अमीरी की जय जय कार

नेताजी के  झांसों में हम पहले आ जाते थे. उन के खोखले वादों को सच सम झ लेते थे. पर आजकल सभी कहते हैं कि आज के वोटर बहुत सम झदार हो गए हैं. तभी शायद वे ज्यादातर करोड़पति उम्मीदवारों को ही जिताते हैं. रिसर्च के अनुसार आप का 50 मिलियन या उस से ज्यादा का मूल्य है तो आप के 75 गुना चांसेज और बढ़ जाते हैं कि आप लोक सभा के चुनाव जीतें. विश्वास नहीं होता तो आंकड़े पढ़ लीजिए- 2009 में लोक सभा में जहां 300 करोड़पति थे, वहीं 2014 लोक सभा में बढ़ कर 442 हो गए हैं.

बात भी ठीक है, जो बंदा करोड़ों में खेल रहा हो उसी का दिमाग औडी की रफ्तार पर चलता है. आखिर उसी को ही तो सोचना है कि अपनी ब्लैक मनी को कैसे इनकम टैक्स वालों से बचाया जाए? बैंक के अकाउंट की ऐंट्रीज को कैसे आगेपीछे किया जाए और कैसे उस की कमाई के पीछे लगातार जीरो की संख्या बढ़ती रहे? एक आम आदमी का दिमाग क्या खाक चलेगा, जो सारा दिन नौकरी कर के शाम को आलू खरीद कर सब्जी बना कर खुश हो जाता हो और चैन की नींद सो जाता हो. उस की तो सब से बड़ी खुशी तब होती है जब 100-200 रुपए गैस सिलैंडर की सब्सिडी उस के अकाउंट में आ जाती है.

स्कैम तो दिल बहलाने के तरीके हैं

किसी भी राज्य की आर्थिक स्थिति इस बात से जज होती है कि उस के नुमाइंदे अमीर हो रहे हैं कि गरीब. अगर ज्यादा करोड़पति जीतने वाली पार्टी में हों तो फिर सोचो कि बहती गंगा में सभी ने हाथ धो लिए.

ऐसे लीडर्स को बिजनैस स्कूलों का रोल मौडल ले कर चलना चाहिए, जो 5 साल रूल कर के अपनी पूंजी दोगुना या तिगुना कर लेते हैं. नेता तो नेता बीजेपी की छत्रछाया में योग गुरु बाबा रामदेव भी एक नामी बिजनैसमैन हो गए, क्योंकि उन के बिजनैस का टर्नओवर करोड़ों के मुनाफे में गया.

लोगों की सेवा करतेकरते बेचारे हमारे लीडर्स थक कर एकाध स्कैम में हिस्सा ले ही लेते हैं. आखिर 5 सालों में कुछ अपना भी बेड़ा पार कर लें तो इस में क्या हरज है. स्कैम तो दिल बहलाने के तरीके हैं इन के. आज तक हम ने किसी भी लीडर को किसी भी स्कैम का आरोपी घोषित होने के बावजूद यह कभी नहीं सुना कि बेचारा तबाह हो गया या बेचारे को बड़ा सदमा लगा. किसी भी लीडर का कैसा भी घोटाला कर के राजनीतिक कैरियर खत्म नहीं हुआ होगा.

सिर्फ सपने ही दिखाएंगे

सोचने वाली बात यह है कि अगर हमारे लीडरों की जेबें भरी रहेंगी तभी तो वे अपने घर अपने चमचों का लंगर जारी रख सकेंगे. और पेट भरे होंगे, तभी तो अपने लीडर के जिंदाबाद के नारे लगेंगे. खाली पेट तो मुंह से सिर्फ यही निकल सकता है, ‘हाय रोटी, हाय रोटी, हाय रोटी.’

जो चाहे कहिए हम सभी को सफेद स्टार्च वाले कुरतापायजामे में 100-200 समर्थकों के साथ बड़ी गाड़ी से उतरते हुए, उंगलियों में बेशकीमती अंगूठियां पहने हुए और हाथ में महंगे स्मार्ट फोन पकड़े हुए नेता ही अच्छे लगते हैं. तभी वे जब आप की तरफ रुख करते हैं तो आप विनम्रता से हाथ जोड़ कर, पीठ  झुका कर उन्हें सलाम करते हैं. ऐसे स्मार्ट लीडर्स से आप को आस होती है कि ये कुछ करेंगे. यही अब आप को और देश को बचाएंगे. अगर वह चाय वाले से पीएम बन सकता है तो आप भी जिंदगी के रास्ते पर आगे जा सकते हैं. दूसरी तरफ जो साइकिल पर ांडा टांग कर अपना प्रचार खुद ही कर रहा हो वह किसी और का क्या खयाल रख पाएगा? जब उस का अपना गुजारा ही मुश्किल से हो पा रहा है तो वह आप को क्या सपने दिखाएगा?

वोट सिर्फ अमीरी को ही

अत: जिस देश में इनसानियत, काबिलीयत, ईमानदारी, देश सेवा से ज्यादा पैसे का बोलबाला हो, तो वोटर बेचारा भी तो हमेशा अमीरी को ही वोट देगा.

एक चुनाव के उम्मीदवार ने अपने सीए से कहा कि उस की जायदाद और पूंजी को 10 करोड़ घोषित कर दे. सीए ने परेशान होते हुए कहा, ‘‘सर, पर आप के पास तो 10 लाख भी नहीं हैं.’’ इस पर उम्मीदवार बोला, ‘‘मैं ऐडवांस में ही सच बोल रहा हूं. अगर मैं जीत गया तो 10 करोड़ तो बना ही लूंगा.’’

आंग सान सू की: जीतने तक हार नहीं मानी

आंग सान सू की का जन्म 19 जून, 1945 में हुआ था. उन के पिता आंग सान बर्मा की स्वाधीनता सेना में कमांडर थे. मां रिवन की रंगून जनरल अस्पताल में नर्स थीं. आंग सान इन की तीसरी संतान थीं.

आंग सान के पिता बर्मा को स्वतंत्रता दिलाने वाले खास व्यक्ति थे. बर्मा की जनता के लिए वे सदैव राष्ट्रपिता रहेंगे. 1947 में जब आंग सान सू की मात्र 2 वर्ष की थीं तब राजनीतिक षड्यंत्र की वजह से उन के पिता की हत्या कर दी गई थी.

1960 में आंग सान दिल्ली आईं और लेडी श्रीराम कालेज से बी.ए. की डिगरी ली. फिर औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से फिलौस्फी और राजनीतिशास्त्र व अर्थशास्त्र में डिगरी ली.1972 में उन का विवाह माइकल एरिस से हुआ.

संघर्ष की शुरुआत

घर के कामों से बचे वक्त को आंग सान लेखन में लगाती थीं. हिमालय स्टडीज पर वे पति की मदद भी करती थीं. 1988 में उन की मां काफी बीमार हो गईं. उन के जीवन का यह निर्णायक मोड़ था. अपने पति व बच्चों को छोड़ कर वे एक ऐसी राह चल पड़ीं जो ऊबड़खाबड़ व पथरीली थी. उन्होंने तानाशाही के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. सैनिक प्रशासन उन्हें दबाने की कोशिश कर रहा था. उन्हें तरहतरह से डरा रहा था. मगर बिना किसी खौफ के वे तानाशाही के खिलाफ लड़ती रहीं. सैनिक सरकार ने बिना वजह बताए उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया.

एक बार एक राजनीतिक रैली के वक्त एक सैनिक ने उन की तरफ राइफल तान दी तो वे तन कर खड़ी हो गईं. बोलीं, ‘‘कर लो जो भी जुल्म करना चाहते हो, मगर मुझे मेरे मकसद से नहीं हटा पाओगे.’’

इस घटना के 3 माह के बाद आंग सान सू की अपने घर में छात्रों के एक समूह को संबोधित कर रही थीं. तभी सैनिकों ने उन के घर में घुस कर छात्रों को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया तथा आंग सान सू की को उन्हीं के घर में नजरबंद कर दिया. इस अत्याचार के खिलाफ आंग सान सू की ने भूख हड़ताल कर दी. भूख हड़ताल के वक्त उन के दोनों बेटे उन्हीं के पास रहने आ गए. बाद में उन के पति भी भूख हड़ताल के तीसरे दिन रंगून पहुंच गए. भूख हड़ताल से कोई बड़ा हादसा न हो जाए, इस डर के चलते सरकार ने छात्रों को जल्द ही रिहा कर दिया.

सरकार के सामने समस्या थी कि चुनाव सिर पर थे. आंग सान सू की नजरबंद थीं. सरकार को यह गलतफहमी थी कि उन की गैरमौजूदगी में विपक्ष के लोग टूट जाएंगे. मगर आंग सान की नजरबंदी के बावजूद उन की पार्टी संसद में 82% सीटें जीत गई. तब भी सेना ने कहा कि वह आंग सान को सत्ता नहीं देंगे. इस ज्यादती से कई देशों के विरोधी स्वर उभरे. आंग सान के इस महान काम को देख कर अक्तूबर, 1990 को उन्हें ‘राफ्तों ह्यूमन राइट्स पुरस्कार’ से नवाजा गया. इस के अगले साल उन्हें यूरोपीय पार्लियामैंट ने ‘सखारोव ह्यूमन राइट्स पुरस्कार’ से नवाजा.10 जुलाई, 1991 को नोबेल समिति ने उन्हें शांति पुरस्कार देने की घोषणा की.

बाद में म्यांमार की सैनिक सरकार ने आंग सान के सामने यह शर्त रखी कि यदि वे राजनीति और बर्मा छोड़ कर चली जाएं तो वह उन्हें आजाद कर देगी. मगर आंग सान अपने देशवासियों की उन उम्मीदों को तोड़ कर नहीं जा सकती थीं जो उन्हें उन से थीं. आंग सान ने नोबेल पुरस्कार की रकम बर्मी लोगों के स्वास्थ्य व शिक्षा के लिए बनाई गई एक ट्रस्ट को दे दी.

हिम्मत नहीं हारी

जब उन के बच्चे छोटे थे और मां को लकवा मार गया था तब वे घरबार छोड़ मां के पास चली गई थीं. उन की खूब सेवा की. इस के बाद जब वे बर्मा लौटीं तो उस समय क्रूर शासन के खिलाफ लोगों में विद्रोह फूट रहा था. इसी दौरान आंग सान ने आम चुनाव की मांग रखी. अपनी जीत निश्चित समझ शासन ने उन की यह मांग स्वीकार कर ली. अब सरकार का दमनचक्र शुरू हो गया.

सरकार ने 4 से ज्यादा लोगों के एक स्थान पर एकत्र होने पर पाबंदी लगा दी व बिना कारण बताए वह किसी को भी जेल में डाल सकती है, इस बात का भी ऐलान कर दिया. तब आंग सान सू की ने ‘नैशनल लीग फौर डैमोक्रेसी’ दल का गठन किया. वे खुद इस की महासचिव बनीं. उन का कहना था कि वे अहिंसा की पुजारी हैं और हिंसा के खिलाफ उन की लड़ाई जारी रहेगी. चुनाव में उन्होंने भारी मतों से विजय हासिल की. उन्होंने दर्द भरे दिनों में ‘फ्रीडम फ्रौम फीयर’ किताब भी लिखी.

आंग सान सू की को कई बार बंदी बनाया गया और कई बार रिहा किया गया. देश में कहीं भी वे आ जा नहीं सकती थीं. एक बार सरकार ने इन की सभा पर हमला किया और इन पर हिंसा भड़काने का इलजाम लगा दिया गया. इन्हें जेल में बंद कर दिया गया. इन्हें पति व बेटों से मिलने की इजाजत भी न थी. पति कैंसर से पीडि़त थे. 1999 में पति की मृत्यु हो गई पर उन्हें पत्नी से नहीं मिलने दिया.

2012 में चुनाव में भाग ले 45 में से 43 सीटें जीत कर इन्होंने साबित कर दिया कि जनता का इन पर कितना भरोसा है. 24 सालों के बाद वे विदेश गईं. अमेरिकी सरकार ने उन्हें अपनी संसद के स्वर्ण पदक से नवाजा. यह वहां का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है.

लंबे संघर्ष के बाद अपने देशवासियों को उन का मूलभूत अधिकार दिला कर आंग सान सू की ने यह साबित कर दिया कि सच की सदैव जीत होती है.

उफ्फ! क्या पहनूं?

सुधा सुबह से ही परेशान थी. उसे शाम को अपनी बैस्ट फ्रैंड के यहां फैस्टिव पार्टी में जाना था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कौन सी ड्रैस पहन कर पार्टी में जाए. ऐसा नहीं कि उस के वार्डरोब में ड्रैसेज की कमी थी. वार्डरोब उन की खचाखच भरा था. इस के बावजूद वह चयन नहीं कर पा रही थी कि क्या पहन कर जाए.

किसी खास पार्टी का इनविटेशन मिलने या त्योहार के मौके पर मन खुशी से झूम उठता है. पर उस वक्त सारा मूड खराब हो जाता है जब पहनने के लिए कोई ड्रैस पसंद नहीं आती. उस वक्त अपनेआप पर गुस्सा आता है कि किसी खास वक्त के लिए 1-2 ड्रैसेज अलग क्यों नहीं रखीं.

यदि ऐसी प्रौब्लम से आप का भी वास्ता पड़ता है तो परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि 90% महिलाएं या युवतियां ऐसी प्रौब्लम से रूबरू होती हैं. अब तक जो हुआ सो हुआ. आगे से इन कुछ बातों का यदि ध्यान रखेंगी तो अपनी इस प्रौब्लम से बच जाएंगी:

वार्डरोब ब्लंडर्स से बचें

अधिकतर महिलाएं अपने वार्डरोब को ठीक नहीं रखतीं. उन का वार्डरोब उथलापुथला होता है, जबकि उसे अच्छी तरह सजा कर रखना चाहिए.

निरीक्षण करें

समय-समय पर वार्डरोब का निरीक्षण करें. निरीक्षण के दौरान कोई ड्रैस आप को अनफिट, आउटडेटेड या कम स्टाइलिश लगे, जिसे पहनने का मन न हो तो उसे वार्डरोब से तुरंत निकाल दें. ऐसी ड्रैसेज खास मौके के लिए ड्रैस का चयन करने में परेशानी पैदा करती हैं.

मोह न करें

कई महिलाएं अनफिट, आउटडेटेड, अनकंफर्टेबल या कम स्टाइलिश ड्रैस इसलिए वार्डरोब में जमा कर के रखती हैं, क्योंकि उन के साथ कुछ खास बातें जुड़ी होती हैं जैसे यह काफी महंगा है. यह ड्रैस नाना ने दी थी, इसे सिंगापुर से खरीद कर लाई थी, इसे गोल्डन नाइट को पहना था. इन सब बातों को भूल कर अपने वार्डरोब से इन्हें निकाल दें.

अलबम बनाएं

आप के पास कितनी ड्रैसेज हैं, किस स्टाइल की हैं, किस कलर या प्रिंट की हैं, यह आप को याद नहीं रहता. पर अब परेशान होने की जरूरत नहीं है. इस के लिए आप एक अलबम बना लें. मोबाइल में कैमरा होने से आप अपनी हर ड्रैस का फोटो खींच कर उसे मोबाइल में सेव कर रख सकती हैं. इन्हें देख कर खास मौके के लिए ड्रैस का चयन कर सकती हैं. जब आप ड्रैस खरीदने मार्केट जाएं तो अलबम देख कर उस से डिफरैंट स्टाइल, कलर, प्रिंट वाली ड्रैस खरीद सकती हैं.

वार्डरोब की देखभाल

वार्डरोब में कई खाने होते हैं. कैजुअल ड्रैस, पार्टी ड्रैस, हैवी ड्रैस, औफिस ड्रैस आदि को अलगअलग खाने में रखें ताकि वक्त के हिसाब से ड्रैस ढूंढ़ने में परेशानी न हो.

होमवर्क कर लें

शौपिंग पर जाने से पहले अच्छी तरह होमवर्क कर लें. हो सके तो यह नोट कर लें कि मार्केट जा कर आप किस स्टाइल, कलर, कितने बजट में आउटफिट खरीदना चाहती हैं. यह भी खयाल रखें कि आप किस तरह का आउटफिट यानी कैजुअल, औफिशियल, हैवी या पार्टीवियर खरीदना चाहती हैं.

नंबर औफ ड्रैसेज

वार्डरोब में नंबर औफ ड्रैसेज बढ़ाने के बजाय क्वालिटी पर विशेष ध्यान दें. अकसर महिलाएं क्वालिटी देखने के बजाय संख्या देखने लगती हैं. उन के वार्डरोब में ड्रैसेज भरी रहती हैं पर खास अवसर के लिए उन के पास ड्रैस नहीं होती. कैजुअल, औफिशियल, हैवी या पार्टी ड्रैस के नंबर का भी ध्यान रखें. ऐसा न हो वार्डरोब में हैवी और पार्टी ड्रैसेज की संख्या अधिक हो और कैजुअल, औफिशियल ड्रैसेज की कम हो.

ड्रैस की फिटिंग

डै्रस कितनी भी कीमती क्यों न हो यदि उस की फिटिंग सही नहीं है तो वह अच्छी नहीं लगती है. इस के लिए बौडी के अनुरूप ड्रैस पसंद करें. तभी वह फबती है जो ड्रैस किसी दूसरी पर अच्छी लग रही हो वह आप पर भी अच्छी लगेगी यह जरूरी नहीं है. अत: खुद पहन कर ट्राई करें. अगर वह आप की बौडी पर फबे तभी उसे खरीदें.

किसी ड्रैस को यह सोच कर न खरीदें कि यह तो एक बार ही पहननी है. ड्रैस किसी भी अवसर के लिए खरीदें पर उसे पहन कर ही खरीदें. कहीं ऐसा न हो खरीद कर लाने के बाद पसंद न आने की वजह से वार्डरोब में ही पड़ी रहे.

कलर्स का चयन

हर कलर की ड्रैस हर किसी पर फबेगी ऐसा जरूरी नहीं है. अत: ड्रैस को पहन कर नैचुरल लाइट में खुद को अच्छी तरह देख लें. जिस कलर की ड्रैस फेस पर ग्लो दे. उसी ड्रैस को पसंद करें.

ऐक्सक्लूसिव ड्रैस

आजकल ऐक्सक्लूसिव ड्रैस का जमाना है. इसलिए किसी की नकल न करें. खुद का अपना स्टाइल बनाएं. टीवी सीरियल या किसी हीरोइन की कौपी न करें. अपनी ऐज, प्रोफेशन व कौंप्लैक्शन के अनुसार ड्रैस का चुनाव करें.

विंडो शौपिंग

समय निकाल कर बीचबीच में विंडो शौपिंग करते रहना चाहिए. विंडो शौपिंग के द्वारा ट्रैंड व रेट के बारे में आसानी से पता चल जाता है. साथ ही आउटडेटेड ड्रैस वार्डरोब से निकालने में भी मदद मिलती है.

ड्रैस की देखभाल

डेलीवियर को अलग से रखें. उन की सफाई पर ध्यान दें. हैवी व पार्टीवियर को ड्राईक्लीन करवाएं. किसी ड्रैस की कहीं से भी सिलाई उधड़ी है तो तुरंत सिल लें. जरी या मोती निकल जाने पर उसे सही कर लें. ढेर सारी ड्रैसेज को एक के ऊपर एक न रखें. बनारसी व कोसा की साड़ियों की तह बदलती रहें.

वार्डरोब में कपड़े रखते समय उन्हें उचित स्थान पर रखें. बाहर से लौट कर कपड़ों को अच्छी तरह झाड़ लें. फिर हैंगर में टांग कर रख दें. पसीना सूखने के बाद ही वार्डरोब में रखें. सेफ्टी के लिए उन में नैप्थेलिन की गोलियां या ओडोनील जरूर रखें.      

“प्रेग्नेंट ना होने के शर्त पर भड़क उठी थी”

अगर कोई आपको कहे कि आपके प्रेग्नेंट होने से आपकी नौकरी जा सकती है तो आप निश्चित ही चौकेंगी. लेकिन ऐसा हुआ है, वो भी किसी आम इंसान के साथ नहीं बल्कि बॉलीवुड स्टार प्रियंका चोपड़ा के साथ. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर प्रियंका प्रेग्नेंट कब हो गईं. तो जनाब हम आपको बताते हैं पूरा माजरा.

दरअसल एक चैनल को दिए इंटरव्यू में प्रियंका ने यह खुलासा किया है, “करीब दो साल पहले एक बड़ी कम्पनी ने मुझे अप्रोच किया था, जब मैं कॉन्ट्रैक्ट साइन करने गई तो कॉन्ट्रैक्ट का एक हिस्सा पढ़कर मुझे बेहद गुस्सा आया. कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक अगर मैं प्रेग्नेंट हो गई तो कम्पनी कॉन्ट्रैक्ट तोड़ देगी. मैंने उनसे पूछा कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं, आपको मेरे बीमार पड़ने, ओवरवेट होने से कोई परेशानी नहीं है लेकिन मेरे प्रेग्नेंट होने से आपको तकलीफ है.”

प्रियंका ने बताया, “उनका जवाब था कि प्रेग्नेंट होने के बाद मैं समय पर काम नहीं कर पाउंगी. जबकि मुझे प्रेगनेंसी में काम करने में कोई दिक्कत नहीं है. इस मुद्दे पर हमारी काफी बहस हुई और अंत में मैंने उनसे कहा कि अगर प्रेग्नेंट होने के बाद मैं काम नहीं कर पाती हूं तो आपके पास कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल करने का पूरा अधिकार है. लेकिन अगर आप के न चाहने के बावजूद भी मैंने प्रेग्नेंसी में काम कर लिया तो आपका यह कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने का मुझे भी पूरा हक होगा.”

दिल्ली के लोधी उद्यान की ऐतिहासिक यात्रा

दिल्ली, देश का वो शहर जो आधुनिकता के साथ-साथ इतिहास से अभी भी पूरी तरह जुड़ा हुआ है.150 से भी ज्यादा ऐतिहासिक स्मारकों को अपने में समेटे हुए यह शहर आज भी कई कहानियां बयां करता है. शहर के हर थोड़ी-थोड़ी दूर पर स्थित ये स्मारक भारत में प्राचीन शासकों के इतिहास को लोगों के सामने बखूबी प्रदर्शित करते हैं.

इन्हीं प्रसिद्ध स्मारकों में सम्मिलित हैं, लोधी उद्यान में बने हुए स्मारक. लोधी उद्यान दिल्ली के दक्षिण मध्य इलाके में बना सबसे प्रसिद्ध और सुन्दर उद्यान है. सफदरजंग के मकबरे से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस उद्यान को पहले लेडी विलिंगटन उद्यान कहा जाता था. यह उद्यान लगभग 90 एकड़ की जमीन पर फैला हुआ है.

लोधी उद्यान मूल रूप से एक गांव था जहां 15 वीं-16 वीं शताब्दी में सैय्यद और लोधी वंश के स्मारक स्थापित थे.

1. मुहम्मद शाह का मकबरा

मुहम्मद शाह सैयद वंश के तीसरे शासक थे, जिन्होंने सन् 1434 से 1444 तक शासन किया. इनका शासन काल इसलिए भी जाना जाता है क्योंकि उस दौरान सरहिंद के अफगान सूबेदार बहलोल लोधी ने पंजाब के बाहर अपने प्रभाव को बढ़ा लिया था. कहा जाता है कि यह लोधी उद्यान का सबसे पुराना स्मारक है.

2. बड़ा गुम्बद

मुहम्मद शाह के मकबरे से लगभग 300 मीटर की दूरी पर यह मकबरा स्थित है. इसमें जिसका शव दफन है, उसकी पहचान अब तक नहीं हो पाई है. पर यह स्पष्ट है कि वह सिकंदर लोधी के शासन काल में कोई उच्च पदाधिकारी था. बड़ा गुम्बद के साथ ही तीन गुम्बदों वाला मस्जिद भी स्थापित है.

3. शीश गुम्बद

वास्तुकला के हिसाब से इसमें दो मंजिला ईमारत की आकृति दिखाई पड़ती है. इस स्मारक के अंदर कई कब्रगाह स्थित हैं, जिनके बारे में भी इतिहास में अब तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. मगर ऐसा कहा जाता है कि इन्हें भी सिकंदर लोधी के ही शासन काल में बनाया गया था.

4. सिकंदर लोधी का मकबरा

बहलूल खान लोधी के शासन काल में ही राज्य में कई विद्रोही ताकतवर होने लगे थे. जिसके चलते उसके उत्तराधिकारी सिकंदर लोधी का अधिकांश समय जौनपुर के प्रांतीय शासक और अन्य सरदारों को दबाने में ही लगा रहा. सिकंदर लोधी का शासन काल सन् 1487 से 1517 तक था. सिकंदर लोधी का मकबरा उनके पुत्र द्वारा उनकी मृत्यु के बाद सन् 1517 में बनवाया गया. बाकि मकबरों की तरह यह भी एक अष्टकोणीय संरचना है जिसे हिन्दू रूपांकनों से सजाया गया है. यह संरचना डबल गुम्बद की तरह बनाई गई थी जिसे बाद में मुगलों द्वारा सुधारा गया.

5. अठपुला

सिकंदर लोधी के मकबरे से थोड़ी दूर पर ही, पूर्व में सात मेहराबों वाला एक पुल है जिसे नाले पर बनाया गया है. इस पुल में आठ खम्भे हैं इसलिए इसे अठपुला कहते हैं. इस पुल का निर्माण मुगल काल के दौरान बादशाह अकबर के शासन काल में नवाब बहादुर नामक व्यक्ति ने करवाया था.

इन स्मारकों के अलावा लोधी उद्यान में कई उद्यान भी हैं, जैसे रोज गार्डन, बैम्बू गार्डन, हर्बल गार्डन आदि. यहां आप इन ऐतिहासिक स्मारकों के साथ-साथ प्रकृति से भी पूरी तरह जुड़ पाएंगे. यहां पूरे साल कई अलग-अलग तरह के पक्षी भी देखने को मिलते हैं. खास कर की सर्दियों के दिनों में लोग सुबह और दिन के समय इस उद्यान की सैर करने ज्यादा आते हैं.

तो इस सर्दियों के मौसम में आप दिल्ली के इस खूबसूरत उद्यान की यात्रा करना मत भूलीएगा, जहां आप प्रकृति के साथ-साथ अपने आपको इतिहास से भी पूर्णतः जोड़ पाएंगे.

चुलबुल की रज्जो बनेंगी काजोल

‘दबंग’ और ‘दबंग 2’ के बाद सलमान खान कई सुपर हिट फिल्में दे चुके हैं, लेकिन उनके फैंस को चुलबुल पांडे का इंतजार है और अब आ रही है एक ऐसी खबर जो फैंस के इंतजार को राहत पहुंचा सकती है.

खबर है कि ‘दबंग 3’ की फीमेल लीड फाइनल हो गई है और जब आप इस हीरोइन का नाम सुनेंगे तो हैरान हो जाएंगे.

‘दबंग 3’ में काजोल सलमान खान की लीडिंग लेडी बनने वाली हैं. अगर ऐसा होता है तो सलमान के साथ काजोल का ये रीयूनियन होगा. सलमान और काजोल 1998 की फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ में साथ आए थे, जिसे सोहेल खान ने डायरेक्ट किया था. इस फिल्म में अरबाज खान ने काजोल के बड़े भाई का किरदार निभाया था.

अरबाज ‘दबंग 3’ के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हैं. 2010 में आई ‘दबंग’ सुपर हिट रही थी और इस फिल्म से सोनाक्षी सिन्हा ने बॉलीवुड में डेब्यू किया था. ‘दबंग 2’ में भी सोनाक्षी का किरदार जारी रहा, लेकिन तीसरे पार्ट में लीडिंग लेडी को लेकर काफी सस्पेंस बना हुआ है.

सोनाक्षी सिन्हा से भी कई मौकों पर इस बारे में पूछा गया, लेकिन वो भी कोई ठोस जवाब नहीं दे सकी थीं. कुछ दिनों पहले ये खबरें भी आयीं थीं कि काजोल ने खुद कहा था कि उन्हें यह फिल्म ऑफर हुई है, लेकिन उन्होंने तब हां नहीं कहा था. ताजा डेवलपमेंट यही है कि काजोल फिल्म के लिए राजी हो गई हैं और उन्हें ध्यान में रखते हुए फिल्म की आगे की कहानी लिखी जा रही है.

दीपिका-प्रियंका में लगी रेस

दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा के हॉलीवुड में कदम रखने के बाद से ही ये तय हो गया था कि अब इनके पास इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स की लाइन लगने वाली है और इस कड़ी में पहला नंबर लगा है चाइना से.

देश में भले ही इन दिनों चाइना के सामानों का विरोध हो रहा हो लेकिन इंडो-चाइनीज फिल्म के लिए दीपिका और प्रियंका रेस का हिस्सा बन चुकी हैं. खबर है कि ‘बैंग बैंग’ के निर्देशक सिद्धार्थ आनंद ने पिछले दिनों तीन फिल्मों के लिए एक इंडो-चाइनीज डील साइन की थी जिसके तरह हिंदी और मेंडरिन भाषा में एक फिल्म बनाई जायेगी. ये बीजिंग की एक रोमांटिक कहानी पर आधारित होगी जिसमें लीड रोल में चाइनीज स्टार डेंग चाओ होंगे.

सिद्धार्थ और उनके निर्माता ने ये संकेत भी दिए हैं कि इस फिल्म के लिए बॉलीवुड की ऐसी बड़ी स्टार को कॉस्ट किया जाएगा जिसका इंटरनेशनल स्तर पर रूतबा हो. दीपिका की विन डीजल के साथ ‘ट्रिपल एक्सः रिटर्न ऑफ एक्सेन्डर केज’ जल्द ही रिलीज होने वाली है जबकि प्रियंका चोपड़ा ने भी फिल्म ‘बेवॉच’ में अपने विलेन के रोल की शूटिंग पूरी कर ली है.

गौरतलब है कि सलमान खान भी इन दिनों चाइनीज कनेक्शन जोड़े हुए हैं. कबीर खान निर्देशित फिल्म ‘ट्यूबलाई’ की कहानी भी भारत चीन के 1962 युद्ध की कहानी है जिसमें सलमान के अपोजिट चीनी हीरोइन झू-झू काम कर रही हैं.

“पहले प्यार के लिए फिल्में बनाना छोड़ सकता हूं”

बॉलीवुड फिल्ममेकर शूजीत सरकार ने अपने पहले प्यार के बारे में खुलासा किया है. ‘विक्की डोनर’ और ‘पीकू’ जैसी फिल्में बनाने वाले शूजीत का कहना है कि वो अपने पहले प्यार के फिल्में बनाना भी छोड़ सकते हैं.

शूजीत सरकार का कहना है कि फुटबॉल उनका पहला प्यार रहा है. शूजीत का कहना है कि उन्हें फुटबाल खेलना इतना पसंद है कि यदि सरकार उन्हें सब्सिडी देने के लिए सहमत हो जाती है और खेल में हिस्सा लेने के लिए कहती है, तो वह फिल्म निर्माण का काम छोड़ देंगे.

शूजीत ने कहा, ‘मैं अचानक ही निर्देशन में आया हूं. यह मेरा पहला प्यार नहीं है. खेल मेरा पहला प्यार है. मैं यहां तक कि युवा फुटबॉल खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देता हूं. मैं अब भी फिल्म जगत से संबंधित नहीं. मैं कोलकाता में रहता हूं और काम के लिए मुंबई आया. मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं था और इसलिए मैं फिल्म निर्माण के कार्य में आया. यदि सरकार मुझे सब्सिडी देकर फुटबाल खेलने के लिए कहती है, तो मैं निर्देशन का काम छोड़ दूंगा.’

शूजीत ने कहा कि जीवनभर फुटबॉल ही उनका पहला प्यार रहेगा और वह अब भी फिल्म निर्माण का कार्य सीख रहे हैं. शूजीत ने 18वें जियो मामी मुंबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में कहा, मैं एक आकस्मिक फिल्मकार हूं. मेरा फिल्मों के साथ कुछ लेना-देना नहीं था और यह मेरा पहला प्यार भी नहीं था. मेरा पहला प्यार खेल है. मैं फुटबॉल खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करता हूं और यह मेरा पहला प्यार है.

जब ATM से निकलें नकली नोट…

जब चेन्नई में एक व्यक्ति ने एटीएम से 27 नकली नोट निकाले तब एटीएम सिक्यॉरिटी पर फिर से लोगों और अधिकारियों का ध्यान जा रहा है. जिन ग्राहकों को एटीएम से नकली नोट मिलते हैं उनके लिए कोई ऐसी कानूनी सहायता मौजूद नहीं है क्योंकि यह साबित करना बहुत मुश्किल होता है कि नकली नोट कहां से आया है.

एक साइबर क्राइम अधिकारी ने बताया, ‘जब आपको किसी एटीएम से नकली नोट मिलता है तो आप उसका स्रोत नहीं साबित कर सकते. इसमें बैंक नेटवर्क की गलती है न कि ग्राहक की. बैंक कभी भी कस्टमर के दावे पर असली नोट नहीं देते. वास्तव में यह चिंता की बात क्योंकि महीनेभर में ही शहर में नकली नोटों का यह दूसरा मामला सामने आया है.’

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसके लिए स्पष्ट गाइडलाइंस घोषित कर रखी हैं जिसके मुताबिक, बैंकों को जमाकर्ताओं से करेंसी लेते समय सावधानीपूर्वक जांच कर लेना चाहिए कि नोट नकली तो नहीं है. इसके साथ ही, बैंक को एटीएम में पैसा डालते समय दोबारा करेंसी की पूरी जांच करनी चाहिए.

आमतौर पर कोई बैंक एक शहरी एटीएम में 3-4 लाख जबकि अर्ध-शहरी इलाको में 1-2 लाख रुपये डालता है. हालांकि, भीड़भाड़ वाली जगहों पर बैंक एक दिन में 10 लाख रुपये तक डालते हैं. पुलिस ने ग्राहकों को सलाह दी है कि जिसे भी एटीएम से नकली नोट मिलें वह सीसीटीवी कैमरे के सामने नकली नोट को दिखाएं. अगर कैमरा काम नहीं कर रहा है तो हर एटीएम पर एक गार्ड भी रहता है. यह बेहतर होगा कि इसकी शिकायत तुरंत एटीएम पर ही की जाए क्योंकि एक बार एटीएम से बाहर आने के बाद यह साबित करना बहुत कठिन होगा कि वह नोट एटीएम मशीन से ही निकला है.

5 मिनट रैसिपीज: कुरकुरे आलू बौल्स

सामग्री:

2 उबले आलू, 1 प्याज कटा, 1 हरीमिर्च कटी, 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी, 2 बड़े चम्मच मैदे का घोल, 2-3 बड़े चम्मच पोहा/चिड़वा (हलका कुटा हुआ), नमक स्वादानुसार, तलने के लिए पर्याप्त तेल.

विधि:

उबले आलुओं को मैश करें. इस में नमक, प्याज, हरीमिर्च व धनियापत्ती मिला कर छोटी बौल्स तैयार करें. मैदे के घोल में बौल्स को लपेट कर पोहे (पोहे को हलका कूट लें) में लपेट कड़ाही में तेल गरम कर सुनहरा होने तक तल कर चटनी या सौस के साथ परोसें.

व्यंजन सहयोग:

अनुपमा गुप्ता

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