सोशल मीडिया की लत के खिलाफ: विद्या बालन

फिल्म ‘कहानी-2: दुर्गा रानी सिंह’ की सफलता से उत्साहित विद्या बालन महिलाप्रधान किरदारों को निभाने में माहिर होती जा रही हैं. महिला सशक्तीकरण के मुद्दे व अभिनय में नृत्य, संगीत के प्रशिक्षण के असर पर जानिए उन की बेबाक राय.

मूलतया दक्षिण भारतीय विद्या बालन को कोलकाता के लोग बंगाली समझते हैं क्योंकि वह बहुत अच्छी हिंदी बोलती हैं. उनसे बात करते समय इस बात का एहसास ही नहीं होता कि वे हिंदी भाषी नहीं हैं. सुजोय घोष निर्देशित फिल्म ‘कहानी 2 : दुर्गारानी सिंह’ में उन्हें सराहा गया है. उन्हें एक सफल फिल्म की आवश्यकता थी जो ‘कहानी 2 : दुर्गारानी सिंह’ ने पूरी कर दी.

विद्या बालन की एक खासीयत यह भी है कि उन्होंने संगीत का प्रशिक्षण ले रखा है, हालांकि अभी तक उन्होंने दूसरी बौलीवुड अभिनेत्रियों की तरह किसी भी फिल्म में गीत नहीं गाया है. हाल ही में जब विद्या बालन से मुलाकात हुई, तो उन से बंगाल, संगीत व महिलाओं के हालात पर विशेष बातचीत की.

आप को पश्चिम बंगाल खासकर कोलकाता के लोग बंगाली समझते हैं?

मैं मूलतया दक्षिण भारतीय हूं, लेकिन कोलकाता के लोग मुझे बंगाली समझते हैं. यह महज संयोग है कि मैं ने 4 फिल्मों की शूटिंग कोलकाता में की और उन में से 3 फिल्मों में मैं ने बंगाली किरदार निभाया. मैं ने 2003 में एक बंगला फिल्म ‘भालो ठेको’ में भी अभिनय किया था. अब तक मैं ने बंगला भाषा काफी सीख ली है. मैं बंगला गीत व संगीत की भी दीवानी हूं. कोलकाता में शूटिंग करना मेरे लिए हमेशा सुखद अनुभव रहता है. वहां हमेशा मुझे गरमजोशी का एहसास मिलता है. वहां के लोग कला और कलाकार की कद्र करना जानते हैं. शायद इसलिए मेरी पहचान से बंगाल जुड़ गया है.

आप ने कर्नाटक संगीत का प्रशिक्षण लिया है, फिर भी अभी तक किसी फिल्म में गाना नहीं गाया?

मैं पेशेवर गायक नहीं हूं. मैं बहुत बेसुरा गाती हूं. संगीत सीखने का अर्थ यह नहीं होता कि सभी लता मंगेशकर बन जाएं. कुछ चीजें अपने लिए सीखी जाती हैं. दक्षिण भारत में हम लड़के व लड़कियों को नृत्य व संगीत बचपन से सिखाया जाता है. इस से हमारे अंदर अनुशासन आता है. इसलिए मैं ने कर्नाटक संगीत के अलावा नृत्य का भी प्रशिक्षण लिया था. पर मैं ने कभी नहीं चाहा कि मैं किसी फिल्म में गीत गाऊं.

संगीत व नृत्य का प्रशिक्षण बतौर कलाकार अभिनय में कितना मदद करता है?

सिर्फ संगीत ही क्यों, नृत्य, मार्शल आर्ट या पेंटिंग का प्रशिक्षण हो, हर प्रशिक्षण इंसान को कभी न कभी मदद जरूर करता है. सभी प्रशिक्षण, जिन से आप जिंदगी में एक नए नजरिए से जुड़ सकें, जिंदगी को नए नजरिए से समझ सकें, कलाकार की मदद करते हैं. हम गीत, नृत्य व दृश्यों में भावनाओं को व्यक्त करते हैं. यदि कलाकार को इस का अनुभव है, यदि कलाकार ने विविध प्रकार का प्रशिक्षण ले कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सीखा है, तो वह उस के लिए मददगार ही होता है. देखिए, यह जरूरी नहीं है कि एक कलाकार के तौर पर आप जो कहानी कह रहे हैं, उस के अनुभव से आप निजी जिंदगी में गुजरे हों, मगर यदि आप किताबें पढ़ते हैं, नाटक देखते हैं, संगीत सुनते हैं, तो आप को एक अनुभव का एहसास होता है, इस से आप के प्रदर्शन पर असर पड़ता है.

क्या आप को महिलाओं के मुद्दों पर समाज में कोई बदलाव नजर आ रहा है?

हम कुछ लड़कियों या औरतों से मिलते हैं या कुछ पढ़ते हैं, तो हमें लगता है कि कुछ बदलाव आ गया है. पर जब कुछ अजीब सी घटनाओं के बारे में सुनते हैं, तो लगता है कि कोई बदलाव नहीं आया.

मैं अखबार पढ़ रही थी. मैं ने खबर पढ़ी कि एक मां अपनी जुड़वां बेटियों को पैसे के लिए पड़ोसी के 17 साल के बेटे के हाथों बेचते हुए पकड़ी गई. इस खबर को पढ़ने के बाद मेरे दिमाग में सवाल उठा कि क्या आज भी औरतों की स्थिति व औरतों से जुड़े मुद्दों में फर्क नहीं आया. पर हम पूरी तरह से यह नहीं कह सकते कि कोई फर्क नहीं आया. कई जगह फर्क आ रहा है, कई जगह फर्क नहीं आया. पर हर जगह से लोग बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं, यह एक अच्छी बात है. यह 10-12 वर्ष का मामला नहीं है. सदियों से जो हमारी सोच चली आ रही है, उसे बदलने का मसला है, जिस में समय लगेगा. सदियों से कहा जाता रहा है कि यह मर्दों की दुनिया है. औरतों को इस तरह से रहना चाहिए, उन को फलां काम नहीं करना चाहिए आदि. हर औरत की जिंदगी पहले पिता, फिर भाई, फिर पति और फिर बेटे के साए में ही चलनी चाहिए, यह सोच इतनी जल्दी नहीं बदलेगी.

आप के विवाह के बाद से आप की फिल्में लगातार असफल होती रहीं?

फिल्मों की सफलता या असफलता का मेरी शादी से कोई संबंध नहीं है. हर फिल्म अपने कथानक के मापदंड पर सफल या असफल होती है. एक फिल्म की वजह से दूसरी फिल्म पर असर नहीं पड़ता. दर्शक को फिल्म पसंद आ गई, तो उसे सफल होने से कोई नहीं रोक पाता.

आप ने कहा था कि सोशल मीडिया से लोगों को नहीं जुड़ना चाहिए. पर अब तो आप खुद ही सोशल मीडिया से जुड़ गई हैं?

आप ने एकदम सही पकड़ा. मैं ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम से जुड़ गई हूं. पर मैं इस तरह के मीडियम की लत के खिलाफ आज भी हूं. लोगों में सोशल मीडिया की जो लत लग जाती है, जो एक नशा हो जाता है, मैं उस के खिलाफ हूं. कुछ लोग अपना काम छोड़ कर व्हाट्सऐप या फेसबुक पर लगे रहते हैं. यह गलत है. एक तरह से यह भी शराब की तरह एक नशा बन गया है.

मुझे लगता है कि यह क्या पागलपन है कि लोग सोशल मीडिया पर ही एकदूसरे से बात करते हैं. बगल में जो बैठा है, उस से बात करने के लिए उन के पास समय नहीं होता है. मैं सोशल मीडिया से जुड़ी हूं, पर अभी भी पूरी तरह से सोशल मीडिया से नहीं जुड़ी हूं. हर मुद्दे पर अपनी राय दूं, ट्वीट करूं, ऐसा नशा नहीं है. फेसबुक पर भी मैं थोड़ा ही सक्रिय हूं. मैं यह मानती हूं कि दर्शकों, अपने प्रशंसकों के साथ जुड़ने का यह अच्छा माध्यम है.

पर आप में सोशल मीडिया को ले कर जो बदलाव आया, उस की वजह क्या है?

देखिए, आज सभी सोशल मीडिया व ट्विटर पर सक्रिय हैं. हमारे देश के प्रधानमंत्री भी हर मुद्दे पर ट्वीट करते हैं. अमिताभ बच्चन भी ट्विटर, फेसबुक पर हैं, ब्लौग लिख रहे हैं. यदि ये सब दिग्गज सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, तो फिर मुझे लगा कि मुझे ज्यादा दूरी नहीं रखनी चाहिए. मैं ने सोचा कि मैं कोशिश कर के देखती हूं. शायद यह मेरे बस का नहीं है या शायद मेरे बस का है. मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि यह इतना बुरा नहीं है. लेकिन इस की लत गलत है.

आप ‘निर्मल भारत अभियान’ से जुड़ कर देश में शौचालय बनवाने की मुहिम का हिस्सा हैं. मगर अब वहां भी कई तरह की गड़बडि़यां सामने आ रही हैं?

इस मसले पर मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. पर मैं निर्मल भारत अभियान के तहत शौचालय बनवाने के लिए सिर्फ बड़े शहर ही नहीं, देहातों के कई कार्यक्रमों में जा चुकी हूं. मैं ने देखा है कि लोग जोश से इस मकसद के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे हैं. अब कई प्रकाशक और कौर्पोरेट कंपनियां भी शौचालय बनाने के लिए आर्थिक मदद दे रही हैं. पर भ्रष्टाचार हर जगह होता है. हम सभी भ्रष्टाचार के आगे बेबस हैं. कोशिशें जारी हैं. बीचबीच में अड़चनें भी आती हैं.

बहरहाल, कुछ जगह जोरशोर से काम हो रहा है, कुछ जगह पर कार्य बहुत धीमी गति से हो रहा है. कुछ जगह पर लोग शौचालय बनाने के नाम पर पैसे खा रहे हैं, मैं दावे के साथ ऐसा कुछ कह नहीं सकती. पर मैं इस तरह की चीजें पढ़ती रहती हूं. जब हम कार्यक्रम में जाते हैं तो पता चलता है कि कहीं शौचालय बन गए हैं, पर उन में पानी नहीं है, तो सफाई नहीं है या जो बनाए गए थे, वे फिर से टूट रहे हैं, उन की मरम्मत नहीं हो रही. इस तरह की समस्याएं बहुत हैं. पर इन का हल जरूर निकलेगा.

आप एक फिल्म कर रही हैं, ‘बेगम जान’ जिस की कहानी भारत-पाक बंटवारे के समय सीमा के वेश्यालय की है, जहां बेगम जान 15-20 लड़कियों से वेश्या का धंधा करवाती है. देश की आजादी को 67 साल हो गए हैं, क्या हालात में बदलाव आया है या वही हालात हैं?

अभी भी बहुत कम औरतों को इस बात का एहसास है कि उन के शरीर पर पहला हक उस का अपना है. ज्यादातर औरतें अभी भी यही समझती हैं कि वे किसी की जायदाद हैं. उन्हें लगता है कि उन की जिंदगी की डोर किसी और के हाथ में है. पर मैं यह मानती हूं कि अब धीरेधीरे यह सोच भी बदल रही है. पर 67 वर्ष में जितना बदलना चाहिए था, उतना नहीं बदला.

एक औरत होने के नाते आप ‘बेगम जान’ के काम को कितना सही या गलत मानती हैं?

मुझे नहीं लगता कि कोई भी औरत या लड़की जानते हुए धंधा करती है. हर किसी की कुछ मजबूरी होती है. इसलिए सही या गलत के माने वहां नहीं रह जाते. उन्हें लगता है कि हम चोरी या डाका डालने या किसी को मौत के घाट उतारने के बजाय जो कर सकते हैं, वह कर रही हैं. ऐसे में सहीगलत कुछ होता नहीं है. हम यही उम्मीद करते हैं कि ऐसा वक्त आए जब किसी भी औरत को अपने गुजारे के लिए यह सब न करना पड़े. पर हो सकता है कि इस में भी बहुत वक्त लग जाए.

बजट कहीं बिगड़ न जाए

कहते हैं कि जितनी लंबी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए लेकिन आज लोग दिखावे के चलते अपनी जरूरतें इतनी बढ़ा लेते हैं कि उन को पूरा करने के लिए कर्ज में डूबे रहते हैं. इस के चलते उन की जिंदगी हमेशा तनावग्रस्त रहती है. इस का जायजा ले रहे हैं सतीश मिश्रा.

अचानक अखबार में छपे एक समाचार पर नजर पड़ी. खबर कुछ यूं थी :

‘छंटनी के बाद नौकरी से निकाले गए कुछ सौफ्टवेयर इंजीनियर्स रात के समय लूट करते हुए पकड़े गए. जब पुलिस ने तहकीकात की तो पता चला कि नौकरी के दौरान जरूरत से ज्यादा ऋण लेने के कारण ईएमआई यानी मासिक किस्त चुकाने के लिए इन लोगों ने वारदात को अंजाम दिया.’

दरअसल, लोगों में अनावश्यक खरीदारी को ले कर रुझान बढ़ा है. जिस के चलते अन्य लोगों की देखादेखी घर में सामान का जमावड़ा लगा देते हैं. ऐसा क्यों होता है कि जब लोग बाजार में जाते हैं तो दिखाई दे रही हर वस्तु उन के लिए जरूरी लगने लगती है? इस के पीछे कौन सी मानसिकता काम करती है?

मशहूर लेखक डेल कारनेगी कहते हैं कि आदमी के अंदर बड़ा बनने की लालसा जन्मजात होती है. उन्होंने यह भी कहा है कि लालसा बहुत गहराई से आती है. और इसी का फायदा बाजार भी उठा रहा है.

एक मध्यवर्गीय परिवार में घर की अलमारी में कपड़ों का अंबार लगा रहता है. ऐसे भी कपड़े मिल जाएंगे जिन्हें साल में एक बार भी पहनने का मौका नहीं आया हो.

महिलाओं की बात तो पूछिए मत. वे अपने को महत्त्वपूर्ण दिखाने के लिए क्या कुछ नहीं करतीं. इस आलेख का उद्देश्य किसी के व्यक्तिगत शौक पर कटाक्ष करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि खरीदारी करने से पहले अच्छे से विचार कर लें कि क्या वाकई आप को उस चीज की जरूरत है या किसी मित्र व रिश्तेदार को देख कर खरीद रहे हैं या फिर उन्हें नीचा दिखाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहे हैं. इस बात का भी ध्यान रखें कि इस खरीदारी से घर का बजट तो नहीं गड़बड़ाएगा जिस की कीमत परिवार को कष्ट उठा कर चुकानी पड़े. यदि जवाब ईमानदारी से आप के परिवार के पक्ष में जाता है तो आगे बढ़ें वरना रुक जाएं.

ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो महीने दो महीने में टेलीविजन, मोबाइल और गाड़ी बदलते हैं पर एक निश्चित आमदनी वाले को तो यह समझना ही पड़ेगा कि वह अपने बजट को न बिगाड़े. त्यौहारों के समय तो कंपनियों द्वारा बड़ेबड़े इश्तिहार दे कर ग्राहकों को लुभाने की कोशिश की जाती है. इस चक्कर में पड़ कर कई लोग लंबी किस्तों के झमेले में भी पड़ जाते हैं. यह आप को तय करना है कि इस झमेले में पड़ना है या नहीं. किसी भी किस्त के लंबे समय तक भुगतान का अंतिम कष्ट सिर्फ आप को ही सहन करना है.

घर के मुखिया को सारी बातें सोच कर निर्णय लेना चाहिए. हर दिन नएनए इलैक्ट्रौनिक उपकरण खरीदने से पहले अपनी जरूरत का विवेकपूर्ण विश्लेषण करें. बजट के साथ लयताल बैठ रही है या नहीं, सुनिश्चित करें फिर खरीदें. खरीदार की कमजोरी व्यवसायी अच्छी तरह से जानता है. धंधे में वह अपना मुनाफा नहीं छोड़ता. कुछ लोगों को घर में जब तक कोई नई वस्तु या इलैक्ट्रौनिक आइटम न आ जाए, संतुष्टि नहीं होती और बाद में वे किस्त भरने और कर्ज चुकाने में परेशान रहते हैं.

एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मध्यवर्ग के लोगों में भीड़ को देख कर चलने की आदत होती है. भीड़ की चाल भेड़चाल की तरह होती है, कोई बौद्धिक लक्ष्य उन के सामने नहीं होता. कुछ लोग इस खुशफहमी में रहते हैं कि उन के पास दूसरों से बेहतर कोई सामान होगा तो वे समाज में विशिष्ट कहलाएंगे. नतीजतन, हर समय वे इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि क्या करने से वे खास दिखने लगेंगे. आज तक उन्हें यह समझ नहीं आया कि दुनिया की नजर बहुत पैनी है. विशेष आदमी और सामान्य आदमी में भेद आसानी से कर लेती है. मेरे एक सहकर्मी थे, हमेशा कहते थे कि खाते में 10 हजार रुपए बने रहने का सुख बड़ा होता है न कि 10 हजार रुपए का मोबाइल लो और 100-50 का बैलेंस रखो. अनावश्यक खरीदारी के बजाय बुरे वक्त के लिए पैसा बचाना ही समझदारी है ताकि भविष्य में किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े.

ऐसे पाएं दो मुंहे बालों से छुटकारा

बालों का खूब ख्याल रखने के बाद भी अगर आपके बाल दो मुंहे हो जाते हैं तो चिंता करने की कोई बात नहीं है क्योंकि आपके घर पर मौजूद कुछ चीजों से ही इस समस्या को आसानी से हल किया जा सकता है. इसी के साथ हेल्दी डाइट लें और लीक्विड फूड का इनटेक ज्यादा लेने से भी लाभ मिलेगा.

कैसे पाएं दो मुंहे बालों से छुटकारा

दही-पपीते का पैक

150 ग्राम पपीता और आधा कप दही का पेस्ट बना कर इसे बालों पर लगाएं. सूखने के बाद ठंडे पानी से धो लें. आपको फर्क जल्द ही नजर आने लगेगा.

एग हेयरमास्क

एक बॉउल में एक अंडे का पीला भाग, तीन चम्मच ऑलिव ऑयल और एक चम्मच शहद अच्छी तरह मिला लें. अब इस पैक को बालों में लगाकर 30 मिनट के लिए छोड़ दें. इसके बाद बालों को शैंपू से अच्छी तरह धो लें.

शहद-दही का पैक

एक कप दही में एक चम्मच शहद मिलाकर इस पेस्ट को बालों की जड़ों से लगाते हुए सिरों तक लगाएं और 15-20 मिनट के लिए लगाकर छोड़ दें. उसके बाद इस पैक को धो लें.

रियाज-रेशमा की कंपनी ‘लिबास’ स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध

मशहूर कास्टयूम जोड़ी रियाज व रेशमा गांगजी भारत के पहले कास्टयूम डिजाइनर हैं, जिनकी कंपनी ‘लिबास’ नैशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो गयी है. यानी कि ‘लिबास’ स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने वाला पहला लेबल बन गया है.

इस संबंध में जब रियाज गांगजी से बात हुई, तो उन्होंने कहा, ‘‘इसका एकमात्र मूल मंत्र यही है कि जब आप लोगों का विश्वास हासिल करते हैं, तो आपकी कंपनी या आपका लेबल प्रगति करता है. इसके लिए हमें अपने उत्पाद या सेवा में कमी न आने पाए, इसके लिए सतत प्रयासरत रहना पड़ता है. यही काम हम कई दशक से करते आ रहे हैं. अब हम सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध हो गए हैं, तो हमारी जिम्मेदारी बढ़ गयी है. देखिए,फैशन शो खत्म होने के बाद लोग आंकड़ों पर ध्यान देते हैं. मेरी नजर में विशेश योग्यता के साथ व्यापार करने के लिए सक्षम होना बहुत महत्वपूर्ण होता है.’’

‘नैशनल स्टॉक एक्सचेंज’ में अपने लेबल ‘लिबास’ को सूचीबद्ध करने की प्रेरणा कहां से मिली? इस पर रियाज गांगजी ने कहा, “मैं एक रचनात्मक इंसान हूं. पर मैं संतुष्ट नहीं हो पा रहा था. हमें लगता था कि ‘लिबास’ हमारे अपने देश के हर शहर में पहुंचे. हम एफएमसीजी ब्रांड की तरह लोगों की जिंदगी को छूना चाहते हैं. यह सार्वजनिक निर्गम से ही संभव था. इसलिए इस दिशा में हमने प्रयास किया. दो वर्षों की लंबी प्रक्रिया के बाद अब हमारे ‘लिबास’ का पहला पब्लिक इश्यू बाजार में आ गया है.”

जबकि रियाज गांगजी की पत्नी और ‘लिबास’ में उनकी सहयोगी रेशमा गांगजी ने कहा, ‘‘हम पहले से ही पुणे, मुंबई, लुधियाना और दिल्ली में मौजूद हैं. बहुत जल्द हम दुबई में भी ‘लिबास’ खोल रहे हैं. हम भारत के हर शहर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए प्रयासरत हैं.’’

2017 में बॉलीवुड के नए चेहरे

इस साल बॉलीवुड में कई नए चहरों की एंट्री होने वाली है. जानिए कौन हैं वो नए चहरे.

पद्मप्रिया

12 वर्ष के अंतराल में तीस से अधिक तमिल, तेलगू व मलयालम फिल्में कर चुकी पद्मप्रिया इस वर्ष फिल्म ‘शेफ’ से बॉलीवुड में कदम रख रही हैं. वह इस फिल्म में शेफ  का किरदार निभा रहे अभिनेता सैफ अली की पत्नी और भरतनाट्यम नृत्यांगना के किरदार में नजर आएंगी.

निधि अग्रवाल

बंगलुरू में पली बढ़ी 23 वर्षीय निधि अग्रवाल एमबीए करने के बाद फिल्मों में कदम रख रही हैं. वह फिल्म ‘मुन्ना माइकल’ में टाइगर श्राफ की प्रेमिका के रूप में नजर आने वाली हैं.

कानन गिल

स्टैंडअप कॉमेडियन के रूप में मशहूर कानन गिल अब बॉलीवुड में कदम रख चुकी हैं. वह सोनाक्षी सिन्हा के साथ फिल्म ‘नूर’ में नजर आने वाली हैं.

रेगिना कासंडा

दक्षिण भारत में महज 16 साल की उम्र में वी प्रिया के साथ फिल्म ‘कंडा नाल मुधाल’ कर चर्चा बटोरने के बाद वह दक्षिण भारत की फिल्मों में व्यस्त हो गयी थीं. मगर अब वह ‘आखें’ की सिक्वल फिल्म ‘आंखे 2’ में अमिताभ बच्चन, अर्जुन रामपाल, अरशद वारसी व विद्युत जमावल के साथ कदम रख रही हैं.

महीरा खान

पाकिस्तानी अदाकारा महीरा खान फिल्म ‘रईस’ में शाहरुख खान के साथ नजर आने वाली हैं.

झु झु

बिजिंग में रहने वाली झु झु भी अब बॉलीवुड से जुड़ गयी हैं. इस वर्ष उनकी पहली बॉलीवुड फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ प्रदर्शित होगी, जिसमें उनके नायक सलमान खान हैं.

सबा कमर

पाकिस्तानी अदाकारा सबा कमर भी इरफान खान के साथ फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ में अभिनय कर बॉलीवुड में कदम रख रही हैं.

संजय दत्त के साथ कभी नहीं करूंगा काम

बॉलीवुड के मंझे हुए कलाकार नाना पाटेकर ने अपने 67वां जन्मदिन पर ऐसे कई राज खोले जिसे सुन संजय दत्त को करारा झटका लग सकता है. दरअसल, नाना पाटेकर ने कहा कि वो कभी संजय दत्त के साथ काम नहीं करना चाहते हैं.

नाना अपने उसूलों के बहुत पक्के हैं. ऐसे में उनकी संजू बाबा के साथ काम ना करने की कसम ने सभी को चौंका दिया है. नाना ने आज तक संजू बाबा के साथ काम नहीं किया और आगे भी नहीं करना चाहते हैं. उनके साथ काम ना करने को लेकर नाना का अपना अलग नजरिया है.

उनका कहना है कि 1993 बम ब्लास्ट में संजय दत्त ने भले ही सजा काट ली हो लेकिन वो उनके साथ काम नहीं करेंगे. क्योंकि साल 1993 में जो हुआ मुझे उस बात का बहुत दुख है. इस हादसे में उन्होंने वर्ली बेस्ट बस ब्लास्ट में अपना भाई खोया था.

उन्होंने कहा, ‘मेरी पत्नी की भी उसी हादसे में मौत हो जाती अगर वो दूसरी बस नहीं लेती. मैं ये नहीं कह रहा कि इसके लिए संजय दत्त जिम्मेदार हैं. लेकिन अगर इस हादसे में उनका थोड़ा भी हाथ है तो मैं उनके साथ काम नहीं करूंगा. ये निर्णय उन लोगों के लिए लिया है जो उस हादसे में मारे गए.’

बता दें कि नाना अपनी हर बात बड़ी बेबाकी से लोगों के सामने रखते हैं. उन्होंने पाकिस्तानी एक्टर बैन का भी समर्थन किया था. साथ ही सूखे के मुद्दे को लेकर 2016 में महाराष्ट्र सरकार का भी विरोध कर चुके हैं.

सेक्स को हौआ न समझें: सना खान

मुंबई में पलीबढ़ी सना खान दकियानूसी मुसलिम परिवार की होने के बावजूद एक सफल अभिनेत्री हैं. वे अपनी मां सईदा के साथ मुंबई में रहती हैं. 12वीं कक्षा तक पढ़ाई के बाद वे मौडलिंग करते करते अभिनेत्री बन गईं. अब तक वे देश की 4 भाषाओं में लगभग 15 फिल्में कर चुकी हैं. हिंदी में बतौर हीरोइन ‘वजह तुम हो’ उन की पहली फिल्म है, जोकि कुछ समय पहले ही प्रदर्शित हुई है. वैसे वे ‘बिग बौस 6’ का हिस्सा रहने के बाद सलमान खान की फिल्म ‘जय हो’ में भी मंत्री की बेटी का किरदार निभा चुकी हैं. प्रस्तुत हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश.

आपका काफी लंबा करियर है इसे आप किस तरह से देखती हैं?

इस से मैं ने बहुतकुछ सीखा है और मुझे लगता है कि आज मैं जो कुछ हूं अपनी पिछली गलतियों से सीख लेने के कारण ही हूं.

आपके करियर में किस तरह के उतारचढ़ाव रहे हैं?

देखिए, जब करियर में चढ़ाव आता है, तो हमें खुशी होती है. जब उतार आता है, तो हम उदास हो जाते हैं, दुख भी होता है. हम जिस ढंग से अपने करियर को आगे बढ़ाना चाहते हैं, जब उस ढंग से आगे नहीं बढ़ता तो हमें तकलीफ होती है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ पर मैं ने हार नहीं मानी. मैं ने एक लड़ाई लड़ी और अपने करियर को आगे बढ़ाया. सच कह रही हूं, मैं अपने अनुभव से काफी कुछ सीख रही हूं.

गैर फिल्मी परिवार की होने की वजह से आप को ज्यादा संघर्ष करना पड़ा?

बहुत ज्यादा. यहां सफलता पाने के लिए गौडफादर का होना जरूरी है. मेरे हाथ से कई बेहतरीन फिल्में महज इसलिए छूट गईं कि यहां मेरा कोई गौडफादर नहीं था. कई बार मैं ने चाहा भी कि कोई तो मेरी सिफारिश कर दे, मगर किसी ने नहीं की. यहां तक कि सलमान खान के साथ फिल्म ‘जय हो’ करने के बाद भी किसी ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया. ऐसे में जब विशाल पंड्या  मेरे पास ‘वजह तुम हो’ ले कर आए तो मैं ने लपक लिया. यह वह फिल्म है, जिसे एक स्थापित निर्देशक ने निर्देशित किया है.

मैं कई ऐसी अभिनेत्रियों को जानती हूं जिन्हें उन के प्रभावशाली मित्रों की वजह से फिल्में मिलती रहती हैं. मुझ से हमेशा पूछा जाता है कि मैं किस कैंप से हूं और हर बार मुझे यही कहना पड़ता है कि मेरा अपना कैंप है, क्योंकि मुझे प्रमोट करने वाला यहां कोई नहीं है. मैं अपने बलबूते इस मुकाम तक पहुंची हूं.

आप सलमान खान के साथ जब ‘बिग बौस’ कर रही थीं तब सलमान खान के साथ आप के अच्छे संबंध बन गए थे, तो उन्होंने आपकी सिफारिश नहीं की?

सलमान खान ने ही मुझे फिल्म ‘जय हो’ दी थी. इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद भी मुझे कोई फायदा नहीं हुआ. मैं फिल्में पाने तथा शोहरत के लिए सलमान खान का नाम नहीं लेती. मैं तो बातचीत में भी उन का जिक्र तब तक नहीं करती, जब तक कोई उन का नाम ले कर सवाल नहीं करता.

इरोटिक फिल्म में हीरोइन बन कर आना कैसा लगा?

देखिए, हमारे देश में बेवजह सैक्स को हौआ बना कर रखा गया है. मगर यह बहुत जल्द खत्म होने वाला है. आप मान कर चलें कि अब दर्शक समझदार हो गए हैं. यही वजह है कि हमारी फिल्म ‘वजह तुम हो’ के ट्रेलर को महज एक सप्ताह के अंदर यूट्यूब पर साढ़े 12 करोड़ लोगों ने देखा.

देखिए, अश्लीलता और कामुकता के बीच काफी बारीक लकीर होती है. यदि आप इसे समझते हैं तो आप ने पाया होगा कि मैं ने इस लकीर को लांघा नहीं है. फिर बड़े से बड़ा स्टार भी किसिंग और इंटीमेसी सीन करता है, क्योंकि इमोशंस को दिखाने के लिए यह करना ही पड़ता है. दर्शक भी फिल्म में रिएलिटी देखना चाहते हैं, तो हम ने अपनी फिल्म में उस हद तक इरोटिज्म दिखाया है जिस हद तक हमारे संस्कार और सैंसर बोर्ड इजाजत देता है.

फिल्म ‘वजह तुम हो’ में गुरमीत चौधरी के संग आप के इंटीमेट सीन भी फिल्माए गए हैं?

तो इस में क्या बुराई है. इस तरह के दृश्य हर फिल्म में होते हैं. हम सिनेमा में कहानी ही सुनाते हैं. ये कहानियां हम इंसानों की जिंदगी से ही ली गई होती हैं. क्या निजी जीवन में लोगों की प्रेमी या प्रेमिका, पति व पत्नी, अवैध प्रेम संबंध नहीं होते? क्या निजी जीवन में पतिपत्नी हमबिस्तर नहीं होते? यही सब जब हम फिल्म में कहानी के साथ दिखाते हैं तो लोग नाकभौं क्यों सिकोड़ते हैं? वैसे आप भी जानते हैं कि हमारे देश का सैंसर बोर्ड बहुत सख्त है. वह अश्लील दृश्यों पर कैंची चलाने में माहिर है. यह बात मेरी समझ से परे है कि लोग इस तरह की बातें क्यों करते हैं. अब तो हर फिल्म में किसिंग सीन होना लाजिमी सा हो गया है. क्या निजी जीवन में हम अपने प्यार का इजहार करने के लिए किस नहीं करते?

मेरी समझ में नहीं आता कि पत्रकार मेरे हर काम को अलग दृष्टिकोण से ही क्यों देखते हैं. जब मैं ‘बिग बौस’ में गई थी, तब भी लोगों ने ऊटपटांग बातें की थीं. जब मैं ने फिल्म ‘वजह तुम हो’ अनुबंधित की तो लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि सना खान इरोटिक फिल्म करने जा रही है.

तो क्या आप ‘वजह तुम हो’ को इरोटिक फिल्म नहीं मानती हैं?

मेरी फिल्म ‘वजह तुम हो’ सैक्स की कहानी नहीं है. आप ने फिल्म देखी होगी तो पाया होगा कि इस में एक चैनल को हैक कर उस पर लाइव मर्डर दिखाया जाता है और फिर ऐसा किस ने व क्यों किया, इस की जांचपड़ताल होती है, तो यह एक रोमाचंक फिल्म है. साथ में एक प्रेम कहानी भी है.

क्या आप निजी जिंदगी में फिल्म ‘वजह तुम हो’ की सिया जैसी हैं?

मैं निजी जिंदगी में जिस तरह की हूं उस से एकदम विपरीत है यह किरदार. मैं निजी जिंदगी में बहुत क्यूट और बबली गर्ल हूं. लोगों ने मुझे ‘बिग बौस’ में देखा है. अब मैं लोगों को बताना चाहती हूं कि अभिनय के मैदान में मैं कितनी अलग हूं. इस के अलावा जो निजी जिंदगी में नहीं हूं, उसे परदे पर साकार करना मेरे लिए चुनौती थी.

क्या समाज के लिए कुछ करने की इच्छा है?

मैं लोगों के लिए बहुत काम करना चाहती हूं. अभी मैं इस मुकाम पर नहीं हूं कि लोगों की आर्थिक मदद कर सकूं. भविष्य में यदि मैं आर्थिक रूप से मजबूत हुई, तो मैं हर कमजोर इंसान की आर्थिक मदद करना चाहूंगी.

आपके रोमांस की काफी चर्चाएं रहती हैं. कभी आपका नाम इस्माइल खान से जोड़ा गया था. इन दिनों आपका नाम निर्देशक विशाल पंड्या के साथ जोड़ा जा रहा है?

इन खबरों में कोई सचाई नहीं है. मैं किसी के साथ डेट नहीं कर रही हूं. फिल्म ‘वजह तुम हो’ के प्रमोशन के सिलसिले में हम कई शहरों में गए. इसी दौरान मुझे फिल्म निर्देशक विशाल पंड्या के संग एक ही कार में यात्रा करनी पड़ी. अब इसी को लोगों ने डेटिंग का नाम दे दिया.

इस बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहती. बस, सोच का फर्क है.

मगर हम ने सुना है कि आप के लिए गुरमीत चौधरी के साथ इस तरह के इंटीमेसी सीन फिल्माना आसान नहीं था?

मैं ने यह कब कहा कि मुझे परदे पर इंटीमेसी के दृश्य करने में आनंद आता है. गुरमीत हो या कोई भी कलाकार, मुझे इंटीमेसी के दृश्य करने से परहेज है. देखिए, मैं शौक से इंटीमेसी सीन्स को अंजाम नहीं देना चाहती. इसलिए मैं ने यह बात कही पर इस का यह मतलब नहीं कि मैं कहानी या किरदार की मांग को पूरा नहीं करना चाहती. मेरा मानना है कि मैं फिल्मों में जो भी कर रही हूं, वह फिल्म में किरदार की मांग के अनुसार हो. ‘वजह तुम हो’ में मैं ने वकील का किरदार निभाया है. इस का अर्थ यह नहीं है कि मैं हाईकोर्ट जा कर किसी का केस लडूंगी. फिल्म में मैं ने इरोटिक दृश्य किए पर निजी जिंदगी में मैं उस तरह के इरोटिक काम नहीं करती. इंटीमेसी या इरोटिक चीजें बहुत निजी होती हैं, उन्हें करते हुए मुझे भी शर्म आती है. इस फर्क  को मैं आम लोगों को बताना चाहती हूं, इसलिए मैं ने ऐसा कहा.

आइटम नंबर को ले कर क्या सोच है?

मुझे आइटम नंबर करने से भी परहेज नहीं है.

इस के बाद क्या कर रही हैं?

एक कौमेडी फिल्म ‘टाम डिक हैरी’ कर रही हूं. इस की आधे से ज्यादा शूटिंग हो चुकी है.

आपको कौमेडी से कुछ ज्यादा ही लगाव हो गया है?

लोगों को लगता है कि मैं कौमेडी अच्छी कर लेती हूं. मैं ने कपिल शर्मा के 2 शो भी किए. अब कौमेडी फिल्म कर रही हूं. कौमेडी करना आसान नहीं है. लोगों को हंसाना बहुत कठिन होता है. उस इमोशन में जाना और सही टाइमिंग में अभिनय करना बहुत कठिन होता है.

“किसिंग सींस से फिल्में हिट नहीं होतीं”

जिम्मेदारी का एहसास बच्चों को बचपन से ही कराना पड़ता है और उसे तभी समझ में भी आता है, जो आगे चल कर उस के लाइफस्टाइल में शामिल हो जाता है. कुछ ऐसी ही जिम्मेदारी का एहसास लिए अभिनेत्री साएशा सैगल ने फिल्म इंडस्ट्री में 17 वर्ष की अवस्था में कदम रखा. उन्हें बचपन से ही फिल्मों में अभिनय करने का शौक था.

साएशा अभिनेता सुमीत सैगल और अभिनेत्री शाहीन बानू की बेटी हैं. दिलीप कुमार और सायरा बानों की भतीजी भी हैं. साएशा ने फिल्म ‘शिवाय’ में अभिनय कर यह जता दिया है कि वे एक अच्छी एक्ट्रेस हैं. काम अच्छा मिले तो वे और मेहनत कर सकती हैं. ‘शिवाय’ फिल्म के बाद वे साउथ की फिल्म में व्यस्त हैं. उन से बात करना रोचक रहा था. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के कुछ खास अंश:

अपने बारे में बताएं?

3 साल की उम्र से ही अभिनय का शौक था. स्कूल में जब पढ़ रही थी, तब अजय देवगन ने मेरा फोटो कहीं देखा था, उन्हें मैं पसंद आई. मुझ से बात की और ‘शिवाय’ के बारे में बताया. मुझे कहानी पसंद आई. उस के बाद स्क्रीन टैस्ट और औडिशन हुआ. अपने 17वें बर्थडे पर मैं ने पहली हिंदी फिल्म ‘शिवाय’ साइन की. मैं बहुत खुश थी, क्योंकि इतने बड़े बैनर के साथ मैं पहली फिल्म कर रही थी.

कितना संघर्ष था? सुना है आप डांस की भी शौकीन हैं.

संघर्ष अधिक नहीं था, क्योंकि मेरे माता-पिता और मेरे रिश्तेदार इस क्षेत्र से हैं. इस के अलावा मुझे बचपन से डांस का शौक था. मैं आईने के आगे खड़ी हो कर डांस किया करती थी, मुझे फिल्मी और नौनफिल्मी दोनों तरीके के डांस आते हैं. 9 साल की उम्र से मैंने डांस शुरू किया था. मैंने लैटिन अमेरिकन, हिपहौप के साथ-साथ ओडिशी, कथक आदि सीखा है. मैं हर दिन 6 घंटे डांस करती थी.

पहली बार कैमरे के सामने आने का अनुभव कैसा रहा?

मैं रियल लाइफ में बहुत चुप रहती हूं. कैमरे के आगे आते ही बिंदास हो जाती हूं. मेरी पर्सनैलिटी ही बदल जाती है. कोई झिझक नहीं होती, क्योंकि मेरा सपना पूरा हो रहा है.

शिवाय’ में आपके काम की बहुत सराहना हुई, कैसा लगा आपको?

‘शिवाय’ फिल्म आसान नहीं थी. निर्देशक को यंग और फ्रैश चेहरा चाहिए था, जिस में मैं फिट बैठी. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि मेरा काम सभी को पसंद आया. मैं ने पहले फिल्म नहीं देखी थी, क्योंकि नर्वस थी. लेकिन मैं ने अपनी बैस्ट परफौर्मैंस दी थी.

आपके काम में परिवार का कितना सहयोग रहा?

मेरी मां और पिता का हमेशा सहयोग रहा है. ट्रेनिंग से ले कर शूटिंग तक में वे मेरे साथ रहे. उन्हें उस बात से खुशी मिलती है जिसमें उनके बच्चे खुश रहें. वे हमेशा गाइड करते हैं. स्क्रिप्ट से ले कर अभिनय के बाद तक सब चर्चा करते हैं.

आजकल फिल्मों में अंतरंग दृश्य अधिक आने लगे हैं ऐसे में आप इन्हें करने में कितनी सहज हैं?

मैं इस क्षेत्र में नई हूं, इसलिए इस बारे में अधिक सोचा नहीं है. जब ऑफर आएगा तब सोचूंगी. ऐस्थैटिक वैल्यू को हमेशा बनाए रखना चाहती हूं. लाइन क्रौस नहीं करना चाहती. कुछ निर्देशकों को लगता है कि किसिंग सींस से फिल्म हिट होगी पर ऐसा नहीं होता. पुरानी रोमांटिक फिल्मों में प्यार को बहुत ही सलीके से दिखाया जाता था. फिल्में भी बहुत हिट हुईं. वह दौर अब चला गया है. मुझे उस की तलाश है. मुझे अपनी चाची सायरा बानों की फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’, ‘पड़ोसन’ और चाचा दिलीप कुमार की ‘गंगा जमुना’, ‘कर्मा’, ‘मशाल’ आदि फिल्में बहुत पसंद हैं.

अजय देवगन के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

मुश्किल नहीं था. वे बहुत ‘कंफर्ट फील’ करवाते थे. वे नैचुरल ऐक्टिंग करना पसंद करते हैं.

आगे क्या कर रही हैं?

अभी एक तमिल फिल्म की शूटिंग चल रही है और 2 हिंदी फिल्मों पर भी बात चल रही है.

फिटनैस के लिए क्या करती हैं?

मैं रोज डांस करती हूं, जिस से शरीर की काफी कैलोरी बर्न हो जाती है. इस के अलावा जिम भी जाती हूं.

कितनी फैशनेबल हैं?

मुझे फैशन में ज्वैलरी सब से अधिक पसंद है. किसी फैशन ट्रैंड को फोलो नहीं करती. आरामदायक कपड़े पहनती हूं. जो पोशाक व्यक्तित्व को बढ़ाए, उसे पहनना चाहिए. मैं ज्यादातर जींस और टीशर्ट पहनती हूं. भारतीय पोशाकें मुझे अधिक पसंद हैं, जिन में सलवार सूट अधिक अच्छा लगता है.

कितनी फूडी हैं?

मुझे खाना बहुत पसंद है. यह मेरी वीकनैस है. कंट्रोल करना पड़ता है. सब कुछ जो अच्छा बना हो, मैं खाती हूं. लेकिन मैं डांस अधिक करती हूं. इस से मोटापा मेरे पास नहीं फटकता. मां के हाथ की बनी फिश करी, राइस, राजमा-चावल आदि अधिक पसंद हैं.

मेकअप कितना अच्छा लगता है?

मैं अधिक मेकअप पसंद नहीं करती, बाहर जाने पर लिप बाम लगाती हूं. सैट पर मेकअप करना पड़ता है. मुझे नैचुरल रहना पसंद है.

खुद को कैसे ऐक्सप्लेन करेंगी?

मैं हमेशा खुश रहना पसंद करती हूं. शांत और धैर्यवान हूं. गुस्सैल और नकारात्मक सोच रखने वालों से हमेशा दूर रहती हूं.

कहां घूमने जाना पसंद करती हैं?

घूमना बहुत होता है. भारत में मैं कश्मीर नहीं गई. सुना है वहां की वादियां बड़ी खूबसूरत हैं. इस के अलावा मॉरिशस जाना चाहती हूं. वहां के समुद्री तट बहुत सुंदर हैं. वहां जा कर मैं तटों पर स्विमिंग करना चाहती हूं.

ये काम कर प्रियंका की जलती है जान

प्रियंका चोपड़ा ने बॉलीवुड के बाद हॉलीवुड में भी अपनी जगह बनाई और अब अपनी फिल्मों के अलावा वो अपने प्रोडक्शन हाउस ‘पर्पल पेबल पिक्चर्स’ पर भी पूरा ध्यान दे रहीं हैं. रीजनल सिनेमा को बढ़ावा देने वाला प्रियंका का यह प्रोडक्शन हाउस मराठी, भोजपुरी और पंजाबी फिल्मों को सपोर्ट कर रहा है.

लेकिन, इतना होने के बाद भी आज भी जब फिल्में हाथ से निकलतीं हैं तो प्रियंका को बुरा लगता है. एक सक्सेसफुल अभिनेत्री बनने के बाद भी फिल्मों को पाने की प्रियंका की चाह कम नहीं हुई है उनका कहना है कि जब फिल्मों के लिए उन्हें मना करना पड़ता है तो उनकी जान जलती है.

सूत्रों की मानें तो प्रियंका चोपड़ा निर्देशक संजय लीला भंसाली द्वारा महान कवि साहिर लुधियानवी पर बनाई जा रही एक फिल्म में काम कर रही हैं, लेकिन अभिनेत्री का कहना है कि उन्होंने अभी इस तरह की कोई फिल्म साइन नहीं की है. हालांकि 34 वर्षीय अभिनेत्री ने कहा कि अगर भंसाली उनसे फिल्म का हिस्सा बनने के लिए कहेंगे तब वह उन्हें ना नहीं कह सकतीं.

हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में जब प्रियंका से बॉलीवुड फिल्में साइन करने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “लिस्ट इतनी बड़ी है और मेरी जान जलती है जब मुझे अच्छी फिल्मों के लिए मना करना पड़ता है. मुझे साल में चार से छह फिल्में साइन करने की आदत हैं मगर मुझसे कहा गया है कि इस साल, मेरे पास मेरे शेड्यूल में फिल्मों के लिए सिर्फ चार महीने हैं तो मैं इस साल सिर्फ दो फिल्में साइन कर पाऊंगी! लेकिन जनवरी तक सब तय हो जाएगा.”

जोड़ी मिलाएं धन कमाएं

शादी के अटूट बंधन के मद्देनजर लड़के के लिए उपयुक्त लड़की और लड़की के लिए उपयुक्त लड़का उपलब्ध कराना नेक काम तो है ही, इस से लाभ भी हासिल होता है. आज जोड़ी बनाने यानी मैचमेकिंग का काम रोजगार का रूप ले चुका है. इस काम को कहीं से भी किया जा सकता है. कुछ लोग इस के लिए कमर्शियल कौंप्लैक्स में औफिस खोलते हैं तो कुछ घर से ही इस काम को अंजाम दे कर खासी कमाई कर रहे हैं. मैचमेकिंग के काम में महिलाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा कर अपने घर में धनवर्षा कर रही हैं.

मैचमेकिंग यानी जोड़ी मिलाने के व्यवसाय में न तो बहुत ज्यादा जगह की जरूरत होती है और न ही भारी पूंजी की. ‘हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होय’ की कहावत को चरितार्थ करता यह व्यवसाय एक बार जम गया तो फिर समझो इस में सोनाचांदी सबकुछ है.

इस में अधिकाधिक रिश्ते जुटानेके लिए आप के संपर्क जितने ज्यादा होंगे, आप की संपर्क सूची उतनी ही लंबी होगी, जो व्यवसाय में फायदेमंद साबित होगी. एक समय था जब लोग रिश्तों के लिए रिश्तेदारों व अन्य विश्वस्त सूत्रों पर निर्भर होते थे लेकिन आज मैचमेकर्स पर निर्भर होने लगे हैं क्योंकि मैचमेकर्स ने अपनी सेवाओं से लोगों में विश्वास जमाया है.

मैचमेकर्स के लिए न्यू टैक्नोलौजी यानी कंप्यूटर लाभ का सौदा सिद्ध हो रही है. लड़केलड़की की सारी जानकारी को कंप्यूटर में सेव कर लिया जाता है जिस से काफी सुविधा होती है. लोगों का इन पर विश्वास करने का कारण यह भी है कि उन्हें इन के द्वारा अधिक से अधिक कौंटैक्ट्स की सारी जानकारी मिल जाती है. व्यक्तिगत स्तर पर लड़केलड़की और उन के परिवार की पूरी व सही जानकारी हासिल करना आसान नहीं होता.

जोड़ी की खोज में पेरैंट्स मैचमेकर को अपने लड़केलड़की के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं. जानकारी में पेरैंट्स लड़के/लड़की का नाम, पता, पिता व माता का नाम, आयु, कद, व्यवसाय, फैमिली बैकग्राउंड, मांगलिक/नौन मांगलिक, कास्ट/नो कास्ट बार, एजुकेशन, सैलरी, मंथली इनकम, किस तरह के परिवार में शादी करना पसंद करेंगे आदि जानकारियां देते हैं. इस से मैचमेकर को परिवार की पसंद के बारे में पता चल जाता है और वह उसी के आधार पर रिश्ते ढूंढ़ता है.

दोनों परिवारों को जब मनमाफिक मैच मिल जाता है और विस्तार से जानकारी भी प्राप्त हो जाती है तो उस के अगले कदम में कई मीटिंग्स आयोजित करवाई जाती हैं, जिन में लड़कालड़की को कई बार एकदूसरे को समझने का मौका मिल जाता है, और वे एकदूसरे के व्यवहार से भी परिचित हो जाते हैं, ऐसे में उन्हें निर्णय लेने में सुविधा होती है.

अंतिम निर्णय दोनों पार्टियों पर ही टिका होता है, वे अपने रिस्क पर ही कोई निर्णय लेते हैं. हर मैचमेकर की फीस अलगअलग होती है. कुछ मैचमेकर तो लड़के/लड़की की व उस के पूरे परिवार की सारी जानकारी स्वयं जांचपड़ताल कर उपलब्ध कराते हैं. इस कार्यशैली के आधार पर उन की फीस निर्भर करती है.

मैचमेकर क्यों

अगर आप खुद लाइफपार्टनर सर्च करना प्रारंभ करते हैं तो आप का बहुत समय बरबाद होता है. औनलाइन डेटिंग या होटल वगैरह में जा कर मिलने में यह भी पता नहीं होता कि आप सही और ईमानदार व्यक्ति से मिल रहे हैं या नहीं. हो सकता है कि आप जल्दबाजी में गलत व्यक्ति को चुन लें. लेकिन मैचमेकर्स आप की हर संभव सहायता करते हैं.

अनुभव

लोगों की जोडि़यां बनाने के काम में जुटे मैचमेकर्स को लोगों को परखना ज्यादा अच्छी तरह आता है. वे पहली नजर में ही पहचान जाते हैं कि अमुक व्यक्ति कैसा है. इसलिए वे मैचिंग बहुत सोचसमझ कर ही करवाते हैं.

डेट कोचिंग : सब से पहले मैचमेकर सही मैच करवाने का प्रयास करते हैं. यदि दोनों को बताया हुआ मैच पसंद आता है तो बात आगे बढ़ाई जाती है. इस में वे बताते हैं कि कैसे आप सामने वाले व्यक्ति को परख कर अपना सही फैसला ले सकते हैं. वे एकदूसरे को तय तिथि व समय पर मिलवाते हैं.

सुरक्षा : आप की सुरक्षा मैचमेकर्स की प्राथमिकता होती है. वे खुद अपने स्तर पर सारी जांचपड़ताल कर आप को इस बात के लिए निश्चिंत करते हैं कि अमुक परिवार सही है और आप बात आगे बढ़ा सकते हैं.

मैचमेकिंग के काम के संबंध में गाजियाबाद की कुमुद, जो अपने घर से मैचमेकिंग का काम करती हैं, ने बताया कि शुरू में उन्हें इस व्यवसाय को जमाने में दिक्कत हुई लेकिन धीरेधीरे जब लोगों को विश्वास हो गया तो अब उन के पास आएदिन कोई न कोई अपनी लड़की या लड़के के रिश्ते के लिए आता रहता है. वे बताती हैं कि लड़के या लड़की वालों से रजिस्ट्रेशन फीस के तौर पर वे 400 रुपए चार्ज करती हैं. रजिस्ट्रेशन फीस लेने के समय हम लड़के या लड़की की संपूर्ण जानकारी ले कर उसे अपने कंप्यूटर में फीड कर लेते हैं और उसी के अनुसार ही उन्हें रिश्ते बताते हैं.

रिश्तों के लिए अकसर सामूहिक सम्मेलन का आयोजन करते हैं जिस में वे सभी लोग आमंत्रित होते हैं जिन्होंने रजिस्ट्रेशन कराया होता है. वहां पर आए लड़केलड़कियों को एकदूसरे से परिचित कराया जाता है, फिर पेरैंट्स को अपने लड़के या लड़की  के लिए जो उपयुक्त लगता है, उन से बात आगे बढ़ाई जाती है.

दिल्ली के पीतमपुरा महल्ले में मैचमेकिंग के व्यवसाय में व्यस्त पूनम ने बताया कि वे जो भी रिश्ता बताती हैं उस की गारंटी लेती हैं. इस के लिए वे क्लाइंट से शुरुआत में टोकनमनी के रूप में 5,100 रुपए लेती हैं. उन की कोशिश यही होती है कि वे 6 से 8 महीने के बीच बात पक्की करवा दें. लेकिन इस बीच अगर संयोगवश रिश्ता पक्का न हो सका या फिर पार्टी को लगे कि वे उन्हें धोखा दे रही हैं तो उन के द्वारा दी गई टोकनमनी वे उन्हें 6 महीने के बाद वापस कर देती हैं.

वे बताती हैं कि वे लड़का या लड़की की पूरी वैरिफिकेशन करवाती हैं, मीटिंग्स दोनों पार्टियों की सुविधा के हिसाब से आयोजित करवाती हैं, ताकि उन्हें कोई दिक्कत न हो. वे मैचमेकिंग के सम्मेलन भी करवाती हैं. इस के लिए उन का कई लोगों व संस्थाओं से टाइअप होता है. जब रिश्ता पक्का हो जाता है और शादी का कार्ड छप जाता है तब वे क्लाइंट से 40 हजार रुपए चार्ज करती हैं. जो भी रिश्ता वे बताती हैं, उस की वे खुद भी व्यक्तिगत स्तर पर जांचपड़ताल करती हैं ताकि बाद में कोई दिक्कत न हो.

दिल्ली के पंजाबी बाग स्थित अपने घर से मैचमेकिंग का काम कर रही कुसुम ने बताया कि जब भी कोई लड़के या लड़की के रिश्ते के लिए उन के पास आता है तो वे उन्हें सारी बातें शुरू में ही बता देती हैं ताकि शुरुआती चरण में ही सब स्पष्ट हो जाए. अगर हमारी सर्विस पसंद आती है तो हम उन से 6,500 रुपए लेते हैं और उन से लड़का या लड़की की सारी जानकारी ले लेते हैं क्योंकि उसी उपलब्ध जानकारी के अनुसार मैच करवाया जाता है. यह सारा रिकौर्ड हम कंप्यूटर में दर्ज कर लेते हैं.

इस तरह कोई भी पुरुष या महिला घर बैठे जोड़ी मिलाने का काम आसानी से व अच्छी तरह से कर अपने परिवार का जीविकोपार्जन कर सकता है.

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