देश के नेता आज भी 18वीं सदी में जीते नजर आ रहे हैं, जो औरतों को परदों या बुरकों में आदमियों से अलग रखना चाहते हैं. ऐसा नहीं है कि 18वीं सदी की औरतें सुरक्षित थीं. उस समय औरतों को उठाना, घरेलू वातावरण में बलात्कार करना, बच्चियों का व्यापार, औरतों पर जुल्म व देहव्यापार जोरों पर था और परदे और बुरके को फाड़ कर औरतों की इज्जत लूटने वालों की कमी नहीं थी. हां, तब एक चीज कम थी और वह थी औरतों की बदसुलूकी की शिकायतें, क्योंकि 5 साल की बच्ची से ले कर 55 साल तक की औरत हर तरह की बदसुलूकी के बाद अपना मुंह बंद रखती थी और या तो कड़वा घूंट पी जाती थी या आत्महत्या कर लेती थी. उस समय के चकले ऐसी औरतों से भरे होते थे, जो पीडि़त होने के बावजूद घरों से निकाल दी जाती थीं या भाग जाती थीं.

अब भी उन का जमाना खत्म नहीं हुआ है जो 18वीं सदी से पहले के जमाने को स्वर्ण युग मानते थे. केरल के शिक्षा मंत्री पी.के. अब्दू राव ने कहा है कि कालेजों में लड़केलड़कियों को एक ही बैंच पर नहीं बैठना चाहिए ताकि उन में बातचीत न हो जो दोस्ती, प्रेम या कई बार विवाद का कारण बन जाती है. अब्दू राव शायद फिर कहेंगे कि औरतों और आदमियों को एक सीट पर बस या ट्रेन में भी नहीं बैठना चाहिए और सुरक्षा दिलानी है तो पटरी पर साथ चलने पर भी पाबंदी लगा दी जाए. यही क्यों औरतों को घर से ही नहीं निकलने दिया जाए. उन्हें उन मुरगियों की तरह क्यों न रखा जाए जो पोल्ट्री फार्म में सिर्फ अंडे, बच्चे देने के लिए पाली जाती हैं. अब्दू राव आदमियों की खराब नीयत के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि वे उन धर्मों की वकालत कर रहे हैं जो आदमी को छुट्टा सांड़ बना कर मनमानी करने देते हैं और औरतों को गुलामी का जीवन जीने को मजबूर करते हैं. और कहते हैं कि यह तो ईश्वरअल्ला का हुक्म है. अब्दू राव जैसे लोग शिक्षा मंत्री हों, इस से ज्यादा त्रासदी की बात क्या हो सकती है? शिक्षा मंत्री यदि खुद पढ़ाई का दुरुपयोग कर के पीडि़त के दुख को न समझ कर अपराधी को संरक्षण देंगे तो यही होगा जो देश में चारों ओर हो रहा है.अपराध तो होंगे, यह हर कोई मान कर चलता है, पर देश की धर्म सत्ता इन अपराधियों को अभयदान देगी और सताई गई औरतों को गुनहगार मानेगी, इस से ज्यादा दुखद बात क्या हो सकती है?

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