दुर्भाग्य को दूर रखते हैं फेंगशुई के ये उपाय

परंपरागत फेंगशुई में डिवाइन गार्जियन बीस्ट और ड्रैगन का काफी महत्व है. इन्हें अच्छे स्वास्थ्य और किस्मत के लिए साथ रखा जा सकता है. आप चार गार्जियन बीस्ट वाले डिस्क वॉल हैंगिंग के रूप में अपने घर में लगा सकते हैं. इन्हें कार में भी लगवाया जा सकता है.

जानिए कुछ टिप्स-

– पूर्व दिशा का गार्जियन बीस्ट ब्ल्यू ड्रैगन है, जबकि पश्चिम का वाइट टाइगर. इसी तरह दक्षिण का गार्जियन बीस्ट सुजाकू (नदी) है और उत्तर का ड्रैगन प्लस (पहाड़).

– यदि इन्हें एक साथ एक ही गैजेट में स्थान दिया जाए तो सकारात्मक ऊर्जा यानी ‘ची’ का प्रवाह होता है.

– इन्हें आप स्टडी रूम या ऑफिस की दीवारों पर भी लगा सकते हैं.

– इन्हें मैटल के पाइप्स के साथ अटैच कर घर के दरवाजे पर विंड चाइम के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

– इन्हें कार के डैशबोर्ड पर या लटकते हुए भी लगाया जा सकता है. ये गैजेट ऑनलाइन साइट्स पर उपलब्ध हैं.

लाइफ में चाहिए लोनलीनेस, घूम आयें यहां

वॉट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम के बढ़ते क्रेज ने जाने-अनजाने ट्रैवल के ट्रेन्ड को भी बढ़ाने का काम किया है. लेकिन वहीं कुछ लोग अपने वेकेशंस को फोन और नेट से दूर शांति से एन्जॉय करने में बिलीव करते हैं.

चांगलांग, अरुणाचल प्रदेश

नॉर्थ ईस्ट की ये अलग सी जगह आजकल टूरिस्ट्स के नेट फ्री वेकेशन की लिस्ट में टॉप पर है. नेचुरल ब्यूटी से घिरी इस जगह में गर्मियों के दौरान बहुत सारे टूरिस्ट देखे जा सकते हैं. रोड ट्रिप प्लान करके आप चांगलांग की खूबसूरती को बेहतर तरीके से एन्जॉय कर सकते हैं.

घूमने के लिए यहां लेक नो रिर्टन, हेल पास(Hell’s Pass’s) जैसी कई सारी जगहें हैं.

जाने का सही समय– अप्रैल से अक्टूबर

कैसे पहुंचें

हवाई सफर- डिब्रूगढ़, असम एयरपोर्ट से चांगलांग की दूरी महज 136 किमी है.

रेल- तिनसुकिया रेलवे स्टेशन यहां पहुचने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है.

रोड- डिब्रूगढ़ से 140 किमी, तिनसुकिया से 95 किमी और मार्गरिटा से 44 किमी का सफर तय करके यहां तक पहुंचा जा सकता है.

खीरगंगा, हिमाचल प्रदेश

शहर के भीड़भाड़ से दूर खीरगंगा, हिमाचल प्रदेश की सबसे ऊंची जगहों में से एक है जहां तक आप ट्रैकिंग करके भी पहुंच सकते हैं. ऊपरी छोर पर पहुंचकर आपको कई सारे खूबसूरत नजारे देखने को मिलेंगे. चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और उनके बीच गर्म पानी के झरने, सफर के थकान को मिटाने का काम करते हैं. ऑफिस, फ्रेंड्स और फैमिली के फोनकॉल्स से दूर रहना चाहते हैं तो खीरगंगा आने का प्लान करें.

जाने का सही समय– मई से नवंबर

कैसे पहुंचें

हवाई सफर- खीरगंगा का सबसे निकटतम एयरपोर्ट पंतनगर है जो लगभग 235 किमी दूर है. जहां से आप टैक्सी और बस भी ले सकते हैं.

रेल- खीरगंगा के सबसे पास का रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जो महज 198 किमी दूर है. यहां से बस और टेक्सी लेकर बारशैनी पहुंचा जा सकता है जो खीरगंगा से 11 किमी दूर है.

रोड- खीरगंगा तक पहुंचने के लिए बारशैनी तक बस की सुविधा भी मिलती है.

आइस किंगडम, जंसकार, जम्मू-कश्मीर

जम्मू-कश्मीर को भारत का स्वर्ग कहा जाता है और यहां घूमने के लिए कई सारी जगहें हैं. लेकिन यहां का आइस किंगडम, एक ऐसी जगह है जहां की नेचुरल ब्यूटी आपको अपनी ओर खींचती है. चारों और फैली बर्फ आपको फिल्म आइस एज की याद दिला सकती है. सबसे अच्छी बात कि आपको यहां परेशान करने वाले फोन कॉल्स और मैसेज से भी राहत मिलेगी मतलब छुट्टियों को पूरा एन्जॉय कर सकते हैं.

जाने का सही समय– अप्रैल से अगस्त

कैसे पहुंचे

हवाई सफर- जंसकार का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट लेह है जो जम्मू-कश्मीर, श्रीनगर और दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों को जोड़ता है. एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर आराम से यहां तक पहुंचा जा सकता है.

रेल- जम्मू तक की रेल सुविधा जंसकार पहुंचने के लिए लेनी होती है और यहां से बस मिलती है.

रोड- जम्मू-कश्मीर से रोजाना लेह और कारगिल तक के लिए बसें चलती हैं जो सुरु और जंसकार वैली तक पहुंचने के लिए बेस्ट हैं. इसके अलावा मोटरसाइकिल और टैक्सी हायर करके भी यहां तक पहुंच सकते हैं.

चिटकुल, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश का चिटकुल, भारत-तिब्बत के बॉर्डर पर बसा अकेला गांव. शोर-गुल, भीड़-भाड़, फोन कॉल्स से दूर यहां जाकर बहुत ही सुकून भरा वेकेशन बिताया जा सकता है. यहां की खुबसूरती, चारों ओर फैली वादियां आपको अट्रैक्ट करने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगी.

जाने का सही समय– मार्च से अक्टूबर

कैसे पहुंचे- हिमाचल के लिए कई बसें, रेल की सुविधाएं लगभग रोजाना और हर समय अवेलेबल रहती हैं.

लंगथुंग-धुपीधारा, सिक्किम

सिक्किम की ज्यादातर जगहें बर्फ से ढ़की और टूरिस्ट्स से भरी मिलेंगी लेकिन लंगथंग-धुपीधारा जाना बहुत ही अच्छा एक्सपीरियंस साबित हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां से कंचनजंगा की ऊंची-ऊंची, बर्फ से ढ़की चोटियों को देख सकते हैं और लगभग पूरा सिक्किम भी यहां से साफ नजर आता है. अगर आप किसी ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां कोई आपको परेशान न कर सके तो यहां जाने की प्लानिंग बेस्ट रहेगी.

जाने का सही समय– जनवरी से अप्रैल तक यहां चारों ओर बर्फ रहती है. मई से जुलाई यहां बारिश होती है. अगस्त से सितंबर बेस्ट होता है यहां जाने के लिए.

कैसे पहुंचे

हवाई सफर- यहां कोई एयरपोर्ट नहीं है. गंगटोक से 124 किमी दूर पश्चिम बंगाल के बागडोरा में एयरपोर्ट है. जहां से पूरे 5 घंटे लगते हैं यहां तक पहुंचने के लिए. वैसे बागडोरा से गंगटोक तक हेलीकॉप्टर की सुविधा भी मिलती है.

रेल- न्यू जलपाईगुड़ी यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है.

रोड- सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग इन जगहों से टैक्सी लेकर यहां तक पहुंचा जा सकता है.

अगुंबे, कर्नाटक

अगुंबे को किंग कोबरा का घर कहा जाता है. यूनेस्को ने इसे अपने वर्ल्ड हेरिटेज साइट की लिस्ट में शामिल किया हुआ है. उन लोगों को ये जगह बहुत पसंद आएगी जो मोबाइल, ऑफिस से कुछ दिनों का ब्रेक लेना चाहते हैं.

जाने का सही समय– जनवरी से फरवरी और अक्टूबर से दिसंबर अच्छा मौसम रहेगा.

कैसे पहुंचे

हवाई सफर- मैंगलोर एयरपोर्ट यहां का नजदीकी एयरपोर्ट है. जहां से दिनभर टैक्सी और ऑटोरिक्शा मिलते हैं.

रेल- शिमोगा रेलवे स्टेशन की दूरी 90 किमी और उडुपी की 55 किमी है. दोनों ही जगहों से अगुंबे के लिए टैक्सी मिलती है.

रोड- बेंगलुरु से यहां कई सारी बसें डायरेक्ट अगुंबे के लिए चलती हैं.

स्वर्गारोहिणी, उत्तराखंड

इस चोटी से कई नदियां निकलती हैं. जिनमें सिन्धु, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और यांगत्सी बड़ी नदियां शामिल हैं. ऊपर बादल और नीचे साफ मैदान एक अलग ही सुकून का अहसास दिलाते हैं. जहां आप सुकून भरे पल बिता सकते हैं.

जाने का सही समय– अप्रैल से अक्टूबर तक

कैसे पहुचें– उत्तराखंड पहुंचकर यहां से टैक्सी और बस की सुविधा ली जा सकती है.

आ गया है ‘नागिन 2’ का प्रोमो

छोटे पर्दे का सबसे लोकप्रिय सीरियल ‘नागिन’ शुरुआत से ही टीआरपी में सबसे आगे रहा. रविवार 5 जून, 2016 को इस सीरियल का अंतिम एपीसोड टेलीकास्‍ट किया गया और इसी के साथ इस शो ने हमसे विदाई ले ली.

लेकिन ‘नागिन’ के फैन्स को उदास होने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि फर्स्ट सीजन खत्म होते ही ‘नागिन’ सीजन 2 की तैयारियां शुरू हो गई हैं. मौनी राय और अजरुन बिजलानी का परालौकिक ड्रामा ‘नागिन’ अक्तूबर में अपने दूसरे सीजन में फिर टीवी के पर्दे पर नजर आएगा.

कलर्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राज नायक ने नये सीजन के ट्रेलर को लिंक करते हुए ट्वीट किया, ‘‘हमारे सभी नागिन दर्शकों के लिए सीजन 2 इस अक्तूबर में वापस आएगा”.

इसी क्रम में सीजन 2 का पहला प्रोमो भी सामने आ गया है जिसे देखकर साफ है कि शिवन्या एक बार फिर शो में दिखाई देंगी.

लेकिन इस बार वह शिवन्या बनकर नहीं बल्कि शिवन्या-रितिक की बेटी के किरदार में नजर आएंगी. इतना ही नहीं शो में इच्छाधारी नागिन का किरदार निभा चुकीं अदा खान की भी वापसी होगी. इस शो का प्रसारण तीन महीने बाद यानी अक्टूबर से शुरू होगा.

अब देखना होगा एकता कपूर अगले सीजन में क्या कुछ नया लेकर आने वाली है.

मोहनजोदड़ो का मोशन पोस्टर रिलीज

बॉलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन इन दिनों अपनी आने वाली फिल्म मोहनजोदड़ो के बारे में चर्चा करते नहीं थक रहे हैं. मोहनजोदड़ो फिल्म का फर्स्ट  लुक रिलीज कर दिया गया. जिसमें ऋतिक और मगरमच्छ नजर आ रहे हैं. इसका ट्रेलर अगले सप्ताह आउट किया जाएगा.

लोगों को इस फिल्म के रिलीज होने का बेसब्री से इंतजार है. इसका बड़ा कारण है फिल्म की शूटिंग का वह हिस्सा जिसमें ऋतिक मगरमच्छ से लड़ाई करते है. जबलपुर के भेड़ाघाट में शूट किया गया था और इसके लिए ऋतिक सहित आशुतोष गोवारीकर व फिल्म की पूरी यूनिट ने जबलपुर में डेरा डाला था.

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म मोहनजोदड़ो में करीब साढ़े चार हजार साल पुरानी शहरी सभ्यता को जीवंत करने के लिए डायरेक्टर आशुतोष गोवारीकर अपनी 200 सदस्यीय यूनिट के साथ जबलपुर आए थे. वॉल्ट डिजनी प्रोडक्शन में बनी इस फिल्म में एआर रहमान ने संगीत दिया है.

चुना भेड़ाघाट मोहनजोदड़ो शहरी सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान में हैं. डायरेक्टर को शूटिंग के लिए रियल लगने वाली और सुरक्षित जगह की तलाश थी. जो कि भेड़ाघाट की स्वर्गद्वारी में पूरी हुई. फिल्म में रानी महल का ढांचा, पुराने शिला लेखों की मौजूदगी, दत्तात्रेय की गुफा, हजारों साल पुरानी, चट्टानों से होकर गुजरती नर्मदा, बंदरकूदनी, स्वर्गद्वारी, पंचवटी सहित लम्हेटाघाट के पुराने खंडहर हो चुके मंदिर भी दिखाया जाएगा.

कृत्रिम मगरमच्छ मोहनजोदड़ो की सबसे प्राचीन सभ्यता इस फिल्म में आकर्षण का केंद्र है. जो कि दर्शकों को कुछ सिंधु सभ्यता के काल से नवीनता की ओर ले जाएगा. इसमें ऋतिक आदिम युग के मानव के रूप में दिखाई देंगे. इस फिल्म में कृत्रिम मगरमच्छ को दिखाया गया.

जिसे लेकर गोवारीकर को वन विभाग के अफसरों की आपत्ति का भी सामना करना पड़ा था. हालांकि बाद में मामला सुलझ गया. इस फिल्म में इस्तेमाल किया गया मगरमच्छ विदेश से निर्मित कराया गया है. जिसकी कीमत भी करोड़ो में बताई जा रही है.

स्‍ट्रेच मार्क से ऐसे पायें छुटकारा

स्‍ट्रेच मार्क एक ऐसी समस्‍या है जो आपको मन चाहे कपड़े पहनने से रोकती है. अगर बाजुओं पर स्‍ट्रेच मार्क है तो आप स्‍लीवलेस टॉप नहीं पहन सकती हैं और अगर पेट पर स्‍ट्रेच मार्क है तो, साड़ी पहननी मुश्‍किल हो जाती है.

क्‍या आप जानती हैं कि आलू का रस और कैस्‍टर ऑइल, दो ऐसी चीज़ें हैं, जो फटी हुई स्‍किन को दुबारा रिपेयर करने का काम अच्‍छी तरह से करती हैं.

आज हम जो आपको स्‍किन पैक बनाना सिखाएंगे, उसमें विटामिन ई काफी मात्रा में होता है, जो आपके मार्क को धीरे धीरे दूर करेगा. तो अगर आप भी स्‍ट्रेच मार्क से परेशान हैं, तो इस पैक को कुछ दिनों तक नियमित लगाइये. आइये जानते हैं इसे बनाने का तरीका-

सामग्री

कैस्‍टर ऑइल- 1 चम्‍मच 

आलू का जूस- 2 चम्‍मच

विधि  

-सबसे पहले मिक्‍सर में आलू के पीस काट कर उसे ब्‍लेंड कर लें और जूस निकाल लें. 

-अब दो चम्‍मच जूस लें और उसमें 1 चम्‍मच कैस्‍टर ऑइल का मिलाएं. 

-इस लेप को किसी भी स्‍ट्रेच मार्क वाली जगह पर लगाएं और 30 मिनट तक छोड़ दें. 

-उसके बाद त्‍वचा को गुनगुने पानी और साबुन से धो कर साफ कर लें.

बार-बार पेनकिलर लेना कहीं पड़ न जाए भारी

आम तौर पर लोग सिर दर्द हो या पीठ में दर्द पेनकिलर बिना सोचे समझे ले लेते हैं. ये आदत आपके लिए कितना खतरनाक हो सकता है इसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा! हाल के एक रिसर्च से ये ज्ञात हुआ है कि पेनकिलर लेने से पुराने दर्द की समस्या जटिल रूप धारण कर सकती है. बार-बार दर्द निवारक दवायें पुराने यानि क्रॉनिक पेन का प्रॉबल्म बढ़ाने में अहम् भूमिका निभाती हैं.

अल्पकालिक दर्द को दूर करने में दर्द निवारक का सेवन स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक दुष्प्रभाव डाल सकता है. नए शोध में चेतावनी दी गई है कि दर्द निवारक खाने से कई पुराने दर्द की अवधि बढ़ जाती है. इन निष्कर्षों ने पिछले कुछ दशकों में दर्द निवारक दवा की लत के दुष्परिणामों की जानकारी दी है.

अमेरिका की युनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बाउल्डर से इस अध्ययन के मुख्य लेखक पीटर ग्रेस ने कहा, ‘हमने अपने शोध के जरिए बताया है कि मादक दवाओं का संक्षिप्त सेवन दर्द पर लंबी अवधि के नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है.’ शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि नशीले पदार्थ जैसे अफीम ने चूहों के पुराने दर्द में वृद्धि कर दी.

ग्रेस के अनुसार, परिणाम बताते हैं मानवों में दर्द निवारकों की वृद्धि पुराने दर्द को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती है. हमने पाया है कि यह उपचार समस्या को हल करने के बजाए उसे बढ़ा सकता है. यह शोध ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

बॉलीवुड पर भारी पड़ती हॉलीवुड की फिल्में

हॉलीवुड फिल्में इस वर्ष बॉलीवुड फिल्मों को घरेलू बाजार में कड़ी टक्कर देती प्रतीत हो रही हैं और खास तौर पर पिछले छह महीनों से तो हिंदी फिल्मों पर भारी पड़ती दिखाई दे रही हैं.

इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण ‘द जंगल बुक’  है जिसने भारतीय बॉक्स ऑफिस में अपने जबरदस्त प्रदर्शन से इतिहास रच दिया है. आठ अप्रैल को रिलीज हुई ‘जंगल बुक’ ने इसके एक सप्ताह बाद रिलीज हुई बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरूख खान की फिल्म ‘फैन’ को कड़ी टक्कर दी.

हालांकि ‘फैन’’ को करीब 19 करोड़ रपए की ओपनिंग मिली जबकि ‘‘जंगल बुक’’ को 10 करोड़ रपए की ओपनिंग मिली लेकिन फैन 90 करोड़ रपए का आंकड़ा पार करने के लिए संघर्ष कर रही है जबकि डिजनी की यह एनिमेटिड फिल्म हॉलीवुड फिल्मों के पिछले सभी रिकॉर्डस तोड़कर 183 करोड़ रपए कमा चुकी है.

यह साल की अब तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म है जिसने अक्षय कुमार की ‘एयरलिफ्ट’ को भी पछाड़ दिया जो 127 करोड़ रुपए की कमाई के साथ बॉलीवुड की वर्ष 2016 की अब तक की सबसे सफल फिल्म है.

इसके अलावा 12 फरवरी को कैटरीना कैफ अभिनीत ‘फितूर’ के साथ जारी ‘डैडपूल’ ने भी अच्छा प्रदर्शन किया और करीब 29 करोड़ रुपये की कमाई की जबकि ‘फितूर’ ने 19 करोड़ रुपये की कमाई की.

‘बैटमैन वर्सेस सुपरमैन’ को मिली जुली प्रतिक्रिया मिली लेकिन फिल्म ने एक सप्ताह में 36 करोड़ रुपये की कमाई की और उसने जॉन अब्राहिम की ‘रॉकी हैंडसम’ को आसानी से पछाड़ दिया.

इसी तरह ‘कुंग फु पांडा 3’ ने भी ‘का एंड की’ से मिली टक्कर के बावजूद भारतीय बॉक्स ऑफिस पर 32 करोड़ रुपये कमा लिए जबकि करीना कपूर की फिल्म ने 51 करोड़ रुपये कमाए.

‘कैप्टन अमेरिका: सिविल वॉर’ ने कुल करीब 59 करोड़ रुपये की कमाई की. इस फिल्म के हिंदी संस्करण के लिए वरूण धवन ने कैप्टन अमेरिका के किरदार को आवाज दी है. फिल्म ने प्रियंका चोपड़ा की ‘जय गंगाजल’, इमरान हाशमी की ‘अजहर’ और अमिताभ बच्चन की ‘वजीर’ से भी अधिक कमाई की है.

इसी तरह हाल में जारी ‘एक्स मैन: एपाकलिप्स’ ने ‘सरबजीत’ को कड़ी टक्कर दी और पहले सप्ताह में 26 करोड़ रुपये की कमाई की जबकि ऐश्वर्या राय अभिनीत फिल्म को करीब 22 करोड़ रुपये की शुरूआत मिली.

‘द एंग्री बर्डस मूवी’ ने भी ‘फोबिया’, ‘वीरप्पन’ और ‘वेटिंग’ को पछाड़ दिया.

अभी ‘कैंजरिंग 2: द एनफील्ड पोल्टरगीस्ट’, ‘सुसाइड स्क्वैड’, ‘फैनटास्टिक बीस्ट्स एंड व्हेयर टू फाइंड देम’ रिलीज होनी है. अब देखना यह होगा कि ये फिल्में बॉलीवुड फिल्मों के कारोबार को कितना प्रभावित करेंगी.

Box Office: ‘हाउसफुल’ 3 ने बनाए नए रिकॉर्ड

अक्षय कुमार की फिल्म ‘हाउसफुल 3’ की बॉक्स ऑफिस पर ओपनिंग अच्‍छी रही. यदि यह सिलसिला जारी रहा तो सफल फिल्मों की लिस्ट में इस फिल्म का भी नाम होगा. फिल्म ने अपने पहले वीकेंड में कुछ नए रिकॉर्ड बनाए हैं.  

हाउसफुल 3 ने विदेश में ओपनिंग वीकेंड में 26.77 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया. यह किसी भी अक्षय कुमार की फिल्म का विदेश में सर्वाधिक ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन है.

भारत में तीसरे दिन फिल्म ने 21.80 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया. यह अक्षय की किसी भी फिल्म के तीसरे दिन का सर्वाधिक कलेक्शन है. इसके पहले यह रिकॉर्ड ‘ब्रदर्स’ के नाम था जिसने तीसरे दिन 21.43 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया था. इतना ही नहीं तीसरे दिनका 21.80 करोड़ रुपये का कलेक्शन, अक्षय की किसी भी फिल्म का सर्वाधिक सिंगल डे कलेक्शन है.

हाउसफुल 3 का पहला वीकेंड कलेक्शन 53.31 करोड़ रुपये रहा. वर्ष 2016 में अब तक का यह सर्वाधिक ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन है. इसके पहले यह रिकॉर्ड ‘फैन’ के नाम था, जिसने 52.35 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया था.

 यह हाउसफुल सीरिज का सर्वाधिक ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन (53.31 करोड़ रुपये) है. हाउसफुल 2 ने अपने पहले वीकेंड पर 42.50 करोड़ रुपये और हाउसफुल ने 29.80 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया था. 

 यह अक्षय कुमार की किसी भी फिल्म का ओपनिंग वीकेंड पर दूसरे नंबर का कलेक्शन है. हाउसफुल 3 ने 53.31 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया जबकि ‘सिंह इज़ ब्लिंग’ 54.55 करोड़ रुपये के कलेक्शन के साथ पहले नंबर पर है.

पक्षियों में इश्क का जनून

प्यार, मनुहार और रूठनामनाना न केवल इंसानी आदत है, बल्कि पशुपक्षियों में भी यह गुण विद्यमान है. यह अलग बात है कि सभी पशुपक्षी ऐसी भावनाएं प्रकट नहीं करते. लेकिन कुछ पक्षी और पशु भी स्पष्ट तरीके से अपने प्रेम और समर्पण का इजहार करते हैं. पशुपक्षी भले इंसान की तरह रूठनेमनाने की कला में पारंगत न दिखते हों, मगर इन सब को ले कर जनून इन में भी इंसानों जैसा ही होता है.

इंसान ने प्रेम और निवेदन की तमाम कलाएं इन्हीं अबोलों से सीखी हैं. यह अलग बात है कि इंसान ने अपनी बुद्धि और कल्पनाशक्ति की बदौलत उन बेजबानों को भी मौलिक बना लिया है. प्रणय निवेदन की कला इंसान ने मूलत: पक्षियों से ही सीखी है. पक्षी धरती पर इश्क की कला के पुरखे माने जाते हैं. इंसान ने इश्क का जनून उन्हीं से उधार लिया है. भले ही वक्त के साथ इंसान पक्षियों से आगे निकल गया हो, लेकिन समागम, समर्पण और निवेदन की कला में उन का आज भी कोई सानी नहीं.

ग्लोबल वार्मिंग ने पूरे ईको सिस्टम को तहसनहस कर दिया है. पर्यावरण विनाश के कारण पक्षियों का कुदरती आवास छिन गया है, लेकिन पक्षियों का कलरव आज भी उतना ही मधुर है. वास्तव में यह कलरव या कोरस ही पक्षियों का प्रणय गीत है. एक समय गांवों में पक्षियों के इसी कलरव से सुबह की नींद खुलती थी. हालांकि पक्षियों के सामूहिक कलरव में यह पहचानना मुश्किल होता है कि इस में कौनकौन से पक्षियों का स्वर शामिल है, लेकिन कानों को शब्दरहित गीत बहुत भाता है. यों तो पक्षी हर मौसम में ही गुनगुनाते प्रतीत होते हैं, लेकिन गरमियों में खासकर बसंत पंचमी के बाद इन के स्वरों में कुछ ज्यादा ही मिठास घुल जाती है.

उत्तर भारत में जैसेजैसे अमराई की महक मादक होती जाती है, पक्षियों की कूक में दर्द, विरह और प्रणय निवेदन की कशिश बढ़ती जाती है और बरसात में अपने चरम पर होती है. वास्तव में यह समय पक्षियों के लिए घोंसले बनाने और अंडे देने का होता है, पक्षियों के कलरव का हमेशा एक सा अर्थ नहीं होता. पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि उन का सुबह का स्वर अपने होने का ऐलान होता है. साथ ही सुबह के इस कलरव से पक्षी मानो घोषणा करते हैं कि यह उन का इलाका है और वे अपने इलाके की बादशाहत संभालने के लिए मौजूद हैं. यह कलरव उन की मौजूदगी का शंखनाद भी होता है. इस का दूसरा उद्देश्य प्रणय के लिए साथी को अपनी ओर आकृष्ट करना भी होता है.

सुबह के कलरव की शुरुआत रात में पेड़ों की ऊंची शाखाओं पर डेरा जमाने वाले पक्षियों से होती है. शायद सूरज के प्रथम दर्शन करने की वे भरपाई कर रहे होते हैं. सुबह पौ फटने से पहले ही कई बार हम मोरों की आवाज सुनते हैं. रात को मोर बड़ेबड़े पेड़ों की ऊंची डालों पर सोते हैं, इसलिए सुबह सूरज की रोशनी से सब से पहले वे ही जगते हैं.

अधिकतर पक्षी अपने साथी को आकृष्ट करने के लिए गाने के साथसाथ नाचते भी हैं. मोर का आकर्षक नृत्य तो मुहावरा है. दरअसल, वह मोरनी को रिझाने के लिए ही नृत्य करता है. कई नर पक्षी मादा को रिझाने के लिए खतरनाक जोखिम उठाते हैं. ऐसा ही एक पक्षी है ‘खड़मोर.’ यह पारंपरिक मोर तो नहीं पर मोर की ही जाति का एक संकर पक्षी है. यह मादा को रिझाने के लिए खेतों में ऊंचीऊंची छलांगें लगाता है और फिर धम से गिर कर खेत में छिप जाने का नाटक करता है. यह मुंह से कई किस्म की आवाजें निकालता है. कई बार तो यह अपनी इस उछलकूद में अपने पैरों को लहूलुहान तक कर लेता है.

खड़मोर की ही तरह कोयल भी विरह गीत गाती है. बरसात के शुरुआती दिनों में कोयल का कूकना तब तक बेचैन करता है जब तक वह अंडे नहीं सेने लग जाती. दरअसल, डाल पर कूकती आवाज नर कोयल की होती है और वह उस समय जोड़ा बनाने के लिए साथी की तलाश कर रहा होता है. नर कोयल काला होता है, जबकि मादा भूरी या चितकबरी दिखती है. यही फर्क मोर और मोरनी में भी होता है.

बरसात के मौसम में हमें एक और पक्षी की आवाज बारबार सुनाई देती है, वह है पपीहा. फिल्मी गीतों का लोकप्रिय पपीहा. पपीहे के मुंह में शब्द भले ही हम अपनी कल्पना के डाल देते हों मगर यह अपनी प्रिय को ही देख रहा होता है.

पक्षियों की विस्तृत दुनिया में झांकने के लिए सब से पहले हमें अपने इर्दगिर्द के पक्षी जगत पर नजर दौड़ानी चाहिए. यदि हम अपनी खिड़की से बाहर झांकते हैं तो हमें जो बहुत से परिचित घरेलू पक्षी दिखाई पड़ेंगे उन में दिनदोपहरी कांवकांव करता कौआ, दहलीज पर दाना चुगती गौरैया, छज्जे पर गुटरगूं करता कबूतर और पंखों से आवाज निकालती मैना.

वास्तव में समय के साथ ये सारे पक्षी हमारे आसपास जीनारहना सीख गए हैं. हजारों साल पहले शायद ये भी पूर्णतया जंगल के वासी रहे होंगे, लेकिन भोजन की तलाश इन्हें धीरेधीरे बस्तियों के करीब ले आई. अब इन्होंने शहरी भीड़भाड़ में रहने के लिए सुकून और आवास तलाश लिया है. यहीं ये अपना भोजन तलाशते हैं, घोंसले बनाते हैं और रात यहीं किसी ऊंचे सुरक्षित ठौर पर सो भी जाते हैं.

यों तो इंसान के अलावा किसी अन्य प्रजाति में पारिवारिक जीवन की प्रतिबद्धता नहीं होती, न ही उन में इस की चाहत दिखती है. लेकिन लगाव और भावनात्मक आकर्षण सभी प्रजातियों में पाया जाता है. पक्षियों में प्रणय निवेदन की कला इसी लगाव से निकलती है.

यहां है मादा की हुकूमत

मजेदार बात यह है कि दिखने में सुंदर ज्यादातर नर पक्षी ही होते हैं, लेकिन पक्षियों की दुनिया में भी चलती मादाओं की ही है. इन के प्रणय निवेदन की जद्दोजेहद में भी यह साफ झलकता है. नर को ही मादा को मनाने के लिए दिनरात एक करना पड़ता है. मसलन, सब से सुंदर पक्षी मोर को ही लें. जब जोड़ा बनाने का समय आता है तो इतने खूबसूरत नर मोर को बेहद खूबसूरत मोरनी के सामने अपने सुंदर पंखों को फैलाए घंटों नाचना पड़ता है. मोरनी को खुश करने के लिए इठलाते रहना पड़ता है, तब जा कर मोरनी का दिल पसीजता है.

यही बात बया पक्षी में भी देखने को मिलती है. इसे पक्षियों का इंजीनियर कहते हैं. बया के बनाए घोंसले देख कर इंसान दांतों तले उंगली दबा लेता है. वर्षाऋतु के समय बया पक्षी घोंसला बनाता है. इस कलात्मक काम में वह पूरी तरह डूब जाता है. इतना प्यारा साफसुथरा और सुरक्षित घर बनाने के बावजूद नखरीली मादा को घर जल्दी पसंद नहीं आता. जब तक मादा बया इसे पसंद नहीं कर लेती तब तक घर को और बेहतर बनाने के लिए नर बया जुटा रहता है. इस घोंसले में अलगअलग कक्ष होते हैं. यहां तक कि कई बार तो रोशनी के लिए जुगनुओं को भी काम में लाया जाता है.

अब नीलकंठ को ही देखिए. वह जितना सुंदर उतना ही पवित्र भी माना जाता है. हालांकि यहां नर और मादा करीबकरीब एकजैसे ही होते हैं. फिर भी नर मादा नीलकंठ को खुश करने के लिए हवा में उड़ कर तरहतरह के करतब दिखाता है. कई बार तो वह ऊपर से पत्थर की तरह ऐसे नीचे गिरता है जैसे उस की जान ही निकल गई हो, पर जमीन के पास आते ही वह फिर ऊपर उड़ जाता है. ऐसा कब तक? जब तक नीलू मान न जाए. है न कठिन परीक्षा?

अब कबूतरों के बारे में भी जान लेते हैं. यह सब से प्रेमिल पक्षी है. अपनी मादा को रिझाने के लिए यह अपने पंख फैलाए उस के चारों ओर गुटरगूं करता चक्कर लगाता रहता है. यही नहीं कबूतर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह एक बार जिस से जोड़ा बना लेता है उस का साथ जीवन भर नहीं छोड़ता. इसीलिए कबूतर सदा जोड़े में ही दिखाई पड़ता है, लेकिन उसे भी कबूतरनी के नखरे उठाने पड़ते हैं.

दुनियाभर में सारस जैसा कोई दूसरा प्रेमी पक्षी नहीं है. यह अपने प्रेम के लिए विश्वप्रसिद्ध है. नर और मादा एकदूसरे के लिए सदा समर्पित रहते हैं. यदि इन में से किसी एक की भी मृत्यु हो जाए तो दूसरा भी अन्नजल त्याग कर अपनी जान दे देता है. मगर प्रणय निवेदन में मादा सारस भी खूब नाकों चने चबवाती है.

सारस के ठीक विपरीत जीवनशैली है हंस की. यह निडर पर नाजुक पक्षी बहुपत्नी प्रथा को मानने वाला है. अपने सौंदर्य और मनलुभावनी चाल के कारण लोकप्रिय हंस की बहुत सारी पत्नियां होती हैं.                      

सोशल मीडिया: विचारों का सुलभ मंच

सोशल मीडिया यानी अपने विचार व्यक्त करने का वह माध्यम जो सब की पहुंच में है. सोशल मीडिया ने बहुत कम समय में देश और दुनिया की दूरी मिटाने में जो सफलता हासिल की है वह अपने में अद्वितीय है. सोशल मीडिया के अलगअलग माध्यम हैं, इन में सब से लोकप्रिय माध्यम फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर, हाइक, लिंकडेन और इंस्टाग्राम हैं. सोशल मीडिया की लोकप्रियता की सब से बड़ी विशेषता है कि आज इसे हर तरह की योजना में शामिल करने की प्लानिंग की जा रही है. सोशल मीडिया को स्मार्टफोन ने प्रभावी बना दिया है.

स्मार्टफोन के जरिए सोशल मीडिया के सभी टूल्स प्रयोग करने में बहुत सरल हो गए हैं. इंटरनैट कंपनियों ने किफायती डेटा प्लान दे कर स्मार्टफोन पर इंटरनैट के प्रयोग को सरल बना दिया है. अब जरूरत के मुताबिक इंटरनैट प्लान लेना सरल हो गया है.

सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफौर्म बन गया है जो न केवल विचारों को व्यक्त करने का सुलभ साधन है बल्कि इस के जरिए एकदूसरे तक पहुंच भी आसान हो गई है. अब पूरा समाज एक संयुक्त परिवार की तरह नजर आने लगा है. अब एकदूसरे की मदद करना, किसी समस्या का समाधान खोजना और अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना आसान हो गया है. इस से लोगों को अकेलेपन का एहसास नहीं होता.

सोशल मीडिया के जरिए बिजनैस और औफिस के संदेश एकदूसरे तक पहुंचाना सरल हो गया है. सब से बड़ी बात यह है कि इस में अलग से कुछ खर्च नहीं करना पड़ता.

फोटो और वीडियो भी एकदूसरे को भेजना आसान हो गया है. प्रचारप्रसार की सुविधा ने सोशल मीडिया को सोशल टूल्स जैसा बना दिया है. केवल प्रोडक्ट्स के प्रचार का ही नहीं बल्कि राजनीतिक विचारों को आम लोगों तक पहुंचाने का भी सोशल मीडिया बड़ा माध्यम बन गया है.

मशीनीकरण ने भरी संबंधों में ऊर्जा

सोशल मीडिया पूरी तरह मशीन पर चलने वाला माध्यम है. इस को चलाने के लिए कंप्यूटर, लैपटौप, टैब्स और स्मार्टफोन की जरूरत होती है. यह इंटरनैट के डेटा प्लान पर चलता है. इंटरनैट एक तरह से इस की सांस है. लखनऊ निवासी कीर्ति पंत कहती हैं, ‘‘मशीनीकरण से चलने वाले सोशल मीडिया ने संबंधों में नई ऊर्जा भर दी है. हम एक शहर में और कई बार तो एक ही सोसायटी में रहने के बाद भी एकदूसरे से नहीं मिल पाते थे. किसी की जिंदगी में हंसीखुशी के पल का पता नहीं चलता था और किसी की दुखबीमारी भी मालूम नहीं होती थी. लेकिन अब फेसबुक ने लाइफ के हर पल को आपस में शेयर करने का सब से सरल रास्ता दे दिया है. अब हमें बिना एकदूसरे से मिले भी उस के बारे में जानकारी मिलती रहती है.’’

अपने शहर में ही नहीं देश और दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले से हम जुड़ गए हैं. हम केवल उस की बातों को देख या पढ़ ही नहीं सकते, उस पर अपने कमैंट्स भी दे सकते हैं. कोई भी फोटो या वीडियो भेज सकते हैं. हम एकदूसरे से चैटिंग के जरिए ऐसे बात कर सकते हैं जैसे आमनेसामने बैठ कर बात कर रहे हों. कहते हैं कि मशीन में कोई भाव नहीं होता पर मशीन के सहारे चलने वाला सोशल मीडिया हमारे हर भाव को हमारे जाननेपहचानने वालों तक और अनजान लोगों तक पहुंचाने में मदद करता है.

यूथ का टूल बन गया सोशल मीडिया

सोशल मीडिया का प्रभाव हर पीढ़ी पर है. लेकिन इस से सब से अधिक लाभान्वित युवावर्ग हो रहा है. उन्हें दोस्त बनाने, उन तक अपनी बातें पहुंचाने, पढ़ाईलिखाई और सूचनाओं का आदानप्रदान करने के लिए यह सब से प्रमुख जरिया बन गया है. लखनऊ की श्वेता भारद्वाज कहती हैं, ‘‘छोटेबड़े हर वर्ग के लिए यह माध्यम सब से अधिक उपयोगी होने लगा है. मान लीजिए कोई बच्चा बीमार पड़ जाए और उस को स्कूल से अवकाश लेना पड़े. उसे यह पता करने के लिए कि अवकाश के दौरान स्कूल में क्या पढ़ाई हुई, पहले अपने साथी के घर जा कर उस की नोटबुक देखनी पड़ती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. बच्चा मोबाइल फोन से क्लास वर्क का फोटो क्लिक कर के व्हाट्सऐप से अपने साथी को भेज सकता है, जिस से वह अपना काम आसानी से कर सकता है. आजकल पेपर स्कैन कर के रखना और एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजना सरल और सहज हो गया है.’’

ममता कांडपाल कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया संचार का सब से बेहतर माध्यम होने के साथसाथ ऐसे लोगों का भी टूल बन गया है जो अफवाह फैला कर एकदूसरे को आपस में लड़ाना चाहते हैं. सोशल मीडिया खासकर व्हाट्सऐप के जरिए हम महत्त्वपूर्ण पेपर्स एकदूसरे तक जल्दी पहुंचा सकते हैं. ये कागजात हमेशा के लिए सुरक्षित भी हो जाते हैं. ऐसे में इन के खोने या नष्ट होने का खतरा भी कम हो गया है. इन पेपर्स को रखने के लिए किसी और चीज की जरूरत नहीं होती. इसी तरह हम अपने लिखे विचार और फोटो भी तमाम लोगों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं. इस तरह हमारे विचार जस के तस दूसरों तक पहुंच जाते हैं. किसी किताब के अंश, कहानी का हिस्सा ऐसे ही एकदूसरे तक पहुंचाए जा सकते हैं.’’

हर काम के विचार

विचार केवल वे ही नहीं होते, जो आदर्शवादी बातें हों. फैशन, लाइफ स्टाइल, नए ट्रैंड भी विचारों की श्रेणी में आते हैं. टीचिंग प्रोफैशन से जुड़ी सुनीता राय कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया का प्रयोग हर क्षेत्र में होने लगा है. इस के चलते जिंदगी के बहुत से काम आसान हो गए हैं. अब जानकारी हासिल करना आसान हो गया है. स्कूल और पढ़ाई में भी सोशल मीडिया का प्रयोग होने लगा है. स्कूलों में सभी टीचर्स के नंबर्स को ले कर व्हाट्सऐप पर एक ग्रुप बना दिया जाता है, जिस में कोई भी जानकारी एक टीचर से दूसरे टीचर तक पहुंचने में सैकंड से भी कम समय लगता है. स्कूल प्रबंधन के लिए भी यह बहुत सरल और सुविधाजनक हो गया है. पहले इस के लिए नोटिस लगाना पड़ता था. आसानी से यह देखा भी जा सकता है कि किसकिस ने सूचना पढ़ ली है और किसकिस को सूचना मिल गई है.’’

बुटिक चलाने वाली रेनू अग्रवाल कहती हैं, ‘‘यूथ अब अपने ट्रैंडी फैशनवियर के डिजाइन एकदूसरे को शेयर कर सकते हैं. किसी को जो डिजाइन अपने लिए पसंद होते हैं उन को वे एकदूसरे से ले सकते हैं. कहते हैं कि ड्रैस दूसरों की पसंद से लेनी चाहिए. ऐसे में सोशल मीडिया के जरिए अपने दोस्तों से राय ले कर ड्रैस पसंद की जा सकती है.’’

कानपुर की रहने वाली दीक्षा शर्मा कहती हैं, ‘‘हर किसी तक अपने विचारों को पहुंचाना अब सरल हो गया है. आप की लिखी एक बात को सैकडों में हजारों लोग पढ़ते और देखते हैं. वे उस विचार को वहां से ले कर कहीं और भी पोस्ट कर सकते हैं, जिस से उन विचारों का लाभ तमाम लोगों तक एकसाथ पहुंच जाता है. वे उन विचारों को अपना समर्थन और विरोध दोनों दे सकते हैं. फेसबुक पर अब ऐसी सुविधा भी दे दी गई है कि आप लाइक के जरिए एक सिंबल से ही अपने भाव को प्रकट कर सकते हैं कि आप को खुशी है कि नाराजगी.’’

वैचारिक क्रांति का सूत्रपात

सोशल मीडिया एक तरह से वैचारिक क्रांति का सूत्रपात सा है. हैदराबाद के रोहित वेमुला का मामला हो या दिल्ली के जेएनयू के कन्हैया कुमार का. अन्ना की क्रांति हो या केजरीवाल की सफलता. हर कहीं सोशल मीडिया की ताकत को परखा जा चुका है. सोशल मीडिया पर विचारों को व्यक्त करने की आजादी मिलती है जो कहीं और नहीं मिलती.

अभिनेत्री और लेखिका सिम्मी भाटिया कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया वैचारिक क्रांति का सब से बड़ा सूत्रधार बन गया है. अपने विचारों को तेजी से एक से दूसरे तक पहुंचाया जा सकता है, जो समाचार पहले कई दिन और घंटों के बाद एक से दूसरे तक पहुंचता था, अब वह कुछ ही क्षणों में एकदूसरे तक पहुंचने लगा है और उस के समर्थन और विरोध में भी तत्काल बहस चलने लगती है. कई बार इस से सरकारें तक दबाव में आ जाती हैं व जनता के हित वाला फैसला लेने पर विवश हो जाती हैं. ट्विटर के जरिए मंत्रीअफसर तक जनता से जुडे़ होते हैं. कई बार सोशल मीडिया के माध्यम से प्रकाश में आए समाचारों को संज्ञान में ले कर काम किया जाता है.’’

लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में कार्यरत चंद्रप्रभा कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया ने जनता के हाथों में एक पावर दे दी है, जिस के माध्यम से जनता अपनी बात तमाम लोगों तक पहुंचाने में सफल होती है. पहले अखबार और चैनल हर बात को जस का तस प्रस्तुत नहीं करते थे. इस के अपने लाभ और नुकसान दोनों होते थे. अब जनता अपनी बात को अपनी तरह से कहने के लिए आजाद है. किसी बड़े नेता या अफसर के संदेश में वह विरोध और समर्थन करने को आजाद है. उस की सही बात का समर्थन करने वाले भी बहुत लोग मिल सकते हैं, जिस से उस का हौसला बढ़ जाता है.’’

अंश वैलफेयर फाउंडेशन की अध्यक्ष श्रद्धा सक्सेना कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया के रूप में एक ऐसी ताकत हाथ लगी है जिस के जरिए परिवार, दोस्त, नातेरिश्तेदार सब एक मंच पर अपने विचारों को कहने और सुनने को पूरी तरह से आजाद रहते हैं. कई बार दबाव में आमनेसामने अपनी बात को कहने में लोग संकोच करते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. मन की बात कहने को हर कोई आजाद है. जरूरत इस बात की है कि लोग अपने विचार व्यक्त करें, पर यह जरूर ध्यान रहे कि आप के विचारों से दूसरे आहत न हों. इस से सोशल मीडिया के प्रति जिम्मेदारी का भाव बढ़ेगा और सभी इस को पूरी गंभीरता से लेंगे.’’

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