हेयर कलर से पाएं अट्रैक्टिव लुक

आप अपने लुक से बोर हो चुकी हैं, अपने लुक के साथ कुछ नया करना चाहती हैं, आप ने स्टाइलिश हेयर कट भी करवा रखा है, लेकिन फिर भी आप को कुछ कमी लग रही है, तो हेयर कलर करवाना आप के लिए एक बैस्ट औप्शन है. इस से आप की पूरी पर्सनैलिटी चेंज हो जाएगी और आप भीड़ में सब से अलग नजर आएंगी.

हेयर ऐक्सपर्ट साहिल सिंह कश्यप के अनुसार, जब भी हेयर कलर करवाएं तो अपनी पर्सनैलिटी व प्रोफैशन का ध्यान जरूर रखें. जैसे अगर आप कौरपोरेट वर्ल्ड में काम करती हैं, तो फंकी कलर्स करवाने से बचें, क्योंकि ये आप की पर्सनैलिटी से मैच नहीं करते. आप को किसी डिसैंट कलर का चुनाव करना चाहिए, जो आप की पर्सनैलिटी को निखारे.

कुछ महिलाएं दूसरों के हेयर कलर को देख कर वैसा ही कलर चाहती हैं, जिस का नतीजा यह होता है कि वह कलर उन पर सूट नहीं करता. कई बार ऐसा भी होता है कि वे अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी दिखने लगती हैं. इसलिए हेयर कलर से पहले ऐक्सपर्ट की राय जरूरी है.

जानिए, दिल्ली प्रैस भवन में आयोजित फेब मीटिंग के दौरान क्या कहते हैं ऐक्सपर्ट.

– कलर का चुनाव करने से पहले अपने बालों के लिए कलर का चुनाव करने से पहले कुछ अहम बातों की जानकारी जरूरी है. मसलन हमेशा अपने प्रोफैशन और उम्र का ध्यान रखें. अगर आप की उम्र 20 वर्ष से ज्यादा है, तो आप बालयाज, ओमरे चंक्स हाईलाइट इत्यादि स्टाइल ट्राई कर सकती हैं.

– 30 के बाद की महिलाओं पर सौफ्ट ब्लौंड या लाइट ब्लौंड अच्छे लगते हैं, लेकिन अगर आप 40 की दहलीज पर हैं और हेयर कलर करवाना चाह रही हैं, तो कोई सा भी ऐक्सपैरिमैंट न करें. थोड़ा देखें कि आप पर क्या अच्छा लगेगा. वैसे इस उम्र में डार्क ब्लौंड अच्छा लगता है.

– कलर चुनने से पहले स्किनटोन का भी ध्यान रखें. अगर स्किनटोन डार्क है, तो चौकलेट कैरेमल टोन अच्छा लगेगा, लेकिन ब्लौंड टोन करवाने से बचें. इस से आप का रंग और भी ज्यादा डार्क लगने लगेगा. अगर आप का रंग फेयर है, तो ब्लौंड या फिर चौकलेट टोन ट्राई कर सकती हैं और अगर गेहुंआ रंग है, तो डार्क ब्लौंड आप पर खूब फबेगा.

-महिलाएं बालों में कलर के लिए हिना का इस्तेमाल करती हैं. हिना से बालों में कोटिंग हो जाती है, जिस की वजह से कलर का सही रिजल्ट नहीं मिलता. अगर आप के बाल हिना कोटेड हैं, तो आप मोहगनी रैड ट्राई कर सकती हैं. कलर बालों के अंदर जा कर पिगमैंट चेंज करता है, जबकि हिना से कोटिंग होती है, जिस की वजह से हेयर फौल भी होता है.

– कलर का चुनाव करते समय बालों के कट को भी ध्यान में रखें कि आप के बालों का कट कौन सा है.

– अगर आप के बाल दोमुंहे हैं, तो हेयर कलर करवाने से पहले ट्रिमिंग जरूर करवा लें.

– कलर चुनने का सब से अच्छा तरीका है कि आप अपने बालों के नैचुरल कलर से 1 या 2 शेड डार्क या फिर लाइट कलर का चुनाव करें.

एक और आसान तरीका है हेयर कलर चुनने का, यह है कि आप अपने आंखों के कलर से मैच करता कलर चुनें.

बालायाज का ट्रैंड: आजकल बालों की कलरिंग में बालायाज तकनीक का ट्रैंड इन है. यह एक फ्री हैंड कलरिंग तकनीक है, जो सब से पहले फ्रांस में फैशन में आया. उस के बाद यह ट्रैंड सभी जगह छाया है. बालायाज में बालों की जड़ों को छोड़ कर ‘वी शेप’ में कलर किया जाता है, जिस से ऊपर से नैचुरल टोन दिखता है और नीचे ब्लौंड. इस तकनीक में कलर को हीट देने के लिए फौइल का इस्तेमाल नहीं किया जाता. कलर ब्रश से लगाने के बाद हाथ से अच्छी तरह मिक्स किया जाता है.

कलर इन फैशन: इन दिनों महिलाओं को पर्पल, औरेंज, रैड कलर्स अट्रैक्ट कर रहे हैं. लेकिन इन कलर्स को पूरे बालों में करने के बजाय केवल हाईलाइट या स्ट्रिक्स कराएं. इंडियन स्किनटोन पर इन कलर्स के हाईलाइट अट्रैक्टिव लगते हैं. गोल्डन कलर भी फैशन में इन है. लेकिन यह सांवली महिलाओं पर अच्छा नहीं लगता, इसलिए इसे कराने की भूल न करें. अगर आप का रंग गेहुंआ या गोरा है, तो आप पर अच्छा लगेगा.

नैचुरल कलर: ब्राउन व बरगंडी नैचुरल कलर्स के अदंर आते हैं और अधिकांश महिलाओं पर अच्छे लगते हैं.

रोज गोल्ड: यह कलर इंस्टाग्राम पर छाया हुआ है. यह आप के पूरे लुक को निखारता है. यहां तक कि तब भी जब आप ने कोई मेकअप अप्लाई न किया हो.

कुछ और जरूरी बातें

बालों में कलर करने के साथसाथ कुछ और भी जरूरी बातें हैं, जिन को नजरअंदाज न करें. वे हैं:

– पूरे बालों में कलर करने से पहले थोड़े से बालों में पैच टैस्ट जरूर करें ताकि अगर आप को कलर सूट न करे, तो आप को पता चल जाए. अगर कलर लगाने के बाद आप को खुजली, जलन और लाल चकते दिखाई दें, तो समझ लें कि आप को कलर सूट नहीं कर रहा है.

– कभी 2 अलगअलग प्रोडक्ट को मिक्स न करें, जैसे आप के पास किसी दूसरे ब्रैंड का डिवैलपर बचा हुआ है, तो उसे किसी दूसरे ब्रैंड के कलर के साथ मिक्स न करें. जिस ब्रैंड का कलर इस्तेमाल कर रही हैं डिवैलपर भी उसी ब्रैंड का चुनें.

– कलर कभी बालों की जड़ से लगाना शुरू न करें. पहले जड़ों से 2 इंच छोड़ कर पूरे बालों में लगाएं. फिर 15 मिनट के बाद जड़ों में लगाएं, क्योंकि जड़ों में पहले लगाने से हीट की वजह से उन पर कलर का इफैक्ट जल्दी होता है.

– प्रैगनैंसी के दौरान बिना डाक्टर की सलाह के हेयर कलर न कराएं.

– कलर करते समय सैक्शनिंग जरूर करें. अगर बिना सैक्शनिंग के लगाती हैं, तो कहीं पर कलर अच्छी तरह अप्लाई होता तो कहीं नहीं. सैक्शनिंग करने से हर सैक्शन कवर होता है.

– ध्यान रहे कलरिंग के दौरान बहुत ज्यादा कंघी न करें. ऐसा करना पोर्स खोल देता है, जिस की वजह से खुजली होती है.

– कलर और डिवैलपर दोनों को हमेशा बराबर अनुपात में मिलाएं. कभी ऐसा न करें कि किसी एक को थोड़ा ज्यादा या कम मिलाएं.

– कलर को हलके कुनकुने पानी से धोएं, क्योंकि कुनकुना पानी क्यूटिकल्स को खोलता है और कलर को आसानी से बाहर निकालता है.

आमिर ने किया खेल फिल्मों की शुरूआत का दावा

इन दिनों आमिर खान कई तरह के दावे कर रहे हैं. कुश्ती जैसे खेल पर आधारित फिल्म ‘दंगल’ में वह एक पहलवान का किरदार निभा रहे हैं. आमिर खान ने दावा किया है कि उनकी वजह से ही बॉलीवुड में खेल पर आधारित फिल्मों का चलन बढ़ जाएगा है.

मीडिया से बात करते हुए आमिर खान ने कहा, ‘मैंने 2001 में खेल पर आधारित फिल्म ‘लगान’ बनायी थी. इस फिल्म में मैंने अभिनय भी किया था. इस फिल्म ने सफलता के रिकॉर्ड बनाए थे. उसके बाद से ही बॉलीवड में खेलों पर आधारित फिल्मों का चलन तेजी से बढ़ा और सभी फिल्में सफल रही हैं. इस तरह खेलों पर फिल्मों को बढ़ावा देने का श्रेय मुझे ही जाता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं यह नहीं कहता कि ‘लगान’ से पहले खेल पर आधारित कोई फिल्म नहीं बनी. ‘लगान’ से पहले भी खेल पर आधारित इक्का दुकका फिल्में बनी थी. पर उन्हें दर्शकों ने पसंद नहीं किया था. लेकिन ‘लगान’ से खेल पर आधारित फिल्मों के प्रति दर्शकों का रूझान बढ़ाया. उसके बाद हर साल तीन चार खेलों पर आधारित फिल्में बनती हैं और सफल भी होती हैं.’

अंतरिक्ष यात्री नहीं बनेंगे आमिर!

पिछले डेढ़ माह से समाचार चैनल व अखबारों में खबरें छप रही हैं कि आमिर खान भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा पर बनने वाली बायोपिक फिल्म में राकेश शर्मा  का किरदार निभाने जा रहे हैं. बॉलीवुड में भी इस फिल्म की काफी चर्चाएं हैं, मगर अब पूरे डेढ़ माह बाद आमिर खान ने दावा किया है कि उन्हें इस बारे में कुछ पता ही नहीं है.

फिल्म ‘‘दंगल’’ के पोस्टर लांच के अवसर पर जब पत्रकारों ने आमिर खान से सवाल किया कि वह राकेश शर्मा की बायोपिक फिल्म की शूटिंग कब शुरू करने वाले हैं? तो आमिर खान ने अंजान बनते हुए कहा- ‘‘यह कौन सी फिल्म है? मैंने फिलहाल कोई नयी फिल्म साइन नहीं की है. मुझे नहीं लगता कि मैं 2018 तक कोई दूसरी फिल्म अनुबंधित करने की स्थिति में हूं.’’

जब आमिर खान से पूछा गया कि क्या उन्हें राकेश शर्मा पर बनने वाली बायोपिक फिल्म का ऑफर नहीं मिला है? तो एक दार्शनिक अंदाज में आमिर खान ने कहा – ‘‘मेरे पास तमाम फिल्मों के ऑफर आते रहते हैं. अभी भी कई फिल्मों के ऑफर आए हुए हैं. मेरे घर पर कई फिल्मों की पटकथाएं पड़ी हुई हैं, जिन्हें पढ़कर मुझे निर्णय लेना है. पर यह कौन सी फिल्मों की पटकथाएं हैं, इसका खुलासा मैं नहीं कर सकता. वास्तव में मेरे पास हर फिल्मकार इस विश्वास के साथ आता है कि जब तक मैं फिल्म अनुबंधित ना कर लूं, मैं इस बात को मीडिया या कहीं दूसरे कलाकार के सामने जाहिर नही होने दूंगा. यदि मैं किसी से कहता हूं कि मुझे फलां फिल्म का ऑफर मिला है,पर बाद में पटकथा पसंद न आने पर मैं वह फिल्म नहीं करता हॅूं, तो मीडिया में चर्चा होती है कि आमिर खान ने फिल्म छोड़ दी. इसकी वजह से फिल्म निर्माता जब वही पटकथा लेकर किसी अन्य कलाकार के पास जाता है, तो उसे दिक्कत होती है. यह अच्छी बात नही है. मैं फिल्म निर्माता व निर्देशक का मुझ पर जो विश्वास है, उसे भी बरकरार रखना चाहता हूं. इसलिए मैं नहीं बता सकता कि मेरे पास किन फिल्मों के ऑफर हैं या किन फिल्मों की पटकथा मेरे पास पढ़ने के लिए आयी हैं.’’

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि राकेश शर्मा की बायोपिक फिल्म को लेकर आमिर खान से निर्माता ने चर्चा नहीं की या आमिर खान के कहे अनुसार फिल्मकार इस बात को गोपनीय बनाए रखना चाहता है, तो फिर बॉलीवुड और मीडिया में यह बात कैसे फैली कि राकेश शर्मा की बायोपिक फिल्म में आमिर खान अभिनय कर रहे हैं.

किसने किया चित्रांगदा को रिप्लेस?

कुछ दिन पहले चित्रागंदा सिंह ने फिल्मकार कुशान नंदी की फिल्म ‘‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’’ में नवाजुद्दीन सिद्दिकी के संग अंतरंग दृश्यों को करते करते अचानक सेक्स दृश्यों की बात कह कर फिल्म छोड़ दी थी.

चित्रांगदा सिंह का आरोप था कि निर्देशक कुशान नंदी जिस तरह के सेक्सी दृश्य उन पर फिल्माना चाहते थे, उस तरह के सेक्सी  दृश्य  वह नहीं कर सकती.  चित्रांगदा ने फिल्म छोड़ने को लेकर कुशान पर कई तरह के आरोप लगाए थे. पर जब कुशान नंदी ने मीडिया में चित्रांगदा सिंह की असलियत बयां की, तो अभिनेत्री ने चुप्पी साध ली. पर तब से चर्चाएं गर्म हैं कि अब इस फिल्म में चित्रांगदा की जगह कौन सी अदाकारा अभिनय करेगी?

बॉलीवुड में चर्चा गर्म है कि इस फिल्म में चित्रांगदा की जगह रिचा चड्ढा लेने वाली हैं. इतना ही नहीं रिचा चड्ढा ने भी कहा है कि उन्हें बोल्ड किरदार निभाने से परहेज नही है.

तो दूसरी तरफ यह खबरें भी आ रही हैं कि कुशान नंदी ने अपनी फिल्म में चित्रागंदा सिंह जिस किरदार को निभा रही थी, उसको निभाने के लिए सुरवीन चावला को अनुबंधित किया है. पर सच कोई कबूल नहीं रहा है.

सुरवीन चावला और रिचा चड्ढा ने फिलहाल मीडिया से दूरी बना रखी है. जबकि कुशान नंदी लखनऊ में फिल्म की शूटिंग करने में व्यस्त हैं. उधर बॉलीवुड के जानकारों की राय में फिल्म ‘‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’’ में सुरवीन चावला ही चित्रांगदा की जगह लेने वाली हैं. क्योंकि सुरवीन चावला इससे पहले सेक्स इरोटिक फिल्म ‘‘हेट स्टोरी 2’’ में अभिनय कर चुकी हैं.

‘सुल्तान’ से ‘दंगल’ को तैयार आमिर

जहां एक तरफ सलमान खान अपनी फिल्म ‘सुल्तान’ को लेकर चर्चा में छाए हुए हैं, वहीं इस फिल्म की रिलीज से ठीक दो दिन पहले सुपरस्टार आमिर खान ने अपनी अगली फिल्म ‘दंगल’ का पोस्टर रिलीज कर दिया है. दोनों ही फिल्में रेसलिंग पर बेस्ड हैं. इसलिए रिलीज डेट अलग होने के बावजूद दोनों फिल्मों में होड़ लगी है.  

आमिर ने फिल्म का यह नया पोस्टर जारी करते हुए पोस्टर पर लिखी बातें ही दोहराई हैं. पोस्टर पर लिखा है, ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?’ लोगों को यह नया पोस्टर काफी पसंद आ रहा है, जिसमें आमिर की बेटियों का किरदार निभा रहीं कलाकार भी उनके साथ नजर आ रही हैं.

फिल्म की कहानी पहलवान महावीर सिंह फोगट की बायोपिक पर बेस्ड है. फिल्म में आमिर खान हरियाणा के मशहूर पहलवान महावीर सिंह फोगट की जिंदगी को पर्दे पर उतारेंगे. आमिर खान, किरण राव और सिद्धार्थ रॉय कपूर द्वारा प्रोड्यूस की गई इस फिल्म का डायरेक्शन नितेश तिवारी कर रहे हैं. यह फिल्म इसी साल दिसंबर 23 में रिलीज होगी. हालांकि, जहां आमिर की फिल्म दिसंबर में रिलीज होनी है, वहीं सलमान की फिल्म के रिलीज से ठीक पहले आमिर द्वारा ‘दंगल’ का पोस्टर जारी करने की वजह लोगों को समझ नहीं आ रही है.

महिलाओं की फैशन परेड

महिलाओंके फैशन परेड शो देख कर न जाने क्यों मुझे अपने अर्थात मनुष्य के पूर्वज (आदिमानव) याद आने लगते हैं, क्योंकि दोनों में नग्नता का फर्क 19-20 का ही रह जाता है. कुछ समय के लिए सुंदर अर्धनग्न बालाओं के स्थान पर मुझे रैंप पर आदिमानव कैट वाक करते नजर आने लगते हैं. वाह, आदिमानव का कैट वाक करते हुए क्या धांसू दृश्य आंखों के सामने उपस्थित हो जाता है.

ऐसा धांसू दृश्य देख कर मुझे लगने लगता है कि कहीं इतिहास अपने को दोहराने की तैयारी तो नहीं कर रहा है? कहीं लाखों सालों तक आदिमानव के नग्न रहने की अवस्था आधुनिक मानव पर हावी तो नहीं हो रही?

यूरोप के स्त्रीपुरुषों को समुद्र तटों पर सनबाथ करते देख कर तो मेरी इस धारणा को बल मिलता ही है.

वैसे मनुष्य के नग्न रहने की दमित इच्छा तो सर्वव्यापक और सर्वकालीन है. किसी मुंबइया फिल्म का सब से जबरदस्त गाना क्या वह नहीं हो जाता है, जिस में अभिनेत्री या आइटम डांसर नाचतेगाते लगभग नग्न हो जाती है? पुराने लोगों से पूछिए कि उन्हें हैलेन पर फिल्माया गया कौन सा गाना अभी तक याद है. झट से जवाब मिलेगा कि ख्वाबों की मैं शहजादी… उई… उई… उई… मैं… आई…

 

किसी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय फिल्मी समारोह को देखिए. उस में उपस्थित  अभिनेत्रियां ऐसे अजीबोगरीब कपड़े पहन कर उपस्थित होती हैं कि उन की बांहें, जंघाएं और वक्ष लगभग अनावृत ही होते हैं. पीठ भी लगभग नग्न ही होती है. बाकी का हिस्सा भी पारदर्शी कपड़ों से ही ढका होता है, जिस में वास्तव में ढका हुआ कुछ भी नहीं होता और अब तो  फिल्मी मंचों पर ऐसी दुर्घटनाएं होने लगी हैं कि अंत:वस्त्र भी अचानक खुल कर मंच पर ही गिर जाते हैं. सिनेमाई भाषा में इस सब को ग्लैमर कहा जाता है. पता नहीं यह ग्लैमर का घेरा औरतों की देह के चारों ओर ही क्यों घूमता है?

टीवी चैनलों पर दिखाए जाने वाले व्यावसायिक विज्ञापनों को ही देख लीजिए. उन्हें देख कर तो ऐसा लगता है कि वे महिलाओं की देह की फैशन परेड कराने में सब से आगे हैं. टौफी से ले कर कौफी, जूता पोतन (शू पौलिश) से ले कर गाल पोतन (फेस क्रीम) और गाड़ी (कार) के टायरों से ले कर दाढ़ी बनाने की क्रीम तक के विज्ञापनों में आकर्षक मौडलों की देह की खुलेआम नुमाइश होती है. समझ में नहीं आता कि मर्दों की आवश्यक वस्तुओं में महिलाओं की मौडलिंग की क्या आवश्यकता? दाढ़ी बनाता है पुरुष, मौडलिंग करती है महिला.

नारी की देहप्रदर्शनी आधुनिक काल की देन है, ऐसा सोचने की भूल भी मत करना. यह सिलसिला तो अनादिकाल से अनवरत जारी है. इंद्र की सभा में एक से बढ़ कर एक सुंदर अप्सराएं देवताओं का मनोरंजन करने के लिए उपस्थित रहती थीं.

विश्वमित्र जैसे महातपस्वी का तप मेनका नाम की सुंदर अप्सरा के दैहिक सौंदर्य की भेंट चढ़ गया था. जन्नत में 72 हूरों की तलाश में कितने ही आतंकवादी न जाने कब से प्रतिवर्ष जन्नत और जहन्नुम की सैर करने चले जाते हैं. औरतों के लिए 72 कुंआरे लड़के पाने की व्यवस्था क्यों नहीं बनाई गई, यह पुरुषप्रधान समाज की मानसिकता से ग्रस्त लेखक की शरारत थी. अब यह मांग जोरदार तरीके से उठनी चाहिए कि जो अपने लिए 72 हूरें चाहते हैं उन्हें अपनी बहनों के लिए 72 लड़के ढूंढ़ने चाहिए.

त्रेता युग में रावण का दरबार सिर्फ लंका में सजता था, लेकिन अब कलयुग में हर रामलीला में रावण का दरबार आधुनिक तौरतरीकों से गांवगांव, नगरनगर सजता है. उस हंसोड़े डायलौग के साथ ‘नाचने वाली को बुलाया जाए.’ नाचने वाली या औरत के परिधान में नाचने वाला पूरे मेकअप गैटअप के साथ जां लुटा देने वाले अंदाज में लहंगाचोली पहन कर उपस्थित हो जाती/जाता है. फिर तो रामलीला पूरी तरह से रासलीला ही बन जाती है. लफंगे उस नर्तकी या नर्तक पर रुपयों की बौछार कर के मर्यादा और नैतिकता की धज्जियां ऐसे उड़ाते हैं जैसे सावनभादों में आसमान में बादल फटते हैं. उस समय शर्म भी शर्म से लाल हो जाती है. सभ्यता के ठेकेदारों को इस बुराई में बुराई कब दिखाई देगी, पता नहीं. किसी नुमाइश में नर्तकी को ले कर जब तक लाठीडंडे न चल जाएं तब तक वह नुमाइश ही क्या?

महात्मा बुद्ध ने बौद्धविहारों में अनाचार बढ़ने के डर से नारियों को प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी. उन्हें डर था कि ऐसा होने पर बौद्ध धर्म जल्द ही डूब जाएगा. इस विषय पर शोधार्थियों ने बड़े शोध किए और बड़े चटखारे लेले कर भरपूर उत्तेजना के साथ इस विषय की परेड निकाल डाली.

इस विषय पर इतना लिखा गया कि उतना शायद बौद्ध धर्म पर भी नहीं लिखा गया. गजब है नरों की नारियों के विषय संबंधों में रुचि. विषय कोई भी हो नर नारी के आगेपीछे ही घूमता नजर आता है.

हम औरत को मनोरंजन की वस्तु बनाने के लिए आधुनिक युग को लानतें देते हैं, किंतु यह तो सनातन परंपरा रही है. आम्रपाली, हां आम्रपाली को कौन भूल सकता है. किस ने मजबूर किया था उसे पाटलिपुत्र की नगरवधू बनने के लिए? राजदरबार, और कौन? सुंदर बालाओं को नगरवधू बना कर उन से कामक्रीड़ा का आनंद लेना राजनरों की नीति का अभिन्न अंग हुआ करता था. मंदिरों में देवदासियां क्यों रखी जाती थीं, क्या यह भी बताने की आवश्यकता है?

लेकिन मध्यकाल तो औरतों के चीरहरण में सब से आगे था. औरों की बात तो छोडि़ए जिस अकबर को महान बतातेबताते इतिहासकार थकते नहीं हैं उस के हरम में 5 हजार स्त्रियां थीं, जिन में अधिकांश जबरन पकड़ कर लाई गई थीं. ये किस काम में लाई जाती थीं, यह कोई बताने की बात नहीं है. इन से उत्पन्न संतानें ‘हराम की औलाद’ अर्थात ‘हरामी’ कहलाईं. अकबर ने जब नागौर में दरबार लगाया था तब राजस्थान की 3 सौ से भी अधिक रियासतों के मुखिया अपनी बेटियों और बहनों को अकबर के हरम में भेजने के लिए उपस्थित हुए थे. ऐसे थे हमारी रियासतों के बहादुर मुखिया और ऐसा महान था अकबर द ग्रेट.

जब राजा अपने हरम के लिए स्त्रियां मंगवाता और उठवाता हो तो उस के सामंत और दरबारी कैसे रहे होंगे, यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है. नववधुओं का कौमार्य भंग करना तो इन सामंतों की कुल परंपरा ही बन गई थी. अंगरेजों ने भी इस परंपरा को बखूबी निभाया बिना किसी संकोच के.

 

आधुनिक युग में हम होटलों में रेन डांस का खूब मजा लेते हैं, बार में बालाओं को नचाते हैं और गरीब लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसा कर उन को कोठों पर बैठा देते हैं. यह हमारी आधुनिक युग की सभ्यता है.

तालिबान, अलकायदा, आईएसआईएस आदि चरमपंथी इसलामिक गुट वैसे तो औरतों के हर अंग को ढक कर रखने का आदेश पारित करते हैं, वहीं दूसरी ओर सरेबाजार औरतों की नीलामी करते हैं. आईएसआईएस द्वारा याजिदी औरतों को आतंकवादियों को परोसने के कितने ही मामले इराक और सीरिया में सामने आए हैं. यह है औरतों के प्रति इन का सम्मान. औरतों के जरा से खुलेपन पर उन्हें पत्थरों से मार देने की सजा देने वाले कौन से धार्मिक न्याय की बात करते हैं? यह कौन से मजहब का न्याय है, जो इनसानियत को ही अजगर की तरह निगल जाता है? क्या मजहब यही तहजीब सिखाता है?

अब तो खेलों में भी चीयर लीडर्स के नाम पर औरतों की फैशन परेड होने लगी है. भला खेलों का चीयर लीडर्स से क्या लेनादेना? अगर यह लोगों के मनोरंजन के लिए है तो इस से यही सिद्ध होता है कि हम ने औरत को मनोरंजन की वस्तु ही समझ रखा है. असली मामला तो पैसे कमाने का है, जो औरतों (चीयर्स लीडर्स) का सहारा ले कर परदे के पीछे से हो रहा है. आखिर मर्द औरतों की नग्न देह को देख कर ही तो खुश होते हैं और पैसा लुटाते हैं.

शायद इसी बात को ध्यान में रख कर अंगरेज कवि एलैक्जेंडर पोप ने ‘रेप औफ द लौक’ में खूबसूरत बेलिंडा के बारे में लिखा है कि बेलिंडा स्माइल्ड ऐंड आल द वर्ल्ड वाज गे यानी बेलिंडा मुसकराती थी और पूरा संसार प्रसन्न हो उठता था. औरत की एक मुसकान मर्द को ले डूबती है, यहां तो सारा संसार.

अंतत: यही कहना पड़ेगा कि औरतों की फैशन परेड जारी है, बस हर युग में उस का रंगरूप और नाम बदला है. भविष्य में भी परंपरा जारी रहने वाली है जब तक कि पूरी दुनिया आदिमानव की तरह नग्न रहना शुरू नहीं कर देती.             

न कहना भी सीखें

सुगंधा एक आदर्श पुत्रवधू, पत्नी व मां थी. सब उस की प्रशंसा करते नहीं थकते. विवाह से पहले मायके में व स्कूल में भी सब की चहेती थी. इस का एक कारण था कि उस ने कभी किसी को किसी काम के लिए मना नहीं किया. बचपन से ही उसे मातापिता ने यही सिखाया था. शांत स्वभाव की सुगंधा को चाहने वालों की कमी नहीं थी. इस पर भी धीरेधीरे सुगंधा को भीतर ही भीतर अजीब सा खालीपन लगने लगा था. उसे डिप्रैशन ने घेर लिया.

यह देख कर सुगंधा के पति जीतेन उसे अपने एक मित्र के पास ले गए. वे प्रसिद्ध मनोविद थे. सारी बातें सुनने के बाद वे बोले, ‘‘सुगंधा, आप प्रतिभासंपन्न व कुशल गृहिणी हैं. आप सदैव दूसरों की खुशी का ध्यान रखती हैं. आप को न कहना नहीं आता है. बस यही आप की समस्या है. इस घेरे से बाहर निकलिए. न कहना भी सीखें. थोड़ा अपनी इच्छानुरूप भी जी कर देखें.’’

घर आ कर सुगंधा ने मन ही मन डाक्टर की बातों पर विचार किया. उसे उन की बातों में सचाई नजर आई. दूसरों की खुशियों तले उस की अपनी इच्छाएं आकांक्षाएं कहीं दब गई थीं. अत: उस ने फैसला किया कि अब वह अपने लिए भी जी कर देखेगी, अपनी एक अलग पहचान बनाएगी. धीरेधीरे उस ने ‘न’ कहना सीख लिया. बच्चों को प्यार से कहती, ‘‘तुम यह काम खुद कर सकते हो. मैं नहीं कर पाऊंगी.’’

सास को भी मृदु स्वर में कह डालती, ‘‘मांजी, मैं आप की इस बात से सहमत नहीं हूं. हमें किसी के घरेलू मामले में दखलंअदाजी नहीं करनी चाहिए.’’

पति को भी कह देती, ‘‘नहीं, आज मैं आप के साथ नहीं जा पाऊंगी. मुझे महिला समिति की मीटिंग में जाना है.’’

सब सुगंधा में आए इस आकस्मिक परिवर्तन को देख कर हैरान थे. कल तक बहुत सिंपल दिखने वाली सुगंधा का अब अपना एक वजूद था. अपनी एक पहचान थी. बहू, पत्नी, मां के साथसाथ वह एक सशक्त नारी भी थी. सुगंधा को खुश देख कर सासससुर, पति व बच्चे भी खुश रहने लगे थे.

उस ने अपने बच्चों को समझाया, ‘‘किसी के काम को करने के लिए हां कहना अच्छी बात है, परंतु जीवन में आगे बढ़ने के लिए अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए न कहने की कला का आना भी जरूरी है.’’

अपना वजूद न भूलें

अनेक स्त्रीपुरुष, युवा किसी को भी नाराज न करने के विचार से न कहने का साहस नहीं जुटा पाते हैं. वे सब की नजरों में अपनी एक सकारात्मक छवि बनाना चाहते हैं. भले ही हां कहने के बाद वे बड़बड़ाते रहें.

आखिर न कहने में इतनी हिचकिचाहट क्यों? यद्यपि हर समय न शब्द का प्रयोग करना उचित नहीं है, तथापि कई बार इस से आप अपना नुकसान कर बैठते हैं. हर काम कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं. हां कहने के बाद काम को आधेअधूरे मन से करना अथवा न कर पाना अधिक हानिकारक है. हो सकता है, शुरूशुरू में आप का न कहना लोगों को बुरा लगे, परंतु वह इस से तो बेहतर है कि आप हां कह कर काम न कर पाएं.

मनोविदों के मतानुसार, न कह पाने के साथ आत्मसम्मान की भावना जुड़ी रहती है. सब को खुश रखने के प्रयास में व्यक्ति अपना वजूद भूल जाता है. एक समय आता है जब वह सुगंधा की भांति अवसादग्रस्त हो जाता है. कई बार बचपन में मातापिता की उपेक्षा के कारण बड़ा होने पर दूसरों की नजरों में अपनी सकारात्मक छवि बनाने के लिए ऐसा करता है, विशेषरूप से स्त्रियां ऐसा करती हैं. हां कहने का अर्थ है लोगों की भीड़ में शामिल होना जबकि न कहने पर व्यक्ति की पहचान अलग हो जाती है.

प्राय: सभी स्त्रीपुरुष, युवा प्रशंसा के भूखे होते हैं. प्रशंसा पाने के लिए वे सब कुछ करने के लिए तैयार हो जाते हैं. कई बार इस हां के चक्रव्यूह में इस प्रकार फंस जाते हैं कि निकल पाना संभव नहीं होता. व्यक्ति जितना झुकता है उतना ज्यादा घरपरिवार, समाज के लोग उसे झुकने पर विवश कर देते हैं. जिस प्रशंसा, सकारात्मक छवि, आत्मविश्वास के लिए हां शब्द का प्रयोग करता है वे सब दिवास्वप्न बन कर रह जाते हैं.

अत: प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यकता पड़ने पर न कहने की कला भी आनी चाहिए.

गायन छोड़ अभिनेत्री बनी सुनिधि चौहान

बॉलीवुड में इन दिनों हर कोई अपनी पहचान के विपरीत क्षेत्र में काम करने पर उतारू है. कुछ अभिनेता व अभिनेत्रियां गायन के क्षेत्र में अपनी धाक जमाने में लगी हुई हैं, तो वहीं अब पिछले बीस वर्षों से संगीत के क्षेत्र में अपने नाम का डंका बजा रही सुनिधि चौहान ने अब अभिनय के क्षेत्र में कदम रख लिया है.

जी हां! असफल फिल्म ‘लेकर हम दीवाना दिल’ के निर्देशक व इम्तियाज अली के भाई आरिफ अली ने डिजिटल प्लेटफार्म के लिए एक लघु फैंटसी रोमांचक फिल्म ‘प्लेइंग प्रिया’ निर्देशित की है, जिसमें अभिनय कर गायक सुनिधि चौहान ने अभिनय के क्षेत्र में कदम रख दिया है.

‘हमारा मूवीज’ के बैनर तले बनी लघु फिल्म ‘प्लेइंग प्रिया’ में अभिनय करने के सवाल पर सुनिधि चौहान कहती हैं, ‘मैं हमेशा अभिनय करना चाहती थी, पर मैंने कभी सोचा नहीं था कि अभिनय करते हुए मुझे इतना आनंद आएगा. इस लघु फिल्म में अभिनय करने के मेरे अनुभव इतने सुखद हैं कि इन्हें मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती. मैंने इसमें प्रिया का किरदार निभाया है. इस फिल्म की कहानी काफी रोमांचक है.’

‘हमारा मूवीज’ बैनर के साथ प्रीति अली, पल्लवी रोहतगी और विनय मिश्रा जुड़े हुए हैं. सूत्रों की माने तो ‘हमारा मूवीज’ के बैनर तले इन लोगों ने अब तक 200 लघु फिल्में बना ली है और अब वह इन फिल्मों को एक एक करके हर मंगलवार को डिजिटल प्लेटफार्म पर रिलीज करने वाले हैं. लघु फिल्म ‘प्लेइंग प्रिया’ के निर्देशक आरिफ अली, सुनिधि चौहान की तारीफ करते हुए थकते नहीं हैं.

वह कहते हैं, ‘वह बेहतरीन अदाकारा हैं. फिल्म में उन्होंने बहुत ही वास्तविक अभिनय किया है. संगीत व गायन के साथ ही यदी उन्होंने अभिनय को अपनाया होता, तो आज वह बहुत बड़ी अदाकारा होती. जब हमने उन्हें अपनी फिल्म की कहानी सुनायी तो उसे पसंद आयी और वह तुरंत अभिनय करने के लिए तैयार हो गयीं.’

सलीम खान का अंधा पुत्र प्रेम

फिल्म ‘‘सुल्तान’’ के प्रमोशन के समय कुछ पत्रकारों के समूह के साथ बात करते हुए ‘रेप पीड़िता औरत’ को लेकर सलमान खान द्वारा दिए गए बयान की वजह से गर्माया हुआ माहौल ठंडा होने का नाम ही नहीं ले रहा है. महाराष्ट्र महिला आयोग को वकील के माध्यम से भेजे गए सलमान खान के सफाई नामा से ‘महाराष्ट्र महिला आयोग’’ भी संतुष्ट नहीं है.

उधर सलमान खान ठहरे जिद्दी इंसान,जो कि माफी मांगने को तैयार नहीं. इतना ही नहीं उस सामूहिक इंटरव्यू के बाद सलमान खान ने किसी भी पत्रकार से ‘सुल्तान’ को लेकर भी बात नहीं की.

यह एक अलग बात है कि सलमान खान के ‘रेप पीड़ित महिला’ को लेकर दिए गए बयान के बाद जब बवाल मचा,तो हमेशा की ही तरह सलमान खान के पिता सलीम खान ने उसी दिन माफी मांग ली थी.

उन्हें उम्मीद थी कि इसी के साथ सारा मसला खत्म हो जाएगा. पर पिता की माफी नामे के बाद भी मामला ठंडा नहीं हुआ है. बालीवुड में कोई भी इंसान सलमान खान के बचाव में सामने नहीं आया.

अब महाराष्ट्र महिला आयोग ने सलमान खान को व्यक्तिगत रूप से आठ जुलाई को हाजिर होने का आदेश दिया है. उधर सूत्र बताते हैं कि इस मसले पर सलमान खान माफी नहीं मांगने वाले हैं.ऐसी परिस्थिति में सलमान खान के पिता सलीम खान अपने बेटे पर कोई दबाव नहीं बना पाए, मगर मीडिया के प्रति उनका गुस्सा सामने आ गया है. अब ‘‘शोले’’ जैसी फिल्म के पटकथा लेखक सलीम खान का यह गुस्सा पुत्र प्रेम का नतीजा है या कुछ और,यह तो वही जाने.. मगर सलीम खान ट्वीटर का सहरा लेकर मीडिया पर बरसे हैं.

सलीम खान ने ट्वीटर पर लिखा है- ‘‘आमतौर पर लोग समस्या से छुटकारा पाने के लिए माफी मांग लेते हैं. मैंने भी यही सोचा था कि समस्या खत्म हो जाएगी. लेकिन मीडिया की व्यावसायिक मजबूरी उसे मुद्दे को दूर तक ले जाने के लिए प्रेरित करती है. मुझे अफसोस है कि मुझे यह बात पता नहीं थी.’’

सलीम खान ट्वीटर पर ही आगे लिखते हैं-‘‘किसी के सिर पर तलवार रखकर उससे माफी मंगवाने का क्या मतलब? चाहे वह गलत है या सही,उस व्यक्ति को पता है कि उसने कोई अपराध नहीं किया.’’

किरण राव सिक्रेटली कर रही यह फिल्म शूट

आमीर खान की पत्नी और ‘धोबीघाट’ जैसी फिल्म निर्देशित कर चुकी किरण राव पिछले डेढ़ माह से गुप्त रूप से मुंबई के फिल्मालय स्टूडियो में अपनी नई फिल्म ‘बेगम आपा’ की शूटिंग करने में व्यस्त हैं. यूं तो किरण राव अपनी इस फिल्म को लेकर बहुत गोपनीयता बरत रही हैं, पर सूत्रों के अनुसार किरण राव ने अपनी इस फिल्म से जुडे़ हर तकनीशियन, स्पॉट ब्वॉय व कलाकार से लिखत रूप में लिया है कि वह कहीं भी इस फिल्म का जिक्र नहीं करेंगे.

सूत्रों की माने तो फिल्म ‘बेगम आपा’ की कहानी एक अधेड़ उम्र की औरत का कुछ बच्चों के साथ रिश्ते की है. किरण राव इसे अनूठी कथा मानकर चल रही हैं. सूत्रों के अनुसार किरण राव की पिछली फिल्म ‘धोबीघाट’ की ही तरह ‘बेगम आपा’ में भी आमीर खान अभिनय करते हुए नजर आएंगे. सूत्रों का दावा है कि इस फिल्म में आमीर खान ने एक कैमियो किया है.

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