Abhishek Bachchan की रूमर्ड गर्लफ्रैंड ने तोड़ी चुप्पी, ‘कोई रोक नहीं सकता…’

जूनियर बच्चन (Abhishek Bachchan) और ऐश्वर्या राय बच्चन के तलाक की खबरें पिछले कई महीनों से सुर्खियों में छाई हुई हैं. अनंत अंबानी की शादी में एक तरफ बच्चन परिवार तो दूसरी तरफ ऐश्वर्या अपनी बेटी आराध्या के साथ नजर आ रही थीं. हालांकि बाद में अभिषेक भी ऐश और आराध्या संग नजर आए थे. लेकिन लोग कयास लगाने लगे कि दोनों का तलाक कन्फर्म है. दोनों के अलगाव की वजह जया बच्चन और श्वेता नंदा को माना जाता रहा है, लेकिन अब कुछ दिनों से खबरें आ रही है कि अभिषेक और ऐश्वर्या की जिंदगी में ‘वो’ की एंट्री हो चुकी है.

गपशप को कोई रोक नहीं सकता – निमरत कौर

कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि फिल्म दसवीं फेम निमरत कौर और जूनियर बच्चन एकदूसरे को डेट कर रहे हैं, इसी वजह से अभिषेक और ऐश्वर्या का तलाक हो रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक निमरत कौर ने चुप्पी तोड़ी है. एक बयान में निमरत ने कहा है कि ‘मैं कुछ भी कर सकती थी और लोगों को वही कहना है, जो वो कहना चाहते हैं. फिर भी वहीं कहेंगे जो वे चाहते हैं. ऐसी गपशप को रोकना संभव नहीं है और इन सबके बीच मैं अपने काम पर फोकस करना पसंद करती हूं.

जोगन बनीं निमरत कौर, शेयर किया वीडियो

अभिषेक संग लिंकअप के खबरों के बीच निमरत कौर ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह किसी जोगन से कम नहीं लग रही हैं. इस वीडियो में पंजाबी गाना सोहनया अभी न जा…शेयर किया है. यह काफी रोमांटिक गाना है, इसमें निमरत पीले रंग की साड़ी में बेहद खूबसूरत नजर आ रही हैं. इस वीडियो को यूजर्स अभिषेक से कनेक्ट कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि निमरत की आंखों में प्यार साफ दिखाई दे रहा है.

तलाक की खबरों पर अभिषेक ने दी थी सफाई

आपको बता दें कि निमरत से पहले अभिषेक बच्चन ने सफाई दी थी. पेरिस ओलंपिक के दौरान अपनी तलाक की खबरों पर वेडिंग रिंग दिखाते हुए कहा कि मैं अभी भी शादीशुदा हूं. हालांकि ऐश्वर्या या बच्चन फैमिली से किसी ने अभिषेक की शादीशुदा जिंदगी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

सिर्फ एक शख्स को ऐश करती हैं फौलो

इंस्टाग्राम पर ऐश्वर्या राय सिर्फ एक शख्स को फौलो करती हैं और वह हैं उनके पति अभिषेक बच्चन… इससे पता चलता है कि ऐश्वर्या की जिंदगी में अभिषेक कितना मायने रखते हैं. हालांकि अभिषेक बच्चन ऐश्वर्या राय के अलावा कई लोगों को फौलो करते हैं. अकसर हर इवेंट में ऐश अपनी बेटी आराध्या के साथ स्पौट की जाती हैं. दोनों मांबेटी की जोड़ी को फैंस बेहद पसंद करते हैं.

दीवाली पर आप भी अपनाएं विद्या बालन का मूवी प्रमोशन वाला मैथड ड्र‍ैसिंग लुक्‍स

विद्या बालन की लेटेस्ट फिल्म ‘भूल भुलैया 3’ दिवाली पर रिलीज होने वाली है, ऐसे में उनको एक बार फिर मेथड ड्रेसिंग करते देखा गया. विद्या फिल्म प्रमोशन के दौरान मेथड ड्रेसिंग के प्रति डेडिकेशन के लिए फेमस हैं. उन्होंने पहले भी इस ड्रेसिंग स्टाइल को अपनाया है, जिससे यह अब उनके प्रमोशनल लुक्स की पहचान बन गई है. अपनी आने वाली फिल्म ‘भूल भुलैया 3’ के प्रमोशन के लिए भी विद्या ने इस परंपरा को जारी रखा और ब्लैक कलर की थीम अपनाते हुए एक से बढ़कर एक लुभावने आउटफिट्स पेश किए, जो उनके लुक और भी बेहतर बना रहे हैं आइए, उनके छह शानदार प्रमोशनल लुक्स पर एक नज़र डालते हैं.

ब्लैक क्रेप अनारकली सूट

एक कौमेडी रियलिटी शो में विद्या ने अंजना बोहरा द्वारा डिजाइन किया गया ब्लैक कलर का खूबसूरत क्रेप अनारकली सूट पहना. इस सूट के साथ ब्लैक और्गेन्जा दुपट्टा था, जिसमें बारीक हैंड इम्ब्रौइडरी का काम किया गया था, जो अनारकली के साथ पूरी तरह मेल खा रहा था. यह लुक रोयल चार्म से भरपूर था, जिससे विद्या डिग्निटी और डिसेंसी की सिंबल लग रही थीं.

2. गोल्डन बौर्डर वाली ब्लैक साड़ी-

जयपुर में ट्रेलर रिलीज इवेंट पर, विद्या ने गोल्डन बौर्डर वाली प्लेन ब्लैक साड़ी पहनी, जिसे डिजाइनर टोरानी ने डिजाइन किया था. साड़ी को गोल्डन सितारों की बेल के साथ डेकोरेट किया गया था, जो उसमें शाइन और चार्म दिखा रहा था. ब्लाउज में मेगा स्लीव्स और हैवी डिजाइन था, जो आउटफिट को बेस्ट रूप दे रहा था. यह लुक परफेक्ट ट्रेडिशनल डिग्निटी और मौडर्निटी का एक बेहतरीन संगम था.

3.चंदेरी सिल्क लहंगा सेट

अहमदाबाद के एक गरबा इवेंट के लिए विद्या ने ब्लैक कलर की थीम से हटते हुए, जिगर माली द्वारा डिजाइन किया गया नेवी ब्लू चंदेरी सिल्क लहंगा सेट पहना. लहंगे के साथ और्गेन्जा दुपट्टा था, जिसमें एंटीक गोल्ड स्ट्रिंग और फाइन हैंड एम्ब्रायडरी थी. यह आउटफिट गरबा के उत्सवपूर्ण माहौल के लिए बेस्ट था इस आउटफिट में विद्या की शालीनता देखते ही बनती है.

4.गोल्ड फायल प्रिंटेड साड़ी-

अहमदाबाद प्रेस शो के दौरान, विद्या ने फिर से ब्लैक कलर की थीम पर लौटते हुए शौप 369 के सस्टेनेबल फैशन ब्रांड की गोल्ड फायल प्रिंटेड साड़ी पहनी. इस साड़ी में गोल्डन फ्लावर्स का खूबसूरत प्रिंट था. विद्या की यह पसंद उनके सस्टेनेबल फैशन के प्रति डेडिकेशन को दर्शाती है, जिससे एक स्ट्रांग मैसेज भी जाता है.

5. कलीदार अनारकली

एक सिंगिंग रियलिटी शो में विद्या ने सू मुए द्वारा डिजाइन किया गया ब्लैक कलर का कलीदार अनारकली पहना। यह कच्चे सिल्क का बना हुआ था, जिसमें वी-नेकलाइन और फुल स्लीव्स थीं. साथ में मैचिंग पैंट्स और ब्लैक प्योर सिल्क और्गेन्जा दुपट्टे ने इस लुक को पूरा किया। इस पर लाइट गोल्ड जरी और मल्टीकलर सिल्क थ्रेड से बनी आरी एम्ब्रौयडरी की गई थी, जिसे और अधिक आकर्षक बनाने के लिए सीक्विन और पर्ल लगाए गए थे.

6. सीक्विन डौटेड ब्लैक साड़ी-

एक रियलिटी गेम शो में प्रमोशन के लिए यह लुक अब्राहम एंड ठाकोर द्वारा डिज़ाइन की गई सीक्विन डौटेड ब्लैक साड़ी थी, जिसमें व्हाइट एब्सट्रैक्ट प्रिंट थे. सेमीशीयर जौर्जेट सिल्क से बनी इस साड़ी में प्राचीन हाथ से की गई अड्डा एम्ब्रौयडरी का काम था, जो इस आउटफिट को और भी शानदार रूप दे रहा था.

ननद का पति मुझे गलत तरीके से टच करता है और धमकी भी देता है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरे ननद का पति मुझे गलत तरीके से छूने की कोशिश करता है. जब मैंने ये बात अपने ननद और सास से बताई, तो वह दोनों ही उल्टा में मुझे बुरा कहने लगे. मेरे पति घर से दूर रहते हैं, ऐसे में वह मुझे मेरे पति के खिलाफ भड़काता है और मेरे साथ फिजिकल रिलेशन बनाने की बात कहता है, जब मैं मना करती हूं, तो वह मुझे धमकी भी देता है, समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं?

जवाब

आपके ननद के हसबैंड एक तो आपके साथ गलत व्यवहार कर रहे हैं और धमकी भी दे रहे हैं. आपको उनसे थोड़ा संभल कर रहने की जरूरत है. आपके पति घर से बाहर रहते हैं, लेकिन आपको ये बात उनसे शेयर करना चाहिए, ताकि वह आपका सपोर्ट करें और उस आदमी की सच्चाई जान सकें. कई लोग रिश्ते के आड़ में ही महिलाओं का फायदा उठाते हैं. वह आपके रिश्तेदार है, ये सोचकर आप बिलकुल चुप न बैठें. आजकल तो मोबाइल का जमाना है, जब भी वह आपके पास आते हैं, ये आपको धमकी देते हैं, तो आप चुपके से मोबाइल रिकौर्डिंग भी औन कर सकती हैं. इस सच्चाई को सामने लाने के लिए आपके पास कोई प्रूफ होना जरूरी है, तभी आपके परिवार के लोग विश्वास कर पाएंगे.

रिश्ते में भूलकर भी न बोलें ये झूठ

बीमारियां कभीकभी जिंदगीभर तक जुड़ी रहती हैं. इसलिए अगर आप किसी ऐसी बीमारी से पीडि़त हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है तो अपने पार्टनर को इस के बारे में बताना बेहद जरूरी है. कभीकभी झूठ बोलना ठीक होता है. मान लीजिए किसी का भला हो रहा है तो फिर भी वह झूठ सहन किया जा सकता है लेकिन अगर आप हर बात पर झूठ बोलेंगे तो पार्टनर के मन पर गलत असर पड़ेगा. इससे आपके रिश्ते में शक की दीवार बनेगी. धीरेधीरे शायद वह आप की किसी बात पर विश्वास न करे और हर बात की पहले पड़ताल करे. इसलिए कभी ऐसा न करें. जिस रिश्ते की बुनियाद झूठ पर रखी गई हो वह रिश्ता ज्यादा देर तक नहीं चलता है.

कई बार झूठ बोलेने की वजह से रिश्ते टूटने लगते हैं. हर किसी के लाइफ में एक ऐसा शख्स होना चाहिए, जिससे हम अपने मन की हर बात शेयर कर सकें और लाइफ पार्टनर को आप सच्चा दोस्त बना सकते हैं.

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वैवाहिक बलात्कार और कानून का ऊंट

कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिन के जवाब न तो समाज के पास होते हैं और न ही कानून के पास. ऐसे प्रश्नों के जवाब प्रकृति के पास अवश्य होते हैं. ऐसा ही एक सवाल है वैवाहिक बलात्कार का. क्या वैश्विक रूप से उठते समाज के इस गूढ़ प्रश्न का जवाब मनुष्य के ही पास है?

कैसे सुलझेगी गुत्थी

दरअसल, प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने वैवाहिक बलात्कार के मामलों में पतियों को दी गई ‘छूट’ को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई को को 4 सप्ताह के लिए टाल दिया. प्रधान न्यायाधीश 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. ऐसे में स्पष्ट हो जाता है कि अब भारत के नए प्रधान न्यायाधीश ही वैवाहिक बलात्कार की गुत्थी को सुलझाएंगे.

आइए, आप को बताते हैं कि देश के सब से बड़े न्यायालय में 23 अक्तूबर, 2024 को वैवाहिक बलात्कार के मसले पर क्या संवाद हुआ :

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वकीलों से पूछा कि अलगअलग दलील पेश करने के लिए उन्हें कितना वक्त चाहिए?

यह कि पीठ ने याचिकाओं पर 17 अक्तूबर, 2024 को अंतिम सुनवाई शुरू की थी. एक पक्ष की ओर से पेश हुए अधिवक्ता गोपाल
शंकरनारायण ने कहा,”उन्हें अपनी दलीलें पूरी करने के लिए कम से कम 1 दिन का वक्त लगेगा क्योंकि इस तरह के महत्त्वपूर्ण विषय में जरूरी विस्तृत दलीलों को वह संक्षिप्त नहीं करना चाहते.”

दूसरी तरफ केंद्र की ओर से सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता, महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और एक महिला की पैरवी कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि उन में से प्रत्येक को दलील पूरी करने के लिए 1-1 दिन का वक्त चाहिए.

फैसला कब तक

इधर उच्चतम अदालत दीवाली की छुट्टियों के लिए 26 अक्तूबर, 2024 को बंद हो रही है और 4 नवंबर को खुलेगी. मामले की सुनवाई करने और फैसला सुनाने के लिए प्रधान न्यायाधीश के पास 5 दिन ही शेष बचेंगे.

ऐसे में प्रधान न्यायाधीश ने कहा,”यदि इस हफ्ते दलीलें पूरी नहीं हो पाती हैं तो उन के लिए निर्णय सुना पाना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि वे 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. समय के अनुमान को देखते हुए हमारा मानना है कि निकट भविष्य में सुनवाई पूरी करना संभव नहीं होगा. याचिकाओं को 4 सप्ताह बाद किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए.”

अधिवक्ता शंकरनारायण ने कहा,”हमें बहुत अफसोस है कि हम इसे जारी रखना चाहते हैं.”

सौलिसिटर जनरल ने कहा,”केंद्र का यह कहना है कि विवाह सहमति की अवधारणा को समाप्त नहीं करता, लेकिन साथ ही वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में डालने के लिए मामले का विभिन्न दृष्टिकोणों से आंकलन करना होगा.”

वहीं एक याचिकाकर्ता की ओर पेश वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने कहा,”याचिका देश की करोड़ों महिलाओं के बारे में है और इस की ‘अत्यधिक तात्कालिकता’ है. प्रधान न्यायाधीश सुनवाई जारी रखें क्योंकि उन्होंने पूर्व में कई महत्त्वपूर्ण निर्णय सुनाए हैं.”

पीठ ने 17 अक्तूबर, 2024 को कहा था कि यह भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के उन दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय करेगी, जो पत्नी के
नाबालिग नहीं होने की स्थिति में उस के साथ जबरन यौन संबंध बनाने पर बलात्कार के अपराध के लिए पति को अभियोजन से छूट प्रदान करते हैं.

अंत में प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ताओं से केंद्र की इस दलील पर विचार मांगा कि ऐसे कृत्यों को दंडनीय बनाने से वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा और विवाह नाम की संस्था प्रभावित होगी.

भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद खंड को अब निरस्त कर दिया गया है और बीएनएस द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। इस अपवाद खंड के तहत पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना, यदि पत्नी नाबालिग न हो, बलात्कार नहीं है.

नए कानून के तहत भी धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद खंड 2 में कहा गया है कि पति द्वारा पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना, यदि पत्नी 18 वर्ष से कम आयु की न हो, बलात्कार नहीं है.

वैवाहिक बलात्कार का सवाल

दरअसल, जीवनसाथी की सहमति के बिना उन के साथ यौन संबंध बनाना एक तरह से घरेलू हिंसा और यौन शोषण है। हालांकि पहले शादी के बाद संभोग को पति या पत्नी का अधिकार माना जाता था, मगर अब यह एक कानूनन अपराध माना जाने लगा है और अनेक देशों में इस के लिए कानूनी उपचार हैं.

वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानने की अवधारणा समय के साथ विकसित हुई है.1960 के समय में नारीवाद की लहर उठी। इस दौरान महिलाओं को अपने शरीर से संबंधित निर्णय लेने और सहमति वापस लेने का अधिकार दिया गया। आज दुनिया के 100 से अधिक देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया गया है.

वैवाहिक बलात्कार की घटनाएं समाज में अकसर होती हैं, जो भारत में भी आज बड़ा सवाल बन गया है.

देश में वैवाहिक बलात्कार कानून

हमारे देश में वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता है. 2019 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की.
अमेरिका में वैवाहिक बलात्कार कानून 1993 में, अमेरिका में वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने वाला कानून पारित किया गया. इस से पहले कई देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता था.

आस्ट्रेलिया में वैवाहिक बलात्कार कानून 1980 के सालों में अपराध मानने वाला कानून पारित किया गया.

यूनाइटेड किंगडम में वैवाहिक बलात्कार कानून 1991 में, वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने वाला कानून पारित किया गया.

नौर्वे में वैवाहिक बलात्कार कानून 1990 में, अपराध बनाने वाला कानून पारित किया गया.

इन मामलों से दुनिया में चर्चा पैदा की

मैरी वौकर का मामला (अमेरिका) : 1980 में मैरी वौकर ने अपने पति पर वैवाहिक बलात्कार का आरोप लगाया. यह मामला अमेरिका में वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ पहला मामला था.

किरण निधि का मामला : भारत में 2015 में किरण निधि ने अपने पति पर वैवाहिक बलात्कार का आरोप लगाया. यह मामला भारत में वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ महत्त्वपूर्ण मामलों में से एक है.

लारा मिलर का मामला : यूनाइटेड किंगडम में 2013 में लारा मिलर ने अपने पति पर वैवाहिक बलात्कार का आरोप लगाया. यह मामला यूनाइटेड किंगडम में वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ महत्त्वपूर्ण मामलों में से एक है.

यह कुछ उदाहरण हैं जो वैवाहिक बलात्कार की गंभीरता और इस के खिलाफ लड़ने की आवश्यकता को दर्शाते हैं. देखना यह होगा कि दुनियाभर में वैवाहिक बलात्कार की कुछ परिस्थितियों को कानून अपराध मानने का कानून बन जाने के बाद भी भारत जैसे देश में इस मसले पर कानून का ऊंट किस करवट बैठता है।

फिल्म ‘कांगुवा’ की प्रैस कौन्फ्रैंस के दौरान साउथ के सुपरस्टार सूर्या क्यों हुए भावुक?

हाल ही में मुंबई में फिल्म ‘कांगुआ’ का ट्रैलर लौंच हुआ जहां पर साउथ के सुपरस्टार सूर्या और बौबी देओल जोकि इस फिल्म में खूंखार विलेन का किरदार निभा रहे हैं, हीरोइन दिशा पटानी और ‘कांगुआ’ की पूरी टीम शामिल हुई.

साउथ की सुपरहिट फिल्में ‘गजनी’,’ ‘जय भीम’, ‘सिंघम’ आदि रही हैं और जिस में से फिल्म ‘गजनी’ और ‘सिंघम’ की रीमेक में काम कर के आमिर खान और अजय देवगन ने अपार लोकप्रियता बटोरी है।

बौबी देओल पर फिदा

सूर्या हिंदी फिल्मों की मीडिया के सामने बहुत ही डाउन टू अर्थ नजर आए. गौरतलब है कौन्फ्रेंस के दौरान सूर्या बाबी देओल पर पूरी तरह फिदा नजर आए.

प्रैस कौन्फ्रेंस के दौरान जहां सूर्या ने बौबी देओल की तारीफों के पुल बांध दिए, वहीं सूर्या बौबी देओल पर प्यार लुटाते हुए प्रैस कौन्फ्रेंस के दौरान गले मिलते नजर आए.

सूर्या का प्यार देख कर बौबी देओल ने भी सूर्या को गले से लगा लिया. ऐसे में कहना गलत न होगा कि भले ही साउथ के ऐक्टर वहां पर सुपरस्टार हैं लेकिन बौलीवुड हीरो से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते.

बनेंगे खतरनाक विलेन

बौबी देओल हों, संजय दत्त हों या फिर सलमान खान, बौलीवुड के इन सभी हीरोज पर साउथ के ऐक्टर जान छिड़कते नजर आते हैं. बौबी देओल की फिल्मों की अगर बात करें तो फिल्म ‘एनिमल’ के बाद बौबी देओल फिल्म ‘कगुवा’ में भी खतरनाक विलेन के रोल में नजर आएंगे.

इस के अलावे भी बौबी आलिया भट्ट अभिनीत फिल्म ‘अल्फा’ में भी विलेन के किरदार में नजर आएंगे. इस के अलावा फिल्म ‘हरिहरा वीरा मल्लू’, ‘थलापति 69’, ‘एनिमल पार्क’, ‘एनबीके 109’ और प्रियदर्शन की अगली फिल्म में भी बौबी देओल विलेन की किरदार में नजर आने वाले हैं.

क्लींजिंग करना क्यों है जरूरी, जानें इसका सही तरीका

क्लींजिंग यंग लड़कियों के लिए स्किन केयर का पहला और सब से महत्त्वपूर्ण कदम है. यंग लड़कियों की त्वचा कोमल, नाजुक और हारमोनल बदलावों के कारण सेंसिटिव होती है. इस उम्र में त्वचा पर तेल, धूलमिट्टी और पसीना अधिक जमा होता है, जिस से ऐक्ने, ब्लैकहेड्स और अन्य स्किन प्रौब्लम्स की समस्या बढ़ सकती है.

ऐसे में, डेली क्लींजिंग करना बहुत जरूरी हो जाता है, क्योंकि यह स्किन की गंदगी को हटा कर उसे स्वस्थ, साफ और चमकदार बनाए रखने में मदद करती है. इसलिए एक अच्छी क्लींजिंग रूटीन को अपना कर यंग लड़कियां अपनी स्किन को हर रोज तरोताजा और खूबसूरत रख सकती हैं.

क्लींजिंग क्या है

क्लींजिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिस में त्वचा पर जमी धूल, गंदगी, तेल और मेकअप को हटाया जाता है. यह स्किन केयर रूटीन का पहला और सब से महत्त्वपूर्ण कदम है. यह पोर्स को खोलता है और त्वचा को सांस लेने में मदद करता है, जिस से त्वचा में ग्लो बना रहता है.

यंग लड़कियों के लिए क्लींजिंग क्यों जरूरी है

● हारमोनल बदलाव और ऐक्ने की समस्या : यंग लड़कियों में हारमोनल बदलाव के कारण त्वचा पर ऐक्ने (पिंपल्स) होने की समस्या आम होती है. क्लींजिंग से चेहरे पर जमा अतिरिक्त तेल और गंदगी हटती है, जिस से पोर्स बंद नहीं होते और ऐक्ने की समस्या कम हो जाती है.

● त्वचा को ताजगी और नमी प्रदान करना : क्लींजिंग से त्वचा की गहराई से सफाई होती है, जिस से त्वचा ताजगी और नमी से भरपूर रहती है. जब त्वचा साफ रहती है, तो मौइश्चराइजर और अन्य स्किन केयर प्रोडक्ट्स अच्छे से त्वचा में समाहित हो जाते हैं, जिस से त्वचा हाइड्रेटेड और मुलायम रहती है.

● प्रदूषण और धूल से बचाव : आजकल के पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ गई है, जो त्वचा पर हानिकारक प्रभाव डालती है. धूल, धुआं और अन्य प्रदूषक तत्त्व त्वचा पर जम जाते हैं और अगर इन्हें सही समय पर साफ न किया जाए, तो यह त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं. क्लींजिंग से त्वचा पर जमी हुई गंदगी को आसानी से हटाया जा सकता है.

● त्वचा की प्राकृतिक चमक बनाए रखना : नियमित रूप से क्लींजिंग करने से त्वचा की प्राकृतिक चमक बरकरार रहती है. जब चेहरे पर गंदगी या अतिरिक्त तेल जमा हो जाता है, तो त्वचा डल (dull) दिखने लगती है. क्लींजिंग से इस गंदगी को हटाया जा सकता है, जिस से त्वचा साफ और चमकदार नजर आती है.

● ब्लैकहेड्स और व्हाइटहेड्स से बचाव : यंग लड़कियों की त्वचा पर ब्लैकहेड्स और व्हाइटहेड्स की समस्या आम होती है, जो त्वचा पर गंदगी और तेल जमने के कारण होते हैं. क्लींजिंग से पोर्स की सफाई होती है और ब्लैकहेड्स और व्हाइटहेड्स की समस्या को कम किया जा सकता है.

क्लींजिंग करने का सही तरीका

● सही क्लींजर चुनना : हर लड़की की त्वचा का प्रकार अलग होता है. क्लींजर का चुनाव हमेशा अपनी त्वचा के प्रकार के अनुसार करना चाहिए.

● औयली स्किन : टी ट्री औयल या नीमयुक्त क्लींजर अच्छा होता है.

● ड्राई स्किन : हाइड्रेटिंग क्लींजर, जिस में शिया बटर या एलोवेरा हो, बेहतर रहेगा.

● सैंसिटिव स्किन : सौम्य और बिना खुशबू वाले क्लींजर का इस्तेमाल करें, ताकि त्वचा पर जलन न हो.

दिन में 2 बार क्लींजिंग करें

यंग लड़कियों को दिन में कम से कम 2 बार क्लींजिंग जरूर करनी चाहिए, एक बार सुबह और एक बार रात में सोने से पहले. इस से दिनभर की धूलमिट्टी और रातभर का अतिरिक्त तेल साफ हो जाता है.

हलके हाथों से मसाज करें

क्लींजर को चेहरे पर हलके हाथों से सर्कुलर मोशन में मसाज करें. इस से रक्तसंचार बेहतर होता है और त्वचा की सफाई अच्छे से हो जाती है. मसाज करते समय ध्यान रखें कि इसे बहुत जोर से न रगड़ें, क्योंकि इस से त्वचा को नुकसान हो सकता है.

कुनकुने पानी से धोएं

क्लींजिंग के बाद चेहरे को कुनकुने पानी से धोना चाहिए, ताकि पोर्स खुल जाएं और गंदगी अच्छे से निकल जाए. इस के बाद तौलिए से हलके हाथों से चेहरा पोंछ लें.

क्लींजिंग के बाद मौइश्चराइजर लगाएं

क्लींजिंग के बाद त्वचा पर मौइश्चराइजर लगाना जरूरी है, ताकि त्वचा में नमी बनी रहे और वह मुलायम दिखे. खासकर ड्राई स्किन वालों को यह स्टैप कभी नहीं छोड़ना चाहिए.

क्लींजिंग के फायदे

● त्वचा साफ और चमकदार रहती है.

● ऐक्ने, ब्लैकहेड्स और व्हाइटहेड्स की समस्या कम होती है.

● त्वचा हाइड्रेटेड और स्वस्थ रहती है.

वर्क लाइफ बैलेंस की चिंता छोड़ एक महिला के लिए जौब करना क्यों है जरूरी ?

आज जमाना बदला है और महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए एक खुला आसमान मिल गया है. वे अपनी काबिलियत दिखा कर ऊंचे ओहदों तक पहुंच रही हैं. कामकाजी बन कर पैसे अपनी मुट्ठी में कर रही हैं. पर यह सब उन के लिए इतना आसान भी नहीं. उन्हें घरपरिवार और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी के साथ जौब की जिम्मेदारियां उठानी पड़ रही हैं. इस चक्कर में कई दफा उन का वर्क लाइफ बैलेंस बिगड़ भी जाता है. वे हतोत्साहित भी हो जाती हैं. मगर फिर भी उन्हें अपने मकसद पर टिके रहना है. यही तो उन की असली जंग है.

क्या कहता है सर्वे

‘वूमेन इन इंडिया इंक एचआर मैनेजर्स सर्वे रिपोर्ट’ के अनुसार देश में 34% महिलाएं वर्क लाइफ बैलेंस के कारण नौकरी छोड़ देती हैं जबकि पुरुषों में यह सिर्फ 4 प्रतिशत के लिए होता है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के नौकरी छोड़ने के शीर्ष 3 कारणों में वेतन संबंधी चिंताएं, कैरियर के अवसर और वर्क लाइफ बैलेंस हैं. वहीं पुरुषों के लिए इस के कारण वेतन संबंधी चिंताएं, कैरियर के अवसर और भविष्य में रोजगार की दिशा है.

आईआईएम अहमदाबाद की जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 32.25% महिलाएं ही वर्कलाइफ बैलेंस कर पाती हैं.

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारतीय महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में काफी अधिक तनावग्रस्त होती हैं, जिस का मुख्य कारण ‘वर्क लाइफ बैलेंस की कमी’ है. कामकाजी जीवन में संतुलन की कमी तनाव का मुख्य कारण है.

दरअसल, रोजगार की दुनिया में महिलाओं का आना और टिकना बेहद मुश्किल है. हमारे पितृसत्तात्मक समाज में एक कामकाजी महिला से यह उम्मीद की जाती है कि वह घर के काम, बच्चों और परिवार के सदस्यों की देखभाल पर भी पूरा समय देगी. तीजत्योहार हो या घर में किसी की शादी, बच्चे का जन्म हो या घरों में बड़ेबुजुर्गों की बीमारी, महिलाओं को अपने काम के साथ इन सभी हालात को संभालने के लिए वक्त निकालना होता है.

यही वजह है कि अकसर कंपनियां महिलाओं को विशेषकर शादीशुदा महिलाओं को एसेट नहीं बल्कि लियैबिलिटी समझती है. समस्या हमारे समाज और परिवार की भी है जो महिलाओं को नौकरी की इजाजत तो देता है पर साथ ही यह उम्मीद करता है कि वह घर के काम और बच्चों की जिम्मेदारी में मदद नहीं मांगेंगी.

दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ

शहरीकरण और आधुनिकीकरण के कारण भारतीय परिवारों की सोच में बदलाव आ रहे हैं. महिलाओं ने अपने घरों में पैसों की तंगी दूर करने और आत्मनिर्भर जिंदगी के लिए नौकरियां करनी शुरू की हैं. लेकिन घर वाले अकसर कामकाजी महिलाओं का साथ नहीं देते हैं. औरतों के ऊपर काम पर जाने से पहले और घर आ कर भी घर के काम और बच्चों की जिम्मेदारी होती हैं जबकि पति को इन कामों में योगदान देने की जरूरत नहीं होती. कामकाजी महिलाओं को न केवल अपने पेशेवर जीवन में सफल होना होता है बल्कि उन्हें अपने घर और परिवार की देखभाल भी करनी होती है. नतीजा वे हमेशा दोहरी जिम्मेदारी निभाती हैं जिस से मानसिक और शारीरिक थकान बढ़ती है.

बच्चे संभालना सिर्फ मां की जिम्मेदारी

मातृत्व को इतना ज्यादा गौरवान्वित किया गया है कि महानता के चक्कर में समानता नहीं रह पाती. हमारे घरों में कामों का समान बंटवारा वैसे भी नहीं. कामकाजी महिलाओं के लिए भले कई कंपनियों में आज मैटरनिटी लीव का प्रावधान हो पर हकीकत यह है कि बच्चे को कम से कम 1 या डेढ़ साल तक हर समय देखभाल की आवश्यकता पड़ती है. महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि अगर वे कामकाजी हैं तो भी निष्ठा के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाएंगी. घर के आदमी अकसर बच्चों को नहलानेधुलाने, पोटी साफ करने, खिलानेपिलाने या पढ़ाने जैसे कामों में सहयोग नहीं देते. यह सब काम मां को ही करने होते हैं. ऐसे में उन्हें या तो जौब छोड़नी पड़ती है या फिर वर्क लाइफ बैलेंस नहीं हो पाता. यही वजह है कि अकसर किसी बहुत बड़ी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम कर रही महिला या तो सिंगल है, तलाकशुदा है या फिर विधवा.

एक ऐसी महिला जो शादी में है और जिस के बच्चे हैं उस के लिए घर और काम में संतुलन बनाए रखना बेहद मुश्किल हो जाता है.

ससुराल में बहू से उम्मीदें

अकसर एक महिला को अपने मायके और ससुराल में एकजैसा वातावरण नहीं मिलता. मायके में रहते हुए वे आसानी से नौकरी कर पाती हैं क्योंकि मां, बहनें या भाभियां जिम्मेदारियां संभाल लेती हैं पर वहीं ससुराल में उन से उम्मीदें बहुत होतीं हैं. सारे काम उसे खुद ही निबटाने होते हैं. इस वजह से उन का वर्क लाइफ बैलेंस बिगड़ने लगता है. अच्छे पद के बावजूद घरों में अकसर पुरुष और महिला के काम को समान महत्त्व नहीं मिलता. महिलाओं के काम को कई बार सिर्फ हौबी के रूप में देखा जाता है. तभी तो देश के कार्य बल में आदमियों की हिस्सेदारी ही ज्यादा रहती है.

मानसिक स्वास्थ्य और काम का दबाव

कारपोरेट जगत में काम का अत्यधिक दबाव महिलाओं पर मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव डालता है. मानसिक तनाव के कारण महिलाओं में अवसाद, चिंता और आत्महत्या से मौत की प्रवृत्ति जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं. कई बार महिलाएं अपनी काबिलियत के बावजूद उन्नति और प्रमोशन से वंचित रह जाती हैं जो उन्हें मानसिक रूप से हताश कर देता है.

क्या हो सकता है समाधान की दिशा में कदम

महिलाओं के लिए वर्क लाइफ बैलेंस के लिए जरूरी है कि समाज और कार्यस्थल दोनों में बदलाव आएं. जरूरी है कि हम बदलाव की शुरुआत घरों से करें. जहां हम महिलाओं के आगे बढ़ने की बात कहते हैं, वहीं यह भी जरूरी है कि हम पुरुषों के साथसाथ परिवार को भी सिखाएं कि नौकरीपेशा या नौकरी की इच्छा रखने वाली हजारों काबिल महिलाओं का साथ देने के लिए खुद को आगे आना होगा. कार्यस्थलों पर महिलाओं के लिए लचीले काम के घंटे, मातृत्व अवकाश और सुरक्षा जैसी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए. इस के अलावा घरेलू जिम्मेदारियों को भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ साझा किया जाना चाहिए ताकि महिलाओं को राहत मिल सके. कार्यस्थल पर लैंगिक समानता को बढ़ावा दे कर महिलाओं को मानसिक तनाव से बचाया जा सकता है.

महिलाएं नौकरी करने की अहमियत को समझें

इन सब से ऊपर महिलाओं को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. कितनी भी परेशानी आए उन्हें अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए. औरतों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा. उन्हें समझना चाहिए कि नौकरी करना या कामकाजी होना उन के लिए कितने फायदे की बात है. अगर आप कामकाजी हैं तो आप के पास अपने कमाए रुपए आते हैं. उन रुपयों का रुतबा ही अलग होता है. नौकरी आप की आजादी की चाबी है. आप अपने घर से 8-9 घंटे बाहर रहती हैं. इतने घंटे आप के अपने होते हैं. औफिस में या काम की जगह पर आप कितने ही लोगों से मिलती हैं. आप का मन बदलता है. कुछ करने की प्रेरणा मिलती है. लोगों से बातें कर के आप का दिमाग खुलता है. आप के नए दोस्त बनते हैं. उन के साथ आप जिंदगी को अलग नजरिए से देख पाती हैं. आप के पास सोचने करने और जीने का नया अंदाज होता है. कुछ घंटों के लिए ही सही मगर आप घर के बोरिंग कामों से छुटकारा पाती हैं. कहीं जाने और लोगों से मिलने का मौका मिलता है.

इसलिए भले ही आप की सैलरी इतनी कम हो कि अधिकांश रूपए आनेजाने के किराए में खर्च हो जाते हैं पर आप काम जरूर करें. भले ही आप को घर जा कर घरेलू काम निबटाने की टैंशन रहती हो मगर नौकरी न छोड़ें. जिंदगी में बिलकुल फुरसत नहीं मिल पाती हो तो भी कामकाजी बनी रहें क्योंकि यह आप के आगे बढ़ने, आजादी महसूस करने और खुद को पहचानने का जरीया है. घर में रह कर घरेलू कामों में लगे रहने या फिर भजन कीर्तन और फोन पर गप्पें मारने से बहुत अच्छा है औफिस में आम कर के अपनी काबिलियत दिखाना. इस से आप का आत्मविश्वास बढ़ता है और नजरिया विकसित होता है. वर्क लाइफ बैलेंस बने न बने पर अपने आप को औफिस जाने और काम करने से न रोकें.

आत्मसम्मान: रवि के सौदे का क्या था अंजाम

रवि को फ्लैट अच्छा लगा. हवादार, सारे दिन की धूप, बड़े कमरे, बड़ी रसोई, बड़े बाथरूम. पहली नजर में ही रवि को पसंद आ गया. दाम कुछ अधिक लग रहा है, दूसरे ब्रोकर्स कम कीमत में फ्लैट दिलाने को कह रहे थे परंतु रवि मनपसंद  फ्लैट, जैसे उस की कल्पना थी वैसा, पा कर कुछ अधिक कीमत देने को तैयार हो गया. पत्नी रीना और बच्चों को भी फ्लैट पसंद आया. लोकेशन औफिस के पास होने के कारण रवि ने उस फ्लैट को खरीदने के लिए ब्रोकर से कहा. फ्लैट के मालिक से शाम को डील फाइनल करने के लिए समय तय हो गया.

रवि ने ब्रीफकेस में चैकबुक रखी और कैश निकालने के लिए बैंक गया. कार को बैंक के बाहर पार्क कर रवि ने बैंक से कैश निकाला. लगभग 10 मिनट बाद रवि जब बैंक से बाहर आया तब उस समय बहुत सी कारें आड़ीतिरछी पार्क थीं.

रवि सोचने लगा कि कार पार्किंग से कैसे बाहर आए. 2 कारों के बीच जगह थी. रवि कार को वहां से निकालने के लिए कार को उन 2 कारों के बीच में करने लगा, परंतु तेजी से एक बड़ी सी महंगी कार उन 2 कारों के बीच खाली जगह पर गोली की रफ्तार से दनदनाती हुई आई और रवि की कार के सामने तेजी से ब्रेक मार कर रुक गई.

कार में बैठा नवयुवक कीमती मोबाइल फोन पर बात कर रहा था और हाथ से कुछ इशारे कर रहा था जो रवि समझ नहीं सका. नवयुवक मोबाइल पर बात करता हुआ इशारे करता जा रहा था. रवि ने कार से उतर कर नवयुवक से अनुरोध किया कि उसे अपनी कार को निकालना है, सो प्लीज, उसे निकलने दीजिए, फिर आप इसी जगह पार्क कर लीजिए.

तभी वह युवक ताव में आ कर कहने लगा, ‘‘बुड्ढे, कार यहीं खड़ी होगी, इतनी देर से इशारा कर रहा हूं, कार पीछे कर. मेरी कार यहीं खड़ी होगी. समझा बुड्ढे या दूसरे तरीके से समझाना पड़ेगा. मेरे से बहस कर रहा है. पीछे हटा मच्छर को, नहीं तो मसल दूंगा, जरा सी आगे की तो उड़ जाएगी, पीछे हट. मेरी कार यहीं पार्क होगी.’’

इतना सुन कर रवि ने किसी अनहोनी से घबरा कर कार पीछे की और नवयुवक ने कार वहां पार्क की और गोली की रफ्तार से कार को लौक कर के मोबाइल पर बात करता हुआ चला गया. महंगी कार, सिरफिरा नवयुवक शायद कोई चाकू, पिस्तौल जेब में हो, चला दे. आजकल कुछ पता नहीं चलता. छोटीछोटी बातों पर आपा खो कर नवयुवक गोलीचाकू चला देते हैं. यही सोच कर रवि ने कार पीछे कर ली और लुटेपिटे खिलाड़ी की तरह होंठ पर हाथ रख कर सोचने लगा.

एक आम व्यक्ति की कोई औकात नहीं है. माना अमीर नहीं है, नौकरी करता है, मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता है. एक छोटी सी कार उस की नजर में बड़ी संपति है, मगर एक मगरूर इंसान ने उसे मच्छर बना दिया. कोई कीमत नहीं है छोटी कार की. अमीर आदमी की नजर में वह और उस की कार की कोई कीमत नहीं. न सही, किसी के बारे में वह क्या कर सकता है. उस नवयुवक के घमंड को देख कर उस ने दांतों तले उंगली दबा ली.

वह इंतजार करने लगा कि आसपास खड़ी कोई कार हिले, तो वह अपनी कार को हिलाए. लगभग 20 मिनट बाद उस के पास खड़ी कार हटी, तब रवि को शांति मिली. उस का दिमाग, जो अब तक कई सौ मील दूर तक की कल्पना कर चुका था, जमीन पर आया, कार स्टार्ट की और घर वापस आया.शाम को रवि, रीना ब्रोकर सतीश के साथ फ्लैट मालिक ओंकारनाथ के औफिस पहुंचे. सतीश ने सेठ ओंकारनाथ का गुणगान शुरू किया. ‘‘सेठजी का क्या कहना, धन्ना सेठ हैं. प्रौपर्टी में निवेश करते हैं. पूरे देश में, हर कोने में सेठजी की प्रौपर्टी मिलेगी. बस, शहर का नाम लो, प्रौपर्टी हाजिर है. 100 से अधिक प्रौपर्टी हैं सेठजी की.’’

‘‘आज इस समय 140 प्रौपर्टीज हैं,’’ सेठजी ने पुष्टि की. ‘लोन मेरा पास हो गया है. आप प्रौपर्टी के कागजों की कौपी दे दें. मुझे पेमैंट की कोई चिंता नहीं है. अधिक से अधिक एक सप्ताह में पूरी पेमैंट हो जाएगी. प्रौपर्टी के कागज बैंक में दिखा कर लोन की पेमैंट हो जाएगी. बयाना मैं अभी दे देता हूं. सौदा पक्का कर लेते हैं. बस, आप एक बार कागज दिखा दीजिए,’’ रवि ने सेठजी से कहा.

‘‘ठीक है. अलमारी की चाबी मेरे लड़के के पास है. फोन कर के बुलाता हूं,’’ कह कर सेठजी ने फोन किया. 2 मिनट बाद सेठजी के लड़के ने औफिस में प्रवेश किया. मोबाइल पर बात करतेकरते अलमारी खोली और फाइल टेबल पर रखी. रवि ने लड़के को देखा. लड़का वही सुबह वाला नवयुवक था, जिस की महंगी कार ने उस की कार को निकलने नहीं दिया और घमंड में रवि का उपहास किया. रवि ने उसे पहचान लिया. बुड्ढा, मच्छर, उड़ा दूंगा, कार यहीं पार्क करूंगा, नहीं निकलने दूंगा कार, ये शब्द उस के कानों में बारबार गूंज रहे थे. रवि उस लड़के को लगातार देखता रहा. सतीश ने फाइल रवि की ओर करते हुए चुप्पी तोड़ी.

‘‘तसल्ली कर लीजिए और बयाना दे कर सौदा पक्का कीजिए.’’

‘‘सतीशजी, अब इस की कोई जरूरत नहीं है. आप कोई दूसरा सौदा बताना.’’

‘‘क्या बात है, रविजी, आप के सपने का फ्लैट आप को मिल रहा है, जिस की तलाश कर रहे थे, वह आप के सामने है.’’ रवि ने ब्रीफकेस को बंद किया और सौदा न करने पर खेद व्यक्त  किया और जाने के लिए कुरसी से उठा, ‘‘रीना, कोई दूसरा फ्लैट देखेंगे, अब चलते हैं.’’

‘‘मिस्टर रवि, कोई बात नहीं, आप फ्लैट खरीदना नहीं चाहते, यह आप का निर्णय है. परंतु मैं इस का कारण जानना चाहता हूं, क्योंकि आप इस फ्लैट के लिए उत्सुक थे. फाइल देखना चाहते थे. जब फाइल सामने रखी, तो बिना फाइल देखे इरादा बदल लिया,’’ सेठजी ने रवि से बैठने के लिए कहा.

‘‘सेठजी, यह मत पूछिए.’’

‘‘कोई बात नहीं. यदि कोई कड़वी बात है, वह भी बताओ. कारण जानना चाहता हूं.’’ ‘‘सेठजी, बात आत्मसम्मान की है. आज सुबह बहुत गालियां सुनी हैं. ठेस पहुंची है. कलेजे को चीर गई हैं बातें,’’ कह कर सुबह का किस्सा सुनाया, ‘‘वह नवयुवक और कोई नहीं, आप के सुपुत्र हैं. इसी कारण मैं ने अपने सपने को तोड़ा. जिस तरह के फ्लैट की चाह थी, जिस के लिए अधिक रकम देने को तैयार था, वही सौदा तोड़ रहा हूं. मेरा आत्मसम्मान मुझे सौदा करने की इजाजत नहीं देता. आप के सामने आर्थिक रूप में मेरी कोई औकात नहीं है. परंतु अमीरों का गरीबों की बिना बात के तौहीन करना उचित नहीं है. सिर्फ विनती की थी, कार निकालने के  लिए, 10-15 सैकंड में क्या फर्क पड़ता. कार मुझे तो निकालनी थी, पार्क तो आप की कार ही होती, परंतु आप के बरखुरदार ने मेरी खूब बेइज्जती की.’’ उठतेउठते रवि ने एक बात कही, ‘‘सेठजी, आप ने रुपएपैसों से अपने लड़के की जेबें भर रखी हैं. थोड़ी समझदारी, दुनियादारी की तालीम दीजिए. संयम रखना सिखाइए. इज्जत दीजिए और इज्जत लीजिए.’’

रवि चला गया. औफिस में रह गए सेठजी और उन के सुपुत्र. सेठजी कुछ कह नहीं सके. लड़के ने मोबाइल से फोन मिलाया और दनदनाता हुआ औफिस से बाहर चला गया.

मैं एक शादीशुदा आदमी से प्यार करती हूं, क्या यह रिश्ता सही है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 23 वर्षीय युवती हूं और एक शादीशुदा आदमी से प्यार करती हूं. हमारे बीच फिजिकल रिलेशन भी हैं. वह मुझे बहुत प्यार करता है और कहता है कि हम शादी करेंगे. मैं क्या करूं?

जवाब-

आप जिस आग से खेल रही हैं वह एकसाथ कई परिवारों को जला सकती है. आप का तथाकथित प्रेमी आप को बेवकूफ बना रहा है. इस रिश्ते को यहीं विराम दे कर भविष्य संवारने में लग जाना ही अच्छा है. रही बात एक शादीशुदा व्यक्ति से शादी करने की, तो यह कानून में अवैध मानी जाएगी.

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रात के 10 बज रहे थे. 10वीं फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट से सोम कभी इस खिड़की से नीचे देखता तो कभी उस खिड़की से. उस की पत्नी सान्वी डिनर कर के नीचे टहलने गई थी. अभी तक नहीं आई थी. उन का 10 साल का बेटा धु्रव कार्टून देख रहा था. सोम अभी तक लैपटौप पर ही था, पर अब बोर होने लगा तो घर की चाबी ले कर नीचे उतर गया.

सोसाइटी में अभी भी अच्छीखासी रौनक थी. काफी लोग सैर कर रहे थे. सोम को सान्वी कहीं दिखाई नहीं दी. वह घूमताघूमता सोसाइटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में भी चक्कर लगा आया. अचानक उसे दूर जहां रोशनी कम थी, सान्वी किसी पुरुष के साथ ठहाके लगाती दिखी तो उस का दिमाग चकरा गया. मन हुआ जा कर जोर का चांटा सान्वी के मुंह पर मारे पर आसपास के माहौल पर नजर डालते हुए सोम ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर उन दोनों के पीछे चलते हुए आवाज दी, ‘‘सान्वी.’’

सान्वी चौंक कर पलटी. चेहरे पर कई भाव आएगए. साथ चलते पुरुष से तो सोम खूब परिचित था ही. सो उसे मुसकरा कर बोलना ही पड़ा, ‘‘अरे प्रशांत, कैसे हो?’’

प्रशांत ने फौरन हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम सुनाओ, क्या हाल है?’’

सोम ने पूरी तरह से अपने दिलोदिमाग पर काबू रखते हुए आम बातें जारी रखीं. सान्वी चुप सी हो गई थी. सोम मौसम, सोसाइटी की आम बातें करने लगा. प्रशांत भी रोजमर्रा के ऐसे विषयों पर बातें करता हुआ कुछ दूर साथ चला. फिर ‘घर पर सब इंतजार कर रहे होंगे’ कह कर चला गया.

विरासत: अपराजिता को मिले उन खतों में ऐसा क्या लिखा था

अपराजिता की 18वीं वर्षगांठ के अभी 2 महीने शेष थे कि वक्त ने करवट बदल ली. व्यावहारिक तौर पर तो उसे वयस्क होने में 2 महीने शेष थे, मगर बिन बुलाई त्रासदियों ने उसे वक्त से पहले ही वयस्क बना दिया था. मम्मी की मौत के बाद नानी ने उस की परवरिश का जिम्मा निभाया था और कोशिश की थी कि उसे मम्मी की कमी न खले. यह भी हकीकत है कि हर रिश्ते की अपनी अलग अहमियत होती है. लाचार लोग एक पैर से चल कर जीवन को पार लगा देते हैं. किंतु जीवन की जो रफ्तार दोनों पैरों के होने से होती है उस की बात ही अलग होती है. ठीक इसी तरह एक रिश्ता दूसरे रिश्ते के न होने की कमी को पूरा नहीं कर सकता.

वक्त के तकाजों ने अपराजिता को एक पार्सल में तब्दील कर दिया था. मम्मी की मौत के बाद उसे नानी के पास पहुंचा दिया गया और नानी के गुजरने के बाद इकलौती मौसी के यहां. मौसी के दोनों बच्चे उच्च शिक्षा के लिए दूसरे शहरों में रहते थे. अतएव वह अपराजिता के आने से खुश जान पड़ती थीं. अपराजिता के बहुत सारे मित्रों के 18वें जन्मदिन धूमधाम से मनाए जा चुके थे. बाकी बच्चों के आने वाले महीनों में मनाए जाने वाले थे. वे सब मौका मिलते ही अपनाअपना बर्थडे सैलिब्रेशन प्लान करते थे. तब अपराजिता बस गुमसुम बैठी उन्हें सुनती रहती थी. उस ने भी बहुत बार कल्पनालोक में भांतिभांति विचरण किया था अपने जन्मदिन की पार्टी के सैलिब्रेशन को ले कर मगर अब बदले हालात में वह कुछ खास करने की न तो सोच सकती थी और न ही किसी से कोई उम्मीद लगा सकती थी.

2 महीने गुजरे और उस की खास सालगिरह का सूर्योदय भी हुआ. मगर नानी की हाल ही में हुई मौत के बादलों से घिरे माहौल में सालगिरह उमंग की ऊष्मा न बिखेर सकी. अपराजिता सुबह उठ कर रोज की तरह कालेज के लिए निकल गई. शाम को घर वापस आई तो देखा कि किचन टेबल पर एक भूरे रंग का लिफाफा रखा था. वह लिफाफा उठा कर दौड़ीदौड़ी मौसी के पास आई. लिफाफे पर भेजने वाले का नामपता नहीं था और न ही कोई पोस्टल मुहर लगी थी.

‘‘मौसी यह कहां से आया?’’ उस ने आंगन में कपड़े सुखाने डाल रहीं मौसी से पूछा. ‘‘उस पर तो तुम्हारा ही नाम लिखा है अप्पू… खोल कर क्यों नहीं देख लेतीं?’’

अपराजिता ने लिफाफा खोला तो उस के अंदर भी थोड़े छोटे आकार के कई सफेद रंग के लिफाफे थे. उन पर कोई नाम नहीं था. बस बड़ेबड़े अंकों में गहरीनीली स्याही से अलगअलग तारीखें लिखी थीं. तारीखों को गौर से देखने पर उसे पता चला कि ये तारीखें भविष्य में अलगअलग बरसों में पड़ने वाले उस के कुछ जन्मदिवस की हैं. खुशी की बात कि एक लिफाफे पर आज की तारीख भी थी. अपराजिता ने प्रश्नवाचक निगाहों से मौसी को निहारा तो वे मुसकरा भर दीं जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं. ‘प्लीज मौसी बताइए न ये सब क्या है. ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि आप को इस के बारे में कुछ खबर न हो… यह लिफाफा पोस्ट से तो आया नहीं है… कोई तो इसे दे कर गया है… आप सारा दिन घर में थीं और जब आप ने इसे ले कर रखा है तो आप को तो पता ही होना चाहिए कि आखिर यह किस का है?’’

‘‘मुझे कैसे पता चलता जब कोई बंद दरवाजे के बाहर इसे रख कर चला गया. तुम तो जानती हो कि दोपहर में कभीकभी मेरी आंख लग जाती है. शायद उसी वक्त कोई आया होगा. मैं ने तो सोचा था कि तुम्हारे किसी मित्र ने कुछ भेजा है. हस्तलिपि पहचानने की कोशिश करो शायद भेजने वाले का कोई सूत्र मिल जाए,’’ मौसी के चेहरे पर एक रहस्यपूर्ण मुस्कराहट फैली हुई थी. अपराजिता ने कई बार ध्यान से देखा, हस्तलिपि बिलकुल जानीपहचानी सी लग रही थी. बहुत देर तक दिमागी कसरत करने पर उसे समझ में आ गया कि यह हस्तलिपि तो उस की नानी की हस्तलिपि जैसी है. परंतु यह कैसे संभव है? उन्हें तो दुनिया को अलविदा किए 2 महीने गुजर गए हैं और आज अचानक ये लिफाफे… उसे कहीं कोई ओरछोर नहीं मिल रहा था.

‘‘मौसी यह हस्तलिपि तो नानी की लग रही है लेकिन…’’ ‘‘लेकिनवेकिन क्या? जब लग रही है तो उन्हीं की होगी.’’

‘‘यह असंभव है मौसी?’’ अपराजिता का स्वर द्रवित हो गया. ‘‘अभी तो संभव ही है अप्पू, मगर 2 महीने पहले तक तो नहीं था. जिस दिन से तुम्हारी नानी को पता चला कि उन का हृदयरोग बिगड़ता जा रहा है और उन के पास जीने के लिए अधिक समय नहीं है तो उन्होंने तुम्हारे लिए ये लैगसी लैटर्स लिखने शुरू कर दिए थे, साथ ही मुझे निर्देश किया था कि मैं यह लिफाफा तुम्हें तुम्हारे 18वें जन्मदिन वाले दिन उपहारस्वरूप दे दूं. अब इन खतों के माध्यम से तुम्हें क्या विरासत भेंट की गई है, यह तो मुझे भी नहीं मालूम. कम से कम जिस लिफाफे पर आज की तारीख अंकित है उसे तो खोल ही लो अब.’’

अपराजिता ने उस लिफाफे को उठा कर पहले दोनों आंखों से लगाया. फिर नजाकत के साथ लिफाफे को खोला तो उस में एक गुलाबी कागज मिला. कागज को आधाआधा कर के 2 मोड़ दे कर तह किया गया था. चंद पल अपराजिता की उंगलियां उस कागज पर यों ही फिसलती रहीं… नानी के स्पर्श के एहसास के लिए मचलती हुईं. जब भावनाओं का ज्वारभाटा कुछ थमा तो उस की निगाहें उस कागज पर लिखे शब्दों की स्कैनिंग करने लगीं:

डियर अप्पू

‘‘जीवन में नैतिक सद््गुणों का महत्त्व समझना बहुत जरूरी है. इन नैतिक सद्गुणों में सब से ऊंचा स्थान ‘क्षमा’ का है. माफ कर देना और माफी मांग लेना दोनों ही भावनात्मक चोटों पर मरहम का काम करते हैं. जख्मों पर माफी का लेप लग जाने से पीडि़त व्यक्ति शीघ्र सब भूल कर जीवनधारा के प्रवाह में बहने लगते हैं. वहीं माफ न कर के हताशा के बोझ में दबा व्यक्ति जीवनपर्यंत अवसाद से घिरा पुराने घावों को खुरचता हुआ पीड़ा का दामन थामे रहता है. जबकि वह जानता है कि वह इस मानअपमान की आग में जल कर दूसरे की गलती की सजा खुद को दे रहा है. ‘‘अप्पू मैं ने तुम्हें कई बार अपने मांबाप पर क्रोधित होते देखा है. तुम्हें गम रहा कि तुम्हारी परवरिश दूसरे सामान्य बच्चों जैसी नहीं हुई है. जहां बाप का जिंदगी में होना न होना बराबर था वही तुम्हारी मां ने जिंदगी के तूफानों से हार कर स्वयं अपनी जान ले ली और एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बाद तुम्हारा क्या होगा… बेटा तुम्हारा कुढ़ना लाजिम है. तुम गलत नहीं हो. हां, अगर तुम इस क्रोध की ज्वाला में जल कर अपना मौजूदा और भावी जीवन बरबाद कर लेती हो तो गलती सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही होगी. किसी दूसरे के किए की सजा खुद को देने में कहां की अक्लमंदी है?

‘‘मेरी बात को तसल्ली से बैठ कर समझने की चेष्टा करना और एकदम से न सही तो कम से कम अगले जन्मदिन तक धीरेधीरे उस पर अमल करने की कोशिश करना… बस यही तोहफा है मेरे पास तुम्हारे इस खास दिन पर तुम्हें देने के लिए. ‘‘ढेर सारा प्यार,’’

‘‘नानी.’’

वक्त तेजी से आगे बढ़ रहा था. अपराजिता अब इंजीनियरिंग के आखिरी साल में थी और अपनी इंटर्नशिप में मशगूल थी. वह जिस कंपनी में इंटर्नशिप कर रही थी, प्रतीक भी वहीं कार्यरत था. कम समय में ही दोनों में गहरी मित्रता हो गई.

बीते सालों में अपराजिता नानी से 18वें जन्मदिन पर मिले सौगाती खत को अनगिनत बार पढ़ा था. क्यों न पढ़ती. यह कोई मामूली खत नहीं था. भाववाहक था नानी का. अकसर सोचती कि काश नानी ने उस के हर दिन के लिए एक खत लिखा होता तो कुछ और ही मजा होता. नानी के लिखे 1-1 शब्द ने मन के जख्मों पर चंदन के लेप का काम किया था. उस आधे पन्ने के पत्र की अहमियत किसी ऐक्सपर्ट काउंसलर के साथ हुए 10 सैशन की काउंसलिंग के बराबर साबित हुई थी. अब अपराजिता के मस्तिष्क में बचपन में झेले सदमों के चलचित्रों की छवि धूमिल सी हो कर मिटने लगी थी. मम्मीपापा की बेमेल व कलहपूर्ण मैरिड लाइफ, पापा के जीवन में ‘वो’ की ऐंट्री और फिर रोजरोज की जिल्लत से खिन्न मम्मी का फांसी पर झूल कर जान दे देना… थरथर कांपती थी वह डरावने सपनों के चक्रवात में फंस कर. नानी के स्नेह की गरमी का लिहाफ उस की कंपकंपाहट को जरा भी कम नहीं कर पाया था.

नानी जब तक जिंदा रहीं लाख कोशिश करती रहीं उस की चेतना से गंभीर प्रतिबिंबों को मिटाने की, मगर जीतेजी उन्हें अपने प्रयासों में शिकस्त के अलावा कुछ हासिल न हुआ. शायद यही दुनिया का दस्तूर है कि हमें प्रियजनों के मशवरे की कीमत उन के जाने के बाद समझ में आती है.

प्रतीक और अपराजिता का परिचय अगले सोपान पर चढ़ने लगा था. बिना कुछ सोचे वह प्रतीक के रंग में रंग गई. कमाल की बात थी जहां इंटर्नशिप के दौरान प्रतीक उस के दिल में समाता जा रहा था तो दूसरी तरफ इंजीनियरिंग के पेशे से उस का दिल हटता जा रहा था. वह औफिस आती थी प्रतीक से मिलने की कामना में, अपने पेशे की पेचीदगियों में सिर खपाने के लिए नहीं. ट्रेनिंग बोझ लग रही थी उसे. अपने काम से इतनी ऊब होती थी कि वह औफिस आते ही लंचब्रेक का इंतजार करती और लंचब्रेक खत्म होने पर शाम के 5 बजने का. कुछ सहकर्मी तो उसे पीठ पीछे ‘क्लौक वाचर’ पुकारते थे.

जाहिर था कि अपराजिता ने प्रोफैशन चुनते समय अपने दिल की बात नहीं सुनी. मित्रों की देखादेखी एक भेड़चाल का हिस्सा बन गई. सब ने इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया तो उस ने भी ले लिया. उस ने जब अपनी उलझन प्रतीक से बयां की तो सपाट प्रतिक्रिया मिली, ‘‘अगर तुम्हें इस प्रोफैशन में दिलचस्पी नहीं अप्पू तो मुझे भी तुम में कोई रुचि नहीं.’’ ‘‘ऐसा न कहो प्रतीक… प्यार से कैसी शर्त?’’

‘‘शर्तें हर जगह लागू होती हैं अप्पू… कुदरत ने भी दिमाग का स्थान दिल से ऊपर रखा है. मुझे तो अपने लिए इंजीनियर जीवनसंगिनी ही चाहिए…’’ यह सुन कर अपराजिता होश खो बैठी थी. दिल आखिर दिल है, कहां तक खुद को संभाले… एक बार फिर किसी प्रियजन को खोने के कगार पर खड़ी थी. कैसे सहेगी वह ये सब? कैसे जूझेगी इन हालात से बिना कुछ गंवाए?

अगर वह प्रतीक की शर्त स्वीकार लेती है तो क्या उस कैरियर में जान डाल पाएगी जिस में उस का किंचित रुझान नहीं है? उस की एक तरफ कूआं तो दूसरी तरफ खाई थी, कूदना किस में है उसे पता न था.

अगले महीने फिर अपराजिता का खास जन्मदिन आने वाला था. खास इसलिए क्योंकि नानी ने अपने खत की सौगात छोड़ी थी इस दिन के लिए भी. बड़ी मुश्किल से दिन कट रहे थे… उस का धीरज छूट रहा था… जन्मदिन की सुबह का इंतजार करना भारी हो रहा था. बेसब्री उसे अपने आगोश में ले कर उस के चेतन पर हावी हो चुकी थी. अत: उस ने जन्मदिन की सुबह का इंतजार नहीं किया. जन्मदिन की पूर्वरात्रि पर जैसे ही घड़ी ने रात के 12 बजाए उस ने नानी के दूसरे नंबर के ‘लैगसी लैटर’ का लिफाफा खोल डाला.

लिखा था:

‘‘डियर अप्पू’’ ‘‘जल्दी तुम्हारी इंजीनियरिंग पूरी हो जाएगी. बहुत तमन्ना थी कि तुम्हें डिगरी लेते देखूं, मगर कुदरता को यह मंजूर न था. खैर, जो प्रारब्ध है, वह है… आओ कोई और बात करते हैं.’’

‘‘तुम ने कभी नहीं पूछा कि मैं ने तुम्हारा नाम अपराजिता क्यों रखा. जीतेजी मैं ने भी कभी बताने की जरूरत नहीं समझी. सोचती रही जब कोई बात चलेगी तो बता दूंगी. कमाल की बात है कि न कभी कोई जिक्र चला न ही मैं ने यह राज खोलने की जहमत उठाई. तुम्हारे 21वें जन्मदिन पर मैं यह राज खोलूंगी, आज के लिए इसी को मेरा तोहफा समझना. ‘‘हां, तो मैं कह रही थी कि मैं ने तुम्हें अपराजिता नाम क्यों दिया. असल में तुम्हारे पैदा होने के पहले मैं ने कई फीमेल नामों के बारे में सोचा, मगर उन में से ज्यादातर के अर्थ निकलते थे-कोमल, सुघड़, खूबसूरत वगैराहवगैराह. मैं नहीं चाहती थी कि तुम इन शब्दों का पर्याय बनो. ये पर्याय हम औरतों को कमजोर और बुजदिल बनाते हैं. कुछए की तरह एक कवच में सिमटने को मजबूर करते हैं. औरत एक शरीर के अलावा भी कुछ होती है.

‘‘तुम देवी बनने की कोशिश भी न करना और न ही किसी को ऐसा सोचने का हक देना. बस अपने सम्मान की रक्षा करते हुए इंसान बने रहने का हक न खोना. ‘‘मैं तुम्हें सुबह खिल कर शाम को बिखरते हुए नहीं देखना चाहती. मेरी आकांक्षा है कि तुम जीवन की हर परीक्षा में खरी उतरो. यही वजह थी कि मैं ने तुम्हें अपराजिता नाम दिया… अपराजिता अर्थात कभी न पराजित होने वाली. अपनी शिकस्त से सबक सीख कर आगे बढ़ो… शिकस्त को नासूर बना कर अनमोल जीवन को बरबाद मत करो. जिस काम के लिए मन गवाही न दे उसे कभी मत करो, वह कहते हैं न कि सांझ के मरे को कब तक रोएंगे.’’

‘‘बेटा, जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है. मेरा विश्वास है तुम अपनी मां की तरह हौसला नहीं खोओगी. हार और जीत के बीच सिर्फ अंश भर का फासला होता है. तो फिर जिंदगी की हर जंग जीतने के लिए पूरा दम लगा कर क्यों न लड़ा जाएं.

‘‘बहुतबहुत प्यार’’ ‘‘नानी.’’

अपराजिता ने खत पढ़ कर वापस लिफाफे में रख दिया. रात का सन्नाटा गहराता जा रहा था, किंतु कुछ महीनों से जद्दोजहद का जो शिकंजा उस के दिलोदिमाग पर कसता जा रहा था उस की गिरफ्त अब ढीली होती जान पड़ रही थी. दूसरे दिन की सुबह बेहद दिलकश थी. रेशमी आसमान में बादलों के हाथीघोड़े से बनते प्रतीत हो रहे थे. चंद पल वह यों ही खिड़की से झांकती हुई आसमान में इन आकृतियों को बनतेबिगड़ते देखती रही. ऐसी ही आकृतियों को देखते हुए ही तो वह बचपन में मम्मी का हाथ पकड़ कर स्कूल से घर आती थी.

कल रात वाले लैगसी लैटर को पढ़ने के बाद से ही वह खुद में एक परिवर्तन महसूस कर रही थी… कहीं कोई मलाल न था कल रात से. वह जीवन को अपनी शर्तों पर जीने का निर्णय कर चुकी थी. औफिस जाने से पहले उस ने एक लंबा शावर लिया मानो कि अब तक के सभी गलत फैसलों व चिंताओं को पानी से धो कर मुक्ति पा लेना चाहती हो. प्रतीक के साथ औफिस कैंटीन में लंच लेते हुए उस ने अपना निर्णय उसे सुनाया, ‘‘प्रतीक मैं तुम्हें भुलाने का फैसला कर चुकी हूं, क्योंकि मेरी जिंदगी के रास्ते तुम से एकदम अलग हैं.’’

‘‘यह क्या पागलपन है? कौन से हैं तुम्हारे रास्ते… जरा मैं भी तो सुनूं?’’ प्रतीक कुछ बौखला सा गया. ‘‘लेखन, भाषा, साहित्य ये हैं मेरे शौक… किसी वजह से 4 साल पहले मैं ने गलत लाइन पकड़ ली, लेकिन इस का यह अर्थ कतई नहीं कि मैं इस गलती के साथ उम्र गुजार दूं या इस के बोझ से दब कर दूसरी गलती करूं… अगर मैं ने तुम से शादी की तो वह मेरी एक और भूल होगी क्योंकि सच्चा प्यार करने वाले सामने वाले को ज्यों का त्यों अपनाते हैं. उन्हें अपने सांचे में ढाल कर अपनी पसंद और अपने तरीके उन पर नहीं थोपते.’’

‘‘भेजा फिर गया है तुम्हारा… जो समझ में आए करो मेरी बला से.’’ तमतमाया प्रतीक लंच बीच में ही छोड़ कर तेजी से कैंटीन से बाहर निकल गया. अपराजिता ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. इत्मीनान से अपना लंच खत्म करने में मशगूल रही. अपराजिता हर संघर्ष से निबटने को तैयार थी. सच ही तो लिखा था नानी ने कि सांझ के

मरे को कब तक रोएंगे. गलत शादी, गलत कैरियर में फंस कर जिंदगी दारुण मोड़ पर ही चली जानी थी… वह इस अंधे मोड़ के पहले ही सतर्क हो गई. ‘‘अपराजिता नानी ने तुम्हारे लिए कुछ पैसा फिक्स डिपौजिट में रखवाया था. अब तक मैं इस पौलिसी को 2 बार रिन्यू करा चुकी हूं. पर सोचती हूं अब अपनी जिम्मेदारी तुम खुद उठाओ और यह रकम ले कर अपने तरीके से इनवैस्ट करो,’’ एक शाम मौसी ने कहा.

‘‘जैसा आप चाहो मौसी. अगर आप ऐसा चाहती हैं तो ठीक है.’’ अपराजिता अब काफी हद तक आत्मनिर्भर हो चुकी थी. अब तक उस के 2 उपन्यास छप चुके थे. एक पर उसे ‘बुकर प्राइज’ मिला था तो दूसरे उपन्यास ने भी इस साल सब से ज्यादा प्रतिलिपियां बिकने का कीर्तिमान स्थापित किया. अब उसे खुद के नीड़ की तलाश थी. मौसी के प्रति वह कृतज्ञ थी पर उम्रभर उन पर निर्भर रहने का उस का इरादा न था.

बहुत दिन हो चुके थे उसे लेखनसाधना में खोए हुए. कुछ सालों से वह सिर से पांव तक काम में इतना डूबी रही कि स्वयं को पूरी तरह नजरअंदाज कर बैठी थी. इस बार उस ने 21वें जन्मदिन पर खुद को ट्रीट देने का फैसला किया. तमाम टूअर पैकेजेस देखनेसमझने के बाद उसे कुल्लूमनाली का विकल्प पसंद आ गया. कुछ दिन बस खुद के लिए… कहीं बिलकुल अलग कोलाहल से दूर. साथ में होगा तो बस नानी का 21वें जन्मदिन के लिए लिखा गया सौगाती खत :

‘‘डियर अप्पू ‘‘अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा आंसुओं में डुबोने के बाद मैं ने जाना कि 2 प्रकार के व्यक्तियों से कोई संबंध न रखो- मूर्ख और दुष्ट. इस श्रेणी के लोगों को न तो कुछ समझाने की चेष्टा करो न ही उन से कोई तर्कवितर्क करो. मानो या न मानो तुम उन से कभी नहीं जीत पाओगी.

‘‘ऐसे आदमी से नाता न जोड़ो जिस की पहली, दूसरी, तीसरी और आखिरी प्राथमिकता वह खुद हो. ऐसे व्यक्तियों के जीवन के शब्दकोश में ‘मैं’ सर्वनाम के अतिरिक्त कोई दूसरा लफ्ज ही नहीं होता. अहं के अंकुर से अवसाद का वटवृक्ष पनपता है. अहं से मदहोश व्यक्ति अपने शब्द और अपनी सोच को अपने आसपास के लोगों पर एक कानून की तरह लागू करना चाहता है. ऐसों से नाता जुड़ने के बाद दूसरों को रोज बिखर कर खुद को रोज समेटना पड़ता है. तब कहीं जा कर जीवननैया किनारे लग पाती है उन की. ‘‘जोड़े तो ऊपर से बन कर आते हैं जमीं पर तो सिर्फ उन का मिलन होता है, यह निराधार थ्योरी गलत शादी में फंस के दिल को समझाने के लिए अच्छी है, किंतु मैं जानती हूं तुम्हारे जैसी बुद्धिजीवी कोरी मान्यताओं को बिना तार्किक सत्यता के स्वीकार नहीं कर सकती. न ही मैं तुम से ऐसी कोई उम्मीद करती हूं.

‘‘बेटा मेरी खुशी तो इस में होगी कि तुम वे बेडि़यां तोड़ने की हिम्मत रखो जिन का मंगलसूत्र पहन कर तुम्हारी मां की सांसें घुटती रहीं और आखिर में वही मंगलसूत्र उस के गले का फंदा बन कर उस की जान ले गया. ‘‘तुम्हारा बाप तुम्हारी मां की जिंदगी में था, मगर उस के अकेलेपन को बढ़ाने के लिए.

डियर अप्पू शादी का सीधा संबंध भावनात्मक जुड़ाव से होता है. जब यह भावनात्मक बंधन ही न हो तो वह शादी खुदबखुद अमान्य हो जाती है… ऐसी शादियां और कुछ भी नहीं बस सामाजिकता की मुहर लगा हुआ बलात्कार मात्र होती हैं. यह कैसा गठबंधन जहां सांसें भी दूसरों की मरजी से लेनी पड़ें? ‘‘अगर हालातवश ऐेसे रिश्तों में कभी फंस भी जाओ तो अपने आसपास उग आई अवांछित रिश्तों की नागफनियों को काटने का साहस भी रखो अन्यथा ये नागफनियां तुम्हारे पांव को लहूलुहान कर के तुम्हारी ऊंची कुलांचें लेने की शक्ति खत्म कर देंगी, साथ ही तुम्हें जीवन भर के लिए मानसिक तौर पर पंगू बना देंगी.

‘‘ढेर सा प्यार ‘‘तुम्हारी नानी.’’

कुल्लू की वादियों में झरने के किनारे एक चट्टान पर बैठी अपराजिता की आंखों से अचानक आंसू झरने लगे. जाने क्यों आज प्रतीक की याद आ रही थी. शायद यह इन शोख नजारों का असर था कि मन मचलने लगा था किसी के सान्निध्य के लिए. नामपैसा कमा कर भी वह कितनी अकेली थी… या फिर यह अकेलापन उस की सोच का खेल था? वह अकेली कहां थी. उस के साथ थे हजारोंलाखों प्रसंशक. क्यों याद कर रही है वह प्रतीक को… क्यों चाहिए था उसे किसी मर्द का संबल? ऐसा क्या था जो वह खुद नहीं कर पाई? क्या प्रतीक भी उस के बारे में सोचता होगा? ऐसा होता तो वह 10 साल पहले ही उसे ठोकर न मार गया होता. दोष क्या था उस का? सिर्फ इतना कि वह इंजीनियरिंग नहीं लेखन में आगे बढ़ना चाहती थी. ‘‘कौन जानता है प्रतीक को आज की तारीख में?

वहीं वह खुद लेखन के क्षेत्र का प्रमुख हस्ताक्षर बन कर शोहरत का पर्यात बन चुकी थी. बड़ा गुमान था प्रतीक को अपने काबिल इंजीनियर होने पर… लकीर का फकीर कहीं का. मध्यवर्गीय मानसिकता का शिकार… जिन्हें सिर्फ इंजीनियरिंग और कुछ दूसरे इसी तरह के प्रोफैशन ही समझ में आते हैं. लेखन, संगीत और आर्ट उन की सोच से परे की बातें होती हैं. नहीं चाहिए था उसे दिखावे का हीरो अपनी जिंदगी में. रही बात अकेलेपन की तो राहें और भी थी. उस ने निश्चित किया कि वह दिल्ली लौट कर किसी अनाथ बच्ची को अपना लेगी… गोद ले कर उसे अपना उत्तराधिकारी… अपने सूने आंगन की खुशबू बना लेगी.

खुशबू को अपराजिता के आंगन में महकते हुए करीब 10 साल हो गए थे. जिस दिन अपराजिता किसी बच्चे की तलाश में अनाथाश्रम पहुंची थी तो उस 4-5 साल की पोलियोग्रस्त बच्ची की याचक दृष्टि उस के दिल को भीतर तक भेद गई थी. उस रात आंखों से नींद की जंग चलती रही थी. सारी रात करवटें लेतेलेते बदन थक गया था. दूसरे दिन बिना विलंब किए अनाथाश्रम पहुंच गई अपराजिता जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के लिए. अगले कुछ महीनों तक गंभीर कागजी कार्यवाही को पूरा करने के बाद वह कानूनी तौर पर खुशबू को अपनी बेटी का दर्जा देने में कामयाब हो गई. हैरान रह गई थी अपराजिता दुनिया का चलन देख कर तब. किसी ने छींटाकशी की कि उस का दिमाग खराब हो गया है जो वह यह फालतू का काम कर रही है.

किसी ने यहां तक कह दिया कि यदि वह एक संस्कारित, खानदानी परिवार का खून होती तो मर्यादा में रह कर शादी कर के अपने बालबच्चे पाल रही होती. कुछ और लोगों के ऐक्सपर्ट कमैंट थे कि वह शोहरत पाने की लालसा में यह सब कर रही है. मात्र उंगलियों पर गिनने लायक ही लोग थे, जिन्होंने उस के इस कदम की दिल से सराहना की थी.

खैर, कोई बात नहीं. नेकी और बदी की जंग का दस्तूर जहां में सदियों पुराना है. बरसों के लंबे इलाज और फिजियोथेरैपी सैशंस के बाद खुशबू काफी हद तक स्वस्थ हो गई थी. गजब का आत्मविश्वास था उस में. उस की हर पेंटिंग में जीवन रमता था. वह हर समय इंद्रधनुषी रंग कैनवस पर बिखेरती हुई उमंगों से भरपूर खूबसूरत चित्र बनाती. शरीर की विकलांगता, अनाथाश्रम में बीता कोमल बचपन दोनों उस की उमंगों के वेग को बांध न सके थे.

खुशबू के प्रयासों की महक से अपराजिता की जीत का मान बढ़ता ही चला गया. अपनी शर्तों पर नेकी के साथ जिंदगी जीते हुए दोनों जहां की खुशियां पा ली थीं अपराजिता ने और अपने नाम को सार्थक कर दिखाया था. आज रात वह अपना 50वां जन्मदिन मनाने वाली थी नानी के आखिरी ‘सौगाती खत’ को खोल कर.

‘‘डियर अप्पू

तुम अब तक उम्र के 50 वसंत देख चुकी होगी और अपने रिटायरमैंट में स्थिर होने की सोच रही होगी. यह वह उम्र है जिसे जीने का मौका तुम्हारी मां को कुदरत ने नहीं दिया था. इसलिए मुबारक हो… बेटा वक्त तुम पर हमेशा मेहरबान रहे. ‘‘तुम्हारे मन में शायद अध्यात्म और तीर्थ के ख्याल भी आते होंगे. ऐसे ख्याल कई बार स्वेच्छा अनुसार आते हैं और कई बार इस दिशा में दूसरों के दबाव में भी सोचना पड़ता है. विशेषतौर पर महिलाओं से इस तरह की अपेक्षा जरूर की जाती है कि उन का आचरण पूर्णतया धार्मिक हो. यों तो धर्म एक बहुत ही व्यक्तिगत मामला है फिर भी धर्म में रुचि न रखने वाली स्त्रियों पर असंस्कारित होने की मुहर लगा दी जाती है.

‘‘मैं तुम से कहूंगी कि ये सब बकवास है. मैं ने अपने जीवन में अनेक ऐसे महात्मा, मुल्ला और पादरियों के बारे में पढ़ा और सुना है जो धर्म की आड़ में हर तरह के घृणित कृत्य करते हैं और दूसरों के बूते पर ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं. ‘‘ज्यादा दूर क्यों जाए मैं ने तो स्वयं तुम्हारे नाना को ये सब पाखंड करते देखा है. उन्होंने हवन, जप, मंत्र करने में पूरी उम्र तो बिताई पर उस के सार के एक अंश को कभी जीवन में नहीं उतारा. दूसरों को प्रताड़ना देना ही उन के जीवन का एकमात्र उद्देश्य और उपलब्धि था. अब तुम ही बताओ यह कैसा पूजापाठ और कर्मकांड जिस में आडंबर करने वाले के स्वयं के कर्म और कांड ही सही नहीं हैं.

‘‘तो डियर अप्पू कहने का सार मेरा यह है कि धर्म, पूजापाठ कभी भी मन की शुद्धता के प्रमाण नहीं होते. मन की शुद्धता होती है अच्छे कर्मों में, अपने से कमजोर का संबल बनने में, बाकी सब तो तुम्हारे अपने ऊपर है, पर एक वचन मैं भी तुम से लेना चाहूंगी और मुझे पूरा भरोसा है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी. ‘‘बेटी यह शरीर नश्वर है, जो भी दुनिया में आया है उसे जाना ही है. इस शरीर का महत्त्व तभी तक है जब तक इस में जान है. जान निकलने के बाद खूबसूरत से खूबसूरत जिस्म भी इतना वीभत्स लगता है कि मृतक के परिजन भी उसे छूने से डरते हैं. जीतेजी हम दुनिया के फेर में इस कदर फंसे होते हैं कि कई बार चाह कर भी कुछ अच्छा नहीं कर पाते. मौत में हम सारी बंदिशों से आजाद हो जाते हैं, तो फिर क्यों न कुछ इंसानियत का काम कर जाएं और दूसरों को भी इंसान बनने का हुनर सिखा जाएं?

‘‘डियर अप्पू, संक्षेप में मेरी बात का अर्थ है कि जैसे मैं ने किया था वैसे ही तुम भी मेरी तरह मृत्यु के बाद अंगदान की औपचारिकताएं पूरी कर देना. मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे 50वें जन्मदिन को मनाने का इस से श्रेष्ठतर तरीका कोई और हो सकता है. ‘‘बस आज के लिए इतना ही अप्पू… तबीयत आज कुछ ज्यादा ही नासाज है. ज्यादा लिखने की हिम्मत नहीं हो रही… लगता है अब जान निकलने ही वाली है. कोशिश करूंगी, मगर फिलहाल तो ऐसा ही महसूस हो रहा है कि यह मेरा आखिरी खत होगा तुम्हारे लिए.

‘‘सदा सुखी रहो मेरी बच्ची. ‘‘नानी.’’

अपराजिता ने पत्र को सहेज कर सुनहरे रंग के कार्डबोर्ड बौक्स में नानी के अन्य पत्रों के साथ रख दिया. इन सभी पत्रों को आबद्ध करा के वह खुशबू के अठारवें जन्मदिन पर भेंट करेगी. अपराजिता अब तक एक बहुत ही सफल लेखिका थी. उस के लिखे उपन्यासों पर कई दूरदर्शन चैनल धारावाहिक बना चुके थे. ट्राफी और अवार्ड्स से उस के ड्राइंगरूम का शोकेस पूरी तरह भर चुका था. रेडियो, टेलीविजन पर उस के कितने ही इंटरव्यू प्रसारित हो चुके थे. देशभर की पत्रपत्रिकाएं भी उस के इंटरव्यू छापने का गौरव ले चुकी थीं.

इन सभी साक्षात्कारों में एक प्रश्न हमेशा पूछा गया कि अपनी लिखी किताबों में उस की पसंदीदा किताब कौन सी है और इस सवाल का एक ही जवाब उस ने हमेशा दिया था, ‘‘मेरी नानी के लिखे ‘विरासती खत’ ही मेरे जीवन की पसंदीदा किताब है और मेरी इच्छा है कि मैं अपनी बेटी के लिए भी ऐसी ही विरासत छोड़ कर जाऊं जो कमजोर पलों में उस का उत्साहवर्द्धन कर उस का जीवनपथ सुगम बनाए. वह लकीर की फकीर न बन कर अपनी एक स्वतंत्र सोच का विकास करे.’’

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