Hairstyle for Ethnic Wear

Whenever you wear a Traditional outfit.. You would want to Experiment your hairstyle which will Suit on your outfit.. Here, is an Ethinic Braided Hairstyle for you all, Which today I am gonna show you..
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वानी के साथ रोमांस करेंगे दीपिका के बौयफ्रैंड

अगर खबरों की मानें तो आजकल के बौलीवुड हौट कपल्स रणवीर सिंह दीपिका नहीं, बल्कि रणबीर कपूर दीपिका हैं, क्योंकि जब से दोनों की लव कैमिस्ट्री वाली फिल्म ‘तमाशा’ आई है दोनों अपने पुराने प्यार के किस्से जम कर मीडिया से शेयर कर रहे हैं. वैसे बाजीराव (रणवीर सिंह) को भी आदित्य चोपड़ा की आने वाली फिल्म ‘बेफिकरे’ के लिए कास्ट कर लिया गया है और इस में उन के साथ वानी कपूर इश्क लड़ाती नजर आएंगी. अगर दीपिका का नाम किसी दूसरे के साथ जोड़ा जा रहा हो तो वे भी कहां कम हैं. इसीलिए तो पिछले दिनों रणवीर सिंह ने खुलेआम कहा था कि उन के पहले भी कई महिलाओं के साथ संबंध रहे हैं. अब ऐसे हालात में दीपिका को जरूर सचेत रहने की जरूरत है.

इतनी भी क्या जल्दी

आजकल देर से शादी करने का चलन बहुत बढ़ गया है. पहले लड़की 18-20 साल की हुई नहीं कि उस की गृहस्थी बस जाती थी. लेकिन अब स्थिति बदल गई है. आजकल लड़कियां कैरियर माइंडेड हो गई हैं. वे अब विवाह के बजाय अपने कैरियर को ज्यादा महत्त्व देती हैं. ठीक है, कैरियर बनाना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन प्रकृति ने हर काम के लिए समय निर्धारित किया है. अगर वह उस समयसीमा में हो जाए तो बेहतर वरना सामाजिक असंतुलन होने लगता है.32 वर्षीय मीना से उस की दादी ने पूछा कि अरे मीना शादी कब करेगी, तो वह हंसते हुए बोली कि दादी कर लूंगी. शादी की इतनी भी क्या जल्दी है. शादी तो कभी भी हो जाएगी. लेकिन यह कैरियर बनाने का समय है. प्लीज, दादी अभी मुझे इसी पर फोकस करने दो. बारबार शादी की बातें न किया करो.

मीना का जवाब सुन कर दादी को बहुत गुस्सा आया, लेकिन अपने गुस्से पर नियंत्रण करते हुए वे इतना ही बोलीं कि बेटा तेरी सोच ठीक है, तू पढ़ीलिखी है, लेकिन मेरी एक बात ध्यान से सुन अपनी गांठ बांध ले कि जैसेजैसे तेरी उम्र बढ़ेगी और तू अपनी सहेलियों को अपने बालबच्चों के साथ देखेगी तो तेरे मन में कुंठा भर जाएगी क्योंकि शादी की एक उम्र होती है. कैरियर बनाने के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है. मीना ने दादी की बात को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया. आज उस की उम्र 45 साल हो गई है. वह शादी करना चाहती है, लेकिन अब उसे अपने मैच का साथी नहीं मिलता. 3 सालों से वह डिप्रैशन की शिकार है. अब उसे दादी की कही बातें याद आती हैं, लेकिन अब वह कर भी क्या सकती है.

विवाह को टालना ठीक नहीं

मीना की तरह बहुत सारी ऐसी लड़कियां हैं, जो कैरियर में आगे बढ़ने के लिए शादी जैसे महत्त्वपूर्ण मसले को टालती रहती हैं. आज आप को अपने आसपास ऐसी बहुत लड़कियां मिल जाएंगी, जिन्होंने अपने कैरियर में आगे बढ़ने के चक्कर में शादी नहीं की और जब शादी करने का मन बनाया तो कोई बेहतर साथी नहीं मिला. ऐसे में या तो तलाकशुदा मिलते हैं या फिर विधुर. सच तो यह है कि कैरियर में कहां तक पहुंचना है, इस की कोई सीमा नहीं है. किसी के लिए जौब करना महत्त्वपूर्ण है, तो किसी के लिए टौप पोजिशन तक जाना. इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि किसी भी कंपनी में टौप पोजिशन तक पहुंचने के लिए ऐजुकेशन और काम के प्रति डैडिकेशन के साथसाथ उम्र और अनुभव की भी जरूरत होती है. लेकिन जब तक आप टौप पोजिशन तक पहुंचती हैं तब तक आप की शादी की उम्र निकल चुकी होती है.

खोता है बहुत कुछ

एक समाचारपत्र में चीफ कौपी ऐडिटर के पद पर कार्यरत 48 वर्षीय वैभवी कभी बेहद खूबसूरत होती थीं. शादी के लिए उन के पास कई औफर आए, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. उन का कहना था कि शादी की जिम्मेदारियों की वजह से मैं अपने कैरियर में आगे नहीं बढ़ पाऊंगी. शादी कुछ सालों बाद कर लूंगी. लेकिन अब उन्हें कोई ऐसा नहीं मिल रहा है, जिस से वे शादी कर सकें. विवाह न होने के चलते उन के व्यवहार में बहुत बदलाव आ गया है. हमेशा खुश रहने वाली वैभवी अब बेहद चिड़चिड़ी हो गई हैं. उन के कपड़े पहनने के तरीके में भी काफी बदलाव आ गया है. पहले वे सलवारसूट पहनती थीं, लेकिन अब खुद को कमउम्र दिखाने के लिए अजीबोगरीब कपड़े पहनती हैं, जिन्हें पहने देख कर उन के सहकर्मी पीठपीछे उन का मजाक उड़ाते हैं. अब तो वे डिप्रैशन में भी रहने लगी हैं.

सही उम्र में विवाह न हो पाने के कारण यौन बीमारियों के साथसाथ मां बनने की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है. एक एमएनसी में मैनेजर के पद पर कार्यरत अरुणा अपने परिवार वालों की बातों को दरकिनार कर विवाह को टालती रहीं. कैरियर में आगे बढ़ने के चक्कर में उन की उम्र निकलती रही. जब शादी का खयाल आया तो उम्र 40 की हो चुकी थी.उन के एक कलीग की पत्नी की डैथ हो गई, तो कुछ समय के बाद दोनों ने एकदूसरे से विवाह कर लिया. बच्चे के लिए बहुत कोशिश की मगर बच्चा नहीं हुआ, क्योंकि उम्र जो नहीं रह गई थी. मातृत्वसुख से वंचित अरुणा ने अब घर में कुत्ते पाल रखे हैं. अब वे उन्हीं में बच्चों को देखती हैं.

शारीरिक संबंध भी मायने रखते हैं

जैसे ही आप युवा होती हैं मन में किसी साथी की चाह होती है. चाहे कैरियर कितना भी महत्त्वपूर्ण क्यों न हो, लेकिन जवान होने के बाद शारीरिक जरूरतों को नकारा नहीं जा सकता. स्वस्थ और संतुष्ट रहने के लिए भावनात्मक जुड़ाव के साथसाथ शरीरिक जुड़ाव भी जरूरी होता है. अन्यथा आप यौन रोगों और मानसिक कुंठा का शिकार हो जाएंगी. हौस्पिटैलिटी व्यवसाय से जुड़ी प्रीति बेहद महत्त्वाकांक्षी थीं. वे कुछ बड़ा करना चाहती थीं, इसलिए हमेशा अपने विवाह को टालती रहीं. प्रीति का कालेज के जमाने से ही पवन से अफेयर था. पढ़ाई पूरी करने के बाद पवन ने उन से विवाह का जिक्र किया तो वे बोलीं कि इतनी भी क्या जल्दी है कर लेंगे शादी, न तुम कहीं जा रहे हो और न मैं. पवन ने प्रीति की बात मान ली. धीरेधीरे दोनों के बीच भावनात्मक संबंधों के साथसाथ शारीरिक संबंध भी बनने लगे. दोनों एकदूसरे के साथ खुश थे. लेकिन प्रीति की विवाह जल्दी न करने की जिद के चलते पवन ने किसी और से विवाह कर लिया. प्रीति भी पवन को भूल कर जीवन में आगे बढ़ती गईं. इस क्रम में उन के कइयों के साथ संबंध बने और टूटे. अंतत: प्रीति ने अपने एक क्लाइंट से शादी कर ली. लेकिन उन के कइयों के साथ शारीरिक संबंध थे, इस बात का जिक्र उन्होंने कभी अपने पति से नहीं किया.

चाहे लड़का हो या लड़की उन की शारीरिक जरूरतें एकसमान होती हैं. सही समय पर विवाह न कर पाने की वजह से इच्छा की पूर्ति नहीं हो पाती है. कुछ लड़कियां तो परिवार की इज्जत के नाम पर अपनी यौनाकांक्षा को कुछ समय तक तो दबा लेती हैं, लेकिन अपनी विवाहित सहेलियों से शारीरिक सुख की बातें सुन कर उन के मन में भी इच्छा जोर पकड़ने लगती है कि उन का भी किसी के साथ भावनात्मक और शारीरिक संबंध हो. फिर इस इच्छा की पूर्ति के लिए वे अपने बौयफ्रैंड या फिर अपने पुरुष मित्र के भटकावे में आ कर फिजिकल रिलेशन बना लेती हैं. एक बार इस तरह का संबंध बना लेने के बाद उन के मन से झिझक खत्म हो जाती है और वे 1 से ज्यादा लोगों से भी शारीरिक संबंध बना लेती हैं. इस तरह का संबंध विवाह की तरह  वादों और रस्मों से तो जुड़ा नहीं होता है कि इस में ठहराव की उम्मीद की जाए. सच तो यह है कि लड़के चाहे कितने भी मौर्डन क्यों न हों, लेकिन जब विवाह की बात आती है, तो वे ऐसी लड़की से कतई नहीं जुड़ना चाहते, जिस का किसी से फिजिकल संबंध रहा हो. इसलिए बेहतर यही होगा कि भरपूर पारिवारिक, भावनात्मक और शारीरिक सुख के लिए समय पर विवाह कर लें.

जीवन में भर जाती है कुंठा

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. नितिन शुक्ला का कहना है कि जिन लड़कियों की शादी सही उम्र में नहीं हो पाती है वे भले अपने कार्यक्षेत्र में कितनी भी टौप पोजिशन पर क्यों न हों, लेकिन सच तो यह है कि अंदर उन के मन में एक सुखद परिवार और बच्चे की इच्छा छिपी होती है, जिस की वजह से धीरेधीरे उन के अंदर की पौजिटिविटी खत्म होने लगती है, उन के मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं. ऐसी लड़कियां न केवल शारीरिक रूप से बीमार होती जाती हैं वरन मानसिक विकार से भी ग्रस्त होती जाती हैं. सच तो यह है कि शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ रहने के लिए यह बेहद जरूरी है कि सही उम्र में शादी हो और जीवनसाथी का प्यार मिले. जो लड़कियां इस बात को नहीं समझती हैं वे या तो स्वच्छंद संबंध बना कर यौनरोगों को निमंत्रण देती हैं या फिर अपनी इच्छाओं को दबा कर कुंठा का शिकार बनती हैं. विवाह के बाद भी कैरियर बन जाता है, लेकिन अगर आप ने कैरियर के लिए विवाह को परे कर दिया तो फिर न केवल शारीरिक तौर पर अस्वस्थ रहेंगी वरन मानसिक तौर पर भी बीमार होंगी और समाज से कटती चली जाएंगी. जिंदगी को खुशनुमा बनाने के लिए समाज और परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान है.

आजकल की हीरोइनें पहले की हीरोइनों की तरह अपने कैरियर के ढलने का इंतजार नहीं करती हैं. वे समय पर विवाह कर के परिवार और मातृत्वसुख का आनंद लेती हैं. सच कहें तो इस से उन के कैरियर पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा. अभिनेत्री काजोल ने उस समय विवाह किया जब वे अपने फिल्मी कैरियर के टौप पर थीें. आज उन के 2 बच्चे हैं और वे अपने परिवार के साथ बेहद खुश हैं. विवाह और बच्चे होने के बाद भी काजोल ने ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘फना’ जैसी हिट फिल्में दी हैं. काजोल की ही तरह माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय, शिल्पा शेट्टी, रवीना टंडन आदि हीरोइनों ने समय रहते विवाह कर लिया और आज भी वे अपने कार्यक्षेत्र में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं.

ब्राइड चाहती है सैक्सी फिगर

शिवाका ने मेहनत और लगन से अपनी पढ़ाई पूरी की. इस दौरान उस का अपनी फिगर पर कभी ध्यान ही नहीं गया. पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे नौकरी मिल गई, तो नए माहौल में ऐडजस्ट करने में 2 साल का समय कैसे निकल गया उसे पता ही नहीं चला. फिर घर में उस की शादी की चर्चा होने लगी. शुरुआत में तो उस ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन जब घरपरिवार का दबाव बढ़ा तो शिवाका ने सोचा कि चलो एक दिन फोटो खिंचवा कर देखती हूं कि कैसी लगती हूं. मैं 5 फुट 3 इंच लंबी शिवाका का वजन 60 किलोग्राम के ऊपर था. उस की कमर का साइज 34 इंच था. उस का फोटो बन कर आया तो वह उस में बहुत मोटी दिख रही थी. फोटो देख कर शिवाका परेशान हो गई.

उस ने अपनी सहेली नेहा से बात की तो वह शिवाका को ले कर एक फैशन स्टोर में गई. वहां एक रेडीमेड लहंगा देख कर शिवाका ने सोचा क्यों न इस को पहन कर देखा जाए कि मुझ पर कैसा लगता है? शिवाका ने लहंगा पहना तो उस का पेट और कमर अजीब सी दिख रही थी. जीन्सटीशर्ट पहनने वाली शिवाका को पहली बार लगा कि वह इतनी मोटी दिखती है ़ इस स्टोर में शिवाका ने फैशनेबल हनीमून ड्रैस भी देखीं. उन्हें देख उसे लगा कि इन को पहन कर वह ठीक नहीं लगेगी. शिवाका की परेशानी नेहा ने समझी. उस ने कहा, ‘‘तू परेशान न हो. अभी तेरी शादी को समय है. तू अपनी फिगर को सही करने का काम कर.’’

शिवाका अपनी फिगर सही करने के लिए जिम और हैल्थ क्लब के चक्कर लगाने लगी. एक क्लब में उस ने 3 माह में 5 किलोग्राम वजन और 3 इंच कमर कम करने का पैकेज लिया. इस के लिए उसे क्व6 हजार 500 देने पड़े. यहां शिवाका को जो डाइट चार्ट दिया गया, उस के हिसाब से खाने के बाद वह कमजोर दिखने लगी. उस का मोटापा उतना कम नहीं हुआ, जितना उस ने सोचा था और चेहरा मुरझाया सा दिखने लगा. शिवाका इस के बाद दूसरी डाइटीशियन से मिली और उस के डाइरैक्शन में डाइट और ऐक्सरसाइज शुरू की. इस से शिवाका को लाभ होने लगा. सही ऐक्सरसाइज और डाइट से उस कावजन 4 माह में 3 किलोग्राम कम हो गया और कमर का साइज भी 32 इंच हो गया. अब वह मोटी नहीं सैक्सी दिखने लगी थी.

नाभि सौंदर्य पर टिका फैशन

शादी की बात आते ही उस में पहनी जाने वाली पोशाकों पर ध्यान चला जाता है. शादी के हर समारोह में लहंगा और साड़ी का चलन सब से ज्यादा होता है. केवल लड़की ही नहीं, उस की सहेलियां और परिवार की दूसरी महिलाएं भी साड़ी और लहंगाचोली ही पहनती हैं. ऐसे में कमर और नाभि का सैक्सी और सही माप में दिखना जरूरी होता है. नाभि का आकर्षण बढ़ाने के लिए नेवल रिंग और टैटू का प्रयोग भी किया जाता है. शादी में भले ही लड़की टैटू का प्रयोग न करे पर वह कमर के साइज को सही जरूर रखना चाहती है. जब कमर की माप सही होती है, तभी साड़ी का ग्लैमरस लुक दिखता है. आजकल फैशन में नैट और पारदर्शी साडि़यों का चलन है. इन को नाभि से नीचे पहना जाता है, जिस से कमर दिख सके.

साड़ी के साथ ही साथ लहंगा भी दुलहन के लिए जरूरी होता है. यह भी कमर पर टिका होता है. लहंगा और चोली के बीच कमर और नाभि दिखती है. इस पर डालने के लिए दुपट्टा पारदर्शी या नैट का होता है. लखनऊ के अलकैमिस्ट ब्यूटी ऐंड हैल्थ क्लब सैंटर की मैनेजर श्वेता मिश्रा कहती हैं, ‘‘अगर कमर का साइज बेडौल होता है, तो महंगे से महंगा लहंगा भी खूबसूरत नहीं लगता. ऐसे में होने वाली दुलहन केवल अपना मोटापा ही कम करने के लिए नहीं, बल्कि कमर का साइज कम करने और पेट को सपाट दिखाने का पूरा प्रयास करती है. ऐसे में सही डाइट और ऐक्सरसाइज उस की मदद कर सकती है.’’ नाभि और कमर दिखाना फैशन का हिस्सा बन गया है. फिल्म, टीवी सीरियल और फैशन परिधानों के प्रचार में ऐसे लोगों को ही चांस दिया जाता है, जिन की कमर पतली और पेट सपाट हो.

फैशन डिजाइनर बसंत राय कहते हैं, ‘‘नाभि और कमर महिलाओं के सैक्सी लुक को बढ़ाते हैं. इसी वजह से साड़ी सब से सैक्सी पोशाक मानी जाती है. जब से शादी में फोटोग्राफी, डांस और वीडियो फिल्म बनाने की मांग बढ़ी है, कपडे़ पहनने में फैशन का पूरा ध्यान रखा जाता है. इस के चलते दुलहन अपनी फिगर को ले कर सचेत रहने लगी हैं. अगर फिगर सही न हो तो हनीमून में पहनी जाने वाली नाइट वियर का भी मजा नहीं आता. खुद दुलहन को अपनी फिगर अच्छी नहीं लगती. ऐसे में जरूरत इस बात की होती है कि वह शादी के पहले फिगर को सही कर ले. किसी की भी देह तराशी नहीं जाती. हर किसी को फिटनैस के लिए प्रयास करना होता है.’’

भावी दुलहन रीना कहती हैं, ‘‘मुझे ब्रा पहनने का बहुत शौक है और शादी के बाद इस शौक को पूरा करने का मन है. मैं ने तरहतरह की फैशनेबल नाइट ड्रैस और अंडरगारमैंट्स देख रखे हैं. इन को पहनने के लिए वजन कम करना ही होगा.’’

वजन बढ़ाने की भी परेशानी

भावी दुलहनें केवल वजन कम करने के लिए ही हैल्थ क्लब नहीं आतीं. कुछ कम वजन वाली दुबलीपतली लड़कियां वजन बढ़ाने के लिए भी आती हैं. यशराज इंटरनैशनल ब्यूटी ऐंड हैल्थ के फिटनैस ट्रेनर शाहरुख शाह अली कहते हैं, ‘‘जीरो फिगर की चाहत रखने वाली तमाम लड़कियां शादी से पहले वजन बढ़ाने के लिए भी आती हैं. दरअसल, रैंप और फिल्मों में भले ही जीरो फिगर पसंद की जाती हो, पर शादी में मांसल देह सौंदर्य ही लुभाता है. कमर के साथसाथ खूबसूरत ब्रैस्ट भी फैशनेबल परिधानों में खूब फबते हैं, इसलिए दुबली लड़कियां वजन बढ़ा कर अपनी फिगर सैक्सी बनाना चाहती हैं.’’ लखनऊ के प्लास्टिक सर्जन डाक्टर डाक्टर अनुपम सरन कहते हैं, ‘‘ब्रैस्ट साइज बढ़ाने के साथ ही साथ नाक, होंठ और दांतों को सुंदर बनाने के लिए लड़कियां सर्जरी का इस्तेमाल भी कर रही हैं.’’

डाइटीशियन श्वेता मिश्रा कहती हैं, ‘‘सुंदर दिखना हर कोई चाहता है, लेकिन मनचाही और फिल्मी सुंदरता हर किसी के वश में नहीं होती. वजन घटाने या बढ़ाने के पहले आप को कद, वजन, उम्र और फैमिली हिस्ट्री को ध्यान में रखना चाहिए.’’

सुंदरता ही नहीं सब कुछ

मनोविज्ञानी डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘विवाहित जीवन में सुंदरता और फिटनैस का अपना अलग स्थान होता है, पर सुंदरता के साथसाथ आप को अपने व्यवहार और कामकाज से भी लोगों को प्रभावित करना होता है. सुंदरता तो 4 दिन की चांदनी जैसी होती है. आप का व्यवहार, सहनशीलता और सामंजस्य ही सुखद दांपत्य की गारंटी होते हैं. इसलिए अगर आप की फिगर सैक्सी नहीं है, तो आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है. शादी के बाद जब औरत मां बनती है, तो उस की फिगर पहले जैसी नहीं रहती. ऐसे में उस के दूसरे गुण ही जीवन की गाड़ी को खींचने का काम करते हैं. इसीलिए सूरत के साथ सीरत की बात कही जाती है.’’ सैक्सी फिगर भले ही 32-24-32 को माना जाता हो पर भारतीय खूबसूरती 34-30-36 ही सब से अच्छी मानी जाती है. लेकिन हर शरीर मापदंड के अनुसार नहीं हो सकता, ऐसे में जरूरी यह है कि भावी दुलहन हैल्दी हो.

स्त्रीरोग विशेषज्ञा डाक्टर रेनू मक्कड कहती हैं, ‘‘सैक्सी फिगर की चाहत में भावी दुलहनों को इतना नहीं भागना चाहिए कि उन की हैल्थ को ही नुकसान हो जाए. शादी के बाद मां बनने के लिए भी शरीर का हैल्दी होना जरूरी होता है. अगर मां हैल्दी नहीं होगी तो बच्चा भी स्वस्थ्य नहीं होगा.

शेप में रखें बांहें

मुंबई की ग्लोबल यूनिवर्सिटी से डाइटीशियन का कोर्स कर चुकी श्वेता मिश्रा कहती हैं, ‘‘वजन का पूरा गणित आप के खाने और मेहनत करने पर निर्भर करता है. एक हैल्दी लड़की को दिन में 1,200 कैलोरी की जरूरत होती है. रात में शरीर केवल 200 कैलोरी ही उपयोग कर पाता है. ऐसे में रात के खाने का बड़ा हिस्सा फैट में बदल जाता है. इस से बचने के लिए रात का खाना लो कैलोरी का रखना चाहिए. लड़कियों में ज्यादातर फैट हिप, आर्म्स, थाइज और कमर पर जमा होता है. इस को कम करने के कई तरीके होते है. मशीनों के द्वारा जैल लगा कर मनचाही जगहों से फैट कम किया जा सकता है. कुछ खास किस्म की ऐक्सरसाइज कर के भी यह काम हो जाता है. 2 से 3 किलोग्राम वजन वाले डंबल्स के 2 सैट लगाने से भी बांहें शेप में आ जाती हैं. डंबल्स की जगह पर 1 लीटर वाली पानी की बोतल में पानी भर कर उस का प्रयोग भी कर सकती हैं. बांहें शेप में रहती हैं तो स्लीवलैस ड्रैस पहनने में सुंदर लगती है.

‘‘इस के अलावा परदे वाली अल्यूमीनियम की रौड गरदन के पीछे रख कर दोनों हाथों से पकड़ कर कमर की ओर झुक कर स्ट्रैचिंग करें. इस से कमर की शेप सुधरेगी. पेट की चरबी कम करने लिए कुनकुने पानी में नीबू का रस डाल कर रोज सुबह पिएं तो पेट की चरबी कम होगी. गाडर्निंग और घरेलू काम से भी कैलोरी बर्न होती है, जिस से फैट कम होता है. इसी तरह से सीढि़यां चढ़ने से भी लाभ होता है. अगर आप जिम में वर्कआउट कर रही हैं, तो ट्रेनर के बताए गए तरीके से करें. डाइट चार्ट भी उस के अनुसार लें, नहीं तो सही लाभ की जगह नुकसान की संभावना ज्यादा होती है.’’

नाचूंगी सिर्फ पति के लिए

‘मुन्नी अब नाचेगी तो सिर्फ अपने पति के लिए’, यह सुन कर भले ही मलाइका के चाहने वालों का दिल टूटे पर मलाइका का तो यही कहना है. जिंदगी के बेहतरीन 42 सावन देख चुकीं मलाइका अरोड़ा खान को उन के स्टाइल की वजह से जाना जाता है. एक इवेंट के दौरान मलाइका ने कहा कि अब वे सिर्फ अपने पति अरबाज खान की फिल्मों में ही आइटम डांस करेंगी, किसी और की फिल्म नहीं.

जायका बढ़ाते सुगंधित फूल

शौपिंग करतेकरते मुझे अजीब सी थकान हो चली थी. अमेरिका में बसी मेरी भतीजी ने मेरा हाथ पकड़ मुझे लगभग घसीटतेहुए कहा, ‘‘बूआ, चलो तुम्हारी थकान उड़नछू करते हैं. तुम्हें जैसमिन चाय पिलाते हैं. जैसमिन नहीं तो कैमोमाइल फूलों की चाय पी लेना.’’ फिर मेरा जवाब सुने बगैर वह मुझे एक चाइनीज रैस्तरां में ले गई. खूबसूरत और छोटे से इस रैस्तरां में एक मुसकराती वेटरस चाय की केतली, छोटीछोटी चाय की प्यालियां व कुछ स्नैक्स तश्तरी में लिए और्डर लेने आई. फिर चाय पेश करते हुए उस ने कहा, ‘‘ऐंजौय इट.’’ चाय की भीनीभीनी सुगंध से मन खुश हुआ, तो घूंटघूंट पीने पर ताजगी का एहसास हुआ. मेरे चेहरे के भावों को पढ़ते हुए नीरा ने कहा, ‘‘बूआ, है न खासीयत इस जैसमीन चाइनीज चाय में? यह मोगरे के फूलों की चाय थी.’’ मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘मोगरे के फूल व कलियां तो बालों में गजरे लगाने के लिए होती हैं.’’

वेटरस हमारी बातें सुन रही थी. वह शायद टूटीफूटी हिंदी जानती थी इसलिए मेरी जिज्ञासा देख कर मुझे जैसमीन व कैमोमाइल फूलों की चाय घर में बनाने का तरीका बताने लगी. कहने लगी कि मैडम, आप चाहें तो घर के ताजा मोगरे के फूलों की चाय आप खुद भी बना सकती हैं. मैं ने कहा कि वह कैसे? तो वह बोली कि बस सुबह के समय बगीचे में लगे जैसमिन की अधखिली या खिली कलियों को तोड़ लें. सुबह के समय इन में बहुत महक रहती है. फिर उन को धो लें. ऐसा करने से अगर किसी प्रकार के पेस्टिसाइड या कीटनाशक इस्तेमाल किया गया होगा, तो उस का प्रभाव निष्क्रिय हो जाएगा. अब इन धुली कलियों को किसी पेपर टौवेल या साफ धुले तौलिए पर बिछा दें. पानी सूख जाए तो ओवन में न्यूनतम तापमान पर इन्हें थोड़ी देर के लिए रखें ताकि ये सूख जाएं. जब सूख कर भुरभुरी हो जाएं तो हाथों से मसल लें. अब ठंडा होने पर किसी एअरटाइट कंटेनर में डाल कर रख दें.

व्यंजनों में इस्तेमाल

जब चाय पीने का मन हो तो ग्रीन टी लीव्स के साथ इन्हें थोड़ा सा जायके के लिए डाल कर हलका सा उबाल लें. फिर मन के अनुसार शहद डाल लें. इसे गरमगरम पीएं. इस से थकान, जुकाम व नजला ठीक हो जाएगा. आप सोच रहे होंगे कि सुगंधित फूलों का इस्तेमाल तो खाने की मेज या डिश की सजावट के लिए होता है परंतु क्या खाने के लिए भी? जी हां, यह हकीकत है कि दुनिया भर के बड़ेबड़े फूड ऐक्सपर्ट द्वारा 40 से भी अधिक प्रकार के फूल विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में इस्तेमाल किए जाते हैं. अब अगर ग्रीक ऐथेंस जाएं और ग्रीक फूड की बात करें तो सूप को रंगत देने के लिए वहां कौर्न पौपी फूल की पंखुडि़यों का इस्तेमाल खूब होता है. वहीं सलाद के लिए छोटीछोटी पंखुडि़यों को बहुत थोड़ी मात्रा में इस्तेमाल करने का चलन है.

खूब है चलन में

इटैलियन फूड में व्हाइट सौस पास्ता और मीट बौल्स आदि सब को पसंद हैं. ऐसे खाने में कद्दू जाति के स्क्वैश के पीले फूल सजावट के साथसाथ खाने में काम आते हैं. किसी खास फैस्टिवल के समय स्क्वैश के फूलों वाली पेस्ट्री, कुकीज, बिस्कुट वगैरह मार्केट में भरपूर पाए जाते हैं. अमेरिकन या साउथ अमेरिकन खाने की बात हो तो सफेद रंग के डेजी फूलों की पंखुडि़यां सलाद में और कलियां सूप, सैंडविच व अचार में

इस्तेमाल करने का चलन है.

अच्छे व्यंजनों के साथसाथ ताजा सुगंधित फ्लेवर्ड पेय पदार्थ के लिए फूलों का इस्तेमाल मैक्सिकन फूड में खूब होता है. इस के अलावा लैवेंडर के फूलों, ग्लैडियोलस की पंखुडि़यों और नस्टाशयम (जीनस) के नारंगीपीली आभा लिए फूलों से सजे सलाद तो विश्व भर में कौंटिनैंटल डिश के लिए प्रसिद्ध हैं. भारत में भोजन में स्वाद और रंगत बढ़ाते फूलों का चलन तो चिरकाल से चला आया है. सुगंध का राजा केसर, गुलाब का केवड़ा, गुलाबजल और गुलाब के फूल वगैरह हमेशा से भारतीय व्यंजनों की आनबानशान रहे हैं. सहजन की कली, कचनार की फली और केले के पत्तों पर परोसा गया दक्षिण भारतीय उपमा, इडली आज भी लोगों को बहुत भाता है. इन के अलावा गुणों से भरपूर सरसों के फूल जहां स्वास्थ्य के दृष्टि से अति उत्तम हैं, वहीं अच्छे परिदृश्य के लिए सिनेजगत की पहली पसंद. गोया खाना बनाना हो, मिष्ठान्न या पेय पदार्थ, फूल सुगंध के साथसाथ उन का जायका भी बढ़ाते हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कौन से फूल खाने योग्य हैं और कौन से सजावट योग्य.

हर्बल फूल: स्वाद और गंध के लिए विशेष स्थान रखने वाले हर्बल फूल सलाद व सूप के लिए काफी गुनकारी व पौष्टिक होते हैं और ताजगी के लिए पसंद किए जाते हैं. फ्लावरिंग ओनियन या फूलों वाले प्याज के नाम से जाने जाने वाले लहसुन, प्याज व लीक (प्याज की जाति का) के तो सभी भाग यानी पत्तियां, बीज, फूल खाने योग्य माने गए हैं.

मेथी: शुगर कंट्रोल के लिए अचूक मानी गई मेथी के पीलेपीले फूल सजावट व जायके के लिए बेजोड़ हैं.

सरसों: सरसों के पीले फूल तो आज भी खाने योग्य फूलों में अपनी विशेष जगह बनाए हुए हैं.

बेसिल: तुलसी की भांति महक व जायका लिए बेसिल की पत्तियां तथा छोटेछोटे मोतियों की रंगत लिए फूल दोनों गुणकारी हैं.

छोटी इलायची: सांसों को महका देने वाली, अपच दूर करने वाली छोटी इलायची के फूल भी खाए जा सकते हैं.

बोरेज: शरबत, ठंडा सूप, चटनी या फिर लेमोनेड में मिलाने के लिए खीरे का स्वाद लिए, नीली आभा वाला बोरेज का फूल भी शैफ्स और पाककला में रुचि रखने वाली महिलाओं की पहली पसंद है.

धनिया: हर्बल के फूलों में धनिया की पत्तियां, इस के सफेद फूल व सूखे बीज सभी खाने योग्य हैं.

जैसमिन (मोगरा): खुशबू से माहौल को महका देने वाले जैसमिन के फूलों की चाय, भारतीय व्यंजनों के बाद पीने वाली अच्छी चाय है. इसे परोसना डेलिकेसी माना जाता है.

पुदीना व अजवाइन: पुदीना के जायके, गुणों और दवाओं में इस के इस्तेमाल से सभी वाकिफ हैं. इस के साथ इस से मिलतेजुलते गुणों वाले अजवाइन के फूलों तथा पत्तियों को कौंटिनैंटल, इटालियन और ग्रीक थाई फूड वगैरह में इस्तेमाल कर के देखिए. मुंह से बेसाख्ता निकलेगा, वाहवाह क्या बात है.

थाइम : क्यारी व गमलों में सुगमता से लगने वाला पौधा विशेष महक के लिए शाकाहारी, मांसाहारी व्यंजनों व सूप में अपनी जगह बनाए हुए है. इस की मसलीकुचली पत्तियां स्वाद और फूलों की पंखुडि़यां सुगंध देती हैं.

सब्जियों के फूल: सब्जियों की बात करें तो सब से पहले गोभी के फूल का जिक्र आता है यानी सब्जी भी और फूल भी खाने योग्य. इसी की बहन है हरे रंग की ब्रोकली. गुणों से भरपूर. विदेशी व्यंजनों की मनपसंद सब्जी. कद्दू, तोरी व पेठे के पीले फूल भी कहींकहीं खाने में किसी न किसी रूप में इस्तेमाल होते आए हैं. मटर के सफेद फूलों को भी खाने में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन टमाटर, आलू, बैगन और मिर्च के फूल खाने के लिए वर्जित हैं. भारतीय व्यंजनों में सहजन के फूल व कचनार के अधखिले फूलों, कलियों को उबाल कर उबले आलू तथा दही में मिला कर पकाया जाता है और पसंद भी किया जाता है. केले के पत्तों, फल और फल की सब्जी भी कहींकहीं खाई व पसंद की जाती है. फलों के फूल भी खाने लायक हैं, शायद सुनने में यह अटपटा लगे, लेकिन वास्तविकता यह है कि पाककला शास्त्रियों का सेब पसंदीदा फल है, तो इस के फूलों की भीनीभीनी सुगंध वे स्वीट डिश के लिए पूरक मानते हैं.

यदि खट्टे फूलों की बात करें तो नीबू के फूलों का जिक्र जरूरी है. उन का इस्तेमाल केक, पेस्ट्री वगैरह में बेधड़क होता है. इसी तरह संतरा, अंगूर के फलफूल दोनों खाने में किसी न किसी रूप में इस्तेमल होते हैं. ग्लैडिओलस व गुलाब के फूलों की पंखुडि़यां भी खाने व सजावट के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं.

बदलें अपनी धारणाएं इन के प्रति

शासा काफी ऐक्साइटेड थी. वह कई दिनों से अपने कपड़ों और ज्वैलरी को सैट करने में लगी थी. वजह थी उस की हमउम्र सखी की रिश्तेदार सुषमा की गोदभराई की रस्म. लेकिन उस के उत्साह और उतावलेपन पर पानी तब फिर गया जब आमंत्रणपत्र उस के नाम से नहीं परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से आया. ध्यान से देखने पर भी सदस्यों की सूची में उस का नाम कहीं नहीं दिखा. उस का अंतर्मन कराह उठा. निराश हो कर वह खुद से ही सवाल कर बैठी कि आखिर उस का दोष क्या है? क्या रमेश के साथ बने और कई साल तक चले रिश्ते का टूटना यानी संबंध विच्छेद अन्य रिश्तों पर इतना प्रतिकूल असर डालता है? क्या जीवनसाथी से किया गया संबंध विच्छेद अन्य पारिवारिक रिश्तों में भी कड़वाहट पैदा कर देता है?

ऐसे तमाम सवाल तलाकशुदा महिलाओं के जेहन में लगातार घूमते रहते हैं. हजारों तलाकशुदा महिलाएं ऐसी हैं, जो इस बेकद्री और अपमान को लगातार सहती रहती हैं और अपने अंतर्द्वंद्व के चक्रवात में हिचकोले खाती रहती हैं. क्या संबंधों की शाख सिर्फ पतिपत्नी के प्रणय रिश्तों पर ही टिकी होती है? परिवार में जब कोई स्त्री बहू बन कर जाती है, तो कई संबंधों की डोर में बंध जाती है. वह पत्नी होने के अलावा बहू, मां, भाभी, चाची और ताई आदि संबंधों को भी अपने भीतर सहेज लेती है. इन रिश्तों पर तलाक की स्थिति आने पर अचानक परदा गिरना वाकई सालता है. दांपत्य सूत्र में बंधे रिश्ते अन्य तमाम रिश्तों पर भारी पड़ते हैं, इसलिए यह खासकर लड़की के लिए काफी कष्टदायी होता है. हमारे समाज में एक आम धारणा बैठ गई है कि तलाकशुदा औरतों के पग अशुभ होते हैं. विधवाओं की तरह वे अपने साथ अमंगलदायी संकेत और कष्ट व क्लेश की छाया लाती हैं. इसलिए उन्हें तीजत्योहारों या किसी शुभ अवसर पर बुलाना वर्जित माना जाता है. और तो और तलाकशुदा औरतों को हिकारत और उपेक्षा की नजर से भी देखा जाता है. उन्हें ऐसा महसूस कराया जाता है कि उन्होंने समाज के बंधेबंधाए नियम को तोड़ कर महापाप किया है. बाहर और भीतर दोनों ही जगह उन से दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है. वे उपेक्षित होती हैं और उन के स्त्रीत्व पर हमेशा एक प्रश्नवाचक चिह्न बना रहता है. इस से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन को कितनी ठेस पहुंचती होगी.

ऐसी मान्यताएं बदलने की जगह और मजबूत होने लगी हैं. लेकिन समाज में उन की जगह सिमटती जा रही है. महानगरीय शैली में जीवनयापन करने वाले लोग तो ऐसे खोखले व ढपोरशंखी विचारों को दरकिनार कर रहे हैं पर हर जगह नहीं. बात नजरिए की भी है. वह समाज जो किसी लड़की के तलाकशुदा होने पर उंगलियां उठाता है, वही इस के लिए लड़के की पीठ थपथपाता है. औरतें सदियों से इस दोयम दर्जे के व्यवहार की शिकार रही हैं. पर अब सच में विवेकशीलता व बौद्धिकता ने आप्रासंगिक होते नियमकायदों की जंजीरों को तोड़ दिया है. ऐसे कई उदाहरण देखनेसुनने को मिलते हैं कि लोग अपनी तलाकशुदा बहू को भी पारिवारिक उत्सव में न्योता दे देते हैं या फिर डिवोर्सी हसबैंड अपनी ऐक्स वाइफ को पुरानी फैमिली पार्टी या फ्रैंड पार्टी में ले जाता है.

और ऐसा हो भी क्यों न? कई बार पतिपत्नी के नाजुक रिश्ते गलतफहमी, अहम के टकराव या वैचारिक भिन्नता के कारण टूट जाते हैं. इस का कतई यह मतलब नहीं कि उस रिश्ते की डोर से बंधे दूसरे रिश्तों पर भी पूर्णविराम लग जाए. अब वक्त करवट ले रहा है. पुरानी व खोखली मान्यताएं टूट रही हैं. इसलिए जरूरी है कि नए वक्त के साथ अपनी सोच को परवान चढ़ाया जाए. संबंधों पर लगी रिश्तों की मुहर भले ही टूट जाए पर दिलों में बसा प्यार, सम्मान व आदर यथावत कायम रहता है. पति से मतभिन्नता, शेष स्नेहिल रिश्तों की अटूट डोर को तोड़ नहीं सकती, इसलिए कुछ बातों को ध्यान में रख कर हम अपनी बौद्धिकता को नई परवाज दे सकते हैं और तलाकशुदा महिलाओं को उन की अहमियत का एहसास दिला सकते हैं:

तलाकशुदा बहू के साथ प्रेममाधुर्य कायम रखें. चाहें तो फोन के जरीए एकदूसरे से छोटीछोटी घटनाओं को शेयर करें. अगर बच्चे हैं और मां के पास रहते हैं तो दादादादी, चाचाचाची का फर्ज है कि रिश्तों को पूरी तरह कायम रखें. पारिवारिक उत्सव व भोज वगैरह में उसे अवश्य आमंत्रित करें. इस के दोतरफा फायदे हैं एक तो आप के संबंधों में तारतम्यता बनी रहेगी, दूसरे आप की ऐक्स बहू एक परफैक्ट होस्ट भी साबित हो सकती है, क्योंकि उसे आप के घर के तौरतरीकों का अच्छा अनुभव होता है.आप की ऐक्स बहू से बेहतर आप के परिवार को कोई और जान ही नहीं सकता, इसलिए उस की महत्ता का एहसास कराने के लिए छोटेबड़े अवसरों जैसे, बर्थडे, मदर्स डे, डौटर डे आदि पर उसे विश जरूर करें. इस से रिश्तों में स्निग्धता बनी रहेगी. पुरुष अपनी सैपरेटेड वाइफ की फैमिली गैटटुगैदर में जरूर शिरकत करवाएं. अपनी ऐक्स वाइफ के प्रति किया गया आप का सौहार्दपूर्ण व सौम्य व्यवहार समाज में आप की गरिमा बढ़ाएगा और लोग आप को बिलकुल अलग नजरिए से ट्रीट करेंगे.

अगर किसी मामले में पुनर्विवाह हो गया हो तो नएपुरानों को भी साथसाथ बुलाने का जोखिम लिया जा सकता है.

दीवाली हो या होली, दशहरा हो या फिर ईद या क्रिसमस, हरेक मौके पर आप की ओर से भेजा गया आमंत्रण आप की ऐक्स वाइफ को फील गुड का एहसास कराएगा.

रिश्तों को जीवंत बनाए रखने की जिम्मेदारी सिर्फ ऐक्स पति या उस के परिवार के कंधों पर ही क्यों हो? आप भी रिश्ते में रहे बगैर कुछ ऐसा करें जिस से आपसी रिश्तों की यह मिठास लगातार बनी रहे.

यह कैसे हो सकता है, इसे हम ऐसे समझ सकते हैं:

अपने ऐक्स हसबैंड या उस की फैमिली को छोटेमोटे अवसरों पर विश करें.

उन के परिवार वालों की फोन के जरीए खोजखबर लेती रहें.

उन्हें अपने घर पर किसी फंक्शन या पार्टी में इन्वाइट करें.

उन के सुखदुख के मौकों पर हमेशा उस के साथ खड़ी रहें.

उन पर अटैंशन दें और उन की फिक्र करें.

जरूरत हो तो मुद्दे विशेष पर अपना मशविरा भी दें.

उन के परिवार के सदस्यों को अपने साथ शौपिंग या आउटिंग पर भी ले जा सकती हैं.

दिन लद गए जब तलाक होने का सीधा सा मतलब था हमेशाहमेशा के लिए रिलेशनशिप से तोबा. अब रिलेशनशिप के दायरे में बंधे बगैर भी आप आदर्श सैपरेटेड बहू की भूमिका निभा सकती हैं और अपने पूर्व पति और उन के परिवार वालों के साथ अच्छे ताल्लुकात कायम रख सकती हैं. लेकिन जंग लगे रिश्तों को चमकाने की पहल दोनों ओर से होनी चाहिए. अगर पति और ससुराल वाले अपनी ऐक्स वाइफ या बहू के मुसीबत के क्षणों में उस का साथ देंगे तो जाहिर सी बात है कि वह भी रिश्ते को निभाने में पीछे नहीं रहेगी. बदलते वक्त के साथ अपने मन और विचारों को भी बदल डालिए. रिश्तों में लगे कटुता के पैबंद को प्रणय और सामीप्य के धागे से बींध डालिए. गले लगिए और औपचारिकता को छोडि़ए. वैसे भी मधुरता से ही कटुता को जीता जा सकता है तो फिर देर किस बात की? लीजिए सामीप्य और साहचर्य की तूलिका और रंग डालिए रिश्तों के खांचे को.

सैक्स से शर्म कैसी

तान्या की शादी तय हो गई थी और उस की विवाहित सहेलियां जबतब उसे छेड़ती रहती थीं. कभी सुहागरात की बात को ले कर, तो कभी पति के साथ हनीमून पर जाने की बात को ले कर. उन की बातें सुन कर अगर एक तरफ तान्या के शरीर में सिहरन दौड़ जाती, तो दूसरी ओर वह यह सोच कर सिहर जाती कि आखिर कैसे वह सैक्स संबंधों का मजा खुल कर ले पाएगी? उसे तो सोचसोच कर ही शर्म आने लगती थी. आज तक वह यही सुनती आई थी कि सैक्स संबंधों के बारे में न तो खुल कर बात करनी चाहिए, न ही उसे ले कर उत्सुकता दिखानी चाहिए. पति के सामने शर्म का एक परदा पड़ा रहना आवश्यक है. नहीं तो पता नहीं वह क्या सोचे. दूसरी ओर उसे यह डर भी सता रहा था कि कहीं उस के पति को उस की देहयष्टि में कोई कमी तो महसूस नहीं होगी? कितनी बार तो वह शीशे के सामने जा कर खड़ी हो जाती और हर कोण से अपने शरीर का मुआयना करती. पता नहीं, उस की फिगर ठीक है भी कि नहीं. कभी वह शरीर के गठन को ले कर कौंशस हो जाती, तो कभी यह सोच कर परेशान हो उठती कि पता नहीं वह अपने पति के साथ मधुर संबंध बना भी पाएगी या नहीं.

कहां से उपजती है शर्म

तान्या जैसी अनेक लड़कियां हैं, जो सैक्स को शर्म के साथ जोड़ कर देखती हैं, जिस की वजह से इस सहजस्वाभाविक प्रक्रिया व आवश्यकता को ले कर कई बार उन के मन में कुंठा भी पैदा हो जाती है. सैक्स के प्रति शर्म की भावना हमारे भीतर से नहीं वरन हमारे परिवेश से उत्पन्न होती है. यह हमारे परिवारों से आती है, हमारी सांस्कृतिक व धार्मिक परंपराओं से आती है, फिर हमारे मित्रों व हमारे समुदाय से हम तक पहुंचती है. आगे चल कर हम एक तरफ तो उन चित्रों और संदेशों को देख कर यह सीखते हैं जो हैं कि सैक्स एक सुखद एहसास है और जीवन में खुश रहने के लिए सफल सैक्स जीवन एक अनिवार्यता है तो दूसरी ओर उन संदेशों के माध्यम से सैक्स को शर्म से जोड़ कर देखते हैं, जो बताते हैं कि सैक्स संबंध बनाना गलत व एक तरह का पाप है. समाजशास्त्री कल्पना पारेख मानती हैं कि ज्यादातर ऐसा उन स्थितियों में होता है, जब लड़कियां यौन शोषण का शिकार होती हैं. सैक्स से संबंधित कोई भी मनोवैज्ञानिक, शारीरिक या भावनात्मक शोषण उस के प्रति अनासक्ति तो पैदा कर ही देता है, साथ ही अनेक वर्जनाएं भी लगा देता है.

जुड़ी हैं कई भ्रांतियां

शर्म इसलिए भी है क्योंकि हमारे समाज में सैक्स एक टैबू है और उस के साथ हमेशा कई तरह की भ्रांतियां जुड़ी रही हैं. अगर एक स्वाभाविक जरूरत की तरह कोई लड़की इस की मांग करे, तो भी शर्म की बात है. इस के अलावा सैक्स संबंधों को ले कर लड़कियों के मन में यह बात डाल दी जाती है कि इस के लिए उन का शरीर सुंदर और अनुपात में होना चाहिए. ऐसे में जब तक वे युवा होती हैं समझ चुकी होती हैं कि उन का शरीर कैसा लगना चाहिए और जब उन का शरीर उस से मेल नहीं खाता, तो उन्हें शर्मिंदगी का एहसास होने लगता है. मैत्रेयी का विवाह हुए 1 महीना हो गया है, पर वह अभी भी पति के साथ संबंध बनाने में हिचकिचाती है. वजह है, उस का सांवला और बहुत अधिक पतला होना. उसे लगता है कि पति उस की रंगत और पतलेपन को पसंद नहीं करेंगे, इसलिए वह उन के निकट जाने से घबराती है. पति जब नजदीक आते हैं, तो वह कमरे में अंधेरा कर देती है. अपने शरीर के आकार को ले कर वह इतनी परेशान रहती है कि सैक्स संबंधों को ऐंजौय ही नहीं कर पाती है.

मनोवैज्ञानिक संध्या कपूर कहती हैं कि सैक्स के प्रति शर्म पतिपत्नी के बीच दूरियों की सब से बड़ी वजह है. पत्नी कभी खुले मन से पति के निकट जा नहीं पाती. फिर वे संबंध या तो मात्र औपचारिकता बन कर रह जाते हैं या मजबूरी. उन में संतुष्टि का अभाव होता है. यह शर्म न सिर्फ औरत को यौन आनंद से वंचित रखती है, वरन प्यार, सामीप्य व साहचार्य से भी दूर कर देती है. 

न छिपाएं अपनी इच्छाएं

यह एक कटु सत्य है कि भारतीय समाज में औरतों की यौन इच्छा को महत्त्व नहीं दिया जाता है. वे सैक्स को आनंद या जरूरत मानने के बजाय उसे विवाह की अनिवार्यता व बच्चे पैदा करने का जरिया मान कर या तो एक दिनचर्या की तरह निभाती हैं या फिर संकोच के चलते पति से दूर भागती हैं. उन की सैक्स से जुड़ी शर्म की सब से बड़ी वजह यही है कि बचपन से उन्हें बताया जाता है कि सैक्स एक वर्जित विषय है, इस के बारे में उन्हें बात नहीं करनी चाहिए. ‘‘ऐसे में विवाह के बाद सैक्स के लिए पहल करने की बात तो कोई लड़की सोच भी नहीं पाती. इस की वजह वे सामाजिक स्थितियां भी हैं, जो लड़की की परवरिश के दौरान यह बताती हैं कि सैक्स उन के लिए नहीं वरन पुरुष के ऐंजौय करने की चीज है. जबकि संतुष्टिदायक सैक्स संबंध तभी बन सकते हैं, जब पतिपत्नी दोनों की इस में सक्रिय भागीदारी हो और वे बेहिचक अपनी बात एकदूसरे से कहें,’’ कहना है संध्या कपूर का.

संकोच न करें

सैक्स का शर्म से कोई वास्ता नहीं है, क्योंकि यह न तो कोई गंदी क्रिया है न ही पतिपत्नी के बीच वर्जित चीज. बेहतर होगा कि आप दोनों ही सहज मन से अपने साथी को अपनाते हुए सैक्स संबंधों का आनंद उठाएं. इस से वैवाहित जीवन में तो मधुरता बनी ही रहेगी, साथ ही किसी तरह की कुंठा भी मन में नहीं पनपेगी. पति का सामीप्य और भरपूर प्यार तभी मिल सकता है, जब आप उसे यह एहसास दिलाती हैं कि आप को उस की नजदीकी अच्छी लगती है. आंखों में खिंचे शर्म के डोरे पति को आप की ओर आकर्षित करेंगे, पर शर्म के कारण बनाई दूरी उन्हें नागवार गुजरेगी. मन में व्याप्त हर तरह की हिचकिचाहट और संकोच को छोड़ कर पति के साहचर्य का आनंद उठाएं.          

सफल सैक्स एक अनिवार्यता है

  1. विशेषज्ञों द्वारा किए गए कई शोधों से यह साबित हो चुका है कि सैक्स एक नैसर्गिक प्रक्रिया है और इस से न सिर्फ वैवाहिक जीवन में मधुरता बनी रहती है, बल्कि शरीर स्वस्थ और मन प्रसन्न रहता है.
  2. धार्मिक आडंबरों में फंस कर सैक्स को बुरी नजर से देखना गलत है. हकीकत में हमारी उत्पत्ति ही इसी की देन है.
  3. सैक्स सुरक्षित और साथी की सहमति से करना चाहिए.
  4. सैक्स में असंतुष्टि अथवा शर्म से दांपत्य संबंधों में मौन पसर सकता है. इसलिए इस पर खुल कर बात करें और इसे भरपूर ऐंजौय करें.
  5. नीमहकीम या झोलाछाप डाक्टरों के चक्कर में फंस कर सैक्स जीवन प्रभावित हो सकता है. इन से दूर रहें.
  6. सैक्स में निरंतरता के लिए मानसिक मजबूती व भावनात्मक संबंध जरूरी है.

इनचांटेड ज्वैल लुक

आज के दौर में ब्राइडल मेकअप हो या किसी फिल्मी हस्ती का मेकअप, फैशन वर्ल्ड हो या फिर इंटरटेनमैंट इंडस्ट्री, मेकअप को ले कर नित्य नए प्रयोग किए जा रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि दूल्हादुलहन, मौडल, फिल्म स्टार सभी को कैमरा फेस करना होता है. कैमरा किसी को बख्शता नहीं. चेहरे का छोटे से छोटा पैच, सलवट, लकीर सब कुछ कैमरे में मुखर हो कर दिखाई देता है. इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि मेकअप बहुत ही उम्दा किया गया हो, ताकि कैमरे के सामने, जिस की तसवीर परदे पर आने वाली हो या फोटोग्राफ के रूप में, वह एकदम सजीव और आकर्षक लगे. इस बात की पुष्टि पैनाश 2011 में नई दिल्ली में हुई एक संगोष्ठी में नीदरलैंड के अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त मेकअप आर्टिस्ट रान रोमेन ने की. उन्होंने कहा कि मेकअप का अभिप्राय होता है सुंदरता में निखार लाना, उसे अप करना.

भारत में तो गोरी, काली, श्याम वर्ण व गेहुएं रंग की धब्बेदार, फीकी, सूखी कई प्रकार की त्वचा मिलती है. ऐसे में नई तकनीक एयर ब्रश से स्प्रिंकल विधि से किया गया मेकअप वाकई दुलहन को एक विशिष्ट लुक प्रदान करने में सहायक होता है.

मेकअप की तकनीक

शादी के दिन हर दुलहन एक आदर्श लुक की तलाश में नजर आती है. ऐसे में एयर ब्रश से किया गया मेकअप इनचांटेड ज्वैल लुक देने में ट्रैंड सैटर बन जाता है. पारंपरिक विधि से किए गए मेकअप के विपरीत एयर ब्रश की मेकअप की विधि अत्यंत नवीनतम और श्रेष्ठ है. इस में चेहरे पर एयर ब्रश द्वारा एक मिस्ट स्प्रे हो जाता है, ताकि चेहरे पर किया गया फाउंडेशन, पाउडर का मेकअप एकदम ईवेन यानी बराबर रहे और देर तक टिका रहे. मेकअप की तकनीक की बाबत बात करते हुए कुछ टिप्स दिए गए, जिस में सर्वप्रथम था मेकअप करने से पूर्व एक कागज पर चेहरे की फिगर ड्रा कर के उस पर मेकअप कर के देखा जाए कि आप के चेहरे पर यह मेकअप कैसा दिखेगा.

फाउंडेशन का चुनाव

कागज पर ठुड्डी से ले कर माथे तक बेस के रूप में फाउंडेशन लगा कर देखा जाता है कि कौन से रंग का फाउंडेशन चेहरे पर रंगत लाएगा. फिर जो फाउंडेशन उस चेहरे पर सब से अच्छा लगता है, उसे फाइनल कर दिया जाता है. फाउंडेशन के कलर का चुनाव दिन की रोशनी में करें. ऐसा इसलिए, एक तो फंक्शन के दौरान दिन भर रोशनी में रहना है, दूसरा यह कि यदि कैमरे के सामने हों तो भी बेबी लाइट्स, मल्टी 10, मल्टी 20 और आप के समारोह को देखते हुए न जाने हुए कौनकौन सी लाइट्स प्रयोग में लाई जाएंगी. यदि सही फाउंडेशन चुना गया है तो चेहरा ठीक लगेगा और फोटो अच्छा दिखेगा. क्लींजर से चेहरा साफ करने के बाद फाउंडेशन उंगलियों के पोरों या स्पंज से चेहरे पर लगाएं. कानों पर, कान के नीचे और गरदन पर भी लगाना न भूलें. उस के बाद कंसीलर का प्रयोग अवश्य करें. इनचांटेड ज्वैल लुक के लिए चेहरे के सभी लुक्स, जैसे उभारों, लाइनों, मोटी नाक व चेहरे के बदरंग हिस्से को कंसीलर लगा कर अच्छी तरह छिपाएं. कंसीलर का मतलब और मकसद ही छिपाना है. बाजार में ई पूल कंसीलर पैलेटड 5 रंगों में क्व1,265 में कंसीलर रिफिल क्व215 में और लिक्विड कंसीलर क्व350 में मिल जाता है.

पिछले 35 वर्षों से अमेरिका के कैलिफोर्निया में ब्यूटीपार्लर चला रहीं अविनाश लाली का मानना है कि मेकअप शुरू करने से पहले सब से जरूरी है, जो मेकअप करवा रहा है, वह एकदम रिलैक्स हो. उसे कोई तनाव या चिंता न हो. ब्लशर का प्रयोग टेंपल बोन से ऊपर की ओर करें. यदि गोल्डन औलिव फाउंडेशन लगाया है और ड्रैस का रंग लाल और हरा है, तो ऐसे में ब्लशर रैड और पिंक का मिक्सचर हो सकता है. वैसे पहने जाने वाले परिधान के अनुकूल ही ब्लशर का इस्तेमाल किया जाए, तो और भी अच्छे परिणाम देगा.

मेकअप का फंडा

मेकअप का एक और फंडा है लिक्विड फाउंडेशन और पाउडर का रंग एक सा हो. स्केनडोर सौंदर्य प्रसाधनों में ट्रांसलूसेंट पाउडर, ट्रांसलूसेंट ऐक्स्ट्रा फाइन, गोल्ड रिफ्लेक्टिंग पाउडर, शिमरिंग कौंपैक्ट सभी उचित मूल्य पर उपलब्ध हैं. जब बात इनचांटेड ज्वैल लुक की चल रही हो, तो आई मेकअप में शाइनी इफैक्ट, मैटेलिक इफैक्ट व जूइल इफैक्ट के लिए आईशैडोज उपलब्ध हैं. आई मेकअप के लिए भी सब से पहले ऊपर हलकी सी फाउंडेशन की परत फिर हाईलाइटर जैसे सिल्वर शेड लगाया जा सकता है. सब से पहले लाइट कलर का आईशैडो लगाएं. डार्क आईशैडो आईलैशेज (पलकों) के बिलकुल करीब लगाएं, ऐसा मेकअप आर्टिस्ट सर रौन का कहना है, क्योंकि इस से फोटोग्राफी में लुक अच्छा आता है. बनावटी पलकें आजकल बाजार में आसानी से मिल जाती हैं, लेकिन अपनी आंखों के रंग का ध्यान रखते हुए इन का चयन करें और दोनों हाथों से प्लकर की सहायता से इन्हें आंखों पर चिपकाएं. आईलैशेज को कर्ली लुक देने के लिए मसकारा की 2 कोट लगाएं. इस से पलकें बड़ी व घनी लगेंगी और ग्लैमरस लुक देंगी.

लिपलाइन लिपस्टिक के रंग से मेल खाती भी हो सकती है कंट्रास्ट भी. ऐसा निजी पसंद पर निर्भर करता है. परंतु इतना जरूर है कि लिपलाइन द्वारा होंठों को आकार दिया जा सकता है. लिपस्टिक लगाने के बाद होंठों के बीच कौटन बड रखें ताकि सारी लिपस्टिक होंठों पर एक समान लगे. यदि लिपग्लौस लगाना हो व देर तक उस का इफैक्ट बना रहे, इस के लिए होंठों के बीच टिशू पेपर भींच लें. ऐसा करने से यह साइड से बहेगा नहीं. दिन के मेकअप के लिए सबटेल पिंक कलर के लिपग्लौस का प्रयोग अच्छे परिणाम देने के साथसाथ अच्छा दिखता है

धर्म की गिरफ्त में त्योहार

कंप्यूटर, इंटरनैट और सोशल मीडिया ने वाकई दुनिया बदल दी है. अब सब कुछ एक क्लिक पर हाजिर हो जाता है. पहले जो काम महीनों में होते थे वे अब मिनटों में हो जाते हैं. इन वैज्ञानिक चमत्कारों पर सवार धर्म ने इन गैजेट्स की न केवल उपयोगिता मिट्टी में मिला दी है, बल्कि इन का महत्त्व भी बदल दिया है. इन में चारों तरफ धर्म का पाखंड है, अंधविश्वास है और धार्मिक चमत्कार है. धर्म को इसलिए भी शाश्वत षड्यंत्र कहा जा सकता है कि वह इन गैजेट्स के जरीए लोगों के दिलोदिमाग पर पहले से ज्यादा छा गया है. इंटरनैट, फेसबुक और व्हाट्सऐप पर धर्म की भरमार है, देवीदेवताओं की जयजयकार है. अब तो दैनिक पूजा भी लोग इन के जरीए करने लगे हैं. तीजत्योहार भी इन से अछूते नहीं रहे हैं, जिन्हें धर्म की गिरफ्त में बनाए रखने का कोई भी मौका धर्म के ठेकेदारों और भक्तों ने नहीं छोड़ा है. जिन आविष्कारों को सामाजिक व आर्थिक उन्नति में इस्तेमाल किया जाना चाहिए था वे धर्म और आडंबरों के प्रचार का बड़ा जरीया क्यों बन गए हैं?

इस सवाल का जवाब साफ है कि धर्म के मकड़जाल में हम शुरू से ही जकड़े रहे हैं. नए जमाने के आविष्कारों का दुरुपयोग धर्म के प्रचार में हो रहा है. लोगों को आधुनिक होने का भ्रम भर है. हकीकत में वे किस तरह रूढि़यों, कुरीतियों और अंधविश्वास के जाल में फंसे हुए हैं, इस की बानगी त्योहारों के दिनों में शबाब पर होती है. हमारे तमाम तीजत्योहार धर्म की देन हैं. धर्म के बगैर इन्हें मनाने की बात कोई सोच भी नहीं सकता. मिसाल दीवाली की लें तो यह इस का अपवाद नहीं जो कहने भर को रोशनी, उल्लास और खुशियों का त्योहार है. जिसे पूरे 1 पखवाड़े तक मनाया जाता है. लोग नए कपड़े पहनते हैं, घरों में दीए और रंगबिरंगी लाइटें जलाते हैं, खरीदारी करते हैं, एकदूसरे की सुखस्मृद्धि व स्वास्थ्य की कामना करते हैं पर हकीकत में ये सतही और मनबहलाऊ बातें हैं.

दीवाली के त्योहार की तमाम अवधारणाओं की जड़ में धर्म और अंधविश्वास इस तरह पसरे हैं कि हर कोई इन के तनाव और दबाव में त्योहार मना रहा होता है. दीवाली को धर्म से अलग कर देखने की हिम्मत कोई करेगा तो धर्मभीरू समाज उसे कतई स्वीकार नहीं करेगा. कदमकदम पर धर्म है और इतनी मजबूती से है कि लोग स्वतंत्रतापूर्वक या मरजी से उल्लास के इन त्योहारी दिनों को जी ही नहीं पाते. खासतौर से महिलाएं जो परिवार और समाज व अब राष्ट्र की भी धुरी हो चली हैं. अपनी मरजी या सहूलत से त्योहार मनाने की आजादी किसी को नहीं है न ही कोई इस बाबत कोशिश करता है. 2-3 दशक पहले जो दबाव पुरानी पीढ़ी और धार्मिक साहित्य का था उस ने चोला बदल लिया है. अब वह लोगों के हाथ में है जिस पर नसीहतें दी जाती हैं कि लक्ष्मी पूजा कैसे की जानी है, वास्तु क्या कहता है और संपन्नता मेहनत से नहीं, बल्कि पूजापाठ से आती है. यानी लोग अभी भी डरेसहमे और आतंकित हैं. बस इस के तरीके बदल गए हैं. ऐसे में खुद को आधुनिक और शिक्षित कहना उतनी ही बड़ी गलतफहमी है जितनी यह कि अब धर्मकर्म कम हो गया है. सच तो यह है कि यह पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है.

चक्कर मुहूर्त का

लोगों की आजादी पर हमला बोलते तीजत्योहार प्रासंगिक हो सकते थे और हो भी सकते हैं बशर्ते धर्म इन पर सवार नहीं होता, जो लोगों को बेडि़यों में जकड़े हुए है. कैसेकैसे लोग धर्म के मकड़जाल में फंसे हुए हैं, इसे बारीकी से देखा जाना बेहद जरूरी है ताकि लोग खुद की बेचारगी समझ सकें कि वे पंडेपुजारियों, रीतिरिवाजों, कुरीतियों और अंधविश्वासों की शाश्वत गुलामी किस तरह ढो रहे हैं. किसी दूसरे त्योहार की तरह दीवाली पर लक्ष्मी पूजन एक विशेष मुहूर्त में ही करना एक अनिवार्यता और बाध्यता है जो दीवाली का सारा मजा किरकिरा कर देती है. दीवाली की गहमागहमी और शुभकामनाओं के आदानप्रदान के बीच दिमाग में मुहूर्त का तनाव पसरा रहता है, क्योंकि यह निकल गया तो लक्ष्मी भी हाथ से चली जाएगी. यह मुहूर्त देश के नामी मठों से जारी होता है और विभिन्न संचार माध्यमों से दीवाली के करीब सप्ताह भर पहले घरघर पहुंच जाता है. दीवाली के दिन तो सारे अखबारों के मुखपृष्ठ इस शुभ मुहूर्त से रंगे रहते हैं. अब तो सोशल मीडिया भी मुहूर्त के प्रचारप्रसार का बड़ा जरीया बन गया है. इस दिमागी दिवालिएपन में उलझे लोग यह भी नहीं सोच पाते कि कैसे मुहूर्त के चक्कर में वे अच्छेखासे त्योहार पर बेवजह का तनाव झेल रहे हैं.

शुभ मुहूर्त दरअसल पंडों की साजिश है ताकि लोग धर्म के मकड़जाल में उलझे रहें और ऐसा होता भी है. अगर मुहूर्त रात 7 बज कर 46 मिनट का है तो शाम 5 बजे से ही घरों में जैसे कर्फ्यू लग जाता है. सारे सदस्यों को सायरन सा बजा कर चेतावनी दे दी जाती है कि अब सब इकट्ठे हो जाओ और पूजा की तैयारियों में जुट जाओ. कुछ भी हो जाए मुहूर्त मिस नहीं होना चाहिए. नतीजतन सारा उत्साह खासतौर से बच्चों का काफूर हो जाती है जो फुलझडि़यां, बंब फोड़ने की तैयारी में होते हैं. उल्लू पर सवार एक अकेली लक्ष्मी घंटे 2 घंटे में करोड़ों घरों के चक्कर कैसे लगा लेती है, धार्मिक मान्यता के इस बोझ तले कोई यह नहीं सोचता और न ही यह तर्क कर पाता है कि क्यों पूजा मुहूर्त की मुहताज है. जाहिर है ऐसा सोचेंगे तो उंगली धर्म और पंडों पर उठेगी, जिन्होंने यह सारा तानाबाना बुना होता है. मकसद लोगों को डरा कर एक सीमित दायरे में बांधना भर होता है.

पूजन सामग्री

लक्ष्मी यों ही नहीं आ जाती. इस के लिए विधिविधान से पूजा के लिए इतनी सामग्री लगती है कि कमरा भी छोटा पड़ने लगता है. यदि दूसरे त्योहारों की तरह कम सामान व वक्त में लक्ष्मी पूजा संपन्न हो जाए तो वाकई उस का कोई महत्त्व नहीं रह जाता. इसलिए धर्म के ठेकेदारों ने ऐसे इंतजाम कर रखे हैं कि लोग दूसरे कामकाज और मिलनाजुलना छोड़ कर दीवाली का सारा दिन पूजा सामग्री खरीदने में जाया कर देते हैं. 5 तरह के फलफूल, मेवे, मिष्ठान के अलावा लक्ष्मी की मूर्ति, कमल, पान, रोली, दूध, घी, चंदन, हलदी, खीलबताशे और घासफूस जैसी चीजें भी खरीदनी पड़ती हैं. दीवाली की रात केवल लक्ष्मी पूजा नहीं होती, बल्कि गणेश, सरस्वती और खुद के आराध्य देवीदेवता भी प्रमुखता से पूजे जाते हैं. इन सभी के पूजन में कम से कम 2 घंटे लगना आम बात है.

नतीजतन पूरा दिन लोग धर्म से बंधे रहते हैं, फिर खुशी मनाने का वक्त कहां रहा? खासतौर से महिलाओं के पास जिन का पूरा दिन चकरी की तरह चाकरी करते निकल जाता है. पूजा के थाल, पकवान वे सजाती हैं, व्रत रख कर शरीर को कष्ट देती हैं और घर के सदस्यों की मानमनुहार भी करती रहती हैं ताकि पूजा विधिविधान से निर्विघ्न संपन्न हो. पूजा सामग्री पहले की तरह सस्ती नहीं रही है. बढ़ते शहरीकरण ने इसे बहुत महंगा कर दिया है. मिसाल फूलों की लें तो गेंदे के 20 फूल भी 40 रुपए से कम नहीं मिलते. लक्ष्मी की छोटी सी मिट्टी की मूर्ति क्व100 से कम की नहीं आती, फिर दूसरी सामग्री के तो कहने ही क्या यानी लक्ष्मी लाने के लिए लक्ष्मी ही दांव पर लगानी पड़ती है. इस के बाद भी उस के आने की कोई गारंटी नहीं. हां, जाने की जरूर है और वह भी महंगाई की आड़ में खुद की बेबसी को कोसते हुए.

मनगढ़ंत कहानियां

दीवाली कोई एक दिन या रात का नहीं, बल्कि पूरे पखवाड़े का शृंखलाबद्ध त्योहार है और हर त्योहार की एक दिलचस्प धार्मिक कहानी या रिवाज है. भोपाल की 10 नंबर मार्केट स्थित धार्मिक सामग्री के एक विक्रेता का कहना है कि बीते 8-10 सालों से दीवाली पूजा की पुस्तकें खूब बिक रही हैं. नए जमाने की महिलाएं इन्हीं किताबों के जरीए जान पाती हैं कि किस तीजत्योहार का क्या विधान और महत्त्व है और क्यों है. दीवाली के 2 दिन पहले पड़ने वाले त्योहार धनतेरस पर पीतल और चांदी के बरतन या सामग्री की खरीदारी शुभ मानी जाती है, जिस के तहत किसी और के पास आए न आए लक्ष्मी बरतन विक्रेताओं और निर्माताओं के पास जरूर जाती है. इस के दूसरे दिन पड़ता है नर्क या रूप चौदस का त्योहार जिसे ले कर कहा जाता है कि इस दिन नहाने और पूजापाठ करने से यमराज खुश होते हैं और आदमी को नर्क नहीं जाना पड़ता. रति देव नाम के राजा के महल से हजारों साल पहले एक ब्राह्मण भूखा चला गया था, इसलिए उसे नर्क की सजा भुगतनी पड़ी थी. जाहिर है, ब्राह्मणों को दान करने के रिवाज को बढ़ावा देने की गरज से इस तरह के किस्सेकहानियां गढ़े गए ताकि लोग दीवाली के दिनों में भी पंडों को दानदक्षिणा चढ़ाते रहें.

दीवाली के दूसरे दिन अन्नकूट नाम का त्योहार पड़ता है और उस के बाद भैयादूज और उस के बाद गोपाष्टमी और फिर आंवला नवमी और आखिर में देवउठनी ग्यारस पड़ता है. इतने सारे त्योहार और दैनिक पूजापाठ इसलिए कि लोग खुल कर त्योहार की खुशी न मना पाएं. धार्मिक जकड़न में फंसे ये दिन साबित करते हैं कि सारा तानाबाना इस तरह रचा गया है कि लोग किसी न किसी रूप में धर्म से जुड़े रहें और इस बाबत कई किस्सेकहानियां चलन में हैं, जिन का पालन न करने से अनिष्ट की गारंटी धर्म जरूर लेता है. रति देव जैसी कहानियों से ही यह धूर्तता भी उजागर होती है कि घूस यानी दान दे कर इन अनिष्टों से बचा जा सकता है.

जानलेवा भी है त्योहार

भारत के कई राज्यों में दशहरा, नवरात्र इत्यादि त्योहारों पर जानवरों की बलि देने की प्रथा है. पाखंडियों का भय लोगों के दिलोदिमाग पर इतना गहरा है कि वे मानते हैं कि यदि पशुबलि न दी जाए तो अपशकुन होता है. इस कुप्रथा के चलते हजारों जानवर त्योहारों के दौरान बेरहमी से मौत के घाट उतार दिए जाते हैं.

महिलाएं बन रहीं निशाना

शकुन और अपशकुनों की त्योहारों पर भरमार रहती है. दीवाली पर जुआ खेलने का रिवाज एक शगुन माना जाता है. कुछ साल पहले तक भाग्य आजमाने का हक सिर्फ पुरुषों को ही था, लेकिन अब महिलाएं भी बाकायदा जुआ खेल कर भाग्य आजमाने लगी हैं. चूंकि अब वे भी कमाने लगी हैं, इसलिए जुआ खेलने का हक उन्हें भी मिल गया है. उलटे कई घरों में तो पुरुष महिलाओं को जुआ खेलने के लिए प्रोत्साहित करते नजर आते हैं. इस कुरीति पर कोई कुछ नहीं बोलता, आखिर मामला धर्म का जो है. एक कुरीति की सजा आधुनिक सभ्य समाज कैसेकैसे भुगत रहा है, इस की बेहतर मिसाल जुआ है, जिस की लत एक बार पड़ जाए तो बरबाद कर के ही छोड़ती है. गृहलक्ष्मियां इस की चपेट में आ रही हैं, यह चिंता की नई बात है, जिस पर बातबात में बंदिशें थोपने वाले धर्म के ठेकेदार चुप्पी साधे रहते हैं. उन का मकसद खुद की कमाई रहती है, इसलिए कोई नहीं कहता कि जुआ मत खेलो. इस का तो उल्लेख भी धर्मग्रंथ में नहीं है. लेकिन उन की मंशा लोगों को ताश के पत्तों में उलझाए रखने की इसलिए रहती है कि लोग भाग्यवादी और जुआरी मानसिकता के बने रहें ताकि उन की दुकानें फूलतीफलती रहें.

चक्र मासिकधर्म का

यह शुद्ध थोपी गई धार्मिक मान्यता है कि मासिकधर्म के दिनों में महिलाएं कोई शुभ कार्य पूजापाठ तो दूर की बात है रसोई में जा कर खाना भी नहीं बना सकतीं. धार्मिक निर्देश तो ये भी हैं कि वे जमीन पर चटाई बिछा कर सोएं, पति को न छुएं. यहां तक कि पीने का पानी भी न छुएं. आजकल की शहरी पढ़ीलिखी महिलाएं कुछ वर्जनाओं से मुक्त हुई हैं, लेकिन पीरियड के दिनों में पूजापाठ करने और भगवान को देखने से भी भयभीत रहती हैं कि कहीं ऐसा न हो कि जानेअनजाने कोई अनिष्ट हो जाए. इसलिए पीरियड्स से हों तो दीवाली का लुत्फ वे नहीं उठा पातीं. महीनेभर चक्की की तरह घरगृहस्थी के कामों में पिसती महिला क्यों इन दिनों अछूतों जैसी हो जाती है, बात समझ से परे है. त्योहारों की खुशी और उल्लास पर यह पीरियड्स का ग्रहण महिलाओं पर कितना भारी पड़ता है, इस की व्याख्या करते हुए भोपाल की एक गृहिणी रश्मि चतुर्वेदी बताती हैं कि पिछली दीवाली में वे पीरियड से थीं लिहाजा न पकवान बना पाईं और न ही पति को छू पाईं.

जाहिर है, महिलाओं के दिलोदिमाग पर यह अंधविश्वास इतना कूटकूट कर भर दिया गया है कि वे त्योहारों पर खासतौर से दीवाली पर अवसाद और कुंठा से घिर जाती हैं और चाहते हुए भी मासिकधर्म के चक्रव्यूह से बाहर नहीं आ पातीं. डर सिर्फ ईश्वर और सदियों से चली आ रही एक धार्मिक कुरीति का है जबकि पुरुषों पर ऐसी कोई बंदिश नहीं थोपी जाती. रश्मि के पति ज्ञानेंद्र कहते हैं कि इस धार्मिक अपराध का खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ा जिस के चलते आनेजाने वालों से वे सहज तरीके से नहीं मिल पाए. तब पहली बार एहसास हुआ कि धर्म किस तरह त्योहारी खुशियां छीनता है. जब गृहलक्ष्मी ही अछूत हो जाए तो लक्ष्मी के माने क्या? इस के बाद भी कोई यह कहे कि नहीं हम त्योहार अपनी मरजी और विवेक से मनाते हैं, तो उस पर तरस ही खाया जा सकता है. धार्मिक मान्यताओं को ही लोगों ने अपनी जरूरत मान लिया है तो वाकई जरूरत मन के अंधियारे को दूर करने की है और इस दीवाली पर यह सोचने की भी कि कब तक हम पंडेपुजारियों और उन के धर्म के इशारों पर नाचते रहेंगे?

क्या ये बातें खुशी मनाने लायक हैं कि हम अपनी मरजी से खा रहे हैं, अपनी मरजी से ही खरीदारी कर रहे हैं, अपनी मरजी से ही अपने कमाए पैसों का उपयोग कर रहे हैं? ये सब बातें झूठ हैं. हकीकत में लोग तमाम काम धर्म के ठेकेदारों की मरजी के मुताबिक कर रहे होते हैं, क्योंकि त्योहारों को हम ने धर्म की देन सदियों से मान रखा है. व्यक्तिगत व सामाजिक आत्मविश्वास की यह कमी हर स्तर पर हर त्योहार पर दिखती है, जिस से लड़ने की ताकत लोगों में नहीं है. हर दीवाली पर लोग असत्य को ही जिताते हैं, इसलिए खुद मानसिक अंधियारे में जीते हैं. दूसरे मसलों की तरह धार्मिक मामलों पर छोटीबड़ी खुशियां निगलते आडंबरों पर हमारे पास तर्क नहीं आस्था के नाम पर एक डर भर है.

धर्म के ठेकेदारों की कोशिश दीवाली को ले कर यह रही है कि लोग पूजापाठ में सिमटे रहें, इकट्ठे हो कर इसे न मनाएं नहीं तो उन की दुकानें खतरे में पड़ जाएंगी. बात सच भी है कि अगर लोग धर्म से मुक्त हो कर त्योहार मनाएंगे तो  व्यक्तिगत व सामाजिक तौर पर एकदूसरे के ज्यादा नजदीक  होंगे. वे तमाम बातें और परेशानियां मनोरंजन और खुशियों के बीच साझा करेंगे तो खुद को तनाव और दबावमुक्त पाएंगे. ऐसा न हो इसलिए तमाम इंतजाम टोनेटोटकों, अंधविश्वासों, कर्मकांडों और रीतिरिवाजों के उन्होंने कर रखे हैं. अब उन का नया प्रचलित हथियार सोशल मीडिया है जिस पर अधिकतर संवाद और संदेश धर्म और उस के अंधविश्वासों के ही रहे हैं. जाहिर है दृश्य बदला है, दर्शक वही हैं जो धार्मिक मनोरंजन का भुगतान करते वहीं खड़े हैं जहां सदियों पहले खडे़ थे. 

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