जनवरी रहेगी कुछ ज्यादा हौट

मौसम के हिसाब से तो जनवरी का महीना सब से ठंडा रहता है, पर बौलीवुड ने इसे हौट बनाने की पूरी व्यवस्था कर ली है. एकता कपूर की सौफ्ट पोर्न मूवी ‘क्या कूल हैं हम 3’ और सनी लियोनी की ‘मस्तीजादे’ जनवरी में आग लगाने आने वाली हैं. एकता की ‘क्या कूल हैं हम’ सीरीज की यह तीसरी फिल्म है जिस में द्विअर्थी डायलौग्स और बोल्ड सींस की किस तरह भरमार होगी इस का अंदाजा उस के हाल में रिलीज पोस्टर देख कर लगा सकते हैं.

श्रुति की दरियादिली

चेन्नई बाढ़ पीडि़तों की मदद के लिए सरकार के साथ अब बौलीवुड भी आ गया है. हिंदी और तमिल सिनेमा की स्टार श्रुति हासन ने बाढ़ पीडि़तों की खुले हाथों से मदद की है. श्रुति ने कहा कि चेन्नई की बाढ़ में कई घर तबाह हो गए. कई लोग एकदूसरे से बिछुड़ गए जिस की पूर्ति नहीं हो सकती है. पर अगर हर शख्स थोड़ी सी मदद करने की ठान ले, तो यह छोटी मदद पीडि़तों के बड़े काम आएगी. श्रुति हिंदी व तमिल में आई अपनी फिल्म ‘पुली’ के बुरी तरह फ्लौप होने के बाद अब तिग्मांशु धूलिया की फिल्म ‘यारा’ में विद्युत जामवाल के साथ और ‘रौकी हैंडसम’ में जौन के साथ स्क्रीन शेयर करेंगी.

नए स्टारकास्ट को रिस्क नहीं समझता : दिबाकर

‘खोसला का घोसला’, ‘लव सैक्स और धोखा’, ‘शंघाई’, ‘बौंबे टाकीज’, ‘डिटैक्टिव ब्योमकेश बक्शी’ जैसी अलगअलग शैली की फिल्में बनाने वाले 45 वर्षीय दिबाकर बनर्जी निर्देशक, पटकथा लेखक, निर्माता और ऐड फिल्म मेकर हैं. उन की अपनी ‘दिबाकर बनर्जी प्रोडक्शंस’ कंपनी है.

दिल्ली के दिबाकर बनर्जी ने अपने कैरियर की शुरुआत ऐड फिल्म से की थी. ‘खोसला का घोसला’ फिल्म की सफलता के बाद वे अपनी पत्नी और बेटी के साथ मुंबई आ गए. तभी से मुंबई में हैं.

बेहद शांत स्वभाव और फिल्मी चकाचौंध से दूर रहने वाले दिबाकर बनर्जी से बात करना रोचक रहा. पेश हैं, कुछ उम्दा अंश:

आप हमेशा लीक से हट कर फिल्में बनाते हैं. इस की वजह क्या है?

मैं हमेशा ऐसी फिल्म बनाना चाहता हूं जिसे लोग पसंद करें, जिस से आम दर्शक खुद को रिलेट कर सके. ऐसा नहीं है कि मैं व्यावसायिक फिल्में नहीं बनाना चाहता, मुझे डौक्यूमैंटरी फिल्में बनाने का शौक नहीं. मैं पहली फिल्म से ही व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा हूं. मुझे खुशी है कि मेरी फिल्मों को भी दर्शक मिल रहे हैं. ‘खोसला का घोसला’ नई तरह की फिल्म थी. मेन स्ट्रीम से हट कर नए दर्शकों की रचना हुई, जिस से मेरी फिल्म सफल हुई. मैं हर फिल्म से लाभ कमाने की कोशिश करता हूं. फिल्म निर्माण, लेखन, निर्देशन के अलावा मैं कोई काम नहीं करता. मेरे पास जो पैसा है वह फिल्मों से ही मिला है. दर्शकों का यह बदलाव मेरे लिए अच्छा है. मुझे खुद पता नहीं कि मैं ऐसी फिल्में कैसे बनाता हूं. जैसेजैसे मैं उम्र के साथ बदल रहा हूं वैसेवैसे ही मेरी फिल्में भी बदल रही हैं. ‘तितली’ फिल्म इस का एक उदाहरण है.

‘तितली’ फिल्म करने की वजह क्या थी?

निर्देशक कानू बहल ने मुझे इस फिल्म की कहानी सुनाई थी. मुझे कहानी अलग और वास्तविक लगी. उन्होंने पहले मुझे निर्देशन के लिए कहा, पर जैसेजैसे कहानी सुनता गया, मेरी इच्छा इसे प्रोड्यूस करने की हुई, क्योंकि मैं ने 10 सालों में एक बदलाव देखा है कि लोग कुछ अलग कहानी भी पसंद करते हैं. ‘तितली’ की कहानी आज हर घर में है. हर घर में ऐसा पात्र अवश्य दिखता है, जो पारिवारिक विचारों से हट कर अपनी अलग सोच रखता है. इस में सारे नए कलाकार हैं, जबकि अधिकतर बड़े निर्माता परिचित स्टारकास्ट लेते हैं. आप पर कितना प्रैशर है?

यह सही है कि बड़े स्टारकास्ट के साथ फिल्में चलती हैं और लाभ कमाती हैं. लेकिन यह भी सही है कि 70% लोग स्टार कलाकारों को देखने सिनेमाघरों में जाते हैं और 30% निर्मातानिर्देशक के काम को. इसी से आप को सम्मान मिलता है. मैं ने हमेशा अपनी फिल्मों में ज्यादातर नए चेहरों को लिया है और ये चेहरे उन 30% दर्शकों में ही शामिल होते हैं. नए कलाकारों में जनून होता है. वे अपनी प्रतिभा को साबित करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं. मेरी फिल्में ‘खोसला का घोसला’ और ‘लकी ओए लकी’ इस बात को सिद्ध करती हैं कि चाहत रखने की हर तरह की फिल्मों में काम करने वाला कलाकार मेरी फिल्म में अवश्य काम करना चाहता है और मैं इसे रिस्क नहीं समझता.

आप ने ज्यादातर फिल्मों की शूटिंग दिल्ली में की है. क्या दिल्ली की लोकेशन आप को ज्यादा पसंद है?

मैं और कानू दोनों ही दिल्ली के हैं. हमारी पैदाइश और परवरिश दोनों ही दिल्ली में हुई है, इसलिए दिल्ली में शूटिंग करना ज्यादा अच्छा लगता है. ‘तितली’ की कहानी भी दिल्ली के परिवार की है. इस के अलावा दिल्ली में भीड़भाड़ कम है, लोकेशन अच्छी मिल जाती हैं. अपनापन सा महसूस होता है.

परिवार का कितना सहयोग रहता है?

परिवार के सहयोग के बिना कोई काम नहीं हो सकता. पत्नी और बेटी का सहयोग हमेशा रहता है. किसी उपलब्धि पर हम चर्चा भी करते हैं.

फिल्म की कहानी चुनते समय किस बात का ध्यान अधिक रखते हैं?

फिल्म उद्योग एक व्यवसाय है, पर यह समाज का हिस्सा भी है. परिवार, व्यवसाय, राजनीति ये सभी फिल्मों में दिखाए जाते हैं. सामंतवाद, कुल वंश से आगे निकल कर काम करना हर व्यक्ति के लिए हर क्षेत्र में कठिन है, क्योंकि परिवार हमेशा आप को कुछ करने से दबाता है. इन सभी बातों को ध्यान में रख कर ही कहानी सोचनी पड़ती है. मैं हर प्रकार की नई कहानी को परदे पर उतारने की कोशिश करता हूं. मेरी फिल्म ‘तितली’ कांस फिल्म फैस्टिवल में गई तो मुझे अच्छा लगा. वहां किसी बौलीवुड फिल्म का पहुंचना ही बड़ी बात है. आगे भी मैं नईनई कहानियों पर फिल्में बनाना चाहूंगा.

पचपन में भी न करें परहेज सेक्स से

कुछ समय पहले की बात है. एक विख्यात सेक्स विशेषज्ञ को एक महिला का पत्र मिला. लिखा था, मेरे पति 54 साल के हैं. उन्होंने फैसला किया है कि वह अब भविष्य में मुझ से कोई  जिस्मानी संबंध न रखेंगे. उन का कहना है कि उन्होंने कहीं पढ़ा है कि 50 साल बाद वीर्य का निकलना मर्द पर अधिक शारीरिक दबाव डालता है और वह अगर नियमित संभोग में लिप्त रहेगा तो उस की आयु कम रह जाएगी यानी वह वक्त से पहले मर जाएगा. इसलिए उन्होंने सेक्स को पूरी तरह से त्याग दिया है. क्या इस बात में सचाई  है? अगर नहीं, तो आप कृपया उन्हें सही सलाह दें.

मैं आशा करती हूं कि इस में कोई सत्य न हो, क्योंकि यद्यपि मैं 50 की हूं मेरी इच्छाएं अभी बहुत जवान हैं. मैं इस विचार से ही बहुत उदास हो जाती हूं कि अब ताउम्र मुझे सेक्स सुख की प्राप्ति नहीं होगी. मैं ने अपने पति को समझाने की बहुत कोशिश की.

मुझे यकीन है कि वह गलत हैं. लेकिन मेरे पास कोई मेडिकल सुबूत नहीं है, इसलिए वह मेरी बात पर ध्यान नहीं देते.

मुझे विश्वास है कि जहां मैं नाकाम रही वहीं आप कामयाब हो जाएंगे.

यह केवल एक महिला का दुखड़ा नहीं है. अगर सर्वे किया जाए तो 50 से ऊपर की ज्यादातर महिलाएं इसी कहानी को दोहराएंगी और महिलाएं ही क्यों पुरुषों का भी यही हाल है. सेक्स से इस विमुखता के कारण स्पष्ट और जगजाहिर हैं, लेकिन एक बात जिसे मुश्किल से स्वीकार किया जाता है और जो आधुनिक शोध से साबित है, वह यह है कि सेक्स न करने से व्यक्ति जल्दी बूढ़ा हो जाता है और उसे बीमारियां भी घेर लेती हैं. एक 55 साल की महिला से सेक्स के बाद जब उस के प्रेमी ने कहा कि वह जवान लग रही है, तो उस ने आईना देखा. उस ने अपने शरीर में अजीब किस्म की तरंगों को महसूस किया और उसे लगा कि वह अपने जीवन में 20 वर्ष पहले लौट आई है. 50 के बाद सेक्स में दिलचस्पी कम होने की कई वजहें हैं. हालांकि अब वैदिक काल जैसी कट्टरता नहीं है, लेकिन अब भी सोच यही है कि 50 पर गृहस्थ आश्रम खत्म हो जाता है और वानप्रस्थ आश्रम शुरू हो जाता है. इसलिए शायद ही कोई घर बचा हो जिस में यह वाक्य न दोहराया जाता हो : नातीपोते वाले हो गए, अब तुम्हारे खेलने के दिन कहां बाकी हैं. शर्म करो, अब बचपना छोड़ो. बहूबेटे क्या कहेंगे? क्या सोचेंगे कि बूढ़ों को अब भी चैन नहीं है.

दरअसल, भक्तिकाल में जब ब्रह्मचर्य और वीर्य को सुरक्षित रखने पर जो बल दिया गया उस से यह सोच विकसित हो गई कि सेक्स का उद्देश्य आनंदित स्वस्थ और तनावमुक्त रहना नहीं बल्कि केवल उत्पत्ति है. एक बार जब संतान की उत्पत्ति हो जाए तो सेक्स पर विराम लगा देना चाहिए. इस तथाकथित धार्मिक धारणा पर अब तक साइंस का गिलाफ चढ़ाने का प्रयास किया  जाता रहा है. मसलन, हाल ही में ‘योग’ से  संबंधित एक पत्रिका में लिखा था, ‘‘वीर्य में सेक्स हारमोन होते हैं. उन्हें सुरक्षित रखें और सेक्स में लिप्त हो कर उसे बरबाद न करें. यह कीमती हारमोन यदि बचा लिए जाते हैं तो वापस रक्त में चले जाते हैं और शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आ जाती है. आधी छटांक वीर्य 40 छटांक रक्त के बराबर होता है, क्योंकि वह इतने ही खून से बनता है. जिस्म से जितनी बार वीर्य निकलता है उतनी ही बार कीमती रासायनिक तत्त्व बरबाद हो जाते हैं, वह तत्त्व जो नर्व व बे्रन टिश्यू के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण  हैं. यही वजह है कि अति उत्तेजक पुरुषों की पत्नियां और वेश्याओं की आयु बहुत कम होती है.

इस पूरे ‘प्रवचन’ के लिए एक ही शब्द है, बकवास. सब से पहली बात तो यह है कि वीर्य में शुक्राणु बड़ी मात्रा में साधारण शकर, सेट्रिक एसिड, एसकोरबिक एसिड, विटामिन सी, बाइकारबोनेट, फासफेट और अन्य पदार्थ होते हैं जो ज्यादातर एंजाइम होते हैं, इन सब का उत्पादन अंडकोशिकाएं, सेमिनल बेसिकल्स और एपिडर्मिस व वसा की डक्ट के जरिए होता है. वीर्य में सेक्स हारमोन होते ही नहीं. यह सारे तत्त्व या पदार्थ जिस्म में खाने की सप्लाई से बनते हैं जोकि एक न खत्म होने वाली प्रक्रिया है. निष्कासित होने से पहले वीर्य सेमिनल वेसिकल्स में स्टोर होता है, अगर इसे निष्कासित नहीं किया गया तो भीगे ख्वाबों से यह अपनेआप हो जाएगा. जाहिर है इस के शरीर में स्टोर होने का अर्थ है कि जिस्म में यह सरकुलेशन का हिस्सा रहा ही नहीं है और न ही ऐसी कोई प्रक्रिया है जिस से वीर्य फिर खून में शामिल हो कर ऊर्जा का हिस्सा बन जाए.

विख्यात वैज्ञानिक डा. इसाडोर रूबिन का कहना है, ‘‘अगर यह धारणा सही होती कि वीर्य के निकलने से या महिला के चरम आनंद प्राप्त करने से जिस्म में कमजोरी आ जाती है और उम्र में कटौती हो जाती है, तो कुंआरों की आयु विवाहितों से ज्यादा होती, क्योंकि अविवाहितों को सेक्स के अवसर कम मिलते हैं. वास्तविकता यह है कि विवाहित व्यक्ति लंबे समय तक जीते हैं.’’

हाल में किए गए शोधों से पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति काफी दिन तक सेक्स से दूर रहता है तो कुछ प्रोस्टेटिक फ्लूड सख्त हो कर ग्रंथि में रह जाते हैं. इस से प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है और व्यक्ति को पेशाब करने में कठिनाई होने लगती है. इस समस्या पर अगर ध्यान न दिया जाए तो फिर प्रोस्टेट की सर्जरी आवश्यक हो जाती है. 50 के बाद सेक्स से विमुखता का एक अन्य कारण यह है कि जवानी में लोग कसरत पर और अपने जिस्म को सुडौल रखने के लिए खानपान पर अकसर खास ध्यान नहीं  देते. इस से उम्र के साथ उन के शरीर पर फैट जमा होने लगता है जिस से वह मोटे हो जाते हैं. यह जानने के लिए ज्ञानी होना आवश्यक नहीं है कि मोटापा अपनेआप में कई गंभीर बीमारियों की जड़ होता है. व्यक्ति जब बीमार रहेगा तो उस का ध्यान सेक्स की ओर कहां जाएगा, साथ ही पुरुष का जब पेट निकल जाता है और उस का सीना भी औरतों की तरह लटक जाता है तो वह उस मुस्तैदी से सेक्स में लिप्त नहीं हो पाता जैसे वह जवानी में होता था. महिलाओं के बेडौल और मोटे होने से उन में मर्द के लिए पहले जैसा आकर्षण नहीं रह पाता. इसलिए जरूरी है कि उम्र के हर हिस्से में कसरत की जाए और अपना वजन नियंत्रित रखा जाए.

वैसे सेक्स भी अपनेआप में बेहतरीन कसरत है. अन्य फायदों के अलावा इस से मांसपेशियों सुगठित रहती हैं, ब्लड पे्रशर सामान्य और अतिरिक्त फैट कम हो जाता है. गौरतलब है कि पुरुष के गुप्तांग में जोश स्पंजी टिश्यू के छिद्रों में खून के बहाव से आता है. अगर आप के जिस्म पर 1 किलो अतिरिक्त फैट है तो रक्त को 22 मील और ज्यादा सरकुलेट होना पड़ता है. अगर व्यक्ति बहुत मोटा है तो फैट उस के सामान्य सरकुलेशन को और कमजोर कर देता है और खास मौके पर इतना रक्त उपलब्ध नहीं होता कि पूरी तरह से जोश में आ जाए.

दरअसल, खानेपीने का तरीका सामान्य सेहत को ही नहीं सेक्स जीवन को भी प्रभावित करता है. इस में कोई दोराय नहीं कि पतिपत्नी क्योंकि एक ही छत के नीचे रहते हैं इसलिए खाना भी एक सा ही खाते हैं. अगर किसी दंपती के खाने में विटामिन ‘बी’ की कमी है तो इस का उन के जीवन पर जटिल प्रभाव पडे़गा. इस की वजह से पत्नी में अतिरिक्त एस्ट्रोजन (महिला सेक्स हारमोन) आ जाएंगे और उस की सेक्स इच्छाएं बढ़ जाएंगी जबकि पति में इस का उलटा असर होता है. एस्टो्रजन के बढ़ने से उस के एंड्रोजन (पुरुष सेक्स हारमोन) में कमी आ जाती है.

दूसरे शब्दों में, स्थिति यह हो जाएगी कि पत्नी तो ज्यादा प्यार करना चाहेगी, लेकिन पति की इच्छाएं कम हो जाएंगी. इसलिए आवश्यक है कि संतुलित हाई प्रोटीन खुराक ली जाए. साथ ही शराब और सिगरेट की अधिकता से बचा जाए, क्योंकि इन दोनों के सेवन से व्यक्ति वक्त से पहले चरम पर पहुंच जाता है और फिर अतृप्त सा महसूस करता है.

गौरतलब है कि इंटरनेशनल जर्नल आफ सेक्सोलोजी-7 के अनुसार विटामिन और हारमोंस का गहरा रिश्ता है. दर्द भरी माहवारी में राहत के लिए जब टेस्टेस्टेरोन हारमोन दिया जाता है तो उस की अधिक सफलता के लिए साथ ही विटामिन ‘डी’ भी दिया जाता है. इसी तरह से गर्भपात के संभावित खतरे से बचने के लिए प्रोजेस्टरोन हारमोन के साथ विटामिन ‘सी’  दिया जाता है.

50 के बाद सेक्स से विमुखता की एक वजह यह भी है कि दोनों पतिपत्नी बननासंवरना काफी हद तक कम कर देते हैं. अच्छे और आकर्षक कपडे़ पहनने से और बाल अच्छी तरह बनाने से यकीनन महिला का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है. इस के बावजूद आप को रजोनिवृत्ति से गुजर चुकी ऐसी अनेक महिलाएं मिल जाएंगी जो भद्दे कपडे़ पहनती हैं, ऐसे बाल संवारती हैं जो फैशन में नहीं है. गाल उन के लटक गए होते हैं, ऊपरी होंठ पर बाल होते हैं, स्तन लटके हुए और पेट व कूल्हे फैले हुए होते हैं. ऐसी पत्नियों में भला किस पति की दिलचस्पी बरकरार रहेगी जबकि जरा सी कोशिश से यह सबकुछ बदला जा सकता है. महिलाएं अच्छी डे्रस शाप पर जाएं, सप्ताह में एक बार ब्यूटी पार्लर जाएं, लटकी हुई खाल और मांसपेशियों को सही आकार देने के लिए हैल्थ व ब्यूटी जिम्नेजियम में कोर्स करें और दृढ़ता से तय कर लें कि मांसपेशियों को सख्त रखने के लिए वे रोजाना कुछ मिनट व्यायाम के लिए भी निकालेंगी. यह सौंदर्य उपचार और हलकी कसरत न सिर्फ उन के मनोबल को बेहतर रखेगी बल्कि सख्त जिस्म उन के सेक्सुअल सिस्टम को भी दुरुस्त रखेगा और उन के पति उन की ओर आकर्षित रहेंगे. ज्ञात रहे कि आत्मविश्वास से भरी सुंदर स्त्री जो अपने जिस्म के रखरखाव में भी माहिर हो, वह अपनी ओर एक 16 साल की लड़की से ज्यादा ध्यान आकर्षित करा लेती है.

यहां यह बताना भी आवश्यक होगा कि इसी किस्म का आकर्षण लाने के लिए पुरुषों को भी चाहिए कि वे कसरत करें, ब्यूटी पार्लर जाएं और अच्छे कपडे़ पहनें, साथ ही उन की पत्नी जब रजोनिवृत्ति से गुजर रही हो तो उस का विशेष ध्यान रखें. पत्नी जितना खुल कर अपने पति से बातें कर सकती है उतना वह अपने डाक्टर से भी नहीं कह पाती. इसलिए अगर रजोनिवृत्ति के दौरान पति ने उसे सही से संभाल लिया तो आगे का सेक्स जीवन बेहतर रहेगा.

अब तक जो बहस की गई है उस से स्पष्ट है कि अच्छे, स्वस्थ और लंबे जीवन के लिए 50 के बाद भी सेक्स उतना ही आवश्यक है जितना कि उस से पहले. लेकिन उसे बेहतर बनाए रखने के लिए अपने नजरिए में बदलाव लाना भी जरूरी है और अगर कोई समस्या है तो मनोवैज्ञानिक और डाक्टर से खुल कर बात करने में कोई शर्म नहीं करनी चाहिए.

सरकार बीच में न आए

पार्किंग की समस्या सारे देश में गंभीर होती जा रही है. पहले खातेपीते घरों में एक कार होती थी, अब खातेपीते घर वे हैं, जिन में हर सदस्य के लिए एक कार है और सदस्यों में 2 साल के बच्चे भी शामिल हैं. घरों में तो पार्किंग की सुविधा दशकों पहले हुआ करती थी, अब तो सड़कों पर भी नहीं है और देश को मंदिर बनाने से फुरसत हो तो पार्किंग बनाए न.

घर बनाते हुए पार्किंग की सुविधाएं जुटाना एक आफत और खर्चीला काम है पर अब जरूरी हो गया है. मगर हमारे नीतिनिर्धारक भूसे में कुत्तों की तरह बैठे रहते हैं और न करते हैं न करने देते हैं. अगर घरों में 2 मंजिला तहखाने और ऊपर 2 मंजिलों में पार्किंग के लिए अनुमति दे दी जाए तो बहुत लोग पार्किंग तैयार करना शुरू कर देंगे. किराए पर देने की इजाजत हो तो वे बाहरी लोगों को भी दे देंगे बशर्ते कि कौरपोरेशन और पुलिस वाले हिस्सा मांगने न आ जाएं.

उसी तरह मौल्स, स्टोरों, सिनेमाघरों, अस्पतालों को भरपूर पार्किंग की जगह बनाने की छूट दे दी जाए तो समस्या का हल निकल सकता है. आखिर लोगों ने कच्ची झोंपडि़यों की जगह सीमेंट के पक्के मकान बनाने की आदत भी तो डाली ही है. पेड़ के नीचे बैठ कर बतियाने की जगह लोगों ने पक्के कौफी कैफे डे, फूड कोर्ट व क्लब बनाए ही हैं. जरूरत हो तो सब कुछ संभव हो सकता है पर सरकार जहां बीच में हो तो समझ लो कुछ भी नहीं हो सकता. यह न भूलें कि गृहिणियों को पार्किंग की सुविधाअसुविधा का सामना ज्यादा करना पड़ता है. दफ्तरों में तो इस काम के लिए आदमी रख दिए जाते हैं पर गृहिणियों के लिए पड़ोसिन से इस बारे में विवाद के लिए खड़ा हो जाना पड़ जाता है.

उन्हें बच्चों की सुरक्षा भी देखनी है, अपनी भी, गाड़ी की भी और घर की भी. लगता ही नहीं कि हमारी सरकारें और कौरपोरेशनें इस ओर ध्यान दे रही हैं. पार्किंग बनाने की अनुमति लेने जाओ तो सरकार नियमों, सावधानियों का मोटा पुलिंदा पकड़ा देगी. टैक्स बढ़ा देगी. बाजारों में व्यावसायिक पार्किंग स्थल बनाओ तो सर्विस टैक्स, बिक्री कर थोप देगी और साथ में इंस्पैक्टरों की फौज. तब कारमालिकों की सेवा से ज्यादा इंस्पैक्टरों की सेवा जरूरी हो जाती है.

दिल्ली में कौरपोरेशन ने कुछ मौलों को पार्किंग का किराया लेने से मना किया है, क्योंकि उन के नक्शे में पार्किंग लिखी थी और वह किराए पर दी जाएगी, ऐसा कहीं नहीं लिखा था. यह बेवकूफी वाला फरमान है. मौल को पैसा नहीं मिलेगा तो व्यापारी वहां सामान भर देगा. हमारा व्यापारी इतना उदार नहीं कि बिना पैसे वह गाड़ी खड़ी करने की जगह दे देगा जिसे बनाने में उस ने क्व3,000 से 4,000 प्रति वर्गफुट खर्च किए हों. जरूरत यह है कि लोगों को अपने काम करने दो. सरकार किसी तरह के बिखराव और परेशानी को दूर करने में असमर्थ रही है. लोगों को अपनी जमीन पर अपनी मरजी से मकान बनाने दो, फिर चाहे वे 2 मंजिला हों या 20 मंजिला. मकानों का मनचाहा इस्तेमाल करने दो. यह देश वैसे ही न नियम मानता है न पड़ोसी की सुविधाएं. फिर सरकार क्यों बीच में आए?

अगली जोड़ी आराध्या और अबराम की होगी

बादशाह खान का कहना है कि बौलीवुड की अगली हिट जोड़ी उन के बेटे अबराम और ऐश्वर्या की बेटी आराध्या की होगी क्योंकि दोनों ही स्टारकिड्स हैं और दोनों की ही फिल्मों में ऐंट्री होगी. अब ऐश्वर्या से तो मेरी जोड़ी बन नहीं पाई, चलो मेरे बेटे की ही उन की बेटी से बन जाए. जब शाहरुख यह कह रहे थे तब काजोल भी वहीं मौजूद थीं. वे बोलीं कि अबराम तो अराध्या से छोटा है न? तब शाहरुख तपाक से बोले, ‘‘अगर मैं तुम से छोटा होता तो क्या तुम मुझ से रोमांस नहीं करतीं?’’ वैसे आप को बता दें कि ऐश्वर्या भी तो अभिषेक से बड़ी हैं. अगर आराध्या की अपने से छोटे अबराम के साथ जोड़ी बनती है तो क्या गलत है?

जब चुनें थर्मल वियर

सर्दी के मौसम में सर्द हवाओं से खुद को  बचाने के लिए आप ने स्टाइलिश वूलन ड्रैसेज तो ले लीं, पर क्या आप ने अपने अंदर की सुरक्षा के बारे में सोचा? सर्द मौसम में शरीर को सही तरह से गरम बनाए रखने के लिए थर्मल वियर बौडी वौर्मर पहनना जरूरी है. इस का चुनाव कैसे करें, यह हम से जानिए:

फैब्रिक

मार्केट में कई तरह के फैब्रिक के थर्मल वियर मौजूद हैं पर आप हमेशा ब्रैंडेड थर्मल वियर का ही चुनाव करें, जिस की भीतरी परत सौफ्ट कौटन की और ऊपरी परत वूलन हो. ऐसे थर्मल वियर की भीतरी परत नमी दूर करती है और बाहरी परत गरमी बरकरार रखती है. इस से आप की त्वचा आसानी से सांस ले सकती है और रैशेज होने का खतरा भी नहीं रहता. ये सौफ्ट, कंफर्टेबल और स्किन फ्रैंडली भी होते हैं.

हो ड्रैस के अनुसार

आप थर्मल वियर का चुनाव अपनी ड्रैस की आवश्यकतानुसार कर सकती हैं. आजकल टू पीस थर्मल वियर अलगअलग डिजाइनों में उपलब्ध हैं. अपर पार्ट के डिजाइन में स्लीवलैस, हाफ स्लीव्स, फुल स्लीव्स के साथ डीप राउंड नैक, वी नैक के अलावा स्पैगिटी स्टाइल भी चलन में है. और बौटम में लैगिंग, पैंट स्टाइल व कैप्री स्टाइल का चलन है, जिन्हें आप अपनी ड्रैस के अनुसार आसानी से कैरी कर सकती हैं और स्टाइलिश दिख सकती हैं.

ऐसे काम करता है थर्मल वियर

बौडी वार्मर दरअसल इंसुलेशन तकनीक से काम करता है. इस में इस्तेमाल होने वाला फैब्रिक शरीर की नमी का थोड़ा सा हिस्सा सोख कर उसे सुखा देता है और शरीर व कपड़े के बीच की इंसुलेटिंग लेयर में हवा का जरूरी प्रवाह बनाए रखता है. इस के साथसाथ यह इतनी अच्छी तरह से बुना होता है कि शरीर की प्राकृतिक गरमी को अंदर ही बनाए रखता है. वूलन थर्मल वियर की एक खासीयत यह भी है कि यह थोड़ी नमी सोखने के बाद भी शरीर की गरमी बनाए रखता है.

कैसे करें वाश

थर्मल वियर की सफाई पर विशेष ध्यान दें क्योंकि यह सीधे आप की बौडी से टच होता है. इस की सफाई के लिए मार्केट में उपलब्ध वूलन डिटर्जेंट लिक्विड का ही इस्तेमाल करें. गरम पानी में धोने से थर्मल वियर के लूज हो जाने का खतरा रहता है. इसे कुछ देर वूलन लिक्विड डिटर्जेंट वाले ठंडे पानी में डिप कर के रखें. फिर हाथों से रब कर पानी से अच्छी तरह से धो लें, जिस से डिटर्जैंट पूरी तरह से निकल जाए. फिर इसे एक बार ऐंटीसैप्टिक ड्रौप वाले पानी में डिप कर के निकालें. इस से यह कीटाणुरहित हो जाएगा. वाशिंग मशीन के ड्रायर में सुखाने के बाद इसे धूप जरूर दिखाएं, जिस से इस की नमी पूरी तरह से निकल जाए.

दुपट्टे को बाय नहीं हाय कहें

बेशक आजकल की गर्ल्स वैस्टर्न आउटफिट को ज्यादा तरजीह दे रही हैं, लेकिन इस के बावजूद वे इंडियन आउटफिट से खुद को दूर नहीं रख पातीं. इस की खास वजह यह है कि आमतौर पर इंडियन आउटफिट खुले होने की वजह से कूल और कंफर्टेबल फील कराते हैं. इन आउटफिट्स में एक है दुपट्टा. इसे अधिकांश कालेज गोइंग गर्ल्स से ले कर वर्किंग गर्ल्स तक को कैरी करते हुए देखा जा सकता है. दुपट्टे के लिए प्रयोग किए जाने वाले वैसे तो बहुत सारे स्टफ होते हैं जैसेकि कौटन, ग्लेज कौटन, सिल्क, जौर्जेट, शिफौन, कौटन नैट आदि. लेकिन गरमी में सब से अधिक डिमांड कौटन व ग्लेज कौटन के दुपट्टों की होती है. आइए, जानते हैं दुपट्टे के नए ट्रैंड के बारे में:

लहरिया: लहरिया प्रिंट के दुपट्टे आमतौर पर शिफौन के होते हैं और इन पर लंबीलंबी धारियां बनी होती हैं. डिफरैंट कलर में मिलने वाले ये दुपट्टे लाइट व प्लेन कलर के सूट के साथ बेहद अट्रैक्टिव लगते हैं खासकर व्हाइट डै्रस के साथ. ये वजन में बेहद हलके होते हैं. इन्हें थोड़ा हैवी लुक देने के लिए इन के किनारों पर मोती, क्रोशिया लेस, गोटा, लटकन आदि का इस्तेमाल किया जाता है.

कैरी विद स्टाइल: दुपट्टे के साथ काफी सारे ऐक्सपैरिमैंट कर के आप स्टाइलिश लुक पा सकती हैं. इसे कैरी करने का यों तो सब से कौमन स्टाइल है फ्रंट से दोनों कंधों पर. लेकिन यह वन साइड के अलावा बैक से दोनों शोल्डर पर भी आकर्षक लुक देता है. इस के अलावा इसे मफलर स्टाइल में भी कैरी किया जा सकता है. वैसे आजकल दुपट्टों का प्रयोग धूप से बचने के लिए सिर और चेहरे को ढकने के लिए भी किया जाता है यानी स्टाइल के साथ सेफ्टी कवर भी.

बांधनी व टाई ऐंड डाई वर्क: बांधनी या बंधेज वर्क के दुपट्टे बनाने के लिए रेशमी धागे का इस्तेमाल किया जाता है. कुछकुछ दूरी पर धागों से दुपट्टों को बांध कर उन्हें रंग में कुछ देर के लिए डुबो दिया जाता है. फिर रंग से निकालने के बाद धागों को खोल कर सुखा दिया जाता है, जिस के फलस्वरूप बंधे हुए स्थान पर खूबसूरत डिजाइन उभर आते हैं. ऐसे दुपट्टे 2 या इस से अधिक कलर में भी बनाए जाते हैं. इन्हें हैवी लुक देने के लिए सीप, सीसे व सितारों का इस्तेमाल किया जाता है.

बाटिक व ब्लौक प्रिंट: बाटिक प्रिंट के लिए ग्लेज कौटन व सिल्क के स्टफ का इस्तेमाल किया जाता है. इस पर वैक्स की सहायता से डिजाइन बनाए जाते हैं, जोकि सिंपल व सोबर लुक देते हैं.

ब्लौक प्रिंट के लिए लकड़ी के टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है जिन पर विभिन्न प्रकार के डिजाइन जैसेकि फूल, पत्ती, मोर आदि बने होते हैं. इस प्रकार से तैयार दुपट्टों की खासीयत यह होती है कि इन के डिजाइन कभी फेड नहीं होते.

कांदा वर्क: कांदा वर्क एक तरह की महीन कढ़ाई होती है. इस में सूई और धागों की मदद से डिजाइन बनाया जाता है. इस के डिजाइन बहुत बारीक होते हैं तथा उन्हें बनाने में मेहनत भी बहुत लगती है. प्लेन दुपट्टे पर रंगबिरंगे धागे से सजे डिजाइन देखने में बहुत आकर्षक लगते हैं. रिच लुक होने की वजह से ये आम दुपट्टों के मुकाबले कुछ महंगे होते हैं.

प्लेन दुपट्टा: प्रिंटेड सूट के साथ प्लेन दुपट्टा अच्छा लगता है. यदि आप इस पर स्वयं कुछ प्रयोग करना चाहती हैं, तो इस के चारों ओर लेस, गोटा, घुंघरू आदि लगा सकती हैं. चाहें तो सूट में से थोडे़ हिस्से को निकाल कर दुपट्टे के चारों तरफ लेस की तरह लगा लें या फिर प्रिंटेड कपड़े को दुपट्टे पर ऐप्लीक की तरह लगाएं.

किस आउटफिट के साथ पहनें: पटियाला सूट, सेमी पटियाला, अफगानी सलवार, चूड़ीदार सूट के साथ दुपट्टा अट्रैक्टिव लुक देता है. चूंकि आजकल मिक्स ऐंड मैच का फैशन है, तो इस लिहाज से हैंडीक्राफ्ट दुपट्टे को विभिन्न कुरतों के साथ मैच कर के पहना जा सकता है.

हर घर डिजाइनर

घर ही एक ऐसी जगह होती है जहां हर व्यक्ति अपनी सारी चिंताओं, परेशानियों को भूल कर कुछ पल सुकून के गुजारता है. पर घर में सुकून के पल तभी मिलेंगे जब आप का घर सुविधाजनक और डिजाइनर होगा. काली कट के डिजाइनर और वास्तुकार सिंधु कृष्णा कुमार कहते हैं, ‘‘आज हर घर डिजाइनर घर है. घर में डिजाइनर फैक्टर असली हीरो है.’’

ईकोफ्रैंडली घर का क्रेज

केरल हमेशा ईकोफ्रैंडली आर्किटैक्चर के लिए आगे रहा है पर कुछ समय से ईकोफ्रैंडली आर्किटैक्चर को पीछे रख कर वैस्टर्न स्टाइल के आर्किटैक्चर की नकल की जाने लगी है. साथ ही इस बात पर भी ध्यान दिया जाता है कि ऐसी संरचनाओं का निर्माण करने से जमीन पर असर न पड़े. बहुत से लोग तो आजकल पुराने व नए जमाने के स्टाइल के फ्यूजन वाले घर बनवा रहे हैं. मगर सब से जरूरी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आजकल बहुत से लोग विशेषरूप से ऐसे घरों में पैसा लगाना चाहते हैं, जो पर्यावरण की दृष्टि से भी सुरक्षित हों.

कोचीन के वास्तुकार शिंटो वर्गीस कहते हैं कि अब समकालीन शैली केरल पहुंच गई है. यह शैली समय और पैसा बचाने में काफी प्रभावी है. अब यूरोपियन निर्माण शैली में भी केरल एनआरआई संख्या की वजह से काफी आगे है. जिन डिजाइनों में अधिक ऊर्जा की बचत का विकल्प होता है और जो ईकोफ्रैंडली सामग्री से बने होते हैं, उन का चलन अधिक है. इस बात को मानना होगा कि किसी भी सोसाइटी का आर्किटैक्चर वहां के सांस्कृतिक, राजनीतिक व आर्थिक प्रभावों को दर्शाता है. केरल में एनआरआई का पैसा ही वहां स्टाइल्स का निर्धारण कर रहा है.

अंधविश्वासमुक्त घर

आजकल कुछ लोग 100 वर्गफुट में भी रह कर खुश हैं, क्योंकि उन्हें उसी में मौडर्न समय की सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं. ऐसे घर भी भारत में बहुत लोकप्रिय होते जा रहे हैं. शिंटो वर्गीस कहते हैं कि आजकल कुछ लोग घर बनवाते समय वास्तु पर भी ध्यान देने लगे हैं. वास्तु का पागलपन इतना अधिक बढ़ गया है कि धर्म के पागलपन से भी आगे निकल गया है. लोग इस पर आंख मूंद कर विश्वास कर रहे हैं. अब यह भी एक तरह से अंधविश्वास बनता जा रहा है.

इस तरह के खोखले अंधविश्वासों पर यकीन करने की बजाय घर को सुंदर व सुविधाजनक बनाने में ही समझदारी है. आजकल ईकोफ्रैंडली व ऐनर्जी फ्रैंडली घरों की लोकप्रियता दोबारा बढ़ने लगी है. रेनवाटर, हार्वैस्ट स्ट्रक्चर, सोलर, वाटर हीटर सिस्टम व ऐसी खिड़कियां जिन से अधिक से अधिक सूर्य की रोशनी अंदर आ सके, ऐसी तकनीकों पर आजकल के डिजाइनर जोर दे रहे हैं.

मौसम सर्द न बढ़ाए जोड़ों का दर्द

जोड़ों का दर्द सामान्य भी होता है तो गंभीर भी. सामान्य दर्द को तो आप खानपान और जीवनशैली में बदलाव ला कर ठीक कर सकते हैं, लेकिन गंभीर दर्द के लिए उपचार की जरूरत होती है. एक अनुमान के अनुसार हर 4 व्यक्तियों में से 1 जोड़ों के दर्द से परेशान है. यह समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा होती है.

क्यों होता है जोड़ों का दर्द

जोड़ों में दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे बोन फ्लूइड (हड्डी द्रव) या मैम्ब्रेन में परिवर्तन आना, चोट लगना या अंदर किसी बीमारी का पनपना, हड्डियों का कैंसर, आर्थ्राइटिस, मोटापा, ब्लड कैंसर, उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों के बीच के कार्टिलेज कुशन को लचीला और चिकना बनाए रखने वाला लूब्रिकैंट कम होना, लिगामैंट्स की लंबाई और लचीलापन कम होना.

जोड़ों को कैसे रखें स्वस्थ

जोड़ों के दर्द खासकर आर्थ्राइटिस का कोई उपचार नहीं है, लेकिन कुछ उपाय हैं, जिन्हें अपना कर इस की चपेट में आने से बचा जा सकता है या इस की चपेट में आने पर लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है:

जोड़ों में मौजूद कार्टिलेज को आर्थ्राइटिस के कारण नुकसान पहुंचता है. यह 70% पानी से बना होता है, इसलिए ढेर सारा पानी पीएं.

कैल्सियम युक्त खाद्यपदार्थों जैसे दूध, दूध से बनी चीजों, ब्रोकली, सालमन, पालक, राजमा, मूंगफली, बादाम, टोफू आदि का सेवन करें.

विटामिन सी और डी स्वस्थ जोड़ों के लिए बहुत उपयोगी हैं. इसलिए इन से भरपूर खाद्यपदार्थों जैसे स्ट्राबैरी, संतरा, किवी, पाइनऐप्पल, फूलगोभी, ब्रोकली, पत्तागोभी, दूध, दही, मछली आदि का पर्याप्त सेवन करें.

 सूर्य के प्रकाश में भी कुछ समय बिताएं. इस से विटामिन डी मिलेगा.

वजन को नियंत्रण में रखें. वजन अधिक होने से जोड़ों पर दबाव पड़ता है.

नियमित ऐक्सरसाइज करें, जो जोड़ों की जकड़न कम करने में सहायता करती है. लेकिन ऐसे व्यायाम करने से बचें, जिन से जोड़ों पर ज्यादा दबाव पड़ता है.

शराब और धूम्रपान का सेवन जोड़ों को नुकसान पहुंचाता है. आर्थ्राइटिस से पीडि़त अगर इन का सेवन बंद कर दें तो उन के जोड़ों और मांसपेशियों में सुधार आ जाता है और दर्द में भी कमी होती है.

स्वस्थ लोग भी धूम्रपान न करें, क्योंकि यह आप को रूमैटौइड आर्थ्राइटिस का शिकार बना सकता है.

फल और सब्जियों का सेवन अधिक मात्रा में करें. इस से औस्टियोआर्थ्राइटिस से बचाव होगा.

अदरक और हलदी का सेवन करें. ये जोड़ों की सूजन को कम करते हैं.

आरामतलबी की जिंदगी न जीएं.

सूजन बढ़ाने वाले पदार्थों जैसे नमक, चीनी, अलकोहल, कैफीन, तेल, ट्रांस फैट और लाल मांस का सेवन कम करें.

पैदल चलना, जौगिंग करना, डांस करना, जिम जाना, सीढि़यां चढ़ना या हलकेफुलके व्यायाम कर के भी हड्डियों को मजबूत कर सकते हैं.

र्दी के मौसम में रखें विशेष ध्यान

सर्दी के मौसम में जोड़ों का दर्द अधिक सताता है, क्योंकि इस मौसम में लोग आराम अधिक करते हैं. इस से शारीरिक सक्रियता कम हो जाती है. दिन छोटे और रातें बड़ी होने से जीवनशैली बदल जाती है, खानपान की आदतें भी बदल जाती हैं. लोग व्यायाम करने से कतराते हैं, जिस से यह समस्या और गंभीर हो जाती है. अत: निम्न बातों का ध्यान रखें:

नियमित व्यायाम करें. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें.

बाहर तापमान अत्यधिक कम हो तो बाहर टहलने और अन्य गतिविधियों से बचें.

शरीर को हमेशा गरम कपड़ों से ढक कर रखें.

पानी कम न पीएं. प्रतिदिन 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं.

ठंड से खुद को बचा कर रखें. जिस हिस्से में दर्द हो उसे गरम कपड़े में लपेट कर रखें.

ठंडी चीजें खाने के बजाय गरम चीजों का सेवन अधिक करें. लहसुन, प्याज, सालमन मछली, गुड़, बादाम, काजू आदि का अधिक सेवन करें.

नियमित ऐक्सरसाइज करें. इस से मांसपेशियों को खुलने में मदद मिलेगी और जोड़ों की अकड़न से राहत मिलेगी. हां, ऐक्सरसाइज करने में जल्दबाजी न करें.

करयुक्त आटे की रोटी और मूंग की दाल का सेवन करें. हरी सब्जियों कद्दू, लौकी, घिया, ककड़ी, पत्तागोभी, फूलगोभी, गाजर आदि का सेवन करें. ब्रोकली का उपयोग अधिक से अधिक करें. यह आर्थ्राइटिस को बढ़ने नहीं देती.

अगर दवा लेते हों तो नियमित समय पर लेते रहें.

अगर जोड़ों के दर्द के साथ निम्न समस्याएं हों तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं: सूजन, लालपन, जोड़ों का उपयोग करते समय समस्या हो, अत्यधिक दर्द आदि.    

– डा. निराद वेंगसरकार
और्थोपैडिक्स जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन,लीलावती अस्पताल, मुंबई.

 

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