विवाह एक स्त्री और पुरुष का कानूनी, सामाजिक, धार्मिक गठबंधन है या 2 व्यक्तियों का आपसी कानूनी समझौता जिस पर सरकारी मुहर लगती है और एकदूसरे के प्रति बहुत से अधिकार व कर्तव्य पैदा होते हैं. अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने 5-4 के बहुमत से फैसला दिया कि विवाह में एक जने का पुरुष और दूसरे का स्त्री होना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है और विवाह के बाद जिस तरह का कानून व समाजसम्मत संबंध स्त्रीपुरुष को मिलता है वह लिंग आधारित नहीं. सादे शब्दों में सेम सैक्स यानी समलैंगिक विवाहों को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने वैधता दे दी है जो पहले ही 36 राज्यों में वैध थी.
विवाह के बीच धर्म कब और कैसे कूदा यह कहना मुश्किल है पर सारी मुश्किलें धर्म वालों ने ही खड़ी की थीं कि उस से विवाह करो, उस से न करो, ऐसे करो, ऐसा न करने पर पाप लगेगा, तोड़ोगे तो नर्क मिलेगा, पति को परमेश्वर मानो, सौतनों को सहो, निपूती हो तो यह तुम्हारे पापों का फल है, पति छोड़ गया तो 7 साल तक इंतजार करो, मर गया तो उस के साथ जल जाओ या दफन हो जाओ जैसे फरमान प्राकृतिक नहीं, धर्म की देन हैं और इस तरह की सैकड़ों बंदिशों का समाज से कोई लेनादेना नहीं है.
समाज तो 2 व्यक्तियों के आपसी संबंधों को सहज स्वीकार लेता है जैसे 2 भाइयों के, पितापुत्र के, 2 साझेदारों के, मालिकनौकर के, मकानमालिककिराएदार के, सैकड़ों तरह से आदमी आदमी से व्यवहार करता है और समाज उसे स्वीकार लेता है. समाज तो आदमी की रखैल, शरीर बेचने वाली वेश्या तक को भी स्वीकार लेता है. धर्म ही संबंधों में अड़चनें लगाता रहा है और सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें पूरी तरह संविधान विरोधी करार दिया है.अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के अनुसार विवाह 2 व्यक्तियों का साथ रहने का समझौता है और लिंग के नाम पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. नतीजा यह है कि अब अमेरिकन जोड़े स्त्रीपुरुष, पुरुषपुरुष व स्त्रीस्त्री के हो सकते हैं और इन तीनों तरह के जोड़ों के आपसी अधिकार एकजैसे ही होंगे.
समलैंगिक जोड़ों को विवाहित मानने का अर्थ है कि दोनों की संपत्ति में साझेदारी होगी, विरासत का कानून लगेगा, दोनों को एकदूसरे के साथ ही रहना होगा और तीसरे की मौजूदगी तलाक का कारण बन सकेगी, दोनों मिल कर बच्चा गोद ले सकेंगे या डोनर स्पर्म या अंडाणु अथवा सैरोगैसी संतान उत्पन्न कर सकेंगे, जिन में से वह एक की बायोलौजिकल संतान होगी. विवाह का कानून जो हक सभी पुरुष को देता है, वे अब सभी समलैंगिक जोड़ों को मिल सकेंगे. भारत का सुप्रीम कोर्ट अभी इस सोच से लाखों मील दूर है और विवाह को धार्मिक संस्कार ही मानता है. विवाहों में जाति, धर्म, दहेज, पैसा उसी का नतीजा है. विवाहविच्छेद के बाद स्त्री की जो बुरी हालत होती है या विधवाओं का जो हाल होता है वह विवाह को धार्मिक संस्कार मानने से ही है. देखते हैं कि भारत का सुप्रीम कोर्ट क्याक्या सबक सीखता है अब.