जीवन में गंभीरता भी जरूरी

देश की समस्याओं का अब एक बड़ा कारण लोगों का भावनाओं में बह जाना और समस्याओं को मजाक में उड़ा देना है. एक तरफ धार्मिक धुआंधार प्रचार और दूसरी तरफ मोबाइल की चुहलबाजी ने मानसिकता को कुंद कर दिया है और लोगों का सोचविचार इतना कम हो गया है कि नोटबंदी जैसे मामले पर भी सोशल मीडिया में मजाक ज्यादा चले, इस प्रहार की मार का दर्द कम उजागर हुआ.

जीवन एक संघर्ष है. न फसल मजाक से पैदा होती है, न मकान हंसी और चुटकुलों से बनते हैं, न ही बच्चे प्रवचनों से पैदा होते हैं और न भाषणों से बड़े होते हैं. जीवन में गंभीरता की जरूरत होती है और जिस समाज ने यह गंभीरता खो दी, मूर्खता में या दंभ में वह मरेगा ही. पंजाब एक समय देश का सब से उन्नत राज्य था पर दंभ, धर्म, शराब, नशे और मजाक ने उसे आज इस तरह गर्त में डाल दिया कि ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्म बन सके.

आप जीवन में कितनी गंभीर हैं, क्या पूछा खुद से? कितना समय मोबाइलों पर चुटकुले फौरवर्ड करने या किट्टी पार्टियों में निरर्थक तंबोलों में खर्च करती हैं या कितना समय समस्याओं को जानने और पहचानने की कला को विकसित करने में लगाती हैं? हमारे यहां पढ़ीलिखी, शिक्षित अध्यापिकाएं भी न विचारकों की बातें करती हैं न किताबें पढ़ती हैं और न कुछ लिखती हैं. उन का समय शौपिंग में, टीवी या रिपीट होती फिल्में देखने में, फोन पर गप्पें मारने या कान में इयरफोन ठूंस कर पुराने गाने बारबार सुनने में व्यर्थ हो रहा है.

जब कोई समस्या आती है तो हाथपैर फूल जाते हैं, क्योंकि जिस से सलाह मांगो वह मुंह छिपा लेता है. किसी को कुछ समझ हो तो बताए न? समझ तो तब आएगी जब दूसरों की, देश की, समाज की, विश्व की, भूगोल की, पर्यावरण की समस्या पर ध्यान दिया हो. गंभीर चर्चाएं करने वालों को अमेरिका जैसे देश में भी ‘नर्ड’ कह कर अपमानित किया जाता है.

यह समाज मूर्खों का समूह बन रहा है, जिस में क्रिकेटरों और फिल्मी सितारों के जीवन के हर पल की चिंता है पर अपनी आने वाली आफत की नहीं.

गंभीर जने को यहां एकाकीपन की कैद में डाला जा रहा है. उसे किसी भी ग्र्रुप में ऐरोगैंट एजुकेटेड कह कर अलगथलग कर दिया जाता है. बहाव के विरुद्ध सोचने वाले को अजूबा मान लिया जाता है. उसे बदलने का संकल्प करें ताकि जीवन सुधरे.

वादियों का प्रदेश उत्तराखंड

शीतल आबोहवा, हरेभरे मैदान और खूबसूरत पहाडि़यां, ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने यहां अपने अनुपम सौंदर्य की छटा दिल खोल कर बिखेरी है. यही वजह है कि देशी और विदेशी पर्यटक यहां अनायास खिंचे चले आते हैं और सुकून अनुभव करते हैं. अपनी इन्हीं खूबियों के चलते उत्तराखंड घुमक्कड़ों की चहेती जगह है.

भारत के राज्यों में उत्तराखंड पर्यटन के लिहाज से अद्वितीय है. राज्यभर में पूरे साल देशविदेश के सैलानियों का तांता लगा रहता है. यहां पर्यटन स्थलों की भरमार है, प्राकृतिक खूबसूरती है, हरियाली है, पर्वत हैं, झीलें हैं, कलकल करती नदियां हैं.

नैनीताल

नैनीताल की बड़ी खासीयत यहां के ताल हैं. इसी कारण नैनीताल को तालों का शहर भी कहा जाता है. यहां पर कम खर्च में हिल टूरिज्म का भरपूर मजा लिया जा सकता है. काठगोदाम, हल्द्वानी और लालकुआं नैनीताल के करीबी रेलवे स्टेशन हैं. इन स्टेशनों से पर्यटक बस या टैक्सी के द्वारा आसानी से नैनीताल पहुंच सकते हैं. यह हनीमून कपल के लिए पसंदीदा जगह है.

नैनीताल को अंगरेजों ने हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया था. नैनीताल शहर के बीचोंबीच नैनी  झील है. इस  झील की बनावट आंखों की तरह की है. यहां पर वोटिंग का मजा लिया जा सकता है. इसी कारण इस को नैनी और शहर को नैनीताल कहा जाता है. काठगोदाम नैनीताल का सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. काठगोदाम से नैनीताल के लिए जब आगे बढ़ते हैं तो ज्योलिकोट में चीड़ के घने वन दिखाई पड़ते हैं. यहां से कुछ दूरी पर कौसानी, रानीखेत और जिम कौर्बेट नैशनल पार्क भी पड़ते हैं.

ज्योलिकोट कई पहाडि़यों से घिरी हुई जगह है.  गरमियों के सीजन में नैनीताल में रुकने की जगह नहीं मिलती, ऐसे में जिन लोगों को एकांत पसंद हो वे नैनीताल घूम कर ज्योलिकोट में रुक सकते हैं. यहां पर ठहरने के लिए कई हिल रिजोर्ट हैं. यहां के जंगलों में खूबसूरत पक्षियों के कलरव को सुना जा सकता है.  सीजन में बर्फबारी को भी यहां से देख सकते हैं. नैनीताल के आसपास कई खूबसूरत जगहें हैं, जहां घूमने का मजा भी लिया जा सकता है.

दर्शनीय स्थल

भीमताल : इस की लंबाई 448 मीटर और चौड़ाई 175 मीटर है. भीमताल की गहराई 50 मीटर तक है. भीमताल के 2 कोने तल्लीताल और मल्लीताल के  दोनों कोने सड़क से जुडे़ हैं. नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 किलोमीटर है.

नौकुचियाताल : यह भीमताल से 3 किलोमीटर दूर उत्तरपूर्व की ओर 9 कोनों वाला ताल है. नैनीताल से इस की दूरी 26 किलोमीटर है. नौकुचियाताल की खासीयत इस के टेढ़ेमेढे़ कोने हैं. ये 9 कोने किसी को एकसाथ दिखाई नहीं देते हैं.

सातताल : यह कुमाऊं इलाके का सब से खूबसूरत ताल है. इतना सुंदर कोई दूसरा ताल नहीं है. इस ताल तक पहुंचने के लिए भीमताल से हो कर रास्ता गुजरता है. भीमताल से इस की दूरी 4 किलोमीटर है. नैनीताल से यह 21 किलोमीटर दूर स्थित है.  साततालों में नलदमयंती ताल सब से अलग है.

खुर्पाताल : यह नैनीताल से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.  इस ताल का गहरा पानी इस की सब से बड़ी सुंदरता है.  यहां पर पानी के अंदर छोटीछोटी मछलियों को तैरते हुए देखा जा सकता है. इन को रूमाल के सहारे पकड़ा भी जा सकता है. खुर्पाताल के साफ और स्थिर पानी में पहाड़ों की सुंदरता को देखा जा सकता है.

रोपवे : यह नैनीताल का सब से प्रमुख आकर्षण है. यह स्नोव्यू पौइंट और नैनीताल को जोड़ता है. यह मल्लीताल से शुरू होता है. यहां पर 2 ट्रौलियां हैं जो सवारियों को ले कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाती हैं. रोपवे से पूरे नैनीताल की खूबसूरती को देखा जा सकता है. नैनीताल का माल रोड यहां का सब से आधुनिक बाजार है. माल रोड पर बहुत सारे होटल, रेस्तरां, दुकानें और बैंक हैं.

कौसानी

कौसानी को भारत की सब से खूबसूरत जगह माना जाता है. कौसानी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से 53 किलोमीटर उत्तर में बसा है. यह बागेश्वर जिले में आता है. यहां से हिमालय की सुंदर वादियों को देखा जा सकता है. कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है. यहां पहुंचने के लिए रेल मार्ग से पहले काठगोदाम आना पड़ता है. यहां से बस या टैक्सी के द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है. दिल्ली के आनंद विहार बस स्टेशन से कौसानी के लिए बस सेवा मौजूद है. अपने खूबसूरत प्राकृतिक नजारे और

आकर्षण के चलते कौसानी घूमने वालों को अपनी ओर खींचती है. बर्फ से ढकी नंदा देवी चोटी का नजारा यहां से भव्य दिखाई देता है.

दर्शनीय स्थल

कौसानी में सब से अच्छी घूमने वाली जगह यहां के चाय बागान को माना जाता है. यहां आने वाले यहां की चाय की खरीदारी करना नहीं भूलते हैं. यहां के अनासक्ति आश्रम को गांधीजी का आश्रम भी कहा जाता है. यह आश्रम अध्ययन कक्ष और पुस्तकालय देखने वालों को आकर्षित करता है.

कौसानी से बर्फ से ढके पहाड़ों को भी देखा जा सकता है. यहां से चौखंबा, नीलकंठ, नंदाघुंटी, त्रिशूल, नंदादेवी, नंदाखाट, नंदाकोट और पंचकुली शिखर देखे जा सकते हैं.    

देहरादून

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून शिवालिक पहाडि़यों में बसा एक बहुत ही खूबसूरत शहर है. घाटी में बसे होने के कारण इस को दून घाटी भी कहा जाता है. देहरादून में दिन का तापमान मैदानी इलाके सा होता है पर शाम ढलते ही यहां का तापमान कम हो जाता है. देहरादून के पूर्व और पश्चिम में गंगायमुना नदियां बहती हैं. इस के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में शिवालिक पहाडि़यां हैं. शहर को छोड़ते ही जंगल का हिस्सा शुरू हो जाता है. यहां पर वन्यप्राणियों को भी देखा जा सकता है. देहरादून प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा शिक्षा संस्थानों के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां के स्कूलों में भारतीय सैन्य अकादमी, दून स्कूल और ब्राउन स्कूल प्रमुख हैं.

दर्शनीय स्थल

सहस्रधारा : देहरादून में घूमने के लिए कई जगहें हैं. जो यहां आता है वह मसूरी जरूर घूमने जाता है. घूमने के हिसाब से देखें तो सहस्रधारा सब से करीब की जगह है. सहस्रधारा गंधक के पानी का प्राकृतिक स्रोत है. देहरादून से इस की दूरी 14 किलोमीटर है. जंगल से घिरे इस इलाके में बालदी नदी में गंधक का स्रोत है.  इस का पानी भर कर लोग घरों में ले जाते हैं. कहते हैं कि गंधक का पानी स्किन की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है.

गुच्चू पानी : सहस्रधारा के बाद गुच्चू पानी नामक जगह भी देखने लायक है. यह शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गुच्चू पानी जलधारा है. इस का पानी गरमियों में ठंडा और जाड़ों में गरम रहता है. गुच्चू पानी आने वाले लोग अनारावाला गांव तक कार या बस से आते हैं.

खलंग स्मारक : देहरादून से सहस्रधारा जाने वाले रास्ते के बीच ही खलंग स्मारक बना हुआ है. यह अंगरेजों और गोरखा सिपाहियों के बीच हुए युद्ध का गवाह है.

चंद्रबदनी :  देहरादून- दिल्ली मार्ग पर बना चंद्रबदनी एक बहुत ही सुंदर स्थान है. देहरादून से इस की दूरी 7 किलोमीटर है. यह जगह चारों ओर पहाडि़यों से घिरी हुई है. यहां पर एक पानी का कुंड भी है. अपने सौंदर्य के लिए ही इस का नाम चंद्रबदनी पड़ गया है.

लच्छीवाला : देहरादून से 15 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बसी इस खूबसूरत जगह को लच्छीवाला के नाम से जाना जाता है. जंगल में बहती नदी के किनारे होने के कारण यहां पर लोग घूमने जरूर आते हैं.

कालसी : देहरादून- चकराता रोड पर 50 किलोमीटर की दूरी पर कालसी स्थित है. यहां पर सम्राट अशोक के प्राचीन शिलालेख देखने को मिल जाते हैं. यह लेख पत्थर की बड़ी शिला पर पाली भाषा में लिखा है. पत्थर की शिला पर जब पानी डाला जाता है तभी यह दिखाई देता है.

चीला वन्यजीव संरक्षण उद्यान : गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 1977 में चीला वन्य संरक्षण उद्यान बनाया गया था. यहां पर हाथी, टाइगर और भालू जैसे तमाम वन्य जीव पाए जाते हैं. नवंबर से जून का समय यहां घूमने के लिए सब से उचित रहता है. देहरादून से यहां आने के लिए अपने साधन का प्रयोग करना पड़ता है.

मसूरी

मसूरी दुनिया की उन जगहों में गिनी जाती है जहां पर लोग बारबार जाना चाहते हैं. इसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है. मसूरी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 35 किलोमीटर दूर स्थित है. देहरादून तक आने के लिए देश के हर हिस्से से रेल, बस और हवाई जहाज की सुविधा उपलब्ध है. मसूरी हिमालय पर्वतमाला की शिवालिक श्रेणी में आती है. इस के उत्तर में बर्फ से ढके पर्वत दिखते हैं और दक्षिण में खूबसूरत दून घाटी दिखती है.

मुख्य आकर्षण

गन हिल : मसूरी के करीब दूसरी ऊंची चोटी पर जाने के लिए रोपवे का मजा घूमने वाले लेते हैं. यहां पैदल रास्ते से भी पहुंचा जा सकता है. यह रास्ता माल रोड पर कचहरी के निकट से जाता है. यहां पहुंचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है. रोपवे की लंबाई केवल 400 मीटर है. गन हिल से हिमालय पर्वत शृंखला देखा जा सकता है.

म्युनिसिपल गार्डन :  मसूरी का कंपनी गार्डन आजादी से पहले तक बोटैनिकल गार्डन कहलाता था.  कंपनी गार्डन क ा  निर्माण भूवैज्ञानिक डा. एच फाकनर लोगी ने किया था. 1842 के आसपास उन्होंने इस जगह को सुंदर उद्यान में बदल दिया. इसे कंपनी गार्डन या म्युनिसिपल गार्डन कहा जाने लगा.

कैमल बैक रोड : कुल 3 किलोमीटर लंबी यह रोड रिंक हौल के समीप कुलीर बाजार से शुरू होती है. यह लाइब्रेरी बाजार पर जा कर खत्म होती है. इस सड़क पर पैदल चलना या घुड़सवारी करना अच्छा लगता है. सूर्यास्त का दृश्य बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है.

कैंपटी फौल : यमुनोत्तरी रोड पर मसूरी से 15 किलोमीटर दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित कैंपटी फौल मसूरी की सब से सुंदर जगह है. यह मसूरी का सब से बड़ा और खूबसूरत  झरना है. यह चारों ओर ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. कैंपटी फौल में नहाने के बाद पर्यटक अपने को तरोताजा महसूस करते हैं.

मसूरी  झील : मसूरी- देहरादून रोड पर मूसरी  झील के नाम से नया पर्यटन स्थल बनाया गया है. यह मसूरी से 6 किलोमीटर दूर है. पैडल बोट से  झील में घूमने का आनंद लिया जा सकता है.

वाम चेतना केंद्र : टिहरी बाईपास रोड पर लगभग 2 किलोमीटर दूर एक नया पिकनिक स्पौट बनाया गया है. यहां तक पैदल या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है. इस पार्क में वन्यजीव जैसे घुरार, कंणकर, हिमालयी मोर और मोनल आदि रहते हैं.

दर्शनीय स्थल

यमुना ब्रिज : मसूरी से 27 किलोमीटर चकराता-बारकोट रोड पर यमुना ब्रिज स्थित है. यह फिशिंग के लिए सब से अच्छी जगह है. परमिट ले कर यहां फिशिंग की जा सकती है.

चंबा : मसूरी से लगभग 56 किलोेमीटर दूर चंबा स्थित है. इस को टिहरी भी कहते हैं. यहां पहुंचने के लिए लोगों को जिस सड़क से हो कर गुजरना पड़ता है वह फलों के बागानों से घिरी है. वसंत के मौसम में फलों से लदे वृक्ष देखते ही बनते हैं.

ट्रैकिंग का मजा

मसूरी-नागटिब्बा : मसूरी से नागटिब्बा मार्ग की दूरी लगभग 62 किलोमीटर है. नागटिब्बा से हिमालय की चोटी के शानदार दृश्य को देखा जा सकता है. यहां से पंथवाडी, नैनबाग और कैंपटी फौल की दूरी को कवर किया जा सकता है.

मसूरी-धनौल्टी : 26 किलोमीटर लंबे मसूरीधनौल्टी मार्ग पर हिमालय की चोटियों और घाटी के कुछ दिल दहला देने वाले दृश्य दिखाई देते हैं.

अल्मोड़ा

यह उत्तराखंड का सब से खास शहर है. हल्द्वानी, काठगोदाम और नैनीताल से बस या टैक्सी से यहां पहुंचा जा सकता है.

दर्शनीय स्थल

भवाली के रास्ते से जब अल्मोड़ा के लिए जाया जाता है तो रास्ते में कैंची जगह पड़ती है. यह भवाली से 7 किलोमीटर की दूरी पर है. प्रकृति का आनंद लेने वाले पर्यटकों के रुकने के लिए यहां पर धर्मशालाएं बनी हैं. कैंची से आगे गरमपानी नामक छोटी सी जगह है. यहां पर्यटक खानेपीने के लिए रुकते हैं. यहां का पहाड़ी खाना घूमने वालों को खूब पसंद आता है. इस से कुछ आगे बढ़ने पर खैरना आता है. खैरना मछली के शिकार के लिए बहुत प्रसिद्ध है. अल्मोड़ा के किले पर्यटकों को बहुत अच्छे लगते हैं. कालीमठ अल्मोड़ा से 5 किलोमीटर दूर है. इस के एक ओर से हिमालय दिखाई देता है तो दूसरी ओर अल्मोड़ा शहर दिखता है. यहां घंटों बैठ कर प्राकृतिक सौंदर्य को निहारा जा सकता है.

अल्मोड़ा से 3 किलोमीटर दूर सिमतोला पिकनिक स्पौट है. अल्मोड़ा के राजकीय संग्रहालय के साथ ही साथ यहां का ब्राइट ऐंड कौर्नर भी घूमने वाली खास जगह है. यहां से उगते और डूबते सूरज को देखना अद्भुत लगता है. यह जगह बस स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी पर है. लालबाजार में वूलेन क्लौथ लेना पर्यटक नहीं भूलते हैं.

मेरा मकसद लोगों का मनोरंजन करना है: सुनील ग्रोवर

छह साल पहले सायलेंट कॉमेडी वाले सीरियल ‘गुटरगूं’ से पहली बार चर्चा में आए सुनील ग्रोवर को मशहूर व्यंगकार रहे जसपाल भट्टी की खोज माना जाता है. पर उन्हें रातों रात स्टार बनाया कपिल शर्मा के शो ने. इस शो में उनके महिला किरदार गुत्थी ने उन्हें स्टार बना दिया. अब वह फिल्म ‘कॉफी विथ डी’ में पत्रकार की भूमिका में नजर आने वाले हैं. वैसे वह 1998 से ही फिल्मों में छोटे छोटे किरदार निभाते आ रहे हैं.

आपको जसपाल भट्टी का खोज माना जाता हैं?

चंडीगढ़ में जसपाल भट्टी से मेरी मुलाकात हुई थी. उन्होंने मेरा पहला ऑडिशन लिया था. उनसे मैंने ह्यूमर के बारे में बहुत कुछ सीखा. उनसे मैंने सीखा कि क्राफ्टेड ह्यूमर क्या होता है. उनकी सीख का ही परिणाम है कि मैं भी लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने में कामयाब हो गया हूं.

जसपाल भट्टी से क्या खास बात सीखी?

मैंने उनसे एक पंक्ति को पांच पक्तियों में बयां करना सीखा. यह कला मैं अभी भी सीख रहा हूं. इसमें माहिर नहीं हुआ हूं. वह तो लीजेंड थे. उनके दिमाग को पूरी तरह से अपनाना बहुत कठिन है. मेरा अपना नेच्युरल तरीका बहुत अलग था. मैंने उनसे ह्यूमर के साथ संदेश देना सीखा. ह्यूमर के साथ विचार का होना बहुत जरुरी है.

अभिनय को करियर बनाने की वजह क्या रही?

अभिनय मेरे दिमाग, मेरे शरीर व मेरी आत्मा में था. बचपन से ही मुझे कुछ बड़ा बनना था. डॉक्टर, इंजीनियर या पायलट वगैरह अब एक जीवन में यह सब बन नहीं सकता था, पर कलाकार के तौर पर मैं सब कुछ बन सकता हूं. इसलिए मैंने अभिनय को चुना. लेकिन मैं लोगों के लिए हास्य का डॉक्टर हूं. लोगों को मेरे हंसाने से फायदा होता है. यह अच्छी बात है कि हमारे हंसाने से लोगों को तनाव से मुक्ति मिलती है. मुझे खुशी होती है कि मेरा योगदान किसी न किसी रूप में समाज के लिए हो रहा है.

पहले हमें लगता था कि हम अभिनय का यह काम अपने लिए कर रहे हैं. मकान गाड़ी खरीदनी है. वगैरह वगैरह, फिर धीरे धीरे समझ आया कि ईश्वर ने इस काम के लिए हमें भेजा है कि हम समाज में जाकर लोगों के चेहरों पर मुस्कान लेकर आएं.

फिल्म कॉफी विथ डी कैसे मिली?

मैंने अक्षय कुमार के साथ एक फिल्म ‘गब्बर इज बैक’ की थी. इसकी निर्माता शबीना खान इस फिल्म के साथ जुड़ी हुईं थी. इस फिल्म के निर्देशक विशाल मिश्रा से शबीना खान का परिचय था. शबीना खान ने फिल्म ‘कॉफी विथ डी’ की पटकथा पढ़ी थी तो शबीना खान ने ही मुझे निर्देशक विशाल मिश्रा से मिलने के लिए कहा. मैं निर्देशक विशाल मिश्रा से मिला. कहानी व किरदार पसंद आया, तो मैंने कर लिया.

फिल्म ‘कॉफी विथ डी’ में आप क्या कर रहे हैं?

मैंने इस फिल्म में एक टीवी पत्रकार का किरदार निभाया है, जिसका नाम अरनब घोष है. वह जिस चैनल में काम करता है. वह चैनल डूब रहा है. चैनल को लोकप्रिय करने, उसकी टीआरपी बढ़ाने के लिए वह अंडरवर्ल्ड डॉन के बारे में झूठी खबरें बनाता रहता है. इस वजह से अंडरवर्ल्ड डॉन का ध्यान उसकी तरफ जाता है. वह फिर अरनब हो इंटरव्यू के लिए बुलाता है. उस वक्त इंटरव्यू के बीच में हल्की फुल्की चीजें हैं.

पर फिल्म की टैग लाइन है, ‘‘बम का बदला बेइज्जती से…’’तो यह फिल्म क्या कह रही है?

यह फिल्म उस विषय पर आधारित है, जिसके बारे में सभी को पता है. उसी विषय को इस फिल्म में हास्य व्यंग के माध्यम से पेश किया गया है.इस तरह के विषय पर अब तक कोई व्यंगात्मक फिल्म नहीं बनी. तो मैंने दाउद के किरदारों का कैरीकेचर बनाकर व्यंग के लहजे में कुछ कहने की कोशिश की है. हमने एक गंभीर विषय पर हास्य व्यंग के माध्यम से कुछ कहने की कोशिश की है.

आपने प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र लिखा था. उसकी क्या प्रतिक्रिया हुई?

यह सब फिल्म को प्रचार दिलाने के लिए किया गया था. यह कोई गंभीर मसला नहीं था. इस पर ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं है. पी आर टीम ने ही यह पत्र लिखा था. वैसे भी इस पत्र में कुछ खास था नहीं. हां! इस वजह से फिल्म की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित हो गया.

फिल्म बागी में श्रृद्धा कपूर के पिता का किरदार निभाया था?

मेरे लिए यह बात मायने नहीं रखती कि पिता का किरदार है या मां का किरदार है. मैं सिर्फ यह देखता हूं कि किरदार में करने के लिए कुछ हो. उस किरदार को करते हुए एक्साइटमेंट मिले. मैं लोगों का मनोरंजन कर सकूं. इसके अलावा मैं कुछ नहीं सोचता. मैं एक अच्छी फिल्म से जुड़कर लोगों का मनोरंजन करना चाहता हूं.

एक चुटकी नमक चमकाए आपकी त्वचा

नमक हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होता है ये तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि हमारी त्वचा को साफ और सुंदर बनाने में भी नमक काम आता है. नमक से बने स्क्रब से आप अपनी स्किन में निखार ला सकते हैं और साथ ही आप अपनी जेब भी ढीली होने से बचा सकते हैं.

दूर होगी टैनिंग

एक चम्मच शहद में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर चेहरे पर लगाएं. 10 मिनट के बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. इसके इस्तेमाल से आपके चेहरे की टैनिंग खत्म होगी.

स्क्रबर की तरह करे काम

दो चम्‍मच ओटमील पाउडर, एक चुटकी सेंधा नमक, 6 बूंद नींबू का रस और 5 बूंद बादाम का तेल एक साथ मिलाएं. इसके बाद इस स्क्रब को अपने चेहरे पर लगाकर कम से कम 5 मिनट लगा रहने दे, इसके बाद साफ पानी से धो लें

सात चम्‍मच बादाम तेल और बारह चम्‍मच नमक मिलाएं और फिर अपने चेहरे को स्क्रब करें.

नींबू का रस एप्‍सम सॉल्‍ट में डालें और चेहरे को हल्के से स्‍क्रब करें. इससे मुंहासे, मृत त्वचा, ब्‍लैक हेड व वाइट हेड को दूर करने में मदद मिलती है.

सर्दियों में भी दिखें फैशनेबल

सर्दियों का मौसम यानी ठंड से बचने के लिए ढ़ेर सारे स्वेटर और जैकेट. वैसे खासतौर पर लड़कियों के लिए सर्दी के मौसम में फैशनेबल दिखने के लिए काफी सोचना पड़ता है. कुछ लोगों को ये समझ नहीं आता कि ऐसे मौसम में अपना लुक कैसे रखें, तो हम आपकी मुश्किल आसान कर देते हैं और आपको बताते हैं कुछ ऐसे टिप्स जो आपको सर्दी में भी रखेंगे स्टाइलिश.

-सर्दियों में कई परतों वाले स्कार्फ या जैकेट पहनकर आप सबसे अलग नजर आ सकती हैं.

-क्रॉप टॉप्स के ऊपर आप कार्डिगन पहन सकती हैं. इससे आपका लुक स्टाइलिश दिखेगा.

-जींस या ट्राउजर पर लंबा जैकेट काफी अच्छा दिखता है. इसे साड़ी या शूट पर भी पहना जा सकता है.

-शॉल का हमेशा ही फैशन रहता है, शॉल प्लेन सूट या साड़ी के ऊपर फबता है और आप फैशनेबल भी दिखती हैं.

-सर्दियों में लॉन्ग शूज बहुत सुंदर लगते हैं, मार्केट में कई तरह के शूज आपको मिल जाएंगे.

बीमारियों का अचूक इलाज आंवला

छोटा सा आंवला सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है. खासतौर पर ठंड के मौसम में आंवले का सेवन आप किसी भी रूप में करें आपके लिए अच्छा ही होगा. हम आपको बताते हैं आंवले के वो फायदे जो जानकर आप हैरान रह जाएंगी.

शुगर को संतुलन में लाना

रोजाना आंवले खाने से शरीर में शुगर का स्तर संतुलित रहता है. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स क्रीएटिनाइन सीरम का स्तर सामान्य करता है.

पाचनक्रिया सही करना

रोजाना आवंला खाने से पाचनक्रिया सही रहती है.

बालों के लिए फायदेमंद

आंवले में विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट्स अच्छी मात्रा में होती है, जो बालों के प्राकृतिक रंग को बरकरार रखते हैं.

कैंसर से बचाए

आंवला में एंटीऑक्सीडेंट्स अच्छी मात्रा में है, जो कार्सिनोजेनिक कोशिकाओं को बढ़ने से रोकते हैं और कैंसर से बचाव करते हैं.

नोटबंदी का नुकसान हर घर को सहना पड़ेगा

देश की आर्थिक प्रगति को जीडीपी यानी ग्रौस डोमैस्टिक प्रोडक्शन से आंका जाता है. इस का मतलब है कि देश भर में कुल कितना सामान बनाया गया. भारत सरकार खुश हो रही थी कि भारत की जीडीपी में बढ़ोतरी सब से तेज है और अरुण जेटली की तर्ज पर नरेंद्र मोदी भी बारबार कहते थे कि यह उन की वजह से हो रहा है, जबकि इस की वजह चीन व कुछ और देशों का धीमा हो जाना है और भारत का नए तरीके से आंकड़े देना है.

पर यह बढ़ोतरी या कुल जीडीपी अपनेआप में दिल बहलाने का गालिब बहाना है. अपनी जनसंख्या के अनुसार हम अमेरिका, यूरोप तो छोडि़ए चीन, कंबोडिया, वियतनाम, सिंगापुर से भी कहीं पीछे हैं और इस नोटबंदी ने हमें और पीछे धकेल दिया है. प्रधानमंत्री अब कहने लगे हैं कि वे तो फकीर हैं, झोला ले कर निकल जाएंगे पर उन्हें देश भर को तो फकीर बना डालने की इजाजत नहीं थी.

भारत जो चीन से आबादी में लगभग बराबर होने के बावजूद धन संपत्ति के मामले में उस का 5वां है जीडीपी के हिसाब से और अमेरिका के मुकाबले 6 गुना बड़ा होने के बावजूद जीडीपी में 8वां है, तो क्या यह किसी तरह रोब मारने लायक है? भारत तो उस बाई की तरह का है जिसे नई कांजीवरम साड़ी पहनने को मिल गई हो और मालकिन पर इतराते हुए कहने लगे कि वह मालकिन की तरह खाना बनाएगी, झाड़ू नहीं लगाएगी, क्योंकि उस के पास भी कांजीवरम साड़ी है.

नोटबंदी से सरकार ने करोड़ों लोगों को लाइनों में लगवा कर उन का उत्पादन छीन लिया. फैक्टरियां, खेत, बाजार सूने हो गए, क्योंकि लोगों को लाइनों में लगना पड़ा. बच्चों को भूखा रहना पड़ा, क्योंकि मांओं को लाइनों में लगना पड़ा. गोद के बच्चों को गरमीसर्दी सहनी पड़ी, क्योंकि वे मां की गोद में 8-8 घंटे लाइन में रहे. इन लाइनों ने भारत को जीडीपी की कतार में और पीछे धकेल दिया है. 7.4% की रफ्तार से आगे बढ़ने वाला देश अगर अब 4 या 5% पर आ कर चीन से बढ़ोतरी में भी पीछे चला जाए तो आश्चर्य नहीं.

इस का नुकसान हर घर को सहना पड़ेगा. जो डाका घर की संपत्ति पर पड़ा वह तो अलग है, जो काम के घंटे कम हुए वह भी अलग है. पूरे देश का जो नुकसान हुआ उस का जो हिस्सा हर घर को देना पड़ेगा यह आंका तो नहीं जा पाएगा पर यह कीमत एक मूर्खतापूर्ण फैसले के कारण देनी होगी. बेटी का फक्कड़ युवक के साथ भाग जाने की तरह इस का नुकसान देश को वर्षों भुगतना ही होगा.

उस काली रात की दहशत अब भी

16 दिसंबर को निर्भया कांड की चौथी बरसी थी पर लगता नहीं है कि भारत की जनता ने इस कांड से कुछ सीखा हो. एक बेबस लड़की का चलती बस में जिस दरिंदगी से रेप किया गया और उस के साथी को पीटा गया वह कोई पहली बार नहीं हुआ पर पहले की दरिंदगियां इस तरह सुर्खियां नहीं बनी थीं पर अब लगता है यह अमानवीयता तो हमारे चरित्र का हिस्सा है, हमारी संस्कृति है, हमारा ढंग है.

शारीरिक अनाचार व अत्याचार पुरुषों को भी भोगना पड़ता है. हमारे दलितों, चोरों, आरोपियों, निचली जातियों वालों, मजदूरों, बच्चों को कभी किसी बहाने से तो कभी केवल पाश्विक आनंद के लिए सताया, मारापीटा, जख्मी करा जाता है पर उन पर सामाजिक ठप्पा नहीं लगता. निर्भया कांड ने यह साबित करा था कि रेप पीडि़ता को केवल शारीरिक जख्म ही नहीं सहने पड़ते, उस के चरित्र पर गुनहगार होने का दाग भी लग जाता है और तब और अब में कोई असर हुआ हो ऐसा नहीं लगता.

रेप आज भी ऐसा ही एक अपराध है, जिस में अपराधी शिकार होता है और उसे दंड भोगना होता है, जबकि बलात्कारी 4-5 साल या कई बार उस से भी कम समय की जेल काट कर मुक्त हो जाता है. यह तो नहीं मालूम कि बलात्कारी को परिवार वापस लेता है या नहीं पर उस के मन में कोई अपराधभाव होता होगा ऐसा कम लगता है, क्योंकि ज्यादातर बलात्कारी सीना चौड़ा कर के ही चलते हैं. वे तरहतरह की दलीलों से अपने अपराध या अपनी सजा को कम कराते हैं. पीडि़ता का दर्द सामाजिक ज्यादा होता है, शारीरिक कम. शारीरिक कष्ट जो उस ने बलात्कार के दौरान सहा कुछ दिनों का होता है.

सैक्स संबंधों में पतिपत्नी, प्रेमीप्रेमिका या वेश्याओं के साथ परपीड़न सुख के लिए हिंसा आम है और कुछ हद तक उस में पीडि़ता को एतराज नहीं होता. ऐसा पोर्न बहुप्रचलित है, जिस में युवतियों के साथ जबरदस्ती दिखाई जाती है जबकि उसे शूट करते हुए सहमति होती है. दुख तो सामाजिक है कि पीडि़ता को दोषी मान लिया जाता है और बहुत सी युवतियों को यह बात छिपा कर रखनी होती है. समाज यह कहने से बाज नहीं आता कि पूरे किस्से में कहीं न कहीं गलती लड़की की ही होगी.

यही मानसिकता बदली जानी जरूरी है पर यह तब तक न होगा जब तक धर्म और कानून की सोच में व्यापक बदलाव नहीं आएगा. अविवाहिता के नाम के आगे कुमारी लिखने का अर्थ क्या है? उसे क्यों बारबार यह कहने को मजबूर किया जाए कि उस ने सैक्स संबंध नहीं बनाए? सैक्स संबंध बनाने के लिए शीलभंग शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? बलात्कार के मामले में सैक्स के आदी होने की बात क्यों परखी जाती है? टू फिंगर टैस्ट क्यों होता है?

इन सवालों को उठाने की जगह तथाकथित दोषी को फांसी पर लटकाने या उस का अंग काटने की मांग की जाती है जबकि दोनों अपराध होने के बाद ही हो सकते हैं, पहले नहीं. अगर युवती को यह भरोसा हो कि समाज उस के पीछे खड़ा है तो वह बलात्कारी का मुकाबला करेगी और अगर बलात्कार हो गया तो उसी तरह सिर उठा कर कानून का दरवाजा खटखटाएगी जैसा किसी भी मारपीट के मामले में पुरुष करता है. लोगों की सहानुभूति होगी पीडि़त के प्रति. उस से अनकंफर्टेबल सवाल नहीं पूछे जाएंगे.

अगर समाज की सोच न बदले तो 16 दिसंबर को हर साल मनाने का कोई अर्थ नहीं.

‘रंगून’ का पहला पोस्टर रिलीज

शाहिद कपूर की अगली फिल्म रंगून का पोस्टर रिलीज हो गया है. यकीन मानिए फिल्म का पोस्टर देख कर आपको इससे उम्मीदें बढ़ जाएंगी. रंगून पीरियड फिल्म है जिसका प्लॉट दूसरे विश्व युद्ध (1939-45) का है. शाहिद के ऑपोजिट फिल्म में कंगना रनौत है. साथ ही सैफ अली खान भी फिल्म में हैं.

शाहिद और विशाल की जोड़ी पहले भी कमीने और हैदर जैसी सुपरहिट फिल्में दे चुके हैं. शाहिद ने पोस्टर को ट्वीट कर लिखा, ‘इंतजार खत्म और अब रंगून शुरू.’ शाहिद ने लिखा कि फिल्म का ट्रेलर 6 जनवरी को रिलीज होगा. अभी तक फिल्म से जुड़ी सारी चीजें गुप्त रखी जा रही हैं. हालांकि शाहिद का लुक लीक हो चुका है. लीक हुई फोटो देख कर लग रहा है कि शाहिद आर्मी ऑफिसर की भूमिका में हैं.

कंगना जांबाज मिस जुलिया का रोल निभा रही हैं. सैफ अली खान के रोल के बारे में अभी कुछ भी सामने नहीं आया है. शाहिद इस से पहले भी मौसम जैसी पीरियड फिल्म कर चुके हैं. फिल्म का पोस्टर हॉलीवुड की पीरियड फिल्मों जैसी फील दे रहा है. बॉलीवुड में संभवत: अब तक वर्ल्ड वॉर पर कोई लव स्टोरी नहीं बनी है.

‘तो मैं एडल्ट फिल्म साइन कर लेती’

नेशनल अवॉर्ड विनर कंगना रनौत ने हाल ही में एक टीवी शो के दौरान कहा कि अगर उन्हें ‘गैंगस्टर’ का ऑफर नहीं मिलता तो वे कोई एडल्ट फिल्म करतीं. कंगना ने कहा, ‘गैंगस्टर’ से पहले मुझे एडल्ट फिल्म का ऑफर मिला था और उस वक्त क्योंकि मेरे पास कोई फिल्म नहीं थी तो मैंने उसे करने के लिए हां बोल दिया था.

उसके बाद मेरा एक फोटोशूट था, जिसमें उन्होंने मुझे रोब पहनने के लिए दिया था, लेकिन उसके अंदर कुछ नहीं था. मुझे वो सब ठीक नहीं लगा, क्योंकि वो फिल्म ही सही नहीं थी. उसके बाद मुझे ‘गैंगस्टर’ का ऑफर मिला और मैने जल्दी से फिल्म साइन कर ली.

उस समय मेरी उम्र 17 या 18 थी और अगर मैं ‘गैंगस्टर’ नहीं मिलती तो मैं वही फिल्म करती. कंगना जल्द ही अपनी अगली फिल्म ‘रंगून’ में नजर आने वाली है. ‘रंगून’ में कंगना के साथ सैफ अली खान और शाहिद कपूर लीड रोल में हैं.

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