फिटनेस ट्रेनर ने खोली आमिर खान की पोल

बॉलीवुड के ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ यानी कि अभिनेता आमिर खान ने अपनी फिल्म ‘दंगल’ का ‘मेकिंग ऑफ दंगल’ वीडियो को बाजार में लाते हुए दावा किया था कि उन्होंने बिना किसी तरह के गलत पदार्थ का सेवन किए अपना वजन 97 किलो तक ले गए और फिर उसे चार पांच माह के ही अंदर 29 किलो घटा भी लिया. अपने शरीर के फिटनेस को लेकर आमिर खान ने कई तरह के दावे किए थे.

लेकिन मुंबई के ही एक फिटनेस ट्रेनर रणवीर अलहाबादिया ने फेसबुक, यूट्यूब, ब्लॉग सहित हर संभव सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ की पोल खोलते हुए नवयुवकों को सावधान किया है. अपने इस वीडियो में रणवीर अलहाबादिया ने दावा किया है कि वह आमिर खान के बहुत बड़े प्रशंसक हैं, मगर उन्होंने ‘दंगल’ के लिए अपनी तैयारी व फिटनेस ट्रेनिंग को लेकर जो वीडियो जारी किया है,वह गलत है.

रणवीर अलहाबादिया अपने इस वीडियों में कहते हैं, ‘‘आमिर खान पूरे देश को प्रेरणा देते हैं. पर इस बार वह गलत कर रहे हैं. वह भूल गए हैं कि फिटनेस ट्रेनिंग को लेकर भारत में काफी जागरूकता आ गयी है. एक आम इंसान खानपान पर नियंत्रण रखते हुए फिटनेस ट्रेनिंग लेकर खुद को महज पांच माह के अंदर फिट नहीं कर सकता. उन्हें सही वैज्ञानिक तकनीक की बात करनी चाहिए. आमिर खान ने अपना वजन बढ़ाने के लिए हर हाल में स्टीरॉयड्स का सेवन किया है, जो कि शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. आमिर खान का दावा है कि उन्होंने महज पांच छह माह में अपना वजन बढ़ाया और फिर पांच-छह माह के ही अंदर अपना वजन घटाकर खुद को फिट रखा. यह गलत है. ऐसा करने के लिए कम से कम पांच छह वर्ष का समय चाहिए. फिटनेस के लिए कई वर्ष तक एक लाइफ स्टाइल अपनानी पड़ती है. फिटनेस ट्रेनिंग भी लेनी पड़ती है. मैं यह सब इसलिए बता रहा हूं, जिससे कोई भी युवक स्टीरॉयड का सेवन कर अपने शरीर को हानि न पहुंचाए.’’

रणवीर ने अपनी बात को साबित करने के लिए अक्षय कुमार का उदाहरण दिया है. वह कहते हैं, ‘‘एक 15 वर्ष के युवक के लिए भी महज खानपान पर नियंत्रण और फिटनेस ट्रेनिंग के बल पर पांच माह में अपना वजन बढ़ाना और पुनः पांच माह में घटाकर फिट होना असंभव है. फिर आमिर खान तो 51 वर्ष के हैं.’’

जब से रणवीर अलहाबादिया का यह वीडियो हर जगह वायरल हुआ है, तब से आमिर खान चुप हैं. देखना है कि वह इस मुद्दे पर कब बात करते हैं.

‘चाइल्ड एब्यूज’ पर बनी फिल्म कहानी 2

फिल्म ‘कहानी’ के चार साल बाद आई सुजॉय घोष की फिल्म कहानी 2 सिक्वल नहीं बल्कि एक फ्रेंचाइज है. इस फिल्म में भी थ्रिल, रोमांच और विद्या है, लेकिन कहानी दुर्गारानी सिंह की है. पहली फिल्म से सुजॉय को जितनी वाहवाही मिली थी, ये फिल्म उससे दूर लगती है. फिल्म ‘चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज’ के बारें में है, जो एक बड़ा मुद्दा है और हर जगह व्याप्त है.

फिल्म में विद्या बालन और अर्जुन रामपाल के दो चेहरे को दिखाया गया है. हालांकि इस तरह की कहानी पर बनी फिल्म पहले भी आ चुकी है, अंतर सिर्फ इतना है कि इसमें विद्या बालन है और इसकी पूरी शूटिंग कोलकाता और कलिम्पोंग में हुई है.

फिल्म को अलग और ‘एलीट’ बनाने के चक्कर में निर्देशक ने फिल्म की सिनेमेटोग्राफी को 70 के दशक की बनायी है, जहां सीन्स में डार्कनेस अधिक है. किसी का चेहरा ठीक से देख पाना संभव नहीं था और पूरे समय तक हॉल में बैठे रहना भारी पड़ रहा था. विद्या बालन की एक्टिंग विद्या सिन्हा और वांटेड दुर्गारानी सिंह के रूप में निखर कर आई है. उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि किसी भी रोल में वह फिट है. अर्जुन रामपाल पुलिस की भूमिका में कुछ खास नहीं दिखे.

कहानी इस प्रकार है

पश्चिम बंगाल के एक छोटे से शहर चंदन नगर में कामकाजी महिला विद्या सिन्हा (विद्या बालन) अपने टीनएजर बेटी मिनी को सम्हाल रही है. एक दिन उसकी ‘मेड सर्वेंट’ के न आने पर वह उसे अकेला छोड़कर ऑफिस जाने को बाध्य होती है. ऑफिस में पता चलता है कि उसकी ‘मेड’ देर से ही सही, पर आ चुकी है. लेकिन विद्या के घर आने पर पता चलता है कि उसकी बेटी किडनैप हो चुकी है, इतने में उसके पास फोन आता है कि अगर वह बेटी से मिलना चाहती है तो जल्दी कोलकाता आ जाए. वह बेटी से मिलने के लिए भागती है, ऐसे में उसकी दुर्घटना, कार की टक्कर लगने से हो जाती है, उसे अस्पताल पहुंचाया जाता है, वह कोमा में चली जाती है.

इस केस को पुलिस ऑफिसर इन्द्रजीत (अर्जुन रामपाल) अपने हाथ में लेता है, जो विद्या को इस हालत में देखकर चौंक जाता है, क्योंकि उसका भूतकाल इससे कही न कही जुड़ा हुआ है. इसके बाद वह विद्या की ऐसी हालत होने की वजह तक पहुँचता है. काफी मुश्किलों और तहकीकात के बाद कहानी रिविल होती है.

फिल्म में विद्या की लुक एकदम सादा और ‘डीग्लैमर’ वाली है. फिल्म की कुछ बातें अनसुलझी रह गई हैं, जैसे कि विद्या अगर बचपन में ‘चाइल्ड एब्यूज’ की शिकार हुई तो कब और कैसे? लेकिन इस तरह की घटना से किसी महिला के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ता है, उन बारीकियों को निर्देशक ने अच्छी तरह दिखाया है.

जुगल हंसराज विलेन के रूप में बहुत थोड़े समय के लिए दिखे. फिल्म का थ्रीलर अंत तक कायम रहा. कोलकाता के स्थानीय कलाकारों ने अच्छा काम किया है. बहरहाल फिल्म एक बार देखने लायक है इसे थ्री स्टार दिया जा सकता है.

फिल्म रिव्यू: कहानी 2

सुजॉय घोष निर्देशित फिल्म ‘कहानी 2: दुर्गारानी सिंह’ से यह बात साफ हो जाती है कि बेहतरीन पटकथा, बेहतरीन निर्देशन और कलाकार की बेहतरीन परफॉर्मेंस के बल पर सामाजिक मुद्दों पर बेहतरीन फिल्म बन सकती है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है, कोलकाता के पास चंदन नगर में रह रही विद्या सिन्हा के घर से जो अपनी 14 वर्षीय अपाहिज बेटी मिनी के साथ रह रही है. मिनी का ईलाज भी चल रहा है. डॉक्टर की सलाह पर विद्या अपनी बेटी मिनी को इलाज के लिए अमरीका ले जाने की तैयारी में है. पासपोर्ट बन चुके हैं. विद्या सिन्हा सुबह नर्स का इंतजार करते करते ऑफिस चली जाती है. ऑफिस में ही विद्या सिन्हा को पता चलता है कि अमरीका के डॉक्टर से मिलने का दिन व तारीख तय हो चुकी है.

जब वह ऑफिस से घर लौटती है, तो मिनी घर पर नहीं मिलती है. विद्या सिन्हा के मोबाइल पर एक महिला का फोन आता है कि कोलकाता में आकर अपनी बेटी को ले जाओ. विद्या अपनी बेटी मिनी को लेने के लिए घर से निकलती है, मगर रास्ते में एक कार उसे टक्कर मार देती है. विद्या सिन्हा अस्पताल पहुंच जाती है, जहां वह कोमा में जा चुकी है. डॉक्टर का मानना है कि छह सात दिन में वह कोमा से बाहर आ जाएगी. इस दुर्घटना के केस की जांच करने के लिए पुलिस सब इंस्पेक्टर इंद्रजीत सिंह (अर्जुन रामपाल) पहुंचता है, जिसके मुंह से विद्या सिन्हा को देखते ही दुर्गा रानी सिंह (विद्या बालन) का नाम निकलता है. पर डॉक्टर कहता है कि यह विद्या सिन्हा है.

इंद्रजीत सिंह जांच शुरू करता है. वह विद्या सिन्हा के घर पहुंचता है, जहां उसे विद्या सिन्हा उर्फ दुर्गारानी सिंह की डायरी मिलती है. इस डायरी से ही पता चलता है कि कभी दुर्गारानी सिंह और इंद्रजीत सिंह पति पत्नी थे. दो वर्ष के बाद दोनों अलग हो गए थे. दुर्गारानी सिंह के अनुसार इंद्रजीत सिंह उससे नफरत करता है. जबकि अब इंद्रजीत सिंह अपनी पत्नी रश्मि (मानिनी चड्ढा) व बेटी सिमरन के साथ खुश है.

विद्या सिन्हा उर्फ दुगारानी सिंह की डायरी के अनुसार कोलकाता में रहने वाली दुर्गारानी सिंह (विद्या बालन) एक स्कूल में रिसेप्शनिस्ट हैं. जहां मशहूर व अति संपन्न दीवान परिवार की बेटी छह वर्षीय मिनी पढ़ती है. मिनी (नायशा खन्ना) को उसकी कक्षा की शिक्षक हर दिन मिनी की शिकायत के साथ प्रिंसिपल के ऑफिस ले जाती है. और डरी व सहमी मिनी को हमेशा दुर्गारानी सिंह ऑफिस के सामने ही बैठना पड़ता है. मिनी पर आरोप है कि मिनी पढ़ने में रूचि नहीं रखती और कक्षा में सोती रहती है. होमवर्क करके नहीं लाती.

दुर्गारानी सिंह के मन में उत्सुकता जागती है और वह एक दिन मिनी के नजदीक पहुंचकर उससे सच जानने का प्रयास करती है. मिनी कह देती है कि रात में उसे सोने को नहीं मिलता. पर तभी ड्राइवर उसे लेने आ जाता है. उसके बाद मिनी से सच जानने के लिए दुर्गारानी सिंह योजना बनाती है. वह झूठ बोलकर उसकी स्कूल शिक्षक बनकर मिनी को उसके घर पर ट्यूशन पढ़ाने जाने लगती है.

दुर्गारानी सिंह की जिंदगी में अरूण नामक युवक है. दुर्गारानी सिंह चाहती है कि इंदर तो कभी उसका हो नहीं सका, अब वह अरूण के साथ नई जिंदगी की शुरूआत कर सकती है. मिनी को ट्यूशन पढ़ाते पढ़ाते अंततः दुर्गारानी सिंह को पता चलता है कि मिनी के मोहित (जुगल हंसराज) चाचा उसका शारीरिक व यौन उत्पीड़न कर रहे हैं. दुर्गारानी सिंह, पुलिस में मोहित व मिनी की दादी (अम्बा सन्याल) के खिलाफ शिकायत दर्ज कराती है. पुलिस जांच करने आती है और मोहित से बात करने के बाद उन्हें छोड़ देती है. जबकि मोहित व मोहित की मां, दुर्गारानी सिंह पर चोरी का इल्जाम लगा देते हैं. दुर्गारानी सिंह की स्कूल की नौकरी चली जाती है. मोहित व मिनी की दादी, दुर्गारानी सिंह को मरवाने की सुपारी दे देते हैं.

उधर अरूण, दुर्गारानी सिंह का स्पष्ट जवाब न मिलने पर लंदन चला जाता है. मिनी की दादी और मोहित, मिनी को इतना प्रताड़ित करते हैं कि वह छत से कूद जाती है. और उसका पैर फ्रैक्चर हो जाता है. उपर से उसकी दादी अस्पताल में मिनी को एक इंजेक्शन लगाकर मौत की नींद सुलाना चाहती है, पर ऐन वक्त पर दुर्गारानी सिंह अस्पताल पहुंचकर दादी को मारकर मिनी के साथ कोलकाता से भागकर चंदन नगर पहुंच जाती है.

अस्पताल में कोमा से बाहर आते ही विद्या उर्फ दुर्गारानी सिंह बेटी मिनी को बचाने के लिए निकल पड़ती है. उधर पुलिस भी दुर्गारानी सिंह के पीछे पड़ी है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. पता चलता है कि मिनी का अपहरण मिनी के मोहित चाचा ने ही करवाया है जो कि अंततः मारे जाते हैं. दुर्गारानी सिंह, मिनी को लेकर अमरीका के अस्पताल पहुंचती है.

यूं तो यह फिल्म एक रोमांचक फिल्म है. मगर यह फिल्म वर्तमान समय के अति ज्वलंत मुद्दे बाल यौन उत्पीड़न पर आधारित है. छह सात वर्ष की बालिकाओं के साथ उनके घर या रिश्तेदार या अतिकरीबी इंसान जब उनका शारीरिक व यौन शोषण करता है, उस वक्त वह बात बालिका की समझ में कुछ नहीं आता है. मगर जब वह बड़ी होती है, तो शादी के बाद भी उसकी जिंदगी तबाह होती है. इस बात को रेखांकित करने वाली इस फिल्म में एक बहुत प्यारा दृश्य है. जहां पर दुर्गारानी सिंह, मिनी को एक बालिका के प्रति प्यार व बाल यौन उत्पीड़न में अंतर समझाती है. फिल्म के कुछ संवाद काफी अच्छे बन पड़े हैं.

निर्देशक सुजॉय घोष इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि जिन विषयों या मुद्दों को लोग अपने घर की दरी के नीचे दबा देना ही उचित समझते हैं, उस पर निर्देशक ने खुलकर बात की है. विद्या बालन की तारीफ करनी पड़ेगी कि उन्होंने ऐसे विषय वाली फिल्म में अभिनय करने के लिए हामी भरी. फिल्म में कुछ अनुत्तरित सवाल भी हैं, कुछ कमियां भी हैं, जिन्हें सिनेमाई स्वतंत्रता के नाम पर नजरंदाज किया जा सकता है. सुजॉय घोष बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने बाल यौन उत्पीड़न के मुद्दे को काफी परिपक्वता के साथ फिल्म में उठाया है. ऐसा इम्तियाज अली अपनी फिल्म ‘हाईवे’ में नहीं कर पाए थे.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो विद्या बालन ने काफी बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है. बेटी की सुरक्षा का डर, गुस्सा, बेटी के प्रति सुरक्षा कवच बनने के अहसास को अपने चेहरे के भावों से व्यक्त कर विद्या बालन ने अद्भुत अभिनय क्षमता का परिचय दिया है.

क्लायमेक्स से पहले के कुछ दृश्यों मे तो विद्या बालन अभिनय के बल पर दर्शकों को अपना बना लेती हैं. काफी लंबे समय बाद किसी फिल्म में अर्जुन रामपाल ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. वह वास्तविक पुलिस सब इंस्पेक्टर के किरदार को परदे पर साकार करने में इतना सफल रहे हैं कि फिल्म खत्म होने के बाद भी वह दर्शकों के दिमाग में रह जाते हैं. विद्या बालन के साथ ही नायषा खन्ना ने भी कमाल का अभिनय किया है. जुगल हंसराज का अभिनय ठीक ठाक ही रहा. इंद्रजीत सिंह के बॉस के किरदार में खराज मुखर्जी ने भी अच्छा परफॉर्म किया है.

फिल्म में पश्चिम बंगाल के मध्यम वर्गीय परिवेश को उकेरने में निर्देशक सुजॉय घोष पूरी तरह से सफल रहे हैं. कैमरामैन भी बधाई के पात्र हैं. फिल्म का संगीत प्रभावित नहीं करता.

इंटरवल से पहले दर्दनाक अतीत के साथ जिंदगी जी रही औरत, एक छह वर्ष की लड़की के व्यवहार की वजह से एक जुड़ाव महसूस करती है. और फिर कहानी इस तरह आगे बढ़ती है कि दर्शक फिल्म का एक भी दृश्य आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता. काफी लंबे समय बाद कोई फिल्म आयी है, जिसका पहला भाग लोगों को अपनी तरफ खींचता है. इंटरवल के पहले जो रोमांच पैदा होता है, उसे इंटरवल के बाद बरकरार रखने में निर्देशक असफल हो जाते हैं. इंटरवल के बाद फिल्म पर से कुछ समय के लिए निर्देशक की पकड़ कमजोर हो जाती है. कुछ घटनाक्रम का अंदाजा पहले से लगाया जा सकता है, पर इससे फिल्म की गति या फिल्म की रोचकता ज्यादा बाधित नहीं होती है.

तर्कशीलता और दया के साथ एक संवेदनशील विषय से निपटने वाली दुर्लभ फिल्मों में से एक गिनी जाएगी. यह एक ऐसी फिल्म है, हर माता पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चेा को अपने साथ ले जाकर दिखाए. यह फिल्म कहीं न कहीं बच्चों में बाल यौन उत्पीड़न के प्रति जागरूकता लाएगी.

दो घंटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘कहानी 2’ का निर्माण ‘बाउंड स्क्रिप्ट मोशन पिक्चर्स’ के बैनर तले किया गया है. इसके निर्माता सुजॉय घोष और जयंतीलाल गड़ा हैं. निर्देशक सुजॉय घोष, पटकथा लेखक सुजॉय घोष, संवाद लेखक रितेश शाह, कहानीकार सुजॉय घोष व सुरेश नायर, संगीतकार क्लिंटन

जब कर रहे हों अकेले ट्रेवल…

अगर आप अकेले ट्रेवल कर रही हैं तो हर छोटी-बड़ी जानकारी हासिल कर के ही चलें. पर कई बार पूरी प्लेनिंग के बावजूद कोई न कोई परेशानी आ ही जाती है. अब ऐसे में क्या करें? ज्यादा टेंशन न लें और इनमें से कोई भी ऐप डाउनलोड कर के आराम से घूमें.

1. ट्रीप एडवाइजर

अगर आपको आपके डेस्टिनेशन में उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी चाहिए, तो यह ऐप बेस्ट है. इसमें आपको किसी भी जगह पर खाने-पीने से लेकर शॉपिंग तक की जानकारी मिल जाएगी. इस ऐप पर मैप भी रहता है जिससे आप आराम से खुद के लिए होटल या रेस्त्रां ढूंढ सकती हैं.

2. कयाक

ये ऐप बाकि सारे ऐप्स में सबसे ज्यादा ट्रेवेलर फ्रेंडली ऐप है. इस ऐप से आप फ्लाइट, कैब भी बूक कर सकती हैं.

3. बुकिंग.कॉम

यह ऐप आपको अलग-अलग होटल के रेंट और कंफर्ट को कंपेयर करने में सहायता करता है. इसमें आपको अन्य ट्रेवेलर्स के रिव्यू भी मिल जायेंगे, जिससे आप आसानी से डिसाइड कर सकती हैं कि आपको कहां ठहरना है.

4. एक्कुवेडर

इस ऐप से आप मौसम की जानकारी प्राप्त कर सकती हैं. इससे आप अपने डेस्टिनेशन के लिए सही पैकिंग कर पायेंगी. इससे आप भविष्य के साथ साथ करेंट डेट के मौसम का हाल भी जान सकती हैं. इससे आपको घूमने-फिरने में दिक्कत नहीं होगी.

5. गूगल गौग्ल्स

ट्रेवलिंग के दौरान तस्वीरें लेना किसको पसंद नहीं होता? ये ऐप आपके लिए परफेक्ट है. इससे न सिर्फ आप पिक्चर ले सकती हैं पर उस पिक्चर के बारे में पूरी जानकारी भी हासिल कर सकती हैं.

6. लाइवट्रेकर

इस ऐप से एक डीजिटल जर्नल तैयार हो जाता है. आप जहां जहां जायेंगी उस सफर का रूट बन जाएगा. वैसे भी अपने सफर को फिर से जीने का भी अलग ही मजा है. यह एक तरह की डीजिटल ट्रेवल डायरी बन जाएगी.

रोंगटे खड़े कर देगी शार्ट फिल्म ‘चटनी’

आपने अभी तक कई शॉर्ट फिल्में देखी होंगी लेकिन जिस शॉर्ट फिल्म की बात हम कर रहे हैं उसे जब आप देखेंगे तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. हम बात कर रहे हैं हाल ही में आई टिस्का चोपड़ा की शॉर्ट फिल्म ‘चटनी’ की, जो सोशल मीडिया और यूट्यूब पर खूब धमाल मचा रही है.

फिल्म का एक ही मकसद है कि भोंदू और सीधी सी दिखने वाली औरतों को बाहरी व्यक्तित्व से मत आंकिए. गाजियाबाद की होने के बावजूद चतुर ग्रहस्थन पति पर डोरे डालने वाली तितलियों के पर कतर डालती है और तितली फड़फड़ाती रह जाती है.

फिल्म की कहानी एक ऐसी गृहिणी के इर्द-गिर्द घूमती है जिसकी एक परिचित चंचला उसके पति पर डोरे डालने की कोशिश में है. लेकिन अपने पति को उस ब्यूटी क्वीन के चंगुल से बचाने के लिए वो घरेलू औरत जो काम करती है उससे ना सिर्फ उस चंचला के होश उड़ जाते हैं बल्कि आप भी जब ये देखेंगे तो खौफजदा हो जाएंगे.

कुल मिलाकर इस शॉर्ट फिल्म में वो है जो आपने आज तक नहीं देखा होगा. क्लाईमेक्स तक आते आते ये फिल्म आपको बांधे रखती है और फिर अंत में जो होता है वो आप सोच भी नहीं सकते.

चंद घंटों में ही ये फिल्म खूब वायरल हो चुकी है. फिल्म को काफी सराहा जा रहा है और टिस्का चोपड़ा को भी अपने निभाए रोल के लिए खूब तारीफें मिल रही हैं. 48 घंटों में ही ये फिल्म 5 मिलियन से ज्यादा लोग देख चुके हैं. कह सकते हैं कि इस फिल्म के जरिए टिस्का ने एक ऐसा धमाका किया है जिसकी गूंज काफी वक्त तक रहेगी.

तो इसलिए अक्षय को मिली ‘2.0’

सुपर स्टार रजनीकांत की फिल्म 2.0 का लुक रिलीज होने के बाद से सुर्खियों में है. इस फिल्म में अक्षय कुमार का लुक आकर्षण का केंद्र बन गया है.

जी हां, इस फिल्म में उनका लुक एक मॉन्सटर वाला है. मॉन्सटर के लुक में आने के लिए अक्षय को 3-4 घंटे मेकअप करने में लग जाते हैं. अक्षय खुद कहते हैं कि यह उनकी फिल्म का चैलेंजिंग रोल है. साथ ही इस फिल्म के लिए उन्होंने जितना मेकअप किया है उतना तो उन्होंने अपने 25 साल के करियर में भी नहीं किया.

लेकिन क्या आपक जानते हैं कि यह रोल अक्षय से पहले कई एक्टर को ऑफर किया गया था. लेकिन हर एक्टर ने किसी ना किसी वजह से इस रोल को करने से मना कर दिया था. अंत में यह ऑफर खिलाड़ी कुमार के पास पहुंचा और उन्होंने इस चैलेंजिंग रोल के लिए हां कह दिया. बता दें कि यह रोल बॉलीवुड, टॉलीवुड और हॉलीवुड के कई पॉपुलर चेहरों के पास गया था.

खबर है कि यह रोल सबसे पहले कमल हासन के लिए ही बनाया गया था. लेकिन साउथ इंडस्ट्री में कमल हासन और रजनीकांत के बीच कॉम्पिटीशन है. ऐसे में अपने कॉम्पिटीटर की फिल्म में विलेन का बनने का रिस्क कमल हासन नहीं लेना चाहते थे. उन्होंने यह फिल्म करने से मना कर दिया.

इसके बाद यह रोल बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान के पास गया. लेकिन आमिर उस समय दंगल में बिजी थे.

फिर ये रोल साउथ के दुसरे सुपर स्टार विक्रम के पास आया लेकिन उन्हें भी इस रोल के लिए मना कर दिया.

बाद में शंकर ने हॉलीवुड में चांस लेने की सोची वहाँ अर्नोल्ड श्वाजनेगर को कहानी सुनाई. अर्नोल्ड ने विलेन का किरदार के लिए हामी भर दी लेकिन उनकी फीस इतनी ज्यादा थी कि शंकर उन्हें अफॉर्ड नहीं कर पाए. इतना ही नहीं शंकर ने रितिक से भी इस रोल के लिए बात की थी. लेकिन रितिक ने डेट का बहाना बना कर यह ऑफर ठुकरा दिया.

फाइनली डॉ रिचर्ड्स का रोल अक्षय कुमार की झोली में आया. और अब तो रजनीकांत ने भी मान लिया है कि ‘2. 0’ के असली हीरो अक्षय कुमार ही हैं.

छोटे पर्दे पर एंट्री कर रही हैं ऐश्वर्या!

ऐश्वर्या राय के फैन्स के लिए खुशखबरी है. ऐश को जल्द ही एक रिएलिटी शो की जज बनने वाली हैं. स्टार प्लस पर बहुत जल्द ही एक नया शो ‘दिल है हिंदुस्तानी’ लॉन्च होने जा रहा है. इस शो की तैयारी जोर-शोर से चल रही है.

खास बात यह है कि इस शो से रैपर बादशाह भी छोटे पर्दे पर एंट्री करने जा रहे हैं. वो करण जौहर और संगीतकार शेखर के साथ शो के जज बनने वाले हैं. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस शो के लिए ऐश्वर्या राय बच्चन को भी अप्रोच किया गया है.

इस पूरे मामले पर करण जौहर ने ऐश्वर्या से बात भी की है, लेकिन अब तक ऐश की तरफ से पूरी तरह से रजामंदी नहीं मिली है. अब देखना होगा कि बड़े पर्दे पर अपनी अदाओं से सबको लुभाने वाली ऐश्ववर्या छोटे पर्दे के लिए हामी भरती हैं या नहीं.

सही समय पर शुरू करें रिटायरमेंट प्लैनिंग

हमारे देश में अधिकतर कंपनियों में रिटायरमेंट की आयु 58 वर्ष है. कुछ लोग अर्ली रिटायरमेंट भी ले लेते हैं. आयु और रिटायरमेंट के हिसाब से रिटायरमेंट प्लैनिंग करनी चाहिए. इन सबके साथ ही बढ़ती महंगाई भी है, जिसके हिसाब से ही रिटायरमेंट प्लैनिंग करनी चाहिए.

आप जितनी जल्दी रिटायरमेंट प्लैनिंग शुरू करेंगे ये आपके लिए उतना ही फायदेमंद होगा. निवेश भी रिटारमेंट को ध्यान में रख करें.

ऐसे करें रिटायरमेंट प्लैनिंग-

– निवेश से पहले रिस्क का ध्यान रखें, ताकि रिटायरमेंट प्लैनिंग में दिक्कतें न आयें.

– अपनी सेविंग का 60 प्रतिशत तक रिटायरमेंट फंड के तौर पर बचाकर रखें.

– सेविंग के लिए अलग अकाउंट बनायें, और जब तक जरूरत न हो इस अकाउंट में जमा पैसों को न निकालें.

– बोनस, स्पेशल अलाउंस और किसी भी तरह की एकस्ट्रा इनकम को सेविंग अकाउंट में ट्रांसफर करें.

– क्रेडिट कार्ड का सारा अमाउंट समय से पहले ही पे करें.

– कहीं भी पैसे लगाने से पहले अच्छे से जानकारी हासिल कर लें क्योंकि पैसे डूबने से आपके प्लैनिंग पर असर पड़ सकता हैं.

– जल्दी-जल्दी जॉब चेंज नहीं करने में ही भलाई है.

– बच्चों की पढ़ाई के लिए लोन ज्यादा अच्छा ऑपशन है. इससे रिटायरमेंट फंड पर असर नहीं पड़ेगा.

– अगर आप फाइनेंश मैनेज नहीं कर पा रही हैं तो आप किसी फाइनेंशियल एक्सपर्ट की मदद ले सकती हैं.

डिप्रेशन से होती हैं ये अजीब बीमारियां

लगातार मानसिक दबाव या तनाव कई तरह के मानसिक विकारों को जन्म देता है, अनेक शारीरिक समस्याओं का कारण बनता है, जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, थायराइड आदि, इसके बारे में हम आपको विस्‍तार से जानकारी देते हैं.

डिप्रेशन के कारण बीमारियां

हमें दैनिक कार्यों में अनेक प्रकार के तनाव झेलने पड़ते हैं. खासतौर पर वर्तमान युग की तेज रफ्तार जिन्दगी में हमें रोज अनेकों समस्याओं से जूझना पड़ता है और इसके कारण तनाव होता है. लगातार मानसिक दबाव या तनाव अनेक मानसिक विकारों को जन्म देता है, अनेक शारीरिक समस्याओं का शिकार बनता है. जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, थायरोइड इत्यादि. चलिये जानें डिप्रेशन के कारण कौंन कौंन सी बीमारियां हो सकती हैं-

कैंसर

कैंसर के लगभग 60 प्रतिशत रोगी डिप्रेशन से भी ग्रस्त होते हैं क्योंकि अवसाद के कारण इक्यूनसिस्टम बदल जाता है. किसी भी व्यक्ति के अवसाद ग्रस्त होने के पीछे मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आनुवांशिक तथा जैव वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं. अवसाद से पीडि़त रोगी का उपचार आमतौर पर सायकोथैरेपी के द्वारा किया जाता है.

मोटापा

एक अध्ययन में पाया गया है कि बचपन के अवसाद का अगर जल्द इलाज और रोकथाम कर लिया जाए, तो वयस्क होने पर दिल की बीमारी का खतरा कम हो सकता है. अवसादग्रस्त बच्चों के मोटे, निष्क्रिय होने और धूम्रपान करने की संभावना होती है जो किशोरावस्था में ही दिल की बीमारियों के कारण बन सकते हैं. अमेरिका की युनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिडा में मनोविज्ञान में यह शोध हुआ.

डिमेंशिया

नए शोध से पता चला है कि अवसाद से ग्रस्त लोगों में डिमेंशिया होने का ख़तरा सामान्य से दो गुना अधिक हो सकता है. डिमेंशिया से इंसान की मानसिक क्षमता, व्यक्तित्व और व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है. जिन लोगों को डिमेंशिया होता है उनकी याद्दाश्त पर असर पड़ता है. अमरीकन पत्रिका न्यूरोलॉजी में ये तथ्य प्रकाशित हुए.

समय से पहले बुढ़ापा

मानसिक बीमारी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (पीटीएसडी) से पीड़ित लोगों को समय से पहले बुढ़ापा आने का खतरा होता है. नए शोध में यह बात सामने आई है. पीटीएसडी कई मानसिक विकारों जैसे गंभीर अवसाद, गुस्सा, अनिद्रा, खान-पान संबंधी रोगों तथा मादक द्रव्यों के सेवन से जुड़ी व्याधि है. सैन डिएगो स्थित युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में साइकेट्री के प्रोफेसर दिलीप वी. जेस्ते व उनके साथियों ने पीटीएसडी में समय से पूर्व बुढ़ापे पर प्रकाशित प्रासंगिक अनुभवजन्य अध्ययनों की व्यापक समीक्षा की.

दिल की बीमारियां

एक अध्ययन में पाया गया है कि बचपन के अवसाद का अगर जल्द इलाज और रोकथाम कर लिया जाए, तो वयस्क होने पर दिल की बीमारी का खतरा कम हो सकता है. अवसादग्रस्त बच्चों के मोटे, निष्क्रिय होने और धूम्रपान करने की संभावना होती है जो किशोरावस्था में ही दिल की बीमारियों के कारण बन सकते हैं

मधुमेह

अवसाद की समस्या मधुमेह की ओर इशारा करती है. कई सालों से यह माना जाता था कि अवसाद की समस्या की जड़ मधुमेह है. हाल के कई शोधों में यह बिंदु सामने आया कि अवसाद से समस्या जटिल होती है. विशेषज्ञों का मानना है कि मधुमेह के पीछे चिंता और तनाव का ही हाथ होता है. यदि कोई व्यक्ति अवसाद ग्रस्त है तो उसे मधुमेह होने की संभावना सामान्य व्यक्ति के मुकाबले दुगनी होती है.

बहरेपन का खतरा अधिक

हाल ही में हुए एक शोध में बहरेपन से संबंधित एक नई जानकारी मिली है. इस शोध की मानें तो अवसाद में रहने वाले लोगों को बहरेपन का खतरा ज्‍यादा होता है.  अमेरीका में हुए इस शोध में शोधकर्ताओं ने 18 साल व इससे अधिक उम्र के पुरुषों और महिलाओं पर अध्ययन किया. इसका असर पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर अधिक दिखा.

आप भी दिख सकती हैं फैशनेबल

फैशनेबल दिखने के लिए जरूरी है कि सबसे पहले यह जान लिया जाए कि ट्रेंड में क्या है. खूबसूरत दिखना और फैशनेबल दिखने में बहुत अंतर है. फैशनेबल दिखना है तो आपको हर मौसम के ट्रेंड के बारे में पता होना चाहिए.

 गर्मियों में एक तरफ जहां हल्के रंग के कपड़े आंखों और शरीर को सुहाते हैं वहीं सर्दियों में चटख रंग पसंद आते हैं. महिलाओं को ऐसे कपड़ों की जरूरत होती है जो फैशनेबल होने के साथ-साथ आरामदायक भी हों. आइए जानें खुद को फैशनेबल बनाने के लिए क्या किया जा सकता है.

सही रंगों का करें चुनाव

सही कपड़े चुनने के बावजूद हम अक्‍सर सही रंग का चुनाव नहीं कर पाते हैं. मौसम के हिसाब से रंगों का चुनाव न केवल आपको, दूसरों को भी सुकून देगा.

स्कर्ट में है दम

अगर आप फैशनेबल दिखना चाहती हैं तो मौसम के हिसाब से स्कर्ट का चुनाव करना अच्छा विकल्प हो सकता है. गर्मियों में घुटनों तक लंबी स्कर्ट खासा ट्रेंड में रहती है. दुबले-पतले लोग ज्यादा घेर वाली और मोटे लोग पेंसिल फिट स्कर्ट पहनें. स्कर्ट फॉर्मल है या डेली वीयर, इसके हिसाब से टॉप का चुनाव करें. एथेनिक प्रिंट वाली स्कर्ट, काला या सफेद टॉप, बांधनी दुपट्टा और कोल्हापुरी चप्पल से आप फैशन दिवा बना सकती है.

स्टोल ना भूलें

बाहर निकलते समय स्कार्फ या स्टोल जहां धूप, धूल-मिट्टी से बचाता है, वहीं उनका फैशन स्टेटमेंट भी होता है. कपड़े का यह छोटा सा टुकड़ा जहां धूप से सुरक्षित रखता है, वहीं बालों को भी बचाता है, जिससे बाल रूखे नहीं होते. बाजार में तरह-तरह के फैशनेबल स्कार्फ मौजूद हैं जिसे आप आसानी से खरीद सकती हैं.

फुट वियर

फुटवियर भी फैशनेबल दिखने में काफी मदद करते हैं. तरह-तरह के सैंडल स्टाइलिश फ्लीप-फ्लॉप, रंग-बिरंगे कैनवस जूते और ब्राइट स्लीपर ट्रेंडी लुक के साथ सुकून भी देते हैं.

सन ग्लासेज

न सिर्फ गर्मियों में बल्कि सर्दियों में भी सन ग्लासेज बहुत मददगार होते हैं. धूप-ठंड से बचाने के साथ-साथ ये आपको स्टाइलिश लुक भी देते हैं.

जूट बैग को अपनाएं

यूं तो लेदर बैग को सबसे अच्छा माना जाता है पर आजकल इको फ्रेंडली चीजें ट्रेंड में हैं. लिहाजा जूट और कपड़े के बैग लोगों को काफी पंसद आ रहे हैं. इको फ्रेंडली होने के साथ ये सस्ते और मजबूत भी होते हैं. आप चाहें तो दो-तीन अलग-अलग तरह के बैग खरीद लें और बदल-बदल कर इस्तेमाल करें. इन्हें आसानी से घर में धोया भी जा सकता है.

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