‘वैलकम बैक’ से ऐंट्री करेंगी अंकिता

अनीज बज्मी की फिल्म ‘वैलकम बैक’ से बौलीवुड में पांव जमाने जा रहीं अंकिता श्रीवास्तव इस फिल्म में चांदनी का किरदार प्ले कर रही हैं. यह फिल्म ‘वैलकम’ की सीक्वल फिल्म है और जो रोल अंकिता कर रही हैं उस को पहले मल्लिका शेरावत ने लैला बन कर किया था. फिल्म में अपने किरदार को ले कर अंकिता कहती हैं कि अनिल कपूर और नाना पाटेकर जैसे सीनियर अभिनेताओं के साथ रोमांस करने की बात पर मैं पहले घबराई हुई थी, पर जैसे ही शूटिंग शुरू हुई सब नौर्मल लगने लगा. अंकिता मानती हैं कि सैक्सी चांदनी का कैरैक्टर निभाना उन के लिए बड़ा चैलेंजिंग काम था क्योंकि इसी फिल्म के बलबूते उन्हें दूसरी फिल्मों में चांस मिलेगा.

व्यापमं जैसा ही आसाराम मामले के का हाल

मध्य प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं घोटाला एक ऐसा नरभक्षी व्याघ्र है, जो उस के लिए खतरा बनने वाले हर शख्स को लील रहा है. नम्रता डामोर, जबलपुर कालेज डीन डा.साकल्ले व डा.शर्मा, पत्रकार अक्षय सिंह सहित 45 लोग इस व्याघ्र का शिकार हो चुके हैं. आसाराम मामले के गवाहों का भी व्यापमं जैसा ही हाल हो गया है. अब तक 9 गवाहों पर हमला हो चुका है, जिन में से 3 मारे जा चुके हैं. राजस्थान, हरियाणा, गुजरात व उत्तर प्रदेश जैसे 4 राज्यों की पुलिस खाली हाथ है और हमलावार यह पता कर रहे हैं कि गवाही में अगला नंबर किस का होगा. आसाराम मामले का व्याघ्र जो राजकोट, साबरमती, जोधपुर, पानीपत, मुजफ्फरनगर से होता हुआ अब शाहजहांपुर जा पहुंचा है, जहां की किशोरी ने आसाराम पर दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया है. इस मामले के खास गवाह कृपाल सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई है. इस गवाह ने अपनी मौत से पहले से दिए गए बयान में बताया था कि मारने वाले आसाराम के खास गुरगे हैं.

कभी भक्ति से प्रेरित यह परिवार आसाराम से जुड़ा था. अब भक्ति छूट गई है और भय हावी हो गया है. यह खौफ इस कदर हावी है कि उस लड़की को शाहजहांपुर के एक घर में कैदी की तरह रहना पड़ रहा है. तब वह किशोरी 16 साल की थी और 12 वीं कक्षा में पढ़ती थी और अब वह 18 साल की है. गवाही के लिए आनेजाने के चलते उस का 1 साल बेकार हो गया है. इस साल उस ने कंप्यूटर और गृहविज्ञान विषय के साथ 12वीं कक्षा के इम्तिहान में 70 फीसदी अंक हासिल किए हैं और अब वह बी.कौम करना चाहती है. लेकिन कृपाल सिंह की मौत के बाद इस परिवार में इतना खौफ बढ़ गया है कि घर की देहरी लांघना मुश्किल हो गया है. इतिहास गवाह है कि तथाकथित धर्मगुरुओं की तलाश में अधंभक्त अंधेरे कुओं में ही धकेले गए हैं. इन कथित आश्रमों में भक्तों के साथ ऐसा ही हुआ है. दुष्कर्म के मामले के सामने आने के बाद भक्तों में खौफ बैठ गया है. मोक्ष के नाम पर लड़कियों को निकट बुलाने वाला खुद को कृष्ण और उन्हें गोपियां कहता था.

यों घोटा गया सच का गला

गौरतलब है कि आसाराम और नारायण सांईं पर जोधपुर, अहमदाबाद व सूरत में दुष्कर्म के 3 मामले दर्ज हैं. अगस्त, 2013 में शाहजहांपुर की रहने वाली एक नाबालिग लड़की के मातापिता ने दिल्ली में आसाराम के खिलाफ जोधपुर आश्रम में बेटी के साथ दुष्कर्म करने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस के 1 महीने बाद सूरत की 2 बहनों ने आसाराम और नारायण पर उन के साथ दुष्कर्म करने की जहांगीरपुरा पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई. बड़ी बहन ने आसाराम के खिलाफ और छोटी बहन ने नारायण के खिलाफ. आसाराम का मामला अहमदाबाद ट्रांसफर कर दिया गया, क्योंकि बड़ी बहन के साथ उस ने अहमदाबाद स्थित मोटेरा आश्रम में दुष्कर्म किया था, जबकि नारायण के खिलाफ सूरत पुलिस जांच कर रही है. बड़ी बहन ने आरोप लगाया है कि आसाराम ने 2002 से 2005 के बीच मोटेरा आश्रम में उस के साथ कई बार दुष्कर्म किया. अहमदाबाद पुलिस द्वारा गठित एक स्पैशल इन्वैस्टिगेशन टीम ने 101 गवाहों पर आधारित जांच के आधार पर आसाराम, उस की पत्नी, बेटी और 4 सेविकाओं को दुष्कर्म, अवैध रूप बंधक बनाने, आपराधिक षड्यंत्र और अप्राकृतिक कृत्य की अलगअलग धाराओं में आरोपी बनाया.

22 मई, 2014 में इस मामले के खास गवाह अमृत प्रजापति को राजकोट में गोली मार दी गई, जिस से 10 जून, 2014 को उस की मौत हो गई. मोटेरा आश्रम में आसाराम का निजी रसोइया अखिल गुप्ता भी अहमदाबाद दुष्कर्म केस का खास गवाह था, उस की भी इसी साल जनवरी में हत्या कर दी गई. जोधपुर आश्रम दुष्कर्म मामले में खास गवाह रहे राहुल सचान पर भी 13 फरवरी, 2015 को जोधुपर कोर्ट के बाहर चाकुओं से हमला हुआ. वहीं 14 मई, 2015 को जोधपुर आश्रम दुष्कर्म मामले में ही खास गवाह रहे महेंद्र चावला पर भी पानीपत, हरियाणा में हमला किया गया.

पाखंड के खिलाफ लड़ाई में लगा विराम

अमृत प्रजापति की हत्या: अमृत प्रजापति 2008 से ही दोनों बापबेटे के कुकर्मों को उजागर करने के मिशन में जुटा था. प्रजापति ने कथित धर्मगुरुओं को पाखंड व महिला चेलियों के साथ यौन शोषण के कई सारे कालेचिट्ठे स्पैशल इन्वैस्टिगेशन टीम को मुहैया कराए थे. 22 मई को राजकोट में उन के क्लीनिक पर हमलावारों द्वारा गोली लगने के 2 दिन बाद बेहोशी में जाने से पहले प्रजापति ने 5 हमलावरों के नाम बताए थे, जो आसाराम के पक्के चेले थे. प्रजापति की पत्नी सरोज का आरोप है कि पुलिस को हमलावारों का नाम बताने के बावजूद वह उन्हें आज तक नहीं पकड़ पाई. गौरतलब है कि अमृत प्रजापति आसाराम के अहमदाबाद आश्रम से 1989 से आयुर्वेद विभाग के प्रभारी की हैसियत से जुड़े थे. 2008 और उस के बाद प्रजापति के मीडिया में दिए गए बयानों के मुताबिक, कुछ साल बाद ही प्रजापति को खटका कि आसाराम उन से किसी न किसी बहाने सैक्स उत्तेजना पैदा करने वाली दवाइयां बनवा रहा है.

1992 में प्रजापति ने अहमदाबाद आश्रम में आसाराम को एक औरत के साथ सैक्स करते देखा और इस के बाद इस तरह की कई हरकतें सामने आईं. लेकिन प्रजापति ने कहा कि वे आसाराम के चेलों के डर से मुंह खोलने से बचते रहे. आखिर 1996 में प्रजापति ने आश्रम छोड़ने का साहस बटोर ही लिया. दिलचस्प बात यह है कि आसाराम के चेलों को सीख दी जाती थी कि गुरु पर सवाल उठाने खड़ा करना संसार में सब से बड़ा पाप है. अत: आसाराम के चेलों का गुरु पर सवाल उठाने वालों पर हमला पुराना इतिहास रहा है. आसाराम के खिलाफ आवाज उठाने वाले राजू चांडक पर भी हमले हुए. इस के अलावा आसाराम के कई अनुयायियों ने कई ऐसी दास्तानें मीडिया व इन्वैस्टिगेशन टीम के सामने रखीं कि कैसे उन्हें अवैध संपत्ति हासिल करने और विरोधियों को चुप कराने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया. प्रजापति 1996 में आश्रम छोड़ने के बाद 2008 में खुल कर सामने आए, जब आसाराम के कई चेले उस की काली करतूतों के खिलाफ खुल कर बोलने लगे. उन लोगों ने औरतों से नाजायज संबंध, अवैध संपत्ति हड़पने जैसे कई आरोप लगाए.

प्रजापति का यह आरोप भी था कि आसाराम का अहमदाबाद आश्रम उस की रखैलों का डेरा है. आसाराम सैक्स पावर बढ़ाने की दवाएं खुद ही नहीं खाता था, बल्कि हमबिस्तर होने से पहले दूध में मिला कर औरतों को भी पिलाता था. जोधपुर में जिस लड़की के साथ दुष्कर्म के आरोप में आसाराम जेल में है, उस लड़की ने भी अपने बयान में कहा है कि पहले उसे दूध पिलाया गया था. प्रजापति का साहस यह बताने के लिए काफी है कि वे अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे. आसाराम और नारायण की काली करतूतों को प्रजापति ने मीडिया के सामने खुल कर बताया था. इसीलिए अकसर उन के दोस्त आसाराम की ताकत से उन्हें सचेत किया करते थे. लेकिन आसाराम की करतूतों को अंजाम तक पहुंचाने का जैसे उन पर जनून सवार था. बेशक उन की हत्या धर्म पाखंडियों के खिलाफ लड़ाई में एक विराम की तरह है.

बाबाओं की ताकत बढ़ाती कानूनी व सियासी सरपरस्ती

दरअसल, नेताओं के धर्म के इस्तेमाल व समर्थन से बाबाओं को ताकत मिलती है और जब इन बाबाओं को राजनीतिक संरक्षण मिलता है, तो इन की हिम्मत बढ़ जाती है. राजनीतिक संरक्षण के बूते ही ये जमीन पर कब्जा करते हैं और बंदूक आदि हथियार भी रखने लगते हैं. समस्या तब शुरू होती है जब राजनेता धर्मगुरुओं या बाबाओं के पास वोट के गुणाभाग की उम्मीद में जाते हैं और किसी खास को तवज्जो देते हैं. यहां से दोनों में जो सांठगांठ होती वह समाज व देश की खुशहाली के लिए कतई ठीक नहीं है.  चुनावी मौसम में तो राजनेताओं की चहलपहल से इन का दरबार सज उठता है. राजनेताओं का बाबाओं के पास जाने का सब से बड़ा बहाना यह होता है कि हम तो सभी धर्मों का समर्थन करते हैं. इन का समर्थन भी जरूरी है. दूसरा बहाना यह होता है कि हमारे देश के लोग धार्मिक हैं, इसलिए यदि किसी धर्म की बात की, तो क्या बुरा किया? पर धर्मनिरपेक्षता साफ कहती है कि राजनीति में धर्म की बात नहीं होनी चाहिए. धर्म आस्था का विषय है, जबकि राजनीति का लक्ष्य सुशासन है. राजनीति धर्म से संचालित नहीं होनी चाहिए. यदि धर्म के मुताबिक राजकाज संचालित होता है, तो इस से धर्मनिरपेक्षता की खास पर आंच आती है. भारत की तथाकथित धार्मिक परंपरा ऐसी रही है कि यहां कोई भी व्यक्ति बाबा या धर्मगुरु बन कर अपना अलग पंथ या संप्रदाय चला सकता है. उस पर किसी भी तरह का कानून लागू नहीं होता. यही वजह है कि कानूनी बंदिश नहीं होने से बाबाओं और उन के अलगअलग पंथों की बाढ़ आई हुई है. राजनीति संरक्षण हासिल होने से ये बाबा इतने प्रभावशाली हो गए हैं कि इन के गरीबान तक कानून मुश्किल से ही पहुंच पाता है.

बाबाओं की ताकत तो हम इन के अनुयायियों के हिंसक कृत्यों से भी कई बार देख चुके हैं. पर जब इन को किसी राजनीति सत्ता का संरक्षण मिल जाता है, तो इन के पास सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक सारी सत्ताएं आ जाती हैं और फिर ये बेकाबू हो जाते हैं. कानून के लचीलेपन की वजह से ही ये धर्मगुरु खतरनाक हथियार जमा करते रहते हैं और कानून के रखवाले हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं. जिस तरह किसी भी दूसरे प्रोफैशन के लोगों पर कानून और संविधान लागू होता है, उसी तरह से इन पर भी लागू होना चाहिए.

30 किलोग्राम का लहंगा और उफ ये अदा

बौलीवुड की क्वीन कंगना जब राजधानी में हुए ‘इंडिया कोतूर वीक, 2015’ के दौरान जब रैंप पर आईं तो उन के ऐलिगैंट लुक ने सब को दीवाना बना दिया. कंगना डिजानर मानव गंगवानी के लिए रैंप वौक कर रही थीं. रैड वाइन कलर के गाउन और हौट मेकअप में कंगना सचमुच रैंप की क्वीन लग रही थीं. मानव ने बताया कि कंगना के लहंगे का 30 किलोग्राम वजन था. पर इतना भारी आउटफिट कैरी करने के बाद भी कंगना रैंप पर अपनी मुसकराहट बिखेरती रहीं. पिछले दिनों एक इवेंट पर कंगना ने यह जरूर कहा था कि जब मैं कैरियर की शुरुआत कर रही थी तो कई अभिनेताओं ने, जो अपनेआप को स्टार समझते थे, मेरे साथ काम करने से मना कर दिया था. मैं समझती हूं कि वे सब मूर्ख थे जिन्होंने काम करने से मना कर दिया था. क्योंकि किसी का भी वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता.

तलाक और अदालतों की जिद

न्यायालयों के निर्णय कई बार इस तरह तकनीकी हो जाते हैं कि व्यावहारिकता और मानवीय संबंधों की पहचान खो बैठते हैं. मुंबई की एक पारिवारिक अदालत ने एक पति की तलाक की प्रार्थना मंजूर कर ली, क्योंकि उस की पत्नी को पार्टियों का शौक था और इस से पति को मानसिक यातना पहुंचती थी. पहली अदालत ने लड़तेझगड़ते पतिपत्नी को छुटकारा दिला कर अच्छा किया था पर पत्नी तो पति को परेशान करने पर उतारू थी. अत: उस ने बड़ी पारिवारिक अदालत में अपील की और उस अदालत ने कहा कि निचली अदालत का फैसला गलत है और वे दोनों पतिपत्नी ही हैं. अब पति उच्च न्यायालय गया. 1999 में विवाद शुरू हुआ. 2008 तक विवाद बढ़ गया. 2015 में उच्च न्यायालय ने फैसला किया कि पहली अदालत का फैसला गलत था. उस ने कहा कि यदाकदा पार्टियों में जाने को मानसिक यातना नहीं कहा जा सकता. दोनों का वैवाहिक रिश्ता कायम है. एकदूसरे से झगड़ते, अदालतों के चक्कर लगाते जोड़े को जबरन साथ रखने का यह कैसा फैसला, कैसा कानून?

पत्नी आखिर इस तरह के पति को छोड़ना क्यों नहीं चाहती जो उस के साथ नहीं रहना चाहता, कारण चाहे जो भी हो? सरकार, समाज, कानून, अदालत पति और पत्नी को साथ रहने को मजबूर नहीं कर सकते. इस साथ रहने को पत्नी की सुरक्षा भी नहीं माना जा सकता. ज्यादातर ऐसे मामलों में पतिपत्नी रहते तो अलग ही हैं पर कानून उन्हें पतिपत्नी मानता रहता है. यह जबरदस्ती आखिर किस काम की है? जहां बच्चे हों वहां उन्हें एक छत देने के लिए पतिपत्नी साथ रहें, यह आदर्श व्यवस्था हो सकती है. पर जब बच्चों के सामने पतिपत्नी झगड़ रहे हों, वकीलों के चक्कर काट रहे हों, अदालतों के गलियारों में मुंह फुलाए घूम रहे हों, वहां इस साथ का क्या फायदा?

पतिपत्नी का जोड़ा प्रेम और व्यावहारिकता का जोड़ा है. अपने साथ को कानूनी संरक्षण तो दोनों खुद देना चाहते हैं, इसीलिए विवाह प्रमाणपत्र को बड़ा संजो कर रखते हैं. पति अपनी सारी कमाई पत्नी के हवाले कर देता है. हर अकाउंट में पत्नी का नाम रखने में उस को अपार खुशी मिलती है. और जहां पत्नी के पास अपनी या अपने पिता की कमाई का पैसा होता है वहां भी वह पति पर सब से ज्यादा भरोसा करती है. हद तो यह है कि 2 दोस्त जिन का शारीरिक संबंध बन गया हो, वे मारेमारे फिर रहे हैं कि उन्हें विवाहितों का दर्जा दे दो. कई देशों ने तो दे दिया और देरसवेर भारत को भी देना होगा. ऐसे में जब 2 लोगों का मन खट्टा हो चुका हो, तो जबरन उन पर वैवाहिकता का तंबू क्यों थोपा जाए? वे ऐसे गुनहगार तो नहीं कि कानून दोनों को एक कोठरी में रहने की सजा दे दे?

कानून क्या कहता है, इस की बात छोडि़ए. पतिपत्नी का संबंध दिल का है, कौंट्रैक्ट का नहीं कि अदालतें कानून की किताब को सामने रख कर फैसले दें. 2 जने अलग होना चाहते हैं, तो हो जाने दें. चिंता न करें. दोनों का जो बिगड़ना है बिगड़ चुका है. नरेंद्र मोदी और जशोदाबेन साथ नहीं रहते तो अदालती आदेश चाहे जो भी हो, उन्हें साथ रहने को मजबूर नहीं कर सकता. दोनों ने एकदूसरे के साथ कोई कू्ररता नहीं की पर अलग हैं, तो इस पतिपत्नी के स्टेटस का लाभ क्या है? क्यों दोनों को मजबूर करा जाए कि हर दस्तावेज पर वे उस नाम को लिखें जिसे वे देखते नहीं, जिस से मिलते नहीं, जिस के सुखदुख में भागीदार नहीं. अदालतों को कानून से ऊपर उठ कर व्यावहारिक रुख अपनाना चाहिए. यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निजता व प्राइवेसी के अधिकारों का मामला भी है. विवाह करना संविधान के अनुच्छेद 21 का हिस्सा है तो विवाह होने के बाद अलग होने का फैसला भी अनुच्छेद 21 के संवैधानिक अधिकार का है, जो कहता है कि हर नागरिक को स्वतंत्रता और अपने ढंग से जीवन जीने का अधिकार है.

प्यार के धागों से बुना रिश्ता भाईबहन का

भाईबहन का रिश्ता जीवन के उतारचढ़ाव से गुजरते हुए भी एक गहरे एहसास के साथ हमेशा ताजा और जीवंत बना रहता है. मन के किसी कोने में बचपन से ले कर युवा होने तक की, स्कूल से ले कर बहन के विदा होने तक की और एकदूसरे से लड़ने से ले कर एकदूसरे के लिए लड़ने तक की असंख्य स्मृतियां परत दर परत रखी रहती हैं. बचपन का प्यार, रूठनामनाना, एकदूसरे के साथ खेलना, मम्मी की डांट के बावजूद भाई को चुपके से औरेंज, टौफी खिलाना और जब छोटी के मार्क्स कम आएं तो भाई का पापा को उस के रिपोर्टकार्ड पर साइन करने के लिए मना लेना. एकदूसरे से झगड़ना, इस बात को ले कर होड़ करना कि स्कूल में होने वाली प्रतियोगिता में किस के पास ज्यादा ट्रौफियां आएंगी, पापा भाई को ज्यादा प्यार करते हैं या बहन को, इस बात को ले कर भी लड़ना, कुछ ऐसा ही होता था बचपन में. लेकिन जैसेजैसे वक्त बीता भाईबहन के रिश्ते ने अनोखा मोड़ ले लिया. आपस में प्रतियोगिता करने की जगह अब दोनों एकदूसरे को अपने कैरियर में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करने लगे हैं और एकदूसरे के ऐसे मित्र बन जाते हैं, जो जिंदगी की सिर्फ मुश्किल घड़ी में ही एकदूसरे का साथ नहीं देते, बल्कि हर फर्ज निभाते हैं. आइए, जानें कैसे:

भाई दोस्त है अब

वे दिन गए जब बड़ा भाई मौका मिलते ही बहन की जिंदगी में ताकझांक करता था और उस पर कई पाबंदियां लगाने की कोशिश करता था. यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब बहन अपने बड़े भाई से बहुत सी बातें छिपाती थी. बाहर कहीं जाने से पहले वह मां को बता कर जाती थी कि कहीं बाहर भाई ने देख लिया तो उस की चुगली घर आ कर कर देगा. लेकिन अब बात कुछ और है. अब भाई खुद अपने लवअफेयर, अपनी गर्लफ्रैंड की बातें अपनी बहन से करता है और उन मुद्दों पर उस से सलाह भी लेता है. बहन भी खुल कर अपने बौयफ्रैंड के बारे में भाई से डिस्कस करती है. भाई के कुछ सुझाव देने पर वह यह स्वीकार करने से भी नहीं चूकती कि वह तो सिर्फ टाइमपास कर रही है. उसे अपनी सीमारेखा पता है. भाई को भी इस पर कोई एतराज नहीं होता, क्योंकि कई बार वह खुद ऐसा करता है. दोनों ही एकदूसरे को अच्छी तरह समझते हैं.

एकदूसरे के सलाहकार भी हैं

अपनी जिंदगी की निजी और प्रोफैशनल परेशानियों का हल भी वे एकदूसरे से डिस्कस कर के निकालते हैं. भाई भी बहन से अपनी परेशानी डिस्कस करता है और बहन की सलाह को अच्छी लगने पर मानता भी है. दोनों ही एकदूसरे पर अपनी राय नहीं थोपते हैं. अगर बात अच्छी लगती है तो अमल करते हैं वरना नहीं. और यह दोनों ही एकदूसरे को बेबाक बता भी देते हैं और बुरा भी नहीं मानते.

बिजनैस भी साथ करते हैं

वह जमाना गया जब भाई को लगता था कि वह बहन से ज्यादा काबिल है. लेकिन अब वे एकदूसरे के साथ काम भी करते हैं. जैसेकि मोनापाली ब्रैंड को शुरू किया था मोना लांबा, परमजीत खरबंदा और पाली ने. परमजीत बताते हैं, ‘‘मैं ने सीए किया था और मेरी बहन के पास डिजाइनिंग का हुनर था. हम ने किसी और पर निर्भर होने से यह बेहतर समझा कि हम भाईबहन मिल कर कोई नई शुरुआत करें. हम ने मोनापाली का पहला शोरूम कोलकाता में शुरू किया और आज वह भारतीय कशीदाकारी की चीजों के लिए पहचान बन चुका है और यह सब कुछ संभव हुआ मेरी बहनों के प्रयास और मेरी मेहनत से.’’

जिम्मेदारियां भी बांटते हैं

भाई अगर विदेश में सैटल है या अन्य किसी कारण से मातापिता को अपने साथ नहीं रख पा रहा है, तो स्वेच्छा से यह जिम्मेदारी बेटी निभा रही है और इस में भाईबहन दोनों की सहमति होती है. सच तो यह है कि आज भी भाई का मन बहन के लिए पहले जितना ही पिघलता है, तो बहन का प्यार भी भाई के लिए पहले जितना ही मचलता है. बस तरीके बदल गए हैं, भावाभिव्यक्ति के अंदाज बदल गए हैं. मगर भाव वही है. शगुन देना हो, ग्रीटिंग कार्ड भेजना हो या फिर मोबाइल पर भावुक सा मैसेज भेजना, यह रिश्ता अपनी गंभीरता और गहराई कभी नहीं भूलता.

खूबसूरत लैंडस्केपिंग से सजाएं आंगन

आज की स्ट्रैस भरी जिंदगी से आराम पाने की इच्छा पाले कई लोग लैंडस्केपिंग द्वारा प्रकृति की ओर लौटने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि लोगों के अंदर हरियाली और प्रकृति के प्रति शुरू से ही असीम प्रेम रहा है.

बढ़ रही है लैंडस्केपिंग

प्राकृतिक विशेषताओं को समेट कर प्रकृति के अनुरूप हरियाली तैयार करने को लैंडस्केपिंग कहा जाता है. यह सिर्फ आज की सोच नहीं है. हजारों साल पहले लोग सड़कों व भवनों के दोनों ओर पेड़पौधे लगा कर यह तरीका अपनाते थे. वहीं रोम के निवासी अपने घर का आंगन सजाने के लिए लौन लगाते थे. खूबसूरत लैंडस्केपिंग अब नया ट्रैंड बन रहा है. घर, विला, प्लौट, रैजिडैंशियल व बिजनैस एरिया, पार्क, बगीचा यहां तक कि रिजौर्ट के टैरेस में भी लैंडस्केपिंग बढ़ रही है. घर में फ्रंट यार्ड, किचन, बाथरूम, डाइनिंगरूम, बैडरूम आदि जगहों में भी लैंडस्केपिंग कराई जाती है.

लैंडस्केपिंग 2 प्रकार की होती है. एक सौफ्टस्केपिंग और दूसरी हाईस्केपिंग.

सौफ्टस्केपिंग

इस में अपने प्रदेश की खास हरियाली को बराकरार रखते हुए किसी प्रकार का निर्माण कार्य किए बिना हौर्टिकल्चर तत्त्वों को जुटा कर सौफ्टस्केपिंग करते हैं. जैसे लौन तैयार करना.

हार्डस्केपिंग

हार्डस्केपिंग का मतलब है कंकरीट, पेड़ पौधों या उसी प्रकार की दूसरी चीजों के द्वारा किए जाने वाले निर्माण कार्य. जैसे लकड़ी के बने फैंस बांधना और स्टैच्यू, स्टोन वगैरह से सजा कंकरीट का पैदल चलने का मार्ग तैयार करना आदि. ऐसे रास्तों पर कृत्रिमता महसूस न करने के लिए फैंसी आर्टिफिशियल आइटम्स लगा देने से लैंडस्केपिंग बेहतर होती है. लेकिन सीमैंट से बने एक पत्थर को प्रकृति के नैसर्गिक पत्थर की स्वाभाविकता नहीं मिल सकती, क्योंकि एक तो इस में टूटफूट होगी, वहीं काई लगने की भी संभावना रहेगी. फिर भी खंभे, छोटे शिल्प, टेराकोटा चीजें, फुहारों व कुमुदिनी और कमल से युक्त तालाब, हैंड रेलिंग से युक्त पुल, विभिन्न आकार के पत्थर, ग्रेनाइट, चिप्स आदि चीजें लैंडस्केपिंग को बेहतर सौंदर्य प्रदान करेंगी. लौन में फैंसी आइटम्स, वाटरफौल आदि हाईलाइट हो सकते हैं. इस से लौन रात के समय ज्यादा आकर्षक लगेगा.

लौन में लैंडस्केपिंग के लिए कई प्रकार की घास जैसे बफेल्लो, मैक्सिकन कारपेट, ब्लू व केनयन और आस्टे्रलियन व कुशियन ग्रास आदि इस्तेमाल करते हैं. घास किसी भी प्रकार की हो, मौसम के बदलाव के मुताबिक उस पर खास ध्यान देने और उस की खास देखभाल की जरूरत होती है. उस में बारिश के मौसम में पानी इकट्ठा न होने देने के लिए स्लोप ड्रेनेज सिस्टम और गरमी के मौसम में अच्छी सिंचाई की व्यवस्था जरूरी होती है. घास की सिंचाई के लिए स्प्रिंगलर ठीक रहता है. छोटे पौधों के लिए मिस्ट पंप इस्तेमाल कर सकते हैं. फंगस, काई और कई प्रकार के कीड़े लौन के शत्रु होते हैं. इन से बचने के लिए प्राकृतिक कीटनाशक ही इस्तेमाल करें. जैसे कोकोनेट पिथ, आर्गैनिक कोंबोनिट और कम मात्रा में यूरिया छिड़क दें. खाद भी डाल सकते हैं, पर उस के लिए लौन की सिंचाई जरूर करें.

एक कला है

सुंदर घर के बारे में सुनने की चाह हर किसी को होती है और सब से पहले घर के बाहरी हिस्से पर ही नजर पड़ती है, इसलिए घर के अंदर की सजावट के साथ घर के बाहर की सजावट को भी अहमियत देनी चाहिए. कोचिन के एमडी टैक्सी के लैंडस्केप डिजाइनर एम.सुब्रह्मणियम का कहना है कि हरीभरी लौन के साथ छायादार पेड़, फूल वाले पौधे, कुमुदिनी, कमल उगाने वाला छोटा सा तालाब और प्रकृति की स्वाभाविकता को समेटता बड़ा सा पत्थर रख कर घर को कुदरती रूप दिया जा सकता है. लैंडस्केपिंग सुनते ही आमतौर पर लोगों को यह लगता है कि यह काम बहुत खर्चीला होता होगा. इसलिए वे इस का आइडिया छोड़ देते हैं. जबकि घर में पानी और धूप की उपलब्धता और जगह की विशेषता को पहचान कर आप सहजता से इसे अपने बजट के अनुसार तैयार करवा सकते हैं. अगर आप बड़ा लैंडस्केप प्रोजैक्ट प्लान कर रहे हैं, तो लैंडस्केप डिजाइनर की सहायता से इसे तैयार करवा सकते हैं. अगर नई जगह घर बना रहे हैं, तो पहले यह निर्णय ले लें कि नई जगह में लैंडस्केपिंग के लिए कितनी जगह रखनी है. यानी लैंडस्केपिंग जैसी बात अगर मन में आए, तो सब से पहले प्लानिंग पर ध्यान दें. लैंडस्केपिंग वास्तव में एक कला है जिसे कुदरती स्पर्श मिलना जरूरी होता है.

खर्च

लैंडस्केपिंग कराने के लिए पहले बजट तैयार करें यानी यह देखें कि कितना खर्च आएगा. ग्रास, प्लांट्स, हाईस्केपिंग वगैरह के मुताबिक दाम में बदलाव होगा. जैसे आप घास लगा सकते हैं या ग्रासशीट खरीद कर बिछा सकते हैं. पर ग्रासशीट महंगी होगी, इसलिए लोकल एरिया में उपलब्ध घास लगाना बेहतर होगा. बजट के बारे में एक आइडिया बना लेने के बाद लोग लैंडस्केप डिजाइनर से बातचीत कर अपने आइडिया में बदलाव लाते हैं. लैंडस्केपिंग के लिए पानी न इकट्ठा होने वाली उचित जगह तलाशें. यानी वह जगह पानी बहने की सुविधा से युक्त हो. पानी बह कर निकल जाए, इस के लिए आप स्लोप या शेप बना रहे हैं तो कृत्रिम तरीके महसूस न कराएं. इस के लिए लोग रेत से भरे गड्ढे बना कर कहींकहीं ड्रेनेज सुविधाएं तैयार करते हैं. लौन तैयार करना है तो 1 इंच से ले कर 4 इंच मोटाई में मिट्टी डाल सकते हैं. वृक्ष उगा रहे हैं तो 1 क्यूबिक मीटर मिट्टी डालनी पड़ेगी. मिट्टी लैवल ठीक करने और घास उगाने से पहले सिंचाई की सुविधाओं पर भी ध्यान दें. फिर अपनी जगह के मौसम के मुताबिक पौधे चुन लें. ग्रास प्लांटेशन के लिए सीधी धूप पड़ने वाली जगह हो और आप रोगरहित व फ्रैश घास के पौधे चुन लें. लैंडस्केपिंग तैयार करने के बाद उस की मैंटेनैंस पर भी ध्यान दें, नहीं तो समय और धन नष्ट होगा.     

– डा. अनुराधा पी. के.

बारिश में बीमारियों से बचें ऐसे

मौनसून में होने वाली कुछ आम समस्याएं ऐसी हैं जिन से बचाव के उपाय न जानने पर लोग काफी परेशान हो जाते हैं. ऐसा न हो इस के लिए जानें उन आम समस्याओं और उन से बचने के उपायों के बारे में.

हाइपरथर्मिया

यह एक ऐसी समस्या है जिस में बरसात के बाद निकली तेज धूप की वजह से बेहद कमजोरी का एहसास अथवा हीट स्ट्रोक तक हो सकता है. बुजुर्गों और छोटे बच्चों को हाइपरथर्मिया होने का खतरा सब से ज्यादा रहता है, क्योंकि उन के शरीर में ऐसी गरमी से निबटने की क्षमता कम होती है. इस के अलावा पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे कि दिल की बीमारियां, खराब रक्तसंचार, मोटापा, हाई ब्लडप्रैशर और डिप्रैशन आदि की दवाएं लेने वाले बुजुर्गों के शरीर में गरमी के साथ संतुलन बनाने की क्षमता कम हो जाती है. अगर किसी बुजुर्ग व्यक्ति के शरीर में दर्द हो रहा हो अथवा हीट ऐग्जौर्शन के शुरुआती लक्षण हों जैसे कि बहुत ज्यादा पसीना आना, कमजोरी, थकान या नौजिया महसूस होना, तो उन्हें तुरंत इलाज के लिए ले कर जाएं. खुद को गरमी से जुड़ी दिक्कतों से बचाने के लिए दिन में उस समय बाहर न निकलें जब धूप तेज निकली हो. वातानुकूलित माहौल में रहें और दिन में कम से कम 8-9 गिलास पानी पीएं. लेकिन अगर आप को किसी कारणवश लिक्विड नियंत्रित मात्रा में लेने की सलाह दी गई है, तो अपने डाक्टर से जरूर पूछें कि आप को इन दिनों कितना पानी इस्तेमाल करना चाहिए. अकसर कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर, किडनी अथवा लिवर संबंधी बीमारियों में नियंत्रित मात्रा में तरल पदार्थ लेने की सलाह दी जाती है.

खानपान संबंधी बीमारियां

पानी की गंदगी से होने वाली बीमारियां जैसे कि कौलरा, टाइफाइड, जौंडिस, डिसैंट्री, अमीबियोसिस, डायरिया और कई अन्य समस्याएं इन दिनों आम हो जाती हैं. बाहर खाने वाले को खतरा ज्यादा रहता है. गरम और नम वातावरण में बैक्टीरिया तेजी से पनपता है और फूड पौइजनिंग आसानी से हो जाती है. बुजुर्ग और बच्चे अथवा ऐसे लोग जिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उन्हें फूड पौइजनिंग होने का खतरा ज्यादा रहता है. अगर किसी को हाइपरटैंशन, डायबिटीज जैसी क्रौनिक बीमारियां हैं, तो उसे बेहद आसानी से फूड पौइजनिंग हो जाती है. डायरिया वाले संक्रमण में शरीर में तरल और इलैक्ट्रोलाइट्स की कमी के चलते बुजुर्गों में डीहाइड्रेशन, किडनी, हार्ट और मांसपेशियों से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं. फूड पौइजनिंग से बचाव के लिए अपने हाथों से खाना बनाने की जगह, बरतनों आदि की सही ढंग से बारबार सफाई करें और खाने की चीजें अच्छी तरह से धो कर, छील कर या पका कर खाएं. आइसक्रीम, दूध, दही जैसी चीजों को उपयुक्त तापमान में रखें. 2 घंटे से अधिक समय तक फ्रिज से बाहर रखी रहने वाले खाने की चीजें सुरक्षित नहीं रहतीं. अगर तापमान 90 डिग्री फारेनहाइट से अधिक है, तो 1 घंटे से अधिक समय तक खाने की चीज फ्रिज से बाहर नहीं रखनी चाहिए.

मच्छरों से होने वाली बीमारियां

इधरउधर पानी या गंदगी जमा होने से मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल जगह मिल जाती है. नतीजतन डेंगू, मलेरिया और अन्य बीमारियां होती हैं. ऐसा न होने दें. साथ ही कपड़े हलके रंग के पहनें और शरीर पर कोई खुशबूदार चीज लगाने से बचें, क्योंकि गाढ़े रंग और खुशबू मच्छरों को आकर्षित कर सकती है. ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां मच्छर अधिक हों. शाम के समय खिड़कियां, दरवाजे बंद रखें. रात में सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें. इस मौसम में नायग्लेरिया फौलेरी के चलते अमीबिक मेनिंगो इंसेफलाइटिस होता है जो कि आमतौर पर जानलेवा साबित होता है. यह आमतौर पर उन बच्चों में देखा जाता है जो गंदे और रुके हुए पानी में तैरते हैं. जैसे किसी झील, तालाब अथवा गंदे स्विमिंग पूल में. उन्हें ऐसा न करने दें.

इस के अलावा मौनसून की समस्याओं से बचाव के लिए अपनाएं ये टिप्स:

सड़क किनारे बिकने वाले फल व अन्य खानेपीने की चीजें इस्तेमाल न करें और ज्यादा मसालेदार या फ्राइड चीजें न खाएं. ताजे फल, हरी सब्जियां और ताजा फलों का जूस इस्तेमाल करें.

पानी ज्यादा पीएं, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि आप के द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला पानी पूरी तरह स्वच्छ हो. नीबू पानी, नारियल पानी और अन्य प्राकृतिक चीजें हमेशा अच्छी रहती हैं.

अधिक फाइबर वाली चीजें खाएं. अपने डाइट और पोषण पर पूरा ध्यान दें.

हलके और ढीले कपड़े पहनें और कोशिश करें कि वे नैचुरल फाइबर से बने हों.

थकान से बचने के लिए नियमित ऐक्सरसाइज करें.

सूरज की किरणों और पानी की गंदगी से पूरी तरह से सुरक्षित रहें.       

– डा. राजेश कुमार
कंसल्टैंट इंटरनल मैडिसिन, पारस हौस्पिटल, गुड़गांव

रंगत सांवली पड़ जाए तो करें ये उपाय

त्वचा पर झांइयां और काले दागधब्बे बहुत सारी महिलाओं की चिंता का कारण होते हैं. चेहरे या गरदन के आसपास छोटेछोटे और गहरे भूरे धब्बे गोरी त्वचा से अलग नजर आते हैं. त्वचा में झांइयों या सांवलेपन की समस्या कई कारणों से और किसी भी उम्र में हो सकती है. हालांकि ज्यादातर महिलाओं में यह समस्या गर्भधारण या रजोनिवृत्ति या फिर जब शरीर में हारमोनल असंतुलन पैदा होता है तब उभरती है. कुछ खास त्वचा रोग के अलावा धूप में ज्यादा देर रहने से भी त्वचा सांवली हो जाती है, क्योंकि इस दौरान मेलानिन का अधिक उत्पादन या वितरण होने लगता है. इन सब के अलावा कुछ ब्यूटी प्रोडक्ट्स में ऐसे तत्त्व होते हैं, जो त्वचा का सांवलापन बढ़ा सकते हैं. ये तत्त्व सूर्य की रोशनी में त्वचा की संवेदनशीलता बढ़ा सकते हैं. मसलन, सिट्रिक ऐसिड आधारित नीबू या संतरे का सत्त्व या रैटिनोइक ऐसिड जैसे विटामिन ए के यौगिक धूप में रहने के दौरान आप की त्वचा का सांवलापन बढ़ा सकते हैं. लिहाजा, इन में से कुछ उत्पादों का इस्तेमाल रात के दौरान करने की ही सलाह दी जाती है.

सांवलापन या काले धब्बे दरअसल त्वचा की अतिसक्रिय सुरक्षा प्रणाली के परिणामस्वरूप उभरते हैं. त्वचा पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो यह मैलानिन नामक पिगमैंट बनाने लगती है और यही त्वचा को सांवला बनाता है. दरअसल, मेलानिन सूर्य की यूवी किरणों के दुष्प्रभाव से हमारी त्वचा को सुरक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और त्वचा में टौक्सिक दवाओं तथा कैमिकल्स से उत्पन्न फ्रीरैडिकल्स को रगड़ कर साफ कर देता है. लेकिन जब मेलानिन का उत्पादन जरूरत से ज्यादा या फिर इस का असमान वितरण होने लगता है तो अधिक मेलानिन उत्सर्जित होने वाले स्थान पर काले धब्बे बन जाते हैं.

सांवलापन बढ़ाने वाले कारक

सूर्य की किरणें: सूर्य की रोशनी से बतौर सुरक्षा कवच त्वचा से मेलानिन का उत्पादन होने लगता है. कुछ महिलाओं की त्वचा सूर्य की किरणों में ज्यादा संवेदनशील होती है जबकि कुछ में यह संवेदनशीलता कम होती है. लिहाजा त्वचा को ऐजिंग, सनबर्न तथा सांवलेपन जैसे दुष्प्रभावों से बचाने के लिए सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना जरूरी है.

हारमोन परिवर्तन: हारमोन में परिवर्तन के कारण भी कुछ महिलाओं में मेलानिन का अधिक उत्पादन होने लगता है. यही वजह है कि गर्भनिरोधक गोलियां, जिन से सामान्य हारमोनल उत्पादन में बाधा आती है, खाने वाली महिलाएं सांवली हो जाती हैं. मेलास्मा एक प्रकार का सामान्य पिगमैंटेशन डिसऔर्डर है, जो ज्यादातर गर्भवती महिलाओं में देखा जाता है.

स्किनकेयर के अवयव

कई बार हमारे स्किनकेयर उत्पादों में कुछ ऐसे अवयव होते हैं, जिन का त्वचा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए स्किनकेयर उत्पाद खरीदते वक्त ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है. यदि आप की त्वचा संवेदनशील है तो कोई भी उत्पाद खरीदने और इस्तेमाल करने से पहले तय कर लें कि उस में किनकिन तत्त्वों का मिश्रण किया है. कुछ महिलाओं की त्वचा की संवेदनशीलता सिट्रिक ऐसिड और रैटिनोइक ऐसिड आधारित अवयवों से भी बढ़ जाती है, जिस कारण उन की त्वचा ज्यादा सांवली हो जाती है. यदि आप की त्वचा संवेदनशील है तो आप को उन उत्पादों के इस्तेमाल के प्रति एहतियात बरतनी होगी, जिन में सिंथैटिक खुशबू मिलाई गई हो. ऐसे कुछ कैमिकल्स त्वचा में खुजलाहट, लाल दाने या सांवलापन जैसे दुष्प्रभाव पैदा कर सकते हैं. त्वचा पर जलन का एहसास देने वाली क्रीम या किसी अन्य उत्पाद का इस्तेमाल करने से बचें. त्वचा के जिस हिस्से में जलन होने की आशंका अधिक हो, वहां बहुत ज्यादा मेकअप करने से बचें. यदि कोई उत्पाद खुजली या जलन पैदा करे तो उस में मिले अवयवों का रिकौर्ड रखें और दोबारा उस का इस्तेमाल न करें.    

– डा. संजीव कंधारी
कंसल्टैंट डर्मैटोलौजिस्ट,
डा. कंधारी स्किन क्लीनिक दिल्ली

लेट नाइट पार्टी

मेकअप

रात की पार्टी के लिए तैयार होना है पर पार्लर जाने का समय नहीं है. कोई बात नहीं, हम से जानिए कि पार्लर वाला नाइट पार्टी लुक घर पर कैसे पाएं…

पार्टी में जाना हर किसी को भाता है. लेकिन जब पार्टी रात में होती है, तो महिलाएं थोड़ी असमंजस की स्थिति में होती हैं कि कैसा मेकअप किया जाए. इसी बाबत ब्यूटी ऐक्सपर्ट और मेकअप आर्टिस्ट नम्रता सोनी बताती हैं कि रात की पार्टी में गहरा मेकअप ही अच्छा लगता है. उस समय मिडनाइट लाइट, सौफ्ट लाइट, कैंडल लाइट का समां होता है, जिस में गहरे रंग के आउटफिट के साथ डार्क, ग्लिटरिंग आईज, स्मोकी आईज आदि अच्छी लगती हैं. खुले बाल और लाल, भूरी या मैरून लिपस्टिक में आप और ज्यादा सुंदर दिखती हैं. अगर पार्टी में डांस फ्लोर हो तो इस तरह का मेकअप और ज्यादा आकर्षक बनाता है. लेकिन यह मेकअप काफी समय तक टिका रहे, इस के लिए मेकअप करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:

सब से पहले चेहरे को मौइश्चराइज करें. करीब 15 मिनट तक मौइश्चराइजर लगाने के बाद अपनी स्किनटोन के आधार पर फाउंडेशन का प्रयोग करें. फाउंडेशन से पहले फेस प्राइमर लगा लें. इस से मेकअप काफी समय तक टिका रहता है. यह स्किन और फाउंडेशन के बीच दीवार का काम करता है. फाउंडेशन, क्रीम, पाउडर, जैल आदि किसी भी प्रकार का हो सकता है. अगर क्रीम फाउंडेशन लगाया हो तो कौंपैक्ट पाउडर का प्रयोग जरूरी है.

आंखों का मेकअप सब से खास होता है, जो आउटफिट के अनुसार होना चाहिए. आउटफिट के अपोजिट रंगों का प्रयोग करना अच्छा रहता है. फ्लैट आईशैडो ब्रश के द्वारा आईशैडो लगाएं. इस के बाद मुलायम ब्रश से उसे अच्छी तरह ब्लैंड करें. आंखों के उभार की तरफ गहरा रंग लगाते हुए आईब्रोज के पास तक हलका रंग लगाएं.

इस के बाद ब्लैक, ब्लू, ब्राउन या ग्रीन काजल लगाएं. पैंसिल या आईलाइनर लगाने के बाद मसकारा लगाना जरूरी होता है. स्मोकी आईज और डार्क रैड लिपस्टिक ऐसी पार्टियों में काफी अच्छी लगती है.

ब्लशर हमेशा अपनी स्किनटोन से 2 शेड डार्क लगाएं. इस से मंद रोशनी में भी गालों की चमक और बढ़ जाती है.

होंठों पर लिपग्लौस की पतली परत लगाएं. इस के बाद पैंसिल से लिप का आकार बना कर उस में लिपस्टिक भरें. बाद में टिशू पेपर होंठों पर रख कर ब्रश की सहायता से लूज पाउडर लगाएं. टिशू पेपर को निकाल कर लिपस्टिक लगाएं. नम्रता आगे बताती हैं कि मेकअप में बालों का भी खास ध्यान रखना जरूरी है. लंबे बाल हों तो ब्लोड्राई अच्छा लगता है और कर्ली हों तो उन्हें खुला रखें. औफिस गोइंग हैं तो बीच में पार्टीशन कर एक नौट या जूड़ा बनाएं जो ऐलिगैंट लुक देता है. मेकअप को काफी देर तक टिकाए रखने के लिए बीचबीच में टचअप जरूरी है ताकि आप फ्रैश दिखें. इस के लिए लिपस्टिक, कौंपैक्ट पाउडर, टिशू पेपर आदि जरूर साथ रखें. एकडेढ़ घंटे के बाद वाशरूम में जा कर लिपस्टिक और कौंपैक्ट पाउडर लगाएं, क्योंकि अगर आप डांस फ्लोर पर हों या फिर कुछ खाया हो तो लिपस्टिक के स्मच होने का खतरा रहता है. ऐसे में बारबार पाउडर न लगा कर टिशू पेपर को चेहरे पर रख कर अतिरिक्त औयल और पसीने को सुखा लें. इस से चेहरे की चमक बनी रहेगी. मेकअप को फ्रैश दिखाने के लिए चेहरे पर पानी के कुछ छींटे मार कर टिशू पेपर से सुखा लें. इस से आप ताजगी महसूस करेंगी. अगर आप ने स्मोकी आईज या डार्क आईज का मेकअप किया है, तो आंखों पर हलकी उंगली के पोर से हाईलाइटिंग पाउडर से डैब करें ताकि आंखों की चमक बनी रहे. इन सब के अलावा जरूरी है आप की स्माइल जो हमेशा आप को खूबसूरत होने का एहसास कराती है. अत: इस में कंजूसी न बरतें. 

गे बनेंगे अक्षय

भई मामला ऐक्टिंग का है तभी तो फाइटिंग छोड़ कर खिलाड़ी भैया अक्षय ने रोहित धवन की फिल्म ‘ढिशुम’ के गे किरदार के लिए हामी भर दी है. रोहित की इस फिल्म में अक्षय के अलावा वरुण धवन, जौन और जैकलीन मुख्य भूमिका में हैं. हमेशा मारधाड़ और ऐक्शन फिल्मों के हीरो रहे अक्षय की समलैंगिक किरदार निभाने वाली यह पहली फिल्म है. खबर तो यह भी है कि रितिक और अक्षय फिल्में तो एकसाथ नहीं कर पाए पर पड़ोसी जरूर बन गए हैं. एक फिल्म में दोनों जरूर साथ थे पर सिर्फ कैमियो रोल में. रितिक ने उसी अपार्टमैंट में किराए से घर लिया है जिस में अक्षय कुमार अपने परिवार के साथ रहते हैं.

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