इंसानों की दुनिया में ही इंसानों पर पाबंदी

शुक्रिया अदा करें तकनीक का, कि अब आप बिना एक इंच हिले भी ब्रह्मांड में कहीं भी पहुंच सकते हैं. इंसानों की इस मोह-माया भरी दुनिया में, कब, क्या, क्यों और किसलिए होता है, यह सब सोच और समझ के दायरे के आस-पास भी नहीं है. 2 दिन पहले ही नासा ने पृथ्वी से मिलते-जुलते 7 अन्य ग्रह भी खोज डाले हैं. खोज तो न जाने कहां-कहां तक पहुंच गई है, पर इन खोजों का कई बार कोई तुक नहीं बैठता.

पैसे वाले तो चांद तक घूम कर आ गए और गरीब अपना ही मल गर्म कर के खा रहा है. दुनिया का दस्तूर है, जिस बात के लिए मना करना हो, उसके लिए सीधे ना कह देना. वजह कभी वाजिब होती है, तो कभी बेवजह ही ‘ना’ कह दिया जाता है. अब तो वह दौर है कि ‘ना’ कहना भी अशिष्टता में आता है और लोग हंसकर ही टाल जाते हैं.

यूं तो इस खूबसूरत दुनिया की जितनी भी दाद दी जाए वो कम है. पर कुछ ऐसी जगहें भी हैं इस दुनिया में जहां पहुंचना या तो जानलेवा है या फिर वहां जाना किसी देश की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है. बात को किसी और दिशा में न मोड़ते हुए मुद्दे की बात करते हैं. इंसानों की इस दुनिया में सभी इंसानों को समान हक ही नहीं मिला है. फिर वो किसी रेस्त्रां में खाना हो, या किसी मॉल में घुसना.

आज हम बात करेंगे कुछ ऐसी जगहों के बारे में जहां इंसानों का जाना ही मुमकिन नहीं, हां परिंदे पर जरूर मार सकते हैं. इनमें से कुछ जगहों पर सुरक्षा कारणों से लोगों की आवाजाहि पर पाबंदी है.

1. लासकॉक्स केव्स, फ्रांस

इंसानों पर बंदिशें न लगाई जाएं, तो वे जानवरों को भी पछाड़ सकते हैं. किसी भी आपातकालीन स्थिति में दुकानों में होने वाली चोरियां हो या महिलाओं से छेड़-छाड़, हम किसी भी चीज में पीछे नहीं रहते. अपनी विरासत को बचाने के लिए फ्रांस ने 1963 से इन केव्स में आम लोगों के जाने पर पाबंदी लगा दी है. इन गुफाओं में पाषाण काल की चित्रकारी के अवशेष हैं. ये चित्रकलाएं 17,000 साल से भी पुरानी बताई जाती हैं.

ये फैसला सराहनीय है, वरना भारत के कुछ नमुने रूपी इंसान, वहां जाकर भी ‘आई लव सोनम गुप्ता’ लिखकर आएंगे.

2. वेटिकन सिक्रेट आर्काइव्स, वेटिकन सिटी

वेटिकन सिटी यानि इतिहास का एक अलग पहलू. यहां के आर्काइव्स में पोप और कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों के अलावा किसी भी अन्य व्यक्ति का प्रवेश निषेध है. अंदर क्या रखा है, कौन जाने? पर कुछ लोगों का मानना है कि यहां कई विवादास्पद चीजें रखी हैं. खैर, संसार पर झूठ का पर्दा डालने के लिए सच को छुपाए रखना भी जरूरी है.

3. स्नेक आइलैंड, ब्राजील

वैसे भी इंसानों को इन बिना हाथ-पैर वाले जीवों से डर लगता है. ये जहां मिलते हैं, वहीं इन्हें बेदर्दी से मार डालना नियम है, तो ऐसे द्वीप पर जाने से क्या फायदा, जहां 4000 से भी ज्यादा खतरनाक सांप पाए जाते हैं. ब्राजील सरकार ने यहां जाने पर पाबंदी लगा रखी है. यहां पाए जाने वाले कुछ सांपों का जहर इंसानों के शरीर को गलाने तक की क्षमता रखता है. पर सोचने पर ऐसा लगता है, जैसे सांपों ने भी अपनी एक अलग दुनिया बना ली हो…

4. नॉर्थ सेंटीनेल आइलैंड, भारत

भारत के अंडमान निकोबार समूह के नॉर्थ सेंटीनेल आइलैंड पर आम लोगों के जाने की मनाही है. बंगाल की खाड़ी का यह आइलैंड कोरल रीफ से घिरा हुआ है. पर पर्यावरण की परवाह इंसानों को कब थी? पर जान तो प्यारी है…

यहां पर रहने वाली सेंटीनेलीज प्रजाति ने पूरी दुनिया से खुद को अलग रखा है. यहां अभी तक आधुनिक सभ्यता नहीं पहुंच पाई है. सूत्रों के अनुसार 2008 में दो मछुआरों को यहां के लोगों ने मार डाला था. बातचीत की हर कोशिश का जवाब पत्थर और तीरों से दिया जाता है. शायद यहां के लोगों को आधुनिकीकरण पसंद नहीं है.

5. आरएएफ मेनविथ हिल, इंग्लैंड

रोयल एयर फोर्स स्टेशन इंग्लैंड की सरजमीं पर बसा एक एयर बेस है जिसे अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी ऐजेंसी हैंडल करती है. यह दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रोनिक मोनिट्रिंग स्टेशन है. गोल्फ बॉल की शक्ल में यहां कई बिल्डिंग हैं. कुछ लोगों का कहना है कि यहां से अमेरिका दुनिया भर में होने वाली बात चीत पर नजर रखता है.

6. कोका कोला का रहस्यमयी तहखाना

कोका कोला दुनिया का सबसे प्रिय कोल्ड ड्रिंक है. इसके फॉर्मूले को सन् 1886 में जॉन एस पेंमबर्टन ने बनाया था. 126 सालों से इस फॉर्मूले को कंपनी वालों ने बड़े ही संभालकर रखा था. इस तहखाना को लोग बाहर से देख सकते हैं. इसके चारों तरफ कड़ा पहरा रहता है. कोका कोला ने अपनी रेसिपी को सालों से बचाकर रखा है.

7. पोवेग्लिया, इटली

वेनिस और लिडो के बीच नॉर्थ इटली में बसा है यह आइलैंड. पोवेग्लिया बिमार लोगों को निर्वासित करने की सरकारी जगह है. 1348 में इस संगरोध कॉलनी की तरह बसाया गया और प्लेग से पीड़ित लोगों को यहां निर्वासित कर दिया गया था. सिलसिला यहीं नहीं थमा, जिंदा लोगों को भी मृत समझकर जला दिया गया था. 1922 तक यहां मानसिक रोगियों को लाया जाता था. लोगों के मन में इस जगह के प्रति डर बैठने लगा और सरकार ने भी इसे वीरान ही रखने की घोषणा की.

8. स्वालबार्ड सीड वोल्ट, नॉर्वे

स्वालबार्ड सीड वोल्ट नॉर्वे के स्पिट्सबर्गन आइलैंड में है. यहां कई तरह के बीज संरक्षित कर रखे गए हैं. दुनिया के बिगड़ते हालात को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि जल्द ही दुनिया को इसकी जरूरत पड़ेगी. यहां पर 864,000 तरह के बीज रखे गए हैं. इस वॉल्ट का कोई सरकारी गार्ड नहीं है, पर यह इलेक्ट्रोनिक कोड द्वारा लॉक्ड रहता है. बताया जाता है कि इस वॉल्ट में 1000 साल तक बीज संरक्षित रखे जा सकते हैं.

9. हर्ड आइलैंड वोल्केनो, अंटार्कटिका

दुनिया के अति-दुर्गम जगहों में से एक है यह ज्वालामुखी. बर्फीले अंटार्कटिका के इस निष्क्रिय ज्वालामुखी के आस-पास 41 ग्लेशियर हैं. पर 2000 में हवाई के एक विश्वविद्यालय ने इस निष्क्रिय ज्वालामुखी से लावा निकलते देखा. ज्वालामुखी विस्फोट से होने वाले नुकसान को ध्यान में रखते हुए, आम लोगों का यहां जाना वर्जित है. यहां पहुंचना भी आसान नहीं है और यहां से लौटना भी मुश्किल है.

ये कुछ ऐसी जगहें हैं, जहां इंसानों को जाने की मनाही है. विडंबना यह है कि इंसानों से बचाए रखने के लिए ही कुछ जगहों को ‘नो एंट्री जोन’ बनाया गया है. ठीक ही है, पाषाण कालीन चित्रकारियों को ‘आई लव यू’ की छाप से बचाने के लिए इंसानों से दूर रखना तो जरूरी है.

फर्जी फाइनैंस कंपनियों से रहें सावधान

मथुरा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला विश्वेंद्र सिंह पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश करते करते थक चुका था. आखिरकार उस ने हार मान कर अपना खुद का कारोबार शुरू करने की ठानी.

इस के लिए विश्वेंद्र सिंह को पैसों की जरूरत थी. इस वजह से उस ने कई बैंकों से लोन लेने के लिए बातचीत की. लेकिन उसे वहां भी निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि इस के लिए उसे बैंक में सिक्योरिटी के रूप में अचल संपत्ति या गारंटर की जरूरत थी, लेकिन उस की बेरोजगारी के चलते कोई भी उस का गारंटर बनने को तैयार नहीं था. एक दिन विश्वेंद्र सिंह की अखबार पढ़ते हुए उस में छपे एक इश्तिहार पर नजर पड़ी. ‘गारैंटैड लोन, वह भी मात्र 2 घंटे में. नो फाइल चार्ज. नो गारंटर. खर्चा लोन पास होने के बाद.’

इसी तरह का एक इश्तिहार और था, जिस में मार्कशीट पर किसी भी कारोबार के लिए लोन देने की बात लिखी थी. विश्वेंद्र सिंह को इसी तरह के तमाम इश्तिहार उस अखबार में दिखाई पड़े, जिन में 10 लाख से ले कर करोड़ रुपए तक लोन देने की बात की गई थी. उस ने उस अखबार में दी गई मेरठ की एक फाइनैंस कंपनी, जिस का नाम सिक्योर इंडिया सर्विसेज लिमिटेड और पता अबू प्लाजा लेन का था, को फोन किया.

वहां से फोन रिसीव करने वाले शख्स ने उसे बहुत आसान शर्तों पर लोन देने की बात कही. इस के लिए विश्वेंद्र सिंह को मेरठ बुलाया गया. विश्वेंद्र सिंह जब उस लोन कंपनी के दफ्तर में पहुंचा, तो उस से पहले से बताए गए डौक्यूमैंट की फोटोकौपी व उस का फोटो जमा करवा कर 5 लाख रुपए के लोन की फाइल तैयार की गई और उस लोन की कुल रकम की सिक्योरिटी मनी के रूप मे उस से 30 हजार रुपए मांगे गए. इस पर विश्वेंद्र सिंह चौंका और बोला कि इश्तिहार में तो किसी भी तरह की गारंटी या प्रोसैसिंग फीस लेने की बात नहीं की गई थी, तो फिर यह कैसी गारंटी मनी?

इस पर उस लोन कंपनी की तरफ से कहा गया कि वे उसे 5 लाख रुपए बिना किसी गारंटर के दे रहे हैं और वह 30 हजार रुपए सिक्योरिटी मनी के रूप में नहीं दे सकता. इस के बाद विश्वेंद्र सिंह 30 हजार रुपए देने को तैयार हो गया और उस ने उस कंपनी के खाते में 10 हजार रुपए जमा करा दिए और बाकी के पैसे उस ने नकद जमा किए. इस के एवज में उसे बिना कंपनी का नामपता लिखी एक रसीद थमा दी गई.

इस के बाद सादा कागज पर एक एग्रीमैंट करवाया गया, जिस में यह लिखा गया था कि स्थानीय तहसीलदार से जांच कराने के बाद ही उसे लोन देने की बात की गई थी. उस एग्रीमैंट में यह भी लिखा था कि तहसीलदार की रिपोर्ट अगर उस के पक्ष में होगी, तभी यह लोन दिया जाएगा. इस एग्रीमैंट के बाद विश्वेंद्र सिंह घर चला आया और वह लोन की रकम मिलने का इंतजार करता रहा, लेकिन जब 3 महीने बीत जाने पर भी कंपनी के लोगों ने उस से संपर्क नहीं किया, तो वह सीधे कंपनी के दफ्तर गया और लोन न मिलने की बात कही.

इस पर कंपनी की तरफ से उसे यह कहा गया कि तहसीलदार ने उस के पक्ष में रिपोर्ट नहीं लगाई है, इसलिए अब उसे लोन नहीं दिया जा सकता है. जब विश्वेंद्र सिंह ने तहसीलदार की रिपोर्ट देखने के लिए मांगी, तो उसे यह कर मना कर दिया गया कि यह गोपनीय रिपोर्ट होती है. हम इसे नहीं दिखा सकते. इस के बाद विश्वेंद्र सिंह ने सिक्योरिटी मनी के अपने 30 हजार रुपए वापस मांगे, तो उसे भी कंपनी ने यह कर मना कर दिया वह रकम वापस नहीं की जा सकती है. इस तरह की फर्जी लोन कंपनियों से ठगे जाने का मामला सिर्फ बेरोजगार विश्वेंद्र सिंह का नहीं है, बल्कि हर रोज आसान तरीके से ऐसे लोन लेने के चक्कर में हजारों बेरोजगार ठगी के शिकार होते हैं.

ऐसे पहचानें फर्जी कंपनी

आसान शर्तों पर लोन देने का झांसा देने वाली इश्तिहार कंपनियां ज्यादातर मामलों में फर्जी ही होती हैं, जो भोलेभाले बेरोजगार लोगों को लोन देने के नाम पर शिकार बनाती हैं. ऐसे में अगर आप को आसान शर्तों पर लोन देने का दावा करता कोई इश्तिहार दिख जाए, तो यह समझ लेना चाहिए कि यह महज ठगी करने वाली कंपनी ही होगी, क्योंकि कोई भी कंपनी बिना अपने रुपए की वापसी की गारंटी जांच की पड़ताल किए किसी को भी लोन नहीं देती है.

फर्जी लोन कंपनियों की पहचान के मसले पर पंजाब नैशनल बैंक में मार्केटिंग अफसर अभिषेक पांडेय का कहना है कि कोई भी फाइनैंस कंपनी शुरू करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक, सेबी व सिडबी जैसे वित्तीय संस्थानों से लाइसैंस लेना पड़ता है. ये संस्थाएं लाइसैंस देने के पहले खुलने वाली फाइनैंस कंपनी की कई तरीके से जांचपड़ताल करती हैं.

मानकों पर खरी पाए जाने पर उस कंपनी के लोन कैटीगरी को तय किया जाता है कि वह किस तरह का लोन देना चाहती है. इस में  घर का लोन, गाड़ी के लिए लोन, कारोबार वगैरह की अलगअलग कैटीगरी तय की जाती है. अभिषेक पांडेय के मुताबिक, कोई भी लोन देने वाली कंपनी एक फीसदी  सालाना के न्यूनतम ब्याज पर कर्ज दे कर नहीं चलाई जा सकती है, वह भी कर्ज वापसी के लिए बिना किसी छानबीन व गारंटी के तो यह एकदम मुश्किल है. अगर कोई कंपनी इस तरह के लोन देने का दावा करती है, तो वह धोखाधड़ी व ठगी के मकसद से ही ऐसा कर रही होती है.

इन से ही लें लोन

अगर आप बेरोजगार हैं और किसी तरह का लोन लेना चाहते हैं, तो इस के लिए बैंक व फाइनैंस कंपनी से ही आप का लोन लेना ज्यादा अच्छा होता है. एक वित्तीय सलाहकार मनमोहन श्रीवास्तव के मुताबिक, लोन देने के पहले बैंकों द्वारा लोन लेने वाले के पते की छानबीन कर पूरी गारंटी के साथ ही लोन दिया जाता है. बैंक द्वारा लोन के लिए सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के मुताबिक ही फीस ली जाती है. अगर आप किसी कारोबार के लिए लोन ले रहे हैं, तो बैंक उस के लिए उस कारोबार का प्रोजैक्ट मांगता है. उस प्रोजैक्ट रिपोर्ट के संतुष्ट होने के बाद ही लोन देने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है.

मनमोहन श्रीवास्तव का आगे कहना है कि बैंक द्वारा जो ब्याज की रकम ली जाती है, वह इश्तिहारी लोन कंपनियों के बजाय ज्यादा तो होती है, लेकिन यह भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के मुताबिक ही तय होती है, जिस में धोखाधड़ी का कोई डर नहीं होता है. उन का कहना है कि अगर अखबारों में आसान शर्तों पर लोन देने के इश्तिहार दिखाई दें, तो उस पर ध्यान न दे कर बैंकों से लोन लेने की कोशिश करें. इस लोन को हासिल करने में भले ही समय लगे, लेकिन इस में आप की जेब का पैसा डूबने का डर नहीं रहता है.

कौन हैं ‘ससुराल सिमर का’ की नई सिमर

ये बात तो आप जानते ही हैं कि टेलीविजन शो ‘ससुराल सिमर का’ की मुख्य अभिनेत्री दीपिका कक्कड़ ने ये शो छोड़ दिया है. अब ऐसे में, शो में उनकी जगह लेने के लिए एक नए चेहरे को तलाशा जा रहा था. खबर आ रही है कि टेलीविजन शो ‘ससुराल सिमर का’ में इस रोल के लिए पिछले कुछ सालों से टेलीविजन जगत से दूरी बना चुकी अदाकारा कीर्ति गायकवाड़ का चुनाव हो चुका है.

कीर्ति गायकवाड़ टेलीविजन जगत का एक काफी मशहूर चेहरा रह चुकी हैं. टीवी के बेहद पॉपुलेटर एक्टर शरद केलकर से शादी करने के बाद, कीर्ति छोटे परदे से लगभग गायब ही हो गयी थीं. लेकिन अब सूत्रों की माने तो वे टीवी पर पुन: वापसी करने जा रही हैं.

खबरों के अनुसार कीर्ति लगभग 6 सालों के बाद टेलीविजन पर वापसी करेंगी. वे कुछ समय से किसी खास प्रोजेक्ट के साथ, वापसी की योजना बना रही थीं. इतने लंबे समय के बाद कैमरे का सामना करने जा रहीं कीर्ति गायकवाड़ कहती हैं कि वे थोड़ा नर्वस और थोड़ा उत्साहित भी हैं.

फिलहाल शो अपनी कहानी में मां-बेटी के रिश्ते पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रहा है. कीर्ति कहती हैं कि वे ‘सिमर’ की भूमिका अच्छी तरह से निभा सकेंगी. यह किरदार उन पर सूट करता है और उनके लिए एक दम परफेक्ट है, क्योंकि असल जिन्दगी में भी वे एक मां हैं.

कीर्ति यह भी स्वीकार करती हैं कि सिमर का चरित्र पहले से शो में और लोगों की सोच पर स्थापित हो चुका है. अब चुनौती यह है कि इसे कैसे थोड़ी और ताजगी से भरा जाए.

आशा भोंसले के फेयरवेल का दिल्ली में आखिरी टूर

भारतीय संगीत जगत की मशहूर गायिका आशा भोंसले शनिवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित कर रही हैं. कार्यक्रम आशा जी के वर्ल्ड टूर फेयरवल का हिस्सा है.

अपने इस आखिरी टूर में आशा भोंसले दिल्ली वासियों की भारी भीड़ उमड़ने की उम्मीद कर रही हैं. आशा जी ने बुधवार को ट्वीट कर कहा, ’25 फरवरी को अपने कार्यक्रम की तैयारी कर रही हूं. राजधानी के लोगों की भीड़ जुटने की उम्मीद है’. 
83 वर्षीय आशा भोंसले का अपने प्रशंसकों के लिए यह आखिरी टूर है, इस आयोजन में वह लाइव प्रस्तुति देंगी. 

आशा भोंसले ने भारतीय संगीत उद्योग में पांच दशकों से भी अधिक समय तक अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने ‘जरा सा झूम लू मैं’, ‘तू तू है वही’, ‘चुरा लिया है तुमने’, ‘इन आंखों की मस्ती’ के और ‘दिल चीज क्या है’ जैसे तमाम सुपर हिट गाने गाए हैं.

“मेरे करियर का आकलन करना जल्दबाजी होगी”

आठ वर्ष के अभिनय करियर में अदा शर्मा को जिस मुकाम पर पहुंचना चाहिए था, वहां तक वह नहीं पहुंच पायी. पर उनका दावा है कि वह खुश हैं और अपनी मर्जी का ही काम कर रही हैं. बहरहाल, तीन मार्च को प्रदर्शित हो रही एक्शन प्रधान फिल्म ‘कमांडो 2’ में वह विद्युत जामवाल के साथ नजर आने वली हैं.

2008 से अब तक के अपने करियर को किस तरह से देखती हैं?

जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ रही थी, तब मैंने अभिनय को करियर बनाने का निर्णय लिया. इसकी वजह मैं नहीं जानती. जबकि मेरे परिवार में फिल्मों से कोई जुड़ा हुआ नही है. मैं खुद पढ़ने में तेज थी. मैं राष्ट्रीय स्तर पर दौड़/रनिंग में हिस्सा लेती थी. 200 मीटर में प्रथम पुरस्कार जीते. पर मैंने निर्णय लिया कि मुझे पढ़ाई नहीं करनी है. मुझे पियानो बजाने का शौक है. मैं गाती भी हूं. मैं परंपरागत दक्षिण भारतीय परिवार से हूं. मेरे पिता मर्चेंट नेवी में थे. मेरी मां क्लासिकल डांसर हैं. मेरे नाना व दादा कॉलेज में प्रोफेसर थे. ऐसे में जब मैंने पढ़ाई छोड़ने का ऐलान किया तो वह सब रोने लगे थे कि हमारी घर की लड़की अनपढ़ रहेगी. इसलिए मैंने किसी तरह दसवीं तक की पढ़ाई की.

फिल्मों में आसानी से काम मिल गया था?

जी नही! करीबन एक साल तक मैं ऑडिशन देती रही और रिजेक्ट होती रही. शायद मैं किरदार में फिट नहीं थी या मेरी तकदीर में कुछ और अच्छा लिखा हुआ था. दसवीं कक्षा में पैरेंट्स डे का समारोह था. उसमें आशा पारेख जी अपने सेक्रेटरी के एस संजय आए हुए थे. इसमें मैंने कत्थक डांस किया था, जिसे देखकर उन्होंने कहा था कि बहुत जल्द हम एक साथ बॉलीवुड फिल्म कर सकते हैं. जिसमें कत्थक डांस प्रमुख होगा.

फिल्म ‘‘1920’’ के लिए मैंने ऑडिशन दिया जिसे देखकर विक्रम भट्ट सर ने कहा कि मैं लुक में फिट नहीं होती हूं. हवेली की ठकुराईन के किरदार में उम्र कम लग रही है. मगर मैंने अभिनय सही किया है. पर निर्माता ने मेकअप करके लुक टेस्ट लेने की बात कही. मेरे बाल घुंघराले किए गए. ओठों को चैड़ा करने के लिए मेकअप किया गया, इससे मेरी उम्र बड़ी लगने लगी और फिर मुझे यह फिल्म मिल गयी. इस फिल्म में मुझे बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया गया था. मुझे अपने अभिनय को दिखाने का मौका मिला. इस फिल्म के बाद मैं लगातार काम कर रही हूं. हिंदी में ‘1920’ के बाद मैंने ‘फिर’ के अलावा ‘हंसी तो फंसी’ की. जबकि दक्षिण भारत में तमिल, तेलगू व कन्नड़ की सात फिल्में कर चुकी हूं.

आप बॉलीवुड और दक्षिण भारतीय फिल्मों के बीच भागादौड़ी कर रही हैं?

मैं सिर्फ अच्छी फिल्में कर रही हूं. अब भाषा की कोई बंदिश नहीं रही. वैसे भी सिनेमा भाषा का मोहताज नहीं होता. हिंदी फिल्मों में फिल्म ‘1920’ से मेरी शुरूआत बेहतरीन हुई थी. उसके बाद दक्षिण भारत की तेलगू फिल्मों में भी मेरी शुरूआत बेहतरीन रही. मेरे लिए इससे बड़ा अवसर क्या हो सकता था कि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक पुरी जगन्नाथ मुझे अपनी फिल्म ‘‘हार्ट अटैक’’ में काम दें, वह भी अपनी चिरपरिचित शैली से हटकर पूरी तरह से कपड़ों से ढंकी लड़की के किरदार में. इसलिए अभी मेरे करियर को लेकर कोई आकलन लगाना ठीक नही होगा. मैं अभी भी हिंदी व दक्षिण भारत में कुछ बेहतरीन फिल्में कर रही हूं. मसलन-तीन मार्च को प्रदर्शित हो रही मेरी हिंदी फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ में मुझे देखकर दर्शक मेरी असली अदा से परिचित हो सकेंगे और यह फिल्म मेरे करियर को एक नई गति प्रदान करने वाली है.

फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ के किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

इसमें मैंने हैदराबादी तेलगू लड़की भावना रेड्डी का किरदार निभाया है. जो कि भारतीय गुप्तचर एजेंसी में इनकाउंटर स्पेशलिस्ट हैं. कालेधन की तलाश में वह कमांडो करणवीर के साथ मलेशिया जाती है. वह वहां मसखरी करते हुए नजर आती है. यानी कि इस एक्शन प्रधान फिल्म में ह्यूमर लाने का काम मेरा किरदार करता है. जबकि इस फिल्म में विद्युत जामवाल एक्शन करते हुए नजर आंएगे.

विद्युत जामवाल के साथ काम करने का अनुभव?

मेरी खुशकिस्मती है कि मैं कमांडो जैसी फ्रेंचाइजी का हिस्सा बनी. मैं और विद्युत जामवाल केरला के एक ही छोटे शहर पलक्कड़ से आते हैं. मेरी ही तरह वह भी गैर फिल्मी परिवार से हैं.

आपने जिन निर्देशकों के काम किया है, उनकी तुलना किस तरह करती हैं?

विक्रम भट्ट के साथ मेरी पहली फिल्म थी. उस वक्त तो मैं अभिनय की एबीसीडी नहीं जानती थी. तो मैंने विक्रम भट्ट से ही अभिनय सीखा. फिल्म का किरदार भी काफी कठिन था. वह बहुत संजीदा निर्देशक हैं. मुझे उनके साथ काम करके मजा आया. उनकी फिल्म ‘1920’ हॉरर थी, पर इसमें सेक्स का कोई जगह नहीं थी. पुरी जगन्नाथ तो परदे पर जादू गढ़ते हैं. वह क्रेजी निर्देशक हैं. देवेन भोजानी तो हास्य अभिनेता हैं. उनके निर्देशन में काम करके मजा आया.

आने वाली फिल्में?

मैं बहुत ही ज्यादा अंधविश्वासी हूं, इसलिए मैं फिल्म के प्रदर्शन की तारीख तय होने से पहले फिल्म के बारे में चर्चा नहीं करती. पर कई फिल्में कर रही हूं.

कुछ ऐसे सजाएं अपने होठों पर लिपस्टिक

आपके मेकअप का सहसे महत्वपूर्ण भाग लिपस्टिक है, जिस पर आप खासा ध्यान देना पसंद करती हैं. लिपस्टिक आपकी मेकअप किट का एक बेहद अहम हिस्सा जिससे कि आपके चेहरे पर एक अलग ही निखार आता है. पर समस्या ये है कि आप में से अधिकतर लोगों को लिपस्ट‍िक लगाने का सही तरीका ही मालूम नहीं होता, इसी वजह से आपकी लिपस्टिक ज्यादा देर तक आपके होठों पर टिकी नहीं रह पाती.

लंबे समय तक के लिए अपने होठों पर लिपस्टिक को ठहराने के लिए आपको लिपस्टिक लगाते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए. अगर आप इन कुछ बातों का ध्यान रखेंगी तो लिपस्टिक देर तक आपके होठों पर टिकी रहेगी..

1. लिपस्‍टिक लगाने से पहले अपने होठों पर हल्के रंग की लिप कलर पेंसिल से एक आउट लाइन बना लें. आउट लाइन बनाने के बाद लिपस्ट‍िक लगाना आसान हो जाता है और ऐसा करने से लिपस्ट‍िक लंबे समय तक आपके होठों पर टिकी भी रहती है.

2. अगर आपके होठ फटे हैं ते लिपस्ट‍ि‍क लगाने के बाद वो भी आपके चेहरे पर फटी-फटी नजर आएगी. ऐसे में लिपस्ट‍ि‍क लगाने से परले होंठों को थोड़ा स्क्रब कर लेना चाहिए. वैसे तो समय-समय पर स्क्रब की मदद से ऐपको अपने होठों को साफ करते रहना चाहिए ताकि ये हरदम स्मूद बने रहें. होठों को मॉइश्चराइज करते रहना भी जरूरी है और इसके लिए आप किसी भी विश्वसनीय लिप बाम या ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल कर सकती हैं.

3. लिपस्ट‍िक लगाने के बाद, इसका पहला कोट कर के उसे हल्का थोड़ा सा हल्का कर लेना भी जरूरी होता है, ऐसे करने से आपकी लिपस्टिक होठों पर जम जाती है और इसके फैलने का डर भी नहीं रह जाता. अब इसके बाद आप चाहें तो अपनी इच्छा के अनुसार दूसरा हल्का या गाढ़ा कोट इस पर लगा सकती हैं.

4.  लिपस्ट‍िक लगाने के बाद अपने होंठो पर उंगलियों से हल्का सा पाउडर लगाकर उस पर हल्के से उंगली फेरें. ये पाउडर लिपस्ट‍िक को आपके होठों पर पूरी तरह सेट कर देगा. अब अगर आपको लगता है कि आपकी लिपस्ट‍िक हल्की हो गई है तो आप इसके ऊपर से एक कोट और लगा सकती हैं.

5. लिपस्टिक को फ्रिज में रखना चाहिए. कई सौंदर्य विशेषज्ञों का भी यही मानना है कि लिपस्टिक को फ्रिज में रखने से यह मेल्ट कम होती है और आपके होंठों पर लंबे समय तक के लिए भी टिकी रहती है.

सैरोगेसी : नया कानून कितना सही

सैरोगेसी विशेषज्ञों और गे ऐक्टिविस्ट्स ने पिछले साल 24 अगस्त को यूनियन कैबिनेट के बनाए ड्राफ्ट सैरोगेसी बिल-2016 की आलोचना की है. बिल का उद्देश्य है कि सैरोगेसी व्यवसाय न बन जाए. यह बिल अविवाहित पुरुषों और स्त्रियों को सैरोगेट मां की मदद लेने से रोकने के लिए है, पर इस से बेऔलाद दंपतियों की मुश्किलें भी बढ़ने वाली हैं.

मुंबई के एक प्रसिद्ध डाक्टर जो अपना नाम नहीं बताना चाहते, का कहना है, ‘‘इस से हजारों सैरोगेट मांओं की रोजीरोटी भी छिनेगी और अगर निकट संबंधी ही सैरोगेसी कर सकता है तो विवाहित दंपती के लिए भी इस में मुश्किलें बढ़ेंगी. इस से सिंगल और गे लोगों को बहुत मुश्किल होगी.’’

अभी तक सैरोगेसी में एक स्त्री एक दंपती के लिए या 1 सिंगल पुरुष अथवा स्त्री के लिए बच्चे को जन्म देती है और फिर उस व्यक्ति को बच्चा सौंप देती है. वह सैरोगेसी जिस में सैरोगेट मां और इंश्योरैंस कवरेज के लिए मैडिकल खर्च के अलावा कोई और धन या फीस नहीं ली जाती, उसे जनसेवी सैरोगेसी कहा जा सकता है. यदि सैरोगेट मां अपनी सेवाओं के लिए पैसे लेती है, तो उसे कमर्शियल सैरोगेसी कहा जाता है. नए ड्राफ्ट बिल के अनुसार तो अभिनेता तुषार कपूर अपने पिता बनने का सपना पूरा न कर पाते, शाहरुख खान भी जिन की तीसरी संतान सैरोगेसी से हुई है न कर पाते, क्योंकि केवल बेऔलाद दंपती ही ड्राफ्ट बिल के अनुसार इस के अधिकारी हैं.

क्या है नया कानून

समान अधिकार समाजसेवी अशोक कवि का कहना है, ‘‘हम अदालत में इस बिल को चैलेंज करेंगे. यह व्यक्ति की समानता और स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ है. कानून को धोखा देने के लिए लोग रास्ता ढूंढ़ ही लेंगे. आप कैसे तय कर सकते हैं कि होमोसैक्सुअल पेरैंट्स के द्वारा पाला गया बच्चा समाज के लिए बुरा होगा? नैतिकता की बातें दूर रख कर हमारे देश को सैक्सुअलिटी की बातों का सामना करना आना चाहिए.’’

‘एशिया पैसिफिक इनीशिएटिव औन रिप्रोडक्शन’ के प्रैजीडैंट डा. जयदीप का कहना है, ‘‘यह बिल महिलाओं को बहुत प्रभावित करेगा. उन महिलाओं का क्या होगा जो बच्चा पैदा नहीं कर सकतीं पर उन के पति और परिवार को हर कीमत पर एक वारिस चाहिए? इन महिलाओं का तो फिर तलाक होगा, उन के पति दूसरा विवाह कर लेंगे. पुरुषों की संतान की इच्छा के कारण महिलाओं का शोषण होगा.’’

देश की मशहूर सैरोगेसी विशेषज्ञा डाक्टर नयना पटेल ने बिल को बच्चा न पैदा कर सकने वाले पहले से ही दुखी दंपती पर एक कू्रर मजाक कहती हैं. डा. पटेल पिछले 10 सालों में सैरोगेसी द्वारा 1,120 बच्चों की डिलिवरी करवाई है. ये असिस्टिड प्रैगनैंसी के क्षेत्र में अग्रणी मानी जाती हैं.

डा. पटेल के अनुसार, ‘‘इस नए बिल ने लाखों व्यावसायिक सैरोगेट मांओं की रोजीरोटी को संकट में डाल दिया है. इन स्त्रियों ने सैरोगेट बन कर अपने परिवार को सहारा दिया है. बिल सिर्फ उन्हें ही नहीं, देश की अर्थव्यवस्था को भी प्र्रभावित करेगा. विदेशी दंपती सैरोगेसी के लिए  7 से  11 लाख तक खर्च कर देते हैं और भारतीय दंपती  6 लाख तक.’’

नया बिल यह भी कहता है कि एक स्त्री अपने जीवनकाल में एक बार से ज्यादा सैरोगेट मदर नहीं बन सकती और उसे विवाहित और कम से कम एक स्वस्थ बच्चे की मां भी होना चाहिए. इस के अतिरिक्त विवाह के कम से कम 5 साल के बाद ही दंपती सैरोगेसी की मदद ले सकते हैं. फिर भी बिल उन दंपतियों के लिए, जिन के बच्चे शारीरिक या मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं, छूट देता है.

संकट में रोजीरोटी

2012 में सब से पहले व्यावसायिक सैरोगेसी के लिए गृहमंत्रालय ने भारत में सैरोगेसी ले रहे विदेशियों के लिए कड़े वीजा नियम बनाए थे. उन में कहा गया था कि विदेशी गे दंपती या सिंगल पेरैंट को सैरोगेसी के लिए भारत आने की अनुमति नहीं दी जाएगी. ये लोग भारत सिर्फ मैडिकल वीजा के लिए ही आ सकते थे, टूरिस्ट वीजा पर नहीं.

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है, ‘‘सैरोगेसी से बच्चा चाहने वालों को कानूनी रूप से विवाहित होना चाहिए. सिंगल पेरैंट, लिव इन कपल, होमोसैक्सुअल कपल सैरोगेसी प्राप्त नहीं कर सकते. इस समय लगभग 2,000 सैरोगेसी क्लीनिक हैं.’’

इन दंपतियों में पत्नी की उम्र 23 से 50 साल और पति की 26 से 55 साल होनी चाहिए. यह सोच असल में कट्टर हिंदू धर्म से प्रेरित है जबकि स्वयं हिंदू पुरुषों में नियोग की परंपरा के अनेक उदाहरण हैं, जिन में पत्नी से किसी और पराए पुरुष के शारीरिक संबंध बनाए जाते थे पर पत्नी से पैदा संतान पति की संतान कही जाती थी.

शाहरुख खान जिन की तीसरी संतान अबराम सैरोगेसी से हुई है, का नाम लिए बिना सुषमा स्वराज ने कहा था कि दुख होता है कि जरूरत अब फैशन बन गई है. कई सैलिब्रिटी हैं जिन के 2 बच्चे हैं, 1 बेटा, 1 बेटी, फिर भी वे सैरोगेट बच्चा इसलिए चाहते हैं, क्योंकि उन की पत्नी लेबर पेन नहीं सहना चाहती. यह जरूरत के लिए है, फैशन के लिए नहीं.’’

आईवीएफ में मां के एगसैल को पिता के स्पर्म से लैब में फर्टिलाइज कर के सैरोगेट मां के गर्भाशय में प्रतिरोपित यानी पहुंचाया जाता है. सैरोगेट मां के गर्भाशय में रहने के बाद भी बच्चे का संबंध जेनेटिकली और बायलौजिकली अपने मातापिता से ही होता है, क्योंकि बच्चे के गुण स्पर्म और एगसैल पर निर्भर होते हैं, गर्भाशय पर नहीं. यह मुश्किल काम है पर इस में पैसा अच्छा है.

सैरोगेट मांओं की बढ़ती संख्या पवई हौस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. कविता गुप्ता बताती हैं, ‘‘सैरोगेट मां बनने को तैयार औरतों की संख्या बढ़ती जा रही है, उन में से ज्यादातर 10वीं कक्षा भी पास नहीं होती हैं. ज्यादातर केसेज में उन की कोई अन्य आय नहीं है. या तो उन के पति कुछ काम नहीं करते या उन्हें छोड़ चुके हैं. कुछ ने तो अपने पूरे जीवन में 500 रुपए से ज्यादा देखे ही नहीं हैं. अब वे लाखों कमा सकती हैं और अपने बच्चों को पढ़ा भी सकती हैं.’’

बांद्रा के एक क्लीनिक ने प्रभा देवी, सिद्धिविनायक मंदिर के पास 15 सैरोगेट मांओं के लिए फ्लैट किराए पर लिया है, क्योंकि आईवीएफ सैरोगेसी के केस पिछले कुछ समय से बढ़ते ही जा रहे हैं. शुरू में यहां सिर्फ 4-5 स्त्रियां थीं पर अब यह संख्या 20 तक जा पहुंची है. कुछ ने बच्चों को जन्म भी दिया है. साढ़े  3 लाख फीस ली और अपनेअपने घर चली गईं. यहां ये 15 स्त्रियां गद्दों पर सोती हैं, उन के उचित खानपान, दवा आदि का ध्यान रखा जाता है. साफसफाई के लिए मेड होती है.

सिक्के का दूसरा पहलू भी है

मानखुर्द और गोवंडी में इन सैरोगेट मांओं के एजेंट होते हैं. हां, ये कभीकभी झूठे बहाने भी बनाते हैं. डा. गुप्ता ने बताया, ‘‘पिछले केस में एक स्त्री जो 38 साल की थी, उस ने सैरोगेसी के लिए अपनी उम्र छिपाते हुए कहा कि वह

32 साल की है. इस से प्रैगनैंसी में काफी जटिलताएं हुईं. प्रीमैच्योर डिलिवरी हुई. उस स्त्री ने हम लोगों से झूठ बोला, क्योंकि उसे पैसों की बहुत जरूरत थी. उस के दामाद ने उस की 19 वर्षीय बेटी को घर से निकाल दिया था, क्योंकि वह दहेज नहीं दे पाई थी.’’

इस प्रभा देवी के फ्लैट में रह रही एक स्त्री ने अपने परिवार को बताया था कि वह शहर से बाहर नर्र्स का काम कर रही है. उस के अपने बच्चे को दिल की बीमारी थी और सर्जरी के लिए उसे  2-3 लाख की जरूरत थी.

इस फ्लैट में भीड़ तो है पर सब खुश भी दिखती हैं. 15 स्त्रियां, 6 से ज्यादा बच्चे, क्योंकि कुछ अपने खुद के बच्चे भी साथ लाई थीं.

अपना नाम न बताते हुए इस फ्लैट के एक पड़ोसी कहते हैं, ‘‘हमें इस से कोई समस्या नहीं है पर जब एकदूसरे से लड़ पड़ती हैं तो बहुत शोर होता है.’’

एक सैरोगेट मां तो अब एक एजेंट बन गई है, जिसे हर सैरोगेट मां को ढूंढ़ने के 50 हजार मिलते हैं. वह कहती है, ‘‘मैं 2 बार सैरोगेट मां बनी, अब यह नहीं कर सकती, इसलिए अब एजेंट बन गई हूं. अब इस की बहुत मांग है. आईवीएफ सैंटर एजेंट ढूंढ़ते हैं, यह अच्छा कैरियर है.’’

नया बिल सही नहीं है, पर सरकारें अकसर जनता को बेव कूफ समझ कर कानून बनाती रहती हैं. अच्छेबुरे परिणाम जनता को खुद परखने दो. हर चीज का अच्छाबुरा पहलू होता है. इस कानून का भविष्य में क्या प्रभाव होगा, देखते हैं.

स्वार्थ से उठें ऊपर

रात 10 बजे कावेरी और उस के पति सोमेश सोने की तैयारी कर ही रहे थे कि तभी डोरबैल बजी. कावेरी ने दरवाजा खोला तो अपनी बेटी मिनी की घनिष्ठ सहेली तनु और उस के मम्मीपापा रवि और अंजू को सामने खड़ा पाया. कावेरी और सोमेश ने उन का स्वागत किया. मिनी और तनु दोनों सीए कर रही थीं. 10 दिन बाद ही सीए की परीक्षाएं थीं. रवि भी सीए थे.

हालचाल के बाद कौफी के घूंट भरते हुए रवि ने पूछा, ‘‘मिनी बेटा, सब समझ आ गया है न?’’

‘‘बस एक चैप्टर में कुछ चीजों में बारबार कन्फ्यूजन हो रही है, अंकल,’’ मिनी ने कहा.

 ‘‘अरे, लाओ, आया हूं तो बता देता हूं.’’

‘‘थैंक्स अंकल, अभी बुक लाती हूं,’’ मिनी उत्साहित हो उठी.

तनु भी मिनी के साथ अंदर चली गई.

तभी अंजू ने कहा, ‘‘अरे छोडि़ए, देर हो जाएगी समझाने में. अब तक तो मिनी की तैयारी हो भी चुकी होगी.’’

रवि ने कहा, ‘‘जब तक तुम कौफी पिओगी, मैं समझा दूंगा.’’

मिनी बुक ले कर आई तो अंजू ने कहा, ‘‘पहले हम कौफी पी लें, तुम लोग अंदर जा कर बातें कर लो.’’

रवि ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘आओ मिनी, बुक दिखाओ, बातों में क्यों टाइम खराब करोगी?’’

हावी होता स्वार्थ

अंजू लगातार अपनी निरर्थक बातों से पढ़ाई का यह टौपिक बदलने का प्रयास करती रही. बड़ा अजीब सा माहैल बन गया था. पति एक बच्ची की पढ़ाई में मदद करना चाह रहा था, तो पत्नी उसे ऐसा करने नहीं दे रही थी. कावेरी, सोमेश और मिनी एकदूसरे का मुंह देख रहे थे. मां की हरकतों से तनु भी शर्मिंदा दिखी.

रवि पत्नी की बातों को नजरअंदाज कर मिनी को कुछ जरूरी पौइंट्स समझाने लगे, तो जल्दी से कौफी का कप खाली कर अंजू खड़ी हो गई, ‘‘चलिए, देर हो रही है.’’

‘‘अभी थोड़ा टाइम लगेगा मुझे, आप सब लोग बातें करो तब तक.’’

‘‘नहीं, अब चलते हैं,’’ अंजू की पूरी कोशिश थी कि रवि मिनी को कुछ समझा न पाए.

तभी तनु ने कहा, ‘‘मौम, शांति से बैठो न प्लीज. 10 मिनट की बात है.’’

‘‘नहींनहीं, बहुत रात हो गई है.’’

तनु गुस्से में बोली,  ‘‘पहले ही आप इतनी रात को यहां आई हैं, क्योंकि अचानक आप का मूड बन गया था. फिर अब तो काम की बात के लिए आप को बैठने के लिए कहा जा रहा है. डैड बहुत अच्छा समझाते हैं. मिनी को भी समझने दो मौम. बहुत मुश्किल चैप्टर है.’’

‘‘नहीं, फिर कभी आएंगे. मिनी खुद कर लेगी. उस के तो 10वीं और 12वीं कक्षा में भी तुम से ज्यादा मार्क्स आए थे.’’ यह सुन कर कावेरी हैरान हो गई कि ये दिमाग में क्याक्या सोच कर रखती हैं. यह तो साफसाफ ईर्ष्या दिख रही है. दोनों सहेलिया हैं. कभी किसी के मार्क्स ज्यादा आते हैं तो कभी किसी के.

अंजू दरवाजे पर जा कर खड़ी ही हो गई तो रवि और तनु को भी उठना पड़ ही गया. रवि और तनु अंजू की इस हरकत पर शर्मिंदा दिखे.

तीनों के जाने के बाद मिनी ने उतरा चेहरा लिए कहा, ‘‘अंकल को कितनी नौलेज है.

कितना अच्छा समझा रहे थे. थोड़ा टाइम और मिल जाता तो…’’

कावेरी ने बेटी को पुचकारा, ‘‘कोई बात नहीं, अंकल से फोन पर पूछ लेना या किसी दिन उन के घर चली जाना.’’

‘‘वहां भी आंटी बताने नहीं देंगी मौम. फोन पर ही कोशिश करूंगी.’’

कावेरी और सोमेश को बेटी की बात उदास कर गई. सालों पुराने संबंध में अंजू की इस हरकत से एक खटास आ गई.

कावेरी सोने तक यही सोच रही थी कि क्या हो जाता अगर रवि मिनी को कुछ समझने में मदद कर देते? स्वार्थ क्यों इनसान पर इतना हावी हो जाता है कि इनसान एकदूसरे की मदद करना, किसी के काम आना जैसे इनसानियत के मूलभूत गुण भी भूल जाता है. क्यों स्वार्थ में लोग सालोें का संबंध भुला देते हैं?

कैसे पाएं छुटकारा

तनु को भी अपनी मां के व्यवहार पर शर्म आई, रवि को भी अपनी पत्नी की मानसिकता पर दुख हुआ, यह साफसाफ दिखाई दिया. फिर अंजू का दिल इतना छोटा क्यों हो गया कि उस ने अपनी बेटी की घनिष्ठ सहेली की मदद नहीं करने दी?

येल सैंटर की एक रिसर्च के अनुसार आजकल लोगों में ईर्ष्या की भावना बढ़ गई है, जिस से लोग ज्यादा तनाव में रहने लगे हैं. ईर्ष्या की भावना कार्यक्षेत्र, परिवार, दोस्ती और रोमांस कहीं भी पनप सकती है. ईर्ष्या आप के मन की शांति न छीन ले, इसलिए आप को ईर्ष्या की भावना महसूस होते ही इस से छुटकारा पा लेना चाहिए.

आज सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक हिस्सा हो गया है. जब हम दोस्तों को अच्छी जगह यात्रा करते, घूमते देखते हैं तो अनजाने में ईर्ष्या से भर उठते हैं.

जूडिथ और लौफ, अपनी बुक ‘इमोशनल फ्रीडम’ में कहती हैं कि किसी से अपनी तुलना न करें. ‘योको ओनो’ का कहना है कि ईर्ष्या को प्रशंसा में बदल दें और फिर देखिए यह प्रशंसा आप के जीवन का हिस्सा हो जाएगी. भले ही किसी व्यक्ति से आप को चिढ़ होती है, आप अपनी ईर्ष्या को नम्रता में बदल दें और किसी से भी अपनी तुलना से बचें.

स्वार्थी न बनें

अगर हम स्वार्थ, ईर्ष्या की भावना एक तरफ रख किसी के काम आ जाएं, तो इस से हमें क्या नुकसान हो जाएगा. आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने जीवन में स्वार्थ और ईर्ष्या को स्थान नहीं देता.

पारुल सहगल अपने एक औनलाइन शो में कहती हैं, ‘‘ईर्ष्या इनसान के दिमाग को थका देती है. ईर्ष्या से दूर रहने के लिए सोशल नैटवर्क से ब्रेक ले लें. फेसबुक अपडेट्स, ट्वीट्स, इंस्टाग्राम की कई पोस्ट से आप को ईर्ष्या हो सकती है.’’

‘रेबेका लेमेर्सन’ का आर्टिकल ‘डोंट एन्वी मी’ हाल ही में खूब वायरल हुआ. उस  में था कि हमें दूसरों का जीवन ज्यादा सुखद लगता है. हमें लगता है सब हम से ज्यादा सुखी हैं. स्वार्थ और ईर्ष्या दोनों मजबूत से मजबूत रिश्ते में भी दरार पैदा कर सकते हैं. ये नकारात्मकता बढ़ाते हैं, जिस से हमारा खुद का जीवन ही प्रभावित होता है. इसलिए ईर्ष्यालु और स्वार्थी न बनें.

मैं कॉमेडी करना चाहती हूं : नीलू वाघेला

राजस्थानी फिल्मों से धारावाहिक ‘दिया और बाती हम’ में भाबो की भूमिका निभाकर नाम कमा चुकी अभिनेत्री नीलू वाघेला राजस्थान की हैं. बचपन से अभिनय का शौक रखने वाली नीलू एक थिएटर आर्टिस्ट हैं. उन्होंने 11 वर्ष की उम्र से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा. उनकी फिल्म ‘बाई चाली सासरिया’ काफी सफल फिल्म रही, जिसे हिंदी में रीमेक फिल्म ‘साजन का घर’ बनी. उन्होंने आज तक करीब 50 राजस्थानी फिल्में और 5 गुजराती फिल्में की हैं. अत्यंत शांत और मृदु भाषी नीलू के इस कदम को उनके परिवार वालों ने खूब सपोर्ट किया. अपनी सफलता का श्रेय वह अपने माता-पिता को और अपने पति अरविन्द कुमार को देती हैं. उनके दो बच्चे, बेटा कैजर (15 वर्ष) और बेटी वंशिका (10 वर्ष) हैं. धारावाहिक ‘दिया और बाती हम’ की सफलता को देखते हुए इसकी सिक्वल ‘तू सूरज मैं सांझ पियाजी’ एक बार फिर से स्टार प्लस पर आ रहा है. इसमें नीलू, भाबो की ही भूमिका में दूसरी पीढ़ी का स्वागत करने वाली है, उनसे मिलकर बात करना रोचक था. पेश है अंश.

प्र. इस सीक्वल में खास क्या रहेगा?

इसमें मैं अपने आने वाले राठी परिवार का स्वागत करूंगी. 20 साल आगे बढ़ चुकी इस कहानी में मैं भी ओल्ड हो चुकी हूं, लेकिन मेरा स्वभाव पहले जैसा ही है. परिवार का वही भाव, वही इमोशन, नई सोच आदि सब कुछ इसमें भी है और ये कहानी भी एक मेसेज के साथ ही होगी. केरल में हमने शूटिंग की है. यहां की ताजगी और नयेपन को उसमें दिखाया जायेगा. इसमें मेरा पहनावा साड़ी है.

प्र. भाबो के चरित्र को करने के बाद आप अपने आप में क्या बदलाव महसूस करती हैं?

मेरी सोच काफी बदल चुकी है. आज मैं देखती हूं कि लोग बहुत व्यस्त रहने के बावजूद भी परिवार के साथ मिलने की कोशिश करते हैं. वे उन्हें मिस करते हैं. मैं अपने किरदार को घर तक भी लेकर जा चुकी हूं. इसके अलावा मैंने यह भी सीखा है कि अपनी कोई भी समस्या को आप खुद ही सुधार सकते है, इसकी जिम्मेदारी किसी पर थोपना ठीक नहीं और इंसान को हमेशा सच की लड़ाई लड़नी चाहिए.

प्र. बीच में ऐसा कहा गया था कि आप ये शो छोड़ने वाली हैं, इसकी वजह क्या थी?

उन दिनों मेरी तबियत काफी ख़राब हो गयी थी. रोज 12 से 14 घंटे काम करना पड़ रहा था. ऐसे में मुझे आराम नहीं मिल रहा था. इसलिए मैंने सोचा थी कि मैं थोड़ा रेस्ट कर लूं और कोई बात नहीं थी.

प्र. आप अपने काम से कितनी संतुष्ट हैं? क्या कभी लगा कि आप भाबो की भूमिका से कुछ और अच्छा काम कर सकती थी?

मेरा ये पहला टीवी शो था. मैंने इस चरित्र को जिया है. ये चरित्र मेरे दिल के बहुत करीब है. इसे करते हुए मुझे बहुत सुकून मिला और ऐसा कभी नहीं लगा कि मैं कुछ और अच्छा कर सकती थी.

प्र. आप थिएटर आर्टिस्ट हैं, उसे कितना मिस करती हैं? कितना फायदा आपको इसकी वजह से हुआ है?

मैं थिएटर आज भी करती हूं. मुझे बहुत गर्व होता है कि मैं आज भी अपने दर्शकों के बीच में जाती हूं. मैंने किसी को छोड़ा नहीं है. मैं अभी भी सब्जी खरीदने खुद ही जाती हूं. असल में थिएटर करने के बाद आप नेचुरल बन जाते हैं. पहले लोग थिएटर को असल नहीं, बल्कि बनावटी एक्टिंग करने की जगह बताते थे. लेकिन आजकल ऐसा नहीं है, आज ये बहुत नेचुरल है. इससे आप का आत्मविश्वास बढ़ता है और कैमरे का डर खत्म हो जाता है. फिर अगर आप में लगन है तो उसे और अधिक निखार सकते हैं.

प्र. क्या जिंदगी में कुछ मलाल रह गया है?

मैं कॉमेडी करना चाहती हूं, क्योंकि लोगों को हंसाना भी एक कला है.

प्र. क्या इस तरह के महिलाओं को प्रेरित करने वाले धारावाहिक का कुछ प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है?

मुझे याद आता है कि राजस्थान में एक महिला पुलिस अधिकारी ने मुझे पास बुलाकर धन्यवाद दिया था. उसका कहना था कि वह जब आईपीएस अधिकारी बनना चाहती थीं, तो उन्हें बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ी थी.

प्र. किस बात से आपको गुस्सा आता है?

जब कोई झूठ बोलता है तो मुझे गुस्सा आता है.

प्र. क्या टीवी इंडस्ट्री में योग्यता के अनुसार पैसे नहीं मिलते, जिस वजह से कई कलाकार टीवी छोड़ जातेहैं?

ऐसा मेरे साथ नहीं हुआ, ये सभी बातें आपके स्वभाव और तरीके पर निर्भर करती हैं, लेकिन अगर कोई समस्या है तो उसे मिल बैठकर सुलझाया जा सकता है.

प्र. इतना सब कुछ दिखाए जाने के बाद भी आज महिलाएं शोषित और प्रताड़ित होती हैं, किसे जिम्मेदार मानती हैं?

इसके लिए पूरे परिवार की जिम्मेदारी बनती है कि हमें अपनी लड़कियों को इतना मजबूत बनाना होगा कि वे अपने परिवार, समाज और उन दरिंदों के साथ डटकर मुकाबला कर सकें. हमें उन्हें बांधकर नहीं रखना है, उन्हें पहनावे से लेकर शिक्षा तक की पूरी आजादी मिलनी चाहिए. जिससे उन्हें हिम्मत मिले. मेरी 10 साल की बेटी को आज से ही मैं सिखाती हूं कि कोई अगर गलत तरीके से छुए तो तुम जोर से चीखोगी या भागोगी. बच्चे को मजबूत बनाने के साथ-साथ उसकी सोच को भी नया बनाना पड़ेगा.

प्र. महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं?

जो माहिलायें सफल होती हैं, उसमें उनके परिवार का काफी योगदान होता है. जब भी समय मिले, परिवार की छोटी-छोटी बातों को इग्नोर कर दिल से उन्हें समय दें. तभी परिवार जुड़ पायेगा.

आज चलिए जलप्रपातों के बीच

भारत में प्रकृति के न जाने कितने खजाने हैं. कुछ को तो बाहरवालों ने नष्ट कर दिया और कुछ को घर वाले ही बचा नहीं पाए. इंसानों ने अपने फायदे के लिए समय समय पर प्रकृति को बुरी तरह प्रताड़ित और बेआबरू किया है. अब भी इंसान वैसा ही करते हैं. न जाने कितनी ही नदियों को पानी के लिए तरसाया गया है और न जाने कितने ही पर्वतों के सीने चीरकर हमने अपनी छाती गर्व से चौड़ी की है.

जब भी इंसानों का जी शहरों से भर जाता है, वे गांव का रूख कर देते हैं. जो गांव का रूख नहीं कर सकते वे प्रकृति की गोद में चैन की सांस लेने जाते हैं. गौरतलब है कि यही इंसान प्रकृति की ऐसी-तैसी करने में लगे रहते हैं. जो लोग विदेशों का रूख करते हैं, उन्हें पहले अपने देश की ओर चलना चाहिए. भारत की जैवविवधता, आबोहवा बाहर से आने वालों के लिए उम्र भर की सुखद याद बन कर रह जाती है. इतिहास गवाह है कि जब पूरा विश्व पश्चिम का रूख कर रहा था, तब पश्चिम ने भी भारत का रूख किया था.

पहाड़ों की चोटियों से जब पानी तेजी से गिरता है, उस एहसास को शब्दों में बयां कर पाना आसान नहीं है. झरने या जलप्रपातों से गिरता स्वच्छ, पारदर्शी जल, मन में गुदगुदी कर जाता है. आज बात करते हैं, देश के कुछ विशाल और खूबसूरत झरनों के बारे में.

यूं तो झरने बारहों महीने बहते हैं, पर कुछ झरने गर्मियों में सुख जाते हैं. पर बरसात के मौसम में झरनों की खूबसूरती देखते ही बनती है. 

1. कुंचीकल फॉल्स, कर्नाटक

कर्नाटक के अगुंबा वैली में स्थित कुंचीकल फॉल देश का सबसे ऊंचा और एशिया का दूसरा सबसे ऊंचा जलप्रपात है. 1493 फीट की ऊंचाई से वराही नदी के पानी को गिरते देखना किसे सपने से कम नहीं लगता. पास ही बने डैम के कारण इस फॉल का पानी कम हो गया है. डैम के कारण साल के कुछ महीने यह जलप्रपात सूख जाता है.

2. दूधसागर फॉल्स, गोवा

गोवा के नाम से लोगों के दिमाग में बीच और बीच पर फैली अलग-अलग तरह की खूबसूरती ही आती है. पर बहुत से लोग यह नहीं जानते की दूधसागर फॉल्स भी गोवा की पहचान है. पानी भी आंखों से अजीब खिलवाड़ करता है. यूं तो पानी का कोई रंग नहीं होता, पर पानी कहीं हरा तो कहीं नीला दिखाई देता है. पर इस जलप्रपात का पानी दूधिया सफेद दिखाई देता है. इसलिए इस फॉल का नाम दूधसागर फॉल है. बरसात के मौसम में यह जल प्रपात खूबसूरती की अतिरिक्त चादरें ओढ़ लेता है.

3. जोग फॉल्स, कर्नाटक

कर्नाटक के सागरतालुक में स्थित इस जलप्रपात में श्रावती नदी का पानी 830 फीट की ऊंचाई से गिरता है. यूनेस्को द्वार इसे ‘इकोलोजिकल हॉट स्पोट’ की लिस्ट में शामिल किया गया है. जोग फॉल्स के पानी से हाइड्रोइलेक्ट्रीसिटी भी जेनेरेट की जाती है. इस फॉल को गेरोसोप्पा फॉल और जोगादा गुंडी के नाम से भी जाना जाता है.

4. नोहकलीकई फॉल्स, मेघालय

मेघालय के चेरापुंजी के पास है नोहकलीकई फॉल्स. चेरापुंजी के पास होने के कारण यह जल प्रपात कभी नहीं सूखता. यह फॉल बड़े बड़े पेड़ों से घिरा हुआ है. इस फॉल से किसी नदी का नहीं, पर बारीश का पानी ही गिरता है. फरवरी और दिसंबर में इस जलप्रपात का पानी भी कम हो जाता है, क्योंकि इस वक्त बरसात काफी कम होती है. इस फॉल को ‘सैवन सिस्टर फॉल्स’ भी कहा जाता है.

5. थोसेघर फॉल्स, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में है थोसेघर फॉल्स. कोंकण क्षेत्र में कई जलप्रपात हैं. यहां आकर आप सोच में पड़ जाएंगे की कोई जलप्रपात भी इतना शांत कैसे हो सकता है? न जाने कितनी बूंदों के अल्हड़पन को झेलने के बाद भी थोसेघर फॉल्स और आस-पास का वातावरण काफी शांत रहता है. इस बार मॉनसून में यहां आना न भूलें.

6. बरेहीपानी फॉल्स, ओडिशा

ओडिसा के सिमलीपाल राष्ट्रीय उद्यान में है बरेहीपानी फॉल्स. यह देश का दूसरा सबसे ऊंचा जलप्रपात है. घने जंगलों के बीच बहता यह जलप्रपात की उत्पत्ति बंगाल की खाड़ी बताई जाती है. यह जलप्रपात ओडिशा के कई आकर्षणों में से एक है.

7. चित्रकूट फॉल्स, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ को अति-पिछड़े राज्यों में गिना जाता है. पर यहां भी प्रकृति के कई छिपे खजाने हैं. इस जलप्रपात में पानी ज्यादा ऊंचाई से नहीं गिरता पर इसकी चौड़ाई ही इसकी खासियत है. गर्मियों में इस जलप्रपात का एक हिस्सा सूख जाता है. हर साल सैंकड़ों पर्यटक इस विशाल जलप्रपात को देखने आते हैं मॉनसून में यह जलप्रपात खूबसूरती की हर सीमा पार कर देता है.

8. धुंआधार फॉल्स, मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के जबलपुर में है धुआंधार फॉल्स. इस जलप्रपात को ध्यान से देखने पर धुंआ-धुंआ सा दिखाई देता है. बारिश के मौसम में यह जगह बाढ़ से प्रभावित रहती है. नर्मदा के पानी का धुंए में ही देखें, पर देखें जरूर.

9. वानतांग फॉल्स, मिजोरम

मिजोरम साल के बारह महीने बारिश होती है. यह जलप्रपात मिजोरम के सर्चिप जिले में है. हरी भरी वादियों के बीच झरने का पानी आपके सारी टेंशन दूर कर देगा. वक्त निकालकर यहां जरूर जाएं. लगातार होने वाली बारिश के कारण यहां की हरियाली साल भर बनी रहती है. इस जलप्रपात के आस पास कई पिकनिक स्पोट्स हैं.

10. राजदरी फॉल्स, उत्तर प्रदेश

राजदरी फॉल्स यानी कि प्रकृति द्वारा बनाई गई सीढ़ियां. यह जलप्रपात घर की सीढ़ियों जैसी है. ज्यादातर जलप्रपातों में पानी ऊंचाई से सीधे या फिर बंट कर गिरती है. पर यहां की चट्टानें सीढ़ियों जैसी हैं, जिस पर से पानी बहता है. राजदरी जलप्रपात बनारस के पास ही है.

देश में सैंकड़ों जलप्रपात हैं. सबकी कुछ न कुछ खासियत है. समय निकालकर धर्म की दुकानों के अलावा प्रकृति के तोहफों के दर्शन करना चाहिए. इन्हें संरक्षित करना भी हमारा फर्ज है.

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