ट्रैवल पैकेज फौर लेडीज

कुछ समय पहले तक विभिन्न गतिविधियों में भाग लेना या देशविदेश की यात्राएं अकेले करना केवल पुरुषों के अधिकार क्षेत्र की बात मानी जाती थी, पर आज महिलाओं का अकेले यात्रा करने का ट्रैंड जोर पकड़ रहा है. अधिक से अधिक महिलाएं ऐडवैंचरस स्पोर्ट्स, चाहे वह माउंटेनियरिंग हों, रिवर राफ्टिंग हो या फिर ट्रैकिंग, की ओर उन्मुख हो रही हैं. कामकाजी महिलाओं को अकसर काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता है. ऐसे में अकेले यात्रा करना उन के लिए कोई वर्जित क्षेत्र नहीं रहा है. ऐसी महिलाएं भी हैं, जो नौकरी नहीं करतीं, पर संपन्न परिवारों की हैं और घूमने की शौकीन हैं. पर किसी कंपनी के न मिलने से वे अपने इस शौक को दबाए रखने को मजबूर होती हैं. एक साथ की तलाश उन्हें यात्रा करने से रोकती है. ऐसी ही महिलाओं की उड़ान को पंख देने के लिए बना ट्रैवल क्लब ‘वाओ’ ‘वूमन औन वैंडरलस्ट’ की जब सुमित्रा सेनापति ने नींव रखी तो उन्हें बहुत ही अच्छा रिस्पौंस मिला.

खुद घूमने की शौकीन व ट्रैवल राइटर सुमित्रा कहती हैं, ‘‘बरसों तक मैं देशविदेश की यात्रा करती रही और उसी दौरान मुझे एहसास हुआ कि ऐसी अनगिनत महिलाएं, जो अकेली हैं या जिन के पति के पास उन्हें घुमाने का समय नहीं है, वे ट्रैवल करने के लिए किसी न किसी कंपनी की तलाश में लगी रहती हैं. तब मैं ने आज से 5 साल पहले इस क्लब को बनाया, जो केवल महिलाओं के लिए ही है. सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो भी यह एक बेहतर विकल्प है. आज ऐडवैंचर ट्रैवल महिलाओं के जीवन का एक हिस्सा बन गया है.’’

टैंशन फ्री हौलीडे

इस तरह के पैकेज लेने का सब से बड़ा फायदा यह होता है कि इस से समय की बचत होती है, साथ ही बिना किसी भागदौड़ व परेशानी के हर इंतजाम हो जाता है. एअर टिकट से ले कर वीजा, रहने की जगह पिक ऐंड ड्रौप, खाना, घूमना, गाइड सब कुछ पैकेज में शामिल होता है, इसलिए महिलाएं यात्रा का भरपूर आनंद ले पाती हैं. यही नहीं, इस तरह के ट्रैवल पैकेजों के माध्यम से संपर्क सूत्र भी बनते हैं और मित्र भी. बेहतरीन ढंग से योजनाबद्ध होने के कारण ये टूर किसी रोमांचक व सुखद अनुभव से कम नहीं होते. यात्रा के दौरान बहुत सारी ऐक्टिविटीज भी प्लान की जाती हैं, जिस से सफर का मजा दोगुना हो जाता है.

‘‘हमारे इस क्लब में 28 वर्ष से ले कर 60 वर्ष तक की महिलाएं घूमने जाती हैं. केवल दिल्ली से ही नहीं वरन चेन्नई, कोचीन, बेंगलुरु आदि से भी आती हैं, खासकर रिवर राफ्टिंग के लिए. ऐडवैंचरस ऐक्टिविटीज को ज्यादा आनंददायक बनाने के लिए हम सुनिश्चित करते हैं कि ट्रैक पर सारे अरेंजमैंट्स सुविधाजनक हों ताकि इन महिलाओं को किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े. लेकिन मैं उन्हें यह अवश्य याद दिलाती रहती हूं कि ट्रैकिंग पर आना कोई लग्जरी वेकेशन नहीं है, इसलिए ट्रैक पर किसी भी अनहोनी के लिए तैयार रहें,’’ कहना है सुमित्रा सेनापति का.

सुरक्षा भी पूरी

भारत में वूमन ट्रैवलर्स की संख्या में बढ़ोतरी होने से ट्रैवल इंडस्ट्री का मुनाफ बढ़ा है. केवल किसी तीर्थयात्रा या शहर में ही कहीं आउटिंग पर जाने तक ही इन महिलाओं की यात्रा अब सीमित नहीं रही और न ही ये दूसरों की मरजी के अनुसार अपनी छुटिटयां प्लान करने को आज तैयार हैं. बिजनैस ऐग्जिक्यूटिव से ले कर कारपोरेट सैक्टर तक में काम करने वाली, कहा जा सकता है कि हर प्रोफैशन से जुड़ी महिला आज ट्रैवल कर रही है और इस में मददगार साबित हो रहे हैं वे वूमन क्लब, जो महिलाओं के द्वारा और महिलाओं के लिए चलाए जा रहे हैं. एक औल वूमन ट्रैवल ग्रुप उन महिलाओं के लिए एक बेहतरीन विकल्प है, जो ट्रैवल तो करना चाहती हैं, पर अकेले नहीं. सब से बड़ी बात है कि सुरक्षा की दृष्टि से औल वूमन क्लब बहुत ही सही है.

दादर, मुंबई स्थित ‘गर्ल्स औन द गो’ क्लब महिलाओं के लिए डोमैस्टिक और इंटरनैशनल दोनों तरह के पैकेज प्लान करता है. इस को चलाने वाली पिया बोस देसाई का कहना है कि हम इस के अतिरिक्त शौर्ट वीकएंड ट्रिप भी और्गेनाइज करते हैं. 2 सालों में अब तक हम लद्दाख, भूटान, इजिप्ट, टर्की आदि के ट्रिप और्गेनाइज कर चुके हैं. हमारी स्पैशिलिटी है हमारे कस्टमाइज्ड पैकेज. अगर कोई महिला अकेले या अपनी फ्रैंड्स के साथ कहीं जाने की इच्छुक होती है, तो वह हमें बताती है कि कहां जाना है और उसे किस तरह की सुविधाएं चाहिए. हम उस के अनुसार उस का टूर प्लान करते हैं. इन के अक्तूबर माह के पैकेज हैं- कर्नाटक, मालद्वीप व श्रीलंका. शिमला स्थित ऐडवैंचर हिल्स की संध्या  त्यागी दिल्ली से मार्केटिंग करती हैं. 2003 में हिमाचल टूरिज्म के साथ उन्होंने अपने क्लब को रजिस्टर किया था. वे कहती हैं, ‘‘हम ज्यादातर हिमाचल व लेहलद्दाख में ही टूर प्लान करते हैं. हमारे पास भारत व विदेशों से महिलाएं आती हैं. कई बार जब लड़कियों का ग्रुप जाता है तो उन के पेरैंट्स चाहते हैं कि मैं भी उन के साथ जाऊं. सुरक्षा का खयाल हम पूरा रखते हैं, इसलिए पेरैंट्स निश्चिंत हो कर अपनी लड़कियों को भेज देते हैं.’’

वूमन औन क्लाउड्स

एक इंटरनैशनल एअरलाइंस में एअरहोस्टेस शीरीन मेहता ने जब दिल्ली के गुलमोहर पार्क में औन क्लाउड्स नामक वूमन ओनली क्लब का गठन किया था, तो उन्हें उम्मीद थी कि यह अकेली औरतों के लिए बहुत ही सुविधाजनक, केयरफ्री ट्रैवल औप्शन साबित होगा. वे कहती हैं कि बिना किसी रोकटोक के अपने ढंग से जीने की आजादी इन महिलाओं को ऐसे सफर में मिलती है. परिवार के साथ जाने पर हमेशा एक जिम्मेदारी लादनी पड़ती है. उन की भूमिका तब सिर्फ एक केयरटेकर की हो जाती है, जिस से एंजौयमैंट पूरी तरह से नहीं हो पाता है. पर अकेले अपनी जैसी सोच  रखने वाली महिलाओं के साथ यात्रा करने का मजा ही कुछ और होता है. शीरीन ज्यादातर लेह, कश्मीर, राजस्थान, केरल, गोआ, धर्मशाला व थाईलैंड के ट्रिप और्गेनाइज करती हैं. अपने तरीके से जीने, ऐक्सप्लोर करने व स्वतंत्र रहने की भावना ने महिलाओं को अकेले या अन्य महिलाओं के साथ ट्रैवल करने के लिए प्रेरित किया है. आईबीएक्स ऐक्सपीडीशन की निदेशक अनीता सिंह सोनी का कहना है कि उन की कंपनी जो वूमन ऐडवैंचर टूर और्गेनाइज करती है उस का लाभ उठाने के लिए हर उम्र व प्रोफैशन की महिलाएं आती हैं. मुंबई के केसरी टूर ने जब माई फेयर लेडी टूर्स लांच किए तो महिला यात्रियों की भीड़ लग गई. कंपनी की चेयरपर्सन वीना पाटिल के अनुसार, अकेली रहने वाली महिला, हाउसवाइफ, दादीनानी हर तरह की महिलाएं इन पैकेज को ले सकती हैं. अपनी तरह से अपने सपनों व ऐडवैंचर की खातिर आज महिला अकेली ही चल दी है दुनिया ऐक्सप्लोर करने और सभी वूमन ट्रैवल ग्रुप उन के सपनों को दे रहे हैं उड़ान. 

हनीमून के बदलते ट्रैंड

हनीमून का मतलब सब जानते हैं, किंतु आज इस का मतलब बदलने लगा है. कल तक हनीमून की पहुंच शिमला, कुल्लूमनाली, ऊंटी आदि जगहों तक ही सीमित थी. लेकिन अब इस की पहुंच देश की सीमाएं लांघ चुकी है. हनीमून का मतलब अब किसी शांत जगह पर कुछ दिन एक होटल के कमरे में बिताना नहीं रह गया है. आज नवदंपती कुछ नया चाहते हैं. भारत में दक्षिण अफ्रीका टूरिज्म के कंट्री हैड, हनेली बताते हैं कि आजकल नवदंपती पुरानी जगहों के बजाय दूरदराज की नईनई जगहों पर जा कर कुछ नया अनुभव करना चाहते हैं.यही नहीं, अब हनीमून की अवधि भी 5-6 दिनों से बढ़ कर 10-12 दिनों तक पहुंचने लगी है. हौलीडे तो जीवन में कई आएंगे, किंतु हनीमून एक बार ही आता है, इसलिए आज के नवविवाहित जोड़े इस का भरपूर आनंद उठाना चाहते हैं.

थौमस कुक ट्रैवल एजेंसी के लीजर ट्रैवल आउटबाउंड के सी.ओ.ओ. माधव पाइ कहते हैं कि नवदंपती द्वीपों में हनीमून मनाने में ज्यादा रुचि रखते हैं. मौरीशस, मालद्वीप, बाली, फिजी, कंबोडिया में काफी लोग हनीमून मनाना पसंद करते हैं. इसीलिए कई ट्रैवल कंपनियों ने नई जगहों के लिए टूअर आरंभ किए हैं.मेक माई ट्रिप डौट कौम के सी.ओ.ओ. केमूर जोशी ने बताया कि उन की कंपनी ने आकर्षक जगहों, जैसे लद्दाख, मालद्वीप, अंडमान निकोबार इत्यादि के लिए ऐसे हौलीडे पैकेज बनाए हैं, जिन में चार्टर प्लेन तक की सुविधा मौजूद है.आज हनीमून के कई प्रकार उभर आए हैं, जैसे :

ऐडवैंचरस हनीमून : ऐडवैंचर स्पोर्ट्स सिर्फ युगलों को ही नहीं, अपितु नवदंपतियों को भी लुभा रहे हैं. स्कूबा डाइविंग, अंडरवाटर फोटोग्राफी, रिवर राफ्टिंग, कैंपिंग, स्नोरकलिंग आदि हनीमून मनाने वालों को आकर्षित कर रहे हैं. कूओनी इंडिया ट्रैवल एजेंसी के आउटबाउंड डिवीजन की सी.ओ.ओ. कश्मीरा कमसारियत ने बताया कि उन की कंपनी हनीमूनर्स को नायाब अनुभव करवाती है, जैसे मौरीशस में पनडुब्बी में अंडरवाटर क्रूज, आस्ट्रेलिया में हौट एअरबैलून में घूमना, रैड सी में स्नोरकलिंग इत्यादि. इसी तरह जो हनीमूनर्स दक्षिण अफ्रीका जाते हैं वे केवल दर्शनीय स्थल देख कर ही नहीं लौट आते हैं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका में वाइन रूट, स्पा व बुश मसाज का भी पूरापूरा आनंद उठाते हैं.

ग्लैंपिंग हनीमून : जिन जोड़ों को आकाश तले तारों की छांव का शौक है, किंतु अपने हनीमून के मूड को बरकरार रखने के लिए वे सुविधा तथा आराम भी चाहते हैं, उन के लिए है ग्लैंपिंग. ये वे टैंट हैं, जिन में पूरी सुखसुविधाएं भी हैं और साथ ही कैंपिंग का रोमांच भी. फिर चाहे जंगल हो या नदी का किनारा, भरपूर मजा लीजिए कैंपिंग का और वह भी पूरे शौक के साथ.

ईको हनीमून : आस्ट्रेलिया में बसी प्रेरणा मल्होत्रा बताती हैं कि यह अभी विदेशों में ही लोकप्रिय है. वे दंपती, जिन्हें प्रकृति से प्यार है और उस की फिक्र भी, वे ऐसे हनीमून में प्रकृति की देखभाल में समय बिताते हैं, आसपास के गांवों, कसबों के लोगों की मदद करते हैं और अपने जीवन की मधुर शुरुआत करते हैं.हम जीने के लिए खाते हैं या खाने के लिए जीते हैं? यदि आप का उत्तर दूसरे वाला है, तो आप के लिए है- फूडी हनीमून. इस पर जाइए और अपने हमसफर के साथ तरहतरह के भोजन, तरहतरह के पेयपदार्थों और नएनए मिष्ठान्नों के स्वाद चखिए.

सपनोें की कीमत

यदि आधुनिक दंपती निराले सपने देखते हैं, तो उन्हें पूरा करने की कीमत भी वे देने को तैयार हैं. आज का युवावर्ग अपनी पहली पीढ़ी की अपेक्षा कहीं अधिक कमा रहा है और कमाई के साथसाथ वह जिंदगी का भी भरपूर लुत्फ उठाने की न सिर्फ चाह रखता है, बल्कि हिम्मत भी.ज्यादा कमाई और बदलते नजरिए की वजह से अब भारतीय अपनी शादी को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.फिर हनीमून पैकेजों ने इसे और भी आसान बना दिया है.आजकल अधिकतर पैकेजों में यात्रा, होटल, खानापीना, घूमनाफिरना आदि सब शामिल होता है. एक बार पैसा दीजिए और फिर आराम से आनंद उठाइए.

सुनहरी यादें

एक प्रतिष्ठित मार्केटिंग कंपनी में कार्यरत पल्लवी व आनंद ने अपने कमरे में हनीमून पर स्नोरकलिंग करते हुए अपनी तसवीर लगा रखी है. वे मानते हैं कि बैंकौक में बिताए वे पल उन की जिंदगी को मीठी शुरुआत दे गए. आखिर हनीमून का उद्देश्य यही तो होता है. तभी तो आजकल युवा नईनई जगह जाना पसंद कर रहे हैं, जहां अलग भाषा हो, नया खानेपीने को मिले, नई संस्कृति हो और अनूठा अनुभव रहे. यात्रा डौट कौम की सहसंस्थापक सबीना चोपड़ा कहती हैं कि आजकल के हनीमूनर्स को अपनी पसंदानुसार हनीमून पैकेज चाहिए न कि दूसरों की देखादेखी वाला ताकि उन का हर पल मस्ती से भरा हो. तभी तो स्कींइग, महंगी गाडि़यों को स्वयं ड्राइव करना, क्रूज, हैलीकौप्टर की सैर इन्हें लुभाती है. आयरलैंड, स्विट्जरलैंड व ग्रीस के महल और विला भी इन की पसंद में आते हैं. कनाडा, लंदन, थाईलैंड के अलावा माल्टा, पुर्तगाल और टर्की के प्रति भी जोड़ों का आकर्षण है. स्पा और मसाज पार्लर भी हनीमूनर्स को लुभा रहे हैं.

मुझे असफलता का डर नहीं : आलिया भट्ट

अपने पिता की तरह बेबाक आलिया भट्ट की हाल ही में फिल्म ‘शानदार’ रिलीज हुई है, जिस में उन्होंने इन्सोमनिया से पीडि़त लड़की का किरदार निभाया है. इन्सोमनिया यानी ऐसी बीमारी जिस में इनसान को रात में नींद नहीं आती है.

पेश हैं, आलिया से हुई मुलाकात के कुछ अंश:

अब तक प्रदर्शित आप की सभी फिल्में बौक्स औफिस पर हिट रही हैं. इस की वजह?

फिल्म की सफलता से खुशी होती है, पर डर भी लगता है कि दर्शकों की अपेक्षाएं, उम्मीदें उसी अनुपात में बढ़ती जाती हैं. पर मेरा मानना है कि कड़ी मेहनत का कोई पर्याय नहीं होता. मैं हमेशा पूरी ईमानदारी, लगन व मेहनत से काम करती हूं और आगे भी करती रहूंगी.

क्या असफलता का डर सताता है?

मुझे असफलता का नहीं वरन कुछ गलत न हो जाए, इस बात का डर सताता है. मैं डरती हूं कहीं कोई गलत निर्णय न ले लूं.

आप ऐसे परिवार से हैं, जहां कलाकार, निर्माता व निर्देशक हैं. ऐसे में फिल्म का चयन करते समय किस से सलाह लेती हैं?

मैं ज्यादातर करण जौहर से सलाह लेती हूं. वे मेरे लिए पिता समान हैं. मेरे लिए परिवार के सदस्य हैं. मेरे लिए उन की राय बहुत माने रखती है. हां, यदि मैं अपने घर के किसी सदस्य की मदद लेती हूं तो वे हैं मेरी बहन शाहीन. उन से हर विषय पर मेरी खुल कर बात होती है. मेरे मम्मीपापा चाहते हैं कि मैं अपने निर्णय खुद लूं.

‘शानदार’ में आप का किरदार तनाव में खुशी ढूंढ़ लेता है. क्या निजी जिंदगी में भी ऐसा है?

‘शानदार’ की आलिया तनाव के क्षणों में भी खुशी ढूंढ़ लेती है, लेकिन मैं निजी जिंदगी में बहुत टैंशन लेती हूं, बहुत तनाव में रहती हूं. जबकि यह जानती हूं कि तनाव में रह कर काम करने से काम बिगड़ता है. यह भी अच्छी तरह जानती हूं कि इनसान को तनाव लेने के बजाय खुशीखुशी जिंदगी जीनी चाहिए.

लोगों की राय है कि संगीत सुनने से भी तनाव दूर होता है?

बात सही है. मगर मेरे साथ उलटा है. ज्यादा संगीत सुनने से मेरा दिमाग और ज्यादा घूमता है. मैं और ज्यादा तनाव में आ जाती हूं, इसलिए मैं व्यायाम करती हूं.

तो क्या रजनीकांत से कोई बातचीत हुई?

जैसे ही रजनीकांत सर फुटबौल ले कर स्टेज पर पहुंचे, मैं ने उन के चरणस्पर्श कर के उन से आशीर्वाद लिया.

कैरियर को ले कर क्या योजना बनाई है?

मैं योजना नहीं बनाती. योजना बनाने से मामला गड़बड़ हो जाता है. मेरी एक ही सोच है कि मुझे अलग तरह की फिल्में करनी हैं. ‘शानदार’ के बाद लोग ‘उड़ता पंजाब’ में मुझे एकदम अलग किरदार में देखेंगे, तो ‘मिस्टर कपूर ऐंड संस’ में दर्शक मुझे अलग रूप में देखेंगे. इस के अलावा एक फिल्म ‘शुद्धि’ कर रही हूं. यह भी अलग है.

करीना कपूर आप को ‘लंबी रेस का घोड़ा’ मानती हैं?

वे प्रतिभाशाली कलाकार हैं. मैं उन की फैन हूं. वे देश की सुपरस्टार हैं. यदि वे मेरे अभिनय को ले कर इस तरह की बातें करती हैं, तो यह मेरे लिए गर्व की बात है. वे मुझ से हमेशा गर्मजोशी से मिलती हैं.

इन दिनों आप अनुष्का रंजन की बड़ी तारीफ करती नजर आती हैं?

अनुष्का रंजन के परिवार से हमारे पारिवारिक सबंध हैं. उन की छोटी बहन मेरी बचपन की दोस्त है. आप यह समझ लीजिए कि जब मैं 3 साल की थी, तब से मेरी उस से दोस्ती है. हम सब के लिए यह गर्व की बात है कि हमारे ही परिवार की एक और बेटी यानी अनुष्का रंजन फिल्म ‘वैडिंग पुलाव’ से फिल्मों में कदम रख रही हैं. उन्होंने इस फिल्म में बहुत अच्छा काम किया है. मेरी राय में वे फिल्मों के लिए ही बनी हैं. वे खूबसूरत हैं, उन की कदकाठी भी बहुत अच्छी है. मैं तो उन की हंसी की कायल हूं.

कहा जा रहा है कि आप ने करण जौहर कैंप में करीना कपूर की जगह ले ली है?

इस तरह की बातें किसी को नहीं करनी चाहिए. कोई किसी का स्थान नहीं ले सकता. करण जौहर की प्रोडक्शन कंपनी की फिल्में मुझे औफर होती हैं. मुझे स्क्रिप्ट और किरदार पसंद आता है, तो मैं कर लेती हूं. यदि स्क्रिप्ट पसंद नहीं आती, तो मैं मना भी कर सकती हूं. यह एक अलग बात है कि अब तक मेरी पसंद की फिल्में ही उन्होंने मुझे औफर की हैं.

इन दिनों वूमन ऐंपावरमैंट की बड़ी चर्चा हो रही है. आप क्या सोचती हैं?

मैं वूमन ऐंपावरमैंट को ले कर बहुत बातें करती हूं. मेरी राय में पुरुषऔरत एकसमान हैं. इस पर मैं ने कई स्कूलों में जा कर अपने विचार भी रखे हैं. हम सिर्फ वूमन ऐंपावरमैंट की बात करें, पर औरतों को कुछ न दें, यह गलत है. वास्तव में हमारी सोच में बहुत गड़बड़ी है. इनसानी सोच को बदलने की जरूरत है. पर लोगों की सोच बदलने में समय लगेगा. इसलिए मैं निराश नहीं हूं, प्रयासरत हूं. मेरी राय में हमारे देश में शिक्षा की बड़ी कमी है. हर इनसान शिक्षित हो जाए, तभी समाज में बदलाव आएगा, तभी लोगों की सोच बदलेगी.

बौलीवुड में हीरोहीरोइन की पारिश्रमिक राशि में बड़ा अंतर है?

यह गलत है. हीरो और हीरोइन की पारिश्रमिक राशि में अंतर नहीं होना चाहिए. स्थापित कलाकार और नए कलाकार की पारिश्रमिक राशि में अंतर होना चाहिए. मगर एक ही स्तर के कलाकारों की पारिश्रमिक राशि में अंतर नहीं होना चाहिए

ट्रैजेडी से ही कौमेडी निकलती है : जैमी लीवर

मुंबई के अंधेरी क्षेत्र के पौश इलाके लोखंडवाला में रहती हैं 26 वर्षीय स्टैंडअप कौमेडियन जैमी लीवर, जो मशहूर कौमेडियन जौनी लीवर की बेटी हैं. इन के फ्लैट की दीवारों पर चार्ली चैपलिन की विभिन्न मुद्राओं की कई आकृतियां बनी हैं जो पहचान हैं कौमेडियन के घर की. जैमी लीवर से बातचीत के दौरान पता चला कि ऐसी आकृतियों के शौकीन उन के पिता जौनी लीवर हैं. जब उन्होंने घर खरीदा था तो अपनी पत्नी से साफ कह दिया था कि घर के अंदर के इंटीरियर की जिम्मेदारी उस की है और बाहर के इंटीरियर की उन की खुद की. जैमी से बात करते समय इस बात का साफ एहसास हो रहा था कि वे कौमेडियन की बेटी हैं. उन का कौमेडी करने का ढंग बहुत हद तक अपने पिता से मिलता है. वे कहती हैं कि उन्होंने कौमेडी के क्षेत्र में आ कर ठीक ही किया. अगर किसी और क्षेत्र में जातीं तो शायद सफल न होतीं.

ऐसे हुई शुरुआत

वे अपने अतीत को याद करते हुए कहती हैं कि बचपन में जब भी कोई कार्यक्रम होता तो लोग उन्हें आगे कर देते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास होता कि ये जौनी लीवर की बेटी हैं, कुछ अवश्य कर लेंगी. इसी विश्वास से वे कौमेडी करती गईं. और जहां भी कौमेडी की, वहां हमेशा जीत भी जाती थीं. लेकिन तब सोचा नहीं था कि कौमेडी में ही कैरियर बनाना है. जैमी के मातापिता की चाहत थी कि वे पढ़ाई पूरी करें क्योंकि उन के पिता के पास शिक्षा नहीं थी. अत: जैमी ने मार्केटिंग में पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद लंदन में जौब भी की. पर उस में उन्हें खुशी और शांति नहीं मिल रही थी.उसी दौरान लंदन में थिएटर में काम करने का मौका मिला. वहां पर जैमी अंगरेजी में कौमेडी करती थीं. जैमी बताती हैं कि एक बार उन के पिता शो के लिए यूके आए तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि वे स्टैंडअप कौमेडियन बनना चाहती हैं.

बेटी जैमी की बात सुन कर उन्होंने कहा कि मैं यहां शो कर रहा हूं. उस में मैं तुम्हें 10 मिनट देता हूं. अगर तुम ने प्रूव कर दिया तो तुम जो चाहती हो वही होगा. 10 मिनट जैमी के लिए काफी थे. सब को उन की कौमडी पसंद आई. इस तरह वे कौमेडियन बन गईं. जैमी ने 18 वर्ष की उम्र में पहला कौमेडी शो भारत में किया, फिर लंदन चली गईं. 23 वर्ष की उम्र में लंदन में पहली परफौर्मैंस दी. जैमी के चाचा जिमी मोजेस भी कौमेडियन हैं और जैमी और उन के भाई की इस क्षेत्र में आने में इन्होंने काफी मदद की है. जैमी को हमेशा मनोरंजक परफौर्मैंस करना अच्छा लगता है. अपने पिता के साथ बिताए हर पल को याद करती हुई वे कहती हैं कि अपने पिता की मेहनत को उन्होंने करीब से देखा है. वे रातदिन शूटिंग करते थे. आज भी वे वैसी ही मेहनत करते हैं. वे उसी लगन से कंप्यूटर, फेसबुक पर भी काम करते हैं और हमेशा किताबें पढ़ते हैं. यानी अपनेआप को अपडेट करते हैं. उन के इस परफैक्शन को जैमी अपने जीवन में उतारना चाहती हैं.

मुंबई में काम की तलाश

लंदन से मुंबई आ कर काम करना जैमी के लिए आसान नहीं था. जौनी लीवर ने अपना रास्ता खुद ही तय किया है और वैसी ही उम्मीद वे अपनी बेटी से भी रखते हैं. पहले जैमी ने इंग्लिश में कौमेडी की, जिस में ज्यादातर मिमिक्री हुआ करती थी. इस के बाद कई प्रोडक्शन हाउस में औडिशन दे कर उन्हें ‘कौमेडी सर्कस के महाबली’ में काम करने का मौका मिला. इस के अलावा कई अवार्ड शो में भी ऐंकरिंग की. इसी तरह काम आगे बढ़ा और निर्देशक अब्बास मस्तान ने उन्हें अपनी फिल्म ‘किसकिस को प्यार करूं’ में लिया. रोल छोटा था, पर सब को पसंद आया. इस फिल्म में जैमी ने हाई सोसाइटी की मुंहफट बाई की भूमिका निभाई है. जैमी अपनी कौमेडी में फूहड़ शब्दों का प्रयोग नहीं करतीं. मिमिक्री अधिकतर करीना कपूर, आशा भोसले, हेमा मालिनी, मलाइका अरोड़ा खान, मिथुन चक्रवर्ती, करण जौहर आदि की करती हैं.

व्यंग्य करते समय कोई आहत न हो, इस बात का आप कितना ध्यान रखती हैं? इस प्रश्न के उत्तर में जैमी हंसती हुई कहती हैं, ‘‘इस बात का मैं पूरा ध्यान रखती हूं, आशाजी मेरी पसंदीदा गायिका हैं. वे जिस तरह अपने होंठों को निकाल कर बातें करती हैं, गाना गाती हैं, बस उसी की नकल करती हूं. वे खुद भी मेरी कौमेडी देख कर हंसती हैं. मैं ने 8 साल की उम्र से शास्त्रीय संगीत भी सीखा है. उसे कौमेडी में भी प्रयोग करती हूं. स्टैंडअप कौमेडियन का कोई गैटअप नहीं होता. चेहरा और बातें करने का ढंग ही व्यक्ति को किसी और दुनिया में ले जाता है.‘‘मैं ने दीपिका पादुकोण के डायलौग की भी मिमिक्री की है. अपनेआप को अपडेट करने के लिए मैं पूरे विश्व की स्टडी करती हूं, किताबें पढ़ती हूं, वीडियो देखती हूं. फिर अपने लिए जोक्स बनाती हूं.’’

पिता के कौमेडियन होने की वजह से जैमी पर काफी प्रैशर रहता है, हर कोई उन से उस दर्जे की कौमेडी की अपेक्षा रखता है. वे कहती हैं, ‘‘माना कि लोगों की अपेक्षा का मुझ पर प्रैशर रहता है, पर मैं अपनी अलग पहचान कौमेडियन के रूप में बनाना चाहती हूं. बाहर वालों से अधिक घर वालों का प्रैशर रहता है. द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग न हो, ऐसी कौमेडी हो कि पूरा परिवार साथ बैठ कर आनंद उठा सके, इन सब का ध्यान रखना पड़ता है. मेरी मां हमेशा कहती हैं कि एक अच्छा परफौर्मर बनने के लिए एक अच्छा इनसान बनना आवश्यक है.’’ थोड़ी देर रुकने के बाद जैमी कहती हैं, ‘‘पहले मेरा नाम जैमी जानुमाला था. मैं उसी नाम को रखना चाहती थी. मैं लीवर जोड़ना नहीं चाहती थी. लेकिन मुंबई आने के बाद लोगों ने लीवर को जोड़ दिया. अब तो मुझ पर उन की कौमेडी की भी छाप दिखने लगी है.’’

भूली नहीं पिता का संघर्ष

जैमी को अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा. पिता के नाम का जुड़ना भी अच्छा रहा. लेकिन उन्हें हमेशा अच्छी परफौर्मैंस के लिए तैयार रहना पड़ता है. यह अच्छी बात है कि वे दर्शकों की उम्मीद के अनुरूप काम कर पा रही हैं, क्योंकि उन के पिता ने काफी संघर्ष के बाद कामयाबी हासिल की है. पिता के गुजरे दिनों के संघर्ष के बारे में जैमी बताती हैं, ‘‘मेरे पिता 6 भाईबहनों में सब से बड़े हैं. मेरे दादाजी हिंदुस्तान लीवर में ‘लेबरर’ थे. ऐसे में मेरे पिता ने 14 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था. पूरे परिवार को उन्होंने संभाला है. उन्होंने पेन और खाना तक बेचा है. पेन बेचते समय वे अभिनेताओं की आवाजें निकालते थे. खासतौर से उस समय के हीरो अशोक कुमार की आवाज की मिमिक्री करते थे. इस तरह उन का टैलैंट बाहर आता था. मैं अपने पिता के नाम को आगे ले जाना चाहती हूं.’’ जैमी आगे स्टैंडअप कौमेडी के साथसाथ अभिनय करने की भी इच्छा रखती हैं. उन की सीरियस अभिनय करने की ख्वाहिश है, जो उन के लिए चुनौती होगी. रोहित शेट्टी, अनीस बजमी, शाहरुख खान, इम्त्याज अली आदि सभी के साथ वे काम करना चाहती हैं. अभी वे अपने पिता के साथ भी शो करती हैं.

कौमेडी करने के अलावा जैमी डांस भी सीखती हैं. गिटार बजाती हैं. उन्हें अच्छा खाना पसंद है, जिस की वजह से कई बार वजन बढ़ जाता है. वे अपने मोटापे से नहीं, बल्कि अपने जोक्स से लोगों को हंसाना चाहती हैं. वे कहती हैं कि हंसना जरूरी है. लोग पार्क में जा कर, लाफ्टर क्लब में जा कर हंसते हैं, जो सेहत के लिए अच्छा होता है. हंसना तनाव कम करता है. दरअसल, ट्रैजेडी से ही कौमेडी निकलती है

पूजा और अभय की जोड़ी

‘फालतू’ और ‘गो गोआ गौन’ की अभिनेत्री पूजा गुप्ता को आज भी एक हिट फिल्म की तलाश है. फिल्म ‘शौर्टकट रोमियो’ में नील नितिन मुकेश के साथ हौट सींस के कारण चर्चा में आईं पूजा अभय देओल के साथ फिल्म ‘स्नाफु’ में आ रही हैं. यह निर्देशक सेथु श्रीराम की एक थ्रिलर फिल्म है जिस में अभय का एक अलग ही अंदाज देखने को मिलेगा. पूजा इस फिल्म में आनिया के किरदार में हैं जो एक छोटे से कसबे से बड़े शहर में अपने बड़बड़े सपनों को पूरा करने के लिए आती है. पूजा इस फिल्म से बहुत उत्साहित हैं. उन्हें लगता है कि अच्छे कलाकारों के साथ काम कर के शायद कैरियर की गाड़ी आगे चल पड़े.

मैं सैल्फमेड वूमन हूं

ऐश्वर्या राय बच्चन ने 4 साल के गैप के बाद फिल्म ‘जज्बा’ से फिर बौलीवुड में ऐंट्री की. यहां पेश हैं, पिछले दिनों उन से हुई बातचीत के खास अंश:

इतने साल फिल्मों से दूरी बनाए रखने की वजह?

मैं ने कोई दूरी नहीं बना रखी थी. बेटी की परवरिश के साथसाथ मैं विज्ञापन, ऐंडोर्समैंट व स्टेज शो करती रही. ‘जज्बा’ मेरी 4 साल बाद की पहली फिल्म है यह भी पता नहीं था, क्योंकि इस के पहले मैं ने मणिरत्नम की एक फिल्म साइन की थी, जिस की शुरुआत लेट हो गई. इसी बीच निर्देशक संजय गुप्ता ‘जज्बा’ फिल्म को ले कर मेरे पास आए. इस की कहानी ने मुझे ऐक्साइट किया, क्योंकि महिला को ले कर थ्रिलर फिल्में कम बनती हैं. फिर इस में यह संदेश भी था कि महिला शारीरिक रूप से कमजोर हो सकती है, पर दिल से स्ट्रौंग होती है. ये बातें जब इस फिल्म में दिखीं तो मैं ने हां कर दी और फिल्म बन कर रिलीज भी हो गई.

मैं शुरू से सैल्फमेड वूमन रही हूं. सारे काम खुद करती हूं. आराध्या के जन्म के बाद जब भी मैं ने काम किया, वह हमेशा मेरे आसपास रही. फिल्म ‘जज्बा’ की शूटिंग के दौरान भी वह मेरे साथ होती थी. लोग मुझ पर इस फिल्म के साथ कमबैक का टैग लगाते हैं, पर ऐसा है नहीं. दरअसल, मैं ने सोचा था कि आराध्या 6 महीने की होगी, तो फिल्म करूंगी. फिर उस के दांत निकलने का समय आया तो उस का साथ दिया. 1 साल बाद चलने लगी तो वह भी आकर्षक था. डेढ़ साल बाद उस की तोतली बोली शुरू हुई. मैं उसे मेड के पास नहीं रखना चाहती थी. उस के बड़े होने तक हर फेज को मैं ऐंजौय करती रही और अब वह 4 साल की होने वाली है.

आप एक प्राइवेट पर्सन हैं. इस में कितनी सचाई है?

मैं सोशल मीडिया पर ऐक्टिव नहीं, इसलिए कई बार अभिषेक के ट्विटर पर जा कर चाहने वालों को थैंक्स कह देती हूं. पर मैं प्राइवेट पर्सन नहीं. हां, यह जरूर है कि मैं काम के हिसाब से ही मीडिया से बातचीत करती हूं. मुझे काम और परिवार दोनों में तालमेल रखना पड़ता है. वैसे भी एक मां के लिए हर दिन नया होता है और हर दिन उस के पास बच्चे के लिए नया कमिटमैंट होता है.

गृहस्थी कैसी चल रही है?

अच्छी चल रही है. बच्चन परिवार की बहू हूं, इस से अच्छी बात और क्या होगी. मैं वर्कहौलिक हूं. बिना काम के नहीं रह सकती..

कम हो रही हीरे की चमक

हीरा होता तो हमेशा के लिए है पर फिलहाल उस की बाजार की चमक कम हो रही है. दुनिया भर में या तो ठंडे पड़ते व्यापारों या ग्राहकों की पसंद बदलने के कारण हीरे की मांग कम होने लगी है और खानों की मालिक कंपनियां डीबीयर्स, अलरोजा, रियोटिंटो आदि चीन, लेटिन अमेरिका और पश्चिमी एशिया में धुआंधार प्रचार की तैयारी कर रही हैं ताकि इस बाजार में चमक लाई जा सके. भारत को इस से बहुत फर्क पड़ता है, क्योंकि दुनिया में बिना तराशे निकाले गए 15 में से 14 हीरे भारत ला कर काटे जाते हैं और फिर इन का निर्यात होता है. इस साल के 6 माहों में ही निर्यात 17% घट गया है.

हीरे के व्यापारी अब रूस और दक्षिण अफ्रीका, जहां हीरे की खानें ज्यादा हैं, से मांग कर रहे हैं कि हीरा बेल्जियम के ऐंटवर्प में पहले न जा कर सीधे भारत ले जाया जाए और फिर तराशने के बाद इस को भेजा जाए ताकि लागत कम हो. अगर हीरे की लागत कम होगी तो बहुत से दिलों को जीतने के लिए आसानी हो जाएगी, क्योंकि भारतीयों में अब सोने से ज्यादा हीरे की कीमत होने लगी है चाहे उस की जरूरत के समय बिक्री बहुत संतोषजनक न हो. सोना तो गरीब लोग पहनते हैं. अमीरों की शान तो हीरे ही हैं और वे भी बड़े, कईकई कैरेटों के. सस्ता हीरा औरतों के लिए नएनए तरीके से हीरे के उपयोग का रास्ता खोलेगा. आज उस की मांग सिर्फ औरतों में है और कोई कारण नहीं कि यह प्रचार कर के आदमियों को भी पहना न दिया जाए. पहले राजा इसे अपने मुकुटों में लगवाया करते थे और अमीर अपने कुरतों के बटनों में. हीरा सस्ता हुआ तो इस का फैशन फिर लौट सकता है.

धर्मों की वकालत कर रहे नेता

देश के नेता आज भी 18वीं सदी में जीते नजर आ रहे हैं, जो औरतों को परदों या बुरकों में आदमियों से अलग रखना चाहते हैं. ऐसा नहीं है कि 18वीं सदी की औरतें सुरक्षित थीं. उस समय औरतों को उठाना, घरेलू वातावरण में बलात्कार करना, बच्चियों का व्यापार, औरतों पर जुल्म व देहव्यापार जोरों पर था और परदे और बुरके को फाड़ कर औरतों की इज्जत लूटने वालों की कमी नहीं थी. हां, तब एक चीज कम थी और वह थी औरतों की बदसुलूकी की शिकायतें, क्योंकि 5 साल की बच्ची से ले कर 55 साल तक की औरत हर तरह की बदसुलूकी के बाद अपना मुंह बंद रखती थी और या तो कड़वा घूंट पी जाती थी या आत्महत्या कर लेती थी. उस समय के चकले ऐसी औरतों से भरे होते थे, जो पीडि़त होने के बावजूद घरों से निकाल दी जाती थीं या भाग जाती थीं.

अब भी उन का जमाना खत्म नहीं हुआ है जो 18वीं सदी से पहले के जमाने को स्वर्ण युग मानते थे. केरल के शिक्षा मंत्री पी.के. अब्दू राव ने कहा है कि कालेजों में लड़केलड़कियों को एक ही बैंच पर नहीं बैठना चाहिए ताकि उन में बातचीत न हो जो दोस्ती, प्रेम या कई बार विवाद का कारण बन जाती है. अब्दू राव शायद फिर कहेंगे कि औरतों और आदमियों को एक सीट पर बस या ट्रेन में भी नहीं बैठना चाहिए और सुरक्षा दिलानी है तो पटरी पर साथ चलने पर भी पाबंदी लगा दी जाए. यही क्यों औरतों को घर से ही नहीं निकलने दिया जाए. उन्हें उन मुरगियों की तरह क्यों न रखा जाए जो पोल्ट्री फार्म में सिर्फ अंडे, बच्चे देने के लिए पाली जाती हैं. अब्दू राव आदमियों की खराब नीयत के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि वे उन धर्मों की वकालत कर रहे हैं जो आदमी को छुट्टा सांड़ बना कर मनमानी करने देते हैं और औरतों को गुलामी का जीवन जीने को मजबूर करते हैं. और कहते हैं कि यह तो ईश्वरअल्ला का हुक्म है. अब्दू राव जैसे लोग शिक्षा मंत्री हों, इस से ज्यादा त्रासदी की बात क्या हो सकती है? शिक्षा मंत्री यदि खुद पढ़ाई का दुरुपयोग कर के पीडि़त के दुख को न समझ कर अपराधी को संरक्षण देंगे तो यही होगा जो देश में चारों ओर हो रहा है.अपराध तो होंगे, यह हर कोई मान कर चलता है, पर देश की धर्म सत्ता इन अपराधियों को अभयदान देगी और सताई गई औरतों को गुनहगार मानेगी, इस से ज्यादा दुखद बात क्या हो सकती है?

दाल ने किया सरकार को बेहाल

नरेंद्र मोदी के लिए केवल उस खिचड़ी की परेशानी ही नहीं है, जो भारतीय जनता पार्टी के बूढ़े बावर्चियों के बगावत के भगौने में पक रही है, उन की सरकार की परेशानी दाल की भी है जिस के दामों के गिरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे. रबी की फसल की बोआई में भारी कमी हो गई है और बारिश की कमी की वजह से पानी रे पानी अब भाजपा सरकार को भी चिल्लाना पड़ रहा है. दालों की बोआई का इलाका जो कर्नाटक और महाराष्ट्र में पड़ता है सिकुड़ गया है और उत्तर भारत में जहां चना बोया जाता है, मानसून के जल्दी चले जाने के कारण सूखा रह गया है.

कुल मिला कर यह समझ लीजिए कि दाल में अब कंकर ही दिखेंगे और न केवल भारतीय जनता पार्टी की सरकारों को बल्कि दूसरी पार्टियों की राज्य सरकारों को भी दांत बचा कर रखने होंगे. खाने में प्रोटीन के मुख्य स्रोत पर तो कुदरत का कहर पड़ रहा है और दूसरे स्रोत मीट पर भगवा झंडेधारियों का, जो मीट खाने को वोटों में बदलने की खातिर सिर फोड़ने में लगे हैं. दोनों मामले सरकार के लिए आफत साबित होंगे पक्का है, क्योंकि पार्टियां जब चुनाव लड़ती हैं तो पिछली सरकार को महंगाई के लिए कोसती हैं पर अगर सत्ता उन के हाथ में आ जाए तो उन्हें पता चलता है कि महंगाई के लिए कुशासन नहीं और बहुत सी चीजें जिम्मेदार हैं. दालों की महंगाई के कारण बिहार में ‘हरहर मोदी’ ‘अरहर मोदी’ बन कर इस बुरी तरह हारे कि उन का चेहरा लटक गया है. और चाहे लंदन जा कर वे बड़ीबड़ी बातें कर आए हों, देश में उन की दाल गलने वाली नहीं है यह लग रहा है. पहले उन्हें दल की दाल में से कंकरों को चबाना पड़ेगा और फिर जनता को दाल के भाव का अर्थशास्त्र समझाना होगा. काश योगासनों में दालासन भी होता जिस से पार्टी के बुजुर्गों को भी और जनता को भी दाल की जगह दाल के पानी को पी कर काम चलाने के लिए तैयार करा जा सकता.

यहां तो ‘तू दालदाल मैं पानीपानी’ का किस्सा सुनना पड़ रहा है और अरुण जेटली, मोदी के वित्त मंत्री बस यही कह पा रहे हैं कि डल होने की जरूरत नहीं, दाल का रंग निखरेगा और डौले बनेंगे, बिना बीफ (गौमांस) के. पर दिक्कत है कि घरघर जा कर कौन समझाए कि देश के विकास के लिए दाल नहीं दाल का पानी पीना पड़े तो घबराना नहीं. आज भूखे रहो कल जरूर अच्छे तड़के वाली दाल मिलेगी. शास्त्रों में लिखा है, ग्रहों की गिनती सुधर रही है, मंगल काबू में है. मोदीजी विदेशों के दौरे इसीलिए लगा रहे हैं कि दालंकवादी गतिविधियों को रोकने में दूसरे देश भारत का साथ दें ताकि बदले में अरबोंखरबों का प्रौफिट अपनी कंपनियों से ले जाएं.

साजसंभाल गरम परिधानों की

महंगाई के इस दौर में ऊनी व अन्य गरम परिधान बारबार खरीदना संभव नहीं होता है. ऐसे में अपने पुराने ऊनी व अन्य गरम परिधानों की सलीके से साजसंभाल कर उन्हें ही पहनने के काम में लाया जा सकता है. प्रस्तुत हैं, सर्दी के मौसम में गरम परिधानों की साजसंभाल के कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव:

  1. रुई की रजाई में प्राकृतिक गरमाहट पैदा करने के लिए उसे दिन में 2-3 घंटे धूप में रखें.
  2. हिना या इत्र का उपयोग रजाई में भी किया जा सकता है. रुई की पिनाई करते समय इसे रुई में डलवाने से रजाई में अधिक गरमाहट रहती है.
  3. नई रजाई व तकिए भरवाते समय थोड़ा सा कपूर डाल दिया जाए तो खटमल पास नहीं फटकेंगे.
  4. हिना, शमामा और मुश्कीना नामक इत्रों की तासीर गरम होती है. अत: इन्हें ऊनी वस्त्रों पर लगाने से शरीर को गरमी मिलती है.
  5. ऊनी कपड़ों को वूलमार्क द्वारा सुझाए गए डिटर्जैंट से ही धोएं. यदि गरम कपड़े में सिलवटें पड़ जाएं तो स्टीम बाथरूम में रखें.
  6. ऊनी कपड़ों को प्रैस करने के लिए स्टीम आयरन प्रयोग में लें.
  7. गरम कपड़ों को पहनने से पहले ड्राईक्लीन करा लें अन्यथा वे मैल से कटफट सकते हैं.
  8. गीले या नमी वाले गरम परिधानों पर प्रैस न करें. ऐसा करने से उन की चमक फीकी पड़ सकती है. इन्हें हैंगर पर लटकाने के बजाय तह लगा कर रखें.
  9. गरम कपड़े को ब्लीच न करें वरना रंग उड़ सकता है.
  10. ऊनी वस्त्रों को सुखाते समय आस्तीनों का जरूर ध्यान रखें वरना वे लटक कर ढीली हो जाएंगी.
  11. ऊनी वस्त्रों को उलटा कर के धोएं और सुखाएं.
  12. नमी वाले स्थान में गरम कपड़ों को कभी न रखें वरना वे खराब हो सकते हैं.
  13. ऊन के बुने हुए स्वैटरों को हाथ से धो सकती हैं. लेकिन सिले ऊनी कपड़ों को ड्राईक्लीन ही कराएं.
  14. ऊनी कपड़ों को मोटे तौलिए में लपेट कर उन का गीलापन कम कर फिर सीधा फैला दें.
  15. अगर आप के गरम कपड़े पर कौफी गिर जाए और निशान छोड़ दे, तो आप अलकोहल और सफेद सिरका बराबर मात्रा में मिला कर दाग वाली जगह को उस में डुबोएं. फिर दाग वाली जगह को हलका सा मसल कर साफ कपड़े से पोंछ लें. दाग गायब हो .
  16. यदि गरम कपड़े पर घी, सौस या ग्रीस का दाग लग जाए तो उसे चम्मच से खुरच दें. इस के बाद कपड़े को ड्राईक्लीन फ्ल्यूड में भिगो कर हलकाहलका रगड़ें. दाग गायब हो जाएगा.
  17. अंडे, दूध या स्याही ने ऊनी परिधान को खराब कर दिया है, तो व्हाइट स्प्रिट में एक कपड़ा भिगो कर निशान को रब करें. फिर सफेद सिरका लगा कर धो लें.
  18. अगर आप के गरम कपड़े पर अलकोहल गिर जाए तो उसे फौरन साफ कपड़े से पोंछ कर गरम पानी और सर्जिकल स्प्रिट से धोएं. अलकोहल उतर जाएगी.  

– अर्चना सोगानी

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