बढ़ते खर्च के लिए माता पिता जिम्मेदार

सीबीएसई यानी सैंट्रल बोर्ड औफ सैकंडरी एजुकेशन ने देश के सारे निजी स्कूलों को अपने आर्थिक मामलों की विस्तृत जानकारी जनसाधारण के लिए नैट पर डालने का आदेश जारी किया है, जिस में अध्यापकों के वेतन, हर मद पर किया खर्च, बिल्डिंग के रखरखाव का खर्च आदि शामिल है. महंगी होती शिक्षा से परेशान पेरैंट्स बहुत हल्ला मचा रहे हैं कि शिक्षा व्यवसाय बन गई है और स्कूलों को व्यापार की तरह चला कर संचालक मालिक बन बैठे हैं.

यह बात सही है कि स्कूल अब धंधा बन गए हैं और इस धंधे में लगे लोगों ने एक माफिया बना लिया है, जिस में स्कूली शिक्षा से जुड़ी नौकरशाही पूरी तरह शामिल हो गई है और इस में राजनीति पूरी तरह घुस गई है. बहुत से नेताओं का व्यवसाय स्कूल ही हैं और वे अपनी राजनीति स्कूलों के दफ्तरों से चलाते हैं.

इन स्कूलों पर लगाम लगाने के लिए लगभग कोई संस्था नहीं है. सीबीएसई का मुख्य काम तो पाठ्यक्रम तय करना व परीक्षाएं करवाना है. स्कूल कैसे चलते हैं, यह देखना उस का काम नहीं है पर चूंकि कोई और रैग्युलेटर नहीं है, यह संस्था ही निर्देश जारी करती रहती है, जिन में से ज्यादातर अव्यावहारिक होते हैं और उन से न शिक्षा का स्तर सुधरा है और न ही मुनाफाखोरी बंद हुई है. कहने को तो शिक्षा देना व्यवसाय नहीं, जन सेवा का काम है और स्कूलों की आय पर कर नहीं लगता पर स्कूल अपना लाभ मालिकों या संचालकों में बांट भी नहीं सकते. स्कूलों को ज्यादातर सोसायटियां चलाती हैं पर हर सोसायटी पर परिवारों का कब्जा होता है और कभीकभार पेरैंट्स के दबाव में या नुकसान होने पर खरीदफरोख्त होती है.

स्कूलों का व्यावसायीकरण तो होना ही है, क्योंकि मातापिता खुद मांग करते हैं कि स्कूल में तरहतरह की सुविधाएं हों. आजकल एयरकंडीशंड कमरों की मांग होने लगी है. इनडोर स्विमिंग पूल मांगे जा रहे हैं. साल में एक विदेशी यात्रा हो. बसों का रखरखाव अच्छा हो. स्कूल लिपापुता हो. स्कूल में कौफीकैफे डे या मैक्डोनाल्ड खुला हो. जब इस तरह की शिक्षा से अलग मांगें की जाएंगी तो पैसे तो कोई देगा ही.

अगर स्कूल फटेहाल लगे तो बच्चे खुद को हीन समझते हैं. वे जोर डालते हैं कि ऐसे स्कूल में भेजा जाए जहां फीस ज्यादा हो. मातापिता सामाजिक प्रतिष्ठा पाने के लिए अपनी हैसीयत से बढ़ कर नाम वाले महंगे स्कूल में भेजते हैं. फिर कैसी खर्चों की जांच? कैसा स्पष्टीकरण? यदि आप फाइवस्टार स्कूल में जाएंगे तो 300 की चाय के प्याले का खर्च कैसे पूछ सकते हैं?

निजी स्कूल महंगे हैं तो मातापिता सरकारी स्कूलों में बच्चों को भेजने के लिए स्वतंत्र हैं जहां अच्छे शिक्षक हैं भले रखरखाव खराब हो. अगर मातापिता मिल कर स्कूलों की सेवा करें तो सरकारी स्कूल भी चमचमा उठें. स्कूलों के बढ़ते खर्च के लिए मातापिता जिम्मेदार हैं, सरकार नहीं. कानूनअदालतों को इस डिमांडसप्लाई से दूर रखें. मूर्ख पेरैंट्स यही डिजर्व करते हैं तो कोई बीच में दखल न दे.

ब्रैंडेड वर वधू

हर लड़की अपने उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ घरवर देख कर शादी करती है, पर जल्दी ही वह कहने लगती है, तुम से शादी कर के तो मेरी किस्मत ही फूट गई है या तुम ने आज तक मुझे दिया ही क्या है. इसी तरह प्रत्येक पति को अपनी पत्नी ‘सुमुखी’ से जल्द ही ‘सूरजमुखी’ लगने लगती है.

लड़के के घर वालों को तो बरात के लौटतेलौटते ही अपने ठगे जाने का एहसास होने लगता है, जबकि आज के इंटरनैट के युग में पत्रपत्रिकाओं, रिश्तेदारों, इंटरनैट तक में अपने कमाऊ बेटे का पर्याप्त विज्ञापन करने के बाद जो श्रेष्ठतम लड़की, अधिकतम दहेज के साथ मिल रही होती है, वहीं रिश्ता किया जाता है.

यह असंतोष तरहतरह से प्रकट होता है. कहीं बहू जला दी जाती है, तो कहीं आत्महत्या करने को विवश कर दी जाती है. पराकाष्ठा की ये स्थितियां तो उन से कहीं बेहतर ही हैं, जिन में लड़की पर तरहतरह के लांछन लगा कर उसे तिलतिल जलने पर मजबूर किया जाता है.

नवयुगल फिल्मों के हीरोहीरोइन की तरह उच्छृंखल हो पाए, इस से बहुत पहले सास, ननद की ऐंट्री हो जाती है. स्टोरी ट्रैजिक बन जाती है और विवाह, जो बड़े उत्साह से 2 अनजान लोगों के प्रेम का बंधन और 2 परिवारों के मिलन का संस्कार है, एक ट्रैजिडी बन कर रह जाता है. घुटन के साथ एक समझौते के रूप में समाज के दबाव में मृत्युपर्यंत यह ढोया जाता है. ऊपरी तौर पर सुसंपन्न, खुशहाल दिखने वाले ढेरों दंपती अलगअलग अपने दिल पर हाथ रख कर स्वमूल्यांकन करें, तो पाएंगे कि विवाह को ले कर एक टीस कहीं न कहीं हर किसी के दिल में है.

यहां आ कर मेरा व्यंग्य लेख भी व्यंग्य से ज्यादा एक सीरियस निबंध बनता जा रहा है. मेरे व्यंग्यकार मन ने विवाह की इस समस्या का समाधान ढूंढ़ने का यत्न किया. मैं ने पाया कि दामाद को 10वां ग्रह मानने वाले इस समाज में, यदि वरवधू की मार्केटिंग सुधारी जाए, तो स्थिति सुधर सकती है. विवाह से पहले दोनों पक्ष ये सुनिश्चित कर लें कि उन्हें इस से बेहतर और कोई रिश्ता उपलब्ध नहीं है. वरवधू की कुंडली मिलाने के साथसाथ भावी सासूमां से भी मिलवा ली जाए. वर यह तय कर ले कि जिंदगी भर ससुर को चूसने वाला पिस्सू बनने की अपेक्षा पुत्रवत, परिवार का सदस्य बनने में ही दामाद का बड़प्पन है, तो वैवाहिक संबंध मधुर स्वरूप ले सकता है.

अब जब वरवधू के ऐक्सलरेटेड मार्केटिंग की बात आती है, तो मेरा प्रस्ताव है ब्रैंडेड वर, वधू सुलभ कराने का. यों तो शादी डौट कौम जैसी कई अंतर्राष्ट्रीय वेबसाइट सामने आई हैं.

माधुरी दीक्षित ने तो एक चैनल पर बाकायदा एक सीरियल ही शादी करवाने को ले कर चला रखा था. अनेक सामाजिक एवं जातिगत संस्थाएं सामूहिक विवाह जैसे आयोजन कर ही रही हैं. लगभग सभी अखबार, पत्रिकाएं वैवाहिक विज्ञापन दे ही रहे हैं. पर मेरा सुझाव कुछ हट कर है.

यों तो गहने, हीरे, मोती सदियों से हमारे आकर्षण का केंद्र रहे हैं, पर हमारे समय में जब से हीरा है सदा के लिए विज्ञापन का महावाक्य आया है, हमें टिकाऊपन की कीमत समझ आने लगी है. आईएसआई प्रमाणपत्र का जमाना है साहब! खाने की वस्तु खरीदनी हो तो हम चीज नहीं ऐगमार्क देखने के आदी हो गए हैं. पैकेजिंग की डेट और ऐक्सपायरी अवधि, कीमत सब कुछ प्रिंटेड पढ़ कर हम कुछ भी सुंदर पैकेट में खरीद कर खुश होने की क्षमता रखते हैं. अब आईएसआई के भारतीय मार्के से हमारा मन नहीं भरता. हम ग्लोबलाइजेशन के इस युग में आईएसआई प्रमाणपत्र की उपलब्धि देखते हैं. और तो और स्कूलों को भी आईएसआई प्रमाणपत्र मिलता है. यानी सरकारी स्कूल में दो दूनी चार हो, इस की कोई गारंटी नहीं है, पर आईएसआई प्रमाणित स्कूल में यदि दो दूनी छ: पढ़ा दिया गया, तो कम से कम हम कोर्ट केस कर के मुआवजा तो पा ही सकते हैं.

हाल ही में एक समाचार पढ़ा कि अमुक ट्रेन को आईएसआई प्रमाणपत्र मिला है. मुझे उस टे्रन में दिल्ली तक सफर करने का अवसर मिला, पर मेरी कल्पना के विपरीत टे्रन का शौचालय यथावत था, जहां विशेष तरह की चित्रकारी के द्वारा यौन शिक्षा के सारे पाठ पढ़ाए गए थे, मैं सब कुछ समझ गया. खैर, विषयातिरेक न हो, इसलिए पुन: ब्रैंडेड वरवधू पर आते हैं. आशय यह है कि ब्रैंडेड खरीद से हम में एक कौन्फिडैंस रहता है.

शादी एक अहम मसला है. लोग विवाह में करोड़ों रुपए खर्च कर देते हैं. कोई हवा में विवाह रचाता है, तो कोई समुद्र में. हाल ही में भोपाल में एक जोड़े ने ट्रैकिंग करते हुए पहाड़ पर विवाह के फेरे लिए. एक चैनल ने बाकायदा इसे लाइव दिखाया. विवाह आयोजन में लोग जीवन भर की कमाई खर्च कर देते हैं, उधार ले कर भी बड़ी शानोशौकत से बहू लाते हैं.

विवाह के प्रति यह क्रेज देखते हुए मेरा अनुमान है कि ब्रैंडेड वरवधू की अवश्य ही सफलतापूर्वक मार्केटिंग की जा सकेगी. ब्रैंडेड वरवधू को ब्रैंडेड बनाने वाली मल्टीनैशनल कंपनी सफल विवाह की कोचिंग देगी. मैडिकल परीक्षण करेगी. खून की जांच होगी. वधुओं को सासों से निबटने के गुर सिखाएगी. लड़कियों को विवाह से पहले खाना बनाने से ले कर सिलाईकढ़ाईबुनाई आदि ललित कलाओं का प्रशिक्षण देगी. भावी पति को वह कंपनी बच्चे खिलाने से ले कर खाना बनाने तक के तौरतरीके बताएगी, ताकि पत्नी इन गुणों की कमी के आधार पर पति को ब्लैकमेल न कर सके. विवाह का बीमा होगा.

इसी तरह के छोटेबड़े कई प्रयोग हमारे पढ़े लड़के ब्रैंडेड दूल्हेदुलहन पर लेबल लगाने से पहले कर सकते हैं. कहीं ऐसा न हो कि दुलहन के साथ साली फ्री का लुभावना औफर ही कोई व्यावसायिक प्रतियोगी कंपनी प्रस्तुत कर दे. अस्तु, मैं इंतजार में हूं कि सुंदर गिफ्ट पैक में लेवल लगे, आईएसआई प्रमाणित दूल्हेदुलहन मिलने लगेंगे और हम प्रसन्नतापूर्वक उन की खरीदारी करेंगे, विवाह एक सुखमय, चिरस्थाई प्यार का बंधन बना रहेगा. सात जन्म का साथ निभने की कामना के साथ, पत्नी ही नहीं, पति भी हरतालिका व्रत रखेंगे और ऐसे पति का ब्रैंडेड नाम होगा ‘पत्नीव्रता पति’.

यूएन में होगी पिंक की स्पेशल स्क्रीनिंग

बॉलीवुड के मेगास्टार अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘पिंक’ को भारत में दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया है. फिल्म में अमिताभ और तापसी पन्नू द्वारा निभाए गए किरदार को काफी पसंद किया गया था. दर्शकों के साथ-साथ क्रिटिक्स को भी फिल्म बहुत पसंद आई थी और लगता है अब इस फिल्म को एक और उपलब्धि मिलने वाली है.

जी हां, हाल ही में अमिताभ ने ट्विटर के जरिए इस बात की जानकारी दी है कि फिल्म ‘पिंक’ की टीम को यूएन के हेडक्वॉटर न्यूयार्क में स्पेशल स्क्रीनिंग के लिए इंवाइट किया गया है. फिल्म की टीम को ये इंविटेशन यूएन के महासचिव सहायक ने दिया है.

बता दें कि फिल्म की कहानी तीन लड़कियों की थी जो दिल्ली में छेड़खानी का शिकार हो जाकी हैं. अमिताभ फिल्म में इन तीनों लड़कियों के वकील हैं.

अनिरुद्ध रॉय चौधरी द्वारा निर्देशित ‘पिंक’ 16 सितंबर को रिलीज हुई थी. फिल्म में अमिताभ और तापसी के साथ कीर्ति कुल्हारी और नवोदित एंड्रिया टैरियांग लीड रोल में थे.

ताकि घर से आती रहे भीनी भीनी खूशबू

घर में कई तरह की चीजें होती हैं. पर कुछ चीजों के कारण किचन या घर से बदबू आने लगती है. कई बार रूम फ्रेशनर से भी बदबू नहीं जाती. ऐसे में आपको और आपके घर के लोगों को बहुत परेशानी होती है. जरा सोचिए अगर ऐसे में कोई मेहमान घर आ जाए तो? ऐमबेरेसमेंट के अलावा फिर कुछ नहीं हो सकता.

इन टिप्स को अपनाने से आप मेहमानों के सामने ऐमबैरेस होने से बच सकती हैं-

1. दूर रखें बदबू

घर में डस्टबिन के नीचे ड्राइड कॉफी पाउडर या बाइकार्बोनेट सोडा रखें. ये चीजें बदबू एबसॉर्ब करती हैं. आप एक कटोरे में कॉफी और पानी का पेस्ट बनाकर फ्रिज में भी रख सकती हैं. इससे फ्रिज से बदबू नहीं आएगी. 15-20 दिन में बाउल बदलती रहें.

2. सिंक को दें खास ट्रिटमेंट

आपके किचन के सिंक में न जाने कितनी सारी चीजें जाती हैं, गंदे बर्तन से लेकर, गंदे ऐपलायंस तक. हर दिन, न जाने कितनी बार. इसलिए हफ्ते में कम से कम एक बार सिंक की अच्छे से सफाई करें. किचन के ड्रेन को साफ करने के लिए पहले एक कप बाइकार्बोनेट सोडा डालें उसके बाद एक कप सफेद सिरका डालें. 5 मिनट बाद गर्म पानी डाल दें. सिंक के आस पास की जगह से बदबू नहीं आएगी.

3. जब चाहिए इन्सटेंट फ्रेगनेंस

मेहमानों के आने में थोड़ा समय बाकी है और घर को खूशबूदार बनाना है. इसके लिए एक बर्तन में पानी उबाल लें. इसमें दालचीनी, नींबू या संतरे के छिलके का पाउडर और वैनिला ऐसेंस डालें. आप तुरंत फर्क महसूस करेंगी.

4. खूशबूदार रहे कालीन, रग्स और डोरमैट

बाइकार्बोनेट सोडा और दालचीनी के पाउडर को एक कप में मिक्स कर लें. अब इसे कार्पेट, रग्स और डोरमैट पर छिड़क दें. 1 घंटे के बाद वेक्युम कर लें. अगर आपका कार्पेट सफेद है तो दालचीनी यूज न करें.

5. जूते रहें घर से बाहर

बच्चों के गंदे, बदबूदार जूतों को घर से बाहर रखने में ही भलाई है. अगर आप ऐसा नहीं कर सकती, तो उन्हें समय समय पर साफ करते रहें.

6. मोमबत्ती

मोमबत्ती और सेंटेड कैंडल से घर की बदबू गायब हो जाती है. सेंटेड कैंडल को बिना जलाए हुए अलमारी में रखिए और फर्क देखिए.

7. पौधे

पौधे हवा को शुद्ध करते हैं. कुछ पौधे जैसे रोजमैरी की खूशबू आपको अपने घर में एक अलग ही एहसास देगी.

“अंगूरी भाभी का किरदार निभाना पसंद करूंगी”

टीवी रियलिटी शो ‘भाभी जी घर पर हैं’ हर घर का लोकप्रिय शो बन गया है. हर कोई इसका दीवाना हो रहा है. अब इस लिस्ट में पार्श्वगायिका अलका याज्ञनिक का नाम भी शामिल हो गया है.

पार्श्वगायिका अलका याज्ञनिक ‘भाभी जी घर पर हैं’ में अंगूरी भाभी की भूमिका को साधारण और प्यारा मानती हैं. इस वजह से अगर उन्हें यह किरदार निभाने का मौका मिलेगा, तो वह यह भूमिका जरूर निभाना चाहेंगी. अलका जल्द ही इस शो में दिखाई देंगी.

उन्होंने कहा, मैं भाभी जी घर पर हैं देखती हूं और मेरा पूरा परिवार इसका बहुत बड़ा प्रशंसक है. मुझे इसके सभी किरदार पसंद हैं, लेकिन सही पकड़े हैं संवाद ने सबको आकर्षित किया है. इसलिए मैं अंगूरी की फैन हूं. वह बहुत ही साधारण, प्यारी और नरमी से बोलने वाली हैं.

सनी लियोन लॉन्च करेंगी अपना एप

बॉलीवुड की हॉट एक्ट्रेस सनी लियोनी के दुनिया भर में लाखों फैन्स हैं जो उन्हें बहुत चाहते हैं, इसलिए सनी अब अपने फैन्स को एक तोहफा देने वाली हैं. बता दें कि वो तोहफा ये है कि सनी का एक एप लॉन्च होने वाला है.

जी हां, सनी ने ट्विटर के जरिए खुद इस बात की जानकारी दी है. पहले सनी ने ट्वीट किया, ‘मैं ये बताते हुए बहुत उत्साहित महसूस कर रही हूं कि 6 दिनों के अंदर मैं खुद का एप लॉन्च करने जा रही हूं. एक्सक्लूसिव कंटेंट के लिए इसे अभी प्री-रजिस्टर करें’.

इसके बाद उन्होंने फिर ट्वीट किया और लिखा, ‘मेरा ऑफिशयल एप लॉन्च होने में 5 दिन बचे हैं. क्या आपने अभी तक रजिस्टरेशन किया?’

बता दें कि सनी ने इससे पहले भी सनी ने साल 2014 में अपना एप लॉन्च किया था. सनी के उस एप को काफी पंसद भी किया गया था.

मुझे सिद्धार्थ से प्यार हैः आलिया

कुछ दिनों पहले खबर आई कि आलिया भट्ट और सिद्धार्थ मल्होत्रा का ‘ब्रेकअप’ हो गया है. हालांकि आलिया और सिद्धार्थ में से किसी ने भी अभी तक यह नहीं कबूला था कि वो रिलेशनशिप में हैं. लेकिन आखिरकार आलिया भट्ट ने कह ही दिया कि उन्हें सिद्धार्थ मल्होत्रा से प्यार है.

आलिया और सिद्धार्थ ने एक ही फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ से बॉलीवुड में कदम रखे थे. तभी से यह सुनने को मिल रहा था कि ये दोनों रिलेशनशिप में हैं. लेकिन पिछले दिनों खबर आ रही थी कि आलिया-सिद्धार्थ अब अलग हो गए हैं. कुछ प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आलिया ने सिद्धार्थ से जुड़े सवालों को अनदेखा कर दिया. इससे भी लगा कि इन दोनों के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. लेकिन एक अंग्रेजी वेबसाइट को दिए हालिया इंटरव्यू के दौरान आलिया ने एक चौंकानेवाला कबूलनामा किया है.

हालांकि आलिया ने एक गेम के दौरान ही सही, लेकिन यह मान लिया कि उन्हें सिद्धार्थ से प्यार है. दरअसल, यहां आलिया से ऐसे सवाल किए गए, जो उनसे सर्च इंजन गूगल पर पूछे गए हैं. इनमें से एक सवाल यह भी था कि क्या आलिया को सिद्धार्थ से प्यार है? इस पर आलिया ने बिना कुछ सोचे बोल दिया, ‘हां मुझे सिद्धार्थ मल्होत्रा से प्यार है.’

वैसे बता दें कि आलिया इन दिनों अपनी फिल्म ‘डियर जिंदगी’ को लेकर चर्चा में हैं, जिसे बॉक्स ऑफिस पर अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. आलिया के साथ इस फिल्म में पहली बार शाहरुख खान स्क्रीन शेयर करते हुए नजर आ रहे हैं.

कहीं आपके मुंह से बदबू तो नहीं आती?

खान-पान में परहेज न करने, सोते समय दांत साफ न करने, पेट साफ न रहने व कब्ज रहने से मुंह से बदबू आती है. कई बार भरपूर पानी न पीने से भी मुंह से बदबू आती है. कुछ लोगों के मुंह से बदबू आना प्राकृतिक भी रहता है. आपके मुंह से बदबू आने पर आपके साथ बात करने वाले आपको हीन नजर से देखते हैं और आपसे दूर रहने का प्रयास करते हैं.

आप इन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं तो यहां दिए जा रहे टिप्स पर गौर फरमाएं, ये आपको अपने मुंह से आने वाली बदबू से छुटकारा दिलाएंगे.

– नीम या बबूल की नरम डाली का ब्रश बनाकर दांत साफ करने से दुर्गंध दूर होती है.

– 5 ग्राम सौंफ या धनिया या इलायची चबाने से मुख शुद्धि होती है.

– इलायची और पुदीना डालकर पान चबाना लाभकर है.

– इलायची, दालचीनी तथा सूखी पुदीना पत्ती डालकर बनाए गए घोल से गरारे करना दुर्गंध मिटाता है.

– इलायची चबाना भी दुर्गंध रोकता है.

– एक कप पानी में जीरे के तेल की 2-3 बूंदें डालकर गरारे करने से लाभ होता है.

– छुआरे की गुठली के चूर्ण से मंजन करने से सांस की दुर्गंध मिटती है.

और सबसे महत्वपूर्ण है, सोने से पहले मंजन करें, पानी भरपूर पिएं, दोनों समय शौच जाएं, जल्द हजम होने वाला भोजन करें तथा किसी से भी बात करें तो दो फीट की दूरी से बात करें.

पिंकाथन एम्बेसेडर मिलिंद सोमन से बातचीत

उम्र के 5 दशक पार कर चुके मिलिंद सोमन एक सुपर मॉडल, अभिनेता, फिल्म निर्माता, स्पोर्टस पर्सन हैं और फिटनेस को प्रमोट करते हैं. महाराष्ट्र के मिलिंद सोमन को फिल्मों के अलावा स्पोर्ट्स भी काफी पसंद हैं. 10 साल की उम्र से ही उन्होंने महाराष्ट्र को राष्ट्रीय स्तर पर रिप्रेजेंट करना शुरू कर दिया था. उन्होंने 4 साल तक लगातार नेशनल सीनियर स्विमिंग चैम्पियनशिप जीती है. 30 दिनों में 1500 किलोमीटर दौड़कर उन्होंने अपना नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज करवाया है. इसके अलावा उन्होंने ‘आयरन मैन’ चैलेंज को पहली ही कोशिश में 15 घंटे और 19 मिनट में पूरा किया है. इसमें साइकिलिंग, स्विमिंग और रनिंग शामिल हैं.

समय मिलने पर वे आज भी 10 से 12 किलोमीटर दौड़ते हैं और फिटनेस के लिए सबको प्रोत्साहित भी करते हैं. इस समय वे महिलाओं की मैराथन दौड़ ‘पिंकाथन’ के ब्रांड एम्बेसेडर हैं. ये उनका 5वां सत्र है जो 18 दिसम्बर को होने वाला है. हर बार मैराथन में भाग लेने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या को देखकर वे काफी खुश हैं. उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

प्र. अच्छी हेल्थ के लिए फिटनेस कितनी जरुरी है?

फिट रहने से केवल शरीर ही नहीं बल्कि मानसिक अवस्था भी अच्छी रहती है. आमतौर पर महिलाएं कुछ न कुछ बहाना बनाकर फिटनेस से भागती हैं. ऐसे में इस तरह की दौड़ उनके लिए काफी आकर्षक होती है. हमारे समाज में कुछ पुरुषों का ही कहना है कि महिलायें दौड़ नहीं सकती, यही वजह है कि मैं ‘पिंकाथन’ से जुड़ा हूं. अधिकतर महिलायें घरेलू होती हैं और उन्हें इसकी जानकारी नहीं है इसलिए आज मैं महिलाओं को अपने लिए, अपने हेल्थ के लिए दौड़ने के लिए कह रहा हूं. मेरे ख्याल से एक महिला जो सोचती है वह कर सकती है. कुछ महिलायें तो ऐसी हैं कि शादी से पहले अपने लिए सबकुछ करती हैं और शादी के बाद सब छोड़ कर घर परिवार में जुट जाती हैं, ऐसे में वे एक अच्छी सेहत को जी नहीं पाती. उनका स्ट्रेस लेवेल भी बढ़ता रहता है.

प्र. इतने सालों में महिलाओं का झुकाव इस ओर कितना बढ़ा है?

महिलाओं में अवेयरनेस बढ़ रही है. पहले हम केवल 8 शहरों में इस दौड़ का आयोजन करते थे. अब छोटे-बड़े अनेक शहरों जैसे विशाखापत्तनम, विजयवाड़ा, नागपुर आदि जगहों से भी लोग हमें बुला रहे हैं. मैंने इन छोटे-बड़े शहरों के लिए एक दूसरा इवेंट ‘इंडिया गोईंग पिंक’ भी ऑरगेनाइज किया है, इस इवेंट से जुड़े लोग सबको गाइड करते हैं और दौड़ का आयोजन करते हैं. इस बार 14 शहरों में ये दौड़ होगी. मुंबई के पहले मैराथन में केवल दो हजार महिलाओं ने भाग लिया था. पिछले साल 11 हजार महिलाओं ने भाग लिया और इस बार तो ये संख्या लाखों में होने की संभावना है.

प्र. दौड़ या फिटनेस से महिला के जीवन में कौन से खास बदलाव आते हैं?

मैं तो सबको लेकर दौड़ता हूं. अंदर जो बदलाव आते हैं यह उन्हें ही पता चलता है. उनके अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है कि वह जो चाहे वो कर सकती हैं. वे अच्छा फील करती हैं. हमारे देश में पिछले कुछ सालों से ही महिलाएं दौड़ती हैं, जबकि अमेरिका में 40-45 साल पहले ही यह ट्रेंड शुरू हो गया था. लेकिन तब केवल प्रतियोगिता के लिए ही लोग दौड़ते थे. जिनमें अधिकतर पुरुष ही होते थे. हेल्थ या रिक्रिएशन के लिए कोई भी नहीं दौड़ता था. अभी अमेरिका में हर सप्ताह 30 मिलियन लोग दौड़ते हैं, क्योंकि उन्हें इसके फायदे पता चल चुके हैं. वहां स्पोर्ट्स कल्चर है. पर अपने देश में ऐसा नहीं है.

महिलायें तो स्पोर्ट्स के मामले में और भी पीछे हैं. लेकिन अब हर स्कूल, गांव, शहर, क्लब आदि जगहों पर रनिंग के इवेंट कराये जा रहे हैं. लोग भाग भी ले रहे हैं. इस तरह सभी एक दूसरे से प्रेरित हो रहे हैं, यह एक अच्छी बात है. महिलाओं को लगता है कि हम अगर मन बना ले तो कुछ भी कर सकते हैं. उनकी झिझक दूर हो रही है उनके भाव खुल रहे हैं. अब उन्हें फिटनेस की गुणवत्ता समझ में आ रही है. इससे उनका स्ट्रेस दूर होता है और साथ ही कई सारी बिमारियां भी कम हो रही हैं.

स्ट्रेस को भगाना मुश्किल नहीं अगर हम अपने दैनिक रूटीन में दौड़, टहलना, व्यायाम आदि को शामिल करें. बड़े शहरों में महिलाएं सुबह से शाम तक दौड़ती रहती हैं, फिर भी बीमार रहती हैं. उन्हें लगता है कि वे काफी कसरत कर रही हैं. लेकिन वे सारा काम स्ट्रेस के साथ करती हैं. उन्हें अपने लिए थोड़ा समय निकाल कर व्यायाम या जो भी अच्छा लगे करना चाहिए. महिलाओं को अपने व्यायाम की समय सीमा खुद ही तय करनी चाहिए कि कितना वर्कआउट करने से वे अच्छा फील करती हैं. महिलाओं का सेल्फ अवेयर होना बहुत जरूरी है.

नील निभाएंगे संजय गांधी का किरदार

फिल्मों के जरिए समाज को आईना दिखाने के लिए मशहूर डायरेक्टर मधुर भंडारकर जल्द ही अपनी नई फिल्म ‘इंदु सरकार’ की शूटिंग शुरू करने वाले हैं. इस फिल्म में एक्टर नील नितिन मुकेश पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की भूमिका निभाते नजर आएंगे.

हालांकि, मधुर ने अपनी फिल्म में नील के किरदार के बारे में तो अभी ज्यादा खुलासा नहीं किया है, मगर उन्होंने ट्विटर के जरिए यह खबर जरूर दी है कि वह एक बार फिर नील के साथ काम करने जा रहे हैं और इस बार भी नील उनकी फिल्म में एक बेहद अहम किरदार में नजर आएंगे.

हाल ही में एक इंटरव्यू में इस फिल्म की लीड ऐक्ट्रेस कीर्ति कुल्हारी ने कहा था कि फिल्म की कहानी तो काल्पनिक है, मगर फिल्म का प्लॉट 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पूरे देश में लगाई गई इमर्जेंसी और उस दौरान घटी घटनाओं पर आधारित है. यही वजह है कि इस फिल्म के लिए मधुर ने खासी रिसर्च भी की है.

बहुचर्चित फिल्म ‘पिंक’ में फलक अली का किरदार निभाकर चर्चा में आईं कीर्ति कुल्हारी इस फिल्म में ‘इंदु सरकार’ की भूमिका निभा रही हैं, जबकि इंदु के पति की भूमिका बंगाली फिल्मों के मशहूर एक्टर तोता राय चौधरी निभा रहे हैं.

अब इस फिल्म से जुड़कर नील भी बेहद खुश नजर आ रहे हैं. गौरतलब है कि नील ने मधुर भंडारकर की फिल्म ‘जेल’ में एक बेहद अहम किरदार निभाया था. ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि संजय गांधी के रोल में वह कितने दमदार नजर आते हैं. नील का मानना है कि बतौर एक्टर उनके लिए यह एक बड़ा चैलेंज है. ‘इंदु सरकार’ की शूटिंग अगले महीने से शुरू हो रही है और जनवरी के अंत तक शूटिंग खत्म भी हो जाएगी.

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