बनठन के टशन में न रहना

एली को औफिस में हर कोई नोटिस करता है. महिलाएं भी. जानते हैं क्यों, क्योंकि वह बहुत स्टाइलिश है. हर दिन ब्रैंडेड कपड़े पहन कर आती है. कालेज में मुसकान को बातें करता देख हर किसी की निगाह उस पर अटक जाती है. वजह, उस का बातें करने का स्टाइलिश अंदाज. वह फ्लूऐंटली अंगरेजी बोल लेती है. सीमा भाभी सब की फेवरेट हैं. घर में हर काम उन की सलाह से किया जाता है. यहां तक कि किस को क्या गिफ्ट देना है वह भी उन से पूछा जाता है. दरअसल, वे बहुत स्टाइलिश हैं. आखिर क्या है स्टाइलिश होना? क्या सिर्फ अच्छे ब्रैंड के कपड़े पहन लेने से कोई स्टाइलिश बन सकता है या फिर अंगरेजी में गिटरपिटर करना और हर किसी के काम में दखल देना किसी को स्टाइलिश होने की श्रेणी में खड़ा कर सकता है?

शायद नहीं. स्टाइलिश होने का मतलब अपने अंदाज को अलग अंदाज में लोगों के सामने पेश करना होता है और यह काम शुद्ध हिंदी बोलने वाला औैर सादे कपड़े पहनने वाला व्यक्ति भी कर सकता है. लेकिन बात जब महिलाओं की आती है, तो स्टाइलिश होने के माने थोड़े बदल जाते हैं, क्योंकि महिलाओं में सौंदर्य और शारीरिक सजावट को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है. महिलाओं में भ्रांति होती है कि यदि वे सुंदर हैं तो वे स्टाइलिश भी हैं. जबकि हकीकत यह है कि हर सुंदर महिला स्टाइलिश नहीं हो सकती. इस की वजह बताती हैं ओरिफ्लेम इंडिया की ब्यूटी एवं मेकअप विशेषज्ञा आकृति कोचर, ‘‘हम सिर्फ शारीरिक खूबसूरती को स्टाइलिश होने का पैमाना नहीं मान सकते, क्योंकि सुंदर होने के साथसाथ आप का व्यवहार, रहनसहन, खानपान, पहनावा और बोलचाल का स्टाइलिश होना भी जरूरी है.’’

अकसर महिलाएं स्टाइलिश दिखने के चक्कर में महंगे और ब्रैंडेड कपड़े तो पहन लेती हैं, लेकिन उन्हें कैरी करने का तरीका उन्हें नहीं पता होता है या फिर उस आउटफिट को कौंप्लिमैंट करती ऐक्सैसरीज, फुटवियर और हेयरस्टाइल के अभाव में उन का लुक फीका लगने लगता है. कुछ महिलाएं लुक्स में स्टाइलिश लगती हैं, तो उन का व्यवहार उन्हें इनडीसैंट बना देता है. स्टाइलिश आउटफिट और ऐक्सैसरीज को कैरी करने के बावजूद उठनेबैठने का तरीका सही न होने पर वे स्टाइलिश होने की रेस से बाहर हो जाती हैं. ऐसी महिलाओं के लिए आकृति कोचर कहती हैं, ‘‘आउटफिट की मैचिंग ऐक्सैसरीज ही काफी नहीं है, बल्कि उसे कैरी करने का तरीका, उस के साथ उठनेबैठने का तरीका, यहां तक कि बोलचाल का तरीका भी आना चाहिए. यदि आप वन पीस पहन कर अपने हाथों और पैरों को नियंत्रित रख कर बात नहीं कर सकतीं तो यह इनडीसैंट तरीका ही कहलाएगा या फिर स्टाइलिश आउटफिट पहन तो लिया, लेकिन माहौल उस के अनुकूल नहीं तो ऐसे में आप को स्टाइलिश नहीं मूर्खों की श्रेणी में रखा जाएगा.’’ यहां सवाल उठता है कि क्या स्टाइलिश होना जरूरी है? साधारण रहनसहन में क्या बुराई है? इन सवालों के जवाब देते हुए आकृति कोचर कहती हैं, ‘‘आधुनिक युग में स्टाइलिश होना जरूरी ही नहीं, अनिवार्य भी है, क्योंकि यदि आप स्टाइलिश नहीं हैं तो आप की गिनती अनफैशनेबल लोगों में होने लगेगी. तड़कभड़क होने का मतलब स्टाइलिश होना नहीं है. स्टाइलिश लोग भी साधारण ही दिखते हैं और उन का रहनसहन भी साधारण ही होता है. बस जिंदगी जीने का सही सलीका उन्हें स्टाइलिश होने की श्रेणी में खड़ा करता है. अच्छे लाइफस्टाइल के होने में कोईर् खराबी नहीं, क्योंकि इस से आप का मानसिक विकास होता है और आप को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है.’’

कुछ महिलाएं इसलिए भी स्टाइलिश दिखना जरूरी नहीं समझतीं, क्योंकि उन्हें ऐसी गलतफहमी होती है कि इन सब में बहुत खर्चा होता है. यह एक भ्रांति ही है. एक अच्छी जीवनशैली के लिए खर्चे से ज्यादा अच्छी सोच की आवश्यकता होती है. घर छोटा हो या बड़ा, यदि व्यवस्थित है तो ही आप स्टाइलिश जिंदगी  जी रहे हैं. इस के अतिरिक्त आप भले ही साल में 2 बार ही शौपिंग करें, मगर ऐसे कपड़े खरीदें जो आप पर अच्छे लग रहे हों. साथ ही अच्छी जगह से ही खरीदें ताकि उन्हें अधिक दिनों तक पहन सकें. आकृति कोचर की मानें तो, ‘‘महिलाएं अकसर सस्ते कपड़ों को देख कर लालच में आ जाती हैं. भले ही वे कपड़े उन पर अच्छे न लगें तो भी उन्हें खरीद लेती हैं. कई बार तो फैशनेबल दिखने के लिए वे ऐसे परिधानों का चुनाव कर लेती हैं जो उन पर बहुत ही भद्दे लगते हैं लेकिन वे खुद को अपडेट समझती हैं.’’

अपनी पर्सनैलिटी को करें अपटुडेट

अपटुडेट रहने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन इस बात को समझना जरूरी है कि हर वर्ग, उम्र और शरीर के हिसाब से बाजार में अलगअलग चीजें मौजूद हैं. उन के चुनाव में स्मार्टनैस जरूरी है और यही स्मार्टनैस आप को स्टाइलिश बनाती है. इसी तरह आप के लाइफस्टाइल का अपटुडेट होना भी बेहद जरूरी है. मसलन, बाजार में नई किस्म का फर्नीचर आ रहा है, लेकिन आप के घर में पुराने जमाने का सोफासैट है तो यकीनन आप पूरी तरह से अपटुडेट नहीं हैं. इसी तरह अपनी बोलचाल में भी नए शब्दों का प्रयोग करें. यदि आप अंगरेजी बोलनासमझना जानती हैं, तो आप के पास ज्यादा बेहतर विकल्प मौजूद हैं. यदि नहीं जानतीं तब भी कठिन भाषा का प्रयोग न करें. इस के अतिरिक्त खानपान के मामले में भी आप को अपटुडेट रहना जरूरी है. खासतौर पर आप की ईटिंग हैबिट अच्छी और समय के हिसाब से होनी चाहिए. सिर्फ दालचावल, रोटीसब्जी ही न पकाएं, बल्कि खाने में वैराइटी लाएं.

‘‘न्यूट्रिशनिस्ट सोनिया बजाज की मानें तो, शुद्ध भारतीय खाना स्वादिष्ठ और पोषण युक्त होता है, इस में कोई शक नहीं, लेकिन विदेशी खाना भी नुकसानदायक नहीं होता और कई बार सेहत के लिए बहुत अच्छा भी माना जाता है. इटैलियन, जैपनीज, चाइनीज, लैबनीज में कई डिशेज होती हैं, जिन्हें आसानी से घर में पकाया जा सकता है. लेकिन इन्हें खाने का सही तरीका और सही बरतनों का पता होना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि सही तरह से पकी डिश ही आप को स्वाद और सेहत दोनों दे सकती है. वहीं खाने का सही तरीका आप को स्टाइलिश बना सकता है.’’ अधिकतर घर में रहने वाली महिलाएं या होटलों में कम खाना खाने वाली महिलाओं को इस बारे में जानकारी नहीं होती, जिस के अभाव में कई बार ऐसे मौकों पर जब विदेशी खाना खाना पड़े तो उस का सही तरीका न जानने की वजह से लोगों के आगे शर्मिंदगी उठानी पड़ती है. इसीलिए ईटिंग हैबिट में अपडेट रहना बहुत जरूरी है.

फिट है तो हिट है

सोनिया फिटनैस को भी स्टाइलिश होने का एक हिस्सा बताती हैं. वे कहती हैं, ‘‘सेहतमंद शरीर के लिए फिट रहना जरूरी है और फिटनैस के लिए व्यायाम. यदि आप सेहतमंद हैं तो जाहिर है इस का असर आप की खूबसूरती पर भी पड़ेगा और आप की बौैडी भी शेप में रहेगी. फिर व्यायाम से शारीरिक खूबसूरती के साथसाथ मानसिक शांति भी मिलती है, जो आप को स्टाइलिश सोच देती है.’’ मन अशांत हो तो कोई भी काम सलीके से नहीं हो पाता. लेकिन यदि मन शांत है, तो आप वही काम सलीके और स्टाइल दोनों तरीकों से कर सकती हैं. यहां गौर करने वाली बात यह है कि आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में व्यायाम करने का समय किसी के पास नहीं है, बल्कि कुछ महिलाओं का तो यह भी कहना है कि घर और औफिस के काम में इतनी भागदौड़ हो जाती है कि अलग से व्यायाम करने की आवश्यकता ही क्या है?

इस बाबत सोनिया कहती हैं, ‘‘बेशक घर और औफिस के काम में शारीरिक थकान आ जाती है, लेकिन इस के साथ ही मानसिक थकान भी होती है, जिसे दूर करने के लिए थोड़ी देर का ही व्यायाम काफी होता है. यदि आप 20-30 मिनट निकाल कर रोज व्यायाम करें तो आप को फिट रहने से कोई नहीं रोक सकता. मगर व्यायाम करने का तरीका सही होना चाहिए. खुले स्थान पर एक चटाई बिछा कर भी आप व्यायाम कर सकती हैं. व्यायाम के नियम और कायदों का अनुसरण करने से जीवनशैली अनुशासित बनती है और अनुशासन ही जीवनशैली को स्टाइलिश बनाता है.’’

स्टाइल के साथ ऐफिशिऐंसी

भले ही कोई दिखने में कितना ही खूबसूरत हो, ट्रैंडी आउटफिट पहनता हो या फिर आलीशान जिंदगी जीता हो, लेकिन यदि उस में कार्यकुशलता नहीं है तो इन सब का कोई औचित्य नहीं है. खुद ही सोचिए कि औफिस में कोई बेहद बनठन कर आता हो, हो सकता है लोगों का ध्यान भी उस की तरफ आकर्षित होता होगा, लेकिन क्षण भर के लिए, कारण भले वह दिखने में स्टाइलिश हो लेकिन काम के मामले में जीरो है. एक भी काम ढंग से नहीं कर पाता हो और रोज ही बौस की डांट खाता हो तो लोग उस के स्टाइल पर कम और उस की लो ऐफिशिऐंसी पर ज्यादा बात करते हैं. वहीं दूसरी तरफ कोई कार्यकुशल है, अपनेआप को अपटुडेट भी रखता हो तो लोग न केवल उस का स्टाइल कौपी करना चाहेंगे वरन उस जैसी कार्यकुशलता भी खुद में लाने की कोशिश करेंगे. वैसे ऐफिशिऐंसी के साथ काम करने के अंदाज में भी स्टाइल का होना बहुत महत्त्वपूर्ण है. मसलन, मेल टाइप करते वक्त आप कितना अच्छा मेल लिख सकती हैं या फिर आप के द्वारा किए गए शब्दों का चयन आप के स्टाइल को दर्शाता है. इसी तरह घर के काम करने में भी आप का अपना एक अलग स्टाइल हो सकता है. जैसे किचन में खाना बनाते वक्त सफाई और साथ ही खुद को भी साफ रखना एक स्टाइल ही है. कई महिलाओं का काम करने का अंदाज ऐसा होता है कि अपने ही घर का काम करतेकरते उन का हुलिया बिगड़ जाता है, जबकि काम को यदि सलीके से किया जाए तो काम भी अच्छा होगा और आप के गैटअप पर भी कोई आंच नहीं आएगी.

यहां एक बात और समझना जरूरी है कि काम करने के ढंग को स्टाइलिश आप की सोच बनाती है. इसलिए सोचने के ढंग का स्टाइलिश होना भी जरूरी है. हम अकसर ज्यादा सोचने वाले व्यक्ति पर हंसते हैं, लेकिन असल में ऐसे लोगों की सोच में बहुत वैराइटी होती है, जो उन्हें ज्यादा कार्यकुशल भी बनाती है.

वार्डरोब और मेकअप किट को करें अपडेट

व्यक्ति के लुक्स ही उस के व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं. यदि कोई दिखने में स्टाइलिश है, तो उस की सोच और काम करने का अंदाज भी स्टाइलिश होगा, देखने वाले को पहली नजर में ऐसा ही लगता है. आकृति कोचर का कहना है, ‘‘कौस्मैटिक और आउटफिट ट्रैंड रोज ही बदलते हैं. हो सकता है कि हर दिन ट्रैंड के साथ कदम से कदम मिला कर चलना संभव न हो, लेकिन वार्डरोब और मेकअप किट में कुछ बेसिक चीजें जरूर होनी चाहिए जो आप को स्टाइलिश लोगों की श्रेणी में ला खड़ा करेंगी. मसलन, आउटफिट्स में औफिस, घर और कैजुअल ड्रैसेज में कुछ ऐसे पीस होने चाहिए जिन का फैशन कभी आउट न हो और यदि हो भी जाए तो फिर लौट आने की गुंजाइश हो.’’ इस बाबत आकृति कहती हैं, ‘‘फैशन आउट और इन होता रहता है लेकिन जरूरी नहीं कि हर बार बिलकुल नया ट्रैंड आए. कई बार पुराने फैशन का कमबैक होता है, बस उस का स्टाइल बदल जाता है. स्कर्ट, पैंट और जींस का फैशन कभी आउट नहीं होता. बस इन के टौप्स में ट्रैंड बदलता रहता है. इन्हें किसी भी स्टाइलिश और इन ट्रैंड टौप के साथ इनकौरपोरेट किया जा सकता है. वैसे आउटफिट में सिर्फ ट्रैंड औैर स्टाइल का ही ध्यान नहीं रखना पड़ता, बल्कि रंगों पर भी फोकस करना जरूरी है. किस पर कौन सा रंग सूट करता है यह वही जानता है.’’

आकृति आगे कहती हैं, ‘‘हो सकता है मार्केट में आए नए कलर पैटर्न आप पर सूट न करें. ऐसे में स्टाइलिश दिखने की होड़ में उन्हें खुद पर न लादें. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि दिन और रात के समय के लिए अलगअलग रंग बने हैं. दिन के समय आप ब्राइट कलर्स पहन सकती हैं, लेकिन रात के समय डार्क कलर ही आप को स्टाइलिश लुक देंगे.’’ आउटफिट्स के अलावा आप के मेकअप और हेयरस्टाइल पर भी बहुत हद तक आप का स्टाइलिश दिखना निर्भर करता है. अच्छे कपड़े पहन कर बिखरे बालों और मुरझाए चहरे के साथ स्टाइलिश नहीं लगा जा सकता. लेकिन आकृति यहां भी कुछ महत्त्वपूर्ण टिप्स देती हैं, ‘‘मेकअप आप के स्टाइल को डिफाइन करता है. आप ग्लैमरस आउटफिट में हों या ऐथनिक ड्रैस में हर किसी पर अलग मेकअप और हेयरस्टाइल होना चाहिए. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कहीं आप एक ही स्टाइल को रिपीट तो नहीं कर रहीं जैसे एक ही कलर की लिपस्टिक, एक ही तरह का हेयरस्टाइल आप के लुक्स में वैराइटी नहीं लाता. इस के लिए खुद ही 2-4 हेयरस्टाइल सीख लेने चाहिए, जो आसान भी हों, आप पर फबें भी और आप के लुक्स में वैराइटी भी लाएं. इसी तरह लिपस्टिक के अलग रंग आप के मूड और स्टाइल दोनों को बयां करते हैं. आजकल बैरी, बबलगम पिंक, रैड आदि रंग लिपस्टिक में इन हैं.’’

फैमिली भी हो स्टाइलिश

यदि आप खुद स्टाइलिश हैं और आप की फैमिली नहीं तो यह आप के स्टाइलिश ऐटीट्यूड पर असर डाल सकता है. इसलिए अपने परिवार के सदस्यों को भी स्टाइलिश बनाने की कोशिश करें. पेश हैं कुछ टिप्स: 

उम्र कोई भी हो फिटनैस का होना बहुत जरूरी है. इसलिए घर के बुजुर्गों को नियमित व्यायाम करने के लिए प्रेरित करें.

पति बहुत अधिक फैशन फ्रीक न हों तो आप खुद उन के लिए शौपिंग करें. नए और ट्रैंडी कपड़े पहनने में हो सकता है उन्हें थोड़ी हिचकिचाहट हो, लेकिन उन्हें यह आत्मविश्वास दिलाना कि वे बेहद स्मार्ट लग रहे हैं, यह आप का काम है.

परिवार के लोगों में अनुशासन लाने की कोशिश करें. मसलन, सामान को सही जगह रखना और घर साफ रखने जैसी आदतें उन में स्टाइलिश ऐटीट्यूड लाएंगी.

अकसर घर पर बातचीत करने का लहजा लोगों का अलग होता है. लेकिन अच्छी भाषा का प्रयोग करने से आप की बोलचाल में एक स्टाइल आता है. इसलिए घर के लोगों से भी लहजे में बात करें.

परिवार के सदस्यों को नई तकनीक से अवगत कराएं जैसे अपने मातापिता को स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करना सिखाएं. वक्तबेवक्त यह उन के काम आ सकता है.

घर में यदि बच्चा है तो उसे साफसुथरा रहना और अच्छी आदतें सिखाएं. बच्चे हमेशा अपने हेयरस्टाइल को खेलकूद में बिगाड़ लेते हैं या बिना फुटवियर के ही घर में घूमते रहते हैं. ये सब बातें उन के स्टाइल को प्रभावित करती हैं. ये आप का ही काम है कि उन्हें अच्छी आदतें सिखाएं.

लाइफ में हो स्टाइल

अच्छे कपड़े, गहने, टिपटौप मेकअप और फिट शरीर. इतना सब होने के बाद भी अगर आप का लाइफस्टाइल स्टाइलिश नहीं तो उसे स्टाइलिश बनाने के इन टिप्स पर एक नजर डालें:

वार्डरोब में ट्रैंडी कपड़े तो हैं, लेकिन वार्डरोब अव्यवस्थित है यानी कपड़े बस ठुसे हुए हैं. जब जो पहनना है प्रैस कर लिया. यदि आप ऐसा करती हैं, तो आप स्टाइलिश नहीं हैं. हर चीज को और्गनाइज्ड तरीके से रखना भी आप को स्टाइलिश बनाता है

खाने की मेज पर अकसर लोग खाना खाने की जगह घर का फुजूल सामान इकट्ठा कर लेते हैं. ऐसा करना आप के घर के इंटीरियर को बिगाड़ता है. यदि आप इस में सुधार नहीं करतीं तो आप स्टाइलिश नहीं हैं.

लाइफस्टाइल को स्टाइलिश बनाने के लिए अपने इर्दगिर्द चल रही सभी घटनाओं से अवगत होना जरूरी है यानी आप की जानकारी अपडेट होनी चाहिए.

खाना खाते वक्त बहुत से लोगों की आदत होती है कि वे ध्यान नहीं देते और अपने आसपास भी खाना गिराते हैं. पहली बात तो ऐसा नहीं होना चाहिए, दूसरी बात खाना खाने के बाद उस स्थान को साफ करने की हैबिट भी आप को स्टाइलिश बनाती है. इन छोटीछोटी मगर गहरी बातों को अपने जीवन में उतारने से आप भी बन सकती हैं स्टाइलिश. इस से न सिर्फ आप का आत्मविश्वास बढ़ेगा, कामयाबी आप के कदमों में होगी, तो फिर देर किस बात की, स्टाइलिश बनना आज से ही शुरू कर दें.

क्रिएटिव हेयरस्टाइल्स

अगर आप इंगेजमैंट सेरेमनी से ले कर रिसैप्शन पार्टी तक अपना लुक डिफरैंट दिखाना चाहती हैं, तो अपने हेयर को क्रिएटिव स्टाइल दें. दिल्ली प्रैस भवन में आयोजित फेब मीटिंग के दौरान ब्यूटी ऐक्सपर्ट अर्चना ठक्कर ने क्रिएटिव हेयरस्टाइल्स की जानकारी दी:

साइड मैसी लुक स्टाइल: बालों में कंघी कर के पीछे सिरे के बालों से 1-1 सैक्शन ले कर रोल कर लें. फिर रोल किए बालों का 1-1 सैक्शन उठा कर दूसरी साइड में पिन से सैट करें. आगे के बालों के छोटेछोटे सैक्शन ले कर ट्विस्ट करते हुए पिनअप करें. ऐसे ही पीछे के बालों को करें. फिर स्प्रे डाल कर फ्लौवर ऐक्सैसरीज से सजाएं.

फ्रैंच रोल स्टाइल: पूरे बालों में अच्छी तरह कंघी कर के इयर टू इयर बालों का एक सैक्शन निकालें. अब इयर टू इयर सैक्शन से ही बालों का 1-1 सैक्शन ले कर बैककौंबिंग कर के स्प्रे करें. फिर इन्हीं बालों का ऊंचा पफ बना लें और उसे पिन से सैट कर दें. अब पीछे के बालों में कंघी कर के उन्हें फ्रैंच रोल स्टाइल में लपेट कर पिन से सैट करें. बचे बालों को फ्रैंच रोल में डाल कर यू पिन लगाएं और स्प्रे करें.

अब पीछे फ्रैंच रोल जूड़े पर ड्रैस से मैचिंग ऐक्सैसरीज लगा कर हेयरस्टाइल को डैकोरेट करें.

पोनी विद फ्रैंच स्टाइल: बालों को इयर टू इयर छोड़ कर के पीछे के बालों की पोनी बनाएं. अब पोनी के बालों की बैककौंबिंग करें. फिर सौफ्ट स्टफिंग ले कर पोनी के सिरे से उसे लपेटते हुए ऊपर तक ले जाएं और फिर पिन से सैट करें. अब स्टफिंग पर लपेटे बालों को उंगलियों से अच्छी तरह फैला कर दूर से स्प्रे करें. अब आगे के इयर टू इयर बालों की साइड मांग दोनों तरफ फ्रैंच स्टाइल में बना कर पिन से सैट करें. अब फ्रैंच स्टाइल की एक ओर आर्टिफिशियल हेयर ऐक्सैसरीज लगाएं और दूसरे फ्रैंच स्टाइल की तरफ चमकीले स्टोन वाली बटननुमा ब्रोच लगाएं. ऐक्सैसरीज लगाने से पहले बालों को सैट करने के लिए स्प्रे करें. फिर ऐक्सैसरीज लगाएं.

फिनिशिंग फ्रैंच रोल: बालों में कंघी कर के साइड की मांग निकालें. अब एक साइड के बालों की पोनी बनाएं. अब पोनी के 30% बालों को निकाल कर बाकी बालों को पोनी पर ही लपेट कर नैट लगा कर पिन से सैट करें. बचे बालों की अंदर की तरफ बैककौंबिंग कर उन्हें पोनी में लपेट दें और फिर ओवरलैप कर के पिन से सैट करें. बचे बालों की एक साइड चोटी बनाएं या पोनी में लपेट दें. आगे के बचे बालों की बैककौंबिंग कर के पफ बनाएं. अब पूरे बालों पर स्प्रे करें. फिर खूबसूरत ऐक्सैसरीज से सजाएं.

Thai Corn Soup

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Thai Corn Cutlet And Thai Corn Pilaf

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घरेलू हिंसा : चुपचुप रहना, कब तक सहना

औसत कद की खूबसूरत और आत्मविश्वास से लबरेज एना लोपेज को देख कर यह कहना कठिन होगा कि वे भी घरेलू हिंसा की शिकार रह चुकी हैं. भारतीय मूल की दुबई निवासी एना फिलहाल भारत में एनजीओ में प्रोग्राम औफिसर के पद पर कार्यरत हैं. उन्हें हाल ही में एसआरएल डाइग्नोस्टिक द्वारा साहसी महिला का अवार्ड दिया गया.जब उन से रूबरू होने का मौका मिला तो ज्ञात हुआ कि उन्होंने 1-2 साल नहीं वरन पूरे 6 साल पति की ज्यादतियां सहीं. हाल ही में गुजरे जमाने की मशहूर अदाकारा 54 वर्षीय रति अग्निहोत्री ने भी अपने पति अनिल बिखानी पर हरासमैंट और टौर्चर करने का आरोप लगाया है. रति कई सुपरहिट फिल्मों में मुख्य किरदार की भूमिका निभा चुकी हैं. उन्होंने केस दर्ज कराया कि लंबे समय से वे पति की हिंसा का शिकार हो रही हैं.हर 5 मिनट में भारत में एक केस घरेलू हिंसा का दर्ज किया जाता है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक 2013 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर 3,09,546 केस दर्ज हुए, जिन में सब से ज्यादा 1,18,866 केस घरेलू हिंसा के थे.

नैशनल सर्वे की एक रिपोर्ट बताती है कि विवाहित महिलाओं में करीब 8% महिलाएं यौन हिंसा की, 31% शारीरिक प्रताड़ना की तो 10% गंभीर घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं. इन में पुरुष द्वारा किसी महिला को जलाने से ले कर किसी नुकीले हथियार से चोट पहुंचाए जाने तक की घटनाएं होती हैं. घरेलू हिंसा यानी घर की चारदीवारी के अंदर मारपीट/दुर्व्यवहार होना. यह दुर्व्यवहार शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या यौन संबंधी भी हो सकता है. घरेलू हिंसा सिर्फ महिला के साथ हो यह जरूरी नहीं. किसी भी उम्र, जाति, धर्म, कम्यूनिटी या सैक्स का व्यक्ति उस का शिकार हो सकता है. ऐसा भी नहीं है कि घरेलू हिंसा सिर्फ भारत में ही होती है. पूरी दुनिया में होती है. मगर घरेलू हिंसा को ले कर जो बात भारत को दूसरे देशों से अलग करती है, वह है सब कुछ चुपचाप सह लेने की प्रवृत्ति और इस की सब से प्रमुख वजह है, भारतीय संस्कृति और पारंपरिक सोच का बोझ. भारत में बचपन से ही लड़कियों को सिखाया जाता है कि उन्हें पुरुषों से दब कर रहना है.

हाल ही में सरकार द्वारा कराए गए एक फैमिली सर्वे में पाया गया है कि 54% से ज्यादा पुरुष और 51% से ज्यादा महिलाएं इस बात से इत्तफाक रखती हैं कि यदि बीवी पति के मांबाप का अपमान करती है या फिर पारिवारिक दायित्वों की उपेक्षा करती है, तो पति अपनी बीवी की पिटाई कर सकता है. दरअसल, जब तक यह सोच नहीं बदलेगी, तब तक इस तरह की घटनाएं नहीं रुक सकतीं और यही वजह है कि बड़े समृद्ध देशों की संस्था जी-20 के सर्वे में भारत को महिलाओं के लिए सब से खराब स्थान का दरजा मिला है. भारत में लड़कियां जब ससुराल से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करना चाहती हैं, तो ज्यादातर मांएं उन्हें चुप रह कर सब कुछ सहने की सलाह देती हैं. कहती हैं कि छोटीमोटी समस्याएं नजरअंदाज कर तालमेल बैठाने का प्रयास करो, क्योंकि अब वही तुम्हारा घर है. मगर वास्तविकता यह है कि ये छोटी बातें ही बड़ीबड़ी समस्याओं की वजह बनती हैं और कई दफा तो बात जीनेमरने तक पहुंच जाती है.

सजगता भी है एक वजह

ज्यादातर देखा गया है कि केस दर्ज कराने के मामले उन क्षेत्रों में ज्यादा पाए गए, जहां महिलाएं सजग और शिक्षित हैं व पुलिस और वूमंस ग्रुप ज्यादा सक्रिय हैं. आज की पढ़ीलिखी और आत्मनिर्भर महिलाओं को चुप रहना स्वीकार नहीं. वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से नहीं डरतीं, क्योंकि उन्हें अब कानूनों की सपोर्ट भी हासिल है.भारत में मुख्य रूप से 2 कानून हैं, जो महिलाओं की घरेलू हिंसा से रक्षा करते हैं : आईपीसी 498 ए: इंडियन पीनल कोड की धारा 498ए, 1983 में भारतीय संसद द्वारा पारित किए गए इस कानून के अंतर्गत, जो भी व्यक्ति चाहे वह महिला का पति हो या पति का रिश्तेदार, महिला के साथ क्रूर व्यवहार करता है, तो उसे 3 साल तक की कैद और जुरमाने की सजा मिल सकती है. इस के अंतर्गत क्रूरता के आधार पर महिला को पति से तलाक भी मिल सकता है. द प्रोटैक्शन औफ वूमन फ्रौम डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट 2005 : इसे 26 अक्तूबर, 2006 से लागू किया गया है. वैसे तो यह महिलाओं के हित में बनाया गया है, पर कोई और भी शख्स यदि डोमैस्टिक वायलैंस से पीडि़त है तो इस कानून के तहत शिकायत कर सकता है.

महिला के साथ घर में रहने वाले किसी सदस्य द्वारा भलाबुरा कहना, क्रूर व्यवहार करना, सताना, गालियां देना, मारनापीटना, बेइज्जती करना या फिर यौन संबंध हेतु जबरदस्ती करना आदि अपराध इस कानून के अंतर्गत आते हैं. इस तरह के मामलों में महिला पुलिस में शिकायत कर सकती है. उसे कई तरह से राहत दी जाएगी जैसे धारा 17 के तहत घर में रहने की इजाजत, धारा 18 के तहत प्रोटैक्शन और्डर, धारा 20 के तहत आर्थिक राहत, धारा 21 के तहत कस्टडी और्डर और धारा 22 के तहत हरजाना. इस संदर्भ में एना लोपेज की कहानी काफी प्रेरक है. वे कहती हैं, ‘‘2005 की बात है. उस वक्त मैं 18 साल की थी. दुबई में पढ़ाई के दौरान ही दोस्तों के जरीए मैं एक क्रिश्चियन रिलीजियस यूथ लीडर से मिली. जल्द ही वह शख्स मुझ में गहरी रुचि लेने लगा. वह एक दोस्त की तरह जिंदगी में आया और जल्द ही गहरे रिश्ते की चाहत बयां करने लगा. मेरे न कहने के बावजूद वह लगातार दबाव बनाता रहा. ‘‘अंतत: मैं ने हां कह दी. फिर हम डेटिंग करने लगे. शुरू में तो सब ठीक रहा पर धीरेधीरे मुझे उस का स्वभाव पजैसिव और उग्र नजर आने लगा. मेरे पिता शराबी थे. बचपन से मैं ने उन्हें मां को मारतेपीटते, गालियां देते देखा था. उन दोनों को देख कर मुझे लगता था जैसे शादी के बाद का रिश्ता ऐसा ही होता है.

‘‘मेरे बचपन की हकीकत जब उस ने जानी तो वह इस का फायदा उठाने लगा और मुझ पर बेवजह रोब जमाने का प्रयास करने लगा. वह मुझे ऐसे जताता जैसे मुझ में बुद्धि ही नहीं कि मैं अपना भलाबुरा सोच सकूं. उसे मेरे दोस्तों में भी बुराइयां नजर आने लगीं. मुझे उन से मिलने से रोकने लगा. वह मेरे लिए नया सिम ले कर आया और ईमेल आईडी भी नई बना दी. यही नहीं, वह मेरी ज्वैलरी, ड्रैसेज और हाई हील्स पर भी पाबंदी लगाने लगा. अब हमारे बीच झगड़ा होने लगा. पर झगड़े के बाद वह माफी मांग कर, गिफ्ट दे कर या बाहर खाना खिला कर और दोबारा ऐसा न करने का वादा कर मुझे मना लेता. ‘‘2006 में उस ने कहा कि उस के अभिभावक उस की शादी जल्द कराना चाहते हैं. इसलिए मैं शादी के लिए हामी भर दूं. मैं तैयार नहीं हुई तो वह इमोशनली मुझे हां करने को विवश करने लगा कि मैं ने उस से शादी नहीं की तो उस की जिंदगी बरबाद हो जाएगी और उस की जिम्मेदार मैं होऊंगी. बहुत कशमकश के बाद अंतत: मैं ने शादी के लिए हां कह दी. 20 अप्रैल, 2006 को उस से शादी कर ली और फिर चर्च के काम में उस की मदद करने लगी. पर उस माहौल में ढलना मेरे लिए कठिन हो रहा था.‘‘कुछ समय बाद की बात है. घर की सफाई करते वक्त चार्जर कोने से थोड़ा टूट गया. बस इस बात पर उस ने मुझे थप्पड़ जमा दिया. धीरेधीरे उस की ये हरकतें बढ़ने लगीं. वह मेरे साथ क्रूर और हिंसक व्यवहार करने लगा. उस के इस व्यवहार ने हमारे रिश्ते में खालीपन भर दिया. वह स्वयं को संतुष्ट करने के लिए मेरे साथ जोरजबरदस्ती भी करने लगा. फिजिकल और इमोशनल अब्यूज के साथ मैं सैक्सुअल अब्यूज की भी शिकार होने लगी. उस ने मुझे आगे पढ़ने या जौब करने की अनुमति भी नहीं दी. ‘‘1 साल होतेहोते मैं काफी डिप्रैशन में रहने लगी. मैं अपने घर लौटना चाहती थी, पर यह बात मैं उस से कहती, उस से पहले मैं ने अपनी एक दोस्त से इस की चर्चा की और सलाह मांगी. दोस्त ने सारी बात अपने बौयफ्रैंड से कह दी और उस ने सब कुछ मेरे पति से कह दिया. ‘‘इस बात पर वह बिफर गया. न सिर्फ उस ने मेरा फोन तोड़ा वरन बैल्ट उठा कर आधे घंटे तक मेरी पिटाई भी की. बाद में वह नौर्मल हो गया और माफी भी मांग ली. अब तो अकसर ऐसा होने लगा. मेरे घर जाने की बात पर वह मुझ से बुरा व्यवहार करने लगता.

‘‘2007 की गरमियों में वह करीब 15 साल की एक लड़की शेनिन को शिष्या बना कर ले आया. उस ने कहा कि वह उस लड़की को मुझ पर नजर रखने के लिए लाया है. मुझे जलाने के लिए वह उस लड़की को हर जगह साथ ले कर जाता. शेनिन के लिए कुछ कहने पर वह कहता कि वह तो बच्ची है. बाद में तो बैड पर हम दोनों के बीच सुलाने लगा. मैं ने स्पष्ट महसूस किया कि वह लाख उसे बेटी कहे, मगर वास्तव में उन के बीच गलत संबंध हैं. ‘‘मेरे द्वारा घर जाने की बात पर वह उग्र हो उठता और मारतापीटता. घर वालों और दोस्तों के आगे प्रेमपूर्ण व्यवहार करता. मगर पीछे उस का व्यवहार बहुत ही बुरा होता. एक बार तो उस ने मेरे पैर में ऐसा मारा कि वह नीला हो गया और सूजन आ गई. उस ने मेरा पासपोर्ट, लीगल डौक्यूमैंट्स भी अपने कब्जे में ले लिए थे और मेरे कंप्यूटर में स्पाई सौफ्टवेयर डलवा दिया. ‘‘सितंबर, 2007 में हम लीडरशिप कौन्फ्रैंस के लिए सिंगापुर गए. उस दौरान उस ने मेरे साथ जबरदस्ती की और कहा कि प्रैग्नैंट होने पर ही तुम घर जाने की जिद बंद करोगी. उस के इस व्यवहार की वजह से मेरी हालत बहुत खराब होती जा रही थी. रात में सोना कठिन हो जाता था. खाना नहीं खा पाती थी. अवसाद में रहने लगी थी. धीरेधीरे मेरी हालत ऐसी हो गई कि मैं स्वयं को खत्म करने की बात सोचने लगी. 24 सितंबर, 2010 को मैं ने बहुत शराब पी ली. मगर सहानुभूति की जगह यहां भी पति ने मुझ पर हाथ ही उठाया.

‘‘वह मुझ पर खराब चरित्र का आरोप लगाता. उसे लगता कि मैं जानबूझ कर लोगों के आगे उसे बदनाम करती हूं और दूसरों को आकर्षित करने का प्रयास करती हूं. ‘‘मैं जब भी घर जाने की बात किसी से डिसकस करती तो कहीं न कहीं से यह बात उस के कानों तक पहुंच जाती और वह मुझ पर और भी ज्यादा हिंसक हो उठता. यहां तक कि मेरे द्वारा अपने मांबाप से भी इस बारे में कुछ कहना उसे मंजूर नहीं था. मां से तो मैं ने इस स्थिति पर बात की थी, पर अब तक पिता को कोई खबर नहीं थी. ‘‘जुलाई, 2010 की बात है. मैं ने एक लैटर द्वारा पिता को सब कुछ बताने का निश्चय किया. मगर बाद में सोचा कि यह सही नहीं होगा. चूंकि पापा मम्मी से कहेंगे और बात फिर उस तक पहुंच जाएगी. मगर भूलवश मैं वह लैटर फाड़ना भूल गई, जिसे उस ने पढ़ लिया. अब लोगों के आगे ही वह मेरी बेइज्जती करने लगा. वह जानना चाहता था कि मैं ने इसे किस के लिए लिखा था, जबकि मैं ने यह कह कर उसे शांत करना चाहा कि मैं ने महज अपने अनुभव लिखे हैं. उसे मुझ पर विश्वास नहीं हुआ और मुझे मारने लगा. जान से मारने की धमकी देते हुए मेरे बाल पकड़ कर खींचे और रात में भी जबरदस्ती की.‘‘2012 में मेरे साथ शारीरिक विरोध करने या कुछ कहने का प्रयास करना छोड़ दिया. अंतत: 27 अप्रैल, 2012 को मैं उस जेल से छुटकारा पाने में कामयाब हो गई. दरअसल, अब तक मेरा पासपोर्ट उस के कब्जे में था. कुछ सप्ताह पहले पासपोर्ट मुझे दिया गया ताकि मैं यूएसए विजिट वीजा के लिए अप्लाई कर सकूं.

‘‘अपने दोस्तों और बचाए हुए  50 हजार की मदद से 1 माह की सावधानीपूर्ण योजना के बाद मैं भारत की फ्लाइट बुक कराने और चर्च परिसर पार कर एअरपोर्ट पहुंचने में सफल हो गई. मैं भारत आ कर किसी एनजीओ से जुड़ना चाहती थी. मैत्री इंडिया द्वारा मुझे सकारात्मक जवाब मिला. 27 अप्रैल, 2012 को मैं दुबई से मुंबईअहमदाबाद होते हुए दिल्ली आ गई. ‘मैत्री इंडिया द्वारा मुझे हर तरह की लीगल गाईडैंस मिली. वकील की सुविधा के अलावा पुलिस कार्यवाही से ले कर तलाक तक की प्रक्रिया में हर कदम पर सहयोग मिला. जौब प्रोटैक्शन भी हासिल हुआ. कानूनी रूप से मुझे अगस्त, 2014 में तलाक मिल गया और सितंबर, 2014 में पति ने भी दूसरी शादी कर ली.

‘‘इस दौरान जिस बात ने मुझे बेहद दुख पहुंचाया, वह थी मम्मी की सपोर्ट न मिलना. जब भी मैं पति के व्यवहार की शिकायत उन से करती, वे यही कहतीं कि ऐसा चलता है. मैं भी तो सहती हूं न. उन्होंने कभी यकीन ही नहीं किया कि उस ने मेरे साथ गलत व्यवहार किया है. फिलहाल पापा गोवा में हैं और मम्मी दुबई में. पापा की इमोशनल सपोर्ट है मुझे, मगर मम्मी की नहीं.’’

घरेलू हिंसा से बचाव

मनोवैज्ञानिक और समाजसुधारक अनुजा कपूर कहती हैं, ‘‘हमारे समाज की सब से बड़ी समस्या यही है कि महिलाओं को लगता ही नहीं कि उन के साथ घरेलू हिंसा हो रही है. समाज में यही धारणा व्याप्त है कि पति हमेशा सही होता है, वह कुछ भी कर सकता है. ‘‘समाज को बदलने के लिए हमें स्वयं को बदलना होगा. अब पिता की संपत्ति में बेटी को बराबर की हिस्सेदारी मिलती है. वह अलग हो सकती है. शोषित होने से इनकार कर सकती है. बच्चे मांबाप को रोल मौडल मानते हैं. पर जब वे देखते हैं कि कोई व्यक्ति आप का हाथ मोड़ रहा है, कपड़े फाड़ रहा है, धक्के दे रहा है या फिर गालियां बक रहा है. फिर भी आप उसे सही कहती हैं, क्योंकि वह आप का पति है, तो भला हम बच्चों को क्या सिखा रहे हैं? यह वूमन ऐंपावरमैंट नहीं. ‘‘अन्याय का विरोध करेंगी तो कानूनों की कमी नहीं. आप के हित में सरकार ने कानून बनाए हैं. आप को प्रोटैक्शन दिया जाएगा. रिस्ट्रैनिंग और्डर पास होगा. पूरी लीगल सपोर्ट मिलेगी. आप मैंटीनैंस के लिए भी आवेदन कर सकती हैं. ऐसे एनजीओ की भी कमी नहीं जो आप को सहयोग देंगे.’’

बचपन से समानता की सीख

यदि घरेलू हिंसा से भारत की लड़कियों को बचाना है, तो जरूरी है कि घर में बच्चों को शुरू से ही सही संस्कार दिए जाएं. उन्हें बताया जाए कि लड़केलड़की में कोई फर्क नहीं और ऐसा कतई नहीं है कि भाई अपनी बहनों के साथ मारपीट करें या उन्हें दबा कर रखें. जब तक वे बचपन से महिलाओं का सम्मान करना नहीं सीखेंगे, आगे चल कर भी बीवी पर हाथ उठाने की उन की आदत नहीं जाएगी. लड़कों को बचपन से जो यह सिखाया जाता है कि लड़के रोते नहीं, उस की जगह यह सिखाया जाए कि लड़के रुलाते नहीं.

डोमैस्टिक वायलैंस प्रिवैंटिव प्रोग्राम्स

यूके जैसे देशों में खासतौर पर महिलाओं को डोमैस्टिक वायलैंस से बचाने हेतु डोमैस्टिक वायलैंस प्रिवैंटिव प्रोग्राम्स यानी डीवीपीपी प्रोग्राम्स आयोजित किए जाते हैं. सप्ताह में एक दिन 2-ढाई घंटे का यह प्रोग्राम उन लोगों के लिए बहुत लाभकारी होता है जो अपने जीवनसाथी के प्रति अब्यूसिव और वायलैंट व्यवहार करते हैं. वैसे तो इस में डिसकशंस कराए जाते हैं, मगर साथ में कई तरह के इंटेरैक्टिव व्यायाम भी कराए जाते हैं ताकि यह ज्यादा वास्तविक और व्यक्ति की परिस्थितियों से तालमेल रखने वाला साबित हो. इस का मकसद पुरुषों को अधिक वायलैंट और अब्यूसिव होने से रोकने में मदद करना, उन्हें अपने जीवनसाथी का सम्मान करना और क्रोध पर काबू रखना सिखाया जाता है. आज के जमाने में जहां महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. ऐसे में उन के साथ भेदभाव और हिंसा करना गलत है. विश्व में हर साल लाखों परिवार घरेलू हिंसा की भेट चढ़ जाते हैं. क्या महिलाओं को स्वतंत्र रूप से जीने का हक नहीं? बेहतर है रिश्तों को दरकने से बचाया जाए.

धर्म ही संबंधों में अड़चनें लगाता

विवाह एक स्त्री और पुरुष का कानूनी, सामाजिक, धार्मिक गठबंधन है या 2 व्यक्तियों का आपसी कानूनी समझौता जिस पर सरकारी मुहर लगती है और एकदूसरे के प्रति बहुत से अधिकार व कर्तव्य पैदा होते हैं. अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने 5-4 के बहुमत से फैसला दिया कि विवाह में एक जने का पुरुष और दूसरे का स्त्री होना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है और विवाह के बाद जिस तरह का कानून व समाजसम्मत संबंध स्त्रीपुरुष को मिलता है वह लिंग आधारित नहीं. सादे शब्दों में सेम सैक्स यानी समलैंगिक विवाहों को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने वैधता दे दी है जो पहले ही 36 राज्यों में वैध थी.

विवाह के बीच धर्म कब और कैसे कूदा यह कहना मुश्किल है पर सारी मुश्किलें धर्म वालों ने ही खड़ी की थीं कि उस से विवाह करो, उस से न करो, ऐसे करो, ऐसा न करने पर पाप लगेगा, तोड़ोगे तो नर्क मिलेगा, पति को परमेश्वर मानो, सौतनों को सहो, निपूती हो तो यह तुम्हारे पापों का फल है, पति छोड़ गया तो 7 साल तक इंतजार करो, मर गया तो उस के साथ जल जाओ या दफन हो जाओ जैसे फरमान प्राकृतिक नहीं, धर्म की देन हैं और इस तरह की सैकड़ों बंदिशों का समाज से कोई लेनादेना नहीं है.

समाज तो 2 व्यक्तियों के आपसी संबंधों को सहज स्वीकार लेता है जैसे 2 भाइयों के, पितापुत्र के, 2 साझेदारों के, मालिकनौकर के, मकानमालिककिराएदार के, सैकड़ों तरह से आदमी आदमी से व्यवहार करता है और समाज उसे स्वीकार लेता है. समाज तो आदमी की रखैल, शरीर बेचने वाली वेश्या तक को भी स्वीकार लेता है. धर्म ही संबंधों में अड़चनें लगाता रहा है और सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें पूरी तरह संविधान विरोधी करार दिया है.अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के अनुसार विवाह 2 व्यक्तियों का साथ रहने का समझौता है और लिंग के नाम पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. नतीजा यह है कि अब अमेरिकन जोड़े स्त्रीपुरुष, पुरुषपुरुष व स्त्रीस्त्री के हो सकते हैं और इन तीनों तरह के जोड़ों के आपसी अधिकार एकजैसे ही होंगे.

समलैंगिक जोड़ों को विवाहित मानने का अर्थ है कि दोनों की संपत्ति में साझेदारी होगी, विरासत का कानून लगेगा, दोनों को एकदूसरे के साथ ही रहना होगा और तीसरे की मौजूदगी तलाक का कारण बन सकेगी, दोनों मिल कर बच्चा गोद ले सकेंगे या डोनर स्पर्म या अंडाणु अथवा सैरोगैसी संतान उत्पन्न कर सकेंगे, जिन में से वह एक की बायोलौजिकल संतान होगी. विवाह का कानून जो हक सभी पुरुष को देता है, वे अब सभी समलैंगिक जोड़ों को मिल सकेंगे. भारत का सुप्रीम कोर्ट अभी इस सोच से लाखों मील दूर है और विवाह को धार्मिक संस्कार ही मानता है. विवाहों में जाति, धर्म, दहेज, पैसा उसी का नतीजा है. विवाहविच्छेद के बाद स्त्री की जो बुरी हालत होती है या विधवाओं का जो हाल होता है वह विवाह को धार्मिक संस्कार मानने से ही है. देखते हैं कि भारत का सुप्रीम कोर्ट क्याक्या सबक सीखता है अब.

अफसरों के निकम्मेपन से सड़ रहे शहर

सुविधाजनक शहरों की योजना बनाना कठिन होता जा रहा है और मजेदार बात यह है कि सड़क के बीच पटरी बने या न बने जैसे छोटे मामलों को सुप्रीम कोर्ट में घसीटा जा रहा है जहां फैसला होने में वर्षों लगते हैं और वकील लाखों रुपए की फीस लेते हैं. दिल्ली उच्च न्यायालय में छोटेमोटे मामले तो सैकड़ों की गिनती में हैं. पटरी कितनी चौड़ी हो, नाला पाटा जाए या नहीं, राइट टर्न बंद हो या न हो, वनवे स्ट्रीट सही है या नहीं, पटरी पर बनी दुकान कैसे हटे, घरेलू इलाके में दुकान, दफ्तर, अस्पताल बने या न बने, घर के बाहर पार्किंग का पैदाइशी हक है या नहीं, अतिरिक्त कमरा अपने मकान में क्यों डाला गया, इस तरह के मामले अधिकारियों को नहीं अदालतों को सुलटाने पड़ते हैं और हमारे अधिकारी अगर तर्क की बात नहीं सुनते तो अदालतें जरा सी बात का फैसला करने में सालों लगा देती हैं.

हमारे सारे शहर अफसरों के निकम्मेपन की वजह से सड़ रहे हैं. देश का एक भी शहर ढंग से नहीं चल रहा. शहर तो छोडि़ए, एक गली, एक सड़क ढंग की नहीं दिखेगी जबकि हर सड़क पर 10 अफसरों का हुक्म चलता होगा और सड़क का प्रबंध करने के लिए बीसियों लोग लगे होंगे. पर हमारी अफसरशाही, नौकरशाही ऐसी? निकम्मी निकली है कि हर शहरी को नर्क में रहना पड़ता है और अब तो उसे नर्क में रहने की आदत हो गई है.

सड़कें सारे देश में संकरी हो गई हैं और ट्रैफिक 4-5 गुना बढ़ गया है. अगर एक गाड़ी खराब हो जाए या दाएं मुड़ने के लिए रुक जाए तो पीछे बीसियों गाडि़यों का तांता लग जाता है. जब तक गाड़ी धकेली जाए या मुड़ पाए मिनट नहीं घंटे गुजर सकते हैं. अगर पुलिस हो तो भी कुछ नहीं कर पाती है, क्योंकि हर चीज ऐसी बेतरतीब और बेवकूफी से बनी है कि सिवा परेशानी के कुछ मिलता ही नहीं है. अदालतों में लोग थकहार कर जाते हैं पर वहां भी मामला लटकता रहता है. कुछ राहत मिलती है तो ऐसी कि एक पक्ष को लाभ होता है तो दूसरे को नहीं. 

सड़कों को संभालने की जिम्मेदारी आज बेहद गंभीर है और इस में सड़कों की मरम्मत, उन की चौड़ाई का फैसला, साफसफाई, पार्किंग का फैसला ऐसे अधिकारी द्वारा होना चाहिए जो मील 2 मील पर बैठा हो, उस के पास ही सब अधिकार हों, वही लोगों की सुने, वही ठेके देने में सक्षम हो और उसी को गलती होने पर जिम्मेदार माना जाए. अदालतों को छोटे मामलों में हाथ डालने की जगह निर्देश देने चाहिए कि पुलिस बूथों की तरह सड़क प्रबंधन बूथ बनें या ट्रैफिक पुलिस ही सड़क पुलिस बन जाए ताकि वह चालान करने से ले कर बीच की पटरी बनाने तक का पूरा फैसला कर सके. सरकारी अधिकारी सुलभ हो तभी जनता का भला होगा.

काम के प्रति इतना समर्पण

काम के प्रति समर्पण की मिसाल अगर किसी की देनी हो तो आज की तारीख में आलिया भट्ट से अच्छा नाम आप को नहीं मिलेगा. शकून बत्रा के निर्देशन में बन रही करण जौहर की फिल्म ‘कपूर ऐंड संस’ की शूटिंग के समय आलिया के कंधे में चोट लग गई थी. डाक्टरों ने उन्हें 2 हफ्ते आराम करने की सलाह दी तो आराम के लिए अपने परिवार के संग आलिया ने फलकनुमा पैलेस में कुछ वक्त बिताया और अब शूटिंग के लिए पहाड़ों पर (कुनूर) रवाना हो गई हैं. जबकि इस समय उन की चोट ठीक नहीं हुई है. तो इस का मतलब आलिया काम से दूर नहीं रह सकतीं, चाहे कोई भी समस्या हो.

सोनम ने छोड़ा घर

आलिया के बाद अब सोनम कपूर ने मम्मीपापा वाले घर से शादी के पहले ही अपनी विदाई करवा ली है. परिवार से अलग रहने का कारण कुछ और नहीं है. वजह यह है कि सोनम ने अपना नया घर खरीद लिया है. खबरों के मुताबिक इस घर की इंटीरियर डिजाइनिंग सोनम की मौसी कविता सिंह (सुनीता कपूर की बहन) करेंगी. फिलहाल इन दिनों सोनम तो  अपनी फिल्म ‘नीरजा’ और ‘प्रेम रतन धन पायो’ की शूटिंग में व्यस्त हैं.

 

साइक्लिंग के बलबूते मैं फिट रहता हूं

पिछली 26 जून को अपना 30 वां जन्मदिन मना चुके बौलीवुड के इश्कजादे व गुंडे अर्जुन कपूर, जिन के तेवर से लोग डरते नहीं बल्कि उन्हें प्यार करते हैं, को हाल ही में हीरो साइकिल ने अपना ब्रैंड ऐंबैसेडर बनाया है. पेश हैं उसी दौरान अर्जुन से हुई बातचीत के कुछ अंश :

आप के जोड़ीदार रणवीर सिंह जल्दी ही अपनी जोड़ी बनाने जा रहे हैं. मतलब शादी करने की सोच रहे हैं. आप ने ऐसा कुछ सोचा है अभी तक कि नहीं?

पार्टनर की जोड़ी कब बनेगी इस के बारे में तो उन्हीं से पूछिए. लेकिन अपना इस बारे में अभी तक कोई खयाल नहीं. एक हंसताखेलता कुंवारा आप लोगों से देखा नहीं जाता क्या? क्यों हर किसी की शादी करवाने के पीछे पड़े रहते हैं? मैं ने अभी तो कैरियर की शुरुआत की है. आगे जो भी होगा आप लोगों यानी मीडिया को पहले से जानकारी होगी.

अपनी फिटनैस का श्रेय किसे देते हैं?

हां यह सवाल मुझे अच्छा लगा, क्योंकि 140 किलो से घटा कर अपना वजन 87 किलो कर लेना मेरी मेहनत का ही नतीजा है. फिल्मों में आने के पहले मैं ने अपनी बौडी पर भरपूर ध्यान दिया. और एक बात जिस पर मैं बचपन से ले कर आज तक रैग्युलर रहा हूं  वह है साइक्लिंग करना. शूटिंग से फ्री हो कर जब भी समय मिलता है मैं साइकिल जरूर चलाता हूं क्योंकि इस से शरीर के हर हिस्से की कसरत हो जाती है.

‘ऐआईबी’ से आप की और आप के दोस्त रणवीर की इमेज में कुछ कमी आई है. आप क्या मानते हैं, आप ने ‘ऐआईबी’ में भाग ले कर कर सही किया था या गलत?

छोडि़ए उस बात को. स्पौंसर ने हम से जो करवाया वह हम ने किया. रहा इमेज का सवाल तो मैं समझता हूं कि इस के बारे में हम लोगों से ज्यादा मीडिया को मालूम होगा क्योंकि आप लोग ही हम फिल्म वालों की इमेज बनातेबिगाड़ते रहते हैं.

अपनी आने वाली फिल्मों के बारे में कुछ बताएंगे?

इस समय मैं 2-3 फिल्मों में काम कर रहा हूं, जिन में कुछ के नाम फाइनल हो गए हैं.

वैसे इतने कम समय में युवाओं की धड़कन बनने वाले अर्जुन जल्द ही निर्देशक आर. बाल्की की एक फिल्म में, जिस में उन के साथ अभिनेत्री करीना कपूर खान हैं, काम शुरू करने वाले हैं. इस फिल्म में वे करीना कपूर के पति की भूमिका निभाएंगे.                          

– दीप तिवारी

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