फैस्टिव सीजन में एथनिक फैशन के रंग, ब्राइट कलर्स के साथ पाएं आकर्षक लुक

ब्याह हो या तीज-त्यौहार अथवा और कोई खास अवसर भारतीय घरों में खरीदारी भी खास हो जाती है. हर महिला चाहती है कि वह त्योहारों के अवसर पर सब से अलग और खास दिखे. सब की प्रशंसाभरी नजरें उस की तरफ उठें. मगर इस ऐक्साइटमैंट में यह न भूलें कि त्योहार के दौरान अच्छा दिखने के साथसाथ कंफर्ट का खयाल रखना भी जरूरी है. कपड़े ऐसे हों कि आप आसानी से सारी भागदौड़ कर सकें, रीतिरिवाज निभा सकें और गौर्जियस लुक के साथ परफैक्ट फैस्टिव दीवा भी लगें.

ऐसे में इंडियन एथनिक कपड़ों को पहनने का जो आनंद आता है वह शायद ही किसी और ड्रैस को पहन कर आता हो. तो इस फैस्टिव सीजन क्यों न हर रस्म को ऐथनिक फैशन के साथ सैलिब्रेट किया जाए.

इस संदर्भ में डिजाइनर शिल्पी गुप्ता कहती हैं कि इन दिनों बहुत सारे ऐथनिक फैशन उपलब्ध हैं. ऐथनिक वियर की कईर् उपशैलियां भी उपलब्ध हैं जैसेकि गुजराती ऐथनिक वियर, राजपूताना ऐथनिक वियर, पंजाबी ऐथनिक वियर, मराठी ऐथनिक वियर, इसलामिक ऐथनिक वियर आदि.

इन टिप्स को अपना कर आप त्योहार में ऐथनिक लुक में भी परफैक्ट लग सकती हैं:

मिनिमम लुक

फैस्टिवल के दौरान हम मेहमानों का अभिवादन करने में थोड़ा व्यस्त हो जाते हैं. ऐसे में भारी काम वाले कपड़े थका देने वाले साबित हो सकते हैं. अत: हलकी प्रिंटेड साड़ी स्टेटमैंट प्रिंटेड श्रग के साथ अच्छा विकल्प है. यह ड्रैस आप को ऐथनिक के साथसाथ मौडर्न लुक भी देगी.

शाइनिंग सिल्क

सिल्क में आप कोई भी ऐथनिक ड्रैस पहनती हों तो वह खूबसूरत लगती है. हाल के दिनों में डिजाइनरों, मशहूर हस्तियों और कई अन्य लोगों ने रेशम के कपड़ों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है. बनारसी या डाउन साउथ शैली ने फैशन की दुनिया में अलग जगह बनाई है. आप रेशमी ब्लाउज, घाघरा या साड़ी में अपना ऐथनिक अवतार ट्राई कर सकती हैं.

अनारकली और चूड़ीदार के क्लासिक कौंबो

ड्रामा और ग्लैमर, अनारकली सूट के लिए 2 शब्द हैं. इन्हें चूड़ीदार के साथ पहना जाता है. चाहे कढ़ाई हो या जरी का काम किया गया हो अथवा किसी अन्य पैटर्न में भारतीय ऐथनिक वियर की यह शैली विकल्प के रूप में नंबर-1 पर है.

टै्रडिशनल विद मौडर्न लुक

बौलीवुड स्टार अपनी ट्रैडिशनल विद मौडर्न लुक की ऐथनिक पोशाक से सब को आकर्षित करती हैं. साड़ी, लहंगा या सूट सभी पोशाकों में थोड़ा सा मौडर्न लुक इस्तेमाल कर आप ऐथनिक में भी सब से अलग लग सकती हैं.

शौपक्लूज की रितिका तनेजा, हैड, कैटेगरी मैनेजमैंट, मानती हैं कि भारत सैकड़ों भाषाओं, संस्कृतियों, व्यंजनों और त्योहारों वाला देश है. सालभर देश के किसी न किसी हिस्से में कोई खास त्योहार मनाया जाता है, लेकिन खास फैस्टिव सीजन हर साल के अंत में शुरू होता है. इस समय महिलाओं के लिए ऐसी ड्रैसेज खरीदना काफी बड़ा काम होता है, जिन में वे खूबसूरत और सब से अलग दिखें.

कुछ टिप्स

अपनाएं इंडोवैस्टर्न फ्यूजन

फैस्टिव सीजन के विभिन्न इवेंट्स में रंग जमाने के लिए इंडोवैस्टर्न फ्यूजन जरूर आजमाएं. इस समय भारतीय लुक पर अधिक और पाश्चात्य लुक पर कम ध्यान दें. यानी आप अपने लुक को सिर्फ हलका वैस्टर्न टच दें. आप अनारकली सूट को हैरम पैंट के साथ पहन सकती हैं या इस के साथ डैनिम वेस्ट जैकेट पहनें.

ब्राइट कलर्स के साथ आकर्षक लुक

इस सीजन डल कलर्स से दूरी बनाएं और ब्राइट कलर जैसे यलो, रैड, पिंक आदि पहनें या इन के साथ मैचिंग करें. यह फैशन का ऐसा सीजन है, जिस में आप कलर्स के साथ भरपूर ऐक्सपैरिमैंट्स कर सकती हैं.

स्टाइलिश स्लिट वाला कुरता

स्लिट वाले कुरते काफी आकर्षक होते हैं. आकर्षक बनने के लिए आप साइड स्लिट, फ्रंट स्लिट और मल्टीपल स्लिट वाले कुरते आजमा सकती हैं. अपने पूरे लुक को ऐक्साइटिंग टच देने के लिए इन्हें आप स्कर्ट, बेल पैंट, प्लाजो या लूज पैंट के साथ आसानी से पहन सकती हैं.

हेमलाइन का उठाएं आनंद

अनइवन, अनमैच्ड और लेयर्ड हेमलाइंस इस सीजन में बहुत लोकप्रिय हैं, क्योंकि ये अधिक कंफर्टेबल और आकर्षक लुक प्रदान करती हैं. आप रफल्स और मल्टीपल लेस वाले कुरतों के विभिन्न स्टाइल आजमा सकती हैं. आप इसे स्लिम पैंट, लूज पैंट या स्कर्ट के साथ भी पहन सकती हैं. यह परिवार और दोस्तों के साथ त्योहार मनाने के लिए अच्छा लुक है.

आकर्षक प्रिंट्स

रैट्रो युग की प्रिंट डिजाइनें बेहद आकर्षक, स्टाइलिश और क्रिएटिव लुक देती हैं. फ्लोरल मोटिफ, ब्लौक प्रिंट्स काफी ट्रैंडी दिखते हैं और ये बाहर खाना खाने, खरीदारी करने जाते समय पहनने के लिए उपयुक्त हैं.

आइए, जानते हैं मोंटे कार्लो की ऐग्जिक्युटिव डाइरैक्टर मोनिका ओसवाल से कि अपने ऐथनिक लुक में परफैक्ट कैसे दिखें:

सही फैब्रिक है सब से अहम

परिधानों का चयन करते समय सब से पहले हमें फैब्रिक पर ध्यान देना चाहिए खासकर ऐथनिक वियर के मामले में फैब्रिक एक एनहांसर का काम करता है और आप के लुक को और निखारता है. कल्पना करें, आप ने एक सिल्क साड़ी पहनी है और उस के साथ एक अच्छा सा ब्रोकेड ब्लाउज है तो कितना अच्छा लगेगा. बात जब ऐथनिक परिधानों की आती है तो सिल्क बैस्ट विकल्प होता है. वैसे भी क्लासिक फैब्रिक जैसेकि सिल्क, लिनेन, कौटन, शिफौन, लेस आदि हमेशा चलन में रहते हैं और इन पर खर्च करना एक इनवैस्टमैंट जैसा होता है.

फिटिंग भी रखती है माने

फैब्रिक के साथ फिटिंग भी माने रखती है, क्योंकि इसी से परिधानों का लुक निखरता है. ढीलेढाले कपड़े चाहे जितने भी अच्छे क्यों न हों कभी खास नहीं लगते हैं. बहुत टाइट कपड़े भी अच्छे नहीं दिखते हैं, क्योंकि ये बेवजह का अटैंशन पाने की चाह में पहने हुए से लगते हैं. ऐसे में आप इन के साथ निप ऐंड टक कर के बड़ी आसानी से और कम समय में कपड़ों की फिटिंग ठीक कर सकती हैं या फिर टेलर से फिटिंग करा कर अपने लुक को परफैक्ट बनाएं.

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लेयरिंग का जलवा

कौन कहता है कि लेयरिंग सिर्फ वैस्टर्न आउटफिट में ही अच्छी लगती है? ऐथनिक वियर में भी लेयरिंग उतनी ही महत्त्वपूर्ण होती है जो ऐलिगैंस बढ़ा देती है. एक सामान्य कुरती के ऊपर अगर आप मल्टी ह्यूड जैकेट पहन लें तो यह खास लुक देगी. साड़ी के ऊपर वैलवेट केप्स पहन कर आप अपने फैशनिस्टा के सपने को साकार कर सकती हैं. यहां तक कि एक साधारण दुपट्टा भी आप के आउटफिट में जान डाल सकता है. इस लेयरिंग को समझदारी से करें और फिर देखें कैसे आप सब के आकर्षण का केंद्र बन जाती हैं.

मिक्स ऐंड मैच

हमें अकसर ऐसा महसूस होता है कि हमारे पास ऐथनिक इवेंट के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं है. ऐसे टाइम पर भी यदि हम अपने वार्डरोब को खंगालें तो पता चलेगा कि उस में ऐसी बहुत सारी चीजें हैं, जिन्हें मिक्स ऐंड मैच कर के हम उस खास मौके के लिए बेहतरीन आउटफिट तैयार कर सकती हैं. चूड़ीदार की जगह प्लाजो ट्राई करें अथवा अपनी लौंग कुरती के साथ शिमरी घाघरा पहन कर अपनी ड्रैस में लाएं एकदम नयापन.

बनाएं यादगार स्टेटमैंट

यह आम धारणा है कि ऐथनिक का मतलब है गहनों से लदा होना. नख से शिख तक गहने ही गहने, जो सही नहीं है. अगर आप दुलहन नहीं हैं तो गहनों को ले कर चूजी रहें. बहुत सारे गहनों की जगह एक स्टेटमैंट पीस का चयन कर सोबर लुक के साथसाथ अट्रैक्टिव भी लगें.

फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा कहती हैं कि पेस्टल शेड्स फिर से ट्रैंड में हैं. युवा महिलाओं में त्योहारों के समय इस कलर का क्रेज दिखता है. मजैंटा या डार्क पिंक भी आजकल फ्यूजन वियर लुक के लिए ट्रैंड में हैं. ये भारतीय महिलाओं में फैस्टिव लुक्स के लिए काफी पौपुलर शेड्स हैं.

फैस्टिव लुक्स के लिए इंडोवैस्टर्न या फ्यूजन वियर भी काफी ट्रैंडिंग हैं. लहंगासाड़ी भी बेहतरीन औप्शन है. इंडोवैस्टर्न कुरती लुक्स भी फैस्टिव चौइस के रूप में काफी लोकप्रिय है. अनारकली ट्रैंड भी बेहतरीन फैस्टिव लुक देता है.

इंडोवैस्टर्न बैल्टेड साड़ी पहन कर भी आप त्योहारों के मौसम में जलवे बिखेर सकती हैं. प्लीटेड स्कर्ट्स के साथ इंडोवैस्टर्न टौप भी एक स्मार्ट चौइस है.

आजकल कुछ महिलाओं ने जोधपुरी पैंट्स के साथ शौर्ट कुरती पहननी शुरू की है, जो उन्हें डिफरैंट लुक देती है. ऐंब्रौयडरी वाली प्लेन चिकन कुरतियां भी फैवरिट फैस्टिव फैशन ट्रैंड है और यह हर उम्र की महिलाओं के द्वारा पसंद किया जाने लगा है.

इस फैस्टिव सीजन के लिए ज्वैलरी ट्रैंड्स

फ्लोरल ज्वैलरी इस सीजन में सब से ज्यादा लोकप्रिय ट्रैंडिंग ज्वैलरी ट्रैंड है. फ्लौवर्स से बने नैकपीसेज और मांगटीका इस सीजन में सब से ज्यादा पहने जा रहे हैं. स्टेटमैंट नैक पीसेज और इयररिंग्स भी फैस्टिव लुक में पसंद किए जा रहे हैं. डायमंड और क्रिस्टल ज्वैलरी मैचिंग इयररिंग्स के साथ भी फैस्टिव सीजन की पहली पसंद है. व्हाइट गोल्ड ज्वैलरी भी ट्रैंड में आ गई है. बहुत सी सैलिब्रिटीज यह ज्वैलरी पहनी दिख जाएंगी.

मल्टीपल कलर्ड पीसेज के बजाय फैस्टिवल्स में सिंगल कलर्ड ज्वैलरी पीसेज ज्यादा अच्छे लगते हैं. फैस्टिवल्स के दौरान हैवी पीस के बजाय लाइट वेट नैक पीस ज्यादा पसंद किए जाते हैं. फैस्टिव ज्वैलरी के लिए ब्यूटीफुल पर्ल्स ट्रैंड में हैं. असली और नकली दोनों तरह के पर्ल्स लिए जाते हैं. हैंड क्राफ्टेड और क्रिएटिव लुकिंग ज्वैलरी भी फैस्टिव सीजन की पहली पसंद है. इंडोवैस्टर्न लुक्स के साथ मैटेलिक या ब्रौंज्ड ज्वैलरी कंप्लीट फैस्टिव लुक देती है. सी शैल्स से बनी ज्वैलरी भी ऐथनिक फैस्टिव ड्रैसेज के साथ परफैक्ट लुक देता है. रंगरीति के सीईओ संजीव अग्रवाल ऐथनिक वियर से जुड़े निम्न टिप्स दे रहे हैं:

पारंपरिक परिधानों को दें नया ट्विस्ट

इस सीजन में पारंपरिकता और आधुनिकता का फ्यूजन टै्रंड में है. आप लंबी मैक्सी ड्रैस के साथ गहरे रंग की धोती पैंट पहन सकती हैं या कुरते के साथ धोती या पैंट मैच कर सकती हैं. आप चाहें तो स्टाइलिश कुरते को फ्लेयर्ड प्लाजो पैंट के साथ भी पहन सकती हैं.

आप स्टाइलिश कुरती और पैंट के साथ पारंपरिक जैकेट भी पहन सकती हैं. गहरे, पेस्टल या मिलेजुले रंगों में अपनी पसंद के रंग चुन सकती हैं. पेस्टल ग्रीन, मिंट ग्रीन, क्रीम, डल पिंक, पाउडर ब्लू जैसे कलर इस सीजन फैशन में हैं, जो फ्रैश और लाइट फीलिंग देते हैं.

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ऐथनिक फैशन

ऐथनिक ड्रैसेज भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं. इन त्योहारों में आप कई रंगों, पैटर्नों और डिजाइनों में ऐथनिक आउटफिट जैसे सलवार सूट, कुरतीप्लाजो, हैवी टुपट्टा, कुरती स्लिम पैंट, कुरतीस्कर्ट जैसे फ्यूजन अपना सकती हैं. अलगअलग रंगों और डिजाइनों के साथ नए प्रयोग भी कर सकती हैं.

कुरता ड्रैस

कुरता ड्रैस आजकल महिलाओं में काफी लोकप्रिय है. टाई ऐंड डाई प्रिंट का शौर्ट कुरता या मैक्सी कुरता जैसे परिधान इन त्योहारों में आप को नया लुक देंगे.

डबल लेयरिंग: लेयरिंग 2019 का नया फैशन कहा जा सकता है. यह पारंपरिक और पश्चिमी दोनों तरह की ड्रैसेज में चल रहा है. फैस्टिवल्स में आरामदायक एहसास पाने के लिए आप अपनी टीशर्ट के साथ नैट या कौटन का स्टाइलिश श्रग पहन सकती हैं. लेयर्स जहां एक ओर आरामदायक और खूबसूरत एहसास देती हैं, वहीं स्टाइलिश लुक भी देती हैं.

कोई भी ड्रैस चुनते समय आराम को सब से ज्यादा महत्त्व दें. आप चाहे वैस्टर्न वियर पहन रही हों या ऐथनिक वियर, आराम सब से ज्यादा माने रखता है. त्योहारों में आप को काम भी करना होता है, तो डांस भी. ऐसे में जरूरी है कि आप का परिधान ऐसा हो जिस में आप आराम से काम कर सकें, डांस कर सकें, लंबे समय तक सहज महसूस कर सकें. ऐसे मौकों के लिए क्लासी, लेकिन लाइटवेट कपड़े ही चुनें.

Dimple Kapadia ने बेटी ट्विंकल संग फोटो खींचवाने से किया मना, सरेआम कह दी ये बात

बौलीवुड ऐक्ट्रैस डिंपल कपाड़िया (Dimple Kapadia) इन दिनों सुर्खियों में छाई हैं. दरअसल एक इवेंट के दौरान उन्होंने कुछ ऐसा किया जिससे उनकी तुलना जया बच्चन से होने लगी. इस दौरान डिंपल कपाड़िया की बेटी ट्विंकल और दामाद अक्षय कुमार उनके साथ थे. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला…

डिंपल कपाड़िया और उनकी बेटी ट्विंकल खन्ना (Twinkle Khanna) के बीच एक स्ट्रौंग बौन्डिंग देखने को मिलती है, मांबेटी की ये जोड़ी अपने जुदा अंदाज से अक्सर फैंस का दिल जीत लेती है. हाल ही में एक इवेंट के दौरान डिंपल कपाड़िया अपनी बेटी और दामाद के साथ मौजूद थीं. इससे जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

डिंपल कपाड़िया ने अपनी बेटी ट्विंकल के साथ पोज देने से किया मना

इस वीडियो में ऐक्ट्रैस अपनी बेटी ट्विंकल संग पोज देने से मना कर देती हैं. दरअसल, इवेंट के दौरान पैपराजी डिंपल से कहते हैं कि वह ट्विंकल के साथ पोज दें तो इस बात पर डिंपल कपाड़िया बुरी तरह से भड़क जाती हैं और गुस्से में कहती हैं, ‘मैं जूनियर्स के साथ पोज नहीं देती. सिर्फ सीनियर्स के साथ देती हूं.’ वीडियो में डिंपल का ऐसा एटीट्यूड देखकर हर कोई हैरान है. इस बर्ताव के लिए डिंपल को सोशल मीडिया पर ट्रोल भी किया जा रहा है.

सोशल मीडिया पर डिंपल हो रही हैं ट्रोल

हर कोई डिंपल के इस बर्ताव से हैरान है. यूजर्स का कहना है कि डिंपल को डरती हैं कि कहीं जूनियर्स के साथ पोज देने में उनकी असली उम्र न दिख जाए. तो वहीं एक यूजर ने लिखा, कि वह जया बच्चन का जूठा खा ली हैं. एक अन्य यूजर ने लिखा, उम्र के साथ हर कोई जया बच्चन बनता जा रहा है. एक यूजर ने कमेंट किया है कि लोग इनका सेंस औफ ह्यूमर नहीं समझ पा रहे हैं.

फिल्म ‘गो नोनी गो’ की क्या है कहानी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुंबई में चल रहे फिल्म फेस्टिवल 2024 में ट्विंकल खन्ना ,अक्षय कुमार और डिंपल कपाड़िया की फिल्म ‘गो नोनी गो’ का प्रीमियर रखा गया. इसी फिल्म की स्क्रीनिंग में पैपरा जी ने डिम्पल को ट्विंकल के साथ पोज देने के लिए रिक्वैस्ट की. इस फिल्म की बात करें, तो  डिंपल कपाड़िया इसमें मुख्य किरदार में हैं. ट्विंकल खन्ना ने इस फिल्म को प्रोड्यूस किया है. यह एक रोमांटिक कौमेडी ड्रामा फिल्म है. फिल्म ‘गो नोनी गो’ की कहानी में एक ऐसी महिला को दिखाया गया है, जिसकी लाइफ में 50 साल की उम्र के बाद रोमांस जगता है. मानव कौल, आयशा रजा और अथिया शेट्टी भी इस फिल्म में नजर आएंगे.

Govinda और भांजे कृष्णा का 7 साल बाद हुआ मिलन, लेकिन लेकिन मामी सुनीता अभी भी हैं नाराज!

बौलीवुड ऐक्टर गोविंदा (Govinda)  के भांजे कृष्णा अभिषेक अपने मामा की कार्बन कौपी नजर आते हैं. कृष्णा अभिषेक ने अपने मामा गोविंदा का नाम जितना रोशन किया है उतना उनके बेटे या बेटी ने भी अपने पिता के लिए नहीं किया होगा. कृष्णा अपने मामा पर जान छिड़कते हैं वह न सिर्फ गोविंदा की तरह डांस करते हैं बल्कि गोविंदा का एक्टिंग स्टाइल भी कौपी करते हैं . मामा गोविंदा अगर बड़े पर्दे की शान है तो तो भांजे कृष्णा छोटे पर्दे की शान है. इन शौर्ट कृष्णा अभिषेक अपने मामा को ना सिर्फ गुरु मानते हैं बल्कि मामा के पदचिन्हों पर भी चलते हैं. बावजूद इसके पिछले 7 सालों से गोविंदा और कृष्णा में बातचीत बंद थी.

क्योंकि गोविंदा की पत्नी सुनीता ने कृष्णा पर इल्जाम लगाया था कि वह अपने मामा का अपने कौमेडी शोज में पब्लिकली मजाक उड़ाते हैं . इसके बाद यह झगड़ा सार्वजनिक हो गया और गोविंदा ने कृष्ण के साथ बात करनी बंद कर दी. करीबन 7 सालों से कृष्ण अपने मामा के घर भी नहीं गए.

लेकिन हाल ही में जब गोविदा को पैर में गोली लगी तो उस वक्त भांजे कृष्णा औस्ट्रेलिया में थे. मामा की खराब हालत की खबर सुनते ही जब कृष्णा मुंबई पहुंचे तो सबसे पहले वह गोविंदा से मिलने उनके घर पहुंच गये. गोविंदा ने भी सब कुछ भूल कर भांजे कृष्ण को गले लगा लिया और उसके साथ कई घंटों तक बातें की. यहां तक कि गोविंदा की बेटी और बेटा भी कृष्णा से मिले.

लेकिन बीवी सुनीता ने कृष्णा को दर्शन नहीं दिए. और ना ही कृष्ण को माफ किया. गोविंदा ने भले ही बड़ा दिल करके सारे गिले शिकवे भुलाकर भांजे गोविंद को माफ कर दिया हो. लेकिन मामी सुनीता अभी भी नाराजगी कायम की हुई हैं. गौरतलब है कि कश्मीरा शाह जहां गोविंदा के घायल होने की खबर सुनते ही अस्पताल पहुंच गई थीं वहीं सुनीता इतने बड़े कांड के बावजूद अकड़ के ही बैठी हैं.

मैंने अपनी दोस्त की बहन के साथ संबंध बनाया है, कहीं फ्रैंड मुझे धोखेबाज न समझ लें…. मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरा एक बचपन का दोस्त था, जो मुझे सालों बाद मिला. अब हमारे बीच गहरी दोस्ती हो गई है. वह अपनी बहन के साथ रहता है. मैं अक्सर अपने दोस्त के घर जाता हूं, वह भी मेरे घर आता है. एक दिन उसकी बहन रास्ते में मुझे मिल गई, मैंने उसे घर छोड़ दिया उस दिन से हमारी बातचीत शुरू हुई. लेकिन मैं अपने दोस्त के सामने उसकी बहन से ज्यादा बात नहीं करता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कहीं वह मुझे गलत न समझ लें.

कुछ दिनों पहले मेरा दोस्त शहर से कहीं बाहर गया था और उसकी बहन को तेज बुखार था, मेरा दोस्त मुझे फोन कर के बताया और उसने कहा कि मेरे घर चले जाओ और उसे डौक्टर से दिखा देना. उसकी बहन मुझे मैसेज काल करती है, हमारे बातचीत बढ़ती जा रही है. जब उसका भाई नहीं रहता है, तो हम मिलते भी हैं, हमारे बीच फिजिकल रिलेशन भी बन चुका है. लेकिन मेरे दोस्त को इस बारे में कुछ नहीं पता है. आजकल मुझे डर लग रहा है कि अगर मेरे दोस्त उसकी बहन के साथ अफेयर के बारे में पता चल गया तो हमारी दोस्ती तो टूटेगी ही और पता नहीं वह मेरे साथ क्या करेगा?

मेरी दोस्त की बहन ये भी कहती है कि मैं अपने भैया से हमारी शादी की बात करूंगी. मुझे ये बात भी परेशान कर रहा कि वह क्या सोचेगा कि उसकी पीठ पीछे मैंने उसकी बहन को बहकाया.

जवाब

देखिए आपके सवाल से लगता है आप अपने दोस्ती को नहीं खोना चाहते हैं और बीच में आपका प्यार भी है. दोस्ती और प्यार दोनों जरूरी रिश्ते हैं, इन दोनों में से किसी एक को चुनना बहुत कठिन है.
अगर आप और आपके दोस्त की बहन दोनों मिलकर बात करें और आप अपने दोस्त से अपने रिश्ते की सच्चाई बताएं, तो ये भी हो सकता है कि आपका दोस्त दोनों के रिश्ते को खुशीखुशी स्वीकार कर लें.

लेकिन आप अपने रिलेशनशिप की सच्चाई अपने दोस्त से छिपाए नहीं क्योंकि अगर उन्हें किसी तीसरे से इस बारे में पता चलता है, ज्यादा तकलीफ हो सकती है. उनकी सोच भी आपके प्रति गलत साबित हो सकती है. इसलिए जितना जल्दी हो सके आप अपने दोस्त से उनकी बहन के साथ रिलेशनशिप के बारे में बता दें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

हम तीन: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

स्नेही ने कालेज से आते ही मुझे बताया, ‘‘मां, शनिवार को हमारी 10वीं कक्षा का रियूनियन है, बहुत मजा आएगा, मैं बहुत एक्साइटेड हूं. नीता, रिंकी, मोना से मिले हुए बहुत समय हो गया. वे लोग भी कोटा से इस प्रोग्राम के लिए विशेषरूप से आ रही हैं. एक

बड़े होटल में पार्टी है, डिनर है, बहुत मजा आएगा मां.’’

मैं उसे चहकते देख रही थी. उस की खास सहेलियां नीता, रिंकी, मोना कोटा में इंजीनियरिंग कर रही हैं.

स्नेहा फिर बोली, ‘‘कुछ बोलो न मां… बहुत मजा आता है पुराने दोस्तों से मिल कर… है न मां?’’

न चाहते हुए भी मेरे मुंह से ठंडी सी सांस निकली, ‘‘हां, आता तो है.’’

स्नेहा मेरे पास बैठ गई. बोली, ‘‘मां, आप की भी तो सहेलियां, दोस्त रहे होंगे… आप को उन की याद नहीं आती?’’

‘‘आती तो है, लेकिन शादी के बाद लड़कियां अपनीअपनी गृहस्थी में खो जाती हैं. चाह कर भी कहां एकदूसरे से मिल पाती हैं.’’

‘‘नहीं मां, दोस्तों से मिलना इतना मुश्किल तो नहीं है. आप नानी के यहां जाती हैं तो किसी से मिलने की कोशिश नहीं करतीं?’’

‘‘हां, मैं जाती हूं तो वे लोग थोड़े ही होती हैं वहां. वे अपने हिसाब से प्रोग्राम बना कर मायके आती हैं.’’

‘‘अरे मां, कोशिश तो करो, अपनी पुरानी सहेलियों से मिलने की. आप को भी बहुत

मजा आएगा… आप की लाइफ में भी एक चेंज होगा. मेरी मानो तो एक रियूनियन आप भी रख ही लो.’’

स्नेहा तो कह कर फ्रैश होने चली गई, 2 चेहरे मेरी आंखों के आगे तैर गए. क्यों न मैं भी सुकन्या और अनीता से मिलूं, लेकिन मैं यहां मुंबई में, सुकन्या इलाहाबाद में और अनीता दिल्ली में है. 20 साल से तो कोई संपर्क है नहीं. मां के यहां जाती हूं तो मां से ही उन के बारे में पता चल जाता है. अब थोड़ा अजीब तो लगेगा. अब किस का कितना स्वभाव बदल गया होगा, पता नहीं. कोई मिलने में रुचि दिखाएगी भी या नहीं… खैर पहल तो कर के देखनी चाहिए. एक कोशिश करने में क्या हरज है.

बस, मन इसी बात में उलझ कर रह गया. अमित औफिस से आए. मुझे थोड़ी देर देखते रहे, फिर बोले, ‘‘मीनू, क्या हुआ, किसी सोच में डूबी लग रही हो?’’

मैं ने उन्हें कुछ नहीं कह कर टाल दिया. डिनर के समय स्नेहा और राहुल ने भी मुझे टोका, ‘‘क्या हुआ मां?’’

मैं ने उन्हें भी टाल दिया. मैं अभी किसी को कुछ नहीं बताना चाहती थी. पहले अपनी सहेलियों का पता तो कर लूं.

अगले दिन सब के जाने के बाद मैं ने मुजफ्फरनगर मां को

फोन कर उन्हें अपने मन की बात बताई.

वे हंस पड़ीं. बोलीं, ‘‘बहुत अच्छा सोचा. बना लो प्रोग्राम.’’

‘‘मेरे पास उन दोनों के नंबर नहीं हैं.’’

‘‘परेशान क्यों हो रही हो? मैं उन के घर से फोन नंबर ला कर तुम्हें बता दूंगी.’’मैं बेफिक्र हो गई. आधे घंटे में ही मां ने मुझे दोनों के फोन नंबर लिखवा दिए. सुकन्या हमारी गली में ही तो रहती थी और अनीता

2 गलियां छोड़ कर. मैं दोनों से बात करने के लिए बेचैन हो गई. मेरी आवाज दोनों नहीं पहचानीं, लेकिन जब उस उम्र के खास कोडवर्ड, खास किस्सों का संकेत दिया तो दोनों चहक उठीं. हम ने कितने गिलेशिकवे किए, कभी याद न करने के उलाहने दिए और फिर मैं ने अपना प्रोग्राम बताया तो दोनों एकदम तैयार हो गईं. लेकिन परेशानी यह थी कि अनीता अब टीचर थी और सुकन्या मेरी तरह हाउसवाइफ. यह तय हुआ कि अनीता छुट्टियों में मुजफ्फरनगर आ सकेगी. रात को जब हम चारों साथ बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘अमित, आप से कोई जरूरी बात करनी है.’’

बच्चों के भी कान खड़े हो गए.

अमित ने कहा, ‘‘कहो न, क्या हुआ?’’

‘‘मुझे भी अपनी सहेलियों से मिलने मां के यहां जाना है… मेरा भी रियूनियन का प्रोग्राम बन गया है.’’

तीनों जोर से हंस पड़े. मैं झेंप गई तो अमित ने स्नेहा से कहा, ‘‘स्नेहा, तुम अपनी मम्मी को क्या पट्टी पढ़ा देती हो… वे सीरियस हो जाती हैं.’’

‘‘क्यों, उन की भी लाइफ है. सारा दिन क्या हमारे आगेपीछे घूमती रहें? उन का भी फ्रैंड सर्कल रहा होगा. उन का भी मन करता होगा. मां, आप बताओ, क्या सोचा आप ने?’’

मैं ने तीनों को सुकन्या और अनीता से हुई बातचीत के बारे में बता दिया. हंसीखुशी मेरा प्रोग्राम बन गया.

राहुल को अलग ही चिंता हुई. बोला, ‘‘मम्मी, हमारे खाने का क्या होगा?’’

‘‘लताबाई से बात कर ली है. वह दोनों टाइम आ कर खाना बना देगी. अमित ने 2-3 दिन बाद ही मेरी फ्लाइट बुक कर दी. मैं ने सुकन्या और अनीता को भी बता दिया. अब हम तीनों फोन पर संपर्क में रहतीं. बहुत अच्छा लगने लगा है. सुकन्या के पति सुधीर बिजनैसमैन हैं. उस की भी 1 बेटी और 1 बेटा है. अनीता के पति विनय डाक्टर हैं और उन का इकलौता बेटा नागपुर में इंजीनियरिंग कर रहा है.’’

‘‘हम तीनों एक ही कालेज में पढ़ी हैं. 12वीं कक्षा तक तो हम एक ही क्लास में थीं. बाकी लड़कियां हमें 3 देवियां कहती थीं. 12वीं कक्षा के बाद बीए में हमारे विषय अलगअलग हो गए थे. सुकन्या का विवाह तो बीए के बाद ही हो गया था. अनीता और मेरा एमए करने के बाद. अनीता ने अंगरेजी में एमए किया था और मैं ने ड्राइंग ऐंड पेंटिंग में.’’

वे दिन याद आए तो साथ में और भी बहुत कुछ चाहाअनचाहा याद आने लगा. अब तो हम तीनों के विवाह को 20-22 साल हो गए थे. अब उस उम्र की बातें याद करते हुए कुछ अजीब सा लगने लगा. जब भी विनोद का खयाल आता है, मेरे मन का स्वाद कसैला हो जाता है. अच्छा ही हुआ उस लालची इंसान का सच जल्दी सामने आ गया था. मेरी टीचर मां उस के दहेज के लालच को कहां पूरा कर पातीं. पिता का साया तो मेरे सिर से मेरी 13 वर्ष की उम्र में ही उठ गया था. जब से अमित से विवाह हुआ है, कुदरत को धन्यवाद देते नहीं थकती हूं मैं.

और सुकन्या ने अनिल को कैसे भुलाया होगा. अनिल और सुकन्या बीए में एक ही सैक्शन में थे. धीरेधीरे जब दोनों के प्रेम के चर्चे होने लगे तो बात सुकन्या के घर तक पहुंच गई और फिर सुकन्या का विवाह बीए करते ही कर दिया गया. अनीता और मुझ से सुकन्या के आंसू देखे नहीं जाते थे. वह बारबार मरने की

बात करती और हम उसे समझाते रहते. उधर अनिल का हाल कालेज में एक मजनू की तरह हो गया था. हम जब भी उसे देखते उस पर तरस आता.

पहले सुकन्या, फिर मेरा विवाह भी हो गया. अनीता शुरू से जानती थी अगर उस के घर में किसी को भी उस का कोई प्यारव्यार का चक्कर सुनने को मिलेगा तो उस की पढ़ाई छुड़वा दी जाएगी, इसलिए वह हमेशा इन चक्करों से दूर रही. बस हंसते हुए हमारे किस्से सुनती और अब हम अपनीअपनी गृहस्थी में वे किस्से, वे बातें सब भूल चुके थे.

छुट्टियों तक का समय बेसब्री से बिताया. अमित और बच्चे मेरे उत्साह पर मुसकराते रहे. तय समय पर मैं एअरपोर्ट से टैक्सी ले कर पहुंच रही थी. अनीता ने कहा भी था वह मुझे लेने आ जाएगी, फिर साथ चलेंगे, लेकिन जब मुझे पता चला उस के पति को क्लीनिक छोड़ कर इतनी दूर लेने आना पड़ेगा तो मैं ने प्यार से मना कर दिया. मुझे आदत है ऐसे जाने की.

मेरा शहर आ गया था. मेरी जन्मभूमि, यहां की मिट्टी में मुझे अपनी ही खुशबू महसूस होती है. यहां की हवा में मैं मातृत्व सा अपनापन महसूस करती हूं. मेरे चेहरे पर एक गहरी मुसकान आ जाती है जैसे मैं फिर एक नवयौवना बन गई हूं. वैसे भी मायके आते ही एक धीरगंभीर महिला भी चंचल तरुणी बन जाती है.

घर पहुंच कर फ्रैश हो कर खाना खाया. मां और रेनू भाभी ने पता नहीं कितनी चीजें बना रखी थीं. मैं सब के साथ थोड़ी देर बैठ कर सुकन्या के घर जाने के लिए तैयार हो गई.

भाभी ने हंसते हुए कहा, ‘‘सहेलियों में हमें मत भूल जाना.’’

सब हंसने लगे. अनीता भी वहीं आ चुकी थी. अपनेअपने मोबाइल पर हम लगातार संपर्क में थीं. हम तीनों ने जब 20 साल बाद एकदूसरे को देखा तो मुंह से बोल ही नहीं फूटे, फिर बिना कुछ कहे भीगी आंखें लिए हम तीनों एकदूसरे के गले लग गईं. सुकन्या के मातापिता और भाई हमें एकटक देख रहे थे. फिर तो बातों का न रुकने वाला सिलसिला शुरू हो गया और कब लंच टाइम हो गया पता ही नहीं चला.

तभी सुकन्या की भाभी ने आ कर कहा,

‘‘3 देवियो, खाना लग गया है, पहले खाना खा लो… ये बातें तो अभी खत्म होने वाली नहीं हैं.’’

दिन भर साथ रह कर हम तीनों शाम को अपनेअपने घर आ गईं. मां मेरा इंतजार कर रही थीं, देखते ही बोलीं, ‘‘यह क्या बेटा, पूरा दिन वहीं बिता दिया?’’

भाभी भी कहने लगीं, ‘‘अब कल कहीं मत जाना. उन्हें यहीं बुला लेना नहीं तो हम इंतजार करते रह जाएंगे और तुम्हारा यह हफ्ता ऐसे ही बीत जाएगा.’’

मैं ने हंस कर बस ‘ठीक है’ कहा. रात को अमित और बच्चों से बात की, अमित ने आदतन पूरे दिन हालचाल पूछा.

सुबह 10 बजे सुकन्या और अनीता आ गईं. पहले हम साथ बैठ कर गप्पें मारती रहीं. फिर भाभी के मना करने पर भी किचन में उन का लंच तैयार करने में हाथ बंटाया. फिर हम तीनों मेरे कमरे में आ गईं. मेरा कमरा अब मेरे भतीजे यश का स्टडीरूम बन गया था. छुट्टी थी. यश खेलने में व्यस्त था. हम तीनों आराम से लेट कर अपनेअपने परिवार की बातें एकदूसरी को बताने लगीं. बात करतेकरते मैं ने नोट किया कि सुकन्या कुछ उदास सी हो गई.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ सुकन्या?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘हमें नहीं बताएगी?’’ अनीता ने भी पूछा.

‘‘कुछ नहीं, तुम लोगों को वहम हुआ है.’’

मैं ने कहा, ‘‘हम इतनी दूर से एकदूसरी से मिलने आई हैं. क्या हम एकदूसरी से पहले की तरह अपने दिल की बातें नहीं कर सकतीं?’’

सुकन्या पहले तो गुमसुम सी बैठी रही, फिर बहुत ही उदास स्वर में बोली, ‘‘अनिल को नहीं भुला पाई मैं.’’

हम दोनों चौंक पड़ीं, ‘‘क्या? क्या कह रही है तू?’’

‘‘हां,’’ सुकन्या की आंखों से आंसू बहने लगे, ‘‘अपने असफल प्यार की पराकाष्ठा को दिल में लिए एक सहज जीवन जीना अग्निपथ पर चलने जैसा मुश्किल है, यह सिर्फ मैं जानती हूं. बस, 2 हिस्सों में बंटी जी रही हूं… अब तो उम्र अपनी ढलान पर है, लेकिन मन वहीं ठहरा है. अनिल से दूर मन कहीं नहीं रमा, इतने सालों से जैसे 2 नावों की सवारी करती रही हूं. बस, बचाखुचा जीवन भी जी ही लूंगी… जो प्यार मिलने से पहले ही खो गया हो, कैसे जी लिया जाता है उस के बिना भी, यह वही जान सकता है, जिस ने यह सब झेला हो. सुधीर के पास होती हूं तो अनिल का चेहरा सामने आ जाता है और जब भी यहां आती हूं, मेरा मन और उदास हो जाता है.’’

मैं और अनीता हैरानी से सुकन्या को देख रही थीं. हमें तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि बात इतनी गंभीर होगी. यह क्या हो गया… हमारी प्यारी सहेली

22 साल से इस मनोदशा में है. मैं और अनीता एकदूसरी का मुंह देखने लगीं. हम जानती थीं सुकन्या शुरू से ही बहुत भावुक थी, लेकिन वह तो आज भी वैसी ही थी.

सुकन्या कह रही थी, ‘‘यहां आने पर मेरे सामने अतीत के वे मधुर पल जीवंत हो उठते हैं… आज भी आखें बंद कर उस सुखद समय का 1-1 पल जी सकती हूं मैं.’’

अनीता ने पूछा, ‘‘सुकन्या, यहां आने पर तू कभी अनिल से मिली है?’’

‘‘नहीं.’’

अनीता ने पल भर पता नहीं क्या सोचा, फिर बोली, ‘‘मिलना है उस से?’’

मैं तुरंत बोली, ‘‘अनु, पागल हो गई है क्या?’’

अनीता ने ठहरे हुए स्वर में मुझे आंख मारते हुए कहा, ‘‘क्यों, इस में पागल होने की क्या बात है? सुकन्या अनिल के लिए आज भी उदास है तो क्या उस से एक बार मिल नहीं सकती?’’

सुकन्या ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. अब मिल कर क्या होगा?’’

‘‘अरे, एक बार उसे देख लेगी तो शायद तेरे दिल को ठंडक मिल जाए.’’ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मैं चुप रही, पता नहीं अनीता ने क्या सोचा था.

सुकन्या ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘मीनू, तू क्या कहती है?’’

‘‘जैसा तेरा दिल चाहे.’’

‘‘लेकिन मैं उस से मिलूंगी कहां?’’

अनीता ने कहा, ‘‘मुझे उस का घर पता है. बूआजी की बेटी उसी कालेज में पढ़ाती है जहां अनिल भी प्रोफैसर है.’’

सुकन्या बोली, ‘‘मेरे तो हाथपैर अभी से कांप रहे हैं… कैसा होगा वह, क्या कहेगा मुझे देख कर? पहचान तो जाएगा न?’’

अनीता हंसी, ‘‘हां, पहचान तो जाना चाहिए. उस की याद में तू आज भी वैसी ही तो है सूखीमरियल सी.’’

सुकन्या ने कहा, ‘‘हां, तेरी तरह सेहत बनानी भी नहीं है मुझे.’’

अनीता का शरीर कुछ ज्यादा ही भर गया था. मैं जोर से हंसी तो अनीता ने कहा, ‘‘हांहां, ठीक है, मुझे अपनी सेहत से कोई शिकायत नहीं है. यह तो अपने प्यारे पति के प्यार में थोड़ी फूलफल गई हूं.’’ और फिर हम तीनों इस बात पर खूब हंसीं.

मैं ने कहा, ‘‘वैसे हम तीनों के ही पति बहुत अच्छे हैं जो हमें एकदूसरी से मिलने भेज दिया.’’

अनीता ने कहा, ‘‘हां, यह री बातें सुन लें तो हैरान रह जाएं. खासतौर पर सुकन्या के बच्चे तो अपनी मां के इस सो कोल्ड प्यार का किस्सा सुन कर धन्य हो जाएंगे.’’

सुकन्या चिढ़ कर बोली, ‘‘चुप कर, खुद ही आइडिया दिया है और खुद ही मेरा मजाक उड़ा रही है.’’

अगले दिन हम तीनों पहले मार्केट गईं. वहां सुकन्या ने अनिल को देने के लिए गिफ्ट खरीदी. सुकन्या बहुत इमोशनल हो रही थी. अनीता और मैं अपनी हंसी बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थीं.

अनिता ने मेरी कान में कहा, ‘‘यार, यह तो बिलकुल नहीं बदली. पहले भी एक बात पर हफ्तों खुश.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, लेकिन तूने इसे अनिल से मिलने का आइडिया क्यों दिया?’’

अनीता बड़े गर्व से बोली, ‘‘टीचर हूं, बिगड़े बच्चों को सुधारना मुझे आता है और इसे तो मैं अच्छी तरह जानती हूं. अपनी इस खूबसूरत सहेली का सौंदर्य प्रेम भी मुझे पता है और तुझे बता रही हूं मैं ने अनिल को 6 महीने पहले ही एक शादी में देखा था.’’

‘‘अच्छा, कोई बात हुई थी क्या?’’

‘‘नहीं, मौका नहीं लगा था. अच्छा, अब चुप कर. अपनी सहेली की शौपिंग पूरी हो गई शायद. पता नहीं कितने रुपए फूंक कर आ रही है मैडम.’’

सुकन्या पास आई तो हम ने पूछा, ‘‘क्याक्या खरीद लिया?’’

‘‘कुछ खास नहीं, अनिल के लिए एक ब्रैंडेड शर्ट, एक परफ्यूम, एक बहुत ही सुंदर पैन और उस की पसंद की मिठाई.’’

अनीता ने कहा, ‘‘चलो चलें प्रोफैसर साहब घर आ गए होंगे.’’

शाम के 4 बजे थे. हम तीनों पैदल ही साकेत चल पड़ीं. अनीता ने एक गली में दूर से ही एक घर की तरफ इशारा किया, ‘‘यही है अनिल का घर और वह जो बाहर स्कूटर खड़ा कर रहा है शायद अनिल ही है.’’

हम तीनों के कदम थोड़े तेज हुए.

अनिता ने कहा, ‘‘हां, सुकन्या, अनिल ही तो है.’’

सुकन्या ने ध्यान से देखा. अनिल किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह ऐसे खड़ा था कि हमें उस का साइड पोज दिख रहा था. सुकन्या के कदम ढीले पड़ गए, उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘यह मोटा सा गंजा आदमी अनिल कैसे हो सकता है, लेकिन शक्ल तो मिल रही है.’’

अनीता ने कहा, ‘‘यही है हैंडसम सा तेरा प्रेमी जिस का साथ पाने की इच्छा आज भी तेरा पीछा नहीं छोड़ रही, जिस के सामने अपने पति का अथाह प्यार भी तुझे तुच्छ लगता है.’’

सुकन्या अचानक वापस मुड़ गई. मैं ने कहा, ‘‘क्या हुआ, अनिल से मिलना नहीं है क्या?’’

सुकन्या जल्दी से बोली, ‘‘नहीं, थोड़ा तेज नहीं चल सकती तुम दोनों? जल्दी चलो यहां से.’’

अनीता हंसते हुए बोली, ‘‘चलो, किसी रेस्तरा में चलती हैं.’’

हम ने वहां बैठ कर कौफी और सैंडविच का और्डर दिया. हमारी हंसी नहीं रुक रही थी.  सुकन्या का चेहरा देखने लायक था.

अनीता हंसी. बोली, ‘‘बेचारी सुकन्या,

इतने साल पुराने प्यार की परिणति हुई भी तो किस रूप में.’’

सुकन्या ने हमें डपटा, ‘‘चुप हो जाओ तुम दोनों, मुझे सताना बंद करो, अपनी सारी कल्पनाओं को वहीं उसी गली में दफन कर आई हूं मैं. पहली बार मुझे मेरे पति सुधीर याद आ रहे हैं. बस, अब जल्दी से उन के पास पहुंचना है.’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह क्या बेसब्री है… तुम्हारा प्यार का भूत तो बहुत तेजी से भाग गया.’’

अब हम तीनों की हंसी नहीं रुक रही थी. हम बहुत हंसीं. इतना हंसे पता नहीं कितने साल हो गए थे. मैं ने कहा, ‘‘सुकन्या, और ये जो तुम ने गिफ्ट्स खरीदे इन का क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या? शर्ट सुधीर पहनेंगे, मिठाई घर जा कर हम सब के साथ खाएंगे, परफ्यूम और पैन अपने बेटे को दे दूंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, अनिल को तो यह शर्ट आती भी नहीं,’’ मुझे और अनीता को तो जैसे हंसी का दौरा पड़ गया था. सुकन्या की शक्ल देख कर हम इतना हंसी कि हमारी आंखों में आंसू आ गए. सच, अगर हमारे बच्चे हमारा यह रूप देखते तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन न आता. यह तो अच्छा था कि इस समय रेस्तरां में 1-2 लोग ही थे और हम बैठी भी एक कोने में थीं. वेटर बेचारा हमारी शक्लें देख रहा था. खैर, खापी कर हम अपनेअपने घर चली गईं.

गिनेचुने दिन थे. जाने का दिल भी पास आ रहा था. अगले दिन हम तीनों ने फिर खरीदारी की. मां के लिए, भैयाभाभी और यश के लिए कुछ कपड़े खरीदे. उन दोनों ने भी इसी तरह का सामान लिया. फिर जब हम तीनों साथ बैठीं तो सुकन्या के दिल में आया कि थोड़े मुझे छेड़ा जाए, अत: मुझ से कहने लगी, ‘‘विनोद कहां है आजकल? कुछ पता है?’’

मैं ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘मेरी इस बात में जरा भी रुचि नहीं है. मुझे माफ करो.’’

अनीता हंसी, ‘‘मीनू, कहो तो उस का कायाकल्प भी देख लिया जाए.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो, अभी एक को देख कर छेड़ा. फिर हम तीनों ने यह तय किया कि अब जब भी संभव होगा, मिलती रहेंगी. एक बार फिर पुराने समय में लौट कर बहुत मजा आया.’’

जाने का दिन आ गया. भीगी आंखों से एकदूसरी से बिदा ली. मां और भाभी ने तो पता नहीं कितनी चीचें बांध दी थीं. सब से पहले मैं ही निकल रही थी. अनीता को एक विवाह में शामिल होने के लिए 2 दिन और रुकना था, सुकन्या को लेने सुधीर आने वाले थे.

मां और भाभी प्यार भरी शिकायत कर रही थीं कि मैं सहेलियों के साथ ही घूमती रही. मैं बहुत अच्छा समय बिता कर लौट रही थी. मुंबई जा कर स्नेहा को इस रियूनियन का आइडिया देने के लिए गले से लगा कर थैंक्स कहने के लिए मैं बहुत उत्साहित थी. सच, बहुत मजा आया था.

पहला विद्रोही: गुर्णवी किस के प्रेम में हो गई थी पागल?

आकाश काले मेघों से आच्छादित था. चौथे पहर तक अंधकार सा छाने लगा था, परंतु वर्षा नहीं हो रही थी. सूर्यदर्शन कई दिनों से नहीं हुआ था. वन हरियाली से लहलहा रहे थे. कई दिन से हो रही घनघोर वर्षा कुछ ही समय पहले थमी थी.

कुमार पृषघ्र अपने आश्रम से दूर एक पहाड़ी चट्टान पर बैठा प्रकृति के इस अनुपम रूप का आनंद ले रहा था. तभी कहीं से एक पुष्पगुच्छ आ कर कुमार के चरणों के पास गिरा. चकित भाव से उसे उठा कर उस ने चारों ओर दृष्टिपात किया, लेकिन कहीं कोई दिखाई नहीं दिया. ऐसा अकसर होता रहता था. जब भी वह संध्या समय एकांत में प्रकृति की गोद में बैठता, कहीं से पुष्पगुच्छ आ कर उस के शरीर का स्पर्श करता. कई प्रयास करने पर भी वह नहीं जान पाया कि पुष्पगुच्छ कहां से, कौन फेंकता है. किंतु आज यह रहस्य स्वत: ही खुल गया.

कुछ क्षणों के अंतराल से एक नारी कंठ की चीख सुनाई दी. कुमार उसी दिशा में तेजी से अग्रसर हुआ. कुछ ही दूरी पर एक नारी छाया धरती पर बैठी दिखाई दी. पीड़ा की छटपटाहट और रुदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था.

‘‘कौन हो तुम? क्या हुआ?’’ निकट जा कर कुमार पृषघ्र ने कोमल स्वर में पूछा. अंधकार की वजह से चेहरा स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था.

प्रश्न सुन कर, अपना कष्ट भूल कर वह एकाएक खड़ी हो गई, करबद्ध, नतमस्तक.

‘‘कौन हो? यहां इस निपट अंधकार में क्या कर रही थीं?’’

लेकिन उत्तर देने की अपेक्षा स्त्री ने पीठ मोड़ कर चेहरा छिपा लिया, किंतु प्रस्थान का प्रयास नहीं किया.

‘‘यह तुम्हीं ने फेंका था?’’ कुमार ने अपने हाथ के पुष्पगुच्छ को उस की ओर बढ़ाते हुए पूछा.

उस ने अपना चेहरा कुमार की ओर मोड़ा और तभी भयंकर गड़गड़ाहट के साथ आकाश में बिजली चमकी, जिस से सारा वनप्रदेश क्षण भर के लिए प्रकाशित हो गया. कुमार पृषघ्र ने तरुणी को क्षण भर में ही पहचान लिया.

‘‘तुम…तुम ही मुझ पर पुष्पगुच्छ फेंकती रही हो, गुर्णवी?’’ कुमार के स्वर में आश्चर्य था.

‘‘जी हां…किंतु क्षमा करें, देव, अब से ऐसा नहीं होगा.’’

‘‘लेकिन क्यों? क्या सहज परिहास के लिए? इस का परिणाम जानती हो?’’

‘‘अपराध क्षमा करें, कुमार, अब ऐसा नहीं होगा,’’ उस ने पुन: करबद्ध, नतमस्तक हो उत्तर दिया.

तभी आकाश में पुन: बिजली चमकी. कुमार ने अब देखा, गुर्णवी पसीने से तर क्षीणलता सी कांप रही है. बालों की वेणी और हाथों के गजरे उन्हीं पुष्पों के थे जिन्हें उस ने पुष्पगुच्छ के रूप में कुमार पर फेंका था. भय और रुदन की हिचकियों से उस का संपूर्ण शरीर रहरह कर थरथरा रहा था. वन विचरण के समय अकसर दोनों की भेंट हो जाया करती थी, अत: अपरिचित नहीं थे.

‘‘वह तो ठीक है कि अब ऐसा नहीं होगा, पर अब तक क्यों होता रहा, यह तो बताओ?’’ पृषघ्र के गौरवर्णी चेहरे पर एक रहस्यमयी मुसकान दौड़ गई, जिसे अंधकार में गुर्णवी न देख सकी.

‘‘क्षमा करें, देव… मैं…’’

‘‘क्या तुम मुझे चाहने लगी हो? क्या यह सब अभिसार की अभिलाषा से कर रही थीं?’’ कोमल स्वर में कुमार ने पूछा.

‘‘हां…नहीं…नहीं,’’ वह हड़बड़ा कर बोली.

तभी भयंकर गर्जना के साथ फिर बिजली चमकी. कुमार ने देखा, गुर्णवी के दोनों हाथ रक्तरंजित हो रहे थे. करबद्ध होने से रक्त बह कर कुहनियों तक आ गया था.

‘‘तुम तो घायल हो,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उस के दोनों हाथों को अलग कर हथेलियां देखने का प्रयास किया.

‘‘मुझे छुएं नहीं, कुमार, मैं…मैं शूद्र कन्या हूं,’’ कहते हुए उस ने पीछे हटने का प्रयास किया.

‘‘यह समय इन बातों का नहीं है, तुम्हें सहायता और औषधि की आवश्यकता है. चलो, तुम्हें तुम्हारे आवास तक पहुंचा दूं.’’

‘‘मैं धीरेधीरे चली जाऊंगी. पैर में बड़ा शूल लगा है और मोच भी है, धीरेधीरे जाना होगा. किसी ने आप को मुझे छूते हुए देख लिया तो संकट होगा. आप पर विपत्ति आ जाएगी. आप पधारें,’’ गुर्णवी ने निवेदन किया.

‘‘ओह,’’ पृषघ्र बोला, ‘‘वह सब छोड़ो, मेरे पास आओ,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उसे उठा कर अपने बलिष्ठ कंधों पर डाल लिया और चल पड़ा.

गुर्णवी ने कोई विशेष विरोध भी नहीं किया.

उस के आवास तक पहुंचतेपहुंचते दोनों वर्षा की बौछारों में स्नान कर चुके थे. कुटिया काफी बड़ी थी. गुर्णवी दूसरी ओर वस्त्र बदलने चली गई. कुमार पृषघ्र पुन: बाहर आ कर खड़ा हो गया.

‘‘पधारें, कुमार,’’ गुर्णवी ने कुछ देर बाद भीतर से कहा. उस ने जैसेतैसे अग्नि प्रज्ज्वलित कर ली थी.

कुटिया में प्रवेश कर कुमार ने अग्नि के मंद प्रकाश में गुर्णवी के सौंदर्य को देखा और अभिभूत हो गया. भरी देहयष्टि, कटि प्रदेश को चूमती सघन केशराशि, बड़ेबड़े काले नेत्र और राजमहल के शिखर सा गर्वोन्मत्त वक्ष प्रदेश. कुमार पृषघ्र निर्निमेष उसे देखता ही रह गया.

गुर्णवी शूद्र जाति की यौवना थी. प्रकृति ने उसे सजानेसंवारने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी, प्रकृति की वह अनुपम कृति थी. उस दिन के बाद कुमार पृषघ्र उस से अकसर मिलने लगा.

‘‘इस प्रकार की भेंट का परिणाम जानते हैं, कुमार?’’ एक सांझ उस ने कुमार पृषघ्र से पूछा.

‘‘क्या तुम भयभीत हो?’’ कुमार ने गुर्णवी के झील से गहरे नेत्रों में झांकते हुए पूछा.

‘‘मुझे कोई भय नहीं है,’’ वह बोली, ‘‘अधिक से अधिक क्या होगा… मेरा वध न? आप को पा कर जितना जीवन मिलेगा वह मेरे कई जन्मों की थाती होगी. न मेरे मातापिता हैं, न भाईबंधु. सबकुछ अल्पायु में ही खो चुकी हूं. इन वनों ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया है. मैं तो केवल आप के लिए चिंतित हूं,’’ उस के मुखमंडल पर गहन दुख और चिंता का भाव तैर गया.

‘‘ऐसा क्यों सोचती हो, गुर्णवी? जीवन के प्रति सदैव आशावान रहना सीखो.’’

‘‘हमारी व्यवस्था ही ऐसी है. यह जो वर्ण व्यवस्था है, हमारे ऋषियों ने कुछ सोच कर ही बनाई होगी. हमारे मिलन को कभी मान्यता नहीं मिलेगी. मैं…मैं…आप को पा कर भी नहीं पा सकूंगी,’’ कहते हुए गुर्णवी का स्वर भारी हो गया और बड़ेबड़े नेत्रों से 2 मोती टपक पड़े.

‘‘ऐसा नहीं होगा, तुम्हारे प्रेम के प्रतिदान में मैं तुम्हें अपने साथ प्रतिष्ठित करूंगा. तुम विश्वास रखो,’’ पृषघ्र ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘मेरे लिए यही प्रतिदान पर्याप्त है कि आप ने मेरे प्रेम को स्वीकार किया. ऋषियों द्वारा स्थापित इन कठोर नियमों और परंपराओं को तोड़ना सरल नहीं है, कुमार. परंपराओं और नियमों की चट्टानों से हम सिर फोड़तेफोड़ते मृत्युपर्यंत विजयी नहीं हो सकेंगे. आप अपना शिक्षण पूर्ण कर राजगृह को लौट जाएंगे और यह गुर्णवी यथावत ‘गुर्णवी’ ही रह जाएगी.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं होगा. मैं शक्ति के बल पर इस सनातनी व्यवस्था को बदल दूंगा.’’ ‘‘मैं जानती हूं कुमार, आप जैसा क्षत्रिय वीर दूरदूर तक नहीं है. आप की तलवार की गति मैं ने देखी है. आप के धनुष की टंकार भी सुनी है और बाणों को आप की आज्ञा के प्रतिकूल जाते कभी नहीं पाया. आप केवल आप ही हैं परंतु केवल शस्त्रों से तो समाज नहीं बदल सकता. मुझे लगता है, हम दोनों को एकदूसरे तक पहुंचने में हजारों वर्ष लगेंगे.’’

‘‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है या चुनौती दे रही हो?’’ गंभीर स्वर में पृषघ्र ने पूछा.

‘‘मैं एक अबला और उस पर भी शूद्रा, भला आप को क्या चुनौती दे सकती हूं. परंतु मैं ने जो भी कहा है वह यथार्थ है, नभ में चमकते इस चंद्रमा की तरह,’’ कहते हुए उस ने आकाश में चमकते चंद्रमा को इंगित किया.

‘‘नहीं, गुर्णवी, तुम ने पृषघ्र को केवल चाहा है, प्रेम किया है. उस की शक्ति और बाह्य रूप को देखा है, उस के अंतर्मन को नहीं जाना. आओ, तुम्हें विश्वास दिला दूं,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उस का हाथ पकड़ा और झटके से उठा कर अपने बाई ओर चट्टान पर खड़ा कर लिया.

‘‘सुनो, दसों दिशाओे, दिग्पालो और पंचभूतात्माओ, सभी मेरी घोषणा सुनो. मैं वैवस्वत मनु का पुत्र, कुमार पृषघ्र आज से, इसी क्षण से इस गुर्णवी (जूती) को, जो शूद्री (अछूत कन्या) है, शूद्रता से मुक्त करता हूं. इस का नाम अब से गुणमाला होगा,’’ कुमार की यह घोषणा रात्रि के अंधकार में गूंज उठी.

परंतु यह घोषणा गुणमाला को प्रसन्न न कर सकी. वह वसिष्ठ के भय से आतंकित हो, स्थिर नेत्रों से पृषघ्र को देखती रह गई.

‘‘चलो, गुणमाला, तुम्हें तुम्हारे आवास पर पहुंचा दूं,’’ कुमार ने उस की कटि में अपनी दीर्घ भुजा डाल कर कहा, ‘‘अब तुम निश्ंिचत और प्रसन्न रहो. मेरी शिक्षा पूर्ण होने पर यथासमय हम विवाह करेंगे. तुम राजरानी बनोगी,’’ पृषघ्र ने हथेली से उस का चेहरा थपथपा दिया.

उस मृगनयनी के अश्रु छलक गए. कुमार पृषघ्र की घोषणा वायुमंडल में गूंजती हुई ऋषिवर वसिष्ठ तक भी पहुंची. वे विचलित हो गए. वसिष्ठ गुणमाला के बुद्धिकौशल और अनुपम रूपराशि के जादू से परिचित थे. उन्हें लगा, धरती पैरों तले खिसक रही है और वे शून्य में गिरते चले जा रहे हैं, कहीं ठौर नहीं मिल रहा है.

एकाएक वे सावधान हो कर बैठ गए, ‘कुछ करना ही होगा. यह युवक संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को नष्ट कर देगा,’ वे सोचते रहे, ‘हो सकता है, पृषघ्र उस से विवाह भी करना चाहे. तब तो ब्राह्मणों का समाज में वर्चस्व ही समाप्त हो जाएगा क्योंकि वर्चस्व की सारी शक्तियां क्षत्रियों के बल पर ही तो आश्रित हैं. यदि शूद्र स्त्रियां क्षत्रियों के हृदय मार्ग से हो कर महलों में प्रवेश कर गईं तो राजा और राजनीति दोनों ही ब्राह्मणों के हाथों से चली जाएंगी. और जिस दिन ऐसा होगा, इन के सारे घाव हरे हो जाएंगे…और फिर…फिर…’ भयानक बदले के एहसास से वे कांप उठे.

प्रात: हवन आदि के पश्चात ऋषि वसिष्ठ ने सभी शिष्यों की उपस्थिति में पृषघ्र से कठोर स्वर में पूछा, ‘‘तुम ने कल रात क्या अनर्थ किया, जानते हो?’’

‘‘क्या अनर्थ किया है?’’ शांत स्वर में उस ने प्रतिप्रश्न किया.

‘‘भोले मत बनो कुमार, तुम ने एक शूद्र कन्या को उस की शूद्रता से मुक्त किया है. तुम पतित हो रहे हो.’’

‘‘मैं पतित हो रहा हूं, पर कैसे? एक नारी को शूद्रता की दासता से मुक्त करने से मैं पतित कैसे हो गया, गुरुदेव?’’ पृषघ्र का स्वर अत्यंत नम्र था.

‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकते. ऐसा करने से एक क्रम बन सकता है जो हमारी सामाजिक व्यवस्था को छिन्न- भिन्न कर देगा,’’ वसिष्ठ कठोर स्वर में बोले.

‘‘यह कैसी सामाजिक व्यवस्था है गुरुदेव, जिस में मानव ही मानव को हेयदृष्टि से देखता है, उस का शोषण और तिरस्कार करता है. इस व्यवस्था को बदलना होगा.’’

‘‘किसी भी बदलाव के लिए न तो तुम अधिकृत हो और न ही सक्षम. यह कार्य हम ऋषियों की अनुमति के बगैर नहीं हो सकता. तुम होते कौन हो?’’ गुरु वसिष्ठ क्रोधित होने लगे.

‘‘क्षमा करें, गुरुदेव मैं यह कार्य प्रारंभ कर चुका हूं. जैसे प्रकृति अपने परिवर्तन के लिए किसी की मोहताज नहीं होती वैसे ही मैं ने भी शुरुआत की है,’’ पृषघ्र बोला.

‘‘तुम उद्दंड हो रहे हो,’’ क्रोधावेश में वसिष्ठ बोले, ‘‘आज तुम ने उस शूद्री को मुक्त करने की बात की है और कल उस से विवाह भी कर सकते हो.’’

‘‘हां, गुरुदेव, शिक्षा पूर्ण होते ही मैं उसे अपनी अर्धांगिनी बनाऊंगा,’’ पृषघ्र ने शांत भाव से उत्तर दिया.

वसिष्ठ की आशंका सच निकली. ‘कल को तो यह समस्त शूद्र जाति को सवर्णों में सम्मिलित कर देगा. क्रोध से यह मानने वाला नहीं लगता. कोई युक्ति करनी होगी,’ उन्होंने विचार किया.

‘‘तुम क्या कह रहे हो, पुत्र? तुम उस से विवाह भी करोगे, यह कैसे हो सकता है? तुम जानते हो, एक शूद्री से उत्पन्न की हुई जारज संतान तुम्हारी उत्तराधिकारी नहीं हो सकेगी. उसे कोई मान्यता नहीं देगा. तुम राजवंशी हो और वह एक छोटे कुल की स्त्री,’’ वसिष्ठ ने कोमल स्वर में समझाने का प्रयास किया.

‘‘नहीं, गुरुदेव, छोटे या घटिया तो कर्म होते हैं, कोई कुल नहीं…और स्त्री तो धरती है. धरती की कोई जाति नहीं होती. वह तो बीज (पुरुष) है, जो विभिन्न किस्मों में उगता है. इस में धरती का कोई दोष नहीं होता. दोषी तो बीज होता है.’’

‘‘तुम मुझे ही पढ़ाने लगे हो. स्मरण रखो, तुम इस गुरुकुल में विद्या अध्ययन के लिए आए हो, गुरु को पढ़ाने नहीं,’’ वसिष्ठ खीज कर बोले.

‘‘स्मरण है, गुरुदेव.’’

‘‘तो फिर अब से तुम उस युवती से नहीं मिलोगे और यहां रहते न तो कोई और घोषणा करोगे और न ही किसी को कोई वचन दोगे.’’

‘‘तो क्या अपना वचन मिथ्या हो जाने दूं. यह संसार मुझ पर थूकेगा नहीं?’’

‘‘तुम आखिर चाहते क्या हो? क्या तुम्हें मनमानी करने दूं? क्या तुम मुझे सामाजिक व्यवस्था का पाठ पढ़ाना चाहते हो?’’ वसिष्ठ ने झल्ला कर पूछा.

‘‘मैं आप के पास पढ़ने आया हूं, गुरुदेव,’’ पृषघ्र करबद्ध हो कर बोला, ‘‘मैं एक ऐसे समाज की रचना करना चाहता हूं जिस में चारों वर्णों के लोग एक ही ‘मनुष्य वर्ण’ के नाम से जाने जाएं. न कोई ऊंचा हो न कोई नीचा. कोई वर्ण भेद न हो…सर्वत्र समभाव हो. इस में आप मेरे मार्गदर्शक बनें.’’

सुन कर वृद्ध ऋषि सकते में आ गए. उन्होंने समझ लिया कि बहस से इस युवक को परास्त नहीं किया जा सकेगा. यह दृढ़निश्चयी है. इस का कुछ करना होगा. सोचते हुए उन्होंने आग्नेय नेत्रों से पृषघ्र को देखा और बगैर उत्तर दिए वहां से चल दिए.

आकाश में बादलों की भयंकर गर्जना के साथ वर्षा वेगवती हो रही थी. ऋषि वसिष्ठ ने उसी दिन से पृषघ्र को गोशाला का कार्य सौंप दिया था. भारी वर्षा के कारण 3 दिन से पशुओं के लिए घास की व्यवस्था नहीं हुई थी. गोवंश भूखा ही था. स्वयं पृषघ्र का आश्रम से बाहर जाना प्रतिबंधित था. उस ने सुना था कि आश्रम में 2-3 दिन से सूखी लकड़ी न होने से पाकशाला भी ठंडी ही है. उसे भी अन्न का दाना नहीं मिला था.

संध्या होतेहोते गहन अंधकार छा गया. गोशाला में जगहजगह पानी टपक रहा था. बड़ी कठिनाई से थोड़ा स्थान खोज कर वह बैठ सका. भूखी गायों का रंभाना उसे भारी पीड़ा दे रहा था. संतोष था तो केवल यही कि वह स्वयं भी निराहार था. उस की इच्छा हुई कि गोशाला की छत तोड़ कर उसी की घास पशुओं को खिला दे, परंतु यह संभव नहीं था.

बैठेबैठे ही पृषघ्र को नींद के झोंके आने लगे थे. वह कब सो गया, स्वयं भी न जान सका. अर्द्धरात्रि में गोवंश के रंभाने की आवाज से उस की नींद खुली. गहन अंधकार था. पानी अभी भी बरस रहा था. एकाएक वह कुछ समझ न पाया. अंधकार में दृष्टि फाड़ कर देखने का प्रयास किया, तभी एक गर्जना से वह चौंक पड़ा.

गोशाला में सिंह घुस आया था. वह तुरंत अपनी तलवार तान कर खड़ा हो गया और सावधानी से गायों की ओर बढ़ा. 2-3 गाएं सींगों की सहायता से सिंह से जान बचाने को प्रयासरत थीं. पृषघ्र ने निकट पहुंच कर बिजली की फुरती से सिंह पर भरपूर वार किया. वनराज पृषघ्र से भी फुरतीला निकला और एक गाय की गरदन कट गई. सिंह तेजी से निकल कर भाग गया.

पृषघ्र हतप्रभ रह गया. मस्तिष्क शून्य हो गया और आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. बड़ी कठिनाई से वह अपने स्थान पर लौटा और कटे शव की भांति गिर गया. प्रात:काल उस ने देखा, गाय की गरदन के साथ सिंह का कान भी कट कर गिर गया था.

दिन चढ़े तक जब वह बाहर न आया तो सहपाठियों ने गोशाला के द्वार से उसे पुकारा. कोई उत्तर न पा कर, भीतर आ कर जो हाल देखा तो सभी आश्चर्य- चकित रह गए.

‘‘गुरुदेव, पृषघ्र ने गोहत्या कर दी है,’’ एक शिष्य ने दौड़ कर ऋषि वसिष्ठ को सूचना दी.

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो, वत्स? ऐसा कैसे हो सकता है?’’ वे अपने आसन से उठ खड़े हुए.

‘‘स्वयं चल कर देख लीजिए, गुरुदेव,’’ कई स्वर एकसाथ उभरे.

ऋषि वसिष्ठ तेज कदमों से गोशाला में पहुंचे. पृषघ्र द्वार पर सिर झुकाए बैठा था. सामने ही मृत गाय कटी पड़ी थी. ऋषि ने क्रोध से हुंकार भरी, ‘‘यह जघन्य अपराध किसलिए किया तुम ने…क्या केवल इसलिए कि बाहर न जा सकने के कारण तुम उस शूद्री से भेंट न कर सके? एक शूद्र कन्या के लिए इतना जघन्य अपराध?’’ ऊंचे स्वर और क्रोधावेग से वसिष्ठ का बूढ़ा शरीर कांपने लगा था.

‘‘नहीं, गुरुदेव, दरअसल, पिछली रात्रि गोशाला में सिंह घुस आया था. उसी को मारने के लिए तलवार का प्रयोग किया था, परंतु वह बच गया और…उस का कटा हुआ कान वहीं पड़ा है, देख लीजिए.’’

‘‘चुप रहो, वीरवर पृषघ्र का वार गलत पड़े, मैं नहीं मान सकता. तुम ने जानबूझ कर गोहत्या की है, ताकि तुम्हें गोशाला के कार्य से मुक्ति मिले और तुम बाहर जा कर उस शूद्री से प्रेमालाप कर सको, तुम रक्षक से भक्षक बन गए हो,’’ वसिष्ठ चीखे.

‘‘नहीं गुरुदेव, यह गलत है, मैं…’’

‘‘मुझे गलत कहता है, तू ने गोहत्या का महापाप किया है…वह भी एक शूद्री के लिए. मैं तुझे श्राप देता हूं, तू इस नीच कर्म के कारण अब क्षत्रिय नहीं रहेगा. जा, शूद्र हो जा,’’ इतना कह कर वे तेज कदमों से लौट गए.

शूद्रता का दंड मिलने से पृषघ्र का उसी क्षण आश्रम से निष्कासन हो गया. वह बहुत रोया, गिड़गिड़ाया और सत्य के प्रमाण में सिंह का कान दिखाया, पर वसिष्ठ ने न कुछ देखा, न सुना.

शाप क्या है?

उस काल में शिक्षा को ब्राह्मणों ने केवल अपने पास केंद्रित कर रखा था. शिक्षा का प्रसार सीमित वर्ग तक था और आदिवासी तथा निम्नवर्ग को ज्ञान के प्रकाश से कतई वंचित रखा गया था. शिक्षित वर्ग होने से ब्राह्मणों का वर्चस्व राजकाज में अधिक रहा और अर्द्धशिक्षित होने से शासक वर्ग ब्राह्मणों पर आश्रित था. अर्थात वसिष्ठ के शाप ने पृषघ्र को उस समय के सभ्य समाज से, सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर दिया था. ब्राह्मणों की इस एकाधिकारिक व्यवस्था को सामाजिक और राजनीतिक स्वीकृति प्राप्त थी.

समाज से बहिष्कृत हो कर पृषघ्र की समझ में न आया कि वह क्या करे. उस के अपने लोगों ने मुंह मोड़ कर उसे निकाल दिया था. जिस निम्नवर्ग में उसे शामिल होने का दंड मिला था, वह भी ब्राह्मणों के बनाए दंडविधान, सामाजिक असुरक्षा और राजभय के चलते उसे स्वीकार करने में असमर्थ था. पृषघ्र जानता था कि शूद्र वर्ग भी उसे अपने में सम्मिलित नहीं करेगा और साहस किया भी तो उस का दंड कईकई लोगों को भुगतना होगा.

वह वनों में भटकता रहा. कईकई दिनों तक मानव दर्शन भी न होता था. अंतत: उस ने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य का व्रत धारण किया. सारी आसक्तियां छोड़ दीं, गुणमाला मस्तिष्क से विलोप हो गई. इंद्रियों को वश में कर वह जड़, अंधे, बहरे के समान हो कर तथाकथित ईश्वर को खोजता रहा, पर वह न मिला.

अंतत: वह पुन: गुणमाला के पास लौटा, ‘‘गुर्णवी, मैं लौट आया हूं,’’ अधीर स्वर में उस ने टिया के द्वार पर खड़े हो कर आवाज दी. पर कोई उत्तर न मिला. पृषघ्र ने भीतर जा कर देखा, कोई नहीं था. कुटिया की हालत बता रही थी कि वहां काफी समय से कोई नहीं रहा. कुछ सोच कर उस ने कुटिया को आग लगा दी और स्वयं भी उसी में समा गया.

डिजिटल फोटोज को इन तरीकों से सहेजे ताकि हसीं पलों का ले सकेंगे आनंद

जब से स्मार्ट फोन आया है हम न जाने कितने फोटोज, सैल्फी और वीडियो बनाने लगे हैं क्योंकि यह हर वक्त हमारे साथ रहता है. जब चाहा जहां चाहा वहां फोटो ले लिया. हम इस में न जाने अपनी कितनी यादों को संजोए रखते हैं लेकिन क्या कभी सोचा है कि यदि यह गुम या खराब हो जाए तो उन हसीं पलों एवं यादों के फोटोज और वीडियोज का क्या होगा जो आप ने इस में क्लिक कर रखे हैं? क्या आप उन्हें हमेशा के लिए खो देंगे?

हां, यदि आप ने उन्हें सुरक्षित नहीं किया तो? तो फिर यदि हमें अपनी हसीं यादों को हमेशा संजोए रखना है तो सब से पहले उन का बैकअप लेना होगा अर्थात उन्हें सुरक्षित रखना होगा ताकि जब आप को उन की याद आए तो उन्हें दोबारा देख सकें.

मगर समस्या तब आती है जब ढेर सारे फोटोज के बीच हमें कुछ ही फोटो या वीडियो देखने होते हैं तो यह काफी मुश्किल होगा क्योंकि हम अधिकतर फोटोज को अस्तव्यस्त तरीके से सहेजते हैं. ऐसे में यदि हम अपने फोटोज को व्यवस्थित तरीके से रखें तो हमें उन्हें ढूंढ़ने में बहुत ही कम समय लगेगा और हम तुरंत अपनी पसंद के फोटो देख सकेंगे, अपनी यादों को दोबारा तरोताजा कर सकेंगे और अपनी खुशी के पलों का आनंद ले सकेंगे.

मोबाइल की मैमोरी हो जाए फुल

मोबाइल या कैमरे से फोटोज लेते वक्त यह भूल जाते हैं कि मोबाइल या कैमरे में मैमोरी होती है यानि एक क्षमता के बाद हम इस में और फोटोज और वीडियोज स्टोर नहीं कर सकते हैं. इस के लिए हमें इन में स्टोर फोटो और वीडियो का बैकअप लेना आवश्यक हो जाता है ताकि हम नए फोटो और वीडियो को इस में रख सकें. अपने मोबाइल या कैमरे के फोटो और वीडियो के बैकअप के लिए और व्यवस्थित तरीके से रखने के लिए हम गूगल अकाउंट, ड्राइव, कंप्यूटर या लैपटौप की हार्ड ड्राइव या पैन ड्राइव का उपयोग कर सकते हैं या फि डीवीडी भी बना सकते हैं.

मोबाइल के फोटोज को इस तरह करें ट्रांसफर

मोबाइल के फोटोज को कंप्यूटर या लैपटौप पर ट्रांसफर करने के लिए हमें डाटा केबल की आवश्यकता होती है जो बाजार में आसानी से मिल जाएगी. जैसे ही आप इस केबल की पतली वाली पिन मोबाइल पर और बड़ी वाली को अपने कंप्यूटर या लैपटौप के यूएसबी पोर्ट पर लगाएंगे इस से आप का मोबाइल कंप्यूटर या लैपटौप से कनैक्ट हो जाएगा. अपने मोबाइल का डाटा आप कंप्यूटर पर देख सकते हैं. कनैक्ट होते ही कंप्यूटर या लैपटौप पर विंडो ओपन होगी.

यहां से आप फाइल ऐक्स्प्लोरर की मदद से माय कंप्यूटर को ओपन करें. यहां पर आप को फोटोज, वीडियोज, म्यूजिक, डौक्यूमैंट्स आदि फोल्डर दिखाई देंगे. यहां पर कौपी पेस्ट कमांड की मदद से आप मोबाइल के फोटोज अपने कंप्यूटर या लैपटौप पर कौपी कर सकते हैं

(यदि आप के कंप्यूटर पर विंडोज औपरेटिंग सिस्टम है) या आप अपने साल के इवेंट्स के फोटोज के अनुसार फोल्डर्स भी बना सकते हैं जैसे बर्थडे, शादी, ऐनिवर्सरी, ईयर (2021, 2020) आदि.

स्मार्ट हो फोटोज को सहेजने का तरीका

आजकल स्मार्ट फोन और ऐप्स का जमाना है तो अपनी फोटोज को संग्रह करने का तरीका भी यदि स्मार्ट हो तो सोने में सुहागा इसलिए अब अपने फोटोज को संग्रह करने के लिए कंप्यूटर या लैपटौप, डीवीडी, पैन ड्राइव आदि को भूल जाएं. अपने पुराने तरीके में बदलाव लाएं और अपनाएं नए तरीके जिन की मदद से आप अपने फोटोज को बहुत ही आसानी से सहेज कर रख सकते हैं और जब उन हसीं पलों की याद आए तो उन्हें बिना किसी माथापच्ची के ढूंढ़ भी सकते हैं.

बनाएं अपनी डिजिटल फोटो लाइब्रेरी

कई बार ज्यादा फोटोज भी मोबाइल की मैमोरी क्षमता पर भारी पड़ता है एवं व्यवस्थित करना मुश्किल होता है इसलिए इस से पहले कि  फोटो आप के लिए मुसीबत बनें, उन्हें ठीक से सहेजसंवार लें. इस के लिए आप गूगल या ऐप्पल फोटोज ऐप्स की मदद से यह काम आसानी से कर सकते हैं. गूगल और ऐप्पल फोटोज दोनों ही औटोमैटिकली अलबम बनाते हैं. इन दोनों ऐप पर ऐसे टूल्स भी हैं, जिन की मदद से आप अपनी फोटो लाइब्रेरी को बेहतर तरीके से और्गेनाइज करते हैं. इस का फायदा यह है कि जब चाहें तब जहां चाहें वहां बिना किसी परेशानी के और आसानी से अपनी पुरानी यादों के हसीं पलों को देख सकते हैं और उन का आनंद ले सकते हैं. यही नहीं उन्हें शेयर भी कर सकते हैं.

उपयोग करें अपने गूगल अकाउंट का

यदि आप का गूगल अकाउंट है तो आप गूगल फोटोज का उपयोग अपने फोटो एवं वीडियो के बैकअप के लिए कर सकते हैं:

यहा पर आप 15 जीबी तक की स्पेस फ्री में उपयोग कर सकते हैं.

गूगल फोटोज में आप अपने फोटोज को अलगअलग फोल्डर में रख सकते हैं.

गूगल फोटोज पर आप अपने फोटो और वीडियो सुरक्षित तरीके से रख सकते हैं और अपनी यादगार तसवीरें किसी भी डिवाइस पर देख सकते हैं.

आप को जो फोटो चाहिए उसे तेजी से ढूंढ़ने में गूगल फोटोज मदद करता है.

गूगल फोटोज पर आप के फोटोज अपनेआप व्यवस्थित किए जाते हैं और खोजने लायक बनाए जाते हैं ताकि आप को जो फोटोज चाहिए उन्हें आप आसानी से कम समय में फटाफट ढूंढ़ सकें.

बदलाव करने वाले टूल और स्मार्ट फिल्टर की मदद से अपने पसंदीदा फोटो में बदलाव कर के, यादगार लमहों को और आकर्षक व बेहतरीन भी बना सकते हैं तथा अपने दोस्तों और फैमिली के साथ शेयर भी कर सकते हैं.

इन ऐप्स की मदद से आप फोटो को तारीख, अलबम व अन्य विशेषताओं के अनुसार तसवीरों को छांट कर उन्हें वर्गीकृत कर सकते हैं या अलबम का कोई नाम भी दे सकते हैं. इस अलबम में सिर्फ बच्चों के

फोटोज रखने हैं तो इसे आप किड्स फोटोज नाम दे सकते हैं. दोस्तों के फोटो हैं तो फ्रैंड्स पिक्स नाम दे सकते हैं. यदि आप के परिवार की पिक्चर्स हैं तो फैमिली, यदि आप की किट्टी पार्टी की पिक्चर्स हैं तो आप इसे किट्टी पार्टी नाम दे सकते हैं.

डिजिटल फोटो लाइब्रेरी मैनेज करने के लिए

अलबम बनाएं: अलबम में हम फोटोज को बुक्स लाइब्रेरी की तरह अलफाबैटिकल और्डर में भी रख सकते हैं. ऐसा करने का एक फायदा यह है कि इन्हें ढूंढ़ने में काफी सहूलियत रहती है. जिस अलबम के फोटोज देखने हों जब जरूरत हो, तब फटाफट बिना समय बरबाद किए खोज सकते हैं.

स्मार्ट तरीके से करें पिक्चर्स सर्च या ढूंढ़ें: जब अपने कंप्यूटर या लैपटौप पर फोटोज सेव कर के रखते हों तो कुछ दिनों या सालों बाद उन में से उन पिक्चर्स या फोटोज को निकालना मुश्किल हो जाता है जिन्हें आप सेव कर भूल चुके हैं. ऐसे समय में गूगल और ऐप्पल फोटोज ऐप्स हमारे लिए काफी मददगार होते हैं. आजकल स्मार्ट फोन में फोटोज डाटा में लोकेशन डाटा लगा होता है. इस की मदद से हम बिना वक्त बरबाद किए अपनी पुरानी फोटोज को सर्च कर सकते हैं. इस के लिए सर्च बौक्स में सामान्य रूप से उस जगह का नाम डालिए जहां आप घूमने गए थे और फोटोज क्लिक किए थे. सर्च करने पर वे सारे फोटोज आप को मिल जाएंगे क्योंकि गूगल और ऐप्पल फोटोज औटोमैटिकली हमारे लिए फोटोज को वर्गीकृत करते हैं.

अलबम में फोटो ढूंढ़ने के लिए ऐप की फ्रंट सक्रीन को ओपन करें यदि. आप को तारीख के हिसाब से सर्च करना है तो सर्च बार में ‘जून 2021’ की वर्ड डाल कर भी फोटो सर्च कर सकते हैं. यदि नाम डाल कर सर्च करना है तो सर्च बार में नाम जैसै बर्थडे की वर्ड डालें. अब आप के सारे फोटोज आ जाएंगे.

इस तरह हम नए स्मार्ट तरीके अपना कर अपने फोटोज एवं वीडियोज को अच्छे से एवं सुरक्षित तरीके से संग्रह कर सकते हैं फिर अपनी खुशियों को हमेशा के लिए कैद कर सकते हैं फिर अपनों के साथ जब चाहें तब शेयर कर सकते हैं. मोबाइल खराब या गुम हो जाने पर यह तरीका और भी उपयोगी हो जाता है.

फैस्टिवल पर दिखना चाहती हैं सबसे अलग, तो गोल्ड प्लेटेड आभूषणों से पाएं ट्रैंडी लुक

सोने के आभूषणों का नाम सुनते ही महिलाओं का मन खुशी से भर उठता है और भरे भी क्यों न, सालों से सोने के गहनों की एक अलग चमक होती है, जो किसी भी नारी की खूबसूरती को बढ़ाती है. सोना कीमती होने के साथसाथ एक अलग लुक भी महिलाओं को देता है. यही वजह है कि राजामहाराजाओं के जमाने से ले कर आज तक हर इंसान खास अवसर पर सोने के गहने पहनना पसंद करता है, लेकिन लगातार सोने के बढ़ते दाम के चलते ज्वैलरी खरीदने का ट्रैंड काफी बदल गया है.

आज सभी गोल्ड प्लेटेड आभूषण खरीदना ज्यादा पसंद कर रहे हैं क्योंकि ये सुपरियौरिटी, स्मार्ट और ट्रैंडी लुक देते हैं, साथ ही आप का बजट भी नहीं गड़बड़ाता और आवश्यक खरीदारी भी की जा सकती है. पिछले 1 साल के आंकड़े देखें तो 10 ग्राम सोने के दाम क्व62 हजार से क्व74 हजार के करीब तक पहुंच गए हैं, जो काफी ज्यादा हैं और आम इंसान के बजट पर भारी हैं.

यही वजह है कि आजकल बाजार में गोल्ड प्लेटेड गहनों का ट्रैंड आ चुका है, जिन्हें पहनना और उन का रखरखाव करना भी आसान हुआ है. आधुनिक गोल्ड प्लेटेड ज्वैलरी ने फैशन की दुनिया में अपनी एक अलग छवि बना ली है. यह सौलिड गोल्ड ज्वैलरी का एक किफायती विकल्प है जो कम कीमत पर वही खूबसूरत और शानदार लुक देती है. 2024 का ट्रैंड गोल्ड प्लेटेड ब्रस्लेट, नैकलैस, इयररिंग्स आदि हैं, जिन्हें आप औनलाइन या बाजार में जा कर आसानी से खरीद सकते हैं.

गोल्ड प्लेटेड आभूषण बनाने का तरीका

सोने की परत चढ़ाने में पीतल या तांबे जैसी किसी धातु पर एक पतली परत चढ़ाना होता है. इसलिए न्यूनतम सोने की मात्रा का उपयोग कर के खनन से जुड़े पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को भी कम किया जा सकता है जो आधुनिक उपभोक्ताओं की पर्यावरण के प्रति जागरूकता को भी बनाए रखती है.

आइए जानें इन्हें बनाने की प्रक्रिया

सब से पहले बेस धातु को जस्ती यानी गैल्वनाइज्ड किया जाता है ताकि जंग न लगे और सोने की परत पर असर न पड़े. इस के बाद इलैक्ट्रोप्लेटिंग की प्रक्रिया से सोने की परत चढ़ाई जाती है. इस में विद्युत धाराओं का इस्तेमाल कर के बेस धातु पर सोने की परत जमा की जाती है.

सोने की परत चढ़ाने के लिए टुकड़े को प्लेटिंग सौल्यूशन में डुबोया जाता है. इस में समय, तापमान और वोल्टेज को सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाता है. इस प्रक्रिया के बाद आभूषण को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है.

सोने की परत चढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाले सोने की शुद्धता 10 कैरेट से 24 कैरेट तक हो सकती है.

उपहार देने के लिए भी अच्छा औप्शन

गोल्ड प्लेटेड की कोई भी वस्तु दीवाली पर उपहार देने के लिए भी अच्छी मानी जाती है क्योंकि इस की चमक रियल गोल्ड की तरह ही होती है और यह बजट के अनुसार होती है. सही रखरखाव से इसे सालों तक पहना भी जा सकता है.

रिश्तेदार हों या फ्रैंड्स सभी को गोल्ड प्लेटेड वस्तुएं या ज्वैलरी दी जा सकती है. इस में भाई या बौयफ्रैंड के लिए गोल्ड प्लेटेड बैंड्स और अंगूठियां जिन पर उन के नाम का पहला अक्षर हो, दी जा सकती है. इस के अलावा कफ लिंक्स, कालर पिन्स, टाई पुन्स, पैंडैंट और अन्य गोल्ड प्लेटेड पीसेज भी आप अपने हिसाब से दे सकते हैं.

महिलाओं के लिए अंगूठी, नैकपीस, पैंडैंट, इयररिंग्स, ?ामके, बैंगल्स, ब्रेसलेट्स आदि अच्छे गिफ्ट औप्शन हैं, सहकर्मी या फ्रैंड्स के लिए गोल्ड प्लेटेड पैन, मोनोग्राम की गई गोल्ड घड़ी, गोल्ड पैन, व्यक्तिगत अंगूठियां, गोल्ड प्लेटेड सिक्के आदि सारे उपहार आप के प्रेम और रिश्ते की मजबूती को बढ़ाते हैं.

प्यार होते हुए भी इजहार करने से क्यों डरते हैं लोग ?

राइटर- मुग्धा

जमाना गया जब प्रेम को वासना कहा जाता था और किसी का मधुर स्पर्श कोई वर्जित अपराध जैसा हुआ करता था. आज तो मनोवैज्ञानिक सलाहकार अपने हर सु झाव में यही बात कहते हैं कि कोई साथी होना चाहिए जो आप को प्यार करे.

तकनीक, वैज्ञानिक सोच, पूंजीवाद आदि ने मानव को ऐसा व्याकुल किया है कि समाज किसी सुकून देते हुए स्पर्श की तरफ  झुका चला जाता है. भागदौड़ करती और आत्मनिर्भर बनती नई पीढ़ी को अब यह बिलकुल डरावना नहीं लगता कि किसी की मधुर संगति में रहने से कोई भयंकर पाप हो जाएगा. अकेलेपन से झू  झतेझू  झते जब मन किसी की जरूरत महसूस करता है तो इस में कौन सी बुराई है कि वह कोई अपना बिलकुल नजदीक ही बैठा हो. महानगरीय जीवन मे रोज 15 घंटे तक खपने वाली युवा पीढ़ी अब ऐसा दर्शन बिलकुल नहीं सम  झना चाहती कि तनहाई में जिस की आस लगाए बैठे हैं वह मिले तो ऐसी दशा में हम क्या करें निराश हो जाएं? यह तक तय नहीं है कि जीवन कल या परसों कौन सा मोड़ लेने वाला है, प्रकृति का मिजाज भी ठीकठाक मालूम नहीं.

प्यार और मनोविज्ञान


मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि इस जीवन का मूल उत्स आनंद की खोज ही है और यह आनंद प्रयोजनातीत है. किसी के पास बैठ कर मनचाही सुंदर बातें करनेसुनने से हमें आनंद प्राप्त होता है और उस से हमारा मन संतोष ही नहीं पाता बल्कि दिल को गहराई तक एक अपूर्व शांति भी प्राप्त होती है.

तो हमें यह जरूरी क्यों लगता है? इस का कोई कारण नहीं बताया जा सकता. वह केवल अनुभव ही किया जा सकता है, ‘ज्यों गूंगे मीठे फल को रस अंतर्गत ही भावै,’ आनंद का भाव वाणी और मन की पहुंच के बिलकुल अतीत है. ‘यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह,’ पर प्रेम, स्नेह, मधुर छुअन इन सब का संबंध मन के साथ है. मन बिना साथी के, आनंद के सहज भाव को ग्रहण नहीं करना चाहता. उस को एक साक्षात प्रेमी चाहिए जिस के साथ वह कुछ देर मौन भी रह सकता है पर उस का आनंद बना रहता है.

बावरा मन अपना बैंक बैलेंस देख कर भी कुछ अतृप्त ही रहता है. मन ही मन वह खोज में लग जाता है कि कहीं कोई ऐसा हो जिस के पास जा कर स्वर्ग सा सुख मिले. वह यह नहीं सम  झना चाहता कि इस में आनंद का जो अमिश्रित रस है वह समय मांग रहा है या कोई मूल्य. पर जो लोग इस बेचैन मन को सम  लेने में समर्थ होते हैं, वे एक प्रिय के पास जा कर आनंद केआनंदरूपमृतका अनुभव कर लेते हैं.

प्यार ही जीवन है

अब यह तो एक अकाट्य सत्य है ही कि प्यार इस जीवन की प्राणवायु है. किसी प्रिय संग बैठना, बतियाना यह सब तो मानव सभ्यता के आरंभ मे भी रहा है. हमारे समाज में वही कथा बारबार कहीसुनी जाती है जिस में प्यार का किस्सा हो ऐसा कोई जिक्र हो, मनुष्य कहीं भी हो, कैसा भी हो वह हर हाल में सहज हो कर ही जीना चाहता है. अगर उसे बहुत दिनों तक प्रेम मिले तो उस की मानसिक दशा पर कुप्रभाव पड़ता ही है.


2 मीठे बोल और किसी के आसपास रहने की जो खूबसूरती है वह सौ फीसदी एक टौनिक का काम करती है. इसीलिए प्रेम सामान्य रूप से हर किसी को आकर्षित करता है. यही कारण है कि देशविदेश में ऐसे लोगों का आंकड़ा हर दिन बढ़ रहा है जो कुछ देर प्रीत से लबालब गपशप करना चाहते हैं या किसी से मिल कर, उसे देख कर अपना मानसिक दुख भूल जाते हैं.


मनोविज्ञान के अनुसार किसी विपरीत लिंगी के  पास होना शरीर में सकारात्मक परिवर्तन शुरू कर देता है. यह एक प्राकृतिक मांग है जो जीवन की निशानी और सेहत का प्रतीक भी  है. किसी की मनभावन या मनपसंद संगति को औषधि का प्रतीक मान कर उस पर कायम रहना चाहिए. इस से केवल पागलपन तथा अवसाद कम होता है बल्कि आत्महत्या जैसे मामले भी रुकने लगते हैं समाज में लोग जब किसी के साथ मनपसंद वार्त्तालाप का सुख पा लेते हैं तो समाज में जाति, धर्मों के बीच भी प्रेम बढ़ता है, नफरत कम होती है और सहानुभूति का खयाल ही बारबार आता है.

अच्छी छवी बनी रहे


बहुत से लोग अपनी इच्छा को दबाने लगते हैं या अपनेआप को घर में कैद कर के फिल्म या धारावाहिक में मन लगाते हैं या फिर घर की दीवार पर कुछ तसवीरें लगाते हैं ताकि बेचैनी कम होने लगे. मगर मनोविज्ञान कहता है कि इस तरह की तसवीरें और घर पर अकेले  कैद हो जाना पागलपन को बढ़ाता है.

इस का कारण यह है कि समाज इस तरह की चीजों, ऐसे साथियों पर प्रश्न उठाता है और यह एक धारणा बन गई है कि किसी मनचाहे की संगति चरित्रहीनता है. यह समाज की नजर में पतन को दर्शाता है. समाज के मामले में आदमी जितना विनम्र, सौम्य होगा वह चरित्रवान होगा भले ही यह उस इंसान की मानसिक खुशहाली के लिए कभी बेहतर नहीं होता. बस एक अच्छी छवि बनी रहे और सब परिचय देते हुए अच्छा ही कहें यह तो मूर्खता है. सामाजिक तालमेल के लिए खुद को तकलीफ में रखना, दुख पहुंचाना यह सम  झदारी नहीं है.

उथलपुथल से उबर कर संपूर्ण शांति, शांत मन, भावनाओं में तरंग और हलकापन, स्वस्थ शरीर, सदा सहयोग के लिए तैयार मन हमारे व्यवहार में संतुष्टि को इंगित करता है. यह संतुष्टि तभी आती है जब प्रेम भरपूर मिल रहा हो. आज समय का पहिया कुछ इस तरह चल रहा है कि आजीविका के लिए अपनों से, अपने गांव, शहर, कसबे से दूर रहना ही पड़ता है. ऐसे में हरकोई अपने परिवार, समूह या संबंधियों के साथ नहीं रह पाता. अब समय ऐसा है कि अपने मन की दुनिया को एक सुंदर आकार देने के लिए, जीवन ऊर्जा की ओर बढ़ने का समय है जो किसी भी मानसिक सेहत का आधार है.

स्वस्थ समाज की निशानी


आंतरिक संतोष से ही बाहरी शांति संभव है. यही आंतरिक चैन और सुकून लंबी आयु की कुंजी भी है. यह जागरूकता कि जीवन का सब सुख एक साथी के पास जा कर पल दो पल बतिया कर सौ गुना होने जा रहा है तो यह काम  मन की चिंतात्मक प्रवृत्ति को मिटा सकता है. अकेलेपन से दिल में बहुत सी दुखदाई चीजें हो जाती हैं, कुछ सुखद और कुछ प्रिय अगर इस तरह संभव है तो उसे हासिल करना चाहिए. मन को मन की विविधता पसंद है.

एक अकेले और संतोषी आदमी का मन भी हमेशा गतिशील और चंचल रहता है. अत: मन को किसी घबराहट में ही सीमित नहीं करना चाहिए. स्नेह और प्रेम कर के सृजन की विविधता का आनंद लेना एक ईमानदार लेनदेन है. हम अकसर मन का आराम शब्द का उपयोग करते रहे हैं. यही है उस का सही तरीका. यही आज स्वस्थ समाज की निशानी और जरूरत दोनों है.    

अपने हिस्से की जिंदगी: मोबाइल फोन से कनु को क्यों इतनी चिढ़ थी?

पहलीडेट का पहला तोहफा. खोलते हुए कनु के हाथ कांप रहे थे. पता नहीं क्या होगा… हालांकि निमेश के साथ इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए कनु का दिल बिलकुल भी गवाही नहीं दे रहा था, मगर कहते हैं न कि कभीकभी आप की अच्छाई ही आप की दुश्मन बन जाती है. कनु के साथ भी यही हुआ था. उस ने अपनी छोटी सी जिंदगी में इतने दुख देख लिए थे कि अब वह हमेशा इसी कोशिश में रहती कि कम से कम वह किसी के दुखी होने का कारण न बने. इसीलिए न चाहते हुए भी वह आज की इस डेट का प्रस्ताव ठुकरा नहीं सकी.

निमेश उस का सहकर्मी, उस का दोस्त, उस का मैंटर, उस का लोकल गार्जियन, सभी कुछ तो था. ऐसा भी नहीं था कि कनु उस के भीतर चल रहे झंझावात से अनजान थी. अनजान बनने का नाटक जरूर कर रही थी. कितने बहाने बनाए थे उस ने जब कल औफिस में निमेश ने उसे आज शाम के लिए इनवाइट किया था.

‘यह निमेश भी न बिलकुल जासूस सा दिमाग रखता है… पता नहीं इसे कैसे पता चल गया कि आज मेरा जन्मदिन है. मना करने पर भी कहां मानता है यह लड़का…’ कनु सोचतेसोचते गिफ्ट रैप के आखिरी फोल्ड पर पहुंच चुकी थी.

बेहद खूबसूरती से पैक किए गए लेटैस्ट मौडल के मोबाइल को देखते ही कनु के होंठों पर एक फीकी सी मुसकान तैर गई. वह पहले से ही जानती थी कि इस में ऐसा ही कुछ होगा, क्योंकि उस के ओल्ड मौडल मोबाइल हैंडसैट को ले कर औफिस में अकसर ही निमेश ‘ओल्ड लेडी औफ न्यू जैनरेशन’ कह कर उस का मजाक उड़ाता था.

कनु कैसे बताती निमेश को कि यह छोटा सा मोबाइल ही उस की जिंदगी में इतना बड़ा तूफान ले कर आया था कि उस का परिवार तिनकातिनका बिखर गया था. उसे आज भी याद है लगभग 10 साल पहले का वह काला दिन जब पापा से लड़ाई होने के बाद गुस्से में आ कर उस की मां ने अपनेआप को आग के हवाले कर दिया था. मां की दर्दनाक और कातर चीखें आज भी उस की रातों की नींदें उड़ा देती हैं. मां शायद मरना नहीं चाहती थीं, मगर पापा पर मानसिक दबाव डालने के लिए उन्होंने यह जानलेवा दांव खेला था. उन्हें यकीन था कि पापा उन्हें रोक लेंगे, मगर पापा तो गुस्से में आ कर पहले ही घर से बाहर निकल चुके थे. उन्होंने देखा ही नहीं था कि मां कौन सा खतरनाक कदम उठा रही हैं.

मां को लपटों में घिरा देख कर वही दौड़ कर पापा को बुलाने गई थी. मगर पापा उसे आसपास नजर नहीं आए तो पड़ोस वाले अनिल अंकल ने पापा को मोबाइल पर फोन कर के हादसे की सूचना दी थी. आननफानन में मां को हौस्पिटल ले जाया गया, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मोबाइल ने उस की मां को हमेशा के लिए उस से छीन लिया था.

कनु के पापा को शुरू से ही नईनई तकनीक इस्तेमाल करने का शौक था. उन दिनों मोबाइल लौंच हुए ही थे. पापा भी अपनी आदत के अनुसार नया हैंडसैट ले कर आए थे. घंटों बीएसएनएल की लाइन में खड़े हो कर उन्होंने सिम ली थी. उन दिनों मोबाइल में अधिक फीचर नहीं हुआ करते थे. बस कौल और मैसेज ही कर पाते थे. हां, मोबाइल पर कुछ गेम्स भी खेले जाते थे.

पापा के मोबाइल पर जब भी कोई फनी या फिर रोमांटिक मैसेज आता था तो पापा उसे पढ़ कर मां को सुनाते थे. मां जोक सुन कर तो खूब हंसा करती थीं, मगर रोमांटिक शायरी सुनते ही जैसे किसी सोच में पड़ जाती थीं. वे पापा से पूछती थीं कि इस तरह के रोमांटिक मैसेज उन्हें कौन भेजता है… पापा भेजने वाले का नाम बता तो देते थे, मगर फिर भी मां को यकीन नहींहोता था.

धीरेधीरे मां को यह शक होने लगा था कि पापा के दूसरी महिलाओं से संबंध हैं और वे ही उन्हें इस तरह के रोमांटिक मैसेज भेजती हैं. वे पापा से छिप कर अकसर उन का मोबाइल चैक करती थीं. पापा को उन की यह आदत अच्छी नहीं लगी या फिर शायद पापा के मन में ही कोई चोर था, उन्होंने अपने मोबाइल में सिक्युरिटी लौक लगा दिया.

मां दिमागीरूप से परेशान रहने लगी थीं. हालत यह हो गई थी कि जब भी पापा के मोबाइल में मैसेज अलर्ट बजता मां दौड़ कर देखने जातीं कि किस का मैसेज है और क्या लिखा है… मगर लौक होने की वजह से देख नहीं पाती थीं. वे पापा से मोबाइल चैक करवाने की जिद करतीं तो पापा का ईगो हर्ट होता और वे मां पर चिल्लाने लगते. बस यही कारण था दोनों के बीच लड़ाई होने का.

यह लड़ाई कभीकभी तो इतनी बढ़ जाती थी कि पापा मां पर हाथ भी उठा देते थे. जब कभी पापा अपना मोबाइल मां को पकड़ा देते और उन्हें किसी महिला का कोई मैसेज उस में दिखाई नहीं देता तो मां को लगता था कि पापा ने सारे मैसेज डिलीट कर दिए हैं.

पापा का ध्यान मोबाइल से हटाने के लिए मां उन पर मानसिक दबाव बनाने लगी थीं. कभी सिरदर्द का बहाना तो कभी पेटदर्द का बहाना करतीं… कभी कनु और उस के बड़े भाई सोनू को बिना वजह ही पीटने लगतीं… कभी कनु की दादी को समय पर खाना नहीं देतीं… कभी पापा को आत्महत्या करने और जेल भिजवाने की धमकियां देतीं… और एक दिन धमकी को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने खुद पर तेल छिड़क कर आग लगा ली. उन का यह नासमझी में उठाया गया कदम कनु और सोनू के लिए जिंदगी भर का नासूर बन गया.

मां के जाते ही गृहस्थी का सारा बोझ कनु की बूढ़ी दादी के कमजोर कंधों पर आ गया.

उस समय कनु की उम्र 10 साल और सोनू की 13 साल थी. साल बीततेबीतते कनु के पापा किसी दलाल की मार्फत एक अनजान महिला से शादी कर के उसे अपने घर ले आए. वह महिला कुछ महीने तो उन के साथ रही, मगर बूढ़ी सास और बच्चों की जिम्मेदारी ज्यादा नहीं उठा सकी और एक दिन चुपचाप बिना किसी को बताए घर छोड़ कर चली गई.

कुछ साल अकेले रहने के बाद कनु के पापा फिर से अपने लिए एक पत्नी ढूंढ़ लाए. इस बार महिला उन के औफिस की ही विधवा चपरासिन थी. नई मां ने सास और बच्चों के साथ रहने से इनकार कर दिया तो कनु के पापा वहीं उसी शहर में अलग किराए का मकान ले कर रहने लगे. गृहस्थी फिर से कनु की दादी संभालने लगी थीं. कुछ साल तो घर खर्च और बच्चों की पढ़ाई का खर्चा कनु के पापा देते रहे, मगर फिर धीरेधीरे वह भी बंदकर दिया.

अब सोनू 18 साल का हो चुका था. उस ने ड्राइविंग सीखी और टैक्सी चलाने लगा.

घर में पैसा आने से जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर आने लगी थी. कनु की दादी से अब घर का कामकाज नहीं हो पाता था, इसलिए उन की इच्छा थी कि घर में जल्दी से बहू आ जाए जो घर के साथसाथ जवान होती कनु का भी खयाल रख सके. मगर सोनू चाहता था कि 2-4 साल टैक्सी चला कर कुछ बचत कर फिर खुद की टैक्सी खरीद कर अपने पैरों पर खड़ा हो तब शादी की बात सोचे. इसलिए वह देर रात तक टैक्सी चलाता था.

इन सालों में मोबाइल आम आदमी के शौक से होता हुआ उस की जरूरत बन चुका था, साथ ही उस में कई तरह के आकर्षक फीचर भी जुड़ गए थे. सोनू को भी मोबाइल का शौक शायद अपने पापा से विरासत में मिला था. वह जब रात में घर लौटता था तो कानों में इयर फोन लगा कर तेज आवाज में गाने सुनता था. रात में ट्रैफिक कम होने के कारण टैक्सी की स्पीड भी ज्यादा ही होती थी.

एक दिन मोबाइल में बजने वाले गाने का टै्रक चेंज करते समय सोनू मोड़ पर आने वाले ट्रक को देख नहीं पाया और टैक्सी ट्रक से टकरा गई. ट्रक ड्राइवर तो घबराहट में ट्रक छोड़ कर भाग गया और सोनू वहीं जख्मी हालत में तड़पता पड़ा रहा. लगभग 1 घंटे बाद पुलिस गश्ती दल की मोबाइल वैन ने गश्त के दौरान उसे घायल अवस्था में देखा तो हौस्पिटल ले गई. वक्त पर हौस्पिटल पहुंचने से उस की जान तो बच गई, मगर सिर में चोट लगने से उस के दिमाग का एक हिस्सा डैमेज हो गया और वह लकवे का शिकार हो कर हमेशा के लिए बिस्तर पर आ गया. डाक्टर्स को उस के बचने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए उन्होंने सोनू को कुछ जरूरी दवाएं घर पर ही देने की सलाह दे कर हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया.

कनु पर एक बार फिर से मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. जब तक सोनू हौस्पिटल में रहा तब तक तो उस के पापा ने इलाज के लिए पैसा दिया, मगर हौस्पिटल से घर आने के बाद फिर उन्होंने बच्चों की कोई सुध नहीं ली. घर खर्च के साथसाथ सोनू की दवाइयों के खर्च की व्यवस्था भी अब कनु को ही करनी थी.

कहते हैं कि मुसीबत कभी अकेले नहीं आती. एक दिन बूढ़ी दादी बाथरूम में फिसल गईं और रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से वे भी चलनेफिरने से लाचार हो गईं.

घरबाहर की सारी जिम्मेदारी अब कनु की थी. वह अब तक ग्रैजुएशन कर चुकी थी. उस ने एक कौल सैंटर में पार्टटाइम जौब कर ली. सुबह 11 से शाम 5 बजे तक वह कौल सैंटर में रहती थी. इस दौरान सोनू और दादी की देखभाल करने के लिए उस ने एक नर्स की व्यवस्था कर ली थी. घर लौटने के बाद देर रात तक घर से ही औनलाइन जौब किया करती थी. घरबाहर संभालती, कभी दादी तो कभी सोनू को दवाएं देती, उन की दैनिक क्रियाएं निबटाती कनु अकेले में फूटफूट कर रोती थी. मगर अंदर से बेहद कमजोर कनु बाहर से एकदम आयरन लेडी थी. मजबूत, बहादुर और स्वाभिमानी.

यहीं कौलसैंटर में ही उसे निमेश का साथ मिला था. अपनेआप में सिमटी कनु निमेश को एक पहेली सी लगती थी. कनु ने अपने चारों तरफ कछुए सा कठोर आवरण बना रखा था और निमेश ने जैसे उसे बेधने की ठान रखी थी. पता नहीं कैसे और कहां से वह कनु के बारे में सारी जानकारी इकट्ठा कर लाया था. कनु अभी नए मोबाइल हैंडसैट को हाथ में ही लिए बैठी थी

कि उस का पुराना फोन बज उठा. देखा तो निमेश का ही फोन था. कनु ने अपने आंसू पोंछे फोन रिसीव किया.

‘‘कैसा है बर्थडे गिफ्ट?’’ निमेश ने फोन उठाते ही पूछा.

‘‘गिफ्ट तो अच्छा ही है, मगर मेरे किसी काम का नहीं… अगर किसी और लड़की पर ट्राई किया होता तो शायद तुम्हारे पैसे वसूल हो जाते…’’ कनु ने अपनेआप को सामान्य करने की कोशिश करते हुए मजाक किया.

‘‘कोई बात नहीं… अभी शायद तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, कल बात करते हैं,’’ कह कर निमेश ने फोन काट दिया.

कनु अपने साधारण मोबाइल में नैट यूज नहीं करती है, इसीलिए न तो व्हाट्सऐप पर वह दिखाई देती है और न ही किसी और सोशल साइट पर उस का कोई अकाउंट है. उस की कोई पर्सनल मेल आईडी भी नहीं है. हां एक औफिसियल मेल आईडी जरूरी है जिस की जानकारी सिर्फ उस के स्टाफ मैंबर्स को ही है और उसे वह अपने लैपटौप पर ही इस्तेमाल करती है. बहुत मना करने पर भी निमेश उस पर अकसर पर्सनल मैसेज डाल देता है, मगर पढ़ने के बाद भी कनु उसे कोई जवाब नहीं देती.

अगले दिन जैसे ही कनु कौल सैंटर पहुंची, निमेश तुरंत उस के पास आया और बोला, ‘‘कनु तुम से कोई जरूरी बात करनी है.’’

‘‘फ्री हो कर करती हूं,’’ कह कनु ने उसे टाल दिया. पूरा दिन निमेश उस के फ्री होने का इंतजार करता रहा, मगर कनु उसे नजरअंदाज करती रही और शाम को चुपचाप वहां से निकल गई. अभी उसे घर पहुंचे 1 घंटा ही हुआ था कि निमेश भी पीछेपीछे आ गया. क्या करती कनु. घर आए मेहमान को अंदर तो बुलाना ही था. मगर उस एक कमरे के घर में उसे बैठाने की जगह भी नहीं थी.

‘चलो अच्छा ही हुआ… आज हकीकत अपनी आंखों से देख लेगा तो इस के इश्क का बुखार उतर जाएगा…’ सोचती हुई कनु उसे भीतर ले गई. कमरे में 3 चारपाइयां लगी थीं. एक पर सोनू और एक पर दादी सो रहे थे.

तीसरी शायद कनु की थी. निमेश खाली चारपाई पर चुपचाप बैठ गया. कनु चाय बना कर ले आई. दादी को सहारा दे कर तकिए के सहारे बैठा कर उस ने एक कप दादी को थमाया और एक निमेश की तरफ बढ़ा दिया. निमेश चुपचाप चाय पीता रहा. सोच कर तो बहुत आया था कि कनु से यह कहूंगा, वह कहूंगा, मगर यहां आ कर तो उस की जबान तालू से ही चिपक गई थी. एक भी शब्द नहीं निकला उस के मुंह से. चाय पी कर निमेश ने ‘चलता हूं’ कह कर उस से बिदा ली.

1 सप्ताह हो गया कनु को निमेश कहीं नजर नहीं आया. मन ही मन सोचा कि निकल गई न इश्क की हवा… फिर सोचा कि इस में बेचारे निमेश की क्या गलती है… कुदरत ने मेरी जिंदगी में प्यार वाला कौलम ही खाली रखा है. निमेश ठीक ही तो कर रहा है… अब कोई जानबूझ कर जिंदा मक्खी कैसे निगल सकता है… सपने देखने की उम्र में कोई जिम्मेदारियों के लबादे भला क्यों ओढ़ेगा?

शाम को अचानक पापा को घर आया देख कर कनु को बहुत आश्चर्य हुआ. ‘2 साल से सोनू बिस्तर पर है, मगर पापा ने कभी आ कर देखा तक नहीं कि वह किस हाल में है… यहां तक कि उन की अपनी मां के चोटिल होने तक की खबर सुन कर भी उन्होंने उन की कोई खैरखबर नहीं ली… आज जरूर कुछ सीरियस बात है जो पापा को यहां खींच लाई है… क्या बात हो सकती है…’ कनु का दिल तेजी से धड़कने लगा.

‘‘कनु, मुझे माफ कर दे बेटी. मैं सिर्फ अपनी खुशियां ही तलाश करता रहा, तेरी खुशियों के बारे में जरा भी नहीं सोचा… धिक्कार है मुझ जैसे बाप पर… मुझे तो अपनेआप को पिता कहते हुए भी शर्म आ रही है… भला हो निमेश का जिस ने मेरी आंखें खोल दी वरना पता नहीं और कितने गुनाहों का भागी बनता मैं…’’ पापा ने कनु के  हाथ अपने हाथ में लेते हुए भर्राए गले से कहा.

‘‘अच्छा तो ये सब निमेश का कियाधरा है… उसे कोई अधिकार नहीं है इस तरह उस के घरेलू मामले में दखल देने का…’’ पापा के मुंह से निमेश का नाम सुनते ही कनु का पारा चढ़ गया. उस ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, ‘‘पापा, आप हमारी फिक्र न करें… हम सब ठीक हैं… सोनू और दादी की देखभाल मैं कर सकती हूं… बोझ नहीं हैं वे दोनों मेरे लिए…’’ बरसों से मन के भीतर दबी कड़वाहट धीरेधीरे पिघल कर बाहर आ रही थी.

‘‘मैं अपने किए पर पहले ही बहुत पछता रहा हूं, मुझे और शर्मिंदा मत करो कनु. मां और सोनू तुम्हारी नहीं बल्कि मेरी जिम्मेदारी है…’’ पापा ने ग्लानि से कहा.

तभी कनु ने निमेश को आते हुए देखा तो नाराजगी से अपना मुंह फेर लिया. कनु के पापा ने भी उसे देख लिया था. बोले, ‘‘सोनू और मां को तो मैं अपने साथ ले जाऊंगा, मगर एक और बड़ी जिम्मेदारी है मुझ पर पिता होने की… उस से अगर मुक्ति मिल जाती तो मैं गंगा नहा लेता.’’ कनु ने प्रश्नवाचक नजरों से उन की तरफ देखा.

‘‘कनु, निमेश बहुत ही अच्छा जीवनसाथी होगा… तुम्हें बहुत खुश रखेगा…. तुम्हें राजी करने के लिए इस ने क्याक्या पापड़ नहीं बेले… तुम बस हां कर दो… इसे इस के प्यार का प्रतिदान दे दो,’’ पापा ने निमेश की वकालत करते हुए कनु से मनुहार की.

‘‘अगर आप सोनू और दादी को अपने साथ ले जाएंगे तो क्या आप की पत्नी को एतराज नहीं होगा?’’ कनु ने अपनी कड़वाहट जाहिर की.

‘‘कौन पत्नी… कैसी पत्नी? वह औरत तो 2 साल पहले ही मुझे यह कह कर छोड़ गई थी कि जो अपनी मां और बच्चों का नहीं हुआ वह मेरा कैसे हो सकता है… वैसे सही ही कहा था उस ने… मुझे आईना दिखा दिया था उस ने… मगर मुझ में ही हिम्मत नहीं बची थी तुम्हारा सामना करने की… क्या मुंह ले कर आता तुम्हारे पास… मैं एहसानमंद हूं निमेश का जिस ने मुझे हिम्मत बंधाई और अपनी जिम्मेदारी निभाने का हौसला दिया…’’ कनु के पापा की आंखों से आंसू बह चले.

कनु ने प्यार से निमेश की तरफ देखा तो वह शरारत से मुसकरा रहा था. बोला, ‘‘कनु, मैं बेशक छोटी सी नौकरी करता हूं, ज्यादा पैसा नहीं हैं मेरे पास… मगर मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें कोई कमी नहीं रहने दूंगा… तुम्हारे हिस्से की जिंदगी अब खुशियों से भरपूर होगी.’’

‘‘मैं सोनू और मां के लिए ऐंबुलैंस मंगवाता हूं. तुम तब तक अपना जरूरी सामान पैक कर लो,’’ कनु के पापा ने उसे लाड़ से कहा. फिर निमेश की तरफ मुड़ कर बोले, ‘‘तुम इस रविवार अपने घर वालों को हमारे यहां ले कर आओ… रिश्ते की बात घर के बड़ों के बीच हो तो ही अच्छा लगता है.’’

अपने आंसू पोंछते हुए कनु बोली, ‘‘एक शर्त पर मैं आप सब की बात मान सकती हूं… आप सभी को मुझ से वादा करना होगा कि कोई भी अनावश्यक रूप से मोबाइल का उपयोग नहीं करेगा… इसे जरूरत पर ही इस्तेमाल किया जाएगा, शौक के लिए नहीं…’’

‘‘वादा’’ सब ने एकसाथ चिल्ला कर कहा और फिर घर में हंसी की लहर दौड़ गई.

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