करीड पास्ता सलाद

सामग्री

2 कप पास्ता फुसली उबली द्य 1 कप अनन्नास छोटे टुकड़ों में कटा द्य 1/2 कप काले अंगूर कटे हुए द्य 1/2 कप कमलककड़ी उबली और बारीक

कटी 3-4 ऐस्पैरागस द्य 2 बड़े चम्मच पाइन नट्स भुने द्य 8 लाल और 8 पीले चेरी टमाटर आधेआधे कटे द्य 1 हरा सेब पतला लंबा कटा 5-6 औलिव.

सामग्री डै्रसिंग की

1 कप मेयोनीज द्य 1 बड़ा चम्मच रैड थाई करी पेस्ट द्य 10-12 तुलसी की पत्तियां कटी

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर.

गार्निशिंग के लिए

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी द्य केले का पत्ता

2 पीस गार्लिक ब्रैड.

विधि

ड्रैसिंग मिश्रण बनाने के लिए मेयोनीज, रैड थाई करी पेस्ट और तुलसी को मिला कर एक तरफ रख दें. फिर मिक्सिंग बाउल में सारी सामग्री डाल कर मिलाएं और उस पर डै्रसिंग से कोट करें. फिर धनियापत्ती से सजा कर केले के पत्ते पर रखें और थोड़ी सी मिर्च पाउडर उस पर बुरकें.

ऐप्पल टौफी

सामग्री

9-10 लाल सेब के टुकड़े

तलने के लिए पर्याप्त.

सामग्री सिरप की

1/4 कप तेल द्य 1/4 कप चीनी

1/4 कप शहद द्य 2 बड़े चम्मच तिल

1/2 छोटा चम्मच पीला रंग.

सामग्री घोल की

3 बड़े चम्मच मैदा द्य 3 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर.

सामग्री सौस की

1/4 कप शहद द्य 2 बड़े चम्मच तिल.

विधि

सेब के टुकड़ों पर मैदे के घोल का कोट लगा कर गरम तेल में सुनहरा होने तक फ्राई कर टिशू पेपर पर रखें. अब सिरप में तिल मिलाएं और तले सेब पर कोट करें. कोटिंग के बाद सेब को कुछ समय के लिए ठंडे पानी में रखें और फिर निकाल कर टिशू पेपर पर रखें. जब ऐप्पल टौफी तैयार हो जाए तो उसे प्लेट पर रखें. सौस बनाने के लिए तिल और शहद का मिश्रण बनाएं. फिर इसे ऐप्पल टौफी पर छिड़कें. पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

वैडिंग औनली इन साउथ दिल्ली

‘‘उद्योगपति वैश्य परिवार से संबंध रखने वाले 25 वर्षीय एमबीए स्मार्ट लड़के के लिए सुयोग्य कन्या चाहिए. लड़के के पिता का साउथ दिल्ली की पौश कालोनी में घर है.’’

‘‘खत्री सिख परिवार की 23 वर्षीय गोरी, सुंदर, फैशन डिजाइनर कन्या के लिए व्यापारी/पेशेवर वर की तलाश है. परिवार की साउथ दिल्ली में कोठी है.’’

इन दोनों विज्ञापनों के कंटैंट में साउथ दिल्ली वाले कोण के रूप में ही समानता देखी. अगर आप वैवाहिक विज्ञापनों के ताजा कंटैंट का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि दिल्ली के साउथ दिल्ली वाले हिस्से के बाशिंदों ने अपने को बाकी दिल्ली से अलग कर लिया है. वे जब अपनी या अपने किसी करीबी की शादी की बात करते हैं, तो साउथ दिल्ली के भीतर ही रहना चाहते हैं. वे दिल्ली के बाकी हिस्सों से बचते हैं. औनली साउथ दिल्ली के विचार को ले कर प्रतिबद्ध साउथ दिल्ली वाले जाति, मजहब की दीवारों को भी गिरा चुके हैं. वे एक हैं और एक तरह से सोच रहे हैं. उन का नारा है, औनली साउथ दिल्ली.

बैंड, बाजा, बरात का सीजन लौट आया है. शादियों के कार्ड मिलने शुरू हो गए हैं. जाहिर है आप के घर में भी इस मुद्दे पर विवाद शुरू हो गया होगा कि आप को किस शादी को अटैंड करना है और किसे छोड़ना है. बहरहाल, साउथ दिल्ली वालों ने अपने लिए कुछ अलिखित नियम बना लिए हैं. वे शादी को ले कर इन नियमों का बड़ी शिद्दत से पालन भी करने लगे हैं. साउथ दिल्ली वालों की ख्वाहिश रहती है, अपने लाड़ले या लाडली के लिए साउथ दिल्ली की काल्पनिक दीवारों के भीतर ही आइडियल मैच तलाश करना. यह हम नहीं कह रहे, ये बता रहे हैं अखबारों में छपने वाले वैवाहिक विज्ञापन. और तो और उन की तसदीक कर रहे हैं मैरिज ब्यूरो से जुड़े लोग.

‘दुलहन वही जो पाठकजी दिलवाएं’ मैरिज ब्यूरो की नीलम पाठक दावा करती हैं, ‘‘मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकती हूं कि साउथ दिल्ली में रहने वाले पेरैंट्स जब अपने बेटे या बेटी के लिए मैच तलाशने निकलते हैं, तो वे साउथ दिल्ली से निकलने के बारे में सोचते भी नहीं. वे अपने को खास समझते हैं. जाहिर है, वे अपने वैवाहिक विज्ञापनों में भी अपने साउथ दिल्ली कनैक्शन का जिक्र करने का खयाल रखते हैं.’’ औनली साउथ दिल्ली ट्रैंड का अध्ययन करने के इरादे से हम ने राजधानी से छपने वाले एक प्रमुख अंगरेजी अखबार के बीते 4, 11, 18, 25 जनवरी, 2015 के 4 रविवारों के अंकों में छपे विज्ञापनों का गहन अध्ययन किया. जानने की चेष्टा की कि शादी की दुनिया के अंदर क्याक्या स्वादिष्ठ पक रहा है. इन अंकों में कुल 7,740 वैवाहिक विज्ञापन छपे. उन में 122 में विज्ञापनदाताओं ने अपने साउथ दिल्ली से संबंधों का साफतौर पर जिक्र किया. विज्ञापन में लिखा कि वर के पिता का साउथ दिल्ली में घर, फ्लैट, कोठी, बंगला है. मात्र 3 अलगअलग विज्ञापन छपे जिन में बताया कि उन का नोएडा या नौर्थ दिल्ली में आशियाना है.

‘लांबा फेरे मैरिज ब्यूरो’ की सलाहकार रेखा बताती हैं, ‘‘अगर साउथ दिल्ली में रहने वाला कोई शख्स बाहर निकलना भी चाहे तो उस के बच्चे उसे हतोत्साहित करते हैं. बड़ों से बढ़ कर उन के बच्चे हैं. वे तो किसी भी सूरत में साउथ दिल्ली से बाहर जाने को राजी नहीं हैं.’’

उन कारणों का खुलासा करते हुए रेखा ने बताया कि साउथ दिल्ली के यंगस्टर्स मानते हैं कि वे बाकी के मुकाबले ज्यादा ट्रैंडी और स्मार्ट हैं. उन के साथ गैरसाउथ दिल्ली वाले की पटेगी नहीं. वे मानते हैं कि साउथ दिल्ली की कायदे से सरहद पालम से शुरू होती है और वसंत विहार में खत्म हो जाती है. इस के बीच उन्हें लाइफपार्टनर मिलना चाहिए. अपने को साउथ दिल्ली का बताने में फख्र महसूस करने वाले कुल विज्ञापनदाताओं में 54 का संबंध पंजाबी जातियों जैसे खत्री, गुरसिख, अरोड़ा, खुखरैन वगैरह से था. हिंदी और पंजाबी के लेखक और कवि प्रो. प्रताप सहगल को औनली साउथ दिल्ली ट्रैंड में पंजाबियों की बढ़ती भागीदारी से हैरानी नहीं है. वे कहते हैं, ‘‘राजधानी के पंजाबियों ने कड़ी मेहनतमशक्कत करने के बाद पैसा कमाया. वे देश के विभाजन के बाद पूरी तरह से लुटपिट कर आए थे. वे कमाने के बाद संचय में कम, खर्च करने में ज्यादा यकीन करने लगे. वे जो कुछ भी करते हैं उसे दिखाने में यकीन करने लगे इसलिए वैवाहिक विज्ञापनों में अपनी प्रौपर्टी से ले कर महंगी कार तक का जिक्र करते. मगर अब गैरपंजाबी भी उन के नक्शेकदम पर चल रहे हैं.’’

23 वैश्य, 14 ब्राह्मण, 10 कायस्थ, 7 डाक्टर (अगर उन्हें भी आप जाति ही मानें), 5 मुसलमान, 4 जाट, 3 राजपूत तथा 2 मांगलिक ने भी साउथ दिल्ली में कोठी, फ्लैट, बंगला बता कर अपना रोब गालिब कर ही दिया. साउथ दिल्ली का क्रेज मैरिज से कहीं आगे निकल गया है. एनसीआर में सक्रिय रीयल ऐस्टेट कंपनी आईएलडी की निदेशक नुजत अलीम कहती हैं, ‘‘मैं ने महसूस किया है कि साउथ दिल्ली की सरकारी कालोनियों जैसे आर.के.पुरम, नेताजी नगर, सरोजनी नगर, आईएनए वगैरह में रहने के बाद जब लोगों को अपना सरकारी घर खाली करना पड़ता है तो उन की पहली कोशिश यही होती है कि वे किराए पर साउथ दिल्ली में ही घर लें.’’

औनली साउथ दिल्ली के सफर को आगे बढ़ाते हुए एक बड़ा गौरतलब ट्रैंड यह भी सामने आया है कि जाति से जकड़े भारतीय समाज में जाति का बंधन तब खुलने लगता है जब किसी इनसान को पुनर्विवाह करना होता है. दूसरा विवाह करने की चाहत रखने वाले करीबकरीब सभी विज्ञापनों में ‘जाति बंधन नहीं’ लिखा गया था. हालांकि इन में विज्ञापनदाताओं ने अरोड़ा, जाटव, वैश्य, सिख, ब्राह्मण जैसी अपनी जातियों का उल्लेख तो कर ही दिया था. नीलम पाठक कहती हैं, ‘‘ऐसा नहीं है कि जो अपनी जाति का उल्लेख अपने विज्ञापनों में करते हैं, वे अपनी जाति से बाहर निकलने के लिए तैयार ही नहीं हैं. चूंकि हमारे यहां विवाह जाति बतानेजानने का रिवाज है इसलिए इस का उल्लेख हो ही जाता है. हालांकि कुछ साल पहले तक तो दूसरे विवाह के वक्त भी लोग अपनी जाति के इर्दगिर्द ही रहते थे.’’

पंडित सुरेश पांडे ने बताया कि उन के पास दूसरा विवाह करने से पहले लोग जन्मपत्री भी दिखाने के लिए नहीं आते. मतलब साफ है कि वैवाहिक जीवन की दूसरी पारी में चाहत यही रहती है कि किसी जीवनसाथी के साथ शेष जीवन जैसेतैसे बीत जाए. रंगभेद के अभिशाप से भले ही साउथ अफ्रीका मुक्त हो गया हो पर हमारे कम से कम शादी के संसार में रंगभेद साफतौर पर अपनी जड़ें जमाए हुए है. होने वाली वधू या बहू ‘गोरी’ या ‘फेयर’ मिल जाए तो सोने में सुहागा ही माना जा रहा है. हमें वधू कौलम के 55 विज्ञापनों में पढ़ने को मिला कन्या गोरी है. उधर नईनवेली बहू चाहने वाले 16 को इंतजार है किसी गोरी कुड़ी के मिलने का.

रहें ४ कदम आगे

हर महिला की ख्वाहिश होती है कि वह अपने घरपरिवार की बागडोर संभाले. मगर इस चाह को पूरा करने के लिए जरूरी है कि वह ऐकैडमिक स्तर पर सफल व वैल सैटल्ड हो. इस नए साल में हम लीप वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, तो क्यों न हम महिलाओं के लिए प्रोफैशनल लैवल पर लीप फौरवर्ड यानी ‘चलें 4 कदम और आगे’ का मंत्र अपनाएं. ऐसा करने से न केवल महिलाओं को फाइनैंशियली सैटल होने में मदद मिलेगी वरन उन में आत्मविश्वास भी जाग्रत होगा.

‘चलें 4 कदम और आगे’ के इस मंत्र में हम ऐसे 4 कोर्सेज के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें वे अपनी नियमित शिक्षा के साथसाथ पार्टटाइम कर सकेंगी और अपनी योग्यता के साथसाथ रचनात्मकता को भी बढ़ा सकेंगी. नए साल में औरों से 4 कदम आगे रखने वाले इन कोर्सेज के अलावा आप अपनी रुचि के अनुसार टूरिज्म इंडस्ट्री, सोशल वर्क, फूड ऐंड न्यूट्रिशन, कैंडल मेकिंग, चौकलेट मेकिंग, गिफ्ट पैकिंग आदि क्षेत्रों में भी सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स कर सकती हैं. कई बार महिलाएं घरेलू जिम्मेदारियों के चलते 9 से 5 की औफिस जौब नहीं कर पातीं. ऐसे में ये कोर्सेज उन के कैरियर ग्राफ को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे. इन कोर्सेज को वे ईवनिंग में या वीकेंड में भी कर सकतीहैं. कोर्स की अवधि के अनुसार इन की फीस अलगअलग होती है. आप के हुनर को बढ़ाने वाले ये कोर्सेज आप को औरों से 4 कदम आगे रखेंगे और आप को प्रोफैशनल लैवल पर अधिक सक्षम व सशक्त हो कर उभरने में मदद करेंगे.  

पहला कदम

कुकिंग यानी कुलीनरी आर्ट्स: एक दौर था जब खाना बनाने को घरेलू काम समझा जाता था. लेकिन मौजूदा दौर में कुकिंग यानी कुलीनरी आर्ट्स एक आकर्षक कैरियर औप्शन के तौर पर उभरा है. नीता मेहता, पंकज भदौरिया ऐसे जानेमाने नाम हैं, जिन्होंने खाना बनाने की कला को स्थापित व्यवसाय का रूप दिया है. इस क्षेत्र को प्रोफैशन के रूप में अपनाने के लिए कोई भी महिला कुलीनरी आर्ट्स में डिप्लोमा हासिल कर सकती है. डिप्लोमा के अंतर्गत कुकिंग, बेकिंग की तकनीक, गार्निशिंग, नाइफ स्किल्स, फूड कर्विंग, प्लेटें सजाने व फूड फोटोग्राफी के साथसाथ रैस्टोरैंट मैनेजमैंट के गुर भी सीखे जा सकते हैं. इन कोर्सेज को करने के बाद कोई भी महिला कंसल्टिंग ऐंड डिजाइन प्रोफैशनल, फूड ऐंड बेवरेज कंट्रोलर, ऐंटरप्रेन्योरशिप, सेल्स पर्सन, फूड क्रिटिक्स, फूड राइटर्स, फूड स्टाइलिस्ट व फूड फोटोग्राफी का काम कर सकती है. कोई भी महिला अपनी कुकिंग क्लासेज या टिफिन सिस्टम का व्यवसाय भी शुरू कर सकती है.

इन कोर्सेज के जरीए महिलाएं मल्टीटास्किंग, टीम का नेतृत्व, पोषण के स्तर को नियंत्रित रखना व मेन्यू का विकास करना सीख जाती हैं, जो उन्हें औरों के मुकाबले 4 कदम आगे रखता है. दिल्ली में कुलीनरी आर्ट्स से संबंधित कोर्स दिल्ली इंस्टिट्यूट औफ होटल मैनेजमैंट ऐंड कैटरिंग टैक्नोलौजी, दिल्ली व इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट औफ कुलीनरी आर्ट्स, नई दिल्ली से किया जा सकता है.

दूसरा कदम

फैशन डिजाइनिंग: यदि किसी महिला को फैशन की समझ है और उस की क्रिएटिव स्किल अच्छी है तो वह फैशन मर्केडाइजिंग, फैशन स्टाइलिंग, फैशन कोऔर्डिनेटर और फैब्रिक बायर के क्षेत्र में पार्टटाइम कोर्स कर के इस क्रिएटिव क्षेत्र में कैरियर बना सकती है. इन सभी क्षेत्रों में कोई भी महिला 2-3 शौर्ट टर्म डिप्लोमा कोर्सेज कर सकती है.

इन डिप्लोमा कोर्सेज को करने के बाद वह कौस्ट्यूम डिजाइनर, पर्सनल स्टाइलिस्ट, फैशन कोऔर्डिनेटर व फैब्रिकेशन के क्षेत्र में काम कर सकती है या फिर अपना स्वयं का व्यवसाय जैसे फैशन शो और्गेनाइजर, गारमैंट स्टोर चेन, बुटीक आदि खोल सकती है. देश में अनेक ऐसे संस्थान हैं, जो इस क्षेत्र में क्रिएटिव कोर्स कराते हैं.

तीसरा कदम

ब्यूटी बिजनैस में बनाएं कैरियर: आज हर कोई खूबसूरत और स्मार्ट दिखना चाहता है. यही कारण है कि आज ब्यूटी और वैलनैस इंड्रस्ट्री तेजी से आगे बढ़ रही है. ब्यूटी बिजनैस आज फेयरनैस, हैल्दी स्किन क्रीम से आगे बढ़ कर ब्यूटी सैलून, स्पा तक जा पहुंचा है. इस क्षेत्र में कैरियर बनाने की इच्छुक महिलाओं के लिए अनेकानेक अवसर हैं. कोई भी महिला ब्यूटीशियन, ब्यूटीकल्चर, हेयरड्रैसर तथा हैल्थ स्लिम असिस्टैंट से जुड़ी जानकारी वाले तकनीकी कोर्स कर सकती है और कौस्मैटोलौजिस्ट, मेकअप प्रोफैशनल्स, हेयर ऐक्सपर्ट, नेल ऐक्सपर्ट, ब्यूटी मैनेजर, ब्यूटी थेरैपिस्ट, कलर थेरैपिस्ट के तौर पर कैरियर बना सकती है. इस के अतिरिक्त वह फैशन स्टाइलिस्ट, ब्यूटी मैगजीन राइटर, ब्यूटी प्रोडक्ट डिजाइनर, ब्यूटी बिजनैस कंसलटैंट, ब्यूटी स्कूल ओनर के तौर पर पहचान बना सकती है.

ब्यूटी ऐक्सपर्ट शहनाज हुसैन, वंदना लूथरा, भारती तनेजा ऐसे जानेमाने नाम हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र की मौडर्न तकनीकों में महारत हासिल कर के विश्व स्तर पर नाम कमाया.

चौथा कदम

ज्वैलरी डिजाइनिंग: गहनों से हर महिला का भावनात्मक जुड़ाव होता है. अपने इसी जुड़ाव को महिलाएं अपनी आय का स्रोत भी बना सकती हैं. कैरियर विकल्प के तौर पर ज्वैलरी डिजाइनिंग व्यवसाय युवतियों के बीच खासा लोकप्रिय हो रहा है. इस से जुड़े अनेक डिप्लोमा, सर्टिफिकेट कोर्स होते हैं. ज्वैलरी डिजाइनिंग के क्षेत्र में क्रिएटिव होने के साथसाथ प्रोफैशनल दिमाग के कौंबिनेशन की जरूरत होती है. कोई भी 12वीं कक्षा पास युवती इन कोर्सेज में दाखिला ले सकती है और कोर्स करने के बाद फ्रीलांसर के तौर पर ज्वैलरी डिजाइनिंग का काम कर सकती है. ऐसा वह अपने आसपास के ज्वैलर्स हाउसेज के लिए कर सकती है. बाद में वह कोई ज्वैलर्स कंपनी भी जौइन कर सकती है.

कानपुर की ज्वैलरी डिजाइनर कृति गर्ग का कहना है कि शुरुआती दौर में उन्होंने काशी ज्वैलर्स में मार्केटिंग हैड का काम किया जहां उन्होंने पीआर स्ट्रैटजी को प्लान करने का भी काम किया. आज वे अपने ज्वैलरी स्टोर कृति किएजियोन की मालिक हैं. कृति कहती हैं कि हर महिला को अपने कैरियर ग्राफ को आगे बढ़ाने के लिए अपनी क्वालिफिकेशन को बढ़ाते रहना चाहिए. ऐसा करने से वह अपनी योग्यता को बढ़ाने के साथसाथ रचनात्मकता को भी बढ़ा सकती है.

क्योंकि जिंदगी ४ दिन की नहीं

हम सब जानते हैं कि जिंदगी 4 दिनों की नहीं, जिसे यों ही बरबाद कर दिया जाए. जिंदगी तो एक खूबसूरत नगमा है, जिसे यदि सुरों के साथ गुनगुनाया जाए तो हमारे साथसाथ आसपास का माहौल भी खुशनुमा हो जाएगा. तो 4 साल के अंतराल पर आने वाले इस लीप ईयर में जिंदगी के सुरों को पहचानने और उसे खूबसूरती व पूर्णता के साथ जीने के लिए ये

4 बातें जरूर याद रखें:

ब्रेकअप ब्लूज को कहें बायबाय

जिंदगी में हर किसी को कभी न कभी प्यार जरूर होता है. यह प्यार जीवन में बेहतरी और पूर्णता के लिए हो तो बहुत अच्छा, मगर जब यह आंसुओं का सबब बनने लगे तो इस से किनारा कर लेना ही बेहतर है. कई दफा न चाहते हुए भी हमें ब्रेकअप का दर्द सहना पड़ता है. बात जो भी हो पर इस दर्द को खुद पर कभी हावी न होने दें.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 3.2% लोग प्यार में असफलता की वजह से आत्महत्या करते हैं. प्यार में असफलता या रिजैक्शन डिप्रैशन की वजह बनती है. 2012 में 2,023 पुरुषों ने तो 1,826 महिलाओं ने इस वजह से आत्महत्या की.

गो अहैड: जिसे आप ने चाहा वह आप का नहीं हो सका, तो उस के लिए परेशान न हों. जिंदगी ने जरूर आप के लिए कुछ और अच्छा सोच रखा है.

एक झटके में उसे अपनी जिंदगी से बाहर कर दें. शारीरिक रूप से ही नहीं, मानसिक रूप से भी. इस के लिए उस से जुड़ी सारी यादों से नाता तोड़ने का प्रयास करें. उस की तसवीरें, खत, उपहार वगैरह को नष्ट कर दें या फिर लौटा दें. यही नहीं, अपने गैजेट्स से भी उस के संपर्कसूत्र पूरी तरह खत्म कर दें.

अब ऐसे ऐप्स उपलब्ध हो गए हैं, जो इस कार्य में आप की मदद करेंगे.

हाल ही में सोशल नैटवर्किंग वैबसाइट, फेसबुक रिश्तों में खटास पड़ने या रिश्ता खत्म होने की स्थिति में आप के दर्द को कम करने के लिहाज से नया टूल ले कर आया है. फेसबुक के इस नए ब्रेकअप टूल से बिना ब्लौक किए आप के ऐक्स की कोई पोस्ट न्यूज फीड पर नहीं दिखेगी और नया मैसेज आने या फोटो पोस्ट होने पर ऐक्स का नाम भी नहीं दिखेगा. इस से आप को उसे भूलने में सुहूलत होगी.

सच्चे प्यार का इंतजार करें: अपनी जिंदगी में किसी और के आने का रास्ता खुला रखें.  प्यार एहसासों का कारवां साथ ले कर आता है. जीवन को सुनहरे रंग देता है. जबकि प्यार की कमी इनसान के मन में सूनापन भर देती है और यह स्थिति जिंदगी के प्रति नकारात्मक रवैया पैदा करती है. इसलिए स्वयं को इस से बचाएं. बिना शर्तों के प्यार करें.

गले लगाएं जिंदगी को: जिंदगी आप के दामन में खुशियों के फूल तभी गिराती है जब आप हंस कर उसे गले लगाते हैं. मन में उत्साह, सकारात्मकता और स्नेह के दीप जलाए रखें. हर किसी से खुल कर मिलें. अपने कंफर्ट जोन से बाहर आएं, जीवन को नए मकसद दें, अच्छे दोस्त बनाएं, फिर देखिए, जिंदगी कैसे कदम से कदम मिला कर चलती है.

अमेरिका की टीवी ऐंकर, एक्टीविस्ट अश्वेत अरबपति ओपरा विनफ्रे के शब्दों में, ‘‘जितना ज्यादा आप अपनी जिंदगी की तारीफ करेंगे और जश्न मनाएंगे, उतने ही ज्यादा जिंदगी में उत्सव मनाने के मौके आएंगे.’’ प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक अरस्तू के मुताबिक, ‘‘यदि आप चाहते हैं कि सब कुछ वैसा ही हो जैसा आप चाहते हैं, तो अपनी सोच को बदल दो, सब कुछ बदल जाएगा.’’

याद रखें, आप के पास जितना है, बहुत है. ऐसे लोगों की कमी नहीं, जिन्हें जिंदगी ने शारीरिक अपंगता, गरीबी और बदहाली दी, फिर भी उन्होंने नए कीर्तिमान स्थापित किए.

क्या आप जानते हैं कि आर्थिक परेशानी से जूझने वाले धीरूभाई अंबानी रिलायंस कंपनी को स्थापित कर के भारत के सब से अमीर व्यक्ति बने. लेखक मिल्टन और कवि सूरदास अंधे थे, म्यूजिक राइटर बीथोवन बहरे थे, इंगलैंड के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल हकलाते थे, दार्शनिक सुकरात की बीवी ने उन्हें आजीवन परेशान रखा. यदि वे चाहते तो ‘हम कुछ नहीं कर सकते’ का राग अलापते रहते.

जिंदगी के माने समझें: जिंदगी किसी एक रिश्ते या व्यक्ति पर आश्रित नहीं. जिंदगी मिली है एक मकसद के लिए, यह भूलें नहीं. अपनी जिंदगी का कोई मकसद तय करें और फिर उसे पाने के लिए स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर दें.

योजना

जिंदगी में योजनाओं की बहुत अहमियत है. हर काम योजनानुसार हो, तभी जिंदगी में सुकून रहता है. मानसिक योजनाबद्धता: मन को नियंत्रित रखना, उसे निश्चित दिशा में पूर्व योजनानुसार एकाग्रचित्त करना, सकारात्मक भावों से पोषित करना, अधिकतम ऊर्जा के प्रयोग हेतु तैयार करना, मानसिक योजनाबद्धता के तहत आते हैं. लेखक विलियम शैक्सपीयर के शब्दों में, ‘‘कोई भी चीज अच्छी या बुरी नहीं होती. हमारे सोचने का नजरिया ही उसे अच्छा या बुरा बनाता है.’’ भावी जीवन की योजनाएं: जीवन का हर पल अहम है. आने वाला वक्त वर्तमान पलों की दहलीज पर खड़ा है. तो क्यों न आज ही से कल को संवारने की नींव डाली जाए. आप का यह प्रयास मन को सुकून और जीवन को स्थिरता देगा.

वित्तीय योजना: डा. हर्षला चांडोरकर, सीनियर वाइस प्रैसिडैंट सिबिल के अनुसार, हमेशा लोन ईएमआई का भुगतान समय पर करें. अपने लोन की सभी ईएमआई और क्रैडिट कार्ड के खर्च पर नजर रखें और लोन का भुगतान करने व क्रैडिट कार्ड के बिल चुकाने के लिए हर महीने ऐडवांस में पूंजी निकाल कर रखें. सुनिश्चित करें कि आप अपने क्रैडिट कार्ड बिलों और लोन ईएमआई का भुगतान माह दर माह तय तिथि से पहले करते हैं.

भविष्य के लिए बचत: भविष्य के आप के क्या सपने हैं और आप क्या करना चाहते हैं, इस का एक रोडमैप तैयार करें, फिर अपने खर्चों और लोन भुगतान का नियोजन सावधानीपूर्वक करें. व्यवस्था हर जगह जरूरी: घर हो या औफिस या कहीं और, खुद को और अपनी चीजों को व्यवस्थति रखना बहुत जरूरी है. इस से न सिर्फ आप का समय बचता है वरन बेकार के तनाव से भी दूर रहती हैं. अपनी प्रत्येक चीज इस तरह करीने से व्यवस्थित रखें कि जब भी जरूरत हो आप मिनटों में उसे निकाल सकें वरना कुछ लोगों का आधा वक्त तो अपना सामान खोजने में ही निकल जाता है.

पहले स्वयं को आंकें

अकसर हम छोटीछोटी बातों पर दूसरों से नाराज होते रहते हैं और ऐसे समय में हमारे दिमाग में बस यही चलता रहता है कि सामने वाले ने हमारे साथ क्याक्या गलत किया. पर ऐसी स्थिति में हमें पहले स्वयं को आंकना चाहिए, फिर दूसरों को. ठंडे दिमाग से सोचें: किसी पर नाराज होना बहुत आसान है. जब हमें किसी बात पर गुस्सा आता है, तो अंदर तक शरीर में हड़कंप मच जाता है. क्रोध चिता समान है. यह शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाता है, मगर हम इस बात से इत्तफाक नहीं रखते.

हमें तुरंत आवेग में आने के बजाय ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए. हो सकता है सचाई जान कर आप को लगे कि बेवजह ही गुस्सा किया था और यदि गुस्सा बेवजह नहीं था तो भी जल्द ही सामने वाले को क्षमा कर नाराजगी भूल जानी चाहिए. जितनी अधिक देर तक आप गुस्से में रहेंगे, शरीर को उतना ही ज्यादा नुकसान पहुंचेगा. नसीहत देने से पहले स्वयं उस पर अमल करें: जिंदगी में दूसरों को नसीहत देना बहुत आसान होता है, मगर क्या आप ने ध्यान दिया है कि उन में से कितनी बातों पर आप स्वयं अमल करती हैं?

मान लीजिए, आप अपने बच्चे से कहती हैं कि झूठ बोलना गलत है, मगर स्वयं बेबात झूठ बोलती हैं. तो क्या आप का बच्चा आप की बात  मानेगा? जब तक प्रैक्टिकली आप उसे वैसा ही कर के नहीं दिखाएंगी, भला वह आप की बात क्यों सुनेगा? दूसरों को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति त्यागें: हम में से ज्यादातर लोगों को आदत होती है कि दूसरों के अवगुण तो बढ़ाचढ़ा कर दिखाना जानते हैं, मगर अपनी गलतियों पर गौर नहीं करते. हम सोचते हैं कि फलां व्यक्ति ने हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया या झूठ बोला अथवा स्वार्थी रवैया अपनाया. मगर क्या हम ने व्यक्तिगत स्वार्थ त्याग कर उस की मदद की या कभी उस का साथ दिया, जो उस से कोई अपेक्षा रख रहे हैं?

विवादों की जड़ में आप ही तो नहीं: कभी आप ने यह गौर किया है कि आप की जिंदगी में किसी के साथ विवाद हो रहे हैं, उस की जड़ में कौन है? कहीं वह आप ही तो नहीं? किसी को गलत ठहराने या बुराभला कहने में एक पल भी नहीं लगता. मगर अपनी गलती स्वीकारने और क्षमा मांगने में पूरा जीवन भी कम पड़ जाता है.

देना सीखें

क्या आप ने कभी सोचा है, जिंदगी में आप दूसरों से कितना कुछ लेते हैं. मांबाप, रिश्तेदार दोस्तों से प्यारदुलार, समय, पैसा, भोजन, कपड़ा, जरूरत के वक्त सहयोग, सुरक्षा. समाज भी आप को सुरक्षित माहौल और व्यवस्था देता है. मगर जब कभी इन्हें कुछ देने की नौबत आती है, तो हम झिझकते हैं.

प्यार और खुशियां बांटें: जिस तरह बगैर कुछ सोचे हम लेते हैं, क्या उन के लिए कुछ सोचना हमारा फर्ज नहीं? कभी किसी को बिना स्वार्थ कुछ दे कर देखिए, खुशी का एक अलग एहसास आप के मन को महकाएगा. समय भी दें: व्यक्ति को आर्थिक या शारीरिक के साथसाथ मानसिक मदद की भी जरूरत होती है. जब आप किसी को यह एहसास दिलाते हैं कि आप हमेशा उस के साथ हैं, उसे भावनात्मक सपोर्ट दे रहे हैं, तो उस व्यक्ति के साथ आप का जो कनैक्शन जुड़ता है वह कभी टूटता नहीं. वह व्यक्ति भविष्य में आप की खुशियों की वजह बनता है. आप का दायरा बढ़ता जाता है और जीवन में आप कभी अकेले नहीं रहते.

एहसान जता कर न करें: किसी को कुछ दे रहे हैं, किसी तरह की मदद कर रहे हैं, तो कभी इस बात का एहसान न जताएं. इस बात की अहमियत नहीं होती कि आप कितना दे रहे हैं, अहमियत इस बात की होती है कि कितने प्यार और अपनत्व के साथ दे रहे हैं.

अपेक्षा न रखें: किसी को कुछ दे रहे हैं, तो यह जरूर याद रखें कि इस के बदले कुछ पाने की इच्छा आप के मन में न हो. दरअसल, जब आप मन में अपेक्षा रखते हैं और किसी वजह से वह व्यक्ति उसे पूरा नहीं करता तो आप का मन बहुत दुखता है. इस के विपरीत यदि आप कोई अपेक्षा ही नहीं रखते तो आप का मन शांत बना रहता है और यह जीवन को खुशहाल रखने के लिए जरूरी है.       

भाषा से निबटना होगा

प्ले स्कूल चलाना अब खासे मुनाफे का धंधा बन रहा है. एस. श्रीनिवास रेड्डी, जो हैदराबाद के प्ले स्कूलों के एक ऐसोसिएशन के अध्यक्ष हैं, का कहना है कि प्ले स्कूल चलाने के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं होती. क्व20,000-25,000 में जगह किराए पर लो, 2-3 शिक्षक और 2-3 आयाएं रखो और साल में 50 से 100 बच्चों से क्व20,000 से 25,000 तक की फीस पा लो. यह हिसाब सारे देश में एक जैसा है.

ऐसा नहीं है कि मातापिता नहीं जानते कि प्ले स्कूलों में क्या हो रहा है. पर उन्हें बच्चों को प्ले स्कूलों में भेजना होता ही है जहां बच्चे अपने हमउम्र बच्चों के साथ मिल खेल सकें और कुछ पढ़ना, कुछ गाना, कुछ अनुशासन, कुछ घर से बाहर रहना सीख सकें.  व्यावसायिक होते हुए भी मांओं के लिए ये प्ले स्कूल आवश्यक हैं और किसी खास अनुमति की आवश्यकता न होना एक वरदान है. अनुमति से तो फीस बढ़ जाएगी, क्वालिटी बढ़े या न बढ़े. इन स्कूलों को हर तरह की छूट मिलती रहे यह जरूरी है. वास्तव में तो हर अकेले रिटायर्ड दंपती को अपने घर में प्ले स्कूल खोलने के लिए उत्साहित करें.

इस से उन का समय बीतेगा, कुछ आय होगी और खाली घर का सदुपयोग भी होगा. इन स्कूलों में खराबी यही है कि फैशन के चलते ये स्कूल बच्चों पर अंगरेजी थोप रहे हैं. बच्चों को तो वह बोलने की आदत होती है, जो घर में बोला जाता है. अगर घर में हिंदी, तमिल या तेलुगु बोली जाती है तो वे स्कूल में भी वही बोलेंगे पर शान के कारण उन्हें अंगरेजी मारपीट कर सिखाई जा रही है. बड़े शहरों में तो अंगरेजी पढ़ेलिखे शिक्षक मिल भी जाएं पर छोटे शहरों में ये नहीं मिलते और वहां बच्चे न अपनी भाषा सीखते हैं न अंगरेजी.

बच्चों को सही बोलना आए उस के लिए प्ले स्कूल जरूरी है और ये मालिकमालकिन की प्रतिष्ठा पर ही सफल हों, अच्छा है. पर भाषा से इन्हें निबटना होगा. 4 शब्द अंगरेजी के सिखाने के चक्कर में टैंटनुमा वातावरण में चल रहे इन स्कूलों को टैंटों जैसी ही नींव न बनाने दें. अपनी भाषा में ही मजबूत जमीन बनेगी.

आज की सोचेंगे कल की नहीं

तमिलनाडु में पिछले दिनों हुई भीषण बारिश के बाद चेन्नई में आई बाढ़ से हुए नुकसान पर ज्यादा आंसू बहाने की जरूरत नहीं है. अगर आप उस सड़क के बीच में चल सकते हैं जहां वाहन 60 से 80 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड पर दौड़ रहे हों, कानों में म्यूजिक प्लग लगा रखे हों और आंखें मोबाइल स्क्रीन पर हों, तो 5-7% चांस तो कुचले जाने का है ही और अगर आप इस 5-7% कुचले जाने के भय से सड़क पर चलना नहीं छोड़ सकते, तो चेन्नई की बाढ़ से क्या डरना?

सारे देश में नदियों, नालों, बीहड़ों, बागों, जंगलों, दलदली इलाकों पर शहर उगाए जा रहे हैं और न बिल्डरों को तमीज है कि वे प्रकृति का खयाल रखें और न ही सब जानने वाली सरकार को. आज पैसा बन जाए, बस यही चाहिए, कल की कल देखी जाएगी.चेन्नई में घरों में कमर तक पानी घुस गया, बसें बंद हो गईं, सड़कों पर नाव चलने लगीं, हर तरफ बदबू फैल गई, खाने का सामान नष्ट हो गया.  ठीक है, 4 दिन में सब ठीक हो जाएगा. जीवन फिर चलने लगेगा. नदियों को भरा जाने लगेगा, नालियों में कूड़ा ठूंसा जाने लगेगा, जंगल काटे जाने लगेंगे.

इस तरह की दुर्घटनाओं का क्या, 10-15 साल में एकाध बार होती हैं तो उन के लिए जीना थोड़े छोड़ देंगे? दिल्ली में 1978 की बाढ़ में मौडल टाउन बस्ती डूब गई थी. बहुत नुकसान हुआ था. पर अब 37 सालों में कुछ नहीं हुआ. अगर उस समय मौडल टाउन वाले यमुना के डर से बस्ती खाली कर देते तो बेवकूफ ही कहलाते.

मुंबई में हर 4-5 साल में 8-10 दिन के लिए जान आफत में आ जाती है तो क्या? बाकी दिन तो सिर पर छत रहती है न, दफ्तर चलते हैं न. अगर पर्यावरण वालों की सुनें तो जीना ही मुहाल हो जाए. पर्यावरण वाले तो चाहते हैं कि हम नैशनल पार्कों में हाथियों या शेरों की तरह रह कर प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखें. इन को बता दें कि हम आज की सोचेंगे, कल की नहीं. हमें अपनी चिंता है. पोतेपरपोते अपनी चिंता खुद कर लेंगे. हम आज जो हैं, अपनी मेहनत से हैं. प्रकृति का नाम ले कर हमारा आज का सुख न छीनो. हमें फर्क नहीं पड़ता कि हवा दूषित हो रही है, पानी विषैला हो रहा है, सड़कों पर जाम लगा है, खाना मिलावटी है, आबादी बढ़ रही है, पानी खत्म होने वाला है. जब जो होगा तब की तब देखेंगे. आज अपना दिन खराब न करेंगे. सरकार को कोस तो लिया है. बस कर्तव्य पूरा.

अब लग जाओ अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण के खिलाफ काम करने के लिए.

जय विज्ञान!

हायहाय विज्ञान!!

 

तमाशा से ही शुरू हुआ यह तमाशा

कई दिनों से खबरों के बाजार में यह खबर गरम थी कि रणबीर और कैटरीना के बीच कुछ सही नहीं चल रहा. खबर तो यह भी आई थी कि दोनों का ब्रेकअप तक हो गया है. इस सब का कारण कहीं रणबीर कपूर की ऐक्स गर्लफ्रैंड दीपिका तो नहीं, क्योंकि जब से दीपिका रणबीर की फिल्म ‘तमाशा’ आई है दोनों को कई जगह एकसाथ देखा गया है. एकदूसरे के प्रति प्यार के कसीदे भी दोनों ने पढ़े हैं. ऐसे में तो स्वाभाविक है कि इस का असर कैट पर तो होना ही था. अब खबर यह है कि कैट अपनी लवलाइफ को फिर से व्यवस्थित करने में लगी हुई हैं और इस विंटर वैकेशन को रणबीर के साथ मनाने की तैयारी कर रही हैं

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