बॉलीवुड सेलेब्स जिनकी सर्जरी पर मचा बवाल

लंबे वक्त से फिल्मों से दूर एक्ट्रेस आयशा टाकिया एक बार फिर सुर्खियों में हैं. इस बार वह एक्टिंग को लेकर नहीं, बल्कि अपने लुक्स को लेकर खबरों में बनी हुई हैं. खबरों की मानें तो आयशा ने लिप सर्जरी कराई है, जिसके बाद वह एकदम बदली सी दिखने लगी हैं.

ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी एक्ट्रेस ने लिप सर्जरी कराई है. इससे पहले भी बॉलीवुड की कई अभिनेत्रियों ने अपनी खूबसूरती को बढ़ाने के लिए अलग-अलग सर्जरी करवाई है. जानते हैं उन सिलेब्स के बारे में जिन्होंने खूबसूरती के लिए सर्जरी तो करवाई लेकिन उनकी सर्जरी फेल हो गई.

आयशा टाकिया

2004 में ‘टार्जन: द वंडर कार’ से बॉलीवुड में डेब्यू करने वालीं आयशा टाकिया आजकल अपनी लिप सर्जरी के कारण चर्चा में हैं. एक इवेंट में नजर आईं आयशा का नया लुक देखकर सब हैरान रह गए. इसके पहले भी आयशा अपने ब्रेस्ट इम्प्लांट और आइब्रो और जॉलाइन की सर्जरी के कारण चर्चा में आई थीं.

अनुष्का शर्मा

अनुष्‍का शर्मा को उनके होंठ कुछ पसंद नहीं थे, इसलिए उन्होंने सर्जरी का सहारा लिया था. कॉफी विद करण के पिछले सीजन में अनुष्का के होंठ देखकर लोगों ने उन्हें बहुत ट्रोल किया था.

राखी सावंत

राखी सावंत ने तो खुद पर सारे प्रयोग कर डाले हैं. ब्रेस्‍ट सर्जरी से लेकर अपने जॉ लाइन को ठीक करने तक उन्‍होंने सबकुछ करवा डाला, लेकिन उनके रूप में कुछ खास फर्क नहीं नजर आया.

शिल्पा शेट्टी

शिल्‍पा शेट्टी को तो ‘बॉलीवुड प्‍लास्टिक सर्जरी’ क्‍वीन कहा जाता है. उन्‍होंने कूल्‍हों की सर्जरी से लेकर ब्रेस्‍ट, लिप्‍स और नाक की सर्जरी भी करवाई है.

कंगना रनौत

कंगना रनोत ने भी अपने होठों की सर्जरी करवाई है.

कटरीना कैफ

कटरीना कैफ ने अपने नाक और होठों की सर्जरी करवाई है.

प्रीति जिंटा

पिछले 10 सालों में प्रीति जिंटा के चेहरे में कई बदलाव आए हैं. सर्जरी के चलते क्‍यूट प्रीति का चेहरा सब भूल गए हैं.

गौहर खान

गौहर खान ने भी लिप सर्जरी करवाई थी, लेकिन वह इससे बिल्‍कुल भी खुश नहीं थीं. यही नहीं, इस सर्जरी से वो इतनी दुखी थीं कि उन्‍होंने रिएलिटी टीवी शो ‘खान सिस्‍टर्स’ की शूटिंग भी रद्द कर दी थी.

कोईना मित्रा

कोइना मित्रा ने साल 2011 में नाक की सर्जरी करवाई थी. लेकिन इससे उनके नाक और खराब हो गए. अपने नाक को ठीक करवाने के लिए उन्होंने एक बार फिर नाक की सर्जरी करवाई.

मिनिषा लांबा

मिनिषा लांबा जब अपनी नाक की सर्जरी करवाकर आईं तो उनके फैन्‍स यह देख हैरान हो गए. दुर्भाग्‍यवश वह इस सर्जरी से पहले ज्‍यादा अच्‍छी दिखती थीं.

कम बजट में अधिक बचत

महंगाई बढ़ती जा रही है तो पैसा भी ज्यादा खर्च हो रहा है. मिडिल क्लास की सब से बड़ी चिंता है कि आमदनी उतनी ही है जबकि खर्च ज्यादा हो रहा है. लेकिन थोड़ी सी समझदारी और प्लानिंग के साथ आप पैसे को अपने इशारे पर नचा सकते हैं. बस, आप पैसों को खर्च करने के मामले में ही नहीं बल्कि बचत के मामलों में भी रुचि लेना शुरू कर दें. आप होममेकर हैं, दिन भर काम में ऐसी उलझी रहती हैं कि दूसरी चीजों पर ध्यान ही नहीं जाता. कभी फुरसत मिले तो बस एक ही बात की चिंता लगी रहती है, घर का बजट और थोड़ी सी बचत.

हां, पति भी इन बातों का ध्यान रखते हैं लेकिन आप भी इस कोशिश में उन का हाथ बंटाएं. हम जो सोचते हैं उस में असल में कामयाब नहीं हो पाते. इस की वजह बड़ी न हो कर छोटीछोटी बातों में छिपी है. कभी जानकारी की कमी तो कभी फैसले लेने की क्षमता का अभाव हमारी योजनाओं पर ब्रेक लगा देते हैं.

आज के युवा जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए गाड़ी, बंगला और शोहरत सबकुछ फास्ट ट्रैक पर डाल देते हैं. ईएमआई से उन्हें परहेज नहीं, यही कारण है कि वे कर्ज की राशि की तरफ ध्यान नहीं देते, बल्कि ईएमआई कितनी आ रही है उस ओर देखते हैं. इस का मतलब यह भी नहीं कि केवल बचत ही की जाए, बल्कि समय के अनुसार और परिस्थितियों को भांपते हुए बचत की ओर ध्यान देना चाहिए. आगे की सोच आप को परिस्थितियों से लड़ने के लिए पहले से तैयार करनी है. परिस्थितियों की नब्ज पर आप का हाथ हो तो यह निश्चित है कि आप किसी भी तरह के खतरे को पहले से भांप सकते हैं और उस के अनुसार निर्णय ले सकते हैं.

चलन विदेशों का

विदेशों में चलन है कि वहां पर सप्ताहभर नौकरी करने के बाद शुक्रवार की शाम पैसे मिल जाते हैं और ये पैसे शनिवार और रविवार को मौजमस्ती में उड़ाए जाते हैं. सोमवार से युवा फिर से मेहनत कर पैसे कमाने के लिए नौकरी पर जाते हैं, इस विदेशी संस्कृति की छाया हम पर भी पड़ती जा रही है. हम भी उन्हीं की देखादेखी पैसे उड़ाने में मशरूफ हो जाते हैं जबकि बचत के नाम पर कुछ नहीं सोचते. चाहे कम तनख्वाह हो, ज्यादा बचत सभी को अच्छी लगती है और सभी अपने अपने अनुसार बचत करना चाहते हैं व करते भी हैं. इस के लिए जरूरी है कि बचत की शुरुआत आज से ही की जाए. हर महीने अपने खर्च की समीक्षा करनी चाहिए. साथ ही गैर जरूरी खर्च को नजरअंदाज करना चाहिए.

खर्चों में कटौती और इस के लेखाजोखा के लिए एक मासिक बजट तैयार करें, फिर उस बजट के दायरे में रह कर खर्च करें. इस से यह जानने में आसानी हो जाएगी कि पैसा कहां और कितना खर्च हो रहा है और इस पर कैसे नियंत्रण रखा जा सकता है. ज्यादातर विकसित देशों ने ऐसी योजनाएं शुरू की हैं, जिन के तहत नागरिकों को बचत के लिए बढ़ावा दिया जाता है. इस मकसद से खास वित्तीय संस्थाएं भी संचालित हैं. दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनौमी जापान की हैसियत के पीछे उस के नागरिकों की बचत की आदत ही है.

कम बजट, ज्यादा बचत

बजट कम होते हुए भी बचत का स्तर बढ़ाया जा सकता है. ऐसा नहीं है कि आमदनी ज्यादा होने पर ही आप बचत कर सकते हैं. हम ने कुछ परिवारों में जा कर उन की बचत का तरीका देखा.

(बौक्स में देखें साहिल के खर्चे)

साहिल व कीर्ति के मुताबिक, हर महीने हाथ इतना तंग रहता है कि 1 रुपया तक नहीं बचता. कभीकभी तो उधार तक लेने की स्थिति आ जाती है. परिणामत: आगे बजट बिगड़ता ही चला जाता है.

साहिल व कीर्ति बजट में रह कर ऐसे काम करें :

खर्च

रुपए प्रतिमाह

राशन

7,000

शिक्षा

4,000

         आने जाने का भाड़ा

2,000

अन्य खर्चे

2,000

मनोरंजन व संचार

1,000

सागसब्जी, फल

2,000

पानी, बिजली बिल

1,000

कुल खर्च

19,000

बचत

1,000

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

यानी 20 हजार रुपए प्रतिमाह कमाई हो तो 1 हजार रुपए प्रतिमाह कम से कम बचाया जा सकता है. रही बात उधारी की तो आप की चादर जितनी हो उतने ही पैर फैलाएं. अगर आप मनोरंजन व शाही शौक आदि में चीजों पर गलत खर्च करेंगे तो बचत कभी नहीं हो सकेगी. ऐसे में कभीकभार चलता है मान कर खर्च करें तब तो सही अन्यथा बचत की मत सोचिए.

(बौक्स में देखें अभिषेक के खर्चे)

अभिषेक द्वारा कमाई के कुछ हिस्से को किसी आकस्मिक घटना, बीमारी या घर बनाने के लिए धीरेधीरे जोड़ना चाहिए. बुरे व अच्छे वक्त में यह बचत काम आ सकती है. अभिषेक पूरे महीने की कमाई को पूरा ही खर्च कर देता है. हालांकि यह सारे खर्च जरूरी हैं पर अगर इन में कुछ खर्चों को कुछ हद तक कम कर दिया जाए तो बचत आसानी से की जा सकती है. आइए, अभिषेक की कमाई को प्रतिशत में दर्शाएं कि वह कैसे अपने वेतन का कुछ हिस्सा बचा सकता है.

इस के 2 तरीके हैं :

अगर औफिस के चायपानी, कपड़े व मनोरंजन के खर्चे कुछ हद तक अभिषेक कम करे तब अभिषेक आराम से अपनी कमाई से 1 हजार रुपए प्रतिमाह तक बचत कर सकता है और सीमित आय में अधिक बचत के उद्देश्य को पूरा कर सकता है.

गुल्लक से निवेश का सफर

बचत का सब से पुराना तरीका गुल्लक है. कहानियों, फिल्मों या असल जीवन में भी हम ने गुल्लक से बचत की शुरुआत देखी और की है. आज बचत का तरीका पोस्ट औफिस, बैंक, शेयर मार्केट से होते हुए गोल्ड और प्रौपर्टी में निवेश तक जा पहुंचा है. बचत और निवेश में अंतर यह है कि जहां बचत से आप अपनी पूंजी को सुरक्षित रखते हैं वहीं निवेश का इस्तेमाल लोग अपनी जमापूंजी को बढ़ाने के लिए करते हैं. हालांकि रोजाना चढ़तेउतरते शेयर बाजार से जमापूंजी के कम होने का खतरा बना रहता है. लेकिन जमा रकम को बैंक या दूसरी सरकारी सेवाओं की मदद से न केवल सुरक्षित रखा जा सकता है बल्कि उसे बढ़ाया भी जा सकता है. क्रैडिट कार्ड का भुगतान जल्दी कर देना चाहिए, क्योंकि इस में भुगतान में देरी होने पर उच्च दर से ब्याज भी देना पड़ता है.

कम बजट में हैल्दी कुकिंग

सीजनल सब्जियों का प्रयोग करें, डंठल न फेंकें. ब्रोकली, गोभी, मशरूम के डंठलों को अच्छी तरह छील व काट कर उन के पकौड़े या फिर सब्जी बनाई जा सकती है. प्याज महंगी हो तो कसूरी मेथी का प्रयोग करें. टमाटर की जगह कैचप और क्रीम की जगह दूध का प्रयोग करें. जरूरी नहीं कि महंगी चीजों से ही हैल्दी कुकिंग की जाए. लैफ्टओवर खाने से नया खाना तैयार करें जैसे सब्जियों की बिरयानी, कटलेट, स्टफ्ड परांठा आदि. चावल बनाने के बाद उस का बचा पानी फेंकने के बजाय उस का प्रयोग अन्य डिशेज बनाने में करें.

क्यों जरूरी है बचत

मुश्किल वक्त कभी बता कर नहीं आता. क्या आप ने अपने मुश्किल दिनों के लिए पैसे बचाए हैं? अगर कोई स्वास्थ्य संबंधी आपातस्थिति आए तो आप कैसे मैनेज करेंगे? अपने बच्चों की ऊंची शिक्षा के लिए आप के पास रकम होगी या नहीं? किसी भी अस्पताल में मरीज की भरती कराने से पहले एकमुश्त बड़ी रकम की जरूरत होती है. इस के अलावा परिवार बढ़ने पर बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए भी रकम होनी जरूरी है. अगर कोई मुकदमा चल रहा हो तो वहां पर बचत के रुपयों से सहायता मिलेगी. अगर शुरुआत से ही कुछ बचत की गई होगी तो आकस्मिक खर्चे आने पर किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं होगी. आप सोच रहे होंगे कि बंधीबंधाई आमदनी में से आप अपने खर्चे पूरे कर लें, यही बहुत है.

ऐसे में बचत कैसे होगी. आप को हैरानी होगी कि दक्षता और अनुशासन में इस का जवाब छिपा है. सब से पहले देखें कि आप का खर्च कहां हो रहा है. हर महीने के खर्च के लिए एक डायरी रखें, कौफी ब्रेक से ले कर घर के सामान पर खर्च हुए 1-1 पैसे का हिसाब रखें. आप को हैरानी होगी कि इन्हीं मदों से आप को सब से ज्यादा पैसा बचाने की प्रेरणा मिलेगी. खर्चों के लिए लक्ष्य बना कर चलें. जो तय खर्चे हैं जैसे कि घर का किराया, विभिन्न बिल, कार लोन, होम लोन की किस्तें, क्रैडिट कार्ड के बिल आदि में तो काटछांट नहीं हो सकती, लेकिन घर के सामान और कपड़ों के लिए खर्च की सीमा रखें, साथ ही मनोरंजन और यात्राओं के लिए भी तयशुदा सीमा से ज्यादा खर्च न करें.

दरअसल, बजट बनाने का मतलब यह नहीं है कि आप किसी फंदे में फंस गए हैं. यह आप की आर्थिक स्वतंत्रता और सहूलियत के लिए होना चाहिए न कि कोई वित्तीय बंधन. अच्छा बजट आप को पैसे पर नियंत्रण के रूप में बड़ी ताकत देता है. इस के जरिए आप अपने खर्चों को अधिक तर्कसंगत बनाते हैं और चिंताओं को बढ़ाने के बजाय आनंद उठा सकते हैं. बजट आप को आर्थिक समस्याओं से लड़ने की ताकत देता है.

मसूर दाल स्क्रब से बढाएं खूबसूरती

सुंदरता को निखारने के लिए आपने नींबू, बेसन, हल्दी और शहद जैसी घरेलू सामग्री का तो इस्तेमाल किया ही होगा. लेकिन क्या आपने कुदरती निखार के लिए कभी मसूर दाल का स्क्रब ट्राई किया है. अगर नहीं, तो यहां हम आपको बता रहे हैं दाल का स्क्रब बनाकर कैसे आप अपनी त्वचा निखार सकती हैं.

मसूर दाल पाउडर को शहद और हल्दी पाउडर के साथ मिलाकर स्क्रब बना लें. इसमें थोड़ा पानी मिलाकर इसे चेहरे पर लगाने से डेड स्किन सेल्स भी हटते हैं और त्वचा निखर जाती है.

एलोवेरा जेल और मसूर की दाल का मिश्रण चेहरे पर लगाने से चेहरे पर पड़े गहरे दाग धीरे-धीरे हल्के पड़ने लगते है और इनसे मुंहासे भी ठीक हो जाते हैं.

पूरी रात मसूर की दाल को पानी में भीगो लें और अगले दिन दूध में मिलाकर स्क्रब करें. इसके इस्तेमाल से आप चमकती त्वचा पा सकती हैं.

एक कटोरी में मसूर की दाल और मूंगफली को पीस कर इसका पाउडर बनाकर चेहरे पर लगाएं और स्क्रब करें. आप चाहें तो इसमें हल्दी भी मिला सकते हैं. ऐसा करने से मुंहासे खत्म होते हैं.

त्वचा के सूखेपन और खुरदरेपन को कम करने के लिए मसूर दाल में घी मिलाकर ​स्क्रब करें.

मसूर की दाल के पेस्ट में गुलाबजल मिलाकर लगाने से मुंहासे और दाग धब्बे दूर होते हैं.

मसालेदार मुर्ग मलाई

सामग्री

250 ग्राम चिकन

1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

200 मिलीलिटर दूध

1 छोटा चम्मच काजू पाउडर

1/2 छोटा चम्मच कौर्नफ्लोर

1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

1 चम्मच तेल

40 ग्राम मलाई

1 बड़ा चम्मच क्रीम

1 छोटा चम्मच चिकन मसाला

1 छोटा चम्मच जीरा

1 बड़ा चम्मच प्याज की प्यूरी

नमक व कालीमिर्च स्वादानुसार

थोड़ी सी मलाई गार्निशिंग के लिए

विधि

एक बाउल में चिकन, अदरकलहसुन का पेस्ट, नमक, कालीमिर्च व दूध डाल कर अच्छी तरह मिलाएं और 1 घंटे तक मैरीनेट होने के लिए रखें. एक बरतन में तेल गरम कर के जीरा भून कर प्याज की प्यूरी भूनें. अब इस में काजू पाउडर व चिकन डाल कर तेज आंच पर 2 मिनट तक भूनें.

फिर ढक कर चिकन पका लें. कौर्नफ्लोर को पानी में घोल कर इलायची पाउडर, चिकन मसाले व मलाई के साथ डाल कर भूनें. अब क्रीम डाल कर कुछ देर तक पकाएं व मलाई से गार्निश कर के परोसें.

गंगाजमुनी संस्कृति का परिवेश उत्तर प्रदेश

पर्यटन के हर रंग को अपने में समेटे उत्तर प्रदेश में जहां गुलाबी पत्थरों से सजा लखनऊ है, पश्चिमी खानपान से ले कर देशी खाने का निराला स्वाद है वहीं घाटों का शहर वाराणसी, शिक्षा व साहित्य की राजधानी इलाहाबाद और आगरे का मशहूर ताजमहल भी दर्शनीय हैं. यानी पर्यटन का हर नजारा यहां मौजूद है.

पर्यटन के लिहाज से उत्तर प्रदेश में बहुत सारी जगहें हैं. यहां के लखीमपुरखीरी जिले में बना दुधवा नैशनल पार्क वन्यजीव पर्यटन के लिए सब से खास जगह बन गई है. यह भारत और नेपाल की सीमा क्षेत्र में फैला वन है. 1977 में इस को दुधवा के जंगलों में बनाया गया था. 1987 में किशनपुर वन्यजीव, विहार को इस में शामिल कर दिया गया. 884 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह बाघ संरक्षित वन है. यहां पर हाथी, गैंडा, बारहसिंगा और हिरन जैसे तमाम जीव भी हैं. मगरमच्छ व घड़ियाल भी यहां पर देखे जाते हैं. साल, असना, बहेड़ा, जामुन और बेर के तमाम पेड़ यहां पर हैं. बाघ और गैंडों को बचाने के लिए कई योजनाएं भी यहां चल रही हैं. 

पर्यटकों के रुकने के लिए आधुनिक शैली में बनी थारू हट और रेस्ट हाउस उपलब्ध हैं.  यहां लकड़ी के मचान बने हैं जिन से पूरे क्षेत्र को देखा जा सकता है. यह पार्क दिल्ली से 430 किलोमीटर और लखनऊ से 230 किलोमीटर दूर है. करीबी रेलवे स्टेशन पलिया है. यहां से 10 किलोमीटर दूर दुधवा पार्क है. यहां रुकने के लिए ट्री हाउस भी बना है. यह विशालकाय साखू के पेड़ पर 50 फुट ऊपर बना है. डबल बैडरूम वाला यह ट्री हाउस सभी सुविधाओं से लैस है. यहां रुकने के लिए पहले से बुकिंग करानी होती है. ज्यादातर लोग इसे देख कर ही मजा लेते हैं.

नवंबर से मार्च तक का सीजन घूमने के लिए सब से अच्छा होता है. 15 नवंबर के बाद इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाता है. यहां का प्रवेश शुल्क 100 रुपए प्रति व्यक्ति, गाइड का 200 रुपए प्रति शिफ्ट, हाथी की सवारी के लिए 600 रुपए 4 आदमियों के लिए, जिप्सी का 1 हजार रुपए प्रति शिफ्ट और बस का 200 रुपए प्रति सीट पड़ता है. सामान्य हट के लिए 300 रुपए, वीआईपी 500 रुपए, डौरमैट्री 75 रुपए प्रति बैड देना पड़ता है. अगर उत्तर प्रदेश घूमने की शुरुआत दुधवा नैशनल पार्क से करें तो बेहतर हो सकता है. इस के बाद उत्तर प्रदेश के बाकी शहरों को घूमा जा सकता है.

लखनऊ 

राज्य की राजधानी लखनऊ बहुत ही साफसुथरी और ऐतिहासिक जगह है. अगर आप हैरिटेज टूरिज्म के शौकीन हैं तो लखनऊ की इमारतें वास्तुकला का बेजोड़ नमूना साबित होंगी. अब  यहां गुलाबी पत्थरों का प्रयोग कर नए पार्क और स्मारक बन गए हैं जो खास आकर्षण का केंद्र हैं.

1775 से 1856 तक लखनऊ अवध राज्य की राजधानी था. नवाबी काल में यहां अदब और तहजीब का विकास हुआ. लखनऊ का इतिहास बहुत पुराना है. समय के साथसाथ इस का नाम और पहचान बदलती रही है. लखनऊ में पश्चिमी व्यंजनों से ले कर देशी व्यंजनों तक का निराला स्वाद लिया जा सकता है. यहां पर बहुत तेजी के साथ बडे़ रैस्तरां खुले हैं. मौजमस्ती के लिए आनंदी वाटर पार्क, ड्रीमवैली, दयाल पैराडाइज और स्कौर्पियो क्लब जैसी जगहें हैं. लखनऊ में  खाने के लिए छप्पनभोग की चाट, समोसे और कुल्फी के साथ टुंडे के कबाब और बिरयानी का स्वाद लिया जा सकता है. 

लखनऊ फलों में दशहरी आम और मिठाई में गुलाब रेवड़ी के लिए मशहूर है. हजरतगंज, अमीनाबाद और चौक जैसे बाजार बहुत ही मशहूर हैं. अब शौपिंग मौल और मल्टीप्लैक्स सिनेमा लखनऊ की नई पहचान बन गए हैं.  

अंबेडकर स्मारक गोमती नगर और कांशीराम ईको गार्डन वीवीआईपी रोड भी लखनऊ के पर्यटन की नई पहचान बन गए हैं. यहां देखने और घूमने के लिए बहुत सारी चीजें हैं. खासतौर पर रात में यहां की लाइटिंग किसी का भी मन मोह लेती है. बड़ा इमामबाडा (भूलभुलैया) लखनऊ की सब से खास हैरिटेज इमारत है. हर पर्यटक इस को जरूर देखना चाहता है. चारबाग रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किलोमीटर दूर बना इमामबाड़ा वास्तुकला का अद्भुत नमूना है. 1784 में इस को नवाब आसिफउद्दौला ने बनवाया था. इस इमारत का पहला अजूबा 49.4 मीटर लंबा और 16.2 मीटर चौड़ा एक हौल है. इस में किसी तरह का कोई खंभा नहीं है. 

बडे़ इमामबाड़े से 1 किलोमीटर आगे बना छोटा इमामबाड़ा लखनऊ की दूसरी बड़ी हैरिटेज इमारत है. मुगलस्थापत्य कला के इस बेजोड़ नमूने का निर्माण अवध के तीसरे नवाब मोहम्मद अली शाह के द्वारा 1840 में कराया गया था. यहां नहाने के लिए एक खास किस्म का हौज बनाया गया था जिस में गरम और ठंडा पानी एकसाथ आता था. इस इमारत में शीशे के लगे हुए झाड़फानूस बहुत ही खूबसूरत हैं. 

बड़े इमामबाड़े और छोटे इमामबाड़े के बीच के रास्ते में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं. इन को पिक्चर गैलरी, घड़ी मीनार और रूमी दरवाजा के नाम से जाना जाता है. इन सब जगहों पर जाने के लिए टिकट इमामबाड़े से ही एकसाथ मिल जाता है.  इमामबाड़े के बाहर बने 60 फुट ऊंचे दरवाजे को रूमी दरवाजा कहा जाता है. इस के नीचे से सड़क निकलती है.  इस दरवाजे के निर्माण की खास बात यह है कि इस को बनाने में किसी तरह के लोहे या लकड़ी का प्रयोग नहीं किया गया है. रूमी दरवाजे से थोड़ा आगे चलने पर घड़ी मीनार बनी है. 221 फुट ऊंची इस मीनार का निर्माण 1881 में हुआ था. इस में लगी घड़ी का पैंडुलम 14 फुट लंबा है. इस का 12 पंखडि़यों वाला डायल खिले फूल की तरह का दिखता है. 

लखनऊ का ला मार्टिनियर भवन यूरोपीय स्थापत्यकला का बेजोड़ नमूना है. यहां पर ला मार्टिनियर स्कूल चलता है.  महलनुमा बनी इस इमारत में एक झील बनी हुई है. 

रेजीडेंसी का निर्माण अवध के नवाब आसिफउद्दौला ने 1780 में शुरू कराया था. यह इमारत 20 साल में बन कर तैयार हुई थी.  यह इमारत हजरतगंज बाजार से 3 किलोमीटर दूर है. 1857 की लड़ाई में अगरेजों ने इस पर कब्जा कर के इस को अपना निवासस्थल बना लिया. इस कारण इस का नाम रेजीडेंसी पड़ गया. इस की दीवारों पर आज भी आजादी की लड़ाई के चिह्न मौजूद हैं.  यहां बना खूबसूरत लौन इस की खूबसूरती में चार चांद लगाता है.

रेजीडेंसी के करीब ही शहीद स्मारक बना हुआ है. 1857 में शहीद हुए वीरों की याद में इस को गोमती नदी के किनारे बनवाया गया था. यहां नौका विहार का मजा भी लिया जा सकता है.

वाराणसी

वाराणसी शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. यह उत्तर प्रदेश का सब से पुराना शहर है. वाराणसी शहर में नदी के किनारे इतने घाट बने हुए हैं कि इस को घाटों का शहर भी कहा जाता है. सुबह के समय सूर्य की किरणें जब नदी के जल पर पड़ती हैं इन घाटों की शोभा देखते ही बनती है.  वाराणसी में अर्द्धचंद्राकार गंगा के किनारे लगभग 80 घाट बने हुए हैं. 

वाराणसी में तैयार होने वाली साड़ियां अच्छी होती हैं.  इन को बनारसी साड़ी के नाम से जाना जाता है.  वाराणसी के पास बसा भदोई शहर का कालीन उद्योग भी बहुत खास है. धार्मिक खासीयत वाले वाराणसी शहर में पंडों और पुजारियों की अराजकता भी बहुत होती है.  ये लोग यहां घूमने आने वाले लोगों को धार्मिक अनुष्ठान में फंसाने की कोशिश करते हैं. पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हर विषय की उच्च स्तरीय पढ़ाई होती है.  यह एशिया का सब से बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है.  ‘भारत कला भवन’ इस विश्वविद्यालय की शोभा है.  इस की कला वीथिका में अप्रतिम कलाकृतियां रखी हैं.  इस का नया विश्वनाथ मंदिर आधुनिक तरह से बना हुआ है. घूमने वाले यहां पर जरूर आते हैं.

काशी नरेश शिवोदास द्वारा बनवाया गया काशी विश्वनाथ मंदिर दशाश्वमेध घाट के पास बना हुआ है. यहां तक पहुंचने के लिए संकरी गलियों से हो कर गुजरना पड़ता है. इस मंदिर में दर्शकों की भीड़ अधिक होने के कारण यहां पर गंदगी बहुत रहती है. संकरी गलियों का लाभ उठा कर चोरउचक्के लोगों के सामान पर हाथ साफ कर देते हैं. घूमने वालों को इस बात से सावधान रहना चाहिए. वाराणसी का भारत माता मंदिर भी उत्कृष्ट कला का एक नमूना है. इस को राष्ट्रभक्त बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा बनवाया गया था. यह भी देखने लायक है. यह मंदिर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के परिसर में बना हुआ है.  इस मंदिर में संगमरमर से तराश कर अनेकता में एकता के प्रतीक अखंड भारत का मानचित्र बनाया गया है.  घूमने वाले इस को जरूर देखते हैं. 

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 2 किलोमीटर दूर गंगा नदी के उस पार स्थित रामनगर किला काशी नरेश का पैतृक निवास है. इस किले में एक संग्रहालय भी है जहां पर राजसी ठाटबाट के प्रतीक तीर, तलवार, बंदूकें और कपडे़ रखे हैं. रामनगर किला अपनी वास्तुकला के लिए बहुत ही मशहूर जगह है. आज भले ही इस का रखरखाव सही ढंग से नहीं हो रहा पर इस को देख कर उस समय की कला का पता चल जाता है.   

वाराणसी से 10 किलोमीटर दूर बसा हुआ सारनाथ सम्राट अशोक के स्तूपों वाला शहर है. इसी स्तूप पर बने शेरों को भारत सरकार के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के रूप में लिया गया है. यहां का हराभरा बाग और फूलों का बगीचा घूमने वालों का मन मोह लेता है. यहां पर मूलगंध कुटी भी देखने वाली जगह है. यहां के पुरातात्विक संग्रहालय में बौद्ध प्रतिमाओं व शिलालेखों को भी देखा जा सकता है. 

आगरा

ताजनगरी आगरा उत्तर प्रदेश की एक बहुत ही खास घूमने वाली जगह है. यहां जो भी आता है विश्वविख्यात ताजमहल को देखने जरूर जाता है. अगर आप हैरिटेज टूरिज्म के शौकीन हैं तो ताज के साथ फतेहपुर सीकरी और आगरा किला भी जरूर देखिए. ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में कराया था. यह सफेद संगमरमर का बना हुआ है. इस को बनाने में 22 साल लगे. ताजमहल को मुगल शैली के 4 बागों के साथ बनाया गया है. ताजमहल को आगरा के किले से भी देखा जा सकता है. शाहजहां को जब औरंगजेब ने किले में कैद कर दिया था तो उस समय वह वहां से ही ताजमहल को देखा करता था.

नीचे मुमताज महल की कब्र बनी है. ताजमहल को बनाने में बहुमूल्य रत्न और पत्थरों का प्रयोग किया गया था. सफेद संगमरमर से बने ताजमहल के  पास मखमली घास का मैदान है. इस के पिछले किनारे पर यमुना नदी बहती है. ताजमहल अपने अंदर बहुत सारी खूबियां समेटे हुए है. इस का एक हिस्सा गर्मियों में भी सर्दियों की ठंडक का एहसास कराता है. यहां पर खरीदारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. ताजमहल हर वर्ग, खासतौर से प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है. ताजमहल के सामने बैठ कर कोई भी फोटो खिंचवाना नहीं भूलता.  

आगरा का किला, ताजमहल की ही तरह अपने इतिहास के लिए जानापहचाना जाता है. आगरा का किला विश्व धरोहर माना जाता है. इस का निर्माण 1565 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा कराया गया था. इस के बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने इस का पुनर्निर्माण कराया. इस किले में जहांगीर महल, दीवाने ए खास, दीवाने ए आम और शीश महल देखने वाली जगहें हैं. यह किला अर्द्धचंद्राकार आकृति में बना है. इस की दीवार सीधे यमुना नदी तक जाती है. आगरा का किला 2.4 किलोमीटर परिधि में फैला हुआ है. सुरक्षा के लिहाज से किले की दीवारों को काफी मजबूत बनाया गया है.

फतेहपुरसीकरी आगरा से 35 किलोमीटर दूर बसा है. इस का निर्माण अकबर ने कराया था. यहां पर शेख सलीम चिश्ती की दरगाह थी. इस कारण अकबर ने अपनी राजधानी आगरा से हटा कर फतेहपुरसीकरी कर ली थी. यहां पर कई इमारतें बनी हैं जो मुगलकाल की वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं. फतेहपुरसीकरी में पानी की कमी के कारण अकबर को अपनी राजधानी वापस आगरा लानी पड़ी थी. फतेहपुर सीकरी के गेट को बुलंद दरवाजा कहते हैं. कहा जाता है कि बुलंद दरवाजा बिना नींव के बनाया गया है.

झांसी

झांसी शहर को आजादी की नायिका रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है. ग्वालियर हवाई अड्डा यहां से 98 किलोमीटर दूर है. यह शहर मुंबईदिल्ली रेलमार्ग पर पड़ता है. यहां के लिए मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, तिरुवनंतपुरम, कोलकाता, इलाहाबाद और लखनऊ जैसे तमाम शहरों से रेल सुविधा उपलब्ध है.  नैशनल हाईवे 25 और 26 से जुड़ा हुआ झांसी शहर अपनी ऐतिहासिक पहचान के लिए पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यहां के लिए खजुराहो, ग्वालियर, छतरपुर, महोबा, देवगढ़, ओरछा, लखनऊ, कानपुर, दतिया, शिवपुरी, फतेहपुर, चित्रकूट, जबलपुर से बस सेवा भी उपलब्ध है.

रानी लक्ष्मीबाई का किला इस शहर की सब से खास घूमने वाली जगह है. वर्ष 1857 में आजादी की लड़ाई में अंगरेजों ने जिस किले पर गोले बरसाए थे वह आज भी वैसा का वैसा खड़ा हुआ है. बंगरा की पहाड़ियों पर बना यह किला 1610 में राजा वीर सिंह जूदेव द्वारा बनवाया गया था. 18वीं शताब्दी में झांसी और उस के किले पर मराठों का अधिकार हो गया था. मराठों के अंतिम शासक गंगाधर राव थे जिन की मृत्यु 1853 में हो गई थी. उस के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने शासन की बागडोर संभाल ली थी.  किले में अष्टधातु की बनी ‘कड़क बिजली’ और ‘भवानी शंकर’ नामक 2 तोपें आज भी रखी हैं. 

रानी महल : इस इमारत को बाई साहब की हवेली के नाम से जाना जाता था.  यह महल शहर के बीच में बना हुआ है. इस का निर्माण रघुनाथ राव और महारानी लक्ष्मीबाई के समय में हुआ था. इसी वजह से इस को बाद में रानी महल कहा जाने लगा.  इस महल में रंगबिरंगी चित्रकारी देखने को मिलती है.  इसे देख कर पहले की शिल्पकला के बारे में पता चलता है.  किले में बड़ीबड़ी दालानें बनी हैं. उन में पत्थर की कारीगरी की गई है.  दीवारों पर बनी मेहराबों में भी प्राचीन कला का नमूना देखने को मिलता है. 

इतना पुराना होने के बाद भी यह महल पहले जैसा ही दिखता है. इस महल का भी आजादी की लड़ाई से पुराना रिश्ता है.  इसी महल में रह कर महारानी लक्ष्मीबाई ने अंगरेजों के खिलाफ लोहा लेने की योजना बनाई थी. अंगरेजों के साथ लड़ाई कैसे लड़नी है, इस बात का प्रशिक्षण यहीं दिया गया था.  अब इस रानी महल में पुरातात्विक विभाग का संग्रहालय है.

इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक नगर है. यह राजनीति, शिक्षा और फिल्म सभी के लिए बराबर मशहूर रहा है. इलाहाबाद गंगा, यमुना और न लुप्त हो चली सरस्वती नदी के किनारे पर बसा हुआ है.  इलाहाबाद से देश को 3 प्रधानमंत्री देने वाले नेहरू परिवार का करीबी रिश्ता रहा है.

यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है.  यहां एक रेतीला मैदान है जहां पर हर साल दिसंबर से फरवरी के बीच माघ मेले का आयोजन होता है. इस को कुंभनगरी के रूप में भी जाना जाता है.    

संगम तट पर बना अकबर का किला ऐतिहासिक इमारत है. किले के सामने एक अशोक स्तंभ भी बना है.  किले में जोधाबाई का रंगमहल भी बना हुआ है. बड़ेबडे़ पत्थरों की चारदीवारी से घिरा खुसरो बाग मुगलकाल की अद्भुत कला का नमूना है. लकड़ी के विशाल दरवाजे वाला खुसरो बाग जहांगीर के पुत्र खुसरो द्वारा बनवाया गया था. इस में अमरूद और आंवले के पेड़ों का बगीचा है. खुसरो और उस की बहन सुलतानुन्निसा की कब्रों पर बना ऊंचा मकबरा भी मुगलकालीन स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना है. 

आजाद पार्क : इस पार्क को कंपनी बाग के नाम से भी जाना जाता है. फूलों से सजा यह पार्क देखने लायक है.  यहां जाडे़ के दिनों में कुनकुनी धूप और गरमियों में शाम का मजा भी लिया जा सकता है. पार्क में लगी मखमली घास बैठने वालों को आरामदायक लगती है. इस पार्क का ऐतिहासिक महत्त्व है. आजादी की लड़ाई के नायक शहीद चंद्रशेखर आजाद जब अंगरेजों से घिर गए थे तब उन्होंने इसी पार्क में अपने को गोली मार ली थी.

आनंद भवन : यह इलाहाबाद की जानीमानी इमारत है. यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पैतृक आवास था.  इस को अब एक संग्रहालय का रूप दे दिया गया है.  इस में एक भव्य तारामंडल बना हुआ है.  इस इमारत को गांधीनेहरू परिवार की स्मृतियों की धरोहर के रूप में देखा जाता है.

बेवॉच में प्रियंका का हॉट अवतार

बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने अपनी आने वाली फिल्म ‘बेवॉच’ का नया पोस्टर साझा किया है. इस नए पोस्टर में प्रियंका चोपड़ा रेड कलर की ड्रेस में काफी आकर्षक दिख रही हैं. तस्वीर में प्रियंका ने स्टाइलिश सनग्लास लगाए हुए हैं. पोस्टर में सामने प्रियंका खड़ी हुई हैं और उनके पीछे विक्टोरिया लीड्स लिखा हुआ है. पिछले महीने प्रियंका ने फिल्म का पहला पोस्टर शेयर किया था और उस पोस्टर पर समर इज कमिंग लिखा हुआ था.

लोन लेने से पहले याद रखें ये 9 जरूरी बातें

हर व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी कर्ज लेने की आवश्यकता पड़ती है. जरूरत के हिसाब से कर्ज छोटा या बड़ा हो सकता है. मसलन, घर या गाड़ी खरीदते समय हमें बैंक से लोन की जरूरत पड़ती है. इसी तरह अचानक किसी बड़े खर्चे के आ जाने पर हम अपने किसी दोस्त, रिश्तेदार या ऑफिस में साथ काम करने वाले व्यक्ति से पैसे उधार लेते हैं अन्यथा बड़े खर्चे का भुगतान क्रेडिट कार्ड से करके उसको सुविधानुसार भविष्य में चुकाते हैं. इस तरह कर्ज भले छोटा हो या बड़ा, इसकी जरूरत समय समय पर हर किसी को पड़ती रहती है.

हम आपको कर्ज लेने से पहले जरूरी नौ बातों को ध्यान में रखने की सलाह देते हैं. ऐसा करने पर न तो आप कभी कर्ज के जाल में फंसेंगे और न ही आपको अपना बजट गड़बड़ाता महसूस होगा.

1. रिपेमेंट कैपेसिटी के अनुरूप ही लें उधार

कर्ज किसी भी माध्यम से लें इतना जरूर ध्यान रखें कि यह रकम आपकी कर्ज चुकाने की क्षमता के हिसाब से ही हो. अर्थात अपनी नियमित आय से पैसा बचा कर आप लोन की रकम एक निश्चित समय में चुका सकने में सक्षम हों.

एक्सपर्ट मानते हैं कि आपके कुल कर्ज की मासिक किश्त आपकी मासिक आय के 15 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. उदाहरण के तौर पर अगर आप 40,000 रुपए महीना कमाते हैं तो आपके सभी प्रकार के कर्ज की ईएमआई 6000 रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. इससे ज्यादा ईएमआई होने पर आपकी भविष्य की योजनाएं या मासिक बजट प्रभावित हो सकता है.

2. कर्ज कम से कम समयावधि के लिए लें

कर्ज चुकाने की समयावधि जितनी लंबी होती है उतनी ही ज्यादा राशि आपको लोन के भुगतान में चुकानी होती है. ऐसा माना जाता है कि लोन का कार्यकाल जितना छोटा हो उतना अच्छा है. कर्ज चुकाने की समयावधि बढ़ाने पर ईएमआई की राशि तो कम हो जाती है लेकिन कर्जदाता की ओर से चुकायी जाने वाली कुल रकम बढ़ जाती है.

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि कार्तिक ने 10 फीसदी की दर से 50 लाख रुपए का लोन 20 वर्षों के लिए लिया है. इसमें उसकी ईएमआई 48,251 रुपए होगी. अगर वह अपनी ईएमआई 5 फीसदी सालाना की दर से बढ़ा दे, तो यह लोन 12 साल में पूरा हो सकता है. वहीं ईएमआई 10 फीसदी की दर से सालाना बढ़ा देने पर लोन 9 वर्ष 3 महीने में खत्म हो जाएगा.

3. ईएमआई निश्चित समय पर ही दें

इस बात का ध्यान जरूर रखें कि कर्ज चाहे छोटे समय के लिए हो जैसे कि क्रेडिट कार्ड का बिल या लंबी अवधि का जैसे होम लोन, भुगतान समय पर करें. अगर आप एक भी किश्त देने से चूक जाते हैं या फिर पेमेंट में देरी करते हैं तो इसका असर सीधा क्रेडिट प्रोफाइल पर पड़ता है. जिसके कारण भविष्य में लोन लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

4. निवेश करने या फिजूलखर्ची के लिए कर्ज न लें

निवेश करने के लिए पैसे उधार न लें. निश्चित रिटर्न देने वाले निवेश विकल्प जैसे फिक्सड डिपॉजिट, बॉण्ड कभी भी लोन पर लिए जाने वाले ब्याज की बराबरी नहीं कर सकते. इक्विटी में निवेश बेहद अस्थिर होते हैं. अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कभी भी लोन न लें.

5. बड़ी राशि वाले लोन के साथ इंश्योरेंस जरूर लें

अगर आप होम लोन या कार लोन जैसा कोई बड़ा लोन लेते हैं तो साथ में इंश्योरेंस लेना न भूलें. जैसे कि लोन की राशि के बराबर का टर्म प्लान लें. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आपको कुछ हो जाता है और आप पर आश्रित लोग ईएमआई नहीं चुका पाते, तो कर्जदाता आपके एसेट्स ले लेता है. टर्म प्लान लेने से आपकी अनुपस्थिति में घर वालों को आर्थिक तंगी से नहीं जूझना पड़ेगा.

6. खरीदारी करते समय बाजार में कीमतों की तुलना कर लें

अगर आप कर्ज लेकर कोई संपत्ति खरीद रहे हैं तो बाजार में कीमतों की तुलना जरूर कर लें. सही डील मिलने पर आपको हो सकता है कि कम राशि का ही लोन लेना पड़े. लोन की राशि जितनी कम होगी कर्जदाता के लिए यह उतना ही अच्छा होगा.

7. कर्ज से जुड़ी शर्तें जरूर पढ़ें

किसी भी आकस्मिक स्थिती से बचने के लिए लोन लेते समय नियम व शर्तें जरूर पढ़ें. अगर आप कानूनी दस्तावेज का संदर्भ नहीं समझ पा रहे हैं तो किसी वित्तीय सलाहकार की मदद लें.

8. सभी कर्जों को एक जगह से लेने का प्रयास करें

अगर आपने एक से ज्यादा लोन ले रखे हैं और ये सब अलग अलग बैंक या वित्तीय कंपनियों से हैं, तो कोशिश कीजिए कि इन सभी को एक ही बैंक या वित्तीय कंपनी में ट्रांसफर करवा लें. लोन की रकम एक जगह हो जाने पर बैंक आपको बैलेंस ट्रांसफर जैसी सुविधाओं के अंतर्गत आकर्षक ब्याज दरें ऑफर कर सकता है. ऐसा करने से आप पर ईएमआई का बोझ कम हो जाएगा. साथ ही समय-समय पर मिलने वाली अतिरिक्त आय का भी इस्तेमाल कर्ज चुकाने के लिए करें. अगर आप नौकरीपेशा हैं तो कंपनी में बोनस मिलने पर, इंक्रीमेंट या इंसेंटिव हाथ आने पर आपको अपने कर्ज का भुगतान कर देना चाहिए.

9. भविष्य की योजनाओं को प्रभावित न करें

सरल शब्दों में समझें तो कभी भी अपने बच्चों की पढ़ाई या शादी के लिए रिटारमेंट फंड का इस्तेमाल न करें. पढ़ाई के लिए लोन और स्कॉलरशिप जैसे विकल्प मौजूद हैं जिसमें पढ़ाई का खर्चा कवर होता है. लेकिन बाजार में ऐसा कोई आकर्षक प्रोडक्ट नहीं जिसके जरिए आप अपनी रिटारमेंट की जरूरतों को पूरा कर सकें. ध्यान रखें कि रिटारमेंट योजना भी बच्चे की पढ़ाई जितनी ही जरूरी होती है. एक अच्छी फाइनेंशियल प्लानिंग की खासियत यही है कि एक जरूरत को पूरा करने के लिए दूसरी जरूरी चीज के प्लान को प्रभावित न करें.

फिर दिखेगा वरुण का डार्क और ग्रे शेड

‘बदलापुर’ में ग्रे शेड्स के साथ कैरेक्टर को निभा कर वरुण धवन ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया था. तब तक वे ज्यादातर हल्की-फुल्की फिल्में ही किया करते थे जिनमें नाच-गाना हुआ करता था. फिल्ममेकर सुजीत सरकार फिल्म ‘बदलापुर’ में वरुण के अभिनय से काफी प्रभावित हुए है और उन्होंने अपनी अगली फिल्म के लिए वरुण को ले लिया है. वरुण इस फिल्म में डार्क और ग्रे शेड्स वाला किरदार निभाएंगे. 

इस समय वरुण एक ओर नाच-गाने से भरपूर ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ कर रहे हैं तो दूसरी ओर कॉमेडी फिल्म ‘जुड़वां 2 भी कर रहे हैं. अब सुना जा रहा है कि सुजीत सरकार की फिल्म कुछ अलग तरह की होगी.  

सुजीत सरकार के साथ काम करना वरुण के लिए अनोखा अनुभव होगा. विकी डोनर (2012), मद्रास कैफे (2013), पीकू (2015) जैसी नामी फिल्में सुजीत अब तक निर्देशित कर चुके हैं.

फिल्म रिव्यू : मोना डार्लिंग

सामाजिक रोमांचक व रहस्य प्रधान फिल्म ‘‘मोना डार्लिंग’’ देखकर एहसास होता है कि एक अच्छी कथा को सिनेमा के पर्दे पर उतारते हुए किस तरह बंटाधार किया जा सकता है. कहानी एक कॉलेज कैंपस के इर्द गिर्द घूमती है, जहां मोना के साथ पढ़ रहे चार लड़कों की रहस्यमय तरीके से मौत हो जाती है. जबकि मोना (सुजाना मुखर्जी) गायब है. पुलिस इसकी जांच पड़ताल शुरू कर देती है. उधर मोना की दोस्त सारा (दिव्या मेनन) अपने एक अन्य दोस्त व कंप्यूटर में माहिर विक्की (अंशुमन झा) की मदद से मोना की तलाश शुरू करती है. सारा को कहीं से कोई जवाब नहीं मिल रहा.

सारा कॉलेज के डीन (संजय सूरी) के पास जाती है, जहां पहले से ही पुलिस इंस्पेक्टर कमल मौजूद हैं. वह डीन से कहती है कि, ‘मोना गायब है. उसका पता नहीं चल रहा हैं.’  इस पर डीन उसे जवाब देता है कि, ‘तुम जाओ, हम देख लेंगे.’ डीन के पास से सारा निराश होकर लौट आती है. तब कंप्यूटर का मास्टर विक्की उसकी मदद के लिए तैयार होता है. विक्की व सारा रात के अंधेरे में उस जगह पर जाते हैं, जहां उन चारों विद्यार्थियों की लाश मिली थी. वहां उन्हें कालेज के ट्रस्टी के बेटे समीर की लाश मिलती है और उन्हें एहसास होता है कि वहां पर कोई आया है, तो वह दोनों वहां से डर कर भागते हैं.

दूसरे दिन सारा, विक्की को बताती है कि मोना तो समीर से प्यार करती थी. लेकिन एक दिन प्यार करते हुए समीर उसका वीडियो बना लेता है, इसका पता चलने पर मोना ने समीर के मुंह पर चांटा जड़कर समीर से रिश्ता खत्म कर दिया था. समीर ने गुस्से में मोना को बदनाम करने के लिए उस वीडियो को फेसबुक पर डाल दिया. तब विक्की उस फेसबुक पेज को तलाशता है, तथा यह सच सामने आता है कि जिसने भी मोना के इस पेज से भेजी गयी फ्रेंडशिप को स्वीकार किया, वह मारा गया. सारा व विक्की यह बात पुलिस इंस्पेक्टर कमल और डीन को बताते हैं. डीन इस आईडी को बंद करने के लिए कहते हैं. लेकिन मोना का अब तक कोई पता नहीं है.

एक दिन सारा को मोना की लाश मिल जाती है और उसे लगता है कि उसने आत्महत्या कर ली है. मगर इसी बीच विक्की के हाथ एक सबूत लगता है, जिससे जाहिर होता है कि मोना की हत्या की गयी है. तब वह यह सच बताने के लिए सारा के पास जाता है. वह सारा को डीन सर के पास जाने को कहता है और खुद लायब्रेरी जाता है. सारा डीन के घर का दरवाजा खटखटाती है. डीन उसे घर के अंदर बैठाते हैं. उधर विक्की कंप्यूटर पर कुछ ढूंढ़ रहा है. जबकि सारा की नजर डीन के घर के अंदर टंगी एक पेटिंग पर पड़ती है. और उसे कुछ याद आता है. वह ऊपर कमरे की तरफ बढ़ना चाहती है.

तभी डीन आकर उसे बताते हैं कि एक दिन मोना भी उनके घर की चाभी चुराकर यहां आई थी और उनके गुप्त रूम का ताला खोलकर अंदर गई थी. तब उसे एक रूम में डीन की पत्नी एक स्ट्रेचर पर मिली थी, जिसकी मौत पांच वर्ष पहले हो चुकी थी. पर डीन ने प्यार के कारण उसकी लाश को रखा हुआ है क्योंकि डीन का दावा है कि वह अपने प्यार की ताकत के बल पर एक न एक दिन अपनी पत्नी को जिंदा कर देगा. डीन की पत्नी की लाश देखकर मोना भागना चाहती है, पर उसी वक्त वहां डीन आ जाता है. अब डीन उसे पकड़कर एक प्रयोग शुरू करता है. लेकिन प्रयोग सफल नहीं हो पाता है और मोना की मौत हो जाती है. पर उसी प्रयोग की वजह से मोना की आईडी में कुछ गड़बड़ी हो जाती है.

तब सारा अपनी जान बचाने के लिए डीन सर के उपर एक लोहे का सामान उठाकर मारती है और डीन बेहोश हो जाते हैं. सारा, विक्की को फोन लगाती है, पर उस वक्त विक्की अपने फोन से दूर होता है, इसलिए उसे पता नहीं चलता. सारा डीन के हाथ पैर बांधकर पुलिस को फोन करती है. पुलिस अफसर को वह सारी कहानी बताती है. पर वह पुलिस इंस्पेक्टर कमल भी डीन से मिला हुआ होता है. इसलिए वह पुलिस इंस्पेक्टर, सारा को ही बेहोश कर देता है और डीन के बंधन खोलकर सारा को लेकर उसी रूम में जाते हैं और सारा को उसी स्ट्रेचर पर लिटाते हैं, जिस पर मोना को लिटाकर असफल प्रयोग किया था.

इधर कंप्यूटर पर खोज कर रहे विक्की को मोना पर डीन के प्रयोग करने का वीडियो मिलता है. अब उसे समझ में आ जाता है कि सारा की जिंदगी खतरे में है. वह तुरंत डीन के घर जाता है. पुलिस इंस्पेक्टर कमल, विक्की पर गोली चलाता है. विक्की गिरता है. पर विक्की, मोना की फेसबुक आईडी पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने में सफल हो जाता है. कमरे की लाइट जलने व बुझने लगती है. कंप्यूटर में से एक रोशनी निकलती है, जो कि मोना की आत्मा है, वह पुलिस इंस्पेक्टर कमल और डीन को मारकर गायब हो जाती है. सायरा को होश आता है. विक्की भी बच जाता है. सब कुछ सामान्य हो जाता है.

फिल्म ‘‘मोना डार्लिंग’’ की कहानी में कुछ भी नयापन नहीं है. बल्कि यह फिल्म 2002 की अमरीकन सुपरनेचुरल पॉवर वाली फिल्म ‘‘रिंग’’, 1998 की जापानी सायकोलॉजिकल फिल्म ‘‘रिंग’’,‘वॉर्नर ब्रदर्स’ की फिल्म ‘‘फ्रेंड्स रिक्वेस्ट’’ को मिलाकर बनायी गयी चूंचूं का मुरब्बा है. मजेदार बात यह है कि हाल ही में अमरीका में एक बार फिर ‘रिंग’ का रीमेक किया गया है, जो कि बहुत जल्द प्रदर्शित होने वाली है.

फिल्म बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है. फिल्म के एडीटर ने भी फिल्म को तहस-नहस किया है. फिल्म के अंदर एक ही गाना है. बीच पर फिल्माया गया यह रोमांटिक गाना बहुत ही घटिया है और फिल्म के साथ कहीं भी फिट नहीं बैठता. गाने के बोल व संगीत बहुत घटिया हैं. फिल्म की पटकथा में गड़बड़ी है. हत्यारे के बारे में बीस मिनट बाद ही एहसास हो जाता है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो अंशुमन झा, सुजाना मुखर्जी और दिव्या मेनन ने ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर संजय सूरी ने यह फिल्म क्यों की, यह बात समझ से परे हैं. 1 घंटा 59 मिनट की अवधि की फिल्म ‘‘मोना डार्लिंग” का निर्माण ‘‘फस्ट रे फिल्मस’’ और ‘‘अल्ट जे फिल्मस’’ के बैनर तले निखिल चैधरी, कैलाश के, पंकज गारडी, हितेश गारीडी ने किया है.

लेखक व निर्देशक शशी सुदिगल, गीतकार समीर सतीजा, संगीतकार मनीष जे टीपु, कास्ट्सूम तानिया ओयक, नृत्य निर्देशक जयेश प्रधान, कला निर्देशक दीपांकर मोंडल, कैमरामैन सपन नरूला, एडीटर आसिफ पठान, पार्श्व संगीत सुदीप स्वरुप, नृत्य निर्देशक जयेश प्रधान तथा कलाकार हैं- सुजाना मुखर्जी, अमिष्का सूद, आशीष चैधरी, यश योगी, योगेश भट्ट, सूर्यवीर यादव, हर्ष नागर, सुशांत वशिष्ठ, दिव्या मेनन, ध्रुव हाइना लोहुमी, आचार्य अजय वर्मा, सचिन कथूरिया, नरेश मोसेन, संदीप बासु, बिमलेंदू जेना, संजय सूरी, अंशुमान झा, मुकेश भट्ट, तारा खान, प्रशांत सिंह व अन्य.

फिल्म रिव्यू : रंगून

दुखांत फिल्में बनाने वाले फिल्मकार के रूप में पहचान रखने वाले विशाल भारद्वाज इस बार भी अपनी फिल्म ‘‘रंगून’’ में वही सब लेकर आना चाहते थे, लेकिन इस बार विशाल भारद्वाज बुरी तरह से मात खा गए हैं. ये फिल्म तो जैसे खत्म होते होते मनोरंजन देने की बजाय थका देती है.

फिल्म की कहानी 1943 की पृष्ठभूमि पर आधारित है. भारत में मौजूद ब्रिटिश सैनिक हिटलर से लड़ाई लड़ रहे हैं और उधर सुभाषचंद्र बोस सिंगापुर में ‘आजाद हिंद फौज’ गठित कर ब्रिटिश सेना से युद्ध कर अंग्रेजों को भारत से भगाकर देश को आजाद कराना चाहते हैं. ब्रिटिश सेना में ही कार्यरत सैनिक जमादार नबाब मलिक (शाहिद कपूर) कुछ सैनिकों को मारकर और जापान की जेल से भागकर भारत पहुंचता है और अपने ब्रिटिश सेना के मुखिया जनरल डेविड हार्डिंग्स (ब्रिटिश अभिनेता रिचर्ड मैकबे) से कहता है कि उसने आजाद हिंद फौज के 27 सैनिकों को मार गिराया है.

उधर फिल्मकार रूसी बिलमोरिया (सैफ अली खान) जूलिया (कंगना रानौट) को लेकर एक्शन फिल्म बना रहे हैं. रूसी ने अनाथ जूलिया को हजार रूपए में खरीदा और फिल्म बनाते-बनाते रूसी को जूलिया से प्यार हो जाता है. उधर जूलिया के साथ रूसी की हर फिल्म सुपर हिट हो रही है. फिल्म की एक पार्टी में ब्रिटिश सेना के डेविड के अलावा भारत के एक राजा अपनी तीन पत्नियों के साथ पहुंचते हैं. जहां वह राजा एक तलवार दिखाते हुए डेविड से पूछता है कि यह तलवार उन्हें उपहार में दी जाए या वह इसे छीनकर लेना चाहेंगे. राजा कहता है कि यह तलवार आजाद हिंद फौज को जीतने के लिए बारूद व हथियार दिला सकती है. डेविड छीनने की बात कहकर राजा को तलवार वापस दे देता है. अब डेविड, रूसी के सामने प्रस्ताव रखता है कि वह जूलिया के साथ बर्मा में उनके सैनिकों के मनोरंजन के लिए कार्यक्रम करे. रूसी तैयार हो जाते हैं. राजा व जमादार नबाब मलिक मिलकर योजना बनाते हैं. जूलिया के मेकअप मैन व स्पॉट ब्वॉय जूफी से मिलकर जूलिया के बक्से में तलवार रखवा देते हैं, जिससे वह तलवार आजाद हिंद फौज तक पहुंच जाए.

जब सभी लोग बर्मा जाने के लिए मुंबई से ट्रेन में सवार होते हैं, पर ऐन वक्त पर रुसी को रूकना पड़ता है. उधर रेलवे ट्रैक दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से बर्मा के पास ट्रेन रूक जाती है. सभी नदी से बर्मा पहुंचने का प्रयास करते हैं, तभी आजाद हिंद फौज के सैनिक हमला कर देते हैं. इसमें जूफी गायब हो जाता है. जूलिया व नबाब मलिक एक साथ होते हैं, बाकी लोग निकल जाते हैं.

अपने रास्ते पर आगे बढ़ते हुए जंगल के रास्तें कीचड़ में गुत्था गुथ्थी करते करते जूलिया व नबाब मलिक में प्यार हो जाता है. पर अंत में डेविड अपने सैनिकों के साथ जूलिया व नबाब को ढूंढ़ लेते हैं. अब रूसी भी पहुंच जाते हैं. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः रुसी, नबाब मलिक के खून के प्यासे हो जाते हैं. डेविड को शक हो जाता है कि उनकी सेना में आजाद हिंद फौज के कुछ जासूस हैं. वह जांच शुरू कर देता है. पर अंत में नबाब मलिक व जूलिया मारे जाते हैं. रूसी ही आजाद हिंद फौज तक उस तलवार को पहुंचाते हैं.

फिल्म ‘रंगून’ शुरू होने के चंद मिनटों के बाद ही इतिहास से हटकर त्रिकोणीय प्रेम कहानी में बदल जाती है. इंटरवल के बाद अचानक देशभक्ति का तड़का जोड़ दिया जाता है, पर फिल्म देखते समय ये अहसास होता है कि मखमल के पर्दे पर जगह जगह पैबंद लगे हुए हैं. विशाल भारद्वाज का मकसद द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में एक प्रेम कहानी के साथ देशभक्ति की भावना को पर्दे पर उकेरना था, पर वह अपने इस मकसद में बुरी तरह से मात खा गए. शायद विशाल भारद्वाज स्वयं ये भूल गए कि वह फिल्म को कहां से कहां ले जाना चाहते हैं. पूरी फिल्म मैलोड्रैमैटिक लगती है. फिल्म में संजीदगी का घोर अभाव है. फिल्म में ब्रिटिश सेना के अफसर को जोकर बनाकर पेश किया गया है, जो कि किसी अजूबे जैसा लगता है.  

सैफ अली, कंगना रानौट व शाहिद कपूर की मौजूदगी और अरुणाचल प्रदेश जैसी खूबसूरत व अच्छी लोकेशन के बावजूद भी विशाल भारद्वाज, अपनी फिल्म में इतिहास को ठीक से उकेर पाने में असफल रहे. इतिहास को सही ढंग से उकेरने के लिए जिन चीजों और आस पास के माहौल की जरुरत होती है, उसे भी गढ़ने में विशाल विफल रहे. कीचड़ व मिट्टी में सने प्यार करते, कंगना रानौट व शाहिद कपूर दोनों की पोशाक पर मेहनत की गयी है, पर इसके बाद भी दोनों किरदार अच्छे से नहीं उभर पाते.

स्टंट क्वीन नाडिया की नकल पर रचे गए जूलिया के किरदार में कंगना रानौट कुछ जगहों पर ध्यान खिंचती हैं. चलती ट्रेन की छत पर भागने के अलावा उनसे कुछ स्टंट सीन अच्छे बन पड़े हैं. कंगना रानौट ने अपनी तरफ से काफी मेहनत की है, मगर कमजोर पटकथा के चलते वह दर्शकों के दिल में अपनी जगह नही बना पांई. इसी तरह सैफ अली खान इस फिल्म में एक्शन प्रधान फिल्म निर्माता, रूसी के रूप में बेहतर जमे हैं. कई जगह उनके किरदार में भी दुविधा नजर आती है, पर यह भी एक कमजोर पटकथा की ही निशानी है. शाहिद कपूर भी अपेक्षाओं पर कुछ खास खरे नही उतरे हैं. 

जहां फिल्म के गीत-संगीत का सवाल है, तो वे सारे अच्छे है. फिल्म के कुछ संवाद बेहतरीन बने हैं, मगर कहीं-कहीं कहानी में सही पटकथा का अभाव खलता है. फिल्म के कैमरामैन पंकज कुमार ने बेहतरीन काम किया है, बस इस बार फिल्म में नाटकीयता पिरोने में विशाल भारद्वाज बुरी तरह से असफल रहे हैं. यदि आप ‘मकबूल’, ‘ओमकारा’, ‘हैदर’ वाले विशाल भारद्वाज को ‘रंगून’ में तलाशेंगे, तो आपको घोर निराशा मिलेगी.

विशाल भारद्वाज, आशीष पॉल व वॉयकाम 18 निर्मित फिल्म ‘‘रंगून’’ की पूरी टीम मे फिल्म के निर्देशक व संगीतकार विशाल भारद्वाज, लेखक विशाल भारद्वाज, मैथ्यू रॉबिन्स व सब्रीना धवन, कैमरामेन पंकज कुमार तथा कलाकारों हैं कंगना रानौट,सैफ अली, शाहिद कपूर, रिचर्ड मैकबे व अन्य.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें