क्रेच : खुशियां और कमाई दोनों

यदि आप कुछ ऐसा काम करना चाहती हैं जिस में घर की देखभाल के साथसाथ कमाई भी हो सके तो क्रेश, जिसे आमतौर पर लोग क्रेच कहते हैं, घर बैठे पैसे कमाने का आसान विकल्प है. क्रेच में आप दूसरों के बच्चों को दिन के कुछ समय थोड़ा सा प्यार दे कर अपने अकेलेपन को दूर करने के साथसाथ पैसे भी कमा सकती हैं.

क्या है क्रेच?

क्रेच वह जगह है जहां बच्चों को दिन के समय घर जैसा माहौल और स्नेह दिया जाता है. वहां बच्चों को साफ रखने, गंदे कपड़े बदलने के साथ उन के खानेपीने से ले कर उन के खेलने तक का पूरा ध्यान रखा जाता है. क्रेच में बच्चों के खाने से ले कर सोने तक का समय तय रहता है. वहां उन के साथ कई हमउम्र बच्चे रहते हैं जिन के साथ वे छोटीछोटी चीजों को सीखते भी हैं.

कैसे खोलें क्रेच?

अपने घर में या पड़ोस में बच्चों के हिसाब से किसी सुरक्षित जगह पर आप क्रेच खोल सकती हैं. अगर आप अपने घर में खोल रही हैं तो यह जरूर देखें कि घर में इतनी जगह हो कि बच्चे वहां आराम से रह सकें, खिलौनों से खेल सकें. घर में जगह की कमी हो तो पड़ोस में किराए पर जगह ले कर भी क्रेच खोल सकती हैं. इस के लिए आप को बच्चों के लिए कुछ खिलौने, उन की जरूरत की चीजें और कुशल मेड की जरूरत पड़ेगी, जो बच्चों को संभाल सके, उन की देखभाल कर सके.

चुनमुन चाइल्ड केयर नामक क्रेच की कमलेश बताती हैं, ‘‘मेरे पति की तबीयत ठीक नहीं रहती है. मैं उन्हें अकेला छोड़ कर बाहर काम नहीं कर सकती, इसलिए मैं ने अपने घर में बच्चों के लिए क्रेच खोला है. इस से मेरा मन भी लगा रहता है और घर में पैसे भी आ जाते हैं. मेरे पास 3 महीने से ले कर 10 साल तक के बच्चे आते हैं. बच्चों के साथ दिन कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता.’’ वे आगे बताती हैं कि 4-5 हजार रुपए खर्च कर के घर में आसानी से क्रेच खोला जा सकता है.

जरूरी सामान

क्रेच में कम से कम इतना सामान होना चाहिए कि बच्चे उन से खेल सकें. बच्चों की उम्र के हिसाब से रंगबिरंगे खिलौने और मोटरगाडि़यां, वीडियो गेम्स, कार्टून देखने के लिए टीवी, उन के सोने के लिए बैड, पढ़नेलिखने के लिए बच्चों की कुछ किताबें बाजार से खरीद लें.

बच्चों के लिए मेड

बच्चों को संभालने के लिए के्रच में कम से कम 2 कुशल मेड की जरूरत पड़ेगी, जो सुबह से शाम तक उन की सही तरीके से देखभाल कर सकें. वे उन्हें खाना खिलाएं, समय पर सुलाएं, उन्हें छोटीछोटी चीजें सिखाएं आदि. लेकिन हां, मेड के हवाले ही बच्चों को न छोड़ें, बल्कि मेड पर निगरानी रखें कि वे बच्चों को अच्छे से संभाल रही हैं या नहीं. आप चाहें तो खुद भी उन की देखभाल कर सकती हैं. कई बार ऐसा होता है कि आप का ध्यान जरा सा इधर से उधर हुआ नहीं कि मेड चोरी करने लगती है. अगर मेड ने इस तरह की गलती पहली बार की है तो उसे माफ कर दें. लेकिन अगर वह ऐसी गलती बारबार करती है तो उसे पुलिस की धमकी दे कर डराएं.

समय और फीस

क्रेच में घंटे और बच्चों की उम्र के हिसाब से फीस ली जाती है. जैसे अगर 5-6 महीने का बच्चा है और वह सुबह के 7 बजे से शाम के 7 बजे तक के्रच में रहता है तो 5-6 हजार रुपए लिए जाते हैं. अगर बच्चा सिर्फ 2-3 घंटे के लिए आता है तो 1000-1500 रुपए वसूले जाते हैं. अधिकांश क्रेच में घर वाले बच्चों को खाना व दूध पैक कर के देते हैं, लेकिन कुछ क्रेच ऐसे भी हैं जहां बच्चों को खाना भी दिया जाता है. इन क्रेचों की फीस थोड़ी ज्यादा होती है. आप अपनी सुविधानुसार इन में से कोई सा भी क्रेच शुरू कर सकती हैं.

समस्या व निदान

क्रेच में कई तरह की छोटीछोटी समस्याएं आएंगी, जैसे बच्चा लगातार रो रहा है, अचानक उस की तबीयत खराब हो जाती है, मां उसे लेने देर से आती है, बातबात पर वह झगड़ा करती है, हर बात के लिए शिकायत करती है आदि. इन समस्याओं से परेशान होने की जरूरत नहीं है बल्कि आप आसानी से इन समस्याओं का हल निकाल सकती हैं और घर बैठे पैसे कमा सकती हैं. जैसे अगर बच्चा लगातार रो रहा है, चुप नहीं हो रहा है तो पहले यह जानने की कोशिश करें कि आखिर वह क्यों रो रहा है. कई बार बच्चे गीली नैपी, भूख लगने, दांत निकलने, तबीयत खराब होने की वजह से रोते हैं. आप उन्हें गोद में उठाएं, प्यार से सहलाएं, खिलौने से उस के साथ खेलें. बच्चा थोड़ा बड़ा है तो उसे कहानी सुनाएं. लेकिन अगर बच्चे की तबीयत ठीक नहीं है तो खुद से कोई भी दवा न खिलाएं. बल्कि मातापिता को फोन पर बच्चे की तबीयत के बारे में बताएं. अगर वे दवा का नाम बता रहे हैं और बच्चे को देने के लिए कह रहे हैं तो वह दवा बच्चे को दें. इस के लिए आप अपने आसपास की दवा दुकानों के नंबर अपने पास रखें ताकि उन्हें फोन पर बता कर दवाएं मंगा सकें.

अगर क्रेच में बच्चे को किसी चीज से चोट लग जाए तो तुरंत मातापिता को इस की सूचना दें और बच्चे की प्राथमिक चिकित्सा करें.

अगर कभी बच्चे का खाना खराब हो जाए तो ऐसी स्थिति में उसे भूखा न रखें बल्कि अपनी तरफ से उसे कुछ जरूर खिलाएं, पर ध्यान रखें कि वह ताजा बना हो. बच्चे की अच्छी तरह से देखभाल करने के बाद भी कई बार ऐसा होता है कि मां झगड़ती है. शिकायत करती है कि क्रेच में उस के बच्चे का सही से ध्यान नहीं रखा जाता, उस की नैपी गीली रह गई थी, कपड़े गंदे थे, मेड ने बच्चे को डांटा आदि. ऐसी बातें सुन कर आप गुस्सा न हो जाएं बल्कि समझदारी से काम लें. उन्हें समझाएं कि क्रेच में सारे बच्चों का एकसमान ध्यान रखा जाता है. अगर नैपी गीली थी तो हो सकता है कि बच्चे ने थोड़ी देर पहले ही गीली की हो. लेकिन अगर कोई मां हर बात के लिए आप से झगड़ा करें तो उस से सारी बातें पहले ही स्पष्ट कर लें ताकि आप के बीच किसी तरह का मनमुटाव न रहे.

कभीकभी ऐसा भी होता है कि मां दफ्तर में किसी काम की वजह से या दूसरे किसी कारण से बच्चे को लेने समय पर नहीं पहुंच पाती है तो आप गुस्सा न हों और न ही बारबार फोन कर के उस से पूछें कि वह कहां है, कब तक आएगी, क्रेच बंद होने का समय हो गया है, बल्कि जब तक वह नहीं आती तब तक बच्चे को धैर्यपूर्वक अपने पास रखें. अगर कभी मातापिता के अलावा कोई अनजान व्यक्ति बच्चे को लेने आ जाए तो उसे बच्चे को न दें. वह कितना भी कहे कि वह बच्चे का परिचित है. उस के बारे में फोन पर मातापिता से पूछताछ कर लें. उस का फोन नंबर, नाम व पता पूछ कर लिख लें. इस के बाद ही बच्चे को दें.

कभीकभी आप को अचानक कहीं बाहर जाना हो और घर में दूसरा कोई जिम्मेदारी संभालने वाला नहीं है तो ऐसी स्थिति में आप अपने पड़ोसियों की मदद ले सकती हैं. उन्हें सारी चीजें अच्छे से समझा दें, ताकि कोई दिक्कत न हो. लेकिन हां, फोन पर बच्चों की खबर जरूर लेती रहें. कभी 3-4 दिन के लिए बाहर जाना हो तो इस की सूचना मातापिता को पहले से ही दें ताकि वे कुछ दूसरा उपाय निकाल सकें.

आप की भूमिका

के्रच में आप की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण होगी क्योंकि मांबाप बच्चों को आप के भरोसे ही छोड़ कर जाएंगे. आप उन्हें प्यार से रखें. उन की मां की तरह उन का खयाल रखें ताकि उन्हें उस वक्त उन की मां की कमी का एहसास न हो.

शुरुआत में आप को थोड़ी दिक्कत होगी लेकिन धीरेधीरे आप को इस काम में मजा आने लगेगा. मेड की मदद से पूरे दिन उन के खानेपीने से ले कर उन के सोने, डाइपर चेंज करने आदि का ध्यान रखें. अगर बच्चा दोढाई साल से बड़ा है तो उसे कुछ समय के लिए पढ़ाएं, कविता बोलना सिखाएं. एक सब से जरूरी बात मातापिता को पहले ही बता दें कि बच्चे के्रच के खिलौने से ही खेलेंगे. उन के साथ किसी भी प्रकार का खिलौना दे कर न भेजें क्योंकि बच्चे खिलौनों की वजह से ही आपस में झगड़ते हैं.

उत्तर प्रदेश: शाम-ए-अवध तो सुबह-ए-बनारस

पर्यटन के शौकीनों के लिए उत्तर प्रदेश में हर रंग और मिजाज के पर्यटन स्थल मौजूद हैं. सियासत, संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य और आधुनिकता को खुद में समेटे यहां के पर्यटन स्थल सैलानियों को बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं.

उत्तर प्रदेश में घूमने के लिहाज से लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी,  झांसी और आगरा शहर ऐसे हैं जो सर्दियों में पर्यटकों को अच्छे लगते हैं. इस के अलावा कौशांबी, श्रावस्ती, सारनाथ, कुशीनगर और चित्रकूट भी लोग घूमने जाते हैं. लखीमपुर जिले में दुधवा नैशनल पार्क भी लोगों को खूब पसंद आता है. जाड़ों का मौसम घूमने के लिहाज से अच्छा माना जाता है. उत्तर प्रदेश में जाड़ों का मौसम अक्तूबर से मार्च तक का माना जाता है.

उत्तर प्रदेश के किसी भी पर्यटन स्थल तक पहुंचने के लिए अच्छे साधन हैं. इन में हवाई यात्रा के साथसाथ रेल और बस यात्रा भी शामिल हैं. उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम ने बससेवा के जरिए पर्यटन स्थलों को एकदूसरे से जोड़ रखा है. खास शहर में पर्यटन विभाग के होटलों के साथसाथ नए बन रहे मौल और पार्क भी खूब लुभाते हैं. अवधी खाने के साथ बड़े नाम वाले रेस्तरां में भी खाना मिल जाता है.

धार्मिक स्थलों पर घूमते समय सावधान रहें. यहां पर कई किस्म के पंडे पूजापाठ के बहाने घूमने वालों को फंसाने की कोशिश करते हैं. चढ़ावा चढ़ाने के लिए तरहतरह का लालच देते हैं. इस के बहाने ठगने का प्रयास करते हैं. कई बार पर्यटक इन के  झांसे में पड़ जाते हैं. विदेशी मेहमान इन के खास निशाने पर होते हैं.

नवाबी शहर लखनऊ

घूमने के लिहाज से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ बहुत ही साफसुथरी और ऐतिहासिक जगह है. नवाबी शासनकाल और अंगरेजी शासनकाल में बनी इमारतें वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं. नवाबी काल में अवध के अदब और तहजीब का विकास हुआ. लखनऊ की रंगीनियों और शानोशौकत के किस्से भी खूब चटखारे ले कर सुने और सुनाए जाते हैं.

बदलता लखनऊ आज मैट्रो सिटी के रूप में आगे बढ़ रहा है. इस के बावजूद अपनी पुरानी नजाकत और नफासत को भी इस शहर ने संभाल कर रखा है. यह शहर अब सियासी तेजी और फैशन के बदलते अंदाज के लिए भी जाना जाता है.

लखनऊ की शाम का जादू शामेअवध के नाम से जाना जाता है. लखनऊ में पश्चिमी खाने से ले कर देशी खाने तक का निराला स्वाद लिया जा सकता है. लखनऊ में खाने के लिए चाट, समोसे, कचौड़ी, कुल्फी के अलावा कबाब और बिरयानी का स्वाद लिया जा सकता है. हजरतगंज बाजार बहुत ही मशहूर है. यहां मनोरंजन के लिए कई अच्छे मल्टीप्लैक्स सिनेमा हौल खुल गए हैं. खरीदारी करने के लिए मौल खुल  गए हैं, जहां पर एक ही जगह पर सारा सामान मिल जाता है. लखनऊ आने वाले लोग चिकन की कढ़ाई वाले कपड़े और गुलाब रेवड़ी जरूर खरीदते हैं.

लखनऊ को बागों और पार्कों का शहर भी कहा जाता है. यहां पर कई अच्छे पार्क बने हुए हैं. सब से अच्छा बोटैनिकल गार्डन पार्क है. यहां पर गुलाब सहित तमाम दूसरे पौधों की कई किस्में देखने को मिल जाती हैं. इस के अलावा हाथी पार्क, गौतम बुद्ध पार्क, नदिया किनारे पार्क, पिकनिक स्पौट, लोहिया पार्क और डा. अंबेडकर पार्क भी घूमने के लिहाज से अच्छी जगहें हैं. मौजमस्ती के लिए आनंदी वाटर पार्क भी है. जाड़ों में घूमने वालों के लिए पर्यटन विभाग यहां लखनऊ महोत्सव के अलावा कई आकर्षक कार्यक्रम कराता है. हजरतगंज, अमीनाबाद और गोमतीनगर में घूमने व खरीदारी करने की तमाम जगहें हैं.

लखनऊ घूमने जो भी आता है वह सब से पहले बड़ा इमामबाड़ा यानी भूलभुलैया जरूर देखना चाहता है. यह लखनऊ की सब से मशहूर इमारत है. इस इमारत का पहला अजूबा 49.4 मीटर लंबा और 16.2 मीटर चौड़ा एक हौल है. इस में किसी तरह का कोई खंभा नहीं है. इस के एक छोर पर कागज फाड़ने जैसी आवाज भी दूसरे छोर पर आसानी से सुनी जा सकती है. इस इमारत का दूसरा अजूबा 409 गलियारे हैं. ये सब एक जैसे दिखते हैं और समान लंबाई के हैं. ये सभी एकदूसरे से जुड़े हुए हैं. इन में घूमने वाले अकसर रास्ता भूल जाते हैं. इसीलिए इस को भूलभुलैया कहा जाता है.

इमामबाड़ा से थोड़ी दूर पर एक छोटा इमामबाड़ा बना हुआ है. दूर से यह इमामबाड़ा ताजमहल जैसा दिखता है. बड़े इमामबाड़े और छोटे इमामबाड़े के बीच के रास्ते में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं. इन को पिक्चर गैलरी, घड़ी मीनार और रूमी दरवाजा के नाम से जाना जाता है. इन सब जगहों पर जाने के टिकट बड़े इमामबाड़े से ही एकसाथ मिल जाते हैं. रेजीडैंसी लखनऊ की ऐतिहासिक इमारत है. इस की दीवारों पर आज भी आजादी की लड़ाई के चिह्न मौजूद हैं. यहां बना खूबसूरत लौन इस की खूबसूरती को विशेष आकर्षण प्र्रदान करता है. जाड़ों में घूमने वालों को लौन पर बैठना बहुत अच्छा लगता है. रेजीडैंसी के करीब ही शहीद स्मारक बना हुआ है. 1857 में शहीद हुए वीरों की याद में इसे गोमती नदी के किनारे बनवाया गया था. जाड़ों में यहां पर नौका विहार का मजा भी लिया जाता है. लखनऊ की शान है विधानसभा की खूबसूरत इमारत.

लखनऊ का चिडि़याघर बहुत ही आकर्षक बना हुआ है. बच्चों को घुमाने के लिए छोटी रेलगाड़ी का इंतजाम किया गया है. चिडि़याघर के अंदर एक राज्य संग्रहालय भी है जिस में ऐतिहासिक सामानों को रखा गया है. यह जाड़ों में घूमने की सब से खास जगह है.

वाराणसी

वाराणसी शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. इस को घाटों का शहर भी कहा जाता है. सुबह के समय सूर्य की किरणें जब नदी के जल पर पड़ती हैं तो इन घाटों की शोभा देखते ही बनती है. वाराणसी की सुबह बहुत मशहूर है. इसीलिए उत्तर प्रदेश में शामेअवध के साथसाथ सुबहेबनारस भी मशहूर है. अर्द्धचंद्राकार गंगा के किनारे लगभग 80 घाट बने हुए हैं.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए विदेशों से भी छात्र आते हैं. पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रत्येक विषय की उच्च स्तरीय पढ़ाई होती है. यह एशिया का सब से बड़ा आवासीय विश्व- विद्यालय है. भारत कला भवन इस विश्वविद्यालय की शोभा है. इस की कलावीथिका में अनेक कलाकृतियां रखी हैं. वाराणसी में तैयार होने वाली साडि़यों को बनारसी साड़ी के नाम से जाना जाता है.

वाराणसी के पास बसे भदोही शहर का कालीन उद्योग भी बहुत खास है. धार्मिक खासीयत वाले वाराणसी शहर में पंडों और पुजारियों की अराजकता भी बहुत होती है. ये लोग यहां आने वालों को धार्मिक अनुष्ठान में फंसाने की कोशिश करते हैं.

काशी नरेश शिवोदास द्वारा बनवाया गया काशी विश्वनाथ मंदिर दशाश्वमेध घाट के पास बना हुआ है. यहां तक पहुंचने के लिए संकरी गलियों से हो कर गुजरना पड़ता है. इस मंदिर में दर्शकों की भीड़ अधिक होने के कारण गंदगी बहुत रहती है. संकरी गलियों का लाभ उठा कर  चोरउचक्के लोगों का सामान साफ कर देते हैं. घूमने वालों को इस बात से सावधान रहना चाहिए.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 2 किलोमीटर दूर गंगा नदी के उस पार स्थित रामनगर किला काशी नरेश का पैतृक निवास है. इस किले में एक संग्रहालय भी है जहां पर राजसी ठाटबाट के प्रतीक तीर, तलवार, बंदूकें और कपड़े रखे हैं.

वाराणसी से 10 किलोमीटर दूर बसा हुआ सारनाथ सम्राट अशोक के स्तूपों वाला शहर है. इसी स्तूप पर बने शेरों को भारत सरकार के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के रूप में लिया गया है. यहां का हराभरा बाग और फूलों का बगीचा घूमने वालों का मन मोह लेता है. यहां पर मूलगंध कुटी भी देखने वाली जगह है. यहां के पुरातात्विक संग्रहालय में बौद्ध प्रतिमाओं और शिलालेखों को भी देखा जा सकता है.

रानी लक्ष्मीबाई की झांसी

 झांसी शहर आजादी की नायिका रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है. उत्तर प्रदेश का रहने वाला बच्चाबच्चा  झांसी की रानी के बारे में मशहूर कविता ‘बुंदेले हरबोलों के मुख हम ने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मरदानी वह तो  झांसी वाली रानी थी’ को जानतासम झता है. पठारी क्षेत्र होने के नाते जाड़ों में झांसी घूमने का अपना अलग ही मजा है. रानी लक्ष्मीबाई  का किला इस शहर की सब से खास जगह है. 1857 में आजादी की लड़ाई में अंगरेजों ने जिस किले पर गोले बरसाए थे, वह आज भी वैसा का वैसा खड़ा हुआ है. बंगरा की पहाडि़यों पर बना यह किला 1610 में राजा वीर सिंह जूदेव द्वारा बनवाया गया था. यह किला शान से आज भी खड़ा है और अपनी बहादुरी के किस्से सुनाता प्रतीत होता है.

18वीं शताब्दी में  झांसी और उस के किलों पर मराठों का अधिकार हो गया था. मराठों के अंतिम शासक गंगाराव थे जिन की मृत्यु 1853 में हो गई थी. इस के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने शासन की बागडोर संभाल ली थी.  झांसी का किला अपनी अद्भुत कला के लिए जाना जाता है. इस किले में अष्टधातु की बनी ‘कड़क बिजली’ और ‘भवानी शंकर’ नामक 2 तोपें आज भी रखी हैं. ये तोपें महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता का आज भी बखान करती नजर आती हैं.

इस किले यानी रानी महल को पहले बाई साहब की हवेली के नाम से जाना जाता था. यह महल शहर के बीच में बना हुआ है. इस का निर्माण रघुनाथ राव और महारानी लक्ष्मीबाई के समय में हुआ था. इसी वजह से इस को बाद में रानी महल कहा जाने लगा. इस महल में रंगबिरंगी चित्रकारी देखने को मिलती है. इसे देख कर प्राचीन शिल्पकला के बारे में पता चलता है. किले में बड़ीबड़ी दालानें बनी हैं. इन में पत्थर की कारीगरी की गई है. दीवारों में भी प्राचीन कला का नमूना देखने को मिलता है. इतना पुराना होने के बाद भी आज यह महल पहले जैसा ही दिखता है.

इस किले का भी आजादी की लड़ाई से पुराना रिश्ता है. इसी महल में रह कर महारानी लक्ष्मीबाई ने अंगरेजों के खिलाफ लोहा लेने की योजना बनाई थी. अब इस रानी महल में पुरातात्विक विभाग का संग्रहालय है जिस में बुंदेलखंड के चांदपुर और दुधई से जमा की गई प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं.

प्रेम की नगरी आगरा

ताज नगरी आगरा उत्तर प्रदेश का ही नहीं भारत का एक बहुत ही खास पर्यटन स्थल है. यहां जो भी आता है विश्वविख्यात ताजमहल को देखने जरूर जाता है. सफेद संगमरमर से बनी इस इमारत को जाड़ों में देखने का अपना अलग ही मजा है. पूरी इमारत के पास मखमली घास का मैदान है जहां पर बैठ कर धूप का मजा लिया जा सकता है. इस के पीछे यमुना नदी बहती है.

आगरा में ताजमहल के अलावा भी घूमने वाली कई दूसरी जगहें हैं. यहां पर खरीदारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. दुनिया के 7 आश्चर्यों में ताजमहल का नाम भी दर्ज है. इसे देखने के लिए देशीविदेशी पर्यटकों का साल भर तांता लगा रहता है. ताजमहल के सामने बैठ कर वे फोटो खिंचवाना नहीं भूलते हैं. ताजमहल के साथ फतेहपुरी-सीकरी भी घूमने की अच्छी जगह है.

2016 की वह फिल्में जिन्हें मुकम्मल जहां नहीं मिला

बौलीवुड से जुड़े लोग इस बात की चर्चा करते नजर आ रहे हैं कि किन स्टार्स की फिल्मों ने 2016 में सौ करोड़ रुपए से ज्यादा कमाए. मगर हर कोई इस मसले पर चुप है कि कौन सी फिल्में दर्शकों तक नहीं पहुंच पायी. जब कि हर फिल्मकार चाहता है कि उसकी फिल्म दर्शकों तक पहुंचे, फिर उसे पसंद करना या न करना दर्शकों के हाथ में है. मगर कुछ फिल्में आपसी विवादों या स्टार कलाकारों की अपनी जिद के चलते सिनेमाघर तक नहीं पहुंच पायी. यानी कि इन्हे इनका मुकम्मल जहां नहीं मिल पाया.

मोहल्ला अस्सीः 30 करोड़ कौन दे?

‘चाणक्य’ जैसा बहुचर्चित सीरियल और ‘पिंजर’ जैसी फिल्म निर्देशित कर चुके निर्देशक डॉ.चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’ तमाम मशक्कतों के बावजूद दर्शकों तक नहीं पहुंच पायी.

सनी देओल के अभिनय से सजी विनय तिवारी निर्मित यह फिल्म कुछ समय तक निर्माता, निर्देशक व अभिनेता सनी देओल के बीच आपसी विवाद के कारण फंसी रही. उसके बाद 2015 के अंतिम चरण में यह फिल्म इंटरनेट पर लीक हो गयी. 2016 में सनी देओल ने फिल्म को थिएटरों में ले जाने के लिए प्रयास शुरू किए, मगर यह फिल्म नहीं पहुंच सकी. इसकी सबसे बड़ी वजह रही फिल्म के प्रदर्शन में लगने वाला खर्च देने को कोई तैयार नहीं था.

सूत्र बताते हैं कि फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’ को दर्शको तक पहुंचाने के लिए करीबन 30 करोड़ रूपए चाहिए, मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह राशि कौन दे? इसके लिए कोई स्टूडियो भी तैयार नहीं है. बतौर अभिनेता सनी देओल की हालत इतनी पतली है कि इस फिल्म में कोई भी स्टूडियो पैसा नहीं लगाना चाहता. उधर फिल्म में इतनी गाली गलौज है कि सेंसर बोर्ड भी इसमें काफी कैंची चलाना चाहती है.

बैंक चोरः रितेश देशमुख का अड़ियल रूख

‘यशराज फिल्मस’ निर्मित फिल्म ‘बैंक चोर’में रितेश देशमुख और विवेक ओबेरॉय की अहम भूमिकाएं हैं. यह फिल्म 2015 में ही पूरी हो गयी थी. लेकिन रितेश देशमुख के अड़ियल रवैऐ के चलते यह फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पा रही है. वास्तव में फिल्म के प्रदर्शन से पहले फिल्म का प्रचार भी करना जरुरी है, मगर रितेश देशमुख फिल्म के प्रचार के लिए समय नहीं दे रहे हैं.

सूत्रों के अनुसार रितेश परिवार में किसी के बीमार होने और उसके लिए समय देने की बात कहकर ‘बैंक चोर’ के प्रमोशन के लिए समय नही दे रहे हैं. मगर रितेश 2016 में ही फिल्म ‘बैंजो’ को प्रमोट कर चुके हैं.

कुछ सूत्र दावा कर रहे है कि हिंदी फिल्में में अपने करियर की हालत पतली देख वह निराश हैं, जबकि मराठी फिल्मों में वह काफी अच्छा काम कर रहे हैं. इसलिए इन दिनों वह अपनी होम प्रोडक्शन की मराठी फिल्म पर ध्यान दे रहे हैं. जबकि एक सूत्र का दावा है कि ‘बैंजो’ के असफल होने के बाद ‘यशराज फिल्मस’ को अब उस वक्त का इंतजार है जब रितेश की कोई फिल्म सफल हो, तब वह इस फिल्म को प्रदर्शित करना चाहते हैं.

उधर इस फिल्म के प्रदर्षित न होने से विवेक ओबेरॉय परेशान हैं. विवेक ओबेरॉय को फिल्म ‘बैंक चोर’ से काफी उम्मीदे हैं. वह बतौर निर्माता भी फिल्म शुरू करना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि फिल्म ‘बैंक चोर’ के प्रदर्शन से उन्हें फायदा होगा. पर रितेश फिल्म प्रमोट करने के लिए तैयार ही नहीं हैं.

टीना और लोलोः सनी लियोन का खत्म होता करियर

सनी लियोन और करिश्मा तमन्ना के अभिनय से सजी कम बजट की फिल्म ‘टीना और लोलो’ को खरीददार नही मिल रहा है. इसकी मूल वजह है सनी लियोन का खत्म होता करियर. सनी लियोन की ‘सिंह इज ब्लिंग’, ‘मस्तीजादे’, ‘वन नाइट स्टैंड’, ‘फुड्डू’ के बॉक्स ऑफिस पर बुरी तह मात खाने के बाद अब कोई भी वितरक या स्टूडियो उन फिल्मों में पैसा नहीं लगाना चाहता, जिनमे सनी लियोनी हैं.

किसी तरह फिल्म ‘बेईमान लव’ के फिल्मकार राजीव चौधरी ने कमीशन के आधार पर इसे प्रदर्शित किया था. पर उन्होंने भी अपनी जेब से पैसा गंवाया. उसके बाद से सनी लियोन की ‘टीना और लोलो’ के प्रदर्शन पर हमेशा के लिए सवालिया निशान लग गया है तथा अब कोई भी फिल्मकार सनी लियोन को लेकर फिल्म नहीं बनाना चाहता. अब वह बड़े बजट की फिल्मों में सिर्फ डांस नंबर कर रही हैं.

कैबरेः पूजा और भूषण में मतभेद

पूजा भट्ट और भूषण कुमार द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित अति बोल्ड फिल्म ‘कैबरे’ के निर्देशक कौस्तुभ नारायण नियोगी हैं. फिल्म में रिचा चड्ढा व गुलशन देवैय्या की अहम भूमिकाएं हैं. इस फिल्म का प्रदर्शन पूजा भट्ट और भूषण कुमार के बीच आपसी विवाद के चलते नहीं हो पा रहा है. इसके प्रदर्शन की दो बार तारीखें तय हुई, मगर दोनों बार प्रदर्शन टल गया.

मॉडर्न देवदासः पैसे की कमी

‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’, ‘चमेली’ सहित कई चर्चित फिल्मों के सर्जक सुधीर मिश्रा की किसी भी फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल नहीं मचाया. इसी के चलते अब उनकी नई फिल्म ‘मॉडर्न देवदास’ प्रदर्शित नहीं हो पा रही है. सुधीर मिश्रा इसे अपनी अति महत्वाकांक्षी फिल्म बताते हैं. वह इस फिल्म का नाम 2-3 बार बदल चुके हैं. सुधीर मिश्रा ने 10 करोड़ रूपए खर्च कर फिल्म का निर्माण तो कर लिया है, मगर अब इसे प्रदर्षित करने के लिए उन्हे 8 करोड़ रूपए की जरुरत है, मगर कोई भी वितरक या स्टूडियो उनकी इस फिल्म पर एक रुपया भी नहीं लगाना चाहता.

नए साल को पूरी तरह जिएं: सनी लियोन

नए साल का स्वागत सनी लियोन अपने पति और परिवार के साथ हमेशा करना चाहती हैं, पर इस साल वह कोलकाता में डांस परफॉर्मेंस करती हुई नए साल का स्वागत करेंगी. नए साल में वह लोगों को खुश और शांति से रहने की सलाह देती हैं. उनके हिसाब से जीवन अनमोल है और इसे भरपूर जी लेनी चाहिए.

‘पॉर्न स्टार’ सनी लियोन बॉलीवुड में काफी नाम कमा चुकी हैं. स्वभाव से हंसमुख सनी बॉलीवुड में जो काम मिला उसे खुशी से करती गईं, फलस्वरूप आज कोई भी निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना पसंद करते हैं. सनी को उनका ‘पॉर्न टैग’ ख़राब नहीं लगता, क्योंकि उन्होंने जब भी कोई काम किया है, सोच समझकर अपनी मर्जी से किया है. उनके हिसाब से जो लोग ‘पॉर्न’ को खराब कहते हैं, वही उसे देखना भी पसंद करते हैं. यही वजह है कि पॉर्न का बाजार पहले से काफी बढ़ा है.

सनी का पॉर्न इंडस्ट्री से निकलकर बॉलीवुड में आना और फिल्मों में अभिनय करना भी उनकी अपनी पसंद है. शुरू से लेकर अब तक उन्हें कभी किसी ने किसी काम के लिए रोका या टोका नहीं है. सनी अपने आपको इंडियन कहती हैं, क्योंकि उनके माता-पिता इंडियन हैं. वह अच्छी हिंदी बोलना भी जानती हैं. इन दिनों ‘रईस’ फिल्म में लैला ओ लैला… गाने पर आईटम डांस कर बहुत खुश हैं

उनसे मिलकर बात करना रोचक था. पेश है अंश.

शाहरुख की पहली फिल्म आपने कब देखी थी?

मेरे मम्मी-पापा शाहरुख के काफी बड़े फैन थे और खूब फिल्में देखते थे, मुझे याद नहीं कि कब मैंने शाहरुख की पहली फिल्म देखी होगी. एक फिल्म जो उनकी मुझे काफी पसंद आई थी, मुझे याद है वह थी ‘कल हो न हो’ जिसे मैंने काफी बार देखी थी. उस फिल्म को देखते हुए मैं हर बार रोई थी, मेरी मां और मैं अधिकतर साथ बैठकर फिल्में देखते थें.

शाहरुख खान के साथ पहली बार अभिनय करने का अनुभव कैसा था?

उनके साथ काम करना मेरा सपना था. ये शायद हर कलाकार की इच्छा होती है कि शाहरुख खान के साथ एक बार काम करे. मैं बहुत खुश हूं कि मैं इस फिल्म का एक हिस्सा बन पाई. मुझे ये फिल्म मिलेगी पता नहीं था, ये मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था. शाहरुख बहुत ही प्रोफेशनल, विनम्र और अच्छे हैं, इतना ही नहीं उनका अपने परिवार से इतना प्रेम करना भी मैंने पहली बार देखा है, जो काम के साथ-साथ अपने परिवार की भी खबर लेते रहते थे. मैं उनसे काफी प्रभावित हूं.

आपने पुराना गाना लैला ओ लैला देखा थी, कितना आप पर प्रेशर है?

हां मैंने देखा थी और उस गाने को पसंद भी किया था. जब मुझे इस गाने पर डांस करने की ऑफर मिला तो मैंने इसे फिर देखा. लेकिन इस गाने में मेरा लुक और गाने की शब्दों में काफी बदलाव है. मैं बहुत खुश हूं कि ये गाना रीमेक नहीं है, इस गाने को ट्रिब्यूट दिया गया है. प्रेशर है, पर उनके साथ मेरी तुलना नहीं हो सकती.

जीनत अमान के साथ मेरे नाम का जुड़ना मेरे लिए बड़ी बात है. कोई मेरे अभिनय की तारीफ न भी करें तो मुझे बुरा नहीं लगेगा, क्योंकि मेरा नाम जीनत अमान के साथ जुड़ रहा है. उस जमाने में भी यह गाना बहुत हिट था और जीनत अमान की इमेज कोई नहीं ले सकता.

इस साल में आपके लाइफ का ‘मैजिकल मोमेंट’ क्या था, जिसे आप याद करना चाहेंगी?

मेरे भाई की शादी. मैं बहुत खुश हूं और चाहती हूं कि वह अपने लाइफ पार्टनर के साथ खुश रहे. उसमें मैंने इंडियन ड्रेस पहनीं थी, क्योंकि मैं पंजाबी हूं. मैंने पहले भी कनाडा और अमेरिका में सलवार कमीज पहनी है. उस शादी में मेरे पूरा परिवार और फ्रेंड्स थे, मुझे बहुत अच्छा लगा था. मुझे मौका मिले तो इंडियन ड्रेस पहनती हूं पर अधिकतर वेस्टर्न कपड़े ही पहनती हूं. इसके अलावा ‘रईस’ में काम करना मेरे लिए मैजिक था. शाहरुख किसी और को भी ले सकते थे पर मुझे लिया. एक पल के लिए तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इस फिल्म का हिस्सा हूं. लाइफ कभी भी बदल सकती है.

बॉलीवुड ने आपके जिंदगी को कैसे सवांरा है? कैसे आपने अपने आप को यहां स्थापित किया?

बॉलीवुड ने मेरी लाइफ को पूरी तरह से बदल दिया है. जब मैं पहली बार केवल दो हफ्ते के लिए यहां आई थी, फिर वापस लॉस एंजिलिस चले जाने की बात सोची थी. लेकिन आज मैं कई फिल्में कर चुकी हूं और कई ब्रांड एंडोर्स करती हूं और एक बड़ी फिल्म का हिस्सा बन चुकी हूं.

अपने आप को इंडस्ट्री में जमाना आसान नहीं था. पुराने दिनों को याद करें तो हर दिन सुबह उठकर प्रोफेशनल की तरह होंठों पर स्माइल लिए प्रोडक्शन हाउस के चक्कर लगाना, हमेशा खुश रहने की एक्टिंग करना, जो भी मिले उसी को कर लेना, इसी से मुझे स्थापित करने का मौका मिलता गया. न तो मैं एक अच्छी अभिनेत्री हूं, न ही एक अच्छी डांसर पर मैंने हर काम को दिन-रात मेहनत के द्वारा सिद्ध किया. लैला ओ लैला गाने के लिए मुझे सात से दस दिन का समय लगा. हर दिन 3 से 5 घंटे मैं कोरियोग्राफर ‘सिजर’ के साथ रिहर्सल करती थी. ये मेरे लिए एक चुनौती बन गई थी. बॉलीवुड की कौन सी बात आपको पसंद या नापसंद है?

लोग मेरे बारे में क्या कहते है मुझे पता है और उसका असर मुझपर नहीं पड़ता. पसंद की बात करें तो मैं फिल्में कर रही हूं, इंडस्ट्री का हिस्सा बन चुकी हूं, मेरे फैन्स और दर्शक यहां बहुत हो चुके हैं जिसकी मुझे ख़ुशी है. नापसंद की बात कहे तो जो लोग मेरे बारे में भला-बुरा कहते हैं. इसके अलावा यहां इंडस्ट्री कैसे व्यवसाय करती है इसे जानना आसान नहीं था. अमेरिका में सब अलग हैं. यहां काम के साथ-साथ इमोशन भी होते हैं. जिसमें मुझे एडजस्ट करना पड़ा, क्योंकि बॉलीवुड किसी के साथ एडजस्ट नहीं करती. यहां कोई काम समय पर नहीं होता.

ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?

मेरी इच्छा है कि किसी बड़ी बजट की फिल्म में लीड रोल करने का मौका मिले. इसके अलावा ‘पीरियड’ फिल्में करना चाहती हूं. जहाँ मुझे भारत के इतिहास के बारें में जानने का मौका मिलेगा. बायोपिक अगर इंटरेस्टिंग हो तो अवश्य करना पसंद करुंगी.

आपकी प्रोडक्शन कंपनी इन दिनों क्या कर रही है?

जब मैं यहां आई तो पता चला कि यहां व्यवसाय करने के लिए कंपनी खोलना बहुत जरुरी है. फिर मैंने ‘सनसिटी मीडिया एंटरटेनमेंट’ के नाम से कंपनी खोला. उसमें अगर अच्छी कहानी मिले तो फिल्म बनाउंगी. मुझे कोई जल्दी नहीं है. थ्रिलर फिल्म्स और रोमकोम फिल्में बनाने की इच्छा है.

नए साल में लोगों को क्या संदेश देना चाहती हैं?

वे अच्छा सोचे, अच्छा महकें, अपने जीवन से प्यार करें, वर्तमान में ही जीना सीखें, कल पर भरोसा न करें.

इस साल की रिसोल्यूशन क्या है?

पिछले साल मैंने अधिक सोशल होने का संकल्प लिया था और मैं आज हूं. हालांकि मैं बहुत शाय नेचर की हूं, पर इस साल मैंने इसे बदला है. इस साल कोई संकल्प नहीं लिया है.

आगे कौन सी फिल्म कर रही हैं?

मैं अभी अरबाज खान के साथ ‘तेरा इंतजार’ एक रोमांटिक थ्रिलर फिल्म कर रही हूं. इसके अलावा कुछ और फिल्में भी करने वाली हूं.

इस साल इन 10 गानों की रही धूम

साल 2016 में बॉलीवुड फिल्मों के कई गानों ने धूम मचाई. इन गानों को दर्शकों ने खूब पसंद किया. कई सॉन्ग तो ऐसे भी रहे जो फिल्म के रिलीज होने से पहले ही यूट्यूब पर हिट हो गए.

जानिए साल के टॉप 10 हिट सॉन्ग्स जो पूरे साल सबसे ज्यादा ट्रेंड किए और सबसे ज्यादा पसंद किए गए.

जग घूमिया

बॉलीवुड के दबंग सलमान खान की फिल्म सुल्तान का सॉन्ग जग घूमिया  ने इस साल की हिट सॉन्ग में अपनी जगह बनाई. सलमान की इस गाने को दर्शकों ने काफी पसंद किया. यह गाने यूट्यूब पर काफी सर्च किया गया. इस गाने को राहत फतह अली खान ने गाया है और विशाल शेखर ने इसे कंपोज किया है.

ऐ दिल है मुश्किल

रणबीर कपूर, ऐश्वर्या रॉय बच्चन और अनुष्का शर्मा स्टारर फिल्म ऐ दिल है मुश्किल के टाइटल सॉन्ग ऐ दिल है मुश्किल को लोगों ने यूट्यूब पर खूब पसंद किया गया था. यह गाना साल 2016 के टॉप-10 गानों में जगह बनाने में कामयाब रहा. इस गाने को प्रीतम चकवर्ती ने गाया है.

तेरे संग यारा

बॉलीवुड के खिलाड़ी अक्षय कुमार की फिल्म रुस्तम का गाना तेरा संग यारा बॉलीवुड के पापुलर सॉन्गस में से एक है. इस गाने को अतिफ असलम ने गाया है और इसे अक्षय कुमार और इलियाना डीक्रूज पर फिल्माया गया है. अक्षय के इस गाने का यूट्यूब पर काफी चर्च किया गया है.

बेबी का बेस पसंद है

दबंग सलमान खान की फिल्म सुल्तान के गाने बेबी का बेस पसंद है को दर्शकों ने खूब पसंद किया. यह गाना सलमान और अनुष्का शर्मा के ऊपर फिल्माया गया है. इस गाने को विशल ददलानी, शलमाली खोलगड़े, इशता और बादशाह ने गाया है और विशाल शेखर ने इस गाने को कंपोज किया है. यह गाना यूट्यूब पर काफी बार देखा गया है.

काला चश्मा

सिद्धार्थ मल्होत्रा और कैटरीना कैफ स्टारर फिल्म बार-बार देखो के सॉन्ग काला चश्मा इस साल खूब चर्चा में रहा था. यह सॉन्ग इस साल के हिट सॉन्ग में जगह बनाने में कामयाब रहा. इस गाने में सिद्धार्थ और कैटरीना ब्लैक चश्मा पहने नजर आ रहे हैं. फिल्म बार-बार देखो के इस गाने को अमर अर्शी, बादशाह और नेहा कक्कर ने गाया है.

सोच ना सके

अक्षय कुमार और एक्ट्रेस निमरत कौर स्टारर फिल्म एयरलिफ्ट के सॉन्ग सोच ना सके  इस साल के हिट सॉन्गस में शुमार रहा. इस फिल्म ने बॉक्सऑफिस पर अच्छी कमाई की थी. यूट्यूब पर सर्च किए गए गानों में इस सॉन्ग ने अपनी अच्छी खासी जगह बनाई थी. यह सॉन्ग बॉलीवुड के साल 2016 के टॉप-10 सॉन्ग में शामिल है. इस गाने को अरिजीत सिंह ने गाया था.

सब तेरा

टाइगर श्राफ और श्रद्धा कपूर की फिल्म बागी के सॉन्ग सब तेरा को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया था. यह गाना टाइगर और श्रद्धा के पर फिल्माया गया था. सबसे दिलचस्प बात यह है कि सिंगर अरमान मलिक के साथ इस गाने को खुद श्रद्धा कपूर ने गाया था. वहीं इस गाने को अमाल मलिक ने कंपोज किया था. बागी फिल्म का यह गाना यूट्यूब पर काफी सर्च किया गया.

सनम रे

बॉलीवुड एक्टर पुलकित सम्राट और एक्ट्रेस यामी गौतम अभिनीत फिल्म सनम रे के सॉन्ग सनम रे को इस साल लोगों ने काफी पसंद किया. फिल्म का टाइटल सॉन्ग सनम रे इस साल के पापुलर गानों में से एक है. इस गाने का यूट्यूब पर काफी सर्च किया गया. इस गाने को गायक अरजीत सिंह ने अपनी सुरीली आवाज से सजाया है. इस गाने को बर्फीले पहाड़ी इलाके में फिल्माया गया है.

हुआ है आज पहली बार

बॉलीवुड फिल्म सनम रे के एक और सॉन्ग ने साल 2016 में धूम मचाई. इस गाने के बोल है हुआ है आज पहली बार. सॉन्ग हुआ है आज पहली बार अभिनेता पुलकित सम्राट और अभिनेत्री उर्वशी रौतेला पर फिल्माया गया है. इस गाने में उर्वशी का बोल्डनेस अवतार भी नजर आया है. इस गाने को अरमान मलिक, पलक मुच्चल और अमाल मलिक ने अपनी सुरीली आवाज दी है.

जबरा फैन

बॉलीवुड के किंग खान शाहरुख खान की फिल्म फैन के सॉन्ग जबरा फैन को दर्शकों ने काफी पसंद किया. इस गाने को सिंगर नक्श अजीज ने अपनी सुरीली आवाज से सजाया है. यह गाना यूट्यूब पर काफी सर्च किया गया है. अपनी लोकप्रियता के कारण इस सॉन्ग ने 2016 के हिट सॉन्ग में अपनी जगह बनाई है.

ऐश्वर्या के साथ काम नहीं करना चाहते अभिषेक

ऐश्वर्या राय बच्चन ने हाल ही में अपनी खूबसूरती का जलवा फिल्म ‘ए दिल है मुश्किल’ में खूब दिखाया, लेकिन लगता है उनके पति अभिषेक बच्चन को यह जादू फीका लगा. सूत्रों की मानें तो अभिषेक अपनी फिल्म में ऐश को नहीं लेना चाहते.

दरअसल, अभिषेक अपनी फिल्म ‘लेफ्टी’ की शूटिंग शुरू करने वाले हैं, जिसके वह को-प्रोड्यूसर भी हैं. फिल्म ‘लेफ्टी’ एक साई-फाई फिल्म है जिसमें अभिषेक बच्चन एक लेफ्ट हैंडेड सुपर पावर पाने वाले लड़के की भूमिका में हैं जो शहर को मुसीबतों से बचाता है. प्रभुदेवा के निर्देशन में बन रही इस फिल्म के लिए हीरोइन अभी फाइनल नहीं हुई है.

ये फिल्म अभिषेक की होम प्रोडक्शन के तहत बन रही है. ऐसे में ऐश्वर्या बच्चन फिल्म में लीड ऐक्ट्रेस के तौर पर काम करना चाह रही थीं. लेकिन अभिषेक ने ऐश को एक बार फिर जोर का झटका दिया है. अभिषेक बच्चन ने अपनी टीम को आदेश दिया की फिल्म के लिए कोई नया चेहरा देखें. अभिषेक का कहना है कि ऐश्वर्या का चेहरा फिल्म के किरदार के हिसाब से काफी मेच्योर है. इसलिए अभिषेक फिल्म के लिए ऐश्वर्या को छोड़ एक नए फ्रेश चेहरे की तलाश में हैं.

वैसे अभिषेक का यह फैसला कहीं दोनों के बीच मनमुटाव का इशारा तो नहीं. बता दें कि इससे पहले भी अभि‍षेक फिल्म ‘जज्बा’ की रिलीज के समय ऐश्वर्या के साथ बेहद रूखा व्यवहार कर चुके हैं.

बिहार: परंपरा और आधुनिकता का संगम

ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए बिहार न सिर्फ परंपरा और आधुनिकता की अनूठी तसवीर पेश करता है, बल्कि शिक्षा और ज्ञानविज्ञान की अंतर्राष्ट्रीय पहचान के लिए यह मशहूर भी है.

बिहार ऐसा प्रदेश है जो अपनी अलग पहचान रखता है. चंद्रगुप्त और अशोक के समय में मगध और इस की राजधानी पाटलिपुत्र का विश्व भर में नाम था. बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है. जब तक झारखंड बिहार से अलग नहीं हुआ था तब तक यहां खनिज संपदा की कोई कमी नहीं थी लेकिन झारखंड बनने पर खनिज संपदा से लबरेज इलाका वहां चला गया. इस तरह बिहार की आर्थिक संपन्नता को काफी नुकसान पहुंचा है.

पर्यटन व ऐतिहासिक दृष्टि से बिहार का आकर्षण आज भी कायम है. देशविदेश से अनेक सैलानी यहां के ऐतिहासिक स्थलों को देखने हर साल आते हैं. बिहार की राजधानी पटना का नाम पाटलिपुत्र और अजीमाबाद भी रहा है. यह शहर अपने सीने में कई ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए हुए है.

पटना के दर्शनीय स्थल

बुद्ध स्मृति पार्क : पटना रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही विशाल और चमचमाते स्तूप पर नजर टिक जाती है. वह इंटरनैशनल लेवल का बना नया पर्यटन स्थल बुद्ध स्मृति पार्क है. उस जगह पर पहले पटना सैंट्रल जेल हुआ करता था.

म्यूजियम : पार्क के भीतर बुद्ध म्यूजियम को बड़ी खूबसूरती से गुफानुमा बनाया गया है जिस में बुद्ध और बौद्ध से जुड़ी चीजें प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं. इसे सिंगापुर के म्यूजियम की तर्ज पर विकसित किया गया है.

मैडिटेशन सैंटर : बौद्ध-कालीन इमारतों की याद दिलाता मैडिटेशन सैंटर बनाया गया है. यह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से प्रेरित है. इस में कुल 5 ब्लाक और 60 कमरे हैं. सभी कमरों के सामने के हिस्सों में पारदर्शी शीशे लगाए गए हैं ताकि ध्यान लगाने वाले सामने बौद्ध स्तूप को देख कर ध्यान लगा सकें.

बांकीपुर जेल अवशेष : बांकीपुर जेल को 1895 में बनाया गया था, जो शुरू में तो अनुमंडल जेल था पर बाद में 1907 में उसे जिला जेल बनाया गया. 1967 में उसे सैंट्रल जेल का दरजा दिया गया था. 1994 में जेल को वहां से हटा कर बेऊर इलाके में शिफ्ट कर दिया गया. उस जेल में देश के पहले राष्ट्रपति रहे डा. राजेंद्र प्रसाद समेत कई स्वतंत्रता सेनानी बंदी के रूप में रहे.

ईको पार्क : पटना के लोगों और पर्यटकों की तफरीह के लिए बना नयानवेला ईको पार्क पटना का नया नगीना है. पटना के बेली रोड पर पुनाईचक इलाके में साल 2011 के अक्तूबर महीने में ईको पार्क पर्यटकों के लिए खोला गया. इसे राजधानी वाटिका भी कहा जाता है. पार्क में बनी  झील में नौका विहार का आनंद लिया जा सकता है. इस में बच्चों के खेलने और मनोरंजन का खासा इंतजाम किया गया है, वहीं बड़ों के लिए आधुनिक मशीनों से लैस जिम भी बनाया गया है.

पटना म्यूजियम : पटना म्यूजियम देशविदेश के पर्यटकों को हमेशा ही लुभाता रहा है. पटना के लोग छुट्टी का दिन यहां बिताना पसंद करते हैं. पटना रेलवे स्टेशन से आधा किलोमीटर दूर बुद्ध मार्ग पर बने इस म्यूजियम ने प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को संजो कर रखा है. प्राकृतिक कक्ष में जीवजंतुओं के पुतलों को रखा गया है जबकि वास्तुकला कक्ष में खुदाई से मिली मूर्तियों को रखा गया है, जिस में विश्वप्रसिद्ध यक्षिणी की मूर्ति भी शामिल है.

संजय गांधी जैविक उद्यान : पटना का यह चिडि़याघर शहर वालों का पसंदीदा पिकनिक स्पौट है. रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर और एअरपोर्ट से 2 किलोमीटर की दूरी पर बने चिडि़याघर में विभिन्न प्रजातियों के पशु, पक्षी और औषधीय पौधे हैं जो इस की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. चिल्ड्रैन रेलगाड़ी में सैर करने का लुत्फ बच्चे, बूढ़े और जवान सभी उठाते हैं. उद्यान में विकसित  झील में नौका विहार का भी आनंद लिया जा सकता है. सांपघर और मछलीघर भी पर्यटकों को लुभाते हैं.

कुम्हरार : प्राचीन पटना का भग्नावशेष यहीं मिला था. पटना जंक्शन से 5 किलोमीटर पूरब में पुरानी बाईपास रोड पर स्थित कुम्हरार प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है और यह पिकनिक स्पौट और लवर्स प्वाइंट के रूप में मशहूर हो चुका है.

गोलघर : गंगा नदी के किनारे बना गोलघर ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है. 1770 के भीषण अकाल के बाद साल 1786 में अंगरेजों ने इसे अनाज रखने के लिए बनाया था. 29 मीटर ऊंचे इस गोलाकार भवन के ऊपर चढ़ने के लिए 100 से ज्यादा सीढि़यां हैं. इस के शिखर से पटना शहर का नजारा लिया जा सकता है. इन सब के अलावा जलान म्यूजियम, अगमकुआं, मनेर का मकबरा, सदाकत आश्रम, बिहार विद्यापीठ, गांधी संग्रहालय, तख्त हरमंदिर, शहीद स्मारक, गांधी मैदान, तारामंडल आदि भी पटना के नामचीन पर्यटन स्थल हैं.

अन्य दर्शनीय स्थल

राजगीर : यह स्थान सड़क मार्ग से पटना से 102 किलो-मीटर की दूरी पर है और गया एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां वेणुवन, मनियार मठ, पिप्पल नामक पत्थर का महल है, जिसे पहरा देने का भवन या मचान भी कहते हैं. वैभारगिरी पहाड़ी के दक्षिण छोर पर सोनभद्र गुफा, जरासंध का बैठकखाना, स्वर्ण भंडार, बिंबिसार का कारागार, जीवक आम्रवन और पत्थरों की उम्दा कारीगिरी से बनाई गई सप्तपर्णी गुफा की कलात्मकता देखते ही बनती है.

पटना से 109 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में और नालंदा से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजगीर हिंदू, बौद्ध और जैनियों का महत्त्वपूर्ण व ऐतिहासिक स्थल है. पहाड़ पर बना विश्व शांति स्तूप स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूनों में से एक है. रोपवे के जरिए पर्यटक वहां आसानी से पहुंच सकते हैं.

रेलमार्ग से : हावड़ा-पटना मुख्य रेलमार्ग पर स्थित बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन सब से नजदीक स्टेशन है. पटना के मीठापुर बस अड्डे से हरेक घंटे गया के लिए बस जाती है.

वैशाली

यहां कई ऐतिहासिक और कलात्मक इमारतें हैं. राजा विशाल का किला, अशोक स्तंभ, बौद्ध स्तूप समेत कई इमारतें अपने दिनों की गवाह बनी आज भी सीना ताने खड़ी हैं. वैशाली के कोल्हुआ गांव में स्थित अशोक स्तंभ को स्थानीय लोग ‘भीमसेन की लाठी’ भी कहते हैं. स्तंभ के ऊपर घंटाघर है और उस के ऊपर उत्तर की ओर मुंह किए हुए समूचे सिंह की मूर्ति बनी हुई है. यह अशोक स्तंभ आज भी भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक चिह्न बना हुआ है. स्तंभ से 50 फुट की दूरी पर एक तालाब है जिस के पास गोलाकार बौद्ध स्तूप बना हुआ है, जिस के ऊपर के भवन में बुद्ध की मूर्ति है.

वैशाली सड़क मार्ग से पटना एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर और पटना रेलवे स्टेशन से 54 किलोमीटर की दूरी पर है. नजदीकी रेलवे स्टेशन हाजीपुर और मुजफ्फरपुर है. गया एअरपोर्ट से वैशाली की दूरी 169 किलोमीटर है.

नालंदा

शिक्षा और ज्ञानविज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के रूप में नालंदा मशहूर था. नालंदा महाविहार या महाविश्वविद्यालय में दुनिया भर से छात्र पढ़ने आते थे. इस की स्थापना 5वीं सदी ईसापूर्व में कुमारगुप्त प्रथम ने की थी और हर्षवर्द्धन के शासन में यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हो गया था. सम्राट अशोक ने यहां मठ की स्थापना की थी. जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर ने यहां काफी समय गुजारा और प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं हुआ था. इस में 10 हजार छात्रों के पढ़ने की व्यवस्था थी और उन्हें पढ़ाने के लिए 1,500 शिक्षक दिनरात लगे रहते थे. यहां बुद्धकाल की बनी हुई धातु, पत्थर और मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं.

बोधगया

ईसा से 500 साल पहले बोधगया में ही गौतम बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. गया शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोधगया निरंजन नदी के किनारे बसा हुआ है. इस के आसपास कई तिब्बती मठ हैं. वटवृक्ष के नजदीक जापान, चीन, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड द्वारा बनाए गए विशाल बौद्ध स्तूप पर्यटकों को लुभाते हैं. बिहार में सब से ज्यादा विदेशी पर्यटक बोधगया ही आते हैं. गया शहर में भी कई पर्यटन स्थल हैं. पटना से 94 किलोमीटर की दूरी पर गया फल्गु नदी के किनारे बसा हुआ है. बराबर की गुफाओं में मौर्यकालीन स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना देखने को मिलता है.

बोधगया सड़कमार्ग से पटना एअरपोर्ट से 109 किलोमीटर की दूरी पर है. गया एअरपोर्ट से इस की दूरी 8 किलोमीटर है. दिल्ली-हावड़ा रेलमार्ग पर गया रेलवे स्टेशन नजदीकी रेलवे स्टेशन है.

सासाराम

सासाराम में शेरशाह सूरी और उन के पिता हसन खान सूरी का मकबरा है, जो भारत में पछान स्थापत्य कला का खूबसूरत नजारा पेश करता है. यहां विश्व प्रसिद्ध कैमूर की पहाडि़यां भी हैं.

दियारा

कहीं रेत पर दौड़तेभागते प्रेमीप्रेमिकाएं दुनिया भुलाए, कहीं किनारे बैठा प्रेमी जोड़ा कहीं पानी में छई छपा छई… करते मुहब्बत के दीवाने, कहीं देहाती भोजन का लुत्फ उठाता परिवार. गंगा के दियारा इलाके में जमा हो कर लोग एकांत का आनंद लेने लगे तो सरकार का ध्यान उस ओर गया. अब दियारा इलाके को पर्यटन स्पौट के रूप में विकसित किया जा रहा है. गंगा पर्यटन के नाम से इस योजना को हकीकत के धरातल पर उतारने की कवायद शुरू हो चुकी है.

पटना और हाजीपुर के बीच गंगा नदी के 2 धाराओं में बंट जाने से गंगा के बीच करीब 4 वर्ग किलोमीटर का इलाका टापू की शक्ल ले चुका है. उस टापू पर युवा लड़के और लड़कियां मौजमस्ती करने की  नीयत से नाव के सहारे पहुंच जाते हैं और शाम ढलने से पहले वहां वापस चले जाते हैं. धीरेधीरे कुछ लोगोें ने वहां अपने परिवार के साथ जाना शुरू किया. दियारा में रेत और पानी के बीच समुद्रतट जैसा नजारा और मजा मिलता है.

2017: कंगना शादी तो सोनाक्षी करेंगी सगाई

साल 2016 की शुरुआत बॉलीवुड के लिए कुछ खास नहीं रही थी. कई बॉलीवुड कपल्स अलग हो गए या उनका तलाक हो गया. लेकिन ऐसा लग रहा है कि साल 2017 की शुरुआत बॉलीवुड के लिए काफी अच्छी होने वाली है. आ रही खबरों के मुताबिक कई बॉलीवुड स्टार्स सगाई या शादी कर लेंगे.

सूत्रों की मानें तो जहां एक तरफ कंगना 2017 में शादी करने वाली हैं तो वहीं बॉलीवुड की दबंग गर्ल सोनाक्षी अपने लॉन्ग टाइम ब्वॉयफ्रेंड से सगाई करने वाली हैं.

बॉलीवुड की क्वीन कंगना रनौत अपनी एक्टिंग और अपनी खूबसूरती दोनों के लिए जानी जाती हैं. कंगना अपने बेबाक अंदाज के कारण कई दिलों पर राज भी करती हैं. सूत्रों की मानें तो साल 2017 उनके जीवन में एक बड़ी खुशी लाने वाला है. इस बात का खुलासा खुद कंगना ने ही किया है.

कंगना ने एक टीवी शो में बताया कि वह अगले साल शादी कर सकती हैं. दरअसल, शो में कंगना से जब यह पूछा कि साल 2017 में आपके जीवन में क्या नया हो सकता है, नए साल के लिए आपकी क्या प्लानिंग है. इसपर कंगना ने कहा, ‘अगले साल मेरी शादी होने वाली है.’ हालांकि कंगना ने इस बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं दी है.

अगले साल कंगना की दो फिल्में ‘रंगून’ और ‘सिमरन’ आने वाली है. ‘रंगून’ 24 फरवरी को रिलीज होगी. इसे विशाल भारद्वाज ने डायरेक्ट किया है और साजिद नाडिवाला और सिद्धार्थ कपूर इसके प्रड्यूसर हैं. जबकि ‘सिमरन’ अगले साल सितंबर तक रिलीज होने की संभावना है.

इस साल अपने एक्शन के लिए सुर्खियों में रहीं सोनाक्षी सिन्हा 2017 में बहुत बड़ा धमाका करने वाली हैं. बी-टाउन में ये गॉसिप तेजी से फैल रही है कि सोनाक्षी अपने ब्वॉयफ्रेंड बंटी सजदेह के साथ इंगेजमेंट कर लेंगी.

सोनाक्षी अपने दबंग अंदाज और बेबाक बातों के लिए मशहूर रहती हैं. पापा शत्रुघ्न सिन्हा के अंदाजे-बयां की झलक सोना की पर्सनेलिटी में खूब झलकती है और उनका ये कदम इस बात को पुख्ता भी करता है. ये कयास लगाए जा रहा है कि सोनाक्षी फरवरी में बंटी के साथ इंगेजमेंट कर सकती हैं. वैसे सोनाक्षी और बंटी की रिलेशनशिप से सोना के पेरेंट्स खुश नहीं हैं. इसकी वजह ये है कि बंटी की एक बार शादी हो चुकी है और वो तलाकशुदा हैं. इसके अलावा दोनों की बीच उम्र का फासला भी काफी है. बंटी और सोना के बीच पिछले कुछ महीनों में नजदीकियां ज्यादा बढ़ गई हैं. दोनों को साथ में हैंगआउट करते हुए देखा जा चुका है.

उस वक्त भी इंगेजमेंट की खबरें आई थीं. हालांकि एक इंटरव्यू में जब सोनाक्षी से बंटी के रिलेशनशिप के बारे में पूछा गया तो उन्होंने नो कमेंट्स के साथ कहा था, ”आपको मेरी मेरी उंगली में कोई रिंग दिखती है क्या? नहीं ना! फिर? क्या इससे आपके सवाल का जवाब मिल गया.”

बंटी और सोनाक्षी की डेटिंग की कहानी 2012 में शुरू हुई थी. दोनों को एक साथ देखने के बाद ये अफवाहें शुरू हुई थीं. आपको बता दें कि बंटी सलमान खान के छोटे भाई सोहेल खान की बीवी सीमा खान के भाई हैं.

बंटी सोनाक्षी से पहले कथित तौर पर दिया मिर्जा, नेहा धूपिया और सुष्मिता सेन को भी डेट कर चुके हैं. बंटी की शादी अंबिका चौहान से हुई थी, जिसमें सलमान भी शामिल हुए थे. ये शादी 4 साल चली.

निवेश हो वहां अच्छा रिटर्न मिले जहां

पूंजी निवेश का जोखिम किसी भी बैंकिंग स्कीम या अन्य व्यवस्था में उम्र, बाजार के उतारचढ़ाव और निवेश के स्वरूप पर निर्भर करता है. ऐसे में किन स्कीमों में निवेश करें जिस से अधिकतम रिटर्न मिले, बता रही हैं ममता सिंह.

निवेश में आप का झुकाव इक्विटी की ओर है तो एक बात तय है कि शेयर बाजार में उतारचढ़ाव से आप की नींद उड़ रही होगी. हालांकि निवेश के पोर्टफोलियो में इक्विटी का शामिल होना अहम है लेकिन इक्विटी की हिस्सेदारी निवेशक के जोखिम लेने की क्षमता, उम्र और निवेश के लक्ष्य के आधार पर तय होनी चाहिए. इस के साथ ही, आप के पोर्टफोलियो में फिक्स्ड इन्कम वाले इंस्ट्रूमैंट का शामिल होना भी बहुत जरूरी है.

फिलहाल डैट इंस्ट्रूमैंट में निवेश करना आप के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है क्योंकि बाजार में इस के कई सारे प्रोडक्ट उपलब्ध हैं. इन में निवेश से आप अच्छा रिटर्न कमा सकते हैं.

फिक्स्ड इन्कम इंस्ट्रूमैंट

इक्विटी में निवेश करने से निश्चित तौर पर अच्छा रिटर्न मिलता है. वहीं, जब बाजार में अनिश्चितता बरकरार हो तो निवेशक अपनी पूंजी को सुरक्षित रखना चाहते हैं. अगर आप की उम्र ज्यादा है और आप रिटायरमैंट की ओर बढ़ रहे हैं तो ज्यादा जोखिम लेना आप के लिए उपयुक्त नहीं है. इस स्थिति में फिक्स्ड इन्कम वाले इंस्ट्रूमैंट का चुनाव करना ठीक रहता है.

सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लानर अजय बजाज के मुताबिक, बाजार में फिक्स्ड इन्कम वाले कई निवेश विकल्प मौजूद हैं जिन में निवेश कर के एक ओर निवेशक जहां अच्छा रिटर्न कमा पाएंगे वहीं दूसरी ओर वे टैक्स की बचत भी कर सकते हैं.

फिक्स्ड डिपौजिट बेहतर विकल्प

भारतीय निवेशकों के लिए फिक्स्ड डिपौजिट हमेशा से ही निवेश के लिए बेहतरीन विकल्प रहा है. इन में सब से खास बात है कि आप को निश्चित दर पर रिटर्न मिलेगा और जोखिम बिलकुल नहीं है. हालांकि इस निवेश से मिलने वाले ब्याज पर निवेशकों को टैक्स चुकाना पड़ता है. ऐसे में जो लोग निचले टैक्स स्लैब में आते हैं उन के लिए यह निवेश का बेहतरीन विकल्प है, खासतौर पर वे लोग भी, जो रिटायरमैंट के नजदीक हैं, इस में निवेश कर सकते हैं.

बैंक की जिन एफडी का लौकइन पीरियड 5 साल का होता है उन पर आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत टैक्स छूट का फायदा भी मिलता है. इस के बावजूद बैंक के फिक्स्ड डिपौजिट में निवेशकों को उतना रिटर्न नहीं मिलता जितना कौर्पोरेट एफडी में मिलता है.

कौर्पौरेट एफडी की बात करें तो इस की ब्याज दरें बैंक एफडी से 1 से 2 फीसदी ज्यादा हैं. इस के बावजूद निवेशकों को उन कौर्पोरेट एफडी में निवेश से बचना चाहिए जिन की रेटिंग अच्छी न हो, फिर चाहे उस पर आप को 15 फीसदी तक रिटर्न ही क्यों न दिया जा रहा हो. जिस एफडी की रेटिंग अच्छी है पर रिटर्न थोड़ा कम हो, उस में निवेश करने में भी समझदारी है.

कौर्पोरेट बौंड डिबैंचर्स

बड़ी कंपनियां अपने फंड की जरूरत को पूरा करने के लिए बौंड जारी करती हैं. आमतौर पर इन बौंड के रिटर्न पर निवेशक को टैक्स चुकाना पड़ता है हालांकि कई बार सरकार कुछ कंपनियों को छोटे निवेशकों के लिए टैक्स फ्री बौंड जारी करने की अनुमति भी देती हैं. बौंड द्वारा कमाए गए मुनाफे पर निवेशक की आय के स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ता है.

निवेशकों को इस तरह के इंस्ट्रूमैंट में निवेश करने से पहले यह जान लेना चाहिए कि मैच्योरिटी पर पैसा वापस मिलेगा या नहीं. कहने का मतलब है कि बौंड जारी करने वाली कंपनी की रीपेमैंट क्षमता के बारे में जानकारी होनी बहुत जरूरी है. वरिष्ठ नागरिकों को काफी उच्च रेटिंग वाले बौंड में निवेश करना चाहिए.

डाइवर्सिफाइड म्यूचुअल फंड

डेट इंस्ट्रूमैंट के बीच फिक्स्ड इन्कम म्यूचुअल फंड सब से ज्यादा डाइवर्सिफाइड फंड है. इस में मौजूदा ब्याज दरों और शेयर बाजार के उतारचढ़ाव को देखते हुए आमतौर पर निवेशकों को फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान, शौर्ट टर्म डेट फंड और गिल्ट फंड में निवेश करने की सलाह दी जाती है.

निवेशकों के लिए ये सह योजनाएं बेहतर मानी जाती हैं क्योंकि इन में एफडी से ज्यादा ब्याज मिलता है और मैच्योरिटी पीरियड के लिए भी 3 महीने से 3 साल का विकल्प मौजूद होता है. फंड हाउस ने कुछ ऐसी स्कीमें भी लौंच की हैं जिन का मैच्योरिटी पीरियड 370 से 390 दिन के बीच है. इन में निवेश करने से टैक्स के साथ महंगाई को भी समायोजित करने का मौका मिलता है.

हाइब्रिड या स्ट्रक्चर्ड प्रोडक्ट

कई फंड हाउस और प्राइवेट बैंक ऐसे हाइब्रिड प्रोडक्ट औफर कर रहे हैं जिन में डेट इंस्ट्रूमैंट की ज्यादा हिस्सेदारी होती है और इक्विटी का हिस्सा कम होता है. इन में कर्ज पर आधारित हाइब्रिड ऐंड स्कीम शामिल होती हैं. कैपिटल प्रोटैक्शन फंड और मंथली इन्कम प्लान इसी श्रेणी में आते हैं.

जानकार मानते हैं कि इस तरह का निवेश करने में एक ओर जहां आप का निवेश डेट इंस्ट्रूमैंट के जरिए सुरक्षित रहता है वहीं दूसरी ओर इक्विटी में निवेश से आप का रिटर्न भी बढ़ता है. इस पर भले ही ज्यादा रिटर्न न मिलता हो पर इस से होने वाले टैक्स फायदे और कम जोखिम के चलते यह छोटे निवेशकों के लिए पसंदीदा विकल्प है. विशेषज्ञों की मानें तो निवेशकों को अपने कुछ निवेश का कम से कम 20 से 40 फीसदी हिस्सा फिक्स्ड इंस्ट्रूमैंट पर लगाना चाहिए.

बरतें सावधानी

बाजार में उतारचढ़ाव हो रहा हो तो अपनी सारी निवेश राशि फिक्स्ड इन्कम इंस्ट्रूमैंट में निवेश नहीं करनी चाहिए. बाजार में जोखिम ज्यादा दिखाई दे तो फिक्स्ड इन्कम इंस्ट्रूमैंट का अनुपात बढ़ा दें. इस दौरान इक्विटी में निवेश जारी रखें. इस से लंबी अवधि में आप को लाभ होगा. इस तरह के इंस्ट्रूमैंट में निवेश करने से पहले मार्केट रिसर्च करना न भूलें क्योंकि किसी इंस्ट्रूमैंट में मिलने वाला 8 से 9 फीसदी रिटर्न भले ही आप को शुरुआत में लुभावना लगे लेकिन हो सकता है टैक्स के बाद यह रिटर्न कम हो जाए. आप को फिक्स्ड इन्कम इंस्ट्रूमैंट की जानकारी न हो तो किसी विशेषज्ञ की मदद लें. बाजार में सुधार दिखने लगे तो फिक्स्ड इन्कम इंस्ट्रूमैंट और इक्विटी में निवेश के अनुपात को बदल लें क्योंकि फिक्स्ड इन्कम इंस्ट्रूमैंट जहां आप को पूंजी की सुरक्षा देते हैं वहीं लंबे समय तक इन पर निर्भर होना आप के रिटर्न को घटा सकता है.

नींबू के छिलके के फायदे

नींबू के रस के फायदे तो हम सब जानते हैं. खाने का स्वाद बढ़ाना हो या एक्सट्रा फैट घटाना हो, हम रोजाना नींबू का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन नींबू के छिलके में भी बहुत गुणकारी तत्व होते हैं. यह बात अलग है कि हम कभी कभी प्लैटिंग के लिए नींबू के छिलके का प्रयोग कर लेते हैं. पर अकसर हम इन्हें बेकार समझकर कूड़े में फेंक देते हैं.

कैंसर से बचाव

इस बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है. लेकिन, नींबू के छिलके कैंसर से बचाने और उसके इलाज में काफी मददगार होते हैं. इसमें मौजूद तत्त्व कैंसर सेल्स से लड़ने में मददगार होते हैं.

कमर के एकस्ट्रा इंच घटाए

नींबू के छिलके वजन घटाने में भी मदद करते हैं. इनमें पेक्टिन होता है, जो शरीर में जमा अतिरिक्त चर्बी को दूर रखता है. तो अगर आप वजन कम करना चाहते हैं, तो नींबू के छिलकों का सेवन जरूर करें.

कॉलेस्ट्रॉल घटाए

यह कॉलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने में भी मदद करते हैं. शरीर में कॉलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा दिल को नुकसान पहुंचाती है.

त्वचा को रखे फ्रेश

झुर्रियों, एक्ने, पिग्मेंटेशन और गहरे निशानों से बचाने में नींबू के छिलकों का कोई सानी नहीं. इसमे मौजूद फ्री-रेडिकल्स इस प्रक्रिया में काफी अहम किरदार निभाते हैं. इसके साथ ही इसमं ऐंटि-ऑक्सिडेंट्स त्वचा को डिटॉक्सीफाई करते हैं, जिससे आपका रूप निखरता है.

हड्डियों की मजबती बढ़ाए

नींबू के छिलके हमारी हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करते हैं. इसमें उच्च मात्रा में कैल्शियम और विटमिन सी होता है. इसके अलावा यह हड्डियों से जुड़ीं बीमारियों जैसे ऑस्टियोपोरोसिस, रहेयूमेटॉयड अर्थराइटिस और इंफ्लेमेटरी पोलीअर्थराइटिस से भी बचाने में मदद करता है.

शरीर से टॉक्सिन हटाए

हमारे शरीर में कई तरह के टॉक्सिन होते हैं. ये पदार्थ न केवल हमारे शरीर को अंदर से कमजोर बनाते हैं, बल्कि साथ ही साथ हमारे भीतर ऐल्कोहल और अन्य नुकसानदेह खाद्य पदार्थों के सेवन की लालसा भी बढ़ाते हैं. नींबू के छिलके अपने खट्टे स्वाद और स्वभाव के कारण, इन विषैले पदार्थों को दूर करने में मदद करते हैं.

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