गार्लिक क्राउटोंस

सामग्री

2 कलियां लहसुन मध्यम आकार की कटी

1 बड़ा चम्मच पार्सले या मिक्स्ड हर्ब्स

2 बड़े चम्मच औलिव औयल

4 ब्रैडस्लाइस

2 बड़े चम्मच मक्खन

कालीमिर्च पाउडर व नमक स्वादानुसार.

विधि

एक पैन को गरम कर के उस में तेल और मक्खन डालें. अब इस में लहसुन, नमक, पार्सले और कालीमिर्च पाउडर डाल कर अच्छी तरह मिला कर भूनें. फिर आंच से उतार कर एक तरफ रख दें. सभी ब्रैडस्लाइस के चारों किनारे काट कर ब्रैडस्लाइस क्यूब्स में काटें. फिर उन्हें बेकिंग ट्रे में रख कर ऊपर तैयार मिश्रण डालें और 1500 सैल्सियस पर 15 मिनट बेक करें. फिर सूप के साथ सर्व करें.

बिना मांगे सलाह आप भी तो नहीं देतीं

क्या आप भी बिना मांगे मुफ्त सलाह देने की आदत यानी बीएमएमएस से पीडि़त हैं? क्या इस बीमारी के कीटाणु आप के शरीर में घर कर चुके हैं? क्या आप को सुझाव देने की खुजली हर समय होती है? फिर भी क्या आप बीएमएमएस से अनजान हैं? अगर हां तो आप हमारे पास आएं. हमारे पास आप को मिलेंगे इस कीटाणु से निबटने के आसान नुसखे. साथ ही आप को यह भी पता चलेगा कि आप इस बीमारी से पीडि़त हैं या नहीं. और अगर हैं तो बीमारी कौन से चरण में है. अ्रगर इस के लक्षण शुरुआती हैं तो आप ठीक हो सकते हैं. लेकिन यदि यह बीमारी अपनी अंतिम अवस्था में आ चुकी है, तो इस का नतीजा होगा ‘सोशल आइसोलेशन’ यानी सामाजिक अकेलापन. मतलब समझ में नहीं आया न आप को? लेकिन यकीन मानिए कि अगर ऐसा हो गया, तो समाज में आप का जीना मुश्किल होता जाएगा. लोग आप से कतराएंगे, इधरउधर भागेंगे, नजरें चुराएंगे और आप के सामने नहीं आएंगे.

कुछ सवाल

अब मैं आप से कुछ सवाल पूछने जा रही हूं. यदि उन के जवाब अधिकतर ‘हां’ में हैं तो मान लीजिएगा कि आप इस बीमारी से बुरी तरह से पीडि़त हैं.

1. क्या लोग आप को देख कर मुसकरा कर हाथ हिलाते हैं और आगे चले जाते हैं?

2. क्या लोग आप को देख कर नजरें झुका आगे चले जाते हैं?

3. क्या लोग आप को बातें बताने से कतराते हैं?

4. क्या आप हर समय कुछ न कुछ बोलते रहते हैं?

5. क्या आप हर किसी को अपने बेटाबेटी का उदाहरण देते रहते हैं?

6. क्या आप अपनी जीवनशैली के बारे में हर समय बोलते रहते हैं?

7. क्या किसी भी घटना के समय आप कहीं का भी उदाहरण दे डालते हैं?

8. क्या आप को लगता है कि आप को सब कुछ पता है?

9. क्या आप खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं?

10. क्या आप जोर से बोल कर व दूसरों को चुप करा कर अपनी बात कहते चले जाते हैं और बोलते हुए दूसरे लोगों को हाथ हिला कर शांत कराते हैं?

जैसा कि आप से पहले भी कहा कि अगर आप के इन में से अधिकतर के जवाब  ‘हां’ में हैं तो समझ लें कि आप इस बीमारी से बुरी तरह पीडि़त हैं. इस का नतीजा यह होता है कि लोग आप से दूर भागने लगते हैं. चलिए, इस बात को मैं एक उदाहरण के साथ बताती हूं. मान लीजिए कि कोई आप के सामने नया सूट या नई जींस पहन कर आया है, तो आप पहले तो उस का नख से शिख तक अवलोकन करेंगे फिर अपनी बांछें खिला कर कहेंगे, ‘अरे वाह, बड़े स्मार्ट लग रहे हैं आप तो.’दूसरा वाला फूल कर कुप्पा. उस का दिल मारे खुशी के बल्लियों उछलने लगेगा. पर जैसे ही वह आप को धन्यवाद कर के चलने लगेगा कि आप तुरंत कहेंगे, ‘लेकिन ये फैब्रिक कौन सा है? आर्टीफिशियल सिल्क या आर्टिफिशियल शिफौन? और यह रंग जंच नहीं रहा. अगर यह किसी दूसरे रंग का होता तो मजा आ जाता.’

आप अपनी रौ में बोले ही जा रहे हैं, यह देख नहीं रहे कि उस का मुंह सिकुड़ा जा रहा है और वह किसी तरह आप से पीछा छुड़ाना चाह रहा/रही है. अब जरा गौर करें तो आप पाएंगे कि आप के पास बोलने के लिए इतनी बातें और बताने के लिए इतने उदाहरण होते हैं, जितने किसी और के पास नहीं होते. फिर चाहे कोई सूई खरीद रहा हो या हवाईजहाज, आप सलाह देने से बाज नहीं आते. मेरे एक पड़ोसी हैं. उन की यही आदत है और मेरे पति उन की इस आदत के शिकार हो चुके हैं. हुआ यह कि मेरे पति ने अपनी 2-3 माह की बचत के बाद एक दिन एक सोफासैट खरीदा और इत्तफाक से उसी दिन वही पड़ोसी हमारे घर में आ गए. आते ही बोले, ‘‘नया सोफा लगता है रमेशजी.’’

 ‘‘हां अशोकजी, बस अभी ही खरीदा है. कैसा है?’’ होता तो यह भी है कि आप को तब तक चैन नहीं मिलता जब तक कोई आप के सामान की तारीफों के पुल न बांध दे. हमारे ये पड़ोसी महाशय इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं और उन्हें कमजोरी का फायदा उठाना भी आता है. इसलिए वे छूटते ही बोले, ‘‘अरे वाह रमेशजी, सोफा तो बहुत अच्छा है.’’ मेरे पति तो जैसे सातवें आसमान पर जा पहुंचे. उन्होंने जैसे ही उन के मुख से अपने सोफे की तारीफ सुनी उन्हें ससम्मान देखा और जोर से आवाज लगाई, ‘‘अरे सुनती हो,

चाय बनाओ.’’

अशोकजी के लिए चाय बनाना मेरे लिए अत्याचार था, लेकिन मेरे पति महोदय तो उन के मुरीद हो चुके थे, क्योंकि वह सोफा जो कुछ क्षण पहले मेरे लिए ठगी का विषय बना हुआ था, अब अशोकजी की तारीफें सुन कर बेशकीमती चीज बन चुका था. मेरे पति की आंखों के आगे संतुष्टि के भाव उसी तरह अठखेलियां कर रहे थे, जिस तरह से फिल्म ‘मोहब्बतें’ में पीले पत्ते उड़ा करते थे. अशोकजी ने चाय और बिस़्कुट को उदरस्थ किया फिर अपनी वाणी पर लगे विराम को हटा कर प्रचवन आरंभ कर दिया, ‘‘वैसे  रमेशजी, यह सोफा आप ने लिया कहां से है?’’ उन्होंने सवाल दागा. मेरे पति ने खींसें निपोरते हुए जवाब दिया,  ‘‘बस यहीं से बगल की दुकान से. क्यों कुछ खराबी है क्या?’’

 ‘‘रमेशजी, उस कमबख्त की दुकान से लेने की क्या मजबूरी थी? आप 4 कदम चल कर दूसरी दुकान पर नहीं जा सकते थे? अरे यार,  आप 2 बच्चों के बाप हो गए हो फिर भी हो बच्चे ही.’’

मेरे पति का मुंह अब देखने लायक था. वे ऐसे खिसियाए लग रहे थे जैसे कोई बच्चा. लगता है. वे अगर वाकई कोई बच्चा होते तो यकीनन अभी तक तो अपनी चाय और बिस्कुट अशोकजी से मांग ही चुके होते. लेकिन उन्हें उन से न कुछ कहते बन रहा था और न ही हामी भरते. ऐसा लग रहा था जैसे कोई कड़वी कुनैन की गोलियां उन्हें निगलने के लिए मजबूर कर रहा हो. जब वे चले गए तो मेरे पति ने उन्हें जी भर कर कोसा. फिर अपने सोफे को बेचारगी की नजर से देखा और मुझ से बेचारगी से पूछा,  ‘‘सोफा इतना बुरा है क्या?’’

मैं ने अपने पति के आंसू पोंछे और कहा, ‘‘नहींनहीं आप का सोफा तो बहुत ही बढि़या है. यह उत्तम ही नहीं सर्वोत्तम है.’’ अब उन्होंने हलकी सी मुसकान बिखेरी. फिर हम दोनों ने ही अशोकजी को जी भर के कोसा और मन ही मन उन्हें कुछ भी न बताने का प्रण लिया. अगर आप को यह लग रहा है कि उन की जैसी खूबियां आप में भी हैं तो फिर मान लीजिए कि आप को बीएमएमएस है और आप दूसरे लोगों का जीना दुश्वार किए रहते हैं. क्या आप सुबह होते ही कुलबुलाने लगते हैं और प्रकृति की सुरम्यता को निहारने के स्थान पर सोचने लगते हैं कि आज देखें कि कौन सामने आता है? या फिर आप जो भी सामने आता है उस पर ही अपने ज्ञान की बरसात करना शुरू कर देते हैं? आप दांत साफ करते, नहाते व खाना खाते समय यानी हर समय यही सोचते रहते हैं कि किस तरह दूसरों को प्रवचन दे पाएं? अगर ऐसा है तो आप को दिल से यह स्वीकार करना होगा कि आप वैसे ही बीमार हैं, जैसा ‘लगे रहो मुन्ना भाई’  फिल्म में बोमन ईरानी था.

बनें आत्मनिर्भर हैल्थ इंश्योरैंस से…

सुनील अपने घर का एकमात्र कमाने वाला सदस्य है. एक दिन अचानक बाइक चलाते समय वह दुर्घटना का शिकार हो गया. उस इतनी गंभीर चोटें आईं कि तुरंत सर्जरी करानी पड़ी. उस के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता यदि उस ने सही समय पर स्वास्थ्य बीमा नहीं करवाया होता. उस के औपरेशन व अस्पताल के बाकी सारे खर्च का भुगतान बीमा कंपनी ने ही किया. स्वास्थ्य बीमा, जीवन में आने वाले जोखिम को कम करता है. यह सिर्फ आकस्मिक दुर्घटनाओं  में ही नहीं, बहुत सी बीमारियों के इलाज हेतु भी सुविधाएं प्रदान करता है. किसीकिसी बीमारी पर होने वाला खर्च तो लोगों की जमा पूंजी उड़ा ले जाता है, लेकिन स्वास्थ्य बीमा की सुविधा से उन के घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने से बच जाती है.

आसान इलाज: स्वास्थ्य बीमा कंपनियों का बहुत से अस्पतालों के साथ टाईअप होता है. इस से बीमाधारक को अच्छे अस्पताल की जानकारी न होने पर भी मुश्किल नहीं होती और अस्पताल की सुविधाओं के लिए भटकना नहीं पड़ता. आमतौर पर इंश्योरैंस कंपनी के पैनल में शामिल अस्पतालों से ही बीमाधारक का इलाज संभव हो जाता है.

टैक्स छूट : स्वास्थ्य बीमा कराने पर प्रीमियम व टैक्सबल इनकम के अनुसार अधिकतम 15 हजार तक की इनकम टैक्स की वार्षिक छूट प्राप्त है.

पौलिसी लेने से पहले

पौलिसी लेने से पहले अच्छी तरह उस की शर्तें जान लें ताकि आप को पौलिसी लेने के पश्चात किसी तरह की परेशानी न हो. जैसे यह जान लें कि जो भी पौलिसी आप ले रहे हैं, उस में कौनकौन सी बीमारियों के इलाज हेतु सुविधाएं दी जाएंगी और किनकिन बीमारियों को उस में शामिल नहीं किया गया. जैसे, आमतौर पर डैंटल और मैटरनिटी खर्चों का भुगतान बीमा कंपनी द्वारा नहीं किया जाता है. लगभग सभी बीमा कंपनियों से हैल्थ इंश्योरैंस क्लेम की सुविधा प्राप्त करने हेतु न्यूनतम 24 घंटों के  लिए अस्पताल में भरती होना आवश्यक होता है. इस के अलावा कुछ कंपनियां अस्पताल में भरती होने से 2 सप्ताह पहले व बाद के इलाज के खर्चों का भुगतान भी करती हैं, वहीं कुछ ऐसा नहीं करतीं. यह सब कुछ बीमा कंपनी की अपनी शर्तों पर निर्भर करता है, इसलिए सभी बातों को सुनिश्चित कर लें. 

पौलिसी लेने से पहले देख लें कि बीमा कंपनी के पैनल में शामिल अस्पतालों का स्तर कैसा है, उन में कितनी सुविधाएं उपलब्ध हैं.

किसी विश्वसनीय बीमा कंपनी से ही पौलिसी लें इस के लिए इंश्योरैंस ऐडवाइजर की सलाह ले सकते हैं. जांच लें कि पौलिसी एजेंट द्वारा बताई गई सभी शर्तें व सुविधाएं पौलिसी के कागजों में लिखित रूप में पेश की गई हैं या नहीं.

पौलिसी कैसीकैसी

आजकल बहुत सी सरकारी व निजी कंपनियों ने हैल्थ इंश्योरैंस प्लान बाजार में उतारे हैं, जैसे एलआईसी, आईसीआईसीआई, मैक्स, ओरिएंटल वगैरह ले. स्वास्थ्य बीमा के मुख्य रूप से 3 ही प्रकार देखने को मिलते हैं, जिन में किसी को भी अपनी आवश्यकता के अनुसार ही कराना चाहिए. 

वैयक्तिक पौलिसी: जैसा कि नाम से ही जाहिर है ,यह पौलिसी एक व्यक्ति के लिए होती है . जिस के नाम से भी पौलिसी कराई गई होगी क्लेम पाने का अधिकारी केवल वही होता है. यह अविवाहित लोगों के लिए उपयुक्त रहती है.

फैमिली फ्लोटर : फैमिली फ्लोटर बीमा के अंतर्गत सिर्फ एक बीमा धारक की पौलिसी के नाम पर पूरा परिवार सुविधा प्राप्त करने का अधिकारी होता है. जैसे, घर के मुखिया के नाम पर यदि 4 लाख का फैमिली फ्लोटर बीमा कराया गया है, तो उस के परिवार में कोई भी इस पौलिसी की सेवाओं का लाभ प्राप्त कर सकता है व यदि 2 लोगों को एक ही समय पर जरूरत पड़ती है, तो यह राशि उन्हें जरूरत के अनुसार विभाजित हो कर मिल जाएगी. इस से एक ही पौलिसी से 2 लोगों को फायदा होगा.

ग्रुप इंश्योरैंस: ग्रुप इंश्योरैंस वह इंश्योरैंस होता है, जो कार्यालय द्वारा सभी कर्मचारियों का करवाया जाता है. ग्रुप इंश्योरैंस से प्रत्येक कर्मचारी को इस का लाभ व्यक्तिगत आवश्यकता के अनुसार मिलता है. इस इंश्योरैंस में भी कुछ शर्तें शामिल होती हैं जिन की जानकारी जरूरी है. परंतु इस का लाभ किसी को भी केवल तभी तक प्राप्त होगा, जब तक कि वह उस कार्यालय का कर्मचारी रहेगा .

क्लेम का भुगतान

स्वास्थ्य संबंधी इलाज व दवाओं के खर्च का भुगतान बीमा कंपनी से क्लेम प्राप्त कर के किया जाता है, जिस के 2 तरीके होते हैं:

कैशलेस: कै शलेस की सुविधा द्वारा क्लेम प्राप्त करना सब से सुविधाजनक होता है.  जिस के अंतर्गत बीमा कंपनी अस्पताल को स्वयं पूरे बिल का भुगतान करती है. आमतौर पर कैशलेस द्वारा भुगतान तभी किया जाता है, जब बीमा कंपनी के नैटवर्क के अस्पतालों से इलाज करवाया जाता है.

रीऐंबर्सटमैंट: यदि कंपनी के नैटवर्क अस्पतालों से इलाज नहीं करवाया जाता है तो कंपनी रीऐंबर्सटमैंट की प्रक्रिया से धारक को भुगतान करती है. रीऐंबर्सटमैंट से क्लेम की प्राप्ति के लिए बीमाधारक को इलाज में हुए खर्च का पूरा बिल व ब्योरा बीमा कंपनी को जमा करवाना पड़ता है और फिर बीमा कंपनी उस का भुगतान बीमाधारक को कर देती है. कभीकभी रीऐंबर्सटमैंट द्वारा तब भी क्लेम का भुगतान होता है जब बीमा कंपनी इलाज की सुविधाओं से जुड़े संशय दूर कर लेती है.

संशयों का समाधान

दिल्ली के सफ दरजंग एनक्लेव स्थित ऐजी इंश्योरैंस कंपनी के इंश्योरैंस ऐडवाइजर ए. के. गोयल ने स्वास्थ्य बीमा से जुड़े मुख्य संशयों और उन के समाधान को बताया:

मैडिकल जांच: स्वास्थ्य बीमा पौलिसी लेते समय आमतौर पर 45 वर्ष से कम आयुवर्ग के लोगों का मैडिकल चेकअप नहीं किया जाता. बीमा कंपनी यह मान कर चलती है कि धारक जो भी सूचना अपने बारे में दे रहा है वह सही है इसीलिए धारक को अपनी ओर से ईमानदारी बनाए रखनी चाहिए व सही जानकारी देनी चाहिए ताकि पौलिसी का बिना किसी विवाद में उलझे लाभ उठाया जा सके.

पूर्ववर्ती बीमारियों क इलाज: बीमा पौलिसी में पूर्ववर्ती बीमारियों के इलाज हेतु सुविधाएं भी सम्मिलित होती हैं परंतु इस का लाभ पौलिसी लेने के  कुछ वर्षों के पश्चात ही उठाया जा सकता है आमतौर पर पौलिसी लेने के 5वें वर्ष से इस के इलाज का लाभ प्रारंभ हो जाता है. वहीं कुछ बीमारियों के इलाज की सुविधा पौलिसी लेने के 11 महीने, 2 वर्ष पश्चात भी मिलनी शुरू हो सकती है. जैसे आमतौर पर हर्निया की सर्जरी पौलिसी लेने के 1 वर्ष पश्चात कारवाई की जा सकती है वहीं मोतियाबिंद की 2 वर्ष के पश्चात परंतु गंभीर बीमारियों की इलाज की सुविधा ज्यादातर पौलिसी में 5वें वर्ष से मिलनी शुरू होती है.

पौलिसी ब्रेक: बीमा को सुचारु रूप से चलाने क ा एक नियम होता है मासिक प्रीमियम. जिसे समय पर देना आवश्यक होता है ताकि आप की पौलिसी लैप्स न हो. पौलिसी प्रीमियम भरने के लिए एक निश्चित तारीख तय की जाती है. इस दिन तक प्रीमियम का भुगतान न करने पर कु छ कंपनियां ग्रेस पीरियड के तौर पर 1 सप्ताह का समय देती है परंतु प्रीमियम देरी से देने में पौलिसी को सुचारु तरीके से चलाने में अवरोध उत्पन्न हो सकता है. बेहतर है प्रीमियम समय पर दें.

नवीनीकरण: आमतौर पर बीमा पौलिसी की समयावधि 1 वर्ष की होती है और इस का भावी लाभ उठाने के लिए इस का नवीनीकरण करना आवश्यक होता है. जिसे समय पर करा लेना चाहिए. नवीनीकरण करवाने के लिए निश्चित तारीख व कभीकभी समय भी तय होता है जैसे पिछली पौलिसी 2 बजे तक करवाई थी तो उस का नवीनीकरण इस समय से पूर्व हो जाना चाहिए. जोखिम से बचने के लिए बेहतर होता है कि नवीनीकरण की तिथि से 1 माह पहले ही इस का नवीनीकरण करवा लिया जाए व ध्यान रहे कि पहली पौलिसी के समय पर दी गई किसी भी सूचना में बदलाव आया है तो उसे भी कंपनी को सूचित अवश्य करें.

जाने क्या है प्लास्टिक मनी

प्लास्टिक मनी से प्रसिद्ध क्रैडिट कार्ड और डेबिट कार्ड आज कैश से ज्यादा इस्तेमाल हो रहे हैं. लगभग सभी बैंक अपने ग्राहकों को डेबिट कार्ड की सुविधा देते हैं. अब ज्यादातर घरों में पतिपत्नी के अलावा बच्चों का भी अकाउंट होता है और वे भी डेबिट कार्ड रखने लगे हैं. बड़ी रकम ले कर चलने वालों को कैश चोरी होने, खोने, गुम हो जाने का डर बना रहता था, उन के लिए डेबिट कार्ड एक अच्छी सुविधा है. कार्ड की बात हो तो क्रैडिट कार्ड के बारे में जानना बहुत जरूरी है.

क्रैडिट कार्ड द्वारा आप बैंक में पैसा न होने पर भी बैंक से उधार यानी क्रैडिट पर पैसा ले सकते हैं, जिसे आप को एक निश्चित समय सीमा में चुकाना होता है. कुछ बैंक उस पैसे को किस्तों में चुकाने की सहूलियत भी देते हैं. लेकिन यह समाना जरूरी है कि कोई भी बैंक बिना फायदे के आप को कोई पैसा नहीं देगा. औनलाइन एअर टिकट, ट्रेन टिकट कराने के लिए भी डेबिट या क्रैडिट कार्ड की जरूरत पड़ती है. प्लास्टिक मनी जहां ग्राहकों के लिए एक बड़ी सहूलियत है, वहीं अगर सावधानी न बरती जाए तो मुश्किल में भी फंस सकते हैं.

कस्टमर केयर का नंबर जरूर रखें

मसलन, अगर आप का प्लास्टिक मनी कार्ड खो गया है, तो सब से पहले आप को अपने बैंक के कस्टमर केयर नंबर पर संपर्क कर के उसे ब्लौक कराना होगा. लेकिन कार्ड ब्लौक कराने का काम इतना आसान भी नहीं है. आप के पास कस्टमर केयर का नंबर होना चाहिए. अगर कार्ड खो गया है तो जाहिर है कि आप के लिए कार्ड नंबर, उस की एक्सपायरी डेट वगैरह बताना मुश्किल होगा. जबकि कार्ड ब्लौक कराते समय आप को इस सारी जानकारी की जरूरत पड़ेगी.

ये जानकारी हमेशा अपने पास कहीं लिख कर रखें. हालांकि यह काम तब और भी मुश्किल हो जाता है, जब आप के कार्ड के साथ आप का पर्स या मोबाइल भी चला जाता है. अगर उन में से किसी में ये जानकारी भी साथ में रखी हुई है, तो आप की मुश्किल और बढ़ जाती है जबकि चोर को काफी सहूलियत हो जाती है.

ब्लौक जल्दी कराएं

इंटरनैट की कंज्यूमर कोर्ट वैबसाइट पर दीप्ति की एक शिकायत दर्ज है. शिकायत के मुताबिक, दीप्ति पुणे की रहने वाली हैं और उन के पास क्रैडिट कार्ड था. वे अमेरिका गई थीं, जहां एक दिन उन की गाड़ी का शीशा तोड़ कर किसी ने पर्स चुरा लिया. पर्स में कैश के अलावा कार्ड भी थे. दीप्ति को जब यह पता चला, उन्होंने तुरंत पुलिस में कंप्लेन की. लेकिन बैंक के कस्टमर केयर में फोन कर के कार्ड ब्लौक करातेकराते समय लग गया. लेकिन कार्ड चोरी होने के कुछ ही घंटों के भीतर उस में से क्व 63 हजार का ट्रांजिक्शन हो गया, इस कार्ड की अधिकतम सीमा क्व 63 हजार ही थी. बैंक के कार्ड के जरिए आप विदेश में शौपिंग तो कर सकते हैं, लेकिन वहां कार्ड से संबंधित कोई दिक्कत आने पर भारत के कस्टमर केयर में ही फोन करना होता है.

कंप्लेन शीघ्र करें

हालांकि बिगहैल्पर वैबसाइट पर पड़ी एक कंप्लेन के मुताबिक, राजेश के पास एक प्राइवेट बैंक का जीरो लाइबिलिटी डेबिट कार्ड था, जिस का मतलब उस कार्ड के खो जाने या गुम हो जाने की स्थिति में उस से जो ट्रांजिक्शन किए जाएंगे, उन के प्रति राजेश की कोई देनदारी नहीं होगी. लेकिन जब कार्ड खो गया और उस में से करीब 75 हजार की शौपिंग भी हो गई, तब पुलिस एफआईआर लिखने को तैयार नहीं हुई और बैंक ने पुलिस द्वारा दी गई लिखित कंप्लेन की रसीद को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. लिहाजा, बैंक राजेश से 75 हजार की डिमांड कर रहा है. मतलब यह कि कितने भी वादों और गारंटियों वाला कार्ड लें, जितनी सावधानियां आप को कैश ले कर चलते समय बरतनी पड़ती हैं, कार्ड के इस्तेमाल के वक्त भी उतना ही सतर्क रहना होता है. एक छोटी सी भूल या लापरवाही से मिनटों में आप को हजारों रुपयों का चूना लग सकता है.

समझदारी जरूरी

कई बार ग्राहकों के मन में यह सवाल भी रहता है कि कार्ड के नाम पर बैंक बहुत पैसे काट लेता है, जिस का हिसाब कुछ समझ नहीं आता. इस पर नवतेज सिंह का कहना है,  ‘‘गोल्ड कार्ड पर क्व 250 से क्व 500 प्रति साल का चार्ज है, लेकिन उस में हम ग्राहक को ऐक्सीडैंटल इंश्योरैंस फ्री देते हैं और साथ ही 100 की शौपिंग पर 1 रुपया वापस मिलता है. मतलब 25 हजार की शौपिंग पर क्व 250.

सामान्य डेबिट कार्ड से अगर आप पैट्रोल पंप पर पैट्रोल लेते हैं तो सरचार्ज लगता है, वह पैसा बैंक आप से लेता है. गोल्ड कार्ड पर वह भी नहीं लगता. इस के अलावा एचडीएफसी के रैग्युलर डेबिट कार्ड से आप महीने में करीब 5 ट्रांजिक्शन किन्हीं अन्य बैंकों के एटीएम से कर सकते हैं. इस से अधिक ट्रांजिक्शन किसी अन्य बैंकों के एटीएम से होने पर करीब क्व 20 अतिरिक्त लगते हैं.’’

यह नियम लगभग हर बैंक का है. बस, सब के चार्जेज अलगअलग होते हैं. हालांकि बेहतर यही होता है कि आप अपने ही बैंक का एटीएम इस्तेमाल करें. इस से कभी कार्ड फंस जाने की स्थिति में यदि बैंक की ब्रांच खुली है तो कार्ड तुरंत ही वापस मिल जाएगा. लेकिन कई बैंकों की पौलिसी है कि दूसरे बैंक का एटीएम कार्ड अगर उस की मशीन में फंस जाए, तो उसे निकाल कर डिस्ट्रौय कर देते हैं. अगर आप दूसरे बैंक का एटीएम इस्तेमाल कर रही हैं तो जिन मशीनों में कार्ड पूरी तरह अंदर नहीं जाता, उन्हें इस्तेमाल कर सकती हैं. 

खूबसूरती और अदाकारी की मेल

फिल्म ‘उमरावजान’ बनाने के काफी लंबे समय के बाद फिल्मकार मुजफ्फर अली अपनी फिल्म ‘जांनिसार’ ले कर आए हैं. इस बीच फिल्में तो उन्होंने बनाईं लेकिन वे कई कारणों से दर्शकों तक नहीं पहुंच पाईं. उन की इस फिल्म की अदाकारा पर्निया कुरैशी की यह पहली फिल्म है और मौडलिंग से ऐक्टिंग में आईं पर्निया को कुचिपुड़ी डांस में महारत हासिल है. अपनी फिल्म के लिए सही अदाकारा के चुनाव पर मुजफ्फर अली कहते हैं कि पर्निया आज की वूमन औफ मिरर हैं. वे अपने में बेहतरीन खूबसूरती के साथसाथ एक कुशल अदाकारा को भी समेटे हुए हैं.

ग्रिल्ड चीज रोल अप्स

सामग्री

ब्रैडस्लाइस

आटे वाले चीज स्लाइस

मक्खन.

विधि

ब्रैडस्लाइस के किनारे काट लें. अब रोलिंग पिन से ब्रैडस्लाइस को बराबर कर बीच में चीज स्लाइस लगा कर रोल करें. आंच पर बरतन गरम कर के उस में मक्खन डालें. अब इस में तैयार सभी रोल को चिमटे की सहायता से दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंक कर सूप या सलाद के साथ सर्व करें.

शोषित लड़कियों के लिए आशा की किरण : विनीता ग्रेवाल

लड़कियों की परेशानियां घर और बाहर दोनों ही जगहों पर हैं. घर के अंदर भी वे शोषण का शिकार होती हैं, तो कई बार घर वालों की मरजी तो कई बार घर वालों की बिना जानकारी के वे वेश्यावृत्ति करने के लिए मजबूर कर दी जाती हैं. नाबालिग लड़कियों को नौकरी दिलाने और शादी कराने जैसे झांसे दे कर देह के बाजार तक पहुंचा दिया जाता है. सचाई पता चलने पर कई बार लड़कियां वहां से भागने की कोशिश करती हैं, तो कई बार समझौता कर के देहधंधे को मजबूर हो जाती हैं. विनीता ग्रेवाल की संस्था ‘नई आशा’ ऐसी लड़कियों को सहारा देने का काम करती है, जो अपने घर नहीं जाना चाहतीं या जिन के घर वाले उन्हें घर में नहीं रखना चाहते. इस संस्था के शैल्टर होम में 70-80 लड़कियां तक एकसाथ रह सकती हैं. यहां उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का हुनर सिखाया जाता है. कुछ लड़कियां पढ़ाई भी करती हैं.

‘नई आशा’ की डायरैक्टर विनीता ग्रेवाल कहती हैं कि शैल्टर होम में लाने के बाद लड़कियों के जीवन को सुखद बनाना सब से अहम और कठिन काम होता है. विनीता ग्रेवाल से हुई बातचीत में हम ने इसी बात को समझने की कोशिश की:

लड़कियों का शोषण बड़ी परेशानी है. आप इसे कैसे देखती हैं?

जब लड़की हमारे शैल्टर होम में आती है, तो बहुत परेशान होती है. वह भावनात्मक रूप से पूरी तरह टूट चुकी होती है. उस के मन में समाज के खिलाफ विद्रोह का स्वर होता है. उसे लगता है कि शैल्टर होम भी उस पिंजरे के ही समान है. वह हम पर यकीन नहीं करती. शैल्टर होम में काम कर रहे लोगों से भी वह नाराज हो जाती है. यहां लड़कियां कई बार रोतीं, चिल्लातीं और झगड़ती भी हैं. उन्हें जब परिवार के सदस्यों की तरह समझाया जाता है, तब कहीं जा कर कई महीनों के बाद समझ पाती हैं कि उन के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा.

‘नई आशा’ की शुरुआत कैसे हुई?

मैं पत्रकारिता के पेशे में थी. मुझे तमाम तरह के हालात देखने को मिलते थे. तब मन में विचार आया कि ऐसे लोगों की मदद कैसे की जाए? 10 साल पहले हम ने ‘नई आशा’ की शुरुआत की थी. लखनऊ में ही हम ने ऐसी कई लड़कियों को शोषण से बचाने का काम किया है, जिन का शोषण करने में उन के घरपरिवार और बाहर के लोग शामिल थे.

लड़कियां मानव तस्करी का शिकार कैसे हो जाती हैं?

मानव तस्करी में लड़कियों को फंसाने वाले उन के करीबी ही होते हैं. उन की गरीबी का और अनपढ़ होने का लाभ उठा कर वे ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं. मानव तस्कर जब इन लड़कियों को वेश्यावृत्ति कराने वालों को बेच देते हैं तो वे लोग उन्हें देहधंधे के लिए तैयार करने का काम करते हैं. हर ऐसी जगह छोटेछोटे कमरे बने होते हैं, जिन में विरोध करने वाली लड़कियों को कपड़े उतार कर रखा जाता है. इस धंधे को चलाने वाले लोग पूरीपूरी रात उन के साथ बलात्कार करते हैं, उन्हें मारतेपीटते हैं, खाना नहीं देते हैं यानी उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से तोड़ दिया जाता है. वे पागलावस्था में पहुंच जाती हैं. कई बार तो इन लड़कियों को जबरन जवान बनाने का काम भी किया जाता है.

आप लोग जब अभियान चला कर इन्हें बाहर लाते हैं, तो ये कैसा व्यवहार करती हैं?

देहधंधे में लगे लोग बहुत शातिर होते हैं. वे इन तक फिर पहुंचने की पूरी कोशिश करते हैं यानी इन्हें दोबारा इस धंधे में लाने के लिए हर जतन करते हैं. कई बार मांबाप सामाजिक दबाव के चलते लड़की को अपने घर नहीं ले जाते. ऐसे में शैल्टर होम ऐसी लड़कियों का घर बनता है. शैल्टर होम पर पहले तो लड़कियों को भरोसा ही नहीं होता. उन्हें लगता है कि एक से निकल कर दूसरी जगह फंस गई हैं. कुछ समय के बाद जब भरोसा होता है, तब वे अपने कैरियर की तरफ ध्यान देती हैं. कई बार तो मातापिता लड़कियों को छुड़ा कर फिर देहधंधा करने वालों को सौंप देते हैं.

देहधंधे के बाजार से लड़कियों को निकालना कितना मुश्किल होता है?

देहधंधा एक तरह का संगठित अपराध है. ये लोग स्थानीय पुलिस, नेताओं और गुंडों के संरक्षण पाए होते हैं. ‘नई आशा’ संस्था की एक टीम लड़कियों को छुड़ाने का काम करती है, जिसे आशीष श्रीवास्तव देखते हैं. लड़कियों को गंदी गलियों से निकालने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. लड़कियों की खरीदफरोख्त करने वाले लोग फर्जी मुकदमे लिखा देते हैं. जब लड़कियां हमारे पास आ जाती हैं, तो हम उन के जीवन को सफल बनाने के लिए तरहतरह के ट्रेनिंग कार्यक्रम चलाते हैं. फैशन डिजाइनिंग इस का खास हिस्सा है. यही नहीं शादी के लायक होेने वाली लड़कियों की शादी कराने का काम भी हम करते हैं.

लखनऊ के बाहर की लड़कियों की कैसे मदद करती हैं?

हमारे नैटवर्क में अलगअलग प्रदेशों में काम करने वाले ऐसे संगठन, शैल्टर होम और सरकारी विभाग हैं. हम उन के संपर्क में रहते हैं. जहां जो प्रभावी रूप से अपना काम कर सकता है हम उस की मदद लेते हैं. कई बार दूसरी जगहों से हमें अपने प्रदेश की जानकारी होती है. हम पूरे देश में जागरूकता अभियान भी चलाते हैं. शैल्टर होम में रहने वाली लड़की जब पढ़ने की बात करती है तो उस का खर्च उठाना थोड़ा मुश्किल होता है. ऐसे में कई बार बाहर के लोग मदद कर देते हैं. इस तरह की लड़कियों की मदद के लिए जितने ज्यादा लोग आगे आएं उतना ही बेहतर रहेगा

चुनें परिधान फैब्रिक काउंसलिंग के जरिए

सविता अपनी सहेली की बर्थडे पार्टी में गई थी. पार्टी पूरे शबाब पर थी. वह झूम कर नाच रही थी. उसी वक्त उस की साड़ी से मोती टूट कर गिरने लगे. पार्टी में शामिल लोग उसे ऐसे देख रहे थे, जैसे उस ने सस्ती साड़ी पहन रखी हो. जबकि सचाई यह थी कि उस ने मोतीवर्क वाली वह साड़ी शहर के एक बड़े शोरूम से महंगे दाम में खरीदी थी. प्रीति ने अपनी शादी के लिए शहर के एक बड़े शोरूम से लहंगा और साडि़यां खरीदीं. बाद में पता चला कि यह रीयल क्वालिटी की ड्रैस की कौपी थी. विनोद ने अपनी गर्लफ्रैंड को उस के बर्थडे पर एक सलवारसूट खरीद कर दिया. सूट पा कर वह बहुत खुश हुई. लेकिन कुछ दिन बाद उस की गर्लफ्रैंड ने सूट लौटाते हुए कहा, ‘‘ऐसा सड़ा हुआ गिफ्ट देने की क्या जरूरत थी?’’ सूट एक ही बार धोने पर टाइट हो गया और उस का रंग भी उतर गया था.

ऐसी घटनाएं सुनाई देना आम बात है. फैब्रिक यानी कपड़ों का चुनाव करना एक मुश्किल काम है, क्योंकि हर किसी को फैब्रिक की पहचान नहीं होती. आजकल ब्रैंडेड कंपनियों के मिलतेजुलते नाम वाले लेबल लगी ड्रैस मार्केट में मौजूद हैं, जिन्हें पहचान पाना बहुत ही मुश्किल है.

क्वालिटी पर दें ध्यान

अधिकतर लोग कपड़े खरीदते वक्त कपड़े की क्वालिटी के बजाय उस के रंग और डिजाइन पर अधिक ध्यान देते हैं. इस का फायदा भी दुकानदार उठाते हैं. वे भड़कीले रंगों के विभिन्न डिजाइनों के कपड़े हैलोजन की लाइट में दिखाते हैं. ग्राहकों को रोशनी की चकाचौंध में ड्रैस अच्छी लगती है और वे फैब्रिक पर ध्यान दिए बिना उसे खरीद लेते हैं. निफ्ट से पासआउट हुए मोहित मंडल का कहना है, ‘‘आजकल लोगों में अच्छे कपड़े पहनने व खरीदने की चाह बढ़ी है. पर लोगों में कपड़ों की पहचान न होने की वजह से वे अच्छी क्वालिटी के कपड़े नहीं खरीद पाते हैं.’’ टैक्सटाइल का कोर्स कर रही कोकिला सरकार का कहना है, ‘‘फैब्रिक अनेक प्रकार के होते हैं. सभी फैब्रिक को पहचान लेना हर किसी के बस की बात नहीं है. आजकल बाजार में नएनए फैब्रिक आ रहे हैं, जो दिखने में काफी अच्छे लगते हैं पर उन्हें धोने के बाद उन की असलियत सामने आती है.’’

फैब्रिक काउंसलिंग क्यों नहीं

जिस तरह से मैरिज लाइफ को खुशनुमा बनाने के लिए मैरिज काउंसलिंग, पढ़ाई के लिए ऐजुकेशन काउंसलिंग, फ्यूचर के लिए कैरियर काउंसलिंग की आवश्यकता होती है, उसी तरह से आजकल फैब्रिक काउंसलिंग की आवश्यकता महसूस होने लगी है ताकि कपड़ों पर खर्च किया पैसा बरबाद न हो. साथ में मानसिक तनाव से भी बच सकें.

सही जानकारी

फैब्रिक के बारे में फैब्रिक सलाहकार ही सही जानकारी दे सकते हैं. कौन सा फैब्रिक किस पर कितना अच्छा लगेगा, यह सब फैब्रिक सलाहकार ही सही बता सकता है. फैब्रिक सलाहकार सिर्फ कपड़ों की क्वालिटी ही नहीं, उस के चयन, प्रयोग, सही देखभाल के बारे में भी जानकारी देते हैं. वे पर्सनैलिटी, लुक, ऐज, प्रोफैशन के अनुसार ड्रैस खरीदने और औफिस, पार्टी, मैरिज, बर्थडे आदि मौकों पर किस तरह की ड्रैस पहननी चाहिए, ड्रैस या फैब्रिक की सही कीमत क्या होगी, इस बारे में सही जानकारी देते हैं. बौलीवुड फैशन डिजाइनर उमैर जाफर का कहना है, ‘‘किसी शादी या पार्टी के लिए लाखों रुपए की ड्रैस खरीदी जाती है. उस में थोड़ी सी चूक होने पर सब कुछ बेकार हो जाता है. जब आप इतने पैसे खर्च करते ही हैं तो थोड़े से और खर्च कर एक फैब्रिक काउंसलर से सलाह लेना अच्छा होता है.’’ मैट्रो सिटीज में फैब्रिक काउंसलर मिलने लगे हैं. सैलिब्रिटीज फैशन डिजाइनर के साथसाथ फैब्रिक काउंसलर भी रखने लगे हैं.

जब खरीदने हों कपड़े

कपड़े खरीदते वक्त इन बातों पर ध्यान दें :

जब महंगे कपड़े खरीदने हों, तो अपने साथ ऐसे अनुभवी व्यक्ति को ले जाएं, जिसे फैब्रिक के बारे में अच्छी जानकारी हो.

किसी खास अवसर के लिए कपड़े खरीदना चाहते हैं, तो फैब्रिक पहचानने के लिए फैब्रिक ऐक्सपर्ट से सलाह लें या फिर फैब्रिक काउंसलर को अपने साथ ले जाएं.

टैक्निकल ऐक्सपर्ट से फैब्रिक के बारे में जानकारी जुटाएं. इस बारे में फैशन डिजाइनर, फैब्रिक ऐक्सपर्ट अच्छी जानकारी दे सकते हैं.

किसी भी कपड़े को स्पर्श यानी फीलिंग टैस्टिंग के द्वारा भी उस की क्वालिटी को परख सकते हैं.

महंगी ड्रैस खरीदते समय सिर्फ डिजाइन या रंग पर ही ध्यान न दें, फैब्रिक की क्वालिटी पर भी ध्यान दें.

जब भी कपड़े खरीदने हों किसी विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें और बिल लेना न भूलें. उन से यह भी कबूल करवा लें कि कपड़ा खराब होने पर उसे वापस लेना होगा.

ऐसे कई शोरूम होते हैं, जो अपनी विश्वसनीयता पर कपड़े बदलने के लिए कह देते हैं.

30 हेयर ट्रिक्स

लहराते, सुंदर, घने केश आप के व्यक्तित्व को और भी आकर्षक बना देते हैं. आइए जानें केशों की खूबसूरती बढ़ाने के क्या हैं राज:

1.   केशों की प्रकृति के अनुसार ही शैंपू का इस्तेमाल करना चाहिए. सही शैंपू केशों व सिर की त्वचा को सुरक्षा देता है.

2.   उलझे व अस्वस्थ केशों में चमक लाने के लिए हेयर सीरम का प्रयोग करें.

3.   समयसमय पर केशों की ट्रिमिंग कराएं.

4.   केशों को वौल्यूम प्रदान करने के लिए मूस का इस्तेमाल करें. बाजार में कई प्रकार के मूस उपलब्ध हैं.

5.   स्ट्रेटनिंग मशीन के द्वारा केशों को स्ट्रेट किया जा सकता है.

6.   हेयरकलर का चुनाव करते समय अपने स्किनटोन को ध्यान से देखें. फिर उस के अनुसार ही हेयरकलर इस्तेमाल करें. नहीं तो हेयरकलर सुंदर दिखने के बजाय भद्दा दिखाई देगा. साथ ही, ब्रैंडेड कंपनी का कलर ही इस्तेमाल करें.

7.  तेलरहित केशों में अतिरिक्त चमक के लिए केशों की जड़ों से 1 इंच छोड़ कर हेयर कंडीशनर का इस्तेमाल करें.

8.  केशों में इंस्टैंट कलर के लिए शैंपू में कौफी पाउडर मिला कर लगाएं. 3-4 बार शैंपू करने के बाद भी कलर केशों में बना रहेगा.

9.  कच्चे आंवले को पीस कर केशों की जड़ों में लगाएं और 45 मिनट बाद धो लें. केशों में नैचुरल शाइन आ जाएगी.

10. केशों में रूसी होने पर शैंपू करने के बाद अच्छी तरह से पानी से केश धो कर 1 ढक्कन सिरका 1 मग पानी में डाल कर केशों में डाल लें और 10 मिनट तौलिए से कवर कर उन्हें धो लें. नियमित प्रयोग से रूसी समाप्त हो जाएगी.

11. मेहंदी का तेल केशों में लगाने से केश जल्दी सफेद नहीं होते हैं.

12. हलके केशों को घना दिखाने के लिए रोलर्स का प्रयोग करें. केशों की खूबसूरती देखते ही बनेगी.

13. गोल चेहरे पर लाइट फेसकवर हेयरस्टाइल ज्यादा अच्छा लगेगा.

14. चौड़े माथे पर अनईवेन फ्रिंज सुंदर लुक देंगी.

15. रेट्रो लुक फैशन में है, इसलिए साड़ी या सूट के साथ ऊंचा जूड़ा बनाएं. डिफरेंट लुक के लिए फ्रेश या आर्टिफीशियल फूल से डैकोरेट करें.

16. पर्मिंग वाले केशों में हलका सा वेट लुक वाला जैल लगाने से आप की सुंदरता बढ़ जाएगी.

17. यदि केश सुलझाने हैं, तो कंघी करने से पहले उन्हें धीरेधीरे उंगलियों से संवारें, फिर हलके से कंघी करें, केश कम टूटेंगे.

18. केशों की नैचुरल शाइन के लिए नारियल के तेल में कुछ बूंदें नीबू के रस की मिला कर सिर की मालिश करें और अगले दिन इसे शैंपू से धो लें. केशों में चमक आ जाएगी.

19. केशों को पोषण देने के लिए हफ्ते में कम से कम एक बार हौट औयल मसाज जरूर करें.

20. हेयरस्टाइल बनाने के बाद उसे अलगअलग तरह की हेयर ऐक्सैसरीज से डैकोरेट जरूर करें.

21. विटामिन ए और ई युक्त तेल लगाने से केश मजबूत होते हैं.

22. महीने में 1 से 2 बार पार्लर में जा कर हेयर स्पा कराएं. यह आप के केशों के उचित पोषण के लिए आवश्यक है.

23. गीले केशों में भूल कर भी कंघी न करें. इस से केश कमजोर होते हैं व टूटते हैं.

24. कर्ली केशों के लिए प्रोटीन ट्रीटमैंट जरूर लें.

25. स्ट्रेट केशों में वौल्यूमाइजिंग स्टाइलिंग मूज लगाएं. इस से केशों में बाउंस के साथ चमक आएगी.

26. मेसी लुक के लिए केशों में स्टाइलिंग जैल लगा कर उन्हें स्क्रंच कर लें.

27. बारिश के दिनों में स्ट्रेटनिंग, पर्मिंग व रिबौंडिंग नहीं करवाएं.

28. रूखे व बेजान केशों के लिए डीप कंडीशनर का इस्तेमाल करें.

29. औयली हेयर के लिए लाइट कंडीशनर का इस्तेमाल करें.

30. सोने के लिए साटिन कवर वाले पिलो का प्रयोग करें. इस से केश खिचेंगे नहीं.

जिज्ञा शाह : फैशन डिजाइनर

फैशन वर्ल्ड का जानामाना नाम है जिज्ञा शाह. हाई क्लोथिंग ब्रैंड की सीईओ जिज्ञा शाह हार्ड वर्क में विश्वास रखती हैं. गांधी नगर स्थित नैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी से जिज्ञा ने स्नातक और मास्टर औफ कौमर्स की पढ़ाई की है.

वे बताती हैं, ‘‘मेरे सी.ए. सी.एस. गोल्ड मैडलिस्ट पिता सुबोधचंद्र शाह का कहना है कि आज लड़कियों का भी पढ़नालिखना उतना ही जरूरी है, जितना कि लड़कों का ताकि जरूरत पड़ने पर वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें.’’ जिज्ञा शाह अपने पिता से प्रभावित रहीं. लगन, मेहनत और आत्मविश्वास से आगे बढ़ते रहना जिज्ञा के स्वभाव में है.

फैशन जगत में कदम

फैशन जगत में कदम रखने की चाह जिज्ञा को शुरू से ही थी. तभी उन्होंने बहुत पहले इस क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया था. जिज्ञा बताती हैं, ‘‘मैं फैशन डिजाइनिंग बैकग्राउंड से नहीं हूं. मैं अहमदाबाद की गुजराती फैमिली से हूं. मेरी फैमिली चाहती थी कि मैं डाक्टर या प्रोफैसर बनूं. अत: कौमर्स में मास्टर होने के बाद इंग्लिश मीडियम में इकोनौमिक्स विषय पढ़ाना शुरू किया.  ‘‘3 साल के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं ऐसे ही अपने पूरे जीवन को नहीं बिता सकती. कौमर्स पढ़ाने में मुझे संतोष नहीं हो रहा था. मुझे लगता था कि मैं अपनी लाइफ को ऐंजौय नहीं कर पा रही हूं. तब मैं अपने कालेज के प्रोफैसर से मिली, जो मुझे बखूबी जज कर सकते थे. उन से मैं ने पूछा कि मुझे किस क्षेत्र को चुनना चाहिए. तब उन्होंने मुझे फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में जाने की सलाह दी, जिस के पीछे कारण मेरी अच्छी ड्रैसिंग सैंस व कालेज में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मेरी क्रिएटिव सहभागिता रही. फिर मैं ने गारमैंट्स प्रोडक्शन की शुरुआत की. मैं ने निफ्ट में ऐडमिशन लिया.’’

लाइफ की विशेष उपलब्धियां

भारत की फैशन संस्थाओं ईडीआई और निफ्ट द्वारा जिज्ञा शाह की सफलता पर डौक्यूमैंटरी फिल्म भी बनाई गई है. वे निफ्ट में वीजिटिंग फैकल्टि व ज्यूरी भी रही हैं. जिज्ञा व्यावसायिक जगहों पर महिलाओं के लिए कार्यरत 1091 सैक्सुअल हैरेसमैंट औफ वूमन एट वर्क प्लेस की पैनलिस्ट में भी शामिल हैं. गुजरात के टौप डिजाइनरों में जिज्ञा शाह का नाम आता है. उन्होंने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट काम किया वरन गुजरात को राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय फलक पर भी पहचान दिलाई. ग्रामीण महिलाओं को रोजगार उपलब्ध हों इस के लिए उन्होंने उद्ग्रीव एनजीओ को गोद लिया है. वे 2004 में बिजनैस स्टैंडर्ड द्वारा बैस्ट ऐंटरप्रन्योर का खिताब भी जीत चुकी हैं. 1995 में जिज्ञा शाह ने मेनका गांधी के अहिंसा फैब्रिक के साथ करीब 10 साल काम किया. जिज्ञा कहती हैं कि हर काम को दिल से करो, किसी भी काम से दूर भागना या डरना नहीं चाहिए. बारबार प्रयास करने से सफलता मिलनी ही है. एक डिजाइनर होने के नाते दुबले, पतले, मोटे सभी को ध्यान में रख कर कपड़े डिजाइन करना मेरे लिए हमेशा चैलेंजिंग और मनपसंद काम रहा है. हमेशा अपनी असफलता से सीखतेसीखते आगे बढ़ते रहना और लर्निंग प्रोसैस को कायम रखना ही एक क्वालिटी डिजाइनर की खासीयत है.

लाइफ के यादगार लमहे

जिज्ञा बताती हैं, ‘‘दिल्ली हाट में हर स्टेट के टैक्सटाइल का प्रदर्शन होता था. एक बार गुजरात के खादी व बांधनी को रिप्रैजेंट करना था, जहां मैं ने खादी को डिफरैंट तरीके से कई टैक्नीक का प्रयोग कर प्रदर्शनी में रखा. मेरी क्रिएटिविटी को फर्स्ट प्राइज मिला. फिर बड़ेबड़े लोगों से मिलना हुआ. उस के बाद मैं ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. यह कह लो कि खुद को किया बुलंद इतना कि हर राह ने सफलता से रूबरू करवाया.’’

पर्सनल लाइफ की खुशी का राज

अपनी लाइफ में अपने बल पर आगे बढ़ने वाली जिज्ञा अपनी लाइफ को पौजिटिव ऐनर्जी के साथ जीना चाहती हैं. वे कहती हैं कि अगर हम पौजिटिव हैं तो हमें पौजिटिव लोग अपनेआप मिल जाते हैं. मेरी सफलता में मेरे पति समीर टिंबरवाल का पूरापूरा सहयोग रहा. महिलाओं को संदेश देते हुए जिज्ञा कहती हैं कि हमेशा अपने दिल की सुनो दुनिया की नहीं. आप अपने लिए जो अच्छा सोचो उसे पूरा करने के लिए जीजान से लगे रहो. सफलता अपनेआप खिंची चली आएगी. लाइफ में किसी भी मुसीबत से भागने के बजाय उस का हिम्मत से मुकाबला करें.

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