं कि वे मेरी फिल्म को अवश्य देखें. ये आत्मविश्वास मुझे मेरे परिवार और गांव से मिला. मुझे 4 साल की मेहनत के बाद फोर्स फिल्म मिली थी.

अभी आप अपने आप में कितना बदलाव महसूस करते हैं?

मैं बहुत विनम्र हो गया हूं. सब लोग आपके बराबर नहीं, आपसे काफी ऊपर हैं. हेयर स्टाइलिस्ट, ड्रेस डिजाइनर जैसे कोई भी हो, उन्हें अपने क्षेत्र में महारथ हासिल है, इसलिए मैं सबकी इज्जत करता हूं.

ग्लैमर वर्ल्ड में अपने आपको ग्राउंडेड रखना कितना मुश्किल होता है?

जो लोग सफलता के बाद बदल जाते हैं, मुझे लगता है कि वे सफलता के लिए तैयार नहीं होते. मुझे पता है मुझे सफलता मिलेगी, इसलिए मुझमें कोई बदलाव नहीं आएगा. आज के जमाने में लोग बहुत होशियार हैं और वे सही और गलत इंसान के फर्क को अच्छी तरह समझते हैं. आपको ईमानदार होना जरुरी है. मुझे नॉर्मल लोग बहुत प्रभावित करते हैं.

फिटनेस के लिए आप क्या करते है?

मैं पर्सनली विश्वास करता हूं कि आप सब कुछ लिमिट में खाएं, क्योंकि शरीर के लिए सब जरुरी है. मैं सब खाता हूं. रोज 15 मिनट वर्कआउट करता हूं. कोई डाइट फॉलो नहीं करता.

फिल्मों में आने की चाहत रखने वाले यूथ के लिए क्या मेसेज है?

सिर्फ ‘गुड लुकिंग’ लड़के या लड़की से कुछ नहीं होता. यहां आने के लिए किसी एक टैलेंट की आवश्यकता होती है. उसमें आपको इतना अच्छा होना है कि हिन्दुस्तान में वैसा कोई न हो. अगर ऐसा नहीं है, तो आप मुंबई मत आइये.

अपनी आत्मकथा लिखेंगी सुष्मिता सेन

इन दिनों बॉलीवुड में आटोबॉयोग्राफी लिखने की लहर चल रही है. हाल ही में ऋषि कपूर जी ने ‘खुल्लम खुल्ला’ नामक किताब लिखी है जिसमें उन्होंने अपने जीवन के कुछ राज बताए हैं. मिस यूनिवर्स रह चुकीं सुष्मिता सेन भी कुछ ऐसा ही करने जा रही हैं. 

हालांकी सुष्मिता फिल्मों में इन दिनों कम नजर आ रही हैं, लेकिन वे व्यस्त बहुत हैं. खबर है कि अब सुष्मिता सेन आटोबॉयोग्राफी लिखने जा रही है. ज्यादातर सेलिब्रिटीज अपने किस्से सुनाते हैं और लेखक लिखता है, लेकिन सुष्मिता खुद ही अपनी जीवनी लिखना चाहती हैं. 

सूत्रों के अनुसार सुष्मिता अपनी आटोबॉयोग्राफी में बातों को बढ़ा-चढ़ा कर नहीं लिखेंगी. वे ऐसी किताब लिखना चाहती है जिससे लोगों को किताब पढ़ कर प्रेरणा मिले, ऐसी बातों को वे अपनी किताब में महत्व देना चाहती हैं जिन बातों से लोग प्रेरित हो सकें. सुष्मिता सेन जितनी बिंदास हैं उनकी किताब में भी उतनी ही बिंदास बातें होंगी.

सुबह के नाश्ते में बनाएं वेज ऑमलेट

सुबह के वक्त किसी भी घर के किचन में जाकर देखिए. भागमभाग के अलावा कुछ और नजर नहीं आएगा. किसी को स्कूल जाने की जल्दी होती है, तो किसी को ऑफिस. ऐसे में आप सबकी डिमांड कैसे पूरी करें? क्यों न अपनी परेशानी को कुछ कम करने के लिए नाश्ते में कुछ ऐसा तैयार किया जाए, जो जल्दी तैयार हो जाए और टेस्टी भी हो. तो आज नाश्ते में बनाइए वेज ऑमलेट.

सामग्री

बेसन- 1 1/4 कप

चावल का आटा- 3/4 कप

नमक- स्वादानुसार

धनिया पत्ती (बारीक कटी)- 2 चम्मच

गाजर (कद्दूकस किया हुआ)- 1 चम्मच

फ्रेंच बीन्स (बारीक कटे)- 5

आलू (बारीक कटा)- 1

प्याज (बारीक कटा)- 1

हरी मिर्च (बारीक कटी)- 1

टमाटर (बारीक कटा)- 1

जीरा पाउडर- 1/ 2 चम्मच

गरम मसाला- 1/ 4 चम्मच

लाल मिर्च पाउडर- जरा-सा

तेल तलने के लिए

विधि

सभी कटी हुई सब्जियों को एक बरतन में डालकर अच्छी तरह से मिलाएं. फिर उसमें बेसन, नमक, चावल का आटा, गरम मसाला, लाल मिर्च पाउडर और इतनी मात्रा में पानी डालें, जिससे पेस्ट तैयार हो सके.

तवा गर्म करें और उस पर वेज आमलेट के इस मिश्रण को डालें. मिश्रण को तवा के बीचोंबीच डालें. फिर वेज आमलेट के ऊपर तेल डालें. जब यह एक तरफ से अच्छी तरह फ्राई हो जाए तो उसे पलटें और दूसरी ओर भी अच्छी तरह से फ्राई करें. गरमागरम सर्व करें.

हेयरस्टाइल चेंज करने से पहले…

अक्सर ही हम बालों का या तो एक ही स्टाइल में कटवाते हैं या फिर जो ट्रेंड चल रहा होता है उसे ट्राई कर लेते हैं. कुछ कॉमन हेयर कट तो सब पर अच्छे लगते हैं लेकिन कुछ हेयरस्टाइल ऐसे होते हैं जो किसी दूसरे पर तो अच्छे लगते हैं पर खुद कटवाने पर चेहरे को नहीं जंचते.

अगर आप भी ऐसी ही समस्या से गुजर रही हैं तो यहां जानिए फेस शेप के अनुसार कैसा हो आपका हेयरकट.

गोल चेहरा

अगर आपका चेहरा गोल है और बाल लंबे तो आपको अपने बालों की लंबाई कंधों तक ही रखना चाहिए. इससे आपके चिकबोन्स उभरे हुए नजर आएंगे. आप चाहें तो वेव्स सा कर्ली हेयर भी रख सकती हैं लेकिन हेयर कट लेयर या पिरामिड शेप में ही जंचेगा.

अंडाकार या ओवल शेप

अगर आपका चेहरा ओवल शेप या अंडाकार है तो घुंघराले बाल आप पर हमेशा अच्छे लेगेंगे. वेव्स या लेयर में हेयर कट करवाना आपको परफेक्ट लुक देगा. लंबे या स्ट्रेट बाल आप पर बिल्कुल भी सूट नहीं करेंगे इसलिए यह स्टाइल करवाने से बचें.

चौकोर

यदि आपका चेहरा चौकोर है और बाल स्ट्रेट हैं तो आपके लिए भी शोल्डर लेंथ यानी कंधे तक लंबे बाल सबसे ज्यादा सूट करेंगे. इसके साथ ही फोरहेड तक फ्लेक्स रखना आपके माथे की चौड़ाई को कम करेगा.

हार्ट शेप

हार्ट शेप वाले फेस पर कोई भी हेयर कट अच्छा लग सकता है. आप अपनी पसंद का कोई भी नया स्टाइल चुन सकते हैं जो ट्रेंड में हो. मल्टी लेयर स्टाइल भी आप ट्राई कर सकती हैं.

कुख्यात बनती औरत

‘बबली और बंटी’ से प्रसिद्ध हुई बबली की जैसी और कहानियां आजकल सुर्खियां बनने लगी हैं. पहले भी औरतों को अपराधों में शामिल किया जाता था पर पहले वे अपनेआप में गैंग की मालिक नहीं बन पाती थीं. अब वे अपराध का कखग सीखपढ़ कर खुद के गैंग बनाने लगी हैं और खुद ही प्लानिंग कर के धावा बोलने लगी हैं.

शहद की मक्खी की तरह शहद के छत्ते की तरफ आकर्षित करने वाली इन लड़कियों को हनीट्रैप रैकेट चलाने में पकड़ा जाने लगा है. अब एक बड़ी सामाजिक समस्या उभर रही है कि इन स्वतंत्र, स्मार्ट और सैक्सी अपराधिन औरतों को कैसे पहचाना जाए और किस तरह से निबटा जाए.

औरतों के लिए बने सुरक्षात्मक कानून, जैसे बलात्कार, छेड़खानी, पीछा करना, ब्लैकमेल करना, विवाह बाद प्रताड़ना करना आदि अपराधिन औरतों के कानूनी हथियार बन गए हैं. उन के लिए बिना छुरीचाकू चलाए अब आम ही नहीं, अच्छेभले, होशियार, खास लोगों को भी फंसाना संभव हो रहा है. आज शिकार ढूंढ़ने के लिए इंटरनैट मौजूद है जिस पर फेसबुक अकाउंट बनाने के साथ असलीनकली फोटो दिखा कर एकसाथ दसियों को फरेब में जकड़ा जा सकता है. यदि कोई मोटी आसामी मिल जाए तो उसे धमकियां दे कर आसानी से लूटा जा सकता है.

हाल में हौंगकौंग में पैदा हुई एक युवती को राजस्थान के छोटे शहर कोटा में पकड़ा गया. उस ने एक रईस युवक से विवाह कर लिया था पर फिर उसे ब्लैकमेल कर रही थी.

औरतों का अपराधीकरण देश के लिए काफी खतरनाक होगा क्योंकि हमारे यहां जहां एक तरफ उन्हें पूजने का स्वांग रचा जाता है वहीं दूसरी ओर उन्हें पैर की जूती के नीचे रखा भी जाता है. ऐसे में सक्षम, पुरुषों से तेज औरत के अस्तित्व, सोच और व्यवहार पर खतरा मंडरा रहा है.

कोई भी समाज आज तक अपराधों को समाप्त नहीं कर पाया है और चाहे जेल हो या मृत्युदंड, पुरुष अपराध करते ही हैं, औरतें उन का पूरा साथ देती हैं चाहे वे सामने न आती हों. अब, वे सरगना बन रही हैं क्योंकि बराबरी के अवसरों, शिक्षा, घरों की चुनौतियों और जिंदादिली से रह पाने की लालसा अब हर दिन बढ़ रही है. अब उन की सोच है कि अगर बातों, जिस्म और मुसकानों से रिवौल्वरों का काम लिया जा सकता है तो वे क्यों न लें?

यह समस्या ऐसी है जिस का हल आसान नहीं है क्योंकि हमेशा डर रहेगा कि अति करने पर कहीं बेगुनाह, बेजबान, कमजोर औरतें पिस न जाएं. कठिनाई यह है कि नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, विकास के मोहपाश में पड़ी सरकार को घरघर की इस समस्या पर दिमाग लगाने की न फुरसत है और न ही वह जरूरत महसूस करती है.

जेएनयू की सोच पर कट्टर दृष्टि

कट्टरपंथी पौराणिकवादियों की आंखों में दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय किरकिरी बना हुआ है और अगर यह सरकार लंबे दौर तक चली तो यह विश्वविद्यालय गुरुकुल कांगड़ी जैसा बन जाएगा. कन्हैया कुमार का मामला न तो पहला था और न अंतिम. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की वामपंथी, उदार, धर्मविरोधी और सरकारविरोधी नीतियों ने उसे एक अलग आभा दे रखी थी. ये नीतियां हर सरकार को खटकती रही हैं. कांग्रेस इन को सहन करती रही है जबकि भारतीय जनता पार्टी इन्हें ईशनिंदा और देशविरोधी मानती है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जिसे जेएनयू भी कहा जाता है, में जिस तरह से तरहतरह के विचारों को खुलेआम व्यक्त करने की छूट रही है, वैसी हर विश्वविद्यालय में होनी चाहिए. अफसोस, अधिकांश विश्वविद्यालयों में केंद्र या राज्य सरकार समर्थित पार्टियां छात्रसंघों पर कब्जा कर लेती हैं और फिर विश्वविद्यालय को सत्तारूढ़ दल के लिए भीड़ मुहैया कराने व युवा कार्यकर्ता तैयार करने की फैक्टरी बना डाला जाता है.

भाजपा के नेतृत्व में केंद्र पर काबिज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार इस विश्वविद्यालय को मिलने वाली आर्थिक सहायता, यहां के प्रवेश के नियमों में बदलाव, होस्टलों में दाखिले के नियम बदलने के साथ अनुशासन के नाम पर तरहतरह के नियम बना कर यह कोशिश कर रही है कि यहां नए स्वतंत्र विचारों की जगह न हो.

किसी भी समाज की उन्नति तब होती है जब वहां के ठहरे पानी को खंगाला जाता रहे और वहां नए पानी का स्वागत हो. नए विचार, भिन्न लोग, खुली बहस, दूसरों की राय से अलग होने की

आजादी आदि दकियानूसी सोच से बाहर निकालती हैं पर यह आजादी सत्ताधारियों को खतरा लगती है चाहे वह पूरे समाज के लिए उपयोगी हो.

हाल ही में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रवेशनीति पर विरोध करने पर वहीं की प्रोफैसर निवेदिता मेनन को अनुशासन भंग करने का नोटिस भेजा गया ताकि उन का मुंह बंद कर दिया जाए. कट्टरपंथी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ऐसे युवाओं को प्रवेश ही नहीं देना चाहते जो आगे चल कर. मौजूदा सरकार की सोच के लिए खतरा बन सकें.

नियमों और सरकारी आदमियों से भरी विश्वविद्यालय की एकेडेमिक काउंसिल अब ऐसे नियम बनाने में जुट गई है जो पीएचडी और एमफिल करने के इच्छुक छात्रों को, उन के इंटरव्यू के आधार पर ही प्रवेश देती है ताकि पहले से ही छंटनी हो सके. इंटरव्यू के बहाने मुखर व दूसरों से असहमत होने वाले छात्रों को छांट दिया जाता है.

यह सिर्फ सरकार के लिए तो अच्छा हो सकता है पर लंबे समय बाद यह निर्णय समाज के लिए घातक ही साबित होगा, इस में जरा भी संदेह नहीं है.

कहानी : अमेरिका मुझे पसंद नहीं

एक कारण हो तो बताऊं कि अमेरिका मुझे क्यों पसंद नहीं? सब से बड़ा कारण तो यह है कि वहां यत्रतत्र थूकने की स्वाधीनता बिलकुल भी नहीं है. जितना प्रतिष्ठित भारतीय व्यंग्य लेखक होगा उस की स्वयं को स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखने की उतनी ही पुरानी आदत होगी.

भारत के अधिकांश वंचितजन इस रोग से ग्रस्त रहते हैं. अमेरिका जाते भी वही हैं जो मूलत: वंचितों की श्रेणी में आते हैं. अर्थ से वंचित या किसी न किसी ऊंची या तकनीकी शिक्षा से वंचित. अब वे क्योंकि शुद्ध भारतीय हैं, सो तंबाकू, गुटका या किमाम वाला पान खाए बिना भारतीय होने का गौरव भी नहीं पा सकते.

इन मुखशुद्धिदाता वस्तुओं को खाने के बाद तसल्ली से, अंशों में कई बार लगातार थूकने का आनंद लेना भी जरूरी होता है. इसलिए यत्रतत्र सड़कों की रंगीनियां बढ़ाते चलते हैं. वैसे अमेरिका स्वयं में ही कम रंगीन नहीं. अब सोचने की बात है कि ऐसे अभिजात्य वर्ग वाले व्यक्ति को भारत में कोई भी थूकने से रोक सकता है?

अनेक पार्टियां ऐसे ही कर्मठ कार्यकर्ताओें को अपने दल में प्रवेश देती हैं, जो प्रतिपक्ष को देखते ही मुंह बनाने लगते हैं और बिना एक भी क्षण गंवाए अविराम थूकना शुरू कर देते हैं. श्रेष्ठ योग्यता यह भी होती है कि पूर्व में उन्होंने कई मंचों पर बिना मुखमार्जन किए सफलतापूर्वक थूका हो.

राजनीतिक दल चुनाव लड़ने का टिकट देने के लिए ऐसे जुझारू योद्धा के लिए एक पांव पर खड़े रहते हैं. अमेरिका में भी टिकट पाने की पात्रता ऐसे योग्य नागरिक को तत्काल मिल जाती है किंतु वह टिकट थोड़े अलग तरह का होता है. न जाने कहां से पुलिस वाला सामने अवतरित हो जाता है और पूरे सम्मान सहित उन से कहता है, सर, आप ने यह जो शौर्य दिखाया है उस के प्रतिफलस्वरूप 100 डौलर का सब से नन्हा टिकट स्वीकार करने का कष्ट करें. नम्र रहते हुए ही वह टिकट देता है.

थूकने वाले राजनीतिज्ञ सज्जन खुश हो सकते हैं कि चलो, अमेरिका में भी टिकट मिल गया, किंतु जब पुलिस वाला निर्देश दे कर कहता है कि 100 डौलर का अर्थदंड अदालत में कल तक जमा करना है तब उन्हें अमेरिकी टिकट का सही अर्थ समझ में आता है. भारतीयों के प्रति यह रवैया मुझे पसंद नहीं. शाही आदतों की स्वाधीनता रखने के लिए भारत स्वर्ग है, अमेरिका नर्क.

अमेरिका में बच्चों के स्कूल के आसपास से 15 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से वाहन दौड़ाया तो टिकट कटते देर नहीं लगती. भारतवर्ष में तो मटरगश्ती करते हुए साइलेंसर निकाल कर, 120 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से कार, बाइक से किसी पदयात्री को टक्कर मारते हुए भी बेरोकटोक निकल सकते हैं. यहां की सरकार पूरी स्वतंत्रता देती है. वहां लेदे कर मामले सुलझाने का कोई रास्ता नहीं होता, इसलिए अमेरिका मुझे पसंद नहीं.

वहां राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों में कहीं जाइए, अमेरिकी लोग लैपटौप पर काम करते हुए या किसी पुस्तक का अध्ययन करते हुए मिलेंगे. उन का विश्वास निंदास्तुति में क्यों नहीं रहता? बातें कम और काम ज्यादा क्यों करते हैं? 20 ग्राम की जीभ चलाने में भी कंजूसी? वे अपनी भाषा में ही क्यों पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं? हिंदी की किताबें तो खैर पढ़ते ही नहीं. वहीं, हम लोगों की उदारता देखिए, हम हिंदी की पुस्तकों को हिकारत की नजर से देखते हैं, कोई भेंट कर दे तो उसे भी पढ़ लेने में अपनी हेठी समझते हैं किंतु अंगरेजी की किताबों को खरीद कर पढ़ने, अंगरेजी बोलने, अंगरेजों जैसे दिखने में गर्व महसूस करते हैं.

अनगिनत इंजीनियरिंग कालेज खुलने का भी यह प्रभाव हुआ कि विद्यार्थी अब हिंदी पढ़ते नहीं हैं, और अंगरेजी उन्हें आती नहीं है.

यहां धैर्य से काम करने वालों की कमी नहीं. हथेली पर खैनी बना कर खाते हैं, कुछ हथेली पर फूंक मार कर दुकानदार के मुंह पर भी उड़ा देते हैं. आरामपसंद लोगों के लिए भावताव की प्रक्रिया एक अच्छा टाइमपास है. भावताव कुछ लोगों की एकमात्र हौबी भी होती है. भले ही भावताव करने में घंटों बीत जाएं, दुकानदार को थका कर ही वे दम लेते हैं. बाद में निर्दोष दुकानदार सिरदर्द से परेशान हो, फिर उस की दवा ले, इस के बजाय ग्राहक को कुछ सस्ता देने में ही अपना हित देखता है.

अब वहां के लिव इन रिलेशनशिप में भी कोई रोमांच नहीं रहा. भारतवर्ष ने इतने कम समय में इंजीनियरिंग के बड़ेबड़े हब बना कर इस दिशा में जो आविष्कार और सफल प्रयोग कर दिखाए हैं, अमेरिका की आधुनिकता बहुत पीछे छूट गई है. युवावर्ग तो खैर कमाल कर ही रहा है, बूढ़े लोगों ने भी लिव इन रिलेशनशिप का डंडा और झंडा उठा लिया है. पश्चिमी देशों के आमजन और कर्मचारी समय के और काम के इतने पाबंद क्यों रहते हैं, भारतीयों के समान मन के राजा क्यों नहीं रहते?

दरअसल, यहां की शान कुछ ऐसी है, कोई कर्मचारियों का, जनता का या श्रमिकों का प्रतिनिधि हुआ नहीं कि किसी भी तरह के काम से रामराम कर लिया. भला आप ही बताएं, स्वाधीनता यहां है या वहां?

– हरि जोशी

“जिंदगी जीने के लिए रिश्ते को बनाए रखना जरूरी”

‘स्टूडेंट ऑफ द ईअर’ से लेकर ‘उड़ता पंजाब’ तक आलिया भट्ट ने महज चार वर्ष के अंदर काफी यात्रा कर ली है. विविधतापूर्ण किरदार निभाकर उन्होंने खुद को इतना बेहतरीन अदाकारा साबित कर दिखाया है कि शर्मिला टैगोर चाहती हैं कि यदि मंसूर अली खान पटौदी पर फिल्म बने, तो उसमें आलिया भट्ट उनका किरदार निभाएं. फिलहाल आलिया भट्ट दस मार्च को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ को लेकर उत्साहित हैं.

पिछली फिल्म उड़ता पंजाब के प्रदर्शन के बाद किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली?

सबसे पहले तो मुझे सर्वश्रेष्ठ अदाकारा का पुरस्कार मिल गया. तमाम लोगों ने मुझसे कहा कि उन्हें खुद नहीं पता था कि पंजाब में ड्रग्स को लेकर हालात इतने अधिक खराब हैं. कुछ लोगों को यह फिल्म आंख खोल देने वाली लगी. लोगों ने कहा कि उन्हें यह जानकर बड़ा धक्का लगा कि इस तरह की भी दुनिया है. लोग इस तरह का व्यवहार भी कर सकते हैं. तमाम लोगों ने महसूस किया कि यथार्थ ने उनका इस फिल्म में परिचय कराया. हकीकत यह है कि हम लोग अपने अपने घरों में कैद रहकर यह कल्पना भी नहीं कर पाते हैं कि ‘उड़ता पंजाब’ में जिस तरह का संसार दिखाया गया है, उस तरह का संसार हो सकता है. कुछ लोगों ने कहा कि वह इतना अंधकारमय संसार नहीं देख सकते. यानी कि इस फिल्म ने लोगों को भावनात्मक स्तर पर छुआ.

छोटे शहरों की लड़कियों की सोच, समझ, एटीट्यूड सब कुछ अलग होती है. इसे समझने के लिए आपने क्या किया?

जब मैं किसी किरदार को निभाना शुरू करती हूं, तो वह किरदार जिस शहर का होता है, मैं मानकर चलती हूं कि मैं उसी शहर की हूं. ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ में मेरा वैदेही का किरदार कोटा जैसे शहर की लड़की है. तो कोटा शहर का अहसास मुझे तब हुआ, जब हम शूटिंग करने कोटा पहुंचे. उससे पहले निर्देशक शशांक खेतान ने जो पटकथा दी थी, उसके आधार पर हमने किरदार को लेकर अपनी तैयारी की थी. पर कोटा पहुंच कर वहां रहते हुए हमने लोंगो को ऑब्जर्व किया कि वह क्या हैं? किस तरह से बातचीत करते हैं? उनकी चालढाल क्या है?

जब हम उन सारी चीजों को ऑब्जर्व कर अहसास करते हैं, तो वह शहर हमें अपना लगने लगता है. मैं तो हमेशा हर निर्देशक से कहती हूं कि हमें हमेशा वास्तविक लोकेशन पर जा कर फिल्म को फिल्माना चाहिए. इससे हमें वास्तविक शहर को अहसास करने का अवसर मिलता है और वह हमारे किरदार में निखार लाता है. फिल्म के किरदार वास्तविक लगने लगते हैं अन्यथा बने बनाए सेट पर शूटिंग करने से फिल्म के सारे किरदारों में बनावटीपन लगता है.

वैदेही छोटे शहर की लड़की है, पर उसकी सोच बड़ी है. महत्वाकांक्षी है. वह जीवन में कत्थक करना चाहती है. आगे बढ़ना चाहती है. वह सिर्फ दुल्हनिया ही नहीं बनना चाहती. ‘हम्टी शर्मा की दुल्हनिया’ आसान दुल्हनिया थी, पर इस फिल्म की दुल्हनिया आसान नहीं है. वह पढ़ने में तेज है. गणित में महारत हासिल है. मुझे लगता है कि इस किरदार के साथ आज की नयी पीढ़ी रिलेट करेगी.

नयी पीढ़ी यानी कि आपकी हम उम्र लड़कियों की जो सोच है, उसमें आपको किस तरह के बदलाव की जरूरत महसूस होती है?

हर लड़की को महत्वाकांक्षी होना चाहिए. आज भी छोटे शहर की लड़कियां यह मानकर चलती हैं कि उन्हें शादी कर घर बसाना है. मेरा अपना मानना है कि शादी करना व घर बसाना भी बहुत जरुरी है. गृहिणी बनना आसान काम नहीं है. पर उससे पहले कुछ करने का प्रयास करने में हर्ज नहीं है. हर लड़की को अपनी इच्छाओं को भी पूरा करना चाहिए. ताकि 80 साल की उम्र में पहुंचने पर आपको इस बात का गम ना हो कि आपने यह काम नहीं किया. मेरी राय में सिर्फ लड़की ही क्यों हर लड़के को भी अपनी एक पहचान, अपना एक अस्तित्व बनाना चाहिए. मगर माता पिता की हर बात को ठुकरा कर नहीं.

वैसे कोटा आईटी सिटी है. जहां तमाम लड़के लड़कियां इंजीनियर व आई टी क्षेत्र में काम करने या कुछ बनने के लिए आते हैं. वह बुद्धिमान भी हैं. उनकी सोच भी सकारात्मक है. इसी वजह से कोटा का आर्किटेक्ट बहुत उम्दा और मॉडर्न है. वहां 7 वंडर्स पार्क है, जहां विश्व के सात अलग अलग प्रसिद्ध चीजों एमीवेचर बनाए गए हैं. इस तरह से अपने शहर को सजाना संवारना आसान भी नहीं होता है. मेरे कहने का अर्थ यह है कि बात छोटे शहर की नहीं, बल्कि बात सोच की है. बात परवरिश की है. आप किस परिवार में पले बढ़े हैं, उसका भी असर होता है. आपके दोस्त किस तरह के हैं, उसका भी असर होता है. लड़का हो या लड़की अपनी सोच के अनुरूप किसकी बातों को ज्यादा महत्व देते हैं, वह भी मायने रखता है.

हमारी फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ में वैदेही के माता पिता कंजरवेटिब यानी कि दकियानूसी प परंपरागत सोच के हैं. पर वह मानते हैं कि घर की लड़कियों को पढ़ाई करनी चाहिए. जबकि बद्री का परिवार कुछ ज्यादा ही कंजरवेटिव है. उसके परिवार में माना जाता है कि लड़के को पढ़ाई लिखायी की बजाय पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बंटाना चाहिए.

आप जिस तरह के किरदार निभा रही हैं, वह किरदार आपकी निजी जिंदगी पर किस तरह से असर डालते हैं?

हर किरदार निजी जिंदगी पर असर डालता है. फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ करने के बाद मुझे एहसास हुआ कि जिंदगी इतनी कठोर भी हो सकती है. इंसान के पास जितना जो कुछ हो, उसी में उसे खुश रहने की आदत डाल लेनी चाहिए. परिवार का मूल्य समझो. फिल्म में मेरे माता पिता नहीं थे, तो मुझे एहसास हुआ कि माता पिता की कितनी कद्र की जानी चाहिए. ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ करते समय मुझे एहसास हुआ कि आपका स्टेट ऑफ माइंड और दिल बहुत मायने रखता है. पर हर बार इंसान को दिल की सुननी चाहिए. अपने आपको कभी कम मत समझो.

आप निजी जिंदगी में रिश्तों को कितनी अहमियत देती हैं?

मेरी लिए हर रिश्ता बहुत मायने रखता है. फिर चाहे वह पारिवारिक रिश्ता हो या दोस्ती हो या मां, बहन या पिता के साथ रिश्ता हो. या मेरी अपनी बिल्ली के साथ ही मेरा रिश्ता क्यों न हो. मैं इस बात पर यकीन करती हूं कि अपने काम को घर पर ले जाने का अर्थ अपनी जिंदगी खत्म कर लेना है. मैं घर पहुंचकर अपने परिवार के साथ जिंदगी बिताना चाहती हूं. काम और पारिवार के बीच सामंजस्य बैठाना बहुत जरूरी है. मैं महत्वाकांक्षी हूं. काम के प्रति गंभीर हूं. वहीं रिश्तों के प्रति भी गंभीर हूं. पर हमें भी शांत दिमाग चाहिए होता है. एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए स्वस्थ रिश्ते को बनाए रखना भी जरूरी है.

आपके करियर पर नजर दौड़ायी जाए, तो पता चलता है कि आप एक गंभीर, तो एक हल्की फुल्की फिल्म करती हैं. यह सब किसी योजना के साथ?

मैं कोई योजना नहीं बनाती. पर हां! अब तक ऐसा होता रहा है. मेरी सोच यही होती है कि मैं अलग अलग तरह की फिल्में करूं. फिर जिंदगी उसी तरह मेरी एडजस्ट होती रहती है. मुझे थ्रिलर करना है. मगर अच्छी कॉमेडी फिल्म का ऑफर आए, तो मना नहीं करूंगी. मैं किसी खास तरह की फिल्म करने को सोच कर खुद को सीमाओं में नहीं बांधना चाहती.

किरदार के अनुसार लुक बदलने व मेकअप से कितना आसान हो जाता है?

मेरा मानना है कि किसी भी किरदार को निभाने में लुक 40 प्रतिशत मदद करता है. ‘उड़ता पंजाब’ में मेरे किरदार के लुक ने आधा काम कर दिया था. बाकी का आधा काम मैंने अपने अभिनय से पूरा किया था. ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ में भी वैदेही का लुक बहुत महत्व रखता है. इसमें आपने देखा होगा कि नाक में नथुनी, आंख में काजल लगाया है. कान में झुमका पहना है. क्योंकि वह छोटे शहर की है. आधुनिक सोच के चलते जींस पहनती है. पर मेकअप वैसा ही करेगी.

सिद्धार्थ मल्होत्रा का दावा है कि उनकी मम्मी आपको बहुत पसंद करती हैं?

चेहरे पर अचानक खुशी के भाव आ जाता है और वह हंसते हुए हमसे पूछती हैं कि सिद्धार्थ मल्होत्रा ने क्या क कहा है? फिर वह कहती हैं देखिए, सिद्धार्थ मल्होत्रा की मम्मी से मेरी बहुत मुलाकात हुई है. पहली मुलाकात तब हुई थी, जब वह फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईअर’ के प्रिमियर पर आयी थीं. इसके अलावा जब वह मुंबई आती है या जब मैं दिल्ली जाती हूं, तो हमारी मुलाकात होती है. हमारे बीच बातें भी होती हैं. लेकिन सिद्धार्थ की भाभी ने मेरी सारी फिल्में देखी हैं और वह मेरे संपर्क में ज्यादा रहती हैं. सिद्धार्थ की भाभी ने मेरे घर के लिए एक आर्ट पीस भी बनाकर दिया है.

कई फिल्मों में दुल्हनिया बन गयीं. निजी जिंदगी में कब बन रही हैं?

देखिए,अभी 24 साल की हूं. मैं सोचती हूं कि मुझे दुल्हनिया बनना है. पर अभी नहीं बनना है. मैं दुल्हनिया तब बनूंगी, जब मैं घर बसाने के लिए तैयार हो जाउंगी. मैं चाहती हूं कि ऐसा ही हर लड़की को सोचना चाहिए. कई बार लड़कियां जल्दी शादी कर लेती है. पर बाद में पछताती है. मेरा मानना है कि शादी को गंभीरता से लेना चाहिए, लोग बहुत हल्के में लेते हैं. इसी के चलते बाद में तलाक हो जाते हैं. शादी जिंदगी भर का कमिटमेंट होता है. यह नहीं भूलना चाहिए. मैं तीस साल के पहले शादी करने के बारे में नहीं सोचती.

तो क्या जल्दी शादी करने की वजह से तलाक होते हैं?

तलाक की वजह कुछ भी हो सकती है. यह दस साल या बीस साल बाद भी हो सकता है. मेरी राय में बदलाव जिंदगी का अटूट सत्य है. जिंदगी में बदलाव स्थाई होता है. यानी कि बदलाव आता ही रहेगा. आपको हर बदलाव के साथ एडजस्ट करना आना चाहिए. पर यह भी मानती हूं कि जब लड़के या लड़की बिना समझे, जल्दी में या महज शारीरिक आकर्षण के चलते शादी करती या करते हैं, तो उनकी शादियां जल्दी टूटती हैं.

आप डायरी लिख रही थीं. क्या नया लिखा?

काफी समय से कुछ लिख नही पायी. हां मैं इंस्टाग्राम पर फोटो डाल देती हूं. मैं खुद फोटो खींचती रहती हूं. मैं तो खूबसूरत चेहरा, खूबसूरत तस्वीर देखकर मुस्कुरा देती हूं.

आपने देखी भाग्यश्री की बेटी अवंतिका की ये तस्वीरें

फिल्‍म ‘मैंने प्‍यार किया’ की अभिनेत्री भाग्‍यश्री को तो सब जानते ही हैं, उन्‍होंने अपनी मासूमियत से लाखों फैंस को अपना दीवाना बना दिया था. लेकिन अब उनकी बेटी अवंतिका ने अपने ग्‍लैमरस अवतार से सबको अपना फैन बना लिया है.

अवंतिका सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव रहती हैं और लगातार अपनी फोटोज शेयर करती रहती हैं. सूत्रों की मानें तो अवंतिका लंदन के सीएएसएस बिजनेस स्कूल में बिजनेस और मार्केटिंग की पढ़ाई कर रही हैं. उनकी कई फोटोज सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं.

अवंतिका के इंस्टाग्राम अकाउंट पर नजर डालें तो यह साफ है कि उन्हें ट्रेवलिंग, डांसिंग, फैशन और दोस्तों के साथ पार्टी एन्जॉय करना काफी पसंद है.

यहां देखें अवंतिका की वायरल तस्वीरें.

 

Khaleesi arriving in Kings Landing

A post shared by Avantika Dassani (@missdassani) on

 

snapchatfilters

A post shared by Avantika Dassani (@missdassani) on

 

#Prohibition got the best of us

A post shared by Avantika Dassani (@missdassani) on

 

Some expressions speak for themselves

A post shared by Avantika Dassani (@missdassani) on

 

// As Is // “Reserving judgement is a matter of infinte hope” -The Great Gatsby, F. Scott Fitzgerlad. One of my most admired writers, book and quote that embodies my lense of breathing and things. Often in life, whether it’s people or situations, our aggregate thought process and preconceived notions dictate the usual course of action, reaction and responses that we create. However, allowing a moment to be absolutely nothing less or more than the very structural fragments that hold it together, can change the very perspective to life, and consequentially life itself. To engulf a moment in its entirety, to very realistically live it beyond its boundaries of ‘people’ defined potential and more. Simply by the thought of not analysing it, altering it, or forming an opnion of it, to just be with it. And carry on to the next and the next, taking in every ounce of magic that this universe weaves together, is way beyond what you and I can perceive it to be and yet it is nothing more than simple what lies in front of you. Read the lines. The spaces in between in them are blank for you to breathe. How often do you find yourself gasping for air, racing with your past and future, it’s a race your not gonna win. So take a glass of wine, Sit by my side, Divulge in your contradictory nature, the trails of your human existence. To be or not to be, is it not truly the question of essence. We are nothing but a bunch of unending ideas, thoughts and experiences. We laugh, We cry We start, We die And in every action we create a symphony of a beautiful rhyme. #TellTaleHearts #HelloSoul #Croatia #Dubrovnik #traveldiaries #quotesonquotes #quoteoftheday

A post shared by Avantika Dassani (@missdassani) on

स्टंट करते नजर आ सकते हैं एक्स बिग बॉस कंटेसटेंट

टीवी का पॉपुलर रिएलटी शो खतरों के खिलाड़ी जल्द ही शुरू होने वाला है. वहीं इस शो के ​मेकर्स इस बार ​कुछ अलग और नया करना चाह रहे हैं. इस बार शो के मेकर्स बेस्ट कन्टेस्टन्ट शो पर लाने की कोशिश कर रहे हैं.

सूत्रों की मानें तो शो के मेकर्स बिग बॉस के विनर प्रिंस नरुला को इस शो में लाने की कोशिश कर रहे हैं. मेकर्स ने सिर्फ मनवीर गुर्जर ही नहीं प्रिंस नरुला को भी शो के लिए अप्रोच किया है.

बता दें कि मनवीर गुर्जर को नीतिभा कॉल के साथ नच बलिए में हिस्सा लेने के लिए अप्रोच किया गया था. मगर मनवीर ने नच बलिए की जगह खतरों के खिलाड़ी शो को चुना. ​वहीं प्रिंस नरुला की बात करें तो वह टीवी सीरियल बढ़ो बहू में काम कर रहे हैं. इस सीरियल में वह लीड रोल में हैं. इसके अलावा वह रिएलटी शो एमटीवी रोडीज में भी नजर आ रहे हैं.

वहीं इस बार शो में हिस्सा लेने वाले कई सेलिब्रिटी के नाम सामने आ रहे हैं. खबरों की मानें तो इस बार शो में गीता और बबीता फोगाट भी इस शो में स्टंट करती नजर आ सकती हैं. इस शो पर सबसे पहले खिलाड़ी अक्षय कुमार बतौर होस्ट नजर आए थे. इसके बाद रोहित शेट्टी ने उनकी जगह ली. रोहित शेट्टी के बाद अर्जुन कपूर इस शो को होस्ट करते हुए दिखे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें