औसत कद की खूबसूरत और आत्मविश्वास से लबरेज एना लोपेज को देख कर यह कहना कठिन होगा कि वे भी घरेलू हिंसा की शिकार रह चुकी हैं. भारतीय मूल की दुबई निवासी एना फिलहाल भारत में एनजीओ में प्रोग्राम औफिसर के पद पर कार्यरत हैं. उन्हें हाल ही में एसआरएल डाइग्नोस्टिक द्वारा साहसी महिला का अवार्ड दिया गया.जब उन से रूबरू होने का मौका मिला तो ज्ञात हुआ कि उन्होंने 1-2 साल नहीं वरन पूरे 6 साल पति की ज्यादतियां सहीं. हाल ही में गुजरे जमाने की मशहूर अदाकारा 54 वर्षीय रति अग्निहोत्री ने भी अपने पति अनिल बिखानी पर हरासमैंट और टौर्चर करने का आरोप लगाया है. रति कई सुपरहिट फिल्मों में मुख्य किरदार की भूमिका निभा चुकी हैं. उन्होंने केस दर्ज कराया कि लंबे समय से वे पति की हिंसा का शिकार हो रही हैं.हर 5 मिनट में भारत में एक केस घरेलू हिंसा का दर्ज किया जाता है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक 2013 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर 3,09,546 केस दर्ज हुए, जिन में सब से ज्यादा 1,18,866 केस घरेलू हिंसा के थे.

नैशनल सर्वे की एक रिपोर्ट बताती है कि विवाहित महिलाओं में करीब 8% महिलाएं यौन हिंसा की, 31% शारीरिक प्रताड़ना की तो 10% गंभीर घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं. इन में पुरुष द्वारा किसी महिला को जलाने से ले कर किसी नुकीले हथियार से चोट पहुंचाए जाने तक की घटनाएं होती हैं. घरेलू हिंसा यानी घर की चारदीवारी के अंदर मारपीट/दुर्व्यवहार होना. यह दुर्व्यवहार शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या यौन संबंधी भी हो सकता है. घरेलू हिंसा सिर्फ महिला के साथ हो यह जरूरी नहीं. किसी भी उम्र, जाति, धर्म, कम्यूनिटी या सैक्स का व्यक्ति उस का शिकार हो सकता है. ऐसा भी नहीं है कि घरेलू हिंसा सिर्फ भारत में ही होती है. पूरी दुनिया में होती है. मगर घरेलू हिंसा को ले कर जो बात भारत को दूसरे देशों से अलग करती है, वह है सब कुछ चुपचाप सह लेने की प्रवृत्ति और इस की सब से प्रमुख वजह है, भारतीय संस्कृति और पारंपरिक सोच का बोझ. भारत में बचपन से ही लड़कियों को सिखाया जाता है कि उन्हें पुरुषों से दब कर रहना है.

हाल ही में सरकार द्वारा कराए गए एक फैमिली सर्वे में पाया गया है कि 54% से ज्यादा पुरुष और 51% से ज्यादा महिलाएं इस बात से इत्तफाक रखती हैं कि यदि बीवी पति के मांबाप का अपमान करती है या फिर पारिवारिक दायित्वों की उपेक्षा करती है, तो पति अपनी बीवी की पिटाई कर सकता है. दरअसल, जब तक यह सोच नहीं बदलेगी, तब तक इस तरह की घटनाएं नहीं रुक सकतीं और यही वजह है कि बड़े समृद्ध देशों की संस्था जी-20 के सर्वे में भारत को महिलाओं के लिए सब से खराब स्थान का दरजा मिला है. भारत में लड़कियां जब ससुराल से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करना चाहती हैं, तो ज्यादातर मांएं उन्हें चुप रह कर सब कुछ सहने की सलाह देती हैं. कहती हैं कि छोटीमोटी समस्याएं नजरअंदाज कर तालमेल बैठाने का प्रयास करो, क्योंकि अब वही तुम्हारा घर है. मगर वास्तविकता यह है कि ये छोटी बातें ही बड़ीबड़ी समस्याओं की वजह बनती हैं और कई दफा तो बात जीनेमरने तक पहुंच जाती है.

सजगता भी है एक वजह

ज्यादातर देखा गया है कि केस दर्ज कराने के मामले उन क्षेत्रों में ज्यादा पाए गए, जहां महिलाएं सजग और शिक्षित हैं व पुलिस और वूमंस ग्रुप ज्यादा सक्रिय हैं. आज की पढ़ीलिखी और आत्मनिर्भर महिलाओं को चुप रहना स्वीकार नहीं. वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से नहीं डरतीं, क्योंकि उन्हें अब कानूनों की सपोर्ट भी हासिल है.भारत में मुख्य रूप से 2 कानून हैं, जो महिलाओं की घरेलू हिंसा से रक्षा करते हैं : आईपीसी 498 ए: इंडियन पीनल कोड की धारा 498ए, 1983 में भारतीय संसद द्वारा पारित किए गए इस कानून के अंतर्गत, जो भी व्यक्ति चाहे वह महिला का पति हो या पति का रिश्तेदार, महिला के साथ क्रूर व्यवहार करता है, तो उसे 3 साल तक की कैद और जुरमाने की सजा मिल सकती है. इस के अंतर्गत क्रूरता के आधार पर महिला को पति से तलाक भी मिल सकता है. द प्रोटैक्शन औफ वूमन फ्रौम डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट 2005 : इसे 26 अक्तूबर, 2006 से लागू किया गया है. वैसे तो यह महिलाओं के हित में बनाया गया है, पर कोई और भी शख्स यदि डोमैस्टिक वायलैंस से पीडि़त है तो इस कानून के तहत शिकायत कर सकता है.

महिला के साथ घर में रहने वाले किसी सदस्य द्वारा भलाबुरा कहना, क्रूर व्यवहार करना, सताना, गालियां देना, मारनापीटना, बेइज्जती करना या फिर यौन संबंध हेतु जबरदस्ती करना आदि अपराध इस कानून के अंतर्गत आते हैं. इस तरह के मामलों में महिला पुलिस में शिकायत कर सकती है. उसे कई तरह से राहत दी जाएगी जैसे धारा 17 के तहत घर में रहने की इजाजत, धारा 18 के तहत प्रोटैक्शन और्डर, धारा 20 के तहत आर्थिक राहत, धारा 21 के तहत कस्टडी और्डर और धारा 22 के तहत हरजाना. इस संदर्भ में एना लोपेज की कहानी काफी प्रेरक है. वे कहती हैं, ‘‘2005 की बात है. उस वक्त मैं 18 साल की थी. दुबई में पढ़ाई के दौरान ही दोस्तों के जरीए मैं एक क्रिश्चियन रिलीजियस यूथ लीडर से मिली. जल्द ही वह शख्स मुझ में गहरी रुचि लेने लगा. वह एक दोस्त की तरह जिंदगी में आया और जल्द ही गहरे रिश्ते की चाहत बयां करने लगा. मेरे न कहने के बावजूद वह लगातार दबाव बनाता रहा. ‘‘अंतत: मैं ने हां कह दी. फिर हम डेटिंग करने लगे. शुरू में तो सब ठीक रहा पर धीरेधीरे मुझे उस का स्वभाव पजैसिव और उग्र नजर आने लगा. मेरे पिता शराबी थे. बचपन से मैं ने उन्हें मां को मारतेपीटते, गालियां देते देखा था. उन दोनों को देख कर मुझे लगता था जैसे शादी के बाद का रिश्ता ऐसा ही होता है.

‘‘मेरे बचपन की हकीकत जब उस ने जानी तो वह इस का फायदा उठाने लगा और मुझ पर बेवजह रोब जमाने का प्रयास करने लगा. वह मुझे ऐसे जताता जैसे मुझ में बुद्धि ही नहीं कि मैं अपना भलाबुरा सोच सकूं. उसे मेरे दोस्तों में भी बुराइयां नजर आने लगीं. मुझे उन से मिलने से रोकने लगा. वह मेरे लिए नया सिम ले कर आया और ईमेल आईडी भी नई बना दी. यही नहीं, वह मेरी ज्वैलरी, ड्रैसेज और हाई हील्स पर भी पाबंदी लगाने लगा. अब हमारे बीच झगड़ा होने लगा. पर झगड़े के बाद वह माफी मांग कर, गिफ्ट दे कर या बाहर खाना खिला कर और दोबारा ऐसा न करने का वादा कर मुझे मना लेता. ‘‘2006 में उस ने कहा कि उस के अभिभावक उस की शादी जल्द कराना चाहते हैं. इसलिए मैं शादी के लिए हामी भर दूं. मैं तैयार नहीं हुई तो वह इमोशनली मुझे हां करने को विवश करने लगा कि मैं ने उस से शादी नहीं की तो उस की जिंदगी बरबाद हो जाएगी और उस की जिम्मेदार मैं होऊंगी. बहुत कशमकश के बाद अंतत: मैं ने शादी के लिए हां कह दी. 20 अप्रैल, 2006 को उस से शादी कर ली और फिर चर्च के काम में उस की मदद करने लगी. पर उस माहौल में ढलना मेरे लिए कठिन हो रहा था.‘‘कुछ समय बाद की बात है. घर की सफाई करते वक्त चार्जर कोने से थोड़ा टूट गया. बस इस बात पर उस ने मुझे थप्पड़ जमा दिया. धीरेधीरे उस की ये हरकतें बढ़ने लगीं. वह मेरे साथ क्रूर और हिंसक व्यवहार करने लगा. उस के इस व्यवहार ने हमारे रिश्ते में खालीपन भर दिया. वह स्वयं को संतुष्ट करने के लिए मेरे साथ जोरजबरदस्ती भी करने लगा. फिजिकल और इमोशनल अब्यूज के साथ मैं सैक्सुअल अब्यूज की भी शिकार होने लगी. उस ने मुझे आगे पढ़ने या जौब करने की अनुमति भी नहीं दी. ‘‘1 साल होतेहोते मैं काफी डिप्रैशन में रहने लगी. मैं अपने घर लौटना चाहती थी, पर यह बात मैं उस से कहती, उस से पहले मैं ने अपनी एक दोस्त से इस की चर्चा की और सलाह मांगी. दोस्त ने सारी बात अपने बौयफ्रैंड से कह दी और उस ने सब कुछ मेरे पति से कह दिया. ‘‘इस बात पर वह बिफर गया. न सिर्फ उस ने मेरा फोन तोड़ा वरन बैल्ट उठा कर आधे घंटे तक मेरी पिटाई भी की. बाद में वह नौर्मल हो गया और माफी भी मांग ली. अब तो अकसर ऐसा होने लगा. मेरे घर जाने की बात पर वह मुझ से बुरा व्यवहार करने लगता.

‘‘2007 की गरमियों में वह करीब 15 साल की एक लड़की शेनिन को शिष्या बना कर ले आया. उस ने कहा कि वह उस लड़की को मुझ पर नजर रखने के लिए लाया है. मुझे जलाने के लिए वह उस लड़की को हर जगह साथ ले कर जाता. शेनिन के लिए कुछ कहने पर वह कहता कि वह तो बच्ची है. बाद में तो बैड पर हम दोनों के बीच सुलाने लगा. मैं ने स्पष्ट महसूस किया कि वह लाख उसे बेटी कहे, मगर वास्तव में उन के बीच गलत संबंध हैं. ‘‘मेरे द्वारा घर जाने की बात पर वह उग्र हो उठता और मारतापीटता. घर वालों और दोस्तों के आगे प्रेमपूर्ण व्यवहार करता. मगर पीछे उस का व्यवहार बहुत ही बुरा होता. एक बार तो उस ने मेरे पैर में ऐसा मारा कि वह नीला हो गया और सूजन आ गई. उस ने मेरा पासपोर्ट, लीगल डौक्यूमैंट्स भी अपने कब्जे में ले लिए थे और मेरे कंप्यूटर में स्पाई सौफ्टवेयर डलवा दिया. ‘‘सितंबर, 2007 में हम लीडरशिप कौन्फ्रैंस के लिए सिंगापुर गए. उस दौरान उस ने मेरे साथ जबरदस्ती की और कहा कि प्रैग्नैंट होने पर ही तुम घर जाने की जिद बंद करोगी. उस के इस व्यवहार की वजह से मेरी हालत बहुत खराब होती जा रही थी. रात में सोना कठिन हो जाता था. खाना नहीं खा पाती थी. अवसाद में रहने लगी थी. धीरेधीरे मेरी हालत ऐसी हो गई कि मैं स्वयं को खत्म करने की बात सोचने लगी. 24 सितंबर, 2010 को मैं ने बहुत शराब पी ली. मगर सहानुभूति की जगह यहां भी पति ने मुझ पर हाथ ही उठाया.

‘‘वह मुझ पर खराब चरित्र का आरोप लगाता. उसे लगता कि मैं जानबूझ कर लोगों के आगे उसे बदनाम करती हूं और दूसरों को आकर्षित करने का प्रयास करती हूं. ‘‘मैं जब भी घर जाने की बात किसी से डिसकस करती तो कहीं न कहीं से यह बात उस के कानों तक पहुंच जाती और वह मुझ पर और भी ज्यादा हिंसक हो उठता. यहां तक कि मेरे द्वारा अपने मांबाप से भी इस बारे में कुछ कहना उसे मंजूर नहीं था. मां से तो मैं ने इस स्थिति पर बात की थी, पर अब तक पिता को कोई खबर नहीं थी. ‘‘जुलाई, 2010 की बात है. मैं ने एक लैटर द्वारा पिता को सब कुछ बताने का निश्चय किया. मगर बाद में सोचा कि यह सही नहीं होगा. चूंकि पापा मम्मी से कहेंगे और बात फिर उस तक पहुंच जाएगी. मगर भूलवश मैं वह लैटर फाड़ना भूल गई, जिसे उस ने पढ़ लिया. अब लोगों के आगे ही वह मेरी बेइज्जती करने लगा. वह जानना चाहता था कि मैं ने इसे किस के लिए लिखा था, जबकि मैं ने यह कह कर उसे शांत करना चाहा कि मैं ने महज अपने अनुभव लिखे हैं. उसे मुझ पर विश्वास नहीं हुआ और मुझे मारने लगा. जान से मारने की धमकी देते हुए मेरे बाल पकड़ कर खींचे और रात में भी जबरदस्ती की.‘‘2012 में मेरे साथ शारीरिक विरोध करने या कुछ कहने का प्रयास करना छोड़ दिया. अंतत: 27 अप्रैल, 2012 को मैं उस जेल से छुटकारा पाने में कामयाब हो गई. दरअसल, अब तक मेरा पासपोर्ट उस के कब्जे में था. कुछ सप्ताह पहले पासपोर्ट मुझे दिया गया ताकि मैं यूएसए विजिट वीजा के लिए अप्लाई कर सकूं.

‘‘अपने दोस्तों और बचाए हुए  50 हजार की मदद से 1 माह की सावधानीपूर्ण योजना के बाद मैं भारत की फ्लाइट बुक कराने और चर्च परिसर पार कर एअरपोर्ट पहुंचने में सफल हो गई. मैं भारत आ कर किसी एनजीओ से जुड़ना चाहती थी. मैत्री इंडिया द्वारा मुझे सकारात्मक जवाब मिला. 27 अप्रैल, 2012 को मैं दुबई से मुंबईअहमदाबाद होते हुए दिल्ली आ गई. ‘मैत्री इंडिया द्वारा मुझे हर तरह की लीगल गाईडैंस मिली. वकील की सुविधा के अलावा पुलिस कार्यवाही से ले कर तलाक तक की प्रक्रिया में हर कदम पर सहयोग मिला. जौब प्रोटैक्शन भी हासिल हुआ. कानूनी रूप से मुझे अगस्त, 2014 में तलाक मिल गया और सितंबर, 2014 में पति ने भी दूसरी शादी कर ली.

‘‘इस दौरान जिस बात ने मुझे बेहद दुख पहुंचाया, वह थी मम्मी की सपोर्ट न मिलना. जब भी मैं पति के व्यवहार की शिकायत उन से करती, वे यही कहतीं कि ऐसा चलता है. मैं भी तो सहती हूं न. उन्होंने कभी यकीन ही नहीं किया कि उस ने मेरे साथ गलत व्यवहार किया है. फिलहाल पापा गोवा में हैं और मम्मी दुबई में. पापा की इमोशनल सपोर्ट है मुझे, मगर मम्मी की नहीं.’’

घरेलू हिंसा से बचाव

मनोवैज्ञानिक और समाजसुधारक अनुजा कपूर कहती हैं, ‘‘हमारे समाज की सब से बड़ी समस्या यही है कि महिलाओं को लगता ही नहीं कि उन के साथ घरेलू हिंसा हो रही है. समाज में यही धारणा व्याप्त है कि पति हमेशा सही होता है, वह कुछ भी कर सकता है. ‘‘समाज को बदलने के लिए हमें स्वयं को बदलना होगा. अब पिता की संपत्ति में बेटी को बराबर की हिस्सेदारी मिलती है. वह अलग हो सकती है. शोषित होने से इनकार कर सकती है. बच्चे मांबाप को रोल मौडल मानते हैं. पर जब वे देखते हैं कि कोई व्यक्ति आप का हाथ मोड़ रहा है, कपड़े फाड़ रहा है, धक्के दे रहा है या फिर गालियां बक रहा है. फिर भी आप उसे सही कहती हैं, क्योंकि वह आप का पति है, तो भला हम बच्चों को क्या सिखा रहे हैं? यह वूमन ऐंपावरमैंट नहीं. ‘‘अन्याय का विरोध करेंगी तो कानूनों की कमी नहीं. आप के हित में सरकार ने कानून बनाए हैं. आप को प्रोटैक्शन दिया जाएगा. रिस्ट्रैनिंग और्डर पास होगा. पूरी लीगल सपोर्ट मिलेगी. आप मैंटीनैंस के लिए भी आवेदन कर सकती हैं. ऐसे एनजीओ की भी कमी नहीं जो आप को सहयोग देंगे.’’

बचपन से समानता की सीख

यदि घरेलू हिंसा से भारत की लड़कियों को बचाना है, तो जरूरी है कि घर में बच्चों को शुरू से ही सही संस्कार दिए जाएं. उन्हें बताया जाए कि लड़केलड़की में कोई फर्क नहीं और ऐसा कतई नहीं है कि भाई अपनी बहनों के साथ मारपीट करें या उन्हें दबा कर रखें. जब तक वे बचपन से महिलाओं का सम्मान करना नहीं सीखेंगे, आगे चल कर भी बीवी पर हाथ उठाने की उन की आदत नहीं जाएगी. लड़कों को बचपन से जो यह सिखाया जाता है कि लड़के रोते नहीं, उस की जगह यह सिखाया जाए कि लड़के रुलाते नहीं.

डोमैस्टिक वायलैंस प्रिवैंटिव प्रोग्राम्स

यूके जैसे देशों में खासतौर पर महिलाओं को डोमैस्टिक वायलैंस से बचाने हेतु डोमैस्टिक वायलैंस प्रिवैंटिव प्रोग्राम्स यानी डीवीपीपी प्रोग्राम्स आयोजित किए जाते हैं. सप्ताह में एक दिन 2-ढाई घंटे का यह प्रोग्राम उन लोगों के लिए बहुत लाभकारी होता है जो अपने जीवनसाथी के प्रति अब्यूसिव और वायलैंट व्यवहार करते हैं. वैसे तो इस में डिसकशंस कराए जाते हैं, मगर साथ में कई तरह के इंटेरैक्टिव व्यायाम भी कराए जाते हैं ताकि यह ज्यादा वास्तविक और व्यक्ति की परिस्थितियों से तालमेल रखने वाला साबित हो. इस का मकसद पुरुषों को अधिक वायलैंट और अब्यूसिव होने से रोकने में मदद करना, उन्हें अपने जीवनसाथी का सम्मान करना और क्रोध पर काबू रखना सिखाया जाता है. आज के जमाने में जहां महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. ऐसे में उन के साथ भेदभाव और हिंसा करना गलत है. विश्व में हर साल लाखों परिवार घरेलू हिंसा की भेट चढ़ जाते हैं. क्या महिलाओं को स्वतंत्र रूप से जीने का हक नहीं? बेहतर है रिश्तों को दरकने से बचाया जाए.

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