हर वीकेंड हो त्योहार जैसा

दीवाली का त्योहार जा चुका है. सच कितना हर्षोल्लास और उमंग बिखर जाती है त्योहार में. जीवन की नीरस, उबाऊ और बंधीबंधाई जीवनचर्या में त्योहार नई ऊर्जा भर देते हैं. मगर ज्यों ही त्योहार बीतते हैं, जीवन फिर से पुराने ढर्रे पर चलने लगता है. तब मन में आता है कि क्या अच्छा हो कि जीवन में त्योहारों जैसी खुशियां सदा बनी रहें. मगर प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर कोई सफलता व खुशियां पाने के लिए भाग रहा है.

गाड़ी व आधुनिक सुखसुविधाओं से लैस घर आजकल स्टेटस सिंबल बन गया है. आधुनिक सुखसुविधाओं की प्राप्ति के लिए आज पतिपत्नी दोनों का कामकाजी होना अनिवार्य हो गया है. ऐसे में नौकरी व गृहस्थी के दोहरे चक्रव्यूह में उलझे दंपतियों का विवाहित व सामाजिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. उन की दिनचर्या इतनी व्यस्त होती है कि उन के पास स्वयं के लिए, बच्चों के लिए कोई सामाजिक अथवा पारिवारिक दायित्व निभाने तक का समय नहीं होता है.

एक सर्वेक्षण से पता चला है कि अकेले दिल्ली में ही 66% लोग डबल इनकम की लग्जरी को पसंद करते हैं. पूरे देश में लगभग 54% दंपती मात्र वीकेंड पेरैंट बन कर रह गए हैं. 34% कामकाजी दंपती मात्र तनाव से उत्पन्न मतभेदों की वजह से तलाक तक पहुंच जाते हैं. गृहस्थी और नौकरी के दोहरे चक्रव्यूह के चलते तनाव व थकान के बोझ तले दबे दंपतियों के लिए तो यह और भी जरूरी हो जाता है कि उन के जीवन में कुछ ऐसे मनोरंजक पल आएं जो उन्हें प्रफुल्लित कर नई ऊर्जा से भर दें. 

त्योहारों में तो यह सब सहज उपलब्ध हो जाता है, पर उस के बाद क्या? सप्ताह के 5 कार्यदिवसों में तो आप को घर व नौकरी के बहुत से उत्तरदायित्वों को निभाना पड़ता है. मगर सप्ताहांत का अवकाश आप के लिए ताजा हवा के झोंके सा बना रहता है. छुट्टी के इन 2 दिनों को आप छोटीछोटी खुशियों से भर कर प्रसन्नता व आनंद का सृजन कर सकती हैं. आप यकीनन वीकेंड को स्वयं व परिवार के लिए उत्सवों सरीखा सजा कर मौजमस्ती, उत्साह व उल्लासपूर्ण समय बना सकती हैं. याद रहे कि जीवन बेहद छोटा है. इसे जी भर कर जी लेने के लिए जीवन में आए छोटे से छोटे अवसर को भी खुशी से भर लेना चाहिए.

तनावपूर्ण जीवन में वीकेंड का तड़का

40 वर्षीय रीमा मल्होत्रा 2 किशोर बच्चों की मां हैं तथा एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. छुट्टी हो या कार्यदिवस, वे सुबह 5 बजे उठ जाती हैं. बच्चों की उचित देखभाल, उन के आहार, पढ़ाईलिखाई पर ध्यान देना सब उन का ही दायित्व है. घर के कार्य निबटा के 8 बजे दफ्तर के लिए निकल जाती हैं. शाम 7 बजे घर लौटती हैं.

प्रत्येक शुक्रवार की रात को ही वे शनिवार व रविवार की छुट्टी को कैसे बिताना है, यह तय कर लेती हैं. 5 दिन की भागदौड़ के बाद सप्ताहांत पूरा परिवार घूमनेफिरने, सिनेमा देखने या फिर शौपिंग के लिए निकल जाता है. परिवार के साथ मौजमस्ती करते हुए समय बिताना रीमा को आने वाले कार्यदिवसों के लिए पर्याप्त ऊर्जा देता है. रविवार की शाम को वे आने वाले कार्यदिवसों की आवश्यक तैयारी और खरीदारी इत्यादि में बिताती हैं.

ऐसे बनाएं सप्ताहांत को उल्लासमय

– स्वयं को तनावमुक्त करें: पतिपत्नी दोनों किसी अच्छे स्पा में जाएं. वहां स्पा ले कर रिलैक्स करें. मसाज करवाएं. कोई अरोमाथेरैपी लें. अगर तैरना पसंद है तो स्विमिंग के लिए जाएं. आप का दिलोदिमाग तरोताजा हो जाएगा.

– बागबानी करें, परिवार के साथ कोई गेम खेलें. होटल या क्लब में पिक्चर देखने या पिकनिक पर जाएं. ये सब कार्य प्रसन्नता तो देंगे ही, परिवार भी एकदूसरे के करीब आएगा.

– परिवार सहित मित्रों व रिश्तेदारों के यहां जाएं. उन से मिलेंजुलें. उन्हें अपने यहां आमंत्रित करें.

– नईनई चीजें सीखें. पेंटिंग, कुकिंग, संगीत, फैब्रिक डिजाइनिंग, इंटीरियर डिजाइनिंग, ब्यूटी कोर्स, जो भी आप शुरू से सीखना चाहती थीं पर कभी सीख नहीं पाईं. अब अपने ये शौक पूरे करें.

– नएनए लोगों से मिलें. पूरा सप्ताह आप एक ही वातावरण में, उन्हीं सहकर्मियों के चेहरे देखते हुए बिताती हैं. कितना बोरिंग हो जाता है यह सब. अत: सप्ताहांत को नएनए लोगों से मिलने का जरीया बनाएं.

– परोपकार करें. कभी किसी अनाथाश्रम में जाएं. बच्चों को उपहार आदि भेंट करें. फिर देखें आप को कितनी खुशी मिलेगी. किसी वृद्धाश्रम में जा कर बुजुर्गों के साथ समय बिताएं. इस से नएनए अनुभवों से तो आप का पिटारा भरेगा ही, स्वयं को लकाफुलका भी पाएंगी. किसी एनजीओ से जुड़ें. जीवन की नीरसता से छुटकारा मिलेगा.

– अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलें. कुछ रोमांचक करें. पैराग्लाइडिंग क्लब से जुड़ें. हौर्स राइडिंग, गोल्फ खेलना, ट्रैकिंग, लौंग ड्राइव पर निकलना आदि ऐसे कई काम हैं जो आप के जीवन में रोमांच का संचार करेंगे, जिस से एकरसता से छुटकारा मिलेगा.

– प्रकृति के निकट जाएं. समुद्र के किनारे, नदी के तट पर या किसी पार्क में सुबह की ताजा हवा में कितना आनंद मिलता है, यह बात बस महसूस कर के ही जानी जा सकती है. उगता सूरज, ओस, रंगबिरंगे फूल, बारिश ये सब नगण्य सी दिखती चीजें बड़ी ऊर्जा व शांति देती हैं.

– जीवन में खुशियां ढूंढ़ेंगे तो अपने आसपास ही छोटीछोटी बातों में भी बड़ीबड़ी खुशियां मिल जाएंगी. ये खुशियां न तो त्योहारों की मुहताज होती हैं और न ही खरीदी जा सकती हैं. गृहस्थ जीवन रूपी उद्यान को प्रसन्नता और उल्लास से भरने और सफलता की नई ऊंचाइयां छूने के लिए शांत व प्रसन्न मनमस्तिष्क व सौहार्दपूर्ण वातावरण अति आवश्यक है, जो आप को सदा आगे और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा. अत: सप्ताहांत हो या अन्य कोई अवकाश उसे त्योहार सरीखा उल्लासमय बनाएं. अपना दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रखें. 

मासिकधर्म से जुड़े अंधविश्वासों को दूर करना जरूरी है

कितनी हैरानी की बात है कि एक तरफ तो हम चांद तक पहुंच चुके हैं और दूसरी ओर आज भी मासिकधर्म पर अंधविश्वास का काला साया मंडरा रहा है. मासिकधर्म किसी भी लड़की या महिला के लिए प्राकृतिक रूप से स्वस्थ होने का संकेत है, लेकिन उसे शर्मसार होने की घटना माना जाता है. उस के बारे में खुल कर बात करने को बेशर्मी माना जाता है. उस के बारे में चोरीछिपे बात की जाती है.

खुल कर बात हो

मासिकधर्म से जुड़े इन्हीं टैबूज को दूर करने की जरूरत पर साथिया फाउंडेशन की फाउंडर डा. प्रीति वर्मा का कहना है कि औरत से जुड़ी इस समस्या पर खुल कर बात की जाए, उस के दर्द को महसूस किया जाए और चुप्पी को तोड़ा जाए. मासिकधर्म को अंधविश्वासों से निकालने के लगातार प्रयास करना जरूरी है.

आज भी समाज में इसे अपवित्र माना जाता है और इस के बारे में लोग बात करने तक से झिझकते हैं. अकसर लड़की को पहली बार मासिकधर्म शुरू होता है तो वह चुपचुप हो जाती है. उसे लगता है कि उसे कोई बीमारी हो गई है. तब उसे बताना होता है कि वह बीमार होने की नहीं वरन स्वस्थ होने की निशानी है. गांवों व पिछड़े क्षेत्रों की लड़कियां इस न एक दर्द, एक परेशानी से गुजरती हैं और कोई उन की उस परेशानी में साझीदार नहीं होता.

डरती हैं लड़कियां

प्रीति आगे बताती हैं कि मासिकधर्म को ले कर आज भी जागरूकता न के बराबर है. लड़कियां दाग से डरती हैं. इस दौरान स्कूल जाना तक छोड़ देती हैं, जिस से उन की पढ़ाईलिखाई का नुकसान होता है. उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 28 लाख किशोरियां मासिकधर्म के कारण स्कूल नहीं जाती हैं. इस दौरान अस्वच्छता के चलते वे पेरिवल संक्रमण, सूजन व दर्द से परेशान रहती हैं. जिन के बारे में उन्हें न तो कोई जानकारी देता है न उन की मदद करता है. उन के पास नैपकिन खरीदने तक के पैसे नहीं होते. वे ऐसे गंदे कपड़े का प्रयोग करती हैं, जिस का प्रयोग कोई साफसफाई के लिए भी नहीं करेगा. इस कपड़े को वे घर में छिपा कर रखती हैं. धूप में, खुले में सुखाए बिना कपड़ा इन्फैक्टेड हो जाता है और वैजाइनल फंगल इनफैक्शन व सर्वाइकल कैंसर का कारण बनता है, क्योंकि गीले कपड़े में मौइश्चर रहने से उस में बैक्टीरिया पनपने के अधिक चांसेज होते हैं.

परेशानी को सामने लाना

डा. प्रीति वर्मा का कहना है कि भारत में आज भी मासिकधर्म और इस से जुड़ी हर बात एक टैबू है. इस से जुड़े अनेक अंधविश्वास और मिथक हैं, जिन के बारे में लोग बात ही नहीं करना चाहते. पढ़ीलिखी लड़कियों, महिलाओं को आज भी वैजाइनल वाशिंग टैकनीक की जानकारी नहीं है. वे नहीं जानतीं कि सैनिटरी पैड कितने समय बाद बदलना चाहिए. वे नहीं जानतीं कि वाशिंग हमेशा आगे से पीछे की ओर करनी चाहिए ताकि ऐनस से बैक्टीरिया वैजाइना की तरफ न आए. कुछ लोग यह भी मानते हैं कि मासिकधर्म के दौरान सैक्स करने पर महिला प्रैगनैंट नहीं हो सकती. साथ ही मासिकधर्म के दौरान लड़कियों, महिलाओं के न नहाने, न पूजा करने, न खाना बनाने का अंधविश्वास अभी भी व्याप्त है. इस दौरान उन्हें अछूत माना जाता है.

साथिया फाउंडेशन का एकमात्र उद्देश्य महिलाओं, लड़कियों के उस दर्द, उस परेशानी को लोगों के सामने लाना है जो वे सैनिटरी नैपकिन के अभाव में झेल रही हैं.

डा. प्रीति वर्मा
फाउंडर व चेयरपर्सन, साथिया फाउंडेशन

आम आदमी को मरजी से जीने दो

यूरोप या अमेरिका में परमानैंट बसने और ग्रीन कार्ड या नागरिकता लेने के लिए बहुत से भारतीयों के वहां की निवासी लड़कियों या औरतों से विवाह करने की बातें सुनी जाती हैं पर कोई 68 साल की ब्रिटिश नागरिक औरत 21 साल के भारतीय लड़के से विवाह कर के भारतीय नागरिकता लेना चाहे तो यह भौंहें चढ़ाने वाला काम तो है पर इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

उत्तर प्रदेश के 21 वर्ष के हृदयनाथ को 68 वर्षीय जोन पामेला गुलविन से ‘प्रेम’ हो गया और दोनों ने स्पैशल मैरिज ऐक्ट में शादी करने के लिए दिल्ली की विवाह अदालत में अर्जी दी. इस तरह की अर्जियों पर पुलिस वैरिफिकेशन होती है. क्यों होती है, यह स्पष्ट नहीं है. जब हजारोंलाखों पंडों, मौलवियों, पादरियों, ग्रंथियों द्वारा कराए गए विवाहों पर कोई वैरिफिकेशन नहीं होती तो स्पैशल मैरिज ऐक्ट के अंदर विवाह करने पर पुलिस का दखल अनैतिक, सरकारी मनमानी, रिश्वत वसूलने का तरीका और विवाह में अड़चन डालने वाला काम है.इस वैरिफिकेशन में देर हो रही थी और जोन का वीजा समाप्त हो रहा था तो मामला उच्च न्यायालय में गया जहां अदालत ने और जटिल सवाल पूछने शुरू कर दिए. अदालत को शक होने लगा कि यह मामला कहीं ह्यूमन ट्रैफिकिंग का तो नहीं.विवाह के बाद पतिपत्नी को एकदूसरे पर हक भी मिलते हैं और समाज व कानून दोनों को कई सम्मिलित अधिकार भी देता है पर यह समझौता प्यार का है और इस पर ज्यादा सवाल उठाना गलत है, चाहे यह समझौता कई बार गलत काम के लिए इस्तेमाल क्यों न हो. घर में चूहे हों तो उन से छुटकारा पाने के लिए घर में पैट्रोल डाल कर आग तो नहीं लगाई जाती.

विवाह करने पर पुलिस या अदालती मीनमेख निकालना गलत है. यह बहुत सी समस्याओं को जन्म देता है. इसी की आड़ में युवा अनुभवहीन जोड़ों को जम कर ब्लैकमेल करा जाता है. प्रेम के बाद घर से भाग कर विवाह करना लगभग असंभव है, क्योंकि अदालती दलाल या तो झूठा प्रमाणपत्र देते हैं या फिर मोटी रकम मांगते हैं.हृदयनाथ और जोन पामेला गुलविन का विवाह हो जाता और वे कोई गलत काम करते तो उन पर मुकदमा चलता पर विवाह से पहले ही सोच लिया जाए आयु का अंतराल है तो विवाह में गड़बड़ी है गलत है.आम आदमी को उस की मरजी से जीने दो. उसे हर जगह कानूनी जाल में न उलझाओ. पहले ही धार्मिक रिवाजों से देश व समाज त्रस्त है, ऊपर से अदालती दखलंदाजी व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं छीन रही है.

नैतिकता के नाम पर बंदिशें क्यों

‘हम दो हमारे दो’ का नारा देश में खूब चला पर सिवा आपातकाल के दिनों के इसे जबरन नहीं लादा गया. चीन में एक बच्चा नीति को सख्ती से लागू किया गया और 6-7 यहां तक कि 8 माह तक की गर्भवती बिना परमिट के दूसरे बच्चे से गर्भ वाली महिलाओं का जबरन गर्भपात कराना आम हो गया. कम्यूनिस्ट पार्टी के गुरगे गांवगांव, घरघर उसी तरह औरतों के पेट देखते थे जैसा अब हिंदू सेना के लोग गौमांस के लिए घरघर फ्रिज देखने लगे हैं.जबरदस्ती किसी भी तरह की अच्छी नहीं होती.

इंदिरा गांधी ने 1977 में देख लिया था पर चीन के सत्ता के नशे में मदहोश कम्यूनिस्ट शासकों को यह अब समझ में आया है कि 1 बच्चा नीति किस तरह चीन की अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचा रही है. चीन की आबादी में अब सफेद बाल वालों की तो गिनती बढ़ ही गई है, जो काम नहीं कर सकते पर उन्हें जिंदा रखने के लिए सरकार को खर्च करना पड़ेगा. करोड़ों अविवाहित आदमी पत्नियों की खोज में उत्पादन से ज्यादा लग गए हैं.

भारत की तरह वहां भी पुत्र की कामना ज्यादा होती थी और नतीजा यह है कि आबादी में 100 लड़कियों पर 117 लड़के हैं. 3 करोड़ युवक अविवाहित हैं. उन के लिए लड़कियां हैं ही नहीं.यही नहीं पतिपत्नी के जोड़े की जगह औसतन चीन में 1.6 बच्चे हैं, क्योंकि बहुत से जोड़ों के कोई बच्चा नहीं होता और 1 से ज्यादा कोई पैदा नहीं कर सकता.140 करोड़ की आबादी वाला देश कम होती आबादी से डर रहा है.बच्चे कितने हों, किस लिंग के हों यह फैसला असल में मां का होना चाहिए.

बच्चे विवाह के बाद हों या बिना विवाह यह भी उस का फैसला है. बिना अपनी जान को जोखिम में डाले वह बच्चे को जन्म दे या गर्भपात कराए यह भी उसी का अधिकार है. आधुनिकता, जनसंख्या नियंत्रण, छद्म नैतिकता आदि के नाम पर जो बंदिशें लगाई गई हैं, वे अप्राकृतिक और अमानवीय हैं. एक स्त्री का हक है कि वह अपनी मरजी से सैक्स कर सकती है और अपनी मरजी से ही उस सैक्स के परिणाम पर फैसला कर सकती है.

सरकारी या कानूनी दखल भारी पड़ता है. भारत को चीन से सीखना चाहिए और आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं को प्रतिबंधित कर नैतिकता या अपने पूर्वाग्रह औरतों के बदन और मन पर नहीं लादने चाहिए. यह हर औरत का हक है कि वह कब, किस आयु में, किस तरह, कितने बच्चे किस लिंग के पैदा करे, यह उस का निजी फैसला है.

सलीका सरप्राइज विजिट का

वक्त की कमी ने रिश्ते निभाने का अंदाज बदल दिया है. व्यस्तता के चलते आजकल लोग मोबाइल, इंटरनैट आदि के इस्तेमाल से एकदूसरे के संपर्क में रहते हैं. लेकिन जरा सोचिए कि क्या दोस्तों से मिल कर बातचीत करने और उन के घर जा कर ऐंजौय करने की कमी को इंटरनैट या फोन पूरा कर सकता है? नहीं न? तो क्यों न अब वह किया जाए जो बहुत दिनों से नहीं किया. अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर सरप्राइज विजिट की जाए. अधिकतर लोगों की यही परेशानी होती है कि बहुत दिनों से अपने किसी रिश्तेदार के यहां जाने का मन तो है पर समय न मिलने के कारण जा नहीं सके. लेकिन अब अगर सोच लिया है कि एक बार सरप्राइज विजिट करनी ही है तो कर डालिए. लेकिन ऐसा करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, क्योंकि आप वहां ऐंजौय करने जा रहे हैं उन्हें परेशान करने नहीं.

आइए, जानें कैसे करें सरप्राइज विजिट कि वह यादगार बन जाए:

उन की सुविधा का भी खयाल रखें: दोस्तों और रिश्तेदारों के यहां अचानक जाना अच्छी बात है, लेकिन ऐसा करते समय थोड़ा इस बात का भी ध्यान रखें कि किसी के भी घर जाएं तो वीकेंड पर ही जाएं ताकि उन्हें परेशानी न हो और वे आप को पूरा समय दे सकें. ट्रिक से लें इन्फौर्मेशन: इस बात का पता भी लगा लें कि जिन के घर आप जाना चाहते हैं, वे अपने घर पर हैं भी या नहीं? कहीं उन का उस दिन का कोई और प्रोग्राम तो नहीं है? उन के घर कोई और मेहमान तो आने वाला नहीं है? इसलिए पहले उन से फोन  पर इधरउधर की बातें करें फिर वे आज क्या कर रहे हैं, इस के बारे में जानकारी लें और फिर उसी के अनुसार जाने का प्रोग्राम बनाएं. खातिरदारी ही न करवाते रहें: आप उन के घर अचानक जा रहे हैं, तो इस बात का भी खयाल रखें कि उन्हें काम में ही न लगाए रखें, बल्कि आप कुछ देर के लिए वहां गए हैं तो हंसीमजाक और बातें भी करें. खानेपीने में ही न लगे रहें. अच्छा यह रहेगा कि मिठाई के साथ बैठ कर खाने का सामान भी ले जाएं.

पुरानी बातें याद करें: बहुत दिनों के बाद मिले हैं, तो क्या हुआ. यही वह समय है जब आप अपनी पुरानी अच्छी यादों को ताजा कर सकते हैं. अपने दोस्तों से अपने दिल की, स्कूलकालेज की हर तरह की बातें करें. उन्हें वे सब बातें याद दिलाएं जो आप को उन की और उन्हें आप की पसंद थीं. कुछ फेवर जो आप ने एकदूसरे के लिए किए थे, वे भी याद करें.

ज्यादा समय न लगाएं: सरप्राइज विजिट हमेशा छोटी रहे. 25-30 मिनट से हरगिज ज्यादा नहीं और उसी दौरान सभी हंसीमजाक कर लें.

गिलेशिकवे भी करें दूर: अगर आप लोग काफी समय के बाद मिल रहे हैं और पहले कुछ बातों को ले कर आप लोगों के बीच कोई मसला रहा है जिस का प्रभाव आप के रिश्तों पर पड़ा हो तो उसे अब क्लियर कर लें. अपने मन की हर बात उन से शेयर करें और उन की सुनें. यकीन मानिए आप के रिश्ते जरूर सुधरेंगे.

गिफ्ट भी हो कुछ खास: अपने रिलेटिव के यहां जा रहे हैं तो गिफ्ट या खानेपीने की चीजें यानी जो भी ले जा रहे हैं वह उन की पसंद का होना चाहिए या फिर वह यूजफुल हो. जैसेकि आप उन के लिए मिठाई की जगह डाईफ्रूट ले जाएं. वे उसे कई दिनों तक खाएंगे और आप को याद करेंगे. अगर गिफ्ट देने का मन है तो और्गैनिक गिफ्ट भी दे सकते हैं जैसेकि और्गैनिक चाय, कौफी, सोप, क्रीम, हेयर ऐंड स्किन केयर रेंज या प्लांट्स आदि. गिफ्ट कोई भी हो, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि वह बाद तक रखने वाला हो ताकि वे एक अरसे तक आप को याद रखें कि फलानी चीज आप लाए थे. अचानक बनाया प्रोग्राम अच्छा होता है: कई बार हम प्लान कर के जब कोई प्रोग्राम बनाते हैं तो बहुत से लोगों की रजामंदी लेने के चक्कर में प्रोग्राम बन ही नहीं पाता या फिर मन की बात पूरी न होने के कारण कोई न कोई व्यक्ति असंतुष्ट रह जाता है. लेकिन जब हम अचानक कोई प्रोग्राम बनाते हैं तो ज्यादा सोचने और प्लानिंग करने का समय नहीं होता. ऐसे में थोड़े से समय में ही जिस से जो हो पाता है वह द बैस्ट करता है. फिर चाहे वह मेजबान के घर जा कर खानेपीने की बात हो या फिर ऐंजौय करने की.

सरप्राइज विजिट के फायदे

  1. बिगड़ी बात या रिश्ते फिर से बन जाने के चांस ज्यादा.
  2. ऐंजौय करने का बढि़या मौका.
  3. आप को अचानक आया देख कर रिश्तेदारों के चेहरे पर जो खुशी देखने को मिलेगी उस की बात ही अलग होगी.
  4. दोस्तों और रिश्तेदारों की ये पुरानी शिकायतें दूर होंगी कि अब तो आप हमारे यहां आतेजाते ही नहीं हैं.
  5. आज आप ने सरप्राइज विजिट की है, कल वे लोग करेंगे. इस तरह एक बार फिर आनेजाने का सिलसिला जो शुरू होगा, जो टूटने लगा था.
  6. अगर पहले से बता कर जाते तो शायद उन्हें डिनर आदि करवाने की औपचारिकता में 10 चीजें बनानी पड़तीं, जिस से उन्हें परेशानी भी हो सकती थी. लेकिन आप के अचानक आने से खानेपीने की औपचरिकता कम होगी. हो सकता है कि वे बाजार से  कुछ रैडिमेड मंगवा लें या फिर आप कुछ पैक करवा कर ले जाएं.
  7. पूरे परिवार और करीबी रिश्तेदारों, दोस्तों के साथ इस तरह टाइम स्पैंड करने से आप के रिश्तों में नई ऊर्जा आएगी.
  8. बच्चों में भी इमोशनल बौंडिंग की भावना का विकसित होना बहुत जरूरी है और यह तभी संभव है जब कभीकभार आप रिश्तेदारों के यहां आतेजाते रहें. आप को इस तरह का सामाजिक व्यवहार करते देख वे भी यह सीखेंगे.

सरप्राइज विजिट के नुकसान

  1. हो सकता है कि अचानक आप को आया देख उन का मुंह बन जाए.
  2. यह सोच कर चलें कि यदि मित्र या संबंधी घर पर न हुआ तो मायूस न होंगे. अच्छा रहेगा कि एक तरफ के 2-3 के यहां जाने की तैयारी कर के जाएं.
  3. हो सकता है वे किसी और को ऐक्सपैक्ट कर रहे थे और आप आ गए तो उन का मूड भी औफ हो सकता है.

सरप्राइज कब दे सकते हैं

वैसे तो यह सरप्राइज कभी भी किसी भी वीकेंड पर दिया जा सकता है, लेकिन करीबी लोगों की बर्थडे, शादी की सालगिरह, कोई त्योहार आदि हो तो आप का यों अचानक मिठाई या केक ले कर पहुंच जाना उन्हें बहुत अच्छा लगेगा और उन के मन में आप के लिए पहले से भी कई गुना ज्यादा प्यार और सम्मान बढ़ जाएगा, क्योंकि आप ने उन के इस स्पैशल दिन को याद रखा और उन के साथ सैलिब्रैट किया. नववर्ष हो, होली हो या फिर दीवाली शुभकामनाएं देने का मौका हम नहीं छोड़ते. परंतु इन मौकों पर बधाई देने के लिए हम हमेशा सोशल साइट्स और टैक्नोलौजी का सहारा लेते हैं और खास दिनों की शुभकामनाएं अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भेजते हैं तो जवाब में लाइक, थैंक्स या रिप्लाई ग्रीटिंग को देख कर मन में खुशी के वे अंकुर नहीं फूटते जो रूबरू होने पर फूटते हैं, तो क्यों न इस बार खुद अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के घर जा कर उन्हें शुभकामनाएं दें. फिर देखिएगा सिर्फ उन्हें ही खुशी नहीं होगी, बल्कि आप के त्योहार की खुशी भी दोगुनी हो जाएगी. 

पर्सनैलिटी को खास बनाता परफ्यूम

परफ्यूम पर्सनैलिटी को खास बनाता है. लेकिन इस के लिए जरूरी यह है कि आप जो परफ्यूम यूज कर रहे हैं, वह आप की पर्सनैलिटी से मेल खाता हो. स्टाइल गुरु उमैर जाफर का कहना है कि अधिकांश लोगों को यह नहीं मालूम है कि कौन सा परफ्यूम मेल के लिए है, कौन सा फीमेल के लिए. किस मौके पर कौन सा परफ्यूम लगाना चाहिए और किस सीजन में कौन सा परफ्यूम इस्तेमाल करना चाहिए. परफ्यूम पर्सनैलिटी को सिर्फ खास ही नहीं बनाते, बल्कि उसे निखारते भी हैं. इसलिए परफ्यूम सिलैक्ट करते समय उस की खुशबू नहीं, बल्कि यह देखना चाहिए कि वह आप की पर्सनैलिटी पर सूट करेगा या नहीं. जो मन में आया उसे यूज कर लिया वाली नीति पर्सनैलिटी को निखारने की बजाय उस पर नेगेटिव इफैक्ट डालती है. इसलिए परफ्यूम का सिलैक्शन बड़ी सावधानी से करना चाहिए. मेल और फीमेल के लिए अलगअलग परफ्यूम होते हैं. हर परफ्यूम की अपनी खासीयत व विशेषता होती है. फ्रांस के फ्रेगरेंस वैज्ञानिक माइकल एडवर्ड ने परफ्यूम को 4 मुख्य- समूह फ्लोरल, ओरिएंटल, वुडी और फ्रैश में और इन्हें 12 उपसमूह में बांटा है.

आइए, अब जानें कि खासखास मौकों पर आप कौन सा परफ्यूम कैसे इस्तेमाल करें, जिस से आप की अलग पहचान बने.

  1. ऐसी पार्टी, जहां गैदरिंग कम हो, जैसे कौकटेल पार्टी, फैमिली फंक्शन, मीटिंग आदि में सौफ्ट और भीनी खुशबू वाले परफ्यूम इस्तेमाल करें.
  2. इंगेजमेंट, वैडिंग या नाइट क्लब में जा रहे हैं, तो थोड़ा हार्ड परफ्यूम लगाना चाहिए.
  3. किसी खास फंक्शन या गैदरिंग में सम्मलित होने पर वुडी या स्मोकी परफ्यूम का इस्तेमाल करें.
  4. पार्टी का समय शाम का है, तो हैवी परफ्यूम का इस्तेमाल करें, क्योंकि शाम को हवा में मौइश्चराइजर होने की वजह से वह तेजी से नहीं उड़ेगा.
  5. लंच की पार्टी होने पर हैवी परफ्यूम इस्तेमाल न करें, क्योंकि इस वक्त हैवी परफ्यूम आप को व आप के इर्दगिर्द लोगों को चिड़चिड़ा बनाता है.
  6. मेल को फ्रैशनेस देने वाले व फीमेल को भीनी खुशबू देने वाले परफ्यूम का इस्तेमाल करना चाहिए.
  7. आप यदि लाइम लाइट में हैं, तो वुडी ओरिएंटल ग्रुप के ही परफ्यूम इस्तेमाल करें.
  8. यदि बतौर मेहमान पार्टी में उपस्थित हैं, तो स्ट्रिस या ऐक्वा परफ्यूम का इस्तेमाल करें.
  9. 20 वर्ष से कम उम्र वाले स्ट्रिस और 20 से 30 की उम्र वाले मेल ऐक्वा यूज करें.
  10. 30 से 45 एज ग्रुप वालों के लिए वूडी ओरिएंटल या सौफ्ट ओरिएंटल फ्रैगरेंस अच्छा रहता है. 45 के ऊपर की उम्र वाले मेल को ग्रीनी यूज करना चाहिए.
  11. काम के दौरान मूड को फ्रैश रखने के लिए स्ट्रिस ग्रुप के परफ्यूम इस्तेमाल करें. यह खुद के साथसाथ दूसरों के मूड को भी फ्रैश करता है.
  12. बौडी से पसीने की तेज दुर्गंध निकलती है, तो स्ट्रौंग परफ्यूम लगाने के साथसाथ बौडी की साफसफाई पर भी ध्यान दें.
  13. किसी पर इंप्रैशन डालने के लिए थोड़ा लाउड परफ्यूम जैसे ओरिएंटल या वुडी परफ्यूम का इस्तेमाल करें.
  14. किसी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए स्ट्रौंग परफ्यूम का इस्तेमाल करें.
  15. बैडरूम में लाइट परफ्यूम रोमांटिक बनाता है. यह लाइट खुशबू आप की पर्सनैलिटी को भी लाइट व सौफ्ट एहसास दिलाती है.

याद रखें

  1. परफ्यूम लगाने का शिष्ट तरीका अपनाएं. बहुत ज्यादा मात्रा में इस का इस्तेमाल करना फूहड़ता को दर्शाता है. परफ्यूम का हलका स्प्रे ही काफी होता है.
  2. पब्लिक मीटिंग, शोक, शोक सभा आदि में परफ्यूम लगा कर नहीं जाना चाहिए.
  3. डाक्टर, नर्स, टीचर आदि को परफ्यूम लगा कर ड्यूटी पर नहीं आना चाहिए.
  4. परफ्यूम को बौडी के प्लस प्वाइंट पर, जैसे कानों के पीछे, गरदन के पीछे, बगल, कलाइयों, कुहनियों के मोड़, घुटनों के पीछे, वक्षों के बीच वाले स्थान पर और कमर के इर्दगिर्द आदि जगहों पर लगा सकते हैं.
  5. परफ्यूम दिन में एक बार लगाएं. बारबार न लगाएं. परफ्यूम का अधिक इस्तेमाल करने से यह नुकसान पहुंच सकता है.
  6. एकसाथ कई परफ्यूम को मिला कर न लगाएं. इस से खुशबू का पता नहीं चलता है कि आप ने कौन से ग्रुप के परफ्यूम का इस्तेमाल किया है.
  7. परफ्यूम का इस्तेमाल करने के पहले उसे 1-2 दिन बौडी के किसी भाग में थोड़ा सा लगा कर टेस्ट कर लें. किसी प्रकार की जलन या खुजली होने पर उस परफ्यूम का इस्तेमाल न करें.
  8. परफ्यूम को आंख, मुंह, गुप्तांगों आदि पर न लगाएं. इन स्थानों पर परफ्यूम लगाना खतरनाक हो सकता है.
  9. बेकार, घटिया, सस्ते परफ्यूम न लगाएं. ये स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं.
  10. काफी पुराने या एक्सपायर्ड परफ्यूम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं.
  11. जिम में ऐक्सरसाइज करने जाते वक्त परफ्यूम का इस्तेमाल न करें. यह नुकसानदायक होता है.

नफासत और नवाबी का मेल थे सईद जाफरी

फिल्म ‘मासूम’ के गाने ‘हुजूर इस कदर भी न इतरा कर चलिए…’ में एक गोरे मझोले से कलाकार का आंचल लहरा कर कर झूमना सभी को याद होगा. वह औसत कद वाला गोराचिट्टा, चेहरे पर नवाबी नजाकत, रोबीली मूंछों और दिलकश मुसकान वाला कलाकार सईद जाफरी था, जो पिछले दिनों 86 साल की उम्र में इस दुनिया से रुखसत हो गया.

सईद साहब में अभिनय का गजब का जनून था. तभी तो 1981 में आई फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में वे किसी भी तरह से संजीव कुमार से कमतर नहीं दिखे थे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय से शिक्षा पाने वाले सईद साहब ने दिल्ली में औल इंडिया रेडियो से अंगरेजी भाषा के एनाउंसर के रूप में अपना कैरियर शुरू किया. बाद में कई थिएटर भी किए. कई सारे पड़ावों को पार करने के बाद 1981 में आई फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और 1982 में आई रिचर्ड ऐटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ के बाद ‘चश्मेबद्दूर’, ‘मासूम’, ‘राम तेरी गंगा मैली’, ‘दिल’, ‘हिना’ और ‘त्रिमूर्ति’ जैसी फिल्मों में उन के रोल यादगार रहे. उन्होंने ऐक्ट्रैस और ट्रैवल राइटर मेहरुन्निमा से शादी की थी, लेकिन यह शादी 1965 में टूट गई थी. 1980 में उन्होंने जेनिफर जाफरी से शादी की. उन की 3 बेटियां मीरा, जिया और सकीन जाफरी हैं. अभिनय की बारीकियों को बड़े ही संजीदा ढंग से परदे पर पेश करने वाले सईद जाफरी बौलीवुड के हर दौर में याद रखे जाएंगे, क्योंकि कहते हैं कलाकार कभी मरता नहीं उस की कला हर समय जिंदा रहती है.

स्प्राउट्स दही गुझिया

सामग्री दही की

1/2 कप दूध द्य 400 ग्राम दही

1/2 छोटा चम्मच भुना जीरा

1/2 छोटा चम्मच चीनी द्य नमक स्वादानुसार.

सामग्री भरावन की

1/2 कप स्प्राउट्स द्य 11/2 छोटे चम्मच नीबू का रस द्य 1 हरीमिर्च बारीक कटी

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी

नमक स्वादानुसार.

सामग्री गुझिया की

3/4 कप उरद दाल द्य 1/4 कप मूंग दाल

1/2 कप पानी द्य 1 ब्रैड पीस.

सामग्री सजावट की

2 बड़े चम्मच हरी चटनी द्य 2 बड़े चम्मच मीठी चटनी द्य 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च.

विधि

स्प्राउट्स को 2-3 मिनट उबाल कर बाकी सारी सामग्री उस में मिला कर भरावन तैयार करें. अब दही व दूध को ब्लैंडर में अच्छी तरह मिला कर नमक व चीनी मिलाएं और फ्रिज में ठंडा करने के लिए रखें. दाल पाउडरों को मिलाएं. फिर पानी डाल कर मिलाएं और 2 घंटों के लिए रख दें. मिश्रण गाढ़ा होना चाहिए. 2 घंटे बाद ब्रैड को किनारा काट कर पानी में भिगो कर मिश्रण में डालें. अब मिश्रण को बड़ी परात या ट्रे में डाल कर हथेली से तब तक फेंटें जब तक फूल कर हलका न हो जाए. फिर इस के छोटेछोटे गोले बना कर प्लास्टिक की थैली पर पानी की सहायता से फैलाएं (चपटा). अब इस में भरावन भरें और मुंह बंद कर गुझिया का आकार दें. फिर धीमी आंच पर तेल में सुनहरा होने तक तल लें. फिर निकाल कर नमक वाले गरम पानी में 15-20 मिनट के लिए भिगो दें. पानी से गुझिया निकालें और निचोड़ कर दही में डाल दें. ऊपर भुना जीरा बुरकें. सजावट की सामग्री से सजाएं. हरी चटनी और मीठी चटनी के साथ सर्व करें.

गूगल है न

पूरा दिन अजीब बेचैनी में कटा था. मेरी एमआरआई की रिपोर्ट जानने के लिए हम चारों ही बहुत बेचैन थे. दिन बहुत लंबा लगता रहा था. वैसे भी परेशानी में घड़ी की सूईयां भी धीरेधीरे ही तो चलती लगती हैं. शाम को अनिल ही औफिस से आते हुए रिपोर्ट लाने वाले थे. हमारे दोनों युवा बच्चे शुभि और पार्थ दिख तो सामान्य ही रहे थे पर उन के मन में चल रहा तनाव मैं महसूस कर सकती थी. 15 साल पुराना मेरा कमरदर्द पिछले दिनों बहुत ज्यादा बढ़ गया था. कई बार डाक्टर को दिखाया था, पर कुछ दिनों बाद फिर पहले वाली स्थिति हो जाती थी. इस बार सब ज्यादा टैंशन में इसलिए थे कि पिछले महीने अनिल के कुलीग अजय की रिपोर्ट में स्पाइन कैंसर निकला था. अनिल चिंता में आ गए थे और मुझे अजय के ही और्थोपैडिक डाक्टर संजय के पास ले गए थे. उन के निर्देशानुसार एमआरआई हो चुकी थी और अब रिपोर्ट आने वाली थी. मुश्किल यह भी थी कि डाक्टर नायर के पास 2 दिन बाद जाना था, क्योंकि वे मुंबई से बाहर गए हुए थे.

डोरबैल बजी अनिल थे. एमआरआई की बड़ी सी रिपोर्ट लिए बहुत गंभीरतापूर्वक अंदर आए तो हम तीनों भी सीरियस हो गए. मैं ने पूछा, ‘‘अनिल, क्या हुआ? रिपोर्ट ठीक है न?’’ अनिल के माथे पर पसीने की बूंदें देख कर मैं और बच्चे परेशान हो उठे. वे बिना कुछ बोले टेबल पर बैठ कर अपना लैपटौप औन करने लगे. मैं पानी ले कर आई. बोली, ‘‘यह क्या फ्रैश हो कर चायपानी तो पी लो ऐसा भी क्या काम है.’’

अनिल अब भी चुप रहे. हम तीनों उन की चेयर के पीछे खड़े हो गए. अनिल ने रिपोर्ट निकाली और कहने लगे, ‘‘तनु 1 मिनट. गूगल पर देख लेता हूं, डाक्टर तो 2 दिन बाद ही आएंगे. देखता हूं यह ‘हिमनजिओमस’ क्या है.’’ शुभि ने कहा, ‘‘नहीं पापा, गूगल पर सर्च करने की जरूरत नहीं है. यह डाक्टर का काम है, उन्हीं को करने दो. अभी पता नहीं क्याक्या जरूरत से ज्यादा दिखे… छोड़ो न पापा.’’पार्थ भी कहने लगा, ‘‘हां पापा डाक्टर को ही बताने दो.’’ लेकिन हर चीज गूगल पर सर्च करने के शौकीन अनिल को रोकना नामुमकिन था. बोले, ‘‘नहीं 2 दिन तक चिंता रहेगी. वैसे ‘हिमनजिओमस’ आया है, देखता हूं…गूगल है न…डाक्टर क्या बताएगा.’’

हम तीनों एक दूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

शुभि ने कहा, ‘‘पापा आप कहां सुनेंगे… आप का गूगल का शौक आप को परेशान ही करेगा, देख लेना.’’

‘‘अरे, देखना अभी सारी जानकारी मिल जाएगी, डाक्टर के आने तक क्यों चिंता में रहें?’’ कह अनिल गूगल पर सर्च करने लगे.

‘‘आप फालतू की चीज ले कर बैठ गए,’’ शुभि यह कहते हुए गुस्सा हो कर जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

‘‘अपनी जानकारी बताना भी मत. मुझे डाक्टर से मिलने के बाद ही बताना कि उन्होंने क्या कहा है.’’ पीछेपीछे पार्थ भी चला गया. मैं चुपचाप ‘हिमनजिओमस’ के बारे में पढ़ती खड़ी रह गई. एक तरह का कैंसर लिखा हुआ था और साथ में दिल दहलाने वाली बहुत सी जानकारी. मैं मन ही मन कांप गई पर प्रत्यक्षत: यह कहते हुए किचन में चली गई, ‘‘छोड़ो, बच्चे ठीक कह रहे हैं, पता नहीं क्याक्या लिखा है.’’ अनिल ने थोड़ी देर बाद लैपटौप बंद कर दिया. मैं डिनर बनाने में जानबूझ कर व्यस्त हो गई. जो भी पढ़ा था, चिंताजनक तो था ही. अनिल फ्रैश हो कर चुपचाप बैडरूम में जा कर लेट गए. मैं ने 1-2 बार जा कर देखा, वे हद से ज्यादा गंभीर नजर आए.

मैं ने ही माहौल को हलका बनाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो भी कुछ ज्यादा ही जानकारी तो नहीं देख ली तुम ने?’’क्या मुझे देख कर ऐसा लगता है कि मुझे इतनी सीरियस बीमारी है? कमरदर्द तो आजकल बहुत कौमन है.’’

अनिल ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘अभी तो बहुत चिंता हो रही है मुझे.’’

‘‘डाक्टर से पहले मिल तो लें, अभी से क्या सोचना?’’

‘‘डाक्टर क्या बताएगा, गूगल है न. देख तो लिया है.’’

‘‘अरे गूगल ही है, कोई डाक्टर तो नहीं है न?’’

‘‘तुम्हें क्या पता, आजकल तो हर चीज गूगल पर पता चल जाती है.’’ मैं जानती हूं मुंह से कुछ निकलते ही कि यह क्या है, अनिल का गूगल पर सर्च अभियान शुरू हो जाता है. मैं नई तकनीक के खिलाफ नहीं हूं पर हर बात की एक सीमा होती है न. हर चीज का एक दायरा होता है जानकारी की भी एक सीमा होती है, अब क्या रिपोर्ट भी डाक्टर को दिखाने की जरूरत नहीं है. अनिल से बढ़ कर गूगल का शौकिन शायद ही कोई और हो. अनिल से डिनर भी नहीं खाया जा रहा था. चेहरा उतरा हुआ था. शुभि ने फिर समझाया, ‘‘पापा, यह बात गलत है, बेकार की चिंता में मुंह लटका रखा है… चुस्तदुरुस्त मम्मी को देख कर लगता है कोई गंभीर बात है? डाक्टर को तो आने दो… आप का यह गूगल का शौक आप को भी परेशान कर रहा है, हमें भी.’’ अनिल गंभीर ही रहे. थोड़ा सा खाना खा कर उठ गए. मुझे तो ऐसे देख रहे थे जैसे मुझे पता नहीं क्या हो गया है. मुझे हंसी आ गई. मैं ने कहा, ‘‘अनिल बहुत हो गया, अब मूड ठीक कर लो.’’

मेरी कमर पर हाथ रख कर अनिल ने कहा, ‘‘तनु, बहुत दर्द रहता है क्या?’’ मुझे फिर हंसी आ गई, ‘‘हां, रहता तो है… क्या तुम ने मान लिया है कि मुझे…मेरी बात पूरी होने से पहले ही बोल उठे. ‘‘तनु, मैं मजाक के मूड में नहीं हूं. बहुत कुछ पढ़ा है अभी गूगल पर.’’ मैं ने फिर कुछ नहीं कहा, बस महसूस किया. रात भर सो नहीं पाए अनिल. पूरी रात करवटें बदलते रहे. अगले दिन भी बहुत परेशान रहे.

शाम को शुभि ने ही पूछा, ‘‘पापा, कैसा रहा दिन?’’

‘‘तनु की रिपोर्ट के बारे में काम के बीचबीच में गूगल पर बहुत कुछ पढ़ता रहा.’’ शुभि ने अपना सिर पकड़ लिया.

फिर रात भर अनिल मुझे जागते हुए से ही लगते रहे अगले दिन डाक्टर के पास जाना था. डाक्टर के कैबिन में जाने पहले मैं ने अनिल को अपना पसीना पोंछते देखा तो मैं मन ही मन डर गई कि क्या सचमुच मैं किसी गंभीर बीमारी से त्रस्त हूं. पल भर में ही मैं स्वयं को सामान्य करते हुए अंदर गई. डाक्टर संजय के हाथ में मेरी रिपोर्ट देते हुए अनिल का चेहरा देखने लायक था. जब तक डाक्टर रिपोर्ट देखते रहे, अजीब सा सन्नाटा छाया रहा. हम दोनों की नजरें डाक्टर के चेहरे पर गड़ी रहीं. कुछ ही देर बाद डाक्टर संजय ने रिपोर्ट एक तरफ रखते हुए कहा, ‘‘सब ठीक है. हलका सा ‘डिस्क टेअर’ है, दवा और ऐक्सरसाइज से ठीक हो जाएगा.’’ अनिल हैरानी से बोले, ‘‘पर यह ‘हिमनजिओमस’ क्या है?’’

‘‘यह कुछ नहीं है.’’

‘‘पर डाक्टर साहब, मैं ने गूगल पर देखा… मैं तो बहुत परेशान हो गया था, उस में तो लिखा था…’’ डाक्टर ने हंसते हुए बीच में ही बात काट कर कहा, ‘‘इस बात से तो हम डाक्टरर्स भी परेशान हो चुके हैं कि मरीज आजकल गूगल पर रिपोर्ट देख लेते हैं और अपने को किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त समझने लगते हैं जबकि हकीकत में वैसा कुछ नहीं होता है.’’

‘‘पर डाक्टर साहब, यह हिमनजिओमस…’’

‘‘यह कुछ नहीं है, कुछ लोगों के शरीर में जन्म से ही होता है… इस का होना न होना कोई माने नहीं रखता. कुछ दवाएं लिख दी हैं, अब आप फिजियोथेरैपिस्ट से मिला लें बस.’’ हम दोनों उन्हें थैंक्स बोलते हुए उठ गए. मैं हौस्पिटल से अनिल को घूरते हुए हुए निकली. पहली बार इन 2 दिनों में अनिल मुसकराए. तभी अनिल के मोबाइल पर फोन आ गया. शुभि थी. अनिल ने जैसे ही कहा कि सब ठीक है, उधर से शुभि ने क्या कहा होगा इस का अंदाजा लगा कर मैं हंसी तो अनिल बुरी तरह झेंप गए. कार में बैठते हुए बोले, ‘‘यह ‘डिस्क टेअर’ कब हो गया होगा? कैसे हुआ होगा?’’

मैं ने कहा, ‘‘घर पहुंच कर गूगल पर सर्च कर लेना.’’ अनिल ने हंसते हुए हाथ जोड़ दिए, ‘‘नहीं, इस गूगल ने मुझे 2 दिन बहुत परेशान किया है,’’ और फिर हम दोनों ही जोर से हंस पड़े.

हृदय परिवर्तन

विनय का फोन आया. सहसा विश्वास नहीं हुआ. अरसा बीत गया था मुझे विनय से नाता तोड़े हुए. तोड़ने का कारण था विनय की आंखों पर पड़ी अहंकार की पट्टी. अहं ने उस के विवेक को नष्ट कर दिया था. तभी तो मेरा मन उस से जो एक बार तिक्त हुआ तो आज तक कायम रहा. न उस ने कभी मेरा हाल पूछा न ही मैं ने उस का पूछना चाहा. दोस्ती का मतलब यह नहीं कि उस के हर फैसले पर मैं अपनी सहमति की मुहर लगाता जाऊं. अगर मुझे कहीं कुछ गलत लगा तो उस का विरोध करने से नहीं चूका. भले ही किसी को बुरा लगे. परंतु विनय को इस कदर भी मुखर नहीं हो जाना चाहिए था कि मुझे अपने घर से चले जाने को कह दे. सचमुच उस रोज उस ने अपने घर से बड़े ही खराब ढंग से चले जाने के लिए मुझ से कहा. वर्षों की दोस्ती के बीच एक औरत आ कर उस पर इस कदर हावी हो गई कि मैं तुच्छ हो गया. मेरा मन व्यथित हो गया. उस रोज तय किया कि अब कभी विनय के पास नहीं आऊंगा. आज तक अपने निर्णय पर कायम रहा.

विनय और मैं एक ही महल्ले के थे. साथसाथ पढ़े, सुखदुख के साथी बने. विनय का पहला विवाह प्रेम विवाह था. उस की पत्नी शारदा को उस की मौसी ने गोद लिया था. देखने में वह सुंदर और सुशील थी. मौसी का खुद का बड़ा मकान था, जिस की वह अकेली वारिस थी. इस के अलावा मौसी के पास अच्छाखासा बैंक बैलेंस भी था जो उन्होंने शारदा के नाम कर रखा था. विनय के मांबाप को भी वह अच्छी लगी. भली लगने का एक बहुत बड़ा कारण था उस की लाखों की संपत्ति, जो अंतत: विनय को मिलने वाली थी. दोनों की शादी हो गई. शारदा बड़ी नेकखयाल की थी. हम दोनों की दोस्ती के बीच कभी वह बाधक नहीं बनी. मैं जब भी उस के घर जाता मेरी आवभगत में कोई कसर न छोड़ती. एक तरह से वह मुझ से अपने भाई समान व्यवहार करती. मैं ने भी उसे कभी शिकायत का मौका नहीं दिया और न ही मर्यादा की लक्ष्मणरेखा पार की.

इसी बीच वह 2 बच्चों की मां बनी. विनय की सरकारी नौकरी ऐसी जगह थी जहां ऊपरी आमदनी की सीमा न थी. उस ने खूब रुपए कमाए. पर कहते हैं न कि बेईमानी की कमाई कभी नहीं फलती. जब उस का बड़ा लड़का अमन 10 साल का था तो उस समय शारदा को एक लाइलाज बीमारी ने घेर लिया. उस के भीतर का सारा खून सूख गया. विनय ने उस का कई साल इलाज करवाया. लाखों रुपए पानी की तरह बहाए. एक बार तो वह ठीक हो कर घर भी आ गई, मगर कुछ महीनों के बाद फिर बीमार पड़ गई. इस बार वह बचाई न जा सकी. मुझे उस के जाने का बेहद दुख था. उस से भी ज्यादा दुख उस के 2 बच्चों का असमय मां से वंचित हो जाने का था. पर कहते हैं न समय हर जख्म भर देता है. दोनों बच्चे संभल गए. विनय की एक तलाकशुदा बेऔलाद बहन राधिका ने उस के दोनों बच्चों को संभाल लिया. इस से विनय को काफी राहत मिली.

शारदा के गुजर जाने के बाद राधिका और दूसरे रिश्तेदार विनय पर दूसरी शादी का दबाव बनाने लगे. विनय तब 42 के करीब था. मैं ने भी उसे दूसरी शादी की राय दी. अभी उस के बच्चे छोटे थे. वह अपनी नौकरी देखे कि बच्चों की परवरिश करे. घर का अकेलापल अलग काट खाने को दौड़ता. विनय में थोड़ी हिचक थी कि पता नहीं सौतली मां उस के बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करे? मेरे समझाने पर उस की आंखों में गम के आंसू आ गए. निश्चय ही शारदा के लिए थे. भरे गले से बोला, ‘‘क्यों बीच रास्ते में छोड़ कर चली गई? मैं क्या मां की जगह ले सकता हूं? मेरे बच्चे मां के लिए रात में रोते हैं. रात में मैं उन्हें अपने पास ही सुलाता हूं. भरसक कोशिश करता हूं उस की कमी पूरी करूं. औफिस जाता हूं तो सोचता हूं कि जल्द घर पहुंच कर उन्हें कंपनी दूं. वे मां की कमी महसूस न करें.’’ सुन कर मैं भी गमगीन हो गया. क्षणांश भावुकता से उबरने के बाद मैं बोला, ‘‘जो हो गया सो हो गया. अब आगे की सोच.’’

‘‘क्या सोचूं? मेरा तो दिमाग ही काम नहीं करता. अमन 17 साल का है तो मोनिका 14 साल की. वे कब बड़े होंगे कब उन के जेहन से मां का अक्स उतरेगा, सोचसोच कर मेरा दिल भर आता है.’’ ‘‘देखो, मां की कसक तो हमें भी रहेगी. हां, दूसरी पत्नी आएगी तो हो सकता है इन्हें कुछ राहत मिले.’’ ‘‘हो सकता है लेकिन गारंटेड तो नहीं. कहीं मेरा विवाह का फैसला गलत साबित हो गया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा. बच्चों की नजरों में अपराधी बनूंगा वह अलग.’’

विनय की शंका निराधार नहीं थी. पर शंका के आधार पर आगे बढ़ने के लिए अपने कदम रोकना भी तो उचित नहीं. भविष्य में क्या होगा क्या नहीं, कौन जानता है? हो सकता है कि विनय ही बदल जाए? बहरहाल, कुछ रिश्ते आए तो राधिका ने इनकार कर दिया. कहने लगी कि सुंदर लड़की चाहिए. बड़ी बहन होने के नाते विनय ने शादी की जिम्मेदारी उसी को सौंप दी थी. लेकिन इस बात को जिस ने भी सुना उसे बुरा लगा. अब इस उम्र में भी सुंदर लड़की चाहिए. विनय के जेहन से धीरेधीरे शारदा की तसवीर उतरने लगी थी. अब उस के तसव्वुर में एक सुंदर महिला की तसवीर थी. ऐसा होने के पीछे राधिका व कुछ और शुभचिंतकों का शादी का वह प्रस्ताव था जिस में उसे यह आश्वासन दिया गया था कि उन की जानकारी में एक विधवा गोरीचिट्टी, खूबसूरत व 1 बच्ची की मां है. अगर वह तैयार हो तो शादी की बात छेड़ी जाए. भला विनय को क्या ऐतराज हो सकता था? अमूमन पुरुष का विवेक यहीं दफन हो जाता है. फिर विनय तो एक साधारण सा प्राणी था. उस विधवा स्त्री का नाम सुनंदा था. सुनने में आया कि उस का पति किसी निजी संस्थान में सेल्स अधिकारी था और दुर्घटना में मारा गया था.

राधिका को इस रिश्ते में कोई खामी नजर नहीं आई. वजह सुनंदा का खूबसूरत होना था. रही 8 वर्षीय बच्ची की मां होने की बात, तो थोड़ी हिचक के साथ विनय ने इसे भी स्वीकार कर लिया. सुनंदा वास्तव में खूबसूरत थी. मगर पता नहीं क्यों मैं इस रिश्ते से खुश नहीं था. मेरा मानना था कि विनय को एक घर संभालने वाली साधारण महिला से शादी करनी चाहिए थी. मजबूरी न होती तो शायद ही सुनंदा इस रिश्ते के लिए तैयार होती क्योंकि दोनों के व्यक्तित्व में जमीनआसमान का अंतर था. जुगाड़ से क्लर्की की नौकरी पाने वाला विनय कहीं से भी सुनंदा के लायक नहीं था. मुझे सुनंदा पर तरस भी आया कि काश उस का पति असमय न चल बसा होता तो उस का एक ऐश्वर्यपूर्ण जीवन होता.  विनय मेरा दोस्त था. पर जब मैं मानवता की दृष्टि से देखता था तो लगता था कि कुदरत ने सुनंदा के साथ बहुत नाइंसाफी की. उस की बेटी भी निहायत स्मार्ट व सुंदर थी, जबकि विनय की पहली पत्नी से पैदा दोनों संतानों में वह आकर्षण न था. अकेली स्त्री के लिए जीवन काटना आसान नहीं होता सो सुनंदा के मांबाप ने सामाजिक सुरक्षा के लिए सुनंदा को विनय के साथ बांधना मुनासिब समझा.

सुनंदा ने अतीत को भुला दिया और विनय को अपनाने में ही भलाई समझी. विनय उस के रूपरंग का इस कदर दीवाना हो गया कि न तो उसे बच्चों की सुध रही न ही रिश्तदारों की. सब से कन्नी काट ली. और तो और सुनंदा के रूपसौंदर्य को ले कर इस कदर शंकित हो गया कि उसे छोड़ कर औफिस जाने में भी गुरेज करता. मैं अब उस के घर कम ही जाता. मुझे लगता विनय को मेरी मौजूदगी मुनासिब नहीं लगती. वह हर वक्त सुनंदा के पीछे साए की तरह रहता. उस के रंगरूप को निहारता. सुनंदा अपने पति की इस कमजोरी को भांप  गई. फिर क्या था अपने फैसले उस पर थोपने लगी. विनय के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से सब से ज्यादा परेशान अमन और मोनिका थे. वे दोनों एकदम से अलगथलग पड़ गए. विनय कहीं से आता तो सीधे सुनंदा के कमरे में जा कर उसे आलिंगनबद्ध कर लेता. बच्चों का हालचाल लेना महज औपचारिकता होती.

सुनंदा के रिश्ते में शादी थी. विनय व सुनंदा अपनी बेटी के साथ वहां जा रहे थे. अमन भी जाना चाहता था. उस ने दबी जबान से जाने की इच्छा जाहिर की तो विनय ने उसे डांट दिया, ‘‘जा कर पढ़ाई करो. कहीं जाने की जरूरत नहीं.’’ अमन उलटे पांव अपने कमरे में आ कर अपनी मां की तसवीर के सामने सुबकने लगा. तभी राधिका आ गई. उस को समझाबुझा कर शांत किया. विनय वही करता जो सुनंदा कहती. विनय का सारा ध्यान सुनंदा की बेटी शुभी पर रहता. बहाना यह था कि वह बिन बाप की बेटी है. विनय सुनंदा के रंगरूप पर इस कदर फिदा था कि उसे अपने खून से उपजे बच्चों का भी खयाल नहीं था. अमन किधर जा रहा है, क्या कर रहा है, उस की कोई सुध नहीं लेता. बस बच्चों के स्कूल की फीस भर देता, उन की जरूरत का सामान ला देता. इस से ज्यादा कुछ नहीं. अमन समझदार था. पढ़ाईलिखाई में अपना वक्त लगाता. थोड़ाबहुत भावनात्मक सहारा उसे अपनी बूआ राधिका से मिल जाता, जो विनय की उपेक्षा से उपजी कमी को पूरा कर देता.

अब विनय अपने पुश्तैनी मकान को छोड़ कर शारदा के मकान में रहने लगा. यह वही मकान था जिसे शारदा की मां अपने मरने के बाद अपने नाती अमन के नाम कर गई थीं. पुश्तैनी मकान में संयुक्त परिवार था, जहां उस की निजता भंग होती. भाईभतीजे उस के व्यवहार में आए परिवर्तन का मजाक उड़ाते. अब जब वह अकेले रहने लगा तो सुनंदा के प्रति कुछ ज्यादा ही स्वच्छंद हो गया. राधिका कभीकभार बच्चों का हालचाल लेने आ जाती. मुझे अमन से विनय का हालचाल मिलता रहता. विनय के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से मैं भी आहत था. सोचता उसे राह दिखाऊं मगर डर लगता कहीं अपमानित न होना पड़े. अमन से पता चला कि सुनंदा मां बनने वाली है तो विश्वास नहीं हुआ. 2 बच्चे पहली पत्नी से तो वहीं सुनंदा से एक 8 वर्षीय बेटी. और पैदा करने की क्या जरूरत थी? अमन इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने चला गया. मोनिका बी.ए. में थी. वह खुद 45 की लपेट में था. ऐसे में बाप बनने की क्या तुक? यहीं से मेरा मन उस से तिक्त हो गया. मुझे दोनों घोर स्वार्थी लगे. मैं ने राधिका से पूछा. पहले तो उस ने आनाकानी की, बाद में हकीकत बयां कर दी. कहने लगी कि इस में मैं क्या कर सकती हूं. यह उन दोनों का निजी मामला है. उस ने पल्लू झाड़ लिया, जो अच्छा न लगा. कम से कम विनय को समझा तो सकती थी. दूसरी शादी करते वक्त मैं ने उसे आगाह किया था कि यह शादी तुम दोनों सिर्फ एकदूसरे का सहारा बनने के लिए कर रहे हो. तुम्हें अकेलेपन का साथी चाहिए, वहीं सुनंदा को एक पुरुष की सुरक्षा. जहां तुम्हारे बच्चों की देखभाल करने के लिए एक मां मिल जाएगी, वहीं सुनंदा की बेटी को एक बाप का साया. विनय मुझ से सहमत था. मगर अचानक दोनों में क्या सहमति बनी कि सुनंदा ने मां बनने की सोची?

सुनंदा ने एक लड़के को जन्म दिया. वह बहुत खुश थी. विनय की खुशी भी देखने लायक थी मानों पहली बार पिता बन रहा हो. राधिका को सोने की अंगूठी दी. वह बेहद खुश थी. कुछ दिनों के बाद एक होटल में पार्टी रखी गई. मैं भी आमंत्रित था. रिश्तेदार पीठ पीछे विनय की खिल्ली उड़ा रहे थे मगर वह इस सब से बेखबर था. सुनंदा से चिपक कर बैठा अपने नवजात शिशु को खेला रहा था. अमन और मोनिका उदास थे. उदासी का कारण था उन की तरफ से विनय की बेरुखी. रुपयापैसा दे कर बच्चों को बहलाया जा सकता है, मगर उन का दिल नहीं जीता जा सकता. अमन और मोनिका को सिर्फ मांबाप का प्यार चाहिए था. मां नहीं रहीं, मगर पिता तो अपने बच्चों को भावनात्मक संबल दे सकता था. मगर इस के उलट पिता अपनी नई पत्नी के साथ रासरंग में डूबा था. जबकि दूसरी शादी करने के पहले उस ने अमन व मोनिका को विश्वास में लिया था. अब उन्हीं के साथ धोखा कर रहा था. पूछने पर कहता कि मैं ने दोनों की परवरिश में कया कोई कमी रख छोड़ी है? उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाया और अब क्व10 लाख दे कर अमन को इंजीनियरिंग करवा रहा हूं.

अब विनय से कौन तर्क करे. जिस का जितना बौद्धिक स्तर होगा वह उतना ही सोचेगा. राधिका भी दोनों बच्चों की तरफ से स्वार्थी हो गई थी. परित्यक्त राधिका को विनय से हर संभव मदद मिलती रहती सो वह अमन और मोनिका में ही ऐब ढूंढ़ती.मेरे जेहन में एक बात रहरह कर शूल की तरह चुभती कि आखिर सुनंदा ने एक बेटे की मां बनने की क्यों सोची? अमन मौका देख कर मेरे पास आया और व्यथित मन से बोला, ‘‘क्या आप को यह सब देख कर अच्छा लग रहा है? यह मेरे साथ मजाक न हीं कि इस उम्र में मेरे पिता बाप बने हैं.’’ गुस्सा तो मुझे भी आ रहा था. मैं ने उस के मुंह पर विनय पर कोई टीकाटिप्पणी करने से बचने की कोशिश की पर ऐसे समय मुझे शारदा की याद आ रही थी. वह बेचारी अगर यह सब देख रही होती तो क्या बीतती उस पर. किस तरह से उस के बच्चों को बड़ी बेरहमी के साथ उस का ही बाप हाशिये पर धकेल रहा था. कैसे पुरुष के लिए प्यारमुहब्बत महज एक दिखावा होता है. शारदा से उस ने प्रेम विवाह किया था. कैसे इतनी जल्दी उसे भुला कर सुनंदा का हो गया. तभी 2 बुजुर्ग दंपती मेरे पास आ कर खड़े हो गए. उन की बातचीत से जाहिर हो रहा था कि सुनंदा के मांबाप हैं. बहुत खुश सुनंदा की मां अपने पति से बोली, ‘‘अब सुनंदा का परिवार संपूर्ण हो गया. 1 लड़का 1 लड़की.’’

तो इसका मतलब विनय के परिवार से अमन और मोनिका हटा दिए गए, मेरे मन में यह विचार आया. घर आ कर मैं ने गहराई से चिंतनमनन किया तो पाया कि सुनंदा द्वारा एक बेटे की मां बनना विनय के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का जरीया था. ऐसे तो विनय की 2 संतानें और सुनंदा की 1. लेकिन आज तो विनय उस के रूपजाल में फंसा हुआ है, कल जब उस का अक्स उतर जाएगा तब वह क्या करेगी? हो सकता है वह अपने दोनों बच्चों की तरफ लौट जाए तब तो वह अकेली रह जाएगी. यही सब सोच कर सुनंदा ने एक पुत्र की मां बनने की सोची ताकि पुत्र के चलते विनय खून के रिश्ते से बंध जाए. साथ ही पुत्र के बहाने धनसंपत्ति में हिस्सा भी मिलेगा वरना अमन और मोनिका ही सब ले जाएंगे, उस के हिस्से में कुछ नहीं आएगा. औसत बुद्धि का विनय सुनंदा की चाल में आसानी से फंस गया यह सोच कर मुझे उस की अक्ल पर तरस आया.

अमन ने बी.टैक कर के अपने पसंद  की लड़की से शादी कर ली, जान कर विनय ने उस से बात करना छोड़ दिया. वहीं अमन का कहना था, ‘‘जब उन्हें हमारी परवाह नहीं तो हम क्यों उन की परवाह करें. क्या दूसरी शादी उन्होंने हम से पूछ कर की थी? कौन संतान चाहेगी कि उस के हिस्से का प्रेम कोई और बांटे?’’ ‘‘ऐसा नहीं कहते. उन्होंने तुम्हें पढ़ायालिखाया,’’ मैं बोला. ‘‘पढ़ाना तो उन्हें था ही. पढ़ा कर उन्होंने हमारे ऊपर कौन सा एहसान किया है? नानी हमारे नाम काफी रुपयापैसा छोड़ गई थीं. आज भी पापा जिस मकान में रहते हैं वह मेरी नानी का है और मेरे नाम है.’’ ‘आज के लड़के काफी समझदार हो गए हैं. उन्हें बरगलाया नहीं जा सकता,’ यही सोच कर मैं ने ज्यादा तूल नहीं दिया. मोनिका की शादी कर के विनय पूरी तरह सुनंदा का हो कर रह गया. न कभी अमन के बारे में हाल पूछता न ही मोनिका का. समय बीतता रहा. विनय ने सुनंदा के लिए एक फ्लैट खरीदा. फिर वहीं जा कर रहने लगा. अमन को पता चला तो बनारस आया और अपने मकान की चाबी ले कर दिल्ली लौट गया. विनय ने उसे काफी भलाबुरा कहा. खिसिया कर यह भी कहा कि पुश्तैनी मकान में उसे फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. अमन ने उस की बात का कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि वह जानता था कि यह उतना आसान नहीं जितना पापा सोचते हैं.

सुनंदा की लड़की भी शादी योग्य हो गई थी. सुनंदा उस की शादी किसी अधिकारी लड़के से करना चाहती थी, जबकि विनय उतना दहेज दे पाने में समर्थ नहीं था. बस यहीं से दोनों में मनमुटाव शुरू हो गया. सुनंदा उसे आए दिन ताने मारने लगी. कहती, ‘‘अमन को पढ़ाने के लिए 10 लाख खर्च कर दिए वहीं मेरी बेटी की शादी के लिए रुपए नहीं हैं?’’ ‘‘ऐसी बात नहीं है. फ्लैट खरीदने के बाद मेरे पास 10 लाख ही बचे हैं. 35 लाख कहां से लाऊं?’’

‘‘अमन से मांगो,’’ सुनंदा बोली.

‘‘बेमलतब की बात न करो. मैं ने तुम्हारे लिए उस से अपना रिश्ता हमेशा के लिए खत्म कर लिया है.’’

‘‘मेरे लिए?’’ सुनंदा ने त्योरियां चढ़ाईं, ‘‘यह क्यों नहीं कहते दो पैसे आने लगे तो तुम्हारे बेटे के पर निकल आए?’’

‘‘कुछ भी कह लो. मैं उस से फूटी कौड़ी भी मांगने वाला नहीं.’’

‘‘ठीक है न मांगो. पुश्तैनी मकान बेच दो.’’

‘‘विनय को सुनंदा की यह मांग जायज लगी. वैसे भी संयुक्त परिवार के उस मकान में अब रहने को रह नहीं गया था. अमन को भनक लगी तो भागाभागा आया.’’ ‘‘मकान बिकेगा तो सब को बराबरबराबर हिस्सा मिलेगा,’’ अमन विनय से बोला.

‘‘सब का मतलब?’’

‘‘मोनिका को भी हिस्सा मिलेगा.’’

‘‘मोनिका की शादी में मैं ने जो रुपए खर्च किए उस में सब बराबर हो गया.’’ ‘‘आप को कहते शर्म नहीं आती पापा? मोनिका क्या आप की बेटी नहीं थी, जो उस की शादी का हिसाब बता रहे हैं?’’‘‘तुम दोनों के पास मकान है.’’ ‘‘वह मकान मेरी नानी का दिया है. यह मकान मेरे दादा का है. कानूनन इस पर मेरा हक भी है. बिकेगा तो मेरे सामने. हिसाब होगा तो मेरे सामने,’’ अमन का हठ देख कर सामने तो सुनंदा कुछ नहीं बोली, मगर जब विनय को अकेले में पाया तो खूब लताड़ा, ‘‘बहुत पुत्रमोह था. मिल गया उस का इनाम. मेरे बेटेबेटी के मुंह का निवाला छीन कर उसे पढ़ायालिखाया, बड़ा आदमी बनाया. अब वही आंखें दिखा रहा है.’’ ‘‘मैं ने किसी का निवाला नहीं छीना. वह भी मेरा ही खून है.’’

‘‘खून का अच्छा फर्ज निभाया,’’ सुनंदा ने तंज कसा.

‘‘बेटी तुम्हारी है मेरी नहीं,’’ विनय की सब्र का बांध टूट गया.

सुन कर सुनंदा आगबबूला हो गई, ‘‘तुम्हारे जैसा बेशर्म नहीं देखा. शादी के समय तुम्हीं ने कहा था कि मैं इस को पिता का नाम दूंगा. अब क्या हुआ, आ गए न अपनी औकात पर. मैं तुम्हें छोड़ने वाली नहीं.’’ ‘‘हां, आ गया अपनी औकात पर,’’ विनय भी ढिठाई पर उतर आया, ‘‘मेरे पास इस के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं है. भेज दो इसे इस के पिता के पास. वही इस की शादी करेगा. मैं इस का बाप नहीं हूं.’’ सुन कर सुंनदा आंसू बहाने लगी. फिर सुबकते हुए बोली, ‘‘क्या यह भी तुम्हारा तुम्हारा बेटा नहीं है? क्या इस से भी इनकार करोगे?’’ सुनंदा ने अपने बेटे की तरफ इशारा किया. उसे देखते ही विनय का क्रोध पिघल गया. सुनंदा की चाल कामयाब हुई. आखिरकार अमन की ही शर्तों पर मकान बिका. मोनिका रुपए लेने में संकोच कर रही थी. अमन ने जोर दिया तो रख लिए. उस रोज के बाद विनय का मन हमेशा के लिए अमन से फट गया.  रिटायर होने के बाद विनय अकेला पड़ गया. सुनंदा का बेटा अभी 15 साल का था. उस का ज्यादातर लगाव अपनी मां से था. सुनंदा की बेटी भी मां से ही बातचीत करती. वह सिर्फ उन दोनों का नाम का ही पिता था. ऐसे समय विनय को आत्ममंथन का अवसर मिला तो पाया कि उस ने अमन और मोनिका के साथ किए गए वादे ठीक से नहीं निभाए. उसे तालमेल बैठा कर चलना चाहिए था. अपनी गलती सुधारने के मकसद से विनय ने मुझे याद किया. मैं ने उस से कोई वादा तो नहीं किया, हां विश्वास जरूर दिलाया कि अमन को उस से मिलवाने का भरसक कोशिश करूंगा. इसी बीच विनय को हार्टअटैक का दौरा पड़ा. मुझे खबर लगी तो मैं भागते हुए अस्पताल पहुंचा. सुनंदा नाकभौं सिकोड़ते हुए बोली, ‘‘इस संकट की घड़ी में कोई साथ नहीं है. बड़ी मुश्किल से महल्ले वालों ने विनय को  पहुंचाया.’’

मैं ने मन ही मन सोचा कि आदमी जो बोता है वही काटता है. चाहे विनय हो या सुनंदा दोनों की आंख पर स्वार्थ की पट्टी पड़ी रही. विनय कुछ संभला तो अमन को ले कर भावुक हो गया. मोनिका विनय को देखने आई, मगर अमन ने जान कर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई. रात को मैं ने अमन को फोन किया. विनय की इच्छा दुहराई तो कहने लगा,‘‘अंकल, कोई भी संतान नहीं चाहेगी कि उस की मां की जगह कोई दूसरी औरत ले. इस के बावजूद अगर पापा ने शादी की तो इस आश्वासन के साथ कि हमारे साथ नाइंसाफी नहीं होगी. बल्कि नई मां आएगी तो वह हमारा बेहतर खयाल रखेगी. हमें भी लगा कि पापा नौकरी करें कि हमें संभालें. लिहाजा इस रिश्ते को हम ने खुशीखुशी स्वीकार कर लिया. हमें सुनंदा मां से कोई शिकायत नहीं. शिकायत है अपने पापा से जिन्होंने हमें अकेला छोड़ दिया और सुनंदा मां के हो कर रह गए. मोनिका की शादी जैसेतैसे की, वहीं सुनंदा मां की बेटी के लिए पुश्तैनी मकान तक बेच डाला. मुझे संपत्ति का जरा सा भी लोभ नहीं है. मैं तो इसी बहाने पापा की नीयत को और भी अच्छी तरह जानसमझ लेना चाहता था कि वे सुनंदा मां के लिए कहां तक जा सकते हैं. देखा जाए तो उस संपत्ति पर सिर्फ मेरा हक है. पापा ने सुनंदा मां के लिए फ्लैट खरीदा. अपनी सारी तनख्वाह उन्हें दी. तनख्वाह ही क्यों पी.एफ., बीमा और पैंशन सभी के सुख वे भोग रही हैं. बदले में हमें क्या मिला?’’

‘‘क्या तुम्हें रुपयों की जरूरत है?’’

‘‘हमें सिर्फ पापा से भावनात्मक लगाव की जरूरत थी, जो उन्होंने नहीं दिया. वे मां की कमी तो पूरी नहीं कर सकते थे, मगर रात एक बार हमारे कमरे में आ कर हमें प्यार से दुलार तो सकते थे. इतना ही संबल हमारे लिए काफी था,’’ कहतेकहते अमन भावुक हो गया. ‘‘उन्हें अपने किए पर अफसोस है.’’ ‘‘वह तो होगा ही. उम्र के इस पड़ाव पर जब सुनंदा मां ने भी उपेक्षात्मक रुख अपनाया होगा तो जाहिर है हमें याद करेंगे ही.’’ ‘‘तुम भी क्या उसी लहजे में जवाब देना चाहते हो? उस ने प्रतिशोध लेना चाहते हो?’’

‘‘मैं क्या लूंगा, वे अपनी करनी का फल भुगत रहे हैं.’’

‘जो भी हो वे तुम्हारे पिता हैं. उन्होंने जो किया उस का दंड भुगत रहे हैं. तुम तो अपने फर्ज से विमुख न होओ, वे तुम से कुछ मांग नहीं रहे हैं. वे तो जिंदगी की सांध्यबेला में सिर्फ अपने किए पर शर्मिंदा हैं. चाहते हैं कि एक बार तुम बनारस आ जाओ ताकि तुम से माफी मांग कर अपने दिल पर पड़े नाइंसाफी के बोझ को हलका का सकें. मेरे कथन का उस पर असर पड़ा. 2 दिन बाद वह बनारस आया. हम दोनों विनय के पास गए, सुनंदा ने देखा तो मुंह बना लिया. विनय अमन को देख कर भावविह्वल हो गया. भर्राए गले से बोला, ‘‘तेरी मां से किया वादा मैं नहीं निभा पाया. हो सके तो मुझे माफ कर देना,’’ फिर थोड़ी देर में भावुकता से जब वह उबरा तो आगे बोला, ‘‘मां की कमी पूरी करने के लिए मैं ने सुनंदा से शादी की, मगर मैं उस पर इस कदर लट्टू हो गया कि तुम लोगों के प्रति अपने दायित्वों को भूल गया. मुझे सिर्फ अपने निजी स्वार्थ ही याद रहे.’’

‘‘सुनंदा मां को सोचना चाहिए था कि आप ने शादी कर के उन्हें सहारा दिया. बदले में उन्होंने हमें क्या दिया? आदमी को इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए,’’ अमन बोला. सुनंदा बीच में बोलना चाहती थी पर विनय ने रोक दिया. मुझे लगा यही वक्त है वर्षों बाद मन की भड़ास निकालने का सो किचिंत रोष में बोला, ‘‘भाभी, जरूरत इस बात की थी कि आप सब मिल कर एक अच्छी मिसाल बनते. न अमन आप की बेटी में फर्क करता न ही आप की बेटी अमन में. दोनों ऐसे व्यवहार करते मानों सगे भाईबहन हों. मगर हुआ इस का उलटा. आप ने आते ही अपनेपराए में भेद करना शुरू कर दिया. विनय की कमजोरियों का फायदा उठाने लगीं. जरा सोचिए, अगर विनय आप से शादी नहीं करता तब आप का क्या होता? क्या आप विधवा होने के सामाजिक कलंक के साथ जीना पसंद करतीं? साथ में असुरक्षा की भावना होती सो अलग.’’

विधवा कहने पर मुझे अफसोस हुआ. बाद में मैं ने माफी मांगी. फिर मैं आगे बोला,‘‘कौन आदमी दूसरे के जन्मे बच्चे की जिम्मेदारी उठाना चाहता है? विधुर हो या तलाकशुदा पुरुष हमेशा बेऔलाद महिला को ही प्राथमिकता देता है. इस के बावजूद विनय ने न केवल आप की बेटी को ही अपना नाम दिया, बल्कि उस की शादी के लिए अपना पुश्तैनी मकान तक बेच डाला.’’ अपनी बात कह कर हम दोनों अपनेअपने घर लौट आए, एक रोज खबर मिली कि सुनंदा और विनय दोनों दिल्ली अमन से मिलने जा रहे हैं. निश्चय ही अपनी गलती सुधारने जा रहे थे. मुझे खुशी हुई. देर से सही सुनंदा भाभी का हृदयपरिवर्तन तो हुआ.

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