क्या आप भी बिना मांगे मुफ्त सलाह देने की आदत यानी बीएमएमएस से पीडि़त हैं? क्या इस बीमारी के कीटाणु आप के शरीर में घर कर चुके हैं? क्या आप को सुझाव देने की खुजली हर समय होती है? फिर भी क्या आप बीएमएमएस से अनजान हैं? अगर हां तो आप हमारे पास आएं. हमारे पास आप को मिलेंगे इस कीटाणु से निबटने के आसान नुसखे. साथ ही आप को यह भी पता चलेगा कि आप इस बीमारी से पीडि़त हैं या नहीं. और अगर हैं तो बीमारी कौन से चरण में है. अ्रगर इस के लक्षण शुरुआती हैं तो आप ठीक हो सकते हैं. लेकिन यदि यह बीमारी अपनी अंतिम अवस्था में आ चुकी है, तो इस का नतीजा होगा ‘सोशल आइसोलेशन’ यानी सामाजिक अकेलापन. मतलब समझ में नहीं आया न आप को? लेकिन यकीन मानिए कि अगर ऐसा हो गया, तो समाज में आप का जीना मुश्किल होता जाएगा. लोग आप से कतराएंगे, इधरउधर भागेंगे, नजरें चुराएंगे और आप के सामने नहीं आएंगे.
कुछ सवाल
अब मैं आप से कुछ सवाल पूछने जा रही हूं. यदि उन के जवाब अधिकतर ‘हां’ में हैं तो मान लीजिएगा कि आप इस बीमारी से बुरी तरह से पीडि़त हैं.
1. क्या लोग आप को देख कर मुसकरा कर हाथ हिलाते हैं और आगे चले जाते हैं?
2. क्या लोग आप को देख कर नजरें झुका आगे चले जाते हैं?
3. क्या लोग आप को बातें बताने से कतराते हैं?
4. क्या आप हर समय कुछ न कुछ बोलते रहते हैं?
5. क्या आप हर किसी को अपने बेटाबेटी का उदाहरण देते रहते हैं?
6. क्या आप अपनी जीवनशैली के बारे में हर समय बोलते रहते हैं?
7. क्या किसी भी घटना के समय आप कहीं का भी उदाहरण दे डालते हैं?
8. क्या आप को लगता है कि आप को सब कुछ पता है?
9. क्या आप खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं?
10. क्या आप जोर से बोल कर व दूसरों को चुप करा कर अपनी बात कहते चले जाते हैं और बोलते हुए दूसरे लोगों को हाथ हिला कर शांत कराते हैं?
जैसा कि आप से पहले भी कहा कि अगर आप के इन में से अधिकतर के जवाब ‘हां’ में हैं तो समझ लें कि आप इस बीमारी से बुरी तरह पीडि़त हैं. इस का नतीजा यह होता है कि लोग आप से दूर भागने लगते हैं. चलिए, इस बात को मैं एक उदाहरण के साथ बताती हूं. मान लीजिए कि कोई आप के सामने नया सूट या नई जींस पहन कर आया है, तो आप पहले तो उस का नख से शिख तक अवलोकन करेंगे फिर अपनी बांछें खिला कर कहेंगे, ‘अरे वाह, बड़े स्मार्ट लग रहे हैं आप तो.’दूसरा वाला फूल कर कुप्पा. उस का दिल मारे खुशी के बल्लियों उछलने लगेगा. पर जैसे ही वह आप को धन्यवाद कर के चलने लगेगा कि आप तुरंत कहेंगे, ‘लेकिन ये फैब्रिक कौन सा है? आर्टीफिशियल सिल्क या आर्टिफिशियल शिफौन? और यह रंग जंच नहीं रहा. अगर यह किसी दूसरे रंग का होता तो मजा आ जाता.’
आप अपनी रौ में बोले ही जा रहे हैं, यह देख नहीं रहे कि उस का मुंह सिकुड़ा जा रहा है और वह किसी तरह आप से पीछा छुड़ाना चाह रहा/रही है. अब जरा गौर करें तो आप पाएंगे कि आप के पास बोलने के लिए इतनी बातें और बताने के लिए इतने उदाहरण होते हैं, जितने किसी और के पास नहीं होते. फिर चाहे कोई सूई खरीद रहा हो या हवाईजहाज, आप सलाह देने से बाज नहीं आते. मेरे एक पड़ोसी हैं. उन की यही आदत है और मेरे पति उन की इस आदत के शिकार हो चुके हैं. हुआ यह कि मेरे पति ने अपनी 2-3 माह की बचत के बाद एक दिन एक सोफासैट खरीदा और इत्तफाक से उसी दिन वही पड़ोसी हमारे घर में आ गए. आते ही बोले, ‘‘नया सोफा लगता है रमेशजी.’’
‘‘हां अशोकजी, बस अभी ही खरीदा है. कैसा है?’’ होता तो यह भी है कि आप को तब तक चैन नहीं मिलता जब तक कोई आप के सामान की तारीफों के पुल न बांध दे. हमारे ये पड़ोसी महाशय इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं और उन्हें कमजोरी का फायदा उठाना भी आता है. इसलिए वे छूटते ही बोले, ‘‘अरे वाह रमेशजी, सोफा तो बहुत अच्छा है.’’ मेरे पति तो जैसे सातवें आसमान पर जा पहुंचे. उन्होंने जैसे ही उन के मुख से अपने सोफे की तारीफ सुनी उन्हें ससम्मान देखा और जोर से आवाज लगाई, ‘‘अरे सुनती हो,
चाय बनाओ.’’
अशोकजी के लिए चाय बनाना मेरे लिए अत्याचार था, लेकिन मेरे पति महोदय तो उन के मुरीद हो चुके थे, क्योंकि वह सोफा जो कुछ क्षण पहले मेरे लिए ठगी का विषय बना हुआ था, अब अशोकजी की तारीफें सुन कर बेशकीमती चीज बन चुका था. मेरे पति की आंखों के आगे संतुष्टि के भाव उसी तरह अठखेलियां कर रहे थे, जिस तरह से फिल्म ‘मोहब्बतें’ में पीले पत्ते उड़ा करते थे. अशोकजी ने चाय और बिस़्कुट को उदरस्थ किया फिर अपनी वाणी पर लगे विराम को हटा कर प्रचवन आरंभ कर दिया, ‘‘वैसे रमेशजी, यह सोफा आप ने लिया कहां से है?’’ उन्होंने सवाल दागा. मेरे पति ने खींसें निपोरते हुए जवाब दिया, ‘‘बस यहीं से बगल की दुकान से. क्यों कुछ खराबी है क्या?’’
‘‘रमेशजी, उस कमबख्त की दुकान से लेने की क्या मजबूरी थी? आप 4 कदम चल कर दूसरी दुकान पर नहीं जा सकते थे? अरे यार, आप 2 बच्चों के बाप हो गए हो फिर भी हो बच्चे ही.’’
मेरे पति का मुंह अब देखने लायक था. वे ऐसे खिसियाए लग रहे थे जैसे कोई बच्चा. लगता है. वे अगर वाकई कोई बच्चा होते तो यकीनन अभी तक तो अपनी चाय और बिस्कुट अशोकजी से मांग ही चुके होते. लेकिन उन्हें उन से न कुछ कहते बन रहा था और न ही हामी भरते. ऐसा लग रहा था जैसे कोई कड़वी कुनैन की गोलियां उन्हें निगलने के लिए मजबूर कर रहा हो. जब वे चले गए तो मेरे पति ने उन्हें जी भर कर कोसा. फिर अपने सोफे को बेचारगी की नजर से देखा और मुझ से बेचारगी से पूछा, ‘‘सोफा इतना बुरा है क्या?’’
मैं ने अपने पति के आंसू पोंछे और कहा, ‘‘नहींनहीं आप का सोफा तो बहुत ही बढि़या है. यह उत्तम ही नहीं सर्वोत्तम है.’’ अब उन्होंने हलकी सी मुसकान बिखेरी. फिर हम दोनों ने ही अशोकजी को जी भर के कोसा और मन ही मन उन्हें कुछ भी न बताने का प्रण लिया. अगर आप को यह लग रहा है कि उन की जैसी खूबियां आप में भी हैं तो फिर मान लीजिए कि आप को बीएमएमएस है और आप दूसरे लोगों का जीना दुश्वार किए रहते हैं. क्या आप सुबह होते ही कुलबुलाने लगते हैं और प्रकृति की सुरम्यता को निहारने के स्थान पर सोचने लगते हैं कि आज देखें कि कौन सामने आता है? या फिर आप जो भी सामने आता है उस पर ही अपने ज्ञान की बरसात करना शुरू कर देते हैं? आप दांत साफ करते, नहाते व खाना खाते समय यानी हर समय यही सोचते रहते हैं कि किस तरह दूसरों को प्रवचन दे पाएं? अगर ऐसा है तो आप को दिल से यह स्वीकार करना होगा कि आप वैसे ही बीमार हैं, जैसा ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ फिल्म में बोमन ईरानी था.